Adultery C. M. S. [Choot Maar Service] (Completed)

Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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C. M. S.
(Choot Maar Service)

अध्याय-01



जेलर शिवकांत वागले के ऑफिस में एक ऐसे शख़्स ने क़दम रखा जिसके चेहरे पर बड़ी बड़ी दाढ़ी मूंछें थी और सिर पर लम्बे लम्बे किन्तु उलझे हुए बाल थे। उस शख़्स के जिस्म पर इस वक़्त अगर अच्छे कपड़े न होते तो उसे देख कर हर कोई यही कहता कि वो कोई पागल ही है। चेहरे पर अजीब से भाव लिए जब वो जेलर के सामने रखी टेबल के पार आ कर खड़ा हुआ तो कुर्सी पर बैठे किन्तु कहीं खोए हुए जेलर का ध्यान भंग हुआ और उसने सिर उठा कर उस शख़्स की तरफ देखा।

"अ..अरे! आओ विक्रम सिंह?" जेलर शिवकांत ने उस शख़्स की तरफ देखते हुए नरम लहजे में कहा____"हम तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहे थे। पिछले पांच सालों से हम तुमसे जो सवाल पूछते आ रहे हैं उसका जवाब आज तो ज़रूर दोगे न तुम? आज तुम बीस साल बाद इस जेल से रिहा हो कर जा रहे हो इस लिए हम चाहते हैं कि तुम हमारे उस सवाल का जवाब ज़रूर दे कर जाओ। यकीन मानो कि इन पांच सालों में ऐसा कोई दिन नहीं गया जब हमने तुम्हारे बारे में सोचा न हो। सवाल तो बहुत सारे हैं लेकिन हमें सिर्फ उसी सवाल का जवाब चाहिए तुमसे।"

जेलर शिवकांत की बातें सुन कर विक्रम सिंह नाम के उस शख़्स ने कुछ पलों तक उसे देखा और फिर ख़ामोशी से अपने कंधे पर टंगे एक कपड़े वाले थैले को निकाला और उस थैले के अंदर हाथ डाल कर उससे एक मोटी सी किताब निकाली। उस मोटी सी किताब को हाथ में लिए पहले तो वो कुछ पलों तक उस किताब को देखता रहा और फिर जेलर शिवकांत वागले की तरफ देखते हुए उसने उस किताब को उसकी तरफ बढ़ा दिया।

"जेलर साहब।" फिर उसने अपनी भारी आवाज़ में कहा____"ये किताब रख लीजिए। इस किताब को आप मेरी पर्सनल डायरी समझिए। इसमें आपके सभी सवालों के जवाब मौजूद हैं और साथ ही वो सब भी मौजूद है जिससे आपको मेरे बारे में पता चल सके।"
"तो क्या तुमने इसी लिए हमसे ये डायरी मंगवाई थी कि तुम इसमें अपना सब कुछ लिख सको?" जेलर ने थोड़े हैरानी भरे भाव से पूछा____"अगर ऐसी ही बात है तो फिर तो हमारे मन में ये जानने की और भी ज़्यादा जिज्ञासा जाग उठी है कि आख़िर इस किताब में तुमने अपने बारे में क्या क्या लिखा होगा?"

"इस डायरी को पढ़ने के बाद।" विक्रम सिंह ने सपाट लहजे में कहा____"आप ये भी समझ जाएंगे कि मैंने आपके बार बार पूछने पर भी आपके सवालों के जवाब क्यों नहीं दिए थे? ख़ैर, चलते चलते आपसे बस एक ही गुज़ारिश है कि चाहे जैसी भी परिस्थितियां आ जाएं किन्तु आप मुझे खोजने की कोशिश नहीं करेंगे।"

"ऐसा क्यों कह रहे हो विक्रम सिंह?" जेलर ने चौंकते हुए कहा____"एक तुम ही तो थे जिसने इन पांच सालों में हमें सबसे ज़्यादा प्रभावित किया था। हम हमेशा सोचते थे कि बीस साल पहले जिन इल्ज़ामों के तहत तुम यहाँ पर आए थे तो क्या वो सच रहे होंगे? इन पांच सालों में हमने कभी भी तुम्हें ऐसा वैसा कुछ भी करते हुए नहीं देखा जिससे ये लगे कि तुम जैसे इंसान ने ऐसा संगीन जुर्म किया रहा होगा।"

"ये दुनियां एक मायाजाल है जेलर साहब।" विक्रम सिंह ने फीकी मुस्कान के साथ कहा____"यहां पर आँखों देखा और कानों सुना भी सच नहीं होता। ख़ैर, अब जाने की इजाज़त दीजिए मुझे।"

जेलर शिवकांत को तुरंत कुछ समझ न आया कि वो क्या कहे, अलबत्ता विक्रम सिंह के अंतिम वाक्य को सुन कर वो अपनी कुर्सी से उठ कर ज़रूर खड़ा हो गया था। उधर विक्रम सिंह ने जेलर को देखते हुए नमस्कार करने के लिए अपने दोनों हाथ जोड़े और ऑफिस के दरवाज़े की तरफ बढ़ गया।

विक्रम सिंह के जाने के बाद भी जेलर शिवकांत वागले काफी देर तक किंकर्तव्यविमूढ़ सा खड़ा दरवाज़े की तरफ देखता रहा था। फिर जैसे उसकी तन्द्रा टूटी तो उसने एक लम्बी सांस ली और वापस कुर्सी पर बैठ गया। नज़र सामने टेबल पर रखी उस डायरी पर पड़ी जिसे विक्रम सिंह उसे दे गया था।

विक्रम सिंह बीस साल पहले इस जेल में क़ैदी बन कर आया था। अपने माता पिता की हत्या का संगीन इल्ज़ाम लगा था उस पर। पुलिस ने उसे घटना स्थल पर रंगे हाथ पकड़ा था। मामला अदालत पर पहुंचा और फिर न्यायाधीश ने उसे उम्र क़ैद की सज़ा सुना दी थी। उस सज़ा के बाद विक्रम सिंह ने बीस साल इस जेल में गुज़ारे। इन बीस सालों में उसने हर वो यातनाएं सहीं जो जेल में ख़तरनाक अपराधियों के बीच रह कर सहनी पड़ती हैं और साथ ही उसने हर वो काम भी किया जो जेल में रहते हुए करना पड़ता है। गुज़रते वक़्त के साथ हर कोई ये समझ गया था कि विक्रम सिंह नाम का ये शख़्स ज़िंदा रहते हुए भी एक बेजान लाश की तरह है जिस पर किसी भी चीज़ का प्रभाव नहीं पड़ता।

जेलर शिवकांत वागले पांच साल पहले इस जगह पर तबादले के रूप में आया था। विक्रम सिंह के बारे में उसे भी पता चला था और उसके मन में विक्रम सिंह के बारे में जानने की जिज्ञासा भी पैदा हुई थी किन्तु उसके पूछने पर हर बार विक्रम सिंह ने उससे बस यही कहा था कि उसके पास उसके किसी भी सवाल का जवाब नहीं है। अदालत में भी विक्रम सिंह ने न्यायाधीश को ये नहीं बताया था कि क्यों उसने अपने ही माता पिता की हत्या की थी?

विक्रम सिंह के अच्छे वर्ताव के चलते अदालत ने उसकी बाकी की सज़ा को माफ़ कर दिया था। हालांकि अदालत के इस फ़ैसले से विक्रम सिंह ज़रा भी खुश नहीं था। उसका कहना था कि अब ये जेल ही उसकी दुनियां है और इसी दुनियां में एक दिन उसे फ़ना हो जाना है। इस दुनियां से बाहर वो जाना ही नहीं चाहता किन्तु अदालत ने उसकी इस इच्छा के विरुद्ध उसे रिहा कर दिया था।

एक महीने पहले विक्रम सिंह ने जेलर शिवकांत वागले से एक डायरी की मांग की थी। जेलर के पूछने पर उसने यही बताया था कि रात के समय उसे नींद नहीं आती इस लिए समय काटने के लिए उसे एक ऐसी डायरी चाहिए जिसमें वो अपनी स्वेच्छा से जो चाहे लिख सके। विक्रम सिंह ने क्योंकि पहली बार ऐसी किसी चीज़ की मांग की थी इस लिए वागले ने फ़ौरन ही उसके लिए एक डायरी मंगवा दी थी।

सामने टेबल पर रखी उसी डायरी को देखते हुए जेलर सोच रहा था कि विक्रम सिंह ने आख़िर इसमें ऐसी कौन सी इबारत लिखी होगी जो उसके बारे में उसे बताने वाली है? जेलर का मन किया कि वो फ़ौरन ही डायरी को खोल कर देखे कि उसमें क्या लिखा है किन्तु फिर ये सोच कर उसने अपना इरादा बदल दिया कि वो फुर्सत के समय इस डायरी को खोलेगा और देखेगा कि उस विक्रम सिंह ने इसमें क्या लिखा है।


☆☆☆

शिवकांत वागले अपनी ड्यूटी से फ़ारिग हो कर अपने सरकारी आवास पर पहुंचा। उसके परिवार में उसकी पत्नी सावित्री और दो बच्चे थे। उसके दोनों बच्चों में एक लड़का था और एक लड़की। लड़की कॉलेज में लास्ट ईयर की छात्रा थी और लड़के ने इसी साल कॉलेज ज्वाइन किया था। रात में डिनर करने के बाद शिवकांत वागले विक्रम सिंह की डायरी ले कर अपने स्टडी रूम में चला गया था।

स्टडी रूम में कुर्सी पर बैठा वागले सिगरेट जला कर उसके कश ले रहा था और टेबल पर रखी डायरी को देखता भी जा रहा था। उसके दिल की धड़कनें सामान्य से थोड़ा तेज़ चल रहीं थी। कदाचित इस एहसास से कि जाने इस डायरी में क्या लिखा होगा विक्रम सिंह ने? कुछ देर तक सिगरेट के कश लेने के बाद शिवकांत वागले ने सिगरेट को टेबल पर ही एक कोने में रखी ऐसट्रे में बुझाया और फिर एक गहरी सांस ले कर उसने उस डायरी की तरफ अपने हाथ बढ़ाए।

डायरी का मोटा कवर पलटाते ही शिवकांत वागले को उसमें एक तह किया हुआ कागज़ नज़र आया। वागले ने उसे हाथ में लिया और उसे खोल कर देखा। तह किए हुए उस कागज़ में कोई लम्बा सा मजमून लिखा हुआ था जिसे वागले ने मन ही मन पढ़ना शुरू किया।


आदर्णीय जेलर साहब,

पिछले पांच सालों से आप मेरे बारे में और मेरे उस अपराध के बारे में पूछते रहे जिसकी वजह से मैं आपकी जेल में मुजरिम बन कर आया था किन्तु मैंने कभी भी आपके सवालों के जवाब नहीं दिए। असल में मुझे कभी समझ ही नहीं आया कि मैं जवाब के रूप में आपसे क्या कहूं और किस तरह से कहूं? इस दुनियां में ऐसी बहुत सी चीज़ें देखने सुनने को मिलती हैं जिनके बारे में हम इंसान कभी कल्पना भी नहीं किए होते। इंसान अपनी ज़िन्दगी में कभी कभी ऐसे दोराहे पर भी आ जाता है जहां पर वो सही ग़लत का फैसला नहीं कर पाता। ऐसे दोराहे पर खड़े इंसान का अगर ज़रा सा भी विवेक काम कर जाए तो समझो अनर्थ होने से बच गया वरना तो सारी ज़िन्दगी पछताने के सिवा दूसरा कोई चारा ही नहीं रहता।

जेलर साहब जब एक महीने पहले आपने मुझे बताया कि अदालत ने मेरी बाकी की सज़ा माफ़ कर दी है और मुझे रिहा करने का फ़ैसला सुना दिया है तो यकीन मानिए मुझे अदालत के उस फैसले से ज़रा भी ख़ुशी नहीं हुई। मैं उस दुनियां में अब वापस नहीं जाना चाहता था जहां पर मेरा सब कुछ ख़त्म हो चुका था। ख़ैर शायद मेरे नसीब में सुकून जैसी चीज़ लिखी ही नहीं थी तभी तो मुझे यहाँ से रिहा कर के निकाल देने का फ़ैसला किया अदालत ने। आपके द्वारा मिली इस सूचना के बाद रात में मैंने बहुत सोचा और फिर ये फ़ैसला किया कि जाते जाते आपको वो सब बता कर ही जाऊं जिसके बारे में आप मुझसे पिछले पांच सालों से पूछते आ रहे थे लेकिन आपके सामने अपने मुख से वो सब बताने की ना तो पहले मुझ में हिम्मत थी और ना ही आगे कभी हो सकती थी इस लिए मैंने कागज़ और कलम का सहारा लेने का फ़ैसला किया। मैंने आपसे एक डायरी की मांग की और आपने मुझे एक डायरी ला कर दी।

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं इस डायरी में आपके किन किन सवालों के जवाब लिखूं? मैंने बहुत सोचा और फिर मैंने बहुत सोच समझ कर ये फ़ैसला किया कि मैं अपने बारे में वो सब कुछ लिखूंगा जिसे पढ़ने के बाद आप ख़ुद इस बात का फ़ैसला कर सकें कि मैंने अपनी ज़िन्दगी में जो कुछ भी किया वो सही था या ग़लत? अगर मैं सही था तो कहां तक सही था और अगर मैं ग़लत था तो कहां तक ग़लत था?

इस डायरी में अपना इतिहास लिखते हुए मेरे हाथ बुरी तरह कांप रहे थे और मेरी धड़कनें थम सी गईं थी। मैं इस कल्पना से ही बेहद लाचार और बेबस सा महसूस करने लगा था कि सब कुछ पढ़़ लेने के बाद आपकी नज़र में मेरी क्या औकात बन जाएगी और आप मेरे बारे में किस तरह का नज़रिया बना लेंगे किन्तु फिर ये सोच कर मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई कि भला अब किसी बात से मुझे कैसे कोई फ़र्क पड़ सकता है? जिसका मुकम्मल वजूद ही एक मज़ाक बन के रह गया हो उसके लिए किसी बात का आख़िर क्या महत्व रह जाता है? यही सब सोच कर मैंने इस डायरी पर अपनी कलम को चलाना शुरू कर दिया था।

अन्त में आपसे बस इतना ही कहूंगा कि इस डायरी में मैंने जो कुछ भी लिखा है और जिस तरीके से भी लिखा है उसे आप आख़िर तक ज़रूर पढ़िएगा। मैं जानता हूं कि इस डायरी में लिखी बहुत सी चीज़ें ऐसी हैं जिन्हें पढ़ना आपके लिए संभव नहीं हो सकेगा लेकिन मेरी गुज़ारिश का ख़याल रखते हुए ज़रूर पढ़िएगा। आख़िर में एक विनती भी है आपसे और वो ये कि इस डायरी में लिखी मेरी दास्तान पढ़ने के बाद चाहे जैसी भी परिस्थितियां बनें किन्तु आप मुझे खोजने की कोशिश मत कीजिएगा। अच्छा अब अलविदा.....नमस्कार!


_____विक्रम सिंह


लम्बे चौड़े इस मजमून को पढ़ने के बाद शिवकांत वागले ने एक गहरी सांस ली। कुछ देर तक वो उस कागज़ को और कागज़ में लिखे मजमून को देखता रहा उसके बाद उसने उस कागज़ को तह करके एक तरफ रख दिया। कागज़ को एक तरफ रखने के बाद वागले ने जब डायरी के प्रथम पेज़ को देखा तो उस पेज़ पर लिखे अक्षरों को पढ़ते ही उसके चेहरे पर चौंकने के भाव उभर आए।

डायरी के पहले ही पेज पर उसे बड़े बड़े किन्तु अंग्रेजी के अक्षरों में सी. एम. एस. लिखा नज़र आया था और साथ ही सी. एम. एस. के नीचे बिलकुल छोटे अक्षरों में उसे जो कुछ लिखा नज़र आया था उसे पढ़ते ही शिवकांत वागले के चेहरे पर हैरानी के साथ साथ चौंकने के भी भाव उभर आए थे। अंग्रेजी के छोटे अक्षरों में ही लिखा था____'चूत मार सर्विस'।

शिवकांत वागले चूत मार सर्विस पढ़ कर बुरी तरह अचंभित हुआ। उसे लगा कि उससे उन शब्दों को पढ़ने में कहीं कोई ग़लती तो नहीं हो गई है इस लिए उसने उन्हें आँखें फाड़ फाड़ कर बार बार पढ़ा किन्तु हर बार उसे वही लिखा नज़र आया जो उसके लिए बड़े ही आश्चर्य की बात थी। वो समझ नहीं पाया कि विक्रम सिंह ने इस डायरी में ये क्या बकवास लिख दिया है? अपलक उन शब्दों को देखते हुए शिवकांत के ज़हन में ख़याल उभरा कि अगर विक्रम सिंह ने ऐसा लिखा है तो ज़रूर इसके पीछे कोई ख़ास वजह ही होगी किन्तु सबसे ज़्यादा सोचने वाली बात तो ये थी कि आख़िर ये चूत मार सर्विस का मतलब क्या है?

शिवकांत वागले का दिमाग़ एकदम से भन्ना सा गया था। उसे ख़्वाब में भी उम्मीद नहीं थी कि विक्रम सिंह जैसा शख़्स ऐसी वाहियात बात लिख सकता है। उसने डायरी के कवर को झटके से बंद किया और हल्के गुस्से में उसने उस डायरी को उठा कर टेबल की ड्रावर में रख दिया। कुछ देर खुद के जज़्बातों को शांत करने के बाद वो कुर्सी से उठ कर स्टडी रूम से बाहर निकला और अपने कमरे की तरफ बढ़ गया।

कमरे में आ कर शिवकांत बेड पर अपनी पत्नी सावित्री के बगल पर लेट गया। उसकी पत्नी सावित्री को जल्दी ही सो जाने की आदत थी इस लिए वो सो गई थी जबकि वागले बेड पर करवट के बल लेटा गहरी सोच में डूबा नज़र आने लगा था। उसके ज़हन में अभी भी विक्रम सिंह द्वारा लिखे गए वो शब्द गूंज से रहे थे_____'चूत मार सर्विस।'

वागले को समझ नहीं आ रहा था कि इस सब का आख़िर क्या मतलब हो सकता है? क्या विक्रम सिंह ने अपनी डायरी में अपने गुज़रे हुए कल को लिखा है और अगर उसने अपने गुज़रे हुए कल को ही लिखा है तो क्या उसका गुज़रा हुआ कल डायरी में लिखे गए उन शब्दों से ही सम्बंधित है, लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है? शिवकांत ने बहुत सोचा किन्तु वो किसी ठोस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सका। अंत में उसने यही फ़ैसला किया कि कल वो उस डायरी को अपने साथ ऑफिस ले जाएगा और वहीं पर तसल्ली से उसमें लिखी हुई बातों को पढ़ेगा। ये सब सोच कर वागले ने अपनी आँखे बंद कर ली। कुछ ही देर में उसे नींद आ गई और वो नींद की वादियों में खोता चला गया।

दूसरे दिन शिवकांत वागले जेलर की वर्दी पहन कर जेल पहुंचा। अपने केबिन में पहुंच कर उसने कुछ देर ज़रूरी फाइल्स को चेक किया और फिर पूरी जेल का चक्कर लगाते हुए निरीक्षण किया। सब कुछ ठीक ठाक देख कर वो वापस अपने केबिन में आ गया। एक सिगरेट सुलगाने के बाद उसे विक्रम सिंह की डायरी का ख़याल आया। विक्रम सिंह की डायरी वो अपने साथ ही ले कर आया था।

अपने छोटे से ब्रीफ़केस से डायरी निकाल कर वागले ने उसे टेबल पर रखा और सिगरेट के कश लेते हुए उसे घूरने लगा। धड़कते दिल के साथ उसने डायरी के कवर को पलटा। नज़र फिर से पहले पेज पर अंग्रेजी के अक्षरों में लिखे सी. एम. एस. पर पड़ी और उसी के नीचे अंग्रेजी में ही लेकिन छोटे अक्षरों में लिखे चूत मार सर्विस पर पड़ी। शिवकांत वागले के ज़हन में बिजली की स्पीड से ये ख़याल उभरा कि सी. एम. एस. अंग्रेजी में लिखे छोटे अक्षरों का शार्ट नाम है जबकि चूत मार सर्विस उसका फुल फॉर्म है। कुछ देर शार्ट और फुल दोनों नाम के फॉर्मों को देखने के बाद वागले ने उस पेज को पलटाया। उस पेज के बाद बाकी के कुछ पेजेस पर भारत देश और उसके कई राज्यों के नक़्शे बने हुए थे और अलग अलग देशों के कोड्स लिखे हुए थे। शिवकांत वागले इस तरह के सभी पेजेस को एक ही बार में पलट दिया। उन पेजेस के बाद जो पहला पेज दिखा उसमें वागले की निगाह ठहर गई।

उस पहले पेज पर लिखे मजमून को पढ़ने के बाद शिवकांत वागले को ये समझ आया कि इस डायरी में विक्रम सिंह ने शायद अपने अतीत के बारे में ही लिखा है। ख़ैर वागले ने डायरी में लिखे विक्रम सिंह के अतीत को पढ़ना शुरू किया।


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अध्याय - 02
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अब तक,,,,

उस पहले पेज पर लिखे मजमून को पढ़ने के बाद शिवकांत वागले को ये समझ आया कि इस डायरी में विक्रम सिंह ने शायद अपने अतीत के बारे में ही लिखा है। ख़ैर वागले ने डायरी में लिखे विक्रम सिंह के अतीत को पढ़ना शुरू किया।

अब आगे,,,,


20 दिसंबर 1998..

इस तारीख़ को मैं कभी नहीं भूल सकता। इस तारीख़ ने मेरी ज़िन्दगी को मुकम्मल तौर पर बदल दिया था। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि मेरी सबसे बड़ी चाहत किसी चमत्कार के जैसे पूरी हो जाएगी। वैसे तो हर इंसान किसी न किसी चीज़ की चाहत रखता है और जीवन भर इसी कोशिश में लगा रहता है कि जिस चीज़ की वो चाहत किए बैठा है वो पूरी हो जाए। जब किसी इंसान की चाहत पूरी हो जाती है तो यकीनन उसे स्वर्ग मिल जाने जितनी ख़ुशी महसूस होने लगती है। इंसान अपनी उस ख़ुशी को अलग अलग तरीके से दुनियां वालों के सामने ज़ाहिर भी करता है।

ये खुशियां और ये चाहतों का पूरा होना हर किसी के नसीब में नहीं होता। कभी कभी तो इंसान अपनी ख़ुशियों और चाहतों के पूरा होने के इंतज़ार में सारी उम्र गुज़ार देता है और एक दिन वो इस दुनियां से चला भी जाता है। हालांकि इंसान की ख़्वाहिशें और चाहतें जीवन भर किसी न किसी चीज़ की बनी ही रहती हैं लेकिन कुछ ख़ास ख़्वाहिशें ऐसी होती हैं जिनको पाने की इंसान के दिल में एक अलग ही ललक रहती है। इंसान अपनी चाहतों को पूरा करने के लिए जाने कैसे कैसे जतन करता है जिसमें उसका अपना भाग्य और नसीब भी जुड़ा होता है। अगर नसीब में नहीं लिखा तो सारी उम्र हमारी चाहत पूरी नहीं हो पाती और अगर नसीबों में है तो एक दिन ज़रूर हमारी चाहत पूरी हो जाती है। ख़ैर हर किसी की तरह मेरे भी दिल में एक चाहत थी और मैं हमेशा इसी कोशिश में लगा रहता था कि किसी तरह मेरी वो चाहत पूरी हो जाए लेकिन मेरी चाहत के पूरा होने के कभी कोई आसार नज़र नहीं आए। अपनी उस चाहत के पूरा न होने की वजह से मैं एकदम से निराश सा हो गया था। मेरे ही जैसे ख़राब नसीब वाले मेरे दोस्त भी थे। वो भी मेरी तरह अपनी चाहत के पूरा होने के लिए ललक रहे थे।

कहते हैं कि हम जो सोचते हैं या हम जो चाहते हैं वो अक्सर नहीं होता बल्कि आपके लिए ईश्वर ने जो सोचा होता है वही होता है। क्योंकि इस संसार में सब कुछ उसी की मर्ज़ी से होता है। लोग तो ये भी कहते हैं कि ईश्वर हमारे लिए जो भी करता है वो अच्छे के लिए ही करता है लेकिन इस बात में कितनी सच्चाई है ये बात इस संसार का हर ब्यक्ति जानता है।

20 दिसंबर की शाम मैं अपने दोस्तों के साथ क्लब गया था। क्लब में हम सबने थोड़ी बहुत बियर पी और हमेशा की तरह उन लड़कियों को ताड़ने लगे जो बाकी लड़कों के साथ डांस फ्लोर पर डांस कर रहीं थी। छोटे छोटे कपड़ों में वो सुन्दर लड़कियां गज़ब ढा रहीं थी और जब गाने और ताल के रिदम पर उनकी कमर लचकती तो ऐसा लगता जैसे दिल पर बिजली गिरने लगी हो। उस वक़्त तो हालत ही ख़राब हो जाती थी जब उन लड़कियों के ब्वाय फ्रेंड उनकी गोल गोल गांड को दोनों हाथों से पकड़ कर ज़ोर से भींचने लगते थे। एक दूसरा लड़का अपनी गर्ल फ्रेंड की चूचियों को मुट्ठी में भर कर मसलता नज़र आता तो कोई तीसरा अपनी गर्ल फ्रेंड के होठों को अपने मुँह में ऐसे भर लेता था जैसे वो खा ही जाएगा। ये मंज़र देख कर बियर का तो घंटा कोई नशा नहीं होता था लेकिन उस गरम मंज़र को देख कर मेरे साथ साथ मेरे सभी दोस्तों के लंड ज़रूर औकात से बाहर होने लगते थे। उसके बाद हम सब क्लब के बाहर अँधेरे में एक तरफ जाते और मुट्ठ मार कर अपने अपने लंड को शांत कर लेते।

ऐसा नहीं था कि हम लोग दिखने में सुन्दर नहीं थे या हमारी पर्सनालिटी अच्छी नहीं थी, बल्कि वो तो अच्छी खासी थी। हम ऐसे परिवारों से ताल्लुक रखते थे जिन्हें हाई क्लास तो नहीं पर अमीर परिवारों में ज़रूर गिना जाता था। मेरे जैसे अमीर घर के लड़के हर रोज़ एक नई लड़की को रगड़ रगड़ कर चोद सकते थे किन्तु इस मामले में हमारी किस्मत बेहद ख़राब थी। किस्मत ख़राब का मतलब ये है कि हम सब बेहद शर्मीले स्वभाव के थे। दूर से किसी लड़की को देख कर हम आपस में चाहे जितनी ही गन्दी बातें करते रहें लेकिन किसी लड़की से खुल कर इस मामले में बात करने में हम लोगों की फट के हाथ में आ जाती थी। स्कूल और कॉलेज लाइफ में बड़ी मुश्किल से एक दो लड़कियों से हमारी दोस्ती हुई थी लेकिन मामला दोस्ती तक ही रहा। हालांकि उन लड़कियों से दोस्ती का वो रिश्ता भी ज़्यादा समय तक का नहीं रह पाया था क्योंकि हमारे स्वभाव की वजह से कुछ ही समय में इन लड़कियों ने हमसे किनारा कर लिया था।

हम सभी दोस्त एक साथ बैठ कर इस बारे में बातें करते और यही फ़ैसला करते कि अब से हम शर्माएंगे नहीं बल्कि हर लड़की को लाइन मरेंगे लेकिन जब इस फ़ैसले के तहत ऐसा करने की बारी आती तो हम लोगों की फिर से गांड फट जाती थी। अपने इस शर्मीले स्वभाव की वजह से हम लोग अपने आपसे बेहद गुस्सा रहते लेकिन कुछ कर नहीं सकते थे। स्कूल कॉलेज के बाकी लड़के हमारा मज़ाक उड़ाते थे। ईश्वर की दया से पढ़ाई लिखाई पूरी हुई और हम लोग अपने अपने घर आ गए। हमारे माता पिता भी जानते थे कि उनके बच्चों का स्वभाव कैसा है और इसके लिए वो हमें समझाते भी थे लेकिन इसके बावजूद हमारा ऐसा स्वभाव हमारा पीछा नहीं छोड़ता था।
उस रात क्लब से हम सभी दोस्त गर्म हो कर बाहर निकले और अँधेरे में एक जगह जा कर हमने मुट्ठ मार कर अपने अपने लंड को शांत किया। अंदर की गर्मी लंड के रास्ते निकाल कर हम लोग घर की तरफ चल दिए। मेरे तीनों दोस्तों के पास अपनी अपनी मोटर साइकिल थी और उस रात भी हम अपनी अपनी मोटर साइकिल में ही क्लब से आए थे। कुछ दूर साथ साथ आने के बाद मेरे बाकी दोस्त अपने अपने घरों की तरफ मुड़ गए और मैं अपने घर की तरफ चल दिया।

ठंड का महीना और ऊपर से कोहरे की हल्की धुंध में मोटर साइकिल की रफ़्तार ज़्यादा तेज़ नहीं थी। क्लब से मेरे घर की दूरी मुश्किल से दो किलो मीटर थी। मैं मोटर साइकिल चलाते हुए यही सोच रहा था कि काश क्लब की वो सारी सुन्दर लड़कियां इस वक़्त मेरे सामने आ जाएं और अपने जिस्म के बाकी बचे हुए कपड़े उतार कर मुझसे कहें कि____'आओ विक्रम, हमारे जिस्म को जैसे चाहो भोग लो।'

बार बार आँखों के सामने उन लड़कियों की मटकती गांड और उछलती चूचियां नज़र आ रहीं थी। अभी मैं इन सब में खोया ही हुआ था कि तभी मुझे ज़ोर का झटका लगा और मैं मोटर साइकिल के साथ ही सड़क पर गिर गया। सड़क में शायद कहीं पर स्पीड ब्रेकर था जिस पर मैंने ध्यान नहीं दिया था और जैसे ही स्पीड ब्रेकर पर मोटर साइकिल का अगला पहिया चढ़ा तो मुझे ज़ोर का झटका लगा जिससे हैंडल से मेरे हाथ छूट गए और फिर मैं कुछ न कर सका। ये तो शुक्र था कि मोटर साइकिल की रफ़्तार ज़्यादा नहीं थी वरना गहरी चोंट लग जाती मुझे। फिर भी एक घुटना छिल ही गया था और बायां कन्धा पक्की सड़क पर ज़ोर से लगने की वजह से दर्द करने लगा था।

उस वक़्त सड़क पर कोई नहीं था, और आस पास भी कोहरे की वजह से कुछ दिख नहीं रहा था। हालांकि कोहरे में दूर दूर कहीं हल्की रौशनी का आभास ज़रूर हो रहा था। ख़ैर मैं किसी तरह उठा और चलने की कोशिश की तो घुटने में तेज़ दर्द हुआ जिससे मेरे हलक से कराह निकल गई। मैं फ़ौरन ही सड़क पर बैठ गया और आस पास देखने लगा। कोहरे की वजह से मुझे इस बात का भी डर लगने लगा था कि सड़क पर किसी तरफ से अचानक कोई वाहन न आ जाए और मुझे कुचल दे इस लिए मैं फिर से उठा और दर्द को सहते हुए सड़क के किनारे पर आ कर बैठ गया।

सड़क के किनारे बैठे हुए अभी मुझे कुछ ही देर हुई थी कि तभी मुझे ऐसा आभास हुआ जैसे मेरे पीछे कोई खड़ा है। इस एहसास के साथ ही मेरे जिस्म का रोयां रोयां कांप गया और मेरी धड़कनें तेज़ हो गईं। मैंने हिम्मत कर के अपनी गर्दन को पीछे की तरफ घुमाया तो जिस शख़्स पर मेरी नज़र पड़ी उसे देखते ही मैं बुरी तरह उछल पड़ा और साथ ही मेरे मुख से चीख निकलते निकलते रह गई। मेरे पीछे एक ऐसा शख़्स खड़ा था जिसका समूचा बदन काले कपड़ों से ढंका हुआ था, यहाँ तक कि उसका चेहरा भी काले नक़ाब में छुपा हुआ था। सिर पर गोलाकार काली टोपी थी जो उसके अग्रिम ललाट की तरफ काफी ज़्यादा झुकी हुई थी।

"क..क..कौन हो तुम?" मारे दहशत के मैंने उससे पूछने की हिम्मत दिखाई तो उसने अजीब सी आवाज़ में कहा____"मैं वो हूं जो तुम्हारी हर इच्छा को पूरी कर सकता है।"

"क्..क्या मतलब??" मैं उसकी बात सुन कर चकरा सा गया था।
"मतलब समझाने के लिए ये सही जगह नहीं है।" उस रहस्यमयी शख़्स ने अपनी बहुत ही अजीब आवाज़ में कहा____"उसके लिए तुम्हें मेरे साथ एक ख़ास जगह पर चलना होगा।"

उसकी बात सुन कर अभी मैं कुछ कहने ही वाला था कि तभी जैसे क़यामत आ गई। उस रहस्यमयी शख़्स का एक हाथ बिजली की तरह मेरी तरफ लपका और मेरे हलक से घुटी घुटी सी चीख निकल गई। मेरी कनपटी के किसी ख़ास हिस्से पर उसने ऐसा वार किया था कि मुझे बेहोश होने में ज़रा भी देरी नहीं हुई।

☆☆☆

जब मेरी आँखें खुलीं तो मैंने अपने आपको एक ऐसी जगह पर पाया जो मेरे लिए निहायत ही अजनबी थी। मैं एक आलीशान कमरे में एक आलीशान बेड पर पड़ा हुआ था। मेरे जिस्म में जो कपड़े थे वो अब नहीं थे बल्कि उन कपड़ों की जगह दूसरे कपड़े थे। ये सब देख कर मैं आश्चर्यचकित रह गया। मुझे समझ में नहीं आया कि मैं एकदम से यहाँ कैसे आ गया? तभी मुझे ख़याल आया कि मुझे एक रहस्यमयी शख़्स ने बेहोश किया था। इस बात के याद आते ही मेरे अंदर घबराहट उभर आई। मैं सोचने लगा कि वो रहस्यमयी शख़्स कौन था और मैं यहाँ कैसे पहुंचा? मुझे एकदम से ख़याल आया कि कहीं मैं कोई सपना तो नहीं देख रहा? मैंने अपनी आँखों को मल मल कर बार बार चारों तरफ देखा किन्तु सच्चाई यही थी कि मैं एक आलीशान जगह पर था। मेरे ज़हन में सवालों की जैसे बाढ़ सी आ गई। उस आलीशान कमरे में मेरे अलावा दूसरा कोई नहीं था। कमरे का दरवाज़ा बंद था। ये देख कर मैं एक झटके से उठा और बेड से नीचे उतर आया। नीचे उतरते ही मैं बुरी तरह चौंका, क्योंकि एकदम से मुझे याद आया कि बेहोश होने से पहले मैं अपनी मोटर साइकिल से गिर गया था और मेरा एक घुटना छिल गया था जिसकी वजह से मुझसे चला नहीं जा रहा था किन्तु इस वक़्त मुझे ज़रा भी दर्द नहीं हो रहा था। मैंने फ़ौरन ही झुक कर अपने पैंट को पकड़ कर ऊपर सरकाया तो देखा मेरे घुटने पर दवा के साथ साथ पट्टी लगी हुई थी। इसका मतलब यहाँ लाने के बाद मेरे ज़ख्म पर मरहम पट्टी की गई थी किन्तु सवाल ये था कि ऐसा किसने किया होगा, क्या उस रहस्यमयी शख़्स ने? आख़िर वो मुझसे चाहता क्या है और यहाँ क्यों ले कर आया है मुझे?

मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी कमरे का दरवाज़ा खुला और एक ऐसा शख़्स कमरे में दाखिल हुआ जिसके समूचे जिस्म पर सफ़ेद लिबास था, यहाँ तक कि उसका चेहरा भी सफ़ेद रंग के नक़ाब में ढंका हुआ था। नक़ाब के अंदर से सिर्फ उसकी आँखें ही झलक रहीं थी। मैं उस सफ़ेदपोश को देख कर एक बार फिर से बुरी तरह हैरान रह गया था। आख़िर ये चक्कर क्या था कि एक बार काले कपड़े वाला मिलता है और अब ये सफ़ेद कपड़े में एक शख़्स आ गया है?

"अब तुम कौन हो भाई?" मैंने उस शख़्स को घूरते हुए पूछा तो उसने अपनी सामान्य आवाज़ में कहा____"एक ऐसा शख़्स जिसके बारे में जानना तुम्हारे लिए ज़रूरी नहीं है।" उस सफ़ेदपोश ने अजीब भाव से कहा____"तुम्हें इसी वक़्त मेरे साथ चलना होगा।"

"लेकिन कहां?" मैं उसकी बात सुन कर उलझ सा गया।
"उन्हीं के पास।" सफ़ेद कपड़े वाले ने कहा____"जो तुम्हें यहाँ पर ले कर आए हैं? क्या तुम जानना नहीं चाहोगे कि तुम्हें यहाँ किस लिए लाया गया है?"

सफ़ेदपोश ने एकदम सही कहा था। मैं यही तो जानना चाहता था कि मुझे यहाँ किस लिए लाया गया है? मैंने उस सफ़ेदपोश की बात पर हां में सिर हिलाया और उसकी तरफ बढ़ चला। मुझे अपनी तरफ आता देख वो शख़्स वापस पलटा और दरवाज़े के बाहर निकल गया।

उस सफ़ेदपोश के पीछे पीछे चलते हुए मैं कुछ ही देर में एक ऐसी जगह पहुंचा जहां पर बल्ब की रोशनी बहुत ही कम थी। हर तरफ मौत की तरह सन्नाटा फैला हुआ था। मैं हर तरफ देखता हुआ आया था किन्तु कहीं पर भी दूसरा आदमी नज़र नहीं आया था। पता नहीं ये कौन सी जगह थी लेकिन इतना ज़रूर था कि ये जगह थी बड़ी कमाल की और बेहद हसीन भी।

वो एक लम्बा चौड़ा हाल था जिसमें नीम अँधेरा था और उसी नीम अँधेरे में हाल के दूसरे छोर पर वो रहस्यमयी शख़्स एक बड़ी सी कुर्सी पर बैठा हुआ था जो मुझे पहले मिला था और जिसने मुझे बेहोश किया था। इस वक़्त भी उसका समूचा जिस्म काले कपड़ों में ढंका हुआ था और चेहरे पर काला नक़ाब था।

"हमारा ख़याल है कि तुम्हें यहाँ तक चल कर आने में ज़रा भी तक़लीफ नहीं हुई होगी।" उस रहस्यमयी शख़्स की बहुत ही अजीब सी आवाज़ हाल में गूंजी____"और हां, हमें इस बात के लिए माफ़ करना कि हम तुम्हें इस तरह से यहाँ ले कर आए।"

"मुझे ये बताओ कि तुम हो कौन?" मैं अंदर से डरा हुआ तो था किन्तु फिर भी हिम्मत कर के पूछ ही बैठा था____"और ये भी बताओ कि मुझे यहाँ क्यों ले कर आए हो? तुम शायद जानते नहीं हो कि मैं किसका बेटा हूं? अगर जानते तो मुझे इस तरह यहाँ लाने की हिमाक़त नहीं करते।"

"हमें तुम्हारे बारे में सब कुछ पता है लड़के।" उस रहस्यमयी शख़्स ने कहा____"संक्षेप में तुम ये समझ लो कि हमसे किसी के भी बारे में कुछ भी छुपा नहीं है। तुम्हारी जानकारी के लिए हम तुम्हें ये भी बता देते हैं कि हम किसी का भी कुछ भी बिगाड़ सकते हैं लेकिन हमारा कोई भी कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता।"

"पर मुझे इस तरह यहाँ लाने का क्या मतलब है?" उसकी बात सुनकर मेरे जिस्म में डर की वजह से झुरझुरी सी हुई थी, किन्तु फिर मैंने ख़ुद को सम्हालते हुए कहा____"मैंने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया है जिसके लिए कोई मुझे इस तरह से यहाँ ले आए।"

"तो हमने कब कहा कि तुमने कुछ किया है?" उस रहस्यमयी शख़्स ने कहा____"जैसा कि हमने तुम्हें उस वक़्त भी बताया था कि हम वो हैं जो तुम्हारी हर इच्छा को पूरी कर सकते हैं, इस लिए अब तुम बताओ कि क्या तुम अपनी हर इच्छा को पूरा करना चाहोगे?"

"क्या तुम कोई भगवान हो?" मैंने उसकी तरफ घूरते हुए हिम्मत करके कहा____"जो मेरी हर इच्छा को पूरा कर सकते हो?"
"ऐसा ही समझ लो।" कुर्सी पर बैठे उस रहस्यमयी शख़्स ने अपनी अजीब आवाज़ में कहा____"हम एक तरह के भगवान ही हैं जो किसी की भी इच्छा को पूरी कर सकते हैं।"

"पर तुम मेरी इच्छाओं को क्यों पूरा करना चाहते हो?" मैंने कहा____"मैंने तो तुमसे या किसी से भी नहीं कहा कि मेरी इच्छाओं को पूरा कर दो।"
"तुमने मुख से भले ही नहीं कहा।" उस शख़्स ने कहा____"किन्तु हर पल तो तुम यही सोचते रहते हो न कि काश तुम्हारी सबसे बड़ी इच्छा पूरी हो जाए?"

"तु...तुम्हें ये कैसे पता?" मैं उसकी बात सुन कर बुरी तरह चौंका था।
"हमने बताया न कि हम सबके बारे में सब कुछ जानते हैं।" उसने कहा_____"ख़ैर तुम बताओ कि क्या तुम अपनी सबसे बड़ी इच्छा को पूरा करना चाहोगे?"

मैं उस रहस्यमयी शख़्स की बातें सुन कर चकित तो था ही किन्तु मन ही मन ये भी सोचने लगा था कि क्या ये सच में मेरी सबसे बड़ी इच्छा को पूरा कर देगा? यानी क्या ये मेरी इस इच्छा को पूरा कर सकता है कि मैं किसी सुन्दर लड़की को अपनी मर्ज़ी से जैसे चाहूं भोग सकूं? ये सब सोचते हुए जहां एक तरफ मेरे मन के किसी कोने में ख़ुशी के लड्डू फूटने लगे थे वहीं एक तरफ मैं ये भी सोचने लगा कि आख़िर ये शख़्स मेरी सबसे बड़ी इच्छा को बिना किसी स्वार्थ के कैसे पूरा कर सकता है? मतलब मेरे लिए ऐसा करने के पीछे ज़रूर इसका भी कोई न कोई मकसद या फ़ायदा होगा लेकिन क्या????

"क्या हुआ?" मुझे ख़ामोशी से कुछ सोचता देख उस रहस्यमयी शख़्स ने कहा____"क्या सोचने लगे?"
"म..मैं सोच रहा हूं कि तुम मेरे लिए ऐसा क्यों करना चाहते हो?" मैंने हड़बड़ा कर कहा____"इतना तो मैं भी जानता हूं कि इस दुनियां में कोई भी इंसान बिना किसी स्वार्थ के किसी के लिए कुछ भी नहीं करता। फिर तुम मेरे लिए ऐसा क्यों करोगे भला? मतलब साफ़ है कि मेरे लिए ऐसा करने के पीछे तुम्हारा भी अपना कोई स्वार्थ है या फिर कोई मकसद है।"

"बिल्कुल ठीक कहा तुमने।" उस शख़्स ने कहा_____"इस दुनियां में कोई भी इंसान बिना किसी मतलब के किसी के लिए कुछ भी नहीं करता। अगर हम तुम्हारे लिए ऐसा करेंगे तो ज़ाहिर है कि इसके पीछे कहीं न कहीं हमारा भी कोई न कोई स्वार्थ ही होगा।"

"क्या मैं जान सकता हूं कि ऐसा करने के पीछे तुम्हारा क्या स्वार्थ है?" मैंने हिम्मत कर के पूछा_____"कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम मुझे किसी ऐसे संकट में फंसा देना चाहते हो जिससे मेरी लाइफ़ ही बर्बाद हो जाए?"

"तुम्हारा ऐसा सोचना बिलकुल जायज़ है लड़के।" उस शख़्स ने कहा_____"लेकिन यकीन मानो हमारा ऐसा करने का कोई इरादा नहीं है। तुम किसी भी तरह के संकट में नहीं फंसोगे और ना ही इससे तुम्हारी लाइफ़ बर्बाद होगी। बल्कि ऐसा करने से तुम्हें मज़ा ही आएगा और तुम्हारी लाइफ़ भी ऐशो आराम वाली हो जाएगी।"

"बड़ी अजीब बात है।" मैंने कहा____"क्या दुनियां में ऐसा भी कहीं होता है?"
"दुनियां की बात मत करो लड़के।" उस रहस्यमयी शख़्स ने कहा_____"अभी तुमने दुनियां देखी ही कहां है? तुम्हें तो अंदाज़ा भी नहीं है कि इस दुनियां में क्या क्या होता है। तुम जिन चीज़ों की कल्पना भी नहीं कर सकते वो सब चीज़ें इस दुनियां में कहीं न कहीं होती हैं। ख़ैर छोड़ो इस बात को और अच्छी तरह सोच कर बताओ कि क्या तुम अपनी सबसे बड़ी इच्छा को पूरा करते हुए अपनी लाइफ़ को ऐशो आराम वाली बनाना चाहोगे?"

"भला इस दुनियां में ऐसा कौन होगा जो अपनी लाइफ़ को ऐशो आराम वाली न बनाना चाहे?" मैंने कहा____"लेकिन मैं तुम पर भरोसा क्यों करूं? कल को अगर कोई लफड़ा हो गया तो मैं तो कहीं का नहीं रहूंगा? मेरे माता पिता का क्या होगा? मैं उनकी इकलौती औलाद हूं? ऐसे काम की वजह से अगर उनका सिर नीचा हो गया तो मैं कैसे उन्हें अपना चेहरा दिखा पाऊंगा?"

"तुम इस बात से बेफिक्र रहो विक्रम।" रहस्यमयी शख़्स ने मेरा नाम लेते हुए कहा_____"तुम्हारे ऐसे काम की वजह से तुम्हारी फैमिली पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। अभी तुम ये जानते ही नहीं हो कि हम कौन हैं और हम किस तरह की संस्था चलाते हैं।"

"क्या मतलब???" मेरे माथे पर बल पड़ा____"संस्था चलाने से क्या मतलब है तुम्हारा?"
"हम एक ऐसी संस्था चलाते हैं।" उस शख़्स ने कहा_____"जो औरतों और मर्दों की सेक्स नीड को पूरा करती है। दुनियां के किसी भी कोने में चले जाओ, हर जगह औरत और मर्द की ढेर सारी समस्याओं में से एक समस्या सेक्स भी है। कोई मर्द अपनी पत्नी से खुश नहीं है तो कोई पत्नी अपने पति से खुश नहीं है। इससे होता ये है कि हर औरत और मर्द अपनी सेक्स नीड को पूरा करने के लिए घर से बाहर अपने लिए पार्टनर ढूंढ़ते हैं। हालांकि औरतों और मर्दों के ऐसा करने से अक्सर उनकी मैरिड लाइफ़ ख़तरे में पड़ जाती है लेकिन इंसान करे भी तो क्या करे? ख़ैर, हमारी संस्था गुप्त रूप से औरतों और मर्दों की सेक्स नीड को पूरा करने के लिए पार्टनर प्रोवाइड करती है। हमारी संस्था के एजेंट्स गुप्त रूप से ऐसे लोगों के पास उनकी सेक्स नीड को पूरा करने के लिए जाते हैं जिन्हें इसकी ज़रूरत पड़ती है।"

"ये तो बड़ी ही अजीब बात है।" मैंने चकित भाव से कहा_____"लेकिन एक सवाल है मेरे मन में और वो कि जिनको अपनी सेक्स नीड को पूरा करने के लिए पार्टनर की ज़रूरत होती है वो लोग इस संस्था से सम्बन्ध कैसे बनाते हैं? क्योंकि तुम्हारे अनुसार तो ये संस्था गुप्त ही है न, जिसके बारे में बाहरी दुनियां को पता ही नहीं है कि ऐसी कोई संस्था भी है।"

"सवाल अच्छा है।" रहस्यमयी शख़्स ने कहा____"किन्तु इसका जवाब ये है कि इसके लिए हमारी संस्था के एजेंट्स गुप्त रूप से ऐसे लोगों का पता लगाते रहते हैं जिन्हें अपने लिए पार्टनर की ज़रूरत होती है। दुनियां में बहुत से ऐसे लोग होते हैं जो अपना टेस्ट बदलने के लिए दूसरी औरतों या दूसरे मर्दों से सेक्स करने की चाह रखते हैं। हमारी संस्था में ऐसे लोगों के बारे में पता लगाने का काम दूसरे एजेंट्स करते हैं, जबकि सेक्स की सर्विस देने वाले एजेंट्स दूसरे होते हैं।"

"ओह! तो इसका मतलब ये हुआ कि तुम्हें तुम्हारे एजेंट्स के द्वारा ही मेरे बारे में पता चला है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा तो उस शख़्स ने कहा____"ज़ाहिर सी बात है। जैसा कि हमने अभी तुम्हें बताया कि ऐसे लोगों का पता लगाने के लिए हमारी संस्था के दूसरे एजेंट्स होते हैं। उन्हीं एजेंट्स के पता करने का नतीजा ये हुआ है कि इस वक़्त तुम यहाँ पर हो।"

"अगर मैं इसके लिए मना कर दूं तो?" मैंने कुछ सोचते हुए ये कहा तो उस शख़्स ने कहा____"वो तुम्हारी मर्ज़ी की बात है। इसके लिए तुम्हें मजबूर नहीं किया जाएगा लेकिन हां अगर तुम अपनी मर्ज़ी से एक बार हमारी इस संस्था से जुड़ कर इसके एजेंट बन गए तो फिर तुम इस संस्था को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते।"

"ऐसा क्यों?" मैंने न समझने वाले भाव से कहा।
"दुनियां में हर चीज़ के अपने नियम कानून होते हैं।" उस शख़्स ने कहा____"उसी तरह हमारी इस संस्था के भी कुछ नियम कानून हैं जिनका पालन करना संस्था के हर एजेंट का फ़र्ज़ है। संस्था के नियम कानून तोड़ने पर शख़्त से शख़्त सज़ा भी दी जाती है। हालांकि आज तक कभी ऐसा हुआ नहीं है कि हमारी संस्था के किसी एजेंट ने कोई नियम कानून तोड़ा हो या अपनी मर्ज़ी से ऐसा कुछ किया हो जो संस्था के नियम कानून के खिलाफ़ रहा हो।"

"इसका मतलब ये हुआ कि इस संस्था से जुड़ने के बाद इंसान अपनी मर्ज़ी से कुछ भी नहीं कर सकता?" मैंने ये कहा तो रहस्यमयी शख़्स ने कहा_____"नियम कानून इस लिए बनाए जाते हैं ताकि इंसान किसी चीज़ का नाजायज़ फायदा न उठाए और अनुशासित ढंग से अपना हर काम करे। ये नियम कानून हर जगह और हर क्षेत्र में बने होते हैं। बिना नियम कानून के कोई भी क्षेत्र हो वो बहुत जल्द ही गर्त में डूब जाता है।"

रहसयमयी शख़्स की बातें सुन कर इस बार मैं कुछ न बोला। ये अलग बात है कि बार बार मेरे ज़हन में यही ख़याल उभर रहा था कि मुझे इस शख़्स के कहने पर इस संस्था से जुड़ जाना चाहिए। ऐसा इस लिए क्योंकि इस संस्था से जुड़ने के बाद मेरी सबसे बड़ी चाहत पूरी हो जाएगी। यानी एजेंट के रूप में मैं किसी न किसी लड़की या औरत की सेक्स नीड को पूरा करने के लिए जाऊंगा और फिर जैसे चाहूंगा वैसे उन्हें भोगूंगा। इस ख़याल के साथ ही मेरा मन बल्लियों उछलने लगा था। साला कहां आज तक मेरी किसी लड़की से बात करने में भी गांड फट के हाथ में आ जाती थी और कहां अब इस संस्था से जुड़ने के बाद मैं बिना किसी बाधा के किसी लड़की या औरत को सहज ही भोग सकता था। मुझे कहीं से भी इस काम में अपने लिए कोई लफड़ा नज़र नहीं आ रहा था बल्कि मेरे लिए तो हर बार एक नई और अलग चूत मारने को मिलने वाली थी। हालांकि मेरे लिए अभी भी एक समस्या ये थी कि मैं स्वभाव से शर्मीला था जिसकी वजह से मैं लड़की ज़ात से खुल कर बात नहीं कर पाता था किन्तु मैं जानता था कि इस संस्था से जुड़ने के बाद मेरी ये समस्या भी दूर हो जाएगी।

"तुम चाहो तो इसके बारे में सोचने के लिए समय ले सकते हो।" मुझे चुप देख उस शख़्स ने कहा_____"तुम्हें इस काम के लिए किसी भी तरह से मजबूर नहीं किया जाएगा। इस संस्था से जुड़ने का फ़ैसला सिर्फ तुम्हारा ही होगा, लेकिन संस्था से जुड़ने के बाद फिर तुम इस संस्था को छोड़ने के बारे में सोचोगे भी नहीं और ना ही संस्था के नियम कानून के खिलाफ़ जा कर अपनी मर्ज़ी से कुछ करोगे।"

"ठीक है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा____"मुझे इस बारे में सोचने के लिए दो दिन का समय चाहिए। वैसे, इस संस्था से जुड़ने के बाद ऐसा भी तो हो सकता है कि अपने परिवार के बीच रहते हुए मुझे संस्था के लिए काम करने में समस्या होने लगे। उस सूरत में मैं क्या करुंगा?"

"इस तरह की समस्या हमारे बाकी एजेंट्स को भी थी।" रहस्यमयी शख़्स ने कहा_____"लेकिन ये भी सच है कि आज तक उन्हें ऐसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा है। क्योंकि हमारी संस्था का काम गुप्त रूप से करने का है और संस्था के नियम कानून के अनुसार संस्था का कोई भी एजेंट्स न तो अपने बारे में किसी को पता चलने देता है और ना ही उसे ऐसी किसी सिचुएशन में फंसने दिया जाता है जिसके चलते एजेंट के साथ साथ हमारी संस्था को भी कोई नुकसान पहुंच सके। इस संस्था की गोपनीयता का सबसे बड़ा उदाहरण यही है कि संस्था का कोई भी एजेंट संस्था के दूसरे एजेंट्स के बारे में कुछ नहीं जानता। एक तरह से तुम ये समझो कि ये एक सीक्रेट सर्विस है, यानि कि एक गुप्त नौकरी। जिसके बारे में किसी को भी पता नहीं होता और ना ही किसी को पता चलने दिया जाता है। संस्था के साथ साथ संस्था के हर एजेंट्स की गोपनीयता का सबसे पहले ख़याल रखा जाता है।"

"वैसे इस संस्था का नाम क्या है?" मैंने जिज्ञासावश पूछा तो कुछ पल रुकने के बाद रहस्यमयी शख़्स ने कहा_____"संस्था के नाम के बारे में तुम्हें तभी बताया जाएगा जब तुम इस संस्था का एजेंट बनने के लिए पूरी तरह से तैयार हो जाओगे। ख़ैर तुमने सोचने के लिए दो दिन का वक़्त मांगा है इस लिए जाओ और आराम से सोचो इस बारे में।"

"तो क्या अब मैं अपने घर जा सकता हूं?" मैंने पूछा तो उस शख़्स की आवाज़ आई____"बेशक, तुम अपने घर ही जाओगे किन्तु उसी हालत में जिस हालत में तुम्हें यहाँ पर लाया गया था।"

"यहां से जाने के बाद।" मैंने कुछ सोचते हुए कहा_____"अगर मैंने लोगों को इस संस्था के बारे में बता दिया तो?"
"शौक से बता देना।" उस रहस्यमयी शख़्स ने कहा_____"लेकिन किसी को भी बताने से पहले एक बार ज़रा खुद भी सोचना कि तुम्हारी बात का यकीन कौन करेगा?"

उस रहस्यमयी शख़्स की ये बात सुन कर मुझे भी एहसास हुआ कि यकीनन मेरी इस बात पर भला कौन यकीन करेगा कि इस दुनियां में ऐसी कोई संस्था भी हो सकती है। एक तरह से इस बारे में लोगों को बता कर मैं अपना ही मज़ाक उड़ाऊंगा। ख़ैर अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मुझे मेरे पीछे से किसी के आने की आहट हुई तो मैंने पलट कर पीछे देखना चाहा लेकिन उसी पल जैसे क़यामत टूट पड़ी मुझ पर। एक बार फिर से मुझे बड़ी ही सफाई से बेहोश कर दिया गया था।

जब मुझे होश आया तो मैं उसी सड़क के किनारे पड़ा हुआ था जहां पर मैं पहली बार बेहोश हुआ था। मेरे बदन पर इस बार मेरे ही कपड़े थे। ये देख कर मैं एक बार फिर से चकित रह गया। मेरी नज़र कुछ ही दूरी पर खड़ी मेरी मोटर साइकिल पर पड़ी। मोटर साइकिल को किसी ने सड़क से हटा कर ऐसी जगह पर खड़ा कर दिया था जहां पर आसानी से किसी की नज़र नहीं पड़ सकती थी। कुछ पलों के लिए तो मुझे ऐसा लगा जैसे अभी तक मैं कोई ख़्वाब देख रहा था और जब आँख खुली तो मैं हक़ीक़त की दुनिया में आ गया हूं। आस पास पहले की ही भाँति कोहरे की हल्की धुंध थी और अब मुझे ठण्ड भी प्रतीत हो रही थी। कुछ देर मैं बेहोश होने से पूर्व की घटना के बारे में याद कर के सोचता रहा, उसके बाद उठा और अपनी मोटर साइकिल में बैठ कर घर की तरफ बढ़ गया।


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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
1,621
5,928
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अध्याय - 03
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अब तक,,,,,

जब मुझे होश आया तो मैं उसी सड़क के किनारे पड़ा हुआ था जहां पर मैं पहली बार बेहोश हुआ था। मेरे बदन पर इस बार मेरे ही कपड़े थे। ये देख कर मैं एक बार फिर से चकित रह गया। मेरी नज़र कुछ ही दूरी पर खड़ी मेरी मोटर साइकिल पर पड़ी। मोटर साइकिल को किसी ने सड़क से हटा कर ऐसी जगह पर खड़ा कर दिया था जहां पर आसानी से किसी की नज़र नहीं पड़ सकती थी। कुछ पलों के लिए तो मुझे ऐसा लगा जैसे अभी तक मैं कोई ख़्वाब देख रहा था और जब आँख खुली तो मैं हक़ीक़त की दुनिया में आ गया हूं। आस पास पहले की ही भाँति कोहरे की हल्की धुंध थी और अब मुझे ठण्ड भी प्रतीत हो रही थी। कुछ देर मैं बेहोश होने से पूर्व की घटना के बारे में याद कर के सोचता रहा, उसके बाद उठा और अपनी मोटर साइकिल में बैठ कर घर की तरफ बढ़ गया।

अब आगे,,,,,



"साहब लंच का टाईम हो गया है।" डायरी पढ़ रहे जेलर शिवकांत वागले के कानों में जब ये वाक्य पड़ा तो उसका ध्यान टूटा और उसने चेहरा उठा कर सामने की तरफ देखा। जेल का ही एक सिपाही उसके सामने टेबल के उस पार खड़ा था। उसे देख कर वागले की आँखों में सवालिया भाव उभरे।

"वो साहब जी।" सिपाही ने झिझकते हुए कहा_____"लंच का टाईम हो गया है। मैं घर से आपके लिए खाने का टिफिन ले आया हूं।"
"ओह! हां हां।" सिपाही की बात सुन कर वागले को जैसे समय का आभास हुआ और उसने गहरी सांस लेते हुए कहा____"अच्छा किया तुमने जो मुझे बता दिया। वैसे खाने में आज क्या भिजवाया है तुम्हारी मैडम ने?"

"मैंने टिफिन खोल कर तो नहीं देखा साहब जी।" सिपाही ने चापलूसी वाले अंदाज़ से अपनी खीसें निपोरते हुए कहा____"लेकिन टिफिन के अंदर से बहुत ही बढ़िया खुशबू आ रही है। इसका यही मतलब हुआ कि मैडम ने आज बहुत ही लजीज़ खाना आपके लिए मेरे हाथों भिजवाया है।"

"अच्छा ऐसी बात है क्या।" शिवकांत वागले ने मुस्कुरा कर कहा____"चलो अच्छी बात है। तुम भी जा कर अपना लंच कर लो।"
"अच्छा साहब जी।" सिपाही ने कहा और सिर को नवा कर केबिन से बाहर चला गया।

सिपाही के जाने के बाद वागले ने ये सोच कर एक गहरी सांस ली कि विक्रम सिंह की डायरी पढ़ने में वो इतना खो गया था कि उसे वक़्त के गुज़र जाने का ज़रा भी पता नहीं चला था। ख़ैर उसने डायरी को बंद किया और उसे अपने ब्रीफ़केस में रख दिया।

लंच करने के बाद जेलर शिवकांत वागले ने कुछ देर कुर्सी में ही बैठ कर आराम किया और फिर जेल का चक्कर लगाने निकल पड़ा। उसके ज़हन में डायरी में लिखी हुई बातें ही चल रही थी। वो खुद भी गहराई से सोचता जा रहा था कि क्या सच में ऐसी कोई संस्था हो सकती है जिसके बारे में विक्रम सिंह ने अपनी डायरी में ज़िक्र किया है? वागले सोच रहा था कि इस दुनियां में कैसे कैसे लोग हैं और कैसी कैसी चीज़ें हैं जिनके बारे में सोच कर ही बड़ा अजीब सा लगता है। विक्रम सिंह की डायरी के अनुसार सी. एम. एस. यानी की चूत मार सर्विस एक ऐसे आर्गेनाइजेशन का नाम है जो गुप्त रूप से औरतों और मर्दों की सेक्स नीड को पूरा करती है। शिवकांत वागले को यकीन नहीं हो रहा था कि दुनियां में इस नाम की ऐसी कोई संस्था भी हो सकती है किन्तु वो ये भी सोच रहा था कि विक्रम सिंह जैसा शख़्स भला अपनी डायरी में ये सब झूठ मूठ का क्यों लिखेगा? अगर विक्रम सिंह का लिखा हुआ एक एक शब्द सच है तो ज़ाहिर है कि दुनियां में इस नाम की ऐसी कोई संस्था ज़रूर होगी जो औरतों और मर्दों की सेक्स नीड को पूरा करती होगी।

डायरी के अनुसार किसी रहस्यमयी नक़ाबपोश ने विक्रम सिंह को ऐसे नाम की संस्था से जुड़ने के लिए आमंत्रित किया था। अब सवाल ये है कि क्या विक्रम सिंह सच में ऐसी किसी संस्था से जुड़ा हुआ था और वो औरतों और मर्दों की सेक्स नीड को पूरा करता था? हालांकि शिवकांत वागले ने डायरी में इसके आगे का कुछ नहीं पढ़ा था किन्तु ज़हन में ऐसे ख़्यालों का उभरना स्वाभाविक ही था। वागले के मन में इसके आगे जानने की तीव्र उत्सुकता जाग उठी थी।

शाम तक शिवकांत वागले ब्यस्त ही रहा, उसके बाद वो अपने सरकारी आवास पर चला गया था। घर आया तो उसकी नज़र अपनी पचास वर्षीया पत्नी सावित्री पर पड़ी। सावित्री को देखते ही वागले के ज़हन में जाने क्यों ये ख़याल उभर आया कि क्या उसकी पत्नी के मन में अभी भी सेक्स करने की हसरत होगी या फिर दो बड़े बड़े बच्चे हो जाने के बाद उसके अंदर से सेक्स की चाहत ख़त्म हो गई होगी? सावित्री दिखने में अभी भी सुन्दर थी और उसका गोरा बदन अभी भी ऐसा था जो किसी भी नौजवान को उसकी तरफ आकर्षित होने पर मजबूर कर सकता था।

शिवकांत वागले खुद भी सेक्स का बहुत बड़ा भक्त नहीं था। बच्चों के बड़ा हो जाने पर अब वो सेक्स के बारे में ज़्यादा नहीं सोचता था और लगभग यही हाल सावित्री का भी था। हालांकि कभी कभी रात में दोनों ही एक दूसरे के अंगों से छेड़ छाड़ कर लेते थे और अगर बहुत ही मन हुआ तो सेक्स कर लेते थे। शिवकांत को कभी भी ऐसा महसूस नहीं हुआ जैसे कि उसकी पत्नी सेक्स के लिए ज़रा भी पागल हो। सावित्री को अपलक देखते हुए शिवकांत वागले को बिलकुल भी अंदाज़ा नहीं हुआ कि इस मामले में उसकी पत्नी को सेक्स की ज़रूरत है कि नहीं।

वागले जानता था कि भारत देश की नारी चाहे भले ही कितना खुली हुई हो लेकिन सेक्स के मामले में सबसे पहले पहल मर्द को ही करनी पड़ती है। आज से पहले शिवकांत वागले ने ये कभी नहीं सोचा था कि दो बच्चों का पिता हो जाने के बाद उसका अपनी पत्नी सावित्री के साथ सेक्स करना ज़रूरी है कि नहीं या फिर उसकी पत्नी को इसकी ज़रूरत पड़ती होगी या नहीं, किन्तु आज विक्रम सिंह की डायरी में ये सब पढ़ने के बाद वो थोड़ा सोच में पड़ गया था कि हर औरत मर्द अपनी सेक्स की नीड को पूरा करने के लिए या अपना टेस्ट बदलने के लिए कोई दूसरा साथी खोजती या खोजते हैं। हालांकि वो ये समझता था कि अपने देश की नारी अभी इस हद तक नहीं गई है जिससे कि वो अपने पति के अलावा किसी दूसरे मर्द के बारे में सोचे किन्तु वो ये भी समझ रहा था कि अक्सर मर्दों के सम्बन्ध किसी न किसी औरत से होते हैं तो ज़ाहिर है कि यही हाल औरतों का भी है। सीधी सी बात है कि जो मर्द किसी दूसरी औरत से सम्बन्ध रखता है तो वो उस औरत के लिए दूसरा मर्द ही तो कहलाया। शिवकांत को अचानक से ख़याल आया कि वो बेकार में ही इन सब बातों के बारे में इतना सोच रहा है, जबकि हमारे देश में अभी इस तरह का परिवेश नहीं बना है। हां ये ज़रूर है कि कुछ औरतों और मर्दों के सम्बन्ध अलग अलग औरतों और मर्दों से होते हैं लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि वो लोग ऐसी किसी संस्था के द्वारा ये सब करते हैं। ज़ाहिर है कि विक्रम सिंह ने अपनी डायरी में जो कुछ भी इस बारे में लिखा है वो सब झूठ है, कोरी बकवास है।

शिवकांत वागले ने अपने ज़हन से इन सारी बातों को झटक दिया और रात में खाना पीना करने के बाद वो अपने कमरे में सोने के लिए आ गया था। बेड पर लेटने के बाद फिर से वो विक्रम सिंह और उसकी डायरी के बारे में सोचने लगा था। इससे पहले उसने आँख बंद कर के सोने की कोशिश की थी किन्तु उसकी आँखों से नींद कोशों दूर थी। ज़ाहिर है कि जब तक मन अशांत रहेगा तब तक किसी भी इंसान को चैन की नींद नहीं आ सकती। वागले ने बेचैनी से करवट बदली और अपना चेहरा अपनी बीवी सावित्री की तरफ कर लिया। उसकी बीवी सावित्री पहले से ही उसकी तरफ करवट लिए सो चुकी थी। सावित्री को चैन से सोते देख शिवकांत के ज़हन में कई तरह के ख़याल उभरने लगे।

सावित्री इस उम्र में भी बेहद सुन्दर थी और उसका बदन घर के सभी काम करने की वजह से सुगठित था। उसके बदन पर मोटापा जैसी कोई बात नहीं थी। शिवकांत ने देखा कि सावित्री की नाईटी का गला उसके करवट लेने की वजह से काफी खुला हुआ था जिससे उसकी बड़ी बड़ी छातियों की गोलाइयाँ साफ़ दिख रहीं थी। उसकी बाएं तरफ वाली छाती के हल्का नीचे की तरफ होने से उसकी दाएं तरफ वाली छाती बिल्कुल नीचे दब गई थी। ये मंज़र देख कर शिवकांत के जिस्म में एक अजीब सी झुरझुरी हुई और उसने एक गहरी सांस ली। उसे अचानक से ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सावित्री के सुर्ख होंठ उसे चूम लेने का आमंत्रण दे रहे हों। शिवकांत अपने इस ख़याल से ये सोच कर थोड़ा हैरान हुआ कि ये कैसा एहसास है? आज से पहले तो किसी दिन उसे ऐसा प्रतीत नहीं होता था, जबकि वो अपनी पत्नी के साथ हर रोज़ ही बेड पर सोता है।

शिवकांत वागले ने एक बार फिर से अपने ज़हन में उभर आए इन बेकार के ख़यालों को झटका और एक गहरी सांस ले कर अपनी आँखें बंद कर ली। उसे महसूस हुआ कि इस वक़्त उसके दिल की धड़कनें सामान्य से थोड़ा बढ़ी हुई हैं और बंद पलकों में बार बार सावित्री की वो बड़ी बड़ी छातियां और उसके सुर्ख होंठ दिख रहे हैं। वागले एकदम से परेशान सा हो गया। उसने एक झटके से अपनी आँखें खोली और सावित्री की तरफ एक बार गौर से देखने के बाद बेड से नीचे उतरा। उसके बाद वो कमरे से बाहर निकल गया।

किचेन में जा कर वागले ने फ्रिज से पानी की एक बोतल निकाल कर पानी पिया और फिर बोतल का ढक्कन बंद कर के उसे फ्रिज में वापस रख दिया। सारा घर सन्नाटे में डूबा हुआ था। उसके दोनों बच्चे अपने अपने कमरे में सो रहे थे। वागले पानी पीने के बाद वापस अपने कमरे में आया और बेड पर सावित्री के बगल से लेट गया।

काफी देर चुपचाप लेटे रहने के बाद वागले के मन में जाने क्या आया कि उसने फिर से सावित्री की तरफ करवट ली और थोड़ा खिसक कर सावित्री के क़रीब पहुंच गया। उसने अपने बाएं हाथ की कुहनी को तकिए पर टिका कर अपनी कनपटी को बाएं हाथ की हथेली पर रखा जिससे उसका सिर तकिए से ऊपर उठ गया। इस पोजीशन में वो सावित्री को और भी बेहतर तरीके से देख सकता था। उसकी नज़र सावित्री के गोरे चेहरे पर पड़ी। सावित्री दुनियां जहान से बेख़बर सो रही थी। उसे ज़रा भी भान नहीं था कि उसका पति इस वक़्त किस तरह के ख़यालों का शिकार है जिसकी वजह से वो थोड़ा परेशान भी है और थोड़ा बेचैन भी।

सावित्री के चेहरे से नज़र हटा कर वागले ने फिर से सावित्री की बड़ी बड़ी चूचियों की तरफ देखा। इतने क़रीब से सावित्री की चूचियां देखने पर शिवकांत को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे उसकी बीवी की चूचियां आज से पहले इतनी खूबसूरत नहीं थी। वो बड़ी बड़ी और गोरी गोरी चूचियों को अपलक देखने लगा था जैसे सावित्री की चूचियों ने उसे सम्मोहन में डाल दिया हो। वागले अभी अपलक सावित्री की चूचियों को देख ही रहा था कि तभी सावित्री के जिस्म में हलचल हुई जिससे शिवकांत वागले सम्मोहन से निकल कर धरातल में आ गया। उधर सावित्री थोड़ा सा कुनमुनाई और फिर से वो शान्ति से सोने लगी।

शिवकांत के ज़हन में ख़याल उभरा कि क्यों न सावित्री के साथ थोड़ा छेड़ छाड़ की जाए। हालांकि वो जानता था कि उसके ऐसा करने पर सावित्री नाराज़ होगी और उसे चुपचाप सो जाने को कहेगी लेकिन वागले ने इसके बावजूद सावित्री को छेड़ने का सोचा। वागले की धड़कनें थोड़ा और तेज़ हो गईं थी। आज पहली बार उसे अपनी ही पत्नी को छेड़ने के ख़याल से घबराहट होने लगी थी, जबकि इसके पहले भी वो अपनी पत्नी को इस तरह छेड़ता था किन्तु तब उसके अंदर इस तरह की घबराहट नहीं होती थी।

शिवकांत वागले ने गहरी नींद में सोई पड़ी अपनी पत्नी के चेहरे को एक बार गौर से देखा और फिर अपने दाहिने हाथ को उसकी नाईटी से झाँक रही बड़ी बड़ी चूचियों की तरफ बढ़ाया। उसका हाथ कांप रहा था और उसकी साँसें भी थोड़ा भारी हो गईं थी। वागले ने कुछ ही पलों में अपने दाहिने हाथ को सावित्री की दाहिनी छाती पर हल्के से रख दिया। उसे अपनी हथेली पर हल्का गर्म और बेहद मुलायम सा एहसास हुआ जिसके साथ ही उसके जिस्म का रोयां रोयां एक सुखद रोमांच से भरता चला गया। वागले ने एक बार फिर से अपनी पत्नी के चेहरे पर नज़र डाली और फिर हल्के से सावित्री की उस छाती को पकड़ कर दबाया। वागले ने महसूस किया कि ऐसा करने पर उसे थोड़ा मज़ा आया था, ये सोच कर उसके होठों पर मुस्कान उभर आई। उधर सावित्री को आभास ही नहीं हुआ कि उसकी चूची के साथ इस वक़्त क्या हुआ था।

वागले ने सावित्री की उस छाती को हल्के हल्के दबाना शुरू कर दिया जिसकी वजह से अचानक ही सावित्री के जिस्म में हलचल हुई जिसे देख कर शिवकांत वागले ने झट से अपना हाथ सावित्री की छाती से हटा लिया। उसकी धड़कनें तेज़ी से दौड़ने लगीं थी। एकाएक ही उसके ज़हन में ख़याल उभरा कि वो इतना डर क्यों रहा है? सावित्री उसकी बीवी ही तो है और बीवी के साथ ये सब करना ग़लत तो नहीं है? इस ख़याल के तहत वागले ने पहले तो एक गहरी सांस ली और इस बार पूरे आत्मविश्वास के साथ अपना हाथ बढ़ा कर सावित्री की छाती को पकड़ लिया। पहले तो वागले ने हल्के हाथों से ही सावित्री की चूची को दबाना शुरू किया था किन्तु जब उसने मज़े की तरंग में आ कर सावित्री की छाती को थोड़ा ज़ोर से दबा दिया तो सावित्री के जिस्म को झटका सा लगा। ऐसा लगा जैसे सावित्री को दर्द हुआ था जिसकी वजह से वो ज़ोर से हिली थी। इधर सावित्री के हिलने पर वागले रुका नहीं बल्कि उसकी छाती को दबाता ही रहा। जिसका परिणाम ये निकला कि कुछ ही पलों में सावित्री की नींद टूट गई और उसने आँखें खोल कर देखा।

सावित्री ये देख कर बुरी तरह चौंकी कि उसका पति इस वक़्त उसकी चूची को दबाए जा रहा है। कमरे में लाइट जल रही थी क्योंकि सावित्री को अँधेरे में सोने की आदत नहीं थी। अपने चेहरे पर हैरानी के भाव लिए सावित्री ने वागले की तरफ देखा और फिर अपने एक हाथ से वागले के उस हाथ को पकड़ कर हटा दिया जो हाथ उसकी चूची को दबा रहा था।

"ये क्या कर रहे हैं आप?" फिर सावित्री ने थोड़ा नाराज़ लहजे में कहा____"रात के इस वक़्त सोने की बजाय आप ये सब कर रहे हैं?"
"अरे! तो क्या हुआ भाग्यवान?" वागले ने मुस्कुराते हुए कहा_____"अपनी प्यारी सी बीवी को प्यार ही तो कर रहा हूं।"

"बातें मत बनाइए।" सावित्री ने उखड़े भाव से कहा_____"और चुपचाप सो जाइए। "
"अब भला ये क्या बात हुई मेरी जान?" वागले ने कहा____"अपनी प्यारी सी बीवी को प्यार करने का मन किया तो प्यार करने लगा। मैं तो कहता हूं कि तुम भी इस प्यार में मेरा साथ दो। हम जवानी के दिनों की तरह अंधाधुंध प्यार करेंगे, क्या कहती हो?"

"आपका दिमाग़ तो ठिकाने पर है ना?" सावित्री ने हैरानी भरे भाव से कहा____"घर में दो दो जवान बच्चे हैं और आपको जवानी के दिनों की तरह प्यार करने का भूत सवार हो गया है।"

"अरे! तो इसमें क्या समस्या है भाग्यवान?" वागले ने बेचैन भाव से कहा____"बच्चों के जवान हो जाने से क्या हम एक दूसरे से प्यार ही नहीं कर सकते? भला ये कहां का नियम है?"

"मैं कुछ नहीं सुनना चाहती।" सावित्री ने खीझते हुए कहा____"अब परेशान मत कीजिएगा मुझे। दिन भर घर के काम करते करते बुरी तरह थक जाती हूं मैं। कम से कम रात में तो चैन से सो लेने दीजिए।"

सावित्री ये कह कर दूसरी तरफ घूम गई, जबकि वागले मायूस और ठगा सा उसे देखता रह गया। सहसा उसके ज़हन में ख़याल उभरा कि सावित्री का ऐसा बर्ताव ये दर्शाता है कि उसके अंदर सेक्स के प्रति ऐसी कोई भी बात नहीं है जिसके लिए उसे अपने पति के अलावा किसी दूसरे मर्द के बारे में सोचना भी पड़े और वैसे भी कोई औरत दूसरे मर्द के बारे में तभी सोचती है जब वो अपने मर्द से खुश नहीं होती या फिर उसका पति उसकी सेक्स की भूख को शांत नहीं कर पाता। शिवकांत वागले ये सब सोच कर खुश हो गया और फिर उसने दूसरी तरफ करवट ले कर अपनी आँखें बंद कर ली।

दूसरे दिन शिवकांत वागले अपने निर्धारित समय पर जेल के अपने केबिन में पहुंचा। ज़रूरी कामों से फुर्सत होने के बाद उसने ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाली और एक सिगरेट सुलगा कर डायरी के पन्ने पलटने लगा। वागले डायरी के पन्ने पलटते हुए उस पेज पर रुका जिस पेज़ पर वो कल पढ़ रहा था। सिगरेट के दो चार लम्बे लम्बे कश लेने के बाद उसने सिगरेट को ऐशट्रे में बुझाया और डायरी पर विक्रम सिंह द्वारा लिखी गई इबारत को आगे पढ़ना शुरू किया।

☆☆☆

उस वक़्त रात के क़रीब एक बज रहे थे जब मैं अपने घर के दरवाज़े पर खड़ा डोर बेल बजा रहा था। मेरी उम्मीद के विपरीत दरवाज़ा जल्दी ही खुला और दरवाज़े के उस पार मेरी माता श्री नज़र आईं। मुझ पर नज़र पड़ते ही उन्होंने ब्याकुल भाव से झपट कर मुझे अपने गले से लगा लिया।

"कहां चला गया था तू?" फिर उन्होंने दुखी भाव से मुझे अपने गले से लगाए हुए ही कहा_____"मैं और तेरे पापा तेरे लिए कितना परेशान थे। मन में तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे कि जाने तेरे साथ क्या हुआ होगा जिसकी वजह से तू वापस घर नहीं लौटा।"

"मैं एकदम ठीक हूं मां।" मैंने उन्हें खुद से अलग करते हुए कहा____"और हां माफ़ कर दीजिए, मुझे आने में काफी देर हो गई। असल में मैं मोटर साइकिल से गिर गया था जिसकी वजह से मेरे पैर के घुटने में चोंट लग गई थी।"

"क्या कहा???" मेरी बात सुनते ही माँ ने ब्याकुल हो कर कहा_____"तू मोटर साइकिल से कैसे गिर गया था? कहीं तू मुझसे झूठ तो नहीं बोल रहा? सच सच बता कैसे लगी तुझे ये चोट?" कहने के साथ ही माँ ने झट से मेरे पैंट को ऊपर सरका कर चोंट पर लगी पट्टी को देखा और फिर मेरी तरफ देखते हुए कहा____"कहीं तेरा एक्सीडेंट वग़ैरा तो नहीं हो गया था और ये तेरे घुटने पर पट्टी कैसे लगी हुई है?"

"वो मैं हॉस्पिटल चला गया था न।" मैंने बहाना बनाते हुए कहा____"वहीं पर मैंने मरहम पट्टी करवाई है। इसी सब में इतनी देर हो गई। वैसे ये तो बताइए कि पापा मुझ पर गुस्सा तो नहीं हैं ना?"

"पहले तो वो गुस्सा ही हुए थे।" माँ दरवाज़े से एक तरफ हटते हुए बोलीं जिससे मैं दरवाज़े के अंदर दाखिल हुआ____"उसके बाद जब तू इतना समय गुज़र जाने पर भी घर नहीं आया तो उन्हें तेरी चिंता होने लगी थी। उसके बाद वो एक एक कर के तेरे दोस्तों के घर वालों को फ़ोन किया और तेरे बारे में पूछा लेकिन तेरे दोस्तों ने उन्हें यही बताया कि तू उन लोगों के साथ ही चौराहे तक आया था। उस वक़्त तक तू ठीक ही था। उसके बाद का उन्हें कुछ पता नहीं था।"

"हां वो चौराहे के बाद ही मैं मोटर साइकिल से गिरा था।" मैंने कहा____"कोहरे की धुंध में मुझे सड़क पर मौजूद स्पीड ब्रेकर दिखा ही नहीं था। जिसकी वजह से मोटर साइकिल के हैंडल से मेरे हाथों की पकड़ छूट गई थी और मैं उछल कर सड़क पर गिर गया था।"

"चल कोई बात नहीं।" माँ ने दरवाज़ा बंद कर के मुझे अंदर की तरफ ले जाते हुए कहा_____"शुकर है कि ईश्वर की दया से तुझे ज़्यादा कुछ नहीं हुआ। हम दोनों तो तेरे लिए बहुत ही ज़्यादा चिंतित और परेशान हो गए थे।"

मैं माँ के साथ अंदर आया तो देखा ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर पापा बैठे थे। मुझे देखते ही वो उठे और झट से मुझे अपने गले से लगा लिया। उसके बाद उन्होंने भी मुझसे वही सब पूछा जो इसके पहले माँ मुझसे पूछ चुकीं थी और मैंने भी उन्हें वही सब बताया जो माँ को बताया था। ख़ैर माँ ने मुझे खाना खिलाया। खाने के बाद मैं अपने कमरे में चला गया।

जैसा कि मैंने शुरू में ही बताया था कि मैं अमीर फैमिली से ताल्लुक रखता था। मेरे पापा का बहुत बड़ा बिज़नेस था और मेरे माता पिता दोनों ही उस बिज़नेस को सम्हालते थे। पढ़ाई पूरी होने के बाद मैंने भी उनसे ज्वाइन करने के लिए कहा था लेकिन पापा ने मुझे ये कह कर मना कर दिया था कि अभी कुछ समय लाइफ़ को एन्जॉय करो। उसके बाद तो बिज़नेस ही सम्हालना है। मैंने भी सोचा कि चलो कुछ समय के लिए मुझे इस झंझट से दूर ही रहना चाहिए।

मेरा घर, घर क्या था बल्कि एक बड़ा सा बंगला था जिसमें हर तरह की सुख सुविधाएं थी। बंगले में कई सारे नौकर चाकर थे। मैं भले ही अपने माता पिता की इकलौती औलाद था लेकिन मुझ में अपने अमीर माता पिता का बेटा होने का कोई घमंड नहीं था और ना ही मेरा ऐसा स्वभाव था कि मैं उनके पैसों को फ़ालतू में इधर उधर उड़ाता फिरुं। मैं दिखने में और पढ़ने लिखने में बहुत ही अच्छा था। मेरी बॉडी पर्सनालिटी भी ठीक ठाक थी लेकिन मुझ में सिर्फ एक ही ख़राबी थी कि मेरा स्वभाव औरतों के मामले में कुछ ज़्यादा ही शर्मीला था।

अपने कमरे में आ कर मैं बेड पर लेट गया था और कुछ समय पहले जो कुछ भी मेरे साथ हुआ था उसके बारे में सोचने लगा था। मेरे ज़हन में उस रहस्यमयी शख़्स की एक एक बातें शुरू से ले कर आख़िर तक की गूंजने लगीं थी। उन सब बातों को याद कर के मैं सोचने लगा कि क्या सच में ऐसा हो सकता है? क्या सच में ऐसी कोई संस्था हो सकती है जिसमें इस तरह के एजेंट्स होंगे जो औरतों और मर्दों को सेक्स की सर्विस देते हैं? क्या सच में बाहर के मर्द और औरतें ऐसी किसी संस्था के एजेंट्स द्वारा अपनी सेक्स की भूंख को शांत करते होंगे? क्या ऐसा करने से किसी को भी इसका पता नहीं चलता होगा? मर्दों का तो चलो मान लेते हैं कि वो ये सब आसानी से कर ही लेते होंगे लेकिन औरतें कैसे किसी ऐसे आदमी के साथ सेक्स कर लेती होंगी जो उनके लिए निहायत ही अजनबी होता है? क्या इसके लिए पहले से कोई ऐसा प्रोसेस होता है जिसके बाद औरतों के लिए किसी दूसरे मर्द के साथ सेक्स करना आसान हो जाता होगा?

इस बारे में मैं जितना सोचता जा रहा था उतना ही मेरे ज़हन में और भी सवाल उभरते जा रहे थे। किसी किसी पल मैं ये भी सोचने लगता कि कहीं ये कोई ख़तरनाक जाल तो नहीं है जिसमें वो रहस्यमयी शख़्स मुझे फ़साना चाहता है? मेरे माता पिता दोनों ही बिज़नेस वाले थे और ज़ाहिर है कि इस क्षेत्र में उनका कोई न कोई दुश्मन भी होगा जो उन्हें इस तरह से भी नुक्सान पहुंचाने का सोच सकता है। ये ख़याल ऐसा था जिसके बारे में सोचते ही मेरे ज़हन में ये बात आ जाती थी कि मुझे इस तरह के किसी भी लफड़े में नहीं फंसना चाहिए। क्या हुआ अगर मुझे किसी लड़की को भोगने का सुख प्राप्त नहीं हो रहा? कम से कम इससे मेरे माता पिता पर किसी तरह की कोई आंच तो नहीं आ रही। अब ऐसा तो है नहीं कि मुझे अपनी लाइफ़ में कभी कोई लड़की मिलेगी ही नहीं। मैं उस लड़की के साथ भी तो सेक्स ही करुंगा जिससे मेरी शादी होगी?

बेड पर लेटा मैं बेचैनी से करवटें बदल रहा था। मेरा मन बिलकुल ही अशांत था। मैं समझ नहीं पा रहा था कि इस मामले में मुझे क्या फ़ैसला लेना चाहिए। एक तरफ मैं ये भी चाहता था कि मेरे किसी भी काम की वजह से मेरे माता पिता पर कोई बात न आए वहीं एक तरफ मैं ये भी चाहता था कि किसी सुन्दर सी लड़की के साथ मैं भी उसी तरह मज़े करूं जिस तरह मेरे जैसे जवान लड़के मज़े करते हैं। शादी तो यकीनन एक दिन होगी ही और जिस लड़की से मेरी शादी होगी उससे जीवन भर मज़ा करने का मुझे लाइसेंस भी मिल जाएगा लेकिन उससे क्या मुझे तसल्ली मिलेगी? शादी के बाद तो मैं बस एक का ही बन के रह जाऊंगा और संभव है कि फिर किसी दूसरी लड़की या औरत के साथ मज़ा करने का मुझे कभी मौका ही न मिले। शादी के बाद क्या मैं कभी ये देख पाऊंगा कि दूसरी लड़कियों या औरतों के जिस्म कैसे होते हैं? उनके जिस्म का कौन सा अंग किस तरह का होता है?

ये सब सोचते हुए मैं बुरी तरह से उलझ गया था। मेरी तृष्णा और बेचैनी शांत होने की बजाय और भी बढ़ती जा रही थी। मेरा मन अलग अलग लड़कियों को भोगने की लालसा ही बनाता जा रहा था। रह रह कर मेरे ज़हन में उस रहस्यमयी शख़्स की बातें गूँज उठती थीं और मैं सोचने लगता था कि अगर सच में ही वो रहस्यमयी शख़्स ऐसी किसी संस्था का आदमी है तो उसकी संस्था से जुड़ने में भला मुझे क्या परेशानी हो सकती है? उस संस्था से जुड़ने के बाद तो उल्टा मेरे मज़े ही हो जाने हैं। हर रोज़ एक नई औरत को भोगने का मौका मिलेगा मुझे और मैं जैसे चाहूंगा औरतों के जिस्मों के साथ खेलते हुए उनसे मज़े करुंगा। उस शख़्स के अनुसार ये सब काम गुप्त तरीके से होते हैं, इसका मतलब किसी को इस सबके बारे में पता भी नहीं चलेगा। कम से कम एक बार मुझे इस संस्था से जुड़ कर चेक तो करना ही चाहिए।

ये सब सोचते हुए मैंने एक गहरी सांस ली कि तभी मुझे उस शख़्स की एक बात याद आई कि संस्था से जुड़ने के बाद मैं उस संस्था को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकता। इस बात के याद आते ही मैं एक बार फिर से गहरी सोच में डूब गया। तभी मुझे उसकी ये बात भी याद आई कि संस्था से जुड़ने के बाद मैं अपनी फैमिली के बीच रहते हुए भी आसानी से संस्था के काम कर सकता हूं। यानि फैमिली के बीच रह कर मैं अपने बाकी के काम भी कर सकता हूं। संस्था के नियम कानून तो ये हैं कि मैं उनकी मर्ज़ी के खिलाफ़ संस्था का कोई काम नहीं करुंगा और ना ही अपना भेद किसी पर ज़ाहिर करुंगा। ज़ाहिर है कि संस्था में जो भी एजेंट्स हैं वो सब संस्था के बॉस के आर्डर पर ही सर्विस देने जाते होंगे।

मेरे ज़हन में ये ख़याल उभरे तो मैंने सोच लिया कि इस बारे में मैं एक बार फिर उस रहस्यमयी आदमी से पूछूंगा। अगर उसकी बातों से या उसके नियम कानून में मुझे कहीं पर भी अपने लिए कोई परेशानी न नज़र आई तो मैं उसकी संस्था से जुड़ने के बारे में सोचूंगा।

रात पता नहीं कब मेरी पलकें झपक गईं और मुझे नींद ने अपनी आगोश में ले लिया। ख़ैर ऐसे ही दो दिन गुज़र ग‌ए। उस रहस्यमयी आदमी ने मुझे सोचने के लिए दो दिन का वक़्त दिया था और दो दिन गुज़र गए थे।

मैं शाम को क़रीब आठ बजे उसी जगह पर आ कर खड़ा हो गया था जिस जगह पर वो शख़्स मुझे पहली बार मिला था। मेरे पास उस शख़्स से मिलने का बस यही एक जरिया था। क्योंकि उस दिन उसने मुझे ये नहीं बताया था कि दो दिन बाद उससे मेरी मुलाक़ात कैसे होगी? ये मेरा अनुमान ही था कि शायद उस जगह पर जाने से मेरी मुलाक़ात उस रहस्यमयी शख़्स से हो जाए।

ठंड ज़ोरों की थी, इस लिए मैं स्वेटर के ऊपर से कोट भी पहने हुए था। चारों तरफ कोहरे की धुंध छाई हुई थी जिससे आस पास कोई नज़र नहीं आता था। हालांकि सड़क पर इक्का दुक्का वाहन आते जाते नज़र आ जाते थे। मैं सड़क के किनारे उस जगह पर था जहां पर उस दिन मुझे मेरी मोटर साइकिल खड़ी मिली थी।

उस रहस्यमयी आदमी का इंतज़ार करते हुए मुझे क़रीब एक घंटा गुज़र गया था और अब मुझे लगने लगा था कि मैं बेकार में ही उसके आने का इंतज़ार कर रहा हूं। मुमकिन है कि दो दिन पहले जो कुछ भी हुआ था वो सब किसी का सोचा समझा मज़ाक रहा हो। हालांकि सोचने वाली बात तो ये भी थी कि इस तरह का मज़ाक करने के बारे में भला कौन सोच सकता था?

दस मिनट और इंतज़ार करने के बाद भी जब वो रहस्यमयी आदमी नहीं आया तो मैं गुस्से में आ कर सड़क की तरफ चल पड़ा। अभी मैं सड़क पर आया ही था कि तभी मेरे कानों में एक अजीब सी आवाज़ पड़ी जिसे सुन कर मैं एकदम से रुक गया। उस अजीब सी आवाज़ को सुन कर मेरे ज़हन में बिजली की तरह ये ख़याल उभरा था कि ऐसी आवाज़ तो उस रहस्यमयी आदमी की थी, तो क्या वो यहाँ पर आ गया है??? इस ख़याल के उभरते ही मेरी धड़कनें तेज़ हो गईं और साथ ही मैं बड़ी तेज़ी से पीछे की तरफ पलटा। नज़र कोहरे की हल्की धुंध में कुछ ही दूर खड़े उस रहस्यमयी आदमी पर पड़ी जिसके इंतज़ार में मैं पिछले एक घंटे से भी ज़्यादा समय से यहाँ खड़ा था।

"देरी के लिए हमें माफ़ करना विक्रम।" फ़िज़ा में उस रहस्यमयी आदमी की रहस्यमयी ही आवाज़ गूंजी_____"वैसे कहां जा रहे थे?"
"पिछले एक घंटे से मैं यहाँ आपके आने का इंतज़ार कर रहा था।" मैंने आज उसे आप से सम्बोधित करते हुए कहा____"जब आप नहीं आए तो मुझे लगा दो दिन पहले जो कुछ भी हुआ था वो सब शायद किसी के द्वारा किया गया ऐसा मज़ाक था जिसके बारे में मैं तो क्या बल्कि कोई भी नहीं सोच सकता था।"

"सही कहा तुमने।" उस आदमी ने मेरी तरफ दो क़दम बढ़ कर कहा____"इस तरह के मज़ाक के बारे में कोई भी नहीं सोच सकता किन्तु सच यही है कि वो सब मज़ाक नहीं था। ख़ैर, तो इन दो दिनों में क्या सोचा तुमने?"

"सच कहूं तो मैं अभी भी उलझन में ही हूं।" मैंने कहा____"और साथ ही मैं इस बात से डर भी रहा हूं कि इस सबकी वजह से कहीं मैं किसी ऐसे झमेले में न पड़ जाऊं जिससे मेरे साथ साथ मेरी पूरी फैमिली ख़तरे में पड़ जाए। दूसरी बात ये भी है कि इस सब के बाद मैं अपनी फैमिली के साथ क्या वैसे ही रह पाऊंगा जैसे अभी रह रहा हूं? आपने कहा था कि संस्था से जुड़ने के बाद मैं अपनी मर्ज़ी से कुछ नहीं कर सकता। अगर ऐसा होगा तो मेरी अपनी लाइफ़ का क्या होगा और अपनी फैमिली के प्रति मेरे जो भी फ़र्ज़ हैं उनको मैं कैसे निभा पाऊंगा?"

"तुमने उस दिन शायद हमारी बातों को ग़ौर से सुना ही नहीं था।" उस रहस्यमयी आदमी ने अपनी अजीब सी आवाज़ में कहा____"अगर सुना होता तो समझ जाते कि संस्था से जुड़ने के बाद इस तरह की कोई पाबंदी नहीं होगी। संस्था के नियम कानून ये हैं कि एजेंट्स अपने बारे में किसी को ना तो खुद बताएं और ना ही किसी को अपने बारे में पता चलने दें। यानि कि संस्था का कोई भी एजेंट बाहरी दुनियां के किसी भी ब्यक्ति के सामने अपने इस राज़ को फास न होने दे कि वो किस संस्था से जुड़ा हुआ है और वो किस तरह का काम करता है? दूसरा कानून ये है कि संस्था से जुड़ने के बाद कोई भी एजेंट हमारे हुकुम के बिना एजेंट के रूप में किसी औरत या मर्द को सर्विस देने न जाए। बाकी संस्था का कोई भी एजेंट अपनी रियल लाइफ़ में कुछ भी करने के लिए आज़ाद है। संस्था ने ऐसा कोई कानून नहीं बनाया है कि वो अपने एजेंट्स को उनकी पर्सनल लाइफ से ही दूर कर दे।"

"अगर ऐसी बात है तो फिर ठीक है।" मैंने मन ही मन राहत की सांस लेते हुए कहा_____"मैं आपकी संस्था से जुड़ने के लिए तैयार हूं। वैसे क्या आपकी संस्था में लड़के और लड़कियां दोनों ही सर्विस देने का काम करते हैं?"

"ज़ाहिर सी बात है।" रहस्यमयी आदमी ने कहा____"हमारी संस्था औरत और मर्द दोनों को ही सर्विस देने का काम करती है। इसके लिए मेल और फीमेल दोनों तरह के एजेंट्स हमारी संस्था में हैं। ख़ैर संस्था से जुड़ने के बाद तुम्हें ख़ुद ही सारी बातों का पता चल जाएगा।" कहने के साथ ही उस रहस्यमयी आदमी ने आगे बढ़ कर अपना एक हाथ मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा____"लो इसी ख़ुशी में अपना मुँह मीठा करो।"

रहस्यमयी आदमी की बात सुन कर मैंने अपनी तरफ बढ़े उसके हाथ को देखा। उसके हाथ में काले रंग के दस्ताने थे और उसकी हथेली पर पारदर्शी पन्नी में लपेटा हुआ मिठाई का एक छोटा सा टुकड़ा था। उस मिठाई के टुकड़े को देख कर मैंने एक बार उस रहस्यमयी आदमी की तरफ देखा और फिर उसकी हथेली से मिठाई का वो टुकड़ा उठा कर अपने मुँह में डाल लिया। मिठाई के उस टुकड़े को मैंने खा कर निगला तो कुछ ही पलों में मुझे मेरा सिर घूमता हुआ सा प्रतीत हुआ और फिर अगले कुछ ही पलों में मुझे चक्कर से आने लगे। मैं बेहोश होने वाला था जिसकी वजह से मेरा शरीर ढीला पड़ गया था और मैं लहरा कर गिरने ही वाला था कि मुझे ऐसा लगा जैसे किसी मजबूत बाहों ने मुझे सम्हाल लिया हो। उसके बाद मुझे किसी भी चीज़ का होश नहीं रह गया था।

☆☆☆


[शब्द संख्या:- 5,401 :declare: ]
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
1,621
5,928
143
अध्याय - 04
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अब तक,,,,

रहस्यमयी आदमी की बात सुन कर मैंने अपनी तरफ बढ़े उसके हाथ को देखा। उसके हाथ में काले रंग के दस्ताने थे और उसकी हथेली पर पारदर्शी पन्नी में लपेटा हुआ मिठाई का एक छोटा सा टुकड़ा था। उस मिठाई के टुकड़े को देख कर मैंने एक बार उस रहस्यमयी आदमी की तरफ देखा और फिर उसकी हथेली से मिठाई का वो टुकड़ा उठा कर अपने मुँह में डाल लिया। मिठाई के उस टुकड़े को मैंने खा कर निगला तो कुछ ही पलों में मुझे मेरा सिर घूमता हुआ सा प्रतीत हुआ और फिर अगले कुछ ही पलों में मुझे चक्कर से आने लगे। मैं बेहोश होने वाला था जिसकी वजह से मेरा शरीर ढीला पड़ गया था और मैं लहरा कर गिरने ही वाला था कि मुझे ऐसा लगा जैसे किसी मजबूत बाहों ने मुझे सम्हाल लिया हो। उसके बाद मुझे किसी भी चीज़ का होश नहीं रह गया था।

अब आगे,,,,



मैं नहीं जानता था कि मैं कब तक बेहोश रहा था किन्तु जब मुझे होश आया तो मैंने ख़ुद को एक बार फिर से उसी जगह पर पाया जहां इसके पहले भी मैंने किसी अजनबी जगह के किसी आलीशान कमरे में ख़ुद को पाया था। मैंने नज़र घुमा कर चारो तरफ देखा तो पता चला कि ये वही कमरा था और मैं उसी बेड पर पड़ा हुआ था किन्तु इस बार मेरे कपड़े बदले हुए नहीं थे, बल्कि मैं उन्हीं कपड़ों में था जो मैं अपने घर से पहन कर आया था।

मुझे होश आए अभी दो मिनट ही गुज़रे रहे होंगे कि तभी कमरे का दरवाज़ा खुला और एक बार फिर से वही सफ़ेदपोश कमरे में दाखिल होता नज़र आया। इस बार मैं उसे देख कर चौंका नहीं था और ना ही इस जगह पर ख़ुद को पा कर हैरान हुआ था, क्योंकि अब मैं समझ चुका था कि ये सब उसी रहस्यमयी आदमी का किया धरा है और शायद यहाँ का ये नियम है कि जब भी किसी बाहर वाले को लाया जाता है तो उसे बेहोश कर दिया जाता है ताकि बाहर वाला आदमी इस जगह के बारे में जान न सके।

"मेरे पीछे आओ।" उस सफेदपोश ने मेरी तरफ देखते हुए हुकुम सा दिया तो मैं बिना कुछ बोले बेड से नीचे उतरा और उसकी तरफ बढ़ चला।

उस सफेदपोश के साथ चलते हुए मैं कुछ ही देर में उसी जगह पर पहुंचा जहां पर मैं पहले भी ले जाया गया था। एक लम्बा चौड़ा हाल और उस हाल के दूसरे छोर पर एक बड़ी सी सिंघासन नुमा कुर्सी, जिस पर वो रहस्यमयी आदमी बैठा हुआ था। हाल में आज भी नीम अँधेरा था जिससे हाल के अंदर कुछ भी ठीक से दिख नहीं रहा था।

"तुम यकीनन सोच रहे होंगे कि तुम्हें इस तरह दो दो बार बेहोश कर के यहाँ क्यों लाया गया है?" हाल में उस रहस्यमयी आदमी की आवाज़ गूंजी_____"इसका जवाब यही है कि हम नहीं चाहते कि इस जगह के बारे में किसी भी बाहरी आदमी को पता चले। ख़ैर, अब जबकि तुम पूरी तरह से इस संस्था से जुड़ने के लिए तैयार हो तो हम तुम्हें बता दें कि अब से तुम पर भी संस्था के सारे नियम कानून लागू होंगे। सबसे पहला कानून तो यही है कि तुम इस संस्था के प्रति पूरी तरह से वफादार रहोगे और अगर कभी ऐसा वक़्त आया कि तुम्हारी वजह से इस संस्था का भेद बाहरी दुनिया को पता चलने वाला है तो तुम अपनी जान दे कर भी इस संस्था के राज़ को राज़ ही बना रहने दोगे। अगर किसी को किसी तरह से तुम्हारे बारे में पता चल जाता है तो तुम उसे उसी वक़्त जान से मार दोगे, ऐसा इस लिए ताकि तुम्हारा राज़ जानने वाला किसी और को तुम्हारे बारे में बता न सके। अगर तुम्हारा राज़ तुम्हारे किसी अपने के सामने खुल जाता है तो तुम उसे भी जान से मारने में रुकोगे नहीं।"

"ये कानून तो बहुत ही शख़्त है।" रहस्यमयी आदमी की बातें सुन कर मैंने हैरानी से कहा था_____"ऐसा भी तो हो सकता है कि अगर कोई हमारा अपना हमारा राज़ जान जाता है तो हम उसे समझा बुझा कर मना लें और उससे ये कह दें कि वो हमारे बारे में किसी को न बताए? राज़ जान जाने की सूरत में किसी अपने को जान से मार देना तो बहुत ही मुश्किल काम है।"

"नियम कानून सबके लिए एक सामान होते हैं।" उस शख़्स ने कहा____"हम उसे भी तो जान से मार देते हैं जो हमारा अपना नहीं होता, जबकि सच तो ये है कि वो भी तो किसी का अपना ही होता है। हम मानते हैं कि किसी अपने को जान से मारना बहुत ही मुश्किल है लेकिन अपने काम के बारे में और संस्था के बारे में राज़ रखने की यही एक शर्त है। इससे बेहतर यही है कि अपना हर काम इतनी सूझ बूझ और होशियारी से करो कि किसी को तुम्हारे और तुम्हारे काम के बारे में भनक भी न लग सके। जब किसी को तुम्हारे बारे में भनक ही नहीं लगेगी तो किसी को जान से मार देने की नौबत ही नहीं आएगी।"

"हां ये भी सही बात है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा तो उस आदमी ने कहा_____"अगर तुम्हें ये सारे नियम कानून मंजूर हैं तो बेशक तुम इस संस्था से जुड़ सकते हो, वरना अभी भी तुम अपनी दुनियां में वापस लौट सकते हो।"

"मुझे सब कुछ मंजूर है।" मैंने झट से कहा_____"अब ये बताइए कि मुझे आगे क्या करना है?"
"इस संस्था का मेंबर बनने के बाद तुम्हें सबसे पहले हर चीज़ की ट्रेनिंग दी जाएगी।" उस रहस्यमयी आदमी ने कहा____"उसके लिए तुम्हें हमारे ट्रेनिंग सेण्टर में ही रहना पड़ेगा।"

"लेकिन मैं अपनी फैमिली से दूर आपके ट्रेनिंग सेण्टर में कैसे रह पाऊंगा?" मैंने सोचने वाले भाव से कहा____"इतना तो मैं भी जानता हूं कि ट्रेनिंग एक दो दिन में तो पूरी नहीं हो जाएगी, यानी उसमें काफी समय भी लग सकता है तो इतने दिनों तक मैं कैसे अपनी फैमिली से दूर रह सकूंगा? मैं अपने माता पिता को क्या बताऊंगा कि मैं इतने समय के लिए कहां जा रहा हूं और ये भी सच ही है कि वो मुझे इतने समय के लिए कहीं जाने भी नहीं देंगे।"

"समस्या वाली बात तो है।" उस शख़्स ने कहा____"लेकिन फ़िक्र मत करो। शुरुआत में जिस चीज़ की ट्रेनिंग तुम्हें दी जाएगी वो मुश्किल से दो चार दिनों की ही होगी। उसके बाद की ट्रेनिंग के लिए कोई न कोई समाधान निकल ही आएगा। अभी तुम वापस अपने घर जाओगे और अपने पैरेंट्स से कहना कि तुम्हें अपने दोस्तों के साथ पिकनिक पर जाना है। पिकनिक का तुम्हारा टूर कम से कम पांच दिन का होना चाहिए। यानी पांच दिन के लिए तुम्हें अपने घर से दूर रहना है। हमारा ख़याल है कि पिकनिक पर भेजने के लिए तुम्हारे पैरेंट्स तुम्हें मना नहीं करेंगे।"

"सही कहा आपने।" मैंने कहा____"लेकिन दोस्तों के साथ पिकनिक पर जाने को कहूंगा तो फिर मेरे दोस्त भी मेरे साथ जाएंगे।"
"तुम अपने उन दोस्तों को मत ले जाना।" रहस्यमयी आदमी ने कहा_____"बल्कि अपने पैरेंट्स से कहना कि तुम्हारे कुछ नए दोस्त बने हैं इस लिए वो नए दोस्त ही तुम्हें पिकनिक पर ले जा रहे हैं।"

"ठीक है। मैं ये कर लूंगा।" मैंने खुश होते हुए कहा____"उसके बाद आगे क्या होगा?"
"हमारा एक आदमी तुम्हें तुम्हारे घर से पिक कर लेगा।" रहस्यमयी आदमी ने कहा____"उसके बाद हमारा वो आदमी तुम्हें यहाँ पहुंचा देगा।"

"ठीक है।" मैंने कहा____"मैं आज ही घर जा कर अपने पैरेंट्स से पिकनिक पर जाने की बात कहूंगा। मुझे यकीन है कि मेरे पैरेंट्स इसके लिए मना नहीं करेंगे।"
"बहुत बढ़िया।" उस शख़्स ने कहा_____"जिस दिन तुम्हें पिकनिक पर जाना हो उस दिन की सुबह तुम नीले रंग की शर्ट पहन कर अपने घर के बाहर कुछ देर तक खड़े रहना। इससे वहीं कहीं मौजूद हमारा आदमी समझ जाएगा और फिर वो तुम्हें लेने के लिए सुबह के क़रीब दस बजे पहुंच जाएगा।"

रहसयमयी आदमी की बात सुन कर मैंने हां में अपना सिर हिला दिया। उसके कुछ ही पलों बाद मेरे पीछे से फिर से वो सफेदपोश आया और मुझे बेहोश कर दिया। बेहोश होने के बाद जब मुझे होश आया तो मैं उसी जगह पर था जहां पर इसके पहले मैं रहस्यमयी आदमी के आने का इंतज़ार कर रहा था। ख़ैर उसके बाद मैं अपनी मोटर साइकिल से घर आ गया।

रात में खाना खाते समय मैंने अपने माता पिता से कल पिकनिक पर जाने की बात कही तो मेरे माता पिता ने पहले तो कई सारे सवाल पूछे। जैसे कि मेरे साथ और कौन कौन जा रहा है और पिकनिक के लिए हम कहां जा रहे हैं और साथ ही पिकनिक से कब वापस आएंगे? सारे सवालों के जवाब मैंने अपने माता पिता को दे दिए और उन्हें बताया कि पिकनिक का टूर पांच दिनों का है और छठे दिन हम वापस आ जाएंगे।

मेरे माता पिता जानते थे कि मैं कैसा लड़का हूं, दूसरी बात उन्होंने खुद ही कहा था कि कुछ समय एन्जॉय करो उसके बाद तो मुझे उनके साथ उनका बिज़नेस ही सम्हालना है। ख़ैर मैंने अपने माता पिता को बताया कि मुझे कल ही दोस्तों के साथ यहाँ से पिकनिक के लिए निकलना है। मेरी इस बात पर मेरे माता पिता बोले ठीक है और अपना ख़याल रखना।

खाने के बाद मैं ख़ुशी ख़ुशी अपने कमरे में चला आया था। असल में अब मुझे इस बात की जल्दी थी कि कितना जल्दी मैं उस संस्था से पूरी तरह जुड़ जाऊं और ट्रेनिंग पूरी होने के बाद मैं उनके हुकुम से वो काम करने जाऊं जो मेरी सबसे बड़ी चाहत का हिस्सा था। यही वजह थी कि घर आते ही मैंने अपने पेरेंट्स से दूसरे दिन ही पिकनिक पर जाने की बात कह कर उनसे इजाज़त ले ली थी। अब तो बस कल सुबह का इंतज़ार था मुझे। अपने कमरे में आ कर मैंने आलमारी खोली और उसमे नीले रंग की शर्ट देखने लगा जो कि किस्मत से मेरे पास थी। नीले रंग की शर्ट को आलमारी से निकाल कर मैंने उसे कमरे की दिवार में लगे हैंगर पर टांगा और फिर बेड पर लेट गया।

बेड पर लेटा मैं ये सोच सोच कर मुस्कुरा रहा था कि बहुत जल्द मेरी लाइफ़ बदलने वाली है और उस बदली हुई लाइफ़ में बहुत जल्द मेरी सबसे बड़ी चाहत पूरी होने वाली है। ये सब सोचते हुए मैं बहुत ही ज़्यादा खुश हो रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे कि मुझे कारून का कोई खज़ाना मिलने वाला था। मैं अपने मन में ही न जाने कैसे कैसे ख़्वाब सजाने लगा कि संस्था का एजेंट बनने के बाद मैं लड़कियों और औरतों की सेक्स नीड को पूरा करने के लिए जाऊंगा और उनके खूबसूरत जिस्मों से जैसे चाहूंगा खेलूंगा। उन औरतों की बड़ी बड़ी चूचियों को अपनी दोनों मुट्ठियों में ले कर ज़ोर ज़ोर से मसलूंगा और फिर चूचियों को अपने मुँह में भर कर ज़ोर ज़ोर से चूसूंगा।

बेड पर लेटे लेटे मैं जाने कैसे कैसे सपने देखने लगा था और फिर जाने कब मेरी आँख लग गई। सुबह उठा तो रात के सारे मंज़र याद आए जिससे मैं जल्दी से उठा और बाथरूम में घुस गया। बाथरूम से नहा धो कर मैंने नीले रंग की शर्ट पहनी और कमरे से बाहर आ गया। बाहर आया तो देखा माँ मेरे कमरे की तरफ ही आ रहीं थी। मुझे देख कर वो रुक गईं और मुस्कुराते हुए बोलीं_____"अरे! बड़ा जल्दी उठ गया तू। चल अच्छा किया और हां मैंने एक बैग में तेरे लिए ज़रूरत का सारा सामान पैक कर दिया है। तू नहा धो कर आ, तब तक मैं तेरे लिए नास्ता बनवा देती हूं।"

मां की बात सुन कर मैंने उन्हें बताया कि मैं नहा चुका हूं और अभी मैं दो मिनट के लिए बाहर खुली हवा लेने जा रहा हूं। मेरी बात सुन कर मां ने मुझे हैरानी से देखा। उनके लिए हैरानी की बात ये थी कि मैं जो हमेशा आठ बजे सो कर उठता था वो आज सुबह सुबह ही उठ गया था और इतना ही नहीं बल्कि नहा धो के फुर्सत भी हो गया था। खैर माँ के जाने के बाद मैं घर से बाहर की तरफ चल पड़ा। अब भला माँ को कैसे पता हो सकता था कि उनके शर्मीले बेटे ने आज इतनी जल्दी में अपने सारे काम क्यों कर लिए थे?

घर से बाहर आ कर मैं लम्बे चौड़े लान में दाहिनी तरफ आ कर खड़ा हो गया। मैं दूर सड़क पर इधर उधर देख रहा था। रहस्यमयी आदमी ने कहा था कि मैं जब अपने घर के बाहर नीले रंग की शर्ट पहन कर खड़ा हो जाऊंगा तो उसका कोई आदमी मुझे देख लेगा और फिर समझ भी जाएगा कि मुझे आज ही पिकनिक पर निकलना है। ख़ैर मैं क़रीब दस मिनट तक लान में खड़ा रहा उसके बाद वापस घर के अंदर आ गया।

नास्ते के समय डायनिंग टेबल पर पिता जी भी बैठे थे। उन्होंने मुझसे पूछा कि मेरे दोस्त मुझे लेने यहीं आएंगे या मुझे उनके पास जाना होगा? पापा के पूछने पर मैंने उन्हें बताया कि दस बजे मेरा एक दोस्त मुझे यहाँ लेने आएगा। ख़ैर नास्ते के बाद पापा ने अपना एक ब्रीफ़केस लिया और कार की चाभी ले कर अपने ऑफिस के लिए चले गए। पापा रोज़ाना ही सुबह नौ बजे ऑफिस चले थे जबकि माँ सुबह ग्यारह बजे घर से ऑफिस के लिए निकलतीं थी।

अपने कमरे में मैं एकदम से तैयार बैठा था और दस बजने का इंतज़ार कर रहा था। मेरे पास वो बैग भी था जिसे माँ ने मेरे लिए पैक किया था। एक एक पल मेरे लिए जैसे सदियों का लग रहा था। आख़िर किसी तरह दस बजे तो मैं बैग ले कर कमरे से बाहर निकल आया। अभी ड्राइंग रूम में ही आया था कि डोर बेल बजी। मैं समझ गया कि रहस्यमयी आदमी का कोई आदमी मुझे लेने के लिए आ गया है। मैंने तेज़ी से बढ़ कर बाहर वाले दरवाज़े को खोला तो देखा बाहर एक आदमी खड़ा था। वो आदमी मेरे लिए बिलकुल ही अजनबी था। मैंने आज से पहले उसे कभी नहीं देखा था।

"तैयार हो न?" मेरे कुछ बोलने से पहले ही उसने मुझे देखते हुए मुझसे धीमें स्वर में पूछा तो मैं समझ गया कि ये वही आदमी है इस लिए मैंने फ़ौरन ही हां में सिर हिला दिया। तभी मेरे पीछे से माँ की आवाज़ आई तो मैं एकदम से चौंक गया और ये सोच कर थोड़ा घबरा भी गया कि अगर माँ ने इस आदमी को देख कर मुझसे पूछ लिया कि ये कौन है तो मैं क्या जवाब दूंगा उन्हें? हालांकि जवाब तो मेरे पास तैयार ही था किन्तु माँ मेरे सभी दोस्तों को जानती थी इस लिए वो न जाने क्या क्या पूछने लगतीं, और मैं यही नहीं चाहता था।

"अरे! बेटा तूने अपने दोस्त को बाहर क्यों खड़ा कर रखा है?" माँ की आवाज़ से मैंने पलट कर उनकी तरफ देखा, जबकि उन्होंने आगे कहा_____"उसे अंदर ले आ और उससे पूछ ले कि अगर उसने नास्ता न किया हो तो अंदर आ कर पहले नास्ता करे उसके बाद ही यहाँ से तुझे ले कर जाए।"

"आंटी हम अभी लेट हो रहे हैं।" मेरे कुछ बोलने से पहले ही उस आदमी ने दरवाज़े के बाहर से ही कहा_____"इस लिए नास्ता करने का समय नहीं है। हम बाहर ही कहीं पर कर लेंगे नास्ता।"

उस आदमी की बात सुन कर माँ ने एक दो बार और कहा लेकिन हमें तो रुकना ही नहीं था इस लिए जल्दी ही मैं उस आदमी के साथ बाहर निकल गया। सड़क पर आ कर मैं उसकी कार में बैठा तो उसने कार को तेज़ी से आगे बढ़ा दिया। इस वक़्त मेरे दिल की धड़कनें तेज़ी से चल रहीं थी। मैं सोच रहा था कि ये आदमी मुझे आख़िर किस जगह पर ले कर जाएगा? क्या ये आदमी भी उसी संस्था का कोई सदस्य है?

सारे रास्ते हमारे बीच ख़ामोशी ही रही, ना मैंने उससे कोई सवाल किया और ना ही उसने कुछ कहा। क़रीब बीस मिनट बाद उसने एक ऐसी जगह पर कार को रोका जहां आस पास कोई नहीं था। कार के रुकते ही उसने मुझसे कार से अपना बैग ले कर उतर जाने को कहा तो मैं एकदम से चौंक सा गया। मैंने कार की खिड़की से सिर निकाल कर चारो तरफ देखा। कोई नहीं था आस पास। ऐसी जगह पर मुझे क्यों उतर जाने को बोल रहा था ये आदमी? मुझे उलझन में पड़ा देख उस आदमी ने फिर से मुझे उतर जाने को कहा तो इस बार मैं बिना कुछ बोले कार से उतर गया और अपना बैग भी निकाल लिया। मैंने जैसे ही अपना बैग निकाला वैसे ही उस आदमी ने कार को यू टर्न दिया और किसी तूफ़ान की तरह वापस उसी तरफ लौट गया जिस तरफ से वो मुझे ले कर आया था। उसके जाने के बाद मैं मूर्खों की तरह सड़क के किनारे खड़ा रह गया। मैं समझ नहीं पा रहा था कि वो आदमी मुझे ऐसे सुनसान जगह पर अकेला छोड़ के क्यों चला गया था? अब यहाँ से भला मैं किस तरफ जाऊंगा। सच कहूं तो उस वक़्त मैं अपने आपको दुनियां का सबसे बड़ा बेवकूफ ही समझ बैठा था।

मेरे पास उस जगह पर खड़े रहने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था इस लिए मैं क़रीब आधे घंटे तक खड़ा रहा। आधे घंटे बाद मुझे सड़क पर एक काले रंग की कार आती हुई दिखाई दी। मैं समझ गया कि इस कार में ज़रूर वो रहस्यमयी आदमी होगा। ख़ैर कुछ ही देर में वो कार मेरे पास आ कर रुकी। कार के रुकते ही कार का पिछला दरवाज़ा खुला। अंदर एक सफेदपोश आदमी बैठा नज़र आया मुझे। उसने मुझे अंदर आने का इशारा किया तो मैं अपना बैग ले कर चुप चाप कार के अंदर जा कर बैठ गया। मेरे बैठते ही कार का दरवाज़ा बंद हुआ और कार एक झटके से आगे बढ़ चली। कार में मेरे अलावा वो सफेदपोश और एक ड्राइवर था जिसके जिस्म पर काले कपड़े थे और सिर पर बड़ी सी गोलाकार टोपी जिसका अग्रिम सिरा उसके ललाट पर झुका हुआ था। आँखों में काला चश्मा था और हाथों में दस्ताने। चेहरे पर नक़ाब नहीं था। हालांकि पीछे से मुझे उसका चेहरा दिख भी नहीं रहा था किन्तु कार के अंदर लगे बैक मिरर में उसका अक्श दिख रहा था जिसमें उसकी गोलाकार टोपी और आँखों पर लगा काला चश्मा ही दिख रहा था। अभी मैं उसे देख ही रहा था कि तभी मेरे बगल से बैठे सफ़ेदपोश ने मेरी आँखों पर काली पट्टी बाँध दी जिससे मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया।

☆☆☆

"साहब जी।" विक्रम सिंह की डायरी पढ़ रहे शिवकांत वागले के कानों में अपनी जेल के एक सिपाही की आवाज़ पड़ी तो उसने चौंक कर उसकी तरफ देखा, जबकि सिपाही ने आगे कहा____"कोई आपसे मिलने आया है।"
"क..कौन मिलने आया है हमसे?" वागले ने न समझने वाले भाव से पूछा। इस बीच उसने विक्रम सिंह की डायरी को बंद कर के टेबल में ही एक तरफ रख दिया था।

"कोई शूट बूट पहना हुआ आदमी है साहब जी।" सिपाही ने कहा_____"मुझसे बोला कि जेलर साहब से मिलना है। इस लिए मैं आपके पास ये बताने चला आया।"
"ठीक है भेज दो उन्हें।" कहने के साथ ही वागले ने डायरी को टेबल से उठाया और उसे अपने ब्रीफ़केस में रख दिया।

इधर वागले के कहने पर सिपाही वापस चला गया था। कुछ देर बाद ही एक आदमी केबिन में दाखिल हुआ। वागले ने उस आदमी को गौर से देखा। आगंतुक आदमी के जिस्म पर शूटेड बूटेड कपड़े थे। दमकता हुआ चेहरा बता रहा था कि वो कोई मामूली आदमी नहीं था। ख़ैर वागले ने उसे अपने सामने टेबल के उस पार रखी कुर्सी पर बैठने का इशारा किया तो वो मुस्कुरा कर शुक्रिया कहते हुए बैठ गया।

"जी कहिए।" उस आदमी के बैठते ही वागले ने नम्र भाव से कहा____"ऐसी जगह पर आने का कैसे कष्ट किया आपने?"
"सुना है कि पिछले दिन आपकी इस जेल से एक क़ैदी रिहा हो कर गया है।" उस आदमी ने ख़ास भाव से वागले की तरफ देखते हुए कहा_____"मैं उसी क़ैदी के बारे में आपसे जानने आया हूं। उम्मीद है कि आप मुझे उसके बारे में बेहतर जानकारी देंगे।"

"देखिए महाशय।" वागले ने कहा____"यहां से तो कोई न कोई अपनी सज़ा काटने के बाद रिहा हो कर जाता ही रहता है। अब हमें क्या पता कि आप किसके बारे में पूछ रहे हैं? हां अगर आप हमें रिहा हो कर जाने वाले उस क़ैदी का नाम और उसका जुर्म बताएं तो शायद हमें उसके बारे में आपको बताने में आसानी हो।"

"उसका नाम विक्रम सिंह है जेलर साहब।" उस आदमी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा_____"और पिछले दिन ही वो यहां से रिहा हो कर गया है। मैं आपसे ये जानना चाहता हूं कि यहाँ से निकलने के बाद वो कहां गया है?"

"बड़ी हैरत की बात है महाशय।" वागले उस आदमी के मुख से विक्रम सिंह का नाम सुन कर पहले तो मन ही मन चौंका था फिर सामान्य भाव से बोला_____"जिस आदमी की आप बात कर रहे हैं उससे इन बीस सालो में कभी कोई मिलने नहीं आया और ना ही उसके बारे में कोई कुछ पूछने आया। अब जबकि वो यहाँ से रिहा हो कर जा चुका है तो अचानक से उसके जान पहचान वाले कहां से आ गए? वैसे आपकी जानकारी के लिए हम बता दें कि यहाँ से जो भी क़ैदी रिहा हो कर जाता है उसके बारे में हम ये रिकॉर्ड नहीं रखते कि वो यहाँ से कहां जाएगा और किस तरह का काम करेगा?"

"ओह! माफ़ कीजिएगा।" उस आदमी ने अजीब भाव से कहा____"मुझे लगा यहाँ हर उस क़ैदी का एक ऐसा रिकॉर्ड भी रखा जाता होगा जिससे ये पता चल सके कि फला क़ैदी जेल से रिहा हो कर कहां गया है और वर्तमान में किस तरह का काम कर रहा है। असल में बात ये है कि मैं कुछ दिन पहले ही विदेश से भारत आया हूं इस लिए मुझे विक्रम सिंह के बारे में ज़्यादा पता नहीं है। हालांकि एक समय वो मेरा दोस्त हुआ करता था किन्तु फिर हालात ऐसे बदले कि मेरा उससे हर तरह का राब्ता टूट गया। अभी कुछ दिन पहले ही मुझे कहीं से पता चला है कि मेरे दोस्त को उम्र क़ैद की सजा तो हुई थी किन्तु उसके अच्छे बर्ताव की वजह से अदालत ने उसकी बाकी की सज़ा को माफ़ कर के रिहा कर दिया है। ये सब सुन कर मैं सीधा यहीं चला आया।"

"अगर विक्रम सिंह सच में आपका दोस्त है।" वागले ने एक सिगरेट सुलगाने के बाद कहा____"तो आपको ये भी पता होगा कि उसे किस जुर्म में उम्र क़ैद की सज़ा हुई थी?"
"जी बिलकुल पता है जेलर साहब।" उस आदमी ने कहा_____"उसने अपने माता पिता की बेरहमी से हत्या की थी और पुलिस ने उसे घटना स्थल से रंगे हाथों पकड़ा था। मामला अदालत में पहुंचा था और जज साहब ने उसे उम्र क़ैद की सज़ा सुना दी थी।"

"जब आपके दोस्त ने ऐसा संगीन अपराध किया था।" वागले ने सिगरेट के धुएं को हवा में उड़ाते हुए कहा_____"तब उस समय आप कहां थे?"
"मैं उस समय अपने पैरेंट्स के साथ विदेश में था।" उस आदमी ने कहा_____"असल में मेरे पैरेंट्स यहाँ का अपना सब कुछ बेंच कर विदेश में रहने का फ़ैसला कर लिया था और जब विदेश में सारी ब्यवस्था हो गई थी तो हम सब वहीं चले गए थे। जब विक्रम का मामला हुआ था तब मुझे अपने एक दूसरे दोस्त से इस बारे में पता चला था। मैं हैरान था कि विक्रम जैसा लड़का इतना संगीन अपराध कैसे कर सकता है? मैंने अपने पैरेंट्स से कहा था कि मुझे अपने दोस्त से मिलने इंडिया जाना है लेकिन मेरे पैरेंट्स ने मुझे यहाँ आने ही नहीं दिया। उसके बाद वक़्त और हालात ऐसे बने कि इंडिया आने का कभी मौका ही नहीं मिल पाया। इतने सालों बाद मौका मिला तो मैं सिर्फ अपने दोस्त से मिलने के लिए ही इंडिया आया हूं।"

"इसका मतलब।" वागले ने गहरी सांस लेते हुए कहा_____"आपको ये भी पता नहीं होगा कि विक्रम सिंह ने आख़िर किस वजह से अपने ही माता पिता की हत्या की थी?"

"क्या मतलब है आपका?" उस आदमी ने चौंकते हुए कहा_____"क्या आप ये कह रहे हैं कि पुलिस या अदालत को भी नहीं पता कि उसने ऐसा क्यों किया था, लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है?"

"यही सच है महाशय।" वागले ने ऐशट्रे में बची हुई सिगरेट को बुझाते हुए कहा____"पुलिस की थर्ड डिग्री झेलने के बाद भी उस शख़्स ने ये नहीं बताया था कि उसने अपने माता पिता की हत्या क्यों की थी और इतना ही नहीं बल्कि इन बीस सालों में भी उसने कभी किसी से इस बारे में कुछ नहीं बताया। अब तो वो रिहा हो कर यहाँ से जा चुका है इस लिए ज़ाहिर है कि आगे भी कभी किसी को इस बारे में कुछ पता नहीं चलने वाला।"

"हैरत की बात है।" उस आदमी ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"वैसे यहाँ से जाते समय आपने उससे पूछा तो होगा कि यहाँ से जाने के बाद वो अपने बाकी जीवन में क्या करेगा?"

"पूछने का कोई फायदा ही नहीं था।" वागले ने लापरवाही से कहा____"इस लिए हमने पूछा ही नहीं उससे।"
"क्या मतलब??" वो आदमी हल्के से चौंका।
"मतलब ये कि उससे कुछ भी पूछने का कोई फ़ायदा ही नहीं होता।" वागले ने कहा____"पिछले पांच सालों से हम इस जेल के जेलर पद पर कार्यरत हैं और इन पांच सालों में हमने न जाने कितनी ही बार उससे बहुत कुछ पूछने की कोशिश की है लेकिन उसने कभी भी हमारे किसी सवाल का जवाब नहीं दिया। वो अपने होठों को जैसे सुई धागे से सिल लेता था। हमने अपने जीवन में उसके जैसा अजीब इंसान नहीं देखा।"

"चलिए कोई बात नहीं जेलर साहब।" उस आदमी ने गहरी सांस ले कर कहा____"अब मुझे ही अपने दोस्त का पता करना पड़ेगा। ख़ैर बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतना कुछ बताने के लिए। अच्छा अब चलता हूं, नमस्कार।"

कहने के साथ ही वो आदमी कुर्सी से उठ गया तो वागले भी कुर्सी से उठ गया। उस आदमी के जाने के बाद शिवकांत वागले सोचने लगा कि इतने सालों बाद विक्रम सिंह का कोई दोस्त कहां से आ गया? पुलिस के अनुसार उसके सभी दोस्तों से पूछताछ हुई थी किन्तु किसी भी दोस्त को ये नहीं पता था कि विक्रम सिंह ने आख़िर किस वजह से अपने माता-पिता की हत्या की थी? इन बीस सालों में विक्रम सिंह का कोई भी दोस्त उससे मिलने नहीं आया था। इसकी वजह शायद ये हो सकती थी कि उसका कोई भी दोस्त अब उससे कोई वास्ता नहीं रखना चाहता था। ख़ैर कुछ देर इस बारे में सोचने के बाद वागले अपने केबिन से बाहर निकल गया।

शाम तक शिवकांत वागले किसी न किसी काम में व्यस्त ही रहा, उसके बाद वो अपने सरकारी आवास पर चला गया। घर में कुछ देर वो टीवी देखता रहा और फिर रात का भोजन करने के बाद अपने कमरे में चला गया। उसका इरादा था कि रात में वो विक्रम सिंह की डायरी में उसकी आगे की दास्तान पड़ेगा किन्तु सावित्री अभी बर्तन धो रही थी। वो सावित्री के सो जाने के बाद ही आगे की कहानी पढ़ना चाहता था। ख़ैर, उसने सावित्री के सो जाने का इंतज़ार किया। जब सावित्री अपने सारे काम निपटाने के बाद कमरे में आ कर बेड पर सो ग‌ई तो वागले बेड से उतरा और ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाल कर वापस बेड पर आ गया। अपनी पत्नी सावित्री की तरफ एक बार उसने ध्यान से देखा और फिर डायरी खोल कर आगे का किस्सा पढ़ना शुरू कर दिया।

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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अध्याय - 05
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अब तक,,,,,

शाम तक शिवकांत वागले किसी न किसी काम में व्यस्त ही रहा, उसके बाद वो अपने सरकारी आवास पर चला गया। घर में कुछ देर वो टीवी देखता रहा और फिर रात का भोजन करने के बाद अपने कमरे में चला गया। उसका इरादा था कि रात में वो विक्रम सिंह की डायरी में उसकी आगे की दास्तान पड़ेगा किन्तु सावित्री अभी बर्तन धो रही थी। वो सावित्री के सो जाने के बाद ही आगे की कहानी पढ़ना चाहता था। ख़ैर, उसने सावित्री के सो जाने का इंतज़ार किया। जब सावित्री अपने सारे काम निपटाने के बाद कमरे में आ कर बेड पर सो ग‌ई तो वागले बेड से उतरा और ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाल कर वापस बेड पर आ गया। अपनी पत्नी सावित्री की तरफ एक बार उसने ध्यान से देखा और फिर डायरी खोल कर आगे का किस्सा पढ़ना शुरू कर दिया।

अब आगे,,,,,



किसी ने मेरे चेहरे पर पानी का छिड़काव किया तो कुछ ही पलों में मैं होश में आ गया। मेरी आँखें जब अच्छी तरह से देखने लायक हुईं तो मैंने देखा कि ये कोई दूसरी जगह थी। मैं कुर्सी पर बैठा हुआ था और मेरे सामने वही सफेदपोश खड़ा हुआ था जिसने कार में मेरी आँखों पर काले रंग की पट्टी बाँधी थी। बड़े से हाल में मेरे और उसके अलावा तीसरा कोई नहीं था।

"इस जगह पर तुम्हें पांच दिन रहना है।" उस सफेदपोश आदमी ने कहा____"यहां पर तुम्हारी पहली और सबसे ख़ास ट्रेनिंग होगी। मेरा दावा है कि इन पांच दिनों में तुम पूरी तरह से ट्रेंड हो जाओगे।"

"पर यहाँ पर मेरी किस चीज़ की ट्रेनिंग होगी?" मैंने उत्सुकतावश उससे पूछा_____"और कौन ट्रेंड करेगा मुझे?"
"बहुत जल्द पता चल जाएगा।" उस सफेदपोश आदमी ने कहने के साथ ही अपने दोनों हाथों से तीन बार ताली बजाई जिसके परिणामस्वरूप कुछ ही पलों में एक तरफ से तीन ऐसी लड़कियां हाल में आती नज़र आईं जिनका पहनावा देख कर मेरी आँखें फटी की फटी ही रह गईं थी।

वो तीनों लड़कियां आ कर कतार से खड़ी हो ग‌ईं। मेरी नज़र उन तीनों से हट ही नहीं रही थी। तीनों के दूध जैसे गोरे और सफ्फाक़ बदन पर सिर्फ ब्रा और पेंटी ही थी। ब्रा पेंटी भी ऐसी कि जिसमें उनके अंग साफ़ साफ़ नज़र आ रहे थे। ब्रा ऐसी थी कि उसमें से उन तीनों लड़कियों की चूचियों का सिर्फ निप्पल वाला भाग ही छुपा हुआ था। यही हाल उनकी पेंटी का भी था। एक पतली सी डोरी जो उनकी कमर पर दिख रही थी और चूत के ऊपर सिर्फ चार अंगुल की चौड़ी पट्टी थी। बाकी पूरा जिस्म दूध की तरह गोरा चमक रहा था। तीनों कतार में आ कर ऐसी मुद्रा में खड़ी हो गईं थी जैसे फोटो खिंचवाने का कोई पोज़ दे रही हों। मैं उन तीनों को मंत्र मुग्ध सा देखता ही रहता अगर मेरे कानो में उस सफेदपोश की आवाज़ न पड़ती।

"आज से इस लड़के को ट्रेंड करना शुरू कर दो।" उस सफेदपोश आदमी ने उन तीनों लड़कियों की तरफ देखते हुए कहा_____"लेकिन इस बात का ख़याल रहे कि इसकी ट्रेनिंग पांच दिन के अंदर पूरी हो जाए।"

"फ़िक्र मत कीजिए सर।" तीन लड़कियों में से बीच वाली लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा____"पांच दिनों में हम इसे ऐसा ट्रेंड करेंगे कि इसके अंदर किसी भी तरह की कमी या कमज़ोरी नहीं रह जाएगी।"

"बहुत बढ़िया।" सफेदपोश ने कहा_____"मुझे पता है कि तुम तीनों अपना काम बेहतर तरीके से करोगी। ख़ैर अब मैं एक जनवरी को ही आऊंगा। बेस्ट ऑफ़ लक।"

उस सफेदपोश की बात पर तीनों लड़कियों ने मुस्कुराते हुए अपना अपना सिर हिलाया जबकि वो सफेदपोश आदमी हाल के एक तरफ बढ़ता चला गया। उस शख़्स के जाने के बाद उन तीनों लड़कियों ने मेरी तरफ गौर से देखा। इधर अब तक तो मेरी हालत ही ख़राब हो गई थी। पहली बार मैं एक नहीं दो नहीं बल्कि एक साथ तीन तीन लड़कियों को उस हालत में देख रहा था। मेरी धड़कनें ट्रेन की स्पीड से चल रहीं थी और जब उन तीनों ने एक साथ मेरी तरफ देखा तो मुझे ऐसा लगा जैसे ट्रेन की स्पीड से भागती हुई मेरी धड़कनों को एकदम से ब्रेक लग गया हो। दोनों कानों में जैसे कोई भारी हथौड़ा सा बजता सुनाई देने लगा था।

"लगता है तुमने कभी लड़कियों को ऐसी हालत में नहीं देखा।" उन में से एक ने बड़ी अदा से कहा_____"वरना तुम्हारे चेहरे का रंग इस तरह उड़ा हुआ नज़र न आता। ख़ैर फ़िक्र मत करो। हम तीनों सब ठीक कर देंगी।"

उस लड़की ने जब ऐसा कहा तो मैं उन तीनों से नज़र चुराने लगा। असल में अब मुझे बेहद शर्म आने लगी थी जिससे मैं उनसे नज़रें नहीं मिला पा रहा था। इसके पहले जाने कैसे मेरी नज़रें उन तीनों के बेपर्दा जिस्म पर गड़ सी गईं थी।

मुझे नज़रें चुराते देख वो तीनों मेरी तरफ बढ़ीं तो मेरी धड़कनें फिर से तेज़ हो गईं। उधर वो तीनों मेरे क़रीब आईं और एक ने मेरी कलाई पकड़ कर मुझे कुर्सी से उठाया तो मैं अनायास ही उनके थोड़ा सा ज़ोर देने पर कुर्सी से उठ गया। वो तीनों मेरे बेहद क़रीब थीं इस लिए उन तीनों के बदन की खुशबू मेरी नाक में समाने लगी थी। यकीनन कोई बढ़िया वाला इत्र लगा रखा था उन तीनों ने। ख़ैर मैं उठा तो तीनों ने मुझे अलग अलग जगह से पकड़ा और एक तरफ को खींचती धकेलती ले जाने लगीं। मैं बहुत कोशिश कर रहा था कि मैं सामान्य हो जाऊं लेकिन मैं नाकाम ही हो रहा था।

कुछ ही देर में वो तीनों मुझे एक ऐसे कमरे में ले आईं जो बहुत ही सुन्दर था। कमरे के एक तरफ बड़ा सा बेड था और एक तरफ दो सोफे रखे हुए थे। कमरे के एक तरफ एक छोटा सा दरवाज़ा भी था जो कि शायद बाथरूम था। ख़ैर उन तीनों ने मुझे बेड पर बैठा दिया। मैं अंदर से बुरी तरह घबराया हुआ था जिसकी वजह से मेरे चेहरे पर पसीना उभर आया था। मैं उन तीनों के सामने बहुत ही ज़्यादा असहज महसूस कर रहा था।

"माया, इसे ट्रेंड करना इतना आसान नहीं होगा।" एक लड़की की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मैंने चेहरा उठा कर उसकी तरफ देखा जबकि उसने माया नाम की लड़की को देखते हुए कहा_____"क्योंकि ये तो बेहद शर्मीला है। देखो तो ये हम तीनों की तरफ देखने से कैसे डर रहा है।"

"सही कहा तबस्सुम ने।" माया ने कहा____"ये हम तीनों के साथ बेहतर महसूस नहीं कर रहा है। ख़ैर कोई बात नहीं, हमारा तो काम ही है लड़कों को इस तरह ट्रेंड करना जिससे कि वो एक भरपूर मर्द बन जाएं और किसी भी लड़की या औरत को पूरी तरह संतुष्ट कर सकें।"

मैं उन तीनों की बातें सुन रहा था और अंदर ही अंदर ये सोच कर घबरा भी रहा था कि जाने ये तीनों मेरे साथ क्या करने वाली हैं? तभी मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि मैं इतना घबरा क्यों रहा हूं? अगर मैं इसी तरह घबराऊंगा तो इनके अनुसार भरपूर मर्द कैसे बन पाऊंगा और जब भरपूर मर्द ही नहीं बन पाऊंगा तो कैसे मैं किसी लड़की या औरत के साथ सेक्स कर सकूंगा जो कि मेरी सबसे बड़ी चाहत है? इस ख़याल के साथ ही मैंने अपने अंदर के तूफ़ान को काबू करने के लिए अपनी आँखें बंद की और गहरी गहरी साँसें लेने लगा।

अभी मैं अपनी आँखें बंद किए गहरी गहरी साँसें ही ले रहा था कि तभी मैं चौंका और झट से आँखें खोल कर देखा। उन में से एक मेरी कोट और स्वेटर उतारने लगी थी और एक दूसरी मेरा पैंट उतारने लगी थी। ये देख कर मैं फिर से घबरा उठा और अपने आपको उनसे छुड़ाने की कोशिश की लेकिन वो न मानी। यहाँ तक कि कुछ ही देर में उन तीनों ने मेरे सारे कपड़े निकाल दिए। अब मैं उन तीनों के सामने बेड पर मादरजात नंगा बैठा हुआ था।

"वैसे मुझे समझ नहीं आ रहा कि तुम जैसे शर्मीले लड़के को यहाँ ले कर क्यों आए हैं सर?" उनमें से उस लड़की ने कहा जिसका नाम तबस्सुम था_____"हालाँकि समझ में तो मुझे ये भी नहीं आ रहा कि ख़ुदा ने तुम्हें लड़का कैसे बना दिया है? तुम्हें तो लड़की बना कर इस दुनियां में भेजना था।"

"य..ये क..क्या कह रही हो तुम?" मैंने हकलाते हुए कहा तो उसने मुस्कुराते हुए कहा____"सच ही तो कह रही हूं मैं। तुम तो इतना ज़्यादा शर्मा रहे हो कि शर्मो हया के मामले में लड़कियां भी तुमसे पीछे हो जाएं। इसी लिए कह रही हूं कि ख़ुदा को तुम्हें लड़की बना कर इस दुनियां में भेजना था।"

"माना कि ये बेहद शर्मीला है तबस्सुम।" तीसरी वाली लड़की ने कहा_____"लेकिन इसका हथियार देख कर तो यही लगता है कि ये एक भरपूर मर्द है।"

उस लड़की ने कहने के साथ ही मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया जिससे मेरे मुख से सिसकी निकल गई। पहली बार किसी लड़की के कोमल हाथ मेरे लंड पर पड़े थे। मेरा पूरा बदन झनझना गया था और मेरे जिस्म में कम्पन होने लगा था। उधर उस लड़की की बात सुन कर बाकी दोनों ने भी मेरे लंड की तरफ देखा।

"अरे! वाह।" माया ने कहा_____"तूने सच कहा कोमल। इसका हथियार तो सच में काफी तगड़ा लगता है। जब हल्के नींद में होने पर इसका ये साइज़ है तो जब ये पूरी तरह जाग जाएगा तो कितना बड़ा हो जाएगा। बड़ी हैरत की बात है कि इतना बड़ा हथियार लिए ये लड़का अब तक किसी लड़की के संपर्क में कैसे नहीं पहुंचा?"

"ज़ाहिर है अपने शर्मीले स्वभाव की वजह से।" कोमल ने हंसते हुए कहा_____"ख़ैर अब हमें सबसे पहले इसकी शर्म को ही दूर करना पड़ेगा।"
"सही कहा तुमने।" तबस्सुम ने कहा____"चलो ले चलो इसे बाथरूम में।"

वो तीनों हंसी मज़ाक कर रहीं थी और मैं उन तीनों के बीच सहमा सा बैठा हुआ था। हालांकि मैं बहुत कोशिश कर रहा था कि मैं एकदम से सामान्य ही रहूं लेकिन मैं सामान्य नहीं हो पा रहा था। ख़ैर तीनों मुझे ले कर उसी कमरे में बने बाथरूम में गईं जहां पर बड़ा सा एक बाथटब था। मैंने देखा बाथटब में पहले से ही पानी भरा हुआ था जिसके ऊपर ढेर सारा झाग था। माया ने मुझे पकड़ रखा था और मैं अपने लंड को दोनों हाथों से छुपाए चुपचाप खड़ा था।

माया के अलावा बाकी दोनों लड़कियों ने अपने अपने जिस्म से बचे हुए वस्त्र भी निकाल दिए। मैं हैरान था कि मेरे सामने उन्हें लेश मात्र भी शर्म नहीं आ रही थी। ब्रा पैंटी के हटते ही उन दोनों की बड़ी बड़ी दुधिया छातियां उजागर हो ग‌ईं थी। पिंक कलर के निप्पल और निप्पल के चारो तरफ सुर्ख रंग का घेरा जो हल्का डार्क था। मेरी नज़र उन दोनों की चूचियों पर मानो जम सी गई। तभी दोनों ने मेरी तरफ मुस्कुरा कर देखा तो मैं एकदम से झेंप गया और अपनी नज़रें चुराने लगा। उधर इन दोनों को इस तरह नंगा देख मेरा लंड तेज़ी से सिर उठाते हुए खड़ा हो गया था, जो कि अब मेरे छुपाने से भी छुप नहीं रहा था। तीनों ने मेरे लंड की तरफ देखा तो उनके चेहरे पर हैरानी के भाव उभर आए।

मेरी हालत तो बहुत ज़्यादा ख़राब हो चली थी। उन तीनों हसीनाओं के सामने मैं इस हालत में अपने आपको बहुत ही लाचार सा महसूस कर रहा था। ख़ैर तीनों ने मुझे बाथटब के पानी में लगभग लिटा सा दिया। उधर तबस्सुम और कोमल भी बाथटब में मेरे दोनों तरफ से आ ग‌ईं। मैं अजीब सी कस्मकस में था किन्तु जो हो रहा था उसे रोक नहीं रहा था। मैं भले ही इस वक़्त बहुत ही ज़्यादा घबराया हुआ और दुविधा जैसी हालत में था लेकिन मैं इतना तो समझ ही रहा था कि जो कुछ भी ये लोग कर रही हैं वो मेरे भले के लिए ही है। इस लिए मैं उन्हें किसी बात के लिए रोक नहीं रहा था।

बाथटब में आने के बाद कोमल और तबस्सुम ने मुझे नहलाना शुरू कर दिया। वो बहुत ही आहिस्ता से और मादक अंदाज़ में मेरे बदन पर अपने हाथ फेरती जा रहीं थी। उनके हाथों के स्पर्श से मुझे बेहद मज़ा आने लगा था जिससे मेरी आँखें बंद हो गईं थी। मेरे दिल की धड़कनें बड़ी तेज़ी से चल रहीं थी जिन्हें मैं काबू में करने का प्रयास कर रहा था। काफी देर तक उन दोनों ने मेरे पूरे बदन पर उस झाग मिश्रित पानी को डाल डाल कर अपने हाथों को फेरा उसके बाद सहसा उनके हाथ मेरे बदन के निचले हिस्से की तरफ बढ़ने लगे। मेरे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ रही थी और जैसे जैसे उनके हाथ मेरे बदन के निचले हिस्से की तरफ बढ़ रहे थे वैसे वैसे मेरी धड़कनें भी बढ़ती जा रहीं थी। कुछ ही पलों में मुझे उस वक़्त झटका लगा जब उनका एक हाथ एकदम से मेरे लंड पर पहुंच गया। मेरे लंड के चारो तरफ घने बाल थे जिन पर वो अपने हाथ की उंगलियां भी फेरने लगीं थी। मैं साँसें रोके और आँखें बंद किए इस सनसनीखेज़ मज़े में डूबा जा रहा था।

मेरी आँखें बंद थी इस लिए मुझे ये नहीं दिख रहा था कि वो ये सब करते हुए मेरी तरफ देख रहीं थी कि नहीं। मैं तो बस अपने बदन पर हो रही सुखद तरंगों के एहसास में ही डूबा हुआ था। तभी मैं चौंका जब कोई कोमल सी चीज़ मेरे होठों पर हल्के से छू गई। मैंने झट से आँखें खोली तो देखा एक चेहरा मेरे चेहरे पर झुका हुआ था। पहले तो मैं अंदर ही अंदर बुरी तरह घबरा गया किन्तु फिर एकदम से शांत पड़ गया। उन में से कोई मेरे होठों को चूमने लगी थी। उसकी गर्म गर्म साँसें मेरे चेहरे पर ऐसा ताप छोड़ रहीं थी कि मुझे लगा मेरा चेहरा उस ताप से झुलस ही जाएगा। ये सब मेरे लिए पहली बार ही था और ऐसे मज़े का अनुभव भी पहली बार ही मैं कर रहा था। उधर कुछ पलों तक मेरे होठों को चूमने के बाद उस लड़की ने सहसा मेरे होठों को अपने मुँह में भर लिया और मेरे निचले होठ को ऐसे चूसने लगी जैसे कोई छोटा सा बच्चा अपनी माँ के स्तनों को चूसने लगता है। जल्दी ही मेरी ऐसी हालत हो गई कि मुझे सांस लेना भी मुश्किल पड़ने लगा।

अभी मैं इसी में फंसा हुआ था कि तभी नीचे तरफ किसी ने मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया। मेरा लंड अब तक पूरी तरह अपनी औकात पर आ चुका था। मेरे जिस्म को अब झटके से लगने लगे थे। मेरे जिस्म में दौड़ता हुआ लहू बड़ी तेज़ी से मेरे जिस्म के उस हिस्से की तरफ भागता जा रहा था जिसे उनमे से किसी ने अपनी मुट्ठी में जकड़ लिया था। मेरे मुख से सिसकियां निकली थी जो कि उस लड़की के मुँह में ही दफ़न हो गईं जिसने मेरे होठों को अपने मुँह में भर रखा था। जब मुझे सांस लेना मुश्किल होने लगा तो मैंने झटके से अपने सिर को पीछे कर लिया। सिर पीछे होते ही मैं ऐसे हांफने लगा था जैसे मीलों दौड़ कर आया था। आँखें खुली तो सामने माया के चेहरे पर मेरी नज़र पड़ी। उसकी आँखों में लाल डोरे तैरते दिखे मुझे और साथ ही उसका चेहरा सुर्ख पड़ा हुआ नज़र आया।

उधर नीचे तरफ मेरे लंड को मुट्ठी में जकड़े उन दोनों में से कोई ऊपर नीचे करने लगी थी। उन दोनों के हाथ नहीं दिख रहे थे इस लिए मैं ये नहीं जान पाया कि उनमें से मेरे लंड को किसने अपनी मुट्ठी में जकड़ रखा है?

"दम तो है लड़के में।" कोमल ने मुस्कुराते हुए माया की तरफ देखा____"वरना इतने में ही ये झड़ गया होता।"
"सही कहा।" माया ने कहा____"मैं भी यही परख रही थी कि ये अपने जज़्बातों को कितनी देर तक काबू किए रहता है। माना कि ये स्वभाव से शर्मीला है लेकिन इसके निचले हिस्से पर ख़ास बात है। ख़ैर इसे नहला कर जल्दी से बाहर ले आओ।"

माया के कहने पर उन दोनों ने मुझे नहलाना शुरू कर दिया। कुछ देर में दोनों ने मुझे बाथटब से बाहर निकाला और फिर शावर चला कर मेरे पूरे बदन को पानी से अच्छे से धोया। वो दोनों तो अपने काम में लगी हुईं थी लेकिन मैं उन दोनों की हिलती उछलती चूचियों को अपलक देख रहा था जिससे मेरा लंड शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था। मेरा मन कर रहा था कि मैं उन दोनों की बड़ी बड़ी और सुन्दर सी चूचियों को दोनों हाथों से पकड़ लूं और फिर ज़ोर ज़ोर से उन्हें मसलना शुरू कर दूं किन्तु ऐसा करने की मुझमें हिम्मत नहीं हो रही थी। ख़ैर कुछ ही देर में शावर बंद हुआ और फिर वो दोनों मेरे बदन को टॉवल से पोंछने लगीं। वो दोनों भी मेरे साथ साथ ही भींग गईं थी।

कोमल और तबस्सुम के साथ जब मैं वापस कमरे में आया तो देखा कमरे के नीचे बीचो बीच क़रीब ढाई या तीन फुट ऊँची और क़रीब छः फुट लम्बी एक टेबल रखी हुई थी जिसमें मोटे लेदर का एक कपड़ा बिछा हुआ था। उसी टेबल के उस पार माया खड़ी थी। उसके जिस्म पर अभी भी सिर्फ ब्रा और पेंटी थी। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि इस संस्था वाले इतनी सुन्दर लड़कियां कहां से ले कर आए होंगे? हालांकि वो तीनों अपने ही देश की लगती थीं लेकिन मैंने अब तक जितनी भी लड़कियों को देखा था वो तीनों उन सबसे कहीं ज़्यादा खूबसूरत थीं और उनका बदन तो ऐसे था जैसे किसी मूर्तिकार ने बड़ी ही फुर्सत और लगन से उन तीन खूबसूरत मूर्तियों को रचा हो।

"इस टेबल पर पेट के बल लेट जाओ डियर।" माया ने बड़े ही प्रेम और अदा से कहा____"हम तीनों तुम्हारा मसाज करेंगी और वो भी ऐसा मसाज जिसकी तुमने कभी कल्पना भी न की होगी।"

माया की इस बात को सुन कर मैं कुछ न बोला, बल्कि जब कोमल और तबस्सुम ने मुझे टेबल की तरफ हल्के से धकेला तो मैं आगे बढ़ चला। कुछ ही पलों में मैं उस टेबल पर पेट के बल लेटा हुआ था। इस वक़्त मुझे बहुत ही ज़्यादा शर्म आ रही थी। ये तीनों लड़कियां तो ऐसी थीं जैसे इन्होंने शर्म नाम की चीज़ को किसी बड़े से बाज़ार में बेंच दिया हो।

टेबल पर लेटे हुए मेरी गर्दन बाएं तरफ मुड़ी हुई थी जिससे मेरी नज़र कोमल और तबस्सुम दोनों की ही चिकनी चूत पर जा पड़ी थी। उन दोनों की चूत पर मेरी नज़र जैसे गड़ सी गई थी जिसका असर ये हुआ कि टेबल पर दबा हुआ मेरा लंड जो अब थोड़ा शांत सा होने लगा था वो फिर से अपनी औकात पर आने लगा। तभी वो दोनों मेरी तरफ बढ़ीं जिससे उनकी चूतें भी मेरी आँखों के क़रीब आने लगीं। मेरी धड़कनें ये देख कर और भी तेज़ हो गईं। तभी मेरी पीठ पर कोई तरल सी चीज़ गिरने लगी जिससे मेरा बदन कांप सा गया।

मेरी पीठ पर कोई तरल पदार्थ गिराया गया था और उसके कुछ ही पलों बाद दो कोमल हाथों ने उस तरल पदार्थ को मेरी पीठ पर हल्के हाथों से फेरना शुरू कर दिया। मुझे बेहद मज़ा आने लगा था जिसकी वजह से मेरी आँखें बंद हो गईं और कुछ देर पहले जो चिकनी चूतें मुझे क़रीब से दिख रहीं थी वो गायब हो गईं। अभी मैं मज़े में आँखें बंद किए लेटा ही था कि तभी मेरी टांगों पर भी तरल पदार्थ गिरा और फिर वैसे ही कोमल हाथ मेरी टांगों पर फिसलने लगे।

वैसे तो कमरे में किसी की भी आवाज़ नहीं आ रही थी लेकिन मेरे कानों में हथौड़ा सा बजता प्रतीत हो रहा था। कुछ ही देर में मेरी पीठ और दोनों टाँगें उस तरल पदार्थ से चिपचिपी सी हो गईं, यहाँ तक कि मेरा पिछवाड़ा भी।

"चलो अब सीधा लेट जाओ।" कुछ देर बाद उनमें से किसी ने कहा तो मैं मज़े की दुनियां से बाहर आया। मुझे अपनी हालत का एहसास हुआ तो एक बार फिर से मेरे अंदर शर्म और घबराहट उभरने लगी जिसे मैंने बड़ी मुश्किल से दबाने की कोशिश की और सीधा हो कर लेट गया।

सीधा हो कर जैसे ही मैं लेटा तो मेरी नज़र बारी बारी से उन तीनों पर पड़ी। कोमल और तबस्सुम तो पूरी नंगी ही थीं लेकिन माया के बदन पर अभी भी ब्रा और पेंटी थी। हालांकि मेरी हालत ख़राब होने के लिए यही बहुत था। कोमल और तबस्सुम की बड़ी बड़ी सुडौल चूचियों को देखते ही मेरा लंड झटके खाने लगा था और जैसे ही मेरी नज़र उन दोनों की चूचियों से फिसल कर दोनों की टांगों के बीच नज़र आ रही चिकनी चूत पर पड़ी तो मुझे ऐसा लगा जैसे कि मेरे लंड से मेरा पानी पूरी स्पीड से निकल जाएगा। उन तीनों की नज़रें मेरे लंड पर ही टिकी हुईं थी जिससे मुझे शर्म भी आने लगी थी लेकिन मैंने इस बार अपने लंड को हाथों से छुपाने की कोई कोशिश नहीं की।

"इसका लंड तो सच में काफी तगड़ा है कोमल।" तबस्सुम ने मुस्कुराते हुए कहा_____"इसे देख कर लगता है कि अभी इसे अपनी चूत में भर लूं।"
"इतनी बेसब्र क्यों हो रही हो तुम?" माया ने सपाट लहजे में कहा_____"ये मत भूलो कि इसे हमारे पास ट्रेंड करने के लिए लाया गया है। अगर तुम ख़ुद ही अपना संयम खोने लगोगी तो इसे संयम करना कैसे सिखाओगी?"

"तू तो ऐसे कह रही है जैसे इसका लंड देख कर तेरी अपनी चूत में कोई खुजली ही न हो रही हो।" तबस्सुम ने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा_____"शायद इसी लिए अब तक तूने अपनी ब्रा पेंटी को अपने बदन से अलग नहीं किया है।"

"हमसे ज़्यादा सेक्स की गर्मी तो इसी के अंदर है तबस्सुम।" कोमल ने हंसते हुए कहा_____"सच को छुपाने के लिए हम पर अपना रौब झाड़ती रहती है।"
"मैंने कब रौब झाड़ा तुम पर?" माया ने आँखें दिखाते हुए कहा____"अब बातों में समय न गंवाओ और आगे का काम शुरू करो।"

माया की बात सुन कर दोनों ने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और फिर कोमल ने अपने हाथ में ली हुई एक बड़ी सी कटोरी को तबस्सुम की तरफ बढ़ाया तो तबस्सुम ने उस कटोरी में अपने दोनों हाथ डाले और ढेर सारा तरल पदार्थ कटोरी से लेकर मेरे पेट से ले कर सीने तक गिरा दिया। उसके बाद उसने फिर से कटोरी से तरल पदार्थ लिया और इस बार उसे मेरे पेट के नीचे नाभि से होते हुए लंड पर और फिर जाँघों पर गिराया।

कटोरी रखने के बाद तबस्सुम के साथ कोमल भी आगे बढ़ कर मेरे बदन पर उस तरल पदार्थ को अपने कोमल कोमल हाथों से मलने लगी। कोमल मेरे सीने पर और तबस्सुम मेरी जाँघों से ले कर मेरे पेट तक मलने लगी थी। दोनों मेरे अगल बगल से खड़ी हो कर ये सब कर रहीं थी। मेरी नज़रें उनकी हिल रही चूचियों पर टिकी हुईं थी और मेरा लंड बैठने का नाम नहीं ले रहा था। मेरा बहुत मन कर रहा था कि मैं अपना एक हाथ बढ़ा कर कोमल की बड़ी बड़ी चूचियों को पकड़ लूं लेकिन मुझमें ऐसा करने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

अभी मैं कोमल की चूची को पकड़ने का सोच ही रहा था कि तभी मुझे झटका लगा। तबस्सुम ने मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में ले लिया था। उसकी मुट्ठी में जैसे ही मेरा लंड आया तो मेरे मुँह से सिसकी निकल गई। मेरे दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं। उधर तबस्सुम मेरे लंड को उस तरल पदार्थ से भिगो रही थी और साथ ही मेरे लंड को दोनों हाथों से पकड़ कर कभी ऊपर तो कभी उसकी खाल को नीचे करने लगी। मैं मज़े के सातवें आसमान में पहुंच गया। मेरे पूरे बदन में बड़ी तेज़ी से सुरसुराहट होने लगी थी जो मेरे लंड की ही तरफ तेज़ी से बढ़ती हुई जा रही थी।

मैं आँखें बंद किए ज़ोर ज़ोर से सिसकियां ले रहा था और उधर तबस्सुम मेरे लंड को उस तरल पदार्थ से भिगोते हुए मुट्ठ सी मार रही थी। अभी मैं इस मज़े में ही था कि तभी फिर से मुझे झटका लगा और मैंने फ़ौरन ही अपनी आँखें खोल दी। मैंने देखा कि कोमल जो इसके पहले नीचे खड़े हो कर मेरे सीने और पेट पर मसाज कर रही थी वो अब टेबल पर चढ़ कर मेरे ऊपर आ गई थी। मैं ये देख कर बुरी तरह हैरान हो गया था। तभी वो मेरे ऊपर लेट गई जिससे उसकी बड़ी बड़ी चूचियां मेरे चिपचिपे सीने में धंस गईं और साथ ही उसका निचला हिस्सा मेरे लंड के ऊपर आ गया जिससे मेरा लंड उसकी चूत के पास दस्तक देने लगा। ये सब देख कर मुझे लगा कि मुझे दिल का दौरा ही पड़ जाएगा। बड़ी मुश्किल से मैंने खुद को सम्हाला।

माया ने तबस्सुम को कोई इशारा किया जिससे तबस्सुम ने उस कटोरी को उठाया और सारा तरल पदार्थ कोमल के ऊपर उड़ेल दिया जिससे वो बड़ी तेज़ी से बहता हुआ मेरे बदन पर भी आ गया। कोमल मेरे ऊपर लेटी हुई थी और मैं साँसें रोके अचरज से उसे देखे जा रहा था। तभी कोमल ने चेहरा घुमा कर मेरी तरफ देखा। उसके खूबसूरत होठों पर बड़ी ही मनमोहक मुस्कान उभर आई। उसने दोनों हाथों से टेबल को पकड़ा और अपने जिस्म को मेरे जिस्म के ऊपर फिसलाने लगी जिससे उसकी बड़ी बड़ी चूचियां मेरे सीने से फिसलती हुई मेरे पेट की तरफ जाने लगीं। कुछ ही पलों में उसकी दोनों चूचियां मेरे पेट और नाभि से होते हुए मेरे झटका खा रहे लंड पर पहुंच ग‌ईं। मेरा लंड उसकी दोनों चूचियों के बीच जैसे फंस सा गया। एक बार फिर से मेरे मुख से मज़े में डूबी सिसकारी निकल गई और साथ ही कराह भी। क्योंकि मेरे लंड की खाल पीछे की तरफ थोड़ा खिंच सी गई थी। उधर कोमल ने मेरी तरफ देखते हुए फिर से ज़ोर लगाया और नीचे से ऊपर आने लगी। उसकी बड़ी बड़ी चूचियां मेरे पेट से होते हुए वापस मेरे सीने पर आ ग‌ईं।

मैं आँखें बंद किए हुए मज़े में डूबा सिसकारियां भर रहा था कि तभी मेरे चेहरे पर कुछ चिपचिपा सा टकराया तो मैंने आँखें खोल कर देखा। कोमल की चूचियां उस तरल पदार्थ में सनी हुई मेरे चेहरे पर छू गईं थी। मैंने नज़र उठा कर कोमल की तरफ देखा तो उसे मुस्कुराते हुए ही पाया।

"ये तो छुपा रुस्तम निकला माया।" उधर तबस्सुम की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी_____"ये तो अभी तक टिका हुआ है। इसकी जगह कोई दूसरा होता तो अब तक दो तीन बार अपना पानी फेंक चुका होता।"
"हां मैं भी यही सोच रही थी।" माया ने सिर हिलाते हुए कहा_____"इसके आव भाव देख कर शुरुआत में यही लगा था कि ये हम तीनों को नंगा देखते ही अपना पानी छोड़ देगा लेकिन नहीं, ये तो इतना कुछ होने के बाद भी टिका हुआ है। इसका मतलब ये हुआ कि ये बहुत ही ख़ास है।"

"इसका मतलब तो ये भी हुआ कि हमें इसके संयम की परीक्षा लेने की अब कोई ज़रूरत नहीं है।" तबस्सुम ने कहा_____"बल्कि इसे अब ये सिखाना है कि किसी औरत को कैसे संतुष्ट किया जाता है?"
"सही कहा तुमने।" माया ने कहा_____"हमें अब यही सिखाना होगा इसे। चलो जाओ इसे फिर से नहला कर लाओ।"

माया के कहते ही कोमल मेरे ऊपर से उतर गई। उसके उतरते ही मुझे बहुत बुरा लगा। कितना मज़ा आ रहा था मुझे जब कोमल की बड़ी बड़ी चूचियां मेरे जिस्म पर फिसल रहीं थी। ख़ैर अब क्या हो सकता था? माया के कहे अनुसार कोमल और तबस्सुम मुझे फिर से बाथरूम ले गईं और अच्छे से नहलाया। उसके बाद मैं उन दोनों के साथ वापस कमरे में आ गया। कमरे में आया तो देखा उस टेबल को हटा दिया गया था जिसके ऊपर लेटा कर मेरा मसाज किया जा रहा था।

कमरे में एक तरफ रखे आलीशान बेड पर माया पहले से ही बैठी हुई थी। उसके जिस्म पर अभी भी ब्रा और पेंटी ही थी। मुझे देखते ही माया बेड से उठी और मेरे पास आई। मेरी धड़कनें ये सोच कर फिर से बढ़ गईं कि अब इसके आगे क्या क्या होने वाला है। हालांकि उनकी बातों से मैं जान तो गया था कि आगे क्या होगा लेकिन वो सब किस तरीके से होगा ये जानने की उत्सुकता प्रबल हो उठी थी मेरे मन में।

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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अध्याय - 06
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अब तक,,,,,

कमरे में एक तरफ रखे आलीशान बेड पर माया पहले से ही बैठी हुई थी। उसके जिस्म पर अभी भी ब्रा और पेंटी ही थी। मुझे देखते ही माया बेड से उठी और मेरे पास आई। मेरी धड़कनें ये सोच कर फिर से बढ़ गईं कि अब इसके आगे क्या क्या होने वाला है। हालांकि उनकी बातों से मैं जान तो गया था कि आगे क्या होगा लेकिन वो सब किस तरीके से होगा ये जानने की उत्सुकता प्रबल हो उठी थी मेरे मन में।

अब आगे,,,,,



शिवकांत वागले डायरी में लिखी विक्रम सिंह की कहानी को पढ़ने में खोया ही हुआ था कि तभी किसी आहट से उसका ध्यान भंग हो गया। उसने चौंक कर इधर उधर देखा। नज़र गहरी नींद में सो रही सावित्री पर पड़ी। सावित्री ने नींद में ही उसकी तरफ को करवट लिया था। शिवकांत को सहसा वक़्त का ख़्याल आया तो उसने हाथ में बंधी घड़ी पर समय देखा। रात के क़रीब सवा दो बज रहे थे। वागले समय देख कर चौंका। उसने एक गहरी सांस ली और डायरी को बंद करके ब्रीफकेस में चुपचाप रख दिया।

डायरी को यथास्थान रखने के बाद वागले बेड पर करवट ले कर लेट गया था। कुछ देर तक वो विक्रम सिंह और उसकी कहानी के बारे में सोचता रहा और फिर गहरी नींद में चला गया। दूसरे दिन वो अपने समय पर ड्यूटी पहुंचा। आज जेल में कुछ अधिकारी आए हुए थे जिसकी वजह से उसे विक्रम सिंह की कहानी पढ़ने का मौका ही नहीं मिला। सारा दिन किसी न किसी काम में व्यस्तता ही रही।

शाम को वो अपनी ड्यूटी से फ़ारिग हो कर घर पहुंचा। रात में डिनर करने के बाद वो सीधा अपने कमरे में आ कर बेड पर लेट गया। जब से उसने विक्रम सिंह की डायरी में उसकी कहानी पढ़ना शुरू किया था तब से ज़्यादातर उसके दिलो-दिमाग़ में विक्रम सिंह का ही ख़्याल चलता रहता था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि विक्रम सिंह अपनी पिछली ज़िन्दगी में इस तरह का इंसान था या उसका इतिहास ऐसा था। बेड पर लेटा वो सोच रहा था कि अगर विक्रम सिंह का शुरूआती जीवन इस तरह से शुरू हुआ था तो फिर बाद में आख़िर ऐसा क्या हुआ था जिसकी वजह से उसने अपने ही माता पिता की बेरहमी से हत्या की होगी?

शिवकांत वागले ने इस बारे में बहुत सोचा लेकिन उसे कुछ समझ में नहीं आया। थक हार कर उसने अपने ज़हन से इस बात को झटक दिया और फिर ये सोचने लगा कि डायरी के अनुसार कैसे विक्रम सिंह अपने शुरूआती दिनों में उन तीन तीन सुन्दर लड़कियों के साथ मसाज करवा रहा था और वो तीनों लड़कियां एकदम नंगी हो कर उसके जिस्म के हर अंग से खेल रहीं थी। उस वक़्त विक्रम सिंह की क्या हालत थी ये उसने विस्तार से अपनी डायरी में लिखा था।

वागले की आँखों के सामने डायरी में लिखा गया उस वक़्त का एक एक मंज़र जैसे उजागर होने लगा था। वागले की आँखें जाने किस शून्य को घूरने लगीं थी। आँखों के सामने उजागर हो रहे उन तीनों लड़कियों के नंगे जिस्मों ने उसके अपने जिस्म में एक हलचल सी मचानी शुरू कर दी थी। वागले को पता ही नहीं चला कि कब उसकी बीवी सावित्री कमरे में आई और कब वो उसके बगल में एक तरफ लेट गई थी।

"कहां खोए हुए हैं आप?" सावित्री ने वागले को कहीं खोए हुए देखा तो उसने फौरी तौर पर पूछा_____"सोना नहीं है क्या आपको?"
"आं हां।" वागले ने चौंक कर उसकी तरफ देखा_____"तुम कब आई?"

"कमाल है।" सावित्री ने थोड़े हैरानी वाले लहजे में कहा____"आपको मेरे आने की भनक भी नहीं लगी, ऐसा कैसे हो सकता है?"
"अरे! वो मैं।" वागले ने बात को सम्हालते हुए कहा_____"एक क़ैदी के बारे में सोच रहा था न तो शायद इसी लिए मुझे तुम्हारे आने का आभास ही नहीं हो पाया।"

"मैंने कितनी बार कहा है आपसे कि क़ैदियों के ख़याल अपने जेल में ही लाया कीजिए।" सावित्री ने बुरा सा मुँह बनाया____"यहां घर में उन अपराधियों के बारे में मत सोचा कीजिए।"

"ग़लती हो गई भाग्यवान।" वागले ने सावित्री की तरफ करवट लेते हुए मुस्कुरा कर कहा____"अब से किसी क़ैदी के बारे में घर पर नहीं सोचूंगा लेकिन घर आने के बाद तुम्हारे बारे में तो सोच सकता हूं न?"

"क्या मतलब?" सावित्री ने अपनी भौंहें सिकोड़ी।
"मतलब ये कि घर में मैं अपनी जाने बहार के बारे में तो सोच ही सकता हूं।" वागले ने मीठे शब्दों में कहा____"वैसे एक बात कहूं??"

"कहिए क्या कहना चाहते हैं?" सावित्री ने वागले की तरफ देखते हुए कहा तो वागले ने मुस्कुराते हुए कहा____"मैं ये कहना चाहता हूं कि तुम पहले से ज़्यादा खूबसूरत लगने लगी हो और मेरा मन करता है कि मैं अपनी इस खूबसूरत पत्नी को जी भर के प्यार करुं।"

"आप फिर से शुरू हो गए?" सावित्री ने आँखें दिखाते हुए कहा_____"आज कल कुछ ज़्यादा ही प्यार करने की बातें करने लगे हैं आप। अरे! कुछ तो बच्चों के बारे में सोचिए।"

"तो तुम्हें क्या लगता है कि मैं बच्चों के बारे में नहीं सोचता?" वागले ने कहा_____"जबकि अपनी समझ में मैं हमारे बच्चों के लिए वो सब कुछ कर रहा हूं जो एक अच्छे पिता को करना चाहिए। भगवान की दया से हमारे दोनों बच्चे भी सकुशल हैं और सही राह पर हैं। अब भला और क्या सोचूं उनके बारे में? सच तो ये है भाग्यवान कि बच्चों के साथ साथ तुम्हारे बारे में भी सोचना मेरा फ़र्ज़ है और मैं अपने फ़र्ज़ को अच्छी तरह से निभाना चाहता हूं।"

"बातें बनाना आपको खूब आता है।" सावित्री कहने के साथ ही दूसरी तरफ को करवट ले कर लेट गई। जबकि वागले कुछ पल उसकी पीठ को घूरता रहा और फिर खिसक कर सावित्री के पास पहुंच गया।

"मैं मानता हूं मेरी जान कि तुम दिन भर के कामों से बुरी तरह थक जाती हो।" वागले ने पीछे से अपनी बीवी सावित्री को अपनी आगोश में भरते हुए कहा_____"लेकिन मेरा यकीन मानो डियर। मैं इस तरह से तुम्हें प्यार करुंगा कि तुम्हारी सारी थकान पलक झपकते ही दूर हो जाएगी।"

"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।" सावित्री ने अपने पेट से वागले के हाथ को हटाते हुए कहा_____"और मुझे परेशान मत कीजिए। चुप चाप सो जाइए।"
"तुम्हारी इन बातों से मुझे अच्छी तरह पता चल गया है सवित्री।" वागले ने कहा_____"कि तुम्हारे दिल में मेरे लिए कोई जज़्बात नहीं है। ठीक है फिर, आज के बाद मैं भी तुमसे इस बारे में कोई बात नहीं करुंगा।"

शिवकांत वागले का दिमाग भन्ना सा गया था। ये सच है कि सावित्री कभी भी अपनी तरफ से पहल नहीं करती थी और अगर वो ख़ुद कभी उसको प्यार करने को कहे तो सावित्री उससे यही सब कह कर उसे मायूस कर देती थी। किन्तु आज की बात अलग थी, आज वागले का सच में बेहद मन कर रहा था कि वो अपनी खूबसूरत बीवी को प्यार करे। उसके अंदर विक्रम सिंह की कहानी ने एक उत्तेजना सी भर दी थी किन्तु सावित्री ने जब इस तरह से बातें सुना कर उसे प्यार करने से इंकार किया तो उसे ज़रा भी अच्छा नहीं लगा था। वो एक झटके से सावित्री से दूर हुआ और बेड से उतर कर कमरे से बाहर निकल गया।

वागले के इस तरह चले जाने से पहले तो सावित्री चुपचाप पड़ी ही रही लेकिन जब उसे आभास हुआ कि वागले कमरे से ही चला गया है तो उसने पलट कर दरवाज़े की तरफ देखा। कमरे में बल्ब का प्रकाश फैला हुआ था और सावित्री को कमरे में वागले नज़र न आया। कुछ देर तक वो खुले हुए दरवाज़े की तरफ देखती रही और फिर वो पहले की ही तरह करवट के बल लेट गई। उसने कमरे से बाहर निकल कर ये देखने की कोई भी कोशिश नहीं की कि वागले कमरे से निकल कर आख़िर गया कहां होगा? शायद उसे ये लगा था कि वागले किचेन में पानी पीने गया होगा।

दिन भर के कामों की वजह से थकी हुई सावित्री कुछ ही देर में गहरी नींद में जा चुकी थी। उधर वागले कमरे से निकल कर सीधा किचन में गया और पानी पीने के बाद ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर बैठ गया। इस वक़्त उसके चेहरे पर बड़े ही शख़्त भाव थे। काफी देर तक वो सोफे में बैठा जाने क्या क्या सोचता रहा और फिर उसी सोफे पर लेट कर सो गया।

रात सोफे पर ही गुज़र गई। सुबह वो जल्दी ही उठ जाता था इस लिए सुबह नित्य कर्मों से फुर्सत हो कर वो नहाया धोया। सावित्री को भी सुबह जल्दी ही उठने की आदत थी। वो वागले से पहले ही उठ जाती थी, इस लिए जब वो सुबह उठी थी तो कमरे में वागले को न पा कर पहले तो वो सोच में पड़ गई थी फिर बाथरूम में घुस गई थी।

सावित्री किचेन में नास्ता बना रही थी जबकि वागले अपनी वर्दी पहन कर और ब्रीफ़केस ले कर बाहर आया। दोनों बच्चे भी उठ चुके थे और नित्य क्रिया से फुर्सत हो कर डाइनिंग टेबल पर नास्ते का इंतज़ार कर रहे थे। शिवकांत वागले ब्रीफ़केस ले कर कमरे से बाहर आया और बिना किसी से कुछ बोले घर से बाहर निकल गया। उसके इस तरह चले जाने से दोनों बच्चे पहले तो हैरान हुए लेकिन फिर ये सोच कर सामान्य हो गए कि शायद उनके पिता को ड्यूटी पर पहुंचना बेहद ज़रूरी रहा होगा, जैसा कि इस पेशे में अक्सर होता ही रहता है। हालांकि बच्चों को पता था कि अगर उनके पिता को जल्दी ही ड्यूटी पर जाना होता था तो वो ब्रेकफास्ट अपने साथ ही ले कर चले जाते थे किन्तु आज ऐसा नहीं हुआ था। वागले की बेटी ने फ़ौरन की किचेन में जा कर सावित्री को बताया कि पापा अपना ब्रीफ़केस ले कर ड्यूटी चले गए हैं। बेटी की ये बात सुन कर सावित्री मन ही मन बुरी तरह चौंकी थी। उसे पहली बार एहसास हुआ कि उसका पति सच में उससे नाराज़ हो गया है। इस एहसास के साथ ही वो थोड़ा चिंतित हो गई थी।

उधर वागले जेल पहुंचा। उसके ज़हन में कई सारी बातें चल रही थी जिनकी वजह से उसके चेहरे पर कई तरह के भावों का आवा गवन चालू था। जेल का चक्कर लगाने के बाद वो अपने केबिन में आया और कुछ ज़रूरी फाइल्स को देखने लगा। क़रीब एक घंटे बाद वो फुर्सत हुआ। इस बीच उसने एक सिपाही के द्वारा एक ढाबे से नास्ता मगवा लिया था। नास्ता करने के बाद उसने ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाली और आगे की कहानी पढ़ने लगा।

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मैं अंदर से घबराया हुआ तो था किन्तु मेरे मन में ये उत्सुकता भी प्रबल हो रही थी कि अब ये तीनों नंगी पुंगी हसीनाएं मेरे साथ क्या क्या करेंगी। माया की बात मुझे अब तक याद थी जब उसने कोमल और तबस्सुम से ये कहा था कि अब मुझे सिर्फ ये सिखाना है कि किसी औरत को संतुस्ट कैसे किया जाता है। मतलब साफ़ था कि अब वो तीनों मुझे सेक्स का ज्ञान कराने वाली थीं। मैं मन ही मन ये सोच कर बेहद खुश भी हो रहा था कि अब ये तीनों मेरे साथ सेक्स करेंगी और मेरी सबसे बड़ी चाहत पूरी होगी। मैं क्योंकि नंगा ही था इस लिए मेरा लंड अपनी पूरी औकात पर खड़ा हो कर कुछ इस तरीके से ठुमकते हुए झटके मार रहा था जैसे वो उन्हें सलामी दे रहा हो।

"हम तीनों ये देख चुकी हैं कि तुम में संयम की कोई कमी नहीं है।" माया ने आगे बढ़ कर मुझसे कहा_____"हालाँकि पहली बार में तुम्हारी जगह कोई भी होता तो वो हम तीनों के द्वारा इतना कुछ करने से पहले ही अपना संयम खो देता। हम तीनों सबसे पहले यही देखना चाहते थे कि तुम में संयम रखने की क्षमता है या नहीं। अगर तुम में संयम की कमी होती तो हम तीनों तुम्हें संयम कैसे रखना होता है ये सिखाते। ख़ैर अब जबकि हमें पता चल चुका है कि तुम्हें कुदरती तौर पर सब कुछ मिला है और संयम की भी कोई कमी नहीं है। अब हम तुम्हें ये सिखाएंगे कि किसी औरत को सेक्स से खुश और संतुस्ट कैसे करना होता है।"

माया की बात सुन कर मैं कुछ न बोला बल्कि रेशमी कपड़े जैसी ब्रा में क़ैद उसकी बड़ी बड़ी चूचियों को देखता रहा। उसे भी पता था कि मैं उसकी चूचियों को ही देख रहा हूं किन्तु उसे इस बात से जैसे कोई ऐतराज़ नहीं था।

"एक बात हमेशा याद रखना।" कुछ पलों की ख़ामोशी के बाद उसने फिर से कहा____"और वो ये कि कभी भी किसी लड़की या औरत के साथ ज़ोर ज़बरदस्ती में सेक्स न करना। क्योंकि ऐसा करना बलात्कार कहलाता है और इससे न तो तुम्हें ख़ुशी मिलेगी और ना ही उस औरत को। किसी के साथ बलात्कार करने से दो पल के लिए भले ही मज़े का एहसास हो लेकिन मज़े के बाद जब वास्तविकता का एहसास होता है तब ये बोध भी होता है कि हमने कितना ग़लत किया है। ख़ैर सेक्स का असली मज़ा दोनों पर्सन की रज़ामंदी से ही मिलता है। ईश्वर ने औरत को इतना सुन्दर इसी लिए बनाया होता है कि मर्द उसे सिर्फ प्यार करे। औरत प्यार में अपना सब कुछ मर्द को सौंप देती है।"

"हालाँकि दुनिया में तरह तरह की मानसिकता वाले लोग भी होते हैं।" कोमल ने कहा____"जिनमें औरतें भी होती हैं। कुछ मर्द और औरतें ऐसी मानसिकता वाली होती हैं जिन्हें अलग अलग तरीके से सेक्स करने में मज़ा आता है। कोई प्यार से सेक्स करता है तो कोई सेक्स करते समय पागलपन की हद को पार कर जाता है। उस पागलपन में लोग सेक्स करते समय एक दूसरे को बुरी तरह से कष्ट पहुंचाते हैं। उन्हें सेक्स में ऐसा ही वहशीपना पसंद होता है।"

"यहां पर तुम्हें दोनों तरह से सेक्स करने के बारे में सीखना ज़रूरी है।" तबस्सुम ने कहा____"क्योंकि आने वाले समय में तुम्हें ऐसे ही काम करने होंगे।"
"वो सब तो ठीक है।" मैंने झिझकते हुए कहा____"लेकिन मेरी सबसे बड़ी समस्या ये है कि मैं बहुत ही ज़्यादा शर्मीले स्वभाव का हूं जिससे मैं किसी औरत ज़ात से खुल कर बात करने की भी हिम्मत नहीं जुटा पाता।"

"शर्म हर इंसान में होती है।" माया ने कहा____"फिर चाहे वो मर्द हो या औरत। ये एक कुदरती गुण होता है जो आगे चल कर वक़्त और हालात के साथ साथ घटता और बढ़ता रहता है। कुछ लोग सिचुएशन के अनुसार जल्दी ही खुद को ढाल लेते हैं और कुछ लोगों को सिचुएशन के अनुसार खुद को ढालने में थोड़ा वक़्त लगता है लेकिन ये सच है कि वो ढल ज़रूर जाता है। तुम भी ढल जाओगे और बहुत जल्दी ढल जाओगे।"

कहने के साथ ही माया मुस्कुराते हुए मेरी तरफ बढ़ी तो मेरी धड़कनें अनायास ही बढ़ चलीं। मैं उसी की तरफ देख रहा था और सोचने लगा था कि अब ये क्या करने वाली है? उधर वो मेरे पास आई और मेरा हाथ पकड़ कर हल्के से खींचते हुए बेड पर ला कर मुझे बैठा दिया।

"सपने तो ज़रूर देखते होंगे न तुम?" माया मेरे क़रीब ही बैठते हुए बोली____"और किसी न किसी के बारे में तरह तरह के ख़याल भी बुनते होगे?"
"मैं कुछ समझा नहीं?" माया की इस बात से मैं चकरा सा गया था।

"बड़ी सीधी सी बात है डियर।" माया ने मुस्कुराते हुए कहा_____"हर कोई सपने देखता है। कभी खुली आँखों से तो कभी बंद आँखों से। हर लड़का एक ऐसी लड़की के बारे में सोच कर तरह तरह के ख़याल बुनता है जो दुनियां में उसे सबसे ज़्यादा खूबसूरत लगती है। तुम भी तो किसी न किसी लड़की के बारे में सोच कर अपने मन में तरह तरह के ख़याल बुनते होगे?"

"ओह! हां ये तो सही कहा आपने।" मैंने हल्के से शर्माते हुए कहा____"पर शायद मैं बाकी लड़कों से ज़्यादा लड़कियों के बारे में तरह तरह के ख़याल बुनता हूं। वो बात ये है कि मैं और तो कुछ करने की हिम्मत जुटा नहीं पाता इस लिए जो मेरे बस में होता है वही करता रहता हूं। यानि दिन रात किसी न किसी लड़की के बारे में सोच कर तरह तरह के ख़याल बुनता रहता हूं। वैसे आपने ये क्यों पूछा मुझसे?"

"अब तक तुमने।" माया ने जैसे मेरे सवाल को नज़रअंदाज़ ही कर दिया, बोली____"जिन जिन लड़कियों के बारे में सोच कर तरह तरह के ख़याल बुने हैं उन ख़यालों को अब सच में करके दिखावो।"

"दि...दिखाओ???" मैं जैसे हकला गया_____"मेरा मतलब है कि मैं भला कैसे...???"
"मैं भला कैसे का क्या मतलब है?" माया ने मुस्कुरा कर कहा____"क्या तुम ये चाहते हो कि कोई दूसरा लड़का आए और तुम्हारे सामने हम तीनों के साथ मज़े करे?"

"न..नहीं तो।" मैं एकदम से बौखला गया_____"मैं भला ऐसा कैसे चाह सकता हूं?"
"देखो मिस्टर।" माया ने समझाने वाले अंदाज़ से कहा____"हमारा तो काम ही यही है कि हम तुम जैसे लड़कों को सेक्स की ट्रेनिंग दें और वो हम अपने तरीके से दे भी देंगे लेकिन मैं चाहती हूं कि तुम ख़ुद अपने उन ख़यालों को सच का रूप दो जिन्हें तुमने अपने मन में अब तक बुने हैं। इससे तुम्हें ही फायदा होगा। तुम्हारा आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और तुम्हारे अंदर की झिझक व शर्म भी दूर होगी।"

"मैं माया की बात से सहमत हूं।" कोमल ने कहा____"ये सच है कि हम तुम्हें ट्रेंड कर देंगे लेकिन अगर तुम खुद अपने तरीके से अपने उन ख़यालों को सच का रूप दो तो ये तुम्हारे लिए बेहतर ही होगा।"

माया और कोमल की बातों ने मुझे अजीब कस्मकस में डाल दिया था। ये सच था कि मेरा बहुत मन कर रहा था कि मैं उन तीनों के खूबसूरत जिस्मों के साथ खेलूं। उनकी सुडौल चूचियों को अपने हाथों में ले कर सहलाऊं और मसलूं लेकिन ऐसा करने की मुझ में हिम्मत नहीं हो सकती थी।

"अच्छा अब ये बताओ कि हम तीनों में से तुम्हें सबसे ज़्यादा कौन पसंद है?" माया ने मुस्कुराते हुए पूछा तो मैंने उसकी तरफ देखा, जबकि उसने उसी मुस्कान में आगे कहा_____"सच सच बताना और हां ये मत सोचना कि अगर तुमने हम में से बाकी दो को पसंद नहीं किया तो हमें बुरा लग जाएगा। चलो अब खुल कर बताओ।"

साला ये तो ऐसा सवाल था जिसका उत्तर देना तो जैसे टेढ़ी खीर था। मेरी नज़र में तो वो तीनों ही बला की खूबसूरत थीं। तीनो में से किसी एक को पसंद करना या चुनना मेरे लिए बेहद ही मुश्किल था। तभी मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि मुझे कौन सा उनमें से किसी से शादी करनी है। कहने का मतलब ये कि मुझे तो किसी एक को पसंद कर के शायद उसके साथ सेक्स ही करना है न तो फिर इसमें इतना सोचने की क्या ज़रूरत है? किसी एक को पसंद कर लेता हूं बाकी जो होगा देखा जाएगा। मैंने तीनों को बारी बारी से देखा। मैंने सोचा कि कोमल और तबस्सुम को तो मैं पूरा ही नंगा देख चुका हूं जबकि माया अभी भी ब्रा पेंटी पहने हुए है इस लिए मैंने सोचा इसको भी नंगा देख लेता हूं।

"देखिए बात ये है कि।" फिर मैंने झिझकते हुए कहा_____"मुझे तो आप तीनों ही सबसे ज़्यादा खूबसूरत लगती हैं। आप तीनों में से किसी एक को पसंद करना मेरे लिए बेहद ही मुश्किल है, फिर भी आप कहती हैं तो मैं बताए देता हूं कि मुझे सबसे ज़्यादा आप ही पसंद हैं।"

"मुबारक़ हो माया।" तबस्सुम ने मुस्कुराते हुए कहा_____"इस लड़के की सील तोड़ने का पहला मौका तुम्हें ही मिल गया।"
"सही कहा तबस्सुम।" कोमल ने जैसे ताना सा मारा_____"हम तीनों में से एक माया ही तो है जो सबसे ज़्यादा सुन्दर है और पसंद करने वाली चीज़ भी है। ये लड़का तो बड़ा ही चालू निकला।"

"देखिए आप लोग प्लीज़ बुरा मत मानिए।" उन दोनों की बातें सुन कर मैं जल्दी से बोल पड़ा था____"मैंने तो पहले ही कहा था कि मेरे लिए आप में से किसी एक को पसंद करना बेहद ही मुश्किल है।"

"अरे! तुम इनकी बातों पर ध्यान मत दो।" माया ने मुस्कुराते हुए कहा____"ये दोनों तो मज़ाक में ऐसा बोल रही हैं तुम्हें। ख़ैर तो अब जबकि तुमने मुझे पसंद किया है तो आज के लिए मैं तुम्हारी हुई। आज के दिन अब तुम और मैं ही एक दूसरे के साथ रहेंगे। तुम ये समझो कि मैं वो लड़की हूं जिसके बारे में सोच कर तुम तरह तरह के ख़याल बुनते थे और अब जबकि मैं तुम्हारे ख़यालों से बाहर आ कर तुम्हारे पास ही हूं तो तुम मेरे साथ वो सब कुछ कर सकते हो जो ख़यालों में मेरे साथ करते थे।"

"क्या सच में???" मेरे मुख से जाने ये कैसे निकल गया, जबकि मेरे द्वारा इतनी उत्सुकता से कहे गए इस वाक्य को सुन कर कोमल और तबस्सुम ने एक साथ मुस्कुराते हुए कहा_____"ओए होए, देखो तो कितना उतावले हो उठे हैं ये जनाब।"

कोमल और तबस्सुम की ये बात सुन कर मैं बुरी तरह झेंप गया और शर्म से लाल हो गया। जबकि उन दोनों की बात सुन कर माया ने उन्हें डांटते हुए कहा____"क्यों छेड़ रही हो बेचारे को?"

"अच्छा ठीक है हम कुछ नहीं कहेंगी।" कोमल ने कहा____"लेकिन हां ये ज़रूर कहेंगे कि थोड़ा सम्हाल के करना। तुम तो जानती हो कि इस बेचारे की अभी सील भी नहीं टूटी है।"

कोमल ने ये कहा तो तबस्सुम ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी। इधर उसके हसने से मैं और भी बुरी तरह से शर्मा गया। मैं समझ गया था कि कोमल के कहने का मतलब क्या था और क्यों उसकी बात से तबस्सुम हंसने लगी थी। ख़ैर माया ने उन दोनों को फिर से डांटा और दोनों को कमरे से जाने को कह दिया। उन दोनों के जाने के बाद माया ने कमरे को अंदर से बंद किया और पलट कर मेरे पास आ कर बेड पर बैठ गई। मेरे दिल की धड़कनें फिर से ये सोच कर बढ़ गईं कि अब इसके आगे शायद वही होगा जिससे मेरी सबसे बड़ी चाहत पूरी होगी। इस बात को सोच कर ही मेरे मन में खुशी के लड्डू फूटने लगे थे।

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