'मैं दुबारा इनकी शक्ल नहीं देखना चाहता, इसलिए यहीं दे रहा हु. मेरी फाइनल पेमेंट का चेक मुझे भिजवा दीजियेगा' मैंने सर की तरफ देखते हुए कहा.
'मिस्टर सागर बीह्याव योवरसेल्फ!' जज साहब ने मुझे चेतावनी देते हुए कहा और मैं भी चुप हो गया.
'देख रहे है जज साहब, इस लड़के को रत्ती भर भी तमीज नहीं की कोर्ट...
'तुझसे तो शादी के काम करने के लिए छुट्टी ली नहीं जाती तो अब किसी को तो काम करना होगा ना? वो तो शुक्र है की अश्विनी को तू घर छोड़ गया था वरना चूल्हा-चौका भी हमें फूँकना पड़ता! न्योता बाँटने गए हैं, कल आएंगे!' माँ के मुँह से अश्विनी का नाम सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैं पाँव पटकता हुआ ऊपर कमरे...
घडी में अभी बस १० बजे थे और मोहित भैया तो लौटने लगे थे और अब उन्हें घर छोड़ना अकेले प्रफुल के बस की बात नहीं थी. मैंने कैब बुलाई और फिर हम ने मिलकर मोहित को कैब में बिठाया और पहले उसे घर छोड़ा और भाभी से माफ़ी भी मानगी की मेरे बर्थडे ट्रीट की वजह से भाई को थोड़ी ज्यादा हो गई. फिर प्रफुल को छोड़ मैं...
'बहुत बोलती है ये... प्लीज इसे बोलने मत देना वरना ये ऐसा रेडियो है जो शुरू हो जाए तो बंद नहीं होता.' मैंने सुमन का मजाक उड़ाते हुए कहा. सुमन ने मुझे प्यार से एक घूँसा मारा. 'देख लिया मारती भी है! इन्शुरन्स करवाया है ना अपना? कहीं टूट-फूट जाओ तो!' हम तीनों खूब हांसे और मुझे ये जान कर ख़ुशी हुई की...
'पर मुझे आज का दिन आपके साथ बिताना करना था! कल से आपका ऑफिस है, फिर हम कब मिलेंगे?' मैंने अपनी बाहें खोलीं और आशु एक दम से मेरे गले लग गई. मैंने उसके सर को चूमते हुए कहा; 'जान! मैं चाँद पर नहीं जा रहा की तुम से मिलने आ न सकूँ?! शुरू-शुरू थोड़ी दिक्कत होगी, पर तुम जानती हो ना मैंने तुम्हें कभी...
'तो? यहाँ तुम्हें जानने वाला कोई नहीं हे. किसी चाहिए मुझे!' मैंने अपने दाएँ गाल पर ऊँगली से इशारा करते हुए कहा. आशु जानती थी की मैं मानने वाला नहीं हूँ इसलिए हार मानते हुए उसने थोड़ा उचकते हुए मेरे गाल को जल्दी से चूम लिया और शर्म के मारे मेरे सीने में अपना चेहरा छुपा लिया. 'अच्छा बस! इतनी मेहनत...
मैं आगे कुछ नहीं बोला और चुप-चाप चाय पीने लगा. चूँकि हम अयोध्या वासी हैं तो दशहरे पर बहुत धूम-धाम होती हे. हमारे गाँव के मुखिया हर साल इन दिनों में रामलीला का आयोजन जोर-शोर से करते हे. रावण का एक बहुत बड़ा पुतला बना कर फूँका जाता है, पर हमारे घर का हाल ये था की कोई भी सम्मिलित नहीं होता था. मैं...
'ऑफिस का एक प्रोजेक्ट है, बीच में छोड़ के आया हूँ और ऊपर से आशु भी यहीं है! इसलिए कुछ मेल्स फॉरवर्ड करने थे!' मैंने कहा और फ़ोन जेब में रख कर वापस बैठ गया.'तो आज कहाँ का प्रोग्राम है?' निशा ने मुझसे पुछा?
'यहाँ पर किले हैं देखने के लिए, जंतर मंतर है और हाँ जल महल भी हे.' मैंने कहा तो निशा बोली...
पीछे भाभी खड़ी थी और उनकी नजर मेरे लिंग पर टिकी थी. जब मेरी नजरें उनकी नजरों का पीछा करते हुए मेरे ही लिंग तक आई तो मैंने फट से लिंग पाजामे में डाला और मुंडेर से नीचे आ गया.मैं बुरी तरह से झेंप गया था और वापस अपने कमरे की तरफ जा रहा था. इतने में पीछे से भाभी बोली; 'मुझे तो लगा था की तुम आत्महत्या...
मैं: मॅडम आपने सर से इस बारे में बात की? आई मीन इफ यू टेल हिम, ही माईट चेंज हिमसेल्फ …… (मैडम मेरी बात काटते हुए बोलीं)
नितु मैडम: आई दिड बट ही इज टू ड्याम एडमिट टू एकसेप्ट हिज बिहेवियर अँड इंस्टेड ब्लेम मी फॉर इट अँड एक्सपेक्ट मी टू चेंज! दिस रिलेशनशिप इज बियोंड रीपेयरेबल …अँड आई एम गोना एंड इट...
तुझसे बढ़कर नहीं कोई नशा' और हम सारे नाचने लगे. अब बारी थी मेरी की मैं भी अपना पेग खत्म कर दूँ तो मैं तीनों को नाचता हुआ छोड़ के अपना पेग पीने लगा.
तभी वहां नेक्स्ट गाना लगा; “शेप ऑफ यू” मैं जल्दी से वपस डांस फ्लोर पर आ गया और चारों जोश से भर के नाचने लगे, 'आई एम इन लव विद योवर बॉडी…...
ये राखी वही लड़की थी जो पहले मेरे ऑफिस में काम करती थी और जिसे मैं आशु से प्यार होने से पहले पसंद करता था. 'हाई सागर! हाऊ आर यू?”
“आई एम फाइन, हाऊ यू डूयिंग? हाऊ'ज योवर न्यू जॉब?” मैंने पूछा.
“आई ऑलरेडी रिजाईन, आई विल बी जोईनिंग सर अगैन!” उसने कहा पर आगे कुछ बात होने से पहले ही मैडम आ गईं और वो...
'सुना तूने कुत्ते! चल माफ़ी माँग सागर से.' भैया ने गरजते हुए तोमर से कहा. वो बेचारा रोता हुआ खड़ा हुआ और हाथ जोड़ के माफ़ी मांगने लगा तो मैंने भी उसे माफ़ कर दिया. 'आज के बाद तूने किसी को भी परेशान किया ना तो देख फिर! और आप सभी को भी बता दूँ, इसका नाम राकेश है और आज के बाद आप में से किसी भी स्टूडेंट...
गाना सुनते-सुनते हम थिरकते रहे और आशु साथ-साथ खाना भी बनाती रही. रात नौ बजे तक मैं यूँ ही उसके जिस्म से अटखेलियाँ करता रहा और वो कसमसा कर रह जाती. आखिर खाना बना और आशु ने एक ही थाली में दोनों के लिए खाना परोसा और मुझे फर्श पर ही बैठने को कहा. मैं फर्श पर दिवार से सर लगा कर बैठा था. वो थाली पकडे...
गाना पूरा कर के वो मुस्कुराई और पलट के चली गई. मैं जानता था की अश्विनी को गाना गुन-गुनाना बहुत अच्छा लगता था. जब हम छोटे थे तब हम दोनों अक्सर अंताक्षरी खेलते थे और वो सभी गानों को पूरा गाय करती थी और मैं कभी उसका साथ देता और कभी कभी उसका गाना सुनता रहता था. खेर रात में हम दोनों चैन से सोये और जब...