एक अधूरी प्यास

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पिछले भाग में शुभम हैरान और दंग था। दवा लगाने वाली युक्ति इस तरह से और इतनी अद्भुत तरीके से काम कर जाएगी इस बारे में वह भी पूरी तरह से दृढ़ निश्चयी नहीं था। लेकिन सब कुछ बहुत अच्छे से पार हो गया था इसीलिए उसके चेहरे पर विजयी मुस्कान तैर रही थी। यह जीत अकेले सिर्फ शुभम का नहीं था बल्कि निर्मला का भी था बल्कि जो कह दो कि अपनी मंजिल को पाने की यह पहली सीढी थी जिसे दोनों ने बहुत बखूबी पार कर ली थी।



अब आगे


उस दिन के बाद से दोनों एक दूसरे से कतराने लगे। दोनों के मन में शर्म महसूस हो रही थी इसलिए दोनों एक दूसरे को मुंह दिखाने से शर्मा रहे थे।

निर्मला अपने बेटे को संपूर्ण निर्वस्त्र अवस्था में देखकर और वह भी उसके दमदार हथियार के साथ यह नजारा ही उसके प्यासे मन को तड़पाने के लिए काफी था। सोते जागते उठते बैठते निर्मला की आंखों के सामने उसके बेटे का गठीला बदन और उसका हथियार नजर आ रहा था, जिसके बारे में सोच कर ही दिन भर में न जाने कितनी बार उसकी पैंटी गीली हो जाती थी।

अब हाल यह था कि बैगन से भी उसकी प्यास नहीं बुझती थी। अब तो वह अपने बेटे के लंड की प्यासी हो चुकी थी। वह आगे बढ़ना चाहती थी और शुभम भी आगे बढ़ना चाहता था लेकिन दोनों शर्म की वजह से अब आगे बढ़ने से कतरा रहे थे जबकि दोनों के बदन में आग बराबर की लगी हुई थी।

शुभम तो अपनी मां को अपने ही हाथों से अपनी बुर को मसलते हुए देख कर जिस तरह से वो गरम सिसकारी ले रही थी उस पल को याद करके वह ना जाने कितनी बार मुट्ठ मार चुका था।

एक बात की कसक उसके मन में भी रह गई थी की अपनी मां को अपने हाथों से अपनी रसीली बुर मसलती हुए देखा जरूर था लेकिन उसने इतना कुछ होने के बावजूद भी अपनी मां की नंगी बुर के दर्शन नहीं कर पाए थे।

उस दिन भी निर्मला अपने बेटे के सामने अपनी बुर मसाले जरूर रही थी लेकिन पैंटी में हाथ डालकर इस वजह से शुभम को अपनी मां की रसीली बुर के दर्शन करना दुर्लभ हो चुका था।

उसने अपनी मां के बदन के लगभग हर अंग को देख चुका था लेकिन अभी तक उस द्वार को नहीं देख पाया था जिस द्वार मे से गुजरने का हर एक मर्द का सपना होता है।

शुभम अभी तक उसी द्वार के भूगोल और आकार से बिल्कुल अंजान और अज्ञान था इसलिए तो उसकी तड़प और ज्यादा बढ़ जाती थी।


खैर जैसे तैसे दिन गुजरने लगे दोनों अपनी प्यासी नजरों को हमेशा एक दूसरे के अंगों को देखने के लिए इधर उधर ताड़ में ही रखते थे। लेकिन अब दोनों को कुछ खास सफलता प्राप्त नहीं हो पा रही थी। दोनों अंदर ही अंदर एक दूसरे से डरे हुए थे।

धीरे-धीरे सब कुछ सामान्य होने लगा दोनों एक दूसरे से बातें भी करने लगे लेकिन उस दिन वाली बात को याद करके दोनों के चेहरे पर शर्म के भाव साफ नजर आ जाते थे।


हालांकि उस पल को याद करके आज निर्मला के मन में जरा भी ग्लानि महसूस नहीं होती थी बल्कि उस पल को याद करके उसके मन में तन-बदन में एक रोमांच सा फैल जाता था।
 
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स्कूल में शीतल से रोज ही मुलाकात होती थी,,,, फैशन के मामले में वह एक कदम आगे ही थी।

आज निर्मला स्कूल पहुंची तो शीतल को देखकर दंग रह गई।



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आज शीतल कुछ ज्यादा ही खूबसूरत लग रही थी। उसने आसमानी रंग की साड़ी और साथ में मेचींग. के रंग की ब्लाउज भी पहनी हुई थी।

जो कि उसका ब्लाउज आगे से एकदम डीप था जिसमें से उसकी बड़ी-बड़ी चूचीयो की गहरी लकीर एक दम साफ नजर आ रही थी जिसे उसने अपनी एक ट्रांसपेरेंट साड़ी से ढक रखी थी ढंक क्या रखी थी। ट्रांसपेरेंट साड़ी की वजह से उसकी चूचियों का आकार और भी ज्यादा मादक लग रहा था।

जिस पर लगभग सभी की नजर जा रही थी और उसका ब्लाउज पीछे से एकदम खुला हुआ था जिसमें से उसकी नंगी चिकनी पीठ साफ साफ नजर आ रही थी जोकि ब्लाउज को बांधने के लिए मात्र एक पतली सी डोरी ही थी बाकी सब कुछ खुला हुआ था। यह देखकर निर्मला बोली।


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वाह शीतल आज तो तुम पूरे स्कुल पर कहर ढा रही हो,,,,( निर्मला मुस्कुराते हुए बोली,,,,)


जवाब में शीतल भी मुस्कुरा कर बोली।


थैंक यू निर्मला,,,,, रोज तुम कहर ढाती हो सोची कि चलो आज मैं भी थोड़ा बहुत कहर ढा दूं,,,,,



नही शीतल मैं सच कह रही हूं तुम आज बहुत खूबसूरत लग रही हो,,,,, तुम आज बहुत ही स्टाइलिश कपड़े के साथ साथ बहुत ही खूबसूरत ब्लाउज पहन कर आई हो जो कि तुम्हारे बदन पर बहुत अच्छी लग रही है।


(निर्मला की बातें सुनकर शीतल मुस्कुराने लगी।)


लेकिन शीतल तुमने जिस तरह का ब्लाउज पहने हो उसी से तुम्हारे बदन का बहुत कुछ हिस्सा नजर आ रहा है और देख रही हो सारे स्कूल के विद्यार्थी तुम पर एक नजर डाल कर ही आगे बढ़ रहे हैं।


निर्मला की इस बात पर शीतल ठहाके मार कर हंसने लगी और हंसते हुए ही बोली।


मेरी प्यारी निर्मला रानी यहीं तो मैं चाहती हूं और इसलिए तो आज इस तरह के कपड़े पहनीे हुं ताकि मुझे भी तो पता चले कि इस उम्र में भी मेरे बदन में अभी भी बहुत कुछ बाकी है जो कि नौजवानों और सभी उम्र के मर्दों को अपनी तरफ खींच सकती हुं।


शीतल की यह बात सुनकर निर्मला एकदम से दंग रह गई क्या शीतल क्या कह रही है तभी वह बात को आगे बढ़ाते हुए बोली।



देखो निर्मला अपना बदन दिखा कर किसी भी मर्द को बहकाया जा सकता है उनसे जो चाहो वह काम लिया जा सकता है। अब देखो ना यह सारे लड़के और शिक्षक भी मेरी तरफ कैसे लार टपकाते हुए देखे जा रहे हैं।

सच बताऊं तो निर्मला मुझे इन मर्दों को अपने हुस्न का जलवा दिखा कर तड़पाने में बेहद आनंद मिलता है। सच में अपनी खूबसूरत बदन का जलवा दिखा कर जब यह मर्द लोग तड़पकर तुम्हारी तरफ देखते हैं तो अंदर ही अंदर इतना सुकून मिलता है कि पूछो मत ।


निर्मला शीतल की बात को बड़े ध्यान से सुन रही थी उस की कही बातें वास्तव में सच ही थी जो की निर्मला भी मान रही थी। क्योंकि उसे भी इस बात का एहसास अच्छे से था उसे भी बेहद आनंद की प्राप्ति हुई थी जब उसने अपनी बड़ी बड़ी चूचीयो को उसके बेटे को दिखाई थी और शुभम खुद अपनी मां की बड़ी बड़ी चूची और को देखकर जिस तरह से पागल हो कर तड़प रहा था उन्हें हाथों में पकड़ कर दबाने के लिए।

यह देख के निर्मला को बेहद आनंद की प्राप्ति हुई थी।

शीतल हँस-हँस के निर्मला को बदन दिखाने के फायदे समझा रहे थे जो कि निर्मला को भी काफी पसंद आ रही थी


तभी शुभम वहां आया और शीतल को अपनी मां से बातें करता हुआ देखकर बोला।


नमस्ते शीतल मेंम,,,,

(इतना कहने के साथ ही शुभम की नजर शीतल की ट्रांसपेरेंट साड़ी में से झांक रही शीतल की बड़ी बड़ी चूचीयो की गहरी लाइन पर पड़ी। जिसे देखकर शुभम मस्त हो गया अनुभवी शीतल नें शुभम की नजरों के निशाने को भांप ली और मुस्कुराते हुए बोली।)


नमस्ते बेटा और पढ़ाई कैसी चल रही है तुम्हारी,,,,,



एकदम ठीक चल रही है मैंम,,,,,


(इतना कहने के साथ ही शुभम ने एक बार फिर से शीतल के बदन पर ऊपर से नीचे तक नजर फेर लिया,,,, जवाब में शीतल मुस्कुरा भर दी।


अच्छा मम्मी ने क्लास में जाता हूं। इतना कहने के साथ ही वह क्लास की तरफ जाने लगा लेकिन जाते जाते एक बार फिर से पीछे मुड़कर शीतल पर नजर फेर लिया।

उसको जाते हुए देखकर शीतल मुस्कुरा कर बोली


देख रही हो निर्मला मेरे हुश्न के जादु से तुम्हारा बेटा भी नहीं बच पाया देखी नहीं किस तरह से वह मेरी चूचियों को घूर रहा था।


शीतल की बात सुनकर निर्मला हैरान रह गई,,,,, क्योंकि निर्मला ने इस बात पर गौर नहीं की थी लेकिन उसे विश्वास था कि जिस तरह के कपड़े शीतल ने पहन रखे हैं उस हिसाब से शुभम जरूर शीतल के कहे अनुसार उसके चुचियों को देख रहा होगा,,,, लेकिन फिर भी वह अपने बच्चे का बीच बचाव करते हुए बोली,,,,।


नहीं शीतल तुम्हें गलतफहमी हो रही है।



नहीं निर्मला मैं सच कह रही हूं तुम्हारा बेटा मेरी चूचियों कोई घूर रहा था और गैरंटी से उसका लंड भी खड़ा हो गया होगा।


शीतल की यह बात सुनकर निर्मला की हालत खराब होने लगी। डर के मारे नहीं बल्कि इस बात से कि क्या सच में शीतल की चूची को देख कर उसकी बेटे का लंड खड़ा हो गया होगा। शीतल की बात सुनकर निर्मला बोली


तुम्हें सिर्फ नजर का धोखा हुआ है वैसे भी मेरा शुभम ऐसा नहीं है।



अरे निर्मला (मुस्कुराते हुए )तुम बहुत भोली हो तुम इन लड़को की नजरों से वाकिफ नहीं हो इसलिए ऐसा कह रही हो अगर इन लड़कों को मौका मिले तो यह अपनी मां पर भी चढ़ जाएं।



शीतल की यह बात सुनकर निर्मला झट से बोली लड़का तो चढ़ जाए पर क्या मां करने देगी,,,,,



क्यों नहीं करने देगी किस औरत को जवान लंड पसंद नहीं है। मेरी और तुम्हारी उम्र में निर्मला जवान लंड हीे हम लोगों की प्यास बुझा सकते हैं।


निर्मला शीतल की बात सुनकर एकदम हैरान हो गई थी उसके पास शब्द नहीं थे जो कि शीतल की बात का जवाब दे सके क्योंकि अपने बेटे की हरकत वह देख चुकी थी। कभी बात को आगे बढ़ाते हुए शीतल बोली।



सच कहूं तो निर्मला अगर तुम भी अपने बेटे को मौका दो तो वह भी तुम्हारे ऊपर चढ़ने के लिए तैयार हो जाए (इतना कहकर वह ठहाके लगा कर हंसने लगी)



क्या शीतल तुझे जरा भी शर्म नहीं आती है सब कहते हुए वह मेरा बेटा है।



तो क्या हुआ निर्मला मेरा भी होता तो मैं भी अगर मौका देती तो मेरा बेटा भी मेरे ऊपर चढ़ जाता,,,,



इतना कहना था कि क्लास की घंटी बज गई और शीतल उसे बाय बोलकर क्लास की ओर चल दी। निर्मला भी अपने क्लास में चली गई।।
 
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क्लास में पहुंचकर निर्मला का मन पढ़ाने में नहीं लग रहा था। क्लास में पहुंच कर उसे शीतल की ही बातें याद आ रही थी। उसके मन में बार-बार यही ख्याल आ रहा था कि क्या सच में उसका एक इशारा पाने मात्र से ही उसका लड़का उसे चोदने के लिए तैयार हो जाएगा,,, अपने से ही सवाल पूछ कर अपने से ही जवाब भी देती थी।


अपने ही सवाल का जवाब ढूंढते हुए वह मन में सोचती थी कि हां सच में उसका एक इशारा मिलने पर ही उसका बेटा उसे चोदने के लिए तैयार हो जाएगा क्योंकि जब वह दवा लगाते हुएअपने बेटे के लंड को जोर-जोर से मुठिया रही थी तो वह केसे उत्तेजित हो करके अपने कमर को ऐसे हिला रहा था जैसे कि मानो सच में चुदाई कर रहा हो,,, तभी तो वहां उसकी चूचियों को देखकर एकदम उत्तेजित हो गया था।

यही सब सोचते हुए निर्मला की पैंटी पूरी तरह से गीली होने लगी थी। वह कुर्सी पर बैठे-बैठे ऐसा लग रहा था कि जेसे किसी गहरी सोच में डूब गई हो रिशेश की घंटी की आवाज से उसकी तंद्रा भंग हुई।


सभी बच्चे क्लास से बाहर जाने लगे तभी उसे अपनी जांघों के बीच चिपचिपा सा महसूस होने लगा उसे एहसास हो गया कि उसकी पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी है और उसे पेशाब भी लगी हुई थी इसलिए वह क्लास से निकल कर बाथरूम की तरफ जाने लगी।

लेडीस और जेंट्स दोनों बाथरुम आपस में सटे हुए थे वह दोनों के बीच में एक लकड़े का पार्टीशन भर था।


निर्मला गांड मटकाते हुए बाथरूम तक पहुंच गई और बाथरूम का दरवाजा खोलकर बाथरूम में घुस गई।


बाथरूम का दरवाजा जैसे ही उसने बंद कि उसे पार्टीशन की दूसरी तरफ से कुछ चहल पहल की आहट सुनाई दी। उसने यह सोचा कि बाजू वाले बाथरूम में भी कोई पेशाब करने आया होगा उसी की ही चहल पहल की आवाज़ आ रही थी लेकिन तभी उसे धीरे-धीरे खुसर फुसर की आवाज भी सुनाई देने लगी।


उसने पार्टीशन से उत्सुकतावश कान लगाकर सुनने की कोशिश की तो कुछ सुनाई नहीं दे पा रहा था आवाज इतनी हल्की थी कि सुन पाना भी बड़ा मुश्किल था। ऊसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था और उसे जोरो से पेशाब भी लगी थी,,,, तभी उसकी नजर पार्टीशन के लकड़े में पड़ी दो चार जगहो की दरारों पर गई तो तुरंत उसे इस बात की आशंका हुई कि कोई उस दरार में से झांक रहा है।


अब यह शंका उसके मन में होते हैं उसका दिल जोर जोर से धड़कने लगा। उसके मन में ढेर सारे सवाल आने लगे पर सोचने लगी कि क्या सच में दूसरी तरफ से इस तरफ पेसाब कर रही औरतों को देखता है अगर देखता होगा तब तो वह मुझे भी देखा होगा,, इस बात को सोचते ही उसका बदन एक अजीब से डर की कल्पना कर के सिहर उठा।


वह पक्के तौर पर अपनी शंका को कंफर्म करना चाहती थी इसलिए ऊसने यह सोची कि अगर वास्तव में कोई पेशाब करते हुए उस तरफ से देखता होगा तो उसकी आंख जरूर लकड़ी की दरार में सटी होगी जिसकी वजह से दूसरी तरफ जल रही ट्यूबलाइट का उजाला नजर नहीं आएगा और अगर ऐसा नहीं है तो दूसरी तरफ का उजाला दरार मै से जरूर नजर आएगा।


इस बात को कंफर्म करने के लिए वह पार्टीशन से थोड़ा दूर जाकर खड़ी हो गयी और पार्टीशन की तरफ एक बहाने से देखने लगी,,,, तो वह यह देखकर एकदम हैरान हो गई की पार्टीशन में पड़ी दरार में से जरा सा भी उजाला नजर नहीं आ रहा है और हल्का हल्का उसे दरार के अंदर से चहल-पहल का एहसास भी हो रहा था


अब निर्मला का साथ एकदम यकीन में बदल गया था। और कोई एक नहीं था बल्कि पैरों की आवाज से एकदम साफ प्रतीत हो रहा था कि दो या तीन लड़के थे जो कि दूसरी तरफ से इधर झांक रहे थे।


निर्मला की हालत और खराब होने लगी एक तो उसे जोरो की पेशाब भी लगी हुई थी और अगर यहां नहीं करती तो दूसरी कोई जगह भी नहीं थी की वहं वहां जाकर पेशाब कर सकें।

बाथरूम में लगे आईने की तरह को देखकर वह सोच ही रहे थे कि आप करें तो करें क्या उसकी हालत खराब हुए जा रही थी पेशाब की तीव्रता के कारण वह अपने पैर इधर-उधर पटक रही थी।


वह इसी कशमकश में थी की पेशाब करें तो कैसे करें अगर पेशाब करती है तो उसे कुछ शरारती लड़की पेशाब करते हुए देख लेंगे और उसकी नंगी गांड को भी देख कर गलत हरकतें कर सकते हैं। इतना तो तय हो चुका था कि शरारती लड़के जरूर वहां से पेशाब करते हुए देख रहे हैं। लड़के शरारती नहीं थे इसमे शायद उनकी गलती भी नहीं थी।


निर्मला की इस उमर में भी दहकती जवानी को देख कर अच्छे लड़के भी शरारती बन गई थी यह तो उन लड़कों की रोज की बात थी पता तो निर्मला को आज ही चला था। वह लोग इसी पल का इंतजार करते थे कि कब निर्मला पेशाब करने के लिए बाथरूम जाती है और जब वह बाथरुम के लिए जाती तो वह लड़के धीरे धीरे से छिपते छिपाते निर्मला के पीछे पीछे चले आते थे और जैसे ही निर्मला बाथरूम में घुसती वह लोग भी दुसरी तरफ से बाथरुम में घुस जाते थे और पार्टीशन की दरार में से निर्मला की मदमस्त गांड और उसकी रसभरी बुर में से पेशाब निकलता हुआ देख कर मस्त हो जाते थे।


आज भी वह लड़के यही देखने के लिए बाथरूम में घुसे थे लेकिन आज निर्मला को इस बात का पता चल गया था वह कुछ और सोचपाती तभी उसे शीतल की कही बातें याद आ गई और शीतल की बात याद आते ही जैसे उसे हिम्मत आ गई उसके बदन में रोमांच सा फैल गया।


और वह भी शीतल की कही बातो पर गौर करते हुए आगे बढ़ी और जानबूझकर यह जानते हुए भी कि कुछ शरारती लड़के उसे देख रहे हैं वह धीरे धीरे अपनी साड़ी को ऊपर की तरफ उठाना शुरु कर दी और अगले ही पल उसने अपनी साड़ी को कमर तक उठा दी।


साड़ी को कमर तक उठते ही उसकी भरावदार गांड जो की गुलाबी पैंटी में कैद थी वह नजर आने लगी,, जिसे देखकर वह लड़के भी मस्त होने लगी और अगले ही पल निर्मला ने अपनी गुलाबी पेंटी को भी नीचे सरका दी और बैठ कर पेशाब करने लगी। उसकी रोज की यह अदा देखकर शरारती लड़के वही खड़े खड़े मुठ्ट भी मारा करते थे।

स्कूल छूटने के बाद शीतल ने निर्मला को परिवार सहित उसके शादी की सालगिरह पर आने का निमंत्रण भी दे गई।
 
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निर्मला घर पर आ चुकी थी लेकिन आज भी उस का दिन बड़ा ही उत्तेजक रहा एक तो वह शीतल की कपड़ों से इंप्रेस हो चुकी थी, वह शीतल से ज्यादा खूबसूरत थीै लेकिन इस तरह के कपड़े उसने कभी नहीं पहनीे थेी।


शीतल को देख कर उसे भी इस तरह के कपड़े पहनने की इच्छा होने लगी, जिस तरह से शीतल की बड़ी बड़ी चूचीयो के बीच की गहरी लकीर लो कट ब्लाउज में उसे साफ नजर आ रही थी, उसे देखकर निर्मला की भी इच्छा होने लगी कि वह भी इस तरह के ब्लाउज पहने ताकि उसकी भी बड़ी बड़ी चूचीयों की गहरी लकीर साफ नजर आए क्योंकि आज उसे एक नया अनुभव हुआ था।


आज पहली बार उसकी जानकारी में उसने यह जानते हुए भी कि कोई उसे पेशाब करते हुए देख रहा है फिर भी वह उन कामी और प्यासी नजरों के सामने ही अपनी साड़ी उठा कर के अपनी मुलायम पेंटी को नीचे सरका के और अपनी बड़ी बड़ी सुडोल गांड को दिखाते हुए नीचे बैठ कर पेशाब करके जो उसने अपनी इस उम्र में भी उफान मारती जवानी के जलवे दिखाई है उसे देख कर तो देखने वालों की हालत खराब हुई थी बल्कि जलवा दिखाते समय जो हलचल निर्मला के बदन में मची थी वैसी हलचल का अनुभव वह कभी-कभार और शुभम के सामने ही कर पाती थी। शीतल की कही गई बातों पर उसे पूरा यकीन हो चुका था वास्तव में औरत के पास दिखाने के लिए बहुत कुछ होता है।


बल्कि मर्द ही औरतों के हर एक अंग को देखने के लिए पागल हुए रहते हैं। कुर्सी पर बैठे हुए निर्मला को शीतल की कही गई हर एक बात याद आ रही थी पर उसकी बात में सच्चाई भी थी औरत अगर चाहे तो अपने बदन के जोर पर मर्दों से कुछ भी करवा सकती है।


निर्मला तुम शीतल से भी ज्यादा खुशनसीब थी क्योंकि दोनों की उम्र लगभग सामान ही थी लेकिन फिर भी शीतल से ज्यादा खूबसूरत और उससे कई मायने में फिट थी।


निर्मला के बदन का हर एक ढांचा ऐसा लगता था कि मानो बड़ी ही फुर्सत से तराशा गया हो,,, उसके संगमरमरी बदन का ऊभार और कटाव मर्दों की सांसे ऊपर नीचे करने में सक्षम थी।


निर्मला तो वैसे भी हमेशा साधारण तरीके से ही रहती थी लेकिन शादगी मैं भी उस का निखार उभरकर सामने आता था। निर्मला के मन में भी शीतल की तरह ट्रांसपेरेंट साड़ी पहनने की इच्छा होने लगी थी उसकी ही तरह बैकलेस ब्लाउज पहन कर अपनी गोरी चिकनी पीठ दिखाने की इच्छा हो रही थी।

क्योंकि आज उसे भी अच्छी तरह से समझ में आ गया था कि अपने बदन का जलवा दिखाकर जो उत्तेजना का अनुभव होता है उससे भी ज्यादा मजा दूसरों को अपना बदन दिखा कर उन्हें तड़पाने में आता है।
 
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बाथरूम वाली बात को सोचकर वह पुरी तरह से गंनगना गई थी। उसे खुद पर यकीन नहीं हो रहा था कि वह दूसरे लड़कों के सामने ऐसा कर पाई। वह मन में सोच रही थी की ऊन लड़कों पर क्या गुजरी होगी जब वह अपनी साड़ी को धीरे धीरे अपनी नरम नरम उंगलियों के सहारे अपनी साड़ी को ऊपर की तरफ उठा रही थी।


पहले बहुत शरारती लड़के उसकी चिकनी गोरी टांगो को देखे होंगे और गोरी चिकनी टांगों को देखकर एकदम गर्म हो गए होंगे जैसे-जैसे साड़ी घुटनों तक पहुंची होगी घुटनों को देखकर उनके लंड में सुरसुराहट होने लगी होगी,,,,,

और जब साड़ी मोटी मोटी और एकदम चिकनी जांघो तक पहुंची होगी तो वह नजारा देख कर उन लड़कों का लंड खड़ा हो गया होगा,,,,,


वह लड़के मोटी चिकनी नंगी जांघों को देखकर आपस में फुसफुसा रहे होंगे और जैसे ही साड़ी पूरी तरह से कमर तक पहुंची होगी तो उन लोगों को लाल रंग की मखमली पैंटी नजर आई होगी जिसके अंदर,,,,, मर्दों के बदन में कामोत्तेजना प्रसार करने का माध्यम छिपा होता है। उस गोलाकार और भराव दार गांड को देख कर तो उन लड़को का लंड पूरी तरह से खड़ा हो गया होगा और वह लोग अपनी पैंट की चैन खोलकर उसे बाहर निकाल कर अपने हाथ में ले लिए होंगे।

और जैसे-जैसे पेंटी नीचे की तरफ सरक रही होगी उन लोगों को एकदम गोरी चमकती गोल गोल गांड नजर आने लगी होगी गांड के बीच की गहरी फांक भी नजर आने लगी होगी और उसे आंख को देख कर उन लड़कों की आंखें चौंधिया गई होगी और वह लोग यही सोच रहे होंगे कि काश जो लंड वोे लोग हाथ में लिए हुए हैं।


उस लंड के सुपाड़े को वह गांड की गहरी दरार में घुसा पाते रगड़ पाते। वह लोग कुछ और सोच पाते तभी जब वह पेशाब करने के लिए नीचे बैठी होगी तब ऊन लोगों की हालत और ज्यादा खराब होने लगी होगी,,,, तब उन लोगों काला ठुनकी मारने लगा होगा।


वह शरारती लड़के सबसे ज्यादा तड़पे होंगे जब रसीली बुर मे से उन लड़कों के लिए अमृत समान पेशाब की धार फूट पड़ी होगी। पेशाब की धार के साथ साथ उसमें से निकल रही मधुर आवाज को उनके कान सुन पाए होंगे कि नहीं यह तो कहना मुश्किल ही होगा लेकिन पेशाब की धार निकलता हुआ देखकर वह लोग एक दम मस्त हो गए होंगे और अलौकिक नजारा देखते हुए अद्भुत कल्पना में विचरने लगे होंगे।


उन लोगों को बुर की गुलाबी पत्तियां निश्चित तौर पर एकदम साफ साफ नजर आ रही होंगी क्योंकि पेशाब करते समय वह जान बूझकर थोड़ा सा झुक गई थी ताकि वह लोग ठीक से नजारा देख पाए। वह शरारती लड़के पार्टीशन की दरार में से एक अद्भुत अलौकिक और कामोत्तेजना की परिभाषा सामान कामुक नजारा देख कर अपने-अपने मानस पटल पर अपनी शिक्षिका को पर्याय बनाते हुए ना जाने कैसे-कैसे कामोत्तेजना से भरपूर कल्पनाएं करते हुए अपने लंड को हिलाने लगे होंगे।


उन शरारती लड़कों की कल्पनाएं भी बड़ी रंगीन और कामोत्तेजित होंगी। कोई कल्पना करके यह सोचते हुए मुट्ठ मार रहा होगा कि वह अपनी शिक्षिका के साथ संभोग कर रहा है तो कोई यह कल्पना कर रहा होगा कि वह अपनी शिक्षिका के साथ मुखमैथुन का सुख भोग रहा है। और कोई यह कल्पना करता होगा कि वह अपने शिक्षिका की रसीली बुर को अपनी जीभ से चाट रहा है यह सब कल्पना करते हुए और उसने पेशाब करता हुआ देखकर जोर-जोर से मुठ मारते होंगे।

और जैसे-जैसे उस की पेशाब की धार का जोर कमजोर होती होगी वैसे वैसे वह लोग अपनी अपनी चरमोत्कर्ष करीब पहुंचते होंगे और जैसे ही वह पेशाब करके उठती होगी वैसे ही तुरंत उन शरारती लड़कों का लंड जोर से पिचकारी फेंक देता होगा।


यही सब सोचते हुए निर्मला एकदम उत्तेजित हो गई थी उसकी सांसें भी भारी हो चली थी और उसकी पैंटी काम रस में डूबने लगी थी।


प्यासी निर्मला की कामोत्तेजना इतनी ज्यादा प्रज्वलित हो चुकी थी की उसके द्वारा किए गए सारे कल्पनाओ के चलचित्र किसी फिल्म की तरह उसके मानस पटल पर चल रहे थे जिसकी वजह से वह सिर्फ सोचते ही सोचते झड़ चुकी थी।


वह कल्पना करके ही अपने चरम सुख को प्राप्त कर ली थी वह भी एक दम हैरान थी,,, ना तो उसने अपनी चुचियों को ही अपने हाथों से मसली और ना ही अपनी हथेली को अपनी बुर पर रखकर रगड़ी,,, बिना अपने हाथों को हरकत दिए मात्र कल्पना के ही जोर से ही उसकी बुर नै पानी फेंक दी थी।

वह स्वयं अपनी हालत पर हैरान होते हुए अपने हाथ को साड़ी के ऊपर से ही बुर को स्पर्श की तो पहले से भी ज्यादा अपनी पेंटिं को गीली पाकर वह हैरान हो गई और तुरंत कुर्सी से उठ कर बाथरूम की तरफ चली गई।

थोड़ी देर बाद वह फ्रैश होकर बाहर आ गई । निर्मला को अब स्कूल के बाथरूम में पेशाब करते हुए अपनी मदमस्त गांड ऊन शरारती लड़कों को दिखाने की जैसी आदत सी पड़ गई थी।

वह भी अब रीशेष होने का इंतजार करती रहती थी जैसे जैसे रिसेस होने का समय नजदीक होता जाता वैसे-वैसे उसकी उत्सुकता और दिल की धड़कन बढ़ती जाती।

रिशेष की घंटी बजते ही वह तुरंत मौका देख कर बाथरूम की तरफ चल देती। खास करके ऐसे ही समय पर बाथरूम की तरफ जाती जब वहां पर भीड़ भाड़ नहीं के बराबर होती थी। ताकि वह खूब अच्छे से अपनी मदमस्त गोरी गांड के दर्शन ऊन शरारती लड़कों को करा सकें।


धीरे धीरे निर्मला अपने बदन के दर्शन कराने में माहिर होने लगी वह बड़ी ही कामुक अदा से अपनी गांड पेशाब करते समय दिखाती थी।


उसकी अब दिली ख्वाहिश ऐसी थी कि उसका बेटा भी उसे पेशाब करते हुए देखें लेकिन उसकी ख्वाहिश पूरी नहीं हो पा रही थी अब तो वह घर में भी इस तरह के कपड़े पहने लगी थी कि जिसमें से उसके हर अंग उपांग साफ साफ नजर आते थे। मखमली गाउन जो की पूरी तरह से उसके मदमस्त बदन से चिपके रहते थे जिसकी वजह से उसके बदन का हर एक कटाव साफ-साफ नजर आता था।


उसके ब्लाउज और गाउन दोनों के गले डीप होने लगे थे जिसकी वजह से ऊसकी बड़ी बड़ी चुचीयो की लंबी और गहरी लकीर के साथ साथ आधे से भी ज्यादा चूचियां अब बाहर की तरफ झलकती रहती थी।

अब तो शुभम अपनी नजरें सेक सेंक कर ही पागल हुए जा रहा था। शुभम को अपनी मां के इस रहस्यमय बदलाव और पहनावे के बारे में कुछ समझ नहीं आ रहा था लेकिन उसकी नजरें जो भी देख रही थी उस की जवानी की तड़प को बढ़ाने के लिए काफी थी।

शुभम को तो इस में बहुत मजा आ रहा था निर्मला भी अपने इस नए रवैये का भरपूर आनंद ले रही थी लेकिन वह अपने बेटे को इससे भी कई ज्यादा दिखाना चाहती थी। पर ना जाने ऐसी कौन सी बात थी जिससे वह हिचक रही थी।


यह हिचकिचाहट थी निर्मला और शुभम के बीच पवित्र रिश्तो के धागे की,,,, संस्कार और परंपराओं के मर्यादा की,
जोकि निर्मला को आगे बढ़ने में रोक रहे थे शुभम तो सब कुछ करने के लिए तैयार था बस इंतजार था एक इशारे की लेकिन यह ईसारा उसे अब तक नहीं मिल पाया था।


निर्मला भी काफी चुदवासी हो चुकी थी तभी तो वह कल्पना करके ही झड़ जाती थी। बार-बार वह अपने बेटे से चुदवाने की कल्पना करके अपनी उंगली को अपनी बुर मे डाल कर अपने ही हांथो से अपनी प्यास बुझाने की कोशिश करती लेकिन हर बार यह प्यास और भी ज्यादा बढ़ती जाती थी।उसे ईतंजार था की कब उसका बेटा अपने मोटे और लंबे लंड से ऊसकी प्यास बुझाएगा।

इसी आस में वह एक दिन अपने कमरे में सोई हुई थी कमरे का दरवाजा खुला हुआ था और रात के करीब 12 बज रहे थे निर्मला का पति अशोक घर पर नहीं था ।
 
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रात के 12 बज रहे थे निर्मला का पति अशोक घर पर नहीं था। निर्मला की आंखों में चुदास से भरी खुमारी छाई हुई थी, उसका गाउन कमर तक चढ़ा हुआ था।

उसकी नजर दरवाजे पर ही टिकी हुई थी और वह खुद अपने हाथों से अपनी बुर की गुलाबी पत्तियों को मसल रही थी। उसके मुख से हल्की हल्की गरम सिसकारी निकल रही थी वह लगातार हसरत भरी निगाहों से दरवाजे को ही देखे जा रही थी।

ऐसा लग रहा था कि जैसे उसे किसी के कमरे में आने का इंतजार हो और उसके इंतजार में वह बिस्तर पर करवट ले देकर अपनी बेचैनी को कम करने की कोशिश कर रही थी उसके बदन की तपिश से पूरा बिस्तर गर्म हो चुका था,,, बिस्तर पर बिछाई हुई चादर पर सिलवटें पड़ चुकी थी।

उसकी कामाग्नि पूरी तरह से भड़क चुकी थी वह कभी अपने ही हाथों से अपने दोनों गोलाइयो को दबाती तो कभी अपनी हथेली से अपनी बुर की गुलाबी पत्तियों को मसल देती।

काफी देर से वो खुद अपने ही बदन से खेल रही थी और अपनी कामाग्नि को और ज्यादा भड़का रही थी।


दीवार पर टंगी घड़ी में 12:30 का समय होने लगा था कि तभी दरवाजे पर शुभम आकर खड़ा हो गया उसके बदन पर मात्र तौलिया लपेटा हुआ था।

उसकी चौड़ी और मजबूत छाती बिल्कुल नंगी थी वह दरवाजे पर खड़े होकर कमरे के अंदर प्यासी नजरों से बिस्तर पर लेटी हुई निर्मला को ही देख रहा था।

निर्मला की भी नजर अपने बेटे पर पड़ते ही वह प्रसन्न हो गई। कमरे में जल रही;डीम लाइट के उजाले में निर्मला की नंगी जांघे चमक रही थी शुभम के तौलिए में तंबू बना हुआ था जिस पर निर्मला की प्यासी नजरें गड़ी हुई थी।


दोनों की नजरें आपस में टकराते हीैं दोनों के बदन में सुरसुराहट सीे फैलने लगी। दोनों आंखों ही आंखों में अपनी हसरत भरी बातों का सिलसिला जारी रखते हुए एक दूसरे के बदन को देखकर उत्तेजित हुए जा रहे थे।


तभी निर्मला अपने बेटे की तरफ देखते हुए अपनी टांगो को थोड़ा सा फैला दी और अपनी हथेली से अपनी प्यासी बुर की गुलाबी पत्तियों को मसलने लगी।


यह इशारा था शुभम को आमंत्रण देने का शुभम भी अपनी मां का यह आमंत्रण स्वीकार करते हुए कमरे में प्रवेश किया और दरवाजे की कड़ी लगाकर दरवाजे को बंद कर दिया।

दरवाजे को बंद करने के बाद वह बिस्तर के करीब पहुंच गया और अपनी टावल को बदन पर से उतार कर फेंक दिया।


बदन पर से तौलिए के दूर होते ही शुभम का टनटनाया हुआ लंड छत की तरफ मुंह उठाए एकदम लोहे की रोड की तरह खड़ा था। जिस पर नजर पड़ते ही निर्मला की बुर उत्तेजना के मारे फूलने पिचकने लगी।


निर्मला अपनी बेटे के खड़े लंड को देखकर लगातार अपनी बुर को मसले जा रही थी उसके मुंह से हल्की हल्की गरम सिसकारी की आवाज आ रही थी जिसको सुनकर शुभम एकदम गर्म हो चुका था।


डीम लाइट की लाल रोशनी में निर्मला और भी ज्यादा कामोतेजक और खूबसूरत लग रही थी। शुभम को अपनी मां के बदन की गर्मी बर्दाश्त नहीं हुई और वह तुरंत बिस्तर पर चढ़ कर अपनी मां की टांगों के बीच जगह बना लिया।


निर्मला यह देख कर शुभम को अपनी बाहों में भरने के लिए हाथ बढ़ाई ही थी कि शुभम ने अपने मोटे लंबे लंड के सुपाड़े को अपनी मां की रसीली बुर के मुहाने पर रखकर एक धक्का लगाया और पनियाई बुर होने की वजह से शुभम का आधा लंड पहले ही प्रयास में ही बुर के अंदर समा गया।



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निर्मला तो बेहद उत्तेजित और आनंदमय हो गई थी क्योंकि बरसों बाद आज उसकी प्यास बुझने वाली थी और वह भी उसके ही बेटे के लंड से निर्मला अपने बेटे को बाहों में भर कर अपनी तरफ खींचती से पहले ही शुभम ने दूसरा प्रहार किया और इस बार उसका तगड़ा लंड सब कुछ चीरता हुआ बुर की गहराई में समा गया।



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जैसे ही शुभम का समुचा लंड उसकी बुर में समाया उसके मुख से चीख निकल गई और शुभम अपनी मां की चीख सुनकर अपने होंठ को ऊसके गुलाबी होंठों पर रख कर चूसने लगा।


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बंद कमरे में एकांत पाकर दो बदन आपस में अपनी प्यास बुझाने के लिए जूझ रहे थे।

निर्मला सुगठित शरीर की मालकिन होने के बावजूद भी शुभम ने उसे कसके अपनी बांहों में जकड़े हुआ था और जोर जोर से अपनी मां की बुर में धक्के लगाते हुए अपनी मां की बुर चोद रहा था।



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दोनों एक दूसरे को अपनी बाहों में ऐसे जकड़े हुए थे मानो कि एक दूसरे के अंदर समाने की कोशिश कर रहे हो। कमरे का माहौल पूरी तरह से खराब हो चुका था।

बरसों से निर्मला जिस चीज को लेने के लिए तड़प रही थी वह चीज उसकी बुर के अंदर समाया हुआ था। वह जोर-जोर से अपनी मां को चोद रहा था पूरा पलंग उसके हर धक्के के साथ हील रहा था।

थोड़ी ही देर में वह दोनो अपनी चरम सुख के करीब पहुंचने लगे थे। शुभम जोर जोर से धक्के लगाने लगा था।



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तभी दोनों का बदन अकड़ने लगा और शुभम की एक जबरदस्त प्रहार के साथ ही निर्मला की चीख निकल गई और वह भलभलाकर झड़ने लगी।


वह चीख के साथ ही उठ कर बैठ गई। बैठकर जब गौर की तो वहां शुभम नहीं था। बगल में अशोक बेसुध होकर सोया हुआ था। ऊसका गाउन कमर तक चढ़ा हुआ था और उसकी उंगलियां बुर के अंदर समाई हुई थी।


बहुत जोर जोर से सांसे लेते हुए हाथ रही थी दूर से निकल रहा नमकीन पानी उसकी हथेली को पूरी तरह से भीगो चुका था। अपनी हालत को देखकर वह हैरान थी लेकिन फिर अपनी हालत और हकीकत का ख्याल होते ही उसे अपने आप पर ही हंसना आ गया।


पंखा चालू होने के बावजूद भी उसके बदन से पसीने की बूंदे टपक रही थी उसे इस बात से राहत थे कि इतना कुछ होने के बावजूद भी अशोक की आंख नहीं खुली थी। वरना उसकी तेज चल रही सांसो की आवाज से अभी भी पूरा कमरा गूंज रहा था।


अपने बेटे के साथ संभोग सुख लेते हुए इस प्रकार का सपना देख कर निर्मला पूरी तरह से हैरान भी थी और उत्तेजित भी। उसे यकीन नहीं हो पा रहा था कि इस तरह के भी सपने उसे आ सकते हैं। सपना देखते ही होगा तो यह सोच रही थी कि आज बरसो की तपस्या पूरी होने को आ गई थी। लेकिन आंख खुलते ही उसका सपना टूट गया था।


वह मन ही मन सोचने लगी कि अगर सपना इतना कामोत्तेजना से भरा हो सकता है तो हकीकत कितनी रंगीन होगी। यह ख्याल मन में आते ही उसकी बुर सुरसुराने लगी और वह फिर से हथेली को अपनी गर्म बुर पर रख कर सो गई।
 
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शीतल की शादी की सालगिरह को बस 2 दिन ही बचे थे। उसे अपने हाथों में मेहंदी लगाना था वैसे भी वह मेहंदी बड़ी अच्छी रचना देती थी इसलिए वह बैठकर अपने हाथ में मेहंदी लगाने लगी।

मेहंदी लगाते हुए उसे अपने बेटे से जुड़ी सारी उत्तेजना से भरपूर बातें याद आने लगी। बार बार उसकी आंखों के सामने फिर से उसके बेटे का खड़ा लंड तेरने लग जाता था, बार-बार उसे उसके बेटे के लंड से निकलती हुई पिचकारी नजर आने लग रही थी, जिसके कारण वह अपने बदन में कामोत्तेजना का अनुभव कर रही थी और वहां पकने वाली बात तो उसे काफी परेशान किए हुए थी बार-बार वही सोच रही थी काश वो सपना सच हो जाता।

अभी अपने एक हाथ में मेहंदी लगाते लगाते उसके मन में आईडिया सुझा और वह तुरंत अपने बेटे को आवाज लगाने लगी


वह आवाज लगाती रही थी और दूसरे हाथ से अपने ब्लाउज के दो तीन बटन को खोल भी चुकी थी कंधे पर रखा पल्लू नीचे की तरफ सरका दी थी, जिससे कि उसकी भरपूर जवानी किसी फिल्म. की तरह पर्दे पर नजर आ रही थी। घर पर केवल शुभम और निर्मला ही थे। निर्मला के हाथ में पूरी तरह से मेहंदी लग चुकी थी।

तभी शुभम अपने कमरे से निकल कर बाहर आया और बाहर आते ही अपनी मां को बोला।


शुभम-
क्या हुआ मम्मी


इतना कहने के साथ ही उसकी नजर अपनी मां पर पड़ी तो अपनी मां को देख कर उसकी आंखें चौंधिया गई। इसमें शुभम का भी कोई कसूर नहीं था यह तो निर्मला तू इतनी खूबसूरत की सादगी में भी सबकी नजरें उसके ऊपर ही टिकी रहती थी और इस समय तो वह कयामत लग रही थी,, रेशमी बाल खुले हुए हवा में लहरा रहे थे,, काली कजरारी आंखें बार बार पलक झपकने की वजह से ऐसा लग रहा था कि बादल में तारे टिमटिमा रहे हैं,, कुदरती लाल लाल होंठ हल्के से खुले हुए जिसके बीच में थोड़ा सा सफेद मोतियों सा चमकता दांत नजर आ रहा था।

जो आपको निर्मला की खूबसूरती का वर्णन था बाकि जिस तरह से किसी धातु पर सोने का पानी चढ़ा कर उसकी खूबसूरती को और भी ज्यादा निखार मिलाया जाता है उसी तरह से निर्मला की खूबसूरती में चार चांद लगाने वाले खूबसूरत अंग तो और भी ज्यादा कयामत ढा रहे थे,,

साड़ी का पल्लू जो कि माथे पर या कंधे पर होने की वजह से औरत की खूबसूरती और ज्यादा बढ़ जाती है लेकिन जब यह पल्लू कमर से सरक कर नीचे आ जाए तो,,,

खूबसूरती के सांचे में ढाला असली कयामत नजर आने लगता है यही हाल निर्मला का भी था निर्मला का बजन कितना खूबसूरत था उतना ही कयामत ढाने वाला भी था ब्लाउज के ऊपर के तीनों बटन खुले हुए थे।

जिसमें से उसकी आधे से भी ज्यादा चूचियां नजर आ रही थी और चूचियों के बीच की गहरी लकीर तो अलग ही बखेड़ा खड़े किए हुए थी। गोलाईयों के इर्द-गिर्द ऊपसी हुई ऊपरी सतह गजब का स्तन दर्शन करा रही थी। कुल मिलाकर निर्मला खूबसूरती,,, आकर्षण और कामोत्तेजना की परिभाषा नजर आ रही थी।


शुभम तो बस देखता ही रह गया वह भी भूल गया कि उसकी मां ने उसे बुलाई थी और वह यही पूछने के लिए आया था कि वह क्यों बुला रही है लेकिन वह अपनी मां का रूप रंग देखकर एकदम दंग रह गया था और पूछना ही भूल गया।


अपने बेटे को इस तरह से ललचाई आंखों से अपने बदन को घूरता हुआ देखकर निर्मला मन ही मन प्रसन्न होने लगी। शुभम अपनी मां के बदन के आकर्षण में पूरी तरह से खो चुका था। निर्मला ही अपने बेटे का ध्यान भंग करते हुए मुस्कुरा कर बोली।




निर्मला - बेटा तुझे तो मालूम ही है की शीतल की शादी की सालगिरह कल ही है इसलिए मैं वहां जाने की तैयारी कर रही थी एक हाथ में तो मेहंदी लगा चुकी हूं( मेहंदी वाले हाथ को शुभम की तरफ बढ़ा कर) लेकिन मेरा सर दुखने लगा है। मुझ से दूसरे हाथ में मेहंदी लगाई नहीं जाएगी इसलिए तू ही लगा दे,,,,,


( निर्मला की बात सुनकर जैसे होश में आया हो इस तरह से बोला।)


शुभम - मममममम,,,,, पपपपप,,,, पर मम्मी मुझे तो आता ही नहीं,,,,



निर्मला - अरे मुझे पता है तुझे थोड़ा बहुत आता है,,,,, एक दिन तू ने ही तो मेरे हाथों में लगाया था,,,,, चल अब जल्दी लगा मेरा सर भी दर्द कर रहा है।


थोड़ा-बहुत शुभम को मेहंदी लगाना आता था इसलिए वह बिना कुछ बोले वहीं बैठ गया और मेहंदी से अपनी मां के हाथों की खूबसूरती को बढ़ाने लगा।

नरम नरम हाथ को अपने हाथ में पकड़कर शुभम की हालत खराब होने लगी बार-बार मेहंदी लगाते हुए उसकी नजर निर्मला की बड़ी बड़ी चूची ऊपर चली जा रही थी जोकि ब्लाउज में तीन बटन खुले होने की वजह से उसमें समा नहीं रहे थे बाकी के बचे ब्लाउज के बटन चूचियों के वजन की वजह से तन चुके थे,,,

ब्लाउज की हालत देख कर ऐसा लग रहा था कि कभी भी ब्लाउज के बटन टूट जाएंगे और उसकी बड़ी-बड़ी दोनों चूचियां नंगी होकर। शुभम की आंखों के सामने तनकर खड़ी हो जाएंगी।

शुभम मेहंदी लगाते हुए बराबर अपनी मां की छातियों पर नजर गड़ाए हुए था जोकि निर्मला इस बात से बिल्कुल भी बेखबर नहीं थी वह तो शुभम की इस हरकत से अंदर ही अंदर खुश हो रही थी।

कुछ ही देर में उत्तेजना के मारे सुभम का लंड पैंट के अंदर तन कर खड़ा हो गया,,,, चूचियों की गोलाई देखकर ब्लाउज की स्थिति कुछ ठीक नहीं लग रही थी।

शुभम तो मन ही मन यही आस लगाए बैठा था कि काश यह ब्लाउज के बटन टूट जाते तो उसकी आंखों को गरमी मिल जाती,,,,

निर्मला को भी अपनी बेटी के सामने अपने बदन की नुमाइश करने में बेहद आनंद मिल रहा था।धीरे धीरे करके निर्मला की पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी और यही हाल शुभम का भी था उसका लंड पेंट में तंबू बनाए हुए था।

दोनों के बदन में उत्तेजना की काम लहर पूरी तरह से छा चुकी थी। अपने बदन में उत्तेजना का अनुभव करते हुए और अपनी आंखों को अपनी मां की खूबसूरत और कामुक बदन को देख कर सेक रहा था। निर्मला के दोनों हाथों में मेहंदी लग चुकी थी।



शुभम - बस मम्मी देखो तो अब मैं भी कैसी लगी है।


शुभम इतना कह कर वहीं बैठा रहा उठा बिल्कुल भी नहीं क्योंकि वह जानता था कि उठने पर उसके पैंट में बना तंबू उसकी मां जरूर देख लेगी,,,, और यही निर्मला भी देखना चाहती थी इसलिए बोली


निर्मला - बहुत अच्छा तो लगाया है तूने अच्छा एक काम कर ड्रावर में से बाम लाकर मेरे माथे पर लगा के थोड़ी मालिश कर दे,,,


(दरअसल निर्मला का यह बहाना था वह तो शुभम की पेंट का तंबू देखना चाहती थी)


शुभम अपनी मां की बात सुनकर मैं थोड़ा सा परेशान हो गया था लेकिन क्या करता है बाम कर लगाना भी जरूरी था इसलिए बेमन से वह खड़ा हुआ लेकिन खड़े होकर वह अपने पेंट के तंबू को छुपा ना सका और जल्दी से ड्रोवर की तरफ बढ़ गया लेकिन निर्मला ने उसके पैंट में बने तंबू को देख ली थी और मन ही मन खुश होने लगी।

पेंट में बने तंबू को देखकर वह फिर से अपने बेटे के लंड के बारे में कल्पना करने लगी,,, कल्पना करते ही उसकी बुर से पानी रिसने लगा। तब तक शुभम ड्रोवर मै से बाम तो नहीं लेकिन विक्स की छोटी डीबिया जरूर ले आया।




शुभम - मम्मी बाम तो नही मिला लेकिन विक्स ले आया,,



निर्मला - कोई बात नहीं इसी को लगा दे थोड़ी बहुत तो राहत मिल ही जाएगी ।

( शुभम के पेंट में बने तंबू की तरफ नजर गड़ाते हुए बोली,,,,)


शुभम भी अपनी मां की नजर को पहचान गया और झट से कुर्सी के पीछे चला गया।


निर्मला के ठीक पीछे शुभम खड़ा था और बीक्स की डिब्बी को खोल रहा था बिक्स की डिब्बी खुल पाती इससे पहले उसके हाथ से छूटकर नीचे की तरफ गिरी,,,, लेकिन वह डिब्बी सीधे जाकर निर्मला के ब्लाउज के बीचों-बीच की पतली गहरी दरार में जाकर फंस गई।

यह देख कर तो शुभम परेशान हो गया लेकिन परेशान से ज्यादा वह उत्तेजना का अनुभव करने लगा।

जिस जगह विक्स की डिबिया गिरी थी उस जगह को लेकर निर्मला काफी उत्तेजित थी क्योंकि उसके दोनों हाथ में मेहंदी लगी हुई थी,,, ऐसे मे वह जाहिर तौर पर अपने हाथ से उस डिब्बी को तो निकाल नहीं सकती थी और शुभम था कि गिरने वाली जगह को देखकर काफी हैरान था ऐसे में वह क्या करे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उसकी परेशानी को समझते हुए निर्मला बोली।




निर्मला - अब देख क्या रहा है इसे निकाल तो सही,,,,, मेरे हाथ में मेहंदी लगी है वरना मैं ही निकाल देती,,,,,,


अपनी मां की बात सुनकर उसके बदन मे उत्तेजना की लहर दौड़नें लगी,, वह तो ना जाने कब से बेताब था अपनी मां की चुचियों को पकड़ने के लिए और यहां तो उसकी मां खुद ऊसे मौका दे रही थी। भला वह इतना सुनहरा मौका हाथ से कैसे जाने देता।


वह ठीक अपनी मां के सामने आकर खड़ा हो गया,,, उत्सुकता और उत्तेजना की वजह से उसे इस बात का एहसास भी नहीं हुआ कि उसकी पेंट में तंबू बना हुआ है और उसकी मां की नजर ठीक उसके तंबु पर ही है।


वह अपना हाथ अपनी मां की चुचियों की तरफ बढ़ाया लेकिन उसका हाथ कांप रहा था, उसकी उंगलियां कांप रही थी जैसे ही वह डिब्बी को लेने के लिए अधिक होने ब्लाउज में हाथ डाला वैसे ही उंगलियों के कंपन की वजह से डिब्बी और अंदर चली गई, ब्लाउज की हालत पहले से ही खराब थी ब्लाउज में जरा सा भी तनाव बढ़ने से ब्लाउज के बटन टूट सकते थे, इसलिए वह अपनी मां से बोला,,,,




शुभम - मम्मी ब्लाउज इतना तना हुआ है कि अगर एक उंगली भी अंदर जाएगी तो हो सकता है ब्लाउज का बटन टूट जाए,,,



निर्मला - नननन नननन,,,, ऐसा बिल्कुल मत करना यह मेरा पसंदीदा ब्लाउज है। एक काम कर इसके बटन खोल दे तब विक्स की डीब्बी भी मिल जाएगी,,,,


शुभम तो यही चाह भी रहा था। उसके हाथ में तो जैसे लड्डू आ गए थे उसने एक पल का भी विलंब किए बिना अपने दोनों हाथों की उंगलियों से अपनी मां के ब्लाउज के बटन को खोलने लगा लेकिन ऊसकी उंगलियां लगातार कांप रही थी यह देखकर निर्मला को मजा आ रहा था।

धीरे धीरे करके उसने अपनी मां के ब्लाउज के सारे बटन खोल दिए,,,, सारे बटन खुलते ही उसकी बड़ी बड़ी चूचियां बिल्कुल नंगी हो गई क्योंकि जानबूझकर उसने आज ब्रा भी नहीं पहनी थी।


शुभम तो अपनी मां की नंगी चूचियों को देखकर एकदम उत्तेजित हो गया, उसकी पेंट में बना तंबू और ज्यादा भयानक नजर आने लगा,, अब विक्स का किस को ख्याल था। वह तो ना जाने कब से नीचे गिर चुकी थी।

शुभम अपनी मां की चुचियों को देखे जा रहा था और निर्मला अपने बेटे के पेंट में बने तंबु को देखे जा रही थी। शुभम अपनी मां की चुचियों को हाथों से छूना चाहता था उन्हें हथेली में लेकर दबाना चाहता था,,,, सब कुछ उसकी आंखों के सामने ही था लेकिन फिर भी वह आगे बढ़ने से कतरा रहा था।




तभी निर्मला अपने बेटे के तंबू को देखते हुए बोली - बेटा अभी तक तुझे राहत नहीं मिला क्या,,,,



शुभम - मिल तो गई मम्मी,,,,,



निर्मला - तो फिर तेरा खड़ा क्यों है?



शुभम - कुछ नहीं मम्मी यै तो ऐसे ही,,,



निर्मला - नही ला मुझे दिखा तो,,, तू जल्दी से खोलकर मुझे दिखा ने देखूं तुझे राहत मिली या अभी भी परेशानी है।


अपनी मां की बात सुनकर थोड़ी तो हिचकिचाहट उसके मन में थी लेकिन फिर भी वह उत्तेजना का अनुभव करते हुए जल्दी से अपने पेंट की बटन खोल कर तुरंत पेंट को जांगो तक कर दिया और अपने खड़े लंड को दिखाने लगा निर्मला नजर भर कर अपने बेटे के लंड को देख पाती उससे पहले ही गाड़ी का होर्न बजने लगा शुभम समझ गया कि उसके पापा आ गए हैं उसने जल्दी से पेंट पहन लिया।।


उसकी मां भी जल्दी से बोली जल्दी से मेरे ब्लाउज के बटन बंद कर तेरे पापा देख लेंगे तो क्या समझेंगे।


अशोक को कमरे में आने से पहले ही जल्दी-जल्दी शुभम ने अपनी मां की कपड़ों को व्यवस्थित कर दिया था, अशोक घर में प्रवेश किया तो उसे जरा सी भी भनक नहीं लग पाई कि कमरे में कुछ देर पहले क्या चल रहा था उसने बस निर्मला के हाथों में लगी मेहंदी को देखा और अपने कमरे में चला गया।
 
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अशोक को अपने कमरे में जाते ही निर्मला ने राहत की सांस ली,, लेकिन सारे किए कराए पर पानी फिर गया था। आज दूसरी बार अपने बेटे के लंड को इतने करीब से देखने का शुभ अवसर प्राप्त की थी,, जैसे ही शुभम ने अपने हाथ से अपने पेंट को खोलकर नीचे जांघो तक लाया था। और शुभम का खड़ा लंड हवा में लहरा ही रहा था कि गाड़ी का हॉर्न सुनाई दिया और सारे दृश्य पर जैसे परदा सा पड़ गया।


शुभम भी काफी उत्तेजित नजर आ रहा था एक तो वैसे ही उसकी मां की अस्त व्यस्त कपड़ों की स्थिति के कारण काफी काम उत्तेजना का अनुभव अपने बदन में कर रहा था और करता भी कैसे नहीं, क्योंकि निर्मला भी तो यही चाहती थी इसलिए तो वह खुद ही अपने ब्लाउज के दो तीन बटन को अपने हाथों से खोलकर अपनी चूचियों का ज्यादातर हिस्सा बाहर की तरफ दिखा रही थी ताकि शुभम की नजर उस पर पड़ते ही उसके अंदर चुदास का कीड़ा रेंगने लगे।

और वैसा हुआ भी शुभम की नजर अपनी मां पर पड़ते ही वह अपने बदन में कामोत्तेजना का अनुभव करने लगा था। ऊपर से उसके नरम नरम हथेली को अपने हाथ से पकड़ कर मेहंदी लगाते हुए जो उन्मादक नजारा देख कर अपनी आंखों के साथ-साथ अपने बदन को भी सेंक रहा था। वह नजारा उसके बदन में हलचल मचा दिया था।


वैसे भी आज पहली बार उसने अपनी मां की नंगी बड़ी बड़ी चूचीयो को देखा था। हालांकि उसने अपनी मां को अब तो काफी बार नंगी देख चुका था लेकिन अपनी मां के बदन के कुछ अनोखे और अनमोल पन्ने खुलने बाकी थे जिसमें से आज एक और अद्भुत और अपने आप में ही प्रचुर कामोत्तेजना का भंडार लिए हुए उत्तेजनात्मक पन्ना खुल चुका था।


अपनी मां के बदन के इस पन्ने के खुलते ही चूची की मनोरम में बनावट उसकी संरचना और गोलाकार रचना को देखकर वह सोच में पड़ गया था। उसे इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि वास्तव में चूची का आकार और उसकी गोलाइयां इतनी ज्यादा कामोत्तेजित कर देने वाली होती है कि आदमी का खड़े-खड़े ही पानी निकल जाए।


अभी तक तो वह केवल चुचियों के बीच की गहरी नहर के सामान लकीर को देख कर ही उत्तेजित हुआ करता था और उसको लेकर के ना जाने कैसी कल्पनाए कर कर के अपने खड़े लंड को शांत करने की पूरी कोशिश किया करता था।


पहले की ही तरह आज भी उसका नसीब बड़े जोरों पर था उसकी मां के हाथों में मेहंदी लगी हुई थी और विक्स की डिब्बी उसके नसीब के जोर के कारण हीै ऐसी जगह जाकर गिरी थी,, जिस जगह के बारे में सोच कर ही जांघों के बीच के हथियार में उत्थान आना शुरू हो जाता है।


शुभम यही सोच रहा था कि यह शायद उसके नसीब के जोर से ही हुआ है लेकिन यह नहीं जानता था कि यह सब उसकी मां की ही सोची समझी साजिश थी वह खुद यही चाहती थी कि उसका बेटा उसके बदन को देखकर उत्तेजित हो और ऐसा हुआ भी था।


अपनी मां की नंगी बड़ी-बड़ी चूचियों को देखकर शुभम एकदम हैरान था उसकी खूबसूरती से उसकी आंखें चौंधिया सी गई थी,,,, अपनी मां की चुचियों को देखते ही उसके मुंह में पानी आ गया था वह अपनी मां की चुचियों को दोनों हाथों से पकड़कर उसे दबाना चाहता था उसे मुंह में भर कर पीना चाहता था।

वह ऐसा कर भी सकता था क्योंकि निर्मला भी यही चाहती थी लेकिन शुभम में पहल करने की अभी हिम्मत नहीं थी। वह तों अपनी मां की चुचियों को देखकर ही अपनी उत्तेजना के थर्मामीटर को बढ़ा रहा था।


अपने सिर में बिक्स लगवाने के लिए शुभम को बोली थी वह विक्स लगाने की शुरुआत करता इससे पहले ही ऐसा लग रहा था कि सच में कुदरत दोनों पर मेहरबान थी इसलिए तो प्लान में ना होने के बावजूद भी,,, कुछ ऐसा घटित हो गया था कि शुभम को खुद अपने हाथों से ही अपनी मां के ब्लाउज के बाकी बचे बटन को खोलना पड़ रहा था।


शुभम तो जैसे उत्तेजना के घोड़े पर सवार हो गया था उसकी सांसे तीव्र गति से टप टपाते हुए दौड़ रही थी। शुभम प्रसन्नता के नाव पर सवार होकर उन्माद की लहरों को चीरता हुआ आगे बढ़ रहा था,,,,

उस की उंगलियां अपनी मां के ब्लाउज के बटन पर हरकत कर रही थी और धीरे-धीरे करके उसने ब्लाउज के बाकी बचे बटन को खोल दिया और बटन की खुलते ही दोनों फड़फड़ाते हुए कबूतर बाहर आ गए उनको देखकर तो शुभम की आंखें फटी की फटी रह गई,,,, उत्तेजना के मारे निर्मला की दोनों निप्पले तन कर एकदम टाइट हो चुकी थी।


शुभम का का मन कर रहा था कि दोनों हाथों में भरकर वह अपनी मां की चुचियों को दबाए लेकिन ऐसा वह कर. सका। बस हल्के-हल्के उंगलियों का स्पर्श उस पर होते ही इतने मात्र से ही वह एकदम प्रसन्न और उत्तेजित हो गया था।

और जैसे ही उसकी मां मैं पेंट को खोलकर अपने लंड को दिखाने के लिए कहीं तो शिवम को लगने लगा था कि आज जरूर कुछ ना कुछ बात आगे बढ़ेगी,,,, और शायद बात आगे भी बढ़ जाती इसलिए तो उसने तुरंत अपनी मां की बात मानते हुए अपनी पेंट को खोलकर नीचे जांघो तक सरका दिया था। खड़े लंड को देख कर उसकी मां की आंखों में एक अजीब सी चमक आ गई थी।

अपने बेटे के तने लंड को देखकर उसकी बुर में पानी आ गया था। वह अपने बेटे के लंड के साथ कुछ कर पाती इससे पहले ही गाड़ी की आवाज सुनकर वह हड़बड़ा गई थी। उसका पति कहीं यह सब देख ना ले इसलिए उसने शुभम को जल्दी से कपड़े पहनने और उसके ब्लाउज को जल्दी से बंद कर के कपड़ों को व्यवस्थित करने के लिए बोली।


शुभम भी घबरा गया था लेकिन अपनी मां की चुचियों को पकड़ने की ख्वाहिश ब्लाउज के बटन को बंद करने के साथ ही पूरी होनी लिखी थी इसलिए,,, वह जैसे ही अपनी मां के ब्लाउज के बटन को बंद करने लगा तो उससे ठीक से बटन लग नहीं पा रहा था क्योंकि उसे ब्लाउज के बटन लगाने का अनुभव बिल्कुल भी नहीं था तो निर्मला ने ही उसे चुचीयो को हाथों से पकड़कर ब्लाउज में कैद कर के बटन लगाने को बोली,,


यह सुनते ही उसे लगने लगा कि चूचियों को पकड़ने की हसरत उसकी पूरी हो जाएगी और ऐसा हुआ भी वह अपनी मां की चुचियों को पकड़कर ब्लाउज में कैद कर के बटन लगा भी दिया और वह जब अपनी मां की चूची को हाथ से पकड़ा था तो उससे रहा नहीं गया और वह कसके के एक बहाने से अपनी मां की चूची को दबा दिया,,,,


जैसे ही उसने अपनी मां की चूची को दबाया था वैसे ही निर्मला के मुंह से गर्म सिसकारी निकल गई थी। ऊपर से एकदम साफ और कड़क दिखने वाली सूची अंदर से इतनी रुई की तरह मुलायम होगी इस बात का अंदाजा शुभम को चूची को दबाने पर ही पता चला था।


उसका मन तो और कर रहा था उसे कब तक के दबाने का लेकिन क्या करता है कि पापा जी आ गए थे इसलिए उसने जल्दबाजी में चूचियों को दबा कर उसे ब्लाउज में कैद करते हुए जल्दी-जल्दी बटन लगाकर अपनी मां के कपड़ों को व्यवस्थित कर दिया।

यहां पर दोनों के लिए ही बड़ा उत्तेजनात्मक और कामुकता से भरा हुआ था यह नजारा दोनों के मन पर गहरा असर कर गया था।


रात को सोते समय वह मन में यही विचार करके सोई थी कि कल जैसा फिर से उसे सपने में उसका बेटा आ कर जमकर उसकी चुदाई करें लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं हां इतना जरूर था कि अपने बेटे का ख्याल करके सोते समय उसकी बुर पानी से सरोबोर हो चुकी थी,,,, बगल में अशोक लेटा हुआ था लेकिन उसके करीब होने से भी कोई फायदा नहीं था।


कल उसे परिवार सहित शीतल ने अपने घर पर उसकी शादी की सालगिरह पर बुलाई थी,,, वह मन मे सोची की अशोक के कल के प्रोग्राम के बारे में कुछ बात करें हो सकता है बातों बातों में ही उसका मूड बन जाए और उसकी बुर में छोटा ही सही लण्ड तो नसीब हो।


निर्मला उससे बात करने के लिए जैसे ही उसकी तरफ नजर घुमाई तो वह निर्मला की तरफ पीठ करके सो चुका था अब उसे जगह पर बात करने का कोई फायदा नहीं था और वैसे भी वह निर्मला के साथ शीतल की सालगिरह पर जाता भी नहीं,,, निर्मला उसकी आदत को जानती थी। वह भी मन मार के सो गई।


तकरीबन
3 बजे फिर से वही आदत के अनुसार अशोक ने निर्मला के ऊपर चढ़ कर बिना किसी प्यार के एहसास और संवेदना के बगैर उसकी चुदाई करने लगा,, वह ऐसा करना भी नहीं चाहता था वह तो उसे बाथरुम जाने के लिए उठना पड़ा और जब बाथरुम जाकर वापस लौटा तो निर्मला के अस्त व्यस्त कपड़ों को देखकर खास करके गाउन को कमर तक चढ़ जाने की वजह से उसके मदमस्त गोरी बड़ी बड़ी गांड नजर आ रही थी जिसे देखते ही एकदम से चुदवासा हो गया और निर्मला की चुदाई करने लगा।


अशोक की चुदाई से निर्मला को कुछ खास मजा नहीं आ रहा था लेकिन यही मौका था अशोक से कल के प्रोग्राम के बारे में बात करने का, क्योंकि वह अशोक को बिना बताए जाना भी नहीं चाहती थी क्योंकि ऐसा करने पर अशोक उस पर बेवजह गुस्सा करता, इसलिए अशोक जब जोर जोर से धक्के लगा रहा था तभी उसने कल के प्रोग्राम के बारे में उसे बताना शुरू कर दी

लेकिन इस तरह के मौके पर निर्मला की बातें सुनकर अशोक निर्मला पर गुस्सा करने लगा और उसे चोदते हुए साफ-साफ बोल दिया कि तुम्हें जाना हो तो चले जाना मैं नहीं आऊंगा मुझे ऑफिस में बहुत काम है। इतना कहकर अपना काम करके वह फिर से सो गया।


आज निर्मला को शीतल की सालगिरह में जाना था वैसे तो उसने पूरे परिवार सहित उसे आमंत्रित की थी लेकिन वह जानती थी कि अशोक उसके साथ जाने वाला नहीं है। जिसके बारे में उसने चुदवाते समय रात को ही इस बात की पुष्टि करली थी।


निर्मला को रह-रहकर अशोक के ऊपर तरस आ जाती थी और गुस्सा भी आता था वह उसे अब कोसते हुए मन ही मन में बड़बड़ आती रहती थी कि न जाने कैसा मर्द है कि, इतनी खूबसूरत बीवी होने के बावजूद भी वह अपनी बीवी पर जरा सा भी ध्यान नहीं देता इसकी जगह कोई और मर्द होता तो उसे पाकर इतना खुश होता कि दिन-रात उसकी पूजा करता रहता और दुनिया का हर सुख चाहे वह आर्थिक हो या शारीरिक सब कुछ देता।


निर्मला इन सब बातें काम करते वक्त सोच रही थी लेकिन फिर अशोक का ख्याल अपने दिमाग से निकाल कर अपने आप को काम में व्यस्त कर ली। घर का सारा काम निपटा कर ऊसे शीतल की सालगिरह में जाने के लिए तैयार होना था।
 
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