Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

R

Riya

Update - 43


अलग अलग भाव चेहरे पर लिए सभी घर पहुंच चुके थे। कुछ देर रेस्ट करने के बाद मुंशी जाने की अनुमति मांगा तो राजेंद्र बोला...अभी कहीं जानें की जरूरत नहीं हैं यहीं रूक जा सुबह चला जाना।

मुंशी...राजा जी ज्यादा रात नहीं हुआ हैं आराम से पहूंच जाऊंगा सुबह ऑफिस भी जाना हैं।

राजेंद्र डांटते हुए बोला…तू एक बार में सुनता क्यों नहीं बहुत ढींट हो गया हैं। खाना बन गया है चुप चाप खाना खाकर रात यहीं बीता ले सुबह यहां से ऑफिस चला जाना।

राजेंद्र की बातों का जवाब मुंशी दे पाता उसे पहले पुष्पा टपक से बोल पड़ी...kakuuuu...।

पुष्पा की बातों को बीच में काटकर मुंशी बोला…मैं समझ गया तुम क्या बोलना चाहती हों। बुढ़ापे में मुझे तुम्हारी दी हुई सजा नहीं भुगतना हैं इसलिए तुम्हारा कहना मन कर रात यहीं रूक जाता हूं।

पुष्पा…बिना जिद्द किए आप पापा की बात मान लेते तो मुझे बीच में न बोलना पड़ता। आजकल आप कुछ ज्यादा ही जिद्द करने लग गए हों शायद आप भुल गए हों जिद्द सिर्फ महारानी पुष्पा ही karegiiiii...। करेंगी को थोड़ा लम्बा खींचा फ़िर कुछ सोचकर बोली... नहीं नहीं सिर्फ महारानी पुष्पा नहीं भाभी भी चाहें तो जिद्द कर सकती हैं। फिर कमला की ओर देखकर बोली... भाभी आप चाहो तो जिद्द कर सकती हों पर बाकी घर वालों के सामने। महारानी पुष्पा के सामने आप'की कोई जिद्द नहीं चलेगी समझें bahuraniiiiii...।

पुष्पा की बाते सुनकर सभी खिलखिलाकर हंस दिए। पल भार में सभी का थका हुआ चेहरा खिल उठा।

"Oooo महारानी पुष्पा, बहु की जिद्द सबके सामने चलेगी। तूझे भी बहु की जिद्द मानना पड़ेगा नहीं मानी toooo...।" इतना बोलकर सुरभि अपने जगह से उठकर पुष्पा के पास आने लगी।

मां को आता देख पुष्पा तुरंत अपने जगह से उठकर राजेंद्र के पीछे जाकर खडी हों गई फिर राजेंद्र का सिर जितना खुद की तरफ घुमा सकती थी घुमाकर बोली...पापा आप मां को कुछ कहते क्यों नहीं जब देखो मेरे कान के पीछे पड़ी रहती हैं। मेरी कान खीच खीचकर yeeeee इतना लंबा कर दिया।

एक बार फ़िर सभी खिलखिलाकर हंस दिए। कुछ देर सभी तल से ताल मिलाकर हंसते रहें फिर कमला बोली...ननद रानी तुम्हारे अकेले के जिद्द करने से सभी को दिन में तारे नज़र आ जाते हैं। मैं भी तुम्हारे साथ साथ जिद्द करने लग गई तो सभी का हाल और बूरा हों जायेगा। इसलिए आप अकेले ही जिद्द करों।

पुष्पा मुंह भिचकते हुए बोली...umhuuu भाभी आप मुझे छेड़ रहीं हों महारानी पुष्पा को, भाभी हों इसलिए बच गई नहीं तो अभी के अभी आप'से उठक बैठक करवा देता।

पुष्पा की बाते सुनकर और बोलने की अदा देखकर अपश्यु भी हसने से खुद को रोक नहीं पाया। वो भी सभी के साथ हसने लग गया। कुछ देर हंसने के बाद अपश्यु बोला... ओ महारानी सभी को सजा दो मुझे कोई हर्ज नहीं हैं पर भाभी को सजा देने की सोचना भी मत नहीं तो...।

अपश्यु के बातों को बीच में कटते हुए पुष्पा बोली…लो भाभी आप'की साईड लेने के लिए गूंगा भी बोल पड़ा। वैसे भईया लगता हैं आज आप कुछ ज्यादा ही थक गए हों।

पुष्पा की बातो का जवाब कोई दे पता उससे पहले सभी को रोकते हुए पुष्पा बोली…बस बाते बहुत हों गई। आगे कोई कुछ नहीं बोलेगा महारानी पुष्पा को खाना खाना हैं बहुत जोरो की भूख लगी हैं।

इतना बोलकर पुष्पा कीचन की तरफ देखकर तेज आवाज़ में बोली... रतन दादू खाना लगाओ आप'की महारानी को बहुत जोरो कि भूख लगी हैं। साथ ही बहुत थक गई हूं आज मंदिर में किसी ने काम नहीं किया सभी काम महारानी पुष्पा से करवाया। सब के सब अलसी हैं हाथ पे हाथ धारे बैठे रहें ये नहीं की महारानी की थोड़ी मदद कर दूं।

"महारानी जी अभी खाना लगाता हूं आप हाथ मुंह धोकर आओ।" कीचन से रतन तेज आवाज में बोला।

पुष्पा...जाओ सभी जाकर हाथ मुंह धोकर आओ ज्यादा देर किया तो किसी को खाना नहीं मिलेगा। महारानी पुष्पा भी हाथ मुंह धोकर अभी आया ।

इतना बोलकर पुष्पा सरपट रूम को भाग गई। पुष्पा को भागते देखकर एक बार फ़िर से सभी हंस दिए फिर एक एक कर अपने अपने रूम में हाथ मुंह धोने चले गए। कुछ ही वक्त में सभी हाथ मुंह धोकर आ गए। हंसी ठिठौली करते हुए सभी ने खाना खा लिया। खाने से निपटकर मुंशी, रमन और उर्वशी गेस्ट रूम में चले गए। बाकी बचे लोग अपने अपने रूम में चले गए।

सभी पर थकान इतना हावी हों चका था की लेटते ही सभी को नींद ने अपने अघोष में ले लिया।

सुबह सभी समय से उठे फिर एक एक करके नाश्ते के टेबल पर मिले नाश्ता किया फिर उठ रहें थें की राजेंद्र बोला...मुंशी अगले हफ्ते इतवार को घर पर एक ग्रैंड पार्टी रखा हैं। तूझे पहले ही कह दे रहा हूं बार बार न कहना पड़े।

दोस्त ने कहा तो उसे टाला भी नहीं जा सकता साथ ही एक राजा की तरह मुंशी, राजेंद्र का सम्मान करता हैं। इसलिए सिर्फ मुस्कुराकर हां में सिर हिला दिया। मुंशी से हां सुनने के बाद राजेंद्र ने रावण से बोला... रावण अबकी बार जो करना हैं तूझे ही करना हैं पार्टी का सारा जिम्मा तू ने अपने कंधे पर लिया हैं। जो करना हैं जैसे करना हैं कर बस इतना ध्यान रखना हमारे पुरखों की बनाई शान में कोई आंच न आए।

रावण...दादाभाई आप निश्चिंत रहें। पार्टी इतना शानदार होगा की सभी दार्जलिंग बसी देखते रह जाएंगे। सिर्फ वाहा वाही के आलावा उनके मुंह से कोई दूसरा लब्ज़ नहीं निकलेगा।

राजेंद्र...वाहा वाही तो लोग करेगें ही पर इस बात का ध्यान रखना जो भी पार्टी में सामिल होने आए चाहें वो नीचे तबके का क्यों ना हों किसी का निरादर नहीं होना चाहिए।

रावण…आप निश्चिंत रहें किसी का निरादर नहीं होगा इसका मैं विशेष ध्यान रखूंगा।

रावण का यूं भाई के हां में हां मिलना सुकन्या को खटका तो मन ही मन बोली... इनके मान में क्या चल रहा हैं? कहीं ये पार्टी के नाम पर कोई साज़िश तो न रचने वाले मुझे इन पर नज़र रखना होगा।

बातों का एक लंबा दौर चला फ़िर सभी की सहमती से परिवारिक वार्ता सभा का अंत हुआ। अंत होते ही मूंशी परिवार सहित चला गया। रावण और रघु भी ऑफिस चले गए। राजेंद्र उठकर रूम में गया तो सुरभि भी पीछे पीछे चल दिया।

इधर कलकत्ता में मनोरमा और महेश नाश्ता कर रहें थें। बेटी को विदा हुए लगभग चार दिन हों गए थे। जब भी दोनों खाने को बैठते उन्हें एक शक्श की कमी खालता मनोरमा बार बार बगल की कुर्सी को देख रहीं थीं। जैसे उसे लग रहा था बगल में उसकी बेटी बैठी हैं। जब उधर को देखती तो वहां कुर्सी खाली दिखता।

मनोरमा को यूं बार बार बगल झांकते देखकर महेश बोला... मनोरमा क्या हुआ यूं ताका झाकी क्यों कर रहीं हों। कुछ चाहिए तो बोलों मैं ला देता हूं।

महेश ने बस इतना ही बोला था की मनोरमा फूट फुट कर रोने लग गईं। महेश को समझते देर नहीं लगा की मनोरमा बगल में किसे ढूंढ रही थीं। महेश उठकर मनोरमा के पास आया और बोला... मनोरमा तुम अपने बगल वाली कुर्सी पर जिसके बैठें होने की उम्मीद कर रहीं हों वो अब अपने घर चली गई हैं….।

महेश पूरा बोल ही नहीं पाया अधूरा बोलकर महेश भी फूट फुटकर रो दिया। मनोरमा रूवासा आवाज़ में बोली... मुझे ये घर कमला के बिना काटने को दौड़ती हैं। वक्त वेवक्त उसकी अटखेलियां करना उसकी शरारते याद आती हैं। क्या हम कमला के साथ जाकर नहीं रह सकतें। वो ही तो हमारा इकलौती सहारा हैं।

महेश का हाल भी दूजा नहीं था। उसे भी बेटी की कमी खल रहा था। जिसे बिना देखे एक पल चैन से नहीं रह पाता था। वो चार दिन से बेटी को बिना देखे सिर्फ उसकी आवाज़ सुनकर मन को सांत्वना दे रहा था।

मनरोमा के कहने से महेश को भी लगा की मनोरमा सही कहा रहीं हैं। उसे अपने बेटी के पास जाकर रहना चाहिए पर समाज के कुछ कायदे कानून हैं। उसका ध्यान आते ही महेश बोला...मनोरमा मैं भी चाहता हूं की हम बेटी के साथ रहें पर समाज हमे इसकी इजाजत नहीं देती। मां बाप के लिए बेटी के घर का अन्ना खाने पर मनाही हैं। तो हम कैसे बेटी के साथ रह सकतें हैं।

मनोरमा…समाज के बनाए ये कायदे कानून आप'को ठीक लगाता हैं। हमने ही बेटी को इस धरती पर लाया लालन पालन करके बड़ा किया। हमारे कन्या दान करने के करण ही वो आज किसी के घर की बहु बनी। हमने इतना कुछ किया फिर भी समाज कहता हैं। हम अपने बेटी के साथ नहीं रह सकतें उसके घर का अन्य नहीं खा सकतें। ऐसा क्यों कहते हैं?

महेश के पास इस सवाल का कोई वाजिब जवाब नहीं था। होता भी कैसे क्योंकि एक बेटी के, मां बाप के सवाल का किसी के पास कोई जब नहीं हैं। ये तो सिर्फ और सिर्फ समाज की बनावटी उसूल हैं। किसी ने कह दिया बस बिना किसी बहस के मानते चले आए। क्यों कहा उसके तह तक पहुंचना किसी ने नहीं चाह।

बरहाल दोनों के पास इस सवाल का कोई ज़बाब नहीं था मनोरमा ने पूछ तो लिया पर वो भी जानती थीं। उसके पूछे गए सवाल का महेश तो किया किसी के पास कोई जवाब नहीं हैं। इसलिए दोनों चुप रहें।

दोनों की चुप्पी और घर में फैली सन्नाटे को दरवाजे की ठाक ठाक ने भंग किया। खुद को संभाला बहते अंशु को पोछा फिर महेश जाकर दरवाजा खोला। आए हुए शक्श को देखकर महेश बोला... अरे शालू बेटी आओ आओ अंदर आओ।

"अंकल आज फ़िर आप कमला को याद करके रो रहे थें।" इतना बोलकर शालू अंदर आई फिर मनोरमा के पास जाकर बोली... आंटी माना की मैं आप'की सगी बेटी नहीं हूं पर कमला की सहेली होने के नाते आप'की बेटी जैसी हूं। आप'को कहा था जब भी कमला की याद आए मुझे या चंचल को बुला लिया करों पर आप हों की सुनती नहीं।

मनोरमा... किसने कहा तुम मेरी बेटी नही हों बेटी ही हों बस तुम्हारा बाप कुछ न कहें इसलिए नहीं बुलाती हूं। तुम तो जानती हों जब कमला थीं तब भी तुम्हें तुम्हारा बाप आने नहीं देती थीं। अब तो कमला की शादी हों गईं हैं। अब न जानें तुम्हें कितनी बाते सुनने को मिलती होगी।

शालु...आंटी पापा तो कहते ही रहते हैं मुझे आदत पड़ गई हैं। अच्छा ये बताओं नाश्ते में किया बनाया बहुत जोरों की भूख लगा हैं।

"तुम बैठो मैं तुम्हारे लिए नाश्ता लेकर आती हूं" इतना कहाकर मनोरमा कीचन से नाश्ता लाकर दिया। शालु घर से नाश्ता करके आई थीं। सिर्फ और सिर्फ मनोरमा का मन बहलाने के लिए कहा था। तो मनोरमा के नाश्ता लाते हो शालू नाश्ता करने लग गई।

अभी अभी मनोरमा और महेश को बेटी की कमी खल रही थीं। दोनों बेटी को याद करके रो रहें थें। शालु के आते ही पल भार में माहौल बादल गया। दोनों की उदासी उड़ान छूं हों गई। शालु नाश्ता करते हुए तरह तरह की बाते करके दोनों का मन बहला रही थीं।

तीनों बाते करने में लगे रहें। टेलीफोन ने बजकर उनके बातों में खलल डाल दिया। महेश जाकर फोन को रिसीव किया। दूसरे ओर से कुछ बोला गया ज़बाब में महेश बोला…राजेंद्र बाबू हम कुशल मंगल हैं। आप और आप'का परिवार कैसे हैं?

राजेंद्र... प्रभु की कृपा से हम सभी खुशहाल हैं। अगले हफ़्ते इतवार को हमने एक पार्टी रखीं हैं। आप और समधन जी सादर आमंत्रित हैं। आप आयेंगे तो मैं और मेरे परिवार की खुशी ओर बढ़ जाएंगी।

महेश...अपने मुझे आमंत्रित किया इसके लिए आप'को बहुत बहुत शुक्रिया। किन्तु आप ये भली भांति जानते है शादी के बाद मां बाप का,बेटी के घर का अन्य जल न गृहण करने का रिवाज हैं। तो अब आप ही बताइए मैं क्या करूं।

राजेंद्र...महेश बाबू मैं भी एक बेटी का बाप हूं। मेरे लिए भी ये रिवाज़ हैं। परंतु मेरे लिए मेरी बेटी की ख़ुशी सबसे ज्यादा मायने रखता है। जहां तक मैं जानता हूं आप'के लिए भी आप'की बेटी की ख़ुशी सब से पहले होगा। अब आप खुद ही सोचकर फैसला लीजिए की आप'के लिए बेटी की खुशी प्यारी हैं या फ़िर समाज के बनाए ये रिवाज़ जो निराधार हैं।

महेश...राजेंद्र बाबू बेटी के घर अन्न जल ना खाने का रिवाज़ आगर बनाया हैं तो कुछ सोच समझकर ही बनाया होगा। ये निराधार तो नहीं हों सकता। इसलिए….।

महेश के बातों को बीच में काटकर राजेंद्र बोला... महेश बाबू मेरे लिए बेटी के घर अन्न जल न खाने वाला रिवाज हमेशा निराधार रहेगा। मैं चाहूंगा आप भी इस रिवाज़ को ज्यादा तवज्जों न दे। आप खुद ही सोचिए आप के आने से बहु को कितनी खुशी होगी। मैं सिर्फ बहु को खुश देखना चाहता हूं। इसलिए आप दोनों को आना ही होगा।

आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏
Wonderful update, bhale hi pushpa ka vyavhar majakia aur hansi thitholi jeisa ho par use apna tehjib nahi bhulni chahie . yadi aisa hi chalta raha, kal ko jab bahu bankar sasural jaegi aur aesi chanchalta aur bachpna dikhegi, mata pita ki hi nak kategi.
aksar ladki sasural jane ke bad mata pita ka haal yehi hota hai. pal pal yad satati hai beti ki.
kya shaalu ke papa aur mahesh ke bich koi an ban hai?
 
Eaten Alive
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Update - 43


अलग अलग भाव चेहरे पर लिए सभी घर पहुंच चुके थे। कुछ देर रेस्ट करने के बाद मुंशी जाने की अनुमति मांगा तो राजेंद्र बोला...अभी कहीं जानें की जरूरत नहीं हैं यहीं रूक जा सुबह चला जाना।

मुंशी...राजा जी ज्यादा रात नहीं हुआ हैं आराम से पहूंच जाऊंगा सुबह ऑफिस भी जाना हैं।

राजेंद्र डांटते हुए बोला…तू एक बार में सुनता क्यों नहीं बहुत ढींट हो गया हैं। खाना बन गया है चुप चाप खाना खाकर रात यहीं बीता ले सुबह यहां से ऑफिस चला जाना।

राजेंद्र की बातों का जवाब मुंशी दे पाता उसे पहले पुष्पा टपक से बोल पड़ी...kakuuuu...।

पुष्पा की बातों को बीच में काटकर मुंशी बोला…मैं समझ गया तुम क्या बोलना चाहती हों। बुढ़ापे में मुझे तुम्हारी दी हुई सजा नहीं भुगतना हैं इसलिए तुम्हारा कहना मन कर रात यहीं रूक जाता हूं।

पुष्पा…बिना जिद्द किए आप पापा की बात मान लेते तो मुझे बीच में न बोलना पड़ता। आजकल आप कुछ ज्यादा ही जिद्द करने लग गए हों शायद आप भुल गए हों जिद्द सिर्फ महारानी पुष्पा ही karegiiiii...। करेंगी को थोड़ा लम्बा खींचा फ़िर कुछ सोचकर बोली... नहीं नहीं सिर्फ महारानी पुष्पा नहीं भाभी भी चाहें तो जिद्द कर सकती हैं। फिर कमला की ओर देखकर बोली... भाभी आप चाहो तो जिद्द कर सकती हों पर बाकी घर वालों के सामने। महारानी पुष्पा के सामने आप'की कोई जिद्द नहीं चलेगी समझें bahuraniiiiii...।

पुष्पा की बाते सुनकर सभी खिलखिलाकर हंस दिए। पल भार में सभी का थका हुआ चेहरा खिल उठा।

"Oooo महारानी पुष्पा, बहु की जिद्द सबके सामने चलेगी। तूझे भी बहु की जिद्द मानना पड़ेगा नहीं मानी toooo...।" इतना बोलकर सुरभि अपने जगह से उठकर पुष्पा के पास आने लगी।

मां को आता देख पुष्पा तुरंत अपने जगह से उठकर राजेंद्र के पीछे जाकर खडी हों गई फिर राजेंद्र का सिर जितना खुद की तरफ घुमा सकती थी घुमाकर बोली...पापा आप मां को कुछ कहते क्यों नहीं जब देखो मेरे कान के पीछे पड़ी रहती हैं। मेरी कान खीच खीचकर yeeeee इतना लंबा कर दिया।

एक बार फ़िर सभी खिलखिलाकर हंस दिए। कुछ देर सभी तल से ताल मिलाकर हंसते रहें फिर कमला बोली...ननद रानी तुम्हारे अकेले के जिद्द करने से सभी को दिन में तारे नज़र आ जाते हैं। मैं भी तुम्हारे साथ साथ जिद्द करने लग गई तो सभी का हाल और बूरा हों जायेगा। इसलिए आप अकेले ही जिद्द करों।

पुष्पा मुंह भिचकते हुए बोली...umhuuu भाभी आप मुझे छेड़ रहीं हों महारानी पुष्पा को, भाभी हों इसलिए बच गई नहीं तो अभी के अभी आप'से उठक बैठक करवा देता।

पुष्पा की बाते सुनकर और बोलने की अदा देखकर अपश्यु भी हसने से खुद को रोक नहीं पाया। वो भी सभी के साथ हसने लग गया। कुछ देर हंसने के बाद अपश्यु बोला... ओ महारानी सभी को सजा दो मुझे कोई हर्ज नहीं हैं पर भाभी को सजा देने की सोचना भी मत नहीं तो...।

अपश्यु के बातों को बीच में कटते हुए पुष्पा बोली…लो भाभी आप'की साईड लेने के लिए गूंगा भी बोल पड़ा। वैसे भईया लगता हैं आज आप कुछ ज्यादा ही थक गए हों।

पुष्पा की बातो का जवाब कोई दे पता उससे पहले सभी को रोकते हुए पुष्पा बोली…बस बाते बहुत हों गई। आगे कोई कुछ नहीं बोलेगा महारानी पुष्पा को खाना खाना हैं बहुत जोरो की भूख लगी हैं।

इतना बोलकर पुष्पा कीचन की तरफ देखकर तेज आवाज़ में बोली... रतन दादू खाना लगाओ आप'की महारानी को बहुत जोरो कि भूख लगी हैं। साथ ही बहुत थक गई हूं आज मंदिर में किसी ने काम नहीं किया सभी काम महारानी पुष्पा से करवाया। सब के सब अलसी हैं हाथ पे हाथ धारे बैठे रहें ये नहीं की महारानी की थोड़ी मदद कर दूं।

"महारानी जी अभी खाना लगाता हूं आप हाथ मुंह धोकर आओ।" कीचन से रतन तेज आवाज में बोला।

पुष्पा...जाओ सभी जाकर हाथ मुंह धोकर आओ ज्यादा देर किया तो किसी को खाना नहीं मिलेगा। महारानी पुष्पा भी हाथ मुंह धोकर अभी आया ।

इतना बोलकर पुष्पा सरपट रूम को भाग गई। पुष्पा को भागते देखकर एक बार फ़िर से सभी हंस दिए फिर एक एक कर अपने अपने रूम में हाथ मुंह धोने चले गए। कुछ ही वक्त में सभी हाथ मुंह धोकर आ गए। हंसी ठिठौली करते हुए सभी ने खाना खा लिया। खाने से निपटकर मुंशी, रमन और उर्वशी गेस्ट रूम में चले गए। बाकी बचे लोग अपने अपने रूम में चले गए।

सभी पर थकान इतना हावी हों चका था की लेटते ही सभी को नींद ने अपने अघोष में ले लिया।

सुबह सभी समय से उठे फिर एक एक करके नाश्ते के टेबल पर मिले नाश्ता किया फिर उठ रहें थें की राजेंद्र बोला...मुंशी अगले हफ्ते इतवार को घर पर एक ग्रैंड पार्टी रखा हैं। तूझे पहले ही कह दे रहा हूं बार बार न कहना पड़े।

दोस्त ने कहा तो उसे टाला भी नहीं जा सकता साथ ही एक राजा की तरह मुंशी, राजेंद्र का सम्मान करता हैं। इसलिए सिर्फ मुस्कुराकर हां में सिर हिला दिया। मुंशी से हां सुनने के बाद राजेंद्र ने रावण से बोला... रावण अबकी बार जो करना हैं तूझे ही करना हैं पार्टी का सारा जिम्मा तू ने अपने कंधे पर लिया हैं। जो करना हैं जैसे करना हैं कर बस इतना ध्यान रखना हमारे पुरखों की बनाई शान में कोई आंच न आए।

रावण...दादाभाई आप निश्चिंत रहें। पार्टी इतना शानदार होगा की सभी दार्जलिंग बसी देखते रह जाएंगे। सिर्फ वाहा वाही के आलावा उनके मुंह से कोई दूसरा लब्ज़ नहीं निकलेगा।

राजेंद्र...वाहा वाही तो लोग करेगें ही पर इस बात का ध्यान रखना जो भी पार्टी में सामिल होने आए चाहें वो नीचे तबके का क्यों ना हों किसी का निरादर नहीं होना चाहिए।

रावण…आप निश्चिंत रहें किसी का निरादर नहीं होगा इसका मैं विशेष ध्यान रखूंगा।

रावण का यूं भाई के हां में हां मिलना सुकन्या को खटका तो मन ही मन बोली... इनके मान में क्या चल रहा हैं? कहीं ये पार्टी के नाम पर कोई साज़िश तो न रचने वाले मुझे इन पर नज़र रखना होगा।

बातों का एक लंबा दौर चला फ़िर सभी की सहमती से परिवारिक वार्ता सभा का अंत हुआ। अंत होते ही मूंशी परिवार सहित चला गया। रावण और रघु भी ऑफिस चले गए। राजेंद्र उठकर रूम में गया तो सुरभि भी पीछे पीछे चल दिया।

इधर कलकत्ता में मनोरमा और महेश नाश्ता कर रहें थें। बेटी को विदा हुए लगभग चार दिन हों गए थे। जब भी दोनों खाने को बैठते उन्हें एक शक्श की कमी खालता मनोरमा बार बार बगल की कुर्सी को देख रहीं थीं। जैसे उसे लग रहा था बगल में उसकी बेटी बैठी हैं। जब उधर को देखती तो वहां कुर्सी खाली दिखता।

मनोरमा को यूं बार बार बगल झांकते देखकर महेश बोला... मनोरमा क्या हुआ यूं ताका झाकी क्यों कर रहीं हों। कुछ चाहिए तो बोलों मैं ला देता हूं।

महेश ने बस इतना ही बोला था की मनोरमा फूट फुट कर रोने लग गईं। महेश को समझते देर नहीं लगा की मनोरमा बगल में किसे ढूंढ रही थीं। महेश उठकर मनोरमा के पास आया और बोला... मनोरमा तुम अपने बगल वाली कुर्सी पर जिसके बैठें होने की उम्मीद कर रहीं हों वो अब अपने घर चली गई हैं….।

महेश पूरा बोल ही नहीं पाया अधूरा बोलकर महेश भी फूट फुटकर रो दिया। मनोरमा रूवासा आवाज़ में बोली... मुझे ये घर कमला के बिना काटने को दौड़ती हैं। वक्त वेवक्त उसकी अटखेलियां करना उसकी शरारते याद आती हैं। क्या हम कमला के साथ जाकर नहीं रह सकतें। वो ही तो हमारा इकलौती सहारा हैं।

महेश का हाल भी दूजा नहीं था। उसे भी बेटी की कमी खल रहा था। जिसे बिना देखे एक पल चैन से नहीं रह पाता था। वो चार दिन से बेटी को बिना देखे सिर्फ उसकी आवाज़ सुनकर मन को सांत्वना दे रहा था।

मनरोमा के कहने से महेश को भी लगा की मनोरमा सही कहा रहीं हैं। उसे अपने बेटी के पास जाकर रहना चाहिए पर समाज के कुछ कायदे कानून हैं। उसका ध्यान आते ही महेश बोला...मनोरमा मैं भी चाहता हूं की हम बेटी के साथ रहें पर समाज हमे इसकी इजाजत नहीं देती। मां बाप के लिए बेटी के घर का अन्ना खाने पर मनाही हैं। तो हम कैसे बेटी के साथ रह सकतें हैं।

मनोरमा…समाज के बनाए ये कायदे कानून आप'को ठीक लगाता हैं। हमने ही बेटी को इस धरती पर लाया लालन पालन करके बड़ा किया। हमारे कन्या दान करने के करण ही वो आज किसी के घर की बहु बनी। हमने इतना कुछ किया फिर भी समाज कहता हैं। हम अपने बेटी के साथ नहीं रह सकतें उसके घर का अन्य नहीं खा सकतें। ऐसा क्यों कहते हैं?

महेश के पास इस सवाल का कोई वाजिब जवाब नहीं था। होता भी कैसे क्योंकि एक बेटी के, मां बाप के सवाल का किसी के पास कोई जब नहीं हैं। ये तो सिर्फ और सिर्फ समाज की बनावटी उसूल हैं। किसी ने कह दिया बस बिना किसी बहस के मानते चले आए। क्यों कहा उसके तह तक पहुंचना किसी ने नहीं चाह।

बरहाल दोनों के पास इस सवाल का कोई ज़बाब नहीं था मनोरमा ने पूछ तो लिया पर वो भी जानती थीं। उसके पूछे गए सवाल का महेश तो किया किसी के पास कोई जवाब नहीं हैं। इसलिए दोनों चुप रहें।

दोनों की चुप्पी और घर में फैली सन्नाटे को दरवाजे की ठाक ठाक ने भंग किया। खुद को संभाला बहते अंशु को पोछा फिर महेश जाकर दरवाजा खोला। आए हुए शक्श को देखकर महेश बोला... अरे शालू बेटी आओ आओ अंदर आओ।

"अंकल आज फ़िर आप कमला को याद करके रो रहे थें।" इतना बोलकर शालू अंदर आई फिर मनोरमा के पास जाकर बोली... आंटी माना की मैं आप'की सगी बेटी नहीं हूं पर कमला की सहेली होने के नाते आप'की बेटी जैसी हूं। आप'को कहा था जब भी कमला की याद आए मुझे या चंचल को बुला लिया करों पर आप हों की सुनती नहीं।

मनोरमा... किसने कहा तुम मेरी बेटी नही हों बेटी ही हों बस तुम्हारा बाप कुछ न कहें इसलिए नहीं बुलाती हूं। तुम तो जानती हों जब कमला थीं तब भी तुम्हें तुम्हारा बाप आने नहीं देती थीं। अब तो कमला की शादी हों गईं हैं। अब न जानें तुम्हें कितनी बाते सुनने को मिलती होगी।

शालु...आंटी पापा तो कहते ही रहते हैं मुझे आदत पड़ गई हैं। अच्छा ये बताओं नाश्ते में किया बनाया बहुत जोरों की भूख लगा हैं।

"तुम बैठो मैं तुम्हारे लिए नाश्ता लेकर आती हूं" इतना कहाकर मनोरमा कीचन से नाश्ता लाकर दिया। शालु घर से नाश्ता करके आई थीं। सिर्फ और सिर्फ मनोरमा का मन बहलाने के लिए कहा था। तो मनोरमा के नाश्ता लाते हो शालू नाश्ता करने लग गई।

अभी अभी मनोरमा और महेश को बेटी की कमी खल रही थीं। दोनों बेटी को याद करके रो रहें थें। शालु के आते ही पल भार में माहौल बादल गया। दोनों की उदासी उड़ान छूं हों गई। शालु नाश्ता करते हुए तरह तरह की बाते करके दोनों का मन बहला रही थीं।

तीनों बाते करने में लगे रहें। टेलीफोन ने बजकर उनके बातों में खलल डाल दिया। महेश जाकर फोन को रिसीव किया। दूसरे ओर से कुछ बोला गया ज़बाब में महेश बोला…राजेंद्र बाबू हम कुशल मंगल हैं। आप और आप'का परिवार कैसे हैं?

राजेंद्र... प्रभु की कृपा से हम सभी खुशहाल हैं। अगले हफ़्ते इतवार को हमने एक पार्टी रखीं हैं। आप और समधन जी सादर आमंत्रित हैं। आप आयेंगे तो मैं और मेरे परिवार की खुशी ओर बढ़ जाएंगी।

महेश...अपने मुझे आमंत्रित किया इसके लिए आप'को बहुत बहुत शुक्रिया। किन्तु आप ये भली भांति जानते है शादी के बाद मां बाप का,बेटी के घर का अन्य जल न गृहण करने का रिवाज हैं। तो अब आप ही बताइए मैं क्या करूं।

राजेंद्र...महेश बाबू मैं भी एक बेटी का बाप हूं। मेरे लिए भी ये रिवाज़ हैं। परंतु मेरे लिए मेरी बेटी की ख़ुशी सबसे ज्यादा मायने रखता है। जहां तक मैं जानता हूं आप'के लिए भी आप'की बेटी की ख़ुशी सब से पहले होगा। अब आप खुद ही सोचकर फैसला लीजिए की आप'के लिए बेटी की खुशी प्यारी हैं या फ़िर समाज के बनाए ये रिवाज़ जो निराधार हैं।

महेश...राजेंद्र बाबू बेटी के घर अन्न जल ना खाने का रिवाज़ आगर बनाया हैं तो कुछ सोच समझकर ही बनाया होगा। ये निराधार तो नहीं हों सकता। इसलिए….।

महेश के बातों को बीच में काटकर राजेंद्र बोला... महेश बाबू मेरे लिए बेटी के घर अन्न जल न खाने वाला रिवाज हमेशा निराधार रहेगा। मैं चाहूंगा आप भी इस रिवाज़ को ज्यादा तवज्जों न दे। आप खुद ही सोचिए आप के आने से बहु को कितनी खुशी होगी। मैं सिर्फ बहु को खुश देखना चाहता हूं। इसलिए आप दोनों को आना ही होगा।

आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏
Pta nahi Destiny sahab kahe is apsyu pe itna reham dikha rahe hai...... :sigh:
 
Will Change With Time
Moderator
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Update - 44


बेटी की शादी को अभी मात्र चार ही दिन हुआ था। इतने काम दिनों में बेटी के प्रति ससुराल वालों की लगाव उसके खुशियों का ध्यान रखने की बात सुनकर महेश मन ही मन गदगद हो उठा। महेश को लग रहा था। उसका समधी राजेंद्र सही कह रहा हैं। उसे सिर्फ और सिर्फ बेटी की खुशी को ही देखना चाहिए। रहीं बात समाज के कायदे कानून कि तो न जानें ऐसे कितने कायदे कानून समाज ने बनाया फ़िर बाद में तोड़ भी दिया।

महेश विचारों में खोया हुआ था। तो कोई प्रतिक्रिया न पाकर राजेंद्र बोला...महेश बाबू क्या हुआ आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे हों। किन ख्यालों में खोए हुए हों।

अचानक कान के पास आवाज़ होने से कुछ क्षण को महेश अचकचा गया। रिसीवर हाथ से छुट गया जब तक रिसीवर जमीन से टकराता तब तक महेश खुद को संभालकर रिसीवर को पकड़ लिए फ़िर कान से लगाकर बोला... राजेंद्र बाबू मैं आप'की कही हुई बातो पर विचार कर रहा था। मेरे विचार से मुझे आप'का निमंत्रण स्वीकार कर लेना चाहिए।

राजेंद्र...अपने बिल्कुल सही विचार किया हैं। आप दोनों समय से आ जाना मुझे दुबारा न कहना पड़े। और हा बहु को पाता न चले की आप दोनों आ रहे हों। मैं बहु को सरप्राइस देखकर उसकी खुशी को दुगुनी करना चाहता हूं।

राजेंद्र की बाते सुनकर महेश के लवों पर मुस्कान आ गया मुस्कुराते हुए महेश बोला…ठीक है राजेंद्र बाबू जैसा अपने कहा वैसा ही होगा। हम पार्टी से एक दिन पहले ही आ जाएंगे।

राजेंद्र... ठीक है अब रखता हूं।

मनोरमा और शालू नजदीक ही थे तो दोनों ने राजेंद्र और महेश के बीच हुई बात चीत सुन लिया था। बेटी के ससुराल से निमंत्रण आया ये जानकर मनोरमा को बेटी से मिलने की चाह तीव्र हों गई पर महेश के आनाकानी करने से मनोरमा को अपनी चाहत अधूरी रहने का डर सताने लगा । किन्तु जब महेश ने हां कहा तब मनोरमा ने एक गहरी सांस लिया फ़िर मुस्कुरा दिया।

महेश फ़ोन रखकर दोनों के पास आने को पलटा तो मनोरमा के खिले और मुस्कुराते चहरे को देखकर स्वत‌: ही उसके चहरे पर मुस्कान आ गया। मुस्कुराते हुए पास आकर बैठा फ़िर बोला... मनोरमा बेटी के ससुराल जाना हैं। जानें की तैयारी तुम अभी से शुरू कर दो।

मनोरमा... तैयारी तो मैं कर ही लुंगा। आप मुझे इतना बता दीजिए आप इतनी आनाकानी क्यों कर रहे थें। जिस बेटी को हमने पैदा किया उसकी खुशी का हमसे ज्यादा उनको ख्याल हैं जिनके घर में बहु बनकर गए अभी कुछ ही दिन हुआ हैं।

महेश... मनोरमा तुम जानते बूझते हुए भी ऐसी बाते कर रहे हों। मनोरमा हमे समाज में सभी के साथ रहना हैं। सभी को साथ लेकर चलना हैं। समाज के बनाए नियमों के विरूद्ध मैं कैसे जा सकता हूं।

मनोरमा...मुझे समाज के नियम कायदे से कुछ लेना देना नहीं हैं। मुझे मेरी बेटी के घर जाना हैं। मुझे जानें से आप या आप'का समाज कोई नहीं रोक सकता।

महेश… समाज के रोकने से मैं भी नहीं रूकने वाला न ही मैं तुम्हें रोकूंगा अब हमारा जब भी मन करेगा हम कमला से मिलने उसके ससुराल जाते रहेगें।

जब मन करे तब बेटी से मिलने जा सकती हैं। ये बातें सुनते ही मनोरमा के चेहरे पर लुभानी मुस्कान आ गई। मनोरमा को मुस्कुरते देख महेश भी मुस्कुरा दिया। बगल में बैठी शालू दोनो के हाव भाव को देख रहीं थीं। दोनों को खुश देखकर शालू भी मंद मंद मुस्कुरा दिया फ़िर अचानक शालू की चेहरे का भाव बदल गई। बदला हुआ भाव चेहरे पर लेकर शालू बोली...अंकल आंटी क्या मैं भी आप'के साथ जा सकती हूं। कमला से मिलने का मेरा भी मान कर रहा है।

मनोरमा...शालु बेटी ये तो अच्छी बात है तुम कमला से मिलने जाना चाहती हों पर क्या तुम्हारे पापा इतने दूर दर्जलिंग जानें देंगे।

महेश...हां बेटी तुम जानती हो की तुम्हारे पापा कैसे है। मुझे नहीं लगाता अनुकूल जी तुम्हें जानें देंगे।

शालु…अंकल आंटी आप दोनों उनसे बात करेंगे तो पक्का पापा जी जानें देगें। क्या आप दोनों अपने इस बेटी के लिए इतना नहीं कर सकते।

शालु के बातों का कोई भी उत्तर मनोरमा या महेश दे पाता उससे पहले ही किसी ने दरवाजा पीट दिया। महेश उठकर दरवाजा खोलने गया और मनोरमा बोली... बेटी तुम्हारी मां जयंती की तरह तुम्हारी बाप की सोच नहीं हैं जो हमारे कहने से तुम्हारा बाप हमारा कहना मानकर तुम्हें हमारे साथ भेज देगा। फ़िर भी मेरे इस बेटी के लिए हम तुम्हारे बाप से बात करने को तैयार हैं। हम सिर्फ बात कर सकते हैं। जानें देना न देना ये तो अनुकूल जी बताएंगे।

महेश जाकर दरवाजा खोला सामने चंचल खड़ी थीं। चंचल को देखकर महेश बोला…कैसी हों चंचल बेटी आओ अंदर आओ.

चंचल... मैं ठीक हूं अंकल। आप कैसे है।

महेश:- मैं ठीक हूं।

इतना बोलकर महेश और चंचल अंदर आ गए फ़िर बैठक की और चल दिया। मनोरमा की बाते सुनकर शालू बोली...आंटी मैं नहीं जानती आप कैसे पापा को मनाएंगे मैं बस इतना ही जानती हूं की मुझे आप के साथ जाना हैं तो जाना हैं।

"शालु तू कहा जाना चाहती हैं और तेरे पापा से क्या बात करनी हैं।" इतना बोलते हुए चंचल शालू के पास जाकर बैठ गई। चंचल को आया देखकर मनोरमा बोली... चंचल शालू हमारे साथ दार्जलिंग जाना चाहती है पर….।

मनोरमा की बाते बीच में काटकर चंचल बोली...आंटी कब जा रहे हो मुझे भी जाना हैं। Pleaseeee मुझे भी साथ ले चलना मुझे भी कमला से मिलना है।

मनोरमा...अगले हफ्ते जाना है। तुम भी चल देना। तुम जाओगी तो कमला को बहुत अच्छा लगेगा।

शालु...aachchaaaa चंचल के जाने से कमला को अच्छा लगेगा तो किया मेरे जानें से कमला को बूरा लगेगा मैं भी उसकी सहेली हूं। मेरे जानें से भी उसे ख़ुशी मिलेंगी।

मनोरमा... हां हां तुम्हारे जानें से भी कमला को खुशी होगी। आखिर तुम दोनों ही उसके सब से ख़ास सहेली हों।

चंचल…शालु तू जाना तो चाहती है लेकिन जाएंगी कैसे...।

चंचल की बात बीच में काट कर शालू बोली... जैसे तू अंकल आंटी के साथ जाएंगी वैसे ही मैं भी अंकल आंटी के साथ जाऊंगी।

चंचल...कैसे जायेगी का मतलब ये नहीं की तू अकेली जाएंगी बल्कि मेरे कहने का मतलब है क्या तूझे तेरे घर से जानें की प्रमीशन मिल जाएंगी। मेरी बात अलग हैं मुझे अंकल आंटी के साथ जानें की प्रमीशन मिल जाएगा कोई और होता तो शायद मुझे प्रमीशन नही मिलता लेकिन तेरा मामला उल्टा हैं।

शालु... वहीं बात तो मैं आंटी से कह रही थीं लेकिन तु बीच में आ टपकी। आंटी आप दोनों पापा से बात करों न मुझे भी जाना हैं। मैं नहीं जा पाई तो सोच लो आप तीनों को भी जानें नहीं दूंगी।

चंचल... कैसे जानें नहीं देगी अजीब जबरदस्ती हैं। तू नही जा पाएगी तो किया हम भी न जाएं। नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं होगा हम तो जाएंगे ही। क्यों आंटी मैंने सही कहा न।

शालु... क्या सही कहा हा बोल क्या सही कहा तू मेरी अच्छी सहेली बिल्कुल नहीं हैं। अच्छी सहेली होती तो मुझे साथ लिए बिना जाती नहीं तूझसे अच्छी तो कमला हैं कम से कम मेरा साथ तो देती हैं।

दोनो को आपस में तू तू मैं मैं करते देखकर महेश बोला... अच्छा अच्छा अब तुम दोनो आपस में न लडो मैं खुद अनुकूल जी से बात करूंगा और जैसे भी हो शालू का हमारे साथ चलने की प्रमीशन मांग लुंगा।

चंचल... हां अंकल कुछ भी करके शालू के पापा से प्रमीशन ले लेना नहीं तो ये ज़िद्दी शालू हम में से किसी को जानें नहीं देगी।

शालु... मैं जिद्दी हूं तो तू किया है बोल!

मनोरमा... तुम दोनों फ़िर से शुरू हों गई अब बस भी करों कोई जिद्दी नहीं हों

चंचल…सूना आंटी ने किया कहा मैं jiddiiii nahiiii honnn ।

शालु... हां हां सूना हैं आंटी ने कहा मैं jiddiiii nahiiii honnn।

इतना बोल दोनों खिलखिलाकर हंस दिया। कुछ ओर वक्त तक दोनों रुके रहे फिर अपने अपने घर को चले गए। दोनों के जानें के बाद महेश और मनोरमा अपने अपने दिन चर्या में लग गए।

उधर दार्जलिंग में राजेंद्र अपने समधी से बात करने के बाद सुरभि को सक्त हिदायत दिया की बहु को भनक भी नहीं लगना चाहिए की उसकी मां बाप शादी के रिसेप्शन पर आ रहे है। उसके बाद राजेंद्र कुछ काम का बोलकर चला गया।

महल में बचे लोग अपने अपने काम को करने में लगे हुए थे। अपश्यु ने रूम में जाकर डिंपल को कॉल लगाया एक दो रिंग बजने के बाद डिम्पल ने कॉल रिसीव किया कॉल रिसीव होते ही अपश्यु बोला... मेरे न आने से तुम इतना नाराज़ हो गई कि मुझसे बात ही नहीं करना चाहती हों। इतना गुस्सा क्यों पहले जान तो लेती मैं तुमसे मिलने क्यों नहीं आ पाया।

डिंपल... न हेलो न हाय सीधा सवालों की बौछार कर दिया। ये क्या बात हुई भाला।

अपश्यु... अच्छा हैलो डिंपल कैसे हों मेरी जान तुम्हे कोई दिक्कत तो न हैं।

डिंपल…hummm जान सुनने में कानों को अच्छा लग रहा हैं। पर क्या मैं सच में तुम्हारा जान हूं?

अपश्यु... तुम सच में मेरी जान हों फ़िर भी आगर तुम्हे शक है तो बोलों मुझे साबित करने के लिए क्या करना पड़ेगा।

डिंपल... साबित तो हों चूका हैं मै तुम्हारा कोई जान बान नहीं हूं आगर होती तो तुम मुझसे मिलने जरूर आते।

अपश्यु...उस दिन तुम्हारे बुलाने पर नहीं आया उसके लिए सॉरी। यकीन मानो मैं उस दिन बहुत जरुरी काम में पास गया था इसलिए नहीं आ पाया।

डिंपल... मुझसे भी ज्यादा जरुरी क्या था जो तुम मुझसे मिलने नहीं आ पाए। चलो माना की जरुरी काम आ गया होगा। तो क्या तुम मुझे फ़ोन करके बता नहीं सकते थे कि डिंपल मैं नहीं आ सकता बहुत जरुरी काम आ गया है।

अपश्यु... मैं मानता हूं की गलती मेरी हैं क्योंकि मुझे तुम्हें फोन करके बताना चाहिए था पर मैंने ऐसा नहीं किया। दरसल हुआ ये था उस दिन बड़े पापा के साथ ऑफिस गया था। मैने सोचा था जल्दी काम निपट जाएगा और तुमसे मिलने चला जाउंगा पर ऐसा हुआ नहीं क्योंकि इस दिन बड़े पापा किसी डील पर मीटिंग कर रहें थें। मीटिंग इतना लम्बा चला की देर हों गया। देर हो रहा था इसलिए टेंशन में मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था। इसलिए फोन भी नहीं कर पाया।

डिंपल...अपश्यु तुम ऑफ़िस गए थे वो भी तुम्हारे बड़े पापा के साथ मैं मान ही नहीं सकती तुम जैसा निठला जिसे सिर्फ घूमना फिरना अच्छा लगाता हैं। वो काम में हाथ बंटाने गया था। ये चमत्कार कैसे हों गया।

अपश्यु... बस हो गया कैसे हुआ ये न पूछो।

डिंपल...क्यों न पुछु क्या मेरा इतना भी हक नहीं की मैं तुमसे कुछ पूछ सकू।

अपश्यु... किसने कहा तुम्हें हक नहीं हैं तुम्हें पूरा हक हैं की तुम मुझसे कुछ भी पुछ सकती हों….।

अपश्यु के बात को बीच में कांटकर डिंपल बोली... तुमसे कुछ भी पुछने का हक़ हैं तो फिर बता क्यों नहीं देते तुममें ये बदलाव आया तो आया कैसे।

डिंपल की बात सुनकर अपश्यु खुद से बोला... क्या डिंपल को सब बता दूं। बता दिया तो कहीं डिंपल मुझे छोड़कर न चला जाए। डिंपल ने मुझे छोड़ दिया तो मेरा क्या होगा। नहीं नहीं मैं नहीं बता सकता। पहली बार किसी से प्यार हुआ हैं। मैं उसे ऐसे ही नहीं खो सकता। पर कभी न कभी डिंपल को सच बताना ही होगा कब तक उसे झूठी आस में रखूंगा।

अपश्यु खुद से बातें करने में खोया था। इसलिए डिंपल की बातों का कोई जवाब न दिया। तो डिंपल बोली... क्या हुआ अपश्यु कुछ बोलते क्यों नहीं बोलो ऐसा किया हुआ जो तुममे इतना बदलाव आ गया।

डिंपल की बाते सुनकर अपश्यु ख्यालों से बाहर आया फ़िर बातों की दिशा को बदलने के लिए बोला... तुम भी न डिंपल छोड़ा उन बातों को ये बताओं कल मिलने आ रही हों की नहीं।

डिंपल...नहीं बिल्कुल नहीं जब तक तुम बता नहीं देते तब तक मैं मिलने नहीं आने वाली।

अपश्यु... ऐसे न तड़पाओ अपने दीवाने को थोड़ा तो मुझ पर तरस खाओ।

डिंपल... तरस ही तो खा रही हूं तभी तो तुमसे पुछ रही हूं। बता दो फिर तुम जितनी बार मिलने बुलाओगे जहां बुलाओगे वहा आऊंगी।

अपश्यु... थोड़ा तो समझने की कोशिश करों मैं तुम्हें अभी नहीं बता सकता वक्त आने दो मै तुम्हें सब बता दुंगा पर अभी नहीं।

डिंपल... समझ रहीं हूं तभी तो पुछ रही हूं। तुम बता रहे हों की मैं फोन काट दूं।

अपश्यु... समझो न मैं अभी नहीं बता सकता।

डिंपल... नहीं बता रहें हों तो ठीक है मैं फोन राख रही हूं।

अपश्यु... क्यों जिद्द कर रहीं हों थोड़ा तो समझो मैं मजबुर हूं अभी नहीं बता सकता।

डिंपल... मजबूरी कैसी मजबूरी जो तुम मुझे बता नहीं सकते। बताते हों की मैं फ़ोन राख दूं।

अपश्यु…डिंपल समझने की कोशिश करों मैं अभी बता नहीं सकता सही वक्त आने दो फिर बता दुंगा उसके बाद तुम्हे जो फैसला लेना हैं ले लेना लेकिन अभी जिद्द न करों।

डिंपल... ठीक है जब तुम्हारा मन करे तब बता देना पर एक बात जान लो जब तक तुम बता नहीं देते तब तक मैं तुमसे मिलने नहीं आने वाली।

अपश्यु... डिंपल ऐसा तो न कहो कल मिलने आओ न!

डिंपल... अपश्यु अभी मैं फ़ोन रखती हूं मां बुला रही ही…. आया मम्मी।

इतना बोलकर डिंपल फोन रख दिया। अपश्यु सिर्फ सुनो तो सुनो तो कहता रह गया पर कोई फायदा न हुआ। इसलिए अपश्यु फ़ोन रखकर बेड पर जाकर बैठ गया फिर खुद से बोला... हे प्रभु ये किस मोड़ पर लाकर मुझे खडा कर दिया मैं चाहकर भी डिंपल को सच नहीं बता पा रहा हूं सिर्फ इस डर से। कि कहीं डिंपल मेरा साथ न छोड़ दे। लेकिन कब तक डिंपल से मां से बड़ी मां से सभी से अपने घिनौने कुकर्म को छुपा कर रखूंगा। आज नहीं तो कल मुझे बताना ही होगा। जब तक बता नहीं दुंगा मेरे मन को शांति नहीं मिलेगा मेरे पापा कर्मों का बोझ कम नहीं होगा।

अपश्यु खुद से बातें कर रहा था तभी उसके मन में एक आवाज़ गूंज...अपश्यु क्या कर रहा क्यों सभी को अंधेरे में रख रहा हैं। बता दे नहीं तो तेरे मन का बोझ कम नहीं होगा।

अपश्यु... कौन हों तुम तुम्हारी आवाज़ कहा से आ रही हैं।

"मैं कौन हूं मैं तेरी अंतरात्मा हूं। आज मैं तूझे सही मार्ग दिखाने आया हूं। मेरा कहना मान जा जाकर सभी को सच बता दे तभी तुझे शांति मिलेगा। वरना ऐसे ही तू घुट घुट कर जीता रहेगी।"

अपश्यु... नहीं मैं तुम्हारा कहना बिल्कुल नहीं मानूंगा। मैंने तुम्हारा कहना मान लिया तो मैं सभी के नजरों में गिर जाऊंगा।

"तो अब कौन सा तू सभी के नजरो में उठा हुआ है अभी भी तो तू सभी के नजरो में गिरा हुआ हैं। याद है न मंदिर में किया हुआ था। उस गिरे हुए बुजर्ग जिसे तू उठने गया था उसने किया कहा था।"

अपश्यु... हां हां मुझे याद हैं। उन्होंने क्या कहा था। उन्होंने कुछ गलत नहीं कहा जो मैंने किया था वहीं कहा।

"हां उन्होने सही कहा पर तू एक बार सोच, सोचकर देख उनके जैसे न जानें और कितने लोग हैं जो कदम कदम पर तूझे तेरे कर्मो को याद दिलाते रहेंगे। तू कब तक उनकी कटु बाते सुनता रहेगा। कभी न कभी तुझे अपने घर वालो को सच बताना ही होगा। जब बताना है तो अभी क्यों नहीं।"

अपश्यु... नहीं मैं अभी किसी को कुछ नहीं बताने वाला मैं ने अभी बता दिया तो मेरे घर वाले मुझे खुद से दूर कर देंगे मैं अभी उनसे दूर नहीं जाना चाहता।

"ठीक हैं जो तूझे ठीक लगें कर पर इतना ध्यान रखना तू जीतना देर करेगा उतना ही तेरे लिए मुस्किले बढ़ता जायेगा। कहीं ऐसा न हों तेरे बताने से पहले तेरे घर वालों को किसी बहर वाले से पता चले की उनका चहेता कितना गिरा हुआ और कुकर्मी इंसान हैं।"

अपश्यु... हां मैं गिरा हुआ इंसान हूं। मुझे ऐसा ही रहने दे मैं तेरा कहना मानकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मर सकता जा तू मेरा सिर दर्द और न बड़ा जा तू भाग जा।

अपश्यु इतनी बात बोलकर अपना सिर पकड़कर बैठ गया और मां मेरा सिर मां मेरा सिर बोल बोल कर तेज तेज चीखने लगा।


आज के लिए बस इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत शुक्रिया। 🙏🙏🙏
 
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Wonderful update, bhale hi pushpa ka vyavhar majakia aur hansi thitholi jeisa ho par use apna tehjib nahi bhulni chahie . yadi aisa hi chalta raha, kal ko jab bahu bankar sasural jaegi aur aesi chanchalta aur bachpna dikhegi, mata pita ki hi nak kategi.
aksar ladki sasural jane ke bad mata pita ka haal yehi hota hai. pal pal yad satati hai beti ki.
kya shaalu ke papa aur mahesh ke bich koi an ban hai?

Shaalu ke papa aur mahesh ke bich koyi apsi vair nehi hai kuch hai to vas dono ke soch me antar hai. Kitna to aane wale update me pata chal jayega.

Bahut bahut shukriya 🙏 aise hi saath dete rahiyega
 
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Update - 44


बेटी की शादी को अभी मात्र चार ही दिन हुआ था। इतने काम दिनों में बेटी के प्रति ससुराल वालों की लगाव उसके खुशियों का ध्यान रखने की बात सुनकर महेश मन ही मन गदगद हो उठा। महेश को लग रहा था। उसका समधी राजेंद्र सही कह रहा हैं। उसे सिर्फ और सिर्फ बेटी की खुशी को ही देखना चाहिए। रहीं बात समाज के कायदे कानून कि तो न जानें ऐसे कितने कायदे कानून समाज ने बनाया फ़िर बाद में तोड़ भी दिया।

महेश विचारों में खोया हुआ था। तो कोई प्रतिक्रिया न पाकर राजेंद्र बोला...महेश बाबू क्या हुआ आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे हों। किन ख्यालों में खोए हुए हों।

अचानक कान के पास आवाज़ होने से कुछ क्षण को महेश अचकचा गया। रिसीवर हाथ से छुट गया जब तक रिसीवर जमीन से टकराता तब तक महेश खुद को संभालकर रिसीवर को पकड़ लिए फ़िर कान से लगाकर बोला... राजेंद्र बाबू मैं आप'की कही हुई बातो पर विचार कर रहा था। मेरे विचार से मुझे आप'का निमंत्रण स्वीकार कर लेना चाहिए।

राजेंद्र...अपने बिल्कुल सही विचार किया हैं। आप दोनों समय से आ जाना मुझे दुबारा न कहना पड़े। और हा बहु को पाता न चले की आप दोनों आ रहे हों। मैं बहु को सरप्राइस देखकर उसकी खुशी को दुगुनी करना चाहता हूं।

राजेंद्र की बाते सुनकर महेश के लवों पर मुस्कान आ गया मुस्कुराते हुए महेश बोला…ठीक है राजेंद्र बाबू जैसा अपने कहा वैसा ही होगा। हम पार्टी से एक दिन पहले ही आ जाएंगे।

राजेंद्र... ठीक है अब रखता हूं।

मनोरमा और शालू नजदीक ही थे तो दोनों ने राजेंद्र और महेश के बीच हुई बात चीत सुन लिया था। बेटी के ससुराल से निमंत्रण आया ये जानकर मनोरमा को बेटी से मिलने की चाह तीव्र हों गई पर महेश के आनाकानी करने से मनोरमा को अपनी चाहत अधूरी रहने का डर सताने लगा । किन्तु जब महेश ने हां कहा तब मनोरमा ने एक गहरी सांस लिया फ़िर मुस्कुरा दिया।

महेश फ़ोन रखकर दोनों के पास आने को पलटा तो मनोरमा के खिले और मुस्कुराते चहरे को देखकर स्वत‌: ही उसके चहरे पर मुस्कान आ गया। मुस्कुराते हुए पास आकर बैठा फ़िर बोला... मनोरमा बेटी के ससुराल जाना हैं। जानें की तैयारी तुम अभी से शुरू कर दो।

मनोरमा... तैयारी तो मैं कर ही लुंगा। आप मुझे इतना बता दीजिए आप इतनी आनाकानी क्यों कर रहे थें। जिस बेटी को हमने पैदा किया उसकी खुशी का हमसे ज्यादा उनको ख्याल हैं जिनके घर में बहु बनकर गए अभी कुछ ही दिन हुआ हैं।

महेश... मनोरमा तुम जानते बूझते हुए भी ऐसी बाते कर रहे हों। मनोरमा हमे समाज में सभी के साथ रहना हैं। सभी को साथ लेकर चलना हैं। समाज के बनाए नियमों के विरूद्ध मैं कैसे जा सकता हूं।

मनोरमा...मुझे समाज के नियम कायदे से कुछ लेना देना नहीं हैं। मुझे मेरी बेटी के घर जाना हैं। मुझे जानें से आप या आप'का समाज कोई नहीं रोक सकता।

महेश… समाज के रोकने से मैं भी नहीं रूकने वाला न ही मैं तुम्हें रोकूंगा अब हमारा जब भी मन करेगा हम कमला से मिलने उसके ससुराल जाते रहेगें।

जब मन करे तब बेटी से मिलने जा सकती हैं। ये बातें सुनते ही मनोरमा के चेहरे पर लुभानी मुस्कान आ गई। मनोरमा को मुस्कुरते देख महेश भी मुस्कुरा दिया। बगल में बैठी शालू दोनो के हाव भाव को देख रहीं थीं। दोनों को खुश देखकर शालू भी मंद मंद मुस्कुरा दिया फ़िर अचानक शालू की चेहरे का भाव बदल गई। बदला हुआ भाव चेहरे पर लेकर शालू बोली...अंकल आंटी क्या मैं भी आप'के साथ जा सकती हूं। कमला से मिलने का मेरा भी मान कर रहा है।

मनोरमा...शालु बेटी ये तो अच्छी बात है तुम कमला से मिलने जाना चाहती हों पर क्या तुम्हारे पापा इतने दूर दर्जलिंग जानें देंगे।

महेश...हां बेटी तुम जानती हो की तुम्हारे पापा कैसे है। मुझे नहीं लगाता अनुकूल जी तुम्हें जानें देंगे।

शालु…अंकल आंटी आप दोनों उनसे बात करेंगे तो पक्का पापा जी जानें देगें। क्या आप दोनों अपने इस बेटी के लिए इतना नहीं कर सकते।

शालु के बातों का कोई भी उत्तर मनोरमा या महेश दे पाता उससे पहले ही किसी ने दरवाजा पीट दिया। महेश उठकर दरवाजा खोलने गया और मनोरमा बोली... बेटी तुम्हारी मां जयंती की तरह तुम्हारी बाप की सोच नहीं हैं जो हमारे कहने से तुम्हारा बाप हमारा कहना मानकर तुम्हें हमारे साथ भेज देगा। फ़िर भी मेरे इस बेटी के लिए हम तुम्हारे बाप से बात करने को तैयार हैं। हम सिर्फ बात कर सकते हैं। जानें देना न देना ये तो अनुकूल जी बताएंगे।

महेश जाकर दरवाजा खोला सामने चंचल खड़ी थीं। चंचल को देखकर महेश बोला…कैसी हों चंचल बेटी आओ अंदर आओ.

चंचल... मैं ठीक हूं अंकल। आप कैसे है।

महेश:- मैं ठीक हूं।

इतना बोलकर महेश और चंचल अंदर आ गए फ़िर बैठक की और चल दिया। मनोरमा की बाते सुनकर शालू बोली...आंटी मैं नहीं जानती आप कैसे पापा को मनाएंगे मैं बस इतना ही जानती हूं की मुझे आप के साथ जाना हैं तो जाना हैं।

"शालु तू कहा जाना चाहती हैं और तेरे पापा से क्या बात करनी हैं।" इतना बोलते हुए चंचल शालू के पास जाकर बैठ गई। चंचल को आया देखकर मनोरमा बोली... चंचल शालू हमारे साथ दार्जलिंग जाना चाहती है पर….।

मनोरमा की बाते बीच में काटकर चंचल बोली...आंटी कब जा रहे हो मुझे भी जाना हैं। Pleaseeee मुझे भी साथ ले चलना मुझे भी कमला से मिलना है।

मनोरमा...अगले हफ्ते जाना है। तुम भी चल देना। तुम जाओगी तो कमला को बहुत अच्छा लगेगा।

शालु...aachchaaaa चंचल के जाने से कमला को अच्छा लगेगा तो किया मेरे जानें से कमला को बूरा लगेगा मैं भी उसकी सहेली हूं। मेरे जानें से भी उसे ख़ुशी मिलेंगी।

मनोरमा... हां हां तुम्हारे जानें से भी कमला को खुशी होगी। आखिर तुम दोनों ही उसके सब से ख़ास सहेली हों।

चंचल…शालु तू जाना तो चाहती है लेकिन जाएंगी कैसे...।

चंचल की बात बीच में काट कर शालू बोली... जैसे तू अंकल आंटी के साथ जाएंगी वैसे ही मैं भी अंकल आंटी के साथ जाऊंगी।

चंचल...कैसे जायेगी का मतलब ये नहीं की तू अकेली जाएंगी बल्कि मेरे कहने का मतलब है क्या तूझे तेरे घर से जानें की प्रमीशन मिल जाएंगी। मेरी बात अलग हैं मुझे अंकल आंटी के साथ जानें की प्रमीशन मिल जाएगा कोई और होता तो शायद मुझे प्रमीशन नही मिलता लेकिन तेरा मामला उल्टा हैं।

शालु... वहीं बात तो मैं आंटी से कह रही थीं लेकिन तु बीच में आ टपकी। आंटी आप दोनों पापा से बात करों न मुझे भी जाना हैं। मैं नहीं जा पाई तो सोच लो आप तीनों को भी जानें नहीं दूंगी।

चंचल... कैसे जानें नहीं देगी अजीब जबरदस्ती हैं। तू नही जा पाएगी तो किया हम भी न जाएं। नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं होगा हम तो जाएंगे ही। क्यों आंटी मैंने सही कहा न।

शालु... क्या सही कहा हा बोल क्या सही कहा तू मेरी अच्छी सहेली बिल्कुल नहीं हैं। अच्छी सहेली होती तो मुझे साथ लिए बिना जाती नहीं तूझसे अच्छी तो कमला हैं कम से कम मेरा साथ तो देती हैं।

दोनो को आपस में तू तू मैं मैं करते देखकर महेश बोला... अच्छा अच्छा अब तुम दोनो आपस में न लडो मैं खुद अनुकूल जी से बात करूंगा और जैसे भी हो शालू का हमारे साथ चलने की प्रमीशन मांग लुंगा।

चंचल... हां अंकल कुछ भी करके शालू के पापा से प्रमीशन ले लेना नहीं तो ये ज़िद्दी शालू हम में से किसी को जानें नहीं देगी।

शालु... मैं जिद्दी हूं तो तू किया है बोल!

मनोरमा... तुम दोनों फ़िर से शुरू हों गई अब बस भी करों कोई जिद्दी नहीं हों

चंचल…सूना आंटी ने किया कहा मैं jiddiiii nahiiii honnn ।

शालु... हां हां सूना हैं आंटी ने कहा मैं jiddiiii nahiiii honnn।

इतना बोल दोनों खिलखिलाकर हंस दिया। कुछ ओर वक्त तक दोनों रुके रहे फिर अपने अपने घर को चले गए। दोनों के जानें के बाद महेश और मनोरमा अपने अपने दिन चर्या में लग गए।

उधर दार्जलिंग में राजेंद्र अपने समधी से बात करने के बाद सुरभि को सक्त हिदायत दिया की बहु को भनक भी नहीं लगना चाहिए की उसकी मां बाप शादी के रिसेप्शन पर आ रहे है। उसके बाद राजेंद्र कुछ काम का बोलकर चला गया।

महल में बचे लोग अपने अपने काम को करने में लगे हुए थे। अपश्यु ने रूम में जाकर डिंपल को कॉल लगाया एक दो रिंग बजने के बाद डिम्पल ने कॉल रिसीव किया कॉल रिसीव होते ही अपश्यु बोला... मेरे न आने से तुम इतना नाराज़ हो गई कि मुझसे बात ही नहीं करना चाहती हों। इतना गुस्सा क्यों पहले जान तो लेती मैं तुमसे मिलने क्यों नहीं आ पाया।

डिंपल... न हेलो न हाय सीधा सवालों की बौछार कर दिया। ये क्या बात हुई भाला।

अपश्यु... अच्छा हैलो डिंपल कैसे हों मेरी जान तुम्हे कोई दिक्कत तो न हैं।

डिंपल…hummm जान सुनने में कानों को अच्छा लग रहा हैं। पर क्या मैं सच में तुम्हारा जान हूं?

अपश्यु... तुम सच में मेरी जान हों फ़िर भी आगर तुम्हे शक है तो बोलों मुझे साबित करने के लिए क्या करना पड़ेगा।

डिंपल... साबित तो हों चूका हैं मै तुम्हारा कोई जान बान नहीं हूं आगर होती तो तुम मुझसे मिलने जरूर आते।

अपश्यु...उस दिन तुम्हारे बुलाने पर नहीं आया उसके लिए सॉरी। यकीन मानो मैं उस दिन बहुत जरुरी काम में पास गया था इसलिए नहीं आ पाया।

डिंपल... मुझसे भी ज्यादा जरुरी क्या था जो तुम मुझसे मिलने नहीं आ पाए। चलो माना की जरुरी काम आ गया होगा। तो क्या तुम मुझे फ़ोन करके बता नहीं सकते थे कि डिंपल मैं नहीं आ सकता बहुत जरुरी काम आ गया है।

अपश्यु... मैं मानता हूं की गलती मेरी हैं क्योंकि मुझे तुम्हें फोन करके बताना चाहिए था पर मैंने ऐसा नहीं किया। दरसल हुआ ये था उस दिन बड़े पापा के साथ ऑफिस गया था। मैने सोचा था जल्दी काम निपट जाएगा और तुमसे मिलने चला जाउंगा पर ऐसा हुआ नहीं क्योंकि इस दिन बड़े पापा किसी डील पर मीटिंग कर रहें थें। मीटिंग इतना लम्बा चला की देर हों गया। देर हो रहा था इसलिए टेंशन में मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था। इसलिए फोन भी नहीं कर पाया।

डिंपल...अपश्यु तुम ऑफ़िस गए थे वो भी तुम्हारे बड़े पापा के साथ मैं मान ही नहीं सकती तुम जैसा निठला जिसे सिर्फ घूमना फिरना अच्छा लगाता हैं। वो काम में हाथ बंटाने गया था। ये चमत्कार कैसे हों गया।

अपश्यु... बस हो गया कैसे हुआ ये न पूछो।

डिंपल...क्यों न पुछु क्या मेरा इतना भी हक नहीं की मैं तुमसे कुछ पूछ सकू।

अपश्यु... किसने कहा तुम्हें हक नहीं हैं तुम्हें पूरा हक हैं की तुम मुझसे कुछ भी पुछ सकती हों….।

अपश्यु के बात को बीच में कांटकर डिंपल बोली... तुमसे कुछ भी पुछने का हक़ हैं तो फिर बता क्यों नहीं देते तुममें ये बदलाव आया तो आया कैसे।

डिंपल की बात सुनकर अपश्यु खुद से बोला... क्या डिंपल को सब बता दूं। बता दिया तो कहीं डिंपल मुझे छोड़कर न चला जाए। डिंपल ने मुझे छोड़ दिया तो मेरा क्या होगा। नहीं नहीं मैं नहीं बता सकता। पहली बार किसी से प्यार हुआ हैं। मैं उसे ऐसे ही नहीं खो सकता। पर कभी न कभी डिंपल को सच बताना ही होगा कब तक उसे झूठी आस में रखूंगा।

अपश्यु खुद से बातें करने में खोया था। इसलिए डिंपल की बातों का कोई जवाब न दिया। तो डिंपल बोली... क्या हुआ अपश्यु कुछ बोलते क्यों नहीं बोलो ऐसा किया हुआ जो तुममे इतना बदलाव आ गया।

डिंपल की बाते सुनकर अपश्यु ख्यालों से बाहर आया फ़िर बातों की दिशा को बदलने के लिए बोला... तुम भी न डिंपल छोड़ा उन बातों को ये बताओं कल मिलने आ रही हों की नहीं।

डिंपल...नहीं बिल्कुल नहीं जब तक तुम बता नहीं देते तब तक मैं मिलने नहीं आने वाली।

अपश्यु... ऐसे न तड़पाओ अपने दीवाने को थोड़ा तो मुझ पर तरस खाओ।

डिंपल... तरस ही तो खा रही हूं तभी तो तुमसे पुछ रही हूं। बता दो फिर तुम जितनी बार मिलने बुलाओगे जहां बुलाओगे वहा आऊंगी।

अपश्यु... थोड़ा तो समझने की कोशिश करों मैं तुम्हें अभी नहीं बता सकता वक्त आने दो मै तुम्हें सब बता दुंगा पर अभी नहीं।

डिंपल... समझ रहीं हूं तभी तो पुछ रही हूं। तुम बता रहे हों की मैं फोन काट दूं।

अपश्यु... समझो न मैं अभी नहीं बता सकता।

डिंपल... नहीं बता रहें हों तो ठीक है मैं फोन राख रही हूं।

अपश्यु... क्यों जिद्द कर रहीं हों थोड़ा तो समझो मैं मजबुर हूं अभी नहीं बता सकता।

डिंपल... मजबूरी कैसी मजबूरी जो तुम मुझे बता नहीं सकते। बताते हों की मैं फ़ोन राख दूं।

अपश्यु…डिंपल समझने की कोशिश करों मैं अभी बता नहीं सकता सही वक्त आने दो फिर बता दुंगा उसके बाद तुम्हे जो फैसला लेना हैं ले लेना लेकिन अभी जिद्द न करों।

डिंपल... ठीक है जब तुम्हारा मन करे तब बता देना पर एक बात जान लो जब तक तुम बता नहीं देते तब तक मैं तुमसे मिलने नहीं आने वाली।

अपश्यु... डिंपल ऐसा तो न कहो कल मिलने आओ न!

डिंपल... अपश्यु अभी मैं फ़ोन रखती हूं मां बुला रही ही…. आया मम्मी।

इतना बोलकर डिंपल फोन रख दिया। अपश्यु सिर्फ सुनो तो सुनो तो कहता रह गया पर कोई फायदा न हुआ। इसलिए अपश्यु फ़ोन रखकर बेड पर जाकर बैठ गया फिर खुद से बोला... हे प्रभु ये किस मोड़ पर लाकर मुझे खडा कर दिया मैं चाहकर भी डिंपल को सच नहीं बता पा रहा हूं सिर्फ इस डर से। कि कहीं डिंपल मेरा साथ न छोड़ दे। लेकिन कब तक डिंपल से मां से बड़ी मां से सभी से अपने घिनौने कुकर्म को छुपा कर रखूंगा। आज नहीं तो कल मुझे बताना ही होगा। जब तक बता नहीं दुंगा मेरे मन को शांति नहीं मिलेगा मेरे पापा कर्मों का बोझ कम नहीं होगा।

अपश्यु खुद से बातें कर रहा था तभी उसके मन में एक आवाज़ गूंज...अपश्यु क्या कर रहा क्यों सभी को अंधेरे में रख रहा हैं। बता दे नहीं तो तेरे मन का बोझ कम नहीं होगा।

अपश्यु... कौन हों तुम तुम्हारी आवाज़ कहा से आ रही हैं।

"मैं कौन हूं मैं तेरी अंतरात्मा हूं। आज मैं तूझे सही मार्ग दिखाने आया हूं। मेरा कहना मान जा जाकर सभी को सच बता दे तभी तुझे शांति मिलेगा। वरना ऐसे ही तू घुट घुट कर जीता रहेगी।"

अपश्यु... नहीं मैं तुम्हारा कहना बिल्कुल नहीं मानूंगा। मैंने तुम्हारा कहना मान लिया तो मैं सभी के नजरों में गिर जाऊंगा।

"तो अब कौन सा तू सभी के नजरो में उठा हुआ है अभी भी तो तू सभी के नजरो में गिरा हुआ हैं। याद है न मंदिर में किया हुआ था। उस गिरे हुए बुजर्ग जिसे तू उठने गया था उसने किया कहा था।"

अपश्यु... हां हां मुझे याद हैं। उन्होंने क्या कहा था। उन्होंने कुछ गलत नहीं कहा जो मैंने किया था वहीं कहा।

"हां उन्होने सही कहा पर तू एक बार सोच, सोचकर देख उनके जैसे न जानें और कितने लोग हैं जो कदम कदम पर तूझे तेरे कर्मो को याद दिलाते रहेंगे। तू कब तक उनकी कटु बाते सुनता रहेगा। कभी न कभी तुझे अपने घर वालो को सच बताना ही होगा। जब बताना है तो अभी क्यों नहीं।"

अपश्यु... नहीं मैं अभी किसी को कुछ नहीं बताने वाला मैं ने अभी बता दिया तो मेरे घर वाले मुझे खुद से दूर कर देंगे मैं अभी उनसे दूर नहीं जाना चाहता।

"ठीक हैं जो तूझे ठीक लगें कर पर इतना ध्यान रखना तू जीतना देर करेगा उतना ही तेरे लिए मुस्किले बढ़ता जायेगा। कहीं ऐसा न हों तेरे बताने से पहले तेरे घर वालों को किसी बहर वाले से पता चले की उनका चहेता कितना गिरा हुआ और कुकर्मी इंसान हैं।"

अपश्यु... हां मैं गिरा हुआ इंसान हूं। मुझे ऐसा ही रहने दे मैं तेरा कहना मानकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मर सकता जा तू मेरा सिर दर्द और न बड़ा जा तू भाग जा।

अपश्यु इतनी बात बोलकर अपना सिर पकड़कर बैठ गया और मां मेरा सिर मां मेरा सिर बोल बोल कर तेज तेज चीखने लगा।


आज के लिए बस इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत शुक्रिया। 🙏🙏🙏
Achche Karam aur bure Karam dono parchai ki tarah sath chalte hain achche Karam Jahan khusiyan dete wahin bure Karam dukh deta hai pashchatap ki agni bahut jalati hai
 
R

Riya

Update - 44


बेटी की शादी को अभी मात्र चार ही दिन हुआ था। इतने काम दिनों में बेटी के प्रति ससुराल वालों की लगाव उसके खुशियों का ध्यान रखने की बात सुनकर महेश मन ही मन गदगद हो उठा। महेश को लग रहा था। उसका समधी राजेंद्र सही कह रहा हैं। उसे सिर्फ और सिर्फ बेटी की खुशी को ही देखना चाहिए। रहीं बात समाज के कायदे कानून कि तो न जानें ऐसे कितने कायदे कानून समाज ने बनाया फ़िर बाद में तोड़ भी दिया।

महेश विचारों में खोया हुआ था। तो कोई प्रतिक्रिया न पाकर राजेंद्र बोला...महेश बाबू क्या हुआ आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे हों। किन ख्यालों में खोए हुए हों।

अचानक कान के पास आवाज़ होने से कुछ क्षण को महेश अचकचा गया। रिसीवर हाथ से छुट गया जब तक रिसीवर जमीन से टकराता तब तक महेश खुद को संभालकर रिसीवर को पकड़ लिए फ़िर कान से लगाकर बोला... राजेंद्र बाबू मैं आप'की कही हुई बातो पर विचार कर रहा था। मेरे विचार से मुझे आप'का निमंत्रण स्वीकार कर लेना चाहिए।

राजेंद्र...अपने बिल्कुल सही विचार किया हैं। आप दोनों समय से आ जाना मुझे दुबारा न कहना पड़े। और हा बहु को पाता न चले की आप दोनों आ रहे हों। मैं बहु को सरप्राइस देखकर उसकी खुशी को दुगुनी करना चाहता हूं।

राजेंद्र की बाते सुनकर महेश के लवों पर मुस्कान आ गया मुस्कुराते हुए महेश बोला…ठीक है राजेंद्र बाबू जैसा अपने कहा वैसा ही होगा। हम पार्टी से एक दिन पहले ही आ जाएंगे।

राजेंद्र... ठीक है अब रखता हूं।

मनोरमा और शालू नजदीक ही थे तो दोनों ने राजेंद्र और महेश के बीच हुई बात चीत सुन लिया था। बेटी के ससुराल से निमंत्रण आया ये जानकर मनोरमा को बेटी से मिलने की चाह तीव्र हों गई पर महेश के आनाकानी करने से मनोरमा को अपनी चाहत अधूरी रहने का डर सताने लगा । किन्तु जब महेश ने हां कहा तब मनोरमा ने एक गहरी सांस लिया फ़िर मुस्कुरा दिया।

महेश फ़ोन रखकर दोनों के पास आने को पलटा तो मनोरमा के खिले और मुस्कुराते चहरे को देखकर स्वत‌: ही उसके चहरे पर मुस्कान आ गया। मुस्कुराते हुए पास आकर बैठा फ़िर बोला... मनोरमा बेटी के ससुराल जाना हैं। जानें की तैयारी तुम अभी से शुरू कर दो।

मनोरमा... तैयारी तो मैं कर ही लुंगा। आप मुझे इतना बता दीजिए आप इतनी आनाकानी क्यों कर रहे थें। जिस बेटी को हमने पैदा किया उसकी खुशी का हमसे ज्यादा उनको ख्याल हैं जिनके घर में बहु बनकर गए अभी कुछ ही दिन हुआ हैं।

महेश... मनोरमा तुम जानते बूझते हुए भी ऐसी बाते कर रहे हों। मनोरमा हमे समाज में सभी के साथ रहना हैं। सभी को साथ लेकर चलना हैं। समाज के बनाए नियमों के विरूद्ध मैं कैसे जा सकता हूं।

मनोरमा...मुझे समाज के नियम कायदे से कुछ लेना देना नहीं हैं। मुझे मेरी बेटी के घर जाना हैं। मुझे जानें से आप या आप'का समाज कोई नहीं रोक सकता।

महेश… समाज के रोकने से मैं भी नहीं रूकने वाला न ही मैं तुम्हें रोकूंगा अब हमारा जब भी मन करेगा हम कमला से मिलने उसके ससुराल जाते रहेगें।

जब मन करे तब बेटी से मिलने जा सकती हैं। ये बातें सुनते ही मनोरमा के चेहरे पर लुभानी मुस्कान आ गई। मनोरमा को मुस्कुरते देख महेश भी मुस्कुरा दिया। बगल में बैठी शालू दोनो के हाव भाव को देख रहीं थीं। दोनों को खुश देखकर शालू भी मंद मंद मुस्कुरा दिया फ़िर अचानक शालू की चेहरे का भाव बदल गई। बदला हुआ भाव चेहरे पर लेकर शालू बोली...अंकल आंटी क्या मैं भी आप'के साथ जा सकती हूं। कमला से मिलने का मेरा भी मान कर रहा है।

मनोरमा...शालु बेटी ये तो अच्छी बात है तुम कमला से मिलने जाना चाहती हों पर क्या तुम्हारे पापा इतने दूर दर्जलिंग जानें देंगे।

महेश...हां बेटी तुम जानती हो की तुम्हारे पापा कैसे है। मुझे नहीं लगाता अनुकूल जी तुम्हें जानें देंगे।

शालु…अंकल आंटी आप दोनों उनसे बात करेंगे तो पक्का पापा जी जानें देगें। क्या आप दोनों अपने इस बेटी के लिए इतना नहीं कर सकते।

शालु के बातों का कोई भी उत्तर मनोरमा या महेश दे पाता उससे पहले ही किसी ने दरवाजा पीट दिया। महेश उठकर दरवाजा खोलने गया और मनोरमा बोली... बेटी तुम्हारी मां जयंती की तरह तुम्हारी बाप की सोच नहीं हैं जो हमारे कहने से तुम्हारा बाप हमारा कहना मानकर तुम्हें हमारे साथ भेज देगा। फ़िर भी मेरे इस बेटी के लिए हम तुम्हारे बाप से बात करने को तैयार हैं। हम सिर्फ बात कर सकते हैं। जानें देना न देना ये तो अनुकूल जी बताएंगे।

महेश जाकर दरवाजा खोला सामने चंचल खड़ी थीं। चंचल को देखकर महेश बोला…कैसी हों चंचल बेटी आओ अंदर आओ.

चंचल... मैं ठीक हूं अंकल। आप कैसे है।

महेश:- मैं ठीक हूं।

इतना बोलकर महेश और चंचल अंदर आ गए फ़िर बैठक की और चल दिया। मनोरमा की बाते सुनकर शालू बोली...आंटी मैं नहीं जानती आप कैसे पापा को मनाएंगे मैं बस इतना ही जानती हूं की मुझे आप के साथ जाना हैं तो जाना हैं।

"शालु तू कहा जाना चाहती हैं और तेरे पापा से क्या बात करनी हैं।" इतना बोलते हुए चंचल शालू के पास जाकर बैठ गई। चंचल को आया देखकर मनोरमा बोली... चंचल शालू हमारे साथ दार्जलिंग जाना चाहती है पर….।

मनोरमा की बाते बीच में काटकर चंचल बोली...आंटी कब जा रहे हो मुझे भी जाना हैं। Pleaseeee मुझे भी साथ ले चलना मुझे भी कमला से मिलना है।

मनोरमा...अगले हफ्ते जाना है। तुम भी चल देना। तुम जाओगी तो कमला को बहुत अच्छा लगेगा।

शालु...aachchaaaa चंचल के जाने से कमला को अच्छा लगेगा तो किया मेरे जानें से कमला को बूरा लगेगा मैं भी उसकी सहेली हूं। मेरे जानें से भी उसे ख़ुशी मिलेंगी।

मनोरमा... हां हां तुम्हारे जानें से भी कमला को खुशी होगी। आखिर तुम दोनों ही उसके सब से ख़ास सहेली हों।

चंचल…शालु तू जाना तो चाहती है लेकिन जाएंगी कैसे...।

चंचल की बात बीच में काट कर शालू बोली... जैसे तू अंकल आंटी के साथ जाएंगी वैसे ही मैं भी अंकल आंटी के साथ जाऊंगी।

चंचल...कैसे जायेगी का मतलब ये नहीं की तू अकेली जाएंगी बल्कि मेरे कहने का मतलब है क्या तूझे तेरे घर से जानें की प्रमीशन मिल जाएंगी। मेरी बात अलग हैं मुझे अंकल आंटी के साथ जानें की प्रमीशन मिल जाएगा कोई और होता तो शायद मुझे प्रमीशन नही मिलता लेकिन तेरा मामला उल्टा हैं।

शालु... वहीं बात तो मैं आंटी से कह रही थीं लेकिन तु बीच में आ टपकी। आंटी आप दोनों पापा से बात करों न मुझे भी जाना हैं। मैं नहीं जा पाई तो सोच लो आप तीनों को भी जानें नहीं दूंगी।

चंचल... कैसे जानें नहीं देगी अजीब जबरदस्ती हैं। तू नही जा पाएगी तो किया हम भी न जाएं। नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं होगा हम तो जाएंगे ही। क्यों आंटी मैंने सही कहा न।

शालु... क्या सही कहा हा बोल क्या सही कहा तू मेरी अच्छी सहेली बिल्कुल नहीं हैं। अच्छी सहेली होती तो मुझे साथ लिए बिना जाती नहीं तूझसे अच्छी तो कमला हैं कम से कम मेरा साथ तो देती हैं।

दोनो को आपस में तू तू मैं मैं करते देखकर महेश बोला... अच्छा अच्छा अब तुम दोनो आपस में न लडो मैं खुद अनुकूल जी से बात करूंगा और जैसे भी हो शालू का हमारे साथ चलने की प्रमीशन मांग लुंगा।

चंचल... हां अंकल कुछ भी करके शालू के पापा से प्रमीशन ले लेना नहीं तो ये ज़िद्दी शालू हम में से किसी को जानें नहीं देगी।

शालु... मैं जिद्दी हूं तो तू किया है बोल!

मनोरमा... तुम दोनों फ़िर से शुरू हों गई अब बस भी करों कोई जिद्दी नहीं हों

चंचल…सूना आंटी ने किया कहा मैं jiddiiii nahiiii honnn ।

शालु... हां हां सूना हैं आंटी ने कहा मैं jiddiiii nahiiii honnn।

इतना बोल दोनों खिलखिलाकर हंस दिया। कुछ ओर वक्त तक दोनों रुके रहे फिर अपने अपने घर को चले गए। दोनों के जानें के बाद महेश और मनोरमा अपने अपने दिन चर्या में लग गए।

उधर दार्जलिंग में राजेंद्र अपने समधी से बात करने के बाद सुरभि को सक्त हिदायत दिया की बहु को भनक भी नहीं लगना चाहिए की उसकी मां बाप शादी के रिसेप्शन पर आ रहे है। उसके बाद राजेंद्र कुछ काम का बोलकर चला गया।

महल में बचे लोग अपने अपने काम को करने में लगे हुए थे। अपश्यु ने रूम में जाकर डिंपल को कॉल लगाया एक दो रिंग बजने के बाद डिम्पल ने कॉल रिसीव किया कॉल रिसीव होते ही अपश्यु बोला... मेरे न आने से तुम इतना नाराज़ हो गई कि मुझसे बात ही नहीं करना चाहती हों। इतना गुस्सा क्यों पहले जान तो लेती मैं तुमसे मिलने क्यों नहीं आ पाया।

डिंपल... न हेलो न हाय सीधा सवालों की बौछार कर दिया। ये क्या बात हुई भाला।

अपश्यु... अच्छा हैलो डिंपल कैसे हों मेरी जान तुम्हे कोई दिक्कत तो न हैं।

डिंपल…hummm जान सुनने में कानों को अच्छा लग रहा हैं। पर क्या मैं सच में तुम्हारा जान हूं?

अपश्यु... तुम सच में मेरी जान हों फ़िर भी आगर तुम्हे शक है तो बोलों मुझे साबित करने के लिए क्या करना पड़ेगा।

डिंपल... साबित तो हों चूका हैं मै तुम्हारा कोई जान बान नहीं हूं आगर होती तो तुम मुझसे मिलने जरूर आते।

अपश्यु...उस दिन तुम्हारे बुलाने पर नहीं आया उसके लिए सॉरी। यकीन मानो मैं उस दिन बहुत जरुरी काम में पास गया था इसलिए नहीं आ पाया।

डिंपल... मुझसे भी ज्यादा जरुरी क्या था जो तुम मुझसे मिलने नहीं आ पाए। चलो माना की जरुरी काम आ गया होगा। तो क्या तुम मुझे फ़ोन करके बता नहीं सकते थे कि डिंपल मैं नहीं आ सकता बहुत जरुरी काम आ गया है।

अपश्यु... मैं मानता हूं की गलती मेरी हैं क्योंकि मुझे तुम्हें फोन करके बताना चाहिए था पर मैंने ऐसा नहीं किया। दरसल हुआ ये था उस दिन बड़े पापा के साथ ऑफिस गया था। मैने सोचा था जल्दी काम निपट जाएगा और तुमसे मिलने चला जाउंगा पर ऐसा हुआ नहीं क्योंकि इस दिन बड़े पापा किसी डील पर मीटिंग कर रहें थें। मीटिंग इतना लम्बा चला की देर हों गया। देर हो रहा था इसलिए टेंशन में मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा था। इसलिए फोन भी नहीं कर पाया।

डिंपल...अपश्यु तुम ऑफ़िस गए थे वो भी तुम्हारे बड़े पापा के साथ मैं मान ही नहीं सकती तुम जैसा निठला जिसे सिर्फ घूमना फिरना अच्छा लगाता हैं। वो काम में हाथ बंटाने गया था। ये चमत्कार कैसे हों गया।

अपश्यु... बस हो गया कैसे हुआ ये न पूछो।

डिंपल...क्यों न पुछु क्या मेरा इतना भी हक नहीं की मैं तुमसे कुछ पूछ सकू।

अपश्यु... किसने कहा तुम्हें हक नहीं हैं तुम्हें पूरा हक हैं की तुम मुझसे कुछ भी पुछ सकती हों….।

अपश्यु के बात को बीच में कांटकर डिंपल बोली... तुमसे कुछ भी पुछने का हक़ हैं तो फिर बता क्यों नहीं देते तुममें ये बदलाव आया तो आया कैसे।

डिंपल की बात सुनकर अपश्यु खुद से बोला... क्या डिंपल को सब बता दूं। बता दिया तो कहीं डिंपल मुझे छोड़कर न चला जाए। डिंपल ने मुझे छोड़ दिया तो मेरा क्या होगा। नहीं नहीं मैं नहीं बता सकता। पहली बार किसी से प्यार हुआ हैं। मैं उसे ऐसे ही नहीं खो सकता। पर कभी न कभी डिंपल को सच बताना ही होगा कब तक उसे झूठी आस में रखूंगा।

अपश्यु खुद से बातें करने में खोया था। इसलिए डिंपल की बातों का कोई जवाब न दिया। तो डिंपल बोली... क्या हुआ अपश्यु कुछ बोलते क्यों नहीं बोलो ऐसा किया हुआ जो तुममे इतना बदलाव आ गया।

डिंपल की बाते सुनकर अपश्यु ख्यालों से बाहर आया फ़िर बातों की दिशा को बदलने के लिए बोला... तुम भी न डिंपल छोड़ा उन बातों को ये बताओं कल मिलने आ रही हों की नहीं।

डिंपल...नहीं बिल्कुल नहीं जब तक तुम बता नहीं देते तब तक मैं मिलने नहीं आने वाली।

अपश्यु... ऐसे न तड़पाओ अपने दीवाने को थोड़ा तो मुझ पर तरस खाओ।

डिंपल... तरस ही तो खा रही हूं तभी तो तुमसे पुछ रही हूं। बता दो फिर तुम जितनी बार मिलने बुलाओगे जहां बुलाओगे वहा आऊंगी।

अपश्यु... थोड़ा तो समझने की कोशिश करों मैं तुम्हें अभी नहीं बता सकता वक्त आने दो मै तुम्हें सब बता दुंगा पर अभी नहीं।

डिंपल... समझ रहीं हूं तभी तो पुछ रही हूं। तुम बता रहे हों की मैं फोन काट दूं।

अपश्यु... समझो न मैं अभी नहीं बता सकता।

डिंपल... नहीं बता रहें हों तो ठीक है मैं फोन राख रही हूं।

अपश्यु... क्यों जिद्द कर रहीं हों थोड़ा तो समझो मैं मजबुर हूं अभी नहीं बता सकता।

डिंपल... मजबूरी कैसी मजबूरी जो तुम मुझे बता नहीं सकते। बताते हों की मैं फ़ोन राख दूं।

अपश्यु…डिंपल समझने की कोशिश करों मैं अभी बता नहीं सकता सही वक्त आने दो फिर बता दुंगा उसके बाद तुम्हे जो फैसला लेना हैं ले लेना लेकिन अभी जिद्द न करों।

डिंपल... ठीक है जब तुम्हारा मन करे तब बता देना पर एक बात जान लो जब तक तुम बता नहीं देते तब तक मैं तुमसे मिलने नहीं आने वाली।

अपश्यु... डिंपल ऐसा तो न कहो कल मिलने आओ न!

डिंपल... अपश्यु अभी मैं फ़ोन रखती हूं मां बुला रही ही…. आया मम्मी।

इतना बोलकर डिंपल फोन रख दिया। अपश्यु सिर्फ सुनो तो सुनो तो कहता रह गया पर कोई फायदा न हुआ। इसलिए अपश्यु फ़ोन रखकर बेड पर जाकर बैठ गया फिर खुद से बोला... हे प्रभु ये किस मोड़ पर लाकर मुझे खडा कर दिया मैं चाहकर भी डिंपल को सच नहीं बता पा रहा हूं सिर्फ इस डर से। कि कहीं डिंपल मेरा साथ न छोड़ दे। लेकिन कब तक डिंपल से मां से बड़ी मां से सभी से अपने घिनौने कुकर्म को छुपा कर रखूंगा। आज नहीं तो कल मुझे बताना ही होगा। जब तक बता नहीं दुंगा मेरे मन को शांति नहीं मिलेगा मेरे पापा कर्मों का बोझ कम नहीं होगा।

अपश्यु खुद से बातें कर रहा था तभी उसके मन में एक आवाज़ गूंज...अपश्यु क्या कर रहा क्यों सभी को अंधेरे में रख रहा हैं। बता दे नहीं तो तेरे मन का बोझ कम नहीं होगा।

अपश्यु... कौन हों तुम तुम्हारी आवाज़ कहा से आ रही हैं।

"मैं कौन हूं मैं तेरी अंतरात्मा हूं। आज मैं तूझे सही मार्ग दिखाने आया हूं। मेरा कहना मान जा जाकर सभी को सच बता दे तभी तुझे शांति मिलेगा। वरना ऐसे ही तू घुट घुट कर जीता रहेगी।"

अपश्यु... नहीं मैं तुम्हारा कहना बिल्कुल नहीं मानूंगा। मैंने तुम्हारा कहना मान लिया तो मैं सभी के नजरों में गिर जाऊंगा।

"तो अब कौन सा तू सभी के नजरो में उठा हुआ है अभी भी तो तू सभी के नजरो में गिरा हुआ हैं। याद है न मंदिर में किया हुआ था। उस गिरे हुए बुजर्ग जिसे तू उठने गया था उसने किया कहा था।"

अपश्यु... हां हां मुझे याद हैं। उन्होंने क्या कहा था। उन्होंने कुछ गलत नहीं कहा जो मैंने किया था वहीं कहा।

"हां उन्होने सही कहा पर तू एक बार सोच, सोचकर देख उनके जैसे न जानें और कितने लोग हैं जो कदम कदम पर तूझे तेरे कर्मो को याद दिलाते रहेंगे। तू कब तक उनकी कटु बाते सुनता रहेगा। कभी न कभी तुझे अपने घर वालो को सच बताना ही होगा। जब बताना है तो अभी क्यों नहीं।"

अपश्यु... नहीं मैं अभी किसी को कुछ नहीं बताने वाला मैं ने अभी बता दिया तो मेरे घर वाले मुझे खुद से दूर कर देंगे मैं अभी उनसे दूर नहीं जाना चाहता।

"ठीक हैं जो तूझे ठीक लगें कर पर इतना ध्यान रखना तू जीतना देर करेगा उतना ही तेरे लिए मुस्किले बढ़ता जायेगा। कहीं ऐसा न हों तेरे बताने से पहले तेरे घर वालों को किसी बहर वाले से पता चले की उनका चहेता कितना गिरा हुआ और कुकर्मी इंसान हैं।"

अपश्यु... हां मैं गिरा हुआ इंसान हूं। मुझे ऐसा ही रहने दे मैं तेरा कहना मानकर अपने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मर सकता जा तू मेरा सिर दर्द और न बड़ा जा तू भाग जा।

अपश्यु इतनी बात बोलकर अपना सिर पकड़कर बैठ गया और मां मेरा सिर मां मेरा सिर बोल बोल कर तेज तेज चीखने लगा।


आज के लिए बस इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत शुक्रिया। 🙏🙏🙏
Wonderful update. Newton's third law,
For every action, there is an equal and opposite reaction. scientifically bhi ye bat proved hai. apashyu ki sthiti isse alag nahi. jab achai ko chuna hai to prayachit bhi karna hoga use har ek jurm ki. family aur apne pyar ko batana hi hoga uske past ke bare me. jitna der karega, bitte waqt ke sath samsyae aur badhegi uske liye .
 

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