जिस दिन ज़रीना को जाना होता है, उस से पिछली रात दोनो रात भर बाते
करते रहते हैं. कभी कॉलेज के दिनो की, कभी मूवीस की और कभी क्रिकेट
की. किसी ना किसी बात के बहाने वो एक दूसरे के साथ बैठे रहते हैं. मन ही मन दोनो चाहते हैं कि काश किसी तरह बात प्यार की हो तो अछा हो. पर बिल्ली के गले में घंटी बाँधे कौन ? दोनो प्यार को दिल में दबाए, दुनिया भर की बाते करते रहते हैं.
सुबह 6 बजे की ट्रेन थी. वो दोनो 4 बजे तक बाते करते रहे. बाते करते-करते उनकी आँख लग गयी और दोनो बैठे-बैठे सोफे पर ही सो गये.
कोई 5 बजे आदित्य की आँख खुलती है. उसे अपने पाँव पर कुछ महसूस होता है
वो आँख खोल कर देखता है कि ज़रीना ने उसके पैरो पर माथा टिका रखा है
“अरे!!!!!! ये क्या कर रही हो?”
“अपने खुदा की इबादत कर रही हूँ, तुम ना होते तो मैं आज हरगिज़ जींदा ना होती”
“मैं कौन होता हूँ ज़रीना, सब उस भगवान की कृपा है, चलो जल्दी तैयार हो जाओ, 5 बज गये हैं, हम कहीं लेट ना हो जायें”
ज़रीना वाहा से उठ कर चल देती है और मन ही मन कहती है, “मुझे रोक लो
अदित्य”
“क्या तुम रुक नही सकती ज़रीना...बहुत अछा होता जो हम हमेशा इस घर में एक साथ रहते.” अदित्य भी मन में कहता है.
एक अनोखा बंधन दोनो के बीच जुड़ चुका है.
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5:30 बजे अदित्य, ज़रीना को अपनी बाइक पर रेलवे स्टेशन ले आता है.
ज़रीना को रेल में बैठा कर अदित्य कहता है, “एक सर्प्राइज़ दूं”
“क्या? ”
“मैं भी तुम्हारे साथ आ रहा हूँ”
“सच!!!!”
“और नही तो क्या… मैं क्या ऐसे माहॉल में तुम्हे अकेले देल्ही भेजूँगा”
“तुम इंसान हो कि खुदा…कुछ समझ नही आता”
“एक मामूली सा इंसान हूँ जो तुम्हे…………”
“तुम्हे… क्या?” ज़रीना ने प्यार से पूछा
“कुछ नही”
आदित्या मन में कहता है, “……….जो तुम्हे बहुत प्यार करता है”
जो बात ज़रीना सुन-ना चाहती है, वो बात आदित्या मान में सोच रहा है, ऐसा अजीब प्यार है उष्का.
ट्रेन चलती है. आदित्य और ज़रीना खूब बाते करते हैं….बातो-बातो में कब वो देल्ही पहुँच जाते हैं….उन्हे पता ही नही चलता
ट्रेन से उतरते वक्त ज़रीना का दिल भारी हो उठता है. वो सोचती है कि पता
नही अब वो अदित्य से कभी मिल भी पाएगी या नही.
“अरे सोच क्या रही हो…उतरो जल्दी” अदित्य ने कहा.
ज़रीना को होश आता है और वो भारी कदमो से ट्रेन से उतारती है.
“चलो अब सिलमपुर के लिए ऑटो करते हैं” आदित्या ने एक ऑटो वाले को इशारा किया.
“क्या तुम मुझे मौसी के घर तक छोड़ कर आओगे?”
“और नही तो क्या… इसी बहाने तुम्हारा साथ थोड़ा और मिल जाएगा”
ज़रीना ये सुन कर मुस्कुरा देती है.
आदित्य के इशारे से एक ऑटो वाला रुक जाता है और दोनो उसमे बैठ कर सिलमपुर की तरफ चल पड़ते हैं.