Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

Will Change With Time
Moderator
8,511
16,880
143
Dear readers lusty web par post hone wala yah mera pahla kahani hai. Mai koyi lekhak nehi hu bas kuch jane mane lekhako ki kahani ko padkar jo shavd mere mastishk me panpa unko rachna ka roop de kar aap sabhi readers ke samne pesh kar raha hu. Mere kahani me koyi bhi sex scen nehi hoga. Yah kahani parivarik gathnao par adharit hai. Jisme apko parivarik man mitao, apsi ranjish, perm ka mila jula bhav darshya jayega. Atah mai ummid karta hu aap sabhi readers dusre writers ko jitna support karte hai utna hi mera bhi support karenge pahla sham tak post kar dunga
 
Last edited:
Will Change With Time
Moderator
8,511
16,880
143
Update - 1


पहाड़ी घटी में बसा एक गांव जो चारों ओर खुबसुरत पहाड़ियों से घिरा हुआ हैं। गांव के चौपाल पर एक जवान लड़का पुलिसिया जीप के बोनट पर बैठा था। लड़के के पीछे दो मुस्टंडे, हाथ में दो नाली बंदूक लिए मुस्तैदी से खड़े थे। दोनों इतने मुस्तैदी से खड़े थे कि थोडा सा भी हिल डोल होते ही तुरंत एक्शन में आ'कर सामने वाले को ढेर कर दे। उनके सामने एक बुजुर्ग शख्स हाथ जोड़े खड़ा था। शख्स के पीछे कईं ओर लोग हाथ जोड़े घुटनों पर बैठ थे। सभी डर से थर थर कांप रहे थें। सबको कांपते हुए देखकर लड़का अटाहास करते हुए बोला…क्यों रे मुखिया सुना है तू कर भरने से मना कर रहा था।

मुखिया जो पहले से ही डर से कांप रहे थे। अब तो उससे बोला भी नहीं जा रहा था। परिस्थिती को भाप कर मुखिया समझ गया कुछ नहीं बोला तो सामने खडे मुस्टंडे पल भर में उसके धड़ से प्राण पखेरू को आजाद करे देंगे और कुछ गलत बोला तो भी पल भार में उसके शरीर को जीवन विहीन कर देंगे। इसलिए मुखिया वाणी में शालीनता का समावेश करते हुए बोला….माई बाप हम'ने अपना सभी कर भर दिया हैं। आप ओर कर मांगेंगे तो हम बाल बच्चों को क्या खिलाएंगे उन्हें तो भूखा रखा पड़ेगा। कुछ रहम करे माई बाप हममें ओर कर भरने की समर्थ नहीं हैं।

मुखिया की बातों को सुनकर लड़का रूखे तेवर से बोला….जो कर तुम लोगों ने भरा वह तो सरकारी कर था। मेरा कर कौन भरेगा? तुम्हारे बाल बच्चे मरे या जिए मुझे कोई लेना देना नहीं, तुम्हें कर भरना ही होगा कर नहीं भरा तो मुझसे रहम की उम्मीद न रखना।

लड़के की बातों को सुन मुखिया सोच में पड गया अब बोले तो क्या बोले फिर भी उसे बोलना ही था नहीं बोला तो उसके साथ कुछ भी हों सकता था। इसलिए मुखिया डरते डरते बोला….माई बाप इस बार बागानों से उत्पादन कम हुआ हैं। सरकारी कर भरने के बाद जो कुछ भी हमारे पास बचा हैं उससे हमारे घर का खर्चा चला पाना भी सम्भव नहीं हैं ऐसे में आप ओर कर भरने को कहेंगे तो हमारे घरों में रोटी के लाले पड़ जायेंगे।

मुखिया की बातों को सुन लड़का गुस्से से गरजते हुए बोला…सुन वे जमीन पे रेगने वाले कीड़े मेरा नाम अपस्यू राना है। मैं कोई तपस्वी नहीं जो मुझ'में अच्छे गुणों का भंडार होगा या मैं अच्छा कर्म करुंगा इसलिए मैं तुम सभी को कल तक का समय देता हूं। इस समय के अदंर मेरा कर मुझ तक नहीं पहुंचा तो तुम्हारे घर की बहू बेटियो के आबरू को नीलाम होने से नहीं बचा पाओगे।

बहु बेटियो के आबरू नीलाम होने की बात सुन मुखिया असहाय महसूस कर रहा था। घर की मान सम्मान बचाने का एक ही रास्ता दिखा, वह हैं अपस्यू की बातों को मान लेना। इसलिए मुखिया दीन हीन भाव से बोला…माई बाप हमे कुछ दिन का मौहलत दे दीजिए हम कर भर देंगे।

मुखिया की बाते सुन अपस्यू हटाहास करते हुए बोला….तुम्हें मौहलात चाहिए दिया, जितनी मौहलत चाहिए ले लो लेकिन जब तक तुम कर नहीं भर देते तब तक अपने घरों से रोज एक लड़की एक रात की दुल्हन बनाकर मेरे डाक बंगले भेजते रहना। फ़िर साथ आए साथियों से बोला…चलो रे सभी गाड़ी में बैठो नहीं तो ये कीड़े मकोड़े मेरे दिमाग़ का गोबर बाना अपने आंगन को लीप देंगे। सुन वे मुखिया कल तक कर पहुंच जाना चाहिए नहीं तो जितना देर करेगा उतना ही अपने बहु बेटियो की आबरू लुटवाता रहेगा और एक बात कान खोल कर सुन ले यह की बाते राना जी के कान तक नहीं पहुंचना चाहिए नहीं तो तुम सभी जान से जाओगे और तुम्हारे बहु बेटियां अपनी आबरू मेरे मुस्टांडो से नुचबाते नुचबाते मर जाएंगे।

अपस्यू साथ आए मुस्टांडो को ले'कर चला गया। उसके जाते ही बैठें हुए भीड़ में से एक बोला….मुखिया जी ऐसा कब तक चलेगा। हमे कब तक एक ही कर को दो बार भरना पड़ेगा। ऐसा चलाता रहा तो एक दिन हमे जमीन जायदाद बेचना पड़ जायेगा।

मुखिया…शायद जीवन भर इस पापी से अपने घरों की मन सम्मान बचाने के लिए एक कर को दो बार भरना पड़ेगा।

"हम कब तक अपश्यु और उसके बाप का जुल्म सहते रहेंगे। हम राजा जी को बोल क्यों नहीं देते।"

मुखिया….अरे ओ भैरवा तू बावला हों गया हैं सुना नहीं ये पापी क्या कह गया। यहां की भनक राजाजी की कानों तक पहुंचा तो दोनों बाप बेटे हमें मारकर हमारे बहु बेटियों के आबरू से तब तक खेलते रहेंगे जब तक हमारी बहु बेटियां जीवित रहेंगी।

भैरवा…मुखिया जी हमने अगर इस पापी की मांग पुरा किया तो हम भूखे ही मर जायेंगे।

मुखिया….ऐसा कुछ भी नहीं होगा। हर महीने महल से राजाजी हमारे भरण पोषण के लिए जो अनाज, कपडे और बाकी जरूरी सामान भिजवाते हैं। उससे हमारा गुजर बसर चल जाएगा। अब तुम सब जाओ और कल इस पापी तक उसका कर पहूचाने की तैयारी करों।

सभी दुखी मन से अपने अपने घरों को चल देते हैं। मुखिया भी उनके पीछे पीछे चल देते हैं। दूसरी ओर पहाड़ की चोटी पर बना आलीशान महल जिसकी भव्यता को देखकर ही अंदाजा लग जाता हैं। यह रहने वाले लोगों का जीवन तमाम सुख सुविधाओं से परिपूर्ण होगा। महल के अदंर राजेंद्र प्रताप राना बेटे को बुला रहें थें। आवाज में इतनी गरजना था मानो कोई बब्बर शेर वादी को दहाड़ कर बता रहा हों। मैं यह का राजा हूं। बाप की गर्जना भरी आवाज सुन रघु थार थार कांपने लग गया। मन में सोचा जाए की न जाएं, नहीं गए तो पापा कहीं नाराज न हों जाएं इसलिए कुछ साहस जुटा रूम से बाहर आया फिर पापा के सामने जा खडा हों गया। उससे खडा भी नहीं होया जा रहा था हाथ पैर थार थार कांप रहे थे। रघु से बोला भी नहीं जा रहा था फ़िर भी लड़खड़ाते जुबान से बोला….अपने बुलाया पापाजी।

बेटे को कांपते देख और लड़खड़ाती बोली सुन राजेंद्र बोला….हां मैंने बुलाया लेकिन तुम ऐसे कांप क्यों रहे हों। जरूर तुम'ने कुछ गलत किया होगा। बोलों तुमने ऐसा क्या किया जो तुम्हें मेरे सामने आने में इतना डर लग रहा हैं।

रघु कुछ न बोला चुपचाप खड़ा रहा। रघु को बोलता न देख वहां बैठे रघु की मां सुरभि बोली….रघु बेटा तू मेरे पास आ, आप भी न मेरे बेटे को हर बार डरा देते हों। राजपाठ चाली गईं लेकिन राजशाही अकड़ अभी तक नहीं गई।

रघु चुपचाप मां के पास जा'कर बैठ गया। राजेंद्र पत्नी की बात सुन मुस्कुराते हुए बोला…अरे सुरभि राजपाठ भले ही न रहा हों लेकिन राजशाही हमारे खून में हैं। खून को कैसे बदले वो तो अपना रंग दिखायेगा ही।

सुरभि बेटे का सिर सहलाते हुए बोली...खून रंग दिखाना हैं तो घर से बाहर दिखाओ। आप के करण मेरा लाडला बिना कोई गलती किए ऐसे डर गया जैसे दुनियां भर का सभी गलत काम इसने किया हों। आप खुद ही देखो कैसे कांप रहा हैं इससे तो बोला भी नहीं जा रहा था।

सुरभि की बाते सुन राजेंद्र के चहरे पर आया हुआ मुस्कान ओर गहरा हों गया फिर राजेंद्र अपने जगह से उठ, बेटे के पास जाकर बैठते हुए बोला…रघु मैं तेरा दुश्मन नहीं हूं मैं ऐसा इसलिए करता हूं ताकि तू रह भटक कर गलत रस्ते पर न चल पड़े। तुझे ही तो आगे चलकर यह की जनताओं का सुख दुःख का ख्याल रखना हैं। जब तू कुछ गलत करता ही नहीं, तो फिर डरता क्यों हैं। मैं तेरा बाप हूं। अपना फर्ज निभाऊंगा ही। हमेशा एक बात का ख्याल रखना अगर तूने कुछ गलत नहीं किया तो बिना डरे बिना झिजके साफ साफ लावजो में बात करा कर। तेरा डरना ही मेरे मन में शक पैदा करता हैं तूने कुछ तो गलत किया होगा।

रघु कुछ कहा नहीं सिर्फ हां में सिर हिला दिया। बेटे को असहज देख राजेंद्र रघु के सिर पर हाथ फिरा मुस्कुरा दिया। बाप को मुस्कुराता देख रघु भी मुस्कुरा दिया। फ़िर धीरे धीर खुद को सहज कर लिया। रघु को मुस्कुराते देख सुरभि बोली….सुनिए जी आप अभी से मेरे बेटे पर काम का बोझ न डाले अपको कितनी बार कहा हैं आप मेरे लाडले को दहाड़ कर न बुलाया करे। अगली बार अपने मेरे लाडले को दहाड़ कर बुलाया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।

दुलार और बचाव के पक्ष में बोलते देख रघु पूर्ण सहज होकर मुस्करा दिया। बेटे को मुस्कुराते देख राजेंद्र बोला….मुझे दाना पानी बंद नहीं करवाना हैं। इसलिए रानी साहिबा जी आप'की बातों का ध्यान रखूंगा।

राजेंद्र जी की बाते सुन सुरभि बनावटी गुस्सा करते हुए बोली….अच्छा तो मैं आप'का दाना पानी बंद कर देती हूं। अब आना दाना चुगने दाने के जगह कंकड़ परोस दूंगी।

राजेंद्र ….जो भी परोसो मैं उससे ही अपना पेट भरा लूंगा, पेट भरने से मतलब हैं। क्या परोसा जा रहा हैं क्या नहीं इसकी छान बीन थोडी न करना हैं।

दोनों में प्यार भारी नोक झोंक चलता रहता हैं। मां बाप के झूठी तकरार को देख रघु बोला….मां पापा मैं जान गया हूं यह सब आप मेरे लिए ही कर रहे हैं। अब आप दोनों अपनी झूठी तकरार बंद कीजिए और मुझे बताइए अपने क्यों बुलाया कुछ विशेष काम था?

राजेंद्र….कुछ विशेष काम नहीं था मैं तो तुम्हारे साथ मसकारी करना चाहता था इसलिए बुलाया था।

सुरभि…अपका मसखरी करना मेरे बेटे पर कितना भारी पड़ता हैं आप'ने देखा न, मेरा लाडला कितना सहम गया था। आप को कितना कहा लेकिन आप हों की सुनते नहीं बे वजह मेरे बेटे को डरते रहते हों।

रघु…मां आप फिर से शुरू मत हों जाना मैं बच्चों को पढ़ाने जा रहा हूं। मेरे जानें के बाद आप'को पापा से जितना लड़ना हैं लड़ लेना।

ये कह रघु उठकर चल दिया सुरभि बेटे को आवाज दे रही थीं लेकिन रघु बिना कोई जवाब दिए चला गया। रघु के जाते ही राजेन्द्र बोला….सुरभि रघु को जानें दो हम अपने नोक झोंक को आगे बढ़ाए बेटा भी तो यही कह गया हैं।

सुरभि उठकर जाते हुए बोली… अभी मैं दोपहर की खाने की तैयारी करवाने जा रहीं हूं आप'से बाद में निपटूंगी।

सुरभि उठकर कीचन की और चल दिया। राजेंद्र आवाज दिया, सुरभि मुड़कर राजेंद्र को बोली... अभी नोकझोक करने का मेरा मूड नहीं हैं जब मुड़ होगा बहुत सारा नोक झोंक करूंगा।

राजेंद्र... जब तुम्हारा मुड़ नहीं हैं तो मैं यहां क्या करूंगा मैं भी कुछ काम निपटा कर आता हुं।

सुरभि मुस्कुराते हुई कीचन की और चल दिया फिर राजेंद्र रूम से कुछ फाइल्स लेकर चला गया।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। पहला अपडेट कैसा रहा बताना न भूलिएगा।
 
Last edited:
Will Change With Time
Moderator
8,511
16,880
143
Update -2


किचन में बावर्ची दिन के खाने में परोसे जानें वाले विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को बनाने में मग्न थे। सुरभि किचन के दरवाजे पर खडा हों सभी बावर्चियो को काम में मग्न देख मुस्कुराते हुए अंदर गईं। सभी बावर्चिओ में एक बुजुर्ग था। उनके पास जा'कर बोली...दादा भाई दिन के खाने में किन किन व्यंजनों को बनाया जा रहा हैं।

सुरभि को कीचन में देख बुजुर्ग वबर्ची बोला…रानी मां आप को कीचन में आने की क्या जरूरत थीं हम तैयारी कर तो रहे हैं।

सुरभि…दादा भाई मैं कीचन में क्यों नहीं आ सकती यहां घर और कीचन मेरा हैं। मै कहीं भी आ जा सकती हूं। आप से कितनी बार कहा हैं आप मुझे रानी मां न बोले फिर भी सुनते नहीं हों।

"क्यों न बोले रानी मां आप इस जागीर के रानी हों और एक मां की तरह सभी का ख्याल रखते हों। इसलिए हम आप'को रानी मां बोलते हैं।"

सुरभि…दादाभाई आप मुझसे उम्र में बड़े हों। आप'का मां बोलना मुझे अच्छा नहीं लगता। जब राजपाठ थी तब की बात अलग थीं। अब तो राजपाठ नहीं रही और न ही राजा रानी रहे। इसलिए आप मुझे रानी मां न बोले।

बुजुर्ग…राज पाट नहीं हैं फिर भी आप और राजा जी अपने प्रजा का राजा और रानी की तरह ख्याल रखते हों हमारे दुःख सुख में हमारे कंधे से कंधा मिलाए खडे रहते हों। ऐसे में हम आपको रानी मां और राजा जी को राजाजी क्यो न बोले, रानी मां राजा रानी कहलाने के लिए राजपाठ नहीं गुण मायने रखता हैं जो आप में और राजाजी में भरपूर मात्रा में हैं।

बुजुर्ग से खुद की और पति की तारीफ सुन सुरभि मन मोहिनी मुस्कान बिखेरते हुए बोली…जब भी मैं आप'को रानी मां बोलने से मना करती हूं आप प्रत्येक बार मुझे अपने तर्कों से उलझा देते हों फिर भी मैं आप से कहूंगी आप मुझे रानी मां न बोले।

सुरभि को मुस्कुराते हुए देख और तर्को को सुन बुजुर्ग बोला...रानी मां इसे तर्को में उलझना नहीं कहते, जो सच हैं वह बताना कहते हैं। आप ही बता दिजिए हम आप'को क्या कह कर बुलाए।

सुरभि…मैं नहीं जानती आप मुझे क्या कहकर संबोधित करेंगे। आप'का जो मन करे बोले लेकिन रानी मां नहीं!

बुजुर्ग...हमारा मन आप'को रानी मां बोलने को करता हैं। हम आप'को रानी मां ही बोलेंगे इसके लिए आप हमें दण्ड देना चाहें तो दे सकते हैं लेकिन हम आप'को रानी मां बोलना बंद नहीं करने वाले।

सुकन्या किसी काम से किचन में आ रही थीं। वाबर्चियो से सुरभि को बात करते देख किचन के बाहर खड़ी हो'कर सुनाने लग गईं। सुरभि की तारीफ करते सुन सुकन्या अदंर ही अदंर जल भुन गई जब तक सहन कर सका किया जब सहन सीमा टूट गया तब रसोई घर के अंदर जाते हुए बोली...क्यों रे बुढाऊ अब तुझे किया चाहिए जो दीदी को इतना मस्का लगा रहा हैं।

सुरभि…छोटी एक बुजुर्ग से बात करने का ये कैसा तरीका हैं। दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं। कम से कम इनके साथ तो सलीके से पेश आओ।

एक नौकर के लिए सुरभि का बोलना सुकन्या से बर्दास्त नहीं हुआ इसलिए सुकन्या तिलमिला उठा और बोला…दीदी आप इस बुड्ढे का पक्ष क्यों ले रहीं हों। ये हमारे घर का एक नौकर हैं, नौकरों से ऐसे ही बात किया जाता हैं।

सुकन्या की बाते सुन सुरभि को गुस्सा आ गया सुरभि गुस्से को नियंत्रित करते हुए बोली...छोटी भले ही ये हमारे घर में काम करने वाले नौकर हैं लेकिन हैं तो एक इंसान ही और दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं। तुम्हारे पिताजी के उम्र के हैं तुम अपने पिताजी के लिए भी ऐसे अभद्र भाषा बोलती हों।

एक नौकर का पिता से तुलना करना सुकन्या को हजम नहीं हुआ इसलिए सुकन्या अपने वाणी को ओर तल्ख करते हुए बोली…दीदी आप इस बुड्ढे की तुलना मेरे पिता से कर रहीं हों इसकी तुलना मेरे पिता से नहीं हों सकता। ओ हों अब समझ आया आप इसका पक्ष क्यों ले रहीं हों आप इस बुड्ढे के पक्ष में नहीं रहेंगे तो ये बुड्ढा चिकनी चुपड़ी बातों से आप'की तारीफ नहीं करेगा आप'को तारीफे सुनने में मजा जो आता हैं।

सुकन्या की बातो को सुन वह मौजुद सभी को गुस्सा आ गया। लेकिन नौकर होने के नाते कोई कुछ बोल पाया, मन की बात मन में दावा लिया। सुरभि भी अछूता न रहा सुकन्या की बातो से उसे भी गुस्सा आ गया लेकिन सुरभि बात को बढ़ाना नहीं चह रहीं थी इसलिए चुप रह गईं पर नौकरों में से एक काम उम्र का नौकर एक गिलास पानी ले सुकन्या के पास गया। पानी का गिलास सुकन्या के देते हुए जान बुझ कर पानी सुकन्या के साड़ी पर गिरा दिया। पानी गिरते ही सुकन्या आगबबूला हों गई। नौकर को कस'के एक तमाचा जड़ दिया फिर बोली…ये क्या किया कमबख्त मेरी इतनी महंगी साड़ी खराब कर दिया तेरे बाप की भी औकात नहीं इतनी महंगी साड़ी खरीद सकें।

एक ओर तमाचा लड़के के गाल पर जड़ सुकन्या पैर पटकते हुए कीचन से बहार को चल दिया। तमाचा इतने जोरदार मारा गया था। जिससे गाल पर उंगली के निशान पड़ गया साथ ही लाल टमाटर जैसा हों गया। लड़का खड़े खड़े गाल सहला रहा था। सुरभि पास गई लडके का हाथ हटा खुद गाल सहलाते हुए बोली…धीरा तुने जान बुझ कर छोटी के साड़ी पर पानी क्यों गिराया। तू समझता क्यों नहीं छोटी हमेशा से ऐसी ही हैं। कर दिया न छोटी ने तेरे प्यारे से गाल को लाल।

सुरभि का अपने प्रति स्नेह देख धीरा की आंखे नम हों गया। नम आंखो को पोंछते हुआ धीरा बोला…रानी मां मैं आप को अपमानित होते हुए कैसे देख सकता हूं। छोटी मालकिन ने हमें खरी खोटी सुनाया हमने बर्दास्त कर लिया। उन्होंने आप'का अपमान किया मैं सहन नहीं कर पाया इसलिए उनके महंगी साड़ी पर जान बूझ कर पानी गिरा दिया। इसके एवज में मेरा गाल लाल हुआ तो क्या हुआ बदले में अपका स्नेह भी तो मिल रहा हैं।

सुरभि...अच्छा अच्छा मुझे ज्यादा मस्का मत लगा नहीं तो मैं फिसल जाऊंगी तू जा थोड़ी देर आराम कर ले तेरे हिस्से का काम मैं कर देती हूं।

धीरा सुरभि के कहते ही एक कुर्सी ला'कर सुरभि को बैठा दिया फिर बोला…रानी मां हमारे रहते आप काम करों ये कैसे हों सकता हैं। आप को बैठना हैं तो बैठो नहीं तो जा'कर आराम करों खाना बनते ही अपको सुचना भेज दिया जायेगा।

सुरभि…मुझे कोई काम करने ही नहीं दे रहे हों तो यह बैठकर क्या करूंगी मैं छोटी के पास जा रही हूं।

सुरभि के जाते ही बुजुर्ग जिसका नाम रतन हैं वह बोला…छोटी मालकिन भी अजब प्राणी हैं इंसान हैं कि नागिन समझ नहीं आता। जब देखो फन फैलाए डसने को तैयार रहती हैं।

धीरा...नागीन ही हैं ऐसा वैसा नहीं विष धारी नागिन जिसके विष का काट किसी के पास नहीं हैं।

सुकन्या की बुराई करते हुऐ खाने की तैयारी करने लग गए। सुरभि सुकन्या के रूम में पहुंच, सुकन्या मुंह फुलाए रूम में रखा सोफे पर बैठी थीं, पास जा'कर सुरभि बोली…छोटी तू मुंह फुलाए क्यो बैठी हैं। बता क्या हैं?

सुरभि को देख मुंह भिचकते हुए सुकन्या बोली…आप तो ऐसे कह रही हो जैसे आप कुछ जानती ही नही, नौकरों के सामने मेरी अपमान करने में कुछ कमी रहीं गईं थी जो मेरे पीछे पीछे आ गईं।

सुकन्या की तीखी बाते सुन सुरभि का मन बहुत आहत हुआ फिर भी खुद को नियंत्रण में रख सुरभि बोली…छोटी मेरी बातों का तुझे इतना बुरा लग गया। मैं तेरी बहन जैसी हूं तू कुछ गलत करे तो मैं तुझे टोक भी नहीं सकता।

सुकन्या…मैं सही करू या गलत आप मुझे टोकने वाली होती कौन हों? आप मेरी बहन जैसी हों बहन नहीं इसलिए आप मुझसे कोई रिश्ता जोड़ने की कोशिश न करें।

सुरभि...छोटी ऐसा न कह भला मैं तुझ'से रिश्ता क्यों न जोडू, रिश्ते में तू मेरी देवरानी हैं, देवरानी बहन समान होता हैं इसलिए मैं तूझे अपनी छोटी बहन मानती हूं।

सुकन्या…मैं अपके साथ कोई रिश्ता जोड़ना ही नहीं चाहती तो फिर आप क्यों बार बार मेरे साथ रिश्ता जोड़ना चाहती हों। आप कितनी ढिट हों बार बार अपमानित होते हों फिर भी आ जाते हों अपमानित होने। आप जाओ जाकर अपना काम करों।

सुरभि से ओर सहन नहीं हुआ। आंखे सुकन्या की जली कटी बातों से नम हों गई। अंचल से आंखों को पूछते हुए सुरभि चली गईं सुरभि के जाते ही सुकन्या बोली…कुछ भी कहो सुरभि को कुछ असर ही नहीं होता। चमड़ी ताने सुन सुन कर गेंडे जैसी मोटी हों गईं हैं। कैसे इतना अपमान सह लेती हैं। कर्मजले नौकरों को भी न जानें सुरभि में क्या दिखता हैं? जो रानी मां रानी मां बोलते रहते हैं।

कुछ वक्त ओर सुकन्या अकेले अकेले बड़बड़ाती रहीं फिर बेड पर लेट गई। सुरभि सिसक सिसक कर रोते हुऐ रूम में पहुंचा फिर बेड पर लेट गई। सुरभि को आते हुए एक बुजुर्ग महिला ने देख लिया था। जो सुरभि के पीछे पीछे उसके कमरे तक आ गईं। सुरभि को रोता हुए देख पास जा बैठ गई फ़िर बोली…रानी मां आप ऐसे क्यो लेटी हों? आप रो क्यों रहीं हों?

सुरभि बूढ़ी औरत की बात सुन उठकर बैठ गईं फिर बहते आशु को पोंछते हुए बोली…दाई मां आप कब आएं?

दाई मां...रानी मां अपको छोटी मालकिन के कमरे से निकलते हुए देखा आप रो रहीं थी इसलिए मैं अपके पीछे पीछे आ गई। आज फ़िर छोटी मालकिन ने कुछ कह ।

सुरभि…दाई मां मैं इतनी बूरी हूं जो छोटी मुझे बार बार अपमानित करती हैं।

दाई मां…बुरे आप नहीं बुरे तो वो हैं जो आप'की जैसी नहीं बन पाती तो अपनी भड़ास आप'को अपमानित कर निकल लेते हैं।

सुरभि…दाई मां मुझे तो लगता मैं छोटी को टोककर गलत करती हूं। मैं छोटी को मेरी छोटी बहन मानती हूं इस नाते उसे टोकटी हूं लेकिन छोटी तो इसका गलत मतलब निकाल लेती हैं।

दाई मां...रानी मां छोटी मालकिन ऐसा जान बूझ कर करती हैं। जिससे आप परेशान हो जाओ और महल का भार उन्हे सोफ दो फिर छोटी मालकिन महल पर राज कर सकें।

सुरभि...ऐसा हैं तो छोटी को महल का भार सोफ देती हूं। कम से कम छोटी मुझे अपमान करना तो छोड़ देगी।

दाई मैं…आप ऐसा भुलकर भी न करना नहीं तो छोटी मालकिन अपको ओर ज्यादा अपमानित करने लगे जाएगी फिर महल की शांति जो अपने सूझ बूझ से बना रखा हैं भंग हो जाएगी। आप उठिए मेरे साथ कीचन में चलिए नहीं तो आप ऐसे ही बहकी बहकी बाते करते रहेंगे और रो रो कर सुखी तकिया भिगाते रहेंगे।

सुरभि जाना तो नहीं चहती थी लेकिन दाई मां जबरदस्ती सुरभि को अपने साथ कीचन ले गई। जहां सुरभि वाबर्चियो के साथ खाना बनने में मदद करने लग गई। खाना तैयार होने के बाद सुरभि सभी को बुलाकर खाना खिला दिया और ख़ुद भी खा लिया। खाना खाकर सभी अपने अपने रूम में विश्राम करने चले गए।

कलकत्ता के एक आलीशान बंगलों में एक खुबसूरत लडकी चांडी का रूप धारण किए थोड़ फोड़ करने में लगी हुई थीं आंखें सुर्ख लाल चहरे पे गुस्से की लाली आंखों में काजल इस रूप में बस दो ही कमी थीं। एक हाथ में खड्ग और एक हाथ में मुंड माला थमा दिया जाय तो शख्सत भद्रा काली का रूप लगें। लड़की कांच के सामानों को तोड़ने में लगी हुई थीं। एक औरत रुकने को कह रहीं थीं लेकिन रूक ही नहीं रहीं थीं। लड़की ने हाथ में कुछ उठाया फिर उसे फेकने ही जा रहीं थीं कि रोकते हुए औरत बोली...नहीं कमला इसे नहीं ये बहुत महंगी हैं। तूने सब तो तोड़ दिया इसे छोड़ दे मेरी प्यारी बच्ची।

कमला…मां आप मेरे सामन से हटो मैं आज सब तोड़ दूंगी।

औरत जिनका नाम मनोरमा हैं।

मनोरमा...अरे इतना गुस्सा किस बात की अभी तो कॉलेज से आई है। आते ही तोड़ फोड़ करने लग गई। देख तूने सभी समानों को तोड दिया। अब तो रूक जा मेरी लाडली मां का कहा नहीं मानेगी।

कमला…कॉलेज से आई हूं तभी तो तोड़ फोड़ कर रहीं हूं। आप मुझे कितना भी बहलाने की कोशिश कर लो मैं नहीं रुकने वाली।

मनोरमा...ये किया बात हुईं कॉलेज से आकर विश्राम करते हैं। तू तोड़ फोड़ करने लग गई। ये कोई बात हुई भला।

कमला…मां अपको कितनी बार कहा था अपने सहेलियों को समझा दो उनके बेटे मुझे रह चलते छेड़ा न करें आज भी उन कमीनों ने मुझे छेड़ा उन्हे आप'के कारण ज्यादा कुछ कह नहीं पाई उन पर आई गुस्सा कही न कहीं निकलना ही था।

मनोरमा…मैं समझा दूंगी अब तू तोड़ फोड़ करना छोड़ दे।

घर का दरवजा जो खुला हुआ था। महेश कमला के पापा घर में प्रवेश करते हैं । घर की दशा और कमला को थोड़ फोड़ करते देख बोला…मनोरमा कमला आज चांदी क्यों बनी हुई हैं? क्या हुआ?

मनोरमा...सब आपके लाड प्यार का नतीजा हैं दुसरे का गुस्सा घर के समानों पर निकाल रहीं हैं सब तोड़ दिया फिर भी गुस्सा कम नहीं हों रही।

महेश…ओ तो गुस्सा निकाल रहीं हैं निकल जितना गुस्सा निकलना है निकाल जितना तोड फोड़ करना हैं कर। काम पड़े तो और ला देता हूं।

मनोरमा…आप तो चुप ही करों।

कमला का हाथ पकड़ खिचते हुए सोफे पर बिठाया फिर बोली...तू यहां बैठ हिला तो मुझसे बूरा कोई नहीं होगा।

कमला का मन ओर तोड़ फोड़ करने का कर रहा था। मां के डांटने पर चुप चाप बैठ गई महेश आकर कमला के पास बैठा फ़िर पुछा...कमला बेटी तुम्हें इतना गुस्सा क्यों आया? कुछ तो कारण रहा होगा?

कमला…रस्ते में कालू और बबलू मुझे छेड़ रहे थे। चप्पल से उनका थोबडा बिगड़ दिया फिर भी मेरा गुस्सा कम नहीं हुआ इसलिए घर आ'कर थोड़ फोड़ करने लगी।

मनोरमा…हे भगवन मैं इस लड़की का क्या करूं ? कमला तू गुस्से को काबू कर नहीं तो शादी के बाद किए करेंगी।

महेश…क्या करेगी से क्या मतलब वहीं करेगी जो तुमने किया।

मनोरमा…अब मैंने क्या किया जो कोमल करेगी।

महेश…गुस्से में पति का सिर फोड़ेगी जैसे तुमने कई बार मेरा फोड़ा था।

कमला…ही ही ही मां ने अपका सिर फोड़ा दिया था। मैं नहीं जानती थी आज जान गई।

मनोरमा आगे कुछ नहीं बोली बस दोनों बाप बेटी को आंखे दिखा रहीं थी और दोनों चुप ही नहीं हो रहे थे मनोरमा को छेड़े ही जा रहे थे।

आज के लिया इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद

🙏🙏🙏🙏🙏🙏
 
Last edited:
Will Change With Time
Moderator
8,511
16,880
143
Update - 3


सुबह का वक्त था। महल में सब उठ चुके थे। अपना अपना नित्य कर्म से निवृत्त हों एक एक कर आ रहे थे। नाश्ते के टेबल पर बैठते जा रहे थे। भारतीय रीति रिवाज अनुसार सुबह के समय बड़े बुजुर्ग का चरण स्पर्श करना सभ्य और शालीनता का प्रतीक माना जाता हैं। राजेंद्र के पूर्वजों ने चरण स्पर्श करने के सभ्य और शालीनता के प्रतीक को बखूबी निभाया सिर्फ निभाया ही नहीं आने वाले पीढ़ी को इसका महत्व भी समझाया और पालन भी करवाया। लेकिन महल के एक शख्स को यह परम्परा बेहूदा और असभ्य लगा इसलिए चरण स्पर्श करने में आना कानी करने लगे। समय के साथ काम का बोझ और भागा दौड़ी के चलते सभी परिवार वालों का एक साथ बैठ पाना संभव नहीं था तो जब महल का भागडोर राजेंद्र को सोफा गया तब राजेंद्र ने एक नया नियम बनाया सभी परिवार वालो को सुबह का नाश्ता साथ में करना था बाकी दिन या रात के भोजन में कोई पाबंदी नहीं था। सुबह का नाश्ता साथ में करना मतलब सुबह जल्दी उठना फिर तैयार हो'कर समय से आ'कर नाश्ते के टेबल पर बैठ जाना। इस बात से सुकन्या को चीड़ थी क्योंकि महारानी जी को देर तक सोने की आदत हैं। सिर्फ इतना ही नहीं सुकन्या को पति और मां-बाप के अलावा किसी और का पैर छुना गवारा नहीं, अनमने भाव से रोज सुकन्या सुबह के समय भोर में उठ जाया करतीं फिर तैयार हो'कर नीचे आ जाती और रावण के टोका टाकी करने पर अनमने भाव से बड़ो के पैर छू लेती थी। आज भी सुकन्या अनमने भाव से उठी फिर नित्य कर्म से निवृत्त हो'कर रावण के साथ नाश्ता करने आ रहीं थीं। आते समय सुकन्या बोली….सुनो जी मुझसे रोज रोज जल्दी उठा नहीं जाएगा। आप कुछ भी करके सुबह साथ में नाश्ता करने के नियम और पैर छुने की परम्परा में कुछ परिवर्तन कीजिए।

रावण…पैर छुने में किया हर्ज हैं। घर के बड़े-बुजुर्गो का पैर छुना हमारी संस्कृति हैं फिर भी तुम्हें बुरा लगता हैं तो डार्लिंग जब तक महल का राजपाठ मेरे हाथ नहीं आ जाता तब तक सहन कर लो फिर तुम्हारे मुताबिक बदलाव करवा दुंगा ।

सुकन्या…सुनिए जी आप'के और मेरे मां बाप के आलावा किसी ओर का पैर छुना गवारा नहीं, न जानें वो दिन कब आएगा जब मैं मन मुताबिक काम कर पाऊंगी, सभी पर राज करूंगी। आप कुछ कर तो रहे नहीं सिर्फ़ दिलासा दिए जा रहे हों।

रावण…डार्लिंग सब होगा, हमारे भाग्य में भी परिवर्तन होगा। समय का पहिया ऐसा घूमेगा सभी पत्ते मेरे हाथ में होगा। इक्के की ट्रेल से मैं ऐसी बाजी खेलूंगा, दादाभाई को चल चलने का मौका ही नहीं दुंगा।

सुकन्या…न जानें समय का पहिया कब घूमेगा। आप'की चाल कब सफल होगा। मैं ओर प्रतिक्षा नहीं कर सकता। कब तक मुझे सुरभि के नीचे दब कर रहना पड़ेगा। आप जल्दी से कुछ कीजिए।

रावण…प्रतिक्षा तो मुझसे भी नहीं होता लेकिन मैं प्रतिक्षा कर रहा हूं। तुम भाभी को कुछ दिन ओर सहन कर लो फिर सब कुछ तुम्हारे हाथ में होगा, देखो दादाभाई और भाभी आ गए हैं। उनके सामने कुछ ऊंच नीच न करना न ही बोलना नहीं तो मैं उनका ही पक्ष लूंगा।

सुकन्या सामने देखा, नाश्ते के टेबल पर सुरभि और राजेंद्र बैठे थे। सुरभि को देख मुंह भिचकाते हुए मन में बोली…कर ले जितनी मन मानी करनी हैं तुझे तो इस घर से मैं धक्के मर कर बाहर निकाल कर रहूंगी।

दोनों टेबल के पास पहुंचे, बैठने से पहले रावण भाई-भाभी के पाव छुआ फिर बोला…दादाभाई भाभी कैसे हों?

राजेंद्र&सुरभि…ठीक हूं। तुम कैसे हों?

रावण...आप दोनों के आर्शीवाद और प्रभु की कृपा से स्वस्थ और सलामत हूं।

सुकन्या को सुबह का वृतांत पसन्द नहीं था इसलिए खड़ी रहीं और मुंह भिचकाती रहीं सुकन्या को खडा देख रावण बोला…. सुकन्या तुम खड़ी क्यो हों चलो दादाभाई और भाभी के पांव छू आर्शीवाद लो ये हमारी परम्परा हैं। परम्परा निभाने में शर्म कैसा।

राजेन्द्र…रावण परम्परा मन से निभाया जाता हैं जिसका मन होगा वो निभाएगा मन नहीं होगा नहीं निभाएगा। जोर जबरदस्ती से कोई काम करवाना ठीक नहीं होगा। इसलिए बहु का मन नहीं हैं तो रहने दो।

सुरभि…देवर जी जो काम मन से होता हैं वह ही शुद्ध होता हैं। छोटी का मन नहीं हैं तो रहने दो जब छोटी का मन होगा तब पांव छू लेगी। क्यों छोटी छओगी न पांव…

सुरभि कह कर मंद मंद मुस्कुरा दिया मुस्कुराते देख सुकन्या तिलमिला गई फिर मन में बोली…छुआ ले जितनी पांव छुआनी हैं। कर ले मस्करी जितनी करनी हैं। एक दिन मैं तुझसे मेरा पांव नहीं दवबाया तो सुकन्या मेरा नाम नहीं।

सुकन्या ढिट की तरह खड़ी रहीं। रावण आंखो से इशारा किया तब जा'कर सुकन्या न चाहते हुए दोनों के पांव छुआ फिर अपने जगह बैठ गई। अपश्यु लॉर्ड साहब की तरह मस्त मौला चला आ रहा था। यकायक सामने चल रहे दृश्य पर नज़र पड़ गया जो संभतः रोजाना देखने को मिलता था। अपश्यु को भी सुबह पैर छुना साथ में नाश्ता करना नाटकीय लगता था। इसलिए मन में बोला….साला क्या नाटक हैं एक तो सुबह सुबह जल्दी उठा देते हैं। ऊपर से पांव छुते छुते कमर दुख जाता हैं। कब बंद होगा यह सब, चल अपस्यु जो चल रहा हैं, भाग ले'कर अच्छे होने का ढोंग कर नहीं तो पापा मुझ पर भी चढ़ाई कर देंगे।

अपश्यु सभी के पास पहुंच कर अच्छे और संस्कारी बच्चे का परिचय देते हुए बाप का पैर छूते हुए बोला…पापा शुभरात्रि के बाद शुभ दिन हों ऐसा आशीर्वाद अपने बेटे को दीजिए।

रावण…मेरे बेटे की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों मैं प्रभु से प्रार्थना करुंगा।

मां के पास जा पांव छुआ सुकन्या सिर पर हाथ रख आर्शीवाद दिया लेकिन कुछ बोला नहीं, तब अपश्यु बोला…मां अपने तो आशीर्वाद देते हुए कुछ कहा नहीं। ऐसा क्यों?

सुकन्या…तुमने कुछ मांगा ही नहीं।

अपस्यू…अपने मेरे सिर पर हाथ रख दिया मेरे लिए बहुत हैं।

मां बेटे के वृतांत और बाते सुन सुरभि और राजेन्द्र मंद मंद मुस्कुरा रहे थें। अपस्यु राजेन्द्र के पास गया। पांव छुते हुए मन में बोला…बड़े पापा मुझे आशीर्वाद दीजिए जल्दी ही सभी राजपाठ आपसे छीनकर मैं कब्जा कर लूं।

अपस्यु के सिर पर हाथ रख राजेंद्र बोला…मैं प्रभु से प्रार्थना करुंगा तुम्हारे सभी मनोकामना पूर्ण हों तुम हमेशा नेक रस्ते पर चलो।

अपस्यु मुस्कुराते हुए सुरभि के पास गया पांव छुते हुए मन में बोला…बडी मां मुझे आशीर्वाद करों आपसे रानी मां का खिताब छीनकर मां को दे पाऊं।

सुरभि मन की भोली न जानें अपश्यु ने मन ही मन किया मांगा साफ मन से सिर पर हाथ रखते हुए बोली…. मेरे लाडले को प्रभु सभी बुरी बलाओं से बचाकर रखें साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें ऐसा दुआ मांगता हूं।

अपस्यु मुस्कुराते हुए अपने जगह जाकर बैठ गया। उसी क्षण रघु आया। मन में न छल न कपट न ही बैर था। इसलिए सबसे आशीर्वाद लेते हुए सफल और सुखद भविष्य की कामना किया। अंत में मां का पैर छुआ तो सुरभि रघु को उठाकर गले से लगा लिया, स्नेह और ममता लुटाते हुए सुकन्या की ओर देखते हुए बोली…मेरा बेटा जल्दी से एक परी सी सुंदर बहु लाए। जो अपनी खूबसूरती से महल की सुंदरता में चार चांद लगा दे।

प्यारा सा खिला हुआ मुस्कान बिखेर रघु अपने जगह जा बैठ गया। सुरभि मुस्कुराते हुए सुकन्या की ओर देखा, सुकन्या को सुरभि का मुस्कुराना पसन्द न आया इसलिए मुंह भिचकाते हुए मन में बोली….सुंदर बहु तू क्या लायेगी सुंदर बहु तो मैं अपने लाडले के लिए लाऊंगी और उससे तुझे इतनी बेइज्जत करवाऊंगी तू खुद ही महल छोड़ कर भाग जायेगी।

सुकन्या को मुंह भिचकाते देख सुरभि मन में बोली….छोटी तू भले ही मेरे बारे में कितना बुरा सोच ले या मेरे साथ कितना बुरा व्यवहार कर ले, मैं चाहकर भी तेरे लिए बुरा नहीं सोच सकती न ही कर सकती हूं, नहीं तो तुझ'में और मुझ'में फर्क क्या रह जायेगा। लेकिन एक दिन कोई ऐसा महल में आएगी जो तेरे ईट का जवाब पत्थर से देगी, मैं बैठे तमाशा देखूंगी।

नौकरों ने सभी को नाश्ता परोस दिया। भर पेट नाश्ता कर एक एक कर अपने अपने रूम में चले गए। रावण और सुकन्या दोनों साथ में रूम पहुंचे, रूम में पहुंचते ही सुकन्या भड़क गई।

सुकन्या…आप जानते हों मुझे ये सब अच्छा नहीं लगता फिर भी आप बार बार मुझे उनके पैर छुने पर मजबुर क्यों करते हों।

रावण...suknyaaaa तुम्हें पहले ही कहा था मेरे किसी भी बात का बुरा न मानना फिर भी तुम बिना करण भड़क रही हों।

सुकन्या…भड़कू न तो ओर किया करूं जान बूझ कर आप मुझे मजबुर करते हों सुनो जी मैं साफ साफ कह देती हूं बहुत हो गया अब ओर नहीं होता।

रावण…मुझे भी कौन सा अच्छा लगता हैं फिर भी मैं उनके नजरों में अच्छे होने का ढोंग कर रहा हु। तुम्हें भी करना पड़ेगा।

सुकन्या…देखो जी मुझसे ये ढोंग बोंग नही होगा। सुरभि के सामने तो बिल्कुल भी नहीं।

रावण…तुम्हें महल की रानी बना हैं, तो यह सब करना ही होगा।

सुकन्या…बनना तो हैं लेकिन इसके लिए मुझे सुरभि के सामने झुकना कतई मंजूर नहीं।

रावण…अभी उनके सामने झुक कर रहेगी तभी तो उन्हें खुद के सामने झुका कर रख पाओगी। इसलिए भाभी के साथ व्यवहार में बदलाव लाओ, सिर्फ भाभी ही नहीं महल में मौजुद सभी नौकर चाकर के साथ तुम्हें अच्छा बरताव करना होगा।

सुकन्या…अब आप मुझे उन कीड़े मकोड़ों के सामने भी झुकने को कह रहें हों। मेरे मन सम्मान की आप'को जरा भी फिक्र नहीं, आप सोच कर देखिए उनके सामने मेरी क्या इज्जत रह जाएगी। मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं करने वाली।

रावण…मैं नहीं चाहता कि हमारे बनाई योजना में कोई भी चूक हों। इसलिए तुम्हें ऐसा करना ही होगा नहीं तो सब कुछ हमारे हाथ से निकल जायेगा।

सुकन्या…( बेमन से) ठीक हैं आप कहते हों तो मैं मान लेती हूं लेकिन मैं ज्यादा दिन तक ऐसा नहीं कर पाऊंगी।

रावण…मैं जैसा जैसा कहता हु तूम करती जाओ फिर देखना जल्दी ही सब कुछ हमारे हाथ में होगा। अब तुम आराम करों मैं ऑफिस जा रहा हूं। आने के बाद तुम्हे ढेर सारा प्यार करूंगा।

सुकन्या मुस्करा दिया फिर रावण चला गया। बाकी बचे लोग भी अपने अपने काम में चले गए।

कलकत्ता में कमला महेश मनोरमा नाश्ता कर रहे थे। नाश्ता करते हुए महेश बोला…कमला बेटी आज कोई थोड़ फोड़ न करना। कल तुमने सभी समानों को तोड़ दिया था। पहले खरीद लू फिर जितना मन करे तोड़ फोड़ कर लेना।

मनोरमा…वाह जी वाह टोकने के जगह आप ओर बड़वा दे रहें हों। कमला तू एक काम कर रोज रोज तोड़ फोड़ करने के जगह घर ही गिरा दे। रोज रोज की तोड़ा फोड़ी से मैं तंग आ गई हूं।

कमला…आप कहती हों तो किसी दिन गिरा दूंगी फिर आप ये न कहना मेरी बेटी ने मेरे सजाए घर को गिरा दिया।

मनोरमा कमला की बात सुन कुछ ढूंढने लग गईं। कुछ नहीं मिला तो एक प्लेट उठा कर बोली…तू तो आज मेरे हाथों बहुत पिटेगी मेरा ही घर तोडने पे तुली हैं।

मां को गुस्से में देख कमला उठा भाग कर महेश के पीछे छिप गई फिर बोली…पापा मुझे बचाओ आज तक मैं ही तोड़ फोड़ करती थी आज मां मुझे तोड़ने पर तुली हैं।

मनोरमा…आज तूझे कोई नहीं बचाएगा बहुत तोड़ फोड़ करने का मन करता हैं। आज तेरी हड्डी पसली टूटेगी तब तू जान पाएगी कैसा लगता हैं।

कमला…पापा आप मम्मी को रोक क्यों नहीं रहें? मम्मी मैं कौन सा अपकी हड्डी पसली तोड़ देती हूं मैं तो सिर्फ घर के समानों को तोडती हूं वो भी गुस्सा होने पर जब मैं गुस्से में नहीं होती हूं। तब कितनी मासूम और प्यारी बच्ची बनकर रहती हूं।

महेश उठकर मनोरमा को पकड़ लिया मनोरमा छूटने के लिए जाद्दो जेहद करने लग गईं, लेकिन महेश के पकड़ से खुद को छुड़ा नहीं पाई तब बोली….देखो जी आप इसके बहकावे में न आना, कमला मासूम और प्यारी बच्ची नहीं चांडी का रूप हैं। इसलिए कह रहीं हूं आप मुझे छोड दो नहीं तो इस प्लेट से आप'का ही सिर फोड़ दूंगी।

कोमल...ही ही ही ही पापा मम्मी तो मुझे छोड़ आप पर भड़क गई अपका सिर फोड़ना चाहती हैं। आप मम्मी को पकड़ कर रखना मैं हैलमेट लेकर आती हूं।

कमला भागकर किचन गई दो भगोना लिया एक सिर पर रखा दूसरा हाथ में लेकर बाहर आई फिर बोली……आओ मम्मी दोनों मां बेटी जामकर मुकाबला करेंगे।। देखते है कौन किसका सिर फोड़ता हैं?

मनोरमा जो गुस्से का दिखावा कर रहीं थीं। कमला को देख पेट पकड़ हॅंसने लग गई। बेटी को देख महेश भी खुद को रोक नहीं पाया इसलिए हंस दिया। मां बाप को बावलो की तरह हंसते देख कमला बोली… वाह जी वाह अभी तो झांसी की राना बानी हुईं थीं। अब देखो पेट पकड़ हॅंस रही हैं। ऐसा क्यों? मैंने कोई जोक सुना दिया?

मनोरमा और महेश हॅंसे ही जा रहें थे। कमल को कुछ समझ ही नहीं आ रही थीं। कभी हाथ वाले भगोना तो कभी सिर वाले भागने को देख रही थीं। कमला के ऐसा करने से दोनों ओर जोर जोर से हॅंसने लग गए फिर मनोरम कमला के पास जा हाथ से फिर सिर से भगोना ले निचे रख दिया फिर बोली…..छोड़ ये सब ओर जल्दी से नाश्ता करके कॉलेज जा।

सभी फिर से नाश्ता करने बैठ गए कमला और महेश नाश्ता करके कॉलेज और ऑफिस को चल दिया। मनोरमा घर के बचे काम करने लग गई।


आज के लिऐ इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏🙏
 
Last edited:
ADMIN :D
Senior Moderator
12,165
10,208
145
Dear readers lusty web par post hone wala yah mera pahla kahani hai. Mai koyi lekhak nehi hu bas kuch jane mane lekhako ki kahani ko padkar jo shavd mere mastishk me panpa unko rachna ka roop de kar aap sabhi readers ke samne pesh kar raha hu. Mere kahani me koyi bhi sex scen nehi hoga. Yah kahani parivarik gathnao par adharit hai. Jisme apko parivarik man mitao, apsi ranjish, perm ka mila jula bhav darshya jayega. Atah mai ummid karta hu aap sabhi readers dusre writers ko jitna support karte hai utna hi mera bhi support karenge pahla sham tak post kar dunga
:congrats: for first story
 
ADMIN :D
Senior Moderator
12,165
10,208
145
Update - 1


पहाड़ी घटी में बसा एक गांव जो चारों ओर खुबसुरत पहाड़ियों से घिरा हुआ था। गांव के चौपाल पर एक जवान लड़का पुलिसिया जीप के बोनट पर बैठा था। लड़के के पीछे दो मुस्टंडे, हाथ में दो नाली बंदूक लिए खड़ा थे। दोनों इतने मुस्तैदी से खड़े थे कि जरा सा भी हिल डोल होते ही तुरंत एक्शन में आ कर सामने वाले को ढेर कर दे। उनके सामने एक बुजुर्ग शख्स हाथ जोड़े खड़ा थे। शख्स के पीछे कईं लोग हाथ जोड़े अपने घुटनों पर बैठ थे। सब डर से थर थर कांप रहे थे। सबको कांपते हुए देखकर लड़का अटाहास करते हुए बोला…क्यों रे मुखिया सुना है तू कर भरने से मना कर रहा हैं।

मुखिया जो पहले से ही डर से थार थार कांप रहे थे। लडक की बाते सुन उससे उससे बोला भी नहीं जा रहा था। मुखिया परिस्थिती को भाप कर समझ गया कुछ नहीं बोला तो सामने खडे मुस्टंडे पल भर में उसके धड़ से प्राण पखेरू को आजाद करे देंगे और कुछ गलत बोला तो भी पल भार में उसके शरीर को जीवन विहीन कर देंगे। इसलिए मुखिया अपने वाणी में शालीनता का समावेश करते हुए बोला….माई बाप हमने अपना सारा कर भर दिया हैं। आप ओर कर मांगेंगे तो हमे अपने बाल बच्चों को भूखा रखना पड़ेगा। हममें ओर कर भरने की सामर्थ नहीं हैं।

मुखिया की बातों को सुनाकर लड़का जोर जोर से अटाहस करते हुए रूखे तेवर से बोला….जो कर तुम लोगों ने भरा वह तो सरकारी कर था। मेरा कर कौन भरेगा?

लड़के की बातों को सुनकर मुखिया सोच में पड गया अब बोले तो क्या बोले फिर भी उसे बोलना ही था नहीं बोला तो उसके साथ कुछ भी हों सकता था। इसलिए मुखिया डरते डरते बोला….माई बाप इस बार बागानों से उत्पादन कम हुआ हैं। सरकारी कर भरने के बाद जो कुछ भी हमारे पास बचा हैं उससे हमारे घर का खर्चा चला पाना भी सम्भव नहीं हैं ऐसे में आप ओर कर भरने को कहेंगे तो हमारे घरों में रोटी के लाले पड़ जायेंगे।

मुखिया की बातों को सुनकर लड़का गुस्से से गरजते हुए बोला…सुन वे जमीन पर रेगने वाले कीड़े मेरा नाम अपस्यू राना है। मैं कोई तपस्वी नहीं जो मुझमें अच्छे गुणों का भंडार होगा या मैं अच्छा कर्म करुंगा इसलिए मैं तुम सब को कल तक का समय देता हूं। इस समय के अदंर मेरा कर मुझ तक नहीं पहुंचा तो तुम्हारे घर की बहू बेटियो के आबरू को नीलाम होने से नहीं बचा पाओगे।

अपने बहु बेटियो के आबरू नीलाम होने की बात सुनाकर मुखिया असहाय महसूस कर रहा था। उसे अपने घर की मान सम्मान बचाने का एक ही रास्ता दिखा,अपस्यू की बातों को मान लिया जाएं। इसलिए मुखिया दीन हीन भाव से बोलता हैं…माई बाप हमे कुछ दिन का महोलत दीजिए हम कर भर देंगे।


मुखिया की बाते सुनाकर अपस्यू हटाहास करते हुए बोला…तुम्हें मोहलत चाहिए दिया जितनी मोहलत चाहिए ले लो लेकिन जब तक तुम कर नहीं भर देते तब तक अपने घरों से रोज एक लड़की मेरे डाक बंगले में भेजते रहना एक रात की दुल्हन बनाकर। फिर अपने साथियों से बोला…चलो रे सब गाड़ी में बैठो नहीं तो ये कीड़े मकोड़े मेरे दिमाग़ का गोबर बाना कर अपने आंगन को लीप देंगे। फिर मुखिया से बोला...सुन वे मुखिया कल तक कर पहुंच जाना चाहिए नहीं तो जितना वक्त लगाएगा उतना ही अपने बहु बेटियो की आबरू लुटवाता रहेगा और यह की बाते राना जी के कान तक नहीं पहुंचना चाहिए नहीं तो तुम सब अपने जान से जाओगे और तुम्हारे बहु बेटियां अपनी आबरू मेरे मुस्टांडो से नुचबाते नुचबाते मर जाएगी।

अपस्यू अपने मुस्टांडो के साथ चला गया। उसके जाते ही बैठें हुए भीड़ में से एक बोला….मुखिया जी ऐसा कब तक चलेगा। हमे कब तक एक ही कर दो बार भरना पड़ेगा।

मुखिया…शायद जीवन भर इस पापी से अपने घरों की मन सम्मान बचाने के लिए एक कर दो बार भरना पड़ेगा।

तभी भीड़ में से एक ओर व्यक्ति बोला…हम कब तक इसका ओर इसके बाप का जुल्म सहते रहेंगे। हम राजा जी को बोल क्यों नहीं देते।

मुखिया….अरे ओ भैरवा तू बावला हों गया हैं सुना नहीं ये पापी क्या कह कर गया हैं। यहां की भनक राजाजी की कानों तक पहुंचा तो दोनों बाप बेटे हमें मारकर हमारे बहु बेटियों के आबरू से तब तक खेलते रहेंगे जब तक हमारी बहु बेटियां जीवित रहेंगी।

भैरवा…
मुखिया जी हमने अगर इस पापी की मांग को पुरा किया तो हम तो भूखे पेट ही मर जायेंगे।

मुखिया भैरवा ओर बाकी सब को समझते हुए बोला….ऐसा कुछ भी नहीं होगा। हर महीने महल से राजाजी हमारे भरण पोषण के लिए अनाज, कपडे और बाकी जरूरी सामान भिजवाते हैं। उससे हमारा गुजर बसर चल जाएगा। अब तुम सब जाओ और कल इस पापी तक उसका कर पहूचाने की तैयारी करों।"


सब दुखी मन से अपने अपने घरों को चल देते हैं। मुखिया भी उनके पीछे पीछे चला जाता हैं। दूसरी ओर पहाड़ की चोटी पर बाना आलीशान महल जिसकी भव्यता को देखकर ही अंदाजा लगाया जा सकता था। यह रहने वाले लोगों का जीवन तमाम सुख सुविधाओं से परिपूर्ण होगा महल के अदंर राजेंद्र प्रताप राना अपने बेटे रघु को बुला रहें थे। उनके आवाज में इतना गरजना था मानो कोई बब्बर शेर वादी को दहाड़ कर बता रहे हों । मैं यह का राजा हूं। राजेंद्र जी के बुलाने से रघु अपने रूम से दौड़ दौडा आता हैं फिर राजेंद्र के सामने सर झुकाए खड़ा होंकर बोलता है….अपने बुलाया पापाजी।

राजेंद्र जी अपने बेटे को कांपते हुए देखकर बोलते हैं….हां मैंने बुलाया लेकिन तुम ऐसे कांप क्यों रहे हों।

रघु कुछ नहीं बोलता चुपचाप खड़ा रहता हैं। रघु को बोलता न देखकर वहां बैठे रघु की मां सुरभि बोलती हैं….रघु बेटा तू मेरे पास आ, आप भी न मेरे बेटे को हर बार डरा देते हों। राज पाठ चाली गईं लेकिन राजशाही अकड़ अब तक नहीं गई।

रघु चुपचाप मां के पास जाकर बैठ गया था। राजेंद्र जी सुरभि की बात सुनकर मुस्कुराते हुए बोले…अरे सुरभि राज पाठ भले ही चाला गया हों लेकिन राजशाही हमारे खून में हैं। खून को कैसे बदले वो तो अपना रंग दिखायेगा ही।

सुरभि बेटे का सर सहलाते हुए बोले..अपको अपने खून का जो भी रंग दिखाना हैं घर से बाहर दिखाओ। आप के करण मेरा लाडला बिना कोई गलती किए ऐसे डर गया हैं जैसे दुनियां भर का सभी गलत काम इसने किया हो

सुरभि की बाते सुनकर राजेंद्र के चहरे पर आया हुआ मुस्कान ओर गहरा हों गया। राजेंद्र जी अपने जगह से उठकर बेटे के पास जाकर बैठते हुए बोला… रघु मैं तेरा दुश्मन नहीं हूं मैं ऐसा इसलिए करता हूं ताकि तू रह भटक कर गलत रस्ते पर न चल पड़े। तुझे ही तो आगे चलकर यह की जनताओं का सुख दुःख का ख्याल रखना हैं।

राजेंद्र जी की बाते सुनकर सुरभि बोला….सुनिए जी आप अभी से मेरे बेटे पर अपने काम का बोझ न डाले और अपको कितनी बार कहा हैं आप मेरे लाडले को दहाड़ कर न बुलाया करो लेकिन आप हो की सुनते ही नहीं। अगली बार अपने मेरे लाडले को दहाड़ कर बुलाया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।

सुरभि की बाते सुनकर राजेंद्र बोला….ध्यान रखूंगा पत्नी जी ! मुझे अपना दाना पानी बंद नहीं करवाना हैं।

राजेंद्र जी की बाते सुनकर सुरभि बनावटी गुस्सा दिखाते हुए बोली….अच्छा तो मैं अपका दाना पानी बंद कर देती हूं। अब आना दाना चुगने दाने के जगह कंकड़ परोस दूंगी।

राजेंद्र सुरभि से चुहल करते हुए बोले….जो भी परोसोगी मैं उससे ही अपना पेट भर लूंगा मुझे पेट भरने से मतलब हैं। खाने को किया मिल रहा हैं उससे कोई मतलब नहीं।

दोनों की चुहलवाजी चलता रहता हैं। मां बाप के झूठी तकरार को देखकर रघु अपने डर से मुक्त हों जाता हैं। फिर रघु बोलता हैं…. मां पापा मैं जान गया हूं यह सब आप मेरे लिए ही कर रहे हों। अब आप दोनों ये झूठी तकरार करना बंद कीजिए और मुझे बताइए अपने मुझे क्यों बुलाया कुछ विशेष काम था?

राजेंद्र....कुछ विशेष काम नहीं था मैं तो अपने बेटे से मस्करी करने के लिए बुलाया था।

सुरभि …अपका मसखरी करना मेरे बेटे को कितना भरी पड़ता हैं। मेरा लाडला कितना सहम जाता हैं। अपको कुछ इल्म भी हैं।

तभी रघु बोलता हैं…मां आप फिर से शुरू मत हों जाना मैं बच्चों को पढ़ाने जा रहा हूं। मेरे जानें के बाद अपको पापा से जितना लड़ना हैं लड़ लेना।

ये कहकर रघु उठकर भाग जाता हैं। सुरभि अपने बेटे को आवाज देती रह जाती लेकिन रघु नहीं रुकता। रघु के जाते ही राजेन्द्र बोलते हैं….रघु को जानें दो ,हमे जो करने को कह गया हैं वो शुरू करें।

सुरभि उठकर जाते हुए बोली…अभी मैं दोपहर की खाने की तैयारी करवाने जा रहीं हूं आपसे बाद में निपटूंगी।

सुरभि के किचन में जाते ही। राजेन्द्र भी अपने कुछ काम निपटाने चले जाते हैं।

आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। पहला अपडेट कैसा लगा बताना न भूलिएगा।


thank you🙏🙏🙏
First update lajawaab tha
 
ADMIN :D
Senior Moderator
12,165
10,208
145
Update -2


सुरभि किचन में जाती हैं। जहां वाबर्ची दिन के खाने के लिए विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाने की तैयारी कर रहे थे। उन्हें तैयारी करते हुए देखकर सुरभि, उन वाबर्चिओ में एक बुजुर्ग वबर्ची से बोले….दादा भाई दिन के खाने में किन किन व्यंजनों को बनाया जा रहा हैं।

सुरभि को रसोई घर में देखकर बुजुर्ग वबर्ची बोले…रानी मां आप को रसोई घर में आने की क्या जरूरत आन पड़ी हम तैयारी कर तो रहे हैं ।

बुजुर्ग की बातों को सुनकर सुरभि बोली…दादा भाई मैं रसोई घर में क्यों नहीं आ सकती ये रसोई घर मेरी हैं। आप से कितनी बार कहा हैं आप मुझे रानी मां नहीं बोलेंगे लेकिन आप हों की सुनते नहीं।

बुजुर्ग सुरभि की बातो को सुनकर मुस्कुराते हुए बोला….रानी मां क्यों न बोले आप इस जागीर के रानी हों और एक मां की तरह सभी का ख्याल रखते हों। इसलिए हम आपको रानी मां बोलते हैं।

बुजुर्ग के तर्क को सुनकर सुरभि बोली…दादाभाई आप मुझसे उम्र में बहुत बड़े हों। आप मुझे मां बोलते हों जो मुझे अच्छा नहीं लगती। जब राज पाठ थी तब की बात अलग थीं अब तो राज पाठ नहीं रही और न ही राजा रानी रहे।

बुजुर्ग सुरभि की बातों को सुनकर अपना तर्क देते हुए बोले…राज पाठ नहीं हैं फिर भी आप और राजा जी अपने प्रजा का राजा और रानी की तरह ख्याल रखते हों हमारे दुःख सुख में हमारे कंधे से कंधा मिलाए खडे रहते हों। ऐसे में हम आपको रानी मां और राजा जी को राजाजी क्यो न बोले, एक बात ओर बता दु राजा रानी कहलाने के लिए राज पाठ नहीं गुण मायने रखता हैं जो आप में और राजाजी में भरपूर मात्रा में हैं।

बुजुर्ग के तर्क, कूद की और पति की तारीफ सुनकर सुरभि मन मोहिनी मुस्कान बिखेरते हुए बोली…जब भी मैं अपको रानी मां बोलने से मना करती हूं आप हर बार मुझे अपने तर्कों से उलझा देते हों फिर भी मैं आप से कहूंगी आप मुझे रानी मां न बोले।

बुजुर्ग सुरभि को मुस्कुराते हुए देखकर और उनके तर्को को सुनकर बोला….रानी मां इसे तर्को में उलझना नहीं कहते, जो सच हैं वह बताना कहते हैं। आप ही बता दिजिए हम आपको क्या कह कर बुलाए।

बुजुर्ग के तर्क सुनकर सुरभि बोली….मुझे नहीं पता आपका जो मन करे वो बोलो लेकिन रानी मां नहीं

बुजुर्ग…हमारा मन अपको रानी मां बोलने को करता हैं और हम आपको रानी मां ही बोलेंगे इसके लिए आप हमें दण्ड देंगे तो आप हमें दण्ड दे सकते हैं लेकिन हम आपको रानी मां बोलना बंद नहीं करेंगे

सुकन्या किसी काम से किचन में आ रही थीं। सुरभि को वाबर्चियो से बात करते देख किचन के बाहर खड़ी होकर इनकी बाते उनने लगीं। सुरभि की तारीफ करते हुए सुनकर सुकन्या अदंर ही अदंर जल भुन गई जब तक सुकन्या सहन कर सकती थीं किया जब उसकी सहन सीमा टूट गई तब रसोई घर के अंदर आते हुए बोली.....क्यों रे बुढाऊ अब तुझे किया चाहिए जो दीदी को इतना मस्का लगा रहा हैं।

सुकन्या का बुजुर्ग से बदसलूकी से बोलना सुरभि से सुना नहीं गया तब वह बोलीं…छोटी ये कैसा तरीका हैं एक बुजुर्ग से बात करने का दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं। कम से कम इनके साथ तो सलीके से पेश आओ।

एक नौकर के लिए सुरभि का बोलना सुकन्या से बर्दास्त नहीं हुआ इसलिए सुकन्या अपने तेवर को ओर कड़ा करते हुए बोली….दीदी आप इस बुड्ढे का पक्ष क्यों ले रहीं हों। ये हमारे घर का एक नौकर हैं और नौकरों से ऐसे ही बात किया जाता हैं।

सुकन्या की बाते सुनकर सुरभि को गुस्सा आ गया था। सुरभि अपने गुस्से को नियंत्रित करते हुए बोली...छोटी भले ही ये हमारे घर में काम करते हैं लेकिन हैं तो एक इंसान ही और दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं। तुम्हारे पिताजी के उम्र के हैं तुम अपने पिताजी के लिए भी ऐसे अभद्र भाषा बोलती हों।

एक नौकर का पिता से तुलना करना सुकन्या को हजम नहीं हुआ इसलिए सुकन्या अपने वाणी को ओर तल्ख करते हुए बोली….दीदी आप इस बुड्ढे की तुलना मेरे पिता से कर रहीं हों इसकी तुलना मेरे पिता से नहीं हों सकती।… ओ हों अब समझ आया आप इसका पक्ष क्यों ले रहीं हों आप इस बुड्ढे का पक्ष नहीं लेंगे तो ये बुड्ढा अपनी चिकनी चुपड़ी बातों से आपकी तारीफ नहीं करेगा अपको तारीफे सुनने में मजा जो आता हैं।

सुकन्या की बातो को सुनकर वह मौजुद सब को गुस्सा आ गया था। लेकिन नौकर होने के नाते कोई कुछ नहीं बोल रहा था। गुस्सा तो सुरभि को भी आ रही थीं लेकिन सुरभि बात को बड़ाना नहीं चहती थी इसलिए चुप रहीं। लेकिन नौकरों में से एक काम उम्र का नौकर एक गिलास पानी लेकर सुकन्या के पास गया। पानी का गिलास सुकन्या को देते हुए जान बुझ कर पानी सुकन्या के साड़ी पर गिरा दिया। पानी गिरते ही सुकन्या आगबबूला हों गई और नौकर को कसके एक तमाचा जड़ दिया फिर बोली…..ये क्या किया कमबख्त मेरी इतनी महंगी साड़ी खराब कर दिया। इतनी महंगी साड़ी खरीदने कि तेरे बाप की भी औकात नहीं हैं।

सुकन्या एक ओर तमाचा लड़के के गाल पर जड़कर पैर पटकते हुए रूम में चली गई। लड़के को तमाचा इतने जोरदार लगाया गया था जिससे लड़के का गाल लाल हों गया था। लड़का गाल सहला रहा था की सुरभि उसके पास आई उसके दुसरे गाल को सहलाते हुए बोली….धीरा तुने जान बुझ कर छोटी के साड़ी पर पानी क्यों गिराया। तू समझता क्यों नहीं छोटी हमेशा से ऐसी ही हैं। कर दिया न छोटी ने तेरे प्यारे से गाल को लाल।

सुरभि का अपने प्रति स्नेह देखकर धीरा की आंखे नम हों गया। धीरा नम आंखो को पोंछते हुआ बोला…. रानी मां मैं आप को अपमानित होते हुए कैसे देख सकता हूं। छोटी मालकिन ने हमें खरी खोटी सुनाया हमने बर्दास्त कर लिया लेकिन जब उन्होंने अपका अपमान किया मैं सहन नहीं कर पाया इसलिए जान बूझ कर उनके महंगी साड़ी पर पानी गिरा दिया। इसके एवज में मेरा गाल लाल हुआ तो क्या हुआ बदले में अपका स्नेह भी तो मिला।

सुरभि…. अच्छा अच्छा मुझे ज्यादा मस्का मत लगा नहीं तो मैं फिसल जाऊंगी तू जा थोड़ी देर आराम कर ले तेरे हिस्से का काम मैं कर देती हूं।

धीरा सुरभि के कहते ही एक कुर्सी लाकर सुरभि को बिठाते हुए बोला……रानी मां हमारे रहते आप काम करों ये कैसे हों सकता हैं। आप को बैठना हैं तो यह बैठो नहीं तो जाकर आराम करों खाना बनते ही अपको ख़बर पहुंचा देंगे।

सुरभि…. मुझे कोई काम करने ही नहीं दे रहे हों तो यह बैठकर क्या करूंगी मैं छोटी के पास जा रही हूं।

सुरभि के जाते ही बुजुर्ग जिसका नाम रतन हैं वह बोलता हैं….ये छोटी मालकिन पुरा का पुरा नागिन हैं जब देखो फन फैलाए डसने को तैयार रहती हैं।

धीरा:- अरे चाचा धीरे बोलो नहीं तो फिर से डसने आ जाएगी।

ऐसे चुहल करते हुए सभी बावर्ची खाने की तैयारी करने लग गए थे। सुरभि सुकन्या के रूम में पहुंचकर देखती हैं सुकन्या मुंह फुलाए बैठी हैं। उसको देखकर सुरभि बोलती हैं….छोटी तू मुंह फुलाए क्यो बैठी हैं।

सुकन्या सुरभि के देखकर अपना मुंह भिचकते हुए बोली…..आप तो ऐसे कह रही हो जैसे आप कुछ जानती ही नही, नौकरों के सामने मेरा अपमान करने में कुछ कमी रहीं गईं थी जो मेरे पीछे पीछे यह तक आ गईं।

सुकन्या की तीखी बाते सुनकर सुरभि का मन बहुत आहत होती हैं फिर भी खुद को संभाल कर सुकन्या को समझाते हुए बोली…….छोटी मेरी बातों का तुझे इतना बुरा लग गई। मैं तेरी बहन जैसी हूं तू कुछ गलत करे, मैं तुझे टोक भी नहीं सकती।

सुकन्या…. मैं सही करू या गलत आप मुझे टोकने वाली कौन होती हों। आप मेरी बहन जैसी हों बहन नहीं इसलिए आप मुझसे कोई रिश्ता जोड़ने की कोशिश न करें।

सुरभि:- छोटी ये क्या बहकी बहकी बाते कर रहीं हैं। मैं तुझे अपना छोटी बहन मानती हूं।

सुकन्या:- आप कितनी ढिट हों बार बार अपमानित होते हों फिर भी आ जाते हों दुबारा अपमानित होने। आप जाओ यह से मुझे विश्राम करने दो।

सुरभि से ओर सहन नहीं होती। सुरभि की आंखे सुकन्या की जली कटी बातों से नम हों गई थीं। सुरभि अंचल से आंखों को पूछते हुए चली जाती हैं। सुरभि के जाते ही सुकन्या बोली...कुछ भी कहो इस सुरभि को कुछ असर ही नहीं होती। इसकी चमड़ी तो गेंडे के चमड़ी जैसी मोटी हैं कैसे इतना अपमान सह लेती हैं। इन कर्मजले नौकरों को सुरभि में क्या दिखता हैं जो रानी मां रानी मां बोलकर गला सुख लेटी हैं।

सुकन्या कुछ वक्त ओर अकेले अकेले बड़बड़ाती रहती हैं। फिर बेड पर लेट जाती हैं। सुरभि आकर अपने कमरे में बेड पर उल्टी होकर लेट जाती हैं और रोने लगती हैं। सुरभि को आते हुए एक बुजुर्ग महिला देख लेती हैं जो सुरभि के पीछे पीछे उसके कमरे तक आ जाती हैं। सुरभि को रोता हुए देखकर उसके पास बैठते हुए बोलती हैं……रानी मां आप ऐसे क्यो लेटी हों? आप रो क्यों रहीं हों?

सुरभि बूढ़ी औरत की बात सुनकर उठकर बैठ जाती हैं और बहते आशु को पोंछते हुए बोलती हैं…..दाई मां आप कब आएं?

दाई मां… रानी मां अपको छोटी मालकिन के रूम से निकलते हुए देखा आप रो रहीं थी इसलिए मैं अपके पीछे पीछे आ गई। आज फ़िर छोटी मालकिन ने कुछ कह हैं।

सुरभि…. दाई मां मैं इतनी बूरी हूं जो छोटी मुझे बार बार अपमानित करती रहती हैं।

दाई मां… बुरे आप नहीं बुरे तो वो हैं जो आपकी जैसी नहीं बन पाती इसलिए अपनी भड़ास अपको अपमानित करके निकलती हैं।

सुरभि… दाई मां मुझे तो लगता मैं छोटी को टोककर गलत करती हूं। मैं छोटी को मेरी छोटी बहन मानती हूं इस नाते उसे टोकटी हूं लेकिन छोटी तो इसका गलत मतलब निकल लेती हैं।

दाई मां:- राना मां छोटी मालकिन ऐसा जान बूझ कर करती हैं। जिससे आप परेशान होकर महल का सारा भार उन्हे सोफ दो और छोटी मालकिन इस महल पर राज कर पाए।

सुरभि... ऐसा हैं तो छोटी को महल का सभी भार सोफ देती हूं। कम से कम छोटी मुझे अपमान करना तो छोड़ देगी।

दाई मैं…. आप ऐसा भुलकर भी मत करना नहीं तो छोटी मालकिन अपको ओर ज्यादा अपमानित करेंगी और महल की शांति को भंग कर देगी। अब आप मेरे साथ किचन में चलिए नहीं तो आप ऐसे ही बहकी बहकी बाते करते रहेंगे।

सुरभि जाना तो नहीं चहती थी लेकिन दाई मां जबरदस्ती सुरभि को रसोई घर ले गई। जहां सुरभि वाबर्चियो के साथ खाना बनने में मदद करने लगी। खाना तैयार होने के बाद सुरभि सब को बुलाकर खाना खिलाती हैं और ख़ुद भी खाती हैं। राजेन्द्र और उसका भाई रावण दोनों वह मौजुद नहीं थे। तो उनको छोड़कर बाकी सब खाना खाकर अपने अपने रूम में विश्राम करने चले जाते हैं।

कलकत्ता के एक आलीशान बंगलों में एक खुबसूरत लडकी चांडी का रूप धारण किए थोड़ फोड़ करने में लगी हुई थी। उसकी आंखें सुर्ख लाल चचेरा गुस्से से लाल आंखों में काजल उसके इस रूप में बस दो ही कमी थीं। उसके एक हाथ में खड्ग और दूसरे हाथ में मुंड माला पकड़ा दिया जाय तो शख्सत भद्रा काली लगेंगी। लड़की कांच के सामानों को तोड़ने में लगी हुई थीं। एक औरतो रुकने को कह रहीं थीं लेकिन रूक ही नहीं रहीं थीं। तभी लड़की ने अपने हाथ में कुछ उठाया और उसे फेकने ही जा रहीं थीं कि औरत रोकते हुए बोली….नहीं कमला इसे नहीं ये बहुत महंगी हैं। तूने सब तो तोड़ दिया इसे छोड़ दे मेरी प्यारी बच्ची।

कमला….. मां आप मेरे सामने से हटो मैं आज सब तोड़ दूंगी।

औरत जिनका नाम मनोरमा हैं।

मनोरमा:- अरे इतना गुस्सा किस बात की अभी तो कॉलेज से आई है। आते ही तोड़ फोड़ करने लग गई। देख तूने घर का सभी समान तोड दिया।

कमला….. कॉलेज से आई हूं तभी तो तोड़ फोड़ कर रहीं हूं।

मनोरमा:- ये किया बात हुईं कॉलेज से आकर विश्राम करते हैं और तू तोड़ फोड़ करने लग गई।

कमला…. मां अपको कितनी बार कहा हैं आप अपने सहेलियों को समझा दो उनके बेटे मुझे रह चलते छेड़ा न करें आज भी उन कमीनों ने मुझे छेड़ा उन्हे आपके कारण कुछ कह नहीं पाई उनका गुस्सा कही न कहीं निकलना ही था।

मनोरमा… मैं समझा दूंगी अब तू तोड़ फोड़ करना छोड़ दे।

घर का दरवजा जो खुला हुआ था। महेश कमला के पापा घर में प्रवेश किया । घर की दशा और कमला को थोड़ फोड़ करते हुए देखकर बोले… मनोरमा कमला आज चांडी क्यों बनी हुई हैं।

मनोरमा:- सब आपके लाड प्यार का नतीजा हैं दुसरे का गुस्सा घर के समानों को तोड़ कर निकल रहीं हैं।

महेश….. ओ तो गुस्सा निकाल रहीं हैं तो निकल अपना गुस्सा जितना तोड़ना हैं तोड़ कम पड़े तो मैं और ला देता हूं।

मनोरमा…. आप तो चुप ही रहो। कमला का हाथ पकड़कर खिचते हुए सोफे पर बिठाते हुए बोली .. तू या बैठ यह से हिला तो मुझसे बूरा कोई नहीं होगा।

कमला चुप चाप सोफे पर बैठ गई। मनोरमा भी दूसरे सोफे पर बैठ गई। महेश आकर कमला के पास बैठा और पुछा……कमला बेटी तुम्हें इतना गुस्सा क्यों आया? कुछ तो कारण होगा?

कमला….. रस्ते में कालू और बबलू मुझे छेड़ रहे थे। चप्पल से उनका थोबडा बिगड़ दिया फिर भी मेरा गुस्सा कम नहीं हुआ इसलिए घर आकर थोड़ फोड़ करने लगी।

मनोरमा…. हे भगवन मैं इस लड़की का क्या करूं ? कमला तू अपनी गुस्से को काबू कर नहीं तो शादी के बाद किए करेंगी

महेश….. क्या करेगी से क्या मतलब बही करेगी जो तुमने किया।

मनोरमा…. अब मैंने किया किए जो कमला करेगी।

महेश…. गुस्से में आपने पति का सर फोड़ेगी जैसे तुमने कई बार मेरा फोड़ा था।

कमला…. ही ही ही… मां ने अपका सर फोड़ा था मुझे पता नहीं थी आज पता चल गईं।

मनोरमा कुछ नहीं बोल रहीं थी बस दोनों बाप बेटी को आंखे दिखा रहीं थी और ये दोनों चुप ही नहीं हो रहे थे मनोरमा को छेड़े ही जा रहे थे।

आज के लिया इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे साथ बने रहने के लिए आप सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद

🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Supre Update
 

Top