शीतल की शादी की सालगिरह को बस 2 दिन ही बचे थे। उसे अपने हाथों में मेहंदी लगाना था वैसे भी वह मेहंदी बड़ी अच्छी रचना देती थी इसलिए वह बैठकर अपने हाथ में मेहंदी लगाने लगी।
मेहंदी लगाते हुए उसे अपने बेटे से जुड़ी सारी उत्तेजना से भरपूर बातें याद आने लगी। बार बार उसकी आंखों के सामने फिर से उसके बेटे का खड़ा लंड तेरने लग जाता था, बार-बार उसे उसके बेटे के लंड से निकलती हुई पिचकारी नजर आने लग रही थी, जिसके कारण वह अपने बदन में कामोत्तेजना का अनुभव कर रही थी और वहां पकने वाली बात तो उसे काफी परेशान किए हुए थी बार-बार वही सोच रही थी काश वो सपना सच हो जाता।
अभी अपने एक हाथ में मेहंदी लगाते लगाते उसके मन में आईडिया सुझा और वह तुरंत अपने बेटे को आवाज लगाने लगी
वह आवाज लगाती रही थी और दूसरे हाथ से अपने ब्लाउज के दो तीन बटन को खोल भी चुकी थी कंधे पर रखा पल्लू नीचे की तरफ सरका दी थी, जिससे कि उसकी भरपूर जवानी किसी फिल्म. की तरह पर्दे पर नजर आ रही थी। घर पर केवल शुभम और निर्मला ही थे। निर्मला के हाथ में पूरी तरह से मेहंदी लग चुकी थी।
तभी शुभम अपने कमरे से निकल कर बाहर आया और बाहर आते ही अपनी मां को बोला।
शुभम- क्या हुआ मम्मी
इतना कहने के साथ ही उसकी नजर अपनी मां पर पड़ी तो अपनी मां को देख कर उसकी आंखें चौंधिया गई। इसमें शुभम का भी कोई कसूर नहीं था यह तो निर्मला तू इतनी खूबसूरत की सादगी में भी सबकी नजरें उसके ऊपर ही टिकी रहती थी और इस समय तो वह कयामत लग रही थी,, रेशमी बाल खुले हुए हवा में लहरा रहे थे,, काली कजरारी आंखें बार बार पलक झपकने की वजह से ऐसा लग रहा था कि बादल में तारे टिमटिमा रहे हैं,, कुदरती लाल लाल होंठ हल्के से खुले हुए जिसके बीच में थोड़ा सा सफेद मोतियों सा चमकता दांत नजर आ रहा था।
जो आपको निर्मला की खूबसूरती का वर्णन था बाकि जिस तरह से किसी धातु पर सोने का पानी चढ़ा कर उसकी खूबसूरती को और भी ज्यादा निखार मिलाया जाता है उसी तरह से निर्मला की खूबसूरती में चार चांद लगाने वाले खूबसूरत अंग तो और भी ज्यादा कयामत ढा रहे थे,,
साड़ी का पल्लू जो कि माथे पर या कंधे पर होने की वजह से औरत की खूबसूरती और ज्यादा बढ़ जाती है लेकिन जब यह पल्लू कमर से सरक कर नीचे आ जाए तो,,,
खूबसूरती के सांचे में ढाला असली कयामत नजर आने लगता है यही हाल निर्मला का भी था निर्मला का बजन कितना खूबसूरत था उतना ही कयामत ढाने वाला भी था ब्लाउज के ऊपर के तीनों बटन खुले हुए थे।
जिसमें से उसकी आधे से भी ज्यादा चूचियां नजर आ रही थी और चूचियों के बीच की गहरी लकीर तो अलग ही बखेड़ा खड़े किए हुए थी। गोलाईयों के इर्द-गिर्द ऊपसी हुई ऊपरी सतह गजब का स्तन दर्शन करा रही थी। कुल मिलाकर निर्मला खूबसूरती,,, आकर्षण और कामोत्तेजना की परिभाषा नजर आ रही थी।
शुभम तो बस देखता ही रह गया वह भी भूल गया कि उसकी मां ने उसे बुलाई थी और वह यही पूछने के लिए आया था कि वह क्यों बुला रही है लेकिन वह अपनी मां का रूप रंग देखकर एकदम दंग रह गया था और पूछना ही भूल गया।
अपने बेटे को इस तरह से ललचाई आंखों से अपने बदन को घूरता हुआ देखकर निर्मला मन ही मन प्रसन्न होने लगी। शुभम अपनी मां के बदन के आकर्षण में पूरी तरह से खो चुका था। निर्मला ही अपने बेटे का ध्यान भंग करते हुए मुस्कुरा कर बोली।
निर्मला - बेटा तुझे तो मालूम ही है की शीतल की शादी की सालगिरह कल ही है इसलिए मैं वहां जाने की तैयारी कर रही थी एक हाथ में तो मेहंदी लगा चुकी हूं( मेहंदी वाले हाथ को शुभम की तरफ बढ़ा कर) लेकिन मेरा सर दुखने लगा है। मुझ से दूसरे हाथ में मेहंदी लगाई नहीं जाएगी इसलिए तू ही लगा दे,,,,,
( निर्मला की बात सुनकर जैसे होश में आया हो इस तरह से बोला।)
शुभम - मममममम,,,,, पपपपप,,,, पर मम्मी मुझे तो आता ही नहीं,,,,
निर्मला - अरे मुझे पता है तुझे थोड़ा बहुत आता है,,,,, एक दिन तू ने ही तो मेरे हाथों में लगाया था,,,,, चल अब जल्दी लगा मेरा सर भी दर्द कर रहा है।
थोड़ा-बहुत शुभम को मेहंदी लगाना आता था इसलिए वह बिना कुछ बोले वहीं बैठ गया और मेहंदी से अपनी मां के हाथों की खूबसूरती को बढ़ाने लगा।
नरम नरम हाथ को अपने हाथ में पकड़कर शुभम की हालत खराब होने लगी बार-बार मेहंदी लगाते हुए उसकी नजर निर्मला की बड़ी बड़ी चूची ऊपर चली जा रही थी जोकि ब्लाउज में तीन बटन खुले होने की वजह से उसमें समा नहीं रहे थे बाकी के बचे ब्लाउज के बटन चूचियों के वजन की वजह से तन चुके थे,,,
ब्लाउज की हालत देख कर ऐसा लग रहा था कि कभी भी ब्लाउज के बटन टूट जाएंगे और उसकी बड़ी-बड़ी दोनों चूचियां नंगी होकर। शुभम की आंखों के सामने तनकर खड़ी हो जाएंगी।
शुभम मेहंदी लगाते हुए बराबर अपनी मां की छातियों पर नजर गड़ाए हुए था जोकि निर्मला इस बात से बिल्कुल भी बेखबर नहीं थी वह तो शुभम की इस हरकत से अंदर ही अंदर खुश हो रही थी।
कुछ ही देर में उत्तेजना के मारे सुभम का लंड पैंट के अंदर तन कर खड़ा हो गया,,,, चूचियों की गोलाई देखकर ब्लाउज की स्थिति कुछ ठीक नहीं लग रही थी।
शुभम तो मन ही मन यही आस लगाए बैठा था कि काश यह ब्लाउज के बटन टूट जाते तो उसकी आंखों को गरमी मिल जाती,,,,
निर्मला को भी अपनी बेटी के सामने अपने बदन की नुमाइश करने में बेहद आनंद मिल रहा था।धीरे धीरे करके निर्मला की पैंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी और यही हाल शुभम का भी था उसका लंड पेंट में तंबू बनाए हुए था।
दोनों के बदन में उत्तेजना की काम लहर पूरी तरह से छा चुकी थी। अपने बदन में उत्तेजना का अनुभव करते हुए और अपनी आंखों को अपनी मां की खूबसूरत और कामुक बदन को देख कर सेक रहा था। निर्मला के दोनों हाथों में मेहंदी लग चुकी थी।
शुभम - बस मम्मी देखो तो अब मैं भी कैसी लगी है।
शुभम इतना कह कर वहीं बैठा रहा उठा बिल्कुल भी नहीं क्योंकि वह जानता था कि उठने पर उसके पैंट में बना तंबू उसकी मां जरूर देख लेगी,,,, और यही निर्मला भी देखना चाहती थी इसलिए बोली
निर्मला - बहुत अच्छा तो लगाया है तूने अच्छा एक काम कर ड्रावर में से बाम लाकर मेरे माथे पर लगा के थोड़ी मालिश कर दे,,,
(दरअसल निर्मला का यह बहाना था वह तो शुभम की पेंट का तंबू देखना चाहती थी)
शुभम अपनी मां की बात सुनकर मैं थोड़ा सा परेशान हो गया था लेकिन क्या करता है बाम कर लगाना भी जरूरी था इसलिए बेमन से वह खड़ा हुआ लेकिन खड़े होकर वह अपने पेंट के तंबू को छुपा ना सका और जल्दी से ड्रोवर की तरफ बढ़ गया लेकिन निर्मला ने उसके पैंट में बने तंबू को देख ली थी और मन ही मन खुश होने लगी।
पेंट में बने तंबू को देखकर वह फिर से अपने बेटे के लंड के बारे में कल्पना करने लगी,,, कल्पना करते ही उसकी बुर से पानी रिसने लगा। तब तक शुभम ड्रोवर मै से बाम तो नहीं लेकिन विक्स की छोटी डीबिया जरूर ले आया।
शुभम - मम्मी बाम तो नही मिला लेकिन विक्स ले आया,,
निर्मला - कोई बात नहीं इसी को लगा दे थोड़ी बहुत तो राहत मिल ही जाएगी ।
( शुभम के पेंट में बने तंबू की तरफ नजर गड़ाते हुए बोली,,,,)
शुभम भी अपनी मां की नजर को पहचान गया और झट से कुर्सी के पीछे चला गया।
निर्मला के ठीक पीछे शुभम खड़ा था और बीक्स की डिब्बी को खोल रहा था बिक्स की डिब्बी खुल पाती इससे पहले उसके हाथ से छूटकर नीचे की तरफ गिरी,,,, लेकिन वह डिब्बी सीधे जाकर निर्मला के ब्लाउज के बीचों-बीच की पतली गहरी दरार में जाकर फंस गई।
यह देख कर तो शुभम परेशान हो गया लेकिन परेशान से ज्यादा वह उत्तेजना का अनुभव करने लगा।
जिस जगह विक्स की डिबिया गिरी थी उस जगह को लेकर निर्मला काफी उत्तेजित थी क्योंकि उसके दोनों हाथ में मेहंदी लगी हुई थी,,, ऐसे मे वह जाहिर तौर पर अपने हाथ से उस डिब्बी को तो निकाल नहीं सकती थी और शुभम था कि गिरने वाली जगह को देखकर काफी हैरान था ऐसे में वह क्या करे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उसकी परेशानी को समझते हुए निर्मला बोली।
निर्मला - अब देख क्या रहा है इसे निकाल तो सही,,,,, मेरे हाथ में मेहंदी लगी है वरना मैं ही निकाल देती,,,,,,
अपनी मां की बात सुनकर उसके बदन मे उत्तेजना की लहर दौड़नें लगी,, वह तो ना जाने कब से बेताब था अपनी मां की चुचियों को पकड़ने के लिए और यहां तो उसकी मां खुद ऊसे मौका दे रही थी। भला वह इतना सुनहरा मौका हाथ से कैसे जाने देता।
वह ठीक अपनी मां के सामने आकर खड़ा हो गया,,, उत्सुकता और उत्तेजना की वजह से उसे इस बात का एहसास भी नहीं हुआ कि उसकी पेंट में तंबू बना हुआ है और उसकी मां की नजर ठीक उसके तंबु पर ही है।
वह अपना हाथ अपनी मां की चुचियों की तरफ बढ़ाया लेकिन उसका हाथ कांप रहा था, उसकी उंगलियां कांप रही थी जैसे ही वह डिब्बी को लेने के लिए अधिक होने ब्लाउज में हाथ डाला वैसे ही उंगलियों के कंपन की वजह से डिब्बी और अंदर चली गई, ब्लाउज की हालत पहले से ही खराब थी ब्लाउज में जरा सा भी तनाव बढ़ने से ब्लाउज के बटन टूट सकते थे, इसलिए वह अपनी मां से बोला,,,,
शुभम - मम्मी ब्लाउज इतना तना हुआ है कि अगर एक उंगली भी अंदर जाएगी तो हो सकता है ब्लाउज का बटन टूट जाए,,,
निर्मला - नननन नननन,,,, ऐसा बिल्कुल मत करना यह मेरा पसंदीदा ब्लाउज है। एक काम कर इसके बटन खोल दे तब विक्स की डीब्बी भी मिल जाएगी,,,,
शुभम तो यही चाह भी रहा था। उसके हाथ में तो जैसे लड्डू आ गए थे उसने एक पल का भी विलंब किए बिना अपने दोनों हाथों की उंगलियों से अपनी मां के ब्लाउज के बटन को खोलने लगा लेकिन ऊसकी उंगलियां लगातार कांप रही थी यह देखकर निर्मला को मजा आ रहा था।
धीरे धीरे करके उसने अपनी मां के ब्लाउज के सारे बटन खोल दिए,,,, सारे बटन खुलते ही उसकी बड़ी बड़ी चूचियां बिल्कुल नंगी हो गई क्योंकि जानबूझकर उसने आज ब्रा भी नहीं पहनी थी।
शुभम तो अपनी मां की नंगी चूचियों को देखकर एकदम उत्तेजित हो गया, उसकी पेंट में बना तंबू और ज्यादा भयानक नजर आने लगा,, अब विक्स का किस को ख्याल था। वह तो ना जाने कब से नीचे गिर चुकी थी।
शुभम अपनी मां की चुचियों को देखे जा रहा था और निर्मला अपने बेटे के पेंट में बने तंबु को देखे जा रही थी। शुभम अपनी मां की चुचियों को हाथों से छूना चाहता था उन्हें हथेली में लेकर दबाना चाहता था,,,, सब कुछ उसकी आंखों के सामने ही था लेकिन फिर भी वह आगे बढ़ने से कतरा रहा था।
तभी निर्मला अपने बेटे के तंबू को देखते हुए बोली - बेटा अभी तक तुझे राहत नहीं मिला क्या,,,,
शुभम - मिल तो गई मम्मी,,,,,
निर्मला - तो फिर तेरा खड़ा क्यों है?
शुभम - कुछ नहीं मम्मी यै तो ऐसे ही,,,
निर्मला - नही ला मुझे दिखा तो,,, तू जल्दी से खोलकर मुझे दिखा ने देखूं तुझे राहत मिली या अभी भी परेशानी है।
अपनी मां की बात सुनकर थोड़ी तो हिचकिचाहट उसके मन में थी लेकिन फिर भी वह उत्तेजना का अनुभव करते हुए जल्दी से अपने पेंट की बटन खोल कर तुरंत पेंट को जांगो तक कर दिया और अपने खड़े लंड को दिखाने लगा निर्मला नजर भर कर अपने बेटे के लंड को देख पाती उससे पहले ही गाड़ी का होर्न बजने लगा शुभम समझ गया कि उसके पापा आ गए हैं उसने जल्दी से पेंट पहन लिया।।
उसकी मां भी जल्दी से बोली जल्दी से मेरे ब्लाउज के बटन बंद कर तेरे पापा देख लेंगे तो क्या समझेंगे।
अशोक को कमरे में आने से पहले ही जल्दी-जल्दी शुभम ने अपनी मां की कपड़ों को व्यवस्थित कर दिया था, अशोक घर में प्रवेश किया तो उसे जरा सी भी भनक नहीं लग पाई कि कमरे में कुछ देर पहले क्या चल रहा था उसने बस निर्मला के हाथों में लगी मेहंदी को देखा और अपने कमरे में चला गया।