Fantasy Dark Love (Completed)

Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Hello Dosto :hi:
Ek Short Story Le kar Aapki Adaalat Me Haazir Hua Hu. Iske Pahle Maine Ek Short Story ✧Double Game✧ Likhi Thi Jise Aap Sabne Padha. Ab Ek Aur Short Story Aapke Saamne Haazir Karne Ja Raha Hu. Fantasy Prefix Par Adhaarit Ye Story Ek Love Story Hai. Ummid Hai Aap Sabhi Ko Pasand Aayegi. Aapka Sabhi Sath Aur Sahyog Aniwaarya Hai. Story Ke Sambandh Me Apna Feedback Zarur Dena. :declare:

Dhanyawaad..!!

:thank-you2:


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Dark Love

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Dark Love

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Written By ~

TheBlackBlood
 
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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Update - 01
_________________




हर एक पल रंज़-ओ-ग़म गवारा करके।
जी रहा हूं फक़त यादों का सहारा करके।।

हाल-ए-दिल मेरा समझता ही नहीं कोई,
बैठा है हर शख़्स मुझसे किनारा करके।।

तेरे बग़ैर मुझे रास न आएगी ये दुनियां,
देख लिया है मैंने हर सूं गुज़ारा करके।।

नींद आए कभी तो ख़्वाबों में देखूं तुझे,
जी नहीं लगता किसी का नज़ारा करके।।


ज़िन्दगी पहले भी बेरंग थी, ज़िन्दगी आज भी बेरंग है और न जाने कब तक ये ज़िन्दगी यूं ही बेरंग रहने वाली है। मैंने अपनी ज़िन्दगी को रंगों से भरने की बहुत कोशिश की लेकिन हर बार ऐसा ही हुआ है कि मेरी ज़िन्दगी मुझे बेरंग ही नज़र आई। मैं अक्सर सोचता था कि क्या मुझे कोई अभिशाप मिला है जिसकी वजह से मैं हर किसी की तरह खुश नहीं रह सकता? हलांकि इस दुनियां में खुश तो कोई नहीं है लेकिन मेरे अलावा बाकी लोगों को खुश रहने का कोई न कोई जरिया तो मिल ही जाता है। सबसे बड़ी बात तो ये भी है कि झूठ मूठ का ही सही लेकिन बाकी लोग खुश रहने का दिखावा तो कर ही लेते हैं किन्तु मेरी किस्मत में ऐसा दिखावा करना भी जैसे लिखा ही नहीं है।

पिछले दो साल में ऐसा कोई दिन नहीं गया जब मैंने उस जगह को खोजने की कोशिश न की हो जिस जगह पर मैंने एक ऐसी शख़्सियत के साथ जीवन के चंद दिन गुज़ारे थे जिसे देख कर मैं ये समझ बैठा था कि उसके साथ ही मेरी ज़िन्दगी की असल खुशियां हैं। कुदरत कभी कभी इंसान को खुली आँखों से ऐसे ख़्वाब दिखा देती है जो उसे कुछ पलों के लिए तो ख़ुशी दे देते हैं लेकिन उसके बाद जीवन भर का दर्द भी जैसे उन्हें सौगात में मिल जाता है। मुझे ऐसे दर्द से कोई शिकवा नहीं था बल्कि मैं तो यही चाहता था कि दर्द चाहे जितने भी मिल जाएं लेकिन जीवन में एक बार फिर से उसका दीदार हो जाए ताकि उसके खूबसूरत चेहरे को अपनी पलकों में और अपने दिल में बसा कर उसी के ख़यालों में ताऊम्र खोया रहूं।

"अब मुझे जाना होगा ध्रुव।" उसने प्यार से मेरे चेहरे को सहलाते हुए कहा था____"ऐसा पहली बार हुआ है कि मैंने किसी इंसान के साथ इतना वक़्त बिताया है।"

"ये..ये तुम क्या कह रही हो मेघा?" उसके जाने की बात सुन कर मेरी जान जैसे मेरे हलक में आ फंसी थी_____"तुम मुझे इस तरह छोड़ कर कैसे जा सकती हो?"

"मुझे जाना ही होगा ध्रुव।" मेघा ने पहले की भाँति ही मेरे चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा था_____"पिछले एक हप्ते से मैं तुम्हारे साथ यहाँ पर हूं। तुम्हारे ज़ख्म तो पहले ही ठीक हो गए थे लेकिन मैं तुम्हारे साथ इतने दिनों तक इसी लिए रह गई क्योंकि मेरी वजह से ही तुम मौत के मुँह में जाते जाते बचे थे। मैं खुद इस बात को नहीं जानती कि मैंने तुम्हारे लिए इतना कुछ क्यों किया जबकि मेरी फितरत में ऐसा करना है ही नहीं।"

"ऐसा मत कहो मेघा।" मेरी आवाज़ भारी हो गई थी____"मेरी नज़र में तुम दुनियां की सबसे खूबसूरत और सबसे नेकदिल लड़की हो। एक हप्ते पहले जो कुछ भी हुआ था वो महज एक हादसा ज़रूर था लेकिन उस हादसे ने मुझे तुमसे मिलाया। सच कहूं तो मैं उस हादसे के होने से बेहद खुश हूं क्योंकि अगर वो हादसा न होता तो मैं एक ऐसी लड़की से कैसे मिल पाता जिसे अब मैं टूट टूट कर प्यार करने लगा हूं। तुम नहीं जानती मेघा, इसके पहले मेरी ज़िन्दगी का कोई मतलब ही नहीं था। इसके पहले मेरी ज़िन्दगी में ना तो कोई रंग थे और ना ही कोई खुशियां थी। सच तो ये है कि मुझे अपनी ही ज़िन्दगी बोझ सी लगती थी। एक पल भी जीने की आरज़ू नहीं होती थी, फिर भी इस उम्मीद में जीता था कि शायद किसी दिन मेरी ज़िन्दगी में भी कोई खुशियों की बहार आए। तुम मिली तो अब मुझे ऐसा ही लगता है जैसे मेरी वीरान पड़ी ज़िन्दगी में खुशियों की बहार आ गई है। मैं अब तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं जी सकता मेघा और ना ही जीना चाहता हूं। इस तरह मुझे छोड़ कर जाने को मत कहो। मैं तुमसे भीख मांगता हूं, भगवान के लिए मुझे छोड़ कर कहीं मत जाओ।"

"मुझे इस तरह मोह के जाल में मत फंसाओ ध्रुव।" मेघा ने लरज़ते स्वर में कहा था____"तुम पहले इंसान हो जिसके साथ मैंने इतना वक़्त गुज़ार दिया है वरना मेरी फितरत तो ऐसी है कि मैं किसी के लिए भी ऐसे जज़्बात नहीं रखती। तुम बहुत अच्छे हो ध्रुव लेकिन एक सच ये भी है कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं। अपने दिल से मेरे प्रति ऐसे ख़याल निकाल दो। मैं चाह कर भी ना तो तुम्हारे साथ रह सकती हूं और ना ही तुम्हारे इस पवित्र प्रेम को स्वीकार कर सकती हूं।"

"आख़िर क्यों मेघा?" उसकी बातें सुन कर मेरी आँखों से आंसू छलक पड़े थे। कातर भाव से कहा था मैंने____"क्या मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं? क्या मुझमें कोई कमी है जिसके चलते तुम मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर सकती? तुम बस एक बार बता दो मेघा, मैं तुम्हारे लिए अपने अंदर की हर कमी को दूर कर दूंगा।"

"नहीं ध्रुव।" उसने जल्दी से अपनी हथेली को मेरे मुख पर रख दिया था, फिर अधीर हो कर कहा_____"तुम में कोई कमी नहीं है बल्कि तुम तो ऐसे हो जिसके प्रेम को अगर कोई लड़की स्वीकार न करे तो वो बदनसीब ही कहलाएगी।"

"फिर क्यों मुझे छोड़ कर जाने की बात कह रही हो?" मैंने अपने एक हाथ से उसकी हथेली को अपने मुख से हटाते हुए कहा था____"ये जानते हुए भी कि मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं जी सकता, फिर क्यों मुझे छोड़ कर जाना चाहती हो?"

"कुछ सवालों के जवाब नहीं होते ध्रुव।" उसने कहीं खोए हुए अंदाज़ से कहा था____"काश! मेरी किस्मत में भी तुम्हारे साथ रहना लिखा होता। काश! विधाता ने मुझे तुम्हारे लायक बनाया होता। काश! तुम्हारे इस पवित्र प्रेम को स्वीकार कर के मैं भी तुम्हारे साथ एक नई किन्तु हसीन दुनियां बसा सकती।"

"मुझे समझ में नहीं आ रहा कि तुम ये क्या कह रही हो?" मैं उसकी बातें सुन कर बहुत ज़्यादा उलझन में पड़ गया था_____"आख़िर ऐसी कौन सी बात है कि तुम मेरे साथ नहीं रह सकती? अगर किसी तरह की कोई समस्या है तो हम दोनों मिल कर उस समस्या को दूर करेंगे ना।"

"ऐसा नहीं हो सकता ध्रुव।" उसने फीकी सी मुस्कान के साथ मेरा चेहरा अपनी कोमल हथेलियों में भर कर कहा_____"इस दुनियां में बहुत सी ऐसी चीज़ें हैं जिन पर किसी का अख़्तियार नहीं होता। ख़ैर, मैं बहुत खुश हूं कि मेरे जैसी लड़की के लिए तुम्हारे दिल में ऐसे खूबसूरत जज़्बात हैं। यकीन मानो, मुझे इस बात का बेहद रंज है कि मैं एक ऐसे इंसान को छोड़ कर जाने के लिए मजबूर हूं जो मुझे बेहद प्रेम करता है। काश! विधाता ने मुझे इस लायक बनाया होता कि मेरे नसीब में भी किसी इंसान से प्यार करना लिखा होता और मैं किसी इंसान के साथ जीवन गुज़ार सकती।"

मैं मूर्खों की तरह उस खूबसूरत लड़की की तरफ देखता रह गया था जिसका चेहरा उस वक़्त मुझे ऐसा नज़र आ रहा था जैसे वो अपने अंदर चल रहे किसी बहुत ही बड़े झंझावात से जूझ रही हो। मेरा जी चाहा कि बेड से उठ कर उसे अपने सीने से लगा लूं लेकिन मैं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सका। मेरे ज़ख्म तो पहले ही भर गए थे लेकिन जिस्म में कमजोरी का आभास हो रहा था इस लिए मैं बेबस भाव से उसकी तरफ बस देखता ही रह गया था।

✮✮✮

एक बार फिर से शाम ढल चुकी थी और मैं हमेशा की तरह आज भी इस उम्मीद में यहाँ आया था कि शायद आज मुझे वो जगह मिल जाए जिस जगह पर मैंने मेघा के साथ अपने जीवन के बहुत ही खूबसूरत पल बिताए थे। उसके साथ बिताए हुए चंद दिनों का ऐसा असर हुआ था कि पहले से ही बेरंग लगती मेरी ज़िन्दगी उसके बिना मुझे और भी ज़्यादा बेरंग लगने लगी थी। हर वक़्त दिल से यही दुआ करता था कि बस एक बार उसका दीदार हो जाए और मैं जी भर के उसे देख लूं लेकिन न पहले कभी मेरी दुआएं क़ुबूल हुईं थी और ना ही शायद आगे कभी क़ुबूल होने वाली थीं। मुझे मेरी बदनसीबी पर इतना एतबार जो था।

दिसंबर के आख़िर में ज़ोरों की ठण्ड होने लगती थी और कोहरे की धुंध ऐसी होती थी कि पांच फ़ुट की दूरी पर खड़ा ब्यक्ति भी आसानी से दिखाई नहीं देता था। इन दो सालों में मैंने इस पूरे क्षेत्र को अच्छी तरह छान मारा था लेकिन मुझे वो जगह नहीं मिली थी जिस जगह पर मैंने दो साल पहले मेघा के साथ एक हप्ता गुज़ारा था। ऐसा नहीं था कि मेरे ज़हन से उस जगह का नक्शा मिट चुका था बल्कि वो तो मुझे आज भी अच्छी तरह याद है लेकिन जाने क्यों मैं उस जगह को आज तक खोज नहीं पाया था। मैं अक्सर सोचता था कि क्या उस जगह को ज़मीन ने निगल लिया होगा या फिर आसमान खा गया होगा?

इन दो सालों में मेरी मानसिक हालत पागलों जैसी हो गई थी। मुझे दुनियां से और दुनियां वालों से जैसे कोई मतलब ही नहीं रह गया था। मैं आज भी सुबह काम पर जाता था और शाम से पहले ही काम से वापस आ जाता था। मेरे पास दिन का सिर्फ यही पहर होता था जब मैं उसकी खोज में इस क्षेत्र की वादियों में भटकता था। मुझे जानने पहचानने वाले लोग अक्सर मेरी पीठ के पीछे मेरे बारे में तरह तरह की बातें करते थे लेकिन मुझे उनसे और उनकी बातों से कभी कोई मतलब नहीं होता था। मुझे तो बस एक ही सनक सवार थी कि एक बार फिर से मुझे मेघा मिल जाए और मैं उसे जी भर के देख लूं। उसकी खोज में मैंने वो सब किया था जो मुझसे हो सकता था लेकिन दो साल गुज़र जाने के बाद भी ना तो मुझे उसका कोई सुराग़ मिल सका था और ना ही कहीं उसके होने की उम्मीद नज़र आई थी। इस सबके बावजूद मुझे इतना ऐतबार ज़रूर था कि वो जब भी मुझे मिलेगी तो यहीं कहीं मिलेगी, क्योंकि मुझे पूरा यकीन था कि यहीं पर कहीं आज भी उसका वजूद है।

शाम तो कब की ढल चुकी थी और गुज़रते वक़्त के साथ ठण्ड भी अपना ज़ोर दिखाती जा रही थी लेकिन मैं हाथ में बड़ी सी टार्च लिए मुसलसल आगे बढ़ता ही जा रहा था। हालांकि आसमान में चाँद खिला हुआ था किन्तु उसकी रौशनी कोहरे की गहरी धुंध को भेदने में नाकाम थी। मेरे चारो तरफ घना जंगल था और फ़िज़ा में रूह को थर्रा देने वाली सांय सांय की आवाज़ें गूँज रहीं थी लेकिन मेरे अंदर डर जैसी कोई बात नहीं थी। असल में मैं इन दो सालों में इस सबका आदी हो चुका था। अपने घर से बहुत दूर आ चुका था मैं और ये अक्सर ही होता था। कभी कभी ऐसा भी होता था कि मैं जंगल में ही थक कर सो जाता था और दिन निकलने पर जब मेरी आँखें खुलती तो वापस लौट जाता था, क्योंकि सुबह मुझे काम पर भी जाना होता था।

"मुझसे वादा करो ध्रुव कि तुम मुझे कभी भी खोजने की कोशिश नहीं करोगे।" दो साल पहले मेघा के द्वारा कहा गया ये वाक्य अक्सर मेरे कानों में गूँज उठता था_____"बल्कि मुझे भुलाने की कोशिश करते हुए तुम अपनी ज़िन्दगी में आगे बढ़ जाओगे।"

"मैं तुमसे ऐसा वादा नहीं कर सकता मेघा।" मैंने दुखी भाव से कहा था____"मैं चाह कर भी तुम्हें भुला नहीं सकूंगा बल्कि सच तो ये है कि हर पल तुम्हारी याद में तड़पना ही जैसे मेरा मुक़द्दर बन जाएगा। क्या तुम्हें मेरी हालत पर ज़रा भी तरस नहीं आता? भगवान के लिए मुझे अकेला छोड़ कर मत जाओ। मेरा इस दुनिया में दूसरा कोई भी नहीं है।"

"ऐसी बातें मत करो ध्रुव।" मेघा ने अपनी आँखें बंद कर के मानो बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हालने की कोशिश की थी____"तुम्हारी ऐसी बातों से मेरा मुकम्मल वजूद कांप उठता है। तुम मेरी विवशता को नहीं समझ सकते। मैं तुम्हारे प्यार के लायक नहीं हूं और ना ही मेरी किस्मत में तुम्हारा साथ लिखा है।"

"आख़िर बार बार ऐसा क्यों कहती हो तुम?" मेघा के मलिन पड़े चेहरे की तरफ देखते हुए कहा था मैंने____"ऐसा क्यों लगता है तुम्हें कि तुम मेरे प्यार के लायक नहीं हो या तुम्हारी किस्मत में मेरे साथ रहना नहीं लिखा है? मुझे सच सच बताओ मेघा, आख़िर ऐसी कौन सी बात है?"

मेरे इस सवाल पर उसने बड़ी ही बेबसी से देखा था मेरी तरफ। उसकी गहरी आँखों में बड़ा अजीब सा सूनापन नज़र आया था मुझे। मैं अपने सवालों के जवाब की उम्मीद में उसी की तरफ अपलक देखता जा रहा था। लालटेन की धीमी रौशनी में भी उसका चेहरा चाँद की मानिन्द चमक रहा था। उसके सुर्ख होठ ताज़े खिले हुए गुलाब की पंखुड़ियों जैसे थे। कमर के नीचे तक बिखरे हुए उसके घने काले रेशमी बाल मानो घटाओं को भी मात दे रहे थे। उसके सुराहीदार गले में एक ऐसा लॉकेट था जिसमें गाढ़े नीले रंग का किन्तु बड़ा सा नगीने जैसा पत्थर था।

"क्या हुआ?" उसे गहरी ख़ामोशी में डूबा हुआ देख मैंने उससे कहा था____"तुम इस तरह ख़ामोश क्यों हो जाती हो मेघा? मुझे बताती क्यों नहीं कि ऐसी कौन सी बात है जिसकी वजह से तुम मेरे साथ नहीं रह सकती?"

मेरी बात सुन कर उसने एक बार फिर से मेरी तरफ बेबसी से देखा और फिर मेरे चेहरे के एकदम पास आ कर उसने जो कुछ कहा उसने मेरे मुकम्मल वजूद को हिला कर रख दिया था। मेरी हालत उस बुत की तरह हो गई थी जिसमें कोई जान नहीं होती। हैरत से फटी आँखों से मैं बस उसे ही देखे जा रहा था, जबकि वो अपने चेहरे को ऊपर कर के मेरी तरफ इस तरह देखने लगी थी जैसे उसका सब कुछ लुट गया हो।

अभी मैं मेघा के ख़यालों में ही खोया हुआ था की तभी मेरे बगल से कोई इतनी तेज़ रफ़्तार से निकल कर भागा कि एक पल के लिए तो मेरी रूह तक फ़ना होती हुई महसूस हुई। मैंने बौखला कर तेज़ी से टार्च का फोकस उस तरफ को किया जिस तरफ से कोई बड़ी तेज़ी से भागता हुआ गया था। टार्च के तेज़ प्रकाश में भाग कर जाने वाला तो नहीं दिखा, अलबत्ता कोहरे की गहरी धुंध ज़रूर दिखी। ठण्ड इतनी थी कि घने जंगल में होने के बावजूद मैं रह रह कर कांप उठता था। हालांकि ठण्ड से खुद को बचाने के लिए मैंने अपने जिस्म में कई गर्म कपड़े डाल रखे थे। मैंने महसूस किया कि आज कोहरे की धुंध पिछले दिनों की अपेक्षा कुछ ज़्यादा ही थी और शायद यही वजह थी कि मुझे अपने सामने नज़र आने वाला हर रास्ता अंजान सा लग रहा था।

जब से मेघा मुझे छोड़ कर गई थी तब से ऐसा कोई दिन नहीं गुज़रा था जब मैंने उसकी खोज न की हो या उसका पता न लगाया हो। शुरुआत में तो मैं उसके बारे में दूसरों से भी पूछता था और हर जगह उसे खोजता भी था। यहाँ तक कि दूसरे शहरों में जा कर भी उसकी तलाश की थी लेकिन मुझे मेघा का कहीं कोई सुराग़ तक न मिला था। ऐसा लगता था जैसे सच में वो कोई ऐसा ख़्वाब थी जिसको मैंने खुली आँखों से देखा था। एक वक़्त ऐसा आ गया था जब लोग मुझे देखते ही मुझसे किनारा करने लगे थे। ऐसा शायद इस लिए कि वो मुझे पागल समझने लगे थे और नहीं चाहते थे कि वो किसी पागल की बातें सुनें। मेरी जगह कोई दूसरा होता तो पहले ही मेघा का ख़याल अपने दिल से निकाल कर ज़िन्दगी में आगे बढ़ जाता लेकिन मैं चाह कर भी ऐसा नहीं कर सका था। सच तो ये था कि मैं मेघा को अपने दिलो दिमाग़ से निकालना ही नहीं चाहता था। मेरे जीवन में एक वही तो ऐसी थी जिसे देख कर मैंने ये महसूस किया था कि वो मेरा सब कुछ है और मेरी वीरान पड़ी ज़िन्दगी सिर्फ उसी के द्वारा संवर सकती थी। मैं जानता हूं कि मेरा ऐसा सोचना महज बेवकूफ़ी के सिवा कुछ नहीं था लेकिन अपने दिल को मैं किसी भी कीमत पर समझा नहीं सकता था।

टार्च की रौशनी में आगे बढ़ते हुए अचानक ही मैं खुले मैदान में आ गया। यहाँ पर चाँद की रौशनी में कोहरे की गहरी धुंध मुझे साफ़ दिख रही थी। अपनी जगह पर रुक कर मैंने दूर दूर तक देखने की कोशिश की लेकिन धुंध की वजह से मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया। मैंने महसूस किया कि इस जगह पर मैं पहली बार आया हूं और ये वो जगह नहीं है जहां पर दो साल पहले मैं मेघा के साथ उसके अजीब से घर में एक हप्ते रहा था। मुझे आज भी अच्छी तरह से याद है कि पत्थर के बने उस अजीब से मकान के चारो तरफ घने पेड़ पौधे थे और पास में ही कहीं से किसी झरने से पानी बहने की आवाज़ आती थी।

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Update - 02
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एक बार फिर से उसकी तलाश में मुझे नाकामी मिल गई थी। एक बार फिर से मैं मायूस और निराश हो गया था। एक बार फिर से मेरा दिल तड़प कर रह गया था। मेरी आँखों से आंसू के क़तरे छलक कर मेरे गालों पर आ गिरे। मैंने चेहरा उठा कर आसमान की तरफ देखा और मन ही मन ऊपर वाले से एक बार फिर शिकवा किया और उससे फ़रियाद भी की।

वापसी की राह हमेशा की तरह मुश्किल थी लेकिन ऐसी मुश्किलों को तो मैंने खुद ही शौक़ से चुना था इस लिए चल पड़ा घर की तरफ। मन में हज़ारों तरह के झंझावात लिए मैं जिस तरफ से यहाँ तक आया था उसी तरफ वापस चल पड़ा। न मेरे पागलपन की कोई सीमा थी और ना ही उस शख़्स के सताने की जिसकी मोहब्बत में मैं इस क़दर गिरफ़्तार था कि अपनी हालत को ऐसा बना बैठा था।

ये मोहब्बत भी बड़ी अजीब चीज़ होती है। जब तक किसी से नहीं होती तब तक इंसान न जाने कितने ही तरीके से खुद को खुश कर लेता है लेकिन जब किसी से मोहब्बत हो जाती है और साथ ही इस तरह का आलम हो जाता है तो दुनियां की कोई भी चीज़ उसे खुश नहीं कर सकती, सिवाय इसके कि उसे बस वो मिल जाए जिसे वो टूट टूट कर मोहब्बत कर रहा होता है। मोहब्बत वो बला है जिसके मिलन में तो मज़ा है ही किन्तु उसके हिज़्र में तड़पने का भी अपना एक अलग ही मज़ा है।

हर इक ज़ख़्म दिल का जवां जवां करके।
चला गया वो ज़िन्दगी धुआं धुआं करके।।

एक मुद्दत से कहीं उसका पता ही नहीं,
जाने कहां गया है मुझको परेशां करके।।

मेरे बग़ैर कहीं तो सुकूं से रह रहा होगा,
वो जो यादें दे गया मुझे एहसां करके।।

किसे बताऊं मुसलसल उसकी जुस्तजू में,
थक गया हूं बहुत ज़मीनो-आसमां करके।।

ग़म ये नहीं के मेरे हिस्से में इंतज़ार आया,
ग़म ये है के लौटा नहीं मुझे तन्हां करके।।

ख़ुदा करे के कहीं से ख़बर हो जाए उसे,
के बैठा है कोई बीमारे-दिलो-जां करके।।

घर पहुंचते पहुंचते ऐसी हालत हो गई थी कि न कुछ खाने का होश रहा था और ना ही कुछ पीने का। जिस हालत में था उसी हालत में बिस्तर पर बेहोश सा पसर गया। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था बल्कि ऐसा अक्सर ही होता था। मुझे अपनी सेहत का या अपनी किसी बात का ज़रा भी ख़याल नहीं था। मेरे दिल में अगर उसको एक बार देख लेने की हसरत न होती तो मैं हर रोज़ ऊपर वाले से बस यही दुआ मांगता कि ऐसी ज़िन्दगी को विराम लगाने में वो एक पल न लगाए।

सुबह हमेशा की तरह मेरी आँख अपने टाइम पर ही खुली। हमेशा की तरह बेमन से मैं उठा और नित्य क्रिया से फुर्सत होने के बाद अपने पेट की तपिश को मिटाने के लिए घर के पास ही थोड़ी दूरी पर मौजूद ढाबे की तरफ चल दिया। मेरे घर में यूं तो ज़रूरत का हर सामान था लेकिन मेरे लिए वो किसी काम का नहीं था, बल्कि अगर ये कहा जाए तो ग़लत न होगा कि मुझे घर के किसी सामान से मतलब ही नहीं था। अपने पेट की भूख मिटाने के लिए मैं बाहर ही थोड़ा बहुत खा लेता था। मेरे जीवन की दिनचर्या यही थी कि सुबह अपने काम पर जाना और शाम होने से पहले ही काम से वापस आ कर मेघा की खोज करना। इसके अलावा जैसे मेरे जीवन में ना तो कोई काम था और ना ही मेरी कोई ख़्वाहिशें थी।

मेघा के प्रति मेरे दिल में इस क़दर चाहत घर ग‌ई थी कि मैं हर पल बस उसी के बारे में सोचता रहता था। अगर मैं ये कहूं तो ग़लत न होगा कि मैं मेघा की मोहब्बत में एक तरह से पागल हो चुका था। उसकी चाहत का नशा हर पल मेरे दिलो दिमाग़ में चढ़ा रहता था। काम करते वक़्त भी मैं मेघा के ही ख़यालों में खोया रहता था। शायद यही वजह थी कि मुझे जानने पहचानने वाले लोग अक्सर मुझे देख कर उल्टी सीधी बातें करते रहते थे।

"क्या अब भी तुम्हें लगता है कि मैं तुम्हारे लायक हूं ध्रुव?" मेरे ज़हन में मेघा के द्वारा कहे गए शब्द गूँज उठते थे____"क्या मेरा सच जानने के बाद भी तुम मुझसे प्यार करोगे?"

"मेरा प्यार तुम्हारे किसी सच को जान लेने से ख़त्म नहीं हो सकता मेघा।" मैंने उसकी गहरी आँखों में अपलक देखते हुए कहा था_____"बल्कि सच तो ये है कि तुम चाहे जिस भी रूप में मेरे सामने आओ तुम्हारे प्रति मेरी चाहत में कोई फ़र्क नहीं आएगा।"

"ओह! ध्रुव।" मेघा के चेहरे पर दर्द और बेबसी के मिले जुले भाव उभर आए थे। मेरे दाएं गाल को सहलाते हुए कहा था उसने____"ये कैसा पागलपन है? तुम मेरी हक़ीक़त जान लेने के बाद भी मेरे प्रति भला ऐसे जज़्बात कैसे रख सकते हो?"

"सच्ची मोहब्बत में पैदा हुए दिल के जज़्बात किसी सच या झूठ को जान कर अपना रंग नहीं बदलते।" मैंने उसका वो हाथ थाम कर कहा था जिस हाथ से उसने मेरा दायां गाल सहलाया था____"ख़ैर, अब तो तुम्हें भी पता चल गया है ना कि मुझे तुम्हारी हक़ीक़त से भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता इस लिए क्या अब भी तुम मुझे छोड़ कर चली जाओगी ?"

"तुमसे मिलने से पहले।" वो मेरे चेहरे की तरफ देखते हुए कह रही थी____"मैं कभी इस तरह किसी धर्म संकट में नहीं फंसी थी और ना ही इस तरह बेबस और लाचार हुई थी। तुमसे मिलने से पहले मैं सोच भी नहीं सकती थी कि मोहब्बत क्या होती है और मोहब्बत की दीवानगी क्या होती है। मैंने ख़्वाब में भी ये नहीं सोचा था कि कोई इंसान मुझसे इस क़दर टूट कर मोहब्बत करेगा। ये विधाता की कैसी लीला है ध्रुव?"

"मैं किसी की लीला को नहीं जानता मेघा।" मैंने होठों पर फीकी सी मुस्कान सजा कर कहा था____"मैं तो बस इतना जानता हूं कि मैं तुमसे बेहद प्रेम करता हूं और इस बात का भी मुझे बड़ी शिद्दत से एहसास हो चुका है कि मैं तुम्हारे बिना ना तो कभी खुश रह पाऊंगा और ना ही चैन से जी पाऊंगा। अब ये तुम पर है कि तुम मुझे किस हाल में रखती हो?"

"नहीं ध्रुव, ऐसा मत कहो।" उसने बेबस भाव से कहा था____"मैं सच में इस लायक नहीं हूं कि मेरी वजह से तुम अपनी ऐसी हालत बना लो। सच तो ये है कि तुम मेरे साथ भी कभी खुश नहीं रह पाओगे, बल्कि मुझसे जुड़ने के बाद तो तुम्हारी ज़िन्दगी ही ख़तरे में पड़ जाएगी। मैं ये कैसे चाह सकती हूं कि जो इंसान मुझसे इतना प्रेम करता है वो मेरी वजह से मौत के मुँह में चला जाए?"

"मुझे अपनी मौत का ज़रा भी डर नहीं है मेघा।" मैंने उठते हुए कहा था____"और अगर यही सच है कि तुमसे जुड़ने के बाद मुझे मौत ही आ जानी है तो मेरी बस यही आरज़ू है कि मेरा दम तुम्हारी बांहों में ही निकले। आह! कितना हसीन होगा ना वो मंज़र, जब मेरी जान मेरी जान की बांहों में जाएगी।"

मैं बेड पर उठ कर बैठ गया था और बेड की पिछली पुश्त से अपनी पीठ को टिका लिया था। मेरी बात सुन कर मेघा मुझे अपलक देखती रह गई थी। उसके चेहरे पर बेबसी और बेचैनी के भाव उजागर हो रहे थे। चाँद की तरह चमकता हुआ चेहरा ग्रहण सा लगाए हुए नज़र आने लगा था।

अपने चारो तरफ से आने लगी अजीब तरह की आवाज़ों को सुन कर मैं एकदम से चौंका। गर्दन घुमा कर इधर उधर देखा तो ढाबे में मेरे दाएं बाएं और पीछे मौजूद लोग मुझे देखते हुए एक दूसरे से जाने क्या क्या कहते दिख रहे थे। मैंने फ़ौरन ही खुद को सम्हाला और ढाबे वाले से दो सौ ग्राम भुजिया के साथ चटनी ले कर अपने घर की तरफ चल पड़ा। अक्सर ऐसा ही होता था कि मैं मेघा के ख़यालों में खो जाता था और मेरा ध्यान ऐसी ही आवाज़ों के द्वारा टूट जाता था।

सुबह का नास्ता कर के मैं अपने काम पर पहुंचा ही था कि मोटर गैराज के मालिक ने आवाज़ दे कर मुझे अपने केबिन में बुलाया। मैं समझ गया कि हमेशा की तरह आज सुबह सुबह फिर से वो मुझे चार बातें सुनाएगा। मैंने एक बार गैराज में मौजूद बाकी लोगों की तरफ देखा और फिर चुप चाप मालिक के केबिन की तरफ बढ़ गया।

"क्या तुमने क़सम खा रखी है कि तुम किसी और की नहीं सुनोगे बल्कि हमेशा वही करोगे जो तुम्हारी मर्ज़ी होगी?" मैं केबिन में दाखिल हुआ ही था कि मोटर गैराज का मालिक मुझे देख कर तेज़ आवाज़ में चिल्ला उठा____"ख़यालों की दुनियां से निकल कर हक़ीक़त की दुनियां में आ जाओ। मेरी नरमी का नाजायज़ फायदा मत उठाओ। मैं पिछले दो साल से तुम्हें सिर्फ इस लिए बरदास्त कर रहा हूं क्योंकि तुम एक अनोखे कारीगर हो। मैं हमेशा ये सोच कर हैरान हो जाता हूं कि तुम्हारे जैसे पागल इंसान के अंदर ऐसा गज़ब का हुनर कैसे हो सकता है?"

मोटर गैराज का मालिक चालीश साल का गंजा ब्यक्ति था जिसका नाम गजराज शेठ था। पिछले पांच सालों से मैं उसके यहाँ मोटर मकैनिक के तौर पर काम करता आ रहा था। दो साल पहले आज के जैसे हालात नहीं थे किन्तु जब से मेरे जीवन में मेघा का दखल हुआ था तब से मेरा बर्ताव पूरी तरह बदल गया था। गजराज शेठ यूं तो बहुत अच्छा इंसान था लेकिन किसी भी तरह का नुक्सान उसे बरदास्त नहीं था।

पिछले दो साल से वो मुझे ऐसे ही बातें सुनाता आ रहा था और मैं तब तक ख़ामोशी से उसकी बातें सुनता रहता था जब तक कि वो मुझे खुद ही चले जाने को नहीं कह देता था। उसे भी हर किसी की तरह इस बात का पता था कि मेरे पागलपन या मेरे ऐसे बर्ताव की वजह क्या है। शुरुआत में उसने मुझसे कई बार इस सिलसिले में बात की थी और अपनी तरफ से हर कोशिश की थी कि मैं पहले जैसा बन जाऊं लेकिन जब मुझ पर कुछ असर ही नहीं हुआ तो उसने मुझे समझाना ही छोड़ दिया था।

मोटर गैराज में मेरे साथ काम करने वाले लोग अक्सर उससे मेरी शिकायतें करते थे और मुझे हटाने की कोशिश में लगे रहते थे लेकिन मैं अब भी गजराज शेठ के गैराज में टिका हुआ था। इसकी वजह यही थी कि मुझ में बाकी लोगों से कहीं ज़्यादा बेहतर हुनर था और मेरा किया हुआ काम ऐसा होता था जिसे देख कर खुद गजराज शेठ दांतों तले उंगली दबा लेता था। दूसरी वजह ये भी थी कि पिछले दो साल से मैंने गजराज शेठ से अपने काम का कोई पैसा नहीं माँगा था बल्कि अपना गुज़ारा मैं कस्टमर के द्वारा मिले हुए टिप्स से ही चलाता आ रहा था। ऐसा नहीं था कि मेरे न मांगने पर गजराज शेठ ने मुझे मेरे काम का पैसा देना नहीं चाहा था बल्कि वो तो हर महीने मेरी पगार मुझे पकड़ाता था लेकिन मैं ही लेने से इंकार कर देता था।

"देखो ध्रुव।" गजराज शेठ की आवाज़ से मेरा ध्यान टूटा____"मैंने हमेशा यही चाहा है कि तुम भी आम इंसानों की तरह सामान्य जीवन जियो। इस तरह किसी के पागलपन में अपना कीमती जीवन बर्बाद मत करो। ऊपर वाले ने तुम्हें अच्छी शक्लो सूरत दी है और ऐसा क़ाबिले तारीफ़ हुनर भी दिया है जिसके बल पर तुम बेहतर से बेहतर जीवन गुज़ार सकते हो। मुझे हर रोज़ तुम पर यूं गुस्सा करना और चिल्लाना अच्छा नहीं लगता। मैं दिल से चाहता हूं कि तुम ठीक हो जाओ, इस लिए मैंने तुम्हारे लिए एक मनोचिकित्सक डॉक्टर से बात की है। उसने बताया कि उसके द्वारा दी जाने वाली बेहतर थैरेपी से तुम पहले जैसे बन जाओगे।"

गजराज शेठ इतना कह कर चुप हो गया और मेरी तरफ बड़े ध्यान से देखने लगा। शायद वो मुझे देखते हुए ये समझने की कोशिश कर रहा था कि मुझ पर उसकी बातों का कोई असर हुआ है या नहीं? जब काफी देर बाद भी मैंने उसकी बातों पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो उसने हताश भाव से गहरी सांस ली।

"आख़िर तुम किस तरह के इंसान हो ध्रुव?" फिर उसने झल्लाते हुए कहा____"तुम किसी की बातों को नज़रअंदाज़ क्यों कर देते हो? क्या तुम्हें ज़रा भी अपने जीवन से मोह नहीं है? आख़िर कब तक चलेगा ये सब? आज तुम्हें मेरी बातें सुननी भी पड़ेंगी और माननी भी पड़ेंगी। कल तुम मेरे साथ उस डॉक्टर के पास चलोगे, समझ ग‌ए न तुम?"

ऐसा नहीं था कि मेरे कानों तक गजराज शेठ की बातें पहुंच नहीं रहीं थी बल्कि वो तो वैसे ही पहुंच रहीं थी जैसे किसी नार्मल इंसान के कानों में पहुँचती हैं लेकिन मेरी हालत ऐसी थी कि मैं किसी की बातों पर ज़रा भी ध्यान नहीं देता था। मैं नहीं चाहता था कि किसी की बातों की वजह से एक पल के लिए भी मेरे ज़हन से मेघा का ख़याल टूट जाए।

मुझे ख़ामोश खड़ा देख गजराज शेठ की हालत अपने बाल नोच लेने जैसी हो गई थी। उसके बाद गुस्से में ज़ोर से चिल्लाते हुए उसने "दफ़ा हो जाओ" कहा तो मैं चुप चाप पलट कर बाहर चला आया।

मेघा के प्रति मेरा प्रेम अब सिर्फ प्रेम ही नहीं रह गया था बल्कि वो एक पागलपन में बदल चुका था। मेरे अंदर बस एक ही ख़्वाहिश थी कि एक बार मेघा का खूबसूरत चेहरा देखने को मिल जाए उसके बाद फिर भले ही चाहे मुझे मौत आ जाए। दुनियां का कोई भी इंसान इस बात पर यकीन नहीं कर सकता था कि किसी लड़की के साथ सिर्फ एक हप्ता रहने से मुझे उससे इस हद तक प्यार हो सकता है कि मैं उसके लिए दुनियां जहान से बेख़बर हो कर पागल या सिरफिरा बन जाउंगा। मैंने खुद भी कभी ये सोचने की कोशिश नहीं की थी कि ऐसा कैसे हो सकता है?

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Update - 03
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सारा दिन मैं किसी मशीन की तरह काम में लगा रहा। काम पूरा होते ही मैंने खुद को साफ़ किया और बिना किसी से कुछ बोले गैराज से निकल लिया। मेरे हिस्से में मुझे जितना काम मिलता था उसे पूरा करने के बाद मैं एक पल के लिए भी गैराज में नहीं रुकता था, फिर चाहे भले ही क़यामत आ जाए। मेरे साथ गैराज में काम करने वाले बाकी लोगों को अब मेरे इस रवैए की आदत पड़ चुकी थी। मेरे सामने तो वो कुछ नहीं बोलते थे किन्तु मेरे जाते ही वो सब बातें शुरू कर देते थे।

गैराज से निकल कर मैं अपने घर नहीं जाता था बल्कि मेघा की खोज में उसी जंगल की तरफ निकल पड़ता था जहां पर मैंने उसके साथ चंद दिन गुज़ारे थे। सारी दुनियां भले ही मुझे पागल समझती थी लेकिन मेरे दिल को यकीन था कि मेघा मुझे जब भी मिलेगी उसी जंगल में मिलेगी। अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर मैं हर रोज़ शाम होने से पहले उस जंगल में दाखिल हो जाता था।

ठण्ड ने अपना असर दिखाना पहले ही शुरू कर दिया था और कोहरे ने फ़िज़ा में धुंध फैला दी थी। जंगल में दाखिल होने से पहले एक बार मैं उस जगह पर ज़रूर जाता था जहां पर दो साल पहले मेरे साथ हादसा हुआ था। वो हादसा ही था जिसने मेरी ज़िन्दगी को एक नया मोड़ दिया था और उसी की वजह से मुझे मेघा मिली थी।

दो साल पहले का वो हादसा आज भी मेरे ज़हन में तारो ताज़ा था। मैं हर रोज़ की तरह सुबह सुबह अपने काम पर जाने के लिए निकला था। उस दिन भी आज की ही तरह ठण्ड थी और फ़िज़ा में कोहरे की धुंध छाई हुई थी। मैं अपनी ही धुन में एक पुरानी मोटर साइकिल में बैठा गजराज शेठ के मोटर गैराज की तरफ बढ़ा चला जा रहा था। कोहरे की धुंध की वजह से सड़क पर ज़्यादा दूर का दिखाई नहीं दे रहा था इस लिए मैं धीमी रफ़्तार में ही मोटर साइकिल से जा रहा था। घर से क़रीब दो किलो मीटर दूर निकल आने के बाद अचानक मेरी नज़र सामने से भागती हुई आ रही एक लड़की पर पड़ी थी। कोहरे की वजह से वो अचानक ही मुझे दिखी थी और मेरे काफी पास आ गई थी। मैं उसे यूं अचानक देख कर एकदम से बौखला गया था। उसे बचाने के चक्कर में मैंने मोटर साइकिल का हैंडल जल्दी से घुमाया और ऐसा करना जैसे मुझ पर ही भारी पड़ गया।

मोटर साइकिल का अगला पहिया सड़क पर पड़े किसी पत्थर पर ज़ोर से लगा था और मैं मोटर साइकिल सहित सड़क पर जा गिरा था। अगर सिर्फ इतना ही होता तो बेहतर था लेकिन सड़क पर जब मैं गिरा था तो झोंक में मेरा सिर किसी ठोस चीज़ से टकरा गया था। मेरे हलक से घुटी घुटी सी चीख निकली और फिर मेरी आँखों के सामने अँधेरा छाता चला गया था। उसके बाद क्या हुआ मुझे कुछ भी याद नहीं रहा था।

जब मेरी आँखें खुलीं तो मैंने खुद को एक ऐसे कमरे के बेड पर पड़ा हुआ पाया जिस कमरे की दीवारें काले पत्थरों की थीं। दीवारों पर दिख रहे काले पत्थर ऐसे थे जैसे न जाने कब से उन पर चढ़ी हुई धूल या काई को साफ़ ना किया गया हो। कमरा सामान्य कमरों से कहीं ज़्यादा बड़ा था और कमरे की छत भी सामान्य से कहीं ज़्यादा उँचाई पर थी। एक तरफ की दीवार पर लोहे की खूँटी थी जिस पर पुरानी जंग लगी हुई लालटेन टंगी हुई थी। उसी लालटेन का धीमा प्रकाश पूरे कमरे में फैला हुआ था। हालांकि उसका प्रकाश कमरे को पूरी तरह रोशन करने में सक्षम नहीं था किन्तु इतना ज़रूर था कि कमरे में मौजूद किसी वस्तु को देखा जा सके। कमरे में कोई खिड़की या रोशनदान नहीं था, बल्कि लकड़ी का एक ऐसा दरवाज़ा था जिसे देख कर यही लगता था कि अगर उस दरवाज़े पर थोड़ा सा भी ज़ोर लगा दिया जाए तो वो टूट जाएगा। दरवाज़े में लगे लकड़ी के पटरों पर झिर्रियां थी जिससे उस पार का दृश्य आसानी से देखा जा सकता था।

मैं खुद को ऐसी विचित्र जगह पर पा कर पहले तो हड़बड़ा गया था उसके बाद एकदम से मेरे अंदर अजीब सा डर और घबराहट भरती चली गई थी। मैं समझने की कोशिश करने लगा था कि आख़िर मैं ऐसी जगह पर पहुंच कैसे गया था? ज़हन पर ज़ोर डाला तो मुझे याद आया कि मेरे साथ हादसा हुआ था। यानि किसी लड़की को बचाने के चक्कर में मैं खुद ही घायल हो गया था। सिर पर गहरी चोट लगने की वजह से मैं बेहोश हो गया था। उसके बाद जब मुझे होश आया तो मैं ऐसी जगह पर था।

ऐसी डरावनी जगह पर खुद को एक बिस्तर पर पड़े देख मेरे मन में तरह तरह के भयानक ख़याल आने लगे थे। मैंने चारो तरफ नज़रें घुमा घुमा कर देखा किन्तु मेरे अलावा उस कमरे में कोई नज़र नहीं आया। मैंने हिम्मत जुटा कर बिस्तर से उठने की कोशिश की तो एकदम से मेरे मुख से कराह निकल गई। मेरी पीठ पर बड़ा तेज़ दर्द हुआ था जिसकी वजह से मैं वापस उसी बिस्तर पर लेट गया था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं ऐसी जगह पर आख़िर कैसे पहुंच गया था? मुझे अच्छी तरह याद था कि हादसा सड़क पर हुआ था जबकि ये ऐसी जगह थी जिसको मैंने तसव्वुर में भी कभी नहीं देखा था। अचानक ही मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि मुझे यहाँ पर पहुंचाने वाली कहीं वो लड़की ही तो नहीं जिसे बचाने के चक्कर में मैं खुद ही घायल हुआ था? उस लड़की का ख़याल आया तो मेरे ज़हन में उसके बारे में भी तरह तरह के ख़याल उभरने लगे। मैं सोचने लगा कि अगर वो लड़की ही मुझे यहाँ ले कर आई है तो वो खुद कहां है इस वक़्त?

मैं अभी इन ख़यालों में खोया ही हुआ था कि तभी कमरे का दरवाज़ा अजीब सी चरमराहट के साथ खुला तो मैंने चौंक कर उस तरफ देखा। दरवाज़े से दाखिल हो कर जो शख्सियत मेरे सामने मुझे नज़र आई उसे देख कर मैं जैसे अपने होशो हवास खोता चला गया। कुछ देर के लिए ऐसा लगा जैसे मैं अचानक से ही कोई हसीन ख़्वाब देखने लगा हूं।

"अब कैसा महसूस कर रहे हो तुम?" उसकी मधुर आवाज़ मेरे एकदम पास से आई तो जैसे मुझे होश आया। जाने कब वो मेरे एकदम पास में आ कर बिस्तर के किनारे पर बैठ गई थी। मैंने जब उसे अपने इतने क़रीब से देखा तो मैंने महसूस किया जैसे मैं उसके सम्मोहन में फँसता जा रहा हूं। वो अपने सवाल के जवाब की उम्मीद में मुझे ही देखे जा रही और मैं उसे। जीवन में पहली बार मैंने अपने इतने क़रीब किसी लड़की को देखा था, वो भी ऐसी वैसी लड़की नहीं बल्कि दुनियां की सबसे हसीन लड़की को। मैं दावे के साथ कह सकता था कि दुनियां में उसके जैसी खूबसूरत लड़की कोई हो ही नहीं सकती थी।

चेहरा चांद की तरह रौशन था। बड़ी बड़ी आँखों में समुन्दर से भी कहीं ज़्यादा गहराई थी। नैन नक्श ऐसे थे जैसे किसी मूर्तिकार ने अपने हाथों से उस अद्भुत मूरत को रचा था। लम्बे सुराहीदार गले में लटका एक बड़ा सा लॉकेट जिसमें गाढ़े नीले रंग का नगीने जैसा पत्थर था। दूध की तरह सफ्फाक बदन पर ऐसे कपड़े थे मानो किसी बहुत ही बड़े साम्राज्य की राज कुमारी हो। बड़े गले वाली कमीज थोड़ा कसी हुई थी जिसके चलते उसके सीने की गोलाइयों के उभार साफ़ दिख रहे थे। अपने रेशमी बालों को वैसे तो उसने जूड़े की शक्ल दे कर बाँध रखा था लेकिन इसके बावजूद उसके बालों की कुछ लटाएं दोनों तरफ से नीचे झूल कर उसके खूबसूरत गालों को बारहा चूम रहीं थी। खूबसूरत होठों पर गहरे सुर्ख रंग की लिपस्टिक लगी हुई थी। मैं साँसें रोके जैसे उसकी सुंदरता में ही खो गया था।

"क्या हुआ? तुम कुछ बोलते क्यों नहीं?" मुझे अपनी तरफ अपलक देखता देख उसने कहा था____"मैं पूछ रही हूं कि अब कैसा महसूस कर रहे हो तुम?"

"आं..हां???" मैं उसकी शहद में मिली हुई आवाज़ को सुन कर हल्के से चौंका था, फिर जल्दी से खुद को सम्हाल कर बोला_____"म..मैं बहुत अच्छा महसूस कर रहा हूं लेकिन...।"

"लेकिन???" उसके चमकते हुए चेहरे पर सवालिया भाव उभरे।
"ल..लेकिन तुम कौन हो?" वस्तुस्थित का एहसास होते ही मैं धड़कते दिल से पूछ बैठा था_____"और..और मैं यहाँ कैसे आ गया? मैं तो...।"

"फ़िक्र मत करो।" उसने इस लहजे से कहा कि उसकी खनकती हुई आवाज़ मेरे दिल की गहराइयों में उतरती चली गई थी____"तुम यहाँ पर सुरक्षित हो। तुमने मुझे बचाने के चक्कर में खुद को ही चोट पहुंचा लिया था। मैं तो ख़्वाब में भी नहीं सोच सकती थी कि कोई इंसान इतना नेकदिल हो सकता है। मैं चाह कर भी तुम्हें उस हालत में देख कर खुद को रोक नहीं पाई थी जोकि मेरे लिए बहुत ही आश्चर्य की बात ही थी। ख़ैर, मैं तुम्हें उस जगह से यहाँ ले आई और तुम्हारे ज़ख्मों का इलाज़ किया।"

"तो क्या तुम्हीं वो लड़की थी जो अचानक से मेरे सामने भागती हुई आ गई थी?" मैंने हैरत से उसकी तरफ देखते हुए पूछा था जिस पर वो हल्के से मुस्कुराई। मैं उसकी मुस्कान को देख कर अपने दिल में बजने लगी घंटियों को महसूस करने लगा था। जबकि उसने कहा____"हां वो मैं ही थी लेकिन जिस तरह से तुमने मेरे लिए खुद को ख़तरे में डाला था उससे मैं बेहद प्रभावित हुई थी।"

"पर तुम सुबह सुबह उस वक़्त ऐसे भागती हुई जा कहां रही थी?" मैं उससे पूछ ज़रूर रहा था लेकिन सच तो ये था कि मेरी नज़रें उसके हसीन चेहरे से हट ही नहीं रही थी और यकीनन उसे भी इस बात का एहसास ज़रूर था।

"इस दुनियां में कोई न कोई बहुत कुछ ऐसा कर रहा होता है जो बाकी लोगों की नज़र में अटपटा होता है।" उसने जैसे दार्शनिकों वाले अंदाज़ में कहा था____"ख़ैर छोड़ो इस बात को। तुम्हें अभी आराम की ज़रूरत है। अगर किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो मुझे याद कर लेना।"

"तुमने अभी तक ये नहीं बताया कि तुम कौन हो?" मैंने धड़कते हुए दिल से उससे कहा था____"मैंने अपने जीवन में तुम्हारे जैसी खूबसूरत लड़की ख़्वाब में भी नहीं देखी। तुम्हें मैं एक ढीठ किस्म का इंसान ज़रूर लग सकता हूं लेकिन सच यही है कि तुम्हें देख कर मेरा दिल तुम्हारी तरफ किसी चुम्बक की तरह खिंचा जा रहा है। मेरे दिल में अजीब सी हलचल मच गई है। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि ये अचानक से मुझे क्या हो रहा है। मेरे अब तक के जीवन में मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ। भगवान के लिए मुझे बताओ कि कौन हो तुम और मेरे दिल में तुम्हारे प्रति प्रेम की तरंगें क्यों उठ रही हैं?"

"तुम सिर्फ़ इतना जान लो कि मेरा नाम मेघा है।" उसने अजीब भाव से कहा था____"जो किसी वजह से तुमसे आ मिली है। तुम्हारे लिए मेरी सलाह यही है कि मेरे प्रति अपने अंदर प्रेम जैसे जज़्बात मत उभरने दो क्योंकि इससे तुम्हें ही नुक्सान होगा।"

"ऐसा क्यों कह रही हो तुम?" उसकी बातें सुन कर मेरा दिल धाड़ धाड़ कर के बजने लगा था। एक अंजाना सा भय मेरे अंदर उभर आया था, जिसे बड़ी मुश्किल से सम्हाला था मैंने।

"क्योंकि किसी इंसान से प्रेम करना मेरी फितरत में नहीं है।" उसने सपाट लहजे में कहा था____"इस लिए तुम्हारे लिए बेहतर यही है कि मेरा ख़याल दिल से निकाल दो। तुमने क्योंकि मुझे बचाने के लिए अपनी जान जोख़िम में डाली थी इस लिए मैं अपनी फितरत के खिलाफ़ जा कर तुम्हारा इलाज़ कर के तुम्हें वापस तुम्हारे घर भेज देना चाहती हूं। उसके बाद हम दोनों एक दूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे।"

मुझे हैरान परेशान कर के मेघा नाम की वो लड़की मानो हवा के झोंके की तरह कमरे के दरवाज़े से बाहर निकल गई थी। उसके जाते ही ऐसा लगा जैसे मैं गहरी नींद से जागा था। कुछ देर तक तो मैं अपनी हालत को ही समझने की कोशिश करता रहा उसके बाद गहरी सांस ले कर मेघा और उसकी बातों के बारे में सोचने लगा।

अभी मैं दो साल पहले हुए उस हादसे के ख़यालों में ही गुम था कि तभी किसी वाहन के तेज़ हॉर्न से मैं हक़ीक़त की दुनियां में आ गया। मैंने नज़र उठा कर आने वाले वाहन की तरफ देखा और फिर एक तरफ को बढ़ चला।

कोहरे की धुंध में पता ही नहीं चल रहा था कि शाम ढल चुकी है या अभी भी शाम ढलने में कुछ समय बाकी है। मैं सड़क से बाएं तरफ एक ऐसे संकरे रास्ते की तरफ मुड़ गया जो जंगल की तरफ जाता था। दूसरी तरफ पहाड़ों की ऊँची ऊँची पर्वत श्रृंखलाएं थीं जोकि कोहरे की गहरी धुंध की वजह से दिख नहीं रहीं थी।

एक बार फिर से मैं उसी जंगल में दाखिल हो चुका था जिस जंगल में मुझे ये उम्मीद थी कि मेघा का कहीं अशियाना होगा या ये कहूं कि जहां पर मैं उसके साथ एक हप्ते रहा था। मैं अगर सामान्य हालत में होता तो यकीनन ये सोचता कि मेरे जैसा बेवकूफ़ इंसान शायद ही इस दुनियां में कोई होगा जो आज के युग में किसी लड़की के प्रेम में पागल हो कर इस तरह उसकी खोज में दर दर भटक रहा है।

क़रीब डेढ़ घंटे टार्च की रौशनी में चलने के बाद अचानक ही एक जगह मैं रुक गया। मेरे रुक जाने की वजह थी कुछ आवाज़ें जो मेरे दाएं तरफ से हल्की हल्की आ रहीं थी। मैंने गौर से सुनने की कोशिश की तो अगले ही पल मेरे थके हारे जिस्म में जैसे न‌ई ताक़त और न‌ई स्फूर्ति भर गई। मैं उन आवाज़ों को सुन कर एकदम खुशी से पागल सा होने लगा। मैं फ़ौरन ही दाएं तरफ तेज़ी से बढ़ता चला गया। जैसे जैसे मैं आगे बढ़ता जा रहा था वैसे वैसे वो आवाज़ें और भी साफ़ सुनाई देती जा रहीं थी। मैं दुगुनी रफ़्तार से चलते हुए जल्दी ही उस जगह पर पहुंच गया जहां से आवाज़ें आ रहीं थी।

कोहरे की गहरी धुंध में मैंने आवाज़ों की दिशा में टार्च की रौशनी डाली तो मुझे वो झरना दिखा जिसके पानी के गिरने की आवाज़ अक्सर मैं मेघा के उस कमरे में बेड पर लेटे हुए सुना करता था। इन दो सालों में पहली बार मुझे कोई ऐसी चीज़ खोजने पर मिली थी जो इस बात को साबित करती थी कि इस झरने के आस पास ही कहीं पर वो पुराना सा मकान था जिसके एक कमरे में मैं एक हप्ते रहा था। मेरा दिल इन दो सालों में पहली बार झरने को देख कर खुशी से झूमा था। मैं पहले भी कभी एक पल के लिए नाउम्मीद नहीं हुआ था और आज तो इस झरने के मिल जाने पर नाउम्मीद होने का सवाल ही नहीं था। एक मुद्दत से जो दिल बहुत उदास था वो इस झरने के मिल जाने से खुश हो गया था और साथ ही मेघा के दीदार के लिए बुरी तरह मचलने लगा था। जाने क्यों मेरे दिल के जज़्बात बड़े ज़ोरों से मचल उठे।

दिल को इक पल क़रार आना भी नहीं मुमकिन।
तेरे बग़ैर मेरे दोस्त, जी पाना भी नहीं मुमकिन।।

हर शब मैं तेरी जुस्तजू में भटका हूं कहां कहां,
मिल जाओ के दिल को बहलाना भी नहीं मुमकिन।।

दिल-ए-नादां पे गुज़री है क्या क्या तेरे बग़ैर,
हाले-दिल किसी को, बताना भी नहीं मुमकिन।।

तेरे ख़याल में गुम रहना ही मयस्सर है मुझे,
के तुझे एक पल भूल जाना भी नहीं मुमकिन।।

मैं तेरी याद में पतंगों सा जलता तो हूं मगर,
तेरी याद में फना हो जाना भी नहीं मुमकिन।।


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Update - 04
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पिछले दो साल से मैं मेघा को तलाश कर रहा था और उसको देखने के लिए तड़प रहा था। इन दो सालों से जहां दिल बहुत उदास और टूटा हुआ सा था वहीं इस झरने के मिल जाने से ऐसा लग रहा था जैसे मेरे मुरझाए हुए गुलशन में बहार ने आ कर जान डाल दी हो। झरना इस बात का सबूत था कि उसके आस पास ही कहीं पर वो पुराना सा मकान था जहां दो साल पहले मैं मेघा के साथ एक हप्ते रहा था। मेरे दिल में अब मेघा से मिलने की और उसे देखने की बेचैनी एकदम से बढ़ गई थी। जी चाह रहा था कि पलक झपकते ही मैं मेघा के पास पहुंच जाऊं और उससे लिपट कर दो सालों की जुदाई का दुःख दर्द भूल जाऊं।

मेरी नज़रें अभी भी उस झरने को घूर रहीं थी, जैसे उसी झरने में कहीं पर मुझे मेघा का अक्श दिख रहा हो जिसे मैं अपलक देखे जा रहा था। ऊंचाई से गिरते हुए पानी की आवाज़ इस वक़्त अजीब सी लग रही थी जो दिल में एक भय सा उत्पन्न कर रही थी। हालांकि कोहरे की धुंध छाई हुई थी इस लिए ऊंचाई से गिरता हुआ पानी मुझे साफ़ नहीं दिख रहा लेकिन एक धुंध जैसा ज़रूर दिख रहा था जो ऊपर से नीचे की तरफ जाता उजागर हो रहा था।

दिल में मेघा से मिलने की तड़प बढ़ चुकी थी और अब मुझसे रहा नहीं जा रहा था। मैं एक झटके से पलटा और दाएं हाथ में पकड़ी हुई टार्च के प्रकाश को पहले इधर उधर घुमाया उसके बाद एक तरफ को बढ़ चला। जिस्म में मौजूद थकान जाने कहां गायब हो गई थी। न अपनी हालत का होश था और ना ही अपने पेट के अंदर भूख की वजह से ऊपर नीचे उठ रहे गैस के गोलों का। मुझे बस इस बात की ख़ुशी महसूस हो रही थी कि झरना मिल गया है तो अब जल्द ही मुझे मेघा भी मिल जाएगी। मेघा से मिलने की ख़ुशी इतनी ज़्यादा थी कि मैं बिना रुके और बिना कुछ सोचे आगे बढ़ता ही जा रहा था। मन में तरह तरह के ख़याल बुनता जा रहा था कि जब मेघा मुझे मिलेगी तो मैं ऐसा करुंगा या वैसा करुंगा।

काफी देर तक चलने के बाद अचानक ही मुझे झटका सा लगा और मैं बुरी तरह चौंक गया। कारण मैं मेरे कानों में एक बार फिर से झरने में ऊपर से नीचे गिरते हुए पानी की आवाज़ सुनाई दे रही थी। मैंने टार्च के प्रकाश को बाएं तरफ घुमाया तो ये देख कर चौंक गया कि मैं उसी जगह खड़ा हूं जहां पर मैं पहले खड़ा था, यानि झरने के किनारे पर। मुझे समझ न आया कि ये क्या चक्कर है? मैं तो कुछ देर पहले इसी जगह से मेघा को खोजने ख़ुशी ख़ुशी गया था, जबकि मैं काफी देर तक चलने के बाद भी उसी झरने के पास आ गया था।

कुछ देर झरने के किनारे पर खड़ा मैं इस सबके बारे में सोचता रहा। मैं समझ गया कि शायद अंजाने में मैं घूम फिर कर वापस झरने के पास आ गया हूं। मेघा से मिलने की ख़ुशी ही इतनी थी कि मुझे बाकी किसी चीज़ का होश ही नहीं रह गया था। मेरे दिल को थोड़ी तकलीफ़ तो हुई लेकिन किसी तरह खुद को बहला कर मैंने फैसला किया कि इस बार मुझे पूरे होशो हवास में मेघा को खोजना है।

एक बार फिर से मैं मेघा और उसके उस पुराने से मकान की खोज में चल पड़ा। इस बार मैं पूरे होशो हवास में आगे बढ़ रहा था। मेरे हाथ में मौजूद टार्च का तेज़ प्रकाश कोहरे की धुंध को भेदता हुआ मुझे आगे बढ़ने में मदद कर रहा था। चारो तरफ घने पेड़ थे। कच्ची ज़मीन पर पेड़ों के सूखे पत्ते थे जो मेरे चलने से बड़ी अजीब सी आवाज़ें कर रहे थे। मेरी जगह कोई सामान्य मनुष्य होता तो वो भय के मारे पेशाब कर देता लेकिन मैं तो जैसे इन दो सालों में खुद ही एक भूत बन गया था जो अँधेरे में ऐसे भयावह जंगल में हर रात विचरण करता था। मुझे इन दो सालों में कभी भी ऐसी जगह पर इधर उधर भटकने में डर का आभास नहीं हुआ। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि मैं हर वक़्त सिर्फ मेघा के ख़यालों में ही रहता था। किसी और चीज़ का मुझे ख़याल ही नहीं रहता था। अगर मैं ये सोचता कि मैं रात के अँधेरे में एक ऐसे जंगल में भटक रहा हूं जहां पर किसी भी वक़्त मुझे कोई भी जीव या जानवर नुक्सान पहुंचा सकता है तो यकीनन इस ख़याल से मैं डरता और यहाँ रात के अँधेरे में आने के बारे में सोचता भी नहीं।

हड्डियों को भी कंपा देने वाली ठण्ड थी। कोहरे की धुंध के बीच ब्याप्त भयावह सन्नाटा जैसे मेरे लिए कोई मायने नहीं रखता था। मैं बिना रुके आगे बढ़ता ही चला जा रहा था। मुझे चलते हुए काफी देर हो चुकी थी। मैं कुछ दूर चलने के बाद रुक जाता था और टार्च के प्रकाश को इधर उधर घुमा कर ये भी देखता था कि मेघा के साथ मैं जिस मकान में रहा था वो कहीं दिख रहा है कि नहीं? कुछ देर और चलने के बाद अचानक से मैं ठिठक गया और साथ ही मैं आश्चर्यचकित भी रह गया। कारण एक बार फिर से मैं झरने के पास ही आ गया था।

मेरे लिए ये बेहद ही चौंकाने वाली बात थी कि मैं दूसरी बार एक ही जगह पर कैसे आ गया था? मैं अच्छी तरह जानता था कि मैं कोई ख़्वाब नहीं देख रहा था लेकिन ये जो कुछ भी हुआ था वो ऐसा था जैसे मैं किसी ख़्वाबों की दुनियां में पहुंच गया हूं। ऐसी हैरतअंगेज़ बात ख़्वाब में ही हो सकती थी लेकिन सबसे बड़ा सच यही था कि ये कोई ख़्वाब नहीं था बल्कि वास्तविकता थी। एक ऐसी वास्तविकता जिसने मुझे बुरी तरह उलझा कर रख दिया था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि आख़िर ऐसा कैसे हो सकता था? मैं हर बार घूम फिर कर उसी झरने के पास क्यों आ जाता था? क्या ये मेरे लिए किसी प्रकार का संकेत था या फिर किसी तरह की चेतावनी थी?

मुझे ना तो किसी प्रकार के ख़तरे का डर था और ना ही अपनी जान जाने की फ़िक्र थी। मैं बस हर हाल में मेघा को खोजना चाहता था। अपने अंदर चल रही उथल पुथल को मैंने किसी तरह शांत किया और पलट कर फिर से एक तरफ को बढ़ चला।

रात तो शायद कब की हो चुकी थी लेकिन घने जंगल के बीच अभी भी वैसा ही वातावरण था जैसे यहाँ आने से पहले था। आसमान में शायद चाँद मौजूद था जिसकी रौशनी कोहरे को भेदने की नाकाम कोशिश कर रही थी। धुंध में रौशनी का आभास हो रहा था और यही वजह थी कि रात हो जाने पर भी मुझे शाम जैसा ही वातावरण प्रतीत हो रहा था। हालांकि संभव था कि इसकी कोई दूसरी वजह भी रही हो।

इस बार मैं झरने के किनारे किनारे ही चल रहा था। हालांकि झरने के किनारे पर कहीं मेघा के उस पुराने मकान का मौजूद होना ज़रूरी तो नहीं था किन्तु मैं देखना चाहता था कि इस बार भी मैं उसी जगह पर पहुंच जाता हूं या नहीं? काफी देर तक मैं किनारे किनारे ही चलता रहा। मेरे एक तरफ घना जंगल था तो दूसरी तरफ नीचे की तरफ दिख रही एक चौड़ी नदी जिसमें झरने का पानी अपने बहने का आभास करा रहा था। नदी के ऊपर हवा में कोहरे की धुंध थी जिसकी वजह से मुझे नदी में बहता पानी दिख नहीं रहा था। किनारे से चलते हुए मैं इतना ज़रूर अनुमान लगा रहा था कि नदी यहाँ की ज़मीन से काफी गहरी है। यानि मैं उंचाई पर चल रहा था। टार्च के प्रकाश में मैं आगे बढ़ता ही जा रहा था। मुझे महसूस हुआ कि इस बार मुझे चलते हुए काफी समय हो गया था। मैंने नदी की तरफ टार्च के प्रकाश को डाला तो सहसा मैं चौंक गया।

मेरे जिस तरफ नदी थी वहां अब नदी नहीं थी बल्कि उस जगह पर भी अब घने पेड़ पौधे और ज़मीन दिख रही थी। मैं सोच में पड़ गया कि क्या नदी पलक झपकते ही गायब हो गई या वो किसी दूसरी तरफ को मुड़ गई है? यकीनन वो किसी दूसरी तरफ ही मुड़ गई होगी, भला इतनी बड़ी नदी पलक झपकते ही तो गायब नहीं हो जाएगी। मैं कुछ और दूर आया तो देखा मेरे सामने पक्की सड़़क थी। मैं ये देख कर चौंका कि ये वही सड़़क है जहां से मैं हर रोज़ जंगल की तरफ मुड़ता था। यानि अंजाने में ही मैं सड़क पर आ गया था। दो सालों में ऐसा पहली बार हुआ था कि मैं जंगल में इतने समय तक भटकने के बाद अपने आप ही सड़क पर आ गया था।

सड़क का एक छोर मुझे मेरे घर तक ले जाने के लिए मानो मुझे ज़ोर दे रहा था तो दूसरी तरफ का छोर मुझे दूसरे शहर की तरफ जाने का एहसास करा रहा था। सड़क को देख कर मेरा दिलो दिमाग़ भारी पीड़ा से भर गया। एक बार फिर से नाकामी ने अपना चेहरा दिखा कर मुझे हताश और दुखी कर दिया था। कहां इसके पहले उस झरने के मिल जाने से मैं ये सोच कर ख़ुशी से फूला नहीं समा रहा था कि अब मुझे मेघा मिल जाएगी और कहां अब मैं एक बार फिर से उसको खोज न पाने की वजह से दुखी हो गया था। मेरा जी चाहा कि उसी सड़क पर अपने सिर को पटक पटक कर अपनी जान दे दूं।

जंगल की तरफ मुखातिब हो कर और मन ही मन मेघा को याद करते हुए मैं उसको अपने दिल की हालत बताने के लिए जैसे तड़़प उठा। मेरा दिल चीख चीख कर उससे कहना चाहता था कि वो उसके लिए कितना तड़प रहा है। उसको एक बार देख लेने के लिए बुरी तरह बेचैन है। ज़हन में न जाने कितने ही ख़याल उभरने लगे जिनके एहसास से मेरी आँखें छलक पड़ीं।

यूं किया है तुमने ग़म के हवाले मुझको।
कोई ऐसा भी नहीं जो सम्हाले मुझको।।

देख कर हाले-दिल अपना यूं लगता है,
हिज़्रे-ग़म किसी रोज़ मार न डाले मुझको।।

मरीज़े-दिल की बस एक ही ख़्वाहिश है,
चैन आ जाए अगर गले लगा ले मुझको।।

मैं तेरी दीद की हसरत लिए फिरता हूं,
मुझ पे रहम कर अपना बना ले मुझको।।

मेरी ज़िन्दगी में बहार आ जाए शायद,
अपने जूड़े में गुल सा सजा ले मुझको।।

ऐसा न हो किसी रोज़ डूब के मर जाऊं,
अपनी याद के दरिया से बचा ले मुझको।।

घर आते आते रात काफी गुज़र गई थी। मेरा दिल बुरी तरह तड़प रहा था। कमरे में जाते ही बिस्तर पर औंधे मुँह गिर गया। फ़िज़ा में शमशान की मानिन्द सन्नाटा ब्याप्त था। कमरे में हल्की रौशनी थी क्योंकि बिजली का एक छोटा सा बल्ब अपनी क्षमता के अनुसार टिमटिमा रहा था। कुछ देर तक यूं ही बिस्तर में चेहरा छुपाए अपने अंदर मचल रहे जज़्बातों को रोकने की कोशिश करते हुए पड़ा रहा। उसके बाद उठा और लकड़ी के स्टूल पर एक प्लेट में रखी भुजिया को उठा कर उसे ज़बरदस्ती खाने का प्रयास करने लगा। भुजिया सुबह की थी और ठण्ड में और भी ज़्यादा ठण्ड हो गई थी। इस वक़्त ढाबे से कुछ भी मिलना मुश्किल था क्योंकि रात काफी हो जाने की वजह से ढाबा पहले ही बंद हो चुका था। ख़ैर बड़ी मुश्किल से मैंने प्लेट में बची हुई भुजिया को हलक के नीचे उतारा और फिर पानी पी कर वापस बिस्तर में पसर गया।

"कहां चली गई थी तुम?" क़रीब तीन घंटे बाद जब मेघा वापस आई थी तो मैंने सबसे पहले उससे यही कहा था_____"तुम्हें अंदाज़ा भी है कि इस डरावनी जगह पर अकेले रहने से मेरी क्या हालत हो गई थी?"

"तुम्हारे लिए कुछ खाने का इंतजाम करने गई थी।" मेघा के हाथ में एक प्लास्टिक की थैली थी जिसे उसने एक पुराने से स्टूल पर रखते हुए कहा था____"मुझे पता है कि तुम भूखे होगे। हालांकि तुमने मुझसे इसके बारे में कहा नहीं लेकिन ये मेरा फ़र्ज़ है कि तुम्हारा ख़याल रखूं। मुझे नहीं पता कि तुम्हें खाने में क्या खाना पसंद है लेकिन फिर भी उम्मीद करती हूं कि मेरा लाया हुआ खाना तुम्हे पसंद आएगा।"

मेघा ये सब कहते हुए प्लास्टिक की उस थैली से निकाल कर खाने को एक बड़ी सी प्लेट में रख दिया था। मैं खाने की तरफ नहीं बल्कि उसके चेहरे की तरफ ही अपलक देखे जा रहा था। दूध में हल्का केसर मिले रंग जैसा उसका चेहरा गोरा था। उसके सिर में पहले की ही भाँति जूड़ा बना हुआ था और चेहरे के दोनों तरफ उसके बालों की दो लटें झूलते हुए उसके गालों को बार बार चूम ले रहीं थी। जिस्म पर वही रेशमी कपड़े थे जो उसने तीन घंटे पहले पहने थे। उसके कपड़े बिलकुल वैसे ही थे जैसे वो किसी बड़े साम्राज्य की राज कुमारी हो। झुके होने की वजह से उसकी कमीज का गला थोड़ा ज़्यादा फ़ैल गया था जिससे उसके सीने के बड़े बड़े उभार और उनके बीच की दरार साफ़ दिख रही थी। उसी दरार के सामने उसके गले में पड़ा हुआ वो लॉकेट झूल रहा था जिसमें गाढ़े नीले रंग का पत्थर जैसा नगीना लगा हुआ था।

"क्या हुआ?" उसकी मधुर आवाज़ से जैसे मेरा सम्मोहन टूटा तो मैंने चौंक कर उसकी तरफ देखा। जबकि उसने सीधा खड़े हो कर आगे कहा____"तुमने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया?"

"कि..किस बात का??" मैं एकदम से बौखला गया था। उधर उसने मेरे सवाल पर कुछ पलों तक मुझे देखा फिर स्टूल से उस प्लेट को उठा कर मेरे पास आते हुए कहा____"यही कि जो खाना मैं तुम्हारे लिए ले कर आई हूं वो तुम्हें ज़रूर पसंद आएगा।"

"हां बिल्कुल।" मैंने झट से कहा था____"भला ऐसा कैसे हो सकता है कि तुम मेरे लिए कुछ लाओ और वो मुझे पसंद न आए?"
"अच्छा ऐसी बात है क्या?" उसने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा था____"फिर तो अच्छी बात है। मैं अपनी समझ में तुम्हारे लिए बेहतर खाना ही ले कर आई हूं। अब जबकि तुम खुद ही कह रहे हो कि मेरा लाया हुआ सब कुछ तुम्हें पसंद आएगा तो मुझे अब इसके लिए फ़िक्र करने की ज़रूरत ही नहीं है।"

मेघा ने मेरी तरफ प्लेट बढ़ाया तो मैंने उसे अपने एक हाथ से थाम लिया। मैंने पहली बार प्लेट में रखे हुए खाने की तरफ निगाह डाली और सच तो ये था कि मैंने ऐसा खाना पहली बार ही देखा था। हालांकि मैं जिस हैसियत वाला इंसान था उसमें मैंने वास्तव में ज़्यादा ब्यंजन के प्रकार नहीं देखे थे लेकिन इतना ज़रूर समझने की कोशिश कर सकता था कि ये ब्यंजन खाने योग्य है कि नहीं। प्लेट में जो खाना रखा हुआ था वो मेरे लिए बिलकुल ही अनभिज्ञ था लेकिन उसका रंग रूप बड़ा ही ख़ास नज़र आ रहा था।

"क्या देख रहे हो?" मुझे प्लेट की तरफ अपलक घूरता देख मेघा ने पूछा था____"ख़ाना पसंद नहीं आया क्या?"
"ऐसा तो मैंने नहीं कहा।" मैंने सिर उठा कर उसकी तरफ देखा था____"और इसे खाने के बाद भी नहीं कहूंगा।"

"ऐसा क्यों?" मेघा ने हौले से पलकें उठा कर मेरी तरफ देखा था।
"क्योंकि इस खाने को तुम ले कर आई हो।" मैंने बड़ी मोहब्बत से उसकी तरफ देखते हुए कहा था____"मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हारी लाई हुई हर चीज़ बेहद ख़ास ही होगी और ऐसी भी होगी जो मुझे बेहद पसंद आएगी।"

"ये तुम नहीं बल्कि मेरे प्रति तुम्हारा प्रेम बोल रहा है ध्रुव।" मेघा ने कहा था____"मैंने तुम्हें उस वक़्त भी समझाते हुए कहा था कि मेरे प्रति ऐसे ख़याल अपने ज़हन से निकाल दो। तुम्हें मेरी असलियत पता नहीं है। अगर मेरी असलियत जान जाओगे तो तुम्हारा ये प्रेम का भूत एक पल में तुम्हारे अंदर से भाग जाएगा।"

"सच्चे प्रेम के भूत की यही तो ख़ासियत होती है मेघा कि वो जब एक बार किसी के सिर पर चढ़ जाता है तो मरते दम तक नहीं उतरता।" मैंने बेझिझक और बिना किसी डर के कहा था____"तुम्हारे जाने के बाद मैंने ख़ुद इस बारे में बहुत सोचा था और यकीन मानो मैं खुद चकित था कि किसी को एक बार देख लेने से उसके प्रति कैसे इस तरह के जज़्बात पैदा हो सकते हैं जो मिटाना चाह कर भी मिटाए ही न जाएं? सुना तो था कि जब भी किसी को किसी से प्रेम होता है तो वो पहली ही नज़र में हो जाता है लेकिन जब खुद पर ऐसा हुआ तब यकीन करने में देर नहीं लगी मुझे। मैंने खुद को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन अपने अंदर तुम्हारे प्रति उभरने वाले प्रेम के मीठे जज़्बातों को चाह की मिटा न सका। अब तो ऐसा आलम है कि मैं खुद भी ये प्रयास नहीं करना चाहता कि मैं तुम्हारे प्रति अपने अंदर उभर रहे जज़्बातों का गला घोटूं।"

"बड़े अजीब इंसान हो तुम।" मेघा ने चकित भाव से मेरी तरफ देखते हुए कहा था_____"क्या हर इंसान तुम्हारी तरह ही ढीठ और ज़िद्दी होता है?"

"मैं किसी और के बारे में कुछ नहीं कह सकता।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा था____"लेकिन इतना ज़रूर कहूंगा कि इस हालत में और सामान्य हालत में काफी फ़र्क होता है। इंसान को जब तक किसी से प्रेम नहीं होता तब तक उसका नज़रिया अलग होता है और जब उसे किसी से प्रेम हो जाता है तो उसका नज़रिया अपने आप ही बदल जाता है।"

"ख़ैर मुझे इससे क्या लेना देना।" मेघा ने जैसे विषय बदलने की कोशिश की थी____"मैं बस इतना चाहती हूं कि तुम जल्द से जल्द पूरी तरह ठीक हो जाओ, ताकि मैं तुम्हें सही सलामत तुम्हारे घर भेज दूं।"

"ऐसा क्यों चाहती हो तुम?" मैंने अचानक से बढ़ चली अपनी धड़कनों को नियंत्रित करते हुए कहा____"क्या तुम्हें मेरा यहाँ पर रहना अच्छा नहीं लग रहा या फिर मैं तुम्हारे लिए बोझ सा लग रहा हूं?"

"ऐसी कोई बात नहीं है।" मेघा ने सपाट भाव से कहा था____"सच तो ये है कि मैं खुद इस बात से हैरान हूं कि मैं किसी इंसान के लिए इतना कुछ क्यों कर रही हूं? मेरी फितरत में किसी इंसान के लिए ये सब करना है ही नहीं। माना कि तुमने मुझे बचाने के लिए खुद को ज़ख़्मी किया था लेकिन मेरी नज़र में ये कोई ऐसी बात नहीं थी जिसके लिए मुझे तुम्हें यहाँ ला कर तुम्हारा इलाज़ करना चाहिए था।"

"फिर भी तुमने ऐसा किया न?" मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा था____"मैं नहीं जानता कि तुम्हारी फितरत कैसी है लेकिन जो कुछ तुमने किया है या कर रही हो वो इस बात का सबूत है कि तुम्हारे अंदर भी इंसानियत मौजूद है और तुम किसी ऐसे इंसान को उसके हाल पर छोड़ कर नहीं जाना चाहती जो तुम्हारी ही वजह से ज़ख़्मी हो गया हो।"

"तुम मेरे बारे में कुछ नहीं जानते ध्रुव।" मेघा ने थोड़ा शख़्त भाव से कहा था____"वरना मेरे बारे में ऐसी बातें सोचते भी नहीं। ख़ैर मैं तुमसे कोई बहस नहीं करना चाहती। फिलहाल मुझे यहाँ से जाना होगा और हाँ, यहाँ से कहीं बाहर जाने का सोचना भी मत। अगर तुम यहाँ से बाहर गए और तुम्हारे साथ कुछ उल्टा सीधा हो गया तो उसके जिम्मेदार तुम ख़ुद होगे।"

"ऐसा क्यों लगता है तुम्हें कि मैं यहाँ से बाहर जाने का सोचूंगा भी?" मैंने एक बार फिर से मेघा की तरफ मोहब्बत से देखते हुए कहा था____"सच तो ये है कि अब मैं मरते दम तक इस जगह पर रहना चाहता हूं, ताकि मैं दुनियां की उस हसीन लड़की को अपनी आँखों से देख सकूं जिससे मेरा दिल प्रेम करता है।"

मेरी बातें सुन कर मेघा बड़े ही शख़्त भाव से मेरी तरफ कुछ देर तक देखती रही उसके बाद बिना कुछ कहे दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल गई। मैं बंद हो चुके दरवाज़े को घूरता रह गया था। फिर जैसे एकदम से मेरी तन्द्रा टूटी तो मैंने एक बार चारो तरफ नज़रें घुमाई और फिर हाथ में पकड़ी खाने की प्लेट को देखने लगा। खाना हल्का गर्म था और उसकी खुशबू भी काफी अच्छी थी। मैंने बड़ी ख़ुशी से उसे खाना शुरू कर दिया।

कहीं दूर घंटाघर में मौजूद बड़े से घंटे की आवाज़ आई तो मैं मेघा के ख़यालों से बाहर आया। मैंने महसूस किया कि मुझे ठण्ड लग रही है इस लिए अपने नीचे पड़ी रजाई को मैंने उठाया और खुद को उसके अंदर क़ैद कर लिया। रात बड़ी ही मुश्किल से आँख लगी थी लेकिन सुबह होने में देर भी नहीं लगी। एक नई सुबह जाने किस तरह मेरा स्वागत करने का मुझे आभास करा रही थी?

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