Thriller रिस्की लव

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Doston pesh hai ek Naya thriller padiye aor dimaag ke tote udayiye


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हॉस्पिटल के आईसीयू में पूरी तरह शांति छाई हुई थी। एक नर्स मरीज़ के बेड के पास बैठी थी। कुछ देर पहले ही मरीज़ को ऑपरेशन थिएटर से आईसीयू में शिफ्ट किया गया था।
आईसीयू के बाहर मरीज़ का करीबी डॉक्टर से बात कर रहा था।
"डॉक्टर मेहरा भाई की हालत अब कैसी है ?"
डॉक्टर मेहरा ने जवाब दिया,
"पंकज भाई.... बड़ा मुश्किल ऑपरेशन था। बहुत समय लग गया। गोली दिल के बहुत करीब लगी थी। ऑपरेशन तो सक्सेसफुल रहा। पर खून बहुत बह गया था। कंडीशन क्रिटिकल है।"
"कितना समय लगेगा भाई को ठीक होने में ?"
"अभी तो अगले 24 घंटे बहुत क्रिटिकल हैं। पहले यह गुज़र जाएं। उसके बाद तो घाव को भरने में जितने भी दिन लगें।"
डॉक्टर मेहरा की बात सुनकर पंकज सोच में पड़ गया। डॉ मेहरा ने कहा,
"वैसे अगर उनके ड्राइवर मुकेश ने बहादुरी ना दिखाई होती और उन्हें लाने में ज़रा भी देर कर दी होती, तो उनका बचना मुश्किल था।"
पंकज ने कहा,
"डॉक्टर मेहरा एक बात का खयाल रखिएगा कि भाई की खबर बाहर ना जाने पाए।"
"पंकज भाई यह हॉस्पिटल भाई की वजह से ही है। कोई खबर बाहर नहीं जाएगी निश्चिंत रहिए।"
"ठीक है मैं चलता हूँ। आप पर भरोसा है कि भाई का इलाज अच्छी तरह होगा। उनकी देखभाल के लिए हर समय कोई ना कोई रहना चाहिए।"
"आप बिल्कुल चिंता ना करें। हमारे लिए भाई को सही सलामत घर भेजना ही सबसे ज़रूरी काम हैं। बस यह 24 घंटे ऊपर वाले के हाथ में हैं।"
पंकज चला गया। डॉक्टर मेहरा ने अपने जूनियर डॉक्टर को हिदायत दी कि मरीज़ पर नज़र रखे।

इस हॉस्पिटल का नाम कावेरी देवी मेमोरियल हॉस्पिटल था। यह शहर का माना हुआ हॉस्पिटल था। इसकी खासियत थी कि यह कावेरी देवी ट्रस्ट द्वारा संचालित था। यहाँ पाँच सितारा हॉस्पिटल की सुविधा आम आदमी को भी उपलब्ध थी।
इस हॅस्पिटल की स्थापना करने वाला अंजन विश्वकर्मा इसी हॉस्पिटल के आईसीयू में ज़िंदगी की लड़ाई लड़ रहा था।

हॉस्पिटल से आठ किलोमीटर की दूरी पर क्राइम रिपोर्टर नफीस रहमान अपने ऑफिस में बैठा अपने सहायक विनोद की खबर पर विचार कर रहा था। उसने विनोद से कहा,
"विनोद खबर पक्की है ना ?"
"सर पिछले चार सालों से आपके साथ काम कर रहा हूँ। बिना पुख्ता यकीन के कोई खबर आप तक नहीं लाऊँगा।"
नफीस अपनी कुर्सी से उठकर पंद्रहवीं मंज़िल के अपने ऑफिस की खिड़की से बाहर देखने लगा। नीचे सड़क पर जगमगाती रौशनी में शहर रोज़ की रफ्तार से ही दौड़ा रहा था। उस बात से बेखबर जो अभी विनोद ने उसे बताई थी।
विनोद ने कहा,
"सर कल रात दनफीस अपनी जगह पर आकर बैठ गया। कुछ सोचकर वह बोला,
"शिमरिंग स्टार्स बीच हाउस अंजन विश्वकर्मा का है ?"
"जी सर...."
"वहाँ कौन कौन था उसके साथ ?"
"उसका खास आदमी पंकज सुर्वे था। सर सुनने में आया है कि वहाँ एक लड़की भी थी।"
"लड़की ?? कौन थी वो लड़की ?"

"सर वह पता नहीं चला।"
नफीस एक बार फिर सोचने लगा। वह अपने मन में कुछ हिसाब किताब लगा रहा था। विनोद ने पूँछा,
"क्या सोच रहे हैं सर ?"
"तुमने बताया कि अंजन को उसका ड्राइवर मुकेश बचा कर ले गया था। इसका मतलब यह है कि पंकज वहाँ से चला गया था। ज़रूर वह अंजन के कहने पर उस लड़की को वहाँ से निकाल कर ले गया होगा।"
"सर बात तो आपकी एकदम ठीक है।"
"विनोद वो लड़की अंजन के लिए बहुत खास है। तभी तो उसने अपने सबसे खास आदमी को उसे ले जाने के लिए कहा होगा।"
"सर मैंने तो ऐसे सोचा ही नहीं था।"
"विनोद...दो बातों का पता करो। वह लड़की कौन थी और ड्राइवर अंजन को लेकर कहाँ गया था ?"
"जी सर मैं इन दोनों बातों का पता लगाने की कोशिश करता हूँ।"
विनोद चला गया। नफीस अंजन के बारे में सोचने लगा। क्राइम रिपोर्टर नफीस ने पिछले पंद्रह सालों में अपराध की दुनिया में कई लोगों को चमकते और गायब होते देखा था। लेकिन अंजन विश्वकर्मा की कहानी उसे बड़ी दिलचस्प लगती थी। क्राइम रिपोर्टिंग के साथ साथ नफीस ने लेखन में भी हाथ आजमाया था। अपराध की दुनिया पर लिखी उसकी पहली किताब को लोगों ने बहुत पसंद किया था। इन दिनों वह अंजन के बारे में ही लिख रहा था।नफीस याद कर रहा था बारह साल पहले के बाइस साल के अंजन को। जब पहली बार पुलिस स्टेशन में उसने अंजन को देखा था। वह अपने दोस्त इंस्पेक्टर नीरज से मिलने गया था। उसे एक केस के बारे में कुछ जानकारियां चाहिए थीं। जब वह पुलिस स्टेशन पहुँचा था तब इंस्पेक्टर नीरज दो जवान लड़कों को हड़का रहा था,बहुत गर्मी चढ़ी है तुम दोनों को। धमकी देने गए थे। पुलिस के डंडे पड़ेंगे तो सारी गर्मी उतर जाएगी।"
एक लड़का जो भरे हुए शरीर का था वह इंस्पेक्टर नीरज की बात सुनकर परेशान हो गया। उसने अपने साथी की तरफ देखा। उसके साथी ने आँखों ही आँखों में उसे आश्वासन दिया। उसका साथी बोला,
"इंस्पेक्टर साहब हम दोनों राजन भाई के आदमी हैं। आप हमें अधिक समय अपने पास रख नहीं पाएंगे।"
उसने बहुत आत्मविश्वास के साथ यह बात कही थी। इंस्पेक्टर नीरज ने उसे घूर कर देखा। उसके बाद गाल पर एक झन्नाटेदार झांपड़ रसीद कर दिया। झांपड़ ज़ोरदार था पर उस लड़के के चेहरे पर डर की जगह एक गुस्सा था।
वह सांवले रंग का दुबला पतला लड़का था। देखने से ऐसा हरगिज नहीं लगता था कि उसके भीतर एक आग छिपी हो सकती है।
उस लड़के का विश्वास सही निकला। राजन भाई का एक आदमी दोनों लड़कों की ज़मानत करा कर ले गया। तब नफीस को उन दोनों का नाम पता चला। दुबला पतला सांवला लड़का अंजन विश्वकर्मा था। उसके साथी का नाम पंकज सुर्वे था।
नफीस ने उस दिन उसकी आँखों में जो चिंगारी देखी थी वह इतनी बड़ी आग बन जाएगी उसे नहीं पता था।

नफीस का फोन बजा। स्क्रीन पर शाहीन का नाम देखकर वह मन ही मन बुदबुदाया,
'मारे गए.... मुझे तो याद ही नहीं रहा था।"

कार में नफीस और शाहीन थे‌। दोनों शाहीन की छोटी बहन नाज़नीन की बर्थडे पार्टी से लौट रहे थे। शाहीन अभी भी नाराज़ थी। नफीस ने कहा,
"अभी भी नाराज़ हो। ज़रूरी काम था इसलिए लेट हो गया था।"
शाहीन ने बाहर सड़क पर देखते हुए कहा,
"मैं कुछ कहूँ उसके अलावा तुम्हारे लिए सबकुछ ज़रूरी है।"
"कैसी बात कर रही हो ? तुमसे बढ़कर मेरे लिए कुछ भी नहीं है।"
"हर बार गलती करने के बाद तुम यही कहते हो।"
नफीस कुछ देर चुप रहा। वह शाहीन का मूड ठीक करने के बारे में सोच रहा था।‌ उसने कहा,
"बहुत दिन हुए कुल्फी नहीं खाई। चलो आज खाते हैं।"
शाहीन ने रुखाई से कहा,पार्टी में इतना कुछ खाया है। अब मन नहीं है। वैसे भी तुम मेरी सिचुएशन समझ नहीं पाओगे। अम्मी, अब्बू, भाईजान, भाभीजान, सारा आपा सब बार बार एक ही बात कर रहे थे। नफीस को फैमिली फंक्शन के लिए तो वक्त निकालना ही चाहिए।"
नफीस नाराज़ होते हुए बोला,
"आया तो था ना। तुम्हारी फैमिली के हर फंक्शन में शिरकत करता हूँ। पर मेरी सारी कोशिशों के बाद भी तुम्हारी फैमिली मुझे अपना नहीं पाई है।"
शाहीन ने उसे घूर कर देखा। वह बोली,
"वो सिर्फ मेरी फैमिली है। तुम भी तो उन्हें पूरी तरह अपना नहीं पाए।"
नफीस ने कुछ नहीं कहा। कुछ बोलने का मतलब झगड़ा बढ़ाना था। दोनों सारे रास्ते खामोश रहे।

घर पहुँचकर शाहीन अपने बेडरूम में चली गई। नफीस लिविंग रूम में अपना लैपटॉप लेकर बैठ गया। वह अंजन पर लिखी जा रही अपनी किताब के शुरुआती चैप्टर पढ़ने लगा।

छोटे मोटे अपराध करते हुए अंजन तेज़ी से अपराध की दुनिया में आगे बढ़ रहा था। सिर्फ दो साल में वह एक नाम बन गया था। अंजन के सर पर एक स्थानीय नेता रघुनाथ परिकर का हाथ था।
रघुनाथ का कंस्ट्रक्शन का बिज़नेस था परिकर कंस्ट्रक्शन्स। परिकर कंस्ट्रक्शन्स की निगाह उन पुरानी सोसाइटीज़ पर रहती थी जिनमें रीडेवलपमेंट की आवश्यकता होती थी।
रघुनाथ अपने रसूख और ताकत के बल पर यह निश्चित कर लेता था कि रीडेवलपमेंट का टेंडर गोकुल डेवलेपर्स को मिले जो उसके छोटे भाई यदुनाथ के नाम पर थी। एक बार प्रोजेक्ट हाथ आ जाता था तो फिर असली खेल शुरू होता था।
जानबूझकर रीडेवलपमेंट का काम शुरू करने में देर की जाती‌। इस दौरान लोगों को लालच देकर उनकी जगह खरीद ली जाती। जो नहीं मानता उसे डरा धमका कर काम किया जाता। अंजन रघुनाथ के लिए यही काम करता था।
दूसरी बार नफीस अंजन से एक पार्टी में मिला था।‌ अब उसका शरीर कुछ भर गया था। कपड़े पहनने का ढंग आ गया था। उसने ग्रे जींस और टाइट फिटिंग वाली टी शर्ट पर ब्राउन कलर का लैदर जैकेट पहन रखा था। बहुत आकर्षक लग रहा था।
हाथ में ड्रिंक लिए वह पार्टी में इधर उधर घूम रहा था। उसकी निगाहें पार्टी में आई लड़कियों पर थीं। वह उन्हें ही देख रहा था। नफीस ने बड़े ध्यान से देखा था। उसकी आँखों में उनके जिस्म के लिए कोई हवस नहीं थी। वह तो बस उनमें से अपने लिए एक गर्लफ्रेंड की तलाश कर रहा था जिसके साथ वह अच्छा वक्त बिता सके।
वह उन्हें दूर से ही देख रहा था। नज़दीक जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था। वह जानता था कि भले ही उसने फैशनेबल कपड़े पहने हों पर उसके पास वह क्लास नहीं है।

बेडरूम का दरवाज़ा खुला। शाहीन ने आकर कहा,
"रात भर यहीं बैठोगे ?"
"बस आ रहा था।"
नफीस ने लैपटॉप बंद किया। शाहीन के पास आया। उसे गले लगाकर बोला,यू नो हाऊ मछ आई लव यू..."
शाहीन ने भी उसे अपनी बाहों में कस लिया।
 
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शाहीन नफीस के बगल में सोई हुई थी। उसका हाथ नफीस के सीने पर था। उसने प्यार से उसका हाथ हटाया और आहिस्ता से बेड से उतर गया। बिना आहट किए बेडरूम से बाहर निकल कर दरवाज़ा बंद कर दिया।
उसे नींद नहीं आ रही थी। दिमाग अंजन में ही उलझा हुआ था।
अंजन से अपनी दूसरी मुलाकात के बाद से ही उसकी दिलचस्पी उसमें बढ़ गई थी। इसी बीच एक खबर ऐसी आई जिसने सबको चौंका दिया था। रघुनाथ परिकर ने अपनी बहन मानवी परिकर की सगाई अंजन से कर दी थी। उसे अपने बिज़नेस का हिस्सेदार बना दिया था। रघुनाथ को जानने वाले लोग समझ रहे थे कि इसके पीछे ज़रूर कोई गहरी बात है।
इस खबर ने अंजन में नफीस की दिलचस्पी को बहुत अधिक बढ़ा दिया था। अब उसने अंजन के बारे में पता करना शुरू कर दिया। सबसे पहले उसने इस बात का पता लगाया कि अंजन रघुनाथ परिकर के संपर्क में आया कैसे ?
अंजन राजन नाम के एक गुंडे के गैंग में था। वह आसपास के दुकानदारों को धमका कर उनसे वसूली करता था। रघुनाथ परिकर को अपने काम के लिए कुछ लड़कों की ज़रूरत थी। उसे अंजन के बारे में पता चला तो मिलने के लिए बुलाया। अंजन अपने दोस्त पंकज को साथ लेकर गया।
नफीस को याद है कि इस मुलाकात के बारे में बताते हुए उसके एक खबरी ने कहा था कि अंजन रघुनाथ परिकर के पास बड़े ही आत्मविश्वास के साथ पहुँचा था। जबकी रघुनाथ के सामने आँख उठाकर बात करने की हिम्मत बहुत कम लोग कर पाते थे।
उस खबरी ने जो बताया था उसे नफीस ने कुछ इस तरह से अपने लैपटॉप में दर्ज किया था।

अंजन के पहुंँचने पर रघुनाथ ने उसे सर से पैर तक देखा। कुछ सोचने के बाद बोला,
"मेरे लिए काम करोगे ?"
अंजन ने बिना झिझके कहा,
"अच्छा पैसा मिलेगा तो ज़रूर करूँगा।"
उसका अंदाज़ देखकर रघुनाथ ने एक बार फिर उसके चेहरे को गौर से देखा।
"पैसे उससे अधिक होंगे जितना अभी कमाते हो। लेकिन ईमानदारी से काम करना होगा।"
अंजन ने उसी अंदाज़ में कहा,
"करूँगा...."
रघुनाथ ने हंसकर कहा,
"तुम्हारी ईमानदारी मेरे लिए होगी या पैसों के लिए ?"
अंजन कुछ रुक कर बोला,
"पैसों के लिए। लेकिन यहाँ आपसे ज्यादा पैसे देने वाला कौन है।"
"सही है.... मुझसे धोखा कर ज़िंदा बच जाए ऐसा भी कोई नहीं है।"
रघुनाथ ने इस धमकी से उसे समझा दिया था कि उसकी ताकत क्या है। अंजन ने साथ खड़े पंकज की तरफ इशारा करके कहा,
"मेरा दोस्त पंकज भी बहुत काम का है। हम हमेशा साथ रहते हैं। इसे भी काम पर रख लीजिए।"

रघुनाथ ने पंकज को भी साथ रखने की इजाज़त दे दी। उस दिन के बाद से ही अंजन रघुनाथ के लिए काम करने लगा। शुरू में वह छोटे-मोटे काम करता था। लेकिन छह महीने के अंदर ही अंजन रघुनाथ का खास आदमी बन गया। अब वह उसकी तरफ से बड़े बड़े काम करता था। कई पेचीदा मामलों में उसने प्रॉपर्टी पर रघुनाथ का कब्जा करवाने में अहम भूमिका निभाई थी। रघुनाथ अंजन के काम से खुश था। पर यह बात किसी की समझ नहीं आ रही थी कि अंजन ने ऐसा क्या कर दिया था कि रघुनाथ अपनी इकलौती बहन जिसे वह अपनी बेटी की तरह चाहता था की सगाई उसके साथ करने को तैयार हो गया।
नफीस भी यह जानने के लिए उत्सुक था। उसने अपने स्तर पर इस बात का पता लगाया कि कैसे अंजन और मानवी की पहचान हुई। अंजन के एक साथी ने उसे वह बातें बताईं जो उसने अंजन के मुंह से सुनी थीं।

उस दिन रघुनाथ परिकर की पार्टी में अंजन की निगाहें मानवी परिकर और उसकी सहेलियों पर ही टिकी थीं। लेकिन पार्टी के बाद कुछ ऐसा हुआ जिससे अंजन का दिल मानवी पर आ गया।‌

मानवी कुछ समय पहले ही निफ्ट चेन्नई से फैशन डिजाइनिंग का कोर्स पूरा करके लौटी थी। उसने अपना फैशन हाउस खोलने का विचार किया था। लेकिन उससे पहले वह इस क्षेत्र में कुछ अनुभव प्राप्त करना चाहती थी। इसलिए उसने एक फैशन हाउस में काम करना शुरू कर दिया था। मानवी को अपने एक क्लाइंट की बहन की शादी के लिए कुछ ड्रेसेज़ डिज़ाइन करने का काम मिला था। उसने अपना काम पूरा कर लिया था। वह चाहती थी कि क्लाइंट एक बार ट्रायल ले ले। जिससे यदि फिटिंग में कोई बदलाव करना हो तो समय से हो जाए। लेकिन क्लाइंट शहर के बाहर गया हुआ था। वह शादी से दो दिन पहले ही आने वाला था। मानवी यह सोचकर परेशान थी कि यदि उसे फिटिंग में बदलाव करना पड़ा तो इतने कम समय में वह क्या कर पाएगी।
मानवी की नज़र पार्टी में घूम रहे अंजन पर पड़ी। उसे पता था कि यह लड़का उसके भाई के लिए काम करता है। मानवी ने देखा कि अंजन की कद काठी उस क्लाइंट से बिल्कुल मिलती जुलती है जिसके लिए उसने कपड़े तैयार किए थे। पार्टी के बाद उसने अपनी एक सहेली के ज़रिए अंजन को यह संदेश भिजवाया कि वह उससे मिलना चाहती है।
अंजन पार्टी में जिन लड़कियों को बड़ी हसरत भरी निगाहों से देख रहा था उनमें से एक को अपनी ओर आता देखकर वह सकपका गया। उसे लगा कि ज़रूर उसके घूर घूर कर देखने से वह लड़की नाराज़ होगी। इसलिए डांटने के लिए आ रही है। उसने अपने दोस्त पंकज से कहा,
"यार लगता है अब खैर नहीं है।"
पंकज ने कहा,
"मैं इतनी देर से समझा रहा था कि अपने पर काबू रखो। वह रघुनाथ भाई की बहन और उसकी सहेलियां हैं। पर तुम मान ही नहीं रहे थे।"
मानवी की सहेली ने पास आकर कहा,
"अंजन तुम्हें मानवी ने मिलने के लिए बुलाया है।"
उसकी बात सुनकर अंजन की जान में जान आई। उसने पूँछा,
"मुझे क्यों मिलने के लिए बुलाया है ?"
"कोई ज़रूरी काम है। मेरे साथ चलो।"

अंजन के पहुँचने पर मानवी उसे अपने कमरे में ले गई। उससे कहा कि वह बारी बारी से वह ड्रेसेज़ पहनकर दिखाए जो उसके सामने रखी हैं।
अंजन ने एक एक कर अपने सामने पड़ी चारों ड्रेसेज़ पहनकर दिखाईं। हर बार जब वह ड्रेस पहन कर बाथरूम से बाहर आता तो मानवी उसे बड़े ध्यान से देखती। कभी कंधे से पकड़ कर आगे पीछे घुमाती तो कभी आइने के सामने खड़ा कर देखती थी। उससे अपने हाथ ऊपर नीचे करने को कहती। ड्रेस पहनकर चलने को कहती। अंजन चुपचाप उसके आदेश का पालन कर रहा था। मानवी हर ड्रेस के ट्रायल के बाद कुछ सोचती थी। उसके बाद एक छोटे से पैड पर कुछ लिख लेती थी। इस सबके बीच अंजन की निगाहें उसके ऊपर थीं। वह उसकी खूबसूरती के जादू में खोया जा रहा था।

अंजन ने अपने साथियों को बताया था कि वह मानवी की खूबसूरती पर लट्टू हो गया है। उसे चाहने लगा है। लेकिन वह इतनी हिम्मत नहीं जुटा पा रहा कि यह सब मानवी से जाकर कह दे।

मानवी अंजन के प्यार में कैसे पड़ी इस बात का खुलासा राजन के गैंग के एक गुंडे पप्पू कोली ने किया। पप्पू पहले अंजन के साथ काम करता था। उसने भी राजन का गैंग छोड़ दिया था लेकिन अंजन की तरह तरक्की नहीं कर पाया था। इस बात से वह मन ही मन उससे चिढ़ता था।
पप्पू ने जो कुछ भी बताया वह किसी फिल्मी कहानी की तरह रोमांचक था।

राजन का गैंग छोड़कर पप्पू नवीन सौरांग के गैंग में शामिल हो गया था। नवीन का धंधा किडनैपिंग का था। कुछ बड़ा करने की चाह में वह रघुनाथ की बहन को किडनैप करना चाहता था। सही मौके की तलाश में था। इसके लिए वह कई दिनों से मानवी पर नज़र रख रहा था।
नवीन को वह मौका मिल गया।

मानवी अपने कुछ दोस्तों के साथ मज़ागाओं नामक आईलैंड पर न्यू ईयर पार्टी मनाने गई थी। यह पार्टी एक यॉट पर थी। पार्टी अपने शबाब पर थी। मानवी और उसके दोस्त मस्ती में तेज़ संगीत पर नाच रहे थे।
इधर नवीन अपने तीन साथियों के साथ बोट से यॉट की तरफ बढ़ रहा था। उसके साथियों में एक पप्पू भी था। सबके पास गन थीं। उनका इरादा मानवी को किडनैप करने का था। नवीन ने सब पता कर लिया था। यॉट पर क्रू मेंबर्स के अलावा मानवी और उसके चार दोस्त थे।
बोट यॉट के पिछले हिस्से की तरफ आकर रुकी। नवीन और उसके साथी एक एक कर सावधानी से रस्सी के सहारे यॉट पर चढ़ गए। उसके बाद उस तरफ बढ़े जहाँ मानवी और उसके दोस्त इन सबसे बेखबर पार्टी कर रहे थे। नवीन का काम मानवी को अपने कब्ज़े में करना था। उसके साथी दूसरे लोगों को संभालने वाले थे।
अचानक कुछ अजनबियों को गन के साथ यॉट पर देखकर थिरकते कदम थम गए। संगीत भी बंद हो गया। नवीन तेज़ कदमों से आगे बढ़ा और मानवी के सर पर गन लगाकर बोला,
"किसी तरह की होशियारी की ज़रूरत नहीं है। जो हो रहा है होने दो। इसी में सबकी भलाई है।"
नवीन मानवी को गन प्वाइंट पर लेकर कैप्टन के केबिन में गया। उसने कैप्टन को हिदायत दी कि वह यॉट को उसकी बताई जगह पर ले चले।
पप्पू और बाकी के साथियों ने मानवी के दोस्तों और क्रू मेंबर्स को एक साथ कर लिया था। सब डरे सहमे थे। तभी पप्पू की निगाह अंजन पर पड़ी। वह कुछ करता उससे पहले ही अंजन ने गोली चला दी। गोली पप्पू के कंधे को रगड़ती हुई निकल गई। अंजन के पीछे से पंकज और उसका एक और साथी निकल कर बाहर आए। उन दोनों ने पप्पू के बाकी दोनों साथियों को अपने कब्जे में ले लिया।
डरे सहमे खड़े हुए लोगों को तसल्ली मिली।
गोली की आवाज सुनकर नवीन समझ गया कि कोई गड़बड़ है। उसने कैप्टन को धमकाते हुए कहा कि जैसा उसने कहा था यॉट को वहीं ले चले। तब तक अंजन कैप्टन के केबिन में आ चुका था। उसे देखकर नवीन ने कहा,
"तुम्हारी ज़रा सी होशियारी इस लड़की की जान खतरे में डाल देगी।"
अंजन की निगाह डरी सहमी मानवी पर पड़ी। वह जहाँ था वहीं रुक गया।
 
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नफीस की आदत थी कि अपने इन्वेस्टीगेशन के दौरान उसकी किसी से भी बातचीत होती थी तो वह उसे रिकॉर्ड कर लेता था। उस दिन यॉट पर जो घटा पप्पू ने जैसा बताया था उसे सुनकर नफीस ने अपने लैपटॉप पर लिख लिया था।
नवीन मानवी को उसी तरह गन प्वाइंट पर लिए हुए कैप्टन के केबिन से बाहर आया। उसने पंकज और उसके साथी को धमकाया,
"मेरे आदमियों को छोड़ दो।"
पंकज और उसका साथी कुछ करते उससे पहले ही एक गोली चली। नवीन पप्पू के सामने ही ज़मीन पर गिर गया। पप्पू ने देखा कि वह गोली अंजन ने चलाई थी। मानवी अपनी जगह पर खड़ी डर कर जोर जोर से रो रही थी। अंजन उसके पास गया और उसे चुप कराने का प्रयास करने लगा। घबराई हुई मानवी कस कर उसकी छाती से चिपक गई।
अंजन प्यार से उसके सर पर हाथ फेर रहा था।

पप्पू ने बताया कि अंजन के एक साथी को इस बात की भनक लग गई थी कि नवीन अपने साथियों के साथ मानवी को किडनैप करने जा रहा है।‌ वह फौरन अपने साथियों के साथ उसे बचाने के लिए निकल पड़ा।

यॉट पर जिस तरह से अंजन ने मानवी को बचाया था वह उन दोनों के प्यार का आधार बना था।
नफीस को अब यह जानना था कि रघुनाथ परिकर उनके रिश्ते के लिए कैसे तैयार हो गया ?

उन दिनों नफीस एक मराठी अखबार शहर च्या दर्पण में काम करता था। क्राइम रिपोर्टिंग करते हुए उसकी बहुत से लोगों से जान पहचान हो गई थी। इनमें से एक था कुशल पालेकर। कुशल परिकर कंस्ट्रक्शन्स में इंजीनियर था। उसका काम के सिलसिले में रघुनाथ परिकर से मिलना जुलना होता रहता था। नफीस जानता था कि कुशल को अंदर की बातें पता करने का शौक है। पहले भी वह कई बार कुछ बातें पैसों के लालच में उसे बता चुका था।
नफीस को उम्मीद थी कि इस बार भी वह उसके काम आ सकता है। उसने कुशल से संपर्क कर उसे मिलने बुलाया।
कुशल उसी ईरानी कैफे में उससे मिला जहाँ पहले भी दोनों मिल चुके थे। नफीस ने उसके सामने अपना सवाल रखा,
"कुशल तुमने पहले भी मुझे रघुनाथ परिकर के बारे में सटीक खबरें दी हैं। इस बार भी मैं तुमसे कुछ जानने के लिए ही आया हूँ। तुम्हें तो पता है कि रघुनाथ ने अपनी इकलौती बहन की इंगेजमेंट अंजन विश्वकर्मा से कर दी है। तुम जानते हो कि अंजन रघुनाथ के लिए क्या काम करता था। फिर रघुनाथ इतनी आसानी से उसे अपना बहनोई बनाने को कैसे तैयार हो गया ? यही नहीं उसे अपने बिज़नेस में पार्टनर भी बना लिया।"
कुशल ने कहा,
"मानवी और अंजन को बहुत से लोगों ने एक साथ देखा था। दोनों के बीच एक रिश्ता है। रघुनाथ ने उसी रिश्ते को नाम देने का काम किया है।"
नफीस जानता था कि उसने टालने वाला जवाब दिया है। वह बोला,
"फिर भी मुझे नहीं लगता है कि रघुनाथ इतनी आसानी से मान गया होगा।"
कुशल ने हंसकर कहा,बात तो सही है तुम्हारी। मुझे भी यही लगता है कि इसमें जरूर कोई गहरी बात है। लेकिन मैंने पता करने की कोशिश नहीं की थी। जो भी हो उससे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता।"
नफीस समझ गया कि कुशल का इशारा किस तरफ है। उसने जेब से वॉलेट निकाल कर कुछ पैसे देते हुए कहा,
"मैंने भी तुमसे बेमतलब काम कब करवाया है। अब तो ठीक है ना।"
कुशल ने पैसे गिने। अपनी जेब में रखने से पहले इधर उधर देखा। उसके बाद बोला,
"यह बहुत अंदर की बात है। यह बात निकालना इतना आसान नहीं होगा। अभी इतने रख लेता हूंँ। लेकिन इस बार काम के बाद कुछ और देना होगा।"
"ठीक है... लेकिन हर बार की तरह खबर एकदम पक्की होनी चाहिए।"
"उसकी फिक्र मत करो। दो दिन बाद मैं तुम्हें फोन करके यहीं बुलाऊँगा।"
कुशल उठकर चला गया। नफीस ने कैफे का बिल चुकाया और वहाँ से निकल गया।
वह अपने अखबार के मालिक गौतम उसगांवकर के घर पहुँचा। गौतम ने कहा,
"नफीस कैसे आना हुआ ? कोई खास खबर ?"
"सर आजकल अपने एरिया में एक बात बहुत चर्चा की है। रघुनाथ परिकर ने अपनी बहन मानवी का रिश्ता अपने एक मामूली से आदमी अंजन से पक्का कर दिया है। सभी जानना चाहते हैं कि आखिर इसके पीछे वजह क्या है। अभी तक किसी के पास भी इस मामले में कोई ठोस जानकारी नहीं है। लेकिन मैं आपको यह जानकारी लाकर दे सकता हूंँ।"
नफीस की बात सुनकर गौतम उसकी बात पर विचार करने लगा। नफीस ने कहा,
"सर अगर हमारे अखबार में सही बात छप गई तो हमारे अखबार का सरकुलेशन कितना बढ़ जाएगा।"
गौतम ने कहा,
"क्या गारंटी है कि ऐसा हो। फिर जो खबर छपे वह सही ही हो। यह भी कैसे कहा जा सकता है।"
नफीस ने हंसकर कहा,
"क्या सर ? आप तो मुझ से बहुत अधिक अनुभवी हैं। जानते हैं कि लोग वह जानने में ज्यादा इच्छुक होते हैं जो रहस्य की बात हो। आजकल यह बात किसी रहस्य से कम नहीं है। अगर हमारा अखबार इस रहस्य से पर्दा उठाएगा तो लोग हमारा अखबार ही खरीदेंगे। रही बात खबर के पक्के होने की तो आज तक मैंने जो भी खबर लाकर दी है कच्ची नहीं रही।"गौतम एक बार फिर उसके प्रस्ताव पर विचार करने लगा। नफीस ने अपनी बात जारी रखी,
"सर जो खबर मैं लेकर आऊंँगा एकदम सटीक होगी। लेकिन खबर निकालने में खर्च होगा।"
गौतम ने उसकी ओर देखकर कहा,
"कितना लगेगा ?"
नफीस ने मन ही मन हिसाब लगाकर रकम बता दी। गौतम ने कहा,
"इतने पैसे ज्यादा नहीं हैं ?"
"बिल्कुल नहीं सर। एकदम वाजिब हैं। मेरी गारंटी है कि आप इस खबर को छापने के बाद बहुत खुश होंगे।"
"अगर बात उल्टी हो गई तो ?"
"सर आप जितना ना सही पर अनुभव तो मेरे पास भी है। उसी अनुभव के आधार पर कह रहा हूंँ। अगर मैंने जो कहा है वह ना हुआ तो आप सारी रकम मेरी तनख्वाह से काट लीजिएगा।"
गौतम मुस्कुरा दिया। नफीस समझ गया कि उसका काम हो गया। गौतम ने नफीस की बताई हुई रकम उसे दे दी।
दो दिनों के बाद नफीस उसी ईरानी कैफे में कुशल की राह देख रहा था।‌ करीब दस मिनट इंतज़ार के बाद कुशल कैफे पहुँचा। अपनी कुर्सी पर बैठते हुए बोला,
"सॉरी देर हो गई। पर तुम्हारा काम पुख्ता किया है।"
नफीस ने कहा,
"पहले पूरी बात बताओ। तब तय होगा कि काम पुख्ता हुआ है कि नहीं।"
"ठीक है सब सुनकर ही फैसला करो।"
कुशल ने उसे वह बताया जो उसने पता किया था।‌

मानवी और अंजन एक दूसरे को प्यार करने लगे थे। दोनों अक्सर एक दूसरे से मिलते थे। कई लोगों ने उन्हें एक साथ देखा था। इस बारे में बातें भी होने लगी थीं। सबसे पहले यह बात मानवी के छोटे भाई यदुनाथ के कान में पड़ी। उसने जब यह सुना कि उसकी छोटी बहन उनके यहाँ काम करने वाले अंजन को प्यार करती है। उसके साथ घूमती फिरती है तो वह बहुत गुस्सा हुआ। उसने मानवी को बुलाकर उसे खूब डांट लगाई।
रघुनाथ मानवी का बड़ा भाई था। लेकिन उसकी आई ने मरते समय सात साल की मानवी की ज़िम्मेदारी उसे सौंपी थी। बाइस साल की उम्र में रघुनाथ अपनी बहन का पिता बन गया था। उसने मानवी को अपनी औलाद की तरह ही पाला था। मानवी से बढ़कर उसके लिए दुनिया में कुछ नहीं था।
यदुनाथ मानवी और अंजन की शिकायत लेकर रघुनाथ के पास पहुँचा। सब सुनकर रघुनाथ को गुस्सा तो आया किंतु मानवी की जगह अंजन पर। उसने अपने भाई रघुनाथ से कहा कि मानवी तो बच्ची है। उसे दुनियादारी का अधिक ज्ञान नहीं है। ज़रूर अंजन ने उसे बरगलाया होगा। उसने यदुनाथ से कहा कि वह अंजन से मिलना चाहता है। लेकिन उससे जो भी कहना होगा वह खुद ही कहेगा। यदुनाथ सिर्फ उसे संदेशा दे कि वह उससे मिलना चाहता है।
खंडाला के पास परिकर कंस्ट्रक्शंस के एक होटल का काम चल रहा था। यदुनाथ ने अंजन को वहीं आने को कहा। सही समय पर अंजन रघुनाथ से मिलने के लिए पहुंँच गया।
रघुनाथ ने अंजन को घूर कर देखा। उसके बाद सख्त लहज़े में कहा,
"जब मैंने तुम्हें काम पर रखने के लिए बुलाया था तब मैंने तुमसे पूँछा था कि तुम्हारी इमानदारी किसके लिए है। तब तुमने कहा था कि पैसों के लिए।"अंजन ने कहा,
"जी याद है..."
रघुनाथ ने उसी अंदाज़ में कहा,
"तब मैंने भी कहा था कि मुझसे धोखा करने वाला जिंदा बच जाए यह मुमकिन नहीं है।"
अंजन ने निडरता से कहा,
"लेकिन मैंने तो आपके साथ कोई धोखा नहीं किया।"
रघुनाथ गुस्से से चिल्लाया,
"तुम सोचते हो कि मेरी बहन को बहका कर तुम अपने मंसूबों में कामयाब हो जाओगे। मेरी बराबरी पर आ जाओगे। लेकिन याद रखना कि मेरी बहन को सीढ़ी बनाकर ऊपर चढ़ने की कोशिश की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। इसलिए मानवी की ज़िंदगी से दूर चले जाओ।"
अंजन ने बिना कोई गुस्सा दिखाए बड़े शांत भाव से कहा,
"भाई मैं और मानवी दोनों एक दूसरे को प्यार करते हैं। मेरे लिए मानवी कोई सीढ़ी नहीं है। आपकी बात मानकर मैं उससे दूर चला जाऊँगा। लेकिन आपने मानवी को अपनी बेटी की तरह पाला है। एक बार आप उससे भी पूँछ लीजिए।"
जिस शांत भाव से अंजन ने अपनी बात कही थी उसी तरह शांति से वहाँ से निकल गया। कहानी बताते हुए कुशल ने कहा,
"उस दिन मेरा एक खास आदमी वहाँ था। उसने बड़ी सावधानी से यह सारी बातें सुनी थीं।"
नफीस ने कहा,
"पर रघुनाथ ने जब अंजन को मानवी से दूर जाने को कहा था। उसने कहा भी था कि वह रघुनाथ के कहे अनुसार दूर चला जाएगा। तो फिर उसकी और मानवी की शादी कैसे पक्की हुई ?"

कुशल ने आगे की कहानी सुनाई। यह कहानी उसने रघुनाथ के एक नौकर से पता की थी।
 
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4)


रघुनाथ घर पहुँचा तो वह बहुत परेशान लग रहा था। नौकर उसके पास चाय लेकर पहुँचा तो उसने मानवी को बुला कर लाने का आदेश दिया। नौकर मानवी को बुला लाया। कमरे के बाहर पहुँच कर उसके कान में अंजन का नाम पड़ा तो वह रुक कर सुनने लगा। जो कुछ उसने सुना उसके हिसाब से रघुनाथ ने मानवी को अंजन से दूर रहने के लिए कहा। इस पर मानवी ने कहा कि वह अंजन को बहुत प्यार करती है। वह एक अच्छा इंसान है। इसलिए वह उसे छोड़ नहीं सकती है। नौकर को किसी के कदमों की आहट सुनाई पड़ी तो वह फौरन वहाँ से हट गया। उसने यदुनाथ को कमरे में जाते देखा था।
आधे घंटे तक कमरे में दोनों भाई मानवी को समझाते रहे। नौकर कुछ सुन नहीं पाया। लेकिन उसने मानवी को आँखों में आंसू भरकर कमरे से बाहर निकलते देखा था।
उसके बाद कई दिनों तक मानवी ने खुद को अपने कमरे में कैद कर लिया था। अक्सर जो खाना उसे कमरे में दिया जाता था वह वैसे ही ढका रखा रहता था जैसा नौकर छोड़ कर आता था। इस तरह एक हफ्ता बीत गया था।
एक दिन जब नौकर खाना लेकर गया तो घबराया हुआ वापस आया। मानवी ने अपने हाथ की नस काट ली थी। उसे फौरन अस्पताल पहुँचाया गया। कुछ देर की जद्दोजहद के बाद मानवी की जान बचाई जा सकी।

कुशल कहानी बताते हुए रुक गया। नफीस ने कहा,
"तो मानवी की आत्महत्या की कोशिश के कारण रघुनाथ को झुकना पड़ा।"
नफीस ने देखा कि कुशल कुछ सोच रहा है। उसने पूँछा,
"क्या बात है ? मैंने जो कहा उसके अलावा भी कुछ था क्या ?"
कुशल कुछ देर उसकी तरफ देखता रहा। वह मन में कुछ हिसाब लगा रहा था। जैसे सोच रहा हो कि कहा जाए या नहीं। उसकी उधेड़बुन देखकर नफीस बोला,
"कोई बात तो है। तुम गहरी सोच में हो। बताओ क्या सोच रहे हो ?"
"नफीस जो मैं कह रहा हूँ उसके बारे में पुख्ता तौर पर कुछ नहीं कह सकता। पर मानवी की आत्महत्या की कोशिश ही एक वजह नहीं थी। सुनने में आया था कि अस्पताल में डॉक्टरों ने जब मानवी का इलाज किया तो पाया कि वह प्रैगनेंट है। लेकिन मैं पहले ही कह चुका हूँ कि यह बात मैंने सिर्फ सुनी है। कितनी सच है यह बात कह नहीं सकता हूँ।"
कुशल ने जो बताया वह चौंकाने वाला था। नफीस उस पर विचार करने लगा। कुछ सोचकर उसने पूँछा,
"तुम बता सकते हो कि मानवी को किस अस्पताल में भर्ती कराया गया था ?"
कुशल ने उसे अस्पताल का नाम बता दिया। नफीस ने उसे मांगी गई रकम दे दी। अपने बॉस को उसने आत्महत्या वाली बात ही बताई और उसके हिसाब से रिर्पोट बना कर छाप दी।
नफीस ने अपने स्तर पर पता लगाने की कोशिश की कि क्या मानवी सचमुच प्रैगनेंट थी। लेकिन इस विषय में उसे कुछ भी पक्के तौर पर पता नहीं चल पाया। बेडरूम से कुछ आहट सुनाई पड़ी तो नफीस को लगा कि शाहीन जाग गई है। वह लैपटॉप बंद करके बेडरूम में गया। शाहीन वॉशरूम में थी। वहाँ से निकल कर बोली,
"क्या बात है नफीस ? तुम्हें नींद नहीं आ रही है। पहले भी लिविंग एरिया में थे। अभी उठी तो फिर नदारद थे। काम के चक्कर में अपनी तबीयत ना बिगाड़ लेना।"
"काम के कारण नहीं बस यूं ही नींद नहीं आ रही थी।"
"रात के ढाई बज रहे हैं। अब सो जाओ।"
शाहीन बेड पर लेट गई और करवट बदल ली। नफीस भी बेड पर लेट गया। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं। पर अभी भी दिमाग में अंजन ही था। वह मन ही मन उसके बारे में सोच रहा थामानवी की प्रेग्नेंसी का सच तो सामने नहीं आया पर कुछ ही दिनों में उसकी और अंजन की शादी हो गई। पर शादी के कुछ ही महीनों के बाद रघुनाथ और उसका भाई यदुनाथ एक हादसे में मारे गए। लोगों के बीच कई तरह की कहानियां कही जाने लगीं। बहुत से लोग मानते थे कि वह हादसा करवाया गया था। शक की सुई अंजन पर भी।
लेकिन इन सब से परेशान हुए बिना अंजन अपनी राह पर चलता रहा। जल्दी ही वह कंस्ट्रक्शन्स की दुनिया में छा गया। अब उसके बारे में बातें करने वाले भी चुप हो गए।
अंजन विश्वकर्मा अब एक सफेदपोश बिज़नस मैन था। अपनी छवी को सुधारने के लिए उसने लोगों की भलाई के काम भी शुरू कर दिए थे।
लेकिन बिज़नेस मैन की छवि एक आवरण थी जिसके पीछे काले कारोबार का डॉन अंजन विश्वकर्मा छिपा हुआ था।
 
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शादी के दो साल बाद मानवी कहीं गायब हो गई। उसने किसी भी बच्चे को जन्म नहीं दिया था। अंजन ने सबसे कह दिया था कि उन दोनों की पटी नहीं इसलिए वह उसे छोड़कर विदेश चली गई है।
नफीस ने तब मराठी अखबार छोड़कर एक लोकल न्यूज़ चैनल ज्वाइन कर लिया था। वहाँ वह क्राइम से संबंधित एक प्रोग्राम करता था जो लोगों को बहुत पसंद था। इन सबके बीच अंजन से संबंधित अनसुलझे सवाल जानने की उसकी इच्छा थी। वह इस बारे में जानने की कोशिश भी कर रहा था।
उसी समय उसके व्यक्तिगत जीवन में कई समस्याओं ने दस्तक दी। उसका और शाहीन का डेढ़ बरस का बेटा चल बसा। यह एक बहुत बड़ा धक्का था। आवश्यक था कि शाहीन को उस माहौल से दूर ले जाया जाए।
वह मुंबई छोड़कर दिल्ली चला गया। अभी साल भर पहले ही वह वापस मुंबई आया था। इस बार उसने एक अच्छे न्यूज़ चैनल को ज्वाइन कर लिया था। फिर से एक क्राइम आधारित प्रोग्राम शुरू किया था। एक किताब लिख चुका था जो जुर्म की दुनिया की अंदर की झांकी प्रस्तुत करती थी।
एक बार फिर अंजन विश्वकर्मा ने उसे अपनी तरफ आकर्षित करना शुरू कर दिया था। अब वह पहले से भी अधिक बड़ा और रहस्यमई हो गया था। उसने अपने सहयोगी विनोद के साथ अंजन के बारे में पता करना शुरू किया था।

कुछ समय पहले मुंबई के वन संरक्षित इलाके में 600 करोड़ की ज़मीन के गैरकानूनी तरीके से अधिग्रहण का मामला बहुत ज़ोर से चर्चा में था। यह ज़मीन अंजन विश्वकर्मा की कंस्ट्रक्शन्स कंपनी कावेरी कंस्ट्रक्शन्स को मिली थी। इस ज़मीन को पाने की कोशिश अंजन का प्रतिद्वंदी जगजीत अहलूवालिया भी कर रहा था। उसके बाद उनके बीच की कड़वाहट कई मौकों पर सामने आने लगी। अंजन ने अपने प्रभाव से उस मामले को दबा दिया था।
नफीस इसी सिलसिले में पड़ताल कर रहा था जब अंजन के बीच हाउस शिमरिंग स्टार्स में गोलीबारी की खबर मिली।

जब नफीस सोकर उठा तो सुबह के सवा आठ बजे थे। अपने फोन की घंटी सुनकर उसकी नींद खुली थी। जब तक वह फोन उठाता कॉल कट गई थी। नफीस ने चेक किया। फोन विनोद का था। उसने कॉल बैक किया। फोन लेकर वह बेडरूम की बॉलकनी में आकर खड़ा हो गया। विनोद ने उससे कहा कि उसे एक खबर देनी है। नफीस जल्दी ऑफिस पहुँचे। विनोद दिल्ली में भी नफीस के साथ काम कर चुका था। जब नफीस मुंबई में इस न्यूज़ चैनल के लिए काम करने आया तो विनोद भी उसके साथ आ गया। यहाँ वह एक अखबार में काम कर रहा था। साथ ही नफीस की मदद भी करता था। नफीस ने खासतौर पर उसे अंजन के बारे में पता करने का काम सौंपा था।
कल नफीस के ऑफिस से जाने के बाद से ही विनोद ने इस बात का पता करना शुरू कर दिया था कि अंजन का ड्राइवर मुकेश उसे गोली लगने के बाद कहाँ ले गया था। उसे अपने सूत्रों से कुछ बातों का पता चला था। वह उन्हीं के बारे में बताने के लिए नफीस से मिलना चाहता था।
नफीस के सामने बैठा विनोद अपनी पड़ताल की जानकारी दे रहा था।
"सर यह पक्का है कि अंजन को कावेरी देवी मेमोरियल हॉस्पिटल में ही ले जाया गया है। मैंने वहाँ के एक वार्ड ब्वॉय से बात की है।"
नफीस कुछ सोचते हुए बोला,
"पहले ही इस बात पर ध्यान जाना चाहिए था। गोलीबारी के कांड को गुप्त रखने के लिए अपने खुद के अस्पताल से अच्छी जगह क्या होगी। अंजन की सेहत के बारे में कुछ पता चला ?"
"डॉक्टर ने ऑपरेशन के बाद 24 घंटे क्रिटिकल बताए थे। पर अभी तक कोई खबर नहीं है।"
"उस लड़की के बारे में कुछ पता चला ?"
"नहीं सर। उसके बारे में तो कुछ भी पता नहीं चला।"
"उसके बारे में जानने में समय लगेगा। फिलहाल यह पता करो कि गोलीबारी के पीछे कौन है ?"
"सह...कहीं जगजीत अहलूवालिया तो नहीं है ?"
नफीस ने कहा,
"अगर हम उस ज़मीन की बात करें तो उसका अंजन के हाथ लगना जगजीत की हार ज़रूर थी। लेकिन जगजीत इस बात के लिए उस पर जानलेवा हमला नहीं कराएगा। वह जो भी करता है सामने से आकर करता है। अपनी हार का बदला वह भी उससे कोई बिज़नेस का मौका छीन कर लेगा।"
"सर फिर अंजन पर और कौन हमला करवा सकता है ?"
नफीस ने विनोद की तरफ देखा। फिर गंभीर आवाज़ में बोला,
"विनोद यहाँ आते वक्त मैं इसी विषय में सोच रहा था। मुझे तो यह बहुत गहरा मामला लगता है। अंजन की गतिविधियों का पता उसके बहुत नज़दीकियों को ही रहता है। ऐसे में सोचने वाली बात है कि उसके बीच हाउस शिमरिंग स्टार्स में होने की बात उस पर हमला करने वालों तक कैसे पहुँची ? ज़रूर यह काम उसके किसी करीबी का है जिसने अंजन के बारे में खबर दी।"
नफीस की बात सुनकर विनोद भी सोच में पड़ गया। वह बोला,
"अंजन का सबसे करीबी तो उसका दोस्त पंकज सुर्वे है। वही उसके साथ हर जगह साए की तरह रहता है। तो क्या पंकज वह शख्स हो सकता है ?"
"एकदम से किसी फैसले पर पहुंँचना जल्दबाजी होगी। लेकिन ऐसा हो भी सकता है।"
"सर... अगर ऐसा है तो फिर वह लड़की पंकज के साथ ही होगी। लेकिन पंकज अपने दोस्त के साथ ऐसक्यों करेगा ?"
नफीस ने कहा,
"यही तो पता करना है कि अंजन के बारे में खबर किसने और क्यों दी ?"
कुछ सोचकर नफीस ने कहा,मुझे लगता है कि अंजन का ड्राइवर मुकेश इस संबंध में बहुत कुछ जानता है। तुम उसके बारे में पता करो।"
विनोद चला गया। नफीस अंजन के बारे में सोचने लगा।
 
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नर्स ने जाकर डॉक्टर मेहरा को बताया कि मरीज़ को होश आ गया है। डॉक्टर मेहरा फौरन अपने जूनियर के साथ अंजन के कमरे में पहुँचे। वहाँ पहुँच कर डॉक्टर मेहरा ने अंजन की जांच की। उसके बाद अपने ‌सहयोगी को कुछ निर्देश दिए।
अंजन इधर उधर देख रहा था। वह अपने आसपास के वातावरण को समझने का प्रयास कर रहा था। उसके दिमाग में कुछ दृश्य तैर रहे थे। उन दृश्यों में वह बहुत खुश था। उसके हाथ में एक अंगूठी थी। वह घुटनों के बल बैठा था।‌ उसने उस लड़की का हाथ पकड़ कर उसे चूमा। उसकी उंगली में अंगूठी पहना रहा था कि तभी एक गोली कमरे में रखे वाज़ पर लगी। वह फौरन चौकन्ना हो गया। उस लड़की का हाथ पकड़ कर सोफे के पीछे ले गया। अपनी गन निकाली और जिधर से गोली चली थी उधर एक गोली चला दी।
अंजन चिल्लाया,
"मीरा....."
डॉक्टर मेहरा ने कहा,
"भाई आप अपने ही हॉस्पिटल में हैं। आपको गोली लगी थी। पर अब खतरे से बाहर हैं। लेकिन स्ट्रेस मत लीजिए।"
अंजन ने कहा,
"पंकज कहाँ है ? पंकज को बुलाओ।"
"पंकज भाई को खबर कर दी है। वह आते ही होंगे। पर आप प्लीज़ आराम कीजिए।"
डॉक्टर मेहरा ने एक इंजेक्शन अंजन को लगा दिया। वह धीरे धीरे शांत होकर सो गया।

पंकज अस्पताल पहुँचा तो डॉक्टर मेहरा ने उसे बताया कि होश में आने पर वह किसी मीरा का नाम ले रहा था। वह अधिक स्ट्रेस ना ले इसलिए इंजेक्शन दिया है जिससे वह अभी सो रहा है।
पंकज कॉरिडोर में आ गया। उसने किसी को फोन लगाया। कुछ देर बात की। उसके बाद डॉक्टर मेहरा को कुछ हिदायतें देकर वह चला गया।

विनोद नफीस के कहे अनुसार अंजन के ड्राइवर मुकेश कांबले के बारे में पता करने केशव चॉल पहुँचा था। वह उस दरवाज़े के सामने रुका जिस पर मुकेश के नाम की तख्ती थी। लेकिन दरवाज़े पर ताला लगा हुआ था। उसने आसपास देखा। बगल वाले घर के बाहर एक बुज़ुर्ग बैठा अखबार पढ़ रहा था। विनोद ने उससे पूँछा,
"ये मुकेश के घर पर ताला लगा है। सब लोग कहीं बाहर गए हैं।"
उस बूढ़े आदमी ने अपने चेहरे के सामने से अखबार हटा कर विनोद को देखा।
"ताला लगा है तो कहीं बाहर ही गए होंगे।"
"जी सही कहा। मेरा मतलब था कि क्या आप जानते हैं कि कहाँ गए हुए हैं ?"
बूढ़े आदमी ने कहा,
"पता नहीं है। शायद सोलापुर अपने गांव चला गया है। जाते समय बड़ी जल्दी में लग रहा था। किसी से कुछ कह कर नहीं गया।"
बूढ़ा फिर से अखबार पढ़ने लगा। विनोद वहाँ खड़े होकर कुछ सोचने लगा। उसने बूढ़े आदमी से पूँछा,
"अच्छा यह तो बता सकते हैं कि कब गए सब लोग ?"
"कल सुबह करीब साढ़े पाँच बजे मुकेश अपनी पत्नी और बेटी को लेकर निकल गया।"
"धन्यवाद..."कहकर विनोद वहाँ से निकल लिया। अभी वह चॉल से बाहर ही निकला था कि कावेरी हॉस्पिटल के वॉर्ड ब्वॉय ने फोन करके उसे अंजन के होश में आ जाने के बारे में बताया। उसने यह भी बताया कि अंजन किसी मीरा का नाम ले रहा था।
उस वार्ड ब्वॉय ने एक और बात बताई। पंकज जब हॉस्पिटल के कॉरीडोर में फोन पर बात कर रहा था तो उसने किसी तरुण काला का नाम लिया था। वार्ड ब्वॉय ने जो खबर दी थीं वह काम की थीं। विनोद ने फौरन नफीस को फोन करके कहा कि वह मिलना चाहता है। नफीस ने उसे मिलने के लिए बुला लिया।

नफीस की बिल्डिंग के पास एक छोटा सा रेस्टोरेंट था। विनोद और वह वहीं बैठे थे। नफीस ने अपनी ब्लैक कॉफी का एक सिप लिया। जो कुछ विनोद ने उसे बताया था वह उसके बारे में ही सोच रहा था। उसे ऐसा लग रहा था कि तरुण काला का नाम उसने कहीं सुना था। पर बहुत ज़ोर देने पर भी उसे कुछ याद नहीं आ रहा था। विनोद ने कहा,
"सर आप अचानक इतने खामोश हो गए। क्या सोच रहे हैं ?"
नफीस अभी कुछ कहना नहीं चाहता था। उसने कहा,
"विनोद मुकेश जाते समय बहुत जल्दी में था। इसका मतलब वह किसी खतरे में था। ऐसे में नहीं लगता है कि वह सोलापुर जाएगा। क्योंकी उसे वहाँ आसानी से खोजा जा सकता है।"
"हाँ सर हो सकता है। वैसे सोलापुर का नाम तो उसके पड़ोसी ने अंदाज़े से लिया था। पर अगर वह कहीं और गया है तो उसे खोज पाना मुश्किल होगा।"
"लेकिन सच जानने के लिए उसका पता लगाना ज़रूरी है। तुम अपनी पूरी कोशिश करो।"
नफीस एक बार फिर अपनी कॉफी पीने लगा। वह अभी भी तरुण काला के नाम पर उलझा हुआ था। विनोद अपनी चाय की चुस्की लेते हुए बोला,सर पता तो बहुत कुछ लगाना है। अंजन के साथ मीरा नाम की जो लड़की थी वो कौन थी ? पंकज ने जिससे बात की थी उस तरुण काला से उसका क्या संबंध है ?"
"विनोद गांठों को धैर्य से एक एक करके खोलना ही अच्छा होता है। तुम अभी अपना पूरा ध्यान मुकेश का पता करने में लगाओ। यह भी हो सकता है कि एक गांठ खुलते बाकी के सवालों का जवाब भी मिल जाए।"
"ठीक है सर फिर मैं मुकेश वाली गांठ खोलने में जुट जाता हूँ।"
विनोद ने अपनी चाय खत्म की। वह चलने को हुआ तो नफीस ने कहा,
"तुम्हारे पैसे अकांउट में ट्रांसफर कर दिए हैं।"
अपना वॉलेट निकाल कर कुछ पैसे निकाले। विनोद की तरफ बढ़ाकर बोला,
"मुकेश को खोजने में खर्च होगा। ये रख लो। अगर और ज़रूरत पड़े तो बता देना।"
विनोद ने पैसे लेकर अपने बटुए में रख लिए। चलते समय बोला,
"पूरी कोशिश करूँगा कि अगली मुलाकात में आपको कोई खुशखबरी दूँ।"

नफीस और शाहीन डिनर कर रहे थे। डिनर करते हुए भी नफीस तरुण काला के बारे में ही सोच रहा था। शाहीन ने खाना खाते हुए नफीस से कहा,
"आज मैंने मिस्टर जॉर्ज को फोन किया था। उनसे दोबारा काम शुरू करने की बात की। उन्होंने कहा है कि वो मेरे बारे में सोचेंगे।"शाहीन नफीस की प्रतिक्रिया का इंतजार करने लगी। लेकिन जब कोई जवाब नहीं मिला तो उसने नफीस की तरफ देखा। वह अपने ही खयालों में खोया हुआ था। शाहीन को बहुत बुरा लगा। उसने जोर से चमचा अपनी प्लेट पर मार दिया। आवाज सुनकर नफीस अपने विचारों से बाहर आया। उसने शहीन की तरफ देखा। उसके चेहरे को देख कर लग रहा था कि वह बहुत ज्यादा अपसेट है। शाहीन ने गुस्से से कहा,
"नफीस तुम्हारे पास मेरे लिए ज़रा सा भी वक्त नहीं है।"
यह कहकर वह खाना छोड़कर जाने लगी। नफीस को अपनी गलती समझ आ गई थी। उसके पास रहते हुए भी वह अपने खयालों में खोया हुआ था। उसने शाहीन का हाथ पकड़ लिया।
"प्लीज़ शाहीन...."
शाहीन ने अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा,
"क्या प्लीज़ ? तुम्हें पता है तुम्हारा यह बर्ताव मुझे कितनी तकलीफ देता है। मैं अगर तुमसे कुछ कहना चाहूँ तो कह भी नहीं सकती।"
"ऐसा नहीं है शाहीन।"
"ऐसा ही है। मैं अभी तुमसे कुछ कह रही थी। लेकिन तुमने उसका एक शब्द भी नहीं सुना। बोलो सुना था क्या ?"
नफीस शर्मिंदा था। उसने सचमुच कुछ भी नहीं सुना था। वह तो बस अपने ही विचारों में खोया हुआ था। उसने भी अपनी गलती स्वीकार करते हुए कहा,
"आई एम सॉरी। मैं अपनी गलती मानता हूँ। अब प्लीज़ बैठकर मुझे बताओ क्या कह रही थी।"
शाहीन कुर्सी पर बैठ गई। उसने नफीस को बताया कि उसने दोबारा अपना काम शुरू करने का मन बनाया है। इसके लिए उसने अपने पुराने बॉस से बात की है। उन्होंने कहा है कि वह उसके लिए ज़रूर कुछ करेंगे। शाहीन की बात सुनकर नफीस ने कहा,
"ये तो तुमने अच्छा फैसला लिया है। काम करोगी तो मन लगा रहेगा।"
शाहीन ने उसकी तरफ देखकर कहा,
"सोचती हूँ काम में खुद को इतना डुबो लूँ कि इस बात की तकलीफ ही ना रहे कि तुम मुझे इग्नोर कर रहे हो।"
शाहीन का यह तंज सुनकर नफीस और भी अधिक लज्जित हुआ। उसने कहा,
"शाहीन ऐसा मत कहो।"
"मैं क्या गलत कह रही हूँ। जबसे हम मुंबई दोबारा लौटकर आए हैं तबसे ही देख रही हूँ कि तुम बस अपने में ही खोए रहते हो। मेरे पास रहते हुए भी मुझसे दूर रहते हो। जैसे मेरा कोई वजूद ही ना हो तुम्हारे लिए।"
नफीस जानता था कि शाहीन जो कुछ कह रही है वह सच है। उसे खुद भी इस बात का बुरा लगता था कि वह उसे समय नहीं दे पा रहा है। उसने कुछ नहीं कहा। रोटी का टुकड़ा तोड़ कर निवाला बनाया और शहीन की तरफ बढ़ा दिया। शाहीन ने मुंह घुमा लिया। नफीस बोला,
"नाराज़गी मुझसे है। खाने पर क्यों निकाल रही हो। मैं मानता हूँ कि मैं तुम पर अधिक ध्यान नहीं दे पा रहा हूँ। लेकिन किसी भी सूरत में मैं तुम्हारे वजूद को नकार नहीं सकता। तुम्हारा होना ही मेरी जिंदगी में सबसे बड़ी खुशी है।"
शाहीन ने उसकी तरफ देखा। नफीस की आँखों में नमी थी। शाहीन ने उसके हाथ से निवाला खा लिया। नफीस ने दूसरा निवाला बढ़ाया तो वह बोली,
"अब मैं खा लूँगी। तुम अपना खाना खाओ।"
नफीस खाने लगा। खाते हुए उसे एहसास हो रहा था कि अभी उसने जो कहा वह कितना सच है। शाहीन का उसकी जिंदगी में होना उसके लिए बहुत महत्व रखता है। उसके बिना वह अपनी जिंदगी की कल्पना भी नहीं कर सकता। इसके बावजूद भी वह पिछले काफी वक्त से उस पर अधिक ध्यान नहीं दे रहा था। उसने तय कर लिया कि वह अपने काम और अपनी निजी जिंदगी के बीच एक लकीर खींचेगा। जो वक्त शाहीन को मिलना चाहिए उसमें अपने काम को नहीं आने देगा।शहर से दूर पंकज ने अपनी कार एक पुराने से घर के सामने रोकी। कार से उतर कर अपनी आदत के अनुसार चेक किया कि उसकी गन साथ है या नहीं। हर बार की तरह वह गन लेना नहीं भूला था। वह मकान के अंदर चला गया। दरवाज़े की घंटी बजाई। उसके आदमी बसंत ने दरवाज़ा खोला। अंदर घुसते हुए पंकज ने पूँछा,
"सब ठीक है ना ?"
"हाँ भाई..."
पंकज मकान के भीतरी हिस्से में गया। आंगन पार करके उस कमरे में पहुँचा जहाँ एक शख्स उसकी राह देख रहा था।
पंकज को देखकर वह शख्स मुस्कुराते हुए उसकी तरफ बढ़ा।
 
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पंकज ने उस शख्स से हाथ मिलाया। फिर बैठने का इशारा किया। उसके बाद बसंत को बुलाकर कुछ निर्देश दिया। उसके साथ जो शख्स बैठा था वह तरुण काला था। तरुण ने कहा,
"पता चला कि अंजन पर किसने हमला करवाया था ?"
पंकज ने कहा,
"अभी तक कुछ भी पता नहीं चला। उस दिन अंजन बीच हाउस जाएगा यह बात किसी को भी पता नहीं थी। फिर इस बात की सूचना उन्हें कैसे मिली समझ नहीं आ रहा है।"
बसंत ने पीने का सामान लाकर मेज़ पर रख दिया। बोतल उठाकर दो पेग बनाए। तरुण और पंकज को देकर वहाँ से चला गया। उसके जाने के बाद तरुण ने कहा,
"मीरा कहाँ है ?"
"उस दिन अंजन ने मुझे मीरा को वहाँ से ले जाने के लिए कहा था। मैं मीरा का हाथ पकड़कर उस गोलीबारी के बीच से बचते हुए बीच हाउस के बाहर आया। तभी पीछे से किसी ने मेरे सर पर किसी चीज़ से वार किया। मैं बेहोश हो गया। जब होश आया तो सुबह हो गई थी। मीरा नहीं थी। गोलीबारी भी बंद हो चुकी थी।"
तरुण ने अपना गिलास उठाकर दो एक घूंट भरे। वह कुछ सोचकर बोला,
"वह जो भी हो लेकिन उसने अंजन की हत्या करने के इरादे से ही हमला किया था। तो फिर उसे ज़िंदा क्यों छोड़ दिया ?"
"अंजन शायद अपनी किस्मत से बच गया। डॉक्टर मेहरा ने बताया था कि गोली उसके दिल के पास लगी थी। मुकेश अगर उसे अस्पताल नहीं ले गया होता तो वह बच नहीं पाता।"
"मुकेश कहाँ गायब हो गया ?"
"मैं जब होश में आया तो मैंने देखा कि अंजन की कार बीच हाउस में नहीं थी। मुझे लगा कि शायद गोलीबारी में बचकर घर चला गया होगा। मैं उसके घर गया। पता चला कि वह घर नहीं आया है। तभी डॉक्टर मेहरा ने फोन करके बताया कि मुकेश देर रात अंजन को लेकर कावेरी हॉस्पिटल आया था। अंजन की हालत गंभीर थी। उसने ऑपरेशन कर दिया है। पर कुछ कहा नहीं जा सकता है। उसके बाद मैंने मुकेश के बारे में पता किया। मेरे आदमी ने बताया कि वह सुबह जल्दी ही अपनी बीवी बच्चे को लेकर कहीं चला गया।"
"कहाँ चला गया ?"
"अभी तक इतना ही पता चला है कि उसे मुंबई सेंट्रल पर दिल्ली जाने वाली गाड़ी में बैठते हुए देखा गया है।"
बसंत एक बार फिर हाज़िर हुआ। उसके हाथ में एक प्लेट थी जिसमें पॉन कटलेट्स थे। उसने उन दोनों के लिए दूसरा पेग बनाने की पेशकश की। पंकज ने यह कहकर मना कर दिया कि वह बना लेगा। अब जब बुलाया जाए तब आए।
पंकज ने अपने और तरुण के लिए एक और पेग बनाया। उसके बाद एक कटलेट उठाकर ख
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पंकज ने उस शख्स से हाथ मिलाया। फिर बैठने का इशारा किया। उसके बाद बसंत को बुलाकर कुछ निर्देश दिया। उसके साथ जो शख्स बैठा था वह तरुण काला था। तरुण ने कहा,
"पता चला कि अंजन पर किसने हमला करवाया था ?"
पंकज ने कहा,
"अभी तक कुछ भी पता नहीं चला। उस दिन अंजन बीच हाउस जाएगा यह बात किसी को भी पता नहीं थी। फिर इस बात की सूचना उन्हें कैसे मिली समझ नहीं आ रहा है।"
बसंत ने पीने का सामान लाकर मेज़ पर रख दिया। बोतल उठाकर दो पेग बनाए। तरुण और पंकज को देकर वहाँ से चला गया। उसके जाने के बाद तरुण ने कहा,
"मीरा कहाँ है ?"
"उस दिन अंजन ने मुझे मीरा को वहाँ से ले जाने के लिए कहा था। मैं मीरा का हाथ पकड़कर उस गोलीबारी के बीच से बचते हुए बीच हाउस के बाहर आया। तभी पीछे से किसी ने मेरे सर पर किसी चीज़ से वार किया। मैं बेहोश हो गया। जब होश आया तो सुबह हो गई थी। मीरा नहीं थी। गोलीबारी भी बंद हो चुकी थी।"
तरुण ने अपना गिलास उठाकर दो एक घूंट भरे। वह कुछ सोचकर बोला,
"वह जो भी हो लेकिन उसने अंजन की हत्या करने के इरादे से ही हमला किया था। तो फिर उसे ज़िंदा क्यों छोड़ दिया ?"
"अंजन शायद अपनी किस्मत से बच गया। डॉक्टर मेहरा ने बताया था कि गोली उसके दिल के पास लगी थी। मुकेश अगर उसे अस्पताल नहीं ले गया होता तो वह बच नहीं पाता।"
"मुकेश कहाँ गायब हो गया ?"
"मैं जब होश में आया तो मैंने देखा कि अंजन की कार बीच हाउस में नहीं थी। मुझे लगा कि शायद गोलीबारी में बचकर घर चला गया होगा। मैं उसके घर गया। पता चला कि वह घर नहीं आया है। तभी डॉक्टर मेहरा ने फोन करके बताया कि मुकेश देर रात अंजन को लेकर कावेरी हॉस्पिटल आया था। अंजन की हालत गंभीर थी। उसने ऑपरेशन कर दिया है। पर कुछ कहा नहीं जा सकता है। उसके बाद मैंने मुकेश के बारे में पता किया। मेरे आदमी ने बताया कि वह सुबह जल्दी ही अपनी बीवी बच्चे को लेकर कहीं चला गया।"
"कहाँ चला गया ?"
"अभी तक इतना ही पता चला है कि उसे मुंबई सेंट्रल पर दिल्ली जाने वाली गाड़ी में बैठते हुए देखा गया है।"
बसंत एक बार फिर हाज़िर हुआ। उसके हाथ में एक प्लेट थी जिसमें पॉन कटलेट्स थे। उसने उन दोनों के लिए दूसरा पेग बनाने की पेशकश की। पंकज ने यह कहकर मना कर दिया कि वह बना लेगा। अब जब बुलाया जाए तब आए।
पंकज ने अपने और तरुण के लिए एक और पेग बनाया। उसके बाद एक कटलेट उठाकर खाने लगा। तरुण ने भी एक कटलेट उठाते हुए कहा,
"किसी ने तुम पर वार किया। तुम बेहोश हो गए और मीरा कहीं गायब हो गई। तुम्हें नहीं लगता कि यह सब मीरा के लिए किया गया।"
"क्या मतलब ?"
"मतलब हमला करवाने वाला मीरा का कोई आशिक हो सकता है। उसे मीरा का अंजन के साथ होना अच्छा नहीं लगा हो। अंजन का काम तमाम कर वह मीरा को ले गया। यह अलग बात है कि अंजन अपनी किस्मत से बच गया।"
पंकज इस बात पर विचार करने लगा। उसने अभी तक इस प्रकार नहीं सोचा था। लेकिन उसे तरुण की इस बात में दम लग रहा था। उसे सोच में पड़ा देखकर तरुण ने कहा,
"मीरा और अंजन का चक्कर कैसे शुरू हुआ था ?"
पंकज ने दूसरा कटलेट खत्म किया और अपना गिलास उठाकर उस दिन के बारे में सोचने लगा। उसने कहा,
"अंजन और मीरा लंदन के एक नाइट क्लब में मिले थे। वहीं से उन दोनों के बीच दोस्ती शुरू हो गई। जो प्यार में बदल गई।"
"कुछ और जानते हो मीरा के बारे में। उन दोनों के रिश्ते के बारे में।"
"नहीं.... अंजन ने तरक्की करनी शुरू की तो मैं उसके दोस्त से उसका बॉडीगार्ड बनकर रह गया। अंदर की बातें मुझे पता नहीं चल पाती थीं।"
तरुण हल्के से मुस्कुरा कर बोला,
"अब वही बॉडीगार्ड अंजन को अपने रास्ते से हटाने का इरादा रखता है।"तरुण की मुस्कान पंकज को अच्छी नहीं लगी।‌ इस मुस्कान ने उसके अंदर जल रही नफरत की आग को भड़का दिया। उसने तरुण को घूरकर देखा।
"हम दोनों लगभग एक ही साथ चले थे। पर उसे मानवी का साथ मिल गया। उसके सहारे मुझसे आगे निकल गया। उसके बाद मैं उसके लिए बस एक दुमछल्ला बनकर रह गया।"
पंकज ने गिलास में बची हुई शराब एक सांस में गटक ली। दोबारा गिलास भरते हुए बोला,
"ऐसा नहीं है कि अंजन को जो सफलता मिली उसमें मेरा हाथ नहीं था। मैं उसके कंधे से कंधा मिलाकर चला था। पर उसने मुझे पीछे ढकेल दिया।"
उसने एक बार फिर अपना गिलास एक सांस में खाली कर दिया। तरुण ने कहा,
"तुम उस दिन मौके का फायदा उठाकर उसे मार सकते थे। फिर अंजन की बात मानकर वहाँ से चले क्यों गए ?"
"उसी बात का पछतावा हो रहा है अब। लेकिन तब मुझे पूरी उम्मीद थी कि अंजन उस हमले में बचेगा नहीं। हमारे दो आदमी शुरू में ही मर गए थे। सिर्फ मैं और अंजन बचे थे। जब अंजन ने मीरा को निकाल कर ले जाने को कहा तो मुझे लगा अच्छा मौका है। अंजन मर जाएगा और कोई मुझ पर शक भी नहीं करेगा। लेकिन उस मुकेश ने सब गड़बड़ कर दी।"
"पता नहीं वो खुद कैसे बच गया और अंजन को कैसे निकाल कर ले गया ?"
"पता नहीं..."
"क्या अंजन को कावेरी हॉस्पिटल में निपटा देने का कोई चांस है ?"
पंकज अपनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया। अपने दोनों हाथों की उंगलियां आपस में फंसा कर हाथ ऊपर करके अंगड़ाई ली। फिर कमरे में एक दो कदम चलकर बोला,
"डॉक्टर मेहरा के रहते हुए कोई चांस नहीं है। अभी उसे मुझपर शक नहीं है। इसलिए अंजन की सारी जानकारी मुझे देता है। फिर अंजन को वहाँ कुछ हुआ तो शक मुझ पर आएगा।"
तरुण ने अपना गिलास रखा और उठकर खड़ा हो गया।
"अभी अंजन कमज़ोर है। उसे हटाना आसान होगा। अंजन अगर पूरी तरह से ठीक हो गया तो फिर पहले से भी अधिक मजबूत हो जाएगा।"
पंकज ने कहा,अगर हम यह पता कर पाएं कि हमारे अलावा उसका दुश्मन कौन है तो हम उसकी मदद ले सकते हैं।"
"अगर उसका इरादा मीरा को पाने का था तो फिर मीरा उसे मिल चुकी है। पर बात कुछ और भी हो सकती है। इसलिए तुम जो कह रहे हो वह ठीक है। तुम अपनी कोशिश करो मैं अपनी कोशिश करता हूँ।"
तरुण चला गया। पंकज ने अपने लिए एक और पेग बनाया और पीने लगा।

नफीस वीकेंड पर आने वाले अपने क्राइम शो की शूटिंग कर रहा था। उसका काम सच्ची क्राइम स्टोरी को तलाश कर उसे स्क्रीन प्ले में ढालना था। कहानी के नाट्य रूपांतरण के बीच में वह एंकर के तौर पर कहानी को आगे बढ़ाता था। इस वक्त उसी का शूट चल रहा था। आखिरी शॉट था जब उसे उस क्राइम स्टोरी के समाज पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में बोलना था। निर्देशक ने एक्शन कहा और नफीस ने एक टेक में शॉट ओके कर दिया।
नफीस आकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया। ऑफिस ब्वॉय ने उसे कॉफी लाकर दी। वह सिप करते हुए तरुण के बारे में सोच रहा था। तभी क्राइम सीरीज़ का निर्देशक जॉन पीटर्स उसके पास आकर बैठ गया।
"अगली कहानी किस क्राइम पर है ? हमने इधर मर्डर, रेप, डकैती इन पर काम किया है। इस बार कुछ नया सोचो।"मैं भी वही सोच रहा था। पर इधर कोई नई तरह की कहानी नज़र नहीं आ रही है। कोशिश करता हूँ।"
"मेरी मानो तो आर्काइव्ज़ डिपार्टमेंट की हेड शोभना गिल से मिलो। इस बार बीते दौर से कोई कहानी लाते हैं।"
नफीस को जॉन का आइडिया पसंद आया। उसे तरुण के बारे में जानने का एक रास्ता मिल गया था। उसने शोभना से बात की। आर्काइव्ज़ में पुरानी क्राइम स्टोरीज़ में तरुण काला को तलाश करने लगा।

विनोद दिल्ली में था। उसे पता चला था कि मुकेश अपने परिवार के साथ दिल्ली जाने वाली ट्रेन पर चढ़ा था। विनोद फ्लाइट पकड़ कर दिल्ली चला आया। वह बहुत वक्त दिल्ली में बिता चुका था। यहाँ उसके कई खबरी थे। उसे पूरा विश्वास था कि जल्दी ही उसे मुकेश के बारे में पता चल जाएगा।
उसने अपने सबसे अच्छे खबरी से संपर्क कर उसे मुकेश की खोज के काम में लगा दिया था।
विनोद दिल्ली में अपने एक दोस्त के घर में ठहरा था। नाश्ता करके वह निकलने की तैयारी कर रहा था। तभी उसके खबरी का फोन आया। उसने मिलने के लिए बुलाया। विनोद उसकी बताई हुई जगह पर मिलने के लिए चला गया।
उसके खबरी ने बताया कि अब तक उसने छोटे मोटे होटल, लॉज, गेस्ट हाउस सब देख लिए। कहीं भी मुकेश के ठहरने की सूचना नहीं मिली है। अब या तो मुकेश किसी जानने वाले के घर ठहरा होगा या किसी बड़े होटल में।
विनोद ने उससे कहा कि अभी वह अपनी कोशिश जारी रखे। शायद कोई सुराग मिल जाए। खबरी चला गया। उसके बाद विनोद नई दिल्ली रेलवे स्टेशन चला गया।
विनोद को पता था कि मुकेश दिल्ली के लिए जनता एक्सप्रेस ट्रेन पर चढ़ा था। वह स्टेशन पर तैनात कुलियों से इस विषय में पूँछताछ करने गया था कि किसी ने भी मुकेश का सामान स्टेशन के बाहर पहुँचाया हो। वह मुकेश की तस्वीर दिखाकर उनसे पूँछताछ कर रहा था। पर उसे कोई सफलता नहीं मिली।
स्टेशन के बाहर भी उसने ऑटो रिक्शा चालकों से पूँछताछ की। पर निराशा ही हाथ लगी।हार कर वह वापस लौट गया। वह समझ नहीं पा रहा था कि आखिर मुकेश दिल्ली में गायब कहाँ हो गया।

दूर मुंबई में कावेरी देवी मेमोरियल हॉस्पिटल में डॉक्टर मेहराअंजन को समझा रहे थे कि अभी वह पूरी तरह ठीक नहीं है। इसलिए अभी आराम करे।
अंजन डॉक्टर मेहरा से कह रहा था कि उसे इसी समय पंकज से मिलना है।
 

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