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अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे।।
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे।।
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे।।
वाह...कवि ने कितनी खूबसूरती से अपनी बेबसी व्यक्त की हैअपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे।।
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे।।
superb...मुझे फुर्सत कहां कि मैं मौसम सुहाना देखूँ।।
तेरी यादों से निकलूं तब तो जमाना देखूं।।
out of the world.... sundar shabd... kamaal bhaavanaen...बेशुमार जख्मों की मिसाल हूं मैं।।
फिर भी हंस लेती हूं कमाल हूं मैं।।
Deepतुम न मिले मुझे तो एहसास ये हुआ।।
हर ख्वाहिश ने जैसे खुदखुशी कर ली।।
bohat khubsoorat shabd hein December ke liye....एक मेरी ही बात नहीं थी सब का दर्द दिसम्बर था..
बर्फ के शहर में रहने वाला हर एक शख्स दिसम्बर था..
पिछले साल की आखिर में भी हैरत में हम तीनों थे..
एक मैं थी एक तन्हाई और बरबाद दिसम्बर था..
अपनी अपनी हिम्मत थी और अपनी अपनी किस्मत थी..
हाँथ किसी के नीले थे और पीला ज़र्द दिसम्बर था..
काँटों का फूलों पर पहरा खुशबू सहमी सहमी थी..
खौफ़जदा था गुलशन सारा दहशतगर्द दिसम्बर था..
Kasoor to in ankho ka hai.कैदखाने हैं बिन सलाखों के।
कुछ यूं चर्चे हैं आपकी आंखों के।।