Romance मै सिर्फ तुम्हारा हूँ

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अस्वीकरण
इस कहानी के सभी पात्र , घटनाए , स्थान सब कुछ लेखक के दिमाग की बिना परिवार नियोजन वाली प्रजनन प्रक्रिया का नतिजा है ।
इसे अन्यथा ना ले क्योकि लेखक बहुत ही ढीठ और बेशरम है , टिप्पणिओं मे ही आपकी ले लेगा और आप किंकर्तव्यविमूढ़ होकर रह जायेंगे ।
धन्यवाद
 
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UPDATE 009

अब तक आप सभी ने पढा कि कैसे 3D की लापरवाही से गरम तेल की कराही मे गिला कल्छुल पड जाने से आयुष को कितनी जिल्लत झेलनी पड़ी । देर सबेर 3D ने अपनी गलती मानी और फिर तवे सा हाईपर हुआ मामला ठण्डा हुआ । उधर जहा किस्मत ने आयुष बाबू की सब्जी मे पारुल नाम का गरम मसाला छिड़क दिया है वही शुक्ला भवन की मास्टर शेफ मीरा शुकला के दाल मे अशीष के गुस्से का नमक ज्यादा हुआ पडा है ।
आईये देखते है कि मीरा शुक्ला कौन सा छौका लगा कर अपनी दाल का स्वाद ठीक करने की तैयारी कर रही है ।
अब आगे


मायके की रेसिपी


शाम का समय करीब 7 बजे
लोकेशन : शान्ति देवी मिष्ठान भंडार, शिवपुरी - नवाबगंज, कानपुर

जैसा कि आप सब जान ही रहे हैं कि उस दिन की लभेड़ के बाद आशिष शुक्ला अपनी पत्नी मीरा शुक्ला से ऐसे मुह फुलाए बैठे है जैसे कद्दू
अब मीरा शुक्ला ने पिछ्ली तीन दिन से बहुत बार कोशिस की मगर आशिष बाबू का गुस्सा कम नही हो रहा था ।

असल मे इतने अखरोट-दिल भी नही है हमारे आशिष जी, बल्कि वो तो मन ही मन खुश थे कि उनकी रसमलाई सी बीवी को उसकी गलती का अह्सास हो गया है और वो आज आयुष के जाने के समय जब मीरा ने बेसन की लिट्टी से भरी टिफ़िन थमाई थी तो उन्हे खुशी भी हुई थी लेकिन मन में ।

तो आशिष बाबू ने भी यहा दुकान मे बैठे बैठे तय किया कि आज अगर मीरा ने उनसे पहल की तो वो उसे माफ कर देंगे ।

वही ठीक उसी समय शुक्ला भवन मास्टर शेफ मीरा शुक्ला द्वारा महगे मसालो से मह्काया जा रहा था । अरे वही मसाले जो अशिष बाबू खुद लाये थे ।
यहा किचन मे खाना बनाते हुए मीरा कान मे ईयरपोड्स डाले यूट्यूब से पति को मनाने की रेसिपी देख रही थी और बड़ब्डा रही थी ।

मीरा परेशान होते हुए - हे भगवान इ मुआ मोबाईल भी का दिखा रहो है हमे ,,,जे तो हमे भी पता है कि बिस्तर पर पति को कैसे खुश कई जात हय

मीरा - अरे ऊ बिस्तर तक आये तब ना ,,,का करे हम ,

तभी हाल से मनोहर जी आवाज आती है
मनोहर - ये दुल्हीन इहा आओ ,,, तुम्हाये घर से फोन आओ है लेओ बात करो

मीरा की हिक्की टाइट
मीरा मन में बड़बड़ाते हुए हाल मे आने लगी - हे भगवान कही चाची या बुआ ने उहा भी तो लभेड़ ना मचा दियो होगो ,,, चल मीरा देख का होवे वाला है

मीरा हाल मे आती है मनोहर उसे फोन देता है

मीरा - ह ह हा हलो!!!
सामने मीरा की मा होती है जानकी मिश्रा

जानकी - हा मीरा , हम बोल रहे है
मीरा - हा नमस्ते अम्मा ,
मीरा मनोहर से - बाऊजी हम किचन मे जा रहे है ,,सब्जी जल रहो होगो

मनोहर हा मे सर हिलाता है और मीरा फौरन फोन लेके खसक लेती है ।

मीरा - हा अम्मा बोलो ,,, हमाये वाले नम्बर पर काहे नाही की
जानकी मीरा को डांटते हुए - चुप कर तू ,,, जे पगलाय गयी है का ,,, इ का परपंच पढ रही है आजकल तू ,
जानकी - मेरिज भ्युरो खोले के हय का ,,,
मीरा जान गयी कि बात उसके मायके तक पहुच ही चुकी है तो सिवाय चुप रहने के अलावा कोई उपाय था ।

मीरा - सारी अम्मा ,,, अब का करे गलती हो गई तो ,,
जानकी भी कितना देर गुस्सा होती ,,,आखिर मीरा उसकी इकलौती संतान थी और प्यार दुलार बहुत था ही उन्हे भी ।

जानकी मीरा की हालत पर तरस खा कर - अच्छा इ बताव बबुआ( अशिष ) तो नाराज नाही है ना अब तोसे

मीरा सिस्कते हुए - नाही अम्मा ,,ऊ तबसे हमसे बात नाही कर रहे

जानकी - अच्छा ठीक है अब मन छोट ना करो ,,, अब जो इतना रायता फैला दी हो तो एक काम करो ,

फिर जानकी मीरा को कुछ घरेलू नुस्खे देती है जिसपर मीरा को शर्म और हसी आती है ।
मीरा शर्मा कर - भक्क नाही अम्मा ,, हिहिहिही

जानकी मीरा को डांट कर - अब ज्यादा दाँत ना चियारो ,,,जे हम कही रहे है उको करो ,,,,फिर काल्ह सबेरे जइसा होगो बता दियो

मीरा हस कर - जी अम्मा ,, ठीक है नमस्ते
फिर फोन कट जाता है और मीरा खाना बनाने लग जाती है ।


पोषक युक्त रबड़ी

इधर जहा मीरा खाने की तैयारियो मे पूरी तरह लगी हुई थी ,,,वही आशिष मन ही मन ये तय कर लिया कि आज जब सब कुछ सही करना ही है तो क्यू ना मीरा की मनपसंद रबड़ी लेके जाऊ ।

अब शुक्ला जी ठहरे सज्जन परिवार से , अगर घर मे कुछ ले जाये तो किसी एक के लिए थोडी ना जायेगा ।

तो उन्होने पाव भर रबड़ी बान्ध लिया और दुकान बढा कर निकल गये घर के लिये ।
थोडे ही समय में आशिष अपने निवास स्थान पर पहुचते है तो किचन से खाने की आ रही खुस्बु से ही मुह गिला कर लेते है ।

फिर वो एक नजर अपने बाऊजी के कमरे मे डालते है जहा दोनो दम्पति साथ मे बैठे संध्या भजन का रसपान कर रहे थे ।
आशिष भी मुस्कुरा कर किचन की ओर बढ़ते है जहा उनकी रसिली बीवी बतरन धुल रही होती है ।

आशिष वही किचन के दरवाजे पर खडे होकर मीरा को एक बार निहारते है और उनकी नजर मीरा की कमर मे पर जाती है और काम करने से मीरा पसीने से भीगी हुई थी ,,,ऐसे मे शुक्ला जी के दिल की चाय ने उबाल लेना शुरु कर दिया ।


उनकी नजरे मीरा के टाइट ब्लाउज के निचली पट्टी से रिस्ते पसीने पर जमी थी जो बूंद बूंद जूट करके मीरा के कमर तक जा रही थी ।



3pWM1

यहा आशिष बाबू अपनी कल्पना मे आंखे बंद किये सोच रहे थे कि काश वो अभी जाये और अपनी मीरा के कमर पर मुह से ठंडी फुक मारे ,,,,
वही मीरा की छठी इन्द्रि को कुछ आभास हुआ और वो गरदन घुमा कर दरवाजे पर देखती है कि उसके पति परमेश्वर हाथ मे शान्ति देवी मिष्ठान भंडार के प्रिंट वाली झोली लिये और आंखे बंद किये खडे होकर मुस्कुरा रहे है और उस मुस्कुराहट मे वो काफी आनन्द मे भी थे ।

मीरा को थोडा ताजुब हुआ और वो संस्कार वश तुरंत अपना पल्लू कमर से निकाल कर सर पर लिया और चल कर आशिष के पास गयी

मीरा - अरे आप आ गये का
आशिष की कल्पना टूटी और आन्खो के सामने अपनी मीरा को देख कर थोडा मुस्कुराये और फिर उन्हे अपनी स्थिति का ज्ञान हुआ और वो खुद को सामान्य करते हुए - अब ब ब हा हा ,


मीरा को कुछ कुछ अपनी पति की मुस्कुराहत पर शक हुआ तो वो मुस्कुरा कर बोली - जे इ झोली मे का लाये है

आशिष अभी भी अपनी कल्पना से पूरी तरह से निकल नही पाया था ,,,ना जाने क्यू आज उसे अपनी मीरा बहुत ही आकर्षक लग रही थी और इसी हड़ब्ड़ी मे वो ना जाने क्या बोल गया ।

आशिष - हा हा वो वो , रबड़ी लाये है अम्मा बोली थी

बस इतना बोल कर आशिष बाबू अपनी भावनाये छिपाने के लिए घूम गये और
फ्रेश होने के लिए उपर चले गये ।

इधर मीरा थोडा उलझन मे थी और मन मे बडबड़ाते हुए - जे अम्मा को गुलाब जामुन परसन्द रहो होगो , तो बा ने रबड़ी काहे लाई हैगी

मीरा रबड़ी की थैली को मेज पर रखते हुए- कही बा हमाये लिये तो ,,,

मीरा खुशी से चहक उठी और अभी हुई थोडी देर पहले की सारी घटनाओं को अपने हिसाब से अपनी कल्प्नाओ मे जोड कर देखने लगी ।

मीरा को थोडी शर्म आई और मुस्कुराते हुए वो अपनी जुल्फो को कान में फसाते हुए वापस अपनी क्रिया मे लग गयी ।

थोडी देर बाद हाल मे बैठक हुई खाने के लिए
मीरा ने सबकी थाली लगाई सिवाय खुद के
बारी बारी से उनसे बाऊजी और अम्मा को परोसा और फिर आशिष के पास जाते ही ना जाने क्यू उसकी सांसे बढ गयी ,, हाथ कापने लगे उसके , वो बिना आशिष को देखे खाना परोस रही थी ,वही आशिष बाबू मुस्कुरा कर मीरा को ही ताडे जा रहे थे और मीरा की नजर उनकी ओर घूमते ही मुह फेर लेते है ।

मीरा को इसका अह्सास होते ही वो थोडी सामन्य होती है और मुस्कुरा देती है ।
फिर खाने का प्रोग्राम शुरु हो जाता है और इधर किचन मे मीरा आशिष के द्वारा लाई गयी रबड़ी को पौष्टिक बनाने मे लगी थी ।

तिन कटोरी मे उसने रबड़ी निकाल कर उसमे बादाम और केसर डाल दिया । वही एक कटोरी मे अपनी मायके की रेसिपी के अनुसार शिलाजीत के कुछ दाने अन्दर मिला दिये ।

फिर मीरा ने बडी सावधानी से सबको एक एक कटोरी रबड़ी लगाई कि शुक्लाईन भडक पड़ी

शान्ति - जे का है दुल्हीन , जे जानत हो कि हम रबड़ी ना खाइत है फिर भी

मीरा अब क्या बोलती वो बस एक नजर आशिष को देखती है और आशिष को उसकी गलती समझ आ जाती है,,

अशीष मन मे मीरा पर प्यार जताते हुए - हे भोलेनाथ,, कितनी भोली हय हमाई मीरा ,,, पगली एतना भी ना समझी कि हम इ रबड़ी उका लिये ही लाये थे ।

इधर शांति को मनोहर जी जवाब देते है - का हुई गवा , अब परोस दई हय दुल्हीन ने तो खाय ल्यो

इस पर आशीष भी अपनी मीरा का बचाव करते हुए बोले - ऊ का है अम्मा कि आज शाम को ही ताजी रबड़ी बनी रही दुकान मा , तो हम लई आये ,,

अपनी मा को जवाब देकर आशिष मुस्कुरा कर मीरा को देखते हैं कि वो उन्के जवाब से संतुष्ट हैं कि नही ,,मगर अपनी मीरा ठहरी भारतीय नारी वो ऐसे मौके कैसे छोड दे कि उसे अपने पति पर गुस्सा दिखाने का मौका मिले ।
हालकी उसे आभास हो चुका था कि आशिष अब नाराज नही है उससे और इसी का फायदा उठाकर वो आशिष से रबड़ी की बात को लेके मुह फुला कर किचन मे चली गयी ।

इधर शान्ति अपने बेटे का मान रख कर रबड़ी खाने लगी , वही आशिष को चिंता होने लगी कि उसकी मीरा उससे नाराज हो गयी है ।


दाने दाने मे केसर का दम

तो शुक्ला भवन मे शतरंज की विसात उल्टी पड़ गयी ,,, ये अकसर सभी भारतीय मध्यम वर्गीय परिवार की दासताँ रही है कि लाख गलती पत्नी की हो और पति नाराज हो ,,,लेकिन पत्नी को बस एक तिनका भर मौका मिल जाये तो वो पूरी बाजी उलट देती है । वही हमारे शुक्ला भवन के युवा दम्पतियो के बीच हो रहा है ।

कहा पिछ्ले 3 दिन से मीरा शुक्ला अपने पति के आगे पीछे होकर प्यार की हरी चटनी चटाने की कोशिस मे थी , लेकिन आशिष बाबू तीखे से पहरेज का बहाना बनाये भागते रहे ।
मगर आज उनकी लाई रबडी ही उनके लिए खट्टी दाल हुए जा रही थी ।

इधर मीरा किचन मे जाने के बाद खुब खिलखिलाई कि बाजी उसके पल्ले मे थी ,,वही आशिष बाबू भी खाना खा कर उपर कमरे चले गये और मीरा की राह देखने लगे ।

कमरे मे टीवी पर क्या खाना खजाना चल रहा है इससे कोई फर्क नही था ,,,आशिष बाबू तो तडप रहे थे अपनी मीरा के लिए और बार बार झाक रहे थे कमरे से बाहर ।

तभी उनके चेहरे पर हसी की एक लकीर आई जो क्षण भर की थी ,,क्योकि मीरा कमरे मे आते ही बिना उन्हे देखे बिस्तर की ओर बढ गयी और अपनी रातचर्या के कार्यो मे लग गयी ।
अरे भई वही ,,गहने उतारना , बिस्तर लगाना और पानी रखना ।
आशिष बड़ी हिम्मत करके मीरा के पीछे गये और पीछे खडे रहे ।
मीरा इस वक़्त रात्रिविश्राम की तैयारी कर रही थी ।
आशिष बाबू गहन चिन्ता के डुबे थे और बडी हिम्मत से उन्होने मीरा का नाम लिया ।

आशिष - मी इ इ रा आ आ
बिस्तर की सिलवटे सहेजती मीरा के हाथ क्षणिक ही रुके थे आशिष के सम्बोधन पर और फिर वो वापस क्रियाशिल हो गयी ।

आशिष वापस आगे बढ कर बोले - मीरा हमायी बात तो सुनो
मीरा ने तो मानो तय कर लिया था कि पिछ्ले 3 दिनो का बदला भी आज ही ले लेना है तो पलटी और भडक कर बोली ।

मीरा - जे का मीरा मीरा लगा रखे है , 3 दिन का कलेश कम नाही पडो जे आज अम्मा की डाट भी सुना दी आपने हा

ये बोल कर मीरा आशिष के सामने से निकल कर सोफे की ओर टीवी बंद करने जाती है और आशिष मीरा के पीछे पीछे जाता है

आशिष बड़े ही भावुक भाव मे रुआसे - हमको माफ कर देओ मीरा ,,ऊ रबड़ी तो हम तूम्हाये लिये लाये थे ।

मीरा आशिष की ओर पीठ किये खड़ी थी लेकिन अपने पति के मुह से अपने लिये प्यार की भावना सुनकर वो बहुत ही रोमांचित मह्सूस करती है और जैसे वो पटलकर आशिष की ओर घूमती है तो वो भी भावुक हो जाती है क्योकि आशिष बाबू पूरी तरह से फफक पड़े थे ।

मीरा भाग कर अपने पति के पास जाती है और अपने पल्लू से उसके आंखो से आंसू पोछती हुई बोली - जे आप रो काहे रहे है ,,,

आशिष सिस्क कर - हमको माफ कर दो मीरा , हम तुमको 3 दिन से कितना जलिल किये ,,कित्ना डाटे और आज अम्मा से भी

मीरा तुरंत अशीष के सीने से लग जाती है और खुद भी फफक पडती है - जे आप ना रोवो प्लेज ,, आपको हमाई कसम है ,, जे गलती तो हमाई हैगी और माफी आप माग रहे है

अशीष मीरा को अपने सीने से लगाये काफी अच्छा मह्सूस करते है और दोनो के बीच के सारे गीले हुए शिकवे आशुओ मे बह जाते है ।

थोडी देर तक वो आपस मे बिना कुछ बोले चिपके रहे और माहौल शांत देख कर मीरा को कुछ ध्यान आया ।

मीरा मन मे - जे हमाई अम्मा वाली रेसिपी काम काहे नाही की,, कही इनके रोवे से वो वाली फीलिंग चली तो नाही गयी

चेक करने के लिए मीरा ने अपने हाथ आशिष के शर्त मे घुसायी और नग्न सीने को स्पर्श किया ,,,वही आशिष को सिहरन सी हुई ।

मीरा अशीष की बाहो मे इतरा कर कुनमुनाते हुए - ये जी ,,जे आप को कुछ फिल ना हो रहो है का

अशीष मुस्कुरा कर - हा हो रहा है ना ,,तुमाओ प्यार

मीरा चहक कर - मतलब अम्मा वाली रेसिपी काम कई गयी
आशिष चौक कर - कैसी रेसिपी
मीरा इतरा कर - वो छोडो ,,,जे बताओ आपको रबड़ी कैसी लगी हुउऊ

अशीष मीरा को अपनी बाहो मे झुलाते हुए - जे हमने तो रबड़ी खाई ही नही मीरा ,, तो का बताये

मीरा कुनमुना के आंखे उठाकर अशीष को देखते हुए बोली - काहे

अशीष - वो जब अम्मा तुमको डाट दी और तुम नाराज होकर रसोई मे चली गयी थी तो हमको इच्छा ही नही हुई ,,तो हमने अपनी रबड़ी बाऊजी को देदी

मीरा चौकी - का बाऊजी को ,,हाय राम इ का कर दिये आप
आशिष अचरज से - अरे का हुआ मीरा
मीरा अपना माथा पिट कर आशिष के अलग होते हुए बड़ी चिन्ता मे बिस्तर पर बैठ गयी ।

आशिष भी परेशान होकर उसके बगल मे बैठ गया - का हुआ मीरा ?? का बात है ??

मीरा उखड़े मुह से - का बताये हम , जे हमसे पाप करवा दिये आप ।

अशीष - पाप ,,कईसा पाप मीरा ? हमको कुछ समझ नाही आ रहा है

मीरा बड़ी झिझक के साथ बोली - जे वो रबड़ी हमने आप के लिए रखी थी ,, उमा हमने वोओओओ ताकत वाली दवाई मिलाई थी और आपने ऊ रबड़ी बाऊजी को ???

आशिष चौका - का कह रही हो मीरा ,,,मतलब बाउजि जैसे संत आदमी को तुमने ??

मीरा तुनक कर - हमने नई , जे आप ने करी है ये सब
आशिष चिन्ता में डूब कर - अब तो भोलेनाथ ही मालिक है ।

इधर एक तरफ ये दोनो युवा दम्पत्ति गहन चिंता मे डूबे थे वही शुक्ला भवन के पौढ़ दम्पतियो के मध्य मे भी चिन्ता का विषय ही चर्चा मे था ।

मनोहर - जे पहले तो ऐसा ना हुओ कभी आशिष की अम्मा ,,

शान्ति झल्लाते हुए - जे इ उम्र मे केसर खाओगे तो यही होगो ना

मनोहर परेशान होकर - अब करना का है अशीष की अम्मा इ बताओ

शान्ति देवी बिस्तर से उठते हुए- जे हमसे तो उम्मिद ना ही लगाओ इ उम्र मा आशिष के बाऊजी , हम जा रहे है बाहर सोने

और शान्ति देवी अपना एक तखिया और चादर लेके बाहर हाल की चौकी पर सोने चली गयी ।

अब कमरे मे मुन्शी जी अकेले पड़ गए और क्या करते ,,वो भी गूगल का माइक आइकन दबाते हुए अपनी सम्स्या से निजात पाने के घरेलू नुस्खे पूछने लगे ।

अब अगर आपके पास भी मुन्शी जी की सम्स्या के लिए कोई घरेलू नुस्खा हो तो कमेंट मे जरुर बता दीजिये ,,बाकी कहानी जारी रहेगी ।
आपके मनमोहक प्रतिक्रियाओ का इंतजार रहेगा ।
धन्यवाद
Nice and beautiful update....
 
Will Change With Time
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UPDATE 002


अब तक आपने पढा कि 3D अपने मित्र यानी कहानी के नायक को अपने ड्रामा कम्पनी मे एक रोल करने के लिए अपने पुराने कालेज , जहा वो दोनो बचपन से साथ पढे थे ।
मिस मनोरमा इंटरमीडियट कालेज , नवाबगंज , कानपुर
वहा आयुष को उसके पिता का घर आने का बुलावा आता है , तो वो जल्दी से 3D को घर चलने के लिये बोलता है और वो दोनो घर के लिए निकल जाते है ।
अब आगे


रास्ते मे
आयुष - अरे अरे घाट की ओर ले ना भाई , बाऊजी की स्कूटी लेनी है

3D - अबे हा बे , तुम्हाये बप्पा की सवारी तो हाईबे पे है

फिर वो जल्दी से वापस अटल घाट हाईवे पर जाते है और वहा से आयुष अपनी स्कूटी लेके घर की ओर निकल जाता है ।

वैसे तो दोनो का घर एक ही मुहल्ले मे था , मजह 100 मीटर की दुरी जान लो । वही उस्से ठीक 200 मीटर पहले बाजार के मुहाने पर आयुष के भैया आशीष शुक्ला की मिठाई की दुकान है । जो आयुष की माता जी के नाम पर है
शान्ति देवी मिष्ठान्न भण्डार

घर जाते जाते हुए रास्ते मे ही 3D ने अपनी बुलेट शान्ति देवी मिष्ठान्न भंड़ार के बाहर पार्क कर दी । फिर आयुष की स्कूटी पर बैठ कर आ गया शुक्ला भवन


भईया इस कहानी मे इंसानी किरदारो के साथ साथ शुक्ला भवन भी एक अहम किरदार है ।
अब कुछ महानुभाव अपनी खोपड़ी खुरचेन्गे कि आखिर अइसा का है इ शुक्ला भवन मे

तो आओ अब इस घर की भी खतौनी पढ लेते है ।

सटीक 2400 स्कवायर फुट का क्षेत्रफल का घेराव लिये कानपुर के नवाबगंज थाना क्षेत्र के शिवपुरी कालोनी का मकान नं 96 है हमारा शुक्ला भवन ।

शुक्ला भवन की डेट ऑफ बर्थ उसके सामने की दिवार पर खुदी हुई है - 10 मई 1970
वैसे तो इस भवन के कर्ता धर्ता और मुखिया श्री मनोहर शुक्ला ही है । लेकिन औपचारिकता के तौर पर जब इस भवन का कुछ साल पहले फिर से मरम्मत करवायी जा रही थी तब बड़े मोह मे श्री मनोहर शुक्ला ने भवन के गेट पर एक संगमरमर की प्लेट लगवा कर अपने स्वर्णवासी पिता श्री का नाम खुदवाया ।


शुक्ला भवन
स्व. श्री राधेश्याम शुक्ला
शिवपूरी 23/96 , नवाबगंज

ये तो हो गया शुक्ला भवन का बाह्य चरित्र जो दुनिया जमाने को दिखाने के लिए है
अब थोडा इनके भीतर के
आगन - कमरे कितने आचार × विचार × संस्कार मे बने है और एकान्त विचरण का स्थान यानी शौचालय कितना स्वच्छ और सामाजिक गन्दगी से दूर है ।
ये है शुक्ला भवन का जमीनी हकीकत यानी की ग्राउंड फ्लोर का नक्शा जो मनोहर शुक्ला जी के स्व. पिता श्री राधेश्याम शुक्ला जी द्वारा बनवाया गया था ।

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और ये है उपरी मंजिल जो स्वयं मनोहर शुक्ला जी ने कुछ सालो पहले तब बनवाया था जब उनके बड़के ब्च्चु अशीष शुक्ला की शादी तय हुई थी ।

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अब इस घर के ग्राउंड फ्लोर पर मनोहर शुक्ला अपनी धर्मपत्नी शान्ति शुक्ला के साथ रहते है और बाकी ऊपर उनके बड़े बेटे और बहू के लिए बाल्किनी से लगा कमरा था । एक कमरा हमारे आयुष बाबू का था और एक गेस्टरूम ।

वापस कहानी पर
आयुष शुक्ला तेज धडकते दिल के साथ फटाफट गाड़ी को शुक्ला भवन के सामने पार्क करते है और जल्दी से स्कूटी के शिसे मे खुद को निहार कर बाल वाल सवार कर 3D की ओर घूमते है और उनका पारा चढ़ जाता है

कारण ये थे अभी थोडी देर पहले 3D भैया ने जो पान खाई वो उगल तो दिया रास्ते मे लेकिन होठो से उसकी लाली और गाल से छीटे ना साफ किए

आयुष 3D का गम्छा जो उसके गले मे था उसका किनारा पकड के 3D के होठ पर दर कर साफ करते हुए - अबे ये क्या बवासीर बहा रहे हो बे ,,, जल्दी से कुल्ला करो , साले अपने साथ हमको भी पेलवा दोगे ।

3D मुस्कुरा कर मुह पोछता हुआ गेट खोल कर अन्दर शुक्ला भवन मे घुसते हुए - भैया बस दु मिंट

फिर 3D फटाक से शुक्ला भवन के बाहरी परिसर के दाई तरफ बने एक बेसिन के पास फटाफट
कुल्ला गरारा कर मुह पोछते हुए वापस आता और वो दोनो हाल मे प्रवेश करते है ।

हाल मे एक बैठक लगी है
जहा आयुष के पिता जी , उसके मामाजी और उसकी माता जी बैठी हुई है और वही बगल मे आयुष की भाभी खड़ी है अपनी सास के बगल मे सर पर पल्लु काढ़े
सास और बडकी बहू दोनो की नजरे जीजा-साले यानी आयुष के पापा-मामा के बीच पास हो रही तस्वीरो और उससे जुडी जानकारी पर जमी हुई थी ।

जी हा आज फिर आयुष के मामा जी श्री बांकेलाल जी , आयुष के लिये शादी का रिश्ता लेके आये थे ।

हाल मे प्रवेश करते ही आयुष मामा को नमसते करता है और अंदर का माजरा जानने समझने की कोशिस करता है

इतने मे 3D आयुष के मामा और पिता को प्रणाम करता है । फिर आयुष के मा के पैर छुए हुए - अम्मा आशीर्वाद

शान्ति मुस्कुरा कर - हा खुश रहो बच्चा
तभी 3D की नजर आयुष की भाभी मीरा पर जाती है

3D हाथ खड़ा कर मीरा से हस कर - औ भौउजी चौकस!!!!

मीरा तुनक के - कहा लिवाय गये थे तुम ब्च्चु को सबेरे सबेरे ,,ना चाय ना कुल्ला

वही आयुष की माता शान्ति भी मीरा की बात पर 3D को ऐसे देखती है कि मानो उसके सवाल मे उनकी भी हा हो

3D आयुष की मा के पाव के पास जमीन के पास बैठ कर - उ का है अम्मा , आज हमाये स्कूल मा है अनुयल पोरिग्राम, तो वही घुमाये के लिए लियाय गये थे ।

3D एक नजर जीजा साले की ओर देख कर वापस शान्ति से - इ का हो रहा है

शांति मुस्कुरा कर - अरे ब्च्चु के लिए रिश्ता आया है ,, ले तुहू देख

उधर आयुष अपनी शादी की बात सुन कर तनमना गया लेकिन बाऊजी के डर से अम्मा से बात करते हुए - अम्मा इ का है सब, फिर से

शान्ति कुछ बोलती उससे पहले आयुष नाराज होकर उपर चला जाता है ।

ये नया नही था आयुष के लिए जब रिश्ता आया था । हा लेकिन जॉब मिलने के बाद शान्ति की जल्दीबाजी आयुष की शादी को लेके ज्यादा ही होने लगी
हालाकि आयुष के पिता जी बहुत ही खुले विचार वाले थे और वो खुद चाहते थे कि आयुष खुद की पसंद और जब उसकी मर्जी हो तब ही शादी करे । लेकिन शुक्ला भवन की मैनेजर श्रीमती शान्ति शुक्ला को इस बात के लिए ऐतराज था और क्या कारण था इसका ये तो वो ही जाने ।

इधर आयुष बाबू अपना मुह फुलाए छत पर कमरे मे चले आये ।
मुह इसलिये फुला था कि उनकी दिली इच्छा थी कि वो भी फिल्मो के हीरो की तरह कोई अच्छी सी लड़की पटाये और उसके साथ समय बिता , मिल कर कुछ नये ख्वाब सजाये और फिर शादी करे ।

ऐसा नही था कि आयुष अपने पिता से डरता था , बस वो उनका सम्मान बहुत करता था क्योकि मुन्शी जी थे बडे गंभीर इन्सान , भले ही मानसिकता अच्छी थी लेकिन एक भारतीय मध्यम वर्गीय बाप का प्यार जताने का अपना तरीका होता है । वो कभी आपको आपके अच्छे काम के लिए सामने से शाबासी नही देगा ।
यही हाल आयुष बाबू के साथ भी था कि आईआईटी पास करने से लेके डेढ़ करोड़ का सालाना पैकेज की नौकरी मिलने के बाद भी आज तक मनोहर शुक्ला ने कभी उनकी पीठ नही थपथपाई ।
जिसका कचोट आयुष के मन मे हमेशा रहता था । काफी समय से उम्मीद का दिया लिये थक गये थे तो पिता से सम्मुख नही होते थे ज्यादा ।
इतना सब होने के बाद भी आयुष ने कभी भी अपने पिता को तिरसकार की दृष्टी से नही देखा ।

एक तरफ जहा आयुष बाबू अपने भविषय की चिन्ता मे लिन और थोडा तुनमुनाये थे वही निचे हाल मे

3D शान्ति के हाथ से तस्वीर लेते हुए - लाओ अम्मा दिखाओ हमको ,, आयुष का ब्याह ना SSC का रीजल्ट हो गया है , फाइनल ही नही होई रहा है

शांति हस कर - धत्त ,,,हे लल्ला जरा कौनौ परसन्द कर ना एक इ दुनो म से

3D दो लड़कियो की फ़ोटो देख रहा था - एकदम चऊकस अम्मा ,,,इका हमसे कराये देओ और इका अपने बच्चु से

3D की बात सुन कर सब हसने लग जाते है
इन सब के बीच मनोहर शुक्ला काफी गंभीर रहे और कुछ सोचने के बाद अपने साले साहब यानी आयुष के मामा से कहते हैं- ऐसा है बाँकेलाल तुम आज आराम करो कल सुबह तड़के निकल जाना मथुरा और ये दोनो रिश्ते के बारे में हम आयुष से बात कर बताते है फिर ।

अब घर मे भले जोर जबरदस्ती शान्ति शुक्ला चला ले , लेकिन मुन्शी जी के फैसले की इज्जत तो वो भी करती थी ।
थोडी देर मे आयुष के मामा ने अपना तान्ता बांता पोथी-पतरा समेटा और बैग मे रख लिये ।
थोडी देर बाद खाना की बैठक हुई और 3D अपने काम से निकल गया था ।
आयुष बाबू अभी भी मुह फुलाये अपने कमरे मे रहे ।
खाने के वक़्त घर मे उपस्थित सभी को आयुष की खाली टेबल पर खटक हुई और मुरझाये चेहरे से एक दुसरे को देखा लेकिन इस पर कोई चर्चा नही हुई ।

माहौल ठण्डा होता देख मीरा ने पहल कर खुद से सबको खाना परोसा और थोडी जोर जबरदस्ती कर खाना खिलाया और खुद से एक प्लेट मे खाना लेके उपर आयुष के कमरे मे जाती है ।
जहा आयुष किसी मित्र से फोन पर बातो मे व्यस्त होता है और दरवाजे पर दस्तक पाते ही फोन रख कर दरवाजा खोलता है ।

आयुष - अरे भाऊजी आप ,,,आओ
मीरा थोडा आयुष का मूड ठीक करने के अंदाज मे कुछ मुस्कुरा कर कुछ इतरा कर - हा , हम , अब चलो जगह दो

आयुष दरवाजे पर खडे होकर अपनी भाऊजी का मुस्कुराता चेहरा देख कर सब भूल गया , अपना दर्द तकलीफ , भविष्य की चिन्ता ।

आखिर कुछ ऐसा ही तो था हमारा हीरो एक दम मासूम भोला और प्यारा
उसको लाख तकलीफ हो , हजार चिन्ताये घेरे हो लेकिन कोई उससे प्यार से मुस्करा कर बात कर ले वो अपना सब कुछ भूल कर उसकी खुशी मे शामिल हो जाता था ।

आयुष मुस्कराते हुए आंखो से खाने की थाली दिखाते हुए - का भाऊजी आज भैया का बखरा (हिस्सा ) हमको देने आई हो का हिहिहिही

मीरा थोडा शर्मायी और आयुष को धकेल कर कमरे मे घुसते हुए - जे एक बात तो तुम समझ लो देवर बाबू ,,,जे दोहरी बातो वाला मजाक हमसे तभी करना जब भईया के सामने भी हक जमा सको ,,,, जे चोरी चोरी नैन मटक्का अपनी मुड़ी से करवाना

आयुष मीरा के तीखे तेवर से थोडा सहमा लेकिन उसे पता था ये उसके और उसकी भाभी के बीच की प्यारी सी नोक झोक थी जो समान्य थी और उसे अपनी भाभी को छेड़ कर तुनकाने मे मजा आता था आखिर उनका स्वभाव था ही कुछ ऐसा
आयुष उनको थोड़ा शांत करने और अपने दिल का हाल बताने के लिये मीरा का हाथ पकड कर बेड पर बिठाता है

आयुष थोड़ा परेशान होकर - भाऊजी काहे आप समझा नही रही हो अम्मा बाऊजी को कि अबही हम ब्याह नाही करना चाहते है ,

मीरा थोडा मुस्कुरा कर - अरे अभी कर कौन रहा है ,, तुम देख लेयो , समझ लेयो , मिल लेयो ,,, वैसे भी खुशी मनाओ तुम्हाये जितना हमको भेरायिटी नही मिला था परसन्द के लिए

आयुष मीरा की बाते सुन कर थोडा मुस्कुराता है फिर कुछ सोच कर उदास हो जाता है कि शायद उसकी बाते उसकी भाभी भी नही समझ पा रही है

मीरा आयुष को चुप देख कर - अरे बाबू ,,चिन्ता ना करो कोय तुमको जबरदस्ती ना करोगो ।
अब जोका किस्मत मे लिखो होगो वाई इ शुक्ला भवन की जूनियर इंचार्ज हैगी ।

आयुष थोडा उलझन और उत्सुकता से - जूनियर इंचार्ज
मीरा हस कर - हा अब आयेगी तो हम सीनियर इंचार्ज हो जायेंगे ना हिहिहिही

आयुष अपनी भाभी की बात सुन कर हस देता है और फिर खाना खाता है ।

उसी शाम को 5 बजे आयुष शुक्ला सो रहे होते है कि उनके मोबाईल की घंटी बज उठी और फोन पर 3D होता है

3D - हा बाबू तुम फटाफट तैयार हो जाओ हम 10 मिंट म पहुच रहे है

आयुष को शायद याद नही था कि उसे आज रात की ड्रामा मे रोल करना था तो वो हुआअस भरते हुए - क्याआआ हुआआआ 3D कोई बात है क्या

3D - अरे जाना नही है क्या ड्रामा सेट पर
आयुष को याद आता है तो वो झट से दीवाल पे टंगी घड़ी को देखता है और बोलता है - हा यार ,,ठीक है तुम आओ हम तैयार हो रहे है ।

फिर फोन कटता है और आयुष बाबू मस्त तैयार होकर निचे हाल मे आते है और किचन मे लगी अपनी भाऊजी को आवाज देते है ।

इस वक़्त शाम के समय घर मे अकसर कोई होता नही है
क्योकि शान्ति जी अपने सत्संग के लिए निकल जाती है और मनोहर जी अपने डिपार्ट वालो से मिलने जुलने और थोडा घूमने पार्क की ओर निकल जाते है

मीरा हाथ मे कल्चुल लिये बाहर आती है ,,शायद किचन मे कुछ भुन रही थी - हा बाबू बोलो का हयगो

आयुष बाबू अपनी बाजू फ़ोल्ड करते हुए जल्दी मे - भाऊजी फटाक से एक कप चाय बना दो ,,नाही दो ,वो 3D भी आई रहा है

मीरा एक नजर टिप टॉप तैयार हुए आयुश को देखती है और मुस्कुरा कर -- हाय हाय हाय ,, आज कहा गिरी इ बिजली

आयुष थोडा सिरिअस होते हुए - भाऊजी अबही कुछ ना ,,लेट होई रहा है प्लीज चाय बना दो ना

मीरा अपने मुताबिक जवाब ना पाकर तुनक जाती है और बड़बड़ाते हुए किचन मे घुस जाती है

आयुष बाबू अपना जुता जो हाल के एक किनारे दरख्त मे रखा था वहा से निकालते है और उसे साफ कर रहे होते है एक गंदे कपड़े से कि 3D हाल मे घुसता है

3D मुह पर हाथ रख कर थोडा खासते हुए - उह्ह्हुऊऊऊ ,,, का गरदा मचाये हो शुक्ला तुम

आयुष मुस्कुरा कर जुता साफ कर उसे लेके हाल मे लगी कुर्सी पर बैठ जाता है और पहनने लगता है

तभी किचन से मीरा दो कप चाय लेके आती है

3D चाय देख के - अरे भाऊजी दो ही कप ,,हमसे फिफ्टी फिफ्टी करेक ह का

मीरा जो थोडी देर पहले ही आयुष के जवाब से भड़की थी - का फिफ्टी फिफ्टी 3D भैया का फिफ्टी फिफ्टी ,, औ जे तुम फिर से जर्दा वाला पान खाये हो का


3D तुरंत मुह पर हाथ रख लेता है और एक नजर आयुष की ओर देखता है ।
मीरा - उका ना देखो तुम खाली हमका जवाब देओ ,,,औ कहा लिया जा रहे अब ब्च्चु को इतना टाईम फिर से

3D को उसका मजाक उसी पर भारी पड़ गया था तो वो बनावती हसी लाते हुए - अरे भाऊजी हेहेहेहे ,,कहा पान खाये है हम औ हम तो आयुष को अपने कालिज वाले पोरिग्राम मा लिवा जा रहे है

मीरा एक नजर आयुष को देखी और फिर अपनी कमर पर हाथ रख कर - औ वापस कब ला कर छोडोगे इका घर

3D चाय का सिप लेते हुए ह्स कर - इहे कोई 11 12 बजे तक

आयुष ना मे सर हिलाता है तो
3D हड़बड़ा कर - मतलब 11 बजे से पहीले ही , हा पहिले ही लेते आयेंगे

मीरा थोडी सोच कर - ठीक है, लेकिन 11 बजे से कान्टा एक सूत भी आगे ना जाये , नाही तो यहा दुसरी नौटंकी शुरु करवा देंगे हम इ जान लेओ ।

तबतक आयुश अपनी आधी खतम चाय छोड कर 3D को लेके बाहर जाता हुआ - हा भाऊजी हम आ जायेन्गे समय से आप अम्मा बाऊजी को खाना खिला देना ।

इससे पहिले मीरा अपनी कोई बात कहती वो दोनो फटाफट निकल जाते है ।

रास्ते मे गाड़ी पर
आयुष 3D के सर पर मारता है
आयुष - साले कितनी बार कहे है तुमसे की भाउजि से ना अझुराया करो ,, औ साले तुम ये पनवाड़ी बनना कब छोड़ोगे

3D - अरे कम कर दिया है यार, अब आदित बदलन मा टाईम तो लागि ना


ऐसे ही बाते करते हुए आयूष और 3D कालेज पहुच जाते है और अपनी तैयारियो मे जुड़ जाते है , रात 8 बजे का शो शुरु होने का समय होता है ।
एक एक प्रोग्राम शुरु किये जाते है बारी बारी लेकिन अपने हीरो की एन्ट्री मे समय था ।

इधर शुक्ला भवन मे मीरा खाने परोसने की तैयारी मे थी । शान्ति देवी भी अपने सतसंग से वापस आ चुकी थी । हाल मे आयुष के पिता जी और उसके भईया बैठे थे ।

आशीष - मीराआआआ ,,, इ ब्च्चु कहा है दिखाई नही दे रहा है
मीरा किचन से - हा ऊ 3D भैया के साथ अपने कालिज गये है । आज कोई फनसन है उहा

आशीष मीरा के जवाब से सन्तुष्ट होता है और अपने पिता से कुछ बोलना चाहता है कि उसकी नजर गम्भिर और शांत होकर किसी गहरी सोच मे डुबे हुए अपने पिता पर जाती है ।

उसे अपने पिता का ऐसे सोच मे डूबा होना थोडा खटक जाता है
वो अपने पिता के पास होकर - बाऊजी क्या सोच रहे है

मनोहर - कुछ नही आशीष , सोच रहे है बच्चु को हमसे का नाराजगी है जो ऊ हमसे बात नहीं कर रहा है

आशीष ऐसे भावुक बाते सुन कर थोडा माहौल हसनुमा करता हुआ -- अरे नाही बाऊजी , कोनो नाराजगी ना हयगी , ऊ तो बचपन से शर्मीला है और आपके सामने आने मे हिचक करता है ।

मनोहर अपने दिल की भड़ास निकालते हुए - अरे वही तो ,,,काहे ऊ अइसा करी रहा है , अगर ऊ का मन मे कोई बात हो तो एक बार हमसे कहे का चाहि ,

तब तक हाल मे शान्ति जी प्रवेश करती है - अगर ऊ बात नाही करत हय तो तुम्हू कौन सा पहिल कर लेत हो ,, तुम्हू तो बात नाही करत ब्च्चु से

शान्ति मनोहर को समझाते हुए -- चुप्पी रिश्तन की अहमियत को खोखला कर देतो है आशीष के बाऊजी

शान्ति - समय है अबही पहिल कर लो, इक बार ब्च्चु नौकरी के लिए निकल गवा तो यो मौका भी निकल जायोगो

मनोहर थोडा सोच विचार कर - ए आशिष जरा बहू को पुछ,, आयुष अब तक अयोगो

आशिष -- ए मीराआआ ,, इ ब्च्चु कब तक आने को बोलो है

मीरा किचन से बाहर आकर - इहे कोऊ दस इगारह बजे तक

मनोहर मुस्कुरा कर - ठीक है कल सुबह उका हम बात कर लेंगे ,, चलो खाना खा लेओ सब


फिर आशिष को थोडा राहत होती है और सारे लोग खाना खाने चले जाते है


जारी रहेगी
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मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग में बाप का रोल हमेशा एक छुपा हुआ सहायक की तरह होता हैं। बेटा चाहें कितना भी कामयाबी हासिल कर ले पर बाप सामने से बेटे की पीठ थपथपाने में थोड़ा कतराता हैं। शायद उन्हें डर लगता होगा कहीं उनका प्यार जताना उनके बेटे को रह से न भटका दे।

आयुष और उसके बाप के बिच कोई मन मुटाव नहीं है ऐसा जान पड़ता हैं। शायद कुछ ओर हो सकता हैं जिससे दोनों बाप बेटे की बीच एक खाई बन गया हों।

शादी वाला मसाला हर घर की है। लड़का जवान हुआ नहीं की उसे बंधन में बंधने को घर वाले जोड़ीदार ढूंढने लग जाते हैं। आयुष के साथ भी वैसा ही हों रहा हैं। आयुष को एक अच्छी पैकेज वाला जॉब मिल गया हैं। अब घर वाले आयुष को शादी के बंधन में बंधने के लिए लड़की ढूंढ़ रहे हैं। लेकिन आयुष बाबू अभी शादी के पक्ष में नहीं है। अब देखते है आगे किया होता है?

अदभुत अतुलनीय लेखन कौशल:clapclap::clapclap::clapclap::clapclap:
 
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पिछले भाग मे शुक्ला भवन के बारे मे आप सभी ने पढा और यहा कैसे किस किरदार मे लोग है वो भी आप समझ ही गये होगे । नायक की माता को उनके लडके के शादी की चिन्ता है और वही उसके पिता को उसके दुर जाने की और इन सब से अलग हमारे नायक को आज के अपने परफोर्मेंस की चिन्ता है तो चलिये ले चलते है आपको मिस मनोरमा इंटरमिडिएट कालेज नवाबगंज , कानपुर
जहा 3D भैया की अल्बेला ड्रामा कम्पनी आज के अनुवल प्रोग्राम मे एक नाट्य पेश करने जा रही है ।

अब आगे

मिस मनोरमा कालेज का सेमिनार हाल तालियो की गड़गड़ाहट और सिटीयो की आवाज से गूंज रहा था क्योकि अभी अभी कार्यक्रम के संचालक महोदय ने एक हास्य नाट्य प्रस्तुत होने की घोषणा की थी ।

स्टेज का पर्दा खुलता है और सामने दीन-ए-इलाही जलालुद्दीन मुहम्मद बादशाह ए अकबर का सेट लगा हुआ था ।
मन्च पर सामने की तरफ अकबर अपने आसन पर बिराजमान थे और 3 मंत्रीयो और शह्जादे सलीम की तसरिफ भी ऐसे ही लगाई गयी थी की audience को उनका लूक सही से दिखे ।
कुछ पहरेदार भी खडे थे
स्टेज के एक किनारे म्यूज़िक टीम ने अपना तासा बजाया जिससे आभास हो गया कि सभा की शुरुवात हो गयी थी ।

तभी एक गाने की तर्ज पर एक नर्तकी ने बगल से आकर अपना चेहरा ढके हुए एक नृत्य पेश किया और फिर बादशाह सलामत की पैरवी कर पीछे हट गयी ।

अकबर एक तुकबंदी भरे अंदाज मे - दिवान जी ,,, आज इस कनिज से क्यू किया कोटा पुरा ,, आखिर अरे कहा है हमारी मलाइका अरोरा

सेट पर एक बगल का मंत्री खड़ा होता है - माफी हुजूर , लेकिन अनारकली को हो गया है गुरुर


अकबर थोडा रोब मे - अगर हो गया है उसे गुरुर
तो निकाल फेको उसे महल से दुर
और खोजो कोई नयी गीता कपूर
दिवान - जी हुजूर , अभी बजवा देते नगर मे डँका, मिल ही जायेगी कोई प्रियंका

एक तरफ जहा स्टेज पर सामने रंगमच जमा हुआ अपने जोर पर था वही स्टेज के पीछे आयुष बाबू अपने रोल का ड्रेसअप किये नर्वश हुए जा रहे थे और बार बार डायलाग की पर्ची पढ रहे थे ।

तभी 3D भागता हुआ आता है तो आयुष को पसीना बहाते देख - अबे का यार शुक्ला , काहे इतना नरभसाय रहे हो

आयुष झल्ला कर - यार हमसे ना होगा ये ,, एक भी डायलोग हम याद नही कर पा रहे है

3D - यार अब तुम्हाये सीन का समय हो गया है तो तुम अपनी नौटंकी ,,,,,,

तभी बाहर आयुष के सीन के लिए पर्दा गिरता है तो 3D उसका हाथ पकड कर खिच कर स्टेज पर ले जाता है।

3D आयुष को समझाते हुए - बाबू तुम बस अपनी ये अनारकली वाली अदाये दिखाना बाकी डायलोग हम बगल से बोलते रहेन्गे ,,और कोसिस करना की जब डायलोग चले तो अपना मुह छिपा लेना

तबतक सलमान जो सलीम के रोल मे था वो आता है - 3D भैया जल्दी करो रोल का समय होई रहा है

फिर सारे लोग अपने काम पर लग जाते है और एक बगीचे के सीन पर मंच का पर्दा खुलता है ।
अनारकली ( आयुष) एक पेड़ के किनारे खड़ा होती है और सलीम( सलमान) उसके पीछे एक गुलाब लेके खड़ा होता है ।

सलीम - आज तुम दरबार मे क्यू नही आई अनारु

3D के कहे अनुसार आयुष तुरंत मूह फेर लेता है और बगल से 3D अनारकली का डायलोग बोलता है -- हम अब दरबार नही जाना चाहते है शहजादे ,

क्योकि ठीक नही है बादशाह सलामत के इरादे ।।

सलीम एक कदम आगे जाकर अनारकली के कन्धे पकडता है जिससे आयुष थोडा खुद को uncomfortable मह्सूस करता है

सलीम - अब यू ना रुस्वा हो मेरी जान ,
आखिर बुड्ढों के भी होते है अपने अरमान ।


इधर audience मे हसी और तालिया सिटिया जोरो पे होती है

आयुष सलमान से थोडी दुर होकर खड़ा हो जाता है
अनारकली आहे भरने के भाव मे - आखिर कब मुझे सहना पडेगा ,,
थके पैरो मे झन्दू बाम मलना पडेगा ।।


सलमान वापस से आयुष के कन्धे पकड लेता है
सलीम - तुम ही बताओ मै क्या करु ये हसिना ,
जब बाप ही मिला है मुझे कमीना ।।


अनारकली (आयुष ) अपना चेहरा सलीम के तरफ घुमाकर - जीना है साथ मे तो पल पल यू मारना क्या,
और जब प्यार किया है तो डरना क्या ।।



ये डायलोग खतम होते ही आयुष यानी अनारकली सेट से हट जाती है ।

वही सलीम थोडा रोने का नाटक कर निचे बैठते हुए - अगर मैने ये अब्बा को बता दिया तो कयामत आ जायेगी ,
घर से निकलना तो दुर कमरे की वाईफाई भी बन्द हो जायेगी ।।


इधर पर्दा गिरता है और एक नये सीन की फटाफट तैयारी होती है

उधर आयुष पीछे जाकर बैठ जाता है और कपडे निकलता है तब तक 3D हसते हुए - अबे यार मस्त छमिया लग रहे थे बे
और आयुश के गाल खीचता है

आयुष झल्ला कर - अबे हटो बे ,,,साले तुम्हाये चक्कर मे तुम्हारा सलीम हमको सच की अनारकली समझ बैठा था,,,,

3D हसने लगता है
आयुष झल्ला कर - अबे हसो मत 3D ,,,,फट रही थी हमारी यार

आयुष कपड़े बदलते हुए - अब चलो तुम्हारा काम हो गया छोड दो हमे घर

3D उसके कन्धे पर हाथ रख हसते हूए - अबे इतना चौकस परफारमिन्स दिये हो बे थोडा देख तो लो तुम्हारा आशिक का कर रिया है स्टेज पर

फिर वो दोनो वापस मन्च के बगल मे खडे होकर बाकी बचे नाट्य का आखिरी सीन देख रहे होते है । जहा अकबर और सलीम के बीच जुगलबंदी भरे हास्य संवाद चल रहे होते है ।

अकबर - सलीम तुम ऐसा करोगे हमे ज्ञान ना था ,
थोडा भी अपने अब्बा के अरमानो का ध्यान ना था।।


सलीम - अब्बा हुजूर अनारु मेरी है ये जान लो ,
करवा दो निगाह हमारा और अपनी बहू मान लो।।


अकबर रोश मे - हमे ही नही तुम्हारी मा को भी नागवार होगा
जब एक कनिज के लिए बाप बेटे मे मार होगा।।


ये बोलकर अकबर दुसरी से मन्च से हट जाता है
सलीम दुखी होने के भाव मे - ना खुदा मिला ना मिसाले सनम ,
बाप बाप होता है ये समझ गये हम।।


सलीम और अकबर के बीच के संवाद से आयुष भी बहुत हस रहा था वही audience भी फुल जोश मे तालीया सिटिया बजा रही थी ।

तभी मन्च का पर्दा गिरता है और संचालक नाट्य समाप्ति की घोषणा करता है ।

इधर 3D और आयुष भी निकल जाते है घर के लिए
रास्ते मे वो एक रोड साइड ठेले पर छोले भटूरे खाते है और फिर समय से 11 बजे तक घर आ जाते है ।


अगली सुबह
सारे लोग नास्ते के लिए हाल मे इकठ्ठा होते है

शान्ति , मनोहर जी को आयुष की तरफ इशारा करती है तो मनोहर जी उनहे इत्मीनान होने का कहते है ।
इधर नासता खतम होता है और आशिष दुकान के लिये निकलता हुआ --- ठीक है बाऊ जी हम दुकान के लिए निकल रहे है

आयुष - भैया हम भी चले दुकान , यहा घर मे बोर हो जाते है बैठे बैठे

अशीष एक नजर अपने पिता को देखता है लेकिन वो मना भी नही कर सकता था तो मनोहर जी हा मे इशारा करते है

आशिष हस कर - हा हा क्यो नही आओ चलो
फिर आयुष भी आशिष के साथ निकल जाता है दुकान के लिए

इधर इन दोनो के जाते ही शान्ति भडक जाती है
शान्ति भड़के हुए स्वर मे - इ का कर रहे है अशीष के बाऊ जी , हा , बात काहे नाही किये ब्च्चु से

मनोहर शान्ति को समझाते हुए - अरे अशीष की अम्मा ,, काहे परेशान हो , आयुष के शहर जाये मा अभी 4 दिन का बख्त है

शांति थोडा गुस्से मे समझाते हुए - अरे इहे 4 दिन के इन्तेजार मे 24 साल बीत गवा ,
मनोहर शान्ति के तानो से चुप हो जाते है और उनको भी शान्ति की बाते सही लगती है। वो तय करते है कि आज किसी भी तरह वो आयुष से बात करेंगे ही ।
इधर मनोहर जी अपनी चिन्ता मे दुबे हुए थे और उधर नवाबगंज बस स्टैंड पर लोहिया बस परिवहन के कानपुर डिपो से कहानी मे नये किरदारो ने एन्ट्री लेली थी ।

सोनमती मिश्रा
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रिश्ते मे ये शुक्ला भवन की इंचार्ज मीरा शुक्ला की सगी बुआ है और फतेहपुर - कानपुर बार्डर के पास एक गाव चौबेपुर से है । स्वभाव से काफी हसमुख और चंचल है लेकिन जहा स्वार्थ सिद्ध हो रहा हो वहा इनका भाव बदल जाते है ।
और आज इनके साथ आई थी इनकी सुपुत्रि

चारु मिश्रा
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उम्र 22 साल हो गयी है लेकिन समय के साथ मेच्योर नही हो पाई है । बचपना और भूलने की आदत से इनकी अम्मा यानी सोनमती मिश्रा बहुत परेशान होती है इसिलिए कोई खास इज्जत मिलती नही है इनको ।


तो मिश्राइन ने बड़ी जद्दोजहद के बाद एक औटो कर लिया जो कम पैसे मे उनको शिवपूरी कालोनी के शुक्ला भवन मे ले जा सके ।

थोडी ही देर मे औटो शुक्ला भवन के गेट पर रुकता है ।
दो भारी भरकम बैग चारु से खिचवाते हुए और एक झोला खुद हाथो मे लेके मिश्राइन शुक्ला भवन मे प्रवेश करती है ।
सोनमती - मिराआ ये मिराआआ

सोनमती मीरा को आवाज देती हुई हाल मे घुस्ती है
मीरा किचन से बाहर आते हुए - अरे सोनमती बुआ आप
मीरा झुक कर सोनमती के पैर छूटी है

वही हाल मे बैठी शान्ति मुह बनाते हुए मनोहर से फुसफुसाती है - अब इ भईसिया की कमी थी जे भी आ गयी
मनोहर - अरे कभी अपने नाम का ही लाज रख लिया करो आशिष की अम्मा ,,,मेहमान है बसने थोडी आये है

शान्ति - देख नाही रहे पुरा बक्सा भर समान पसार दी है आते ही
मनोहर शान्ति की बात पर हस देते है

इधर मीरा चारु से मिलती है और उसका बैग लेके उसको हाल मे बैठने को बोलती है

सोनमती हाल मे लगे चौकी पर बैठते हुए - नमस्ते भाई साब ,, नमस्ते जीजी

शांति भी अपने जज्बात दबा कर - नमस्ते , और आज बडी सुबह सुबह मिश्राइन

सोनमती ह्स कर - अरे ऊ तो हम इ चारु ,,,
सोनमती चारु को डांटते हुए - हे पगली ,, चल नमस्ते कर जीजी और भाईसाब को

चारु बैठे बैठे ही हाथ जोड लेती है
इधर शान्ति देवी अपनी बात फिर से रखती उससे पहले मीरा एक ट्रे मे बिस्कुट और चाय लेके आ जाती है

मीरा वही चारु के बगल मेखडे होते हुए - लेओ बुआ नासता करो , लेओ चारु तुम्हू

मीरा - औ बताओ बुआ , चौबेपुर मे सब कइसे है

सोनमती बिस्किट डुबो कर खाती हुई - चौबेपुर मा तो सब ठीक है
मनोहर - और आने कौनौ तकलीफ तो ना हुई ना चारु की अम्मा

सोनमती हस कर - ना ना भाईसाब , सब ठीक ठाक रहा
मनोहर हाल मे पडे बैग को इशारे से दिखा कर - फिर इधर कैसे आना हुआ

सोनमती थोडा सोच मे पड़ गयी और कुछ जवाब देने मे हिचकने लगी ,उसकी हालत खराब होते देख मीरा बोलती है

मीरा चहक कर - बाऊजी , उ चारु के इही नवाबगंज के उनीभरसिटी मा एडमिशन मिलो हो , तो वही लिया हैगी

चारु इसपे कुछ बोलना चाहती है लेकिन मीरा ने उसका कन्धा दबा कर चुप किया उसे


मनोहर जी ने आगे कुछ नही कहा और शान्ति जी तो बात करने के मूड मे नही थी ।
फिर मीरा , सोनमती बुआ और चारु को लिवा के उन्के समान के साथ उपर गेस्टरूम मे चली गयी ।

गेस्टरूम मे कमरे का दरवाज बन्द होते ही
मीरा सोनमती पर चिल्लाती है - जे का लहभर लेके आ गयी तुम बुआ , , अभी से दहेज का समान उठा लाई का

मीरा गरमाते हुए - जे हम तुमको बोले थे कि ऐसे आना की कुछ अजीब ना लागे ,,,

सोनमती - जे हम तो सोचे कि आयुष हमायी चारु को परसन्द कर लोगो तो लगे हाथ सगुन करवा देबे

मीरा अपने सर पर हाथ रख कर बिस्तर पर बैठ जाती है ।

सोनमती थोडी चिन्ता के भाव मे - का हुआ मीरा ,,कपार दर्द करी रहा है का

मीरा झ्ल्लाते हुए - कपार दर्द तो तुम खुद बन गयी हो बुआ ,,,जे हम तुम को लाख बार समझाये थे

तभी मीरा को चारु नजर नही आती है
मीरा - जे चारु कहा गयी अब ,,,हे भोलेनाथ का करे हम

चारु वही कमरे मे दोनो बैग खोल कर अपने सारे समान निकाल कर फैला रही होती है

सोनमती - हे पगली छोड ऊ सब
मीरा परेशान होकर - जे पगली ऐसी रहेगी तो कैसे आयुष इको परसन्द करोगो

सोनमती मीरा को पालिश लगाती हुई - अच्छा सुन छोड उ सब हम तुम्हारे लिये चौबेपुर से साडी लाये है ।

मीरा थोडा पिघल जाती है और फिर थोडी देर बाद मीरा और सोनमती अपनी प्लानिंग करते है कि कैसे घर मे सबको शादी के तैयार करे और कैसे आयुष हा करे ।
इधर आयुष बाबू हमारे पहली बार दुकान पर बैठे थे तो अशीष शुक्ला ने इनको ओर्डेर वाले काउंटर पर बिठा दिया ।

आयुष बाबू की हिन्दी लिखावट थोडी कमजोर थी तो उनको ओर्डेर लेने मे भी सम्स्या हो रही थी थोडी तो कैसे भी करके मैनेज कर रहे थे ।
ऐसे मे उन्ही की मुहल्ले की दो लड़कीया आती है दुकान पर

अब आयुष बाबू कम हीरो थोडी थे और आज तो दुकान के लिये अलग से अच्छी राउंड नेक वाली नेवी ब्लू टीशर्ट और वाइट जीन्स पहने थे ।

तभी वो लडकीयो मे एक लडकी जिसका नाम मोनी था ।
वो बिना आयुष को देखे अपनी पर्ची पढते हुए - भैया सवा पौवा मोतीचुर के लड्डु ,, पौना पौवा हलुआ सोहन ,, 3 किलो सेव और पपड़ी

हीरो मोनी और उसकी सहेली को देख कर हसी छूट जाती है
तभी मोनी की सहेली उसको रोकते हुए एक नजर सामने देखने को कहती है
मोनी हीरो को देख कर आंखे बड़ी कर लेती है और उसको मुह रोने जैसे हो जाता है ,,, क्योकि वो मोनी आयुष बाबू की मुहल्ले की दिवानीयो मे से एक होती है और आयुष को अनजाने मे भैया बोल कर वो खुद के पैर पर कुलहाडी मार लेती है

आयुष जो कि उसे पता होता है कि मोनी उसके लिये चिपकु है तो आज उसे भी मौका मिल गया छूटकारा पाने का

आयुष उसका मजा लेते हुए - जी बहन जी ये 3 किलो सेव और पापडी तो समझ आ गया लेकिन ये सवा पाव और पौवा पाव क्या होता है ।

मोनी जैसे ही आयुष के मुह से बहन जी सुनती है उसका चेहरा और भी रोने जैसा हो जाता है वही उसकी सहेली हस रही होती

मोनी रोते हुए समान की पर्ची अपनी सहेली को देके भाग जाती है
फिर आयुष और वो दुसरी लडकी हसने लगते है ।

आयुष मजे लेते हुए - वैसे इन्हे क्या हुआ , रो क्यू रही थी
मोनी की सहेली हस्ते हुए - कुछ नही , दिल टूटा है बेचारी का ,,,आप ये ओर्डेर लिख लिजिये और घर भिजवा दिजियेगा मोनी के ,मै चलती हू

आयुष हस्ते हूए उस लड़की से पर्ची ले लेता है
और वो चली जाती है

जारी रहेगी

अकबर और सलीम दोनों बाप बेटे के साथ मासक्काली अनारकली के कई किस्से परचलित है जिसमे से कई किस्से मैंने पढ़ा और टीवी पर उसका नाट्य रूपांतरण देखा भी हैं पर अपने जीस ढंग से सलीम अकबर और अनारकली के किस्से को दिखाया साथ ही जो तुगबंदी का तड़का मरा लाजवाब हैं।

सोनमति के रुप में एक मेहमान शुक्ला निवास में प्रवेश किया है साथ में चारु नमक भुलक्कड़ और बचपने से ओतप्रोत लड़की जिसे समझ की ताने बाने से कुछ लेना देना नहीं हैं। देखते हैं ये नया मेहमान आगे कौन सा धमचौकड़ी मचाते है।

अदभुत अतुलनीय लेखन कौशल:clapclap::clapclap::clapclap::clapclap:
 
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मध्यम वर्ग और निम्न वर्ग में बाप का रोल हमेशा एक छुपा हुआ सहायक की तरह होता हैं। बेटा चाहें कितना भी कामयाबी हासिल कर ले पर बाप सामने से बेटे की पीठ थपथपाने में थोड़ा कतराता हैं। शायद उन्हें डर लगता होगा कहीं उनका प्यार जताना उनके बेटे को रह से न भटका दे।

आयुष और उसके बाप के बिच कोई मन मुटाव नहीं है ऐसा जान पड़ता हैं। शायद कुछ ओर हो सकता हैं जिससे दोनों बाप बेटे की बीच एक खाई बन गया हों।

शादी वाला मसाला हर घर की है। लड़का जवान हुआ नहीं की उसे बंधन में बंधने को घर वाले जोड़ीदार ढूंढने लग जाते हैं। आयुष के साथ भी वैसा ही हों रहा हैं। आयुष को एक अच्छी पैकेज वाला जॉब मिल गया हैं। अब घर वाले आयुष को शादी के बंधन में बंधने के लिए लड़की ढूंढ़ रहे हैं। लेकिन आयुष बाबू अभी शादी के पक्ष में नहीं है। अब देखते है आगे किया होता है?

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Thanksss
 

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