Thriller मेरे तांत्रिक-जीवन की कुछ सच्ची घटनाएं! {Written by Renty Baba}

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बाबा के तांत्रिक जीवन की कुछ सच्ची घटनाएं!

Update 1

यहाँ पर आपको बाबा के तांत्रिक जीवन की तांत्रिक घटनाओं से अवगत करवाऊंगा !

अगर आपको इन पर यकीन हो तो सच मानकर पढ़ें अन्यथा काल्पनिक समझकर आनंद लें !

मैंने ये हिंदी फोरम कुछ समय पहले ही देखा था, मेरा मन हुआ की यहाँ पर कुछ घटनाएँ लिखूं ताकि आपको भी कुछ नया जानने को मिले जो किसी साधारण मनुष्य कभी नही जान पाता है !

यहाँ पर कुछ ऐसी बातों का जिक्र भी आएगा जिससे आपका मन या मस्तिष्क में उथल-पुथल मच सकती है !
जो कच्चे ह्रदय के है तथा जिनको भूत-प्रेत से डर लगता हो वो इनको ना पढ़े !

फोरम के नियामकों के लिए: मैं एक बात और कहना चाहता हूँ की मेरी घटनाओं में कुछ जिक्र ऐसी बातों का भी होगा जो ही सकता है फोरम के नियम विरुद्ध हो !
जैसे - वीभत्स, डरावने, बलात्कार, हत्या, आत्महत्या से सम्बन्धित सामग्री|

इन सबका जिक्र भी थोडा बहुत जरुरी है, अगर आप इन्हें नियम विरुद्ध समझे तो आप थोडा बहुत एडिट कर सकते है


हमारा मस्तिष्क दो भागों में विभाजित है
१. चेतन
२. अवचेतन



चेतन भाग वो है जो हमारे सामने है जैसे- पेड़-पोधे, मनुष्य, पहाड़, जो भी हम अपनी आँखों से देखते है और वो हमने याद हो जाते है.
हम कभी कभी कुछ भूल जाते है, कभी कभी हमारा दिमाग उस घटना की फाइल को अपने मस्तिष्क के कंप्यूटर में सर्च नही कर पता !

अवचेतन भाग में हम कुछ नही भूलते, हमारा मस्तिष्क सेकंड्स में सब कुछ सर्च कर लेता है, हम अपने आलावा पुरे ब्रह्मांड की घटनाये भी सर्च कर लेते है !

अगर कोई मनुष्य चेतन और अवचेतन के साथ तालमेल बैठा ले तो वो कभी कुछ नही भूल सकता उसे सब याद रहता है उसे बरसों पुरानी घटना ऐसी लगती है मानो कल की ही बात हो !

ये मैं यहाँ इसलिए लिख रहा हूँ क्यों की मेरी सब घटनाये पुरानी है और मैं उनका वर्णन ऐसे करूँगा जैसे कल की ही बात हो !

जिसको चेतन और अवचेतन मन के बारे में पता नही होगा वो यकीन नही कर पायेगा की किसीको इतना याद कैसे रह सकता है !

तो अब हम आगे चलते है और आपको घटनाओं के बारे में बताता हूँ ..
 
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गुना मध्य प्रदेश की एक घटना | वर्ष 2010
Update 01


संध्या का समय हो चुका था लगभग, सूर्य अपने अस्तांचल में प्रवेश करने की तैयारी करने ही वाले थे, पक्षी आदि अपने अपने घरौंदों की ओर उड़ रहे थे, कुछ एकांकी और कुछ गुटों में! लोग-बाग़ कुछ पैदल और अपनी अपनी साइकिल पर चले जा रहे थे आगे खाली खाने के डब्बे बांधे और कुछ भाजी-तरकारी लिए, सवारी गाड़ियों में जिसे यहाँ के निवासी आपे कहते हैं, भरे पड़े थे खचाखच! कुल मिलकर लग रहा था की दिवस का अवसान हो चुका है और और अब रात्रि के आगमन की बेला आरम्भ हो चुकी है! सड़क किनारे खड़े खोमचे अब प्रकाश से जगमगा उठे थे, सड़क किनारे एक सरकारी शराब के ठेके पर खड़े वाहन गवाही दे रहे थे कि मदिरा-समय हो चुका है! उधर ही आसपास कुछ ठेलियां भजी खड़ी थीं जिन पर ठेके से सम्बंधित वस्तुएं ही बेचीं जा रही थीं, गिलास, नमकीन, उबले चने इत्यादि! तभी हामरी गाड़ी चला रहे क़य्यूम भाई ने भी गाड़ी उधर ही पास में उसी ठेके के पास लगा दी, थोड़ी सी आगे-पीछे करने के बाद गाड़ी खड़ी करने की एक सही जगह मिल ही गयी, सो गाड़ी वहीँ लगा दी गयी, गाड़ी का इंजन बंद हुआ और हम दरवाजे खोल कर बाहर आये, ये गाड़ी जीप थी, क़य्यूम भाई ने नई ही खरीदी थी और शायद पहली बार ही वो शहर से इतनी दूर यहाँ आई थी!हम बाहर उतरे तो अपनी अपनी कमर सीधी की, आसपास काफी रौनक थी, ये संभवतः किसी कस्बे का ही आरम्भ था, मदिरा-प्रेमी वहीँ भटक रहे थे, कुछ आनंद ले चुके थे और अब वापसी पर थे और कुछ अभी अभी आये थे जोशोखरोश के साथ!

"क्या चलेगा?" क़य्यूम भाई ने पूछा,

मै कुछ नहीं बोला तो क़य्यूम भाई की निगाह शर्मा जी की निगाह से टकराई, तो शर्मा जी ने मुझसे पूछा, "क्या लेंगे गुरु जी?"

"कुछ भी ले लीजिये" मैंने कहा,

"बियर ले आऊं?" क़य्यूम भाई ने पूछा,

"नहीं, बियर नहीं, आप मदिरा ही ले आइये" मैंने कहा,

क़य्यूम भाई मुड़े और चल दिए ठेके की तरफ!

"अन्दर बैठेंगे या फिर यहीं गाड़ी में?" शर्मा जी ने मुझ से पूछा,

"अन्दर तो भीड़-भाड़ होगी, यहीं गाड़ी में ही बैठ लेंगे" मैंने कहा,

थोड़ी देर बाद ही क़य्यूम भाई आये वहाँ, हाथ में मदिरा की दो बोतल लिए और साथ में ज़रूरी सामान भी, शर्मा जी ने गाड़ी का पिछला दरवाज़ा खोला और क़य्यूम भाई ने सारा सामान वहीँ रख दिया, फिर हमारी तरफ मुड़े,

"आ रहा है लड़का, मैंने मुर्गा कह दिया है, लाता ही होगा, आइये, आप शुरू कीजिये" क़य्यूम भाई ने कहा,

मै और शर्मा जी अन्दर बैठे, एक पन्नी में से कुछ कुटी हुई बरफ़ निकाली और शर्मा जी ने दो गिलास बना लिए, क़य्यूम भाई नहीं पीते थे, ये बात उन्होंने रास्ते में ही बता दी थी, वो बियर के शौक़ीन थे सो अपने लिए बियर ले आये थे, थोड़ी देर में ही दौर-ए-जाम शुरू हो गया, एक मंझोले कद का लड़का मुर्गा ले आया और एक बड़ी सी तश्तरी में डाल वहीँ रख दिया, आखिरी चीज़ भी पूरी हो गयी!


ये स्थान था ग्वालियर से गुना के बीच का एक, हमको ग्वालियर से लिया था क़य्यूम भाई ने, हम उन दिनों ललितपुर से आये थे ग्वालियर, ललितपुर में एक विवाह था, उसी कारण से आना हुआ था, और क़य्यूम भाई गुना के पास के ही रहने वाले थे, उनका अच्छा-ख़ासा कारोबार था, सेना आदि के मांस सप्लाई करने का काम है उनका, तीन भाई हैं, तीनों इसी काम में लगे हुए हैं,

क़य्यूम भी पढ़े लिखे और रसूखदार हैं और बेहद सज्जन भी!

"और कुछ चाहिए तो बता दीजिये, अभी बहुत वक़्त है" क़य्यूम भाई ने कहा,

"अरे इतना ही बहुत है!" शर्मा जी ने कहा,

"इतने से क्या होगा, दिन से चले हैं, अब ट्रेन में क्या मिलता है खाने को! खा-पी लीजिये रज के!" क़य्यूम भाई ने कहा,

इतना कह, अपनी बियर का गिलास ख़तम कर फिर से चल दिए वहीँ उसी दूकान की तरफ!

बात तो सही थी, जहां हमको जाना था, वहाँ जाते जाते कम से कम हमको अभी ३ घंटे और लग सकते थे, अब वहाँ जाकर फिर किसी को खाने के लिए परेशान करना वो भी गाँव-देहात में, अच्छा नहीं था, सो निर्णय हो गया कि यहीं से खा के चलेंगे खाना!

गाड़ी के आसपास कुछ कुत्ते आ बैठे थे, कुछ बोटियाँ हमने उनको भी सौंप दीं, देनी पड़ीं, आखिर ये इलाका तो उन्ही का था! उनको उनका कर चुकाना तो बनता ही था! वे पूंछ हिला हिला कर अपना कर वसूल कर रहे थे! जब कोई बेजुबान आपका दिया हुआ खाना खाता है और उसको निगलता है तो बेहद सुकून मिलता है! और फिर ये कुत्ता तो प्रहरी है! मनुष्य समाज के बेहद करीब!
 

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