Adultery C. M. S. [Choot Maar Service] (Completed)

Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अध्याय - 07
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अब तक,,,,,

कोमल ने ये कहा तो तबस्सुम ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी। इधर उसके हसने से मैं और भी बुरी तरह से शर्मा गया। मैं समझ गया था कि कोमल के कहने का मतलब क्या था और क्यों उसकी बात से तबस्सुम हंसने लगी थी। ख़ैर माया ने उन दोनों को फिर से डांटा और दोनों को कमरे से जाने को कह दिया। उन दोनों के जाने के बाद माया ने कमरे को अंदर से बंद किया और पलट कर मेरे पास आ कर बेड पर बैठ गई। मेरे दिल की धड़कनें फिर से ये सोच कर बढ़ गईं कि अब इसके आगे शायद वही होगा जिससे मेरी सबसे बड़ी चाहत पूरी होगी। इस बात को सोच कर ही मेरे मन में खुशी के लड्डू फूटने लगे थे।

अब आगे,,,,,


"चलो अब शुरू करो।" बेड पर मेरे एकदम पास बैठते ही माया ने मेरी तरफ देखते हुए कहा तो मेरे दिल की धड़कनें पहले से भी ज़्यादा तेज़ हो गईं। मैं अच्छी तरह समझ गया था कि उसने किस चीज़ को शुरू करने को कहा था किन्तु मेरे लिए ये सब शुरू करना अगर इतना ही आसान होता तो मैं यहाँ इस हाल में होता ही क्यों?

"क्या हुआ? तुम शुरू क्यों नहीं कर रहे?" मुझे कुछ न करते देख माया ने फिर से कहा_____"देखो डियर, तुम यहाँ सेक्स की ट्रेनिंग लेने आए हो और तुम्हारे लिए सबसे अच्छी बात ये है कि तुम्हें जिसके साथ सेक्स करने की ट्रेनिंग लेनी है वो तुम्हारा पूरा साथ देगी। यूं समझो कि तुम अपनी मर्ज़ी से जो चाहो मेरे साथ कर सकते हो। मैं तुम्हें किसी भी चीज़ के लिए मना नहीं करुंगी। दुनियां में बहुत ही कम ऐसे लोग होते हैं जिनके नसीब में इतना अच्छा मौका मिलता है। अगर तुम इसी तरह सेक्स के नाम पर शर्म करोगे तो फिर कैसे तुम किसी औरत के साथ सेक्स कर पाओगे और कैसे उसे संतुष्ट कर पाओगे? एक दिन तुम्हारी शादी भी होगी तो क्या तुम अपनी बीवी के साथ भी सेक्स नहीं करोगे? ऐसे में तो लोग तुम्हें नपुंसक और हिंजड़ा कहेंगे। वो ये भी कहेंगे कि तुम मर्द नहीं बल्कि गांडू हो जो किसी औरत के साथ सेक्स ही नहीं कर सकता बल्कि दूसरे मर्दों से खुद अपनी ही गांड मरवाता है। क्या तुम सच में गांडू बनना चाहते हो?"

"न..नहीं नहीं।" मैं एकदम से बौखलाते हुए बोल पड़ा_____"मैं ऐसा नहीं बनना चाहता।"
"तो फिर मर्द बनो डियर।" माया ने मेरे चेहरे को अपने एक हाथ से सहलाते हुए कहा_____"भगवान की कृपा से तुम्हें इतना तगड़ा हथियार मिला है तो अब तुम भी साबित करो कि तुम एक मुकम्मल मर्द हो और अपने इस हलब्बी लंड के द्वारा किसी भी औरत की चीखें निकाल सकते हो। दुनियां की हर औरत को तुम अपने इस हलब्बी लंड की दीवानी बना दो। जब ऐसा हो जाएगा तो देखना दुनियां की हर औरत ख़ुद ही अपना सब कुछ तुम्हें देने को तैयार रहेगी।"

माया के द्वारा खुल कर कही गई इन बातों ने मेरे अंदर एक जोश सा भर दिया था और मुझे पहली बार एहसास हुआ कि वो सच कह रही थी। यानी सच में मुझे ईश्वर ने एक ऐसा लंड दिया था जिसके बलबूते पर मैं किसी भी औरत की चीखें निकाल सकता था। ऐसे हलब्बी लंड के होते हुए भी अगर मैं मुकम्मल मर्द न बन सका तो फिर ये मेरे लिए डूब मरने वाली बात ही होगी। इस ख़याल के साथ ही मैंने एक गहरी सांस ली और मन ही मन फ़ैसला कर लिया कि अब मुझे मुकम्मल मर्द बनना है। मुझे अपने अंदर से इस शर्मो हया को निकाल कर दूर फेंक देना होगा।

मैंने आँखें बंद कर के दो तीन गहरी गहरी साँसें ली और फिर झटके से आँखें खोल कर माया की तरफ देखा। इस बार मेरे देखने का अंदाज़ पहले से काफी अलग था। मैं अपने अंदर एक निडरता महसूस करने लगा था। माया मेरे चेहरे के बदले हुए भावों को ही देख रही थी। मेरी नज़रें उसके खूबसूरत चेहरे पर जम सी गईं थी। कुछ पलों तक मेरी नज़रें उसके चेहरे पर ही जमी रहीं उसके बाद मेरी नज़र उसके रसीले होठों पर पड़ी। मैंने महसूस किया जैसे उसके वो रसीले होंठ मुझे इशारा करते हुए कह रहे हों कि आओ और मुझे अपने मुँह में भर कर चूस लो।

मैंने एक बार फिर से गहरी सांस ली और अपने दोनों हाथ बढ़ा कर माया के चेहरे को थाम लिया। मेरे ऐसा करते ही माया के रसीले होठों पर मुस्कान थिरक उठी जिससे मेरे अंदर के जज़्बात मचल से उठे और मैंने एक पल की भी देरी न करते हुए लपक कर उसके होठों पर अपने होठों को रख दिया। यकीनन माया को मुझसे इतनी जल्दी इस सबकी उम्मीद न रही होगी लेकिन मैंने तो अब सोच लिया था कि मुझे मुकम्मल मर्द बनना है।

माया के रसीले होंठों को जैसे ही मैंने अपने होंठों से छुआ तो मेरे जिस्म में एक सुखद अनुभूति हुई। जीवन में पहली बार मैं किसी लड़की के होठों पर अपने होठ रखे हुए था। मैं बयां नहीं कर सकता था कि उस वक्त मुझे कितना अच्छा महसूस हुआ था। उसके बाद तो जैसे सब कुछ अपने आप ही होता चला गया। माया के होठों में शराब से भी ज़्यादा नशा था जिसने मुझे मदहोश करना शुरू कर दिया था। मेरे अंदर लेश मात्र भी कहीं शर्म नहीं रह गई थी बल्कि जिस्म का हर रोयां मदहोशी में ये कह उठा कि अब रुकना नहीं क्योंकि इसमें उन्हें बेहद मज़ा आने लगा है।

माया कुछ पलों तक बुत सी बनी रही और जब मैंने उसके होठों को अपने मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया तो जैसे उसे होश आया। उसने फ़ौरन ही अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को थाम लिया और मेरे बालों में उंगलियां फिराते हुए मेरा साथ देने लगी। उधर माया के शहद जैसे मीठे होठों को चूसने में मुझे इतना मज़ा आने लगा था कि मैं एकदम से पागलों की तरह उन्हें चूसे ही चला जा रहा था। मेरे पूरे जिस्म में मज़े की लहर जैसे सागर की लहरों की तरह हिलोरें ले रही थी।

मुझे कोई होश नहीं था कि माया के होठों को चूसते हुए मैं किस हद तक जुनूनी हो उठा था। मुझे उसके होठ इतने मीठे और लजीज़ लग रहे थे कि मैं बस उन्हें खा ही जाना चाहता था। कुछ ही पलों में मेरी साँसें मेरे काबू से बाहर होने लगीं लेकिन मैं रुका तब भी नहीं बल्कि लगा ही रहा। उधर माया की भी साँसें भारी हो चलीं थी लेकिन वो भी मुझे रोक नहीं रही थी बल्कि मेरी तरह वो भी मेरा साथ दे रही थी। हम दोनों बेड पर बैठे हुए थे और मैं इस हद तक जूनून के हवाले हो चुका था कि प्रतिपल मैं उसके ऊपर हावी होता जा रहा था जिसका नतीजा ये निकला की कुछ ही देर में मैंने माया को उसी बेड पर गिरा दिया।

माया बेड पर सीधा गिरी तो हम दोनों के होठ एक दूसरे के होठों से अलग हो गए। होठ अलग हुए तो जैसे एक तूफ़ान कुछ पलों के लिए थम सा गया। मैंने आँखें खोल कर माया की तरफ देखा तो बेड पर लेटी हुई मुझे दो दो माया नज़र आ रही थी। मैं समझ न पाया कि ये माया के होठों को चूसने से उसका नशा मुझ पर चढ़ गया था या सच में दो दो माया प्रकट हो गईं थी। मैंने नशे की खुमारी जैसे आलम में उसकी तरफ देखा तो मेरी नज़र उसकी ब्रा में कैद बड़ी बड़ी चूचियों पर पड़ी जो तेज़ चलती साँसों की वजह से जल्दी जल्दी ऊपर नीचे हो रहीं थी।

माया की चूचियों ने भी जैसे मुझे मूक आमंत्रण दे दिया और मैंने भी उनके आमंत्रण को नहीं ठुकराया बल्कि आव देखा न ताव एक झटके से उन पर टूट पड़ा। माया की चूचियों पर रेशमी कपड़े की ब्रा इस तरह से बंधी हुई थी कि उसके किनारों से उसकी आधे से ज़्यादा चूचियां बाहर को झाँक रहीं थी। मैंने अपने दोनों हाथों से उन्हें थाम लिया। मुझे अपनी हथेलियों में ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी बहुत ही मुलायम चीज़ पर मेरा हाथ पड़ गया हो जिसके एहसास ने मेरे जिस्म के हर ज़र्रे पर एक बार फिर से मज़े की लहरों को दौड़ा दिया। मैंने माया की दोनों चूचियों को मुट्ठी में भरा और ज़ोर ज़ोर से मसलना शुरू कर दिया जिसकी वजह से माया के मुख से सिसकियों के साथ साथ दर्द में डूबी मीठी सी कराहें निकलने लगीं।

माया ने एक बार फिर से मेरे सिर को थाम लिया और मेरे चेहरे को अपनी छातियों की तरफ झुकाने लगी। उसके झुकाने से मैं समझा तो कुछ नहीं लेकिन इतना ज़रूर हुआ कि मैं उसकी चूचियों के खुले हुए हिस्से को ज़रूर चूमने और चाटने लगा था। कुछ देर उसकी चूचियों को चाटने के बाद मैंने चेहरा उठाया और उस रेशमी कपड़े की ब्रा के ऊपर से ही माया की एक चूची को मुँह में भर कर ज़ोर से काट लिया जिससे माया की घुटी घुटी सी चीख निकल गई और वो एकदम से उछल पड़ी।

"आह्ह्ह्ह इतनी ज़ोर से मत काटो डियर।" माया ने कराहते हुए कहा_____"ये तो सलीके से प्यार करने वाली चीज़ है। इन्हें जितना प्यार करोगे उतना ही हम दोनों को मज़ा आएगा। अभी प्यार वाला सेक्स करो उसके बाद अगर तुम्हारा दिल करे तो वहशीपन वाला भी कर लेना।"

माया की इन बातों का मैंने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि उसकी बात मान कर उसकी चूची को काटना बंद कर दिया। उसकी बातों ने एक पल के लिए मुझे होश में ला दिया था और उस एक पल ने मुझे ये भी एहसास करा दिया था कि मुझे इस तरह किसी के कोमल अंगों को काटना नहीं चाहिए। ख़ैर मैंने अपने ज़हन से इस बात को झटका और फिर से माया की चूचियों को दबाना और मसलना शुरू कर दिया। मुझे माया की बड़ी बड़ी खरबूजे जैसी चूचियों को दबाने और मसलने में बड़ा ही मज़ा आ रहा था। मन कर रहा था कि मैं उन्हें मसलता ही रहूं। एकाएक मुझे ख़याल आया कि मुझे माया की चूचियों से उस रेशमी कपड़े को हटा देना चाहिए क्योंकि अभी तक मैंने माया की चूचियों को पूरी तरह नंगा नहीं देखा था। ये सोच कर मैंने फ़ौरन ही माया की चूचियों से उस रेशमी कपड़े वाली ब्रा को पकड़ कर ऊपर खिसका दिया जिससे माया की दोनों खरबूजे जैसी चूचियां उछल कर मेरी आँखों के सामने आ ग‌ईं।

दूध की तरह गोरी चूचियों को देखते ही मुझे मेरा गला सूखता हुआ सा प्रतीत हुआ। मैंने लपक कर उसकी एक चूची के भूरे निप्पल को पूरा ही मुँह में भर लिया और उसे इस तरह से चूसना शुरू कर दिया जैसे कोई छोटा सा बच्चा अपनी मां का दूध निचोड़ निचोड़ कर पीना शुरू कर देता है। हालांकि माया के निप्पल से दूध नहीं निकल रहा था लेकिन मैं किसी बच्चे की तरह ही चूसे जा रहा था और उधर माया भी मेरे सिर पर वैसे ही प्यार से हाथ फेरने लगी थी जैसे वो मुझे अपना बच्चा समझ कर मुझे अपना दूध पिला रही हो। काफी देर तक मैं माया की उस चूची को चूसता रहा और माया मेरे सिर पर अपना हाथ फेरते हुए सिसकारियां भरती रही उसके बाद मैंने उसकी दूसरी चूची के निप्पल को भी मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया।

मज़ा अथवा आनंद क्या होता है ये मैं आज महसूस कर रहा था। अपनी कल्पनाओं में मैंने न जाने कितनी ही बार अलग अलग लड़कियों को सोच कर उनके साथ न जाने क्या क्या किया था लेकिन जो मज़ा हक़ीक़त में मिल रहा था वो मेरी कल्पनाओ में तो हो ही नहीं सकता था।

"तुम तो किसी बच्चे की तरह मेरी चूचियों को पी रहे हो डियर।" माया ने मेरे सिर पर वैसे ही प्यार से हाथ फेरते हुए कहा_____"जबकी तुम्हें एक मर्द की तरह मेरे साथ पेश आना चाहिए। तुम ये मत भूलो कि तुम्हें एक मुकम्मल मर्द बनना है और हर औरत को सेक्स में संतुष्ट करना है।"

"मैं भूला नहीं हूं इस बात को।" मैंने उसकी चूची से अपना चेहरा उठा कर उससे कहा____"लेकिन इस वक़्त मैं सिर्फ वो कर रहा हूं जिसे मैंने पहले कभी नहीं किया था। पहले मुझे जी भर के एक लड़की के इन खूबसूरत अंगों को देखने के साथ साथ प्यार तो कर लेने दो उसके बाद मैं एक मर्द की तरह भी तुमसे पेश आऊंगा।"

"अच्छा तो ये बात है।" माया ने मुस्कुराते हुए कहा____"चलो कोई बात नहीं। तुम पहले अपनी उन हसरतों को ही पूरा कर लो जिन्हें पूरा करने की तुमने अपने मन में ख़्वाहिश की रही होगी। मुझे इसमें कोई ऐतराज़ नहीं है।"

माया की बात सुन कर मैंने उसे शुक्रिया कहा और इस बार थोड़ा ऊपर खिसक कर मैंने फिर से उसके रसीले होठों को मुँह में भर लिया। वो कहते हैं न कि सूखी रोटियां खाने वाले को जब घी में सनी हुई गरमा गरम रोटियां मिलती हैं तो वो उन पर ऐसे टूट पड़ता है जैसे दोबारा उसे वैसी रोटियां नसीब ही नहीं होंगी। मेरी हालात भी कदाचित वैसी ही थी। हालांकि सच में ऐसा नहीं था बल्कि सच तो ये था कि अब से तो मेरे नसीब में न जाने ऐसे कितने ही जिस्म मिलने वाले थे जिनके साथ मुझे मज़े भी करना था और उन जिस्मों की मालकिनों को संतुष्ट भी करना था।

माया के होठों का जाम पीने के बाद मैं फिर से नीचे आया और एक बार फिर से उसकी दोनों चूचियों को मसलते हुए उन्हें चूमने चाटने लगा। किसी भी लड़की या औरत की सुडौल चूचियां मुझे सबसे ज़्यादा पसंद थीं और सबसे ज़्यादा आकर्षित भी करती थीं। मैं अक्सर ये तक सोच बैठता था कि काश इतनी खूबसूरत चूचियां मेरे सीने में भी होतीं तो मैं दिन रात उन्हें अपने हाथों में ले कर सहलाता रहता।

कुछ देर मैंने माया की दोनों चूचियों को मसला और चूमा चाटा उसके बाद मैं नीचे की तरफ बढ़ा। मेरा लंड न जाने कब से मुझसे रहम की भीख मांग रहा था जिस पर मेरा कोई ध्यान ही नहीं था। मैं तो अभी अपनी ख़्वाहिश ही पूरी करने में लगा हुआ था। उसकी ख़्वाहिशों का ख़याल तो मुझे बाद में ही आना था। नीचे आया तो देखा माया का चिकना पेट दूध की तरह गोरा था जिस पर एक गहरी सी नाभि थी। मुझसे रहा न गया तो मैंने फ़ौरन ही उसके पेट पर अपना चेहरा रख दिया और मुँह से उसके पूरे पेट को चूमने चाटने लगा। मेरी इस क्रिया से माया की एक बार फिर से सिसकियां निकलने लगीं और उसका जिस्म झटका सा खाने लगा। मैं उसके पूरे पेट को चूमा और चाट रहा था। उसकी नाभि के चारो तरफ मैं अपनी जीभ फिरा रहा था। ये सब करना मुझे पहले से पता था। ऐसा नहीं था कि मैं एकदम से ही अनाड़ी था। हम सभी दोस्त गन्दी गन्दी किताबों में ये सब बहुत बार देख और पढ़ चुके थे। इस लिए मुझे अच्छी तरह पता था कि लड़कियों के साथ क्या क्या किया जाता है। ये तो हमारी ख़राब किस्मत ही थी कि शर्मीले स्वभाव की वजह से कभी भी किसी लड़की के साथ सेक्स करने का सौभाग्य प्राप्त नहीं हुआ था।

मैंने माया की गहरी नाभि में अपनी पूरी जीभ घुसा दी तो माया ने फ़ौरन ही अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़ लिया और उसे अपने पेट पर दबाने लगी। शायद मेरे ऐसा करने से उसे भी बेहद मज़ा आने लगा था। उसका पेट बड़ी तेज़ी से सांस लेने की वजह से ऊपर नीचे हो रहा था। नाभि के नीचे रेशमी कपड़े की ही उसकी पेंटी थी जहां से बड़ी ही मादक खुशबू आ रही थी। मैंने उन गन्दी किताबों में पढ़ा था कि जब लड़की हद से ज़्यादा गरम हो जाती है या उत्तेजित हो जाती है तो उसकी चूत से कामरस का रिसाव होने लगता है और ये खुशबू उसी कामरस से निकल कर आती है। मेरे मन में ये देखने की बड़ी तीव्र जिज्ञासा जाग उठी कि एक लड़की की चूत किस तरह की होती है। हालांकि गन्दी किताबों में मैंने चूत देखी थी लेकिन असलियत में तो मैंने कभी नहीं देखा था।

चूत को देखने की हसरत जब प्रबल हो उठी तो मैंने माया के पेट से अपना चेहरा उठा कर चूत की तरफ बढ़ाना शुरू कर दिया। मेरा दिल अनायास ही तेज़ी से धड़कने लगा था। मेरे अंदर अब डर या घबराहट जैसी कोई बात नहीं रह गई थी। ऐसा शायद इस लिए कि अब मैं माया के साथ इस क्षेत्र में आगे निकल चुका था और मुझे किसी भी तरह से रोका नहीं गया था। चूत के ऊपर रेशमी कपड़े की पेंटी के पास जैसे ही मेरा चेहरा आया तो मेरे नथुनों में कामरस की खुशबू और भी तेज़ी से समाने लगी जिसकी वजह से मुझ पर एक अजीब सा नशा चढ़ने लगा।

☆☆☆

"ट्रिन्निंग...ट्रिन्निंग" अचानक ही टेबल पर रखे फ़ोन की घंटी ज़ोरों से बज उठी तो डायरी में विक्रम सिंह की कहानी पढ़ रहा शिवकांत वागले जैसे उछल ही पड़ा। उसने फ़ोन को बड़े ही गुस्से से देखा। उसके चेहरे पर बेहद ही अप्रसन्नता के भाव उभर आए थे। वो कहानी पढ़ने में इतना खो गया था कि इस वक़्त उसे फ़ोन का एकाएक इस तरह बज उठना बहुत ही नागवार गुज़रा था। कहानी इस वक़्त ऐसे मुकाम पर थी कि उसके असर से खुद वागले का जिस्म गरम हो उठा था और उसके पैंट में उसके खड़े हुए लंड का उभार साफ़ दिख रहा था।

"हैलो।" फिर उसने किसी तरह अपने गुस्से वाले भावों को दबाते हुए फ़ोन को उठा कर कान से लगाते हुए कहा तो उधर से उसके कान में उसके बेटे चंद्रकांत वागले की आवाज़ पड़ी।

"हैलो पापा मैं चंद्रकांत बोल रहा हूं।" उधर से उसके बेटे ने कहा____"आज आप सुबह ब्रेकफास्ट कर के नहीं गए और ना ही श्याम को दोपहर का खाना लाने के लिए भेजा।"

"हां वो मुझे किसी ज़रूरी काम से सुबह जल्दी ही निकलना था।" शिवकांत भला अब अपने बेटे से क्या कहता, इस लिए बहाना बनाते हुए आगे कहा_____"और दोपहर में भी मुझे अपने ऑफिस में नहीं रहना था इस लिए श्याम को नहीं भेजा। ख़ैर तुम फ़िक्र मत करो बेटा। मैंने बाहर ही लंच कर लिया है।"

शिवकांत वागले ने इतना कहने के बाद फोन का रिसीवर केड्रिल पर रख दिया। वो जानता था कि ये फ़ोन उसकी बीवी सावित्री ने अपने बेटे से लगवाया था और उसे इस बात से ये सोच कर बुरा भी लगा था कि सावित्री ने खुद उससे बात क्यों नहीं की? वो सावित्री से नाराज़ था और चाहता था कि सावित्री खुद उसे मनाए लेकिन ऐसा फिलहाल हुआ नहीं था। ख़ैर फ़ोन रखने के बाद वागले कुछ देर जाने क्या सोचता रहा उसके बाद उसने विक्रम सिंह की डायरी को ब्रीफ़केस में रखा और श्याम को बुला कर उसे किसी ढाबे से खाना लाने के लिए पैसे दिए। उसने श्याम को ख़ास तौर पर ये कहा कि वो अपनी मैडम से यानी वागले की बीवी से इस बात को न बताए कि वो आज कहां गया था या उसने कहां खाना खाया था? श्याम जो कि जेल का ही एक मामूली सा सिपाही था उसने वागले के कहने पर अपना सिर हां में हिलाया और केबिन से बाहर चला गया।

श्याम के आने के बाद वागले ने खाना खाया और जेल का चक्कर लगाने के लिए निकल गया। करीब एक घंटे बाद वागले अपने केबिन में आया और ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाल कर उसे फिर से पढ़ने लगा।

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रेशमी कपड़े वाली पैंटी में छुपी माया की चूत से बड़ी ही मादक खुशबू आ रही थी जो मुझे प्रतिपल मदहोश सा किए जा रही थी। रेशमी कपड़े वाली पैंटी का रंग सुनहरा था जो माया की चूत को ढंकने में सक्षम तो था किन्तु पूरी तरह से नहीं। उस पैंटी के किनारों से माया की चूत के अगल बगल वाला हल्का सुर्ख भाग साफ़ दिख रहा था जिससे मेरे दिल की धड़कनें एकदम से थमने लगीं थी। सुनहरे कपड़े की वजह से मुझे माया का कामरस तो नज़र न आया लेकिन चूत पर चिपके होने की वजह से मुझे समझने में ज़रा भी देरी नहीं हुई कि माया इस वक़्त बेहद गरम हो चुकी है जिसकी वजह से उसका कामरस उसकी पैंटी को इस कदर भिगो दिया है जिससे उसकी पैंटी उसकी चूत पर चिपक गई है।

कुछ पलों तक मैंने गौर से उस चिपके हुए सुनहरे कपड़े को देखा और फिर हल्के से मैंने उस कपड़े पर यानी कि माया की चूत पर अपना चेहरा रख दिया। पहले तो मेरे चेहरे पर हल्का सा ठण्डा एहसास हुआ और फिर जैसे ही मेरा चेहरा पूरी तरह माया की चूत पर धर गया तो मेरे होठों और नाक पर गर्मी का एहसास हुआ। माया की चूत मानो धधक रही थी। मेरे पूरे जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गई और अचानक ही जाने मुझे क्या हुआ कि मैंने अपनी जीभ निकाली और उस गीले सुनहरे कपड़े को चाटने लगा। मुझे मेरी जीभ में बड़े ही अजीब से स्वाद का एहसास हुआ जो खारा भी था और थोड़ा खट्टा भी था। उधर मेरे जीभ द्वारा इस तरह चाटने से माया के जिस्म में भी झटका लगा था और उसने फ़ौरन ही अपने दोनों हाथ बढ़ा कर मेरे सिर को पकड़ कर अपनी चूत पर दबा लिया। एक तरफ से उसने अपनी दोनों टांगों को उठा कर मेरे सिर के दोनों तरफ से मेरे सिर को ही जकड़ लिया था।

मैं माया की चूत से निकले उस खटमिट्ठे कामरस को इस तरह चाटे जा रहा था जैसे वो मेरे लिए कोई अमृत था। उधर माया ज़ोर ज़ोर से सिसकियां लेते हुए मेरे सिर को हाथों से दबाए जा रही थी और साथ ही साथ अपनी टांगों की जकड़न को और भी बढ़ाती जा रही थी। मैं काफी देर तक माया की चूत को चाटता रहा उसके बाद मैंने अपने दाहिने हाथ की ऊँगली से माया की चूत को ढंके उस गीले रेशमी कपड़े को हटाया तो मेरी आँखों के सामने एक ऐसी चीज़ नज़र आई जो गुलाबी रंग की थी और उस पर न तो कहीं किसी बाल का एक रेशा था और ना ही कोई दाग़ था। एकदम चिकनी और गुलाबी चूत को मैं इस तरह देखने लगा था जैसे उसने मुझे अपने सम्मोहन में ले लिया हो। तभी माया ने मेरे सिर को फिर से अपनी चूत की तरफ दबाया तो मुझे होश आया।

मैंने किसी तरह चेहरा उठा कर माया की तरफ देखा। माया बेड पर आँखे बंद किए लेटी हुई थी। उसके चेहरे के भाव साफ़ साफ़ बता रहे थे कि इस वक़्त वो किस दुनियां में डूबी हुई है। चेहरे के नीचे उसकी पर्वतों की तरह शिखर वाली दूधिया चूचियां उसके ज़रा से हिलने पर थिरक जाती थी। मेरे जिस्म में ये सब देख कर एक रोमांच की लहर दौड़ गई और मैंने दोनों हाथ बढ़ा कर झट से उसकी दोनों चूचियों को पकड़ कर मसलना शुरू कर दिया। माया के मुख से सिसकियां निकलने लगी। उसने एक हाथ से मेरे सिर को अपनी चूत पर दबाया और दूसरे हाथ को ले कर मेरे उन हाथों पर रख लिया जिन हाथों से मैं उसकी बड़ी बड़ी चूचियां मसले जा रहा था।

माया ने अपने एक हाथ से मेरे सिर को अपनी चूत पर दबाया तो मैंने उसकी चूत को फिर से चूमना चाटना शुरू कर दिया। इस बार मेरी जीभ उसकी चूत की फांकों को खोल भी रही थी और उस पर घर्षण भी करती जा रही थी। माया की चूत बेहद गरम थी जिसका ताप मुझे अपनी जीभ पर महसूस हो रहा था। जीवन में मैं पहली बार किसी लड़की की चूत पर अपनी जीभ फिरा रहा था। मैं अक्सर सोचा करता था कि किताबों में जिस तरह लिखा होता है कि मर्द औरत की चूत को बड़े ही मज़े से चाटते हैं तो क्या ये सच में ऐसा ही होता होगा? क्या मर्द को किसी औरत की चूत चाटने में घिन न लगती होगी? आख़िर कोई मर्द औरत की उस जगह को कैसे इतना मज़े से चाट सकता है जिस जगह से औरत पेशाब करती है? ये तो हद दर्ज़े की घिनौनी बात हुई लेकिन इस वक़्त मेरी ये सोच जाने कहां गुम हो गई थी? इस वक़्त तो मैं ख़ुद ही माया की चूत को ये सोच कर मज़े से चाटे जा रहा था कि वो कोई अमृत है और उस अमृत को चाटने से मैं अमर हो जाऊंगा।

मैं इतने जुनूनी अंदाज़ से माया की चूत चाटे जा रहा था कि माया का कुछ ही देर में बुरा हाल हो गया। वो अपनी कमर को हवा में उठा उठा कर बेड पर पटकने लगी थी और साथ ही मेरे सिर को पूरी ताकत से अपनी चूत पर घुसेड़े दे रही थी। मेरा पूरा चेहरा माया के कामरस से लिसलिसा हो गया था जिसकी मुझे कोई ख़बर ही नहीं थी। एकाएक ही मैंने महसूस किया कि माया का जिस्म एकदम से अकड़ गया है और इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता माया के जिस्म को झटके लगने शुरू हो ग‌ए। झटकों के साथ ही माया की चूत से ढेर सारा कामरस निकल कर मेरे मुँह में भरने लगा। अपने मुँह में आए इस गाढ़े और गरम कामरस से मैं एकदम से बौखला गया और जल्दी से अपना सिर माया की चूत से हटाना चाहा लेकिन तभी माया ने अपनी दोनों टांगों के बीच फंसे मेरे सिर को और भी बुरी तरह से जकड़ लिया। मैंने बहुत कोशिश की लेकिन मैं माया की पकड़ से अपना सिर आज़ाद न कर सका। इस वक़्त माया में जाने कहां से इतनी ताकत आ गई थी कि उसने मुझे बुरी तरह अपनी टांगों के बीच जकड़ लिया था। मरता क्या न करता वाली हालत में मैं वापस ढीला हो कर उसकी बहती चूत पर ढेर हो गया। कुछ देर बाद जब माया के जिस्म पर लगने वाले झटके बंद हुए तो माया की जकड़ अपने आप ही ढीली पड़ती चली गई। माया की जकड़ ढीली हुई तो मैंने फ़ौरन ही अपना सिर उसकी चूत से उठा कर उसकी तरफ देखा।

मैं तो बुरी तरह हांफ ही रहा था लेकिन माया मुझसे कहीं ज़्यादा बुरी तरह हांफ रही थी। आँखें बंद किए वो इस तरह पड़ी थी जैसे उसमें अब कोई शक्ति ही न बची हो। लम्बी लम्बी सांस लेने की वजह से उसकी छातियां ऊपर नीचे हो रहीं थी। मैं भौचक्का सा माया की तरफ देखे जा रहा था। तभी मुझे अपने चेहरे और होठों पर चिपचिपा सा महसूस हुआ तो मेरा हाथ मेरे चेहरे पर गया। मैंने अपने चेहरे और मुँह के आस पास हाथ फिराया तो मुझे एहसास हुआ कि मेरा चेहरा तो माया के कामरस से पूरी तरह सन गया है।

काफी देर बाद जब माया की हालत ठीक हुई तो उसने अपनी आँखें खोल कर मेरी तरफ देखा। उसकी आँखों में मेरे लिए मुझे ढेर सारा प्यार झलकता हुआ नज़र आया। मैंने जब उसकी तरफ देखा तो उसके होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई। कुछ पलों तक मेरी तरफ देखते रहने के बाद वो उठी और झपट कर मुझे अपने गले से लगा लिया।

"ओह! तुम तो कमाल हो डियर।" फिर उसने मीठे स्वर में कहा_____"मैं सोच भी नहीं सकती थी कि तुम पहली बार में ही मुझे इस तरह से ढेर कर दोगे। मैं हैरान हूं कि ये सब तुमने पहली बार में कैसे कर लिया?"
"मुझे नहीं पता।" मैंने धीमे स्वर में कहा_____"पता नहीं क्या हो गया था मुझे? मैं खुद अपने आप पर हैरान हूं कि ये सब मैंने कैसे किया?"

"तुमने मुझे असीम सुख दिया है डियर।" माया ने मुझे खुद से अलग करने के बाद मेरे चेहरे को अपनी हथेलियों में लेते हुए कहा____"मैंने ट्रेनिंग के दौरान न जाने कितने ही मर्दों के साथ सेक्स किया है लेकिन बिना सेक्स किए इस तरह से पहली बार मुझे इतना आनंद मिला है। मेरा रोम रोम अभी भी उस मज़े को महसूस कर के आनंदित हो रहा है। तुम सच में छुपे रुस्तम हो डियर। मुझे तो लगता है कि तुम्हें कुछ सुखाने की ज़रूरत ही नहीं है बल्कि तुम्हें तो सब कुछ आता है। ख़ैर अच्छा है कि तुम्हें ये सब करना आता है। चलो अब मैं भी तुम्हें वैसा ही सुख और वैसा ही आनंद देती हूं जैसा तुमने मुझे दिया है।"

"पहले मुझे अपना चेहरा तो अच्छे से साफ़ कर लेने दो।" मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा_____"तुम्हारे कामरस से मेरा पूरा चेहरा ही भींग गया है। तुमने मुझे अपनी टांगों के बीच में इस तरह जकड़ लिया था कि मैं चाह कर भी अपना चेहरा तुम्हारी टांगों से छुड़ा नहीं पाया।"

"ओह! माफ़ करना डियर।" माया ने मुस्कुराते हुए कहा_____"उस वक़्त मैं मज़े के सातवें आसमान में थी जिसकी वजह से मुझे किसी चीज़ का होश ही नहीं रह गया था। ख़ैर तुम चिंता मत करो, मेरी वजह से अगर तुम्हारा चेहरा ख़राब हुआ है तो मैं ही इसे साफ़ भी करुंगी।"

कहने के साथ ही माया ने मुझे बेड पर लिटा दिया और मेरी आँखों में देखते हुए वो मेरे चेहरे पर झुकती चली गई। मेरी धड़कनें ये सोच कर फिर से बढ़ चलीं कि अब माया मेरे साथ क्या क्या करेगी? उसके झुकने से मेरी आँखें अपने आप ही बंद हो गईं और तभी मेरे होठों पर उसके बेहद ही मुलायम होठों का गरम स्पर्श महसूस हुआ जिससे मेरे पुरे जिस्म में झुरझुरी सी दौड़ गई। माया ने पहले दो तीन बार मेरे होठों को चूमा और फिर अपनी जीभ निकाल कर मेरे चेहरे के हर हिस्से पर फिराने लगी। मैं समझ गया कि वो मेरे चेहरे पर लगे अपने कामरस को चाट चाट कर मेरा चेहरा साफ़ कर रही है। मैं ये सोच कर बेहद ही रोमांचित हो उठा कि एक लड़की अपना ही कामरस चाट रही है।

मेरे जिस्म में मज़े की लहरें दौड़ने लगीं थी जिसकी वजह से फ़ौरन ही मेरा लंड तन कर खड़ा हो गया। माया मेरे बाएं तरफ बेड पर अधलेटी सी थी इस लिए शायद उसे मेरा खड़ा हुआ लंड नहीं दिख रहा था। माया पूरी तन्मयता से मेरे चेहरे पर लगे अपने कामरस को चाट रही थी और मैं उसके इस तरह चाटने से बेहद ही आनंद का अनुभव कर रहा था। उसकी चूचियां मेरे सीने पर कभी छू जातीं तो कभी धंस जातीं जिससे मेरा मज़ा दुगुना हो जाता था। कुछ देर बाद जब माया ने मेरे चेहरे से अपना सारा कामरस चाट लिया तो वो मेरे होठों को चूमते हुए मेरे गले की तरफ बढ़ी और गले से फिर सीने पर आ गई। माया मेरे सीने के हर हिस्से पर अपनी जुबान फेर रही थी और जब उसकी जुबान मेरे निप्पल पर चलती तो मेरे जिस्म का रोयां रोयां मज़े की तरंग में नाच उठता। मेरा लंड तो मज़े की इस तरंग में झटके पर झटके खा रहा था। मुझसे रहा न गया तो मैंने अपने दोनों हाथों से माया के सर को थाम लिया।

मेरे पूरे जिस्म को चूमते चाटते माया मेरे झटका खाते हुए लंड पर पहुंच ग‌ई। उसने अपने कोमल हाथों से जब मेरे लंड को पकड़ा तो मेरे जिस्म में एक बार फिर से झुरझुरी हुई। मैंने बड़ी मुश्किल से आँखें खोल कर माया की तरफ देखा। वो मेरे लंड को सहलाते हुए मुझे ही देख रही थी। मेरी नज़र जब उससे मिली तो उसके होठों पर मुस्कान उभर आई। उसने अपने जिस्म से पता नहीं कब अपनी ब्रा और पैंटी को उतार कर फेंक दिया था जिसकी वजह से उसकी बड़ी बड़ी चूचियां मुझे साफ़ दिख रहीं थी। उसकी दोनों चूचियां मेरे मसलने से लाल सुर्ख पड़ गईं थी और एक चूची पर तो मेरे काटने का निशान भी दिख रहा था। मैं अपने काटे हुए निशान को देख कर मुस्कुरा उठा। मुझे मुस्कुराते देख उसने इशारे से ही पूछा कि क्या हुआ तो मैंने न में सिर हिला कर इशारे से ही बताया कि कुछ नहीं।

मेरे देखते ही देखते माया मेरे लंड पर झुकी और अपना मुँह खोल कर उसने मेरे लंड के मोटे से टोपे को अपने मुँह में भर लिया। उसके गरम गरम मुँह पर जैसे ही मेरा लंड घुसा तो मज़े से मेरी आँखें फिर से बंद हो गईं। उधर उसने मेरे टोपे को मुँह में भरने के बाद अंदर ही अपनी जीभ से उसके छेंद को कुरेदना शुरू कर दिया जिसकी वजह से मेरे मुँह से सिसकियां निकलने लगीं। मज़े की तरंग ने मुझे एक झटके से सातवें आसमान में पंहुचा दिया। कुछ देर अपनी जीभ से मेरे लंड के छेंद को कुरेदने के बाद माया ने मेरे लंड को मुँह से निकाल दिया। उसके ऐसा करने से मैंने एकदम से अपनी आँखें खोल कर उसकी तरफ देखा। असल में मैं चाहता था कि अभी जिस मज़े में मैं पहुंच गया था उसी मज़े में मैं डूबा रहूं। मेरी तरफ देख कर माया शायद मेरे मनोभावों को समझ गई थी इस लिए उसने फिर से मेरे लंड को अपने मुँह में भर लिया।

मेरा लंड इतना मोटा और बड़ा था कि उसके मुँह में उसका टोपा ही समा पा रहा था। माया ने कोशिश करते हुए टोपे के साथ साथ मेरे लंड के कुछ और हिस्से को अपने मुँह के अंदर लिया और फिर अपना सिर नीचे ऊपर करते हुए मेरे लंड को कुल्फी की तरफ चूसने लगी। उसके गरम गरम मुख में मेरा लंड था और इसके बारे में सोच कर ही मैं मज़े के सागर में मानो गोते लगाने लगा था। मैंने फ़ौरन ही अपने हाथों को बढ़ा कर माया के सिर को पकड़ा और उसे अपने लंड पर दबाने लगा।

मज़े की तरंग में प्रतिपल मैं अपने होश खोता जा रहा था और पूरा ज़ोर लगा कर माया के मुँह में अपने लंड को और भी अंदर घुसेड़ता जा रहा था। आँखें बंद किए मैं अपनी कमर को उठा उठा कर माया के मुँह में अपना लंड पेल रहा था। मेरे मुँह से मज़े में डूबी सिसकारियां पूरे कमरे में गूंजने लगीं थी और उसी के साथ मेरी भारी होती साँसें भी। मुझे अब इस बात का कोई इल्म नहीं था कि मेरे इस तरह ज़ोर देने पर माया की क्या हालत हुई जा रही होगी बल्कि मुझे तो इस वक़्त सिर्फ अपने मज़े की ही पड़ी थी। मेरे जिस्म का लहू बड़ी तेज़ी से मेरे लंड की तरफ दौड़ता हुआ जा रहा था। उधर माया के मुँह से अजीब अजीब सी आवाज़ें निकल रही थी और मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे वो मेरे लंड को अपने मुँह से निकालने की ज़द्दो जहद कर रही हो। अचानक ही उसने अपने दांत मेरे लंड पर गड़ाए तो मेरे मुख से घुटी घुटी सी चीख निकल गई और मैंने झट से उसके सिर को छोड़ दिया।

माया ने एक झटके से मेरे लंड को अपने मुँह से निकाल दिया। मैंने झटके से आँखें खोल कर उसकी तरफ देखा तो चौंक गया। उसका चेहरा बुरी तरह लाल सुर्ख पड़ा हुआ था और वो बुरी तरह हांफ रही थी। उसकी आँखों से आंसू के कतरे बहे हुए दिख रहे थे। उसकी हालत देख कर मैं ये सोच कर एकदम से घबरा गया कि इसे क्या हो गया है?

"तुम तो मेरी जान ही लेने पर उतारू हो गए डियर।" उसने अपनी उखड़ी हुई साँसों को सम्हालते हुए और ज़बरदस्ती मुस्कुराते हुए कहा_____"मज़े की तरंग में इतना भी अपना होश नहीं खो देना चाहिए कि अपने सेक्स पार्टनर का कोई ख़याल ही न रह जाए।"

"म..मुझे माफ़ कर दो।" मैंने जल्दी से उठ कर उससे शर्मिंदा हो कर कहा_____"मुझे सच में इस बात का ख़याल ही नहीं रह गया था कि अपने मज़े में मैं तुम्हें तक़लीफ दिए जा रहा हूं। प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो। अब से ऐसा नहीं होगा।"

"कोई बात नहीं डियर।" माया ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"मैं समझ सकती हूं कि पहली बार में ये सब तुमसे अंजाने में हो गया है। ख़ैर चलो फिर से शुरू करते हैं।"

माया की बात सुन कर मैंने राहत की सांस ली और सिर को हिलाते हुए चुप चाप बेड पर लेट गया। मेरे लेटते ही माया ने अपना हाथ बढ़ाया और मेरी तरफ देखते हुए उसने मेरे लंड को फिर से थाम लिया। मेरा लंड थोड़ा ढीला सा पड़ गया था जोकि उसके हाथ में आते ही फिर से ठुमकने लगा था।

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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अध्याय - 08
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अब तक,,,,,

"कोई बात नहीं डियर।" माया ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"मैं समझ सकती हूं कि पहली बार में ये सब तुमसे अंजाने में हो गया है। ख़ैर चलो फिर से शुरू करते हैं।"

माया की बात सुन कर मैंने राहत की सांस ली और सिर को हिलाते हुए चुप चाप बेड पर लेट गया। मेरे लेटते ही माया ने अपना हाथ बढ़ाया और मेरी तरफ देखते हुए उसने मेरे लंड को फिर से थाम लिया। मेरा लंड थोड़ा ढीला सा पड़ गया था जोकि उसके हाथ में आते ही फिर से ठुमकने लगा था।


अब आगे,,,,,



माया बड़े प्यार से मेरी तरफ देखते हुए मेरा लंड सहलाए जा रही थी और मैं आँखें बंद कर के ये सोचने लगा था कि साला समय भी क्या चीज़ है जिसके बारे में कोई भी इंसान ये नहीं कह सकता कि कब क्या हो जाए? मैंने तो इस बात का तसव्वुर भी नहीं किया था कि मेरे जीवन में कभी ऐसा भी वक़्त आएगा जब एक खूबसूरत लड़की मेरे लंड को इस तरह से अपने हाथ में ले कर सहलाएगी और मुझे मज़े के सातवें आसमान में पहुंचा देगी। एक वक़्त था जब मैं लड़की ज़ात से खुल कर बात करने में भी शर्माता था और आज ये वक़्त है कि वही लड़की ज़ात मुझे सेक्स का ज्ञान दे रही थी और मैं बिना शर्माए उससे अपना लंड सहलवाते जा रहा था।

मैं ये सोच ही रहा था कि तभी मेरे मुँह से मज़े में डूबी सिसकी निकल गई। माया ने मेरे लंड को अपने मुँह में भर लिया था और अब वो उसका चोपा लगा रही थी। उसने मेरे लंड को दोनों हाथों से कस कर पकड़ लिया था और मेरे लंड के टोपे को इस तरह से चूसे जा रही थी कि पूरे कमरे में दो तरह की आवाज़ें गूंजने लगीं थी। एक तो मेरी सिसकारियों की और एक उसके चोपा लगाने की। मैं एक पल में ही मज़े के सागर में गोते लगाने लगा था। मेरे अंडकोषों में बड़ी तेज़ी से झुरझुरी हो रही थी। मेरे मुँह से तेज़ तेज़ आहें और सिसकारियां निकल रहीं थी और मैं बेड पर पड़ा जैसे छटपटाने सा लगा था।

मुझसे बरदास्त न हुआ तो मैंने जल्दी से हाथ बढ़ा कर माया के सिर को पकड़ा और उसे अपने लंड से हटाने के लिए ज़ोर लगाया तो माया ने अपने मुँह से मेरे लंड को निकाल दिया और मेरी तरफ मुस्कुराते हुए देखा।

"क्या हुआ डियर?" माया ने मुस्कुराते हुए पूछा____"क्या तुम्हें मेरे ऐसा करने से मज़ा नहीं आ रहा?"
"अ..ऐसी बात नहीं है।" मैंने अपनी साँसों को और ख़ुद की हालत को काबू करते हुए कहा_____"मज़ा तो मुझे इतना आ रहा है कि मैं उसके बारे में बता ही नहीं सकता लेकिन मैं ये जानना चाहता हूं कि क्या आज सारा दिन हम यही करते रहेंगे? मेरा मतलब है कि क्या हम इसके आगे नहीं बढ़ेंगे?"

"बिल्कुल बढ़ेंगे डियर।" माया ने उसी मुस्कान के साथ कहा_____"मैं तो बस तुम्हें मज़ा देने के लिए तुम्हारे इस हलब्बी लंड को मुँह में ले कर चूस रही थी। अगर तुम्हारा मन इससे आगे बढ़ने का है तो ठीक है, चलो वही करते हैं।"

माया ने ये कहा तो मैंने खुश हो कर हां में सिर हिला दिया। असल में मैं अब सच में यही चाहता था कि अब मैं वो करूं जो हर लड़के की ख़्वाहिश होती है, यानी किसी लड़की की चूत में अपना लंड डाल कर उसे हचक हचक के चोदना। हालांकि मेरे लिए ये सब एक नया अनुभव था और मुझे इसमें बेहद मज़ा भी आ रहा था लेकिन अब ये सब मुझे ऊबता सा लगने लगा था। अब तो मुझे यही लग रहा था कि कितना जल्दी मैं इस माया की चूत में अपने लंड को डाल दूं और उसके ऊपर सवार हो कर उसकी धुआंधार चुदाई शुरू कर दूं।

"एक बात हमेशा याद रखना डियर।" माया मेरी तरफ आते हुए बोली_____"और वो ये कि तुम जिस फील्ड के लिए आए हो उसमें तुम्हें अपने मन का नहीं करना है बल्कि औरत के मन का करना होगा। औरत जिस तरह से चाहेगी तुम्हें उस तरह से उसे खुश करना होगा। औरत के खुश होने पर या संतुष्ट होने पर ही ये माना जाएगा कि तुम अपनी सर्विस देने में कामयाब हुए हो। अगर तुम्हारी वजह से कोई औरत खुश न हुई और उसने शिकायत का कोई पैग़ाम भेज दिया तो समझो कि इसके लिए तुम्हें संस्था द्वारा सज़ा भी दी जाएगी।"

"य..ये क्या कह रही हो तुम?" मैं माया की ये बातें सुन कर बुरी तरह हैरान हो गया था।
"यही सच है डियर।" माया मुझसे सट कर बैठते हुए बोली____"हालाँकि हम लोग ये बातें किसी को भी नहीं बताते लेकिन क्योंकि तुम ख़ास हो इस लिए मैंने तुम्हें बता दिया है और हां इस बात का ज़िक्र तुम संस्था में किसी से भी मत करना वरना इसका अंजाम अच्छा नहीं होगा।"

"बड़ी अजीब बात है।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा_____"क्या ये भी संस्था का कोई नियम है?"
"शायद अभी तुम्हें संस्था के सारे नियम कानून नहीं बताये गए हैं।" माया ने कहा_____"वरना मेरी बात सुन कर तुम इस तरह हैरान नहीं होते। ख़ैर कोई बात नहीं, जल्द ही तुम्हें सारे नियम कानून पता चल जाएंगे। चलो अब छोड़ो ये बातें और अपनी मर्ज़ी से वो करो जो तुम करना चाहते हो।"

माया इतना कह कर बेड पर सीधा लेट गई थी। उसका गोरा और मादक जिस्म ऐसा था कि मैं चाह कर भी उसके बदन से नज़र नहीं हटा सकता था। उसके सीने पर गर्व से तने हुए बड़े बड़े पर्वत शिखर इतने सुडौल और सुन्दर थे कि मुझसे रहा न गया। मैंने झुक कर फ़ौरन ही उसकी एक चूची के निप्पल को मुँह में भर लिया। अपने दूसरे हाथ से मैंने माया की दूसरी चूची को मसलना शुरू कर दिया। एक हाथ से मैं उसके पेट और नाभि को सहलाने लगा। माया के जिस्म में इसका असर हुआ तो उसने मेरे सिर पर अपना एक हाथ रख लिया जबकि दूसरे हाथ से उसने बेड की चादर को अपनी मुट्ठी में भर लिया।

माया की चूचियों को चूमते हुए मैं जल्दी ही नीचे आया और उसकी रस से भरी चूत को कुछ पल देखने के बाद मैंने उस पर अपना मुँह रख दिया। अपनी जीभ निकाल कर मैंने उसकी चूत की फांकों के बीच नीचे से ऊपर की तरफ फेरा तो माया के जिस्म में कंपकंपी सी हुई। इधर मेरे मुँह में उसकी चूत के रस का खटमिट्ठा स्वाद भर गया। मैंने अपने एक हाथ की दो उंगलियों से उसकी चूत की फांकों को फैलाया तो मुझे उसके अंदर सुर्ख रंग का लिसलिसा सा मंज़र नज़र आया। मेरे बदन में एक झुरझुरी सी हुई और मैंने अपनी एक ऊँगली उसके छेंद पर डाल दिया जिससे माया के जिस्म में फिर से कंपकंपी हुई। उसकी चूत में एक ऊँगली डालने के बाद मैंने उसे यूं ही अंदर घुमाया। मेरी पूरी ऊँगली उसके कामरस से भींग गई थी। मैंने ऊँगली निकाल कर देखा और उसे मुँह में भर लिया। कामरस के स्वाद से बड़ा अजीब सा एहसास हुआ मुझे। मेरा मन किया कि मैं माया की चूत को खा ही जाऊं लेकिन ऐसा करना मुमकिन नहीं था।

मैं अब और बरदास्त नहीं कर सकता था इस लिए मैं उठा और माया की दोनों टांगों को फैला कर उसके बीच में आ गया। मेरा लंड इतना कठोर हो गया था कि अब मुझे उसमें दर्द सा होने लगा था। मेरे पास किताबी ज्ञान था जिसके सहारे मैंने एक हाथ से अपने लंड को पकड़ा और दूसरे हाथ से माया की चूत की फांकों को फैला कर अपने लंड को उसके छेंद के पास टिकाया। मेरी धड़कनें इस वक़्त काफी तेज़ी से चल रहीं थी और इस वक़्त मैं अजीब ही हालत में पहुंच गया था। चूत के छेंद पर लंड के टोपे को टिका कर मैंने अपनी कमर को आगे की तरफ हल्के से ढकेला तो मेरा हाथ माया की चूत से छूट गया जिससे मेरा लंड भी फिसल गया। मैंने चेहरा उठा कर माया की तरफ देखा तो उसे अपनी तरफ ही मुस्कुराते हुए देखता पाया। उसे इस तरह मुस्कुराते देख मुझे शर्म सी महसूस हुई और मैंने फ़ौरन ही उसकी तरफ से नज़रें हटा ली।

मैंने फिर से अपने लंड को माया की चूत के छेंद पर अच्छे से टिकाया और इस बार ज़रा सावधानी से अपनी कमर को आगे की तरफ ढकेला तो मेरे लंड का टोपा उसकी चूत में घुस गया। टोपा घुसते ही मेरे होठों पर मुस्कान उभर आई और मैंने फिर से नज़र उठा कर माया की तरफ देखा। इस बार उसे मुस्कुराता देख मुझे शर्म नहीं महसूस हुई बल्कि ऐसा लगा जैसे मैंने बहुत बड़ी फ़तह हासिल कर ली हो। खै़र मेरे लंड का टोपा उसकी चूत में घुसा तो मैंने अपने लंड से अपना हाथ हटा लिया और माया की दोनों जाँघों को पकड़ कर अपनी कमर को और भी आगे की तरफ धकेला तो मेरा लंड फिर से उसकी चूत में अंदर की तरफ घुसा। मैंने महसूस किया कि माया की चूत अंदर से बेहद गरम है और उसने चारो तरफ से मेरे लंड को जकड़ लिया है।

तीन चार बार में मैंने आहिस्ता आहिस्ता अपने लंड को आधे से ज़्यादा माया की चूत में उतार दिया था। माया के मुख से हर बार सिसकी निकल जाती थी। जब मेरा लंड आधा उसकी चूत में उतर गया तो माया ने मुझे धीरे धीरे धक्का लगाने को कहा तो मैं अपनी कमर को धीरे धीरे आगे पीछे करने लगा। गीली और गरम चूत पर मेरा लंड बहुत ज़्यादा तो नहीं लेकिन कसा हुआ ज़रूर लग रहा था और जैसे जैसे मैं उसे अंदर बाहर कर रहा था वैसे वैसे मुझे मज़ा आ रहा था। देखते ही देखते मज़े में आ कर मैंने तेज़ तेज़ धक्के लगाने शुरू कर दिए। मैंने महसूस किया कि अब ये मेरे लिए मुश्किल काम नहीं है और शायद यही वजह थी कि मेरे धक्कों की रफ़्तार पहले की अपेक्षा तेज़ हो गई थी। माया की मांसल जाँघों को पकड़े मैं तेज़ तेज़ धक्के लगाए जा रहा था। हर धक्के के साथ मेरा लंड और भी गहराई में उतरता जा रहा था जिसकी वजह से माया के मुँह से सिसकारियों के साथ साथ अब आहें भी निकलने लगीं थी।

किसी लड़की के साथ चुदाई करने में सच में इतना मज़ा आता है ये मुझे अब पता चल रहा था। मेरे आनंद की कोई सीमा नहीं थी। मैं आनंद में अपने होश खोता जा रहा था और धीरे धीरे मुझमें एक जूनून सा सवार होता जा रहा था। उसी जूनून के तहत मैं और भी तेज़ी से माया की चूत में अपने लंड को अंदर बाहर करता जा रहा था। मैंने नज़र उठा कर माया की तरफ देखा तो उसे मज़े में अपनी आँखें बंद किए पाया। उसकी बड़ी बड़ी खरबूजे जैसी चूचियां मेरे हर धक्के पर उछल पड़ती थीं। चूचियों का उछलना देख कर मुझे और भी ज़्यादा जोश चढ़ गया और मैं और भी तेज़ी से धक्के लगाने लगा।

पूरे कमरे में माया की मज़े में डूबी आहें और सिसकारियां गूँज रहीं थी। बीच बीच में वो ये भी बोलती जा रही थी कि हां डियर ऐसे ही, बहुत मज़ा आ रहा है। उसके ऐसा कहने पर मैं दोगुने जोश में धक्के लगाने लगता। मैं ख़ुद भी बुरी तरह हांफने लगा था लेकिन मज़ा इतना आ रहा था कि मैं रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। काफी देर तक यही आलम रहा। उसके बाद माया ने मुझे रुकने को कहा तो मैं रुक गया। मुझे उसका यूं रोकना अच्छा तो नहीं लगा था लेकिन जब मैंने उसे घोड़ी बनते हुए देखा तो मुझे किताब में बने चित्र की याद आई और मैं मुस्कुरा उठा। घोड़ी बनते ही माया ने मुझसे कहा कि मैं पीछे से उसकी चूत में अपना लंड डाल कर चुदाई करूं तो मैंने ऐसा ही किया। मेरे मोटे लंड की वजह से उसकी चूत का छेंद खुला हुआ साफ़ दिख रहा था जिसकी वजह से मुझे उसके छेंद पर अपना लंड डालने में कोई परेशानी नहीं हुई।

माया घोड़ी बनी हुई थी और मैं उसकी कमर को दोनों हाथों से पकड़े तेज़ तेज़ धक्के लगा रहा था। काफी देर तक मैं ऐसे ही धक्के लगाता रहा। माया जब थक गई तो उसने फिर से मुझे रुकने को कहा।

"तुम सच में कमाल हो डियर।" माया ने सीधा हो कर लेटते हुए कहा_____"मैंने ऐसा मर्द नहीं देखा जिसका पहली बार में इतना गज़ब का स्टेमिना हो। काश तुम हमेशा के लिए मेरे पास ही रहते।"

"तुम एक ऐसी लड़की हो माया।" मैंने माया को उसके नाम से सम्बोधित करते हुए कहा____"जिसने मुझे जीवन में पहली बार सेक्स का इतना सुख दिया है। इस लिए तुम्हारे लिए मेरे दिल में हमेशा एक ख़ास जगह रहेगी। अगर तुम्हें संभव लगे तो मुझे ज़रूर याद करना। मैं जहां भी रहूंगा तुम्हारे पास ज़रूर आऊंगा।"

"यही तो मुश्किल है डियर।" माया ने जैसे अफ़सोस जताते हुए कहा_____"यहाँ से जाने के बाद कोई भी मर्द हमारे पास वापस नहीं आता और ना ही हमने कभी उन्हें बुलाने की कोशिश की। ऐसा नहीं है कि हमें कभी उन मर्दों की याद नहीं आती लेकिन नियम कानून के डर से हमने कभी भी उन्हें बुलाने का नहीं सोचा। दूसरी बात ये भी थी कि उनसे सम्बन्ध स्थापित करने का हमारे पास कोई जरिया नहीं था। ख़ैर छोड़ो ये सब बातें और इस असीम सुख का आनंद लो। जब तक यहाँ हो तब तक तो तुम हमारे ही रहोगे न।"

माया की इस बात ने मेरा दिल खुश कर दिया था। मैंने उसके होठों को प्यार से चूम लिया और एक बार फिर से उसकी चूत में अपना लंड डाल कर चुदाई का कार्यक्रम शुरू कर दिया। इस बार मैंने पहले से भी ज़्यादा जोश में आ कर माया की हचक हचक कर चुदाई की थी। माया इस बार ज़्यादा देर तक ठहर नहीं पाई और झटके खाते हुए झड़ने लगी थी। झड़ते वक़्त उसने अपनी दोनों टांगों के बीच मेरी कमर को जकड़ लिया था। जब वो झड़ कर शांत हो गई तो मैंने फिर से धक्के तेज़ कर दिए। क़रीब पांच मिनट बाद ही मुझे लगने लगा कि अब मैं भी झड़ने की कगार पर आ गया हूं। मेरे मुँह से निकलती सिसकारियों से ही माया को पता चल गया कि मैं झड़ने वाला हूं इस लिए उसने फ़ौरन ही मुझे अपनी चूत से मेरा लंड निकालने को कहा तो मैंने न चाहते हुए भी अपना लंड निकाल लिया।

मैंने लंड निकाला तो माया जल्दी से उठी और मेरे लंड को पकड़ कर अपने मुँह में भर लिया। मैं इस वक़्त बेहद आनंद और जोश में था इस लिए जैसे ही उसने मेरे लंड को अपने मुँह में भरा तो मैंने उसके सिर को पकड़ कर उसके मुख को ही चोदना शुरू कर दिया। जल्दी ही मैं मज़े की चरम सीमा पर पंहुच गया और फिर एक लम्बी आह भरते हुए मेरा पूरा जिस्म अकड़ गया। मैं जैसे आसमान से धरती पर गिरने लगा। मुझे कोई होश नहीं था कि मैंने कितने झटके खाए और मेरे लंड का सारा पानी कहां गया। चौंका तब जब माया ने मुझे ज़ोर का धक्का दिया। उसके धक्के से मैं बेड पर भरभरा कर गिर गया। उधर माया का मुँह मेरे लंड से निकले कामरस से लबालब भरा हुआ था और उसके मुख से बाहर भी निकल कर बेड पर गिरता जा रहा था। उसका चेहरा लाल सुर्ख पड़ा हुआ था। आँखें बंद करते वक़्त मुझे एहसास हुआ कि शायद एक बार फिर से मैंने माया की हालत ख़राब कर दी थी जिसके लिए मुझे बेहद अफ़सोस और शर्मिंदगी हुई।

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शिवकांत वागले ने फ़ौरन ही डायरी को बंद कर दिया और लम्बी लम्बी सांसें लेते हुए कुर्सी की पिछली पुश्त से अपनी पीठ टिका लिया। इस वक़्त उसकी हालत बड़ी अजीब सी दिख रही थी। चेहरे पर पसीना उभरा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे उसके अंदर का तापमान इस वक़्त बढ़ गया था। हालांकि सच तो यही था कि उसके अंदर का तापमान बढ़ चुका था। विक्रम सिंह की डायरी में उसकी गरमा गरम कहानी पढ़ कर उसकी ख़ुद की हालत ख़राब हो गई थी। दो दो जवान बच्चों का बाप होते हुए भी वागले अपने अंदर सेक्स की गर्मी महसूस कर रहा था। कहानी में तो विक्रम सिंह और माया चरम सीमा में पहुंच कर तथा आनंद को प्राप्त कर के शांत पड़ गए थे लेकिन यहाँ वागले का हाल बेहाल सा नज़र आ रहा था। उसका अपना लंड पैंट के अंदर अकड़ा हुआ था।

वागले ने अपनी मौजूदा हालत को ठीक करने के लिए आँखें बंद कर ली किन्तु आँखें बंद करते ही उसकी बंद पलकों के तले कहानी के वो सारे मंज़र एक एक कर के दिखने लगे जिन्हें अभी उसने पढ़ा था। वागले ने फ़ौरन ही अपनी आँखें खोली और केबिन में इधर उधर देखने के बाद उसने टेबल पर रखे पानी के गिलास को उठा कर पानी पिया। माथे पर उभर आए पसीने को उसने रुमाल से पोंछा और फिर अपनी बेचैनी को दूर करने के लिए उसने एक सिगरेट जला ली। सिगरेट के लम्बे लम्बे कश लेने के बाद उसने ढेर सारा धुआँ हवा में उड़ाया। न चाहते हुए भी बार बार उसकी आँखों के सामने कहानी में लिखा एक एक मंज़र घूमने लगता था। वागले सोचने लगा कि विक्रम सिंह जैसा इंसान एक डायरी में अपनी इस तरह की आप बीती कैसे लिख सकता है जबकि उसे ख़ुद इस बात का एहसास हो कि अगर उसका लिखा हुआ किसी ने पढ़ लिया तो उसके बारे में क्या सोचेगा?

शिवकांत वागले को समझ में नहीं आ रहा था कि अगर विक्रम सिंह को उसे अपने अतीत के बारे में ही बताना था तो वो दूसरे तरीके से लिख कर भी बता सकता था लेकिन इस तरह सेक्स से भरी कहानी लिखने का क्या मतलब था उसका? आख़िर उसके ज़हन में इस तरह से अपनी आप बीती लिखने की मूर्खता क्यों आई होगी? वागले को याद आया कि जिस दिन विक्रम सिंह ने उसे ये डायरी दी थी उस दिन उसने जाते समय उससे ये भी कहा था कि चाहे जैसी भी परिस्थितियां बनें लेकिन वो उसे खोजने की कभी कोशिश न करे। वागले को समझ न आया कि आख़िर विक्रम सिंह ने उससे ऐसा क्यों कहा होगा? क्या इसके पीछे भी कोई ऐसी बात हो सकती है जिसके बारे में फिलहाल वो सोच नहीं पा रहा है?

शिवकांत वागले की बेचैनी जब सिगरेट पीने के बाद भी शांत न हुई तो वो कुर्सी से उठ कर जेल का चक्कर लगाने के लिए निकल गया। इसके पहले वो डायरी को ब्रीफ़केस में डालना नहीं भूला था। शाम तक वागले जेल में ही इधर उधर चक्कर लगाता रहा और दूसरे कुछ ख़ास कै़दियों से मिलता जुलता रहा। उसके बाद वो ब्रीफ़केस ले कर अपने सरकारी आवास की तरफ निकल गया।

घर पर आया तो सावित्री ने ही दरवाज़ा खोला। वागले ने एक नज़र सावित्री पर डाली और फिर बिना कुछ बोले ही अपने कमरे की तरफ बढ़ गया। उसका बेटा चंद्रकांत और बेटी सुप्रिया शायद घर पर नहीं थी वरना इस वक़्त वो वागले को ड्राइंग रूम में ज़रूर दिख जाते। ख़ैर वागले ने कमरे में जा कर अपनी वर्दी उतारी और तौलिया ले कर बाथरूम में घुस गया।

इधर सावित्री किचेन में उसके लिए चाय बनाने लगी थी और सोचती भी जा रही थी कि क्या उसका पति सच में उससे नाराज़ है या फिर ये उसका वहम है? हालांकि जब उसने दरवाज़ा खोला था तो वागले ने उससे कोई बात नहीं की थी और इसी बात से सावित्री को लगने लगा था कि उसका पति शायद सच में ही उससे नाराज़ है। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अब वो अपने पति से किस तरह बात करे?

नहा धो कर और पजामा कुर्ता पहन कर वागले कमरे से निकला और घर से बाहर लान में एक तऱफ रखी कुर्सी पर बैठ गया। सावित्री उसी के निकलने का इंतज़ार कर रही थी। जैसे ही वो बाहर गया तो सावित्री भी ट्रे में दो कप चाय ले कर बाहर निकल गई। लान में वागले के पास आ कर उसने ट्रे को अपने पति के सामने किया तो वागले ने बिना कुछ बोले चुपचाप ट्रे से चाय का कप उठा लिया। सावित्री ने ट्रे से अपना कप ले कर ट्रे को वही सेंटर टेबल पर रख दिया और उस पार रखी एक कुर्सी पर बैठ गई।

शिवकांत वागले ने जब सावित्री को अपने सामने वाली कुर्सी पर बैठते देखा तो वो अपनी कुर्सी से उठ गया। सावित्री ये देख कर चौंकी और उसने वागले की तरफ देखते हुए धीमे स्वर में कहा_____"कहां जा रहे हैं? अब क्या मेरा चेहरा भी नहीं देखना चाहते हैं?"

वागले ने सावित्री की इस बात को सुन कर एक नज़र उसकी तरफ देखा और बिना कुछ कहे अंदर की तरफ चला गया। पति के इस तरह चले जाने से सावित्री को बहुत बुरा लगा। आज सारा दिन वो यही सब सोच कर उदास रही थी और इस वक़्त पति का ऐसा बर्ताव देख कर उसका गला भर आया था। हालांकि वो जानती थी कि दोष उसी का है। माना कि उसके दो दो जवाब बच्चे थे लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं हो सकता था न कि बच्चों के जवान हो जाने की वजह से उनका अपना कोई निजी जीवन ही नहीं रहा या अपनी कोई हसरतें ही नहीं रहीं? सावित्री जानती थी कि वागले कभी इस तरह उसे सेक्स के लिए नहीं कहता था बल्कि वो तभी कहता था जब कभी ख़ुद उसका मन होता था वरना दोनों के बीच अब सेक्स न के बराबर ही होता था। सावित्री तो कभी भी इसके लिए पहल नहीं करती थी और वागले अगर पहल करता था तो सावित्री हमेशा ही उसे जवाब में बच्चों का हवाला दे कर इसके लिए मना कर देती थी। इसके पहले वागले कभी भी इस तरह उससे नाराज़ नहीं हुआ था किन्तु इस बार शायद सावित्री ने सच में उसका दिल दुख दिया था।

सावित्री की आँखों में आंसू तो आए लेकिन कुर्सी से उठ कर वागले के पीछे जाने की उसमें हिम्मत न हुई। किसी तरह उसने चाय ख़त्म की और फिर अंदर जा कर रात के लिए खाना बनाने में लग गई। उधर वागले दूसरे कपड़े पहन कर घर से बाहर कहीं निकल गया।

रात में वागले उस वक़्त आया जब खाना खाने का वक़्त हो गया था। खाना खाने के बाद वो कमरे में गया और पैंट की जगह पजामा पहन कर बाहर आया। ड्राइंग रूम में रखे सोफे पर वो बैठ गया और टीवी चला कर उसमें न्यूज़ देखने लगा। न्यूज़ देखने में वो इतना खो गया कि उसे वक़्त का पता ही नहीं चला और शायद आगे भी उसे पता न चलता अगर सावित्री आ कर स्विच बोर्ड से टीवी का बटन न बंद कर देती।

"सोने का वक़्त हो गया है।" सावित्री ने शांत भाव से कहा_____"कमरे में चलिए। मैंने दूध का गिलास वहीं स्टूल में रख दिया है।"
"ज़रुरत नहीं है।" वागले ने रूखे भाव से कहा____"मैं यहीं सोऊंगा।"

"अब भला ये क्या बात हुई?" सावित्री ने कातर भाव से वागले की तरफ देखा तो वागले ने सपाट लहजे में कहा____"बात कुछ नहीं हुई। मुझे यहीं पर सोना है। तुम जाओ और सो जाओ।"
"पहले तो कभी आप यहाँ नहीं सोए।" सावित्री ने कहा____"फिर आज क्यों यहाँ पर सोने को कह रहे हैं?"

"क्योंकि यही पर मेरा सोने का मन है।" वागले ने कहा____"अब जाओ यहाँ से।"
"भगवान के लिए ऐसी बातें मत कीजिए?" सावित्री ने इस बार थोड़ा दुखी भाव से कहा____"बच्चे पास में ही अपने कमरे में है। अगर उन्होंने सुन लिया कि आप यहाँ सोने की बात कह रहे हैं तो वो क्या सोचेंगे?"

"तो क्यों सुना रही हो उन्हें?" वागले ने उखड़े हुए भाव से कहा____"जब मैंने कह दिया कि मुझे यहीं पर सोना है तो क्यों मुझे कमरे में सोने को कह रही हो? अब जाओ यहाँ से या फिर अगर चाहती हो कि बच्चे सुन ही लें तो ऐसे ही लगी रहो। मुझे कोई फ़र्क नहीं पड़ता।"

"मैं मानती हूं कि मुझसे ग़लती हुई है।" सावित्री की आँखों में आंसू भर आए____"इस लिए मैं अपनी ग़लती को स्वीकार करती हूं और अब से वही करुँगी जो आप चाहेंगे। अब भगवान के लिए गुस्सा थूक दीजिए और कमरे में चलिए।"

"तुम्हें क्या लगता है कि मैं तुमसे उस वजह से गुस्सा हूं?" वागले ने कहा____"नहीं, तुम ग़लत सोच रही हो। तुम्हारी इच्छाएं मर गई हैं तो इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है बल्कि दोष तो मेरा है जिसे अभी तक तृष्णा ने अपना शिकार बना रखा है, लेकिन तुम फ़िक्र मत करो। मैं अपनी ज़रूरत कहीं और से पूरी कर लूंगा। आज की दुनियां में पैसे से सब कुछ मिल जाता है।"

"हे भगवान! ये क्या कह रहे हैं आप?" सावित्री के चेहरे पर हैरत के भाव उभर आए____"इतनी सी बात के लिए आप ऐसा कैसे सोच सकते हैं?"
"क्यों नहीं सोच सकता?" वागले ने दो टूक भाव से कहा_____"मेरी ज़िन्दगी है, मैं जैसा चाहूं सोच सकता हूं। इसमें तुम्हें कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। जिस तरह तुम अपनी सोच के अनुसार जीवन जी रही हो उसी तरह हर इंसान को अपनी सोच के अनुसार जीवन जीने का हक़ है।"

"मैं कह तो रही हूं कि अब से जो आप कहेंगे मैं वही करुंगी।" सावित्री ने बेचैनी से कहा_____"फिर ऐसी बातें क्यों कर रहे हैं आप?"
"मुझे अब तुमसे कुछ नहीं चाहिए।" वागले ने स्पष्ट रूप से कहा____"अब जाओ यहाँ से, मेरा दिमाग़ मत ख़राब करो।"

"क्या हुआ पापा?" तभी ड्राइंग रूम में चंद्रकांत की आवाज़ गूँजी तो सावित्री ने चौंकते हुए पीछे मुड़ कर देखा। पीछे कमरे के दरवाज़े पर चंद्रकांत खड़ा था। अपने बेटे को देख कर और उसकी बात सुन कर जहां सावित्री ये सोच कर बुरी तरह घबरा गई कि कहीं उसके बेटे ने सारी बातें तो नहीं सुन ली तो वहीं वागले पर जैसे अपने बेटे की इस आवाज़ से कोई फर्क ही नहीं पड़ा।

"कुछ नहीं बेटा।" वागले ने उसकी तरफ देखते हुए सामान्य भाव से कहा_____"वो हम ऐसे ही इधर उधर की बातें कर रहे थे। तुम जाओ अपने कमरे में, और आराम से सो जाओ।"
"जी पापा।" चंद्रकांत ने बड़े अदब से कहा और वापस अपने कमरे में जा कर उसने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया।

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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अध्याय - 09
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अब तक,,,,,

"कुछ नहीं बेटा।" वागले ने उसकी तरफ देखते हुए सामान्य भाव से कहा_____"वो हम ऐसे ही इधर उधर की बातें कर रहे थे। तुम जाओ अपने कमरे में, और आराम से सो जाओ।"
"जी पापा।" चंद्रकांत ने बड़े अदब से कहा और वापस अपने कमरे में जा कर उसने कमरे का दरवाज़ा बंद कर लिया।


अब आगे,,,,,,


"ये आप बिलकुल भी ठीक नहीं कर रहे हैं।" बेटे चंद्रकांत के दरवाज़ा बंद करते ही सावित्री ने वागले की तरफ देखते हुए जैसे आहत भाव से कहा_____"इतनी सी बात के लिए आप इतनी बड़ी ज़िद कर के क्यों बैठ गए हैं?"

"क्या तुमने सोच लिया है कि तुम इस वक़्त मुझे यहाँ पर शान्ति से नहीं बैठने दोगी?" वागले ने शख़्त भाव से कहा_____"और अगर सच में सोच लिया है तो ठीक है मैं इस घर से ही चला जाता हूं।"

"नहीं नहीं भगवान के लिए कहीं मत जाइए।" वागले जैसे ही सोफे से उठा तो सावित्री ने झट से उसके पैर पकड़ लिए_____"मैं कबूल कर चुकी हूं न कि मुझसे ग़लती हुई है और मैं ये भी कह चुकी हूं कि अब से मैं वही करुँगी जो आप कहेंगे। इस लिए मुझ पर दया कीजिए और मेरे साथ अंदर कमरे में चलिए। इस उम्र में ये सब करना आपको ज़रा भी शोभा नहीं देता।"

"मुझे क्या शोभा देता है और क्या नहीं इसका तो तुम्हें बहुत अच्छी तरह से ख़याल है।" वागले ने जैसे ताना मारते हुए कहा_____"लेकिन बाकी और किन चीज़ों का तुम्हे ख़याल रखना चाहिए क्या इसका भी ख़याल है तुम्हें?"

"अगर मुझे पता होता कि आपका वो सब करने का बहुत ही मन था।" सावित्री ने धीमे स्वर में नज़रें झुका कर कहा____"तो मैं उस वक़्त आपको बिलकुल भी मना न करती। मैं तो यही समझी थी कि हर रोज़ की तरह आप उस वक़्त भी मुझे बस परेशान ही कर रहे थे इस लिए मैंने वो सब कहा था। मुझे ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि आप उतनी सी बात पर इस तरह नाराज़ हो जाएंगे।"

"बात सिर्फ इतनी नहीं है।" वागले ने सोफे पर बैठते हुए कहा_____"बल्कि ये भी है कि तुमने फ़ोन कर के मुझसे एक बार भी बात करना ज़रूरी नहीं समझा। दोपहर को तुमने अपने बेटे से फ़ोन करवाया और उससे ये पता लगवाया कि मैंने श्याम को खाना लाने के लिए क्यों नहीं भेजा? इतनी सी बात तुम ख़ुद भी तो फ़ोन पर मुझसे पूंछ सकती थी लेकिन तुमने नहीं पूछा। इसका तो यही मतलब हुआ न कि तुम्हें मेरी नाराज़गी से या किसी भी बात से कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता?"

"नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है।" सावित्री ने जल्दी से कहा____"आप ग़लत समझ रहे हैं। मैं तो सुबह ही आपको फ़ोन करने वाली थी लेकिन डर की वजह से आपको फ़ोन करने की मुझ में हिम्मत ही नहीं हुई। यही वजह थी कि मैंने हमारे बेटे को फ़ोन करने के लिए कहा था।"

सावित्री की बात सुन कर शिवकांत वागले ने मन ही मन सोचा कि शायद इतनी डोज सावित्री के लिए अब काफी हो गई है। हालांकि सावित्री से इस तरह बेरुख़ी से बात करने में उसे ख़ुद भी तक़लीफ हो रही थी। सावित्री जैसी भी थी लेकिन वो उसे बहुत मानता था। उसने सावित्री से इतनी कठोरता में बात करने के लिए खुद को बड़ी मुश्किल से कठोर बनाया था। ख़ैर उसने अब और ज़्यादा बात को न बढ़ाने का फैसला किया और फिर सावित्री से बिना कुछ बोले उठा और कमरे की तरफ बढ़ गया। इधर सावित्री ने जब उसे कमरे में जाते देखा तो उसने राहत की सांस ली और खुद भी कमरे की तरफ तेज़ी से बढ़ गई।

सावित्री जब कमरे में पहुंची तो उसने वागले को बेड पर लेटा हुआ पाया। ये देख कर वो मन ही मन खुश हुई और फिर कमरे के दरवाज़े को अंदर से बंद कर के वो भी बेड पर जा कर वागले के बगल से लेट गई। उसने सोच लिया था कि अब से वो किसी भी चीज़ के लिए अपने पति को मना नहीं करेगी। इस लिए बेड पर लेटते ही उसने वागले की तरफ करवट ली और अपने पति की तरफ देखने लगी।

"सुनिए।" वागले को ख़ामोशी से आँखें बंद किए देख उसने आहिस्ता से कहा____"वो मैं ये कह रही हो कि सब कुछ भुला कर मुझे प्यार कीजिए न।"

सावित्री के इस तरह कहने से वागले जो आँखें बंद किए लेटा हुआ था वो मन ही मन मुस्कुराया किन्तु बोला कुछ नहीं और ना ही उसने अपनी आँखें खोली। असल में वो खुद पहल नहीं करना चाहता था। वो चाहता था कि उसका दबदबा अभी फिलहाल ऐसे ही बना रहे। वो नहीं चाहता था कि सावित्री को ये भनक लग जाए कि ये सब वो नाटक कर रहा था ताकि सावित्री इस सबसे थोड़ा डर जाए और खुद ही वो सब करने के लिए राज़ी हो जाए।

"सुनिए न।" सावित्री खिसक कर वागले के क़रीब आती हुई बोली____"अब नाराज़गी छोड़ दीजिए न। मैं अब से वही करुँगी जो आप कहेंगे।"
"कोई ज़रूरत नहीं है।" वागले ने नाटक को जारी किए हुए कहा_____"चुपचाप सो जाओ और मुझे भी सोने दो।"

"अच्छा सुनिए तो।" सावित्री एकदम वागले से चिपक कर उसके सीने पर अपना हाथ फिराते हुए बोली_____"मैं ये कह रही हूं कि आप मुझे भी ऐसा कोई उपाय बताइए जिससे मेरा भी मन वो सब करने को किया करे।"

"क्या करने को?" वागले मन ही मन सावित्री की इस बात से चौंका था और मारे उत्सुकता के पूंछ बैठा था, जिसके जवाब में सावित्री ने धीमे से कहा____"वही, प्यार करने को।"
"अब ये क्या बकवास है?" वागले ने मानो खीझते हुए कहा____"चुपचाप सो जाओ।"

"ऐसे कैसे सो जाऊं?" सावित्री ने वागले के सीने से अपना हाथ उठा कर वागले के चेहरे को सहलाते हुए कहा____"मुझे आपसे जानना है कि मैं ऐसा क्या करूं जिससे मेरा भी मन हर वक़्त आपसे प्यार करने को किया करे? मुझे भी इस बारे में कोई उपाय बताइए न।"

सावित्री की बात सुन कर वागले को मन ही मन मज़ा तो आया लेकिन उसे ये न समझ आया कि वो इस बारे में सावित्री को जवाब के रूप में क्या उपाय बताए? वो बड़ी तेज़ी से सोचने लगा था कि सावित्री को ऐसा क्या बताए जिससे उसे उसके जवाब से संतुष्टि मिल जाए।

"क्या हुआ?" सावित्री ने वागले को ख़ामोश देखा तो उसने इस बार सिर उठा कर वागले की तरफ देखा और कहा____"बताइए न। आप इस तरह चुप क्यों हैं? क्या अभी भी नाराज़ हैं मुझसे?"

सावित्री की इतनी मासूमियत से कही गई इस बात को सुन कर वागले का दिल मानो बुरी तरह पसीज गया और उसके जज़्बात मचल उठे। उसने अपनी आँखें खोल कर और सिर को थोड़ा ब्यवस्थित करते हुए कहा_____"मेरी समझ में इसका कोई उपाय नहीं होता मेरी जान। ये तो बस एक एहसास है। एक ऐसा एहसास जिसके कई रूप होते हैं। हम जिसे प्यार करते हैं उसके लिए हमारे दिल में प्यार का एहसास होता है और उस एहसास के तहत इंसान के ज़हन में तरह तरह के जज़्बात उभरने लगते हैं। जैसे मैं तुमसे बेहद प्यार करता हूं तो मेरे अंदर तुम्हारे प्रति उस प्यार के एहसास के तहत ये ख़याल उभरते हैं कि मैं अपने प्यार को तुम्हारे सामने अपने तरीके से ज़ाहिर करूं।"

"ये तो ठीक है।" सावित्री ने कहा____"लेकिन जिनसे हम प्यार नहीं करते उनके प्रति हमारे अंदर किस तरह के ख़याल उभरते हैं?"
"ये तो किसी ब्यक्ति विशेष को देखने के बाद ही पता चलता है।" वागले ने सोचते हुए कहा____"जिनसे हमारे जैसे सम्बन्ध होते हैं उनके प्रति हमारे अंदर वैसे ही ख़याल उभरते हैं।"

"ख़ैर छोड़िए।" सावित्री ने जैसे पहलू बदला____"अब ये बताइए कि इस वक़्त मेरे प्रति कैसे ख़याल उभर रहे हैं आपके अंदर?"
"सच सच बताऊं या यूं ही?" वागले ने धड़कते दिल से ये कहा तो सावित्री ने मुस्कुराते हुए कहा____"सच सच ही बताइए न। झूठ मूठ का क्यों बताएँगे?"

सावित्री की बात सुन कर वागले ने उसको पकड़ कर उसे सीधा किया और फिर उठ कर उसके चेहरे की तरफ झुकते हुए कहा_____"तुम्हारे प्रति मेरे अंदर कैसे ख़याल उभर रहे हैं ये मैं कर के दिखाऊंगा।"

कहने के साथ ही वागले ने सावित्री के गुलाबी होठों पर अपने होंठ रख दिए। वागले के ऐसा करते ही सावित्री के जिस्म में झुरझुरी सी हुई और उसने अपनी आँखें बंद कर ली। उसने वागले को रोकने का सोचा भी नहीं था।

वागले जो विक्रम सिंह की गरमा गरम कहानी पढ़ कर जाने कब से भरा बैठा था उसने सावित्री के होठों को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया। उसके ज़हन में एकदम से माया का ख़याल उभर आया था और फिर वो खुद को विक्रम सिंह समझ बैठा था। सावित्री पहले तो चौंकी थी फिर उसने अपने आपको जैसे पूरी तरह से वागले के सुपुर्द कर दिया। वो भी देखना चाहती थी कि वागले में आज अचानक इस तरह बदलाव कैसे आ गया था?

उधर वागले कुछ देर तक सावित्री के होठों को चूमता चूसता रहा और जब उसकी साँसें भर आईं तो उसने चेहरा ऊपर कर लिया। उसने आँखें खोल कर सावित्री की तरफ देखा तो उसे अपनी आँखे बंद किए पाया। उसकी साँसें भी चढ़ी हुईं थी। बल्ब की रौशनी में उसका चेहरा हल्का सुर्ख पड़ा हुआ दिख रहा था। साँसें दुरुस्त हुईं तो उसने भी आँखें खोल कर वागले की तरफ देखा। वागले से नज़रें चार होते ही उसके चेहरे पर शर्म के भाव उभर आए और होठों पर मुस्कान नाच उठी।

"तुम्हारे इन होठों में आज भी शहद जैसी वही मिठास है जो तब थी जब तुम मेरी बीवी बन कर मेरी ज़िन्दगी में आई थी।" वागले ने सावित्री की गहरी आँखों में देखते हुए प्यार से कहा____"हमारे बच्चे क्या हुए जैसे हमारे बीच का सारा सिस्टम ही बिगड़ गया।"

"किसी के भी जीवन में वक़्त हमेशा एक जैसा नहीं रहता।" सावित्री ने वागले की आँखों में जैसे झांकते हुए कहा_____"वक़्त के साथ साथ हर चीज़ का सिस्टम भी बदल जाता है। उन चीज़ों के बारे में हमें बहुत कुछ सोचना भी पड़ता है और समझौता भी करना पड़ता है।"

"जानता हूं।" वागले ने सावित्री के दाहिने गाल को अपने एक हाथ से सहलाते हुए कहा____"किन्तु एक चीज़ जीवन के आख़िर तक बनी रहती है जिसे हम प्यार कहते हैं। ये प्यार ही है जिसके सहारे दुनियां का हर सिस्टम अपनी जगह पर ब्यवस्थित है। ख़ैर, ज़माना बदल गया है मेरी जान। आज के बच्चे भी ये समझते हैं कि उनके माता पिता को भी एक दूसरे की प्यार की ज़रूरत महसूसत होती है जिसके लिए उन्हें अपने माता पिता को उचित और मालूल समय देना चाहिए। आज कल तो ऐसे भी बच्चे होते हैं जो बड़े होने के बाद अपने माता पिता को अपना दोस्त समझने लगते हैं और उनसे हर तरह की बातें बड़ी आसानी से साझा करते हैं।"

"करते होंगे।" सावित्री ने कहा____"पर हमारे बच्चे ऐसे तो नहीं हैं न और ना ही हम ऐसे हैं कि अपने बीच की ऐसी बातों को उनके बीच सहजता से ज़ाहिर कर दें।"
"किसी के भी बच्चे या किसी के भी माता पिता शुरू से ऐसे नहीं होते।" वागले ने मानो समझाते हुए कहा____"बल्कि इन सब बातों के बारे में गहराई से सोच कर ही वो इसकी शुरुआत करते हैं ताकि माता पिता का अपने बच्चों के बीच एक ऐसा ताल मेल बना रहे जिससे उन्हें बड़ी से बड़ी बात के लिए एक दूसरे से कहने सुनने में संकोच करने जैसी सिचुएशन पैदा न हो।"

"तो क्या अब आप भी हमारे बच्चों के बीच इसी तरह का ताल मेल बनाने का सोच रहे हैं?" सावित्री ने सवालिया निगाहों से वागले को देखा।
"नहीं।" वागले ने मुस्कुराते हुए कहा____"मैं फिलहाल ये सोच रहा हूं कि इस वक़्त अपनी खूबसूरत बीवी को जी भर के प्यार करूं और हां ये भी चाहता हूं कि मेरी बीवी भी उसी तरह मुझसे प्यार करे।"

"आपको जो करना है कीजिए।" सावित्री ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"मैं आपको किसी चीज़ के लिए रोकूंगी नहीं।"
"ऐसे नहीं भाग्यवान।" वागले ने कहा____"बल्कि ऐसे कि उस प्यार में तुम्हें भी उतना ही आनंद और सुख प्राप्त हो जितना की मुझे प्राप्त होगा। एक तो तुमने घर परिवार और बच्चों के अलावा कुछ और सोचना ही बंद कर दिया है इस लिए तुम्हारे अंदर के प्यार वाले वो एहसास ही लुप्त हो गए हैं। उन्हें अपने अंदर फिर से जगाओ मेरी जान। हम दोनों के जीवन का कोई भरोसा नहीं है, इस लिए मैं चाहता हूं कि जब तक साँसें हैं और जब तक मुमकिन हो सके तब तक हम एक दूसरे के बीच प्यार को इस तरह बनाए रखें कि एक पल के लिए भी एक दूसरे से जुदा न रह सकें।"

"मैं पूरी कोशिश करुँगी कि अब से ऐसा ही हो।" सावित्री ने कहा____"किन्तु एक बात बताइए कि इतने सालों बाद अचानक से ऐसा क्या हो गया है जिसकी वजह से आपके अंदर प्यार करने का इस क़दर भूत सवार हो गया है?"

"क्या तुम्हें लगता है कि इसकी कोई ख़ास वजह है?" वागले ने उल्टा सवाल करते हुए पूछा।
"हां क्यों नहीं।" सावित्री ने वागले के चेहरे के भावों को जैसे गौर से पढ़ते हुए कहा____"मुझे तो पूरा यकीन है कि कुछ तो ऐसा हुआ है जिसकी वजह से अचानक से आप पर ये बदलाव आया है, वरना आज से पहले आप कभी भी ये सब करने के नाम पर मुझसे इस तरह नाराज़ नहीं हुए थे।"

सावित्री की बात सुन कर वागले तुरंत कुछ बोल न सका था, बल्कि सावित्री के चेहरे को ये सोच कर देखता रह गया था कि अब वो सावित्री को कैसे बताए कि ये सब विक्रम सिंह की डायरी पढ़ने से हुआ है? हालांकि कई बार उसके अपने मन में भी ये ख़याल उभरे थे कि उसके अंदर आए इन बदलावों की वजह क्या विक्रम सिंह की कहानी पढ़ना है? क्या सच में विक्रम सिंह की कहानी ने उसके अंदर सेक्स की एक उत्तेजना को जाग्रत कर दिया है? वागले इस बारे में न जाने कितनी ही बार सोच चुका था और वो इस बात को स्वीकार भी कर चुका था कि ये सब विक्रम सिंह की डायरी पढ़ने का ही नतीजा था किन्तु कहीं न कहीं विक्रम सिंह की कहानी ने उसे ये भी एहसास कराया था कि सेक्स एक ऐसी चीज़ है जो उम्र नहीं देखता बल्कि वो अपनी ज़रूरत को पूरा करने के लिए रास्ता और उपाय देखता है। विक्रम सिंह की कहानी ने उसे एहसास कराया था कि औरत और मर्द अपनी हवस को पूरा करने के लिए जाने क्या क्या कर डालते हैं। हवस का नशा जब इंसान के दिलो दिमाग़ पर हावी हो जाता है तो वो सही और ग़लत नहीं देखता बल्कि वो उस नशे का इलाज़ ही खोजता है।

"क्या हुआ?" वागले को एकदम से कहीं गुम हो गए देख सावित्री ने कहा____"कहां खो गए आप?"
"आं..हां।" वागले हल्के से चौंका____"नहीं, कहीं नहीं। असल में काफी समय से मैं इस बारे में सोच रहा था और तुमसे कह भी रहा था लेकिन तुम हमेशा की तरह मना कर देती थी और मैं भी ये सोच कर फिर कुछ नहीं कहता था कि तुम दिन भर के कामों की वजह से बुरी तरह थक जाती हो इस लिए क्यों तुम्हे परेशान करना? ख़ैर मैंने सोच लिया है कि मैं घर के काम के लिए एक नौकरानी रख दूंगा जिससे तुम पर ज़्यादा बोझ न पड़े।"

"अरे! इसकी कोई ज़रूरत नहीं है।" सावित्री ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा____"आप किसी नौकरानी वौकरानी को मत रखना। घर के काम इतने भी ज़्यादा नहीं होते हैं कि मैं थक जाऊं और वैसे भी काम करना तो ज़रूरी ही है न। काम नहीं करुँगी तो खा खा के मोटी हो जाउंगी, और कुछ दिन बाद ऐसी हालत हो जाएगी कि उठना बैठना भी बंद हो जाएगा मेरा।"

"मैं कुछ नहीं सुनना चाहता।" वागले ने कहा____"मैंने सोच लिया है कि घर के सभी बड़े बड़े काम करने के लिए एक नौकरानी रख दूंगा। तुम्हारा काम सिर्फ खाना बनाने का रहेगा, क्योंकि मुझे तो तुम्हारे हाथ का बना हुआ खाना ही पसंद है।"

वागले की बात सुन कर सावित्री ने कुछ बोलने का मन तो बनाया पर फिर चुप रह गई। उसके चेहरे पर एकदम से ऐसे भाव आए थे जैसे वो वागले पर बलिहार हो जाने वाली हो।

"तो शुरू करें?" सावित्री को प्यार से अपनी तरफ देखते देख वागले ने मुस्कुराते हुए कहा तो सावित्री उसकी बात सुन कर मुस्कुरा उठी और हां में अपनी पलकों को झपका दिया।

वागले ने झुक कर फिर से सावित्री के होठों को चूम लिया। इस वक़्त वो सावित्री के बगल से अधलेटा हुआ सा था। उसकी कमर के ऊपर का हिस्सा उठा हुआ था और सावित्री की तरफ झुका हुआ था। एक हाथ सावित्री के ऊपर से होते हुए उसके दूसरी तरह बेड पर टिका हुआ था, जबकि दूसरा हाथ कुहनी के बल इस तरफ तकिए के पास ही था।

वागले कुछ पलों तक सावित्री के होठों को प्यार से चूमता चूसता रहा। सावित्री एकदम शांत पड़ी थी। तभी वागले का दूसरी तरफ वाला हाथ उठा और सावित्री की छाती पर आ गया। सावित्री के जिस्म पर इस वक़्त क्रीम कलर की नाइटी थी जिसकी डोरी उसने पेट के पास बाँध रखी थी। नाइटी के अंदर उसने सफ़ेद रंग की ब्रा पहन रखी थी जो ऊपर उसकी नाइटी के खुले गले से दिख रही थी।

वागले ने नाइटी के ऊपर से सावित्री की दाहिनी छाती को सहलाना शुरू किया तो सावित्री के जिस्म में एकदम से झुरझुरी होने लगी। वो जो पहले एकदम से शांत पड़ी थी उसका एक हाथ फ़ौरन ही वागले के उस हाथ के ऊपर आ गया जो हाथ उसकी छाती को सहला रहा था। सावित्री के सीने में बड़ी बड़ी छातियां थी जो वागले के पूरे हाथ में समां नहीं रही थी। इस उम्र में भी उसकी छातियों में हल्का कसाव था। वागले को शायद उसकी छाती सहलाने में मज़ा आया था इस लिए उसने थोड़ा ज़ोर ज़ोर से मसलना शुरू किया तो सावित्री ने अपने होठों को वागले के होठो से आज़ाद करके सिसकी ली।

सावित्री ने जैसे ही अपने होठों को वागले के होठों से अलग किया तो वागले उसके गले को चूमना शुरू कर दिया। सावित्री का दूसरा हाथ फ़ौरन ही वागले के सिर पर आ गया और वो उस हाथ से वागले के सिर के बालों को मुठियाने लगी। उधर वागले सावित्री के गले को चूमते हुए सावित्री के सीने की तरफ आया। एक हाथ से उसने नाइटी के छोर को पकड़ कर एक तरफ किया तो उसका सीना ब्रा समेत दिखने लगा। वागले पर जैसे नशा चढ़ने लगा था इस लिए वो बिना रुके सावित्री की छाती के हर हिस्से को चूमने लगा था। उसका एक हाथ अभी भी सावित्री की दाहिनी चूची को ज़ोर ज़ोर से मसले जा रहा था।

वागले ने सावित्री की चूची से हाथ हटा कर नाइटी की डोरी को पकड़ कर खींचा तो वो बड़े आराम से खुल गई। उसके बाद वागले ने सिर उठा कर नाइटी के दोनों सिरों को पकड़ कर सावित्री के बदन से हटा दिया जिससे सावित्री का गदराया हुआ गोरा बदन बल्ब की रौशनी में चमकने लगा। वागले ने ध्यान से सावित्री के जिस्म को देखा। आज भी उसके जिस्म में पहले जैसा ही आकर्षण था। सावित्री का जिस्म भरा हुआ तो था किन्तु एक्स्ट्रा चर्बी कहीं पर भी नहीं थी।

सावित्री ने आँखें खोल कर जब वागले को देखा तो उसे अपने बदन को गौर से निहारता पाया। ये देख कर सावित्री को शर्म महसूस हुई जिससे उसने फ़ौरन ही अपनी नाइटी के छोर को पकड़ कर अपने बदन को ढंकना चाहा लेकिन वागले ने फ़ौरन ही उसका हाथ पकड़ लिया।

"मुझसे क्यों छुपा रही हो मेरी जान?" वागले ने मुस्कुराते हुए कहा____"क्या तुम भूल गई हो कि तुम्हारे इस खूबसूरत बदन के हर हिस्से को मैं जाने कितनी ही बार देख चुका हूं?"
"हां लेकिन फिर भी मुझे शर्म आ रही है।" सावित्री ने अपनी गर्दन को दूसरी तरफ घुमा कर मुस्कुराते हुए कहा____"आपको तो जैसे अब कोई लाज ही नहीं आती।"

"अगर मैं भी शरमाऊंगा तो फिर तुम्हें खुल कर प्यार कैसे करुंगा?" वागले ने सावित्री के गुदाज पेट पर हाथ फेरते हुए कहा_____"तुम्हें देख कर मैं हमेशा ये सोच कर गर्व करता हूं कि तुम जैसी हसीन बीवी किस्मत से मुझे मिली है। एक मैं हूं कि दिन-ब-दिन बूढ़ा होता जा रहा हूं और एक तुम हो कि दिन-ब-दिन जवान होती जा रही हो। मुझे तो अब ये सोच कर डर सताने लगेगा कि मेरी इस जवान बीवी को कहीं कोई मुझसे छीन कर न ले जाए।"

"धत्।" सावित्री ने लजा कर कहा____"ये कैसी बातें करते हैं आप? ऐसा कुछ नहीं होने वाला और ना ही मैं ऐसा होने दूंगी।"
"और अगर दुर्भाग्य से ऐसा हुआ तो?" वागले जाने क्या सोच कर ये पूछ बैठा था।
"ऐसा नहीं होगा।" सावित्री ने जैसे दृढ़ भाव से कहा____"और अगर दुर्भाग्य से ऐसा हुआ तो ये भी समझ लीजिए कि वो दिन मेरी ज़िन्दगी का आख़िरी दिन होगा।"

सावित्री की ये बात सुन कर वागले ये सोच कर मन ही मन बेहद खुश हो गया कि उसकी बीवी उससे कितना प्यार करती है और उसके प्रति कितनी वफादार है। एक पति को इससे ज़्यादा भला और क्या सबूत चाहिए होता है? वागले उसकी बात से इतना गद गद हो उठा था कि उसने फ़ौरन ही आगे बढ़ कर पहले सावित्री के माथे को प्यार से चूमा और फिर उसके होठों को हल्के से चूम लिया। उसके बाद वो वापस नीचे आया और सफ़ेद रंग की ब्रा में कैद सावित्री की छातियों के बीच की दरार को चूमने लगा। एक हाथ से वो उसकी चूची को मसल भी रहा था और दूसरी को ब्रा के ऊपर से ही चूम रहा था।

वागले इस वक़्त बेहद खुश था और उसका बस चलता तो वो जाने क्या क्या कर जाता। उसके ज़हन में बार बार विक्रम सिंह की डायरी में लिखी कहानी के अंश घूम जाते थे। उसने अपने जीवन में कभी भी सावित्री के साथ वैसा कुछ नहीं किया था जिस तरह विक्रम सिंह ने अपनी डायरी में लिखा था। उसने तो बस एक ही तरह की क्रिया की थी। सावित्री की चूचियों को पहले मसलना और फिर उसकी चूत में अपना लंड डाल कर उसे चोदना। पांच मिनट में ही उसका काम तमाम हो जाता था। उसने ये जानने समझने की कभी कोशिश नहीं की थी कि उसके द्वारा किए गए सेक्स से उसकी बीवी को संतुष्टि होती थी या नहीं। हालांकि सावित्री ने भी उससे इस बारे में कभी कुछ नहीं कहा था। विक्रम सिंह की डायरी पढ़ने के बाद ही उसने जाना था कि किसी औरत के साथ एक मुकम्मल मर्द सेक्स करते समय क्या क्या करता है और किस तरह से औरत को संतुष्ट करता है?

कुछ ही देर में वागले के ज़हन में माया और विक्रम सिंह उभर आए और वो एकदम से जूनूनी अंदाज़ में वैसा ही करने लगा जैसे विक्रम सिंह ने अपनी कहानी में माया के साथ किया था। बेड पर लेटी उसकी बीवी अपने पति के द्वारा की जा रही ऐसी क्रियाओं से चौंक उठती थी लेकिन वो कुछ कह नहीं रही थी उसे। उसे खुद भी उसके द्वारा ऐसा करने में एक अलग ही मज़ा आने लगा था।

वागले ने सावित्री की ब्रा को उतार दिया था और अब वो उसकी एक चूची के निप्पल को मुँह में भरे बड़ी तेज़ी से चूस रहा था। उसका एक हाथ सावित्री की पेंटी के ऊपर से उसकी चूत को सहला रहा था। दो तरफ के हमले से सावित्री एक अलग ही रंग में डूबी नज़र आने लगी थी। उसका पूरा जिस्म छटपटा सा रहा था और वो आँखें बंद किए एक अलग ही मज़े में खोती जा रही थी।

सावित्री की दोनों चूचियों को जी भर के चूसने के बाद वागले नीचे आया और उसके गुदाज पेट और नाभि को चूमने चाटने लगा। सावित्री को पेट में गुदगुदी होने लगी थी या कुछ और लेकिन उसके द्वारा इस तरह चूमने चाटने से उसका पेट झटका ज़रूर खा रहा था। उसके मुख से सिसकारियां फूट रहीं थी। सावित्री एकदम से उस वक़्त उछल पड़ी जब वागले ने अपना हाथ पेंटी के अंदर डाल कर सावित्री की बालों से घिरी चूत पर रख दिया था। उसने जल्दी से अपना हाथ बढ़ा कर वागले के हाथ को पकड़ लिया।

"आह्ह ये क्या रहे हैं आप?" सावित्री ने बड़ी मुश्किल से कहा____"वहां से हाथ हटा लीजिए न। वो हाथ रखने की जगह नहीं है।"
"ये तुमसे किसने कहा?" वागले ने सिर उठा कर उसकी तरफ देखते हुए कहा____"अगर जिस्म का कोई अंग हाथ रखने लायक न होता तो भगवान इसे बनाता ही क्यों? अरे! भाग्यवान ये तो ऐसी जगह है जहां से इंसानों का उदय होता है। भला ऐसी महान जगह हाथ रखने लायक कैसे नहीं होगी? तुम बस आनंद लो मेरी जान।"

कहने के साथ ही वागले ने अपने हाथ को ज़ोर दिया तो उसका हाथ फ़ौरन ही सावित्री की गीली हो गई चूत पर जा पहुंचा। सावित्री ने उसके हाथ से अपना हाथ हटा लिया था। वागले ने उसके चहेरे की तरफ देखा तो उसे दूसरी तरफ अपना चेहरा किए पाया। सावित्री ने कस कर अपनी आँखों को बंद कर लिया था, जैसे वो किसी भी कीमत पर वागले के उस हाथ को अपनी चूत पर रखा हुआ नहीं देखना चाहती थी। वागले के होठों पर ये सोच कर गहरी मुस्कान उभर आई कि उसकी बीवी आज भी किसी कुवारी लड़की की तरह शर्मा रही है। उसे सावित्री पर बेहद प्यार आया और शायद यही वजह थी कि उसने फ़ौरन ही ऐसा काम किया जिसकी सावित्री को स्वप्न में भी उम्मीद नहीं थी। वो तेज़ी से नीचे खिसका था और इससे पहले कि सावित्री को इसकी भनक लगती उसने बड़ी तेज़ी से उसकी चूत पर अपना मुँह रख दिया था।

अपनी छूट पर गर्म साँसों का एहसास होते ही सावित्री को जैसे किसी बात का एहसास हुआ था इस लिए फ़ौरन ही तकिए से सिर उठा कर नीचे की तरफ देखा और जैसे ही उसकी नज़र अपनी चूत पर झुके अपने पति पर पड़ी तो वो हक्की बक्की सी रह गई। होश तब आया उसे जब वागले ने उसकी चूत को चूम लिया था। सावित्री को ज़बरदस्त झटका लगा। वो एकदम से उछल कर बेड पर बैठ गई। उधर उसके इस तरह बैठते ही वागले चौंक पड़ा था। उसने फ़ौरन ही पलट कर उसकी तरफ देखा।

"छी...! ये क्या किया आपने?" सावित्री ने आश्चर्य मिश्रित भाव के साथ साथ बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा_____"ऐसा कैसे कर सकते हैं आप?"
"क्यों तुम्हें अच्छा नहीं लगा?" वागले ने हल्के से मुस्कुराते हुए पूछा तो सावित्री ने आँखें फैलाते हुए कहा____"हे भगवान! क्या आपके ऐसा करने से मुझे अच्छा लगेगा? मुझे तो यकीन नहीं हो रहा कि आपने ऐसा किया है। सच सच बताइए, ऐसा क्यों किया आपने? क्या आपको ज़रा भी उस गन्दी जगह पर अपना मुँह रखने पर घिन नहीं आई?"

"मेरे मन ने कहा कि वैसा करूं।" वागले ने मानो भोलेपन से कहा____"इस लिए कर दिया। हालांकि कुछ पलों के लिए मन ज़रूर मचला था लेकिन मैं भी देखना चाहता था कि उस जगह पर मुँह रखने से या उस जगह को चूमने से कैसा लगता है?"

"हे भगवान! पता नहीं आज कल आपको क्या हो गया है।" सावित्री ने अपनी नाइटी को फिर से पहनते हुए कहा____"अभी तक तो मैं यही समझ रही थी कि शायद आपको वो सब करने का बहुत मन करता होगा इस लिए आपने मुझे ज़ोर दिया था, पर अभी जो आपने किया उससे मैं समझ गई हूं कि कुछ तो हुआ है आपके साथ। भगवान के लिए बताइए मुझे कि आज कल ये क्या हो गया है आपको?"

"तुम बेवजह ही इतना ज़्यादा सोच रही हो भाग्यवान।" वागले ने कहा____"ऐसी कोई भी बात नहीं है। असल में मैंने ये सब कहीं पढ़ा था इस लिए आज अचानक ही जब मुझे याद आया तो मैंने सोचा एक बार मैं भी वैसा कर के देखता हूं कि कैसा लगता है।"

"आज से पहले तो कभी आपको ये सब याद नहीं आया था।" सावित्री ने शक भरी नज़रों से वागले की तरफ देखते हुए कहा____"फिर आज ही ये अचानक से आपको कैसे याद आ गया? मुझे सच सच बताइए कि असल बात क्या है। अगर नहीं बताएँगे तो सोच लीजिए मैं आपको हमारे बच्चों की कसम दे दूंगी।"

"अब ये क्या बात हुई यार?" वागले मन ही मन घबरा तो गया था किन्तु प्रत्यक्ष में कठोरता से कहा____"तुमने खुद कहा था कि तुम मुझे किसी भी बात के लिए नहीं रोकोगी। फिर अब क्यों रोक रही हो और क्यों इस तरह बच्चों की कसम देने की बात कर रही हो? अगर तुम्हें यही सब करना था तो उस वक़्त क्यों मुझे झूठा अस्वाशन दिया था?"

वागले की बात सुन कर एकदम से सावित्री को अपनी बात याद आई तो वो एकदम से चुप हो गई। उधर वागले झूठा गुस्सा दिखाते हुए बेड से उतरा और कमरे से बाहर चला गया। वागले के इस तरह जाते ही सावित्री ये सोच कर घबरा गई कि कहीं उसका पति फिर से उससे नाराज़ न हो जाए इस लिए वो भी तेज़ी से कमरे से निकल कर वागले के पीछे लपकी। उसे अब ये सोच कर अपने आप पर गुस्सा आ रहा था कि उसने ऐसी बातें अपने पति से की ही क्यों जिसकी वजह से उसका पति उससे फिर से नाराज़ हो जाए?

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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अध्याय - 10
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अब तक,,,,,,

वागले की बात सुन कर एकदम से सावित्री को अपनी बात याद आई तो वो एकदम से चुप हो गई। उधर वागले झूठा गुस्सा दिखाते हुए बेड से उतरा और कमरे से बाहर चला गया। वागले के इस तरह जाते ही सावित्री ये सोच कर घबरा गई कि कहीं उसका पति फिर से उससे नाराज़ न हो जाए इस लिए वो भी तेज़ी से कमरे से निकल कर वागले के पीछे लपकी। उसे अब ये सोच कर अपने आप पर गुस्सा आ रहा था कि उसने ऐसी बातें अपने पति से की ही क्यों जिसकी वजह से उसका पति उससे फिर से नाराज़ हो जाए?

अब आगे,,,,,



वागले कमरे से निकल कर सीधा किचेन में गया था। उसने फ्रिज से पानी निकाल कर पीना शुरू ही किया था कि तभी पीछे से उसे सावित्री के आने की आहट सुनाई पड़ी। उसने पीछे मुड़ कर देखने की कोई ज़रूरत नहीं समझी। उधर सावित्री किचेन के दरवाज़े पर आ कर खड़ी हो गई थी।

"तुम यहाँ क्यों आई हो?" पीनी पी लेने के बाद वागले ने जब सावित्री को किचेन के दरवाज़े पर खड़ा देखा तो उससे कहा।
"मैं आपको लेने आई हूं।" सावित्री ने धीमे स्वर में कहा____"मैं चाहती हूं कि हमारा जो काम अधूरा रह गया है उसे हम दोनों मिल कर पूरा करें और हां, इस बार मैं आपको किसी बात पर गुस्सा हो जाने का मौका नहीं दूंगी।"

"और अगर तुमने फिर से कोई नाटक किया तो?" वागले ने जैसे उसको परखते हुए कहा।
"तो आप मेरे साथ ज़बरदस्ती कर के जो चाहे कर लीजिएगा।" सावित्री ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा____"अब चलिए कमरे में।"

"पहले अच्छी तरह सोच लो।" वागले ने सपाट लहजे में कहा_____"बाद में अगर तुमने मुझे किसी बात के लिए रोका या मेरा कहा नहीं माना तो फिर अच्छा नहीं होगा।"
"मैंने सोच लिया है।" सावित्री ने दृढ़ भाव से कहा____"अब न तो मैं आपको किसी बात के लिए रोकूंगी और ना ही आपके कहे को इंकार करुंगी।"

सावित्री की बात सुन कर वागले उसे कुछ पलों तक अपलक घूरता रहा उसके बाद वो उसके बगल से निकल कर कमरे की तरफ बढ़ गया। उसे कमरे की तरफ जाता देख सावित्री भी ख़ुशी ख़ुशी उसके पीछे कमरे की तरफ चल पड़ी।

"अपने सारे कपड़े उतार दो।" कमरे का दरवाज़ा बंद करके जैसे ही सावित्री बेड की तरफ पलटी तो वागले ने जैसे उसे हुकुम सा दिया, जिसे सुन कर सावित्री एकदम से हकबका गई। वो हैरानी भरे भाव से वागले की तरफ देखने लगी थी।

"क्या हुआ?" उसे कुछ न करता देख वागले ने जैसे उसे होश में लाते हुए कहा____"अभी बाहर तो बड़ा कह रही थी कि तुम वही करोगी जो मैं कहूंगा तो अब क्या हुआ?"

वागले की बात सुन कर सावित्री के चेहरे पर असमंजस के भाव उभरे किन्तु फिर उसने वागले की तरफ देखते हुए धीरे धीरे अपनी नाइटी की डोरी खोल कर उसे उतारने लगी। नाइटी के अंदर उसने सफ़ेद रंग की ब्रा और ब्लैक कलर की पेंटी पहन रखी थी। जैसे ही उसके गोरे बदन से नाइटी सरक कर फर्श पर गिरी तो सावित्री का जिस्म नुमायां हो उठा और साथ ही सावित्री का चेहरा लाज से झुक गया। वागले ख़ामोशी से उसी की तरफ देख रहा था और मन ही मन खुश भी हो गया था। हालांकि उसे सावित्री को यूं मजबूर करने का कोई इरादा नहीं था किन्तु उसके ज़हन में ये ख़याल जैसे घर कर गया था कि अब वो अपनी खूबसूरत बीवी के साथ बंद कमरे में वैसा ही प्रेम और वैसा ही सेक्स करेगा जैसा आज के वक़्त में होता है। उसकी इस सोच में विक्रम सिंह की डायरी में लिखी उसकी कहानी का बड़ा ही योगदान था।

"अब बेड पर आ जाओ।" वागले ने सावित्री को जैसे फिर हुकुम दिया। सावित्री उसकी बात मानते हुए हल्के क़दमों से बेड की तरफ बढ़ी। जबकि वागले ने कहने के साथ ही अपने कपड़ों को उतारना शुरू कर दिया था। उसका दिल ये सोच सोच कर धड़कने लगा था कि वो सावित्री के साथ जो जो करना चाहता है क्या वो सब सावित्री उसे करने देगी और क्या सावित्री उसके कहे अनुसार खुद भी करेगी?

कुछ ही देर में आलम ये था कि सावित्री ब्रा पेंटी में बेड पर नज़रें झुकाए बैठी थी और उधर वागले भी अपने कपड़े उतार कर अब सिर्फ एक कच्छे में बैठा था। उसका कच्छा कपड़े का सिलाया हुआ था।

"मैं जानता हूं सावित्री कि तुम्हें इस तरह किसी बात के लिए मजबूर करना अच्छी बात नहीं है।" वागले ने धीमे स्वर में कहा____"किन्तु यकीन मानो मैं जो भी करना चाहता हूं उससे हमें एक अलग ही आनंद आएगा। अब तक हमने अपने जीवन को कितना नीरस सा बनाया हुआ था किन्तु अब मैं चाहता हूं कि हम अपने जीवन में कुछ तो ऐसा करें जिससे हमारे बीच की ये नीरसता दूर हो। मैं जानता हूं कि शुरुआत में ये सब तुम्हारे लिए थोड़ा अजीब और थोड़ा मुश्किल सा होगा किन्तु मुझे यकीन है कि कुछ समय में ही तुम्हें इस सब में बेहद आनंद आने लगेगा।"

"ठीक है।" सावित्री ने उसकी तरफ देखते हुए धीमे स्वर में कहा____"आपको जो ठीक लगे कीजिए। मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करुँगी कि आप जो करना चाहते हैं उसमें किसी भी तरह की समस्या न हो।"
"बहुत बढ़िया।" वागले ने अंदर ही अंदर खुश होते हुए कहा____"तो चलो शुरू करते हैं।"

कहने के साथ ही वागले ने सावित्री को कन्धों से पकड़ कर उसे बेड पर सीधा लेटा दिया। सावित्री इस वक़्त छुई मुई सी दिख रही थी। उसके चेहरे पर हल्की शर्म दिख रही थी। ख़ैर वागले ने उसे बेड पर लेटाया और फिर झुक कर उसके होठों को चूमने लगा। उसका एक हाथ सावित्री के गोरे और गुदाज बदन पर घूमने लगा था। उधर उसके ऐसा करते ही सावित्री के जिस्म में झुरझुरी सी होने लगी थी। वागले उसके होठों को अब चूसने लगा था और सावित्री जैसे अपनी साँसें थामे चुप चाप बेड पर पड़ी थी।

वागले कुछ देर तक सावित्री के होठों को चूमता चूसता रहा उसके बाद वो नीचे आया और सावित्री की ब्रा को एक हाथ से पकड़ कर ऊपर सरका दिया जिससे उसकी बड़ी बड़ी छातियां बेपर्दा हो ग‌ईं। वागले ने लपक कर उसकी एक छाती के निप्पल को मुँह में भर लिया। सावित्री के मुख से सिसकी निकल गई। उसने झट से अपना एक हाथ वागले के सिर पर रख कर अपनी उस छाती पर दबाया। वागले मज़े से उसके निप्पल को चूसते हुए दूसरे हाथ से उसकी दूसरी छाती को मसले जा रहा था।

कुछ ही देर में कमरे में सावित्री की सिसकारियां गूजने लगीं। हालांकि वो बहुत कोशिश कर रही थी कि उसके मुख से कोई आवाज़ न निकले किन्तु न चाहते हुए भी उसके मुख से ये सिसकियां निकल ही जाती थीं। कदाचित उसे भी अब मज़ा आने लगा था। उसकी आँखें बंद थीं और वो अपनी गर्दन को इधर उधर करती जा रही थी।

वागले उसकी चूचियों को चूमते चाटते नीचे की तरफ आया और सावित्री के पेट और उसकी नाभि पर अपनी जीभ को फेरने लगा। सावित्री का पेट बड़ी तेज़ी से सांस लेने की वजह से ऊपर नीचे हो रहा था। उधर वागले ने उसकी गहरी नाभि को अपनी जीभ से कुरेदते हुए अपना एक हाथ उसकी चूची से हटा कर सावित्री की चूत पर पेंटी के ऊपर से रखा और उसे हल्के हल्के सहलाने लगा। उसके ऐसा करते ही सावित्री को झटका लगा और उसने झट से अपनी टांगों को सिकोड़ने की कोशिश की। कुछ ही देर में वागले का वो हाथ सावित्री की चूत से निकले कामरस से गीला होता महसूस हुआ और साथ ही उसकी नाक में उस कामरस की खुशबू भी समाई।

वागले ने अपना चेहरा उठा कर सावित्री की तरफ देखा। सावित्री शख़्ती से अपनी आँखें बंद किए बेड पर पड़ी हुई थी। उसने एक हाथ से बेड की चादर को मुट्ठियों में पकड़ा हुआ था और दूसरे हाथ को बढ़ा कर उसने वागले के उस हाथ पर रख लिया था जो हाथ उसकी चूत को सहला रहा था।

"कैसा लग रहा है मेरी जान?" वागले ने सावित्री को देखते हुए मुस्कुरा कर कहा तो सावित्री ने अपनी आँखों को और शख़्ती से बंद कर लिया और गर्दन को दूसरी तरफ लाजवश घुमा लिया। उसके होठ कांप रहे थे। वागले उसे देख कर मुस्कुरा उठा। वो जानता था कि इस मामले में सावित्री से कुछ भी पूछना बेकार था क्योंकि वो शुरू से ही इस मामले में बेहद शर्म करती थी।

"अरे! कुछ तो बोलो।" वागले ने मुस्कुराते हुए कहा तो सावित्री ने आँखे बंद किए हुए ही कहा____"आपको तो लाज नहीं आती लेकिन मुझे आती है। इस लिए आपको जो करना है कीजिए, मुझसे कुछ मत पूछिए।"

सावित्री की बात सुन कर वागले की मुस्कान गहरी हो गई। उसने गर्दन घुमा कर सावित्री की चूत की तरफ देखा। ब्लैक कलर की पेंटी में उसकी चूत दिख तो नहीं रही थी किन्तु पेंटी के किनारों से चूत के बाल ज़रूर झलक रहे थे। ये देख कर वागले के ज़हन में फ़ौरन ही विक्रम सिंह की डायरी वाली माया का ख़याल उभर आया। विक्रम सिंह ने अपनी डायरी में लिखा था कि माया कोमल और तबस्सुम तीनों की चूतें एकदम चिकनी थीं और उन पर कहीं कोई दाग़ नहीं था बल्कि हल्की गुलाबी रंगत लिए चमक रहीं थी।

वागले ने सावित्री की पेंटी को दोनों हाथों से पकड़ कर नीचे खींचा तो सावित्री ने झट से उसका हाथ पकड़ लिया, किन्तु वागले भला कहां मानने वाला था? उसने ज़ोर दे कर सावित्री की पेंटी को खींचते हुए उसकी टांगों से निकाल कर एक तरफ फेंक दिया। सावित्री को पता था कि इस वक़्त वो एकदम से बेपर्दा हो चुकी है इस लिए वो अपनी चूत को छुपाने के लिए कसमसा रही थी किन्तु वागले को जैसे पहले से पता था कि सावित्री ऐसा करेगी इस लिए उसने सावित्री को अच्छे से पकड़ लिया था। इससे पहले कभी भी सेक्स करते समय सावित्री इस तरह नंगी नहीं हुई थी, बल्कि हमेशा कपड़ों में ही सेक्स हुआ था। वागले का अगर बहुत मन होता था तो वो अपना ब्लाउज उतार देती थी बाकी साड़ी और पेटीकोट को एक साथ ऊपर कर के ही वो वागले के लंड को अपनी चूत में डलवा कर सेक्स करती रही थी।

सावित्री की घने बालों से घिरी चूत को देखने के लिए वागले को जैसे थोड़ा ज़ोर लगाना पड़ा क्योंकि वो साफ़ साफ़ दिख ही नहीं रही थी। ये देख कर वागले के ज़हन में ख़याल उभरा कि अगर सावित्री ने अपनी चूत के बालों को साफ़ कर रखा होता तो इस वक़्त वो साफ़ साफ़ देख पाता कि वो बिना बालों के कैसी दिखती है।

कुछ देर सावित्री की चूत और उसके चारो तरफ उगे घनघोर जंगल को देखने के बाद वागले खिसक कर ऊपर आया और आँखें बंद किए पड़ी सावित्री को देखते हुए बोला____"सुनो।"

"ह्म्मम्।" सावित्री ने आँखे बंद किए ही हुंकार भरी।
"तुमने अपने वहां पर इतने बाल क्यों ऊगा रखे हैं?" वागले ने ये कहा ही था कि सावित्री हड़बड़ा कर झट से उठ बैठी।

वागले ने देखा सावित्री उसकी इस बात को सुन कर किसी कुंवारी कन्या की तरह शर्माने लगी थी। उसने अपनी चूत को छुपाने के लिए अपनी दोनों टांगों को मोड़ लिया था। चेहरे पर अजीब से भाव लिए वो कभी वागले को देखती तो कभी उससे नज़रें चुराने लगती। उसकी इस हालत को देख कर वागले के मन में ख़याल उभरा कि उसने नाहक में ही ऐसा कह कर सावित्री को शर्मिंदा कर दिया है।

"क्या हुआ मेरी जान।" फिर उसने सावित्री के सुर्ख पड़े चेहरे को अपनी हथेलियों में लेते हुए कहा_____"तुम इतना शर्मा क्यों रही हो यार? मैंने एक छोटी सी बात ही तो पूछी थी तुमसे, इसमें इतना शर्माने की भला क्या ज़रूरत है?"

"आप ऐसी बात करेंगे तो मुझे शर्म नहीं आएगी क्या?" सावित्री ने उसकी बात सुन कर उसकी तरफ देखते हुए कहा____"आपको मेरे वहां के बाल से मतलब है या उससे जो आप करना चाहते हैं?"

सावित्री की बात सुन कर वागले के होठों पर मुस्कान उभर आई। वैसे नार्मल तरीके से सोचा जाए तो उसने सच ही कहा था किन्तु उसे नहीं पता था कि आज कल उसका पति किस तरह की मनोदशा में है।

"बात तो तुम्हारी ठीक है भाग्यवान।" वागले ने सिर हिलाते हुए कहा____"लेकिन अब से तुम हर जगह की साफ़ सफाई कर के रखोगी। मैं चाहता हूं कि मेरी प्यारी और खूबसूरत बीवी हर जगह से साफ़ और खूबसूरत दिखे। वैसे मैं तो तुम्हें इस बात का ज्ञान दे रहा हूं लेकिन सच तो ये है कि मेरे भी लंड के चारो तरफ तुम्हारी तरह ही घने बालों का जंगल ऊगा हुआ है।"

"हे भगवान! कितने बेशर्म हैं आप।" सावित्री ने अपने माथे पर हाथ मारते हुए कहा____"पता नहीं कहां से आपके मन में ऐसी बातें भर ग‌ईं हैं?"

"ये सब छोड़ो।" वागले ने कहा____"मैं ये कह रहा हूं कि कल हम दोनों ही अपने अपने बाल साफ़ कर लेंगे। उसके बाद ही तसल्ली से काम क्रीड़ा करेंगे। चलो अब सो जाते हैं, क्योंकि रात भी काफी हो गई है।"

वागले की इस बात को सुन कर सावित्री ने गहरी सांस ली। उसके चेहरे पर राहत के भाव उभर आए थे। शायद वो यही चाहती थी कि वागले ये सब बंद कर के सोने की बात कह दे और क्योंकि वागले ने उसके मन की बात कह दी थी इस लिए उसने फ़ौरन ही अपने कपड़े पहने और बेड के एक तरफ लेट गई। वागले के अंदर की गर्मी कदाचित शांत पड़ ग‌ई थी या शायद सावित्री की चूत के बालों को देख कर उसका मन ये सब करने से उचट गया था। ख़ैर वागले ने भी अपना पजामा कुर्ता पहना और बेड पर लेट कर सोने की कोशिश करने लगा।

दूसरे दिन वागले अपने निर्धारित वक़्त पर जेल के अपने केबिन में पहुंचा। ब्रीफ़केस को टेबल पर रखने के बाद वो कुछ देर फाइल्स को देखते हुए अपना काम करता रहा उसके बाद वो जेल का चक्कर लगाने के लिए निकल गया। क़रीब डेढ़ घंटे बाद वो वापस अपने केबिन में आया । कुछ देर जाने वो क्या सोचता रहा उसके बाद उसने अपने ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाली और उसे खोल कर आगे की कहानी पढ़ने लगा।

☆☆☆

काफी देर बाद जब अंदर का और साँसों का तूफ़ान थमा तो मैंने आँखें खोली और बेड पर एक तरफ लेटी माया की तरफ देखा। उसे बेड पर न पा कर मैं चौंका। तभी मेरी नज़र कमरे में ही एक तरफ रखे सोफे पर पड़ी। माया सोफे पर बैठी सिगरेट फूंक रही थी। उसका जिस्म अभी भी बेपर्दा ही था। मैं सोचने लगा कि क्या उसे ज़रा भी शर्म न आती होगी?

"स्वारी।" जैसे ही उसने मेरी तरफ देखा तो मैंने उसकी तरफ देखते हुए धीमें स्वर में कहा।
"स्वारी फॉर व्हाट?" उसके माथे पर सलवटें उभरीं।

"मेरी वजह से तुम्हें तक़लीफ हुई।" मैंने मासूमियत से उसकी तरफ देखा।
"भूल जाओ उस बात को।" उसने छोटे से स्टूल पर रखी ऐशट्रे में सिगरेट के बचे हुए टुकड़े को मसल कर बुझाया और मेरी तरफ देखते हुए कहा____"और ये बताओ कि अभी और करने का इरादा है या आज के लिए इतना काफी समझते हो तुम?"

"सच कहूं तो मेरा अभी और करने का मन है।" मैंने नज़रें झुका कर और हल्की मुस्कान होठों पर सजाते हुए कहा____"मेरा तो मन करता है कि तुम्हारे साथ ये सब करता ही रहूं।"

"मुझे पता था तुम यही कहोगे।" माया ने मुस्कुरा कर कहा____"सेक्स चीज़ ही ऐसी है कि इससे किसी का मन नहीं भरता, ख़ास कर तब जब किसी को पहली बार करने को मिला हो। ख़ैर चलो फिर शुरू करते हैं, लेकिन इस बार तुम्हें अपने मन का नहीं करना है बल्कि एक औरत के मन का करना होगा। यानी जैसा मैं कहूंगी वैसा ही तुम्हें करना होगा।"

माया की बात सुन कर मैंने हाँ में सिर हिला दिया। सच तो ये था कि दुबारा सेक्स करने की बात से ही मेरा मन ख़ुशी से झूम उठा था। ख़ैर माया सोफे से उठ कर मेरे पास आई। उसके बेपर्दा जिस्म पर मेरी नज़रें जैसे जम सी गईं थी। उसकी बड़ी बड़ी छातियां उसके चलने से जब हिलीं थी तो उसका असर ये हुआ कि मेरा मुरझाया हुआ लंड फ़ौरन ही सिर उठाने लगा था। माया बेड पर आ कर सीधा लेट गई। मैं उसी को देख रहा था। जैसे ही वो सीधा लेटी तो मेरी नज़र उसके गोरे सफ्फाक बदन के हर हिस्से पर दौड़ने लगी। उसकी चिकनी और फूली हुई चूत को देखते ही मेरा हलक मुझे सूझता हुआ सा प्रतीत होने लगा था।

"ऐसे क्या देख रहा है भड़वे?" माया एकदम से किसी शेरनी की तरफ गुर्राई तो मैं जैसे सहम गया, जबकि उसने उसी गुर्राहट में आगे कहा____"चल कुत्ते की तरह मेरी चूत चाट।"

माया का बदला हुआ रूप देख कर मेरी सिट्टी-पिट्टी ही गुम हो गई थी। मैं समझ नहीं पाया कि माया को अचानक से क्या हो गया है? उसके चेहरे पर हाहाकारी भाव थे और आँखों में गुस्सा झलक रहा था।

"सुनाई नहीं दिया क्या तुझे?" माया इस बार ज़ोर से चिल्लाई तो मैं एकदम से हड़बड़ा गया और फिर बोला____"ये...ये सब क्या है? ये तुम किस लहजे में बात कर रही हो?"
"अबे गांडू कहीं के।" माया झटके से उठी और गुर्राई____"लहजे को अपनी गांड में डाल ले समझे। अभी जल्दी से कुत्ते की तरह मेरी चूत चाट वरना गांड में इतने डंडे बरसाऊंगी कि हगते नहीं बनेगा तुझसे।"

मुझे माया से ऐसे बर्ताव की सपने में भी उम्मीद नहीं थी। कहां इसके पहले मैं दुबारा सेक्स करने की बात से मन ही मन खुशियां मना रहा था और कहां अब माया के इस खतरनाक रवैए से मेरी हालत ही पतली हो गई थी। ख़ैर मरता क्या न करता वाली हालत में आ कर मैंने माया के हुकुम का पालन किया। वैसे एक सच्चाई ये भी थी कि माया के इस बर्ताव से मेरा दिल बुरी तरह दुःख गया था।

माया फिर से सीधा लेट गई थी और इस बार उसने अपनी दोनों टांगों को फैला दिया था जिससे उसकी चूत खुल कर मुझे दिखने लगी थी। बल्ब की तेज़ रौशनी में मैं माया की चूत को साफ़ देख सकता था। एकदम चिकनी चूत की दोनों फांकें उसकी टाँगें फैली होने से हल्की खुल ग‌ईं थी जिससे उसके अंदर का गुलाबी हिस्सा मुझे साफ़ नज़र आ रहा था। मैंने अपने सूखे गले को थूक निगल कर तर किया और आगे बढ़ते हुए माया की टांगों के बीच आ गया।

मैंने माया की तरफ इस उम्मीद से देखा कि शायद वो मुझ पर दया कर दे लेकिन उसके चेहरे के भावों में कोई परिवर्तन नहीं आया, बल्कि उसने फ़ौरन ही मुझे उसकी चूत चाटने का शख़्ती से इशारा किया।

कोई नार्मल सिचुएशन होती तो मैं पूरे जोश में आ कर माया के ऊपर सवार हो गया होता किन्तु वक़्त और हालात जैसे एकदम से बदल गए थे। ख़ैर मैंने खुद को एडजस्ट किया और फिर माया की चूत पर झुकता चला गया। चूत के क़रीब जैसे ही मेरा मुँह पहुंचा तो मेरी नाक में इसके चूत के कामरस की खुशबू समाने लगी। जाने क्यों इस बार मुझे वो खुशबू बड़ी बेकार सी लगी। ऐसा शायद इस लिए कि माया के बर्ताव से मेरा मन अब इस सबसे उचट गया था, किन्तु मजबूरी थी इस लिए मैंने झुक कर उसकी चूत पर हल्के से पहले अपना मुँह रखा और फिर जीभ निकाल कर उसे चाटा। एक अजीब सा स्वाद मेरी जीभ में पड़ा तो मेरे जिस्म का रोयां रोयां झनझना गया।

"अब साले डर डर के क्या छू रहा है।" माया की तीखी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी____"मैंने कहा न कि कुत्ते की तरह मेरी चूत चाट। अब जल्दी से चाट वरना गांड में हंटर बजाऊंगी।"

"मैं ये नहीं कर सकता।" मैंने हिम्मत करके ये कहा और एक तरफ हट गया। इस वक़्त मेरी धड़कनें धाड़ धाड़ करके बज रहीं थी। किन्तु मैंने भी अब ठान लिया था कि मैं माया के इस बर्ताव पर उसके किसी भी हुकुम को नहीं मानूंगा।

"क्या हुआ?" माया झट से उठ ग‌ई____"इतने में ही डर गए? अरे! वहशीपना वाला सेक्स करना है तो ये सब भी सुनना पड़ेगा। मान लो अगर किसी औरत को इसी तरह से सेक्स करना पसंद हुआ तब तुम कैसे उसे खुश कर पाओगे?"

"इसका मतलब।" मैं जैसे आसमान से धरती पर गिरा____"तुम सच मुच का मुझ पर गुस्सा नहीं हो??"
"अरे! यार, तुम पर भला मैं क्यों गुस्सा होऊंगी?" माया ने कहा____"मेरा तो काम ही यही है कि मैं तुम्हें हर तरह से सेक्स करने की ट्रेनिंग दूं।"

माया की बात सुन कर जैसे मेरी जान में जान आई और मेरे होंठों पर मुस्कान उभरी। उधर माया ने मुझे समझाया कि अब मैं वैसा ही करूं जैसा वो कहे। मैं ये समझूं कि वो एक ऐसी औरत है जिसे सेक्स करते समय अपने मेल पार्टनर को गाली देना पसंद है और वो भी चाहती है कि उसका पार्टनर उसे गाली दे और साथ ही ये भी कि सेक्स करते समय उसका पार्टनर उसे बुरी तरह से चोदे। मैं माया की बात समझ गया था इस लिए अब मैं उसके अनुसार सब कुछ करने के लिए खुद को तैयार करने लगा था। माया ने इशारा किया और वो फिर से लेट गई।

"चल कुत्ते चाट मेरी चूत को।" माया ने लेटने के साथ ही ये कहा तो मैं पहले तो मुस्कुराया और फिर मैं भी उसकी तरह बर्ताव करते हुए आगे बढ़ा।
"अगर मैं तेरा कुत्ता हूं तो तू भी मेरी कुतिया है साली।" मैंने हिम्मत करके कहा____"अब देख मैं कैसे तेरी चूत को चाटता हूं और फिर तेरी चूत को अपने मोटे लंड से चोद चोद कर फाड़ता हूं।"

"तो फाड़ न गांडू साले।" माया ने कहने के साथ ही अपनी टांग चला दी जो सीधा मेरी कमर में लगी। मुझे दर्द तो हुआ किन्तु मैंने सहन कर लिया और फिर तो जैसा मेरे अंदर का मर्द भी जाग गया।

"साली कुतिया।" मैंने कहते हुए अपने दोनों हाथों से उसकी टांगों को पकड़ कर फैलाया और झुक कर उसकी चिकनी चूत में अपना मुँह रख दिया।

मेरे अंदर एक अजीब सा जोश भर गया था। अब मुझे उसके चूत की खुशबू से कोई परेशानी नहीं हो रही थी, बल्कि मैंने उसकी चूत की फांकों को मुँह में भर कर ज़ोर से खींचा तो माया की सिसकी निकल गई। उसने दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़ा और अपनी चूत पर ज़ोर से दबाया।

मैं सच में किसी कुत्ते की तरह माया की चूत को लपर लपर चाटने लगा था। मैं कभी जीभ से उसकी चूत को चाटता तो कभी उसकी चूत को मुँह में भर कर ज़ोर ज़ोर खींचने लगता। कमरे में माया की आहें और सिसकारियां गूजने लगीं थी और उसका जिस्म छटपटाने लगा था। कुछ ही देर में आलम ये हो गया कि मैं पागलों की तरह उसकी चूत को चाटते हुए उसकी दोनों चूचियों को भी बुरी तरह मसलने लगा। माया की सिसकियों में दर्द भी शामिल हो गया। वो बार बार मुझे कोई न कोई गाली देती तो जवाब में मैं भी उसकी चूत से अपना चेहरा उठा कर उसे गाली देता और उसके निप्पल को ज़ोर से खींच लेता।

माया की चूत कामरस बहा रही थी और मेरा चेहरा उसके कामरस से भींग गया था लेकिन मैं इसके बावजूद लगा ही रहा। माया बुरी तरह मेरे बालों को खींच रही थी जिससे मुझे दर्द भी हो रहा था। बदले में मैं भी उसकी चूत को दांतों से काट लेता था जिससे माया उछल पड़ती थी और गन्दी गन्दी गालियां देने लगती थी।

"आह्ह कुत्ते कमीने मेरी चूचियों को भी ऐसे ही काट साले।" माया सीसियाते हुए बोली और मेरे सिर के बालों को पकड़ कर अपनी छातियों की तरफ खींचने लगी।

"साली कुतिया।" मैं उसकी छाती की तरफ बढ़ता हुआ बोला____"तेरी इन खरबूजे जैसी चूचियों को तो मैं मिर्च मसाला लगा के खाऊंगा।"
"हां तो खा न बहनचोद।" माया मेरे सिर को अपनी छातियों पर दबाते हुए बोली तो मैंने उसके एक निप्पल को मुँह में भर कर ज़ोर से काटा तो वो चिल्ला ही पड़ी।

"आह्ह्ह्ह और ज़ोर से काट गांडू।" माया ने दर्द से चीखते हुए कहा तो मैं मन ही मन ये सोच कर थोड़ा हैरान हुआ कि वो दर्द के बावजूद अभी और ज़ोर से काटने को कह रही थी।
"ऐसा क्या।" मैंने सिर उठा कर कहा____"ठीक है फिर, अब तो मैं ऐसा काटूंगा साली कि तू अगर रहम की भीख भी मांगेगी तो नहीं छोड़ूंगा।"

मैंने कहने के साथ ही माया की चूची के मांस को मुँह में भरा और इस बार थोड़ा ज़ोर से काटा तो माया बुरी तरह बिलबिला उठी और उसने अपनी चूची से मुझे हटाने के लिए मेरे सिर को ज़ोर से हटाना चाहा लेकिन मैं किसी जोंक की तरह उसकी चूची पर चिपक गया था। माया दर्द से सिसयाते हुए पूरा ज़ोर लगा रही थी मगर मैं उसकी चूची के हर हिस्से पर बारी बारी से काट ले रहा था। उसके बाद मैं लपक कर उसकी दूसरी चूची को भी काटने लगा। माया का बुरा हाल हो गया था। वो दर्द और गुस्से में मुझे और भी ज़्यादा गालियां देने लगी थी।

काफी देर तक मैं माया की चूचियों को ऐसे ही काटता रहा और वो ऐसे ही दर्द से बिलबिलाती रही। फिर जब मुझे लगा कि कहीं वो रोने ही न लगे तो मैंने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा। माया का बुरा हाल था। उसकी आँखों के किनारों से आंसू के कतरे बहे हुए दिख रहे थे। मुझे ये सोच कर उस पर तरस आ गया कि यही वो लड़की है जिसने मुझे पहली बार जीवन का असली मज़ा दिया है। मैं झट से आगे को खिसका और उसके होठों को मुँह में भर कर चूसने लगा माया ने फ़ौरन ही मेरे सिर को पकड़ा और खुद भी मेरे होठों को चूसने लगी। अचानक ही मेरा हाथ सरक कर उसकी एक चूची को मुठियाया तो वो मचल उठी। शायद काटने से उसकी चूचियों पर गहरे घाव हो गए थे जिससे मेरा हाथ लगते ही उसे दर्द हुआ था।

कुछ देर माया के होठों को चूसने के बाद मैंने अपना चेहरा उससे दूर किया और उसके बालों को मुट्ठी में पकड़ कर उसे उठाया। इससे पहले की वो कुछ समझ पाती मैंने फ़ौरन ही खड़े हो कर अपने भन्नाए हुए लंड को उसके मुँह के पास ला कर उसके मुँह में ठूंसने की कोशिश करने लगा।

"चल कुतिया अब तू मेरा लंड चूस।" मैंने एक हाथ से अपने लंड को पकड़ कर उसके मुँह में मारते हुए कहा तो उसने फ़ौरन ही अपना मुँह खोल दिया। जैसे ही उसने मुँह खोला मैंने उसके मुँह में अपना लंड घप्प से डाल दिया। मुझ में इतना जोश चढ़ गया था कि मैंने उसके सिर को पकड़ कर ज़ोर से झटका दिया, जिससे मेरा लंड सनसनाते हुए उसके गले तक पहुंच गया। वो बुरी तरह छटपटाई लेकिन मैंने उसे छोड़ा नहीं। हालांकि जब मैंने उसके मुँह में एक झटके में लंड घुसाया था तो उसके दाँत मेरे लंड पर भी गड़े थे और मेरे मुँह से दर्द मिश्रित आह निकल गई थी।

मैं माया के सिर को दोनों हाथों से पकड़े उसके मुख को चोद रहा था। उसके मुख से उसकी लार बहने लगी थी और उसका चेहरा लाल सुर्ख पड़ गया था। मेरे धक्के देने से नीचे उसकी चूचियां बुरी तरह हिल रहीं थी। इधर मैं मज़े के सातवें आसमान में था।

"चूस साली और चूस।" मैं इसके सिर को पकड़े और धक्के लगाते हुए बोल रहा था____"अच्छे से चूस कुतिया वरना गले के नीचे उतार दूंगा लंड को।"

मैंने ज़ोर से धक्का लगाया तो माया के जिस्म को झटके लगने लगे। उसने पूरी ताकत से मुझे पीछे की तरफ धक्का दिया, जिससे मेरा लंड उसके मुख से निकल गया। लंड के निकलते ही वो बुरी तरह खांसने लगी थी। उसकी साँसें उखड़ी हु‌ईं थी।

"साले हरामी।" वो खांसते हुए कह रही थी____"मार ही डालने का इरादा था क्या तेरा?"
"लंड चूसने कोई नहीं मरता कुतिया।" मैंने उसे धक्का दिया तो वो बेड पर सीधा हो कर गिरी। उसके गिरते ही मैंने उसकी दोनों टाँगें फैलाई और उसकी दहकती चूत में अपना लंड एक ही झटके में डाल दिया।

"आह्हहह कुत्ते फाड़ दी मेरी चूत।" माया दर्द से चीखी।
"तेरी तो पहले से ही फटी हुई है साली।" मैंने फिर से ज़ोर का धक्का दिया।
"अब ज़ोर ज़ोर से चोद मुझे।" माया ने चिल्ला कर कहा_____"साले कुत्ते दम नहीं है क्या तुझमें?"

माया की बात सुन कर मैं पूरे जोश में तेज़ तेज़ धक्के लगाने लगा। मैं पूरी तरह भूल चुका था कि आज से पहले मैं क्या था। इस वक़्त मैं किसी प्रोफेशनल की तरह माया को चोदे जा रहा था। मेरा मोटा तगड़ा लंड माया की चूत में सटासट अंदर बाहर हो रहा था। उसकी चूत इतनी गीली थी कि फच्च फच्च की आवाज़ आ रही थी। ज़िन्दगी में पहली बार मैं स्वर्ग में था। मेरी नज़र माया की हिलती चूचियों पर पड़ी तो मैंने हाथ आगे बढ़ा कर ज़ोर से उसकी एक चूची पर थप्पड़ मारा जिससे उसके मुख से दर्द भरी कराह निकल गई और साथ ही उसने मुझे गाली दी।

क़रीब दस मिनट बाद ही माया झटके लेते हुए झड़ गई। झड़ने के बाद वो बेजान लाश की तरह शांत पड़ ग‌ई थी लेकिन मैं रुका नहीं बल्कि धक्के लगाता ही रहा। मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि मैं रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था। कुछ देर में जब माया को फिर से जोश चढ़ा तो मैंने उसकी चूत से लंड निकाल कर उसे घोड़ी बना दिया और उसके गोरे गोरे चूतड़ में ज़ोर ज़ोर से थप्पड़ मारते हुए अपने लंड को उसकी चूत में डाल दिया।

क़रीब दस मिनट बाद माया फिर से चिल्लाने लगी। वो झड़ने की कगार पर आ गई थी और यही हाल मेरा भी था। मैं ट्रेन की स्पीड से धक्के लगाने लगा और फिर जैसे मज़े की चरम सीमा के अंत होने का वक़्त आ गया। माया झटके खाते हुए झड़ी तो उसका गर्म गर्म पानी मेरे लंड महसूस हुआ और फिर मैं भी अपने आपको रोक नहीं पाया। मेरा जिस्म अकड़ गया और मैं माया की चूत में ही झड़ता चला गया। पता नहीं कब तक मुझे झटके लगते रहे और फिर मैं उसके ऊपर ही जैसे बेहोश सा हो गया। सेक्स का तूफ़ान थम चुका था। कमरे में शान्ति छा गई थी। सिर्फ हम दोनों की उखड़ी हुई साँसों की ही आवाज़ें गूँज रहीं थी।

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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अध्याय - 11
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अब तक,,,,,

क़रीब दस मिनट बाद माया फिर से चिल्लाने लगी। वो झड़ने की कगार पर आ गई थी और यही हाल मेरा भी था। मैं ट्रेन की स्पीड से धक्के लगाने लगा और फिर जैसे मज़े की चरम सीमा के अंत होने का वक़्त आ गया। माया झटके खाते हुए झड़ी तो उसका गर्म गर्म पानी मेरे लंड महसूस हुआ और फिर मैं भी अपने आपको रोक नहीं पाया। मेरा जिस्म अकड़ गया और मैं माया की चूत में ही झड़ता चला गया। पता नहीं कब तक मुझे झटके लगते रहे और फिर मैं उसके ऊपर ही जैसे बेहोश सा हो गया। सेक्स का तूफ़ान थम चुका था। कमरे में शान्ति छा गई थी। सिर्फ हम दोनों की उखड़ी हुई साँसों की ही आवाज़ें गूँज रहीं थी।

अब आगे,,,,,,




"क्या हुआ?" करीब पंद्रह मिनट बाद माया ने उस वक़्त मुझसे पूछा जब मैं बेड पर एक किनारे कुछ सोचते हुए बैठा था____"अब क्या सोच रहे हो? क्या फिर से करने का इरादा है?"

मैंने माया की तरफ देखा। वो बेड पर उठ कर बैठ गई थी। हम दोनों अभी भी पूरे नंगे ही थे। माया के चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी किन्तु मैं थोड़ा उदास सा था और मुझे अंदर से बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा था। शायद इसी वजह से माया ने मुझसे ये पूछा था।

"नहीं, अब मेरा करने का कोई इरादा नहीं है।" मैंने पहले की ही तरह थोड़े उदास भाव से कहा।
"तो फिर तुम इस तरह सैड टाइप क्यों दिख रहे हो?" माया ने कहा____"क्या तुम्हें मेरे साथ सेक्स करने में मज़ा नहीं आया?"

"बात मज़ा आने की नहीं है।" मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा____"बल्कि बात ये है कि मैंने बहुत बुरी तरह से तुम्हें काटा था जिसकी वजह से तुम्हारी छातियों में ज़ख्म बन गए हैं। उस वक़्त तो जोश जोश में मैं वो सब कर गया लेकिन अब मुझे ऐसा लग रहा है कि मैंने तुम्हारे साथ बिल्कुल भी अच्छा नहीं किया।"

"ओह! डियर।" माया ने मुस्कुरा कर मेरा चेहरा सहलाते हुए कहा____"तो तुम इस वजह से सैड हो के बैठे हो? कमाल के हो तुम। सिर्फ इतनी सी बात के लिए बुरा फील कर रहे हो। वैसे मुझे अच्छा लगा कि तुम मेरे लिए ऐसा फील कर रहे हो लेकिन यकीन मानो डियर, मुझे तुम्हारे ऐसा करने से तुमसे कोई शिकायत नहीं है। तुमने वही किया जो करने के लिए मैंने कहा और तुम्हें उकसाया भी। इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है और सबसे बड़ी बात ये है कि ये सब तुम्हारी ट्रेनिंग का एक हिस्सा है। रही बात मेरे ज़ख्म और तक़लीफ की तो ये सब चलता ही रहता है। इस तरह का काम करने से पहले हमें खुल कर बताया गया था कि इस काम में हमें कितनी तक़लीफ मिलेगी। हमने इस तक़लीफ को ख़ुशी से चुना है डियर, इस लिए तुम इसके लिए सैड फील मत करो।"

"तो क्या तुम सच में मुझसे नाराज़ नहीं हो?" मैंने मासूमियत से उससे पूछा तो उसने मुस्कुराते हुए कहा____"बिल्कुल नहीं डियर, बल्कि मैं तो खुश हूं कि तुमने पहली बार में बहुत अच्छा करने की कोशिश की। सबसे बड़ी बात ये कि अब तुम्हारे अंदर शर्म और झिझक नहीं रही।"

"हां मुझे भी अब ऐसा ही लग रहा है कि अब मुझे पहले की तरह शर्म महसूस नहीं होती।" मैंने कहा____"हालाँकि तुम्हारे अलावा भी अगर किसी और के साथ मुझे शर्म नहीं महसूस होगी तो फिर मैं पूरी तरह समझ जाऊंगा कि अब मेरे अंदर से पूरी तरह शर्म और झिझक चली गई है।"

"अगर ऐसा है।" माया ने कहा____"तो जल्द ही तुम्हें मेरे अलावा दूसरी लड़की के साथ इस बात को आजमाने का मौका मिल जाएगा।"
"वो कैसे?" मैंने न समझने वाले भाव से पूछा।
"तुम कोमल और तबस्सुम को भूल गए क्या?" माया ने कहा___"अभी तो तुम्हें उन दोनों के साथ भी यही सब करना है।"

"ओह! हां।" मुझे जैसे याद आया।
"वो दोनों एक साथ ही रहती हैं।" माया ने कहा____"इस लिए तुम्हें एक साथ ही उन दोनों के साथ ये सब करना पड़ेगा। अगर तुमने इन दोनों को खुश कर दिया तो समझो तुम्हारी ट्रेनिंग पूरी हो गई।"

माया की इस बात से मैं मन ही मन ये सोच कर थोड़ा घबराया कि उन दोनों ने अगर मेरा बुरा हाल कर दिया तो?? ख़ैर उसके बाद मैं और माया दोनों ने अपने अपने कपडे पहने। माया के कहने पर मैं उसके साथ ही कमरे से बाहर आ गया।

उस दिन का कोटा माया के साथ पूरा हो गया था इस लिए बाकी का सारा दिन और रात कुछ नहीं हुआ। बल्कि दोपहर का लंच करने के बाद मैं एक अलग कमरे में चला गया था। माया के साथ सेक्स कर के मैं बुरी तरह थक गया था इस लिए बेड पर लेटते ही मैं गहरी नींद में चला गया था।

शाम को मेरी आँख कोमल के जगाने पर ही खुली। उसने मुझे फ्रेश हो कर आने को कहा तो मैं फ्रेश होने के लिए बाथरूम में चला गया। उसके बाद मैंने कोमल तबस्सुम और माया के साथ ही डिनर किया। डिनर के दौरान कोमल और तबस्सुम अपनी तरह तरह की बातों से मेरे और माया के साथ मज़ाक करती रहीं। मैं चुप चाप डिनर कर रहा था और साथ ही ये भी सोचता जा रहा था कि माया के बाद अब मुझे कोमल और तबस्सुम के साथ सेक्स करना है। माया ने कहा था कि मुझे उन दोनों के साथ ही सेक्स की ट्रेनिंग लेनी होगी। इस बात को सोच सोच कर ही मेरे अंदर एक अलग ही तरह की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी।

रात में भी कुछ नहीं हुआ, बल्कि मैं डिनर करने के बाद एक अलग कमरे में सो गया था। दूसरे दिन मैं उठा और फ्रेश होने के बाद उन तीनों के साथ नास्ता वग़ैरा किया। माया ने बताया कि नास्ता करने के एक घंटे बाद मुझे कोमल और तबस्सुम के साथ जाना है। मैं कोमल और तबस्सुम को कनखियों से देख लेता था। कई बार मेरी उनसे नज़रें भी चार हो ग‌ईं थी। वो दोनों बस हल्के से मुस्कुरा देती थीं। मैं अंदर ही अंदर ये सोच रहा था कि उन दोनों के साथ मैं किस तरह से खुद को एडजस्ट कर पाऊंगा?

☆☆☆

वागले ने गहरी सांस लेते हुए डायरी को बंद कर दिया। वो सोचने लगा कि विक्रम सिंह उस समय कितने मज़े में था। माया कोमल और तबस्सुम जैसी खूबसूरत लड़कियों के साथ उसने जी भर कर के सेक्स का मज़ा लिया था। उसके बाद भी उसने अलग अलग लड़कियों या औरतों के साथ इसी तरह मज़े किए होंगे। एकाएक वागले के ज़हन में ख़याल उभरा कि इस सबके बीच आख़िर ऐसा क्या हुआ होगा जिसकी वजह से विक्रम सिंह को अपने ही माता पिता की हत्या करनी पड़ी होगी? वागले ने इस बारे में बहुत सोचा लेकिन उसे कुछ समझ नहीं आया। ख़ैर उसने केबिन के चारो तरफ नज़रें घुमाई और फिर हैंड वाच में टाइम देखा। लंच का टाइम हो गया था। जेल का ही एक सिपाही जिसका नाम श्याम था उसने उसके घर से खाने के लिए टिफिन ला दिया था। वागले ने लंच किया और जेल का चक्कर लगाने के लिए निकल गया।

जेल का चक्कर लगा कर वागले जब वापस अपने केबिन की तरफ आया तो गलियारे में उसे श्याम मिल गया। उसने उसे बताया कि एक आदमी उसके इंतज़ार में काफी देर से बैठा है। वागले उसकी बात सुन कर कुछ पल सोचा और फिर उसे बोला कि वो उस आदमी को उसके केबिन में भेज दे। वागले अपने केबिन में पहुंचा तो दो मिनट के अंदर ही एक आदमी उसके केबिन में दाखिल हुआ। वागले ने उस आदमी को गौर से देखा और फिर उसे अपने सामने टेबल के उस पार रखी कुर्सी पर बैठने का इशारा किया।

"शुक्रिया।" वो आदमी ये कहते हुए कुर्सी पर बैठ गया।
"कहिए कौन हैं आप?" उसके बैठते ही वागले ने उससे कहा____"और हमसे क्यों मिलना चाहते थे?"

"जी मैं इंटेलिजेंस विभाग से हूं।"उस आदमी ने अपनी आवाज़ को प्रभावशाली बनाते हुए कहा_____"और एक केस के सिलसिले में आपसे कुछ गुफ्तगू करने आया हूं।"

"ओह! आई सी।" वागले मन ही मन चौंकते हुए कहा____"जी कहिए किस केस के सिलसिले में आप हमसे गुफ्तगू करना चाहते हैं?"
"असल में मैं सीक्रेट रूप से केस पर छानबीन कर रहा हूं।" उस आदमी ने ख़ास भाव से कहा____"इस लिए आपको केस के बारे में डिटेल में कोई जानकारी नहीं दे सकता।"

"तो फिर आप हमसे क्या चाहते हैं?" वागले ने न समझने वाले भाव से पूछा।
"आपकी जेल में विक्रम सिंह का नाम कैदी था।" उस आदमी ने कहा____"जिसे उम्र कैद की सज़ा हुई थी किन्तु फिर उसके अच्छे बर्ताव की वजह से अदालत ने उसकी बाकी की सज़ा को माफ़ कर के रिहा कर दिया है। मैं ये जानना चाहता हूं कि उससे सम्बंधित आपके पास क्या क्या जानकारी है?"

"कमाल की बात है जनाब।" वागले उसके मुख से विक्रम सिंह का नाम सुन कर मन ही मन बुरी तरह चौंका था, किन्तु फिर अपने चेहरे के भावों को शख़्ती से दबाते हुए प्रत्यक्ष में कहा____"विक्रम सिंह नाम का कैदी इस जेल से रिहा हो कर क्या गया उसके तो कई सारे चाहने वाले नज़र आने लगे।"

"क्या मतलब।" उस आदमी के चेहरे पर सिलवटें उभरीं____"मैं कुछ समझा नहीं, आप कहना क्या चाहते हैं?"
"क्या आप मुझे अपना आई कार्ड दिखाएंगे?" वागले ने जाने क्या सोच कर ये कहा तो उस आदमी ने कुछ पलों तक वागले की तरफ देखा उसके बाद उसने अपनी कोट की जेब से अपना आई कार्ड निकाल कर वागले के सामने टेबल पर रख दिया।

"ओह! माफ़ कीजिएगा।" आई कार्ड देखने के बाद वागले ने उसका आई कार्ड वापस उसकी तरफ बढ़ाते हुए कहा____"असल में आपका आई कार्ड देखने के पीछे दो वजहें थीं। एक तो फॉर्मेलिटी के तौर पर दूसरे अपनी एक शंका को दूर करने के लिए। कुछ दिनों पहले हमसे मिलने एक आदमी आया था। उसने खुद को विक्रम सिंह का दोस्त बताया था जो कि हाल ही में विदेश से आया था। वो यहाँ पर हमसे अपने दोस्त विक्रम सिंह के बारे में जानने आया था और आज जब आप आए तो हम ये सोचने पर मजबूर से हो गए कि बीस सालों बाद जबकि विक्रम सिंह यहाँ से रिहा हो कर जा चुका है तो उसके चाहने वाले कहां से आ गए? अगर उसके इतने ही चाहने वाले थे तो वो इन बीस सालों कभी उससे मिलने क्यों नहीं आए? उसके यहाँ से रिहा होने के बाद जब इस तरह से कोई उसके बारे में जानने यहाँ आया तो अब हमें यही लग रहा है कि जैसे विक्रम सिंह के चाहने वाले उसके रिहा होने का ही इंतज़ार कर रहे थे। हालांकि सवाल तो कई सारे हैं किन्तु जवाब किसी का भी नहीं है। ख़ैर आप बताइए आप हमसे विक्रम सिंह के बारे में क्या जानना चाहते हैं?"

"सबसे पहले तो मैं ये कहना चाहूंगा कि मुझे ये जान कर बेहद आश्चर्य हुआ कि विक्रम सिंह के बारे में जानने के लिए उसका कोई दोस्त यहाँ आया था।" उस आदमी ने लम्बी सांस लेते हुए कहा____"जबकि मेरी जानकारी में उसके जितने भी दोस्त थे वो बहुत पहले ही उससे सम्बन्ध तोड़ चुके थे। कहने का मतलब ये कि विक्रम सिंह का ऐसा कोई गहरा दोस्त बचा ही नहीं था जो उसके लिए जानने को इस क़दर उत्सुक हो। ख़ैर मैं यहाँ आपसे ये जानने आया हूं कि विक्रम सिंह ने अपने बारे में आपको क्या बताया है?"

"आप ये कैसे कह सकते हैं जनाब कि विक्रम सिंह ने हमें अपने बारे में कुछ बताया है?" वागले ने उस आदमी की तरफ अपलक देखते हुए कहा।

"हमारे डिपार्टमेंट के कुछ लोग कई बार इस जेल की गतिविधियों पर नज़र रख चुके हैं।" उस आदमी ने कहा____"उन्हीं से हमें पता चला है कि इस जेल में विक्रम सिंह से आपका गहरा सम्बन्ध रहता था। बस इसी वजह से मुझे लगता है कि विक्रम सिंह ने अपने बारे में आपसे ज़रूर कुछ न कुछ बताया होगा।"

"फिर तो आपके जो डिपार्टमेंट वाले यहाँ की गतिविधियों पर नज़र रख रहे थे।" वागले ने मुस्कुराते हुए कहा____"उन्होंने ठीक तरह से नज़र नहीं रखी वरना उन्हें ये भी पता चल जाता कि विक्रम सिंह से भले ही हमारा गहरा ताल्लुक रहता था लेकिन हमारी लाख कोशिशों के बाद भी उसने अपने बारे में हमें कभी कुछ नहीं बताया।"

"बडे आश्चर्य की बात है।" उस आदमी ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"ये विक्रम सिंह तो सच में बड़ा ही शख़्तजान आदमी लगता है। कहने का मतलब ये कि उसने न तो पहले कभी पुलिस या कानून को अपने बारे में कुछ बताया और ना ही यहाँ आपसे कुछ बताया।"

"वैसे क्या मैं जान सकता हूं कि विक्रम सिंह के मामले में इंटेलिजेंस विभाग वाले क्यों इन्वॉल्व हुए?" वागले ने कहा____"और अगर हुए भी तो इतने सालों बाद क्यों? विक्रम सिंह के मामले को दो दशक गुज़र चुके हैं किन्तु इन दो दशकों में कभी इंटेलिजेंस का उसके इस मामले में इन्वॉल्वमेंट नहीं हुआ। तो अब आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसके लिए इंटेलिजेंस वाले बीस साल बाद विक्रम सिंह के मामले पर इतनी दिलचस्पी दिखा रहे हैं?"

"जैसा कि मैं शुरू में ही आपसे बता चुका हूं कि हमारा ये केस सीक्रेट है।" उस आदमी ने कहा____"इस लिए डिटेल में मैं आपको कुछ नहीं बता सकता किन्तु हां, इतना ज़रूर बता सकता हूं कि इसके पहले कई सालों तक ये मामला पुलिस के हाथ में ही था किन्तु जब कोई पुख़्ता सबूत या सुराग़ नहीं मिला तो पुलिस ने फाइल को क्लोज कर दिया और इस मामले को जैसे भुला ही दिया। अभी कुछ समय पहले ये मामला फिर से उभरा और इस तरह से उभरा कि इस मामले को डायरेक्ट इंटेलिजेंस विभाग को सौंप दिया गया और इसकी छानबीन को सीक्रेट रूप से करने को कहा गया।"

"काफी दिलचस्प बात है।" वागले ने कुछ सोचते हुए कहा____"अब आप तो कुछ बता नहीं सकते क्योंकि आपके अनुसार ये सीक्रेट मामला है लेकिन सोचने वाली बात है ही कि आख़िर ऐसा क्या हुआ होगा जिसकी वजह से बीस साल हो चुके मामले में बीस सालो बाद इंटेलिजेंस विभाग इसमें इन्वॉल्व हुआ। हमारा ख़याल है कि ज़रूर इसमें किसी बड़ी हस्ती का भी नाम आया होगा और कुछ इस तरह से आया होगा कि उसने मामले की छानबीन के लिए डायरेक्ट इंटेलिजेंस विभाग को इन्वॉल्व कर दिया।"

"ख़ैर अब जो है सो है।" उस आदमी ने गहरी सांस ली____"लेकिन एक बात अच्छी नहीं हुई और वो ये कि मेरा यहाँ आना फायदेमंद नहीं हुआ। चलिए कोई बात नहीं। वैसे आपको क्या लगता है, विक्रम सिंह यहाँ से रिहा हो कर कहां गया होगा?"

"भगवान ही जाने।" वागले ने सिर हिलाते हुए कहा____"मैंने अपनी ज़िन्दगी में उसके जैसा अजीब इंसान नहीं देखा। वो हमसे थोड़ा बहुत बातें तो कर लेता था लेकिन जब हम उससे उसके बारे में कुछ भी पूछते थे तो वो अपने होठों को शख़्ती से भींच लेता था। जैसे ग़लती से भी वो ये न चाहता हो कि उसके होठों से कोई ऐसा शब्द निकल जाए जिसके तहत हमें उसके बारे में ज़रा सा भी कुछ पता चल जाए।"

आगन्तुक का नाम जयराज पाटिल था। वागले ने उसके आई कार्ड में यही नाम पढ़ा था। कुछ देर और इधर उधर की बातें करने के बाद वो वागले से विदा ले कर चला गया था। उसके जाने के बाद वागले काफी देर तक उसके और विक्रम सिंह के बारे में सोचता रहा था। उसके लिए अब ये सोचने वाली बात थी कि ऐसा क्या हुआ है जिसकी वजह से देश का इंटेलिजेंस विभाग विक्रम सिंह के बारे में छानबीन करने उसके पास पहुंच गया है? वागले के ज़हन में एकदम से ये ख़याल उभरा कि विक्रम सिंह का मामला यकीनन एक ऐसा मामला है जो मामूली नहीं हो सकता। इंटेलिजेंस विभाग के उस आदमी के आने के बाद वागले को पहली बार महसूस हुआ कि मामला गंभीर है किन्तु उसकी समस्या ये थी कि वो खुद कुछ कर नहीं सकता था, क्योंकि उसके पास सच में विक्रम सिंह के सम्बन्ध में कोई जानकारी नहीं थी और ना ही वो ये जानता था कि विक्रम सिंह उसकी जेल से रिहा हो कर कहां गया होगा?

अगर उसे पहले से इस मामले की गंभीरता का पता होता तो वो यकीनन विक्रम सिंह के पीछे अपने जेल के किसी पुलिस वाले को लगा देता, ताकि पता चल सके कि विक्रम सिंह कहां जाने का इरादा रखे हुए था? वागले ने एक सिगरेट जलाई और उसके लम्बे लम्बे कश लेते हुए सोचने लगा। एकाएक ही वो चौंका। उसके ज़हन में अचानक से विक्रम सिंह की डायरी का ख़याल उभर आया। विक्रम सिंह की डायरी में तो उसके बारे में लगभग सब कुछ ही लिखा हुआ था। यानी डायरी के आधार पर शायद वो पता लगा सकता था कि विक्रम सिंह कहां गया होगा। उसने अपनी डायरी में कहीं तो किसी प्रकार का सुराग़ छोड़ा होगा। वागले ने सोचा कि अगर वो विक्रम सिंह की डायरी को जयराज पाटिल के हवाले कर देता तो मुमकिन है कि वो उस डायरी के आधार पर उसके बारे में जान लेते और उसका पता भी कर लेते, लेकिन तभी वागले के ज़हन में ख़याल उभरा कि विक्रम सिंह ने वो डायरी सिर्फ उसके लिए लिखी थी और उस पर विस्वास कर के ही उसको दी थी। ऐसे में इस डायरी को किसी और के हवाले कर के क्या वो विक्रम सिंह से विश्वासघात नहीं कर बैठेगा? वागले ने गहरी सांस ली और मन ही मन सोचा कि अच्छा हुआ कि उसने जयराज से विक्रम सिंह की डायरी का ज़िक्र नहीं किया।

वागले को इंटेलिजेंस विभाग के उस आदमी यानि जयराज पाटिल की बात याद आई जब उसने उससे कहा था कि विक्रम सिंह के सभी दोस्तों ने उससे अपने संबंध तोड़ लिए थे। अगर जयराज पाटिल की ये बात सच है तो फिर वो शख़्स कौन था जो उस दिन उससे मिलने आया था और खुद को विक्रम सिंह का दोस्त कह रहा था? उसके अनुसार जब विक्रम सिंह ने अपने माता-पिता की हत्या की थी तब वो भारत देश में ही नहीं था। वागले के ज़हन में सवाल उभरा कि कहीं वो शख़्स कोई ऐसा व्यक्ति तो नहीं था जो झूठ मूठ का विक्रम सिंह को अपना दोस्त कह रहा था और किसी खास मकसद के तहत वो उससे विक्रम सिंह के बारे में जानकारी प्राप्त करना चाहता था?

वागले सोचने लगा कि आख़िर वो कौन रहा होगा और किस मकसद से विक्रम सिंह के बारे में उससे जानकारी प्राप्त करना चाहता था? वागले ने इस बारे में बहुत सोचा लेकिन उसको इससे संबंधित कुछ भी खास बात समझ में न आई। थक हार कर वागले ने इन सारी बातों को अपने दिमाग़ से झटका और ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाल कर आगे की कहानी पढ़ना शुरू कर दिया।

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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अध्याय - 12
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अब तक...

वागले सोचने लगा कि आख़िर वो कौन रहा होगा और किस मकसद से विक्रम सिंह के बारे में उससे जानकारी प्राप्त करना चाहता था? वागले ने इस बारे में बहुत सोचा लेकिन उसको इससे संबंधित कुछ भी खास बात समझ में न आई। थक हार कर वागले ने इन सारी बातों को अपने दिमाग़ से झटका और ब्रीफ़केस से विक्रम सिंह की डायरी निकाल कर आगे की कहानी पढ़ना शुरू कर दिया।

अब आगे....


नास्ता करने के बाद मैं अपने एक अलग कमरे में आराम कर रहा था कि तभी मेरे कमरे पर किसी ने दस्तक दी। मैं बेड पर लेटा हुआ था और अपनी बदली हुई ज़िन्दगी के बारे में ही सोच रहा था। ख़ैर दस्तक हुई तो मैं उठा और जा कर दरवाज़ा खोला। दरवाज़े के बाहर कोमल और तबस्सुम खड़ी हुईं थी। उन दोनों को देखते ही मेरे दिल की धड़कनें बढ़ चलीं, जबकि मुझ पर नज़र पड़ते ही वो दोनों बड़ी अदा से मुस्कुराईं और कमरे के अंदर दाखिल हो ग‌ईं। मैं जानता था कि वो दोनों मेरे पास किस लिए आईं थी इस लिए मैंने ख़ामोशी से दरवाज़ा बंद किया और पलट कर उनकी तरफ देखा। वो दोनों बेड पर जा कर बैठ चुकीं थी।

"तो तुम तैयार हो न हमारे साथ मज़े के सागर में डूबने के लिए?" कोमल ने मेरी तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर मुझसे पूछा।
"और किस लिए आया हूं मैं यहाँ?" मैंने बड़ी हिम्मत से और बड़े कॉन्फिडेंस के साथ कहा तो दोनों के होठों पर मुस्कान उभर आई।

"बहुत खूब।" तबस्सुम ने उसी मुस्कान के साथ कहा____"माया के साथ वक़्त गुज़ारने के बाद काफी बदलाव दिख रहा है तुम में। ख़ैर ये तो अच्छी बात हुई, क्योंकि हम तो ये सोच रहे थे कि तुम मारे शर्म और झिझक के हम दोनों के साथ खुल कर मज़े कैसे कर पाओगे?"

"कोशिश कर रहा हूं कि मेरे अंदर से शर्म और झिझक जितना जल्दी हो सके पूरी तरह निकल जाए।" मैंने आगे बढ़ते हुए कहा____"बाकि तुम दोनों तो हो ही मेरी शर्म और झिझक को दूर करने के लिए।"

"वो तो हम हैं ही।" कोमल ने कहा____"लेकिन शर्म और झिझक तो इंसान के स्वभाव में होती है जिसे इंसान को खुद ही दूर करनी पड़ती है। तुम जिस लाइन में जाने वाले हो उसमें इसके लिए कोई जगह नहीं है। अपने अंदर से शर्म और झिझक को दूर करने का बस एक ही तरीका है कि जब भी किसी औरत के पास सेक्स के लिए जाओ तो अपने ज़हन में ये विचार बिलकुल भी पैदा न होने दो कि वो औरत तुम्हारे बारे में क्या सोचेगी अथवा तुम उसे खुश कर पाओगे कि नहीं, बल्कि सिर्फ ये सोच रखो कि तुम एक हलब्बी लंड के मालिक हो जिसके बलबूते पर तुम दुनियां की किसी भी औरत को मस्त कर सकते हो।"

"अपने आप पर यकीन होना बहुत ज़रूरी है डियर।" तबस्सुम ने कहा____"अगर खुद पर यकीन नहीं होगा तो हलब्बी लंड के होते हुए भी तुम किसी औरत को खुश नहीं कर पाओगे। इस लिए अपने आप पर और अपनी काबिलियत पर यकीन होना चाहिए। उसके बाद जब किसी के साथ सेक्स की शुरुआत हो जाती है तो सब कुछ अपने आप ही होता चला जाता है। उस समय हमारा ज़हन अपने आप ही अलग अलग तरह की चीज़ों की कल्पना करते हुए कार्य करने लगता है।"

"तुम्हारे लिए सबसे अच्छी बात ये है डियर कि तुम्हें सब कुछ बड़े पैमाने पर पहले से ही कुदरत ने दे दिया है।" कोमल ने कहा____"अब ज़रूरत है उसका सही तरह से उपयोग करने की। हर दिन और हर किसी के साथ एक अलग ही अनुभव मिलेगा तुम्हें जो कि तुम्हारी कला को और तुम्हारी क्षमता को भी बढ़ाता रहेगा। ख़ैर अब छोड़ो ये सब और शुरू हो जाओ। तुम इस वक़्त ये समझो कि तुम हमारे पास अपनी ड्यूटी पूरी करने आए हो। इस लिए अपनी ड्यूटी निभाते हुए तुम्हें हम दोनों को खुश करना है।"

मैं दोनों की बातें बड़े गौर से सुन रहा था और सच तो ये था कि मेरा मन तरह तरह के विचारों से भरता जा रहा था। मैं निर्णय नहीं कर पा रहा था कि अब मैं किस तरह आगे बढ़ूं और उन दोनों के साथ वो सब करूं जिसके लिए इस वक़्त वो दोनों मेरे कमरे में आईं थी? कुछ देर सोचने के बाद मैंने एक गहरी सांस ली और फिर ये सोच कर आगे बढ़ा कि अब जो होगा देखा जाएगा।

कोमल और तबस्सुम दोनों ने इस वक़्त टाइट फिटिंग के कपड़े पहन रखे थे जिसमें उनकी गुदाज टांगों पर टाइट जीन्स था और ऊपर ऐसी टी शर्ट जिसमें उन दोनों की बड़ी बड़ी छातियां साफ़ तौर पर अपना आकार दिखा रहीं थी। मैं अपनी बढ़ चली धड़कनों को काबू करते हुए बेड पर उनके पास आया और बैठ गया। वो दोनों मुझे ही अपलक देखे जा रहीं थी। उनके सुर्ख होठों पर मनमोहक मुस्कान थी जिसकी वजह से मुझे मेरा आत्मविश्वास डगमगाता सा प्रतीत हो रहा था।

माया के साथ मैं पूरी तरह खुल चुका था और उसके साथ अब मुझे शर्म या झिझक नहीं महसूस होती थी लेकिन कोमल और तबस्सुम मेरे लिए अभी इस क्षेत्र में न‌ई थीं। ख़ैर मैंने आँखें बंद कर के एक लम्बी सांस ली और फिर आँखें खोल कर तबस्सुम की तरफ बढ़ा। मैंने आगे बढ़ कर अपनी दोनों हथेलियों के बीच उसका खूबसूरत सा चेहरा लिया और फिर उसकी आँखों में देखने के बाद मैं उसके सुर्ख और रसीले होठों की तरफ झुकने लगा। कमरे में इस वक़्त ब्लेड की धार की मानिन्द सन्नाटा छाया हुआ था। कुछ ही पलों में मैंने अपने होठ तबस्सुम के रसीले होठों पर रख दिए। जैसे ही मेरे होठ उसके होठों से छुए तो मेरे जिस्म में झुरझुरी सी हुई। बस उसके बाद मैंने अपने ज़हन से सब कुछ निकाल दिया।

आंखें बंद किए मैं बड़े ही आहिस्ता से तबस्सुम के लजीज़ होठों को चूम रहा था। उसके होठों को चूमने में मुझे बड़ा ही मज़ा आ रहा था। मेरी रंगों में दौड़ता हुआ लहू एकदम से तेज़ होने लगा था और इसके साथ ही मैं तबस्सुम के होठों को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया। अभी मैं उसके होठों को चूसने ही लगा था कि तभी मेरी पीठ पर किसी का हाथ आया और ऐसे अंदाज़ से मेरी पीठ पर घूमने लगा कि मुझे गुदगुदी सी होने लगी। मैंने तबस्सुम के होठों से अपने होठ अलग कर के एक बार पलट कर देखा तो कोमल को अपने पीछे अपने आप से सटा हुआ पाया। वो मेरी पीठ को सहलाए जा रही थी। मुझे अपनी तरफ देखता देख उसके होठों पर मुस्कान उभर आई थी।

मैंने कोमल से नज़र हटा कर अपनी गर्दन सीधी की और फिर से तबस्सुम के होठों को मुँह में भर कर चूसने लगा। उसके होठों को चूसते हुए मैंने अपने दाहिने हाथ से उसकी दाहिनी छाती को पकड़ा और टी शर्ट के ऊपर से ही उसे अपनी मुट्ठी में भर कर मसलने लगा। मेरे ऐसा करते ही तबस्सुम का जिस्म मचलने लगा और उसने अपने हाथों से मेरे सिर को थाम कर होठ चूसने में मेरा साथ देने लगी। इधर मेरे पीछे से कोमल अभी भी मेरे जिस्म को सहलाए जा रही थी और मेरे शर्ट के बटनों को वो पीछे से ही हाथ बढ़ा कर खोलने लगी थी।

मैंने कुछ देर तबस्सुम के होठों को चूसा और जब हम दोनों की साँसें काबू से बाहर होने लगीं तो मैंने उसके होठों को आज़ाद कर दिया। आँखें खुलते ही हमारी नज़रें मिली तो मैंने देखा तबस्सुम की आँखों में सुर्खी छा गई थी। मैंने एक झटके में उसकी टी शर्ट को पकड़ कर ऊपर खींचा और उसके सिर से निकाल दिया। टी शर्ट के निकलते ही ब्रा में कैद उसकी बड़ी बड़ी छातियां उछल कर मेरे सामने आ ग‌ईं। मैंने झट से एक को अपने हाथ में लिया और मसलते हुए झुक कर तबस्सुम के गले के हर हिस्से पर चूमने लगा। तबस्सुम ने मेरे सिर को फिर से थाम लिया था। उधर कोमल ने मेरी शर्ट के सारे बटन खोल दिए थे और अब वो मेरे जिस्म से मेरी शर्ट निकाल रही थी। मैंने अपने दोनों हाथों को पीछे किया तो कोमल ने शर्ट मेरे जिस्म से निकाल कर बेड पर ही एक तरफ उछाल दिया। शर्ट के अंदर मैंने बनियान नहीं पहन रखी थी इस लिए अब मैं ऊपर से नंगा ही हो गया था।

उधर तबस्सुम को चूमते हुए मैंने उसे बेड पर सीधा लेटा दिया और उसके ऊपर आ कर मैं इस बार उसके सीने पर चूमने लगा। उसकी छातियों की घाटी को चूमते हुए मैं उसकी छाती को भी मसल रहा था। तभी मैंने महसूस किया कि पीछे से कोमल मेरी नंगी पीठ पर चूमने लगी थी। मुझसे रहा न गया तो मैं एकदम से सीधा हुआ और उसे पकड़ कर उसे भी बेड पर तबस्सुम के बगल से लेटा दिया और झुक कर उसके होठों पर अपने होठ रख दिए।

एक साथ दो दो लड़कियां बेड पर लेटी हुईं थी। एक ऊपर से सिर्फ ब्रा में थी तो दूसरी के जिस्म में अभी भी टी शर्ट थी। मैंने कुछ देर कोमल को रसीले होठों को चूसा और फिर उसकी टी शर्ट को भी उसके जिस्म से निकाल दिया था। वो दोनों ऊपर से ब्रा में थी। दोनों बेहद ही खूबसूरत थीं और दोनों के ही जिस्म मक्कन की तरह चिकने और मुलायम थे। मेरा जी कर रहा था कि मैं दोनों के जिस्मों को चाटते हुए खा ही जाऊं। कभी मैं कोमल को तो कभी तबस्सुम के साथ मज़े ले रहा था। मेरा लंड तो बुरी तरह अकड़ गया था, लेकिन मेरा ध्यान अभी सिर्फ उन दोनों को चूमने चाटने और मसलने में ही लगा हुआ था।

कोमल के नंगे सपाट पेट को चूमते हुए मैं तबस्सुम की छाती को मसल रहा था। मैंने बारी बारी से दोनों के पेट को चूमा चाटा और फिर उन दोनों के जीन्स को खोल कर उनकी टांगों से अलग कर दिया। मक्कन की तरह चिकनी टांगों को देख कर मेरा मन मचल उठा और मैं बारी बारी से झुक कर दोनों की टांगों पर अपनी जीभ चलाने लगा। टांगों के बीच पतली सी पेंटी थी जिसमें दोनों की फूली हुई चूत का उभार साफ नज़र आ रहा था। मैंने सीधा हो कर बारी बारी से दोनों को देखा और फिर झुक कर तबस्सुम की नाभि पर अपनी जीभ की नोक को घुसा दिया। मेरे ऐसा करते ही वो मचल उठी और मेरे सिर को अपने पेट पर दबाने लगी। मेरा एक हाथ कोमल के पेट को सहलाते हुए उसकी चूत पर पहुंच गया था। मैं एक हाथ से उसकी चूत सहला रहा था और दूसरे हाथ से तबस्सुम के पेट को पकड़े मैं उसकी नाभि में अपनी जीभ को कुरेद रहा था। कुछ देर उसकी नाभि पर अपनी जीभ कुरेदने के बाद मैं नीचे आया और उसकी गुदाज़ जाँघों को चूमते हुए उसकी चूत पर आ गया।

मैंने पेंटी के ऊपर से ही तबस्सुम की चूत को दो तीन बार चूमा और फिर एकदम से मैंने उसकी चूत को मुँह में भर कर हल्के से काटा तो तबस्सुम के जिस्म को झटका लगा और उसके मुख से ज़ोरदार सिसकी निकल गई। मैं फौरन ही सीधा बैठा और बारी बारी से दोनों की ब्रा पेंटी को उनके जिस्म से अलग कर दिया। अब वो दोनों मेरे सामने पूरी तरह नंगी लेटी हुईं थी। बल्ब की रौशनी में दोनों का गोरा जिस्म चमक रहा था। मुझे समझ न आया कि पहले किसको चखूं। मैंने नज़र ऊपर कर के दोनों की तरफ देखा तो दोनों को अपनी तरफ देखता हुआ ही पाया। नज़र मिलते ही दोनों मुस्कुराईं। मेरी नज़र उनके चेहरों से फिसल कर उनकी छातियों पर पड़ी तो मैंने झट से झुक कर कोमल की छाती के एक निप्पल को मुँह में भर लिया और ज़ोर ज़ोर से चुभलाने लगा।

जीवन में पहली बार मैं ऐसे काम कर रहा था और वो भी दो दो लड़कियों के साथ। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं किसके साथ आगे बढ़ूं और किसको पहले खुश करने की कोशिश करूं? मैं अपनी समझ में वही करता जा रहा था जो करने का मेरा मन करता जा रहा था। काफी देर तक मैं दोनों की छातियों को ऐसे ही मुँह में भर कर चूमता चूसता रहा। जब मेरा मन भर गया तो मैं नीचे आया और तबस्सुम की चिकनी चूत को अपनी जीभ से चाटने लगा। उसकी चूत बुरी तरह धधक रही थी और उसका कामरस रिसने लगा था जो मेरी जीभ पर प्रतिपल लगता जा रहा था। मैं पागलों की तरह तबस्सुम की चूत पर अपनी जीभ चला रहा था और उसका जिस्म बिना पानी के मछली की तरह मचल रहा था। इस बीच कोमल उठ गई थी और वो मेरा पैंट खोलने लगी थी। थोड़ी ही देर में उसने मेरा पैंट निकाल दिया। उसके बाद वो मेरे कच्छे के ऊपर से ही मेरे लंड को सहलाने लगी। उसके ऐसा करते ही मरे जिस्म में मज़े की तरंगें उठने लगीं थी और मैं दुगुने जोश में तबस्सुम की चूत को मुँह में भर कर चूसने लगा था।

तबस्सुम दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़े अपनी चूत पर दबाए जा रही थी और साथ ही आँखें बंद किए मज़े में सिसकारियां भर रही थी। उसकी चूत से रिस रहा कामरस मेरे मुँह में जा रहा था जिसका नशा प्रतिपल मुझ पर चढ़ता जा रहा था। कोमल की तरफ से मेरा ध्यान ही हट गया था, हालांकि वो अभी भी मेरे लंड को कच्छे के ऊपर से सहलाए जा रही थी।

मैंने एकदम से अपने हाथ की दो ऊँगली तबस्सुम की चूत में घुसा दी और ज़ोर ज़ोर से अंदर बाहर करते हुए उसकी चूत को जीभ से चाटने लगा। मेरे ऐसा करते ही तबस्सुम के जिस्म को झटके लगने लगे। वो अपनी कमर को उठा उठा कर बेड पर पटकने लगी थी। शायद वो मज़े के चरम पर थी और कुछ ही पलों में मुझे इसका सबूत भी मिल गया। तबस्सुम की कमर कमान की तरह हवा में तन गई और उसने बुरी तरह मेरे सिर को अपनी चूत पर दबा लिया। उसके बाद झटके खाते हुए वो झड़ने लगी। उसकी चूत से निकला गरम गरम कामरस मेरे चेहरे को भिगोता चला गया। कुछ देर में वो एकदम से शांत पड़ गई जिससे उसकी पकड़ ढीली हो गई।

मैने फ़ौरन ही उसकी चूत से अपना चेहरा उठाया और पलटते हुए कोमल को पकड़ लिया। मैंने कोमल को अपनी तरफ खींचा और तबस्सुम के कामरस से भीगा चेहरा लिए मैं उसके होठों को मुँह में भर कर चूसने लगा। एक हाथ से मैं उसकी छाती को बुरी तरह भींचने लगा था।

कोमल खुद भी मेरे होठों को चूसने लगी थी। एकाएक उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया और मेरे अकड़े हुए लंड को पकड़ कर ज़ोर से भीचा तो मेरे मुँह से सिसकी निकल गई। मैं फ़ौरन ही कोमल से अलग हुआ और तेज़ी से अपना कच्छा उतार कर तथा उसे धक्का दे कर लेटा दिया। उसके बाद मैंने पहले उसकी दोनों छातियों को मुँह में भर कर चूसा और फिर सरक कर नीचे उसकी चूत पर आ गया। उसकी चूत पानी छोड़ रही थी, मैंने जीभ निकाल कर उसकी फांकों पर चलाना शुरू कर दिया और एक हाथ की ऊँगली भी उसकी चूत में डाल दी। कुछ ही देर में कोमल का भी तबस्सुम की तरह बुरा हाल होने लगा। वो दोनों हाथों से मेरे सिर को पकड़े अपनी चूत में दबाए जा रही थी।

क़रीब पांच मिनट की चूत चुसाई के बाद ही कोमल का जिस्म अकड़ने लगा और वो आहें भरते हुए भरभरा कर झड़ने लगी। एक बार फिर से मेरा चेहरा चूत से निकले कामरस से सराबोर होता चला गया था। कोमल जब शांत पड़ गई तो मैंने तबस्सुम की तरफ रुख किया। तबस्सुम अपने एक हाथ से कोमल की छाती को सहला रही थी।

मैं आगे बढ़ा और तबस्सुम के होठों पर टूट पड़ा। कुछ देर उसके होठों को चूसने के बाद मैं उसकी छातियों को मसलते हुए चूसने लगा। मेरा लंड अब बुरी तरह अकड़ कर दर्द करने लगा था। इस लिए मैं उठा और तबस्सुम के चेहरे के पास सरक उसकी तरफ अपना लंड किया तो उसने मेरी तरफ देखा और मेरे लंड को पकड़ लिया।

कुछ देर वो मेरे लंड को सहलाती रही और फिर उठ कर बैठते हुए उसने मेरे लंड को मुँह में भर लिया। उसके गरम मुख में जैसे ही मेरा लंड गया तो मज़े से सिसकी लेते हुए मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और साथ ही उसके सिर को दोनों हाथों से पकड़ कर अपने लंड की तरफ खींचने लगा।

तबस्सुम बड़े मज़े से मेरा लंड चूस रही थी और मैं मज़े के अथाह सागर में गोते लगाने लगा था। तबस्सुम के सिर को पकड़े मैं अपनी कमर को हिला हिला कर उसके मुख को चोद रहा था। तभी मेरी नज़र कोमल पर पड़ी। वो तबस्सुम के मुँह में मेरे लंड को अंदर बाहर होता देख रही थी। मैंने एक झटके से अपना लंड तबस्सुम के मुँह से निकाला और आगे बढ़ कर कोमल की तरफ कर दिया। तबस्सुम के थूक और लार से नहाए हुए मेरे लंड को देख कर कोमल ने पहले मेरी तरफ देखा और फिर अपने एक हाथ से मेरे लंड को पकड़ कर उसने गप्प से मेरा लंड अपने मुँह में भर लिया। ये देख कर तबस्सुम भी कोमल के पास सरक आई और एक हाथ से मेरे टट्टों को सहलाते हुए वो कोमल के सिर पर हाथ फेरने लगी।

मेरी आँखों के सामने अचानक ही गन्दी किताब में बने चित्र घूम गए और मैंने फ़ौरन ही उन चित्रों का अनुसरण किया। कोमल के मुँह से लंड निकाल कर मैंने तबस्सुम के मुँह की तरफ बढ़ाया तो वो अपना मुँह खोल कर जल्दी ही मेरे लंड को मुँह में भर कर चूसने लगी। मैं जैसे स्वर्ग में था। दो खूबसूरत लड़कियां बारी बारी से मेरा लंड चूस रहीं थी और मैं मज़े के सातवें आसमान में गोते लगा रहा था।

मैंने एक झटके में तबस्सुम के मुँह से अपना लंड निकाला और उसे धक्का दे कर बेड पर सीधा लेटा दिया। उसके बाद उसकी दोनों टांगों को पकड़ कर फैलाते हुए उसकी चूत में अपना लंड घुसेड़ दिया।

"आहहह एक ही झटके में अपने इस हलब्बी लंड को मेरी चूत में डाल दो डियर।" तबस्सुम ने सिसियाते हुए कहा____"मैं देखना चाहती हूं कि तुम्हारा ये मोटा लंड जब एक झटके में मेरी चूत में जाएगा तो मेरी चीख कितनी तेज़ निकलती है।"

तबस्सुम की बात सुन कर मैंने ऐसा ही किया। उसकी चूत के छेंद पर अपने टोपे को घुसा कर मैंने पूरी ताकत से धक्का मारा तो मेरा लंड उसकी चूत की दीवारों को चीरता हुआ अंदर की तरफ समाता चला गया। मेरे इस धक्के से तबस्सुम हलक फाड़़ कर चिल्लाई। इधर मेरे मुँह से भी दर्द में डूबी कराह निकल गई। तबस्सुम की चूत मेरे लंड के लिए संकरी थी और जब मैंने पूरी ताकत से धक्का मारा तो मेरे लंड की चमड़ी भी तेज़ी से पीछे होती चली गई थी जिससे मुझे दर्द हुआ था। कुछ पल रुकने के बाद मैंने धक्के लगाने शुरू कर दिए। उधर कोमल उठ कर तबस्सुम के मुँह पर बैठ गई थी जिससे उसकी चूत उसके मुँह पर छूने लगी थी। तबस्सुम ने अपने मुँह पर कोमल की चूत को महसूस किया तो उसने फ़ौरन ही जीभ निकाल कर उसे चाटना शुरू कर दिया।

मैं कोमल को तबस्सुम के मुँह में अपनी चूत टिकाए धीरे धीरे हिलते देख कर पहले तो चकित हुआ फिर जब मेरी नज़र कोमल की नज़र से मिली तो वो मुझे देखते हुए पहले मुस्कुराई फिर अपनी तरफ आने का इशारा किया तो मैं उसकी तरफ खुद को एडजस्ट करते हुए झुका। कुछ ही पलों में मेरे होठ कोमल के होठों से जा मिले। हम तीनों की पोजीशन अब कमाल की बन गई थी। तबस्सुम बेड पर सीधा लेटी हुई थी जिसकी दोनों टाँगें फैलाए मैं उसकी चूत में अपना लंड डाले धक्के लगा रहा था और कोमल अपनी चूत को तबस्सुम के मुँह पर रखे हल्के हल्के हिल रही थी जिससे नीचे से तबस्सुम उसकी चूत पर अपनी ज़ुबान चला रही थी और इधर मैं और कोमल एक दूसरे की तरफ झुके एक दूसरे के होठों को चूम रहे थे। मैं पलक झपकते ही मज़े की तरंग में पहुंच गया था और साथ ही ये सब देख कर बेहद रोमांचित भी हो उठा था।

मैंने कोमल के होठों से अपने होठ छुड़ाए और तेज़ तेज़ अपनी कमर को चलाते हुए तबस्सुम को चोदने लगा। मेरे हर धक्के पर वो आगे की तरफ उछल जाती थी जिससे उसकी चूचियां उछल पड़तीं थी और साथ ही उसके मुख से कोमल की चूत हट जाती थी। कोमल कुछ पलों तक उसके मुँह में अपनी चूत को घिसती रही उसके बाद वो उसके ऊपर से उतर कर उसकी एक चूची के निप्पल को चुभलाने लगी। इस पोजीशन में कोमल की गांड जो कि मेरी तरफ घूमी हुई थी वो उठ गई थी। मेरी नज़र उसकी गांड के गुलाबी छेंद पर पड़ी और फिर उसके नीचे पनियाई हुई चूत पर। ये देख कर मैंने ज़ोर से एक थप्पड़ उसकी गांड पर मारा तो वो एकदम से उछल पड़ी और साथ ही पीछे मुड़ कर मेरी तरफ देखा।

मैंने उसे उसी पोजीशन में तबस्सुम के ऊपर आने को कहा तो वो वैसे ही अपने घुटने को इस तरफ कर के तबस्सुम के ऊपर आ गई। एक तरह से वो तबस्सुम के ऊपर घोड़ी बनी हुई थी और उसकी उठी हुई गांड मेरी आँखों के सामने थी। मैंने तबस्सुम की टांगों को छोड़ा और कोमल के गोरे गोरे लेकिन भारी चूतड़ों को अपनी मुट्ठियों में भीचते हुए उसकी गांड के छेंद को उभारने लगा। कोमल की गांड का गुलाबी छेंद और उसके थोड़ा सा ही नीचे लिसलिसी चूत को देख कर मेरा मन जैसे मचल उठा तो मैं जल्दी से झुका और उसकी भारी गांड के मांस को मुँह में भर कर ज़ोर से काटा जिससे कोमल की दर्द भरी कराह निकल गई। मैंने इतने पर ही बस नहीं किया बल्कि दो तीन बार और काटा और फिर अपना मुँह पीछे से उसकी चूत पर लगा कर अपनी जीभ से उसकी रस बहाती चूत को चाटने लगा। खटमिट्ठा स्वाद मेरी जीभ पर पड़ा तो मैं और ज़ोर ज़ोर से चाटने लगा। इस क्रिया की वजह से मेरे धक्के बहुत ही धीमे हो गए थे, इस लिए नीचे से तबस्सुम खुद ही अपनी गांड उठा उठा कर मेरे लंड को अपनी चूत पर लेने लगी थी।

मेरी आँखों के सामने गन्दी किताब का एक चित्र फिर से घूम गया तो मैंने झट से अपना लंड तबस्सुम की चूत से निकाला और थोड़ा ऊपर हो कर पीछे से कोमल की चूत में एक झटके से डाल दिया। कोमल को मेरे द्वारा ऐसा किए जाने की उम्मीद नहीं थी इस लिए जैसे ही मैंने ज़ोर का धक्का मारा तो वो एकदम से तबस्सुम के ऊपर पसर गई थी और उसके मुख से आह निकल गई थी। मैं कोमल की कमर को पकड़े तेज़ तेज़ धक्के लगाने लगा था। दो दो खूबसूरत लड़कियों को मैं एक दूसरे के ऊपर लेटाए चोद रहा था। इस वक़्त मैं बेहद खुश था और इसी ख़ुशी के जोश में मैं ताबड़तोड़ धक्के लगाए जा रहा था। उधर नीचे पड़ी तबस्सुम कोमल के होठों को मुँह में भरे चूस रही थी और साथ ही उसकी चूचियों को भी मसले जा रही थी। पूरे कमरे में सेक्स का घमासान मचा हुआ था।

मैं काफी देर से उसी पोजीशन में धक्के लगा रहा था इस लिए अब मैं बुरी तरह हांफने लगा था और साथ ही मेरी कमर भी दुखने लगी थी। इस लिए मैंने कोमल की चूत अपना लंड निकाल लिया। मेरी आँखों के सामने गन्दी किताब का एक और चित्र घूम गया था और अब मैं उसी चित्र की तरह पोजीशन लेना चाह रहा था। मैंने जब लंड निकाल लिया तो कोमल ने गर्दन घुमा कर मेरी तरफ देखा तो मैंने उसे बताया कि मुझे पोजीशन चेंज करनी है।

मेरी बात सुन कर दोनों बेड से उठ ग‌ईं। उनके उठते ही मैं सीधा लेट गया। मेरा तना हुआ लंड कोमल और तबस्सुम के कामरस से चमक रहा था और बुरी तरह हवा में झटके मार रहा था। दोनों की नज़र उस पर पड़ी तो वो दोनों भूखी शेरनी की तरह उस पर झपटीं और मुँह में ले कर उसे चूसने लगीं। बारी बारी से दोनों ने उसे मुँह में भर कर चूसा, उसके बाद तबस्सुम उठी और मेरे ऊपर आ कर मेरे लंड को अपनी चूत में डाल लिया। तबस्सुम की गरम गरम चूत में जैसे ही मेरा लंड गया तो मज़े से मेरी सिसकी निकल गई। मैंने तबस्सुम की एक चूची को पकड़ अपनी तरफ खींचा और उसे मुँह में भर कर चूसने लगा। कुछ देर उसकी चूची को चूसने के बाद मैंने उसे छोड़ दिया। उधर जैसे ही मैंने उसकी चूची को छोड़ा तो कोमल मेरे मुँह पर अपनी चूत रख कर बैठ गई। मैं कोमल की चिपचिपी चूत पर अपनी ज़ुबान को लपलपाने लगा और उधर तबस्सुम मेरे लंड पर ज़ोर ज़ोर से अपनी गांड को पटकने लगी थी। एक बार फिर से चुदाई का माहौल गरम हो उठा था। मैं कोमल की चूत को चाटता भी जा रहा था और उस पर ऊँगली भी करता जा रहा था जिससे वो मज़े में सिसकारियां भर रही थी।

तबस्सुम काफी देर तक मेरे लंड पर अपनी गांड को पटकती रही। उसके बाद जब वो थक गई तो उसने अपनी गांड को पटकना बंद कर दिया। मैंने नीचे से अपनी गांड उठा उठा कर धक्के लगाने की कोशिश की लेकिन मुझसे बराबर धक्का नहीं लगाया गया इस लिए मैंने उन्हें अपने ऊपर से हटने को कहा तो वो दोनों मेरे ऊपर से हट ग‌ईं। मैंने तबस्सुम को फिर से सीधा लेटाया और उसकी चूत में अपना लंड डाल कर ज़ोर ज़ोर से उसे चोदने लगा। तबस्सुम बुरी तरह सिसिया रही थी और अपने हाथ से ही अपनी चूचियों को मसले जा रही थी। कुछ ही देर में उसकी चूत की पकड़ मेरे लंड पर कसती हुई महसूस हुई और फिर वो एकदम से अकड़ने लगी। तबस्सुम को झटके लगने लगे थे और वो बुरी तरह चीखते हुए झड़ने लगी थी। वो झड़ रही थी और मैं धक्के लगाए जा रहा था। जब वो झड़ कर शांत पड़ गई तो कोमल मुझे इशारा करते हुए फ़ौरन ही लेट गई।

कोमल अपनी टाँगें फैला कर लेटी तो मैंने उसकी चूत में अपना लंड डाल दिया और ज़ोर ज़ोर से उसे चोदने लगा। असल में अब मुझे इतना मज़ा आ रहा था कि मैं रुकना नहीं चाहता था। मैंने दोनों हाथ बढ़ा कर कोमल की बड़ी बड़ी चूचियों को पकड़ा और पूरी ताकत से धक्के लगाने लगा। कुछ ही देर में कोमल की आहें तेज़ हो ग‌ईं। इधर मेरे जिस्म में भी अब हलचल होने लगी थी। मेरे अंडकोषों में बड़ी तेज़ी से झुरझुरी होने लगी थी और मैं मज़े के सातवें आसमान की तरफ बढ़ता चला जा रहा था। जैसे जैसे मैं अपनी चरम सीमा की तरफ पहुंच रहा था वैसे वैसे मेरे धक्कों की स्पीड भी तेज़ होती जा रही थी। उधर कोमल मुख से अजीब अजीब सी आवाज़ें निकालते हुए जाने क्या क्या बड़बड़ाने लगी थी। करीब पांच मिनट बाद ही कोमल का जिस्म ऐंठा और वो झड़ने लगी। उसकी चूत से निकला गरम गरम पानी जैसे ही मेरे लंड को भिगोया तो मैं उसका ताप सहन न कर सका और मैं भी आहें भरते हुए झड़ने लगा।

झड़ने के बाद मैं बेहोश सा हो कर कोमल के ऊपर ही ढेर हो गया। कमरे में उखड़ी हुई साँसों का तूफ़ान गर्म था। मैं उन दोनों खूबसूरत हसीनाओ के साथ एकदम पस्त सा पड़ा था। जाने कितनी ही देर तक हम तीनो यूं ही बेहोश से पड़े रहे उसके बाद सबसे पहले तबस्सुम उठी। उसने बड़े प्यार से मेरे सिर पर हाथ फेरा और बाथरूम की तरफ चली गई। कुछ देर बाद हम दोनों भी उठे। सेक्स की गर्मी शांत हुई और जब मैंने कोमल की तरफ देखा तो उससे नज़र मिलते ही मेरे होठों पर मुस्कान उभर आई और साथ ही हल्की शर्म भी। कोमल मेरे चेहरे पर आई हल्की शर्म को देख कर मुस्कुरा पड़ी। ख़ैर तबस्सुम के आने के बाद हम दोनों भी बारी बारी से बाथरूम गए और खुद को साफ़ किया।

"तुमने तो कमाल कर दिया डियर।" तबस्सुम ने मुस्कुराते हुए कहा____"मुझे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि पहली बार में तुम्हारा परफॉरमेंस इतना अच्छा होगा। तुम्हें सच में खुदा ने ख़ास बना कर भेजा है।"

"सही कहा तुमने।" कोमल ने कहा____"ऐसा पहला मर्द देखा है मैंने जो पहली बार में दो दो लड़कियों को झाड़ने के बाद खुद झड़ा हो। जब कि ऐसा होना लगभग असंभव सा होता है। ख़ैर मुझे भी लगता है कि तुम्हें ऊपर वाले ने कुछ ज़्यादा ही ख़ास बना कर भेजा है।"

"तुम दोनों की बातों से तो लगता है।" मैंने दोनों को बारी बारी से देखते हुए कहा_____"कि मैं तुम दोनों की परीक्षा में पास हो गया हूं।"
"बिल्कुल पास हो गए हो डियर।" कोमल ने कहा____"बल्कि अगर ये कहूं तो ज़्यादा बेहतर होगा कि तुमने पहली बार में इतना अच्छा परफॉरमेंस दे कर हम दोनों को हैरान कर दिया है।"

कोमल और तबस्सुम की ये बातें सुन कर मैं अंदर ही अंदर बेहद खुश हो गया था और अपने आप पर प्राउड सा फील करने लगा था जिसकी वजह से मैं एकदम से तन कर बैठ गया था। दोनों की बातों ने मेरे मनोबल को बढ़ा दिया था जिसकी वजह से मेरे अंदर एक अलग ही तरह का एहसास होने लगा था। मुझे ऐसा लगने लगा था जैसे अब मैं मुकम्मल मर्द बन गया हूं और अब मैं किसी भी औरत को खुश कर सकता हूं।

कुछ देर हम तीनों इसी बारे में बातें करते रहे उसके बाद वो दोनों मुझे आराम करने का बोल कर कमरे से चली ग‌ईं। दुबारा करने के लिए न उन्होंने कहा और ना ही मेरा मन था। क्योंकि दोनों को पेलने के बाद मैं बुरी तरह थक गया था। ख़ैर दोपहर को लंच करने के बाद मैं अपने एक अलग कमरे में सोने चला गया।

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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अध्याय - 13
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अब तक...

कुछ देर हम तीनों इसी बारे में बातें करते रहे उसके बाद वो दोनों मुझे आराम करने का बोल कर कमरे से चली ग‌ईं। दुबारा करने के लिए न उन्होंने कहा और ना ही मेरा मन था। क्योंकि दोनों को पेलने के बाद मैं बुरी तरह थक गया था। ख़ैर दोपहर को लंच करने के बाद मैं अपने एक अलग कमरे में सोने चला गया।

अब आगे...



शाम को वागले अपने घर पहुंचा। उसे थोड़ा गर्मी लग रही थी इस लिए उसने नहाने का सोचा। बाथरूम में नहाते समय उसे याद आया कि कल रात उसने अपनी बीवी से क्या कहा था। इस बात के याद आते ही उसने अपने लंड के बाल साफ़ किए और फिर बच्चों से छुपा कर उसने सावित्री से पूछा कि उसने अपने बाल साफ़ किए हैं कि नहीं? उसकी ये बात सुन कर सावित्री पहले तो हैरान हुई थी फिर उसने नज़रें चुराते हुए कहा था कि उसे इस बारे में याद ही नहीं आया। वागले ने उसे सारे काम छोड़ कर पहले अपनी सफाई करने पर ज़ोर दिया। मजबूरन सावित्री को बाथरूम में अपनी सफाई करने जाना ही पड़ा।

रात में डिनर करने के बाद दोनों पति पत्नी अपने कमरे में लेते हुए थे। वागले बहुत ही ज़्यादा उत्सुक था कि वो अपनी खूबसूरत बीवी के साथ जल्द से जल्द ठीक उसी तरह सम्भोग करेगा जैसे विक्रम सिंह ने अपनी डायरी में लिखा था।

वागले ने जब सावित्री को दूसरी तरफ करवट लिए लेटा हुआ देखा तो वो सरक कर सावित्री के पास पहुंचा और उसे पीछे से पकड़ते हुए कहा कि क्या इरादा है भाग्यवान? सावित्री उसकी बात सुन कर चौंक गई थी। असल में उसके ज़हन में भी यही सब चल रहा था कि आज उसका पति उसके साथ क्या क्या करने वाला है।

वागले जनता था कि सावित्री खुद पहल करने वाली नहीं थी इस लिए उसने खुद ही पहल कर दी थी। उसने सावित्री को अपनी तरफ घुमाया और उसके होठों को मुँह में भर कर चूसने लगा था। एक हाथ से वो उसकी बड़ी बड़ी छातियों को भी मसलने लगा था। सावित्री उसके ऐसा करने से मचलने लगी थी। कुछ देर बाद वागले ने सावित्री के जिस्म से नाइटी निकाल दिया और ब्रा को भी। उसके बाद वो उसकी छातियों को बारी बारी से चूमने चाटने लगा था।

सावित्री के जिस्म में हलचल तो हो रही थी लेकिन वो खुद कुछ नहीं कर रही थी। वागले ने जब ये देखा तो उसने उससे कहा कि उसे भी उसका साथ देना चाहिए और इसमें मज़ा लेना चाहिए। वागले के कहने पर सावित्री ने उसका साथ देना शुरू कर दिया था। वागले पूरी तरह खुद को विक्रम सिंह की जगह पर रखे हुए था और सब कुछ वैसा ही करता जा रहा था जैसा डायरी में विक्रम सिंह ने लिखा था।

सावित्री की पेंटी उतार कर जब वागले ने उसकी चिकनी चूत को देखा तो देखता ही रह गया था। सावित्री की चूत आज बेहद साफ़ और चिकनी थी। अपनी चूत को इस तरह गौर से देखता देख सावित्री बुरी तरह शर्माने लगी थी। इधर वागले झुक कर उसकी चूत को चूमने लगा था। अपनी चूत को इस तरह चूमते देख सावित्री बुरी तरह मचलने लगी थी और साथ ही उसके जिस्म में मज़े की तरंगें उठने लगीं थी। आज से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था कि वागले ने उसकी चूत को इस तरह चूमा रहा हो। औरत का ये अंग बेहद ही संवेदनशील होता है। जब वागले लगातार उसकी चूत को चूमता चाटता रहा तो सावित्री का कुछ ही देर में बुरा हाल होने लगा। उसके मुख से मज़े में डूबी सिसकारियां उभरने लगीं थी जिसे वो बड़ी मुश्किल से दबाने की कोशिश कर रही थी।

वागले जो अब खुद को विक्रम सिंह ही समझ बैठा था वो पूरे जोश और पागलपन में अपनी बीवी की चूत को चाटे जा रहा था। हैरानी की बात थी कि आज से पहले वागले ने कभी ऐसा करने के बारे में सोचा तक नहीं था और आज वो किसी कुत्ते की तरह अपनी बीवी की चूत को चाटने में लगा हुआ था। यकीनन वो होश में नहीं था वरना अगर ज़रा भी उसे एहसास होता कि वो इस वक़्त क्या कर रहा है तो उसे उल्टियां आने लगतीं। ख़ैर जो भी हो वागले आज एक न‌ए ही रूप में था और उसकी बीवी उसकी इस क्रिया से हैरान परेशान तो थी ही लेकिन जब उसके जिस्म में मज़े की तरंगें उठने लगीं तो उसे भी वागले के ऐसा करने से अब कोई परेशानी नहीं हो रही थी बल्कि वो तो अब यही चाहती थी कि वागले इसी तरह उसकी चूत को चाटता रहे।

"आह्ह्ह्ह ये क्या हो रहा है मुझे?" मज़े में डूबी सावित्री सिसकारियां भरते हुए जैसे बोल पड़ी थी____"आज से पहले मेरे जिस्म में ऐसी आनंद की तरंगें कभी नहीं उठीं थी। आह्ह्ह्ह रूप के पापा ये क्या कर रहे हैं आप?"

सावित्री क्या बोल रही थी ये तो जैसे वागले को अब सुनाई ही नहीं दे रहा था वो तो बस पूरे जोश में उसकी चूत को चाटे जा रहा था। उसका पूरा मुँह सावित्री की चूत से निकले कामरस से लिसलिसा हो गया था। उधर सावित्री कभी बेड पर बिछी चादर को अपनी मुट्ठियों में खींचती तो कभी खुद ही अपने हाथों से अपनी बड़ी बड़ी छातियों को मुट्ठी में भर कर मसलने लगती।

जब सावित्री से बर्दास्त नहीं हुआ तो उसने हाथ बढ़ा कर वागले के बालों को पकड़ कर ज़ोर से खींचा तो वागले दर्द से आह भरते हुए उसकी चूत से हटा और उसकी तरफ इस तरह देखा जैसे भारी नशे में हो।

"क्या हुआ मेरी जान?" वागले जैसे नशे में ही बोला____"मज़ा नहीं आ रहा क्या तुम्हें?"
"आप मज़े की बात करते हैं और यहाँ मेरा बुरा हाल हुआ जा रहा है।" सावित्री अपनी उखड़ी हुई साँसों को किसी तरह काबू करते हुए बोली____"आख़िर क्या हो गया है आपको? आज से पहले तो ऐसा कभी नहीं किया आपने। आप उस जगह को कैसे इस तरह चाट सकते हैं जो जगह इतनी गन्दी होती है?"

"किसने कहा कि वो जगह गन्दी होती है मेरी जान?" वागले ने हाथ नचाते हुए कहा____"अरे! वो जगह तो स्वर्ग का द्वार होती है रानी। पहले मुझे भी इसका एहसास नहीं था लेकिन अब एहसास हो चुका है मुझे। अब मैं समझ गया हूं कि स्वर्ग का असली मज़ा कैसे मिलता है। तुम भी मेरे साथ स्वर्ग के इस मज़े में डूब जाओ डियर।"

"मैं तो ये सोच सोच के ही पागल हुई जा रही हूं कि आप ये सब कहां से सीख के आये हैं?" सावित्री ने कहा____"आज से पहले तो कभी आपने इस तरह से कुछ नहीं किया था।"

"सब कुछ बताऊंगा मेरी जान।" वागले ने उसकी एक चूची को मसलते हुए कहा____"अभी तो फिलहाल तुम इस सबका मज़ा लो। मैं जो करूं वो तुम करने देना और फिर मैं जो कहूं वो तुम करना। फिर देखना कैसे तुम्हें इस सब में मज़ा आएगा।"

वागले की बातें सुन कर सावित्री कुछ न बोली, बल्कि हैरत से उसे देखती रही। उधर वागले इतना कहने के बाद फिर से सावित्री पर टूट पड़ा था। वो हाथों से उसकी बड़ी बड़ी छातियों को मसलते हुए चूसने लगा था और सावित्री एक बार फिर से अपने जिस्म में उठने लगी मज़े की तरंगों में डूबने लगी थी। वागले उसकी चूचियों को चूसते हुए नीचे की तरफ सरका और पेट को चूमते हुए फिर से उसकी चूत पर आ गया। उसने उसकी चूत को फिर से जीभ से चाटना शुरू कर दिया। सावित्री के जिस्म में बड़ी तेज़ी से सनसनी हुई और वो बिना पानी के मछली की तरह मचलने लगी।

वागले ने एक झटके से अपना चेहरा सावित्री की चूत से हटाया और तेज़ी से अपने कपड़े उतारने लगा। जल्दी ही वो पूरी तरह नंगा हो गया। उधर सावित्री अचानक ही रुक गई मज़े की तरंगों की वजह से होश में आ गई थी और वो झटके से आँखें खोल कर अपने पति वागले को देखने लगी थी। वागले को पूरी तरह नंगा होते देख सावित्री की आँखें फैल ग‌ईं। लाइट के तेज़ प्रकाश में उसकी नज़रें वागले के खड़े हुए लंड पर जैसे जम सी गईं थी। वैसे तो उसने न जाने कितनी ही बार वागले के लंड को देखा था लेकिन आज की बात ही अलग थी। आज उसका पति एक अलग ही अवतार में नज़र आ रहा था। उसे लग ही नहीं रहा था कि वो दो दो जवान बच्चों का एक ऐसा पिता है जिसने आज से पहले कभी भी इस तरह सेक्स के प्रति इतनी उग्रता और निर्लज्जता नहीं दिखाई थी।

"अब देखती ही रहोगी या इसे प्यार भी करोगी मेरी जान?" वागले ने सावित्री को देखते हुए मुस्कुरा कर कहा तो सावित्री उसकी ये बात सुन कर हड़बड़ा गई और एकदम से अपनी नज़रें वागले के लंड से हटा कर वागले की तरफ देखने लगी।

"उठो मेरी जान।" वागले बेड पर सीधा लेटते हुए बोला____"और जैसे मैंने तुम्हारी चूत को चाट चाट कर प्यार किया है वैसे ही अब तुम मेरे लंड को अपने मुंह में भर कर इसे प्यार करो।"

"क् क्...क्या???" वागले की बात सुन कर सावित्री को जैसे ज़बरदस्त झटका लगा। उसने हैरतज़दा आँखों से वागले की तरफ देखते हुए आगे कहा____"ये क्या कह रहे हैं आप??"

"इतना चकित न हो डियर।" वागले ने सावित्री का हाथ पकड़ कर उसे उठाते हुए कहा____"असली मज़े की तरंग में डूबना है तो वही करो जो मैं कह रहा हूं। चलो उठो अब, देर मत करो वरना सारा मज़ा किरकिरा हो जाएगा।"

वागले के द्वारा हाथ पकड़ कर उठाए जाने पर सावित्री उठ तो गई लेकिन वो अभी भी उसकी तरफ फटी फटी आँखों से देखे जा रही थी। जैसे यकीन न कर पा रही हो कि उसके पति ने अभी अभी उससे जो करने के लिए कहा है वो सच है या बेवजह ही उसके कान बज उठे थे।

"ऐसे क्यों देख रही हो यार?" सावित्री को भौचक्की सी हालत में अपनी तरफ देखते देख वागले ने इस बार थोड़ा खीझते हुए कहा_____"जो कह रहा हूं वो करो जल्दी।"
"प...पर ये सब।" सावित्री के जैसे होश उड़े हुए थे, हकलाते हुए बोली____"ये मैं नहीं कर सकती। आप सोच भी कैसे सकते हैं कि मैं इतना गन्दा काम करुँगी?"

"तुमने मुझसे वादा किया था सावित्री कि तुम वही करोगी जो करने को मैं कहूंगा।" वागले ने शख़्त भाव से कहा___"और अब तुम अपना किया हुआ वादा तोड़ रही हो। अगर वादा ही तोड़ना था तो ऐसा बोला ही क्यों था तुमने?"

"म..मुझे क्या पता था कि आप मुझसे ये करने को कहेंगे।" सावित्री ने एक नज़र वागले के लंड पर डालते हुए कहा____"मैं तो यही समझती थी कि आप मुझे सेक्स करने के लिए कहेंगे और मैं वो ख़ुशी ख़ुशी आपके साथ कर लूंगी। भला मैं ये कैसे सोच सकती थी कि आप मुझसे ऐसा गन्दा काम करने को कहेंगे? आख़िर आपको हो क्या गया है? मैं तो यही सोच कर शर्म और हैरत में डूबी जा रही हूं कि आपने मेरे वहां पर मुँह कैसे लगाया। भला कोई ऐसी गन्दी जगह पर मुँह लगता है क्या?"

"मैं भी अभी तक इस बारे में ऐसा नहीं सोच सकता था।" वागले ने कहा____"लेकिन अब मैं जान चुका हूं कि दुनियां में ये सब भी होता है। आज कल सेक्स करने की शुरुआत ही इसी तरीके से होती है। पहले मुझे भी भरोसा नहीं हो रहा था लेकिन जब मैंने खुद किया तो मुझे यकीन हो गया कि ये सब करने में एक अलग ही मज़ा आता है। तुम खुद भी तो मेरे द्वारा ऐसा किए जाने पर कितना आनंद में डूब गई थी। याद करो जब मैं तुम्हारी चूत को मज़े से चाट रहा था तब तुम किस क़दर मज़े में डूब गई थी और मज़े में सिसकियां ले रही थी। यहाँ तक कि उसी मज़े में डूब कर तुम अपने हाथों से मेरे सिर को अपनी चूत पर झोंकती जा रही थी और ये भी कह रही थी कि तुम्हें ऐसा मज़ा इसके पहले कभी नहीं मिला।"

वागले की बातें सुन कर सावित्री का चेहरा ये सोच कर शर्म से झुकता चला गया कि उसका पति सही कह रहा है। उस वक़्त सच में वागले के ऐसा करने पर उसे बेहद आनंद मिल रहा था और उसका दिल कर रहा था कि वागले ऐसे ही उसकी चूत को चाटता रहे। उसे शर्म से सर झुकाए और कुछ न बोलता देख वागले ने उसके चेहरे को पकड़ कर ऊपर किया।

"मैं जनता हूं कि शुरू शुरू में ये सब करना किसी के लिए भी आसान नहीं होता।" वागले ने जैसे उसे समझाते हुए कहा____"ख़ुद मेरे लिए भी आसान नहीं था। जैसे तुम ये कह रही हो कि उस गन्दी जगह पर कोई कैसे मुँह लगा सकता है वैसे ही मैं भी यही सोचता था लेकिन सच के प्रमाण को जानने समझने के लिए मैंने ज़बरदस्ती ऐसा किया और यकीन मानो ऐसा करने के बाद मुझे बेहद मज़ा ही आया। उसके बाद तो मैं वैसा ही करता चला गया। मेरे ज़हन में ज़रा भी ये ख़याल नहीं आया कि वो जगह कितनी गन्दी होती है।"

"पर मुझसे नहीं हो पाएगा।" सावित्री ने उसकी आँखों में देखते हुए बेबस भाव से कहा____"मुझे तो सोच के ही घिन आती है। ऐसा करुँगी तो न जाने क्या हो जाएगा।"

"कुछ नहीं होगा मेरी जान।" वागले ने झुक कर उसके होठों को प्यार से चूमा और फिर कहा____"हर चीज़ को करने का एक तरीका होता है। जब किसी चीज़ को तरीके से किया जाता है तो वो चीज़ करने में बेहद आसान हो जाती है और ये बात मैं यूं ही नहीं कह रहा हूं बल्कि जब खुद किया तब मुझे भी समझ आया है। तुम भी करो डियर। अपनी आँखें बंद कर के और अपनी साँसें रोक कर करो। पहले धीरे धीरे करो और जब लगे कि ऐसा करने में कोई परेशानी नहीं है तो उसे मज़े में डूब कर करना शुरू कर दो।"

वागले की बातें सुन कर सावित्री ख़ामोशी से अपने पति की तरफ देखती रही। उसके चेहरे पर कई तरह के भाव उभर रहे थे। वो समझ चुकी थी कि उसे वो करना ही पड़ेगा जो करने के लिए उसका पति कह रहा है। वो जानती थी कि अगर उसने ऐसा नहीं किया तो उसका पति फिर से उससे नाराज़ या गुस्सा हो जाएगा। ये सोच कर उसने अपनी आँखें बंद कर के गहरी सांस ली। वागले उसी को ध्यान से देख रहा था। जब सावित्री ने आँखें बंद कर के गहरी सांस ली तो वो समझ गया कि सावित्री वैसा करने के लिए खुद को तैयार कर रही है।

वागले जानता था कि इन सारी बातों के चलते दोनों के जिस्म में मज़े की जो तरंगे इसके पहले भर गईं थी वो अब गायब हो चुकी हैं। इस लिए उसने उन मज़े की तरंगों को वापस लाने के लिए फिर से सावित्री को पकड़ कर उसके होठों को चूमना चूसना शुरू कर दिया। उसकी सोच थी कि सावित्री जब मज़े में डूब जाएगी तो उसके लिए उसके लंड को मुँह में भर कर प्यार करना थोड़ा आसान सा हो जाएगा।

वागले सावित्री के होठों को चूसते हुए एक हाथ से उसकी बड़ी बड़ी छातियों को भी मसलता जा रहा था। कुछ देर छातियों को मसलने के बाद उसने अपना हाथ सावित्री की चिकनी चूत पर रखा और उसे सहलाने लगा। उसके ऐसा करते ही सावित्री के जिस्म में हलचल होने लगी जिसे उसने खुद भी महसूस किया। ये महसूस करते ही उसने अपनी एक ऊँगली उसकी चूत के अंदर डाल दी और उसे अंदर बाहर करने लगा। उसके ऐसा करते ही सावित्री का जिस्म बुरी तरह मचलने लगा। उसने जल्दी से अपना हाथ बढ़ा कर वागले के उस हाथ पर रख लिया। इधर वागले ज़ोर ज़ोर से अपनी ऊँगली को उसकी चूत में अंदर बाहर करने लगा था जिससे सावित्री ने उसके होठों से अपने होठों को आज़ाद किया और तेज़ तेज़ सिसकियां लेने लगी। आँखें बंद किए वो बुरी तरह मचलने लगी थी। इधर वागले सिर नीचे कर के उसकी चूची के एक निप्पल को मुँह में भर कर चूसना शुरू कर दिया। दो तरफ से हो रहे हमलों ने सावित्री की हालत ख़राब कर दी। वो बुरी तरह छटपटाते हुए वागले के सिर को अपनी छाती पर दबाती जा रही थी।

"आह्ह्ह्ह रूप के पापा।" सावित्री आहें भरते हुए बोल पड़ी____"ये क्या हो रहा है मुझे? मेरा जिस्म क्यों इतना ज़्यादा मचला जा रहा है? ऐसा लगता है जैसे आअह्ह्ह शीश्श्श् जैसे मेरे अंदर एक ऐसी गर्मी सी भरती जा रही है जो मुझे जला भी रही है और मुझे असीम सुख भी दे रही है।"

"मेरे साथ इस आग में जलती रहो मेरी जान।" वागले ने उसकी चूची के निप्पल को मुँह से निकालते हुए कहा____"और जो मज़ा मिल रहा है उसमें बस डूबती जाओ। अच्छा ये बताओ कि इस सबसे तुम्हें कितना मज़ा आ रहा है?"

"मत पूछिए रूप के पापा।" सावित्री ने उसके चेहरे को अपनी उसी छाती पर ज़ोर से दबाते हुए कहा जिसे वागले चूस रहा था, बोली____"मैं कुछ बता नहीं सकती। बस इतना ही महसूस कर रही हूं जैसे मैं मज़े में डूबती जा रही हूं। फिर दूसरे ही पल ऐसा लगने लगता है जैसे मैं यहाँ पर हूं ही नहीं बल्कि किसी और ही दुनियां की तरफ भागी जा रही हूं। आह्हहहह मेरी छाती को ज़ोर से चूसिए न।"

वागले समझ गया कि उसकी बीवी अब उसी स्टेज पर है जहां पर वो उसे पहुंचा देना चाहता था ताकि जब वो उसे अपना लंड मुँह में भरने को कहे तो वो इंकार न कर सके। ख़ैर उसके कहने पर वागले ने एक बार फिर से उसकी चूची के निप्पल को मुँह में भरा और ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा। वो निप्पल को चूसते हुए खींच भी लेता था जिससे सावित्री ज़ोर से मचलते हुए सिसिया उठती थी। उधर उसकी चूत में वो अभी भी ऊँगली करता जा रहा था जिससे उसकी वो ऊँगली ही नहीं बल्कि उसकी हथेली भी सावित्री के चूत से निकले कामरस से भींग गई थी।

वागले के मन में जाने क्या आया कि उसने सावित्री की चूत से अपनी ऊँगली निकाली और तेज़ी से ऊपर ला कर सावित्री के मुँह में डाल दिया। सावित्री आँखें बंद किए मज़े में डूबी हुई थी और अपने होठ खोले सिसकियां ले रही थी। जैसे ही वागले ने उसके मुँह में चूत रस से भींगी ऊँगली डाली तो सावित्री अपने होठ उसकी ऊँगली में कस लिए और उसकी उंगली को चूसना शुरु कर दिया। मज़े और मदहोशी में जैसे उसे पता ही नहीं चला था कि उसके पति की ऊँगली में उसका ही चूत रस लगा हुआ था।

वागले ने अपनी ऊँगली को आधा निकाल कर फिर से उसके मुँह में अंदर तक डाला। ऐसा उसने दो तीन बार किया, सावित्री ने उसकी ऊँगली को अपने होठों की पकड़ से छोड़ा नहीं। ये देख कर वागले मुस्कुराया।

"मेरी ऊँगली का स्वाद कैसा लगा मेरी जान?" वागले ने उसके कान में सरगोशी करते हुए पूछा तो सावित्री ने उसकी ऊँगली को अपने मुँह से निकाल कर सिसियाते हुए कहा_____"बड़ा नमकीन सा स्वाद है रूप के पापा। मेरे मुँह में अपनी ऊँगली फिर से डालिए न।"

सावित्री की बात सुन कर वागले मन ही मन ये सोच कर हँसा कि सावित्री को अभी भी ये एहसास नहीं हुआ कि उसे उसकी ऊँगली में जो नमकीन सा स्वाद महसूस हुआ था वो असल में क्या था। ख़ैर वागले उसके कहने पर अपना वो हाथ तेज़ी से नीचे लाया और सावित्री की चूत में उस हाथ की बड़ी वाली ऊँगली झटके से घुसेड़ दी, जिससे सावित्री ने मचलते हुए लम्बी आह भरी। इधर वागले ने तेज़ी से उसकी चूत में अपनी ऊँगली को दो तीन बार अंदर बाहर किया और फिर उसी तेज़ी से निकाल कर उसके मुँह में डाल दिया।

सावित्री के मुँह में जैसे ही उसकी ऊँगली घुसी तो सावत्री फ़ौरन ही उसे लोलीपाप की तरह चूसने लगी। ये देख कर वागले के होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई। इस वक़्त सावित्री पर उसे बेहद प्यार आ रहा था और यही वजह थी कि उसने अगले ही पल उसके मुँह से अपनी ऊँगली निकाली और उसके होठों को अपने मुँह में भर लिया।

सावित्री पूरी तरह मज़े के तरंग में डूब चुकी थी। बंद कमरे में उसकी आहें तथा उसकी सिसकारियां गूँज रहीं थी। वागले ने उसे बड़े ही आहिस्ता से बेड पर सीधा लेटाया और फिर जल्दी ही उसके चेहरे के पास अपना लंड ला कर उसके होठों पर छुआया। सावित्री मज़े में आँखें बंद किए हुए थी और जैसे ही उसे अपने होठों पर किसी चीज़ का एहसास हुआ तो उसे लगा उसका पति फिर से अपनी ऊँगली उसके मुँह में डालना चाहता है इस लिए उसने फ़ौरन ही अपना मुँह खोल दिया।

सावित्री ने जैसे ही अपना मुँह खोला तो वागले ने अपने खड़े लंड को उसके मुँह में बड़ी ही सावधानी से घुसेड़ दिया। सावित्री को पहले तो समझ न आया लेकिन जल्दी ही उसे एक अलग एहसास हुआ और उसने फ़ौरन ही अपनी आँखें खोल दी। नज़र अपने बेहद क़रीब हल्का झुके वागले पर पड़ी। कुछ पल उसे कुछ समझ न आया लेकिन जल्द ही उसे पता चल गया कि इस वक़्त उसके मुँह में उसके पति का लंड है। उसकी आँखें हैरत से फट पड़ीं और उसने जल्दी से अपने मुँह से उसके लंड को निकालना चाहा मगर वागले जैसे पहले से ही जानता था इस लिए उसने सावित्री के सिर को मजबूती से पकड़ लिया और अपनी कमर को थोड़ा और आगे सरकाया जिससे उसका लंड सावित्री के मुँह में थोड़ा और अंदर चला गया।

"घबराओ मत मेरी जान।" वागले ने सावित्री को देखते हुए कहा____"आँखें बंद कर लो और ये समझो कि तुम मेरी ऊँगली को ही चूस रही हो। एक बार कोशिश तो कर के देखो डियर, मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हें इसको लोलीपाप की तरह चूसने में बेहद मज़ा आएगा।"

सावित्री के चेहरे पर अभी भी अजीब से भाव थे। वागले की बात सुन कर उसने बेबस भाव से ही सही लेकिन आँखें बंद कर ली। उसके मुँह में वागले का लंड टोपे सहित घुसा हुआ था। जब सावित्री ने अपनी आँखें बंद कर ली तो वागले अपनी कमर को हिलाने लगा। उसने सावित्री के सिर को छोड़ा नहीं था, क्योंकि वो जानता था कि उसके हाथ हटाते ही सावित्री उसके लंड को अपने मुँह से निकाल देगी। कुछ देर बाद वागले ने महसूस किया कि सावित्री ने विरोध करना बंद कर दिया है तो उसने अपने दोनों हाथ उसके सिर से हटा लिए और उसकी छातियों को मसलने लगा।

सावित्री का चेहरा ही बता रहा था कि अपने मुँह में अपने पति का लंड होने से उसे कितना ख़राब लग रहा था लेकिन जैसे उसने अब ये सोच लिया था कि अब जब उसके पति का लंड उसके मुँह में आ ही गया है तो उसे भी अब एक बार ये देख ही लेना चाहिए कि लंड चूसने से कैसा लगता है? अभी तक वो शर्म और गन्दा होने की वजह से ऐसा नहीं कर रही थी। उसने अपनी जीभ से अंदर ही अंदर वागले के लंड के टोपे को छुआ। उसे बड़ा ही अजीब लगा और साथ ही कुछ नमकीन सा स्वाद महसूस हुआ। शायद वागले का लंड मज़े की तरंग में अपना रस छोड़ रहा था।

वागले की कमर दुखने लगी तो उसने सावित्री के मुँह से अपना लंड निकाल लिया। लंड के निकलते ही सावित्री ने राहत की लम्बी सांस ली और फ़ौरन ही उठ कर बैठ गई।

"आख़िर आपने अपने मन का ही किया न।" सावित्री ने हांफते हुए कहा___"बहुत गंदे हैं आप।"
"क्यों तुम्हें अच्छा नहीं लगा?" वागले ने मुस्कुरा कर पूछा।
"क्या ऐसा करने से अच्छा लगना चाहिए था?" सावित्री ने कहा____"मुझे तो रह रह कर उल्टी आ रही थी लेकिन आप नाराज़ न हो जाएं ये सोच कर आपके उसे मुँह में लिए हुए थी।"

"अच्छा ये बताओ कि।" वागले ने कहा____"जब तुम मेरी ऊँगली चूस रही थी तब तुम्हें उसमें नमकीन जैसा स्वाद लग रहा था न?"
"हां।" सावित्री ने कहा____"मेरा मन कर रहा था कि मैं उस नमकीन स्वाद को ऐसे ही आपकी ऊँगली से चूसती रहूं।"

"वाह भाई वाह!" वागले ने ब्यंगात्मक भाव से कहा_____"मतलब अपनी चूत का रस नमकीन जैसा स्वाद दे रहा था और उसे बार बार चूसने का भी मन कर रहा था और मेरे लंड को चूसने में उल्टी आ रही थी। गज़ब भाग्यवान, क्या बात है।"

"ये...ये क्या कह रहे हैं आप?" सावित्री उसकी बात सुन कर बुरी तरह चौंकी थी।
"और नहीं तो क्या।" वागले ने मुस्कुराते हुए कहा_____"मेरी ऊँगली में तुम्हारी ही चूत का रस लगा हुआ था। उसी ऊँगली से मैं तुम्हारी चूत में ऊँगली कर रहा था, याद करो ज़रा।"

वागले की बात सुन कर सावित्री के चेहरे पर घनघोर आश्चर्य तांडव कर उठा। फिर जैसे उसे कुछ याद आया तो एकदम से उसके चेहरे पर शर्म की लाली उभर आई और उसने झट से अपना चेहरा अपने घुटनों के बीच छुपा लिया।

"आप बहुत ख़राब हैं।" फिर उसने उसी पोजीशन में कहा_____"छी, ये क्या करवा दिया मुझसे। हे भगवान! मैंने अपनी चू....।"

आंगे के शब्द बोलते बोलते अचानक ही सावित्री रुक गई और उसने और भी ज़ोरों से अपने चेहरे को घुटनों के बीच भींच लिया। वो शर्म से जैसे गड़ी ही जा रही थी और इधर वागले उसकी हालत देख कर धीरे से हंस पड़ा था।

"अरे! तो क्या हुआ मेरी जान।" फिर वागले ने मुस्कुराते हुए कहा____"अगर तुमने अपनी ही चूत के रस का स्वाद ले लिया तो इसमें इतना शर्माने की क्या ज़रूरत है? वैसे ये बात तो तुमने सच कही कि उसका स्वाद नमकीन जैसा था।"

"चुप कीजिए आप।" सावित्री ने घुटनों में अपना चेहरा छुपाए हुए ही कहा____"आपको तो ज़रा भी शर्म नहीं आती लेकिन मैं अब ये सोच कर शर्म से मरी जा रही हूं कि ये मैंने क्या कर दिया है। हे भगवान! इस उम्र में यही सब करवाना था मुझसे।"

"इसमें भगवान को दोष क्यों दे रही हो भाग्यवान?" वागले ने उसके चेहरे को ऊपर करने की कोशिश करते हुए कहा तो सावित्री ने नाराज़ लहजे में कहा_____"मुझे हाथ मत लगाइए। आपने ऐसा कर के बिल्कुल भी अच्छा नहीं किया है।"

"अच्छा छोड़ो।" वागले ने कहा____"चलो अब वो काम तो कर लें जिसे करने में तुम्हें कोई ऐतराज़ नहीं होगा।"
"मुझे अब कुछ नहीं करना है।" सावित्री ने घुटनों से सिर निकाल कर कहा____"आपको अगर नाराज़ हो जाना है तो हो जाइए।"

कहने के साथ ही सावित्री बेड से नीचे उतर गई और अपनी ब्रा पेंटी के साथ नाइटी भी उठा कर बाथरूम में चली गई। उसे इस तरह चले जाते देख वागले समझ गया कि उसका के.एल.पी.डी. हो गया है। उसने अब सावित्री को इसके लिए मानना ठीक नहीं समझा। वो जानता था कि अब सावित्री कुछ भी करने वाली नहीं थी। ये सोच कर उसने गहरी सांस ली और अपने कपड़े पहनने लगा।

रात दोनों के बीच छा गई ख़ामोशी में ही गुज़र गई। बाथरूम से आने के बाद सावित्री चुप चाप बेड पर लेट गई थी। वागले ने उससे बात करने की कोशिश की थी लेकिन सावित्री ने उसे बस एक ही बार शख़्त लहजे में कहा था कि अब चुप चाप सो जाइए वरना अच्छा नहीं होगा। उसके बाद वागले ने भी चुप चाप सो जाना ही बेहतर समझा था।

दूसरे दिन वागले जेल पहुंचा। अपने सभी कामों से फुर्सत होने के बाद उसने ब्रीफ़केस खोल कर विक्रम सिंह की डायरी निकाली और उसके मोटे कवर पर लिखे सी एम एस शब्दों को ध्यान से देखा और फिर छोटे अक्षरों में लिखे उसके फुल फॉर्म को। कुछ देर यूं ही देखते रहने के बाद उसने उस पेज को खोला जहां पर वो इसके पहले पढ़ रहा था।

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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अध्याय - 14
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अब तक....

दूसरे दिन वागले जेल पहुंचा। अपने सभी कामों से फुर्सत होने के बाद उसने ब्रीफ़केस खोल कर विक्रम सिंह की डायरी निकाली और उसके मोटे कवर पर लिखे सी एम एस शब्दों को ध्यान से देखा और फिर छोटे अक्षरों में लिखे उसके फुल फॉर्म को। कुछ देर यूं ही देखते रहने के बाद उसने उस पेज को खोला जहां पर वो इसके पहले पढ़ रहा था।

अब आगे....


माया कोमल और तबस्सुम के साथ सेक्स की ट्रेनिंग लेते हुए पांच दिन कब गुज़र गए पता ही नहीं चला। इन पांच दिनों में उन तीनों हसीनाओं ने मुझे सेक्स के हर वो गुन सिखाए जिन्हें मैं सोच भी नहीं सकता था। अगर अपने दिल की कहूं तो वो ये था कि मैं उन तीनों हसीनाओं पर पूरी तरह फ़िदा हो चुका था। वो मेरे साथ ऐसा ब्यौहार करती थीं कि लगता ही नहीं था कि मैं उनके पास सेक्स की ट्रेनिंग लेने आया हूं। मेरा दिल करता था कि मैं चौबीसों घंटे उन ख़ूबसूरत बालाओं के साथ ही रहूं और जी भर कर उनसे वैसे ही प्यार करता रहूं। इन पांच दिनों में मैं अपनी बाहरी दुनियां को जैसे भूल ही गया था। ख़ैर मेरी ट्रेनिंग पूरी हो चुकी थी और इस ट्रेनिंग की वजह से अब मेरे अंदर किसी भी तरह की शर्म या झिझक नहीं रह गई थी। मैं खुद महसूस करने लगा था कि अब मैं पहले वाला वो विक्रम नहीं रह गया था जो लड़की के सामने आते ही उससे नज़रें चुराने लगता था बल्कि अब तो मुझे खुद ऐसा महसूस होता था जैसे मैं दुनियां की किसी भी लड़की या औरत से बेझिझक हो कर हर तरह की बातें कर सकता हूं।

01 जनवरी 1999
तीन ख़ूबसूरत हसीनाओं से सेक्स की ट्रेनिंग ले कर मैं नए साल को एक नए रूप में दुनियां के सामने आने वाला था। सुबह का नास्ता करने के बाद मैं माया कोमल और तबस्सुम से बातें ही कर रहा था कि तभी वहां पर वही सफेदपोश आदमी आया जो कुछ दिन पहले मुझे यहाँ ले कर आया था। उसे देखते ही हम सब उसके सामने खड़े हो ग‌ए। मैंने देखा कि माया कोमल और तबस्सुम तीनों ही उससे बड़े ही अदब से बातें कर रहीं थी। ज़ाहिर था कि वो आदमी उनके लिए एक बड़ी हैसियत रखता था। ख़ैर कुछ देर उसने उन तीनों से बातें की जिसमें उसने मेरी ट्रेनिंग के बारे में ही पूंछा, उसके बाद उसने मुझे अपने साथ चलने को कहा तो एकदम से मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मुझे उसके साथ नहीं जाना चाहिए बल्कि माया कोमल और तबस्सुम के पास ही रहना चाहिए। पता नहीं पर शायद उन तीनों से मुझे लगाव सा हो गया था।

माया कोमल और तबस्सुम से विदा लेने का वक़्त आ गया था। मेरा मन एकदम से भारी हो गया था। मैंने उन तीनों की तरफ देखा तो उन्हें भी अपनी तरफ मुस्कुराते हुए देखता पाया। सफेदपोश के सामने उनके चेहरे पर मेरे प्रति कोई भाव नहीं थे, जबकि इसके पहले मैं महसूस करता था कि उनके मन में मेरे प्रति कहीं न कहीं प्यार या सम्मान वाली बात ज़रूर थी। ख़ैर उस सफेदपोश की मौजूदगी में मैंने उनसे ज़्यादा कुछ नहीं कहा, बल्कि भारी मन से उन्हें हाथ हिला कर ही अलविदा कहा और फिर उस सफेदपोश आदमी के साथ वहां से चल पड़ा।

उस जगह से जब मैं उस सफेदपोश के साथ थोड़ा बाहर की तरफ आया तो उसने मेरी आँखों में काली पट्टी बाँध दी। उसके बाद मैं उसके ही सहारे चलता हुआ आगे गया। कुछ देर बाद उसने मुझे कार में बैठाया और खुद भी मेरे बगल से बैठ गया। कार का दरवाज़ा बंद हुआ तो कार झटके से आगे बढ़ चली। क़रीब आधे घंटे बाद कार रुकी तो सफेदपोश आदमी ने मुझे कार से नीचे उतारा और फिर मुझे ले कर एक तरफ को चल दिया। मैंने महसूस किया कि यहाँ पर मेरे जिस्म में ठंडक का आभास हो रहा था। क़रीब पांच मिनट बाद उसने मुझे एक जगह रुक जाने को कहा और फिर मेरी आँखों से वो काली पट्टी निकाल दी। मेरी आँखों के सामने धुंधला धुंधला सा मंज़र नज़र आया। मैंने अपनी पलकें झपकते हुए इधर उधर नज़रें घुमाई तो कुछ ही पलों में मुझे समझ आया कि मैं एक बार फिर से उसी हाल पर आ गया था जिस हॉल में नीम अँधेरा था और हॉल के दूसरे छोर पर एक बड़ी सी सिंघासन जैसी कुर्सी पर वो काला नक़ाबपोश बैठा हुआ था जो शायद इन सबका बॉस था।

"वेलकम बैक ट्रिप्पल वन।" हॉल में उस रहस्यमयी आदमी की अजीब सी आवाज़ गूंजी____"हमें उम्मीद है कि इन पांच दिनों में तुम ट्रेनिंग के बाद अब उस चीज़ के लिए बेहतर हो गए होगे जिस चीज़ के लिए तुम्हें चुना गया है।"

"जी मुझे भी ऐसा ही लगता है सर।" मैंने उस आदमी को सर कह कर सम्बोधित किया____"उस ट्रेनिंग के बाद मैं अपने आप में एक अलग ही तरह का बदलाव महसूस कर रहा हूं।"

"वैरी गुड।" रहस्यमयी आदमी की आवाज़ गूंजी____"इसी तरह धीरे धीरे तुम्हें बाकी चीज़ों की ट्रेनिंग भी दे दी जाएगी। ख़ैर अब तुम हमारी इस संस्था के मेंबर बन चुके हो और इस संस्था के मेंबर के रूप में तुम्हारा नाम ट्रिप्पल वन है। यानी आज के बाद यहाँ पर लोग तुम्हें ट्रिप्पल वन के नाम से ही जानेंगे। हालांकि तुम्हारा चेहरा किसी की नज़र में नहीं आएगा और ना ही तुम कभी किसी को अपना चेहरा दिखाने का सोचोगे। संस्था की गोपनीयता बनाए रखने के लिए हर एजेंट को अपना चेहरा छुपा के रखने के साथ साथ अपनी असल पहचान को भी छुपा के रखना अनिवार्य है।"

"जी जैसी आपकी आज्ञा।" मैंने बड़े अदब से कहा।
"हमारी संस्था के नियम कानून का शख़्ती से पालन करना अनिवार्य है।" उस रहस्यमयी आदमी ने कहा____"संस्था का कोई भी नियम तोड़ने पर शख़्त से शख़्त सज़ा दी जाएगी।"

"पर मुझे तो अभी तक संस्था के सारे नियम कानून बताए ही नहीं गए सर।" मैंने हिम्मत कर के कहा।
"संस्था के ज़रूरी नियम तुम्हें हमने पहले ही बता दिया था।" उस शख़्स ने कहा_____"और अब बाकी के नियम कानून भी बता देते हैं। संस्था का पहला नियम ये है कि संस्था की गोपनीयता का ख़याल रखना संस्था के एजेंट की सबसे पहली प्राथमिकता है। अगर तुम्हारी वजह से संस्था का भेद किसी के सामने खुलने वाला हो तो तुम उसी वक़्त अपनी जान दे कर संस्था का भेद खुलने से बचाओगे। दूसरा नियम ये है कि तुम अपने बारे में जीवन में कभी भी किसी को ये नहीं बताओगे कि तुम सी एम एस नाम की किसी संस्था के एजेंट हो या इस नाम की किसी संस्था को जानते हो और अगर किसी को तुम्हारे इस भेद के बारे में पता चल जाता है तो तुम उसी वक़्त उस इंसान को ख़त्म कर दोगे। संस्था का तीसरा नियम ये है कि अपने मन में खुद कभी संस्था की जासूसी करने का ख़याल नहीं लाओगे, क्योंकि अगर संस्था को ये पता चल गया कि तुम संस्था के अंदर किसी तरह की जासूसी कर रहे हो तो तुम्हें फ़ौरन ही मौत की सज़ा दे दी जाएगी। संस्था का चौथा नियम ये है कि संस्था के किसी भी एजेंट से तुम ना तो उसके बारे में जानने की कोशिश करोगे और ना ही उसे अपने बारे में बताओगे। क्योंकि ऐसा करना संस्था के भेद जानने जैसा कहलाएगा और इसके लिए तुम्हें मौत की सज़ा दी जा सकती है। संस्था का पांचवां नियम ये है कि जिसको तुम सेक्स की सर्विस दे चुके होंगे उससे तुम विक्रम सिंह के रूप में या ट्रिप्पल वन दोनों ही रूपों में अपनी मर्ज़ी से मिलने की कोशिश नहीं करोगे।"

रहस्यमयी आदमी के चुप होते ही हॉल में मौत जैसा सन्नाटा छा गया। मेरे कानों में अभी भी उस रहस्यमयी आदमी के बताए हुए नियम ही गूँज रहे थे। सारे नियम अपनी जगह पर सही और जायज़ थे और हाँ शख़्त भी थे।

"तुम्हें संस्था से दो जोड़ी ऐसे कपड़े दिए जाएंगे।" मुझे ख़ामोश देख कर उस रहस्यमयी शख़्स ने कहा____"जैसे कपड़े संस्था के हर एजेंट पहनते हैं लेकिन ये कपड़े तभी पहनना होता है जब संस्था की तरफ से किसी काम को करने का हुकुम दिया जाता है। कहने का मतलब ये कि जब भी तुम हमारे हुकुम से किसी को सेक्स की सर्विस देने जाओगे तो उन्हीं कपड़ों को पहन कर जाओगे। वो कपड़े ऐसे होंगे जिनमें तुम्हारे जिस्म का कोई भी हिस्सा किसी को नज़र नहीं आएगा। अब तुम ये सोचोगे कि ऐसे कपड़े पहन कर तुम सेक्स की सर्विस कैसे दे आओगे क्योंकि सेक्स के लिए तो अपने औज़ार को कपड़े के अंदर से निकालना ज़रूरी होता है। असल में हमारा सर्विस देने का प्रोसेस ये है कि जब भी कोई एजेंट लड़की या औरत के पास सर्विस देने जाता है तो सबसे पहले उसकी आँखों में काली पट्टी बांधता है। उसके बाद कमरे में नीम अँधेरा या फिर पूरी तरह अँधेरा कर देता है। ऐसा इस लिए ताकि अगर मान लो उस लड़की या औरत के मन में अपने सेक्स पार्टनर को देखने का ख़याल आ गया और वो उसे देखने की कोशिश करे तो वो उसे देख न पाए। इसी लिए एजेंट को सेक्स करते समय अपने सारे कपड़े पहने रहना अनिवार्य है ताकि किसी भी तरह से उसकी पार्टनर उसका चेहरा न देख सके।"

"लेकिन ऐसी कोई लड़की या औरत ऐसा करेगी ही क्यों?" मैंने पूछा____"उसे तो सेक्स से और उस सेक्स से मिलने वाले सुख से ही मतलब होगा न?"
"दुनियां में कई तरह के प्राणी पाए जाते हैं।" रहस्यमयी शख़्स ने कहा____"कुछ लोगों के मन में ये ख़याल भी उभर आता है कि जो ब्यक्ति सेक्स में उन्हें इतना अधिक आनंद दे रहा है वो दिखने में कैसा होगा? ये ख़याल जब किसी के अंदर प्रबल हो उठता है तो फिर वो वही करता है जिसके बारे में हमने तुम्हें पहले बताया है। वो ये भूल जाती हैं कि जिससे वो सेक्स का मज़ा ले रही हैं उसकी गोपनीयता का ख़याल रखना उनका भी फ़र्ज़ होता है। क्योंकि एक तरह से वो एजेंट अपनी जान हथेली पर रख कर उनको सेक्स की सर्विस देने आया होता है। ख़ैर इन्हीं सब बातों का ख़याल रख कर ही हमने सेक्स की सर्विस देने का ऐसा नियम बनाया था।"

रहसयमयी आदमी की बात सुन कर मैं इस बार कुछ न बोला था बल्कि उसकी बातों के बारे में सोचने लगा था। उसकी बात बिलकुल सही थी। सेक्स की सर्विस देने वाले एजेंट को यकीनन जान का ख़तरा रहता है। जो लड़कियां या जो औरतें किसी और के साथ इस तरह से सेक्स का मज़ा लेती हैं अगर उनके घर वालों को कहीं से इसकी भनक लग जाए और वो मौके पर वहां पर पहुंच जाएं तो यकीनन एजेंट के लेने के देने पड़ जाएंगे। ये सोचते ही मेरे जिस्म में झुरझुरी सी हुई। एकदम से मेरे मन में ये ख़याल आया कि बेटा ऐसा मज़ा मिलना इतना भी आसान नहीं होता है बल्कि अगर पकड़े जाएं तो अपने लौड़े भी लग जाते हैं।

"तुम्हारे मन में अब ये सवाल उभर रहा होगा कि।" अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी हाल में उस रहस्यमयी आदमी की आवाज़ गूंजी____"इस काम में तो बहुत रिस्क है, तो फिर कैसे कोई एजेंट किसी लड़की या औरत को पूरी सफलता से सेक्स की सर्विस दे सकता है?"

"जी हाँ बिल्कुल।" मैंने झट से कहा____"ये सब बातें सुनने के बाद मुझे भी अब लग रहा है कि ये सब इतना आसान नहीं है।"
"फ़िक्र मत करो।" रहस्यमयी आदमी ने कहा____"संस्था के एजेंट सेक्स की सर्विस देने तभी जाते हैं जब हम खुद इस बात से संतुष्ट हो जाते हैं कि हमारे एजेंट्स को सर्विस देने में कोई ख़तरा नहीं है। इसके लिए हमारे दूसरे एजेंट्स पहले से ही ऐसी हर बातों का पता लगा लेते हैं और फिर हमें सूचित कर देते हैं। उनकी पॉजिटिव रिपोर्ट मिलने के बाद ही हम एजेंट्स को सर्विस देने के लिए भेजते हैं।"

रहसयमयी आदमी की ये बात सुन कर कसम से जान में जान आ गई थी वरना मैं तो अब ये समझ बैठा था कि बेटा तूने तो ख़ुशी ख़ुशी अपने ही हाथों अपनी ही गांड फाड़ लेने का बढ़िया जुगाड़ कर लिया है। ख़ैर रहस्यमयी आदमी की बातों से मुझे अपनी गांड के सही सलामत होने का एहसास हुआ।

अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी मेरे पीछे वो सफेदपोश आदमी आया और उसने मेरे पास एक बड़ा सा नीले रंग का बैग रख दिया और मेरी तरफ एक चाभी बढ़ाई तो मैंने उसे ले लिया लेकिन मैं समझ नहीं पाया कि वो बैग और वो चाभी किस लिए थी?

"इस बैग में तुम्हारे वो कपड़े हैं ट्रिप्पल वन।" हाल में रहस्यमयी आदमी की आवाज़ गूंजी____"जिन्हें तुम्हें तब पहनना है जब तुम एजेंट के रूप में हमारे हुकुम से किसी को सर्विस देने जाओगे। उन कपड़ों के साथ इस बैग में कुछ और भी सामान है जो तुम्हारे लिए बेहद ज़रूरी होंगे और साथ ही एक मोबाइल भी है। एजेंट के रूप में जब भी तुम्हें कहीं भेजा जाएगा तो उसकी सूचना तुम्हें उसी मोबाइल पर दी जाएगी। एक बात और, तुम खुद कभी संस्था से सम्बन्ध स्थापित करने की कोशिश नहीं करोगे। हालांकि ग़लती से अगर तुम ऐसा करोगे भी तो तुम कर नहीं पाओगे क्योंकि उस मोबाइल में आउटगोइंग वाला कोई सिस्टम नहीं होगा। ख़ैर अब तुम जा सकते हो।"

रहसयमयी आदमी के कहने पर मैंने सिर हिलाया और वो बैग ले कर उस सफेदपोश आदमी के साथ चल पड़ा। मेरे ज़हन में कई सारी बातें चलने लगीं थी। जिनके बारे में जानने के लिए मेरे मन में उत्सुकता बढ़ गई थी।

"क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकता हूं?" रास्ते में मैंने उस सफेदपोश आदमी से कहा तो उसने पलट कर मेरी देखा।
"क्या पूछना चाहते हो?" कुछ पलों तक मेरी तरफ देखते रहने के बाद उसने सपाट लहजे में कहा था।

"हाल के दूसरे छोर में बड़ी सी कुर्सी पर वो जो बैठे थे।" मैंने झिझकते हुए कहा____"उन्हें आप लोग क्या कहते हैं? मेरा मतलब है कि आप लोग उन्हें किस नाम से जानते हैं?"

"वो हमारे चीफ़ हैं।" उस सफेदपोश आदमी ने कहा____"और हम सब उन्हें ट्रिपल एक्स के नाम से जानते हैं और उन्हें सर या चीफ़ कहते हैं।"

"और आपको मैं क्या कह कर बुला सकता हूं?" मैंने हिम्मत कर के उससे पूछा तो उसने कहा____"मुझे ज़ीरो ज़ीरो सेवन कहते हैं और क्योंकि मैं तुमसे सीनियर हूं इस लिए तुम मुझे सर कह कर ही बुलाओगे। एक बात और, उस मोबाइल को हमेशा अपने पास ही रखना और इस बात का ख़ास ख़याल रखना कि वो मोबाइल किसी के हाथ न लगने पाए।"

उसकी बात सुन कर मैंने हाँ में सिर हिला दिया। उसके बाद मैंने उससे कुछ नहीं पूछा। थोड़ी ही देर में हम जब थोड़ा बाहर आए तो उस सफेदपोश ने मेरी आँखों में काली पट्टी बाँध दी। उसके बाद उसने किसी और को मुझे ले जाने का हुकुम दिया तो मैं दूसरे आदमी के साथ चल पड़ा। कुछ ही देर में मुझे एक कार में बैठाया गया और फिर मेरे बैठते ही कार आगे बढ़ चली। क़रीब बीस मिनट बाद मेरे आँखों से पट्टी हटा दी गई। मैंने कार की विंडो से बाहर देखा तो पता चला कि मैं शहर में दाखिल हो चुका था। मैंने मन ही मन सोचा कि सी एम एस नाम की संस्था वाली जगह शायद शहर से दूर कहीं पर है। ख़ैर कुछ ही देर में कार के ड्राइवर ने मेरे घर के क़रीब ही कार रोकी और मुझे उतर जाने को कहा तो मैं उतर गया।

मेरे पास अब दो बैग थे। एक तो वो जिसे मैं घर से ले के आया था और अब ये दूसरा बैग संस्था से मुझे मिल गया था। इस बैग में मेरे लिए ऐसे कपड़े रखे गए थे जिन्हें मैं अपनी फैमिली को नहीं दिखा सकता था। मैंने मन ही मन सोचा कि मुझे इस बैग को अपने कमरे में ऐसी जगह छुपा के रखना होगा जहां पर वो बैग मेरे माता पिता या बंगले की किसी नौकरानी की नज़र में न आए। यही सब सोचते हुए मैं घर पहुंच गया। मैं जानता था कि आज नए साल की पहली तारीख़ थी इस लिए मेरे माता पिता इस वक़्त अपने ऑफिस में ही होंगे। मेरे लिए ये अच्छी बात थी। गेट पर पहुंच कर मैंने डोर बेल बजाई तो शीतल आंटी ने दरवाज़ा खोला। शीतल आंटी हमारे घर की बहुत पुरानी नौकरानी थीं। हालांकि हम उसे नौकरानी नहीं मानते थे बल्कि उसे अपनी फैमिली का ही मेंबर मानते थे। ख़ैर मुझे देखते ही शीतल आंटी के चेहरे पर ख़ुशी की चमक आ गई और उन्होंने मुझे अंदर आने का रास्ता दिया तो मैं अंदर दाखिल हो गया। उन्होंने मुझसे मेरा हाल पूछते हुए मेरे पिकनिक के बारे में पूछा तो मैंने उन्हें थोड़ा बहुत बताया और फिर अपने कमरे में चला गया।

कमरे में आ कर मैंने दरवाज़े को अंदर से बंद किया और फिर कमरे में कोई ऐसी जगह देखने लगा जहां पर मैं अपना ये बैग छुपा सकूं। मैं क्योंकि अपने माता पिता का इकलौता बेटा था इस लिए मेरा कमरा भी काफी बड़ा और खूबसूरत था। मैं सोचने लगा कि इस बैग को मैं इस कमरे में ऐसी कौन सी जगह पर छुपाऊं जिससे किसी की नज़र बैग पर न पड़ सके? काफी देर तक जांच परख करने के बाद मुझे यही समझ आया कि कमरे में और तो कोई ख़ास जगह नहीं है लेकिन एक जगह ऐसी है जहां पर मैं इस बैग को छुपा सकता हूं। मेरा बेड ही ऐसी वो जगह था, क्योंकि वो अंदर से खोखला था और उसमें सामान रखा जा सकता था। मैंने फ़ौरन ही बेड पर बिछे मोटे मोटे गद्दों को उठाया और फिर उसके नीचे की प्लाई को निकाल कर उसके अंदर देखा तो मेरे होठों पर मुस्कान उभर आई।

अभी मैं मुस्कुरा ही रहा था कि तभी दरवाज़े के बाहर से शीतल आंटी की आवाज़ आई। वो मुझसे खाने पीने का पूछ रहीं थी तो मैंने उनसे कहा कि मैं आधे घंटे बाद खाऊंगा। ख़ैर उसके बाद मैंने सोचा कि पहले ये देख लूं कि बैग में क्या क्या चीज़ें मेरे लिए रख कर दी गई हैं? ये सोच कर मैंने जेब से चाभी निकाली और बैग पर लगा ताला खोला। बैग के अंदर सच में ऐसे कपड़े थे जो काले रंग के थे और उनमें डिज़ाइन के रूप में लेदर की पट्टियां बनी हुई थीं। एक काला मास्क भी था और काले दस्ताने भी। कपड़ों के नीचे एक मोबाइल था जो कि था तो कीपैड ही लेकिन उसकी स्क्रीन बड़ी थी। बैग के अंदर एक खंज़र भी था जो लेटर के कवर में ही बंद था और उसी के पास एक काले रंग का बॉक्स रखा हुआ था। मैंने उस बॉक्स को निकाल कर उसे खोला तो उसके अंदर मुझे जो चीज़ नज़र आई उसे देख कर मेरी आँखें आश्चर्य से चौड़ी हो ग‌ईं। दरअसल बॉक्स में एक रिवाल्वर था और उसी के साथ उसकी एक मैगज़ीन रखी हुई थी जिसमें गोलियां भरी हुई थीं। ये देख कर मेरे जिस्म में झुरझुरी सी हुई। मैं ये सोच कर थोड़ा कांप सा गया कि ऐसी ख़तरनाक चीज़ भला मेरे लिए किस काम में आ सकती थी? क्या इस लिए कि अगर मेरा राज़ किसी को पता चल जाए तो मैं उसे इसी रिवाल्वर के द्वारा जान से मार सकूं? मैंने कांपते हाथों से उस रिवाल्वर को बॉक्स से निकाला और बड़े गौर से उसे उलटा पलटा कर देखने लगा। रिवाल्वर में क्योंकि गोलियों से भरी मैगज़ीन नहीं लगी हुई थी इस लिए वो मुझे थोड़ा हल्का ही लग रहा था। सहसा मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि मुझे तो रिवाल्वर चलाना आता ही नहीं है और ना ही मेरा सटीक निशाना लग सकता है। इसका मतलब क्या इसे चलाने की भी मुझे ट्रेनिंग दी जाएगी? मुझे याद आया कि चीफ़ ने मुझसे कहा था कि धीरे धीरे मुझे बाकी चीज़ों की भी ट्रेनिंग दे दी जाएगी इसका मतलब उन चीज़ों में ये चीज़ भी शामिल है।

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