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अगले दिन शिवा और कमला के जाने के बाद मालिनी सोफ़े पर बैठी सोच रही थी कि मम्मी से सलाह ले लेती हूँ। तभी राजीव अपने कमरे से बाहर आया और आकर मालिनी के सामने वाले सोफ़े पर बैठ गया।
मालिनी: पापा जी चाय लेंगे?
राजीव: ले आओ। ले लेंगे। वैसे लेना तो कुछ और भी है तुम्हारा,पर तुम तो सिर्फ़ चाय पिलाती हो। वह अब बेशर्मी पर उतर आया था। अब उसे अश्लील भाषा का भी लिहाज़ नहीं रहा था।
मालिनी उसकी इस तरह के लहजे से हैरान हो गयी और बोली: पापा जी आप किस तरह की बातें कर रहे हैं। मैं आपकी बहू हूँ आख़िर। छी कोई अपनी बहू से भी ऐसी बातें करता है भला।
राजीव: देखो बहु, मैंने तो कल ही साफ़ साफ़ कह चुका हूँ कि मैं तुम्हारा दीवाना हो चुका हूँ। अब इसी बात को दुहरा ही तो रहा हूँ, कि मुझे तुम और तुम्हारी चाहिए।
मालिनी: पापा जी आपके कोई संस्कार हैं या नहीं? अच्छे परिवार के लोग ऐसी बातें थोड़े ही करते हैं।
राजीव: संस्कार? हा हा हममें से किसी में भी संस्कार नहीं है। ना हमारे परिवार में और ना तुम्हारे परिवार में। बड़ी आयी संस्कार की बातें करने वाली।
मालिनी: पापा जी आपके परिवार का तो पता नहीं पर मेरे परिवार में संस्कार का बहुत महत्व है।
राजीव कुटिल मुस्कुराहट के साथ बोला: अच्छा , और अगर मैं ये साबित कर दूँ कि तुम्हारा परिवार संस्कारी नहीं है तो तुम मुझे वो दे दोगी जो मुझे चाहिए?
मालिनी: छी फिर वही गंदी बातें कर रहे हैं। और जहाँ तक मेरे परिवार का प्रश्न है वह पूरी तरह से संस्कारी है।
राजीव हँसते हुए: तुम बोलो तो अभी तुम्हारे संस्कारी परिवार का भांडा फोड़ दूँ।
मालिनी: क्या मतलब है आपका?
राजीव: वही जो कहा? तुम्हें अपने संस्कारी परिवार पर बहुत घमंड है ना? उसकी सच्चाई दिखाऊँ?
मालिनी: मुझे समझ नहीं आ रहा है आप क्या बोले जा रहे हो? किस सच्चाई की बात कर रहे हैं आप?
राजीव :चलो अब तुम्हें दिखा ही देते हैं कि कितना संस्कारी है तुम्हारा परिवार?
राजीव ने मालिनी की माँ सरला को फ़ोन लगाया। स्पीकर मोड में फ़ोन रखकर वह मालिनी को चुप रहने का इशारा किया।
राजीव: हेलो , कैसी हो?
सरला: ठीक हूँ आप कैसे हैं? आज मेरी याद कैसे आ गयी।
राजीव: अरे मेरी जान तुमको तो मैं हमेशा याद करता हूँ। बस आजकल फ़ुर्सत ही नहीं मिलती।
मालिनी का मुँह खुल गया वह सोची कि पापा जी माँ को जान क्यों बोल रहे हैं।
सरला: जाइए झूठ मत बोलिए। आपको तो रानी के रहते किसी और की क्या ज़रूरत है।
राजीव: अरे रानी को तो तुम्हारी बेटी ने कब का निकाल दिया।
सरला: ओह क्यों निकाल दिया? वो तो आपका बहुत ख़याल रखती थी और पूरा मज़ा भी देती थी।
राजीव: अरे तुम्हारी बेटी ने मुझे उसे चोदते हुए देख लिया। बस उसके पीछे पड़ गयी और निकाल कर ही दम लिया। अब मैं अपना लौड़ा लेकर कहाँ जाऊँ? फिर तुम्हारी याद आयी और सोचा कि तुमसे बात कर लूँ तो अच्छा लगेगा।
मालिनी राजीव के मुँह से ऐसी गंदी बातें सुनकर वह हैरान थी।
सरला हँसकर: मैं आ जाती हूँ और आपके हथियार को शांत कर देती हूँ।
अब मालिनी को समझ में आ गया कि पापा और उसकी माँ का चक्कर पुराना है। वह सकते में आ गयी।
राजीव उसके चेहरे के बदलते भावों को बड़े ध्यान से देख रहा था और अपनी योजना की सफलता पर ख़ुश हो रहा था ।
वह बोला: अरे तुमने यहाँ एक मेरे ऊपर थानेदारनी बहु जो बिठा रखी है, वह संस्कार की दुहाई दे कर तुमको भी चुदवाने नहीं देगी।
मालिनी बिलकुल इस तरह की भाषा के लिए तय्यार नहीं थी।
सरला: अरे उसे कहाँ पता चलेगा। मैं आ जाती हूँ, दिन भर मालिनी के साथ रहूँगी और रात को आपके पास आ जाऊँगी।
अब तो मालिनी के चेहरे का रंग पूरी तरह उड़ गया।
राजीव: श्याम को भी लाओगी ना साथ में? हम दोनों तुम्हारी वैसे ही चुदाई करेंगे जैसे उस दिन होटेल में की थी। बहुत मज़ा आया था, है ना
सरला: हाँ जी, उस दिन का मज़ा सच में नहीं भूल पाऊँगी। मैंने श्याम से कहा है कि बुर चूसने में आपका कोई जवाब ही नहीं है। मैं आजकल श्याम को सिखा रही हूँ बुर चूसना। सच उस दिन आपको पता है मैं चार बार झड़ी थी।
राजीव: उस दिन की बात सुनकर देखो मेरा खड़ा हो गया। और ये कहकर मालिनी को दिखाकर लूँगी के ऊपर से उसने अपना लौड़ा मसल दिया।
अब मालिनी की आँखों में शर्म और दुःख के आँसू आ गए थे। उसे अपनी माँ से ऐसी उम्मीद नहीं थी। वह जानती थी कि श्याम के साथ उनका रिश्ता है। पर वह उसे स्वीकार कर चुकी थी। पर ये बातें जो उसने अभी सुनी , उफफफ ये तो बहुत ही घटिया हरकत है पापा , श्याम ताऊ और माँ की। छी कोई ऐसा भी करता है क्या? वह रोते हुए अपने कमरे में आकर बिस्तर पर गिर गयी और तकिए में मुँह छिपाकर रोने लगी।
अब राजीव ने सरला से कुछ और बातें की , फिर फ़ोन काट दिया। अब वह उठकर मालिनी के कमरे में आया और वहाँ मालिनी को पेट के बल लेटके रोते देखा। उसकी बड़ी सी गाँड़ रोने से हिल रही थी, उसकी इच्छा हुई कि उन मोटे उभारों को मसल दे । पर उसने अपने आप पर क़ाबू किया और जाकर उसके पास बिस्तर पर बैठ गया। उसने मालिनी की पीठ पर हाथ फेरा और बोला:बहु रो क्यों रही हो? जब तुम्हारी माँ को मुझसे चुदवाने में मज़ा आ रहा है और वो ख़ुश है तो तुम क्यों दुखी हो रही हो?
मालिनी: पापा जी मुझे माँ से इस तरह की उम्मीद नहीं थी।
राजीव: अरे वाह पहले भी तो तुम्हारे ताऊ से चुदवा ही रही थी? तुमको पता तो होगा ही?
मालिनी रोते हुए बोली: वो दूसरी बात है और उसे मैंने स्वीकार कर लिया था क्योंकि ताई जी बीमार रहती हैं और मेरे पापा नहीं है। पर आपके साथ करने की क्या ज़रूरत थी?
राजीव: बहु तुम उसे एक माँ की नज़र से ही देखती हो। उसे एक औरत की नज़र से देखो। उसकी बुर मज़ा चाहती थी। जो मैंने उसे दिया। हर बुर को एक लौड़ा चाहिए। और हर लौड़े को एक बुर। यही दुनिया की रीत है। सभी संस्कार धरे रह जाते है, जब औरत की बुर में आग लगती है या आदमी के लौड़े में तनाव आता है। यह कहते उसने उसकी पीठ सहलाते हुए उसका नंगा कंधा भी सहलाया । उसकी चिकने बदन का स्पर्श उसे दीवाना कर रहा था। अब वह उसके आँसू पोछने के बहाने उसके चिकने गाल को भी सहलाने लगा।
मालिनी: पर पापा जी आपको तो उनको समझाना चाहिए था ना? आपने भी उनका साथ दिया।
राजीव उसकी पीठ सहलाते हुए अब उसकी चिकनी कमर जो ब्लाउस के नीचे का हिस्सा था सहलाने लगा और बोला:बहु,श्याम के साथ वह बहुत दिन से मज़ा कर रही थी और वो ख़ुश थी। पर जब वो मुझसे चुदी तो उसने जाना कि असली चुदाई का सुख क्या होता है। इसीलिए हमारा रिश्ता गहरा हो गया और बाद में श्याम भी इसमे शामिल हो गया। फिर हम तीनों मज़े लेने लगे।
मालिनी आँसू पोछते हुई उठी और और बैठ कर बोली: पापा जी मुझे अकेला छोड़ दीजिए । मैं बहुत परेशान हूँ। मेरी सोचने समझने की शक्ति चली गयी है।
राजीव उसके हाथ सहलाता हुआ बोला: बहु मैं तो सिर्फ़ तुम्हारे संस्कारी परिवार के बारे में बता रहा था । समझ गयी ना कि कैसा परिवार है तुम्हारा? अब भी मेरी बात मान लो। एक बार हाँ कर दो, रानी बन कर रहोगी। दिन में मेरी और रात में शिवा की। दुनिया की हर ख़ुशी तुम्हारी झोली में डाल दूँगा। और डबल मज़ा मिलेगा वह अलग । ये कहते हुए वह खड़ा हुआ और उसकी लूँगी से उसका उभरा हुआ खड़ा लौड़ा अलग से मालिनी की आँखों के सामने था। उफफफफ पापा जी भी ना, वह सोची कि क्या हो गया है इनको?
उनके जाने के बाद वह स्तब्ध सी बैठी अब तक की घटनाक्रम के बारे में सोचने लगी। पापा तो हाथ धो कर पीछे पड़ गए हैं, वो बार बार उसे अपनी बनाने की बात करते हैं। आख़िर वो ऐसा कैसे कर सकती है ? वह शिवा को धोका कैसे दे सकती है? इसी ऊहापोह में वह सो गयी।
मालिनी: पापा जी चाय लेंगे?
राजीव: ले आओ। ले लेंगे। वैसे लेना तो कुछ और भी है तुम्हारा,पर तुम तो सिर्फ़ चाय पिलाती हो। वह अब बेशर्मी पर उतर आया था। अब उसे अश्लील भाषा का भी लिहाज़ नहीं रहा था।
मालिनी उसकी इस तरह के लहजे से हैरान हो गयी और बोली: पापा जी आप किस तरह की बातें कर रहे हैं। मैं आपकी बहू हूँ आख़िर। छी कोई अपनी बहू से भी ऐसी बातें करता है भला।
राजीव: देखो बहु, मैंने तो कल ही साफ़ साफ़ कह चुका हूँ कि मैं तुम्हारा दीवाना हो चुका हूँ। अब इसी बात को दुहरा ही तो रहा हूँ, कि मुझे तुम और तुम्हारी चाहिए।
मालिनी: पापा जी आपके कोई संस्कार हैं या नहीं? अच्छे परिवार के लोग ऐसी बातें थोड़े ही करते हैं।
राजीव: संस्कार? हा हा हममें से किसी में भी संस्कार नहीं है। ना हमारे परिवार में और ना तुम्हारे परिवार में। बड़ी आयी संस्कार की बातें करने वाली।
मालिनी: पापा जी आपके परिवार का तो पता नहीं पर मेरे परिवार में संस्कार का बहुत महत्व है।
राजीव कुटिल मुस्कुराहट के साथ बोला: अच्छा , और अगर मैं ये साबित कर दूँ कि तुम्हारा परिवार संस्कारी नहीं है तो तुम मुझे वो दे दोगी जो मुझे चाहिए?
मालिनी: छी फिर वही गंदी बातें कर रहे हैं। और जहाँ तक मेरे परिवार का प्रश्न है वह पूरी तरह से संस्कारी है।
राजीव हँसते हुए: तुम बोलो तो अभी तुम्हारे संस्कारी परिवार का भांडा फोड़ दूँ।
मालिनी: क्या मतलब है आपका?
राजीव: वही जो कहा? तुम्हें अपने संस्कारी परिवार पर बहुत घमंड है ना? उसकी सच्चाई दिखाऊँ?
मालिनी: मुझे समझ नहीं आ रहा है आप क्या बोले जा रहे हो? किस सच्चाई की बात कर रहे हैं आप?
राजीव :चलो अब तुम्हें दिखा ही देते हैं कि कितना संस्कारी है तुम्हारा परिवार?
राजीव ने मालिनी की माँ सरला को फ़ोन लगाया। स्पीकर मोड में फ़ोन रखकर वह मालिनी को चुप रहने का इशारा किया।
राजीव: हेलो , कैसी हो?
सरला: ठीक हूँ आप कैसे हैं? आज मेरी याद कैसे आ गयी।
राजीव: अरे मेरी जान तुमको तो मैं हमेशा याद करता हूँ। बस आजकल फ़ुर्सत ही नहीं मिलती।
मालिनी का मुँह खुल गया वह सोची कि पापा जी माँ को जान क्यों बोल रहे हैं।
सरला: जाइए झूठ मत बोलिए। आपको तो रानी के रहते किसी और की क्या ज़रूरत है।
राजीव: अरे रानी को तो तुम्हारी बेटी ने कब का निकाल दिया।
सरला: ओह क्यों निकाल दिया? वो तो आपका बहुत ख़याल रखती थी और पूरा मज़ा भी देती थी।
राजीव: अरे तुम्हारी बेटी ने मुझे उसे चोदते हुए देख लिया। बस उसके पीछे पड़ गयी और निकाल कर ही दम लिया। अब मैं अपना लौड़ा लेकर कहाँ जाऊँ? फिर तुम्हारी याद आयी और सोचा कि तुमसे बात कर लूँ तो अच्छा लगेगा।
मालिनी राजीव के मुँह से ऐसी गंदी बातें सुनकर वह हैरान थी।
सरला हँसकर: मैं आ जाती हूँ और आपके हथियार को शांत कर देती हूँ।
अब मालिनी को समझ में आ गया कि पापा और उसकी माँ का चक्कर पुराना है। वह सकते में आ गयी।
राजीव उसके चेहरे के बदलते भावों को बड़े ध्यान से देख रहा था और अपनी योजना की सफलता पर ख़ुश हो रहा था ।
वह बोला: अरे तुमने यहाँ एक मेरे ऊपर थानेदारनी बहु जो बिठा रखी है, वह संस्कार की दुहाई दे कर तुमको भी चुदवाने नहीं देगी।
मालिनी बिलकुल इस तरह की भाषा के लिए तय्यार नहीं थी।
सरला: अरे उसे कहाँ पता चलेगा। मैं आ जाती हूँ, दिन भर मालिनी के साथ रहूँगी और रात को आपके पास आ जाऊँगी।
अब तो मालिनी के चेहरे का रंग पूरी तरह उड़ गया।
राजीव: श्याम को भी लाओगी ना साथ में? हम दोनों तुम्हारी वैसे ही चुदाई करेंगे जैसे उस दिन होटेल में की थी। बहुत मज़ा आया था, है ना
सरला: हाँ जी, उस दिन का मज़ा सच में नहीं भूल पाऊँगी। मैंने श्याम से कहा है कि बुर चूसने में आपका कोई जवाब ही नहीं है। मैं आजकल श्याम को सिखा रही हूँ बुर चूसना। सच उस दिन आपको पता है मैं चार बार झड़ी थी।
राजीव: उस दिन की बात सुनकर देखो मेरा खड़ा हो गया। और ये कहकर मालिनी को दिखाकर लूँगी के ऊपर से उसने अपना लौड़ा मसल दिया।
अब मालिनी की आँखों में शर्म और दुःख के आँसू आ गए थे। उसे अपनी माँ से ऐसी उम्मीद नहीं थी। वह जानती थी कि श्याम के साथ उनका रिश्ता है। पर वह उसे स्वीकार कर चुकी थी। पर ये बातें जो उसने अभी सुनी , उफफफ ये तो बहुत ही घटिया हरकत है पापा , श्याम ताऊ और माँ की। छी कोई ऐसा भी करता है क्या? वह रोते हुए अपने कमरे में आकर बिस्तर पर गिर गयी और तकिए में मुँह छिपाकर रोने लगी।
अब राजीव ने सरला से कुछ और बातें की , फिर फ़ोन काट दिया। अब वह उठकर मालिनी के कमरे में आया और वहाँ मालिनी को पेट के बल लेटके रोते देखा। उसकी बड़ी सी गाँड़ रोने से हिल रही थी, उसकी इच्छा हुई कि उन मोटे उभारों को मसल दे । पर उसने अपने आप पर क़ाबू किया और जाकर उसके पास बिस्तर पर बैठ गया। उसने मालिनी की पीठ पर हाथ फेरा और बोला:बहु रो क्यों रही हो? जब तुम्हारी माँ को मुझसे चुदवाने में मज़ा आ रहा है और वो ख़ुश है तो तुम क्यों दुखी हो रही हो?
मालिनी: पापा जी मुझे माँ से इस तरह की उम्मीद नहीं थी।
राजीव: अरे वाह पहले भी तो तुम्हारे ताऊ से चुदवा ही रही थी? तुमको पता तो होगा ही?
मालिनी रोते हुए बोली: वो दूसरी बात है और उसे मैंने स्वीकार कर लिया था क्योंकि ताई जी बीमार रहती हैं और मेरे पापा नहीं है। पर आपके साथ करने की क्या ज़रूरत थी?
राजीव: बहु तुम उसे एक माँ की नज़र से ही देखती हो। उसे एक औरत की नज़र से देखो। उसकी बुर मज़ा चाहती थी। जो मैंने उसे दिया। हर बुर को एक लौड़ा चाहिए। और हर लौड़े को एक बुर। यही दुनिया की रीत है। सभी संस्कार धरे रह जाते है, जब औरत की बुर में आग लगती है या आदमी के लौड़े में तनाव आता है। यह कहते उसने उसकी पीठ सहलाते हुए उसका नंगा कंधा भी सहलाया । उसकी चिकने बदन का स्पर्श उसे दीवाना कर रहा था। अब वह उसके आँसू पोछने के बहाने उसके चिकने गाल को भी सहलाने लगा।
मालिनी: पर पापा जी आपको तो उनको समझाना चाहिए था ना? आपने भी उनका साथ दिया।
राजीव उसकी पीठ सहलाते हुए अब उसकी चिकनी कमर जो ब्लाउस के नीचे का हिस्सा था सहलाने लगा और बोला:बहु,श्याम के साथ वह बहुत दिन से मज़ा कर रही थी और वो ख़ुश थी। पर जब वो मुझसे चुदी तो उसने जाना कि असली चुदाई का सुख क्या होता है। इसीलिए हमारा रिश्ता गहरा हो गया और बाद में श्याम भी इसमे शामिल हो गया। फिर हम तीनों मज़े लेने लगे।
मालिनी आँसू पोछते हुई उठी और और बैठ कर बोली: पापा जी मुझे अकेला छोड़ दीजिए । मैं बहुत परेशान हूँ। मेरी सोचने समझने की शक्ति चली गयी है।
राजीव उसके हाथ सहलाता हुआ बोला: बहु मैं तो सिर्फ़ तुम्हारे संस्कारी परिवार के बारे में बता रहा था । समझ गयी ना कि कैसा परिवार है तुम्हारा? अब भी मेरी बात मान लो। एक बार हाँ कर दो, रानी बन कर रहोगी। दिन में मेरी और रात में शिवा की। दुनिया की हर ख़ुशी तुम्हारी झोली में डाल दूँगा। और डबल मज़ा मिलेगा वह अलग । ये कहते हुए वह खड़ा हुआ और उसकी लूँगी से उसका उभरा हुआ खड़ा लौड़ा अलग से मालिनी की आँखों के सामने था। उफफफफ पापा जी भी ना, वह सोची कि क्या हो गया है इनको?
उनके जाने के बाद वह स्तब्ध सी बैठी अब तक की घटनाक्रम के बारे में सोचने लगी। पापा तो हाथ धो कर पीछे पड़ गए हैं, वो बार बार उसे अपनी बनाने की बात करते हैं। आख़िर वो ऐसा कैसे कर सकती है ? वह शिवा को धोका कैसे दे सकती है? इसी ऊहापोह में वह सो गयी।