Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अपडेट.........《 48 》


अब आगे,,,,,,,

विराज के कमरे से जाते ही रितू ने अपने जिस्म से पुलिस की वर्दी निकाली और एक टाॅवेल लेकर बाॅथरूम में घुस गई। उसके सिर पर जो चोंट लगी थी वो बहुत ज्यादा दर्द कर रही थी। किन्तु उसने अपने उस दर्द को बड़ी मुश्किल से जज़्ब किया हुआ था। खून तो रिसा था किन्तु उसने पाॅकेट से रुमाल निकाल कर उसे पहले ही साफ कर लिया था। चोंट इतनी भी गहरी नहीं थी जिससे बात गंभीर होती। जीप के किनारे पर लगा लोहे का पाइप उसके सिर के किनारे वाले भाग के थोड़ा सा ऊपर लगा था। उस आदमी को जीप में डालने के बाद ही उसने सिर से रिस रहे खून को रुमाल से साफ किया था। उसके बाद उसने सिर पर वापस पीकैप पहन ली थी जिससे चोंट से रिसा हुआ खून और चोंट दिखनी बंद हो गई थी। वो नहीं चाहती थी कि उसको लगी किसी भी प्रकार की चोंट फार्महाउस में किसी को भी नज़र आए या पता चले।

बाथरूम में रितू ने खुद को फ्रेश किया और फिर बाहर आ गई। कमरे में उसने एक नई वर्दी पहनी और फिर पीकैप लगा कर खुद को पूरी तरह तैयार किया। आलमारी से उसने एक दर्द की टैबलेट ली और वहीं एक साइड रखे पानी के बाटल से उसने उस टैबलेट को खाया। उसके बाद वो कमरे से बाहर आ गई।

नीचे डायनिंग हाल में इस वक्त खाना खाने के लिए सिर्फ तीन ही लोग थे। विराज, आशा, और रितू। रितू के आने के बाद पवन की माॅ ने उन तीनों को खाना परोसा। तीनों ने बड़े आराम से खाना खाया। बाॅकि सब अपने अपने कमरे में थे। कुछ ही देर में तीनों ने खाना खा लिया।

"तू क्या फिर से ड्यूटी पर जा रही है रितू?" आशा दीदी ने पूछा___"मैने तो सोचा था कि हम सब यहाॅ गप्पें लड़ाएंगे। मगर अब जबकि तू जा रही है तो फिर मैं क्या करूॅगी इसके सिवा कि कमरे में जाकर लम्बी तान कर सो जाऊॅगी।"

"लम्बी तान कर सोने की ज़रूरत नहीं है आशा।" रितू दीदी ने कहा___"शाम को तुम सबको राज के साथ मुम्बई के लिए निकलना है। इस लिए सामान की पैकिंग करके रेडी रहना।"
"क्याऽऽ???" आशा दीदी बुरी तरह चौंकी___"हम आज ही शाम को यहाॅ से जाएॅगे???"

रितू दीदी की बात सुनकर मैं भी बुरी तरह चौंक पड़ा था। मैं तो कुछ और ही सोचे हुए था। रितू दीदी के साथ जाकर रास्ते में उनसे गुनगुन जाने के लिए कहने वाला था ताकि अपनी सभी टिकटें कैंसिल करवा सकूॅ। मगर दीदी की इस बात ने मुझे हिला कर रख दिया था।

"हाॅ आशा।" उधर दीदी कह रही थीं___"तुम लोगों का यहाॅ से सुरक्षित मुम्बई निकलना ज़रूरी है। क्योंकि आने वाला हर पल एक नये ख़तरे को अपने साथ लेकर आ रहा है। तुम सबके यहाॅ रहते हुए किसी भी प्रकार की अनहोनी हो सकती है। इस लिए मैं चाहती हूॅ कि तुम सब यहाॅ से मुम्बई चले जाओ।"

"अच्छा ठीक है रितू।" आशा दीदी ने कहा___"मैं माॅ को भी बता देती हूॅ इस बारे में।"
"ठीक है ।" रितू दीदी ने कहा___"पवन और राज के उस दोस्त को भी बता देना। चल राज।"

अंतिम वाक्य मुझे देख कर कहने के साथ ही रितू दीदी कुर्सी से उठ कर बाहर की तरफ चल दी। उनके पीछे पीछे मैं भी बुझे मन से चल दिया। बाहर आकर दीदी अपनी जिप्सी की तरफ बढ़ गईं। जिप्सी की ड्राइविंग शीट पर बैठ कर दीदी ने मुझे भी साथ में बैठने को कहा तो मैं भी चुपचाप बैठ गया। मेरे बैठते ही दीदी ने जिप्सी मेन गेट की तरफ दौड़ा दिया।

"काका, यहाॅ सबका ख़याल रखना।" लोहे वाले गेट के पास रुक कर दीदी ने हरिया काका से कहा___"हम आते है कुछ देर में।"
"फिकर ना करो बिटिया।" हरिया काका ने कहा__"हमरे रहते यहाॅ काहू का कुछू न होई।"

हरिया काका की बात सुन कर दीदी मुस्कुराई और फिर जिप्सी को आगे बढ़ा दिया। मैं उतरा हुआ चेहरा लिये दूसरी तरफ देख रहा था। सच कहूॅ तो मुझे दीदी का आशा दीदी से ये कहना कि वो सब लोग मेरे साथ आज शाम ही मुम्बई जाएॅगी बिलकुल अच्छा नहीं लगा था।

"क्या हुआ मेरा भाई नाराज़ है मुझसे?" सहसा रितू दीदी ने मेरी तरफ देख कर कहा था। उनकी ये बात सुन कर मैने उनकी तरफ एक नज़र देखा और फिर बिना कुछ बोले फिर से दूसरी तरफ देखने लगा।

"अपने से दूर तो मैं भी तुझे नहीं जाने देना चाहती मेरे भाई।" दीदी ने गहरी साॅस ली___"मगर मौजूदा हालात कुछ ऐसे हैं कि मुझे ये सब करना पड़ रहा है। मगर मैं ये नहीं कह रही राज कि इस जंग में मैं या तू अकेले हैं...नहीं नहीं बल्कि हम दोनो साथ साथ ही हैं।"

उनकी इस बात से मैने चौंक कर उनकी तरफ एक झटके से देखा। वो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी। उनकी इस मुस्कान को देख कर मेरी सारी नाराज़गी दूर हो गई।

"हाॅ राज।" उन्होंने फिर कहा___"हम दोनो साथ साथ ही इस खेल में काम करेंगे। मगर....
"मगर क्या दीदी???" मैं चकराया।
"मगर ये कि तू अभी इन सबको लेकर मुम्बई सुरक्षित पहुॅच जा।" दीदी ने कहा___"जब ये सब वहाॅ पहुॅच जाएॅगे तो इनकी सुरक्षा की चिंता से हम दोनो ही मुक्त हो जाएॅगे। उसके बाद तुम वहाॅ से वापस आ जाना यहाॅ। हम दोनो तसल्ली से फिर इस खेल को अंजाम तक पहुॅचाएॅगे।"

"आपने ठीक कहा दीदी।" मैने कहा___"हम स्वतंत्रतापूर्वक ये जंग तभी लड़ सकेंगे जब हमारी ये सारी कमज़ोरियाॅ हमारे दुश्मन की नज़र से या पहुॅच से बहुत दूर हो जाएॅगी। क्योंकि हमारे दुश्मन ने अगर हमारी एक भी कमज़ोरी को नुकसान पहुॅचा दिया तो वो नुकसान हम हर्गिज़ भी सह नहीं सकेंगे।"

"बिलकुल ठीक समझे मेरे भाई।" रितू दीदी ने मुस्कुरा कर कहा___"मैं यही कर रही हूॅ। मैं चाहती हूॅ कि तू हमारी इन सारी कमज़ोरियों को यहाॅ से मुम्बई ले जाकर उन्हें सुरक्षित कर दे। उसके बाद तू वापस यहाॅ आ जाना, उस सूरत में हम दोनो बहन भाई खुल कर और तसल्ली से अपनी जंग लड़ सकेंगे।"

"मैं समझता था कि ये जंग सिर्फ मेरी है दीदी।" मैने सहसा गंभीर होकर कहा___"और इस जंग को अकेले ही मुझे इसके अंजाम तक पहुॅचाना है। मगर आपसे मिल कर ये पता चला कि इस जंग में मैं अकेला नहीं हूॅ बल्कि मेरे साथ मेरे हर क़दम में मेरा साथ देने के लिए मेरी सबसे अज़ीज़ दीदी भी तैयार बैठी हैं। ये मेरे लिए ऐसी खुशी है दीदी जिसका मैं बयान नहीं कर सकता।"

"चल अब तू फिर से न मुझे इमोश्नल कर देना।" रितू दीदी ने हौले से हॅसते हुए कहा___"वरना मैं फिर रोने लग जाऊॅगी।"
"नहीं दीदी।" मैने तपाक से कहा___"आप रोना नहीं। आपकी ऑखों में ऑसू देखते ही मेरे अंदर कुछ टूटने सा लगता है। जिससे मुझे तक़लीफ़ होने लगती है।"

"अच्छा ये सब छोंड़ भाई।" रितू दीदी मेरी बात पर पहले तो मुस्कुराईं फिर सहसा बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"राज तुझसे कुछ पूछूॅ?"
"ये क्या बात हुई दीदी?" मैने दीदी की तरफ देखा__"कोई बात पूछने के लिए भला आपको मुझसे इजाज़त माॅगने की क्या ज़रूरत है?"

"अच्छा नहीं माॅगती इजाज़त।" दीदी फिर मुस्कुराई, बोली___"मैं तुझसे जो कुछ भी पूछना चाहती हूॅ उसका तू सच सच जवाब देगा न?"
"हाॅ बिलकुल दीदी।" मैने कहा___"मैं आपके हर सवाल का सच सच जवाब दूॅगा। पूछिए क्या पूछना चाहती हैं आप?"

"मेरे मन में कई सारी बातें है राज।" रितू दीदी ने सामने रास्ते की तरफ देखते हुए कहा___"और उन्हीं कई सारी बातों में कई सारे सवाल भी हैं जिनके बारे में मुझे जानना है। तू तो जानता है कि मैं एक पुलिस ऑफिसर भी हूॅ इस लिए हर सवालों का सही सही जवाब पाना मेरी इस पुलिसिया फितरत में भी शामिल है।"

"कोई बात नहीं दीदी।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"आपको जो कुछ भी जानना है मुझसे आप बेझिझक पूॅछ सकती हैं। अगर आपके सवालों के जवाब मेरे पास होंगे तो ज़रूर मैं आपके हर सवाल का जवाब दूॅगा।"
"सबसे पहला सवाल तो यही है कि तू मुम्बई में कहाॅ और किस हाल में गौरी चाची और गुड़िया को साथ लिए रहता है?" रितू दीदी ने कहा___"और अब तो तू इन सबको भी अपने साथ ही लिए जा रहा है तो मेरा ये सोचना जायज़ ही है कि इतने सारे लोगों को तू कहाॅ ठहराएगा और कैसे सुरक्षित रखेगा?"

"बड़े पापा तो मेरे बारे में यही सोचते हैं दीदी।" मैने सहसा मुस्कुरा कर कहा___"कि मैं मुम्बई में कहीं किसी होटल या ढाबे में कप प्लेट धोने वाला काम करता होऊॅगा। जबकि मेरी सच्चाई का अगर आज उन्हें पता चल जाए तो उनके पैरों तले से ये ज़मीन गायब हो जाएगी।"

"क्या मतलब???" रितू दीदी बुरी तरह चौंक कर मेरी तरफ देखने लगी थी।
"मतलब साफ है दीदी।" मैने गहरी साॅस ली___"ईश्वर से बड़ा कोई नहीं होता दुनियाॅ में। ये ईश्वर की ही रहमत है दीदी कि मैं चाहूॅ तो यहाॅ पर खड़े खड़े ही पूरा हल्दीपुर गाॅव ख़रीद लूॅ। जिस मामूली सी प्रापर्टी को पाने के लिए बड़े पापा ने ये सब किया था न उस प्रापर्टी की लाखों गुनी दौलत आज मेरे पास है।"

"ये तू क्या कह रहा है राज?" रितू दीदी बुरी तरह उछल पड़ी थी। ब्रेक पैडल पर लगभग वो खड़ी ही हो गई थी। जिसके चलते जिप्सी के टायर ज़ोर से चीखते हुए सड़क पर स्थिर हो गए थे। मेरी तरफ आश्चर्यचकित नज़रों से देखते हुए बोलीं___"तेरे पास इतनी सारी दौलत कहाॅ से आ गई? तू....तूने कहीं कोई ग़लत काम करके तो नहीं ये दौलत अर्जित की है??"

"हाहाहाहा अरे नहीं दीदी।" मैने हॅसते हुए कहा___"क्या आपको लगता है कि आपका ये भाई दौलत पाने के लिए कोई ग़लत काम करेगा?"
"लगता तो नहीं है राज।" दीदी की ऑखें अभी भी फैली हुई थी, बोली___"मगर सवाल तो खड़ा होता ही है कि इतनी सारी दौलत अचानक एक साथ मिल जाना कैसे संभव हो सकता है?"

"इस दुनियाॅ में सब कुछ संभव है दीदी।" मैने कहा___"और इसका जीता जागता प्रमाण मैं खुद हूॅ।"
"लेकिन कैसे मेरे भाई??" रितू दीदी चकित भाव से बोल पड़ीं____"ये असंभव संभव कैसे हो गया? और अगर ऐसा ही है तो यकीनन राज ये बहुत ख़ुशी की बात है।"

मैने दीदी को संक्षेप में सारी कहानी बता दी। उन्हें बताया कि कैसे एक अरबपति इंसान ने मुझे अपना बेटा बना लिया और अपनी सारी संपत्ति मेरे नाम कर दी। मैने उन्हें बताया कि मैं उसी अरबपति आदमी की मल्टीनेशनल कंपनी में नौकरी करता था। मेरे काम और मेरे नेचर से प्रभावित होकर वो आदमी एक दिन मेरा मसीहा बन गया।
मैने उन्हें बताया कि आज मैं अपने पूरे परिवार के साथ उसी आदमी के अलीशान बॅगले में शान से रहता हूॅ। मेरी ये कहानी सुन कर दीदी आश्चर्यचकित रह गईं थी। काफी देर तक उनके मुख से कोई बोल न फूटा।

"ये...ये तो कमाल हो गया राज।" फिर दीदी ने खुशी से फूली न समाते हुए कहा___"मैं समझ सकती हूॅ मेरे भाई। हाॅ भाई, मैं सब समझ गई। ईश्वर ने तुझे तेरे अच्छे कर्मों का फल दिया है। उससे तेरी दुख तक़लीफ़ें नहीं देखी गई और इसी लिए उसने उस आदमी को तेरा मसीहा बना कर भेज दिया तेरे पास। हाॅ भाई, यही सच है। मैं बहुत खुश हूॅ तेरे लिए राज।"

"अब तो आप इस बात से बेफिक्र हैं न कि इन सबको मैं मुम्बई में कैसे रखूॅगा?" मैने मुस्कुरा कर कहा था।
"हाॅ राज।" दीदी ने जिप्सी को आगे बढ़ाते हुए कहा__"अब मुझे इन लोगों की कोई चिन्ता नहीं है।"
"हम्म, अब बताइये और क्या जानना है आपको?" मैने बात को आगे बढ़ाया।

"मैं नहीं जानती राज कि जो मैं तुझसे कहने वाली हूॅ या जानने वाली हूॅ उसका तुझे पता है भी या उसका तुझसे कोई ताल्लुक है भी कि नहीं।" दीदी ने कहा___"मगर फिर भी इस लिए कह रही हूॅ कि तू मेरा भाई है और तुझे भी जानने का हक़ है कि घर परिवार के बीच या तेरी बहन के साथ क्या क्या हुआ?"

"जी कहिए न दीदी।" मैने कहा___"आप बेझिझक अपनी बात मुझसे शेयर कर सकती हैं।"
"मैने पुलिस की नौकरी अपने शौक के लिए तो की ही थी राज।" रितू दीदी ने जैसे कहना शुरू किया___"मगर दिल में ये भी हसरत थी कि मैं ये नौकरी पूरी ईमानदारी के साथ करूॅगी। ख़ैर, ड्यूटी ज्वाइन करने से पहले ही मेरे मन में ये बात थी कि मैं चार्ज़ सम्हालते ही सबसे पहले दादा दादी के केस पर काम करूॅगी। यानी मैं पता लगाऊॅगी कि उनका एक्सीडेन्ट वास्तव में एक हादसा ही था या फिर किसी की सोची समझी चाल थी? चार्ज़ सम्हालते ही मैने ऐसा किया भी, मगर पुलिस रिकार्ड में मुझे कहीं कोई ऐसा सुराग़ या क्लू तक नहीं मिला जिससे मुझे संदेह भी हो सके कि उनका एक्सीडेन्ट सोची समझी चाल का नतीजा हो सकता है। कहने का मतलब ये कि मैने दादा दादी वाले केस में बहुत छानबीन की मगर कुछ भी हाॅथ न लगा। थक हार कर मैने उस केस से अपना ध्यान हटा लिया। ये अलग बात थी कि दिल में ये मलाल अब भी है कि मैं दादा दादी के केस में कुछ भी न कर सकी।"

इतना सब कहने के बाद रितू दीदी कुछ पल के लिए रुकी और एक नज़र मेरे चेहरे की तरफ देखने के बाद फिर से सामने की तरफ देखने लगीं।

"उसके बाद फिर डैड के साथ अजीब सी घटनाएॅ होने लगीं।" रितू दीदी ने गहरी साॅस लेने के बाद फिर से कहना शुरू किया___"सबसे पहले जो उनके साथ अजीब घटना हुई वो ये थी कि कोई विदेशी ब्यक्ति उन्हें करोंड़ो का चूना लगा कर कहीं गायब हो गया। अख़बार में इस बात की ख़बर भी छपी थी। जिसके चलते डैड की इज्ज़त पर भी असर हुआ। मैं जानती हूॅ कि डैड ने उस विदेशी की खोज में धरती आसमान एक कर दिया होगा मगर उनके हाॅथ कुछ न लगा। ख़ैर, इस अजीब घटना के बाद डैड के साथ फिर से एक घटना घटी। उनकी फैक्ट्री में आग लग गई। फैक्ट्री में लगी आग की जाॅच उन्होंने अपने तरीके से करवाई थी और रिपोर्ट भी अपने तरीके से ही बनवाई थी। ऐसा शायद उन्होंने इस लिए किया था ताकि उनकी रेपुटेशन पर फिर से कोई धब्बा न लग जाए। हलाॅकि धब्बा लगने से वो तब भी नहीं रोंक पाए थे। मैने जब देखा कि कोई नतीजा ही नहीं निकला है तो मैने फैक्ट्री की जाॅच करने का खुद ही बीड़ा उठाने का सोचा। मेरे मन में ऐसा करने की सिर्फ दो ही वजहें थी। पहला ये जानना कि ऐसा कौन है जिसने डैड की फैक्ट्री में आग लगाई? दूसरा ये कि डैड के हुए उस भारी नुकसान की भरपाई करना। ज़ाहिर सी बात है कि अगर मुजरिम का पता चल जाता तो उससे इस नुकसान की भरपाई कर ली जाती। मगर ऐसा भी न हो पाया था। इसमें सबसे ज्यादा चौंकानी वाली बात ये हुई थी कि जब मैने खुद जाॅच करने के लिए केस रिओपन करवाया तब गुनगुन शहर का सारा पुलिस महकमा ही बदल दिया गया था। हर कोई इस बात से हैरान था। मगर समझ में किसी को कुछ न आया था। दूसरी हैरानी की बात ये कि लाख कोशिशों के बाद भी उस केस में ये नहीं पता चल सका कि फैक्ट्री में आग आख़िर किसने लगाई थी? हलाॅकि इसमें एक कमज़ोरी ये थी कि डैड ने पूरी ईमानदारी से कोऑपरेट नहीं किया था।"

इतना कुछ बोलने के बाद रितू दीदी चुप हो गईं। मैने सोचा शायद वो कुछ और बोलेंगी मगर ऐसा न हुआ। उनकी नज़रें सामने रास्ते पर ही लगी हुई थी।

"ये तो थी घटनाओं की बातें।" तभी उन्होंने फिर से कहना शुरू किया___"और ये सब मैने तुझसे इस लिए शेयर किया राज ताकि तू भी जान सके कि ये केस मेरी नाकामी का भी हिस्सा हैं। जिन्हें मैं सुलझा नहीं पाई। मगर जबसे ये सब हालात शुरू हुए तब से मैने हवेली के अंदर भी कान लगाना शुरू कर दिया था। उससे ज्यादा तो नहीं मगर इतना ज़रूर सुना मैने कि तेरा ज़िक्र बार बार हवेली के अंदर मेरे माॅम डैड के बीच हुआ। एक बार तो मैने ये भी सुना कि ये सब तुमने किया है। मैं ये सुन कर हैरान तो हुई मगर ज्यादा ध्यान नहीं दिया कभी। क्योंकि तब मेरे दिमाग़ में भी यही बातें थी कि तू ये सब कर ही नहीं सकता। मगर ज्यादा दिनों तक मैं तुझे भी नज़रअंदाज़ नहीं कर पाई। क्योंकि कहीं न कहीं मेरे भी दिमाग़ में ये बात आ ही गई थी कि मेरे डैड का अगर कोई सबसे ज्यादा बुरा करना चाहेगा तो वो सिर्फ तू ही था। इस लिए मैंने उन सभी घटनाओं में तुझे जोड़ना शुरू किया और फिर मुझे भी ये लगने लगा कि तेरा इन सभी घटनाओं में ताल्लुक यकीनन हो सकता है।"

ये सब कहने के बाद रितू दीदी एकदम से चुप हो गईं। जिप्सी पुल के पास पहुॅच चुकी थी। इस लिए जिप्सी रोंक कर रितू दीदी मेरी तरफ अजीब भाव से देखने लगी थीं। जैसे मेरे चेहरे से ही समझ जाना चाहती हों कि सच्चाई क्या है।

"मेरा ही तो इन सभी घटनाओं में ताल्लुक था दीदी।" मैने गहरी साॅस लेते हुए जैसे उनके ऊपर बम फोड़ा__"हाॅ दीदी। आपने जिन घटनाओं का ज़िक्र किया उन सबका कर्ता धर्ता मैं ही तो था। वो विदेशी डीलर भी मैं ही था जिसने बड़े पापा से वो डील की और फिर बिना कुछ बताए गायब हो गया था। उसके बाद उनकी फैक्ट्री में आग भी मैने ही लगाई थी। कहने का मतलब ये कि बड़े पापा के साथ जो कुछ भी अभी तक बुरा हुआ है उसका जिम्मेदार सिर्फ मैं ही रहा हूॅ और आगे भी जो कुछ उनके साथ बुरा होगा उसका भी जिम्मेदार मैं ही होऊॅगा।"

"क्याऽऽऽ????" रितू दीदी मेरी बात सुन कर बुरी तरह उछल पड़ी थीं, बोली___"नहीं नहीं मैं नहीं मान सकती राज। भला तू ये सब कैसे कर सकता था? तू तो यहाॅ था ही नहीं।"

"आपके मानने या न मानने से सच्चाई बदल नहीं जाएगी दीदी।" मैने कहा___"और हाॅ, आपको तो अभी ये भी नहीं पता कि फैक्ट्री के तहखाने में कुछ था भी या नहीं?"
"क्या मतलब??" रितू दीदी की ऑखें फैली___"फैक्ट्री के तहखाने में भला क्या था जिसकी बात कर रहा है तू?"

"आपको क्या लगता है दीदी?" मैने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा___"आपके डैड इतने कम कमीने इंसान हैं? अरे नहीं दीदी, वो तो ऊॅचे दर्ज़े के पापी हैं। कपड़ा मील का ब्यापार व फैक्ट्री तो महज दिखावा मात्र थी जबकि उनका असल कारोबार तो ड्रग्स अफीम चरस आदि का था। किन्तु ये कारोबार चूॅकि कानून की नज़र में ग़ैर कानूनी होता है इस लिए बड़े पापा इस कारोबार को सबकी नज़रों से छुपा कर करते थे। फैक्ट्री के अंदर मौजूद उस तहखाने में उनकी वही काली दुनियाॅ का काला चिट्ठा मौजूद था जिसे मैने फैक्ट्री में टाइम बम लगाने से पहले ही गायब कर दिया था। मैं नहीं चाहता था कि उनका ये कारनामा कानून की नज़र में आए। मैं तो अपने हाॅथों से उन्हें हर सज़ा देना चाहता हूॅ। कानून की चपेट में आने से भला मैं कैसे उन्हें अपने तरीके से सज़ा दे सकता था? इस लिए मैने तहखाने से उनका वो सारा ज़खीरा गायब कर दिया जो ग़ैर कानूनी था।"

मेरी ये बातें सुन कर रितू दीदी की ऑखें हैरत से फटी की फटी रह गई थी। उनके चेहरे पर हैरत और अविश्वास का सागर मानो हिलोरें ले रहा था।

"क्या सच में इस सबमें तेरा ही हाॅथ था राज?" रितू दीदी ने अविश्वास भरे लहजे से कहा___"मगर ये सब कैसे मुमकिन हो सकता है मेरे भाई? ये सब कैसे कर लिया तूने? बंद फैक्ट्री के अंदर और वो भी तहखाने के अंदर पहुॅचना इतनी आसान बात तो न थी। उस सूरत में तो बिलकुल भी नहीं जबकि तू कभी फैक्ट्री गया ही नही था। फिर कैसे ये सब कर लिया तूने?"

"मन में सच्ची लगन हो तो सब कुछ मुमकिन हो जाता है दीदी।" मैने कहा___"ऊपर वाला भी फिर आपके लिए राहें आसान कर देता है। ये तो मुझे पता ही था कि बड़े पापा की शहर में कहीं पर कपड़ा मील की फैक्ट्री है। पर चूॅकि मैं कभी फैक्ट्री गया नहीं था इस लिए मैने फैक्ट्री के संबंध में जानकारी हाॅसिल करने के लिए अपने दोस्त पवन को लगाया। उसने मुझे फैक्ट्री के संबंध में सारी बातें बताई। उसके बाद मैने प्लान बनाया और इस प्लान में गुड़िया(निधी) ने भी मेरा साथ देने के लिए ज़बरदस्ती मेरी वाइफ का रोल किया। उसके बाद मुझे पवन ने बताया कि बड़े पापा का एक बिजनेस पार्टनर है जिसका नाम अरविंद सक्सेना है, इतना ही नहीं इन दोनो पार्टनर्स के बीच बहुत ही गहरे संबंध हैं। पवन ने जब गहरे संबंधों की बात की तो मैं समझ न पाया था कि ये कैसे संबंधों की बात कर रहा है। मेरे पूछने पर उसने बताया कि बड़े पापा और सक्सेना आपस में एक दूसरे की बीवियों के साथ सब कुछ कर लेते हैं। ये बात जान कर मेरे पैरों तले से ज़मीन निकल गई। मैने सोचा कि बड़े पापा भला ऐसा कैसे कर सकते हैं?? मगर मैं जानता था कि ऐसे ब्यक्ति से भला अच्छे कर्म की उम्मीद कैसे की जा सकती है? ख़ैर, पवन से अरविंद सक्सेना के बारे में सुनकर मैने पवन से कहा कि सक्सेना के खिलाफ़ कोई ऐसा सबूत हाॅसिल करे जिसके आधार पर वो कुछ भी करने को तैयार हो जाए। मेरे कहने पर पवन ने वैसा ही किया और फिर एक दिन पवन ने मुझे बताया कि उसने सक्सेना के घर से कुछ फोटोग्राफ्स और वीडियोज़ हाॅसिल किये हैं। जिनमें सक्सेना बेहद आपत्तिजनक स्थित में है। मैने पवन से उन फोटुओं को कुरियर द्वारा मॅगवा लिया। इसके बाद मैने सक्सेना को तेल की धार पर लेने में ज़रा भी देरी न की। कहने का मतलब ये कि मैने उन फोटोग्राफ्स के आधार पर सक्सेना को इतना मजबूर कर दिया कि वो कुछ भी कर सकता था। सबसे पहले मैने उससे बड़े पापा के कारोबार की सारी जानकारी ली उसके बाद मैने उससे बड़े पापा की और भी बहुत सारी जानकारी हाॅसिल की। सक्सेना दरअसल थोड़ा फट्टू किस्म का आदमी था। उसे इस बात का पता चल गया था कि उसका पार्टनर उसकी ग़ैर जानकारी में ग़ैर कानूनी धंधा भी करता है और उसके कई ऐसे खतरनाॅक लोगों से भी संबंध हैं जिनका रिकार्ड कानून की फाइलों में वर्षों से दबा पड़ा है।"

मैं इतना कुछ कहने के बाद कुछ पल के लिए रुका और फिर कहना शुरू किया___"सक्सेना को डर था कि कहीं वो किसी दिन कानून की चपेट में न आ जाए। इस लिए वो बड़े पापा से पार्टनरशिप तोड़ना चाहता था मगर वो ऐसा कर नहीं पा रहा था। उसे ये भी डर था कि कहीं उसके पार्टनर को उस पर शक न हो जाए और उसे भी इस धंधे में न लपेट लें। ये बात मुझे तब पता चली थी जब मैं खुद सक्सेना से मिला था। सक्सेना से मैने एक सौदा किया। वो सौदा यही था कि मैं उसे और उसकी फैमिली को सुरक्षित विदेश भेजने का बंदोबस्त कर दूॅगा, इसके बदले उसे वो करना पड़ेगा जो मैं कहूॅगा। मैने उसे अपना सारा प्लान समझाया। सारी बात सुन कर पहले तो वो मेरी बात मानने से इंकार करने लगा। उसे डर था कि कहीं इस सबमें उसकी जान पर न बन आए। पर मैने उसे अच्छी तरह समझाया और उसे इसके लिए राज़ी किया।"

"इसका मतलब फैक्ट्री में लगी आग तूने सक्सेना के द्वारा लगवाई थी?" सहसा रितू दीदी मेरी बात के बीच में ही बोल पड़ी___"मगर जैसा कि तूने बताया कि तहखाने में डैड का ग़ैर कानूनी ज़खीरा मौजूद था तो उसे कैसे गायब करवाया तूने? क्या उसे भी सक्सेना के द्वारा ही गायब किया?"

"सक्सेना के साथ पवन था।" मैने बताया___"सक्सेना को तहखाने के लाॅक का पासवर्ड पता था। उसका काम था तहखाने का लाॅक खोल कर तहखाने में टाइम बम लगाना। पवन का काम सिर्फ यही था कि तहखाने में मौजूद उस ग़ैर कानूनी ज़खीरे को तहखाने से निकाल कर अपने कब्जे में ले ले। प्लान के अनुसार पवन उस सारे सामान को पुलिस हेडक्वार्टर में कमिश्नर के हवाले कर देगा। पुलिस कमिश्नर को ऊपर से आदेश था कि उस सामान को ब्यक्तिगत तौर पर रखे और जब उस सामान की ज़रूरत पड़े तो उसे उसी तरह मेरे हवाले कर दें जैसे वो सामान पवन के द्वारा उन्हें सौंपा गया था।"

"ये तू क्या कह रहा है राज?" रितू ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा___"भला पुलिस का कमिश्नर ऐसा कैसे कर सकता है? दूसरी बात ऊपर से उसे ऐसा करने का आदेश कैसे मिल सकता है? ये तो बड़ी ही अविश्वसनीय बात है?"

"यही तो मज़ेदार बात है दीदी।" मैने मुस्कुरा कर कहा___"जिस शख्स ने मुझे अपना बेटा मान कर अपनी अरबों की संपत्ति मेरे नाम की उसका नाम जगदीश ओबराय है। जगदीश ओबराय एक बहुत बड़ा बिजनेस टाइकून है और उसका संबंध ऐसे ऐसे लोगों से है जिसके बारे में आदमी सोच भी नहीं सकता। उसी के कहने पर ऊपर से यहाॅ कमिश्नर के पास वो आदेश आया था और इसके पहले भी सारा पुलिस महकमा भी बदला गया था। सारा पुलिस महकमा बदलने का सिर्फ यही मकसद था कि बड़े पापा इतनी आसानी से पुलिस महकमें में कोई सेंध न लगा सकें। पहले वाले उनके सारे पुलिस के कनेक्शन खत्म करना भी ज़रूरी था। इसी लिए ऐसा किया गया था। ये अलग बात है कि आज भी बड़े पापा और आपके लिए ये सारी बातें रहस्य बनी हुई थी।"

"ओह माई गाड।" रितू दीदी की ऑखें आश्चर्य से फटी पड़ी थी, बोली___"कोई सोच भी नहीं सकता कि तूने इतना बड़ा कारनामा अंजाम दिया होगा। मुझे तो अभी भी यकीन नहीं हो रहा है कि ये सब तूने किया है। ख़ैर, जैसा कि तूने बताया कि डैड का सारा ग़ैर कानूनी सामान आज भी पुलिस कमिश्नर के पास सुरक्षित मौजूद है, और वो उस सामान को तेरे हवाले तभी करेंगे जब तुझे उस सामान की ज़रूरत होगी। मेरा सवाल ये है कि उस सामान के द्वारा आने वाले समय में क्या करने वाला है तू?"

"आपके इस सवाल का जवाब बहुत ही सीधा और साफ है दीदी।" मैने सपाट भाव से कहा___"मैं चाहूॅ तो आज यहीं पर खड़े खड़े बड़े पापा को कानून की ऐसी चपेट में ला सकता हूॅ जहाॅ से वो सात जन्मों में भी उबर नहीं पाएॅगे। मगर मैं ये काम इतना जल्दी करूॅगा नहीं। क्योंकि एक ही बार में मैं उन्हें ऐसा झटका नहीं देना चाहता कि वो उस झटके से एक ही बार में खाक़ में मिल जाएॅ। बल्कि मैं तो उन्हें थोड़ा थोड़ा करके झटका देना चाहता हूॅ और उन्हें ये मौका भी देना चाहता हूॅ कि वो अपनी तरफ से जितनी भी कोशिश करनी हो कर लें अपने बचाव के लिए।"

"ओह तो ये बात है।" रितू दीदी को जैसे सब कुछ समझ आ गया था, बोली___"डैड का वो सारा ग़ैर कानूनी सामान तेरे लिए किसी तुरुप के इक्के से कम नहीं है। ख़ैर, तो अब आगे का क्या प्लान है तेरा?"
"अभी का तो यही प्लान है दीदी कि पहले इन सब लोगों को मुम्बई पहुॅचा कर इन सबको सुरक्षित कर दूॅ।" मैने गहरी साॅस ली___"उसके बाद मैं यहाॅ वापस आऊॅगा और आपके साथ मिल कर कुछ अलग और अनोखा करने की कोशिश करूॅगा।"

अभी हम बात ही कर रहे थे कि तभी वहाॅ पर एक टैक्सी आकर रुकी। हम दोनो का ध्यान उस तरफ गया। कुछ ही पलों में टैक्सी से करुणा चाची, दिव्या, शगुन और हेमराज मामा उतरे। मैं और दीदी भी जिप्सी से उतर कर उनके पास गए। टैक्सी वाले को उसका पैसा देने के बाद वो सब हमारी तरफ मुड़े। करुणा चाची की नज़र जैसे ही मुझ पर पड़ी तो उनकी ऑखों में ऑसू तैरते दिखाई देने लगे। वो तेज़ी से मेरी तरफ बढ़ीं और फिर मुझे अपने सीने से लगा लिया। मैं भी अपनी चाची से मिल कर थोड़ा भावुक सा हो गया किन्तु फिर मैने अपने जज़्बातों को काबू किया और फिर उनसे अलग हो गया। मेरी नज़र दिव्या पर पड़ी तो वो मुझे ही देख रही थी। मैने अपनी बाहें फैला दी तो वो एकदम से मेरी तरफ दौड़ पड़ी और मुझसे लिपट गई। उससे मिलने के बाद मैने शगुन को प्यार दिया।
 
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थोड़ी देर सबसे मिलने के बाद मैने उन्हें जिप्सी में बैठने को कहा तो वो सब जिप्सी में बैठ गए। सबके बैठते ही दीदी ने जिप्सी को वापस मोड़ कर आगे बढ़ा दिया। मैं दीदी के साथ आगे ही बैठा था बाॅकी सब पिछली शीट्स पर बैठे थे। कुछ ही समय में हम सब फार्महाउस पहुॅच गए। फार्महाउस के अंदर जाकर करुणा चाची नैना बुआ से मिली और पवन की माॅ बहन आदि से। उसके बाद नैना बुआ ने चाची और मामा जी से खाने का पूॅछा तो वो बोलीं कि वो घर से खा पी कर ही चले थे। ख़ैर, लेडीज पार्टी एक जगह बैठ कर बातों में लग गईं जबकि मैं अपने दोस्त पवन और आदित्य के पास आ गया। शाम को हमे मुम्बई के लिए निकलना भी था।
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प्रतिमा अपने कमरे के अटैच बाथरूम से बाहर निकली। सामने बेड पर पूरी तरह से निर्वस्त्र पड़े शिवा की नज़र जैसे ही अपनी माॅ पर पड़ी तो उसके मुझ से आह निकल गई। प्रतिमा के गोरे सफ्फाक बदन पर इस वक्त मात्र एक पिंक कलर का टावेल था। जिसे वह अपनी भारी भरकम छातियों को आधे से ढॅके थी तथा नीचे उसकी मोटी चिकनी और गोरी जाघों तक को ढॅका हुआ था। जब से रितू हवेली से गई थी तब से दोनो माॅ बेटा कमरे में वासना और हवस के खेल में डूबे हुए थे। प्रतिमा खुश थी कि उसे बेटे के रूप में एक जवान मर्द मिल गया था जो उसके जिस्म की गर्मी को शान्त करने में कोई कसर नहीं छोंड़ेगा। अजय सिंह अब जवानी के दौर से बाहर निकल चुका था। उसके साथ सेक्स करने में प्रतिमा को मज़ा तो आता था किन्तु पूर्ण संतुष्टि नहीं मिलती थी।

शिवा, जो कि अजय सिंह की ही कार्बन काॅपी था। गुण और शक्ल से वो अपने बाप पर ही गया था। जब से उसने जवानी की देहलीज़ पर क़दम रखा था तब से उसकी नज़रें घर की लड़कियों और औरतों पर ही जमी रहती थी। वो उन सभी के जिस्मों को भोगने की लालसा में रात दिन लगा रहता था। मगर डर व भय की वजह से वो कभी ज्यादा आगे बढ़ नहीं पाया था। अपनी माॅ पर उसका सबसे ज्यादा क्रश था। अक्सर वो अपने बाप को प्रतिमा को पेलते हुए देखा करता था। प्रतिमा के भारी भरकम बूब्स और गदराया हुआ जिस्म उसके अंदर बुरी तरह वासना की आग भड़का देता था।

किन्तु उसकी चाहत आज वर्षों बाद पूरी हो चुकी थी। जिस औरत पर उसका सबसे ज्यादा क्रश था उस औरत के जिस्म को वह भोग रहा था। वो अपने बाप का शुक्र गुज़ार था कि उसने उसे ये अनमोल तोहफा दिया था। रितू जैसे ही हवेली से निकली थी वैसे ही शिवा और प्रतिमा एक दूसरे की बाहों में समा गए थे। हवेली में उन दोनो के अलावा दूसरा कोई न था। नौकर चाकर दोपहर में अपने अपने कमरों में चले जाते थे। इस लिए इस तन्हाई का भरपूर फायदा उठाया था इन दोनो ने।

शिवा को याद नहीं कि पहले दिन से अब तक वो कितनी बार अपनी माॅ को भोग चुका था। उसे तो बस इतना समझ आ रहा था कि उसका अभी दिल नहीं भरा है। ये सोच कर वो फिर से अपनी माॅ पर चढ़ जाता और अलग अलग पोजीशन में अपनी माॅ को रौंदता रहता। प्रतिमा को भी जवान मर्द का ये जोश बहुत मज़ा दे रहा था। इस लिए वो खुद भी उसी जोश से अपने बेटे का पूरी तरह से साथ देती थी।

"ऐसे क्या देख रहे हो शिव?" अपने सामने प्रतिमा अपने बेटे को ऐसे ही संबोधित करने लगी थी, बोली___"क्या दिल नहीं भरा अभी?"
"हाॅ मेरी रंडी माॅ।" शिवा ने अपने लंड को ज़ोर से मसलते हुए कहा___"तुमको जितना भी पेलूॅ उतना ही लगता है कि अभी और पेलूॅ। कसम से आज तक जितनी लड़कियों को अपने नीचे सुलाया है उन सभी में से तुम सबसे ऊपर हो। तुम्हारे जैसा जिस्म और तुम्हारे जैसी अदा किसी और में नहीं देखी मैने।"

"कैसे देखते मेरे शिव।" प्रतिमा ने बड़ी अदा से शिवा के पास आते हुए कहा___"वो सब लड़कियाॅ तुम्हारी माॅ तो नहीं थी न? वो सब तुम्हें एक माॅ जितना प्यार और समर्पण भाव कैसे कर सकती थीं?"
"हाॅ ये बात तो सच कही तुमने।" शिवा ने प्रतिमा के टावेल के छोर को पकड़ कर अपनी तरफ ज़ोर से खींचा तो टावेल प्रतिमा के बदन से अलग होता चला गया और प्रतिमा भी उसी झोंक में शिवा के ऊपर आ गई। जबकि अपने ऊपर प्रतिमा के आते ही शिवा ने कहा___"तुम एक औरत के साथ साथ मेरी माॅ भी तो हो। इसी लिए इतना प्यार और समर्पण है तुममें। तभी तो मेरा दिल बार बार यही कहता है कि एक बार और हो जाए।"

"तो करो न शिव।" प्रतिमा ने कहने के साथ ही झुक कर शिवा के होठों को चूम लिया___"रोंका किसने है तुम्हें? मैं तो खुद भी यही चाहती हूॅ कि तुम मुझे इस हवेली के हर ज़र्रे पर ले जाकर बुरी तरह से प्यार करो। मुझे ऐसे ऐसे तरीके से पेलो कि पूरी हवेली में मेरी चीखें गूॅजने लगें।"

"उफ्फ कितना विल्ड पसंद है तुम्हें?" शिवा ने प्रतिमा की एक छाती को बुरी तरह मसल दिया, बोला___"तुम तो वो चीज़ हो डियर मदर कि तुम्हें एक अकेला मर्द संतुष्ट नहीं कर सकता। तभी तो डैड तुम्हारे लिए अपने साथ साथ एक और मर्द को लेकर आते थे। क्या नाम था उसका? अरे हाॅ सक्सेना.... हाय रे वो साला कैसे कैसे मेरी इस राॅड माॅम को पेलता रहा होगा।"

"क्यों जलन हो रही है तुम्हें??" प्रतिमा ने सहसा मुस्कुरा कर पूछा।
"जलन किस बात की डियर मदर?" शिवा ने कहा__"ये तो तुम्हारी ख्वाहिशों की बात है। सबको अपनी ख्वाहिशें पूरा करना चाहिए। तुमने भी वही किया, सो मुझे इसमें जलने की क्या ज़रूरत है?"

"मतलब मुझे अगर बाहर का कोई भी आदमी पेले तो तुम्हें कोई परेशानी नहीं है??" प्रतिमा ने कहा।
"जब डैड को ही कोई परेशानी नहीं हुई तो मुझे क्यों होगी भला?" शिवा ने कहा___"ख़ैर छोंड़ो इन बातों को और आओ एक बार और घमासान पेलाई हो जाए।"
"क्यों नहीं शिव।" प्रतिमा ने मुस्कुराते हुए कहा__"मुझे भी एक बार और करने की इच्छा है।"

कहने के साथ ही प्रतिमा ने अपने एक हाॅथ को सरका कर नीचे शिवा के मुरझाए हुए लंड को पकड़ लिया और उसे सहलाने लगी। इधर शिवा ने भी प्रतिमा की छातियों को हाथों से पकड़ कर मसलने लगा। अभी ये सब ये दोनो कर ही रहे थे कि बगल से एक स्टूल पर रखे फोन की घंटी बज उठी। फोन के बज उठने से दोनो के ही चेहरे पर अप्रिय भाव उभरे।

"हैलो।" फोन उठाते ही शिवा ने कहा।
".........।" उधर से कुछ कहा गया।
"क्याऽऽऽ???" शिवा अपने डैड की बात सुन कर बुरी तरह चौंका था।
".........।" उधर से फिर कुछ कहा गया।
"ऐसा कैसे हो सकता है डैड?" शिवा के चेहरे पर परेशानी के भाव उभर आए, बोला___"कहीं ऐसा तो नहीं कि दीदी को उसका पता चल गया हो और फिर उन्होंने उसे अपने रास्ते से हटा दिया हो? अगर ऐसा कर भी दिया होगा तो हम उन पर शक तो कर सकते हैं मगर उनके सामने उन पर इस बात का इल्ज़ाम नहीं लगा सकते।"

"..........।" उधर से कुछ देर तक कहा गया।
"ऐसा कब तक चलेगा डैड?" शिवा के चेहरे पर सहसा गुस्से के भाव आए___"हर बार हमारे हाथ नाकामी ही लगती है। हमें अब खुद मैदान में उतरना पड़ेगा। इस तरह तो हमारा एक एक आदमी लापता होता रहेगा और हम कुछ कर ही नहीं पाएॅगे। इस लिए हमें सीरियसली ये सब खुद ही करना पड़ेगा। रितू दीदी की गतिविधियाॅ स्पष्ट समझ में आ रही हैं कि वो हमारे खिलाफ़ हैं। अगर विराज से वो मिल चुकी हैं तो साफ है कि उन्हें हमारे बारे में सब कुछ पता चल गया होगा और अब वो उस कमीने विराज का साथ दे रही हैं। हाॅ डैड, दीदी भले ही आपकी बेटी हैं मगर बात जब अन्याय और जुर्म की आएगी तो वो हमारा साथ नहीं देंगी। ये उनके कैरेक्टर से साफ पता चलता है।"

"......।" उधर से फिर कुछ कहा गया।
"यस डैड।" शिवा कह उठा___"अब तो साफ साफ और खुल कर खेल होना चाहिए।"
".........।" उधर से अजय सिंह ने कुछ कहा।
"ओके डैड।" शिवा ने कहा___"आप आ जाइये। मैं और माॅम हवेली में ही हैं।"

इसके साथ ही संबंध विच्छेद हो गया। शिवा ने रिसीवर को केड्रिल पर रखा और धम्म से बेड पर चित्त लेट गया। प्रतिमा उसी को एकटक देखे जा रही थी।

"क्या बात हुई डैड से?" प्रतिमा ने पूछा।
"डैड बता रहे थे कि उन्होंने जिस आदमी को दीदी के पीछे लगाया था।" शिवा ने कहा___"उस आदमी का फोन काफी देर से बंद बता रहा है।"
"क्याऽऽ???" प्रतिमा हैरान____"इसका मतलब हमारा ये आदमी भी बली का बकरा साबित हो गया।"

"ये सब आपकी बेटी की वजह से हो रहा है माॅम।" शिवा ने कठोर भाव से कहा___"उसी ने हमारे उस आदमी का गेम बजाया होगा। उसे पता है कि अगर वो ऐसा करेगी तो हम उस पर बेवजह और बिना सबूत के कोई इल्ज़ाम नहीं लगा सकेंगे। मगर अब हम भी बताएॅगे उसे कि हमसे गद्दारी करने का क्या अंजाम होता है? डैड ने भी यही कहा है कि ये काम रितू दीदी का ही है और अब डैड ने भी फैंसला कर लिया है कि वो खुद इस सब का पता करेंगे और दीदी को उनके किये की सज़ा देंगे।"

"उफ्फ क्या करूॅ इस लड़की का?" प्रतिमा ने कसमसाते हुए अपने माॅथे पर हथेली मारी___"अपने ही माॅ बाप को गर्त में डुबाने पर तुली हुई है ये।"
"अब आपकी उस बेटी के साथ कोई रियायत नहीं होगी माॅम।" शिवा ने गुस्से से कहा___"अभी तक यही सोच कर हमने उस पर कोई कठोर क़दम नहीं उठाया था कि चलो कोई बात नहीं हमारी अपनी है वो, मगर अब नहीं। उसने हमसे बगावत की है माॅम। अपने ही माॅ बाप का सर्वनाश करने पर तुली हुई है वो। इस लिए अब उसे उसके इस जघन्य अपराध की शख्त सज़ा मिलेगी।"

प्रतिमा कुछ कह न सकी। अंदर ही अंदर काॅप कर रह गई वो। उसे अपनी बेटी के लिए दुख तो हुआ था किन्तु उसे भी इस बात का एहसास था कि उसकी बेटी ने अपने पैरेंट्स के खिलाफ़ जा कर ग़लत किया है। वो अपने पति और बेटे को अच्छी तरह जानती थी। वो अब किसी भी सूरत में रितू को मुआफ़ करने वाले नहीं थे। उसे खुद भी रितू के इस कृत्य पर गुस्सा आया हुआ था। मगर वो कर भी क्या सकती थी? अब तो बस वो मन ही मन भगवान से प्रार्थना कर सकती थी कि सब कुछ ठीक हो जाए।
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इधर रितू के फार्महाउस पर!
मैं, आदित्य और पवन आपस में बातें ही कर रहे थे कि सहसा कमरे के दरवाजे पर बाहर से नाॅक हुई। पवन ने उठ कर दरवाजा खोला तो देखा बाहर रितू दीदी खड़ी थी। दीदी को देखते ही पवन एक तरफ हट गया तो दीदी अंदर आ गई। मैने दीदी के चेहरे पर हल्का परेशानी के भाव देखे तो चौंका।

"क्या बात है दीदी?" मैंने उनके पास आकर पूछा__"सब ठीक तो है ना?"
"हाॅ सब ठीक है राज।" रितू दीदी ने कहा___"मैं ये कहने आई हूॅ कि तुम सबको अभी यहाॅ से निकलना होगा गुनगुन के लिए। क्योंकि बाद में संभव है कि डैड अपने किसी अन्य आदमियों को यहाॅ रास्तों पर घेरा बंदी के लिए लगा दें। हलाॅकि उन्हें ये पता नहीं है कि तू अभी यहीं है या यहाॅ से जा चुका है। मगर हालात बदल चुके हैं।"

"ये आप क्या कह रही हैं दीदी?" मैने चौंकते हुए कहा__"हालात तो बदले हुए ही थे उसमें अब क्या हो गया है?"
"बहुत कुछ हुआ है मेरे भाई।" रितू दीदी ने कहा___"डैड को मुझ पर पहले से शक था इस लिए आज उन्होंने मेरे पीछे अपना एक आदमी लगाया हुआ था जिसे मैने बीच रास्ते पर ही धर लिया था और फिर उसे बेहोश करके यहाॅ ले आई थी। अब ज़ाहिर सी बात है कि डैड ने अपने आदमी से फोन पर जानकारी प्राप्त करनी चाही होगी मगर जब वो ये जानेंगे कि उनके आदमी का फोन ही बंद है तो उन्हें समझते देर नहीं लगेगी कि मैने उनके आदमी को गिरफ्तार कर लिया है या फिर उसे ठिकाने लगा दिया है। उस सूरत में वो मुझ पर बेहद गुस्सा होंगे और संभव है कि मेरी तलाश में घर से खुद ही निकल लें। अगर उन्होंने ऐसा किया तो समझ लो उनके साथ और भी आदमी होंगे जो यहाॅ के हर रास्तों पर फैल जाएॅगे। ऐसे में तुम लोगों का यहाॅ से गुनगुन के लिए निकलना मुश्किल हो जाएगा। इसी लिए कह रही हूॅ कि तुम सब जितना जल्दी हो सके यहाॅ से फौरन निकलने की तैयारी करो। बाहर मेरी जिप्सी को मिला कर दो गाड़ियाॅ हैं। उन दोनो गाड़ियों में तुम सब आराम से आ जाओगे। लेकिन सामान कुछ भी नहीं जा पाएगा। इस लिए सामान को यहीं छोंड़ देना। सारा सामान यहाॅ सुरक्षित ही रहेगा।"

"आपने तो कह दिया दीदी।" मैने सहसा दुखी भाव से कहा___"कि मैं इन सबको लेकर यहाॅ से चला जाऊॅ। मगर मैं जानता हूॅ कि आज के वक्त में आप कितने बड़े ख़तरे में हैं। मैं आपको ऐसे अकेले छोंड़ कर कैसे यहाॅ से चला जाऊॅ दीदी? मेरे जाने के बाद अगर आपको कुछ हो गया तो सारी ज़िंदगी मैं अपने आपको माफ़ नहीं कर पाऊॅगा।"

"चुप कर तू।" दीदी ने मुझे ज़बरदस्ती झिड़क दिया, हलाॅकि मैं जानता था कि वो अपने अंदर के जज़्बातों को शख्ती से दबा रही थी, बोली___"जब देखो इमोशनल होता रहता है। अब ज्यादा बोलना नहीं और चुपचाप यहाॅ से सबको लेकर निकल।"

"मैं कहीं नहीं जाऊॅगा आपको अकेला छोंड़ कर।" मेरी ऑखों में ऑसू आ गए।
"तुझे मेरी क़सम है मेरे भाई।" रितू दीदी ने झटके से मेरा हाॅथ पकड़ कर अपने सिर पर रख लिया था___"तू यहाॅ से सबको लेकर अभी इसी वक्त जाएगा। मेरी चिन्ता मत कर। तेरी दीदी कोई इतनी भी गैर मामूली नहीं है जिसे कोई भी ऐरा ग़ैरा हजम कर जाएगा। अरे मैं तेरी बहन हूॅ राज। जिसका भाई इतना प्यार करता हो उसका भगवान भी कुछ न कर सकेंगे। और फिर बस दो दिन की ही तो बात है न मेरे भाई। फिर तो तू आ ही जाएगा न मेरे पास। तू चिन्ता मत कर, मैं खुद को ऐसी जगह छुपा लूॅगी कि तेरे आने से पहले मेरा बाप तो क्या कोई भी माई का लाल मुझे ढूॅढ़ नहीं पाएगा। चल अब तू बेफिक्र होकर जा।"

ये कह कर दीदी एक पल के लिए भी नहीं रुकीं। बल्कि कहने के साथ ही कमरे से बाहर चली गईं। उनके जाने के बाद भी कुछ देर तक मैं भौचक्का सा खड़ा रह गया था। होश तब आया जब आदित्य ने मेरे कंधे पर अपना हाॅथ रख कर हल्के से दबाया।

"चलो दोस्त।" आदित्य ने भारी स्वर में कहा___"यहाॅ से चलने की तैयारी करो। अपनी इस महान दीदी की बात मानो। मैं इतने दिनों से देख रहा हूॅ कि रितू सिर्फ अपने भाई के लिए ही जी रही है। हर वक्त उसे सिर्फ तुम्हारी ही फिक्र रहती है। आज भी वो सिर्फ तुम्हारी और इन सबकी फिक्र की वजह से ही तुम्हें यहाॅ से सीघ्र चलने को कह कर गई है। उसे अपने ऊपर मॅडरा रहे भीषण खतरे की कोई फिक्र नहीं है। मैं तुमसे सिर्फ एक ही बात कहूॅगा दोस्त____और वो ये कि इन सबको मुम्बई में सुरक्षित पहुॅचाने के बाद तुम एक पल के लिए भी वहाॅ नहीं रुकना। बल्कि उल्टे पैर वापस सीधा यहीं आओगे। मैं खुद भी तुम्हारे साथ ही आऊॅगा।"

"आदि मेरे दोस्त।" मैने भावना में बह कर आदित्य को गले से लगा लिया। उसने खुद भी मुझे ज़ोर से कस लिया था।
"कितना ग़लत सोचा करता था मैं रितू दीदी के बारे में।" तभी पवन कह उठा___"हर पल शक की नज़र से देखता था उनको। मगर यहाॅ आकर पता चला कि वो कितनी अच्छी हैं और उनके अंदर तेरे लिए कितना प्यार है। उन्होंने सच का साथ देने के लिए अपने ही माॅ बाप और भाई से हर रिश्ता तोड़ लिया। सच में राज, हमारी रितू दीदी बहुत महान हैं।"

मैने पवन को भी खुद से छुपका लिया। कुछ देर ऐसे ही एक दूसरे के गले लगे रहने के बाद हम तीनो अलग हुए और फ्रेश होने के लिए अपने अपने कमरों में चले गए। अपने कमरे में पहुॅच कर मैने जगदीश अंकल को फोन लगाया और उनसे कुछ ज़रूरी बातें की। उनको यहाॅ के हालात के बारे में बताया और ये भी बताया कि मैं इन लोगों को मुम्बई पहुॅचा कर वापस आ जाऊॅगा। इस लिए मेरे और आदित्य दोनो के लौटने की टिकट का इंतजाम वो कर देंगें। जगदीश अंकल से मैने ये भी कहा कि इस सबके बारे में वो माॅ को ज़रूर मना लेंगे वरना वो मुझे वापस आने नहीं देंगी।

जगदीश अंकल से बात करने के बाद मैं बाथरूम में फ्रेश होने के लिए चला गया। कुछ ही देर में हम सब बाहर लान में खड़ी जिप्सी में थे। जिप्सी में रितू दीदी के साथ मैं, करुणा चाची, दिव्या और शगुन थे। जबकि दूसरी जीप में शंकर काका जो कि ड्राइविंग शीट पर थे उनके साथ आदित्य, पवन, आशा दीदी और माॅ आदि बैठे थे। सबसे मिल कर और हरिया काका को फार्महाउस की सुरक्षा का कह कर हम सब फार्म हाउस से बाहर निकल पड़े।

फार्महाउस में इस वक्त हरिया काका, बिंदिया, नैना बुआ और हेमराज मामा थे। हेमराज मामा को आज यहीं पर रुकने का कह दिया था करुणा चाची ने। रास्ते में रितू दीदी ने मोबाइल पर फोन लगा कर अपने महकमे में किसी से बात की और कुछ पुलिस के आदमी सादे कपड़ों में उनके आस पास ही रहने के लिए कहा।

दोनो गाड़िया ऑधी तूफान बनी गुनगुन के लिए उड़ी जा रही थी। आस पास हर तरफ हमारी नज़रें भी दौड़ रही थीं। ताकि अगर कहीं बड़े पापा या उनके आदमी हमें दिखें तो हम पहले से ही उनसे निपटने के लिए तैयार हो जाएॅ। लगभग दस मिनट बाद ही दो पुलिस की गाड़ियाॅ हमें नज़र आईं। एक हमारी गाड़ी को ओवरटेक करके हमारे आगे आगे चलने लगी और दूसरी गाड़ी हमारे पीछे पीछे चलने लगी।

आधे घंटे बाद हम सब गुनगुन के रेलवे स्टेशन पहुॅच गए। यहाॅ से मुम्बई जाने के लिए शाम को पाॅच बजे ट्रेन थी। इस वक्त साढ़े तीन बजे थे। रेलवे स्टेशन पहुॅच कर रितू दीदी ने हम सबको वेटिंग रूम में बैठाया और वहीं पर पुलिस के कुछ आदमियों को भी बैठाया। मैं दीदी के पास चुपचाप बैठा था। दीदी एकटक मुझे ही देख रही थी।

"नाराज़ है मुझसे???" दीदी ने मेरे सिर पर हाॅथ फेरते हुए कहा___"चल कोई बात नहीं मेरे भाई। तू कहीं भी रहे बस सलामत रहे तो तेरी हर नाराज़गी भी सह लूॅगी मैं। तू जब लौट के आएगा न तब तुझे मना लूॅगी मैं। फिर देखूॅगी कि तू मुझसे कितनी देर तक नाराज़ रह पाता है? बच्चूलाल मुझे ऐसे वैसे मत समझना तू। मुझे भी नाराज़ भाई को मनाना बहुत अच्छे से आता है। समझे न मेरे प्यारे भाई?"

रितू दीदी की बात पर मुझे अंदर ही अंदर हॅसी तो आई मगर मैने अपने चेहरे पर उन भावों को ज़ाहिर न होने दिया। ऐसे ही बैठे बैठे और इधर उधर की बातों से समय ब्यतीत हो गया और पाॅच बज गए। मुम्बई जाने वाली ट्रेन का एनाउंसमेन्ट होने लगा तो हम सब वेटिंगरूम से बाहर आ गए। कुछ ही देर में ट्रेन प्लेटफार्म पर आकर खड़ी हो गई। हम सब एसी वाले डिब्बों की तरफ बढ़ चले और कुछ ही देर में हम सब एसी के फर्स्ट क्लास डिब्बे में आ गए। हम सब की शीटें पास पास ही थीं। सबके बैठ जाने के बाद मैं रितू दीदी के साथ बाहर आ गया।

"मैं परसों किसी भी हाल में यहाॅ आ जाऊॅगा दीदी।" बाहर आते ही मैने दीदी से कहा___"आप खुद का बहुत अच्छे से ख़याल रखेंगी। कुछ दिनों के लिए ड्यूटी पर जाना भी बंद कर दीजिएगा। हलाॅकि मैंने भी ऐसा कुछ इंतजाम कर दिया है कि बड़े पापा कुछ कर ही नहीं पाएॅगे।"

"क्या मतलब??" रितू दीदी ने चौंक कर मेरी तरफ देखा___"क्या कर दिया है तूने??"
"बहुत जल्द आपको भी पता चल जाएगा दीदी।" मैने अजीब भाव से कहा___"काफी दिन हो गए हैं बड़े पापा को झटका दिये हुए। इस लिए मैने सोचा कि इस मौके पर उन्हें एक झटका देना बिलकुल उचित और फायदेमंद है। आख़िर मुझे भी तो आपकी फिक्र है दीदी। ऐसे ख़तरे में अकेला छोंड़ कर जा रहा हूॅ, तो कुछ तो आपकी सुरक्षा का इंतजाम कर दूॅ।"

"अरे पर तूने किया क्या है राज?" रितू दीदी ने ना समझने वाले भाव से कहा___"क्या तू मुझे नहीं बता सकता?"
"बता तो सकता हूॅ दीदी।" मैने शरारत से उनकी सुर्ख हो चुकी नाॅक पर हल्के से उॅगली मारते हुए कहा___"मगर ये एक सरप्राइज़ है। इस लिए बता नहीं सकता। मगर डोन्ट वरी कल आपको भी पता चल जाएगा।"

"तू न बहुत बदमाश हो गया है।" रितू दीदी ने तो मेरी नाॅक ही पकड़ ली, बोली___"ख़ैर, देखती हूॅ कल कि तूने क्या शरारत की है मेरे डैड के साथ?"
"यस ऑफकोर्स।" मैं मुस्कुराया और फिर एकाएक ही मैने गंभीरता से कहा___"दीदी एक बार विधी के घर भी हो आइयेगा आप। उस दिन के बाद आज तक नहीं जा पाया हूॅ मैं। जबकि ये मेरा फर्ज़ था कि मैं अपनी पत्नी की हर क्रिया को खुद अपने हाॅथों से करता।"

"तू चिंता मत कर मेरे भाई।" रितू दीदी ने कहा___"मैने सब कुछ कर दिया है। बस ये सब एक बार ठीक हो जाए उसके बाद तू खुद अपने हाॅथों से विधी की अस्थियों को पावन गंगा में विसर्जित कर देना।"
"क्या कहा आपने?" मैं खुशी से चौंकते हुए बोला___"आप ने विधी की अस्थियाॅ एकत्रित कर रखी हैं?"

"हाॅ राज।" रितू दीदी ने कहा___"मैं भला कैसे भूल सकती थी उसे? तेरा बाहर निकलना ख़तरे से खाली नहीं था इस लिए तेरे नाम से मैं खुद ही विधी के घर गई थी और फिर विधी के डैड के साथ उसकी अस्थियाॅ लेने गई थी। विधी की अस्थियों को मैने फार्महाउस में सुरक्षित रखा हुआ है।मैने सोचा था कि जब ये सब फसाद खत्म हो जाएगा तब मैं तुझसे कहूॅगी कि जा राज अपनी विधी की अस्थियों को पवित्र गंगा में बहा दे।"

"ओह दीदी, आप सच में बहुत महान हैं।" कहते हुए मेरी ऑखों में ऑसू आ गए___"आपको मेरी हर चीज़ का कितना ख़याल है।"
"विधी अगर तेरी प्रेमिका या पत्नी थी तो वो मेरी भी तो कुछ लगती थी राज।" दीदी ने गंभीर भाव से कहा__"मेरे जीवन में उसकी अहमियत बहुत ज्यादा है मेरे भाई। उसी की वजह से मेरा हृदय परिवर्तन हुआ। उसी की वजह से मुझे पता चला कि सच्चा प्यार क्या होता है। उसी ने मुझे बताया कि जिस भाई को मैने कभी देखना तक गवाॅरा नहीं किया था वो वास्तव में कितना अच्छा है। हाॅ राज, विधी ने सब बताया मुझे। उसके बाद जब उसने मुझसे कहा कि उसे एक बार अपने महबूब से मिलना है और उसी की बाहों में अपने जीवन की अंतिम साॅस लेनी है तो उस वक्त मेरा कलेजा दहल गया। मेरे अंदर से किसी ने चीख चीख कर कहा कि देख ले रितू, एक ये है कि अपने प्यार के लिए इसने कितने दुख सहे और खुद को खाक़ में भी मिला दिया और एक तू है कि एक ऐसे भाई को कभी देखना तक पसंद नहीं किया जिसका कहीं कोई दोष ही नहीं था। जिसने तेरे साथ कभी बुरा ही नहीं किया। बल्कि हमेशा इज्ज़त और सम्मान के साथ तुझे दीदी कहते हुए थकता नहीं था। कसम से भाई, उस वक्त मुझे अपनी ग़लतियों का बड़ी शिद्दत से एहसास हुआ और मैने इस सबके बारे में अलग तरह से सोचना शुरू किया। मैने विधी से वादा किया कि उसके महबूब को उसके पास ज़रूर लाऊॅगी। उसके बाद मैने तेरे दोस्तों के बारे में पता किया तो मुझे तेरे गहरे दोस्त के रूप में पवन का पता चला। मैं पवन से मिली और उससे तेरे बारे में पूछा। मगर वो मुझे तेरे बारे में कुछ भी बताने को तैयार ही नहीं हो रहा था। उसे लगता था कि मैं तेरे बारे में इस लिए पूछ रही हूॅ ताकि तेरा पता करके मैं अपने डैड को बता दूॅ कि तू फला स्थान पर है। जब पवन मुझे कुछ भी बताने से इंकार कर दिया तो मैने उसे सारी बातें बताई और खुद उसे विधी के पास ले आई। ये साबित करने के लिए कि मैं जो कुछ भी उससे कह रही थी वो सब सच है और इसके पीछे मेरे अंदर कोई भी बुरी भावना नहीं है। विधी को देखने बाद ही पवन को एहसास हुआ कि मैं सच कह रही हूॅ और तभी उसने तुझसे बात की थी।"
 
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दीदी की बातें सुन कर मैं फिर से पिछली यादों में खो गया था। तभी दीदी की आवाज़ फिर से मेरे कानों में पड़ी___"इस सबकी वजह से ही मुझे लगा कि तू और गौरी चाची इतने भी ग़लत या बुरे नहीं हैं जितना कि बचपन से माॅम डैड ने हम तीनो भाई बहनों को बताया था या सिखाया था। उसके बाद मैने अपने माॅम डैड और भाई पर नज़र रखना शुरू किया तो जल्द ही मुझे सच्चाई का पता चल गया कि वास्तव में बुरा कौन है। बस उसके बाद तो तेरी ये दीदी सिर्फ तेरी ही बहन बन कर रह गई मेरे भाई। मैने अपने माॅम डैड व भाई सबसे रिश्ता तोड़ दिया। ऐसे रिश्तों से नाता जोड़े रखने का मतलब भी क्या था जिन रिश्तों में वासना और हवस के सिवा कुछ था ही नहीं।"

मैने रितू दीदी को अपने सीने से लगा लिया। वो बुरी तरह भावनाओं और जज़्बातों में बहने लगी थी जिसकी वजह से उनकी ऑखों से ऑसू बहने लगे थे। एसी के उस डिब्बे के पास ही हम दोनो भाई बहन एक दूसरे से गले लगे हुए थे। आस पास से आते जाते लोग हमें अजीब भाव से देखने लगे थे। ये देख कर मैने दीदी को खुद से अलग अलग किया और उन्हें लेकर डिब्बे के अंदर आ गया।

रितू दीदी एक बार फिर सबसे मिली और फिर ट्रेन के चलते ही वो ट्रेन से उतरने के लिए बाहर की तरफ जाने लगीं। मैं भी उनके पीछे पीछे गेट तक आ गया। गेट के पास पहुॅच कर जब दीदी ट्रेन से उतरने लगी तो मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी कोई अनमोल चीज़ मुझसे छूटने वाली है। मैने हौले से दीदी को दीदी कह कर आवाज़ दी तो वो तुरंत मेरी तरफ पलटीं, जैसे उन्हें मेरे पुकारने का ही इन्तज़ार था। जब पलट कर उन्होंने मेरी तरफ देखा तो ये देख कर मेरा दिल बैठ गया कि उनका चेहरा ऑसुओं से तर था। मैने उन्हें खींच कर खुद से छुपका लिया, वो खुद भी मुझसे कस कर लिपट गई। लेकिन तुरंत ही वो मुझसे अलग भी हो गईं।

"अब तू जा राज।" फिर उन्होने खुद को सम्हालते हुए कहा___"सबका ख़याल रखना। मैं तेरे आने का इंतज़ार करूॅगी और हाॅ गुड़िया को मेरा प्यार देना।"
"आप भी अपना ख़याल रखियेगा।" मैने कहा___"और अब आप सीधा फार्महाउस जाएॅगी। दो दिन के लिए ड्यूटी से छुट्टी ले लीजिएगा। मैं जब आऊॅ तो आपको फार्महाउस पर ही हॅसते मुस्कुराते हुए पाऊॅ।"

"मेरी मुस्कुराहट तो तू ही है मेरे भाई।" रितू दीदी ने मेरे चेहरे को सहलाया___"जब तू आ जाएगा न तो मेरा ये चेहरा अपने आप ही खिल उठेगा।"

मैं उनकी इस बात पर हौले से मुस्कुराया और फिर झुक कर उनके माथे पर हल्के से चूम लिया। मेरी इस क्रिया से वो भी मुस्कुरा दी और फिर मेरे गाल पर हलके से चूम कर वो सावधानी से धीरे धीरे चल रही ट्रेन से उतर गईं। मैं गेट पर खड़ा उन्हें तब तक देखता रहा जब तक कि आगे मोड़ आ जाने की वजह से दीदी मेरी नज़रों से ओझल न हो गईं। उनके ओझल होते ही मैं दरवाजे से पीछे की तरफ हटकर वहीं पर ट्रेन के उस डिब्बे की पिछली पुश्त से टेक लगाये हुए ऑखें बंद कर खड़ा हो गया। कुछ देर यूॅ ही खड़े रहने के बाद मैंने एक गहरी साॅस ली और फिर मैं अंदर अपनी शीट की तरफ आ गया।
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विराज के ओझल होते ही रितू प्लेटफार्म से बाहर की तरफ तेज़ तेज़ क़दमों के साथ बढ़ती चली गई। दिलो दिमाग़ में ज़बरदस्त तूफान तारी हो गया था उसके। दिल में भड़कते हुए जज़्बात उसके काबू से बाहर होने लगे थे जिसकी वजह से उसकी रुलाई फूटने को आतुर थी। मगर बड़ी मुश्किल से उसने खुद को सम्हाला हुआ था। स्टेशन से बाहर आते ही वो अपनी जिप्सी की तरफ बढ़ गई। जिप्सी के पास ही एक और जीप थी जिसमें शंकर काका बैठे हुए थे। रितू ने शंकर काका को वापस लौटने का कह दिया। पुलिस के जो आदमी आगे पीछे आए थे उनमें से एक जीप वाले पुलिस वालों को रितू ने शंकर के साथ जाने का कह दिया जबकि दूसरे जीप वालों को अपने आस पास ही रहने को कहा।

शंकर काका के जाने के बाद रितू ने भी जिप्सी को आगे बढ़ा दिया। किन्तु उसकी जिप्सी का रुख हल्दीपुर की तरफ न होकर किसी और ही तरफ था। उसके पीछे कुछ ही फाॅसले पर एक अलग गाड़ी में दूसरे पुलिस वाले भी थे जो सादे कपड़ों में थे। लगभग दस मिनट बाद रितू ने जिस जगह पर जिप्सी को रोंका उसके पास ही एक "जिम" था।

जिम के बाहर कुछ ही दूरी के फाॅसले पर उसने अपनी जिप्सी को खड़ी कर वो नीचे उतरी और पास ही एक दुकान के पास जाकर उसने दुकान से मिनरल वाटर का एक बाटल खरीदा और वापस आकर जिप्सी में बैठ गई। अपनी बाईं कलाई पर बॅधी रिस्टवाच पर उसने एक नज़र डाली। शाम के पाॅच बज कर बीस मिनट हो रहे थे।

जिप्सी में बैठी रितू थोड़ी थोड़ी देर के अंतराल में बाटल से पानी पीती रही। उसकी नज़र जिम के मुख्य दरवाजे पर थी। मतलब साफ था कि वो किसी ऐसे ब्यक्ति का इन्तज़ार कर रही थी जो उस जिम से बाहर आने वाला था। कुछ देर और गुज़रने के बाद एक बार फिर से रितू ने अपनी कलाई पर बॅधी रिस्टवाॅच में नज़र डाली। पाॅच बज कर तीस मिनट हो चुके थे। उसके पीछे कुछ ही दूरी पर दूसरी गाड़ी में बैठे दूसरे पुलिस वाले रितू की तरफ ना समझने वाले भाव से देखे जा रहे थे।

उस वक्त रितू के होठों पर अजीब सी मुस्कान उभरी जिस वक्त जिम के मुख्य द्वार से कुछ लड़के और लड़कियाॅ बाहर निकले। रितू की नज़र एक ऐसी लड़की पर स्थिर हो गई जिसके खूबसूरत बदन पर इस वक्त जिम वाले कपड़े थे। एकदम चुस्त दुरुस्त। उसको देख कर ही लग रहा था कि इसकी ऊम्र अट्ठारह या बीस से ज्यादा नहीं होगी।

रितू ने देखा कि वो लड़की जिम से निकलने के बाद पार्किंग एरिया की तरफ बढ़ गई है। कुछ ही देर में वो लड़की एक नई नवेली स्कूटी में पार्किंग से बाहर आती हुई दिखी और फिर रितू की ऑखों के सामने से ही वो दाहिने तरफ के रास्ते की तरफ सरपट जाती हुई नज़र आई। उसके जाते ही रितू ने जिप्सी को स्टार्ट किया और उस लड़की के पीछे चल पड़ी। उसके पीछे दूसरी गाड़ी में बैठे बाॅकी के पुलिस वाले भी बढ़ चले।

मेन मार्केट से निकलने के बाद रितू ने देखा कि सामने जा रही वो लड़की एक मोड़ पर मुड़ गई है। रितू ने भी जिप्सी को उस मोड़ पर मोड़ दिया। रितू की नज़र बराबर उस लड़की पर थी। सामने एक अधेड़ सा आदमी इस तरफ अचानक ही आता दिखा। शायद किसी दुकान या किसी घर से निकला था वो। उसके दोनो हाॅथों में एक एक ब्लैक कलर की प्वालिथिन थी। वो अधेड़ आदमी अपनी साइड की तरफ आने के लिए पहले पीछे की तरफ देखा और फिर रोड क्राॅस करने के लिए जैसे ही आगे बढ़ा वैसे ही वो उस लड़की की स्कूटी से टकरा गया।

रितू ने साफ तौर पर देखा था कि अधेड़ ब्यक्ति के पास पहुॅचते पहुॅचते उस लड़की ने स्कूटी की रफ्तार को काफी कम कर लिया था मगर कदाचित उसका ध्यान कहीं और था इस लिए हड़बड़ाहट में उसे समझ ही न आया कि वो अब क्या करे? जितना उससे हो सकता था उतना उसने किया था। किन्तु अब वो इसका क्या करती कि लाख कोशिशों के बाद भी उसकी स्कूटी उस अधेड़ ब्यक्ति के जिस्म से छू ही गई थी। जिसका परिणाम ये हुआ कि वो अधेड़ ब्यक्ति बीच सड़क पर भरभरा कर गिर गया था। उसके दोनो हाॅथों पर मौजूद प्वालीथिन छूट गई थी और पक्की सड़क पर गिरते ही प्वालीथिन के अंदर मौजूद सामान फूट गया था। प्वालीथिन में दवाई की बोतलें थी जो फूट गईं थी और अब सारी दवा सड़क पर फैलती जा रही थी।

अधेड़ के गिरते ही उस लड़की ने पहले स्कूटी को खड़ी किया उसके बाद वो एकदम से पैर पटकते हुए उस अधेड़ के सिर पर आ धमकी।

"देख कर नहीं चल सकते थे तुम?" फिर उसकी करकस आवाज़ वातावरण में गूॅजी___"अभी मर जाते तो क्या करते फिर? सड़क को क्या अपने बाप की जागीर समझ रखा है जो जहाॅ से चाहे चल सकते हो?"

लड़की अनाप शनाप बोलने में लगी ही थी कि आस पास से कई सारे लोग आकर वहाॅ पर इकट्ठा हो गए। सब एक दूसरे से पूछने लगे कि क्या हुआ??? सड़क पर गिरा हुआ वो अधेड़ आदमी किसी तरह उठा और कुछ ही दूरी पर अपनी दवाईयों का हाल देख कर उसके चेहरे पर बेहद पीड़ा के भाव उभर आए। उसने सिर उठा कर अपने चारों तरफ करुण भाव से देखा और फिर उसकी नज़र उस लड़की पर पड़ी जो उसके सिर पर आ धमकी थी।

"लगता है इस लड़की ने इस अधेड़ ब्यक्ति को अपनी स्कूटी से टक्कर मारी है।" आस पास खड़े लोगों के बीच से एक आदमी ने कहा___"देखो तो बेचारे की सारी दवाइयाॅ सड़क पर फूट कर फैल गई हैं।"

"आज कल तो सड़क पर चलना भी दूभर हो गया है भाई।" एक अन्य ब्यक्ति ने तंज कसा___"मोटर साइकिल और गाड़ी वाले आम आदमी को जब देखो तब टक्कर मार देते हैं और उल्टा उसी पर चढ़ दौड़ते हैं। देख रहे हो न इस लड़की को। इसने इस बेचारे बूढ़े आदमी को टक्कर मार दी और अब उल्टा इसे ही डाॅट रही है।"

"ऐ मिस्टर।" लड़की ये सुनते ही उस आदमी की तरफ पलटी___"इसमें मेरी कोई ग़लती नहीं है समझे। ये बुड्ढा खुद ही मरने के लिए मेरी स्कूटी के सामने आया था। वो तो अच्छा हुआ कि मैने टाइम पर ब्रेक मार दिया वरना इसका तो यहीं पर राम नाम सत्य हो जाना था आज।"

"अरे देखो तो कैसे बात कर रही है ये लड़की?" एक अन्य ने कहा___"एक तो खुद ही टक्कर मारी इसने और ऊपर से इस बूढ़े आदमी का दोष लगा रही है ये।"
"बड़े बाप की लगती है भाई।" एक दूसरे ने कहा__"बड़े बाप की बेटी है तभी इतना तीखा बोलती है। तमीज़ नाम की तो कोई बात ही नहीं है इसमें।"

"हाऊ डेयर यू टाक टु मी लाइक दिस?" लड़की ने गुस्से से चिल्लाते हुए कहा___"तुम्हें पता है कि तुम किससे बात कर रहे हो? अगर जान जाओगे न तो यहीं पर खड़े खड़े पेशाब कर दोगे समझे। मैं इस शहर के मंत्री की बेटी हूॅ। इस शहर के मंत्री को तो तुम सब अच्छी तरह जानते ही होगे न?"

लड़की के इतना कहते ही आस पास खड़े लोगों को साॅप सा सूॅघ गया। पलक झपकते ही वो सब वहाॅ से इस तरह गायब हो गए जैसे गधे के सिर से सींग गायब हो जाते हैं। उन सबके जाते ही लड़की के होठों पर विजयी मुस्कान उभरी और फिर उसने हिकारत के से भाव से उस अधेड़ की तरफ देखा। सड़क पर बैठा वो अधेड़ अपनी उस दवा की तरफ देख रहा था जो सड़क पर फैल गई थी। उसकी तरफ देख कर लड़की ने "हुॅह" कहा और फिर पलट कर अपनी स्कूटी की तरफ आ गई। स्कूटी को स्टार्ट कर वो आगे बढ़ चली।

ये सब तमाशा देख रितू ने मोबाइल पर किसी से कुछ कहा और लड़की की तरफ तेज़ी से जिप्सी को दौड़ा दिया। उसके चेहरे पर बेहद गुस्से के भाव थे। सीघ्र ही उसकी जिप्सी उस लड़की की स्कूटी के पास आ गई और फिर रितू ने पीछे से टक्कर मार दी उसे। परिणामस्वरूप लड़की और उसकी स्कूटी उछलते हुए सड़क पर गिरे और कुछ दूर तक घिसटते हुए चले गए। फिज़ा में लड़की की चीख़ गूॅज गई थी। यहाॅ पर आस पास कोई दुकान या घर नहीं था। मार्केट एरिया पीछे ही था। हलाॅकि कुछ ही दूरी पर बड़ी बड़ी बिल्डिंग्स दिख रही थी। ज़ाहिर था उन्हीं बड़ी बड़ी बिल्डिंग्स में से किसी एक बिल्डिंग पर इस लड़की का अलीशान घर होगा।

रितू ने जिप्सी को आगे बढ़ा कर लड़की के पास रोंका और उतर कर लड़की के पास गई। लड़की सड़क के बाएॅ साइड उल्टी पड़ी दर्द से कराह रही थी। बड़ी मुश्किल से वो उठ कर बैठी और फिर अपने बदन पर लगी चोटों को देखने लगी।

"देख कर नहीं चल सकती थी क्या?" रितू ने उसी का वाक्य उसी के लहजे में दोहराया____"अभी मर जाती तो क्या करती तुम? सड़क को क्या अपने बाप की जागीर समझ रखा है जो जहाॅ से चाहे चल सकती हो?"

रितू की बात सुनकर उस लड़की ने दर्द से कराहते हुए रितू की तरफ देखा और फिर एकाएक ही उसके चेहरे पर गुस्सा उतर आया। इस हालत में भी वो सड़क पर से किसी स्प्रिंग लगे खिलौने की तरह उछल कर खड़ी हो गई और फिर बिना कुछ बोले ही घूम कर एक फ्लाइंग किक का वार रितू पर कर दिया। मगर उसका ये वार उसे खुद ही भारी पड़ गया। क्योंकि जैसे ही उसने फ्लाइंग किक चलाई वैसे ही झुक कर रितू ने उसकी उस टाॅग पर अपनी टाॅग चला दी थी जो नीचे सड़क पर जमी थी। नतीजा ये हुआ कि जमीन से लड़की का पैर हटते ही उस लड़की का बैलेंस बिगड़ा और वो गुड़ीमुड़ी होकर सड़क पर औंधे मुह गिरी। उसके मुख से दर्द में डूबी चीख़ निकल गई।

"तेरे जैसी दो कौड़ी की फाइटर लड़कियाॅ मेरे पास ट्यूशन लेने आती हैं मूर्ख लड़की।" रितू ने उसके सिर के बाल अपनी मुट्ठियों में कस कर ऊपर उठाते हुए कहा___"तेरे अंदर अपने हरामी बाप का गंदा खून भरा है न। चल तुझे भी वहीं ले चलती हूॅ जहाॅ तेरा वो हरामी भाई और उसके हरामी दोस्त हैं।"

"मुझे छोंड़ दो वरना इसका अंजाम बहुत बुरा होगा तुम्हारे लिए।" लड़की ने छटपटाते हुए कहा___"तुम्हें पता नहीं है कि तुमने किसकी बेटी पर हाॅथ उठाने की ज़ुर्रत की है?"
"यही, बस यही अकड़ तो निकालनी है तेरी और तेरे बाप की भी।" रितू ने घुटने का वार ज़ोर से लड़की के पेट पर किया तो हिचक कर रह गई वो, जबकि रितू ने उसके बालों को और ज़ोर से खींचते हुए कहा___"बहुत जल्द तुम सबकी ऐसी हालत होने वाली है जिसकी तुम लोगों ने कभी कल्पना भी न की होगी।"

"बहुत पछताओगी तुम?" लड़की ने चीखते हुए कहा___"मेरा बाप तुम्हारा वो हाल करेगा कि तुम अपना चेहरा दुनियाॅ को दिखाने के काबिल नहीं रहोगी।"
"ये तो वक्त ही बताएगा मेरी जान।" रितू ने लड़की की कनपटी के एक खास हिस्से पर अचानक ही कराट मारी थी, जिसका नतीजा ये हुआ कि लड़की बेहोश होती चली गई। जबकि रितू ने कहा___"कि मुह दिखाने के काबिल कौन नहीं रहता।"

रितू ने लड़की के बेहोश जिस्म को उठा कर अपनी जिप्सी में डाला और पिछली शीट के नीचे से एक ब्लैक कलर की बड़ी सी प्लास्टिक की पन्नी निकाल कर उसके ऊपर ऐसे तरीके से डाल दिया कि कोई ये न सोच सके कि उसके नीचे कोई इंसानी जिस्म भी हो सकता है। ये सब करने के बाद रितू पलटी और आस पास का बारीकी से मुआयना किया तो कुछ ही दूरी पर उसे लड़की का मोबाइल पड़ा दिखा। सड़क पर गिरने से मोबाइल की स्क्रीन चटक गई थी। रितू ने किनारे साइड की एक बटन को दबाया तो तुरंत ही स्क्रीन फ्लैश कर उठी। इसका मतलब वो चालू हालत में था अभी। ये देख कर रितू ने मोबाईल का कवर निकाल कर मोबाइल के ढक्कन को खोला और बैटरी निकाल ली। उसके बाद सारी चीज़ें पाॅकेट में डालने के बाद उसने अपने दूसरे पाॅकेट से अपना आई फोन निकाला। उसे याद आया कि उसने आई फोन फार्महाउस पर ही स्विच ऑफ कर दिया था। ये ध्यान आते ही उसके होठों पर एक जानदार मुस्कान उभरी। उसने अपने आईफोन को वापस पाॅकेट में रखा और आकर जिप्सी में बैठ गई। जिप्सी को स्टार्ट कर उसने यूटर्न लिया और वापस चल दी।

मार्केट के पास आते ही उसे दूसरी गाड़ी पर वो पुलिस वाले दिखे। उनमें से एक पुलिस वाले ने रितू को बताया कि उसने उस अधेड़ आदमी को दूसरी दवाइयाॅ खरीद कर दे दी हैं। उसकी बात सुन कर रितू आगे बढ़ गई। उसके पीछे दूसरे पुलिस वाले भी अपनी गाड़ी में चल पड़े। उनकी नज़र रितू की जिप्सी पर थोड़ा सा फैली हुई उस ब्लैक कलर की प्लास्टिक की पन्नी पर पड़ी जिसके नीचे रितू ने उस लड़की को छुपा दिया था। किन्तु उन लोगों ने इस पर ज्यादा ध्यान न दिया। उनको अपने आला अफसर का आदेश था कि इंस्पेक्टर रितू के आस पास ही रहना है और उसकी किसी भी गतिविधी पर कोई सवाल जवाब नहीं करना है।

रितू की जिप्सी ऑधी तूफान बनी हल्दीपुर की तरफ बढ़ी चली जा रही थी। उसके पीछे ही दूसरी गाड़ी पर वो पुलिस वाले भी थे। रितू को अंदेशा था कि हल्दीपुर के पास वाले रास्तों पर कहीं उसका बाप या उसके आदमी मिल न जाएॅ मगर हल्दीपुर के उस पुल तक तो कोई नहीं मिला था। पुल से दाहिने साइड जिप्सी को मोड़ कर रितू फार्महाउस की तरफ बढ़ चली। कुछ दूरी पर आकर रितू ने जिप्सी को रोंक दिया। कुछ ही पलों में उसके पीछे वाली गाड़ी भी उसके पास आकर रुक गई।

"अब आप सब यहाॅ से वापस लौट जाइये।" रितू ने एक पुलिस वाले की तरफ देख कर कहा___"आज का काम इतना ही था। अगर ज़रूरत पड़ी तो वायरलेस या फोन द्वारा सूचित कर दिया जाएगा।"
"ओके मैडम।" एक पुलिस वाले ने कहा___"जैसा आप कहें। जय हिन्द।"

उन सबने रितू को सैल्यूट किया और फिर अपनी गाड़ी को वापस मोड़ कर वहाॅ से चले गए। उनके जाते ही रितू ने भी अपनी जिप्सी को फार्महाउस की तरफ बढ़ा दिया। आने वाला समय अपनी आस्तीन में क्या छुपा कर लाने वाला था ये किसी को पता न था।"
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दोस्तों, अपडेट हाज़िर है,,,,,,,,
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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5,930
143
अपडेट.........《 49 》


अब आगे,,,,,,,

उधर एक तरफ!
एक लम्बे चौड़े हाल के बीचो बीच एक बड़ी सी टेबल के चारो तरफ कुर्सियाॅ लगी हुई थी। उन सभी कुर्सियों पर इस वक्त कई सारे अजनबी चेहरे बैठे दिख रहे थे। सामने फ्रंट की मुख्य कुर्सी खाली थी। हर शख्स के सामने मिनरल वाटर से भरे हुए काॅच के ग्लास रखे हुए थे। लम्बे चौड़े हाल में इस वक्त ब्लेड की धार की मानिन्द पैना सन्नाटा फैला हुआ था। वो सब अजनबी चेहरे ऐसे थे जिन्हें देख कर ही प्रतीत हो रहा था कि ये सब किसी न किसी अपराध की दुनियाॅ ताल्लुक ज़रूर रखते हैं। उन अजनबी चेहरों के बीच ही कुछ ऐसे भी चेहरे थे जो शक्ल सूरत से विदेशी नज़र आ रहे थे।

"और तो सब ठीक ही है।" उनमें से एक ने हाल में फैले हुए सन्नाटे को भेदते हुए कहा___"मगर ठाकुर साहब का हमसे इस तरह इन्तज़ार करवाना बिलकुल भी पसंद नहीं आता। हर बार यही होता है कि हम सब टाइम से कान्फ्रेन्स हाल में मीटिंग के लिए आ जाते हैं मगर ठाकुर साहब तो ठाकुर साहब हैं। हर बार निर्धारित समय से आधा घंटे लेट ही आते हैं।"

"अब इसमें हम क्या कर सकते हैं कमलनाथ जी?" एक अन्य ब्यक्ति ने मानो असहाय भाव से कहा___"वो ठाकुर साहब हैं। शायद हमसे इस तरह इन्तज़ार करवाने में वो अपनी शान समझते हैं। हलाॅकि ऐसा होना नहीं चाहिए, क्योंकि यहाॅ पर कोई भी किसी से कम नहीं है। हम सबको एक दूसरे का बराबर आदर व सम्मान करना चाहिए। मगर ये बात ठाकुर साहब से कौन कहे?"

"यस यू आर अब्सोल्यूटली राइट मिस्टर पाटिल।" सहसा एक विदेशी कह उठा___"हमको भी ठाकुर का इस तरह वेट करवाना पसंद नहीं आता हाय। वो क्या समझता हाय कि हम लोगों की कोई औकात नहीं हाय? अरे हम चाहूॅ तो अभी इसी वक्त ठाकुर को खरीद सकता हाय। बट हम भी इसी लिए चुप रहता हाय कि तुम सब भी चुप रहता हाय।"

"इट्स ओके मिस्टर लारेन।" पाटिल ने कहा___"ये आख़िरी बार है। आज ठाकुर से हम सब इस बारे में एक साथ चर्चा करेंगे और उनसे कहेंगे कि हम सबकी तरह वो भी टाइम पर मीटिंग हाल में आया करें। इस तरह हमसे वेट करवा कर हमारी तौहीन करने का उन्हें कोई हक़ नहीं है। अगर आप मेरी इस बात से सहमत हैं तो प्लीज जवाब दीजिए।"

पाटिल की इस बात पर सबने अपनी प्रतिक्रिया दी। जो कि पाटिल की बातों पर सहमति के रूप में ही थी। कुछ देर और समय बीतने के बाद तभी हाल में अजय सिंह दाखिल हुआ और मुख्य कुर्सी पर आकर बैठ गया। उसने सबकी तरफ देख कर बड़े रौबीले अंदाज़ से हैलो किया। उसकी इस हैलो का जवाब सबने इस तरह दिया जैसे बग़ैर मन के रहे हों। इस बात को खुद अजय सिंह ने भी महसूस किया।

"साॅरी फ्रैण्ड्स हमें आने में ज़रा देर हो गई।" अजय सिंह ने बनावटी खेद प्रकट करते हुए कहा___"आई होप आप सब इस बात से डिस्टर्ब नहीं हुए होंगे। एनीवेज़....
"ठाकुर साहब दिस इज टू मच।" एक अन्य ब्यक्ति कह उठा___"आप हर बार ऐसा ही करते हैं और फिर बाद में ये कह देते हैं कि साॅरी फ्रैण्ड्स हमें आने में ज़रा देर हो गई। आप हर बार लेट आकर हम सबकी तौहीन करते हैं। हम सब आधा घंटे तक आपके आने का वेट करते रहते हैं। आपको क्या लगता है कि हम लोगों के पास दूसरा कोई काम ही नहीं है? हम सब भी अपने अपने कामों में ब्यस्त रहते हैं मगर टाइम से कहीं भी पहुॅचने के लिए समय पहले से ही निकाल लेते हैं। इस बिजनेस में हम सब बराबर हैं। यहाॅ कोई छोटा बड़ा नहीं है। हम सबने आपको मेन कुर्सी पर बैठने का अधिकार अपनी खुशी से दिया था। मगर इसका मतलब ये नहीं कि आप उसका नाजायज़ मतलब निकाल लें। हम सबने डिसाइड कर लिया है कि अगर आपका रवैया ऐसा ही रहा तो हम सब आपसे बिजनेस का अपना अपना हिस्सा वापस ले लेंगे। दैट्स आल।"

उस ब्यक्ति की ये सारी बातें सुन कर अजय सिंह अंदर ही अंदर बुरी तरह तिलमिला कर रह गया था। ये सच था कि हर बार वो इन सबसे इन्तज़ार करवा कर यही जताता था कि उसके सामने इन लोगों की कोई अहमियत नहीं है। बल्कि वो इन सबसे ज्यादा अहमियत रखता है। आज तक इस बिजनेस से जुड़े ये सब लोग उसकी इस आदत पर कोई सवाल नहीं खड़ा किये थे जिसकी वजह से उसे यही लगता रहा था कि यू सब उसे बहुत ज्यादा इज्ज़त व अहमियत देते हैं और इसी लिए वो ऐसा करता रहा था। मगर आज जैसे इन सबके धैर्य का बाॅध टूट गया था। जिसका नतीजा इस रूप में उसके सामने आया था।
उस शख्स की बातों से उसके अहं को ज़बरदस्त चोंट पहुॅची लेकिन वो ये बात अच्छी तरह जानता था कि इस बारे में अगर उसने कुछ उल्टा सीधा बोला तो काम बिगड़ जाने में पल भर की भी देर नहीं लगेगी। इस लिए वो उस शख्स की उन सभी कड़वी बातों को जज़्ब कर गया था।

"आई नो मिस्टर तेवतिया।" अजय सिंह ने कहा__"बट इस सबसे हमारा ये मतलब हर्गिज़ भी नहीं है कि हम आप सबको अपने से छोटा समझते हैं। हम सब फ्रैण्ड्स हैं और हम में से कोई छोटा बड़ा नहीं है। हर बार हम मीटिंग में देर से पहुॅचते हैं इसका हमें यकीनन बेहद अफसोस होता है। मगर क्या करें हो जाता है। मगर हमें ये भी पता होता है कि आप सब हमारी इस ग़लती को नज़रअंदाज़ कर देंगे।"

"इट्स ओके ठाकुर साहब।" कमलनाथ ने कहा__"बट ध्यान रखियेगा कि अगली बार से ऐसा न हो। कभी कभार की बात हो तो समझ में आता है मगर हर बार ऐसा हो तो मूड ख़राब होना स्वाभाविक बात है।"

"यस ऑफकोर्स मिस्टर कमलनाथ।" अजय सिंह एक बार फिर गुस्से और अपमान का घूॅट पीकर बोला__"अब अगर आप सबकी इजाज़त हो तो काम की बात करें?"
"जी बिलकुल।" पाटिल ने कहा___"
उसके पहले हम ये जानना चाहते हैं कि समय से पहले इस तरह अचानक मीटिंग रखने की क्या वजह थी?"

"आप सबको तो इस बात का पता ही है कि मौजूदा वक्त में हमारे हालात बिलकुल भी ठीक नहीं हैं।" अजय सिंह ने बेबस भाव से कहा___"पिछले कुछ समय से हमारे साथ बेहद गंभीर और बेहद नुकसानदाई घटनाएॅ घट रही हैं। उन घटनाओं के पीछे कौन है ये भी हम पता लगा चुके हैं। इस लिए अब हम चाहते हैं कि आप सब हमारे इस बुरे वक्त में हमारा साथ दें।"

"वैसे तो आप खुद ही सक्षम हैं ठाकुर साहब।" पाटिल ने कहा___"किन्तु इसके बाद भी आप हम सबसे मदद की आशा रखते हैं तो मैं तैयार हूॅ। आख़िर हम सब एक ही तो हैं। हर तरह की मसीबत व परेशानी का एक साथ मिल कर मुकाबला करेंगे तो हर जंग में हमारी फतह होगी।"

"हमें भी आपके इन मौजूदा हालातों का पता है ठाकुर साहब।" एक अन्य ब्यक्ति ने कहा___"इस लिए हम सब आपके साथ हैं। आप हुकुम दें कि हमें क्या करना होगा?"
"आप सब हमारा साथ देने के लिए तैयार हैं इससे बड़ी बात व खुशी और क्या होगी भला? रही बात आपके कुछ करने की तो आप बस हमारे साथ ही बने रहें कुछ समय के लिए या फिर अपने कुछ ऐसे आदमी हमें दीजिए जो हर तरह के फन में माहिर हों।"

"जैसी आपकी इच्छा ठाकुर साहब।" कमलनाथ ने कहा___"हम सब आपके साथ हैं और हमारे ऐसे आदमी भी आपके पास आ जाएॅगे जो हर तरह के फन में माहिर हैं। अब से आपकी परेशानी हमारी परेशानी है। क्यों फ्रैण्ड्स आप सब क्या कहते हैं??"

कमलनाथ के अंतिम वाक्य पर सबने अपनी प्रतिक्रिया सहमति के रूप में दी। ये सब देख कर अजय सिंह अंदर ही अंदर बेहद खुश हो गया था।

"मिस्टर सिंह।" सहसा इस बीच एक विदेशी ने कहा___"पिछली डील अभी तक कम्प्लीट नहीं हुआ। क्या हम जान सकता हाय कि इतना डिले करने का तुम्हारा क्या मतलब हाय? बात थोड़ी बहुत की होती तो हम उसको भूल भी सकता था बट एज यू नो वो सारी चीज़ें लाखों करोड़ों में हाय। सो हाउ कैन आई फारगेट?"

"हम जानते हैं मिस्टर लाॅरेन।" अजय सिंह ने बेचैनी से पहलू बदला___"कि वो सब करोड़ों का सामान है। लेकिन मौजूदा वक्त में हम ऐसी स्थित में नहीं हैं कि आपका पैसा आपको दे सकें। इसके लिए आपको तब तक रुकना पड़ेगा जब तक कि हमारे सिर पर से ये मुसीबत और ये परेशानी न हट जाए। प्लीज़ ट्राई टू अण्डरस्टैण्ड मिस्टर लाॅरेन।"

"ओखे।" लाॅरेन ने कहा___"नो प्राब्लेम हम तुम्हारी हर तरह से मदद करेगा। बट सारी प्राब्लेम फिनिश होने के बाद तुम हमारा पूरा पैसा देगा। इस बात का प्रामिस करना पड़ेगा तुमको।"

"मिस्टर लाॅरेन।" सहसा कमलनाथ ने कहा___"ये आप कैसी बात कर रहे हैं? आप जानते हैं कि ठाकुर साहब के पास इस समय कितनी गंभीर समस्याएॅ हैं इसके बाद भी आप सिर्फ अपने मतलब की बात कर रहे हैं। जबकि आपको करना तो ये चाहिए था कि आप सब कुछ भूल कर सिर्फ ठाकुर साहब को उनकी समस्याओं से बाहर निकालें।"

"तो हमने कब मना किया इस बात से मिस्टर कमलनाथ?" लाॅरेन ने कहा___"हम कह ओ रहा है कि हम हर तरह से इनकी मदद करेगा।"
"हाॅ लेकिन यहाॅ पर आपको अपने पैसों की बात करना उचित नहीं है न।" कमलनाथ ने कहा___"आपको ये भी तो सोचना चाहिए कि पैसा सिर्फ आपका ही बस बकाया नहीं है ठाकुर साहब के पास, हम सबका भी है। लेकिन हमने तो इनसे पैसों के बारे में कोई बात नहीं की।"

"ओखे आयम साॅरी।" लाॅरेन ने बेचैनी से पहलू बदलते हुए कहा___"सो अब बताइये क्या करना है हम लोगो को?"
"ये तो ठाकुर साहब ही बताएॅगे।" कमलनाथ ने कहा__"कि हम सबको क्या करना होगा?"
"हमने आप सबको पहले ही बता दिया है कि आप सब अपने कुछ ऐसे आदमी हमें दीजिए जो हर तरह के काम में माहिर हों।" अजय सिंह ने कहा___"उसके बाद हम खुद ही तय करेंगे कि हमें उन आदमियों से क्या और कैसे काम लेना है?"

"ठीक है ठाकुर साहब।" पाटिल ने कहा___"हमारे पास जो भी ऐसे आदमी हैं। उन सबको आपके पास भेज देंगे।"
"ओह थैक्यू सो मच टू आल ऑफ यू डियर फ्रैण्ड्स।" अजय सिंह ने खुश होकर कहा___"और हाॅ, हम आप सबसे वादा करते हैं कि इस सबसे निपट लेने के बाद हम बहुत जल्द आप सबके पैसों का हिसाब किताब कर देंगे।"

अजय सिंह की इस बात के साथ ही मीटिंग खत्म हो गई। सबने अजय सिंह को अपने आदमी भेजने का कहा और फिर सब एक एक करके मीटिंग हाल से बाहर की तरफ चले गए। सबके जाने के बाद अजय सिंह भी बाहर की तरफ निकल गया। बाहर पार्किंग में खड़ी अपनी कार में बैठ कर अजय सिंह घर की तरफ निकल गया।

कुछ ही समय में अजय सिंह हवेली पहुॅच गया। अंदर ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर प्रतिमा और शिवा बैठे थे। अजय सिंह भी वहीं रखे एक सोफे पर बैठ गया। उसने प्रतिमा को चाय बनाने का कहा तो प्रतिमा रसोई की तरफ बढ़ गई। जबकि अजय सिंह ने गले पर कसी टाई को ढीला कर आराम से सोफे की पिछली पुश्त से पीठ टिका कर लगभग लेट सा गया।

शिवा को समझ न आया कि अपने बाप से बातों का सिलसिला कैसे और कहाॅ से शुरू करे? ऐसा कदाचित इस लिए था क्योंकि आज सारा दिन उसने अपनी माॅ के साथ मौज मस्ती की थी। इस बात के कारण कहीं न कहीं हल्की सी झिझक उसके अंदर मौजूद थी।

"आप इतना लेट कैसे हो गए डैड?" आख़िर शिवा ने बात शुरू कर ही दी, बोला___"आपने तो कहा था कि जल्दी आ रहा हूॅ?"
"एक ज़रूरी मीटिंग में ब्यस्त हो गया था बेटे।" अजय सिंह ने उसी हालत में कहा___"कल से हमारे पास कुछ ऐसे आदमी होंगे जो हर तरह के काम में माहिर होंगे। अब मैं भी देखूॅगा कि वो हरामज़ादा विराज और रितू कैसे उन आदमियों को ठिकाने लगाते हैं?"

"ऐसे वो कौन से आदमी हैं डैड?" शिवा ने ना समझने वाले भाव से कहा___"क्या आप अभी भी ऐसे किन्हीं आदमियों पर ही भरोसा करेंगे? जबकि पालतू आदमियों का क्या हस्र हुआ है ये आपको बताने की ज़रूरत नहीं है।"

"हमारे आदमी दिमाग़ से पूरी तरह पैदल थे बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"वो सब अपने शारीरिक बल को महत्व देते थे तभी तो मात खा गए। उन्होंने ये कभी सोचा ही नहीं कि शरीरिक बल से कहीं ज्यादा दिमाग़ी बल कारगर होता है। ख़ैर, अब जो आदमी यहाॅ आएॅगे वो सब खलीफ़ा लोग होंगे। जो हर वक्त हर तरह के ख़तरे वाले कामों को ही अंजाम देते हैं। दूसरी बात ये है कि रितू एक आम लड़की नहीं है जिसे कोई भी ऐरा गैरा ब्यक्ति आसानी से पकड़ लेगा, बल्कि वो एक पुलिस वाली भी है। जिसके पास सारा पुलिस डिपार्टमेन्ट भी है। ऐसे में अगर हम खुद उस पर हाॅथ डालेंगे तो वो हमें कानून की चपेट में डाल सकती है। इस लिए हमने सोचा है कि हम पहले ऐसे आदमियों के द्वारा उसे पकड़ लें कि जिनसे वो आसानी से मुकाबला भी न कर सके। मुकाबले से मेरा मतलब ये है कि मेरे वो आदमी उसे ऐसा घेरा बना कर पकड़ेंगे जिसके बारे में उसे अंदेशा तक न हो पाएगा।"

"ओह आई सी।" शिवा को सारी बात जैसे समझ आ गई थी, बोला___"ये सही रणनीत है डैड। अगर वो सब आदमी वैसे ही हर काम में माहिर हैं जैसा कि आप बता रहे हैं तो फिर यकीनन ये सही क़दम है।"

अभी अजय सिंह कुछ बोलने ही वाला था कि तभी किचेन से आती हुई प्रतिमा हाॅथ में चाय का ट्रे लिए वहाॅ पर आ गई। उसने दोनो बाप बेटे को एक एक कप चाय पकड़ाई और एक कप खुद लेकर वहीं एक सोफे पर बैठ गई।

"कौन से आदमियों की बात चल रही है अजय?" प्रतिमा ने सोफे पर बैठने के साथ ही पूछा था। उसके पूछने पर अजय सिंह ने उसे भी वही सब बता दिया जो अभी उसने शिवा को बताया था। सारी बात सुनने के बाद प्रतिमा कुछ देर गंभीरता से सोचती रही।

"तो अब तुमने बाहर से आदमी मॅगवाए हैं।" फिर प्रतिमा ने तिरछी नज़र से देखते हुए कहा___"और उन पर भरोसा भी है तुम्हें कि वो तुम्हें इस बार नाकामी का नहीं बल्कि फतह का स्वाद चखाएॅगे?"
"बिलकुल।" अजय सिंह ने स्पष्ट भाव से कहा___"ये सब ऐसे आदमी हैं जिनका वास्ता अपराध की हक़ीक़त दुनियाॅ से है और ये सब उस अपराध की दुनियाॅ के सफल खिलाड़ी हैं।"

"चलो इनका कारनामा भी देख लेते हैं।" प्रतिमा ने सहसा गहरी साॅस ली___"वैसे इस बात पर भी ध्यान देना कि समय हर वक्त इसी बस के लिए नहीं रहता।"
"क्य मतलब??" अजय सिंह चकराया।
"मतलब ये कि हर बार एक जैसी ही चाल चलना एक सफल खिलाड़ी की पहचान नहीं होती।" प्रतिमा ने समझाने वाले भाव से कहा__"ऐसे में सामने वाले खिलाड़ी के दिमाग़ में ये मैसेज जाता है कि उसका प्रतिद्वंदी कमज़ोर है जो सिर्फ एक ही तरह की चाल चलना जानता है और उसकी ये बेवकूफी भी कि उसी एक तरह की चाल से वह खेल को जीत लेने की उम्मीद भी करता है। इस लिए एक अच्छे खिलाड़ी को चाहिए कि बीच बीच में अपनी चाल को बदल भी लेना चाहिए।"

"बात तो तुम्हारी ठीक है डियर।" अजय सिंह ने चाय का खाली कप सामने काॅच की टेबल पर रखते हुए बोला___"लेकिन इसको इस एंगल से भी तो सोच कर देखो ज़रा। मतलब ये कि सामने वाले खिलाड़ी के दिमाग़ में हम जानबूझ कर ये मैसेज डाल रहे हैं कि हमारे पास सिर्फ एक ही तरह की चाल है। उसे ऐसा समझने दो। जबकि हम सही समय आने पर अपनी चाल को बदल कर उसे ऐसे मात देंगे कि उसे इसकी उम्मीद भी न होगी हमसे। जिसे वो हमारी कमज़ोरी समझेगा वो दरअसल हमारी चाल का ही एक हिस्सा होगा।"

"ओहो क्या बात है डियर हस्बैण्ड।" प्रतिमा ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"क्या तर्क निकाला है। ये भी ठीक है। चल जाएगा। मगर सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली बात ये है कि हमारे पास समय नहीं है समय बर्बाद करने के लिए भी। सोचने वाली बात है कि हम अब भी वहीं हैं जहाॅ पर थे जबकि हमारा दुश्मन बहुत कुछ करके यहाॅ निकल भी चुका है। हाॅ अजय, वो रंडी का जना विराज अब यहाॅ नहीं होगा। बल्कि जिस काम से वो यहाॅ आया था उस काम को करके वो वापस मुम्बई चला गया होगा। आख़िर इस बात का एहसास तो उसे भी है कि उसने हमारे इतने सारे आदमियों का क्रियाकर्म करके गायब किया है जिसका अंजाम किसी भी सूरत में उसके हित में नहीं होगा। इस लिए अपना काम पूरा करने के बाद वो यहाॅ पर एक पल भी रुकना गवाॅरा नहीं करेगा।"

"माॅम ठीक कह रही हैं डैड।" सहसा इस बीच शिवा ने भी अपना पक्ष रखा___"वो यकीनन यहाॅ से चला गया होगा। भला ऐसे ख़तरे के बीच रुकने की कहाॅ की समझदारी ।होगी? अब ये भी स्पष्ट हो गया है कि उसके बाद यहाॅ सिर्फ रितू दीदी ही रह गई हैं।"

"रितू ही बस नहीं है बेटे।" अजय सिंह ने कहा___"बल्कि उसके साथ तुम्हारी नैना बुआ भी है।"
"क्याऽऽ???" अजय सिंह की इस बात से शिवा और प्रतिमा दोनो ही बुरी तरह चौंके थे, जबकि प्रतिमा ने कहा___"तुम ये कैसे कह सकते हो अजय? नैना तो वापस अपने ससुराल चली गई थी न उस दिन?"

"वो ससुराल नहीं।" अजय सिंह ने कहा___"बल्कि रितू के साथ कहीं और गई थी। नैना ने तो ससुराल जाने का सिर्फ बहाना बनाया था जबकि हक़ीक़त ये थी कि रितू उसे खुद यहाॅ से निकाल कर ले गई थी। ये सब रितू का ही किया धरा था।"

"लेकिन ये सब तुम्हें कैसे पता अजय?" प्रतिमा ने चकित भाव से कहा___"और रितू ने भला ऐसा क्यों किया होगा?"
"उस दिन नैना जब रितू के साथ गई तो ये सच है कि एक भाई होने के नाते मुझे खुशी हुई थी कि चलो अच्छा हुआ कि नैना को उसके ससुराल वालों ने बुलाया है।" अजय सिंह कह रहा था___"मगर जब दो दिन बाद भी नैना का कोई फोन नहीं आया तो मैने सोचा कि मैं ही फोन करके पता कर लूॅ कि वहाॅ सब ठीक तो है न? इस लिए मैने नैना के ससुराल में नैना को फोन लगाया मगर नैना का फोन बंद बता रहा था। कई बार के लगाने पर भी जब नैना का फोन बंद ही बताता रहा तो मैने नैना के हस्बैण्ड को फोन लगाया और उनसे पूछा नैना के बारे में तो उसने साफ साफ कठोरता से मना कर दिया कि उसके यहाॅ नैना नहीं आई और ना ही उसका नैना से कोई लेना देना है अब। नैना के पति की ये बात सुन कर मेरा दिमाग़ घूम गया। मुझे समझते देर न लगी कि नैना को हवेली से निकाल कर रितू ही ले गई है। उसे शायद ये बात कहीं से पता चल गई होगी कि हम दोनो बाप बेटे की गंदी नज़र नैना पर है। इस लिए रितू ने उसे इस हवेली से बड़ी चालाकी से निकाल लिया और अपनी बुआ को किसी ऐसी जगह पर सुरक्षित रखने का सोचा होगा जहाॅ पर हम आसानी से पहुॅच भी न सकें।"

"हे भगवान! इतना बड़ा खेल खेल गई रितू।" प्रतिमा ने हैरानी से कहा___"अगर ये बात सच है तो यकीनन हमारी बेटी ने हमें उल्लू बना दिया है। उसने बड़ी सफाई और चतुराई से आपके मुह से आपका मन पसंद निवाला छीन लिया है जिसका हमें एहसास तक नहीं हो सका।"

"जब हमारी बेटी ने ही हमें धोखा दे दिया तो कोई क्या कर सकता है?" अजय सिंह ने कहा___"लेकिन अब जो हम उसके साथ करेंगे उसकी उसने कल्पना भी न की होगी। हम उसके माॅ बाप हैं, हमने उसे बचपन से लेकर अब तक क्या कुछ नहीं दिया। उसने जिस चीज़ की आरज़ू की हमने पल भर में उस चीज़ को लाकर उसके क़दमों में डाल दिया। मगर उसने हमारे लाड प्यार का ये सिला दिया हमें। इतने सालों का लाड प्यार उसके लिए कोई मायने नहीं रखता। देख लो प्रतिमा, ये है तुम्हारी बेटी का अपने माॅ बाप के प्रति प्रेम और लगाव। जो अपने बाप के दुश्मन के साथ मिल कर खुद अपने ही पैरेंट्स के लिए मौत का सामान जुटाने पर तुली हुई है। इस हाल में अगर तुम मुझसे ये कहो कि मैं उसकी इस धृष्टता को माफ़ कर दूॅ तो ऐसा हर्गिज़ नहीं हो सकता अब। तुम्हारी बेटी ने अपने ही बाप के हाथों अब ऐसी मौत को चुन लिया है जिसके दर्द का किसी को एहसास नहीं हो सकता।"

"पहले मुझे भी लगता था अजय कि वो आख़िर हमारी बेटी है।" प्रतिमा ने कठोरता से कहा___"मगर उसके इस कृत्य से मुझे भी उस पर अब बेहद गुस्सा आया हुआ है। मैं जानती हूॅ कि वो अब दूध पीती बच्ची नहीं रही है जिसके कारण उसे हर चीज़ का पाठ पढ़ाना पड़ेगा। बल्कि अब वो बड़ी हो गई है। जिसे अपने और अपनों के अच्छे बुरे का बखूबी ख़याल है। इसके बाद भी वो अपने ही पैरेंट्स का बुरा चाहने वाला काम किया है तो अब मैं भी यही कहूॅगी कि उसे उसके इस अपराध की शख्त से शख्त सज़ा मिले। दैट्स आल।"

कुछ देर और तीनो के बीच बातें होती रहीं उसके बाद तीनों ने रात का खाना खाया और सोने के लिए कमरों में चले गए। इस बात से अंजान कि आने वाली सुबह उनके लिए क्या धमाका करने वाली है????
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रितू की जिप्सी फार्महाउस पहुॅची।
लोहे वाले गेट के पास ही शंकर और हरिया काका बंदूख लिए खड़े थे। रितू की जिप्सी को देखते ही दोनो ने गेट खोल दिया। गेट खुलते ही रितू ने जिप्सी की गेट के अंदर बढ़ा दिया। कुछ ही पल में रितू की जिप्सी पोर्च में जाकर रुकी। जिप्सी से उतर कर रितू ने हरिया काका को आवाज़ देकर बुलाया। हरिया के आते ही रितू ने उससे जिप्सी के पीछे बड़ी सी प्वालीथिन के नीचे ढॅकी मंत्री की बेटी को उठा कर तहखाने में ले जाने को कहा। उससे ये भी कहा कि तहखाने में उसे अच्छी तरह बाॅध कर ही रखे।

रितू के कहने पर हरिया ने वैसा ही किया। आज एक लड़की को इस तरह तहखाने में ले आते देख हरिया काका अंदर ही अंदर बेहद खुश हो गया था। लड़की को देख कर उसके मन में ढेर सारे लड्डू फूट रहे थे। काफी दिन से लड़की गाॅड मार मार कर वो अब उकता सा गया था। अब उसे एक फ्रेश माल की ज़रूरत महसूस हो रही थी। बिंदिया को ज्यादा सेक्स करना पसंद नहीं था इस लिए हरिया को वह रोज रोज अपने पास नहीं आने देती थी। जिसकी वजह से हरिया उससे खूब नाराज़ हो जाया करता था। मगर कर भी क्या सकता था??

मन में ढेर सारे खुशी के लड्डू फोड़े वह लड़की को तहखाने में ले जाकर उसे वहीं तहखाने के फर्स पर लेटा दिया। लड़की अभी भी बेहोश ही थी। तहखाने में रस्सियों से बॅधे वो चारो असहाय अवस्था में लगभग झूल से रहे थे। उन चारों की हालत ऐसी हो गई थी कि पहचान में नहीं आ रहे थे। जिस्म पर एक एक कच्छा था उन चारों के और कुछ नहीं। इस वक्त चारो के सिर नीचे की तरफ झुके हुए थे। उनमें इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि सिर उठा कर सामने की तरफ देख भी सकें कि कौन किसे लेकर आया है? हरिया काका ने एक नज़र उन चारों पर डाली उसके बाद वो लड़की की तरफ एक बार देखने के बाद तहखाने से बाहर की तरफ चला गया। कुछ देर में जब वो आया तो उसके दोनो हाॅथ में एक लकड़ी की कुर्सी थी।

लकड़ी की कुर्सी को तहखाने में एक तरफ रख कर वो पलटा और फिर लड़की उठा कर उस कुर्सी पर बैठा दिया। उसने लड़की के दोनो हाथों को कुर्सी के दोनो साइड एक एक करके रस्सी से बाॅध दिया। उसके बाद उसके पैरों को भी नीचे कुर्सी के दोनो पावों पर एक एक कर बाॅध दिया। लड़की के झुके हुए सिर को ऊपर उठा कर उसने कुर्सी की पिछली पुश्त से टिका दिया। कुछ देर तक हरिया काका उस लड़की को ललचाई नज़रों से देखता रहा उसके बाद वो तहखाने से बाहर आ गया। तहखाने का गेट बंद कर वो बाहर गेट के पास खड़े शंकर के करीब आ गया।

उधर, मंत्री की बेटी को हरिया के हवाले करने के बाद रितू अंदर अपने कमरे की तरफ बढ़ गई। कमरे में आकर उसने अपनी वर्दी को उतारा और बाथरूम में घुस गई। जब वह फ्रेश होकर बाहर आई तो कमरे में नैना बुआ को देख कर वह चौंकी। दरअसल इस वक्त वह सिर्फ एक हल्के पिंक कलर के टाॅवेल में थी।

बाॅथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज़ से बेड पर बैठी नैना का ध्यान उस तरफ गया तो रितू को मात्र टाॅवेल में देख कर वह हौले से मुस्कुराई। उसके यूॅ मुस्कुराने से रितू के चेहरे पर अनायास ही लाज और हया की सुर्खी फैल गई। होठों पर हल्की मुस्कान के साथ ही उसकी नज़रें झुकती चली गईं। रितू का इस तरह शरमाना नैना को काफी अच्छा लगा। उसे पता था कि उसकी ये भतीजी भले ही ऊपर से कितनी ही कठोर हो किन्तु अंदर से वह एक शुद्ध भारतीय लड़की है जो ऐसी परिस्थिति में शरमाना भी जानती है।

"चल मुझसे शरमाने की ज़रूरत नहीं है रितू।" नैना ने मुस्कुराते हुए कहा___"तू आराम से अपने कपड़े पहन ले। फिर हम बातें करेंगे।"
"शर्म तो आएगी ही बुआ।" रितू ने इजी फील करने के बाद ही हौले से मुस्कुराते हुए कहा___"मैं इस तरह पहले कभी भी किसी के सामने नहीं आई। भले ही वो मेरे घर का ही कोई सदस्य हो।"

"हाॅ जानती हूॅ मैं।" नैना ने कहा___"पर इतना तो आजकल आम बात है मेरी बच्ची। सो फील इजी एण्ड कम्फर्टेबल।"
नैना की इस बात से रितू बस मुस्कुराई और फिर पास ही एक साइड रखी आलमारी से उसने अपने कपड़े निकाले और फिर वापस बाथरूम में घुस गई। ये देख कर नैना एक बार पुनः मुस्कुरा उठी।

थोड़ी देर बाद रितू जब बाथरूम से बाहर आई तो इस बार उसके खूबसूरत से बदन पर भारतीय लड़कियों का शुद्ध सलवार सूट था और सीने पर दुपट्टा। वो इन कपड़ों में बहुत ही खूबसूरत लग रही थी। नैना ने उसे गहरी नज़र से एक बार ऊपर से नीचे तक देखा फिर बेड से उठ कर रितू के पास आई और रितू का सिर पकड़ कर अपनी तरफ किया और उसके माथे पर हल्के चूम लिया।

"बहुत खूबसूरत लग रही है मेरी बच्ची।" फिर नैना ने मुस्कुरा कर कहा___"किसी की नज़र न लगे। ईश्वर हर बला से दूर रखे तुझे।"
"आप भी न बुआ।" रितू ने हॅसते हुए कहा___"ख़ैर छोड़िये ये बताइये आपको यहाॅ अच्छा तो लगता है न? कहीं ऐसा तो नहीं कि आप यहाॅ पर इजी फील नहीं करती हैं और खुद को यहाॅ मजबूरीवश रहने का सोचती हैं?"
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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"अरे नहीं रितू।" नैना ने रितू का हाॅथ पकड़ कर उसे बेड पर बैठाने के बाद खुद भी बैठते हुए कहा___"यहाॅ मुझे बहुत अच्छा लगता है। हर मुसीबत हर परेशानी से दूर हूॅ यहाॅ। यहाॅ शान्त व साफ वातावरण मन को बेहद सुकून देता है। यहाॅ बिंदिया भौजी हैं और तू है बस इससे ज्यादा और क्या चाहिए? पिछले कुछ दिनों में अपने कुछ अज़ीज़ों से भी मिल लिया, ऐसा लगा जैसे फिर से इस घर में वही पुराना वाला दौर लौट आया है।"

"चिन्ता मत कीजिए बुआ।" रितू ने कहा___"पुराना वाला समय फिर से आएगा। फिर से पहले जैसी ही खुशियाॅ हमारे बीच रक्श करेंगी। बस इन खुशियों को बरबाद करने वालों का एक बार किस्सा खत्म हो जाए। उसके बाद फिर से वही हमारा वही संसार होगा मगर एक नये संसार के रूप में। जिसमें सबके बीच सिर्फ बेपनाह प्यार होगा। जहाॅ किसी घृणा अथवा किसी प्रकार की नफ़रत के लिए कोई स्थान हीं नहीं होगा।"

"क्या सच में तूने अपने माता पिता के लिए उनका अंजाम बुरा ही सोचा हुआ है?" नैना ने पूछा___"क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उन्हें उनके कर्मों की सज़ा भी मिल जाए और वो हमारे साथ भी रहें एक अच्छे इंसानों की तरह?"

"ये असंभव है बुआ।" रितू ने कठोरता से कहा__"जो इंसान इतना ज्यादा अपने सोच और विचार से गिर जाए कि वो अपनी ही औलाद के बारे में इतना गंदा करने का सोच डाले उससे भविष्य में अच्छाई की उम्मीद हर्गिज़ नहीं करनी चाहिए। दूसरी बात, भले ही ईश्वर उनके अपराधों के लिए उन्हें माफ़ कर दे मगर मैं किसी सूरत पर उन्हें माफ़ नहीं कर सकती। उन्होंने माफ़ी के लिए कहीं पर भी कोई रास्ता नहीं छोंड़ा है। उन्होंने हर रिश्ते के लिए सिर्फ गंदा सोचा है और गंदा किया है। उन्होने अपने स्वार्थ के लिए अपने देवता जैसे भाई की हत्या की। अपनी बहन सामान छोटे भाई की पत्नी पर बुरी नज़र डाली। सबसे बड़ी बात तो उन्होंने ये की कि अपने ही बेटे के साथ अपनी पत्नी को उस काम में शामिल किया जिस काम को किसी भी जाति धर्म में उचित नहीं माना जाता बल्कि सबसे ऊॅचे दर्ज़े का पाप माना जाता है। ऐसे इंसानों को माफ़ी कैसे मिल सकती है बुआ? नहीं हर्गिज़ नहीं। ना तो मैं माफ़ करने वाली हूॅ और ना ही मेरा भाई राज उन घटिया लोगों को माफ़ करेगा। एक पल के लिए अगर ऐसा हो जाए कि राज उन्हें माफ़ भी कर दे मगर मैं....मैं नहीं माफ़ कर सकती। हाॅ बुआ....मेरे अंदर उनके प्रति इतना ज़हर और इतनी नफ़रत भर चुकी है कि अब ये उनकी मौ से ही दूर होगी। मुझे दुख इस बात का नहीं होगा कि मेरे माॅ बाप दुनियाॅ से चले गए बल्कि मरते दम तक इस बात का मलाल रहेगा कि ऐसे गंदे इंसानों की औलाद बना कर ईश्वर ने मुझे इस धरती पर भेज दिया था।"

रितू की इन बातों से नैना चकित भाव से देखती रह गई उसे। उसे एहसास था कि रितू के अंदर इस वक्त किस तरह की भावनाओं का चक्रवात चालू था जिसके तहत वो इस तरह अपने ही माॅ बाप के लिए ऐसा बोल रही थी। नैना खुद भी यही समझती थी कि रितू अपनी जगह परी तरह सही है। ऐसे इंसान के मर जाने का कोई दुख या संताप नहीं हो सकता।

"माॅ बाप तो वो होते हैं बुआ जो अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा देते हैं।" रितू दुखी भाव से कहे जा रही थी__"बाल्य अवस्था से ही अपने बच्चों के अंदर अच्छे संस्कार डालते हैं। सबके प्रति आदर व सम्मान करने की भावना के बीज बोते हैं। सबके लिए अच्छा सोचने की सीख देते हैं। कभी किसी के बारे में बुरा न सोचने का ज्ञान देते हैं। मगर मेरे माॅ बाप ने तो अपने तीनों बच्चों को बचपन से सिर्फ यही पाठ पढ़ाया था कि हवेली के अंदर रहने वाला हर ब्यक्ति बुरा है। इनसे ज्यादा बात मत करना और ना ही इन्हें अपने पास आने देना। कहते हैं इंसान वही देता है जो उसके पास होता है। सच ही तो है बुआ, मेरे माॅ बाप के पास यही सब तो था अपने बच्चों को देने के लिए। वो खुद ऊॅचे दर्ज़े के बुरे इंसान थे, उनके अंदर पाप और बुराईयों का भण्डार था। वही सब उन्होंने अपने बच्चों को भी दिया। ये तो समय की बात है बुआ कि वो हमेशा एक जैसा नहीं रहता। हर चीज़ की हकीक़त कैसी होती है ये बताने के लिए समय ज़रूर आपको ऐसे मोड़ पर ले आता है जहाॅ आपको हर चीज़ की असलियत का पता चल जाता है। इस लिए ये अच्छा ही हुआ कि समय मुझे ऐसे मोड़ पर ले आया। वरना मैं जीवन भर इस बात से बेख़बर रहती कि जिन लोगों के बारे में मुझे बचपन से ये पाठ पढ़ाया गया था कि ये सब बुरे लोग हैं वो वास्तव में कितने अच्छे थे और गंगा की तरह पवित्र थे।"

"हर इंसान की सोच अलग होती है रितू।" नैना ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"और हर इंसान की इच्छाएॅ भी अलग होती हैं। कुछ लोग अपनी इच्छा और खुशी के लिए अनैतिकता की सीमा लाॅघ जाते हैं और कुछ लोग दूसरों की खुशी और भलाई के लिए अपनी हर खुशी और इच्छाओं का गला घोंट देते हैं। अनैतिकता की राह पर चलने वाले ये सोचना गवाॅरा नहीं करते कि जो कर्म वो कर रहे हैं उससे जाति समाज और खुद के घर परिवार पर कितना बुरा प्रभाव पड़ेगा? उन्हें तो बस अपनी खुशियों से मतलब होता है। जबकि इसके विपरीत अच्छे इंसान अपने अच्छे कर्मों से आदर्श के नये नये कीर्तिमान स्थापित करते हैं। ख़ैर छोंड़ इन बातों को और ये बता कि आगे का क्या सोचा है?"

"सोचना क्या है बुआ?" रितू ने कहा___"मेरा भाई मुझसे कह गया है कि मैं उसके वापस आने का इन्तज़ार करूॅ। उसके बाद हम दोनो बहन भाई इस किस्से का खात्मा करेंगे।"
"पर ये सब होगा कैसे?" नैना ने कहा___"तुम दोनो इस काम को अकेले कैसे अंजाम तक पहुॅचाओगे?"

"मुझे खुद पर और अपने भाई राज पर पूरा भरोसा है बुआ।" रितू ने गर्व से कहा___"आप देखना हम दोनो कैसे इस सबको फिनिश करते हैं? अब तो रितू राज स्पेशल गेम होगा बुआ। मैं बस राज के आने का बेसब्री से इन्तज़ार कर रही हूॅ।"

"तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे ये सब बहुत सहज है।" नैना ने हैरानी से कहा___"जबकि मेरा तो सोच सोच कर ही दिल बुरी तरह से घबराया जा रहा है।"
"इसमें घबराने वाली क्या बात है बुआ?" रितू ने स्पष्ट भाव से कहा___"सीधी और साफ बात है कि जो लोग सिर पर मौत का कफ़न बाॅध कर चलते हैं वो फिर किसी चीज़ से घबराते नहीं हैं। बल्कि मौत से भी डॅट कर मुकाबला करते हैं। जहाॅ तक मेरी बात है तो अब अगर मेरी जान भी मेरे भाई की सुरक्षा में चली जाए तो कोई ग़म नहीं है। बल्कि मुझे बेहद खुशी होगी कि मेरी जान मेरे ऐसे भाई की सलामती के लिए फना हो गई जिसने वास्तव में मुझे हमेशा अपनी दीदी माना और हमेशा मुझे इज्ज़त व सम्मान दिया।"

"ऐसा मत कह रितू।" नैना की ऑखों से ऑसू छलक पड़े, बोली____"तुझे कुछ नहीं होगा और ख़बरदार अगर दुबारा से ऐसी फालतू की बात की तो। तू मेरी जान है मेरी बच्ची। तुझे कुछ नहीं होगा क्योंकि तू सच्चाई की राह पर चल रही है, धर्म की राह पर मुकीम है तू। अगर किसी को कुछ होगा तो वो उन्हें होगा जो इस देश समाज और परिवार के लिए कलंक हैं।"

"ख़ैर जाने दीजिए बुआ।" रितू ने मानो पहलू बदला__"इन सब बातों में क्या रखा है? होना तो वही है जो हर किसी की नियति में लिखा हुआ है। आइये खाना खाने चलते हैं। बिंदिया काकी ने खाना तैयार कर दिया होगा।"

रितू की ये बात सुन कर नैना उसे कुछ देर अजीब भाव से देखती रही, फिर रितू के उठते ही वो भी बेड से उठ बैठी। कमरे से बाहर आकर दोनो डायनिंग हाल की तरफ बढ़ चलीं। जहाॅ पर करुणा का भाई और अभय सिंह का साला बैठा इन्हीं का इन्तज़ार कर रहा था। ये दोनो भी वहीं रखी एक एक कुर्सियों पर बैठ गई। कुछ ही देर में बिंदिया ने सबको खाना परोसा। खाना खाने के बाद सब अपने अपने कमरों की तरफ सोने के लिए चले गए।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
सुबह हुई!
उस वक्त सुबह के लगभग साढ़े आठ बज रहे थे जब रास्तों पर धूल उड़ाती हुई कई सारी गाड़ियाॅ आकर हवेली के बाहर एक एक करके रुकीं। वो तीन गाड़ियाॅ थी। एक सफारी, एक इनोवा, और एक आई20 थी। तीनों गाड़ियों के रुकते ही सभी गाड़ियों के दरवाजे एक साथ खुले और खुल चुके दरवाजे से एक एक दो दो करके कई सारे आदमी गाड़ियों से बाहर निकले।

बाहर आते ही वो सब एक साथ हवेली के उस हिस्से के मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़े जो हिस्सा अजय सिंह का था। इस वक्त दरवाजा बंद था। आस पास कुछ ऐसे आदमी भी बाहर मौजूद थे जिनके हाॅथों में बंदूख, रिवाल्वर आदि हथियार थे। गाड़ियों से आने वाले सभी लोग मुख्य दरवाजे की तरफ मुड़ चले। आस पास खड़े अजय सिंह के बंदूखधारी आदमियों के चेहरों पर अजीब से भाव उभरे। अजीब से इस लिए क्यों कि गाड़ियों से आने वाले सभी आदमी एकदम दनदनाते हुए मुख्य दरवाजे की तरफ बढ़ चले थे।

आस पास खड़े बंदूखधारी आदमी उन लोगों की इस धृष्टता को देख उन्हें रोंकने के लिए उन लोगों के सामने आ गए और उन्हें रोंक कर उनसे पूछने लगे कि वो कौन लोग हैं और इस तरह कैसे बिना कुछ पूछे अंदर की तरफ बढ़े चले जा रहे हैं? किन्तु बंदूखधारियों के पूछने पर उन लोगों ने कोई जवाब नहीं दिया बल्कि अपने अपने कोट की सामने वाली पाॅकेट से अपना अपना आई कार्ड निकाल कर बंदूखधारियों को दिखा दिया। बंदूखधारी ये देख कर बुरी तरह चौंके कि वो सब सी बी आई की स्पेशल ऑफीसर थे। बंदूखधारियों को बिलीउल भी समझ न आया कि वो लोग यहाॅ क्यों आए हैं और वो खुद अब क्या करें? उधर आई कार्ड दिखाने के बाद वो लोग मुख्य दरवाजे के पास पहुॅच गए और दरवाजे पर लगी कुण्डी को ज़ोर से बजा दिया।

कुछ ही देर में दरवाजा खुला। दरवाजे पर नाइट गाउन पहने प्रतिमा नज़र आई। अपने सामने इतने सारे अजनबी आदमियों को देख कर वो चौंकी। उसके चेहरे पर ना समझने वाले भाव उभरे।

"जी कहिए।" फिर उसने अजीब भाव से कहा___"आप लोग कौन हैं? और यहाॅ किस काम से आए हैं?"
"हमें अंदर तो आने दीजिए मैडम।" एक आदमी ने ज़रा शालीन भाव से कहा___"मिस्टर अजय सिंह से मिलना है।"

"पर आप लोग हैं कौन?" प्रतिमा ने दरवाजे पर खड़े खड़े ही पूछा___"ये तो बताया नहीं आपने।"
"सब पता चल जाएगा मैडम।" उस आदमी ने कहा__"हम सब मिस्टर अजय सिंह के गहरे दोस्त यार हैं। प्लीज, उन्हें कहिए कि हम उनसे मिलने आए हैं।"

प्रतिमा उस आदमी की बात सुन कर देखती रह गई उसे। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे उसे यकीन न आ रहा हो कि ये लोग अछय सिंह के दोस्त हो सकते हैं। कुछ देर उस आदमी को देखते रहने के बाद जाने क्या सोच कर प्रतिमा दरवाजे से हट कर पलटी और अंदर की तरफ बढ़ती चली गई। उसके पीचे पीछे ये सब भी ओल दिये।

कुछ ही देर में प्रतिमा के पीछे पीछे ये सब ड्राइंग रूम में पहुॅच गए। प्रतिमा ने सोफों की तरफ हाॅथ का इशारा कर उन लोगों को बैठने के लिए कहा। प्रतिमा के इस प्रकार कहने पर वो सब लोग सोफों पर बैठ गए जबकि प्रतिमा अंदर कमरे की तरफ बढ़ गई।

थोड़ी ही देर में अजय सिंह ड्राइंग रूम में दाखिल हुआ। ड्राइंग रूम में सोफों पर बैठे इतने सारे लोगों पर नज़र पड़ते ही उसके चेहरे पर अजनबीयत के भाव उभरे। जैसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो कि ये सब लोग कौन हैं?

"माफ़ करना मगर हमने आप लोगों को पहचाना नहीं।" फिर उसने एक अलग सोफे पर बैठते हुए कहा।
"इसके पहले कभी हम लोग आपसे मिले ही कहाॅ थे जो आप हमें पहचान लेते।" एक कोटधारी ने अजीब भाव से कहा___"ख़ैर, आपकी जानकारी के लिए हम बता दें कि हम सब सी बी आई से हैं और यहाॅ आपको चरस, अफीम, और ड्रग्स का धंधा करने के जुर्म में गिरफ्तार करने आए हैं। हमारे पास आपके खिलाफ़ स्पेशल वारंट भी है। इस लिए आप बिना कुछ सवाल जवाब किये हमारे साथ चलने का कस्ट करें।"

सी बी आई के उस आदमी के मुख से ये बात सुन कर अजय सिंह के पैरों के नीचे से ज़मीन खिसक गई। बुत सा बन गय था वह। मुख से कोई बोल न फूटा। जिस्म के सभी मसामों ने पल भर में ढेर सारा पसीना उगल दिया। चेहरा इस तरह नज़र आने लगा था जैसे धमनियों में दौड़ते हुए लहू की एक बूॅद भी शेष न बची हो। एकदम फक्क पड़ गया था।

"ये...ये...क्...क्या बकवास कर रहे हैं आप?" फिर सहसा बदहवाश से अजय सिंह ने जैसे खुद को सम्हाला था और फिर वापस ठाकुरों वाले रौब में आते हुए बोला था। ये अलग बात है कि उसके उस रौब में रत्ती भर भी रौब दिखाई न दिया, बोला___"आप होश में तो हैं न? आप जानते हैं कि आप किसके सामने क्या बकवास कर रहे हैं?"

"हम तो पूरी तरह होशो हवाश में ही हैं मिस्टर अजय सिंह।" सीबीआई ऑफिसर ने कहा___"किन्तु आपके होशो हवाश ज़रूर कहीं खो गए से नज़र आने लगे हैं। रही बात आपकी कि आप कौन हैं और हम आपसे क्या कह रहे हैं तो इससे कोई फर्क़ नहीं पड़ता। क्योंकि हम कानून के नुमाइंदे हैं। हमारे लिए छोटे बड़े सब एक जैसे ही होते हैं। ख़ैर, हमने आपके शहर वाले मकान से भारी मात्रा में ग़ैर कानूनी ज़खीरा बरामद किया है। सारी जाॅच पड़ताल के बाद जब हमें ये पता चला कि वो सब आपकी संमत्ति है तो हम कोर्ट से स्पेशल वारंट लेकर आपको यहाॅ गिरफ्तार करने चले आए। इस लिए अब आपके पास हमारे साथ चलने के सिवा दूसरा कोई चारा नहीं है।"

ऑफीसर की ये बात सुन कर एक बार फिर से अजय सिंह की हालत ख़राब हो गई। वो सोच भी नहीं सकता था कि उसके साथ ऐसा भी कभी हो सकता है। उसे तुरंत ही फैक्ट्री में लगी आग का वाक्या याद आया जब तहखाने से उसका ग़ैर कानूनी सामान गायब होने का पता चला था उसे। वो ये भी समझ गया था कि ये सब विराज ने ही किया था। प्रतिमा ने इस बात का अंदेशा भी ब्यक्त किया था कि किसी ऐसे मौके पर वो ये सब कानून के हवाले कर सकता है जबकि हम कुछ भी करने की स्थिति में ही न रह जाएॅगे। मतलब साफ था कि प्रतिमा की कही बात आज सच हो गई थी। यानी विराज ने उस सारे सामान को उसके शहर वाले मकान में रखा और फिर इसकी सूचना सीबीआई को दे दी और अब सीबीआई वाले अजय सिंह के पास स्पेशल वारंट लेकर आ गए थे। अजय सिंह खुद भी सरकारी वकील रह चुका था इस लिए जानता था कि ऐसे मौके पर वह कुछ भी नहीं कर सकता था। कोई दूसरा जुर्म होता तो कदाचित वो कोई जुगाड़ लगा कर अपनी ज़मानत करवा भी लेता मगर यहाॅ तो जुर्म ही संगीन था।

"किस सोच में डूब गए मिस्टर अजय सिंह?" तभी उसे सोचो में गुम देख ऑफीसर ने कहा___"आप अपनी मर्ज़ी से हमारे साथ चलेंगे तो बेहतर होगा, वरना आप जानते है कि हमारे पास बहुत से तरीके हैं आपको यहाॅ से ले चलने के लिए।"

"ऑफीसर।" सहसा अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा___"ये सब झूॅठ हैं। हम ऐसा कोई काम नहीं करते जिसे कानून की नज़र में जुर्म कहा जाए। ये यकीनन किसी की साजिश है हमें फसाने की। हाॅ ऑफीसर, ये साजिश ही है। काफी समय से हमारा शहर वाला मकान खाली पड़ा है इसलिए संभव है कि किसी ने ये सब गैर कानूनी चीज़ें वहाॅ पर छुपा कर रखी रही होंगी। हमारा इस सबसे कीई लेना देना नहीं है।"

"सच और झूठ का फैसला तो अब अदालत ही करेगी मिस्टर अजय सिंह।" ऑफिसर ने कहा___"हमारा काम तो बस इतना है कि प्राप्त सबूतों के आधार पर आपको गिरफ्तार कर अदालत के समक्ष खड़ा कर दें। इस लिए अब आपकी कोई दलील हमारे सामने चलने वाली है।"

अभी अजय सिंह कुछ कहने ही वाला था कि तभी अंदर से प्रतिमा और शिवा आकर वहीं पर खड़े हो गए। दोनो के चेहरों पर हल्दी पुती हुई थी। मतलब साफ था कि यहाॅ की सारी वार्तालाप उन दोनो ने सुन ली थी।

"ये सब क्या है डैड?" शिवा ने अंजान बनते हुए पूछा___"ये कौन लोग हैं और यहाॅ किस लिए आए हैं?"
"ये सब सीबीआई से हैं बेटे।" अजय सिंह ने बुझे मन से कहा___"और ये हमे गिरफ्तार करने आए हैं। इनका कहना है कि हमारे शहर वाले मकान से इन्होंने भारी मात्रा में चरस अफीम ड्रग्स आदि चीज़ें बरामद की हैं।"

"व्हाऽऽट??" शिवा ने चौंकते हुए कहा___"ये आप क्या कह रहे हैं डैड? भला ऐसा कैसे हो सकता है? हमारे शहर वाले मकान में वो सब चीज़ें कहाॅ से आ गई?"
"मैं तो पहले ही कहती थी कि तुम शहर वाले उस मकान को बेंच दो।" प्रतिमा ने जाने क्या सोच कर ये बात कही थी, बोली___"मगर मेरी सुनते कहाॅ हो तुम? अब देख लो इसका अंजाम। जाने कब से खाली पड़ा था वह। आज कल किसी का क्या भरोसा कि वो मकान के अंदर आकर क्या क्या खुराफात करने लग जाएॅ।"

"अरे तो भला हमें क्या पता था प्रतिमा कि ऐसा भी कोई कर सकता है?" अजय सिंह ने प्रतिमा की चाल को बखूबी समझते हुए कहा___"अगर पता होता तो हम उस मकान की देख रेख के लिए कोई आदमी रख देते न।"
"किसने किया होगा ये सब?" प्रतिमा ने कहा___"भला हमसे किसी की ऐसी क्या दुश्मनी हो सकती है जिसके तहत उसने हमारे साथ इतना बड़ा काण्ड कर दिया?"

"मिस्टर अजय सिंह।" सहसा ऑफिसर ने हस्ताक्षेप करते हुए कहा___"ये सब बातें आप बाद में सोचिएगा। इस वक्त आप हमारे साथ चलने का कस्ट करें प्लीज़।"
"अरे ऐसे कैसे ले जाएॅगे आप डैड को?" सहसा शिवा आवेशयुक्त भाव से बोल पड़ा___"मेरे डैड बिलकुल बेगुनाह हैं। आप इन्हें ऐसे कहीं नहीं ले जा सकते। ये तो हद ही हो गई कि करे कोई और भरे कोई और।"

"तुम शान्त हो जाओ बेटे।" अजय सिंह ने अपने कूढ़मगज बेटे की बातों पर मन ही मन कुढ़ते हुए बोला___"बात चाहे जो भी हो लेकिन हमें इनके साथ जाना ही पड़ेगा। ये सब कानून के रखवाले हैं। दूसरी बात इन्हें हमारे मकान से वो सब चीज़ें मिली हैं इस लिए पहली नज़र में हर कोई यही समझेगा और कहेगा कि वो सब चीज़ें हमारी हैं। यानी हम ग़ैर कानूनी धंधा भी करते हैं। दूसरा ब्यक्ति ये नहीं सोचेगा कि कोई अन्य ब्यक्ति ये सब चीज़ें हमारे मकान में रख कर हमें फॅसा भी सकता है। अतः मौजूदा हालात में हमें कानून का हर कहा मानना पड़ेगा और उसका साथ देना पड़ेगा। तुम फिक्र मत करो बेटे, ये हमें ले जाकर हमसे इस सबके बारे में पूॅछताछ करेंगे। इस सबके लिए हमें तभी सज़ा मिलेगी जब ये साबित हो जाएगा कि वो सब चीज़ें वास्तव में हमारी ही हैं या हम कोई ग़ैर कानूनी धंधा भी करते हैं।"

अजय सिंह की बात सुन कर शिवा कुछ बोल न सका। प्रतिमा ने भी कुछ न कहा। कदाचित वो खुद भी अजय सिंह की इस बात से सहमत थी। दूसरी बात, वो तो जानती ही थी कि वो सब चीज़ें सच में अजय सिंह की ही हैं। इस लिए ये सब सोच कर और इसके अंजाम का सोच कर वो अंदर ही अंदर बुरी तरह घबराए भी जा रही थी। वो अच्छी तरह जानती थी कि ऐसे मामले में कानून की गिरफ्त से बचना असंभव नहीं तो नामुमकिन ज़रूर था।

इधर अजय सिंह के मन में भी यही सब चल रहा था। उसे भी एहसास था कि इससे बचना बहुत मुश्किल काम है। इस लिए वो कोई न कोई जुगाड़ लगाने भी सोच रहा था। मगर चूॅकि उसके पुराने कानूनी कनेक्शन पहले ही खत्म हो चुके थे इस लिए वो कुछ कर पाने की हालत में नहीं था। दूसरी सबसे बड़ी बात ये थी कि उसे इस बात का एहसास हो चुका था कि अगर किसी तरह वो पुलिस कमिश्नर अथवा प्रदेश के मंत्री को अपने हक़ में कर भी ले तो तब भी बात अपने पक्ष में नहीं होनी थी। क्योंकि उसने देखा था कि उसके साथ घटी पिछली सभी घटनाओं में ऐसा हुआ था कि ऊपर से ही शख्त आदेश मिला था।

अजय सिंह के पसीने छूट रहे थे मगर उसके दिमाग़ में कोई बेहतर जुगाड़ आ नहीं रहा था। वक्त और हालात ने अचानक ही इस तरह से अपना रंग बदल लिया था कि उसको कुछ करने लायक छोंड़ा ही नहीं था। उसने कल्पना तक न की थी कि वो इतना बेबस व लाचार हो जाएगा और इतनी आसानी से कानून की चपेट में आ जाएगा।

"तो चलें मिस्टर अजय सिंह?" सहसा ड्राइंग रूम में छाए सन्नाटे को भेदते हुए उस ऑफिसर ने कहा__"अगर आपको ये लगता है कि ये सब किसी ने आपको फॅसाने के उद्देश्य से किया है और इस सबमें आपका कोई हाॅथ नहीं है तो फिक्र मत कीजिए। हम सच्चाई का पता लगा लेंगे। किन्तु उससे पहले आपको हमारे साथ चलना ही पड़ेगा और तहकीक़ात में हमारा सहयोग करना पड़ेगा।"

उस ऑफिसर के इतना कहते ही अजय सिंह ने गहरी साॅस ली और फिर सोफे से उठ खड़ा हुआ। इस वक्त उसके बदन पर नाइट ड्रेस ही था इस लिए उसने ऑफिसर से ड्रेस बदल लेने की परमीशन माॅगी। ऑफिसर ने परमीशन दे दी। परमीशन मिलते ही अजय सिंह कमरे की तरफ बढ़ गया। उसके जाते ही ऑफिसर ने एक अन्य ऑफिसर की तरफ देख कर ऑखों से कुछ इशारा किया। ऑफिसर का इशारा समझ कर दूसरा ऑफिसर तुरंत ही अजय सिंह के पीछे कमरे की तरफ बढ़ गया। मतलब साफ था कि ऑफिसर को इस बात का अंदेशा था कि अंदर कमरे अजय सिंह कहीं फोन पर किसी से कोई बात वगैरा न करने लगे। जबकि मौजूदा हालात में ऐसा करना हर्गिज़ भी जायज़ बात न थी।

कुछ ही देर में ऑफिसर के साथ ही अजय सिंह कमरे से आता दिखाई दिया। उसके आते ही सभी लोग सोफों पर से उठे और अजय सिंह के साथ ही बाहर आ गए। जबकि पीछे बुत बने अजय सिंह की बीवी और बेटा खड़े रह गए थे। फिर जैसे प्रतिमा को होश आया। वो एकदम से तेज़ क़दमों के साथ बाहर की तरफ भागते हुए गई। जब वो बाहर आई तो उसने देखा कि सीबीआई के सभी ऑफिसर अपनी अपनी गाड़ियों में बैठ रहे थे। एक अन्य गाड़ी की पिछली शीट पर अजय सिंह को बिठाया जा रहा था, और उसके बाद उसके बगल से ही एक अन्य ऑफिसर बैठ गया था।
 
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प्रतिमा के देखते ही देखते सीबीआई वालों का वो क़ाफिला अजय सिंह को साथ लिए हवेली से दूर चला गया। प्रतिमा को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसकी मुकम्मल दुनियाॅ ही नेस्तनाबूत हो गई हो। इस एहसास के साथ ही प्रतिमा की ऑखें छलक पड़ीं और फिर जैसे उसके जज़्बात उसके काबू में रह सके। वो दरवाजे पर खड़ी खड़ी ही फूट फूट कर रो पड़ी। तभी उसके पीछे शिवा नमूदार हुआ और अपनी रोती हुई माॅ को उसके कंधे से पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया और फिर उसे अपने सीने से लगा लिया।
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उधर रितू के फार्महाउस पर भी सुबह हो गई थी। अपने कमरे के अटैच बाथरूम में नहाने के बाद रितू कपड़े पहन रही थी जब उसके कमरे का दरवाजा बाहर से कुण्डी के दवारा बजाया गया था। रितू ने पूछा कौन है तो बाहर से नैना की आवाज़ आई थी कि मैं हूॅ बेटा जल्दी से दरवाज़ा खोलो। बस, उसके बाद रितू ने आनन फानन में अपने कपड़े पहने और फिर जाकर कमरे का दरवाज़ा खोला। दरवाज़ा खुलते ही नैना बुवा पर नज़र पड़ी तो वह हल्के से चौंकी।

"क्या बात है बुआ?" रितू ने शशंक भाव से पूछा__"आप इस तरह? सब ठीक तो है न?"
"ये ले।" नैना ने जल्दी से अपना दाहिना हाथ रितू की तरफ बढ़ाया___"ये अख़बार पढ़। इसमें ऐसी ख़बर छपी है छिसे पढ़ कर तेरे होश न उड़ जाएॅ तो कहना।"

"अच्छा।" रितू ने अख़बार अपने हाॅथ में लेते हुए कहा___"भला ऐसी क्या ख़बर छपी है इस अख़बार में जिसे पढ़ने पर मेरे होश ही उड़ जाएॅगे?"
"तू पढ़ तो सही।" नैना कहने के साथ ही दरवाजे के अंदर रितू को खींचते हुए ले आई, बोली___"बताने में वो बात नहीं होगी जितना कि खुद ख़बर पढ़ने से होगी।"

नैना, रितू को खींचते हुए बेड के क़रीब आई और उसमें रितू को बैठा कर खुद भी बैठ गई और रितू के चेहरे के भावों को बारीकी से देखने लगी। रितू ने अख़बार की फ्रंट पेज़ पर छपी ख़बर पर अपनी दृष्टि डाली और ख़बर की हेड लाईन पढ़ते ही वो बुरी तरह उछल पड़ी। अख़बार में छपी ख़बर कुछ इस प्रकार थी।

*शहर के मशहूर कपड़ा ब्यापारी अजय सिंह के मकान से करोड़ों का ग़ैर कानूनी सामान बरामद*

(गुनगुन): हल्दीपुर के रहने वाले ठाकुर अजय सिंह बघेल वल्द गजेन्द्र सिंह बघेल जो कि एक मशहूर कपड़ा ब्यापारी हैं उनके गुनगुन स्थित मकान पर कल शाम को सीबीआई वालों ने छापा मारा। मकान के अंदर से भारी मात्रा में चरस अफीम ड्रग्स आदि जानलेवा चीज़ें सीबीआई के हाथ लगी। ग़ौरतलब बात ये है कि गुनगुन स्थित ठाकुर अजय सिंह का वो मकान कुछ समय से खाली पड़ा था, इस लिए ये स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता कि ग़ैर कानूनी चीज़ों का इतना बड़ा ज़खीरा उनके मकान में कहाॅ से आ गया? ऐसा इस लिए क्योंकि ठाकुर अजय सिंह जैसे मशहूर कारोबारी से ऐसे संगीन धंधे की बात सोची नहीं जा सकती जो कि जुर्म कहलाता है। इस लिए संभव है कि ये सब उनके किसी दुश्मन की सोची समझी साजिश का ही नतीजा हो। ख़ैर, अब देखना ये होगा कि सीबीआई वालों की जाॅच पड़ताड़ से क्या सच्चाई सामने आती है? अब ये तो निश्चित बात है कि ठाकुर अजय सिंह के मकान से मिले इतने सारे ग़र कानूनी सामान के तहत सीबीआई वाले बहुत जल्द ठाकुर अजय सिंह को अपनी हिरासत में लेकर इस बारे में पूछताॅछ करेंगे। किन्तु अगर सीबीआई की जाॅच में ये बात सामने आई कि वो सब ग़ैर कानूनी सामान ठाकुर अजय सिंह का ही है तो यकीनन ठाकुर अजय सिंह को इस संगीन जुर्म में कानून के द्वारा शख्तसे शख्त सज़ा मिलेगी।

अख़बार में छपी इस ख़बर को पढ़ कर यकीनन रितू के होश उड़ ही गए थे। उसके दिमाग़ की बत्ती बड़ी तेज़ी से जली थी और साथ ही उसे विराज की वो बात याद आई जब उसने गुनगुन रेलवे स्टेशन पर रितू से कहा था कि बहुत जल्द अजय सिंह को एक झटका लगने वाला है। ये भी कि उसकी सेफ्टी के लिए वह भी ऐसा करेगा कि अजय सिंह या उसका कोई आदमी उस तक पहुॅच ही नहीं पाएगा।

"इसका मतलब तो यही हुआ बुआ कि अब तक डैड को सीबीआई वाले गिरफ्तार कर लिए होंगे।" रितू ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"और अगर ऐसा हो गया होगा तो यकीनन डैड लम्बे से नप जाएॅगे। एक ही झटके में वो कानून की ऐसी चपेट में आ जाएॅगे जहाॅ से निकल पाना असंभव नहीं तो नामुमकिन ज़रूर है।"

"ये तो अच्छा ही हुआ न रितू।" नैना ने कहा___"बुरे काम करने का ये अंजाम तो होना ही था। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि ये सब हुआ कैसे?
"ये सब राज की वजह से हुआ है बुआ।" रितू ने बताया___"उसने कल रेलवे स्टेशन में मुझसे कहा था कि वो कुछ ऐसा करेगा जिससे डैड मुझ तक पहुॅच ही नहीं पाएॅगे। ये तो सच है बुआ कि डैड ग़ैर कानूनी धंधा करते थे और फैक्ट्री में मौजूद तहखाने में उनका ये सब ग़ैर कानूनी सामान भी था जिसे राज ने ही गायब किया था। ऐसा उसने इस लिए किया था ताकि वह उस सामान के आधार पर जब चाहे डैड को कानून की गिरफ्त में डलवा सके। इस लिए उसने ऐसा ही किया है बुआ लेकिन मुझे लगता है कि ये सब महज डैड को डराने और मौजूदा हालात से निपटने के लिए राज ने किया है। क्योंकि राज उन्हें अपने हाॅथों से उनके अपराधों की सज़ा देगा, नाकि कानून द्वारा उन्हें किसी तरह की सज़ा दिलवाएगा।"

"लेकिन बेटा।" नैना ने तर्क सा दिया___"कानून की चपेट में आने के बाद बड़े भइया भला कानून की गिरफ्त से कैसे बाहर आएॅगे और फिर कैसे राज उन्हें अपने हाॅथों से सज़ा देगा?"
"उसका भी इंतजाम राज ने किया ही होगा बुआ।" रितू ने कहा___"आज के इस अख़बार में छपी ख़बर के अनुसार ग़ैर कानूनी सामान डैड के मकान से बरामद ज़रूर हुआ है लेकिन ये भी बताया गया है कि चूॅकि गुनगुन स्थित मकान काफी समय से खाली था इस लिए संभव है कि डैड को फॅसाने के लिए उनके किसी दुश्मन ने ऐसा किया होगा। इस लिए सीबीआई वाले इस बारे में सिर्फ पूॅछताछ करेंगे। अब आप खुद समझ सकती हैं बुआ कि राज ने केस को इतना कमज़ोर क्यों बनाया हुआ है कि डैड कानून की गिरफ्त से मामूली पूछताछ के बाद छूट जाएॅ?।"

"लेकिन ये सवाल तो अपनी जगह खड़ा ही रहेगा न रितू कि बड़े भइया के मकान में वो ग़ैर कानूनी सामान कैसे पाया गया?" नैना ने कहा___"इस लिए इस सवाल के साल्व हुए बिना बड़े भइया इस केस से कैसे छूट जाएॅगे भला?"

"बहुत आसान है बुआ।" रितू ने कहा___"पैसों के लिए आजकल लोग बहुत कुछ कर जाते हैं। कहने का मतलब ये कि वो किसी ऐसे ब्यक्ति को ढूॅढ़ लेंगे जो पैसों के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाए। वो ब्यक्ति इस बात को खुद स्वीकार करेगा कि वो सारा ग़ैर कानूनी सामान उसका खुद का है और उसने डैड के मकान में उसे इस लिये छुपाया हुआ था क्योंकि वो मकान काफी समय से खाली था तथा उसके लिए एक सुरक्षित जगह की तरह था।"

"चलो ये तो मान लिया कि ऐसा हो सकता है।" नैना ने मानो तर्क किया___"किन्तु सबसे बड़ा सवाल ये ये है कि तुम्हारे डैड ऐसे किसी ब्यक्ति को लाएॅगे कहाॅ से? जबकि वो खुद ही सीबीआई वालों की निगरानी में रहेंगे और उनके पास किसी से संपर्क स्थापित करने के लिए कीई ज़रिया ही नहीं होगा।"

"सवाल बहुत अच्छा है बुआ।" रितू ने कुछ सोचते हुए कहा__"किन्तु अगर हम ये सोच कर देखें कि ये सब राज का ही किया धरा है तो ये भी निश्चित बात है कि वो खुद ही ऐसा कुछ करेगा जिससे डैड सीबीआई या कानून के चंगुल से बाहर आ जाएॅ।"

"ऐसे मामलों में कानून के चंगुल से किसी का बाहर आ जाना नामुमकिन तो नहीं होता रितू।" नैना ने गहरी साॅस लेते हुए कहा___"किन्तु अगर तू ये कह रही है कि राज तेरे डैड को किसी हैरतअंगेज कारनामे की वजह से बाहर निकाल ही लेगा तो सवाल ये उठता है कि ऐसा क्या करेगा राज? दूसरी बात, जब उसे कानून की गिरफ्त से निकाल ही लेना है तो फिर तेरे डैड की कानून की चपेट में लाने का मतलब ही क्या था?"

"खजूर पर चढ़े इंसान को ज़मीन पर पटकने का मकसद था उसका।" रितू ने कहा___"वो कहते हैं न कि जब तक ऊॅट पहाड़ के सामने नहीं आता तब तक उसे यही लगता है कि उससे ऊॅचा कोई है ही नहीं। यही हाल मेरे डैड का था बुआ। राज का मकसद कदाचित यही है कि वो डैड को एहसास दिलाना चाहता है कि इस दुनियाॅ में उनसे भी बड़े बड़े ख़लीफा मौजूद हैं। वो चाहे तो उन्हें एक पल में चुटकियों में मसल सकता है। आज के इस वाक्ये के बाद संभव है कि डैड की विचारधारा में कुछ तो परिवर्तन ज़रूर आया होगा।"

"ये तो सच कहा तूने।" नैना ने कहा___"अगर सीबीआई वाले बड़े भइया को अपने साथ ले गए होंगे तो ये सच है कि बड़े भइया को आज आटे दाल के भाव का पता चल जाएगा।"

"हाॅ बुआ।" रितू ने कहा___"राज को मौजूदा हालातों का बखूबी एहसास था। कदाचित उसे ये अंदेशा था कि इतनी नाकामियों के बाद डैड अब खुद मैदान में उतरेंगे और हमें खोज कर हमारा क्रिया कर्म करेंगे। इसी लिए राज ने ये क़दम उठाया कि जब डैड ही कानून की गिरफ़्त में रहेंगे तो भला हम पर किसी तरह का उनकी तरफ से कोई संकट आएगा ही कैसे?"

"तो इसका मतलब ये हुआ कि बड़े भइया को राज ने कानून की गिरफ्त में फॅसाया।" नैना को जैसे सारी बात समझ में आ गई थी, बोली___"सिर्फ इस लिए कि वो तेरे डैड को एहसास दिला सके कि वो जिसे पिद्दी का शोरबा समझते हैं वो दरअसल ऐसा है कि उनको छठी का दूध याद दिला सकता है। ख़ैर, इन बातों से ये भी एक बात समझ में आती है कि राज ने तुझको सेफ करने के लिए भी तेरे डैड को कुछ दिनों के लिए कानून की गिरफ्त में फॅसाया है। दो दिन बाद तो वो खुद ही यहाॅ आ जाएगा और संभव है ऐसा कुछ कर दे जिससे उसका शिकार कानून की चपेट से बाहर आ जाए।"

"यू आर अब्सोल्यूटली राइट बुआ।" रितू ने कहा___"राज का यकीनन यही प्लान हो सकता है। ख़ैर, अब तो इस बात की फिक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है कि डैड या उनके किसी आदमी से हमें कोई ख़तरा है।"
"लेकिन एक बात सोचने वाली है रितू।" नैना ने सोचने वाले भाव से चहा___"तेरे डैड की इस गिरफ्तारी से तेरी माॅ और तेरे भाई पर इसका गहरा प्रभाव पड़ा होगा। प्रतिमा भाभी ने खुद भी वकालत की पढ़ाई की है इस लिए संभव है कि वो तेरे डैड को कानून की गिरफ्त से निकालने का कोई जुगाड़ लगाएॅ।"

"कोई फायदा नहीं होने वाला बुआ।" रितू ने कहा__"जिसे जितना ज़ोर लगाना है लगा ले मगर हाॅथ कुछ नहीं आएगा। क्योंकि एक तो मामला ही इतना संगीन है दूसरे इस सबमें राज का हाॅथ है। उसकी पहुॅच काफी लम्बी है, इस लिए उसकी पहुॅच के आगे इन लोगों का कोई भी पैंतरा काम नहीं करने वाला। ये तो पक्की बात है कि होगा वहीं जो राज चाहेगा।"

"हाॅ ये तो है।" नैना ने कहा___"ख़ैर देखते हैं क्या होता है? वैसे इस बारे में क्या अभी तक तुमने राज से बात नहीं की??"
"अभी तो नहीं की बुआ।" रितू ने कहा___"पर अब जल्द ही उससे बात करूॅगी। वास्तव में उसने बड़ा हैरतअंगेज काम किया है। मुझे तो उससे ये उम्मीद ही नहीं थी।"

"वक्त और हालात एक इंसान को कहाॅ से कहाॅ पहुॅचा देते हैं और उससे क्या क्या करवा देते हैं ये सब उस तरह का समय आने पर ही पता चलता है।" नैना ने जाने क्या सोच कर कहा___"सोचने वाली बात है कि राज जो एक बेहद ही सीधा सादा लड़का हुआ करता था आज वो इतना जहीन तथा इतना शातिर दिमाग़ का भी हो गया है।"

"इसमें उसकी कोई ग़लती नहीं है बुआ।" रितू ने भारी मन से कहा___"उसे इस तरह का बनाने वाले भी मेरे ही पैरेंट्स हैं। इंसान अपनों का हर कहा मानता है और उसका जुल्म भी सह लेता है लेकिन उसकी भी एक समय सीमा होती है। इतना कुछ जिसके साथ हुआ हो वो ऐसा भी न बन सके तो फिर कैसा इंसान है वो?"

नैना, रितू की बात सुन कर उसे देखती रह गई। कुछ देर और ऐसी ही बातों के बाद वो दोनो ही कमरे से बाहर आ गईं और नीचे नास्ते की टेबल पर आकर बैठ गईं। जहाॅ पर करुणा का भाई हेमराज पहले से ही मौजूद था। रितू अपनी नैना बुआ के साथ अलग अलग कुर्सियों पर बैठी ही थी कि उसका आई फोन बज उठा। उसने मोबाइल की स्क्रीन पर फ्लैश कर रहे "माॅम" नाम को देखा तो उसके होठों पर अनायास ही नफ़रत व घृणा से भरी मुस्कान फैल गई। कुछ सेकण्ड तक वो मोबाइल की स्क्रीन को देखती रही फिर उसने आ रही काल को कट कर दिया। काल कट करते वक्त उसके चेहरे पर बेहद कठोरता के भाव थे।
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उधर मुम्बई में!
सुबह हुई!
अजय सिंह व प्रतिमा की दूसरी बेटी नीलम की ऑखें गहरी नींद से खुल तो गईं थी मगर वो खुद बेड से न उठी थी अभी तक। हॅसती मुस्कुराती हुई रहने वाली मासूम सी नीलम एकाएक ही जैसे बेहद गुमसुम सी रहने लगी थी। काॅलेज में हुई उस घटना को आज हप्ता से ज्यादा दिन गुज़र गया था किन्तु उस घटना की ताज़गी आज भी उसके ज़हन में बनी हुई थी। उसे अपनी इज्ज़त के तार तार हो जाने का इतना दुख न होता जितना आज उसे इस बात पर हो रहा था कि उसका चचेरा भाई उसे नफ़रत और घृणा की दृष्टि से देख कर इस तरह उसके सामने से मुह फेर कर चला गया था जैसे वो उसे पहचानता ही न था। नीलम और विराज दोनो ही हमउमर थे किन्तु नीलम का बिहैवियर भी रितू की तरह रहा था विराज के साथ।

उस दिन की घटना ने नीलम के मुकम्मल वजूद को हिला कर रख दिया था। उसने इस घटना के बारे में अपने खुद के पैरेंट्स को बिलकुल भी नहीं बताया था। मौसी की लड़की को बस बताया था किन्तु उसने उससे भी वादा ले लिया था कि वो उसके घरवालों को ये बात न बताए कभी।

उस दिन की घटना के बाद पहले तो दो दिन नीलम काॅलेज नहीं गई थी किन्तु फिर तीसरे दिन से जाने लगी थी। काॅलेज में हर जगह उसकी नज़रें बस अपने चचेरे भाई विराज को ही ढूॅढ़तीं मगर पिछले कई दिनों से उसे अपना वो चचेरा भाई काॅलेज में कहीं न दिखा था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर विराज काॅलेज क्यों नहीं आ रहा? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी वजह से उसने ये काॅलेज ही छोंड़ दिया हो। ये सोच कर ही नीलम की जान उसके हलक में आकर फॅस जाती। वो सोचती कि अगर विराज ने सच में उसकी ही वजह से काॅलेज छोंड़ दिया होगा तो ये कितनी बड़ी बात है। मतलब कि आज के समय में विराज उससे इतनी नफ़रत करता है कि वो उसे देखना तक गवाॅरा नहीं करता। ये सब बातें नीलम को रात दिन किसी ज़हरीले सर्प की भाॅति डसती रहती थी।

"बस एक बार।" नीलम के मुख से हर बार बस यही बात निकलती____"सिर्फ एक बार फिर से मुझे मिल जाओ मेरे भाई। तुमसे मिल कर मैं अपने किये की माफ़ी माॅगना चाहती हूॅ। मुझे एहसास है कि मेरे भाई कि मैने बचपन से लेकर अब तक तुम्हें सिर्फ दुख दिया है। तुम्हें तरह तरह की बातों से जलील किया था। मगर एक तुम थे कि मेरी उन कड़वी बातों का कभी भी बुरा नहीं मानते थे। जबकि कोई और होता तो जीवन भर मुझे देखना तक पसंद न करता। मुझे सब कुछ अच्छी तरह से याद है भाई। मेरे माॅम डैड ने हमेशा हम भाई बहनों को यही सिखाया था कि तुम सब बुरे लोग हो इस लिए हम तुमसे दूर रहें और कभी भी किसी तरह का कोई मेल मिलाप न रखें। हम बच्चे ही तो थे भाई, जैसा माॅ बाप सिखाते थे उसी को सच मान लेते थे और फिर इस सबकी आदत ही पड़ गई थी। मगर उस दिन तुमने मेरी इज्ज़त बचा कर ये जता दिया कि तुम बुरे नहीं हो सकते। जिस तरह से तुम मुझे देख कर नफ़रत व घृणा से अपना मुह मोड़ कर चले गए थे, उससे मुझे एहसास हो चुका था कि तुमने जो किया वो एक ऊॅचे दर्ज़े का कर्म था और जो मैंने अब तक किया था वो हद से भी ज्यादा निचले दर्ज़े का कर्म था। मुझे बस एक बार मिल जाओ राज। मैं तुमसे अपने गुनाहों की माफ़ी माॅगना चाहती हूॅ। तुम जो भी सज़ा दोगे उस सज़ा को मैं खुशी खुशी कुबूल कर लूॅगी। प्लीज़ राज, बस एक बार मुझे मिल जाओ। तुम काॅलेज क्यों नहीं आ रहे हो? क्या इतनी नफ़रत करते हो तुम अपनी इस बहन से कि जिस काॅलेज में मैं हूॅ वहाॅ तुम पढ़ ही नहीं सकते? ऐसा मत करना मेरे भाई। वरना मैं अपनी ही नज़रों में इस क़दर गिर जाऊॅगी कि फिर उठ पाना मेरे लिए असंभव हो जाएगा।"

ये सब बातें अपने आप से ही करना जैसे नीलम की दिनचर्या में शामिल हो गया था। उसके मौसी की लड़की उसे इस बारे में बहुत समझाती मगर नीलम पर उसकी बातों का कोई असर न होता। काॅलेज में हुई घटना से नीलम थोड़ा गुमसुम सी रहने लगी थी। मगर इसका कारण यही था कि विराज काॅलेज नहीं आ रहा था। वो हर रोज़ समय पर काॅलेज पहुॅच जाती और सारा दिन काॅलेज में रुकती। उसकी नज़रें हर दिन अपने भाई को तलाश करती मगर अंत में उन ऑखों में मायूसी के साथ साथ ऑसू भर आते और फिर वो दुखी भाव से घर लौट जाती। कालेज के बाॅकी स्टूडेंट्स नार्मल ही थे। उस घटना के बाद किसी ने कभी कोई टीका टिप्पणी न की थी।

कुछ देर ऐसे ही सोचो में गुम वह बेड पर पड़ी रही उसके बाद वो उठी और बाथरूम की तरफ बढ़ गई। बाथरूम में फ्रेश होने के बाद वो वापस कमरे में आई और काॅलेज के यूनीफार्म पहन कर तथा कंधे पर एक मध्यम साइज़ का बैग लेकर वो कमरे से बाहर की तरफ बढ़ी ही थी कि उसका मोबाइल बज उठा। उसने बैग के ऊपरी हिस्से की चैन खोला और अपना मोबाइल निकाल कर स्क्रीन पर नज़र आ रहे "माॅम" नाम को देखा तो उसने काल रिसीव कर मोबाइल कानों से लगा लिया।

"............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ कहा।
"क्याऽऽऽ????" नीलम के हाॅथ से मोबाइल छूटते छूटते बचा था। उसके हलक से जैसे चीख सी निकल गई थी, बोली___"ये ये आप क्या कह रही हैं माॅम? डैड को सीबीआई वाले ले गए? मगर क्यों??? आख़िर ऐसा क्या किया है डैड ने?"

"............।" उधर से प्रतिमा ने फिर कुछ कहा।
"ओह अब क्या होगा माॅम?" प्रतिमा की बात सुनने के बाद नीलम ने संजीदगी से कहा___"क्या रितू दीदी ने कुछ नहीं किया? वो भी तो एक पुलिस ऑफिसर हैं?"
"..............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ देर तक कुछ बात की।

"क्याऽऽ???" नीलम बुरी तरह उछल पड़ी____"ये आप क्या कह रही हैं? दीदी भला ऐसा कैसे कर सकती हैं माॅम? नहीं नहीं, आपको और डैड को ज़रूर कोई ग़लतफहमी हुई है। रितू दीदी ये सब कर ही नहीं सकती हैं। आप तो जानती हैं कि दीदी ने कभी उसकी तरफ देखना तक पसंद नहीं किया था। फिर भला आज वो कैसे उसका साथ देने लगीं? ये तो इम्पाॅसिबल है माॅम।"

"...........।" उधर से प्रतिमा ने फिर कुछ कहा।
"मैं इस बारे में दीदी से बात करूॅगी माॅम।" नीलम ने गंभीरता से कहा___"उनसे पूछूॅगी कि आख़िर वो ये सब क्यों कर रही हैं?"
"............।" उधर से प्रतिमा ने झट से कुछ कहा।
"क्यों नहीं पूॅछ सकती माॅम?" नीलम ने ज़रा चौंकते हुए कहा___"आख़िर पता तो चलना ही चाहिए कि उनके मन में क्या है अपने पैरेंट्स के प्रति? इस लिए मैं उनसे फोन लगा कर ज़रूर इस बारे में बात करूॅगी।"

"..........।" उधर से प्रतिभा ने फिर कुछ कहा।
"मैं भी आ रही हूॅ माॅम।" नीलम ने कहा___"ऐसे समय में में मुझे अपने माॅ डैड के पास ही रहना है। दूसरी बात मैं देखना चाहती हूॅ कि रितू दीदी ये सब कैसे करती हैं अपने ही माॅ बाप और भाई के खिलाफ़?"
"...............।" उधर से प्रतिमा ने कुछ कहा।
"ओके माॅम।" नीलम ने कहा और काल कट कर दिया।

इस वक्त उसके दिलो दिमाग़ में एकाएक ही तूफान सा चालू हो गया था। मन में तरह तरह के सवाल उभरने लगे थे। जिनका जवाब फिलहाल उसके पास न था किन्तु जानना आवश्यक था उसके लिए। दरवाजे की तरफ न जाकर वह वापस पलट कर बेड पर बैठ गई और गहन सोच में डूब गई।

"डैड को सीबीआई वाले अपने साथ ले गए।" नीलम मन ही मन सोच रही थी___"वजह ये कि उनके शहर वाले मकान से भारी मात्रा में चरस अफीम व ड्रग्स जैसी गैर कानूनी चीज़ें सीबीआई वालो को बरामद हुई। सवाल ये उठता है कि क्या सच में डैड इस तरह का कोई ग़ैर कानूनी धंधा करते हैं? वहीं दूसरी तरफ रितू दीदी आज कल अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ जाकर राज का साथ दे रही हैं। भला ये असंभव काम संभव कैसे हो सकता है? आख़िर ऐसा क्या हुआ है कि दीदी माॅम डैड के सबसे बड़े दुश्मन का साथ देने लगी हैं? माॅम ने बताया कि राज गाॅव आया था, इसका मतलब इसी लिए वो काॅलेज नहीं आ रहा था। मगर वो गाॅव गया किस लिए था? और गाॅव में ऐसा क्या हुआ है कि दीदी अपने उस चचेरे भाई का साथ देने लगीं जिसे वो कभी देखना भी पसंद नहीं करती थीं?"

नीलम के ज़हन में हज़ारों तरह के सवाल इधर उधर घूमने लगे थे मगर नीलम को ये सब बातें हजम नहीं हो रही थी। सोचते सोचते सहसा नीलम के दिमाग़ की बत्ती जली। उसके मन में विचार आया कि वो खुद भी तो कभी राज को अपना भाई नहीं समझती थी जबकि आज हालात ये हैं कि वो अपने उसी भाई से मिल कर अपने उन गुनाहों की उससे माफ़ी माॅगना चाहती है। कहीं न कहीं उसका अपने इस भाई के प्रति हृदय परिवर्तन हुआ था तभी तो उसके दिल में ऐसे भावनात्मक भाव आए थे। दूसरी तरफ रितू दीदी भी राज का साथ दे रही हैं। इसका मतलब कुछ तो ऐसा हुआ है जिसके चलते दीदी का भी राज के प्रति हृदय परिवर्तन हुआ है और वो आज उसका साथ भी दे रही हैं। इतना ही नहीं अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ राज के साथ लड़ाई लड़ रही हैं।

नीलम को अपना ये विचार जॅचा। उसको एहसास हुआ कि कुछ तो ऐसी बात हुई जिसका उसे इस वक्त कोई पता नहीं है। ये सब सोचने के बाद उसने मोबाइल पर रितू दीदी का नंबर ढूॅढ़ा और काल लगा कर मोबाइल कान से लगा लिया। काल जाने की रिंग बजती सुनाई दी उसे। कुछ ही देर में उधर से रितू ने काल रिसीव किया।

"............।" उधर से रितू ने कुछ कहा।
"मैं तो बिलकुल ठीक हूॅ दीदी।" नीलम ने कहा___"आप बताइये आप कैसी हैं?"
"...........।" उधर से रितू ने फिर कुछ कहा।
"हाॅ दीदी काॅलेज अच्छा चल रहा है और साथ में पढ़ाई भी अच्छी चल रही है।" नीलम ने कहने के साथ ही पहलू बदला___"दीदी, अभी अभी माॅम का फोन आया था मेरे पास। उन्होंने कुछ ऐसा बताया जिसे सुन कर मेरे होश ही उड़ गए हैं। वो कह रही थी कि डैड को सीबीआई वाले ग़ैर कानूनी सामान के चलते अपने साथ ले गए हैं। ये भी कि आप विराज का साथ दे रही हैं। ये सब क्या चक्कर है दीदी? प्लीज़ बताइये न कि ऐसा क्या हो गया है कि आप अपने ही पैरेंट्स के खिलाफ़ हैं? माॅम कह रही थी कि आपने उनका काल भी रिसीव नहीं किया। वो आपको भी डैड के बारे में सूचित करना चाहती थी।"

".............।" उधर से रितू ने काफी देर तक कुछ कहा।
"बातों को गोल गोल मत घुमाइये दीदी।" नीलम ने बुरा सा मुह बनाया____"साफ साफ बताइये न कि आख़िर क्या बात हो गई है जिसकी वजह से आप माॅम डैड के खिलाफ़ हो कर उस विराज का साद दे रही हैं?"

"...........।" उधर से रितू ने फिर कुछ कहा।
"इसका मतलब आप खुद मुझे कुछ भी बताना नहीं चाहती हैं।" नीलम ने कहा___"और ये कह रही हैं कि सच्चाई का पता मैं खुद लगाऊॅ। ठीक है दीदी, मैं आ रही हूॅ। क्या आपसे मिल भी नहीं सकती मैं?"

"............।" उधर से रितू ने कुछ कहा।
"ठीक है दीदी।" नीलम ने कहा___"लेकिन मैं इतना ज़रूर जानती हूॅ कि बात भले ही चाहे जो कुछ भी हुई हो मगर ऐसा नहीं होना चाहिए कि बच्चे अपने माॅ बाप से इस तरह खिलाफ़ हो जाएॅ।"

इतना कहने के बाद नीलम ने काल कट कर दिया और फिर दुखी भाव से बेड पर कुछ देर बैठी जाने क्या सोचती रही। उसके बाद जैसे उसने कोई फैसला किया और फिर उठ कर काॅलेज की यूनिफार्म को उतारने लगी। कुछ ही देर में उसने दूसरे कपड़े पहन लिए और फिर कमरे से बाहर निकल गई।
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इधर विराज एण्ड पार्टी की ट्रेन अपने निर्धारित समय से कुछ ही समय की देरी से आख़िर मुम्बई पहुॅच ही गई थी। सब लोग ट्रेन से बाहर आए और फिर प्लेटफार्म से बाहर की तरफ निकल गए। विराज ने मुम्बई पहुॅचने से पहले ही जगदीश ओबराय को फोन कर दिया था। इस लिए जैसे ही ये लोग स्टेशन से बाहर आए वैसे ही जगदीश ओबराय बाहर मिल गया। उसके साथ एक कार और थी। सब लोग कार मे बैठ कर घर के लिए निकल गए।

रास्ते में जगदीश अंकल ने मुझे बताया कि उन्होंने माॅ से बात कर ली है। पहले तो माॅ मेरी वापसी की बात सुन कर नाराज़ हुईं। मगर जगदीश अंकल ने उन्हें सारी बात तरीके से बताई और ये यकीन दिलाया कि मुझे कुछ नहीं होगा तब जाकर वो राज़ी हुई थी। लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि वो एक बार मुझे देखना चाहती हैं। अतः अब मैं इन लोगों के साथ ही घर तक जा रहा था। वरना मेरा प्लान ये था कि मैं यहाॅ से वापस उसी ट्रेन से लौट जाता।

मुम्बई से वापसी के लिए इसी ट्रेन को लगभग कुछ घण्टे बाद जाना था इस लिए मैं बड़े आराम से गर जाकर माॅ से मिल सकता था। ख़ैर, कुछ ही समय बाद हम सब घर पहुॅच गए। घर पर सब एक दूसरे से मिले। करुणा चाची जब माॅ से मिली तो बहुत रो रही थी और बार बार माॅ से माफ़ियाॅ माॅग रही थी। माॅ ने उन्हें अपने सीने से लगा लिया था। करुणा चाची को वो हमेशा अपनी छोटी बहन की तरह मानती थी और प्यार करती थी। आशा दीदी और उनकी माॅ से भी मेल मिलाप हुआ। मिलने मिलाने में ही काफी समय ब्यतीत हो गया था।

मैं अपने कमरे में जाकर फ्रेश हो गया था। आदित्य भी फ्रेश हो गया था। उसे मेरे साथ ही वापस गाॅव जाना था। निधी भी सबसे मिली। करुणा चाची ने उसे ढेर सारा प्यार व स्नेह दिया था। दिव्या और शगुन को माॅ ने अपने सीने से ही छुपकाया हुआ था। अभय चाचा खुश थे कि उनके बीवी बच्चे सही सलामत यहाॅ आ गए थे। अब उन्हें उनके लिए कोई फिक्र नहीं थी। शायद यही वजह थी कि वो खुद भी मेरे साथ चलने की बात करने लगे थे। उनका कहना था कि वो खुद भी इस जंग में हिस्सा लेंगे और अपने बड़े भाई से इस सबका बदला लेंगे। मगर मैने और जगदीश अंकल ने उन्हें समझा बुझा कर मना कर दिया था।

मैने एक बात महसूस की थी कि निधी का बिहैवियर मेरे प्रति कुछ अलग ही था। इसके पहले वह हमेशा मेरे पषास में ही रहने की कोशिश करती थी जबकि अब वो मुझसे दूर दूर ही रह रही थी। यहाॅ तक कि मेरी तरफ देख भी नहीं थी वो। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि वो ऐसा क्यों कर रही थी। मैने एक दो बार खुद उससे बात करने की कोशिश की मगर वो किसी न किसी बहाने से मेरे पास से चली ही जाती थी। मुझे उसके इस रूखे ब्यवहार से तक़लीफ़ भी हो रही थी। वो मेरी जान थी, मैं उसकी बेरुखी पल भर के लिए भी सह नहीं सकता था मगर सबके सामने भला मैं उससे इस बारे कैसे बात कर सकता था? मेरे पास वक्त नहीं था, इस लिए मैने मन में सोच लिया था कि सब कुछ ठीक करने के बाद मैं उससे बात करूॅगा और उसकी किसी भी प्रकार की नाराज़गी को दूर करूॅगा।

मैं माॅ से मिला तो माॅ मेरी वापसी की बात से भावुक हो गईं। उन्हें पता था कि मैं वापस किस लिए जा रहा हूॅ इस लिए वो मुझे बार बार अपना ख़याल रखने के लिए कह रही थी। ख़ैर मैने उन्हें आश्वस्त कराया कि मैं खुद का ख़याल करूॅगा और मुझे कुछ नहीं होगा।

चलने से पहले मैने सबसे आशीर्वाद लिया और फिर आदित्य के साथ वापसी के लिए चल दिया। मेरे साथ जगदीश अंकल भी थे। पवन और आशा दीदी मुझे अपना ख़याल रखने का कहा और खुशी खुशी मुझे विदा किया। हलाॅकि मैं जानता था कि वो अंदर से मेरे जाने से दुखी हैं। उन्हें मेरी फिक्र थी। अभय चाचा ने मुझे सम्हल कर रहने को कहा। करुणा चाची ने मुझे प्यार दिया और विजयी होने का आशीर्वाद दिया। मैं दिव्या और शगुन को प्यार व स्नेह देकर निधी की तरफ देखा तो वो कहीं नज़र न आई। मैं समझ गया कि वो मुझसे मिलना नहीं चाहती है। इस बात से मुझे तक़लीफ़ तो हुई किन्तु फिर मैंने उस तक़लीफ़ को जज़्ब किया और जगदीश अंकल के साथ कार में बैठ कर वापस रेलवे स्टेशन की तरफ चल दिया।

रेलवे स्टेशन पहुॅच कर मैं और आदित्य कार से उतरे। जगदीश अंकल ने मुझे एक पैकिट दिया और कहा कि मैं उसे अपने बैग में चुपचाप डाल लूॅ। मैने ऐसा ही किया। उसके बाद जगदीश अंकल से मेरी कुछ ज़रूरी बातें हुईं और फिर मैं और आदित्य प्लेटफार्म की तरफ बढ़ गए। ट्रेन वापसी के लिए बस चलने ही वाली थी। हम दोनो ट्रेन में अपनी अपनी शीट पर बैठ गए। मैने मोबाइल से रितू दीदी को फोन किया और उन्हें बताया कि सब लोगों को मैने सुरक्षित पहुॅचा दिया है और अब मैं वापस आ रहा हूॅ। रितू दीदी इस बात से खुश हो गईं। फिर उन्होंने मुझे अख़बार में छपी ख़बर के बारे में बताया और पूॅछा कि ये सब क्या है तो मैने कहा कि मिल कर बताऊॅगा।

रितू दीदी से बात करने के बाद मैं आदित्य से बातें करने लगा। तभी मेरी नज़र एक ऐसे चेहरे पर पड़ी जिसे देख कर मैं चौंक पड़ा और हैरान भी हुआ। मेरे मन में सवाल उठा कि क्या उसने मुझे देख लिया होगा????? मैने अपनी पैंट की जेब से रुमाल निकाल कर अपने मुख पर बाॅध लिया और फिर आराम से आदित्य से बातें करने लगा। किन्तु मेरी नज़र बार बार उस चेहरे पर चली ही जाती थी। जिस चेहरे पर मैं एक अजीब सी उदासी देख रहा था।
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अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अपडेट........《 50 》


अब आगे,,,,,,,,

उधर रितू के फार्महाउस पर!
सुबह का नास्ता पानी करने के बाद रितू बाहर की तरफ निकल गई। बाहर आकर उसने देखा कि सामने मेन गेट पर हरिया काका और शंकर काका आपस में कुछ बातें कर रहे थे। रितू उन दोनो को देखते ही उनकी तरफ बढ़ चली। कुछ ही समय में वो उन दोनो के पास पहुॅच गई। रितू को अपनी तरफ आता देख उन दोनों ने अपनी बात बंद कर दी और सम्हल कर खड़े हो गए।

"क्या हाल चाल हैं आप दोनो के काका?" रितू ने उन दोनों की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए कहा___"आप दोनों ने नास्ता पानी किया कि नहीं?"
"हम दोनों ने अभी थोड़ी देर पहले ही नास्ता पानी किया है बिटिया।" शंकर ने कहा___"बिंदिया भाभी हमारा काफी बेहतर तरीके से ख़याल रखती हैं।"

"ये तो बहुत अच्छी बात है काका।" रितू ने कहा___"काकी हैं ही इतनी अच्छी कि उन्हें सबकी फिक्र रहती है।"
"हाॅ ये बात तो सच है बिटिया।" शंकर ने कहा___"हरिया बहुत किस्मत वाला है जो इसे बिंदिया भाभी जैसी जोरू मिली हैं।"

"अरे ई का कहथो रे बुड़बक?" हरिया ने बुरा सा मुह बनाते हुए कहा___"किस्मत वाली ता ऊ है ससुरी जो हमरे जइसन मरद मिल गवा है ऊखा। हम ता पहिले से ही किस्मत वाला हूॅ रे।"
"देखा बिटिया।" शंकर ने रितू से कहा___"ये अपने आपको जाने क्या समझता रहता है? जबकि सच्चाई तो यही है कि जबसे बिंदिया भाभी से इसका ब्याह हुआ है तब से इसके भाग्य खुल गए हैं।"

"खूब समझ रहा हूॅ रे तोहरी बातन का।" हरिया ने सिर हिलाते हुए कहा___"तू ससुरे ऊखर बहुतै बड़ाई करथै रे। तोहरे मन मा का है ई हम बहुतै अच्छी तरह से जानत हूॅ। इतना बुड़बक न हूॅ हम। पर तू ससुरे हमरी एक बात कान खोल के सुन ले, अउर ऊ या के कउनव दिन सारे हमरी मेहरारू का लइके भाग न जइहे समझा का?"

"ओए ये क्या बकवास कर रहा है तू?" शंकर ने एकदम से आवेश में आकर कहा__"ऐसा तू सोच भी कैसे सकता है मेरे बारे में? तू अच्छी तरह जानता है कि मेरे मन में ऐसी बदनीयती नहीं है। मैं तो भाभी की बहुत इज्ज़त करता हूॅ और उन्हें भाभी माॅ जैसा ही मानता हूॅ।"

"ई ता ससुरे तू मुह से बोल रहा है न।" हरिया ने कहा__"केहू के मन मा का है ई कउन जानथै भला, हाॅ?"
"तू जैसा है वैसा ही दूसरे को भी समझता है।" शंकर ने कहा___"इस लिए मुझे अपने लिए सफाई देने की कोई ज़रूरत नहीं है। ईश्वर जानता है कि मेरे अंदर क्या है?"

"मैं जानती हूॅ काका कि आपके मन में किसी के लिए कोई मैल नहीं है।" रितू ने कहा___"हरिया काका तो आपको बस छेड़ रहे हैं लेकिन मैं ये कह रही हूॅ आप भी शादी कर लीजिए और मेरे लिए एक अच्छी सी काकी ले आइये।"

"ये क्या कह रही हो बिटिया?" शंकर हॅसा___"अब भला इस उमर में कौन लड़की मुझसे ब्याह करेगी? अब तो ये जीवन ऐसे ही कटेगा।"
"अरे अभी भी आप शादी कर सकते हैं काका।" रितू ने कहा___"और आपको करना ही पड़ेगा। जब आप शादी कर लेंगे तब हरिया काका आपको ये सब कह कर छेड़ेंगे नहीं।"

"हम ता ई ससुरे का समझाय समझाय के थक गयन बिटिया।" हरिया ने कहा___"पर ई ससुरा हमरी कउनव बात मानतै नाहीं है। कहैं का ता ई हमका आपन बहुतै बड़का पक्का यार मानथै पर ई बात भी सच हाय कि ई हमरी बात भी नाहीं सुनत है।"

"आप समझ नहीं रहे हैं काका।" रितू ने सहसा मुस्कुराते हुए कहा___"शंकर काका को दरअसल बिंदिया काकी जैसी बीवी चाहिए। बात भी सही है काका अगर बिंदिया काकी जैसी बीवी शंकर काका को भी मिल जाए तो इनका जीवन और भी ज्यादा सॅवर जाए।"

"कारे ईहै बात हा का?" हरिया काका ने तिरछी नज़र से शंकर की तरफ देखा___"अउर अगर ईहै बात हा ता ससुरे ई बात तै हमका पहिले काहे ना बताए रहे? सरवा बेकार मा अब तक ते रॅडवा घूमत रहे। चल अउनव बात ना हा। हम तोहरे खातिर ऊ ससुरी बिंदिया जइसनै जोरू ढूॅढ़ब। हमरे इहाॅ अइसन मेहरारू केर कउनव कमी ना हा।"

"ये तो अच्छी बात है काका।" रितू ने मुस्कुरा कर कहा__"आप जल्दी से वधू का इंतजाम कीजिए। उसके बाद चट मॅगनी पट ब्याह हो जाएगा। और हाॅ शंकर काका की शादी का सारा खर्चा मैं करूॅगी।"

"ये तुम क्या कह रही हो बिटिया?" शंकर काका एकदम से चौंक पड़ा__"भला मैं तुमसे कैसे खर्चा करवा सकता हूॅ? अरे तुमको तो मैं अपनी बेटी ही मानता हूॅ और बेटी से इस तरह अपने काम के लिए धन खर्चा करवाना अच्छी बात नहीं है। मुझे पाप लगेगा बिटिया।"

"आप भी कमाल करते हैं काका।" रितू ने कहा__"जीवन भर माॅ बाप अपने बच्चों के ऊपर अपनी पाई पाई खर्च करते रहते हैं तो क्या बच्चों का फर्ज़ नहीं बनता कि वो भी अपने माॅ बाप के ऊपर अपनी कमाई का पाई पाई खर्च कर दें? अगर आप मुझे अपनी बेटी मानते हैं तो मैं भी तो आपको अपने पिता जैसा ही मानती हूॅ। और ये मेरी इच्छा ही नहीं बल्कि खुशी की बात है कि मैं अपने शंकर काका की शादी में खूब पैसा खर्च करूॅ। मैने फैंसला कर लिया है, इस लिए अब आप इस बारे में कुछ भी नहीं कहेंगे? वरना कभी बात नहीं करूॅगी आपसे।"

रितू की बातें सुन कर शंकर हैरत से देखता रह गया उसे। फिर सहसा जाने उसके अंदर कैसा भावनाओं का तूफान उठा कि उसकी ऑखों से झर झर करके ऑसू बह चले। उसके चेहरे पर एकाएक ही गहन पीड़ा और दुख के भाव उभर आए। ये देख कर रितू आगे बढ़ी और उसकी ऑखों से बह रहे ऑसुओं को अपने हाॅथ से पोंछा।

"ये क्या काका?" रितू ने कहा__"आप रों रहे हैं? क्या मुझसे कुछ ग़लती हो गई?"
"नहीं नहीं बिटिया।" शंकर एकदम से कह उठा___"तुमसे भला कोई ग़लती कैसे हो सकती है? तुम तो एक नेक दिल बच्ची हो बिटिया। आज वर्षों बाद इतनी खुशी महसूस हुई कि वो खुशी ऑसू बन कर इन ऑखों से छलक पड़ी। इस दुनियाॅ में इससे पहले बहुत दुख दर्द सहे थे मैने। मगर जबसे यहाॅ आया हूॅ तो ऐसा लगा जैसे मैं अकेला नहीं हूॅ बल्कि मेरा भी कोई अपना है। जिसे मेरी फिक्र है।"

"मैं तो शुरू से ही आपको अपना ही मानती आ रही हूॅ काका।" रितू ने कहा___"मगर आप आज भी मुझे अपना नहीं मानते हैं। अगर मानते तो मेरे और हरिया काका के पूछने पर अपने बारे में वो सब कुछ बताते जिसकी वजह से आप कभी अपने घर नहीं जाते हैं।"

"उस सबको बताने का कोई मतलब नहीं है बिटिया?" शंकर ने कहा___"अतीत किसी का भी हो वो जब भी याद आता है तो हमें दुख और उदासियाॅ ही देता है। मैं उस सबको याद नहीं करना चाहता। क्योंकि बड़ी मुश्किल से मैने खुद को इस हद तक सम्हाला है।"

"अपने अंदर के दर्द को बयाॅ कर देने से मन का बोझ काफी हल्का हो जाता है काका।" रितू ने कहा___"ये तो अच्छी बात है कि आप अपने उस दर्द से उबर कर आज सम्हल चुके हैं। लेकिन ये भी सच है कि अपने अंदर इतने सारे दुख दर्द को दबा के रखना भी अच्छी बात नहीं है। ऐसे में वो दर्द नासूर बन जाता है और हमें एक पल भी सुकून से जीने नहीं देता। इस लिए आप अपने के उस दुख दर्द को बाहर निकाल दीजिए और फिर नये सिरे से अपने जीवन की नई शुरूआत कीजिए।"

"रितू बिटिया बहतै भले की बात करथै शंकरवा।" हरिया ने कहा___"जो बीत गया हा उसे ता भूला दे मा ही भलाई हा। हम सरवा तोसे कब से रहा हूॅ के तू अपना ब्याह करके जीवन मा आगे बढ़। पर तू ससुरा हमरी सुनतै नाहीं है?"
"अब तो बिटिया ने अपना फैंसला सुना ही दिया है हरिया।" शंकर ने कहा___"और जिस अपनेपन से सुनाया है उसे अगर मैं ना मानूॅ तो फिर धिक्कार ही होगा मुझ पर। इस लिए अब मैं ज़रूर ब्याह करूॅगा यार।"

"हाॅ लेकिन उससे पहले।" रितू ने कहा___"मैं ये भी जानना चाहती हूॅ काका कि आपके साथ ऐसा क्या हो गया था जिसकी वजह से आप कभी अपने घर नहीं जाते और ना ही अपने घर वालों से कभी कोई मतलब रखते हैं? आप हमें वो सब कुछ अभी बताएॅगे काका।"

"ठीक है बिटिया।" शंकर ने गहरी साॅस ली___"तुम अगर इतना ही ज़ोर दे रही हो तो सब कुछ बताता हूॅ तुम्हें। मैं उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाॅव महोबा का निवासी हूॅ। मैं छोटी जाति का हूॅ। मेरा बाप बल्ली रावत एक मिस्त्री था। जो मकानों में ईंटे की जोड़ाई का काम करता था। हम तीन भाई और दो बहन थे। मेरी माॅ बहुत शान्त स्वभाव की थी। अपने सभी बच्चों को वह बहुत प्यार करती थी। भाई बहनों में मैं सबसे बड़ा था। मैं माॅ पर गया था इस लिए मेरा स्वभाव भी सबके प्रति प्यार भरा ही था। उस वक्त मैं पच्चीस साल का हो गया था और अपने बापू के साथ रह कर मिस्त्रीगीरी पूरी तरह सीख चुका था। इस लिए जहाॅ भी काम मिलता मैं बापू के साथ ही रह कर उनके काम में हाॅथ बटाता था। मेरे सहयोग का असर ये हुआ की घर के आर्थिक हालात पहले की अपेक्षा काफी बेहतर हो गए। हमारी जात बिरादरी के कुछ लोग मेरे बापू से अक्सर मेरा ब्याह कर देने को कहते रहते थे। पर पता नहीं बापू उन सबकी बातों को क्यों अनसुना कर देता था? इधर पास के ही एक गाॅव में हमारी ही जात बिरादरी में एक लड़की थी चंदा। जिसे मैं काफी पसंद करता था। वो भी मुझे बहुत पसंद करती थी। हमें जब भी समय मिलता हम एक दूसरे से ज़रूर मिल लिया करते थे। कहते हैं कि इश्क़ मुश्क़ कभी छुपता नहीं इस लिए इस बात का पता मेरे बापू को भी हो गया था। जिससे बापू मुझे इसके लिए डाॅट भी देता था कभी कभी। ख़ैर सब कुछ ठीक ही चल रहा था कि एक दिन हर दिन की भाॅति मैं बापू के साथ काम पर गया हुआ था। गाॅव में ही काम चालू था तो दोपहर के समय सहसा मेरी बहन रीना भागते हुए आई और बताया कि अम्मा मर गई है। उसकी बात सुन कर हम दोनो बाप बेटा भौचक्के से रह गए। मुझे तो यकीन ही नहीं हुआ कि अम्मा मर गई है। रीना ने बताया कि अम्मा नहाने के लिए बाल्टी को रस्सी से बाॅध कर कुएॅ से पानी खींच रही थी। तभी जाने कैसे उसका पाॅव फिसल गया और वो कुएॅ में गिर गई। अम्मा को तैरना नहीं आता था इस लिए वो पानी में डूब गई और मर गई। रीना ने बताया कि जब काफी देर तक अम्मा नहा कर न आई तो वह घर के पिछवाड़े पर बने कुएॅ में ये देखने गई कि अम्मा अब तक आई क्यों नहीं? लेकिन कुएॅ में अम्मा को न पा कर रीना कुएॅ के आस पास देखने लगी। फिर सहसा उसकी नज़र कुएॅ के अंदर पड़ी तो अम्मा को पानी की सतह पर औधे मुॅह लेटी पाया। रीना को समझते देर न लगी कि अम्मा मर गई है, बस ये कहानी थी अम्मा के मर जाने की। रीना की सारी बातें सुन कर हम दोनो बाप बेटा काम छोंड़ कर घर आ गए। गाॅव के कुछ लोगों की मदद से मेरे भाईयों ने अम्मा को कुएॅ से निकाल लिया था।

अम्मा के मर जाने का दुख सबसे ज्यादा मुझे था। लेकिन अब हो भी क्या सकता था। अम्मा का क्रिया कर्म किया गया और कुछ दिन में फिर से हमारी दिन चर्या पहले जैसी चलने लगी। अब घर में रोटी पानी मेरी दोनो बहनें ही बनाती थी। मेरे सभी भाई बहन बड़े हो गए थे और जवान भी। अम्मा के मर जाने का दुख मेरे अंदर बना ही रहा पर मैं किसी के सामने उस दुख को दिखाता नहीं था। कुछ दिन बाद एक बदलाव ये हुआ कि बापू अक्सर रात को देसी ठर्रा(शराब) लगा कर घर आने लगा और घर में सबको अनाप शनाप बकने लगा और गालियाॅ भी देने लगा। हम सब बापू के दारू पीने से परेशान से होने लगे। इधर एक बदलाव ये भी हुआ कि बापू मुझे काम पर लगा कर खुद चार चार घंटे के लिए गायब हो जाता। जबकि मैं सारा दिन काम में लगा रहता और फिर दिन ढले ही घर वापस आता। ऐसे ही दिन गुज़रते रहे।

ऐसे ही एक दिन मैं शाम को घर पहुॅचा। हाथ मुह धोकर खाया पिया और फिर घर के बाहर मैदान में चारपाई लगा कर उसमें लेट गया। दिन भर के काम से मैं काफी थक जाता था इस लिए लेटते ही मुझे नींद आ गई। अभी मुझे सोये हुए कुछ ही समय गुज़रा था कि सहसा किसी ने मेरी पीठ पर ज़ोर की लात मारी। जिससे मैं चारपाई के नीचें गिर गया। अचानक हुए इस हमले से पहले तो मुझे कुछ समझ न आया किन्तु फिर तुरंत ही मेरे अंदर गुस्से का उबाल आ गया। मेरी नज़र मुझे लात मारने वाले पर पड़ी। देखा तो चारपाई के उस पार नशे में झूमता बापू खड़ा था।

"बापू तुमने मुझे मारा क्यों?" मैं लगभर नाराज़गी भरे भाव से पूछा___"और ये क्या तुम हर रोज़ देसी दारू चढ़ा के आ जाते हो। ये अच्छी बात नहीं है बापू।"
"बकवास ना कर समझा।" बापू नशे में झूमता हुआ गरजा___"मैं कुछ भी करू तुझे इससे क्या मतलब? मैं अपने पैसों की दारू पीता हूॅ तेरे बाप की नहीं समझा।"

"मेरे बाप तो तुम ही हो बापू।" मैने कहा___"मैं ये नहीं कहता कि तुम दारू न पियों मगर रोज रोज पीना अच्छी बात नहीं है। इससे तुम्हारी तबियत ख़राब हो जाएगी।"
"अरे वो सब छोंड़।" बापू ने हाॅथ को ऊपर से नीचे की तरफ झटकते हुए कहा___"ये बता कि तू अपनी नई नवेली अम्मा से मिला कि नहीं?"

"नई नवेली अम्मा??" मैं एकदम से चकरा गया__"ये तुम क्या बोल रहे हो बापू?"
"ठीक ही तो बोल रहा हूॅ बुड़बक।" बापू लड़खड़ा सा गया___"अरे आज मैं तुम सबके लिए एक नई अम्मा ले आया हूॅ। मैं जानता हूॅ कि अपनी अम्मा के मर जाने से तुम सब बहुत दुखी थे इस लिए मैने फिर से ब्याह कर लिया और तुम सबके लिए एक अम्मा ले आया।"

मैं बापू की बात सुन कर उछल पड़ा था। हैरत से ऑखें फाड़े नशे में झूमते बापू को देखे जा रहा था। किन्तु तभी मुझे एहसास हुआ कि लगता है बापू को दारू ज्यादा चढ़ गई है इस लिए अनाप शनाप बके जा रहा है।

"अंदर जाओ बापू।" फिर मैने कहा___"तुम्हें दारू आज ज्यादा चढ़ गई है। इस लिए अंदर जाओ और जो थोड़ा बहुत खाना खाना हो खाओ और आराम से सो जाओ।"
"तू साले मुझे बता रहा है कि मुझे चढ़ गई है?" बापू एकदम से चीख पड़ा था, बोला___"अरे इतनी सी बार बराबर दारू मुझे नहीं चढ़ती मादरचोद। मैं जो कह रहा हूॅ उसे मानता क्यों नहीं? चल आ मेरे साथ तुझे दिखाता हूॅ कि अंदर तेरी नई अम्मा है कि नहीं।"

बापू मेरा हाॅथ पकड़ कर अंदर की तरफ खींच कर ले जाने लगा। मैं चाहता तो अपना हाॅथ एक झटके में उससे छुड़ा लेता मगर मैं कोई बखेड़ा नहीं करना चाहता था इस लिए उसके खींचने पर उसके पीछे पीछे अंदर की तरफ खिंचता चला गया। अंदर बरामदे में मेरे सभी भाई बहन बैठे थे। घर कच्चे मकान का था। बाहर से आने पर पहले बड़ा सा बरामदा पड़ता था, उसके बाद दो कमरे थे। जिसमे एक कमरे में सामान वगैरा रखा रहता था। जबकि दूसरा कमरा बापू का था। कमरे में जो लकड़ी का दरवाजा था उसमें अंदर की तरफ कुण्डी नहीं थी।

बापू मुझे खींचते हुए उसी कमरे की तरफ बढ़ा और झटके से कमरे का दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हो गया। जबकि मैंने तुरंत ही अपना हाॅथ छुड़ा लिया था। अंदर दाखिल होते ही बापू ऊॅची आवाज़ में एक तरफ उॅगली का इशारा करते हुए बोला___"ये देख शंकर, ये है तेरी नई अम्मा। अरे देख न बेटीचोद तुझे यकीन नहीं हो रहा था न। देख ये बैठी है तेरी अम्मा चारपाई पर।"

मैंने अंदर की तरफ सिर करके चारपाई की तरफ देखा तो चौंक पड़ा। सच में अंदर रखी चारपाई पर कोई औरत बैठी थी। नई साड़ी में बड़ा सा घूॅघट किये थी वह। इस लिए मैं उसका चेहरा न देख सका। पर इतना काफी था मुझे हैरत में डालने के लिए। मैं उस औरत को देखने के बाद आश्चर्य से बापू की तरफ देखा। मुझे अपनी तरफ देखता देख बापू बड़े अजीब भाव से मुस्कुराया और फिर कमरे से बाहर बरामदे में आ गया।

"क्यों बापू?" मैने भारी आवाज़ में कहा__"क्यों किया ऐसा? हम कोई बच्चे तो नहीं थे जो हम अम्मा के बिरा जी नहीं सकते थे। तुम तो देख ही रहे हो बापू कि तुम्हारे बच्चे खुद अब ब्याह करने लायक हो गए हैं फिर खुद ब्याह करने की क्या ज़रूरत थी तुम्हें?"

"ज़रूरत थी बेटवा।" बापू ने कहा___"बल्कि बहुत ज़रूरत थी मुझे। तेरी अम्मा तो मर गई मगर मेरी जज्ञस्मानी ज़रूरतों को अब कौन पूरी करता? वैसे तेरी अम्मा के रहते हुए भी कुछ नहीं होता था। अच्छा हुआ साली मर गई। मुझ पर और मेरे लौड़े पर ज़रा सा भी तरस नहीं आता था उसे। जब भी उससे कहता कि आज बहुत दिल कर रहा है एक बार दे दो तो साली ऐसी बिदकती थी जैसे दुधारू गाय हो।"

"ये तुम क्या बकवास कर रहे हो बापू?" मैने पूरी शक्ति से चीखते हुए कहा___"शर्म आनी चाहिए तुम्हें अपने बेटे के सामने उसकी अम्मा के लिए ऐसा बोलने पर।"
"इसमें शर्म कैसी बछुवा?" बापू ढिठाई से मुस्कुराया___"जो सच बात है वही तो बोल रहा हूॅ मैं।"

"मुझे नहीं सुनना तुम्हारी ये बेहूदा बातें।" मैने गुस्से से कहा और पलट कर बाहर की तरफ अपनी चारपाई के पास आ गया। मेरा दिमाग़ बहुत ज्यादा ख़राब हो गया था। मगर ये भी सच था कि अब हो भी क्या सकता था?

मैं अपने अंदर हज़ारों तरह की बातें लिए चुपचाप चारपाई पर लेट गया। मुझे बापू पर बहुत गुस्सा आ रहा था। मगर मैं कुछ कर नहीं सकता था। इस लिए अपने गुस्से को बड़ी मुश्किल से काबू किये हुए ऑखें बंद करके सोने की कोशिश करने लगा था। मगर कम्बख्त ऑखों में नींद का दूर दूर तक कोई आभास भी नहीं हो रहा था।

अभी मुझे लेटे हुए कुछ ही देर हुई थी कि तभी अंदर से किसी औरत की चीख सुनाई दी। मेरी ऑखें खुल गईं मगर मैं उठा नहीं। मैं समझ चुका था कि बापू अपनी नई नवेली जोरू के पास ही होगा और उसके साथ वही कर रहा होगा जो हर शादी शुदा मर्द औरत करते हैं शादी के बाद। इस लिए मैं चुपोआप लेटा रहा। मैं इस बात से हैरान ज़रूर हुआ कि बापू को ज़रा भी शर्म नहीं है कि घर में उसके पाॅ पाॅच जवान बच्चे मौजूद हैं और वो कमरे से क्या सुना रहा है उन्हें।

मैं ये सब सोच ही रहा था कि एक बार फिर से मेरे कानों में औरत की चीख़ सुनाई दी साथ ही बापू की गालियाॅ भी। किन्तु इस बार मैं चीख़ सुन कर बुरी तरह उछल पड़ा था। क्योंकि चीख़ में शामिल मेरा नाम था। उस आवाज़ को मैं लाखों में पहचान सकता था। ये चंदा की चीख़ थी। जी हाॅ, ये चंदा ही थी। मगर मैं चकित इस बात पर था कि वो यहाॅ कैसे? अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि एक बार फिर से ज़ोरदार चीख़ मेरे कानों पर पड़ी। इस बार मुझे स्पष्ट सुनाई दिया और मुझे बिलकुल भी संदेह न हुआ। ये यकीनन चंदा ही थी, मेरी चंदा। ये जान कर कि वो चीख़ मेरी चंदा की ही है मैं एकदम से पागल सा हो गया और चारपाई से उतर कर बिजली की सी तेज़ी से अंदर की तरफ भागा। पलक झपकते ही मैं बरामदे में पहुॅच गया।

मेरी नज़र कमरे के दरवाजे के पास खड़े मेरे मॅझले भाई जगन पर पड़ी। वो अधखुले दरवाजे से कमरे के अंदर की तरफ देख रहा था। ये देख कर मेरा खून खौल गया। मुझे लगा कि वो अंदर वो सब देख रहा है जो कदाचित मेरा बापू मेरी चंदा के साथ करने की कोशिश कर रहा होगा। मैं भला ये कैसे बर्दास्त कर सकता था? मैने देखा कि बरामदे के दाहिनी तरफ मेरी दोनो बहने यानी रीना तथा मीना ज़मीन पर ही एक पुराना चद्दर बिछा कर लेटी हुई थी और उनके बगल से ही मेरा छोटा भाई मदन लेटा हुआ था। बरामदे के बाईं तरफ कोने में रसोई थी।

जगन को इस तरह चोरी छुपे अंदर की तरफ देखते हुए देख कर मैं तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ा और पीछे से ही उसकी शर्ट का कालर पकड़ कर अपनी तरफ खींचा और फिर उसे पलटा कर एक झन्नाटेदार थप्पड़ उसके गाल पर रसीद कर दिया। उसको इस सबकी उम्मींद हर्गिज़ भी न थी। इधर मैं इतने पर ही न रुका था, बल्कि उसको पकड़ कर पूरी शक्ति से एक तरफ उछाल दिया। वो लड़खड़ाता हुआ दीवार से टकराया और नीचे गिर गया। तभी मेरे कानों में चंदा की चीख़ फिर से पड़ी। मेरा ध्यान उस तरफ गया तो मैं जगन की तरफ न जा कर पलटा और तेज़ी से कमरे के अंदर की तरफ दौड़ गया।

कमरे के अंदर का नज़ारा देख कर मैं गुस्से से पागल हो गया। मेरा बापू चंदा के ऊपर चढ़ा हुआ उसका ब्लाऊज फाड़ रहा था। नशे की हालत में उसे ज़रा भी होश नहीं था कि वो क्या कर रहा है? बापू के नीचे दबी चंदा बुरी तरह छटपटाए जा रही थी और चीखे जा रही थी। ये सब देख कर मैं उस तरफ बिजली की सी तेज़ी से लपका और फिर मैने बापू को पीछे से पकड़ कर पूरी ताकत से अपनी तरफ खींचा और फिर कमरे के फर्श पर लगभग फेंक दिया। बापू नशे में लड़खड़ाता ज़मीन पर लुढ़कता चला गया था।

"तेरी हिम्मत कैसे हुई मेरी चंदा को इस तरह हाॅथ लगाने की?" मैने गुस्से से चीखते हुए झुका और बापू को दोनो हाॅथों से पकड़ कर उठा लिया___"तू इतना गिर गया है कि तुझे ये भी होश नहीं आया कि तू किसके साथ ये नीचता कर रहा है?"

"अबे छोंड़ मादरचोद।" बापू नशे में ज़ोर से चिल्लाया__"मुझे अपनी नई नवेली मेहरिया के साथ सुहागरात मना लेने दे। साला कैसा बेटा है तू कि अपने बाप को उसकी मेहरारू के पास भी नहीं जाने देता?"
"ज़ुबान को लगाम दे बापू।" मैने बापू के कालर को पकड़ कर उसे झकझोरते हुए कहा___"वरना यहीं पर ज़िंदा गाड़ दूॅगा तुझे। तुझे पता था न कि मैं चंदा को पसंद करता हूॅ और उसी से शादी करना चाहता हूॅ इसके बावजूद तूने मेरी चंदा से ब्याह कर लिया। ऐसा क्यों किया बापू? चंदा तो तेरी अपनी बेटी के समान ही थी फिर क्यों उससे ब्याह किया तूने? तुझे अपने इस बेटे की खुशियों का ज़रा भी ख़याल नहीं आया?"

"बकवास ना कर हरामखोर।" बापू मुझसे छूटने की कोशिश करते हुए चीखा___"वो तेरी अम्मा है समझे। बार बार मेरी चंदा मेरी चंदा की रट क्यों लगा रहा है तू?"
"क्योंकि चंदा मेरी ही थी बापू।" मैने चीखा___"मैं उससे प्रेम करता था और करता रहूॅगा। तू भी तो जानता था ये सब। फिर क्यों उससे ब्याह रचाया तूने? क्यों अपने बेटे का गर बसने से पहले ही उजाड़ दिया तूने? अरे तुझे अपना ब्याह ही करना था तो किसी दूसरी लड़की से कर लेता बापू। चंदा से ब्याह करके तूने मेरी खुशियों का गला क्यों घोंट दिया?"
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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"अरे मुझे कुछ नहीं पता था इस बारे में।" बापू ने कहा__"और फिर अगर तू चंदा को पसंद ही करता था और उससे ब्याह ही करना चाहता था तो तुझे बताना चाहिये था न। पर तूने तो कभी बताया ही नहीं। अब अगर मैने उससे ब्याह कर लिया तो इसमे मेरी क्या ग़लती है?"

"सारी ग़लती है तेरी।" मैं पूरी शक्ति से चीखा___"तूने चंदा से उसकी मर्ज़ी के बिना ब्याह किया है। ये बात मैं अच्छी तरह जानता हूॅ। तूने चंदा के बाप को पैसों का लालच दिया होगा। तभी चंदा के बाप ने अपनी बेटी का ब्याह तुझसे किया होगा। उस कसाई को भी अपनी बेटी की खुशियों से कोई लेना देना नहीं था। तभी तो ऑख बंद करके उसने एक बूढ़े से अपनी कम उमर बेटी का ब्याह कर दिया। मुझे पता है कि चंदा इस ब्याह हे खुश नहीं है। अगर खुश होती तो वो इस तरह चीखती नहीं।"

"अरे शुरू शरु में हर औरत थोड़ा बहुत चीखती है उर घबराती है।" बापू ने कहा___"मगर जब एक बार लौड़ा अंदर गया तो सारी घबराहट और सारा चीखना बंद हो जाता है। वही तो करने जा रहा था मैं। मगर ससुरी ज्यादा ही उछल रही थी। लेकिन कोई बात नहीं, सुहागरात तो मैं मना के ही रहूॅगा।"

मैं बापू की इस बात से बुरी तरह तिलमिला गया। मेरे अंदर गुस्से की ज्वाला धधक उठी। मैं बापू को खींच कर कमरे से बाहर लाया और बरामदे में लाकर ज़ोर का झटका दे कर ज़मीन पर पटक दिया। बापू के मुख से दर्द में डूबी चीख निकल गई। वो मुझे गंदी गंदी गालियाॅ बकने लगा। मेरा गुस्सा और बढ़ गया। मैंने उसे उठा कर दीवार से सटा दिया और उसकी गर्दन पर अपने दोनों हाॅथ ताकत से जमा दिये। नतीजा ये हुआ कि बापू बुरी तरह छटपटाने लगा। उसकी ऑखें बाहर को निकलने के लिए आतुर हो उठीं। मुझे गुस्से में अब कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। मैं मजबूती से बापू का गला दबाए जा रहा। तभी पीछे से किसी ने मेरे सिर पर किसी ठोस चीज़ का वार किया। मेरे हलक से चीख़ निकल गई। ऑखों के सामने पहले तो रंग बिरंगे तारे नाचे उसके बाद ऑखों के सामने अॅधेरा सा छाता चला गया। मैं दोनो हाॅथों से अपना सिर थामे लहरा कर वही बरामदे की ज़मीन पर धड़ाम से गिर पड़ा। उसके बाद मुझे याद नहीं कि आगे क्या हुआ?

जब मुझे होश आया और मेरी ऑखें खुलीं तो एकाएक ही तेज़ प्रकाश से मेरी ऑखें चुॅधिया गईं। मैने धीरे धीरे करके अपनी ऑखें खोलीं तो ऑखों के सामने खुला आसमान नज़र आया। पहले तो मुझे कुछ समझ न आया इसके बाद जब मैने ग़ौर से हर चीज़ को देखा तो थोड़ा थोड़ा समझ आया। मैने झटके से उठने की कोशिश की तो मेरे मुख से दर्द भरी कराह निकल गई। सिर के पिछले भाग में तेज़ पीड़ा हुई थी। मेरा एक हाॅथ स्वतः ही उस चोंट वाले हिस्से पर चला गया। मुझे मेरे हाॅथ में कुछ चिपचिपा सा महसूस हुआ। मैं धीरे धीरे करके उठा और वहीं पर बैठ गया।

बैठ कर मैने इधर उधर देखा तो पता चला कि मैं किसी खेत के बीच पर बैठा हुआ हूॅ। एक तरफ लगभग दो सौ गज की दूरी पर गाॅव की आबादी दिख रही थी। किनारे पर बने अपने घर को पहचानने में मुझ ज़रा भी देर न लगी। इसका मतलब मैं अपने घर के पिछवाड़े ही दो सौ गज की दूरी पर था। मेरे दिमाग़ ने काम करना शुरू किया तो मेरी ऑखों के सामने पिछली रात की सारी घटना किसी चलचित्र की भाॅति घूमने लगी।

सब कुछ याद आते ही मुझे सबसे पहले चंदा का ख़याल आया। मेरे मन में विचार उठा कि चंदा कैसी होगी अब? पिछली रात बापू ने क्या किया होगा उसके साथ? कहीं बापू ने चंदा की इज्ज़त तो तार तार तो नहीं कर दिया? हे भगवान, अब क्या होगा? मेरी चंदा लुट गई होगी और मैं अपनी चंदा की सुरक्षा भी न कर सका। ये सब विचार मन में आते ही मैं एकदम से दुखी हो गया और मेरी ऑखों से ऑसू बह चले। मुझे चंदा की बेहद फिक्र होने लगी। इस लिए अपने दर्द की परवाह किये बिना मैं उठा और अपने घर की तरफ तेज़ी से बढ़ चला। मैने महसूस किया कि ये सुबह का वक्त था। आसमान में सूर्य का प्रकाश अभी ज्यादा तेज़ न हुआ था।

मैं अपने घर की तरफ तेज़ी से बढ़ता चला जा रहा था। मेरे मन में बस एक ही बात चल रही थी कि चंदा कैसी होगी अब? मैं भगवान से प्रार्थना भी करता जा रहा था कि चंदा को कुछ न हुआ हो। कुछ ही समय में मैं घर के पिछवाड़े की तरफ पहुॅच गया। एक तरफ वही कुआॅ था जिसमें गिर कर मेरी अम्मा मर गई थी। कुएॅ वाली जगह से कुछ ही दूरी के फाॅसले से चलते हुए मैं घर के पिछवाड़े पर आ गया। पीछे की दीवार से चलते हुए मैं उस हिस्से पर आया जहाॅ पर घर की दीवार खत्म हो जाती थी और फिर लकड़ी की बाउंड्री चारो तरफ से बनाई गई थी। मैं लकड़ी की उस बाउंड्री के शुरूआती हिस्से पर आया ही था कि मेरे कानों में मेरे मॅझले भाई जगन की आवाज़ पड़ी तो मैं रुक गया।

"रीना ने सही वक्त पर शंकर के सिर पर लट्ठ मारी थी बापू।" जगन की आवाज़___"वरना तुम्हारा तो कल्याण ही कर दिया था शंकर ने।"
"हाॅ ये तो सही कहा तूने।" बापू की आवाज़___"सब कुछ वैसा ही करना था जैसा कि हमने तरकीब बनाई थी। मगर तूने अपना काम सही से नहीं किया जगन। वरना शंकर को इतना गुस्सा नहीं आता और ना ही तुझे उससे मार खानी पड़ती।"

"ये दरवाजे से तुम्हारी और चंदा की फिल्म देख रहा था बापू।" मदन कह उठा___"जबकि मैने और रीना ने इसे मना भी किया था कि तरकीब के अनुसार हमें चुपचाप यहीं पर लेटे रहना है। मगर ये नहीं माना और अंदर की फिल्म देखने लगा। उधर जैसे ही चंदा की चीख़ शंकर के कानों में वैसी ही वो दौड़ते हुए यहाॅ आ गया और दरवाजे पर जगन को इस तरह अंदर की तरफ झाॅकते देख उसे क्रोध आ गया। बस फिर तो इसको पिटना ही था बापू।"

"हाॅथ तो मैं भी उठा सकता मदन।" जगन ने तीखे भाव से कहा___"मगर मैने सोचा कि उससे काम न बिगड़ जाए। इस लिए मैने उस कमीने शंकर पर हाॅथ नहीं उठाया। वरना गुस्सा तो मुझे भी भयंकर आ गया था उस पर।"
"अच्छा हुआ कि तुमने हाॅथ नहीं उठाया उस पर।" रीना ने कहा___"वरना कुछ और ही होने लगता और हमारा खेल बिगड़ जाता।"

"ये सब तो ठीक है बापू।" मीना की आवाज़___"मगर मुझे अब तक ये समझ नहीं आया कि ये सब चक्कर क्या है? मतलब ये कि अम्मा के रहने पर भी और उसके मरने के बाद भी तुम्हारी जिस्मानी ज़रूरत तो हम दोनो बहनें मिल कर पूरी कर ही देती थीं। फिर तुम्हें चंदा से ब्याह करने की क्या ज़रूरत पड़ गई? क्या इस लिए कि अब तुम्हारा हमसे दिल भर गया है? दूसरी बात शंकर भाई को इसमें लपेटने का क्या मतलब है?"

"ये सारा चक्कर तो इस जगन की वजह से ही चलाना पड़ा मेरी राॅड बेटी।" बापू की आवाज़___"असल बात ये थी कि इसे भी पता चल गया था कि शंकर चंदा से प्रेम करता है और उससे ब्याह करना चाहता है। अब भला जगन ये कैसे बरदास्त कर लेता कि उसका बड़ा भाई जिसे वो बचपन से ही पसंद नहीं करता है वो किसी वजह से खुश हो जाए? इस लिए शंकर और चंदा के विषय में पता चलते ही ये मेरे पास आया और मुझसे बोला कि शंकर का ब्याह चंदा से किसी भी कीमत पर नहीं होना चाहिए। इसने एक दो बार चंदा को देखा था इस वजह से ये भी उसे पसंद करने लगा था। मगर इसे ये बात अच्छी तरह पता थी कि चंदा इसके प्रेम को स्वीकार नहीं करेगी। इस लिए इसने सोचा कि अगर चंदा इसकी नहीं तो शंकर की भी नहीं होगी। मैने इससे पूछा कि फिर ये चाहता क्या है तो इसने कहा कि कुछ ऐसा करो बापू कि चंदा इस घर में हमेशा के लिए आ जाए और हम सब मिल कर जीवन भर उसे भोगें। बात क्योंकि सबके भले की थी इस लिए मुझे भी इसकी बात पसंद आई। मगर सवाल ये था कि ऐसा होगा कैसे? क्योंकि चंदा तो शंकर से प्रेम करती थी और शंकर उससे ब्याह भी करना चाहता था। मैं भले ही उसे ब्याह से इंकार कर देता मगर उसकी वो सती सावित्री अम्मा उसकी खुशी ही देखती और नतीजा ये होता कि वो शंकर का ब्याह उस चंदा से ज़रूर करा देती। जबकि ऐसा हम चाहते ही नहीं थे। इस लिए हमने सोचा कि सबसे पहले हमें अपने रास्ते से शंकर की उस ससुरी अम्मा को ही हटाना पड़ेगा। वैसे भी वो साली किसी काम की तो थी नहीं। खुद तो मुझे कभी देती नहीं थी ऊपर से उसके डर से हम आपस में भी मज़ा नहीं कर पाते थे। इस लिए उसे अपने रास्ते से हटाने का सोच लिया हमने। ये बात तो तुम सबको पता ही है कि कैसे हम लोगों ने मिल शंकर की अम्मा को अपने रास्ते से हटाया था। वो शंकर साला आज भी यही समजता है कि उसके अम्मा की मौत महज एक हादसा था जो भगवान के विधान के हिसाब से हो गया था। मगर उसे क्या पता कि उसकी अम्मा को हमने कैसे सोच समझ कर अपने रास्ते से हटाया है? हर दिन की तरह उस दिन भी मैं शंकर को लेकर काम पर चला गया था और तुम सबको समझा दिया था कि कब क्या करना है। बस तुम लगों ने वैसा ही किया था। यानी कि जैसे ही शंकर की अम्मा नहाने के लिए कुएॅ में गई तो जगन और मदन भी छुप कर उस तरफ चल दिये। शंकर की अम्मा ने जब बाल्टी को रस्सी से बाॅध कर कुएॅ में डाला और पानी से भरी बाल्टी को खींचना शुरू किया तो तभी जगन और मदन दोनो ने मिल कर अम्मा को पीछे से धक्का दे दिया। जिससे अम्मा रस्सी बाल्टी सहित कुएॅ में जा गिरी। उसको तैरना तो आता नहीं था इस लिए थोड़ी ही देर में साली पानी में डूब गई। कुछ घंटे बाद जब वो वापस पानी की सतह पर आ गई तो जगन और मदन दोनो ही समझ गए कि अम्मा का राम नाम सत्य हो चुका है। इस लिए तुरंत ही अंदर आकर रीना को कह दिया कि अब वो आगे का काम करे। रीना भागती हुई हमारे पास आई और अम्मा के मरने की सूचना हमें दी। बस उसके बाद का तो सबको पता ही है कि क्या कैसे हुआ?"

"अम्मा के मरने का तो पता है बापू।" मीना ने कहा___"मैं चंदा वाले चक्कर का पूछ रही हूॅ। उसके बारे में बताओ।"
"अम्मा के मर जाने से हमारा रास्ता साफ हो गया था।" बापू ने कहा___"मगर शंकर बेचारा ज़रूर अपनी अम्मा के मर जाने से ग़मज़दा हो गया था। जब कुछ दिन उसकी अम्मा को मरे हो गए तो हमने आगे का काम शुरू किया। मैं हर दिन शंकर को काम पर लगा कर चार चार घंटे के लिए गायब हो जाता और सीधा चंदा के गाॅव उसके घर पहुॅच जाता। चंदा का बाप मंगा साकेत थोड़ा लालची किस्म का था और गॅजेड़ी भी था। काम धाम करके जो भी कमाता उसे वह गाॅजा पीकर और देसी चढ़ा कर उड़ा देता था। मैने उसकी इसी आदत का फायदा उठाया और रोज़ उसे देसी दारू पिलाता और खुद भी पीता। कुछ ही दिन में मेरी उससे खूब बनने लगी। एक तरह से मैं उसका पक्का यार बन गया था। ख़ैर, इसी तरह कुछ दिन गुज़र गए। जब मुझे लगने लगा कि अब मुख्य बात आगे बढ़ाने से नुकसान नहीं है तो मैने उससे मुद्दे की बात छेंड़ दी। सबसे पहले तो मैने बस उसके मन और विचार का ही पता लिया। चंदा के ब्याह के बारे में पूछा उससे तो कहने लगा कि उसे चंदा के ब्याह की ही चिंता है। मगर आर्थिक हालत बहुत ज्यादा खराब होने की वजह से वो चंदा का ब्याह कर नहीं पा रहा है। मैंने उसे एक सुझाव दिया कि किसी ऐसे शख्स से वह चंदा का ब्याह कर दे जो उमर में चंदा से थोड़ा बहुत बड़ा हो। इससे उसे ज्यादा दहेज भी नहीं देना पड़ेगा। मेरी बात उसे जॅच गई। आख़िर उसे अपने हालात का तो पता ही था इस लिए बेबसी मे ही सही किन्तु उसे इस बारे में सोचना ही पड़ा। उसने मुझसे पूछा कि ऐसा कौन ब्यक्ति है जो चंदा से उमर में थोड़ा बहुत बड़ा हो और उसे दहेज न देना पड़े तो मैने यूॅ ही मज़ाक में उससे कह दिया कि मेरे साथ ही कर दे अपनी चंदा का ब्याह। मैं दहेज में उससे कुछ नहीं मागूॅगा बल्कि उल्टा उसे ही थोड़ा बहुत रुपया पैसा दे दूॅगा। मैने ये बात उससे बस उसका मन देखने के उद्देष्य से कही थी वो भी हॅसते हुए। वो मेरी ये बात सुन कर हैरान तो हुआ मगर फिर बोला कि यार अगर सच में तुम मेरी चंद से ब्याह कर लो तो मुझे कोई ऐतराज़ न होगा। हाॅ उमर ज़रूर तुम्हारी थोड़ी क्या बहुत ज्यादा है मगर कोई बात नहीं। लड़के बच्चे तो पहले से ही हैं तुम्हारे तो बच्चे के लिए कोई झंझट ही नहीं रहेगी। कहने का मतलब ये कि मज़ाक में कही हुई मेरी बात चल गई। बस फिर क्या था? मैने ज़रा भी देर नहीं की और फटाफट चंदा से ब्याह कर लिया मैने। इस ब्याह में मैने चंदा के बाप को पूरे पचास हज़ार रुपये दिये थे। कुछ ब्याह के खर्च के लिए और कुछ खुशी से। इतने सारे पैसे एक साथ पाकर चंदा का बाप भी खुश हो गया था। इस ब्याह में कोई ताम झाम करने का मैने पहले ही मना कर दिया था। इस लिए किसी को ज्यादा कुछ पता भी नहीं चला। उस दिन भी मैं चंदा के बाप को देसी दारू पिलाकर और पीकर आया था जिस दिन मैने चंदा से ब्याह रचा कर उसे घर लाया था। मुझे पता था कि शंकर को जब ये सब पता चलेगा तो वो पागल सा हो जाएगा। मगर कुछ कर नहीं पाएगा। क्योंकि सबसे बड़ी सच्चाई तो यही बन जाएगी न कि चंदा अब उसकी प्रेमिका नहीं बल्कि अम्मा है। अगर उसमें ज़रा सी भी ग़ैरत होगी तो वो खुद ही इस गर की छोंड़ कर कहीं चला जाएगा या फिर जीवन भर अपनी चंदा को अम्मा के रूप में देख कर अंदर ही अंदर तड़पता रहेगा। जबकि हम सब हर दिन हर रात उसकी चंदा का भोग लगाएॅगे।"

बाहर दीवार की ओट में खड़ा मैं बापू की ये सब बातें सुन रहा था। मेरा चेहरा ऑसुओं से तर था। अपनी जगह पर मैं इस तरह खड़ा रह गया था जैसे किसी ऋषी ने मुझे पत्थर बन जाने का श्राप दे दिया हो। इतना बड़ा छल, इतना बड़ा अपराध किया था इन लोगों ने मिल कर जिसकी कोई सीमा नहीं थी। एक बाप के अपनी ही बेटी के साथ नाजायज़ संबंध थे और मेरे दोनो भाइयों के अपनी बहनों के साथ। ये एक ऐसी सच्चाई थी जिसे मैं सब कुछ सुन लेने के बावजूद हजम नहीं कर पा रहा था। मेरे अंदर जज़्बातों का भयंकर तूफान चालू था। ऐसा लग रहा था जैसे सारी कायनात को एक झटके में शोलों के हवाले कर दूॅ। मगर ऐसा करना मुझसे संभव न था। जबकि उधर,,,,

"ये सब छोंड़ो बापू।" तभी जगन की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी___"अब तो जो होना था वो तो हो ही गया। हमने कल रात जी भर के चंदा के मज़े लिए। कसम से बापू बड़ा ही कड़क माल थी चंदा। साली ने ग़जब का मज़ा दिया।"
"मज़ा तो हमने ज़बरदस्ती लिया भाई।" मदन ने कहा___"वो तो हमें हाॅथ भी नहीं लगाने दे रही थी। बार बार हमसे रहम की भीख माॅग रही थी और अपनी इज्ज़त की दुहाई दे रही थी। मगर हमने तो मज़ा करना था सो किसी तरह कर ही लिया। बाद में तो उसके भी कस बल ढीले पड़ गए थे। साली ऐसे लेटी रह गई थी जैसे कह रही हो कि आओ और कर लो जो करना हो। हाहाहाहा।"

"नया माल मिल गया तो कल रात हम बहनों की तरफ देखा भी तुम लोगों ने।" रीना की आवाज़ में शिकायत थी, बोली___"सच कहती हैं औरतें कि सब मर्द एक जैसे ही होते हैं। नया और ताज़ा बिल मिल गया तो भोसड़े की तरफ फिर देखते भी नहीं मर्द।"

"अरे ऐसी कोई बात नहीं है मेरी रंडी बेटी।" बापू की आवाज़___"बस कल रात की ज़रा बात ही अलग थी न इस लिए। बाॅकी ये तो तू भी जानती है न कि नया नौ दिन तो पुराना सब दिन। इस लिए चिंता मत कर तुम दोनो हमारी असली माल ही हो।"

"बापू बड़ा दिल कर रहा है।" जगन की आवाज़___"ऐसा लगता है कि फिर से चंदा रानी के पास जाऊॅ और तबीयत से उसकी बजा कर आऊॅ।"
"भाई तूने तो मेरे मुह की बात कह दी।" मदन की आवाज़ सुनाई दी___"मेरा भी बहुत दिल कर रहा है चंदा को पेलने का। चल दोनो एक एक बार तबीयत से पेल कर आते हैं उसे। क्यों बापू तुम्हें भी चलना है???"

"अरे नहीं भई।" बापू की हॅसी की आवाज़___"तुम दोनो ही जाओ। मुझमें अभी इतनी शक्ति नहीं है कि तुम लोगों का साथ दे सकूॅ। साला कल रात दारू के नशे में समझ में ही नहीं आया कितनी मेहनत हो गई मुझसे। अब जब दारू उतरी तो समझ आ रहा है कि टाॅगों में जान ही नहीं है।"

"हाहाहाहाहा ले भाई।" मदन के ठहाकों की आवाज़ गूॅजी___"बापू तो गया काम से। चल हम दोनो ही किला फतह करके आते हैं।"
"हाॅ हाॅ जाओ जाओ।" मीना की आवाज़___"कर लो किला फतह। मगर याद रखना लौट कर हमारे पास ही आओगे।"

"जाने दे मेरी राॅड बिटिया।" बापू बोला___"नया माल है न इस लिए उसकी चुलुक कुछ ज्यादा ही होती है। याद कर जब इन लोगों तुम दोनो के साथ जब किया था तो कैसे सारा दिन तुम दोनो के पीचे पीछे घूमते रहते थे?"
"अच्छी तरह याद है बापू।" मीना के हॅसने की आवाज़ आई___"ये दोनो हम दोनो बहनों के पीछे पीछे लगे ही रहते थे। इन लोगों को तो ये भी होश नहीं रहता था कि अम्मा को अगर पता चल गया तो क्या ग़जब हो जाएगा?"

बाहर खड़ा मैं ये सब सुन रहा था और अंदर ही अंदर गुस्से की आग में जला जा रहा था। मुझे लग रहा था कि अभी जाऊॅ और सबको एक साथ खत्म कर दूॅ। मेरे हाॅथों की दोनों मुट्ठियाॅ कस गईं थी। जबड़े शख्ती से भिंच गए थे। नथुने फूल कर गुब्बारा हुए जा रहे थे। तभी,,,,

"ओएऽऽ बाऽऽऽपू ग़जब हो गया रे।" जगन की लगभग बदहवाशी से भरी आवाज़ सुनाई दी___"सब गड़बड़ हो गया। अब क्या होगा बापू???"
"अरे क्या हुआ?" बापू ने घुड़की सी दी___"क्यों चिल्ला रहा है? क्या गड़बड़ हो गया???"

"बापू वो वो चंदा।" मदन की लड़खड़ाती हुआ आवाज़ सुनाई दी___"अंदर वो चंदा ऐसे पड़ी है जैसे मर गई है।"
"क्या बकता है मादरचोद??" बापू की जैसे चीख ही निकल गई थी, बोला___"बहनचोद साले शुभ शुभ बोल।"

"मदन सच कह रहा है बापू।" जगन की आवाज़__"हम दोनों जब अंदर गए तो देखा चंदा चारपाई पर आधी लटकी हुई पड़ी थी एकदम वैसी ही नंगी हालत में जैसे कल रात हम छोंड़ कर आए थे उसे। मैने उसकी नाॅक के पास उॅगली रखी और उसकी कलाई की नब्ज भी देखी। मगर ना ही उसके नाॅक से साॅस आ जा रही है और ना ही नब्ज चलती हुई महसूस हो रही है। इसी लिए हमें लग रहा है कि चंदा का राम नाम सत्य हो गया है। अब क्या होगा बापू? चंदा अगर सच में मर गई और ये बात गाॅव वालों को पता लग गई तो हम कहीं के न रह जाएॅगे बापू।"

जगन की इन बातों के बाद कुछ देर तक कोई आवाज़ न आई। जैसे उधर सबको साॅप सूॅघ गया हो। बाहर खड़ा मैं भी ये सुन कर जैसे बेजान लाश में तब्दील हो गया था। जिसका डर था वो तो हो ही चुका था किन्तु इस सबका परिणाम ये निकलेगा ये मैने स्वप्न में भी नहीं सोचा था। मुझे लगा कि मैं दहाड़ें मार कर रो पड़ूॅ मगर मैने अपने अंदर के मचलते हुए जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से दबाया हुआ था। जबकि उधर,

"ये तो सच में बहुत ही बुरा हुआ।" बापू की आवाज़ में डर व भय झलक रहा था___"ये सब हमारी वजह से ही हुआ है। हमने अपने मज़े के चक्कर में ये भी नहीं सोचा कि कच्ची उमर की उस चंदा के साथ इतना कुछ एक ही बार में नहीं करना चाहिए था। वरना उसका परिणाम यकीनन यही निकलेगा। दूसरी बात हमने शंकर को रात में खेतों पर फेंक आए थे। वो उस वक्त बेहोशी हालत में था। संभव है कि उसे अब तक होश भी गया होगा। अब अगर इस परिस्थिति में वो यहाॅ आ गया तो हम सोच भी नहीं सकते हैं कि वो क्या कर डालेगा? चंदा को इस हाल में देखेगा तो वो यकीनन हम सबके लिए काल बन जाएगा।"

"बापू शंकर की इस बात से मेरे दिमाग़ में एक ज़बरदस्त तरकीब आई है।" जगन की आवाज़___"अगर कहो तो उगलूॅ मुख से??"
"अरे तो उगल ना मादरचोद।" बापू चीखा__"क्या तब उगलेगा जब तेरी अम्मा चुद जाएगी साले??"
"मेरी दोनो अम्मा को तो तुमने ही चोद डाला है बापू।" जगन के हॅहने की आवाज़___"ये अलग बात है कि तुमने हमें हमारी पहली अम्मा को पेलने का मौका नहीं दिया जबकि उसको पेलने की हमारी हसरत साली धरी की धरी रह गई।"

"बकवास ना कर बहनचोद।" बापू गुर्राया___"पहले तरकीब उगल मुख से। साला सत्यानाश हो गया हमारा।"
"बापू तरकीब ये है" जगन की आवाज़___"कि चंदा की इस मौत में हम उस मादरचोद शंकर को फॅसा देते हैं।"
"वो कैसे?" बापू का चौंका हुआ स्वर उभरा__"मेरा मतलब कि हम शंकर को चंदा की मौत में कैसे फॅसा सकते हैं?"

"बड़ी सीधी सी बात है बापू।" जगन ने कहा___"हम सबको बताएॅगे कि ये सब शंकर ने ही किया है। हम गाॅव वालों को बताएॅगे कि तुमने जिस चंदा से ब्याह किया उसे शंकर पहले से ही पसंद करता था और उससे ब्याह भी करना चाहता था। जबकि चंदा तो शंकर को जानती भी नहीं थी। शंकर ने जब देखा कि वो जिसे पसंद करता था और जिससे ब्याह करना चाहता था वो तो खुद उसके ही बाप की जोरू बन गई तो शंकर ये सहन न कर सका। उससे ये सहन न हुआ कि जिसे वो खुद अपनी जोरू बनाना चाहता था वो खुद उसके बाप की ही जोरू बन कर उसकी अम्मा बन गई। इस लिए वो रात को देशी दारू पी कर आया और ज़बरदस्ती बापू के कमरे में घुस गया। कमरे में उसने जबरदस्ती चंदा की इज्जत को लूटा और फिर उसकी जान भी ले ली।"

"तरकीब तो अच्छी है बेटवा।" बापू की आवाज़___"पर गाॅव वाले यकीन कैसे करेंगे? वो तो पूछेंगे न कि शंकर ने ये सब हम सबकी मौजूदगी में कैसे कर लिया? तब क्या जवाब देगा तू?"
"हम उनसे कहेंगे कि शंकर ने कमरे के दरवाजे पर इस तरह मोटी सी लकड़ी से टेक लगा दिया था कि उस दरवाजे को लाख कोशिशों के बाद भी हम सब खोल नहीं पाए।" जगह कह रहा था___"कमरे का वो दरवाजा तभी खुला जब शंकर ने चंदा का काम तमाम कर दिया था। उसके बाद वो खुद ही बाहर आ गया था। उसके हाथ में मोटी सी वही लकड़ी थी जिससे उसने दरवाजे पर टेक लगाया हुआ था। हम सब ये डर से कुछ न बोल सके थे कि कहीं वो गुस्से में हम लोगों को मारना न शुरू कर दे। बस इतनी बात काफी है गाॅव के लोगों को यकीन दिलाने के लिए।"

"ऐसा तुझे लग रहा है।" बापू की आवाज़___"जबकि कुछ लोग ये भी पूछ सकते हैं कि जब हमारे घर में ये सब हो रहा था तो हमने शोर शराबा करके गाॅव वालों को क्यों नहीं बुला लिया? तब क्या कहेंगे हम?"
"हम कह देंगे बापू कि हमें उस वक्त कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि क्या करें और क्या न करें?" जगन ने कहा__"बस गाॅव वालों को हमारी बात पर यकीन करना ही पड़ेगा। वैसे भी गाॅव के लोगों को ये उम्मीद भला कहाॅ होगी इस सबकी जो हम लोगों ने किया है। दूसरी महत्वपूर्ण बात ये भी हमारी बात को साबित करेगी जब शंकर यहाॅ पर मौजूद नहीं रहेगा। शंकर की ग़ैर मौजूदगी भी गाॅव वालों को यकीन दिलाने में पुख्ता वजह रहेगी।"

"लेकिन शंकर यहाॅ मौजूद क्यों नहीं होगा भला?" बापू की आवाज़___"वो भला कहाॅ चला जाएगा?"
"ग़ौर करने वाली बात है बापू।" जगन ने कहा__"शंकर की जानकारी में और उसके सामने इतना कुछ हो गया है उसकी प्रेमिका के साथ। तो भला वो अब यहाॅ किस वजह से लौट कर आएगा? दिल का मामला बड़ा विचित्र होता है बापू। उसका इस संसार में उसके प्रेमी के अलावा दूसरा कोई नहीं रह जाता और जब उसके रहते उसकी प्रेमिका का ये हाल हो जाए तो भला वो अपना मुह दिखाने के लिए यहाॅ क्यों रहेगा? बल्कि वो तो कहीं पर चुल्लू भर पानी की तलाश करेगा ताकि उसमें डूब कर वो मर सके।"
 

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