एक अधूरी प्यास

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पिछले भाग में शुभम अपनी माँ को ढूंढते हुए घर के पीछे जाता है जहाँ निर्मला अपनी उत्तेजना शांत करने के लिए बुर मे उंगुली करती है जिसे शुभम देख लेता है और मुठ मारके अपने कमरे में आ जाता है

अब आगे


कुछ दिन तक बिल्कुल सामान्य चलता रहा। सब कुछ पहले की ही तरह था उसको कभी भी रात को जब भी उसका मन करता था उसी तरह से उस पर चढ़कर अपनी प्यास तो बुझाा लेता था लेकिन निर्मला पहले की ही तरह प्यासी तड़पती रह जाती थी,,,,,


लेकिन इतने दिनों में निर्मला में एक बदलाव जरुर आया था कि जब भी अशोक उसे चोदने के लिए उसके ऊपर चढ़ता था,,,, तो वह अशोक की जगह अपने बेटे शुभम की कल्पना करने लग जाती थी।

जब भी अशोक उसके ऊपर चढ़कर उसकी साड़ी को ऊपर की तरफ सर काटा था तो वह आंखें बंद करके ऐसा कल्पना करती थी कि अशोक नहीं बल्कि उसका बेटा शुभम उसकी साड़ी को ऊपर जांघो तक सरका रहा है और जैसे ही अशोक अपनी दोनों हथेलियों में ब्लाउज के ऊपर से ही बड़ी-बड़ी सूचियों का भर्ता तो वह ऐसा महसूस करती थी उसका बेटा अपनी मजबूत हथेलियों में उसकी बड़ी बड़ी चूची को पकड़ कर मसल रहा है उन्हें दबा रहा है।

अशोक की जगह शुभम की कल्पना मात्र से ही वह सिहर उठती थी उसके बदन में उत्तेजना की लहर दौडने़ लगती थी। जब भी अशोक अपने लंड को जो कि शुभम के लंड की अपेक्षा आधा भी नहीं था उसे उसकी बुर में प्रवेश कराता तो वह आंखों को बंद करके एकदम ध्यान लगाकर के ऐसी कल्पना करती थी कि उसका बेटा शुभम उसकी बुर में अपना मोटा लंबा लंड डाल रहा है और अशोक कि आगे पीछे हो रही कमर को वह खुद अपनी हथेली में भरकर ऐसा महसूस करती कि उसका बेटा अपने मोटे ताजे और लंबे लंड से जमकर उसकी चुदाई कर रहा है।


और यह कल्पना करके ही अपने पति से चुदवाते समय उसके मुंह से सिसकारी निकल पड़ती थी। लेकिन जैसे ही उसे चुदवाने का आनंद मिलना शुरू होता की वैसे ही अशोक का पानी निकल जाता और वहां फिर से बिस्तर पर तड़पती रह जाती लेकिन उसके लिए सुकून वाली बात यह थी कि अब पहले से कुछ तो बेहतर स्थिति हो गई थी जब से वह अपने बेटे की कल्पना करके संभोग सुख का आनंद लेती थी।


उसे बेटे की कल्पना करने वाली बात से ग्लानी भी होती थी और वह हर बार अपने मन को आगे से ऐसा न करने की सलाह से समझा लेती थी। लेकिन जब भी उसके बदन में कामोत्तेजना अपना असर दिखाना शुरू करता था वैसे ही बिस्तर पर अशोक के साथ संभोग की शुरुआत होते ही उसकी कल्पना में फिर से शुभम का भी ध्यान आने लगता था अब तो उसे कल्पना करने की लत सीे लग गई थी।



शुभम भी खेल के मैदान की मुलाकात बराबर लेता रहता था। खेल के उद्देश्य से नहीं बल्कि अपने दोस्तों की बातें सुनने के लिए और रोज ही उसे अपने दोस्तों से सेक्स ज्ञान मिलता रहता था। उन्ही दोस्तों से उसे पता चला कि औरतों को भी करवाने का मन करता है और जब ऊन्हे लंड नहीं मिलता तो वह खुद ही अपनी उंगली को अपनी बुर मे अंदर बाहर करते हुए अपनी चुदास की प्यास बुझाती है।


यह बात जानते ही उसे उस दिन उसकी मां घर के पीछे नंगी हो कर के अपनी उंगली को अपनी बुर में अंदर बाहर क्यों कर रही थी इस बात का पता चल गया। इस बात को जानकर शुभम को एक झटका सा लगा था,उसे इस बात पर यकीन नहीं हो पा रहा था कि उसकी मां को भी लंड लेने की प्यास है क्योंकि उसके दोस्तों ने बताया था कि जब औरत चुदवाने की प्यासी हो जाती है और लंट का जुगाड़ ना होने पर इस तरह के कदम उठाती है।

एक और ज्ञानवर्धक बात वह अपने दोस्तों से जान कर आया था कि अगर कोई औरत मोटे लंबे और तगड़ा लंड को देख ले तो उनकी बुर में उस लंड को लेने के लिए सुरसुराहट और तड़प दोनो बढ़ जाती है। फिर वह चाहे कोई भी हो उसका लंड लिए बिना उससे चुदवाएै बिना उनकी प्यास नहीं बुझती।


यह बात जानते ही उसका दिमाग एकदम से चकरा गया,,,, उसके दिमाग में एक नई युक्ति ने जन्म लिया,,,,, वह इतना तो जान ही गया था कि उसकी मां भी लंड की प्यासी है तभी तो उस दिन वह संपूर्ण नग्नावस्था मैं अपनी प्यास बुझाने की अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही थी।


तभी उसके मन में विचार आया कि अगर ऐसा सच में है तो किसी भी तरह से अगर उसे वह अपना लंड का दर्शन करा दे तो उसके दोस्तों के बताए अनुसार जरूर वह उसका लंड लेगी और तभी वह ईस विचार में पड़ गया कि आखिर वह अपनी मां को अपने मोटे लंबे लंड को दिखाएं कैसे।


शुभम के लिए अगर इस उत्तेजनात्मक राह पर आगे बढ़ना था तों उसे अपनी मां को अपने मोटे तगड़े लंड का दर्शन कराना बेहद जरूरी था। लेकिन इसके लिए हिम्मत की जरूरत थीै जो कि सोच कर ही शुभम की हालत खराब हुए जा रही थी।

अपनी मां को अपना लंड दिखाने की बात सोच कर ही उसके बदन में रोमांच का अनुभव हो रहा था। लेकिन वह दिखाएं तो दिखाएं कैसे इसी उधेड़बुन में लगा हुआ था। उसके मन में ढेर सारे सवाल चल रहे थे उसे इस बात का भी डर था कि अगर कहीं उसने हिम्मत करके अपने लंड को दिखा भी दिया और कहीं उसकी मां इस बात से बुरा मान गई तो क्या होगा वह उसके बारे में क्या सोचेगी,,,,,

उसका एक मन यह सोच कर परेशान हो रहा था और दूसरा मैं यह कह रहा था कि उसके दोस्तों के कहने के अनुसार उसकी मां जिस तरह की क्रियाकलाप घर के पीछे बिल्कुल नग्न अवस्था में करते हुए उत्तेजित हो करके मस्त हुए जा रहीे थी इस से साफ जाहिर हो रहा था कि वह पूरी तरह से चुदवासी है और उसे भी एक मोटे तगड़े लंड की जरूरत है। इस बात को सोचते ही शुभम का बदन एक बार फिर से गंनगना गया।


शुभम को यही लगता था कि उसकी मां ने अभी तक उसके मोटे तगड़े लंबे-लंड के दर्शन नहीं किए हैं लेकिन यह वह नहीं जानता था कि ऊसकी मां ने उसके दमदार लंड का दर्शन कर चुकी है और उसमें आए बदलाव का अपली कारण भी उसका दमदार लंड ही था।

इस बात से अनजान वह अपनी मां को अपना टनटनाया हुआ लंड दिखाने की फिराक में लगा रहता था लेकिन उसकी हिम्मत ही नहीं हो पाती थी कई बार वह अपनी मां के सामने सिर्फ टॉवल पहन कर भी गया लेकिन एक अजीब सी कशमकश की वजह से उसके लंड में पहले की तरह तनाव डर की वजह से आया ही नहीं।

उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह अपनी मां को अपना लंड दिखाए भीे तो कैसे दिखाएं,,,,, खेल के मैदान में उसके दोस्तों की गरम बातें सुनकर दिन-ब-दिन उसके बदन में चुदास की गर्मी बढ़ती जा रही थी।

अब तो वह रोज अपने लंड को पहले की तरह मसलने की बजाय उसे मुट्ठी में भरकर आगे पीछे करते हुए मुठ मारने लगा था यह भी उसके दोस्तों की ही देन थी कि उसे अब पता चलने लगा था कि जिस क्रिया को वह अपनी हथेली में लेकर करता है उसे मुठ मारना और हस्तमैथुन कहते हैं।

जिसने उसे अब आनंद मिलने लगा था वह हर बार हस्तमैथुन करते हुए अपनी मां के बारे में गंदी गंदी बातें सोचता रहता था जिसकी वजह से उसकी उत्तेजना में प्रचंड बढ़ोत्तरी होती थी और वह ढेर सारी सफेद गाढ़े पानी की पिचकारी मारता था। जितनी ज्यादा पिचकारी निकलती थी उतनी ही ज्यादा उसे आनंद की अनुभूति होती थी।
 
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दूसरी तरफ धीरे-धीरे निर्मला अपने आप में ही खुलने लगी थी घर के पीछे एक बार अपने आप से ही सारी हदें पार करने के बाद उसमें थोड़ी सी हिम्मत आ गई थी। अपनी उंगली से आत्म संतुष्टि पाकर उसे अच्छा लगने लगा था लेकिन उसकी प्यास बहुत बड़ी थी जो की उंगली से शांत होने वाली नहीं थी।

इसलिए वह एक बार बैंगन का दुरुपयोग कर चुकी थी लेकिन अब वह खुद ही बाजार में जा कर के अपने हाथों से लंबे मोटे दमदार बैगन को पसंद करके घर में लाती थी। और मौका मिलने पर जब अशोक और शुभम घर पर नहीं होते थे तब वह कमरे को बंद करके एकदम नंगी हो जाती थी और उस बैगन पर हल्का सा तेल लगाकर अपनी बुर में डालते हुए अपनी आंखों को मुंदकर यह कल्पना करने लगती थी कि यह बैगन नहीं बल्की ऊसके बेटे का मोटा तगड़ा लंड है। और सच पूछो तो इस क्रिया में उसे इतनी ज्यादा आनंद की अनुभूति होती थी कि पूछो मत,,,, उसे बेहद मजा आता था।


धीरे-धीरे उसे इसकी आदत सी पड़ गई वह भी अपना मन मार कर रह जाती थी की पति का न सही इस तरह से सब्जियों से ही सहीं वह अपनी प्यास तो बुझा ले रही है।उसकी रसोई में अब लंबे-लंबे सब्जियों और फलों का ढेर लगा रहता था जिनका उपयोग वह ज्यादा कर अपनी बुर की प्यास बुझाने मे हीं करती थी और एक बार उपयोग करने के बाद उसे कूड़ेदान में फेंक देती थी। लेकिन इसकी भी एक मर्यादा थी आखिर कब तक वह फलों और सब्जियों की लंबाई से अपनी बुर की गहराई नापती रहती।

धीरे-धीरे उसे ऐसा लगने लगा था कि फलों और सब्जियों से उससे अब पहले की तरह आनंद प्राप्त नहीं हो रहा है उसे अब जीवित और दमदार लंड की आवश्यकता थी। लेकिन किसका यह एक अनसुलझा सवाल उसके सामने किसी पहाड़ की तरह खड़ा था।

बाहर अगर इस तरह कि वह हरकत करती है तो शायद इसमें उसके पोजीशन और उसके परिवार के साथ साथ उसकी खुद की बदनामी होने का डर पूरी तरह से था। और इस तरह की बात फैलते ही पूरी सोसाइटी में उसका नाम बदनाम होने का डर भी था। घर में तो उसका पति उस पर ध्यान ही नहीं देता था अगर वह ध्यान देता तो शायद उसके सामने इस तरह के हालात ही पैदा नहीं होते।


एक दिन वहं बैठकर इसी बात पर गौर कर रही थी कि उसे शीतल की कही बात याद आ गई कि तेरे तो घर में ही जवान लंड है। उसके कहने का मतलब बिल्कुल साफ था वह उसके बेटे शुभम के बारे में ही बात कर रही थी और उसके पास तो बेहद दमदार और तगड़ा लंड भी था जिससे उसकी बुर की बरसों की प्यास भी पूरी तरह से बुझ सकती थी।

अपनी बेटे का ख्याल मन में आते ही उसके बदन में एकाएक उत्तेजना की लहर दौड़ गई,,, और उसके दमदार लंड का ख्याल आते ही उसकी बुर पसिजने लगी। लेकिन इस बात से फिर से उसका मन डरने लगा की कहीं इस बात का किसी को पता चल गया तो कोई क्या समझेगा हम दोनों के बीच के पवित्र रिश्ता एकदम तार तार हो जाएगा।

फिर उसका मन यह सोचने लगा कि अगर वह इस तरह के कदम उठाने के लिए तैयार भी हो जाती है तो क्या शुभम इस बात के लिए कभी तैयार होगा। वह तो अपनी मां से बेहद प्यार करता है उनकी इज्जत करता है वह ऐसे काम के लिए कभी भी तैयार नहीं होगा बल्कि उसकी नजरों में वह खुद को गिरा देगी फिर कभी भी उसकी आंखों में आंखें डाल कर बात करने लायक नहीं रह जाएंगी।

इस बात को सोचकर वह एकदम से डर गई और वह एक विचार को अपने सीने में ही दफन कर गई इस तरह के कदम उठाने से इसका एक ऐसा भयानक अंजाम होगा इस बात को सोचकर ही उसका मन दहल गया। और अपने मन को वह इस बात से दिलासा देकर समझा ले गई की लंड ना सही वह अपनी बुर की प्यास को सब्जीयो की लंबाई से ही बुझाती रहेगी।
 
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दूसरी तरफ शुभम की भी प्यास बढ़ती ही जा रही थी वह रात दिन अपनी मां को अपने लंड के दर्शन कराने की फिराक में लगा रहता था लेकिन उसमे कभी भी उसे कामयाबी नहीं मिल पा रही थी। इस बात से वह एकदम परेशान हो गया था लेकिन एक दिन सुबह सुबह रविवार के दिन बिस्तर से उठते ही उसके मन में एक विचार एक युक्ति ने जन्म लिया।


बिस्तर से उठते ही उसने अपने सारे कपड़े उतार फेंके और एकदम नंगा हो गया, केवल एक टॉवल लपेटकर कमरे से बाहर आ गया और अपनी मां को इधर-उधर ढूंढने लगा। उसके पापा घर पर नहीं थे वह दो-तीन दिनों के लिए बाहर गए हुए थे।


वह अपनी मां के कमरे में भी उन्हें ढूंढने के लिए गया लेकिन उसके मन में यह आस भी बनी हुई थी कि शायद आज भी उसकी मां उसे नंगी नजर आ जाए लेकिन कमरे में भी उसकी मां नजर नहीं आई तो अब समझ गया कि उसकी मां रसोई घर में ही होगी वैसे तो छुट्टी के दिन वह देर में ही रसोई घर में जाती थी लेकिन कहीं ना पाकर उसे ऐसा लग रहा था कि वह शायद रसोईघर में नाश्ता तैयार कर रही होंगी इसलिए वह सीधे रसोई घर की तरफ गया।

और उसके सोचने के मुताबिक उसकी मां रसोई घर में ही थी जो कि एक दम रेशमी मरून रंग का गाउन पहने हुए थे जो कि उसके बदन से एकदम जगह जगह के उभार और कटाव से चिपका हुआ था जिसकी वजह से उसके बदन का पोर पोर गाउन पहने होने के बावजूद भी उभरकर नजरों को गर्मी प्रदान कर रहा था।






एक बार तो वह कुछ पल के लिए वहीं रुक कर अपनी मां के भराव दार बदन को गाउन के अंदर के उभरे हुए उभारों को देखकर उत्तेजित होने लगा उसके लंड में हल्का हल्का सा तनाव उत्पन्न होने लगा।

इस तरह के परिवेश में वह अपनी मां को पहले भी देख चुका था लेकिन पहले उसका नजरिया साफ था लेकिन अब उम्र के साथ-साथ उसकी नजरों में भी औरतों के बदन के आकर्षण को भाप लिया था इसलिए तो इस समय वह अपनी मां को इस तरह से गाऊन में खड़े हुए देखकर उत्तेजना का अनुभव कर रहा था।


उसकी मां कुछ काम कर रही थी जिसकी वजह से उसके बदन में हो रहे हलन -चलन की वजह से उसके नितंबों में थिरकन सी हो रही थी। लेकिन पहले की अपेक्षा यह थिरकन इस रेशमी गाउन में साफ-साफ महसूस हो रही थी।




जिसे देख कर शुभम के बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ रही थी और उसके लंड का तानाब कुछ ज्यादा ही बढ़ता हुआ नजर आ रहा था। टॉवल का आगे वाला भाग उठता ही जा रहा था। जिसकी वजह से शुभम को मजा तो आ रहा था लेकिन डर भी लग रहा था कही उसकी मां की नजर उस पर ना पड़ जाए।
 
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शुभम मात्र अपने बदन पर टावल लपेटे किचन के बाहर खड़ा था। रोजाना कसरत और व्यायाम करने की वजह से इस उम्र में थी शुभम का बदन एकदम गठीला हो चुका था चौड़ा सीना मजबूत बांहे,,, किसी भी औरत या लड़की को आकर्षित करने के लिए काफी था और तो और उसके पास हथियार भी ऐसा था कि किसी भी औरत को वह दीवानी बना दे।

कुछ देर तक शुभम यूं ही दरवाजे पर खड़ा अपनी मां को निहारता रहा और फिर किचन में प्रवेश करते हुए बोला।



मम्मी,,,,,, ओ,,,,,,,, मम्मी,,,,,,




क्या हुआ बेटा (वह शुभम की तरफ बिना देखे ही कढ़ाई में चमची हिलाते हुए बोली)




मम्मी घर मे मूव या आयोडेक्स है क्या?




मूव और आयोडेक्स का नाम सुनते ही निर्मला पीछे की तरफ घूमी,,,, जैसे ही उसकी नजर शुभम के बदन पर गई तो उस के अधनंगे बदन को देखती ही रह गई,,,, और हड़बड़ाते हुए दबी दबी आवाज में बोली।



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मममुव,,,, और आयोडेक्स लेकिन क्यों?



इतना कहने के बावजूद भी उसकी नजर शुभम के चौड़े सीने पर और नीचे की तरफ टॉवल में बने हल्के हल्के उभार पर ऊपर से नीचे फिर रही थी। शुभम को इस तरह से टॉवल में देखकर वह एकदम हैरान थी। क्योंकि इस तरह से केवल टावल पहन कर वहं उसके सामने जल्दी नहीं आता था।


शुभम कभी भी अपनी मां के सामने सिर्फ टावल पहनकर नहीं आता था लेकिन आज उसे इस अवस्था में देखकर निर्मला भी हैरान थी,,, शुभम की नंगी चोड़ी छातियां और मजबूत बांहें देखकर निर्मला के मन में गुदगुदी होने लगी थी। खास करके जांघों के बीच हथियार वाली जगह पर हल्का सा उभार था और इस उभार को निर्मला अच्छी तरह से समझती थी। निर्मला उसी स्थान पर नंगे तगड़े और खड़े लेने की कल्पना कर के अंदर ही अंदर मचलने लगी।


शुभम अपनी मां से दवा के बारे में पूछ रहा था लेकिन वह उसके खूबसूरत और मजबूत बदन को देखकर पिघलने लगी थी। वैसे भी निर्मला पुरुष संसर्ग के लिए तड़प रही थी।
निर्मला की बातें उसके गले में ही जैसे अटक सी गई थी वह बस हक्की-बक्की सी अपने बेटे के बदन को ही देखे जा रही थी।


शुभम अपनी मां को इस तरह से अपने बदन को निहारता हुआ देखकर अंदर ही अंदर खुश हो रहा था। वह फिर से अपनी मां से बोला।


मम्मी मैं कुछ पूछ रहा हूं आप बता क्यों नहीं रही है।


शुभम की बात सुनते ही जैसे उसे होश आया हो इस तरह से हड़बड़ाते हुए फिर बोली।



ओ ओ ओ हां वही तो पूछ रही हूं तू मुव और आयोडेक्स का करेगा क्या?




आप मम्मी बस दे दो मुझे लगाना है।




लगाना है,,,,,,,, लेकिन कहां,,,,,,,,, लगाना है कहां तुझे चोट लग गई,,,,,, कुछ बताएगा,,,,


एक मां होने के नाते उसे अपने बेटे की फिक्र भी हो रही थी और उसके मदमस्त बदन को देखकर वह अंदर ही अंदर मस्त भी हो रही थी।



मैं लगा लूंगा मम्मी बस आप मुझे बता दो हैं कहां ? जल्दी करो मुझे लगाना है जलन सी महसूस हो रही है ।




जलन सी हो रही है लेकिन कहां जलन सी हो रही है मुझे बताओ तो सही मैं खुद उसे लगाकर मालिश कर देती हूं।


निर्मला की बातों में शुभम के लिए फिक्र साफ झलक रही थी और वह शुभम से बार बार चोट के बारे में पूछ भी रही थी लेकिन शुभम था की जानबूझकर बता नहीं रहा था। क्योंकि वह भी यही चाहता था वह थोड़ा सा अपनी मां को परेशान करना चाहता था। इसलिए वह बोला।



मम्मी मैं अब बड़ा हो गया हूं अपने हाथ से लगा लूंगा और वैसे भी जंहां लगाना है उसके बारे में आपको बताया नहीं जा सकता।



अपनी मां से बात करते समय शुभम की भी नजरें उसके कामुक बदन पर इधर उधर चली जा रही थी। जिसकी वजह से उसके लंड का तनाव बढ़ता ही जा रहा था। और टावल तंबू में तब्दील होता नजर आ रहा था। शुभम की बात सुनकर निर्मला आश्चर्य के साथ बोली।



हां देख रही हुं कि तू बड़ा हो गया है,,,



यह शब्द कहते हुए निर्मला की नजर टॉवल में बन रहे तंबू पर थी और ऐसी कौन सी जगह पर तुझे चोट लग गई है कि तु उसके बारे में मुझे बता नहीं सकता है। तुम मुझे जल्दी बता मुझे यूं परेशान मत कर मुझे तेरी फिक्र हो रही है।



मम्मी अब मैं तुम्हें कैसे बताऊं


इतना कहते हुए शुभम अपनी नजरों को इधर उधर फेर कर अपने अंदर आई शर्म को बयां कर रहा था। वह जानबूझकर अपनी मां को ना बताने का नाटक कर रहा था बल्कि अंदर से वह खूद उसे सब कुछ बताना चाहता था क्योंकि यही तो उसका आईडिया था। लेकिन वो इतने जल्दी बताना भी नहीं चाहता था क्योंकि अगर वह तुरंत बता दें इस तरह के संस्कार उसके थे नहीं लेकिन वासना और मन में ऊठ रहे ऊन्माद की वजह से वह भी अपने आप से एकदम मजबूर हो चुका था।



अब देख इतना भी तू बड़ा नहीं हो गया है कि अपनी मां को कुछ बता ना सके चल बता मुझे पता तो चले कि तकलीफ कैसी है कहीं ऐसा ना हो कि शर्म के मारे तो मुझे कुछ बताए नहीं और धीरे-धीरे वह तकलीफ बड़ी समस्या में बदल जाए।



शुभम के चेहरे पर आई शर्म की रेखाओं को देखकर निर्मला को इतना तो समझ में आ गया था की समस्या उसके गुप्त भाग को लेकर ही थी और इस बात को मन में समझते ही निर्मला के मन में अजीब प्रकार की गुदगुदी होने लगी थी।


बता भी दे बेटा,,, मैं दवा लगा देती हुं।




मम्मी मैं कैसे बताऊं मुझे शर्म आ रही है आप मुझे दवा दे दो मैं लगा लूंगा आप चिंता मत करो।




अरे ऐसे कैसे चिंता ना करो मेरे बेटे को चोट लगी है उसे दर्द हो रहा है और मैं चिंता ना करु। ऐसे कैसे हो सकता है भला।



मां बेटे दोनों के मन में गुदगुदी हो रही थी शुभम को आज ऐसा लगने लगा था कि वह अपनी मम्मी को जो चाहता है वह दिखा ही देगा और उसकी दोस्तों की बातें कहीं सच है,,, तो उसके सारे अरमान पूरे भी हो जाएंगे।


और निर्मला के मन में इस बात से बिल्कुल भी मची हुई थी कि अगर उसका सोचना सच हुआ तो आज उसे भी उसके बेटे के दमदार लंड को नजदीक से देखने का सुनहरा मौका मिल जाएगा और अगर किस्मत अच्छी हुई तो शायद आज उसे वह अपने हाथों से स्पर्श भीे कर पाएगी। उस की गर्माहट, उसके कड़कपन को वह अपनी हथेली में महसूस कर पाएगी यह सब सोचकर ही निर्मला की बुर गीली होने लगी थी।
 
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निर्मला के मन में इस बात से खलबली मची हुई थी कि अगर उसका सोचना सच हुआ तो आज उसे भी उसके बेटे के दमदार लंड को नजदीक से देखने का सुनहरा मौका मिल जाएगा और अगर किस्मत अच्छी हुई तो शायद आज उसे वह अपने हाथों से स्पर्श भीे कर पाएगी। उस की गर्माहट, उसके कड़कपन को वह अपनी हथेली में महसूस कर पाएगी यह सब सोचकर ही निर्मला की बुर गीली होने लगी थी। वह एक बार फिर से अपनी बात को दोहराते हुए बोली।



शुभम जल्दी बता बेटा हो सकता है मैं तेरी कुछ मदद कर सकूं।



इतना पूछने के बाद शुभम को लगने लगा था कि आप उसकी मां को बता देना चाहीए था। अब समय आ गया था अपनी युक्ति को आजमाने का इस वक्त शुभम का दिल जोरों से धड़क रहा था।

निर्मला की नजर अपने बेटे पर ही टिकी हुई थी खास करके उसकी जांघों के बीच उभरते हुए उस हिस्से पर जिसके लिए वह बरसों से प्यासी थी।


शुभम अपनी नजरें झुका कर शरमाते हुए हिचकीचा रहा था लेकिन अपनी मां को बताना भी तो था आखिर वह भी तो यही चाहता था इसलिए धीरे से बोला।



मम्मी,,,,,,,, मम्मी अब,,,,,,,, मैं कैसे बताऊं तुम इतना जिद कर रही हो तो।


इतना कहते हुए अपनी नजर को दूसरी तरफ घुमा लिया।




आप दे ही देती तो अच्छा था,,,,,, फिर से ऐसा जताते हुए बोला ताकि उसकी मां को लगे कि वह सच में शर्मा रहा है।




तू बहुत जिद कर रहा है शुभम अगर बताना नहीं था तो मेरे पास आया क्यों ढूंढ लेता कहीं से भी,,,,,,,



निर्मला की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी उस जगह के बारे में जानने के लिए जिसके बारे में बताने से शुभम इतना शर्मा रहा था और वैसे भी लड़के उस जगह के बारे में बताने से तभी शर्माते हैं जब चोट यां कोई समस्या उनके लंड से संबंधित हो और इसीलिए निर्मला की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी उस अंग के बारे में जानने के लिए लेकिन शुभम की ना नुकुर की वजह से उसे गुस्सा भी बहुत आ रहा था।

अपनी मां को इस तरह से नाराज़ होता देखकर शुभम को अब पर्दा उठाना ही उचित लगा इसलिए वह बोला।



मम्मी गुस्सा मत करो मैं क्या करुं मैं भी मजबूर हूं मेरी जगह अगर कोई और होता तो वह भी शायद इसी तरह से बर्ताव करता।




मुझे पता है बेटा लेकिन बेटे का भी तो फर्ज़ होता है अपनी मां को अपनी समस्या के बारे में बताने का तू नहीं समझ रहा है अगर छोटी सी समस्या को तू अपने अंदर दबाकर रखेगा तो कहीं ऐसा ना हो जाए कि वह छोटी सी समस्या बड़ी मुसीबत बन जाए और उसके बाद तो,,, तुझे और हमें ही भोगना पड़ेगा।


निर्मला अपने बेटे को फुसलाते हुए बोली और वैसे भी अगर निर्मला इतना मस्का नहीं लगाती तो भी शुभम बताने ही वाला था क्योंकि यही तो उसके मकसद में कामयाब होने का पहला चरण था।



हां मम्मी बताता हूं। वो,,,, वो,,, क्या है कि क्रिकेट खेलते समय मुझे बोल लग गई थी लेकिन उस दिन तो कुछ नहीं हुआ आज सुबह से हल्का हल्का दर्द कर रहा है। इसलिए मैं तुमसे दवा मांग रहा हूं।



बोल लग गई लेकिन कहां लग गई?




मम्मी वही तो मै बता नहीं पा रहा हूं बोल भी एसी जगह लगी है कि बताने में मुझे शर्म आती है।।



शुभम के मुंह से इतना सुनते ही निर्मला के मन में गुदगुदी सी होने लगी उसका अंदाजा सही लग रहा था चोट उसके लंड पर ही लगी थी जिसे वह बताने में शर्मा रहा था। उसका मन अंदर से अति प्रसन्न होने लगा था। उसे अपना सपना सच होता नजर आ रहा था। उसकी आंखों के सामने एक बार फिर से शुभम का नंगा खड़ा लंड लहराने लगा जिसके बारे में सोचते ही उसकी बुर अंदर ही अंदर पसीजने लगी। अपनी कामोत्तेजना को अपने अंदर ही समेटे हुए वह बोली।




बेटा मैं तेरे अंग अंग से वाकीफ हुं। शर्मा मत बता दे मुझे वैसे भी मैं गैर थोड़ी हूं जो मुझे बताने में शर्म आ रही है।



निर्मला चाहती थी कि शुभम जल्दी से जल्दी बता दें क्योंकि उस बारे में जानने की उत्सुकता उसके चेहरे पर साफ नजर आ रही थी।




मम्मी तुम कहती हो तो मैं बता दे रहा हूं लेकिन यह बात पापा से मत बताना मुझे शर्म आएगी।




ठीक है उन को नहीं बताऊंगी तु मुझे तो बता।




ठीक है मम्मी मुझे वह गेंद इस जगह पर लगी थी।( तौलिए के ऊपर से ही अपने लंड की तरफ उंगली से इशारा करते हुए।)



शुभम का इशारा देखते ही उत्तेजना के मारे निर्मला का गला सूखने लगा क्योंकि वह अपने लंड की तरफ इशारा कर रहा था। निर्मला की बांछे खिल गई उत्तेजना और प्रसन्नता के भाव चेहरे पर आ जरूर रहे थे लेकिन वह उन्हें छिपा ले जा रही थी। उसके इशारे करने मात्र से ही निर्मला का मन कहां भरने वाला था इसलिए वह बोली।



कहां बेटा ऐसे कैसे मुझे बता तो सही,,,, तेरी जांघ पर लगी है क्या?




नहीं मम्मी जांघ पर नहीं इस जगह( तोलिए में उठे हुए भाग पर इशारा करते हुए) पर लगी है।


शुभम अपनी मम्मी के सामने इस तरह से अपनी मां को दिखाते हुए अपने लंड की तरफ इशारा करके उत्तेजित होने लगा था जिसकी वजह से उसके तौलिए में तंबू का साइज बढ़ने लगा था उसे देखकर निर्मला का मुंह खुला का खुला रह गया और वह बोली।



यह तेरे तोलिया में क्या है जो इतना उठता चला रहा है।
( तौलिए में बनते तंबू को देखकर निर्मला की हालत खराब होने लगी थी साथ ही साथ शुभम की उत्तेजना भी बढ़ती जा रही थी उसे आने वाले कल के बारे में सोच कर दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी।)




इसी पर तो मम्मी मुझे चोट लगी है।



निर्मला की सांसे ऊपर नीचे होने लगी उसे अब सत प्रतिशत विश्वास हो गया था कि आज वह अपने बेटे के हथियार को एकदम करीब से नजर भर कर देख लेगी,,,,,,

उत्तेजना के मारे शुभम का भी गला सूख रहा था उसे भी यकीन हो चला था कि आज वह अपनी मां को अपने लंड के दर्शन जरुर करा देगा। उसकी मां जिस तरह से उस जगह के बारे में पूछताछ कर रही थी उसे भी इतना आभास तो हो गया था कि वह भी उसके लंड को देखने के लिए उत्सुक है। फिर निर्मला बोली।




चल दिखा मुझे कैसी चोट है जो तुझे परेशान किए हुए हैं।



निर्मला फिर से तो शुभम से पूछने लगी और इस तरह से अपनी मां के द्वारा पूछे जाने पर शुभम को लगने लगा कि अपनी मां को साफ साफ बता देना चाहिए क्योंकि अंदर ही अंदर वह भी जानती थी कि कौन सी जगह पर मुझे चोट लगी है। जोकी चोट बोट कुछ नहीं लगी थी यह तो बस बहाना ही था। इसलिए वह बोला।



लललल,,,,,,,,, लंड पर लगी है मम्मी,,,,,,,

उत्तेजना और घबराहट की वजह से हकलाते हुए बोला। लेकिन उसके मुंह से अपनी मां के सामने लंड शब्द निकलते ही उसकी नजरें शर्म से नीचे झुक गई।


शुभम भले ही अपनी मां को गंदी नजरों से देखने लगा था भले ही वह अपनी मां के साथ संभोग सुख का आनंद लेना चाहता था। लेकिन अभी तक वह अपनी मां के सामने पूरी तरह से खुला नहीं था इसलिए इस तरह के शब्द अपनी मां के सामने बोलना उसके संस्कार में नहीं था। लेकिन एक बार संस्कार की जगह वासना ने ले ली तो सारे संस्कार और मर्यादा धरी की धरी रह जाते हैं।


निर्मला को भी अपने बेटे के मुंह से इस शब्द को सुनने की बिल्कुल भी आशा नहीं थी लेकिन आज पहली बार अपने बेटे के मुंह से लंड शब्द सुनकर उसके बदन में झुनझुनी सी होने लगी थी। उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अपने बेटे के इस शब्द का वहां कैसे प्रतिक्रिया दें। लेकिन वह तो यही समझ रही थी कि उसके बेटे को सच में गेंद से चोट लगी है और उसके लंड पर ही लगी है। उत्सुकता तो थी ही अपने बेटे के लंड को देखने की लेकिन इस समय उसे चिकित्सा की भी जरूरत थी।


निर्मला के मन में यह बात भी चल रही थी कि अगर कहीं शर्म के मारे वह खुद अपने बेटे का योग्य इलाज ना कर सकी तो कहीं ऐसा ना हो कि छोटा सा घाव बड़ा रूप धारण कर ले और बाद में तकलीफ झेलना पड़ जाए। इसलिए वह अपने बेटे की मुंह से लंड शब्द को सुनकर अपनी प्रतिक्रिया में शख्ति ना दिखाते हुए मुस्कुराती ताकि उसकी मुस्कुराहट देखकर शुभम का डर उसके मन से निकल जाए। इसलिए वह मुस्कुराते हुए बोली।




ओहहहहह,,,,, वहां लगी है। ( मुस्कुराते हुए) तू भी नहीं इतना शर्मा रहा है कि जैसे,,,,,,,, ठीक है मानती हूं कि उस जगह पर चोट लगी है ऐसा बताने में शर्म महसूस होती है लेकिन मुझसे कैसी शर्म और मुझे नहीं बताएगा तो कैसे बताएगा अच्छा हुआ तूने मुझे बता दिया मैं तेरा अच्छे से इलाज कर दूंगी,,,,,




शुभम जब लंड शब्द बोला था तब उसके चेहरे पर उत्तेजना और घबराहट साफ नजर आ रही थी। वह इसलिए घबरा रहा था कि कहीं उसकी मां यह सब्द ऊसके मुंह से सुन कर उस पर बिगड़ ना जाए। लेकिन अपनी मां को मुस्कुराते हुए देखकर वह थोड़ा सहज हाेने लगा उसके मन से डर बाहर निकलने लगा। वह भी आश्चर्य से अपनी मां को देख ही रहा था कि तभी उसकी मां बोली।



चल अच्छा मुझे अब दिखा तो चोट कैसी है ? ( निर्मला एकदम बेझिझक होकर बोली। )



लेकिन अपनी मां की बात सुनकर शुभम के पसीने छूट गए। पहले तो वह सिर्फ कल्पना में ही ना जाने क्या-क्या सोच कर रखा था। उसे यह बड़ा आसान लग रहा था वह सोच कर रखा था कि वह अपनी मां को बेझिझक हो कर के अपना खड़ा लंड दिखाएगा और वह मस्त होकर के उसके साथ संभोग सुख प्राप्त करने के लिए तड़पने लगेगी। लेकिन इस समय अपनी मां के सामने वह शर्म के साथ साथ खबरा भी रहा था।

जब की सबकुछ साफ हो चुका था उसकी मां भी उसका लंड देखना चाहती थी जिस पर चोट लगी थी। वैसे भी वह चोट नहीं चोट के बहाने उसके दमदार लंड को देखना चाहती थी जिसकी ना जाने ऊसने कितनी बार कल्पना करके अपनी बुर का पानी निकाल चुकी थी। शुभम अपनी मां की बात सुनकर हक्का-बक्का सा खड़ा ही रह गया उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें तभी उसकी मां फिर बोली।



क्या हुआ दिखा तो ऐसे खड़ा क्यों है?




मम्मी मुझे शर्म आ रही है मैं कैसे आपको दिखाऊं,,,,, और इस समय तो देखो कैसा है। (


शुभम शरमाते हुए बोला और शर्म के मारे अपनी नज़रें नीचे झुका लिया।



निर्मला अपने बेटे के कहने का मतलब को साफ साफ समझ चुकी थी क्योंकि इस समय उसका लंड पूरी तरह से खड़ा था जो कि तौलिए में तंबू बनाए हुए था। वह अपने बेटे की मनोस्थिति को अच्छी तरह से समझ रही थी इसलिए वह बात को संभालते हुए बोली।)



अच्छा कोई बात नहीं तुम मेरे कमरे में चलो मैं आती हूं और दवा भी वहीं रखी हुई है।




ठीक है मम्मी,,,,, इतना कहकर वह नजर झुका कर अपनी मां की कमरे की तरफ जाने के लिए रसोई घर से निकल गया और निर्मला उसे जाते हुए देख रही थी और उसके होठों पर एक अजीब प्रकार की मुस्कान तैरने लगी।


संस्कारों और मर्यादाओं से सुसज्जित निर्मला अपने बदन कि प्यार और वासना के भंवर में एकदम से जकड़ा चुकी थी। किस भंवर से निकलने का उसके पास कोई रास्ता नहीं था वह जिस रास्ते से गुजर रही थी उसकी मंजिल असीम सुख का सागर था और उस सुख के सागर का पूरी तरह से आनंद लेने के लिए संस्कार मर्यादा रीति रिवाज और मां बेटे के बीच पवित्र रिश्ते का केंचुल ऊतारना ही पड़ता और केंचुल को उतारने के लिए निर्मला अपने आप को पूरी तरह से तैयार कर चुकी थी।


शुभम अपनी मां के कमरे में जा चुका था निर्मला अभी भी रसोई घर में थी उसके मन में अजीब प्रकार की गुदगुदी हो रही थी। उसका मन हर्षोल्लास से भर चुका था आज उसकी मनोकामना पूरी होने वाली थी। वह जल्दी से गैस बंद करके अपने कमरे में पहुंच गई।
 
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कमरे मे प्रवेश करते ही उसकी नजर शुभम पर गई जोकि बिस्तर के किनारे खड़ा था और उसके चेहरे पर शर्म की रेखाएं साफ नजर आ रही थी। शर्म के बावजूद भी उसके तौलिए में उसका लंड पूरी तरह से तैयार खड़ा था जिस पर नजर पड़ते ही निर्मला की बुर उत्तेजना के मारे फुलने पिचकने लगी। शुभम शरमा भी रही था और पूरी तरह से उत्तेजित भी था।


निर्मला उसकी हालत देखकर अंदर ही अंदर खुश हो रही थीे वह बिना कुछ बोले ही अलमारी का ड्रोवर खोलकर उसमें से मुव निकाल ली। शुभम तिरछी नजरों से अपनी मां को ही देख रहा था। निर्मला मुव के कैप को खोलते हुए बोली



शुभम अब अपना तौलिया उतार दे और मुझे बता कि किस जगह पर चोट लगी है।




इतना कहते हुए वह खुद बिस्तर पर बैठ गई लेकिन शुभम ज्यों का त्यों खड़ा रहा।



अब क्या हुआ तुझे?




दरवाजा,,,,,, ( दरवाजे की तरफ नजर घुमाते हुए बोला।)



अरे घर में हम दोनों के सिवा तीसरा कोई भी नहीं है । अच्छा रूक में दरवाजा बंद कर देती हुं।


इतना कहने के साथ ही वह बिस्तर पर से उठी और दरवाजा बंद करके वापस आकर बिस्तर पर बैठ गई।



चल अब जल्दी से तौलिया हटा,,, मे जल्दी से दवा लगा दुं मुझे और भी काम करना है।




मैं कैसे मुझे शर्म आ रही है।



अच्छा इधर आ कुछ शर्माता बहुत है सब कुछ मुझे ही करना होगा।



अपनी मां की बात सुनकर शुभम धीरे धीरे अपनी मां के सामने आ करके खड़ा हो गया उसे ईस समय बहुत घबराहट हो रही थी क्योंकि वह अच्छी तरह से जानता था कि कुछ ही पल में हो अपनी मां के सामने पूरी तरह से नंगा खड़ा होने वाला है। लेकिन इस समय जिस तरह से वह घबरा रहा था इस बारे में उसने कभी सोचा नहीं था मैं तो यह सोच रहा था कि वह खुद ही सब कुछ कर लेगा लेकीन अपने सोच के विपरीत वहां इस समय एकदम घबरा रहा था लेकिन उसके बदन में उत्तेजना बिल्कुल पहले की ही तरह बनी हुई थी।


शुभम अपनी मां के ठीक सामने खड़ा था और निर्मला बिस्तर पर बैठी हुई थी उसकी नजर शुभम के तोलिए के बीचो-बीच थी जिसने बड़ा ही भयंकर तंबू बना हुआ था उस तंबू को देखकर निर्मला समझ गई थी कि अंदर का हथियार बेहद दमदार और तगड़ा है जो कि वह पहले भी देख चुकी थी लेकिन आज आंखों के इतने करीब से देखने की उत्सुकता से उसके बदन की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी।



अब शुभम को तो लिया उतारने के लिए कहना बेकार था क्योंकि फिर से वह शर्माने का बहाना कर देता। जोकि निर्मला को सच में लग रहा था कि शुभम शर्मा रहा है इसलिए वह अपना हाथ आगे बढ़ा कर तोलिया को एक ही झटके में शुभम के बदन से खींचकर अलग कर दी और अगले ही पल जो नजारा सामने आया उसे देखते ही निर्मला की हालत खराब हो गई।

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उसकी आंखों में कामुकता की चमक साफ नजर आने लगी, वह फटी आंखो से अपने बेटे के तगड़े और खड़े लंड को देखे जा रही थी। लंड इतना ज्यादा टाइट था कि तन कर उसका सुपाड़ा छत की तरफ मुंह उठाए खड़ा था।

जिसे देखते ही निर्मला की बुर से नमकीन रस की बूंदे टपकने लगी। जिंदगी में पहली बार वह अपने पति के बाद किसी और का लंड देख रही थी तो वह उसका बेटा ही था।

लंड की आश्चर्यजनक लंबाई और उसकी मोटाई को देखकर निर्मला की सांसे ऊपर-नीचे हो गई। उस दिन तो वहां दूर से ही देख कर एक दम मस्त हो गई थी लेकिन आज तो वह एकदम करीब से अपने बेटे के लंड को देख रही थी।

शुभम के लंड में खून का दौरा इतनी तेजी से हो रहा था कि लंड की अंदरूनी नशे लंड की ऊपरी सतह पर उपस आई थी,,, जिसे देख कर निर्मला की बुर में गुदगुदी सी होने लगी थी। निर्मला तो भौंचक्की सी अपने बेटे के लंड को देखे जा रही थी। लंड का सुपाड़ा करीब डेढ़ इंच का था। सुपाड़े की इतनी भयंकर गोलाई को देखकर निर्मला तो एक पल के लिए सोचने लगी कि इतना मोटा सुपाड़ा उसकी बुर में घुसेगा केसे।



अपनी मां के सामने इस तरह से नंगा खड़े होने पर और एकदम खड़ा लंड अपनी मां को दिखाने पर उसे शर्म सी महसूस हो रही थी इसलिए वह अपनी नजरें इधर उधर फेर ले रहा था लेकिन जिस तरह से उसकी मां उसके टनटनाए हुए लंड को देख रही थी, उसे देखकर शुभम के बदन में झुनझुनी सी फैल जा रहीे थी।


निर्मला तो अपने बेटे के लंड को देखकर अंदर से एकदम उत्साहित और उन्मादित नजर आ रही थी।


शुभम अपनी मां के सामने एकदम निर्वस्त्र खड़ा था उसका लंड पूरी तरह से टन टनाकर छत की तरफ देख रहा था। निर्मला के कमरे का यह नजारा बेहद कामुकता से भरा हुआ था। इस द्रश्य की दोनों ने शायद कल्पना भी नहीं की थी निर्मला तो कभी सोच भी नहीं सकती थी कि उसकी जिंदगी में ऐसा भी पल आएगा कि वह अपने बेटे के दमदार लंड को इतने करीब से देख सकेगी।


हांलाकी शुभम तो इस तरह के नजारे कि सिर्फ कल्पना ही किया था और कल्पना में वह ऐसे नजारों में खुदको बहुत हिम्मत वाला मर्द समझता था जो कि अपनी मां के साथ सब कुछ करने की पहल करता था लेकिन कल्पना से वास्तविकता बिल्कुल अलग थी।

इस समय शुभम अपनी मां के सामने नग्नावस्था मैं घबरा रहा था लेकिन उत्तेजना उसके बदन में पूरी तरह से छाई हुई थी लेकिन किसी भी बात के लिए पहल कर पाना उसके लिए मुश्किल हुए जा रहा था।

लेकिन कुछ भी हो जो भी होना था उसमें दोनों की इच्छा शामिल नहीं थी लेकिन पहलकर पाने में दोनों आनाकानी ही कर रहे थे मर्यादाओं की दीवार के बीच इस लुका छिपी के खेल में मजा तो दोनों को आ रहा था लेकिन आगे बढ़ने की हिम्मत किसी में नजर नहीं आ रही थी लेकिन अपनी मंजिल को पाने के लिए किसी ना किसी को तो आगे बढ़ना ही था।

निर्मला पूरी तरह से चुदवासी हो चुकी थी। निर्मला बरसों से प्यासी थी उसे अपने बेटे जैसे ही दमदार लंड की जरूरत थी इसलिए तो वह ललचाई आंखों से अपने बेटे के लंड को देखे जा रही थी।


शुभम भी जवान हो रहा था औरतों के बदन के भूगोल के बारे में पूरी तरह से जानना चाहता था और इस समय उसके लिए भूगोल की किताब खुद उसकी मां ही थी। जिस के बदन का हर एक पन्ना वह अपने हाथों से पलट कर उस से रूबरू होना चाहता था।भूगोल की किताब के हर एक पन्ने को अपनी आंखों से अपने होठों से उसके हर एक शब्द को पढ़ना चाहता था। इसलिए तो आज वह इतनी हिम्मत दिखा पाया था।



निर्मला अपने बेटे के लंड को एकटक देखते हुए कुछ पल यूं ही गुजार दी दोनों के बीच कोई भी बातचीत ना हो पाए शुभम था कि अपनी नजरें इधर उधर फेर कर अपनी भावनाओं पर काबू किए हुए था। और उसका खड़ा लंड था कि निर्मला की भावनाओं को और भी ज्यादा भड़का रहा था। कुछ समय तक यूं ही एक टक अपने लंड की तरफ अपनी मां को देखते हुए शुभम से रहा नहीं जा रहा था इसलिए वह बोला।



मम्मी मुझे दर्द हो रहा है। ( शुभम बात को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से बोला था और उसकी बात सुनकर जैसे निर्मला नींद से जागी हो इस तरह से हड़बड़ाते हुए बोली।)



हं हं,,,,,, तततत,,,, तु,,,,, तू मुझे बता की लगी कहां पर है कहां पर दर्द हो रहा है। मैं उस जगह पर दवा लगाकर मालिश कर देती हूं।



मम्मी बस तुम रहने दो मैं दवा लगा लेता हुं मुझे शर्म आ रही है।



धत्त,,,,,,, पागल है तू अब शर्माने की क्या जरूरत है बंद कमरे में हम दोनों के सिवा और कौन है जो बेवजह शर्मा रहा है।अब जल्दी से मुझे बता किस जगह पर दवा लगाना है वरना मैं तेरे पूरे लंड,,,,,,,,, पर ( अपनी बात को संभालते हुए) इस पर दवा लगा दूंगी,,,,,


उन मादक माहौल का असर निर्मला पर पूरी तरह से छा चुका था इसलिए अनजाने में ही उसके मुंह से लंड शब्द निकल गया था। इस तरह के शब्द को सुनकर शुभम तो हैरान रह गया क्योंकि उसे आशा नहीं थी कि उसकी मां के मुंह से इस तरह के सब देख लेंगे इसलिए तो वह अपनी मां के मुंह से लंड शब्द सुनकर एकदम उत्तेजित हो गया।

वैसे सही मायने में निर्मला को दी ऐसे शब्द बोलने की आदत तो थी नहीं और ना ही कभी उसके मुंह से इस तरह की अश्लील शब्द निकले थे लेकिन आज उत्तेजना की वजह से वह अपने जज्बात पर कंट्रोल नहीं कर पाई और उसके मुंह से इस तरह की अश्लील शब्द निकल गए लेकिन यह शब्द बोलते हुए उसके बदन में भी झुनझुनी सी फैल गई थी।


अपनी मां की यह बात सुनकर शुभम मन ही मन सोचने लगा कि अच्छा ही होता कि अगर,, मम्मी पूरे लंड पर दवा लगाकर मालिश करती तो उसे बेहद मजा आ जाता। इसलिए वह बहाना बनाते हुए बोला।


वैसे तो मम्मी पूरा लंड ही दुख रहा है लेकिन चोट इस जगह (उंगली से लंड की फूली हुई नस की तरफ इशारा करते हुए जो की चोट की वजह से नहीं बल्कि उत्तेजना की वजह से फुली हुई थी।) पर लगी है।


( शुभम के उंगली के द्वारा निर्देश की हुई जगह पर देखते हुए निर्मला बोली।)



ओहहहहह,,,, तभी इधर की नस फूली हुई है ला मैं दवा लगा देती हूं,,,( इतना कहते हुए वह मुंव की ट्यूब को दबाकर उसमें से दवा निकालने लगी, और दवा को ऊंगली पर थोड़ा सा निकालकर) थोड़ा मेरे करीब तो आ,,,


शुभम अपनी मां की बात मानते हुए थोड़ा सा और करीब आ गया अब शुभम के लंड और निर्मला के फोटो के बीच सिर्फ आधे पेट की दूरी थी निर्मला अपने बेटे के लंड के बिल्कुल करीब थी निर्मला उत्तेजना से एक दम भर चुकी थी।


निर्मला अब अपने बेटे के लंड पर दवा लगाना शुरू की और जैसे ही निर्मला की उंगलियां शुभम के खड़े लंड पर स्पर्ष हुई तो उस की गर्माहट उसे पूरी तरह से गर्म कर गई।


वह अपनी नाजुक नाजुक उंगलियों को हल्के हल्के से अपने बेटे के टाइट लंड पर फैिसलाने लगी। निर्मला तो कभी सोची भी नहीं थी कि वह कभी भी अपने बेटे के लंड को इस तरह के सह लाएगी भले ही दवा लगाने के ही बहाने ही सही।


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अपनी मां के नाजुक नाजुक उंगलियों का स्पर्श शुभम को अपने लंड पर होते ही उसका बदन पूरी तरह से गंनगना गया। उसे बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी उसका आईडिया काम कर गया था।
 
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निर्मला भी बड़े मजे लेकर अपने बेटे के लंड पर दवा लगा रही थी। शुभम की सांसे उत्तेजना के मारे उखड़ने लगी थी वह सिर्फ कल्पना में ही इस दृश्य को देख कर मजे लिया करता था लेकिन आज हकीकत में इसकी कल्पना तादृश्य साकार हो रही थी। उत्तेजना के मारे उसका गला सूख रहा था ठीक से वह अपना थूक भी नहीं निकल पा रहा था।

एक औरत के और वह भी उसकी खुद की मां के द्वारा लंड पर मालिश करने की वजह से लंड का कड़क पन और भी ज्यादा बढ़ गया था।

उंगली का स्पर्श होने पर ही निर्मला को इसका आभास हो गया था कि उसके बेटे का लंड किसी लोहे की छड़ की तरह ही एकदम कड़क है।


शुभम बड़े ध्यान से अपनी मां की तरफ देख रहा था जो कि एकदम मस्ती से उसे दबा लगा रही थी और यह भी देख रहा था की उत्तेजना के मारे उसकी मां का चेहरा एकदम लाल टमाटर की तरह हो गया था उसका मुंह खुला का खुला था तभी शुभम की नजर निर्मला के चेहरे से नीचे की तरफ गई तो वह हैरान रह गया। क्योंकि निर्मला ने गाउन पहन रखी थी और वह भी लॉकट और थोड़ा सा नीचे झुक कर बैठने की वजह से उसकी आधे से भी ज्यादा चूचियां गांऊन से बाहर झांक रही थी।







जिस पर नजर पड़ते ही शुभम की हालत और खराब होने लगी उसके जी में तो आ रहा था कि वह अपने दोनों हाथों में अपनी मां की चुचियां भरकर दबाए उसे मसले लेकिन वह अपने मन को मसोस कर रह गया पर लगातार अपनी नजरें अपनी मां की चुचियों पर ही गडाए रहा इससे उसकी उत्तेजना और भी ज्यादा बढ़ती जा रही थी।


निर्मला भी मस्ती के साथ सिर्फ अंगुलियों से लंड को दवा के बहाने मसले जा रही थी। लंड पर भी चुदासपन का खुमार छाया हुआ था। तभी तो औरत के नाजुक ऊंगलियो का स्पर्श पाकर एकदम टनटना जा रहा था।

कुछ देर तक निर्मला यूं ही उपर ही ऊपर उंगलियों से दवा लगाती रही लेकिन इतने से निर्मला का मन मानने वाला नहीं था बरसों के बाद तो वह चीज जिसके लिए तड़प रही थी वह आज वह चीज उसके हाथों में थी इसलिए इसका पूरा मजा लेना चाहती थी।


वह अपने बेटे के लंड को पूरी तरह से अपनी मुट्ठी में भींचना चाहती थी। इसलिए वह मुस्कुराते हुए अपने बेटे की तरफ देखी और अपने बेटे की नजरों को अपने ही बदन पर टिका हुआ देखकर उसे तो पहले कुछ समझ में नहीं आया लेकिन जब उसने अपनी हालत पर गौर की तो हैरान रह गई क्योंकि उसे समझ में आ गया था कि सुभम उसकी बड़ी बड़ी चुचीयों को देख रहा था जो कि गांऊन से बाहर झांक रही थी।


इतना समझ में आते ही निर्मला शर्मा गई लेकिन उसके बदन में भी चुदासपन की जो लहर दौड़ रही थी उसकी वजह से उसने ना तो शुभम को कुछ कहीं और ना ही अपनी चूचियों को व्यवस्थित करने की कोशिश ही की।


उसे ना जाने क्यों इसमें मजा आने लगा आज पहली बार उसे इस बात का एहसास हो रहा था कि अपना बदन दिखाने में कितनी आनंद की अनुभूति होती है।

उत्तेजना के मारे निर्मला का भी गला सूखने लगा एक तो उसकी उंगलियां अपने ही बेटे के खड़े लंड को स्पर्श कर रही थी और दूसरी तरफ उसका बेटा था कि गांऊन से बाहर झांकती हुई बड़ी बड़ी चूचीयो को प्यासी नजरों से देखे जा रहा था ऐसा आभास हो रहा था कि अगर निर्मला इजाजत दे दे तो वह अपने दोनों हाथों से चूचियों को पकड़कर उसे मुंह में ले कर पीना शुरु कर दे।


शुभम भी थोड़ा थोड़ा डीठ हो गया था। वह बिना डरे मंत्रमुग्ध सा अपनी मां की चुचियों को देखे जा रहा था उसे इस बात का भी डर महसूस नहीं हो रहा था क्या करुं कि मां को पता चल गया तो वह क्या कहेगी।

लेकिन कमरे के अंदर का माहौल पूरी तरह से बदल गया था अब ना तो निर्मला ही कुछ कहने वाली थी और ना ही शुभम दोनों एक दूसरे के अंगों से मजा ले रहे थे फर्क सिर्फ इतना था कि शुभम अपनी नजरों से अपनी मां की चुचियों को मसल रहा था और निर्मला अपने नाजुक नाजुक अंगुलियों से अपने बेटे के कठोर लंड का मजा ले रही थी।


निर्मला की बुर इतना ज्यादा पानी छोड़ रही थी कि उसकी पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी जिसे वह बार बार अपने हाथ लगाकर एडजस्ट कर ले रही थी।

निर्मला को इस बात का डर लग रहा था कि अगर वह सुबह से कुछ बोलेगी तो वह कहीं प्यासी नजरों से उसकी चूचियों को घुरना ना बंद कर दे क्योंकि पहली बार वह किसी के इस तरह से अपने बदन को घूरने का आनंद ले रहीे थी।

निर्मला अपने बेटे के लंड को पूरी तरह से अपनी मुट्ठी में भरकर हिलाना चाहती थी इसलिए कुछ देर बाद वह शुभम से बोली


बेटा तेरे पूरे लंड में दर्द हो रहा है तो क्यों ना तेरे पूरे लंड में ही दवा लगा दुं इससे तुझे राहत भी मिल जाएगी।


शुभम को तो मजा आ रहा था उसे भला एतराज क्या हो सकता था लेकिन उत्तेजना के मारे उसका गला सूख रहा था जिस वजह से वह अपनी मां को कुछ बोल भी नहीं सका लेकिन उसने अपनी नजरों को अपनी मां की चुचियों पर से हटाया नहीं और डटा रहा उसको नजर भर कर देखने के लिए,

निर्मला को लगा था कि शुभम शायद शरमाकर अपनी नजरों को हटा ले लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ तो वह भी अंदर से और भी ज्यादा आनंदित हो गई आखिरकार उसे भी तो अपना बदन दिखाने में आज मजा आ रहा था।

अपने बेटे का जवाब सुने बिना ही वह फिर से मुंव में से थोड़ा सा दवा निकालकर उंगली पर लगाई और उंगली से उसने अपने बेटे के पूरे लंड पर लगाना शुरु कर दी।


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निर्मला को तो पूरी तरह से खुला दोर मिल चुका था वह अब अपनी मुट्ठी में भरकर दवा लगाने के बहाने अपने बेटे के लंड को मुट्ठीयाने लगी वैसा उसनें आज तक अपने पति के लंड को भी नहीं मुट्ठीयाई थी।

इस तरह से तो शुभम को भी बेहद आनंद की प्राप्ति होने लगी और उसके लंड से लार की तरह पानी निकलने लगा।

निर्मला से रहा नहीं जा रहा था वह अपने बेटे के लंड को आगे पीछे करते हुए बोली।

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बेटा तू तो सच में बड़ा हो गया है मैं तो तुझे अब तक छोटा बच्चा ही समझती थी।



इस बार शुभम अपनी मां की बात सुनकर बोला।


ऐसा क्यों कह रही हो मम्मी मैं तो अभी भी छोटा हूं।


तू भले ही अभी भी छोटा है लेकिन तेरा हथियार काफी बड़ा हो गया है मुझे तो यकीन ही नहीं आता कि यह तेरा है।


निर्मला ऊन्मादक स्थिति में अब थोड़ा-थोड़ा खुलने लगी थी। जिस लंड को अपनी कल्पनाओं में देख कर मजा लेती थी हालांकि उसनें एक बार अपने बेटे के खड़े और दमदार लंड को देख ली थी।

जिसकी बदौलत उसकी आंखों के सामने हमेशा उसके बेटे का लंड नाचते रहता था उसे आज अपने हाथों में लेकर उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे पूरी दुनिया उसकी हथेली में सिमट आई हो वह बेहद खुश थी और खुश से ज्यादा दुआ चुदवासी थी,,,,


उसका मन तो ऐसा कर रहा था कि अपने बेटे के लंड को अपनी बुर में डलवा कर जम कर चुदवाए। ऐसा हो भी सकता था बस एक इशारे की ही जरूरत थी लेकिन दोनों में से यह इसारा कौन करेगा यह तो किसी को भी पता नहीं था।

निर्मला चाहती तो उसकी बुर की प्यास अभी ही अपने बेटे के लंड से बुझा सकती थी लेकिन इतना कुछ करने के बावजूद भी शायद इतनी हिम्मत ना तो निर्मला मे थी और ना ही शुभम में,,, बस दोनो अपने बदन कि प्यास को और ज्यादा बढ़ाते जा रहे थे। सभी शुभम अपनी मां के सवाल का जवाब देते हुए बोला।


ऐसा क्यों कह रही हो मम्मी क्या ऐसा किसी का नहीं होता,,,,


होता है लेकिन शायद तेरे जैसा नहीं होता,,,, तेरा तो काफी बड़ा है,,,, तभी तो देख दवा लगाने में मुझे तकलीफ हो रही है।


तभी तो कह रहा था मम्मी कि तुम रहने दो मैं अपने हाथ से लगा लूंगा,,, आपको खामखा तकलीफ होगी,,,,


नहीं बेटा ऐसा बिल्कुल भी नहीं है तेरे लिए तो सारी तकलीफ सहने को मैं तैयार हूं। (ऐसा कहते हुए निर्मला जोर-जोर से अपने बेटे के लंड को हिलाने लगी।)


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शुभम की हालत खराब हो जा रहे हैं जो क्रिया वह अपनी हथेली में लेकर कर रहा था आज वही क्रिया उसकी मां अपने नरम नरम हथेली में लेकर कर रही थी जिसकी वजह से उसकी उत्तेजना और ज्यादा बढ़ चुकी थी।

उत्तेजना के मारे से बंद के हाव भाव बदलने लगे थे उसका चेहरा उत्तेजित होकर एकदम लाल हो गया था निर्मला भी काफी देर से बुर की खुजली से परेशान हुए जा रही थी। कभी वह अपने बेटे के लंड को हिलाते हुए बोली।

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अब बता कैसा लग रहा है तुझे,,,


इतना कहते हुए वो अपनी नजरें उठाकर अपने बेटे की तरफ देखीे तो हैरान रह गई क्योंकि उसकी आंखें मस्ती के असर के कारण मुंदने लगी थी उसका मुंह खुला का खुला था वह जोर जोर से सांसे ले रहा था।

वह एक दम मस्त हो चुका था उसकी हालत देखकर निर्मला को भी इस बात का एहसास होने लगा कि उसने उसका बेटा बड़ा हो गया था क्योंकि जिस तरह से उसके हाव भाव हो रहे थे उससे ऐसा साफ नजर आ रहा था कि उसे बहुत मजा आ रहा है यह देखकर निर्मला के सब्र का भी बांध टूटने लगा।


उसकी बुर तो पहले से ही ज्यादा तड़प रही थी वासना भी उसके सर पर सवार हो चुकी थी उसने इस बात का बिल्कुल भी परवाह किए बिना कि उसका बेटा उसके करीब ही खड़ा है जो कि उससे अपने लंड पर दवा लगवा रहा है। जो की दवा लगवाने के बहाने शायद दोनों ही अपनी अपनी तरह से मजा ले रहे थे।


शुभम की मस्ती देखकर निर्मला दे पूरी तरह से खुलने की कोशिश करने लगी और धीरे-धीरे करके उसने एक हाथ से अपने गांऊन को अपनी कमर पर चढ़ा ली और एक हाथ अपनी पैंटी में डाल कर अपनी बुर की गुलाबी पत्तियों को मसलने लगी। शुभम की आंखें अभी भी बंद थी।

निर्मला एक हाथ से अपने बेटे के लंड को हिलाते हुए और दूसरे हाथ से अपनी बुर को रगड़ते हुए फिर से बोली।

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शुभम तुझे कैसा लग रहा है,,,,,,,


इस बार शुभम आंखें खोलकर अपनी मां की तरफ देखा तो वह एकदम से हैरान रह गया उसे इस बात की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी अपनी मां को इस तरह से अपना गाउन कमर तक उठा कर एक हाथ पैंटी में डालकर अपनी बुर को रगड़ते हुए देखकर शुभम की उत्तेजना और ज्यादा बढ़ गई।

दोनों की आंखें आपस में टकरा गई लेकिन दोनों बोल कुछ नहीं रहे थे बल्कि एक दूसरे की आंखों की गहराई में खोते हुए एक दूसरे के अंगों से मजा ले रहे थे।

शुभम कभी अपनी मां की आधी से ज्यादा चूचियों को देखता तो कभी अपने हाथ से अपनी बूर को लगा रहे पेंटिं की तरफ देखता और उत्तेजना से भरते हुए बोला।


बहुत मजा आ रहा है मम्मी ऐसा मज़ा मुझे कभी नहीं आया



और ऐसा कहते हुए वह अपनी कमर को आगे पीछे करते हुए हिलाने लगा। ऐसा लग रहा था कि जैसे वह अपनी मां की हथेली को ही चोद रहा है।

दोनों को बहुत मजा आ रहा था लेकिन मैं जोर-जोर से इतनी दूर को मसल रही थी और एक हाथ से अपने बेटे के लंड को हिला रही थी,,,,,


और जोर से मम्मी और जोर से हिलाओ मुझे मजा आ. रहा है।


हां बेटा मुझे भी बहुत मजा आ रहा है।



दोनों के सर पर वासना सवार हो चुकी थी दोनों उन्माद की लहर में रहने लगे थे दोनों क्या कह रहे हैं शायद उस समय उस बात से दोनों को मजा आ रहा था।

शुभम की इच्छा हो रही थी कि वह आगे बढ़ कर अपनी मां की चुचियों को पकड़ ले और अपनी मां की हथेली को हटाकर खुद अपनी हथेली से बुर को मसले । लेकिन ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि अभी भी उसके मन में थोड़ा बहोत डर बना हुआ था।


दोनों अपनी अपनी मस्ती में खोए हुए थे दोनों इससे आगे बढ़ना चाहते थे लेकिन आगे बढ़ने से कतरा रहे थे। निर्मला के मुंह से गर्म पिचकारी निकलने लगी थी और शुभम भी अपनी मस्ती में अपनी कमर को जोर-जोर से आगे पीछे करते हुए हिला रहा था।






शुभम का लंड ठीक निर्मला के मुंह के करीब था अगर वो थोड़ा सा भी आगे बढ़ती तो तुरंत अपने बेटे के लंड को मुंह में ले लेती और उसका मन कर भी रहा था वह मन ही मन में सोच रही थी कि अपने बेटे के लंड को मुंह में ले कर चूसने लगे लेकिन शायद अभी भी दोनों पूरी तरह से नहीं खुले हुए थे।


पूरे कमरे में दोनों की गरम सिसकारी गूंज रही थी। कमरे का नजारा पूरी तरह से गर्म हो चुका था निर्मला की गरम सिसकारी शुभम की हालत और खराब किए जा रही थी जिसकी वजह से शुभम भी,,, आहहहहहह आहहहहहह करते हुए अपनी कमर को आगे पीछे जोर जोर से हिला रहा था।


निर्मला की बुर भी पानी पानी हो चुकी थी जिससे निर्मला की पूरी पैंटी गीली हो चुकी थी। थोड़ी ही देर बाद दोनों का बदन अकडने़ लगा।

निर्मला का हाथ शुभम के लंड पर और हथेली अपनी बुर पर बड़ी तेजी से चलने लगी और कुछ ही सेकंड में दोनों के मुंह से जोर से चीख निकली और दोनों के नाजुक अंगों से पानी की पिचकारी फूट पड़ी।


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लेकिन शुभम के लंड से निकली पिचकारी निर्मला के चेहरे पर पड़ने लगी जिसकी वजह से कुछ ही सेकंड में जबरदस्त तेज पिचकारी के कारण निर्मला का पूरा चेहरा शुभम के लंड के पानी से भर गया।


निर्मला को उत्तेजना के कारण इस बात का अंदाजा नहीं था कि शुभम के लंड से पिचकारी निकल कर सीधे उसके मुंह पर आएगी।

शुभम अपने लंड की पिचकारी अपनी मां के चेहरे पर गिरता हुआ देखकर आनंद से सराबोर हो गया और निर्मला को इतनी तेज पिचकारी भी निकल सकती है इस बात की जानकारी उसे पहले कभी नहीं थी।

निर्मला जोर से अपने होंठों को भींच ली थी ताकी शुभम के लंड से निकला पानी उसके मुंह में ना जा पाएं।

निर्मला भी अपनी बुर का ढेर सारा पानी निकालकर पानी पानी हो गई थी और शुभम भी झड़ चुका था।


थोड़ी देर बाद दोनों का नशा उतरा तो निर्मला अपनी स्थिति को देखकर शर्म से पानी-पानी हो गई और भागते हुए सीधे बाथरूम में घुस गई।
 
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निर्मला बाथरूम में अपना मुंह धो रही थी। उसने अपने बेटे के माल के एक बूंद को भी अपने मुंह में जाने नहीं दी थी अपने चेहरे पर इस तरह से अपने बेटे का माल गिरने की वजह से उसे बड़ा अजीब सा लग रहा था। रह रह कर उसे उबकाई आ रही थी।

बाथरूम में उसने अपना मुंह अच्छे से साफ की अपने बेटे के लंड से निकली जबरदस्त पिचकारी को देखकर वह आश्चर्यचकित उसे इस बात पर बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था और शायद अगर किसी के मुंह से सुनती तो उसे यकीन भी नहीं होता लेकिन उसने तो कुछ पल पहले ही अपनी आंखों से और अपने हाथ में लेकर देखी थी।

लंड से पानी कितनी तेज पिचकारी निकलता देख कर उसकी बुर पानी-पानी हो गई थी। क्योंकि उसके पति का जब भी पानी निकलता था तो बस बूंद बूंद करके निकलता था।


निर्मला हाथ मुंह धो कर आईने में अपने चेहरे को देख रही थी जो कि शर्म से बिल्कुल लाल लाल हो चुका था। आज उसने अपनी जिंदगी में कुछ ज्यादा ही हिम्मत दिखा दी थी जिसके एवज में उसे आनंद भी बेशुमार मिला था बस इतना गिला उसके मन में रह गया था कि काश वह थोड़ी और हिम्मत दिखा पाती तो जिस लंड को वह अपनी मुट्ठी में भर कर हिला रही थी वही लंड उसकी बुर के परखच्चे उड़ा देता और उसकी बरसों से उभरी हुई प्यास को शांत करने में मदद कर देता।


निर्मला की हथेली में जिस तरह से शुभम का मोटा लंड अपनी रंगत भी खेल रहा था उसे अपनी आंखो से देख कर और उसे अपने अंदर महसूस करके निर्मला इस समय भी पानी पानी हुए जा रही थी। जब भी वह अपने बेटे के लंड के बारे में सोचती तो उसकी बुर से दो चार बूंदे नमकीन पानी की टपक ही पड़ रही थी।


निर्मला को बाथरुम से बाहर जाने में शर्म आ रही थी क्योंकि वासना का असर धीरे-धीरे शांत होने लगा था और वासना के शांत होते ही वासना की जगह फिर से रिश्तो की मर्यादाओं ने जगह बना ली और दोस्तों के बीच मर्यादाओं के होते यह सब संभव नहीं था।

तूफान शांत होने लगा था लेकिन जब भी कोई बड़ा तूफान आकर गुजर जाता है तो अपने पीछे निशान छोड़ जाता है। उसी तरह से निर्मला भी अब इस तरह की गलती दोबारा ना करने की कसमें खाकर अपने मन को समझाने लगी लेकिन एक प्यासी औरत कर भी क्या सकते थे।

जिस तरह से एक प्यासी इंसान को पानी पीने के बाद ही शांति मिलती है उसी तरह से एक प्यासी औरत को भी जब तक उसकी प्यास बुझ ना जाए तब तक वह तड़पती और बहकती रहती है। ऐसा ही कुछ निर्मला के साथ भी हो रहा था बार-बार वह गलती ना दौहराने की कसम खाती और बार बार उसका मन बहकने लगता था।

जिस तरह से उसका बेटा उसकी बड़ी बड़ी चूची को देख रहा था यह सब जानते हुए भी निर्मला को उत्पन्न ना जाने क्यों अपनी चूची अपने बेटे को दिखाने में इतनी आनंद की अनुभूति हो रही थी कि पूछो मत एक अजीब और अद्भुत प्रकार का रोमांच निर्मला को प्राप्त हो रहा था और किसी भी तरह से अपनी चूचियों को ढकने की दरकार नहीं की।

बल्कि उसका बेटा और अच्छे से चूचियों का नजारा देख पाए इस तरह से वह बैठ गई थी। दवा लगाने की अद्भुत और अदम्य साहस की प्रक्रिया में जिस तरह का आनंद निर्मला को मिला था उस आनंद को प्राप्त करके निर्मला खुश थी।

दूसरी तरफ शुभम भी हैरान और दंग था। दवा लगाने वाली युक्ति इस तरह से और इतनी अद्भुत तरीके से काम कर जाएगी इस बारे में वह भी पूरी तरह से दृढ़ निश्चयी नहीं था।

लेकिन सब कुछ बहुत अच्छे से पार हो गया था इसीलिए उसके चेहरे पर विजयी मुस्कान तैर रही थी। यह विजय अकेले सिर्फ शुभम का नहीं थी बल्कि निर्मला का भी थी बल्कि जो कह दो कि अपनी मंजिल को पाने की यह पहली सीढी थी जिसे दोनों ने बहुत बखूबी पार कर ली थी।
 

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