Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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जिस वक्त राजमहल में अतिथियों का आगमन हुआ था ठीक उसी वक्त दलाल से मिलने रावण पहुंच चुका था। कारण सिर्फ़ इतना ही था कि बीते दिन जिस अप्रिय घटना से दलाल को अवगत करवाने गया था। घर पे न होने के करण रावण खाली हाथ लौट आया था। मगर आज ऐसा नहीं हुआ। रावण जैसे ही दलाल के आवास पे पहुंचा उसी क्षण द्वार पे ही द्वारपाल ने कहा दिया की दलाल आवास में मौजूद हैं।

"दलाल कल कहा गया था? भीतर प्रवेश करते ही रावण ने सवाल दाग दिया।

"कल एक पुराने क्लाइंट से मिलने गया था। बड़े दिनों बाद विश्व भ्रमण करके लौटा हैं। आते ही मुझे मिलने बुला लिया।" एक रहस्यमई मुस्कान के साथ दलाल ने कहा।

"तेरी रहस्यमई मुस्कान कह रहा हैं। उस क्लाइंट के साथ तेरा कोई ख़ास रिश्ता हैं या फ़िर कुछ ऐसा जिसे तू बताना नहीं चहता लेकिन इशारों में ही कह रहा हैं की उस क्लाइंट के साथ मेरा क्या रिश्ता हैं? जान सकता हैं तो जान ले। अगर ऐसा कुछ हैं तो तू मुझे बता सकता हैं। मैं तेरा राज अपने छीने में कैद रखूंगा। किसी को भनक भी नहीं लगने दूंगा।" दलाल के रहस्यमई मुस्कान के आशय को समझते हुए रावण बोला जिसे सुनकर दलाल कुछ सकपका सा गया। रावण को भनक लगता उससे पहले ही दलाल ने खुद को संभाल लिया। दलाल कोई साधारण इंसान तो था नहीं, एक अनुभवी वकील और सवालों के दावपेंच में उलझा देने वाला अनुभवी खिलाड़ी था। जो एक सवाल पूछने पर इतना विचलित हों जाएं की सामने वाला स्वथाः ही जान ले कि पुछा गया सवाल ठीक निशाने पे लगा हैं।

दलाल…माना की तू प्रत्येक बार मेरे मुस्कान के पीछे के रहस्य का सही सही अनुमान लगा लेता हैं लेकिन मेरे दोस्त इस बार तू विफल रहा तुझे और अभ्यास की आवश्कता हैं। अभ्यास तू करते रहना अब तू ये बता कल और आज आने का क्या करण हैं?

"मेरे आने का करण तेरे लिए शुभ-अशुभ दोनों हों सकता हैं। हों सकता हैं तुझे सदमा भी लेंगे लेकिन मेरे दोस्त तू ख़ुद को संभाल लेना। क्योंकि…।" अपने बाते कहने के दौरान रावण बिल्कुल दलाल की भांति रहस्य से परिपूर्ण मुस्कान से मुस्कुरा रहा था और क्योंकि तक बोलकर चुप्पी सद लिया। लेकिन रहस्यमई मुस्कान अब भी रावण के लवों पे मौजूद था। मानो दलाल से कह रहा हों मैंने तेरे रहस्यमई मुस्कान का लगभग सही अंदाज लगा लिया अब तू मेरे मुस्कान का अंदाज लगाकर बता।

हों भी बिल्कुल वैसा ही रहा था। रावण की बातों को दलाल सुन भी रहा था। साथ ही साथ रावण के रहस्य से परिपूर्ण मुस्कान के तह तक पहुंचने का जतन कर रहा था। मगर लगता है रावण आज दलाल के मस्तिष्क के सभी स्नायु तंत्र की संपूर्ण क्षमता का आकलन करने का मन बनाकर आया हैं क्योंकि जैसे ही रावण को लगता की दलाल उसके रहस्य मई मुस्कान के तह तक पहुंचने वाला है तभी साधारण लय से रावण मुस्कुराने लग जाता।

दलाल भरपूर प्रयास कर रहा था। अपने मस्तिष्क की स्नायु तंत्र से जीतना काम ले सकता था ले रहा था और मन ही मन बोला…ये मूर्ख रावण मेरा ही दाव मुझ पे खेल रहा हैं। लेकिन मैं इसके रहस्य से परिपूर्ण मुस्कान की तह तक क्यों नहीं पहुंच पा रहा हूं। इसके इस रहस्यमई मुस्कान का राज क्या हों सकता हैं?

रावण…दलाल अपने मस्तिष्क पे अभी ज्यादा जोर न दे। बाद में दो पैग मर लेना फिर सोचना कि मेरे रहस्यमई मुस्कान के पीछे करण क्या था? अभी तू वो सूचना सुन ले जिसे देने मैं आया हूं। सूचना इस प्रकार हैं तेरा चहेता संभू परसों एक सड़क दुर्घटना में बहुत बुरी तरह घायल हों गया था और इस वक्त दीनानाथ हॉस्पिटल में एडमिट हैं और सबसे खाश सूचना यह हैं कि संभू को बहुत पहले से ही रघु जानता हैं।

बातों के शुरुवाती दौर से दलाल साधारण लय में मुस्कुरा रहा था। जैसे जैसे बाते आगे बड़ी दलाल की मुस्कान ओर गहरा होता गया। संभू की दुर्घटना में घायल होने की बाते सुनकर भी दलाल के मुस्कान में बहुत अधिक अन्तर नहीं आया लेकिन जैसे ही रघु का संभू को जानें की बात सुना भौंहे तन गई। ललाट की मांसपेशियों में इतना खिचाब आया कि ललाट की सभी रेखाएं साफ दिखने लगा और मुंह जिस मुद्रा में खुला था उसी मुद्रा में खुला रह गया। दलाल की यह स्थिति देखाकर रावण मुस्कुराते हुए बोला…अरे मित्र तूने ऐसा भाव क्यों बना लिया? कहीं तुझे इस बात की सदमा तो नहीं लग गया कि संभू दुर्घटना में घायल हो गया हैं। अब तेरा चकरी कौन करेगा? लेकिन तुझे इस बात की सदमा तो लगना ही नहीं चाहिए क्योंकि दुसरा नौकर ढूंढने में तुझे ज्यादा वक्त नहीं लगना। तू तो यूं चुटकियों में दुसरा नौकर कहीं से भी ढूंढ लेगा।

दलाल को जिन बातों से सदमा लगा उससे अनजान बनने का स्वांग करते हुए जिस लय में रावण ने कहा उन्हीं बातों ने एक ओर जबरदस्त झटका दलाल को दे गया। उसका मस्तिष्क लगभग विचार शून्य हों गया। संभू को रघु जानता हैं इस पे विचार करें कि अभी अभी रावण ने जो कहा और जैसा स्वांग किया इस पे विचार करके कोई प्रतिक्रिया दे। एक ओर दलाल विचार शून्य सिर्फ रावण को देख रहा था। वहीं रावण मुस्कुरा रहा था। देखना और मुस्कुराना कुछ पल तक चलता रहा और अंतः दलाल के बोल फूटे…रावण तुझे इस बात से किसी भी तरह का कोई भय नहीं हों रहा कि संभू को रघु जानता हैं और संभू लगभग वह सभी बाते जानता हैं जो हम दोनों के बीच हुआ करता था। अगर संभू ने वह सभी बाते रघु को कह दिया तब हमारा क्या होगा।

रावण…भय लगा था कुछ पल के लिए विचलित भी हुआ था लेकिन जब विचार किया कि मैंने तेरे साथ मिलके जो भी किया वो गलत था मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था फिर भी करता चला गया। एक जुर्म किया उसे छुपाने के लिए जुर्म पे जुर्म करता चला गया।

दलाल…विचार! तूने विचार तो क्या लेकिन सही विचार नहीं कर पाया और कौन सा जुर्म तूने कोई जुर्म नहीं किया बल्कि खुद को सुरक्षित रखने के लिए उन लोगों का संघहार किया जो तेरे लिए असुरक्षा का करण बन सकता था। इसलिए बस इतना ही कहूंगा तू एक बार फिर से विचार कर और संभू को भी दरिद्र, भानू, बाला, शकील, भद्रा और बृजेश की तरह चीर निंद्रा में सुला दे।





रावण…दलाल मैंने बहुत विचार किया उसके बाद निष्कर्ष निकाला कि खुद की फायदे के लिए मैंने जिन लोगों को मारा मेरा वह कर्म अपराध की श्रेणी में आता हैं इसलिए मैंने तय कर लिया अब मैं कोई भी अपराध नहीं करूंगा।

अपराध न करने की बातों ने दलाल को ओर ज्यादा चौका दिया। जिसकी बातों को मानने वाला हां हां करने वाला उसकी बातों को कटता जा रहा था। अब दलाल को अहसास हों रहा था अगर रावण उसके कहने पे काम नहीं किया तब उसने ओर उसके भाई ने मिलकर जो योजना बनाया था वह धारा का धारा रह जानें वाला था। लेकिन दलाल हार नहीं मन सकता था उसे तो किसी भी तरह रावण को राज़ी करना ही था ताकि रावण संभू को मार दे और रावण एक ओर कत्ल करने का मुजरिम बन जाएं। इसलिए रावण को लगभग डरते हुए दलाल बोला…ठीक हैं तेरा ही कहना मन लेता हूं लेकिन तू जरा सोच के देख अगर तूने संभू को नहीं मारा तब हम दोनों का क्या होगा। मैं तो किसी तरह बच जाऊंगा लेकिन तू कैसे खुद को बचा पाएगा आखिर सभी खून करने वाला तू ही था।

रावण…मेरा हस्र जो भी होगा मुझे मंजूर हैं क्योंकि आज नहीं तो कल मेरा जुर्म सामने आ ही जाता तो आज ही आ जाएं उसमे हर्ज ही क्या हैं? लेकिन तू भी नहीं बच पाएगा क्योंकि दादा भाई के लिए तू एक भरोसेमंद व्यक्ति था। जब उन्हें पता चलेगा की तूने उनका भरोशा तोड़ा हैं तब तेरा हाल भी मुनीम जैसा ही होगा। अब मैं चलता हूं तू अपना इंतजाम खुद ही देख ले।

इन शब्दों को कहने के बाद रावण चला गया और दलाल के अन्दर एक उमड़ता तूफान छोड़ गया। कुछ देर तक अपने अन्दर उपज रहीं तूफानों से दलाल लड़ता रहा लेकिन कोई रास्ता नहीं सूजा अंतः दलाल ने अपने भाई को फोन लगा ही दिया लेकिन उधर से सिर्फ इतना ही प्रतिउत्तर आया की वो अभी किसी काम में व्यस्त है इसलिए सांझ को ही विलास महल आकर जो भी बात करना हैं कर ले।

दलाल के आवास से निकलकर रावण सीधा दीनानाथ हॉस्पिटल जा पहुंचा और साजन जिसे संभू की देख भाल का जिमा मिला हुआ था। उसे कुछ बातें समझकर वहा से अपने काम में चला गया।

राजमहल में इस वक्त आए हुए सभी अतिथि गण जल पान कर रहें थे। जलपान तो हों ही रहा था लेकिन पुष्पा, चंचल और शालू की एक दूसरे से हंसी मजाक करना एक दुसरे की खचाई करना माहौल में बदलाव ला दिया था। कमला भी उनके साथ जुगल बंदी कर लिया था। पुष्पा तो थी ही नटखट उसका साथ देने वाली दो ओर मिल गई थीं और कमला जिसे महल में सभी गंभीर और कम बोलने वाली समझ रहें थे आज उन्हें भी पता चल रहा था। कमला भी किसी से कम नहीं हैं उसके अंदर भी चंचल स्वभाव वाली नटखट नारी छिपी हुई थीं। जिसे उसने महल में आने के बाद अंदर ही अंदर दावा रखी थीं।

कमला का छिपा हुआ स्वभाव बाहर आना मनोरमा के मन को दो खेमों में बांट दिया था। मनोरमा जिसे जानकारी थीं कि उसकी बेटी कितनी नटखट और चंचल हैं लेकिन उसका एक मन कहा रहा था ससुराल में उसका यह स्वभाव कहीं कुछ अनर्थ न कर दे वहीं दुसरा मन हर्षित हों रहा था कि एक बार फ़िर उसे अपने बेटी का वह रूप देखने को मिल रहा था जिससे उसका घर हमेशा गुंजायमान रहता था। वहीं सुरभि और सुकन्या बहू के चंचल और नटखट स्वभाव को देखकर सिर्फ मुस्कुरा रहें थे।

"कमला मेरी प्यारी सखी जरा कमरे में तो चल तुझसे कुछ बातें करनी हैं"। जलपान खत्म होने के बाद चासनी सी मिठास शब्दों में घोलते हुए चंचल बोलीं।

"क्यों" कमला ने भी उसी अंदाज में जवाब मांगा

शालू कुछ कदमों का फासला तय कर कमला के पास गईं और एक टुस्की मरते हुए इशारे में बोलीं चल न यह देख सुरभी, सुकन्या और पुष्पा हस दिए लेकिन मनोरम के मन में शंका उत्तपन्न हों चुका था। उन्हें लग रहा था जरूर तीनों कुछ उधम काटने वाले हैं। इसलिए मनोरम बोलीं…जो भी बाते करना हैं यहीं सभी के सामने करों।

शालू…बड़ो के सामने वो बाते नहीं हों सकती समझा करो आंटी। कमला चल न।

इतना बोलकर कमला को खींचते हुए शालू अतिथि कक्ष की ओर ले गई और इधर मनोरमा अपने पति से बोलीं…मुझे न इन तीनों के स्वभाव में कुछ खोट नज़र आ रहा हैं। जरूर तीनों मिलके बंद कमरे में उधम काटने वाले हैं।

महेश…बड़े दिनों बाद तीनों मिल रहें हैं। थोडी मस्ती मजाक करते हैं तो करने दो।

मनोरम…आप न बड़े भोले हों कमला का ससुराल हैं कुछ ऊंच नीच हों गया तब कमला के ससुराल वाले यहीं कहेंगे मां ने बेटी को ये भी नहीं समझाया कि ससुराल में कैसे रहना चाहिए।

महेश…अहा मनोरमा तुम बिना करण ही इतना सोच रहें हों।

मनोरमा…हां मैं तो बिना करण ही सोच रहीं हूं। आप ही कुछ ऐसा सोच लो जिसमे कोई करण हों।

यहां दोनों पति पत्नी में हल्की नोक झोंक चल रहीं थीं। उधर जैसे ही तीनों गेस्ट रूम में पहुंचे द्वार बंद होते ही कमला बोलीं…हां तो मेरे दोनों सखियों बोलों क्या जानना है जो मुझे यह ले आई?

"चंचल पहले तो इसकी गला दावा फ़िर पूछ कि ससुराल आते ही हमारी बुराई करना क्यों शुरू कर दिया?" द्वार बंद करके आते हुए शालू बोलीं

तुरंत ही चंचल कमला के पास पहुंची लेकिन कमला उतनी ही तेजी से अपने जगह से खिसक लिया ओर बोलीं…अरे मैंने तुम दोनों की कोई बुराई नहीं की भला मैं ऐसा क्यों करूंगी तुम दोनों तो मेरी खास सहेली हों। शालू तेरा क्या मानना हैं?

शालू…मेरा क्या मानना हैं? पास आ फ़िर बताती हूं।

कमला…नहीं तुम दोनों के मन में चोर हैं मैं नहीं आऊंगी।

"कमला (कमला बिल्कुल चासनी डूबे शब्दों में बोलीं फिर लगभग झिड़कते हुए चांचल आगे बोलीं) हमारे पास आ हम आए तो अच्छा नहीं होगा।

"नहीं नहीं" कहकर कमला सिर्फ मुंडी हिला दी यह देख चंचल और शालू आगे बढ़ गईं। एक दो सेकंड बाद ही कमरे में धारपकड़ शुरू हों गई। कमला एक से बचे तो दूसरी सामने आ जाएं दूसरी से बचे तो पहली सामने आ जाए। कमरे में रखी कई कीमती सामान उनके इस पकड़म पकड़ाई का निशाना बना लेकिन किसी तरह गिरकर टूटने से बचा लिया गया।

लंबे चले इस पकड़म पकड़ाई के खेल पे विराम लगा और अंतः कमला दोनों सहेली के पकड़ में आ गई। कमला के बालों को चांचल दोनों मुट्ठी में भरकर बोलीं…कमला बता तूने ऐसा क्यों किया?

"कमला ससुराल आते ही हमरी गलत प्रचार कर दिया बता तूने ऐसा क्यों किया।" चंचल को हटकर कमला के बालों को अपने मुट्ठी में बरकार शालु बोलीं।

अब दोनों ने बारी बारी कमला के बालों को मुठ्ठी में भर ही लिया था। तब कमला कहा चुप रहने वाली थीं। उसने भी एक हाथ की मुठ्ठी में शालु और दूसरे हाथ की मुठ्ठी में चंचल की जितने बाल आ सकते थे भर लिया फ़िर बोलीं…मेरी चांट सहेलियों मैंने कोई भी गलत प्रचार नहीं किया।





कमला का इतना बोलना था कि तीनों में बाल खींचने की जंग शुरू हों गई। कौन किसके बाल कितने जोर लगाकर खीच रहें थे। इसका पाता सिर्फ़ उनके मुंह से निकलने वाली" आहा चंचल बाल छोड़ लग रहीं हैं।" "उहू कमला तू बाल छोड़ मुझे लग रहीं हैं।" जैसे आवाजों से चल रहा था लेकिन कोई किसी की बाल छोड़ने को राजी ही नहीं हों रहें थे और न ही आवाजे आनी बंद हों रहीं थीं। बरहाल कुछ ही पल में बालों का नक्शा ही बिगड़ गया तीनों के बाल बिखर गए। उलझकर बिल्कुल चिड़िया का घोंसला जैसा बन गईं। लेकिन फ़िर भी तीनों की जंग जारी रहीं पर कब तक जारी रहती जब सिर में दर्द होने लगा तब कहीं जाकर तीनों रूकें फिर चुपचाप बिस्तर पे बैठ गए और कमला बोलीं…शांति मिल गईं। कितने अच्छे से बालों को कड़ा था तुम दोनों ने सब बिगड़ दिया।

शालु…अपनी देख रहीं हैं। हमारी बालों को देख तूने क्या हाल क्या हैं?

कमला…ठीक हैं तुम दोनों ने मेरे बाल खींचे मैंने तुम दोनों के, बात बराबर हों गई। लेकिन ये तो बता बाल खिंचाई जंग हुआ तो हुआ क्यों?

चंचल…ओहो ऐसे बोल रहीं हैं जैसे तुझे कुछ पाता ही नहीं चल शालु बता तो इसे क्यों इसके बल खींचे गए।

"कमला (बड़े प्यार से बोलीं फ़िर तुरंत ही कमला का गला दबाकर हिलाते हुए शालू आगे बोलीं) बता तूने हमारी गलत प्रचार क्यों की, हमे चांट क्यों बोला, बता, कमला बता।

कमला…शालू मेरा गला छोड़ मेरा दम घूंट रहा हैं।

"मैंने क्या ज्यादा जोर से गला दावा दिया?" गला छोड़कर शालू बोली

कमला…और नहीं तो क्या?

शालू…फिर तू खांसी क्यों नहीं वो क्या हैं न गला जोर से दबाओ तो खांसी आ जाती हैं।

चंचल …शालू तू मुद्दे से भटक रहीं हैं। गला खांसी छोड़ मुद्दे की बात पूछ इसने अपनी ननद के सामने हमे चांट क्यों बोला।

कमला…ओ तो अब तक उठापटक इस बात के लिए मचाई जा रहीं थीं पर मैंने क्या गलत बोला जो तुम दोनों हों वहीं बोला।

शालू…अच्छा हमारी कह दी और अपनी छुपा गई हां चंचल तू उधर से इसकी गला दावा मैं इधर से इसकी गला दबाती हूं।

यह सुनकर कमला तुरंत ही अपना गला अपने हाथों से ढक लिया और चंचल बोलीं…नहीं रे शालू आज के लिए बहुत हों गईं। आगे भी इसकी गला दबाना हैं एक ही दिन में मार थोडी न ढालना हैं।

कमला…मतलब तुम दोनों किस्तों में मेरा गला दबाओंगी। इससे अच्छा तो तुम दोनों मेरा गला दबाकर आज ही मर डालो।

"नहीं रे हम ऐसा क्यों करेंगे तू ही तो हमारी एक इकलौती प्यारी सखी हैं।" शालू और चांचल दोनों ने साथ में इतनी बाते कहीं फ़िर दोनों ओर से कमला से लिपट गई।

पल भार में माहौल बदल गया। जहां पहले उठापटक और बल खिंचाई चल रहीं थीं वहीं अब तीनों भावुक हों गए। गजब की रिश्तों का डोर तीनों में बंधी हैं। कब किस रूप में अपना रंग दिखाता हैं कह पाना मुश्किल हैं बरहाल कुछ देर तीनों लिपटे रहें फिर अलग होकर तीनों अपने अपने काम में लग गए। आपसी खींचतान में उलझ चुके बालों को एक के सामने एक बैठकर सुलझाने लग गए।

लम्बे घने केश उलझ जाएं फ़िर सुलझाने में पसीने छूट जाते हैं साथ ही पीढ़ा का भी अनुभव करवा देती हैं। शालू के पिछे कमला बैठी, कमला के पीछे चंचल बैठ गईं और उलझे केशो के जोड़ को कंगी से जोर लगाकर सुलझाया जा रहा था तब कमला बोलीं…आहा चंचल धीरे कहीं मेरे बाल न टूट जाएं।

शालू…कमला तू भी बालों को धीरे सुलझा दर्द हों रहीं है।

"टूटेगी नहीं तो सुलझेगी कैसे।" जवाब में चंचल बोलीं

"दर्द सहेगी तभी तो बिखरे और उलझे बाल सही होंगे।" जवाब में कमला बोलीं

चंचल का जवाब सुनते ही तुंरत कमला उसकी ओर पलटी बिल्कुल वैसा ही शालू ने किया अब मंजर ऐसा था कि दोनों ही चंचल की और पलटकर बैठ गईं। यह देख चंचल हंस दिया जब शालू और कमला को समझा आया की अभी अभी हुआ किया तब दोनों भी संग संग हंस पड़े हंसी का दौर कुछ लंबा चला फ़िर शांत होकर अपने अपने काम में लग गए।

कमला और शालू के बाल सवार गए लेकिन चंचल रह गई थीं तब शालू और कमला ने मिलकर चंचल के बाल संवार दिए। तीनों को देखकर कोई नहीं कहा सकता कि अभी कुछ देर पहले इन तीनों ने क्या उधम मचाया था। बिल्कुल टिप टॉप बनकर तीनों अतिथि कक्ष से बाहर निकले और संग संग चल दिए।

तीनों जैसे गए थे वैसे ही आते देखकर मनोरमा जो अभी तक कुछ विचलित थी। चैन की स्वास लिया और पुष्पा जो बिल्कुल सुरभि के बगल में खड़ी थीं। मां के कान में बोलीं…मां तीनों को एक साथ आते हुए देखकर मुझे लग रहीं हैं मेरी तीन भाभी एक साथ आ रहीं हैं।

"तीन लेकिन उसमे से एक ही तेरी भाभी हैं बाकी के दो (कुछ देर रूकी फ़िर सुरभि आगे बोलीं) एक अपश्यु दुसरा रमन लेकिन इन दोनों में किसके लिए किसको चुने।"

पुष्पा…अरे मां दोनों में से सिर्फ़ एक ही बचे हैं शालू को रमन भईया शादी वाले दिन ही देखकर पसंद कर लिया था नहीं यकीन हों तो देख लेना रमन भईया आ रहें हैं बाकी बची चंचल, उसमे ऐसी कोई बात नहीं हैं जो अपश्यु भईया पसंद न करें।

सुरभि…रमन आ रहा हैं आने दे उसकी टांगे तोड़ दूंगी जब से घर गया हैं तब से एक बार भी देखने नहीं आया कि रानी मां कैसी हैं और मासूका के आने की खबर सुनते ही भागा चला आ रहा हैं।

पुष्पा…मां अपने जज्बातों को काबू में रखो जब रमन भईया आयेंगे तब उनकी खैर ले लेना। चंचल और अपश्यु भईया के लिए आप बड़े आपस में फैसला करों बाकी इन दोनों को करीब कैसे लाना हैं मैं देखती हूं।

सुरभि…मुझे तो चंचाल अपश्यु के लिए पसंद हैं बाकियों का कुछ कह नहीं सकती लेकिन…।

लेकिन से आगे सुरभि बोल ही नहीं पाई क्योंकि तब तक कमला, शालू और चंचल वहा पहुंच चुके थे। मनोरमा ने थोडी जवाब तलब किया और तीनों दुष्टों ने आते आते तय कर लिया था कि जवाब तलब किया जाएं तो उससे कैसे निपटा जाएं, किया भी बिल्कुल वैसे ही तीनों ने गठबंधन करके एक दूसरे के पूछे गए सवाल का जवाब दे दिया और मनोरमा के मन में रहीं सही शंका भी दूर हों गईं।

आगे जारी रहेगा…
 
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जिस वक्त राजमहल में अतिथियों का आगमन हुआ था ठीक उसी वक्त दलाल से मिलने रावण पहुंच चुका था। कारण सिर्फ़ इतना ही था कि बीते दिन जिस अप्रिय घटना से दलाल को अवगत करवाने गया था। घर पे न होने के करण रावण खाली हाथ लौट आया था। मगर आज ऐसा नहीं हुआ। रावण जैसे ही दलाल के आवास पे पहुंचा उसी क्षण द्वार पे ही द्वारपाल ने कहा दिया की दलाल आवास में मौजूद हैं।

"दलाल कल कहा गया था? भीतर प्रवेश करते ही रावण ने सवाल दाग दिया।

"कल एक पुराने क्लाइंट से मिलने गया था। बड़े दिनों बाद विश्व भ्रमण करके लौटा हैं। आते ही मुझे मिलने बुला लिया।" एक रहस्यमई मुस्कान के साथ दलाल ने कहा।

"तेरी रहस्यमई मुस्कान कह रहा हैं। उस क्लाइंट के साथ तेरा कोई ख़ास रिश्ता हैं या फ़िर कुछ ऐसा जिसे तू बताना नहीं चहता लेकिन इशारों में ही कह रहा हैं की उस क्लाइंट के साथ मेरा क्या रिश्ता हैं? जान सकता हैं तो जान ले। अगर ऐसा कुछ हैं तो तू मुझे बता सकता हैं। मैं तेरा राज अपने छीने में कैद रखूंगा। किसी को भनक भी नहीं लगने दूंगा।" दलाल के रहस्यमई मुस्कान के आशय को समझते हुए रावण बोला जिसे सुनकर दलाल कुछ सकपका सा गया। रावण को भनक लगता उससे पहले ही दलाल ने खुद को संभाल लिया। दलाल कोई साधारण इंसान तो था नहीं, एक अनुभवी वकील और सवालों के दावपेंच में उलझा देने वाला अनुभवी खिलाड़ी था। जो एक सवाल पूछने पर इतना विचलित हों जाएं की सामने वाला स्वथाः ही जान ले कि पुछा गया सवाल ठीक निशाने पे लगा हैं।

दलाल…माना की तू प्रत्येक बार मेरे मुस्कान के पीछे के रहस्य का सही सही अनुमान लगा लेता हैं लेकिन मेरे दोस्त इस बार तू विफल रहा तुझे और अभ्यास की आवश्कता हैं। अभ्यास तू करते रहना अब तू ये बता कल और आज आने का क्या करण हैं?

"मेरे आने का करण तेरे लिए शुभ-अशुभ दोनों हों सकता हैं। हों सकता हैं तुझे सदमा भी लेंगे लेकिन मेरे दोस्त तू ख़ुद को संभाल लेना। क्योंकि…।" अपने बाते कहने के दौरान रावण बिल्कुल दलाल की भांति रहस्य से परिपूर्ण मुस्कान से मुस्कुरा रहा था और क्योंकि तक बोलकर चुप्पी सद लिया। लेकिन रहस्यमई मुस्कान अब भी रावण के लवों पे मौजूद था। मानो दलाल से कह रहा हों मैंने तेरे रहस्यमई मुस्कान का लगभग सही अंदाज लगा लिया अब तू मेरे मुस्कान का अंदाज लगाकर बता।

हों भी बिल्कुल वैसा ही रहा था। रावण की बातों को दलाल सुन भी रहा था। साथ ही साथ रावण के रहस्य से परिपूर्ण मुस्कान के तह तक पहुंचने का जतन कर रहा था। मगर लगता है रावण आज दलाल के मस्तिष्क के सभी स्नायु तंत्र की संपूर्ण क्षमता का आकलन करने का मन बनाकर आया हैं क्योंकि जैसे ही रावण को लगता की दलाल उसके रहस्य मई मुस्कान के तह तक पहुंचने वाला है तभी साधारण लय से रावण मुस्कुराने लग जाता।

दलाल भरपूर प्रयास कर रहा था। अपने मस्तिष्क की स्नायु तंत्र से जीतना काम ले सकता था ले रहा था और मन ही मन बोला…ये मूर्ख रावण मेरा ही दाव मुझ पे खेल रहा हैं। लेकिन मैं इसके रहस्य से परिपूर्ण मुस्कान की तह तक क्यों नहीं पहुंच पा रहा हूं। इसके इस रहस्यमई मुस्कान का राज क्या हों सकता हैं?

रावण…दलाल अपने मस्तिष्क पे अभी ज्यादा जोर न दे। बाद में दो पैग मर लेना फिर सोचना कि मेरे रहस्यमई मुस्कान के पीछे करण क्या था? अभी तू वो सूचना सुन ले जिसे देने मैं आया हूं। सूचना इस प्रकार हैं तेरा चहेता संभू परसों एक सड़क दुर्घटना में बहुत बुरी तरह घायल हों गया था और इस वक्त दीनानाथ हॉस्पिटल में एडमिट हैं और सबसे खाश सूचना यह हैं कि संभू को बहुत पहले से ही रघु जानता हैं।

बातों के शुरुवाती दौर से दलाल साधारण लय में मुस्कुरा रहा था। जैसे जैसे बाते आगे बड़ी दलाल की मुस्कान ओर गहरा होता गया। संभू की दुर्घटना में घायल होने की बाते सुनकर भी दलाल के मुस्कान में बहुत अधिक अन्तर नहीं आया लेकिन जैसे ही रघु का संभू को जानें की बात सुना भौंहे तन गई। ललाट की मांसपेशियों में इतना खिचाब आया कि ललाट की सभी रेखाएं साफ दिखने लगा और मुंह जिस मुद्रा में खुला था उसी मुद्रा में खुला रह गया। दलाल की यह स्थिति देखाकर रावण मुस्कुराते हुए बोला…अरे मित्र तूने ऐसा भाव क्यों बना लिया? कहीं तुझे इस बात की सदमा तो नहीं लग गया कि संभू दुर्घटना में घायल हो गया हैं। अब तेरा चकरी कौन करेगा? लेकिन तुझे इस बात की सदमा तो लगना ही नहीं चाहिए क्योंकि दुसरा नौकर ढूंढने में तुझे ज्यादा वक्त नहीं लगना। तू तो यूं चुटकियों में दुसरा नौकर कहीं से भी ढूंढ लेगा।

दलाल को जिन बातों से सदमा लगा उससे अनजान बनने का स्वांग करते हुए जिस लय में रावण ने कहा उन्हीं बातों ने एक ओर जबरदस्त झटका दलाल को दे गया। उसका मस्तिष्क लगभग विचार शून्य हों गया। संभू को रघु जानता हैं इस पे विचार करें कि अभी अभी रावण ने जो कहा और जैसा स्वांग किया इस पे विचार करके कोई प्रतिक्रिया दे। एक ओर दलाल विचार शून्य सिर्फ रावण को देख रहा था। वहीं रावण मुस्कुरा रहा था। देखना और मुस्कुराना कुछ पल तक चलता रहा और अंतः दलाल के बोल फूटे…रावण तुझे इस बात से किसी भी तरह का कोई भय नहीं हों रहा कि संभू को रघु जानता हैं और संभू लगभग वह सभी बाते जानता हैं जो हम दोनों के बीच हुआ करता था। अगर संभू ने वह सभी बाते रघु को कह दिया तब हमारा क्या होगा।

रावण…भय लगा था कुछ पल के लिए विचलित भी हुआ था लेकिन जब विचार किया कि मैंने तेरे साथ मिलके जो भी किया वो गलत था मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था फिर भी करता चला गया। एक जुर्म किया उसे छुपाने के लिए जुर्म पे जुर्म करता चला गया।

दलाल…विचार! तूने विचार तो क्या लेकिन सही विचार नहीं कर पाया और कौन सा जुर्म तूने कोई जुर्म नहीं किया बल्कि खुद को सुरक्षित रखने के लिए उन लोगों का संघहार किया जो तेरे लिए असुरक्षा का करण बन सकता था। इसलिए बस इतना ही कहूंगा तू एक बार फिर से विचार कर और संभू को भी दरिद्र, भानू, बाला, शकील, भद्रा और बृजेश की तरह चीर निंद्रा में सुला दे।





रावण…दलाल मैंने बहुत विचार किया उसके बाद निष्कर्ष निकाला कि खुद की फायदे के लिए मैंने जिन लोगों को मारा मेरा वह कर्म अपराध की श्रेणी में आता हैं इसलिए मैंने तय कर लिया अब मैं कोई भी अपराध नहीं करूंगा।

अपराध न करने की बातों ने दलाल को ओर ज्यादा चौका दिया। जिसकी बातों को मानने वाला हां हां करने वाला उसकी बातों को कटता जा रहा था। अब दलाल को अहसास हों रहा था अगर रावण उसके कहने पे काम नहीं किया तब उसने ओर उसके भाई ने मिलकर जो योजना बनाया था वह धारा का धारा रह जानें वाला था। लेकिन दलाल हार नहीं मन सकता था उसे तो किसी भी तरह रावण को राज़ी करना ही था ताकि रावण संभू को मार दे और रावण एक ओर कत्ल करने का मुजरिम बन जाएं। इसलिए रावण को लगभग डरते हुए दलाल बोला…ठीक हैं तेरा ही कहना मन लेता हूं लेकिन तू जरा सोच के देख अगर तूने संभू को नहीं मारा तब हम दोनों का क्या होगा। मैं तो किसी तरह बच जाऊंगा लेकिन तू कैसे खुद को बचा पाएगा आखिर सभी खून करने वाला तू ही था।

रावण…मेरा हस्र जो भी होगा मुझे मंजूर हैं क्योंकि आज नहीं तो कल मेरा जुर्म सामने आ ही जाता तो आज ही आ जाएं उसमे हर्ज ही क्या हैं? लेकिन तू भी नहीं बच पाएगा क्योंकि दादा भाई के लिए तू एक भरोसेमंद व्यक्ति था। जब उन्हें पता चलेगा की तूने उनका भरोशा तोड़ा हैं तब तेरा हाल भी मुनीम जैसा ही होगा। अब मैं चलता हूं तू अपना इंतजाम खुद ही देख ले।

इन शब्दों को कहने के बाद रावण चला गया और दलाल के अन्दर एक उमड़ता तूफान छोड़ गया। कुछ देर तक अपने अन्दर उपज रहीं तूफानों से दलाल लड़ता रहा लेकिन कोई रास्ता नहीं सूजा अंतः दलाल ने अपने भाई को फोन लगा ही दिया लेकिन उधर से सिर्फ इतना ही प्रतिउत्तर आया की वो अभी किसी काम में व्यस्त है इसलिए सांझ को ही विलास महल आकर जो भी बात करना हैं कर ले।

दलाल के आवास से निकलकर रावण सीधा दीनानाथ हॉस्पिटल जा पहुंचा और साजन जिसे संभू की देख भाल का जिमा मिला हुआ था। उसे कुछ बातें समझकर वहा से अपने काम में चला गया।

राजमहल में इस वक्त आए हुए सभी अतिथि गण जल पान कर रहें थे। जलपान तो हों ही रहा था लेकिन पुष्पा, चंचल और शालू की एक दूसरे से हंसी मजाक करना एक दुसरे की खचाई करना माहौल में बदलाव ला दिया था। कमला भी उनके साथ जुगल बंदी कर लिया था। पुष्पा तो थी ही नटखट उसका साथ देने वाली दो ओर मिल गई थीं और कमला जिसे महल में सभी गंभीर और कम बोलने वाली समझ रहें थे आज उन्हें भी पता चल रहा था। कमला भी किसी से कम नहीं हैं उसके अंदर भी चंचल स्वभाव वाली नटखट नारी छिपी हुई थीं। जिसे उसने महल में आने के बाद अंदर ही अंदर दावा रखी थीं।

कमला का छिपा हुआ स्वभाव बाहर आना मनोरमा के मन को दो खेमों में बांट दिया था। मनोरमा जिसे जानकारी थीं कि उसकी बेटी कितनी नटखट और चंचल हैं लेकिन उसका एक मन कहा रहा था ससुराल में उसका यह स्वभाव कहीं कुछ अनर्थ न कर दे वहीं दुसरा मन हर्षित हों रहा था कि एक बार फ़िर उसे अपने बेटी का वह रूप देखने को मिल रहा था जिससे उसका घर हमेशा गुंजायमान रहता था। वहीं सुरभि और सुकन्या बहू के चंचल और नटखट स्वभाव को देखकर सिर्फ मुस्कुरा रहें थे।

"कमला मेरी प्यारी सखी जरा कमरे में तो चल तुझसे कुछ बातें करनी हैं"। जलपान खत्म होने के बाद चासनी सी मिठास शब्दों में घोलते हुए चंचल बोलीं।

"क्यों" कमला ने भी उसी अंदाज में जवाब मांगा

शालू कुछ कदमों का फासला तय कर कमला के पास गईं और एक टुस्की मरते हुए इशारे में बोलीं चल न यह देख सुरभी, सुकन्या और पुष्पा हस दिए लेकिन मनोरम के मन में शंका उत्तपन्न हों चुका था। उन्हें लग रहा था जरूर तीनों कुछ उधम काटने वाले हैं। इसलिए मनोरम बोलीं…जो भी बाते करना हैं यहीं सभी के सामने करों।

शालू…बड़ो के सामने वो बाते नहीं हों सकती समझा करो आंटी। कमला चल न।

इतना बोलकर कमला को खींचते हुए शालू अतिथि कक्ष की ओर ले गई और इधर मनोरमा अपने पति से बोलीं…मुझे न इन तीनों के स्वभाव में कुछ खोट नज़र आ रहा हैं। जरूर तीनों मिलके बंद कमरे में उधम काटने वाले हैं।

महेश…बड़े दिनों बाद तीनों मिल रहें हैं। थोडी मस्ती मजाक करते हैं तो करने दो।

मनोरम…आप न बड़े भोले हों कमला का ससुराल हैं कुछ ऊंच नीच हों गया तब कमला के ससुराल वाले यहीं कहेंगे मां ने बेटी को ये भी नहीं समझाया कि ससुराल में कैसे रहना चाहिए।

महेश…अहा मनोरमा तुम बिना करण ही इतना सोच रहें हों।

मनोरमा…हां मैं तो बिना करण ही सोच रहीं हूं। आप ही कुछ ऐसा सोच लो जिसमे कोई करण हों।

यहां दोनों पति पत्नी में हल्की नोक झोंक चल रहीं थीं। उधर जैसे ही तीनों गेस्ट रूम में पहुंचे द्वार बंद होते ही कमला बोलीं…हां तो मेरे दोनों सखियों बोलों क्या जानना है जो मुझे यह ले आई?

"चंचल पहले तो इसकी गला दावा फ़िर पूछ कि ससुराल आते ही हमारी बुराई करना क्यों शुरू कर दिया?" द्वार बंद करके आते हुए शालू बोलीं

तुरंत ही चंचल कमला के पास पहुंची लेकिन कमला उतनी ही तेजी से अपने जगह से खिसक लिया ओर बोलीं…अरे मैंने तुम दोनों की कोई बुराई नहीं की भला मैं ऐसा क्यों करूंगी तुम दोनों तो मेरी खास सहेली हों। शालू तेरा क्या मानना हैं?

शालू…मेरा क्या मानना हैं? पास आ फ़िर बताती हूं।

कमला…नहीं तुम दोनों के मन में चोर हैं मैं नहीं आऊंगी।

"कमला (कमला बिल्कुल चासनी डूबे शब्दों में बोलीं फिर लगभग झिड़कते हुए चांचल आगे बोलीं) हमारे पास आ हम आए तो अच्छा नहीं होगा।

"नहीं नहीं" कहकर कमला सिर्फ मुंडी हिला दी यह देख चंचल और शालू आगे बढ़ गईं। एक दो सेकंड बाद ही कमरे में धारपकड़ शुरू हों गई। कमला एक से बचे तो दूसरी सामने आ जाएं दूसरी से बचे तो पहली सामने आ जाए। कमरे में रखी कई कीमती सामान उनके इस पकड़म पकड़ाई का निशाना बना लेकिन किसी तरह गिरकर टूटने से बचा लिया गया।

लंबे चले इस पकड़म पकड़ाई के खेल पे विराम लगा और अंतः कमला दोनों सहेली के पकड़ में आ गई। कमला के बालों को चांचल दोनों मुट्ठी में भरकर बोलीं…कमला बता तूने ऐसा क्यों किया?

"कमला ससुराल आते ही हमरी गलत प्रचार कर दिया बता तूने ऐसा क्यों किया।" चंचल को हटकर कमला के बालों को अपने मुट्ठी में बरकार शालु बोलीं।

अब दोनों ने बारी बारी कमला के बालों को मुठ्ठी में भर ही लिया था। तब कमला कहा चुप रहने वाली थीं। उसने भी एक हाथ की मुठ्ठी में शालु और दूसरे हाथ की मुठ्ठी में चंचल की जितने बाल आ सकते थे भर लिया फ़िर बोलीं…मेरी चांट सहेलियों मैंने कोई भी गलत प्रचार नहीं किया।





कमला का इतना बोलना था कि तीनों में बाल खींचने की जंग शुरू हों गई। कौन किसके बाल कितने जोर लगाकर खीच रहें थे। इसका पाता सिर्फ़ उनके मुंह से निकलने वाली" आहा चंचल बाल छोड़ लग रहीं हैं।" "उहू कमला तू बाल छोड़ मुझे लग रहीं हैं।" जैसे आवाजों से चल रहा था लेकिन कोई किसी की बाल छोड़ने को राजी ही नहीं हों रहें थे और न ही आवाजे आनी बंद हों रहीं थीं। बरहाल कुछ ही पल में बालों का नक्शा ही बिगड़ गया तीनों के बाल बिखर गए। उलझकर बिल्कुल चिड़िया का घोंसला जैसा बन गईं। लेकिन फ़िर भी तीनों की जंग जारी रहीं पर कब तक जारी रहती जब सिर में दर्द होने लगा तब कहीं जाकर तीनों रूकें फिर चुपचाप बिस्तर पे बैठ गए और कमला बोलीं…शांति मिल गईं। कितने अच्छे से बालों को कड़ा था तुम दोनों ने सब बिगड़ दिया।

शालु…अपनी देख रहीं हैं। हमारी बालों को देख तूने क्या हाल क्या हैं?

कमला…ठीक हैं तुम दोनों ने मेरे बाल खींचे मैंने तुम दोनों के, बात बराबर हों गई। लेकिन ये तो बता बाल खिंचाई जंग हुआ तो हुआ क्यों?

चंचल…ओहो ऐसे बोल रहीं हैं जैसे तुझे कुछ पाता ही नहीं चल शालु बता तो इसे क्यों इसके बल खींचे गए।

"कमला (बड़े प्यार से बोलीं फ़िर तुरंत ही कमला का गला दबाकर हिलाते हुए शालू आगे बोलीं) बता तूने हमारी गलत प्रचार क्यों की, हमे चांट क्यों बोला, बता, कमला बता।

कमला…शालू मेरा गला छोड़ मेरा दम घूंट रहा हैं।

"मैंने क्या ज्यादा जोर से गला दावा दिया?" गला छोड़कर शालू बोली

कमला…और नहीं तो क्या?

शालू…फिर तू खांसी क्यों नहीं वो क्या हैं न गला जोर से दबाओ तो खांसी आ जाती हैं।

चंचल …शालू तू मुद्दे से भटक रहीं हैं। गला खांसी छोड़ मुद्दे की बात पूछ इसने अपनी ननद के सामने हमे चांट क्यों बोला।

कमला…ओ तो अब तक उठापटक इस बात के लिए मचाई जा रहीं थीं पर मैंने क्या गलत बोला जो तुम दोनों हों वहीं बोला।

शालू…अच्छा हमारी कह दी और अपनी छुपा गई हां चंचल तू उधर से इसकी गला दावा मैं इधर से इसकी गला दबाती हूं।

यह सुनकर कमला तुरंत ही अपना गला अपने हाथों से ढक लिया और चंचल बोलीं…नहीं रे शालू आज के लिए बहुत हों गईं। आगे भी इसकी गला दबाना हैं एक ही दिन में मार थोडी न ढालना हैं।

कमला…मतलब तुम दोनों किस्तों में मेरा गला दबाओंगी। इससे अच्छा तो तुम दोनों मेरा गला दबाकर आज ही मर डालो।

"नहीं रे हम ऐसा क्यों करेंगे तू ही तो हमारी एक इकलौती प्यारी सखी हैं।" शालू और चांचल दोनों ने साथ में इतनी बाते कहीं फ़िर दोनों ओर से कमला से लिपट गई।

पल भार में माहौल बदल गया। जहां पहले उठापटक और बल खिंचाई चल रहीं थीं वहीं अब तीनों भावुक हों गए। गजब की रिश्तों का डोर तीनों में बंधी हैं। कब किस रूप में अपना रंग दिखाता हैं कह पाना मुश्किल हैं बरहाल कुछ देर तीनों लिपटे रहें फिर अलग होकर तीनों अपने अपने काम में लग गए। आपसी खींचतान में उलझ चुके बालों को एक के सामने एक बैठकर सुलझाने लग गए।

लम्बे घने केश उलझ जाएं फ़िर सुलझाने में पसीने छूट जाते हैं साथ ही पीढ़ा का भी अनुभव करवा देती हैं। शालू के पिछे कमला बैठी, कमला के पीछे चंचल बैठ गईं और उलझे केशो के जोड़ को कंगी से जोर लगाकर सुलझाया जा रहा था तब कमला बोलीं…आहा चंचल धीरे कहीं मेरे बाल न टूट जाएं।

शालू…कमला तू भी बालों को धीरे सुलझा दर्द हों रहीं है।

"टूटेगी नहीं तो सुलझेगी कैसे।" जवाब में चंचल बोलीं

"दर्द सहेगी तभी तो बिखरे और उलझे बाल सही होंगे।" जवाब में कमला बोलीं

चंचल का जवाब सुनते ही तुंरत कमला उसकी ओर पलटी बिल्कुल वैसा ही शालू ने किया अब मंजर ऐसा था कि दोनों ही चंचल की और पलटकर बैठ गईं। यह देख चंचल हंस दिया जब शालू और कमला को समझा आया की अभी अभी हुआ किया तब दोनों भी संग संग हंस पड़े हंसी का दौर कुछ लंबा चला फ़िर शांत होकर अपने अपने काम में लग गए।

कमला और शालू के बाल सवार गए लेकिन चंचल रह गई थीं तब शालू और कमला ने मिलकर चंचल के बाल संवार दिए। तीनों को देखकर कोई नहीं कहा सकता कि अभी कुछ देर पहले इन तीनों ने क्या उधम मचाया था। बिल्कुल टिप टॉप बनकर तीनों अतिथि कक्ष से बाहर निकले और संग संग चल दिए।

तीनों जैसे गए थे वैसे ही आते देखकर मनोरमा जो अभी तक कुछ विचलित थी। चैन की स्वास लिया और पुष्पा जो बिल्कुल सुरभि के बगल में खड़ी थीं। मां के कान में बोलीं…मां तीनों को एक साथ आते हुए देखकर मुझे लग रहीं हैं मेरी तीन भाभी एक साथ आ रहीं हैं।

"तीन लेकिन उसमे से एक ही तेरी भाभी हैं बाकी के दो (कुछ देर रूकी फ़िर सुरभि आगे बोलीं) एक अपश्यु दुसरा रमन लेकिन इन दोनों में किसके लिए किसको चुने।"

पुष्पा…अरे मां दोनों में से सिर्फ़ एक ही बचे हैं शालू को रमन भईया शादी वाले दिन ही देखकर पसंद कर लिया था नहीं यकीन हों तो देख लेना रमन भईया आ रहें हैं बाकी बची चंचल, उसमे ऐसी कोई बात नहीं हैं जो अपश्यु भईया पसंद न करें।

सुरभि…रमन आ रहा हैं आने दे उसकी टांगे तोड़ दूंगी जब से घर गया हैं तब से एक बार भी देखने नहीं आया कि रानी मां कैसी हैं और मासूका के आने की खबर सुनते ही भागा चला आ रहा हैं।

पुष्पा…मां अपने जज्बातों को काबू में रखो जब रमन भईया आयेंगे तब उनकी खैर ले लेना। चंचल और अपश्यु भईया के लिए आप बड़े आपस में फैसला करों बाकी इन दोनों को करीब कैसे लाना हैं मैं देखती हूं।

सुरभि…मुझे तो चंचाल अपश्यु के लिए पसंद हैं बाकियों का कुछ कह नहीं सकती लेकिन…।

लेकिन से आगे सुरभि बोल ही नहीं पाई क्योंकि तब तक कमला, शालू और चंचल वहा पहुंच चुके थे। मनोरमा ने थोडी जवाब तलब किया और तीनों दुष्टों ने आते आते तय कर लिया था कि जवाब तलब किया जाएं तो उससे कैसे निपटा जाएं, किया भी बिल्कुल वैसे ही तीनों ने गठबंधन करके एक दूसरे के पूछे गए सवाल का जवाब दे दिया और मनोरमा के मन में रहीं सही शंका भी दूर हों गईं।


आगे जारी रहेगा…
Are dalaal ke to tote uda diya ravan ne bhai ji superb update dost
 

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