Incest देवनगर...

Campèón!
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नमस्कार मित्रों। मैं काफी समय से कहानियां पढ़ रहा हूं और अब मैं खुद भी एक कहानी लिखने का प्रयास करना चाहता हूं। ये कहानी “Incest” पर आधारित होगी, अर्थात पारिवारिक व्यभिचार पर। यदि आपको इस तरह के संबंधों से कोई आपत्ति है तो आप इस कहानी से किनारा कर सकते हैं। परंतु हां, मैं कोशिश करूंगा की कहानी से किसी के भी विचारों अथवा विश्वास को ठेस ना पहुंचे। कहानी में इसके अतिरिक्त आपको शक्तियों और “Fantasy” का भी मिश्रण दिखाई देगा। आशा है की आप सबको ये कहानी पसंद आएगी।

धन्यवाद।
 
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पात्र – परिचय


इस कहानी की पृष्ठभूमि आज से लगभग 1100 साल पहले की है जब भारत के अलग – अलग हिस्सों पर अनेकों राजाओं का शासन हुआ करता था। ऐसा ही एक राज्य था – देवनगर। देवनगर हिमालय की गोद में बसा एक बेहद ही खूबसूरत राज्य था जहां खुशहाली और समृद्धि की कोई कमी नहीं थी। यहां के लोग बेहद ही मेहनती और स्वाभिमानी व्यक्तित्व के थे जो ईमानदारी से अपना काम कर अपना घर चलाया करते थे। देवनगर पर महाराज चंद्रवर्धन का शासन था और स्वभाव से वो भी एक दयालु शासक थे। महाराज चंद्रवर्धन के परिवार और कुछ विश्वास – पात्रों का परिचय इस प्रकार है :

1.) महाराज चंद्रवर्धन (आयु : 42 वर्ष) : देवनगर के तीसरे महाराजा। इनसे पहले इनके ही पूर्वजों ने इस राज्य पर शासन किया था। महाराज चंद्रवर्धन के दादा ने इस राज्य को बसाया था और उनके बाद उनके बेटे और पोते ने उनकी गद्दी को संभाला। वैसे तो काफी दयालु स्वभाव के हैं परंतु कभी – कभी आक्रोश में भी आ जाते हैं। तब इन्हें संभालना काफी कठिन कार्य हो जाता है, इसलिए इनसे जुड़े सभी लोग ध्यान रखते हैं की इन्हें गुस्सा दिलाने वाला कोई भी कार्य वो ना करें।

2.) महारानी भानुमती (आयु : 38 वर्ष) : महाराज चंद्रवर्धन की धर्मपत्नी। चेहरे से बेहद ही सुंदर तो वहीं शरीर से भी बेहद ही कामुक महिला। जब ये अपनी किशोरावस्था में थी, तब पूरे भारत में इनके सौंदर्य की चर्चा बनी रहती थी। अब भी, इनकी खूबसूरती में कोई भी कमी नहीं आई है बल्कि उम्र के साथ – साथ इनके शरीर में आए बदलावों ने इन्हें और भी मोहक बना दिया है। अपने दोनों ही बच्चों से बेहद प्रेम करती हैं और ज़्यादातर समय अपनी पुत्री के साथ ही बिताती हैं।

3.) राजकुमार विक्रम (आयु : 20 वर्ष) : महाराज और महारानी का इकलौता पुत्र और देवनगर का भावी महाराज। राजकुमार विक्रम की ख्याति केवल देवनगर ही नहीं बल्कि कई दूसरे राज्यों में भी फैली हुई है। इसका कारण इनका अतुलनीय युद्ध – कौशल एवं बौद्धिक – क्षमता है। कम आयु में ही इन्होंने कई बड़े – बड़े शूरवीरों को धूल चटा दी है। इतनी प्रसिद्धि और यश के बाद भी बेहद ही मिलनसार और शांत स्वभाव है राजकुमार विक्रम का। देवनगर की सारी प्रजा को अपने परिवार की ही तरह मानते हैं जिसके कारण पूरी प्रजा भी इन्हें देवता ही मानती आई है।

4.) राजकुमारी तारा (आयु : 18 वर्ष) : राजकुमार विक्रम की छोटी बहन और राजपरिवार की सबसे लाडली सदस्य। कुछ ही दिन पहले 18 वर्ष की आयु को पूर्ण किया है इन्होंने। स्वभाव से बहुत ही नटखट और चंचल हैं। कई बार अपने स्वभाव के कारण मुसीबत भी मोल ले लेती हैं परंतु अपने इसी स्वभाव के कारण ये राजमहल में प्रसन्नता का वातावरण भी बनाए रखती हैं। दिखने में काफी खूबसूरत हैं, शरीर अभी विकसित हो रहा है, परंतु चेहरा ऐसा है की कोई भी उसे देखकर मोहित हो जाए। एक अलग ही निखार बना रहता है इनके मुखमंडल पर।

महाराज चंद्रवर्धन के वैसे तो दो भाई और भी थे परंतु अभी उनका ज़िक्र नहीं होगा, इसका कारण कहानी के साथ आपको पता चलेगा। परंतु हां, भविष्य में ज़रूर आप उनके बारे में भी जानेंगे।


महाराज चंद्रवर्धन के सबसे विश्वासु व्यक्ति हैं देवनगर के महामंत्री – सूर्यभान। सूर्यभान के पूर्वज भी देवनगर के शासकों के विश्वास पात्र हुआ करते थे। असल में महाराज चंद्रवर्धन के दादाजी के समय भी सूर्यभान के दादाजी ही उनके सबसे विश्वसनीय थे। सूर्यभान और उनका परिवार भी राजमहल में ही रहता है। हालांकि, ऐसा आम तौर पर होता नहीं है की कोई राजदरबारी महल में रहता हो, परंतु महाराज सदा से ही महामंत्री सूर्यभान को अपना छोटा भाई ही मानते आएं हैं। इनके परिवार का परिचय कुछ इस प्रकार है :

1.) महामंत्री सूर्यभान (आयु : 41 वर्ष) : महाराज चंद्रवर्धन को अपना ईश्वर मानते हैं और उनकी हर आज्ञा का पालन करना अपना धर्म। इनके बुद्धि – चातुर्य और रणनीतिक समझ के महाराज भी कायल हैं। देवनगर वैसे तो एक शांतिप्रिय राज्य है परंतु भूतकाल में जब एक बार देवनगर का पड़ोसी राज्य के साथ युद्ध हुआ था, तब महामंत्री सूर्यभान की योजनाओं ने एक मुख्य भूमिका निभाई थी, देवनगर को विजय दिलाने में।

2.) चारूलता (आयु : 36 वर्ष) : सूर्यभान की पत्नी। एक बहुत ही कामुक महिला। इन्हें देखकर किसी का भी मन डोल सकता है, क्योंकि इनके शरीर की बनावट ही कुछ ऐसी है। आयु के साथ चर्बी शरीर के उन्ही अंगों में बढ़ी है जहां से इनकी काया और भी मोहक हो सके। अपने रूप – सौंदर्य का काफी ध्यान भी रखती हैं। महारानी भानुमती और चारूलता के संबंध सगी बहनों जैसे हैं।

3.) समृद्धि (आयु : 19 वर्ष) : महामंत्री की इकलौती संतान। समृद्धि का जन्म बेहद ही विपरीत परिस्थितियों में हुआ था। विवाह के काफी समय बाद भी जब महामंत्री और चारूलता को संतान सुख नहीं मिला था तब उन्होंने एक विशेष यज्ञ द्वारा इस सुख की कामना की थी। उसके प्रभाव से उन्हें पुत्री तो प्राप्त हुई परंतु साथ ही एक दुर्घटना ने महामंत्री से पुनः पिता बनने की शक्ति को छीन लिया। (इस घटना की जानकारी कहानी में मिलेगी)। समृद्धि, दोनों की इकलौती बेटी है इसलिए दोनों ही इसपर अपने प्राण न्योछावर कर सकते हैं। स्वभाव से बहुत ही शर्मीली और कोमल हृदय की है ये लड़की, अक्सर छोटी – छोटी बातों से भी प्रभावित हो जाती है और उन्हें हृदय से लगा लेती है। परंतु, शायद ही कोई हो जो इसकी तरह निष्पाप और निश्छल सोच – विचार का हो।


महामंत्री की ही तरह एक और व्यक्ति ऐसे हैं जिनसे महाराज चंद्रवर्धन को विशेष लगाव है और वो हैं – सेनापति जयसिम्हा। इनके परिवार का परिचय कुछ इस प्रकार है :

1.) सेनापति जयसिम्हा (आयु : 44 वर्ष) : सेनापति जयसिम्हा ना केवल देवनगर के किले के एक मज़बूत स्तंभ हैं बल्कि यही हैं राजकुमार विक्रम के प्रथम गुरु भी। जहां राजगुरु ने विक्रम को शास्त्रों और नीतियों का ज्ञान दिया था वहीं सेनापति जयसिम्हा ने ही विक्रम को युद्ध – कौशल और शस्त्रों का ज्ञान दिया। इस आयु में भी सेनापति का बाहुबल अच्छे – अच्छों की धूल चटाने लायक है। ये भी एक मुख्य कारण हैं की शत्रु राज्य साहस नहीं कर पाते देवनगर पर हमला करने का।

सेनापति जयमसिम्हा की पत्नी की मृत्यु हो चुकी है, कैसे हुई ये आगे पता चलेगा।

2.) अंजली (आयु : 21 वर्ष) : अंजली सेनापति की पहली संतान है। विवाह योग्य हो जाने के बाद भी अंजली का विवाह संपन्न नहीं हो पाया है। इसका कारण है अंजली की कुंडली में मौजूद दोष जिसका निवारण केवल राजगुरु और सेनापति ही जानते हैं। परंतु किसी कारण से ये रहस्य दोनों ने अपने तक ही रखा है, और महाराज को यही कहा की इस दोष का निवारण करना राजगुरु के लिए भी संभव नहीं। अंजली भी यही जानती है, और इस कारण से काफी उदास रहती है, उसे यही लगता है की वो अपने पिता पर एक बोझ बन चुकी है और कभी भी उसका विवाह नहीं हो पाएगा।

3.) जयवीर (आयु : 20 वर्ष) : सेनापति का पुत्र। अपने पिता की ही तरह बहादुर और शक्तिशाली है। अक्सर राजकुमार विक्रम के साथ ही रहता है, कह सकते हैं की ये राजकुमार के काफी निकट है। अपनी बहन के साथ किसी कारण ज्यादा बातचीत नहीं करता, दूसरे शब्दों में, दोनों भाई – बहन एक – दूसरे के लिए जैसे अजनबी हैं। इसका कारण ना तो आज तक अंजली पता कर पाई है और ना ही कोई और।


अंतिम मुख्य पात्र हैं राजगुरु – महर्षि शिविकेश। इनका कोई परिवार नहीं है क्योंकि बाल्यकाल से ही इन्होंने ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया था और आज तक स्त्री स्पर्श से दूर रहे हैं।


फिलहाल के लिए इतने ही पात्रों का परिचय दिया है। आगे और भी पात्र आयेंगे परंतु उनका परिचय समय – समय पर ही दिया जाएगा।


धन्यवाद!
 
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पात्र – परिचय


इस कहानी की पृष्ठभूमि आज से लगभग 1100 साल पहले की है जब भारत के अलग – अलग हिस्सों पर अनेकों राजाओं का शासन हुआ करता था। ऐसा ही एक राज्य था – देवनगर। देवनगर हिमालय की गोद में बसा एक बेहद ही खूबसूरत राज्य था जहां खुशहाली और समृद्धि की कोई कमी नहीं थी। यहां के लोग बेहद ही मेहनती और स्वाभिमानी व्यक्तित्व के थे जो ईमानदारी से अपना काम कर अपना घर चलाया करते थे। देवनगर पर महाराज चंद्रवर्धन का शासन था और स्वभाव से वो भी एक दयालु शासक थे। महाराज चंद्रवर्धन के परिवार और कुछ विश्वास – पात्रों का परिचय इस प्रकार है :

1.) महाराज चंद्रवर्धन (आयु : 42 वर्ष) : देवनगर के तीसरे महाराजा। इनसे पहले इनके ही पूर्वजों ने इस राज्य पर शासन किया था। महाराज चंद्रवर्धन के दादा ने इस राज्य को बसाया था और उनके बाद उनके बेटे और पोते ने उनकी गद्दी को संभाला। वैसे तो काफी दयालु स्वभाव के हैं परंतु कभी – कभी आक्रोश में भी आ जाते हैं। तब इन्हें संभालना काफी कठिन कार्य हो जाता है, इसलिए इनसे जुड़े सभी लोग ध्यान रखते हैं की इन्हें गुस्सा दिलाने वाला कोई भी कार्य वो ना करें।

2.) महारानी भानुमती (आयु : 38 वर्ष) : महाराज चंद्रवर्धन की धर्मपत्नी। चेहरे से बेहद ही सुंदर तो वहीं शरीर से भी बेहद ही कामुक महिला। जब ये अपनी किशोरावस्था में थी, तब पूरे भारत में इनके सौंदर्य की चर्चा बनी रहती थी। अब भी, इनकी खूबसूरती में कोई भी कमी नहीं आई है बल्कि उम्र के साथ – साथ इनके शरीर में आए बदलावों ने इन्हें और भी मोहक बना दिया है। अपने दोनों ही बच्चों से बेहद प्रेम करती हैं और ज़्यादातर समय अपनी पुत्री के साथ ही बिताती हैं।

3.) राजकुमार विक्रम (आयु : 20 वर्ष) : महाराज और महारानी का इकलौता पुत्र और देवनगर का भावी महाराज। राजकुमार विक्रम की ख्याति केवल देवनगर ही नहीं बल्कि कई दूसरे राज्यों में भी फैली हुई है। इसका कारण इनका अतुलनीय युद्ध – कौशल एवं बौद्धिक – क्षमता है। कम आयु में ही इन्होंने कई बड़े – बड़े शूरवीरों को धूल चटा दी है। इतनी प्रसिद्धि और यश के बाद भी बेहद ही मिलनसार और शांत स्वभाव है राजकुमार विक्रम का। देवनगर की सारी प्रजा को अपने परिवार की ही तरह मानते हैं जिसके कारण पूरी प्रजा भी इन्हें देवता ही मानती आई है।

4.) राजकुमारी तारा (आयु : 18 वर्ष) : राजकुमार विक्रम की छोटी बहन और राजपरिवार की सबसे लाडली सदस्य। कुछ ही दिन पहले 18 वर्ष की आयु को पूर्ण किया है इन्होंने। स्वभाव से बहुत ही नटखट और चंचल हैं। कई बार अपने स्वभाव के कारण मुसीबत भी मोल ले लेती हैं परंतु अपने इसी स्वभाव के कारण ये राजमहल में प्रसन्नता का वातावरण भी बनाए रखती हैं। दिखने में काफी खूबसूरत हैं, शरीर अभी विकसित हो रहा है, परंतु चेहरा ऐसा है की कोई भी उसे देखकर मोहित हो जाए। एक अलग ही निखार बना रहता है इनके मुखमंडल पर।

महाराज चंद्रवर्धन के वैसे तो दो भाई और भी थे परंतु अभी उनका ज़िक्र नहीं होगा, इसका कारण कहानी के साथ आपको पता चलेगा। परंतु हां, भविष्य में ज़रूर आप उनके बारे में भी जानेंगे।


महाराज चंद्रवर्धन के सबसे विश्वासु व्यक्ति हैं देवनगर के महामंत्री – सूर्यभान। सूर्यभान के पूर्वज भी देवनगर के शासकों के विश्वास पात्र हुआ करते थे। असल में महाराज चंद्रवर्धन के दादाजी के समय भी सूर्यभान के दादाजी ही उनके सबसे विश्वसनीय थे। सूर्यभान और उनका परिवार भी राजमहल में ही रहता है। हालांकि, ऐसा आम तौर पर होता नहीं है की कोई राजदरबारी महल में रहता हो, परंतु महाराज सदा से ही महामंत्री सूर्यभान को अपना छोटा भाई ही मानते आएं हैं। इनके परिवार का परिचय कुछ इस प्रकार है :

1.) महामंत्री सूर्यभान (आयु : 41 वर्ष) : महाराज चंद्रवर्धन को अपना ईश्वर मानते हैं और उनकी हर आज्ञा का पालन करना अपना धर्म। इनके बुद्धि – चातुर्य और रणनीतिक समझ के महाराज भी कायल हैं। देवनगर वैसे तो एक शांतिप्रिय राज्य है परंतु भूतकाल में जब एक बार देवनगर का पड़ोसी राज्य के साथ युद्ध हुआ था, तब महामंत्री सूर्यभान की योजनाओं ने एक मुख्य भूमिका निभाई थी, देवनगर को विजय दिलाने में।

2.) चारूलता (आयु : 36 वर्ष) : सूर्यभान की पत्नी। एक बहुत ही कामुक महिला। इन्हें देखकर किसी का भी मन डोल सकता है, क्योंकि इनके शरीर की बनावट ही कुछ ऐसी है। आयु के साथ चर्बी शरीर के उन्ही अंगों में बढ़ी है जहां से इनकी काया और भी मोहक हो सके। अपने रूप – सौंदर्य का काफी ध्यान भी रखती हैं। महारानी भानुमती और चारूलता के संबंध सगी बहनों जैसे हैं।

3.) समृद्धि (आयु : 19 वर्ष) : महामंत्री की इकलौती संतान। समृद्धि का जन्म बेहद ही विपरीत परिस्थितियों में हुआ था। विवाह के काफी समय बाद भी जब महामंत्री और चारूलता को संतान सुख नहीं मिला था तब उन्होंने एक विशेष यज्ञ द्वारा इस सुख की कामना की थी। उसके प्रभाव से उन्हें पुत्री तो प्राप्त हुई परंतु साथ ही एक दुर्घटना ने महामंत्री से पुनः पिता बनने की शक्ति को छीन लिया। (इस घटना की जानकारी कहानी में मिलेगी)। समृद्धि, दोनों की इकलौती बेटी है इसलिए दोनों ही इसपर अपने प्राण न्योछावर कर सकते हैं। स्वभाव से बहुत ही शर्मीली और कोमल हृदय की है ये लड़की, अक्सर छोटी – छोटी बातों से भी प्रभावित हो जाती है और उन्हें हृदय से लगा लेती है। परंतु, शायद ही कोई हो जो इसकी तरह निष्पाप और निश्छल सोच – विचार का हो।


महामंत्री की ही तरह एक और व्यक्ति ऐसे हैं जिनसे महाराज चंद्रवर्धन को विशेष लगाव है और वो हैं – सेनापति जयसिम्हा। इनके परिवार का परिचय कुछ इस प्रकार है :

1.) सेनापति जयसिम्हा (आयु : 44 वर्ष) : सेनापति जयसिम्हा ना केवल देवनगर के किले के एक मज़बूत स्तंभ हैं बल्कि यही हैं राजकुमार विक्रम के प्रथम गुरु भी। जहां राजगुरु ने विक्रम को शास्त्रों और नीतियों का ज्ञान दिया था वहीं सेनापति जयसिम्हा ने ही विक्रम को युद्ध – कौशल और शस्त्रों का ज्ञान दिया। इस आयु में भी सेनापति का बाहुबल अच्छे – अच्छों की धूल चटाने लायक है। ये भी एक मुख्य कारण हैं की शत्रु राज्य साहस नहीं कर पाते देवनगर पर हमला करने का।

सेनापति जयमसिम्हा की पत्नी की मृत्यु हो चुकी है, कैसे हुई ये आगे पता चलेगा।

2.) अंजली (आयु : 21 वर्ष) : अंजली सेनापति की पहली संतान है। विवाह योग्य हो जाने के बाद भी अंजली का विवाह संपन्न नहीं हो पाया है। इसका कारण है अंजली की कुंडली में मौजूद दोष जिसका निवारण केवल राजगुरु और सेनापति ही जानते हैं। परंतु किसी कारण से ये रहस्य दोनों ने अपने तक ही रखा है, और महाराज को यही कहा की इस दोष का निवारण करना राजगुरु के लिए भी संभव नहीं। अंजली भी यही जानती है, और इस कारण से काफी उदास रहती है, उसे यही लगता है की वो अपने पिता पर एक बोझ बन चुकी है और कभी भी उसका विवाह नहीं हो पाएगा।

3.) जयवीर (आयु : 20 वर्ष) : सेनापति का पुत्र। अपने पिता की ही तरह बहादुर और शक्तिशाली है। अक्सर राजकुमार विक्रम के साथ ही रहता है, कह सकते हैं की ये राजकुमार के काफी निकट है। अपनी बहन के साथ किसी कारण ज्यादा बातचीत नहीं करता, दूसरे शब्दों में, दोनों भाई – बहन एक – दूसरे के लिए जैसे अजनबी हैं। इसका कारण ना तो आज तक अंजली पता कर पाई है और ना ही कोई और।


अंतिम मुख्य पात्र हैं राजगुरु – महर्षि शिविकेश। इनका कोई परिवार नहीं है क्योंकि बाल्यकाल से ही इन्होंने ब्रह्मचर्य का व्रत ले लिया था और आज तक स्त्री स्पर्श से दूर रहे हैं।



फिलहाल के लिए इतने ही पात्रों का परिचय दिया है। आगे और भी पात्र आयेंगे परंतु उनका परिचय समय – समय पर ही दिया जाएगा।


धन्यवाद!
..'' AWESOME INTRO BHAI ....👍


,,''Kya is story mai kalpanik jeev bhi hogi jaise fairy ???
 
Campèón!
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CONGRATULATION ,,''..

BROTHER STORY COMPLETE KARNA ...❤️

..,,''
WAITING FOR INTRO ....
BROTHER HINGLISH MAI LIKHO ...'',,👍❤️
Sorry Bhai. Par ye kahani devanagri mein likhna hi sahi hoga. Kyonki puraane zamane ki hai isiliye Devanagari mein hi sahi lagega.
..'' AWESOME INTRO BHAI ....👍


,,''Kya is story mai kalpanik jeev bhi hogi jaise fairy ???
Thanks Bhai. Jee, Kalapanik Jeev bhi honge, par kaunse honge, ye aapko aage pata chalega.

Keep Supporting.
 

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