ज़िंदगी ज़िंदा-दिली का है नाम मुर्दा-दिल ख़ाक जिया करते हैं
S Sahil21 Dec 28, 2022 #14 ये जब्र भी देखा है तारीख़ की नज़रों ने लम्हों ने ख़ता की थी सदियों ने सज़ा पाई
S Sahil21 Dec 28, 2022 #15 रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
S Sahil21 Dec 28, 2022 #16 वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं
S Sahil21 Dec 28, 2022 #17 सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
S Sahil21 Dec 28, 2022 #19 अब तो उतनी भी मयस्सर नहीं मय-ख़ाने में जितनी हम छोड़ दिया करते थे पैमाने में
S Sahil21 Dec 28, 2022 #20 ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर या वो जगह बता दे जहाँ पर ख़ुदा न हो