Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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Update - 42


घर से कुल देवी मंदिर तक, सफर के दौरान सुकन्या बिना एक शब्द बोले चुप चाप बैठी रहीं। रावण कई बार बात करना चाह पर सुकन्या ने साफ दर्शा दिया रावण उसके लिए एक अनजान शख्स हैं इसलिए उससे बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं हैं। पत्नी का पराए जैसा सलूक करना रावण को अंदर ही अन्दर शूल जैसा चुभा सिर्फ इतना ही नहीं उसे लगा सुकन्या उससे धीरे धीरे दूर ओर दूर होता जा रहा हैं।

रावण खुद को माजधार में फसा उस नाविक जैसा समझने लगा जिसे किनारे तक पहुंचना हैं परंतु कैसे पहुंचे कोई साधन नजर नहीं आ रहा था। इसलिए गुमसुम सा कार के दूसरे कोने में बैठा रहा।

दूसरे कारों में सभी बातों में मशगूल होकर कुलदेवी मंदिर पहुंच गए। एक एक करके सभी कारों से उतरे और मंदिर के प्रांगण में पहुंचे। राजेंद्र को सापरिवार आया देखकर पुरोहित जी बोले... राजा जी पूजा के मूहर्त का समय शुरू होने में अभी कुछ क्षण बाकी हैं तब तक आप सभी हाथ मुंह धोकर आए।

पुरोहित के कहते ही सभी एक एक कर मंदिर के बहार बने सरोवर के पास गए। शुद्ध शीतल जल से तरोंताजा होकर वापस मंदिर प्रांगण में आ गए। सभी को देखकर पुरोहित जी बोले…पहले नव दंपति बैठें फिर उनके पीछे बाकी बचे विवाहित जोड़े में बैठ जाए एवम जो अविवाहित हैं वो चाहें तो पूजा में बैठ सकते हैं।

पुरोहित के कहे अनुसार सभी बैठ गए। सुकन्या को पास सटकर बैठता देख रावण में कुछ आस जगा शायद पूजा संपन्न होने के बाद सुकन्या उससे बात कर ले। क्या होगा ये तो प्रभु ही जानें।

सभी के बैठते ही पूजा विधि शुरू हों गया। जिन जिन विधि से कुल देवी की पूजा नव दंपत्ति से करवाया जाना राजपरिवार का रीत था। वो सभी विधि पुरोहित जी ने रघु और कमला से करवाया। लम्बे समय तक पूजा चलता रहा अंत में हवन आदि होने के बाद पूजा संपन्न हुआ फ़िर पुरोहित जी बोले...राजा जी सभी पूजा विधि संपन्न हो गया हैं अब आप सभी मां चंडी से अपने इच्छा अनुसार मनोकामना पूर्ण होने की आशीष मांगे।

पुरोहित जी के कहने पर सभी एक एक कर देवी प्रतिमा के सामने शीश झुकाकर नमन किया फिर अशीष मांगा।

कमला... हे देवी मुझे आर्शीवाद करें मै पत्नी धर्म को निभा पाऊं, एक अच्छा बहु होने का फर्ज निभाकर सभी का मन जय कर पाऊं, मेरे नए बने परिवार में सभी सुखमय से रहे हमेशा सभी तरक्की के रह पर आगे बढ़ते रहें।

रघु...हे देवी मुझे आर्शीवाद दे मैं पति धर्म के मार्ग से कभी न डगमगाऊ। एक अच्छा पति, भाई, बेटा एक अच्छा इंसान बनकर रह सकूं मेरे परिवार में सभी हसीं ख़ुशी और सुखमाय से रहे।

सुरभि... हे देवी मैं आप'से क्या मांगू बिना मांगे ही अपने सब दे दिया एक अच्छा बेटा दिया एक अच्छी सर्व गुण संपन्न बहु दिया बस आप मेरे परिवार पर कृपा दृष्टि बनाए रखना।

राजेंद्र... हे देवी आप'का दिया सब कुछ मेरे पास हैं फ़िर भी एक विनती है मेरे पूर्वजों का दिया कार्य भार वहन कर पाऊं ऐसा सामर्थ मुझे देना और मेरे परिवार में सभी को साकुशल रखना।

सुकन्या...हे देवी आप खुद जानते हैं अपने मेरे भाग्य में क्या लिखा बस इतनी कृपा करना इससे बूरा ओर मेरे साथ न हों मेरे पति ही मेरा सब कुछ हैं। उन्हें सद्बुद्धि देना वो बूरा मार्ग छोड़कर सत मार्ग पर चले मेरा एक मात्र बेटा अपश्यु कभी अपने बाप जैसा न बनें और मेरे परिवार में कभी किसी के साथ अहित न हों पाए। मैं ऐसा आशीर्वाद आप'से मांगती हूं।

रावण...हे देवी मेरे अपनो और सपनों इन दोनों में से मैं किसे चुनूं कोई रह नजर नहीं आ रहा। मुझे कोई रह दिखाओ बस इतना ही आप'से विनती हैं।

अपश्यु... हे देवी मैंने बहुत से पाप कर्म किया हैं जिसकी शायद ही मुझे माफी मिल पाए फ़िर भी आप मुझे माफ कर देना। मैं बूरा मार्ग छोड़कर सत मार्ग पर चलने की शपथ लिया हैं। जानता हूं मेरा चुना सत मार्ग बहुत कठिन हैं। बस इतनी कृपा करना मैं इस मार्ग पर बिना डिगे चल पाऊं। बस मेरी इतनी सी अर्जी मन लेना।

पुष्पा... हे देवी मेरे बुद्धू अशीष ips बन जाए इतनी कृपा उस पर कर देना बाकि मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए। मेरा परिवार और होने वाला नया परिवार हमेशा खुश रहें। बस इतनी कृपा मुझ पर कर देना।

सभी के मन ने जो चाहा वैसा ही आर्शीवाद देवी से मांगा फ़िर उठकर पुरोहित को नमन किया। इसके बाद जो छोटे थे वे अपने से बड़ों का पैर छूकर आशीर्वाद लिया फिर मंदिर प्रांगण से बहार आ गए।

मुंशी अपने बीबी और बेटे के साथ पधारे अभी कुछ ही देर हुआ था। वे आकर देखा पूजा लगभग समाप्त होने वाला था। इसलिए अंदर न जाकर बहार ही रूक गए। मुंशी को देर से आया देखकर राजेंद्र थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोला... मुंशी तू आया ही क्यों जब पूजा में नहीं बैठ पाया तो तेरे आने का फायदा ही क्या हुआ इससे अच्छा तो तू नहीं आता।

मुंशी राजेंद्र की बात सुनकर थोड़ा सा मुस्कुराया फ़िर राजेंद्र के पास जाते हुए बोला…अरे राजा जी आप इतना गुस्सा क्यों हों रहें हों मैंने कहा था आऊंगा तो आ पहुंचा बस देर से पहुंचा इसकी वजह हमारी कार हैं जो बीच रस्ते में खबर हों गया। कार ठीक करवाने में देर हों गया इसलिए देर से पहुंचा इसमें मेरा कोई दोष नहीं हैं जो भी हुआ सारा दोष कार का हैं।

राजेंद्र... देर से आया तो ख़ुद के बचाव में कोई न कोई बहाना बनाना ही था। गलती खुद किया ओर दोष कार को दे रहा हैं।

पति का बचाव करते हुए उर्वशी टपक से बीच में बोला पड़ी... राजा जी ये सही कह रहे है हमारी कार सच में खराब हों गईं थी। अब आप ही बताएं बिना कार सही करवाए हम कैसे पहुंच पाते।

उर्वशी को पति का पक्ष लेता देखाकर सुरभि तंज भरे लहजे में बोली... हां हां तू तो बोलेगी ही मुंशी भाई साहब तेरा पति हैं पति के बचाव करना बनता हैं।

उर्वशी... मैं सच बोल रहीं ही आप'को यकीन नहीं हों रहा हैं तो, रमन की तरफ देखते हुए बोली... रमन से पूछ कर देखो रमन तो आप'से झूठ नहीं बोलेगा।

राजेंद्र ... अच्छा अच्छा मानता हूं आप और मंशी सही बोल रहे हों अब चलो चलकर कुछ दान पुण्य का काम कर लिया जाएं।

मुंशी…राजा जी जब आ ही गए है तो पहले देवी के दर्शन कर लूं फिर दान पुण्य भी कर लुंगा।

मुंशी की बात सुनकर सभी मंद मंद मुस्कुरा दिए फिर मुंशी परिवार सहित मंदिर के अंदर गए। देवी के सामने शीश नवाकर नमन किया फिर बहार आ गए। जब तक मुंशी बहार नहीं आया तब तक राजेंद्र परिवार सहित खड़ा रहा मुंशी के आते ही सभी साथ में मंदिर के सामने बनी पंडाल में पहुंचे।

राजेंद्र ने ऐलान करवा दिया था कि मंदिर में सभी जरूरत मंद लोगों की जरूरत पूरा किया जाएगा। ये सूचना सुनकर जरूरत मंद लोगों का जमघट पंडाल में लग गया।


राजेंद्र को सापरिवार पंडाल में पधारते ही पंडाल में मौजूद सभी लोग राजेंद्र की जय जयकर करने लग गए। उन्हीं में से कई लोग जो रावण के जुल्मों का शिकार हुआ था। रावण को राजेंद्र के साथ देकर अपने अंदर जमे घृणा को शब्दों के रूप में बहार निकाला।

"आ गया कमीना दिखावा करने अभी दान करेगा बाद में अपने चमचों को भेजकर हमसे छीन लेगा।"

"पापी तू कितना भी देवी के दरबार में माथा टेक ले तेरा पाप कर्म तेरा पीछा कभी नहीं छोड़ने वाला हमारे मन में जितना सम्मन राजा जी के लिए है उतना ही घृणा तेरे लिए हैं।"

राजेंद्र की जय जयकार करने के बाद भीड़ शांत हुआ तब राजेंद्र बोला… मैं और मेरे परिवार हमेशा आप सभी के भाले के लिए सोचा है। दुःख सुख में आप के साथ खड़े रहें हैं। जितना मन सम्मन मैं आप'को देता हूं उतना ही मन सम्मन से आप सभी ने मुझे नवाजा हैं। बहुत समय बाद हमारे महल में खुशियां आई है। हमारे परिवार में एक सदस्य की बड़ोत्री मेरे पुत्र बधु के रूप में हुआ हैं। मेरे परिवार में आई इस खुशी के पल को आप सभी के साथ बाटने आया हूं। थोड़ी ही देर में मेरा पुत्र और पुत्रबधु आप सभी के जरूरत के मुताबिक आप सभी को कुछ दान देंगे आप सभी से निवेदन है आप सभी उस दान को सहस्र स्वीकार करें।

"जी राजा" "जी राजी" की गूंज पूरे वादी में जोर सोर से गूंज उठा। कमला इन गुजती आवाजों को सुनकर पास खड़ा रघु का हाथ कसकर पकड़ लिया जीवन में पहली बार इतने लोगों को एक साथ किसी की जय जयकर करते हुए सन रहीं थीं। वो तय नहीं कर पा रहीं थीं किस तरह का रिएक्ट करें जब समझ नहीं आया तो रघु का हाथ कसकर पकड़ लिया।

कमला का चेहरा घूंघट से ढका हुआ था इसलिए रघु, कमला का चेहरा न देख पाया रघु को लगा कमला शायद इतने लोगों की आवाज़ एक साथ सुनकर डर गई होगी तो कमला के कंधे पर हाथ रखकर बोला...कमला क्या हुआ? डर लग रहा है जो इतना कसके मेरा हाथ पकड़ लिया।

कमला... जी डर नहीं रहीं हूं पहली बार इतने लोगों की आवाज़ एक साथ सूना तो समझ नहीं पाई कैसा रिएक्ट करू।

रघु...कमला अब आदत डाल लो क्योंकि आगे ओर न जानें कितनी बार तुम्हें ऐसी भीड़ की आवाज़ें सुनने को मिलेगा।

कमला सिर्फ हां में मुंडी हिला दिया। इससे आगे कुछ नहीं कहा। पर रघु का हाथ नहीं छोड़ा तब रघु अपना दूसरा हाथ भी कमला के हाथ पर रख दिया। पति का दूसरे हाथ का स्पर्श पाकर कमला घूंघट के अंदर से सिर ऊपर उठकर रघु को देखा और मंद मंद मुस्कुरा दिया।

राजेंद्र के कहने पर दान लेने आये हुए सभी जनता कतार में खड़े हों गए। एक एक कर आते गए। रघु और कमला के हाथों से दान लेते गए। दुआएं दिया ओर अपने अपने रस्ते चले गए।

भीड़ बहुत ज्यादा था सिर्फ कमला और रघु दान करते रहे तो समय बहुत लग जाता इसलिए राजेंद्र के कहने पर बाकि बचे सभी दोनों का हाथ बटाने लग गए।

इतने लोगों के एक साथ दान करने से भिड़ जल्दी जल्दी काम होने लग गया। उन्हीं भीड़ में एक बुजुर्ग महिला लाठी का सहारा लेकर आगे बढ़ रहीं थीं। बुर्जुग महिला जिस कतार में थीं अपश्यु उसी कतार से आ रहे लोगों को दान की चीजे दे रहा था। आगे आते आते बुजुर्ग महिला अपश्यु को देखकर रूक गई।

शायद बुर्जुग महिला अपश्यु के हाथों दान नहीं लेना चहती थी या फ़िर अपश्यु से डर रहीं थीं जो भी हों बुर्जुग महिला आगे बढ़ने से कतरा रहीं थीं। इसलिए थम सी गई। कतार में जल्दी आगे आने की कोशिश के चलते पीछे धक्का मुक्की हुआ। जिसकी चपेट में बुर्जुग महिला आ गईं। खुद को संभाल न पाने की वजह से बुर्जुग महिला सामने की ओर गिर गई।

बुर्जुग महिला को गिरते देखकर। हाथ में उठाया हुआ सामान अपश्यु नीचे रख दिया और तुरंत बुर्जुग महिला के पास पहुंच गया। सहारा देकर बुजुर्ग महिला को उठना चाहा तो बुर्जुग महिला अपश्यु का हाथ हटाकर करकस स्वर में बोली...मैं इतनी भी बेसहारा नहीं हुई हूं कि तुझ जैसा पापी का सहारा लेना पड़े छोड़ मुझे papiiii।

बुर्जुग महिला की दो टूक बाते सूनकर अपश्यु कुछ क्षण के लिए थम सा गया। उसे समझ नहीं आया की बजुर्ग महिला ने उससे ऐसा कहा तो कहा क्यों? जानने की जिज्ञासा मन में लेकर अपश्यु बोला... बूढ़ी मां मैं जनता हूं मैंने बहुत से पाप कर्म किया हैं। पर आप'के साथ तो ऐसा कुछ भी न किया फिर अपने मुझे ऐसा क्यों कहा?

बुजुर्ग महिला एक गहरी सांस लिया फ़िर बोला... पापी तूने पाप कर्म किया वो याद हैं। जिनके साथ किया वो भी शायद याद हैं पर जो तेरे दुष्कर्मों की शिकार बनी उनके परिवार वाले तूझे याद नहीं, तेरे दुष्कर्मों की शिकार बनी एक अबला मेरी एक मात्र सहारा थीं। जिसे तूने मुझ'से छीनकर मुझे बेसहारा कर दिया अब आया दिखावे की सहारा देने छोड़ मुझे तेरे सहारे की जरूरत नहीं हैं।

बुर्जुग महिला के इतना बोलने से अपश्यु बुर्जुग महिला को छोड़कर बेजान मूरत सा बैठ गया। ख़ुद के किए कर्मों को एक बार फ़िर से याद करने लग गया।

कतार में खडा एक बंदा निकलकर आया। बुर्जुग महिला को सहारा देकर उठने में मदद किया। बुर्जुग महिला लाठी का सहारा लेकर धीरे धीर आगे बढ़ गए। अपश्यु बेजान मूरत सा वहीं बैठा रहा।

बुर्जुग महिला धीरे धीरे चलते हुए रघु और कमला के पास पहुंचा। एक वृद्ध महिला को आया देखकर रघु ने पहले उनको दान दिया। दान लेने के बाद बुर्जुग महिला हाथ ऊपर उठाकर आर्शीवाद दिया फिर धीरे धीरे अपने रस्ते चली गईं।

अजीब सा मंजर बन गया जहां एक ही परिवार के दो बेटे के प्रति एक बुर्जुग महिला का मनोभाव अलग अलग हैं। एक के लिए प्यार और आर्शीवाद दूसरे के लिए सिर्फ और सिर्फ घृणा ओर कुछ नहीं!

अपश्यु कुछ वक्त तक मूरत जैसा बैठा रहा फ़िर उठकर वहां से थोड़ा दूर जाकर खडा हों गया। सोचा था दान पुण्य करके पाप का बोझ थोड़ा कम करेगा पर हुआ उल्टा एक बुर्जुग की बातों ने उसे एक बार फ़िर से उसके किए दुष्कर्मों को याद करवा दिया। अपने किए पाप कर्मों का बोझ अपश्यु को इतना भारी लगा की उससे वहा खडा न रहा गया। इसलिए वहा से दूर खडा होकर सिर्फ देखना ही बेहतर समझा।

जब तक लोग आते रहें तब तक सभी दान करते रहें। दान लेकर सभी रघु और कमला को अशीष देकर चले गए। दान पुण्य का समापन होते होते अंधेरा हों गया। सभी थक भी चुके थे इसलिए ओर ज्यादा देर करने से घर वापस लौटना बेहतर समझा। सभी जैसे जैसे आए वैसे ही घर को चल दिया। सभी के चेहरे पर थकान दिख रहा था पर उसमे भी एक सुखद अनुभूति नजर आ रहा था। इन्ही में सिर्फ अपश्यु ही एक ऐसा था जिसके चेहरे पर थकान के साथ साथ दुनिया भार का दर्द और उदासी झलक रहा था।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यहां तक साथ बने रहने के लिय बहुत बहुत शुक्रिया। 🙏🙏🙏🙏
 
I

Ishani

Update - 42


घर से कुल देवी मंदिर तक, सफर के दौरान सुकन्या बिना एक शब्द बोले चुप चाप बैठी रहीं। रावण कई बार बात करना चाह पर सुकन्या ने साफ दर्शा दिया रावण उसके लिए एक अनजान शख्स हैं इसलिए उससे बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं हैं। पत्नी का पराए जैसा सलूक करना रावण को अंदर ही अन्दर शूल जैसा चुभा सिर्फ इतना ही नहीं उसे लगा सुकन्या उससे धीरे धीरे दूर ओर दूर होता जा रहा हैं।

रावण खुद को माजधार में फसा उस नाविक जैसा समझने लगा जिसे किनारे तक पहुंचना हैं परंतु कैसे पहुंचे कोई साधन नजर नहीं आ रहा था। इसलिए गुमसुम सा कार के दूसरे कोने में बैठा रहा।

दूसरे कारों में सभी बातों में मशगूल होकर कुलदेवी मंदिर पहुंच गए। एक एक करके सभी कारों से उतरे और मंदिर के प्रांगण में पहुंचे। राजेंद्र को सापरिवार आया देखकर पुरोहित जी बोले... राजा जी पूजा के मूहर्त का समय शुरू होने में अभी कुछ क्षण बाकी हैं तब तक आप सभी हाथ मुंह धोकर आए।

पुरोहित के कहते ही सभी एक एक कर मंदिर के बहार बने सरोवर के पास गए। शुद्ध शीतल जल से तरोंताजा होकर वापस मंदिर प्रांगण में आ गए। सभी को देखकर पुरोहित जी बोले…पहले नव दंपति बैठें फिर उनके पीछे बाकी बचे विवाहित जोड़े में बैठ जाए एवम जो अविवाहित हैं वो चाहें तो पूजा में बैठ सकते हैं।

पुरोहित के कहे अनुसार सभी बैठ गए। सुकन्या को पास सटकर बैठता देख रावण में कुछ आस जगा शायद पूजा संपन्न होने के बाद सुकन्या उससे बात कर ले। क्या होगा ये तो प्रभु ही जानें।

सभी के बैठते ही पूजा विधि शुरू हों गया। जिन जिन विधि से कुल देवी की पूजा नव दंपत्ति से करवाया जाना राजपरिवार का रीत था। वो सभी विधि पुरोहित जी ने रघु और कमला से करवाया। लम्बे समय तक पूजा चलता रहा अंत में हवन आदि होने के बाद पूजा संपन्न हुआ फ़िर पुरोहित जी बोले...राजा जी सभी पूजा विधि संपन्न हो गया हैं अब आप सभी मां चंडी से अपने इच्छा अनुसार मनोकामना पूर्ण होने की आशीष मांगे।

पुरोहित जी के कहने पर सभी एक एक कर देवी प्रतिमा के सामने शीश झुकाकर नमन किया फिर अशीष मांगा।

कमला... हे देवी मुझे आर्शीवाद करें मै पत्नी धर्म को निभा पाऊं, एक अच्छा बहु होने का फर्ज निभाकर सभी का मन जय कर पाऊं, मेरे नए बने परिवार में सभी सुखमय से रहे हमेशा सभी तरक्की के रह पर आगे बढ़ते रहें।

रघु...हे देवी मुझे आर्शीवाद दे मैं पति धर्म के मार्ग से कभी न डगमगाऊ। एक अच्छा पति, भाई, बेटा एक अच्छा इंसान बनकर रह सकूं मेरे परिवार में सभी हसीं ख़ुशी और सुखमाय से रहे।

सुरभि... हे देवी मैं आप'से क्या मांगू बिना मांगे ही अपने सब दे दिया एक अच्छा बेटा दिया एक अच्छी सर्व गुण संपन्न बहु दिया बस आप मेरे परिवार पर कृपा दृष्टि बनाए रखना।

राजेंद्र... हे देवी आप'का दिया सब कुछ मेरे पास हैं फ़िर भी एक विनती है मेरे पूर्वजों का दिया कार्य भार वहन कर पाऊं ऐसा सामर्थ मुझे देना और मेरे परिवार में सभी को साकुशल रखना।

सुकन्या...हे देवी आप खुद जानते हैं अपने मेरे भाग्य में क्या लिखा बस इतनी कृपा करना इससे बूरा ओर मेरे साथ न हों मेरे पति ही मेरा सब कुछ हैं। उन्हें सद्बुद्धि देना वो बूरा मार्ग छोड़कर सत मार्ग पर चले मेरा एक मात्र बेटा अपश्यु कभी अपने बाप जैसा न बनें और मेरे परिवार में कभी किसी के साथ अहित न हों पाए। मैं ऐसा आशीर्वाद आप'से मांगती हूं।

रावण...हे देवी मेरे अपनो और सपनों इन दोनों में से मैं किसे चुनूं कोई रह नजर नहीं आ रहा। मुझे कोई रह दिखाओ बस इतना ही आप'से विनती हैं।

अपश्यु... हे देवी मैंने बहुत से पाप कर्म किया हैं जिसकी शायद ही मुझे माफी मिल पाए फ़िर भी आप मुझे माफ कर देना। मैं बूरा मार्ग छोड़कर सत मार्ग पर चलने की शपथ लिया हैं। जानता हूं मेरा चुना सत मार्ग बहुत कठिन हैं। बस इतनी कृपा करना मैं इस मार्ग पर बिना डिगे चल पाऊं। बस मेरी इतनी सी अर्जी मन लेना।

पुष्पा... हे देवी मेरे बुद्धू अशीष ips बन जाए इतनी कृपा उस पर कर देना बाकि मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए। मेरा परिवार और होने वाला नया परिवार हमेशा खुश रहें। बस इतनी कृपा मुझ पर कर देना।

सभी के मन ने जो चाहा वैसा ही आर्शीवाद देवी से मांगा फ़िर उठकर पुरोहित को नमन किया। इसके बाद जो छोटे थे वे अपने से बड़ों का पैर छूकर आशीर्वाद लिया फिर मंदिर प्रांगण से बहार आ गए।

मुंशी अपने बीबी और बेटे के साथ पधारे अभी कुछ ही देर हुआ था। वे आकर देखा पूजा लगभग समाप्त होने वाला था। इसलिए अंदर न जाकर बहार ही रूक गए। मुंशी को देर से आया देखकर राजेंद्र थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोला... मुंशी तू आया ही क्यों जब पूजा में नहीं बैठ पाया तो तेरे आने का फायदा ही क्या हुआ इससे अच्छा तो तू नहीं आता।

मुंशी राजेंद्र की बात सुनकर थोड़ा सा मुस्कुराया फ़िर राजेंद्र के पास जाते हुए बोला…अरे राजा जी आप इतना गुस्सा क्यों हों रहें हों मैंने कहा था आऊंगा तो आ पहुंचा बस देर से पहुंचा इसकी वजह हमारी कार हैं जो बीच रस्ते में खबर हों गया। कार ठीक करवाने में देर हों गया इसलिए देर से पहुंचा इसमें मेरा कोई दोष नहीं हैं जो भी हुआ सारा दोष कार का हैं।

राजेंद्र... देर से आया तो ख़ुद के बचाव में कोई न कोई बहाना बनाना ही था। गलती खुद किया ओर दोष कार को दे रहा हैं।

पति का बचाव करते हुए उर्वशी टपक से बीच में बोला पड़ी... राजा जी ये सही कह रहे है हमारी कार सच में खराब हों गईं थी। अब आप ही बताएं बिना कार सही करवाए हम कैसे पहुंच पाते।

उर्वशी को पति का पक्ष लेता देखाकर सुरभि तंज भरे लहजे में बोली... हां हां तू तो बोलेगी ही मुंशी भाई साहब तेरा पति हैं पति के बचाव करना बनता हैं।

उर्वशी... मैं सच बोल रहीं ही आप'को यकीन नहीं हों रहा हैं तो, रमन की तरफ देखते हुए बोली... रमन से पूछ कर देखो रमन तो आप'से झूठ नहीं बोलेगा।

राजेंद्र ... अच्छा अच्छा मानता हूं आप और मंशी सही बोल रहे हों अब चलो चलकर कुछ दान पुण्य का काम कर लिया जाएं।

मुंशी…राजा जी जब आ ही गए है तो पहले देवी के दर्शन कर लूं फिर दान पुण्य भी कर लुंगा।

मुंशी की बात सुनकर सभी मंद मंद मुस्कुरा दिए फिर मुंशी परिवार सहित मंदिर के अंदर गए। देवी के सामने शीश नवाकर नमन किया फिर बहार आ गए। जब तक मुंशी बहार नहीं आया तब तक राजेंद्र परिवार सहित खड़ा रहा मुंशी के आते ही सभी साथ में मंदिर के सामने बनी पंडाल में पहुंचे।

राजेंद्र ने ऐलान करवा दिया था कि मंदिर में सभी जरूरत मंद लोगों की जरूरत पूरा किया जाएगा। ये सूचना सुनकर जरूरत मंद लोगों का जमघट पंडाल में लग गया।


राजेंद्र को सापरिवार पंडाल में पधारते ही पंडाल में मौजूद सभी लोग राजेंद्र की जय जयकर करने लग गए। उन्हीं में से कई लोग जो रावण के जुल्मों का शिकार हुआ था। रावण को राजेंद्र के साथ देकर अपने अंदर जमे घृणा को शब्दों के रूप में बहार निकाला।

"आ गया कमीना दिखावा करने अभी दान करेगा बाद में अपने चमचों को भेजकर हमसे छीन लेगा।"

"पापी तू कितना भी देवी के दरबार में माथा टेक ले तेरा पाप कर्म तेरा पीछा कभी नहीं छोड़ने वाला हमारे मन में जितना सम्मन राजा जी के लिए है उतना ही घृणा तेरे लिए हैं।"

राजेंद्र की जय जयकार करने के बाद भीड़ शांत हुआ तब राजेंद्र बोला… मैं और मेरे परिवार हमेशा आप सभी के भाले के लिए सोचा है। दुःख सुख में आप के साथ खड़े रहें हैं। जितना मन सम्मन मैं आप'को देता हूं उतना ही मन सम्मन से आप सभी ने मुझे नवाजा हैं। बहुत समय बाद हमारे महल में खुशियां आई है। हमारे परिवार में एक सदस्य की बड़ोत्री मेरे पुत्र बधु के रूप में हुआ हैं। मेरे परिवार में आई इस खुशी के पल को आप सभी के साथ बाटने आया हूं। थोड़ी ही देर में मेरा पुत्र और पुत्रबधु आप सभी के जरूरत के मुताबिक आप सभी को कुछ दान देंगे आप सभी से निवेदन है आप सभी उस दान को सहस्र स्वीकार करें।

"जी राजा" "जी राजी" की गूंज पूरे वादी में जोर सोर से गूंज उठा। कमला इन गुजती आवाजों को सुनकर पास खड़ा रघु का हाथ कसकर पकड़ लिया जीवन में पहली बार इतने लोगों को एक साथ किसी की जय जयकर करते हुए सन रहीं थीं। वो तय नहीं कर पा रहीं थीं किस तरह का रिएक्ट करें जब समझ नहीं आया तो रघु का हाथ कसकर पकड़ लिया।

कमला का चेहरा घूंघट से ढका हुआ था इसलिए रघु, कमला का चेहरा न देख पाया रघु को लगा कमला शायद इतने लोगों की आवाज़ एक साथ सुनकर डर गई होगी तो कमला के कंधे पर हाथ रखकर बोला...कमला क्या हुआ? डर लग रहा है जो इतना कसके मेरा हाथ पकड़ लिया।

कमला... जी डर नहीं रहीं हूं पहली बार इतने लोगों की आवाज़ एक साथ सूना तो समझ नहीं पाई कैसा रिएक्ट करू।

रघु...कमला अब आदत डाल लो क्योंकि आगे ओर न जानें कितनी बार तुम्हें ऐसी भीड़ की आवाज़ें सुनने को मिलेगा।

कमला सिर्फ हां में मुंडी हिला दिया। इससे आगे कुछ नहीं कहा। पर रघु का हाथ नहीं छोड़ा तब रघु अपना दूसरा हाथ भी कमला के हाथ पर रख दिया। पति का दूसरे हाथ का स्पर्श पाकर कमला घूंघट के अंदर से सिर ऊपर उठकर रघु को देखा और मंद मंद मुस्कुरा दिया।

राजेंद्र के कहने पर दान लेने आये हुए सभी जनता कतार में खड़े हों गए। एक एक कर आते गए। रघु और कमला के हाथों से दान लेते गए। दुआएं दिया ओर अपने अपने रस्ते चले गए।

भीड़ बहुत ज्यादा था सिर्फ कमला और रघु दान करते रहे तो समय बहुत लग जाता इसलिए राजेंद्र के कहने पर बाकि बचे सभी दोनों का हाथ बटाने लग गए।

इतने लोगों के एक साथ दान करने से भिड़ जल्दी जल्दी काम होने लग गया। उन्हीं भीड़ में एक बुजुर्ग महिला लाठी का सहारा लेकर आगे बढ़ रहीं थीं। बुर्जुग महिला जिस कतार में थीं अपश्यु उसी कतार से आ रहे लोगों को दान की चीजे दे रहा था। आगे आते आते बुजुर्ग महिला अपश्यु को देखकर रूक गई।

शायद बुर्जुग महिला अपश्यु के हाथों दान नहीं लेना चहती थी या फ़िर अपश्यु से डर रहीं थीं जो भी हों बुर्जुग महिला आगे बढ़ने से कतरा रहीं थीं। इसलिए थम सी गई। कतार में जल्दी आगे आने की कोशिश के चलते पीछे धक्का मुक्की हुआ। जिसकी चपेट में बुर्जुग महिला आ गईं। खुद को संभाल न पाने की वजह से बुर्जुग महिला सामने की ओर गिर गई।

बुर्जुग महिला को गिरते देखकर। हाथ में उठाया हुआ सामान अपश्यु नीचे रख दिया और तुरंत बुर्जुग महिला के पास पहुंच गया। सहारा देकर बुजुर्ग महिला को उठना चाहा तो बुर्जुग महिला अपश्यु का हाथ हटाकर करकस स्वर में बोली...मैं इतनी भी बेसहारा नहीं हुई हूं कि तुझ जैसा पापी का सहारा लेना पड़े छोड़ मुझे papiiii।

बुर्जुग महिला की दो टूक बाते सूनकर अपश्यु कुछ क्षण के लिए थम सा गया। उसे समझ नहीं आया की बजुर्ग महिला ने उससे ऐसा कहा तो कहा क्यों? जानने की जिज्ञासा मन में लेकर अपश्यु बोला... बूढ़ी मां मैं जनता हूं मैंने बहुत से पाप कर्म किया हैं। पर आप'के साथ तो ऐसा कुछ भी न किया फिर अपने मुझे ऐसा क्यों कहा?

बुजुर्ग महिला एक गहरी सांस लिया फ़िर बोला... पापी तूने पाप कर्म किया वो याद हैं। जिनके साथ किया वो भी शायद याद हैं पर जो तेरे दुष्कर्मों की शिकार बनी उनके परिवार वाले तूझे याद नहीं, तेरे दुष्कर्मों की शिकार बनी एक अबला मेरी एक मात्र सहारा थीं। जिसे तूने मुझ'से छीनकर मुझे बेसहारा कर दिया अब आया दिखावे की सहारा देने छोड़ मुझे तेरे सहारे की जरूरत नहीं हैं।

बुर्जुग महिला के इतना बोलने से अपश्यु बुर्जुग महिला को छोड़कर बेजान मूरत सा बैठ गया। ख़ुद के किए कर्मों को एक बार फ़िर से याद करने लग गया।

कतार में खडा एक बंदा निकलकर आया। बुर्जुग महिला को सहारा देकर उठने में मदद किया। बुर्जुग महिला लाठी का सहारा लेकर धीरे धीर आगे बढ़ गए। अपश्यु बेजान मूरत सा वहीं बैठा रहा।

बुर्जुग महिला धीरे धीरे चलते हुए रघु और कमला के पास पहुंचा। एक वृद्ध महिला को आया देखकर रघु ने पहले उनको दान दिया। दान लेने के बाद बुर्जुग महिला हाथ ऊपर उठाकर आर्शीवाद दिया फिर धीरे धीरे अपने रस्ते चली गईं।

अजीब सा मंजर बन गया जहां एक ही परिवार के दो बेटे के प्रति एक बुर्जुग महिला का मनोभाव अलग अलग हैं। एक के लिए प्यार और आर्शीवाद दूसरे के लिए सिर्फ और सिर्फ घृणा ओर कुछ नहीं!

अपश्यु कुछ वक्त तक मूरत जैसा बैठा रहा फ़िर उठकर वहां से थोड़ा दूर जाकर खडा हों गया। सोचा था दान पुण्य करके पाप का बोझ थोड़ा कम करेगा पर हुआ उल्टा एक बुर्जुग की बातों ने उसे एक बार फ़िर से उसके किए दुष्कर्मों को याद करवा दिया। अपने किए पाप कर्मों का बोझ अपश्यु को इतना भारी लगा की उससे वहा खडा न रहा गया। इसलिए वहा से दूर खडा होकर सिर्फ देखना ही बेहतर समझा।

जब तक लोग आते रहें तब तक सभी दान करते रहें। दान लेकर सभी रघु और कमला को अशीष देकर चले गए। दान पुण्य का समापन होते होते अंधेरा हों गया। सभी थक भी चुके थे इसलिए ओर ज्यादा देर करने से घर वापस लौटना बेहतर समझा। सभी जैसे जैसे आए वैसे ही घर को चल दिया। सभी के चेहरे पर थकान दिख रहा था पर उसमे भी एक सुखद अनुभूति नजर आ रहा था। इन्ही में सिर्फ अपश्यु ही एक ऐसा था जिसके चेहरे पर थकान के साथ साथ दुनिया भार का दर्द और उदासी झलक रहा था।



आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यहां तक साथ बने रहने के लिय बहुत बहुत शुक्रिया। 🙏🙏🙏🙏
आपश्यू के झूठे कसमें वादों से
आपश्यू के जलते सुलगते ख्वाबों से
आपश्यू की बे-रहम दुआओं से
नफरत करती रहेगी वो बुजुर्ग महिला
जब तक है जान
जब तक है जान. 🤭
 
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Mast fadu update tha par raghu aur kamla ke bich romance scene nahi dikha rha hai destiny bhai. udhar sali dimple bhi confused thi. usko dukh bhi hai . yarr meko le lete story me . tab to itna kuch complex aata hi nai uski life me :D usko me sambhal leta, khyal bhi rkhtaa 😘
aur sarla ji ki shaadi ush nalle apshyu se kara dete hai... phir to saari jhanjhat hi khatam..... :roflol:
 
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Update - 41


रघु के बैठक में पहुंचते ही मां और चाची उसे देखते ही खिली उड़ने के तर्ज पर हंसने लग गई। सिर खुजाते हुए रघु भी जाकर बैठ गया। रघु के बैठते ही मां और चाची का खिलखिलाकर हंसना तेज और तेज होता गया। रघु बस सिर खुजाते हुए मां और चाची को हंसते हुए देखता रहा। अचानक रघु को न जानें किया सूझा रघु भी खिलखिलाकर मां और चाची के साथ ताल से ताल मिलाकर हंसने लग गया। कुछ देर तक तीनों जी भारकर हंसा फिर सुरभि बोली... रघु तूझे किया हुआ बेवजह हंसता ही जा रहा हैं। बावला तो न हों गया।

सुरभि के बोलते ही एक बार फिर से तीनों खिलखिलाकर हंस दिया। सुकन्या किसी तरह खुद पर काबू पाया फिर बोली... रघु हम हंस रहे हैं उसके पीछे वजह हैं पर तू क्यों बावलों की तरह हंसा जा रहा हैं।

छोटी मां की बाते सूनकर रघु खुद को काबू में लाया फ़िर बोला…छोटी मां हंसने के लिए कोई वजह नहीं चाहिए होता हैं फिर भी आप जानना चाहती हों तो, सुनो आप दोनों जिस वजह से हंस रही थीं मेरे भी हंसने की वजह वहीं हैं।

सुरभि...तू भी न raghuu ख़ुद पर कोई हंसता हैं। तू तो सच में वाबला हों गया हैं।

सुकन्या... रघु वाबलापन की हद होती हैं। इतना भी क्या बावला होना कि खुद की खिली खुद ही उड़ाई जाएं।

रघु... छोटी मां मैं कौन सा बहार वालों के सामने ख़ुद की खिली उड़ा रहा हूं। आप दोनों मेरी मां हों मां के सामने ख़ुद की खिली उड़ने में हर्ज ही किया हैं।

पुष्पा और कमला तक भी इन तीनों के खिलखिलाने की आवाज़ पहूंच गया तो दोनों जल्दी जल्दी बैठक में आ गए। सुरभि और सुकन्या में से कोई कुछ बोलती उससे पहले पुष्पा भौंहे हिलाते हुए बोली...किस बात पर इतनी खिलखिलाई जा रहीं हैं सास नहीं हैं इसका मतलब ये थोडी की खिलखिलाकर जमाने को सुनाई जाए। दादी भी न ऊपर जाने की इतनी क्या जल्दी थी। गई तो गई जानें से पहले, अपने दोनों बहुओं को अच्छे से टाईट दे जाती पर नहीं वो तो अपने दोनों बहुओं को सिर चढ़कर रखती थीं अब देखो नतीजा शर्म लिहाज भुलकर बत्तीसी फाड़ हंसी हंसकर जमाने को सूना रही हैं।

पुष्पा की बाते सूनकर सुरभि और सुकन्या कुछ पल के लिए रूक गईं पर पुष्पा के बोलने की अदा देखकर फिर से हंस दिया और सुरभि उठते हुए बोली…मेरी सास की बुराई करती है। रूक तूझे अभी बाती हूं मेरी सास कैसी थी।

मां को उठते देखकर पुष्पा बोला...जरूरत नहीं हैं उठने की जब देखो मेरे कान के पीछे ही पड़ी रहती हों। मेरी कान उमेठ उमेठ कर इतनी लंबी कर दिया क्या ही बताऊं कितनी लंबी कर दिया।

बेटी की बाते सूनकर सुरभि मुस्कुरा दिया फ़िर बैठ गईं। कमला रघु को पानी देकर सामने जाकर बैठ गई। रघु पानी पीकर कुछ देर बैठा रहा फ़िर रूम में चल दिया। रघु को जाते देखकर कमला बोली...आप'के कपड़े निकलकर बेड पर रख दिया हैं हाथ मुंह धोकर वही पहन लेना।

रघु बस मुस्कुराकर देखा ओर चला गया। एक बार फिर से घर की चारों महिलाएं बातों में रम गई किंतु इस बार बातों का मुद्दा कुछ ओर ही था।

सुरभि...बहु कल जब तक पूजा न हों जाएं तब तक तुम्हें और रघु को उपवास रखना हैं। ना कुछ खाओगी न कुछ पियोगी साथ ही खुद पर थोड़ा संयम भी रखोगी समझ गए, मैंने किया बोला।

कमला सभी बाते समझ गई पर संयम की बात समझने के लिए दिमाग पर जोर दिया तब उसे समझ आया कि संयम किस लिए रखने को कहा जा रहा हैं तो शर्माकर सिर झुका लिया फिर बोली... जी मम्मी जी समझ गई आप कहना क्या चाहती हों।

सुकन्या...दीदी पूजा में बहुत टाईम लगने वाला हैं इसलिए हमे कल जितना जल्दी हों सके निकला होगा।

सुरभि...हां सुबह हम जल्दी ही निकलेंगे। फिर कमला से बोली...बहु कल तुम दुल्हन के जोड़े में सुबह जल्दी से तैयार हों जाना मुझे कहना न पड़े।

कमला... जी मम्मी जी।

इसके बाद कुछ और बातें होती हैं। बातों बातों में रात हों गई। रात का खाना खाकर सभी अपने अपने रूम में चले गए। रघु कुछ ज्यादा ही उतावला होंने लगा। इसलिए कमला से लिपटा झपटी करने लग गया। कमला उसे रोकने लगी खुद से दूर करने की जतन करने लगीं पर रघु मान ही नहीं रहा था। तब कमला बोली...बस आज भार रूक जाओ न।

रघु...क्या हुआ कमला कोई परेशानी हैं जो तुम मुझे रोक रहीं हों। क्या तुम्हारा मन नहीं हैं।

कमला...मन हैं पर कल पूजा है इसलिए मम्मी जी ने संयम रखने के लिए कहा हैं।

रघु...Ooo ये बात हैं तो तुम मुझे पहले ही बता देती मैं तुम्हें इतना परेशान न करता।

इतना कहाकर रघु कमला को बाहों में भारकर लेटने लगा तो कमला फ़िर से बोली...नहीं नहीं ऐसे नहीं आज हम अलग अलग सोएंगे।

रघु...कमला तुम्हें मुझ पर इतना भी भरोसा नहीं की मैं ख़ुद पर संयम रख पाऊंगा।

कमला...आप पर पूरा भरोसा हैं। खुद पर नहीं कही मैं बहक न जाऊ इसलिए ऐसा कहा आप बूरा न माने।

रघु...मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगा जिससे तुम बहक जाओ समझी अब चुप चाप सो जाओ।

इतना कहकर कमला का सिर छीने पर रखकर कमला के इर्द गिर्द बाहों का हार डाल दिया। कमला कुछ वक्त तक रघु के आंखों में देखती रहीं फिर आंखें बन्द कर लिया। कमला के माथे पर एक चुम्बन अंकित कर रघु भी आंखें बन्द कर लिया। कुछ वक्त में दोनो पति पत्नि चैन की नींद सो गए।

इधर अपश्यु बेचैन सा बार बार डिम्पल को कॉल किए जा रहा था पर डिंपल है की कॉल रिसीव ही नहीं कर रहीं थीं। थक हरकर कॉल करना छोड़ दिया फ़िर बेड पर लेट गया। नींद आ नहीं रहा था। बेचैनी सा होना लगा। बैचैनी का करण डिंपल थीं। डिंपल से बात नहीं हों पाया इस पर सोचते हुए खुद से बोला... डिंपल को हो किया गया फ़ोन क्यों नहीं उठा रहीं हैं। इतना भी कोई रूठता हैं की बात ही न करें, मेरी तो फिक्र ही नहीं हैं बात करने को तड़प रहा हूं और डिंपल बात करने को राजी ही ना हों रही हैं।

इतना बोलकर अपश्यु एक गहरी सांस लिया फ़िर बोला…मैं क्यों इतना तड़प रहा हूं पहले तो कभी किसी लड़की से मिलने बात करने के लिए इतना नहीं तड़पा फ़िर डिंपल से बात करने को इतना क्यों तड़प रहा हूं। कहीं मैं….।

इतना बोलकर अपश्यु रूक गया आगे आने वाले शब्दों को सोचकर मंद मंद मुस्कुरा दिया फ़िर बोला...कहीं मुझे डिंपल से प्यार तो न हों गया। Haaa शायद मुझे डिंपल से प्यार हों गया होगा।

इतना बोलकर अपश्यु के लवों पर आ रही मंद मंद मुस्कान ओर गहरा हों गया। बगल में रखा तकिया उठाकर छीने से चिपका लिया फिर इधर उधर अलटी पलटी लेने लग गया। अलटी पलटी लेते हुए डिंपल से हुई मुलाकात से लेकर डिंपल के साथ बिताए एक एक पल को याद करने लग गया।

डिंपल के साथ बिताए उन पलों को याद करने के दौरान अपश्यु वाबलो की तरह मुस्कुराए जा रहा था। एकाएक न जानें क्या याद आ गया। मंद मंद मुस्कान लवों से गायब हों गया और गंभीर भाव चेहरे पर आ गया। गम्भीर भाव चेहरे पर लिए अपश्यु खुद से बोला...मुझे डिंपल से प्यार हों गया तो क्या डिंपल भी मुझसे प्यार करने लगीं हैं। कैसे पता करु कुछ समझ नहीं आ रहा है। आगर डिंपल भी मुझसे प्यार करने लगीं हैं तो जब उसे पता चलेगा की मैं कितना बूरा लड़का हैं तब किया करेंगी क्या मुझे दुत्कार देगी या मुझे अपना लेगी। हे प्रभो ये किस उलझन में फस गया हूं। पहले से क्या कम उलझन थी जो एक ओर उलझन आकर खडा हों गया क्या करूं कौन सी उलझन पहले सुलझाऊ। साला लाईफ भी अजीब ही मोड़ पर आकर खडा हों गया हैं। जब बूरा काम करता था तो कोई उलझन नज़र नहीं आया जब से सही रस्ते पर चलना शुरू किया तभी से उलझन ही उलझन दिखाई दे रहा हैं। इतनी उलझन कैसे सुलझाऊं।

इतनी बाते खुद से कहाकर अपश्यु उठकर बैठ गया। कुछ देर बैठा रहा बैठें बैठे अपने किए दुष्कर्म को याद करने लग गया। जितना याद करता जा रहा था उतना ही उसे लग रहा था जैसे अलग अलग आवाजे सुनाई दे रहा हों कोई आवाज कह रहा है...मलिक मुझे जानें दो क्यों मुझे बर्बाद कर रहें हों मैं आप'की बहन जैसी हूं। छोड़ दो ऐसा न करों मैं किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहूंगी।

फिर एक आवाज अपश्यु को सुनाई दिया जो उसे खुद की आवाज जैसा लगा जो दानवीय हंसी हंसकर बोला...haaaa haaa haaaa तू और मेरी बहन तू मेरी बहन नहीं हैं एक साधारण लड़की हैं जो सिर्फ और सिर्फ एक खिलौना हैं और कुछ नहीं आज मैं इस खिलौना से जी भरकर खेलूंगा।

फिर अपश्यु को एक दर्दनाक चीख सुनाई दिया इसके बाद तो मानो अपश्यु को सिर्फ दर्दनाक चीखे और दनवीय हंसी सुनाई देने लग गया। एक के बाद एक मरमाम चीखे बढ़ता और बढ़ता जा रहा था। जितनी चीखे बढ़ रहा था उतनी ही दानवीय हंसी बढ़ता हुआ सुनाई देने लगा। अपश्यु इन आवाज़ों को सहन नहीं कर पाया और सिर पकड़कर बैठ गया।

सिर में दर्द असहनीय होने लगा शायद इतना सिर दर्द कभी अपश्यु ने महसूस ही न किया होगा। अपश्यु को लग रहा था जैसे कोई नुकीला चीज से सिर में तेज तेज बार किया जा रहा हों। जब सिर दर्द सहन सीमा को पार कर गया तब अपश्यु दोनों हाथों से सिर को पकड़कर इतने ताकत से दबाया। कोई नर्म चीज होता तो पिचक गया होता। बरहाल बहुत वक्त तक अपश्यु सिर में हों रहें असहनीय दर्द को आंसु बहाते हुए बर्दास्त करता रहा फ़िर धीरे धीरे दर्द थोड़ा कम हुआ। तब अपश्यु उठकर बेड के बगल में रखा मेज का दराज खोलकर एक डब्बा निकलकर एक टेबलेट गले से नीचे उतरा फिर पानी पीकर लेट गया। कुछ वक्त इधर उधर करवट बदला फिर स्वतः ही नींद की वादी में खो गया।

महल में किसी को जानकारी नहीं हुआ अपश्यु बंद कमरे में किन परिस्थितियों से गुजरा, ख़ुद से लड़ा फिर एक टेबलेट लेकर चुप चाप बिना आवाज किए सो गया।

भोर के समय कमला नींद से जागी तो देखा जैसे रात में पति के छीने पर सिर रखकर सोई थी वैसे ही सोकर पूरी रात गुजार दिया। मंद मंद लुभानी सी मुस्कान से मुस्कुराकर रघु के बाहुपाश से खुद को आज़ाद किया फिर उठकर बैठ गई। कुछ देर रघु के चेहरे को एकटक देखती रहीं फ़िर अचानक रघु के चेहरे पर झुका खुद के होंठों को रघु के होंठो के पास लेकर गई ओर रूक गई। कुछ देर रुकी रहीं फ़िर होंठो की दिशा को बदलकर रघु के गाल पर एक किस्स करके झटपट उठ गई।

अलमारी से कपड़े निकलकर बॉथरूम में घुस गई। दैनिक क्रिया करके कुछ वक्त में बॉथरूम से बहार निकलकर आई फ़िर रघु को आवाज़ दिया…ओ जी उठो न सुबह हों गई हैं।

रघु बस थोड़ा सा हिला फिर करवट बदलकर वैसे ही पड़ा रहा। एक बार फिर से कमला ने रघु को तेज तेज हिलाते डुलाते हुए आवाज दिया। तब रघु कुनमुनते हुए बोला...क्या हुआ कमला सोने दो न बहुत नींद आ रहा हैं।

कमला...नहीं बिल्कुल नहीं जल्दी से उठकर तैयार हों जाइए। हमे आज कुलदेवी मंदिर जाना हैं। तैयार होने में लेट हों गए तो मम्मी जी आप'को और मुझे बहुत डाटेंगी। क्या आप चाहते है मैं आप'की वजह से, मम्मी जी से डांट सुनूं तो ठीक है आप सोते रहो।

कमला की इतनी बाते सुनकर रघु अंगड़ाई लेते हुए उठकर बैठ गया फ़िर बोला...कमला मैं कभी ऐसा होने नहीं दुंगा की तुम्हें मेरे करण मां या किसी ओर से डांट सुनना पड़े।

कमला एक खिला सा मुस्कान चेहरे पर सजाकर बोली... जाइए फिर जल्दी से फ्रेश होकर नहा धोकर आइए।

रघु तुरंत उठा ओर बॉथरूम में घूस गया। कमला रघु के कपड़े निकलकर बेड पर रख दिया फिर दुल्हन का जोड़ा निकलकर तैयार होने लग गई। कमला तैयार हों ही रही थी की बहार से एक आवाज़ आई... बहु उठ गई की नहीं!

बहार से आवाज़ देने वाली सुरभि थी। सास की आवाज़ सुनकर कमला बोली...जी मम्मी जी उठ गई। तैयार हों रही हूं।

सुरभि…ठीक हैं जल्दी से तैयार होकर नीचे आओ।

कमला... मम्मी जी मैं लगभग तैयार हों गई हूं आप'के बेटे के तैयार होते ही हम आ जाएंगे।

सुरभि ठीक है कहाकर चली गई। कुछ देर में रघु बॉथरूम से निकलकर आया। कमला को दुल्हन के लिवास में तैयार देखकर रघु बोला...Oooo कमला दुल्हन की लिवास में तुम इतनी खुबसूरत लगती हों मेरा मन करता हैं बस तुम्हें देखता ही रहूं।

इतना बोलाकर रघु एकटक कमला को निहारने लग गया। कुछ वक्त तक रघु को देखने दिया फ़िर कमला बोली…मुझे देखकर मन भार गया हों तो जल्दी से तैयार हों लीजिए मम्मी जी बुलाकर गए हैं देर हों गई तो डांट पड़ जाएगी।

रघु धीरे से बोला...बीबी परम सुंदरी मिला है पर जी भरके देखने भी नहीं देती।

कमला... क्या बोला जरा तेज आवाज़ में बोलिए।

रघु... मैंने कह कुछ बोला मैंने तो कुछ बोला ही नहीं लगाता है तुम्हारे कान बज रहा हैं।

इतना बोलकर रघु तैयार होने लग गया। कमला बस मुस्कुराती रह गई। बरहाल कुछ वक्त में रघु तैयार हो गया फिर दोनों बहार आ गए। निचे लगभग सभी तैयार हों गए थे। जो रह गए थे उनके आते ही पुष्पा बोली... मां मैं भईया और भाभी के साथ जाऊंगी।

अपश्यु को न जानें किया सूजा उसने बोला...बड़ी मां क्या मैं आप'के साथ जा सकता हूं।

सुरभि... ठीक हैं चल देना अब हमे चला चाहिए।

सुरभि के बोलते ही सभी अपने अपने तय कार में बैठ गए। एक कार में रघु , कमला और पुष्पा बैठ कर चल दिया। दूसरी कार में सुरभि अपश्यु के साथ पीछे बैठी और राजेंद्र सामने की सीट पर बैठकर चल दिया। तीसरी कर में रावण और सुकन्या बैठ गई। सुकन्या रावण से दूरी बनाकर बैठ गई। एक के पीछे एक कार चल दिया।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏🙏
Destiny sahab pur jor koshish kar rahe hai ki kaise bhi karke aur bhi aur sukanya door door rakha jaaye........ :bat: un teeno kamine kamini raghu, kamla aur pushpa ko baar baar surbhi aur sukanya ke bich laane ki koshish kar rahe hai.... Koi naa koi wajah dikha ke..... taaki dono ko privacy naa mil paaye...bahot buri baat Destiny sahab... :bat:

Update ke dusre part ko padhkar kaleje ko badi thandak mili hai.....
aise hi...bilkul aise hi thadpna chaahiye is kamine haramjade apshyu ko..... ye insaan kehlaane ke bhi laayak nahi..... are itni logo zindagiyaan barbaad kar di.... itni majlum dukhiyari auraton aur ladkiyon ki ijjat aur aabru lut li..... isko to aise jalna hai ab...... I think ish apshyu ko to jaake kisi gande naale mein khud ke dub marna chaahiye..... dmm-1
Khair shaandaar update, shaandaar lekhni aur shaandaar shabdon ka chayan....

Let's see what happens next..
Brilliant update with awesome writing skills.... :clapping: :clapping:
 
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Update - 42


घर से कुल देवी मंदिर तक, सफर के दौरान सुकन्या बिना एक शब्द बोले चुप चाप बैठी रहीं। रावण कई बार बात करना चाह पर सुकन्या ने साफ दर्शा दिया रावण उसके लिए एक अनजान शख्स हैं इसलिए उससे बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं हैं। पत्नी का पराए जैसा सलूक करना रावण को अंदर ही अन्दर शूल जैसा चुभा सिर्फ इतना ही नहीं उसे लगा सुकन्या उससे धीरे धीरे दूर ओर दूर होता जा रहा हैं।

रावण खुद को माजधार में फसा उस नाविक जैसा समझने लगा जिसे किनारे तक पहुंचना हैं परंतु कैसे पहुंचे कोई साधन नजर नहीं आ रहा था। इसलिए गुमसुम सा कार के दूसरे कोने में बैठा रहा।

दूसरे कारों में सभी बातों में मशगूल होकर कुलदेवी मंदिर पहुंच गए। एक एक करके सभी कारों से उतरे और मंदिर के प्रांगण में पहुंचे। राजेंद्र को सापरिवार आया देखकर पुरोहित जी बोले... राजा जी पूजा के मूहर्त का समय शुरू होने में अभी कुछ क्षण बाकी हैं तब तक आप सभी हाथ मुंह धोकर आए।

पुरोहित के कहते ही सभी एक एक कर मंदिर के बहार बने सरोवर के पास गए। शुद्ध शीतल जल से तरोंताजा होकर वापस मंदिर प्रांगण में आ गए। सभी को देखकर पुरोहित जी बोले…पहले नव दंपति बैठें फिर उनके पीछे बाकी बचे विवाहित जोड़े में बैठ जाए एवम जो अविवाहित हैं वो चाहें तो पूजा में बैठ सकते हैं।

पुरोहित के कहे अनुसार सभी बैठ गए। सुकन्या को पास सटकर बैठता देख रावण में कुछ आस जगा शायद पूजा संपन्न होने के बाद सुकन्या उससे बात कर ले। क्या होगा ये तो प्रभु ही जानें।

सभी के बैठते ही पूजा विधि शुरू हों गया। जिन जिन विधि से कुल देवी की पूजा नव दंपत्ति से करवाया जाना राजपरिवार का रीत था। वो सभी विधि पुरोहित जी ने रघु और कमला से करवाया। लम्बे समय तक पूजा चलता रहा अंत में हवन आदि होने के बाद पूजा संपन्न हुआ फ़िर पुरोहित जी बोले...राजा जी सभी पूजा विधि संपन्न हो गया हैं अब आप सभी मां चंडी से अपने इच्छा अनुसार मनोकामना पूर्ण होने की आशीष मांगे।

पुरोहित जी के कहने पर सभी एक एक कर देवी प्रतिमा के सामने शीश झुकाकर नमन किया फिर अशीष मांगा।

कमला... हे देवी मुझे आर्शीवाद करें मै पत्नी धर्म को निभा पाऊं, एक अच्छा बहु होने का फर्ज निभाकर सभी का मन जय कर पाऊं, मेरे नए बने परिवार में सभी सुखमय से रहे हमेशा सभी तरक्की के रह पर आगे बढ़ते रहें।

रघु...हे देवी मुझे आर्शीवाद दे मैं पति धर्म के मार्ग से कभी न डगमगाऊ। एक अच्छा पति, भाई, बेटा एक अच्छा इंसान बनकर रह सकूं मेरे परिवार में सभी हसीं ख़ुशी और सुखमाय से रहे।

सुरभि... हे देवी मैं आप'से क्या मांगू बिना मांगे ही अपने सब दे दिया एक अच्छा बेटा दिया एक अच्छी सर्व गुण संपन्न बहु दिया बस आप मेरे परिवार पर कृपा दृष्टि बनाए रखना।

राजेंद्र... हे देवी आप'का दिया सब कुछ मेरे पास हैं फ़िर भी एक विनती है मेरे पूर्वजों का दिया कार्य भार वहन कर पाऊं ऐसा सामर्थ मुझे देना और मेरे परिवार में सभी को साकुशल रखना।

सुकन्या...हे देवी आप खुद जानते हैं अपने मेरे भाग्य में क्या लिखा बस इतनी कृपा करना इससे बूरा ओर मेरे साथ न हों मेरे पति ही मेरा सब कुछ हैं। उन्हें सद्बुद्धि देना वो बूरा मार्ग छोड़कर सत मार्ग पर चले मेरा एक मात्र बेटा अपश्यु कभी अपने बाप जैसा न बनें और मेरे परिवार में कभी किसी के साथ अहित न हों पाए। मैं ऐसा आशीर्वाद आप'से मांगती हूं।

रावण...हे देवी मेरे अपनो और सपनों इन दोनों में से मैं किसे चुनूं कोई रह नजर नहीं आ रहा। मुझे कोई रह दिखाओ बस इतना ही आप'से विनती हैं।

अपश्यु... हे देवी मैंने बहुत से पाप कर्म किया हैं जिसकी शायद ही मुझे माफी मिल पाए फ़िर भी आप मुझे माफ कर देना। मैं बूरा मार्ग छोड़कर सत मार्ग पर चलने की शपथ लिया हैं। जानता हूं मेरा चुना सत मार्ग बहुत कठिन हैं। बस इतनी कृपा करना मैं इस मार्ग पर बिना डिगे चल पाऊं। बस मेरी इतनी सी अर्जी मन लेना।

पुष्पा... हे देवी मेरे बुद्धू अशीष ips बन जाए इतनी कृपा उस पर कर देना बाकि मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए। मेरा परिवार और होने वाला नया परिवार हमेशा खुश रहें। बस इतनी कृपा मुझ पर कर देना।

सभी के मन ने जो चाहा वैसा ही आर्शीवाद देवी से मांगा फ़िर उठकर पुरोहित को नमन किया। इसके बाद जो छोटे थे वे अपने से बड़ों का पैर छूकर आशीर्वाद लिया फिर मंदिर प्रांगण से बहार आ गए।

मुंशी अपने बीबी और बेटे के साथ पधारे अभी कुछ ही देर हुआ था। वे आकर देखा पूजा लगभग समाप्त होने वाला था। इसलिए अंदर न जाकर बहार ही रूक गए। मुंशी को देर से आया देखकर राजेंद्र थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोला... मुंशी तू आया ही क्यों जब पूजा में नहीं बैठ पाया तो तेरे आने का फायदा ही क्या हुआ इससे अच्छा तो तू नहीं आता।

मुंशी राजेंद्र की बात सुनकर थोड़ा सा मुस्कुराया फ़िर राजेंद्र के पास जाते हुए बोला…अरे राजा जी आप इतना गुस्सा क्यों हों रहें हों मैंने कहा था आऊंगा तो आ पहुंचा बस देर से पहुंचा इसकी वजह हमारी कार हैं जो बीच रस्ते में खबर हों गया। कार ठीक करवाने में देर हों गया इसलिए देर से पहुंचा इसमें मेरा कोई दोष नहीं हैं जो भी हुआ सारा दोष कार का हैं।

राजेंद्र... देर से आया तो ख़ुद के बचाव में कोई न कोई बहाना बनाना ही था। गलती खुद किया ओर दोष कार को दे रहा हैं।

पति का बचाव करते हुए उर्वशी टपक से बीच में बोला पड़ी... राजा जी ये सही कह रहे है हमारी कार सच में खराब हों गईं थी। अब आप ही बताएं बिना कार सही करवाए हम कैसे पहुंच पाते।

उर्वशी को पति का पक्ष लेता देखाकर सुरभि तंज भरे लहजे में बोली... हां हां तू तो बोलेगी ही मुंशी भाई साहब तेरा पति हैं पति के बचाव करना बनता हैं।

उर्वशी... मैं सच बोल रहीं ही आप'को यकीन नहीं हों रहा हैं तो, रमन की तरफ देखते हुए बोली... रमन से पूछ कर देखो रमन तो आप'से झूठ नहीं बोलेगा।

राजेंद्र ... अच्छा अच्छा मानता हूं आप और मंशी सही बोल रहे हों अब चलो चलकर कुछ दान पुण्य का काम कर लिया जाएं।

मुंशी…राजा जी जब आ ही गए है तो पहले देवी के दर्शन कर लूं फिर दान पुण्य भी कर लुंगा।

मुंशी की बात सुनकर सभी मंद मंद मुस्कुरा दिए फिर मुंशी परिवार सहित मंदिर के अंदर गए। देवी के सामने शीश नवाकर नमन किया फिर बहार आ गए। जब तक मुंशी बहार नहीं आया तब तक राजेंद्र परिवार सहित खड़ा रहा मुंशी के आते ही सभी साथ में मंदिर के सामने बनी पंडाल में पहुंचे।

राजेंद्र ने ऐलान करवा दिया था कि मंदिर में सभी जरूरत मंद लोगों की जरूरत पूरा किया जाएगा। ये सूचना सुनकर जरूरत मंद लोगों का जमघट पंडाल में लग गया।


राजेंद्र को सापरिवार पंडाल में पधारते ही पंडाल में मौजूद सभी लोग राजेंद्र की जय जयकर करने लग गए। उन्हीं में से कई लोग जो रावण के जुल्मों का शिकार हुआ था। रावण को राजेंद्र के साथ देकर अपने अंदर जमे घृणा को शब्दों के रूप में बहार निकाला।

"आ गया कमीना दिखावा करने अभी दान करेगा बाद में अपने चमचों को भेजकर हमसे छीन लेगा।"

"पापी तू कितना भी देवी के दरबार में माथा टेक ले तेरा पाप कर्म तेरा पीछा कभी नहीं छोड़ने वाला हमारे मन में जितना सम्मन राजा जी के लिए है उतना ही घृणा तेरे लिए हैं।"

राजेंद्र की जय जयकार करने के बाद भीड़ शांत हुआ तब राजेंद्र बोला… मैं और मेरे परिवार हमेशा आप सभी के भाले के लिए सोचा है। दुःख सुख में आप के साथ खड़े रहें हैं। जितना मन सम्मन मैं आप'को देता हूं उतना ही मन सम्मन से आप सभी ने मुझे नवाजा हैं। बहुत समय बाद हमारे महल में खुशियां आई है। हमारे परिवार में एक सदस्य की बड़ोत्री मेरे पुत्र बधु के रूप में हुआ हैं। मेरे परिवार में आई इस खुशी के पल को आप सभी के साथ बाटने आया हूं। थोड़ी ही देर में मेरा पुत्र और पुत्रबधु आप सभी के जरूरत के मुताबिक आप सभी को कुछ दान देंगे आप सभी से निवेदन है आप सभी उस दान को सहस्र स्वीकार करें।

"जी राजा" "जी राजी" की गूंज पूरे वादी में जोर सोर से गूंज उठा। कमला इन गुजती आवाजों को सुनकर पास खड़ा रघु का हाथ कसकर पकड़ लिया जीवन में पहली बार इतने लोगों को एक साथ किसी की जय जयकर करते हुए सन रहीं थीं। वो तय नहीं कर पा रहीं थीं किस तरह का रिएक्ट करें जब समझ नहीं आया तो रघु का हाथ कसकर पकड़ लिया।

कमला का चेहरा घूंघट से ढका हुआ था इसलिए रघु, कमला का चेहरा न देख पाया रघु को लगा कमला शायद इतने लोगों की आवाज़ एक साथ सुनकर डर गई होगी तो कमला के कंधे पर हाथ रखकर बोला...कमला क्या हुआ? डर लग रहा है जो इतना कसके मेरा हाथ पकड़ लिया।

कमला... जी डर नहीं रहीं हूं पहली बार इतने लोगों की आवाज़ एक साथ सूना तो समझ नहीं पाई कैसा रिएक्ट करू।

रघु...कमला अब आदत डाल लो क्योंकि आगे ओर न जानें कितनी बार तुम्हें ऐसी भीड़ की आवाज़ें सुनने को मिलेगा।

कमला सिर्फ हां में मुंडी हिला दिया। इससे आगे कुछ नहीं कहा। पर रघु का हाथ नहीं छोड़ा तब रघु अपना दूसरा हाथ भी कमला के हाथ पर रख दिया। पति का दूसरे हाथ का स्पर्श पाकर कमला घूंघट के अंदर से सिर ऊपर उठकर रघु को देखा और मंद मंद मुस्कुरा दिया।

राजेंद्र के कहने पर दान लेने आये हुए सभी जनता कतार में खड़े हों गए। एक एक कर आते गए। रघु और कमला के हाथों से दान लेते गए। दुआएं दिया ओर अपने अपने रस्ते चले गए।

भीड़ बहुत ज्यादा था सिर्फ कमला और रघु दान करते रहे तो समय बहुत लग जाता इसलिए राजेंद्र के कहने पर बाकि बचे सभी दोनों का हाथ बटाने लग गए।

इतने लोगों के एक साथ दान करने से भिड़ जल्दी जल्दी काम होने लग गया। उन्हीं भीड़ में एक बुजुर्ग महिला लाठी का सहारा लेकर आगे बढ़ रहीं थीं। बुर्जुग महिला जिस कतार में थीं अपश्यु उसी कतार से आ रहे लोगों को दान की चीजे दे रहा था। आगे आते आते बुजुर्ग महिला अपश्यु को देखकर रूक गई।

शायद बुर्जुग महिला अपश्यु के हाथों दान नहीं लेना चहती थी या फ़िर अपश्यु से डर रहीं थीं जो भी हों बुर्जुग महिला आगे बढ़ने से कतरा रहीं थीं। इसलिए थम सी गई। कतार में जल्दी आगे आने की कोशिश के चलते पीछे धक्का मुक्की हुआ। जिसकी चपेट में बुर्जुग महिला आ गईं। खुद को संभाल न पाने की वजह से बुर्जुग महिला सामने की ओर गिर गई।

बुर्जुग महिला को गिरते देखकर। हाथ में उठाया हुआ सामान अपश्यु नीचे रख दिया और तुरंत बुर्जुग महिला के पास पहुंच गया। सहारा देकर बुजुर्ग महिला को उठना चाहा तो बुर्जुग महिला अपश्यु का हाथ हटाकर करकस स्वर में बोली...मैं इतनी भी बेसहारा नहीं हुई हूं कि तुझ जैसा पापी का सहारा लेना पड़े छोड़ मुझे papiiii।

बुर्जुग महिला की दो टूक बाते सूनकर अपश्यु कुछ क्षण के लिए थम सा गया। उसे समझ नहीं आया की बजुर्ग महिला ने उससे ऐसा कहा तो कहा क्यों? जानने की जिज्ञासा मन में लेकर अपश्यु बोला... बूढ़ी मां मैं जनता हूं मैंने बहुत से पाप कर्म किया हैं। पर आप'के साथ तो ऐसा कुछ भी न किया फिर अपने मुझे ऐसा क्यों कहा?

बुजुर्ग महिला एक गहरी सांस लिया फ़िर बोला... पापी तूने पाप कर्म किया वो याद हैं। जिनके साथ किया वो भी शायद याद हैं पर जो तेरे दुष्कर्मों की शिकार बनी उनके परिवार वाले तूझे याद नहीं, तेरे दुष्कर्मों की शिकार बनी एक अबला मेरी एक मात्र सहारा थीं। जिसे तूने मुझ'से छीनकर मुझे बेसहारा कर दिया अब आया दिखावे की सहारा देने छोड़ मुझे तेरे सहारे की जरूरत नहीं हैं।

बुर्जुग महिला के इतना बोलने से अपश्यु बुर्जुग महिला को छोड़कर बेजान मूरत सा बैठ गया। ख़ुद के किए कर्मों को एक बार फ़िर से याद करने लग गया।

कतार में खडा एक बंदा निकलकर आया। बुर्जुग महिला को सहारा देकर उठने में मदद किया। बुर्जुग महिला लाठी का सहारा लेकर धीरे धीर आगे बढ़ गए। अपश्यु बेजान मूरत सा वहीं बैठा रहा।

बुर्जुग महिला धीरे धीरे चलते हुए रघु और कमला के पास पहुंचा। एक वृद्ध महिला को आया देखकर रघु ने पहले उनको दान दिया। दान लेने के बाद बुर्जुग महिला हाथ ऊपर उठाकर आर्शीवाद दिया फिर धीरे धीरे अपने रस्ते चली गईं।

अजीब सा मंजर बन गया जहां एक ही परिवार के दो बेटे के प्रति एक बुर्जुग महिला का मनोभाव अलग अलग हैं। एक के लिए प्यार और आर्शीवाद दूसरे के लिए सिर्फ और सिर्फ घृणा ओर कुछ नहीं!

अपश्यु कुछ वक्त तक मूरत जैसा बैठा रहा फ़िर उठकर वहां से थोड़ा दूर जाकर खडा हों गया। सोचा था दान पुण्य करके पाप का बोझ थोड़ा कम करेगा पर हुआ उल्टा एक बुर्जुग की बातों ने उसे एक बार फ़िर से उसके किए दुष्कर्मों को याद करवा दिया। अपने किए पाप कर्मों का बोझ अपश्यु को इतना भारी लगा की उससे वहा खडा न रहा गया। इसलिए वहा से दूर खडा होकर सिर्फ देखना ही बेहतर समझा।

जब तक लोग आते रहें तब तक सभी दान करते रहें। दान लेकर सभी रघु और कमला को अशीष देकर चले गए। दान पुण्य का समापन होते होते अंधेरा हों गया। सभी थक भी चुके थे इसलिए ओर ज्यादा देर करने से घर वापस लौटना बेहतर समझा। सभी जैसे जैसे आए वैसे ही घर को चल दिया। सभी के चेहरे पर थकान दिख रहा था पर उसमे भी एक सुखद अनुभूति नजर आ रहा था। इन्ही में सिर्फ अपश्यु ही एक ऐसा था जिसके चेहरे पर थकान के साथ साथ दुनिया भार का दर्द और उदासी झलक रहा था।



आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यहां तक साथ बने रहने के लिय बहुत बहुत शुक्रिया। 🙏🙏🙏🙏
Bahot khub..... :roflol: us budhiya ne achha sabak sikhayi hai usko...
Ush hawasi kamine aapsyu ke saath to ish se bura hona chaahiye..... wo bhi bhari saamaj mein... chappalon k mala pehnake gadhe pe ulta baitha ke pura gaon ghumana chaahiye usko..... Tab pata chalega usko ki nischal kasak aur nandini ke sath bura bartaav karne ka anjaam kya hota hai :laugh1:

Budhiya aur apshyu ki baatcheet.....

Budhiya ki baatein sun apshyu ka face expression...
images-2022-01-30-T074657-012
:roflol:
budhiya ke jaane ke baad nalle apshyu ki condition....
Bland-Healthy-Irrawaddydolphin-max-1mb
:gaylaugh:
Khair shaandaar update, shaandaar lekhni aur shaandaar shabdon ka chayan....

Let's see what happens next..
Brilliant update with awesome writing skills.... :clapping: :clapping:
 
Eaten Alive
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Update - 42


घर से कुल देवी मंदिर तक, सफर के दौरान सुकन्या बिना एक शब्द बोले चुप चाप बैठी रहीं। रावण कई बार बात करना चाह पर सुकन्या ने साफ दर्शा दिया रावण उसके लिए एक अनजान शख्स हैं इसलिए उससे बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं हैं। पत्नी का पराए जैसा सलूक करना रावण को अंदर ही अन्दर शूल जैसा चुभा सिर्फ इतना ही नहीं उसे लगा सुकन्या उससे धीरे धीरे दूर ओर दूर होता जा रहा हैं।

रावण खुद को माजधार में फसा उस नाविक जैसा समझने लगा जिसे किनारे तक पहुंचना हैं परंतु कैसे पहुंचे कोई साधन नजर नहीं आ रहा था। इसलिए गुमसुम सा कार के दूसरे कोने में बैठा रहा।

दूसरे कारों में सभी बातों में मशगूल होकर कुलदेवी मंदिर पहुंच गए। एक एक करके सभी कारों से उतरे और मंदिर के प्रांगण में पहुंचे। राजेंद्र को सापरिवार आया देखकर पुरोहित जी बोले... राजा जी पूजा के मूहर्त का समय शुरू होने में अभी कुछ क्षण बाकी हैं तब तक आप सभी हाथ मुंह धोकर आए।

पुरोहित के कहते ही सभी एक एक कर मंदिर के बहार बने सरोवर के पास गए। शुद्ध शीतल जल से तरोंताजा होकर वापस मंदिर प्रांगण में आ गए। सभी को देखकर पुरोहित जी बोले…पहले नव दंपति बैठें फिर उनके पीछे बाकी बचे विवाहित जोड़े में बैठ जाए एवम जो अविवाहित हैं वो चाहें तो पूजा में बैठ सकते हैं।

पुरोहित के कहे अनुसार सभी बैठ गए। सुकन्या को पास सटकर बैठता देख रावण में कुछ आस जगा शायद पूजा संपन्न होने के बाद सुकन्या उससे बात कर ले। क्या होगा ये तो प्रभु ही जानें।

सभी के बैठते ही पूजा विधि शुरू हों गया। जिन जिन विधि से कुल देवी की पूजा नव दंपत्ति से करवाया जाना राजपरिवार का रीत था। वो सभी विधि पुरोहित जी ने रघु और कमला से करवाया। लम्बे समय तक पूजा चलता रहा अंत में हवन आदि होने के बाद पूजा संपन्न हुआ फ़िर पुरोहित जी बोले...राजा जी सभी पूजा विधि संपन्न हो गया हैं अब आप सभी मां चंडी से अपने इच्छा अनुसार मनोकामना पूर्ण होने की आशीष मांगे।

पुरोहित जी के कहने पर सभी एक एक कर देवी प्रतिमा के सामने शीश झुकाकर नमन किया फिर अशीष मांगा।

कमला... हे देवी मुझे आर्शीवाद करें मै पत्नी धर्म को निभा पाऊं, एक अच्छा बहु होने का फर्ज निभाकर सभी का मन जय कर पाऊं, मेरे नए बने परिवार में सभी सुखमय से रहे हमेशा सभी तरक्की के रह पर आगे बढ़ते रहें।

रघु...हे देवी मुझे आर्शीवाद दे मैं पति धर्म के मार्ग से कभी न डगमगाऊ। एक अच्छा पति, भाई, बेटा एक अच्छा इंसान बनकर रह सकूं मेरे परिवार में सभी हसीं ख़ुशी और सुखमाय से रहे।

सुरभि... हे देवी मैं आप'से क्या मांगू बिना मांगे ही अपने सब दे दिया एक अच्छा बेटा दिया एक अच्छी सर्व गुण संपन्न बहु दिया बस आप मेरे परिवार पर कृपा दृष्टि बनाए रखना।

राजेंद्र... हे देवी आप'का दिया सब कुछ मेरे पास हैं फ़िर भी एक विनती है मेरे पूर्वजों का दिया कार्य भार वहन कर पाऊं ऐसा सामर्थ मुझे देना और मेरे परिवार में सभी को साकुशल रखना।

सुकन्या...हे देवी आप खुद जानते हैं अपने मेरे भाग्य में क्या लिखा बस इतनी कृपा करना इससे बूरा ओर मेरे साथ न हों मेरे पति ही मेरा सब कुछ हैं। उन्हें सद्बुद्धि देना वो बूरा मार्ग छोड़कर सत मार्ग पर चले मेरा एक मात्र बेटा अपश्यु कभी अपने बाप जैसा न बनें और मेरे परिवार में कभी किसी के साथ अहित न हों पाए। मैं ऐसा आशीर्वाद आप'से मांगती हूं।

रावण...हे देवी मेरे अपनो और सपनों इन दोनों में से मैं किसे चुनूं कोई रह नजर नहीं आ रहा। मुझे कोई रह दिखाओ बस इतना ही आप'से विनती हैं।

अपश्यु... हे देवी मैंने बहुत से पाप कर्म किया हैं जिसकी शायद ही मुझे माफी मिल पाए फ़िर भी आप मुझे माफ कर देना। मैं बूरा मार्ग छोड़कर सत मार्ग पर चलने की शपथ लिया हैं। जानता हूं मेरा चुना सत मार्ग बहुत कठिन हैं। बस इतनी कृपा करना मैं इस मार्ग पर बिना डिगे चल पाऊं। बस मेरी इतनी सी अर्जी मन लेना।

पुष्पा... हे देवी मेरे बुद्धू अशीष ips बन जाए इतनी कृपा उस पर कर देना बाकि मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए। मेरा परिवार और होने वाला नया परिवार हमेशा खुश रहें। बस इतनी कृपा मुझ पर कर देना।

सभी के मन ने जो चाहा वैसा ही आर्शीवाद देवी से मांगा फ़िर उठकर पुरोहित को नमन किया। इसके बाद जो छोटे थे वे अपने से बड़ों का पैर छूकर आशीर्वाद लिया फिर मंदिर प्रांगण से बहार आ गए।

मुंशी अपने बीबी और बेटे के साथ पधारे अभी कुछ ही देर हुआ था। वे आकर देखा पूजा लगभग समाप्त होने वाला था। इसलिए अंदर न जाकर बहार ही रूक गए। मुंशी को देर से आया देखकर राजेंद्र थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोला... मुंशी तू आया ही क्यों जब पूजा में नहीं बैठ पाया तो तेरे आने का फायदा ही क्या हुआ इससे अच्छा तो तू नहीं आता।

मुंशी राजेंद्र की बात सुनकर थोड़ा सा मुस्कुराया फ़िर राजेंद्र के पास जाते हुए बोला…अरे राजा जी आप इतना गुस्सा क्यों हों रहें हों मैंने कहा था आऊंगा तो आ पहुंचा बस देर से पहुंचा इसकी वजह हमारी कार हैं जो बीच रस्ते में खबर हों गया। कार ठीक करवाने में देर हों गया इसलिए देर से पहुंचा इसमें मेरा कोई दोष नहीं हैं जो भी हुआ सारा दोष कार का हैं।

राजेंद्र... देर से आया तो ख़ुद के बचाव में कोई न कोई बहाना बनाना ही था। गलती खुद किया ओर दोष कार को दे रहा हैं।

पति का बचाव करते हुए उर्वशी टपक से बीच में बोला पड़ी... राजा जी ये सही कह रहे है हमारी कार सच में खराब हों गईं थी। अब आप ही बताएं बिना कार सही करवाए हम कैसे पहुंच पाते।

उर्वशी को पति का पक्ष लेता देखाकर सुरभि तंज भरे लहजे में बोली... हां हां तू तो बोलेगी ही मुंशी भाई साहब तेरा पति हैं पति के बचाव करना बनता हैं।

उर्वशी... मैं सच बोल रहीं ही आप'को यकीन नहीं हों रहा हैं तो, रमन की तरफ देखते हुए बोली... रमन से पूछ कर देखो रमन तो आप'से झूठ नहीं बोलेगा।

राजेंद्र ... अच्छा अच्छा मानता हूं आप और मंशी सही बोल रहे हों अब चलो चलकर कुछ दान पुण्य का काम कर लिया जाएं।

मुंशी…राजा जी जब आ ही गए है तो पहले देवी के दर्शन कर लूं फिर दान पुण्य भी कर लुंगा।

मुंशी की बात सुनकर सभी मंद मंद मुस्कुरा दिए फिर मुंशी परिवार सहित मंदिर के अंदर गए। देवी के सामने शीश नवाकर नमन किया फिर बहार आ गए। जब तक मुंशी बहार नहीं आया तब तक राजेंद्र परिवार सहित खड़ा रहा मुंशी के आते ही सभी साथ में मंदिर के सामने बनी पंडाल में पहुंचे।

राजेंद्र ने ऐलान करवा दिया था कि मंदिर में सभी जरूरत मंद लोगों की जरूरत पूरा किया जाएगा। ये सूचना सुनकर जरूरत मंद लोगों का जमघट पंडाल में लग गया।


राजेंद्र को सापरिवार पंडाल में पधारते ही पंडाल में मौजूद सभी लोग राजेंद्र की जय जयकर करने लग गए। उन्हीं में से कई लोग जो रावण के जुल्मों का शिकार हुआ था। रावण को राजेंद्र के साथ देकर अपने अंदर जमे घृणा को शब्दों के रूप में बहार निकाला।

"आ गया कमीना दिखावा करने अभी दान करेगा बाद में अपने चमचों को भेजकर हमसे छीन लेगा।"

"पापी तू कितना भी देवी के दरबार में माथा टेक ले तेरा पाप कर्म तेरा पीछा कभी नहीं छोड़ने वाला हमारे मन में जितना सम्मन राजा जी के लिए है उतना ही घृणा तेरे लिए हैं।"

राजेंद्र की जय जयकार करने के बाद भीड़ शांत हुआ तब राजेंद्र बोला… मैं और मेरे परिवार हमेशा आप सभी के भाले के लिए सोचा है। दुःख सुख में आप के साथ खड़े रहें हैं। जितना मन सम्मन मैं आप'को देता हूं उतना ही मन सम्मन से आप सभी ने मुझे नवाजा हैं। बहुत समय बाद हमारे महल में खुशियां आई है। हमारे परिवार में एक सदस्य की बड़ोत्री मेरे पुत्र बधु के रूप में हुआ हैं। मेरे परिवार में आई इस खुशी के पल को आप सभी के साथ बाटने आया हूं। थोड़ी ही देर में मेरा पुत्र और पुत्रबधु आप सभी के जरूरत के मुताबिक आप सभी को कुछ दान देंगे आप सभी से निवेदन है आप सभी उस दान को सहस्र स्वीकार करें।

"जी राजा" "जी राजी" की गूंज पूरे वादी में जोर सोर से गूंज उठा। कमला इन गुजती आवाजों को सुनकर पास खड़ा रघु का हाथ कसकर पकड़ लिया जीवन में पहली बार इतने लोगों को एक साथ किसी की जय जयकर करते हुए सन रहीं थीं। वो तय नहीं कर पा रहीं थीं किस तरह का रिएक्ट करें जब समझ नहीं आया तो रघु का हाथ कसकर पकड़ लिया।

कमला का चेहरा घूंघट से ढका हुआ था इसलिए रघु, कमला का चेहरा न देख पाया रघु को लगा कमला शायद इतने लोगों की आवाज़ एक साथ सुनकर डर गई होगी तो कमला के कंधे पर हाथ रखकर बोला...कमला क्या हुआ? डर लग रहा है जो इतना कसके मेरा हाथ पकड़ लिया।

कमला... जी डर नहीं रहीं हूं पहली बार इतने लोगों की आवाज़ एक साथ सूना तो समझ नहीं पाई कैसा रिएक्ट करू।

रघु...कमला अब आदत डाल लो क्योंकि आगे ओर न जानें कितनी बार तुम्हें ऐसी भीड़ की आवाज़ें सुनने को मिलेगा।

कमला सिर्फ हां में मुंडी हिला दिया। इससे आगे कुछ नहीं कहा। पर रघु का हाथ नहीं छोड़ा तब रघु अपना दूसरा हाथ भी कमला के हाथ पर रख दिया। पति का दूसरे हाथ का स्पर्श पाकर कमला घूंघट के अंदर से सिर ऊपर उठकर रघु को देखा और मंद मंद मुस्कुरा दिया।

राजेंद्र के कहने पर दान लेने आये हुए सभी जनता कतार में खड़े हों गए। एक एक कर आते गए। रघु और कमला के हाथों से दान लेते गए। दुआएं दिया ओर अपने अपने रस्ते चले गए।

भीड़ बहुत ज्यादा था सिर्फ कमला और रघु दान करते रहे तो समय बहुत लग जाता इसलिए राजेंद्र के कहने पर बाकि बचे सभी दोनों का हाथ बटाने लग गए।

इतने लोगों के एक साथ दान करने से भिड़ जल्दी जल्दी काम होने लग गया। उन्हीं भीड़ में एक बुजुर्ग महिला लाठी का सहारा लेकर आगे बढ़ रहीं थीं। बुर्जुग महिला जिस कतार में थीं अपश्यु उसी कतार से आ रहे लोगों को दान की चीजे दे रहा था। आगे आते आते बुजुर्ग महिला अपश्यु को देखकर रूक गई।

शायद बुर्जुग महिला अपश्यु के हाथों दान नहीं लेना चहती थी या फ़िर अपश्यु से डर रहीं थीं जो भी हों बुर्जुग महिला आगे बढ़ने से कतरा रहीं थीं। इसलिए थम सी गई। कतार में जल्दी आगे आने की कोशिश के चलते पीछे धक्का मुक्की हुआ। जिसकी चपेट में बुर्जुग महिला आ गईं। खुद को संभाल न पाने की वजह से बुर्जुग महिला सामने की ओर गिर गई।

बुर्जुग महिला को गिरते देखकर। हाथ में उठाया हुआ सामान अपश्यु नीचे रख दिया और तुरंत बुर्जुग महिला के पास पहुंच गया। सहारा देकर बुजुर्ग महिला को उठना चाहा तो बुर्जुग महिला अपश्यु का हाथ हटाकर करकस स्वर में बोली...मैं इतनी भी बेसहारा नहीं हुई हूं कि तुझ जैसा पापी का सहारा लेना पड़े छोड़ मुझे papiiii।

बुर्जुग महिला की दो टूक बाते सूनकर अपश्यु कुछ क्षण के लिए थम सा गया। उसे समझ नहीं आया की बजुर्ग महिला ने उससे ऐसा कहा तो कहा क्यों? जानने की जिज्ञासा मन में लेकर अपश्यु बोला... बूढ़ी मां मैं जनता हूं मैंने बहुत से पाप कर्म किया हैं। पर आप'के साथ तो ऐसा कुछ भी न किया फिर अपने मुझे ऐसा क्यों कहा?

बुजुर्ग महिला एक गहरी सांस लिया फ़िर बोला... पापी तूने पाप कर्म किया वो याद हैं। जिनके साथ किया वो भी शायद याद हैं पर जो तेरे दुष्कर्मों की शिकार बनी उनके परिवार वाले तूझे याद नहीं, तेरे दुष्कर्मों की शिकार बनी एक अबला मेरी एक मात्र सहारा थीं। जिसे तूने मुझ'से छीनकर मुझे बेसहारा कर दिया अब आया दिखावे की सहारा देने छोड़ मुझे तेरे सहारे की जरूरत नहीं हैं।

बुर्जुग महिला के इतना बोलने से अपश्यु बुर्जुग महिला को छोड़कर बेजान मूरत सा बैठ गया। ख़ुद के किए कर्मों को एक बार फ़िर से याद करने लग गया।

कतार में खडा एक बंदा निकलकर आया। बुर्जुग महिला को सहारा देकर उठने में मदद किया। बुर्जुग महिला लाठी का सहारा लेकर धीरे धीर आगे बढ़ गए। अपश्यु बेजान मूरत सा वहीं बैठा रहा।

बुर्जुग महिला धीरे धीरे चलते हुए रघु और कमला के पास पहुंचा। एक वृद्ध महिला को आया देखकर रघु ने पहले उनको दान दिया। दान लेने के बाद बुर्जुग महिला हाथ ऊपर उठाकर आर्शीवाद दिया फिर धीरे धीरे अपने रस्ते चली गईं।

अजीब सा मंजर बन गया जहां एक ही परिवार के दो बेटे के प्रति एक बुर्जुग महिला का मनोभाव अलग अलग हैं। एक के लिए प्यार और आर्शीवाद दूसरे के लिए सिर्फ और सिर्फ घृणा ओर कुछ नहीं!

अपश्यु कुछ वक्त तक मूरत जैसा बैठा रहा फ़िर उठकर वहां से थोड़ा दूर जाकर खडा हों गया। सोचा था दान पुण्य करके पाप का बोझ थोड़ा कम करेगा पर हुआ उल्टा एक बुर्जुग की बातों ने उसे एक बार फ़िर से उसके किए दुष्कर्मों को याद करवा दिया। अपने किए पाप कर्मों का बोझ अपश्यु को इतना भारी लगा की उससे वहा खडा न रहा गया। इसलिए वहा से दूर खडा होकर सिर्फ देखना ही बेहतर समझा।

जब तक लोग आते रहें तब तक सभी दान करते रहें। दान लेकर सभी रघु और कमला को अशीष देकर चले गए। दान पुण्य का समापन होते होते अंधेरा हों गया। सभी थक भी चुके थे इसलिए ओर ज्यादा देर करने से घर वापस लौटना बेहतर समझा। सभी जैसे जैसे आए वैसे ही घर को चल दिया। सभी के चेहरे पर थकान दिख रहा था पर उसमे भी एक सुखद अनुभूति नजर आ रहा था। इन्ही में सिर्फ अपश्यु ही एक ऐसा था जिसके चेहरे पर थकान के साथ साथ दुनिया भार का दर्द और उदासी झलक रहा था।



आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यहां तक साथ बने रहने के लिय बहुत बहुत शुक्रिया। 🙏🙏🙏🙏
Sarla aur apshyu ki jodi superhit hai :protest1:
 
A

Avni

Update - 42


घर से कुल देवी मंदिर तक, सफर के दौरान सुकन्या बिना एक शब्द बोले चुप चाप बैठी रहीं। रावण कई बार बात करना चाह पर सुकन्या ने साफ दर्शा दिया रावण उसके लिए एक अनजान शख्स हैं इसलिए उससे बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं हैं। पत्नी का पराए जैसा सलूक करना रावण को अंदर ही अन्दर शूल जैसा चुभा सिर्फ इतना ही नहीं उसे लगा सुकन्या उससे धीरे धीरे दूर ओर दूर होता जा रहा हैं।

रावण खुद को माजधार में फसा उस नाविक जैसा समझने लगा जिसे किनारे तक पहुंचना हैं परंतु कैसे पहुंचे कोई साधन नजर नहीं आ रहा था। इसलिए गुमसुम सा कार के दूसरे कोने में बैठा रहा।

दूसरे कारों में सभी बातों में मशगूल होकर कुलदेवी मंदिर पहुंच गए। एक एक करके सभी कारों से उतरे और मंदिर के प्रांगण में पहुंचे। राजेंद्र को सापरिवार आया देखकर पुरोहित जी बोले... राजा जी पूजा के मूहर्त का समय शुरू होने में अभी कुछ क्षण बाकी हैं तब तक आप सभी हाथ मुंह धोकर आए।

पुरोहित के कहते ही सभी एक एक कर मंदिर के बहार बने सरोवर के पास गए। शुद्ध शीतल जल से तरोंताजा होकर वापस मंदिर प्रांगण में आ गए। सभी को देखकर पुरोहित जी बोले…पहले नव दंपति बैठें फिर उनके पीछे बाकी बचे विवाहित जोड़े में बैठ जाए एवम जो अविवाहित हैं वो चाहें तो पूजा में बैठ सकते हैं।

पुरोहित के कहे अनुसार सभी बैठ गए। सुकन्या को पास सटकर बैठता देख रावण में कुछ आस जगा शायद पूजा संपन्न होने के बाद सुकन्या उससे बात कर ले। क्या होगा ये तो प्रभु ही जानें।

सभी के बैठते ही पूजा विधि शुरू हों गया। जिन जिन विधि से कुल देवी की पूजा नव दंपत्ति से करवाया जाना राजपरिवार का रीत था। वो सभी विधि पुरोहित जी ने रघु और कमला से करवाया। लम्बे समय तक पूजा चलता रहा अंत में हवन आदि होने के बाद पूजा संपन्न हुआ फ़िर पुरोहित जी बोले...राजा जी सभी पूजा विधि संपन्न हो गया हैं अब आप सभी मां चंडी से अपने इच्छा अनुसार मनोकामना पूर्ण होने की आशीष मांगे।

पुरोहित जी के कहने पर सभी एक एक कर देवी प्रतिमा के सामने शीश झुकाकर नमन किया फिर अशीष मांगा।

कमला... हे देवी मुझे आर्शीवाद करें मै पत्नी धर्म को निभा पाऊं, एक अच्छा बहु होने का फर्ज निभाकर सभी का मन जय कर पाऊं, मेरे नए बने परिवार में सभी सुखमय से रहे हमेशा सभी तरक्की के रह पर आगे बढ़ते रहें।

रघु...हे देवी मुझे आर्शीवाद दे मैं पति धर्म के मार्ग से कभी न डगमगाऊ। एक अच्छा पति, भाई, बेटा एक अच्छा इंसान बनकर रह सकूं मेरे परिवार में सभी हसीं ख़ुशी और सुखमाय से रहे।

सुरभि... हे देवी मैं आप'से क्या मांगू बिना मांगे ही अपने सब दे दिया एक अच्छा बेटा दिया एक अच्छी सर्व गुण संपन्न बहु दिया बस आप मेरे परिवार पर कृपा दृष्टि बनाए रखना।

राजेंद्र... हे देवी आप'का दिया सब कुछ मेरे पास हैं फ़िर भी एक विनती है मेरे पूर्वजों का दिया कार्य भार वहन कर पाऊं ऐसा सामर्थ मुझे देना और मेरे परिवार में सभी को साकुशल रखना।

सुकन्या...हे देवी आप खुद जानते हैं अपने मेरे भाग्य में क्या लिखा बस इतनी कृपा करना इससे बूरा ओर मेरे साथ न हों मेरे पति ही मेरा सब कुछ हैं। उन्हें सद्बुद्धि देना वो बूरा मार्ग छोड़कर सत मार्ग पर चले मेरा एक मात्र बेटा अपश्यु कभी अपने बाप जैसा न बनें और मेरे परिवार में कभी किसी के साथ अहित न हों पाए। मैं ऐसा आशीर्वाद आप'से मांगती हूं।

रावण...हे देवी मेरे अपनो और सपनों इन दोनों में से मैं किसे चुनूं कोई रह नजर नहीं आ रहा। मुझे कोई रह दिखाओ बस इतना ही आप'से विनती हैं।

अपश्यु... हे देवी मैंने बहुत से पाप कर्म किया हैं जिसकी शायद ही मुझे माफी मिल पाए फ़िर भी आप मुझे माफ कर देना। मैं बूरा मार्ग छोड़कर सत मार्ग पर चलने की शपथ लिया हैं। जानता हूं मेरा चुना सत मार्ग बहुत कठिन हैं। बस इतनी कृपा करना मैं इस मार्ग पर बिना डिगे चल पाऊं। बस मेरी इतनी सी अर्जी मन लेना।

पुष्पा... हे देवी मेरे बुद्धू अशीष ips बन जाए इतनी कृपा उस पर कर देना बाकि मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए। मेरा परिवार और होने वाला नया परिवार हमेशा खुश रहें। बस इतनी कृपा मुझ पर कर देना।

सभी के मन ने जो चाहा वैसा ही आर्शीवाद देवी से मांगा फ़िर उठकर पुरोहित को नमन किया। इसके बाद जो छोटे थे वे अपने से बड़ों का पैर छूकर आशीर्वाद लिया फिर मंदिर प्रांगण से बहार आ गए।

मुंशी अपने बीबी और बेटे के साथ पधारे अभी कुछ ही देर हुआ था। वे आकर देखा पूजा लगभग समाप्त होने वाला था। इसलिए अंदर न जाकर बहार ही रूक गए। मुंशी को देर से आया देखकर राजेंद्र थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोला... मुंशी तू आया ही क्यों जब पूजा में नहीं बैठ पाया तो तेरे आने का फायदा ही क्या हुआ इससे अच्छा तो तू नहीं आता।

मुंशी राजेंद्र की बात सुनकर थोड़ा सा मुस्कुराया फ़िर राजेंद्र के पास जाते हुए बोला…अरे राजा जी आप इतना गुस्सा क्यों हों रहें हों मैंने कहा था आऊंगा तो आ पहुंचा बस देर से पहुंचा इसकी वजह हमारी कार हैं जो बीच रस्ते में खबर हों गया। कार ठीक करवाने में देर हों गया इसलिए देर से पहुंचा इसमें मेरा कोई दोष नहीं हैं जो भी हुआ सारा दोष कार का हैं।

राजेंद्र... देर से आया तो ख़ुद के बचाव में कोई न कोई बहाना बनाना ही था। गलती खुद किया ओर दोष कार को दे रहा हैं।

पति का बचाव करते हुए उर्वशी टपक से बीच में बोला पड़ी... राजा जी ये सही कह रहे है हमारी कार सच में खराब हों गईं थी। अब आप ही बताएं बिना कार सही करवाए हम कैसे पहुंच पाते।

उर्वशी को पति का पक्ष लेता देखाकर सुरभि तंज भरे लहजे में बोली... हां हां तू तो बोलेगी ही मुंशी भाई साहब तेरा पति हैं पति के बचाव करना बनता हैं।

उर्वशी... मैं सच बोल रहीं ही आप'को यकीन नहीं हों रहा हैं तो, रमन की तरफ देखते हुए बोली... रमन से पूछ कर देखो रमन तो आप'से झूठ नहीं बोलेगा।

राजेंद्र ... अच्छा अच्छा मानता हूं आप और मंशी सही बोल रहे हों अब चलो चलकर कुछ दान पुण्य का काम कर लिया जाएं।

मुंशी…राजा जी जब आ ही गए है तो पहले देवी के दर्शन कर लूं फिर दान पुण्य भी कर लुंगा।

मुंशी की बात सुनकर सभी मंद मंद मुस्कुरा दिए फिर मुंशी परिवार सहित मंदिर के अंदर गए। देवी के सामने शीश नवाकर नमन किया फिर बहार आ गए। जब तक मुंशी बहार नहीं आया तब तक राजेंद्र परिवार सहित खड़ा रहा मुंशी के आते ही सभी साथ में मंदिर के सामने बनी पंडाल में पहुंचे।

राजेंद्र ने ऐलान करवा दिया था कि मंदिर में सभी जरूरत मंद लोगों की जरूरत पूरा किया जाएगा। ये सूचना सुनकर जरूरत मंद लोगों का जमघट पंडाल में लग गया।


राजेंद्र को सापरिवार पंडाल में पधारते ही पंडाल में मौजूद सभी लोग राजेंद्र की जय जयकर करने लग गए। उन्हीं में से कई लोग जो रावण के जुल्मों का शिकार हुआ था। रावण को राजेंद्र के साथ देकर अपने अंदर जमे घृणा को शब्दों के रूप में बहार निकाला।

"आ गया कमीना दिखावा करने अभी दान करेगा बाद में अपने चमचों को भेजकर हमसे छीन लेगा।"

"पापी तू कितना भी देवी के दरबार में माथा टेक ले तेरा पाप कर्म तेरा पीछा कभी नहीं छोड़ने वाला हमारे मन में जितना सम्मन राजा जी के लिए है उतना ही घृणा तेरे लिए हैं।"

राजेंद्र की जय जयकार करने के बाद भीड़ शांत हुआ तब राजेंद्र बोला… मैं और मेरे परिवार हमेशा आप सभी के भाले के लिए सोचा है। दुःख सुख में आप के साथ खड़े रहें हैं। जितना मन सम्मन मैं आप'को देता हूं उतना ही मन सम्मन से आप सभी ने मुझे नवाजा हैं। बहुत समय बाद हमारे महल में खुशियां आई है। हमारे परिवार में एक सदस्य की बड़ोत्री मेरे पुत्र बधु के रूप में हुआ हैं। मेरे परिवार में आई इस खुशी के पल को आप सभी के साथ बाटने आया हूं। थोड़ी ही देर में मेरा पुत्र और पुत्रबधु आप सभी के जरूरत के मुताबिक आप सभी को कुछ दान देंगे आप सभी से निवेदन है आप सभी उस दान को सहस्र स्वीकार करें।

"जी राजा" "जी राजी" की गूंज पूरे वादी में जोर सोर से गूंज उठा। कमला इन गुजती आवाजों को सुनकर पास खड़ा रघु का हाथ कसकर पकड़ लिया जीवन में पहली बार इतने लोगों को एक साथ किसी की जय जयकर करते हुए सन रहीं थीं। वो तय नहीं कर पा रहीं थीं किस तरह का रिएक्ट करें जब समझ नहीं आया तो रघु का हाथ कसकर पकड़ लिया।

कमला का चेहरा घूंघट से ढका हुआ था इसलिए रघु, कमला का चेहरा न देख पाया रघु को लगा कमला शायद इतने लोगों की आवाज़ एक साथ सुनकर डर गई होगी तो कमला के कंधे पर हाथ रखकर बोला...कमला क्या हुआ? डर लग रहा है जो इतना कसके मेरा हाथ पकड़ लिया।

कमला... जी डर नहीं रहीं हूं पहली बार इतने लोगों की आवाज़ एक साथ सूना तो समझ नहीं पाई कैसा रिएक्ट करू।

रघु...कमला अब आदत डाल लो क्योंकि आगे ओर न जानें कितनी बार तुम्हें ऐसी भीड़ की आवाज़ें सुनने को मिलेगा।

कमला सिर्फ हां में मुंडी हिला दिया। इससे आगे कुछ नहीं कहा। पर रघु का हाथ नहीं छोड़ा तब रघु अपना दूसरा हाथ भी कमला के हाथ पर रख दिया। पति का दूसरे हाथ का स्पर्श पाकर कमला घूंघट के अंदर से सिर ऊपर उठकर रघु को देखा और मंद मंद मुस्कुरा दिया।

राजेंद्र के कहने पर दान लेने आये हुए सभी जनता कतार में खड़े हों गए। एक एक कर आते गए। रघु और कमला के हाथों से दान लेते गए। दुआएं दिया ओर अपने अपने रस्ते चले गए।

भीड़ बहुत ज्यादा था सिर्फ कमला और रघु दान करते रहे तो समय बहुत लग जाता इसलिए राजेंद्र के कहने पर बाकि बचे सभी दोनों का हाथ बटाने लग गए।

इतने लोगों के एक साथ दान करने से भिड़ जल्दी जल्दी काम होने लग गया। उन्हीं भीड़ में एक बुजुर्ग महिला लाठी का सहारा लेकर आगे बढ़ रहीं थीं। बुर्जुग महिला जिस कतार में थीं अपश्यु उसी कतार से आ रहे लोगों को दान की चीजे दे रहा था। आगे आते आते बुजुर्ग महिला अपश्यु को देखकर रूक गई।

शायद बुर्जुग महिला अपश्यु के हाथों दान नहीं लेना चहती थी या फ़िर अपश्यु से डर रहीं थीं जो भी हों बुर्जुग महिला आगे बढ़ने से कतरा रहीं थीं। इसलिए थम सी गई। कतार में जल्दी आगे आने की कोशिश के चलते पीछे धक्का मुक्की हुआ। जिसकी चपेट में बुर्जुग महिला आ गईं। खुद को संभाल न पाने की वजह से बुर्जुग महिला सामने की ओर गिर गई।

बुर्जुग महिला को गिरते देखकर। हाथ में उठाया हुआ सामान अपश्यु नीचे रख दिया और तुरंत बुर्जुग महिला के पास पहुंच गया। सहारा देकर बुजुर्ग महिला को उठना चाहा तो बुर्जुग महिला अपश्यु का हाथ हटाकर करकस स्वर में बोली...मैं इतनी भी बेसहारा नहीं हुई हूं कि तुझ जैसा पापी का सहारा लेना पड़े छोड़ मुझे papiiii।

बुर्जुग महिला की दो टूक बाते सूनकर अपश्यु कुछ क्षण के लिए थम सा गया। उसे समझ नहीं आया की बजुर्ग महिला ने उससे ऐसा कहा तो कहा क्यों? जानने की जिज्ञासा मन में लेकर अपश्यु बोला... बूढ़ी मां मैं जनता हूं मैंने बहुत से पाप कर्म किया हैं। पर आप'के साथ तो ऐसा कुछ भी न किया फिर अपने मुझे ऐसा क्यों कहा?

बुजुर्ग महिला एक गहरी सांस लिया फ़िर बोला... पापी तूने पाप कर्म किया वो याद हैं। जिनके साथ किया वो भी शायद याद हैं पर जो तेरे दुष्कर्मों की शिकार बनी उनके परिवार वाले तूझे याद नहीं, तेरे दुष्कर्मों की शिकार बनी एक अबला मेरी एक मात्र सहारा थीं। जिसे तूने मुझ'से छीनकर मुझे बेसहारा कर दिया अब आया दिखावे की सहारा देने छोड़ मुझे तेरे सहारे की जरूरत नहीं हैं।

बुर्जुग महिला के इतना बोलने से अपश्यु बुर्जुग महिला को छोड़कर बेजान मूरत सा बैठ गया। ख़ुद के किए कर्मों को एक बार फ़िर से याद करने लग गया।

कतार में खडा एक बंदा निकलकर आया। बुर्जुग महिला को सहारा देकर उठने में मदद किया। बुर्जुग महिला लाठी का सहारा लेकर धीरे धीर आगे बढ़ गए। अपश्यु बेजान मूरत सा वहीं बैठा रहा।

बुर्जुग महिला धीरे धीरे चलते हुए रघु और कमला के पास पहुंचा। एक वृद्ध महिला को आया देखकर रघु ने पहले उनको दान दिया। दान लेने के बाद बुर्जुग महिला हाथ ऊपर उठाकर आर्शीवाद दिया फिर धीरे धीरे अपने रस्ते चली गईं।

अजीब सा मंजर बन गया जहां एक ही परिवार के दो बेटे के प्रति एक बुर्जुग महिला का मनोभाव अलग अलग हैं। एक के लिए प्यार और आर्शीवाद दूसरे के लिए सिर्फ और सिर्फ घृणा ओर कुछ नहीं!

अपश्यु कुछ वक्त तक मूरत जैसा बैठा रहा फ़िर उठकर वहां से थोड़ा दूर जाकर खडा हों गया। सोचा था दान पुण्य करके पाप का बोझ थोड़ा कम करेगा पर हुआ उल्टा एक बुर्जुग की बातों ने उसे एक बार फ़िर से उसके किए दुष्कर्मों को याद करवा दिया। अपने किए पाप कर्मों का बोझ अपश्यु को इतना भारी लगा की उससे वहा खडा न रहा गया। इसलिए वहा से दूर खडा होकर सिर्फ देखना ही बेहतर समझा।

जब तक लोग आते रहें तब तक सभी दान करते रहें। दान लेकर सभी रघु और कमला को अशीष देकर चले गए। दान पुण्य का समापन होते होते अंधेरा हों गया। सभी थक भी चुके थे इसलिए ओर ज्यादा देर करने से घर वापस लौटना बेहतर समझा। सभी जैसे जैसे आए वैसे ही घर को चल दिया। सभी के चेहरे पर थकान दिख रहा था पर उसमे भी एक सुखद अनुभूति नजर आ रहा था। इन्ही में सिर्फ अपश्यु ही एक ऐसा था जिसके चेहरे पर थकान के साथ साथ दुनिया भार का दर्द और उदासी झलक रहा था।



आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यहां तक साथ बने रहने के लिय बहुत बहुत शुक्रिया। 🙏🙏🙏🙏
Fabulous update dear.
ek short kavita kahi padhi thi mene.
kuch is tarah ki thi.

Jo boya tune wo kaata bhi tune, Teri harkato ka javab paya tune Jo zulm tu dhaye ga woh tujh pe barpa paye ga, kal
Khush hue nhi garib lachar ke khoon ki nadiyan dekh ke, Par hasta tha tu hamare behte lahu ko dekh k,
Sochta tu kabhi ye ?yahan bhi insan baste hai.
Waqt ka Katra mod lega , Sahi galat ka faisla karega , Jo boya hai Wahi paye ga.
Ped Babul ka aam kaise le paye ga .

apashyu ka haal bhi isse alag nahi .
 
ᴋɪɴᴋʏ ᴀꜱ ꜰᴜᴄᴋ
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Update - 41


रघु के बैठक में पहुंचते ही मां और चाची उसे देखते ही खिली उड़ने के तर्ज पर हंसने लग गई। सिर खुजाते हुए रघु भी जाकर बैठ गया। रघु के बैठते ही मां और चाची का खिलखिलाकर हंसना तेज और तेज होता गया। रघु बस सिर खुजाते हुए मां और चाची को हंसते हुए देखता रहा। अचानक रघु को न जानें किया सूझा रघु भी खिलखिलाकर मां और चाची के साथ ताल से ताल मिलाकर हंसने लग गया। कुछ देर तक तीनों जी भारकर हंसा फिर सुरभि बोली... रघु तूझे किया हुआ बेवजह हंसता ही जा रहा हैं। बावला तो न हों गया।

सुरभि के बोलते ही एक बार फिर से तीनों खिलखिलाकर हंस दिया। सुकन्या किसी तरह खुद पर काबू पाया फिर बोली... रघु हम हंस रहे हैं उसके पीछे वजह हैं पर तू क्यों बावलों की तरह हंसा जा रहा हैं।

छोटी मां की बाते सूनकर रघु खुद को काबू में लाया फ़िर बोला…छोटी मां हंसने के लिए कोई वजह नहीं चाहिए होता हैं फिर भी आप जानना चाहती हों तो, सुनो आप दोनों जिस वजह से हंस रही थीं मेरे भी हंसने की वजह वहीं हैं।

सुरभि...तू भी न raghuu ख़ुद पर कोई हंसता हैं। तू तो सच में वाबला हों गया हैं।

सुकन्या... रघु वाबलापन की हद होती हैं। इतना भी क्या बावला होना कि खुद की खिली खुद ही उड़ाई जाएं।

रघु... छोटी मां मैं कौन सा बहार वालों के सामने ख़ुद की खिली उड़ा रहा हूं। आप दोनों मेरी मां हों मां के सामने ख़ुद की खिली उड़ने में हर्ज ही किया हैं।

पुष्पा और कमला तक भी इन तीनों के खिलखिलाने की आवाज़ पहूंच गया तो दोनों जल्दी जल्दी बैठक में आ गए। सुरभि और सुकन्या में से कोई कुछ बोलती उससे पहले पुष्पा भौंहे हिलाते हुए बोली...किस बात पर इतनी खिलखिलाई जा रहीं हैं सास नहीं हैं इसका मतलब ये थोडी की खिलखिलाकर जमाने को सुनाई जाए। दादी भी न ऊपर जाने की इतनी क्या जल्दी थी। गई तो गई जानें से पहले, अपने दोनों बहुओं को अच्छे से टाईट दे जाती पर नहीं वो तो अपने दोनों बहुओं को सिर चढ़कर रखती थीं अब देखो नतीजा शर्म लिहाज भुलकर बत्तीसी फाड़ हंसी हंसकर जमाने को सूना रही हैं।

पुष्पा की बाते सूनकर सुरभि और सुकन्या कुछ पल के लिए रूक गईं पर पुष्पा के बोलने की अदा देखकर फिर से हंस दिया और सुरभि उठते हुए बोली…मेरी सास की बुराई करती है। रूक तूझे अभी बाती हूं मेरी सास कैसी थी।

मां को उठते देखकर पुष्पा बोला...जरूरत नहीं हैं उठने की जब देखो मेरे कान के पीछे ही पड़ी रहती हों। मेरी कान उमेठ उमेठ कर इतनी लंबी कर दिया क्या ही बताऊं कितनी लंबी कर दिया।

बेटी की बाते सूनकर सुरभि मुस्कुरा दिया फ़िर बैठ गईं। कमला रघु को पानी देकर सामने जाकर बैठ गई। रघु पानी पीकर कुछ देर बैठा रहा फ़िर रूम में चल दिया। रघु को जाते देखकर कमला बोली...आप'के कपड़े निकलकर बेड पर रख दिया हैं हाथ मुंह धोकर वही पहन लेना।

रघु बस मुस्कुराकर देखा ओर चला गया। एक बार फिर से घर की चारों महिलाएं बातों में रम गई किंतु इस बार बातों का मुद्दा कुछ ओर ही था।

सुरभि...बहु कल जब तक पूजा न हों जाएं तब तक तुम्हें और रघु को उपवास रखना हैं। ना कुछ खाओगी न कुछ पियोगी साथ ही खुद पर थोड़ा संयम भी रखोगी समझ गए, मैंने किया बोला।

कमला सभी बाते समझ गई पर संयम की बात समझने के लिए दिमाग पर जोर दिया तब उसे समझ आया कि संयम किस लिए रखने को कहा जा रहा हैं तो शर्माकर सिर झुका लिया फिर बोली... जी मम्मी जी समझ गई आप कहना क्या चाहती हों।

सुकन्या...दीदी पूजा में बहुत टाईम लगने वाला हैं इसलिए हमे कल जितना जल्दी हों सके निकला होगा।

सुरभि...हां सुबह हम जल्दी ही निकलेंगे। फिर कमला से बोली...बहु कल तुम दुल्हन के जोड़े में सुबह जल्दी से तैयार हों जाना मुझे कहना न पड़े।

कमला... जी मम्मी जी।

इसके बाद कुछ और बातें होती हैं। बातों बातों में रात हों गई। रात का खाना खाकर सभी अपने अपने रूम में चले गए। रघु कुछ ज्यादा ही उतावला होंने लगा। इसलिए कमला से लिपटा झपटी करने लग गया। कमला उसे रोकने लगी खुद से दूर करने की जतन करने लगीं पर रघु मान ही नहीं रहा था। तब कमला बोली...बस आज भार रूक जाओ न।

रघु...क्या हुआ कमला कोई परेशानी हैं जो तुम मुझे रोक रहीं हों। क्या तुम्हारा मन नहीं हैं।

कमला...मन हैं पर कल पूजा है इसलिए मम्मी जी ने संयम रखने के लिए कहा हैं।

रघु...Ooo ये बात हैं तो तुम मुझे पहले ही बता देती मैं तुम्हें इतना परेशान न करता।

इतना कहाकर रघु कमला को बाहों में भारकर लेटने लगा तो कमला फ़िर से बोली...नहीं नहीं ऐसे नहीं आज हम अलग अलग सोएंगे।

रघु...कमला तुम्हें मुझ पर इतना भी भरोसा नहीं की मैं ख़ुद पर संयम रख पाऊंगा।

कमला...आप पर पूरा भरोसा हैं। खुद पर नहीं कही मैं बहक न जाऊ इसलिए ऐसा कहा आप बूरा न माने।

रघु...मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूंगा जिससे तुम बहक जाओ समझी अब चुप चाप सो जाओ।

इतना कहकर कमला का सिर छीने पर रखकर कमला के इर्द गिर्द बाहों का हार डाल दिया। कमला कुछ वक्त तक रघु के आंखों में देखती रहीं फिर आंखें बन्द कर लिया। कमला के माथे पर एक चुम्बन अंकित कर रघु भी आंखें बन्द कर लिया। कुछ वक्त में दोनो पति पत्नि चैन की नींद सो गए।

इधर अपश्यु बेचैन सा बार बार डिम्पल को कॉल किए जा रहा था पर डिंपल है की कॉल रिसीव ही नहीं कर रहीं थीं। थक हरकर कॉल करना छोड़ दिया फ़िर बेड पर लेट गया। नींद आ नहीं रहा था। बेचैनी सा होना लगा। बैचैनी का करण डिंपल थीं। डिंपल से बात नहीं हों पाया इस पर सोचते हुए खुद से बोला... डिंपल को हो किया गया फ़ोन क्यों नहीं उठा रहीं हैं। इतना भी कोई रूठता हैं की बात ही न करें, मेरी तो फिक्र ही नहीं हैं बात करने को तड़प रहा हूं और डिंपल बात करने को राजी ही ना हों रही हैं।

इतना बोलकर अपश्यु एक गहरी सांस लिया फ़िर बोला…मैं क्यों इतना तड़प रहा हूं पहले तो कभी किसी लड़की से मिलने बात करने के लिए इतना नहीं तड़पा फ़िर डिंपल से बात करने को इतना क्यों तड़प रहा हूं। कहीं मैं….।

इतना बोलकर अपश्यु रूक गया आगे आने वाले शब्दों को सोचकर मंद मंद मुस्कुरा दिया फ़िर बोला...कहीं मुझे डिंपल से प्यार तो न हों गया। Haaa शायद मुझे डिंपल से प्यार हों गया होगा।

इतना बोलकर अपश्यु के लवों पर आ रही मंद मंद मुस्कान ओर गहरा हों गया। बगल में रखा तकिया उठाकर छीने से चिपका लिया फिर इधर उधर अलटी पलटी लेने लग गया। अलटी पलटी लेते हुए डिंपल से हुई मुलाकात से लेकर डिंपल के साथ बिताए एक एक पल को याद करने लग गया।

डिंपल के साथ बिताए उन पलों को याद करने के दौरान अपश्यु वाबलो की तरह मुस्कुराए जा रहा था। एकाएक न जानें क्या याद आ गया। मंद मंद मुस्कान लवों से गायब हों गया और गंभीर भाव चेहरे पर आ गया। गम्भीर भाव चेहरे पर लिए अपश्यु खुद से बोला...मुझे डिंपल से प्यार हों गया तो क्या डिंपल भी मुझसे प्यार करने लगीं हैं। कैसे पता करु कुछ समझ नहीं आ रहा है। आगर डिंपल भी मुझसे प्यार करने लगीं हैं तो जब उसे पता चलेगा की मैं कितना बूरा लड़का हैं तब किया करेंगी क्या मुझे दुत्कार देगी या मुझे अपना लेगी। हे प्रभो ये किस उलझन में फस गया हूं। पहले से क्या कम उलझन थी जो एक ओर उलझन आकर खडा हों गया क्या करूं कौन सी उलझन पहले सुलझाऊ। साला लाईफ भी अजीब ही मोड़ पर आकर खडा हों गया हैं। जब बूरा काम करता था तो कोई उलझन नज़र नहीं आया जब से सही रस्ते पर चलना शुरू किया तभी से उलझन ही उलझन दिखाई दे रहा हैं। इतनी उलझन कैसे सुलझाऊं।

इतनी बाते खुद से कहाकर अपश्यु उठकर बैठ गया। कुछ देर बैठा रहा बैठें बैठे अपने किए दुष्कर्म को याद करने लग गया। जितना याद करता जा रहा था उतना ही उसे लग रहा था जैसे अलग अलग आवाजे सुनाई दे रहा हों कोई आवाज कह रहा है...मलिक मुझे जानें दो क्यों मुझे बर्बाद कर रहें हों मैं आप'की बहन जैसी हूं। छोड़ दो ऐसा न करों मैं किसी को मुंह दिखाने के काबिल नहीं रहूंगी।

फिर एक आवाज अपश्यु को सुनाई दिया जो उसे खुद की आवाज जैसा लगा जो दानवीय हंसी हंसकर बोला...haaaa haaa haaaa तू और मेरी बहन तू मेरी बहन नहीं हैं एक साधारण लड़की हैं जो सिर्फ और सिर्फ एक खिलौना हैं और कुछ नहीं आज मैं इस खिलौना से जी भरकर खेलूंगा।

फिर अपश्यु को एक दर्दनाक चीख सुनाई दिया इसके बाद तो मानो अपश्यु को सिर्फ दर्दनाक चीखे और दनवीय हंसी सुनाई देने लग गया। एक के बाद एक मरमाम चीखे बढ़ता और बढ़ता जा रहा था। जितनी चीखे बढ़ रहा था उतनी ही दानवीय हंसी बढ़ता हुआ सुनाई देने लगा। अपश्यु इन आवाज़ों को सहन नहीं कर पाया और सिर पकड़कर बैठ गया।

सिर में दर्द असहनीय होने लगा शायद इतना सिर दर्द कभी अपश्यु ने महसूस ही न किया होगा। अपश्यु को लग रहा था जैसे कोई नुकीला चीज से सिर में तेज तेज बार किया जा रहा हों। जब सिर दर्द सहन सीमा को पार कर गया तब अपश्यु दोनों हाथों से सिर को पकड़कर इतने ताकत से दबाया। कोई नर्म चीज होता तो पिचक गया होता। बरहाल बहुत वक्त तक अपश्यु सिर में हों रहें असहनीय दर्द को आंसु बहाते हुए बर्दास्त करता रहा फ़िर धीरे धीरे दर्द थोड़ा कम हुआ। तब अपश्यु उठकर बेड के बगल में रखा मेज का दराज खोलकर एक डब्बा निकलकर एक टेबलेट गले से नीचे उतरा फिर पानी पीकर लेट गया। कुछ वक्त इधर उधर करवट बदला फिर स्वतः ही नींद की वादी में खो गया।

महल में किसी को जानकारी नहीं हुआ अपश्यु बंद कमरे में किन परिस्थितियों से गुजरा, ख़ुद से लड़ा फिर एक टेबलेट लेकर चुप चाप बिना आवाज किए सो गया।

भोर के समय कमला नींद से जागी तो देखा जैसे रात में पति के छीने पर सिर रखकर सोई थी वैसे ही सोकर पूरी रात गुजार दिया। मंद मंद लुभानी सी मुस्कान से मुस्कुराकर रघु के बाहुपाश से खुद को आज़ाद किया फिर उठकर बैठ गई। कुछ देर रघु के चेहरे को एकटक देखती रहीं फ़िर अचानक रघु के चेहरे पर झुका खुद के होंठों को रघु के होंठो के पास लेकर गई ओर रूक गई। कुछ देर रुकी रहीं फ़िर होंठो की दिशा को बदलकर रघु के गाल पर एक किस्स करके झटपट उठ गई।

अलमारी से कपड़े निकलकर बॉथरूम में घुस गई। दैनिक क्रिया करके कुछ वक्त में बॉथरूम से बहार निकलकर आई फ़िर रघु को आवाज़ दिया…ओ जी उठो न सुबह हों गई हैं।

रघु बस थोड़ा सा हिला फिर करवट बदलकर वैसे ही पड़ा रहा। एक बार फिर से कमला ने रघु को तेज तेज हिलाते डुलाते हुए आवाज दिया। तब रघु कुनमुनते हुए बोला...क्या हुआ कमला सोने दो न बहुत नींद आ रहा हैं।

कमला...नहीं बिल्कुल नहीं जल्दी से उठकर तैयार हों जाइए। हमे आज कुलदेवी मंदिर जाना हैं। तैयार होने में लेट हों गए तो मम्मी जी आप'को और मुझे बहुत डाटेंगी। क्या आप चाहते है मैं आप'की वजह से, मम्मी जी से डांट सुनूं तो ठीक है आप सोते रहो।

कमला की इतनी बाते सुनकर रघु अंगड़ाई लेते हुए उठकर बैठ गया फ़िर बोला...कमला मैं कभी ऐसा होने नहीं दुंगा की तुम्हें मेरे करण मां या किसी ओर से डांट सुनना पड़े।

कमला एक खिला सा मुस्कान चेहरे पर सजाकर बोली... जाइए फिर जल्दी से फ्रेश होकर नहा धोकर आइए।

रघु तुरंत उठा ओर बॉथरूम में घूस गया। कमला रघु के कपड़े निकलकर बेड पर रख दिया फिर दुल्हन का जोड़ा निकलकर तैयार होने लग गई। कमला तैयार हों ही रही थी की बहार से एक आवाज़ आई... बहु उठ गई की नहीं!

बहार से आवाज़ देने वाली सुरभि थी। सास की आवाज़ सुनकर कमला बोली...जी मम्मी जी उठ गई। तैयार हों रही हूं।

सुरभि…ठीक हैं जल्दी से तैयार होकर नीचे आओ।

कमला... मम्मी जी मैं लगभग तैयार हों गई हूं आप'के बेटे के तैयार होते ही हम आ जाएंगे।

सुरभि ठीक है कहाकर चली गई। कुछ देर में रघु बॉथरूम से निकलकर आया। कमला को दुल्हन के लिवास में तैयार देखकर रघु बोला...Oooo कमला दुल्हन की लिवास में तुम इतनी खुबसूरत लगती हों मेरा मन करता हैं बस तुम्हें देखता ही रहूं।

इतना बोलाकर रघु एकटक कमला को निहारने लग गया। कुछ वक्त तक रघु को देखने दिया फ़िर कमला बोली…मुझे देखकर मन भार गया हों तो जल्दी से तैयार हों लीजिए मम्मी जी बुलाकर गए हैं देर हों गई तो डांट पड़ जाएगी।

रघु धीरे से बोला...बीबी परम सुंदरी मिला है पर जी भरके देखने भी नहीं देती।

कमला... क्या बोला जरा तेज आवाज़ में बोलिए।

रघु... मैंने कह कुछ बोला मैंने तो कुछ बोला ही नहीं लगाता है तुम्हारे कान बज रहा हैं।

इतना बोलकर रघु तैयार होने लग गया। कमला बस मुस्कुराती रह गई। बरहाल कुछ वक्त में रघु तैयार हो गया फिर दोनों बहार आ गए। निचे लगभग सभी तैयार हों गए थे। जो रह गए थे उनके आते ही पुष्पा बोली... मां मैं भईया और भाभी के साथ जाऊंगी।

अपश्यु को न जानें किया सूजा उसने बोला...बड़ी मां क्या मैं आप'के साथ जा सकता हूं।

सुरभि... ठीक हैं चल देना अब हमे चला चाहिए।

सुरभि के बोलते ही सभी अपने अपने तय कार में बैठ गए। एक कार में रघु , कमला और पुष्पा बैठ कर चल दिया। दूसरी कार में सुरभि अपश्यु के साथ पीछे बैठी और राजेंद्र सामने की सीट पर बैठकर चल दिया। तीसरी कर में रावण और सुकन्या बैठ गई। सुकन्या रावण से दूरी बनाकर बैठ गई। एक के पीछे एक कार चल दिया।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏🙏
super ja rahi kahani, aapashyu ko is samay ek sache dost ki sakht jarurat hai, jise dil ki bate keh sake salah masvara kar sake . anurag se behtar kon ho sakta hai bhala.
 
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Dear readers mera likha halhi ke kuch Update 2000 se 2200 words ke bich hai. Mai ye jana chata hoon aage bhi itne hi word's ka update dena chahiye ya phir word's ko kaam ya jayada karke update ki size ko chota ya bada kar dena chaiye.

Sabhi Readers se binti hai apna sahi sujhav jarur de.
ho sake to 4,000 words ke update do bhai :D
 
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Update - 42


घर से कुल देवी मंदिर तक, सफर के दौरान सुकन्या बिना एक शब्द बोले चुप चाप बैठी रहीं। रावण कई बार बात करना चाह पर सुकन्या ने साफ दर्शा दिया रावण उसके लिए एक अनजान शख्स हैं इसलिए उससे बात करने में कोई दिलचस्पी नहीं हैं। पत्नी का पराए जैसा सलूक करना रावण को अंदर ही अन्दर शूल जैसा चुभा सिर्फ इतना ही नहीं उसे लगा सुकन्या उससे धीरे धीरे दूर ओर दूर होता जा रहा हैं।

रावण खुद को माजधार में फसा उस नाविक जैसा समझने लगा जिसे किनारे तक पहुंचना हैं परंतु कैसे पहुंचे कोई साधन नजर नहीं आ रहा था। इसलिए गुमसुम सा कार के दूसरे कोने में बैठा रहा।

दूसरे कारों में सभी बातों में मशगूल होकर कुलदेवी मंदिर पहुंच गए। एक एक करके सभी कारों से उतरे और मंदिर के प्रांगण में पहुंचे। राजेंद्र को सापरिवार आया देखकर पुरोहित जी बोले... राजा जी पूजा के मूहर्त का समय शुरू होने में अभी कुछ क्षण बाकी हैं तब तक आप सभी हाथ मुंह धोकर आए।

पुरोहित के कहते ही सभी एक एक कर मंदिर के बहार बने सरोवर के पास गए। शुद्ध शीतल जल से तरोंताजा होकर वापस मंदिर प्रांगण में आ गए। सभी को देखकर पुरोहित जी बोले…पहले नव दंपति बैठें फिर उनके पीछे बाकी बचे विवाहित जोड़े में बैठ जाए एवम जो अविवाहित हैं वो चाहें तो पूजा में बैठ सकते हैं।

पुरोहित के कहे अनुसार सभी बैठ गए। सुकन्या को पास सटकर बैठता देख रावण में कुछ आस जगा शायद पूजा संपन्न होने के बाद सुकन्या उससे बात कर ले। क्या होगा ये तो प्रभु ही जानें।

सभी के बैठते ही पूजा विधि शुरू हों गया। जिन जिन विधि से कुल देवी की पूजा नव दंपत्ति से करवाया जाना राजपरिवार का रीत था। वो सभी विधि पुरोहित जी ने रघु और कमला से करवाया। लम्बे समय तक पूजा चलता रहा अंत में हवन आदि होने के बाद पूजा संपन्न हुआ फ़िर पुरोहित जी बोले...राजा जी सभी पूजा विधि संपन्न हो गया हैं अब आप सभी मां चंडी से अपने इच्छा अनुसार मनोकामना पूर्ण होने की आशीष मांगे।

पुरोहित जी के कहने पर सभी एक एक कर देवी प्रतिमा के सामने शीश झुकाकर नमन किया फिर अशीष मांगा।

कमला... हे देवी मुझे आर्शीवाद करें मै पत्नी धर्म को निभा पाऊं, एक अच्छा बहु होने का फर्ज निभाकर सभी का मन जय कर पाऊं, मेरे नए बने परिवार में सभी सुखमय से रहे हमेशा सभी तरक्की के रह पर आगे बढ़ते रहें।

रघु...हे देवी मुझे आर्शीवाद दे मैं पति धर्म के मार्ग से कभी न डगमगाऊ। एक अच्छा पति, भाई, बेटा एक अच्छा इंसान बनकर रह सकूं मेरे परिवार में सभी हसीं ख़ुशी और सुखमाय से रहे।

सुरभि... हे देवी मैं आप'से क्या मांगू बिना मांगे ही अपने सब दे दिया एक अच्छा बेटा दिया एक अच्छी सर्व गुण संपन्न बहु दिया बस आप मेरे परिवार पर कृपा दृष्टि बनाए रखना।

राजेंद्र... हे देवी आप'का दिया सब कुछ मेरे पास हैं फ़िर भी एक विनती है मेरे पूर्वजों का दिया कार्य भार वहन कर पाऊं ऐसा सामर्थ मुझे देना और मेरे परिवार में सभी को साकुशल रखना।

सुकन्या...हे देवी आप खुद जानते हैं अपने मेरे भाग्य में क्या लिखा बस इतनी कृपा करना इससे बूरा ओर मेरे साथ न हों मेरे पति ही मेरा सब कुछ हैं। उन्हें सद्बुद्धि देना वो बूरा मार्ग छोड़कर सत मार्ग पर चले मेरा एक मात्र बेटा अपश्यु कभी अपने बाप जैसा न बनें और मेरे परिवार में कभी किसी के साथ अहित न हों पाए। मैं ऐसा आशीर्वाद आप'से मांगती हूं।

रावण...हे देवी मेरे अपनो और सपनों इन दोनों में से मैं किसे चुनूं कोई रह नजर नहीं आ रहा। मुझे कोई रह दिखाओ बस इतना ही आप'से विनती हैं।

अपश्यु... हे देवी मैंने बहुत से पाप कर्म किया हैं जिसकी शायद ही मुझे माफी मिल पाए फ़िर भी आप मुझे माफ कर देना। मैं बूरा मार्ग छोड़कर सत मार्ग पर चलने की शपथ लिया हैं। जानता हूं मेरा चुना सत मार्ग बहुत कठिन हैं। बस इतनी कृपा करना मैं इस मार्ग पर बिना डिगे चल पाऊं। बस मेरी इतनी सी अर्जी मन लेना।

पुष्पा... हे देवी मेरे बुद्धू अशीष ips बन जाए इतनी कृपा उस पर कर देना बाकि मुझे अपने लिए कुछ नहीं चाहिए। मेरा परिवार और होने वाला नया परिवार हमेशा खुश रहें। बस इतनी कृपा मुझ पर कर देना।

सभी के मन ने जो चाहा वैसा ही आर्शीवाद देवी से मांगा फ़िर उठकर पुरोहित को नमन किया। इसके बाद जो छोटे थे वे अपने से बड़ों का पैर छूकर आशीर्वाद लिया फिर मंदिर प्रांगण से बहार आ गए।

मुंशी अपने बीबी और बेटे के साथ पधारे अभी कुछ ही देर हुआ था। वे आकर देखा पूजा लगभग समाप्त होने वाला था। इसलिए अंदर न जाकर बहार ही रूक गए। मुंशी को देर से आया देखकर राजेंद्र थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोला... मुंशी तू आया ही क्यों जब पूजा में नहीं बैठ पाया तो तेरे आने का फायदा ही क्या हुआ इससे अच्छा तो तू नहीं आता।

मुंशी राजेंद्र की बात सुनकर थोड़ा सा मुस्कुराया फ़िर राजेंद्र के पास जाते हुए बोला…अरे राजा जी आप इतना गुस्सा क्यों हों रहें हों मैंने कहा था आऊंगा तो आ पहुंचा बस देर से पहुंचा इसकी वजह हमारी कार हैं जो बीच रस्ते में खबर हों गया। कार ठीक करवाने में देर हों गया इसलिए देर से पहुंचा इसमें मेरा कोई दोष नहीं हैं जो भी हुआ सारा दोष कार का हैं।

राजेंद्र... देर से आया तो ख़ुद के बचाव में कोई न कोई बहाना बनाना ही था। गलती खुद किया ओर दोष कार को दे रहा हैं।

पति का बचाव करते हुए उर्वशी टपक से बीच में बोला पड़ी... राजा जी ये सही कह रहे है हमारी कार सच में खराब हों गईं थी। अब आप ही बताएं बिना कार सही करवाए हम कैसे पहुंच पाते।

उर्वशी को पति का पक्ष लेता देखाकर सुरभि तंज भरे लहजे में बोली... हां हां तू तो बोलेगी ही मुंशी भाई साहब तेरा पति हैं पति के बचाव करना बनता हैं।

उर्वशी... मैं सच बोल रहीं ही आप'को यकीन नहीं हों रहा हैं तो, रमन की तरफ देखते हुए बोली... रमन से पूछ कर देखो रमन तो आप'से झूठ नहीं बोलेगा।

राजेंद्र ... अच्छा अच्छा मानता हूं आप और मंशी सही बोल रहे हों अब चलो चलकर कुछ दान पुण्य का काम कर लिया जाएं।

मुंशी…राजा जी जब आ ही गए है तो पहले देवी के दर्शन कर लूं फिर दान पुण्य भी कर लुंगा।

मुंशी की बात सुनकर सभी मंद मंद मुस्कुरा दिए फिर मुंशी परिवार सहित मंदिर के अंदर गए। देवी के सामने शीश नवाकर नमन किया फिर बहार आ गए। जब तक मुंशी बहार नहीं आया तब तक राजेंद्र परिवार सहित खड़ा रहा मुंशी के आते ही सभी साथ में मंदिर के सामने बनी पंडाल में पहुंचे।

राजेंद्र ने ऐलान करवा दिया था कि मंदिर में सभी जरूरत मंद लोगों की जरूरत पूरा किया जाएगा। ये सूचना सुनकर जरूरत मंद लोगों का जमघट पंडाल में लग गया।


राजेंद्र को सापरिवार पंडाल में पधारते ही पंडाल में मौजूद सभी लोग राजेंद्र की जय जयकर करने लग गए। उन्हीं में से कई लोग जो रावण के जुल्मों का शिकार हुआ था। रावण को राजेंद्र के साथ देकर अपने अंदर जमे घृणा को शब्दों के रूप में बहार निकाला।

"आ गया कमीना दिखावा करने अभी दान करेगा बाद में अपने चमचों को भेजकर हमसे छीन लेगा।"

"पापी तू कितना भी देवी के दरबार में माथा टेक ले तेरा पाप कर्म तेरा पीछा कभी नहीं छोड़ने वाला हमारे मन में जितना सम्मन राजा जी के लिए है उतना ही घृणा तेरे लिए हैं।"

राजेंद्र की जय जयकार करने के बाद भीड़ शांत हुआ तब राजेंद्र बोला… मैं और मेरे परिवार हमेशा आप सभी के भाले के लिए सोचा है। दुःख सुख में आप के साथ खड़े रहें हैं। जितना मन सम्मन मैं आप'को देता हूं उतना ही मन सम्मन से आप सभी ने मुझे नवाजा हैं। बहुत समय बाद हमारे महल में खुशियां आई है। हमारे परिवार में एक सदस्य की बड़ोत्री मेरे पुत्र बधु के रूप में हुआ हैं। मेरे परिवार में आई इस खुशी के पल को आप सभी के साथ बाटने आया हूं। थोड़ी ही देर में मेरा पुत्र और पुत्रबधु आप सभी के जरूरत के मुताबिक आप सभी को कुछ दान देंगे आप सभी से निवेदन है आप सभी उस दान को सहस्र स्वीकार करें।

"जी राजा" "जी राजी" की गूंज पूरे वादी में जोर सोर से गूंज उठा। कमला इन गुजती आवाजों को सुनकर पास खड़ा रघु का हाथ कसकर पकड़ लिया जीवन में पहली बार इतने लोगों को एक साथ किसी की जय जयकर करते हुए सन रहीं थीं। वो तय नहीं कर पा रहीं थीं किस तरह का रिएक्ट करें जब समझ नहीं आया तो रघु का हाथ कसकर पकड़ लिया।

कमला का चेहरा घूंघट से ढका हुआ था इसलिए रघु, कमला का चेहरा न देख पाया रघु को लगा कमला शायद इतने लोगों की आवाज़ एक साथ सुनकर डर गई होगी तो कमला के कंधे पर हाथ रखकर बोला...कमला क्या हुआ? डर लग रहा है जो इतना कसके मेरा हाथ पकड़ लिया।

कमला... जी डर नहीं रहीं हूं पहली बार इतने लोगों की आवाज़ एक साथ सूना तो समझ नहीं पाई कैसा रिएक्ट करू।

रघु...कमला अब आदत डाल लो क्योंकि आगे ओर न जानें कितनी बार तुम्हें ऐसी भीड़ की आवाज़ें सुनने को मिलेगा।

कमला सिर्फ हां में मुंडी हिला दिया। इससे आगे कुछ नहीं कहा। पर रघु का हाथ नहीं छोड़ा तब रघु अपना दूसरा हाथ भी कमला के हाथ पर रख दिया। पति का दूसरे हाथ का स्पर्श पाकर कमला घूंघट के अंदर से सिर ऊपर उठकर रघु को देखा और मंद मंद मुस्कुरा दिया।

राजेंद्र के कहने पर दान लेने आये हुए सभी जनता कतार में खड़े हों गए। एक एक कर आते गए। रघु और कमला के हाथों से दान लेते गए। दुआएं दिया ओर अपने अपने रस्ते चले गए।

भीड़ बहुत ज्यादा था सिर्फ कमला और रघु दान करते रहे तो समय बहुत लग जाता इसलिए राजेंद्र के कहने पर बाकि बचे सभी दोनों का हाथ बटाने लग गए।

इतने लोगों के एक साथ दान करने से भिड़ जल्दी जल्दी काम होने लग गया। उन्हीं भीड़ में एक बुजुर्ग महिला लाठी का सहारा लेकर आगे बढ़ रहीं थीं। बुर्जुग महिला जिस कतार में थीं अपश्यु उसी कतार से आ रहे लोगों को दान की चीजे दे रहा था। आगे आते आते बुजुर्ग महिला अपश्यु को देखकर रूक गई।

शायद बुर्जुग महिला अपश्यु के हाथों दान नहीं लेना चहती थी या फ़िर अपश्यु से डर रहीं थीं जो भी हों बुर्जुग महिला आगे बढ़ने से कतरा रहीं थीं। इसलिए थम सी गई। कतार में जल्दी आगे आने की कोशिश के चलते पीछे धक्का मुक्की हुआ। जिसकी चपेट में बुर्जुग महिला आ गईं। खुद को संभाल न पाने की वजह से बुर्जुग महिला सामने की ओर गिर गई।

बुर्जुग महिला को गिरते देखकर। हाथ में उठाया हुआ सामान अपश्यु नीचे रख दिया और तुरंत बुर्जुग महिला के पास पहुंच गया। सहारा देकर बुजुर्ग महिला को उठना चाहा तो बुर्जुग महिला अपश्यु का हाथ हटाकर करकस स्वर में बोली...मैं इतनी भी बेसहारा नहीं हुई हूं कि तुझ जैसा पापी का सहारा लेना पड़े छोड़ मुझे papiiii।

बुर्जुग महिला की दो टूक बाते सूनकर अपश्यु कुछ क्षण के लिए थम सा गया। उसे समझ नहीं आया की बजुर्ग महिला ने उससे ऐसा कहा तो कहा क्यों? जानने की जिज्ञासा मन में लेकर अपश्यु बोला... बूढ़ी मां मैं जनता हूं मैंने बहुत से पाप कर्म किया हैं। पर आप'के साथ तो ऐसा कुछ भी न किया फिर अपने मुझे ऐसा क्यों कहा?

बुजुर्ग महिला एक गहरी सांस लिया फ़िर बोला... पापी तूने पाप कर्म किया वो याद हैं। जिनके साथ किया वो भी शायद याद हैं पर जो तेरे दुष्कर्मों की शिकार बनी उनके परिवार वाले तूझे याद नहीं, तेरे दुष्कर्मों की शिकार बनी एक अबला मेरी एक मात्र सहारा थीं। जिसे तूने मुझ'से छीनकर मुझे बेसहारा कर दिया अब आया दिखावे की सहारा देने छोड़ मुझे तेरे सहारे की जरूरत नहीं हैं।

बुर्जुग महिला के इतना बोलने से अपश्यु बुर्जुग महिला को छोड़कर बेजान मूरत सा बैठ गया। ख़ुद के किए कर्मों को एक बार फ़िर से याद करने लग गया।

कतार में खडा एक बंदा निकलकर आया। बुर्जुग महिला को सहारा देकर उठने में मदद किया। बुर्जुग महिला लाठी का सहारा लेकर धीरे धीर आगे बढ़ गए। अपश्यु बेजान मूरत सा वहीं बैठा रहा।

बुर्जुग महिला धीरे धीरे चलते हुए रघु और कमला के पास पहुंचा। एक वृद्ध महिला को आया देखकर रघु ने पहले उनको दान दिया। दान लेने के बाद बुर्जुग महिला हाथ ऊपर उठाकर आर्शीवाद दिया फिर धीरे धीरे अपने रस्ते चली गईं।

अजीब सा मंजर बन गया जहां एक ही परिवार के दो बेटे के प्रति एक बुर्जुग महिला का मनोभाव अलग अलग हैं। एक के लिए प्यार और आर्शीवाद दूसरे के लिए सिर्फ और सिर्फ घृणा ओर कुछ नहीं!

अपश्यु कुछ वक्त तक मूरत जैसा बैठा रहा फ़िर उठकर वहां से थोड़ा दूर जाकर खडा हों गया। सोचा था दान पुण्य करके पाप का बोझ थोड़ा कम करेगा पर हुआ उल्टा एक बुर्जुग की बातों ने उसे एक बार फ़िर से उसके किए दुष्कर्मों को याद करवा दिया। अपने किए पाप कर्मों का बोझ अपश्यु को इतना भारी लगा की उससे वहा खडा न रहा गया। इसलिए वहा से दूर खडा होकर सिर्फ देखना ही बेहतर समझा।

जब तक लोग आते रहें तब तक सभी दान करते रहें। दान लेकर सभी रघु और कमला को अशीष देकर चले गए। दान पुण्य का समापन होते होते अंधेरा हों गया। सभी थक भी चुके थे इसलिए ओर ज्यादा देर करने से घर वापस लौटना बेहतर समझा। सभी जैसे जैसे आए वैसे ही घर को चल दिया। सभी के चेहरे पर थकान दिख रहा था पर उसमे भी एक सुखद अनुभूति नजर आ रहा था। इन्ही में सिर्फ अपश्यु ही एक ऐसा था जिसके चेहरे पर थकान के साथ साथ दुनिया भार का दर्द और उदासी झलक रहा था।



आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यहां तक साथ बने रहने के लिय बहुत बहुत शुक्रिया। 🙏🙏🙏🙏
bade hi sarafat ke sath aapashyu ki puri ijjat ko pel di us budhi aurat ne . thodi der ke liye sukun dhundne mandir aya tha par sukun ke sath man ki santi bhi chin gai uski . kahani super ja rhi bhai.
 

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