Adultery किस्सा कामवती का

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चैप्टर 1, ठाकुर कि शादी, अपडेट 5

काली पहाड़ी से 2km दूर मंदिर मे रूपवती तांत्रिक कि तरफ बढ़ती है और हाथ जोड़ के धन्यवाद करती है
रूपवती :- धन्यवाद बाबा मुझमे विश्वास पैदा करने के लिए, मेरे अंदर कि नारी को जगाने के लिए
मै आपका आर्शीवाद जरूर प्राप्त करूंगी, आपका वीर्य ग्रहण करूंगी
तांत्रिक :- इतना आसान नहीं होगा ठकुराइन मेरा आशीर्वाद पाना
रूपवती :- मै इस कुरूपता को त्यागने के लिए कुछ भी कर सकती हूँ बाबा, उस ठाकुर ज़ालिम सिंह ने मुझे मेरी कुरूपता कि वजह से त्यागा है उसको सबक सिखाने के लिए, असली रूपवती बनने के लिए मै किसी भी हद तक जा सकती हूँ
ऐसा सुन के तांत्रिक उलजुलूल अपने स्थान पे बैठ गया, जो कि पत्थर का कुर्सीनुमा सिंघासन था
तांत्रिक अपने दोनों पैर फैला के बैठ गया जिस वजह से उसका 12इंच का लिंग दोनों पैर के बीच किसी सांप कि तरह झूल रहा था

ये नजारा देख रूपवती सिहर उठती है साथ ही मन मे एक मदहोसी सी उठती है इतने बड़े लिंग को देख कर
रूपवती आगे बढ़ती है और पास रखे कटोरे को तांत्रिक के लिंग के नीचे रख देती है और बाबा को प्रणाम करती हुई पीछे हटती है..
आज उसे वो काम करना था जो आजतक नहीं किया था
रूपवती तांत्रिक कि आँखों मे देखती है और धीरे से अपनी साड़ी का पल्लू सरका देती है जिस वजह से रूपवती के बड़े बड़े काले स्तन कि घाटिया उभर के सामने आ जाती है
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तांत्रिक एक टक स्तन को घूरने लगता है लेकिन चेहरे पे कोई भाव नहीं आता, आंखे पथराई सी रहती है.
रूपवती मन मे :- कैसा पत्थर इंसान है ये तांत्रिक
साथ ही अब अपनी पूरी साड़ी खोल चुकी थी, रूपवती समझ चुकी थी कि ये उसकी परीक्षा है उसे अपने शरीर से एक पत्थर को पिघला के उसका रस निकालना था.

वही रंगा बिल्ला के अड्डे पर रुखसार कामवासना मे जल रही थी, हवस से उसकी आंखे लाल हो गई थी उसकी चुत और गांड मे लगातार रंगा और बिल्ला कि जबान चल रही थी
दोनों ही उसकी गांड से शराब निकाल लेना चाहते थे.
रंगा अपनी जीभ को आगे से तिकोना करता है और पूरीजीभ रुखसाना कि चुत मे घुसा के आगे पीछे करने लगता है
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रुखसार के धैर्य का अब कोई ठिकाना ही नहीं था, फिर भी अपनी गांड को पूरी ताकत से भींचे अपने स्खलन को रोके हुए थी.
लज्जत से आंखे बंद थी ऐसा लग रहा था कि कोई तूफान गांड और चुत मे कैद है जो किसी भी कीमत पे आज़ाद होना चाहता है.
इधर बिल्ला रुखसाना कि गांड को चाट रहा था अपनी जीभ घुसाने कि कोशिश कर रहा था लेकिन रुखसाना पूरी ताकत से गांड भींचे आनंद कि चरम सीमा पे थी, कामवासना मे डूबा ऐसा बम थी जो कभी भी फट सकता था.परन्तु इस बम के फटने मे असीम आनंद था वो आनंद जो शारब का नशा भी देता
बिल्ला पूरी कोशिश करता है परन्तु सफल नहीं हो पाता वो अपना पूरा मुँह खोल के गांड के छेड़ के इर्द गिर्द कब्ज़ा कर लेता है जैसे खा ही जायेगा
रंगा ने भी बिल्ला को देखते हुई पूरी चुत मुँह मे भर ली और चुत के दाने को मुँह मे ले के जोर से दबा दिया....

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आआआ हहहह ..... नहीं आआआ हहहहहह
किसी शेरनी कि गर्जना करती रुखसाना भरभरा के रंगा बिल्ला के मुँह मे झड़ने लगी....
फट फट .... फुर्रररररर कि आवाज़ के साथ गांड खुल गई और ढेर सारी शराब तेज़ प्रेशर के साथ सीधा बिल्ला के मुँह मे जाने लगी, और कुछ नीचे रिसती हुई चुत के रास्ते रंगा के मुँह मे जाने लगी.
रुखसार बैदम सी निढाल ही के आगे को पसर गई लेकिन बिल्ला ने गांड को सहारा दे के उसे ऊपर कि तरफ ही टांगे रखा
और गांड से निकली शराब पिने लगे.
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एक भी बून्द जमीन मे नहीं गिरने दी,खूब चाट चाट के चूस चूस के जीभ गांड के अंदर डाल के, मुँह से खींच खींच के दोनों ने खूब शराब पी
शराब पिने ने ऐसा आनंद आज तक नहीं आया था....
जब पूरी शराब ख़त्म ही गई तो बिल्ला ने रुखसाना को छोड़ दिया.
रुखसाना किसी कटे पेड़ कि तरह ढह गई, लम्बी लम्बी सांसे खींचने लगी
ऐसा स्खलन उसे आज तक नहीं मिला था वो अंदर तक तृप्त हो चुकी थी.
अब रंगा बिल्ला शराब के नशे मे धुत रुखसाना को हाफ्ता देख रहे थे.... और जोर का ठाहका लगा रहे थे.
लंड अभी भी दोनों के बराबर खडे थे, आंखे हवस से भरी हुई थी...
रुखसाना समझ चुकी थी अब आगे क्या होना है


काली पहाड़ी से दूर मंदिर मे रूपवती अब सिर्फ ब्रा और पैंटी मे थी, तांत्रिक भी उसकीकाया देख के हैरान था
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ऐसी स्त्री उसने भी आज तक नहीं देखि थी
रूप वती तांत्रिक के सामने घुटनो पे बैठ जाती है और अपनी एक ऊँगली मुँह मे डाल के कुछ देर चुस्ती है, ऐसे चुस्ती है जैसे कि लंड को और ऐसा करते हुए रूपवती कि नजर तांत्रिक के लिंग पे ही थी
अब वो अपनी ऊँगली को बाहर निकलती है उसपे लगे थूक को तांत्रिक कि तरफ दिखा कर अपने होंठ पे फेरने लगती है
रूपवती खुद नहीं जानती थी कि वो ऐसा कैसे कर ले रही है उसने तो कभी ऐसा देखा सुना ही नहीं था.
अपनी मनमोहनी अदाओ से रूपवती तांत्रिक को रिझा रही थी.
रूपवती अपने होंठो को गोल कर के ऊँगली अंदर बाहर करने लगी, थूक रिसते हुए ब्रा मे कैद स्तन पे गिर रहा था.
इतना थूक गिरा रही थी कि ब्रा गीली हो चली थी.
गिलापन तो नीचे पैंटी मे भी उत्पन्न होने लगा था, रूपवती हैरान थी कि ऐसे कैसे हो रहा है कभी भी इतनी वासना हावी नहीं हुई कि पैंटी गीली हो सके. बिना किसी मर्द के छुए चुत गीली कैसे हो रही है.
क्युकी ठाकुर साहेब के साथ तो सम्भोग ना के बराबर ही था,
वासना मे डूबी रूपवती आज कुछ भी कर गुजरने को तैयार थी
रूपवती अपने काले घने बालो को खोल के लहरा देती है और दोनों हाथ सर के पीछे रख अपनी काली कांख(armpit) दिखाते हुए तांत्रिक कि आँखों मे देखती है...
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वासना से भारी आँखों से देखते हुए रूपवती अपनी नाक कांख के करीब लाती है और एक गहरी सांस लेती है आज ये खुसबू उसे मदहोश कर रही थी, पसीने और इत्र कि मिली जुली खुसबू मंदिर के इस छोटे से गुफा नुमा कमरे मे फ़ैल जाती है.
ये खुसबू तांत्रिक कि नाक मे पहुँचती है, तांत्रिक हल्का सा विचलित होता है परन्तु इस विचलन को रूपवती भांप नहीं पाती और अपनी जीभ निकल के पता नहीं किस आवेश मे अपनी कांख चाटने लगती है
आज तक ये काम घृणाप्रद था परन्तु आज यही काम सुख प्रदान कर रहा था.
काम वासना मे औतप्रोत रूपवती पूरी जीभ निकाल के अपनी कांख ऊपर नीचे चाटने लगती है और एकटक तांत्रिक कि आँखों मे देखती रहती है.
ऐसा ही वो अपनी दूसरी कांख के साथ करती है दोनों ही कांख थूक से पुरे गीले हो चुके थे, जबान थी कि फिसले ही जा रही थी, रूपवती कि शरीर बेहद गरम होने पे आया था ऐसा लगता था जैसे रूपवती जल के खाक हो जाएगी...
कथा जारी है
 
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अपडेट 5 contd....

अब ये गर्मी सहन से बाहर थी रूपवती अपनी एडियों के बल बैठ जाती है और पीछे हाथ ले जा के अपनी ब्रा का हुक खोल देती है

अब तांत्रिक भी बैचेन होने लगता है उसे कुछ देखना था, वो खजाना देखना था जो पर्दे के पीछे था.
टक.... कि आवाज़ के साथ ब्रा खुल के आगे को लटक जाती है परन्तु रूपवती उसे गिरने नहीं देती और एक हाथ से दोनों स्तन को ढक लेती है और एक हाथ सर के पीछे मदहोसी मे आंख बंद किये अपनी कांख को चाटने लगती है.
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ऐसा शानदार नजारा तांत्रिक क्या उसके पूर्वज ने भी कभी नहीं देखा था.
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तांत्रिक मन मे :- हे देवता ये स्त्री को समझ पाना भी कितना मुश्किल है, किसी ने सही कहाँ है जब कोई घरेलु औरत हवस, कामवासना पे उतर आये तो पत्थर तक़ पिघला दे.
रूपवती तांत्रिक कि आँखों मे देखती हुई धीरे धीरे अपने हाथ स्तन से हटा लेती है....
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आअह्ह्ह.... क्या नजारा था मोटे मोटे सुडोल स्तन धम से तांत्रिक के सामने छलछला गये.
ये नजारा देखते ही तांत्रिक के लिंग ने एक जोरदार झटका मारा और वापस लटक गया.
इस बार लिंग कि ये हरकत रूपवती कि नजर मे आ गई थी.
वो समझ चुकी थी कि वो सही रास्ते पर है... उसे और आगे बढ़ना होगा उसकी मेहनत सफल हो रही है
अब रूपवती भी गरम थी हवस से भरपूर थी, वो अपने घुटने के बल हाथ आगे कर के चौपया हो जाती है, ऐसा करते ही उसके स्तन आगे को लटक जाते है जैसे कोई दुधारू कुतिया हो.

इसी स्थति मे रूपवती घुटनो के बल किसी कुतिया कि तरह जीभ अपने होंठों पे फेरती हुई तांत्रिक कि और बढ़ चलती है और एक दम करीब पहुंच कर अपने दोनों स्तन ऊपर को उठा कर तांत्रिक को दिखाती है
और बारी बारी एक एक स्तन को हाथो से ऊपर नीचे हिला हिला के मादक अदा दिखाती है.
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तांत्रिक ऐसा नजारा देख के दंग रह जाता है उसे लगता है वो अपना कण्ट्रोल खो देगा.
इधर रूपवती खुद हैरान थी कि वो ऐसा कैसे कर पा रही है, लेकिन इसमें एक मजा था, एक कसक थी
रूपवती खुद अपनी हरकत से उत्तेजित होती जा रही थी.
अँधेरी गुफानूमा कमरे मे दिये कि मद्दम रौशनी मे आज कामवासना का खेल अपने चरम पे था.

उधर काली पहाड़ी रंगा बिल्ला के अड्डे पर भी नजारा कुछ कम नहीं था
मादकता चारो तरफ फैली थी शराब और चुत से निकले पानी कि खुसबू कमरे मे फ़ैल गई थी
हाफ़ती हुई रुखसाना को देख के रंगा मुस्कुराता है और उसके मुँह पे जा के बैठ जाता है.
रंगा:- चल रांड गांड चाट मेरी, ऐसा कह के अपनी गली गांड रुखसाना के होंठो पे रख देता है और उसके टट्टे रुखसाना कि नाक मे घुसे जाते है और लंड माथे पर टक्कर देता है
रुखसाना जो अभी अभी बुरी तरह झड़ी थी वो रंगा के लंड और गांड कि खुसबू पा के फिर उत्तेजित होने लगती है.
उसकी खास बात ही यही थी कि वो चुदाई से कभी थकती नहीं थी.
तुरंत अपनी जीभ निकल के रंगा कि गांड के छेद को कुरेदने लगती है बड़ा कसैला स्वाद था परन्तु उसे वो पसंद था.
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इधर बिल्ला चिकेन खाने और दारू पिने मे बिजी था और किसी भैसे कि तरह पड़ा हुआ रंगा कि गांड चटाई देख रहा था.
अब रुखसाना ने अपनी जीभ तिकोनी के रंगा कि गांड मे घुसाने कि कोशिश कि.
रंगा :- वाह रांड वाह तेरा कोई जवाब नहीं चाटने मे भी उस्ताद और चाटवाने मे भी उस्ताद.
रुखसाना :- मालिक सब आप कि ही कृपा है, अपने ही जगाया है मेरे अंदर कि रांड को
रंगा का लंड उत्तेजना मे पत्थर कि तरह कड़क हो जाता है और उछाल उछाल के रुखसाना के माथे पे चोट करने लगता है.
अब रुखसाना रंगा के टट्टे मुँह मे भर के चूस राही थी.

बिल्ला :- रांड मेरा भी चूस ले, या आज रंगा को ही पीयेगी. हाहाहाहाहा
इतना बोल के जमीन पे लेती रुखसाना के मुँह के पास आ के बैठ जाता है और अपने लंड कि चोट उसके गालो पे करने लगता.
रंगा अपना लंड रुखसाना के मुँह मे ठूस देता है बिल्ला भी कहाँ पीछे रहने वाला था

बिल्ला :- ले रांड मेरा लंड भी ले मुँह मे
अब रुखसाना के लिए एक लंड लेना ही मुश्किल था दो दो कैसे घुसाती मुँह मे, फिर भी कोशिश करती है और दोनों लंडो को पकड़ के एक साथ चाटने लगती है
रंगा एक हाथ पीछे ले जा के चुत के दाने से खेलने लगता है.
उत्तेजना और लज्जत कि वजह से रुखसाना हद से ज्यादा मुँह खोलती है और एक साथ दोनों लंड को अंदर ले लेती है.
अब हालात ये थे कि रंगा अपना लंड थोड़ा बाहर निकलता तो बिल्ला अपना भारी लंड गले टक ठूस देता, फिर बिल्ला लंड बाहर खींचता तो रंगा अपना भयंकर लंड जड़ तक़ थोक देता.

कमरे मे गु गु गुमममम फच फच कि आवाज़ गूंज रही थी. रुखसाना के मुँह से ढेर सारा थूक निकल निकल के फर्श पे गिरता जा रहा था.

रंगा लगातार रुखसाना कि चुत पे हाथ चलाये जा रहा था दोनों ही कोई रहम दिखाने के मूड मे नहीं थे
तीनो ही परम आनद कि चरम सीमा पे थे.
करीबन आधे घंटे हो गये थे मुख चुदाई को अब रंगा बिल्ला झड़ने वाले थे.
धप घप घप.... आअह्ह्ह आअह्ह्ह
हुंकार भरते हुए रंगा बिल्ला स्खालित होने लगे, मारे उत्तेजना के दोनों ने एक साथ ही अपना लंड रुखसाना के गले मे झाड तक़ ठूस दिया दोनों के टट्टे बुरी तरह रुखसाना के चेहरे पे दब गये थे.

भल भला के दोनों का वीर्य रुखसाना के गले और मुँह मे भरने लगा... एक मिनट तक़ दोनों ही अपने टट्टो को खाली करते रहे.
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पूरी तरह खाली होने के बाद दोनों रुखसाना के अजूबाजू ढह जाते है.
रुखसाना खासती घरघारती बेचैनी से पेट के बल पलट जाती है, उसकी सांसे किसी धोकनी कि तरह चल रही थी सारा वीर्य उसके पेट मे जा चूका था एक बून्द भी व्यर्थ नहीं गया था.
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रुखसाना तो वीर्य पी चुकी थी.
क्या रूपवती भी वीर्य पी पायेगी?
बने रहिये..... रूपवती कि अदाओ के साथ जल्दी मिलेंगे
 
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चैप्टर -1, ठाकुर कि शादी, अपडेट -6

कालीपहाड़ी के मंदिर मे
रूपवती तांत्रिक के सामने अपने स्तन को हिला हिला के रिझा रही थी आज वजन कुछ ज्यादा ही बड़ गया था उसके सतनो का
निप्पल बिल्कुल टाइट हो के खड़े थेजिन्हे रूपवती ऊँगली और अंगूठे मे पकड़ के कुरेद रही थी.
रूपवती अपने दाएं स्तन को उठा के अपने मुँह के पास लाती है और जीभ बाहर निकल के निप्पल पे रख देती है, ऐसा करते ही लज्जत हवस से उसकी आंखे बंद हो जाती है.
एक सुकून था जो कि आज तक़ कहाँ छुपा था पता नहीं, रूपवती आंखे बंद कर निप्पल को चाटती है और उसकी मुँह से आह आआह निकल जाती है.
इस आह मे एक आह और शामिल थी जो तांत्रिक के मुँह से निकलती है ऐसा नजारा देख आहहहह फुट ही पड़ती है.
परन्तु तांत्रिक कि आह, रूपवती के हवस भारी गुरराहट मे दबा जाती है
रूपवती कहाँ थी किसके सामने थी उसे कुछ नहीं पता था उसे बस अपने शरीर से खेलने मे आनंद प्राप्त हो रहा था वो इस खेल को पूरा खेल लेना चाहती थी.
इसी चाहत मे वो अपना बाया स्तन पकड़ के अपने मुँह मे लगा देती है और निप्पल को अपने दांतो तले चबाने लगती है.
ऐसा लगता था जैसे उसमे दूध बह रहा हो और वो एक एक बून्द चूस लेना चाहती हो.
अपनी जबान से लगातार बारी बारी दोनों निप्पल्स को कुरैदे जा रही थी... आज एक अलग ही भूख जग गई थी रूपवती के तन बदन मे.
इस गर्मी और हवस से तांत्रिक का बचे रह पाना भी नामुमकिन था.
रूपवती बदहवास सी तांत्रिक के लटके लंड के बिल्कुल गरीब पहुंच जाती है और अपनी लम्बी काली जबान निकाल के लंड को बिना टच किये ही सुड़प सुड़प जीभ चलाने लगती है जैसे कि कोई कुतिया लंड चाट रही हो.
कुतिया बनी रूपवती अपनी मोटी काली गांड पीछे कि और पूरी तरह उठा लेती है, और मुँह पूरा नीचे कर के लपड़ लपड़ जीभ चला रही थी जिस वजह से गांड धलक धलक हिल रही थी.
ये नजारा देख के तांत्रिक उलजुलूल के मुँह से काम भारी सिसक निकल ही जाती है आआहहहहह... और लंड झटके खा के उठने लगता है, परन्तु जैसे ही लंड रूपवती को छूने को होता है वह पीछे हट जाती है,
तांत्रिक मन मसोस के रह जाता है, रूपवती के पीछे हटने से उसकी गांड बहुत जोर से हिलती है, तांत्रिक कि नजर पूरी तरह रूपवती कि गाण्ड पर टीक जाती है.
अब रूपवती समझ चुकी थी कि उसकी गांड तांत्रिक को आकर्षित कर ही है
अब वो और हौसले के साथ अपनी काम क्रिया को अंजाम देने का इरादा कर लेती है.
इसी फिराक मे रूपवती एक दम पीछे को पलट जाती है.
अपनी मोटी बड़ी काली गांड छलकाती हुई तांत्रिक के सामने प्रस्तुत कर देती है, ये नजारा देखते ही तो तांत्रिक कि आंखे फटी कि फटी रह जाती है.
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तांत्रिक :- हे देवता ये क्या नजारा दिखाया तूने, आअह्ह्ह..... मेरा लंड क्या हो रहा है इसे.
आआहहहहह
आवाज़ सुंन के गांड हिलाती रूपवती बड़ी अदा मदहोशि के साथ गर्दन पीछे घुमाती है
पीछे का नजारा देख रूपवती आश्चर्य से बोखला जाती है. हे भगवान इतना बड़ा लंड ये नजारा देख के रूपवती कि चुत पानी छोड़ने लगती है पूरी पैंटी गीली हो चुकी थी जैसे किसी ने तेल मे भिगो दी हो.
पीछे का नजारा था ही कुछ ऐसा तांत्रिक का 12इंच 5इंच मोटा लंड जाग्रत अवस्था मे आ चूका था, इतना भयानक काला लिंग देख के किसी भी औरत के होश उड़ जाते.
तांत्रिक :- आअह्ह्हह्ह्ह्ह..... रूपवती ये क्या किया तूने आज पुरे 10 साल बाद मेरा लिंग खड़ा हुआ है.
आअहहा..... लिंग बिल्कुल सीधा खड़ा हो चूका था.
रूपवती जानती थी अब मंजिल दूर नहीं है, लेकिन मुश्किल भी यही था कि बिना हाँथ लगाए वीर्य निकालना.
रूपवती तांत्रिक के सामने घोड़ी बनी हुई थी अपनी गांड उठाये मादक अवस्था मे. कामवासना मे गिरफ्तार थी आज.
रूपवती दोनों हाथ पीछे ले जाती है और दोनों अंगूठे पैंटी के दोनों तरफ फसा के नीचे करने लगती है.
ऐसा करते हुए कमरे मे सिसकारिया गूंज उठती है एक तांत्रिक कि थी जो ये नजारा देखने के लिए मरा जा रहा था और दूसरी आवाज़ खुद रूपवती कि थी जो पीछे गर्दन घुमाये तांत्रिक कि आँखों मे एकटक देखे जा रही थी
अब रूपवती अपनी पैंटी आधी गांड तक़ नीचे कर चुकी थी, गांड के बीच कि दरार दिखने लगी थी, ऐसा लगता था जैसे दो काली पहाड़ियों के बीच एक पतली पगडंडी है यदि कोई इसपे चलने कि कोशिश करता तो जरूर फिसल जाता.
तांत्रिक का लंड लगातार हवा मे झटके मार रहा था
रूपवती पीछे देखती हुई एक दम से अपनी पैंटी पूरी नीचे खिसका देती है....
आआहहहह.... आअह्ह्ह.... सिसकारी भरती रूपवती आंखे बंद कर लेती है, मदहोशी इस कदर सर पे सवार थी कि गांड किसी भट्टी कि तरह जल रही थी, चुत से पानी ऐसे रिस रहा था जैसे बरसो कि बारिश के बाद कोई झरना बह रहा हो.
धम से करती हुई गांड आज़ाद हो चुकी थी, गांड के दोनों पाट अलग हो चुके थे, दोनों ही हिस्से अलग अलग दिशा मे जाते तो कभी वापस आ के एक दूसरे को टक्कर जड़ देते..इस टकराहट मे बीच कि काली पगडंडी दिख रही थी इस पगडंडी मे एक काला कुआँ था, कुएं के नीचे चुत रूपी झरना था जो पता नहीं आज कितने बरसो के बाद भलभला के बह रहा था.
चुत से रिसता पानी जांघो को भीगा रहा था, अंधेर मध्यम रौशनी मे रूपवती कि काली मोटी चिकनी गांड चमक रही थी.

तांत्रिक इस चिकनाहट पे पक्का फिसलने वाला था.
ये नजारा देख के एक बार तो तांत्रिक अपने लोडे के साथ ही अपने सिंघाहसन पे उछल पड़ा.
तांत्रिक :- रूपवती ये क्या नजारा दिखा दिया तूने आहाहाहा..... मजा आ गया.
आज तांत्रिक को भी कामवासना ने घेर लिया था, उसके मन मे भी कही ना कही सम्भोग कि लालसा जन्म ले रही थी नजारा ही कुछ ऐसा था.
परन्तु वो सम्भोग नहीं कर सकता था,वो अपने वचन से बंधा हुआ था वो सिर्फ वीर्यरुपी आशीर्वाद ही दे सकता था.
रूपवती अपने दोनों हाथो को पीछे ले जा के अपनी गांड के दोनों हिस्सों को अलग करती है और वापस छोड़ देती है, गांड के हिलने से रूपवती का पूरा बदन हिला जाता है.
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ऐसा ही रूपवती दो तीन बार करती है फिर अपनी लार टपकाती चुत पे हाथ रख के मसल देती है और खुद ही चीख पड़ती है....
आअह्ह्ह्ह...... मममममम... हे भगवान
चुत और ज्यादा पानी छोड़ने लगती है, पूरी हथेली गीली हो जाती है.
रूपवती अपने हाथ को अपनी नाक के करीब ला के देखने लगती है उसने आज तक़ इतना पानी नहीं छोड़ा था.
अपनी चुत से निकले पानी को सुघती है... आहहहह क्या खुशबू है ये गंध उसे अंदर तक़ आनंदित कर देती है
रूपवती मदहोशी मे अपना पूरा मुँह खोल के अपना हाथ चाटने लगती है, चाट चाट के हाथ साफ कर देती है फिर वापस तांत्रिक कि आँखों मे देखती हुई अपनी गांड का छेद को ऊँगली से कुरेदने लगती है.. ऐसा मजा उसे आजतक कभी आया नहीं था, आज जिस सुख से वो परिचित हुई वो हैरान थी कि आज तक़ ऐसे सुख से कैसे वंचित रही.
तांत्रिक भी ऐसे नज़ारे को देख कर दंग था, ऐसी काया ऐसा मदहोश बदन, ऐसी गांड आज तक नहीं देखि थी.
लगता था अब टिक पाना मुश्किल है.
काम मे डूबी रूपवती अपनी चुत से निकले पानी को हाथ मे ले ले के अपने गांड पे मलते जा रही थी जैसे किसी तेल से गांड कि मालिश कर रही हो.
गांड चुत जाँघ सब कुछ चुत के पानी से भर चूका था, हलकी रौशनी मे चमक बिखेर रही थी रूपवती कि चिकनी काली चुत और गाण्ड, रूपवती इतनी गरम हो चुकी थी कि वो कभी भी झड सकती थी, परन्तु खुद के स्सखलित होने से पहले उसे तांत्रिक को स्सखालित करना था.
वो अपने चरम पे थी, एक ऊँगली अपने मुँह मे ले के थूक से अच्छे से गीली करती है और ऊँगली को गांड के छेद पे फिराने लगती है... पहले ही चुत के पानी से चिकने गुदा द्वारा मे ऊँगली पोक करती हुई एक दम से अंदर चली जाती है रूपवती कि जोरदार सिसकारी गूंज जाती है. आअह्ह्ह.... आहहहह....
तांत्रिक का लिंग भी एक तगड़ा झटका लेता है और झड़ने के करीब ही था कि खुद को रोक लेता है और लम्बी सांस लेते हुए रूपवती को अपने गुदाद्वारा से खेलता देख मुस्कुरा देता है.
ये देख के रूपवती एक बार को हिम्मत हारती हुई लगती है, क्युकी वो तांत्रिक से पहले स्सखालित हो गई तो फिर वो कैसे वीर्य ग्रहण कर पायेगी?
लेकिन हवस अपनी परकाष्ठा पे थी, रूपवती को लगने लगा कि कही उसके प्राण ही ना निकल जाये... खुद के स्सखलन को रोकना था.
उसे हवन कुंड के पास एक गोल लकड़ी पड़ी दिखाई देती है जो कि करीबन 5 इंच लम्बी होंगी.
आव देखा ना ताव रूपवती उस लकड़ी को उठा के सीधा अपनी गांड मे पूरा जड़ तक घुसा देती है,आआहहहहह.... अह्ह्ह्हह.... एक जोरदारचीख गूंज उठती है इस चीख मे दर्द के साथ हवस भी समाई हुई थी,
लकड़ी पूरी जड़ तक घुस चुकी थी रूपवती कि टाइट गांड मे.
तभी उसकी गांड के छेद पर बहुत ही तेज़ प्रेशर से कोई गीली चिपचिपी चीज टकराती है,
अचानक हुए हमले से रूपवती पलट के देखती है तो तांत्रिक चिंघाड़ रहा था.
तांत्रिक :- आअह्ह्हह्ह्ह्ह रूपवती मेरा वीर्य मेरा आशीर्वाद ग्रहण कर.
पचाक पाचक..... पिच पिच....
करती वीर्य कि मोटी गाढ़ी धार रूपवती कि गांड चुत जाँघ को नहलाती चली गई, वीर्य गांड से होता हुआ कमर के रास्ते स्तन तक पहुंचने लगा क्युकी रूपवती कि गांड ऊपर और धड नीचे था.
रूपवती पूरी तरह वीर्य मे सन चुकी थी, लकड़ी का टुकड़ा अभी भी गांड मे ही फसा हुआ था वो चौपया बनी हुई ही अपना मुँह तांत्रिक कि तरफ घुमा लेती है परन्तु अब तांत्रिक का लिंग थोड़ा नीचे आ के लिंग के नीचे कटोरे को भरने लगता है.
आह्हः... आह्हः. रूपवती
ऐसा कह कर कटोरा एक के बाद एक निकलती वीर्य कि पिचकारियों से भरने लगता है.
रूपवती हैरान थी कि इतना वीर्य कैसे निकल सकता है.
1ltr का कटोरा पूरा भर चूका था, आखिर 10 साल से जमा किया हुआ वीर्य आज निकला था.
रूपवती पूरी वीर्य से सनी हुई कुतिया कि तरह बैठी निकलते वीर्य को देख रही थी.....
तांत्रिक का स्सखालन बंद हो चूका था, वह पूरी तरह होश मे था परन्तु थकान का कोई नामोनिशान नहीं था उसके चेहरे पे.
रूपवती मन मे :- कैसा पुरुष है ये कि इतना वीर्य निकलने के बाद भी थकान नहीं है अभी भी स्थिर बैठा है.
तांत्रिक :-वाह रूपवती तुम वाकई कमाल कि स्त्री निकली जो काम कोई नहीं कर पाया वो आज तुमने कर दिखाया.
मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है लो वीर्य ग्रहण करो, ऐसा बोल के वीर्य से भरा कटोरा रूपवती कि तरफ बढ़ा दिया..
रूपवती अभी भी अपनी हवस कि खुमारी से बाहर नहीं आई थी, वो शांत होना चाहती थी, स्सखालित होना चाहती थी लेकिन तांत्रिक अपना वीर्य निकाल चूका था
वो तुरंत उठ बैठी है और तांत्रिक के हाथ से कटोरा ले के अपने होंठो से लगा लिया और गटागट पिने लगी.... गुलुप गुलुप कर के गाढ़ा वीर्य उसके हलक से नीचे उतरने लगा,
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जैसे जैसे वीर्य पीती गई उसकी कामवासना ठंडी होती गई उसकी गर्मी ठंडाई मे बदलने लगी बिना स्सखालित हुए ही.
आहहहह..... क्या स्वाद था वीर्य का बिल्कुल अनोखा. बचे खुचे वीर्य को रूपवती कटोरे मे जीभ डाल डाल के साफ कर दिया.
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अब रूपवती पूरी तरह शांत हो चुकी थी, चुत का झरना बहना बंद हो चूका था जैसे तूफान के बाद शांति छा जाती है वैसे ही शांति छा गई थी कमरे मे.
तांत्रिक :- शाबाश रूपवती तुम मेरी परीक्षा मे पास हो गई, अब तुम्हे वाकई रूपवती होने से कोई नहीं रह सकता.
रूपवती :- कैसी परीक्षा बाबा, रूपवती वीर्य मे भीगी नंगी ही तांत्रिक के सामने हाथ जोड़े बैठी थी उसे अपार शांति का अनुभव हो रहा था..
तांत्रिक :- मै देखना चाहता था किं तुम उस इच्छाधारी नाग को अपने साथ सहवास करने के लिए मजबूर भी कर पाओगी या नहीं.
परन्तु जिस स्त्री ने मेरा वीर्य बिना हाथ लगाए स्सखालित करवा दिया वो स्त्री क्या नहीं कर सकती. शाबाश रूपवती
जाओ मंदिर के पीछे जलाशय मे खुद को साफ कर लो फिर बताता हूँ कि कैसे वो इच्छाधारी नाग तुम्हे मिलेगा?

रूपवती हाथ जोड़े नंगी ही अपनी मोटी काली भारीभरकम गांड मटकाती हुई कमरे से बाहर मंदिर के पीछे निकल पड़ती है.
अब उसकी चाल मे तब्दीली आ गई थी क्युकी अभी भी उसकी गांड मे लकड़ी का टुकड़ा फसा हुआ था.

उधर रंगा बिल्ला के अड्डे पर
रुखसाना जमीन पे पेट के बल लेटी हुई हांफ रही थी और आजु बाजू गिरे रंगा बिल्ला उसकी हालत देख के ठहाके लगा रहे थे.
रंगा :- क्यों रांड कैसा लगा?
रुखसना :- हाफ़ती हुई मालिक आप लोगो ने तो मेरी जान ही निकाल दी थी.
बिल्ला पास बैठे रुखसाना कि गोरी मखमली गुदगुदी गांड को घूरे जा रहा था....रुखसाना के हाफने कि वजह से गांड ऊपर नीचे हो रही थी, गांड का छेद खुल बंद हो रहा था.
ऐसा नजारा देख के बिल्ला फिर से जोश मे आ जाता है और तुरंत उठ के रुखसाना कि गांड दबोच लेता है रुखसाना कुछ समझ पाती उस से पहले ही बिल्ला अपने खुटे जैसे लंड जो कि वीर्य और रुखसाना के थूक से चमक रहा था रुखसाना कि गांड मे जड़ तक ठूस चूका था
आअह्ह्हह्ह्ह्ह.... आहहहह. कि जोरदार के साथ रुखसाना अपनी गर्दन और सर उठा के चीख पड़ती है.
माल्ललिक ... आआआ हहहहहह .....
जैसे कोई भेड़िया हुंकार भर रहा हो.

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बिल्ला को कोई फर्क नहीं पड़ता वो धचा धच धचा धच गांड चोदे जा रहा था.
पूरा बाहर निकाल के एक ही बार मे जड़ तक पंहुचा दे रहा था. रुखसाना हवस से भरी बेहाल थी और कुतिया बनी सिसकारी मार रही थी.....
रुखसाना :- आहहहह.... मालिक आअह्ह्ह... धीरे मालिक धीरे
बिल्ला :- चुप रंडी.... ले धचा धच धचा धच..... फच फच फच
अब ऐसा खूबसूरत नजारा देख के रंगा कैसे पीछे रहता वो भी खड़ा हो के लंड मसलता हुआ रुखसाना के पीछे आ गया.
और अपना लंड रुखसाना कि गांड पे टच करने लगा..
रुखसाना रंगा के इरादे भाम्प जाती है, कहाँ बिल्ला का लंड ही भारी पड़ रहा था ये रंगा भी आ गया.
रुखसाना :- नहीं मालिक गांड मे नहीं, आप चुत मे डाल लीजिये जैसा हमेशा करते है.
अक्सर रंगा बिल्ला चुत गांड मे ही एक एक कर के लंड डाल के चोदा करते थे. परन्तु आज इनाम देना था रुखसाना को.
बिल्ला :-चुप छिनाल और ऐसा बोल के तडातड़ गांड मारने लगता है और एक पैर से रुखसाना के सर को दबा के गांड ऊपर कि तरफ पकड़े दबादब चोदे जा रहा था.
रुखसाना तो पहले ही गरम थी अब तो उसकी वासना चरम पे पहुंच गई थी उसकी चुत लगातार पानी छोड़े जा रही थी, बिल्ला के हर धक्के के साथ चुत का रस किसी फव्वारे कि तरह चुत से निकल निकल के जमीन भीगाने लगा..
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रंगा और इंतज़ार नहीं कर सकता था वो भी पीछे आता है और एक ही धक्के मे बिल्ला के साथ अपना लंड भी पूरा जड़ तक रुखसाना कि गांड मे डाल देता है.
सच मायनो मे आज रुखसाना कि गांड फटी थी.
रंगा बिल्ला एक साथ लंड बाहर निकलते फिर एक साथ जड़ तक पेल देते, बिल्ला ने रुखसाना कि गर्दन दबाई हुई थी बस उसके मुँह से रह रह के मालिक आअह्ह्ह मालिक आह्हः धीरे मालिक.... Aaaa अह्ह्हभ धीरे ही निकल पा रहा था.
धकाधक चोदते हुए 15 मिनट हो चुके थे अब रुकसाना कि गांड भी उनके लंड पे एडजस्ट हो चुकी थी अब रुखसना मजे मे थी ऐसा मजा ऐसा आंनद आज तक नहीं मिला था.
दर्द के बाद ही असली मजा है.... अब रुखसना भी अपनी गांड पीछे दोनों के लोडो पे पटक पटक के चुद रही थी
आह्हः.... मालिक फाड़ो अपनी रंडी कि गांड, और मारो और अंदर,, फाड़ के बिखेर दो मेरी गांड आअह्ह्ह.....
रंगा बिल्ला :- ले रंडी ले छिनाल चुद, चुद अपने मालिकों से
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धचाधच फका फ़क.... फच फच के साथ और आधे घंटे पेलते रहे, वासना अपने चरम पे थी.
एक जबरजस्त हुंकार गूंज उठी, इसी हुंकार के साथ रंगा बिल्ला एक साथ अपनी पिचकारी छोड़ने लगे.

आहहहह.... पीच पीच..... पीच लगातार पिचकारी छूटती गई और रुखसाना कि गांड भरती गई.
रुखसाना भी अति उत्तेजना मे वीर्य कि गर्मी पा के भरभरा के झड़ने लगी
आअह्ह्ह... मालिक पचच्चाक पचच्चाक.... करके चुत भलभालने लगी.
अब तीनो ही ढेर हो चुके थे रंगा बिल्ला के लंड गांड से बाहर आ चुके थे.
रुखसाना अपनी गांड भींच के वीर्य को बाहर गिरने से रोकती है, और जोर से गांड भींच लेती है.
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अब सुबह हो चली थी.... वासना और हवस भरी रात बीत चुकी थी.
धमाकेदार चुदाई के बाद रंगा बिल्ला गहरी नींद मे जा चुके थे, और रुखसाना मुस्कराती हुई रंगा बिल्ला को देखती है और गांड भिचे ही अपने कपडे पहन लेती है. वीर्य अभी भी रुखसाना के गांड मे ही कैद था.
उधर मंदिर ने रूपवती खुद को साफ कर के वापस तांत्रिक के सामने हाथ जोड़े बैठी थी, वो अब कपडे पहन चुकी थी.
तांत्रिक :- सुनो रूपवती तुम्हे वो इच्छाधारी नाग "विषरूप" गांव मे मिलेगा जहाँ कभी इच्छाधारी साँपो कि बस्ती थी.
उस इच्छाधारी सांप के पास एक मणि है जिसे तुम्हे प्राप्त करना होगा, मै तुम्हे मन्त्र दूंगा वो मन्त्र, मणि हाथ मे ले के उस इच्छाधारी सांप के सामने बोलोगी तो वो आंशिक रूप से तुम्हारे काबू मे होगा, फिर उसके बाद तुम्हे पता ही है क्या करना है.
तथास्तु
ऐसा कह के तांत्रिक उलजुलूल वापस ध्यान मे चला गया.
अब सुबह हो चुकी थी
रूपवती के मन मे बहुत सी उम्मीदें जग चुकी थी अतिसुंदरी होने कि, ठाकुर ज़ालिम सिंह से बदला लेने कि.
इन्ही उम्मीदो को सजाये रूपवती मंदिर से बाहर निकल जाती है.
उसका घोड़ा वीरा बाहर ही बघघी से बंधा हुआ था. वीरा रूपवती का वफादार घोड़ा था.
रूपवती तुरंत बघघी मे बैठ अपनी हवेली निकल पड़ती है, उसकी गांड मे अभी भी लकड़ी का टुकड़ा फंसा हुआ था जो कि रह रह के गुदगुदी मचा रहा था, वासना कि टिस उठ रही थी आज रूपवती मे काफ़ी परिवर्तन आ चुके थे.
उधर रुखसाना भी अपना चेहरा ढके हुए अपनी गांड मे रंगा बिल्ला का वीर्य लिए निकल चुकी थी.
रास्ते मे रूपवती और रुखसाना एक दूसरे को क्रॉस करते है लेकिन कोई किसी का चेहरा नहीं देख पाता.

ये रुखसाना अपनी गांड मे रंगा बिल्ला का वीर्य क्यों दबाई हुई है?
और अब रूपवती कि जिंदगी मे क्या परिवर्तन आएंगे?
मंगलवार का दिन भी नजदीक था.
क्या ठाकुर कामवती से शादी कर पाएंगे?
 
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चैप्टर -1, ठाकुर कि शादी, अपडेट -7

मंगलवार का दिन भी आ चूका था,
ठाकुर ज़ालिम सिंह कि हवेली मे सुबह से ही चहल पहल हो रही थी, घोड़ा गाड़ी पे सामान बांधे जा रहे थे. खूब अन्न गेहूं चावल फल मिठाईया बांध ली गई थी.
ठाकुर :- अरे हरामियों कालू, बिल्लू, रामु कहाँ मर गये सब के सब मेरी पगड़ी कहाँ है?
सब के सब हरामखोर है सालो कोमुफ्त खाने कि आदत पड़ गई है.
ठाकुर साहेब कपडे पहने जा रहे थे और भुंभूनाते जा रहे थे.
तभी कमरे मे छन छन पायल छनकाती भूरी काकी पगड़ी लिए खड़ी थी.

भूरी काकी
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उम्र 50 साल लेकिन आज भी कसा हुआ बदन है.
साइज 34-26-38 है,
उम्र होने के बावजूद भी स्तन और गांड का कसाव बारकरारा है.
या यु कहिये भूरी काकी पुरानी शराब कि तरह है जो वक़्त के साथ और ज्यादा नशीली होती जा रही है.
गांव मे इनकी बहुत इज़्ज़त है, ठाकुर भी इज़्ज़त से ही पेश आते है इनके सामने.
परन्तु ये अंदर से है बिल्कुल सुलगती भट्टी, हवस हमेशा दबी रहती है बस आगे से पहल नहीं करती.
इनकी 16 साल कि उम्र मे ही शादी हो गई थी, शादी मात्र 4 साल ही चल पाई इनका पति वक़्त से पहले ही भरी जवानी मे खेत मे काम करते वक़्त सांप काटने कि वजह से मारा गया था.
तब से आज तक भूरी ने सम्भोग नहीं किया, हालांकि रोज़ रात ऊँगली, बेंगन, खीरा, बेलन जरूर डालती है चुत मे जैसे तैसे अपनी हवस मिटाती है लेकिन शर्माहाट और शराफत के कारण कभी बाहर चुदवा ना पाई.
हाय री किस्मत... ऐसे मस्त बदन को भोगने वाला कोई था ही नहीं.
ठाकुर ज़ालिम कि माँ ने भूरी को हवेली के काम काज के लिए रख लिया था.
तब से आज तक भूरी हवेली कि सेवा मे ही रह गई.

भूरी काकी :- ये लीजिये ठाकुर साहेब पगड़ी पहनिये, ऐसा बोल के खुद अपने हांथो से पहना देती है.
वाह ठाकुर साहेब क्या लग रहे है, जँच रहे है
कामवती आपको देखते ही पसंद कर लेगी, ऐसा कह के एक काला टिका ठाकुर साहेब को लगा देती है.
ठाकुर :- काकी आप भी ना, हालांकि ठाकुर और भूरी कि उम्र मे ज्यादा अंतर नहीं था.
लेकिन सब भूरी को काकी ही बोलते थे क्युकी भूरी ठाकुर कि माँ कि सेवादारनी थी.
तो ठाकुर भी बचपन से ही भूरी को काकी ही बोलते थे.
काकी आप ना होती तो ये हवेली कैसे चलती, बाकि सब साले हरामी हो गये है.
भूरी काकी :- छोडीये गुस्सा मै उन्हें देख लुंगी, आप अच्छे काम के लिए जा रहे है गुस्सा थूक दीजिये.

कालू, बिल्लू, रामु तीनो ही ठाकुर के आदमी थे वफादार थे
बस प्यार कि भाषा नहीं समझते थे, ठाकुर जब तक चिल्लाता नहीं इनसे काम होता नहीं.
तीनो एक नंबर के हरामी शराबखोर और चोदने के शौक़ीन थे.
लेकिन वफादार गजब के.
तीनो एक जैसे ही दीखते थे,मुछे रोबदार hight 5.8इंच,चौड़ी छाती.
बिल्कुल लथेट, लंड भी तीनो के एक सामान 7इंच के काले मोटे बेंगन जैसे लंड.

इतने मे डॉ. असलम हवेली मे प्रवेश करता है
डॉ. असलम :- क्या ठाकुर साहेब कितना सजेंगे चलना नहीं है क्या?
कहाँ रह गये.
ठाकुर :- आओ असलम आओ... मै तुंहारी ही राह देख रहा था.
मै तो तैयार ही हूँ लेकिन वो तीनो हरामी घोड़ा गाड़ी तो तैयार करे.
डॉ. असलम :-हाहाहाहाहा क्या ठाकुर साहेब उन बेचारो पे चिल्लाते हो उन्होंने गाड़ी तैयार भी कर दि है.
तभी बिल्लू अंदर आता है, और सर झुका के बोलता है ठाकुर साहेब गाड़ी तैयार है सारा सामान लाद दिया है और गाड़िवान भी आ चूका है.
आप प्रस्थान कर सकते है, और यादि इज़ाज़त हो तो हम तीनो भी साथ चले?
ठाकुर :- नहीं हम अच्छे काम के लिए जा रहे है तुम तीनो मनहूसो को ले जा के काम नहीं बिगाड़ना मुझे.
तुम लोग हवेली मे ही रहो कोई चोर लुटेरा घुस गया तो फिर हो गई शादी.
ठाकुर हमेशा ही तीनो को लताड़ते रहते थे, तीनो थे भी इसी लायक कोई काम ठीक से करते ही नहीं थे.
जो करते कुछ ना कुछ बिगाड़ ही देते.
बस ठाकुर के प्रति हद से ज्यादा वफादार थे इसलिए अब तक हवेली मे टीके हुए थे.
डॉ.असलम और ठाकुर घोड़ा गाड़ी पे सवार हो के निकल चुके थे..
और पीछे रह गये थे तीनो जमुरे और भूरी काकी.

ठाकुर बहुत ख़ुश थे, उनका दिल चूहें कि तरह उछल रहा था,
ठाकुर :- असलम जैसा तुम बोलते हो क्या कामवती उतनी ही सुन्दर है?
असलम :- हाँ ठाकुर साहेब आप देखेंगे तो देखते ही रह जायेंगे.
ठाकुर का मन गुदगुदाने लगा,
सफ़र शुरू हो चूका था, ठाकुर जल्दी से जल्दी कामगंज गांव पहुंच जाना चाहते थे.

दूसरी तरफ कामगंज मे, रामनिवास का घर पे भी सुबह से गहमा गहेमी थी.
रामनिवास आज भी दारू पिने से बाज नहीं आया था, कामवती कि माँ रतीवती जब से रामनिवास को ढूंढे जा रही थी.
रतिवती :- कहाँ मर गया आज भी ये शराबी,कही शराब पिने तो नहीं बैठ गया कही.
अकेली ही सारी तैयारी करने मे लगी थी रतीवती.
गांव कि कुछ लड़किया भी आई हुई थी जो कामवती को सजाने मे लगी थी.
घर के एक तरफ हलवाई पकवान बना रहा था
तभी दरवाजे पे लड़खड़ाता रामनिवास आता है.
जिसे देख के रतीवती बुरी तरह आगबबूला हो जाती है.
रतिवती :- मै यहाँ अकेले मरी जा रही हूँ और ये हरामी शराब पी के मौज मे घूम रहा है.
ऐसा कह के रतीवती खूब खरी खोटी सुनाने लगती है.
लेकिन रामनिवास भी चिकना घड़ा था कहाँ असर पड़ता उसकी बातो का.
रामनिवास :- अरी भाग्यवान आज तो खुशी का मौका है, क्यों जल भून रही हो थोड़ी सी पी ली तो क्या गुनाह कर दिया.
वैसे भी ठाकुर साहेब अपनी कामवती को देखेंगे तो मना नहीं कर पाएंगे.
आखिर बेटी कि सुंदरता उसकी माँ पे जो गई है, ऐसा कह के रामनिवास गाल पे चीकूटी काट लेता है.
रतीवती घनघना जाती है उसके टच से, छोडो भी जाओ नहा धो लो हुलिया सुधारो ठाकुर साहेब कभी भी आते होंगे.
मै भी तैयार हो लेती हूँ, ऐसा कह के रतिवती अपने कमरे मे चली जाती है और रामनिवास बाथरूम कि तरफ बढ़ जाता है.


रतिवती आज बहुत ख़ुश थी क्युकी उसकि बेटी का रिश्ता बहुत बड़े घर मे होने वाला था, उसका सपना तो कभी पूरा हुआ नहीं कम से कम उसकी बेटी तो बड़े घर कि बहु बने, उसकी खूबसूरती तो काम आये.
कहाँ मै अभागी कुछ ना मिला मुझे ऐसा बोलते हुए शीशे के सामने खड़े हो कर वो अपनी साड़ी उतारने लगती है.
साड़ी उतारते ही उसके स्तन कि लकीर ब्लाउज मे से झाकने लगती है. क्या गोरे गोरे बड़े स्तन थे रतिवती के
स्तन के बीच लटकता मंगलसूत्र और भी ज्यादा कामुक लग रहा था.

ब्लाउज के नीचे बिल्कुल सपाट पेट, जिस पे कोई दाग़ नहीं नीचे चल के एक गहरी नाभि जिस से हमेशा खुशबू निकलती ही रहती थी एक मदहोश कर देने वाली खुशबू.
लेकिन किस्मत कि मार ऐसा कामुक गद्दाराये बदन कि किसी को कदर ही नहीं पती शराबी निकला.
शराब के अलवा कुछ दीखता ही नहीं.
रतिवती अपने ब्लाउज को उतार देती है रेड चोली मे कैद बड़े बड़े स्तन पूरी तरह छलक जाते है,
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रतिवती खुद को ही देख के शर्मा जाती है ऐसा ग़दराया बदन था रतिवती का. ना चाहते हुए भी एक हाथअपने दाये स्तन पे ले जाती है और सेहलाने लगती है आअह्ह्हह्म..... पुरे बदन मे सरसराहत चल पड़ती है स्तन से होती हुई नाभि के रास्ते एक करंट सीधा चुत तक पहुँचता है.
रतिवती बरसो से कामवासना कि आग मे जल रही थी, आज शादी के माहौल मे उसे कुछ कुछ हो रहा था लगता था जैसे उसकी बरसो से दबी इच्छा पूरी होने वाली हो.
तभी बाहर से आवाज़ आती है बीबी ज़ी ओह्ह्ह बीबी ज़ी.... सब्जी बना दि है चख के स्वाद देख ले.
ये हलवाई कल्लू राम था जो पास के ही गांव से आज रामनिवास के आग्रह पे खाना बनाने आया था...
रतिवती कि मदहोशी इस आवाज़ के साथ टूटती है... और वो पलट के सीधा दरवाजे के पास पहुंच के दरवाजा खोल देती है.
सामने हलवाई कल्लूराम खड़ा था... परन्तु ये क्या कल्लू राम अपना मुँह खोला एक टक रतिवती को देखे जा रहा था..
रतिवती हैरान थी कि ये कल्लूराम को क्या हुआ ये मूर्ति जैसा क्यों हो गया, अचानक उसे ध्यान आता है कि उसने तो साड़ी पहनी ही नहीं है वो तो सिर्फ ब्रा और पेटीकोट मे ही है.
रतिवती पे जो मदहोशी सवार थी उस चक्कर मे वो खुद को ही भूल गई थी कि किस अवस्था मे है और तुरंत दरवाज़ा खोल दिया था.
दरवाज़े के बाहर कल्लूराम ऐसा नजारा देख के आश्चर्य चकित था, ऐसा गोरा मखमली ग़दराया बदन उसने कभी देखा ही नहीं था वो अभी भी एकटक रतिवती के स्तन पे नजरें गाड़ाये सुध बुध खोये खड़ा था.
रतिवती तुरंत दरवाजा बंद कर देती है. और पलट के दरवाजे के सहारे टिक के लम्बी लम्बी सांसे खींचने लगती है.... हे भगवान ये क्या किया मैंने? इतनी बड़ी गलती? कल्लूराम हलवाई मेरे बारे मे क्या सोच रहा होगा?
कल्लूराम अभी भी दरवाजे के बाहर मूर्ति बने जस का तस खड़ा था.
तभी पीछे से बाथरूम से रामनिवास नहा के निकलता है और कल्लूराम को देख के आवाज़ देता है ओह कल्लूराम.... कल्लूराम ओह कल्लूराम
लेकिन कल्लूराम होश मे कहाँ था वो तो मन्त्रमुग्ध दरवाजे को घुरा जा रहा था जैसे कि वो पल थम गया हो उसके लिए.
तभी रामनिवास पास आ के कल्लूराम के कंधे पे हाथ रखता है, क्या हुआ कल्लूराम कुछ काम था क्या?
कल्लूराम :- वो वो वो वो..... बबबबबब मै क्या.... वो मै.... हाँ मै भाभीजी को बोलने आया था कि सब्जी चख लेती.
कल्लूराम हकलाता अटकता बोल ही चूका था.
रामनिवास :- हाँ तो खड़े क्यों हो दरवाजे पे, बोल दो अपनी भाभी को?
रतिवती ये सब बाते अंदर सुन रही थी वो अभी भी थोड़ी देर पहले हुए किस्से को अपने जेहन से निकाल नहीं पा रही थी. हे राम मै भी कैसी अंधी पागल हूँ जो ब्रा पेटीकोट मे ही दरवाजा खोल दिया, क्या सोचा होगा मेरे बारे मे?
तभी बाहर से रामनिवास कि आवाज़ अति है अरी भाग्यवन दरवाजा तो खोल दो, देखो कल्लूराम आया है सब्जी चख लो, वरना बाद मे मुझे ही बोलोगी कि कैसा हलवाई ले आया.
हुँह.... मै चलता हूँ कपडे पहन के बैठक कि तैयारी देख लेता हूँ.
ऐसा कह के रामनिवास वहाँ से चला जाता है.
कल्लूराम अब भी दरवाजे के बाहर सकपाकाया रतीवती का इंतज़ार कर रहा था.
रतिवती अब तक़ थोड़ा संभल चुकी थी...
 
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अपडेट 7 contd....

रतीवती अपनी सांसे दुरुस्त करती है और तुरंत भाग के अपना ब्लाउज पहन लेती है इस गहमा गहमी मे पसीने से तर हो जाती है इतना पसीना आने मे कुछ हाथ थोड़ी देर पहले हुई घटना का भी था,
रतीवती पसीने मे भीगी सकपाकाहाट मे दरवाजे कि और बढ़ती है,एक अजीब उत्तेजना पुरे बदन को हिला रही थी.
रतीवती कापते हाथो से दरवाजा खोल देती है, कल्लूराम अभी भी बाहर मुँह खोले खड़ा था.
रतीवती को समझ नहीं आ रहा था कि वो हलवाई से कैसे कुछ बोले?
कल्लूराम अभी भी मूर्ति बने ही खड़ा था.
रतीवती को उसकी ये हालत देख के खुद पे घमंड होता है कि मेरे बदन मे आज भी वो बात है कि किसी मर्द को जडवत कर दू, हैरान कर दू.
काका ओ काका.... कहाँ खो गये ऐसा बोलते हुए रतीवती दरवाजे से बाहर हो के निकलती है, कल्लूराम ऐसे खड़ा था कि जगह ही नहीं थी, रतीवती निकलते वक़्त कल्लूराम से रगड़ जाती है.
इस रगड़ाहट से एक उत्तेजक चिंगारी निकलती है जो दोनों के ही शरीर को हिला देती है.
उत्तेजना का करंट लगने से हलवाई होश मे आता है और पहले से ही खड़े लंड को सँभालने के लिए उसे हाथ से दबाता है.
रतीवती उसे ऐसा करते देख लेती है, लेकिन बिना कुछ बोले पलट के आगे आगे चलने लगती है जहाँ खाना बन रहा था, रतीवती चलते हुए मुस्कुरा रही थी
मन मे "कैसे काका अपना लंड दबा रहे थे, क्या मै अभी भी सुन्दर हूँ?"

इतना सोचना था कि रतीवती कि चाल मे अचानक परिवर्तन आ गया अब वो और ज्यादा अपनी बड़ी गांड मटकाये जा रही थी.
जिसे पीछे पीछे आता कल्लूराम एक टक देख रहा था, जब गांड दाये जाती तो कल्लूराम का सर भी दाये जाता, और जब गांड बाएं जाती तो सर भी बाएं को झुकता.
ऐसा लगता था जैसे रातीवती कि गांड मे कोई रिमोट फिट है जो कल्लूराम कि गर्दन को हिला रहा है.
रतीवती समझ चुकी थी कि बुड्ढा हलवाई उसका दीवाना हो गया है.
तभी रतीवती एक दम से पीछे गर्दन घुमा के बड़ी अदा से बुड्ढे हलवाई को देखती है, समझ जाती है कि वो उसकी लचकती गांड को ही घूर रहा है
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उसे भी मजा आ रहा था उसे अपना बदन दिखाने मे, अब जिसे मेरी बदन कि कद्र है उसे तो सुख दे ही सकती हूँ थोड़ा वो ऐसा सिर्फ खुद को दिलासा देने के लिए सोच रही थी जबकि असल मे कल्लूराम के दीवानेपन और उसकी हरकतों कि वजह से उसके शरीर गर्म हो रहा था, गर्म हो भी क्यों ना उसका शराबी पती तो उसकी तरफ देखता तक़ नहीं था तारीफ और प्यार क्या खाक करता और स्वभाव तो था ही चंचल
खाने का पंडाल आ चूका था,
रतिवती :-चखाइये ना काका, क्या चखा रहे थे? बड़ी अदा के साथ वापस पीछे हलवाई कि तरफ घूम जाती है.
कल्लूराम :- वो मै मै..... वो मै.. बबबब.... क्या था मै.
रातीवती हॅस पड़ती है, काका क्या बात है ऐसे हकला क्यों रहे है.
हलवाई हसती हुई रतीवती को देखता ही रह जाता है, क्या खूबसूरत है बीबी ज़ी ऐसी खूबरत तो दूर दूर के गांव मे भी नहीं होंगी.
तभी कही से एक हवा का झोंका आता है और रतीवती का पल्लू सरक जाता है,
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रतीवती ने जल्दबाज़ी मे साड़ी अच्छे से नहीं पहनी थी और ना ही ब्लाउज के पुरे बटन लगाए थे.
हलवाई फिर से ये नजारा घूरता ही रह जाता है, उतने मे ही रतीवती साड़ी संभल लेती है यदि आज साड़ी सँभालने मे थोड़ी से भी देर हुई होती तो पक्का बुड्ढे हलवाई को दिल का दौरा पड़ जाता.
कल्लूराम :- कितनी.... कितनी.. बबबब... मै... क्या... कितनी सुन्दर हो बीबी ज़ी आप, पता नहीं किस आवेश या उत्तेजना मे वह ये बात कह गया.
रतीवती अपनी तारीफ सुन के शर्म से अपना सर नीचे चूका लेती है तभी उसकी नजरें अपने ब्लाउज पे पड़ती है ऊपर के दो बटन खुले हुए थे तो क्या काका ने मेरे स्तन फिर से देख लिए.
क्या हो रहा है मेरे साथ ये सुबह से उफ्फ्फ्फ़.....
ऐसा सोच के वो जल्दी से अपनी साड़ी से स्तन के ऊपरी हिस्से को ढक के नार्मल होने कि कोशिश करती है.
रतीवती :- क्या कह रहे थे काका आप? उसकी आवाज़ ने एक कंपकपी थी मदहोशी से आवाज़ थोड़ी अटक रही थी.
रतीवती को नाराज ना होता देख कल्लूराम मे थोड़ी हिम्मत आति है
कल्लूराम:- वो बीबी ज़ी आप कितनी सुन्दर है.इस बार हलवाई ने बिना अटके ही बोल दिया था रतीवती कि मुस्कुराहट से उसमे आत्मविश्वास आ गया था.
रतीवती :- क्या काका आप भी अब तो मै बूढ़ी हो चली हूँ, देखो अब तो मेरी बेटी कि भी शादी होने वाली है.
कल्लूराम :- अजी छोड़िये क्यों मुँह खुलवाती है मेरा? कौन कहता है आप बूढ़ी हो गई है.
भगवान कसम आप तो आज भी जवान लड़कियों को फ़ैल कर दे, क्या जवानी है आपकी. साक्षात् रती देवी का अवतार है आप.
ऐसा बोल के हलवाई अपने खड़े लंड को मसल देता है.
रतीवती अपनी ऐसी तारीफ सुन के उत्तेजित होने लगती है ऊपर से वो हलवाई को अपना लंड सहलाते देख लेती है.
दबी हुई वासना हिलोरे मारने लगी थी, सांसे थोड़ी तेज़ हो चली थी इसका सबूत रतीवती के ऊपर नीचे होते गोरे बड़े स्तन दे रहे थे.
आअह्ह्ह l...हलवाई के मुँह से ऊपर नीचे होते स्तन देख के आह्हःम... निकल जाती है, जिसे रतीवती सुन नहीं पाती.
रतीवती :- चलिए छोड़िये ये सब बाते, अब इस सुंदरता कि कोई कदर नहीं, आप तो चखाइये क्या चखा रहे थे?क्या किस्मत है रतीवती कि पति ध्यान देता नहीं और यहाँ बुढ़ा मरा जा रहा है उसके लिए.
वाह री किस्मत....
कल्लूराम :- हाँ आइये बीवी ज़ी, ऐसा बोल के पंडाल के पीछे जाने लगता है,
जहाँ एक बड़ा सा भगोना रखा था जिसमे सब्जी बनी हुई थी, हलवाई उसका ढक्कन खोल देता है और थोड़ा सा पीछे हटता है.
कल्लूराम :- लो बीवी ज़ी देख लीजिये.
रतीवती जा के कलकुराम के आगे खड़े हो जाती है और भागोने पे झुकने लगती है, सब्जी कि खुशबू लेने के लिए

ऐसा करने से उसकी गांड बाहर को निकल जाती है, उसके झुकने से गांड पीछे जाती हुई किसी सख्त लम्बी चीज से टकराती है.
अब ऐसा रतीवती ने जान बुझ के किया था या खुद से हो गया कह नहीं सकते.
वो सख्त चीज हलवाई का लोड़ा था जो कि ऐसी हाहाकारी मदमस्त गांड देख के तनतना गया था.
उसका बूढ़ा लंड कभी भी वीर्य कि बौछार कर सकता था, बूढ़े के लंड ने आज कितने सालो बाद अंगड़ाई ली थी.
रतीवती सब्जी कि खुशबू लेती है और जानबूझ के अपनी गांड थोड़ा पीछे धकेल देती है, बिल्कुल कल्लूराम कि धोती से चिपक जाती है.
कल्लूराम का लंड तनतनाया रतीवती कि गांड कि दरार मे साड़ी के ऊपर से ही दब जाता है.
अब बुढ़ा मरा लगता है...
रतीवती खुशबू के के वॉयस खड़ी होने लगती है और बहाने से अपनी गांड दो बार हलवाई के लंड पे ऊपर नीचे घिस देती है...
हलवाई चीख पड़ता है. आआआहहहहह..... आअह्ह्ह....
पीच पीच पीछाक... हलवाई धोती मे ही स्सखलित ही चूका था और पीछे पड़ी कुर्सी पे ढेर हो जाता है लगता था जैसे किसी ने प्राण ही खींच लिए हो कल्लूराम के.
रतीवती:- सब्जी कि खुशबू तो अच्छी है, ऐसा बोल के जैसे ही पीछे देखती है हलवाई पीछे कुर्सी पे ढेर पड़ा था.
बुड्ढा कहाँ रतीवती जैसे गरम कामुक औरत को संभल पाता, साड़ी के ऊपर से ही गांड कि गर्मी ना झेल सका.
उतने मे ही रामनिवास कि आवाज़ आती है "अरी भगवान सब्जी चखी नहीं क्या अभी तक़? जल्दी करो ठाकुर साहेब का आने का टाइम हो ही गया है "
रतीवती आई कम्मो के बापू, रतीवती हलवाई को वैसे ही मुर्दा अवस्था मे छोड़ के निकल पड़ती है.
रामनिवास :- कैसी बनी सब्जी?
रतीवती :- सब्जी चखती उस से पहले ही चखाने वाला ढह गया.
और मंद मंद मुस्कुरा देती है.
रामनिवास बैल बुद्धि को कुछ समझ नहीं आता.
रामनिवास :- अच्छा चलो तैयार हो लो तुम भी जल्दी से और देखो कि कामवती तैयार हुई या नहीं?
रतीवती अपने कमरे मे चल पड़ती है.
अब उसकी चाल से मादकता झलक रही थी बुड्ढा खुद तो ढेर हो गया था परन्तु रतीवती कि जिस्म मे आग लगा गया था काम कि आग.....
कहानी जारी है
 
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चैप्टर -1, ठाकुर कि शादी, अपडेट -8

गांव कामगंज
ठाकुर ज़ालिम सिंह रामनिवास के घर पहुंच चुके थे, रामनिवास और गांव वालो ने बड़े धूमधाम से स्वागत किया,
रामनिवास :- धन्य भाग हमारे, आईये ठाकुर साहेब आइये.
अंदर आइये
ठाकुर और डॉ. असलम को अंदर बैठक मे बैठा दिया गया, सभी का अभिवादन का दौर चला

गाड़िवान ने सारे अनाज फल वगैरह गांव वालो कि मदद से अंदर रखवा दिए.
ठाकुर साहेब रामनिवास कि खातिरदारी से अतिप्रश्नन और प्रभावित हुए.
परन्तु इन सब मे ठाकुर साहेब कि नजरें किसी को ढूंढ रही थी, वो कामवती को देख लेना चाहते थे क्युकी जो तारीफ, जो कामवती कि सुंदरता का बखान उन्होंने सुना था उस वजह से वो अतिउत्सुक नजर आ रहे थे.
बार बार बात करते हुए पहलु बदल रहे थे.
उनकी बेचैनी को डॉ. असलम अच्छे से समझ रहे थे.
रामनिवास :- अरी भाग्यवान... अरी भाग्यवन भई जल्दी लाओ नाश्ता पानी ठाकुर साहेब दूर से आये है थके होंगे.
थोड़ी देर बाद रतिवती सजी धजी बलखाती, छनछनाती हुई हाथ मे पानी और नाश्ते कि प्लेट ले के आई.
और झुकते हुए टेबल पे रख के सभी को हाथ जोड़ के नमस्कार किया.
रामनिवास :- ठाकुर साहेब ये मेरी धर्मपत्नी है सभी तैयारी इन्होने ही कि है.
ठाकुर साहेब औपचारिक तौर पे अभिवादन करते है, और रतिवती को सुंदरता से प्रभावित होते हुए सोचते है जब माँ इतनी सुन्दर है तो बेटी कितनी सुन्दर होंगी?
रतीवती नमस्कार करती डॉ. असलम के सामने अति है तो उनका काला भद्दा रूप देख के थोड़ा चौक जाती है और चौकने से पल्लू थोड़ा खिसक जाता है, असलम इस बात को भाप जाते है और शर्मिदा होके जैसे ही नजर नीचे करने वाले होते है कि उनकी नजर रतीवती के स्तन मे बनती घाटियों मे पड़ती है.
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इतने गोरे, इतने बड़े स्तन आज टक नहीं देखे, आह्ह.... कितने कोमल दिख रहे है.
रतीवती तब तक सीधी हो चुकी थी और संभल चुकी थी.
ठाकुर साहेब :- रामनिवास ये मेरे अजीज दोस्त, सलाहकार सब यही है डॉ. असलम.
पेशे से डॉक्टर है.
रतीवती असलम को ही देखे जा रही थी कि कहाँ ठाकुर साहेब लम्बे चोडे रोबदार, कहाँ उनका दोस्त डॉ. असलम
नाटा, काला बेहद कुरूप.
थोड़ी देर इधर उधर कि बात करते हुए रतीवती कमरे से बाहर निकल जाती है.
डॉ असलम जाती हुई रतीवती कि मटकती, उछाल भरती मदमस्त गांड को घूरते रहते है.
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और सबसे नजर बचा के अपने बड़े लंड कों थोड़ा एडजस्ट करते है ताकि कोई देख ना ले.
लेकिन उन्हें पता था कि उनकी किस्मत का कि किस कदर ख़राब है, उनका रूप ही ऐसा था कि लड़की औरते डर जाती थी पास आने का तो सवाल ही नहीं था.
उनकी किस्मत मे ऐसी मटकती गांड देख के लंड हिलना ही था.
या शायद नहीं...? ये तो वक़्त बताएगा
रतीवती :- अरी नालायको कामिनीयों अभी टक मेरी बेटी को तैयार किया या नहीं? ठाकुर साहेब कब के आ गये है.

बोलते हुए कामवती के कमरे मे चल पड़ती है.
अंदर घुसते ही उसकी नजर जैसे ही अपनी बेटी पे पड़ती है दंग रह जाती है क्या सुन्दर लग रही थी कामवती एक दम अप्सरा.
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रतीवती :- हाय री मेरी बच्ची तू तो पूरी जवान हो गई है, मैंने तो कभी ध्यान दिया ही नहीं. तुझे देख के तो ठाकुर साहेब तुरंत हाँ बोल देंगे. काजल का एक टिका लगा देती है नजर ना लगे मेरी कम्मो को किसी कि.
अच्छा सुन ठाकुर साहेब के सामने नजर झुका के बात करना, जो बोले उसका जवाब हाँ ना मे देना.
ऐसा सब समझाती जा रही थी.
अब कामवती ठहरी बिल्कुल अनाड़ी अबोध हाँ हाँ मे सर हिलती रही.
अब वक़्त आ चूका था कि ठाकुर साहेब को बेचैनी का अंत हो.
रातीवती सब समझा के कामवती को ले के चल पड़ती है.
रामनिवास :- आओ कम्मो बेटी... ठाकुर साहेब ये है मेरी एकलौती बेटी
कमरे मे सन्नाटा छा जाता है, एक मस्त कर देने वाली खुशबू ठाकुर साहेब के नाथूनो से आ के टकराती है.
ठाकुर साहेब एकटक कामवती को देखते हि रह जाते है.
ऐसी काया ऐसा सुन्दर पन ऐसी अप्सरा देखि ही नहीं आज तक़.
कामवती लाल लहंगे मे बिल्कुल स्वर्ग से उरती परी लग रही थी.
सुन्दर चेहरा, बड़ी आंखे, गुलाबी होंठ, नीचे सुराहीदार गर्दन.
गर्दन से नीचे उतरते रास्ते पर दो चमकिले उभर लिए हुए पहाड़ जो कि जबरजस्ती चोली मे कैसे हुए प्रतीत होते थे.
पहाड़ो के नीचे सपाट पेट, पेट पे खुशबूदार गहरी गोल नाभि.
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वाह वाह .. ठाकुर साहेब हक्के बक्के एक टक देखे जा रहे थे.
और इधर असलम रतीवती को तिरछी आँखों से देखे जा रहा था
डॉ. असलम :- माँ बेटी दोनों ही अप्सरा है, अल्लाह ने खुल्ले हाथ से यौवन का खजाना बाटा है.
ठाकुर साहेब कि तो लॉटरी लग गई.
या अल्लाह इस बहती गंगा मे मुझे भी नहला दे.
अब असलम को क्या पता था कि अल्लाह ने उसकी दुआ कबूल कर ली है.
रामनिवास :- ठाकुर साहेब ये मेरी बेटी है कामवती, ठाकुर साहेब... ठाकुर साहेब

आप कुछ पूछना चाहे तो पूछ सकते है?
ठाकुर ज़ालिम सिंह अपनी दुनिया से लौटता है.
ठाकुर :- वो वो... मै मै... बबब... बबब... कुछ नहीं रामनिवास मुझे कुछ नहीं पूछना.
ठाकुर साहेब कामवती कि सुंदरता के आगे कांप गये थे, जो बोलना था कुछ बोल ना सके.
रामनिवास :- कैसे लगी आपको हमारी बिटिया रानी?
ठाकुर :- बहुत सुन्दर सुशील है रामनिवास हमें खुशी होंगी कि कामवती हमारी हवेली कि शोभा बढाये.
हमें ये रिश्ता मंजूर है. ठाकुर साहेब इस रिश्ते को कबूल करने मे थोड़ी भी देर नहीं करना चाहते थे.
जबकि कामवती भी ठाकुर ज़ालिम सिंह के रोबदार चेहरे से प्रभावित हुई.
अब उसे तो अपनी माँ बाप कि इच्छा से ही मतलब था उन्होंने जहाँ बोला शादी करनी ही थी सब करते है वो भी कर रही थी और कोई विशेष नहीं था कामवती के दिल मे.
बहुत भोली है हमारी कामवती.
रामनिवास और रतीवती ठाकुर का कबूलनामा सुन के उछल पड़े.
रामनिवास :- धन्यवाद ठाकुर साहेब धन्यवाद आपकी बहुत कृपा हुई हम पे
ठाकुर :- कृपा कैसे रामनिवास आपकी बेटी है ही इतनी सुन्दर कि कैसे मना करते, कामवती तो हमारी हवेली कि शान बनेगी, हमारे वंश को आगे बढ़ायेगी.
इतना सुन कर कामवती शर्मा के कमरे से बाहर चली जाती है.
रतीवती मन मे :- वाह री किस्मत मेरी बेटी बहुत किस्मत वाली है अब हमारे पास भी पैसा होगा, मेरी बेटी इतनी बड़ी हवेली जमीन जायदाद कि मालकिन बनेगी वाह.
मै खाने पिने कि तैयारी करवाती हूँ.
रतीवती भी कामवती के पीछे कमरे से बाहर चली जाती है.
रतीवती के जाने से असलम का ध्यान टूटता है तब जाके उसे मालूम पड़ता है कि यहाँ क्या हो गया है, ठाकुर साहेब ने तुरंत रिश्ता कबूल कर लिया है, कामवती को पसंद कर लिया है.
रामनिवास असलम और ठाकुर साहेब को मिठाई खिलता है.
तभी कमरे मे गांव का पंडित आता है.
और शादी कि तारीख तय होबे लगती है.
पंडित :- देखिये ठाकुर साहेब आज से 6दिन बाद मतलब कि अगले मंगलवार को बहुत शुभ मुहर्त है शादी का.
उसके बाद सब अशुभ है, उसी दिन लड़की इस घर से विदा हो जानी चाहिए एक पल के भी देर हू तो संकट आ सकता है.
रामनिवस :- पंडित ज़ी ये क्या कह रहे है आप इतनी जल्दी कैसे होगा सब?
ठाकुर :- रामनिवास आप चिंता ना करे सब मै संभल लूंगा.पंडित ज़ी शादी और विदाई मे बिल्कुल विलम्ब नहीं होगा.
सब समय पे ही होगा.
तो तय हो चूका था कि शादी अगले मंगलवार को ही होंगी.
अब खाने पिने का दौर शुरू हो चूका था,
खाना पीना कर के थोड़ा आराम कर के ठाकुर साहेब " अच्छा रामनिवास हमें चलना चाहिए शादी कि तैयारी भी करनी है "
इतना कहना था कि आसमान मे एका एक बदल गरज उठते है बिजली चमक पड़ती है.
रामनिवास :- अरे ये क्या मौसम कैसे बदल गया यकायक, ठाकुर साहेब आप से विनती है कि आज रात यही रूक जाइये.
लगता है जोरदार तूफान आने को है.
ठाकुर साहेब रुकना तो नहीं चाहते थे परन्तु ख़राब मौसम और कामवती कि लालसा मे रूकने का फैसला किया.
इधर असलम भी ख़ुश था कि रतीवती को थोड़ा और ताड़ लेगा.

उधार गांव विषरूप मे भी मौसम ने करवट बदल ली थी
भूरी काकी बड़ी से हवेली मे अकेली थी, सभी नौकर चकर जा चुके थे
शाम हो चुकी थीं, रात के वक़्त हवेली मे भूरी काकी और तीनो जमुरे ही होते थे.
बारिश होने लगी थी, तूफान जोरदार चल रहा था.
भूरी काकी पे भी इस मौसम से अछूती नहीं थी, ये भीगा भीगा मौसम उनकी पैंटी को रह रह के भिगो रहा था.

भूरी अपने कमरे मे बिस्तर पे लेती बेचैनी के साथ करवट बदल रही थी. अकेलापन और मौसम कि मार से उनका बदन जल रहा था, सुलग रहा था..


गांव कामगंज मे रामनिवास ठाकुर और डॉ. असलम के सोने कि तैयारी कर चूका था. दोनों को बाहर वाले कमरे मे सोने को बोल दिया गया था.
बाहर तूफान जोरो पे था मौसम बिल्कुल ठंडा हो चूका था, मौसम ऐसा रुमानी था कि बुड्ढ़ो के लंड भी खड़ा कर दे.
ठाकुर साहेब तो अपने आने वाले हसीन दिनों के बारे मे सोच सोच के सो गये थे.
उनके सपने मे भी कामवती ही थी जो उनका वंश बढ़ा रही थी पुरे चार लड़के पैदा किये थे कामवती ने.
लेकिन हक़ीक़त तो ये है कि चार क्या एक मच्छर भी पैदा नहीं कर सकते ठाकुर साहेब अपने 3 इंच कि लुल्ली से.
डॉ. असलम भी सोने कि कोशिश कर रहे थे लेकिन बार बार उनके जहन मे रतीवती का झुक के नमस्कार करने वालादृश्य चल रहा था,
क्या गोरे गोरे बड़े स्तन थे, कितना रस भरा था उनमे.

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दिन कि सभी बाते सोच सोच के असलम अपना लंड मसले जा रहे थे ऊपर से रूहानी मौसम कि मार... लंड पूरा खड़ा हो चूका था इतना कड़क कि दर्द देने लगा था.
ठाकुर साहेब बाजु मे लेटे थे तो हिला भी नहीं सकता था. अजीब दुविधा और कामोंउत्तेजना से घिरे थे डॉ असलम.
डॉ. असलम :- ऐसे तो मेरा लंड फट ही जायेगा, थोड़ा बाहर टहल लेता हूँ ध्यान हटे मेरा इन सब पे से वैसे भी में किस्मत कहाँ कि औरत का सुख मिले.
असलम निराश मन से बाहर को निकल पड़ते है.
दूसरे कमरे मे रतीवतीं रामनिवास के साथ लेटी थी,वो आज सुबह से ही गरम थी, ये आग बुड्ढे हलवाई ने लगाई थी लेकिन वो ये आज बुझाता उस से पहले ही खुद बुझ गया.
आज इस खुशी के मौके पे रामनिवास ज्यादा शराब पी आया था और रतीवती के बगल मे ओंधा पड़ा खर्राटे मार रहा था.
रतीवती :- इस हरामी को शराब पिने से ही फुर्सत नहीं है मै यहाँ मरे जा रही हूँ.
रतीवती अपना ब्लाउज उतार देती है और अपने बड़े गोरे स्तन से खेलने लगती है, उसकी आग उसे जला रही थी... अपने दोनों हाथो से अपने दोनों स्तनों को पकड़ के दबा रही थी, मसल रही थी, नोच रही थी... जैसे आज नोच के शरीर से अलग ही कर देगी.
आअह्ह्ह..... आह्हः.... निप्पल को अपनी ऊँगली से पकड़ पकड़ के खींच रही थी आज दिन मे हुए हलवाई के किस्से और बाहर होती बारिश मे गजब कि हवस पैदा कर दिया था रतीवती के कामुक जिस्म मे.
इसी मदहोशी मे वो एक बार मे ही अपनी साड़ी, पेटीकोट निकाल फेंकती है अब ये गर्मी बर्दाश्त के बाहर हो चुकी थी
अपना एक हाथ अपनी मखमली चुत पे रख देती है और जोर जोर से मसलने लगती है आअह्ह्हम.. आह्हः...
परन्तु आज मसलने रगड़ने मे वो मजा नहीं आ रहा था....उसे लंड चाहिए था जो उसकी चुत और गांड फाड़ दे.
जिस्म कि आग है ही ऐसी चीज.... ये जिस्म कि आग तो कही और भी लगी हुई थी

गांव विषरूप, ठाकुर कि हवेली
भूरी काकी अकेली तन्हा हवस कि आग मे तड़पे जा रही थी, बैचैनी से करवट बदल रही थी.
भले भूरी काकी कि उम्र 50 साल थी लेकिन उसे पिछले 30 सालो से किसी मर्द का अहसाह नहीं हुआ था.
वो तड़पती थी तरसती थी लेकिन शर्माहत और इज़्ज़त के कारण कुछ कर नहीं पाती थी बस कभी जब उत्तेजना ज्यादा बढ़ जाती तो बेंगन, लोकि बेलन चुत मे डाल के काम चला लेती थी.
इसी उत्तेजना मे वो अपना ब्लाउज खोल फेंकती है, दोनों बड़े और टाइट स्तन उछल के बाहरआ जाते है

जैसे ही स्तनों पे थोड़ी हवा पड़ती है, निप्पल खड़े हो के तन जाते है और सलामी देने लगते है. भूरी अपने निप्पल को पकड़ के जोर से मरोड़ देती है.
आह्हः.... आआआआहहहहह..
आज तो उतत्तेजना अपने चरम पे थी, ऐसी उत्तेजना उसने आज तक़ कभी महसूस नहीं कि.
लगता था आज मर ही जाएगी उत्तेजना से.
ऐसे रूहानी मौसम मे भी भूरी पसीने से भीगी हुई थी सांसे तेज़ तेज़ चल रही थी.
अब बर्दाश्त के बाहर था भूरी तुरंत उठती है और रसोई कि तरफ भागती है जहाँ कुछ लोकि बैंगन मिल जाये.
परन्तु हाये री फूटी किस्मत आज रसोई मे ऐसा कुछ नहीं था जिसे चुत मे डाल के प्यास बुझाई जा सके.
बाहर बगीची मे लोकि, तरोई, बैगन उगे हुए थे, लेकिन जोरदार बारिश हो रही थी कैसे जाये बाहर... क्या करे ये चुत जीने नहीं देगी.
खूब पानी छोड़े जा रही थी... भूरी पागल हुए जा रही थी.
भूरी निर्णय ले लेती है और हवेली का दरवाजा खोल अर्द्धनंग अवस्था मे ही बाहर लोकि तोड़ने निकल पड़ती है उसे कोई सुध बुध नहीं थी, थी तो सिर्फ हवस जो कि उस कि जान लेने पे उतारू थी.
हवेली के दरवाजे के बाहर बगीची थी, बगीची के आगे बरामदा था उसके आगे मुख्य दरवाजे से लग के एक झोपडी नुमा कमरा था जो कि कालू, बिल्लू और रामु का था वही रह के तीनो हवेली कि सुरक्षा करते थे.
परन्तु आज ठाकुर साहेब हवेली मे नहीं थे तो तीनो मौज मे थे कोई डांटने वाला नहीं कोई रोक टॉक नहीं.

बिल्लू :- यार एक एक बॉटल दारू और हो जाये तो ऐसे मौसम मे मजा आ जाये, साला क्या मौसम बना है आज ऊपर से ठाकुर साहेब भी नहीं है जम के पीते है, क्यों भाई लोग?
कालू, रामु भी बिल्लू कि बात से सहमत थे,
कालू :- ठीक है बिल्लू हम लोग दारू और साथ मे कुछ खाने को लाते है तू तब तक़ नजर रख हवेली पे.
ऐसा बोल के कालू रामु निकल जाते है दारू लेने.
इधर भूरी काकी हवस के उन्माद मे भागी भागी लोकि तोड़ने का रही थी, अपने स्तन को उछालती हुई, सिर्फ पेटीकोट मे ऊपर से बिल्कुल नंगी, मस्त सुडोल बड़े स्तन उछल रहे थे ऊपर नीचे
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तभी अचानक उसका पैर फिसलता है और धड़ाम से पीठ के बल गिर पड़ती है और जमीन पे जोरदार टकराती है.
आअह्ह्ह आआहहहह...... चीख के साथ बेहोश हो जाती है.


गांव कामगंज मे रामनिवास के घर पे भी हवस छाई हुई थी
रतीवती पूर्ण रूप से नंगी हो चुकी थी, बस मंगल सूत्र, माथे पे बिंदी, हाथों मे मेहंदी और मांग मे सिंदूर ही बचा था.
वो अपनी चुत रगड़े जा रही थी, पूरी चुत पानी से पच पच कर रही थी चुत से पानी निकल निकल के नीचे गांड के रास्ते होता हुआ बिस्तर को भिगो रहा था. चुत मे ऊँगली करते हुए चूडियो कि छन छानहत गूंज रही थी, ये छन छानहत माहौल मे मादकता घोल रही थी, खुद कि चूडियो का मधुर संगीत सुन के रतीवती हवस के सातवे आसमान पे पहुंच चुकी थी,उसे लंड चाहिए था किसी भी कीमत पे..
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वो अपना एक हाथ रामनिवास कि धोती पे रख उसका लंड टटोलने लगती है परन्तु लंड का कोई नामोनिशान नहीं
रतीवती उसकी धोती खोल देती है शायद कोई उम्मीद हो शायद लंड खड़ा हो जाये.
धोती हटा के देखती है तो मरा हुआ चूहा दीखता है जो अब कभी जिन्दा नहीं होगा.
रतीवती बहुत ज्यादा निराश हो जाती है, उसकी किस्मत मे ही यही था... शायद भगवान ने उसकी जिंदगी मे सम्भोग लिखा ही नहीं था.
उसकी उत्तेजना वापस से दब जाती है या यु कहिये वो अपनी इच्छा अपनी हवस को किस्मत का लेखा समझ के दबा लेती है.अपनी उत्तेजना को कम करने के लिए वो मूतना चाहती थी परन्तु बाहर बारिश हो रही थी.
रतीवती :- बाहर बारिश हो रही है, घर के पीछे ही चली जाती हूँ वैसे भी इस तूफानी बरसाती रात मे कौन जग रहा होगा, उसके कमरे से ही पीछे का रास्ता था जिसे खोल के वो नंगी ही मूतने निकल पड़ती है.
क्युकी बाहर तो कौन होगा.
क्या कोई होगा?
 

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