Adultery बाजरे की खेत में सुबह की विधि

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में नया नया जवान हो उठा था । वीरपीर्त लिंग के जिस्म की आकर्षित के बारे में समझ रहा था और अनुभव भी कर रहा था । गांव की पर्यावरण में रहने वाला था बचपन में गोल मोटोल था तो नाम गोलू रख दिया । जवानी में रंग डालने वाला मेरा जिगरी दोस्त कालू था । दोनो ही गांव की स्कूल में पढ़ते थे । पड़ोसी भी हुआ करते थे । मुट्ठ मारना उसी ने सिखाया पता नही कहा कहा से गंदी गंदी अश्लील किताबे लाता था और मुझे दिखाता था । उस उम्र में इतनी समझ नही थी और हम उस किताब की गंदी कहानियों को सच मान बैठते थे । उसे किताब देने वाला उसे सच्ची कहानी बताता था और वो मुझे ।



दशक नब्बे की दिनो में कहा इतनी समझ होती हे। कालू और में खूब मस्ती करते थे हमें बड़ी औरते पसंद थी और हम गांव की भाभी हो या चाची ताई उन औरतों को देख के अश्लील बाते किया करते थे खेतों के ट्यूबल के पास ।


एक दिन स्कूल के आने के बाद हम दोपहर का खाना खा के खेतों में घूमने निकले और हमें एक दूर संबंधी काकी सिर पर घास की ढेर उठा कर चलती हुई दिखी । वो हमारे ही बगल से गुजर गई । और जाते जाते हमें दांत के चली गई " कमबख्तों पेट में दाना डालते ही आ गए खेतों में मस्ती करने । पढ़ाई बढ़ाई करना हे की नही "


हम मुंह झुकाए बिना जवाब दिए काकी को पार कर के चले गए । वो हम पर बर्बराती हुई चली गई । लेकिन जब वो सामने से आ रही थी तो हम उनकी समान देख कर आह भर रहे थे ।


कालू बोला " देखा काकी की चूचे आज कैसे हिल रही थी ।"

में बोला " हा । लगता है अंदर ब्रा नही पहनी हुई थी । कितने बड़े बड़े है ना काकी की। तूने काकी की कांख देखी पसीने से गीली थी । मेरा चूसने का मन कर रहा था ।"


कालू लार टपका रहा था " हा गोलू देखा मैने । काकी मस्त माल है इस गांव की । सबसे बड़ी चूचे हे तो इस गांव में सिर्फ काकी की हे। "

में भी ख्वाब देखता हुआ बोला " हा काश काकी की बूर में लन्ड पेल पाता।

कालू बोला " अरे मजा नही आयेगा । काकी के 6 बच्चे हे उनकी बूर का तो भोसड़ा बना होगा । पाता नही काका ने काकी की कितनी पेलाई की हे "


में बोला " हा यार । विश्वाश नही होता काका ने छे छे बच्चा पैदा कर लिया काकी से दिखने में तो दुबले पतले लगते हे "

कालू बोला " अरे काकी जैसी चुदासी औरतों का कोई भरोसा नहीं है। क्या पता कुछ बच्चे काका का न हो किसी और का हो "


में मजाक में बोला " दूसरो का छोड़ अपनी सोच तुम लोग भी तो चार भाई बहन हो । तेरे बाबा ने तेरी मां से चार चार निकाले हैं। उस हिसाब से तो तेरी मां की बूर भी गांव की कुंवा जैसा बन गया होगा "

कालू चिढ़ जाता है और मुझे चिढ़ाता हे" हा साले तो । तेरे बाप में दम नही था बस तुझे अकेला पैदा कर के थक गया । वैसे उस हिसाब से तेरी मां की बूर तो बोहोत कसी हुई होगी । ठोक दे ना अपनी मां को "


में बोला " बे हट। कुछ भी ऐसा थोरी होता है "


कालू गंदी किताबे निकाल के बोला " अरे होता हे होता हे। इन कहानियों में तो सच ही लिखा है ना । "


हम एक पेड़ की साव में बैठ कर गंदी किताबे खोल के बैठ गए । और बातों में मस्ती में पढ़ने लगे ।


कालू बोला " पाता नही हमारे गांव में किस किस का किस किस से ताका भिड़ा हे। मैने सुना हे की कजरी भाभी का अपने ससुर के साथ गर्मी चढ़ी हुई हैं।"

में बोला " अरे चढ़ने दे । बोल आज कौनसी कहानी का मजा उठाए "


हम दोनो ऐसे ही मजे करते थे । दोनो बोहोत जिगरी दोस्त थे भाईसरा बचपन से था ।
 
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शाम को में घर गया । घर पर मेहमान आए हुए थे दादाजी का परम मित्र था । पहली बार उनसे मिल रहा था मुझेसे बोहोत प्यार से पेश आया और मेरे हाथो में मिठाई भी दिया में खुस हो गया क्यों की मुझे जलेबी बोहोत पसंद था । हमारे घर में दादा दादी बाबा मां और में सुखी गृहस्ती थी ।


दादाजी के मित्र परमानंद प्रख्यात ज्योतिषी थे । दादाजी ने घर की सुख समृद्धि के विचार परमच के बुलाया था । बाबा खेती करते थे हमारे अपने जमीनों में लेकिन पिछले साल से जमीन में जैसे उपजाऊ खत्म हो गई हो और सही मात्रा में खेती नही हो पा रही थी ।




रात को मां ने सबके लिए खाना बनाया दादी भी मदद किया करती थी मां की । मेहमान आने के कारण मुर्गा बना था रात को । खाने के बाद दादाजी के अनुराध के प्रच्यात दादाजी के मित्र परमानंद ने आंगन में हम सभी को बिठा के अपने पोटली खोल के बैठ गया और हमारे सभी के भाग्य देखने लगे और क्या क्या समस्या हे बताने लगे ।


दादाजी ने पूछा " मित्र बताइए क्या दशा हे हमारे घर की । "

परमानंद कुछ गणना कर के मेरी तरफ देख के बोला " बाबू तुम जा के सो जाओ । "


में समझ गया की कुछ ऐसी बाते होने वाली है जो मेरे कानों तक नही पड़ना देने चाहते है। मां और दादी ने मुझे इशारे से जाने को कहा तो में उठ कर चला गया । लेकिन में सुनना चाहता था की क्या बाते होती हे इसलिए में बरामदे के कमरे में जा कर खिड़की से चुप चुप के देखते हुए सुनने लगा । रात हो गई थी सारों और शांति थी इसलिए अच्छे से सुनाई भी दे रहा था ।


परमानंद समस्या और उपाय बताने लगे । वो मां और बाबा की तरफ देख के बोलने लगा " बहु के कोख में दूसरा बच्चा होना भाग्य में लिखा था और ये शुभ लेखन भी था । अगर बहु के गोद से दूसरा बच्चा होता तो आज इतने दुर्गति ना होती । धन भी रहता घर में और सुख भी ।"

परमानंद की बाते सुन के सभी अचंभित हो गए । तभी दादी बोली " देखी में ना कहती थी दो पोते पोती होना चाहिए ।"


दादाजी दादी को चुप करा देता है " तुम चुप रहो। अच्छा मित्र जो होना था वो तो हो गया । लेकिन अब उपाय क्या हैं "


परमानंद उपाय बताने लगे " उपाय यही है कि बहु दूसरा बच्चा पैदा करे "


इस बात से सभी सोक गए । मां बाबा से कहने लगी " इस उम्र में । और गोलू कितना बड़ा हो गया है। "


दादी भी कहने लगी " भाई साब और कोई उपाय नहीं है क्या । एक बच्चा इतना बड़ा हो गया हे जवानी पे पैर रखा है इस वक्त एक नन्हा बच्चा "



परमानंद बोले " उपाय तो यही हैं । बच्चो की उम्र का फर्क तो होगी लेकिन क्या फर्क पड़ता है । मेरे खुद के बड़े बेटे से छोटा बेटा 12 साल छोटा है । और जहा तक बहु की बात हे बहु सहेदमंद है जवान है। "



और इसी विषय में बात होती रही । अंत में सही को परमानंद की बात को स्वीकारना पड़ा ।
परमानंद दादा और दादी के बोला " मित्र आप लोग जाइए मुझे बच्चों से विधि समझना है "
 
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में अजीब कस्माकस में था अब मां दूसरे बच्चे जन्म देगी । वैसे मां और बाबा इतने बूढ़े भी नही थे दोनो की जल्दी शादी हो गई थी । मां तो अब भी जवान और खूबसूरत थी रंग थोड़ा सावला था मगर फिर भी गदराई हुई स्वास्थ खाती पीती औरत थी जो घर का काम करने से भी कभी नही थकती थी ।


दादा और दादी उठ कर चले गए । परमानंद बाबा और मां को विधि समझाने लगे । मां शर्म से पल्लू से मुंह ढक रही थी क्यू की विधि की बाते ही कुछ निजी थी ।


परमानंद विधि अनुपात करने लगा " सुबह 4 बजे तुम दोनो को मिलन करना हे। लेकिन घर में नही बाजरे की खेत में । "


बाबा ने सवाल पूछा " चाचाजी खेतों में क्यू "


परमानंद बोले " क्यू की ये विधि के और भाग्य के लेखन के कुछ नियमों के आधारित होगा । और इसे इसी तरह किया जाएगा । बहु सबसे पहले तुम बाजरे की खेत में जाना अकेले अपने पति को मत जगाना । और बेटा तुम बहु के कुछ समय बाद चले जाना ।लेकिन ध्यान रखना । एक दूसरे को चेहरा मत दिखाना । बहु तुम इस आसन में अपने पति का इंतजार करना " परमानंद खुद घोड़ा बन के दिखाते हुए समझाया ।


इस पर मां इतना शर्मा गई की वो उठ कर भागती हुई आंगन से चली आई । परमानंद अब बाबा को समझने लगा " ये विधि एक हफ्ता तक चलेगा रोज सुबह ऐसे ही अपने पति से मिलन करना हे बेटा तुम्हे । और ये लो दबा रोज रात को सोने से पहले खाना । "


परमानंद ने बाबा के हाथ में एक दबा दे कर और जड़ी बूटी से कुछ पानी छिड़क दिए। मेरे दिमाग में खयाल आने लगा की सुबह 4 बजे बाबा मां को चोदने वाला हे एक हफ्ता । इस बात से मेरे कमजोर दिमाग हिल गया था और मुझसे रहा नही गया । में अपने कमरे की खिकड़ी से कूद के कालू के घर गया । रात तब 11 बज रहे थे । में उसके कमरे की बाहर से उसे बुला कर बाहर निकाला।



कालू मुझसे पूछने लगा " गोलू तू इतनी रात को यहां क्या कर रहा है मेरे बाबा ने देख लिया तो दोनो की पिलाई होगी "


में हाफ हाफ के बोलने लगा " अरे बात ही ऐसी है। "


कालू " क्या बात है। कुछ हुआ है क्या "



मैने सब कुछ कालू को बता दिया । पहले तो कालू भी हैरान था लेकिन फिर वो बोला " अरे तो क्या हुआ । अच्छा ही है तुझे भाई या बहन मिल जायेगी । और इस विधि से समस्या ठीक होती हे तो ठीक ही हे ना "


में बोला " बात तो ठीक हे लेकिन फिर भी अजीब लग रहा हे। कभी कुछ ऐसा होते हुए न सुना हे ना देखा हे "


कालू शैतान बन गया " तो इस बार देख लेंगे। काल सुबह तू और में चुपके से तेरी मां और बाबा की चूदाई देखेंगे "


में बोला " हट पागल "


लेकिन वो गिरगिराने लगा " देखने से क्या होगा। हमे थोड़ा मजा मिलेगा तुझे दोस्ती की कसम "


मुझे भी एक रोमांस चढ़ा था मां और बाबा की चूदाई देखने का तो में भी बाद में मान गया।
 
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मुझे पूरी रात नींद नही आई वैसा हाल कालू का भी था । सुबह 3 बजे हम उठे और चुप चुप के बाजरे की खेत में चले गए टॉर्च ले कर क्यू की अभी भी अंधेरा था।

कालू मुझसे पूछने लगा " हम खेत में तो आ गए लेकिन तेरे बाबा और मां कहा पर चूदाई करेंगे ये कैसे पता चलेगा हमे "


में बोला " मां और बाबा हमारे अपने खेतों में ही आयेंगे । हमारे खेतों में जो जोपड़ी हे हम उसी में चुप कर देखेंगे "


कालू बोला " अरे तेरे बाबा और मां झोपड़ी के अंदर घुसे तो "

में बोला " नही घुसेंगे क्यू की विधि यही है उन दोनो को खेत में करना हे । और मुझे लगता हे इतने बड़े ऊंचे बाजरे की घने खेतों में इतना नही घुसेंगे । झोपड़ी के आस पास ही खेतों में किनारे कही कर लेंगे "



हम झोपड़ी के अंदर चिप कर इंतजार करते रहे । और दीवार को छेद से सारों और देखते रहे । एक अजीब सी अनुभती थी की में मां बाबा की विधि अनुसार चूदाई देखने वाला हूं और कालू भी बोहोत उत्चुक्त था ।




कुछी देर में कालू और मुझे बाजरे की झाड़ हिलते हुए दिखाई दिए हमने देखा की बाजरे की खेतों में मां लालटेन ले कर रास्ता बनाती हुई आ रही है। कालू और में उत्चुत हो गए कालू बोलने लगा " आ गई तेरी मां आ गई "


में उससे चुप रहने का इशारा किया " चुप कर चोर मत मचा वरना पता चल जायेगा "


मां वोही घर में पहनने वाली साधारण सारी में आई थी लेकिन उसकी बाल खुले थे इधर उधर देख रही थी । उनके चेहरे पर एक घबराहट दिखाई दे रही थी । मां ने खेतों में बाजरे की झाड़ के बीच विधि अनुसार घोड़ी बन गई पर मुंह झाड़ के बीच से निकाल के राखी किनारे में । इस प्रछ्यात हमे भी देखने को सुविधा हुई । उनसे लालटेन अपने चहरे के पास ही रखा था ।


मां इंतजार करती रही और कुछ देर बाद फिर बाजरे की झाड़ हिलने लगा । कालू और में और उत्चुत्क हो गए की बाबा आ गए है अब मां की चूदाई देखने को मिलेगा । हम दोनो चार चार छेद बना कर आंखे निकाल के देखने के लिए तैयार हुए ।



अंधेरा था सिर्फ लालटेन की रोशनी में मां की चेहरे के अलावा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था बाबा भी नही दिखाई दे रहे थे अंधेरे के कारण । कुछ समय झाड़ियों में हलचल हुई और फिर अचानक हमने ऐसा देखा की की मां की आंखे बाहर आई उनकी आवाज भी सुनाई दी हमें जैसे वो दर्द से तिलमिला रही हो । " आई मर गई "


कालू ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मैंने भी उसका हाथ कस के पकड़ लिया । हम दोनो चुप चाप देखते रहे । कुछ 5 फीट की दूरी से हम मां को चूदते हुए देख रहे थे । हमारा जवान लन्ड तन तन के सलामी देने लगे निक्कर में ।



उधर मां के चेहरे पर दर्द भरी भाव । मां जैसे अपनी दर्द भरी चीत्कार दात पिच पिच के दबा रहीं थी । मां धक्का खा के आगे की और झटका खा रही थी । उनकी पल्लू गिर चुकी थी जिसके कारण उनकी आधी से ज्यादा चूचियां हिलती हुई नजर आ रही थी । गले की माला भी लटक लटक के झूल रही थी । मां ने किसी तरह अपनी दोनों हाथों से जमीन के घास कस राखी थी ।



मां अपनी चीत्कार रोक नही पा रही थी और उनकी मुंह से दातों से दबी हुई आई आह्ह्ह उह्ह्ह्ह की चीत्कार निकल रही थी । रह रह कर उनकी काली आखों से आसू निकल रहें थे एम कालू और में हैरान थे हमने एक बार किसी की चूदाई देखी थी पर ऐसा नही देखा था जहा मां को इतना दर्द हो रहा हे जो हमने देखा था उस औरत ने तो मजे से चुदवाया था ।



लगभग 15 मिनिट तक मां को चूदते देखा और फिर झाड़ियां बोहोत हिलने लगी । हम समझ गए की बाबा चले गए हे। मां अब वोही झाड़ियों के अंदर लेट गई साइड मां आराम कर रही थी ।



हम भी कालू और में झोपड़ी से निकल गए
 
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घर की और जाते हुए कालू और में बाते कर रहे थे । कालू बोल रहा था " मान गए गोलू तेरे बाबा को। क्या चोदा हे तेरी मां को "

में बोला" साइड उस दबा का असर होगा । दादाजी के दोस्त ने बाबा को ताकत की दबा दी थी "


कालू बोला " फिर भी यार विश्वास नही हो रहा हे । तेरी मां को इतना क्यू दर्द हुआ कितने सालों से तो तेरे बाबा से चूदते आई हे "


में भी सोच में पर गया " अरे ऐसा होगा साइड मां बाबा ने बोहोत दिन से किया नही होगा । और तूने ही तो कहा है की औरते का मन हो तो उन्हे तकलीफ होती हे और मां का भी खुले में मन नहीं बैठा हो "


कालू बोला " हा हो सकता हे "


हम दोनो अपने अपने घर गए थोरी देर में सो जाता हूं और फिर उठ कर सुबह का नित्य काम कर के कालू और में स्कूल चले जाता हूं । स्कूल में हमारी मन नही लग रहा था दोनो बस मां और बाबा की चूदाई के बारे में बाते करते रहे क्लास के लास्ट बेंच पर बैठ कर ।


दोपहर को ने मै स्कूल से लौटा । उस वक्त दादा दादी और परमानंद घर पर नही थे । मां से पूछने पर पता चला की दादा और दादी परमानंद को गांव घुमाने ले गया है।


मां मुझे खाना पोरस रही थी तो मैंने देखा की मां लंगड़ा कर चल रही है तो मैंने पूछा " मां क्या हुआ आपको "


मां बोली " अरे वो गुशलखाने में गिर गई थी । कमर लचक गई हे "


में मन ही मन बोल रहा था कमर में नही आपकी बूर में लचक हे पता नही कितना दर्द कर रहा होगा आपकी बूर" बोहोत ज्यादा लगी है क्या मां । दबखना ले चलू आपको "


मां बोली " नही नही ठीक हे ज्यादा नही हे मैंने दबाई लगा ली है और तेरे दादाजी की दोस्त ने दवाई दी हैं "



मां अपने कमरे में चली गई । में खाना खा कर मां की कमरे में गया और बोला " लाओ में थोड़ा मालिश कर दूं "



मां बिस्तर पर थी ", नही रहने दे । "



में बोला ", नखरा मत करो लाओ दबा "


फिर मैंने परमानंद की दी हुई तेल से मां की कमर मालिश की । अक्सर में मां की पैर और कमर मालिश कर दिया करता था । पहले तो मां की जिस्म पर कभी इतना ध्यान नही दिया पर आज उसकी हर एक अंग देख कर छू के मजा उठाने का मन कर रहा था और बार बार उनकी गोल नितंभ को देख कर सोचने लगता था कि मां की इसी छुपी हुई बूर में आज बाबा ने कैसे चोदा हे जैसे कोई बूर ना हो साइकिल की पम्पर हो जो पूरे ताकत से दबा दबा के पंप किया हो ।
 
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रात हुई । परमानंद हम सभी को अपनी रचक बातों से मोहित कर देता था और अपने असंभव कार्य के बारे में बताता था पर मां कुछ उखड़ी उखड़ी सी लग रही थी ।



रात सोते समय परमानंद ने बाबा को घर के पीछे ले जा कर बाबा बिठा के कुछ अजीब सी झाड़ से झाड़ फुक कर के मंत्र मार रहा था जो में चुप के देख रहा था ।



आज भी में सुबह का इंतजार करने लगा । घड़ी में 3:30 बजे अलार्म लगा के सो गया था अपने कमरे मैं में। और जब अलार्म बाजी तो में कालू को बुला कर दोनो खेतों में चले गए । पिछली बार की तरह झोपड़ी में चुप गए और इंतजार करने लगे ।



कुछि देर में मां लालटेन ले कर आ गई और पिछली रात की तरह घोड़ी बन कर इंतजार करने लगी । कालू और में उत्चूत थे बेताबी से बाबा का इंतजार कर रहे थे की कब आए और जब मां की चूदाई देखने को मिले । वैसे तो चाह रहे थे की दोनो को पूरी बदन चूदाई करते हुए दिखे पर अंधेरे में नामुमकिन था ।


तभी झाड़ियों में हलचल हुई । हम आंखे बड़े कर दिए । पर काफी देर से मां जरा भी हिलती हुई नही दिखी वो बस सामने टुकुर टुकुर देख रही थी । कालू और में इशारे से फुसफुसाने लगे की क्या माजरा है ।


तभी मां की चेहरे पर एक कामुकता दिखी । मां हल्की हल्की सी होठ खोल के सिसकारी मारती हुई दिखी हाला की हम उनकी सिसकारी सुनाई नही दी । मां बार बार आंखे मूंद रही थी और जीव भी फिरा रही अपनी होठों पर ।


ये देख कर कालू मेरे कान में बोला ", तेरे बाबा तेरी मां की बूर चाट रहा हे। देख तेरी मां कैसे मजा ले रही हे"



मुझे भी देख के मजा आ रहा था पहली बार मां को ऐसे मजा लेते हुए देख रहा था । कालू और में नजारा का लुफ्त उठाने लगे ।


तभी मां सर उठा के दात पिछते हुए " उफ्फ उफ्फ उफ्फ उफ्फ " करने लगी


कालू और में समझ गए की बाबा मां की बूर में लन्ड डाल रहे है । मां चूद रही थी पहले तो उसने सिर्फ दर्द भरी चेहरे की सकल बनाती रही लेकिन कुछ समय बाद मां आंखे बंद कर के सिर्फ मुंह से " आह्ह्ह्ह उह्ह्ह। आह्ह्ह्ह्ह । उम्ह्ह्ह्ह । हान्हह्ह ।" की आनंद की चीत्कार निकाल रही थी जो हम भी थोड़ा थोड़ा सुन रहे थे ।



आज मां ज्यादा झटका नही खा रही थी आगे को साइड बाबा धीरे धीरे चोद रहे थे । कालू और में देख रहे थे मां की चेहरे पर चूदाई की आनंद थी बस बीच बीच में कभी कबर उनकी मुंह से दर्द भरी चीत्कार निकाल आ जाती थी । पर उनकी आंखे रोशनी में साफ दिख पा रहे थे की उनकी आखों वासना थी और वो मजे मंद मस्त थी । तेज तेज सांस चल रही थी मां की दोनो हाथ मिला के कोणही पर टिकी हुई थी मां ।




कालू मेरे कान में बोला " आज तो दृश्य अलग है। तेरी मां तो पूरा मजा ले रही है। "


में चुप रहने का इशारा कर के मां की चूदाई देखने लगा । हमने ध्यान दिया की आज कुछ ज्यादा ही देर लग रही हे आधे घंटे से ऊपर हो गए मां की माथे पर भी पसीने की बुंदे टपक आई । हमे उतना ज्ञान नही था कि औरते किस प्रकार शर्मसुख लेती हे । हमने देखा की मां अपनी आंखे कस के बंद करते हुए कांप उठी हे और मुंह से जोर जोर से चीत्कार कर रही थी " उह्ह्ह्ह्ह में गई आह । इस आह्ह्ह्हह इस आह्ह्हह । आह्ह्हह्ह । उह्ह्ह्ह्ह्ह उफूफुफू हूं।"


मां एक दम से शांत होने लगी और हाफने लगी जोर जोर से । और कुछ देर बाद हमने देखा की झाड़ियों में हलचल होने लगी और मां फिर लेट गई कुछ देर । आज हम दोनों ने पूरा देखने का थान लिया था । कुछ देर बाद मां अपने कपरे ठीक कर के चली गई लालटेन बुझा कर क्यू की रोशनी हो चली थी सुबह की ।
 
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