R
Riya
Wonderful update, bhale hi pushpa ka vyavhar majakia aur hansi thitholi jeisa ho par use apna tehjib nahi bhulni chahie . yadi aisa hi chalta raha, kal ko jab bahu bankar sasural jaegi aur aesi chanchalta aur bachpna dikhegi, mata pita ki hi nak kategi.Update - 43
अलग अलग भाव चेहरे पर लिए सभी घर पहुंच चुके थे। कुछ देर रेस्ट करने के बाद मुंशी जाने की अनुमति मांगा तो राजेंद्र बोला...अभी कहीं जानें की जरूरत नहीं हैं यहीं रूक जा सुबह चला जाना।
मुंशी...राजा जी ज्यादा रात नहीं हुआ हैं आराम से पहूंच जाऊंगा सुबह ऑफिस भी जाना हैं।
राजेंद्र डांटते हुए बोला…तू एक बार में सुनता क्यों नहीं बहुत ढींट हो गया हैं। खाना बन गया है चुप चाप खाना खाकर रात यहीं बीता ले सुबह यहां से ऑफिस चला जाना।
राजेंद्र की बातों का जवाब मुंशी दे पाता उसे पहले पुष्पा टपक से बोल पड़ी...kakuuuu...।
पुष्पा की बातों को बीच में काटकर मुंशी बोला…मैं समझ गया तुम क्या बोलना चाहती हों। बुढ़ापे में मुझे तुम्हारी दी हुई सजा नहीं भुगतना हैं इसलिए तुम्हारा कहना मन कर रात यहीं रूक जाता हूं।
पुष्पा…बिना जिद्द किए आप पापा की बात मान लेते तो मुझे बीच में न बोलना पड़ता। आजकल आप कुछ ज्यादा ही जिद्द करने लग गए हों शायद आप भुल गए हों जिद्द सिर्फ महारानी पुष्पा ही karegiiiii...। करेंगी को थोड़ा लम्बा खींचा फ़िर कुछ सोचकर बोली... नहीं नहीं सिर्फ महारानी पुष्पा नहीं भाभी भी चाहें तो जिद्द कर सकती हैं। फिर कमला की ओर देखकर बोली... भाभी आप चाहो तो जिद्द कर सकती हों पर बाकी घर वालों के सामने। महारानी पुष्पा के सामने आप'की कोई जिद्द नहीं चलेगी समझें bahuraniiiiii...।
पुष्पा की बाते सुनकर सभी खिलखिलाकर हंस दिए। पल भार में सभी का थका हुआ चेहरा खिल उठा।
"Oooo महारानी पुष्पा, बहु की जिद्द सबके सामने चलेगी। तूझे भी बहु की जिद्द मानना पड़ेगा नहीं मानी toooo...।" इतना बोलकर सुरभि अपने जगह से उठकर पुष्पा के पास आने लगी।
मां को आता देख पुष्पा तुरंत अपने जगह से उठकर राजेंद्र के पीछे जाकर खडी हों गई फिर राजेंद्र का सिर जितना खुद की तरफ घुमा सकती थी घुमाकर बोली...पापा आप मां को कुछ कहते क्यों नहीं जब देखो मेरे कान के पीछे पड़ी रहती हैं। मेरी कान खीच खीचकर yeeeee इतना लंबा कर दिया।
एक बार फ़िर सभी खिलखिलाकर हंस दिए। कुछ देर सभी तल से ताल मिलाकर हंसते रहें फिर कमला बोली...ननद रानी तुम्हारे अकेले के जिद्द करने से सभी को दिन में तारे नज़र आ जाते हैं। मैं भी तुम्हारे साथ साथ जिद्द करने लग गई तो सभी का हाल और बूरा हों जायेगा। इसलिए आप अकेले ही जिद्द करों।
पुष्पा मुंह भिचकते हुए बोली...umhuuu भाभी आप मुझे छेड़ रहीं हों महारानी पुष्पा को, भाभी हों इसलिए बच गई नहीं तो अभी के अभी आप'से उठक बैठक करवा देता।
पुष्पा की बाते सुनकर और बोलने की अदा देखकर अपश्यु भी हसने से खुद को रोक नहीं पाया। वो भी सभी के साथ हसने लग गया। कुछ देर हंसने के बाद अपश्यु बोला... ओ महारानी सभी को सजा दो मुझे कोई हर्ज नहीं हैं पर भाभी को सजा देने की सोचना भी मत नहीं तो...।
अपश्यु के बातों को बीच में कटते हुए पुष्पा बोली…लो भाभी आप'की साईड लेने के लिए गूंगा भी बोल पड़ा। वैसे भईया लगता हैं आज आप कुछ ज्यादा ही थक गए हों।
पुष्पा की बातो का जवाब कोई दे पता उससे पहले सभी को रोकते हुए पुष्पा बोली…बस बाते बहुत हों गई। आगे कोई कुछ नहीं बोलेगा महारानी पुष्पा को खाना खाना हैं बहुत जोरो की भूख लगी हैं।
इतना बोलकर पुष्पा कीचन की तरफ देखकर तेज आवाज़ में बोली... रतन दादू खाना लगाओ आप'की महारानी को बहुत जोरो कि भूख लगी हैं। साथ ही बहुत थक गई हूं आज मंदिर में किसी ने काम नहीं किया सभी काम महारानी पुष्पा से करवाया। सब के सब अलसी हैं हाथ पे हाथ धारे बैठे रहें ये नहीं की महारानी की थोड़ी मदद कर दूं।
"महारानी जी अभी खाना लगाता हूं आप हाथ मुंह धोकर आओ।" कीचन से रतन तेज आवाज में बोला।
पुष्पा...जाओ सभी जाकर हाथ मुंह धोकर आओ ज्यादा देर किया तो किसी को खाना नहीं मिलेगा। महारानी पुष्पा भी हाथ मुंह धोकर अभी आया ।
इतना बोलकर पुष्पा सरपट रूम को भाग गई। पुष्पा को भागते देखकर एक बार फ़िर से सभी हंस दिए फिर एक एक कर अपने अपने रूम में हाथ मुंह धोने चले गए। कुछ ही वक्त में सभी हाथ मुंह धोकर आ गए। हंसी ठिठौली करते हुए सभी ने खाना खा लिया। खाने से निपटकर मुंशी, रमन और उर्वशी गेस्ट रूम में चले गए। बाकी बचे लोग अपने अपने रूम में चले गए।
सभी पर थकान इतना हावी हों चका था की लेटते ही सभी को नींद ने अपने अघोष में ले लिया।
सुबह सभी समय से उठे फिर एक एक करके नाश्ते के टेबल पर मिले नाश्ता किया फिर उठ रहें थें की राजेंद्र बोला...मुंशी अगले हफ्ते इतवार को घर पर एक ग्रैंड पार्टी रखा हैं। तूझे पहले ही कह दे रहा हूं बार बार न कहना पड़े।
दोस्त ने कहा तो उसे टाला भी नहीं जा सकता साथ ही एक राजा की तरह मुंशी, राजेंद्र का सम्मान करता हैं। इसलिए सिर्फ मुस्कुराकर हां में सिर हिला दिया। मुंशी से हां सुनने के बाद राजेंद्र ने रावण से बोला... रावण अबकी बार जो करना हैं तूझे ही करना हैं पार्टी का सारा जिम्मा तू ने अपने कंधे पर लिया हैं। जो करना हैं जैसे करना हैं कर बस इतना ध्यान रखना हमारे पुरखों की बनाई शान में कोई आंच न आए।
रावण...दादाभाई आप निश्चिंत रहें। पार्टी इतना शानदार होगा की सभी दार्जलिंग बसी देखते रह जाएंगे। सिर्फ वाहा वाही के आलावा उनके मुंह से कोई दूसरा लब्ज़ नहीं निकलेगा।
राजेंद्र...वाहा वाही तो लोग करेगें ही पर इस बात का ध्यान रखना जो भी पार्टी में सामिल होने आए चाहें वो नीचे तबके का क्यों ना हों किसी का निरादर नहीं होना चाहिए।
रावण…आप निश्चिंत रहें किसी का निरादर नहीं होगा इसका मैं विशेष ध्यान रखूंगा।
रावण का यूं भाई के हां में हां मिलना सुकन्या को खटका तो मन ही मन बोली... इनके मान में क्या चल रहा हैं? कहीं ये पार्टी के नाम पर कोई साज़िश तो न रचने वाले मुझे इन पर नज़र रखना होगा।
बातों का एक लंबा दौर चला फ़िर सभी की सहमती से परिवारिक वार्ता सभा का अंत हुआ। अंत होते ही मूंशी परिवार सहित चला गया। रावण और रघु भी ऑफिस चले गए। राजेंद्र उठकर रूम में गया तो सुरभि भी पीछे पीछे चल दिया।
इधर कलकत्ता में मनोरमा और महेश नाश्ता कर रहें थें। बेटी को विदा हुए लगभग चार दिन हों गए थे। जब भी दोनों खाने को बैठते उन्हें एक शक्श की कमी खालता मनोरमा बार बार बगल की कुर्सी को देख रहीं थीं। जैसे उसे लग रहा था बगल में उसकी बेटी बैठी हैं। जब उधर को देखती तो वहां कुर्सी खाली दिखता।
मनोरमा को यूं बार बार बगल झांकते देखकर महेश बोला... मनोरमा क्या हुआ यूं ताका झाकी क्यों कर रहीं हों। कुछ चाहिए तो बोलों मैं ला देता हूं।
महेश ने बस इतना ही बोला था की मनोरमा फूट फुट कर रोने लग गईं। महेश को समझते देर नहीं लगा की मनोरमा बगल में किसे ढूंढ रही थीं। महेश उठकर मनोरमा के पास आया और बोला... मनोरमा तुम अपने बगल वाली कुर्सी पर जिसके बैठें होने की उम्मीद कर रहीं हों वो अब अपने घर चली गई हैं….।
महेश पूरा बोल ही नहीं पाया अधूरा बोलकर महेश भी फूट फुटकर रो दिया। मनोरमा रूवासा आवाज़ में बोली... मुझे ये घर कमला के बिना काटने को दौड़ती हैं। वक्त वेवक्त उसकी अटखेलियां करना उसकी शरारते याद आती हैं। क्या हम कमला के साथ जाकर नहीं रह सकतें। वो ही तो हमारा इकलौती सहारा हैं।
महेश का हाल भी दूजा नहीं था। उसे भी बेटी की कमी खल रहा था। जिसे बिना देखे एक पल चैन से नहीं रह पाता था। वो चार दिन से बेटी को बिना देखे सिर्फ उसकी आवाज़ सुनकर मन को सांत्वना दे रहा था।
मनरोमा के कहने से महेश को भी लगा की मनोरमा सही कहा रहीं हैं। उसे अपने बेटी के पास जाकर रहना चाहिए पर समाज के कुछ कायदे कानून हैं। उसका ध्यान आते ही महेश बोला...मनोरमा मैं भी चाहता हूं की हम बेटी के साथ रहें पर समाज हमे इसकी इजाजत नहीं देती। मां बाप के लिए बेटी के घर का अन्ना खाने पर मनाही हैं। तो हम कैसे बेटी के साथ रह सकतें हैं।
मनोरमा…समाज के बनाए ये कायदे कानून आप'को ठीक लगाता हैं। हमने ही बेटी को इस धरती पर लाया लालन पालन करके बड़ा किया। हमारे कन्या दान करने के करण ही वो आज किसी के घर की बहु बनी। हमने इतना कुछ किया फिर भी समाज कहता हैं। हम अपने बेटी के साथ नहीं रह सकतें उसके घर का अन्य नहीं खा सकतें। ऐसा क्यों कहते हैं?
महेश के पास इस सवाल का कोई वाजिब जवाब नहीं था। होता भी कैसे क्योंकि एक बेटी के, मां बाप के सवाल का किसी के पास कोई जब नहीं हैं। ये तो सिर्फ और सिर्फ समाज की बनावटी उसूल हैं। किसी ने कह दिया बस बिना किसी बहस के मानते चले आए। क्यों कहा उसके तह तक पहुंचना किसी ने नहीं चाह।
बरहाल दोनों के पास इस सवाल का कोई ज़बाब नहीं था मनोरमा ने पूछ तो लिया पर वो भी जानती थीं। उसके पूछे गए सवाल का महेश तो किया किसी के पास कोई जवाब नहीं हैं। इसलिए दोनों चुप रहें।
दोनों की चुप्पी और घर में फैली सन्नाटे को दरवाजे की ठाक ठाक ने भंग किया। खुद को संभाला बहते अंशु को पोछा फिर महेश जाकर दरवाजा खोला। आए हुए शक्श को देखकर महेश बोला... अरे शालू बेटी आओ आओ अंदर आओ।
"अंकल आज फ़िर आप कमला को याद करके रो रहे थें।" इतना बोलकर शालू अंदर आई फिर मनोरमा के पास जाकर बोली... आंटी माना की मैं आप'की सगी बेटी नहीं हूं पर कमला की सहेली होने के नाते आप'की बेटी जैसी हूं। आप'को कहा था जब भी कमला की याद आए मुझे या चंचल को बुला लिया करों पर आप हों की सुनती नहीं।
मनोरमा... किसने कहा तुम मेरी बेटी नही हों बेटी ही हों बस तुम्हारा बाप कुछ न कहें इसलिए नहीं बुलाती हूं। तुम तो जानती हों जब कमला थीं तब भी तुम्हें तुम्हारा बाप आने नहीं देती थीं। अब तो कमला की शादी हों गईं हैं। अब न जानें तुम्हें कितनी बाते सुनने को मिलती होगी।
शालु...आंटी पापा तो कहते ही रहते हैं मुझे आदत पड़ गई हैं। अच्छा ये बताओं नाश्ते में किया बनाया बहुत जोरों की भूख लगा हैं।
"तुम बैठो मैं तुम्हारे लिए नाश्ता लेकर आती हूं" इतना कहाकर मनोरमा कीचन से नाश्ता लाकर दिया। शालु घर से नाश्ता करके आई थीं। सिर्फ और सिर्फ मनोरमा का मन बहलाने के लिए कहा था। तो मनोरमा के नाश्ता लाते हो शालू नाश्ता करने लग गई।
अभी अभी मनोरमा और महेश को बेटी की कमी खल रही थीं। दोनों बेटी को याद करके रो रहें थें। शालु के आते ही पल भार में माहौल बादल गया। दोनों की उदासी उड़ान छूं हों गई। शालु नाश्ता करते हुए तरह तरह की बाते करके दोनों का मन बहला रही थीं।
तीनों बाते करने में लगे रहें। टेलीफोन ने बजकर उनके बातों में खलल डाल दिया। महेश जाकर फोन को रिसीव किया। दूसरे ओर से कुछ बोला गया ज़बाब में महेश बोला…राजेंद्र बाबू हम कुशल मंगल हैं। आप और आप'का परिवार कैसे हैं?
राजेंद्र... प्रभु की कृपा से हम सभी खुशहाल हैं। अगले हफ़्ते इतवार को हमने एक पार्टी रखीं हैं। आप और समधन जी सादर आमंत्रित हैं। आप आयेंगे तो मैं और मेरे परिवार की खुशी ओर बढ़ जाएंगी।
महेश...अपने मुझे आमंत्रित किया इसके लिए आप'को बहुत बहुत शुक्रिया। किन्तु आप ये भली भांति जानते है शादी के बाद मां बाप का,बेटी के घर का अन्य जल न गृहण करने का रिवाज हैं। तो अब आप ही बताइए मैं क्या करूं।
राजेंद्र...महेश बाबू मैं भी एक बेटी का बाप हूं। मेरे लिए भी ये रिवाज़ हैं। परंतु मेरे लिए मेरी बेटी की ख़ुशी सबसे ज्यादा मायने रखता है। जहां तक मैं जानता हूं आप'के लिए भी आप'की बेटी की ख़ुशी सब से पहले होगा। अब आप खुद ही सोचकर फैसला लीजिए की आप'के लिए बेटी की खुशी प्यारी हैं या फ़िर समाज के बनाए ये रिवाज़ जो निराधार हैं।
महेश...राजेंद्र बाबू बेटी के घर अन्न जल ना खाने का रिवाज़ आगर बनाया हैं तो कुछ सोच समझकर ही बनाया होगा। ये निराधार तो नहीं हों सकता। इसलिए….।
महेश के बातों को बीच में काटकर राजेंद्र बोला... महेश बाबू मेरे लिए बेटी के घर अन्न जल न खाने वाला रिवाज हमेशा निराधार रहेगा। मैं चाहूंगा आप भी इस रिवाज़ को ज्यादा तवज्जों न दे। आप खुद ही सोचिए आप के आने से बहु को कितनी खुशी होगी। मैं सिर्फ बहु को खुश देखना चाहता हूं। इसलिए आप दोनों को आना ही होगा।
आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।
aksar ladki sasural jane ke bad mata pita ka haal yehi hota hai. pal pal yad satati hai beti ki.
kya shaalu ke papa aur mahesh ke bich koi an ban hai?