Andaaz-E-Bayaan (Shayari & Ghazals)

Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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किया है प्यार जिसे हम ने ज़िंदगी की तरह
वो आश्ना भी मिला हम से अजनबी की तरह

किसे ख़बर थी बढ़ेगी कुछ और तारीकी
छुपेगा वो किसी बदली में चाँदनी की तरह

बढ़ा के प्यास मिरी उस ने हाथ छोड़ दिया
वो कर रहा था मुरव्वत भी दिल-लगी की तरह

सितम तो ये है कि वो भी न बन सका अपना
क़ुबूल हम ने किए जिस के ग़म ख़ुशी की तरह

कभी न सोचा था हम ने 'क़तील' उस के लिए
करेगा हम पे सितम वो भी हर किसी की तरह
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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मिलकर जुदा हुए तो न सोया करेंगे हम
एक दूसरे की याद में रोया करेंगे हम

आँसू छलक छलक के सतायेंगे रात भर
मोती पलक पलक में पिरोया करेंगे हम

जब दूरियों की आग दिलों को जलायेगी
जिस्मों को चाँदनी में भिगोया करेंगे हम

गर दे गया दग़ा हमें तूफ़ान भी "क़तील"
साहिल पे कश्तियों को डूबोया करेंगे हम
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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तूने ये फूल जो ज़ुल्फ़ों में लगा रखा है
इक दिया है जो अँधेरों में जला रखा है

जीत ले जाये कोई मुझको नसीबों वाला
ज़िन्दगी ने मुझे दाँव पे लगा रखा है

जाने कब आये कोई दिल में झाँकने वाला
इस लिये मैंने ग़िरेबाँ को खुला रखा है

इम्तेहाँ और मेरी ज़ब्त का तुम क्या लोगे
मैं ने धड़कन को भी सीने में छुपा रखा है

दिल था एक शोला मगर बीत गये दिन वो क़तील,
अब क़ुरेदो ना इसे राख़ में क्या रखा है
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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UjaD ujaD ke sanwarti hai tere hijr ki sham.!
na puchh kaise guzarti hai tere hijr ki sham.!!

ye barg barg udasi bikhar rahi hai meri,
ki shaKH shaKH utarti hai tere hijr ki sham.!!

ujaD ghar mein koi chand kab utarta hai,
sawal mujh se ye karti hai tere hijr ki sham.!!

mere safar mein ek aisa bhi moD aata hai,
jab apne aap se Darti hai tere hijr ki sham.!!

bahut aziz hain dil ko ye zaKHm zaKHm ruten,
inhi ruton mein nikharti hai tere hijr ki sham.!!

ye mera dil ye sarasar nigar-KHana-e-gham,
sada isi mein utarti hai tere hijr ki sham.!!

jahan jahan bhi milen teri qurbaton ke nishan,
wahan wahan se ubharti hai tere hijr ki sham.!!

ye hadisa tujhe shayad udas kar dega.
ki mere sath hi marti hai tere hijr ki sham..!!
 
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एक शमा है वो रौशन सी
एक फिजा है वो खुस्बु सी ।
वो मखमल जैसे बिछावन सी
एक ऋतू हो जैसे सावन सी ।।

वो आज मिले , वो कल मिले
जैसे बादल-रैना दिन-रात मिले ।
वो मृगनैनी मनभावन सी
चन्दन बदन और पावन सी ।।

टक-टक देखू उसकी अन्खिया
जैसे बिन बोले होवे बतिया ।
वो मोहिनी रूप लुभावन सी
एक ऋतू हो जैसी सावन सी ।।



लेखक - स्वयं :cool:
 

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