उधर पुल को पार कर वो जीपें हमारे काफी नज़दीक पहुॅच चुकी थी। मेरी नज़र अचानक ही सामने बैठे आदित्य पर पड़ी। उसने अपने बैग से एक रिवाल्वर निकाला था। मतलब साफ था कि आदित्य हर तरह से चौकन्ना और चाकचौबंद ही था। देखते ही देखते सामने से आ रही वो जीपें टैक्सी के बीस मीटर के फाॅसले पर आकर रुक गईं। बीच सड़क पर और सड़क की पूरी चौड़ाई पर दो जीपे इस तरह आकर खड़ी हो गई थी कि अब सामने से टैक्सी निकल नहीं सकती थी। उसके लिए ड्राइवर को सड़क के नीचे हल्के से ढलान पर टैक्सी को उतारना पड़ता।
हमारे पीछे आ रही दोनो गाड़ियाॅ भी टैक्सी के पीछे दस मीटर के फाॅसले पर खड़ी हो गई थी। इधर सामने खड़ी जीपों के दरवाजे एक साथ एक झटके से खुले और उसमें से मेरे बड़े पापा के चिरपरिचित आदमी बाहर निकले। सबके हाॅथों में लट्ठ थे। जीपों से उतर कर वो सब टैक्सी की तरफ आने लगे। मैने देखा कि बड़े पापा वहाॅ कहीं नज़र नहीं आए मुझे। इसका मतलब उन्होंने इन लोगों को मुझे लाने के लिए भेजा था।
"पवन, तुम इस टैक्सी में आराम से बैठे रहना।" मैने पवन से कहा__"और हाॅ चिन्ता की कोई बात नहीं है। मैं और आदित्य अभी इन लोगों से निपट कर आते हैं। चलो दोस्त।"
"चलो मैं तो एकदम से तैयार ही हूॅ।" आदित्य ने कहा___"लेकिन एक समस्या है यार।"
"समस्या?" मैने पूछा__"कैसी समस्या?"
"हमारे पीछे खड़ी गाड़ियों में कौन हो सकता है?" आदित्य ने कहा__"क्या उसमें भी दुश्मन ही हैं? ये जानना ज़रूरी है भाई। क्योंकि वो पीछे से हम पर हमला करके हमें नुकसान भी पहुॅचा सकते हैं।"
"वो हम पर हमला नहीं करेंगे दोस्त।" मैने एक नज़र पवन पर डालने के बाद कहा__"बल्कि मुझे लगता है कि वो लोग हमारी सुरक्षा के लिए हैं।"
"हमारी सुरक्षा के लिए?" आदित्य के साथ साथ पवन भी चौंका था मेरी बात से।
"हाॅ भाई।" मैने कहा___"पवन ने तो यही बोला है मुझसे।"
"क्या????" पवन बुरी तरह हड़बड़ा गया, बोला___"मैने ऐसा कब कहा तुझसे?"
"यही तो ग़लत बात है न भाई।" मैने अजीब भाव से कहा___"कि तुमने कुछ कहा ही नहीं। मगर मैं तेरे चेहरे से सब समझ गया हूॅ। तू बताना नहीं चाहता तो कोई बात नहीं। चलो आदित्य, वो टैक्सी के करीब ही आ गए हैं।"
मेरे कहते ही आदित्य अपनी तरफ का दरवाजा खोल कर टैक्सी से बाहर आ गया और इधर मैं भी। पवन मूर्खों की तरह मुझे देखता रह गया था। जब मैं उतरने लगा तो उसने मुझे पकड़ने के लिए हाॅथ बढ़ाया ज़रूर मगर मैं उसे बेफिक्र रहने का कह कर टैक्सी से बाहर आ गया। टैक्सी से उतर कर मैं और आदित्य सामने की तरफ बढ़ चले।
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उधर हास्पिटल में!
रितू समय से पहले ही हास्पिटल पहुॅच गई थी। हास्पिटल के बाहर हर तरफ सादे कपड़ों में पुलिस के आदमी तैनात कर दिये थे उसने। सबको शख्त आदेश था कि कोई भी संदिग्ध आदमी विराज को किसी भी तरह का नुकसान न पहुॅचा सके। सब कुछ ब्यवस्थित करने के बाद ही वह हास्पिटल के अंदर विधी के पास आ गई थी। उसने विधी के माता पिता को भी फोन करके बुला लिया था।
रितू के कहने पर हास्पिटल की नर्सों ने विधी को एकदम से साफ सुथरा करके नये कपड़े पहना दिये थे। विधी के बार बार पूछने पर ही रितू ने उसे बताया कि उसका महबूब उसका प्यार आज उसके पास आ रहा है। रितू के मुख से ये बात सुन कर विधी का मुरझाया हुआ चेहरा ताजे गुलाम की मानिंद खिल उठा था मगर फिर जाने क्या सोच कर उसकी ऑखें छलक पड़ीं। रितू उसकी भावनाओं और जज़्बातों को बखूबी समझ सकती थी, कदाचित यही वजह थी कि जैसे ही विधी की ऑखें छलकीं वैसे ही रितू ने उसे अपने सीने से लगा लिया था।
"हाय दीदी ये मेरे साथ क्यों हो गया?" विधी ने रोते हुए कहा___"मैने उस भगवान का क्या बिगाड़ा था जो उसने मेरी ज़िदगी और मेरी साॅसे कम कर दी? उसको ज़रा भी मेरी खुशियाॅ रास नहीं आईं। उसने मुझसे अपराध करवाया। मुझसे अपराध करवाया कि मैने अपने प्यार को दुख दिया और उसे खुद से दूर कर दिया। आज इस हालत में मैं कैसे उसके सामने खुद को पेश करूॅगी? मैं जानती हूॅ कि वो मुझे इस हाल में देखेगा तो उसे मेरी इस हालत पर बहुत दुख होगा। मैं उसे दुखी होते हुए नहीं देख सकती दीदी। मुझसे ग़लती हो गई जो मैने आपसे उसे बुलाने के लिए कहा। मैं मर जाती तो उसे इसका पता ही नहीं चलता और ना ही उसे इस सबसे दुख होता। क्या ऐसा नहीं हो सकता दीदी कि वो यहाॅ आए ही न? वापस वहीं लौट जाए जहाॅ से वह आ रहा है।"
"ऐसी बातें मत कर पागल।" रितू का हृदय ये सोच कर हाहाकार कर उठा कि इस हाल में भी वो लड़की अपने महबूब को खुश देखना चाहती है, बोली___"कुछ मत बोल तू। सब कुछ अच्छा ही होगा विधी और ये तो अच्छा ही हुआ जो तूने मुझसे विराज को बुलाने का कह दिया। तू नहीं जानती विधी कि तेरे मिलने से मुझे क्या मिल गया है। तेरा प्यार और तेरे प्यार की इस तड़प ने मेरा समूचा अस्तित्व ही बदल दिया है। इसके लिए मैं ताऊम्र तक तेरी आभारी रहूॅगी। मुझे दुख है कि तेरे जैसी पाक़ दिल वाली लड़की को मैं किसी भी तरह से बचा नहीं सकती। काश मेरे पास कोई जादू की छड़ी होती जिससे मैं तुझे पल भर में ठीक कर देती और तेरे हाॅथों में तेरे महबूब का प्यार सौंप देती।"
"दीदी मेरे बाद आप मेरे राज का ख़याल रखिएगा।" विधी ने बिलखते हुए कहा__"उसे खूब प्यार दीजिएगा। उसने अपने जीवन में कभी सुख नहीं देखा। उसके अपनों ने उसे हर पल सिर्फ दर्द दिया है। यहाॅ तक कि मैने भी उसे सबसे ज्यादा दर्द दिया है।"
"ऐसा मत कह विधी।" रितू के अंदर हूक सी उठी थी, बोली__"तेरा हर शब्द मुझे बेहद पीड़ा देता है। मैं चाहती हूॅ कि जितना भी तेरे पास जीवन शेष है उसे तू हॅसी खुशी अपने महबूब के साथ जिये। इस संसार में जो भी आया है उसे एक दिन इस दुनियाॅ से सबको छोंड़ कर चले ही जाना है। यही संसार का सबसे बड़ा सत्य है। इस लिए विधी ये दुख ये संताप अपने अंदर से निकालने की कोशिश करो। तुमने किसी को कोई दर्द नहीं दिया। ये सब तो इंसान के अपने भाग्य से मिलते हैं। कोई किसी को कुछ दे नहीं सकता। देने वाला सिर्फ ईश्वर है और लेने वाला भी। ख़ैर छोंड़ ये सब बातें और चल मेरे साथ। उस कमरे में तेरे माॅम डैड भी बैठे हुए हैं।"
"आपने उन्हें क्यों बुला लिया दीदी?" विधी ने रितू के साथ चलते हुए कहा__"वो इस सबके बारे में क्या सोचेंगे?"
"कुछ नहीं सोचेंगे वो।" रितू ने विधी को अपने एक हाथ से पकड़े हुए कहा__"तुमने कोई पाप नहीं किया है। प्यार ही किया है न, ये तो कुदरत की सबसे खास नियामत है। जब उन्हें तेरे प्यार की दास्तां पता चलेगी तो यकीन मान वो भी तेरे इस पाक़ प्रेम के सामने नतमस्तक हो जाएॅगे।"
"मुझे उनके सामने अपने महबूब से मिलने में बहुत शर्म आएगी दीदी।" विधी का मुर्झाया हुआ चेहरा एकाएक ही शर्म की लाली से सुर्ख हो उठा था, बोली___"आप प्लीज़ उन्हें उस वक्त किसी दूसरे कमरे में या फिर बाहर भेज दीजिएगा।"
"तू भी न बिलकुल पागल है।" रितू ने उसे रोंक कर उसके माॅथे पर प्यार से मगर हल्के से चूमते हुए कहा___"ख़ैर, जैसा तुझे अच्छा लगे मैं वैसा ही करूॅगी। अब खुश?"
रितू की इस बात से विधी के मुर्झाए चेहरे पर हल्की सी रंगत नज़र आई और होठों पर फीकी सी मुस्कान तैरती हुई दिखी। कुछ ही देर में रितू उसे हास्पिटल के एक स्पेशल कमरे में ले आई और उसे बेड पर आहिस्ता से लेटा दिया। कमरे में एक तरफ रखे सोफों पर विधी के माॅम डैड बैठे हुए थे। उनका चेहरा देख कर ही समझ आ रहा था कि वो अकेले में खूब रोए थे अपनी बेटी की इस हालत के लिए।
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"कैसे हैं भीमा काका?" मैंने बड़े पापा के एक आदमी को देखते हुए कहा___"मुझे ढूढ़ने में कोई परेशानी तो नहीं हुई न आपको?"
"ज्यादा शेखी मत झाड़ छोकरे।" भीमा काका ने गुस्से से कहा___"वरना यहीं पर ज़िंदा गाड़ दूॅगा समझे। शुकर कर कि मेरे मालिक का मुझे आदेश नहीं है वरना पलक झपकते ही तू इस वक्त लाश में तब्दील हुआ यहीं पड़ा होता।"
"लगता है आपको अपने बाहुबल पर ज़रूरत से ज्यादा ही घमंड है।" मैने कहा___"तभी तो आप अपने सामने किसी को कुछ समझ ही नहीं रहे हैं।"
"सही कहा छोकरे।" भीमा ने कहा__"मुझे अपने बाहुबल पर घमंड तो होगा ही। आख़िर मालिक का मैं सबसे खास आदमी हूॅ।"
"तो क्या आदेश दिया है आपके मालिक ने आपको?" मैने पूछा।
"यही कि तुझे घसीटते हुए यहाॅ से लेकर जाऊॅ।" भीमा कह रहा था___"और ले जाकर उनके पैरों पर पटक दूॅ।"
"बहुत खूब।" मैं हॅसा___"तो फिर खड़े क्यों हो काका? मुझे घसीटते हुए यहाॅ से ले चलो अपने मालिक के पास।"
"लगता है इस लड़के को मरने की बड़ी जल्दी है भीमा।" भीमा के बगल से लट्ठ लिए खड़े एक अन्य आदमी ने हॅसते हुए कहा___"और शायद इसका भेजा भी फिर गया है। तभी तो ये अनाप शनाप बके जा रहा है। मैं तो कहता हूॅ ले चल इसे घसीटते हुए।"
"सही कह रहा है तू मंगल।" भीमा काका ने उससे कहा___"जब किसी की मौत निकट होती है न तो वो आदमी ऐसी ही मूर्खतापूर्ण बातें करता है। ख़ैर, पकड़ इसे। मैं इसके साथ आए इसके इस साथी को पकड़ता हूॅ।"
भीमा के कहने के साथ ही मंगल मेरी तरफ बढ़ा और भीमा आदित्य की तरफ। मंगल ने जैसे ही मुझे पकड़ने के लिए अपना हाॅथ आगे बढ़ाया वैसे ही मैने बिजली की सी स्पीड से उसका वो हाॅथ पकड़ा और उसकी तरफ पीठ कर उसके हाथ को अपने कंधे पर रख कर ज़ोर का झटका दिया। कड़कड़ की आवाज़ के साथ ही मंगल का हाॅथ बीच से टूट गया। हाॅथ टूटते ही मंगल हलाल होते बकरे की तरह चीखा। जबकि उसका हाॅथ तोड़ने के बाद मैं पलटा और उसी स्पीड से उसके गंजे सिर को दोनो हाॅथों से पकड़ कर शख्ती से एक तरफ को झटक दिया। परिणामस्वरूप मंगल की गर्दन टूट गई और उसकी जान उसके जिस्म से जुदा हो गई। उसका बेजान हो चुका जिस्म लहराते हुए वहीं ज़मीन पर गिर गया। ये सब इतना जल्दी हुआ कि किसी को कुछ समझ में ही नहीं आया कि पल भर में ये क्या हो गया।
मेरी इस हरकत से आदित्य जो भीमा की गर्दन को अपने बाजुओं में कसे झटके दे रहा था वो चकित रह गया। उसने भी भीमा की गर्दन को झटके देकर तोड़ दिया था। पलक झपकते ही दो हट्टे कट्टे आदमियों को इस तरह मौत के मुह में जाते देख बाॅकी सब लोग पहले तो भौचक्के से रह गए फिर जैसे उन्हें वस्तुस्थित का एहसास हुआ। सब के सब एक साथ हमारी तरफ लट्ठ लिए दौड़ पड़े।
आदित्य ने मेरी तरफ देखा, मैने भी उसकी तरफ देखा। ऑखों ऑखों में ही हमारी बात हो गई। जैसे ही सामने से लट्ठ लिए वो लोग हमारे पास पहुॅचे वैसे ही आगे के दो आदमी लट्ठ को पूरी शक्ति से घुमा कर हम दोनो पर वार किया। हम दोनो ही झुक गए जिससे उनके लट्ठ का वार हमारे सिर से निकल गया।
इससे पहले कि वो दोनो सम्हल पाते उनकी पीठ पर हम दोनो की फ्लाइंग किक पड़ी। वो दोनो आदमी लट्ठ समेत ज़मीन की धूल चाटने लगे। मैने एक आदमी के गिरते ही उसके लट्ठ वाले हाथ में ज़ोर से लात मारी। उसके हलक से चीख़ निकल गई। उसने लट्ठ छोंड़ दिया तो मैने जल्दी से उसका लट्ठ उठा लिया। यही क्रिया आदित्य ने भी की थी।
हम दोनो के हाॅथ में अब लट्ठ थी। उन दोनो के गिरते ही उनके पीछे आए बाॅकी के आदमी भी हमारी तरफ एक साथ दौड़ पड़े। देखते ही देखते उन सब ने हम दोनो को चारों तरफ से घेर लिया। मैं और आदित्य आपस में पीठ के बल जुड़ गए थे और घूम रहे थे अपने स्थान पर। उधर चारों तरफ घूमते हुए उन सभी आदमियों ने एक साथ हम पर लट्ठ का वार किया। मैने और आदित्य ने तुरंत ही उनके वार को अपने अपने लट्ठ से रोंका और पूरी शक्ति से ऊपर की तरफ झटका दिया। नतीजा ये हुआ कि सब के सब इधर उधर लड़खड़ा कर गिर पड़े। उन लोगों के गिरते ही मैने और आदित्य ने उन्हें उठने का मौका नहीं दिया। हम दोनो ही उन सब पर पिल पड़े। लट्ठ के ज़ोरदार वार उन सबके जिस्मों पर पड़ने लगे थे। वातावरण में उन सबकी दर्द में डूबी हुई चीखें निकलने लगी थी।
थोड़ी ही देर में वो सब वहीं सड़क पर पड़े बुरी तरह कराहे जा रहे थे। किसी का सिर फूटा, किसी के हाॅथ टूटे तो किसी के पैर। कहने का मतलब ये कि वो सब कुछ ही देर में अधमरी सी हालत में पहुॅच गए थे। तभी वातावरण में हमे सामने की तरफ किसी जीप के स्टार्ट होने की आवाज़ सुनाई दी। हम दोनो ने सामने की तरफ देखा तो सबसे पीछे की कतार में खड़ी जीप अपनी जगह से पीछे की तरफ जाने लगी थी।
"लगता है उसमें कोई आदमी बचा हुआ है दोस्त।" आदित्य ने सामने उस जीप की तरफ देखते हुए कहा____"और वो इन सबका हाल देख कर यहाॅ से भागने की सोच रहा है, बल्कि भाग ही रहा है वो।"
"वो यहाॅ से भागने न पाए दोस्त।" मैने कठोर भाव से कहा___"वर्ना वो अजय सिंह को यहाॅ का सारा हाल बताएगा और अजय सिंह फिर से अपने कुछ आदमियों को भेजेगा या फिर वो खुद हमें पकड़ने के लिए आ सकता है। मैं इस सबसे डर तो नहीं रहा मगर इस वक्त मैं यहाॅ किसी से लड़ने के उद्देश्य से नहीं आया हूॅ बल्कि पवन के बुलाने पर आया हूॅ। तुम समझ रहे हो न मेरी बात?"
"मैं समझ गया विराज।" आदित्य ने अपनी कमर में जीन्स पर खोंसी हुई रिवाल्वर को निकालते हुए कहा___"तुम फिकर मत करो। वो साला यहाॅ से ज़िंदा वापस नहीं जा सकेगा।"
इतना कहने के साथ ही आदित्य ने रिवाल्वर वाला हाॅथ ऊपर उठाया और निशाना साध कर सामने यू टर्न ले चुकी जीप के अगले वाले दाहिने टायर पर फायर कर दिया। अचूक निशाना था आदित्य का। नतीजा ये हुआ कि टायर के फटते ही जीप अनबैलेंस हो गई और वो सड़क के किनारे ढलान की तरफ तेज़ी से बढ़ी। ढलान में उतरते ही कदाचित ड्राइवर ने उसे जल्दी से मोड़ कर वापस सड़क पर लाने की कोशिश की थी, मगर ढलान पर बाएॅ साइड से अगले पहिये के उतर जाने से जीप ढलान पर उलटती चली गई।
जीप को उलटती देख आदित्य उस तरफ को बढ़ा ही था कि फिर जाने क्या सोच कर वो रुक गया। मेरी तरफ देख कर बोला__"तुम उसे देखो, मैं इन लोगों का किस्सा खत्म करता हूॅ।"
मैं समझ गया कि आदित्य मुझे इन लोगों के पास अकेला नहीं छोंड़ना चाहता था। हलाॅकि अजय सिंह के सभी आदमी इस वक्त सड़क पर लहूलुहान हुए पड़े कराह रहे थे। उनमें से किसी में अब उठने की शक्ति नहीं थी। मगर फिर भी आदित्य मुझे उन सबके पास अकेला नहीं रहने देना चाहता था। इसी लिए उसने मुझे उस उलट चुकी जीप की तरफ जाने का कहा था। वहाॅ पर तो वो सिर्फ एक ड्राइवर ही था। मुझे आदित्य की इस बात पर अंदर ही अंदर उसकी दोस्ती पर नाज़ हुआ। मैं उसकी बात सुन कर उस तरफ बढ़ गया जिस तरफ वो जीप ढलान पर उलटती चली गई थी।
उलटी हुई जीप के पास जब मैं पहुॅचा तो देखा ड्राइवर वाले डोर पर नीचे की तरफ ढेर सारा खून बहते हुए वहीं ज़मीन पर फैलता जा रहा था। मैने झुक कर देखा ड्राइवर मर चुका था। जीप के ऊपर लगे लोहे का एक सरिया टूट कर उसके सिर के आर पार हो चुका था। उसी से खून बहता हुआ नीचे ज़मीन पर फैलता जा रहा था। जीप पूरी की पूरी उलट गई थी। उसके पहिये ऊपर की तरफ थे और ऊपर का भाग नीचे की तरफ हो गया था।
ड्राइवर का ये हाल देख कर मैं वापस आदित्य के पास आ गया। मैने आदित्य को ड्राइवर का हाल बता दिया। इधर आदित्य ने ज़मीन पर कराह रहे सभी आदमियों की गर्दनें तोड़ कर उन सबको यमलोक पहुॅचा चुका था।
"यार मज़ा तो नहीं आया मगर ख़ैर कोई बात नहीं।" मैने आदित्य की तरफ देखते हुए किन्तु मुस्कुराते हुए कहा___"अब इन लाशों का क्या करें?"
"इन्हें यहाॅ खुली जगह पर और सड़क पर इस तरह छोंड़ कर जाना भी ठीक नहीं है मेरे दोस्त।" आदित्य ने कहा___"इससे मामला बहुत गंभीर हो सकता है। पुलिस इन सबके क़ातिलों को ढूॅढ़ने के लिए एड़ी से चोंटी तक का ज़ोर लगा देगी।"
"तो अब क्या करें यार?" मैं एकाएक ही चिंता में पड़ गया था, बोला___"इन लोगों को कहाॅ ले जाएॅगे हम? दूसरी बात वो टैक्सी ड्राइवर भी इस सबका चश्मदीद गवाह बन चुका है। ऐसे में यकीनन हम बहुत जल्द कानून की गिरफ्त में आ सकते हैं।"
"वो सब हम लोग सम्हाल लेंगे।" तभी ये वाक्य पीछे से किसी ने कहा था। मैं और आदित्य ये सुन कर चौंकते हुए पीछे की तरफ पलटे। हमारे पीछे कुछ लोग खड़े हुए थे। मुझे समझते देर न लगी कि ये सब वही लोग हैं जो हमारे पीछे आ रही गाड़ियों पर थे।
"आप लोग कौन हैं?" मैने तनिक घबराते हुए एक से पूछा___"और ये आपने कैसे कहा कि हम सब इन लोगों को सम्हाल लेंगे? बात कुछ समझ में नहीं आई।"
मेरी बात सुन कर उस आदमी ने अपने शर्ट की ऊपरी जेब से एक आई कार्ड जैसा कुछ निकाला और हमारी तरफ उसे दिखाते हुए बोला___"हम सब पुलिस वाले हैं और आपके पीछे पीछे आपकी सुरक्षा के लिए ही लगे हुए थे।"
मैं और आदित्य उसकी ये बात सुन बुरी तरह चौंक पड़े थे। ये सच है कि उसकी ये बात ऐसी थी कि काफी देर तक हमारे पल्ले ही न पड़ सकी थी। मैं तो ये सोच कर हैरान था कि ये सब पुलिस वाले हैं और इन लोगों ने हम दोनो को अजय सिंह के सभी आदमियों का बेदर्दी से कत्ल करते हुए अपनी ऑखों से देखा था। इसके बावजूद ये लोग ये कह रहे हैं कि ये हमारी सुरक्षा के लिए ही हमारे पीछे लगे हुए थे। मेरे दिमाग़ की नशें तक दर्द करने लगीं ये सोचते हुए कि ये लोग हमारी सुरक्षा क्यों कर रहे थे? इनकी नज़र में तो अब हम दोनो मुजरिम ही बन चुके थे। इनकी ऑखों के सामने ही तो हमने अजय सिंह के सभी आदमियों को जान से मारा था। उस सूरत में तो इन लोगों हमें गिरफ्तार कर लेना चाहिए। मगर नहीं, ये लोग तो ये कह रहे हैं कि इन लाशों को ये सम्हाल लेंगे। मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि पुलिस वाले भला ऐसा कैसे कह और कर सकते हैं? मैने आदित्य की तरफ देखा तो उसका हाल भी मुझसे जुदा न था। वो भी मेरी तरह हैरान परेशान सा उन सभी पुलिस वालों की तरफ इस तरह देख रहा था जैसे उन सबके सिर उनके धड़ों से निकल कर ऊपर हवा में कत्थक कर रहे हों।
"बात कुछ समझ में नहीं आई।" मैने खुद को सम्हालते हुए अपने सामने खड़े एक पुलिस वाले से कहा___"आप पुलिस वाले हमारी सुरक्षा किस वजह से कर रहे हैं और किसके कहने पर? इतना ही नहीं ये भी कह रहे हैं कि आप इन लाशों को सम्हाल लेंगे? जबकि आप लोगों को करना तो यही चाहिए कि ऐसे जघन्य हत्याकाण्ड के लिए हमें तुरंत गिरफ्तार कर हवालात में बंद कर दें।"
"वो सब छोंड़िये।" मेरे सामने खड़े एक पुलिस वाले ने कहा___"आप लोग यहाॅ से आगे बढ़िये, ये सोच कर कि यहाॅ कुछ हुआ ही नहीं है। हमने आपके टैक्सी ड्राइवर को भी समझा दिया है। वो इस मामले में अपना मुख किसी के सामने जीवन भर नहीं खोलेगा। आपके पीछे कुछ दूरी के फाॅसले पर हमारे कुछ आदमी आपकी सुरक्षा में उसी तरह लगे रहेंगे जैसे अब तक लगे हुए थे।"
"ये तो बड़ी ही हैरतअंगेज बात है।" मैं उसकी इस बात से चकित होकर बोला___"कैसे पुलिस वाले हैं आप लोग कि इतना कुछ होने के बाद भी आप हमें गिरफ्तार करने की बजाय यहाॅ से बड़े आराम से चले जाने का कह रहे हैं? ऊपर से हमारी सुरक्षा के लिए आप अपने पुलिस के कुछ आदमियों को भी हमारे पीछे लगा रहे हैं।"
"इस बारे में आप ज्यादा सोच विचार मत कीजिए।" पुलिस वाले ने कहा___"अब आप ज्यादा देर मत कीजिए और बेफिक्र होकर यहाॅ से गाॅव जाइये।"
इतना कह कर वो पुलिस वाला पलट गया। उसके साथ बाॅकी के पुलिस वाले भी पलट गए थे। जबकि हैरान परेशान हम दोनो उन्हें मूर्खों की तरह देखते रह गए। साला दिमाग़ का दही हो गया मगर पुलिस वालों का ये रवैया हमारी समझ में ज़रा भी न आ सका था।
"विराज भाई।" उन लोगों के जाते ही आदित्य कह उठा___"मैने अपनी इतनी बड़ी लाइफ में ऐसे विचित्र किस्म के पुलिस वाले आज तक नहीं देखे। मतलब कि____यार क्या कहूॅ अब? मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा।"
"सही कह रहे हो दोस्त।" मैने कुछ सोचते हुए कहा___"ये तो हद से भी ज्यादा वाला अंधेर हो गया। ख़ैर जाने दो, हमारे तो हक़ में ही है न? अच्छा ही हुआ, वरना अगर ये लोग हमें इस सबके लिए गिरफ्तार कर जेल की सलाखों के पीछे डाल देते तो बड़ी गंभीर समस्या हो जाती हमारे लिए।"
"हाॅ यार।" आदित्य ने कहा___"लेकिन ये बात ऐसी है कि कुछ दिन तक ही क्या साला जीवन भर हमारे ज़हन में किसी सर्प की भाॅति कुण्डली मार कर बैठी रहेगी। हम जीवन भर इस सबके बारे में सोचते रहेंगे मगर इस सबका कारण हमें समझ में ही नहीं आएगा।"
"आएगा दोस्त।" मैने पूर्वत सोचते हुए ही कहा___"इस सबका कारण ज़रूर समझ में आएगा और बहुत जल्द आएगा। फिलहाल तो हमें यहाॅ से निकलना ही चाहिए।"
"बिलकुल।" आदित्य ने कहा___"चलो चलते हैं। लेकिन यार सामने जाने का रास्ता तो बंद है। हमें सबसे पहले ये सारी जीपें सामने के रास्ते से हटानी पड़ेंगी।"
"हाॅ तो चलो हटा देते हैं।" मैने कहा__"उसमे क्या है।"
मेरे इतना कहते ही आदित्य मेरे साथ चल पड़ा। कुछ ही देर में हमने उन जीपों को रास्ते से हटा दिया। इस काम में एक दो पुलिस वाले भी हमारी मदद करने के लिए आ गए थे। सभी जीपों को रास्ते से हटाने के बाद मैने और आदित्य ने एक काम और किया। वो ये कि उन सभी जीपों के टायरों से हवा निकाल दी। उसके बाद हम दोनो आकर टैक्सी में बैठ गए।
टैक्सी में आकर मैने देखा कि पवन किसी और ही दुनियाॅ में खोया हुआ एकदम शान्त बैठा था। उसके चेहरे पर आश्चर्य का सागर विद्यमान था। मैने उसे उसके कंधों से पकड़ कर हिलाया, तब जाकर उसकी चेतना लौटी। चेतना लौटते ही वो मेरी तरफ अजीब भाव से देखने लगा। अभी भी उसके चेहरे पर गहन हैरत के भाव थे।
"ऐसे दीदें फाड़ कर क्या देख रहा है?" मैने मुस्कुराते हुए कहा उससे।
"ये ये सब क्या था?" उसके मुख से अजीब सी आवाज़ निकली___"ये तुम दोनो ने क्या और कैसे कर दिया? सबको मार दिया तुम दोनो ने। तुझे पता है ये बात जब तेरे बड़े पापा को पता चलेगी तो क्या होगा?"
"कुछ नहीं होगा भाई।" मैने कहा___"और अगर कुछ होगा भी तो वो ये होगा कि उस अजय सिंह की गाॅड फट के उसके हाॅथ में आ जाएगी समझा। खुद को बहुत बड़ा सूरमा समझने वाले अजय सिंह को जब अपने आदमियों के बारे में ऐसी ख़बर मिलेगी तो उस समय उसकी हालत क्या होगी इस बात का अंदाज़ा लगा कर देख भाई।"
"तू मेरा वही यार है या तेरी जगह तेरा चोला पहन कर कोई और आ गया है?" पवन ने चकित भाव से कहा था, बोला___"मेरा दोस्त इतना खतरनाक तो नहीं था। जिस तरह तूने एक ही झटके में अजय सिंह के मुस्टंडे आदमियों का क्रिया कर्म कर दिया है न उससे तो यही लगता है कि तू मेरा वो यार नहीं हो सकता।"
"मैं तेरा वही यार हूॅ भाई।" मैने कहा__"बस समय बदल गया है। इस लिए समय के साथ साथ मैने खुद की भी बदल लिया है। मगर यकीन रख, मेरा ये बदलाव सिर्फ उनके लिए है जिन्होंने मुझ पर और मेरे माॅ बहन पर अत्याचार किया है। अपने अज़ीज़ों के लिए तो मैं आज भी वही हूॅ जैसा पहले हुआ करता था। ख़ैर छोंड़ ये सब, ये बता कि हमारे पीछे आ रहे ये पुलिस वालों का क्या चक्कर है? ये लोग मेरी सुरक्षा की बात क्यों कर रहे थे मुझसे? और तो और इन लोगों ने तो हमे गिरफ्तार भी नहीं किया जबकि मैंने और आदित्य ने अजय सिंह के सभी आदमियों को उनकी ऑखों के सामने उन सबको जान से मार दिया है? ये सब क्या चक्कर है भाई? देख मुझसे कोई बात मत छिपा तू। जो भी बात है उसे साफ साफ बता दे मुझे। आख़िर ऐसी क्या वजह थी जिसके लिए तूने मुझे इस तरह यहाॅ आने को कहा था?"
"अब जब तू यहाॅ आ ही गया है तो थोड़ा और इन्तज़ार कर ले मेरे यार।" पवन ने कहने के साथ ही अपना चेहरा अपनी तरफ के दरवाजे की खिड़की की तरफ फेर लिया, फिर बोला___"मैं अपने मुख से तुझे कुछ नहीं बता सकता और ना ही वो सब बताने की मुझमें हिम्मत है। कुछ समय तक और धीरज रख ले, उसके बाद सब कुछ पता चल जाएगा तुझे।"
पवन ये बातें सुन कर मैं उसे अजीब भाव से देखता रह गया था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ऐसी क्या बात है जिसे मेरा दोस्त इस हद तक मुझसे छिपा रहा है? मेरे दिलो दिमाग़ में अनगिनत आशंकाएॅ उत्पन्न हो गई थी। पवन अभी भी खिड़की के उस पार देख रहा था। उस वक्त तो मैं चौंक ही पड़ा जब पवन ने बड़ी सफाई से अपनी ऑखों से ऑसू पोछने की क्रिया की थी। ये देख कर मेरे अंदर बड़ी तेज़ी से चिंता और बेचैनी बढ़ती चली गई। सहसा मेरी ऑखों के सामने अभय चाचा के बीवी बच्चों का चेहरा नाच गया। मेरे मस्तिष्क में जैसे विष्फोट सा हुआ। मन में एक ही ख़याल उभरा कि छोटी चाची और उनके बच्चों के साथ कोई ऐसी बात तो नहीं हो गई जो कि नहीं होनी चाहिए थी। लेकिन फिर मेरे मन में सवाल भरा कि इस बात को बताने में भला पवन को क्या परेशानी हो सकती है? इसका मतलब मामला कुछ और ही है। मगर ऐसा क्या मामला हो सकता है?
मैंने इस बारे बहुत सोचा मगर मुझे कुछ समझ न आया। अंत में थक हार कर मैने अपने ज़हन से ये सब बातें झटक दी, ये सोच कर कि कुछ समय बाद सब कुछ पता तो चल ही जाएगा। पवन ने तो बार बार यही कहा था मुझसे। मैने एक बार पलट कर पीछे की तरफ देखा। हमारे पीछे पुलिस वालों की एक गाड़ी कुछ फाॅसले पर लगी हुई आ रही थी। उन लोगों को देख कर एक बार फिर से मेरे मन में उनके बारे में ढेरों सवाल चकरा उठे। आख़िर ये पुलिस वाले मेरी सुरक्षा में क्यों लगे हुए हैं और किसने कहा होगा इन्हें ऐसा करने के लिए? सोचते सोचते मेरा सिर दर्द करने लगा तो मैने उनके बारे में सोचने का काम भी बंद कर दिया।
अभी मैं रिलैक्स होकर बैठा ही था कि एकाएक मेरे मस्तिष्क में धमाका हुआ। धमाके का गुबार जब छॅटा तो एक चेहरा नज़र आया मुझे। वो चेहरा था रितू दीदी का। वो भी तो पुलिस वाली थी। तो क्या उन्होंने इन लोगों को मेरी सुरक्षा के लिए भेजा है? नहीं नहीं हर्गिज़ नहीं, वो भला ऐसा कैसे कर सकती हैं? मैं भला उनका लगता ही क्या हूॅ? आज तक कभी जिसने मुझे अपना भाई नहीं माना और ना ही मुझसे कभी बात करना पसंद किया। वो भला मेरी सुरक्षा की चिंता क्यों करेंगी? ये तो सूर्य देवता के पश्चिम दिशा से उदय होने वाली बात है, जो कि निहायत ही असंभव बात है। तो फिर और क्या वजह हो सकती है? सहमा मुझे ध्यान आया कि मैं एक बार फिर से इन सब बातों पर अपना माथा पच्ची करने में लग गया हूॅ। इस ख़याल के आते ही मैने फिर से अपने ज़हन से इन सब बातों को झटक दिया और फिर आराम से रिलैक्स होकर बैठ गया। मगर मैने महसूस किया कि रिलैक्स होना इस वक्त मेरे बस में ही नहीं था। क्योंकि मेरे मन में फिर से तरह तरह के सोच विचार चलने लगे।
लगभग दस मिनट बाद ही हल्दीपुर गाॅव नज़र आने लगा था हमें और फिर कुछ ही देर में हम गाॅव में दाखिल हो गए। पवन के निर्देश पर टैक्सी ड्राइवर ने टैक्सी को पवन के घर की तरफ जाने वाली गली में मोड़ दिया था। जबकि हमारी हवेली उत्तर की तरफ थी।
कुछ ही देर में हम पवन के घर के पास पहुॅच गए। गर्मियों का समय तो नहीं था मगर इस वक्त आस पास किसी भी घर के पास कोई इंसानी जीव दिख नहीं रहा था। हलाॅकि गाॅव में जब हम दाखिल हुए थे तो दाएॅ तरफ एक चौपाल पर कुछ लोगों को बैठे देखा था हमने। मैने सबसे ज़रूरी काम ये किया था कि गाॅव में दाखिल होने से पहले ही अपने चेहरे को रुमाल से ढॅक लिया था। ताकि गाव का कोई ब्यक्ति मुझे किसी तरह से पहचान न सके।
पवन के घर के सामने टैक्सी रुकी तो ड्राइवर को छोंड़ कर हम तीनों जल्दी से टैक्सी से बाहर निकले और अपना अपना बैग लेकर पवन के घर के अंदर आ गए। टैक्सी ड्राइवर को मैने उसकी टैक्सी का भाड़ा पहले ही दे दिया था और उसे समझा भी दिया था कि हम लोगों के उतरते ही वो वापस बिजली की स्पीड से चला जाएगा। अगर यहाॅ कहीं कोई टैक्सी रुकवाए तो वो रोंके नहीं। वरना वो खुद बहुत बड़ी मुसीबत में फॅस जाएगा।
टैक्सी ड्राइवर हम लोगों से इतना डरा हुआ था कि वो हमसे पैसा भी नहीं ले रहा था। एक ही बात बोल रहा था कि हम उसे जाने दें। वो हमारी कोई भी बात कभी भी किसी से नहीं कहेगा। मगर मैने उसे समझाया कि डरने की कोई ज़रूरत नहीं है। ख़ैर, हम लोगों को उतार कर उसने टैक्सी को वहीं पर किसी तरह बैक करके वापसी के लिए मोड़ा और वहाॅ से चंपत हो गया। मुझे यकीन था कि वो रास्ते में कहीं भी रुकने वाला नहीं था।
पवन के घर के अंदर जैसे ही हम तीनो आए तो पवन ने जल्दी से घर का मुख्य दरवाजा बंद कर उसमें कुण्डी लगा दी थी। पवन सिंह मेरे बचपन का दोस्त था। ग़रीब था और बिना बाप का था। उससे बड़ी उसकी एक बहन थी। जो मेरी भी मुहबोली बहन थी। वो मुझे अपने सगे भाई से भी ज्यादा मानती थी। अभी तक उसकी शादी नहीं हो सकी थी। इसकी वजह ये थी कि पवन के पास रुपये पैसे की तंगी थी। आजकल लोग दहेज की माॅग बहुत ज्यादा करते हैं। पवन की माॅ बयालिस साल की विधवा औरत थी। किन्तु स्वभाव से बहुत अच्छी थी। वो मुझे अपने बेटे की तरह ही प्यार करती थी।
हम लोग चलते हुए बैठक में पहुॅचे और वहाॅ एक तरफ किनारे पर रखी एक चारपाई पर बैठ गए। जबकि पवन अंदर की तरफ चला गया था। आदित्य इधर उधर बड़े ग़ौर से देख रहा था। कदाचित ये देख रहा था कि यहाॅ गाॅव में कच्चे खपरैलों वाले मकान बने हुए थे। जबकि उसने आज तक ऐसे मकान सिर्फ फिल्मों में ही देखे होंगे कभी।
दोस्तो, निर्धारित समय से पहले अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,,