शायरी और गजल™

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शायरी और गजल™
आप सभी दोस्तों का इस थ्रीड में तहे दिल से स्वागत है। इस थ्रीड में आप सभी अपनी मन पसंद गजलें अथवा शायरी पोस्ट करके हम सभी के दिलों को मंत्र मुग्ध कर देने वाले एहसास से रूबरू कराइये।

!! धन्यवाद !!
 
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होश वालों को खबर क्या बेखुदी क्या चीज है,
इश्क कीजे फिर समझिये, जिन्दगी क्या चीज है।

उनसे नजरें क्या मिली, रोशन फिजायें हो गयी,
आज जाना प्यार की जादूगरी क्या चीज है।

खुलती जुल्फों ने सिखाई, मौसमो को शायरी,
झुकती आँखों ने बताया, मयकशी क्या चीज है।

हम लबों से कह ना पाए, उन से हाल-ए-दिल कभी,
और वो समझे नहीं, ये खामोशी क्या चीज है।
 
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देखा हुआ सा कुछ है तो सोचा हुआ सा कुछ,
हर वक़्त मेरे साथ है उलझा हुआ सा कुछ।

होता है यूँ भी रास्ता खुलता नहीं कहीं,
जंगल-सा फैल जाता है खोया हुआ सा कुछ।

साहिल की गिली रेत पर बच्चों के खेल-सा,
हर लम्हा मुझ में बनता बिखरता हुआ सा कुछ।

फ़ुर्सत ने आज घर को सजाया कुछ इस तरह,
हर शय से मुस्कुराता है रोता हुआ सा कुछ।

धुँधली सी एक याद किसी क़ब्र का दिया,
और मेरे आस-पास चमकता हुआ सा कुछ।
 
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हर बार मुकद्दर को कुसुरवार कहना अच्छी बात नही..!!

कभी कभी हम उन्हें भी मांग लेते है जो किसी और के होते है..!!
 
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अबके बरस भी वो नहीं आये बहार में,
गुज़रेगा और एक बरस इंतज़ार में!

ये आग इश्क़ की है बुझाने से क्या बुझे,
दिल तेरे बस में है ना मेरे इख़्तियार में!

है टूटे दिल में तेरी मुहब्बत, तेरा ख़याल,
कुछ रंग है बहार के उजड़ी बहार में!

आँसू नहीं हैं आँख में लेकिन तेरे बग़ैर,
तूफ़ान छुपे हुए हैं दिल-ए-बेक़रार में!
 
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कहाँ तक आँख रोएगी कहाँ तक किसका ग़म होगा,
मेरे जैसा यहाँ कोई न कोई रोज़ कम होगा।

तुझे पाने की कोशिश में कुछ इतना रो चुका हूँ मैं,
कि तू मिल भी अगर जाये तो अब मिलने का ग़म होगा।

समन्दर की ग़लतफ़हमी से कोई पूछ तो लेता,
ज़मीं का हौसला क्या ऐसे तूफ़ानों से कम होगा।

मोहब्बत नापने का कोई पैमाना नहीं होता,
कहीं तू बढ़ भी सकता है, कहीं तू मुझ से कम होगा।
 
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ख़ाली है अभी जाम मैं कुछ सोच रहा हूँ,
ऐ गर्दिश-ए-अय्याम मैं कुछ सोच रहा हूँ।

साक़ी तुझे इक थोड़ी सी तकलीफ़ तो होगी,
साग़र को ज़रा थाम मैं कुछ सोच रहा हूँ।

पहले बड़ी रग़बत थी तिरे नाम से मुझ को,
अब सुन के तिरा नाम मैं कुछ सोच रहा हूँ।

इदराक अभी पूरा तआ'वुन नहीं करता,
दय बादा-ए-गुलफ़ाम मैं कुछ सोच रहा हूँ।

हल कुछ तो निकल आएगा हालात की ज़िद का,
ऐ कसरत-ए-आलाम मैं कुछ सोच रहा हूँ।

फिर आज 'अदम' शाम से ग़मगीं है तबीअ'त,
फिर आज सर-ए-शाम मैं कुछ सोच रहा हूँ।
 

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