प्रतिमा के देखते ही देखते सीबीआई वालों का वो क़ाफिला अजय सिंह को साथ लिए हवेली से दूर चला गया। प्रतिमा को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसकी मुकम्मल दुनियाॅ ही नेस्तनाबूत हो गई हो। इस एहसास के साथ ही प्रतिमा की ऑखें छलक पड़ीं और फिर जैसे उसके जज़्बात उसके काबू में रह सके। वो दरवाजे पर खड़ी खड़ी ही फूट फूट कर रो पड़ी। तभी उसके पीछे शिवा नमूदार हुआ और अपनी रोती हुई माॅ को उसके कंधे से पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया और फिर उसे अपने सीने से लगा लिया।
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उधर रितू के फार्महाउस पर भी सुबह हो गई थी। अपने कमरे के अटैच बाथरूम में नहाने के बाद रितू कपड़े पहन रही थी जब उसके कमरे का दरवाजा बाहर से कुण्डी के दवारा बजाया गया था। रितू ने पूछा कौन है तो बाहर से नैना की आवाज़ आई थी कि मैं हूॅ बेटा जल्दी से दरवाज़ा खोलो। बस, उसके बाद रितू ने आनन फानन में अपने कपड़े पहने और फिर जाकर कमरे का दरवाज़ा खोला। दरवाज़ा खुलते ही नैना बुवा पर नज़र पड़ी तो वह हल्के से चौंकी।
"क्या बात है बुआ?" रितू ने शशंक भाव से पूछा__"आप इस तरह? सब ठीक तो है न?"
"ये ले।" नैना ने जल्दी से अपना दाहिना हाथ रितू की तरफ बढ़ाया___"ये अख़बार पढ़। इसमें ऐसी ख़बर छपी है छिसे पढ़ कर तेरे होश न उड़ जाएॅ तो कहना।"
"अच्छा।" रितू ने अख़बार अपने हाॅथ में लेते हुए कहा___"भला ऐसी क्या ख़बर छपी है इस अख़बार में जिसे पढ़ने पर मेरे होश ही उड़ जाएॅगे?"
"तू पढ़ तो सही।" नैना कहने के साथ ही दरवाजे के अंदर रितू को खींचते हुए ले आई, बोली___"बताने में वो बात नहीं होगी जितना कि खुद ख़बर पढ़ने से होगी।"
नैना, रितू को खींचते हुए बेड के क़रीब आई और उसमें रितू को बैठा कर खुद भी बैठ गई और रितू के चेहरे के भावों को बारीकी से देखने लगी। रितू ने अख़बार की फ्रंट पेज़ पर छपी ख़बर पर अपनी दृष्टि डाली और ख़बर की हेड लाईन पढ़ते ही वो बुरी तरह उछल पड़ी। अख़बार में छपी ख़बर कुछ इस प्रकार थी।
*शहर के मशहूर कपड़ा ब्यापारी अजय सिंह के मकान से करोड़ों का ग़ैर कानूनी सामान बरामद*
(गुनगुन): हल्दीपुर के रहने वाले ठाकुर अजय सिंह बघेल वल्द गजेन्द्र सिंह बघेल जो कि एक मशहूर कपड़ा ब्यापारी हैं उनके गुनगुन स्थित मकान पर कल शाम को सीबीआई वालों ने छापा मारा। मकान के अंदर से भारी मात्रा में चरस अफीम ड्रग्स आदि जानलेवा चीज़ें सीबीआई के हाथ लगी। ग़ौरतलब बात ये है कि गुनगुन स्थित ठाकुर अजय सिंह का वो मकान कुछ समय से खाली पड़ा था, इस लिए ये स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता कि ग़ैर कानूनी चीज़ों का इतना बड़ा ज़खीरा उनके मकान में कहाॅ से आ गया? ऐसा इस लिए क्योंकि ठाकुर अजय सिंह जैसे मशहूर कारोबारी से ऐसे संगीन धंधे की बात सोची नहीं जा सकती जो कि जुर्म कहलाता है। इस लिए संभव है कि ये सब उनके किसी दुश्मन की सोची समझी साजिश का ही नतीजा हो। ख़ैर, अब देखना ये होगा कि सीबीआई वालों की जाॅच पड़ताड़ से क्या सच्चाई सामने आती है? अब ये तो निश्चित बात है कि ठाकुर अजय सिंह के मकान से मिले इतने सारे ग़र कानूनी सामान के तहत सीबीआई वाले बहुत जल्द ठाकुर अजय सिंह को अपनी हिरासत में लेकर इस बारे में पूछताॅछ करेंगे। किन्तु अगर सीबीआई की जाॅच में ये बात सामने आई कि वो सब ग़ैर कानूनी सामान ठाकुर अजय सिंह का ही है तो यकीनन ठाकुर अजय सिंह को इस संगीन जुर्म में कानून के द्वारा शख्तसे शख्त सज़ा मिलेगी।
अख़बार में छपी इस ख़बर को पढ़ कर यकीनन रितू के होश उड़ ही गए थे। उसके दिमाग़ की बत्ती बड़ी तेज़ी से जली थी और साथ ही उसे विराज की वो बात याद आई जब उसने गुनगुन रेलवे स्टेशन पर रितू से कहा था कि बहुत जल्द अजय सिंह को एक झटका लगने वाला है। ये भी कि उसकी सेफ्टी के लिए वह भी ऐसा करेगा कि अजय सिंह या उसका कोई आदमी उस तक पहुॅच ही नहीं पाएगा।
"इसका मतलब तो यही हुआ बुआ कि अब तक डैड को सीबीआई वाले गिरफ्तार कर लिए होंगे।" रितू ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"और अगर ऐसा हो गया होगा तो यकीनन डैड लम्बे से नप जाएॅगे। एक ही झटके में वो कानून की ऐसी चपेट में आ जाएॅगे जहाॅ से निकल पाना असंभव नहीं तो नामुमकिन ज़रूर है।"
"ये तो अच्छा ही हुआ न रितू।" नैना ने कहा___"बुरे काम करने का ये अंजाम तो होना ही था। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि ये सब हुआ कैसे?
"ये सब राज की वजह से हुआ है बुआ।" रितू ने बताया___"उसने कल रेलवे स्टेशन में मुझसे कहा था कि वो कुछ ऐसा करेगा जिससे डैड मुझ तक पहुॅच ही नहीं पाएॅगे। ये तो सच है बुआ कि डैड ग़ैर कानूनी धंधा करते थे और फैक्ट्री में मौजूद तहखाने में उनका ये सब ग़ैर कानूनी सामान भी था जिसे राज ने ही गायब किया था। ऐसा उसने इस लिए किया था ताकि वह उस सामान के आधार पर जब चाहे डैड को कानून की गिरफ्त में डलवा सके। इस लिए उसने ऐसा ही किया है बुआ लेकिन मुझे लगता है कि ये सब महज डैड को डराने और मौजूदा हालात से निपटने के लिए राज ने किया है। क्योंकि राज उन्हें अपने हाॅथों से उनके अपराधों की सज़ा देगा, नाकि कानून द्वारा उन्हें किसी तरह की सज़ा दिलवाएगा।"
"लेकिन बेटा।" नैना ने तर्क सा दिया___"कानून की चपेट में आने के बाद बड़े भइया भला कानून की गिरफ्त से कैसे बाहर आएॅगे और फिर कैसे राज उन्हें अपने हाॅथों से सज़ा देगा?"
"उसका भी इंतजाम राज ने किया ही होगा बुआ।" रितू ने कहा___"आज के इस अख़बार में छपी ख़बर के अनुसार ग़ैर कानूनी सामान डैड के मकान से बरामद ज़रूर हुआ है लेकिन ये भी बताया गया है कि चूॅकि गुनगुन स्थित मकान काफी समय से खाली था इस लिए संभव है कि डैड को फॅसाने के लिए उनके किसी दुश्मन ने ऐसा किया होगा। इस लिए सीबीआई वाले इस बारे में सिर्फ पूॅछताछ करेंगे। अब आप खुद समझ सकती हैं बुआ कि राज ने केस को इतना कमज़ोर क्यों बनाया हुआ है कि डैड कानून की गिरफ्त से मामूली पूछताछ के बाद छूट जाएॅ?।"
"लेकिन ये सवाल तो अपनी जगह खड़ा ही रहेगा न रितू कि बड़े भइया के मकान में वो ग़ैर कानूनी सामान कैसे पाया गया?" नैना ने कहा___"इस लिए इस सवाल के साल्व हुए बिना बड़े भइया इस केस से कैसे छूट जाएॅगे भला?"
"बहुत आसान है बुआ।" रितू ने कहा___"पैसों के लिए आजकल लोग बहुत कुछ कर जाते हैं। कहने का मतलब ये कि वो किसी ऐसे ब्यक्ति को ढूॅढ़ लेंगे जो पैसों के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाए। वो ब्यक्ति इस बात को खुद स्वीकार करेगा कि वो सारा ग़ैर कानूनी सामान उसका खुद का है और उसने डैड के मकान में उसे इस लिये छुपाया हुआ था क्योंकि वो मकान काफी समय से खाली था तथा उसके लिए एक सुरक्षित जगह की तरह था।"
"चलो ये तो मान लिया कि ऐसा हो सकता है।" नैना ने मानो तर्क किया___"किन्तु सबसे बड़ा सवाल ये ये है कि तुम्हारे डैड ऐसे किसी ब्यक्ति को लाएॅगे कहाॅ से? जबकि वो खुद ही सीबीआई वालों की निगरानी में रहेंगे और उनके पास किसी से संपर्क स्थापित करने के लिए कीई ज़रिया ही नहीं होगा।"
"सवाल बहुत अच्छा है बुआ।" रितू ने कुछ सोचते हुए कहा__"किन्तु अगर हम ये सोच कर देखें कि ये सब राज का ही किया धरा है तो ये भी निश्चित बात है कि वो खुद ही ऐसा कुछ करेगा जिससे डैड सीबीआई या कानून के चंगुल से बाहर आ जाएॅ।"
"ऐसे मामलों में कानून के चंगुल से किसी का बाहर आ जाना नामुमकिन तो नहीं होता रितू।" नैना ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"किन्तु अगर तू ये कह रही है कि राज तेरे डैड को किसी हैरतअंगेज कारनामे की वजह से बाहर निकाल ही लेगा तो सवाल ये उठता है कि ऐसा क्या करेगा राज? दूसरी बात, जब उसे कानून की गिरफ्त से निकाल ही लेना है तो फिर तेरे डैड की कानून की चपेट में लाने का मतलब ही क्या था?"
"खजूर पर चढ़े इंसान को ज़मीन पर पटकने का मकसद था उसका।" रितू ने कहा___"वो कहते हैं न कि जब तक ऊॅट पहाड़ के सामने नहीं आता तब तक उसे यही लगता है कि उससे ऊॅचा कोई है ही नहीं। यही हाल मेरे डैड का था बुआ। राज का मकसद कदाचित यही है कि वो डैड को एहसास दिलाना चाहता है कि इस दुनियाॅ में उनसे भी बड़े बड़े ख़लीफा मौजूद हैं। वो चाहे तो उन्हें एक पल में चुटकियों में मसल सकता है। आज के इस वाक्ये के बाद संभव है कि डैड की विचारधारा में कुछ तो परिवर्तन ज़रूर आया होगा।"
"ये तो सच कहा तूने।" नैना ने कहा___"अगर सीबीआई वाले बड़े भइया को अपने साथ ले गए होंगे तो ये सच है कि बड़े भइया को आज आटे दाल के भाव का पता चल जाएगा।"
"हाॅ बुआ।" रितू ने कहा___"राज को मौजूदा हालातों का बखूबी एहसास था। कदाचित उसे ये अंदेशा था कि इतनी नाकामियों के बाद डैड अब खुद मैदान में उतरेंगे और हमें खोज कर हमारा क्रिया कर्म करेंगे। इसी लिए राज ने ये क़दम उठाया कि जब डैड ही कानून की गिरफ़्त में रहेंगे तो भला हम पर किसी तरह का उनकी तरफ से कोई संकट आएगा ही कैसे?"
"तो इसका मतलब ये हुआ कि बड़े भइया को राज ने कानून की गिरफ्त में फॅसाया।" नैना को जैसे सारी बात समझ में आ गई थी, बोली___"सिर्फ इस लिए कि वो तेरे डैड को एहसास दिला सके कि वो जिसे पिद्दी का शोरबा समझते हैं वो दरअसल ऐसा है कि उनको छठी का दूध याद दिला सकता है। ख़ैर, इन बातों से ये भी एक बात समझ में आती है कि राज ने तुझको सेफ करने के लिए भी तेरे डैड को कुछ दिनों के लिए कानून की गिरफ्त में फॅसाया है। दो दिन बाद तो वो खुद ही यहाॅ आ जाएगा और संभव है ऐसा कुछ कर दे जिससे उसका शिकार कानून की चपेट से बाहर आ जाए।"
"यू आर अब्सोल्यूटली राइट बुआ।" रितू ने कहा___"राज का यकीनन यही प्लान हो सकता है। ख़ैर, अब तो इस बात की फिक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है कि डैड या उनके किसी आदमी से हमें कोई ख़तरा है।"
"लेकिन एक बात सोचने वाली है रितू।" नैना ने सोचने वाले भाव से चहा___"तेरे डैड की इस गिरफ्तारी से तेरी माॅ और तेरे भाई पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा होगा। प्रतिमा भाभी ने खुद भी वकालत की पढ़ाई की है इस लिए संभव है कि वो तेरे डैड को कानून की गिरफ्त से निकालने का कोई जुगाड़ लगाएॅ।"
"कोई फायदा नहीं होने वाला बुआ।" रितू ने कहा__"जिसे जितना ज़ोर लगाना है लगा ले मगर हाॅथ कुछ नहीं आएगा। क्योंकि एक तो मामला ही इतना संगीन है दूसरे इस सबमें राज का हाॅथ है। उसकी पहुॅच काफी लम्बी है, इस लिए उसकी पहुॅच के आगे इन लोगों का कोई भी पैंतरा काम नहीं करने वाला। ये तो पक्की बात है कि होगा वहीं जो राज चाहेगा।"
"हाॅ ये तो है।" नैना ने कहा___"ख़ैर देखते हैं क्या होता है? वैसे इस बारे में क्या अभी तक तुमने राज से बात नहीं की??"
"अभी तो नहीं की बुआ।" रितू ने कहा___"पर अब जल्द ही उससे बात करूॅगी। वास्तव में उसने बड़ा हैरतअंगेज काम किया है। मुझे तो उससे ये उम्मीद ही नहीं थी।"
"वक्त और हालात एक इंसान को कहाॅ से कहाॅ पहुॅचा देते हैं और उससे क्या क्या करवा देते हैं ये सब उस तरह का समय आने पर ही पता चलता है।" नैना ने जाने क्या सोच कर कहा___"सोचने वाली बात है कि राज जो एक बेहद ही सीधा सादा लड़का हुआ करता था आज वो इतना जहीन तथा इतना शातिर दिमाग़ का भी हो गया है।"
"इसमें उसकी कोई ग़लती नहीं है बुआ।" रितू ने भारी मन से कहा___"उसे इस तरह का बनाने वाले भी मेरे ही पैरेंट्स हैं। इंसान अपनों का हर कहा मानता है और उसका जुल्म भी सह लेता है लेकिन उसकी भी एक समय सीमा होती है। इतना कुछ जिसके साथ हुआ हो वो ऐसा भी न बन सके तो फिर कैसा इंसान है वो?"
नैना, रितू की बात सुन कर उसे देखती रह गई। कुछ देर और ऐसी ही बातों के बाद वो दोनो ही कमरे से बाहर आ गईं और नीचे नास्ते की टेबल पर आकर बैठ गईं। जहाॅ पर करुणा का भाई हेमराज पहले से ही मौजूद था। रितू अपनी नैना बुआ के साथ अलग अलग कुर्सियों पर बैठी ही थी कि उसका आई फोन बज उठा। उसने मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे "माॅम" नाम को देखा तो उसके होठों पर अनायास ही नफ़रत व घृणा से भरी मुस्कान फैल गई। कुछ सेकण्ड तक वो मोबाइल की स्क्रीन को देखती रही फिर उसने आ रही काल को कट कर दिया। काल कट करते वक्त उसके चेहरे पर बेहद कठोरता के भाव थे।
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उधर मुम्बई में!
सुबह हुई!
अजय सिंह व प्रतिमा की दूसरी बेटी नीलम की ऑखें गहरी नींद से खुल तो गईं थी मगर वो खुद बेड से न उठी थी अभी तक। हॅसती मुस्कुराती हुई रहने वाली मासूम सी नीलम एकाएक ही जैसे बेहद गुमसुम सी रहने लगी थी। काॅलेज में हुई उस घटना को आज हप्ता से ज्यादा दिन गुज़र गया था किन्तु उस घटना की ताज़गी आज भी उसके ज़हन में बनी हुई थी। उसे अपनी इज्ज़त के तार तार हो जाने का इतना दुख न होता जितना आज उसे इस बात पर हो रहा था कि उसका चचेरा भाई उसे नफ़रत और घृणा की दृष्टि से देख कर इस तरह उसके सामने से मुह फेर कर चला गया था जैसे वो उसे पहचानता ही न था। नीलम और विराज दोनो ही हमउमर थे किन्तु नीलम का बिहैवियर भी रितू की तरह रहा था विराज के साथ।
उस दिन की घटना ने नीलम के मुकम्मल वजूद को हिला कर रख दिया था। उसने इस घटना के बारे में अपने खुद के पैरेंट्स को बिलकुल भी नहीं बताया था। मौसी की लड़की को बस बताया था किन्तु उसने उससे भी वादा ले लिया था कि वो उसके घरवालों को ये बात न बताए कभी।
उस दिन की घटना के बाद पहले तो दो दिन नीलम काॅलेज नहीं गई थी किन्तु फिर तीसरे दिन से जाने लगी थी। काॅलेज में हर जगह उसकी नज़रें बस अपने चचेरे भाई विराज को ही ढूॅढ़तीं मगर पिछले कई दिनों से उसे अपना वो चचेरा भाई काॅलेज में कहीं न दिखा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर विराज काॅलेज क्यों नहीं आ रहा? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी वजह से उसने ये काॅलेज ही छोंड़ दिया हो। ये सोच कर ही नीलम की जान उसके हलक में आकर फॅस जाती। वो सोचती कि अगर विराज ने सच में उसकी ही वजह से काॅलेज छोंड़ दिया होगा तो ये कितनी बड़ी बात है। मतलब कि आज के समय में विराज उससे इतनी नफ़रत करता है कि वो उसे देखना तक गवाॅरा नहीं करता। ये सब बातें नीलम को रात दिन किसी ज़हरीले सर्प की भाॅति डसती रहती थी।
"बस एक बार।" नीलम के मुख से हर बार बस यही बात निकलती____"सिर्फ एक बार फिर से मुझे मिल जाओ मेरे भाई। तुमसे मिल कर मैं अपने किये की माफ़ी माॅगना चाहती हूॅ। मुझे एहसास है कि मेरे भाई कि मैने बचपन से लेकर अब तक तुम्हें सिर्फ दुख दिया है। तुम्हें तरह तरह की बातों से जलील किया था। मगर एक तुम थे कि मेरी उन कड़वी बातों का कभी भी बुरा नहीं मानते थे। जबकि कोई और होता तो जीवन भर मुझे देखना तक पसंद न करता। मुझे सब कुछ अच्छी तरह से याद है भाई। मेरे माॅम डैड ने हमेशा हम भाई बहनों को यही सिखाया था कि तुम सब बुरे लोग हो इस लिए हम तुमसे दूर रहें और कभी भी किसी तरह का कोई मेल मिलाप न रखें। हम बच्चे ही तो थे भाई, जैसा माॅ बाप सिखाते थे उसी को सच मान लेते थे और फिर इस सबकी आदत ही पड़ गई थी। मगर उस दिन तुमने मेरी इज्ज़त बचा कर ये जता दिया कि तुम बुरे नहीं हो सकते। जिस तरह से तुम मुझे देख कर नफ़रत व घृणा से अपना मुह मोड़ कर चले गए थे, उससे मुझे एहसास हो चुका था कि तुमने जो किया वो एक ऊॅचे दर्ज़े का कर्म था और जो मैंने अब तक किया था वो हद से भी ज्यादा निचले दर्ज़े का कर्म था। मुझे बस एक बार मिल जाओ राज। मैं तुमसे अपने गुनाहों की माफ़ी माॅगना चाहती हूॅ। तुम जो भी सज़ा दोगे उस सज़ा को मैं खुशी खुशी कुबूल कर लूॅगी। प्लीज़ राज, बस एक बार मुझे मिल जाओ। तुम काॅलेज क्यों नहीं आ रहे हो? क्या इतनी नफ़रत करते हो तुम अपनी इस बहन से कि जिस काॅलेज में मैं हूॅ वहाॅ तुम पढ़ ही नहीं सकते? ऐसा मत करना मेरे भाई। वरना मैं अपनी ही नज़रों में इस क़दर गिर जाऊॅगी कि फिर उठ पाना मेरे लिए असंभव हो जाएगा।"
ये सब बातें अपने आप से ही करना जैसे नीलम की दिनचर्या में शामिल हो गया था। उसके मौसी की लड़की उसे इस बारे में बहुत समझाती मगर नीलम पर उसकी बातों का कोई असर न होता। काॅलेज में हुई घटना से नीलम थोड़ा गुमसुम सी रहने लगी थी। मगर इसका कारण यही था कि विराज काॅलेज नहीं आ रहा था। वो हर रोज़ समय पर काॅलेज पहुॅच जाती और सारा दिन काॅलेज में रुकती। उसकी नज़रें हर दिन अपने भाई को तलाश करती मगर अंत में उन ऑखों में मायूसी के साथ साथ ऑसू भर आते और फिर वो दुखी भाव से घर लौट जाती। कालेज के बाॅकी स्टूडेंट्स नार्मल ही थे। उस घटना के बाद किसी ने कभी कोई टीका टिप्पणी न की थी।
कुछ देर ऐसे ही सोचो में गुम वह बेड पर पड़ी रही उसके बाद वो उठी और बाथरूम की तरफ बढ़ गई। बाथरूम में फ्रेश होने के बाद वो वापस कमरे में आई और काॅलेज के यूनीफार्म पहन कर तथा कंधे पर एक मध्यम साइज़ का बैग लेकर वो कमरे से बाहर की तरफ बढ़ी ही थी कि उसका मोबाइल बज उठा। उसने बैग के ऊपरी हिस्से की चैन खोला और अपना मोबाइल निकाल कर स्क्रीन पर नज़र आ रहे "माॅम" नाम को देखा तो उसने काल रिसीव कर मोबाइल कानों से लगा लिया।
"............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ कहा।
"क्याऽऽऽ????" नीलम के हाॅथ से मोबाइल छूटते छूटते बचा था। उसके हलक से जैसे चीख सी निकल गई थी, बोली___"ये ये आप क्या कह रही हैं माॅम? डैड को सीबीआई वाले ले गए? मगर क्यों??? आख़िर ऐसा क्या किया है डैड ने?"
"............।" उधर से प्रतिमा ने फिर कुछ कहा।
"ओह अब क्या होगा माॅम?" प्रतिमा की बात सुनने के बाद नीलम ने संजीदगी से कहा___"क्या रितू दीदी ने कुछ नहीं किया? वो भी तो एक पुलिस ऑफिसर हैं?"
"..............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ देर तक कुछ बात की।
"क्याऽऽ???" नीलम बुरी तरह उछल पड़ी____"ये आप क्या कह रही हैं? दीदी भला ऐसा कैसे कर सकती हैं माॅम? नहीं नहीं, आपको और डैड को ज़रूर कोई ग़लतफहमी हुई है। रितू दीदी ये सब कर ही नहीं सकती हैं। आप तो जानती हैं कि दीदी ने कभी उसकी तरफ देखना तक पसंद नहीं किया था। फिर भला आज वो कैसे उसका साथ देने लगीं? ये तो इम्पाॅसिबल है माॅम।"
"...........।" उधर से प्रतिमा ने फिर कुछ कहा।
"मैं इस बारे में दीदी से बात करूॅगी माॅम।" नीलम ने गंभीरता से कहा___"उनसे पूछूॅगी कि आख़िर वो ये सब क्यों कर रही हैं?"
"............।" उधर से प्रतिमा ने झट से कुछ कहा।
"क्यों नहीं पूॅछ सकती माॅम?" नीलम ने ज़रा चौंकते हुए कहा___"आख़िर पता तो चलना ही चाहिए कि उनके मन में क्या है अपने पैरेंट्स के प्रति? इस लिए मैं उनसे फोन लगा कर ज़रूर इस बारे में बात करूॅगी।"
"..........।" उधर से प्रतिभा ने फिर कुछ कहा।
"मैं भी आ रही हूॅ माॅम।" नीलम ने कहा___"ऐसे समय में में मुझे अपने माॅ डैड के पास ही रहना है। दूसरी बात मैं देखना चाहती हूॅ कि रितू दीदी ये सब कैसे करती हैं अपने ही माॅ बाप और भाई के खिलाफ़?"
"...............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ कहा।
"ओके माॅम।" नीलम ने कहा और काल कट कर दिया।
इस वक्त उसके दिलो दिमाग़ में एकाएक ही तूफान सा चालू हो गया था। मन में तरह तरह के सवाल उभरने लगे थे। जिनका जवाब फिलहाल उसके पास न था किन्तु जानना आवश्यक था उसके लिए। दरवाजे की तरफ न जाकर वह वापस पलट कर बेड पर बैठ गई और गहन सोच में डूब गई।
"डैड को सीबीआई वाले अपने साथ ले गए।" नीलम मन ही मन सोच रही थी___"वजह ये कि उनके शहर वाले मकान से भारी मात्रा में चरस अफीम व ड्रग्स जैसी गैर कानूनी चीज़ें सीबीआई वालो को बरामद हुई। सवाल ये उठता है कि क्या सच में डैड इस तरह का कोई ग़ैर कानूनी धंधा करते हैं? वहीं दूसरी तरफ रितू दीदी आज कल अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ जाकर राज का साथ दे रही हैं। भला ये असंभव काम संभव कैसे हो सकता है? आख़िर ऐसा क्या हुआ है कि दीदी माॅम डैड के सबसे बड़े दुश्मन का साथ देने लगी हैं? माॅम ने बताया कि राज गाॅव आया था, इसका मतलब इसी लिए वो काॅलेज नहीं आ रहा था। मगर वो गाॅव गया किस लिए था? और गाॅव में ऐसा क्या हुआ है कि दीदी अपने उस चचेरे भाई का साथ देने लगीं जिसे वो कभी देखना भी पसंद नहीं करती थीं?"
नीलम के ज़हन में हज़ारों तरह के सवाल इधर उधर घूमने लगे थे मगर नीलम को ये सब बातें हजम नहीं हो रही थी। सोचते सोचते सहसा नीलम के दिमाग़ की बत्ती जली। उसके मन में विचार आया कि वो खुद भी तो कभी राज को अपना भाई नहीं समझती थी जबकि आज हालात ये हैं कि वो अपने उसी भाई से मिल कर अपने उन गुनाहों की उससे माफ़ी माॅगना चाहती है। कहीं न कहीं उसका अपने इस भाई के प्रति हृदय परिवर्तन हुआ था तभी तो उसके दिल में ऐसे भावनात्मक भाव आए थे। दूसरी तरफ रितू दीदी भी राज का साथ दे रही हैं। इसका मतलब कुछ तो ऐसा हुआ है जिसके चलते दीदी का भी राज के प्रति हृदय परिवर्तन हुआ है और वो आज उसका साथ भी दे रही हैं। इतना ही नहीं अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ राज के साथ लड़ाई लड़ रही हैं।
नीलम को अपना ये विचार जॅचा। उसको एहसास हुआ कि कुछ तो ऐसी बात हुई जिसका उसे इस वक्त कोई पता नहीं है। ये सब सोचने के बाद उसने मोबाइल पर रितू दीदी का नंबर ढूॅढ़ा और काल लगा कर मोबाइल कान से लगा लिया। काल जाने की रिंग बजती सुनाई दी उसे। कुछ ही देर में उधर से रितू ने काल रिसीव किया।
"............।" उधर से रितू ने कुछ कहा।
"मैं तो बिलकुल ठीक हूॅ दीदी।" नीलम ने कहा___"आप बताइये आप कैसी हैं?"
"...........।" उधर से रितू ने फिर कुछ कहा।
"हाॅ दीदी काॅलेज अच्छा चल रहा है और साथ में पढ़ाई भी अच्छी चल रही है।" नीलम ने कहने के साथ ही पहलू बदला___"दीदी, अभी अभी माॅम का फोन आया था मेरे पास। उन्होंने कुछ ऐसा बताया जिसे सुन कर मेरे होश ही उड़ गए हैं। वो कह रही थी कि डैड को सीबीआई वाले ग़ैर कानूनी सामान के चलते अपने साथ ले गए हैं। ये भी कि आप विराज का साथ दे रही हैं। ये सब क्या चक्कर है दीदी? प्लीज़ बताइये न कि ऐसा क्या हो गया है कि आप अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ हैं? माॅम कह रही थी कि आपने उनका काल भी रिसीव नहीं किया। वो आपको भी डैड के बारे में सूचित करना चाहती थी।"
".............।" उधर से रितू ने काफी देर तक कुछ कहा।
"बातों को गोल गोल मत घुमाइये दीदी।" नीलम ने बुरा सा मुह बनाया____"साफ साफ बताइये न कि आख़िर क्या बात हो गई है जिसकी वजह से आप माॅम डैड के खिलाफ़ हो कर उस विराज का साद दे रही हैं?"
"...........।" उधर से रितू ने फिर कुछ कहा।
"इसका मतलब आप खुद मुझे कुछ भी बताना नहीं चाहती हैं।" नीलम ने कहा___"और ये कह रही हैं कि सच्चाई का पता मैं खुद लगाऊॅ। ठीक है दीदी, मैं आ रही हूॅ। क्या आपसे मिल भी नहीं सकती मैं?"
"............।" उधर से रितू ने कुछ कहा।
"ठीक है दीदी।" नीलम ने कहा___"लेकिन मैं इतना ज़रूर जानती हूॅ कि बात भले ही चाहे जो कुछ भी हुई हो मगर ऐसा नहीं होना चाहिए कि बच्चे अपने माॅ बाप से इस तरह खिलाफ़ हो जाएॅ।"
इतना कहने के बाद नीलम ने काल कट कर दिया और फिर दुखी भाव से बेड पर कुछ देर बैठी जाने क्या सोचती रही। उसके बाद जैसे उसने कोई फैसला किया और फिर उठ कर काॅलेज की यूनिफार्म को उतारने लगी। कुछ ही देर में उसने दूसरे कपड़े पहन लिए और फिर कमरे से बाहर निकल गई।
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इधर विराज एण्ड पार्टी की ट्रेन अपने निर्धारित समय से कुछ ही समय की देरी से आख़िर मुम्बई पहुॅच ही गई थी। सब लोग ट्रेन से बाहर आए और फिर प्लेटफार्म से बाहर की तरफ निकल गए। विराज ने मुम्बई पहुॅचने से पहले ही जगदीश ओबराय को फोन कर दिया था। इस लिए जैसे ही ये लोग स्टेशन से बाहर आए वैसे ही जगदीश ओबराय बाहर मिल गया। उसके साथ एक कार और थी। सब लोग कार मे बैठ कर घर के लिए निकल गए।
रास्ते में जगदीश अंकल ने मुझे बताया कि उन्होंने माॅ से बात कर ली है। पहले तो माॅ मेरी वापसी की बात सुन कर नाराज़ हुईं। मगर जगदीश अंकल ने उन्हें सारी बात तरीके से बताई और ये यकीन दिलाया कि मुझे कुछ नहीं होगा तब जाकर वो राज़ी हुई थी। लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि वो एक बार मुझे देखना चाहती हैं। अतः अब मैं इन लोगों के साथ ही घर तक जा रहा था। वरना मेरा प्लान ये था कि मैं यहाॅ से वापस उसी ट्रेन से लौट जाता।
मुम्बई से वापसी के लिए इसी ट्रेन को लगभग कुछ घण्टे बाद जाना था इस लिए मैं बड़े आराम से गर जाकर माॅ से मिल सकता था। ख़ैर, कुछ ही समय बाद हम सब घर पहुॅच गए। घर पर सब एक दूसरे से मिले। करुणा चाची जब माॅ से मिली तो बहुत रो रही थी और बार बार माॅ से माफ़ियाॅ माॅग रही थी। माॅ ने उन्हें अपने सीने से लगा लिया था। करुणा चाची को वो हमेशा अपनी छोटी बहन की तरह मानती थी और प्यार करती थी। आशा दीदी और उनकी माॅ से भी मेल मिलाप हुआ। मिलने मिलाने में ही काफी समय ब्यतीत हो गया था।
मैं अपने कमरे में जाकर फ्रेश हो गया था। आदित्य भी फ्रेश हो गया था। उसे मेरे साथ ही वापस गाॅव जाना था। निधी भी सबसे मिली। करुणा चाची ने उसे ढेर सारा प्यार व स्नेह दिया था। दिव्या और शगुन को माॅ ने अपने सीने से ही छुपकाया हुआ था। अभय चाचा खुश थे कि उनके बीवी बच्चे सही सलामत यहाॅ आ गए थे। अब उन्हें उनके लिए कोई फिक्र नहीं थी। शायद यही वजह थी कि वो खुद भी मेरे साथ चलने की बात करने लगे थे। उनका कहना था कि वो खुद भी इस जंग में हिस्सा लेंगे और अपने बड़े भाई से इस सबका बदला लेंगे। मगर मैने और जगदीश अंकल ने उन्हें समझा बुझा कर मना कर दिया था।
मैने एक बात महसूस की थी कि निधी का बिहैवियर मेरे प्रति कुछ अलग ही था। इसके पहले वह हमेशा मेरे पषास में ही रहने की कोशिश करती थी जबकि अब वो मुझसे दूर दूर ही रह रही थी। यहाॅ तक कि मेरी तरफ देख भी नहीं थी वो। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वो ऐसा क्यों कर रही थी। मैने एक दो बार खुद उससे बात करने की कोशिश की मगर वो किसी न किसी बहाने से मेरे पास से चली ही जाती थी। मुझे उसके इस रूखे ब्यवहार से तक़लीफ़ भी हो रही थी। वो मेरी जान थी, मैं उसकी बेरुखी पल भर के लिए भी सह नहीं सकता था मगर सबके सामने भला मैं उससे इस बारे कैसे बात कर सकता था? मेरे पास वक्त नहीं था, इस लिए मैने मन में सोच लिया था कि सब कुछ ठीक करने के बाद मैं उससे बात करूॅगा और उसकी किसी भी प्रकार की नाराज़गी को दूर करूॅगा।
मैं माॅ से मिला तो माॅ मेरी वापसी की बात से भावुक हो गईं। उन्हें पता था कि मैं वापस किस लिए जा रहा हूॅ इस लिए वो मुझे बार बार अपना ख़याल रखने के लिए कह रही थी। ख़ैर मैने उन्हें आश्वस्त कराया कि मैं खुद का ख़याल करूॅगा और मुझे कुछ नहीं होगा।
चलने से पहले मैने सबसे आशीर्वाद लिया और फिर आदित्य के साथ वापसी के लिए चल दिया। मेरे साथ जगदीश अंकल भी थे। पवन और आशा दीदी मुझे अपना ख़याल रखने का कहा और खुशी खुशी मुझे विदा किया। हलाॅकि मैं जानता था कि वो अंदर से मेरे जाने से दुखी हैं। उन्हें मेरी फिक्र थी। अभय चाचा ने मुझे सम्हल कर रहने को कहा। करुणा चाची ने मुझे प्यार दिया और विजयी होने का आशीर्वाद दिया। मैं दिव्या और शगुन को प्यार व स्नेह देकर निधी की तरफ देखा तो वो कहीं नज़र न आई। मैं समझ गया कि वो मुझसे मिलना नहीं चाहती है। इस बात से मुझे तक़लीफ़ तो हुई किन्तु फिर मैंने उस तक़लीफ़ को जज़्ब किया और जगदीश अंकल के साथ कार में बैठ कर वापस रेलवे स्टेशन की तरफ चल दिया।
रेलवे स्टेशन पहुॅच कर मैं और आदित्य कार से उतरे। जगदीश अंकल ने मुझे एक पैकिट दिया और कहा कि मैं उसे अपने बैग में चुपचाप डाल लूॅ। मैने ऐसा ही किया। उसके बाद जगदीश अंकल से मेरी कुछ ज़रूरी बातें हुईं और फिर मैं और आदित्य प्लेटफार्म की तरफ बढ़ गए। ट्रेन वापसी के लिए बस चलने ही वाली थी। हम दोनो ट्रेन में अपनी अपनी शीट पर बैठ गए। मैने मोबाइल से रितू दीदी को फोन किया और उन्हें बताया कि सब लोगों को मैने सुरक्षित पहुॅचा दिया है और अब मैं वापस आ रहा हूॅ। रितू दीदी इस बात से खुश हो गईं। फिर उन्होंने मुझे अख़बार में छपी ख़बर के बारे में बताया और पूॅछा कि ये सब क्या है तो मैने कहा कि मिल कर बताऊॅगा।
रितू दीदी से बात करने के बाद मैं आदित्य से बातें करने लगा। तभी मेरी नज़र एक ऐसे चेहरे पर पड़ी जिसे देख कर मैं चौंक पड़ा और हैरान भी हुआ। मेरे मन में सवाल उठा कि क्या उसने मुझे देख लिया होगा????? मैने अपनी पैंट की जेब से रुमाल निकाल कर अपने मुख पर बाॅध लिया और फिर आराम से आदित्य से बातें करने लगा। किन्तु मेरी नज़र बार बार उस चेहरे पर चली ही जाती थी। जिस चेहरे पर मैं एक अजीब सी उदासी देख रहा था।
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अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,