Thriller बारूद का ढेर(Completed)

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पीटर...मेरे हाथ में एक रिमोट है।

'रिमोट ?' इसबार पीटर चौंका।'

'हां...रिमोट। रिमोट का एक बटन ऐसा है जिसको-दबाते ही तेरे बदन के नन्हे-नन्हे टुकड़े मलबे के साथ इस तरह बिखर जाएंगे कि तेरा वजूद ही खत्म हो जाएगा।'

'एक रिमोट से इतना कुछ ?'

' हां...इतना कुछ।'

'लेकिन...?'

'पीटर...तू बारूद के देर पर बैठा है।'

'ब...ब...बारूद का देर?'

'हां...बारूद का देर। देख...तेरी जुबान भी लड़खड़ाने लगी है।'

'ब...बारूद की ढेर किधर हे ?'

'तेरी कोठी के अंदर। वहां जहां तू राजा इन्द्र की तरह अप्सराओं की गोद में पड़ा है।

अफसोस.. अप्सराएं भी गेहूं के साथ पिस जाएंगी।'

'देख मजाक मत कर।'

'मजाक...अच्छा ले, तुझे नमूना दिखाता हूं। अभी मैं एक बटन दबाऊंगा। तेरी कोठी का बायीं ओर वाला हिस्सा गत्ते के डिब्बे की तरह उड़ जाएगा।'
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दूध-सी गोरी पूनम लम्बे कद की दिलकश , दि लफरेब , ग्लै मरस और बेहद सैक्सी नवयुवती थी। अट्ठारह साल की उम्र और टूटकर आया यौवन उससे संभाला नहीं जा रहा था।

स्लीव लैसब नियान और टाइट जींस। हाई हील की सैडिलें, खुले बा ल , हल्का मेकअप। टाइट जींस से लम्बी आकर्षकी टांगों का आकार स्पष्ट होता था। नितम्बों का सुडौल आकार दिखाई देता था और स्लीव लैसब नियान से मांसल बांहों की चमकी के अतिरिक्त उन्नत वक्षों का कम्पन। वक्ष काफी उन्नत थे। उन्हें बनियान के अतिरिक्त चोली जैसा कोई- भी बंधन हासिल नहीं था।

हाहाकारी रूप था उसका।

जो देखता था , वही उस चूरा उनमुक्त यौवन का दीवाना-सा हो जाता था।
लेकिन !

रंजीत लम्बा वो शख्स था। जिसे पूनम का हाहाकारी रूप भी पिघला नहीं सका था। फौलादी जिस्म के स्वामी रंजीत की ओर पूनम खुद खिंचकर पहुंची।

मानो कोई जादू था जिसने उसे रंजीत लाम्बा के फ्लैट में उसके बैडरूम तक पहुंचने को विवश कर दिया था।

रंजीत अभी शूज उतारकर उसकी ओर घूमा ही था कि उसने बनियान उतारकर एक ओर को उछाल दी।

कमर से ऊपर वह एकदम नग्न हो गई। उसके -तने हुए उन्नत उरोज स्पष्ट नजर आने लगे।

रंजीत ने देखा।
देखते ही उसे लगा जैसे उसके दिमाग में सैकड़ों आंधियों का शोर जुड़ गया हो। उसकी नजर संगमरमरी जिस्म के सुडौल आकार पर अटककर रह गई।

उन्नत वक्ष। पतली कमर। सपाट पेट और अन्दर को धंसी हुई नाभि।

रंजीत की शिशुओं में रेंगते खून में तूफानी तेजी आ गई। वह भी जवानी के खतरनाकी मोड़ से गुजर रहा था। उससे दूरी असहनीय हो गई।'

एक ही छलांग में वह बैड पर जा गिरा।'

पूनम उसके निचे दबकर रह गई।

बेहद सैक्सी थी वह।

उसने फुर्ती के साथ रंजीत की शर्ट के बटन खोलने का प्रयास किया। वह सिर्फ एक ही बटन खोल सकी। शेष बटन उसने खोलने के स्थान पर एक झटके के साथ तोड़ डाले।

अगले ही पल शर्ट रंजीत लाम्बा के पथरीले जिस्म से अलंग हो चुकी थी। '

प्रतिदिन जिम में चार घंटे की सख्त मेहनत-करने वाले रंजीत लाम्बा का फौलादी सीना और ठोसबों हों की उभरी हुई मसल्स बिकुल ही-मैन जैसी नजर आ रही थीं।

प्रशंसित दृष्टि से उसके मजबूत सीने को निहारती हुई पूनम ने अपना कोमल हाथ उसके कठोर सीने पर फेरा। उसके तन-बदन में आग लग गई। उसने एक झटके के साथ पूनम को अपनी बाहों में भींच लिया।'

कामुकी कराह उसके मुख से निकल गई। लता के समान लिपट गई वह रंजीत से।

रंजीत ने उसके तपते हुए अधरों को चूसना आरंभ कर दिया। उसका एक हाथ पूनम के विभिन्न अंगों से खेलने लगा।
पूनम के मुख से रह-रहकर कामुकी सिसकारियां उमरने लगी।उत्तेजकी स्थिति भड की और पूनम ने रंजीत के जिस्म से शेष वस्त्र भी हटाने आरंभ कर दिए। शीघ्र ही दोनों निर्वसन अवस्था में एक-दूसरे की गर्म चिकनी बांहों के आलिंगन में समा गए।

गर्म सांसें घुलने लगीं।
अधरों से अधर बारम्बार टकराने लगे। सांसों की रफ्तार में तेजी आने लगी। रंजीत की उत्तेजना भड़की।
उसने पूनम के सांचे में ढले जिस्म के अलग-अलग हिस्सों को चूम-चूम डाला उन चुम्बनों ने पूनम को चरम सुख की अनुभूति तक पहुंचा दिया।

आत्मविभोर हो उसने नेत्र बन्द कर लिए।

फिर!
फिर वह बदनतोड़ ढंग से रंजीत को सहयोग करने लगी।

लगभग आधे घंटे के धमाल के उपरान्त दोनों अपनी-अपनी उफनती हुई सांसों को काबू में पाने की कोशिश करने लगे।

रंजीत पूनम के ऊपर ही ढेर-सा हो गया था। \

धीरे-धीरे तनाव में शिथिलता आई और शिथिलता के पश्चात् सम्बन्ध विच्छेद।

रंजीत पूनम के ऊपर से हट गया। पूनम ने अपने शरीर पर चादर खींच ली। वह प्रशंसित दृष्टि से रंजीत को निहार रही
थी।

उस समय उसके लिए रजीत सबसे प्यारा था। उसकी आखों के भावों को देखकर लगता था कि वह रंजीत के लिए कुछ भी कर सकती थी।

अपनी जान भी दे सकती थी।

उसने करवट बदली और करवट बदलकर वह रंजीत के सीने पर आ गई।

'ऐसे क्या देख रही हो?' रंजीत ने मुस्कराते हुए पूछा।

'देख रही हूं कितना प्यार है तुम्हारे अन्दर...। ' वह उसके सिर के बालों में उंगलियां घुमाती हुई बोली- कितने प्यारे हो तुम।'

'तुमसे ज्यादा प्यारा नहीं।'

'डरती हूं।

'किसबात से?'

'प्यार से। कहीं हमारा प्यार टूटकर बिखर न जाए।'

'हमारा प्यार कभी नहीं बिखर सकता। कभी नहीं टूट सकता।'

'पपापा को अगर किसी ने खबर कर दी तो'

' तो मैं उसका शुक्रिया अदा कर दंगा, क्योंकि वहमेरा रास्ता आसान कर देगा। फिर मैं आसानी से जाकर तुम्हारे पप्पा से तुम्हारा हाथ मांग लूंगा।'
'हाथ मांग लूंगा..! ' पूनम मुंह बनाकर बोली- ' उनके सामने जाने की भी हिम्मत है तुममें ?'

'प्यार करने वाले हिम्मत का खजाना हमेशा अपने पास रखते हैं।'

'तुम भूल रहे हो कि मेरे पप्पा कोई साधारण आदमी नहीं।'

'जानता हूं वह साधारण आदमी नहीं, लेकिन हैं तो मेरे जैसे ही दो हाथ-पांव वाले ?'

'उनमें और तुममें बहुत फर्की है।'

' हां...बहुत फर्की है। वो माणिकी देशमुख कहलाते है और मैं उनका कल आया एफ्लाई रंजीत लाम्बा।'

' बिल्कुल ठीकाअभी तुम्हें नौकरी करते दिन ही कितने हुए हैं। अभी तो तुम्हें किसी तरह से उन्होंने समझा भी नहीं होगा।'

' समझते तो वो मुझे अच्छी तरह हैं।'

' अच्छा! क्या समझते हैं ?'

रंजीत उसकी ओर देखता हुआ रहस्यमय ढंग से मुस्कराया। वह अपनी नियुक्ति के विषय में पूनम को बताना नहीं, चाहता था।वह यह नहीं बताना चाहता, था कि उसे माणिकी देशमुख ने विशेष आग्रह सहित बुलाया था। देखमुख ने उसे अपने दुश्मनों को ठिकाने लगाने के लिए एक मोटी रकम के बदले में किराए पर हासिल किया है। वह पूनम को यह भी नहीं बताना चाहता था कि उसका निशाना की तिना सटीकी है। कैसे-कैसे खतरनाकी हथियारों का प्रयोग उसे आता है और किसी को भी बकरी की तरह काट डा ल ना उसके लिए महज एक मजाक जैसा है।

वह यानी रंजीत लाम्बा एक बेहद-बेहद खतरनाकी हत्यारा है। जिसके पास इतनी कलाएं हैं कि वह नंगे हाथों भी सहज ही हत्या जैसा जघन्य अपराध कर सकता है।

वह बताना नहीं चाहता था कि वह उसके बाप माणिकी देशमुख का ऐसा अचूकी प्रक्षेपास्त्र था जो अपने लक्ष्य पर हमेशा पहुंचता था।

'तुमने बताया नहीं ?' पूनम ने उसके होंठों पर चुम्बन अंकित करते हुए पूछा।

' बताऊंगा।' फिलहाल तो मैं कुछ और ही सोच रहा हूं।'

'क्या ?'

नाकी पर उंगली रखकर उसे शांत रहने का संकेत करते हुए रंजीत ने धीरे-से उसे अपने ऊपर से उठाया। पेंट टांगों में फंसाकर बिना आहट किए चढ़ाई और फिर वह दबे पांव कमरे के दरवाजे की ओर बढ़ गया। जैसे बिल्ली अपने शिकार की ओर बढ़ती है , ठीकी उसी प्रकार वह दरवाजे की तरफ बढ़ रहा था।
दरवाजे के निकट पहुंचकर उसने बाहर की आहट ली।

पूनम विचित्र दृष्टि से बैड पर बैठी-बैठी उसकी कार्यवाही को देख रही थी।

फिर इससे पहले कि वह एक झटके के साथ दरवाजा खोलता , तेजी से दूर होती पगचापों की आवाजें स्पष्ट सुनाई देने लगी।

उसने जल्दी से दरवाजा कोला और बाहर निकल गया।

बाहर कदम रखते ही पिट की हल्की ध्वनि के साथ उसे तेजी से कटती हवा का अहसास हुआ और पीछे दीवार का थोड़ा-सा प्लास्टर टूटकर गिर गया।

साइलेंसर युक्त गन की खामोश और खतरनाकी कार्यवाही को समझते ही वह जिस फुर्ती से बाहर निकला था , उससे भी कहीं अधिकी फुर्ती दिखाता हुआ वापस कमरे में लौट गया।

उसके लौटते न लौ टिते दुसरी गोली दरवाजे की प्लाई फाड़कर अंदर धंस गई।

वापसी के साथ ही उसने दरवाजा बन्द करके सिटकनी लगा दी।

दरवाजा बंद करने के फौरन बाद वह छलांग लगाकर अपनी होलस्टर बैल्ट के निकट जा पहुंचा।

अगले ही पल 38 कैलिबर का काला रिवाल्वर उसके हाथ में था।

मौत को बहुत करीब से महसूस किया था

उसने।
-
उसके रौंगटे खड़े हो गए थे। दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था !
उस समय उसकी आंखें फुर्ती से दाएं-बाएं घूम रही- थी। कान बा हर की हर एक आहट को सुनने को तत्पर थे।
वक्त धीरे-धीरे गुजरता रहा।

पूनम उसकी हालत देख भयभीत स्थिति में सिकुड़ी- सिमटी बैठी रही। उसका दिल भी जोर-जोर
सें धड़की रहा था।

ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे तमाम खतरा उसी कमरे में आकर समा गया था।
'की ... क्या हुआ ?' पूनम ने डरते-डरते पूछा।

'कुछ नहीं।'

'कुछ तो?'

'अभी तुम खामोश रहो।'

'लेकिन...!'

'फार गॉड सेकी .च.. प्लीज ... शटअप। '

पूनम ने अपने होंठ भींच लिए। खामोशें हो गई वह।

बाहर ही आहट लेता रंजीत लाम्बा सिटकनी हटाकर विद्युत गति से बाहर निकल गया।
पूनम हाथ उठाकर उसे रोकती ही रह गई।उसे बहुत ज्यादा घबराहट हो रही थी। एक-एक पल उसे एक-एक साल जैसा प्रतीत हो रहा था।
कुछ देर बाद निराशा से भरा रंजीत वापस लौटा।

क्या हुआ? कौन था वह ?' उसे देखते ही पूनम ने आतुर स्वर में उससे पूछा।

'जो भी था , था बेहद चालक। उसने पहले ही अनुमान लगा लिया था कि उसे पकड़ने की कोशिश शुरू हो चुकी है। इसीलिए वह वक्त से पहले ही सावधान होकर दरवाजे से हट गया।'

दरवाजे के बाहर वह कर क्या रहा था ?'

' उसने हमें एक साथ देख लिया है।

' अब क्या करेगा वह ?'

'क्या मालूम... क्या करेगा।'

'मैं यहां से जाऊं ?' पूनम डरकर बोली।

'अभी नहीं। मुझे जरा सोच लेने दो।'

'कहीं उसने जाकर पप्पा को -बोल दिया तो सब गड़बड़ हो जाएगी।'

' इस कंपाउण्ड में बाहर का आदमी तो आने से रहा।' पूनम की बात पर ध्यान न देते हुए वह बड़बड़ाया- ' और बाहर का आदमी अगर होगा भी तो देशमुख साहब का ही दुश्मन होगा। लेकिन देशमुख साहब के दुश्मन को आउट हाउस के इस हिस्से में क्क्त बरबाद करने की क्यो जरूरत थी ?'

'तुम कहना क्या चाहते हो?'

'यही कि जरूर वह अन्दर का ही आदमी था , मगर उसने गोली क्यों चलाई ?'

'गोली ?' पूनम ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा।

'हां ..गो ली चली थी। साइलेंसर वाली गन से।'

'ओह गॉड!'

'मतलब साफ है। अगर वह देशमुख साहब का दुश्मन होता तो खुल्लम-खुल्ला आया रहा होता। उसे साइलेंसर का प्रयोग करने की भी जरूरत नहीं थी। लेकिन अन्दर का आदमी जो मित्रघात लगाए हो गा उसे साइलेंसर की जरूरत थी। वह जानता था कि मैं किस तरह का आदमी हूं और मुझसे कैसे बचा जा सकता है। इसीलिए उसने बड़ी फुर्ती से अपने डिफेंस के लिए ऑफेंस का तरीका अपनाया।'

'मगर अन्दर का आदमी कौन हो सकता है

'कोई पहरेदार ?'

'गार्ड कोई ऐसी हरकत करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता।'

'चालाकी गार्ड ऐसा कर सकता है।'

'किसलिए?'

'तुम्हें ब्लैकमेल करने के लिए । ' 'मुझे ?'

'हां... तुम्हें।'

' लेकिन मुझे ब्लैकमेल करके उसे क्या हासिल हो- सकता है भला?'

'तुम्हारे पास तो बहुत बड़ी दौलत है। तुम एक ऐसे बाप की बेटी हो जिसके पास दौलत का शुमार नहीं है। तुम दौलत का कोई भी हिस्सा ब्लैकमेलर पर लुटा सकती हो। उसके अलावा तुम हुस्न की दौलत से भी मालामाल हो। ब्लैकमेलर तुमसे इस दौलत की डिमाण्ड भी कर सकता है।'

'उसकी मौत आई होगी तो वह ऐसा जरूर करेगा। ' पूनम का चेहरा क्रोध में तमतमा उठा।

'सो तो है...आखिर देशमुख साहब की बेटी हो।'

'अब मैं जा रही हूं।' 'लेकिन मेरा क्या होगा ?'

'कुछ नहीं होगा सब ठीकी हो जाएगा।'

'फिर कब मिलोगी?'

' पहले छानबीन करलूं उसके बाद बताऊंगी।' इतना कहकर पूनम ने उठकर कपड़े पहने। ड्रेसिंग टेबल के सम्मुख पहुंचकर बा ल संवारे और फिर वहां से चली गई।

रंजीत लाम्बा ने अपने लिए एक सिगरेट सुलगा ली।

वह उस काण्ड की वजह से चिंतित हो उठा था।

उसे मालूम था कि माणिकी देशमुख की बेटी से आशनाई करना नंगी, तलवार पर चलने के बराबर है। लेकिन वह दिलो के हाथों मजबुर था।माणिकी देखमुख का लैफ्टी नेंट था कोठारी।

गंजी खलवाट खोपड़ी वाले कोठारी की आँखें छोटी , नाकी फैली हुई ओर जबड़ा भारी था। चालीस के पेटे में पहुंच चुके कोठारी को देखमुख की प्रत्येकी परेशानी का हल ढूंढना होता था।

देशमुख को कब कहां जाना है, क्या करना है, क्या नहीं करना है, हर बात की जिम्मेदारी कोठारी की ही थी।

देखमुख से मिलने वाले अस्सी प्रतिशत कोठारी के माध्यम से ही देशमुख से मिल पाते थे।

उस समय कोठारी के केबिन में उसके सामने कोयले जैसा काला जोजफ बैठा था। जो जफ माणिकी देशमुख की बेटी ' पूनम देशमुख का शैडो था।

पूनम की सुरक्षा का भार माणिकी देशमुख ने उसकी चुस्ती , फुर्ती , शक्ति और निशाना देखकर ही उसे सौंपा था।
काले चेहरे के बीच चमकती उसकी सफेद आंखें बेहद खतरनाकी नजर आती थीं।

उसके सामने बैठा कोठा री बेचैनी से सिगरेट फूंकी रहा था । वह बार-बार जोजफ की ओर
आवेश्वास ' भरी दृष्टि से देखता और फिर अपना बाया हाथ अपनी गंजी खोपड़ी पर फेरने लगता।

जोजफ अपलकी उसकी ओर देख रहा था।
उसने काली जर्किन और काली ही पेंट पहनी हुई थी। जर्किन- चेन आधी बंद थी। बायीं बांह उसे जिस ढंग से थोड़ा उठाकर रख्नी पड़ी थी उससे रिवाल् वर का आभास स्पष्ट हो रहा था। उससे वाकफियत रखने वाला कोई भी व्यक्ति कह सकता था कि उसके बगली होलस्टर में छोटे आकार की कोई गन है।मैन क्या सोचता... अपुन झूठ नहीं बोलता , एकदम सच है...सच है! क्या ! 'जोजफ कोठारी की ओर अपनी खतरनाकी आँखें से घूरता हुआ बोला।

कोठारी के माथे पर बल पड़ गए।
उसने घूरकर जोजफ की और देखा! कम्प्यूटर जैसा उसका दिमाग तेजी से काम कर रहा था।

'क्या सोचता मैन क्या ?'

उसने सिगरेट का धुवां जोजफ के चेहरे की तरफ फूंका , फिर ठहरे हुए स्वर में बोला- ' तुमने बराबर देखा था ना ?'

'बरोबर! बरोबर देखा मैन! '
'वह लाम्बा ही था ? रंजीत लाम्बा ?'

डेफनेटली ... रंजीत लाम्बा ! मिस्सी के साथ आउट हाउस में रंजीत लाम्बा ही था।'

'लेकिन मुझे नहीं लगता कि लाम्बा इस तरह का दुस्साहस करेगा।'

'अपुन उसके ऊपर फायर किया मैन। गोलियों के निशानने उधर होयेगा जरू र । जाकर चैकी कर लेना।'
कोठारी को लगा , वह सच कह रहा था।

'तुमने...तुमने रंजीत लाम्बा पर फायर किया ? ' उसने - हैरत से जोजफ की ओर देखा।

' हां ...एक नेई तीन-चार फायर किया। क्या!'

'तीन-चार फायर।'

'यस।'

' लेकिन मुझे तो एक की भी आवाज सुनाई नहीं पड़ी।'

'फायर का आवाज जोजफ चाहेंगा जभी सुनाई देने का , क्या! जोजफ नेई चाहेंगा तो नेई सुनाई पड़ेगा।'

क्यों ?' कोठारी के माथे पर बल पड़ गए।

जोजफ ने जर्किन के अन्दर हाथ डालकर बगली होलस्टर से रिवाल्वर और साइलेंसर दोनों निकालकर कोठारी के सामने टेबल पर रख दिए।

'तो क्या रंजीत लाम्बा की कहानी खत्म हो गई ?' रिवाल्वर और साइलेंसर की ओर हैरत से देखते हुए उसने पूछा।

'नेई मैन ... नेई।'

' लेकिन तुम्हीं तो कह रहे थे कि तुमने उसके ऊपर तीन-चार फायर किए ?

__'अपुन वो फायर उसको निशाना बनाने के वास्ते कम-और सैल्फ डिफेंस में जास्ती किया। क्या!

'सेल्फ डिफेंस ?'

'बरोबर।'

'मैं समझा नहीं?'

'मैन... रंजीत लाम्बा को तुमजानता के नेई, वो जितना जमीन के ऊपर है उतनरइच जमीन के अन्दर भी है।'

'तो?'

'अपुन का जासूसी वो समझ गया।' 'कैसे ?'

__'वो कितना डेंजर आदमी होता मैन , क्या तुम नेई जानता? वो उड़ती चिड़िया के पर गिनने को सकता। अपुन भी समझ गया कि वो समझ गया है और दरवाजे की - तरफ बढ़ रहा है। वो दरवाजे के की-होल के सामने से हट को दरवाजे की तरफ बढेला था।'

' फिर?'

'अपुन को इम्मीडिएटली भागना पड़ा और सैल्फ डिफेंस के लिए अटैकी , बिकॉज मैन अटैकी इज द बेस्ट पॉलिसी ऑफ डिफेंस। अपुन फायर किया और भाग निकला।'

' उसने फायर नहीं किया ?'

'वो नंगा होएला था , फायर कौन-सा गन से करता ?'

' उसने तुम्हें रोका भी नहीं ? '

' नेई। वो अपुन को रोकने की पोजीशन में नेई था। उसने गोलियों से बचने का था।'

'तुम्हारे पीछे बाद में तो आ सकता था ?'

'मैन अपुन अंधेरे-अंधेरे में भागेला था। क्या! इस वास्ते वो अपुन कू देख नेई पाया होएंगा। अगर उसने देखा होता तो अभी तक अपुन का गर्दन उसके हाथों में होता।'

'हूं। 'कोठारी ने विचारपूर्ण हुंकार भरी।

' मैन...खबर देशमुख साहब तक फौरन पहुंचा देने का है, क्या।'

'चोजफ !'

'यस मैन ?' जोजफ ने सशंकी द्रस्ती से उसकी ओर देखा।

'देशमुख साहब तक इस खबर को सोच-समझकर ही पहुंचाया जाएगा।

'कायका वास्ते ?'

'खबर खतरनाकी है , इस वास्ते। '

'खबर खतरनाकी है इस वास्सेइच इस खबर को गोली की तरह देशमुख साहब तक पहुंचना चाहिए।'

'नहीं जोजफ. ..हालात को देखना और समझना पड़ेगा।'

'मैन इसमें देखने और समझने का क्या है ?'

__ ' है.. .बहुत कुछ है। तुम माणिकी देशमुख को अभी जानते नहीं हो। तुम पूनम देशमुख के शैडो हो, सिर्फ उसे ही जान सकते हो, उसके बाप को नहीं!'

'खबर देशमुख साहब तक पहुंचना जरूरी

'क्यों जरूरी है?'

' इस वास्ते जरूरी है, क्योंकि कल को कोई बात हुई और देशमुख साहब ने अपुन से मिस्सी बेबी के बारे में सवाल किया तो अपुन-अ पुन का ड्यूटी का बारे में क्या बोलेंगा ?'

'तुम्हें कुछ भी बोलने की जरूरत नही आएगी। तुम्हारा जवाब मैं दे लूंगा। '

'नेई मैन ... तुमेरे जवाब देने से अपुन का बात बनने का नेई। '

'मतलब?'

'अबी अगर देशमुख साहब को खबर मिलेंगा तो अपुन सस्पैक्ट बन जाएंगा।'

_ ' नहीं बने जाओगे। तुमे खामोश रहो। मैं वक्त और हालात को देखकर इस खबर को देशमुख साहब तक पहुंचा दूगा।'

'वक्त और हालात ?'

'हा।'

' अपुन का माइंड काम नेई करेला है।'
'तुम्हें समझने की जरूरत नहीं है।'

जोजफ खामोश होकर कोठारी का मुंह ताकने लगा। उसके चेहरे से स्पष्ट प्रतीत हो रहा था कि उसे कोठारी का निर्णय किसी भी तरह पसन्द नहीं आ रहा था।

_ 'फिर अपुन का वास्ते क्या काम करने का होता मैन ?' उसने , दबे हुए स्वर में पूछा।

___ 'कुछ नहीं, सिर्फ अपना काम करते रहो और मुझे रिपोर्ट देते रहो ।'

'बात समझ में नहीं आयी।'

' मैं कह चुका हूं, तुम्हें कुछ समझने की जरूरत नहीं है । ' गंजे कोठारी ने आँखें तरेरते हुए उत्तेजित स्वर में कहा।जोजफ की आंखों के भाव एकाएक ही बदल गए, लेकिन अगले ही पल उसने अपने ऊपर काबू कर लिया। वह कोठारी की ताकत से वाकिफ था। जनिता था कि माणिकी देशमुख का लैपटीनेंट कहलाने वाला वह गंजा लाखों लोगों में से चुनकर निकाला गया है। बड़े-बड़े दादे उसे झुककर सलाम करते हैं।

वह पहले कोठारी की आंखों में अपलकी झांकता रहा, उसके बाद धीरे-धीरे उसकी पलकें झुकती चली गई।

वह कम खतरनाकी नहीं था मगर कोठारी को कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा सका।
उसने किसी सैनिकी की तरह ऐढ़ी के बल अपने-आपको विपरीत दिशा में घुमाया और फिर वह केबिन से बाहर निकलता चला गया।

कोठारी विचारपूर्ण मुद्रा में कुर्सी में फंसा बैठा रहा।

उसने सिगरेट के आखिरी टुकड़े से नई सिगरेट सुलगाने के बाद उस टुकड़े को ऐश-ट्रे में बुझा दिया। वह जोजफ द्वारा पेश की गई रिपोर्ट से बहुत ज्यादा फिक्रमंद था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह किस तरह उस रिपोर्ट को आगे बढ़ाए।

उसे मालूम था कि उस रिपोर्ट के आगे बढ़ते ही यानी देशमुख तक पहुंचते ही भूचाल आजाना था।

वह सिगरेट के कश पे कश लगता हुआ विचारों में उलझकर रह गया।
 
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कोठारी खुद चलकर रंजीत लाम्बा के पास पहुंचा।

उस समय लाम्बा के एक हाथ में चाकू और दसरे हाथ में सेब था। वह सेब को काटने जा रहा था।

'आओ-आओ कोठारी...आओ। ' उसने मुस्कराते हुए कहा और सेब काटकर उसका एक हिस्सा कोठारी की ओर बढ़ा दिया।

कोठारी ने सेब का टुकड़ा ले लिया लेकिन वह निरन्तर लाम्बा की आंखों में अपलकी झांकता रहा। उसके चेहरे का तनाव और खामोशी उसके गुस्से को बिन कहे जाहिर कर रही थी।

__'क्या हुआ ?' एकाएक ही लाम्बा ने गंभीर होते हुए पूछा। मुस्कान उसके चेहरे से इस तरह से गायब हो गई मानो मुस्कराना उसे आता ही न हो।

प्रत्युत्तर में को ठारी ने सेब का टुकड़ा गुस्से में कमरे के फर्श पर पटकी दिया।

'कोठारी! ' लाम्बा की आँखें क्रोध से जलने लगीं।

'डायन भी सात घर छोड़ दिया करती है! ' कोठारी घायल सर्प की भांति फुफकारा।

लाम्बा के माथे पर बल पड़ गए। मुट्ठियां कस गई।

तनाव से भर उठा वह। उसकी समझ में आ गया था , कहां बोल रहा था कोठारी।

'अभी तुम्हारी नौकरी महज तीन महीने पुरानी हुई है। अगर देशमुख साहब को पता चला तो खड़े पैर निकाल देंगे।'

'नौकरी लाम्बा के होटों पर विषाक्त मुस्कान फैल गई -नौ कर की परवाह रंजीत लाम्बा ने अपनी जिन्दगी मैं कभी नहीं की। तूं नहीं और सही और नहीं और सही।'

___ 'इसके मुकाबले की नौकरी हासिल नहीं कर सकोगे।'

' इस दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है। इससे भी अच्छी नौकरी हासिल हो सकती है। '


'जो कुछ तुम कर रहे हो, उस रास्ते पर मौत भी मिल सकती है।'

'मौत के भी दांत खट्टे कर दूंगा।'

'रंजीत लाम्बा जैसे अनगिनत किराए के हत्यारे देशमुख- साहब की सेवा में हमेशा बिछे रहते हैं। देशमुख साहब के सामने तुम्हारी बिसात ही क्या।'

' हर आदमी अपनी मर्जी का मालिकी है। मैं अपने मन की बात करने के लिए आजाद हूं और देशमुख साहब अपनी। '

' यानी । तुम पूनम के लिए देशमुख साहब से टकराने को तयार हो?' कोठारी ने अपनी गंजी खोपड़ी साहब पर हाथ फेरते हुए आश्चर्य से लाम्बा की तरफ देखा।

'जब बात खुल ही गई है तो फिर किसी से टकी राने में कोई फर्की नहीं पड़ने वाला। '
'अभी बात पूरी तरह नहीं खुली है।'
'मतलब?'
कोठारी ने उसकी ओर देखते हुए सिगरेट का पैकेट निकाला , एक सिगरेट सुलगाई , धुवां उगला , फिर, कुछ रुककर बोला- ' मतलब ये कि अभी तुम्हारी आशनाई की कहानी देशमुख साहब तक नहीं पहुंची है।'तो फिर?'

'अ भी रिपोर्ट सिर्फ मेरे पास तक है । अगर देशमुख साहब तक खबर पहुंची होती तो अब तक हंगामा खड़ा हो चुका होता।'

'क्या चाहते हो ?' ' इस खेल को यहीं खत्म कर दो।'

' फिर?'

' मैं बात आगे बढ़ने नहीं दूंगा।'

'मुश्किल है।'
'यानी ?'
'पूनम को मैं तो भुला सकता है लेकिन पूनम मुझे नहीं भूलेगी । मैं उससे मिलना बन्द कर सकता हूं , वहमुझसे मिलना बंद नहीं करेगी।'
'तुम कह रहे हो ना...पूनम नहीं।'
'तो तुम पूनम से जाकर पूछ लो।' 'पूछने की कोई जरूरत नहीं है।'
'फिर?'
'तुम्हें उससे मिलना बन्द करना होगा। मैं नहीं चाहता कि किसी तरह की कोई बात उड़ती-उड़ती देशमुख साहब के कानों तक पहुंच जाए और देशमुख साहब तक खबर पहुंचने का मतलब होगा चिंगारी पैट्रोल तक पहुंच गई।'
'कोठारी तुम व्यर्थ ही बन्द-बन्द धमकी देकर मुझे नाहकी डराने की कोशिश कर रहें हो।'
' मैं तुम्हें सच्चाई बता रहा हूं रंजीत लम्बा ।'
'मुझे सच्चाई मालूम है।' ___ 'तो फिर क्यों ऐसा गलत कदम उठाने पर तुले हुए हो जिसका अंत अच्छा न हो। अभी अच्छी-भली नौकरी है। देशमुख साहब की नजरों में तुम्हारी इज्जत है, क्यों उसे मिट्टी में मिला देना चाहते
.
हो?'
' यह दिल का मामला है , तुम नहीं समझोगे।
'दिल के इस मामले को यहीं रोकी दो वरना पछताने के लिए वक्त नहीं रह जाएगा तुम्हारे पास।'
' उसकी फिक्र करने की तुम्हें कोई जरूरत नहीं है कोठारी।'
' यानी तुम मानोगे नहीं ?'
'मजबूर हूं।'
'रंजीत.. .यह तुम अच्छा नहीं कर रहे हो।'


'तुम मेरी शिकायत देशमुख साहब से कर सकतें हो।'
'शिकायत अगर की रनी होती तो कब की कर चुका होता। मै शिकायत नहीं करूगा । मेरी आखिरी कोशिश यही रहेगी कि तुममें और देशमुख साहब में खटके नहीं। क्योंकि तुम्हारी कमी होने पर तुम्हारी कमी पूरी करने के लिए मुझे फिर एक लम्बी तलाश करनी पड़ेगी।'

'कुछ नहीं होगा कोठारी...तुम व्यर्थ ही घबरा रहे हो। कुछ नहीं होगा।'
' मैं तुम्हारा मतलब समझ रहा हूं। तुम्हारे जैसे दिलफेंकी आशिकी जब तक कुछ
हो नहीं जाता तब तक यही राग अलापते रहते हैं ...कुछ नहीं होगा-कुछ नहीं होगा।'
' निश्चित रहो। सिर्फ इतना बता दो , तुम्हें इस खबर से वाकिफ किसने कराया ?'
_ 'वो मैं नहीं बताऊंगा।'
__ 'प्लीज...मैं सिर्फ जानना चाहता हूं उसके खिलाफ किसी तरह का कदम उठाने का कोई इरादा
नही है मेरा। 'तुम्हारे इरादों , तुम्हारी आदतों और तुम्हारे गुस् से को अच्छी तरह जानता हूं मैं । '
'मुझ पर भरोसा करो।' 'तुममें और बिच्छू में कोई फर्की नहीं। डंकी तो तुमने मारना ही मारना है।'
'नहीं...ऐसा नहीं है, तुम मुझे उसका नाम बता दो।'
'नही बताऊंगा।'
.
.
.
.
'यानी मुझे खुद ही उसकी तलाश करनी पड़ेगी।'
'तुम उसके बारे में सोचोगे भी नहीं।'
'रंजीत लाम्बा के होंठों पर जहर भरी मुस्कान फैल गई।
'रंजीत तुम्हें अपने काम से काम रखना है.. .बस! ' कोठारी उत्तेजित स्वर में बोला।
'हां...मुझे अपने काम से काम रखना है। ' 'नेकीराम का क्या हुआ ?'
' अभी वह सिगापुर से वापस नहीं लौटा है। जैसे ही वह वापस लौटेगा उसका काम हो जाएगा।'इतना आसान नहीं है जितना तुम समझ रहे हो। नेकीराम अपने नाम के अनुरूप नहीं विपरीत है। छोड़ भलाई सब गुण है उसमें। '
'उस की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। उसका नाम खत्म हो जाएगा।'

' मेरे विचार में तुम्हें सारा ध्यान उसी की तरफ लगा देना चाहिए। ' कहता हुआ कोठारी वहां से जाने के लिए मुड़ा। कमरे के दरवाजे पर पहुंचकर उसके कदम रुके। बिना मुड़े ही वह बोला- 'ये तुम्हारे लिए मेरी तरफ से कीमती राय है। इसे मानना न मानना तुम्हारे अधिकार में है। देशमुख साहब से टकराकर आज तक कोई चैन से जी नहीं सका है।'
लाम्बा कुछ कहता , उसके पहले ही कोठारी वहां से निकल चुका था।
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चौबीस अगस्त को शाम छ: अड़तीस की फ्लाइट से नेकीराम आने वाला था।
एयरपोर्ट पर रंजीत लाम्बा अपनी पूरी तैयारी के साथ मौजूद था। उसने काला सूट पहन रखा था। सिर पर फैल्ट हैट था, हाथों में काले दस्ताने और
काले ही रंग का ब्रीफकेस।
पिस्तौल उसके बगली होलस्टर में थी और अड़तीस कैलीबर का रिवाल्वर गर्दन के ठीकी पीछे पीठ वाले होलस्टर में। ऊपर से ढीला-ढाला कोट।
छोटे-छोटे गोल काले लेंसों वाला चश्मा लगाए वह कुर्सी पर बैठा सिगरेट के कश लगाता हुआ बार-बार बेचैनी से पहलू बदल रहा था।
एयर फ्रांस की पलाइट के सिंगापुर से आने वाली खबर अभी-अभी एनाउन्स हुई थी।
अब कस्टम से क्लीयर होने के बाद यात्रियों को बाहर निकलना था।
__ लाम्बा की नजरें बारम्बार निकास द्वार की ओर घूमजातीं।'
वह निकास द्वार के अतिरिक्त रिसीव करने
आए लोगों को भी गौर से देख रहा
था। विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों में उसे वहां कुछ दादे परकार के लोग भी दिखाई देने लने।
जावेद कालू माना हुआ दादा था।
शक्तिशाली जावेद कालू के आसपास उसके तमाम चमचे भी मौजूद थे।
एक चमचा उस के लिए तम्बाकू और चूना घिसकर ले आया।
कालू ने तम्बाकू मुंहमें डाल ली, फिर वह भी निकास द्वार की तरफ देखने लगा।
इसी बीच एक चमचे ने उसके कान में कुछ
कहा।
कालू फुर्ती से उठ कर बाहर की ओर लपका। तीन च मचे जेबों में हाथ डाले तेजी से उसके
पीछे-पीछे बाहर चले गए।
उनके जाने के बाद लाम्बा अपनी जगह से उठकर ऐसी चेयर पर जा बैठा जो खंभे की ओट में
थी।
निकास द्वार से अब यात्रियों ने निकलना शुरू कर दिया था।
जावेद कालू जितनी तेजी से गया था उतनी ही तेजी से वापस लौटा।
उसके आदमी आसपास फैले हुए थे।
वह पूरी तरह सजग नजर आ रहा था। उसकी नजर निकास द्वार पर स्थिर होकर रह गई थी।
यात्री बाहर आ रहे थे।
अचानक!
इंकलाब! जिन्दाबाद! के नारों से एयरपोर्ट का वह क्षेत्र गूंज उठा।
रिसीव करने आए लोगों में से कुछ लोग किसी नेता का स्वागत कर रहे थे। भीड़
वहां अनायास ही जमा-होती चली गई।
अब निकलने वाले यात्रियों को मुश्किल से ही देखा जा पा रहा था।
जावेद का लू उठ खड़ा हुआ।
उसे अब ठीकी तरह से अपना वांछित व्यक्ति नजर नहीं आ रहा था।
लाम्बा परेशान था।
उसे भी अपना शिकार तलाश करने में मुश्किल पेश आ रही थी।
नेताजी को रिसीव करने आए लोग नारे लगाते हुए आगे बढ़ गए। जगह खाली हुई और नेकीराम सामने आया। नाम के विपरीत नेकीराम तीस के पेटे में पहुंचा आधु-निकता में लिपटा हुआ। नीली शर्ट , बाइट जींस. स्पोर्ट्स शूज और छोटे लैंसिज वाला चश्मा लगाए हुए था।
निकास द्वार पार करके वह ज्योंही लगेज कैरयिर के साथ बाहर आया , जावेद कालू और उसके आदमियों ने तुरन्त उसे घेर लिया।
एक आदमी उसके द्वारा लाए गए लगेज कैरियर को खींचता हुआ ले चला। लाम्बा देख रहा था। कालू को नेकीराम से बात करते हुए।
कालू झुका हुआ उससे कुछ कहता चल रहा था। उसके आदमियों ने दोनों को चारों ओर से कवर कर रखा था।
लाम्बा समझ गया कि नेकीराम ने जावेद कालू की प्रोटेक्श न हासिल कर रखी है।
 
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Hi bro yr Zindagi ke Rang Family ke sang jo apne complete nhi ki hai us ki age ki update de do ya link de do complete story ka .
 
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Hi bro yr Zindagi ke Rang Family ke sang jo apne complete nhi ki hai us ki age ki update de do ya link de do complete story ka .
Aage ki update mil jayenge us pe comments nahi aarahe the is liye dhyan hat gaya tha
 
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Bohot Meharbaani hogi bhai koi 2,3 bare update de do ek saath bcz me to almost aj subah se hi is story ke next part ko dhoond raha hun but mil nahi raha agr ap abhi ya kal tk post kr denge to bohot Meharbaani ho jaigi thanks and keep it up bcz is story me bohot potential hai mene kaafi age tk prhi hai jahan usko paison ki need hoti hai komal ke.liye
 
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कालू दादा के संरक्षण में वह अपने-आपको सुरक्षित महसूस कर रहा था।
लाम्बा ने सिगरेट सुलगाई , फैल्ट हैट को चेहरे पर खींचा और नेकीराम के पीछे-पीछे एयरपोर्ट से बाहर आ गया।
तीन कारों में नेकीराम वहां से चला।
एक एम्बेस्ड र कार आगे, एक पी छे और बीच में मारुति बन थाऊलैंड।
मारुति में मारुति के ड्राइवर के अतिरिक्त नेकीराम और जावेद कालू। चौथा व्यक्ति उस कार के
अन्दर नहीं था।
कारों का वह छोटा-सा काफिला जब आगे निकल गया , तब लाम्बा ने अपनी कार स्टार्ट की।
उसका दिमाग तेजी से काम कर रहा था।
नेकीराम का पीछा करने के साथ-साथ वह यह भी सोचता चल रहा था कि मवालियों की उस भीड़ के रहते नेकीराम की हत्या किस तरह करे।

मवालियों की भीड़ तो थी ही उसके साथ, सबसे बड़ी अड़चन ये थी कि जावेद नेकीराम के साथ उसके साए की तरह चिपका हुआ था।
वह एक ' बड़ा दादा था।
जुर्म की दुनिया में उसकी अब तक की जिन्दगी गुजरी थी। नेकीरामं पर लाम्बा उसकी
जिदगी में घात नहीं लगा सकता था। अगर सात लगाता तो पहले तो उसका सफल होना मुश्किल था , दूसरे अगर वह सफल हो भी जाता तो जावेद अपने प्यादों के साथ उसे शीघ्र ही घेर लेता।
इसीलिए उसने घात लगाने का इरादा फिलहाल मुल्तवी करके सिर्फ पीछा करने का
कार्यक्रमजारी रखा।
वह कभी-भी अपना कोई भी काम जल्दबाजी में नहीं किया करता था।
उसने विला तक नेकीराम का पीछा किया।
नेकीराम का विला काफी बड़ा और आधुनिकी ढंग से निर्मित था।
विला के सामने से लाम्बा अपनी कार धीमी गाती से ड्राइव करता हुआ निकलता चला गया। थोड़ी दूरी पर पहुंचकर उसने अपनी कार पार्की कर दी।
सिगरेट सुलगाने के पश्चात् वह बाहर निकला।
उसने नाकी पर आगे खिसकी आए चश्मे को एक उंगली से पीछे खिसकाया , फिर सिगरेट का कश लगाता हुआ वह चलहकदमी करता आगे बढ़ गया। उसकी पैनी दृष्टि आसपास के क्षेत्र का निरीक्षण कर रही थी।
शीघ्र ही उसे निर्माणाधीन बिल्डिंग नजर आ गई।
बिल्डिंग में बांस-बल्लियों का जाल लगा हुआ
था। उसने बिल्डिंग के अन्दर जाकर एक चक्कर लगाया। वहां से नेकीराम के विला की तरफ देखा।
विला थोडा-सा पीछे रह गया था लेकिन फिर भी उसे उसबल्डिंग की।सि चुएशन ठीकी लगी। वह तुरन्त नीचे जाकर कार में रखा गिटार केस उठा लाया।
चौथे माले पर उसने एक जगह अपना ठिकाना बनाया। फिर वह वहीं जम गया।
उसने गिटार केस खोलकर अन्दर से टेलिस्कोपिकी गन के पार्ट निकाले , फिर वह उन पाटर्स को जोड़ने लगा।
उसकी प्रत्येकी कार्यवाही में मजबूरी की झलकी मिलती थी।

गन के पार्ट जोड़कर पूरी गन तैयार करने में केवल दो मिनट का समय लगा। गन नेकीराम के विला की ओर तानते हुए उसने पोजीशन लेकर
अपनी दाहिनी आंख टेलिस्कोप के आई लौ पर जमा दी।
टारगेट क्रॉस पर दृश्य उभरकर निकट आ गया। विला के अन्दर लॉन और पोर्टिको को पार कर स्वीमिंग पूल तक का भाग नजर आने लगा।
पोर्टिको में जावेद कालू के दो आदमी मौजूद थे । रंजीत लाम्बा ने उन्हें गन प्वाइट पर लिया फिर उसने ट्रेगर से उंगली हटा ली। एकबारगी यही लगा , था कि वह जावेद के उन दोनों आदमियों को उड़ा देने वाला है लेकिन फिर उसने टैगोर से उंगली इस कारणवश हटा ली, क्योंकि उसे लक्ष्य तो किसी
और को बनाना था।
शायद वह नेकीराम को लक्ष्य बनाने का अभ्यास कर रहा था।
प्रतीक्षा में वका गुजरने लगा।'
अपने शिकार की प्रतीक्षा में घंटों इंतजार करते रहने की पुरानी आदत थी उसे। उसी आदत के अनुसार वह प्रतीक्षा करने लगा।
गन उसने नीचे झुका ली थी।
वह खंभे के सहारे ओट मैं छिपकर बैठा था ताकि किसी की नजर उस पर न पड़ सके। उसका हर अंदाज पेशेवराना था।
उसकी पैनी नजरें इधर से उधर घूम रही थी।
उसे सिर्फ नेकीराम का इंतजार था।
और ये भी निश्चित था कि इधर उसे नेकीराम नजर आता , उधर उसकी गन उसे निशाने पर लेकर आग उगल देती , लेकिन नेकीराम जैसे अपने विला के किसी कमरे में बंद होकर रह गया ।
थोड़ा वक्त इंतजार में और गुजरा।
त भी !अपनी जगह बै ठा-बैठा लाम्बा अचानकी ही किसी मामूली-सी आहट से चौंकी पड़ा।
उसके कान इधर-उधर की आहट लेने को तत्पर हो गए। उसने पीछे मुड़कर देखा।
कहीं कुछ नहीं था।
अपनी जगह छोड़कर वह पीछे वाले भाग की ओर दबे पांव बढ़ा। उसने आसपास का पूरी क्षेत्र देखा डाला। कोई नजर नहीं आया।
वह यह सोचने पर मजबूर हो गया कि कहीं वह आहट उसका भ्रम तो नहीं थी।
असमंजस में उलझा हुआ वह वापस अपना जगह पर जा बैठा।

एक बार फिर उसने टेलिस्कोपिकी गन संभाल ली।
धीरे-धीरे वका गुजरने लगा।
विला में हल्की-सी हलचल बढती नजर आयी।
वह सावधानी के साथ गन संभा लकर बैठ
गया। कभी-भी उस हलचल के दरमियान नेकीराम सामने आ सकता था।
लाम्बा पहला अवसर ही चूकना नहीं चाहता
था।
___ जावेद कालू अपने आदमियों के साथ अब स्वीमिंग पूल के निकट पहुंच चुका था। वह अपने आदमियों को कुछ समझा रहा था।
इसी बीच!
नेकीराम दायीं ओर आता दिखाई पड़ा।
उसे देखते ही लाम्बा ने गन संभाल ली। उसकी आंख टेलिस्कोपिकी ग न के लैं स पर जम गई। टारगेट क्रास पर नेकीराम नजर आने लगा।
उसके चलने के साथ-साथ गन की बैरल धीरे-धीरे घूमने लगी।निशाने पर वह स्पष्ट होता जा रहा था।
लाम्बा ने गन का सेफ्टी कै च हटा दिया । दाहिने हाथ की उंगली गन के ट्रेगर पर आ ठहरी।
दिल की धड़कनें बढ़ गई।
घबराहट होना स्वाभाविकी था।
आखिर वह हत्या जैसा जघन्य अपराध करने जार रहा था।
टारगेट क्रॉस पर नेकी राम का सीना आया।
गन के ट्रेगर पर अभी पूरी तरह उंगली कसी भी नही थी कि अचानकी उभरने वाली आहट ने उसे चौंकाया।
दस्ती बम उससे कुछ दूरी पर लुढ़कता आ
गिरा था।
ये उसकी किसमत थी कि वह चला नहीं था। लेकिन उससे निकलने वाला धुआ बता रहा था कि व ह किसी भी क्षण चल जाने वाला है।
___ सैकिण्ड के दसवें हिस्से में फैसला करते हुए उसने बिल्डिंग से बाहर छलांग लगा दी।
बाहर बांस-बल्लियों का जाल लगा था।
वह उस जाल मैं उलझता हुआ नीचे की ओर गिरने लगा।

कानों के पर्दे हिला देने बाला विस्फोट हुआ ।
उसी क्षण निरन्तर नीचे गिरते लाम्बा का हाथ एक बल्ली को पकड़ने में सफल हो गया। लेकिन इतनी देर में एक माले से अधिकी की दूरी वह तय कर चुका था।
___ बल्लियों के सहारे से एक रस्सी झूलती नजर आ गई उसे।
वह रस्सी के सहारे तेजी से नीचे फिसलता चला गया। नीचे पहुंचते ही फायरिंग आरंभ हो गई।

उसकी गन छूट चुकी थी।
उसने फुर्ती से बगली होलस्टर से अपनी पिस्तौल निका लकर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी।
वह बौखला गया था।
उसने फायर करते हुए अपनी कार की ओर भागने की कोशिश आरंभ कर दी।
वह बार-बार पीछे मुड़कर देखता जा रहा था।
उसे पर गोलियां बरसाने वाले चार व्यक्ति बिल्डिंग से बाहर दौड़ लगाते दिखाई दिए। मुमकिन
था कि वे उसे निशाना बनाकर उसे गोलियों से छलनी कर डालते , लेकिन इसी बीच नेकीराम की विला से जावेद बाहर निकला।
पहले विस्फोट, उसके बाद फायरिंग के धमाकों ने जावेद कालू को बाहर आकर देखने को विवश कर दिया था।
चूंकि फायरिंग हो रही थी इसलिए वह अपने आदमियों के साथ हवाई फायर करता हुआ बाहर निकला।
उसके हवाई फायरों ने रंजीत लाम्बा को बचा लिया। जो लोग लाम्बा को निशाना बनाना चाहते थे। वे बीच में होने वाली फायरिंग से उल्टे कदमों पीछे लौट गए।
लाम्बा को मौका मिला।
वह तुरन्त अपनी कार में बैठकर वहां से निकल भागा।

बांस-बल्लियों के जाल में उलझकर गिरते हुए लाम्बा को कई जगह चोटें आई थी। वहमरहम-पट्टी कराने के बाद वह सीधा कोठारी के पास पहुंचा।
उस समय कोठारी अपने लिए पैग तैयार कर रहा था।
'अरे...तुम! ' वह चौंककर लाम्बा को एग्जामिन करता हुआ बोला -यह...यह क्या हुआ ? '
'यही में तुमसे जानना चाहता हूं? यह क्या हुआ क्यों हुआ? ' लाम्बा अपलकी उसे घूरता हुआ गुर्राया।
'लगता है कहीं मार खा गए हो। तुम्हारे लिए पैग बना ऊ?'
लाम्बा ने एक झटके के साथ उसके सामने रखी बोतल उठा ली! कोठारी को क्रोधि त दृष्टि से घूरत हुए उसने बोतल मुंह से लगा ली।
'रंजीत , पहले पूरी बात तो. बताओ?'
'बात बताऊ?' बोलत मुंह से हटाकर वह चिल्लाया-यह... यह पट् टियां देखो... देखो ये चोटें।
इनको देखकर तुम्हें कुछ नहीं लगता क्या ?'
'जो लग रहा है वह बता चुका हूं।'
'हां...हां मैं मार खोकर आ रहा हूं। गोलियों की मार ! मर ही जाता मैं अगर किस्मत ने साथ ने दिया होता।'
'क्या हुआ?'
उसने बताया।
'ओह गॉड! नेकीराम बच गया।' सुन ने के बाद कोठारी अपनी गंजी खोपड़ी पर हाथ फेरता हुआ बड़बड़ाया।
'तुम् हें नेकीराम के बचने का अफसोस है. ..बस ?'
'तुम्हारे बचने की खुशी भी है। ' काठारी पत्थर की मूर्ति की भांति मुस्कराया।तुमने यह भी नहीं पूछा कि ऐन उस वक्त जबकि मैं नेकीराम को निशाना बना रहा था तब मुझ पर दस्ती बम किसने फेंका था , दस्ती बम से बचने के बाद मुझ पर गोलियां किसने बरसाई थीं?'
'किसने यह कोशिश की ?' ' बहुत भोले बन रहे हो।'
'क्या मतलब?'
'मतलब समझाने की अभी-भी जरूरतें है ?'
'ओ... समझा। तो तुम यह समझ रहे हो कि मैंने तुम पर हमला करवाया ?'
तुमने नहीं तो देशमुख मे सही । बात तो एक मन नहीं तो देश ही है।
' नहीं.. .यह गलत है।'
'तुम अपने वायदे से मुकर गए। जो तुमने कहा था , किया नहीं। तुमने कहा था कि तुम मेरी
और पूनम की आशनाई की कहानी माणिकी देशमुख से नहीं कहोगे...कहा था ना ? '
'मैं अब भी अपनी बात पर कायम हूं। मैंने उस बात का जिक्र किसी से नहीं किया।'
'झूठ बोल रहे हो।'
'नहीं ... इसमें लेशमात्र भी झूठ नहीं है। '
'झूठ नहीं है तो फिर मेरी जान का दुश्मन बैठे-बिठाएं कौन बन सकता है ?'
'यह तुमजान , यह कार्यवाही देशमुख साहब की तरफ से इसीलिए की गई नहीं हो सकती , क्योंकि देशमुख साहब के सोने-जागने हकी का हीसाब मुझे ही रखना होता है। जब कभी उन्हें अपने किसी दुश्मन को रास्ते से हटाना होता है तो उसके लिए भी वहमेरे माध्यम से तुम्हें आदेशित करते हैं, जैसे नेकीराम के मामले में भी आदेश उन्होंने किया , मगर माध्यमें मैं था। था ना ?'

'हा।
' तो फिर इस बात को मान लो कि अगर तुम पर हमला देशमुख साहब ने कराया होता तो उसकी खबर कम से कम मुझे जरूर होती।'
' लेकिन इस बात की गारंटी भी तो नहीं है कि तुम सच बोल रहे हो।'
मैं बिल्कुल सच बोल रहा हूं। विश्वास करो मेरा।'
'कैसे ?'
'मैं तुमसे झूठ नहीं बोल रहा हूं... विश्वास करो! ' कोठारी तनिकी उत्तेजित होता हुआ बोला।
लाम्बा ने उसे कठोर दृष्टि से देखा ।
दोनों एकदूसरे के नेत्रों में पूरी कठोरता के साथ अंपलकी घूरते रहे। '
' अगर तुम झूठ नहीं बोल रहे तो मुझे मारने की कोशिश किसने की थी ? ' लाम्बा विचारपूर्ण स्वर में बड़बड़ाया।'
'तुम नेकीराम के क्षेत्र में थे।'
'तो क्या हुआ ?'
'तो यह हुआ कि हो सकता है नेकीराम ने अपने आसपास जावेद कालू और उसके आदमियों को रखने के अलावा किसी और को भी अपनी विला और आसपास के क्षेत्र की निगरानी का भार सौंपरखा हो और तुम उसे न समझ सके हो।'
रंजीत लावा के चेहरे पर उलझन के चिन्ह उभर आए।
उसे लगा कि कोठारी सही कह रहा है।
ऐसा ह्ये सकता था।
ऐसा इसलिए हो सकता था , क्योंकि जहां पहले से ही कोई शिकार जाल फैलाए बैठा हए हो तो वह शिकारी उस क्षेत्र में होने वाली किसी भी हरकत पर आसानी से नजर रख सकता था और किसी भी तरह का कदम उठा सकता था।
' इसका मतलब यह हुआ कि नेकीराम को पूरी तरह इस बात की जानकारी है कि किसी भी क्षण उसकी हत्या की कोशिश की जा सकती है ?'
'हां।'
'फिर तो हो सकता है कि गलती मुझसे ही हुई हो।'
'लाम्बा !'हूं?'
'देशमुख साह ब ने नेकीराम के बारे में पूछा तो उन्हें क्या जवाब दूं?'
'की ह देना मैं चोट खा गया।'
'देशमुख साहब को असफलता से चिढ़ है। '
'होगी।'
'वो तुम्हें-लाकर पूछताछ कर सकते हैं।'
' मैं जवाब दे लूंगा।'
'जवाब ऐसा देना ताकि साहब असन्तुष्ट न रहें।'
अभी उनकी वार्ता चल ही रही थी कि एक नौजवान ने कमरे में प्रवेश किया। लम्बे-चौड़े उस
शक्तिशाली नौजवान की आँखें नीली थी। मक्कारी उसके चेहरे से झलकी रही थी।
लाम्बा उसे पहचानता था , वह पूनम का बड़ा भाई होता था।
विना यकी देशमुख!
माणिकी देशमुख का बेटा।
' पांच लाख की जरूरत है मिस्टर कोठारी! ' च्यू इंगम चबाता विनायकी देशमुख कोठारी को हिकारत भरी नजरों से देखता हुआ बोला।
'इतना रुपया ?' कोठारी चौंका।
'रुपया तुम्हारे बाप का नहीं मेरे बाप का है और उसे खर्च करने का मुझे पूरा-पूरा हकी है। '
कोठारी का खून जल उठा।
लेकिन अपने पर जब्त करते हुए उसने सेफ खोली। सौ-सौ के नोटों की गड़ियों के बंडल निकाले
और विनायकी देशमुख की ओर बढ़ा दिए।
नोटों के बंडल लेने के बाद विनायकी देशमुख ने कोठारी को घूरते हुए चुटकी बजाई- मिस्टर कोठारी...
आई दा इस बात का ख्याल रहे कि में जो भी डिमाण्ड करू वो फौरन पूरी होनी चाहिए , अगर इफ
और बट के टुकड़े लगाए तो फिर तुम्हें डैड के गुस्से का सामना करना पड़ेगा। मैं उनसे तुम्हारी शिकायत कर दूंगा।
कोठारी खामोश रहा। विनायकी वंहा से उसे घूरता हुआ च ला गया।
'यहमाणिकी देशमुख का बेटा होता है ना?' रंजीत लाम्बा ने सिगरेट सुलगाते हुए पूछा।
' हां...देशमुख साहब का बेटा है यह। '
'इसके बात करने का अंदाज तो बेहद गलत है।
__ 'दौलतमंद बाप की औलादें अक्सर बिगडा जाया करती हैं।'
' पांच लाख का क्या करेगा?'
__ 'ड्रग एडिक्ट है। इसके दोस्त भी इसी जैसे हैं। उन्हीं के साथ मौज-मस्ती में उड़ा डालेगा। बेहद ख तरनाकी है। नशे में यह अब तक चार खून कर चुका है।'
'चार खून।'
'हां।'
' और पुलिस ?' 'पुलिस को खूनी की तलाश है. . .बस। '
' देशमुख साहब की दौलत काम आती होगी... नहीं?'
दौलत से सब-कुछ खरीदा जा सकता है। बेटे को बचाने की खातिर देशमुख साहब कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं। ठीकी वैसे ही बेटा भी बाप के लिए कुछ भी करने को तैयार रहता है।'
'जो भी है , इसके तेवर अच्छे नहीं।'
'अपने को क्या करना है , जो है ठीकी है। '
वो अपने बाप के धंधों से वाकिफ है ?'
'पूरी तरह।'
'आई सी।'
'यूं समझो देशमुख साहब का उत्तराधिकारी है। देशमुख साहब के कारोबार को आधे से ज्यादा वह जानता है ओर बाकी जान कारी उसे मुझसे हासिल करने में कोई वक्त लगने वाला नहीं।'
' अगर यह देशमुख साहब की जगह कभी आ गया तो हाहाकार मचा डालेगा।'
' हो सकता है।'
'हो सकता नहीं यकीनन हाहाकार मचा डालेगा। वह शक्लो-सूरत से उत्पाती जीव प्रतीत हो रहा है।'
'तुम उसके बारे में सोचना छोड़कर अपने उस दुश्मन के बारे में पता करने की कोशिश करो जो ऐन वक्त पर चोट कर गया।'सिगरेट फूंकता लाम्बा अपने दुश्मनों के बारे में बारी-बारी से ध्यान करने लगा । कुछ देर तक विचारपूर्ण मुद्रा में रहने के उपरान्त वह वहां से निकलकर आउट हाउस की ओर चला गया।
वह कोठी शहर से बाहर के क्षेत्र में बनी थी।
माणिंकी देशमुख ने उसे अपने किसी विशेष कार्य के लिए। बनवाया रहा होगा, लेकिन उस समय उसका प्रयोग पूनम कर रही थी।
उसने लाम्बा को फोन कर दिया था और लाम्बा ने पंद्रहमिनट में वहां पहुंचने को कहा था। पंद्रहमिनट हो चुके थे, वह अभी तक नहीं पहुंचा था।
पूनम को बेचैनी होने लगी थी।
वह कॉरीडोर में चहलकदमी करने लगी। उसकी नजर बार-बार अपनी रिस्टवॉच पर जा ठहरती।
पुरे तीस मिनट बाद जब रंजीत लाम्बा की कार उसे आती दिखाई पड़ी तब उसे चैन मिला।
वह अन्दर बैडरूम की ओर बढ़ गई।
वहीं से आहटें सुनकर अनुमान लगाने लगी, कार के रुकने की , दरवाजा खुलने की दरवाजा बन्द होने की और आखिर में कॉरीडोर में उभरती जूतों की ठक-ठक।
शीघ्र ही रंजीत लाम्बा उसके सम्मुख था।
उसने रूट ने का अभिनय किया।
लाम्बा ने आगे बढ़ कर उसे अपनी बाहों में भर लिया।'
'सॉरी पूनम... ट्रैफिकी जाम था , मैं क्या करता। ' उसने पूनम के गालों को चूमते हुए कहा।
मैं कब से इंतजार कर रही हूं।'
' तो क्या हुआ। आ तो गया ना।'
'जानते हो , एक मिनट की भी देर हो जाने पर मेरे दिल में कैसे-कैसे ख्याल आने लगते हैं। '
'कैसे-कैसे ?' लाम्बा ने शरारतन पूछा।
'डरने लगती हूं। सोंचती हूं कहीं तुम्हें कुछ हो तो नहीं गया।'


'एक बात बो! ?' वह पूनम के अधरों पर उंगली फिराता हुआ बोला।
'हां...बोलो।'
'बहुत बेशर्म हूं ' । आसानी से मरूंगा नहीं।
' ऐसी बातें मत करो। ' पूनम ने जल्दी से उसके होंठों पर हथेली रखते हुए कहा।
' फिर क्या करू?'
'प्यार। ' कहते हुए पूनम की पलकें शर्म से झुकती चलीन गई।
उसकी उस अदा पर लाम्बा कुर्बान हो गया। उसकी बांहों का बंधन पूनम के गिर्द कसता चला गया। यहां तक कि उसके मुख से दबी हुई कराह फूट निकली।
'उई मां...!'
उसने पूनम को अपनी बांहों से हटाकर एकदम से गोद में उठा लिया।
'हाय रे! क्या कर रहे हो ?'
'प्यार।'
'शरारत तो कोई तुमसे सीखे। '

" इसमें शरारत कहां से आ गई ?'
'जरूरी है मुझे इस तरह गोद में उठाना ?'
'हां... जरूरी है ?'
'किसलिए जरूरी है ?'
' इसलिए कि प्यार करना जरूरी है।' ' बातें खूब बना लेते हो।' ' बातें बनाना तुम्हीं ने सिखाया है। '
'हाँ ... सब-कुछ मैंने ही किया है।'
' वरना मुझे तो कुछ आता ही नहीं था। '
'बिल्कुल नहीं...तुम तो भोले-भाले नन्हे-से बच्चे हो।'
लाम्बा मुस्कराया। ' इस तरह गोद में उठाकर कहां लिए जा रहे
हो ?'
'वंहा ...। ' उसने आंखों ही आंखों से बैड की ओर संकेत किया।
लाज की लालिमा पूनम के चेहरे पर फैल
गई।
बैड पर, लाम्बा ने उसे ऊपर से ही छोड़ दिया।
वह डनलप के ग द्दे पर गिरकर थोड़ा-सा उछली फिर फैल गई। उसके संभलने से पूर्व लाम्बा उस पर गिर चुका था।
पूनम जैसी सैक्सी लड़की का- सामीप्य हासिल होने के। बाद कोई भी जवान आदमी अपनी इच्छाओं पर काबू नहीं पा सकता था।
वही हाल लाम्बा का हुआ।
यूं भी पूनम के पास आते ही उस पर दीवानगी-सी छा जाती थी।
उसके दोनों हाथ फुर्ती से चल रहे थे।
शीघ्र ही वे निर्वसन अवस्था में जब एक-दूसरे की चिकनी बांहों में समाए तो मानो पैट्रोल में चिंगारी डाल दी गई हो।
शोले एकदम ही भड़की उठे।
पूनम उत्तेजकी स्थिति में सत्कार कर उठी। उसके अधर रंजीत लाम्बा के शक्तिशाली जिस्म को यहां-वहां चूमने लगे।लाम्बा ने उसे अपने आलिंगन में भींच लिया।
वह लाम्बा से लता के समान लिपट गई। उन क्षणों में वह लाम्बा से एक पल के लिए भी अलग नहीं होना चाहती थी । धीरे-धीरे उसकी सांसों में तेजी आने लगी।
लाम्दा की कठोरता पूर्ण उत्तेजना को यह स्पष्ट अनुभव कर रही थी।
लाम्बा ने जब उसके अधरों से अधर जोड़े तो बरबस ही वह उसके सिर के बालों में अपने हाथों की कोमल उंगलियां घुमाकर उसके सिर के बालों को सहलाने लगी।
लाम्बा के हाथ अलग हरकत कर रहे थे।
दोनों लगभग एकाकार हो गए थे।
गर्म सांसें घुलने लगीं।
सांसों की रफ्तार में निरन्तर तेजी आती जा रही थी। वह तेजी बढ़ती ही गई। बढ़ती ही गई। यहां तक कि तनाव चरम शिखर पर पहुंचकर टूट गया।
इस बात पूनम के मुख से कामुकी सीत्कार निकलते रहे थे।
लाम्बा का समूचा बोझ उस समय उसके ऊपर था।उसने लाम्बा को बदन तोड़ ढंग से सहयोग किया था। इस समय लाम्बा का चेहरा उसके वक्षों के मध्य छिपा था और वह उसके सिर के बालों को धीरे-धीरे सहला रही थी।'
थोड़ी देर बाद लाम्बा ने करवट बदली।
वह पूनम के ऊपर से हट गया। __पूनम ने तुरन्त करवट बद ली और वह उसके चौड़े सीने पर फैल गई। उसकी आंखों में लाम्बा के लिए प्रशंसा ही प्रशंसा थी।
__ पहले बह प्यार से कितने ही क्षणों तक लाम्बा की आंखों में देखती रही। उसके बाद उसने लाम्बा के होंठों को चूम लिया।

'ऐसे क्या देख रही हो?' लाम्बा ने प्यार भरे अंदाज में पूछा।
'देख रही हूं कितना ढेर सारा प्यार है तुम्हारे पास ?' पूनम उसके सीने पर हाथ फेरती हुई बोली।
'प्यार है ना?'
'हां। '
'इस प्यार को भूल तो नहीं जाओगी?' ' आखिरी सांस तक याद रहेगा। ' भावु की होकर लाम्बा ने उसके अधरों पर चुम्बन अंकी गित कर दिया।
वह उसकी आंखों में देखती हुई-मुस्कराई।
'इस कोठी में क्यों बुलाया ?'
' इसलिए कि वहां का डिस्टर्बेन्स मुझे अच्छा नहीं लगा। यहां सुकून है। किसी तरह की कोई उलझन नहीं...।'
उलझन है। ' एकाएक ही चौंकता हुआ लाम्बा उसे अपने ऊपर से हटाकर उठा और फुर्ती से कपड़े पहनने लगा।
अपने दोनों होलस्टर उसने सबसे पहले अपने कब्जे में किए। उसके बाद शर्ट के बटन लगाता हुआ वह खिड़की के निकट जा पहुंचा।
पूनम घबरा गई।
हालांकि उसने किसी प्रकार की आहट नहीं सुनी थी, लेकिन वह जानती थी कि रंजती लाम्बा में बहुत दूर से खतरे को सूंघ लेने की योग्यता थी।
खतरा निश्चित ही होगा, इसे बात को वह जानती थी।
इसीलिए उसने जल्दी-जल्दी कपड़े पहन
लिए।
लम्बा खिड़की के पर्दे की ओट से बाहर झांकी रहा था।
कोठी के बाहर का दृश्य दिखाई दे रहा था उसे।
वह सावधान मुद्रा में देखता रहा।
आयरन गेट के इस पार फूलों की घनी बेल की ओट में ऐकी व्यक्ति नजर आया उसे। वह छिपकर कोठीकी और देख रहा था।
शायद उसके द्वारा आयरन गेट पार करते हुए कि सी प्रकार की आहट उत्पन्न हुई थी, उसे सुनकर ही लाम्बा को खतरे का आभास मिला था।
फूलों की बेल की ओट में छिपे व्यक्ति ने दाहिना हाथ उठा कर पीछे से किसी को आगे बढ़ने का संकेत किया। ऐसा करते समय उसके हाथ की उंगलियों में फंसा का ला रिवाल्वर दूर से ही नजरे आ गया। इसके अतिरिक्त अपने पीछे वाले को सिग्नल
देते हुए भी वह पीछे नहीं देख रहा था। उसकी नजर सामने की ओर ही लगी थी।
फिर वह अपने पीछे देखे बिना बेल की ओट से निकलकर तेजी से ड्राइव वे पर बढ़ता चला गया।
ड्राइव वे अभी पूरी तरह उसने पार नहीं किया था कि , उसके पीछे खतरनाकी प्रकार की गने संभाले चार आदमी और आते दिखाई दिए।
उन चारों ने सिर से लेकर गर्दन तक इस तरह कपड़े को लपेटा हुआ था कि उनकी सिर्फ आँखें ही चमकती हुई नजर आ रही थी।
वे आतंकवादी प्रतीत हो रहे थे।
जाहिर था उनके इरादे भी अच्छे नहीं थे।खिड़की के पर्दे की ओट से झांकते-रंजीत लाम्बा ने फुर्ती से एक हो लस्टर के अन्दर से रिवाल्वर खींच निकाला।
उसके हाव-भाव देखते ही पूनम समझ गई कि मामला गड़बड़ है।
' क्या हुआ ? कौन है ?' वह दबे हुए स्वर में बोली।
उस समय लाम्बा के पास उसकी ओर ध्यान देने का अवसर नहीं था। वह जानता था कि पांच-पांच हथियारबंद आदमी उसे घेरने आ रहे हैं। अगर वह उनके घेरे में फंस गया तो उनकी शक्तिशाली गनों की मार से बच नहीं सकेगा।'
__ वह दबे पांव फुर्ती के साथ कमरे से बाहर निकला। बाहर निकलते ही उसने दूसरे होलस्टर से पिस्तौल निकाल ली।
अब उसके दाहिने हाथ में रिवाल्वर और बाएं हाथ में पिस्तौल थी। दोनों के सेफ्टी कैच हटाकर उसने फायर- करने की पूरी तैयारी कर ली। महज ट्रेगर दबाने भर की देर थी।
कमरे के बाहर छोटा-सा कॉरीडोर था। कॉरीडोर के बराबर में जाली वाली दीवार।
उस दीवार के उस तरफ उसे दो नकाबपोश एकदम सामने की ओर दिखाई दे गए।
उसने तुरन्त जाली में अपनी दोनों गनो को लगाकर ट्रेगर दबा दिए।
पहली गोली आगे वाले नकाबपोश के बाएं कंधे में लगी।
जब तक दूसरा कुछ समझता , तब तक उसका पेट फाड़ती दूसरी गोली उसे अपने वेग के साथ पीछे घसीटती ले गई।
तबाद तोड़ फायरिंग शुरू हो गई। लाम्बा ने बला की फुर्ती से वह जगह छोड़
दी।
तीन तरफ से जाली वाली एक ईट की दीवार पर बाहर से गोलियां बरसाई जाने लगीं।
लाम्बा पहुंचा दसरी तरफ जहां बाथरूम था। बाथरूम के अन्दर दाखिल होकर वह रोशनदान तक पहुंचने के लिए वाश-बेसिन पर चढ़ गया।
रोशनदान से उसने देखा , एक आदमी उन दो घायलों को मदद करके बाहर लिए जा रहा था , जो उसकी गोलियों के शिकार हुए थे।
शेष दो जाली वाली दीवार की तरफ गोलियां बरसाते हुए आगे बढ़ रहे थे।
लम्बा ने फुर्ती के साथ दो फायर किए।
एक गोली कारगर साबित हुई और दूसरी बेकार गई। एक आदमी और घायल हो गया।
शेष रहा वह आदमी जो बिना नकाब के था।
बौखलाकर इधर-उधर देखते हुए उसेने अंधाधुंध गोलियों चलाई। उसके बाद अपने घायल साथी को खींचता हुआ वापस लौटने लगा।
लाम्बा उसे निशाना बना लेता लेकिन अचानकी ही वाश - बेसिन उसके पैरों तले से निकल गया और वह नीचे आ गिरा।
दरअसल वाश-बेसिन का सपोर्ट उसके वजन को सहन नहीं कर सका था इस कारण वह अपनी जगह से निकल गया।
जब तक वह संभलकर बाहर निकलता तब तक दुश्मन वहां से भाग चुका थी।

उसने बाहर आकर आयरन गेट तक च क्कर लगाया।
वह पूरी तरह सावधान था।
उस सन्नाटे भरे क्षेत्र में एक रिवाल्वर और एक पिस्तौल के साथ लाम्बा किसी घायल चीते जैसी स्थिति में घूम रहा था
उसके सामने उस समय उसका जो भी दुश्मन आता , उसे वह तुरन्त ही उड़ा डालता। '
लेकिन!
उसका कोई भी दुश्मन वहां रुकने का साहस न संजो सका था।
वे सभी उस क्षेत्र को छोड़ कर गायब हो चुके
थे।
उसने आयरन गेट से बाहर निकलकर भी देखा , दूर-दूर तक कोई नजर नही आया। फिर जैसे ही वह वापस लौटा ...चौंकी पड़ा।
फुर्ती के साथ उसका पिस्तौल वाला हाथ उठा और फिर पूनम को देखकर झुकी गया।
'कौन लोग थे ?' उसकी ओर बढ़ती पूनम ने घबराए हुए स्वर में पूछा।
'जो भी थे , मेरी हत्या के इरादे से यहां आए थे।'
लाम्बा ने कठोर स्वर में कहा।
'कौन लोग हैं जो तुम्हारे पीछे हाथ धोकर पदाए हे ?'
'जो भी हैं, बहुत ज्यादा देर तक पर्दे के पीछे नहीं रह सकेंगे।'
' अजीब बात है।'
' बात सचमुच अजीब है। ' लाम्बा विचारपूर्ण स्वर में बोला- ' मैं यहा आ रहा हूं, इस बात की खबर तुम्हारे अलावा और किसे थी ?'
' किसी को भी नहीं।'
किसी को भी नहीं। ' वह चिंतित सर में बड़बड़ाया- ' फिर उन लोगों को खबर कैसे हुई ?'
'मालूम नहीं।'
उसकी आंखों में उलझन के चिन्ह गहरे हो गए।
फिर वह कुछ बोला नहीं बल्कि खामोश होकर गहन विचारों में डूबता चला गया।
' क्या हुआ ?' वापस लौटती पूनम ने उससे पूछा।

' सोच रहा हूं तुमने किसी को कुछ बताया नहीं, फिर मेरी खबर लीकी आउट कैसे हुई ?'
' मैं क्या बता सकती हूं।'
'तुमने कहां से फोन किया था ?'
' अपने कमरे से।'
'कमरे में कोई था क्या ?'
'नहीं तो। मैं अकेली थी।'
'फोन करते वक्त भी अकेली थी , फिर तो कमाल हो गया लेकिन नहीं।'
'नहीं? '
'टेलीफोन की एक्सटेंशन लाइन ? '
'वह तो है।'
'कौन सुन सकता है उस लाइन पर ?'
'कोई भी...।' पूनम उसे आश्चर्यचकित दृष्टि से निहारती हुई बोली।
' इसका मतलब खबर तुम्हारे घर से ही लीकी हुई थी। यानी मेरा दुश्मन तुम्हारे घर के अन्दर ही है।'
' मेरे घर में ?'
'हां।'
 

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