Incest मम्मी मेरी जान

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सानिया:-"अब इसे ढको और यहाँ से जाओ. मुझे अपना का काम करने दो." वो बोली.
सतीश:-"मैं चला जाऊंगा अगर तुम इसे अपने हाथों से मेरे पायजामे में दाल दो" अपनी पिछली हरकतों से उत्साहित होकर सतिश ने जवाबी वार किया. सानिया ने ठण्डी आह भरी और उसके पायजामे में उँगलियाँ फँसकर उसे ऊपर खीँचा. वेस्टबैंड के दवाब के कारन सतीश का लंड उसके पेट् से चिपक गया था, सानिया ने अपने हाथ सतीश की त्वचा से स्पर्श नहीं होने दिए थे. सानिया दो कदम पीछे हट गयी और सतीश के रस्ते से हट जाने का इंतज़ार करने लगी. सतिश ने निचे देखा. उसके लंड का पूरा सुपाडा बाहर था.
सतीश:-"तुम बस इतना ही कर सकती हो?" सतिश ने पुछा.
सानिया निचे देखने लगी.
सानिया:-"हूं"
उसने धीरे से कहा.
सतीश:-"ठीक है"
कहकर सतीश वहा से चला आया.
इसके बाद जैसे उसे मौन आज्ञा मिल गयी थी के जब भी डैड आसपास न हो या उनके साथ कमरे में न हो वह अपने लंड का प्रदर्शन कर सकता था. सानिया ने भी देख कर न देखने का अपना स्वभाव बदल कर उसे पूरी तरह नज़रअंदाज़ करना सुरु कर दिया.
अगर वो कभी देखति थी तो ऐसे दिखावा करती थी जैसे यह कोई बड़ी बात नहीं थी और उसे अपनी इस बचकाना हरकत से पीछा छुड़ा लेना चाहिए था.
कयी दिनों के लंड प्रदर्शन के बाद अगले शनिवार को नाश्ते पर सतिश ने डैड के किचन से चले जाने तक का इंतज़ार किया. जैसे ही वो किचन से बाहर निकले और सतिश ने सीढ़ियों पर उनके कदमो की आवाज़ सुनि, सतिश ने अपना पायजामा निचे किया और अपना लंड बाहर निकाल लिया और सानिया को देखकर मुस्कराने लगा. सतीश से इंतज़र नहीं हो रहा था के वो पलट कर उसके लंड को देखे. अखिरकार उसने कुछ समय के बाद देखा, हालांकि असलियत में वह अच्छी तरह से जानता था के उसे उसके लंड के नंगे होने का उसी सेकंड पता चल गया था जिस सेकंड सतिश ने अपना पायजामा निचे खिसकाय था.
सानिया:-"भगवान के लिये, आखिर तुम कब इस हरकत से बाज आओगे?"
सतीश:-"किस हरकत से?"
सतिश ने हँसते हुये कहा. सतिश ने कुरसी पर अपने कुल्हे हिलाते हुये कहा जिससे सतीश का लंड गोलाई में चक्कर काटने लगा. उसके अस्चर्य की सीमा न रही जब सानिया भी हंस पड़ी, वो सच में हँसी थी.
सानिया:-"ईस हरकत से"
वो उसके झूलते हुए लंड की और इशारा करके बोली.
सतीश:-"कभी नही."
सतिश ने उसे जवाब दिया.
सतीश:-"मेरी हमेशा से ख़्वाहिश रही है के आप एक बड़े वाले को देख सके."
उसकी बात से सानिया का चेहरा सुर्ख लाल हो गया.
सानिया:-"तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा के अपने डैड के आने से पहले इसे धक् लो"
सतीश:-"क्यों?" सतिश ने उससे पुछा.
सतीश:-"मुझे परवाह नहीं अगर वो देख ले" सतिश ने हवा बनाते हुए कहा जबकि वह अच्छी तरह से जानता था के डैड उसकी क्या दुर्गति कर सकते थे.
सानिया:-"तुम बस इसे धक् लो"
सानिया ने जोर देकर कहा तो सतिश ने इंकार में सर हिलाया.
सानिया:-"मैं इसे नहीं ढकने वालि"
सानिया ने ज़ोर देकर कहा. उसका इशारा लांड्री रूम के उस दिन के वाकये की और था.
सतीश:-"मैं इसे खुद धक् लूँगा अगर तुम मुझे अपनी टांगे दिखाओगी तोह्....." सतिश ने समझौता करते हुए कहा.
 
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सानिया:-"तुम्हेँ अपनी टांगे दिखाउंगी तो?
मगर तुम मेरी टांगे देख सकते हो"
सानिया अपनी घुटनो तक लम्बी ड्रेस की स्कर्ट को अपने दाएँ हाथ से पकडती है और उसे अपनी जांघो के ऊपर हिलाती डुलाती है.

सतीश:-"कहने का मतलब है ऊपर से." सतीश कामुक अति उत्तेजित आवाज़ में फुसफुसा कर बोला.
सतीश:-"उपर! इसे अपने घुटनो से ऊपर उठाओ"

सानिया सतीश को घूर रही थी. अब तक यह सब सतीश की तरफ से हो रहा था. उस समय किचन में बिलकुल वैसे ही हालात थे जैसे उस दिन लांड्री रूम में थे जब सतिश ने अपना पायजामा उतार कर फेंक दिया था और वो सर घुमा कर उसे देख रही थी. फिर समय थम सा गया था. सानिया बिलकुल बूत बनी खड़ी थी और उसने अपने दाएँ हाथ में अपनी स्कर्ट को पकड़ा हुआ था. सतिशने उसकी नज़र से नज़र मिलायी. सतीश भी उसी की तरह बूत बना हुआ था. पायजामे में सतीश का लंड झटका मारता तन कर बिलकुल सीधा खड़ा हो गया था. सानिया की नज़र उसके चेहरे से हटकर निचे उसके लंड पर चलि जाती है मगर इसके अलावा उसका पूरा जिस्म पूरी तरह स्थिर था.
तब उसका हाथ हिला. उसका दाया हाथ नही जिसमे उसने अपनी स्कर्ट पकड़ी हुयी थी वो नहीं बल्कि दूसरा हाथ. उसका बाया हाथ उसकी साइड में निचे गिर जाता है और उसकी स्कर्ट को इकठ्ठा करने लगता है.
सतीश:-"प्लीज डैड निचे नहीं आना, प्लीज"
सतिश ने भगवन से प्रार्थना की. सतीश इतनी मुश्किल से हाथ आये इस सुनहरे मौके को हाथ से निकलने नहीं देना चाहता था.
सानिया का हाथ स्कर्ट के कपडे से भर जाता है और वो उसे ऊपर की और लेजाने लगती है और साथ ही सानिया की दूधिया जांघे नुमाया होने लगती है. उसका हाथ अब वहां रुकता है जहासे उसकी जांघे मोटी होने लगती है. इतनी दूर से भी सतीश उसकी दूधिया त्वचा पर हलके रोयें तैरते देख सकता था.
सतीश:-"और उपर....."
उसके गले से घरघराती आवाज़ में शब्द निकल रहे थे.
आश्चर्य था सानिया ने सतीश की इच्छा अनुसार अपनी स्कर्ट को ऊपर उठाना जारी रखा. एक इंच और ऊपर जाते ही सतीश का हाथ उसके लंड पर कस गया था. एक.इंच और ऊपर उठाते ही सतीश अपने लंड को हिलाने लगता है. उसकी आंख उसकी नग्न जांघो पर टिकी हुयी थी. उसकी स्कर्ट का नीचला सिरा अब लगभग वहां तक्क ऊपर उठ चुका था जहा से थोड़ी ऊपर उसकी पेन्टी सुरु होती थी.
सतीश:-"पूरी ऊपर मम्मी..........पूरी तरह ऊपर कर दो"
सतीश कांपते स्वर में बोला. सतीश का हाथ उसके लंड पर ऊपर निचे हो रहा था और उसकी ऑंखे उसके हाथ के साथ साथ ऊपर निचे घूम रही थी.
सानिया की पेन्टी नज़र आने लगती है. उसकी पेन्टी सामने से थोड़ी उभरि हुयी थी और उस उभार के अंदर बिच में एक सिलवट थी जिसमे उसकी पेन्टी हलकी सी अंदर को घुसी हुयी थी बिलकुल वहां जहा से पेन्टी उसकी टांगो के बिच घूम हो जाती थी. उस उभरि जगह पर सतीश की नज़र टिक जाती है. वो उभरि जगह उसकी मम्मी की चुत थी.
सतीश का हाथ उसके लंड पर और भी तेज़ी से चलने लगता है और मम्मी का सर उसके हाथ का पीछा करते हुए ऊपर निचे होने लगता है.
सतीश:-"है भगवान!' मैं इतनी जल्दी चुट्ने वाला हु".
सतीश कुरसी से लडख़ड़ाते हुए उठ खड़ा हुआ और अपना लौडा मसलते हुये सानिया की तरफ बढा. सतीश सिंक के पास पहुँचना चाहता था मगर वह सिंक तक्क न पहुंह सका. उसके लंड ने वीर्य की तेज़ और भारी पिचकारी मारी जो सीधी मम्मी की जांघो पर जाकर गिरि और उसने अपनी स्कर्ट को छोड़ दिया. उसके लंड ने फिर से पिचकारी मारी मगर वो उसके एप्रन पर जाकर गिरि जो वो खाना बनाते समय पहनती थी. उसके घुटने मूढ़ने लगे और सतिश ने अपनी दूसरी बाँह सानिया की कमर में दाल दी और उसके एप्रन से लंड रगडते हुए बाकि वीर्य निकालने लगा. सानिया ने एप्रन उठाकर उसके झटके मार रहे लौडे के गिर्द लपेट दिया ताकि सतीश का वीर्य आसपास न गिर सके. सतीश वीर्य की अखिरी धार निकलने तक बुरी तरह कराह रहा था
सतीश:-"ओह गोद! मम्मी मुझे माफ़ करदो." सतीश अभी भी उत्तेजना से कांप रहा था. "मुझे माफ़ करदो मम्मी"
सानिया:-"इट्स ओके. इट्स ओके." सानिया एप्रन उठाकर उसके लंड को साफ़ करने लगी.
सतीश:-"मम्मी आप इतनी सुन्दर हो के........... के मुझसे रहा नहीं गया." सतीश सिसकते हुये बोला.
सानिया:-"स्स्स्सह्ह्ह्हह्हह्ह्.....इट्स ओके बेटा. मैं तुमसे गुस्सा नहीं हु." सानिया बड़े प्यार से ममतामयी स्वर में बोली. वो एप्रन को उसके लंड पर आगे पीछे करते हुए रगड रही थी. तभी सतिश ने सीढ़ियों पर कदमो की आहट सुनी. सानिया एक दम झटके से पीछे को हट कर सीधी खड़ी हो गयी, फिर वो बला की तेज़ी से घूम कर किचन के बाहर की और खुलने वाले दरवाजे से निकल घर के पिछवाड़े की और चलि गयी जहा लॉन्ड्री रुम, स्टोर रूम और एक छोटा सा लॉन था. सतिश ने भी जितनी तेज़ी से सम्भव हो सकता था अपना पायजामा ऊपर चढ़ाया और चेयर पर बैठकर उसे घुमाकर टेबल के अंदर की और कर दिया. अभी वह चेयर हिलाकर ही हटा था के किचन के डोर पर डैड खडे थे
 
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विशाल:-"अभी तक नाश्ता खत्म नहीं हुआ तुम्हारा?"
डैड किचन में घुसते ही बोले. सतिश ने ना में सर हिलाया और नज़र निची कर ली. उसमे इतनी हिम्मत नहीं थी की वह उनकी आंख में आंख दाल कर उनसे बात कर लेता.
विशाल:-"तुम अभी तक तैयार भी नहीं हुए हो?"
सतिश ने ना में सर हिलाया. सतीश शुक्रगुजार था के वो उसकी और नहीं देख रहे थे. वो अपने मग में कॉफ़ी दाल रहे थे.
विशाल:-"बड़ी शर्म की बात है इतना बढिया दिन ऐसे ही बेकार कर देणा" वो बोले. सतिश ने कोई जवाब ना दिया.
तभी मम्मी बाहर वाले दरवाजे से अंदर आई और उनके पास लांड्री की बास्केट थी. मुझे वाशिंग मशीन चल्ने की आवाज़ सुनायी दे रही थी
सानिया:-"आप अपनी कॉफ़ी बाहर लॉन में बैठकर पिएंगे?"
वो डैड की तरफ बढ़ते हुए उनसे पूछती है. डैड के पास पहुंचकर वो अपना चेहरा उनकी तरफ कर लेती है. उस समय वो उसके और डैड के बिच में खड़ी थी और उन्होनो बास्केट अपने पेट् पर दबायी हुयी थी.
डैड चेहरा घुमकार मम्मी को देखते हुए अपना मग उठाकर कॉफी का घूंठ भरते है. सानिया उस समय टेबल से टेक लगाये खड़ी थी.
विशाल:-"हूं....... तुम भी कॉफ़ी लेकर आ जाओ. आज मौसम बढ़िया है"
सानिया:-"हा, में अभी आती हु. मुझे ऊपर अपने कमरे से बस बास्केट में गंदे कपडे ड़ालने हैं ढ़ोने के लिये. फिर में आती हु" सानिया बास्केट की और इशारा करती बोली. बास्केट के कारन सानिया की स्कर्ट पीछे से उसके घुटनो से ऊपर उठ गयी थी. उसकी दायि जांघ पर सतीश के वीर्य की एक गाढ़ी धारा बह्ते हुए उसके घुटनो तक पहुँच गयी थी. सानिया घूमकर उसके पास से निकलर घर के अंदर चलि गयी थी अबतक डर के कारन सतीश का जिस्म कांप रहा था. डैड कॉफी के घूंठ भरते हुए मम्मी को जाते हुए देखते रहे. उसे समझ नहीं आ रहा था वो मम्मी के घुटने पर उस वीर्य की धार को क्यों नहीं देख पाए थे जबके सतीश को सिर्फ वो धारा ही दिखाई दे रही थी जब सानिया वहां से जा रही थी.
फिर इसके बाद दोनों माँ बेटा काफी खुल गये पर पुरी तरह अब भी नही

सतीश सुबह बेड से उठा और उसने शावर लिया. पिछला हफ्ता बड़ा मुश्किल गुज़रा, एक्साम्स फिर नॉनस्टॉप पार्टी जहाँ शराब की नदी बह रही थी. लेकिन ये हफ्ता कुछ अलग है. ठण्डी हवा के झोंके के साथ शुरू हुआ है. सतीश तैयार होकर हॉल में आया... वो आज बेहद खुश है... वो खुश क्यों न हो... जलद ही उसके जीवन का सबसे हसीन और दिलक़श सपना "अपनी बेहद हसीन और सेक्सी मम्मी को चोदने का सपना पूरा जो होने वाला है..." अब वो दिन दूर नहीं जब वो अपनी मम्मी चोदेगा...

वो ये जानता है की वो अपनी मम्मी के पैरों को अपने कंधे पे रख के अपना 9 इंच का लंड..
अपनी मम्मी की चुत में दाल के उसे जम के चोदेगा और उसे पूरी तरहा से तृप्त करेंगा...
उसे इस बात का यकीन है की ऐसा ज़रूर होगा..
उसकी मम्मी किचन में सिंक के पास खड़ी बर्तन धो रही है.
सतीश अपनी मम्मी के पीछे जा के खड़ा हो गया और मम्मी की तरफ झुक के ऊपर कपबोर्ड से कॉर्नफ़्लेक्स का डब्बा निकालने लगा. एक हाथ से उसने कपबोर्ड का दरवाज़ा खोला और दूसरे हाथ से डिब्बे को निकालने की कोशिश करने लगा, इस हालत में उसका बैलेंस बिगड गया और वो अपनी मम्मी के ऊपर गिर गया. जब सतीश अपनी मम्मी पे गिरा उसका सुबह सवेरे का खड़ा लंड उसकी मम्मी के सेक्सी चुत्तड़ में घुस गया.
दोनो मम्मी बेटा इस लंड और चुत्तड़ के अचानक मिलन से चोंक गये.. दोनों ही सेक्स को ले कर बहुत ही संवेदनशील और कामुक है.
सानिया : सतीश...? क्या कर रहा है.?
सतीश खुद को बड़ी मुश्किल से सम्भालता है और सीधा खड़ा होता है..
ईस कोशिश में उसका आधा खड़ा लंड मम्मी के सेक्सी चुत्तड़ पे घिसता है और धीरे धीरे पूरी तरहा खड़ा हो जाता है बिलकुल एक लोहे की रोड की तरह.
सतीश : "सॉरी, मम्मी वो क्या है की जब में नाश्ता करने आया तो मैंने देखा की तुम बर्तन धोने में बिजी हो इस लिए मैंने सोचा क्यों न में खुद नास्ता ले लू. इस लिए में घूसा और कॉर्नफ़्लेक्स का डिब्बा ले रहा था.
सतीश डरते हुए मासूम चेहरा बना के अपनी मम्मी को जवाब देता है.
सानिया : "पर तुम गलत जगह घुस रहे हो. घूसने के लिए ये जगह सही नहीं है. अगली बार थोड़ा ख़याल रखना और सही जगह घुसना गलत जगह नही."
फिर सानिया पीछे मुड़ी और धीरे से मुस्कुराई.
सानिया : मेरे लाल को भूक लगी है? तो मुझे कहता में तुझे नाश्ता नहीं खाना खिला देती. ये ज़रा से नाश्ते में क्या रखा है? खाना ज़्यादा मज़ेदार है. एक बार खायेगा तो रोज़ खाने को मम्मीगेंगा"
सतीश : पर मम्मी मुझे तो तुम्हारा नाश्ता ज़्यादा पसंद है.
सानिया : मेरे लाल नाश्ता तो मजबुरी में किया जाता है जब कई दिनों तक खाना ना मिले तब्.
सतीश : पर मम्मी मुझे तो तुम्हारा नाश्ता बड़ा प्यारा और टेस्टी लगता है.
सानिया : तु ने मेरा स्पेशल खाना टेस्ट नहीं किया इस लिए कह रहा है. एक बार करके के तो देख.
सतीश : ठीक है मम्मी तुम कहती हो तो में वो ज़रूर टेस्ट करुन्गा. प्लीज मुझे दो ना.
सानिया : अभी नही, अभी कुछ दिन तुझे इंतज़ार करना पड़ेगा उस टेस्टी खाने को को चखने के लिये.
सतीश : ऐसा मत कहो मम्मी, ऐसे तो में भूखा रह जाऊंगा. मम्मी प्लीज जब तक मुझे वो टेस्टी खाना नहीं मिलता, तब तक प्लीज तुम मुझे मेरा फेव नाश्ता करने दो.
सानिया : चल ठीक है खा लेना तेरा फेव नाष्टा, तु भी क्या याद करेगा की तेरी मम्मी कितनी दिलदार है.
अपनी मम्मी की बात सुन के सतीश बेहद खुश हो गया और ख़ुशी में उस ने अपने होश खो दिये. और अपनी मम्मी के होठो को चूम लिया. सतीश की इस अचानक हरकत पे सानिया चोंक गयी.
 

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