Thriller खजाने की तलाश (completed)

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दोस्तों ये कहानी मेने एक दूसरी साईट पर पढ़ी मुझे पसंद आई इसीलिये मैं इसे आपके लिए लेकर आ रहा हूँ
इस कहानी पर मेरा कोई भी मौलिक अधिकार नहीं है
 
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Update 01

उन तीनों के बीच उस वक्त से गहरी दोस्ती थी जब वे लंगोटी भी नही पहनते थे. उनमें से शमशेर सिंह अपने नाम के अनुरूप भारी भरकम था. लेकिन दिल का उतना ही कमज़ोर था. कुत्ता भी भौंकता था तो उसके दिल की धड़कनें बढ़ जाया करती थीं. हालांकि दूसरों पर यही ज़ाहिर करता था जैसे वह दुनिया का सबसे बहादुर आदमी है. बाप मर चुके थे और ख़ुद बेरोजगार था. यानि तंगहाल था.

दूसरा दुबला पतला लम्बी कद काठी का रामसिंह था. इनके भी बाप मर चुके थे. और मरने से पहले अपने पीछे काफी पैसा छोड़ गए थे. जिन्हें जल्दी ही नालाएक बेटे ने दोस्तों में उड़ा दिया था. यानी इस वक्त रामसिंह भी फटीचर था.

और तीसरा दोस्त देवीसिंह, जिसके पास इतना पैसा रहता था कि वह आराम से अपना काम चला सकता था. लेकिन वह भी अपनेशौक के कारण हमेशा फक्कड़ रहता था. उसे वैज्ञानिक बनने का शौक था. अतः वह अपना सारा पैसा लाइब्रेरी में पुराणी और नई साइंस की किताबें पढने में और तरह तरह के एक्सपेरिमेंट पढने में लगा देता था. वह अपने को प्रोफ़ेसर देव कहलाना पसंद करता था. यह दूसरी बात है कि उसके एक्सपेरिमेंट्स को अधिकतर नाकामी का मुंह देखना पड़ता था. मिसाल के तौर पर एक बार इन्होंने सोचा कि गोबर कि खाद से अनाज पैदा होता है जिसे खाकर लोग तगडे हो जाते हैं. क्यों न डायरेक्ट गोबर खिलाकर लोगों को तगड़ा किया जाए. एक्सपेरिमेंट के लिए इन्होंने मुहल्ले के एक लड़के को चुना और उसे ज़बरदस्ती ढेर सारा भैंस का गोबर खिला दिया. बच्चा तो बीमार होकर अस्पताल पहुँचा और उसके पहलवान बाप ने प्रोफ़ेसर को पीट पीट कर उसी अस्पताल में पहुँचा दिया.

प्रोफ़ेसर देव उर्फ़ देवीसिंह को एक शौक और था. लाइब्रेरी में ऐसी पुरानी किताबों की खोज करना जिससे किसी प्राचीन छुपे हुए खजाने का पता चलता हो. इस काम में उनके दोनों दोस्त भी गहरी दिलचस्पी लेते थे. कई बार इन्हें घरके कबाड़खाने से ऐसे नक्शे मिले जिन्हें उनहोंने किसी पुराने गडे हुए खजाने का नक्शा समझा. बाद में पता चला कि वह घर में बिजली की वायेरिंग का नक्शा था.

एक दिन शमशेर सिंह और रामसिंह बैठे किसी गंभीर मसले पर विचार विमर्श कर रहे थे. मामले की गंभीरता इसी से समझी जा सकती थी की दोनों चाये के साथ रखे सारे बिस्किट खा चुके थे लेकिन प्यालियों में चाये ज्यों की त्यों थी. उसी वक्त वहां देवीसिंह ने प्रवेश किया. उसके चेहरे से गहरी प्रसन्नता झलक रही थी."क्या बात है प्रोफ़ेसर देव, आज काफी खुश दिखाई दे रहे हो. क्या कोई एक्सपेरिमेंट कामयाब हो गया है?" रामसिंह ने पूछा."शायेद वो वाला हुआ है जिसमें तुम बत्तख के अंडे से चूहे का बच्चा निकालने की कोशिश कर रहे हो." शमशेर सिंह ने अपनी राय ज़ाहिर की."ये बात नही है. वो तो नाकाम हो गया. क्योंकि जिस चुहिया को अंडा सेने के लिए दिया था उसने उसको दांतों से कुतर डाला. अब मैंने उस नालायेक को उल्टा लटकाकर उसके नीचे पानी से भरी बाल्टी रख दी है. क्योंकि मैं ने सुना है कि ऐसा करने पर चूहे एक ख़ास एसिड उगल देते हैं जिसको चांदी में मिलाने पर सोना बन जाता है."


कहानी जारी रहेगी
 
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Update 02

"फिर तुम दांत निकाल निकाल कर इतना खुश क्यों हो रहे हो?" शमशेर सिंह ने पूछा.

"बात ये है कि इस बार मैं ने छुपा खजाना ढूंढ लिया है."

"क्या?" दोनों ने उछलने की कोशिश में प्यालियों कि चाए अपने ऊपर उँडेल ली. अच्छा ये हुआ कि चाए अब तक ठंडी हो चुकी थी.

"हाँ. मैं ने एक ऐसा खजाना ढूँढ लिया है जो आठ सौ सालों से दुनिया की नज़रों से ओझल था. अब मैं उसको ढूँढने का गौरव हासिल करूंगा." प्रोफ़ेसर अपनी धुन में पूरे जोश के साथ बोल रहा था.

"करूंगा? यानी तुमनेअभी उसे प्राप्त नही किया है." शमसेर सिंह ने बुरा सा मुंह बनाया.

"समझो प्राप्त कर ही लिया है. क्योंकि मैं ने उसके बारे में पूरी जानकारी नक्शे समेत हासिल कर ली है."

"कहीं वह शहर के पुराने सीवर सिस्टम का नक्शा तो नही है?"रामसिंह ने कटाक्ष किया.

"ऐसे नक्शे तुम ही को मिलते होंगे." प्रोफ़ेसर ने बुरा मानकर कहा, "यह नक्शा मुझे एक ऐसी लाइब्रेरी से मिला है जहाँ बहुत पुरानी किताबें रखी हैं.

पहले तुम ये किताब देख लो, फिर आगे मैं कुछ कहूँगा."कहते हुए देवीसिंह ने एक किताब उसकी तरफ़ बढ़ा दी. किताब बहुत पुरानी थी. उसके पन्ने पीले होकर गलने की हालत में पहुँच गए थे.

"यह किताब तो किसी अनजान भाषा में लिखी है."

"हाँ. मैंने ये किताब भाषा विशेषज्ञों को दिखाई थी. उनका कहना है कि यह भाषा असमिया से मिलती जुलती है. और यह देखो." कहते हुए प्रोफ़ेसर ने पन्ने पलटकर एक नक्शा दिखाया."यह कहाँ का नक्शा है?"

"ये तो भारत के पूर्वी छोर का नक्शा लग रहा है." रामसिंह ने कहा.

"हाँ. ये भारत के पूर्वी छोर का नक्शा है. इसमें असम साफ़ दिखाई पड़ रहा है.इसका मतलब ये हुआ कि ये किताब असम से सम्बंधित है. और यह एक और नक्शा देखो. क्या तुम्हें यह मिकिर पहाडियों का नक्शा नही लग रहा है?"

"लग तो रहा है." दोनोंने एक साथ कहा.

"मुझे पूरा विश्वास है कि यह खजाने का नक्शा है. जो मिकिर पहाडियों में कहीं छुपा हुआ है. क्योंकि मैं ने पढ़ा है कि वहां पहले एक सभ्यता आबाद थी.
जो बाहरी आक्रमण के कारण नष्ट हो गई थी. उसके अवशेष अब भी वहां मिलते हैं. वह सभ्यता बहुत धनवान थी. मैं ने यह भी सुना है कि वहां का राजा बाहरी आक्रमण से पहले ही आशंकित था. इसलिए उसने अपने फरार का पूरा इन्तिजाम कर लिया था. और इसी इन्तिजाम में उसने अपना खजाना एक गुफा में छुपा दिया था. हालाँकि वह फरार नही हो पाया क्योंकि महल के एक निवासी ने गद्दारी कर दी थी. शत्रु राजाने उस राजा को मरवा दिया किंतु उसे राजा का खजाना नही मिल सका. उसके बाद खजाने का पता लगाने की बहुत कोशिश की गई,किंतु कोई सफलता नही मिली."

"तुम्हारे अनुसार उसी खजाने का यह नक्शा है?" रामसिंह ने पूछा.

कहानी जारी रहेगी
 
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Update 03

खजाने का यह नक्शा है?" रामसिंह ने पूछा.

"हाँ. क्योंकि यह किताब भी उतनी ही पुरानी है जितनी पुरानी वह सभ्यता थी. अतः मुझे पूरा विश्वास है कि इसमें बना नक्शा उसी खजाने का नक्शा है."

"तो अब क्या विचार है?" राम सिंह ने पूछा.

"यह तो तुम ही लोग बताओगे." प्रोफ़ेसर ने कहा.

"मेरा ख्याल है कि हमें खजाना खोजने की कोशिश करनी चाहिए. हो सकता है किवह हमारे ही भाग्य में लिखा हो." रामसिंह ने कहा.

"तो फिर ठीक है. तुम लोग असम चलने की तैयारी करो. मैं भी घर जाकर तैयारी करता हूँ. फिर कल परसों तक हम लोग प्रस्थान करेंगे." प्रोफ़ेसर ने कहा.

"ओ.के. प्रोफ़ेसर. हम लोग कल रात की ट्रेन से निकल चलेंगे. क्योंकि अब खजाना मेरी नज़रों के सामने नाचने लगा है. अतः अब हमें बिल्कुल देर नही करनी चाहिए." शमशेर सिंह बोला.


"ठीक है. लेकिन इस बात का ध्यान रखना कि ये बात हमारे अलावा और किसी के कान में नहीं पहुंचनी चाहिए. वरनावह हमारे पीछे लग जाएगा. और जैसे ही हमखजाना खोजकर निकलेंगे वह हमारी गर्दन दबाकर खजाना समेटकर रफूचक्कर होजाएगा."

"तुम फिक्र मत करो प्रोफ़ेसर. यह बात हमारे कानों को भी न मालुम होगी." दोनों ने एक साथ उसे भरोसा दिलाया

इसके दो दिन बाद वे लोग गौहाटी के रेलवे प्लेटफोर्म पर खड़े थे. इस समय रात के बारह बज रहे थे.

"क्या ख्याल है? मिकिर पहाडियों तक बस से चलें या किसी और सवारी से?" प्रोफ़ेसर ने पूछा.

"यार अभी सुबह तक तो यहीं रहो. इस समय तो रास्ता काफी सुनसान होगा." शमशेर सिंह नेराय दी.

"वह जगह तो दिन में भी सुनसान रहती है. जहाँ हम लोग जा रहे हैं. क्योंकि वहां केवल खंडहर और जंगल हैं." रामसिंह ने फ़ौरन उसकी बात काटी.

"फिर तो वहां भूतों का भी डेरा हो सकता है." शमशेर सिंह ने आशंका प्रकट की.

"बकवास. मैं भूतों पर विश्वास नही करता. मेरा विचार है कि हम लोगों को इसी समय प्रस्थान कर देना चाहिए. क्योंकि खजाना ढूँढने में बहुत दिन लग सकते हैं. अतः बेकार में समय नष्ट नही करना चाहिए." देवीसिंह उर्फ़ प्रोफ़ेसर देव ने कहा.

फिर यही तै पाया गया कि वे लोग उसी समय बस द्वारा मिकिर पहाडियों के लिए प्रस्थान कर जाएँ. कुछ ही देर में उन्हें बस मिल गई और वे उसमें बैठ गए. इस समय बस में लगभग तीस पैंतीस लोग बैठे थे. अधिकतर तो ऊंघ रहे थे. ये लोग भी बैठकर ऊंघने का कार्य करने लगे. बस अपनी रफ़्तार से यात्रा पूरी करने लगी.अचानक बस एक झटके के साथ रूक गई. ऊंघने वाले इस झटके से चौंक पड़े और आँखें फाड़ फाड़ कर बस के ड्राईवर की तरफ़ देखने लगे, मानो वह किसी दूसरी दुनिया का व्यक्ति हो. हो सकता है यह बात कुछ लोगों के लिए सत्य रही हो. क्योंकि वे लोग शायद सपना देख रहे हों कि उनकी यात्रा किसी रॉकेट पर दूसरे ग्रह के लिए हो रही है. वैसे इस बारे में सपने देखने वाले ही बता सकते थे.

जब कुछ देर बीत गई और बस नही चली तो वे लोग बेचैन होने लगे. फिर किसी ने ड्राईवर से कारण जानना चाहा.

"बस के इंजन में लगता है कुछ खराबी आ गई है. मैं देखता हूँ." उसने खटारा बस का टूटा फूटा बोनट उठाया और कुछ देर इधर उधर इंजन में हाथ चलाया.

फिर इंजन स्टार्ट करने की कोशिश की. लेकिन इंजन ने साँस लेने से साफ इंकार कर दिया.

"क्या हुआ? खराबी समझ में आई?" कंडक्टर ने पूछा.

"कुछ समझ में नही आ रहा है. हमारा क्लीनर भी छुट्टी पर गया है. वरना वही कुछ करता."

उधर यात्री बेचैन होकर बार बार कंडक्टर और ड्राईवरसे गाड़ी के बारे में पूछ रहे थे. कुछ यात्री बस से उतर कर इधर उधर टहलने लगे. अंत में कंडक्टर ने कहा,

"अब यह बस सुबह से पहले नही चल सकती. वैसे यहाँ से मिकिर पहाडियां ज़्यादा दूर नही हैं. जिन लोगों को वहां जाना है वे पैदल जा सकते हैं।"

लोगों में यह सुनकर घबराहट फ़ैल गई. वे लोग जिन्हें केवल मिकिर पहाडियों तक जाना था, अपना सामान उठाकर चलने का निश्चय करने लगे.

"क्या विचार है? इन लोगों के साथ निकल लिया जाए या सुबह तक रुका जाए?" रामसिंह ने पूछा.

"मेरा ख्याल है कि सुबह तक देख लिया जाए. हो सकता है बस तब तक ठीक हो जाए. वैसे भी इस समय अंधेरे में हम लोग रास्ता भटक सकते हैं." शमशेर सिंह ने कहा.

"बस का ठीक होना तो मुश्किल है. एक काम करते हैं. सामने दो व्यक्ति जा रहे हैं. वे लोग ज़रूर पहाड़ियों की ओर जा रहे हैं. उनके साथ होलेते हैं." प्रोफ़ेसर ने अपनी राए दी.

"तो फिर जल्दी आओ. वे बहुत दूर निकल गए हैं."रामसिंह ने कहा.फिर वे लोग उन व्यक्तियों के पीछे चल पड़े.

लगभग आधा घंटा चलने के बाद एक आबादी दिखाई पड़ी. जिसमें केवल सात आठ घर थे. शायद ये कोई छोटा मोटा गाँव था. वे व्यक्ति चलते हुए एक मकान में घुस गए.

"क्या यही हैं मिकिर पहाडियाँ?" शमशेर सिंह ने पूछा.

"अबे बेवकूफ यहाँ तो मैदान है. पहाडियाँ किधर हैं?" रामसिंह ने शमशेर सिंह को ठहोका दिया
 
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Update 04


"किसी से पूछ कर देखते हैं।" प्रोफ़ेसर ने कहा।

"तुम ही पूछो। हमें तो यहाँ की भाषा आती नहीं।"

फिर प्रोफ़ेसर ने एक मकान का दरवाज़ा खटखटा कर वहाँ के निवासी से इसके बारे में पूछा तो पता चला कि मिकिर पहाडियाँ अभी तीन किलोमीटर दूर हैं।

"क्या यहाँ ठहरने कि कोई व्यवस्था है?" प्रोफ़ेसर ने पूछा।

"हाँ। पास ही में एक छोटा-सा ढाबा है। वहाँ दो तीन लोगों के ठहरने की व्यवस्था हो सकती है।" उस व्यक्ति ने ढाबे का पता बता दिया। ये लोग वहाँ पहुँच गए l

इस समय ढाबे में पूरी तरह सन्नाटा छाया था। ढाबे का मालिक सामने चारपाई डालकर सोया पड़ा था। किंतु जगह के बारे में पूछने पर इन लोगों को निराशा हुई. क्योंकि वहाँ बिल्कुल जगह नहीं थी।

"अब क्या किया जाए?" शमशेर सिंह ने पूछा।

"अब तो यही एक चारा है कि अपना सफ़र जारी रखें। अब मिकिर पहाड़ियों में पहुँचकर खजाने की खोज शुरू कर देनी है।" प्रोफ़ेसर ने कहा।

"तुमने हम लोगों को मरवा दिया। यह समय तो आराम करने का था। अब वहाँ तक फिर तीन किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा।" रामसिंह रूहांसी आवाज़ में बोला प्रोफ़ेसर से।

"आराम तो वैसे भी नहीं मिलना था। क्योंकि पहाड़ियों पर कोई हमारा घर नहीं है। अब अपना अभियान चाहे हम इस समय शुरू करें या सुबह से, कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता।" प्रोफ़ेसर ने इत्मीनान से कहा।

फिर वे तीनों आगे बढ़ते रहे। लगभग डेढ़ घंटा चलने के पश्चात् उन्हें पहाडियाँ दिखाई देने लगीं।

"लो यहाँ तक तो पहुँच गए, अब किधर चलना होगा?" रामसिंह ने पूछा।

"ज़रा ठहरो। मैं नक़्शा निकाल कर देखता हूँ।" प्रोफ़ेसर ने जवाब दिया। फिर तीनों ने अपने सामान वहीँ रख दिए और हांफने लगे। प्रोफ़ेसर ने अपनी जेब से वही किताब निकली और पलट कर नक़्शा देखने लगा।

"प्रोफ़ेसर, तुमने इतनी कीमती किताब जेब में रखी थी। अगर किसी ने पार कर ली होती तो?" रामसिंह ने झुरझुरी लेकर कहा।

"तो इसे बेकार की चीज़ समझकर फेंक गया होता। क्योंकि मैं ने इसका कवर उतरकर दूसरा कवर चढा दिया है। जिसपर लिखा है मरने का तर्कशास्त्र। अब तर्कशास्त्र से भला किसी को क्या दिलचस्पी हो सकती है।"

"तुम्हारी अक्ल की दाद देनी पड़ेगी प्रोफ़ेसर। अब बताओ कि नक़्शा क्या कहता है?" शमशेर सिंह ने तारीफी नज़रों से उसे देखा।

"नक्शे के अनुसार हम इस जगह पर हैं।" प्रोफ़ेसर ने एक जगह पर ऊँगली रखते हुए कहा। "अब हमें बाईं ओर बढ़ना होगा।"

"क्या ये सामान भी ले चलना होगा। मेरे कंधे में तो दर्द होने लगा यह बैग लादे हुए." रामसिंह कराहकर बोला।

"सामान यहाँ क्या उचक्कों के लिए छोड़ जाओगे। मैं ने पहले ही कहा था कि हल्का सामान लो। अब तुम्हें तो हर चीज़ कि ज़रूरत थी। चाए बनने के लिए स्टोव, पानी कि बोतल, एक सेर नाश्ता, लोटा, तीन-तीन कम्बल और पता नहीं क्या क्या। मैं कहता हूँ कि इन चीज़ों कि क्या ज़रूरत थी।" शमशेर सिंह पूरी तरह झल्लाया हुआ था।

"मुझे क्या पता था कि यहाँ पर ठण्ड नहीं होती। वरना मैं तीन कम्बल न ले आता। मैं ने तो समझा कि चूंकि यहाँ पहाड़ हैं इस लिए ठण्ड भी होती होगी।"

इस जगह पर घुप्प अँधेरा था। क्योंकि आज अमावस्या थी और यह जंगली इलाक़ा था। प्रोफ़ेसर ने नक़्शा देखने के बाद टॉर्च बुझा दी थी।

"यार, कहीं कोई जंगली जानवर न आकर हमें दबोच ले।" शमशेर सिंह ने कांपते हुए कहा। अभी उसकी बात पूरी भी न होने पाई थी कि धप्प की आवाज़ आई और सबसे आगे चलते हुए रामसिंह की चीख सुनाई पड़ी।

"भ...भागो।" शमशेर सिंह ने प्रोफ़ेसर का हाथ पकड़कर खींचा, "हम पर जंगली जानवरों ने हमला कर दिया है।"

"र...रुको!" प्रोफ़ेसर ने कांपते हुए कहा, "मैं अभी सूटकेस से अपनी राइफल निकलता हूँ।"

इससे पहले कि वह सूटकेस खोलकर राइफल निकलता, शमशेर सिंह ने उसे खींच लिया और फिर प्रोफ़ेसर का भी साहस टूट गया और दोनों पीछे मुड़कर भाग खड़े हुए. किंतु डर के कारण उनके पैर मानो एक-एक क्विंटल के हो गए थे। क्योंकि लाख चाहने पर भी वे पाँच छह क़दम से आगे नहीं बढ़ पाए. फिर वहाँ गालियों का तूफ़ान आ गया। ये गालियाँ रामसिंह के गले से निकल रही थीं।

"ल—लगता है रामसिंह पर जानवरों का हमला नहीं हुआ है, बल्कि कोई और मुसीबत आई है। आओ देखते हैं।" प्रोफ़ेसर ने कहा। फिर दोनों साहस करके आगे बढे। अचानक उन्होंने काली रात की चादर में दो चमकती हुई ऑंखें देखीं और दोनों के होश फिर उड़ गए. "भ—भूत।" दोनों के मुंह से घिघियाती चीख निकली और उन्होंने फिर भागने का इरादा किया।

तभी रामसिंह की आवाज़ सुनाई पड़ी, "कमबख्तों, तुम लोग भाग कहाँ रहे हो। यह मैं हूँ। अब जल्दी से टॉर्च जलाओ."

दोनों की यह सुनकर जान में जान आई. फिर प्रोफ़ेसर ने कांपते हाथों से टॉर्च जलाकर उसकी रौशनी रामसिंह पर डाली। वह ऊपर से नीचे तक कीचड़ में लथपथ खड़ा था।

"यह क्या हुआ?" दोनों के मुंह से निकला।

"यह तुम लोगों की बेवकूफी का फल है। जब इतना
अँधेरा छाया है तो टॉर्च जला लेनी चाहिए थी। अब इस अंधेरे में सामने का तालाब भला कैसे दिखाई पड़ता। उसी के कीचड़ में मैं फिसल गया और यह गत बन गई."

"टॉर्च तो तुम्हारे पास भी थी। तुम ने क्यों नहीं जला ली?" प्रोफ़ेसर ने पूछा।

"टॉर्च तो है, लेकिन यहाँ पहुँचकर याद आया कि उसका सेल डाउन है। अब उस टॉर्च की रौशनी मैं केवल खजाना देखने के लिए डालूँगा।"

"तुम्हें घर पर ही यह सब बातें अच्छी तरह देख लेनी चाहिए थीं।" शमशेर सिंह ने डपटा।

"कोई बात नहीं।" प्रोफ़ेसर ने ढाढस बंधाई, "हम लोग पेशेवर खजाना खोजने वाले तो हैं नहीं कि हर बात याद रहे। अब मैं नक़्शा निकालकर यह देखता हूँ कि कहीं हम लोग ग़लत जगह तो नहीं आ गए. क्योंकि आगे तालाब है। जिसके कारण रास्ता बंद है।
 
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Update 05


"नक्शा बाद में देखना. पहले यह बताओ कि मेरा क्या होगा. क्या मैं ऐसे ही कीचड़ में लथपथ रहूँ? मेरा सामान भी कीचड़ में सन गया है." रामसिंह ने कहा.

"तुम अपना मुंह तो तालाब के पानी से धो लो. और कपड़े ऐसे ही पहने रहो. जब सूख जाएँ तो सूखी मिटटी झाड़ लेना." कहते हुए प्रोफ़ेसर ने नक्शा निकाला. कुछ देर टॉर्च के प्रकाश में उसे देखता रहा

फिर बोला, "नक्शे में यह तालाब मौजूद है. यानि हम सही रास्ते पर हैं. अब नक्शे के अनुसार हमें दाएँ ओर मुड जाना चाहिए."

फिर वे दाएँ ओर मुड गए. प्रोफ़ेसर ने फिर टॉर्च बुझा दी थी. ताकि बैट्री कम से कम खर्च हो. अभी उस टॉर्च से बहुत काम लेना था. हालाँकि बाकि दोनों इससे सहमत नही थे, लेकिन जब प्रोफ़ेसर ने आगे रहना स्वीकार कर लिया तो वे भी चुप हो गए. और इस तरह अब तीनों की टोली में सबसे आगे प्रोफ़ेसर था.

अचानक प्रोफ़ेसर ने शमशेर सिंह के हाथ में कोई चमकती हुई वस्तु देखी, "यह क्या है?" कहते हुए प्रोफ़ेसर ने शमशेर सिंह के हाथ पर टॉर्च का प्रकाश डाला. यह एक छोटा सा खंजर था.

"यह मैं ने जंगली जानवरों से बचाव के लिए पकड़ लिया है. अगर कोई जानवर अचानक हमला कर देगा तो उसका पेट इस तरह से चीर कर रख दूँगा." कहते हुए उसने खंजर हवा में लहराया. प्रोफ़ेसर ने जल्दी से अपना सर पीछे खींच लिया वरना खंजर की नोक ने उसकी नाक की नोक उड़ा दी थी.

"क्या तुम इसका इस्तेमाल कर पाओगे? क्योंकि तुम्हारा हाथ तो कांप रहा है. कहीं हडबडाहट में अपने ही न मार लेना." रामसिंह ने कहा.

"चुप रहो. मैं तुम्हारी तरह अनाड़ी नही हूँ." शमशेर सिंह ने क्रोधित होकर कहा.

फिर प्रोफ़ेसर ने दोनों को शांत किया. और वे आगे बढ़ने लगे. अब तक सुबह का उजाला फैलने लगा था. और चिड़ियों के चहचहाने की आवाजें सुनाई पड़ने लगी थीं. इस समय वे ऐसे रास्ते पर चल रहे थे जिसके एक किनारे पर कोई पहाड़ी नदी बह रही थी और दूसरे किनारे पर छोटी मोटी पहाडियों की एक श्रृंखला थी. अचानक प्रोफ़ेसर चलते चलते रूक गया.

"क्या हुआ प्रोफ़ेसर?" शमशेर सिंह ने पूछा.

"मेरा ख्याल है, यह जगह आराम करने के लिए अच्छी है. हम लोग कुछ देर ठहर कर इस नदी में स्नान करेंगे, फिर आगे बढ़ेंगे."

फिर तीनों ने अपने अपने सामान नीचे रखे और नदी की और बढ़ गए. इस समय नदी के ठंडे पानी ने तीनों को एक नई स्फूर्ति दी और उनकी अब तक की यात्रा की साड़ी थकान उतर गई. जब वे लोग पानी से बाहर निकले तो पूरी तरह ताज़ादम हो रहे थे. उन्होंने अपने सूटकेस से कुछ सैंडविच निकले और नाश्ता करने लगे. रामसिंह ने झोले से स्टोव निकला और उसपर काफी बनाने लगा.

कुछ देर बाद वे लोग गरमागरम काफी पी रहे थे.

"इस वक्त रामसिंह के स्टोव ने काफी काम किया है. हम लोग बेकार में उसके स्टोव लाने की बुराई कर रहे थे." शमशेर सिंह ने कहा.

"मुझसे कभी कोई काम ग़लत नही होता." रामसिंह ने अकड़ कर कहा.

"तुमने सिर्फ़ एक काम ग़लत किया है कि इस दुनिया में पैदा हो गए हो." शमशेर सिंह ने टुकड़ा लगाया.और दूसरा ग़लत काम मैंने यह किया है कि तुम्हारे जैसे गधे को अपना दोस्त बना लिया है." रामसिंह ने दांत पीसते हुए कहा.

"ठीक है. अब तुम लोग आपस में लड़ते रहो. खजाने की खोज तो हो चुकी." प्रोफ़ेसर ने दोनों को घूरते हुए कहा.

"सोरी प्रोफ़ेसर, बात यह है कि हम लोग कसरत कर रहे थे."

"यह कैसी कसरत? मैंने तो आज तक ऐसी कसरत नही देखी जिसमें लोग झगड़ा करते हैं." प्रोफ़ेसर ने आश्चर्य से कहा.

"यह ऐसी ही कसरत है. इसमें दिमाग मज़बूत होता है और अगर हाथ पैर चलाने की नौबत आ जाए तो हाथ पैरों की भी कसरत हो जाती है."

"अच्छा अच्छा ठीक है. अब अपने अपने सामान उठाओ. हम लोगों ने बहुत देर आराम कर लिया."
प्रोफ़ेसर ने उठते हुए कहा.तीनों ने फिर अपनी यात्रा शुरू की.

अचानक प्रोफ़ेसर देव ने रूककर किसी वस्तु को गौर से देखना शुरू कर दिया."क्या देख रहे हो प्रोफ़ेसर?" शमशेर सिंह ने प्रोफ़ेसर की दृष्टि की दिशा में अपनी दृष्टि दौड़ाई. यह कोई घास थी.

"मैं उस घास को देख रहा हूँ."

"क्यों? उस घास में ऐसी क्या बात है?" रामसिंह ने हैरत से पूछा.

"अगर मेरा विचार सही है तो यह एक महत्वपूर्ण बूटी है जिसके बारे में मैंने किताबों में काफी कुछ पढ़ा है."

"फिर तो कबाड़ा हो गया. क्योंकि अब तुम यहीं अपनी रिसर्च शुरू कर दोगे और खजाना हमारी याद में पड़ा पड़ा सूख कर कांटा हो जाएगा." रामसिंह ने अपने सर पर हाथ मारते हुए कहा.

"अभी जब मैं इस बूटी का नाम बताऊंगा तो तुम लोग खजाने के बाप को भी भूल जाओगे. यह संजीवनी बूटी है जो मुर्दों में भी जान डाल देती है." प्रोफ़ेसर ने रहस्योदघाटन किया.

"क्या?" दोनों उछल पड़े, "तुम्हें कैसे पता?"

"मैंने इसकी पहचान किताबों में पढ़ी है. ऊपर का भाग सफ़ेद होता है, बीच का हरा और नीचे का कत्थई. यह बिल्कुल वैसी ही घास है."

"हाँ. है तो वैसी. फिर तो हम लोगों ने एक नई खोज कर डाली. प्रोफ़ेसर, इसके कुछ नमूने तोड़कर रख लो. घर पर इसका अच्छी तरह टेस्ट कर लेना." शमशेर सिंह ने कहा.

"मैं यहीं इसका टेस्ट किए लेता हूँ." कहते हुए प्रोफ़ेसर ने एक मुठ्ठी घास तोड़कर अपने मुंह में रख ली.
"अभी थोड़ी देर में इसका असर पता लग जाएगा. तुम लोग थैलों में इसे भर लो."

वे लोग थैलों में घास भरने लगे. कुछ देर में दो थैले घास से पूरी तरह भर गए. अब उन्होंने आगे का सफर शुरू किया.
 
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Update 06

कुछ दूर जाने के बाद एकाएक प्रोफ़ेसर ने अपना पेट पकड़ लिया और कराहने लगा.

"तुम्हें क्या हुआ?" शमशेर सिंह ने पूछा.प्रोफ़ेसर ने कुछ कहने की बजाए झाड़ियों की तरफ़ छलांग लगा दी. फिर झाड़ियों से इस तरह की आवाजें आने लगीं मानो वह उल्टियाँ कर रहा हो. और साथ ही 'धड़ाक' की दो तीन आवाजें भी सुनाई दीं.

"इसे क्या हुआ? अभी तो अच्छा खासा था." रामसिंह ने हैरत से कह

"लगता है इसने घास खाकर अपना पेट ख़राब कर लिया है." शमशेर सिंह ने अनुमान व्यक्त किया.फिर
कुछ देर बाद प्रोफ़ेसर की ज़ोर ज़ोर से कराहने की आवाजें आने लगीं.

"क्या हम लोग तुम्हारी मदद को आयें?" रामसिंह ने चीख कर पूछा.

"आ जाओ. मुझसे तो अब उठा भी नही जा रहा है." प्रोफ़ेसर की कमज़ोर आवाज़ सुनाई दी. वे लोग झाड़ियों के पास पहुंचे और वहां पहुंचकर उन्हें अपने मुंह पर रूमाल रख लेना पड़ा. क्योंकि वहां उल्टियों के कारण अच्छी खासी बदबू फैली थी और प्रोफ़ेसर औंधे मुंह पड़ा कराह रहा था. उसका पैंट भी पीछे से भीगा था.

"मैंने मना किया था की यहाँ अपनी रिसर्च से बाज़ आ जाओ, लेकिन तुम नही माने. अब थोडी हिम्मत करो ताकि हम लोग तुम्हें यहाँ से ले चलें." रामसिंह ने कहा. फिर दोनों ने मिलकर उसे उठाया और झाड़ियों से बाहर ले आए. उसे एक पेड़ के सहारे लिटा दिया गया. फिर उसे पानी पिलाया गया.
"खजाने की खोज तो पाँच छह घंटों के लिए कैंसिल हुई. क्योंकि जब तक प्रोफ़ेसर ठीक नही हो जाता हम आगे नही बढ़ सकते." शमशेर सिंह ने चिंताजनक लहजे में कहा.

"हाँ. इसे तो अपनी मूर्खता से ही छुट्टी नही मिलती." रामसिंह ने प्रोफ़ेसर को घूरा.

"अब कुछ भी कह लो. अब तो मूर्खता हो ही गई. हाय .... अब तक पेट में मरोड़ हो रही है. पता नही वह कैसी घास थी. ये कमबख्त किताबों में भी झूटी बातें लिखी रहती हैं." प्रोफ़ेसर ने कराहते हुए कहा.
फिर तीनों ने वहीँ डेरा जमा लिया. चूंकि वे रात भर के जागे हुए थे, अतः शमशेर सिंह और रामसिंह की आँख लग गई. जबकि प्रोफ़ेसर काफ़ी देर परेशान रहा.शाम तक प्रोफ़ेसर की हालत काफी सुधर चुकी थी, अतः उनहोंने आगे बढ़ने का निश्चय किया. प्रोफ़ेसर ने अपने कपड़े बदल लिए थे.

धीरे धीरे अँधेरा छाने लगा था., और जंगली जानवरों की आवाजें आने लगी थीं. इन आवाजों को सुनकर तीनों की हालत ख़राब हो रही थी, किंतु ज़ाहिर यही कर रहे थे कि उन्हें इसकी कोई परवाह नही है. सबसे ख़राब हालत शमशेर सिंह की थी. उसका दिल इस समय दूनी रफ़्तार से धड़क रहा था और हाथ में पकड़ा खंजर लगभग चालीस दोलन प्रति सेकंड की रफ़्तार से काँप रहा था. इसी कम्पन में उसका खंजर एक बार रामसिंह के हाथ से छू गया.

"अरे बाप रे, ये किसने मेरे ऊपर दांत गड़ा दिए." रामसिंह ने घबरा कर प्रोफ़ेसर की दी हुई टॉर्च जलाई, फ़िर खंजर देखकर उसका पारा फ़िर चढ़ गया, "अबे यह खंजर जहाँ से निकाला है वहीँ रख दे वरना जंगली जानवरों का तो कुछ नही होगा, हम लोगों की जान ज़रूर चली जाएगी."

मजबूर होकर शमशेर सिंह ने दोबारा खंजर अपनी जेब में रख लिया. उसने तेज़ तेज़ चलना शुरू कर दिया. क्योंकि उसका मूड ख़राब हो गया था.

"अरे इतनी तेज़ क्यों चल रहे हो. मैं कमजोरी के कारण चल नही पा रहा हूँ." देवीसिंह ने कराहते हुए कहा.
"तो तुम आराम से आओ. मैं तो अब खजाने के पास ही रुकूंगा." शमशेर सिंह ने पीछे मुडे बिना कहा.

धीरे धीरे शमशेर सिंह का मूड ठीक होता गया. वह सोचने लगा कि रामसिंह ने ठीक ही तो कहा था कि खंजर रख ले. उस बेचारे को तो पता ही नही कि मैं कितना बहादुर हूँ. खैर वक्त आने पर मालूम हो जाएगा. उसे किसी का हाथ अपने कंधे पर महसूस हुआ.

"ओह, तो रामसिंह मुझे मनाने आया है."उसने कहा, "अरे यार, मैं तुमसे ज़रा भी नाराज़ नही हूँ. मुझे पता है कि तुम मुझे नही जानते कि मैं कितना बहादुर हूँ. मैं इसीलिए तेज़ चल रहा हूँ कि कोई जंगली जानवर पहले मेरे ऊपर हमला करे और मैं उसे परलोक पहुंचाकर अपनी बहादुरी सिद्ध कर दूँ."

अब उसे रामसिंह का हाथ कंधे की बजाए सर पर महसूस होने लगा था."अरे यार क्या कर रहे हो. मुझे गुदगुदी हो रही है. अच्छा तो चुपचाप अपना काम किया करोगे, कुछ बोलोगे नहीं." शमशेर सिंह ने एक झटके से अपना सर पीछे किया और उसकी सिट्टी पिट्टी गुम हो गई. क्योंकि पीछे रामसिंह की बजाए एक खूंखार गोरिल्ला खड़ा था.अरे बाप रे!" शमशेर सिंह चीखा और आगे की तरफ़ दौड़ लगा दी. गोरिल्ले ने पीछा किया, किंतु उसी समय शमशेर सिंह को एक पेड़ ऐसा दिख गया जिस पर वह आसानी से चढ़ सकता था. फिर वह बिना देर किए उस पेड़ पर चढ़ गया. गोरिल्ले ने पेड़ पर चढ़ने की कोशिश की किंतु फिसल कर गिर गया और फिर खड़ा होकर पेड़ को हिलाने लगा.

"द..देखो, अगर मैं नीचे आ गया तो बहुत बुरा हाल करूंगा." शमशेर सिंह ने कांपते हुए कहा. फिर उसे अपने खंजर की याद आई और उसे जेब से निकाल कर गोरिल्ले को दिखाने लगा, "इसे पहचानते हो, यह खंजर है. अगर तुम नहीं भागे तो तुम्हारा पेट चीर दूँगा." उसने पेड़ पर बैठे बैठे कहा.

गोरिल्ला भला शमशेर सिंह की भाषा क्या समझता. वह क्रोधित दृष्टि से उसकी ओर देख रहा था और शायद आश्चर्यचकित भी था.क्योंकि इस जंगल में उसने पहली बार मनुष्य देखे थे.

उधर रामसिंह और देवीसिंह काफ़ी पीछे रह गए थे. रामसिंह देवीसिंह से कह रहा था, "प्रोफ़ेसर यह शमशेर सिंह भी अजीब है. कहाँ तो वह हम लोगों के पीछे चल रहा था और कहाँ इतनी दूर निकल गया कि हम लोग उसे देख भी नही पा रहे हैं."

"मूडी आदमी है. अभी जब जंगली जानवरों की तरफ़ ध्यान जाएगा तो ख़ुद ही पलट आयेगा."

तभी उन्हें शमशेर सिंह की चीख सुनाई दी.

"ओह, लगता है वह खतरे में है. आओ रामसिंह." प्रोफ़ेसर ने कहा और वे आवाज़ की दिशा में दौड़ पड़े. फ़िर जब उन्हें शमशेर सिंह दिखाई पड़ा तो वह इस दशा में था कि गोरिल्ला उसकी टांग पकड़े खींच रहा था और शमशेर सिंह दोनों हाथों से पेड़ की एक डाल पकड़े चीख रहा था. खंजर उसके हाथ से छूट कर नीचे गिरा पड़ा था.

प्रोफ़ेसर ने अपनी राइफल निकाल कर हवा में दो फायर किए. गोरिल्ला चौंक कर उनकी और देखने लगा. फ़िर उसने एक साथ तीन मनुष्यों से मुकाबला करना उचित नही समझा और झाड़ियों की तरफ़ भाग गया.

"प्रोफ़ेसर, वह भाग रहा है. गोली चलाओ वरना यदि वह जिंदा रहा तो तो फिर हमें परेशान करेगा." रामसिंह ने कहा.

"गोली कैसे चलाऊं. यह तो नकली राइफल है और केवल पटाखे की आवाज़ करती है. इससे तो एक चिडिया भी नही मारी जा सकती." प्रोफ़ेसर ने अपनी विवशता प्रकट की.

"तो इसको लाने की क्या ज़रूरत थी. असली राइफल क्यों नही लाये?" रामसिंह ने झल्लाकर कहा.
"उसका लाइसेंस कहाँ मिलता. और फ़िर यह भी तो काम आ गई. वरना गोरिल्ला शमशेर सिंह का काम कर डालता." प्रोफ़ेसर ने कहा.

"ठीक है प्रोफ़ेसर. वास्तव में तुम बहुत अक्लमंद हो." रामसिंह ने कहा. फिर उनहोंने पेड़ की तरफ़ ध्यान दिया जहाँ शमशेर सिंह डाल से चिपटा हुआ आँखें बंद किए थर थर काँप रहा था.

"शमशेर सिंह, अब नीचे उतर आओ. हम लोग आ गए हैं. अब डरने की कोई बात नहीं." प्रोफ़ेसर ने उसे पुकारा.

"क..क्या वह गोरिल्ला भाग गया?" शमशेर सिंह ने आँखें खोलते हुए पूछा.

"हाँ. अब ऊपर से उतर आ डरपोक कहीं का. तू जिससे डर गया था वह तो ख़ुद इतना डरपोक निकला कि हम लोगों की शक्ल देखकर भाग गया." रामसिंह ने कहा.

"वह तुम लोगों की शक्ल देखकर नही भागा था बल्कि राइफल देखकर भागा था. इसलिए ज़्यादा अपनी बहादुरी मत दर्शाओ." शमशेर सिंह ने उतरते हुए कहा.

"अब तुम हमारे साथ ही रहना. वरना फिर किसी खतरे का सामना करोगे." प्रोफ़ेसर ने कहा.

वे लोग उसके बाद चुपचाप आगे बढ़ते रहे. कुछ दूर जाने के बाद रामसिंह ने कहा, "प्रोफ़ेसर, क्या हम सही रास्ते पर जा रहे हैं?"

"अभी तक तो मेरे ख्याल में सही जा रहे हैं. फिर भी मैं नक्शा देख लेता हूँ." कहते हुए प्रोफ़ेसर वहीँ बैठ गया और जेब से किताब निकालकर नक्शा देखना शुरू कर दिया, "हूँ. अभी तक तो ठीक ही है. लेकिन अब हमें दाएँ ओर मुड़ना पड़ेगा."

उसके बाद प्रोफ़ेसर ने फिर नक्शा जेब में रख लिया और वे लोग दाएँ ओर मुड़कर आगे बढ़ने लगे.कुछ दूर चलने के बाद एकदम से जंगल समाप्त हो गया और सामने पहाडियाँ दिखाई देने लगीं. पहाड़ियों से पहले एक बड़ा सा मैदान था.

"यह आगे तो रास्ता ही बंद है. तुमसे नक्शा देखने में कोई भूल तो नही हो गई?" शमशेर सिंह ने पूछा.

"नक्शा तो मैंने ठीक देखा था. फिर भी एक बार और देख लेता हूँ." प्रोफ़ेसर ने दोबारा जेब से नक्शा निकाला और देखने लगा.
 
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Update 07

नक्शा देखने के बाद प्रोफ़ेसर बोला, "नक्शे के हिसाब से तो रास्ता इन पहाड़ियों में होना चाहिए.

"फिर उन्होंने काफ़ी देर पहाडियों में कोई रास्ता, कोई दरार इत्यादि ढूँढने की कोशिश की, किंतु कहीं कोई रास्ता नही मिला.

"मेरा ख्याल है कि यह स्थान आराम करने के लिए काफी अच्छा है. इस समय आराम किया जाए, सुबह दिन की रौशनी में रास्ता ढूँढा जाएगा."सभी प्रोफ़ेसर की बात से सहमत हो गए और आराम करने के लिए वहीँ लेट गए. जल्द ही सबको नींद ने आ घेरा.

अगले दिन सुबह उठकर वे लोग फिर पहाड़ियों के पास पहुंचे और ध्यान से उनका निरीक्षण करना शुरू कर दिया, कि शायद कहीं से कोई दर्रा इत्यादि दिख जाए जो उन्हें पहाड़ियों के दूसरी ओर पहुँचा दे. किंतु लगभग दो घंटे की माथापच्ची के बाद उन्हें दर्रा तो क्या दरार भी न दिखी.

"मेरा ख्याल है कि हमें पहाड़ियों पर चढ़कर इन्हें पार करना चाहिए." प्रोफ़ेसर ने कहा.

"लेकिन यह पहाडियाँ तो एकदम सीधी हैं. इनके ऊपर कैसे चढा जाए?" रामसिंह ने विवशता के साथ कहा.

"यदि अक्ल हो तो हर काम हो सकता है. वह पेडों कि लताएँ देख रहे हो," प्रोफ़ेसर ने पेडों की ओर संकेत किया, "उसे बट कर हम लोग रस्सी की सीढ़ी बनाते हैं फिर उसके द्वारा इन पहाड़ियों पर चढा जाएगा."

"गुड आईडिया प्रोफ़ेसर. हमें इस कार्य में देर नही करनी चाहिए." शमशेर सिंह ने कहा. फिर वे लोग पेडों की तरफ़ चल पड़े. शमशेर सिंह ने कुल्हाड़ी उठाकर लताओं को काटना शुरू कर दिया और बाकी दोनों उसे बटकर रस्सी बनाने लगे. लगभग तीन घंटे के परिश्रम के बाद उन्होंने काफ़ी लम्बी रस्सी तैयार कर ली थी. प्रोफ़ेसर ने उसके ऊपर एक हुक लगा दिया.

"अब हम लोग पहाडी पर चढ़ सकते हैं." प्रोफ़ेसर ने कहा.

"लेकिन इस रस्सी को पहाडी के ऊपर कैसे फंसाएंगे?" रामसिंह ने पूछा.

"इसकी चिंता मत करो. मेरे पास इसका भी इलाज मौजूद है." कहते हुए प्रोफ़ेसर ने अपना सूटकेस खोलकर एक पटाखे वाला रॉकेट निकाला और कहा, "यह रॉकेट इस हुक को लेकर पहाड़ियों पर जाएगा. यह है तो छोटा, किंतु बहुत शक्तिशाली है. और इसको मैंने ख़ुद बनाया है."

प्रोफ़ेसर ने हुक को रॉकेट के साथ बाँध दिया और रॉकेट की दिशा पहाड़ियों की ओर करके उसके पलीते में आग लगा दी. रॉकेट सर्र सर्र की आवाज़ करते हुए उड़ गया और पहाड़ियों के ऊपर जाकर गिरा.. इसके साथ ही रस्सी में लगा हुक भी पहाड़ियों के ऊपर पहुँच गया. प्रोफ़ेसर ने रस्सी को दो तीन झटके दिए किंतु हुक नीचे नहीं आया.

"हुक पहाड़ियों पर अच्छी तरह फँस गया है. अब हम रस्सी के सहारे ऊपर पहुँच सकते हैं." उसने कहा. फिर उन्होंने रस्सी के सहारे ऊपर चढ़ना शुरू कर दिया. सूटकेस उन्होंने अपने कन्धों पर डाल लिए थे. प्रोफ़ेसर उन तीनों में सबसे आगे था.

कुछ ऊपर चढ़ने के बाद अचानक प्रोफ़ेसर को कुछ ख्याल आया और उसने चौंककर चिल्लाते हुए कहा, "तुम दोनों मेरे साथ क्यों आ रहे हो? तीन लोगों के बोझ से यह रस्सी टूट नही जाएगी?" प्रोफ़ेसर की बात पूरी होते ही उसकी आशंका भी सत्य सिद्ध हो गई और रस्सी टूट गई. फिर वे एक के ऊपर एक गिरते चले गए.

कुछ देर तक तो उनके होश ही न सही हुए और जब उनका दिमाग कुछ सोचने के अनुकूल हुआ तो सबसे ऊपर पड़े हुए प्रोफ़ेसर ने भर्राई आवाज़ में कहा, "हम लोग जिंदा हैं या मर गए?"

"फिलहाल तो जिंदा हैं." बीच में पड़े हुए शमशेर सिंह ने कहा.

"तो फ़िर इस वीराने में मुझे इतना नर्म बिस्तर कहाँ से मिल गया?"

"तुम्हें केवल बिस्तर मिला है और मुझे बिस्तर और रजाई दोनों मिल गए हैं. लेकिन रजाई बहुत भारी है."

अगर तुम लोग कुछ देर और मेरे ऊपर से नही हटे तो मेरी हड्डियाँ सुरमा बन जाएंगी. फ़िर बिना हड्डियों
का और अच्छा बिस्तर बनेगा." सबसे नीचे पड़े हुए रामसिंह ने चीखकर फरियाद की. वे दोनों जल्दी से उठ बैठे.

सबसे बाद में रामसिंह हाय हाय करते उठा.

"क्या हुआ रामसिंह? क्या ज़्यादा चोट लग गई है?" शमशेर सिंह ने हमदर्दी से पूछा.

"अरे मुझे तो लगता है कि ज़रूर दो तीन जगह से फ्रेक्चर हो गया है." रामसिंह ने कराहते हुए कहा.

"दो मिनट रुको मैं देखता हूँ. यहाँ ज़रूर आयोडेक्स वाली घास मिल जायेगी." प्रोफ़ेसर ने जंगल की ओर रुख किया.

"रहने दो प्रोफ़ेसर, तुम्हारे इलाज से अच्छा है कि मैं बिना इलाज के रहूँ. वरना तुम मेरा भी वही हाल कर दोगे जो अपना किया था.

"ठीक है. जैसी तुम्हारी मर्ज़ी."

कुछ देर मौनता छाई रही फ़िर शमशेर सिंह बोला, "हमारा पहाड़ियों पर जाने का प्लान तो चौपट हो गया. अब क्या किया जाए?"

"हाँ. यह सब तुम लोगों की गलती से हुआ है. न एक साथ तीनों चढ़ते न रस्सी टूटती." फ़िर प्रोफ़ेसर ने रामसिंह से कहा, "ऐसा है तुम यहाँ कुछ देर आराम से रहो, हम लोग एक बार फ़िर पहाड़ियों में कोई रास्ता ढूँढ़ते हैं."

फ़िर वह दोनों रास्ता ढूँढने निकल गए और रामसिंह वहीँ बैठकर सूखी डबलरोटी चबाने लगा जो वह

घर से अपने साथ लाया था. फ़िर उसने स्टोव जलाकर काफी चढा दी. कुछ देर बाद जब काफी तैयार हो गई उसी समय प्रोफ़ेसर और शमशेर सिंह वापस आ गए. उनके चेहरों से प्रसन्नता छलक रही थी.

"अरे वाह, तुमने तो काफी बनाकर हमारी खुशी दूनी कर दी." शमशेर सिंह ने खुश होकर कहा.

"क्यों क्या हुआ? किस बात की खुशी?"

"बात यह है कि हमें पहाड़ियों में एक रास्ता मिल गया है." प्रोफ़ेसर ने बताया.

"वाकई? किस जगह पर मिला?"

"उधर पश्चिम की ओर." शमशेर सिंह ने संकेत करते हुए कहा, "एक छोटा सा दर्रा है, जो पत्थर से बंद था. इस कारण हमारी दृष्टि उस पर नही पड़ी थी. बाद में गौर से देखने पर मालूम हुआ कि वह पत्थर पहाडी का हिस्सा नही है. बल्कि अलग से जमा हुआ है. हम लोगों ने थोड़ी कोशिश की और पत्थर को उसके स्थान से हटा दिया. अन्दर वह दर्रा एक सुरंग की तरह था जो काफ़ी लम्बी चली गई थी."

"क्या उस सुरंग का दूसरा सिरा पहाडी के दूसरी तरफ़ निकलता है?" रामसिंह ने पूछा.

"हम लोग उसके सिरे तक नही पहुँच सके. किंतु उस सुरंग की बनावट से मैंने यही अनुमान लगाया है कि वह पहाडी को पार करती है. हम लोग काफी पीकर उसी रास्ते से चलेंगे."

वे लोग काफी पीने लगे. काफी पीने के बाद प्रोफ़ेसर ने भूरे रंग की एक टहनी निकली और उसे अपने सूटकेस में रखने लगा.

"यह क्या है प्रोफ़ेसर?" रामसिंह ने पूछा.

"यह मुझे सुरंग के पास मिली थी. और इसके बारे में मेरा ख्याल है कि इसका सुरमा बनाकर आँखों में लगाने से मोतियाबिंद और रतौंधी का रोग दूर हो जाता है."

"प्रोफ़ेसर, तुम तो साइंस के एक्सपर्ट हो. एक बात बताओगे?" रामसिंह अपना सर खुजलाते हुए बोला.

"एक क्या हज़ार बातें पूछो." प्रोफ़ेसर ने खुश होकर कहा.

"मैंने सुना है कि मनुष्य पहले बन्दर था. क्या ये बात सच है?"

"बिल्कुल सच है. यह बात तो विश्व के महान वैज्ञानिक डार्विन ने बताई थी. उसने अपना पूरा जीवन बंदरों के बीच बिताने के बाद यह महान सिद्धांत दिया."

"तो फिर वह बन्दर से मनुष्य कैसे बना?" रामसिंह ने पूछा.

"मैंने एक किताब में पढ़ा है कि परमाणु युद्ध के बाद जातियों में परिवर्तन हो जाता है. इसलिए मेरा ख्याल है कि जब बन्दर बहुत विकसित हो गए तो उन्हें अपना बंदरों वाला चेहरा ख़राब लगने लगा. इसलिए उन्होंने अपनी जाति बदलने के लिए परमाणु युद्ध छेड़ दिया. उसके बाद उनकी जाति में परिवर्तन हो गया और वे बन्दर से मनुष्य बन गए."

"तुमने सही कहा प्रोफ़ेसर. मेरा ख्याल है कि आजकल भी इसी कारण परमाणु युद्ध की तैयारियां हो रही हैं. क्योंकि मनुष्य को अपनी शक्ल ख़राब लगने लगी है और वह इंसान से कुछ और बनना चाहता है." शमशेर सिंह ने अपनी राय ज़ाहिर की.

"तुमने बिल्कुल सही कहा शमशेर सिंह. मेरा विचार भी यही है. तुम ज़रूर मेरे शिष्य बनने के काबिल हो." प्रोफ़ेसर ने शमशेर सिंह की पीठ थपथपाई.

"एक बात और बताओ, " रामसिंह ने कहा, "क्या मनुष्य वास्तव में चाँद पर पहुँच गया है?"

कहानी जारी रहेगी ...
 
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Update 08

"अमरीका का तो यही कहना है. लेकिन मेरे ख्याल में वे लोग असली चाँद तक नही पहुँच पाए. बल्कि किसी नकली चाँद पर धोखे से उतर गए. क्योंकि मैंने किताबों में पढ़ा है कि चाँद बहुत सुंदर होता है जबकि अमरीका वाले कहते हैं कि वह बहुत ऊबड़ खाबड़ और बदसूरत है. जहाँ न तो हवा है और न पानी. तो बताओ फिर वह असली चाँद कैसे हो सकता है?"


"वैसे चाँद पर जाने से फायेदा क्या हो सकता है?" रामसिंह ने दोबारा पूछा.

"बहुत फाएदे हैं. उदाहरण के लिए तुम यहाँ खड़े हो तब तुम्हें अधिक दूर दिखेगा या पहाडी पर चढ़ जाओगे तब ज़्यादा दूर देख पाओगे?"

"जब पहाडी पर चढूँगा तब ज़्यादा दूर दिखेगा."

"तो इसी तरह चूंकि चाँद बहुत अधिक दूर है अतः उससे पूरी पृथ्वी दिखेगी. इस तरह अगर तुम्हें किसी को ढूँढना है तो कोई समस्या नही. चाँद पर चढ़ जाओ तो पृथ्वी पर जो कुछ है सब दिखेगा. यदि पुलिस को अपराधियों को ढूँढना होगा तो चाँद पर चढ़कर आराम से ढूँढ लेगी और जाकर हथकडी पहना देगी. कहीं पर कोई खजाना छुपा होगा तो चाँद पर चढ़ने के बाद दिख जाएगा. इसके अलावा आगरा का ताजमहल, पेरिस का एफिल टावर, इंग्लैंड का लन्दन टावर और न्यूयार्क की स्वतंत्रता की मूर्ति के एक साथ दर्शन चाँद पर बैठे बैठे हो जाएंगे."

"तो इस तरह तो हमें चाँद की हर वस्तु पृथ्वी से दिखनी चाहिए. ऐसा क्यों नहीं होता?" शमशेर सिंह ने पूछा.

"चाँद पर कुछ है ही नही तो दिखेगा क्या. उसपर केवल चरखा कातती हुई बुढ़िया है और वही हमें दिखती है." प्रोफ़ेसर ने स्पष्टीकरण किया.

"और क्या क्या हैं चाँद पर जाने के फायदे?"

"एक ये भी फायेदा है कि यदि कोई व्यक्ति प्रेम में निराश होकर अपनी प्रेमिका को संसार छोड़ने की धमकी देता है तो वह चाँद पर जा सकता है. इस तरह वह बिना आत्महत्या किए अपनी धमकी पूरी कर देगा. और सबसे बड़ा फायेदा तो यह है कि चाँद पर न तो हवा है न पानी. अतः चाँद पर रहने वाले लोगों का शरीर धीरे धीरे इन चीज़ों के बगैर रहने के अनुकूल हो जाएगा. अतः वे पृथ्वी पर भी बिना हवा पानी के रह सकेंगे. इस प्रकार न तो जल प्रदूषण कि समस्या रह जाएगी और न वायु प्रदूषण की.

अरे चाँद पर रहने के तो बीसियों फायेदे हैं. कहाँ तक गिनाऊं. मैं तो सोच रहा हूँ कि चाँद पर जाने के लाभ टाइटिल से एक किताब लिख डालूँ."

"तो तुम अपनी यह सोच पूरी कर डालो. अगर यह किताब मार्केट में आ गई तो ज़रूर बेस्ट सेलर होगी, और उसके बाद चाँद पर जाने के लिए इतनी भीड़ लग जायेगी कि रॉकेट मिलने मुश्किल हो जायेंगे." शमशेर सिंह ने कहा.


"और रॉकेट बनाने वालों के वारे न्यारे हो जायेंगे. हो सकता है कि वे तुम्हें अपनी बिक्री बढ़ने के लिए इनाम विनाम दे डालें." रामसिंह ने प्रोफ़ेसर के हौसलों को और पानी पर चढाया.

"वैसे मेरा यार है काबिल आदमी." शमशेर सिंह ने कहा, "अगर यह कोशिश करे तो नोबुल प्राइज़ ज़रूर प्राप्त कर लेगा."

"मैं नोबिल प्राइज़ क्यों प्राप्त करुँ. देख लेना एक दिन आएगा जब मेरे नाम से पुरूस्कार बटेंगे." प्रोफ़ेसर ने अकड़ कर कहा.

अब तक वे लोग सुरंग के मुंह तक पहुँच चुके थे.

"यार, यह तो काफी लम्बी सुरंग लग रही है. अन्दर एकदम अँधेरा है." रामसिंह ने कहा.

"लम्बी तो होगी ही. आख़िर यह हमें पहाड़ियों के दूसरी ओर ले जायेगी." शमशेर सिंह ने कहा.वे लोग सुरंग के अन्दर घुसते चले गए. उनके घुसने के साथ ही कुछ छुपे चमगादड़ इधर उधर भागने लगे. कुछ इनसे भी आकर टकराए.

"यार प्रोफ़ेसर, टॉर्च जला लो. वरना ये चमगादड़ हमें अपना शिकार समझकर खा जायेंगे." रामसिंह ने कहा. प्रोफ़ेसर ने टॉर्च जला ली. टॉर्च की रौशनी में मकड़ियों के काफी बड़े बड़े जाले चमक रहे थे. यह प्राकृतिक सुरंग मकड़ियों और चमगादडों का निवास थी.

वे लोग जाले साफ करते हुए आगे बढ़ने लगे. चमगादड़ रौशनी देखकर फिर अपने अपने बिलों में छुप गए थे.

"यार प्रोफ़ेसर, ये चमगादड़ रौशनी में क्यों नही निकलते? अंधेरे में ही क्यों निकलते हैं?" रामसिंह ने मिचमिची दृष्टि से इधर उधर देखते हुए पूछा.

"बात यह है कि चमगादड़ को नई नई चीज़ें खाने का बहुत शौक था. इसी शौक में एक दिन वह अफीम की पत्ती खा गया. फिर क्या था, उसको दिन ही में रंगीन सपने दिखाई देने लगे. उसके बाद वह रोजाना अफीम की पत्ती खाने लगा. और खाकर किसी अंधेरे कोने में पड़ा रहता था. धीरे धीरे उसकी आँखों को सूर्य की रौशनी असहनीय लगने लगी और वह पूरी तरह अंधेरे में रहने लगा."

"यह तुमने कहाँ पढ़ा है?" शमशेर सिंह ने पूछा.

"यह एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक लैमार्क का सिद्धांत है कि प्राणियों में जिन अंगों का इस्तेमाल नही होता वे धीरे धीरे समाप्त होते जाते हैं और जिनका अधिक इस्तेमाल होता है वे बलिष्ट होते जाते हैं."


"यह बात तो शत प्रतिशत सत्य है." शमशेर सिंह ने कहा, "मेरे पड़ोस में एक पहलवान जी रहते हैं, जिनकी खोपडी एकदम सफाचट है, क्योंकि वे खोपडी का इस्तेमाल बिल्कुल नही करते. बल्कि जहाँ अक्ल के इस्तेमाल की बात आती है, वहां भी वे जूतेलात को काम में लाते हैं. जब वो अपनी लड़की की शादी एक जगह कर रहे थे तो उसी समय लड़के ने मोटरसाइकिल की मांग कर दी. वे बहुत परेशान हुए. लोगों ने राए दी कि थोड़ा अक्ल से काम लेते हुए लड़के को बहला दीजिये वरना बारात लौट जायेगी तो बहुत बदनामी होगी.

उन्होंने झपट कर लड़के का गिरेबान पकड़ा और उठाकर पटक दिया. बोले कमबख्त,तेरे तो होने वाले बच्चों ने भी कभी मोटरसाइकिल कि शकल नही देखी होगी. आइन्दा अगर तूने मोटरसाइकिल कि मांग कि तो वो पटखनियाँ दूँगा कि तुझे पंक्चर साइकिल कि याद आने लगेगी. वो लड़का इतना घबराया कि बोलना ही भूल गया. और तब तक नही बोला जब तक सही सलामत दुल्हन को लेकर घर नही पहुँच गया."


"बाद में तो ससुराल वालों ने पहलवान कि लड़की को बहुत सताया होगा." प्रोफ़ेसर ने पूछा.

"ऐसा कुछ नही हुआ. ससुराल वालों के सारे अरमान धरे रह गए. क्योंकि पहलवान की बेटी भी अखाड़े में दंड बैठक लगाये हुए थी. कोई घूर कर भी देखता था तो वह पटखनी देती थी कि घूरने वाला चारों खाने चित हो जाता था."

"खैर यह ख्याल अच्छा है कि दहेज़ समस्या के हल के लिए लड़कियों को पहलवान बनाया जाए. ताकि वह अपनी रक्षा ख़ुद कर सकें." प्रोफ़ेसर ने कहा.

"यार, यह सुरंग कितनी लम्बी है कि ख़त्म होने में ही नही आ रही है." रामसिंह ने कहा.

"अभी कैसे ख़त्म होगी. अभी अभी तो हम लोग चले हैं. मेरा ख्याल है कि अभी हम पहाडी के बीचोंबीच हैं." प्रोफ़ेसर ने ख्याल ज़ाहिर किया.

वे लोग आगे बढ़ते रहे, फिर अचानक यह सुरंग कमरे की तरह चौड़ी हो गई. यहाँ पर मालूम हो रहा था जैसे इस कमरे में आमने सामने दो दरवाज़े हैं. एक वो जिससे ये लोग दाखिल हुए और दूसरा सामने नज़र आ रहा था.

"यह जगह ठहरने के लिए अच्छी है. अब यहाँ रूककर कुछ खा पी लिया जाए. मेरे तो भूख लगने लगी है." शमशेर सिंह ने कहा.

फिर वे लोग वहीँ बैठ गए. प्रोफ़ेसर ने इधर उधर देखते हुए कहा, "प्रकृति भी कैसे कैसे करिश्में दिखाती है. अब यही देखो, पहाड़ियों के बीच सुरंग खोदकर एक कमरा तैयार कर दिया. मानो इंसानी हाथों ने संवारा है."


"क्या ऐसा नही हो सकता कि वास्तव में किसी ने सुरंग खोदकर यह कमरा बना दिया हो?" रामसिंह ने अनुमान लगाया.


"भला इस सुनसान जगह पर कोई ऐसा क्यों करने लगा? वैसे लगता तो कुछ ऐसा ही है."


"रामसिंह, अगर तुम्हें खजाना मिल जाए तो तुम उसका क्या करोगे?" शमशेर सिंह ने पूछा.

"मेरे दिमाग में तो खजाने को लेकर कई योजनायें हैं."

"कुछ हम लोगों को भी तो बताओ."

"एक तो मैं ऐसा सामान बनाने की फैक्ट्री लगाने की सोच रहा हूँ जिसमें फायदा ही फायदा है. क्योंकि उस सामान की मांग तो बहुत है लेकिन मैंने आजतक ऐसी कोई कंपनी नहीं देखी जो उसका उत्पादन करती हो. इसलिए इसमें कोई कम्पटीशन नहीं होगा और फायदा ही फायदा होगा."

"ऐसा कौन सा सामान है जिसकी डिमांड बहुत है लेकिन बनाता कोई नहीं." प्रोफ़ेसर ने चकराकर पूछा.

"मैं फैशन बनाने की फैक्ट्री खोलूँगा. क्योंकि मैंने अक्सर लोगों को कहते सुना है कि मैं इस फैशन का दीवाना हूँ, मैं उस फैशन का दीवाना हूँ. लेकिन मैंने आजतक किसी को नही सुना कि उसने फैशन बनाने की फैक्ट्री खोली है."विचार तो बहुत अच्छा है तुम्हारा. लेकिन क्या तुमने कभी फैशन को देखा है?"

"देखा तो नही, किंतु मेरा विचार है कि वह कोई चलने वाली वस्तु है. क्योंकि मैंने अक्सर सुना है कि आजकल बड़े बालों का फैशन चल रहा है, आजकल लुंगी पहनने का फैशन चल रहा है. मेरा ख्याल है कि फैशन कपड़े भी पहनता है, बाल भी रखता है. और साल दो साल में समान वेश में चक्कर भी लगाता है."

"तुमने अनुमान तो सही लगाए हैं. किंतु माई डियर, फैशन कोई फैक्ट्री में बनने वाली चीज़ नही है. बल्कि यह दिमाग का फितूर होता है. और अक्सर इसे वे लोग बनाते हैं जो अपने नौसिखियापन में कोई गलती कर बैठते हैं. यानी ये जो तुम कपड़े पहने हो इसको बनाने में अगर कोई दर्जी गलती से कमीज़ की बजाये पैंट सिल देता तो वह एक फैशन कहलाता." शमशेर सिंह ने बताया.

"ओह, फ़िर तो मुझे किसी और बिजनेस के बारे में सोचना पड़ेगा. वैसे मेरा ख्याल है कि तुम मुझे बेवकूफ बना रहे हो."

"खैर बने हुए को बनाने की कोई ज़रूरत नही होती. यह बताओ, और क्या क्या तुम्हारे विचार हैं?" शमशेर सिंह ने फ़िर पूछा.

"मुझे एकता बहुत पसंद है. इसलिए मैं एक ऐसा घर बनाऊंगा, जिसका नक्शा मस्जिद जैसा होगा. उसमें भगवान् की मूर्तियाँ भी होंगी. ईसाइयों का क्रास भी होगा और गुरुग्रंथसाहब भी होंगे. यह घर विभिन्न धर्मों की एकता का अनोखा उदाहरण होगा."

"गुड गुड, क्या विचार है." प्रोफ़ेसर ने ताली बजाकर कहा, "फ़िर सौ दो सौ सालों बाद जब तुम्हारी हड्डियाँ भी सड़ गल जाएँगी, उस समय तुम्हारे उस एकता के केन्द्र को हिंदू मन्दिर कहेंगे, मुसलमान मस्जिद का दावा करेंगे, सिख अपने गुरूद्वारे से चिपट जायेंगे और इसाई अपने चर्च की मांग करेंगे. उस समय धर्मों तो क्या अधर्मों के भी हाथों से एकता के तोते उड़ जायेंगे."
 
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Update 09

"यार, तुम लोग तो ऐसी दलीलें देते हो कि मैं अपने आपको किसी गधे का भतीजा समझने लगता हूँ जो अपने मामा की सिफारिश पर सरकारी नौकरी में भरती हो गया हूँ."

"ठीक है, ठीक है। अब शमशेर सिंह तुम बताओ कि अपने खजाने का क्या करोगे?" प्रोफ़ेसर ने पूछा.

"सबसे पहले तो मैं किसी स्विस बैंक में अपना खाता खुलवाऊंगा और उसमें अपना खजाना जमा कर दूँगा।"

"और उसके बाद?""मुझे एडवेंचर का बहुत शौक है। इसलिए उसके बाद मैं दुनिया के खतरनाक स्थानों जैसे अफ्रीका के जंगलों, अमेज़न के बेसिन,
अमेरिका के रेड इंडियन प्रदेशों में रोमांचपूर्ण यात्राएं करूंगा और ऐसे ऐसे साहसपूर्ण कारनामे करूंगा कि मेरा नाम इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों द्वारा लिखा जाएगा."

"इन साहसपूर्ण कारनामों से पहले यदि एक साहसी कार्य कर जाओ तो मैं तुम्हारा नाम उसी समय इतिहास की किसी किताब में लिखवा दूँगा." रामसिंह ने कहा.

"एक क्या, चाहे जितने कारनामे कहो मैं कर के दिखला दूँ."

"बस तुम केवल अपना पलंग अपने कमरे की दीवार से मिलाकर उसपर सो जाओ."

"इसमें साहस दिखाने की क्या बात है? मैं समझा नहीं." प्रोफ़ेसर ने आश्चर्य से कहा.

"बात यह है कि विश्व के सबसे साहसी व्यक्ति को छिपकलियों से बहुत डर लगता है. अतः ये अपना पलंग दीवार से लगाकर नही सोते. क्योंकि इससे
दीवार पर चढी छिपकलियों के पलंग पर गिरने का डर रहता है."

"अरे यार, तुम कहाँ की बात ले बैठे. छिपकलियों से तो खैर दुनिया का हर व्यक्ति डरता है. मैं भले ही छिपकलियों से डरूं, लेकिन शेर के मुंह में हाथ डालकर उसका जबडा चीर सकता हूँ, हाथी की सूंड मोड़कर उसे पटक सकता हूँ और बड़े से बड़े सूरमा से कुश्ती लड़कर उसे पछाड़ सकता हूँ."

"ठीक है, तुम ज़रूर यह सब काम कर सकते हो. लेकिन मैं यह तभी मानूंगा जब तुम वह सामने जा रहा चूहा पकड़ लोगे. " रामसिंह ने एक कोने में संकेत किया जहाँ एक चूहा बैठा हुआ टुकुर टुकुर इन लोगों की तरफ़ देख रहा था. वह शायद खाने की बू सूंघकर कहीं से निकल आया था.

"इसमें कौन सी बड़ी बात है. मैं अभी उसे पकड़ लेता हूँ." कहते हुए शमशेर सिंह उस तरफ़ धीरे धीरे बढ़ने लगा. उधर चूहा भी बड़े गौर से उसकी तरफ़ देखने लगा लगा था. वह ज़रा भी इधर उधर नहीं हिला था. शायद उसका मूड भी लड़ने का था.

शमशेर सिंह एकदम उसके पास पहुँच गया. अब चूहे के कान खड़े हो गए थे. और उसने अपनी ऑंखें शमशेर सिंह की आँखों में गडा दी थीं. शमशेर सिंह धीरे धीरे उसकी ओर बढ़ने लगा. अचानक चूहे ने किसी कुशल कुंगफू मास्टर की तरह छलांग लगाई और शमशेर सिंह की दाईं हथेली चूमता हुआ पीछे फांदकर किसी पत्थर के पीछे गायब हो गया.

"उई मार डाला." शमशेर सिंह ज़ोर से चीखा और धप्प से पीछे की ओर गिरा. प्रोफ़ेसर और रामसिंह दौड़ कर उसके पास आये.
"क्या हुआ?" प्रोफ़ेसर ने पूछा.

शमशेर सिंह अब उठ बैठा था. उसने कांपते हुए कहा, "वह चूहा ज़रूर पिछले जन्म में कोई बदमाश था. मैं तो सोच भी नही सकता था कि वह मेरे ऊपर हमला कर देगा. मेरा खंजर कहाँ गया, मैं अभी जाकर उसे सबक सिखाता हूँ."
फ़िर प्रोफ़ेसर और रामसिंह ने बड़ी मुश्किल से उसकी मोटी कमर थामकर उसे रोका. वे लोग फिर आकर अपने स्थान पर बैठ गए. फिर रामसिंह ने कहा, "प्रोफ़ेसर, हम लोगों ने तो तुम्हें बता दिया कि खजाने का अपने हिस्सों का क्या क्या करेंगे. किंतु तुमने नहीं बताया. अब तुम बताओ."

"भाई मुझे तो एक ही शौक है. नए नए वैज्ञानिक प्रयोग करने का. उदाहरण के लिए मेरी दाढी बहुत तेज़ी से बढती है और मैं शेव बनाते बनाते परेशान रहता हूँ. इसलिए खजाना मिलने पर मैं एक ऐसी शेविंग क्रीम बनाने की सोच रहा हूँ जो चेहरे पर लगाने पर वहां के बाल पूरी तरह साफ कर देगी. और उस जगह पर फिर कभी बाल नहीं निकलेगा."

"और अगर वह शेविंग क्रीम गलती से सर में लग गई तो?" शमशेर सिंह ने पूछा.

"ओह, ये तो मैंने सोचा ही नही था. आइडिया," प्रोफ़ेसर ने उछल कर कहा, "क्यों न ऐसा तेल बनाया जाए जो गंजों के बाल उगा दे. क्योंकि गंजे इस कारण काफ़ी चिंतित रहते हैं."

"विचार अच्छा है. उस तेल की बहुत बिक्री होगी. " रामसिंह ने कहा, "जब तुम उस तेल का आविष्कार कर लोगे तो मैं उसे बनाने की फैक्ट्री खोल लूँगा. हम तुम मिलकर काफी तरक्की करेंगे."

"उस फैक्ट्री में मैं क्या करूंगा?" शमशेर सिंह ने पूछा.

"तुम्हें तेल भरी हुई शीशियों पर 'बालदार कोयला तेल' का लेबल लगाने का काम दे दिया जाएगा. मेरा ख्याल है तुम यह काम बहुत अच्छी तरह कर लोगे." रामसिंह बोला.

"इससे अच्छी तरह मैं यह काम करूंगा कि एक हौज़ में सारी शीशियाँ खाली करके तुम्हें उसमें डुबो दूँगा. और जब तुम वनमानुष बनकर बाहर निकलोगे तो बहुत अच्छे लगोगे." शमशेर सिंह ने क्रोधित होकर कहा.

"नाराज़ क्यों होने लगे मेरे प्यारे दोस्त." रामसिंह ने प्रेम से उसका सर हिलाया, "टी.वी. पर हमारे तेल का जो विज्ञापन दिया जाएगा, उसकी माडलिंग तो तुम्हें ही करनी है."

"क्या वास्तव में तुम मुझे इतना सुंदर समझते हो कि मैं विज्ञापन में मॉडल का रोल कर सकता हूँ?" शमशेर सिंह ने खुश होकर कहा.

"अरे तुम तो एलिजाबेथ टेलर से भी अधिक सुंदर हो." रामसिंह ने शमशेर सिंह की ठोडी में हाथ लगाकर उसे ऊंचा कर दिया.

"एलिजाबेथ टेलर नाम तो औरतों का मालूम हो रहा है. क्या तुमने किसी औरत से मेरी तुलना की है?" शमशेर सिंह ने शंकाग्रस्त होकर रामसिंह को देखा.

"अरे नहीं. टेलर का मतलब तो दर्जी होता है. और कोई औरत दर्जी कैसे हो सकती है? वह तो दर्जाइन होगी."

"अब तुम लोग अपनी अपनी बकवासें बंद करो और आगे बढ़ने का इरादा करो." प्रोफ़ेसर ने उठते हुए कहा.

शमशेर सिंह और रामसिंह भी उठ खड़े हुए. अचानक उस कमरे में हलकी रौशनी फैल गई.

"अरे वह सामने देखो, वह क्या है?" शमशेर सिंह ने एक कोने की ओर संकेत किया वे लोग उधर देखने लगे. वहां पर रौशनी के दो गोले पास पास
चमक रहे थे.

"ये अंधेरे में रोशनी के गोले कहाँ से आ गए?" रामसिंह ने हैरत से कहा.

"मुझे लगता है जैसे यह किसी जानवर की ऑंखें हैं." प्रोफ़ेसर ने कहा.

"किस जानवर की ऑंखें इतनी बड़ी होती हैं? उन दोनों रोशनी के गोलों का व्यास मेरे विचार से एक एक फिट होगा." रामसिंह ने कहा.

"चलो पास चल कर देखते हैं, अभी पता चल जायेगा." शमशेर सिंह ने सुझाव दिया.

"मेरा ख्याल है वहां चलना खतरे से खाली नहीं होगा. क्योंकि मेरा अब भी विचार है कि वह कोई जानवर है. मैंने किताबों में पढ़ा है कि प्राचीन समय में ऐसे जानवर पाये जाते थे जो हाथी से भी बीसियों गुना विशाल होते थे. उन्हें डाइनासोर कहते थे. मेरा विचार है कि वह कोई डाइनासोर है."

"आख़िर वह हिल डुल क्यों नहीं रहा है?" रामसिंह ने पूछा.

"मेरा ख्याल है उसने हम लोगों को देख लिया है. और हमारा शिकार करना चाहता है. इसलिए पोजीशन लेने के कारण वह हिल डुल नहीं रहा."
इस तरह वे लोग अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार उन रोशनियों के लिए अटकलें लगाते रहे किंतु किसी की हिम्मत वहां जाने की नहीं हुई.
अचानक वह रोशनी गायब हो गई. और इसके साथ ही कमरे में घुप्प अँधेरा छा गया.

"यह क्या हुआ? प्रोफ़ेसर, जल्दी टॉर्च जलाओ वरना अंधेरे में वह जानवर हम पर हमला कर देगा तो हम लोग कुछ नहीं कर सकेंगे." रामसिंह ने कहा.
प्रोफ़ेसर ने जल्दी से टॉर्च जलाकर उसकी रोशनी वहां पर डाली. किंतु अब वहां पर पत्थर की दीवारें दिख रही थीं. उस काल्पनिक जानवर का कहीं पता नहीं था.

"मेरा विचार हैं वह जानवर नहीं था बल्कि कुछ और था. आओ चलकर वहीँ देखते हैं." प्रोफ़ेसर ने कहा. फ़िर तीनों डरते डरते वहां पहुंचे. निरीक्षण करते हुए अचानक शमशेर सिंह की दृष्टि पीछे की ओर गई और उसने कहा, "ये देखो, यह क्या है?"

उनहोंने घूमकर पीछे देखा, तो उन्हें दो गोल रोशनदान दिखाई दिए. ये दोनों रोशनदान पास पास थे. वे उसके पास पहुंचे. दोनों रोशनदानों से आसमान साफ़ दिखाई पड़ रहा था.

"अब मेरी समझ में सारी बात आ गई है." प्रोफ़ेसर ने सर हिलाते हुए कहा.

"क्या समझ में आया?" रामसिंह ने पूछा.

"वह रोशनी जो हमें दिखी थी, वास्तव में सूर्य की रोशनी थी. जो इन रोशनदानों द्बारा सामने की दीवार पर पहुँची थी. फ़िर जब कुछ देर के बाद सूर्य की दिशा बदल गई तो वह रोशनी भी गायब हो गई."

"धत तेरे की. इतनी सी बात थी. और हम लोग पता नहीं क्या क्या सोच बैठे." रामसिंह ने अपने सर पर हाथ मारा.

"लेकिन अगर हम यह सारी बातें न सोचते तो शायद सही बात भी पता न कर पाते. मैंने एक किताब में पढ़ा है की कई ग़लत बातों पर अध्ययन के बाद ही मनुष्य सही निष्कर्ष पर पहुँचता है." प्रोफ़ेसर ने कहा.

"अब कौन से सही निष्कर्ष पर पहुंचे हो तुम?" रामसिंह ने पूछा.

कहानी जारी रहेगी
 

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