पिछले भाग में शुभम अपनी माँ को ढूंढते हुए घर के पीछे जाता है जहाँ निर्मला अपनी उत्तेजना शांत करने के लिए बुर मे उंगुली करती है जिसे शुभम देख लेता है और मुठ मारके अपने कमरे में आ जाता है
अब आगे
कुछ दिन तक बिल्कुल सामान्य चलता रहा। सब कुछ पहले की ही तरह था उसको कभी भी रात को जब भी उसका मन करता था उसी तरह से उस पर चढ़कर अपनी प्यास तो बुझाा लेता था लेकिन निर्मला पहले की ही तरह प्यासी तड़पती रह जाती थी,,,,,
लेकिन इतने दिनों में निर्मला में एक बदलाव जरुर आया था कि जब भी अशोक उसे चोदने के लिए उसके ऊपर चढ़ता था,,,, तो वह अशोक की जगह अपने बेटे शुभम की कल्पना करने लग जाती थी।
जब भी अशोक उसके ऊपर चढ़कर उसकी साड़ी को ऊपर की तरफ सर काटा था तो वह आंखें बंद करके ऐसा कल्पना करती थी कि अशोक नहीं बल्कि उसका बेटा शुभम उसकी साड़ी को ऊपर जांघो तक सरका रहा है और जैसे ही अशोक अपनी दोनों हथेलियों में ब्लाउज के ऊपर से ही बड़ी-बड़ी सूचियों का भर्ता तो वह ऐसा महसूस करती थी उसका बेटा अपनी मजबूत हथेलियों में उसकी बड़ी बड़ी चूची को पकड़ कर मसल रहा है उन्हें दबा रहा है।
अशोक की जगह शुभम की कल्पना मात्र से ही वह सिहर उठती थी उसके बदन में उत्तेजना की लहर दौडने़ लगती थी। जब भी अशोक अपने लंड को जो कि शुभम के लंड की अपेक्षा आधा भी नहीं था उसे उसकी बुर में प्रवेश कराता तो वह आंखों को बंद करके एकदम ध्यान लगाकर के ऐसी कल्पना करती थी कि उसका बेटा शुभम उसकी बुर में अपना मोटा लंबा लंड डाल रहा है और अशोक कि आगे पीछे हो रही कमर को वह खुद अपनी हथेली में भरकर ऐसा महसूस करती कि उसका बेटा अपने मोटे ताजे और लंबे लंड से जमकर उसकी चुदाई कर रहा है।
और यह कल्पना करके ही अपने पति से चुदवाते समय उसके मुंह से सिसकारी निकल पड़ती थी। लेकिन जैसे ही उसे चुदवाने का आनंद मिलना शुरू होता की वैसे ही अशोक का पानी निकल जाता और वहां फिर से बिस्तर पर तड़पती रह जाती लेकिन उसके लिए सुकून वाली बात यह थी कि अब पहले से कुछ तो बेहतर स्थिति हो गई थी जब से वह अपने बेटे की कल्पना करके संभोग सुख का आनंद लेती थी।
उसे बेटे की कल्पना करने वाली बात से ग्लानी भी होती थी और वह हर बार अपने मन को आगे से ऐसा न करने की सलाह से समझा लेती थी। लेकिन जब भी उसके बदन में कामोत्तेजना अपना असर दिखाना शुरू करता था वैसे ही बिस्तर पर अशोक के साथ संभोग की शुरुआत होते ही उसकी कल्पना में फिर से शुभम का भी ध्यान आने लगता था अब तो उसे कल्पना करने की लत सीे लग गई थी।
शुभम भी खेल के मैदान की मुलाकात बराबर लेता रहता था। खेल के उद्देश्य से नहीं बल्कि अपने दोस्तों की बातें सुनने के लिए और रोज ही उसे अपने दोस्तों से सेक्स ज्ञान मिलता रहता था। उन्ही दोस्तों से उसे पता चला कि औरतों को भी करवाने का मन करता है और जब ऊन्हे लंड नहीं मिलता तो वह खुद ही अपनी उंगली को अपनी बुर मे अंदर बाहर करते हुए अपनी चुदास की प्यास बुझाती है।
यह बात जानते ही उसे उस दिन उसकी मां घर के पीछे नंगी हो कर के अपनी उंगली को अपनी बुर में अंदर बाहर क्यों कर रही थी इस बात का पता चल गया। इस बात को जानकर शुभम को एक झटका सा लगा था,उसे इस बात पर यकीन नहीं हो पा रहा था कि उसकी मां को भी लंड लेने की प्यास है क्योंकि उसके दोस्तों ने बताया था कि जब औरत चुदवाने की प्यासी हो जाती है और लंट का जुगाड़ ना होने पर इस तरह के कदम उठाती है।
एक और ज्ञानवर्धक बात वह अपने दोस्तों से जान कर आया था कि अगर कोई औरत मोटे लंबे और तगड़ा लंड को देख ले तो उनकी बुर में उस लंड को लेने के लिए सुरसुराहट और तड़प दोनो बढ़ जाती है। फिर वह चाहे कोई भी हो उसका लंड लिए बिना उससे चुदवाएै बिना उनकी प्यास नहीं बुझती।
यह बात जानते ही उसका दिमाग एकदम से चकरा गया,,,, उसके दिमाग में एक नई युक्ति ने जन्म लिया,,,,, वह इतना तो जान ही गया था कि उसकी मां भी लंड की प्यासी है तभी तो उस दिन वह संपूर्ण नग्नावस्था मैं अपनी प्यास बुझाने की अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही थी।
तभी उसके मन में विचार आया कि अगर ऐसा सच में है तो किसी भी तरह से अगर उसे वह अपना लंड का दर्शन करा दे तो उसके दोस्तों के बताए अनुसार जरूर वह उसका लंड लेगी और तभी वह ईस विचार में पड़ गया कि आखिर वह अपनी मां को अपने मोटे लंबे लंड को दिखाएं कैसे।
शुभम के लिए अगर इस उत्तेजनात्मक राह पर आगे बढ़ना था तों उसे अपनी मां को अपने मोटे तगड़े लंड का दर्शन कराना बेहद जरूरी था। लेकिन इसके लिए हिम्मत की जरूरत थीै जो कि सोच कर ही शुभम की हालत खराब हुए जा रही थी।
अपनी मां को अपना लंड दिखाने की बात सोच कर ही उसके बदन में रोमांच का अनुभव हो रहा था। लेकिन वह दिखाएं तो दिखाएं कैसे इसी उधेड़बुन में लगा हुआ था। उसके मन में ढेर सारे सवाल चल रहे थे उसे इस बात का भी डर था कि अगर कहीं उसने हिम्मत करके अपने लंड को दिखा भी दिया और कहीं उसकी मां इस बात से बुरा मान गई तो क्या होगा वह उसके बारे में क्या सोचेगी,,,,,
उसका एक मन यह सोच कर परेशान हो रहा था और दूसरा मैं यह कह रहा था कि उसके दोस्तों के कहने के अनुसार उसकी मां जिस तरह की क्रियाकलाप घर के पीछे बिल्कुल नग्न अवस्था में करते हुए उत्तेजित हो करके मस्त हुए जा रहीे थी इस से साफ जाहिर हो रहा था कि वह पूरी तरह से चुदवासी है और उसे भी एक मोटे तगड़े लंड की जरूरत है। इस बात को सोचते ही शुभम का बदन एक बार फिर से गंनगना गया।
शुभम को यही लगता था कि उसकी मां ने अभी तक उसके मोटे तगड़े लंबे-लंड के दर्शन नहीं किए हैं लेकिन यह वह नहीं जानता था कि ऊसकी मां ने उसके दमदार लंड का दर्शन कर चुकी है और उसमें आए बदलाव का अपली कारण भी उसका दमदार लंड ही था।
इस बात से अनजान वह अपनी मां को अपना टनटनाया हुआ लंड दिखाने की फिराक में लगा रहता था लेकिन उसकी हिम्मत ही नहीं हो पाती थी कई बार वह अपनी मां के सामने सिर्फ टॉवल पहन कर भी गया लेकिन एक अजीब सी कशमकश की वजह से उसके लंड में पहले की तरह तनाव डर की वजह से आया ही नहीं।
उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर वह अपनी मां को अपना लंड दिखाए भीे तो कैसे दिखाएं,,,,, खेल के मैदान में उसके दोस्तों की गरम बातें सुनकर दिन-ब-दिन उसके बदन में चुदास की गर्मी बढ़ती जा रही थी।
अब तो वह रोज अपने लंड को पहले की तरह मसलने की बजाय उसे मुट्ठी में भरकर आगे पीछे करते हुए मुठ मारने लगा था यह भी उसके दोस्तों की ही देन थी कि उसे अब पता चलने लगा था कि जिस क्रिया को वह अपनी हथेली में लेकर करता है उसे मुठ मारना और हस्तमैथुन कहते हैं।
जिसने उसे अब आनंद मिलने लगा था वह हर बार हस्तमैथुन करते हुए अपनी मां के बारे में गंदी गंदी बातें सोचता रहता था जिसकी वजह से उसकी उत्तेजना में प्रचंड बढ़ोत्तरी होती थी और वह ढेर सारी सफेद गाढ़े पानी की पिचकारी मारता था। जितनी ज्यादा पिचकारी निकलती थी उतनी ही ज्यादा उसे आनंद की अनुभूति होती थी।
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