Badhiya update dostशुभम बाथरूम का नजारा देखकर एकदम सन्न हो गया था कमरे में आकर अपने बिस्तर पर वाह एक दम शांत होकर बैठ गया था। उसने जो आज देखा था वह बड़ा ही कामोतेजक था उसका पानी निकलते निकलते बचा था।
उसे बैठे-बैठे काफी समय हो गया था। और समय भी निकला जा रहा था उसे लगा कि उसकी मां तैयार हो गई होगी इसलिए सीधे वह अपनी मां के कमरे की तरफ चल दिया कमरे का दरवाजा बंद था। उसने बाहर से अपनी मां को आवाज लगा या।
मम्मी तैयार हो गई कि नहीं
हां हो रही हूं तू हो गया कि नहीं
हां मैं तो कब से हो गया
अच्छा,,, तू अंदर आ जा मैं 10 मिनट में तैयार हो जाती हुं। ( निर्मला की आवाज ऐसी आ रही थी ऐसा लग रहा था कि उसने मुंह में कुछ भरी हो)
अपनी मां की बात सुनकर शुभम दरवाजे पर हल्के से हाथ रखा तो दरवाजा अपने आप ही खुल गया और वह सीधे कमरे में घुस गया कमरे में घुसते ही जैसे ही उसकी नजर निर्मला पर पड़ी तो वह फिर से दंग रह गया।
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निर्मला केवल टावल में खड़ी थी और टावल के किनारी उसने मुंह से दबाकर पकड़ रखी थी, इसलिए तो उसके मुंह से इस तरह की आवाजें आ रही थी।
निर्मला टॉवल भी इस तरह का पहनी हुई थी कि टॉवल उसके जांघों से ऊपर तक ही पहुंच रही थी जो कि वह थोड़ा सा भी अलमारी के ऊपर वाले ड्रावर की तरफ हाथ बढ़ाती तो उसकी बड़ी बड़ी नितंब दिखने लग रही थी।
यह देख कर तो शुभम की सांस ही अटक गई थी, उसे कुछ सुझा नहीं वह बस आंख पड़े अपनी मां की नग्नता का रसपान करता रहा।
निर्मला अलमारी में कुछ खंगाल रही थी वह अपने लिए कपड़े ढुंढ रही थी लेकिन उसे इतना अच्छी तरह से मालूम था कि जिस तरह से वह खड़ी है उसका बेटा उसके बदन को प्यासी नजरों से घूर रहा होगा।
निर्मला जानबूझकर ऊपर वाले ड्राइवर की तरफ हाथ बढ़ाने लगी क्योंकि उसे इतना अंदाजा लग गया था कि ऐसा करने पर उसकी टावल नीचे से ऊपर की तरफ उठ जा रही थी और उसकी गांड का बहुत ही अच्छा खासा हीस्सा शुभम की आंखों के सामने तैरने लग रहा था। और ऐसा करने में निर्मला को अब बेहद आनंद की अनुभूति हो रही थी।
वह अलमारी में से अपनी साड़ियों को बारी-बारी से देखते हुए शुभम की तरफ बिना देखे हुए ही बोली,
शुभम मुझे बिल्कुल भी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं पार्टी में क्या पहन कर जाऊं, इतनी सारी साड़ियां है लेकिन कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
शुभम की तो हालत खराब थी वह अपनी मां की नंगी बदन को देखकर अब उत्तेजना का अनुभव करते हुए मस्त हुए जा रहा था और उसके पैंट में शुभम के पेंट में अच्छा कौशल तंबू बन चुका था जो कि कभी भी उसकी मां की आंखों के सामने नजर आ सकता था इस बात से घबराते हुए वह झट से बिस्तर पर बैठ गया और बोला
मम्मी आप कुछ भी पहनो आप पर तो बेहद अच्छी लगेगी,
ऐसा क्यों? ( इस बार वह अपने बेटे की तरफ नजर घुमाकर देखते हुए बोली।)
क्योंकि तुम सुंदर हो इसलिए जो भी पहनोगी अच्छी लगेगी।
(अपने बेटे की मुंह से अपनी तारीफ सुनकर निर्मला को अच्छा लगा वह मुस्कुराते हुए फिर बोली,, लेकिन अभी भी वह टॉवल को अपनी दातों से ही पकड़े हुए थी।)
लेकिन फिर भी तू ही बता कि आज मैं क्या पहनु?
निर्मला फिर से अपने हाथ को ऊपर की तरफ उठाकर साड़ी को ढूंढने का नाटक करते हुए अपनी गांड शुभम को दिखाने लगी और वहीं शुभम भी ये देखकर एकदम मस्त होने लगा वह तो मन ही मन यही सोच रहा था कि अगर कुछ भी नहीं पहनोगी तो भी चलेगा लेकिन फिर भी वह अपनी पसंद बताते हुए बोला
मम्मी आप वहां आसमानी रंग की साड़ी पहन लो पार्टी में बहुत अच्छा लगेगा,
(अपने बेटे की पसंद जानकर निर्मला खुश हुई क्योंकि उसे भी आसमानी रंग की साड़ी भी पहनकर जाने की इच्छा हो रही थी अशोक से तो अब यह सब पूछना मतलब पत्थर पर सिर मारने के बराबर था इसलिए वह अपने बेटे से ही यह पुछ कर संतुष्ट हो रही थी।
वहां अलमारी में से आसमानी रंग की साड़ी और उसके मैचिंग का ब्लाउज और पेटीकोट निकाल कर बाहर टेबल पर रख दी।
लेकिन शुभम की तो हालत खराब हो रही थी वो जानबूझकर बिस्तर पर बैठ गया था ऐसा ना करता तो उसके मन के अंदर क्या चल रहा है यह उसकी मां को देखकर समझते देर नहीं लगती।
निर्मला इस हालत में बेहद खूबसूरत और कामुक लग रही थी शुभम अपनी मां को इस अवस्था में सीधे नजर से नहीं देख रहा था बल्कि बार बार नजर तिरछी कर के देख ले रहा था। और यह देखकर निर्मला अंदर ही अंदर खुश हो रही थी अब उसे भी जल्दी तैयार होना था क्योंकि समय काफी हो रहा था।
शुभम अपनी नजरें बचाकर निर्मला की तरफ देख रहा था रहा था, तभी उसकी मां ने जो बोलीे वह सुनकर वह एकदम से सन्न हो गया,,
शुभम मेरी पैंटी तो दे,,,
इतना सुनकर शुभम तो सकपका दिया वह फटी आंखों से अपनी मां की तरफ देखने लगा कि वह क्या कह रही है। शुभम के चेहरे के हाव भाव को देखकर निर्मला को समझते देर नहीं लगी कि वह शायद उसकी बात को ठीक से समझ नहीं पाया इसलिए वह दुबारा बोली
अरे ऐसे क्या देख रहा है मेरी पैंटी पर ही तो तू बैठा है,, ला जल्दी दे मै पहनु।
( निर्मला अपने बेटे से इस तरह की बातें करने में बिल्कुल भी हिचकिचा नहीं रही थी। बल्कि उसे तो बहुत मजा आ रहा था। )
अपनी मां की बात सुनकर शुभम के चेहरे पर घबराहट के भाव नजर आने लगे और वह नजर नीचे करके देखा तो वास्तव में वह अपनी मां की पैंटी पर ही बैठा हुआ था।
उसने जल्दी से थोड़ा सा बिस्तर पर से उठ कर अपने नीचे से अपनी मां की पैंटी निकालकर अपनी मां की तरफ उछाल दिया और निर्मला हवा में उछली हुई पेंटिं को पकड़ने की कोशिश करते हुए उसके मुंह से टावल की किनारी छूट गई और टॉवल अगले ही पल उसके बदन से गिरता हुआ नीचे उसके कदमों में जा गिरा
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आहहहहहह,,, एक गरम सिसकारी शुभम के मुंह से निकल गई जब उसने यह नजारा देखा तो,,, उसकी मां एक बार फिर उसकी आंखों के सामने एकदम नंगी हो गई,, उसका गोरा दुधिया बदन ट्यूबलाइट के उजाले में एक बार फिर से चमकने लगा, शुभम तो आंखें फाड़े अपनी मां को ही देखे जा रहा था।
यह देखकर निर्मला मुस्कुराने लगी लेकिन उसने अपने बदन को फिर से टावल उठाकर ढंकने का बिल्कुल भी दरकार नहीं की वह शायद यही चाह भी रही थी। इसलिए तो वहां बिना किसी दरकार के अपनी पैंटी को उठाते हुए बोली।
क्या कर रहा है शुभम हाथ में तो दे सकता था। ( निर्मला अपनी पैंटी को उठाकर झटकने लगी,,,,)
ससस,,,, सॉरी मम्मी,,,,,
इतना कहकर वह अपनी नजरें नीचे झुका लिया,,, लेकिन निर्मला अपने बेटे के सामने भी एकदम बिंदास होकर अपनी पैंटी को पहनने लगी।
अपनी लंबी लंबी चिकनी गोरी टांगो को पैंटी में डालकर वह धीरे-धीरे सरका कर अपनी जांघो तक ला दी और इतने पर ही अटका कर एक नजर शुभम पर डाली तो वह तिरछी नजर से उसे ही देख रहा था दोनों की नजरें जब आपस में टकराई तो शुभम शरमा कर फिर से नजरें झुका लिया। यह देखकर निर्मला के चेहरे पर कामुक मुस्कान तैरने लगी
निर्मला ने अपनी पैंटी को जांघो तक लाकर जानबूझकर अटका दी थी। ताकि वह उसकी चिकनी और तरोताजा बुर को देख सके लेकिन डर के मारे शुभम नजर उठा कर अपनी मां की जांघों के बीच के उस खूबसूरत द्वार को देख ना सका।
यह कसमसाहट उसके चेहरे पर साफ नजर आ रही थी क्योंकि उसने अब तक अपनी मां के बदन के सारे अंगो को देख चुका था लेकिन वही एक अंग को अभी तक नहीं देख पाया था। बल्कि अभी तो उसके पास पूरा मौका भी था लेकिन ना जाने कौन से डर की वजह से वह आंख उठाकर जांगो के बीच की उस जगह को देख नहीं पाया।
निर्मला भी मुस्कुराते हुए पैंटी को पहन ली और पहनने के बाद उसे इधर उधर से खींचकर ठीक से आरामदायक स्थिति में कर ली। अभी तो मात्र उसके बदन पर पैंटी ही चढी़े थी बाकी का पूरा बदन नंगा ही था।
लेकिन आज ना जाने निर्मला को कौन सा जुनून सवार था कि अपने बेटे की उपस्थिति में भी शर्माए बिना ही संपूर्ण रूप से नंगी होकर कि अपने कपड़े बदल रही थी। पेंटी पहनने के बाद वह शुभम से बोली
शुभम तेरे पीछे मेरी ब्रा भी है उसे भी दे दे,,, लेकिन फ़ेंक कर नहीं मेरे हाथ में दे
इस बार ब्रा मांगने पर फिर से शुभम की हालत खराब होने लगी पेंट में लंड पूरी तरह से तंबू बनाए हुए था उसकी हालत फसल खराब हुई जा रही थी उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि बिना छुए हि आज उसका पानी निकल जाएगा।
वह अपने आप को संभालते हुए पीछे हाथ बढ़ाकर बिस्तर पर से ब्रा उठाया जो की बहुत ही मुलायम थी। और खड़े होकर अपनी मां को थमाया लेकिन इस बार वह अपनी उत्तेजना को छिपा ना सका,,, उसकी मां की नजर उसके पैंट में बने तंबू पर पड़ ही गई और उस तंबू को देखकर निर्मला के बदन में सुरसुराहट सी दौड़ गई।
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वह मुस्कुराते हुए शुभम के हाथ से ब्रा को लेकर पहनने लगी। वह शुभम की तरफ देखते हुए अपनी चूची को एक एक हाथ से पकड़ कर ब्रा के अंदर कैद करने लगी और शुभम यह नजारे को छुपते छुपाते देखे बिना अपने आप को रोक नहीं पा रहा था।
यही सब निर्मला को बहुत ही ज्यादा उत्तेजना का अनुभव करा रहा था और उसे मजा भी बहुत आ रहा था। धीरे धीरे करके ऐसे ही शुभम की उत्तेजना को बढ़ाते और उसे अंदर ही अंदर तड़पाते हुए निर्मला अपने कपड़े पहन ली। आसमानी साड़ी में निर्मला एकदम परी की तरह खूबसूरत लग रही थी जिसको देखकर शुभम की आंखें उसके बदन की खूबसूरती की चमक से चौंधिया सी गई थी।
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घर से निकलते निकलते वह शुभम पर आखरी बार अपने हुस्न का जलवा बिखेरते हुए बोली
शुभम बेटा लगता है मेरे ब्लाउज की डोरी ठीक से बंधी नहीं है तू जरा इसे ठीक से बांध दे तो
अपनी मां की यह बात सुनते ही शुभम की उंगलियां तो पहले से ही कांपने लगी। उत्तेजना के मारे उसका गला सूखने लगा वह धीरे धीरे चलते हुए अपनी मां के करीब आया और उसके पीछे खड़े होकर के धीरे-धीरे ब्लाउज की रेशमी डोेरी को खोलने लगा। डोरी को खोलते हुए उसके हाथ कांप रहे थे, उसकी उंगलियों के कंपन को निर्मला अपनी पीठ पर साफ महसूस कर रही थी और मन ही मन प्रसन्न भी हो रही थी।
अगले ही पल उसने अपने हाथ की उंगलियों का सहारा लेकर ब्लाउज की डोरी को खोल दिया और खोलने के बाद उसे ठीक से बांधते हुए उसमे गांठ मार दिया।
चिकनी गोरी पीठ पर ब्लाउज की डोरी कसते ही पीठ की खूबसूरती और भी ज्यादा निखरने लगी। लेकिन तभी उसकी नजर ब्लाउज के साइड से निकली हुई ब्रा के स्ट्रैप पर पड़ी। उसे देखते ही वह अपनी मां से डरते हुए बोला
मम्मी आपकी ब्रा की स्ट्रेप बाहर निकली हुई है।
अपने बेटे की बात सुनकर उसके भी बदन में हलचल सी मच गई और मुस्कुराते हुए वह बोली।
कोई बात नहीं बेटा तू उसे अंदर की तरफ कर दें,
शुभम फिर से अपने कांपते उंगलियों से अपनी मां की ब्रा की स्ट्रेप को ब्लाउज के अंदर की तरफ सरकाने लगा यही सही मौका देखकर निर्मला अपने बेटे की तड़प को और ज्यादा बढ़ाते हुए बोली,,,
बेटा लगता है कि तेरे उसमे अभी तक आराम नहीं हुआ है,,,
शुभम अपनी मां की हर बात को समझ नहीं पाया और उसकी ब्रा की स्ट्रैप को ब्लाउज के अंदर उंगली से सरकाते हुए बोला
किसमें
अरे तेरे लंड में और किसमे,,, लगता है फिर से तेरे लंड की अच्छे से मालिश करनी पड़ेगी तब जाकर इस में आराम होगा
अपनी मां की मुझे ऐसी खुली बातें सुनते ही शुभम के दिल की धड़कन तेज हो गई और पेंट के अंदर से ही लंड ने सलामी भरना शुरु कर दिया वह अपना बचाव करते हुए बोला
ननननन,, नननन,,, नही मम्मी ऐसी कोई बात नहीं है मुझे आराम है( इतना कहने के साथ ही वह ब्रा के स्ट्रैप को ठीक कर दिया।)
निर्मला शुभम की तरफ घूमी और अपनी नजर को उसके पैंट में बने तंबू की तरफ घूमाते हुए बोली
आराम है तो फिर इतना तना हुआ क्यों है? इतना कहकर वह मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर जाने लगे तो शुभम भी पीछे-पीछे अपनी मां के पिछवाड़े को देखते हुए जाने लगा वह अपने मां की इस बात का जवाब नहीं दे पाया।
घर से बाहर आते ही निर्मला गैराज में से गाड़ी बाहर निकालने के लिए गई और मौसम भी खराब हो रहा था हल्की हल्की बारिश होने लगी थी।
ThanksBadhiya update dost
Mast update hai barish hone wali hai sawaan ki bahaar me badhta hai pyaarशुभम बाथरूम का नजारा देखकर एकदम सन्न हो गया था कमरे में आकर अपने बिस्तर पर वाह एक दम शांत होकर बैठ गया था। उसने जो आज देखा था वह बड़ा ही कामोतेजक था उसका पानी निकलते निकलते बचा था।
उसे बैठे-बैठे काफी समय हो गया था। और समय भी निकला जा रहा था उसे लगा कि उसकी मां तैयार हो गई होगी इसलिए सीधे वह अपनी मां के कमरे की तरफ चल दिया कमरे का दरवाजा बंद था। उसने बाहर से अपनी मां को आवाज लगा या।
मम्मी तैयार हो गई कि नहीं
हां हो रही हूं तू हो गया कि नहीं
हां मैं तो कब से हो गया
अच्छा,,, तू अंदर आ जा मैं 10 मिनट में तैयार हो जाती हुं। ( निर्मला की आवाज ऐसी आ रही थी ऐसा लग रहा था कि उसने मुंह में कुछ भरी हो)
अपनी मां की बात सुनकर शुभम दरवाजे पर हल्के से हाथ रखा तो दरवाजा अपने आप ही खुल गया और वह सीधे कमरे में घुस गया कमरे में घुसते ही जैसे ही उसकी नजर निर्मला पर पड़ी तो वह फिर से दंग रह गया।
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निर्मला केवल टावल में खड़ी थी और टावल के किनारी उसने मुंह से दबाकर पकड़ रखी थी, इसलिए तो उसके मुंह से इस तरह की आवाजें आ रही थी।
निर्मला टॉवल भी इस तरह का पहनी हुई थी कि टॉवल उसके जांघों से ऊपर तक ही पहुंच रही थी जो कि वह थोड़ा सा भी अलमारी के ऊपर वाले ड्रावर की तरफ हाथ बढ़ाती तो उसकी बड़ी बड़ी नितंब दिखने लग रही थी।
यह देख कर तो शुभम की सांस ही अटक गई थी, उसे कुछ सुझा नहीं वह बस आंख पड़े अपनी मां की नग्नता का रसपान करता रहा।
निर्मला अलमारी में कुछ खंगाल रही थी वह अपने लिए कपड़े ढुंढ रही थी लेकिन उसे इतना अच्छी तरह से मालूम था कि जिस तरह से वह खड़ी है उसका बेटा उसके बदन को प्यासी नजरों से घूर रहा होगा।
निर्मला जानबूझकर ऊपर वाले ड्राइवर की तरफ हाथ बढ़ाने लगी क्योंकि उसे इतना अंदाजा लग गया था कि ऐसा करने पर उसकी टावल नीचे से ऊपर की तरफ उठ जा रही थी और उसकी गांड का बहुत ही अच्छा खासा हीस्सा शुभम की आंखों के सामने तैरने लग रहा था। और ऐसा करने में निर्मला को अब बेहद आनंद की अनुभूति हो रही थी।
वह अलमारी में से अपनी साड़ियों को बारी-बारी से देखते हुए शुभम की तरफ बिना देखे हुए ही बोली,
शुभम मुझे बिल्कुल भी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं पार्टी में क्या पहन कर जाऊं, इतनी सारी साड़ियां है लेकिन कुछ समझ में नहीं आ रहा है।
शुभम की तो हालत खराब थी वह अपनी मां की नंगी बदन को देखकर अब उत्तेजना का अनुभव करते हुए मस्त हुए जा रहा था और उसके पैंट में शुभम के पेंट में अच्छा कौशल तंबू बन चुका था जो कि कभी भी उसकी मां की आंखों के सामने नजर आ सकता था इस बात से घबराते हुए वह झट से बिस्तर पर बैठ गया और बोला
मम्मी आप कुछ भी पहनो आप पर तो बेहद अच्छी लगेगी,
ऐसा क्यों? ( इस बार वह अपने बेटे की तरफ नजर घुमाकर देखते हुए बोली।)
क्योंकि तुम सुंदर हो इसलिए जो भी पहनोगी अच्छी लगेगी।
(अपने बेटे की मुंह से अपनी तारीफ सुनकर निर्मला को अच्छा लगा वह मुस्कुराते हुए फिर बोली,, लेकिन अभी भी वह टॉवल को अपनी दातों से ही पकड़े हुए थी।)
लेकिन फिर भी तू ही बता कि आज मैं क्या पहनु?
निर्मला फिर से अपने हाथ को ऊपर की तरफ उठाकर साड़ी को ढूंढने का नाटक करते हुए अपनी गांड शुभम को दिखाने लगी और वहीं शुभम भी ये देखकर एकदम मस्त होने लगा वह तो मन ही मन यही सोच रहा था कि अगर कुछ भी नहीं पहनोगी तो भी चलेगा लेकिन फिर भी वह अपनी पसंद बताते हुए बोला
मम्मी आप वहां आसमानी रंग की साड़ी पहन लो पार्टी में बहुत अच्छा लगेगा,
(अपने बेटे की पसंद जानकर निर्मला खुश हुई क्योंकि उसे भी आसमानी रंग की साड़ी भी पहनकर जाने की इच्छा हो रही थी अशोक से तो अब यह सब पूछना मतलब पत्थर पर सिर मारने के बराबर था इसलिए वह अपने बेटे से ही यह पुछ कर संतुष्ट हो रही थी।
वहां अलमारी में से आसमानी रंग की साड़ी और उसके मैचिंग का ब्लाउज और पेटीकोट निकाल कर बाहर टेबल पर रख दी।
लेकिन शुभम की तो हालत खराब हो रही थी वो जानबूझकर बिस्तर पर बैठ गया था ऐसा ना करता तो उसके मन के अंदर क्या चल रहा है यह उसकी मां को देखकर समझते देर नहीं लगती।
निर्मला इस हालत में बेहद खूबसूरत और कामुक लग रही थी शुभम अपनी मां को इस अवस्था में सीधे नजर से नहीं देख रहा था बल्कि बार बार नजर तिरछी कर के देख ले रहा था। और यह देखकर निर्मला अंदर ही अंदर खुश हो रही थी अब उसे भी जल्दी तैयार होना था क्योंकि समय काफी हो रहा था।
शुभम अपनी नजरें बचाकर निर्मला की तरफ देख रहा था रहा था, तभी उसकी मां ने जो बोलीे वह सुनकर वह एकदम से सन्न हो गया,,
शुभम मेरी पैंटी तो दे,,,
इतना सुनकर शुभम तो सकपका दिया वह फटी आंखों से अपनी मां की तरफ देखने लगा कि वह क्या कह रही है। शुभम के चेहरे के हाव भाव को देखकर निर्मला को समझते देर नहीं लगी कि वह शायद उसकी बात को ठीक से समझ नहीं पाया इसलिए वह दुबारा बोली
अरे ऐसे क्या देख रहा है मेरी पैंटी पर ही तो तू बैठा है,, ला जल्दी दे मै पहनु।
( निर्मला अपने बेटे से इस तरह की बातें करने में बिल्कुल भी हिचकिचा नहीं रही थी। बल्कि उसे तो बहुत मजा आ रहा था। )
अपनी मां की बात सुनकर शुभम के चेहरे पर घबराहट के भाव नजर आने लगे और वह नजर नीचे करके देखा तो वास्तव में वह अपनी मां की पैंटी पर ही बैठा हुआ था।
उसने जल्दी से थोड़ा सा बिस्तर पर से उठ कर अपने नीचे से अपनी मां की पैंटी निकालकर अपनी मां की तरफ उछाल दिया और निर्मला हवा में उछली हुई पेंटिं को पकड़ने की कोशिश करते हुए उसके मुंह से टावल की किनारी छूट गई और टॉवल अगले ही पल उसके बदन से गिरता हुआ नीचे उसके कदमों में जा गिरा
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आहहहहहह,,, एक गरम सिसकारी शुभम के मुंह से निकल गई जब उसने यह नजारा देखा तो,,, उसकी मां एक बार फिर उसकी आंखों के सामने एकदम नंगी हो गई,, उसका गोरा दुधिया बदन ट्यूबलाइट के उजाले में एक बार फिर से चमकने लगा, शुभम तो आंखें फाड़े अपनी मां को ही देखे जा रहा था।
यह देखकर निर्मला मुस्कुराने लगी लेकिन उसने अपने बदन को फिर से टावल उठाकर ढंकने का बिल्कुल भी दरकार नहीं की वह शायद यही चाह भी रही थी। इसलिए तो वहां बिना किसी दरकार के अपनी पैंटी को उठाते हुए बोली।
क्या कर रहा है शुभम हाथ में तो दे सकता था। ( निर्मला अपनी पैंटी को उठाकर झटकने लगी,,,,)
ससस,,,, सॉरी मम्मी,,,,,
इतना कहकर वह अपनी नजरें नीचे झुका लिया,,, लेकिन निर्मला अपने बेटे के सामने भी एकदम बिंदास होकर अपनी पैंटी को पहनने लगी।
अपनी लंबी लंबी चिकनी गोरी टांगो को पैंटी में डालकर वह धीरे-धीरे सरका कर अपनी जांघो तक ला दी और इतने पर ही अटका कर एक नजर शुभम पर डाली तो वह तिरछी नजर से उसे ही देख रहा था दोनों की नजरें जब आपस में टकराई तो शुभम शरमा कर फिर से नजरें झुका लिया। यह देखकर निर्मला के चेहरे पर कामुक मुस्कान तैरने लगी
निर्मला ने अपनी पैंटी को जांघो तक लाकर जानबूझकर अटका दी थी। ताकि वह उसकी चिकनी और तरोताजा बुर को देख सके लेकिन डर के मारे शुभम नजर उठा कर अपनी मां की जांघों के बीच के उस खूबसूरत द्वार को देख ना सका।
यह कसमसाहट उसके चेहरे पर साफ नजर आ रही थी क्योंकि उसने अब तक अपनी मां के बदन के सारे अंगो को देख चुका था लेकिन वही एक अंग को अभी तक नहीं देख पाया था। बल्कि अभी तो उसके पास पूरा मौका भी था लेकिन ना जाने कौन से डर की वजह से वह आंख उठाकर जांगो के बीच की उस जगह को देख नहीं पाया।
निर्मला भी मुस्कुराते हुए पैंटी को पहन ली और पहनने के बाद उसे इधर उधर से खींचकर ठीक से आरामदायक स्थिति में कर ली। अभी तो मात्र उसके बदन पर पैंटी ही चढी़े थी बाकी का पूरा बदन नंगा ही था।
लेकिन आज ना जाने निर्मला को कौन सा जुनून सवार था कि अपने बेटे की उपस्थिति में भी शर्माए बिना ही संपूर्ण रूप से नंगी होकर कि अपने कपड़े बदल रही थी। पेंटी पहनने के बाद वह शुभम से बोली
शुभम तेरे पीछे मेरी ब्रा भी है उसे भी दे दे,,, लेकिन फ़ेंक कर नहीं मेरे हाथ में दे
इस बार ब्रा मांगने पर फिर से शुभम की हालत खराब होने लगी पेंट में लंड पूरी तरह से तंबू बनाए हुए था उसकी हालत फसल खराब हुई जा रही थी उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि बिना छुए हि आज उसका पानी निकल जाएगा।
वह अपने आप को संभालते हुए पीछे हाथ बढ़ाकर बिस्तर पर से ब्रा उठाया जो की बहुत ही मुलायम थी। और खड़े होकर अपनी मां को थमाया लेकिन इस बार वह अपनी उत्तेजना को छिपा ना सका,,, उसकी मां की नजर उसके पैंट में बने तंबू पर पड़ ही गई और उस तंबू को देखकर निर्मला के बदन में सुरसुराहट सी दौड़ गई।
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वह मुस्कुराते हुए शुभम के हाथ से ब्रा को लेकर पहनने लगी। वह शुभम की तरफ देखते हुए अपनी चूची को एक एक हाथ से पकड़ कर ब्रा के अंदर कैद करने लगी और शुभम यह नजारे को छुपते छुपाते देखे बिना अपने आप को रोक नहीं पा रहा था।
यही सब निर्मला को बहुत ही ज्यादा उत्तेजना का अनुभव करा रहा था और उसे मजा भी बहुत आ रहा था। धीरे धीरे करके ऐसे ही शुभम की उत्तेजना को बढ़ाते और उसे अंदर ही अंदर तड़पाते हुए निर्मला अपने कपड़े पहन ली। आसमानी साड़ी में निर्मला एकदम परी की तरह खूबसूरत लग रही थी जिसको देखकर शुभम की आंखें उसके बदन की खूबसूरती की चमक से चौंधिया सी गई थी।
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घर से निकलते निकलते वह शुभम पर आखरी बार अपने हुस्न का जलवा बिखेरते हुए बोली
शुभम बेटा लगता है मेरे ब्लाउज की डोरी ठीक से बंधी नहीं है तू जरा इसे ठीक से बांध दे तो
अपनी मां की यह बात सुनते ही शुभम की उंगलियां तो पहले से ही कांपने लगी। उत्तेजना के मारे उसका गला सूखने लगा वह धीरे धीरे चलते हुए अपनी मां के करीब आया और उसके पीछे खड़े होकर के धीरे-धीरे ब्लाउज की रेशमी डोेरी को खोलने लगा। डोरी को खोलते हुए उसके हाथ कांप रहे थे, उसकी उंगलियों के कंपन को निर्मला अपनी पीठ पर साफ महसूस कर रही थी और मन ही मन प्रसन्न भी हो रही थी।
अगले ही पल उसने अपने हाथ की उंगलियों का सहारा लेकर ब्लाउज की डोरी को खोल दिया और खोलने के बाद उसे ठीक से बांधते हुए उसमे गांठ मार दिया।
चिकनी गोरी पीठ पर ब्लाउज की डोरी कसते ही पीठ की खूबसूरती और भी ज्यादा निखरने लगी। लेकिन तभी उसकी नजर ब्लाउज के साइड से निकली हुई ब्रा के स्ट्रैप पर पड़ी। उसे देखते ही वह अपनी मां से डरते हुए बोला
मम्मी आपकी ब्रा की स्ट्रेप बाहर निकली हुई है।
अपने बेटे की बात सुनकर उसके भी बदन में हलचल सी मच गई और मुस्कुराते हुए वह बोली।
कोई बात नहीं बेटा तू उसे अंदर की तरफ कर दें,
शुभम फिर से अपने कांपते उंगलियों से अपनी मां की ब्रा की स्ट्रेप को ब्लाउज के अंदर की तरफ सरकाने लगा यही सही मौका देखकर निर्मला अपने बेटे की तड़प को और ज्यादा बढ़ाते हुए बोली,,,
बेटा लगता है कि तेरे उसमे अभी तक आराम नहीं हुआ है,,,
शुभम अपनी मां की हर बात को समझ नहीं पाया और उसकी ब्रा की स्ट्रैप को ब्लाउज के अंदर उंगली से सरकाते हुए बोला
किसमें
अरे तेरे लंड में और किसमे,,, लगता है फिर से तेरे लंड की अच्छे से मालिश करनी पड़ेगी तब जाकर इस में आराम होगा
अपनी मां की मुझे ऐसी खुली बातें सुनते ही शुभम के दिल की धड़कन तेज हो गई और पेंट के अंदर से ही लंड ने सलामी भरना शुरु कर दिया वह अपना बचाव करते हुए बोला
ननननन,, नननन,,, नही मम्मी ऐसी कोई बात नहीं है मुझे आराम है( इतना कहने के साथ ही वह ब्रा के स्ट्रैप को ठीक कर दिया।)
निर्मला शुभम की तरफ घूमी और अपनी नजर को उसके पैंट में बने तंबू की तरफ घूमाते हुए बोली
आराम है तो फिर इतना तना हुआ क्यों है? इतना कहकर वह मुस्कुराते हुए कमरे से बाहर जाने लगे तो शुभम भी पीछे-पीछे अपनी मां के पिछवाड़े को देखते हुए जाने लगा वह अपने मां की इस बात का जवाब नहीं दे पाया।
घर से बाहर आते ही निर्मला गैराज में से गाड़ी बाहर निकालने के लिए गई और मौसम भी खराब हो रहा था हल्की हल्की बारिश होने लगी थी।