Erotica आशा...(एक ड्रीमलेडी )

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कुछ मिनटों तक घूरते रहने के बाद रणधीर बाबू ने अपना आईफ़ोन निकाला और आशा को सिर एक तरफ़ झुका कर आँखें ज़रा सा बंद करने को कहा ---- जैसे कि वो नशे में हो --- नशीली आँखें --- जैसा रणधीर बाबू चाहते थे बिल्कुल वैसा करते ही रणधीर बाबू ने फटाफट तीन-चार पिक्स खिंच लिए --- |

फ़िर आँखों को नार्मल रखने को बोल कर फ़िर से तीन- चार पिक्स लिए --- यह सोच कर कि अगर किसी दिन थोड़ी ऊँच-नीच हो जाए तो वह प्रमाण के तौर पर यह दिखा सके कि उन्होंने वो पिक्स आशा के पूरे होशो हवास और उसकी सहमती से ही लिए थे |

उन पिक्स में कमाल की कामुक औरत लग रही थी आशा --- हरेक अंग-प्रत्यंग से --- रोम रोम से कामुकता टपक रही हो --- बिल्कुल किसी काम देवी की भांति --- और स्वर्ग क्या या उसका अर्थ क्या होता है यह तो उसके सामने की ओर अधिक तने हुए बूब्स और डीप क्लीवेज बता ही रहे हैं रणधीर बाबू को |

रणधीर बाबू के शैतान खोपड़ी में अब एक और बात खेल गई --- कि स्वर्ग तो सामने देख लिया पर यदि स्वर्गलाभ नहीं लिया तो फ़िर क्या किया --- इतना खेल खेलने का परिश्रम तो व्यर्थ ही जाएगा |

एक दीर्घ श्वास लेकर रणधीर बाबू ने एक निर्णय और लिया --- कुछ और बोल्ड करने का --- इस तरह के खेल वो बाद में भी खेल सकता है --- फ़िलहाल वक़्त है इस खेल का लेवल बढ़ाने का --- |

खड़े लंड को वैसे ही पैंट की ज़िप से बाहर निकला रख, रणधीर बाबू अपने उस आरामदायक विशेष रेवोल्विंग चेयर से उठे और कुछ ही कदमों में आशा के निकट पहुँच गए ---- |

आशा अपने धौंकनी की तरह बढ़ी हुई दिल की धड़कन पर नियंत्रण का बेहद असफ़ल प्रयास करते हुए तिरछी निगाहों से अपने दाईं ओर बिल्कुल पास आ कर उसकी कुर्सी से सट कर खड़े हुए रणधीर बाबू की ओर देखी --- उनकी बढ़ी हुई पेट से ऊपर का हिस्सा तो नहीं देख सकी पर नज़र एकदम से उनके पैंट की ज़िप से बाहर बिल्कुल काले रंग के लंड की ओर गई; जो किसी स्टार्ट की हुई खटारे इंजन वाले किसी खटारे टेम्पो की छत पर रखे बांस की तरह हिल रहा था --- |

लंड के अग्र भाग के चमड़ी के मध्य से हल्का सा दिख रहा हल्की गुलाबी रंग का लंडमुंड धीरे धीरे बिल से बाहर आता किसी खतरनाक सांप की भाँति सामने आ रहा था --- आशा ने देखा, --- अग्र भाग की कुछ चमड़ी धीरे धीरे पीछे की ओर जा रही है और अब तक हल्की गुलाबी रंग का प्रतीत होता मशरूम-नुमा लंडमुंड अत्यधिक रक्त प्रवाह के कारण लाल रंग अख्तियार करता जा रहा है --- मशरूम नुमा भाग के टॉप पर बना चीरा बिल्कुल आशा के चेहरे के समीप ही है और पसीने और मूत्र की एक अजीब सी मिली-जुली गंध आशा के नाक में समा रही है --- |

एक पुरुष के यौननांग को अपने इतने समीप पाकर आशा तो एकदम से सकपका गई ---- बेचारी बिल्कुल किंकर्तव्यविमूढ़ सी हो कर रह गई --- और जब यह बात ध्यान आई कि जिसका यौननांग उसके इतने पास खड़ा है; वह उससे कहीं, कहीं अधिक उम्र के व्यक्ति का है तो शर्म से दुहरा कर लाल हो गई ---- तुरंत ही अपने चेहरे को दूसरी तरफ़ घूमा कर बोली,

‘स... सर... यह क्या....?’

‘ओह कम ऑन आशा--- डोंट बिहेव लाइक अ सिली गर्ल ---- यू आर अ मैरिड वुमन --- तुम्हें तो अच्छे से पता है न, कि यह क्या है ??’

चेहरे पर ऐसे भाव लिए और ऐसी टोन में बोले रणधीर बाबू मानो, परीक्षा केंद्र में किसी छात्रा ने एक जाना हुआ क्वेश्चन का मतलब पूछ ली हो और इससे इन्विजिलेटर को बहुत अफ़सोस हुआ |

‘न..न.. नो सर... म.. मेरा मतलब... आप ये क्या...क्या क...कर रहे ....हैं...?’

घबराहट के अति के कारण सूखते अपने होंठों पर जीभ फ़िरा कर भिगाने की कोशिश करती आशा ने किसी तरह अपना सवाल पूरा किया ---

‘ओह... यू मीन दिस?!!’ अपने तने लंड को देखते हुए आशा की ओर देख कर रणधीर बाबू अपने हल्के पीले-सफ़ेद दांतों की चमक बिखेरते हुए आगे बोले,

‘म्मम्म.... आशा.... अब ऐसे सवाल करने और इस तरह से दूसरी ओर मुँह घुमा लेने तो काम नहीं चलेगा----??--- अब इस बेचारे का ध्यान तो तुम्हें ही रखना है --- कम ऑन --- टर्न हियर --- लुक एट इट ---- इट्स डाईंग फॉर योर लव फिल्ड डिवाइन अटेंशन --- |’

आशा फ़िर भी नहीं मुड़ी --- रणधीर बाबू ने दो तीन बार अच्छे से, नर्म लहजे में आशा को मानाने की कोशिश की --- पर फ़िर भी जब आशा अपेक्षाकृत उत्तर नहीं दी तो रणधीर बाबू का स्वर एकाएक ही बहुत हार्श हो गया ----

‘आशा !! --- आई ऍम नॉट आस्किंग यू टू डू दिस --- ऍम टेलिंग यू --- ऍम ऑर्डरिंग यू टू डू दिस --- !! |’

रणधीर बाबू की आवाज़ में इस बार एक अलग ही धमक थी ---

आशा सहम कर तुरंत ही अपना चेहरा दाईं ओर की --- और ऐसा करते ही उसकी नजर सीधे रणधीर बाबू के फनफनाते लंड पर पड़ी ---

रणधीर बाबू बोले,

‘गिव सम लव --- आशा ---’

आशा आँखें उठा कर रणधीर बाबू की ओर देखी --- सुनहरे फ्रेम के ब्राउन ग्लास के अंदर से झाँकते रणधीर बाबू की आँखें एक खास तरह से सिकुड़ कर एक ख़ास ही मतलब बयाँ कर रही थी --- |

आशा के अंदर की बची खुची प्रतिरोधक क्षमता भी हवा में फुर्रर हो गई --- किस्मत का खेल समझ कर अब मन ही मन खुद को तन-मन से पूरी तरह रणधीर बाबू को समर्पित कर उनका मिस्ट्रेस बनने का दृढ़ निश्चय कर आशा ने अपना दाहिना हाथ उठाया और काले, सख्त तने हुए लंड को अपने नर्म हाथों की नर्म उँगलियों की गिरफ़्त में ली और बहुत ही हिचकिचाहट से; बहुत धीरे धीरे अपना हाथ आगे पीछे करने लगी ----

और ऐसा करते ही, रणधीर बाबू सुख और आनंद के चरम सीमा पर पहुँच गए --- आखिर उनकी ड्रीमगर्ल --- (यहाँ शायद ड्रीमलेडी कहना उचित होगा) --- ने उनके हथियार को अपने नर्म हाथों के गिरफ़्त में जो ले लिया है --- लंड के चमड़े पर हथेली के नर्म स्पर्श का अहसास ही उन्हें वो सुख दे रहा है जो शायद किसी कॉल गर्ल की अनुभवी चूत ने भी नहीं दी होगी --- |

इधर आशा भी धीरे धीरे आश्चर्य के सागर में गोते लगाने लगी --- क्योंकि आशा के हाथ के नर्म छूअन के बाद से ही रणधीर बाबू का लंड पल-प्रतिपल फूलता ही जा रहा है और मोटाई और चौड़ाई भी ऐसी बना रखी है जैसा की आज तक आशा ने केवल पोर्न मूवी क्लिप्स में ही देखा है --- रोज़ रातों को मम्मी, पापा और नीर के सो जाने के बाद आशा अकेली तन्हा हो कर बिस्तर पर पड़े पड़े ही मोबाइल पर पोर्न मूवी देखते हुए साड़ी को जाँघों तक उठा कर अपनी बीच वाली लंबी ऊँगली से चूत खुजाती और कलाकार ऊँगली की कलाकारी की मदद से ही पानी छोड़ते हुए सो जाती --- कुछेक बार ऐसा भी हुआ है की पानी छोड़ने के बाद मन में भारी पश्चाताप का बोध की है आशा ने --- पर; ---- एक मशहूर अभिनेता का डायलॉग --- ‘अपने को क्या है; अपने को तो बस; पानी निकालना है ---’ याद आते ही शर्म से लाल हो जाती और दोगुने उत्तेजना से भर वो फ़िर से पानी निकालने के काम में लग जाती ----

पर यहाँ बात यह है कि आजतक आशा ने जिस तरह के आकार वाले लंड देखी थी ; सब के सब मोबाइल के पोर्न मूवीज़ में --- उसने कभी यह कल्पना नहीं की होगी की वास्तविक जीवन में भी ऐसा औज़ार का होना सम्भव है
 
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निःसंदेह नीर के पापा का भी हथियार का दर्शन की है वह ---- पर --- इतने सालों में तो वह उसका चेहरा भी लगभग भूल सी चुकी है --- हथियार को याद रखना बाद की बात है --- और अगर हथियार तक याद नहीं है, तो इसका मतलब हथियार कुछ खास नहीं रहा होगा ! (ऐसा कभी कभी आशा सोचती थी ---!!) |

इधर लंड फुंफकार रहा था और उधर रणधीर बाबू दिल ही में ज़ोरों से आहें भर रहे थे ---- खड़े रणधीर बाबू ने जब नज़रें नीची कर कुर्सी पर बैठी आशा को उनका लंड हिलाते हुए देखने कोशिश की तो पहली ही कोशिश में उनकी आँखें चौड़ी होती चली गई --- ऊपर से देखने पर आशा की पल्लू विहीन दूधिया चूचियों के बीच की घाटी अधिक लंबी और गहरी लग रही है और आकर्षक तो इतना अधिक की एकबार के लिए तो रणधीर बाबू का दिल ही धड़कना बंद हो गया !! ---- और तो और ----- उसकी ब्लाउज भी पीछे से ---- पीठ पर --- डीप ‘U’ कट लिए है जिससे कि आधे से अधिक गोरी, चिकनी, बेदाग़ पीठ सामने दृश्यमान हो रही है --- ब्लाउज भी कुछ ऐसी टाइट पहनी है की जिससे उसके पीठ की भी करीब तीन इंच की क्लीवेज बन गई है --- |

रणधीर बाबू हाथ बढ़ा कर आशा की दाईं चूची को थाम लिया और प्रेम से दबा कर उसकी नरमी का आंकलन करने लगे --- आह: ! सचमुच---- जितना सोचा था --- उससे भी कहीं अधिक नर्म है इसकी चूचियाँ ---- हह्म्म्म --- साली पूरा ध्यान रखती है अपना----- ! ऐसा सोचा रणधीर बाबू ने |

अचानक हुई इस क्रिया से आशा हतप्रभ हो कर हडबडा गई ---- पर ख़ुद ही जल्दी संभल भी गई --- पहले दिन के पहले ही प्रोजेक्ट में रणधीर बाबू को निराश या नाराज़ नहीं करना चाहती ---

अतः चुपचाप मुठ मारने के कार्य में केन्द्रित रही ---

इधर चूचियों की नरमी मन का लालच और अधिक से अधिक बढ़ाने लगी ---- ब्लाउज के ऊपर से करीब ५ मिनट तक दबाने के बाद रणधीर बाबू उन दोनों चूची को ब्लाउज और ब्रा के नापाक कैद से आज़ाद कर --- उन्हें नंगा कर अपने हाथों में ले उनके छूअन का आनंद ले पूर्ण तृप्त होना चाहते थे --- पर पहले ही दिन एकसाथ इतने सारे काण्ड करने का कोई इरादा नहीं है उनका--- पुराने खिलाड़ी हैं ---

जानते हैं नारी हृदय की आकुलता को ---

उनकी व्यग्रता और मनोभावों को ---

उनके छटपटाहट के सही समय को ---

इसलिए बिना किसी तरह की कोई जल्दबाज़ी किए वह उन नर्म, पुष्ट, गदराई चूचियों को अपनी सख्त मुट्ठी में भींचने में ही लगे रहे ---

उनकी पारखी उँगलियाँ , जल्द ही आशा को बिना कोई खास तकलीफ़ दिए --- यहाँ तक की उसे पता लगने दिए बिना ही ---- उसके ब्लाउज के अगले दो हुक्स को खोल दिए --- अभी भी दो और हुक्स शेष थे , पर उन्हें रहने दिया --- ब्लाउज के खुले दोनों सिरों/ पल्लों को थोड़ा और फैलाया --- अब करीब सत्तर प्रतिशत चूची अनावृत हो गई --- बाकि के अभी अंदर मौजूद एक सफ़ेद-क्रीम कलर के ब्रा में कैद हैं ---

कसे ब्रा कप के कारण ऊपर उठ कर पहले से फूले चूचियाँ और अधिक फूले हुए हैं --- ये देख कर रणधीर बाबू के होश ही मैराथन के लिए भाग गई --- दूधिया चूचियों को क्रीम कलर के ब्रा में देख मन ही मन हद से अधिक प्रफुल्लित होते रणधीर बाबू ये सपने देखने लगे कि गोरी आशा की ये गोरी चूचियाँ काले, लाल और गुलाबी ब्रा में कैसे लगेंगें ??!

ब्लाउज के ऊपर से ही एक एक कर दोनों चूचियों के नीचे हाथ रख कर बारी बारी से तीन चार बार इस तरह उठा उठा कर देखा मानो दोनों चूचियों का वज़न माप (तौल) रहा हो ---

पहले तो आशा बहुत बुरी तरह से शरमाई; पर जब रणधीर बाबू को उसके चूचियों के वज़न देखते हुए एक कामाग्नि भरी ‘ऊफ्फ्फ़...ओह्ह्ह..... लवली ...’ कहते सुनी तो गर्व से भर वह दुगुनी हो गई ..

और वाकई रणधीर बाबू उसके दोनों चूची के भार को देख जितना आश्चर्यचकित हुए --- उससे कहीं ज़्यादा ख़ुशी से बल्लियों उछलने लगे अंदर ही अंदर ---- ये सोच सोच कर कि आने वाले दिनों में इन्हीं चूचियों पर आरामदायक ; सुकून भरे पल बीतने वाले हैं --!

इधर आशा --- ;

पता नहीं क्यूँ, अपने से पच्चीस - तीस साल बड़े --- एक बुज़ुर्ग आदमी के लंड को हिलाने तो क्या; छूने तक घृणा कर रही थी --- वही अब उसी आदमी के द्वारा उसके बूब्स मसले जाने पर वह एक अलग ही ख़ुशी, आनंद मिलने लगी --- एक एडवेंचर सा फ़ील होने लगा उसे |

हिलाते हिलाते बहुत देर हो गई --- लंड अब और भी ज़्यादा अकड़ गया --- लंड हिलाते हुए आशा की हाथों की चूड़ियों से आती ‘छन छन’ की आवाज़ माहौल और मूड को और भी गरमा रही थी --- वीर्य की धार कभी भी फूट सकती है --- और रणधीर बाबू अपना कीमती वीर्य बूंदों को यूँ ही वेस्ट नहीं जाने देना चाहते – इसलिए उन्होंने एक हल्के थप्पड़ से अपने लंड पर से आशा का हाथ हटाया और आगे हो कर उसके होंठों से अपने लंड का छूअन कराया --- आशा भीषण रूप से हिचकी --- कसमसाई --- कातर दृष्टि से रणधीर बाबू की ओर देखी --- पर रणधीर बाबू अपना सारा होश बहुत पहले ही अपने लंड के सुपाड़े में डाल चुके थे --- सोचने समझने का काम फिलहाल उन्होंने अपने लंड पर छोड़ रखा था और लंड आशा के मुँह में घुसने को बुरी तरह से तत्पर था --- |

आशा नर्वस हो ज़रा सा मुस्कुराई और ऐसा दिखाने की कोशिश की कि;

उसे भी अब थोड़ा थोड़ा इस खेल में मज़ा आ रहा है –

और पूरे मन से रणधीर बाबू का मुठ मारने में खुद को व्यस्त दिखाने का भी भरपूर प्रयास की ----

पर रणधीर बाबू इतने में खुश होने वालों में से नहीं ---

आशा के हाथ में एक और थप्पड़ मारते हुए थोड़ी कड़क आवाज़ में कहा,

‘एनफ विथ द हैंड्स, स्लट..! --- ’

और इतना कहते हुए एक झटके में जोर का प्रेशर देते हुए आशा के मुँह में लंड का प्रवेश कर दिया ---

‘आह..अह्हह्म्मप्प्फ्ह....’

इतनी ही आवाज़ निकली आशा की ---

कुछ सेकंड्स लंड को वैसे ही रहने दिया मुँह में ;

थोड़ा सा निकाला,

फ़िर एक और तगड़ा झटका देते हुए लंड को आधे से ज़्यादा उतार दिया आशा के गले में ---

मारे दर्द के आशा तड़प उठी --- साँस लेना तो दूर ; उतने मोटे तगड़े लंड को मुँह में रखने के लिए मुँह / होंठों को ज़्यादा फ़ैला भी नहीं पा रही बेचारी --- और इधर रणधीर हवस में अँधा होकर थोड़ा पर तेज़ और ताकतवर झटके देने लगा आशा के मुँह में घुसे अपने लंड को --- वह आज कम से कम आशा के हल्के गुलाबी गोरे मुखरे को चोद लेना चाहता था ---

‘आःह्हह्ह्ह्ह.... ऊम्म्म्हह आप्फ्ह्हह्हह्म्म्म.....’ आशा बस इतना ही कह पा रही थी --
 
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जबकि रणधीर बाबू मस्ती में डूबे ज़ोरों से आहें भर रहे थे,

‘ओह्ह्ह्हsssss---- आह्ह्हssssssssss.... यssसsss आsssशाsssss ----- ओह्ह्हssss यसsssssss ----- टेssक ssइटssss ---- टेक इट ssss डीपssss ---- मोर--- मोर--- इनसाइडsss यूsssss ----- ओह्ह्ह फ़कssssss ----!!’

इधर आशा,

‘आह्ह्हह्म्म्मप्फ्हssssss आह्ह्हह्म्म्मप्प्फ्हह्ह्हsssssssss... गूंss गूंsss गूंsss गूंsss गूंsssss गूंssss ह्ह्ह्हह्हsss ह्ह्ह्हह गोंss गोंss गोंss गोंsss गोंsss म्म्फ्हह्हss म्म्म्मप्प्फ्हह्हssss’ अब मुँह के किनारों से लार टपकने लगा --- टपकने क्या, समझिए बहने लगा |

रणधीर बाबू चूचियों को मसलना छोड़ कर आशा के सिर के पीछे हाथ रख अपने तरफ़ धकेलते और ठीक उसी समय अपने कमर को जोर से आगे की ओर झटकते --- इस तरह बेचारी आशा बचने के लिए अपना मुँह हटाए भी तो हटाए कहाँ --- ??

‘आह्ह्हह्म्म्मप्फ्हssss आह्ह्हह्म्म्मssssप्प्फ्हह्ह्हsss ... गूंsss गूंsss गूंssss गूंssss गूंssss गूंsss ह्ह्ह्हह्हsssss’

‘आह्ह्हह्म्म्मप्फ्हssss आह्ह्हह्म्म्मप्प्फ्हह्ह्ह.ssss.. गोंss गोंss गोंsss गोंsss गोंsssss ........ म्म्फ्हह्हssss म्म्म्मप्प्फ्हह्हssssssssss’

‘आह्ह्हह्म्म्मप्फ्ह गूं गूं गूंssssssss गूं गूं गूं ह्ह्ह्हह्हssssss ह्ह्ह्हहsssss ...... आह्ह्हssssssह्म्म्मप्प्फ्हह्ह्हssssssssssss ....... गोंsss गों ss गोंssss गोंsss गों sssss …. म्म्फ्हह्ह म्म्म्मप्प्फ्हह्हssssss’

इसी तरह घपाघप आशा के मुँह को करीब पंद्रह मिनट तक चोदते चोदते आख़िरकार ठरकी बुड्ढा अपने क्लाइमेक्स पर पहुँच ही गया ----

‘फ़फ़’ से ढेर सारा वीर्य उगला उनके औज़ार ने --- पूरा मुँह भर गया --- रत्ती भर की भी जगह न बची --- इतना वीर्य की थोड़ा सा निगल लेने के सिवा और कोई चारा न था और बहुत सा तो आशा के कुछ भी सोचने समझने के पहले ही गले से नीचे उतर गया --- नमकीन स्वाद ने आशा के मुँह का जायका पूरी तरह से बिगाड़ दिया ---- उससे अधिक उम्र के --- एक खूंसट ठरकी बुड्ढे का काला गन्दा लंड को मुँह में लेना और फ़िर उसका वीर्यपान करना --- कड़वाहट से भर दिया आशा को – बाकि बचे वीर्य को उगलते हुए खांसने लगी --- हरेक कतरे को निकाल बाहर करना चाहती थी –

इधर बुड्ढे ने दो तीन सफ़ेद कागज़ उसकी ओर बढ़ा कर साफ़ हो लेने को बोला --- साथ ही अपना वाशरूम भी दिखाया --- आशा दौड़ कर अंदर घुस गई --- रणधीर बाबू बड़े प्रेम से एक कागज़ से अपने लंड को पोछते पोछते अपनी कुर्सी पर आ बैठे --- और पहली सफ़लता पर बेहद प्रसन्न मन से मुस्कुराने लगे |

करीब दस मिनट बाद आशा निकली --- कपड़े सही कर ली थी – बाल जो कि रणधीर बाबू के उसके सिर को पकड़ने के वजह से अस्त-व्यस्त हो गए थे; उन्हें भी ठीक कर ली --- पिन लगाईं --- और कुर्सी पर बैठ गई -- |

रणधीर – ‘आशा , दैट वाज़ औसम !! .... आई लव्ड इट --- थैंक्स --- |’

आशा कुछ नहीं बोली, चुप रही ---- नज़रें नीची किए --- |

रणधीर बाबू भी उसके जवाब का इंतज़ार किए बिना बोले,

‘आशा --- एक और बात --- अच्छे सुन और समझ लो --- और दिमाग में बैठा लो --- आज के बाद , हर दिन, स्कूल बिना ब्रा पहन के आया करोगी --- ओके? और हाँ, कल ही अपने बेटे का फॉर्म और ज़रूरी डाक्यूमेंट्स लेती आना ---- कल से तुम्हारी जॉइनिंग एंड तुम्हारे बेटे का एडमिशन परसों पक्का --- ....’

यह सुनते ही आशा को जैसे अपने कानों पर यकीं नहीं हुआ --- आश्चर्य से रणधीर बाबू की ओर देखी --- उनके चेहरे पर एक सहमती वाली मुस्कान देख कर उसकी आँखें छलक गईं --- रुंधे स्वर में बोली,

‘थैंक्यू सो मच सर --- थैंक्यू ---’

रणधीर बाबू एक बड़ी सी कमीनी मुस्कान लिए बोला,

‘ओके ओके... एनफ ऑफ़ थैंक्स ---- यू मे गो नाउ --- पर जाने से पहले एक छोटा सा काम और करो --- |’

आशा सवालिया नज़रों से देखी उनकी ओर,

‘अभी जो ब्रा पहनी हुई हो उसे खोल कर यहाँ रख जाओ --- |’

आशा उठी और वाशरूम में जल्दी से घुस गई --- रणधीर बाबू का फ़िर कोई नया आदेश न आ जाए यह सोच कर जल्दी से ब्रा उतर कर ; कपड़ों को ठीक कर के बाहर निकली--- उसे बाहर निकलते देखते ही रणधीर बाबू ने अपना बाँया हाथ बढ़ा दिया --- आशा ने इशारा समझ कर ब्रा उनकी हथेली पर रख दी --- बिना नज़रें उठाए धीरे कदमों से कुर्सी तक पहुँची --- अपना बैग उठाई और जाने लगी --- दरवाज़े तक पहुँची ही थी कि रणधीर बाबू की आवाज़ आई ,

‘एक और बात --- आज तुम्हारा फर्स्ट टाइम था क्या--- आई मीन टेकिंग माय थिंग इनटू योर माउथ --??!’ बड़ी बेशर्मी से सवाल दागा बुड्डे ने --- |

आशा सिर घूमाए बिना बोली,

‘यस सर |’

और इतना बोल कर तेज़ी से दरवाज़ा खोल कर चली गई --- |

इधर रणधीर बाबू हैरान --- साफ़ सुनकर भी यकीं नहीं हो रहा --- मानो यकीं करने को ही उनका दिमाग नहीं चाह रहा ---

आखिर एक शादीशुदा, उच्च घर की, संस्कारी, सुशिक्षित महिला का वर्जिन मुँह चोदा है उन्होंने --- न जानते हुए ही सही --- पर चोदा तो ---- और एक तरह से देखा जाए तो उन्होंने आज एक ऐसी ही महिला को अपना लंड चूसा कर उसके शर्म – ओ – ह्या, हिचक, झिझक, बेबसी और ऐसे ही बहुत सी बाधाओं का बाँध तोड़ा है ---- जो आगे जा कर बहुत काम आने वाला है ----

‘आह्ह्ह:’

एक और आह निकली रणधीर बाबू के मुँह से और हाथ में पकड़े आशा की मुलायम क्रीम कलर के ब्रा को पागलों की तरह नाक और मुँह से लगा कर उसका गंध सूँघने लगे --------- |

क्रमशः
 
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करीब १०-१२ दिन बीत गए हैं ---

पिछली घटना को हुए --- |

आशा की नौकरी लग गई है स्कूल में --- नॉन टीचिंग स्टाफ कम रिजर्व्ड टीचर के रूप में --- कभी कोई टीचर नहीं आ पाए तो उसके जगह आशा क्लास ले लेती --- हालाँकि रणधीर बाबू के पास आप्शन तो था, आशा को नर्सरी या जूनियर क्लासेज में टीचर नियुक्त करने का --- पर इससे होता यह कि वह आशा को हर वक़्त अपने पास नहीं पाता --- नॉन टीचिंग स्टाफ़ बनाने से वह जब चाहे आशा को अपने कमरे में बुला सकता है और जो जी में आये कर सकता है | आशा तो पहले ही सरेंडर कर चुकी है --- मौखिक और लिखित --- दोनों रूपों में; --- इसलिए उसकी ओर से रणधीर बाबू को रत्ती भर की चिंता नहीं थी --- और आशा के अलावा जितनी भी लेडी टीचर्स हैं स्कूल में; उन सबको रणधीर बाबू बहुत अच्छे से महीनों और सालों तक भोग चुके हैं – रणधीर बाबू के स्कूल में काम करना अपने आप में एक गर्व की बात है जो हर किसी के भाग्य में नहीं होता --- इसके अलावा भी, रणधीर बाबू उन सबको समय समय पर इन्क्रीमेंट, हॉलीडेज, और दूसरे सुविधाएँ देते रहते थें --- |

इसलिए, स्कूल छोड़ कर जाना किसी से बनता नहीं था ---

और जितने मेल टीचर्स हैं, वे सब रणधीर बाबू के मैनपॉवर से डरते हैं --- कई नामी गुंडों, नेताओं, मंत्रियों, पुलिस और वकीलों के साथ जान पहचान और उठना-बैठना है | इन सब के बीच रणधीर बाबू की छवि एक बहुत बड़े और पैसे वाले बिज़नेसमैन, ऐय्याश आदमी और अपने काम के लिए किसी भी हद तक गुज़र जाने वाले एक ज़िद्दी इंसान के रूप में प्रचलित है ---

खुद को हरेक दिशा, हरेक कोण से पूरी तरह सुरक्षित कर रखे हैं ये रणधीर बाबू ---

आम इंसान जिस कानून से डरता है,

रणधीर बाबू का उसी के साथ उठना बैठना है ---

जो उसका (रणधीर) साथ दिया--- उसका वारा न्यारा

और जो कोई भी विरोध करने के विषय में सोचने के बारे में भी कभी भूल से सोचा ---

रणधीर बाबू उसका ऐसा इंतज़ाम लगाते कि वह फ़िर कभी कोई भूल करने की स्थिति में न रहा |

पर साथ ही रणधीर बाबू की ख़ासियत भी हमेशा से यह रही की वे कभी भी अपने चाहने वालों को निराश नहीं करते --- फ़िर चाहे कभी किसी हॉस्पिटल का खर्चा उठाना हो --- या नौकरी दिलवाना --- कहीं एडमिशन करवाना हो ---- या फिर नगद (कैश) सहायता ---- कभी पीछे नहीं हटते |

जैसे,

उसी के शागिर्द / चमचों में किसी ने अगर किसी ज़रूरी काम के लिए एक लाख़ रुपए माँगे ; तो रणधीर बाबू उसे दो लाख़ दे देते ---- और दिलदारी ऐसी की बाकि के पैसों के बारे में कुछ पूछते भी नहीं |

किसी शागिर्द / चमचे के घर का कोई सदस्य अगर अस्पताल में है और पैसे कम पड़ रहे हैं तो रणधीर बाबू को पता चलते ही डॉक्टर के बिल से लेकर अस्पताल और दवाईयों के बिल तक चुका देते हैं --- |

रणधीर बाबू को पार्टियों का भी बहुत शौक है ---

अक्सर ही पार्टी देते रहते हैं --- और ऐसी वैसी नहीं ---- बिल्कुल टॉप क्लास की --- हाई फाई लेवल की --- |

और ऐसी पार्टियों में, कानून के पैरोकार हो या उसके रक्षक , मंत्री --- नेता ---- सब अपनी उपस्थिति दर्ज़ करवाते --- |

पार्टियों में जम कर शराब --- शवाब --- और कबाब परोसा जाता ---

और इन सब का बिल जाता रणधीर बाबू के खाते में --- और बिल भी हज़ारों में नहीं ---

वरन लाखों में होते --- जिनका भुगतान बड़े शौक से करते हैं बाबू --- ‘रणधीर बाबू’ |

अब भला ऐसे आदमी को किसका डर--- किस बात का डर ?!

------

इन्हीं दस - बारह दिनों में कई बार छू चुके हैं आशा को रणधीर बाबू ---- और जाहिर ही है की केवल छूने तक खुद को सीमित नहीं रखा है उन्होंने --- अपने रूम में बुला कर बेरहमी से चूचियों को मसलना, देर तक किस करना---- नर्म, फ्लेवर वाले लिपस्टिक लगे होंठों को चूसते रहना --- टेबल के नीचे घुटनों के बल बैठा कर लंड चुसवाना --- ये सब करवाए – किए बिना तो जैसे रणधीर बाबू को दिन ; दिन नहीं लगता और रात को तो नींद आती ही नहीं |

हद तो तब होती जब रणधीर बाबू घंटों आशा को अपनी गोद में बैठाए, मेज़ पर रखे ज़रूरी फाइल्स के काम निपटाते और बीच – बीच में दूसरे हाथ से आशा के नर्म, गदराये, बड़े-बड़े, पुष्टकर चूचियों को पल्लू के नीचे से दम भर दबाते रहते ---

और अगर इतने में कोई लेडी स्टाफ़ / लेडी टीचर किसी काम से कमरे में आने के लिए बाहर से नॉक करती तो आशा को बिना गोद से उतरने को कहे ही स्टाफ़/टीचर को अंदर आने की परमिशन देते और उनके सामने भी आशा की चूचियों के साथ साथ जिस्म के दूसरे हिस्सों से खेलते रहते --- |

बेचारी लेडी स्टाफ़ मारे शर्म के कुछ कह नहीं पाती और ---

यही हालत आशा की भी होती --- |

शर्म – ओ – ह्या से आशा का चेहरा लाल होना और हल्के दर्द में एक तेज़; धीमी सिसकारी लेना रणधीर बाबू को बहुत अच्छा लगता है --- और यही कारण है कि जब आशा को गोद में, बाएँ जांघ पर बैठा कर बाएँ हाथ से --- पल्लू के नीचे से --- बाईं चूची के साथ खेलते हुए मेज़ पर रखी फ़ाइलों पर दस्तख़त या कुछ और कर रहे होते और अगर तभी कोई लेडी स्टाफ़ आ जाए रूम में तो उसके सामने आ कर खड़े या बैठते ही रणधीर बाबू अपने बाएँ हाथ की तर्जनी अंगुली और अँगूठे को अपनी थूक से थोड़ा भिगोते और दोबारा पल्लू के नीचे ले जाकर उसकी बायीं चूची के निप्पल को ट्रेस करते और निप्पल हाथ में आते ही तर्जनी अंगुली और अंगूठे से उसे पकड़ कर ज़ोर से मसलते हुए आगे की ओर खींचते ---

और हर बार ऐसा करते ही ---

आशा भी दर्द के मारे --- ज़ोर से कराह उठती ----

शुरू शुरू में तो लेडी स्टाफ़ चौंक जाती कि ‘अरे क्या हुआ?!’ ----

पर मामला समझ में आते ही शर्म वाली हँसी रोकने के असफ़ल प्रयास में बगलें झाँकने लगती --- |

पर धीरे धीरे ये रोज़ की बात हो गई ---

रोज़ ही कोई न कोई लेडी स्टाफ़ रूम में आती ---

रोज़ ही आशा, रणधीर बाबू की गोद में बैठी हुई पाई जाती ---

और रोज़ ही लेडी स्टाफ़ के सामने ही,

रणधीर बाबू, तर्जनी ऊँगली और अंगूठे पर थूक लगाते ---

और,

फिर, उसी तर्जनी ऊँगली और अंगूठे के बीच दबा कर निप्पल को मसलते हुए आगे की ओर खींचने लगते,

और;

रोज़ ही की तरह, हर बार आशा दर्द से एक मीठी आर्तनाद कर उठती --- !

और फ़िर,

दोनों ही --- लेडी स्टाफ़ --- जो कोई भी हो --- वो और आशा दोनों ही मारे शर्म के एक दूसरे से आँखें मिलाने से तब तक बचने की कोशिश करती जब तक वो लेडी स्टाफ़ वहाँ से उठ कर चली नहीं जाती ---

और उसके जाते ही आशा थोड़ा गुस्सा और थोड़ा शिकायत के मिले जुले भाव चेहरे पे लिए रणधीर बाबू की ओर देखती --- और रणधीर बाबू एक गन्दी हँसी हँसते हुए उसके चूचियों से खेलते हुए उसके चेहरे और होंठों को चूमने – चूसने लगते |

धीरे धीरे कुछ लेडी टीचर्स को यह बात खटकने लगी की हालाँकि रणधीर बाबू ने उन लोगों के साथ भी काफ़ी मौज किये हैं; पर आख़िर ये आशा नाम की बला में ऐसी क्या ख़ास बात है जो रणधीर बाबू हमेशा --- सुबह – शाम उसके साथ चिपके रहते हैं ---

सुन्दर तो वाकई में वो है ही ---

बदन भी अच्छा खासा भरा हुआ है ---

ये दो ही बातें तो चाहिए होती हैं किसी भी मर्द को अपना गुलाम बनाने के लिए --- और रणधीर बाबू की बात की जाए तो वो गुलाम बनने वालों में नहीं बल्कि बनाने वालों में से हैं ---

और जो बंदा दूसरों को अपना गुलाम बनाने में माहिर हो --- वह इस एक औरत के पीछे लट्टू हुए क्यूँ घूमेगा भला ??

कोई तो ख़ास वजह होगी ही --- पर क्या ---

ये बात उन लेडी टीचर्स को समझ न आती थी --- और आती भी कैसे --- रणधीर बाबू तो वो हवसी शिकारी है जो हर खूबसूरत औरत को अपना बनाने में लगा रहता है और पहली बार आशा के रूप में उसे वह रत्न मिली जिसे पा कर वह दूसरी सभी औरतों को कुर्बान कर सकता था --- या अब यूँ कहा जा सकता है कि लगभग कुर्बान कर चुके हैं ---

आशा के स्कूल ज्वाइन करने के बाद से ही शायद ही रणधीर बाबू ने किसी ओर औरत के बारे में शायद ही सोचा होगा --- ये और बात है कि रणधीर बाबू के द्वारा; स्कूल के गैलरी या लॉबी में चलते वक़्त कोई लेडी टीचर मिल जाए तो उसके होंठों पर किस करना --- या बूब्स मसल देना या फ़िर पिछवाड़े पर ‘ठास !’ से एक थप्पड़ रसीद देना; ---- ये सब बहुत कॉमन था और चलता ही रहता था और आगे भी न जाने कितने ही दिनों तक चलता रहेगा --- |

उन्हीं टीचर्स में एक है मिसेस शालिनी --- स्कूल में बहुत पहले से टीचर पोस्ट पर पोस्टेड है, पर उम्र में आशा से छोटी है --- चौंतीस साल की --- चूचियाँ उसकी आशा जैसी तो नहीं पर छत्तीस के आसपास की है --- गोल पिछवाड़ा --- आशा के तुलना में पतली कमर --- आशा जैसी दूध सी गोरी भी नहीं पर रंग फ़िर भी साफ़ है --- कह सकते हैं की वो भी गोरी ही है --- दोनों गालों पर दो-तीन पिम्पल्स हैं --- अधिकांश वो सलवार कुरता ही पहनती है --- कुछ ख़ास मौकों पर ही साड़ी पहनना होता है उसका |

शालिनी पिछले सप्ताह भर से देख रही है कि रणधीर बाबू उसकी तरफ़ कोई विशेष ध्यान नहीं दे रहे हैं --- जबकि वो उनकी फेवरेट हुआ करती थी |

ठरकी बुड्ढे से कोई विशेष तो क्या ; रत्ती भर की कोई प्यार व्यार की गुंजाइश नहीं रखती है शालिनी ---

पर अचानक से ही पता नहीं क्यूँ ,

वो थोड़ा इंसिक्योर सा फ़ील करने लगी है ---

आशा जाए भाड़ में --- पर अगर बुड्ढा भी उसके साथ भाड़ में चला गया तो ??

खैर,

उसने तय कर लिया कि वह धीरे धीरे आशा के करीब आएगी और एक दिन सारे राज़ जान कर उसे ब्लैकमेल कर के या तो स्कूल से हटा देगी या फ़िर किसी तरह आशा को साइड कर फ़िर से बुड्ढे के दिल ओ दिमाग में अपने लिए जगह बना लेगी |
 

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