Adultery किस्सा कामवती का

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अपडेट -86

आज सुबह कि एक नयी किरण निकली थी.
रंगा बिल्ला का आतंक हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो चूका था, काम्या लड़खड़ाती बहादुर का सहारा लिए बढ़ी जा रही थी.
उसकी छाती गर्व से फूल के दुंगनी हो चली थी.
आखिर उसका इन्तेकाम पूरा हुआ " धन्यवाद बहादुर...... मुझे माफ़ करना मैंने तुम्हे गाली दि,हिजड़ा कहाँ "
काम्या का गला रुंध आया था,उसकी आंखे भीगी हुई थी
"ये....ये.....क्या कह रही है मैडम आप " आज पहली बार बहादुर ने काम्या का ये रूप देखा था.
"तुम ना आते तो उस गुफा मे मेरी नंगी लाश पड़ी होती " काम्या कि आँखों ने आँसू त्याग दिये
उसका बदन बहादुर के जिस्म मे भींचत चला गया.
"मममममममममममम.....मममममम....मैडम " बहादुर इस से आगे कुछ बोल ना सका पहली बार किसी स्त्री का स्पर्श उसे मिला था,उसकी सांसे थम गई, जिस्म ठंडा पड़ने लगा.
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काम्या जब अलग हुई,उसकी आँखों मे बेसुमार प्यार था बहादुर के लिए "अब चलोगे भी या ऐसे भी मूर्ति बने रहागे हाहाहाःहाहा " काम्या खिलखिला उठी उसे पता था उसके आलिंगन का क्या असर होता है मर्दो पे.

गांव विष रूप
डॉ.असलम अस्तबल मे घोड़ा लगा के बाहर निकला ही था कि.
"असलम कहाँ थे तुम रात भर " असलम बुरी तरह से चौका वो आवाज़ सुन के.
"ठ...ठ....ठाकुर साहब आप यहाँ " असलम का चेहरा हैरानी और गुस्से से लाल हो चला.
"तो कहाँ होना चाहिए था ठाकुर साहेब को " पीछे से बिल्लू कि आवाज़ ने उसे चौका दिया
बिल्लू के चेहरे पे शक था.
"कल रात पुलिस ने छुड़ा लिया था,लेकिन अभी भी कामवती का कोई पता नहीं लगा है " ज़ालिम सिंह ने कहाँ
"पता लग जायेगा.....मै कल पूरी रात आपको और कामवती को ही खोजता रहा " असलम ने जैसे तैसे खुद को जज्ब कर रखा था..
"मै आता हूँ ठाकुर साहब अभी " असलम तुरंत ही हवेली के अंदर चला गया

"ठाकुर साहेब आपको नहीं लगता डॉ.असलम के हाव भाव पहले जैसे नहीं रहे " बिल्लू ने शक जाहिर किया.
" वो थक गया होगा, इसलिए वो हमारा परम मित्र है, जाओ खाने पानी का पूछ लो उन्हें " ठाकुर ज़ालिम सिंह भी अपने कमरे कि ओर बढ़ चला.
बिल्लू डॉ.असलम के पीछे चल दिया " ये.....ये क्या असलम ठाकुर जलन सिंह के बंद कमरे कि तरफ क्यों जा रहे है "
असलम बेहिचक दरवाजा खोल के अंदर दाखिल हो गया पीछे पीछे बिल्लू ने भी दरवाजे कि ओट ले ली.
"हाहाहाःहाहा.....क्या किस्मत है जलन सिंह तेरी, राह चलते ही नागमणि मिल गई वाह वाह....असलम ने अपने पाजामे से एक पोटली निकाली.
बिल्लू बड़े ही अचराज से असलम कि हरकत देखे जा रहा था, असलम के हाथ मे एक पोटली थी लगता था जैसे किसी सांप कि चमड़ी कि बनी हो.
" अब इस नागमणि के बदले सर्पटा मेरा गुलाम होगा हाहाहाःहाहा.....सारे दुश्मन एक साथ ख़त्म " असलम ठहाके लगा के हॅस पड़ा.
"तड़...तड़....तड़.....वाह डॉ.असलम वाह क्या खूब दोस्ती निभा रहे हो " पीछे से बिल्लू ताली पिटता हुआ आगे को बढ़ा.
असलम तनिक भी विचलित नहीं हुआ " अच्छा हुआ तू खुद आ गया,मुझे पता है तू मेरे पे शक करता है " डॉ.असलम कि आवाज़ मे एक भरिपन आ गया था,आवाज़ भर्रा रही थी.
"पीछे पलटो वरना खोपड़ी तोड़ दूंगा " बिल्लू ने हाथ मे थमा डंडा उठाया ही था कि.
बिल्लू के छक्के छूट गए,हाथ थर थर कंपने लगे, लाठी छूट के जमीन पे जा गिरी..
"ठ...ठ....ठा...ठाकुर ज्ज्ज्ज्बजज....जलन सिंह " बिल्लू लगभग मरी सी आवाज़ मे बोला.
असलम के चेहरा और मोहरा बदल गया था ,बढ़ी बढ़ी मुछे शान से लहरा रही थी.
अपनी अदामकाद तस्वीर के सामने ही खड़ा था असलम उर्फ़ जलन सिंह.
"आआआआप..." बिल्लू ने जैसे मौत देख ली हो.
"मै जानता हूँ तुम क्या सोच रहे हो,मै शुरू से इसी हवेली मे था, कायदे से तो मुझे अपने पोते का शरीर ग्रहण करना चाहिए था लेकिन वो कमजोर नपुंसक निकला उसके बस का नहीं मेरे काम को अंजाम देना"
बिल्लू मन्त्रमुग्ध सुनाता जा रहा था.
" तुम्हारी वफादारी इस हवेली के प्रति है, और अब इस हवेली का असली मालिक यानि कि मै आ चूका हूँ तो ठाकुर ज़ालिम सिंह का क्या काम?
समझ रहा है ना तू बिल्लू?
बिल्लू :- अअअअअ....हाँ....हाँ.....मालिक.
"वैसे भी एक म्यान मे दो तलवार कैसे रह सकती है, अब कामवती तो किसी एक कि ही हुई ना हहहहहहह..हाहाहाहा....एक भयानक सर्द आठठहस गूंज उठा

बिल्लू कि रूह फना होते होते बची.
"चल जा अब आज रात ही ठाकुर कि बली लेंगे हम " बिल्लू वहाँ से निकल गया
लेकिन एक शख्स और था जिसने इनकी बाते सुन ली थी.
"मेरा शक सही निकला,असलम के पास ही है नागमणि, अब नागमणि मुझसे दूर नहीं हो सकती " मंगूस चुपचाप वहाँ से खिसक लिया सभी को रात का इंतज़ार था.
उसके दिमाग़ मे युक्ति गूंज रही थी उसे शयाद रास्ता साफ नजर आने लगा था.


वही दूसरी और एक औरत सांप लपेटी चली जा रही थी. शाम हो चली थी.
"कब तक पहुंचेंगे नागेंद्र हम लोग "
"बस आ ही गया घुड़पुर कामवती "

अंदर रानी रूपवती क महल मे "क्या हुआ वीरा....क्या हुआ? तुम इतने बैचैन क्यों हो रहे हो? क्या बात है.
"हिननननननन......हीनननन......ठा..ठा....ठकुराइन वो आ रही है मुझे अभास हो रहा है उसका.
कौन....कौन....आ रही है वीरा.
रूपवती ने वीरा क बदन को सहला रही थी जो कि अभी अपने घुड़रूप मे ही था,नियति यही थी कि वीरा सिर्फ रात मे ही मानव शरीर धारण कर सकता था.
"वो....भी....रहा है साथ मे मेरा सबसे बड़ा दुश्मन " वीरा क चेहरे क भाव बदलने लगे थे.
गुस्सा आँखों मे उतर आया था.
"ककककक.....कौन...आ रहा है वीरा कुछ तो बताओ " रूपवती वीरा का रोन्द्र रूप देख कांप उठी थी.
कि तभी वीरा....हिनहिनाता....हवेली से बाहर कि और भागा...
"वही...रुक जा....रुक जा वही नागेंद्र तेरी हिम्मत कैसे हुई यहाँ तक आने कि "
नागेंद्र जो कि कामवती क साथ हवेली कि दहलीज पे पहुंच ही गया था.
"आज तेरी मौत मेरे हाथ लिखी है वीरा समझ इसलिए आया......फुसससस.....फुसससस.....
नागेंद्र ने भी भयानक रूप अख्तयार कर लिया, और कामवती क शरीर को छोड़ वीरा पे झापट पड़ा.

"नहीं........चुप......दोनों...चुप.....रुक.जाओ...." कामवती जोर से चिल्लाई.
रूपवती भी तब तक बाहर आ चुकी थी,सामने का नजारा उसके लिए बिल्कुल नया था क्या ही रहा है कुछ समझ नहीं आ रहा था.
साँप को लड़ता देख इतना तो समझ आ गया था कि ये नागेंद्र ही है.
"तूने ही मारा था ना कामवती को? मेरा प्यार छिना मुझसे " वीरा ने अपनी टांगो का भयानक प्रहार नागेंद्र क फन पे कर दिया

वही नागेंद्र कि कुंडली वीरा के शरीर पे कसती चली गई," मारा तूने और इलज़ाम मुझपे, कामवती को मार तूने मुझे इतने बरसो तक दर दर कि ठोंकर खाने क लिए छोड़ दिया,मेरा सब कुछ छीन लिया "
"रुक जाओ.....रुक जाओ.....
लेकीन रुकने को कोई तैयार ही नहीं था.
"रुक जाओ.....मुझे तुम दोनों मे से किसी ने नहीं मारा था,मै तुम दोनों से ही प्यार करती हूँ "
कामवती एकाएक चिल्ला उठी.....उसकी आंखे नम हो गई,गला रूँघ आया.
जमीन पे बैठी फफ़क़ फफ़क़ क रोने लगी.
एक दम से माहौल मे सन्नाटा छा गया, साय....साय.....करती हवा वहाँ खड़े हर जिस्म को हिला रही थी

नागेंद्र और वीरा मुँह बाये खड़े थे,दोनों कि पकड़ ढीली हो गई थी.
रूपवती अभी भी सब समँझने कि कोशिश कर रही थी.
"कककम्म.....कककक.....क्या?" वीरा और नागेंद्र क मुँह से एक साथ ये शब्द निकल पड़े.
"हाँ....हाँ.....ये सच है वीरा और नागेंद्र मै एक ही समय मे तुम दोनों से समानरूप से प्यार करती हूँ, शनिफ्फफ्फ्फ़....शनिफ्फ्फ्फफ्फ्फ़....." कामवती आज हज़ारो साल बाद अपने दोनों प्यार को सामने पा क खुद को संभाल नहीं पा रही थी,सांस खिंच खिंच के उसका सुबकना चालू ही था.
"उठो बहन.....अंदर चलो कभी कभी कुछ गलत फहमीया हो जाती है " एक जोड़ी मजबूत हाथो मे कामवती को कंधे से पकड़ के उठा दिया.
कामवती के बदन मे एक तारावट सी दौड़ गई जैसे किसी अपने ने छुवा हो,कितनी ममता थी इस छुवन मे जो वो काफ़ी सालो बाद महसूस कर रही थी.
"सुबुक.....सुबुक......आ...अअअअअ....आप तो ठकुराइन है ना रूपवती ठकुराइन " कामवती खड़ी हो चली
"हाँ मै ही वो अभागी हूँ जो अपने रूप और बदन को ले कर हमेशा तिरस्कार का पात्र बनी रही,आओ छोटी बहन अंदर चलो "
दोनों हवेली कि दहलीज पार कर चुके थे,पीछे किसी उल्लू कि तरह नागेंद्र और वीरा उन दो नयी नयी बहनो को देखते रह गए..औरत को समझना उनके बस कि बात नहीं थी.
कल तक रूपवती कामवती से नफरत करती थी लेकीन आज उसके सामने आते ही मन का सारा मेल धूल गया.

रात हो चली थी....बाहर साय साय करती ठंडी हवा अपने प्रचंड रूप मे हवेली कि दीवारों को हिला रही थी.
वीरा सूरज ढलते ही अपने इंसानी रूप मे आ चूका था, जब तक दोनों अंदर पहुंचते उनके सामने दो लड़किया किसी बिछड़ी हुई बहनो कि तरह गले लग रही थी.
"मुझे माफ़ करना कामवती नागेंद्र कि नागमणि मैंने ही अपने स्वार्थ के लिए अपने भाई कुंवर विचित्रसिंह को भेजा था,मुझे नहीं पता था इसका अंजाम क्या होगा?" रूपवती हाथ जोड़े खड़ी थी.
"ऐसा ना कहे दीदी आप मन से सुन्दर है आप कि जगह मै भी होती तो यहीं करती " कामवती एक बार फिर रूपवती से गले जा लगी.
"लेकीन नागमणि कहाँ है चोर मांगूस आया क्यों नहीं अभी तक?" नागेंद्र कि आवाज़ से दोनों दरवाजे कि और पलटे
"यहीं तो चिंता का विषय है मेरा भाई कभी नाकामयाब नहीं होता " रूपवती कि चिंता जायज थी
मांगूस कभी नाकामयाब नहीं हुआ.
परन्तु आज मौका अलग था दस्तूर अलग था....

गांव विषरूप मे ठाकुर कि हवेली मे
असलम उर्फ़ ठाकुर जलन सिंह अपने भयानक रूप मे विधमान था.
हवन कुंड के सामने ठाकुर ज़ालिम सिंह रस्सीयो से लिपटा हुआ जान कि भीख मांग रहा था " असलम...असलम....होश मे आओ क्या हो गया है तुम्हे? तुम मेरर बचपन के दोस्त हो जिगरी हो "
"चुप हरामी तेरे जैसे कमजोर लोग ना तो दोस्त होने लायक है ना पोता होने के,मुझे शर्म आती है कि मेरा खून इस तरह ख़राब हो गया नपुंसक निकला तू " असलम एक बार फिर दहाड़ा.
"तेरी बाली ही मुझे मेरा सम्पूर्ण रूप प्रदान करेगी बेटे, वैसे भू कामवती के जिस्म पे सिर्फ मेरा हक़ है सिर्फ मेरा हाहाहाहाहाबा......एक भयानक अट्ठाहास हवेली मे गूंज उठा.
ये हसीं इस कदर सर्द और भयानक थी कि अँधेरे मे निकलती एक परछाई के पैर तक लड़खड़ा गए.
एक आवाज़ ने वहाँ मौजूद सभी का ध्यान भंग किया
असलम :- कौन है वहाँ.....? पकड़ो उसे बिल्लू कालू रामु
तीनो ही अपने मालिक का आदेश पा कर उस भागती परछाई पर टूट पड़े.
"मालिक लगता है कोई चोर है.....?" बिल्लू ने उस आदमी को सामने प्रस्तुत किया.
असलम :- कौन हो तुम.....और ये....ये.....ये हाथ मे क्या है
असलन को उस शख्स के हाथ मे कुछ चमकता सा दिखाई दिया.
असलम :- इधर दें इसे, शायद तू इसके बारे मे जनता है तभी तू सिर्फ इसे ही लेने आया,वरना तो अंदर काफ़ी सोना चांदी था तूने सिर्फ ये चमकती चीज ही क्यों उठाई?
"ये नागमणि है और ये तेरा और सर्पटा कि मौत का सामान है, ये इसके मालिक के पास ही जाएगी, चोर मांगूस कभी असफल नहीं होता " मंगूस के हौसले अभी भी बरकरार थे.
असलम :- ओह तो तू ही है वो कुख्यात चोर मांगूस...तुझे तो बहुत जानकारी लगती है इस नागमणि के बारे मे, छीन तो इस से ये मणि
नागमणि एक बार फिर से असलम के हाथो मे थी.
एक डर....और खौफ साफ साफ मंगूस के चेहरे पे दिख रहा था,आज पहली बार वो असफल महसूस करने लगा था.
"हाहाहाहाहा.....आया बड़ा महान चोर जो कभी विफल नहीं हुआ.
"मालिक क्या करे इसका " बिल्लू ने बीच मे टोकते हुए कहाँ
असलम :- करना क्या है ये खतरा है हमारे लिए इसकी मौत तो निश्चित है लेकीन थोड़े समय बाद.
असलम उर्फ़ ठाकुर जलनसिंह अपने हवन को पूर्ण करने मे लग गया,ठाकुर ज़ालिम और चोर मांगूस अपनी हार पे पछता रहे थे.
कि तभी.....खड़क.....खट.....से ठाकुर ज़ालिम सिंह कि गर्दन पे एक जबरजस्त वार हुआ उसका सर हवन कुंड मे जा गिरा....
ऐसा भयानक अकस्मात नजारा देख मुर्दो के कलेजे काँप जाते यहा तो फिर भी जिन्दा इंसान थे.
मांगूस का दिल पसिज गया,मौत उसकी आँखों के सामने नाचने लगी,उसका भी यहीं अंजाम निश्चित था...
कि तभी एक जलती हुई सी चिंगारी निकाल असलम के शरीर मे समाने लगी.
"आआहहहहहह.....हुर्रर्रर्रर्रर्रर्र......हहहरररर......आअह्ह्ह.....इतने सालो बाद सम्पूर्ण जिस्म प्राप्त हुआ सम्पूर्ण शक्ति महसूस हुई.
अब
वहाँ असलन का कोई नामोनिशान नहीं था,एक लम्बा चौड़ाबड़ी बड़ी मुछ वाला ठाकुर जलन सिंह खड़ा था.
अपने सम्पूर्ण स्वरुप और ताकत के साथ "हाहाहाहाहा......अब कामवती को कोई नहीं छीन सकता मुझसे "
बिल्लू रामु कालू...ज़ालिम सिंह कि लाश को ले जा के नदी किनारे दफना दो साथ ही इस चोर उचक्के को भी ले जाओ साले को जिन्दा दफना देना.
हाहाहाहाहाबा.......
एक भयानक हसीं के बाद सन्नाटा छा गया था.
साय...साय...करती हवा चोर मांगूस के रोम रोम को भेद रही थी,नदी जैसे जैसे पास आती मांगूस को मौत साक्षात् खड़ी नजर आती.
बिल्लू :- क्यों बे महान चोर मंगूस डर लग रहा है मरने से.
मंगूस क्या बोलता उसकी तो घिघी बँधी हुई थी.
कुछ ही देर मे दो क़ब्र खोद दि गई.....और कुछ ही देर मे भर भी दि गई....
"चलो भाइयो अपना काम भी हो गया और ठाकुर जलन सिंह का भी अब चल के हवेली पे शारब पी जाय"

बिल्लू कालू रामु तीनो आगे बढ़ गए थे,पीछे बची थी दो ताज़ा भारी गई क़ब्र.

वही रूपवती कि हवेली मे.
"आप चिंता ना करे ठकुराइन रूपवती मंगूस वाकई ने महान चोर है खाली हाथ नहीं लोटेगा" नागेंद्र फुसफुसाया
"मुझे पता है नागेंद्र लेकीन अचानक ही कुछ अनहोनी कि आशंका ने मुझे घेर लिया है " रूपवती व्यथित थी
वीरा :- चिंता ना करे ठकुराइन कल सुबह मै खुद जाऊंगा कुंवर विचित्र सिंह को लेने,लेकीन अभी जो सबसे बड़ा रहस्य है वो जान लेने दो.मै मरा जा रहा हूँ कामवती को नागेंद्र ने भी नहीं मारा तो किसने ये आग लगाई मेरे भाई जैसे दोस्त को खून का प्यासा बना दिया.
वीरा कि आंख मे अँगारे साफ झलक रहे थे, पास ही रुखसाना भी उस बातचीत मे शामिल हो चुकी थी.
कामवती :- वीरा नागेंद्र जैसा कि तुम जानते हो मै तुम दोनों से ही एक साथ प्यार करती थी,मै चाह कर भी किसी एक के लिए अपनी चाहत को कम नहीं कर पा रही थी.
मेरा सामना पहली बार किसी अद्भुत पशु मानवो से हुआ था, मै अचंभित थी जब तुम दोनों कि सच्चाई जानी,उस वक़्त तक तुम दोनों ही एक दूसरे के लाराम शत्रु बन चुके थे इसलिए कभी बता ही नहीं पाई कि तुम दोनों ही मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा हो.

मुझे नागेंद्र का कोमल तरीके से मेरे जिस्म को छूना और वीरा का रुखा कठोरपन दोनों ही पसंद आने लगा था.
नागेंद्र अपने कोमल जीभ से मेरे जिस्म को छूता तो एक बिजली सी दौड़ उठती थी,लेकीन वही बिजली कड़क के गिरने लगती जब वीरा मेरे बदन को निचोड़ के रख देता.
मै दोनों के प्यार कि आदि हो चली थी.
मकान दुविधा मे थी कि किसको हाँ बोलू,तुम दोनों ही मुझे अपनी दुल्हन बनाने पे अड़े थे.
मेरा तन और मान किसी एक को भी छोड़ने को तैयार नहीं था.
मै कोई निर्णय ले पति कि मेरे माँ बाप ने मेरी शादी ठाकुर जलनसिंह के साथ तय कर दि, ये बात सुन के मेरा कलेजा कांप उठा, लेकीन क्या करती मेरे पिता जी ठाकुर जलन सिंह के कर्जो तले दबे थे.
मुझे तुम दोनों को छोड़ ठाकुर जलनसिंह से शादी करनी पड़ी.
लेकीन शादी के बाद भी मैंने कभी मन से ठाकुर के साथ सम्बन्ध नहीं बनाये,इच्छा ही नहीं थी मुझे कभी वो सुख का अहसास हुआ ही नहीं.
ठाकुर जलन सिंह माँ शक मुझपे गहराता चला गया,उसने कुछ आदमी मेरे पीछे लगा दिये.
ये वही दिन था जब मै कामवासना मे लिप्त नागेंद्र और उसके बाद वीरा के साथ सम्भोग लिप्त थी.
ये बात ठाकुर तक जा पहुंची.....उसी रात
ठाकुर :- साली छिनाल बहुत खुजली है तेरी गांड और चुत मे.
मुझे छोड़ के सब से मरवाती फिरती है.
मै पूर्णतया नंगी बेबस ठाकुर और उसके आदमियों के सामने पड़ी हुई थी.
उसके बाद ठाकुर के आदमियों ने जी भर के मेरा बलात्कार किया,उसके बाद मेरे गुप्तागो को नष्ट कर दिया,मै खूब चिल्लाई दया कि भीख मांगी लेकीन उस कमीने का दिल ना पसीजा.
कामवती :- ठाकुर मैंने तुमसे कभी प्यार नहीं किया तुम सिर्फ मेरा जिस्म भोग सकते हो मेरा मन नहीं.
उसके बाद मेरे गुप्तागो मे लकड़ी सरिया डाल के मेरे जिस्म को छलनी कर दिया ठाकुर ने,मै अभी भी तुम दोनों कि प्रतीक्षा मे अंतिम सांस गिन रही थी, मेरी आंखे बंद थी लेकीन धड़कन तुम दोनों का नाम ले रही थी.
लेकीन ठकुर यहाँ भी चालाकी कर क्या मेरे सीने पे घोड़े के खुर के निशान छाप दिये और मेरी जांघो पे सांप के काटने के निशान बना दिये.
उसके बाद जब नागेंद्र वहाँ पंहुचा तो खुर के निशान देख वीरा को कातिल समझ बैठा और वीरा सांप के निशान देख नागेंद्र को.
तुम दोनों ही एक दूसरे के खून के प्यासे हो उठे....
इस गलतफहमी मे तुम दोनों ने ही अपना सब कुछ उजाड़ लिया

परन्तु इस पाप कि सजा जलनसिंह को तांत्रिक उलजुलूल ने दि. और तुम दोनों को वहशीपन के लिए श्राप भुगतना पड़ा और मुझे एक दर्दनाक मौत मिली.
कमरे मे एक भयानक सन्नाटा छा गया,जहाँ वीरा और नागेंद्र अचंभित किसी मूर्ति कि तरह खड़े थे वही रूपवती,कामवती,रुखसाना कि आँखों मे आँसू थे.
किस भयानक मौत से गुजरी थी कामवती,इस भयानकता दर्दभारी मौत का अंदाजा लगा पाना ही मुश्किल था.
कि तभी.....चीव....चीव.......कि आवाज़ ने सभी का ध्यान भंग किया.
एक चील हवेली के आंगन से उड़ती चली गई उसके पंजे में कुछ कागज़नुमा चीज फसी थी जो कि सीधा रूपवती के कदमो मे जा गिरी.
रूपवती ने तुरंत ही वो चिठ्ठी उठा ली.
"सावधान ठकुराइन रूपवती, ठाकुर जलन सिंह वापस आ चुके है और नागमणि उनके ही अधिकार मे है, सर्पटा और जलन सिंह कल अमावस्या कि रात एकजुट हो कर आप लोगो पे हमला करने वाले है, सभी को ले कर किसी सुरक्षित जगह कि ओर पलायन कर जाइये,इसमें ही सभी का भला है.
ठाकुर ज़ालिम सिंह और कुंवर विचित्र सिंह उर्फ़ चोर मांगूस अब इस दुनिया मे नहीं रहे,मृत्यु को प्राप्त हो गए है बेहतर होगा,बाकियो कि जान बचाइये ".
सच का हितेषी.
तांत्रिक उलजुलूल.

चिठ्ठी पढ़ते ही रूपवती के पैर कांप गए वो अपना बोझ ना संभाल सकी,उसके हाथ से चिठ्ठी निकलती हुई कामवती के कदमो तक जा गिरी.
रूपवती किसी मूर्ति कि तरह जड़ हो गई थी,उसका नाकारा पति और जान से प्यारा भाई मौत को प्राप्त हो गए थे.
"अब क्या करेंगे वीरा और नागेंद्र,जिस नागमणि का सहारा था उसको लाने वाला चोर मांगूस तो मारा गया?"कामवती कि जुबान पे बेशकीमती सवाल था.
एक अजीब मरघाट सा सन्नाटा पसर गया था,एक मनहूसियत सी छा गई थी वातावरण मे.
तो क्या वाकuई चोर मंगूस मारा गया?
या फिर से एक बार मौत को मात दें देगा चोर मंगूस?
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बने रहिये कथा अपने अंतिम चरण मे है.
 
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रूपवती कि हवेली (घुड़पुर ) मे एक मरघाट सा सन्नाटा छाया हुआ था,सब कि निगाहों मे भय साफ दिख रहा था,होंठो पे एक ही सवाल था
"अब क्या होगा?"

इस चुप्पी को तोड़ा रूपवती ने " वीरा तैयारी करो हमें यहाँ से कहीं दूर निकल जाना चाहिए "
"कैसी बात कर रही है ठकुराइन क्या हम कायर है?" वीरा ने आवाज़ मे जरा हिम्मत दिखाई.
"तो क्या हो तुम बहादुर हो....क्या कर लोगे उनका? कैसे म
लड़ोगे,मेरा लालच मेरे भाई को ले डूबा,नहीं चाहिए मुझे सुन्दर काया,कामुक जिस्म मेरा प्यारा भाई मैंने ही उसे नागमणि लाने को कहाँ था.
रूपवती फफ़क़ फफ़क़ के रो बड़ी,उसका मान पछतावे से सुलझ रहा था, एक सुन्दर काया पाने को उसने क्या नहीं किया? अपनी खोई हुई इज़्ज़त पाने कि लालसा मे उसका जान से प्यारा भाई भी मारा गया

"बस बहुत हुआ अब किसी कि जान नहीं जाएगी " रूपवती उठ खड़ी हुई
"ठकुराइन आप चिंता ना करे हमारे पास कल तक का समय है कुछ हाल जरूर निकलेगा " पास खड़ी रुखसाना ने रूपवती को हिम्मत बंधाई.
"क्या हाल निकलेगा सबसे पहले तो तुम्हारी इज़्ज़त को ही तार तार किया जायेगा,क्यूंकि वीरा और सर्पटा के मुताबिक तुम ही घुड़वती हो,तुम्हे ही तो लेने आ रहा है वो सपोला " रूपवती मानने को तैयार नहीं थी.
"हाँ मै जानती हूँ हालांकि मुझे याद नहीं है,लेकीन इतना सब देख सुन के यकीन हो चला है कि मै ही वीरा कि बहन घुड़वती थी,लेकीन आप सझने कि कोशिश करे मुझे अपने गांव कामगंज जाने दीजिये यदि कल दोपहर तक मै वापस ना लौटी तो आप सब यहाँ से कहीं दूर कूच कर जाना " रुखसाना कि आवाज़ मे एक जादू था मजबूत इरादा था.
वीरा :- तुम्हारे गांव मे आखिर रखा क्या है?
रुखसाना :- मेरे अब्बा मतलब ससुर जो कि एक मौलवी है,कूच समय से मै उनके कहने पे कूच चुनिंदा लोगो के वीर्य एकत्रित कर रही थी, ये वाला अंतिम है जो कि ठाकुर ज़ालिम सिंह का है.
रुखसाना ने सारी कहानी कह सुनाई कैसे उसका पति मरा, रंगा बिल्ला के साथ उसके क्या सम्बन्ध रहे सब कुछ.
सभी हैरान थे लेकीन इस एक अंतराल मे सभी के मान मे विश्वास जग उठा था.
वीरा :- ऐसी बात है बहना तो मै भी तुम्हारे साथ चलता हूँ,मै तूफान कि गति से अभी भी दौड़ सकता हूँ.
जल्दी ही वापस आ जायेंगे.
सभी इस बात से संतुष्ट थे क्यूंकि वीरा ही एकलौता ऐसा प्राणी था जिसके पास उसकी शारीरिक ताकत तो थी ही.
वरना तो नागेंद्र बिन नागमणि के विषहीन सांप के अलावा कुछ नहीं था,ना ही रुखसाना घुड़वती बन सकती थी वो सिर्फ आमनारी ही थी.

ठकुराइन रूपवती कि आज्ञा ले रुखसाना और वीरा गांव कामगंज कि ओर दौड़ चले.

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थाना विषरूप
मध्य रात्रि

"काफ़ी रात हो चुकी है मैडम घर नहीं जाना " बहदुर कि आवाज़ ने इंस्पेक्टर काम्या को लगभग चौंका दिया.
"वो....वो...वो.....जाना है ना,काम्या हड़बड़ाई सी कुर्सी पे सीधी हुई जैसे किसी गहरी नींद से जागी हो.
काम्या ने एक मदमस्त सी अंगाड़ाई ली दोनों हाथ सर के पीछे जाने से मदमस्त बड़े भारी स्तन उभर के बाहर को निकल आये, जिसका बाहरी भाग ऊपर के खुले बटन से बाहर झाँक रहा था.
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बहादुर ये दृश्य देख के सकपका गया,उसके लिए आज का दिन कुछ ऐसा ही था सुबह से जब से उसने काम्या के कोमल बदन का स्पर्श पाया था उसका जिस्म उसके काबू मे नहीं था,पैंट के आगे का हिस्सा उठा उठा सा ही लग रहा था.
काम्या ने अंगाड़ाई लेते हुए बहादुर किनर देखा जी उसे ही एकटक देखे जा रहा था.
काम्या कि नजर बहादुर पे ही टिकी हुई थी,उसका नजरिया बहादुर के लिए बदल गया था,काम्या को पैंट मे बना उभर साफ नजर आया.
अब काम्या जैसे कामुक और हसीन औरत ऐसे मौके भुनाने से कहाँ चुकती है,उसे ना जाने क्या मस्ती सूझी....उसका एक हाथ अपने गले के आगे कि हिस्से पे जा लगा....चट....चटतट.....कितने मच्छर हो गए है चौकी मे.
काम्या कि इस हरकत ने उसकी वर्दी का एक बटन और खोल दिया, दो गोरे गुलाबी बड़े से मोटी हल्की रोशनी मे चमक उठे, लगभग 50% हिस्सा वर्दी से बाहर झाँक रहा था

"गड़ब....गुलुप.....बहादुर ने एक बार थूक निगल लिया, दूसरी बार निगलना चाहा कि मालूम हुआ गला तो सुख गया है, आंखे बाहर को आ गई.
"क्या हुआ बहादुर क्या देख रहा है ऐसे औरत नहीं देखी कभी " काम्या ने जानबूझ के चुटकी लेते हुए कहा.

काम्या कि रौबदार आवाज़ ने बहादुर को झकझोड़ दिया "ककककक.....कुछ...नहीं.....नहीं...मैडम....वो...वो...मै...तो..बस....मै तो "
"हाँ हाँ चल ठीक हबसाब समझती हूँ...आखिर तू भी तो मर्द है ना, चल इधर आ थोड़ा कंधे दबा दें सुबह से दर्द कर रहे है "
बहादुर झेम्प गया उसके पास सफाई देने को कुछ नहीं था,चुपचाप काम्या कि कुर्सी के पीछे चला गया, परन्तु पीछे से नजारा और भी ज्यादा कामुक और हसीन था.
"क्या हुआ दबा ना " काम्या मंद मंद मुस्कुरा रही थी उसे पता था बहादुर कि क्या हालत है.
"ज्ज्ज्ज्बजज....जी मैडम " बहादुर के काँपते हाथ काम्या के कंधे पे जा लगे जो कि अर्धनग्न थे,काम्या ने वर्दी और ढीली कर ली थी.
"इसससस.......काम्या के मुँह से एक हल्की सी आह सी निकली बहादुर के हाथ बिल्कुल किसी लड़की कि तरह नाजुक कोमल और गद्देदार थे.
काम्या ने आजतक जितने भी मर्दो को भोगा था सब हैवान और कठोर ही थे लेकीन ये कोमल स्पर्श उसके वजूद को हिला गया.
काम्या कि आंखे बंद होती चली गई,सर पीछे को कुर्सी के तख़्त पे जा टिका.
पीछे बहादुर ती जैसे जड़ ही हो गया था,काटो तो खून नहीं, पीछे से गर्दन से लगाई 70% स्तन साफ दिख रहे थे, निप्पल के आस पास कि लालिमा साफ देखी जा सकती थी, दोनों स्तन से होती महीन दरार पेट तक का रास्ता दिखा रही थी.
बहादुर कि नजर सिर्फ काम्या के गोरे मखमली स्तन पे टिकी हुई थी, उसके हाथ खुद बा खुद काम्या के कंधे को सहला रहे थे.
ना जाने बहादुर आज इतनी हिम्मत कहाँ से ले आया था,या फिर ये काम्या के बदले हुए स्वभाव का नतीजा था क्यूंकि उसने आज तक बिना गाली दिये बहादुर से बात तक नहीं कि थी.

बहादुर का हाथ धीरे धीरे किसी मशीन कि तरह काम्या के जिस्म ले रेंग रहा था, बहादुर आज अपने जीवन का सबसे बेहतरीन नजारा देख रहा था,वो इस नज़ारे मे खोया हुआ था उसका हाथ कब धीरे धीरे नीचे सरकता जा रहा था उसे पता नहीं था.
काम्या जो कि जीवन मे पहली बार इस कदर कोमल स्पर्श का आनंद ले रही थी उसके जिस्म.मे जैसे हज़ारो चीटिया एक साथ चल रही थी,उसका मज़ाक उसपे ही भारी प्रतीत लगने लगा.
"उम्मम्मम्म......हम्म्म्म.....काम्या कि सांसे भारी हो चली, इस का अंजाम ये था कि उसके बड़े भारी स्तन दम लगा के फूलते फिर पिचकते,
पीछे खड़े बहादुर को ऐसा लगता जैसे ये स्तन अभी पूरी वर्दी फाड़ बाहर को आ गिरेंगे कि तभी वापस से हलके से उसी वर्दी मे समा जाते.
इस मनमोहक दृश्य से भला कोई मर्द कैसे ना उत्तेजित होता,बहादुर भी हुआ और ऐसा हुआ कि उसके हाथ उसके नियंत्रण मे नहीं रहे..ना जाने कैसे उसकी उंगलियां इतनी नीचे जा पहुंची कि उस पहाड़ को छू ही लिया जो कि सिर्फ सपना ही था बहादुर जैसो के लिए.
काम्या को स्तन के ऊपरी हिस्से पे बहादुर कि कोमल उंगलियों का अहसास साफ महसूस हो रहा था."इससससस.....उम्म्म......आअह्ह्ह....." काम्या के रोंगटे खड़े हो गए उसकी नाभि मे गुदगुदी सी चल पड़ी,ये गुदगुदी यहीं नहीं रुकी नाभि से होती हुई सीधा दोनों जांघो के बीच जा लगी....
काम्या आंखे बंद किये,जाँघ को बुरी तरह से आपस मे भींच लिया जैसे वहाँ से कुछ निकल ना जाये ना जाने क्या रोक रही थी काम्या.
बहादुर किसी मन्त्रमुग्ध इंसान कि तरह अपने हाथ बढ़ाये जा रहा था,कंधे से होते हुए उसके हाथ काम्या के स्तन को छू के निकल जाते,जैसे उन उभार को टटोल रहा हो,
जैसे ही हाथ लगाता वैसे ही हाथ पीछे खिंच लेता,चौकी का माहौल गरमा गया था.
काम्या का जिस्म जल रहा था,उसका तो मान था कि पकड़ के भींच दें बहादुर उसके स्तन को लेकीन कैसे कहती, ये कोमल नाजुक प्यार भरा स्पर्श उसके जिस्म कि परीक्षा ले रहा था,इतने सब्र इतने कोमलपन कि आदत ही नहीं थी उसे.
"उम्मम्मम.....शनिफ्फ्फ्फफ्फ्फ़......शनिफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.....काम्या कि सांसे जोर जोर से चलने लगी, जाँघे आपस मे घिसने लगे.
लेकीन बहादुर म हाथ बदस्तूर वही कर रहे थे जैसा करने को कहा गया था.
जैसे ही काम्या कि सांस चढ़ती उसके स्तन कि दरार चौड़ी हो जाती,फिर जैसे ही सांस छोड़ती वो दरार सिकुड़ के पुराने रूप ने आ जाती.
बहादुर का लंड पीछे कुर्सी के तख़्त पे ठोंकर मार रहा था, उसका लावा कभी भी फुर सकता था आखिर कब तक संभालता,काम्या का भी यहीं हाल था उसकी गर्दन इधर उधर चलने लगी थी, जाँघे आपस मे लड़ाई कर रही थी.
कि तभी...."आआआहहहहहहहहह.......बहादुर.......उफ्फ्फ.....एक चीख ने चौकी को हिला दिया"
"हुम्म्मफ्फ्फ्फफ्फ्फ़म....आआहहहह.......मैडम.....ऊफ्फफ्फ्फ़....आअह्ह्ह...." साथ मे बहादुर कि चीख भी शामिल हो चली.
"हम्म.फ़फ़फ़फ़......हम...फ़फ़फ़फ़......." बहादुर पीछे दिवार से जा लगा और काम्या कुर्सी ने निढाल सी पड़ी थी काम्या कि जाँघ के बीच चिपचिपा सा पानी छलछाला आया था,उसकी पैंट बुरी तरह गीली हो चली वही हाल बहादुर का भी था जिस लावे को सुबह से रोकने कि कोशिश मे था वो भरभरा के निकल चला साथ ही जैसे बहादुर के प्राण भी निकाल ले गया हो.
काम्या अभी कुछ कहती समझती सम्भलती कि बाहर से आवाज़ आने लगी.
"मैडम....मैडम....मैडम....गजब हो गया.....गजब हो...गया " बाहर से आती आवाज से काम्या और बहादुर जो कि अपना चरमसुःख अनुभव कर रहे थे तुरंत संभल उठे.
काम्या कि वर्दी के बटन लग गए थे, बहादुर पास ही कुर्सी पे बैठा था.
तभी एक हवलदार पास आया " मैडम गजब हो गया "
"क्या हुआ मदरचोद क्यों मरे जा रहा इतनी रात को " काम्या का चेहरा गुस्से से लाल था होता भी क्यों ना वो आज पहली बार इतनी जल्दी और इस कद्र झड़ी थी कैसे उसकी आत्मा उसकी चुत के रास्ते निकली हो वो अपने इस चरमसुख के आनंद ले ही रही थी कि ये हवलदार आ धमका.
"मैडम..वो...वो....नदी किनारे किसी आदमी कि सर कटी लाश मिली है,जिसे जंगली कुत्ते नोच रहे थे, पास से गुजरते रहागीर ने सुचना दि है " हवलदार एक ही सांस मे सब कह गया.
काम्या का मूड ख़राब हो चूका था "चल साले बता कहाँ है लाश,लोगो को भी बेवक़्त मरना होता है " काम्या कुर्सी से खड़ी हो चली,साथ ही बहादुर भी पीछे पीछे हो लिया.
दोनों कि पैंट गीली ही थी.
काम्या को नदी पहुंचने मे अभी वक़्त था लेकीन वीरा और रुखसाना कामगंज पहुंच चुके थे.
"ठक ठक ठक.......एक दरवाजा जो से पीटा जा रहा था "
"चररर.........अरे भाई कौन है इतनी रात को, अरे रुखसाना बेटा तुम? कहाँ थी इतने दिन? मुझे तो अनिष्ट कि आशंका ने घेर लिया था " मौलवी साहब ने दसरवाजा खोलते ही सामने रुखसाना को पाया आए सवालों कि झड़ी लगा दि
"अब्बू अभी वक़्त नहीं है इतना बताने का बस यूँ समझिये अब जिंदगी मौत का सवाल है, और...ये.....रुखसाना ने वीरा कि तरफ इशारा करते ही कहना ही चाहा कि
"ये तुम्हारा भाई वीरा है, घुड़वाती "
रुखसाना कि आंख फटी कि फटी रह गई ये बात सुनते ही.
"अंदर आओ बेटी ऐसे चौको मत,हमें सब पता है, खुदा ने सभी कि जिंदगी मे कुछ ना कुछ लिखा है,वो कोई काम अधूरा नहीं छोड़ता, भले उसके बन्दे वो काम अधूरा छोड़ दें लेकीन वो उन्हें फिर भेज देता है "
मौलवी साहब के पीछे वीरा और रुखसाना अंदर आ गए लाखो सवाल और हैरानी लिए.
"इसका मतलब आप सब जानते थे फिर....फिर....."
"पहले बता देता बेटी तो तुम इस काम को कैंसर अंजाम देती....लाइ हो वो जो मैंने कहाँ था "
मौलवी साहब ने अपनी हथेली आगे फैला दि
रुखसाना अभी भी अचरज से भरी थी,उसने अपनी पोटली से ज़ालिम सिंह के वीर्य कि बोत्तल उन्हें थमा दि " ये लीजिये"
"खुदा के खेल निराले,किस्मत देखो तुम्हारे भाई ने पहले ही ढूंढ़ निकाला तुम्हे" मौलवी ने उस वीर्य को एक कटोरे मे डाला और कुछ मन्त्र पढ़ कर फुकने लगा
"लो बेटा ये अंतिम है इसे पी लो तुम्हारी सारी जिज्ञासा शांत हो जाएगी " वहाँ क्या ही रहा था समझ के परे था.
लेकीन फिर भी रुखसाना ने वो कटोरा लिया और एक ही सांस मे उस वीर्य को ली गई, वो वीर्य हलक से नीचे उतरा नहीं कि रुखसाना के हाथ से वो कटोरा छूट के जमीन पे जा गिरा
वीरा आश्चर्य से मरा जा रहा था और मौलवी साहब के लब पे मुस्कान तैर रही थी.
एक दूधिया रौशनी से कमरा जगमगा उठा,दोनों कि आंखे चोघिया गई...धीरे धीरे वो प्रकाश छटा तो सामने घुड़वाती खड़ी थी
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अपने सम्पूर्ण रंग रूप पूर्ण घुड़रूप मे,वही सुनहरे बाल,सफ़ेद लिबास कोमल हसीन त्वचा.
वीरा हैरान खड़ा देखता रहा,उसकी आंखे उसे धोखा तो नहीं दें रही,लेकीन नहीं उसकी आँखों से आँसू झर झर गिरने लगे, कितने बरसो वो तरसा था इस रखा दृश्य के लिए, अपनी बहन को खोने के बाद वो नरक का जीवन जिया था.
"भाई ऐसे क्या देख रहे हो मै ही हूँ आपकी घुड़वती "
वीरा के कानो मे एक बार फिर वही कोमल खिलखिलाती आवाज़ गूंज उठी.
"मेरी बहना......सुबुक सुबुक....." वीरा दौड़ के घुड़वती के गले जा लगा.
आज सच मायनो मे उसने अपनी बहन को पा लिया था.
"बस मेरे बच्चों ये प्यार बनाये रखना....मेरे इस जीवन का उद्देश्य पूरा हुआ" मौलवी कि आवाज़ ने दोनों भाई बहन का ध्यान भंग किया.
"मौलवी साहेब आप ने मुझे इस जन्म मे एक पिता का प्यार दिया,मेरा जीवन मुझे वापस लौटा दिया,मै कैसे ये अहसान चूका पाऊँगी " घुड़वती मौलवी साहब के पैरो मे जा गिरी.
"अरे मेरी बच्ची पिता का तो जीवन ही अपने बच्चों के कल्याण के लिए होता है और खुदा कि मर्ज़ी भी यहीं थी " मौलवी साहब ने घुड़वती को गले लगा लिया.
एक भावुक माहौल बन गया था, मौलवी पिता ना हो के भी आज पिता से बढ़कर हो गया था.
"अब जाओ मेरे बच्चों दुश्मनो पे विजय पाओ,तुम्हारी ही जीत होंगी "
घुड़वती ':- लेकीन कैसे, नागेंद्र कमजोर है हम अकेले कैसे लड़ेंगे? मंगूस ही उम्मीद था वो ही मारा गया अब यहाँ से भाग जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है.
मौलवी :- बहादुर लोग कभी भागा नहीं करते बेटा या तो वो लड़ते है या मरते है.खुदा तुम्हारे साथ है.
जनता हूँ बिना नागेंद्र कि चमत्कारी शक्ति के ये संभव नहीं होगा,लेकीन उस नियति पे विश्वास रखो जो तुम्हे वापस ले आई.
ध्यान रहे जब कोई पाप के खिलाफ लड़ता है तो कुदरत भी उसका साथ देती है,मंगूस जीवट आत्मा है पक्का चोर है मौत को भी चुरा लाएगा. अब तुम लोग चलो सुबह होने वाली है.
मौलवी ने वीरा और घुड़वती को आशीर्वाद दें विदा किया.
वीरा और घुड़वती घोर आश्चर्य ले वहाँ से विदा हो चले.

तो क्या मतलब है मौलवी साहेब के बातो का?
क्या वाकई मंगूस ने मौत भी चुरा ली है?
काम्या को सिर्फ एक ही लाश कि खबर क्यों मिली,कहाँ गई मंगूस कि लाश?

बने रहिये कथा जारी है अपने अंतिम पड़ाव मे.
 
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अपडेट -88

इंस्पेक्टर काम्या और बहादुर जब तक घटना स्थल पे पहुंचते, सुबह कि पहली किरण चारों तरफ फैली हुई थी.
"मैडम.....ये....ये..तो किसी आदमी कि लाश है सर कटी लाश " बहादुर ने निरक्षण कर बताया.
काम्या भी नजदीक गई " खबर तो ठीक ही थी, लेकीन ये दूसरी क़ब्र क्यों खुदी हुई है? लाश तो एक ही है "
ये प्रश्न वहाँ मौजूद सभी के दिमाग़ मे कोंध रहा था.
"मममममम.....मैडम मैंने इस आदमी के कपड़े कहीं देखे है " अचानक ही रामलखन के दिमाग़ मे कुछ उपजा.
"कौन है ये? कहाँ देखे है?" काम्या का दिल भी कोतुहाल से धाड़ धाड़ कर रहा था.
"ये...ये....ठाकुर साहेब को लाश है मैडम, मै जब उन्हें रंगा बिल्ला के अड्डे से ले के निकला था तब भी उन्होंने यहीं कपड़े पहने थे " रामलखन ने खुलासा कर दिया.
काम्या का दिमाग़ सकते मे आ गया था,क्यूंकि अभी तक ठकुराइन कामवती कि भी कोई खबर नहीं थी " कहीं...ये दूसरी कब्र कामवती के लिए तो नहीं थी " काम्या ने शक जाहिर किया
"लेकीन मैडम ये तो खाली पड़ी है,इस कब्र को तो सिर्फ खोद के छोड़ दिया गया,जैसे किसी के लिए खोदी तो थी लेकीन इसमे लाश दबाई ही नहीं,ठाकुर साहेब कि कब्र उबाड़ खबड़ पड़ी है " बहादुर ने भी अपना दिमाग़ दौड़ाया.
"जरूर कोई बहुत बड़ी गड़बड़ चल रही है यहाँ,हमें तुरंत विषरूप ठाकुर कि हवेली पे जाना होगा "
बहादुर ने तुरंत ही जीप स्टार्ट कि " रामलखन तुम ठाकुर साहेब कि लाश को लाने का प्रबंध करो हम देख के आते है आखिर माजरा क्या है "
बहादुर ने जीप हवेली कि तरफ दौड़ा दि.
काम्या बेचैन थी,उसे लगा था रंगा बिल्ला के खात्मे के साथ सब सही हो गया है लेकिन ठाकुर कि मौत ने सब बिगाड़ के रख दिया.

ठाकुर कि हवेली अभी दूर थी लेकीन रूपवती कि हवेली मे अभी भी सभी चिंता मे डूबे हुए थे

घुड़वती के आगमन से जहाँ सभी खुश थे,वही रूपवती कि चिंता उसे खाई जा रही थी

"आप व्यर्थ ही चिंता कर रही है ठकुराइन हम दोनों है ना सर्पटा और ज़ालिम सिंह का सामना कर लेंगे " घुड़वती ने रूपवती को समझाया.
"तुम लोग समझते क्यों नहीं हो मै अपने भाई को खो चुकी हूँ,अब तुम.लोग ही मेरा परिवार हो अब और किसी को नहीं खोना चाहती " रूपवती जरुरत के सामान समेट रही थी.
कामवती और नागेंद्र असहाय थे,उनके तो सबकुछ समझ से परे थे हालांकि वो लोग भी यहाँ से भाग निकलने के ही विचार मे थे.
वीरा :- हमने भागना नहीं सीखा ठकुराइन,यहाँ किसी कि मौत नहीं होंगी,मरेंगे तो सिर्फ वो दोनों, इन बाजुओं मे अभी भी वो ताकत है कि उन दोनों को अकेले धाराशाई कर दूंगा,वीरा ने अपनी बाजुए फाड़काई.
घुड़वती :- भाई सही कह रहे है, सर्पटा कि मौत मेरे हाथ ही लिखी है ठकुराइन
नागेंद्र :- तुम लोग समझते क्यों नहीं आज अमावस्या का दिन है, आज रात उनकी शक्ति प्रबल होंगी.
नागमणि भी उनके पास है कैसे सामना करेंगे हम लोग?
नागेंद्र कि चिंता व्यर्थ नहीं थी.
वीरा :- तो क्या मंगूस कि मौत को बर्बाद हो जाने दें, ठकुराइन क्या आपको गुस्सा नहीं आ रहा, क्या आप अपने भाई कि मौत का बदला नहीं लेना चाहती.
रूपवती:- चाहती हूँ.....रूपवती चिल्ला उठी...."लेकीन वीरा तुम्हारी मौत के बदले मै बदला लेना नहीं चाहती, भाई को खो दिया है तुम जैसा दोस्त,कामवती जैसी बहन को कहना नहीं चाहती, वैसे ही मेरे लालच मे सब ख़त्म कर दिया मेरा परिवार ख़त्म हो गया..रूपवती फफ़क़ फफ़क़ के रो पड़ी....
"मेरी कुरूप काया ही मेरा भाग्य है,मेरे प्यारे भाई कि मौत का कारण "
मंगूस कि मौत ने रूपवती को तोड़ के रख दिया था.
नगेन्द्र :- नहीं ठकुराइन इस बार आप गलत है,कोई इच्छा रखना गलत नहीं हो सकता, आपके साथ गलत हुआ,पक्षपात हुआ.
आखिर स्त्री का सौंदर्य ही सब कुछ नहीं होता.
आप चिंता ना करे अब चाहे जो हो जाये हम लड़ेंगे और जीतेंगे भी, मेरा दिन कहता है नागमणि मेरे पास ही होंगी.
आपकी कुरूप काया को भी मै ही हर लूँगा.
नागेंद्र सरसराता हुआ रूपवती के पेट से होता हुआ सीने पे जा लिपटा.
ना जाने नागेंद्र के स्पर्श ने ऐसा क्या अहसास था,रूपवती के आँसू थमने लगे, एक आत्माविश्वास जागने लगा.
रूपवती :- तुम ठीक कहते हो नागेंद्र,वीरा हम ऐसे नहीं जा सकते ये गांव हमारा है,ये हवेली हमारी है
सभी लोग आत्मविश्वास से भरे थे.
नागेंद्र :- जो काम ताकत नहीं कर सकती वो बुद्धि करती है मेरे पास एक योजना है, सुनिए.अमावस्या कि रात का अंधेरा ही हमारे लिए वरदान है.....फुस.....गुस्स्सस्स्स.....फुसससस.....
नागेंद्र कुछ फुसफुसाने लगा.
उसकी योजना सुन सभी के चेहरे पे मुस्कान तैर गई.
घुड़वती :- वाह नागेंद्र क्या बात है.....अब देखते है सर्पटा कैसे बचता है.

योजना तैयार थी इंतज़ार था तो सर्फ रात का

परन्तु काम्या को इंतज़ार नहीं था उनकी जीप विषरूप हवेली के बाहर खड़ी थी.
"ठक....ठक......ठाक.....कोई है " बहादुर ने जोर से दरवाजा खड़काया.
परन्तु नतीजा शून्य
फिर थकठाकया.....नतीजा कुछ नहीं.
"कहाँ मर गए सब...ठाकुर के आदमी भी नहीं दिख रहे " काम्या ने कदम अंदर कि तरफ बड़ा दिये.
जैसे ही आंगन मे पहुंची उसका कलेजा कांप गया,बहादुर को तो उल्टी ही आ गई.
सामने ही हवन कुंड मे ठाकुर का काटा हुआ सर अर्ध जली हालत मे पड़ा था.
काम्या ये दृश्य देख सकते मे आ गई " हे भगवान क्या हुआ है यहाँ " काम्या तुरंत दौड़ती हुई सभी कमरों के चक्कर लगा आई कोई नहीं था हवेली मे.
"कहाँ गए सब के सब....? इस वक़्त सबसे बड़ा सवाल ही यहीं था जिसका कोई जवाब नहीं था.
काम्या और बहादुर तुरंत ही हवेली से बाहर निकले,काम्या को किसी बड़ी अनहोनी कि आशंका ने घेर लिया था.
बाहर निकलते ही आस पास पूछताछ करने पे कोई नतीजा सामने नहीं आया.
सूरज सर पे चढ़ आया था.....
"क्या हुआ इंस्पेक्टर साहेब किसे ढूंढ़ रहे है " भीड़ जमा हो चुकी थी,ठाकुर कि मौत कि खबर पुरे गांव मे फ़ैल गई थी
काम्या अभी कुछ बोलती ही कि "बेचारी ठकुराइन रूपवती को तो पता भी नहीं होगा कि वो विधवा हो गई " भीड़ मे से कुछ आवाज़ आई.
चौंकने कि बारी काम्या कि थी रूपवती? कौन रूपवती? " ऐ तुम इधर आओ
भीड़ मे से एक बूढ़ी महिलाओ निकल के बाहर आई " कहिए साहब "
"रूपवती कौन है?" काम्या ने पूछा.
"ठाकुर साहेब कि पहली बीवी,घुड़पुर घराने कि राजकुमारी है हमारी ठकुराइन, बेचारी किस्मत कि मारी " महिला रूआसी हो गई.
"माता जी इन सब का वक़्त नहीं है, कामवती भी लापता है, कहाँ मिलेगी रूपवती?" काम्या ने दनादन सवाल दाग़ दिये
क्यूंकि उसकी खुराफ़ात बुद्धि कहती थी कि दोनों ठकुराइन को जान का खतरा है.
"और कहाँ मिलेगी अभागी अपनी हवेली पे ही होंगी,घुड़पुर मे " महिला ने बोला
"कहाँ है घुड़पुर "
"दूर है साहेब यहाँ से, विषरूप के जंगल के पार "
"चल बहादुर रात होने से पहले पहुंचना होगा हमें " काम्या तुरंत जीप मे सवार हो गई

अब किसी कि मौत बर्दाश्त नहीं होगी मुझे,तेज़ चला बहादुर

जीप भरभरा के घुड़पुर कि तरफ दौड़ पड़ी.....रास्ते मे पड़ता था विषरूप का जंगल जहाँ एकजुट हो चुके थे सर्पटा और ठाकुर ज़ालिम सिंह.
सभी कि मंजिल थी घुड़पुर रूपवती कि हवेली.
देखना था पहले कौन पहुंचेगा?
क्या नागेंद्र कि योजना उसको विजय दिलाएगी?
काम्या क्या कर पायेगी?
बने रहिये कथा जारी है
 
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घुड़पुर मे एक योजना तैयार हो गई थी.
और विषरूप के जंगलो मे भी सर्पटा और ठाकुर जलन सिंह हाथ मिला चुके थे.
शाम ढल आई थी...सर्पटा और जलन सिंह घुड़पुर कि दहलीज पे आ धमके थे.
"ज़ालिम सिंह तुम हवेली के पीछे से अपने आदमियों के साथ घुसो मै,आगे से जाता हूँ आज इस हवेली को ही कब्रिस्तान बना देंगे "हाहाहाहा.....सर्पटा ने जैसे हुक्म सुना दिया.
"साला रस्सी जल गई लेकीन बल नहीं गया,अभी भी खुद को राजा ही समझता है हुँह " जलन सिंह मन ही मन बड़बड़या.
"क्या हुआ जलन सिंह जाओ,उस घोड़ी को भोगने के लिए आतुर हूँ मै " सर्पटा कामवासना मे अंधा हुए जा रहा था.
"हम्म्म्म...चला ले बेटा जीतना हुक्म चलाना है,बाद मे बताता हूँ कि कौन राजा और कौन गुलाम " चलो रे..... नामुरादों
ठाकुर और उसके तीनो सेवक गांव के दूसरे रास्ते से हवेली के पीछे कि तरफ बढ़ चला.
हवेली के अंदर

"ठकुराइन रात घिर आई है, मुझे सर्पटा का आभास हो रहा है,वो आ रहा है " नागेंद्र कि छटी इन्द्रियों ने सटीक अंदाजा लगाया था.
वीरा :- आने दो हम भी तैयार है, वीरा और घुड़वती अपनी अपनी तलवार उठा चूके थे,और हवेली के द्वारा कि ओर बढ़ गए.
अमावस कि रात बिल्कुल अँधेरी थी, हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा था, हवेली कि सभी रौशनी बुझा दि गई.
वीरा और घुड़वती अपने हथियारों के साथ द्वारा पे तैनात थे.
"फीस्स्स्स.......हहहहरररर.......फूननननन......फुससससस....करता एक देत्यकार आकृति हवेली के मुख्य दरवाजे कि ओर बढ़ी आ रही थी,
धड़ इंसान का था लेकीन वो सरसरा रहा था,जैसे कोई सांप हो..... सर्पटा दुर्त वेग से जलन सिंह से पहले ही हवेली के सामने खड़ा था.
"ठकुराइन रूपवती मै जानता हूँ कामवती और घुड़वती इसी हवेली मे है,चुपचाप दोनों को मेरे हवाले कर दो,बदले मे मै तुम लोगो कि जान बक्श दूंगा "
सर्पटा ने एक दहाड़ लगाई,उसकी आवाज़ मे आज जहर था,एक कम्पन था जो कि किसी भी जीवित इंसान के कलेजे हिलाने के लिए काफ़ी था.
चारों तरफ सन्नाटा छा गया,सर्पटा कि चेतावनी के सामने कोई जवाब नहीं था.
"हाहाहाहाहा.....इसका मतलब तुम लोग अपनी मौत चाहते हो?" सर्पटा गरज उठा, उसने कदम आगे ही बढ़ाये थे कि.
"वही रुक जा नीच.....जान कि सलामती चाहता है तो वही रुक जा " हवेली का दरवाजा खुला सामने रूपवती हाथ मे चाकू लिए सर्पटा को ललकार रही थी.
"हाहाहाहाहा.......अच्छा तो तू है रूपवती, ठाकुर कि पहली पत्नी, नाम रूपवती और काया भद्दी, मोटी काली कलूटी " सर्पटा ने रूपवती कि दुखती नस पे पूँछ मार दि थी.
"हरामी.....अभी बताती हूँ तुझे,रूपवती कि आँखों मे खून सवार था, चेहरा गुस्से से लाल हो गया,वो हाथ मे चाकू थामे सर्पटा कि ओर लपक ली.
"ठकुराइन रुकिए....ये हमारी योजना नहीं थी " पीछे नागेंद्र चिल्लाता रह गया लेकीन गुस्से पे सवार रूपवती कहाँ सुनने वाली थी,आखिर जीवन भर वो अपने कुरूप होने का ही ताना सुनती रही.
"छोडूंगी नहीं तुझे बदजात सांप "
कि तभी धाड़.....थाड....थाड......एक लहराती सी पूछ आगे बढ़ती रूपवती के सीने से जोरदार टकराई.......
आआआहहहहह...........एक चीख गूंज गई वातावरण मे,
रूपवती सर्पटा का वार नहीं झेल सकी,दूर घास और मिट्टी के टीले पे जा गिरी,लगता नहीं था कि वो अब उठेगी.
"हाहाहाहा......बस यहीं औकात है तुम लोगो कि,अभी भी वक़्त है घुड़वती और कामवती मुझे सौंप दो,मै जान बक्श दूंगा तुम लोगो कि "
"छिई......छी....मुझे शर्म आती ही पिताजी आप पे,आप को बाप बोलते हुए भी घृणा होती है " रूपवती के धाराशाई होने से नागेंद्र आगबबूला सामने खड़ा था.
"ओह्ह्ह....तो तू भी यहीं है मेरा नपुंसक बेटा, कामवती तो मेरी ही है,चुपचाप मेरे हवाले कर उसे,उसकी जवानी संभालना तेरे जैसे नपुंसको का काम नहीं " सर्पटा का इरादा पक्का था.
"तो आ के ले ले ना रोका किसने है?" अचानक नागेंद्र शांत हो गया, शायद यहीं उसकी योजना थी.
"अच्छा चूहें तेरी इतनी औकात " सर्पटा गुस्से मे बड़बड़ता आगे को बढ़ चला, अभी हवेली के दरवाजे पे पहुँचता ही था कि भाहारररररर......भास्स्स......करती जमीन धसने लगी....
हवेली के दरवाजे के बाहर एक गड्ढा सा बनता चला गया, सर्पटा का पूरा वजूद उसमे समाता चला गया.
"वीरा घुड़वती ये खड्ढा जल्दी भरो,मै ठकुराइन को देखता हूँ.
वीरा और घुड़वती ने योजना के अनुसार अपना काम किया और पल भर मे ही उस खड्डे को भर दिया,जिन्दा सर्पटा जमीन कि नीचे दबा था.....
"भाई मुझे पता नहीं था ये जंग हम इतनी आसानी सी जीत जायेंगे,नागेंद्र कि योजना काम कर गई" घुड़वती जीत पा के चहक उठी.

"अअअअअ....आप ठीक तो है ना ठकुराइन रूपवती " नागेंद्र रूपवती से जा लिपटा था.
"आए...अअअअअ....हाँ...हाँ....मै ठीक हूँ,रूपवती करहाती हुई खड़ी हो गई
"सर्पटा जमीन मे दफ़न है बस जलन का इंतज़ार है अब " वीरा और घुड़वती भी रूपवती के पास पहुंच गए थे.
पहली जीत मिल गई थी.
कि तभी....धाय...धाय.....बन्दुक कि आवाज़ से वातावरण गूंज उठा
चारों लोगो ने आवाज़ कि दिशा मे सर उठाया तो सभी के कलेजे सुख गए.
"इतनी आसानी से कहाँ मित्रो....जलन सिंह कभी हारता नहीं है, जलन सिंह हवेली के दरवाजे पे खड़ा था,उसके कब्जे मे कामवती थी.
"हीस्स्स्स......फुसससस......हरामी छोड़ दें कामवती को " नागेंद्र फुसफुसा गया
वीरा का कलेजा जल उठा.
"तुम्हे क्या लगा मै पीछा छोड़ दूंगा कामवती मेरी ही थी,मेरी ही रहेगी क्यों कामवती " सससन्नणीयफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.......ज़ालिम सिंह ने कामवती के स्तन को जोरदार तरीके से भींच दिया और एक जोरदार सांस खींची.
"आअह्ह्हह्म..ममममम ..आज भी वही खुसबू "
"चलो अब ये खड्डा जल्दी से खोदो",जलन सिंह ने हुकुम दिया
मरता क्या ना करता, घुड़वती और वीरा ने पल भर मे ही वो खड्डा खोद डाला,
हहहएआरररररर........हहहहहररर....फुससससससस......बाहर आते ही सर्पटा कि कुंडली वीरा के बदन पे कसने लगी.
उनका सबसे शक्तिशाली योद्धा अब सर्पटा के कब्जे मे था..
जीती हुई बाजी पलट गई थी.


"बहुत प्यार है ना तुम दोनों को कामवती से आज तुम दोनों के सामने इसकी चुत कि धज्जियाँ उड़ाएगा जलन सिंह,आज तुम जानोगे कि मेरा नाम जलन सिंह क्यों है "
जलन सिंह के एलान से सभी कि रुहे कांप गई.
नागेंद्र :- ऐसा मत करो जलन सिंह, हमें मार दो लेकीन ऐसा मत करो कामवती को छोड़ दो.
"हाहाहाहाहा.......साला नपुंसक " सर्पटा ने एक ताना कस दिया,भीख मांग रहा है.
आज तो सुहागरात मनेगी..चलो सभी अंदर.
बिल्लू कालू रामु ने सभी को कब्जे मे ले लिया.
हवेली का आंगन रोशन हो गया था, घुड़वती और कामवती को छोड़ सभी लोग मजबूती से रस्सीयो से बंधे हुए थे.
कामवती फर्श पे असहाय गिरी हुई थी, घुड़वती बेबस गर्दन झुकाये सर्पटा के सामने अपने स्त्री रूप मे थी.
जलन सिंह :- सर्पटा शुरू करे?
सर्पटा :- जल्दी क्या है मित्र अब तो सब कुछ अपना है,ये बेचारे कल का सूरज भी नहीं देख पाएंगे तो क्यों ना आज इन्हे वो मंजर दिखाया जाये जो इन्हे मरते दम तक याद रहे..हाहाहाबा
रूपवती घायल थी,नागेंद्र शक्तिहिन,और वीरा असहाय तीनो अपने सामने दोनों लड़कियों कि इज़्ज़त लूटते देखने को तैयार खड़े थे.
जलन सिंह :- देख क्या रहे हो नामुरादों....फाड़ दो दोनों के कपड़े,ऐसे हसीन बदन नंगे ही अच्छे लगते है.
बिल्लू इस काम मे सबसे आगे था,उसी के कदम आगे बढ़े ही थे कि....धाय......एक गोली आती हुई बिल्लू के पैर मे जा धसी आआहहहहह.......मालिक....
सभी कि नजरें पीछे को दौड़ गई.
"नामर्दो बेबस स्त्री कि इज़्ज़त लूटते हो " पीछे इंस्पेक्टर काम्या खड़ी थी हाथ मे पिस्तौल लिए.
" ख़बरदार कोई आगे बढ़ा तो सीने मे गोली उतार दूंगी " काम्या फूंकार रही थी उसे कतई बर्दाश्त नहीं था कि मर्द जात स्त्री कि मज़बूरी का फायदा उठाये.
जलन सिंह और सर्पटा मे भले लाख ताकत हो लेकीन काम्या के रोंध रोप के सामने उनकी घिघी बंध गई थी.
"बहादुर जल्दी कर रस्सी खोल सबकी " बहादुर अभी आगे बढ़ता ही कि
धाड़.......ठाक.......काम्या के सर पे एक तेज़ लठ का प्रहार हो गया....
"रररऱ......ररररम....लखन तू " काम्या अपने होश ना संभाल सकी,पहली बार उसने किसी पुरुष से मात खाई थी.
जमीन पे ओंधे मुँह गिरी काम्या अचेत थी लेकीन आंखे खुली हुई थी.
"हाहाहाहा....क्या देख रही है साली रामलखान शुरू से ही हमारा आदमी था " जलन सिंह दहाड़ उठा.
नंगी करो इस साली को भी,देखे तो कितना दम है इसकी चुत मे "
जीत वापस से हार मे तब्दील हो चली थी.

"देख क्या रहे हो फाड़ो कपड़े इन तीनो के " शर्म और हार से नागेंद्र वीरा के सर झुक गए वो तो अपनी मौत कि इच्छा कर रहे थे ये दृश्य देखने से पहले..
"अरे भाई ठाकुर जलन सिंह उर्फ़ डॉ.असलम रुको भी जरा इतनी भी क्या जल्दी है कपड़े उतारने कि " हवेली के आंगन मे एक चिरपरिचित आवाज़ गूंज उठी.
रूपवती कि रूह ही कांप गई इस आवाज़ को सुन के "भा...भा.....भा.....भाई......."
लेकीन आस पास कोई नहीं था सिर्फ आवाज़ थी, जलन सिंह के होश फकता थे कि मेरा ये राज कौन जानता है.
"चौको मत डॉ.असलम.......हाहाहाहाहा.......धदाम.......हिस्स्स्स......ठाक.....से एक इंसानी जिस्म आंगन के बीचो बीच कूद आया जैसे तो हवा से प्रकट हुआ हो.
"तततततत......तुम.....तुम जिन्दा हो लेकीन कैसे?" जलन सिंह के चेहरे पे हवाइया उडी हुई थी.
"चोर मंगूस भला कभी मर सकता है,हाहाहाहा......एक आठहस....गूंज उठा हवेली के आंगन मे,लालच बहुत बड़ी चीज है ठाकुर, इंसान को मार भी देती है और बचा भी लेती है "
सर्पटा के अलावा वहाँ मौजूद हर शख्स के होश फकता हो गए थे चोर मंगूस को अपने सामने पा के.
"बहादुर सभी कि रस्सी खोल दो.....इनकी दोनों कि मौत आ गई है "
काम्या के जख़्मी होने से जहाँ बहादुर दुम दबाये बैठा था ना जाने कैसे मंगूस के हुक्म ने उसके बदन मे जान फूँक दि,बहादुर तुरंत उठ खड़ा हुआ...
" तो जलन सिंह उर्फ़ डॉ.असलम हुआ यूँ कि उस दिन जब तुमने ठाकुर ज़ालिम सिंह और मुझे दफ़नाने भेजा था...
रास्ते मे...
अमवास कि पहले कि रात
"देख भाई बिल्लू...ठाकुर ज़ालिम सिंह तो मर गया,मेरे से नागमणि भी जलनसिंह ने छीन ली,अब मै बेचारा किस काम का?"
बिल्लू :- नहीं नहीं.....हमने सुना है तू खतरनाक आदमी है,तुझे भी ठाकुर के साथ दफना देंगे.
मंगूस :- मुझे मार के तुम लोगो को क्या मिलेगा? डॉ.असलम को तो नागमणि मिल ही गई,कामवती को भी पा ही लेगा लेकीन तुम तीनो का क्या....अब तो भूरी काकी भी नहीं है जिसके साथ तुम लोगो ने मजे लिए

कालू :-....ततट....तुम भूरी काकी के बारे मे कैसे जानते हो.
मंगूस :- जनता तो मै सब हूँ दोस्त....लेकीन सवाल वही है क्या जिंदगी भर ऐसे ही गुलामी कि जिंदगी जियोगे ठाकुर के टुकड़ो पे?
मंगूस कि छल भारी बातो से तीनो का दिमाग़ हिल गया,तीनो ही सोच मे डूब गए.
मंगूस :- सोचो मत ये...लो....मंगूस ने अपने कपड़ो से एक पोटली निकाल के बिल्लू के हाथ मे थमा दि.
बिल्लू ने जैसे ही पोटली खोली तीनो कि आंखे रौशनी से जगमगा गई.
"सोने के सिक्के " तीनो के मुँह से एक साथ निकला..
मंगूस :- हाँ दोस्तों सब तुम्हारा है, मै तो अब इस गांव मे दिखूंगा भी नहीं, आखिर जान मुझे भी प्यारी है.
मंगूस अपनी चाल मे कामयाब हो चूका था.

मंगूस के जिन्दा बचे रहने कि कहानी सुन सभी सकते मे थे..
"हरामियों.....जलन सिंह तलवार ले खड़ा हो गया खच....खच....खच.....एक एक प्रहार मे तीनो कि गर्दन अलग हो गई
मंगूस मुस्कुरा रहा था, वो अभी भी चाल ही चल रहा था.
कि तभी शांत बैठा सर्पटा कि पूँछ सरसरा उठी....."धोखेबाज जलन सिंह तेरे पास नागमणि है और तूने मुझे नहीं दि "
सर्पटा कि कुंडली जलन सिंह को गिरफ्त मे लेने लगी.
"नहीं...नहीं....सर्पटा हुजूर मै बताने ही वाला था.....ये...लो.....ये लीजिये नागमणि " जलन सिंह मौत के भय से कांप उठा,तुरंत ही नागमणि निकाल सर्पटा कि ओर उछाल दि.
"आआहहहह......कब से इसका इंतज़ार था मुझे " सर्पटा ने नागमणि तुरंत लपक ली और मस्तक पे स्थापित भी कर ली.
सभी को मौत अब साफ नजर आ रही थी.....
"सबसे पहले तेरी ही मौत है लड़के,तू शातिर इंसान है " सर्पटा कि कुंडली मंगूस को भींचने के लिए आगे बढ़ गई....परन्तु जैसे ही छुआ....."आआहहहहहह.......एक तगड़ा झटका सा लगा,जैसे प्राण ही निकल जायेंगे,सर्पटा के मुँह से चीख निकल गई, उसकी कुंडली वापस से सिमटती चली गई.
"ये.....ये...क्या हुआ " सर्पटा और जलन सिंह दोनों हैरान थे.
"अबे बूढ़े सपोले अब नकली नागमणि ले के असली मणि धारक को छुवेगा तो मरेगा ही ना हाहाहाहा....
जलन सिंह :- ककककक....क्या मतलब?
मंगूस :- मतलब ये कि मै जानबूझ के ही पकड़ाई मे आया था, तुझे निश्चित करना जरुरी था कि नागमणि तेरे ही पास है,
मैंने दिन मे ही मणि बादल दि थी,और नकली तुझे थमा दि.
ये है असली नागमणि...मंगूस ने अपनी जेब से केंचूलिनमे लिपटी नागमणि बाहर निकाल दि.
आंगन मे मणि कि चमक बिखर गई.
सर्पटा सामने नागमणि को देख एक बार फिर मंगूस कि ओर लपका कि....."सररररर.......मंगूस ने अपना हाथ उछाल दिया जिसकी अमानत है उसके पास ही जाएगी.
नागमणि सीधा नागेंद्र के मस्तक पे जा टिकी.
काद्दफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.....कड़क.....कड़ाक....वातावरण मे बिजली कोंध उठी,अचानक ही बादल घिर आये..
नागेंद्र अपने अर्ध सर्प रूप मे आने लगा,.
"हाहाहाःहाहा......तुम सच्चे मित्र हो मंगूस " नागेंद्र का विशालरूप सर्पटा को अपने आगोश मे कसने लगा,
आज तक नागेंद्र का ऐसा रूप किसी ने नहीं देखा था.
बहादुर सभी के बंधन खोल चूका था.
वीरा के हाथ उठ गए थे, जमीन पे पड़ी तलवार उसके हाथ कि शोभा बढ़ा रही थी....कच्छह्ह्ह्हब्ब....खच......एक भयंकर प्रहार और तलवार जलन सिंह के सीने को पार कर आंगन मे धस गई थी.


सर्पटा दर्द से कांप रहा था "नागेंद्र मेरे बेटे.....मै तेरा बाप हूँ, हम मिल के राज करेंगे,छोड़ दें अपने बाप को "
नागेंद्र :- तू बाप के नाम पे कलंक है,जिस स्त्री को बहु बनाना था उसका बलात्कार किया,उस से भी पेट नहीं भरा उसकी कामना को जीता रहा,और आज फिर वही दूससाहस करना चाहा.
तेरी मौर्या निश्चित है.....नागेंद्र कि कुंडली कसने लगी.
"नहीं नागेंद्र.....ये मेरा शिकार है " घुड़वती ने पास पड़ी तलवार उठा ली

खाक्कक्क्सह्ह्ह्हह्ह.....खच......पल भर मे सर्पटा का सर नीचे जमीन चाट रहा था.
रामलखन कबका मौका देख वहाँ से भाग छूटा था.
हवेली मे अजीब सन्नटा छा गया था.
"भाई....भाई......मेरे भाई....सुबुक...सुबुक....." रूपवती दौड़ के मंगूस के गले जा लगी.
"मुझे माफ़ कर दें भाई मेरी जिद्द मेरे लालच ने तुझे मौत के मुँह मे पंहुचा दिया था "
मंगूस :- दीदी आप तो मेरी जान हो आपके लिए कुछ भी कर सकता है आपका भाई, मुझे बस दुख है कि मै आपकी इच्छा पूरी नहीं कर सका और आजतक कोई पैदा नहीं हुआ जो चोर मंगूस को उसकी मर्ज़ी के बिना पकड़ सके.
"अच्छा ऐसी बात तुम आज और अभी गिरफ्तार हो महान चोर मंगूस " पीछे एक पिस्तौल मंगूस से आ सटी.
काम्या को होश आ गया था, उसकी पिस्तौल मंगूस के सर पे टिकी हुई थी.
हाहाहाहाहा..... सभी मौजूद लोग हॅस पड़े.
काम्या :- अच्छा ठकुराइन हम चलते है,हमारा काम तो इस चोर ने ही कर दिया, काम्या जैसे खफा थी.
रूपवती :-अभी नहीं काम्या...आज तुम हमारी मेहमान हो, ये जश्न का मौका है,और हम तुम्हे आमंत्रित करते है.
नागेंद्र :- आपने ठीक कहाँ ठकुराइन.....आज जश्न का अवसर है,क्यूंकि आज मंगूस से किया वादा पूरा करने का वक़्त आ गया है, जिसके लिए ये सब हुआ वो अब होगा,आपको आपका सौंदर्य मै दूंगा.
नागेंद्र कि बात सुनते ही रूपवती शर्मा गई....अपने भारी बदन को लिए,धाड़ धाड़ करता उसका दिल....उसके पैर कमरे कि ओर भाग चले.
कामवती वीरा कि बांहों मे थी,
सभी रूपवती कि खुशी को देखते ही रह गए.

कुछ समय बाद
अँधेरी रात शबाब पे थी, हवेली मे उत्सव का माहौल था.
हवेली के आंगन मे रूपवती टांगे चौड़ी किये लेटी थी,वही नागेंद्र कि कोमल जीभ उसकी मोटी जांघो के बीच काली चुत को कुरेद रही थी.
"आआहहहह......उफ्फ्फ.....नागेंद्र......" रूपवती कि कामुक चीख हवेली कि शोभा बढ़ा रही थी.
अब भला ऐसे कामुक दृश्य को देख कोई कैसे खुद पे काबू पाता.
कामवती का स्वतः ही वीरा के विशालकाय लंड को टटोलने लगा, कामवती भी जन्मो कि प्यासी थी.
कुछ ही देर मे वीरा का लंड कामवती कि गांड कि धज्जियाँ उड़ा रहा था,नागेंद्र पूरी सिद्दत से रूपवती कि चुत का भोग लगा रहा था.
काम्या भी खुद को ना रोक सकी....बहादुरबक लिए जो प्रेम पनपा था उसने अपना असर आखिर दिखा ही दिया,बहादुर पूरी बहदुरी से काम्या कि गांड और चुत को चटखारे ले के चाट रहा था.
ये सब दृश्य देख घुड़वती कि चुत भी खुजलाने लगी थी,मौका ही ऐसा था कुंवर विचित्र सिंह उर्फ़ चोर मंगूस कहाँ पीछे रहता,आज वो इस कामुक कमसिन घोड़ी कि सवारी कर रहा था.
ये सिलसिला रात भर.....चलता रहा.....
सूरज कि पहली किरण ने सभी के चेहरे को भिगो दिया.
"चलो उठो सभी लोग....सुबह हो गई.....एक मदहोश कामुक आवाज़ सुन सभी उठे, आंख मचलते हुए.....
सामने एक अप्सरा खड़ी थी,कामुक बदन,काले बाल, माथे पे बिंदी,गोरा जिस्म, भरा हुआ बदन.....
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"ठ...ठ....ठा....ठकुराइन रूपवती आप " सभी के मुँह से एक साथ यहीं निकला.

समाप्त


क्या वाकई लेकीन कोई भी कहानी कभी ख़त्म नहीं होती,
भविष्य में क्या छुपा है कोई नहीं जनता.

दृश्य -1
साल 2022
आधुनिक भारत
भव्यता से भरा हुआ भारत,
जिला मुरादाबाद
रात का समय.....
"हिचहह......साले.....हिचहह....आज लेट हो गए देख रात हो गई है,रास्ता सुनसान है "
हाँ रामु बात तो सही है...तुझे पता है कभी इस जगह को मुर्दाबाड़ा काबिला कहते थे हिचहहह....हिचहह

दो शराबी दोस्त दारू कि बोत्तल हाथ मे लिए झूमते जा रहे थे.
"अबे बिल्लू डराता क्यों है,कितना अजीब नाम है मुर्दाबाड़ा हिचहहह.....
"ये तो कुछ भी नहीं मेरे दादा जी बताते थे कि यहाँ कभी एक काबिला था जो जिन्दा औरतों को मौत से भी बदतर मौत दिया करता था हिच......"
रामु का कलेजा कांप गया ये बात सुन के.....
"चल बे ऐसा कुछ नहीं होता हीच.....गुटूक.....रामु ने एक घुट और खिंच लिया

कि तभी सामने से एक आकृति चली आ रही थी.
"अबे बिल्लू वो सामने देख कोई आ रहा है,औरत लगती है कोई?" रामु के चेहरे पे रौनक आ गई.
"हाँ बे औरत ही है चल....आज तो मजा आ गया,बहुत दिन से किसी औरत को चोदा नहीं है हिचहह.....
दोनों दोस्त उस औरत के पास पहुंच गए.....आये हाय...क्या औरत है यार शहर कि कोई मेमसाहेब लगती है.
"क्या मैडम कोई दिक्कत,कहाँ जाना है? क्या नाम है आपका?"
बिल्लू ने लगभग एक साथ सरे सवाल दाग़ दिये

सामने एक दिलकश चेहरे मोहरे कि औरत खड़ी थी, कसा हुआ बदन, कामुक जिस्म, भरा हुआ बदन.
लेकीन जवाब कोई नहीं आया
"बोल ना बे क्या नाम है तेरा " रामु ने उस औरत का हाथ पकड़ लिया.
"कक...कामरूपा....."औरत ने अपना पल्लू हटा दिया.


आआहहहह........नाहीइ।....नहीं......बचाओ..... सुनसान रास्ता दोनों दोस्तों कि चीख से गूंज उठा.

दृश्य -2

विषनगर
आज के समय का महानगर.
"देखो आज हमें सौभाग्य मिला है इस एंटीक कलाकृति,वस्तुओ को अपने शहर मे प्रदर्शनी करने का, इसकी जिम्मेदारी हम पर है कि कोई सामान यहाँ सही सलामत ही रहे.
विषनगर कलकृति केंद्र का मैनेजर अपने सिक्योरिटी गार्ड को सम्बोधित कर रहा था.
आज विषनगर मे एंटीक चीज़ो कि प्रदर्शनी लगीहै है , दूर दूर से लोग देखने आने वाले है .
सभी के आकर्षण का केंद्र वो चमकता हिरा था जिसके बारे मे अफवाह थी कि ये नागमणि है

"यार श्याम क्या सच मे ये नागमणि है "
"फालतू बात करता है यार तू राधे...ऐसा भी कहीं होता है,ये अफवाह प्रदर्शनी वाले ही उड़ाते है ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग आये और उतनी ही कमाई हो"
दोनों सिक्योरिटी गार्ड रात कि ड्यूटी बजा रहे थे.
"सही बोला श्याम...ये सच मे नागमणि होती तो हम ही इसे चुरा लेते हाहाहाहाहा......
कहते है ना शुभ शुभ बोलना चाहिए ना जाने कब जबान पे सरस्वती विराजमान हो.
धापललल......धप......अचानक ही हॉल मे अंधेरा छा गया.
"अरे राधे ये बिजली को क्या हुआ,जल्दी एमरजेंसी लाइट जला "
राधे अभी लाइट जलाता ही कि धप....से बिजली वापस आ गई....
मात्र 5सेकंड का समय बिता होगा.
परन्तु लाइट आते ही राधे और श्याम कि आंखे फ़ैल गई, पैर कांप गए......
जा.....जा...जल्दी साहब को फ़ोन कर......
बता कि वो हिरा गायब है जिसे सब लोग नागमणि कहते है.
सब कुछ सही सलामत है,बस जहाँ वो हिरा रखा वहाँ एक कार्ड रखा है.
दूसरी तरफ फ़ोन पे :- कैसा कार्ड? क्या लिखा है?

लिखा है......


"चोर मंगूस"


समाप्त.....



दोस्तों फिर कभी मिलेंगे,कामरूपा और चोर मंगूस कि कहानी ले के,आधुनिक भारत मे..तब तक के लिए tata


आप सभी का प्यार इस कहानी को मिला उसके लिए तहे दिल से शुक्रिया.
❤️❤️❤️❤️🙏🏼
 
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दोस्तों ऐसी ही कामुक कहानी पढ़ने के लिए यहाँ आये.
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चैप्टर-1 ठाकुर कि शादी, अपडेट 2
समय रात के 9बजे
स्थान काली पहाड़ी, डाकू रंगा बिल्ला का अड्डा
images

Intro
रंगा बिल्ला बचपन से ही दोस्त थे, जो काम करते साथ ही करते
बचपन से ही गलत कामों मे लग गये थे, ना जाने कितना लूटा, बलात्कार, चोरी सब किया.
दोनों ही चोदने मे एक्सपर्ट थे, हो भी क्यों ना दोनों के पास ही 10इंच का भयंकर लंड था.
खास बात भी यही थी कि जिसे भी चोदते एक साथ ही चोदते.
दोनों कि hight 6.5फ़ीट, चौड़ा सीना, मजबूत भुजाये
राक्षस से कम नहीं थे बिल्कुल भी, काम से भी राक्षस और स्वभाव से भी राक्षस
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रंगा

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यार बिल्ला बहुत दिन से कोई बड़ा हाथ नहीं मारा, कब तक ऐसे ही चिल्लर से काम चालाना पड़ेगा?
बिल्ला :- हाँ यार रंगा कोई बड़ा मुर्गा मिल ही नहीं रहा साला किस्मत ही ख़राब है.
दारू भी देसी ही पीनी पड़ रही है, एक एक पैग तो बना.
रंगा ने एक गिलास मे देसी दारू डाली और दोनों चूसकने लगे और गहरी सोच मे डूब गये

तभी एक भीनी भीनी खुसबू कमरे मे फ़ैल जाती है और मधुर मीठी आवाज़ कमरे मे गूंजती है, मालिक मालिक मै खाना ले आई
और एक खबर भी है, ऐसी खबर कि आप लोग ख़ुश हो जायेंगे
रंगा बिल्ला :- आओ हमारी रखैल आओ क्या लाइ हो?
ये है रुकसाना बैगम, कामगंज गांव मे ही रहती है
कामगंज गांव के मौलवी कि विधवा बेटी,इसका पति परवेज खान बच्चा पैदा करने से पहले ही डाकुओ के हाथ मारा गया.
देखने मे एकदम गोरी, लम्बे काले बाल, गुलाबी होंठ
पूरी अप्सरा
उम्र 24साल, hight 5.5इंच
कमर 28 कि बलखाती, स्तन 34 उछाल भरते हुए, गोल गोल कोई लचीलपन नहीं
गांड 38 कि बाहर निकली हुई चलती है तो आदमियों के लंड पानी छोड़ देते है
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रुकसाना को आया देख के रंगा बिल्ला धोती के ऊपर से ही लंड सहलाने लगे, क्या खूबसूरत थी रुखसाना देखते
ही लंड खड़ा हो जाता था.

रुकसाना :-मालिक मेरे होते हुए अपने हाथो को क्यों तकलीफ देते है, ऐसा बोल के रुकसाना दोनों के बीच मे बैठ के धोती के ऊपर से ही दोनों के लंड सहलाने लगी
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"मालिक आपकी ये रंडी आपके लिए चिकन लाइ है और खबर भी"
रंगा :- क्या खबर है छिनाल?
मालिक मेरे गांव मे रहने वाले किसान रामनिवास कि लड़की कि शादी पास के गांव ठाकुर ज़ालिम सिंह से होने वाली है.
सुना है ठाकुर मंगलवार को रामनिवास के घर शादी कि तारीख फिक्स करने आएगा.
बोलते बोलते रुकसाना ने दोनों के लंड बाहर निकल लिए और खेलने लगी.
बिल्ला :- वाह क्या खबर लाइ है मेरी रांड वाह दिल ख़ुश कर दिया, आज रात भर तुझे इनाम देंगे तुझे ऐसी खबर सुनाने के लिए.
रुकसाना के चेहरे पे वासना और शर्माहाट के मिले जुले भाव थे.
उसे आज भी याद है जब वो विधवा होके अपने मायके वापस आई थी
उसकी तो दुनिया ही लूट चुकी थी.
एक दिन रंगाबिल्ला के पीछे पुलिस लगी थी और दोनों किस्मत से मौलवी साहेब के घर घुस आये थे
यही पर पहली बार रुकसाना को देखा तो देखते ही रह गये क्या जवानी थी क्या हुस्न था रुकसाना का
दोनों डाकू अपना आपा खोचुके थे, रात भर रंगा बिल्ला ने रुकसाना को जम के चोदा.
गांड चुत सब फाड़ के रख दिया
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अगले दिन जब रुखसाना उठी तो रंगा बिल्ला जा चुके थे परन्तु रुखसाना के चेहरे पे खुशी थी
उसी वो संतुष्टि मिली थी जो आज तक कभी उसके पति से भी ना मिली
दुख भरी जिंदगी मे बाहर आ चुकी थी, सावन जम चूका था
तब से ही रुखसाना रंगा बिल्ला कि सेवा मे तत्पर थी वो उन दोनों के लंड कि दीवानी थी
उसे वो दोनों लंड दिनरात अपनी चुत और गांड मे चाहिए था.
रुखसाना :-मेरे मालिकों मै तो कब से आपके इनाम कि ही राह देख रही हूँ आज जम के चोदीये मुझे
रात भर कस कस के चोदीये
रंगा :- तेरी यही अदा तो हमें दीवाना बनाती है.
रंगा बिल्ला ने अपनी धोती अपने शरीर से अलग कर दी
अब दोनों ही पूर्णतया नंगे थे
ऐसा लगता था जैसे दो काले भसण्ड राक्षसों के बीच कोई गोरी गुलामी चमड़ी कि
परी फस गई हो
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बिल्ला :- आजा मेरी जान देख कैसे ये लंड तेरे प्यार के लिए तरस रहा है.
रुखसाना तुरंत अपने घुटनो पे झुक गई और बिल्ला के लोडे को बिना हाथ लगाए ही सूंघने लगी
उसे ये खुसबू बहुत पसन्द थी, लंड कि खुसबू उसे मदहोश करती थे
रुखसाना ने धीरे से अपना सीधा हाथ बिल्ला के टट्टो पे रख लिया और सेहलाने लगी
टट्टे थे कि टेनिस बॉल, पता नहीं कितना वीर्य भरा पडा था इन टट्टो मे
रंगा :- मुँह खोल छिनाल चूस लोडे को, दारू कि चुस्की लेते लेते रंगा दोनों को देखते हुए बोल रहा था

रुखसाना भी बड़ी अदा से बिल्ला का लंड चाट रही थी जैसे कोई कुतिया हो.
अब धीरे धीरे बड़ी मादक अदा के साथ रुखसाना ने अपनी गांड रंगा कि तरफ घुमा दी और होले होले अपनी
38 कि उछलती गांड हिलाने लगी जैसे रंगा को निमंत्रण दे रही हो
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ये कला रुखसाना मे रंगा बिल्ला से पहली बार सम्भोग के बाद ही उत्पन्न हुई थी वरना तो उसका पति सिर्फ लहंगा उठा के पेल
देता था सिर्फ, उसके भी लगता था कि यही सम्भोग है.
परन्तु नियति ने उसे रंगा बिल्ला से मिलवाया, रुखसाना को अहसास हुआ कि सम्भोग मे मजे लेने है तो पहले मजे देने भी होंगे.
सम्भोग का आनंद तब ही है जब बेशर्म रांड बन के चुदवाया जाये.
रंगा :- वाह मेरी रांड वाह क्या अदा है तेरी, क्या गांड है मन करता है अभी लंड पेल दू.
रुखसाना :- तो पेल दीजिये ना मालिक रोका किसने है?
रंगा :- चुप रांड मालिक से जबान लड़ाती है, तुझे तो पेलुँगा ही लेकिन अपने तरीके से
ये बोल के रंगा बिल्ला एक दूसरे को देख के हॅसने लगे
अब देखना है कि रुखसाना कैसे चुदती है? कितना दम है रंगा बिल्ला के लोडे मे?
कथा जारी है
Superb...
 

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