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सभी पाठको व पाठिकाओ को मेरा नमस्कार, अपना प्यार और स्हयोग इस कथा को प्रदान करे।वह इस Pandemic में अपना व अपनो का ध्यान रखे।
कहानी शुरू-
जगह: हरियाणा
हमारे हरियाणा में एक कहावत है:
‘देसां मा देश हरयाणा.. जित दूध दही का खाणा..’
उसी दूध और दही की बदौलत मैं एक बलिष्ठ और हृष्ट-पुष्ट शरीर का मालिक हूँ। मेरी हाइट 5'.10" है, आँखें नीली और जौ लाइन एक दम sharp, इसी के साथ बाल थोडे घुघरा ले , रंग गैरा और शरीर एक दम कसा हुआ।
कुल मिला कर कह सकते हे, की देखने मे ठिक हुँ।
अब आते हे, कहानी पर , बात तब की हैं, जब कोरोना नही था ओर हम सब आराम से कहीं भी घुम सकतें थे, क्या दिन थे वो, उम्मीद करते हैं, ये दोर जलद गुजर जाए। चलो अब कहानी शुरू करते हैं।
आज मैं आपसे अपनी कुछ मदहोश करने वाली यादें शेयर कर रहा हूँ जो मुझे भी दीवाना बना गईं।
आज भी वो बातें याद आती हैं तो दिल और दिमाग बेचैन हो उठता है।
बात है उस वक़्त की.. जब मैं बारहवीं कक्षा में पढ़ता था, घर से दूर हॉस्टल में बहुत उदास था.. क्योंकि वहाँ मेरा कोई दोस्त नहीं था। मैं बहुत अकेला-अकेला महसूस कर रहा था। पहली बार घर से दूर गया था न.. इसीलिए!
हमारी कक्षा में बहुत सारी लड़कियां थीं.. एक से बढ़कर एक खूबसूरत.. जैसा कि मैंने बताया मेरा कोई दोस्त नहीं था.. सो अब तक तो मैं भी एक अच्छे दोस्त की तलाश में था। मुझे नहीं मालूम था कि एक दिन ईश्वर मेरी तलाश इस तरह से पूरी करेगा।
मैं कक्षा में बैठा पढ़ रहा था कि अचानक मुझे लगा कि कोई पीछे ही बात कर रहा है। मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो पाया कि हमारी कक्षा की एक लड़की जिसका नाम सोनिका था.. अपनी एक सहेली से कुछ बात कर रही थी।
मुझे अपनी तरफ देखता हुआ पाकर वो सकपका उठी और चुप हो गई, मैं समझ गया कि दाल में कुछ काला है।
अब मैं दोबारा अपनी पढ़ाई की कोशिश करने लगा.. पर मेरा ध्यान उन्हीं की तरफ था।
सोनिका एक बहुत ही बला की खूबसूरत लड़की थी, उसका बदन तो जैसे अप्सराओं जैसा था मानो बनाने वाले ने उसे बड़ी ही फुर्सत में बनाया हो।
बड़ी-बड़ी आँखें.. टमाटर से भी लाल होंठ.. सुराही जैसी गर्दन.. बड़े-बड़े नागिन से लहराते बाल.. लचीली कमर.. हिरनी जैसी चाल.. बस ये मानो एक तरह की क़यामत थी।
डर लगता था कहीं हाथ लगाने से मैली न न हो जाए। मुझे अपनी किस्मत पर नाज हो रहा था।
वो लड़की मेरे ही बारे में दूसरी लड़की से बात कर रही थी, वो भी लड़कियों वाले हॉस्टल में रहती थी, शायद उसका हाल भी मेरी तरह था.. पर कहने में डर रही थी। मैंने सोचा कोशिश करने में क्या जाता है।
दो दिन बाद ‘फ्रेण्डशिप डे’ था.. मैंने एक दोस्त से कुछ ‘फ्रेण्डशिप बैंड मंगाए और एक अच्छा सा लैटर लिखा कि अगर ये मेरा बैंड स्वीकार कर लेगी.. तो ये भी उसे दे दूँगा और हुआ भी ऐसा ही।
मन में डर तो था.. पर हिम्मत करके मैंने उसे अकेला पाते ही प्रपोज कर दिया।
उसने मना कर दिया।
मैं उदास होकर कक्षा में आकर बैठ गया। थोड़ी देर बाद मेरी ही कक्षा की एक लड़की पूजा ने आकर मुझसे कहा- सोनिका तुझे नीचे कॉमन रूम में बुला रही है।
मैं नीचे गया तो देखा कि सोनिका वहाँ एक कोने में खड़ी मेरा इंतज़ार कर रही थी।
मैं उसके पास चला गया।
वो बिलकुल डरी हुई और सहमी सी खड़ी थी..
मैंने पूछा- क्या बात है.. मुझे क्यों बुलाया है?
मुझे पता तो था ही कि वो भी वही चाहती है जो मैं चाहता था.. बस कहने में डर रही है।
उसने कहा- सॉरी.. मैंने तुम्हारा दिल दुखाया.. वैसे मैं भी तुमसे दोस्ती करना चाहती थी.. पर डरती थी कि कहीं तुम और लड़कों की तरह मुझे धोखा न दे दो।
मैंने उससे कहा- डरने की कोई बात नहीं क्योंकि मैं भी तुम्हें चाहता हूँ और बहुत पसंद करता हूँ।
वो यह सुनकर बहुत खुश हुई और मेरे गले लग गई।
हाँ किसी भी वक़्त कोई भी आ सकता था.. इसलिए मैंने उसे वो फ्रेंडशिप बैंड और वो लैटर दिया और हम दोनों अपनी कक्षा में चले गए।
मैं भी आज बहुत खुश था क्योंकि मेरा अरमान और इंतज़ार दोनों पूरे होने जा रहे थे।
दिन-प्रतिदिन हमारे बीच की नजदीकियाँ बढ़ती चली गईं.. हम दोनों कई-कई लेक्चर मिस करते और स्कूल की छत पर घन्टों एक-दूसरे की बाँहों में खोये रहते।
आजकल तो लोग पहली मुलाकात में ही वासना में अंधे होकर सेक्स करने की सोचते हैं.. पर वो नहीं जानते जो मजा पहले प्यार में है.. वो किसी और चीज में नहीं।
हम दिन में भी कैन्टीन में जाकर एक-दूसरे के लिए चॉकलेट और दूसरी चीजें लाते और शेयर करते, सबको धीरे-धीरे हमारे बारे में पता चल रहा था।
हमारे प्यार का असर हमारी पढ़ाई पर भी पड़ रहा था.. पर जिस पर प्यार का भूत सवार हो.. उसे बाकी की चीजें कहाँ दिखाई देती हैं।
सर्दियों की छुटियाँ होने वाली थीं.. पर उससे पहले मेरा जन्मदिन था।
उस दिन के लिए मुझ से ज्यादा वो उत्साहित थी.. क्योंकि अरमान उसके दिल में भी थे.. जो कि उस दिन पूरे होने वाले थे।
हम दोनों बहुत खुश थे।
आखिर वो दिन भी आया.. उसने रात को ही मुझे अपने हॉस्टल के एक कोने में बुलाया।
मैं गया तो वो वहाँ पहले से ही मेरा इंतज़ार कर रही थी।
मेरे वहाँ जाते ही उसने मुझे जन्मदिन विश किया और मेरे सीने से लग गई।
आज हम दोनों के ही जज्बात काबू में नहीं थे। मैंने उसे कुछ देर अपने सीने से लगाए रखा.. जैसे हम दो शरीर न होकर एक ही हों।
कुछ तो सर्दियों का मौसम था तो रात को ठण्ड तो थी ही। पर जब दो जवां मदहोशी से भरे हुए दिल आपस में मिलते हैं.. तो कहाँ सर्दी का पता चलता है।
उसकी साँसें धौंकनी की तरह चल रही थी और मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही था.. मन कर रहा था कि एक-दूसरे में समां जाएँ।
जब दो प्यार भरे दिल पहली बार मिलते हैं.. तो ऐसा ही होता है।
मैंने पूछा- मेरा जन्मदिन का गिफ्ट कहाँ है??
उसने शरमाते हुए मेरे दोनों हाथ अपने जवां कबूतरों पर रख दिए। आग दोनों तरफ लगी हुई थी.. उस वक़्त तो ये भी होश नहीं रहा कि हम कहाँ खड़े हैं।
मैंने वक़्त की नजाकत को समझते हुए अपने बाहुपाश में उसको जकड़ लिया और उसके मदिरा से लबालब भरे हुए दो प्यालों पर अपने प्यासे होंठ रख दिए और ऐसे उन्हें चूसने लगा जैसे कि जन्मों के प्यासे रेगिस्तान में मूसलाधार बारिश हो रही हो।
जिंदगी जीने में इतना मजा पहले कभी नहीं आया.. जितना उन दो हसीं प्यार के लम्हों में आ रहा था।
वो मेरी बाँहों में बिन पानी मछली की तरह मचलने लगी। हमारे होंठ एक-दूसरे का रसपान करने में लगे थे और मेरे हाथ उसके खरबूजों जैसे कूल्हों पर अपनी पकड़ बनाये हुए थे। मैं उन्हें बड़े ही जोश से भींच-भींच कर सहला रहा था। उसके चूतड़ों को पकड़ कर मैंने ऊपर उठाया और उसकी टाँगों को अपनी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया।
उसके नाखून मेरी कमर में चल रहे थे। जमा देने वाली ठण्ड में भी हम पसीने से तर-बतर हो रहे थे।
मैं उसकी गर्दन पर चूम रहा था और वो तो एक बेल की तरह मुझसे लिपटी हुई थी। उसके मुँह से आह्ह.. ऊह्ह्ह्ह्ह… जैसी सीत्कार निकल रही थी।
दो घंटे कैसे बीत गए.. पता ही नहीं चला। चार बज गए थे और सबके जागने का वक़्त हो गया था.. इसलिए हमने वक़्त की नजाकत को समझते हुए रात को मिलने का प्रोग्राम बनाया और एक और दिल की गहराइयों को महसूस करते हुए एक-दूसरे के होंठों को चूम लिया.. और अपने-अपने कमरे में लौट गए.. क्योंकि हम नहीं चाहते थे कि किसी को हमारी मुलाकात का पता चले और कोई मुसीबत खड़ी हो।
वैसे भी जान है.. तो जहान है।
हम वापस आ तो गए.. पर ये जो आग दोनों तरफ लगी हुई थी.. ये ऐसे ही तो बुझने वाली नहीं थी।
जैसे-तैसे हमने दिन में अपने अरमानों को काबू में रखते हुए दिन बिताया, सारा दिन हमने एक साथ बिताया, खूब एन्जॉय किया.. पर असली मज़ा तो रात को आने वाला था।
जैसे-जैसे शाम हुई.. हमारे मन में बांछें खिल रही थीं। मैंने अपने रूममेट को दूसरे कमरे में एडजस्ट किया और अपने कमरे में ‘कैंडल-लाईट’ डिनर का इंतज़ाम किया।
हमने दिन में एक केक मंगवाया था.. ताकि रात में भरपूर मजा उठा सकें। हम इस रात को इतनी यादगार बनाना चाहते थे जितनी कि हमारी सुहागरात… और इसी हिसाब से इंतज़ाम भी किए थे।
सारा कमरा अपने महबूब के इंतज़ार में झूम रहा था। भीनी-भीनी इत्र की खुश्बू आ रही थी। मोमबत्तियों का मद्धिम प्रकाश था और एक शानदार गिफ्ट मैंने भी ख़रीदा था.. अपनी महबूबा के लिए..
जैसे-जैसे घड़ी की सुईयों ने ग्यारह बजने का इशारा किया.. वैसे ही मेरे इंतज़ार की घड़ियाँ भी खत्म होने को थीं। मैं अपनी हसीना को लाने के लिए मैस के पिछले दरवाजे से उसके हॉस्टल के नीचे गया.. ताकि उसको आने में कोई तकलीफ न हो। किस्मत भी हमारे साथ थी.. क्योंकि आज बड़ी गहरी धुँध पड़ रही थी.. इसलिए किसी ने हमें आते-जाते नहीं देखा।
सोनिका जैसे ही मेरे कमरे में आई.. मैंने कुण्डी लगाई और हम एक-दूसरे से लिपट गए। ऐसा लग रहा था बरसों का इंतज़ार खत्म हो गया हो।
फिर हम दोनों अलग हुए.. एक लम्बा समूच किया और केक काटने लगे।
ऐसा लग रहा था जैसे हमें सारे जहाँ की खुशियाँ मिल गई हों।
मैं बहुत खुश था… ऐसा जन्मदिन सबके नसीब में थोड़े ही होता है और न ही हर किसी को ऐसा हम-सफ़र मिलता है।
मेरी तो नजर आज उसकी खूबसूरती से हट ही नहीं रही थी।
हमने केक के एक टुकड़े को अपने होंठों में दोनों तरफ से लिया और खाने लगे.. उसके ख़त्म होते ही हम एक-दूसरे के होंठों पर लगे हुए केक को अपने होंठों से साफ़ करने लगे। फिर हमने उसे एक तरफ रखा और दूसरी पारी की तैयारी करने लगे।
मैंने दोनों सिंगल बेड को मिलकर एक बड़ा बिस्तर बना दिया था। सोनिका ने थोड़ी देर के लिए मुझे बाहर भेजा। जब मैं अन्दर गया तो मेरी तो बांछें खिल गईं क्योंकि बिस्तर पर सोनिका नहीं.. मेरे सपनों की राजकुमारी बैठी थी.. उसी साड़ी में जो मैंने उसे लाकर दी थी.. पल्लू ढके हुए.. बिल्कुल एक दुल्हन की तरह.. आह्ह.
जो सरप्राइज गिफ्ट उसने मुझे दिया था.. उसके आगे तो दुनिया की सारी खुशियाँ.. सारे उपहार कम थे।
मैं उसके पास जाकर बैठ गया और उसका घूंघट उठाने लगा.. पर वो सिमट गई।
मैं समझ गया उसे क्या चाहिए था, मैंने अपनी जेब से वो डायमंड रिंग निकाल कर उसकी उंगली में पहना दी जो उसका मुँह दिखाई का तोहफा था.. इस डायमंड रिंग की चमक उसकी बला की खूबसूरती के आगे फीकी थी।
मैंने उसका घूंघट उठाया और उसके चाँद से चहरे को निहारता ही रह गया.. ऐसी सुंदरता मैंने आज तक नहीं देखी थी.. मन करता था कि उसे देखता ही रहूँ.. सारी जिंदगी उसे अपनी नजरों से दूर न होने दूँ।
फिर भी जैसे-तैसे मैंने होश सम्भाला और उसके सुर्ख होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उनका रसपान करने लगा।
वो धीरे-धीरे सिमटने लगी और लेट गई, मैं उसके साइड में लेट गया और उसकी साड़ी को उसके बदन से अलग कर दिया और एक दूसरे में खो गए। मैंने उसके चूचुकों को ब्लाउज के ऊपर से ही महसूस किया.. मैं उन्हें धीरे-धीरे अपनी उंगलियों से सहला रहा था और दूसरे हाथ से उसकी जाँघों को सहला रहा था।
थोड़ी ही देर में वो अपनी टाँगों को मेरी टाँगों से रगड़ने लगी और ‘इस्स्स्स.. इस्स्स्स्स.. स्स्स्स्स.. सीईईईईईए..’ करने लगी।
वो भी अपने हाथ को मेरे अंडरवियर के ऊपर से रगड़ने लगी और मेरे लौड़े को जोकि उसके होंठों का स्पर्श मेरे होंठों पर होते ही तन कर खड़ा हो गया था.. उसे रगड़ने लगी।
मैंने उसके पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया और वो उसके सुनहरे बदन से अलग कर दिया।
अब वो सिर्फ ब्रा और पैन्टी में थी.. जो मैचिंग पिंक कलर के थे। दोस्तो, उसकी वो खूबसूरती मैं आज आँखें बंद करके भी महसूस करता हूँ.. तो बदन को बस उसकी ही जरूरत महसूस होती है.. मैं उसके ब्रा के ऊपर से ही उसकी संतरे जैसी गोल और कड़क चूचियों को चूमने और भींचने लगा।
उसका हॉट स्पॉट उसकी चूचियाँ ही थीं.. जिनके मर्दन से वो पलक झपकते ही गर्म हो जाती थी।
वो तो बस जैसे पागल ही हो गई और मुँह से ‘आआअहा.. आअहहहा.. ऊउह्ह्ह… ऊह्हू.. स्स्सीईई… स्स्स्स्स्स्सीई..’ जैसी आवाजें निकालने लगी।
मैंने उसकी ब्रा को उसके भरे हुए सीने से अलग किया और उसके छोटे-छोटे चूचुकों को.. जोकि खड़े होकर तन गए थे.. उन्हें मुँह में बारी-बारी से लेकर चूसने लगा।
सोनिका मेरी बाँहों में टूट रही थी.. मचल रही थी और मुझे अपने अन्दर समाने की कोशिश कर रही थी।
पसीने में तर-बतर हम एक-दूसरे में खोये हुए थे और प्यार के उस अथाह समुंदर में गोते लगा रहे थे.. जिसकी कोई सीमा ही नहीं थी।
इतनी देर में ही सोनिका ने मेरे जिस्म से उस आखिरी कपड़े को उतार कर अलग कर दिया। अब वो मेरे फौलादी आठ इंच के लौड़े से खेल रही थी.. क्योंकि वो ही उसे उस जन्नत की सैर कराने वाला था।
मैंने एक हाथ से उसकी पैन्टी के ऊपर से हल्के-हल्के से उसकी झांटों वाली चूत को मसलना जारी रखा.. जोकि एक डबलरोटी की तरह से फूल गई थी और ऐसा लग रहा था.. जैसे वहाँ पर कोई ज्वालामुखी हो।
सोनिका तो बस पागल सी हो गई थी.. वो अपनी चूत को मेरे हाथ पर मसल रही थी और मेरे लिंग को अपने हाथ से रगड़ रही थी।
मेरा हाल भी बहुत बुरा था.. पर मैं तो उसे उस जन्नत की सैर करने वाला था.. जो इसी तरह से हासिल की जा सकती है।
मैंने उसकी पैन्टी को निकाल फेंका और एक उंगली उसकी कुंवारी चूत में उतार दी और उसके भग्नासा.. जिसे हम चौकीदार या सिपाही भी कहते हैं.. उसे सहलाने लगा।
वो अपने चूतड़ उठा-उठा कर अपनी कामनाएँ जाहिर कर रही थी। मैंने उसे 69 की पोजीशन में किया और उसके योनिद्वार पर अपने होंठ लगाकर अपनी जिह्वा को उसकी चूत के अन्दर घुसेड़ कर चूत को सहलाने और अन्दर-बाहर करने लगा।
सोनिका भी मेरे लंड को अपने मुँह में अन्दर तक ले जाकर चूस रही थी।
जिन्होंने कभी नहीं चुसवाया हो.. वो क्या जाने लण्ड चुसवाने में कितना मजा आता है.. और औरत को उतना ही मजा चूत चुसवाने में आता है।
पांच मिनट तक चूसने के बाद ऐसा लगा जैसे सोनिका कि चूत में सैलाब आ गया हो.. उसने मेरे मुँह को अपनी जाँघों में भींच लिया और ढेर सारा रस छोड़ दिया।
वो मजा उसे भी पहली बार आया था और मुझे भी.. जो कि उसने मेरे लंड को चूस-चूसकर उसका वीर्य अपने मुँह में भर कर दिया।
अब तो बस इन्तेहा हो गई थी.. और इंतज़ार न तो उससे सहा जा रहा था और न ही मुझसे..
मैंने उसे बिस्तर पर सीधा लिटाया और अपना आठ इंची लंड.. जोकि अपनी महबूबा से मिलने के लिए बेकरार था.. उसे सोनिका की छोटी सी गुलाबी चूत पर नीचे से ऊपर की तरफ रगड़ने लगा ताकि वो उसको महसूस कर सके।
यह अहसास जीवन में बस एक बार ही होता है.. जो मैं उसे देने वाला था.. सो मैंने जल्दबाजी नहीं की और उसे इतना तड़पाया उस चीज के लिए.. जो बस उसी की थी।
सोनिका अपने मुँह से ‘ईईस्स्स्स्स्स्स.. स्स्स्सीईई..’ आदि आवाजें निकाल रही थी और मेरे लंड को आमंत्रण दे रही थी कि वो उसकी कोंपल सी कोमल योनि का मर्दन करके उसे कली से फूल बना दे।
मैंने उसकी चूत के नीचे एक तकिया लगाया और अपना लंड उसकी चूत के मुँह पर लगाकर थोड़ा सा ही धकेला था कि वो दर्द से बिलबिला उठी.. क्योंकि उसकी कोमल सी चूत और मेरा धाकड़ लंड..
लोग कह देते हैं कि थोड़ा सा दर्द होगा.. जिसकी फटती है न.. उससे पूछो.. उसे कितना दर्द होता है.. अगर लण्ड घुसाओगे तो दर्द तो होगा ही.. और अगर लुल्ली घुसाओगे तो कहाँ से होगा।
मैंने दो बार और कोशिश की.. पर उसे बेइंतिहा तकलीफ हो रही थी.. और वो अपने पैर भींच रही थी।
मैंने सोचा ऐसे तो काम नहीं चलेगा.. मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में लिया और उसे अपनी बाँहों में भींच लिया.. फिर उसकी टाँगों के बीच में आकर उसकी टाँगों को अपनी कमर के ऊपर से कर लिया.. ताकि थोड़ी चूत के होंठ खुलने से लण्ड को प्रवेश कराने में आसानी हो जाए।
अब उसकी तड़प मुझसे भी सही नहीं जा रही थी.. मैंने कामदेव का नाम लेकर अपने लण्ड का एक तगड़ा झटका लगा दिया और उसकी चूत का कौमार्य भेदन होने से उसकी चूत से खून की धार बहने लगी.. वो बेहोश हो गई थी.. मैं डर गया.. कि कहीं कोई परेशानी न हो जाए।
मैंने अपना लंड उसकी चूत से बाहर निकाला और उसके मुँह पर पानी के छींटे दिए.. उसे होश आ गया था।
उसकी आवाज़ में मैं दर्द महसूस कर रहा था.. पर अब इस मदहोशी के लम्हे में हमने रुकना ठीक नहीं समझा और दूसरे दौर में मैंने उसकी चूत पर वैसलीन लगाई और अपना लौड़ा उसकी चूत पर लगाकर थोड़ा सा धकेला.. क्योंकि उसकी झिल्ली तो फट चुकी थी.. सो उसे थोड़ा समझाया और उसके होंठों को अपने होंठों में लेकर झटका मारा.. लंड थोड़ा अन्दर घुस गया..
वैसलीन की वजह से दर्द थोड़ा कम हो रहा था.. फिर भी मेरी जान तड़प रही थी।
पांच-सात झटकों में मैंने अपना लौड़ा सोनिका की अनछुई चूत में घुसा दिया और थोड़ी देर रुक कर अपने लौड़े को आगे-पीछे करने लगा।
अब सोनिका का दर्द भी थोड़ा कम हो गया था.. इसलिए वो भी नीचे से कमर उचका रही थी.. पहले एक बार वीर्य निकल जाने की वजह से पूरा टाइम लग रहा था दूसरे राउंड में.. सो अब तो सरपट भागती रेलगाड़ी की तरह हम ऊपर और नीचे से एक-दूसरे में समाने लगे।
‘आआअह.. आआअह्ह्ह ह्ह्ह्ह..’
ये आवाजें सारे कमरे में गूँज रही थीं.. पर हमें सारे ज़माने की खबर कहाँ थी.. क्योंकि उस वक़्त तो सारा जहाँ हमारे कदमों में था।
मैंने फिर सोनिका को घुटनों के बल कर दिया और उसके पीछे से अपना लौड़ा उसकी चूत में घुसा दिया.. वो मस्ती में बोल रही थी- चोदोओओओओ.. मुझे.. मेरी जान अव्वी.. और जोर से.. आअह्ह ह्हह्ह मजा आ रहा है.. और चोदो.. स्स्स्स्स्सीई आआआह्ह ह्हह्ह..
हम पसीने से भीगे हुए एक-दूसरे को पाने में लगे हुए थे.. सारी दुनिया से बेखबर..
फिर ऐसा लगा जैसे सोनिका ज्यादा स्पीड से झटके देने लगी हो.. मैं भी उसका साथ निभाने लगा और उसको मैंने अपने ऊपर लिटाकर उसकी चूत में नीचे से अपना लौड़ा घुसाया और मैं जोर-जोर से झटके देने लगा.. साथ-साथ मैं उसकी चूचियों के निप्पल भी चूस रहा था और हाथों से उसके चूतड़ों को पकड़ कर झटके लगा रहा था।
फिर तो जैसे क़यामत ही आ गई हो.. सोनिका ने ढेर सारा योनिरस मेरे लंड पर छोड़ दिया और निढाल हो गई।
मैंने भी जबरदस्त दस-पंद्रह झटके लगाए और अपना लावा उसकी चूत में छोड़ दिया और हम एक-दूसरे में समा गए। उसकी योनि मेरे लौड़े का संकुचन कर रही थी.. मानो वो रस पी रही हो।
ऐसी संतुष्टि पहले कभी नहीं हुई.. जैसी आज हम पसीने में लथपथ एक-दूसरे से लिपटे हुए थे.. दुनिया की सारी खुशियों और गम से बेखबर..
सच कहते हैं.. पहला प्यार भुलाये से भी नहीं भुलाया जा सकता।
आपको मेरा पहला पहला प्यार.. मेरे जीवन के हसीं लम्हे.. कैसे लगे? अगर वक्त मिले थो अपने विचार साझा किजीए गा ।
अब मिलते हैं किसी ओर कहानी में , तब तक के लिए मेरा नमस्कार, इस Pandemic में अपना व अपनो का ध्यान रखे।
कहानी शुरू-
पहला पहला प्यार
नाम : अवि सिंहजगह: हरियाणा
हमारे हरियाणा में एक कहावत है:
‘देसां मा देश हरयाणा.. जित दूध दही का खाणा..’
उसी दूध और दही की बदौलत मैं एक बलिष्ठ और हृष्ट-पुष्ट शरीर का मालिक हूँ। मेरी हाइट 5'.10" है, आँखें नीली और जौ लाइन एक दम sharp, इसी के साथ बाल थोडे घुघरा ले , रंग गैरा और शरीर एक दम कसा हुआ।
कुल मिला कर कह सकते हे, की देखने मे ठिक हुँ।
अब आते हे, कहानी पर , बात तब की हैं, जब कोरोना नही था ओर हम सब आराम से कहीं भी घुम सकतें थे, क्या दिन थे वो, उम्मीद करते हैं, ये दोर जलद गुजर जाए। चलो अब कहानी शुरू करते हैं।
आज मैं आपसे अपनी कुछ मदहोश करने वाली यादें शेयर कर रहा हूँ जो मुझे भी दीवाना बना गईं।
आज भी वो बातें याद आती हैं तो दिल और दिमाग बेचैन हो उठता है।
बात है उस वक़्त की.. जब मैं बारहवीं कक्षा में पढ़ता था, घर से दूर हॉस्टल में बहुत उदास था.. क्योंकि वहाँ मेरा कोई दोस्त नहीं था। मैं बहुत अकेला-अकेला महसूस कर रहा था। पहली बार घर से दूर गया था न.. इसीलिए!
हमारी कक्षा में बहुत सारी लड़कियां थीं.. एक से बढ़कर एक खूबसूरत.. जैसा कि मैंने बताया मेरा कोई दोस्त नहीं था.. सो अब तक तो मैं भी एक अच्छे दोस्त की तलाश में था। मुझे नहीं मालूम था कि एक दिन ईश्वर मेरी तलाश इस तरह से पूरी करेगा।
मैं कक्षा में बैठा पढ़ रहा था कि अचानक मुझे लगा कि कोई पीछे ही बात कर रहा है। मैंने पीछे मुड़ कर देखा तो पाया कि हमारी कक्षा की एक लड़की जिसका नाम सोनिका था.. अपनी एक सहेली से कुछ बात कर रही थी।
मुझे अपनी तरफ देखता हुआ पाकर वो सकपका उठी और चुप हो गई, मैं समझ गया कि दाल में कुछ काला है।
अब मैं दोबारा अपनी पढ़ाई की कोशिश करने लगा.. पर मेरा ध्यान उन्हीं की तरफ था।
सोनिका एक बहुत ही बला की खूबसूरत लड़की थी, उसका बदन तो जैसे अप्सराओं जैसा था मानो बनाने वाले ने उसे बड़ी ही फुर्सत में बनाया हो।
बड़ी-बड़ी आँखें.. टमाटर से भी लाल होंठ.. सुराही जैसी गर्दन.. बड़े-बड़े नागिन से लहराते बाल.. लचीली कमर.. हिरनी जैसी चाल.. बस ये मानो एक तरह की क़यामत थी।
डर लगता था कहीं हाथ लगाने से मैली न न हो जाए। मुझे अपनी किस्मत पर नाज हो रहा था।
वो लड़की मेरे ही बारे में दूसरी लड़की से बात कर रही थी, वो भी लड़कियों वाले हॉस्टल में रहती थी, शायद उसका हाल भी मेरी तरह था.. पर कहने में डर रही थी। मैंने सोचा कोशिश करने में क्या जाता है।
दो दिन बाद ‘फ्रेण्डशिप डे’ था.. मैंने एक दोस्त से कुछ ‘फ्रेण्डशिप बैंड मंगाए और एक अच्छा सा लैटर लिखा कि अगर ये मेरा बैंड स्वीकार कर लेगी.. तो ये भी उसे दे दूँगा और हुआ भी ऐसा ही।
मन में डर तो था.. पर हिम्मत करके मैंने उसे अकेला पाते ही प्रपोज कर दिया।
उसने मना कर दिया।
मैं उदास होकर कक्षा में आकर बैठ गया। थोड़ी देर बाद मेरी ही कक्षा की एक लड़की पूजा ने आकर मुझसे कहा- सोनिका तुझे नीचे कॉमन रूम में बुला रही है।
मैं नीचे गया तो देखा कि सोनिका वहाँ एक कोने में खड़ी मेरा इंतज़ार कर रही थी।
मैं उसके पास चला गया।
वो बिलकुल डरी हुई और सहमी सी खड़ी थी..
मैंने पूछा- क्या बात है.. मुझे क्यों बुलाया है?
मुझे पता तो था ही कि वो भी वही चाहती है जो मैं चाहता था.. बस कहने में डर रही है।
उसने कहा- सॉरी.. मैंने तुम्हारा दिल दुखाया.. वैसे मैं भी तुमसे दोस्ती करना चाहती थी.. पर डरती थी कि कहीं तुम और लड़कों की तरह मुझे धोखा न दे दो।
मैंने उससे कहा- डरने की कोई बात नहीं क्योंकि मैं भी तुम्हें चाहता हूँ और बहुत पसंद करता हूँ।
वो यह सुनकर बहुत खुश हुई और मेरे गले लग गई।
हाँ किसी भी वक़्त कोई भी आ सकता था.. इसलिए मैंने उसे वो फ्रेंडशिप बैंड और वो लैटर दिया और हम दोनों अपनी कक्षा में चले गए।
मैं भी आज बहुत खुश था क्योंकि मेरा अरमान और इंतज़ार दोनों पूरे होने जा रहे थे।
दिन-प्रतिदिन हमारे बीच की नजदीकियाँ बढ़ती चली गईं.. हम दोनों कई-कई लेक्चर मिस करते और स्कूल की छत पर घन्टों एक-दूसरे की बाँहों में खोये रहते।
आजकल तो लोग पहली मुलाकात में ही वासना में अंधे होकर सेक्स करने की सोचते हैं.. पर वो नहीं जानते जो मजा पहले प्यार में है.. वो किसी और चीज में नहीं।
हम दिन में भी कैन्टीन में जाकर एक-दूसरे के लिए चॉकलेट और दूसरी चीजें लाते और शेयर करते, सबको धीरे-धीरे हमारे बारे में पता चल रहा था।
हमारे प्यार का असर हमारी पढ़ाई पर भी पड़ रहा था.. पर जिस पर प्यार का भूत सवार हो.. उसे बाकी की चीजें कहाँ दिखाई देती हैं।
सर्दियों की छुटियाँ होने वाली थीं.. पर उससे पहले मेरा जन्मदिन था।
उस दिन के लिए मुझ से ज्यादा वो उत्साहित थी.. क्योंकि अरमान उसके दिल में भी थे.. जो कि उस दिन पूरे होने वाले थे।
हम दोनों बहुत खुश थे।
आखिर वो दिन भी आया.. उसने रात को ही मुझे अपने हॉस्टल के एक कोने में बुलाया।
मैं गया तो वो वहाँ पहले से ही मेरा इंतज़ार कर रही थी।
मेरे वहाँ जाते ही उसने मुझे जन्मदिन विश किया और मेरे सीने से लग गई।
आज हम दोनों के ही जज्बात काबू में नहीं थे। मैंने उसे कुछ देर अपने सीने से लगाए रखा.. जैसे हम दो शरीर न होकर एक ही हों।
कुछ तो सर्दियों का मौसम था तो रात को ठण्ड तो थी ही। पर जब दो जवां मदहोशी से भरे हुए दिल आपस में मिलते हैं.. तो कहाँ सर्दी का पता चलता है।
उसकी साँसें धौंकनी की तरह चल रही थी और मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही था.. मन कर रहा था कि एक-दूसरे में समां जाएँ।
जब दो प्यार भरे दिल पहली बार मिलते हैं.. तो ऐसा ही होता है।
मैंने पूछा- मेरा जन्मदिन का गिफ्ट कहाँ है??
उसने शरमाते हुए मेरे दोनों हाथ अपने जवां कबूतरों पर रख दिए। आग दोनों तरफ लगी हुई थी.. उस वक़्त तो ये भी होश नहीं रहा कि हम कहाँ खड़े हैं।
मैंने वक़्त की नजाकत को समझते हुए अपने बाहुपाश में उसको जकड़ लिया और उसके मदिरा से लबालब भरे हुए दो प्यालों पर अपने प्यासे होंठ रख दिए और ऐसे उन्हें चूसने लगा जैसे कि जन्मों के प्यासे रेगिस्तान में मूसलाधार बारिश हो रही हो।
जिंदगी जीने में इतना मजा पहले कभी नहीं आया.. जितना उन दो हसीं प्यार के लम्हों में आ रहा था।
वो मेरी बाँहों में बिन पानी मछली की तरह मचलने लगी। हमारे होंठ एक-दूसरे का रसपान करने में लगे थे और मेरे हाथ उसके खरबूजों जैसे कूल्हों पर अपनी पकड़ बनाये हुए थे। मैं उन्हें बड़े ही जोश से भींच-भींच कर सहला रहा था। उसके चूतड़ों को पकड़ कर मैंने ऊपर उठाया और उसकी टाँगों को अपनी कमर के इर्द-गिर्द लपेट लिया।
उसके नाखून मेरी कमर में चल रहे थे। जमा देने वाली ठण्ड में भी हम पसीने से तर-बतर हो रहे थे।
मैं उसकी गर्दन पर चूम रहा था और वो तो एक बेल की तरह मुझसे लिपटी हुई थी। उसके मुँह से आह्ह.. ऊह्ह्ह्ह्ह… जैसी सीत्कार निकल रही थी।
दो घंटे कैसे बीत गए.. पता ही नहीं चला। चार बज गए थे और सबके जागने का वक़्त हो गया था.. इसलिए हमने वक़्त की नजाकत को समझते हुए रात को मिलने का प्रोग्राम बनाया और एक और दिल की गहराइयों को महसूस करते हुए एक-दूसरे के होंठों को चूम लिया.. और अपने-अपने कमरे में लौट गए.. क्योंकि हम नहीं चाहते थे कि किसी को हमारी मुलाकात का पता चले और कोई मुसीबत खड़ी हो।
वैसे भी जान है.. तो जहान है।
हम वापस आ तो गए.. पर ये जो आग दोनों तरफ लगी हुई थी.. ये ऐसे ही तो बुझने वाली नहीं थी।
जैसे-तैसे हमने दिन में अपने अरमानों को काबू में रखते हुए दिन बिताया, सारा दिन हमने एक साथ बिताया, खूब एन्जॉय किया.. पर असली मज़ा तो रात को आने वाला था।
जैसे-जैसे शाम हुई.. हमारे मन में बांछें खिल रही थीं। मैंने अपने रूममेट को दूसरे कमरे में एडजस्ट किया और अपने कमरे में ‘कैंडल-लाईट’ डिनर का इंतज़ाम किया।
हमने दिन में एक केक मंगवाया था.. ताकि रात में भरपूर मजा उठा सकें। हम इस रात को इतनी यादगार बनाना चाहते थे जितनी कि हमारी सुहागरात… और इसी हिसाब से इंतज़ाम भी किए थे।
सारा कमरा अपने महबूब के इंतज़ार में झूम रहा था। भीनी-भीनी इत्र की खुश्बू आ रही थी। मोमबत्तियों का मद्धिम प्रकाश था और एक शानदार गिफ्ट मैंने भी ख़रीदा था.. अपनी महबूबा के लिए..
जैसे-जैसे घड़ी की सुईयों ने ग्यारह बजने का इशारा किया.. वैसे ही मेरे इंतज़ार की घड़ियाँ भी खत्म होने को थीं। मैं अपनी हसीना को लाने के लिए मैस के पिछले दरवाजे से उसके हॉस्टल के नीचे गया.. ताकि उसको आने में कोई तकलीफ न हो। किस्मत भी हमारे साथ थी.. क्योंकि आज बड़ी गहरी धुँध पड़ रही थी.. इसलिए किसी ने हमें आते-जाते नहीं देखा।
सोनिका जैसे ही मेरे कमरे में आई.. मैंने कुण्डी लगाई और हम एक-दूसरे से लिपट गए। ऐसा लग रहा था बरसों का इंतज़ार खत्म हो गया हो।
फिर हम दोनों अलग हुए.. एक लम्बा समूच किया और केक काटने लगे।
ऐसा लग रहा था जैसे हमें सारे जहाँ की खुशियाँ मिल गई हों।
मैं बहुत खुश था… ऐसा जन्मदिन सबके नसीब में थोड़े ही होता है और न ही हर किसी को ऐसा हम-सफ़र मिलता है।
मेरी तो नजर आज उसकी खूबसूरती से हट ही नहीं रही थी।
हमने केक के एक टुकड़े को अपने होंठों में दोनों तरफ से लिया और खाने लगे.. उसके ख़त्म होते ही हम एक-दूसरे के होंठों पर लगे हुए केक को अपने होंठों से साफ़ करने लगे। फिर हमने उसे एक तरफ रखा और दूसरी पारी की तैयारी करने लगे।
मैंने दोनों सिंगल बेड को मिलकर एक बड़ा बिस्तर बना दिया था। सोनिका ने थोड़ी देर के लिए मुझे बाहर भेजा। जब मैं अन्दर गया तो मेरी तो बांछें खिल गईं क्योंकि बिस्तर पर सोनिका नहीं.. मेरे सपनों की राजकुमारी बैठी थी.. उसी साड़ी में जो मैंने उसे लाकर दी थी.. पल्लू ढके हुए.. बिल्कुल एक दुल्हन की तरह.. आह्ह.
जो सरप्राइज गिफ्ट उसने मुझे दिया था.. उसके आगे तो दुनिया की सारी खुशियाँ.. सारे उपहार कम थे।
मैं उसके पास जाकर बैठ गया और उसका घूंघट उठाने लगा.. पर वो सिमट गई।
मैं समझ गया उसे क्या चाहिए था, मैंने अपनी जेब से वो डायमंड रिंग निकाल कर उसकी उंगली में पहना दी जो उसका मुँह दिखाई का तोहफा था.. इस डायमंड रिंग की चमक उसकी बला की खूबसूरती के आगे फीकी थी।
मैंने उसका घूंघट उठाया और उसके चाँद से चहरे को निहारता ही रह गया.. ऐसी सुंदरता मैंने आज तक नहीं देखी थी.. मन करता था कि उसे देखता ही रहूँ.. सारी जिंदगी उसे अपनी नजरों से दूर न होने दूँ।
फिर भी जैसे-तैसे मैंने होश सम्भाला और उसके सुर्ख होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उनका रसपान करने लगा।
वो धीरे-धीरे सिमटने लगी और लेट गई, मैं उसके साइड में लेट गया और उसकी साड़ी को उसके बदन से अलग कर दिया और एक दूसरे में खो गए। मैंने उसके चूचुकों को ब्लाउज के ऊपर से ही महसूस किया.. मैं उन्हें धीरे-धीरे अपनी उंगलियों से सहला रहा था और दूसरे हाथ से उसकी जाँघों को सहला रहा था।
थोड़ी ही देर में वो अपनी टाँगों को मेरी टाँगों से रगड़ने लगी और ‘इस्स्स्स.. इस्स्स्स्स.. स्स्स्स्स.. सीईईईईईए..’ करने लगी।
वो भी अपने हाथ को मेरे अंडरवियर के ऊपर से रगड़ने लगी और मेरे लौड़े को जोकि उसके होंठों का स्पर्श मेरे होंठों पर होते ही तन कर खड़ा हो गया था.. उसे रगड़ने लगी।
मैंने उसके पेटीकोट का नाड़ा खींच दिया और वो उसके सुनहरे बदन से अलग कर दिया।
अब वो सिर्फ ब्रा और पैन्टी में थी.. जो मैचिंग पिंक कलर के थे। दोस्तो, उसकी वो खूबसूरती मैं आज आँखें बंद करके भी महसूस करता हूँ.. तो बदन को बस उसकी ही जरूरत महसूस होती है.. मैं उसके ब्रा के ऊपर से ही उसकी संतरे जैसी गोल और कड़क चूचियों को चूमने और भींचने लगा।
उसका हॉट स्पॉट उसकी चूचियाँ ही थीं.. जिनके मर्दन से वो पलक झपकते ही गर्म हो जाती थी।
वो तो बस जैसे पागल ही हो गई और मुँह से ‘आआअहा.. आअहहहा.. ऊउह्ह्ह… ऊह्हू.. स्स्सीईई… स्स्स्स्स्स्सीई..’ जैसी आवाजें निकालने लगी।
मैंने उसकी ब्रा को उसके भरे हुए सीने से अलग किया और उसके छोटे-छोटे चूचुकों को.. जोकि खड़े होकर तन गए थे.. उन्हें मुँह में बारी-बारी से लेकर चूसने लगा।
सोनिका मेरी बाँहों में टूट रही थी.. मचल रही थी और मुझे अपने अन्दर समाने की कोशिश कर रही थी।
पसीने में तर-बतर हम एक-दूसरे में खोये हुए थे और प्यार के उस अथाह समुंदर में गोते लगा रहे थे.. जिसकी कोई सीमा ही नहीं थी।
इतनी देर में ही सोनिका ने मेरे जिस्म से उस आखिरी कपड़े को उतार कर अलग कर दिया। अब वो मेरे फौलादी आठ इंच के लौड़े से खेल रही थी.. क्योंकि वो ही उसे उस जन्नत की सैर कराने वाला था।
मैंने एक हाथ से उसकी पैन्टी के ऊपर से हल्के-हल्के से उसकी झांटों वाली चूत को मसलना जारी रखा.. जोकि एक डबलरोटी की तरह से फूल गई थी और ऐसा लग रहा था.. जैसे वहाँ पर कोई ज्वालामुखी हो।
सोनिका तो बस पागल सी हो गई थी.. वो अपनी चूत को मेरे हाथ पर मसल रही थी और मेरे लिंग को अपने हाथ से रगड़ रही थी।
मेरा हाल भी बहुत बुरा था.. पर मैं तो उसे उस जन्नत की सैर करने वाला था.. जो इसी तरह से हासिल की जा सकती है।
मैंने उसकी पैन्टी को निकाल फेंका और एक उंगली उसकी कुंवारी चूत में उतार दी और उसके भग्नासा.. जिसे हम चौकीदार या सिपाही भी कहते हैं.. उसे सहलाने लगा।
वो अपने चूतड़ उठा-उठा कर अपनी कामनाएँ जाहिर कर रही थी। मैंने उसे 69 की पोजीशन में किया और उसके योनिद्वार पर अपने होंठ लगाकर अपनी जिह्वा को उसकी चूत के अन्दर घुसेड़ कर चूत को सहलाने और अन्दर-बाहर करने लगा।
सोनिका भी मेरे लंड को अपने मुँह में अन्दर तक ले जाकर चूस रही थी।
जिन्होंने कभी नहीं चुसवाया हो.. वो क्या जाने लण्ड चुसवाने में कितना मजा आता है.. और औरत को उतना ही मजा चूत चुसवाने में आता है।
पांच मिनट तक चूसने के बाद ऐसा लगा जैसे सोनिका कि चूत में सैलाब आ गया हो.. उसने मेरे मुँह को अपनी जाँघों में भींच लिया और ढेर सारा रस छोड़ दिया।
वो मजा उसे भी पहली बार आया था और मुझे भी.. जो कि उसने मेरे लंड को चूस-चूसकर उसका वीर्य अपने मुँह में भर कर दिया।
अब तो बस इन्तेहा हो गई थी.. और इंतज़ार न तो उससे सहा जा रहा था और न ही मुझसे..
मैंने उसे बिस्तर पर सीधा लिटाया और अपना आठ इंची लंड.. जोकि अपनी महबूबा से मिलने के लिए बेकरार था.. उसे सोनिका की छोटी सी गुलाबी चूत पर नीचे से ऊपर की तरफ रगड़ने लगा ताकि वो उसको महसूस कर सके।
यह अहसास जीवन में बस एक बार ही होता है.. जो मैं उसे देने वाला था.. सो मैंने जल्दबाजी नहीं की और उसे इतना तड़पाया उस चीज के लिए.. जो बस उसी की थी।
सोनिका अपने मुँह से ‘ईईस्स्स्स्स्स्स.. स्स्स्सीईई..’ आदि आवाजें निकाल रही थी और मेरे लंड को आमंत्रण दे रही थी कि वो उसकी कोंपल सी कोमल योनि का मर्दन करके उसे कली से फूल बना दे।
मैंने उसकी चूत के नीचे एक तकिया लगाया और अपना लंड उसकी चूत के मुँह पर लगाकर थोड़ा सा ही धकेला था कि वो दर्द से बिलबिला उठी.. क्योंकि उसकी कोमल सी चूत और मेरा धाकड़ लंड..
लोग कह देते हैं कि थोड़ा सा दर्द होगा.. जिसकी फटती है न.. उससे पूछो.. उसे कितना दर्द होता है.. अगर लण्ड घुसाओगे तो दर्द तो होगा ही.. और अगर लुल्ली घुसाओगे तो कहाँ से होगा।
मैंने दो बार और कोशिश की.. पर उसे बेइंतिहा तकलीफ हो रही थी.. और वो अपने पैर भींच रही थी।
मैंने सोचा ऐसे तो काम नहीं चलेगा.. मैंने उसके होंठों को अपने होंठों में लिया और उसे अपनी बाँहों में भींच लिया.. फिर उसकी टाँगों के बीच में आकर उसकी टाँगों को अपनी कमर के ऊपर से कर लिया.. ताकि थोड़ी चूत के होंठ खुलने से लण्ड को प्रवेश कराने में आसानी हो जाए।
अब उसकी तड़प मुझसे भी सही नहीं जा रही थी.. मैंने कामदेव का नाम लेकर अपने लण्ड का एक तगड़ा झटका लगा दिया और उसकी चूत का कौमार्य भेदन होने से उसकी चूत से खून की धार बहने लगी.. वो बेहोश हो गई थी.. मैं डर गया.. कि कहीं कोई परेशानी न हो जाए।
मैंने अपना लंड उसकी चूत से बाहर निकाला और उसके मुँह पर पानी के छींटे दिए.. उसे होश आ गया था।
उसकी आवाज़ में मैं दर्द महसूस कर रहा था.. पर अब इस मदहोशी के लम्हे में हमने रुकना ठीक नहीं समझा और दूसरे दौर में मैंने उसकी चूत पर वैसलीन लगाई और अपना लौड़ा उसकी चूत पर लगाकर थोड़ा सा धकेला.. क्योंकि उसकी झिल्ली तो फट चुकी थी.. सो उसे थोड़ा समझाया और उसके होंठों को अपने होंठों में लेकर झटका मारा.. लंड थोड़ा अन्दर घुस गया..
वैसलीन की वजह से दर्द थोड़ा कम हो रहा था.. फिर भी मेरी जान तड़प रही थी।
पांच-सात झटकों में मैंने अपना लौड़ा सोनिका की अनछुई चूत में घुसा दिया और थोड़ी देर रुक कर अपने लौड़े को आगे-पीछे करने लगा।
अब सोनिका का दर्द भी थोड़ा कम हो गया था.. इसलिए वो भी नीचे से कमर उचका रही थी.. पहले एक बार वीर्य निकल जाने की वजह से पूरा टाइम लग रहा था दूसरे राउंड में.. सो अब तो सरपट भागती रेलगाड़ी की तरह हम ऊपर और नीचे से एक-दूसरे में समाने लगे।
‘आआअह.. आआअह्ह्ह ह्ह्ह्ह..’
ये आवाजें सारे कमरे में गूँज रही थीं.. पर हमें सारे ज़माने की खबर कहाँ थी.. क्योंकि उस वक़्त तो सारा जहाँ हमारे कदमों में था।
मैंने फिर सोनिका को घुटनों के बल कर दिया और उसके पीछे से अपना लौड़ा उसकी चूत में घुसा दिया.. वो मस्ती में बोल रही थी- चोदोओओओओ.. मुझे.. मेरी जान अव्वी.. और जोर से.. आअह्ह ह्हह्ह मजा आ रहा है.. और चोदो.. स्स्स्स्स्सीई आआआह्ह ह्हह्ह..
हम पसीने से भीगे हुए एक-दूसरे को पाने में लगे हुए थे.. सारी दुनिया से बेखबर..
फिर ऐसा लगा जैसे सोनिका ज्यादा स्पीड से झटके देने लगी हो.. मैं भी उसका साथ निभाने लगा और उसको मैंने अपने ऊपर लिटाकर उसकी चूत में नीचे से अपना लौड़ा घुसाया और मैं जोर-जोर से झटके देने लगा.. साथ-साथ मैं उसकी चूचियों के निप्पल भी चूस रहा था और हाथों से उसके चूतड़ों को पकड़ कर झटके लगा रहा था।
फिर तो जैसे क़यामत ही आ गई हो.. सोनिका ने ढेर सारा योनिरस मेरे लंड पर छोड़ दिया और निढाल हो गई।
मैंने भी जबरदस्त दस-पंद्रह झटके लगाए और अपना लावा उसकी चूत में छोड़ दिया और हम एक-दूसरे में समा गए। उसकी योनि मेरे लौड़े का संकुचन कर रही थी.. मानो वो रस पी रही हो।
ऐसी संतुष्टि पहले कभी नहीं हुई.. जैसी आज हम पसीने में लथपथ एक-दूसरे से लिपटे हुए थे.. दुनिया की सारी खुशियों और गम से बेखबर..
सच कहते हैं.. पहला प्यार भुलाये से भी नहीं भुलाया जा सकता।
आपको मेरा पहला पहला प्यार.. मेरे जीवन के हसीं लम्हे.. कैसे लगे? अगर वक्त मिले थो अपने विचार साझा किजीए गा ।
अब मिलते हैं किसी ओर कहानी में , तब तक के लिए मेरा नमस्कार, इस Pandemic में अपना व अपनो का ध्यान रखे।