चंद लफ्ज :- कुछ हमारे कुछ तुम्हारे

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उल्फत बदल गई कभी नीयत बदल गई,
खुदगर्ज़ जब हुए तो फिर सीरत बदल गई,
कुछ लोग अपना कसूर दूसरों पे डाल कर,

ये सोचते हैं कि उनकी हकीक़त बदल गई।
 
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उल्फत बदल गई कभी नीयत बदल गई,
खुदगर्ज़ जब हुए तो फिर सीरत बदल गई,
कुछ लोग अपना कसूर दूसरों पे डाल कर,

ये सोचते हैं कि उनकी हकीक़त बदल गई।
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चाहत इतनी ही हो कि जी संभल जाए,
इस कदर भी न चाहो कि दम निकल जाए।
 
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हमारे दिल में भी झांको अगर मिले फुर्सत,
हम अपने चेहरे से इतने नज़र नहीं आते।
 
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गुजरे हुए लम्हों में सदियाँ तलाश करता हूँ,
प्यास गहरी है कि नदियाँ तलाश करता हूँ,
यहाँ सब लोग गिनाते है खूबियां अपनी,

मैं अपने-आप में कमियाँ तलाश करता हूँ।
 
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मुझको मेरे वजूद की हद तक न जानिए,
बेहद हूँ बेहिसाब हूँ बेइन्तहा हूँ मैं।
 

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