Adultery Aahhh.... Babuji (Ghar ka Dhudh)

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Update - 01

"बाबू जी, काटो मत, कितनी ज़ोर से
काटते हो ? खा जयोगे क्या मेरी चूची ? गुस्से से मंजू बाई चिल्लाई ओर फिर
हस्ने लगी. मैं उसपर चढ़ कर उसें चोद रहा था ओर उसकी एक चूची मुँह में
लेकर चूस रहा था. उसका छर्हरा सांवला शरीर मेरे नीचे दबा था ओर उसकी
मजबूत टांगे मेरी कमर के इर्द-गिर्द लिपटी हुई थी. मैं इतनी मस्ती मे था
कि वासना सहन नही होने से मैने मंजू के निपल को दाँतों मे दबा कर चबा
डाला था ओर वो चिल्ला उठी थी. मैने उसकी बात को उनसुनी करके उसकी आधी
चूची को मुँह मे भर लिया ओर फिर से उसें दाँतों से काटने लगा. उसके फिर
से चीखने के पहले मैने अपने मुँह से उसकी चूची निकाली ओर उसके होंठों को
अपने होंठों मे दबाकर उसकी आवाज़ बंद कर दी. उसके होंठों को चूस्ते हुए
मैं अब उसें कस कर चोदने लगा. वो भी आहह न आहह सस्सह की दबी हुई आवाज़
निकालते हुए मुझसे चिपेट कर छट-पटाने लगी. यह उसके झड़ने के करीब आने की
निशानी थी. दो तीन धक्कों के बाद ही उसके बंद मुँह से एक चीख निकली ओर
उसने अपनी जीब मेरे मुँह मे डाल दी. उसका शरीर कड़ा हो गया था ओर वो
थरथराने लगी. उसकी चूत मे से अब ढेर सारा पानी बह रहा था. मैने भी तीन
चार ओर करारे धक्के लगाए ओर अपना लंड उसकी चूत मे पूरा अंदर घुसेड कर
झाड़ गया. थोड़ी देर बाद मैं लुढ़क कर उसके उपर से अलग हुआ ओर लेट कर
सुस्ताने लगा. मंजू बाई उठकर अपने कपड़े पहनने लगी. उसकी चूची पर मेरे
दाँतों के गहरे निशान थे, उन्हे सहलाते हुए वह मुझसे शिकायत करते हुए
बोली, " बाबूजी, क्यों काटतें हो मेरी चूची को बार बार, मुझे बहुत
दुख़्ता हैं, परसो तो तुमने थोड़ा खून भी निकाल दिया था;". उसकी आवाज़ मे
शिकायत के साथ साथ हल्का सा नखरा भी था. उसे दर्द तो हुआ होगा पर मेरी उस
दुष्ट हरकत पर मज़ा भी आया था. मैने कोई जवाब नही दिया, बस मुस्कराते हुए
उसे बाहों मे खींच कर उसके साँवले होंठों का चुंबन लेते हुए सोचने लगा कि
क्या मेरी तक़दीर है जो इतनी गरम चुदैल औरत मेरे पल्ले पड़ी है. एक
नौकरानी थी, अब मेरी प्रेमिका बन गयी थी मंजू बाई! यह अफ़साना कैसे शुरू
हुआ उसे मैं याद कर रहा था. मैं कुछ ही महीने पहले यहाँ नौकरी पर आया था.
बी.ए. करने के बाद यह मेरी पहली नौकरी थी. फॅक्टरी एक छोटे सहर के बाहर
खैमोर गाओं के पास थी, वहाँ कोई आना पसंद नही करता था इसलिए एक तगड़ी
सॅलरी के साथ कंपनी ने मुझे कॉलोनी मे एक बंगले भी रहने को दे दिया था.
कॉलोनी सहर से दूर थी ओर इसलिए नौकरो के लिए छ्होटे क्वॉर्टर भी हर बंगले
मे बने थे. मैं अभी अकेला ही था, अभी शादी नही हुई थी. मेरे बंगले के
क्वॉर्टर मे मंजू बाई पहले से ही रहती थी. उस बंगले मे रहने वाले लोगो के
घर का सारा काम काज करने के लिए कंपनी ने उसे रखा था. वह पास के गाओं की
थी पर उसे फ्री मे रहने ले लिए क्वॉर्टर ओर थोड़ी तनख़्वाह भी कंपनी देती
थी इसलिए वो बंगले मे ही रहती थी. वैसे तो उसका पति भी था. मैने उसे बस
एक दो बार देखा था. शायद उसका ओर कही लॅफाडा था ओर शराब की लत थी इसलिए
मंजू से उसका खूब झगड़ा होता था. वो मंजू की गाली गलौच से घबराता था
इसलिए अक्सर घर से महीनो गायब रहता था. मंजू मेरे घर का सारा काम करती थी
ओर बड़े प्यार से मन लगाकर करती थी. खाना बनाना, कपड़े धोना, सॉफ सफाई करना, मेरे लिए बेज़ार से ज़रूरत की सब चीज़ें ले आना, ये सब वही करती
थी. मुझे कोई तक़लीफ़ नही होने देती थी. उसकी ईमानदारी ओर मीठे स्वाभाव
के कारण उसपेर मेरा पूरा विशवाश हो गया था. मैने घर की पूरी ज़िम्मेदारी
उस पर डाल दी थी ओर उसे उपर से तीन सौ रुपय भी देता था. उसके कहने से
मैने बंगले के बाथरूम मे उसे नहाने धोने की इज़ाज़त भी दे दी थी क्योंकि
नौकरो के क्वॉर्टर मे बाथरूम ढंग का नही था. ग़रीबी के बावजूद सॉफ सुथरा
रहने का उसे बहुत शौक था ओर इसीलिए बंगले के बाथरूम मे नहाने की इज़ाज़त
मिलने से वो बहुत खुश थी. दिन मे दो बार नहाती ओर हमेशा सॉफ सुथरी रहती,
नही तो नौकरानिया अक्सर इतनी सफाई से नही रहती. मुझे बाबूजी कहकर बुलाती
थी ओर मैं उसे मंजू बाई कहता था. मेरा बर्ताव उसके साथ एकदम अच्छा ओर
सभ्य था, नौकरो जैसा नही. यहाँ आए हुए मुझे दो महीने हो गये थे. उन दो
महीनो में मैने मंजू पर एक औरत के रूप में ज़यादा ध्यान नही दिया था.
मुझे उसकी उमर का भी ठीक अंदाज नही था, हां वो मुझ से काफ़ी बड़ी हैं ये
मालूम था. इस वर्ग की औरतें अक्सर तीस से लेकर पैंतालीस तक एक सी दिखती
हैं, समझ मे नही आता की उनकी असली उमर क्या है. कुच्छ जल्दी बूढ़ी लगने
लगती हैं तो कुच्छ पचास की होकर भी तीस पैंतीस की दिखती हैं. मंजू की उमर
मेरे ख़याल में सेंतिस अड़तीस की होगी. पर लगती थी कि जैसे तीस साल की
जवान औरत हो. शरीर एकद्ूम मजबूत, छर्हरा ओर कसा हुआ था. काम करने की
फुर्ती देखकर मैं मन ही मन उसकी दाद देता था कि क्या एनर्जी है इस औरत
में. कभी कभी वह पान भी खाती थी ओर तब उसके साँवले होंठ लाल हो जाते.
मुझे पान का शौक नही हैं पर जब वह पास से गुजरती तो उसके खाए पान की
सुगंध मुझे बड़ी अछी लगती थी. अब इतने करीब रहने के बाद यह स्वाभाविक था
की धीरे धीरे मैं उसकी तरफ एक नौकरानी ही नही, एक औरत की तरह देखने लग
जाउ. मैं भी एक तेईस(23) साल का जवान था, ओर जवानी अपने रंग दिखाएगी ही.
काम ख़तम होने पर घर आता तो कुच्छ करने के लिए नही था सिवाए टीवी देखने
के ओर पढ़ने के. कभी कभी क्लब हो आता था पर मेरे अकेलेपन के स्वाभाव के
कारण अक्सर घर में ही रहना पसंद करता था. मंजू काम करती रहती ओर मेरी
नज़र अपने आप उसके फुर्तीले बदन पर जा कर टिक जाती. ऐसा शायद चलता रहता
पर तभी एक घटना ऐसी हुई कि मंजू के प्रति मेरी भावनाए अचानक बदल गयी. एक
दिन बॅडमिंटन खेलते हुए मेरे पाँव में मोच आ गयी. शाम तक पैर सूज गया.
दूसरे दिन काम पर भी नही जा सका. डॉक्टर की लिखी दवा ली ओर मरहम लगाया पर
दर्द कम नही हो रहा था. मंजू मेरी हालत देख कर मुझसे बोली, "बाबूजी, पैर
की मालिश कर दूं?" मैने मना किया. मुझे भरोसा नही था, डरता था कि पैर ओर
ना सूज जाए. ओर वैसे भी एक औरत से पैर दब्वाना मुझे ठीक नही लग रहा था.
वह ज़िद करने लगी, मेरे अच्छे बर्ताव की वजह से मुझको अब वह बहुत मानती
थी ओर मेरी सेवा का यह मौका नही छोड़नाचाहती थी,
"एकदम आराम आ जाएगा बाबूजी, देखो तो. मैं बहुत अच्छा मालिश करती हूँ, गाओं मे तो किसी को ऐसा
कुच्छ होता है तो मुझे ही बुलाते है". उसके चेहरे के उत्साह को देखकर
मैने हां कर दी, की उसे बुरा ना लगे. उसने मुझे पलंग पर लीटाया ओर जाकर
गरम करके तेल ले आई. फिर पाजामा उपर करके मेरे पैरों की मालिश करने लगी.
उसके हाथ मे सच में जादू था. बहुत अच्छा लग रहा था. काम करके उसके हाथ
ज़रा कड़े हो गये थे फिर भी उनका दवाब मेरे पैर को बहुत आराम दे रहा था.
पास से मैने पहली बार मंजू को ठीक से देखा था. वह मालिश करने में लगी हुई
थी इसलिए उसका ध्यान मेरे चेहरे पर नही था. मैं चुपचाप उसे घूर्ने लगा.
सादे कपड़ो मे लिपटे उसके सीधे साधे रूप के नीचे छुपि उसके बदन की मादकता

मुझे महसूस होने लगी. क्रमशः........
 
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Update -02
गाटांक से आगे............ दिखने मे वह साधारण थी. बाल जुड़े मे बाँध रखे
थे, उनमे एक फूलों की वेणी थी. थी तो वह साँवली पर उसकी त्वचा एकदम चिकनी
ओर दमकती हुई. माथे पर बड़ी बिंदी थी ओर नाक मे नथ्नि पहने थी. वह गाओं
की औरतों जैसे धोती की तरह साड़ी पहने थी जिसमे से उसके चिकने सुडौल पैर
ओर मांसल पिंडलियाँ दिख रही थी. चोली ओर साड़ी के बीच दिखती उसकी पीठ और
कमर भी एकदम सपाट ओर मुलायम थी. चोली के नीचे शायद वह कुछ नही पहनती थी
क्योंकि कटोरी से तेल लेने को जब वह मुड़ती तो पिछे से उसकी चोली के पतले
कपड़े मे से ब्रा का कोई स्ट्रॅप नही दिख रहा था. आँचल उसने कमर मे खोंस
रखा था ओर उसके नीचे से उसकी छाती का हल्का सा उभार दिखता था. उसके स्तन
ज़यादा बड़े नही थे पर ऐसा लगता था की जीतने भी हैं, काफ़ी सख़्त ओर कसे
हुए हैं. उसके उस दुबले पतले चेहरे पर एकदम स्वस्थ ओर कसे हुए चिकने शरीर
को देखकर पहली बार मुझे समझ मे आया कि जब किसी औरत को "त्वन्गि" कहते है,
याने जिसका बदन किसी पेड़ के तने जैसा होता है, तो इसका क्या मतलब है.
उसके हाथो के स्पर्श ओर पास से दिखते उसके सादे पर स्वस्थ रूप ने मुझपेर
ऐसा जादू किया कि जो होना था वह हो कर रहा. मेरा लंड उठने लगा. मैं
परेशान था, उसके सामने उसे दबाने को कुच्छ कर भी नही सकता था. इसलिए पलट
कर पेट के बल सो गया. वह कुच्छ नही बोली, पिछे से मेरे टखने की मालिश
करती रही. अब मैं उसके बारे मे कुच्छ भी सोचने को आज़ाद था. मैं मन ही मन
लड्डू खाने लगा. मंजू बाई नंगी कैसी दिखेगी! उसे भींच कर उसे चोदने मे
क्या मज़ा आएगा ! मेरा लंड तन्ना कर खड़ा हो गया. दस मिनिट बाद वह बोली,
" अब सीधे हो जाओ बाबूजी, मैं पैर मोड़ कर मालिश करूँगी, आप एकदम सीधे
चलने लगॉगे". मैं आनाकानी करने लगा. "हो गया, बाई, अब अच्छा लग रहा है,
तुम जाओ." आख़िर खड़ा लंड उसे कैसे दिखता! पर वह नही मानी ओर मजबूर होकर
मैने करवट बदली ओर कुर्ते से लंड के उभार को ढँक कर मन ही मन प्रार्थना
करने लगा कि उसे मेरा खड़ा लंड ना दिखे. वैसे कुर्ते में भी अब तंबू बन
गया था सो अब च्छूपने की कोई गुंजाइश नही थी. वह कुछ ना बोली ओर पाँच
मिनिट मे मालिश ख़तम करके चली गयी. " बस हो गया बाबूजी, अब आराम करो आप".
कमरे से बाहर जाते जाते हुए मुस्करा कर बोली," अब देखो बाबूजी, तुम्हारी
सारी परेशानी दूर हो जाएगी". उसकी आँखों मे एक चमक सी थी. मैं सोचता रहा
कि उसके इस कहने मे ओर कुच्छ मतलब तो नही छुपा. उसकी मालिश से मैं उसी
दिन चलने फिरने लगा. दूसरे दिन उसने फिर एक बार मालिश की, ओर मेरा पैर
पूरी तरह से ठीक हो गया. इसबार मैं पूरा सावधान था ओर अपने लंड पर मैने
पूरा कंट्रोल रखा. ना जाने क्यों मुझे लगा कि जाते जाते मंजू बाई कुच्छ
उदास सी लगी. अब उसको देखने की मेरी नज़र बदल सी गयी थी. जब भी मैं घर
में होता तो उसकी नज़र बचाकर उसके शरीर को घूर्ने का कोई भी मौका नही
छ्चोड़ता था. खाना बनाते समय जब वह किचन के चबूतरे के पास खड़ी होती तो
पिछे से उसे देखना मुझे बहुत अच्छा लगता, उसकी चिकनी पीठ ओर गर्देन मुझ
पर जादू सा कर देती, मैं बार बार किसी ना किसी बहाने से किचन के दरवाजे
से गुज़रता ओर मन भर कर उसे पिछे से देखता. जब वह चलती तो मैं उसके
चूतदों ओर पिंडलियों को घूरता. उसके चूतड़ छ्होटे थे पर एकदम गोल ओर
सख़्त थे. जब वह अपने पंजो पर खड़ी होकर उपर देखते हुए कपड़े सूखने को
डालती तो उसके छ्होटे मम्मे तन कर उसके आँचल मे से अपनी मस्ती दिखने
लगते. उसे भी मेरी इस हालत का अंदाज़ा हो गया होगा,आख़िर मालिश करते समय
कुर्ते के नीचे से मेरा खड़ा लंड उसने देखा ही था. पर नाराज़ होने ओर
बुरा मानने के बजाए वह अब मेरे सामने कुच्छ कुच्छ नखरे दिखाने लगी थी.
बार बार आकर मुझसे बातें करती, कभी बेमतलब मेरी ओर देखकर हल्के से हंस
देती. उसकी हँसी भी एकदम लुभावनी थी, हंसते समय उसकी मुस्कान बड़ी मीठी
होती ओर उसके सफेद दाँत ओर गुलाबी मसूड़े दिखते क्योंकि उसका उपरी होंठ
एक खास अंदाज़ मे उपर कीओर खुल जाता. मैं समझ गया की शायद वह भी चुदासि
की भूखी थी ओर मुझे रिझाने की कोशिश कर रही थी. आख़िर उस जैसी नौकरानी को
मेरे जैसा उच्च वर्गिय नौजवान कहाँ मिलने वाला था? उसका पति तो नलायक
शराबी था ही, उसे संबंध तो मंजू ने कब के तोड़ लिए थे. मुझे यकीन हो गया
था कि बस मेरे पहल करने की देर है यह शिकार खुद मेरे पंजे में आ फँसेगा.
पर मैने कोई पहल नही की. डर था कुच्छ लेफ्डा ना हो जाए, ओर अगर मैने मंजू
को समझने मे कोई भूल की हो तो फिर तो बहुत तमाशा हो जाएगा. वह चिल्ला कर
पूरी कॉलोनी सिर पर ना उठा ले, नही तो कंपनी मे मुँह दिखाने की जगह भी ना
मिलेगी. पर मंजू ने मेरी नज़र की भूख पहचान ली थी. अब उसने आगे कदम
बढ़ाना शुरू कर दिया. वह थी बड़ी चालाक, मेरे ख़याल से उसने मन मे ठान ली
थी की मुझे फँसा कर रहेगी. अब वह मेरे सामने होती, तो उसका आँचल बार बार
गिर जाता. ख़ास कर मेरे कमरे मे झाड़ू लगाते हुए तो उसका आँचल गिरा ही
रहता. वैसे ही मुझे खाना परोसते समय उसका आँचल अक्सर खिसकने लगा ओर वैसे
मे ही वो झुक झुक कर मुझे खाना परोसती. अंदर ब्रा तो वो पहनती नही थी
इसलिए ढले आँचल के कारण उसकी चोली के उपर से उसके छ्होटे ओर कड़े मम्मो
ओर उनकी घुंडीयों का आकार सॉफ सॉफ दिखता. भले छ्होटे हों पर बड़े खूबसूरत
मम्मे थे उसके. बड़ी मुश्किल से मैं अपने आप को संभाल पाता, वरना लगता तो
था कि अभी उन कबूतरों को पकड़ लूँ ओर मसल डालूं, चूस लूँ. मैं अब उसके
मोहज़ाल मे पूरा फँस चुक्का था. रोज़ रात को मूठ मारता तो इस तीखी
नौकरानी के नाम से. उसकी नज़रों से नज़र मिलाना मैने छ्चोड़ दिया था कि
उसे मेरी नज़रों की वासना की भूख दिख ना जाए. बार बार लगता कि उसे उठा कर
पलंग पर ले जाउ ओर कचकच छोड़ मारू. अक्सर खाना खाने के बाद मैं दस मिनिट
तक बैठा रहता, उठता नही था ताकि मेरा तना लंड उसको दिख ना जाएँ. यह
ज़यादा दिन चलने वाला नही था. आख़िर एक शनिवार को छुट्टी के दिन की
दोपेहर में बाँध टूट ही गया. उस दिन खाना परोसते हुए मंजू चीख पड़ी कि
चिंटी काट रही है ओर मेरे सामने अपनी सारी उठा कर अपनी टाँगो मे चिंटी
ढूँढने का नाटक करने लगी. उसकी पुश्त सुडौल साँवली चिकनी जांघे पहली बार
मैने देखी थी. उसने सादी गुलाबी पेंटी पहनी हुई थी. उस टांग पॅंटी मे से
उसकी फूली बुर का उभार सांफ दिख रहा था. साथ ही पॅंटी के बीच के संकरे
पट्टे के दोनो ओर से घनी काली झाँतें बाहर निकल रही थी. एकदम देसी नज़ारा
था. ओर यह नज़ारा मुझे पूरे पाँच मिनिट मंजू ने दिखाया. उउई उउई करती हुई
मेरी ओर देखकर हंसते हुए वो चिंटी ढूँढती रही जो आख़िर तक नही मिली. मैने
खाना किसी तरह ख़तम किया ओर आराम करने के लिए बेडरूम मे आ गया. दरवाजा
उड़का कर मैं सीधा पलंग पर गया ओर लॅंड हाथ मे लेकर हिलाने लगा. मंजू की
वी चिकनी झंघे मेरी आँखों के सामने तेर रही थी. मैं हथेली मे लंड पकड़ कर
उसे मुत्हियाने लगा, मानो मंजू की टाँगों पर उसे रगड़ रहा हूँ. इतने मे
बेडरूम का दरवाजा खुला ओर मंजू अंदर आ गयी. वह चतुर औरत जानबूझ कर मुझे
धुला पाजामा देने का बहाना करके आई थी. दरवाजे की सितकनी मैं लगाना भूल
गया था इसीलिए वो सीधे अंदर घूस आई थी. मुझे मूठ मारते देख कर वहीं खड़ी
हो गयी ओर मुझे देखने लगी. मैं सकते मे आकर रुक गया. अब भी मेरा तननाया
हुआ लंड मेरी मुठ्ठी मे था. मंजू के चेहरे पर शिकन तक नही थी, मेरी ओर
देखकर हँसी ओर आकर मेरे पास पलंग पर बैठ गयी. "क्या बाबूजी, मैं यहाँ हूँ
आपकी हर खातिर ओर सेवा करने को फिर भी ऐसा बच्पना करते हो! मुझे मालूम है
तुम्हारे मन मे क्या है. बिल्कुल अनाड़ी हो आप बाबीजी, इतने दीनो से
इशारे कर रही हूँ पर आप नही समझते, क्या भोन्दु हो बिल्कुल आप!" मैं चुप
था, उसकी ओर देख कर शर्मा कर बस हंस दिया. आख़िर मेरी चोरी पकड़ी गयी थी.
मेरी हालत देख कर मंजू की आँखें चमक उठी," मेरे नाम से सदका लगा रहे थे
बाबूजी? अरे मैं यहाँ आपकी सेवा मे तैयार हूँ ओर आप मूठ मार रहे हो. चलो
अब हाथ हटाओ, मैं दिखाती हूँ कि ऐसे सुन्दर लंड की पूजा कैसे की जाती
है". ओर मेरे हाथ से लंड निकाल कर उसने अपने हाथ मे ले लिया ओर उसे
हथेलियों के बीच रगड़ने लगी. उसकी खुरदरी हथेलियों के रगड़ने से मेरा लंड
पागल सा हो गया. मुझे लग रहा था की मंजू को बाँहो मे भींच लूँ ओर उस पर
चढ़ जाउ, पर उसके पहले ही उसने अचानक मेरी गोद मे सिर झुककर मेरा सूपड़ा
अपने मुँह मे ले लिया ओर मेरे लंड को चूसने लगी. उसके गीले तपते मुँह ओर
मच्चली सी फुदक्ति जीभ ने मेरे लंड को ऐसा तडपाया कि मैं झड़ने को आ गया.
मैं चुप रहा ओर मज़ा लेने लगा. सोचा अब जो होगा देखा जाएगा. हाथ बढ़ा कर
मैने उसके मम्मे पकड़ लिए. क्या माल था! सेब से कड़े थे उसके स्तन.
सूपड़ा चूस्ते चूस्ते वह अपनी एक मुठ्ठी मे लंड का डंडा पकड़कर सदका लगा
रही थी, बीच मे आँखे उपर करके मेरी आँखो मे देखती ओर फिर चूसने लग जाती.
उसकी आँखो मे इतनी शैतानी खिलखिला रही थी कि दो मिनिट मे मैं हुमक कर
झाड़ गया. "मंजू बाई, मुँह हटा लो, मैं झड़ने वाला हूँ ओ:ओ:, मैं कहता रह
गया पर उसने तो ओर लंड को मुँह मे अंदर तक ले लिया ओर जब तक चूस्ति रही
जब तक मेरा पूरा विर्य उसके हलक के नीचे नही उतर गया". मैने हान्फ्ते हुए
उसे पूंच्छा, "कैसी हो तुम बाई, अरे मुँह बाजू मे क्यों नही किये, मैने
बोला तो था कि झड़ने के पहले!" "अरे मैं क्या पगली हूँ बाबूजी इतनी मस्त
मलाई छ्चोड़ देने को? तुम्हारे जैसा खूबसूरत लॉडा कहाँ हम ग़रीबों को
नसीब होता हैं! ये तो भगवान का प्रषाद है हमारे लिए" वह बड़े लाड़ के
अंदाज़ मे बोली. उसकी इस अदा पर मैने उसे बाहों मे जाकड़ लिया ओर चूमने
लगा पर वह छ्छूट कर खड़ी हो गयी ओर खिलखिला उठी " अभी नही बाबूजी, बड़े
आए अब चूमा चाति करने वाले. इतने दिन तो कैसे मिट्टी के माधो बने घूमते
थे अब चले आए चिपक्ने. चलो जाने दो मुझको" कपड़े ठीक करके वह कमरे के
बाहर चली गयी. जाते जाते मेरे चेहरे की निराशा देखकर बोली, " ऐसे मुँह मत
लटकाओ मेरे राजा बाबू मैं आउन्गि फिर अभी कोई आ जाएगा तो? अब ज़रा सबर
करो मैं रात को आउन्गि. देखना कैसी सेवा करूँगी अपने राजकुमार जैसे
बाबूजी की. अब मूठ नही मारना आपको मेरी कसम!" मैं तिरुप्त होकर लूड़क गया
ओर मेरी आँख लग गयी. विश्वास नही हो रहा था की इस मतवाली औरत ने अभी अभी
मेरा लंड चूसा है. सीधा शाम को उठा. मन मे खुशी के लड्डू फुट रहे थे.
क्या औरत थी! इतना मस्त लंड चूसने वाली ओर एकद्ूम तीखी कटारी. कमरे के
बाहर जाकर देखा तो मंजू गायब थी. अच्छा हुआ क्योंकि जिस मूड मे मैं था
उसमें उसे पकड़कर ज़रूर उसे ज़बरदस्ती चोद डालता. टाइम पास करने को मैं
क्लब मे चला गया. जब रात को नौ बजे वापस आया तो खाना टेबल पर रखा था.
मंजू अब भी गायब थी. मैं समझ गया कि वो अब सीधे सोने के समय ही आएगी.
आख़िर उसे भी एहसास होगा कि कोई रात को उसे मेरे घर मे देख ना ले. दिन की
बात ओर थी. वैसे घर की चाभी उसके पास थी ही. मैं जाकर नहाया ओर फिर खाना
खाकर अपने कमरे मे आ गया. अपने सारे कपड़े निकाल दिए ओर अपने खड़े लंड को
पूचकारता हुआ मंजू का इंतज़ार करने लगा. दस बजे दरवाजा खोल कर मंजू बाई
अंदर आई. तब तक मेरा लंड सूज़ कर सोंटा बन गया था. बहुत मीठी तक़लीफ़ दे
रहा था. मंजू को देखकर मेरा लंड ओर ज़यादा थिरक उठा. उसकी हिम्मत की मैने
मन ही मन दाद दी. मैं यह भी समझ गया की उसे भी तेज़ चुदासी सता रही होगी!
मंजू बाई बाहर के कमरे मे अपने सारे कपड़े उतार कर आई थी एकदम मादरजात
नंगी. पहली बार उसका नागन मादक असली देसी रूप मैने देखा. साँवली छर्हरि
काया, छ्होटे सेब जैसी ठोस चूचियाँ, बस ज़रा सी लटकी हुई, स्लिम पर मजबूत
झांघे ओर घनी झांतों से भरी बुर, मैं तो पागला सा गया. उसके शरीर पर कहीं
भी चर्बी का ज़रा सा काटना नहीं था, बस एकदम कड़क दुबला पतला शरीर था. वो
मेरी ओर बिना झिझके देख रही थी पर मैं थोड़ा शर्मा गया था. पहली बार किसी
औरत के सामने मैं नंगा हुआ था ओर किसी औरत को पूरा नंगा देख रहा था. ओर
वह आख़िर उम्र मे मुझसे काफ़ी बड़ी थी, करीब मेरी मौसी की उम्र की. पर वह
बड़ी सहजता से चलती हुई मेरे पास आकर बैठ गयी. मेरा लंड हाथ मे पकड़ कर
बोली,"वाह बाबूजी, क्या खड़ा है? मेरी याद आ रही थी? ये मंजू बाई पसंद आ
गयी है लगता है आपके लौदे को." क्रमशः

कहानी अभी जारी है......
 

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