Adultery राजमाता कौशल्यादेवी

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शक्ति सिंह पिछले दिन से महारानी की खूबसूरती को बड़ी बेशर्मी से निहार रहा था। उसके सुडौल कूल्हे, लंबे पैर , और इन सबके ऊपर थे उसके बड़े बड़े मोटे भरे हुए स्तन!!! महारानी के चूमते ही वह बावरा हो गया। उसके लंड को स्खलन का एहसास भी होने लगा। पर वह अभी इस सिलसिले को खतम करना बिल्कुल नहीं चाहता था। अभी तो शुरुआत ही हुई थी... !! महारानी के सारे अंग, उनके हावभाव, यह चिल्ला चिल्ला कर कह रहे थे की उस दौर को चलते रहने देना चाहिए। इस बात की अनदेखी वह कैसे कर सकता था!! शक्तिसिंह ने एक नजर राजमाता पर डाली जो बड़े चाव से उन दोनों के संसर्ग को देख रही थी। वापिस उसने धक्के लगाने पर ध्यान केंद्रित किया।

शक्तिसिंह ने अब थोड़ा सा पीछे की तरफ होकर अपने हाथों को बिस्तर से उठा लिया। उसका आधा लंड महारानी की चुत से बाहर निकल गया। राजमाता यह देख पा रही थी की शक्तिसिंह का स्खलन अभी भी नहीं हुआ था, फिर ये बीच में रुक क्यूँ गया? उन्होंने गुस्से भरी आँखों से उसकी और देखा... शक्तिसिंह को उनकी क्रोधित नजर से जैसे ज्यादा फरक नहीं पड़ा। आधे से ज्यादा लंड चुत से बाहर निकल चुका था और केवल सुपाड़ा ही अंदर फंसा था। अगर वह हल्का सा खींचता तो पूरा लंड महारानी की चुत से निकल जाता। महारानी इस हरकत से बेचैन हो उठी थी। उन्होंने शक्तिसिंह के हाथ को पकड़कर अपनी तरफ खींचना चाहा पर वह उनकी पहुँच से दूर था।

राजमाता के आदेश अनुसार महारानी का उपरार्ध वस्त्रों से ढंका हुआ था। उन्होंने केवल घाघरा ऊपर कर अपनी चुत को ही खोल दिया था। चोली और घाघरे के बीच में उनका पूरा पेट भी खुला था।

राजमाता की आँखों में देखते हुए शक्तिसिंह ने घाघरे के नीचे अपनी दोनों हथेलियों को घुसाकर महारानी के चूतड़ों को पकड़ लिया। उसकी मजबूत बाहों को महारानी के नाजुक बदन का वज़न उठाने में कोई दिक्कत नहीं हुई। कूल्हों से उठाकर उसने महारानी के पूरे जिस्म को इस तरह उठाया की उसका लंड वापिस पद्मिनी की चुत में समय गया।

महारानी पद्मिनी अभी भी बिस्तर पर लेटी हुई थी पर उसकी कमर अब शक्तिसिंह की जांघों पर थी।

जननांगों के अलावा यह पहला अंदरूनी शारीरिक संपर्क था उस सैनिक और महारानी के बीच। अब शक्तिसिंह का लंड इस तरह कोण बनाकर चुत में घुसा था जिससे वह चुत के ऊपरी हिस्से पर दबाव बना रहा था। महारानी के मुंह से एक गरम आँह सरक गई और चुत में ऐसी सुरसुरी होने लगी जैसे उनका मूत्र निकलने वाला हो।

इन संवेदन का कारण यह था की शक्तिसिंह का सुपाड़ा उनके जी-स्पॉट पर जा टकराया था। योनि के अंदर करीब दो इंच के बाद, ऊपर की तरफ चर्बी का गद्दीनुमा भाग बेहद संवेदनशील होता है। अगर कोई भी मर्द अपने लिंग या उंगली से उसका मर्दन करे तो वह अपनी स्त्री को निश्चित रूप से तुरंत स्खलित कर सकता है। शक्तिसिंह आगे पीछे होते हुए ऐसे झटके लगा रहा था की उसका लंड, नगाड़े को पीट रहे डंडे की तरह, महारानी के जी-स्पॉट पर फटके लगा रहा था। महारानी की उत्तेजना की कोई सीमा न रही।

"ये क्या कर रहे हो..!!!" राजमाता छीलकर खड़ी हो गई।

उनकी आवाज सुनकर शक्तिसिंह वहीं ठहर गया। उसकी नजर कभी अपने दो पैरों के बीच चुत खोलकर चुदवाती महारानी पर जाती तो कभी परदे के पीछे खड़ी क्रोधित राजमाता पर। जिस वक्त राजमाता उसपर चिल्ला रही थी उस वक्त महारानी अपनी चुत मांसपेशियों को संकुचन कर शक्तिसिंह के लंड को ऐसे दुह रही थी जैसे किसी गाय के थन को दुह रही हो।

शक्तिसिंह को अंदाजा तो लग गया था की राजमाता क्यों गुस्सा हुई थी। पर अचंभा इस बात का था की इतनी अनुभवी औरत क्या यह भी नहीं समझती की ऐसी स्थिति में कुछ हरकतों का अपने आप हो जाना स्वाभाविक था!! क्या वह अपनी बहु की तड़पती हुई दशा नहीं देख पा रही थी? क्या वह बिना किसी प्रतिक्रिया के ही धक्के लगायत जाए? हालांकि नियम तो यही थे पर क्या उसका इतनी हद तक पालन करना जरूरी था? जब उसे महारानी को गर्भवती बनाने की छूट दे दी गई है तो इस प्रक्रिया में, दोनों पक्ष थोड़ा सा आनंद ले ले तो इसमें कौनसा आसमान टूट पड़ेगा!!

राजमाता को इन दोनों के बीच तुरंत हस्तक्षेप करने की तीव्र इच्छा हुई पर वह इसलिए हिचकिचाई क्योंकी अभी मंजिल हासिल नहीं हुई थी।

महारानी अपनी चुत की सुरसुरी को अपने अंदर ही रोके रखी थी, यह सोचकर की कहीं उनका पेशाब ना निकल जाए। वह चाहती थी की शक्तिसिंह दोबारा पूर्ण जोश से धक्के लगाकर उसे चोदे। वह अपने आप को चरमसीमा के बिल्कुल करीब महसूस कर रही थी जब राजमाता ने इस लाजवाब कबाब में हड्डी डाल दी। उनका शरीर तड़प रहा था... वह बिस्तर पर नागिन की तरह लोट रही थी... स्खलन की पूर्वानुमान से उनकी चूचियाँ फूल गई थी और उनकी निप्पलों में जैसी बिजली सी कौंध रही थी। दोनों चूचियाँ रेशम के चोली में कैद ऐसे छटपटा रही थी जैसे शिकारी के जाल में फंसे कबूतर।

अब छातियों का दबाव उनसे सहा नहीं जा रहा था। बिस्तर पर कराहते वक्त, राजमाता के डर के कारण उसने यह ध्यान रखा था की वह शक्तिसिंह को उत्तेजना-वश कहीं छु न ले। पर उसकी जांघों के दाहिनी ओर, वह शक्तिसिंह की कलाइयों को बड़ी मजबूती से पकड़े हुए थी और अपने नाखून उसके हाथ में गाड़ चुकी थी। बिस्तर के दाहिनी ओर का द्रश्य राजमाता को नजर नहीं आ रहा था, यह गनीमत थी।

जब सहनशक्ति की सभी हदें पार हो गई तब महारानी ने अपने दूसरे हाथ से अपनी चूचियों को धर दबोचा। शक्तिसिंह के लंड को महारानी की मांसपेशियाँ इस कदर निचोड़ रही थी की उसे डर था किसी भी वक्त उसका वीर्य निकल जाएगा। हालांकि वह अभी स्खलन करना नहीं चाहता था। उसने अपना लंड महारानी की चुत से बाहर खींच लिया। ऐसा करते वक्त उसने संतुलन गंवा दिया और महारानी की छातियों पर जा गिरा। महारानी कराह उठी। उनकी सूजी हुई चूचियाँ अब किसी भी वक्त चोली फाड़कर बाहर निकल आने की धमकी दे रही थी। चोली के ऊपर से भी शक्तिसिंह को अपनी छाती पर उनकी कड़ी निप्पलों का एहसास हो रहा था। वह भी चाहता था की उन निप्पलों को बाहर निकालकर उन्हे मुंह में भरकर चुस ले।

शक्तिसिंह के सर पर अब शैतान सवार हो गया। उसने एक झटके में दोनों हाथों से महारानी की चोली को फाड़कर उनके मोटे मोटे बड़े स्तनों को आजाद कर दिया!! दोनों स्तन चोली से ऐसे बाहर निकले जैसे बड़ी बड़ी गोभी के फूल जमीन फाड़कर बाहर निकले हो। स्तनों की त्वचा लाल गुलाबी दिख रही थी और निप्पल तो इतनी कड़ी थी की त्वचा खरोंच दे।

महारानी ने अपने दोनों स्तनों को अपनी हथेलियों से बुरी तरह मसला। शक्तिसिंह तो बस इन शानदार उरोजों को बस देखता ही रह गया। महारानी दोनों स्तनों को मींजते हुए अपनी निप्पलों को पकड़कर मरोड़ने लगी। वह चाहती थी की शक्तिसिंह उसकी दोनों निप्पलों को बारी बारी चूसे। उसने अपनी निप्पल को इतनी जोर से खींच लाई की उनके कंठ से एक माध्यम चीख निकल गई...

"आह्ह..."

"रुक जाओ, पद्मिनी.. !!" राजमाता दहाड़ी..

राजमाता की आवाज सुनते ही महारानी ने अपनी निप्पल छोड़ दी। पर उससे रहा न गया और वह उनके आदेश को अनदेखा कर फिर अपने स्तनों को मसलने लगी। वह बार बार ऐसा कर शक्तिसिंह को उकसाना चाहती थी, जो अभी भी काफी सावधानी बरत रहा था। उसी दौरान महारानी फिर से एक बार स्खलित हो गई। उनकी दोनों जांघों के बीच फंसे लंड के इर्दगिर्द से रस की धाराएँ बहकर बिस्तर पर जमा हो गई।

अपने स्तनों को मसल मसल कर महारानी ने एक और स्खलन प्राप्त कर लिया था। एक तरह से उसने अपनी उत्तेजना को प्राथमिकता देते हुए राजमाता के अंकुश की बेड़ियों को तोड़ दिया था। अब वह शक्तिसिंह के तरफ देख रही थी, यह सोच कर की वो भी उनका अनुकरण करे। हालांकि उसे यह पता था की उनके जितनी हिम्मत वह बेचारा सैनिक कर न पाएगा।

महारानी ने शक्तिसिंह का हाथ अपनी तरफ खींच और स्तनों की तरफ ले जाना चाहा पर उसने अपने हाथ को आगे ना जाने दिया।

"क्या बात है शक्तिसिंह?" महारानी ने पूछा

स्खलित होने के पश्चात अब महारानी की निप्पल नरम हो चुकी थी। शक्तिसिंह की नजर अभी भी उन दो दिव्य स्तनों पर चिपकी हुई थी जिस पर दो अंगूर जैसी निप्पल उसे चूसने के लिए न्योता दे रही थी।

महारानी के हाथ खींचने पर शक्तिसिंह थोड़ा सा सहम गया। उसने राजमाता को बुहार लगाई

"राजमाता जी... " शक्तिसिंह ने परदे के उस तरफ राजमाता की तरफ देखा

"जब तक हम एक दूसरे के पूर्ण रूप से सुखी और संतुष्ट नहीं करते, तब तक आप मुझ में अच्छी तरह से वीर्य नहीं भर पाएंगे" शक्तिसिंह की उंगलियों से खेलते हुए, महारानी ने कहा

"यह तुम क्या कह रही हो पद्मिनी?" राजमाता ने अपना विरोध जाहीर किया

"में सही तो कह रही हूँ, राजमाता। आप मुझ पर भरोसा रखिए बस, आपको अपना पोता मिल जाएगा!!" महारानी ने उत्तर दिया। महारानी ने शक्तिसिंह की आँखों में आँखें मिलाई।

"लेकिन में... " शक्तिसिंह अब भी दुविधा में था क्योंकी राजमाता की तरफ से कोई स्पष्ट स्वीकृति या आदेश अब तक नहीं मिला था

"लेकिन वेकीन कुछ नहीं... यह हमारा हुक्म है। आप महारानी पद्मिनी देवी के आदेश को मना नहीं कर सकते। " महारानी ने थोड़े सख्त सुर में कहा

शायद शक्तिसिंह भी इसी तरह के आदेश के इंतज़ार में था। राजमाता का ना सही पर महारानी का!!

शक्तिसिंह ने अब आव देखा न ताव... दोनों हाथों से महारानी के उन बड़े बड़े स्तनों को ऐसे मसलने लगा जैसे रोटी के लिए आटा गूँदते है। स्तन मसलते हुए उसने निप्पलों को भी उंगलियों से पकड़कर मरोड़ दिया।

पद्मिनी अब पूरे जोश में आ चुकी थी "हाँ शक्तिसिंह, बिल्कुल वैसे ही प्यार करो मुझसे... जो करना है करो मेरे जिस्म के साथ... "

शक्तिसिंह फिर एक बार राजमाता की ओर उनकी प्रतिक्रिया जानने के हेतु से देखा

"उन पर ध्यान मत दो.. वह नहीं समझ पाएगी। ना मेरी हालत और ना ही आपकी" रानी ने भारी साँसे छोड़ते हुए कहा

पद्मिनी ने अपने हाथ दो जांघों के बीच डालकर शक्तिसिंह के चिपचिपे लंड को बड़े ही स्नेह से पकड़ा। उसकी चुत के काम-रस से पूरा लंड लिप्त था।

शक्तिसिंह ने अब दोबारा अपनी हथेलियों से महारानी के कूल्हों को उठाकर अपना औज़ार चुत के अंदर दे मारा। महारानी ने अपने दोनों पैरों से शक्तिसिंह की कमर को चौकड़ी मारकर जकड़ लिया।

महारानी ने अपनी गर्दन को तकिये के ऊपर इस तरह दबाया की उनकी कमर उचककर शक्तिसिंह के लंड को मूल तक निगल गई। शक्तिसिंह के हर धक्के के साथ उनकी पायलों की खनक पूरे तंबू में गूंज उठती थी।

"आह महारानी साहेबा... बहोत मज़ा आ रहा है" शक्तिसिंह अब अपने आप को रोक नहीं पा रहा था

"शक्तिसिंह, तुम जैसे चाहे मुझे रगड़ो... मेरी चुत के परखच्चे उड़ाकर अपनी वफादारी का सबूत दो मुझे!!"

दोनों अब ऐसी राह पर चल पड़े थे जहां से वापिस लौटना लगभग नामुमकिन सा था। लय और ताल के साथ लगता प्रत्येक धक्का कई अनोखी ध्वनियों को जन्म देता था। दोनों के अस्पष्ट उदगार, पायल की खनक, बिस्तर की चरमराहट और गीली चुत के अंदर घुसते लंड से उद्भवीत होती "पुचुक पुचुक" की आवाज!!

हर धक्के पर महारानी को एहसास हो रहा था की महाराज कमलसिंह का लंड तो इस मूसल के मुकाबले कुछ भी नहीं था।

अब महारानी ने अपनी कमर को धनुष्य की प्रत्यंचा की तरह ऊपर की तरफ उठा दिया। इस स्थिति में अब शक्तिसिंह का सुपाड़ा चुत की ऐसी गहराइयों को छु रहा था जो महारानी को अनूठा आनंद देता था।

"आह आह.. अब मेरा निकलने को है... महारानी जीईईई... में अभी इसे समाप्त करना नहीं चाहता.. आह" शक्तिसिंह हर एक "आह" के साथ और जोर से चुत में धक्के लगा रहा था।

महारानी ने शक्तिसिंह के एक हाथ को पकड़कर सांत्वना देते हुए कहा "कोई बात नहीं... करते जाओ"

शक्तिसिंह ने अब झुककर महारानी की निप्पल को अपने मुंह में लेकर बेतहाशा धक्के लगाने शुरू किए।

"पीछे की तरफ हो जाओ... अभी के अभी..." राजमाता ने कहा। उन्हे इस बात का भरोसा था की अब मंजिल करीब थी पर वह फिर भी अपना नियंत्रण बनाए रखना चाहती थी।

शक्तिसिंह दोनों हाथों से महारानी के स्तनों को मलते हुए उनके पेट को सहलाने लगा। फिर उनकी नाभि को कुरेदते हुए उसका हाथ नीचे गया जहां उसका लंड महारानी की चुत में नए जीव के सर्जन करने की कोशिश कर रहा था। महारानी के झांटों के बीच उसने उनके भगनासा (क्लिटोरिस) को उंगलियों से ढूंढ निकाला।

जैसे ही महारानी के भगनासा को उसने उंगलियों से छेड़ा, पद्मिनी की सांस अटक गई। शक्तिसिंह के कमर पर लपेटे पैरों से वह उसके कूल्हों को बुरी तरह पीटने लगी। उसकी आँखें ऊपर की तरफ चढ़ गई। उसका पूरा जिस्म बुरी तरह कांपने लगा।

"अब उसके अंदर स्खलित हो जाओ, जल्दी से" राजमाता ने जोर लगाया

शक्तिसिंह ने महारानी के दोनों स्तनों को कसकर दबोच लिया और धक्कों की गति और तेज कर दी।

"आह आह... लीजिए महारानी जी, मेरी प्यारी पद्मिनी... लो... मेरा रस ग्रहण करो... "

"हाँ, हाँ... भर दो मुझे, मेरी जान... " पद्मिनी की आँखों से अब आँसू बहने लगे। इस अनोखी मुलाकात से वह अब बेहद भावुक हो गई थी। बार बार स्खलित होकर वह अपनी भावनाओ पर से काबू खो बैठी थी। राजमाता के नियमों और अंकुश ने उन्हे कई तरफ से बांध कर रखा था पर फिर भी वह बेहद खुश थी की उसे अपनी मंजिल प्राप्त हो रही थी।

वीर्य की पहली धार अपनी चुत में महसूस होते ही वह चिल्लाई

"माँ, इसने मेरे अंदर वीर्य रस भर दिया है... !! ओह्ह... आह्ह!!"

हर झटके के साथ अपना गाढ़ा वीर्य छोड़ते हुए शक्तिसिंह का दिमाग सुन्न हो चला था। कुछ झटके लगाने के पश्चात वह रानी के खुले स्तनों पर लाश की तरह ढेर हो गया। यह उसकी पहली चुदाई थी... और वह भी अपनी महारानी के साथ... उसके भाग्यशाली लंड को शाही चुत में स्खलन करने का यह दिव्य मौका प्राप्त हुआ था। थकान के मारे वह अपना पूरा वज़न महारानी की छातियों पर यूं डाले सो रहा था की दोनों चूचियाँ बीच में दब चुकी थी। चुत के अंदर घुसा लंड अभी भी पिचकारियाँ मार रहा था।

महारानी अपने सैनिक की पीठ पर हाथ सहलाकर उसे शांत करने लगी। दोनों बुरी तरह हांफ रहे थे। वह अभी भी अपने भीतर मलाईदार वीर्य की गर्माहट अपनी चुत के हर हिस्से मे महसूस कर सकती थी। जो कार्य हाथ में लिया था वह तो पूरा हो चुका था पर अब बहुत बहुत कुछ और करना बाकी था।

महारानी ने शक्तिसिंह के कान पर एक हल्की सी चुम्मी दी.. और अपनी जीभ फेरकर उसे गुदगुदाया.. अपनी हथेली को शक्तिसिंह की पीठ से लेकर कूल्हों तक सहलाकर वह पश्चात-क्रीडा को अंजाम देने लगी।

दोनों की साँसे जैसे ही पूर्ववत हुई, शक्तिसिंह को पीठ को किसी ने थपथपाया.. वह राजमाता थी और संकेत दे रही थी की अब दोनों के अलग होने का समय आ गया था।

"में तुम्हारे पास दोबारा आऊँगी" अलग होने से पहले महारानी पद्मिनी शक्तिसिंह के कान में फुसफुसाई। शक्तिसिंह अपनी रानी के ऊपर से उठ खड़ा हुआ। ऊपर का वस्त्र उसने अभी भी पहने रखा था जो अथाग परिश्रम के कारण पसीने से भीग चुका था। उसके दो पैरों के बीच झूल रहे लंड अपनी सख्ती छोड़ी नहीं थी। पूरे खुमार से वह यहाँ से वहाँ हिल रहा था।

"बाप रे... " वीर्य और योनि रस से सम्पूर्ण भीगे हुए विकराल लंड को देखकर महारानी बोल पड़ी। साथ ही साथ उसे शक्तिसिंह के इस लंड पर ढेर सारा प्यार भी उमड़ पड़ा...

राजमाता ने तुरंत एक चद्दर उठाई और महारानी के खुले स्तनों को ढँक लिया... साथ ही साथ उन्होंने पैर फैलाए लेटी महारानी का घाघरा नीचे कर, उसकी चुत की दुकान बंद कर दी।

बिस्तर के बिल्कुल बाजू में पड़ी हुई धोती उठाकर शक्तिसिंह वहीं खड़े खड़े पहनने लगा। मस्ती के नशे में झूमती हुई महारानी ने लेटे लेटे ही शक्ति सिंह के लंड पर उँगलियाँ फेर दी और बोली

"जा रहे हो?"

"जी हाँ... क्यों?" शक्तिसिंह ने आश्चर्यसह पूछा

"अभी तो इसमें और जान बाकी है... इसे मेरे हवाले कर दो... फिरसे तैयार हो जाएगा" कुटिल मुस्कुराहट देते हुए महारानी बोली। जैसे राजमाता की उपस्थिति से उसे अब कोई फरक नहीं पड़ता था।

"तुम जाओ यहाँ से अब... " तीखी आवाज में राजमाता ने शक्तिसिंह को आदेश दिया। उसका बादामी रंग का चिपचिपा तगड़ा वीर्य से सना लंड देख राजमाता खुद सिहर गई। "साली ने बड़ी मस्ती से चुदवाकर मजे किए" पद्मिनी की तरफ थोड़ी सी नफरत से देखते हुए वह मन ही मन सोच रही थी।

धोती बांध रहे शक्तिसिंह के लंड पर अभी भी दोनों औरतों की नजर चिपकी हुई थी। महारानी की उँगलियाँ लंड से छूट ही नहीं रही था। राजमाता अब अपने बारे में सोच रही थी... की काश आज रात को यह हथियार का मज़ा मुझे मिल जाए!! शक्तिसिंह उलटे पैर चलते हुए सलाम करते करते तंबू से बाहर निकलने लगा। दोनों की आँखें आखिर तक उसकी धोती पर ही चिपकी रही।

अब यह राजमाता की जिम्मेदारी थी की वह राज्य के उत्तराधिकारी के वाहक की संरक्षा और देखभाल पूरी शिद्दत से करे। इस घनघोर चुदाई के बाद, महारानी के गर्भवती हो जाने की उन्हे पूरी उम्मीद थी।

राजमाता के जिस्म में अब अजीब सी हलचल होने लगी थी। एक घंटे के उस संभोग को देखकर वह असहज हो गई थी। सब योजना के मुताबिक हुआ था पर महारानी और शक्तिसिंह वासना के तारों से जुड़ गए थे, यह बात उन्हे काट कहा रही थी। हालांकि वह जानती थी की ऐसा होना स्वाभाविक था पर उनके आदेश के बावजूद हुई इस गुस्ताखी को उन्हों ने अपनी अवमानना की तरह लिया। शक्तिसिंह ने महारानी के स्तनों को दबोचा, निप्पल को मरडोकर चूस लिया, रानी ने उसकी कमर पर पैर लपेट लिया, इन सब के बावजूद वह कुछ न कर पाई।

"क्या में चाहकर भी रानी की चुत को द्रवित होते रोक पाती? क्या में शक्तिसिंह के लंड को उस क्षण पर नियंत्रित कर पाती?" राजमाता के दिमाग में प्रश्नों की झड़ी लग गई। हस्तक्षेप करने की भी अपनी सीमाए थी। फिर भी देखा जाए तो सब कुछ ठीक ही रहा था। उनके रोकने पर दोनों रुक गए थे और योजना के मुताबिक महारानी की चुत में भरपूर मात्रा में वीर्य भी बहा दिया गया था। कामावेश कम होते ही शक्तिसिंह भी आज्ञाकारी बन गया था और आदेश अनुसार उठ कर चला भी गया।

शक्तिसिंह के पसीने से तरबतर बदन और विकराल लंड का द्रश्य राजमाता की नज़रों से हट ही नहीं रहा था। महारानी ने जिस तरह शक्तिसिंह को अपने वश में कर मनमानी कर ली इससे राजमाता के मन में ईर्षा का भाव जागृत हो गया। शक्तिसिंह का तगड़ा लंड जब चुत को चीरकर अंदर घुसा होगा तब कितना आनंद आया होगा यह सोचते ही राजमाता की चुत द्रवित हो गई। बिस्तर पर लेटे लेटे कब उनका हाथ अपने घाघरे के अंदर चला गया उसका उन्हे पता भी नहीं चला। अपने दाने को घिसकर प्यास बुझाने के बाद ही उनकी आँख लगी।

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थका हुआ शक्तिसिंह अपने तंबू में आते ही ढेर हो गया। जीवन की इस प्रथम चुदाई में जितना आनंद आया था उतना ही उसका दम भी निकल गया। बिस्तर पर गिरते ही उसे गहरी नींद आ गई।

उसकी नींद में तब खलल पड़ी जब उसे अपनी धोती के अंदर कोई हलचल होती महसूस हुई। स्वभाव से चौकन्ने सैनिक ने पास पड़ी कतार उठाकर सामने धर दी। आँख खोलकर देखा तो वह महारानी पद्मिनी थी!! तुरंत ही उसने कतार को म्यान में रख दिया। उसे पता ही नहीं चला की कब रानी उसके तंबू में आकार उसके बिस्तर पर लेट गई और धोती से उसका लंड बाहर निकालकर उसे सहलाने लगी। नींद में भी वह रानी की गद्देदार चुत के सपने देख रहा था। आँख खुली तो वही सामने उसके लंड से खेलती नजर आई।
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संभोग के बाद थका हुआ शक्तिसिंह अपने तंबू में लाश की तरह सो रहा था। उसे सपने भी महारानी की गद्देदार गुलाबी चुत, गहरी नाभि और बड़े मोटे स्तन ही नजर आ रहे थे। एक बार की चुदाई से उसका मन नहीं भरा था। उल्टा उसकी भूख चौगुनी बढ़ गई थी। लंड अभी भी बैठने का नाम नहीं ले रहा था। क्या मतलब था महारानी का जब उन्होंने यह कहा था की "में दोबारा आऊँगी"??


खर्राटे मारकर सोते हुए शक्तिसिंह की नींद में तब विक्षेप पड़ा जब उसे अपनी धोती में कुछ अजीब हलचल महसूस हुई। आँखें खोलकर देखा तो महारानी पद्मिनी उसकी बगल में लेटे हुए धोती से लंड बाहर निकालकर सहला सहला कर उसे मोटा कर रही थी!! एक पल के लिए शक्तिसिंह को ऐसा प्रतीत हुआ की वह सपना ही था। कुछ पल के बाद यह स्पष्ट हुआ की वह सपना नहीं था... वाकई महारानी उसके बिस्तर पर लंड से खेल रही थी!!

महारानी अपना चेहरा, अचंभित शक्तिसिंह के कान के पास ले गई और बोली

"यदि हमे यह खेल को आगे बढ़ाना हो तो यहाँ नहीं, मेरे तंबू में जाना पड़ेगा" सुपाड़े को अपनी मुठ्ठी में दबाकर वह मुसकुराते हुए बोली "में नहीं चाहती की राजमाता या किसी पहरेदार सैनकी को मेरी गैरमौजूदगी के बारे में पता चले!!"

विरोध करने में असमर्थ और अनिच्छुक शक्तिसिंह ने महारानी के हाथ को अपने लंड से हटाना चाहा ताकि वह उठकर खड़ा हो सके। पर महारानी उसके ऊपर से नहीं हटी। उन्होंने अपने हाथ में खेल रहे लंड को अपने मुंह में ले लिया।

"महारानी जी.." शक्तिसिंह महारानी की इस हरकत से चोंक उठा "आप यह क्या कर रही है?"

"पद्मिनी... " लंड को पल भर के लिए मुंह से बाहर निकालकर महारानी ने कहा "मुझे पद्मिनी कहकर पुकारो... जिस तरह की हरकतें हम साथ साथ करने वाले है, वह पद्मिनी ही कर सकती है... महारानी नहीं!!"

इतना कहकर उन्होंने वापिस शक्तिसिंह के मूसल को अपने मुंह में भर लिया। अपनी लार से गीला करते हुए, होंठों के बीच गोलाकार रचकर वह लंड को मुख-मैथुन का अनोखा सुख देने लगी। उनके लंबे घने बालों की ज़ुल्फ़ें लहराकर शक्तिसिंह के लंड के इर्दगिर्द फैलकर बड़ी मदहोश प्रतीत हो रही थी। उन झुलफ़ों से शक्तिसिंह को यह शिकायत थी की उन्हे पीछे महारानी के सुंदर गाल नजर नहीं आ रहे थे।

कुछ देर रसभरी चुसाई करने के बाद जब पद्मिनी ने लंड एक मस्त चटकारा लेकर मुक्त किया तब उनके होंठों के किनारों से वीर्य की धार बह रही थी जिसे अपनी उंगली के ऊपर लेकर, एक कुटिल मुस्कान देकर, वह चाट गई। शक्तिसिंह यह देख हक्का-बक्का रह गया।

पद्मिनी अब उठ खड़ी हुई और तंबू के दरवाजे तक पहुंचकर पलटी। मुड़कर उसने शक्तिसिंह की ओर देखा और मुसकुराते हुए उंगलियों से इशारा कर अपने पीछे आने का निर्देश दिया। ऐसे लटके-झटके किसी गणिका की तरह प्रतीत हो रहे थे।

जब वह दोनों उनके तंबू में पहुंचे तब पर्दा डालकर पद्मिनी ने शक्तिसिंह को बाहों में भरकर चूमते हुए उसका हाथ अपनी चोली के अंदर डाल दिया। पद्मिनी के कोमल लाल अधरों का रसपान करते हुए उसने चोली में से उसके स्तनों को दबाया और फिर हाथ नीचे ले जाकर उसके घाघरे का नाड़ा खोल दिया। घाघरा ऐसे नीचे गिर जैसे युद्ध की घोषणा होने पर बाजार गिर जाता है। घाघरे को लात मारकर खुद से दूर धकेलते वक्त पद्मिनी ने शक्तिसिंह की धोती खोल दी।

अपनी जीभ को पद्मिनी के मुख के कोने कोने मे फेरते हुए शक्तिसिंह ने रानी की चोली की गांठ खोल दी... दोनों चूचियाँ मुक्त हो गई। शक्तिसिंह ने कोमलता से दोनों हथेलियों में भरकर उन्हे सहलाया। अब उसने अपने हाथ ऊपर कर लिए और रानी के मदद से अपना कुर्ता उतार दिया। अब दोनों एक दूसरे के सामने सम्पूर्ण नग्नावस्था में खड़े थे।

पद्मिनी की दोनों जांघों से उठाकर शक्तिसिंह ने उठाया। इशारा समझते ही रानी ने अपनी टाँगे फैलाई और शक्तिसिंह की कमर पर पैरों को लपेट लिया। थोड़ी सी कमर उठाई और शक्तिसिंह के कड़े लंड को अपनी चुत के होंठों को फैलाकर उसके ऊपर अपने जिस्म का वज़न डाल दिया।

"जानवर जैसा तगड़ा लंड है तुम्हारा... " हँसते हुए पद्मिनी ने कहा

महारानी पद्मिनी के अंदर की हवसखोर औरत अब पूर्णतः जाग चुकी थी। जैसे ही उनकी चुत में पर्याप्त मात्र में रस का रिसाव हो गया, उसने लंड पर ऊपर-नीचे उछलना शुरू कर दिया।

शक्तिसिंह के अंदर का योद्धा, महारानी को ऐसे ही नियंत्रण देना नहीं चाहता था। पर फिलहाल रानी के सर पर ऐसा भूत सवार था की उनको वश में करना कठिन था। फिर भी उसने रानी की जांघों को इस कदर मजबूती से पकड़ लिया की वह अब लंड पर ऊपर नीचे कर नहीं पा रही थी।

"छोड़ो भी... क्या कर रहे हो?" महारानी गुर्राई

"अब आप कुछ नहीं करेगी... अब जो भी करना है मुझे ही करना है, महारानी जी" शक्तिसिंह ने अधिकारपूर्वक कहा

शक्तिसिंह ने महारानी को थोड़ा सा ऊपर उठाया और अपने लंड पर पटक दिया।

"आईईईईईईई..... " महारानी की धीमी सी चीख निकल गई।

महारानी के उस संकेत से प्रोत्साहित होकर, उसने संयुक्ता के स्तनों के साथ छेड़छाड़ शुरू की और उसे ऊपर नीचे करता रहा। कुछ मिनटों तक, वह उसके लंड को अपनी चुत में भरकर चोदती रही।

"हाँ.. हां.. बिल्कुल ऐसे ही... करते रहो.. मज़ा आ रहा है.. चोदते रहो " वह मस्ती में बड़बड़ाई

महारानी की नुकीली निप्पल शक्तिसिंह की छाती पर घिसती जा रही थी। चर्बीयुक्त मांसल चूचियाँ दोनों के शरीरों के बीच दब चुकी थी। शक्तिसिंह खुद को इन मदमस्त स्तनों को चूसने से रोक नहीं पाया। उसने अपनी गर्दन झुकाई और एक स्तन को पकड़कर थोड़ा सा ऊपर किया ताकि उसकी निप्पल मुंह तक पहुंचे। रसभरी लंबी निप्पल को उसने एक क्षण के लिए मन भरकर निहारा और फिर एक ही झटके में उसे मुंह में ले कर चटकारे लेटे हुए चूसने लगा।

पद्मिनी ने पास के खंभे पर अपने एक हाथ को रखकर सहारा लिया और दूसरा हाथ शक्तिसिंह के कंधे पर रखकर हुमच हुमचकर लंड पर कूदती रही। अब संतुलन ठीक से स्थापित हो जाने पर अब वह चुदाई के झटकों का संचालन करने की बेहतर मुद्रा में आ गई। उसने उछलने की गति को और तीव्र कर दिया।
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मध्यरात्री के समय अचानक राजमाता की आँख खुल गई। उन्होंने आँखें खोलकर देखा तो उनका घाघरा ऊपर उठा हुआ था और उनकी एक उंगली चुत की अंदर धँसी हुई थी। अपनी चिपचिपी उंगली को बाहर निकालकर उन्होंने घाघरा ठीक किया और बिस्तर से उठ गई। किसी अनजान सी घबराहट के चलते वह बेचैन हो गई थी।
उन्होंने अपने तंबू के बिल्कुल बगल में बने महारानी के विशाल तंबू में प्रवेश किया। महारानी का बिस्तर खाली पड़ा था। वह वापिस लौटने ही वाली थी की तब किसी की खिलखिलाकर हंसने के आवाज ने उनके पैरों को रोक दिया। उस बड़े से तंबू में दो हिस्से बने हुए थे। बीच में अपारदर्शी पर्दा था जिसके पीछे महारानी तैयार होती थी। राजमाता को पक्का यकीन था की आवाज उस परदे के पीछे से ही आई थी। वह दबे पाँव चुपके से परदे के कोने तक गई और हल्का सा खिसकाकर अंदर देखने लगी। उनकी आँखें अंधेरे से आदि होते ही उन्हे दीपक की रोशनी में दो परछाई नजर आई। ध्यान से देखने पर उन्हे वही दिखा जिसका की उन्हे डर था।

शक्तिसिंह ने महारानी पद्मिनी को चूतड़ों से उठाया हुआ था। रानी के दोनों पैर शक्तिसिंह की कमर पर लपेटे हुए थे। वह रानी को उछाल उछालकर चोद रहा था और रानी खिलखिलाते हुए हंस रही थी। पद्मिनी ने अपनी दोनों बाहें शक्तिसिंह के गले में अजगर की तरह डाल रखी थी। और दोनों प्रगाढ़ चुंबन करते हुए चुदाई कर रहे थे। कई मिनटों तक ऐसे ही झटके लगाने के बाद शक्तिसिंह ने महारानी को संभालकर नीचे उतार और उनको पलटा दिया। महारानी को झुकाकर उसने दो चूतड़ों के बीच उनकी गीली चुत के सुराख में लंड दे मारा। महारानी ने अपने दोनों हाथ घुटनों पर टेककर अपने शरीर का संतुलन बनाए रखा था। बड़े ही मजे से वह शक्तिसिंह के धक्कों को अपनी चुत में समेटकर मजे बटोर रही थी। चोदते हुए शक्तिसिंह अपने दोनों हाथों को आगे की ओर लेकर गया और उनकी चूचियों को रंगेहाथ पकड़ लिया। उन्हे दबोच दबोचकर ऐसा मसला की महारानी की मुंह से आह-ऊँह के उदगार निकल गए। एक दूसरे के नंगे जिस्म को अब वह बिना किसी रुकावट के पूरा महसूस कर पा रहे थे।

राजमाता आश्चर्यसह उन दोनों के इस चुदाई खेल को चुपके से देख रही थी।

शक्तिसिंह किसी घोड़े की तरह महारानी के चूतड़ फैलाकर धमाधम धक्के लगा रहा था। उसके हर धक्के पर महारानी थोड़ी सी आगे चली जाती थी। अपने घुटनों पर हाथ टेके हुए महारानी बदहवासी से चुदवा रही थी।

"चोदो मुझे.. और दम लगाकर चोदो..." महारानी चिल्लाई, यह सूचित करने के लिए की झटके थोड़े धीमे पड़ गए थे। रानी के मुख से ऐसे शब्दों का प्रयोग सुनकर शक्तिसिंह और राजमाता दोनों चोंक गए।

इन दोनों की चुदाई देख बेहद उत्तेजित राजमाता घाघरे के भीतर उंगली डाले ईर्षा से जल रही थी। उनकी खुद की चूचियाँ गरम और सख्त हो चली थी। अपनी पुत्रवधू को बेशर्म की तरह किसी सैनिक से चुदता देख वह अपने आप पर काबू नहीं रख पा रही थी। रानी के बड़े बड़े खरबूजे, शक्तिसिंह के हर धक्के पर, आगे पीछे झूल रहे थे।

और अब जब उसने रानी को खुले शब्दों में चोदने की भीख मांगते हुए सुना तो उसे बहुत जलन महसूस हुई। उसकी चूत, जो अपने पति के निधन के बाद, वर्षों से निष्क्रिय पड़ी थी, अब बेहद गीली और चिपचिपी बन गई थी।

शक्तिसिंह रानी के दोनों स्तनों को आगे से पकड़कर, पीछे धक्के लगाए जा रहा था। हालांकि उसके धक्कों में अब थोड़ी सी थकावट महसूस हो रही थी। रानी ने तुरंत ही पास पड़े एक पत्थर पर अपनी एक टांग जमाई और आसान में तबदीली की। अब शक्तिसिंह आसानी से चुत की गहराइयों तक लंड घुसेड़ सकता था। झटकों की गति और जोर पूर्ववत हो गए।

"लगा दम... जोर से चोद... और जोर से... " रानी सातवे आसमान पर पहुँच गई थी। हर झटके के साथ उसकी भूख बढ़ती जा रही थी।

रानी की उत्तेजना को पहचान कर शक्तिसिंह ने अपने एक हाथ को उसकी दोनों जांघों के बीच से ले जाकर उसके भगनासा (क्लिटोरिस) के दाने को ढूंढ निकाला। अब चुदाई के साथ वह उस दाने को भी रगड़कर महारानी के आनंद में अभिवृद्धि कर रहा था। तभी शक्तिसिंह की आँखें परदे के पीछे खड़ी राजमाता से टकराई। एक पल के लीये वह धक्के लगाते रुक गया पर फिर कुछ सोचकर उसने धक्के लगाना शुरू कर दिया। उसने एक पल के लिए भी अपनी नजर राजमाता से नहीं हटाई। झुकी हुई होने के कारण महारानी को इन सब बातों का जरा सा भी अंदाज ना लग पाया।

राजमाता स्तब्ध होकर यह सब देख रही थी। उनकी योजना पर पानी फेर दिया था इन दोनों ने!! क्रोधित होने के बावजूद इस स्थिति में उसे वह व्यक्त नहीं कर पा रही थी। वह चाहती तो अभी हस्तक्षेप कर उन दोनों को रंगे हाथ पकड़कर रोक सकती थी, पर फिलहाल उनके क्रोध के ऊपर उनकी वासना हावी हो चली थी। गीली चुत ने उनकी टांगों को कमजोर कर दिया। उन्हे यह डर था की इस अवस्था में शक्तिसिंह के करीब जाने के बाद वह अपने आप को उससे लिपटने से कैसे रोक पाएगी!!

राजमाता की तरफ देखते हुए वह महारानी के गोरे गुंबज जैसे चूतड़ों पर हाथ फेरने लगा। महारानी सिसकियाँ भरते हुए और कराहते हुए दोनों टांगों को चौड़ा कर मस्ती से चुदवा रही थी। शक्तिसिंह ने उनके चूतड़ों को अपने हाथों से और फैलाया ताकि लंड और गहराई से अंदर घुस सके। साथ ही साथ उसने एक बार और महारानी के दाने को पकड़कर मसल दिया।

"ऊई माँ... आहहहहहह....!!! इस दोहरे हमले से महारानी उत्तेजना से कांप उठी

अपनी पुत्रवधू की आवाज ने राजमाता को झकझोर दिया... अनायास ही उनके मुख से निकल गया

"बेटा, जरा ध्यान से..!!" आवाज निकल जाने के बाद राजमाता खुद को कोसने लगी।

पद्मिनी अचानक रुक गई। झुकी हुई मुद्रा से वह तुरंत ऊपर उठ गई। शक्तिसिंह का लंड एक झटके में बाहर निकल गया... महारानी की चुत के रस की कुछ बूंदें नीचे टपक गई। महारानी ने डरते हुए सामने देखा और राजमाता को वहाँ खड़ा देखकर वह स्तब्ध बन गई।

इन सारी बातों से अनजान महारानी की चुत, इस रुकावट से परेशान हो गई। इतने मस्त मोटे लंड से चल रही दमदार चुदाई अचानक रुक जाना उसे राज न आया।

महारानी की दुविधा यह थी की इस परिस्थिति में वह कीसे महत्व दे!! अपनी चुत की अभिलाषा को या अपनी सास को??

महारानी के तंबू के भीतर अजीब सा सन्नाटा छा गया था।

पूरे तंबू में केवल एक ही दिया जगमगा रहा था। परदे के उस तरफ खड़ी राजमाता का चेहरा उसमें साफ दिखाई दे रहा था। गनीमत थी की अंधेरे के कारण उन्हे चेहरे के अलावा और कुछ नहीं दिख रहा था वरना... जांघों तक घाघरा उठाकर अपने दाने को रगड़ती हुई राजमाता नजर आती!!

तीनों एक दूसरे के सामने देख रहे थे। पर शक्तिसिंह और पद्मिनी यह नहीं समझ पाए की राजमाता का गुस्सा अभी तक फटा क्यों नहीं!! अब तक तो वह उनपर बरस चुकी होती... पता नहीं क्यों फिलहाल वह गरीब सा चेहरा बनाकर आँखें मुँदती उनके सामने मूर्ति की तरह खड़ी थी... दोनों बड़े ही आश्चर्य से राजमाता को देखते रहे। कुछ क्षणों तक जब उनके तरफ से कोई प्रतिक्रिया ना मिली तब उसे मुक सहमति समझकर शक्तिसिंह ने फिर से महारानी को झुकाकर घोड़ी बना दिया।

हवस का असर इस कदर सर पर सवार था की महारानी ने भी ज्यादा कुछ ना सोचते हुए जांघें चौड़ी कर दी, झुक गई और अपनी वासना को अधिक महत्व देने का फैसला कर चुदवाने में व्यस्त हो गई। शक्तिसिंह ने अपनी सारी ऊर्जा इस संभोग में झोंक दी थी। अब उसे किसी बात का कोई डर न था। वह भी अब महारानी की पीठ के ऊपर झुककर उनके दोनों स्तनों को हाथ में पकड़कर मसलने लगा।

एक बार फिर शक्तिसिंह ने राजमाता की तरफ नजर की। उनकी आँखों में गुस्से के बजाए महारानी के प्रति जलन स्पष्ट दिख रही थी।

महारानी भी अब ताव में आ गई थी। शक्तिसिंह ने दोनों चूचियाँ पकड़ रखी थी तो उन्होंने खुद ही अपनी क्लिटोरिस को मलना शुरू कर दिया। फैली हुई चुत में मूसल सा लँड किसी यंत्र की तरह अंदर बाहर हो रहा था। चुत से काम-रस की नदी सी बह रही थी। चूचियों को मसल मसलकर शक्तिसिंह ने उसे लाल कर दिया था।

महारानी को इतनी मस्ती से चुदते देख राजमाता को अपराध भावना परेशान करने लगी, यह सोचकर की उसका पुत्र, राजा कमलसिंह, अपनी पत्नी को ऐसा सुख प्रदान करने में विफल रहा। पराकाष्ठा और चरमसुख देने वाली दमदार चुदाई, हर स्त्री का हक है और उसे मिलनी ही चाहिए, ऐसा उनका मानना था। शक्तिसिंह का मूसल चुत के अंदर कितना आनंद दे रहा होगा उसकी कल्पना करते ही राजमाता की चुत ने गुनगुना पानी छोड़ दिया। उन्हे लग रहा था की जो कुछ भी महारानी कर रही थी उसमे उसकी कोई गलती नहीं था। सालों से जो स्त्री ठीक से चुदी ना हो वह ऐसा लंड देखकर खुद को कैसे रोके!! और शुरुआत तो राजमाता ने ही करवाई थी... अब उस चुदाई के बाद अगर महारानी शक्तिसिंह के लंड की ग़ुलाम बन गई तो भला उसमे उस बेचारी का क्या दोष!!

राजमाता ने उस संभोग-रत जोड़े के करीब जाने का फैसला किया। उसने सोचा की जिस तरह से उन्होंने दोनों को अंकुश में रखने का प्रयत्न किया था उसी कारण इन दोनों की कामवासना और भड़क उठी। उन्हे लगा की इन दोनों के करीब जाकर उन्हे मौन स्वीकृति देनी चाहिए।

राजमाता उन दोनों के करीब जाकर खड़ी हो गई। महारानी ने उनको देखते हुए अनदेखा कर दिया और अपनी आनंद यात्रा में लगी रही। वह अभी भी पागलों की तरह अपनी चुत को रगड़ रही थी। शक्तिसिंह ने राजमाता की तरफ एक नजर डाली और फिर महारानी के कूल्हों को पकड़कर वही रफ्तार से चुदाई करने में व्यस्त हो गया।

राजमाता ने पहले शक्तिसिंह की पीठ को सहलाया। उसकी पीठ की मांसपेशियाँ इस परिश्रम से बेहद सख्त और पसीने से लथबथ हो गई थी।

"करो... करते रहो... और खतम करो इसे.. " उन्होंने बड़ी ही धीमी आवाज में कहा और फिर पद्मिनी के सर पर हाथ पसारने लगी।

पद्मिनी ने इशारे से शक्तिसिंह को चुदाई रोकने के लिए कहा। काफी देर से झुककर चुदवाते हुए वह थक गई थी। शक्तिसिंह ने संभालकर अपना लंड उसकी चुत से निकाला.. काले, चिपचिपे लंड जैसे ही बाहर निकला, राजमाता की नजर चुंबक की तरफ उस पर चिपक गई। महारानी अब खड़ी होकर शक्तिसिंह की तरफ मुड़ी। उनका इशारा मिलते ही शक्तिसिंह ने वापिस उन्हे उठाया लिया, रानी ने कमर पर पैर लपेटे और शक्तिसिंह के लंड पर बैठ गई। इस आसान में महारानी को थकान भी नहीं हो रही थी और लंड भी काफी गहराई तक अंदर जाता था।

शक्तिसिंह ने महारानी के होंठों को चूम लिया। महारानी ने भी सामने एक और दीर्घ चुंबन कर उसे प्रतिसाद दिया। नागिन की जीभ की तरह वह शक्तिसिंह के मुंह के हर कोने को नापने लगी। ऐसा प्रतीत हो रहा था की जिस तरह शक्तिसिंह का लंड उनकी चुत को चोद रहा था बिल्कुल वैसे ही वह अपनी जीभ से उसके मुँह को चोदना चाहती थी।

राजमाता भी अब अस्वस्थ सी होने लगी। परदे के पीछे तो वह अपनी उंगली से चुत कुरेदकर अपने आप को संभाल रही थी... पर अब उन दोनों को सामने ऐसा करना संभव नहीं था। वह सोच रही थी की वापिस अपने तंबू में जाकर लकड़ी का डंडा अंदर घुसेड़कर प्यास बुझानी पड़ेगी। पद्मिनी के मस्त मोटे गरम उरोजों को शक्तिसिंह द्वारा मसलवाते देख राजमाता बेहद गरम हो गई। हालांकि अब उनकी चूचियों में अब पद्मिनी जैसा कसाव तो नहीं था पर फिर भी उतनी कटिली तो जरूर थी की किसी मर्द की नजरे चिपक जाए।

और बर्दाश्त ना होने पर वह मुड़कर वापिस अपने तंबू के तरफ जाने लगी तभी, शक्तिसिंह ने उनकी कलाई पकड़कर रोक दिया। राजमाता चकित रह गई। उसने पलटकर देखा तो शक्तिसिंह एक हाथ से महारानी को चूतड़ से पकड़े हुए था और दूसरे हाथ में उनकी कलाई थी। आँख बंद कर लंड पर उछल रही पद्मिनी को जब अपने चूतड़ों के नीचे एक ही हाथ का अनुभव हुआ तब दूसरे हाथ की तलाश में उन्होंने आँखें खोली।

शक्तिसिंह को राजमाता का हाथ पकड़े देख वह क्रोधित हो उठी

"शक्तिसिंह.... " कहते हुए उसने शक्तिसिंह का हाथ झटक कर अपने तरफ कर लिया...

ऐसा करने पर शक्तिसिंह का संतुलन थोड़ा सा बिगड़ गया। अपने आपको गिरने से बचाने के लिए उसने अपनी टाँगे फैलाई। ऐसा करने से उसका लंड महारानी की बच्चेदानी को जा टकराया और उनकी आह निकल गई।

"मुझे चोदते रहो शक्तिसिंह... में अब अपनी मंजिल पर पहुचने वाली हूँ... अपना ध्यान भटकने मत दो.. आह आह.. भर दो मुझे... चोदो मुझे... " पागलों की तरह महारानी बड़बड़ाने लगी।

दोनों ने एक दूसरे को सख्त आगोश में जकड़ रखा था। झांट से झांट उलझ गए थे... लंड और चुत एक दूसरे के रस का आदान-प्रदान कर रहे थे, महारानी की निप्पल शक्तिसिंह की छाती से रगड़ खा रही थी और साथ ही दोनों एक दूसरे के होंठों को चूसते जा रहे थे। शक्तिसिंह के हर धक्के के साथ महारानी का गांड का छिद्र सिकुड़ जाता।

अब महारानी ने अपनी टांगों से शक्तिसिंह को इतनी सख्ती से जकड़ा की उसे लगा जैसे उसकी हड्डियाँ तोड़ देगी। शक्तिसिंह से ओर बर्दाश्त ना हुआ... उसके सुपाड़े ने गरम गरम वीर्य की ८ - १० लंबी पिचकारियाँ महारानी की चुत में छोड़ दिए। महारानी के गर्भाशय ने उस मजेदार वीर्य का खुले दिल से स्वागत किया।

दोनों एक दूसरे के सामने देख मुस्कुराये। नीचे लंड और चुत भिन्न रसों से द्रवित हो चुके थे। दोनों के जिस्म पसीने से तरबतर हो गए थे। आँखों में संतुष्टि की अनोखी चमक भी थी।

स्खलन के बाद भी शक्तिसिंह का लंड नरम नहीं पड़ा। शक्तिसिंह ने अब धीरे से अपने घुटने मोड और संभालकर महारानी को जमीन पर लिटा दिया। उस दौरान उसने यह ध्यान रखा की एक पल के लिए भी उसका लंड महारानी की चुत से बाहर ना निकले।

इसने नए आसन में लंड और चुत को अनोखा मज़ा आने लगा। शक्तिसिंह ने महारानी की दोनों टांगों को अपने कंधे पर ले लिया और उनके शरीर के ऊपर आते हुए जोरदार धक्के लगाने लगा।

ऐसा प्रतीत हो रहा था की आज रात शक्तिसिंह का लंड नरम होगा ही नहीं। अमूमन महारानी भी यही चाहती थी की यह दमदार चुदाई का दौर चलता ही रहे। सैनिक और महारानी दोनों अब काफी थक भी चुके थे। चुदते हुए महारानी ने अपने हाथों से शक्तिसिंह के टट्टों को पकड़कर सहलाना शुरू किया। शक्तिसिंह अब फिरसे चिल्लाते हुए वीर्यस्खलित करने लगा और साथ ही साथ महारानी का भी पानी निकल गया।

वह थका हुआ सैनिक, महारानी के स्तनों पर ही ढेर हो गया और उसी अवस्था में दोनों की आँख लग गई।

राजमाता दबे पाँव अपने तंबू की तरफ निकल ली। इन दोनों ने तो अपनी आग बुझा ली थी पर उनकी चुत में घमासान मचा हुआ था।

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आश्रम के एक कक्ष में, महारानी पद्मिनी एक बड़े से पत्थर पर लेटी हुई थी। ऊपर लटके हुए कलश के छेद से तेल की धारा रानी के सर पर ऊपर गिरकर उन्हे एक अनोखी शांति अर्पित कर रही थी। महारानी को गजब का स्वर्गीय सुख मिल रहा था। योगी के आश्रम में इन जड़ीबूटी युक्त तेल से चल रहा उपचार महारानी के रोमरोम को जागृत कर रहा था।

ऐसी सुविधाएं तो उनके महल में भी मौजूद थी। पर यहाँ के शुद्ध वातावरण और परिवेश में बदलाव ने उन्हे अनोखी ऊर्जा प्रदान की थी।

पिछले कुछ दिनों से शक्तिसिंह द्वारा मिल रही सेवा ने उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बड़ा ही सकारात्मक बदलाव किया था। दोनों के बीच रोज बड़ी ही दमदार चुदाई होती थी और महारानी को बड़े ऊर्जावान अंदाज में चोदा गया था। लगातार चुदाई के कारण उनकी जांघों का अंदरूनी हिस्सा छील गया था और उनकी चुत भी काफी फैल गई थी। अंग अंग दर्द कर रहा था पर उस दर्द में ऐसी मिठास थी की दिल चाहता था की उसमे ओर इजाफा हो।

आश्रम मे मालिश करने वाली स्त्री बड़ी ही काबिल थी। उसने महारानी के जिस्म के कोने कोने पर जड़ीबूटी वाला तेल रगड़ कर पूरे जिस्म को शिथिल कर दिया था। शरीर में नवचेतन का प्रसार होते ही महारानी पद्मिनी की चुत फिर से अपने जीवन में आए नए मर्द के लंड को तरसने लगी थी। हवस ऐसे सर पर सवार हो रही थी की वह चाहती थी की अभी वह मालिश वाली औरत को ही दबोच ले। पर अब शक्तिसिंह के वापिस लौटने का समय या चुका था और वह उसके संग एक आखिरी रात बिताना चाहती थी।

पिछले कुछ दिनों में राजमाता ने महारानी और शक्तिसिंह जिस कदर चुदाई करते देखा था उसके बाद उन्हे महारानी के गर्भवती हो जाने पर जरा सा भी संशय नहीं बचा था। उस तगड़े सैनिक ने कई बार महारणी की चुत में वीर्य की धार की थी। यहाँ तक की उन दोनों की चुदाई देख देख कर राजमाता की भूख भड़क चुकी थी।

लेकिन अपनी जिम्मेदारियों को संभालते हुए, योजना के तहत उन्होंने शक्तिसिंह को अपने दल के साथ सूरजगढ़ वापिस लौट जाने का हुकूम दे दिया था। अब कुछ गिने चुने सैनिक और दासियाँ आश्रम में महारानी के साथ तब तक रहेंगे जब तक गर्भाधान की पुष्टि ना हो जाए। जब वापिस जाने का समय आएगा तब उन्हे संदेश देकर बुलाया जाएगा पर अभी के लिए उनकी कोई आवश्यकता नहीं थी।

उस रात, शक्तिसिंह और महारानी ने फर्श पर सोते हुए घंटों चुदाई की। एक बार स्खलित हो जाने के बाद महारानी तुरंत उसका लंड मुंह में लेकर चूसने लगती और फिर से चुदने के लिए तैयार हो जाती। कामशास्त्र के हर आसन में वह दोनों चोद चुके थे। महरानी ने सिसकते कराहते हुए तब तक चुदवाया जब तक उनकी चुत छील ना गई। पूरी रात इन दोनों की आवाज के कारण राजमाता भी ठीक से सो नहीं पाई।

दूसरी सुबह, शक्तिसिंह अपना सामान बांध रहा था जब महारानी की सबसे विश्वसनीय दासी ने आकार उसे यह संदेश दिया

"तुम जाओ उससे पहले महारानी साहेब तुम से मिलना चाहती है"

"वो कहाँ है अभी?" शक्तिसिंह को सुबह से महारानी कहीं दिख नहीं रही थी और राजमाता से पूछने पर उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया था

"वहाँ आश्रम के कोने में बनी घास की कुटिया में वह मालिश करवा रही है" दासी ने शरमाते हुए कहा। उसे महारानी और शक्तिसिंह के रात्री-खेल के बारे में पता लग चुका था "शक्तिसिंह सही में गजब की ठुकाई करता होगा तभी तो महारानी ने उसके लिए अपना घाघरा उठाया होगा" वह सोच रही थी

पद्मिनी वहाँ कुटिया में नंगी होकर लैटी हुई थी। मालिश करने वाली ने उसके अंग अंग को मलकर इतना हल्का कर दिया था की उनका पूरा शरीर नवपल्लवित हो गया था। हालांकि शरीर का एक हिस्सा ऐसा था जिसे मालिश के बाद भी चैन नहीं थी। महारानी की जांघों के बीच बसी चुत अब भी फड़फड़ा रही थी। शक्तिसिंह ने महारानी की संभोग तृष्णा इस कदर बढ़ा दी थी की महारानी तय नहीं कर पा रही थी की उसका क्या किया जाए!! वह बेहद व्यथित थी की शक्तिसिंह वापिस सूरजगढ़ लौट रहा था।

शायद उन्हे ज्यादा सावधानी बरत कर राजमाता से छुपकर इस काम को अंजाम देना चाहिए था। अब जब राजमाता को इस बारे में पता चल गया था तो वह अपने नियम और अंकुश लादकर उन्हे एक दूसरे से दूर कर रही थी।

महारानी पद्मिनी का शरीर, शक्तिसिंह के खुरदरे हाथों से ठीक उन्हीं स्थानों पर मालिश करवाने के लिए धड़क रहा था, जहां मालिश करने वाली सेविका के नरम लेकिन दृढ़ हाथ घूम रहे थे।शक्तिसिंह ने उस कुटिया में प्रवेश किया। महारानी को वहाँ नंगा लैटे हुए देख वह एक पल के लिए चोंक गया। मालिश से तर होकर उनकी दोनों गोरी चूचियाँ चमक रही थी। शारीरिक घर्षण के कारण उनकी निप्पल सख्त हो गई थी। वह सेविका अब महारानी की जांघे चौड़ी कर अंदरूनी हिस्सों में तेल मले जा रही थी। शक्तिसिंह के लंड ने महारानी के नंगे जिस्म को धोती के अंदर से ही सलामी ठोक दी।

पिछले कुछ दिनों से शक्तिसिंह का लंड ज्यादातर खड़ा ही रहता था। उसे राहत तब मिलती थी जब उसे महारानी की चुत के गरम होंठों के बीच घुसने का मौका मिले। शक्तिसिंह के आने का ज्ञान होते ही महारानी ने अपनी खुली जांघों के बीच के चुत को उभार कर ऊपर कर लिया, जैसे वह शक्तिसिंह के सामने उसे पेश कर रही हो। चुत के बाल तेल से लिप्त थे और चुत के होंठों पर तेल लगा हुआ था। गरम तो वह पहले से ही थी। छोटी सी कुटिया में उनकी गरम चुत की भांप ने एक अलग तरह की गंध छोड़ रखी थी।

शक्तिसिंह को अपने करीब बुलाते हुए महारानी ने कहा

"शक्तिसिंह, यह मालिश वाली अपना काम ठीक से कर नहीं पा रही है" आँखें नचाते हुए बड़े ही गहरे स्वर में वह फुसफुसाई। यह कहते हुए उन्होंने अपनी एक चुची को पकड़कर मसला और अपना निचला होंठ दांतों तले दबा दिया।

"महारानी साहेबा... " शक्तिसिंह धीरे से उनके कानों के पास बोला

"अममम... महारानी साहेब नहीं, मुझे पद्मिनी कहकर बुलाओ" शक्तिसिंह की धोती के अंदर वह लंड टटोलने लगी

धोती के ऊपर से ही लंड को पकड़कर वह गहरी आवाज में बोली "मेरी अच्छे से मालिश कर दो तुम" अपनी टांगों को पूरी तरह से फेला दिया उन्होंने

इस वासना से भरी स्त्री को शक्तिसिंह देखता ही रहा... उसके जाने का वक्त हो चला था... और अब वह दोनों कभी फिर इस तरह दोबारा मिल नहीं पाएंगे। शक्तिसिंह ने उसकी नरम मांसल जांघों पर अपना सख्त खुरदरा हाथ रख दिया।

जांघों के ऊपर उसे पनियाई चुत के होंठ, गहरी नाभि, और दो शानदार स्तनों के बीच से महारानी उसकी तरफ देखती नजर आई। उसकी नजर महारानी की चुत पर थी और वह चाहता था की अपनी लपलपाती जीभ उस गुलाबी छेद के अंदर डाल दे।

वह अब महारानी के पैरों के बीच आधा लेट गया। अपने मजबूत हाथों से उसने घुटनों से लेकर जंघा-मूल तक हाथ फेरकर मालिश करना शुरू किया। महारानी ने आँखें बंद कर इस स्वर्गीय आनंद का रसपान शुरू कर दिया। शक्तिसिंह अपना हाथ चुत तक ले जाता पर उसका स्पर्श न करता। इस कारण महारानी तड़प रही थी। वह जान बूझकर महारानी के धैर्य की परीक्षा ले रहा था। उसके हर स्पर्श के साथ चुत के होंठ सिकुड़ कर द्रवित हो जाते थे।

शक्तिसिंह ने ऐसे कुशलतापूर्वक उसकी जांघों के सभी संवेदनशील हिस्सों को रगड़ा की महारानी कांप उठी। उन्होंने अपने घुटनों को ऊपर की और उठाकर अपनी तड़प रही चुत के प्रति शक्तिसिंह का ध्यान आकर्षित करने का प्रयत्न किया।

शक्तिसिंह ने अपने दोनों अंगूठों से चुत के इर्दगिर्द मसाज किया। अंगूठे से दबाकर उसने चुत के होंठों को चौड़ा कर दिया। अंदर का गुलाबी हिस्सा काम-रस से भर चुका था। होंठों के खुलते ही अंदर से रस की धारा बाहर निकालकर महारानी के गाँड़ के छेद तक बह गई। महारानी की क्लिटोरिस फूलकर लाल हो गई थी। शक्तिसिंह बिना चुत का स्पर्श किए ऊपर ऊपर से ही उससे खेलता रहा।

"क्या कर रहे हो, शक्तिसिंह??" महारानी कराह उठी

शक्तिसिंह ने फिर से अपने दोनों अंगूठों की मदद से क्लिटोरिस के इर्दगिर्द दबाव बनाया और उसे उकसाने लगा। चुत ने एक डकार मारी और उसमे से काफी मात्र में द्रव्य निकलने लगा। वह महारानी की चुत को जिस स्थिति में लाना चाहता था वह अब प्राप्त हो चुकी थी। उसका लंड धोती में तंबू बनाए कब से अपने मालिक की हरकतों को महसूस कर रहा था।

शक्तिसिंह बारी बारी क्लिटोरिस को दोनों तरफ से बिना स्पर्श किए हुए फैलाता और दबाता। बड़ा ही अनोखा सुख मिल रहा था महारानी को पर उन्हे यह समझ में नहीं आ रहा था की वह क्लिटोरिस को सीधे सीधे क्यों नहीं रगड़ देता!!! बर्दाश्त की हद पार हो जाने पर महारानी ने शक्तिसिंह के हाथ को पकड़कर अपनी क्लिटोरिस पर दबा दिया।

शक्तिसिंह ने अपना हाथ वापिस खींच लिया और क्लिटोरिस से पूर्ववत छेड़खानी शुरू कर दी। महारानी की निप्पल अब इस खेल के कारण लाल लाल हो गई थी। वह खुद अपने स्तनों को इतनी निर्दयता से मसल और मरोड़ रही थी... !!

शक्तिसिंह महारानी के शरीर के ऊपर आ गया। उसकी गरम साँसे महारानी के उत्तेजित स्तनों को छु रही थी। उस दौरान उसके कड़े लंड का स्पर्श रानी को अपनी चुत के ऊपर महसूस हुआ।

क्लिटोरिस से लेकर निप्पल तक जैसे बिजली कौंध गई। उसने फिर से अपने स्तनों को दबोचना चाहा पर शक्तिसिंह ने उनके हाथों को दूर हटा दिया।

"यह दोनों अब मेरे है... " गुर्राते हुए वह बोला।

महारानी तड़पती हुई अपने सिर को यहाँ से वहाँ हिला रही थी। वह अपने जिस्म के विविध हिस्सों को छुना और रगड़ना चाहती थी पर शक्तिसिंह उसे ऐसा करने नहीं दे रहा था। वह जानबूझकर उन्हे तड़पा रहा था।

शक्तिसिंह फिर नीचे महारानी की टांगों के बीच चला गया। उसने अपनी जीभ को एक बार चुत की लकीर पर घुमाया और चुत के रस को अपनी जीभ पर लेकर महारानी की नाभि से लेकर स्तनों के बीच तक लगा दिया। महारानी सिहर उठी।

जितनी बार शक्तिसिंह उनके स्तनों के करीब आता था, महारानी को लगता था की वह अभी उनपर टूट पड़ेगा। पर हर बार शक्तिसिंह, स्तनों को बिना छूए वापिस नीचे चला जाता था। हर बार अपनी जीभ से चुत के रस लेकर आता और महारानी के विविध अंगों पर उस रस को अपनी जीभ से लेप करता गया।

लाचार होकर महारानी आँखें बंद कर इस एहसास को महसूस कर रही थी तभी.... शक्तिसिंह ने दोनों हाथों से बड़ी ही निर्दयता से उनके स्तनों को पकड़ लिया। महरानी कराहने लगी, उन्होंने अपनी चुत और स्तनों को और ऊपर उभार लिया ताकि शक्तिसिंह के जिस्म से ज्यादा से ज्यादा संपर्क हो पाए। पास पड़े पात्र में से तेल लेकर उसने महारानी के दोनों स्तनों को गोल गोल घुमाते हुए मालिश करना शुरू कर दिया।

महारानी कराह रही थी। उनकी दोनों निप्पल कड़ी होकर शक्तिसिंह को अपनी और आकर्षित करने का प्रयास कर रही थी। शक्तिसिंह ने स्तनों से लेकर चुत तक तेल की धार गिरा दी और अपने हाथों को फैलाकर मालिश करने लगा। महारानी अब बेशर्मों की तरह चिल्ला रही थी। शक्तिसिंह मुसकुराते हुए महारानी की इस लाचारी का आनंद उठा रहा था।

शक्तिसिंह ने बड़ी ही सहजता से अपने सर को महारानी के जिस्म के नीचे के हिस्से तक ले गया... उनकी जांघों को अपने हाथों से चौड़ा किया... और अपनी गरम जीभ को महारानी की चुत के होंठों पर रगड़ना शुरू कर दिया।

महारानी की दोनों आँखें ऊपर चढ़ गई । शक्तिसिंह की खुरदरी जीभ ने उनकी चुत में ऐसा भूचाल मचाया की वह तुरंत अपने गांड के छिद्र को सिकुड़ते हुए झड़ गई..!!! उन्होंने अपने दोनों हाथों से बड़ी ही मजबूती से शक्तिसिंह के सर को अपनी चुत पर ऐसे दबा दिया था की शक्तिसिंह चाहकर भी उनकी चुत से दूर ना हट सके। वह अपनी कमर उठाकर शक्तिसिंह की जीभ से अपनी चुत को चुदवाने लगी। शक्तिसिंह की लार से अब उनकी चुत का अमृत मिश्रित होकर जंघामूल के रास्ते नीचे टपक रहा था।

शक्तिसिंह का ध्यान अब चुत के होंठों से हटकर, ऊपर की तरफ, मुनक्का जितनी बड़ी क्लिटोरिस पर जा टीका। उसने अपनी जीभ को क्लिटोरिस पर लपलपाई और फिर उसे हल्के से मरोड़ दिया।

महारानी ने आनंद मिश्रित चीख दे मारी... उनकी चीख की गूंज ने उस कुटिया को हिलाकर रख दिया। महारानी को अब किसी की भी परवाह नहीं थी.. अपने संवेदन और भावनाओ को ज्यों का त्यों व्यक्त करने से अब वह पीछे नहीं हटती थी। वह बार बार चीखती रही "आह्हहह शक्तिसिंह... क्या कर दिया तुमने!!" उनके स्वर से यह बड़ा ही स्पष्ट था की उन्हे कितना मज़ा आ रहा था।

शक्तिसिंह ने चुत के इर्दगिर्द, क्लिटोरिस पर और चुत के होंठों पर, सब जगह जीभ फेरते हुए अपनी नजर महारानी के चेहरे पर केंद्रित की। उसने यह ढूंढ निकाला की महारानी की चुत का कौन सा हिस्सा सब से ज्यादा संवेदनशील है... और फिर अपनी जीभ को उसी पर केंद्रित कर दिया।

"आह्हह... हाँ हाँ... वहीं पर... ऊईई माँ... मर गई में... ईशशश..." महारानी के पूरे जिस्म में तूफान सा उमड़ पड़ा था। वह आँखें बंद कर शक्तिसिंह के दोनों कानों को पकड़कर मरोड़ रही थी। उनकी टाँगे वह बार बार पटक रही थी। उनके चूतड़ बड़ी ही लय में ऊपर नीचे हो रहे थे।

महारानी की इन हलचलों की वजह से अब शक्तिसिंह किसी एक जगह पर अपनी जीभ को केंद्रित नहीं कर पा रहा था। हालांकि उससे अब कुछ ज्यादा फरक नहीं पड़ रहा था क्योंकी महारानी अपनी पराकाष्ठा की और दिव्य सफर पर निकल चुकी थी।

"आहहहहहहहहहहह.....................!!!!!!!!!" महारानी अब अपनी जांघों से शक्तिसिंह को जकड़कर ऐसे घुमाया रही थी जैसे मल्लयुद्ध के दांव आजमा रही हो। शक्तिसिंह ने अपने हाथों से उनकी चूचियों को पकड़कर निप्पलों की चुटकी काट ली। उसकी उंगलियों ने निप्पलों पर अपना अत्याचार जारी रखा। महारानी आनंद के समंदर में गोते लगा रही थी। शक्तिसिंह की गर्दन के अगलबगल में उन्होंने अपनी जांघों को ऐसे बंद कर दिया था की शक्तिसिंह को घुटन सी होने लगी थी।

अचानक से स्खलन के आवेगों ने महारानी को अपने वश में कर लिया...!! वह बुरी तरह तड़पती हुई अस्पष्ट उदगार निकालनी लगी। अपने पंजों से शक्तिसिंह के बालों को नोचती हुई वह पैर पटकने लगी। उनकी योनि मार्ग ने एक आखिरी बार संकुचित होकर अपना मुंह खोला और अपना गरम गरम काम रस बहाने लगी। यह रस इतनी मात्रा में बह रहा था की शक्तिसिंह चाहकर भी उसे पूरा चाट नहीं पा रहा था।

"अब मुझे मन भर कर चोद... इतना चोद की मेरी आत्मा तृप्त हो जाए... की आज अगर मेरी मृत्यु भी हो जाए तो मुझे कोई आपत्ति ना हो!!" स्खलित होते ही उसकी चुत ने अब लंड को प्राप्त करने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया था।

उसने शक्तिसिंह को अपनी जांघों से मुक्त किया और खड़ी हो गई। धोती में से उसने अपने खिलाड़ी को ढूंढ निकाली। शक्तिसिंह का लंड फुँकारे मारता हुआ कब से तैयार बैठा था। पास पड़े पात्र से हाथों में तेल लेकर, पद्मिनी ने शक्तिसिंह के लंड पर मलना शुरू कर दिया।

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"महारानी साहेब, अब मुझसे और बर्दाश्त नहीं हो पाएगा... मुझे अंदर डालने दीजिए!!" शक्तिसिंह ने बड़ी ही भारी स्वर में कहा

महारानी ने पूरे सुपाड़े को तेल से चिपचिपा करते हुए मालिश की और फिर लंड को चूम लिया। उनकी चुत दोनों जांघों के बीच से भांप निकालते हुए चौड़ी होकर इस लंड को अपने अंदर लेने के लिए तड़प रही थी। उन दोनों के जिस्म पर इतनी मात्रा में तेल लगा हुआ था की शक्तिसिंह को यह संदेह था की इतनी चिपचिपी अवस्था में क्या वह पूर्ण नियंत्रण से महारानी को पकड़कर ठीक से चोद पाएगा भी या नहीं।

शक्तिसिंह को कामसूत्र में लिखे एक आसन की याद आई। उसने महारानी को निर्देश देते हुए घोड़ी की तरह चार पैरों पर हो जाने को कहा। महारानी ने तुरंत इसका पालन किया। जिस पत्थर पर लेटकर वह मालिश करवा रही थी, उस पत्थर को दोनों तरफ से मजबूती से पकड़कर उन्होंने अपने चूतड़ फैलाए और अपनी चुत को शक्तिसिंह के सामने पेश कर दी।

शक्तिसिंह ने अपने जिस्म को घुटने मोड कर थोड़ा सा झुका लिया ताकि उसका लंड, महारानी की चुत के बिल्कुल सामने हो। अपना सुपाड़ा उसने महारानी की गांड के छेद से लेकर चुत पर इस कदर रगड़ा की महारानी पागल हो गई। साथ साथ महारानी को यह डर भी सताने लगा की कहीं शक्तिसिंह का मूसल गलत छेद में घुस ना जाएँ!!

शक्तिसिंह अब सही छेद ढूँढने का अभ्यस्त हो चुका था। उसने अपनी हथेली पर लार लगाई, हाथ महारानी की जांघों के बीच डाला और उंगलियों से चुत के होंठों को फैलाकर अपना सुपाड़ा चुत के मुख पर टीका दिया।

"अब लगाओ धक्का... " महारानी ने कराहते हुए शक्तिसिंह को विनती की।

शक्तिसिंह ने अपनी कमर हिलाकर एक जोरदार धक्का लगाया... पहले से गीली और गरम हो चुकी चुत में उसका लंड, मूल तक अंदर घुस गया...!! उसका पेट महारानी के चूतड़ों पर जा टकराया और उसके टट्टों ने महारानी की क्लिटोरिस पर चपत लगाई।

पूरा लंड निगलने के बाद महारानी के चेहरे पर एक अनोखे आनंद की रेखा प्रदीप्त हुई। शक्तिसिंह ने दोनों हाथों से महारानी के चूतड़ों को मजबूती से पकड़ लिया और धमाधम धक्के लगाने लगा। पद्मिनी अपने घुटनों को ज्यादा से ज्यादा चौड़ा कर रही थी ताकि लंड पूरी गहराई तक चोट मारे। लंड और चुत का मिश्रित रस... शक्तिसिंह के चाटने से लगी लार... और मालिश का तेल... इन सब से लिप्त दोनों जिस्म ऐसे एक दूसरे में समय रहे थी जैसे गरम मक्खन में छुरी...!!

शक्तिसिंह का लंड अब महारानी की चुत के ऐसे स्थानों पर प्रहार कर रहा था की हर धक्के के साथ महारानी की जोरदार आह निकल जाती थी। एक हाथ पत्थर पर और दूसरे हाथ से अपने स्तन को मर्दन करते हुए महारानी अपनी चूतड़ों को आगे पीछे करते हुए शक्तिसिंह के ताल से ताल मिला रही थी।

जिस पत्थर पर यह दोनों संभोग कर रहे थे, वह पत्थर भी तेल से स्निग्ध था। इस कारण दोनों को अपना संतुलन बनाए रखने में काफी ध्यान रखना पड़ता था। इसका तोड़ शक्तिसिंह ने निकाल लिया। उसने तुरंत महरानी की दोनों चूचियों को पकड़कर अपना संतुलन बनाए रखा। महारानी ने अब अपनी दोनों हथेलिया पत्थर पर टीका दी थी।

"आह आह आह... देखो तुम्हारी महारानी... कैसे जानवरों की तरह चुद रही है... दबाओ उसके स्तनों को...आह और जोर से... मारो धक्के... मार धक्के... लगा.. आह.. लगा जोर से..." महारानी के सर पर चुदाई का पागलपन सवार हो चला था। शक्तिसिंह ने महारानी के स्तनों को ऐसा पकड़कर मरोड़ा मानो उनकी छाती से अलग ही कर देगा!! महारानी ने अब अपनी चुत का कोण बदलकर उतनी ही ताकत से उलटे झटके लगाने शुरू कर दिए। जब भी उनके कूल्हे और शक्तिसिंह का पेट टकराता तब "थपाक थपाक" की आवाज गूंज उठती। शक्तिसिंह का सुपाड़ा बेहद फूलकर महारानी की चुत के अंदरूनी हिस्सों को और फैला रहा था।


पसीने और तेल से लथबथ दोनों योद्धा, अपने कौशल का पूर्ण इशतेमाल करते हुए, यह यत्न कर रहे थे की अपनी मंजिल को प्राप्त कर सकें। हालांकि यह स्पष्ट था की महारानी का पलड़ा इस युद्ध में काफी भारी था और वह उलटे धक्के लगाते हुए शक्तिसिंह को परास्त कर रही थी।

"रुक जाइए महारानी... " अपना स्खलन बेहद निकट प्रतीत होते हुए शक्तिसिंह ने आवाज लगाई। वह अभी इस खेल को समाप्त नहीं करना चाहता था। जिस क्रूरता से महारानी धक्के लगा रही थी उस तेजी से शक्तिसिंह के लंड को झड़ जाने में कोई कष्ट ना होता।

यह सुनने के बाद जैसे महारानी को कोई फरक नहीं पड़ा.. वह अपनी चुत की आग के सामने लाचार थी... स्वयं को चरमसीमा को इतना करीब पाकर वह शक्तिसिंह की सुनकर रुकना नहीं चाहती थी। उन्होंने धक्के लगाना जारा रखा... शक्तिसिंह पीछे हट गया ताकि उसका लंड महारानी की चुत से निकल जाए। पर महारानी खुद भी पीछे हो गई और यह सुनिश्चित किया की इस नाजुक घड़ी में लंड बाहर ना निकल आए।

जिसका डर था वहीं हुआ... शक्तिसिंह गुर्राते हुए झड़ने लगा... बड़ी मात्र में गाढ़ा वीर्य महारानी की चुत में बरसने लगा.. इस गर्माहट का एहसास होते ही महारानी भी कांपने लगी। भेड़िये की भांति अपना चेहरा छत की तरफ करते हुए उन्होंने भी अपनी चुत बहा दी। शक्तिसिंह अब भी धक्के लगा रहा था और उसके हर झटके के साथ वीर्य की धराएं महारानी की चुत से नीचे गिर रही थी।

दोनों अभी भी चरमसीमा का सुख अनुभावित करते हुए कांप रहे थे। शक्तिसिंह ने अपना हथियार महारानी की चुत से बाहर निकाल और उनके बगल में ही ढेर हो गया। महारानी भी शक्तिसिंह की छाती पर सर रखकर लेट गई। इस अवस्था में उनकी भारी चूचियों को शक्तिसिंह की हथेलिया मसल रही थी।

इस अनोखे हसीन अनुभव का पूरा स्वाद अभी दोनों ले ही रहे थे की तभी कुटिया में राजमाता कौशल्यादेवी ने प्रवेश किया!!!
 
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मध्यरात्री के समय अचानक राजमाता की आँख खुल गई। उन्होंने आँखें खोलकर देखा तो उनका घाघरा ऊपर उठा हुआ था और उनकी एक उंगली चुत की अंदर धँसी हुई थी। अपनी चिपचिपी उंगली को बाहर निकालकर उन्होंने घाघरा ठीक किया और बिस्तर से उठ गई। किसी अनजान सी घबराहट के चलते वह बेचैन हो गई थी।
उन्होंने अपने तंबू के बिल्कुल बगल में बने महारानी के विशाल तंबू में प्रवेश किया। महारानी का बिस्तर खाली पड़ा था। वह वापिस लौटने ही वाली थी की तब किसी की खिलखिलाकर हंसने के आवाज ने उनके पैरों को रोक दिया। उस बड़े से तंबू में दो हिस्से बने हुए थे। बीच में अपारदर्शी पर्दा था जिसके पीछे महारानी तैयार होती थी। राजमाता को पक्का यकीन था की आवाज उस परदे के पीछे से ही आई थी। वह दबे पाँव चुपके से परदे के कोने तक गई और हल्का सा खिसकाकर अंदर देखने लगी। उनकी आँखें अंधेरे से आदि होते ही उन्हे दीपक की रोशनी में दो परछाई नजर आई। ध्यान से देखने पर उन्हे वही दिखा जिसका की उन्हे डर था।

शक्तिसिंह ने महारानी पद्मिनी को चूतड़ों से उठाया हुआ था। रानी के दोनों पैर शक्तिसिंह की कमर पर लपेटे हुए थे। वह रानी को उछाल उछालकर चोद रहा था और रानी खिलखिलाते हुए हंस रही थी। पद्मिनी ने अपनी दोनों बाहें शक्तिसिंह के गले में अजगर की तरह डाल रखी थी। और दोनों प्रगाढ़ चुंबन करते हुए चुदाई कर रहे थे। कई मिनटों तक ऐसे ही झटके लगाने के बाद शक्तिसिंह ने महारानी को संभालकर नीचे उतार और उनको पलटा दिया। महारानी को झुकाकर उसने दो चूतड़ों के बीच उनकी गीली चुत के सुराख में लंड दे मारा। महारानी ने अपने दोनों हाथ घुटनों पर टेककर अपने शरीर का संतुलन बनाए रखा था। बड़े ही मजे से वह शक्तिसिंह के धक्कों को अपनी चुत में समेटकर मजे बटोर रही थी। चोदते हुए शक्तिसिंह अपने दोनों हाथों को आगे की ओर लेकर गया और उनकी चूचियों को रंगेहाथ पकड़ लिया। उन्हे दबोच दबोचकर ऐसा मसला की महारानी की मुंह से आह-ऊँह के उदगार निकल गए। एक दूसरे के नंगे जिस्म को अब वह बिना किसी रुकावट के पूरा महसूस कर पा रहे थे।

राजमाता आश्चर्यसह उन दोनों के इस चुदाई खेल को चुपके से देख रही थी।

शक्तिसिंह किसी घोड़े की तरह महारानी के चूतड़ फैलाकर धमाधम धक्के लगा रहा था। उसके हर धक्के पर महारानी थोड़ी सी आगे चली जाती थी। अपने घुटनों पर हाथ टेके हुए महारानी बदहवासी से चुदवा रही थी।

"चोदो मुझे.. और दम लगाकर चोदो..." महारानी चिल्लाई, यह सूचित करने के लिए की झटके थोड़े धीमे पड़ गए थे। रानी के मुख से ऐसे शब्दों का प्रयोग सुनकर शक्तिसिंह और राजमाता दोनों चोंक गए।

इन दोनों की चुदाई देख बेहद उत्तेजित राजमाता घाघरे के भीतर उंगली डाले ईर्षा से जल रही थी। उनकी खुद की चूचियाँ गरम और सख्त हो चली थी। अपनी पुत्रवधू को बेशर्म की तरह किसी सैनिक से चुदता देख वह अपने आप पर काबू नहीं रख पा रही थी। रानी के बड़े बड़े खरबूजे, शक्तिसिंह के हर धक्के पर, आगे पीछे झूल रहे थे।

और अब जब उसने रानी को खुले शब्दों में चोदने की भीख मांगते हुए सुना तो उसे बहुत जलन महसूस हुई। उसकी चूत, जो अपने पति के निधन के बाद, वर्षों से निष्क्रिय पड़ी थी, अब बेहद गीली और चिपचिपी बन गई थी।

शक्तिसिंह रानी के दोनों स्तनों को आगे से पकड़कर, पीछे धक्के लगाए जा रहा था। हालांकि उसके धक्कों में अब थोड़ी सी थकावट महसूस हो रही थी। रानी ने तुरंत ही पास पड़े एक पत्थर पर अपनी एक टांग जमाई और आसान में तबदीली की। अब शक्तिसिंह आसानी से चुत की गहराइयों तक लंड घुसेड़ सकता था। झटकों की गति और जोर पूर्ववत हो गए।

"लगा दम... जोर से चोद... और जोर से... " रानी सातवे आसमान पर पहुँच गई थी। हर झटके के साथ उसकी भूख बढ़ती जा रही थी।

रानी की उत्तेजना को पहचान कर शक्तिसिंह ने अपने एक हाथ को उसकी दोनों जांघों के बीच से ले जाकर उसके भगनासा (क्लिटोरिस) के दाने को ढूंढ निकाला। अब चुदाई के साथ वह उस दाने को भी रगड़कर महारानी के आनंद में अभिवृद्धि कर रहा था। तभी शक्तिसिंह की आँखें परदे के पीछे खड़ी राजमाता से टकराई। एक पल के लीये वह धक्के लगाते रुक गया पर फिर कुछ सोचकर उसने धक्के लगाना शुरू कर दिया। उसने एक पल के लिए भी अपनी नजर राजमाता से नहीं हटाई। झुकी हुई होने के कारण महारानी को इन सब बातों का जरा सा भी अंदाज ना लग पाया।

राजमाता स्तब्ध होकर यह सब देख रही थी। उनकी योजना पर पानी फेर दिया था इन दोनों ने!! क्रोधित होने के बावजूद इस स्थिति में उसे वह व्यक्त नहीं कर पा रही थी। वह चाहती तो अभी हस्तक्षेप कर उन दोनों को रंगे हाथ पकड़कर रोक सकती थी, पर फिलहाल उनके क्रोध के ऊपर उनकी वासना हावी हो चली थी। गीली चुत ने उनकी टांगों को कमजोर कर दिया। उन्हे यह डर था की इस अवस्था में शक्तिसिंह के करीब जाने के बाद वह अपने आप को उससे लिपटने से कैसे रोक पाएगी!!

राजमाता की तरफ देखते हुए वह महारानी के गोरे गुंबज जैसे चूतड़ों पर हाथ फेरने लगा। महारानी सिसकियाँ भरते हुए और कराहते हुए दोनों टांगों को चौड़ा कर मस्ती से चुदवा रही थी। शक्तिसिंह ने उनके चूतड़ों को अपने हाथों से और फैलाया ताकि लंड और गहराई से अंदर घुस सके। साथ ही साथ उसने एक बार और महारानी के दाने को पकड़कर मसल दिया।

"ऊई माँ... आहहहहहह....!!! इस दोहरे हमले से महारानी उत्तेजना से कांप उठी

अपनी पुत्रवधू की आवाज ने राजमाता को झकझोर दिया... अनायास ही उनके मुख से निकल गया

"बेटा, जरा ध्यान से..!!" आवाज निकल जाने के बाद राजमाता खुद को कोसने लगी।

पद्मिनी अचानक रुक गई। झुकी हुई मुद्रा से वह तुरंत ऊपर उठ गई। शक्तिसिंह का लंड एक झटके में बाहर निकल गया... महारानी की चुत के रस की कुछ बूंदें नीचे टपक गई। महारानी ने डरते हुए सामने देखा और राजमाता को वहाँ खड़ा देखकर वह स्तब्ध बन गई।

इन सारी बातों से अनजान महारानी की चुत, इस रुकावट से परेशान हो गई। इतने मस्त मोटे लंड से चल रही दमदार चुदाई अचानक रुक जाना उसे राज न आया।

महारानी की दुविधा यह थी की इस परिस्थिति में वह कीसे महत्व दे!! अपनी चुत की अभिलाषा को या अपनी सास को??

महारानी के तंबू के भीतर अजीब सा सन्नाटा छा गया था।

पूरे तंबू में केवल एक ही दिया जगमगा रहा था। परदे के उस तरफ खड़ी राजमाता का चेहरा उसमें साफ दिखाई दे रहा था। गनीमत थी की अंधेरे के कारण उन्हे चेहरे के अलावा और कुछ नहीं दिख रहा था वरना... जांघों तक घाघरा उठाकर अपने दाने को रगड़ती हुई राजमाता नजर आती!!

तीनों एक दूसरे के सामने देख रहे थे। पर शक्तिसिंह और पद्मिनी यह नहीं समझ पाए की राजमाता का गुस्सा अभी तक फटा क्यों नहीं!! अब तक तो वह उनपर बरस चुकी होती... पता नहीं क्यों फिलहाल वह गरीब सा चेहरा बनाकर आँखें मुँदती उनके सामने मूर्ति की तरह खड़ी थी... दोनों बड़े ही आश्चर्य से राजमाता को देखते रहे। कुछ क्षणों तक जब उनके तरफ से कोई प्रतिक्रिया ना मिली तब उसे मुक सहमति समझकर शक्तिसिंह ने फिर से महारानी को झुकाकर घोड़ी बना दिया।

हवस का असर इस कदर सर पर सवार था की महारानी ने भी ज्यादा कुछ ना सोचते हुए जांघें चौड़ी कर दी, झुक गई और अपनी वासना को अधिक महत्व देने का फैसला कर चुदवाने में व्यस्त हो गई। शक्तिसिंह ने अपनी सारी ऊर्जा इस संभोग में झोंक दी थी। अब उसे किसी बात का कोई डर न था। वह भी अब महारानी की पीठ के ऊपर झुककर उनके दोनों स्तनों को हाथ में पकड़कर मसलने लगा।

एक बार फिर शक्तिसिंह ने राजमाता की तरफ नजर की। उनकी आँखों में गुस्से के बजाए महारानी के प्रति जलन स्पष्ट दिख रही थी।

महारानी भी अब ताव में आ गई थी। शक्तिसिंह ने दोनों चूचियाँ पकड़ रखी थी तो उन्होंने खुद ही अपनी क्लिटोरिस को मलना शुरू कर दिया। फैली हुई चुत में मूसल सा लँड किसी यंत्र की तरह अंदर बाहर हो रहा था। चुत से काम-रस की नदी सी बह रही थी। चूचियों को मसल मसलकर शक्तिसिंह ने उसे लाल कर दिया था।

महारानी को इतनी मस्ती से चुदते देख राजमाता को अपराध भावना परेशान करने लगी, यह सोचकर की उसका पुत्र, राजा कमलसिंह, अपनी पत्नी को ऐसा सुख प्रदान करने में विफल रहा। पराकाष्ठा और चरमसुख देने वाली दमदार चुदाई, हर स्त्री का हक है और उसे मिलनी ही चाहिए, ऐसा उनका मानना था। शक्तिसिंह का मूसल चुत के अंदर कितना आनंद दे रहा होगा उसकी कल्पना करते ही राजमाता की चुत ने गुनगुना पानी छोड़ दिया। उन्हे लग रहा था की जो कुछ भी महारानी कर रही थी उसमे उसकी कोई गलती नहीं था। सालों से जो स्त्री ठीक से चुदी ना हो वह ऐसा लंड देखकर खुद को कैसे रोके!! और शुरुआत तो राजमाता ने ही करवाई थी... अब उस चुदाई के बाद अगर महारानी शक्तिसिंह के लंड की ग़ुलाम बन गई तो भला उसमे उस बेचारी का क्या दोष!!

राजमाता ने उस संभोग-रत जोड़े के करीब जाने का फैसला किया। उसने सोचा की जिस तरह से उन्होंने दोनों को अंकुश में रखने का प्रयत्न किया था उसी कारण इन दोनों की कामवासना और भड़क उठी। उन्हे लगा की इन दोनों के करीब जाकर उन्हे मौन स्वीकृति देनी चाहिए।

राजमाता उन दोनों के करीब जाकर खड़ी हो गई। महारानी ने उनको देखते हुए अनदेखा कर दिया और अपनी आनंद यात्रा में लगी रही। वह अभी भी पागलों की तरह अपनी चुत को रगड़ रही थी। शक्तिसिंह ने राजमाता की तरफ एक नजर डाली और फिर महारानी के कूल्हों को पकड़कर वही रफ्तार से चुदाई करने में व्यस्त हो गया।

राजमाता ने पहले शक्तिसिंह की पीठ को सहलाया। उसकी पीठ की मांसपेशियाँ इस परिश्रम से बेहद सख्त और पसीने से लथबथ हो गई थी।

"करो... करते रहो... और खतम करो इसे.. " उन्होंने बड़ी ही धीमी आवाज में कहा और फिर पद्मिनी के सर पर हाथ पसारने लगी।

पद्मिनी ने इशारे से शक्तिसिंह को चुदाई रोकने के लिए कहा। काफी देर से झुककर चुदवाते हुए वह थक गई थी। शक्तिसिंह ने संभालकर अपना लंड उसकी चुत से निकाला.. काले, चिपचिपे लंड जैसे ही बाहर निकला, राजमाता की नजर चुंबक की तरफ उस पर चिपक गई। महारानी अब खड़ी होकर शक्तिसिंह की तरफ मुड़ी। उनका इशारा मिलते ही शक्तिसिंह ने वापिस उन्हे उठाया लिया, रानी ने कमर पर पैर लपेटे और शक्तिसिंह के लंड पर बैठ गई। इस आसान में महारानी को थकान भी नहीं हो रही थी और लंड भी काफी गहराई तक अंदर जाता था।

शक्तिसिंह ने महारानी के होंठों को चूम लिया। महारानी ने भी सामने एक और दीर्घ चुंबन कर उसे प्रतिसाद दिया। नागिन की जीभ की तरह वह शक्तिसिंह के मुंह के हर कोने को नापने लगी। ऐसा प्रतीत हो रहा था की जिस तरह शक्तिसिंह का लंड उनकी चुत को चोद रहा था बिल्कुल वैसे ही वह अपनी जीभ से उसके मुँह को चोदना चाहती थी।

राजमाता भी अब अस्वस्थ सी होने लगी। परदे के पीछे तो वह अपनी उंगली से चुत कुरेदकर अपने आप को संभाल रही थी... पर अब उन दोनों को सामने ऐसा करना संभव नहीं था। वह सोच रही थी की वापिस अपने तंबू में जाकर लकड़ी का डंडा अंदर घुसेड़कर प्यास बुझानी पड़ेगी। पद्मिनी के मस्त मोटे गरम उरोजों को शक्तिसिंह द्वारा मसलवाते देख राजमाता बेहद गरम हो गई। हालांकि अब उनकी चूचियों में अब पद्मिनी जैसा कसाव तो नहीं था पर फिर भी उतनी कटिली तो जरूर थी की किसी मर्द की नजरे चिपक जाए।

और बर्दाश्त ना होने पर वह मुड़कर वापिस अपने तंबू के तरफ जाने लगी तभी, शक्तिसिंह ने उनकी कलाई पकड़कर रोक दिया। राजमाता चकित रह गई। उसने पलटकर देखा तो शक्तिसिंह एक हाथ से महारानी को चूतड़ से पकड़े हुए था और दूसरे हाथ में उनकी कलाई थी। आँख बंद कर लंड पर उछल रही पद्मिनी को जब अपने चूतड़ों के नीचे एक ही हाथ का अनुभव हुआ तब दूसरे हाथ की तलाश में उन्होंने आँखें खोली।

शक्तिसिंह को राजमाता का हाथ पकड़े देख वह क्रोधित हो उठी

"शक्तिसिंह.... " कहते हुए उसने शक्तिसिंह का हाथ झटक कर अपने तरफ कर लिया...

ऐसा करने पर शक्तिसिंह का संतुलन थोड़ा सा बिगड़ गया। अपने आपको गिरने से बचाने के लिए उसने अपनी टाँगे फैलाई। ऐसा करने से उसका लंड महारानी की बच्चेदानी को जा टकराया और उनकी आह निकल गई।

"मुझे चोदते रहो शक्तिसिंह... में अब अपनी मंजिल पर पहुचने वाली हूँ... अपना ध्यान भटकने मत दो.. आह आह.. भर दो मुझे... चोदो मुझे... " पागलों की तरह महारानी बड़बड़ाने लगी।

दोनों ने एक दूसरे को सख्त आगोश में जकड़ रखा था। झांट से झांट उलझ गए थे... लंड और चुत एक दूसरे के रस का आदान-प्रदान कर रहे थे, महारानी की निप्पल शक्तिसिंह की छाती से रगड़ खा रही थी और साथ ही दोनों एक दूसरे के होंठों को चूसते जा रहे थे। शक्तिसिंह के हर धक्के के साथ महारानी का गांड का छिद्र सिकुड़ जाता।

अब महारानी ने अपनी टांगों से शक्तिसिंह को इतनी सख्ती से जकड़ा की उसे लगा जैसे उसकी हड्डियाँ तोड़ देगी। शक्तिसिंह से ओर बर्दाश्त ना हुआ... उसके सुपाड़े ने गरम गरम वीर्य की ८ - १० लंबी पिचकारियाँ महारानी की चुत में छोड़ दिए। महारानी के गर्भाशय ने उस मजेदार वीर्य का खुले दिल से स्वागत किया।

दोनों एक दूसरे के सामने देख मुस्कुराये। नीचे लंड और चुत भिन्न रसों से द्रवित हो चुके थे। दोनों के जिस्म पसीने से तरबतर हो गए थे। आँखों में संतुष्टि की अनोखी चमक भी थी।

स्खलन के बाद भी शक्तिसिंह का लंड नरम नहीं पड़ा। शक्तिसिंह ने अब धीरे से अपने घुटने मोड और संभालकर महारानी को जमीन पर लिटा दिया। उस दौरान उसने यह ध्यान रखा की एक पल के लिए भी उसका लंड महारानी की चुत से बाहर ना निकले।

इसने नए आसन में लंड और चुत को अनोखा मज़ा आने लगा। शक्तिसिंह ने महारानी की दोनों टांगों को अपने कंधे पर ले लिया और उनके शरीर के ऊपर आते हुए जोरदार धक्के लगाने लगा।

ऐसा प्रतीत हो रहा था की आज रात शक्तिसिंह का लंड नरम होगा ही नहीं। अमूमन महारानी भी यही चाहती थी की यह दमदार चुदाई का दौर चलता ही रहे। सैनिक और महारानी दोनों अब काफी थक भी चुके थे। चुदते हुए महारानी ने अपने हाथों से शक्तिसिंह के टट्टों को पकड़कर सहलाना शुरू किया। शक्तिसिंह अब फिरसे चिल्लाते हुए वीर्यस्खलित करने लगा और साथ ही साथ महारानी का भी पानी निकल गया।

वह थका हुआ सैनिक, महारानी के स्तनों पर ही ढेर हो गया और उसी अवस्था में दोनों की आँख लग गई।

राजमाता दबे पाँव अपने तंबू की तरफ निकल ली। इन दोनों ने तो अपनी आग बुझा ली थी पर उनकी चुत में घमासान मचा हुआ था।

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आश्रम के एक कक्ष में, महारानी पद्मिनी एक बड़े से पत्थर पर लेटी हुई थी। ऊपर लटके हुए कलश के छेद से तेल की धारा रानी के सर पर ऊपर गिरकर उन्हे एक अनोखी शांति अर्पित कर रही थी। महारानी को गजब का स्वर्गीय सुख मिल रहा था। योगी के आश्रम में इन जड़ीबूटी युक्त तेल से चल रहा उपचार महारानी के रोमरोम को जागृत कर रहा था।

ऐसी सुविधाएं तो उनके महल में भी मौजूद थी। पर यहाँ के शुद्ध वातावरण और परिवेश में बदलाव ने उन्हे अनोखी ऊर्जा प्रदान की थी।

पिछले कुछ दिनों से शक्तिसिंह द्वारा मिल रही सेवा ने उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बड़ा ही सकारात्मक बदलाव किया था। दोनों के बीच रोज बड़ी ही दमदार चुदाई होती थी और महारानी को बड़े ऊर्जावान अंदाज में चोदा गया था। लगातार चुदाई के कारण उनकी जांघों का अंदरूनी हिस्सा छील गया था और उनकी चुत भी काफी फैल गई थी। अंग अंग दर्द कर रहा था पर उस दर्द में ऐसी मिठास थी की दिल चाहता था की उसमे ओर इजाफा हो।

आश्रम मे मालिश करने वाली स्त्री बड़ी ही काबिल थी। उसने महारानी के जिस्म के कोने कोने पर जड़ीबूटी वाला तेल रगड़ कर पूरे जिस्म को शिथिल कर दिया था। शरीर में नवचेतन का प्रसार होते ही महारानी पद्मिनी की चुत फिर से अपने जीवन में आए नए मर्द के लंड को तरसने लगी थी। हवस ऐसे सर पर सवार हो रही थी की वह चाहती थी की अभी वह मालिश वाली औरत को ही दबोच ले। पर अब शक्तिसिंह के वापिस लौटने का समय या चुका था और वह उसके संग एक आखिरी रात बिताना चाहती थी।

पिछले कुछ दिनों में राजमाता ने महारानी और शक्तिसिंह जिस कदर चुदाई करते देखा था उसके बाद उन्हे महारानी के गर्भवती हो जाने पर जरा सा भी संशय नहीं बचा था। उस तगड़े सैनिक ने कई बार महारणी की चुत में वीर्य की धार की थी। यहाँ तक की उन दोनों की चुदाई देख देख कर राजमाता की भूख भड़क चुकी थी।

लेकिन अपनी जिम्मेदारियों को संभालते हुए, योजना के तहत उन्होंने शक्तिसिंह को अपने दल के साथ सूरजगढ़ वापिस लौट जाने का हुकूम दे दिया था। अब कुछ गिने चुने सैनिक और दासियाँ आश्रम में महारानी के साथ तब तक रहेंगे जब तक गर्भाधान की पुष्टि ना हो जाए। जब वापिस जाने का समय आएगा तब उन्हे संदेश देकर बुलाया जाएगा पर अभी के लिए उनकी कोई आवश्यकता नहीं थी।

उस रात, शक्तिसिंह और महारानी ने फर्श पर सोते हुए घंटों चुदाई की। एक बार स्खलित हो जाने के बाद महारानी तुरंत उसका लंड मुंह में लेकर चूसने लगती और फिर से चुदने के लिए तैयार हो जाती। कामशास्त्र के हर आसन में वह दोनों चोद चुके थे। महरानी ने सिसकते कराहते हुए तब तक चुदवाया जब तक उनकी चुत छील ना गई। पूरी रात इन दोनों की आवाज के कारण राजमाता भी ठीक से सो नहीं पाई।

दूसरी सुबह, शक्तिसिंह अपना सामान बांध रहा था जब महारानी की सबसे विश्वसनीय दासी ने आकार उसे यह संदेश दिया

"तुम जाओ उससे पहले महारानी साहेब तुम से मिलना चाहती है"

"वो कहाँ है अभी?" शक्तिसिंह को सुबह से महारानी कहीं दिख नहीं रही थी और राजमाता से पूछने पर उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया था

"वहाँ आश्रम के कोने में बनी घास की कुटिया में वह मालिश करवा रही है" दासी ने शरमाते हुए कहा। उसे महारानी और शक्तिसिंह के रात्री-खेल के बारे में पता लग चुका था "शक्तिसिंह सही में गजब की ठुकाई करता होगा तभी तो महारानी ने उसके लिए अपना घाघरा उठाया होगा" वह सोच रही थी

पद्मिनी वहाँ कुटिया में नंगी होकर लैटी हुई थी। मालिश करने वाली ने उसके अंग अंग को मलकर इतना हल्का कर दिया था की उनका पूरा शरीर नवपल्लवित हो गया था। हालांकि शरीर का एक हिस्सा ऐसा था जिसे मालिश के बाद भी चैन नहीं थी। महारानी की जांघों के बीच बसी चुत अब भी फड़फड़ा रही थी। शक्तिसिंह ने महारानी की संभोग तृष्णा इस कदर बढ़ा दी थी की महारानी तय नहीं कर पा रही थी की उसका क्या किया जाए!! वह बेहद व्यथित थी की शक्तिसिंह वापिस सूरजगढ़ लौट रहा था।

शायद उन्हे ज्यादा सावधानी बरत कर राजमाता से छुपकर इस काम को अंजाम देना चाहिए था। अब जब राजमाता को इस बारे में पता चल गया था तो वह अपने नियम और अंकुश लादकर उन्हे एक दूसरे से दूर कर रही थी।

महारानी पद्मिनी का शरीर, शक्तिसिंह के खुरदरे हाथों से ठीक उन्हीं स्थानों पर मालिश करवाने के लिए धड़क रहा था, जहां मालिश करने वाली सेविका के नरम लेकिन दृढ़ हाथ घूम रहे थे।शक्तिसिंह ने उस कुटिया में प्रवेश किया। महारानी को वहाँ नंगा लैटे हुए देख वह एक पल के लिए चोंक गया। मालिश से तर होकर उनकी दोनों गोरी चूचियाँ चमक रही थी। शारीरिक घर्षण के कारण उनकी निप्पल सख्त हो गई थी। वह सेविका अब महारानी की जांघे चौड़ी कर अंदरूनी हिस्सों में तेल मले जा रही थी। शक्तिसिंह के लंड ने महारानी के नंगे जिस्म को धोती के अंदर से ही सलामी ठोक दी।

पिछले कुछ दिनों से शक्तिसिंह का लंड ज्यादातर खड़ा ही रहता था। उसे राहत तब मिलती थी जब उसे महारानी की चुत के गरम होंठों के बीच घुसने का मौका मिले। शक्तिसिंह के आने का ज्ञान होते ही महारानी ने अपनी खुली जांघों के बीच के चुत को उभार कर ऊपर कर लिया, जैसे वह शक्तिसिंह के सामने उसे पेश कर रही हो। चुत के बाल तेल से लिप्त थे और चुत के होंठों पर तेल लगा हुआ था। गरम तो वह पहले से ही थी। छोटी सी कुटिया में उनकी गरम चुत की भांप ने एक अलग तरह की गंध छोड़ रखी थी।

शक्तिसिंह को अपने करीब बुलाते हुए महारानी ने कहा

"शक्तिसिंह, यह मालिश वाली अपना काम ठीक से कर नहीं पा रही है" आँखें नचाते हुए बड़े ही गहरे स्वर में वह फुसफुसाई। यह कहते हुए उन्होंने अपनी एक चुची को पकड़कर मसला और अपना निचला होंठ दांतों तले दबा दिया।

"महारानी साहेबा... " शक्तिसिंह धीरे से उनके कानों के पास बोला

"अममम... महारानी साहेब नहीं, मुझे पद्मिनी कहकर बुलाओ" शक्तिसिंह की धोती के अंदर वह लंड टटोलने लगी

धोती के ऊपर से ही लंड को पकड़कर वह गहरी आवाज में बोली "मेरी अच्छे से मालिश कर दो तुम" अपनी टांगों को पूरी तरह से फेला दिया उन्होंने

इस वासना से भरी स्त्री को शक्तिसिंह देखता ही रहा... उसके जाने का वक्त हो चला था... और अब वह दोनों कभी फिर इस तरह दोबारा मिल नहीं पाएंगे। शक्तिसिंह ने उसकी नरम मांसल जांघों पर अपना सख्त खुरदरा हाथ रख दिया।

जांघों के ऊपर उसे पनियाई चुत के होंठ, गहरी नाभि, और दो शानदार स्तनों के बीच से महारानी उसकी तरफ देखती नजर आई। उसकी नजर महारानी की चुत पर थी और वह चाहता था की अपनी लपलपाती जीभ उस गुलाबी छेद के अंदर डाल दे।

वह अब महारानी के पैरों के बीच आधा लेट गया। अपने मजबूत हाथों से उसने घुटनों से लेकर जंघा-मूल तक हाथ फेरकर मालिश करना शुरू किया। महारानी ने आँखें बंद कर इस स्वर्गीय आनंद का रसपान शुरू कर दिया। शक्तिसिंह अपना हाथ चुत तक ले जाता पर उसका स्पर्श न करता। इस कारण महारानी तड़प रही थी। वह जान बूझकर महारानी के धैर्य की परीक्षा ले रहा था। उसके हर स्पर्श के साथ चुत के होंठ सिकुड़ कर द्रवित हो जाते थे।

शक्तिसिंह ने ऐसे कुशलतापूर्वक उसकी जांघों के सभी संवेदनशील हिस्सों को रगड़ा की महारानी कांप उठी। उन्होंने अपने घुटनों को ऊपर की और उठाकर अपनी तड़प रही चुत के प्रति शक्तिसिंह का ध्यान आकर्षित करने का प्रयत्न किया।

शक्तिसिंह ने अपने दोनों अंगूठों से चुत के इर्दगिर्द मसाज किया। अंगूठे से दबाकर उसने चुत के होंठों को चौड़ा कर दिया। अंदर का गुलाबी हिस्सा काम-रस से भर चुका था। होंठों के खुलते ही अंदर से रस की धारा बाहर निकालकर महारानी के गाँड़ के छेद तक बह गई। महारानी की क्लिटोरिस फूलकर लाल हो गई थी। शक्तिसिंह बिना चुत का स्पर्श किए ऊपर ऊपर से ही उससे खेलता रहा।

"क्या कर रहे हो, शक्तिसिंह??" महारानी कराह उठी

शक्तिसिंह ने फिर से अपने दोनों अंगूठों की मदद से क्लिटोरिस के इर्दगिर्द दबाव बनाया और उसे उकसाने लगा। चुत ने एक डकार मारी और उसमे से काफी मात्र में द्रव्य निकलने लगा। वह महारानी की चुत को जिस स्थिति में लाना चाहता था वह अब प्राप्त हो चुकी थी। उसका लंड धोती में तंबू बनाए कब से अपने मालिक की हरकतों को महसूस कर रहा था।

शक्तिसिंह बारी बारी क्लिटोरिस को दोनों तरफ से बिना स्पर्श किए हुए फैलाता और दबाता। बड़ा ही अनोखा सुख मिल रहा था महारानी को पर उन्हे यह समझ में नहीं आ रहा था की वह क्लिटोरिस को सीधे सीधे क्यों नहीं रगड़ देता!!! बर्दाश्त की हद पार हो जाने पर महारानी ने शक्तिसिंह के हाथ को पकड़कर अपनी क्लिटोरिस पर दबा दिया।

शक्तिसिंह ने अपना हाथ वापिस खींच लिया और क्लिटोरिस से पूर्ववत छेड़खानी शुरू कर दी। महारानी की निप्पल अब इस खेल के कारण लाल लाल हो गई थी। वह खुद अपने स्तनों को इतनी निर्दयता से मसल और मरोड़ रही थी... !!

शक्तिसिंह महारानी के शरीर के ऊपर आ गया। उसकी गरम साँसे महारानी के उत्तेजित स्तनों को छु रही थी। उस दौरान उसके कड़े लंड का स्पर्श रानी को अपनी चुत के ऊपर महसूस हुआ।

क्लिटोरिस से लेकर निप्पल तक जैसे बिजली कौंध गई। उसने फिर से अपने स्तनों को दबोचना चाहा पर शक्तिसिंह ने उनके हाथों को दूर हटा दिया।

"यह दोनों अब मेरे है... " गुर्राते हुए वह बोला।

महारानी तड़पती हुई अपने सिर को यहाँ से वहाँ हिला रही थी। वह अपने जिस्म के विविध हिस्सों को छुना और रगड़ना चाहती थी पर शक्तिसिंह उसे ऐसा करने नहीं दे रहा था। वह जानबूझकर उन्हे तड़पा रहा था।

शक्तिसिंह फिर नीचे महारानी की टांगों के बीच चला गया। उसने अपनी जीभ को एक बार चुत की लकीर पर घुमाया और चुत के रस को अपनी जीभ पर लेकर महारानी की नाभि से लेकर स्तनों के बीच तक लगा दिया। महारानी सिहर उठी।

जितनी बार शक्तिसिंह उनके स्तनों के करीब आता था, महारानी को लगता था की वह अभी उनपर टूट पड़ेगा। पर हर बार शक्तिसिंह, स्तनों को बिना छूए वापिस नीचे चला जाता था। हर बार अपनी जीभ से चुत के रस लेकर आता और महारानी के विविध अंगों पर उस रस को अपनी जीभ से लेप करता गया।

लाचार होकर महारानी आँखें बंद कर इस एहसास को महसूस कर रही थी तभी.... शक्तिसिंह ने दोनों हाथों से बड़ी ही निर्दयता से उनके स्तनों को पकड़ लिया। महरानी कराहने लगी, उन्होंने अपनी चुत और स्तनों को और ऊपर उभार लिया ताकि शक्तिसिंह के जिस्म से ज्यादा से ज्यादा संपर्क हो पाए। पास पड़े पात्र में से तेल लेकर उसने महारानी के दोनों स्तनों को गोल गोल घुमाते हुए मालिश करना शुरू कर दिया।

महारानी कराह रही थी। उनकी दोनों निप्पल कड़ी होकर शक्तिसिंह को अपनी और आकर्षित करने का प्रयास कर रही थी। शक्तिसिंह ने स्तनों से लेकर चुत तक तेल की धार गिरा दी और अपने हाथों को फैलाकर मालिश करने लगा। महारानी अब बेशर्मों की तरह चिल्ला रही थी। शक्तिसिंह मुसकुराते हुए महारानी की इस लाचारी का आनंद उठा रहा था।

शक्तिसिंह ने बड़ी ही सहजता से अपने सर को महारानी के जिस्म के नीचे के हिस्से तक ले गया... उनकी जांघों को अपने हाथों से चौड़ा किया... और अपनी गरम जीभ को महारानी की चुत के होंठों पर रगड़ना शुरू कर दिया।

महारानी की दोनों आँखें ऊपर चढ़ गई । शक्तिसिंह की खुरदरी जीभ ने उनकी चुत में ऐसा भूचाल मचाया की वह तुरंत अपने गांड के छिद्र को सिकुड़ते हुए झड़ गई..!!! उन्होंने अपने दोनों हाथों से बड़ी ही मजबूती से शक्तिसिंह के सर को अपनी चुत पर ऐसे दबा दिया था की शक्तिसिंह चाहकर भी उनकी चुत से दूर ना हट सके। वह अपनी कमर उठाकर शक्तिसिंह की जीभ से अपनी चुत को चुदवाने लगी। शक्तिसिंह की लार से अब उनकी चुत का अमृत मिश्रित होकर जंघामूल के रास्ते नीचे टपक रहा था।

शक्तिसिंह का ध्यान अब चुत के होंठों से हटकर, ऊपर की तरफ, मुनक्का जितनी बड़ी क्लिटोरिस पर जा टीका। उसने अपनी जीभ को क्लिटोरिस पर लपलपाई और फिर उसे हल्के से मरोड़ दिया।

महारानी ने आनंद मिश्रित चीख दे मारी... उनकी चीख की गूंज ने उस कुटिया को हिलाकर रख दिया। महारानी को अब किसी की भी परवाह नहीं थी.. अपने संवेदन और भावनाओ को ज्यों का त्यों व्यक्त करने से अब वह पीछे नहीं हटती थी। वह बार बार चीखती रही "आह्हहह शक्तिसिंह... क्या कर दिया तुमने!!" उनके स्वर से यह बड़ा ही स्पष्ट था की उन्हे कितना मज़ा आ रहा था।

शक्तिसिंह ने चुत के इर्दगिर्द, क्लिटोरिस पर और चुत के होंठों पर, सब जगह जीभ फेरते हुए अपनी नजर महारानी के चेहरे पर केंद्रित की। उसने यह ढूंढ निकाला की महारानी की चुत का कौन सा हिस्सा सब से ज्यादा संवेदनशील है... और फिर अपनी जीभ को उसी पर केंद्रित कर दिया।

"आह्हह... हाँ हाँ... वहीं पर... ऊईई माँ... मर गई में... ईशशश..." महारानी के पूरे जिस्म में तूफान सा उमड़ पड़ा था। वह आँखें बंद कर शक्तिसिंह के दोनों कानों को पकड़कर मरोड़ रही थी। उनकी टाँगे वह बार बार पटक रही थी। उनके चूतड़ बड़ी ही लय में ऊपर नीचे हो रहे थे।

महारानी की इन हलचलों की वजह से अब शक्तिसिंह किसी एक जगह पर अपनी जीभ को केंद्रित नहीं कर पा रहा था। हालांकि उससे अब कुछ ज्यादा फरक नहीं पड़ रहा था क्योंकी महारानी अपनी पराकाष्ठा की और दिव्य सफर पर निकल चुकी थी।

"आहहहहहहहहहहह.....................!!!!!!!!!" महारानी अब अपनी जांघों से शक्तिसिंह को जकड़कर ऐसे घुमाया रही थी जैसे मल्लयुद्ध के दांव आजमा रही हो। शक्तिसिंह ने अपने हाथों से उनकी चूचियों को पकड़कर निप्पलों की चुटकी काट ली। उसकी उंगलियों ने निप्पलों पर अपना अत्याचार जारी रखा। महारानी आनंद के समंदर में गोते लगा रही थी। शक्तिसिंह की गर्दन के अगलबगल में उन्होंने अपनी जांघों को ऐसे बंद कर दिया था की शक्तिसिंह को घुटन सी होने लगी थी।

अचानक से स्खलन के आवेगों ने महारानी को अपने वश में कर लिया...!! वह बुरी तरह तड़पती हुई अस्पष्ट उदगार निकालनी लगी। अपने पंजों से शक्तिसिंह के बालों को नोचती हुई वह पैर पटकने लगी। उनकी योनि मार्ग ने एक आखिरी बार संकुचित होकर अपना मुंह खोला और अपना गरम गरम काम रस बहाने लगी। यह रस इतनी मात्रा में बह रहा था की शक्तिसिंह चाहकर भी उसे पूरा चाट नहीं पा रहा था।

"अब मुझे मन भर कर चोद... इतना चोद की मेरी आत्मा तृप्त हो जाए... की आज अगर मेरी मृत्यु भी हो जाए तो मुझे कोई आपत्ति ना हो!!" स्खलित होते ही उसकी चुत ने अब लंड को प्राप्त करने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया था।

उसने शक्तिसिंह को अपनी जांघों से मुक्त किया और खड़ी हो गई। धोती में से उसने अपने खिलाड़ी को ढूंढ निकाली। शक्तिसिंह का लंड फुँकारे मारता हुआ कब से तैयार बैठा था। पास पड़े पात्र से हाथों में तेल लेकर, पद्मिनी ने शक्तिसिंह के लंड पर मलना शुरू कर दिया।

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"महारानी साहेब, अब मुझसे और बर्दाश्त नहीं हो पाएगा... मुझे अंदर डालने दीजिए!!" शक्तिसिंह ने बड़ी ही भारी स्वर में कहा

महारानी ने पूरे सुपाड़े को तेल से चिपचिपा करते हुए मालिश की और फिर लंड को चूम लिया। उनकी चुत दोनों जांघों के बीच से भांप निकालते हुए चौड़ी होकर इस लंड को अपने अंदर लेने के लिए तड़प रही थी। उन दोनों के जिस्म पर इतनी मात्रा में तेल लगा हुआ था की शक्तिसिंह को यह संदेह था की इतनी चिपचिपी अवस्था में क्या वह पूर्ण नियंत्रण से महारानी को पकड़कर ठीक से चोद पाएगा भी या नहीं।

शक्तिसिंह को कामसूत्र में लिखे एक आसन की याद आई। उसने महारानी को निर्देश देते हुए घोड़ी की तरह चार पैरों पर हो जाने को कहा। महारानी ने तुरंत इसका पालन किया। जिस पत्थर पर लेटकर वह मालिश करवा रही थी, उस पत्थर को दोनों तरफ से मजबूती से पकड़कर उन्होंने अपने चूतड़ फैलाए और अपनी चुत को शक्तिसिंह के सामने पेश कर दी।

शक्तिसिंह ने अपने जिस्म को घुटने मोड कर थोड़ा सा झुका लिया ताकि उसका लंड, महारानी की चुत के बिल्कुल सामने हो। अपना सुपाड़ा उसने महारानी की गांड के छेद से लेकर चुत पर इस कदर रगड़ा की महारानी पागल हो गई। साथ साथ महारानी को यह डर भी सताने लगा की कहीं शक्तिसिंह का मूसल गलत छेद में घुस ना जाएँ!!

शक्तिसिंह अब सही छेद ढूँढने का अभ्यस्त हो चुका था। उसने अपनी हथेली पर लार लगाई, हाथ महारानी की जांघों के बीच डाला और उंगलियों से चुत के होंठों को फैलाकर अपना सुपाड़ा चुत के मुख पर टीका दिया।

"अब लगाओ धक्का... " महारानी ने कराहते हुए शक्तिसिंह को विनती की।

शक्तिसिंह ने अपनी कमर हिलाकर एक जोरदार धक्का लगाया... पहले से गीली और गरम हो चुकी चुत में उसका लंड, मूल तक अंदर घुस गया...!! उसका पेट महारानी के चूतड़ों पर जा टकराया और उसके टट्टों ने महारानी की क्लिटोरिस पर चपत लगाई।

पूरा लंड निगलने के बाद महारानी के चेहरे पर एक अनोखे आनंद की रेखा प्रदीप्त हुई। शक्तिसिंह ने दोनों हाथों से महारानी के चूतड़ों को मजबूती से पकड़ लिया और धमाधम धक्के लगाने लगा। पद्मिनी अपने घुटनों को ज्यादा से ज्यादा चौड़ा कर रही थी ताकि लंड पूरी गहराई तक चोट मारे। लंड और चुत का मिश्रित रस... शक्तिसिंह के चाटने से लगी लार... और मालिश का तेल... इन सब से लिप्त दोनों जिस्म ऐसे एक दूसरे में समय रहे थी जैसे गरम मक्खन में छुरी...!!

शक्तिसिंह का लंड अब महारानी की चुत के ऐसे स्थानों पर प्रहार कर रहा था की हर धक्के के साथ महारानी की जोरदार आह निकल जाती थी। एक हाथ पत्थर पर और दूसरे हाथ से अपने स्तन को मर्दन करते हुए महारानी अपनी चूतड़ों को आगे पीछे करते हुए शक्तिसिंह के ताल से ताल मिला रही थी।

जिस पत्थर पर यह दोनों संभोग कर रहे थे, वह पत्थर भी तेल से स्निग्ध था। इस कारण दोनों को अपना संतुलन बनाए रखने में काफी ध्यान रखना पड़ता था। इसका तोड़ शक्तिसिंह ने निकाल लिया। उसने तुरंत महरानी की दोनों चूचियों को पकड़कर अपना संतुलन बनाए रखा। महारानी ने अब अपनी दोनों हथेलिया पत्थर पर टीका दी थी।

"आह आह आह... देखो तुम्हारी महारानी... कैसे जानवरों की तरह चुद रही है... दबाओ उसके स्तनों को...आह और जोर से... मारो धक्के... मार धक्के... लगा.. आह.. लगा जोर से..." महारानी के सर पर चुदाई का पागलपन सवार हो चला था। शक्तिसिंह ने महारानी के स्तनों को ऐसा पकड़कर मरोड़ा मानो उनकी छाती से अलग ही कर देगा!! महारानी ने अब अपनी चुत का कोण बदलकर उतनी ही ताकत से उलटे झटके लगाने शुरू कर दिए। जब भी उनके कूल्हे और शक्तिसिंह का पेट टकराता तब "थपाक थपाक" की आवाज गूंज उठती। शक्तिसिंह का सुपाड़ा बेहद फूलकर महारानी की चुत के अंदरूनी हिस्सों को और फैला रहा था।


पसीने और तेल से लथबथ दोनों योद्धा, अपने कौशल का पूर्ण इशतेमाल करते हुए, यह यत्न कर रहे थे की अपनी मंजिल को प्राप्त कर सकें। हालांकि यह स्पष्ट था की महारानी का पलड़ा इस युद्ध में काफी भारी था और वह उलटे धक्के लगाते हुए शक्तिसिंह को परास्त कर रही थी।

"रुक जाइए महारानी... " अपना स्खलन बेहद निकट प्रतीत होते हुए शक्तिसिंह ने आवाज लगाई। वह अभी इस खेल को समाप्त नहीं करना चाहता था। जिस क्रूरता से महारानी धक्के लगा रही थी उस तेजी से शक्तिसिंह के लंड को झड़ जाने में कोई कष्ट ना होता।

यह सुनने के बाद जैसे महारानी को कोई फरक नहीं पड़ा.. वह अपनी चुत की आग के सामने लाचार थी... स्वयं को चरमसीमा को इतना करीब पाकर वह शक्तिसिंह की सुनकर रुकना नहीं चाहती थी। उन्होंने धक्के लगाना जारा रखा... शक्तिसिंह पीछे हट गया ताकि उसका लंड महारानी की चुत से निकल जाए। पर महारानी खुद भी पीछे हो गई और यह सुनिश्चित किया की इस नाजुक घड़ी में लंड बाहर ना निकल आए।

जिसका डर था वहीं हुआ... शक्तिसिंह गुर्राते हुए झड़ने लगा... बड़ी मात्र में गाढ़ा वीर्य महारानी की चुत में बरसने लगा.. इस गर्माहट का एहसास होते ही महारानी भी कांपने लगी। भेड़िये की भांति अपना चेहरा छत की तरफ करते हुए उन्होंने भी अपनी चुत बहा दी। शक्तिसिंह अब भी धक्के लगा रहा था और उसके हर झटके के साथ वीर्य की धराएं महारानी की चुत से नीचे गिर रही थी।

दोनों अभी भी चरमसीमा का सुख अनुभावित करते हुए कांप रहे थे। शक्तिसिंह ने अपना हथियार महारानी की चुत से बाहर निकाल और उनके बगल में ही ढेर हो गया। महारानी भी शक्तिसिंह की छाती पर सर रखकर लेट गई। इस अवस्था में उनकी भारी चूचियों को शक्तिसिंह की हथेलिया मसल रही थी।

इस अनोखे हसीन अनुभव का पूरा स्वाद अभी दोनों ले ही रहे थे की तभी कुटिया में राजमाता कौशल्यादेवी ने प्रवेश किया!!!

Nice and hot update and awesome writing skills
 
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मध्यरात्री के समय अचानक राजमाता की आँख खुल गई। उन्होंने आँखें खोलकर देखा तो उनका घाघरा ऊपर उठा हुआ था और उनकी एक उंगली चुत की अंदर धँसी हुई थी। अपनी चिपचिपी उंगली को बाहर निकालकर उन्होंने घाघरा ठीक किया और बिस्तर से उठ गई। किसी अनजान सी घबराहट के चलते वह बेचैन हो गई थी।
उन्होंने अपने तंबू के बिल्कुल बगल में बने महारानी के विशाल तंबू में प्रवेश किया। महारानी का बिस्तर खाली पड़ा था। वह वापिस लौटने ही वाली थी की तब किसी की खिलखिलाकर हंसने के आवाज ने उनके पैरों को रोक दिया। उस बड़े से तंबू में दो हिस्से बने हुए थे। बीच में अपारदर्शी पर्दा था जिसके पीछे महारानी तैयार होती थी। राजमाता को पक्का यकीन था की आवाज उस परदे के पीछे से ही आई थी। वह दबे पाँव चुपके से परदे के कोने तक गई और हल्का सा खिसकाकर अंदर देखने लगी। उनकी आँखें अंधेरे से आदि होते ही उन्हे दीपक की रोशनी में दो परछाई नजर आई। ध्यान से देखने पर उन्हे वही दिखा जिसका की उन्हे डर था।

शक्तिसिंह ने महारानी पद्मिनी को चूतड़ों से उठाया हुआ था। रानी के दोनों पैर शक्तिसिंह की कमर पर लपेटे हुए थे। वह रानी को उछाल उछालकर चोद रहा था और रानी खिलखिलाते हुए हंस रही थी। पद्मिनी ने अपनी दोनों बाहें शक्तिसिंह के गले में अजगर की तरह डाल रखी थी। और दोनों प्रगाढ़ चुंबन करते हुए चुदाई कर रहे थे। कई मिनटों तक ऐसे ही झटके लगाने के बाद शक्तिसिंह ने महारानी को संभालकर नीचे उतार और उनको पलटा दिया। महारानी को झुकाकर उसने दो चूतड़ों के बीच उनकी गीली चुत के सुराख में लंड दे मारा। महारानी ने अपने दोनों हाथ घुटनों पर टेककर अपने शरीर का संतुलन बनाए रखा था। बड़े ही मजे से वह शक्तिसिंह के धक्कों को अपनी चुत में समेटकर मजे बटोर रही थी। चोदते हुए शक्तिसिंह अपने दोनों हाथों को आगे की ओर लेकर गया और उनकी चूचियों को रंगेहाथ पकड़ लिया। उन्हे दबोच दबोचकर ऐसा मसला की महारानी की मुंह से आह-ऊँह के उदगार निकल गए। एक दूसरे के नंगे जिस्म को अब वह बिना किसी रुकावट के पूरा महसूस कर पा रहे थे।

राजमाता आश्चर्यसह उन दोनों के इस चुदाई खेल को चुपके से देख रही थी।

शक्तिसिंह किसी घोड़े की तरह महारानी के चूतड़ फैलाकर धमाधम धक्के लगा रहा था। उसके हर धक्के पर महारानी थोड़ी सी आगे चली जाती थी। अपने घुटनों पर हाथ टेके हुए महारानी बदहवासी से चुदवा रही थी।

"चोदो मुझे.. और दम लगाकर चोदो..." महारानी चिल्लाई, यह सूचित करने के लिए की झटके थोड़े धीमे पड़ गए थे। रानी के मुख से ऐसे शब्दों का प्रयोग सुनकर शक्तिसिंह और राजमाता दोनों चोंक गए।

इन दोनों की चुदाई देख बेहद उत्तेजित राजमाता घाघरे के भीतर उंगली डाले ईर्षा से जल रही थी। उनकी खुद की चूचियाँ गरम और सख्त हो चली थी। अपनी पुत्रवधू को बेशर्म की तरह किसी सैनिक से चुदता देख वह अपने आप पर काबू नहीं रख पा रही थी। रानी के बड़े बड़े खरबूजे, शक्तिसिंह के हर धक्के पर, आगे पीछे झूल रहे थे।

और अब जब उसने रानी को खुले शब्दों में चोदने की भीख मांगते हुए सुना तो उसे बहुत जलन महसूस हुई। उसकी चूत, जो अपने पति के निधन के बाद, वर्षों से निष्क्रिय पड़ी थी, अब बेहद गीली और चिपचिपी बन गई थी।

शक्तिसिंह रानी के दोनों स्तनों को आगे से पकड़कर, पीछे धक्के लगाए जा रहा था। हालांकि उसके धक्कों में अब थोड़ी सी थकावट महसूस हो रही थी। रानी ने तुरंत ही पास पड़े एक पत्थर पर अपनी एक टांग जमाई और आसान में तबदीली की। अब शक्तिसिंह आसानी से चुत की गहराइयों तक लंड घुसेड़ सकता था। झटकों की गति और जोर पूर्ववत हो गए।

"लगा दम... जोर से चोद... और जोर से... " रानी सातवे आसमान पर पहुँच गई थी। हर झटके के साथ उसकी भूख बढ़ती जा रही थी।

रानी की उत्तेजना को पहचान कर शक्तिसिंह ने अपने एक हाथ को उसकी दोनों जांघों के बीच से ले जाकर उसके भगनासा (क्लिटोरिस) के दाने को ढूंढ निकाला। अब चुदाई के साथ वह उस दाने को भी रगड़कर महारानी के आनंद में अभिवृद्धि कर रहा था। तभी शक्तिसिंह की आँखें परदे के पीछे खड़ी राजमाता से टकराई। एक पल के लीये वह धक्के लगाते रुक गया पर फिर कुछ सोचकर उसने धक्के लगाना शुरू कर दिया। उसने एक पल के लिए भी अपनी नजर राजमाता से नहीं हटाई। झुकी हुई होने के कारण महारानी को इन सब बातों का जरा सा भी अंदाज ना लग पाया।

राजमाता स्तब्ध होकर यह सब देख रही थी। उनकी योजना पर पानी फेर दिया था इन दोनों ने!! क्रोधित होने के बावजूद इस स्थिति में उसे वह व्यक्त नहीं कर पा रही थी। वह चाहती तो अभी हस्तक्षेप कर उन दोनों को रंगे हाथ पकड़कर रोक सकती थी, पर फिलहाल उनके क्रोध के ऊपर उनकी वासना हावी हो चली थी। गीली चुत ने उनकी टांगों को कमजोर कर दिया। उन्हे यह डर था की इस अवस्था में शक्तिसिंह के करीब जाने के बाद वह अपने आप को उससे लिपटने से कैसे रोक पाएगी!!

राजमाता की तरफ देखते हुए वह महारानी के गोरे गुंबज जैसे चूतड़ों पर हाथ फेरने लगा। महारानी सिसकियाँ भरते हुए और कराहते हुए दोनों टांगों को चौड़ा कर मस्ती से चुदवा रही थी। शक्तिसिंह ने उनके चूतड़ों को अपने हाथों से और फैलाया ताकि लंड और गहराई से अंदर घुस सके। साथ ही साथ उसने एक बार और महारानी के दाने को पकड़कर मसल दिया।

"ऊई माँ... आहहहहहह....!!! इस दोहरे हमले से महारानी उत्तेजना से कांप उठी

अपनी पुत्रवधू की आवाज ने राजमाता को झकझोर दिया... अनायास ही उनके मुख से निकल गया

"बेटा, जरा ध्यान से..!!" आवाज निकल जाने के बाद राजमाता खुद को कोसने लगी।

पद्मिनी अचानक रुक गई। झुकी हुई मुद्रा से वह तुरंत ऊपर उठ गई। शक्तिसिंह का लंड एक झटके में बाहर निकल गया... महारानी की चुत के रस की कुछ बूंदें नीचे टपक गई। महारानी ने डरते हुए सामने देखा और राजमाता को वहाँ खड़ा देखकर वह स्तब्ध बन गई।

इन सारी बातों से अनजान महारानी की चुत, इस रुकावट से परेशान हो गई। इतने मस्त मोटे लंड से चल रही दमदार चुदाई अचानक रुक जाना उसे राज न आया।

महारानी की दुविधा यह थी की इस परिस्थिति में वह कीसे महत्व दे!! अपनी चुत की अभिलाषा को या अपनी सास को??

महारानी के तंबू के भीतर अजीब सा सन्नाटा छा गया था।

पूरे तंबू में केवल एक ही दिया जगमगा रहा था। परदे के उस तरफ खड़ी राजमाता का चेहरा उसमें साफ दिखाई दे रहा था। गनीमत थी की अंधेरे के कारण उन्हे चेहरे के अलावा और कुछ नहीं दिख रहा था वरना... जांघों तक घाघरा उठाकर अपने दाने को रगड़ती हुई राजमाता नजर आती!!

तीनों एक दूसरे के सामने देख रहे थे। पर शक्तिसिंह और पद्मिनी यह नहीं समझ पाए की राजमाता का गुस्सा अभी तक फटा क्यों नहीं!! अब तक तो वह उनपर बरस चुकी होती... पता नहीं क्यों फिलहाल वह गरीब सा चेहरा बनाकर आँखें मुँदती उनके सामने मूर्ति की तरह खड़ी थी... दोनों बड़े ही आश्चर्य से राजमाता को देखते रहे। कुछ क्षणों तक जब उनके तरफ से कोई प्रतिक्रिया ना मिली तब उसे मुक सहमति समझकर शक्तिसिंह ने फिर से महारानी को झुकाकर घोड़ी बना दिया।

हवस का असर इस कदर सर पर सवार था की महारानी ने भी ज्यादा कुछ ना सोचते हुए जांघें चौड़ी कर दी, झुक गई और अपनी वासना को अधिक महत्व देने का फैसला कर चुदवाने में व्यस्त हो गई। शक्तिसिंह ने अपनी सारी ऊर्जा इस संभोग में झोंक दी थी। अब उसे किसी बात का कोई डर न था। वह भी अब महारानी की पीठ के ऊपर झुककर उनके दोनों स्तनों को हाथ में पकड़कर मसलने लगा।

एक बार फिर शक्तिसिंह ने राजमाता की तरफ नजर की। उनकी आँखों में गुस्से के बजाए महारानी के प्रति जलन स्पष्ट दिख रही थी।

महारानी भी अब ताव में आ गई थी। शक्तिसिंह ने दोनों चूचियाँ पकड़ रखी थी तो उन्होंने खुद ही अपनी क्लिटोरिस को मलना शुरू कर दिया। फैली हुई चुत में मूसल सा लँड किसी यंत्र की तरह अंदर बाहर हो रहा था। चुत से काम-रस की नदी सी बह रही थी। चूचियों को मसल मसलकर शक्तिसिंह ने उसे लाल कर दिया था।

महारानी को इतनी मस्ती से चुदते देख राजमाता को अपराध भावना परेशान करने लगी, यह सोचकर की उसका पुत्र, राजा कमलसिंह, अपनी पत्नी को ऐसा सुख प्रदान करने में विफल रहा। पराकाष्ठा और चरमसुख देने वाली दमदार चुदाई, हर स्त्री का हक है और उसे मिलनी ही चाहिए, ऐसा उनका मानना था। शक्तिसिंह का मूसल चुत के अंदर कितना आनंद दे रहा होगा उसकी कल्पना करते ही राजमाता की चुत ने गुनगुना पानी छोड़ दिया। उन्हे लग रहा था की जो कुछ भी महारानी कर रही थी उसमे उसकी कोई गलती नहीं था। सालों से जो स्त्री ठीक से चुदी ना हो वह ऐसा लंड देखकर खुद को कैसे रोके!! और शुरुआत तो राजमाता ने ही करवाई थी... अब उस चुदाई के बाद अगर महारानी शक्तिसिंह के लंड की ग़ुलाम बन गई तो भला उसमे उस बेचारी का क्या दोष!!

राजमाता ने उस संभोग-रत जोड़े के करीब जाने का फैसला किया। उसने सोचा की जिस तरह से उन्होंने दोनों को अंकुश में रखने का प्रयत्न किया था उसी कारण इन दोनों की कामवासना और भड़क उठी। उन्हे लगा की इन दोनों के करीब जाकर उन्हे मौन स्वीकृति देनी चाहिए।

राजमाता उन दोनों के करीब जाकर खड़ी हो गई। महारानी ने उनको देखते हुए अनदेखा कर दिया और अपनी आनंद यात्रा में लगी रही। वह अभी भी पागलों की तरह अपनी चुत को रगड़ रही थी। शक्तिसिंह ने राजमाता की तरफ एक नजर डाली और फिर महारानी के कूल्हों को पकड़कर वही रफ्तार से चुदाई करने में व्यस्त हो गया।

राजमाता ने पहले शक्तिसिंह की पीठ को सहलाया। उसकी पीठ की मांसपेशियाँ इस परिश्रम से बेहद सख्त और पसीने से लथबथ हो गई थी।

"करो... करते रहो... और खतम करो इसे.. " उन्होंने बड़ी ही धीमी आवाज में कहा और फिर पद्मिनी के सर पर हाथ पसारने लगी।

पद्मिनी ने इशारे से शक्तिसिंह को चुदाई रोकने के लिए कहा। काफी देर से झुककर चुदवाते हुए वह थक गई थी। शक्तिसिंह ने संभालकर अपना लंड उसकी चुत से निकाला.. काले, चिपचिपे लंड जैसे ही बाहर निकला, राजमाता की नजर चुंबक की तरफ उस पर चिपक गई। महारानी अब खड़ी होकर शक्तिसिंह की तरफ मुड़ी। उनका इशारा मिलते ही शक्तिसिंह ने वापिस उन्हे उठाया लिया, रानी ने कमर पर पैर लपेटे और शक्तिसिंह के लंड पर बैठ गई। इस आसान में महारानी को थकान भी नहीं हो रही थी और लंड भी काफी गहराई तक अंदर जाता था।

शक्तिसिंह ने महारानी के होंठों को चूम लिया। महारानी ने भी सामने एक और दीर्घ चुंबन कर उसे प्रतिसाद दिया। नागिन की जीभ की तरह वह शक्तिसिंह के मुंह के हर कोने को नापने लगी। ऐसा प्रतीत हो रहा था की जिस तरह शक्तिसिंह का लंड उनकी चुत को चोद रहा था बिल्कुल वैसे ही वह अपनी जीभ से उसके मुँह को चोदना चाहती थी।

राजमाता भी अब अस्वस्थ सी होने लगी। परदे के पीछे तो वह अपनी उंगली से चुत कुरेदकर अपने आप को संभाल रही थी... पर अब उन दोनों को सामने ऐसा करना संभव नहीं था। वह सोच रही थी की वापिस अपने तंबू में जाकर लकड़ी का डंडा अंदर घुसेड़कर प्यास बुझानी पड़ेगी। पद्मिनी के मस्त मोटे गरम उरोजों को शक्तिसिंह द्वारा मसलवाते देख राजमाता बेहद गरम हो गई। हालांकि अब उनकी चूचियों में अब पद्मिनी जैसा कसाव तो नहीं था पर फिर भी उतनी कटिली तो जरूर थी की किसी मर्द की नजरे चिपक जाए।

और बर्दाश्त ना होने पर वह मुड़कर वापिस अपने तंबू के तरफ जाने लगी तभी, शक्तिसिंह ने उनकी कलाई पकड़कर रोक दिया। राजमाता चकित रह गई। उसने पलटकर देखा तो शक्तिसिंह एक हाथ से महारानी को चूतड़ से पकड़े हुए था और दूसरे हाथ में उनकी कलाई थी। आँख बंद कर लंड पर उछल रही पद्मिनी को जब अपने चूतड़ों के नीचे एक ही हाथ का अनुभव हुआ तब दूसरे हाथ की तलाश में उन्होंने आँखें खोली।

शक्तिसिंह को राजमाता का हाथ पकड़े देख वह क्रोधित हो उठी

"शक्तिसिंह.... " कहते हुए उसने शक्तिसिंह का हाथ झटक कर अपने तरफ कर लिया...

ऐसा करने पर शक्तिसिंह का संतुलन थोड़ा सा बिगड़ गया। अपने आपको गिरने से बचाने के लिए उसने अपनी टाँगे फैलाई। ऐसा करने से उसका लंड महारानी की बच्चेदानी को जा टकराया और उनकी आह निकल गई।

"मुझे चोदते रहो शक्तिसिंह... में अब अपनी मंजिल पर पहुचने वाली हूँ... अपना ध्यान भटकने मत दो.. आह आह.. भर दो मुझे... चोदो मुझे... " पागलों की तरह महारानी बड़बड़ाने लगी।

दोनों ने एक दूसरे को सख्त आगोश में जकड़ रखा था। झांट से झांट उलझ गए थे... लंड और चुत एक दूसरे के रस का आदान-प्रदान कर रहे थे, महारानी की निप्पल शक्तिसिंह की छाती से रगड़ खा रही थी और साथ ही दोनों एक दूसरे के होंठों को चूसते जा रहे थे। शक्तिसिंह के हर धक्के के साथ महारानी का गांड का छिद्र सिकुड़ जाता।

अब महारानी ने अपनी टांगों से शक्तिसिंह को इतनी सख्ती से जकड़ा की उसे लगा जैसे उसकी हड्डियाँ तोड़ देगी। शक्तिसिंह से ओर बर्दाश्त ना हुआ... उसके सुपाड़े ने गरम गरम वीर्य की ८ - १० लंबी पिचकारियाँ महारानी की चुत में छोड़ दिए। महारानी के गर्भाशय ने उस मजेदार वीर्य का खुले दिल से स्वागत किया।

दोनों एक दूसरे के सामने देख मुस्कुराये। नीचे लंड और चुत भिन्न रसों से द्रवित हो चुके थे। दोनों के जिस्म पसीने से तरबतर हो गए थे। आँखों में संतुष्टि की अनोखी चमक भी थी।

स्खलन के बाद भी शक्तिसिंह का लंड नरम नहीं पड़ा। शक्तिसिंह ने अब धीरे से अपने घुटने मोड और संभालकर महारानी को जमीन पर लिटा दिया। उस दौरान उसने यह ध्यान रखा की एक पल के लिए भी उसका लंड महारानी की चुत से बाहर ना निकले।

इसने नए आसन में लंड और चुत को अनोखा मज़ा आने लगा। शक्तिसिंह ने महारानी की दोनों टांगों को अपने कंधे पर ले लिया और उनके शरीर के ऊपर आते हुए जोरदार धक्के लगाने लगा।

ऐसा प्रतीत हो रहा था की आज रात शक्तिसिंह का लंड नरम होगा ही नहीं। अमूमन महारानी भी यही चाहती थी की यह दमदार चुदाई का दौर चलता ही रहे। सैनिक और महारानी दोनों अब काफी थक भी चुके थे। चुदते हुए महारानी ने अपने हाथों से शक्तिसिंह के टट्टों को पकड़कर सहलाना शुरू किया। शक्तिसिंह अब फिरसे चिल्लाते हुए वीर्यस्खलित करने लगा और साथ ही साथ महारानी का भी पानी निकल गया।

वह थका हुआ सैनिक, महारानी के स्तनों पर ही ढेर हो गया और उसी अवस्था में दोनों की आँख लग गई।

राजमाता दबे पाँव अपने तंबू की तरफ निकल ली। इन दोनों ने तो अपनी आग बुझा ली थी पर उनकी चुत में घमासान मचा हुआ था।

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आश्रम के एक कक्ष में, महारानी पद्मिनी एक बड़े से पत्थर पर लेटी हुई थी। ऊपर लटके हुए कलश के छेद से तेल की धारा रानी के सर पर ऊपर गिरकर उन्हे एक अनोखी शांति अर्पित कर रही थी। महारानी को गजब का स्वर्गीय सुख मिल रहा था। योगी के आश्रम में इन जड़ीबूटी युक्त तेल से चल रहा उपचार महारानी के रोमरोम को जागृत कर रहा था।

ऐसी सुविधाएं तो उनके महल में भी मौजूद थी। पर यहाँ के शुद्ध वातावरण और परिवेश में बदलाव ने उन्हे अनोखी ऊर्जा प्रदान की थी।

पिछले कुछ दिनों से शक्तिसिंह द्वारा मिल रही सेवा ने उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर बड़ा ही सकारात्मक बदलाव किया था। दोनों के बीच रोज बड़ी ही दमदार चुदाई होती थी और महारानी को बड़े ऊर्जावान अंदाज में चोदा गया था। लगातार चुदाई के कारण उनकी जांघों का अंदरूनी हिस्सा छील गया था और उनकी चुत भी काफी फैल गई थी। अंग अंग दर्द कर रहा था पर उस दर्द में ऐसी मिठास थी की दिल चाहता था की उसमे ओर इजाफा हो।

आश्रम मे मालिश करने वाली स्त्री बड़ी ही काबिल थी। उसने महारानी के जिस्म के कोने कोने पर जड़ीबूटी वाला तेल रगड़ कर पूरे जिस्म को शिथिल कर दिया था। शरीर में नवचेतन का प्रसार होते ही महारानी पद्मिनी की चुत फिर से अपने जीवन में आए नए मर्द के लंड को तरसने लगी थी। हवस ऐसे सर पर सवार हो रही थी की वह चाहती थी की अभी वह मालिश वाली औरत को ही दबोच ले। पर अब शक्तिसिंह के वापिस लौटने का समय या चुका था और वह उसके संग एक आखिरी रात बिताना चाहती थी।

पिछले कुछ दिनों में राजमाता ने महारानी और शक्तिसिंह जिस कदर चुदाई करते देखा था उसके बाद उन्हे महारानी के गर्भवती हो जाने पर जरा सा भी संशय नहीं बचा था। उस तगड़े सैनिक ने कई बार महारणी की चुत में वीर्य की धार की थी। यहाँ तक की उन दोनों की चुदाई देख देख कर राजमाता की भूख भड़क चुकी थी।

लेकिन अपनी जिम्मेदारियों को संभालते हुए, योजना के तहत उन्होंने शक्तिसिंह को अपने दल के साथ सूरजगढ़ वापिस लौट जाने का हुकूम दे दिया था। अब कुछ गिने चुने सैनिक और दासियाँ आश्रम में महारानी के साथ तब तक रहेंगे जब तक गर्भाधान की पुष्टि ना हो जाए। जब वापिस जाने का समय आएगा तब उन्हे संदेश देकर बुलाया जाएगा पर अभी के लिए उनकी कोई आवश्यकता नहीं थी।

उस रात, शक्तिसिंह और महारानी ने फर्श पर सोते हुए घंटों चुदाई की। एक बार स्खलित हो जाने के बाद महारानी तुरंत उसका लंड मुंह में लेकर चूसने लगती और फिर से चुदने के लिए तैयार हो जाती। कामशास्त्र के हर आसन में वह दोनों चोद चुके थे। महरानी ने सिसकते कराहते हुए तब तक चुदवाया जब तक उनकी चुत छील ना गई। पूरी रात इन दोनों की आवाज के कारण राजमाता भी ठीक से सो नहीं पाई।

दूसरी सुबह, शक्तिसिंह अपना सामान बांध रहा था जब महारानी की सबसे विश्वसनीय दासी ने आकार उसे यह संदेश दिया

"तुम जाओ उससे पहले महारानी साहेब तुम से मिलना चाहती है"

"वो कहाँ है अभी?" शक्तिसिंह को सुबह से महारानी कहीं दिख नहीं रही थी और राजमाता से पूछने पर उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया था

"वहाँ आश्रम के कोने में बनी घास की कुटिया में वह मालिश करवा रही है" दासी ने शरमाते हुए कहा। उसे महारानी और शक्तिसिंह के रात्री-खेल के बारे में पता लग चुका था "शक्तिसिंह सही में गजब की ठुकाई करता होगा तभी तो महारानी ने उसके लिए अपना घाघरा उठाया होगा" वह सोच रही थी

पद्मिनी वहाँ कुटिया में नंगी होकर लैटी हुई थी। मालिश करने वाली ने उसके अंग अंग को मलकर इतना हल्का कर दिया था की उनका पूरा शरीर नवपल्लवित हो गया था। हालांकि शरीर का एक हिस्सा ऐसा था जिसे मालिश के बाद भी चैन नहीं थी। महारानी की जांघों के बीच बसी चुत अब भी फड़फड़ा रही थी। शक्तिसिंह ने महारानी की संभोग तृष्णा इस कदर बढ़ा दी थी की महारानी तय नहीं कर पा रही थी की उसका क्या किया जाए!! वह बेहद व्यथित थी की शक्तिसिंह वापिस सूरजगढ़ लौट रहा था।

शायद उन्हे ज्यादा सावधानी बरत कर राजमाता से छुपकर इस काम को अंजाम देना चाहिए था। अब जब राजमाता को इस बारे में पता चल गया था तो वह अपने नियम और अंकुश लादकर उन्हे एक दूसरे से दूर कर रही थी।

महारानी पद्मिनी का शरीर, शक्तिसिंह के खुरदरे हाथों से ठीक उन्हीं स्थानों पर मालिश करवाने के लिए धड़क रहा था, जहां मालिश करने वाली सेविका के नरम लेकिन दृढ़ हाथ घूम रहे थे।शक्तिसिंह ने उस कुटिया में प्रवेश किया। महारानी को वहाँ नंगा लैटे हुए देख वह एक पल के लिए चोंक गया। मालिश से तर होकर उनकी दोनों गोरी चूचियाँ चमक रही थी। शारीरिक घर्षण के कारण उनकी निप्पल सख्त हो गई थी। वह सेविका अब महारानी की जांघे चौड़ी कर अंदरूनी हिस्सों में तेल मले जा रही थी। शक्तिसिंह के लंड ने महारानी के नंगे जिस्म को धोती के अंदर से ही सलामी ठोक दी।

पिछले कुछ दिनों से शक्तिसिंह का लंड ज्यादातर खड़ा ही रहता था। उसे राहत तब मिलती थी जब उसे महारानी की चुत के गरम होंठों के बीच घुसने का मौका मिले। शक्तिसिंह के आने का ज्ञान होते ही महारानी ने अपनी खुली जांघों के बीच के चुत को उभार कर ऊपर कर लिया, जैसे वह शक्तिसिंह के सामने उसे पेश कर रही हो। चुत के बाल तेल से लिप्त थे और चुत के होंठों पर तेल लगा हुआ था। गरम तो वह पहले से ही थी। छोटी सी कुटिया में उनकी गरम चुत की भांप ने एक अलग तरह की गंध छोड़ रखी थी।

शक्तिसिंह को अपने करीब बुलाते हुए महारानी ने कहा

"शक्तिसिंह, यह मालिश वाली अपना काम ठीक से कर नहीं पा रही है" आँखें नचाते हुए बड़े ही गहरे स्वर में वह फुसफुसाई। यह कहते हुए उन्होंने अपनी एक चुची को पकड़कर मसला और अपना निचला होंठ दांतों तले दबा दिया।

"महारानी साहेबा... " शक्तिसिंह धीरे से उनके कानों के पास बोला

"अममम... महारानी साहेब नहीं, मुझे पद्मिनी कहकर बुलाओ" शक्तिसिंह की धोती के अंदर वह लंड टटोलने लगी

धोती के ऊपर से ही लंड को पकड़कर वह गहरी आवाज में बोली "मेरी अच्छे से मालिश कर दो तुम" अपनी टांगों को पूरी तरह से फेला दिया उन्होंने

इस वासना से भरी स्त्री को शक्तिसिंह देखता ही रहा... उसके जाने का वक्त हो चला था... और अब वह दोनों कभी फिर इस तरह दोबारा मिल नहीं पाएंगे। शक्तिसिंह ने उसकी नरम मांसल जांघों पर अपना सख्त खुरदरा हाथ रख दिया।

जांघों के ऊपर उसे पनियाई चुत के होंठ, गहरी नाभि, और दो शानदार स्तनों के बीच से महारानी उसकी तरफ देखती नजर आई। उसकी नजर महारानी की चुत पर थी और वह चाहता था की अपनी लपलपाती जीभ उस गुलाबी छेद के अंदर डाल दे।

वह अब महारानी के पैरों के बीच आधा लेट गया। अपने मजबूत हाथों से उसने घुटनों से लेकर जंघा-मूल तक हाथ फेरकर मालिश करना शुरू किया। महारानी ने आँखें बंद कर इस स्वर्गीय आनंद का रसपान शुरू कर दिया। शक्तिसिंह अपना हाथ चुत तक ले जाता पर उसका स्पर्श न करता। इस कारण महारानी तड़प रही थी। वह जान बूझकर महारानी के धैर्य की परीक्षा ले रहा था। उसके हर स्पर्श के साथ चुत के होंठ सिकुड़ कर द्रवित हो जाते थे।

शक्तिसिंह ने ऐसे कुशलतापूर्वक उसकी जांघों के सभी संवेदनशील हिस्सों को रगड़ा की महारानी कांप उठी। उन्होंने अपने घुटनों को ऊपर की और उठाकर अपनी तड़प रही चुत के प्रति शक्तिसिंह का ध्यान आकर्षित करने का प्रयत्न किया।

शक्तिसिंह ने अपने दोनों अंगूठों से चुत के इर्दगिर्द मसाज किया। अंगूठे से दबाकर उसने चुत के होंठों को चौड़ा कर दिया। अंदर का गुलाबी हिस्सा काम-रस से भर चुका था। होंठों के खुलते ही अंदर से रस की धारा बाहर निकालकर महारानी के गाँड़ के छेद तक बह गई। महारानी की क्लिटोरिस फूलकर लाल हो गई थी। शक्तिसिंह बिना चुत का स्पर्श किए ऊपर ऊपर से ही उससे खेलता रहा।

"क्या कर रहे हो, शक्तिसिंह??" महारानी कराह उठी

शक्तिसिंह ने फिर से अपने दोनों अंगूठों की मदद से क्लिटोरिस के इर्दगिर्द दबाव बनाया और उसे उकसाने लगा। चुत ने एक डकार मारी और उसमे से काफी मात्र में द्रव्य निकलने लगा। वह महारानी की चुत को जिस स्थिति में लाना चाहता था वह अब प्राप्त हो चुकी थी। उसका लंड धोती में तंबू बनाए कब से अपने मालिक की हरकतों को महसूस कर रहा था।

शक्तिसिंह बारी बारी क्लिटोरिस को दोनों तरफ से बिना स्पर्श किए हुए फैलाता और दबाता। बड़ा ही अनोखा सुख मिल रहा था महारानी को पर उन्हे यह समझ में नहीं आ रहा था की वह क्लिटोरिस को सीधे सीधे क्यों नहीं रगड़ देता!!! बर्दाश्त की हद पार हो जाने पर महारानी ने शक्तिसिंह के हाथ को पकड़कर अपनी क्लिटोरिस पर दबा दिया।

शक्तिसिंह ने अपना हाथ वापिस खींच लिया और क्लिटोरिस से पूर्ववत छेड़खानी शुरू कर दी। महारानी की निप्पल अब इस खेल के कारण लाल लाल हो गई थी। वह खुद अपने स्तनों को इतनी निर्दयता से मसल और मरोड़ रही थी... !!

शक्तिसिंह महारानी के शरीर के ऊपर आ गया। उसकी गरम साँसे महारानी के उत्तेजित स्तनों को छु रही थी। उस दौरान उसके कड़े लंड का स्पर्श रानी को अपनी चुत के ऊपर महसूस हुआ।

क्लिटोरिस से लेकर निप्पल तक जैसे बिजली कौंध गई। उसने फिर से अपने स्तनों को दबोचना चाहा पर शक्तिसिंह ने उनके हाथों को दूर हटा दिया।

"यह दोनों अब मेरे है... " गुर्राते हुए वह बोला।

महारानी तड़पती हुई अपने सिर को यहाँ से वहाँ हिला रही थी। वह अपने जिस्म के विविध हिस्सों को छुना और रगड़ना चाहती थी पर शक्तिसिंह उसे ऐसा करने नहीं दे रहा था। वह जानबूझकर उन्हे तड़पा रहा था।

शक्तिसिंह फिर नीचे महारानी की टांगों के बीच चला गया। उसने अपनी जीभ को एक बार चुत की लकीर पर घुमाया और चुत के रस को अपनी जीभ पर लेकर महारानी की नाभि से लेकर स्तनों के बीच तक लगा दिया। महारानी सिहर उठी।

जितनी बार शक्तिसिंह उनके स्तनों के करीब आता था, महारानी को लगता था की वह अभी उनपर टूट पड़ेगा। पर हर बार शक्तिसिंह, स्तनों को बिना छूए वापिस नीचे चला जाता था। हर बार अपनी जीभ से चुत के रस लेकर आता और महारानी के विविध अंगों पर उस रस को अपनी जीभ से लेप करता गया।

लाचार होकर महारानी आँखें बंद कर इस एहसास को महसूस कर रही थी तभी.... शक्तिसिंह ने दोनों हाथों से बड़ी ही निर्दयता से उनके स्तनों को पकड़ लिया। महरानी कराहने लगी, उन्होंने अपनी चुत और स्तनों को और ऊपर उभार लिया ताकि शक्तिसिंह के जिस्म से ज्यादा से ज्यादा संपर्क हो पाए। पास पड़े पात्र में से तेल लेकर उसने महारानी के दोनों स्तनों को गोल गोल घुमाते हुए मालिश करना शुरू कर दिया।

महारानी कराह रही थी। उनकी दोनों निप्पल कड़ी होकर शक्तिसिंह को अपनी और आकर्षित करने का प्रयास कर रही थी। शक्तिसिंह ने स्तनों से लेकर चुत तक तेल की धार गिरा दी और अपने हाथों को फैलाकर मालिश करने लगा। महारानी अब बेशर्मों की तरह चिल्ला रही थी। शक्तिसिंह मुसकुराते हुए महारानी की इस लाचारी का आनंद उठा रहा था।

शक्तिसिंह ने बड़ी ही सहजता से अपने सर को महारानी के जिस्म के नीचे के हिस्से तक ले गया... उनकी जांघों को अपने हाथों से चौड़ा किया... और अपनी गरम जीभ को महारानी की चुत के होंठों पर रगड़ना शुरू कर दिया।

महारानी की दोनों आँखें ऊपर चढ़ गई । शक्तिसिंह की खुरदरी जीभ ने उनकी चुत में ऐसा भूचाल मचाया की वह तुरंत अपने गांड के छिद्र को सिकुड़ते हुए झड़ गई..!!! उन्होंने अपने दोनों हाथों से बड़ी ही मजबूती से शक्तिसिंह के सर को अपनी चुत पर ऐसे दबा दिया था की शक्तिसिंह चाहकर भी उनकी चुत से दूर ना हट सके। वह अपनी कमर उठाकर शक्तिसिंह की जीभ से अपनी चुत को चुदवाने लगी। शक्तिसिंह की लार से अब उनकी चुत का अमृत मिश्रित होकर जंघामूल के रास्ते नीचे टपक रहा था।

शक्तिसिंह का ध्यान अब चुत के होंठों से हटकर, ऊपर की तरफ, मुनक्का जितनी बड़ी क्लिटोरिस पर जा टीका। उसने अपनी जीभ को क्लिटोरिस पर लपलपाई और फिर उसे हल्के से मरोड़ दिया।

महारानी ने आनंद मिश्रित चीख दे मारी... उनकी चीख की गूंज ने उस कुटिया को हिलाकर रख दिया। महारानी को अब किसी की भी परवाह नहीं थी.. अपने संवेदन और भावनाओ को ज्यों का त्यों व्यक्त करने से अब वह पीछे नहीं हटती थी। वह बार बार चीखती रही "आह्हहह शक्तिसिंह... क्या कर दिया तुमने!!" उनके स्वर से यह बड़ा ही स्पष्ट था की उन्हे कितना मज़ा आ रहा था।

शक्तिसिंह ने चुत के इर्दगिर्द, क्लिटोरिस पर और चुत के होंठों पर, सब जगह जीभ फेरते हुए अपनी नजर महारानी के चेहरे पर केंद्रित की। उसने यह ढूंढ निकाला की महारानी की चुत का कौन सा हिस्सा सब से ज्यादा संवेदनशील है... और फिर अपनी जीभ को उसी पर केंद्रित कर दिया।

"आह्हह... हाँ हाँ... वहीं पर... ऊईई माँ... मर गई में... ईशशश..." महारानी के पूरे जिस्म में तूफान सा उमड़ पड़ा था। वह आँखें बंद कर शक्तिसिंह के दोनों कानों को पकड़कर मरोड़ रही थी। उनकी टाँगे वह बार बार पटक रही थी। उनके चूतड़ बड़ी ही लय में ऊपर नीचे हो रहे थे।

महारानी की इन हलचलों की वजह से अब शक्तिसिंह किसी एक जगह पर अपनी जीभ को केंद्रित नहीं कर पा रहा था। हालांकि उससे अब कुछ ज्यादा फरक नहीं पड़ रहा था क्योंकी महारानी अपनी पराकाष्ठा की और दिव्य सफर पर निकल चुकी थी।

"आहहहहहहहहहहह.....................!!!!!!!!!" महारानी अब अपनी जांघों से शक्तिसिंह को जकड़कर ऐसे घुमाया रही थी जैसे मल्लयुद्ध के दांव आजमा रही हो। शक्तिसिंह ने अपने हाथों से उनकी चूचियों को पकड़कर निप्पलों की चुटकी काट ली। उसकी उंगलियों ने निप्पलों पर अपना अत्याचार जारी रखा। महारानी आनंद के समंदर में गोते लगा रही थी। शक्तिसिंह की गर्दन के अगलबगल में उन्होंने अपनी जांघों को ऐसे बंद कर दिया था की शक्तिसिंह को घुटन सी होने लगी थी।

अचानक से स्खलन के आवेगों ने महारानी को अपने वश में कर लिया...!! वह बुरी तरह तड़पती हुई अस्पष्ट उदगार निकालनी लगी। अपने पंजों से शक्तिसिंह के बालों को नोचती हुई वह पैर पटकने लगी। उनकी योनि मार्ग ने एक आखिरी बार संकुचित होकर अपना मुंह खोला और अपना गरम गरम काम रस बहाने लगी। यह रस इतनी मात्रा में बह रहा था की शक्तिसिंह चाहकर भी उसे पूरा चाट नहीं पा रहा था।

"अब मुझे मन भर कर चोद... इतना चोद की मेरी आत्मा तृप्त हो जाए... की आज अगर मेरी मृत्यु भी हो जाए तो मुझे कोई आपत्ति ना हो!!" स्खलित होते ही उसकी चुत ने अब लंड को प्राप्त करने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया था।

उसने शक्तिसिंह को अपनी जांघों से मुक्त किया और खड़ी हो गई। धोती में से उसने अपने खिलाड़ी को ढूंढ निकाली। शक्तिसिंह का लंड फुँकारे मारता हुआ कब से तैयार बैठा था। पास पड़े पात्र से हाथों में तेल लेकर, पद्मिनी ने शक्तिसिंह के लंड पर मलना शुरू कर दिया।

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"महारानी साहेब, अब मुझसे और बर्दाश्त नहीं हो पाएगा... मुझे अंदर डालने दीजिए!!" शक्तिसिंह ने बड़ी ही भारी स्वर में कहा

महारानी ने पूरे सुपाड़े को तेल से चिपचिपा करते हुए मालिश की और फिर लंड को चूम लिया। उनकी चुत दोनों जांघों के बीच से भांप निकालते हुए चौड़ी होकर इस लंड को अपने अंदर लेने के लिए तड़प रही थी। उन दोनों के जिस्म पर इतनी मात्रा में तेल लगा हुआ था की शक्तिसिंह को यह संदेह था की इतनी चिपचिपी अवस्था में क्या वह पूर्ण नियंत्रण से महारानी को पकड़कर ठीक से चोद पाएगा भी या नहीं।

शक्तिसिंह को कामसूत्र में लिखे एक आसन की याद आई। उसने महारानी को निर्देश देते हुए घोड़ी की तरह चार पैरों पर हो जाने को कहा। महारानी ने तुरंत इसका पालन किया। जिस पत्थर पर लेटकर वह मालिश करवा रही थी, उस पत्थर को दोनों तरफ से मजबूती से पकड़कर उन्होंने अपने चूतड़ फैलाए और अपनी चुत को शक्तिसिंह के सामने पेश कर दी।

शक्तिसिंह ने अपने जिस्म को घुटने मोड कर थोड़ा सा झुका लिया ताकि उसका लंड, महारानी की चुत के बिल्कुल सामने हो। अपना सुपाड़ा उसने महारानी की गांड के छेद से लेकर चुत पर इस कदर रगड़ा की महारानी पागल हो गई। साथ साथ महारानी को यह डर भी सताने लगा की कहीं शक्तिसिंह का मूसल गलत छेद में घुस ना जाएँ!!

शक्तिसिंह अब सही छेद ढूँढने का अभ्यस्त हो चुका था। उसने अपनी हथेली पर लार लगाई, हाथ महारानी की जांघों के बीच डाला और उंगलियों से चुत के होंठों को फैलाकर अपना सुपाड़ा चुत के मुख पर टीका दिया।

"अब लगाओ धक्का... " महारानी ने कराहते हुए शक्तिसिंह को विनती की।

शक्तिसिंह ने अपनी कमर हिलाकर एक जोरदार धक्का लगाया... पहले से गीली और गरम हो चुकी चुत में उसका लंड, मूल तक अंदर घुस गया...!! उसका पेट महारानी के चूतड़ों पर जा टकराया और उसके टट्टों ने महारानी की क्लिटोरिस पर चपत लगाई।

पूरा लंड निगलने के बाद महारानी के चेहरे पर एक अनोखे आनंद की रेखा प्रदीप्त हुई। शक्तिसिंह ने दोनों हाथों से महारानी के चूतड़ों को मजबूती से पकड़ लिया और धमाधम धक्के लगाने लगा। पद्मिनी अपने घुटनों को ज्यादा से ज्यादा चौड़ा कर रही थी ताकि लंड पूरी गहराई तक चोट मारे। लंड और चुत का मिश्रित रस... शक्तिसिंह के चाटने से लगी लार... और मालिश का तेल... इन सब से लिप्त दोनों जिस्म ऐसे एक दूसरे में समय रहे थी जैसे गरम मक्खन में छुरी...!!

शक्तिसिंह का लंड अब महारानी की चुत के ऐसे स्थानों पर प्रहार कर रहा था की हर धक्के के साथ महारानी की जोरदार आह निकल जाती थी। एक हाथ पत्थर पर और दूसरे हाथ से अपने स्तन को मर्दन करते हुए महारानी अपनी चूतड़ों को आगे पीछे करते हुए शक्तिसिंह के ताल से ताल मिला रही थी।

जिस पत्थर पर यह दोनों संभोग कर रहे थे, वह पत्थर भी तेल से स्निग्ध था। इस कारण दोनों को अपना संतुलन बनाए रखने में काफी ध्यान रखना पड़ता था। इसका तोड़ शक्तिसिंह ने निकाल लिया। उसने तुरंत महरानी की दोनों चूचियों को पकड़कर अपना संतुलन बनाए रखा। महारानी ने अब अपनी दोनों हथेलिया पत्थर पर टीका दी थी।

"आह आह आह... देखो तुम्हारी महारानी... कैसे जानवरों की तरह चुद रही है... दबाओ उसके स्तनों को...आह और जोर से... मारो धक्के... मार धक्के... लगा.. आह.. लगा जोर से..." महारानी के सर पर चुदाई का पागलपन सवार हो चला था। शक्तिसिंह ने महारानी के स्तनों को ऐसा पकड़कर मरोड़ा मानो उनकी छाती से अलग ही कर देगा!! महारानी ने अब अपनी चुत का कोण बदलकर उतनी ही ताकत से उलटे झटके लगाने शुरू कर दिए। जब भी उनके कूल्हे और शक्तिसिंह का पेट टकराता तब "थपाक थपाक" की आवाज गूंज उठती। शक्तिसिंह का सुपाड़ा बेहद फूलकर महारानी की चुत के अंदरूनी हिस्सों को और फैला रहा था।


पसीने और तेल से लथबथ दोनों योद्धा, अपने कौशल का पूर्ण इशतेमाल करते हुए, यह यत्न कर रहे थे की अपनी मंजिल को प्राप्त कर सकें। हालांकि यह स्पष्ट था की महारानी का पलड़ा इस युद्ध में काफी भारी था और वह उलटे धक्के लगाते हुए शक्तिसिंह को परास्त कर रही थी।

"रुक जाइए महारानी... " अपना स्खलन बेहद निकट प्रतीत होते हुए शक्तिसिंह ने आवाज लगाई। वह अभी इस खेल को समाप्त नहीं करना चाहता था। जिस क्रूरता से महारानी धक्के लगा रही थी उस तेजी से शक्तिसिंह के लंड को झड़ जाने में कोई कष्ट ना होता।

यह सुनने के बाद जैसे महारानी को कोई फरक नहीं पड़ा.. वह अपनी चुत की आग के सामने लाचार थी... स्वयं को चरमसीमा को इतना करीब पाकर वह शक्तिसिंह की सुनकर रुकना नहीं चाहती थी। उन्होंने धक्के लगाना जारा रखा... शक्तिसिंह पीछे हट गया ताकि उसका लंड महारानी की चुत से निकल जाए। पर महारानी खुद भी पीछे हो गई और यह सुनिश्चित किया की इस नाजुक घड़ी में लंड बाहर ना निकल आए।

जिसका डर था वहीं हुआ... शक्तिसिंह गुर्राते हुए झड़ने लगा... बड़ी मात्र में गाढ़ा वीर्य महारानी की चुत में बरसने लगा.. इस गर्माहट का एहसास होते ही महारानी भी कांपने लगी। भेड़िये की भांति अपना चेहरा छत की तरफ करते हुए उन्होंने भी अपनी चुत बहा दी। शक्तिसिंह अब भी धक्के लगा रहा था और उसके हर झटके के साथ वीर्य की धराएं महारानी की चुत से नीचे गिर रही थी।

दोनों अभी भी चरमसीमा का सुख अनुभावित करते हुए कांप रहे थे। शक्तिसिंह ने अपना हथियार महारानी की चुत से बाहर निकाल और उनके बगल में ही ढेर हो गया। महारानी भी शक्तिसिंह की छाती पर सर रखकर लेट गई। इस अवस्था में उनकी भारी चूचियों को शक्तिसिंह की हथेलिया मसल रही थी।

इस अनोखे हसीन अनुभव का पूरा स्वाद अभी दोनों ले ही रहे थे की तभी कुटिया में राजमाता कौशल्यादेवी ने प्रवेश किया!!!
Bahut kamuk update diya aur writing skills lajabab hai
 
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