Incest एक अनोखा बंधन

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सातवाँ अध्याय: समर्पण
भाग-2

शाम को फिर से अजय भैया और रसिका भाभी का झगड़ा हो गया, बेचारा वरुण अपने मम्मी-पापा की लड़ाई देख रोने लगा| भौजी ने मुझे वरुण को अपने पास ले आने को कहा और मैं फटा-फ़ट वरुण को अपने साथ बहार ले आया| वरुण का रोना बंद ही नहीं हो रहा था, बड़ी मुश्किल से मैंने उसे पुचकार के आधा किलोमीटर घुमाया और जब मुझे लगा की वो सो गया है तब मैंने उसे भौजी को सौंप दिया| जब भौजी मेरी गोद से वरुण को ले रही थी तो मैंने शरारत की और उनके निप्पलों को अपने अंगूठे में भर हल्का सा मसल दिया| भौजी विचलित हो उठी और मुस्कुराती हुई प्रमुख आँगन में पड़ी चारपाई पर वरुण को लिटा दिया| रात हो चुकी थी और अँधेरा हो चूका था, भौजी जानती थी की मैं खाना उनके साथ ही खाऊँगा परन्तु सब के सामने? उनकी चिंता का हल मैंने ही कर दिया;

मैं: भौजी मुझे भी खाना दे दो|

भौजी मेरा खाना परोस के लाई और खुस-फुसते हुए बोलीं;

भौजी: मानु क्या नाराज हो मुझ से?

मैं: नहीं तो!

भौजी: तो आज मेरे साथ खाना नहीं खाओगे?

मैं: भौजी आप भी जानते हो की दोपहर की बात और थी, अभी आप मेरे साथ खाना खाओगी तो चन्दर भैया नाराज होंगे|

भौजी मेरी ओर देखते हुए मुस्कुराई और मेरी ठुड्डी पकड़ी ओर प्यार से हिलाई!

भौजी: बहुत समझदार हो गए हो?

मैं: वो तो है, अब संगत ही ऐसी मिली है! और वैसे भी आप मेरे हिस्से का खाना खा जाती हो|

मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा तो भौजी ने अपनी नाराज़गी ओर प्यार दिखाते हुए मेरी दाहिनी बाजू पर प्यार से मुक्का मारा|


मैंने जल्दी-जल्दी खाना खाया और अपने बिस्तर पर लेट गया, मैंने सबको ऐसे जताया जैसे मुझे नींद आ गई हो, जबकि असल में मुझे बस इन्तेजार था की कब भौजी खाना खाएँ और कब बाकी सब घर वाले अपने-अपने बिस्तर में घुस घोड़े बेच कर सो जाएँ, तब मैं और भौजी अपना अधूरा काम पूरा कर लें| इसीलिए मैं आँखें बंद किये सोने का नाटक करने लगा, पेट भरा होने के कारन नींद आने लगी थी पर मेरा कौमार्य दिमाग मुझे सोने नहीं दे रहा था| कुछ देर बाद मैं बाथरूम जाने के बहाने उठा ताकि देखूँ की भौजी ने खाना खाया है की नहीं, तभी भौजी और अम्मा मुझे खाना खाते हुए दिखाई दिए| मैं बाथरूम जाने के बाद जानबूझ के रसोई की तरफ से आया ताकि भौजी मुझे देख ले और उन्हें ये पक्का हो जाये की मैं सोया नहीं हूँ, वर्ण क्या पता वो मुझे सोता हुआ समझ खुद ही सो जाएँ! मैंने अपने बिस्तर पर लौटते समय मुआइना कर लिया था की कौन-कौन जाग रहा है और कौन सो चूका है| बच्चे तो सब सो चुके थे, बड़के दादा और पिताजी की चारपाई पास-पास थी और दोनों के खर्रांटें चालु थे| गट्टू भी गधे बेचके सो रहा था, माँ अभी जाग रही थी और बड़की अम्मा जी से लेटे-लेटे बात कर रही थी| मैंने अनुमान लगाया की ज्यादा से ज्यादा एक घंटे में दोनों अवश्य सो जाएँगी| रसिका भाभी और मधु भाभी नए घर में अपने-अपने कमरे में सोईं थीं| अजय भैया और अशोक भैया मुझे कहीं नहीं दिखे तो मुझे लगा की वो बड़े घर की छत पर सोये होंगे| चन्दर भैया भी पिताजी के पास ही चारपाई डाले ऊँघ रहे थे| मैं अपने बिस्तर पर आके पुनः लेट गया और भौजी की प्रतीक्षा करने लगा| अब बस इन्तेजार था की कब भौजी आएं और अपनी प्यारी जुबान से मेरे कानों में फुसफुसाएं की मानु चलो! इन्तेजार करते-करते डेढ़ घंटा हो गया, मैं आँखें मूंदें करवटें बदल रहा था की तभी भौजी की फुसफुसाती आवाज मेरे कानों में पड़ी;

भौजी: मानु? सो गए क्या?

मैंने तुरंत आँख खोली और बोला;

मैं: नहीं तो, आजकी रात सोने के लिए थोड़े ही है!

ये सुन भौजी ने एक कटीली मुस्कान दी|

मैं: बाकी सब सो गए?

भौजी: हाँ ... शायद... (भौजी ने एक बार इधर-उधर देखते हुए कहा|)

मैं: डर लग रहा है?

भाभी: हाँ!

मैं: घबराओ मत मैं हूँ ना!

मैंने बड़े आत्मविश्वास से कहा और उनके हाथ को थोड़ा दबा दिया|


तभी अचानक बड़े घर से किसी के झगड़ने की आवाज आने लगी| ये आवाज सुन हम दोनों चौंक गए, भौजी को तो ये डर सताने लगा की कोई हम दोनों को साथ देख लेगा तो क्या सोचेगा और मैं मन ही मन कोस रहा था की मेरी योजना पे किस ने ठंडा पानी डाल दिया? शोर सुन सभी उठ चुके थे, बच्चे तक उठ के बैठ गए थे| मैं और भौजी भी अब बड़े घर की तरफ चल दिए| ये शोर और किसी का नहीं बल्कि अजय भैया और रसिका भाभी का था| पता नहीं दोनों किस बात पर इतने जोर-जोर से झगड़ रह थे| अजय भैया बड़ी जोर-जोर से रसिका भाभी को गालियाँ दे रहे थे और लट्ठ से पीटने वाले थे की तभी मेरे पिताजी और बड़के दादा ने उन्हें रोक लिया| इधर शोर सुन वरुण ने रोना चालु कर दिया था, मैंने वापस आ कर वरुण को गोद में उठाया और साथ ही राकेश और नेहा को अपने साथ रेल बनाते हुए दूर ले गया ताकि वो इतनी गन्दी गालियाँ न सुन पाएँ| मैंने इशारे से भौजी को भी अपने पास बुला लिया, मुझे लगा शायद भौजी को पता होगा की आखिर दोनों क्यों लड़ रहे होंगे पर उनके चेहरे के हाव-भाव कुछ अलग ही थे|

भौजी: मानु तुम यहाँ अकेले में इन बच्चों के साथ क्यों खड़े हो?

मैं: भौजी अपने नहीं देखा दोनों कितनी गन्दी-गन्दी गालियाँ दे रहे हैं! बच्चे क्या सीखेंगे इन से?

भौजी: मानु ये तो रोज की बात है| इनकी गालियाँ तो अब गाओं का बच्चा-बच्चा रट चूका है|

मैं: हे भगवान!!!


अब भौजी का मुँह बना हुआ था और मैं जनता था की वो क्यों खफ़ा है| मैंने उन्हें सांत्वना देने के लिए उनके कान में कहा;

मैं: भौजी आप चिंता क्यों करते हो? कल सारा दिन है अपने पास और रात भी!

भौजी: मानु रात तो तुम भूल जाओ!

उनकी बात में जो गुस्सा था उसे सुन मैं हँस पड़ा और मेरी हँसी से भौजी नाराज होके चली गईं, मैं पीछे से उन्हें आवाज देता रह गया| सच बताऊँ तो मुझे भी उतना ही दुःख था जितना भौजी को था बस मैं उस दुःख को जाहिर कर अपना और भौजी का मूड ख़राब नहीं करना चाहता था|

खेर जैसे-तैसे मामला सुलझा, सुबह हो गई और एक नई मुसीबत मेरे सामने थी| पिताजी और माँ बाजार जाना चाहते थे और मजबूरी में मुझे भी जाना था| मन मसोस कर मैं चल पड़ा, बाजार पहुँच माँ और पिताजी खरीदारी कर रहे थे, पर मेरी शकल पे तो बारह बजे थे| पिताजी को आखिर गुस्सा आना ही था;

पिताजी: मुँह क्यों उतरा हुआ है तेरा?

मैं: वो गर्मी बहुत है, थकावट हो रही है... घर चलते हैं| (मैंने बहाना मारते हुए कहा|)

पिताजी: घर? अभी तो कुछ खरीदा ही नहीं? और अगर तुझे घर पर ही रहना था तो आया क्यों साथ?

माँ: अरे छोडो न इसे, इसका मूड ही ऐसा है, एक पल में इतना खुश होता है की मानो हवा में उड़ रहा हो और थोड़ी देर में ऐसे मायूस हो जाता है जैसे किसी का मातम मन रहा हो|


माँ ने भी अपना गुस्सा दिखाया| अब मैं कुछ बोल नहीं सकता था, इसलिए चुप रहा| माँ और पिताजी दूकान में साड़ियाँ देखने में व्यस्त हो गए, साड़ियाँ देख मन हुआ की क्यों न भौजी के लिए एक साडी ले लूँ, पर जब जेब का ख्याल आया तो मन फिर से उदास हो गया| मेरी जेब में एक ढेला तक नहीं था, ग्यारहवीं में आने के बाद मैंने स्कूल लंच ले जाना बंद कर दिया था| तो मैं वहाँ भूखा न रहूँ इसके लिए पिताजी मुझे 10 रुपये दिया करते थे| उस समय 10 रुपये की कीमत हुआ करती थी, इसलिए शाम को वापस आ कर मुझे उन्हें बताना पड़ता था की मैंने 10 रुपये खर्च किये या नहीं! पर मैं होशियारी सीख गया था, तो मैं अक्सर झूठ बोल दिया करता की मैंने खाने-पीने में खर्च कर दिए| कभी-कभार माँ जब अच्छे मूड में होती या मेरे किये किसी काम से खुश होती तो मुझे 10/-, 20/-, 50/- रुपये दे दिया करती तो मैं वो भी अपने पास छुपा कर रखता| इन पैसों को इक्कट्ठा करने का कारन था की मुझे एक मोबाइल लेना था पर आज बजार आते समय मैं वो पैसे ले कर नहीं आया था और अगर लाया भी होता तो पिताजी के सामने भौजी के लिए साडी लेने की हिम्मत ना होती!


खैर पिताजी और माँ साडी देखने में व्यस्त थे और मैं बैठे-बैठे ऊब रहा था, इस परिस्थिति से निकलने का एक रास्ता दिमाग में आया| मैंने सोचा की क्यों न मैं अपने दिमाग के प्रोजेक्टर में अभी तक की सभी सुखद घटनाओं की रील को फिर से चलाऊँ? मैं जब भी ऊब जाता था तो अपनी एक काल्पनिक दुनिया में खो जाता था और ये करना मुझे बहुत अच्छा लगता था| इसलिए मैं ध्यान लगाते हुए भौजी के साथ बिठाये उन सभी अनुभवों को फिर से जीने लगा, पता नहीं क्यों पर अचानक से दिमाग में कुछ पुरानी बातें आने लगीं| उन्हीं बातों में से एक थी गुजरात वाले भैया की चेतावनी!

"मानु अब तुम बड़े हो गए हो, मैं तुम्हें एक बात बताना चाहता हूँ| जिंदगी में ऐसे बहुत से क्षण आते हैं जब मनुष्य गलत फैसले लेता है| वो ऐसी रह चुनता है जिसके बारे में वो जानता है की उसे बुराई की और ले जायेगी| तुम ऐसी बुराई से दूर रहना क्योंकि बुराई एक ऐसा दलदल है जिस में जो भी गिरता है वो फँस के रह जाता है|" ये बात दुबारा दिमाग में आते ही मैं सन्न रह गया| भैया की बात मेरी अंतर्-आत्मा को झिंझोड़ने लगी थी, बार-बार मुझे रोक रही थी की मैं बुराई की तरफ न जाऊँ! मेरा कौमार्य दिमाग अब तर्क देने लगा था पर अंतर-आत्मा उसके दिए हर तर्क को विफल कर रही थी| 'तो क्या अब तक जो भी कुछ हुआ वो पाप है? परन्तु भौजी तो मुझ से प्यार करती है!' मेरे कौमार्य दिमाग ने तर्क दिया|

'पर क्या मैं भी उन्हें प्यार करता हूँ?' मेरी अंतर् आत्मा ने मुझसे पुछा| ये वो सवाल था जिसे मैंने उस दिन दबा दिया था जब भौजी पिछली बार दिल्ली आईं थी| उस समय क्योंकि मेरी परीक्षा नजदीक थी इसलिए दिमाग पढ़ाई में लग गया था पर आज मेरे सर पर कोई बोझ नहीं था इसलिए दिमाग बार-बार वही प्रश्न दोहरा रहा था| जब मेरा कौमार्य दिमाग इस सवाल का जवाब नहीं दे पाया तो मुझे अपने आप से घृणा होने लगी! मैं कैसे देवर हूँ मैं जो अपनी भौजी के जज्बातों का गलत फायदा उठाना चाहता हूँ! मुझे तो चुल्लू भर पानी में डूब जाना चाहिए, जिंदगी में आज तक मुझे इतनी घृणा कभी नहीं हुई जितना उस समय हो रही थी! अंदर से मैं टूटना चालु हो गया था, मेरा आत्मविश्वास चकनाचूर हो गया था! पर कुछ तो था जो मुझे भौजी की तरफ खींच रहा था, वासना या प्यार मैं इसमें अंतर नहीं कर पा रहा था! जिस तरह मेरा कौमार्य दिमाग मुझ पर हावी हुआ था उस हिसाब से तो ये वासना थी, पर फिर क्यों भौजी के दूर जाने पर मैं खुद को अधूरा महसूस करता था? उस दिन छत पर जब उन्होंने मुझसे अपने प्यार का इजहार किया तो मैंने क्यों कहा की मैं उनसे प्यार करता हूँ? मैं झूठ भी बोल सकता था, पर उनका दिल नहीं तोडना चाहता था! 'हम केवल उसी का दिल नहीं तोडना चाहते जिसे हम प्यार करते हैं!' मेरे अंतर-आत्मा ने तर्क दिया और ये तर्क मैंने क़बूल कर लिया| मेरे लिए भौजी की ख़ुशी जर्रूरी थी और उनकी ख़ुशी मेरे प्यार में थी| अंतर-आत्मा कह रही था की 'तुझे भौजी का ये प्यार काबुल कर लेना चाहिए, तुझे भौजी से ये कहना होगा की तू उनसे बहुत प्यार करता है!' आज मैं पहलीबार अपनी अंतर-आत्मा की बात सुन पा रहा था और मैंने निर्णय किया की मैं भौजी से अपने प्यार का इजहार करूँगा और अब कोई भी गलत बात या कोई गन्दी हरकत उनके साथ नहीं करूँगा|


अपने अंदर उठ रहे इस विचारों के तूफ़ान के कारन मेरा मुँह उतर गया था, मन में मायूसी के बदल छाय हुए थे और मैं बस जल्दी से जल्दी भौजी से ये बात कहना चाहता था| उधर पिताजी के सब्र का बाँध टूट रहा था, उन्हें मेरा मायूस चेहरा देख के अत्यधिक क्रोध आ रहा था| उन्होंने माँ से कहा; "जल्दी से साडी खरीदो, मैं अब इस लड़के का उदास चेहरा नहीं देखना चाहता!" पिताजी ने मेरी तरफ क्रोध से देखते हुए कहा| माँ ने अपने और बड़की अम्मा के लिए साडी खरीदी और हम घर के लिए निकल पड़े| पूरे रास्ते पिताजी मुझे डाँटते रहे, परन्तु मैंने उनकी डाँट को अनसुना कर दिया और सारे रास्ते मैं भौजी से क्या कहना है उसके लिए सही शब्दों का चयन करने लगा| मेरा आत्मविश्वास चकनाचूर हो चूका था इसलिए मुझे लगा की मैं भौजी से ये प्यार वाली बात कभी नहीं कह पाउँगा! घर पहुँचते-पहुँचते दोपहर के भोजन का समय हो गया था, मैं. पिताजी और माँ बड़े घर पहुँच कर अपने-अपने कपडे बदल रहे थे| गर्मी के कारन पिताजी स्नान कर रसोई की ओर चल दिए और माँ को कह गए की इसे (यानी मुझे) भी कह दो खाना खा ले| तभी भौजी मेरे और माँ के लिए खाना परोस के ले आईं, भौजी को देखते ही मेरा गाला भर आया और नजाने क्यों मैं उनसे नजर नहीं मिला पा रहा था| भौजी ने माँ को खाना परोसा और मुझे भी खाना खाने के लिए कहा| भौजी की बात सुन मेरे मुख से शब्द नहीं निकले, क्योंकि मैं जानता था की अगर मैंने कुछ भी बोलने की कोशिश की तो मैं अपने पर काबू नहीं रख पाउँगा और रो पड़ूँगा| मैंने केवल ना में गर्दन हिलाई, ये देख भौजी के मुख पे चिंता के भाव थे, उन्होंने धीमी आवाज में कहा; "मानु अगर तुम खाना नहीं खाओगे तो मैं भी नहीं खाऊँगी!" मैं नहीं चाहता था की मेरी वजह से भौजी खाना न खाएँ, पर कुछ भी बोलने के लिए मेरे अंदर हिम्मत ही नहीं थी! पर भौजी को मेरे मुँह से जवाब सुनना था; "क्या हुआ?" उन्होंने दबी आवाज में कहा| मैं उसी क्षण उनसे अपने दिल की बात कहना चाहता था परन्तु हिम्मत जवाब दे गई और मैं वहाँ से छत की ओर भाग गया| छत पर चिल-चिलाती हुई धुप थी और मैं उस धुप में सर झुकाये खड़ा था, भौजी नीचे से ही आवाज देने लगी, अब तो माँ ने भी चिंता जताई, पर मैं भौजी की बात को अनसुना करता रहा| मैं छत पर एक कोने में खड़ा होगया और अपने अंदर उठ रहे तूफ़ान पर काबू पाने की कोशिश करने लगा| मेरी आँखों से कुछ आँसूँ की बूँदें छलक आईं, मैं अपनी आँख पोछते हुए पीछे घुमा तो देखा की भौजी चुपचाप खड़ी हुई मुझे देख रही हैं, मैं उनसे नजरें नहीं मिला पा रहा था| न उन्होंने कुछ कहा, ना ही मैंने कुछ कहा, मैं सर झुकाये चुप-चाप नीचे भाग आया और बैठ के भोजन करने लगा| माँ ने इस अजीब बर्ताव का कारन पूछा परनतु मैंने कोई जवाब नहीं दिया| भौजी भी नीचे आ गईं, इधर माँ खाना खा चुकी थी और थाली ले कर रसोई की ओर जा रही थी तो भौजी ने उन्हें रोका और मेरे बर्ताव का कारन मेरे ही सामने पूछने लगीं;

भौजी: चाची क्या हुआ मानु को? चाचा ने डाँटा क्या?

माँ: अरे नहीं बहु, पता नहीं क्या हुआ है इसे सारा रास्ता ऐसे ही मुँह लटका के बौठा था| जब पूछा तो कहने लगा की गर्मी बहुत है, सर दर्द हो रहा है| भगवान जाने इसे क्या हुआ है?

भौजी: आप थाली मुझे दो, मैं अभी मानु को ठंडा तेल लगा देती हूँ उससे सर का दर्द ठीक हो जायेगा|


उधर मेरा भी खाना खत्म हो चूका था और मैं अपनी थाली ले कर जा रहा था| भौजी ने मुझे रोका और बिना कुछ कहे मेरी थाली ले कर चली गई| माँ भी भोजन के बाद टहलने के लिए बहार चली गईं| अब केवल मैं घर में अकेला रह गया था, मैंने सोचा मौका अच्छा है भौजी से अपने दिल की बात करने का, पर मैं ये बात कहूँ कैसे? मैं सोचने लगा की मुझे भौजी से कैसे बात शुरू करनी है, दिमाग में वाक्यों को सेट कर के मैं तैयारी करने लगा| आज पहलीबार मुझे किसी से अपने प्यार का इजहार करना था और ये मेरे लिए टेढ़ी खीर साबित हो रहा था|

पाँच मिनट के भीतर ही भौजी नवरतन तेल ले कर आगईं और मुझे सर झुकाये आंगन में टहलते हुए देखा| उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे चारपाई पर बैठाया और बोलीं; "मानु मैं जानती हूँ की तुम क्यों उदास हो? सच बताऊँ तो मेरा भी यही हाल है पर तुम मायूस मत हो, कल हम कैसे न कैसे कर के सब कुछ निपटा लेंगे|" भौजी मेरे बर्ताव का गलत मतलब निकाल रहीं थीं और मैं उन्हें कुछ भी बोलने की हालत में नहीं था| गला सुख गया था, आँखों में आँसूँ छलक आये और हिम्मत इक्कट्ठा करनी शुरू की| मैं जानता था की भौजी की आँखों में आँखें डाल के मैं अपने प्यार का इजहार उनसे कभी नहीं कर पाउँगा| इसीलिए मैंने अपनी आँखें बंद की और एक झटके में भौजी से सब कह देना चाहा| परन्तु शब्द ही नहीं मिल रहे थे, मन अंदर से कचोट रहा था, एक अजीब सी तड़पन महसूस हो रही थी| मैं उन्हें कहना चाहता था की अभी तक जो भी हमारे बीच हुआ वो मेरे लिए सिर्फ और सिर्फ एक आकर्षण मात्र था, परन्तु अब एक चुम्बकीये शक्ति मुझे आपकी तरफ खींच रही है और वो शक्ति इतनी ताकतवर थी की वो हम दोनों को मिला देना चाहती थी, दो जिस्म एक जान में बदल देना चाहती है|


पर भौजी मेरी चुप्पी का गलत मतलब निकाल रहीं थीं, उन्हें लगा जैसे मैं वासना के आगे विवश होता जा रहा हूँ इसलिए वो मुझे हिम्मत बंधाते हुए बोलीं; "मानु मैं जानती हूँ तुम्हें बहुत बुरा लग रहा है, पर अब किया भी गया जा सकता है? कैसे भी करके आज का दिन सब्र कर लो... कल…" भौजी की बात पूरी होने से पहले ही मैंने अपनी आँख खोली और एक आखरीबार गर्दन न में हिला के उन्हें बताने की कोशिश करने लगा की आप मुझे गलत समझ रहे हो, पर पता नहीं क्यों भौजी समझी ही नहीं| वो आगे कुछ बोलने वाली थीं पर मैंने भौजी के होंठों पर अपना हाथ रख उन्हें आगे बोलने से रोक दिया, क्योंकि वो मेरी भावनाओं को नहीं समझ रहीं थी और उनका बस गलत अर्थ निकाल रही थीं जिससे मैं शर्मिंदा महसूस कर रहा था| पर उनके होठों को छूने भर से मेरा खुद पर से काबू छूटने लगा, मैं भौजी की ओर बढ़ा और उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिए| मेरा उन्हें Kiss करने का इरादा नहीं था, मैं तो जैसे उन्हें चुप कराना चाहता था| परन्तु खुद पर काबू नहीं रख पाया और अपनी द्वारा तय की हुई सीमा खुद ही तोड़ दी| मैंने अपने दोनों हाथों से उनके मुख को पकड़ लिया और मैं बिना रुके उनके होंठों पर हमला करता रहा| मैं कभी उनके नीचले होंठ को अपने मुख में भर चूसता, तो कभी उनके ऊपर के होंठ को| आज नजाने क्यों मुझे उनके होंठों से एक भीनी-भीनी सी खुशबु आ रही थी जो मुझे उनकी तरफ खींचे जा रही थी और मैं मदहोश होता जा रहा था| जिंदगी में पहली बार मैं कोई काम बिना किसी रणनीति के कर रहा था| Kiss करते-करते मैंने अपनी जीभ उनके मुँह में प्रवेश करा दी! मेरी इस हरकत से भौजी थोड़ा चकित रह गई पर इस बार उन्होंने भी पलट वार करते हुए मेरी जीभ अपने दातों के बीच जकड ली और उसे चूसने लगीं! मेरे मुंह से; "म्म्म्म...हम्म्म" की आवाज निकल पड़ी जिसे सुन भौजी को आनंद आने लगा था| ये हम दोनों का पहला ऐसा Kiss था जिसमें मैंने पहल करते हुए अपनी जीभ उनके मुँह में प्रवेश कराई थी!


भौजी भी मेरा Kiss में खुल कर साथ दे रहीं थी और जिस तरह से वो मेरा साथ दे रही थी उससे लग रहा था की अब उनसे भी खुद पर काबू रखना मुश्किल हो रहा है| अचानक मेरे कौमार्य दिमाग ने मुझे सन्देश भेजा की मेरे पास ज्यादा समय नहीं है, मुझे जल्दी से जल्दी सब करना होगा| इसलिए मैंने भौजी की जीभ से मेरे मुख के भीतर हो रहे प्रहारों को रोक दिया और भाग कर मैंने बाहर का दरवाजा बंद किया| वापस आ के भौजी को अशोक भैया के कमरे के पास कोने पर खड़ा किया और मैं नीचे अपने घुटनों के बल बैठ गया| मेरे अंदर भौजी की योनि देखने की तीव्र इच्छा होने लगी, पिछली बार तो मैं उनकी योनि बस छू पाया था पर आज मुझे कैसे भी कर के उनकी योनि देखनी थी इसलिए मैंने भौजी की साडी उठा दी| मैं देख के हैरान था की भौजी ने नीचे पैंटी नहीं पहनी थी!!! इधर मैंने आज पहली बार एक योनि देखि थी इसलिए मैं उत्साह से भर गया और मैंने बिना देर किये उनकी योनि को अपनी जीभ से छुआ! मेरी जीभ के स्पर्श से भौजी एकदम से सिहर उठीं! भाभी का योनि द्वार बंद था और जैसे ही मैंने अपनी जीभ की नोक से उसे कुरेदा तो वो जैसे उभर के मेरे समक्ष आ गया| उनका गुलाबी क्लीट (भगनासा) चमकने लगा था, मैंने भौजी की योनि को अपनी जीभ से थोड़ा और कुरेदा तो मुझे अंदर का गुलाबी हिस्सा दिखाई दिया, उसे देख के तो मैं सम्मोहित हो गया| मेरी लपलपाती जीभ भौजी की योनि से खेल रही थी और उनकी योनि को चाट रही थी! उधर भौजी की साँसे तेजी से चलने लगींथीं, भौजी कसमसाते हुए मेरे द्वारा किये प्रहार के लिए मुझे प्रोत्साहन देने लगीं| भौजी की योनि से अब एक तेज सुगंध उठने लगीथी जो मुझे हरपाल दीवाना बनाने लगी थी|

अब मैं और देर नहीं करना चाहता था इसलिए मैं वापस खड़ा हो गया, पर भौजी को लगा की शायद मेरा मन भर गया इसलिए उन्होंने मुझसे पुछा; "मानु मजा आया?" मैं उस वक़्त उन्हें कुछ ही कहने की हालत में नहीं था, क्योंकि मेरे कान और गाल सुर्ख लाल हो चुके थे, मैंने केवल गर्दन हाँ में हिलाई| मैंने अपनी पेंट की चैन खोली और अपना लिंग भौजी के समक्ष प्रस्तुत किया, मेरा लिंग बिलकुल तन चूका था और अब मुझे थोड़ा-थोड़ा दर्द भी होने लगा था, ऐसा लगा मानो अभी फ़ट जायेगा! चूँकि ये मेरा पहला अवसर था इसलिए मैंने भौजी से कहा; "भौजी इसे सही जगह लगाओ ना,

मुझे लगाना नहीं आता!!!" भौजी मेरी नादानी भरी बात सुन मुस्कुराई, उन्होंने मेरा लिंग हाथ में लिया और मुझे अपने से चिपका लिया| जैसे ही उन्होंने मेरे लंड को अपनी बुर से स्पर्श कराया मेरे शरीर में करंट सा दौड़ गया, भौजी की तो दर्दभरी सिसकारी छूट गई; "आह..हहह..मम...स्स्स्स...सीईइइइइ म्म्म्म!!!" उनकी योनि अंदर से गीली और गर्म थी, लिंग अंदर जाते ही मुझे गर्माहट का एहसास होने लगा| काफी देर से खड़े लंड को जब भौजी की योनि की गरम दीवारों ने जकड़ा तो मेरे लिंग को सकून मिला| भौजी ने मुझे कस कर अपने आलिंगन में कैद कर लिया और जवाब में मैंने भी भौजी को कस कर अपनी बाँहों में भर लिया| मैंने बिना सोचे समझे खड़े-खड़े ही नीचे से झटके मरने शुरू कर दिए, अनादि होने के कारन मेरे झटके बिना किसी लय के भौजी की योनि में हमला कर रहे थे| पर भौजी के मुख से दर्द भरी सिसकारियाँ जारी थी; "आह..माँ....हहममम...आह..ह.म्म.स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स...स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स!!!" कुछ ही देर में वो मेरे द्वारा दिए गए हर झटके को महसूस कर आनंदित हो रही थी, परअब मेरी भी आहें निकलनी शुरू हो गईं थीं; "अह्ह्हह्ह्ह्ह......म्म्म्म... अम्म्म्म!!!" मैंने नीचे से अपना आक्रमण जारी रखा और साथ ही साथ भौजी की गर्दन पर अपने होंठ रख उनकी गर्दन को चूमने लगा, भौजी ने अपना एक हाथ मेरे सर पर रख मुझे अपनी गर्दन पर दबाने लगीं| उनका प्रोत्साहन पा मैंने उनकी गर्दन पर अपने दाँत गड़ा दिए, इस कारन भौजी की चीख निकल पड़ी; "आअह अह्ह्ह्ह्न्न.. मानु.....स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स!!!" मैं उनकी गर्दन पर किसी ड्रैकुला की तरह चूस और चाट रहा था, बस फर्क इतना था की मेरी इच्छा उनका खून पीने की नहीं थी|


अभी केवल दस मिनट ही हुए थे और अब मैं इस सम्भोग को और आगे नहीं ले जा सकता था, मेरा ज्वालामुखी भौजी की योनि के अंदर ही फूट पड़ा| भौजी को जैसे ही मेरा गर्म वीर्य उनकी योनि में महसूस हुआ उन्होंने मेरे लिंग को एक झटके में अपने हाथ से पकड़ बहार निकाल दिया| जैसे ही मेरा लिंग बाहर आया भौजी की बुर से एक गाढ़ा पदार्थ नीचे गिरा और उसके गिरते ही आवाज आई; "पाच!!!" ये पदार्थ कुछ और नहीं बल्कि मेरे और भौजी के काम रसों का मिश्रण था| भौजी निढाल हो कर मेरे ऊपर गिर पड़ीं| मैंने उन्हें संभाला और उनके होंठों पर Kiss किया, उन्हें दिवार के सहारे खड़ा किया और अपनी जेब से रुमाल निकाल के उनकी योनि को पोंछा और फिर अपने लिंग को साफ़ किया| मैंने पास ही पड़े पोंछें से जमीन पे पड़ी उस "खीर" को साफ़ करने लगा जिस पर मखियाँ भिन्न-भिनाने लगीं थी| भौजी अब तक होश में आ गई थीं और वो स्वयं चलके चारपाई पर बैठ गईं| मैंने अपने हाथ धोये और तुरंत दरवाजा खोल उनके पास खड़ा हो गया, भौजी मेरी ओर बड़े प्यार से देख रही थी, पर मैं उनसे नजरें नहीं मिला पा रहा था|

जारी रहेगा भाग-3 में .....





 
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सातवाँ अध्याय: समर्पण
भाग-3
अब तक आपने पढ़ा:

भौजी अब तक होश में आ गई थीं और वो स्वयं चलके चारपाई पर बैठ गईं| मैंने अपने हाथ धोये और तुरंत दरवाजा खोल उनके पास खड़ा हो गया, भौजी मेरी ओर बड़े प्यार से देख रही थी, पर मैं उनसे नजरें नहीं मिला पा रहा था|

अब आगे.....


अब जब कौमार्य भंग होने का तूफ़ान थमा तो मुझे खुद पर शर्म आने लगी| ठीक ऐसी ही फीलिंग मुझे तब होती थी जब मैं दिल्ली में हस्तमैथुन करता था| ऐसा लगता था मानो मैंने कोई पपप किया हो और आज तो मैंने शायद उससे भी बड़ा जुर्म किया था! मेरा दिमाग कुछ देर पहले मेरे द्वारा ही तय की गई सीमा को तोड़ने के लिए मुझे ही गालियाँ दे रहा था| मेरी अंतर आत्मा मुझे अंदर से झिंझोड़ रही थी, एक बार फिर मुझे अपने ऊपर घिन्न आ रही थी, अपने द्वारा किये हुए इस पाप से मन भारी हो चूका था| मैं भौजी से माफ़ी माँगना चाहता था, परन्तु इससे पहले मैं कुछ कह पाता, नेहा भौजी को ढूँढती हुई आ गई| जब उसने भौजी से पूछा की वो कहाँ थीं तो उन्होंने मेरी ओर देखते हुए झूठ बोल दिया; "मैं ठकुराइन चाची के पास गई थी वहाँ से अभी- अभी तुम्हारे चाचा के पास आई तो उन्होंने बताया की उनके सर में दर्द हो रहा है, तो मैं तेल लगाने वाली थी|" भौजी ने तेल की शीशी की ओर इशारा करते हुए कहा|

"नहीं भौजी रहने दो, मैं थोड़ी देर सो जाता हूँ| आप जाओ खाना खा लो| मैंने सर झुकाये हुए कहा| भौजी उठीं और चल दी और मैं खड़ा उन्हें जाते हुए देखता रहा| उनके जाने के बाद मैं आँगन में पड़ी चारपाई पर लेट गया और सोचने लगा;

'क्या अभी जो कुछ हुआ वो पाप था?'

'यदि भौजी गर्भवती हो गई तो उनका क्या होगा ? और उस बच्चे का क्या होगा?'

'आखिर क्यों मैंने वो सब किया? क्यों मेरे द्वारा बांधीं सभी हदें टूट गईं?'

कहाँ तो मैं उन्हें अपने दिल की बात कहना चाहता था और कहाँ मैंने उन्हें छूने का पाप कर दिया! ये सब सोचते-सोचते मैं निर्णय नहीं ले पा रहा था की मैं क्या करूँ? मेरी अंतर-आत्मा मुझे दोषी करार दे चुकी थी और अब इस दोष की एक ही सजा थी वो थी भौजी को सब सच बताना| पर उसके लिए मुझे बहुत हिम्मत चाहिए थी, मैं जानता था की ये सब सुन कर भौजी टूट जाएँगी और शायद उनका मुझ पर से विश्वास भी उठ जाए, लेकिन सच तो मुझे उन्हें बताना ही था| पर दिल के भीतर कहीं चोर था जो मुझे मेरे प्रायश्चित की ओर जाने से रोक रहा था और उलटे-सीधे तर्क देने लगा था| उस चोर के अनुसार मुझे जैसा चल रहा है वैसे चलते रहने देना चाहिए और जितना मजे लूटने चाहिए वो सब लूट लेने चाहियें| पर मुझ में इंसानियत अभी बाकी थी इसलिए मैंने फैसला कर लिया था की कैसे भी हो मैं भौजी को सब सच बता दूंगा बस एक सही मौका मिल जाए!


इन सब बातों को सोचते-सोचते सर दर्द करने लगा था और अब चूँकि पेट भी भरा था तो आँखें कब बोझिल हो गईं, कब नींद आ गई पता ही नहीं चला| जब आँख खुली तो शाम के सात बज रहे थे, मैं उठा और स्नान घर में जा के स्नान किया, स्नान करते हुए जब ध्यान अपने तने हुए लंड पर गया तो दोपहर की घटना फिर याद आ गई, खुद से फिर एक बार घिन्न आने लगी की मैं कैसे देवर हूँ मैं जिसने अपनी ही भौजी को.... छी ..छी..छी... मुझे तो चुल्लू भर पानी में डूब मारना चाहिए| इसी कारण से मैं नहाने के बाद रसोई के आस पास भी नहीं जा रहा था, मैं छत पर आ गया और टहलने लगा तथा भौजी से सब सच बोलने के लिए हिम्मत बटोरने लगा| मैं छत के एक किनारे खड़ा हो गया और चन्दर भैया के घर की ओर देखते हुए सोचने लगा की भौजी से बात करने का कब मौका मिलेगा? तभी वो मौका खुद चल कर मेरे पास आ गया, नेहा ने मुझे नीचे से आवाज दी; "चाचू...मम्मी... बुला.... रही... है|" नेहा की बात सुन के मेरे कान लाल हो गए, ह्रदय की गति बढ़ गई और दिमाग ने काम करना बंद कर दिया| दिल में छुपा चोर मुझे रोक रहा था इसलिए उसने फिर तर्क दे कर मुझे द्वारा दिया; 'कहीं भौजी नाराज तो नहीं?' या 'किसी ने भौजी और मुझे वो सब करते देख तो नहीं लिया?' कहीं 'भौजी ने खुद ही ये बात तो सब को नहीं बता दी?' इन सवालों ने मेरे क़दमों को जकड लिया की तभी नेहा ने मुझे फिर से पुकारा; "चाचू...!!!"

"हाँ... मैं आ रहा हूँ|" मैंने कांपती हुई सी आवाज में कहा| लड़खड़ाते हुए मैं सीढ़ियों से नीचे उतरा और रसोई की ओर चल पड़ा, मन में घबराहट थी ओर चेहरा साफ़ बयाँ कर रहा था की मेरी फ़ट चुकी है| रसोई के पास वाले छप्पर के नजदीक पहुँचते ही मुझे किसी के खिल-खिला के हँसने की आवाज आई| ये तो नहीं पता था की वो कौन है पर इस हँसी के कारन मेरे बेकाबू दिल को थोड़ी सांत्वना मिली की बाल-बाल बचे!!! मैं छप्पर में दाखिल हुआ तो एक चारपाई पर रसिका भाभी, मधु भाभी और उस अकड़ू ठाकुर की बेटी (माधुरी) बैठी थीं और दूसरी चारपाई पर भौजी और नेहा बैठे थे| माहोल देख के लगा जैसे वे सब आपस में कुछ खेल रहे थे और हँसी ठिठोली कर रहे थे, भौजी ने मुझे अपने पास बैठने का इशारा किया और मैं उनके पास बैठ गया| दरअसल वे सब एक दूसरे से टीम बना के पहेली पूछने का खेल खेल रहे थे| अब चूँकि भौजी अकेली पड़ रहीं थी इसलिए उन्होंने मुझे बुलाया था| मैं भौजी को देख काफी हैरान था की उनके चेहरे पर एक शिकन तक नहीं थी और कहाँ मैं शर्म के मारे गड़ा जा रहा था| पर अब भी मैं भौजी से कोई बात नहीं कर पा रहा था, भाभी ने सब से आँख बचा के मुझे इशारे से पूछा की क्या बात है? पर मैंने इशारे से कहा की कुछ नहीं, भौजी मुझे सवालिया नजरों से देख रही थी और मैं उनसे नजरें चुरा रहा था| भौजी ने माहोल को थोड़ा हल्का करने के लिए मुझसे साधारण बात शुरू की;

भौजी: मानु अब सर दर्द कैसा है?

मैं: जी.. अब ठीक है|


मेरे इस औपचारिक तरीके से दिए जवाब के कारन भौजी कुछ परेशान दिखी, उहें लगने लगा की मैं उनसे नाराज हूँ| इसलिए उन्होंने मेरा मूड हल्का करने के लिए कहा;


भौजी: अच्छा मानु हम यहाँ पहेली बुझने वाला खेल खेल रहे हैं और तुम मेरे पक्ष में हो|

मैं: पर भाभी आप तो जानते ही हो की मुझे भोजपुरी नहीं आती, तो मैं आपकी कोई मदद नहीं कर पाउँगा|

मेरे मुख से "भाभी" सुन भौजी ने नजरों ही नजरों में मुझे अपना झूठा गुस्सा दिखाया| क्योंकि मैं उन्हें हमेशा "भौजी" ही कहता था और सिवाय उनके मैंने "भौजी" शब्द किसी दूसरे के लिए कभी भी इस्तेमाल नहीं किया था जिसका उन्हें बहुत गर्व था| भौजी ने अपनी नाराजगी दिखाते हुए कहा;

भौजी: तो क्या हुआ? तुम मेरे पास तो बैठ ही सकते हो?

मैं: ठीक है|


मैंने सर झुका कर जवाब दिया और चुप-चाप बैठा रहा| मैं थोड़ी बहुत तो भोजपुरी समझता था पर ठेठ भाषा मुझे नहीं आती थी| इधर उनका खेल चल रहा था, परन्तु मैंने एक बात गौर की, माधुरी मुझे देख के कुछ ज्यादा ही मुस्कुरा रही थी और ये बात भौजी ने भी गौर की परन्तु मुझसे उस समय इस बारे में कुछ नहीं कहा| खेल जल्द ही समाप्त हो गया और भौजी हार गईं, उनकी हार का अफ़सोस तो मुझे था ही पर साथ-साथ उनकी मदद न कर पाने का दुःख भी| खाना खाने का समय हुआ और जाते-जाते माधुरी मुझे "गुड नाईट" कह गई, मैंने भी उसकी बात का जवाब "गुड नाईट" से दिया| बात तो वो समझ नहीं पाईं पर ये देख भौजी जल भून गई, इस बार भी उन्होंने मुझे कुछ नहीं कहा और इस कड़वी बात को पी कर रह गईं| तकरीबन एक घंटे बाद बच्चे खाना खा के उठ चुके थे और अब घर के बड़े खाना खाने जा रहे थे, मैं भी खाना खाने जा ही रहा था की भाभी ने मुझे इशारे से रोक दिया; "मानु .. ये भूसा बैलों को डालने में जरा मेरी मदद कर दो|" भौजी बोलीं पर उनकी बात सुन चन्दर भय को अपना गुस्सा निकालने का मौका मिल गया; "तू खुद नहीं डाल सकती? मानु भैया को खाना खाने दे!" अब मैं अपनी भौजी को डाँट कैसे खाने देता तो मैं उनका बचाव करने को कूद पड़ा; "कोई बात नहीं भैया! आज पहली बार तो भाभी ने मुझे कुछ काम बोला है|" मैंने झूठी मुस्कराहट के साथ कहा जिसे सुन सब हँस पड़े|

भौजी और मैं भूसा रखने के कमरे की ओर चल दिए, अंदर पहुँचते ही भौजी मेरे सीने से कस कर लिपट गईं| उनकी इस प्रतिक्रिया से मैं पिघल गया और आखिर कार अपने चुप्पी तोड़ डाली;

"आज दोपहर को जो भी हुआ उसके लिए आप मुझे माफ़ कर दो| सारी गलती मेरी है, मुझे आप के साथ वो सब नहीं करना चाहिए था! दरअसल मैं आपसे कुछ और कहना चाहता था, पर मेरी हिम्मत नहीं हुई आपसे वो कहने की और आप मेरी चुप्पी का गलत मतलब समझ रहे थे! मुझे माफ़ कर दो!!!" मैंने भौजी के आगे हाथ जोड़ते हुए कहा|

"मैं कुछ समझी नहीं? कौन सी बात कहनी थी तुम्हें?" भौजी बोलीं|

“मैं....भौजी मैं आपसे प्यार नहीं करता था! उस दिन मैंने हाँ सिर्फ आप का दिल रखने को कहा था! पर अब मैं आप से सच्चा प्यार करने लगा हूँ! आज जब मैं माँ-पिताजी के साथ बाजार गया था तो ये सब सोच-सोच कर मेरा दिल कचोट रहा था, मैंने निर्णय लिया था की आज मैं आपसे अपने प्यार का इजहार करूँगा पर आपसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई! बीते कुछ समय में मैंने जिस तरह आपको छुआ उससे मुझे खुद पर घिन्न आ रही थी इसलिए दोपहर को मेरे मुँह से बोल नहीं फूट रहे थे! मेरा आपको छूना और वो सब करना गलत था....पाप था.... वो प्यार नहीं था....मेरी वासना थी.... मैंने सोचा था की मैं आज के बाद आपको कभी नहीं स्पर्श नहीं करूँगा पर दोपहर को मेरी सारी कसमें-वादे टूट गए! मेरे दिमाग में बसी मेरा कौमार्य भंग करने की गंदी इच्छा ने मुझे आपके साथ वो सब करने के लिए मजबूर कर दिया! मैंने आपसे मिन्नत करता हूँ की प्लीज मुझे माफ़ कर दो, मैं वादा करता हूँ की मैं आज के बाद आपको कभी स्पर्श नहीं करूँगा!" ये कहते हुए मेरी आँखों से पश्चाताप के आँसूँ बह निकले|



"अब मैं समझी की तुम मुझसे नजरें क्यों चुरा रहे थे? और तुम माफ़ी किस लिए माँग रहे हो?" भौजी ने मेरे आँसूँ अपनी साडी से पोछते हुए कहा| उन्हें तो जैसे मेरी बात सुन कुछ फर्क ही नहीं पड़ा था, मेरे चेहरे पर उठ रहे सवाल वो पढ़ चुकीं थीं; "अगर मुझसे प्यार नहीं करते थे तो क्यों मेरे चले जाने पर मायूस हो जाया करते थे? क्यों मेरे माईके जाने से तुम नाराज हो गए थे? अगर मुझसे प्यार नहीं करते तो उस दिन मेरा दिल रखने की तुम्हें क्या जर्रूरत पड़ी थी? बोल डेट की मैं तुमसे प्यार नहीं करता, ज्यादा से ज्यादा क्या होता? मुझे बुरा लगता या शायद मैं छत से कूद जाती! तुम मुझे खोना नहीं चाहते थे इसलिए तुमने ‘हाँ’ कहा था| …और ये क्या बोल रहे हो की तुमने दोपहर को किया वो पाप था? जो कुछ भी हुआ उसमें मेरी रजामंदी भी शामिल थी, अगर कोई कसूरवार है तो वो मैं हूँ! जिसे तुम वासना का नाम दे रहे हो वो प्यार है! तुम नहीं जानते की औरत का जब कोई छूता है तो वो उस स्पर्श से समझ जाती है की उसमें प्यार बसा है या वासना| मुझे तुम्हारे छूने से कभी वासना महसूस नहीं हुई बल्कि मैं तो खुद तुम्हारी तरफ खींची चली जाती थी! और ये जो तुम्हारे दिमाग में कौमार्य भंग होने की बात है उसे तो तुम अपने दिमाग से निकाल दो, इस घर में मेरे आलावा भी तुम्हारी दो भाभियाँ हैं क्या वो तुम्हारा कौमार्य भंग नहीं कर सकतीं थीं? मेरे आगे-पीछे डोलने की बजाए तुम रसिका से एक बार कहते तो वो ख़ुशी-ख़ुशी तुम्हारी इच्छा पूरी कर देती! आज दोपहर में जो हुआ... मैं तुम्हें बता नहीं सकती की तुम ने जो आज मुझे शारीरिक सुख दिया है उसके लिए मैं कितने सालों से तड़प रही थी| तुमने मुझे आज तृप्त कर दिया!!!"

भौजी की बात सुन कर मेरे पाँव तले जमीन खिसक गई, मुझे उनसे इस जवाब की कतई उम्मीद नहीं थी| पर भौजी ने मेरे सारे सवालों का जवाब दे दिया था| उनकी जो अंतिम बात थी उसके कारन मेरी आँखें आस्चर्य से फ़ट गई थीं;

मैं: सच भौजी?

भौजी: तुम्हारी कसम मानु! मैंने तुम्हारे भैया को भी खुद को छूने का अधिकार नहीं दिया और न ही कभी दूँगी| तुम ही मेरे पति हो!!!

मैं: (चौंकते हुए) ये आप क्या कह रहे हो भौजी? चन्दर भैया और नेहा, ये ही आपका परिवार है| गलती मेरी है की मैं आपके पारिवारिक जिंदगी में दखलंदाजी कर रहा हूँ और न केवल दखलंदाजी बल्कि मैं आपकी पारिवारिक जिंदगी तबाह कर रहा हूँ|

भौजी: मानु तुम कोई दखलंदाजी नहीं कर रहे, अभी बहुत सी बातें हैं जो तुम नहीं जानते, अगर जानते तो मेरी बात समझ सकते|

मैं: (उत्सुकता वश) तो बताओ मुझे?

भौजी: अभी नहीं!

ये कहते हुए भौजी की आँखें नाम हो चलीं थी, मैंने उन्हें अपने पास खींचा और उन्हें कस कर गले लगा लिया, जैसे मैं भौजी को अपने अंदर समां लेना चाहता हूँ| मेरी छाती का स्पर्श पाते ही भौजी के अंदर उठा तूफान शांत हुआ| हम दोनों एक दूसरे को बाहों में कैद कर के खड़े हुए थे| तभी भौजी ने मेरी ओर देखा मानो वो मुझसे कुछ उम्मीद कर रहीं हों! मेरे होंठ जैसे उनकी माँग को समझ गए हों और वो स्वतः ही भौजी के होठों की तरफ चल दिए| मैंने भौजी के होंठों को अपने होंठों की गिरफ्त में ले लिया, परन्तु इस बार मन में वासना नहीं थी, मैं बस उनका दुःख कम करना चाहता था| कुछ सेकंड बाद दिमाग ने दिल को संदेसा भेजा की अब यहाँ ज्यादा देर रुकना खतरे से खाली नहीं, "भौजी अब हमें चलना चाहिए, नहीं तो सब शक करेंगे की ये दोनों इतनी देर से भूसे के कमरे में क्या कर रहे हैं?" भौजी ने बस हाँ में गर्दन हिला दी, मुझे कहीं न कहीं ऐसा लग रहा था की भौजी मुझ से नाराज है, इसलिए मैंने अपने मन की तसल्ली के लिए उनसे पूछा;

मैं: भौजी आप मुझसे नाराज तो नहीं ?

भौजी: नहीं तो, तुम्हें ऐसा क्यों लगा?

भौजी ने पास ही पड़ी भूसे से भरी टोकरी उठाने झुकीं, परन्तु मैंने उनके हाथ से टोकरी छीन ली|

मैं: क्योंकि आप एकदम से चुप हो गए|

इतना कहते हुए मैंने भूसे से भरी टोकरी सर पर रख ली, भौजी मेरी ओर बढ़ीं और मेरे गलों को अपने होंठों में भर लिया और उन्हें धीरे-धीरे दाँत से काटने लगीं| मेरे शरीर में तो जैसे करंट दौड़ गया, पर करता क्या सर पर टोकरी थी जिसे मैंने अपने दोनों हाथों से पकड़ा हुआ था| भौजी ने मेरी इस हालत का भरपूर फायदा उठाया और दो मिनट बाद जब उनका मन भर गया तब वो हटीं, फिर अपने मादक रस को मेरे गालों से पोंछने लगीं|

मैं: भौजी बहुत सही फायदा उठाया आपने मेरी इस हालत का?

भौजी ये सुन कर खूब हँसी!

मैं वो टोकरी उठा के बैलों के पास आया और उन्हें चारा डाल दिया| अब मेरा मन पहले से शांत था और अंतर आत्मा पर कोई बोझ नहीं था| मैं एक बार फिर खुले पंछी की तरह आस्मां में उड़ने लगा था| भूसा उठा के लाने के चाक्कर में थोड़ा भूसा सर में और कपड़ों में लग गया था तो मैंने सोचा की क्यों न नहा लिया जाए?! गर्मियों के दिनों में, चांदनी रात में ठन्डे पानी से खुले आसमान तले नहाने में क्या मजा आता है, ये मुझे उस दिन पता चला| इस स्नान ने मेरे अंदर की वासना की ज्वाला को बुझा दिया था और मैं तरोताजा महसूस कर रहा था| परन्तु मन ही मन भौजी की बातें मुझे तड़पाने लगीं थी, आखिर उन्होंने मुझे अपने पति का दर्ज क्यों दिया? कोई भी स्त्री यूँ ही किसी को अपने पति का दर्जा नहीं देती! आखिर ऐसी क्या बात है जो भौजी ने मुझसे आजतक छुपाई? मुझे अपने सभी सवालों का जवाब चाहिए था पर मैं भौजी से जबरदस्ती नहीं कर सकता था|

मैं स्नान करके कुरता पजामा पहन के रसोई की ओर चल दिया| अब तक घर के सभी पुरुष भोजन कर चुके थे केवल स्त्रियाँ ही रह गईं थी| जैसे ही भौजी ने मुझे देखा उन्होंने मुझे छप्पर में ही बैठने को कहा, मैं छप्पर में बिछे तखत पर आलथी-पालथी मार के भोजन के लिए बैठ गया| उस समय छप्पर में कोई नहीं था, बड़की अम्मा, माँ, मधु भाभी और रसिका भाभी सब बाहर हाथ-मुँह धो रहे थे| भौजी एक थाली में भोजन ले के आई;

भौजी: मानु तुम भोजन शुरू करो मैं अभी आती हूँ|

मैं: आप मेरे साथ ही भोजन करोगी? (मैंने हैरान होते हुए कहा|)

भौजी: क्यों? मैं तुम्हारे हिस्से का भी खा जाती हूँ इसलिए पूछ रहे हो? (भौजी ने मज़ाक करते हुए कहा|)

मैं: नहीं दरअसल अभी बड़की अम्मा, मधु भाभी, रसिका भाभी भी तो भोजन खाएंगे और उनके सामने आप मेरे साथ कैसे भोजन कर सकते हो? (मैंने वयस्कों जैसे बात की|)

भाभी: अरे वाह! बड़ी चिंता होने लगी तुम्हें मेरी? चिंता मत करो, फँसाऊँगी तो मैं तुम्हे ही!!! (भौजी हँसते हुए बोलीं|)

मैं: ठीक है भौजी आप आ जाओ फिर दोनों एक साथ शुरू करेंगे|


मैंने मुस्कुराते हुए कहा, तभी माँ, बड़की अम्मा, मधु भाभी और रसिका भाभी आ गए तथा अपनी-अपनी जगह भोजन के लिए बैठ गए| भौजी ने सब को भोजन परोसा और फिर मेरे पास आ कर तखत पर बैठ गईं| हम दोनों ने भोजन आरम्भ किया, नजाने क्यों पर रसिका भाभी से ये सब देखा नहीं गया और उन्होंने हमें टोका;


रसिका भाभी: का बात है देवर-भौजी एक साथ, एक ही थाली में भोजन करत हैं?

मैं: भाभी आपके आने से पहले जब मैं छोटा था तब भी हम एक साथ ही खाना खाते थे, चाहो तो आप बड़की अम्मा से पूछ लो| (मैंने भौजी का बचाव करते हुए कहा|)

रसिका भाभी: तब तो तुम रहेओ, अब बियाह लायक हो! अब तो आपन भौजी का पल्लू छोडो... ही ही ही ही!!!


ये कहते हुए वो खीसें निपोरने लगीं! रसिका भाभी की जलन साफ़ दिख रही थी, मैं कुछ बोलने वाला था की भौजी ने मुझे रोक दिया और खुद बीच-बचाव के लिए कूद पड़ीं|


भौजी: अभी मानु की उम्र ही क्या है, अभी ये पढ़ रहा है और जब तक ये अपने पाँव पर खड़ा नहीं होता ये शादी थोड़े ही करेगा?!, है ना चाची?

माँ: बिलकुल सही कहा बहु| ये यहाँ के बच्चों की तरह थोड़े ही है जो मूँछ के बाल आये नहीं और शादी कर दी! जहाँ तक इन दोनों (मेरे ओर भौजी) के साथ खाना खाने की बात है, तो बहु तुम इन दोनों को नहीं जानती, इसने तो अपनी भाभी का दूध भी पिया है| तुम्हें आये तो अभी कुछ समय हुआ है पर इनकी दोस्ती तो बहुत पुरानी है|



माँ की बात सुन रसिका भाभी का मुँह खुला का खुला रह गया, माँ के मुख से दूध पीने की बात सुन मैंने अपना मुख शर्म के मारे दूसरी तरफ घुमा लिया था, भौजी भी ये सुन कर सुर्ख लाल हो गईं थीं! अब तो बड़की अम्मा ने भी हाँ में हाँ मिला दी थी, उनका भोजन समाप्त हो गया था इसलिए वो अपनी थाली ले कर उठ खड़ी हुईं, उनके साथ रसिका भाभी ओर मधु भाभी भी खड़ी हो के थाली रखने चल दीं| मैं और भौजी चुप-चाप, धीरे-धीरे भोजन कर रहे थे, जब माँ अपनी थाली लेके उठीं तब मैंने भौजी से कहा:

मैं: भौजी मुझे आप से कुछ बात करनी है?

भौजी: हाँ बोलो?

मैं: यहाँ नहीं... अकेले में| (मैं उठ खड़ा हुआ|)

भौजी: ठीक है तुम हाथ-मुँह धो ओ, मैं अभी थाली रख के आती हूँ|

मैं: नहीं भौजी उसमें थोड़ा खतरा है| चन्दर भैया कहाँ सोये हैं?

भौजी: वो आज चाचा (मेरे पिताजी) के साथ छत पे सोये हैं और तुम्हें भी वहीँ सोने को कहा है|

मैं: पर मैं वहाँ नहीं सोनेवाला, आप ऐसा करो की हाथ-मुँह धो के अपने कमरे में जाओ| जब आपको लगे की सब सो गए हैं तब मुझे उठाना|

भौजी: सिर्फ बात ही करोगे ना ?

भौजी ने मुझे आँख मारते हुए कहा, उनके चेहरे पर आई शरारती मुस्कराहट देख मैं उनकी शरारत को भाँप गया था| पर मैं अभी मजाक के मूड में नहीं था, मुझे तो अपने सवालों का जवाब चाहिए था|

मैं: मुझे सिर्फ आपसे बात करनी है और कुछ नहीं!


इतना कह कर मैं चल दिया, हाथ-मुँह धो कर मैंने अपनी चारपाई आंगन में भौजी के घर के पास डाली| माँ ने मुझे छत पर सोने के लिए कहा पर मैंने मना कर दिया की मुझे बहुत जोर से नींद आ रही है| उन्हें संतुष्टि दिलाने के लिए आज मैंने भोजन के उपरांत टहला भी नहीं और सीधे चारपाई पर

गिरते ही सोने का नाटक किया| उधर सभी औरतें छप्पर के तले लेट चुकीं थी और अब मैं बेसब्री से इन्तेजार करने लगा की कब भौजी मुझे उठाने आएँगी| मन में अजीब सी उथल-पुथल मची हुई थी, एक अजब सी बेचैनी थी, इस बेचैनी के कारन मैं करवटें बदल रहा था| मैं ये नहीं जानता था की भौजी अपने घर के दरवाजे पर खड़ी मुझे करवटें बदलते देख रही हैं| वो मेरे सिराहने आईं और नीचे बैठ के मेरे कान में खुसफुसाई;

भौजी: मानु चलो, बात करते हैं|


अचानक उनकी आवाज सुन मैं चौंक गया और फिर उनके पीछे-पीछे चल पड़ा| अंदर पहुँच भौजी दरवाजा बंद करने लगीं तो मैंने उन्हें रोक दिया;

मैं: भौजी दरवाजा बंद मत करो, मैं आपसे सिर्फ और सिर्फ बात करने आया हूँ| (मैंने बेचैन होते हुए कहा|)

भौजी: मानु मैं तुम्हारी बैचनी समझ सकती हूँ, पूछो क्या पूछना है?


आंगन में दो चारपाइयाँ बिछी थीं, एक पर नेहा सो रही थी और दूसरी चारपाई भौजी की थी| मैं भौजी वाली चारपाई पर बैठ गया और भौजी नेहा की चारपाई पर बैठ गईं|

मैं: मुझे जानना है की आखिर क्यों आपने कहा की मैं आपका पति हूँ?! ऐसी कौन सी बात है जो आप मुझसे छुपा रहे हो?

भौजी: मानु आज मैं तुम्हें अपनी सारी कहानी सुनाती हूँ| मेरी शादी होने के बाद से ही तुम्हारे भैया और मेरे बीच में कुछ भी ठीक नहीं हो रहा था| सुहागरात में उन्होंने इतनी पी हुई थी की उन्हें होश ही नहीं था की उनके सामने कौन है? उस रात मुझे पता चला की तुम्हारे भैया की नियत मेरी छोटी बहन पर पहले से ही बिगड़ी हुई थी.....(सर झुकाते हुए) उन्होंने मेरी बहन के साथ सम्भोग भी किया है!

भौजी की बात सुनते ही मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं!


मैं: ये आप क्या कह रहे हो? (मैंने चौंकते हुए कहा|)

भौजी: सुहागरात को वो नशे में इतने धुत थे की जब वो मेरे साथ... वो सब कर रहे थे तब उनके मुख से मेरी बहन सोनी का नाम निकल रहा था| अपनी बहन का नाम सुनके मेरे तो पाँव तले जमीन ही सरक गई| उन्होंने मेरे साथ जो धोका किया उसके लिए मैं तुम्हारे भैया को कभी माफ़ नहीं कर सकती!

इतना कहते हुए भौजी फूट-फूट के रोने लगीं, मुझसे भौजी का रोना बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैं उठ के उनके पास जाके बैठ गया और उन्हें चुप कराने लगा| पर भौजी ने सुबकते हुए अपनी बात जारी रखी;

भौजी: उस पल मेरा मन किया की मैं आत्महत्या कर लूँ पर फिर मुझे आँखों के सामने तुम्हारा चेहरा नजर आया| शादी के बाद जब मैं तुमसे पहलीबार मिली थी तो मेरे दिल में कुछ अजीब सा हुआ! उस एहसास को मैं बयाँ नहीं कर सकती, ऐसा लगा जैसे कोई चुम्बकीय शक्ति मुझे तुम्हारी तरफ खींच रही हो! बड़ी तड़प के साथ मैंने वो रात निकाली और अगली सुबह मैं अम्मा से सब कहना चाहती थीं पर घर में सब मेहमान मौजूद थे तो मेरी हिम्मत नहीं हुई कुछ कहने की| फिर मुझे तुम खेलते हुए नजर आये तो मानो रात का दर्द मैं भूल ही गई| तुमसे बात शुरू की तो दिल को सुकून सा मिलने लगा और उन्हीं बातों-बातों में मैं हँस पड़ी! मेरी उस हँसी का कारन तुम थे! रात होते ही वो फिर मेरे पास आ गए अपनी जरूरत पूरी करने पर इस बार मैंने उन्हें खुद को छूने नहीं दिया और फिर हम दोनों के बीच लड़ाई हुई| मेरे जो जख्म सूखने लगे थे वो एक बार फिर हरे हो गए| मैंने अम्मा (बड़की अम्मा) से सब कुछ कहा तो उन्होंने मुझे चुप करा दिया| वो जानती थीं की उनका बेटा कैसा है पर फिर भी उन्होंने मेरे साथ ऐसा किया! मैंने सोच लिया था की चाहे जो हो जाये मैं तुम्हारे भैया को कभी खुद को छूने नहीं दूँगी, पर ये इतना आसान नहीं था| जब मैं उन्हें खुद को छूने नहीं देती तो उन्होंने मुझे मारना-पीटना शुरू कर दिया| मैं मजबूर थी और उनकी मार खाती रही, पर उन्हें खुद को छूने नहीं दिया| साल निकला और घर वालों ने मुझे बाँझ होने का ताना मारना शुरू कर दिया| क्या-क्या नहीं सहा मैंने, फिर एक दिन दारु के नशे में धुत इन्होने मेरे साथ जबरदस्ती की| मैंने इन्हें रोकने का बड़ा प्रयास किया पर इन्होने मुझे इतना मारा, इतना मारा की मैं लगभग बेहोश हो गई और मेरी उसी हालत का फायदा उठा कर इन्होने मुझसे जबरदस्ती सम्भोग किया जिसके कारन नेहा पैदा हुई! तुम्हारे भैया ना मुझसे और ना ही नेहा से प्यार करते हैं, उन्हें तो बस एक लड़का चाहिए था और जब नेहा पैदा हुई तो उन्होंने अपना सर पीट लिया था, सिर्फ वो ही नहीं घर के हर एक व्यक्ति ने मुझसे और नेहा से किनारा कर लिया था| अब तुम ही बताओ इसमें मेरा क्या कसूर है?"


भौजी की दर्द भरी कहानी सुन कर मैंने भौजी को अपनी बाँहों में भर लिया, अंदर ही अंदर हमारे इस समाज की मानसिकता पर क्रोध आने लगा| पर मैंने भौजी के समक्ष अपना क्रोध जाहिर नहीं किया, बस धीरे-धीरे उनके कंधे को रगड़ने लगा ताकि भौजी शांत हो जाएँ| भौजी ने अब रोना बंद कर दिया था, उन्होंने खुद को मेरी छाती से अलग किया और मेरी आँखों में देखते हुए बोलीं; "पता है इतना सब सह कर भी मैं खुश क्यों हूँ? क्योंकि किस्मत ने मुझे तुमसे मिला दिया, तुम्हारे लिए मैं सब सह सकती हूँ!" भौजी की बात सुन मेरे पास कुछ कहने को नहीं रहा गया था| मैंने उन्हें कस कर अपने से चिपका लिया और उनके माथे को चूमने लगा| भौजी को सांत्वना देते-देते मैं उनकी तरफ खींचता जा रहा था, भौजी ने अपना मुख मेरे सीने में छुपा लिया और उनकी गरम-गरमा सांसें मेरे तन-बदन में आग लगा रही थीं| पर इस बार अब मेरा शरीर मेरे काबू में था और मैं किसी भी तरह की पहल नहीं करना चाहता था| मेरा कुछ भी करना ऐसा होता जैसे मैं उनकी मजबूरी का फायदा उठा रहा हूँ| मेरा मकसद अभी बस उन्हें सांत्वना देना था| उदर भौजी की पकड़ मेरे शरीर पर सख्त होने लगी थी, ऐसा लगा जैसे वो मुझसे पहल की उम्मीद रख रही थी| उन्होंने एक बार फिर खुद को मेरी गिरफ्त से छुड़ाया और टकटकी बांधें मुझे देखने लगीं| उनकी आँखों में मुझे अपने लिए प्यार साफ़ दिखाई दे रहा था| उनके बिना बोले ही उनकी आँखें सब बयान कर रही थी| मैं उनकी उपेक्षा समझ चूका था पर मेरा मन मुझे पहल नहीं करने दे रहा था, ये मेरे मन में उनके प्रति प्यार था|

जारी रहेगा भाग-4 में .....
 
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सातवाँ अध्याय: समर्पण
भाग-4
अब तक आपने पढ़ा:
भौजी को सांत्वना देते-देते मैं उनकी तरफ खींचता जा रहा था, भौजी ने अपना मुख मेरे सीने में छुपा लिया और उनकी गरम-गरमा सांसें मेरे तन-बदन में आग लगा रही थीं| पर इस बार अब मेरा शरीर मेरे काबू में था और मैं किसी भी तरह की पहल नहीं करना चाहता था| मेरा कुछ भी करना ऐसा होता जैसे मैं उनकी मजबूरी का फायदा उठा रहा हूँ| मेरा मकसद अभी बस उन्हें सांत्वना देना था| उदर भौजी की पकड़ मेरे शरीर पर सख्त होने लगी थी, ऐसा लगा जैसे वो मुझसे पहल की उम्मीद रख रही थी| उन्होंने एक बार फिर खुद को मेरी गिरफ्त से छुड़ाया और टकटकी बांधें मुझे देखने लगीं| उनकी आँखों में मुझे अपने लिए प्यार साफ़ दिखाई दे रहा था| उनके बिना बोले ही उनकी आँखें सब बयान कर रही थी| मैं उनकी उपेक्षा समझ चूका था पर मेरा मन मुझे पहल नहीं करने दे रहा था, ये मेरे मन में उनके प्रति प्यार था|

अब आगे:
मुझे पता था की यदि मैं थोड़ी देर और वहाँ रुका तो मुझसे वो पाप दुबारा अवश्य हो जायेगा| इसलिए मैं उठ खड़ा हुआ और दरवाजे की ओर बढ़ा, परन्तु भौजी ने मेरे हाथ थाम के मुझे रोक लिया| मैंने पलट के उनकी ओर देखा तो उनकी आँखें फिर नम हो चलीं थी| मैं भाभी के नजदीक आया और उनके सामने अपने घटनों के बल बैठ गया;

मैं: भौजी...!!!

मैंने भौजी को रोकना चाहा पर तब तक भौजी की आँखों से आँसूँ छलक आये थे|

भौजी: मानु.... तुम भी मुझे अकेला छोड़ के जा रहे हो?

भौजी रोते हुए बोलीं, ये सुनते ही मेरे सब्र का बाँध टूट गया और मैंने उन्हें अपने सीने से लगा लिया|

मैं: नहीं भौजी... मैं आपके बिना नहीं जी सकता| बस मैं अपने आप को ये पाप करने से रोकना चाहता था|

मेरे मुँह से पाप शब्द सुन कर भौजी को बहुत बुरा लगा और उन्होंने खुद को मेरे सीने की गर्माहट से दूर किया और बोलीं;

भौजी: ये पाप नहीं! प्रेम है, तुम्हें क्यों लगता है की ये पाप है?

मैं: पता नहीं भौजी पर मेरा दिल कहता है की ये पाप है!

भौजी: ऐसा मत बोलो मानु! मेरे प्यार को तुम पाप मत कहो! अगर हम प्यार के बिना ये करते तो ये पाप होता, पर मैं तो तुम्हें अपना पति मान चुकी हूँ!

ये बोलते हुए भौजी फफक कर रो पड़ीं, मैंने उनके आँसू पोछे और उनसे बोला;

मैं: मैं भी आपसे बहुत प्यार करता हूँ और आपकी ख़ुशी में ही मेरी ख़ुशी है!

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और भौजी के मस्तक को चूमा, मैं फिर से खड़ा हुआ और जल्दी से दरवाजा बंद किया| मैं भौजी के पास लौटा और उन्हें उनकी चारपाई पर लिटा दिया| अब भौजी का रोना बंद हो चूका था और उनके चेहरे पर एक मुस्कान थी, मुस्कान मुझे पाने की! भौजी ने अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी थीं और मुझे छोड़ ही नहीं रही थी, उन्हें लगा की कहीं मैं फिर से उन्हें छोड़ के चला ना जाऊँ| अब मुझे बस एक बात का डर था की कहीं हमारे इस प्रेम मिलाप के शुरू होते ही किसी ने फिर से रंग में भंग डाल दिया तो हम दोनों का मन ख़राब हो जायेगा इसलिए मैंने भौजी से पूछा;

मैं: भौजी आज तो कोई नहीं पानी डालेगा ना?

भौजी: नहीं मानु, तुम्हारे अजय भैया भी छत पे सोये हैं|

मैं: आपका मतलब छत पर आज पिताजी, अशोक भैया और अजय भैया सो रहे हैं| अरे वाह! आज तो किस्मत बहुत मेहरबान है!

भौजी: मेरी किस्मत को नजर मत लगाओ!!!

भौजी ने हँसते हुए कहा| ये बात तो तय थी की आज अजय भैया और रसिका भाभी का झगड़ा नहीं होगा, मतलब आज सब कुछ अचानक मेरे पक्ष में था, ये सोच कर मैं मुस्कुराने लगा|


तभी मेरे मन में एक ख्याल आया, क्यों न मैं भौजी को वो सुख दूँ जिसके लिए वो इतना तड़प रही हैं| मैंने भौजी से अपने मन में आये उस ख्याल के बारे में कुछ नहीं कहा, बस उनके होंठों को धीरे से चुम लिया| मैंने दूर हटना चाहा पर भौजी की बाहें जो मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द थीं उन्होंने मुझे दूर नहीं जाने दिया| मैं भौजी के होंठों को अपने होठों की गिरफ्त में ले लिया, सबसे पहला आक्रमण भौजी ने किया| उन्होंने मेरे ऊपर वाले होंठ को मुँह में भरकर चूसना शुरू कर दिया| फिर अगली बारी आई मेरे निचले होंठ की, इस तरह उन्होंने मेरे होंठों का रस पान करना शुरू कर दिया और मेरी गर्दन पर अपनी पकड़ और मजबूत कर दी| भौजी का मेरे होंठों का रसपान करीब पाँच मिनट चला| अब मुझे भी अपनी प्रतिक्रिया देनी थी, वरना कहीं भौजी को बुरा न मान जाएँ| मैंने भौजी के गुलाबी होंठों को अपने दांतों तले दबा लिया और उन्हें अपनी जीभ से चाटने लगा| मैंने अपनी जीभ भौजी के मुख में दाखिल करा दी और उनके मुख की गहराई को नापने लगा| रात रानी की खुशबु आंगन को महका रही थी और भौजी और मैं दोनों बहकने लगे थे, पर मेरे मन में आये उस ख्याल ने मुझे रोक लिया|

इतनी देर से भौजी के ऊपर झुके रहने से मेरी पीठ में दर्द होने लगा था| इसलिए मैं भौजी के ऊपर आ गया, उनके माथे को चूमा, फिर उनकी नाक से अपनी नाक लड़ाई| उनके दाएँ गाल को मैंने अपने मुख में भर के चूसा और धीरे से उनके गाल को काट अपने दाँतों के निशान छोड़े| फिर उनके बाएँ गाल को भी चूसा और उसपर भी काट कर अपने दांतों के निशान छोड़े| अब मैं धीरे-धीरे नीचे बढ़ने लगा और उनकी योनि के पास आके रुक गया| मैंने धीरे-धीरे उनकी साडी ऊपर की, मुझे इस बात की तसल्ली थी की आज हमें कोई परेशान नहीं करेगा| साडी ऊपर होते ही मुझे ये जान के बिलकुल भी आस्चर्य नहीं हुआ की अभी भी भौजी ने पैंटी नहीं पहनी थी| मैंने भौजी के योनि द्वार को चूमा, फिर उसे धीरे से अपने होंठों से रगड़ने लगा| भौजी किसी मछली की तरह मचलने लगीं, मैंने उन पतले-पतले द्वारा को अपने मुख में भर लिया और चूसने लगा| अभी तक मैंने अपनी जीभ उनकी योनि में प्रवेश नहीं कराई थी और भौजी की सिसकारियाँ शुरू हो चुकी थीं; "स्स्स...अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ... स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स माआआआआउउउउउउउ उम्म्म्म्म्म्म्म ....!!!!" जैसे ही मैंने अपनी जीभ की नोक से भौजी के भगनासे को छेड़ा, भौजी मस्ती में उछल पड़ीं और अपने सर को तकिये पर इधर-उधर पटकने लगी| भौजी की इस प्रतिक्रिया ने मुझे चौंका दिया और मैं रूक गया| भौजी ने अपनी उखड़ी हुई साँसें थामते हुए कहा; "ससस...मानु रुको मत!!!" भौजी की बात सुन कर मुझे तसल्ली हुई की उन्हें मेरे इस कार्य से आनंद आ रहा है, वरना मुझेतो लगा था की शायद उन्हें पीड़ा हो रही है| अब मैंने अपनी जीभ भौजी की गुलाबी योनि में प्रवेश करा दी| अंदर प्रवेश करते ही मुझे पता चला की भौजी की योनि धधक रही थी| एक बार को तो मन हुआ की जल्दी से अपना पजामा उतारूँ और अपने लिंग को भौजी की योनि में प्रवेश करा दूँ! पर फिर वही ख्याल मन में आया और मैंने अपने आप को जैसे-तैसे कर के रोक लिया| मैंने भौजी की योनि में अपनी जीभ लपलपानी शुरू कर दी, उनकी योनि से आ रही महक मुझे मदहोश कर रही थी और साथ ही साथ प्रोत्साहन भी दे रही थी| मैंने भौजी की योनि की खुदाई अपनी जीभ के द्वारा शुरू कर दी थी, भौजी की सिसकारियाँ तेज होने लगीं थी; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स म्म्म्म्म्म्म्म्म्म ह्ह्ह्ह ... अन्न्न्न्न्न्न्ह्ह्ह्ह माआआंउ!!!!!"


अब भौजी के अंदर का लावा बहार आने को उबल चूका था और एक तेज चीख के साथ भौजी स्खलित हो गईं; "आअह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह .....मानु.......!!!!" भौजी का रस ऐसे बहार आया जैसे किसी ने नदी पर बना बाँध तोड़ दिया हो! आँगन में तो पहले से ही रात रानी के फूल की खुशबु फैली हुई थी उसपर भौजी की योनि की सुगंध ने आँगन को मादक खुशबु से भर दिया और उस मादक खुशभु ने मुझे इतना बहका दिया की मैंने भौजी के रस को चाटना शुरू कर दिया| उसका मीठा स्वाद आज भी मुझे याद है, जैसे किसी ने गुलाब के फूल की पँखुड़ियों को शहद में भिगो दिया हो! मैं सारा रस तो नहीं पी पाया और थोड़ा बहुत रस बहता हुआ भौजी की योनि के बाहर आ गया जिसे मैं चाट के साफ़ कर रहा था| भौजी की सांसें समान्य हो गई और उनके चेहरे पर संतुष्टि के भाव थे, उन्हें संतुष्ट देख के मेरे मन को शान्ति प्राप्त हुई| भौजी ने मुझे अपने ऊपर खींच लिया, मैं भौजी के ऊपर था और मेरा लिंग ठीक भौजी की योनि के ऊपर| बस फर्क ये था की मेरा लिंग अब भी पजामे की कैद में था| अब भौजी की सांसें आगे होने वाले हमले को सोच कर फिर से तेज हो रहीं थीं| उन्होंने खुद पहल करते हुए अपना हाथ मेरे लिंग पर रख दिया, उन्हें लगा की मैं उनके साथ सम्भोग करूँगा| पर वो मेरे मन में उठ रहे विचार के बारे में नहीं जानती थी| जैसे ही भौजी के हाथ ने मेरे लिंग को छुआ मैंने भौजी की आँखों में देखते हुए न में गर्दन हिला दी| भौजी मेरी इस प्रतिक्रिया से हैरान थी| जब कोई सामने से आपको सम्भोग के लिए प्रेरित करे तो ना करना बहुत मुश्किल होता है, पर अगर आपके मन में उस व्यक्ति के प्रति आदर भाव व प्रेम है और उसकी ख़ुशी के लिए आप कुछ भी करने को तैयार हो तो आप अपने आप पर काबू प् सकते हो अन्यथा आप सिर्फ और सिर्फ एक वासना के प्यासे जानवर हो, ऐसा जानवर जो अपनी वासना की तृप्ति के लिए किसी भी हद्द तक जा सकता है|

मैंने मुस्कुराते हुए भौजी को देखा और बोला;

मैं: नहीं भौजी! आज नहीं!

भौजी: (हैरानी से मुझे देखते हुए) क्यों?

मैं: क्योंकि मैंने कुछ सोचा है!

भौजी: (थोड़ा परेशान होते हुए) क्या सोचा है?

मैं: आपके जीवन में दुखों का आरम्भ आपकी सुहागरात से ही शुरू हुआ था ना? तो मैं सोच रहा था की क्यों न आप और मैं वही सुहागरात फिरसे मनाएं?

ये सुन कर भौजी भौक हो गईं और उनके चेहरे पर एक प्यार भरी मुस्कान आ गई;

भौजी: मानु तुम मेरे लिए इतना सोचते हो?

मैं: हाँ क्योंकि मैं आपसे प्यार करता हूँ और हमारी सुहागरात कल ही होगी| तब तक आपको और मुझे, सब्र करना होगा|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा और उठ कर खड़ा हो गया|

भौजी: (संकुचाते हुए) पर मानु .... तुम्हें वहाँ दर्द हो रहा होगा!

भौजी ने मेरे लिंग की ओर इशारा करते हुए कहा|

मैं: आप उसकी चिंता मत करो, वो थोड़ी देर में शांत हो जायेगा| आप दिन भर के काम के बाद और अभी आई 'बाढ़' के बाढ़ तो थक गए होगे, तो आप आराम करो|

मेरे मुंह से बाद शब्द सुन कर भौजी शर्मा गई| इतना कह के मैं दरवाजे की ओर चल दिया, पर भौजी ने मुझे रोकते हुए कहा;

भौजी: मानु...तुम सोने जा रहे हो?

मैं: हाँ

भौजी: मेरी एक बात मानोगे?

मैं: हुक्म करो!

भौजी: तुम मेरे पास कुछ और देर नहीं बैठ सकते? मुझे तुम से बातें करना अच्छा लगता है, दिन में तो हम खुल कर बातें कर नहीं सकते|

भौजी ने बड़े सोच-समझ कर चाल चली जिसे में पकड़ नहीं पाया था|

मैं: ठीक है|

इतना कह कर मैं नेहा की चारपाई पर बैठ गया|

भौजी: वहाँ क्यों बैठे हो? मेरे पास यहाँ बैठो|

ये कहते हुए भौजी सरक गईं ओर मेरे बैठने के लिए जगह बनाई|

दरअसल मैं भौजी से दूर इसलिए बैठा था की कहीं मैं अपना आपा फिर से ना खो दूँ| पर भौजी के इस प्यार भरे आग्रह ने मुझे उनके पास जाने के लिए विवश कर दिया| मैं उठा और भौजी की चारपाई पर कुछ इस प्रकार बैठा की मेरी पीठ दिवार से लगी थी और टांगें सीधी थी| भौजी ठीक मेरे बगल में लेटी हुई थीं, उन्होंने मेरी कमर में झप्पी डाल ली और बोलने लगीं:

भौजी: अब तुम्हें पता चला ना की क्यों मैंने तुम्हें अपने पति का दर्जा दिया? तुमने अभी जो मेरे लिए किया, तुम्हारे भैया ने कभी मेरे साथ नहीं किया| तुम मेरी ख़ुशी के लिए कितना सोचते हो और मुझे यकीन है की मेरी ख़ुशी के लिए तुम कुछ भी करोगे| पर 'उसे' तो केवल अपनी वासना मिटानी होती थी| तुम नेहा से भी कितना प्रेम करते हो, जब मैं शहर आई थी तब तुमने नेहा का कितना ख्याल रखा और उस दिन जब नेहा ने तुम्हारी चाय गिरा दी तब भी तुम उसी का पक्ष ले रहे थे| तुम्हारे मन में स्त्रियों के लिए जो स्नेह है वो आजकल कहाँ देखने को मिलता है! तुम्हारी इन्ही अच्छाइयों ने मुझे सम्मोहित कर दिया! जब तुम छोटे थे तब हमेशा मेरे साथ खेलते थे, जब मैं खाना बना रही होती थी तब तुम मेरे साथ हंसी-मजाक करते थे, मेरी गोद में आके बैठ जाते थे और उस दिन जब तुमने मेरा दूध पीया! याद है उसदिन तुमने मुझसे पुछा था की भौजी तुम्हें दूध क्यों नहीं आता? तुम्हारा सवाल सुन आकर मैं उदास हो गई थी, इसलिए नहीं की तुमने सवाल किया बल्कि तुम्हारे उस सवाल ने मुझे मेरे साथ हुआ धोखा याद दिला दिया था! मैं कभी माँ नहीं बनना चाहती थी क्योंकि माँ बनने का मतलब होता उस घिनोने इंसान को खुद को छूने देना! पर उसने मेरी .......

आगे भौजी के कुछ भी बोलने से पहले मैंने उन्हें रोक दिया ओर उनके सर को चूमा| मैं नहीं चाहता था की वो फिर से वो बुरा समय याद करें!

मैं: बस! अब वो बुरा समय याद करने की कोई जर्रूरत नहीं|

इतना कह कर मैं नीचे सरक आया ओर उनके बगल में लेट गया| तभी मुझे मेरे सर के नीचे कुछ चुभा| मैंने तकिया उठा कर देखा तो वो एक खंजर था! उसे देख मैं एकदम से हैरान हो गया;

मैं: ये क्यों सिरहाने रखा है?

भौजी: अपनी सुरक्षा के लिए, ताकि अगर वो फिर से मुझसे जबरदस्ती करता तो या तो मैं उसे मार देती या खुद अपनी जान दे देती!

भौजी की बात सुन कर मेरी आँखें फटी की फटी रह गईं! उनकी आँखों में मुझे गुस्सा साफ़ नजर आ रहा था|

मैं: आप पागल तो नहीं हो गए?

भौजी: मानु तुम मेरी जिंदगी हो, मेरा दिल ओर ये जिस्म सिर्फ तुम्हारा है ओर अगर इसे कोई छूने की कोशिश करेगा तो या तो मैं उसे जला कर राख कर दूँगी या खुद जान दे दूँगी!

मैं: पागल मत बनो! आपको कुछ हो गया तो मैं क्या करूँगा?

मैंने भौजी को प्यार से डाँट दिया ताकि ये मरने-मारने की बातें उनके जहाँ से निकल जाएँ!

भौजी: मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह सकती|

मैं: मैं भी आपके बिना नहीं रह सकता!

इतना कह मैंने उन्हें अपने सीने से लगा लिया|

भौजी: तुम ये कभी मत सोचना की तुमने कोई पाप किया है, क्योंकि आज जो भी कुछ हमारे बीच हुआ में वो पाप नहीं था बल्कि तुमने एक अतृप्त आत्मा को सुख के कुछ पल दान किये हैं|

भौजी के दिल पर मेरी कही वो बात अब भी चुभ रही थी, इसीलिए उन्होंने फिर से अपनी बात दोहराई| मेरे सीने से लगे हुए उनका हाथ मेरे लिंग पर आ गया, जो अब भी सख्त था| मैं मन के आगे विवश था और मेरा सब्र टूटने वाला था| खुद को रोकने की एक आखरी कोशिश करते हुए मैंने अपना हाथ भौजी के हाथ पर रख दिया और उन्हें रोकने लगा| मैं अब भी कल रात के बारे में सोच रहा था और नहीं चाहता था की मैं भौजी के लिए जो सरप्राइज प्लान किया है उसे मैं ही ख़राब करूँ! पर भौजी का दिल मान ही नहीं रहा था!

“मानु तुम मेरे लिए इतना कुछ सोच रहे हो, मेरा भी तो फर्ज बनता है की मैं भी तुम्हारा ख्याल रखूँ| मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ, मुझे मत रोको!” भौजी की बात सुन मेरे सब्र ने जवाब दे दिया और मैंने अपना हाथ भौजी के हाथ पर से हटा लिया| अब चूँकि मैं कोई विरोध नहीं कर रहा था, इसलिए भौजी उठ कर बैठीं और मेरे पजामे का नाड़ा खोला| मेरे पाजामे में बना टेंट उन्हें साफ़ दिख रहा था, उन्होंने मेरे कच्छे के भीतर से मेरे लिंग को बाहर निकाला| अब समां कुछ इस प्रकार था की रात रानी की खुशबु में मेरे लिंग की भीनी-भीनी सुगंध घुल-मिल गई|


भौजी ने पहले तो मेरे लिंग को अपने होंठों से छुआ, उनकी इस प्रतिक्रिया से मेरे शरीर में झुर-झूरी छूट गई और मैं काँप गया| भौजी ने आजतक कभी किसी लिंग को पाने मुँह में नहीं लिया था, इसलिए उन्होंने आव देखा न ताव और झट से मेरे लिंग को अपने मुँह में भर लिया| मेरा लिंग उनके मुँह के भीतर था पर अभी तक उन्होंने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी थी| ऐसा लगा जैसे पहलीबार के लिए भौजी हिम्मत इक्कट्ठा कर रहीं थीं! भौजी ने मेरे लिंग को अंदर ले के उसे अपने थूक से नहला दिया और जैसे ही मेरे लिंग का संपर्क उनकी जीभ से हुआ तभी मुझे बिजली का झटका लगा! पर ये तो केवल शुरुआत थी,भौजी ने अपना मुँह आगे-पीछे करना शुरू किया, जिससे मेरे लिंग के ऊपर की चमड़ी खुल गई और छिद्र सीधा भाभी के गले के अंत में लटके हुए उस मांस के टुकड़े से टकराया| भौजी को एकदम से उबकाई आ गई और ये देख मैं सहम के रह गया| उनकी आँखों में पानी था जैसा की उबकाई आने पर आ जाता है, मैंने गर्दन न में हिलाई ताकि वो मेरे लिंग को अपने मुँह से निकाल दें, पर भौजी ने मेरे लिंग को नहीं छोड़ा और उसे धीरे-धीरे चूसने लगीं| मैंने कुछ नहीं कहा क्योंकि मुझे लगा की अब सब कुछ ठीक ही होगा! इधर बीच-बीच में भौजी अपनी जीभ की नोक को मेरे लिंग के छिद्र पर रगड़ देती, जिससे मैं तड़प उठता और मेरे मुख से मादक सिसकारी फुट पड़ती; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स" आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ....!!!!" मुझे इतना आनंद कभी नहीं आय जितना उस पल आ रहा था, भौजी मेरे लिंग को किसी टॉफी की भाँती चूस रही थी! इस आनंद को अब मैं और बढ़ाना चाहता था; "भौजी...सससस... धीरे-धीरे काटो!" मैंने सीसियाते हुए कहा| भौजी ने अपने दांत मेरे लिंग पर गड़ाना शुरू कर दिया और मैं आनंद के सागर में गोते लगाने लगा| भाभी का मुख भीतर से इतना गीला प्रतीत हो रहा था की उस सुख की अनुभूति से मेरी आँखें बंद हो चुकी थी! भौजी ने अब मेरे लिंग को आगे पीछे कर के चूसना शुरू कर दिया| जब वो लिंग को अपने मुँह में अंदर तक लेतीं तो लिंग का सुपाड़ा खुल जाता और जब भौजी लिंग बाहर निकालतीं तो लिंग की चमड़ी बिल्कुक बंद हो जाती| भौजी बिना किसी चिंता और डर के कर रही थी, उनकी चूसने की गति इतनी धीमे थी की एक पल के लिए लगा जैसे ये कोई सुखदाई सपना हो और मैं इस सपने को पूरा जीना चाहता था| 5 मिनट और अब मैं चरम पे पहुँच चूका था| मुझसे अब बर्दाश्त करना मुश्किल था, मैंने भौजी से दबी हुई आवाज में अनुरोध किया; "भौजी ... प्लीज छोड़ दो ... मेरा निकलने वाला है... स्स्स्सह्ह्हह्ह्म...महह...स्सस......सारे कपडे गंदे हो जायेंगे!!!" पर भौजी ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया और अपने आक्रमण को जारी रखा| मुझसे कंट्रोल नहीं हुआ और अंदर का ज्वार कुछ इस तरह बाहर आया जैसे किसी ने कोका कोला की बोतल का मुँह बंद करके जोर से हिलाया हो और जब दबाव बढ़ गया तो बोतल का मुख खोल दिया! मेरा वीर्य रस भौजी के मुख में भर गया, मुझे तो लगा की भौजी सब का सब मेरे ही पजामे के ऊपर उगल देंगी| पर उन्होंने ऐसा नहीं किया और सारा का सारा रस पी लिया| मेरी सांसें जब कुछ सामान्य हुईं और मैंने अपने लिंग की ओर देखा तो भौजी के मुख में रहने से उनके रस में लिप्त वो बिलकुल चमक रहा था!!! मैंने भौजी की ओर देखा तो उनके चेहरे पर अनमोल सुख के भाव थे, मैंने उनके माथे पे चुम्बन किया और खड़ा होके अपना पजामा बाँधा| मैं: भौजी आपने तो जान ही निकाल दी थी!

भौजी ये सुन कर हँस पड़ीं|

मैं: मुझे लगा था की आज तो मेरे नए कुर्ते-पजामे का बुरा हाल होना है पर आपने तो कमाल ही कर दिया|

भौजी: मुझसे खुद पर काबू नहीं हुआ ओर मैंने सब पी लिया! मुझे खुद यक़ीन नहीं होता की मैंने ऐसा किया! सच्ची तुमने आज....

इतना कहते हुए भौजी शर्म के मारे रुक गईं!

मैं: मैंने आज क्या?

मैंने मुस्कुराते हुए पुछा|

भौजी: तुमने आज मेरी सारी जिझक निकाल दी!

भौजी शर्माते हुए बोलीं|

भौजी: पर ये तो बताओ की तुम शुरू-शुरू में मुझे रोक क्यों रहे थे?

अब मैं अपना पजामे का नाड़ा बाँध चूका था|

मैं: क्योंकि मैं ये सब कल के लिए बचाना चाहता था|

मैंने मुस्कुराते हुए कहा तो भौजी ने मुझे इशारे से अपने पास बुलाया, उनके और मेरे मुख से हमारे काम-रस की सुगंध आ रही थी| हम दोनों ही मन्त्र मुग्ध थे और फिर से भौजी और मैंने एक गहरा चुम्बन किया| भाभी ने मुझे इशारे से कहा की लोटे में पानी है, ताकि मैं कुल्ला कर के सोऊँ| मैंने भौजी का हाथ पकड़ के उन्हें उठाया, हम दोनों स्नान घर तक गए और साथ-साथ कुल्ला किया| घडी में ढाई बजे थे, अब समय था सोने का| भौजी का तो पता नहीं पर मैं थका हुआ महसूस कर रहा था और नींद भी आ रही थी| मैं बिस्तर पर पड़ते ही घोड़े बेच के सो गया| अगली सुबह माँ ने मुझे उठाया, समय देखा तो सुबह के छह बजे थे| नया दिन, नया जोश और रात के प्लान के बारे में सोच के उत्साह से रोंगटे खड़े हो गए थे| मन में उल्लास था, भौजी को देखा तो वो नेहा को तैयार कर रही थी, मैंने उनकी ओर देखा और मुस्कुरा के नहाने चला गया| पर मैं आनेवाले खतरे से अनजान था...


 
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आठवाँ अध्याय: जूनून
भाग - 1

मैं नहा धो के तैयार हो गया और शांत मन से रात के प्लान के लिए मन ही मन योजना बनाने लगा| मन में तो ख्याल था की फूलों की सेज सजी हो पर ये भी डर था की ये फूल किसी से नहीं छुपेंगे और कहीं इन्हीं फूलों का फायदा चन्दर भैया ना उठा लें!!!! अभी मैं मन ही मन सोच रहा था की तभी पिताजी ने मेरे कान के पास एक ऐसा बम फोड़ा की मेरा सारा शरीर सुन हो गया;

पिताजी: क्यों लाड-साहब रात को छत पर क्यों नहीं सोये?

मैं: बहुत थक गया था, इसीलिए कब नींद आ गई पता ही नहीं चला|

पिताजी: थक गया था? ऐसा कौन सा पहाड़ खोद दिया तूने?

चन्दर भैया: चाचा कल रतिया मानु भैया भूसा उठाये रहे ना!

चन्दर भैया ने मजाक किया ओर उनकी बात सुनके दोनों चाचा-भतीजा हँसने लगे| मैं भी उनका साथ देने के लिए झूठी हँसी हँसा, असल में तो मुझे भौजी की बातें याद आ रही थी और मैं भैया से नफरत करने लगा था| पर यदि मैं अपनी नफरत जाहिर करता तो कोई भी भौजी और मुझपर शक करता| अभी तक भौजी और मेरे रिश्ता दोस्ती के नक़ाब के पीछे छुपा हुआ था और सब के सामने इस नक़ाब का रहना जर्रूरी था| पर अभी तो पिताजी की बात शुरू ही हुई थी;

पिताजी: तो लाड-साहब चलना नहीं है क्या?

मैं: (चौंकते हुए) कहाँ?

पिताजी: जिस काम के लिए आये थे?

मैं: किस काम के लिए?

पिताजी: तुम तो यहाँ आके अपनी भौजी के साथ इतना घुल-मिल गए की यात्रा के बारे में भूल ही गए|

पिताजी की बात सुन मैं झेंप गया और मुझे याद आया की गाओं आने का प्लान बनाने के लिए मैंने पिताजी को काशी विश्वनाथ घूमने का लालच दिया था, यही कारन था की पिताजी गाँव आने के लिए माने थे| यात्रा का प्लान मैंने ही बनाया था पर क्योंकि मुझे भौजी से मिलने की इतनी जल्दी थी इसलिए मैंने सबसे पहले गाँव आने का प्लान रखा और उसके बाद हम यात्रा करके दिल्ली लौटना था, जबकि पिताजी का कहना था की हम पहले यात्रा करते हैं उसके बाद गाँव जायेंगे| अब मुझे अपने ऊपर गुस्सा आ रहा था, की आखिर क्यों मैंने थोड़ा सब्र नहीं किया| ऊपर से कहाँ तो मैं अपनी और भौजी की सुहागरात के सपने सजोने में लगा था और कहाँ पिताजी की यात्रा पर जाने की बात ने मेरे होश उड़ा दिए थे!

पिताजी: क्या सोच रहा है? मैंने तुमसे राय नहीं माँगी है, हम कल ही निकालेंगे और यात्र कर के दिल्ली लौट जायेंगे|

चन्दर भैया ने जैसे ही पिताजी की बात सुनी, वो सब को सुनाने के लिए चल दिए| इधर मेरा दिमाग अब कंप्यूटर की तरह काम करने लगा और मैं कोई न कोई तर्क निकालना चाहता था की हम कुछ और दिनों के लिए रुक जाएँ|

उधर जब ये बात भौजी के कानों तक पहुँची तो भौजी भागी-भागी बड़े घर की ओर आईं| पिताजी मुझसे बात करके कल यात्रा पर जाने के लिए रिक्शे का इन्तेजाम करने के लिए निकल चुके थे| मैं घर के आँगन में अपने सर पे हाथ रखे अकेला बैठा हुआ था| अचानक भौजी मेरे सामने ठिठक के खड़ी हो गईं, मेरी नजर जब उनके चेहरे पर पड़ी तो मैंने देखा की उनके आँखों में आँसूँ थे, चेहरे पर सवाल और जुबान पर मेरा नाम!

भौजी: मानु.... क्या मैंने जो सुना वो सच है? तुम कल ही मुझे छोड़ कर जा रहे हो?

मैं: (सर झुकाते हुए) हाँ!

भौजी: तो तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताया?

मैं: भूल गया था!

भौजी: अब मेरा क्या होगा? मैं तुम्हारे बिना नहीं जी सकती! मैं मर जाऊँगी!!!

इतना कह के भौजी बाहर चली गईं, मुझे चिंता होने लगी की कहीं भौजी कुछ ऐसा-वैसा कदम न उठा लें इसलिए मैं उनके पीछे भागा| पर भौजी भूसे वाले कमरे के बाहर खड़ी होके रसिका भाभी से कुछ पूछ रही थीं| दोनों के हाव-भाव से मैं समझ चूका था की भौजी यही पूछ रहीं थीं की क्या मैं सच में वापस जा रहा हूँ? रसिका भाभी ने बात को ज्यादा तूल ना देते हुए हाँ में सर हिलाया और रसोई की ओर चल दीं| मैंने इशारे से भौजी को अपने पास बुलाया, भौजी सर झुकाये भारी क़दमों के साथ मेरी ओर बढ़ने लगीं| उस समय माँ, नेहा, मधु भाभी और बड़की अम्मा खेत में आलू खोद के निकाल रहे थे| पिताजी तो पहले ही रिक्शे वाले से बात करने के लिए जा चुके थे| चन्दर भैया और अजय भैया खेतों में सिंचाई और जुताई में लगे थे और रसिका भाभी तो यूँ ही इधर-उधर टहल रहीं थी, जब से मैं आया था मैंने उन्हें कोई भी काम नहीं करते देखा था!

मैं भौजी को ले कर बड़े घर में आया और मैंने उन्हें चारपाई पर बिठा दिया| उनके मुख पर हवाइयाँ उड़ रहीं थी, उनके चेहरे पर कोई भी भाव नहीं थे, ऐसा लगा जैसे की कोई लाश हो| इधर मैं मन ही मन अपने आपको कोस रहा था| मैं अपने घुटनों पर उनके समक्ष बैठ गया;

मैं: भौजी... मुझे माफ़ कर दो! सब मेरी गलती है! मैंने आपको कुछ नहीं बताया, सच कहूँ तो इन चार दिनों में आपके प्यार में मैं खुद को भूल गया था| गाओं आने का मेरे पास कोई बहाना नहीं था इसलिए मैंने पिताजी से काशी-विश्वनाथ की यात्रा का बहाना बनाया| पिताजी तो चाहते थे की हम पहले यात्रा करें और फिर गाओं जायेंगे और आखिर में दिल्ली लौट जायेंगे| पर मैं आपसे मिलने को इतना आतुर था की मैंने कहा की हम पहले गाओं जायेंगे और फिर वहाँ से यात्रा करने के लिए निकलेंगे और वहीं से वहीं दिल्ली निकल जायेंगे| मुझे सच में नहीं पता था की आपका प्यार मुझे आपसे दूर नहीं जाने देगा|

भौजी मेरी आँखों में देखते हुए सारी बात सुन रही थी| मेरी बात पूरी होते ही उनकी आँखों में आँसूँ छलक आये| पता नहीं क्यों पर जब-जब मैं भौजी को ऐसे देखता, तो मेरे नस-नस में खून खौल उठता|.

भौजी: मानु मेरा क्या होगा?

भौजी के इस प्रश्न का मेरे पास कोई जवाब नहीं था इसलिए मेरा सर खुद झुक गया| मेरा झुका सर देख भौजी के चेहरे पर मायूसी छा चुकी थी और इधर मुझे अपने ऊपर कोफ़्त होने लगी थी!!! मैं ने भौजी को ढाँढस बँधाने लगा, मैंने उनके चेहरे को ऊपर किये और उनके आँसूँ पोंछें;

मैं: भौजी अभी भी हमारे पास 24 घंटे हैं|

ये सुन भौजी मेरी और बड़ी उत्सुकता से देखने लगीं|

मैं: मैं ये पूरे 24 घंटे आपके साथ ही गुजारूँगा|

तभी पीछे से माँ आ गईं, मुझे और भौजी को इस तरह देख वो हैरान थी| इससे पहले की वो कुछ पूछतीं मैं खुद ही बोल पड़ा;

मैं: माँ देखो ना भौजी को, जब से इन्हें पता चला है की हम कल जा रहे हैं ये मुँह लटका के बैठीं हैं| आप ही कुछ समझाओ न इन्हें|

माँ: पर हम तो....

मैं: (माँ की बात काटते हुए) माँ पिताजी रिक्शे वाले से बात करने निकले हैं और वो कह रहे थे की आप उनका सफारी सूट मत भूल जाना|

मैं: हाँ अच्छा याद दिलाया तूने, मैं अभी रख लेती हूँ और बहु तुम उदास मत हो ...

मैंने फिर से माँ की बात काट दी...

मैं: (फिर से उनकी बात काटते हुए) और हाँ माँ, पिताजी ने कहा था की सर और पेट दर्द की दवा भी रख लेना|

माँ:(गुस्से में) ये सब तू मुझे बताने के बजाये खुद नहीं रख सकता?

अब इससे पहले की माँ कुछ और बोलें, मैं भौजी को खींच के बाहर ले गया| अभी हम दोनों दरवाजे तक पहुँचा ही था की नेहा भी आ गई और भौजी के उदास मुँह का कारन पूछने लगी| मैंने उसकी बात घुमाते हुए कहा की चलो मेरे साथ बताता हूँ| मैंने अपने दाएँ हाथ से भौजी का बायाँ हाथ पकड़ा और अपने बाएँ हाथ की ऊँगली नेहा को पकड़ा रखी थी| मैं दोनों को रसोई के पास छप्पर में ले आया, वहाँ पड़ी चारपाई पर भौजी को बैठाया और नेहा के प्रश्नों का उत्तर देने लगा;

मैं: आप पूछ रहे थे न की आपकी मम्मी उदास क्यों हैं?

नेहा ने हाँ में सर हिलाया|

मैं: आपकी मम्मी की उदासी का कारन मैं हूँ|

मेरी बात सुन के भौजी और नेहा दोनों मेरी ओर देखने लगे|

मैं: मैं कल वापस जा रहा हूँ ना इसलिए आपकी मम्मी उदास हैं|

नेहा: चाचू... आप ...वापस ....नहीं ....आओगे ?

नेहा ने किसी भोले बच्चे की तरह पुछा| मैंने न में सर हिला दिया और ये देख भौजी अपने आप को रोने से नहीं रोक पाईं| मैंने भौजी को गले से लगाया और उनकी पीठ पर हाथ फेरते हुए चुप कराने लगा|

मैं: भौजी प्लीज चुप हो जाओ वरना नेहा भी रोने लगेगी|

भौजी का रोना जारी था और अपनी मम्मी को रोटा हुआ देख नेहा भी सुबकने लगी|

मैं: भौजी आपको मेरी कसम!

मेरी कसम सुन के भौजी ने रोना बंद किया और आगे जो हुआ उसे देख हम दोनों हँस पड़े| नेहा ने रोना शुरू कर दिया था और उसका रोना ऐसा था जैसे फैक्ट्री का साईरन बजा हो, जो हर सेकंड तेज होता जा रहा था| ये दृश्य इतना हास्यजनक था की मैं और भौजी अपना हँसना रोक नहीं पाये| हम दोनों दहाड़े मार-मार के हँसने लगे! अब नेहा को चुप करना था तो मैंने उसे अपने पास बुलाया और उसके आँसूँ पोछे| नेहा को चिप्स बहुत पसंद थे इसलिए मैंने उसे पैसे दिए और चिप्स खरीद के खाने के लिए कहा| भौजी मना करने लगीं पर मैंने फिर भी उसे जबरदस्ती भेज दिया, भौजी की आँखें अब भी नम थीं तो मैंने उनका मन हल्का करना चाहा;

मैं: भौजी आप स्नान कर लो, तरो-ताजा महसूस करोगे| फिर आपको खाना भी तो बनाना है, क्योंकि रसिका भाभी तो कुछ करने वाली नहीं|

भौजी बड़े बेमन से उठीं, ऐसा लगा जैसे उनका मन ही ना हो मुझसे दूर जाने को| तो मैंने उन्हें छेड़ते हुए कहा;

मैं: भौजी वैसे मैंने आपको वादा किया था की मैं पूरे 24 घंटे आपके साथ रहूँगा, अभी तो आप स्नान करने जा रहे हो अगर कहो तो मैं भी चलूँ आपके साथ?

भौजी: ठीक है.... चलो!!!

उनका जवाब सुन के मैं सन्न रह गया, क्योंकि मैंने तो मजाक में ही बोल दिया था| खेर मैं ख़ुशी-ख़ुशी उनके साथ चल दिया, भाभी ने अंदर से कमरा बंद किया और मैं उनके स्नान घर के सामने चारपाई खींच कर बैठ गया, जैसे मैं कोई मुजरा सुनने आया हूँ|


भौजी ने आज हलके हरे रंग की साडी पहनी हुई थी, वो मेरे सामने खड़ी हुईं और अपना पल्लू नीचे गिरा दिया| उनके स्तन के बीचों बीच की लकीर मुझे साफ़ दिखाई दे रही थी, ये देख मेरे हाथ बेकाबू होने लगे और मन किया की भौजी को किसी शेर की भाँती दबोच लूँ| अब भौजी ने अपने ब्लाउज के बटन खोलने चालु कर दिए थे, इसके आगे देखना मेरे लिए मुश्किल था इसलिए मैं उठ खड़ा हुआ| भौजी को लगा की मैं आ कर उनको छूने वाला हूँ इसलिए वो मुस्कुरा दीं पर मैं उनकी तरफ बढ़ा ही नहीं और वहीँ खड़े-खड़े बोला;

मैं: भौजी मैं जा रहा हूँ|

ये सुन कर भौजी अचरज में पड़ गईं|

भौजी: क्यों?

मैं: आपको इस तरह देख के मेरा कंट्रोल छूट रहा है, मैं ये सब आज रात के लिए बचाना चाहता हूँ|

पर फिर भौजी ने ऐसी बात बोली की मैं एक पल के लिए सोच में पड़ गया|

भौजी: और अगर रात को मौका नहीं मिला तो? तुम तो कल चले जाओगे, पता नहीं फिर कभी हम मिलें भी या नहीं!!!

भौजी की ये बात सुन मेरी आत्मा चोटिल मेहसूस कर रही थी, पर उनकी बातों में सच्चाई थी जिसे मैं नकार नहीं सकता था| पर मैं फिर भी हर खतरा उठाने को तैयार था, मैं किसी भी हालत में भौजी की सुहागरात वाला तौफा ख़राब नहीं करना चाहता था| मैं भौजी की ओर बढ़ा और उन्हें अपनी बाँहों में भरा, उनके बदन पर मेरा दबाव तीव्र था और उन्हें ये संकेत दे रहा था की आप चिंता मत करो सब ठीक होगा, आपका सुहागरात वाला सरप्राइज मैं ख़राब नहीं होने दूँगा| अपनी बात को पक्का करने के लिए मैंने उनके होंठों को चूम लिया, परन्तु ये चुम्बन बहुत ही छोटा था! मैं बाहर जाने को मुड़ा;

मैं: भौजी मैं बाहर जा रहा हूँ, आप दरवाजा बंद कर लो|

भौजी: मानु मेरी एक बात मानोगे? (भौजी की आवाज बहुत भारी थी!)

मैं: हाँजी बोलो!

भौजी: कल मत जाओ! कोई भी बहाना बनाके रुक जाओ, मुझे भरोसे है की तुम ये कर सकते हो|

मैं: भौजी कल की वाराणसी की ट्रैन की टिकट बुक है| अगर मैं अपनी बीमारी का बहाना भी बना लूँ तो भी पिताजी मुझे ले जाए बिना नहीं मानेंगे, फिर तो चाहे उन्हें यहाँ तक एम्बुलेंस ही क्यों न बुलानी पड़े!


मेरी बात सुन भौजी एक बार फिर मायूस हो गईं, मैं इस बारे में और बात कर के फिर से भाभी की आँखें नम नहीं करना चाहता था इसलिए मैं सीधा बाहर की ओर निकल लिया और कमरे का दरवाजा सटा दिया| बाहर आके मैंने चैन की साँस ली और वापस छप्पर के नीचे पहुँचा जहाँ नेहा चारपाई पर बैठी चिप्स खा रही थी| मैं नेहा के पास बैठ गया और उसने चिप्स वाला पैकेट मेरी ओर बढ़ा दिया, मैंने भी उसमें से थोड़े चिप्स निकाले और खाने लगा|

जब से मैं आया था तब से मेरा और नेहा का लगाव बहुत बढ़ गया था| राकेश और वरुण तो दूसरे लड़कों के साथ खेलते रहते थे पर नेहा मेरे आस-पास मंडराती रहती| वैसे भी घर में उसे कोई प्यार नहीं करता था तो मैंने उसे थोड़ा ज्यादा ही लाड करना शुरू कर दिया था| नेहा कहानी सुनने के लिए जिद्द करने लगी, वो हमेशा रात को सोने से पहले मुझसे कहानी सुन्ना पसंद करती थी| मैं उसे मना नहीं कर पाया और चूहे, कबूतरों और गिलहरी की कहनी बना के सुनाने लगा| कहानी सुनते-सुनते नेहा मेरी गोद में ही सर रख के सो गई और मैं उसके सर पर हाथ फेरने लगा| तभी उस अकड़ू ठाकुर की बेटी माधुरी वहाँ आ गई| वो मेरे सामने पड़ी चारपाई पर बैठ गई और भौजी के बारे में पूछने लगी, मैंने उसे बताया की भाभी नहाने गई हैं, अभी आती होंगी पर ये तो उसका बहाना था बात शुरू करने का| अब उसने एक-एक कर अपने सवाल मेरे ऊपर दागे;

माधुरी: तो आप दिल्ली में कहाँ रहते हो?

मैं: डिफेन्स कॉलोनी

माधुरी: आपके स्कूल का नाम क्या है?

मैं: मॉडर्न स्कूल

माधुरी: आपके विषय कौन-कौन से हैं?

मैं: एकाउंट्स और मैथ्स

माधुरी: आपकी कोई गर्लफ्रेंड है?

मैं: मेरी कोई गर्लफ्रेंड नहीं है न ही मैं बनाना चाहता हूँ| आप अपने बारे में भी तो कुछ बताइये?

माधुरी: मैं राजकीय शिक्षा मंदिर में पढ़ती हूँ, दसवीं में हूँ मेरा भी कोई बॉयफ्रेंड नहीं है|


उसने बिना मेरे पूछे ही अपने बॉयफ्रेंड के बारे में बताया जो मुझे बड़ा अजीब लगा! वो मुझसे घुलने-मिलने की कोशिश कर रही थी और कुछ ज्यादा ही मुस्कुरा रही थी| दिमाग कह रहा था की; 'तुम जो इतना मुस्कुरा रही हो, क्या बात है जिसे छुपा रही हो?'

खैर वो आगे भी कुछ न कुछ पूछती रहती और मैं उसके सवालों का जवाब बहुत ही संक्षेप में देता क्योंकि मेरी उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी| मेरा व्यक्तित्व ही बड़े मौन स्वभाव का है, मैं बहुत काम बोलता हूँ और उसका व्यक्तित्व ठीक मेरे उलट था| मुझे ऐसा लगा जैसे वो मेरी और आकर्शित महसूस कर रही हो, तभी उसने सबसे विवादित प्रश्न छेड़ दिया;

माधुरी: तो मानु जी, आपके शादी के बारे में क्या विचार हैं|

मैं: शादी? अभी?

मेरा इतना बोलना था की भौजी भी अपने बाल पोंछते हुए आ गईं, वो हमें बातें करते हुए देख रही थी और जल भून के राख हो चुकीं थी| वो मेरे पास आई और कुछ इस तरह से खड़ी हुई की उनकी पीठ माधुरी की ओर थी| उन्होंने मुझे बड़े गुस्से से देखा और नेहा को मेरी गोद में से उठा के अपने घर की ओर चल दीं| मैं समझ गया की बेटा आज तेरी शामत है! मैं भौजी के पीछे एक दम से तो जा नहीं सकता था वरना माधुरी को शक हो जाता| तो मैं मौके की तलाश में था की कैसे माधुरी को यहाँ से भगाऊँ? मन बड़ा बेचैन हो रहा था, मैं एकदम से खामोश हो गया था पर माधुरी थी की पटर-पटर बोले जा रही थी| मेरी कोई भी प्रतिक्रिया ना पते हुए उसने खुद ही बात खत्म की;

माधुरी: लगता है आपका बात करने का मन नहीं है|

मैं: नहीं ऐसी कोई बात नहीं, दरअसल मुझे कल वापस निकलना है तो उसकी पैकिंग भी करनी है|

माधुरी: ओह! मुझे लगा आप को मैं पसंद नहीं! (माधुरी ने बुदबुदाते हुए कहा) मैं शाम को आती हूँ तब तक तो आपकी पैकिंग हो जाएगी ना?

मैं: हाँ

माधुरी उठ के चल दी पर एक पल के लिए मैं उसकी कही बात को सोचने लगा| आखिर उसका ये कहना की "मुझे लगा आप को मैं पसंद नहीं! " का मतलब क्या था? पर अभी मैं इस बात को ज्यादा तवज्जो नहीं दे सकता था क्योंकि भौजी नाराज थीं| मैं तुरंत भौजी के पीछे उनके घर की ओर भागा, वहाँ पहुँच के देखा तो भौजी अपनी चारपाई पर बैठी हैं और नेहा दूसरी चारपाई पर सो रही है|


मुझे अपने सामने देख भौजी ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा;

भाभी: कैसी लगी माधुरी?

मैं: क्या? (मैंने हैरान होते हुए कहा|)

भाभी: बड़ा हँस-हँस के बात कर रहे थे उससे?

मैं: भौजी ऐसा नहीं है, आपको ये लग रहा है की वो मुझे अच्छी लगती है और हमारे बीच में वो सब.... (मैंने अपनी बात अधूरी छोड़ दी|)

भाभी: और नहीं तो!

मैं: भौजी आप पागल तो नहीं हो गए? मैं सिर्फ और सिर्फ आपसे प्यार करता हूँ| मैं वहाँ नेहा को कहानी सुना रहा था, जिसे सुनते हुए नेहा सो गई और तभी माधुरी वहाँ आ घमकी, मैंने उसे नहीं बुलाया था वो अपने आप आई थी और हँस-हँस के वो बोल रही थी, मैं तो बस संक्षेप में उसकी बातों का जवाब दे रहा था| मेरे दिल में उसके लिए कुछ भी नहीं है|

भाभी: मैं नहीं मानती!!!

पर भौजी को मेरी बात पर विश्वास नहीं था|

मैं: ठीक है, मैं ये साबित करता हूँ की मैं आपसे कितना प्यार करता हूँ|

उनकी बात सुन कर मुझे बड़ा ताव आया, भला वो कैसे मुझसे ऐसा कह सकतीं हैं? उनकी हिम्मत कैसे हुई मुझ पर शक करने की?! भौजी के शब्द मुझे शूल की तरह चुभ रहे थे, इसलिए मैं भाग के रसोई तक गया और वहाँ से हँसिया उठा लाया| मैं वो हँसिया भौजी को दिखाते हुए बोला;

मैं: मैं अपनी नस काट लूँ तब तो आपको यकीन हो जायेगा की मैं आपसे कितना प्यार करता हूँ?

मैंने गुस्से से कहा तो भौजी भागती हुई मेरे पास आई और मेरे हाथ से हँसिया छुड़ा के दूर फैंक दिया;

भौजी: मानु मैं तो मजाक कर रही थी, मुझे पता है की तुम मेरे आलावा किसी से प्यार नहीं करते!

मैं: भौजी दुबारा ऐसा मज़ाक मत करना वरना आप मुझे खो.....

मैं अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था की भौजी ने अपना हाथ मेरे होंठों पे रख दिया और मुझे गले लगा लिया|


भौजी के गले लगे हुए मुझे एहसास हुआ की अभी जो मैं कदम उठाने जा रहा था वो क्या था? अगर मुझे कुछ हो जाता तो मेरे माँ-पिताजी का क्या होता? मैंने आखिर उनके बारे में कुछ सोचा क्यों नहीं? क्या इसी को प्यार कहते हैं?! फिल्मों में, कहानियों में, किताबों में मैंने जो भी पढ़ा उसके अनुसार तो यही प्रेम है पर वास्तविकता में जिन लोगों को मेरे द्वारा उठाये इस कदम से धक्का लगता, दर्द होता या वो टूट जाते तो? क्या प्रेम में सिर्फ और सिर्फ अपना ही स्वार्थ देखा जाता है? अपने परिवार, दोस्तों के बारे में सोचना गलत है?


खेर हम अलग हुए पर भोजन के लिए अब बहुत देर हो चुकी थी, इसलिए भौजी ने जल्दी-जल्दी भोजन बनाना शुरू किया| मैं भी चुपचाप उनके सामने बैठा उन्हें निहारने में लगा था| भौजी बीच-बीच में मेरी ओर देख के मुस्कुरा रही थी, पर मेरा दिमाग रात के उपहार के लिए योजना बना रहा था| मन में एक बात की तसल्ली थी तो एक बात का डर भी| तसल्ली इस बात की कि घर में लोग होने कि वजह से कम से कम चन्दर भैया तो भौजी के साथ नहीं सोयेंगे और डर इस बात का कि अगर रात को फिर से अजय भैया और रसिका भाभी का झगड़ा शुरू हो गया तो घर के सब लोग उठ जायेंगे और मेरे सरप्राइज की धज्जियाँ उड़ जाएंगी|

दोपहर के भोजन के बाद घर के सब लोग खेत में काम करने जा चुके थे, केवल मैं, भौजी, नेहा और रसिका भाभी ही रह गए थे| रसिका भाभी तो हमेशा कि तरह एक चारपाई पर फ़ैल के सो गईं और नेहा मेरे साथ चिड़िया उड़ खेलने लगी| कुछ देर में भौजी भी हमारे साथ खेलने लगीं;

मैं: नेहा बेटा एक बात तो बताओ, आप अशोक भैया, अजय भैया, गट्टू भैया को चाचा कहते हो और मुझे चाचू क्यों?

ये सवाल सुन कर नेहा भौजी की तरफ देखने लगी और मैं समझ गया की भौजी ने ही उसे ये सिखाया है पर इसका कारन मैं नहीं जानता था|

मैं: हम्म्म...तो आपने नेहा से मुझे चाचू कहने को कहा था? (मैंने मुस्कुराते हुए भौजी से पुछा|)

भौजी: इस घर में नेहा से सबसे ज्यादा प्यार आप ही करते हो, तो सबसे ज्यादा प्यार वो आपको ही देगी ना?!

भौजी की इस बात के दो अर्थ थे, एक अर्थ तो नेहा से जुड़ा था और दूसरा अर्थ हम दोनों के प्रेम से जुड़ा था| भौजी की ये बात सुन हम दोनों ही मंद-मंद हँस पड़े, इतने में नेहा चारपाई पर खड़ी हो गई और आ कर मेरे गले लग गई|

मैं: I Love You बेटा!

मैंने नेहा को कस कर जकड़ते हुए कहा, पर भौजी और नेहा इसका मतलब नहीं समझे थे और मेरी तरफ हैरानी से देख रहे थे, तो मैंने अपनी बात हिंदी में दोहराई;

मैं: मतलब मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ!

मेरी बात सुन नेहा के चेहरे पर ख़ुशी की लहार दौड़ गई पर भौजी को अपनी ही बेटी से एक मीठी सी जलन हुई;

भौजी: (मेरे कान में खुसफुसाते हुए) अच्छा? मुझसे प्यार नहीं करते?! (भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|)

मैं: आपको तो बहुत बार कहा है|

मेरा जवाब सुन भौजी के चेहरे पर शर्म की लाली आ गई| तभी नेहा बोली;

नेहा: चाचू...मैं ...भी...आपको....बहुत....प्यार...करती...हूँ!

नेहा ने प्यार से मुस्कुराते हुए कहा| मैंने ये बात गौर की थी की वो मुझसे बात करते समय शब्दों को थोड़ा खींच-खींच कर बोलती है|

मैं: भौजी नेहा इस तरह शब्दों को खींच-खींच कर क्यों बोलती है?

मैंने चिंता जताते हुए कहा|

भौजी: (मुस्कुराते हुए) मेरी देखा-देखि ये भी तुम से हिंदी में बात करना चाहती है|

भौजी की बात सुन कर मुझे नेहा पर और प्यार आने लगा, एक छोटी सी बच्ची जो गाओं में रही हो और वहाँ की बोली-भाषा बोलती हो वो अचानक हिंदी बोलने लगे वो भी सिर्फ मेरे लिए, इससे बड़ी बात कोई नहीं हो सकती| उम्र में बड़ा बच्चा तो दोनों भाषा आराम से बोल सकता है पर एक होती बच्ची के लिए ये इतना आसान नहीं होता| नेहा बड़ा सोच-सोच कर, शब्दों को तोड़-तोड़ कर बोलती थी और मैंने सोच लिया की मैं उसकी हिंदी ठीक करके रहूँगा;

मैं: बेटा अब से आप सब के साथ हिंदी में ही बात करो ताकि आपकी हिंदी अच्छी हो जाये| फिर जैसे आप आसानी से यहाँ की भाषा बोलते हो वैसे ही आप हिंदी भी बोल पाओगे|

ये सुन कर भौजी और नेहा मुस्कुराने लगे| नेहा मेरी गोद में सर रख के लेट गई और मैं भौजी की गोद में सर रख कर लेट गया| हम तीनों खामोश थे, नेहा की आँख लग गई थी और मैं भौजी को टकटकी बाँधे देख रहा था| तकरीबन 1 घंटा ही बीता था की माधुरी फिर से आ गई, उसे देख मैं भौजी से अलग हो कर बैठ गया ताकि वो हम दोनों पर शक न करने लगे|

देखने में माधुरी बुरी तो नहीं थी...ठीक ही थी, पर मेरे लिए तो भौजी ही सबकुछ थी| उसे सामने देख के मैं और भाभी दोनों ही नाखुश थे, चूँकि वो उस अकड़ू ठाकुर की बेटी थी इसलिए भौजी उसे कुछ कह भी नहीं सकती थी| इसलिए भौजी उठ के स्वयं चली गई और साथ-साथ नेहा को भी ले गई| मुझे उनका ये व्यवहार ऐसा लगा जैसा की फिल्म में जब लड़के वाले लड़की देखने जाते हैं तो अधिकतर माँ बाप लड़का-लड़की को अकेला छोड़ देते हैं ताकि वो आपस में कुछ बात कर सकें| एक बार फिरसे मेरा मन

विचिलित था क्योंकि मुझे पता था की भौजी का मूड फिर ख़राब हो गया है| मैं अभी यही सोच रहा था की माधुरी मेरे पास आ कर बैठ गई और पूछने लगी;

माधुरी: तो मानु जी पैकिंग हो गई आपकी?

मैं: हाँ

माधुरी: अब कब आओगे?

मैं: पता नहीं.... शायद अगले साल|

माधुरी: अगले साल?


जिस तरह से उसने प्रतिक्रिया दी थी उससे मैं हैरान था, उसे बड़ी चिंता थी मेरे अगले साल आने की? इस से पहले की वो अपना अगला सवाल पूछ पाती, नेहा भागती हुई आई और मुझे अपने साथ खींच के ले जाने लगी| माधुरी ने कई बार पुछा की कहाँ ले जा रही है? परन्तु नेहा बस मुझे खींचने में लगी हुई थी, मैंने माधुरी से इन्तेजार करने को कहा और नेहा के पीछे चल दिया| नेहा मेरी ऊँगली पकड़ के खींच के मुझे भुट्टे के खेत में ले आई| मैं हैरान था की भला उसे यहाँ क्या काम? जब आगे जा कर देखा तो भौजी भुट्टे के खेत में बीचों-बीच बैठी है| उन्हें इस तरह बैठे देख पहले तो मैं थोड़ा परेशान हुआ, पर फिर नेहा ने इशारे से ऊपर लगी भुट्टे कि एक बाली मुझे तोड़ने के लिए कहा, मैंने उसे ये बाली तोड़ के दे दी और भौजी से पुछा;

मैं: आप यहाँ क्या कर रहे हो?

भौजी: (मुस्कुराते हुए) तुम्हारा इन्तेजार!!!

मैं: भौजी धीरे बोलो कोई सुन लेगा?

भौजी: यहाँ कोई नहीं है, सभी तालाब के पास वाले खेत में काम कर रहे हैं| चाचा-चाची भी वहीं हैंअब बोलो? (भौजी जैसे सब सोच कर बैठीं थी|)

मैं: और वो जो वहाँ बैठी है? (मेरा मतलब माधुरी से थे)

भौजी: तुम्हारी वजह से उसे कुछ नहीं कहती वरना....

मैं: (भौजी की बात काटते हुए) मेरी वजह से? मैंने कब रोक आपको?

भौजी: मैं देख रही हूँ वो तुम्हें पसंद करने लगी है!!!

भौजी ने मेरी टाँग फिर से खींचते हुए कहा जो मुझे जरा भी रास ना आया, इसलिए मैं चिढ़ते हुए बोला;

मैं: आपने फिर से शुरू कर दिया?

इतना कहके मैं गुस्से में अपने पाँव पटकता हुआ वापस आ गया, पता नहीं क्यों पर भौजी की इस बात पर हमेशा मिर्ची लग जाती थी| मैं वापस आ कर माधुरी के सामने वाली चारपाई पर सर झुकाये बैठ गया|

माधुरी: कहाँ गए थे आप?

मैं: नेहा को भुट्टे कि बाली तोड़ के देने गया था|

माधुरी: वो उसका क्या करेगी?

मैं: पता नहीं.. शायद खेलेगी|

माधुरी: आपके बाल खुश्क लगते हैं, अगर कहो तो मैं तेल लगा दूँ?

माधुरी ने एकदम से बात बदलते हुए कहा पर मैं उसकी बात सुन के हैरानी से उसे देखने लगा| आखिर ये मेरे बालों में तेल क्यों लगाना चाहती है? क्या ये मुझसे प्यार करती है? या इसके बाप ने इसे सीखा-पढ़ा के मुझे फँसाने भेजा है? मुझपर कब से सुर्खाब के पर लग गए की ये मुझमें दिलचस्पी ले रही है? ये सभी सवाल मेरे जहन में एक साथ उठने लगे और मैंने बड़े रूखे मन से जवाब दिया;

मैं: नहीं शुक्रिया|

एक पल को तो लगा की मैं उससे पूछ लूँ की आप मुझ में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहे हो? लेकिन फिर मैंने सोचा कि अगर मैं गलत निकला तो खामखा बेइज्जती हो जाएगी| अभी मैं ये सोच ही रहा था की भौजी आ गईं;

भौजी: अरे माधुरी शाम हो रही है, ठकुराइन तुझे ढूँढती होंगी| (भौजी ने झूठ बोला|)

माधुरी: पर मैं तो उन्हें बता के आई हूँ| (माधुरी ने तपाक से जवाब दिया|)

भौजी: तेरे पापा भी आ गए होंगे|

अब ये सुनते ही उसकी हवा टाइट होगी और वो बोली;

माधुरी: अरे बाप रे! भौजी मैं बाद में आती हूँ|

न जाने क्यों अपने बाप का नाम सुनते ही वो भाग खड़ी हुई और उसके जाते ही मैंने चैन कि साँस ली|

भौजी: अब तो खुश हो ना? (भौजी हँसते हुए बोलीं, मानो उन्होंने मेरी इज्जत बचा ली हो!)

मैं: (एक लम्बी साँस लेते हुए) हाँ!!!

इतने में एक-एक कर सभी घरवाले आ गए और उन सबको देख अब मुझे सच में चिंता होने लगी थी की अगर रात का सरप्राइज फ्लॉप हो गया तो भौजी का दिल टूट जायेगा, मैं किसी भी कीमत पे उनका दिल नहीं तोडना चाहता था| मन में बस एक ही ख़याल आ रहा था की किस्मत कभी भी किसी को दूसरा मौका नहीं देती, तो मुझे ही मौका पैदा करना होगा| मगर कैसे?


शाम होने को आई थी, सभी लोग घर लौट आये थे| पिताजी, चन्दर भैया, अशोक भैया, अजय भैया और बड़के दादा एक साथ बैठे कल कितने बजे निकलना है उसके बारे में बात कर रहे थे| इधर भौजी खाना बनाने में व्यस्त थीं, मैं ठीक उनके सामने बैठा था परन्तु अब समय था प्लान बनाने का| इसलिए मैं चुप-चाप उठा और पिताजी के पास जा कर बैठ गया| किसी भी प्लान को बनाने से पहले हालत का जायज़ा लेना जरुरी होता है इसलिए मैं उनकी बात सुनने के लिए वहीं चुप-चाप बैठ गया| पिताजी ने अभी तक मेरे और उनके बीच हुई बात का जिक्र किसी से भी नहीं किया था, वहाँ हो रही बातों से ये तो साफ़ था की आज सब लोग छत पर नहीं बल्कि रसोई के पास वाली जगह पर ही सोने वाले हैं| अब मुझे सब से मुख्य बातों पर ध्यान देना था;

1. रसिका भाभी को अजय भैया से दूर रखना और

2. चन्दर भैया को भौजी से दूर रखना|

अगर इनमें से एक भी काम ठीक से नहीं हुआ तो भौजी का दिल टूट जायेगा| अब समय था मुझे अपनी पहली चाल चलने का, मैं तुरंत भौजी के पास पहुँचा और उनसे रसिका भाभी के बारे में पूछा| ये सवाल सुन के भौजी थोड़ा हैरान हुईं क्योंकि मैंने आज तक कभी भी किसी से भी रसिका भाभी के बारे में नहीं पूछा था| भौजी ने मुझे घूरते हुए बताया की रसिका भाभी बड़े घर में अपने कमरे में सो रही हैं| मुझे ये निश्चित करना था की रसिका भाभी बड़े घर में ही रहे| इसलिए मैं उनके पास पहुँचा और उन्हें जगाया, जब मैंने उनके सोने का कारन पूछा तो उन्होंने बताया की उनका बदन टूट रहा है| खेर मैंने बात को बदला और हम गप्पें हाँकने लगे, भाभी को लगा की शायद मैं कल जा रहा हूँ तो उनसे ऐसे ही आखरी बार बात करने आया हूँ| इधर भोजन का समय हो चूका था और मुझे अपनी दूसरी चाल चलनी थी| सबसे पहले मैंने रसिका भाभी से जिद्द की कि आज हम एक साथ ही भोजन करेंगे, एक साथ भोजन का मतलब था कि आमने सामने बैठ के भोजन करना साथ मैं तो मैं सिर्फ और सिर्फ अपनी प्यारी भौजी के साथ ही भोजन करता था| ये सुन के रसिका भाभी को थोड़ा अचरज तो हुआ पर मैंने उन्हें ज्यादा सोचने का मौका नहीं दिया और मैं हम दोनों का भोजन लेने रसोई पहुँच गया| इधर मेरी प्यारी भौजी मेरे इस बर्ताव से बड़ी अचंभित थी! मैं खाना लेके रसिका भाभी के पास पहुँच गया और मेरे पीछे-पीछे नेहा भी अपनी थाली ले के आ गई| भोजन करते समय भी रसिका भाभी और मैं गप्पें मारते रहे| भोजन समाप्त होने के बाद मैंने रसिका भाभी से उनकी थाली ले ली उन्होंने काफी मना किया पर मैं अपनी जिद्द पर अड़ा रहा| मैं जल्दी से थाली रख के हाथ मुँह धोके अजय भैया को ढूँढने लगा, अजय भैया मुझे कुऐं के पास टहलते हुए दिखाई दिए| मैं उनके पास पहुँचा और थोड़ा इधर-उधर की बातें करने लगा| बातों ही बातों में मैंने रसिका भाभी की बिमारी की बात छेड़ दी| मेरी बात सुन के भैया को तो जैसे कोई फरक ही नहीं पड़ा, मुझे मेरा प्लान चौपट होता दिख रहा था क्योंकि मुझे उम्मीद थी कि शायद ये बात जान के अजय भैया रसिका भाभी के आस-पास ना भटकें| अब बारी थी चन्दर भैया को सेट करने की, मैं उनके पास पहुँचा तो देखा की वो तो सोने की तैयारी कर रहे थे| उन्हें देख के लग रहा था की थकान उनके शरीर पर भारी हैं| घर के सभी पुरुष भोजन कर चुके थे और रसिका भाभी खाना खाते ही लेट चुकीं थी| मुझे छोड़के सभी पुरषों के बिस्तर आस-पास लगे हुए थे और वे सभी अपने-अपने बिस्तर पर लेट चुके थे| पिताजी, बड़के दादा सो चुके थे, अजय भैया की चारपाई चन्दर भैया के पास ही थी और वो भी लेट चुके थे|


अब केवल घर की स्त्रियाँ ही भोजन कर रहीं थी, मुझे कैसे भी कर के भौजी तक ये बात पहुँचानी थी की वे आज रात के सरप्राइज के लिए तैयार रहें| इसलिए मैं टहलते-टहलते छप्पर के नीचे पहुँच गया, माँ और मधु भाभी भोजन समाप्त कर उठ रहीं थी| बड़की अम्मा भी लगभग उठने ही वालीं थी और भौजी बड़े आराम से भोजन कर रहीं थी| जब सब भोजन कर के चले गए तब मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा;

मैं: भौजी आपका तौफा बिलकुल तैयार है|

भौजी: (खुश होते हुए) अच्छा?

मैं: मैं सोने जा रहा हूँ, जब आपको लगे सब सो गए हैं तब आप मुझे उठा देना|

भौजी: ठीक है!

भौजी के चेहरे से उनकी प्रसन्ता झलक रही थी और उन्हें खुश देख मैं भी खुश था| मैं अपने बिस्तर पर आके लेट गया और ऐसा दिखाया की जैसे मैं घोड़े बेच के सोया हूँ पर असल में तो मैं उस क्षण की प्रतीक्षा कर रहा था जब भौजी मुझे उठाने आएं| रात के ग्यारह बजे भौजी मुझे उठाने आईं, मैं चुप-चाप उठा और उनके पीछे-पीछे चल दिया|

जारी रहेगा भाग 2 में...
 
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आठवाँ अध्याय: जूनून
भाग - 2
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मेरे भौजी के घर के भीतर पहुँच ही भौजी ने दरवाजा बंद किया, जैसे ही वो पलटीं मैं उनके सामने खड़ा था| मैंने आगे बढ़कर उन्हें अपने सीने से लगा लिया, भौजी मेरे इस आलिंगन से कसमसा गईं और मुझसे ऐसे चिपक गईं जैसे कोई जंगली बेल पेड़ से चिपक जाती है| आज मैं किसी भी जल्दी में नहीं था क्योंकि मैं चाहता था की भौजी हर एक सेकंड को महसूस करें और इस पल को हमेशा याद रखें| करीब पाँच मिनट बाद जब हमारा आलिंगन टूटा तो मैंने भौजी से दरख्वास्त की; "भौजी! आप पलंग पर ठीक वैसे बैठो जैसे आप अपनी शादी वाली रात बैठे थे!" मेरी बात सुन भौजी के चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कराहट आ गई| भौजी घुटने मोड़े हुए, एक हाथ का घूँघट काढ़े पलंग पर बैठी गईं! दिखने में वो बिलकुल एक नई नवेली दुल्हन जैसी दिख रहीं थी| मैं किसी कुँवर की तरह उनकी ओर बढ़ा और उनकी तरफ मुँह करके बैठ गया| मैंने अपने हाथ से उनका घूँघट बड़ी सहजता के साथ उठाया, इस समय भौजी की नजरें नीचे झुकीं थी| मैंने जब उनकी ठुड्डी पकड़ के ऊपर उठाई तब हमारी आँखें एक दूसरे से मिलीं और कुछ क्षण के लिए मैं उनकी आँखों में देखता ही रहा| ऐसा लगा जैसे चाँद बादलों से निकल आया हो, मैंने थोड़ा ध्यान दिया तो पाया भौजी ने थोड़ा बहुत साज-श्रृंगार किया है, उनके होंठों पर लाली थी, बाल सवरें परन्तु खुले हुए थे, उनका चेहरा दमक रहा था और उनके शरीर से मीठी-मीठी गुलाब जल की खुशबु आ रही थी| मैंने भौजी को इस तरह देखना की कभी कल्पना भी नहीं की थी| मैं खुद को भौजी की तारीफ करने से रोक नहीं पाया और अनायास ही मेरे मुँह से ये बोल फूटे;

"आप खूबसूरत हैं इतने,

के हर शख्स की ज़ुबान पर आप ही का तराना है,

हम नाचीज़ तो कहाँ किसी के काबिल,

और आपका तो खुदा भी दीवाना है..."


अपनी तारीफ सुन भौजी का चेहरा शर्म से लाल हो गया| उन्हें इस तरह देख मेरा दिल मचलने लगा था, मैंने आगे बढ़ के उनके लाल होंठों को चूम लिया| मेरे दोनों हाथों ने भौजी के चेहरे को कैद कर रखा था और मैं अपने होंठों से उनके होंठों को बारी-बारी चूस रहा था| भौजी भी बराबर जवाब देते हुए मेरे होठों को चूस रहीं थी| ऐसा करीब पाँच मिनट तक चला और जब हम दोनों अलग हुए तो भौजी बोलीं;

भौजी: मानु... तुम्हारे लिए कुछ है?

मैं: (उत्सुकतावश) क्या?

भौजी उठीं और खिड़की में रखा गिलास उठा लाईं|

मैं: दूध.... पर इसकी क्या जर्रूरत थी?

भौजी: ये एक रसम होती है की दुल्हन अपने दूल्हे को अपने हाथ से दूध पिलाये|

इतना कह भौजी मेरे पास बैठ गईं और मुझे अपने हाथ से दूध पिलाया लेकिन मैंने केवल आधा गिलास ही दूध पिया और बाकी मैंने भौजी की ओर बढ़ा दिया;

भौजी: मानु मुझे दूध अच्छा नहीं लगता| (भौजी ने मुँह बनाते हुए कहा|)

मैं: मेरे लिए पी लो!

मैंने इतना प्यार से कहा की भौजी मना नहीं कर पाइन, फिर मैंने भौजी को अपने हाथ से दूध पिलाया| भौजी को दूध पिलाने के बाद मैंने वो गिलास चारपाई के नीचे रख दिया और जैसे ही मैं गिलास रख के उठा, भौजी ने अपने दोनों हाथों को मेरे दोनों गालों पर रख मुझे रोक लिया| हम दोनों की आँखें बस एक दूसरे के होठों पर टिकी थीं, भौजी ने पहल करते हुए एक जबरदस्त चुम्बन मेरे होठों पर जड़ दिया| उन्होंने अपने मुँह में मेरे होंठों को जकड़ लिया, उनके मुँह से मुझे दूध की सुगंध आ रही थी| इधर भौजी ने मेरे होंठों से खेलना शुरू कर दिया था| मेरा भी अपने ऊपर से काबू छूटने लगा था, मैंने भी भौजी के पुष्प जैसे होठों को अपने होठों के भीतर भर लिया और उनका रसपान करने लगा| सबसे पहले मैंने उनके ऊपर के होंठ को चूसना शुरू किया, दूध की सुगंध ने उनके होठों मैं मिठास घोल दी थी जिसे मैं हर हाल में पीना चाहता था| जब मैं भौजी के ऊपर वाले होंठ को चूसने में व्यस्त था, तब भौजी ने अपने नीचे वाले होंठ से मेरे नीचले होंठ का रसपान शुरू कर दिया था| करीब पाँच मिनट तक हम दोनों एकदूसरे के होंठों को बारी-बारी चूसते रहे और पूरे कमरे में "पुच .....पुच" की धवनि गूंजने लगी थी! बीच-बीच में भौजी और मेरे मुख से "म्म्म्म्म्म...हम्म्म्म " की आवाज भी निकलती थी| मैं अब वो चीज करना चाहता था जिसके लिए मैं बहुत तड़प रहा था, मैंने अपनी जीभ का प्रवेश भौजी के मुख में करा दिया जिसका स्वागत भौजी ने अपने मोतियों से सफ़ेद दाँतों को खोल कर किया| उन्होंने मेरी जीभ को अपने दाँतों से दबा दिया और अपनी जीभ से उसे स्पर्श किया| इस अनुभव ने मेरे शरीर का रोम-रोम खड़ा हो गया, वासना मेरे अंदर हिलोरे मारने लगी थी| भौजी ने मेरी जीभ को धीरे-धीरे चूसना शुरू कर दिया था, गर्दन से नीचे मेरा शरीर हरकत में आ चूका था| मेरे लिंग में तनाव आ चूका था और ऐसा लगता था जैसे वो चीख-चीख के किसी को पुकार रहा हो!


इधर भौजी कभी-कभी मेरी जीभ को अपने दाँतों से काटती तो मेरे मुख से "मम्म" की हलकी सिसकारी छूट जाती| ऊपर भौजी का आक्रमण जारी था, तो नीचे से मेरे हाथ उनके स्तनों को बारी-बारी से गूंदने और रोंदने लगे थे| जैसे ही भौजी ने सिसकारी के लिए अपने मुख को खोलो मैंने अपनी जीभ उनके चंगुल से छुड़ाई और कमान अपने हाथों में ले ली, मैंने ऊपर तथा नीचे दोनों तरफ से हमला करना शुरू कर दिया| सबसे पहले मैंने अपनी जीभ से भौजी के दाँतों को स्पर्श किया, इसका उत्तर देने के लिए जैसे ही भौजी की जीभ मेरे मुख में दाखिल हुई मैंने उनकी जीभ को अपने दाँतों से दबा कर एक जोर दार सुड़का मारा और उसे चूसने लगा| भौजी के हाथ मेरे हाथों को अपने वक्ष पर दबाने को उकसाने लगे, लेकिन मुझे उनके मुख से आ रही दूध की सुगंध इतना मोहित कर रही थी की मैं उन्हें चूमना-चूसना छोड़ ही नहीं रहा था| लग रहा था की मैं आज सारा रसपान कर ही लूँ, पर मेरे मस्तिष्क ने मुझे सूचित किया की बेटा अगर इसी में समय बर्बाद किया तो सुहागरात पूरी नहीं होगी!

मैंने अपने लबों को उनके लबों से जुदा किया और उनकी गोरी-गोरी गर्दन पर अपने दाँत गड़ा दिए| दाँत गड़ते ही भौजी की आँखें बंद हो गई और वो दर्द से सिंहर उठी; "स्स्स्स्स्स्स्स्स..... मानु ..... म्म्म्म्म!!!" उनके मुख से अपना नाम सुन मुझे जोश आ गया और मैंने उनकी गर्दन पर अधिक जोर से काट लिया, प्यार की भाषा में इसे "लव बाईट" कहेंगे! अब मैंने उनकी गर्दन को काटना और चूसना शुरू कर दिया था, जितना सुखद एहसास वो मेरे लिए था, उतना ही दर्द भर एहसास वो भौजी के लिए था| मैं उनकी गर्दन को चूमते हुए नीचे आया और उनके वक्ष के पास आके रुक गया| मेरे हाथ अब भी भौजी के स्तनों को मसल रहे थे और भौजी के मुख पर पीड़ा और सुख के मिले-जुले भाव थे| जब उन्होंने देखा की मैं रुक गया हूँ तो उन्होंने आँखें खोली और स्वयं अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगीं| उनके ब्लाउज के बटन खुलने में कुछ समय लगा और ये समय मेरे लिए बड़ा ही उबाऊ था, मैं इतना जोश में था की मुझे प्रतीक्षा करना उबाऊ लगा रहा था| उन कुछ पलों में मैं सोचने लगा की कब भौजी के स्तन इस ब्लाउज की जेल से आजाद होंगे? कब मैं उन्हें छू सकूँगा? कब मैं उन्हें मुँह में भर कर चूसूँगा? मैं नहीं जानता था की भौजी मुझे तरसाने के लिए जानबूझ कर बटन धीमे से खोल रही हैं|


पर जब भौजी ने सभी बटन खोले तो मैं देख के हैरान हो गया की भौजी ने आज ब्रा पहनी थी! अब मेरे मन में एक तीव्र इच्छा ने जन्म लिया, वो ये थी की मैं उनकी ब्रा खुद उतारूँ| जैसे ही भौजी अपने हाथ ब्रा की ओर ले गईं, मैंने भौजी के होटों को तुरंत चुम लिया| अपने लबों में उनके लबों को कैद कर, मैं अपने हाथ उनकी पीठ पर ले गया और भौजी को ब्रा के हुक खोलने से रोक दिया| शायद भौजी मेरी इच्छा समझ गईं और उन्होंने अपने हाथ अब मेरी पीठ पर चलने शुरू कर दिए| उधर मैं अपनी उँगलियों से भौजी की ब्रा के हुकों को महसूस करने लगा| वो गिनती में तीन थे, लेकिन मुझे डर था की कहीं मैं उन्हें तोड़ ना दूँ इसलिए मैं एक-एक कर उनके हुक खोलने लगा| इधर भौजी ने अपने होंठ मेरी पकड़ से छुड़ा लिए थे और अब वो मेरे होंठों को चूस तथा अपनी जीभ से चाट रहीं थी| मैंने एक-एक कर तीनों हुक बड़ी सावधानी से खोल दिए और अपने होठों को भौजी के होंठों से जैसे ही दूर किया तो भौजी की ब्रा उचक के सामने आ गई| मैंने भौजी की ब्रा को ऊपर से स्पर्श किया तो उस का मख्मली एहसास ने मेरी कामवासना को और भड़का दिया!

भौजी ने अभी तक अपनी ब्रा को अपने स्तनों पर दबा रखा था, जैसे की वो मुझसे कुछ छुपाना चाहती हों! तब मुझे एहसास हुआ की दरअसल वो मेरे सुहागरात वाले तोहफे को अच्छी तरह से महसूस करना और कराना चाहती थीं, इसीलिए वो बिलकुल एक नई नवेली दुल्हन जैसा बर्ताव कर रहीं थीं जिसे मैं ब्याह के लाया था| मैंने अपने हाथ उनके वक्ष की ओर बढ़ाये और बड़े प्यार से उनकी ब्रा को पकड़ा, धीरे-धीरे मैंने उसे खींच के उनके बदन से दूर किया| जैसे ही ब्रा उनके बदन से दूर हुई उन्होंने अपनी नजरें झुका लीं और अपने हाथ से अपने स्तनों को छुपाने की कोशिश करने लगीं| भौजी तो ऊपर से निर्वस्त्र हो चुकी थीं पर मैंने अभी तक कपड़े पहने हुए थे, इसलिए सबसे पहले मैंने अपना सफ़ेद कुरता उतार दिया और उसे नीचे फैंक दिया| अब मैं और भौजी दोनों ऊपर से नग्न अवस्था में थे!


मैंने भौजी के मुख को नज़ाकत से ऊपर उठाया और पाया की भौजी की आँखें अब भी बंद थीं| मैंने आगे बढ़ कर उनकी आँखों पर अपने होंठ रखे और उन्हें खोलने की याचना व्यक्त की| भौजी ने अपनी आँखें खोली और मुझे अपने समक्ष पहली बार बिना कपड़ों के देख उन्होंने अपने स्तनों पर से हाथ हटाया और मुझे कस के अपने आलिंगन में जकड लिया| उनके स्तन आज पहली बार मेरी छाती से स्पर्श हुए तो मेरे बदन में आग लग गई| भौजी के निप्पल कड़े हो चुके थे और वो मेरे छाती में तीर की भाँती गड रहे थे| अब भौजी मेरी नंगी पीठ पर हाथ फेर रहीं थी और मैं उनकी पीठ पर हाथ फेर रहा था| आज पहली बार मैं उनकी हृदय की धड़कन सुन पा रहा था और वो मेरे हृदय की धड़कन को सुन पा रहीं थी, दोनों दिल एक गति में तो नहीं परन्तु बड़े जोर से धड़क रहे थे| अब ज्यादा समय गवाना व्यर्थ था इसलिए मैंने भौजी को आलिंगन किये हुए ही अपना वजन उनपर डालने लगा ताकि वो लेट जाएँ, अगले ही पल वो लेट गईं और तब उन्होंने मुझे अपनी गिरफ्त से आजाद किया| उनके 36 D साइज के स्तन (मेरा अंदाजा गलत भी हो सकता है|) मुझे मूक आमंत्रण दे रहे थे| मैं भौजी के ऊपर आ गया, भौजी का शरीर ठीक मेरी दोनों टांगों के बीच में था| मैंने सर्वप्रथम शिखर से शुरूरत की, मैंने अपना मुख को ठीक उनके बाएँ निप्पल के आकर से थोड़ा बड़ा खोला और उसे मुख में भर लिया| न मैंने उनके निप्पल को अपने जीभ से छेड़ा और न हीं उसे चूसा, केवल उसे मुँह में भरे ऐसे ही स्थिर रहा| कोई प्रतिक्रिया न होने से भौजी मचलने लगीं और अपने हाथ से मेरे सर को अपने स्तन पर दबाने लगीं| मैं उन्हें और नहीं तड़पना चाहता था इसलिए मैंने उनके निप्पल को अपने होठों से थोड़ा भीँचा, उसके बाद उसे मुख में भर के ऐसे चूसने लगा जैसे की अभी उसमें से दूध निकल जायेगा| भौजी अपने दोनों हाथों से मेरे सर को पकडे अपने बाएँ स्तन पर दबाने लगीं और मैं भी बड़े चाव से उनके निप्पल को चूसने लगा, उन्हें थोड़ा तड़पाने के लिए मैं बीच-बीच में उनके निप्पल को काट भी लेता था| जैसे ही मैं भौजी के बाएँ निप्पल को काटता तो भौजी चिहुक उठती; "अह्ह्हह्ह ....स्स्स्सस्स्स्स!!!" करीब 5 मिनट तक उनके बाएँ निप्पल को चूसने के बाद मैंने उनके निप्पल पर अपने लव बाईट की छाप छोड़ दी, उनका बायाँ स्तन बिलकुल लाल हो चूका था| मैं सरकता हुआ नीच बढ़ने लगा तो भौजी अपने दाएँ स्तन की ओर इशारा करते हुए| बोलीं; "मानु.... इसे भूल गए?" उनकी बात सुन मैं मुस्कुरा दिया और बोला; "इसकी बारी अभी नहीं आई!" मेरी बात सुन भौजी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई!


मैं सरकता हुआ नीचे उनकी नाभि पर पहुँचा और उसके भीतर से मुझे गुलाब जल की महक आने लगी! मैं अपने मुख को जितना खोल सकता था, उतना खोला और उनके नाभि के ठीक ऊपर काट लिया! मेरी इस हरकत से भौजी बुरी तरह मचल उठीं, जैसे की जल बिन मछली तड़पती है| मेरे पूरे दातों ने भौजी की नाभि के इर्द-गिर्द लव बाईट बनाने का काम कर दिया था|

मैं सरकता हुआ थोड़ा नीचे आय तो देखा की मैं भौजी की साडी तो उतारना ही भूल गया! अब मैं समय बर्बाद नहीं करना चाहता था, क्योंकि मुझे पता था की अगर अजय भैया रसिका भाभी के पास सम्भोग करने के लिए पहुँच गए या कहीं चन्दर भैया ने दरवाजा खटखटा दिया तो सत्यानाश हो जायेगा| इसलिए मैंने जल्दी-जल्दी भौजी की साडी खींचना शुरू कर दिया| भौजी मेरी मदद करना चाहती थी परन्तु उस समय मैं बहुत बेसब्र था| मुझे एक तरकीब सूझी, मैंने भौजी की साडी बिलकुल उठा दी और उनके पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया तथा एक झटके में पेटीकोट नीचे खींच दिया| साडी खुली तो नहीं पर काफी हद तक ढीली हो गई, अपनी बेसब्री में मैंने उसे खींच-खींच के पूरी तरह से खोल दिया| मैं भौजी की साडी ऐसे खोल रहा था जैसे किसी बच्चे को उसके जन्मदिन पर किसी ने गिफ्ट दिया हो और उस गिफ्ट पर 2 मीटर कागज़ चढ़ा रखा हो, तब वो बच्चा बड़ी बेसब्री के साथ उस कागज़ को फाड़ना शुरू कर देता है, कुछ ऐसी ही हरकत मैंने की थी जिसे देख भौजी खुद को हँसने से रोक नहीं पाई| साडी निकली तो मैंने देखा की भौजी ने आज पैंटी भी पहनी है?! मैंने तो जैसे इस की कभी उम्मीद ही नहीं की थी, मेरा मानना था की भौजी हमेशा बिना पैंटी और ब्रा के रहती होंगी!

खेर सबसे पहले मैंने भौजी की योनि को पैंटी के ऊपर से सूँघा और उसी अवस्था में एक चुम्बन लिया| मुझे लगा नहीं था की पैंटी के ऊपर से मुझे भौजी की योनि की सुगंध आएगी परन्तु मैं गलत था, भौजी की योनि से आ रही मादक महक मुझे मोहित करने लगी थी| मैंने धीरे-धीरे अपनी उँगलियाँ उनकी पैंटी की इलास्टिक में डाली और उसे पकड़ के नीचे खींच दिया तथा उसे भौजी के शरीर से दूर कर दिया| अब मेरे समक्ष भौजी का पूरी तरह से नग्न शरीर था जिसे मैं टकटकी लगाये निहारने लगा था| आज मैंने पहली बार भौजी को इस अवस्था में देखा था और मैं इस दृश्य को अपने मन-मस्तिष्क में बसा लेना चाहता था| पर मेरे टकटकी लगाए रखने से भौजी को शर्म आने लगी और उन्होंने अपने चेहरे को हाथों से छुपा लिया| मैंने कुछ नहीं कहा बस उनके इस शर्माने के कारन मुस्कुरा दिया, क्योंकि मुझे मालुम था की भौजी का हाथ कैसे हटाना है|


मैं नीचे झुका और उनकी योनि पर अपने होंट रख दिए, तथा अपनी जीभ की नोक से उनके भगनासा को एक बार कुरेदा| भौजी मेरी इस प्रतिक्रिया से एकदम उचक गईं; "अह्ह्ह्हह्ह .... मानु…...ससस.सससस!!!!" अब समय था भौजी को तड़पाने का, इसलिए मैं एकदम से रुक गया और उनके चेहरे की ओर देखने लगा| भौजी मेरी शरारत समझ गई ओर उन्होंने अपने मुख से हाथ हटा लिया, उनके चेहरे पर यातना के भाव थे! मानो वो मूक भाषा में कह रही हों की मुझ पर दया करो! मुझे उन पर दया आ गई और मैं पुनः उनकी योनि पर झुक गया और रसपान करना शुरू किया| सर्वप्रथम मैंने अपनी जीभ से भौजी की योनि नापी और जितना हो सकता था, अपनी जीभ को भौजी की योनि में प्रवेश कराता गया| एक बार जीभ अंदर पहुँच गई तब मैंने भौजी की योनि के अंदर अपनी जीभ से उत्पात मचाना शुरू कर दिया| मैं अपनी जीभ को उनकी योनि के भीतर गोल-गोल घुमाने लगा, जैसे की मैं उनकी योनि में खुदाई कर रहा हूँ| भौजी के हाव-भाव एकदम से बदल चुके थे, वो अब छटपटाने लगीं थी और रह-रह के अपनी कमर उठा के पटकने लगीं थी| मैं भी ज्यादा देर तक ये खेल नहीं खेल सका क्योंकि मेरी जीभ की मासपेशी दर्द होने लगी थी| कुछ सेकंड के आराम के बाद, मैंने अपनी जीभ से भौजी के भगनासा को पुनः कुरेदना शुर कर दिया और बीच-बीच में मैं अपनी जीभ पूरी की पूरी उनकी योनि में डाल 4-5 बार गोल घुमा देता, मेरा ऐसा करने से भौजी फिर से छटपटाने लगती| भौजी के लिए मेरी जीभ के प्रहार झेलना मुश्किल था ओर आखिरकार उनकी योनि ने अपना रस छोड़ना शुरू कर दिया था| वो तरल रह-रह के बहार निकलने लगा था, जैसे ही वो बाहर आता तो मैं किसी भालू की भाँती अपना मुख भौजी की योनि से लाग उनके रस को शहद समझ चाटने लगता| शहद खत्म होने के बाद मैं भौजी की योनि के दोनों कपालों को अपने मुख में भर चूसने लगा और इधर भाभी का छटपटाने से बुरा हाल था, वो कभी अपना सर बार-बार तकिये पे पटकती तो कभी अपने हाथ से मेरे सर को अपनी योनि पे दबाती, मनो कह रही हो की "मानु रुको मत !!!" मुझे भी उनकी योनि चूसने और चाटने में अजब आनंद आने लगा था| मैं कभी उनके भगनासे को अपने मुख में भर लेता और उसे चूसता, चाटता और कभी-कभी तो उसे हलके से काट लेता| जब मेरे दाँत भौजी के भगनासा को स्पर्श होते तो वो सिंहर उठती और कमान की तरह अपने शरीर को अकड़ा लेती| धीरे-धीरे भौजी के शरीर में मच रहे तूफ़ान को भौजी के लिए सम्भालना मुश्किल होता जा रहा था, आख़िरकारउन्होंने बड़ी जोरदार सिसकारी ली; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स...अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह....माआआआआआआआआआआआआआ!!!!" उनकी सिसकी सुन

मैं समझ चूका था की भौजी चरम पर पहुँच चुकीं हैं! भौजी का बदन कमान की तरह हवा में उठ गया, उनकी कमर हवा में थी और सर तकिये पर| मैंने भौजी की पूरी योनि अपने मुख में भर ली और जैसे ही भौजी के अंदर का तूफ़ान बहार आया, उन्होंने बिना रोके उसे मेरे मुख के भीतर झोंक दिया| उनके रस की एक-एक बूँद मेरे मुख में समाती चली गई, मैं भी बिना सोचे-समझे उनके मनमोहक रस को पीता चला गया|

भौजी निढाल होकर वापस बिस्तर पे गिर चुकी थी, इधर मुझे खुद पर यकीन नहीं हुआ की केवल दस मिनट में मेरी जीभ ने भौजी का ये हाल कर दिया की वो दो बार स्खलित हो गईं! उस पल मुझे खुद पर बड़ा गर्व हुआ की मैंने पहली बार भौजी की योनि को इस कदर प्यार किया की वो एकदम से निढाल हो गईं! उधर भौजी की सांसें तेज चलने लगी थी या ये कहूँ की वो हाँफने लगीं थी, मैं पीछे होकर अपने पंजों पर बैठा था और उनका योनि रस जो थोड़ा बहुत मेरे होंठों पे लगा था उसे मैंने अपनी जीभ से साफ़ कर रहा था की तभी भौजी ने मुझे इशारे से अपने ऊपर बुलाया| मैं उनके ऊपर चढ़ गया और जैसे ही मेरा मुँह उनके मुँह के पास आया तो उन्होंने अपनी बाहें मेरे गले की इर्द-गिर्द डाली तथा अचानक से मुझे चूम लिया! एक मिनट मेरे होठों को चूस अपनी योनि का स्वाद चख भौजी बोलीं; "मानु...अब और देर मत करो! मेरे इस अधूरे शरीर को पूरा कर दो!!!" भौजी को अब डर लगने लगा की कहीं कोई विघ्न पद गया तो ये मिलान अधूरा रह जायेगा!


मैंने अभी भी पजामा पहन रखा था और भौजी पर झुके होने के कारन मैं पाजामे के नाड़े को खोल नहीं सकता था, मेरी मजबूरी भौजी ने पढ़ ली इसलिए उन्होंने अपने हाथ नीचे ले जाके मेरे पजामे के नाड़े को खोल दिया| मैं पीछे हुआ और चारपाई पर खड़ा हो गया, मेरा पजामा एक दम से फिसल के नीचे गिरा और अब केवल मैं अपने फ्रेंची कच्छे में था| मेरे लिंग का उभार भौजी साफ़ देख सकती थी और सोने पे सुहाग ये की मेरा कच्छा मेरे लिंग के रस से भीग चूका था| मैंने अपने आप को कच्छे की गिरफ्त से आजाद किया तो मेरा लिंग बिलकुल सीधा खड़ा था, उसका तनाव इतना था की उसपे नसें उभर आईं थी| मैं वापस भौजी के ऊपर आया, उनके योनि की दोनों पाटलों को अपने दोनों हाथों के अंगूठे से खोला और अपने लिंग को भौजी की योनि में धीरे-धीरे प्रवेश कराने लगा| जब मेरे लिंग के सुपाड़े ने भौजी की योनि को छुआ तो एक करंट सा मेरे शरीर में दौड़ा, उधर भौजी मुझे अपने ऊपर आने को बुला रहीं थी| वो चाहती थीं की मैं एक ही झटके में अपना पूरा लिंग उनकी योनि में प्रवेश करवा दूँ| मुझे डर था की मेरे एक बार में करने से भौजी को अधिक दर्द होगा, इसलिए मैं सब्र किये हुए बहुत धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था| ये भौजी के प्रति मेरा प्यार था जिसने मुझे अब तक थामे रखा था!


मैं धीरे-धीरे भौजी के ऊपर आ गया और मेरा लिंग भौजी की योनि में लग-भग पूरा घुस चूका था| भौजी के मुख पर आनंद और तड़प के मिले-जुले भाव दिख रहे थे| अभी तक मैंने धक्के लगाना शुरू नहीं किया था, मैं अपना स्थान ले चूका था और चाहता था की एक बार भौजी एडजस्ट हो जाएँ तब मैं हमला शुरू करूँ| भौजी ने अपने हाथ मेरी गर्दन के इर्द गिर्द लपेटे और नीचे से उन्होंने अपने पाँव को मेरी कमर के इर्द-गिर्द लपेटा| उन्होंने खुद को अब मेरे हवाले छोड़ दिया था! इधर जब मैंने भौजी के मुख पर देखा तो उनके मुख पर दर्द उमड़ आया था| मुझे यकीन नहीं हुआ की भौजी को दर्द हो रहा है?! परन्तु ये समय प्रश्नों का नहीं था और वो भी ऐसे प्रश्न जो शायद भौजी को फिर रुला देते| मैंने उनकी इन प्रतिक्रियाओं को उनका आश्वासन समझा और लय-बध तरीके से धक्के लगाना शुरू किया| भौजी की आँखें बाद हो चली थीं और उनका मुख खुला था जिससे मादक सिसकारियाँ आ रही थीं; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ........ अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह ........म्म्म्म्म्म्म्म्म्म ..... अह्ह्ह्ह्ह्न्न ......अम्म्म्म्म .... माआअ!!!" मेरी गति अभी बिलकुल धीरे थी और भौजी की सिसकारियाँ कमरे में गूँजने लगीं थी! मुझे डर सताने लगा था की कहीं भौजी की सिसकारियाँ नेहा को न जगा दें, इसलिए मैंने उनके लबों को अपने लबों की गिरफ्त में ले लिया जिससे उनकी सिसकारियाँ मौन हो गईं| मेरी धीमी गति में भौजी की मुख से सिसकारियाँ फुट पड़ीं थी, यदि मैं गति बढ़ाता तो भौजी शायद चीख पड़ती!

फिर मुझे ये भी अंदेशा था की यदि मैंने गति बढ़ा दी तो मैं ज्यादा देर टिक नहीं पाऊँगा और जल्दी चरम पर पहुँच जाऊँगा| जबकि मेरी इच्छा थी की मैं देर तक भौजी का साथ दे सकूँ! इसलिए जब मेरे अंदर का सैलाब उमड़ने को होता तो मैं एक अल्प विराम लेता और भौजी के जिस्म को बेतहाशा चूमता| जब सैलाब का उफान काम होता तब मैं वापस अपनी धीमी गति से झटके देता रहता| दस मिनट हुए थे, अब भौजी की कमर मेरे हर धक्के का जवाब देने लगी थी और उनका दायाँ स्तन जिसे मैंने प्यार नहीं किया था उसे भी तो प्यार करना बाकी था| इसलिए मैंने एक पल के लिए अल्प विराम लिया और भौजी के दाएँ स्तन को अपने मुँह में भर चूसने लगा| मैंने उनके निप्पल को अपने दाँतों में ले के हल्का सा काटा तो भौजी छटपटाने लगीं, मैं उन्हें और पीड़ा नहीं देना चाहता था इसलिए मैं उनके स्तन को चूस्ता रहा और बीच-बेच में उनके निप्पल को अपने होंठों से दबा देता या उनके निप्पल को अपनी जीभ की नौक से छेड़ देता|

मेरा मन भौजी को पीड़ा देकर खुश हो रहा था, पर मेरी अंतर आत्मा नजाने क्यों मेरे इस विचार को गलत ठहरा रही थी! मेरी अंतर आत्मा ने मेरे इस विचार को वासना का नाम दे दिया था और ये मुझे कटाई गंवारा नहीं था! मेरे लिए तो वासना मतलब जबरदस्ती था जो मैं भौजी के साथ कभी नहीं कर सकता था! पर इस समय मेरी अंतर आत्मा भौजी को ख़ुशी देने से रोक पाने में विफल साबित हुई और मैं पूरे मन से भौजी के दाएँ स्तन को निचोड़ने में लग गया था| भौजी ने अचानक ही अपनी कमर से मेरे लिंग पर झटके मारना शुरू कर दिया| मुझे इसमें बहुत आनंद आ रहा था पर मेरे अंदर का सैलाब फिर से उफान पर था और छलकने के लिए तैयार था! मेरे इस उफान के छलकने का मतलब था भौजी का गर्भवती होना! ये सोचके मैं अपने आपको रोकना चाहता था परन्तु भाभी के तीव्र आक्रमण ने मुझे ऐसा करने से रोक दिया| जिस्म को मिल रहे आनंद के कारन मैं भौजी को रोकने में असमर्थ था परन्तु मैं ये 'गलती' नहीं करना चाहता था| पिछली बार तो मैं बच गया था क्योंकि हमने सम्भोग खड़े-खड़े ही किया था जिसके कारन मेरी खुशकिस्मती से मेरा वीर्य भौजी के गर्भाशय तक नहीं पहुँचा और उनकी योनि से सीधा बाहर आ गया| परन्तु इस स्थिति में वीर्य सीधा गर्भाशय तक जाता और परिणाम स्वरुप भौजी गर्भवती हो जातीं|


भौजी की टांगें मेरी कमर पर लॉक हो चुकी थीं जिस कारन मैं पीछे नहीं हो सका तो मैंने भौजी से निवेदन किया; "भौजी.... प्लीज रुक जाओ!!! मैं स्खलित होने वाला हूँ!!!" भौजी ने आँखें खोल कर मुझे देखा और उन्हें मेरे चेहरे पर आनंद और चिंता के मिले-जुले भाव नजर आये| पर फिर भी भौजी नहीं रुकीं क्योंकि वो चरम पर लग-भग पहुँच ही गईं थी, इस कारन उनकी योनि मेरे लिंग को निचोड़ने में लगी थी| मुझे ऐसा लग रहा था की कोई दानव भौजी की योनि के भीतर मेरे लंड को चूस रहा हो! मैं भरसक कोशिश कर रहा था की अपने उफान को रोक सकूँ पर भौजी की योनि के आगे मेरे सारे प्रयास विफल साबित हुए| भौजी के समझते देर न लगी की मैं किस जद्दो-जहद से गुजर रहा हूँ इसलिए उन्होंने मेरा डर कम करना चाहा; ""मानु....सससस...आह...हहममम...मत रोको खुद को!"

पर मेरा डर अब मुझ पर हावी होने लगा था; "भौजी अगर मैं आपके भीतर छूटा तो अब गर्भवती हो जाओगे!" मैंने खुद को उनकी पकड़ से छुड़ाने की हलकी सी कोशिश की पर भौजी ने अगले पल जो कहा उसे सुनते ही मैं हक्का-बक्का रह गया; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स .....अह्ह्हह्ह्ह्ह.... मैं यही चाहती हूँ की मैं तुम्हारे बच्चे की माँ बनू!!!" भौजी की बात सुनते ही मेरे दिमाग में एक जबरदस्त विस्फोट हुआ, मेरी अंतर-आत्मा ने मुझे डराना शुरू कर दिया| एक बच्चे का बाप होना वो भी इतनी काम उम्र में? क्या होगा जब ये बात सब के सामने खुलेगी तब? भौजी का क्या हाल करेंगे सब घर वाले? और मुझे क्या सजा मिलेगी? क्या कोई पुलिस केस बनेगा? अगर सच में हम दोनों की शादी करा दी गई तो कैसे सम्भालूँगा मैं भौजी और बच्चों की जिम्मेदारी? इन सभी सवालों के दिमाग में उमड़ने के कारन मेरे अंदर का उफान कुछ थमने लगा| पर इससे पहले की उफान शांत होता और मेरा लिंग सिकुड़ जाता, भौजी की योनि ने ढेर सारा रस छोड़ दिया जिसने मेरे लिंग को गर्म-गर्म लावे में नहला दिया, इसके बाद भौजी की योनि ने मेरे लिंग की इर्द-गिर्द अपनी पकड़ और कस ली थी| अब तो ऐसा लग रहा था मानो भौजी के साथ-साथ उनकी योनि भी मेरा रस चाहती हो! भौजी के आये सैलाब ने मेरे सभी सवालों को बहा दिया था और मुझ पर फिर से कामवासना हावी होने लगी थी, पर ऐसा भी नहीं था की मैं भौजी की योनि के भीतर ही स्खलित होना चाहता था| मेरा दिमाग अब भी मुझे इस 'गलती' को करने से बचाये हुए था| अब मैंने भी नीचे से लम्बे-लम्बे धक्के लगाने शुरू किये जिससे भौजी को लगा की मैं उनकी बात मान गया हूँ| कुछ पल पहले ही भौजी स्खलित हुईं थी और ऊपर से मेरे इतने तीव्र धक्कों के कारन भौजी की पकड़ मेरी कमर के ऊपर से ढीली होने लगी| अब मैं किसी भी समय स्खलित होने वाला था, मैंने अपने पूरे शरीर की शक्ति लगाईं और अपने लिंग को भौजी की योनि से बाहर खींच लिया! जैसे ही मैंने अपना लिंग बाहर खींचा की एक जोरदार 'धार' के साथ अपना सारा वीर्य भौजी की योनि के ऊपर गिरा| उनकी पूरी योनि मेरे गाढ़े वीर्य में सन गई थी!!! भौजी निढाल हो चुकी थी और मैं भी पसीने से पस्त उनके बगल में गिर गया| सच में मैंने ऐसे सम्भोग की कभी भी कल्पना नहीं की थी| करीब पाँच मिनट बाद भौजी के शरीर ने थोड़ी हरकत की वरना मैं तो डर ही गया था की उन्हें क्या हो गया? वो उठीं और नीचे पड़ी अपनी पैंटी से अपने ऊपर गिरे वीर्य को साफ़ किया और मेरी ओर मुख कर के लेट गईं|


जारी रहेगा भाग 3 में...

 
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आठवाँ अध्याय: जूनून
भाग - 3

अब तक आपने पढ़ा:

अब मैं किसी भी समय स्खलित होने वाला था, मैंने अपने पूरे शरीर की शक्ति लगाईं और अपने लिंग को भौजी की योनि से बाहर खींच लिया! जैसे ही मैंने अपना लिंग बाहर खींचा की एक जोरदार 'धार' के साथ अपना सारा वीर्य भौजी की योनि के ऊपर गिरा| उनकी पूरी योनि मेरे गाढ़े वीर्य में सन गई थी!!! भौजी निढाल हो चुकी थी और मैं भी पसीने से पस्त उनके बगल में गिर गया| सच में मैंने ऐसे सम्भोग की कभी भी कल्पना नहीं की थी| करीब पाँच मिनट बाद भौजी के शरीर ने थोड़ी हरकत की वरना मैं तो डर ही गया था की उन्हें क्या हो गया? वो उठीं और नीचे पड़ी अपनी पैंटी से अपने ऊपर गिरे वीर्य को साफ़ किया और मेरी ओर मुख कर के लेट गईं|

अब आगे....

दोनों जिस्म अब ठन्डे पड़ चुके थे, सैलाब अब शांत होगया था और समय था भौजी के गुस्से का सामना करने का;

भौजी: तुमने मेरी बात क्यों नहीं मानी? (भौजी थोड़ा गुस्से में बोलीं|)

मैं: भौजी बात को समझो! आपने ही कहा था की आपने कई सालों से भैया के साथ सम्भोग नहीं किया है, ऐसे में अगर आप गर्भवती हो जाती तो क्या होता? भैया आपको पता नहीं कितने गंदे शब्दों से अपमानित करते और मैं ये सब बर्दाश्त नहीं कर सकता था| यदि मैं कमाने लायक होता तो मैं आपको कल ही भगा के ले जाता और आपसे शादी कर लेता| पर अभी मैं पढ़ रहा हूँ और मुझे नहीं लगता की मैं आपकी जिम्मेदारी उठा सकूँ|

भाभी: और नेहा?

चूँकि मैं अपनी बात में नेहा का नाम लेना भूल गया था तो भौजी को शक हुआ की क्या मैं नेहा की जिम्मेदारी उठाता?

मैं: भले ही वो भैया की बेटी है पर वो भी मुझे आपके जितना ही प्यारी है, इसलिए उसे भी आपके साथ भगा ले जाता|

भौजी: मानु तुम मुझसे इतना प्यार करते हो, फिर तुम मुझे छोड़ के क्यों जा रहे हो?

ये कहते हुए फिर से उनके आँखों में आँसूँ छलक आये थे|

मैं: भौजी काश मैं इस सब को बदल पाता.... पर .....

मैं कुछ कहना चाहता था पर खुद को रोक लिया और बात का रुख बदलते हुए कहा;

मैं: आपके और मेरे पास याद करने के लिए बहुत से सखद पल हैं|

भौजी मेरी बात को नया रुख देने को पकड़ नहीं पाईं|

भौजी: तुम दुबारा कब आओगे?

मैं: अगले साल|

भाभी: अगले साल? नहीं मानु... मैं तुम्हारे बिना एक साल नहीं रह पाऊँगी| मैं मर जाऊँगी... वादा करो तुम जल्दी आओगे.... अगले महीने ही आओगे!!!

भौजी की बेचैनी और प्यार दोनों इस कदर बाहर आएंगे इसकी उम्मीद मुझे नहीं थी| पर जो वो कह रहीं थीं वो उनका मेरे प्रति प्यार था!

मैं: भौजी मैं अगले महीने कैसे आ सकता हूँ?! तब तो मेरे स्कूल खुलने वाला होगा!

ये सुन कर भौजी के दिल में रही-सही उम्मीद टूट गई और वो बिफरते हुए बोलीं;

भौजी: मानु .....

इतना कहके भौजी सुबकने लगीं मुझसे उनका ये सुबकना नहीं देखा गया और मैंने उन्हें गले लगा लिया| मैं उनकी नंगी पीठ को सहलाने लगा, जब मुझे लगा की भौजी थोड़ा शांत हो गईं हैं तब मैंने उन्हें अपने से अलग किया और उठ के अपने कपडे पहनने चाहे|

भौजी: तुम जा रहे हो?! (भौजी फिर रुनवासी हो कर बोलीं|)

मैं: हाँ भौजी रात बहुत हो चुकी है, मुझे वापस अपने बिस्तर पर जाना होगा नहीं तो अगर किसी ने मुझे बिस्तर पर नहीं देखा तो कहीं हंगामा न खड़ा हो जाए|

भौजी: कल सुबह तो तुम चले ही जाओगे कम से कम कुछ समय के लिए रुक जाओ|

भौजी ने उठ कर बैठते हुए कहा, उस समय भौजी इतनी भावुक थीं की मैं उन्हें मना नहीं कर सका और बिना कपडे पहने वापस भौजी के पास आके बैठ गया| मैं दिवार से सर लगा के बैठा था और भौजी मेरी कमर के पास सर कर के लेटी हुई थीं, उन्होंने एक हाथ से मेरी कमर के इर्द-गिर्द झप्पी डाल रखी थी|

रात के करीब ढाई बज चुके थे, भौजी को नींद आने लगी थी और मैं उनके सर पर हाथ फेर रहा था| अब मुझे भी नींद का झौंका आने लगा था, जब मुझे लगा की भौजी गहरी नींद में हैं तब मैंने धीरे से उनका हाथ अपनी कमर के इर्द-गिर्द से हटाया और चारपाई से उठ खड़ा हुआ| सब से पहले मैंने अपना कुरता पजामा पहना, फिर भौजी की ओर देखा तो वो बिलकुल नग्न अवस्था में थी, मैंने पास ही पड़ी हुई चादर उठाई और उन्हें ओढ़ा दी, उनके माथे को चूमा और चुप चाप बहार चला आया| अपने बिस्तर में घुसते ही मुझे नींद आ गई, जब सुबह आँख खुली तो सुबह के आठ बज रहे थे| मैं हड़बड़ा के उठा और बड़े घर की ओर भागा, वहाँ जा कर देखा तो माँ ओर पिताजी दोनों तैयार हो चुके थे| मुझे देखते ही पिताजी का गुस्सा उबल पड़ा;

पिताजी: उठ गए लाड-साहब? थोड़ा और सो लो? (पिताजी ने मुझे ताना मारा|)

मैं: जी वो....(मैने अपनी सफाई देनी चाहे पर माँ ने बीच में ही बात काट दी|)

माँ: अब जल्दी कर थोड़ी देर में रिक्क्षे वाला आता ही होगा|

मैंने जल्दी-जल्दी ब्रश किया और नहा धो के तैयार हो गया, मैं हैरान था की आखिर भौजी कहाँ है? अब तक तो वो मुझे मिलने आ जाती थीं? मैं सर में तेल लगाने का बहाना करते हुए उनके घर की ओर चल दिया| वहाँ पहुँच के देखा की भौजी चारपाई पर मुँह लटकाये बैठी है;

मैं: भौजी? आप ऐसे मुँह लटकाये क्यों बैठे हो?

मैंने बड़ा ही बेवकूफी भरा सवाल पुछा था, जिसे सुन भौजी को थोड़ा गुस्सा आ गया;

भौजी: तो क्या करूँ?

उनके गुस्से को देख मुझे अपनी बेवकूफी याद आई, मैंने उनका हाथ पकड़ के उन्हें उठाया और उनका चेहरा ऊपर किया|

मैं: आप मुझे रोते हुए विदा करोगे?

मेरी बात सुन भौजी टूट गईं और उन्हें सांत्वना देने के लिए मैंने उन्हें गले लगा लिया|

मैं: बस-बस भौजी... चुप हो जाओ| मैं.....

उनका रोना देख मैंने कुछ कहना चाहा पर फिर खुद को रोक लिया और अपने वाक्य को अधूरा छोड़ दिया|

भौजी: मानु....आय...लब....यू!!!

भौजी ने टूटी-फूटी भाषा में I love you कहा जिसे सुन मुझे थोड़ी हँसी आ गई|

मैं: आई लव यू टू भौजी!!! बस अब चुप हो जाओ... आपको मेरी कसम!

मैंने भौजी को अपनी कसम से बाँध दिया, ये सुनके भौजी ने रोना बंद किया, मैंने उनके आँसू पोछे लेकिन भौजी के चेहरे पर थोड़े आस्चर्य के भाव थे| मैं उनके इस आस्चर्य का कारन जानता था, वो ये सोच रहीं थी की आखिर मुझे उनसे अलग होने का दुःख क्यों नहीं है? जहाँ एक तरफ वो रो-रो कर टूटती जा रहीं हैं वहीं दूसरी तरफ मैं चट्टान सा सख्त कैसे खड़ा हूँ| इन कुछ दिनों में वो ये तो जान गई थीं की मैं उनसे बहुत प्यार करता हूँ, फिर आखिर क्यों मैं उनके वियोग के बारे में सोच कर रो नहीं रहा? कल से ले कर अभी तक आखिर क्यों मेरी आँख से आँसू का एक भी कतरा नहीं गिरा? मैं इस समय उन्हें कोई सफाई नहीं दे सकता था, पर मैं जानता था की कैसे मैं उनके सवालों को मुझे कैसे निवारण करना है| मैंने एकदम से उनके होंठों को चुम लिया, ये चुम्बन उतना गहरा नहीं था और ना ही इसमें जूनून था! मेरे इस चुम्बन ने भी भौजी के सवालों का निवारण नहीं किया था, बल्कि उनके मन में अजीब सी बेचैनी पैदा हो गई थी| भौजी उम्मीद कर रहीं थी की इस चुम्बन में प्यार होना चाहिए, कशिश होनी चाहिए, वो करार होना चाहिए या कम से कम एक तसल्ली तो होती की मैं उनसे प्यार करता हूँ! पर मेरा उद्देश्य केवल और केवल भौजी को सांत्वना देने का था, इस चुम्बन के पश्चात मैंने बात घुमाते हुए उनसे तेल की शीशी माँगी| भौजी बिना कुछ कहे अंदर से तेल की शीशी ले आईं; "लाओ मैं लगा दूँ|" भौजी ने उदास मुँह से कहा, तो मैंने उनकी बात का कोई विरोध नहीं किया, मैंने सोचा की चलो जाने से पहले उनसे तेल लगवा ही लेता इसी बहाने उनके दिल को भी थोड़ी तसल्ली होगी| मैं नीचे बैठ गया और भौजी चारपाई पर बैठ के मेरे सर पर तेल लगाने लगी|

कल रात से भौजी के अंदर मैं अपने प्रति अपार प्रेम देख रहा था और मैं जानता था की ये प्रेम उन्हें आगे चल कर परेशान करेगा|

मैं: भौजी एक वादा करो की आप मुझे याद करके कभी राओगे नहीं?

भौजी मेरी बात सुन के फिर हैरान हो गई पर उन्होंने अपनी हैरानी मुझ पर जाहिर नहीं की और बोलीं;

भौजी: तुम मुझसे मेरी जान माँग लो पर ऐसा नहीं हो सकता की मैं तुम्हें याद ना करूँ और याद करुँगी तो मैं अपने आपको रोने से नहीं रोक सकती|

मैं: प्लीज भौजी... ऐसे मत बोलो| आप खुद सोचो की अगर आप मेरी जगह होते तो आपको कितनी ठेस पहुँचती ये जानके की मैं आपको याद करके रो रहा हूँ|

भौजी शायद मेरी बात समझ गईं इसलिए वो बोलीं;

भौजी: मैं वादा तो नहीं करती पर कोशिश अवश्य करुँगी|

भौजी की बात सुन कर मुझे थोड़ी तसल्ली हुई, अब तक भौजी ने मेरे बालों में तेल लगा दिया था और मैं जानता था की अगर यहाँ रुका तो भौजी का दिल फिर भर आएगा| ऊपर से पिताजी के गुस्से का भी डर था इसलिए मैंने बात खत्म करते हुए कहा;

मैं: ठीक है, अब मैं चलता हूँ जाने का समय हो रहा है|

माने फिर बेवकूफी से भरे शब्दों का चयन किया था! खैर इतना कह के मैं बड़े घर की ओर चल दिया, वहाँ पहुँच मैंने अपने बाल बनाये और समान उठा के बाहर रख दिया| तभी रिक्क्षे वाला भी आ गया, हमें विदा करने के लिए घर के सब लोग आ गए थे यहाँ तक की माधुरी भी आई थी परन्तु मैंने उस पर जरा भी ध्यान नहीं दिया| इधर नेहा ने मेरा हाथ पकड़ लिया था और वो बहुत उदास लग रही थी, मैंने उसके गालों को चूमा और बाय कहा| मैंने ध्यान दिया की भौजी घूंघट काढ़े सर झुका कर खड़ीं हैं और बड़ी मुश्किल से खुद को किसी तरह से संभाले हुए हैं| यदि मैं उनकी जगह होता तो अब तक टूट चूका होता|


खैर माँ, पिताजी और मैंने सबसे हाथ जोड़ कर विदाई ली और हम चल पड़े| सारे रास्ता मैं बस भौजी के बारे में सोचता रहा, कल रात जो भौजी ने कहा था वो सवाल बन कर खड़ा हो गया था| ऐसा सवाल जिसका मेरे पास कोई जवाब नहीं था? ना ही मुझमें इतनी हिम्मत थी की मैं भौजी से उसका जवाब माँग सकूँ! आखिर ऐसा क्या था की भौजी मेरी तरफ इतना खींची आई की वो दुनिया की उस मर्यादा को भी लाँघना चाहती हैं जो शायद सब कुछ तबाह कर दे? हमारा रिश्ता अभी तक दुनिया की नजरों से छुपा हुआ है, पर वो जो चाह रही थीं वो हम दोनों को सबके सामने बेनक़ाब कर देगा! अभी तक तो सब यही जानते थे की हम दोनों केवल अच्छे दोस्त हैं पर जिस कदम की अपेक्षा भौजी मुझसे कल रात कर रहीं थी वो कदम हम दोनों को सब के सामने प्रेमियों के रूप में खड़ा कर देता, जिसे ये दुनिया या समजा कभी नहीं मानते! मैं उनका प्यार समझ सकता था पर मैं अभी अक्षम था की मैं उन्हें भगा कर ले जाऊँ या उनकी और नेहा की जिम्मेदारी उठा सकूँ! इन्हीं सवालों से घिरा हुआ मैं माँ-पिताजी के साथ वाराणसी पहुँचा| वहाँ पहुँचते ही मैंने अपने इन विचारों को दबा दिया, क्योंकि मैं नहीं चाहता था की मेरी उतरी हुई सूरत देख पिताजी और माँ का दिल दुखे|

हमारी यात्रा का प्रोग्राम केवाल 2 दिन का था और इन दो दिनों में मैंने अच्छे बेटे होने का फ़र्ज़ निभाया| मंदिरों में घूमना, माँ-पिताजी का हाथ पकड़ कर उन्हें सीढ़ियाँ चढ़ाना, भीड़ में धकके-मुक्की में अड़ कर खड़ा होना आदि| पिताजी भी ये देख कर हैरान थे की मैं इतना जिम्मेदार कैसे हो गया, शाम को हम खरीदारी करने निकले तो माँ के लिए मैंने खुद साडी पसंद की| ये सब बदलाव मुझमें भौजी से मिलने के बाद आये थे, ये उनका प्यार था जिसने मुझे जिम्मेदारी उठाने लायक बना दिया था पर अभी मैं इतना परिपक्व नहीं हुआ था की शादी या घर से भागने की जिम्मेदारी उठा सकूँ| रात को जब मैं सोता तो भौजी की मुस्कुराती हुई तस्वीर आँखों के सामने आ जाती और उनके साथ ही नेहा हँसती-खेलती हुई मेरे पास आने को दौड़ती हुई नजर आती! रात में सोने के समय ये कोरी-कल्पना करना मुझे अच्छा लगने लगा था| तीसरे दिन सुबह समय आया वापस जाने का...... दिल्ली नहीं बल्कि गाओं!


दरअसल जब पिताजी ने यात्रा करने का बम फोड़ा था तब मेरी उनसे कुछ बात हुई थी और वो बात कुछ इस प्रकार थी;

मैं: पिताजी मेरी आपसे एक दरख्वास्त है!

मैंने पिताजी के आगे आहात जोड़ते हुए कहा|

पिताजी: बोलो लाड-साहब!

मैं: पिताजी जब आपने और मैंने घूमने का प्रोग्राम बनाया था तब आपका कहना था की पहले हम यात्रा करेंगे और उसके बाद गाँवों जायेंगे| परन्तु मेरे जोर देने पे आपने प्रोग्राम बदल के पहले गाँव आने का रखा| ये मेरी सबसे बड़ी बेवकूफी थी!!! मैंने ये सोचा ही नहीं की बड़के दादा और बड़की अम्मा कभी ऐसी यात्रा पर नहीं गए और ना ही जा पाएंगे, अब अगर हमें ये मौका मिला है तो क्यों न हम उनके लिए कुछ नहीं तो कम से कम प्रसाद ही ला के दे सकते हैं, उनके लिए यही यात्रा होगी!!!

ये मेरा तर्क था, था तो बचकाना पर पता नहीं कैसे उस दिन पिताजी फ़ौरन मान गए|

पिताजी: बात तो तुने पते की कि है, चलो देर से ही सही तुझे अकल तो आई| मैं जा के सबको बता देते हूँ कि हम यात्रा करने के बाद सीधा गाओं आएंगे और कुछ दिन रूक कर ही दिल्ली वापस जायेंगे|

पिताजी उठे ही थे की मैंने अपनी दूसरी चाल चली;

मैं: नहीं पिताजी, आप किसी को ये बात मत बताना| ये बात सिर्फ आपके और मेरे बीच ही रहेगी| मैं माँ को समझा दूँगा, जब हम अचानक लौट के आएंगे तो घर भर के सब लोग खुश हो जायेंगे|

मैंने पिताजी को सरप्राइज के बारे में बताया तो वो हँस पड़े| अपने भैया-भाभी को सरप्राइज देने के नाम पर उन्होंने मेरे प्लान को अनुमति दी|

पिताजी: अरे वाह!!! ठीक है मैं कल के लिए रिक्क्षे वाले को बोल आता हूँ|

इतना कह के पिता जी चले गए, अब मुझे माँ को ये बात समझने का समय नहीं मिला था और यही कारन है की जब माँ ने मुझे और भौजी को बड़े घर के आंगन में देखा था, वो तभी भौजी को सब बता देना चाहती थीं, पर मैंने उन्हें बातों में ऐसा उलझाया की वो कुछ बोल न पाईं| उस दिन भौजी का रोना मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रहा था इसलिए मैंने भी उनसे ये बात कहनी चाही पर उन्हें सरप्राइज देने की ख़ुशी ने मुझे रोक लिया था|

अब मैं बस भौजी के मुख पर वो ख़ुशी देखने को बेकरार था जो उन्हें मुझे दुबारा देख के मिलती| तीसरे दिन तड़के सुबह ही हम वाराणसी से निकल चुके थे, वाराणसी से पहले हम अयोध्या आये और वहाँ से हमें कोई सवारी न मिलने के कारन पिताजी ने टेम्पो किया| दोपहर के दो बजे होंगे और हमारा टेम्पो गाओं पहुँच गया| टेम्पो की गढ़-गढ़ आवाज से सभी परिवारवाले आकर्शित हो देखने आये की कौन आया है? जब टेम्पो से पिताजी निकले तो सभी के चेहरे खिल गए| अजय भैया ने सब को बुला लिया, फिर मैं और माँ निकले और हमें देखते ही बड़की अम्मा ने हँसते हुए पिताजी से पुछा; "मुन्ना आधे रस्ते से लौट आये का?" ये सुन कर पिताजी हँस पड़े और उन्होंने मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा; "ई सब हमार लाड-साहब का योजना रही!" और फिर पिताजी ने मेरी बड़ाई करते हुए सब सच बता दिया, इस तरह सभी ने ख़ुशी-ख़ुशी हमारा स्वागत किया| इतने में नेहा भागती हुई और मेरी गोद में चढ़ गई, मैंने उसके दोनों गालों को चूमा| अब मेरी नज़रें भौजी को ढूँढ रहीं थी, मन व्याकुल हो रहा था, मैंने नेहा से धीमी आवाज में पुछा; "नेहा...बेटा आपकी मम्मी कहाँ हैं?" नेहा ने भी बड़ी धीमी आवाज में कहा; "चाचू...मम्मी की तबियत ठीक नहीं है| उन्हें बुखार है, उन्होंने दो दिन से कुछ खाया भी नहीं!" नेहा ने उदास होते हुए कहा| नेहा की बात सुनते ही मेरे पाँव तले जमीन खिसक गई!!! मैं ने नेहा को गोद से उतारा और एकदम से भौजी के घर की ओर भागा, भीतर जा कर मैंने देखा की भौजी चारपाई पर सो रहीं हैं| मैं उनके सिरहाने अपने घुटने तक कर बैठ गया और उनके माथे पर हाथ रखा, उनका माथा बुखार के कारन तप रहा था| ऊनि ये हालत देख मेरी घबराहट के मारे हालत ख़राब हो गई| मैंने भौजी को पुकारा;

मैं: भौजी.... भौजी.... प्लीज आँखें खोलो?

मेरी आंखें भर आईं थी और आवाज में चिंता और दर्द झलक रहा था| मेरी आवाज सुनते ही भौजी ने अपनी आँखें धीरे-धीरे खोलीं, मुझे अपने सामने देखते ही उनके चेहरे पर ख़ुशी दौड़ गई;

भौजी: मानु....तुम....वापस आगये? मेरे लिए....."

भौजी ने बड़ी ताक़त लगा कर कहा और अपनी बाहें उठा कर मुझे गले लग्न चाहा, मैं फ़ौरन उठा और उनके सीने से लग गया| मेरे गले लगने से मानो भौजी के तड़पते दिल को राहत मिली हो!

मैं: भौजी ये अपना क्या हालत बना रखी है? (मैने रोते हुए कहा)

भौजी: (मेरे आँसू पोछते हुए) कुछ नहीं... ये तो बस थोड़ा सा बुखार है.... और अब तुम आगये हो तो मैं ठीक हो जाऊँगी|

भौजी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया हालाँकि भौजी का भी गाला भर आया था पर मुझे देखने की ख़ुशी ने उन्हें रोने नहीं दिया|

मैं: थोड़ा सा बुखार? आपने दो दिन से कुछ नहीं खाया? सिर्फ मुझे याद कर-कर के आपने ये हाल बना लिया ना? सब मेरी गलती है...ये सब मेरी वजह से हो रहा है....

मैं फिर से रो पड़ा और आगे कुछ कहता पर भौजी ने मुझे रोक दिया;

भौजी: तुम्हारी...कोई गलती नहीं...

पर आज मैं उनकी बात सुनने के मूड मैं नहीं था इसलिए मैंने उनकी बात काट दी और अपनी बात पूरी की; “भौजी मैंने उसदिन आपसे एक बात छुपाई थी, दरअसल उस दिन जब पिताजी ने यात्रा पर जाने की बात की थी तो मैंने पिताजी को गाओं दुबारा आने को मना लिया था| मैं आपको सरप्राइज देना चाहता था, मेरा मतलब मुझे अचानक यहाँ देख आप खुश हो जाते, पर मुझे नहीं पता था की मेरी गैरहाज़री में आप अपना ये हाल बना लोगी|”


भौजी ने मेरी बात सुन कर मुस्कुरा दिया और उनकी मुस्कराहट उनकी ख़ुशी को बयान कर रही थी| पर भौजी का शरीर इतना कमजोर हो गया था की उन्हें उठ के बैठने में भी बहुत ताकत लगानी पड़ रही थी| अपनी ख़ुशी व्यक्त करने के लिए उन्होंने मुझे अपनी ओर बुलाया और कस के गले लगा लिया| भौजी का हाथ मेरी पीठ पर लॉक हो गए थे, ऐसा लगा जैसे वो मुझे कहीं जाने ही नहीं देना चाहतीं| इधर मुझे भौजी के शरीर की गर्माहट हम दोनों के कपड़ों के ऊपर से महसूस हो रही थी और मैं मन ही मन अपने आप को कोस रहा था की मेरे पागलपन की सजा भौजी ने खुद को दी| उस पल मुझे सच में भौजी की चिंता होने लगी थी, मैं दो दिन के लिए क्या गया की भौजी ने खाना-पीना छोड़ दिया, अगर मैं साल भर के लिए गया होता तो भौजी का क्या हाल होता?

इतने में मुझे क़दमों की आहात सुनाई दी तो मैं भौजी से अलग हुआ और पीछे पलट के देखा तो नेहा गुम-सुम खड़ी हमें देख रही थी, मैंने उसे अपनी ओर बुलाया;

नेहा: चाचू...मम्मी को क्या हो गया है?

मैं: कुछ नहीं बेटा, अब मैं आ गया हूँ ना, आपकी मम्मी अब बिलकुल ठीक हो जाएँगी| आप मेरा एक काम करोगे?

नेहा ने हाँ में गर्दन हिलाई|

मैं: पहले आप अपनी मम्मी के लिए एक थाली में खाना ले आओ, मैं उन्हें अपने हाथ से खिलाऊँगा| फिर आप जा कर दूकान से अपने लिए दस रुपये के चिप्स ले आना|

मेरा आदेश सुन के नेहा भागती हुई गई और खाना ले आई, जब मैंने उसे दस रुपये दिए तो वो लेने से जिझक रही थी और सर झुका कर खड़ी हो गई| मैंने जब भौजी की ओर देखा तो वो उसे घूर रही थी;

मैं: नेहा आप मम्मी की ओर मत देखो, ये लो दस रुपये ओर जाओ चिप्स ले के आओ|

मैंने नेहा को हुक्म देते हुए कहा|

भौजी: मानु... देखो ये बिगड़ जाएगी और फिर मुझसे या किसी और से पैसे माँगेगी| जब नहीं मिलेंगे तब रोयेगी!

भौजी ने चिंता जताते हुए कहा, उनका कहना भी सही था पर मैं उनकी चिंता का निवारण जानता था, मैंने नेहा को अपने पास बुलाया और कहा;

मैं: नेहा... वादा करो की आप कभी भी मम्मी को या किसी को तंग नहीं करोगे और कभी भी मेरे आलावा किसी से पैसे नहीं लोगे?

मैंने इतने प्यार से कहा की नेहा ने एकदम से मेरी बात मान ली और हाँ में गर्दन हिला दी, मैंने उसे पैसे थमाते हुए भेज दिया|

मैं: अब तो आप खुश हो ना?! चलो अब मैं आपको अपने हाथ से भोजन खिलाता हूँ|

भाभी: मैं खा लूँगी, तुम जाओ कपडे बदल लो... नहा धो लो... काफी थक गए होगे|

भौजी ने थोड़ा चिंता जताते हुए कहा|

मैं: नहीं! जब तक आप मेरे हाथ से खाना नहीं खाओगे तब तक मैं यहाँ से हिलने वाला नहीं|

मैंने हक़ जताते हुए कहा जिसे देख भौजी की चेहरे पर मुस्कान आ गई| मैंने उन्हें धीरे से उठा कर बिठाया और फिर खाने की थाली उठाई| खाने में अरहर की दाल, चावल साथ में भिन्डी की सब्जी और दो रोटियाँ थीं| मैं अपने हाथ से भौजी को दाल चावल खिलाने लगा| जब भाभी ने अपने हाथ से मुझे रोटी सब्जी खिलानी चाहीं तो मैंने मना कर दिया, इसपर भौजी ने अपना मुँह फुला लिया| उनकी ख़ुशी के लिए मैंने एक कौर खा लिया पर उससे ज्यादा नहीं खाया| अभी मैं भौजी को अपने हाथ से भोजन करा ही रहा था की नेहा भी चिप्स का पैकेट लेके आ गई| वो भी वहीं चारपाई पर बैठ खाने लगी, आज कई दिनों बाद उसका चेहरा फिर खिल गया था|

जब मेरी उँगलियाँ भौजी के लबों को छूती तो मुझे एक अजीब सा आनंद आता, उन्हें खाना खिलाने के दौरान कई बार मेरी उँगलियाँ उनकी जीभ से भी स्पर्श होती तो ये आनंद ख़ुशी में बदल जाता| मेरे चेहरे पर ये ख़ुशी झलक रही थी जिसे देख भौजी के चेहरे पर भी मुस्कान आ गई थी और उस एक पल के लिए मैं चिंता मुक्त हो गया था| खाना करीब आधा खत्म हो चूका था की माँ मुझे खाने के लिए बुलाने आ गईं| उन्होंने मुझे भौजी को अपने हाथ से खाना खिलाते देख लिया और उनके चेहरे पर एकदम से चिंता के भाव उतपन हो गए;

माँ: क्या हुआ बहु? सब ठीक तो है ना?

माँ ने चिंता जताते हुए पुछा|

भाभी: कुछ नहीं चाची, सब ठीक है|

भौजी ने मुस्कुराते हुए झूठ बोलै ताकि माँ चिंता न करें, पर मैं उनके जवाब से संतुष्ट नहीं था और मुझे अब भौजी को खाना खिलाने की सफाई देनी थी, इसलिए मैंने माँ से उनकी शिकायत की;

मैं: माँ भौजी का शरीर छू के देखो भट्टी की तरह तप रहा है और इनका कहना है की कुछ नहीं हुआ! दो दिन से कुछ खाया भी नहीं तभी तो देखो कितनी कमजोरी आ गई है|

मैं जोश-जोश में कुछ ज्यादा बोल गया था| माँ ने जब भौजी के माथे को छुआ तो उन्हें भौजी के बुखार का एहसास हुआ और वो चिंता जताते हुए बोलीं;

माँ: क्यों बहु, तुमने खाना-पीना क्यों छोड़ दिया?

अब इससे पहले की भौजी कुछ जवाब देतीं, नेहा एकदम से बोल पड़ी;

नेहा: चाचू के लिए!

आगे नेहा और भी बोलती पर भौजी ने उसे आँख दिखा कर डरा दिया जिसे नेहा एकदम से खामोश हो गई| इधर नेहा की बात सुन मेरे कान लाल हो गए, शरीर सुन्न हो गया पर इसमें उस बच्ची की कोई गलती नहीं थी, उसने जो महसूस किया और देखा उसने अबोध बन के सब कह दिया| लेकिन माँ ने नेहा की बात पकड़ ली और बड़े प्रेम के साथ भौजी से कहा; "बहु.. मैं जानती हूँ की तुम दोनों बहुत अच्छे दोस्त हो, बचपन से ये तुम्हारे साथ खेल है बल्कि इसने तो तुम्हारी गोद में ही बैठ के दूध भी पिया है पर तुम्हारा इससे इतना "मोह" बढ़ाना ठीक नहीं| कल को हम चले जायेंगे तो तुम इसे याद कर-कर के अपना जीना दुर्भर कर लोगी! फिर तुम्हारी छोटी सी बच्ची है, इसका ख्याल रखो...और तुम लाड साहब अपनी भौजी को खाना खिला के खाना खा लो, सुबह से अन्न का एक दाना भी नहीं गया इसके मुँह में|" माँ ने मुझे थोड़ा डाँटते हुए कहा और उठ कर बाहर चली गईं| माँ की बात थी तो कड़वी पर एक दम सच थी, पर माँ नहीं जानती थी की भौजी और मेरे बीच में एक अटूट प्रेम है! ऐसा प्रेम जो सिर्फ सच्चे जीवन साथियों के बीच होता है|


इधर माँ की बातों ने भौजी के ऊपर कुछ गहरा प्रभाव डाला था| थोड़ी देर पहले भौजी का चेहरा सूर्य के समान दमक रहा था और माँ की बात सुनने के बाद उनके मुख पर फिर से चिंता और दुःख के बदल छा गए थे| लेकिन भौजी ने जैसे-तैसे अपने भाव छुपाये और बात बदलते हुए बोलीं;

भौजी: तुमने सुबह से कुछ क्यों नहीं खाया?

मैं: भौजी, दरअसल मैं आपके चेहरे पर वो ख़ुशी के भाव देखने के लिए बैचैन था जो आपको मुझे यहाँ अचानक देख के आते| पर ...

भौजी ने एकदम से मेरी बात काट दी;

भौजी: पर वार कुछ नहीं, मैं खाना खा लूँगी, तुम जा के खाना खाओ!

भौजी ने मुझे हुक्म देते हुए कहा पर मैं आज उनकी एक भी सुनने वाला नहीं था, क्योंकि मैं जानता था की माँ की बात से उन्हें आघात लगा है इसलिए मैं जिद्द कर के बोला;

मैं: नहीं! मेरी वजह से आपने दो दिन खाना नहीं खाया और अब ये मेरी जिम्मेदार है की मैं आपको भोजन अपने हाथ से कराऊँ|

ये सुन कर भौजी ने एकदम से मुँह बना लिया तो मैंने उन्हें प्यार से कहा;

मैं: भौजी वैसे भी अब बस थोड़ा ही खाना बचा है, आप खालो फिर मैं आपको दवाई दूँगा और फिर मैं भोजन करूँगा|

मेरे प्यार से कही बात का असर हुआ और भौजी ने जल्दी-जल्दी खाना खत्म किया| फिर मैंने भौजी को क्रोसिन की एक गोली ला के दी, जब मुझे संतुष्टि हो गई की भौजी अब आराम से यहाँ लेटी रहेंगी तब मैं खाना खाने गया और साथ ही नेहा को भी अपने साथ ले गया| आज नजाने क्यों मुझे नेहा पर बहुत प्यार आ रहा था इसलिए मैंने उसे अपने साथ बिठा कर खाना खिलाया| भोजन के पश्चात मैंने अपने कपडे बदले और वापस भौजी के पास आ गया और वहाँ आ कर देखा तो नेहा सुबक रही थी तथा भौजी का चेहरा भी उदास था| मैं नेहा के सामने घुटने टैक कर बैठ गया और बोला;

मैं: क्या हुआ नेहा? आप रो क्यों रहे हो? किसी ने कुछ कहा आपसे?

मेरी बात सुन नेहा कुछ नहीं बोली बस मेरे गले लग गई और भाभी की ओर इशारा करके उन्हें दोषी करार दे दिया| मैं समझ चूका था की आखिर उसे क्यों डाँट पड़ी है, इसलिए मैंने इस बार भौजी को गुस्से से देखा और बोला;

मैं: आपसे मैं बाद में बात करता हूँ पहले मैं अपनी गुड़िया को सुला दूँ|

इतना कह के मैं नेहा को गोद में उठा के बहार चला आया और उसे चुप करा के थोड़ा घुमाया और फिर सुला दिया| जब वो सो गई तो उसे ले कर मैं भौजी के घर लौटा और नेहा को दूसरी चारपाई पर लिटा दिया| मैं भौजी की बगल में बैठ गया और उन्हें प्यार से डाँटते हुए कहा;

मैं: हाँ तो क्यों डाँटा आपने मेरी गुड़िया को? इसीलिए न की उसने बिना सोचे समझे माँ के सामने सब कह दिया, तो इसमें इस अबोध बच्ची का क्या दोष उसने वही कहा जो उसने देखा!

मैंने नेहा का बचाव करते हुए कहा|

भौजी: उसे अकाल होनी चाहिए की किस के सामने क्या कहना है|

मैं: भौजी वो सिर्फ 4 साल की है! उसे अभी इतनी समझ नहीं है और मैं जानता हूँ आप को गुस्से किसी और बात का है| आप माँ की बात सोच-सोच के चिंतित हो रहे हो पर उसका गुस्सा 'मेरी बेटी' पर क्यों निकाल रहे हो? गुस्सा निकलना है तो मुझ पर निकालो न किसने रोक है आपको|

मैंने भौजी को फिर थोड़ा डाँटा|

भौजी: चाची सही कहती हैं, मुझे अपने आप पर काबू रखना सीखना होगा| पर मैं क्या करूँ, मुझे तुम्हारे साथ बैठ कर बातें करना अच्छा लगता है, तुम्हारा मुझे स्पर्श करना, तुम्हारा बातें करने का ढंग और अभी जब तुमने नेहा को 'अपनी बेटी' कहा तो मैं तुम्हें बता नहीं सकती की मुझे कितनी ख़ुशी मिली| तुम्हारे बिना ये दो दिन मैंने कैसे काटे हैं ये मैं ही जानती हूँ! अगर तुम आज आये नहीं होते तो शायद मैं मर ही जाती!

भौजी रुनवासी हो कर बोलीं|

मैं: भौजी आप ये क्या कह रहे हो? आप क्यों अपनी जान देना चाहते हो? आपको नेहा का जरा भी ख्याल नहीं आया? अगर आपको कुछ भी हो जाता तो नेहा का क्या होता? इस घर में किसी को भी उसकी फ़िक्र नहीं!

इतना कह कर मैं चुप हो गया क्योंकि ये सवाल एक चाचा पूछ रहा था| पर अगले ही पल एक ख़ास रिश्ता सामने आया, जिसे मैं उस वक़्त छह कर भी नाम नहीं दे सकता था!

मैं: मैं नेहा की जिम्मेदारी जरूरर उठाता, कैसे न कैसे कर के माँ और पिताजी को समझा भी लेता और नेहा को अपने पास रखता| उसे अच्छी परवरिश देता पर उसकी इस हालत का जिम्मेदार तो मैं ही होता न? कल को वो बड़ी होती और मुझसे आपके बारे में पूछती तो मैं उसे क्या जवाब देता? मैं... मैं अपने आप को कभी माफ़ नहीं कर पाता!

मेरी आवाज में उस वक़्त आत्मविश्वास साफ़ झलक रहा था पर भौजी को कुछ हो जाने के डर के कारन मेरा गाला रुँधा सा हो गया था|

मेरी बातों ने भौजी को भावुक कर दिया था और किसी हद्द तक मैं भी अपने अंदर आये इस बदलाव से चकित था| कैसे मुझ में इतना बदलाव आ गया की मैं नेहा की जिम्मेदारी तक उठाने के लिए तैयार हो गया? पर ये समय इन बातों को सोचने का नहीं था, मुझे अभी भौजी को हँसाना-बुलाना था इसलिए मैंने भौजी को दूसरी बातों में लगा दिया जिससे उनका मन कुछ हल्का हो गया| भौजी से बातें करते-करते दोपहर के करीब साढ़े तीन हुए थे की भौजी ने मुझे बताया की उनके सर दर्द हो रहा है| "मैं आपका सर दबा देता हूँ|" मैंने कहा और मैं भौजी के सिराहने बैठ गया, उनका सर अपनी गोद में रख कर धीरे-धीरे दबाने लगा| भौजी को थोड़ा आराम मिला तो उन्हें नींद आने लगी और कुछ ही देर में भौजी मेरी गोद में ही सर रखे सो गई| यात्रा की थकान अब मुझ पर भी जोर दिखाने लगी और मुझे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला| अभी आँख लगे करीबन घंटा भर ही हुआ होगा की एक कड़क आवाज मेरे कानों में पड़ी;

चन्दर भैया: अरे वाह रे वाह!!! मानु भैया को जरा सा भी चैन नहीं लेने देगी तू? अभी-अभी थके हारे आएं हैं और तूने अपनी तीमारदारी करवानी शुरू कर दी? अरे मैं पूछता हूँ ऐसी कौन सी बिमारी हो गई है तुझे?

भैया की कड़कती हुई आवाज सुन के भौजी बुरी तरह डर गईं, उनके शरीर में उतनी ताकत तो नहीं थी फिर भी जैसे-तैसे वो उठ के बैठीं| मुझे चन्दर भैया की बात सुन कर बहुत गुस्सा आया और मैं भौजी का बचाव करते हुए थोड़ा गुस्से से बोला;

मैं: भैया आप भौजी को क्यों डाँट रहे हो? उनकी तबियत ठीक नहीं है, भुखार से सारा बदन तप रहा है और आप हो की आप उन्हें ही डाँट रहे हो?! भौजी का कोई कसूर नहीं है, उनके सर में दर्द हो रहा था तो मैंने जबरदस्त की कि मैं आपका सर दबा देता हूँ| सर दबाते हुए कब दोनों की आँख लग गई पता ही नहीं चला| मेरी बात का भैया के पास कोई जवाब नहीं था इसलिए वो अपना इतना सा मुँह लेके चले गए| इधर चन्दर भैया के शब्दों ने भौजी के दिल को तार-तार कर दिया था, भौजी किसी तरह लडखडाती हुई उठ खड़ी हुई और बाहर जाने लगीं| मैं: भौजी? आप कहाँ जा रहे हो?

भौजी: बाहर... कुछ काम निपटा लूँ| दो दिन से कोई काम नहीं किया मैंने!

भौजी ने सर झुकाते हुए कहा और वो बाहर जाने को दो कदम चलीं की मैंने भाग कर भौजी का हाथ थाम लिया;

मैं: भौजी आपको मेरी कसम! भैया कि बातों पर ध्यान मत दो, मैं जानता हूँ आपको उनकी बातों से आघात लगा है| पर उनको आपकी कोई फ़िक्र नहीं है, आपको ज़रा सी ख़ुशी मिलती है तो उन्हें जलन होती है| देखो आपका शरीर बहुत कमजोर है और अगर आप फिर भी काम करने कि जिद्द करोगे तो मैं आपको छोड़के चला जाऊँगा!

मैंने भौजी को गीदड़ भभकी दी जिसे सुन भौजी एकदम से बिफर पड़ीं;

भौजी: नहीं मानु... ऐसा मत कहो| मैं वही करुँगी जो तुम कहोगे पर मुझे छोड़के कहीं मत जाना!

मैंने भौजी को सहारा देकर चारपाई तक लाया और उन्हें पुनः लेटा दिया| मैं भी उनके सिरहाने बैठ गया और उनके बालों में हाथ फेरने लगा| मेरा ऐसा करने से भौजी को सुकून मिला और उनकी आँख फिर से लग गई| कुछ ही पलों में मेरी भी आँख लग गई और फिर आँख सीधा डेढ़ घंटे बाद खुली| मैंने घडी में समय देखा तो शाम के पाँच बजे थे| मैं रसोई की ओर गया और भौजी, नेहा और अपने लिए चाय-बिस्कुट ले आया| कुछ ही देर में नेहा उठ गई और मेरी गोद में आने को अपने हाथ खोल दिए| पहले मैंने भौजी को उठा कर चाय पिलाई और फिर नेहा को अपनी गोद में उठा लिया| मैं दोनों को अपनी यात्रा के बारे में बताने लगा, मेरी कोशिश थी की भौजी दुखद बातों के बारे में कम से कम सोचें| रात होने लगी थी और भौजी के घर के आँगन में लगे रात रानी के फूलों कि खुशबु उनके कमरे को महका रही थी, माहोल ररोमांटिक हो रहा था और तभी मुझे एक बात याद आई जो मैं भौजी से पूछना चाहता था;

मैं: भौजी एक बात तो बताओ, मेरे जाने से एक दिन पहले जब मैं रसिका भाभी के साथ रात में खाना खा रहा था तब आपने नेहा को मेरे पीछे क्यों भेज दिया था?

भौजी वो दिन याद करके हँस पड़ीं, ऊनि ये हंसी दो दिन बाद नेहा ने देखि थी और उसके चेहरे पर भी मुस्कराहट आ गई|

भौजी: हा.. हा... हा... वो दरअसल मुझे डर था की कहीं तुम्हारी भाभी तुम्हें बहला-फुसला न ले और....

आगे भौजी कुछ बोल पातीं उससे पहले मैंने उनकी बात काट दी;

मैं: क्या? आपको सच में ऐसा लगता है की मैं और वो....

इतना कहा कर मैं रुक गया और देखने लगा की भौजी क्या मुझ पर शक करती हैं? पर उनके चेहरे पर मुझे विश्वास दिखा, ऐसा विश्वास जो दो प्यार करने वालों के दिल में होता है| ये विश्वास देख कर मैंने अपनी बात पूरी की;

मैं: दरअसल अगर मैं उनके पास जा कर इधर उधर कि बातें नहीं करता और उनका मन ना लगाता तो वो रसोई के पास वाले छप्पर के नीचे सोती| फिर रात को अजय भैया और उनका युद्ध शुरू होता और आपका तौहफा ख़राब हो जाता|

भौजी: ओह्ह !!! मानु सच में तुम्हारे पास हर समस्या का हल है! वैसे तुमने कभी गोर नहीं किया पर माधुरी और तुम्हारी रसिका भाभी तुम्हें भूखे भेड़िये कि तरह घूरते हैं! अगर उन्हें मौका मिल गया तो दोनों तुम्हें नोच खायेंगे... हा..हा....हा...

ये कहते हुए भौजी हँसने लगीं|

मैं: मुझ में ऐसे कौन से सुर्खाब के पर लगे हैं?

मैंने हैरान होते हुए पुछा|

भौजी: यही तो तुम नहीं जानते, तुम्हारा ये भोलापन ही सबको लुभाता है|

मैं: अच्छा जी!!!! पर भौजी यकीन मानो मेरी उन दोनों में बिलकुल ही दिलचस्पी नहीं है|

मैंने बिना वजह की सफाई पेश की|

भौजी: मैं जानती हूँ, तुम सिर्फ मुझसे प्यार करते हो|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं, मुझे उनकी बात अधूरी लगी तो मैंने उसमें अपने चार शब्द जोड़ दिए;

मैं: और हमेशा करता रहूँगा!!!

ये सुन कर भौजी एकदम से खामोश हो गईं, उनके चहरे की हँसी गायब हो गई और उनके चेहरे पर मुझे ग्लानि के भाव दिखाई दिए, पर मुझे कुछ पूछने की जर्रूरत नहीं पड़ी क्योंकि भौजी खुद ही बोल पड़ीं;

भौजी: मानु....मुझे माफ़ कर दो!

इतना कहते हुए उन्होंने मेरे आगे हाथ जोड़ दिए, मैंने फ़ौरन उनके हाथ अपने हाथों के बीच दबा दिए और चिंतित होते हुए उनसे पुछा;

मैं: क्या हुआ भौजी?

भौजी: मैंने इन दो दिनों में तुम्हें बहुत गलत समझा! जब तुम गए तो मुझे तुम्हारा व्यवहार बहुत ही अजीब सा लगा, ऐसा लगा जैसे तुम्हें मुझसे जुड़ा होने का ज़रा भी गम नहीं है| मैं कितना रोइ तुम्हारे सामने पर तुमने आँसूँ का एक कटरा नहीं गिराया, हर बार तुम मुझे रोने से रोक देते थे या बात पलट देते थे| एक पल के लिए मुझे लगा की शायद तुम मुझसे प्यार नहीं करते! शायद तुम मेरे साथ सिर्फ जिस्मानी तौर पर थे, आत्मिक तौर पर तुमने खुद को कभी मुझे नहीं सौंपा! मुझे लग रहा था की मैंने तुम्हें अपना सबकुछ सौंप कर गलती कर दी! यही सब सोच-सोच कर मैं रोती रही और अपनी ये हालत बना ली!

भौजी की बातें सुन कर मुझे बहुत बड़ा झटका लगा, क्योंकि ऐसा बिलकुल नहीं था| मैं उनसे बेइंतेहा प्यार करता था पर शायद मैं उन्हें अपने प्यार का ठीक से एहसास नहीं करवा पाया था| इधर भौजी की बात अभी पूरी नहीं हुई थी;

भौजी: पर जब मैंने आज दोपहर को अपने सामने देखा तो मुझे लगा की तुम आधे रस्ते से ही वापस लौट आये, सिर्फ मेरे लिए! फिर तुमने मुझसे सब सच कहा तो मुझे यक़ीन हो गया की तुम मुझसे कितना प्यार करते हो| मुझे माफ़ कर दो मानु....मैंने तुम पर शक़ किया!

इतना कह कर भौजी फुट-फुट कर रोने लगीं| मैंने उठ कर भौजी को अपने आगोश में ले लिया और उनकी पीठ सहलाने लगा ताकि वो चुप हो जाएँ| इसी बीच मेरे दिमाग में उथल-पुथल शुरू हो गई लेकिन मेरी अंतर् आत्मा ने मुझे सही रास्ता दिखाया;

मैं: भौजी...मैं मानता हूँ उस दिन मेरा बर्ताव बहुत अजीब था और उसका कारन मैं आपको बता ही चूका हूँ| सच्ची बात न पता होने के कारन आपने मेरे प्रति अपनी एक नकरात्मक राय बना ली पर अब जब आपको सब सच पता चला तब तो आपकी सोच बदल गई न?

भौजी ने हाँ में गर्दन हिलाई|

मैं: तो बस! अब और नहीं रोना!

मैंने भौजी के आँसू पोछे और तब मैंने नेहा की तरफ देखा जो बिना पलकें झपके हमें देख रही थी| ऐसा लगा जैसे अपने छोटे से दिमाग में ये सब बातें संजो रही हो!
 
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नौवाँ अध्याय: परीक्षा

भाग - 1

रात के खाने का समय हो रहा था, इसलिए मैं रसोई से भौजी और अपने लिए खाना ले आया| मैं जानबूझकर दो थालियां ले कर आया था ताकि माँ ये देख लें और उन्हें संतुष्टि रहे की भौजी और मैं उनकी कही बात को अपने पल्ले बाँध चुके हैं| भौजी ने भी जब दो थाली देखि तो वो कुछ नहीं बोलीं, बल्कि मुस्कुराते हुए उन्होंने एक थाली मुझसे ले ली| इस बार भौजी ने अपने हाथ से खाना खाया और मुझे लगा की अब उनके सेहत में सुधार आ रहा होगा और ये देख कर मैं सबसे ज्यादा खुश था| नेहा मेरे बगल में बैठी थी और मैं ही उसे खाना खिला रहा था पर वो थोड़ा डरी- डरी सी लग रही थी| जब हमारा खाना हो गया तो मैंने सोचा की उसका डर थोड़ा कम किया जाए|

मैं: नेहा...बेटा मेरे पास आओ| आप मम्मी से घबरा क्यों रहे हो?

नेहा ने एक अच्छे बच्चे की तरह मेरी बात सुनी पर अपनी घबराहट का कोई कारन नहीं दिया बल्कि अपनी मम्मी से नजरें चुरा के मेरे गले लग गई| नेहा का मेरे प्रति प्यार देख भौजी का दिल पसीज गया और उन्होंने नेहा को कई बार आवाज दे कर अपने पास बुलाया, पर उनके बार-बार बुलाने पर भी नेहा डर के मारे उनके पास नहीं जा रही थी, बस मेरे से चिपकी हुई थी| मैं भौजी की आँखों में प्रायश्चित देख पा रहा था इसलिए मैंने ही नेहा से बात शुरू की;

मैं: बेटा अच्छा मेरी बात सुनो, मम्मी ने आपको गलती से डाँटा था| देखो अब वो माफ़ी भी माँग रहीं हैं.... देखो तो एक बार|

ये सुनते ही भौजी ने तुरंत अपने कान पकडे...पर नेहा उनकी ओर देखने से भी कतरा रही थी|

भौजी: अच्छा बेटा लो मैं उठक-बैठक करती हूँ|

भौजी चारपाई से उठने लगीं तभी मैंने कहा;

मैं: नेहा.. देखो आपकी मम्मी अभी कितना कमजोर हैं फिर भी अपनी बेटी कि ख़ुशी के लिए उठक-बैठक करने के लिए तैयार हैं| आप यही चाहते हो???

नेहा थी तो छोटी पर इतना तो समझती थी कि उसकी मम्मी कि तबियत अभी पूरी तरह ठीक नहीं हुई है और ऐसी हालत में वो उठक-बैठक नहीं कर सकती| इसीलिए उसने एकदम से भौजी की ओर देखा| अब समय था नेहा को प्यार से समझाने का;

मैं: बेटा अगर मैं आपको कभी डाँट दूँगा तो आप मुझसे भी बात नहीं करोगे?

मेरा सवाल सुन नेहा एकदम से मेरी तरफ देखने लगी मानो वो ये कहना चाहती हो की मैं उसे कभी डाँट ही नहीं सकता| पर शायद उसमें इतना कहने की हिम्मत नहीं थी इसलिए उसने शर्म से ना में सर हिलाया|

मैं: चलो अब अपनी मम्मी को माफ़ कर दो, आगे से वो आपको कभी नहीं डांटेंगी| अगर इन्होने कभी आपको डाँटा तो मुझे बताना मैं इनको डाँटूंगा... ठीक है?

मेरी भौजी को डाँटने की बात सुन नेहा हँस पड़ी और उसे इत्मीनान हो गया की आगे से अगर भौजी उसे डाँटे तो उसे मुझसे शिकायत करनी है! खैर नेहा भौजी की गोद में गई और भौजी उसे लाड-दुलार करने लगीं| उसके माथे और गालों को चूमने लगीं, तब जा के कहीं नेहा मानी| छोटे बच्चों को मानना आसान काम नहीं!!!


तकरीबन आठ बजे होंगे, मैंने भौजी को क्रोसिन की गोली दी, उनका माथा स्पर्श किया तो वो दोपहर जैसा तप नहीं रहा था लेकिन बुखार अवश्य था| मुझे एक चिंता हो रही थी कि रात में भौजी को अगर बाथरूम जाना होगा तो वो कैसे जाएँगी? बिना सहारे अगर वो गिर पड़ीं तो? मैं उनके पास ही सोना चाहता था ताकि जर्रूरत पड़ने पर उन्हें बाथरूम तक ले जा सकूँ परन्तु मेरा ऐसा करना सब कि आँखों में खटकता| पर इसका इलाज भी मेरे पास था, मैंने भौजी से जिद्द कि की जब तक उन्हें नींद नहीं आ जाती मैं वहीं बैठूंगा| जब की मेरा प्लान था की आज रात जाग के भौजी की पहरेदारी करना, ताकि जब भी भौजी को जरुरत पड़े मैं उनकी देख-भाल कर सकूँ|

भौजी को लिटा के मैं पास पड़ी चारपाई पर बैठ गया, नेहा भी तुरंत मेरी गोद में सर रख कर लेट गई| मैंने नेहा को एक प्यारी सी कहानी सुनाई जिसे सुनते हुए नेहा सो गई, पर भौजी को अभी तक नींद नहीं आई थी;

मैं: क्या हुआ भौजी नींद नहीं आ रही?

भाभी: हाँ

मैं: रुको मुझे पता है की आपको नींद कैसे आएगी|

मैं धीरे से उठा, नेहा का सर उठा के तकिये पर रखा और भौजी के माथे पर झुक के उनके माथे को चूमा| जैसे ही मैंने उनके माथे को चूमा भौजी ने अपनी आँखें बंद कर लीं| एक पल के लिए तो मन किया की भौजी के गुलाबी होंठो को चुम लूँ पर ऐसा करना उस समय मुझे उचित नहीं लगा| मैं वापस अपनी जगह बैठ गया और नेहा का सर अपने गोद में रख लिया| पर बैठे-बैठे मुझे भी नींद सताने लगी थी, भौजी को नींद आ चुकी थी और आज मैं पहली बार उन्हें सोते हुए देख रहा था| उनके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान और शान्ति के भाव थे, उन्हें इस तरह सोता हुआ देख के मन बहुत प्रसन्न हो रहा था|


करीब दस बजे होंगे की अजय भैया मुझे ढूँढ़ते हुए अन्दर आये, मैंने जानबुझ कर दरवाजा खुला छोड़ा था ताकि किसी को कोई संदेह न हो| जैसे ही मैंने भैया को देखा मैंने फ़ौरन अपने मुख पर ऊँगली रख के चुप रहने का इशारा किया| वो मेरा इशारा समझ गए और धीरे से मेरे पास आकर मेरे कान में खुसफुसाये;

अजय भैया: मानु भैया हियाँ काहे बइठे हो? चलो चल के पाहडू (लेटो)|

मैं: भैया भौजी की तबियत ठीक नहीं है, उनको बुखार अभी भी है! शरीर कमजोर है और अगर रात में उन्हें किसी चीज की जरुरत होगी तो वो किसे कहेंगी? इसलिए मैं आजरात पहरेदारी पर हूँ!!!

मैंने थोड़ा मजाक किया ताकि वो कुछ गलत न सोचें|

अजय भैया: हम बड़के भैया से कहे देइत है...

आगे अजय भैया कुछ कहते मैंने उनकी बात काट दी;

मैं: भैया आज दोपहर को ही भैया भौजी पर भड़क उठे थे, अगर रात में भौजी ने उन्हें उठाया तो वो आग बबूला हो कर उनको और डांटेंगे|

अजय भैया: तोहार भाभी हियाँ सो जाई!

अजय भैया ने एक और रास्ता दिखाया पर मैंने उसका भी काट सोच लिया था|

मैं: नहीं भैया वो भी दिन भर के काम से थकी होंगी, आप चिंता मत करो मुझे वैसे भी नींद नहीं आ रही| (मैंने उनसे झूठ बोला|) आप सो जाओ|

साफ़ था की मैं ही आज जाग कर भौजी का ख्याल रखना चाहता था, मेरे अलावा मुझे किसी पर विश्वास नहीं था| खैर किसी तरह अजय भैया को समझा-बुझा के मैंने उन्हें वापस भेजा और कमरे की रौशनी बुझाई| शुक्र था की भौजी जागी नहीं थी वरना वो मुझे जगा हुआ देख के मुझ पर भड़क जातीं| समय धीरे-धीरे बीत रहा था, मैं चारपाई पर बैठा ऊँघ रहा था और बीच-बीच में झपकी ले लेता पर जब भी भौजी करवट लेतीं तो चारपाई की आवाज से मैं जाग जाता| अपनी तसल्ली के लिए उठ कर उन्हें देखता की वो ठीक तो हैं? फिर वापस आ कर बैठ जाता, कुछ देर में फिर वही नींद का झौंका आता और मैं एक झपकी ले लेता|


रात के डेढ़ बजे, मुझे फिर से नींद का झोंक आ रहा था की तभी मुझे हलचल होती हुई महसूस हुई| आंगन में चाँद को प्रकाश था और मैंने देखा की भौजी काँप रही हैं, ये देख मैं तुरंत उनके पास लपका;

मैं: क्या हुआ भौजी?

मुझे वहाँ देख भौजी एकदम से चौंक गईं|

भौजी: मानु…तुम यहाँ क्या कर रहे हो? सोये नहीं अभी तक?

मैं: मुझे लगा की आप को शायद किसी चीज की जरूररत पड़े इसलिए मैं यहीं बैठा था|

ये सुन कर और भी धक्का लगा की मैं उनकी वजह से अभी तक जाग रहा था;

भौजी: तुम तब से यहीं बैठे हो? हे भगवान!!! जाओ जा के सो जाओ...

भौजी ने थोड़ा गुस्सा करते हुए कहा|

मैं: मेरी बात छोडो, आपको शरीर काँप क्यों रहा है?

इतना कहते हुए मैंने उनका हाथ छुआ तो मैं दंग रह गया! उनका शरीर आग की तरह जल रहा था, उन्हें फिर से बुखार चढ़ गया था| ये देख मेरी हालत ख़राब हो गई;

मैं: भौजी आपको फिर से बुखार चढ़ गया है! रुको मैं आपके लिए चादर लता हूँ|

मैंने परेशान होते हुए कहा, मैंने फ़ौरन पास पड़ी एक साफ़ चादर उठाई और भौजी को ओढ़ा दी, लेकिन उनका शरीर अब भी काँप रहा था! मैं फ़ौरन बाहर गया और अपनी चारपाई पर बिछी हुई चादरें भी उठा लाया और सब भौजी को ओढ़ा दी| तभी मुझे याद आया की भौजी को क्रोसिन दिए करीबन पाँच घंटे हो गए हैं और अब मुझे उन्हें दूसरा डोज दे देना चाहिए| मैं बड़े घर की ओर भागा पर वहाँ ताला लगा हुआ था, मैं दौड़ता हुआ बड़की अम्मा के पास आया और उन्हें जगाया;

"अम्मा...भौजी को बुखार चढ़ गया है...उनका बदन भट्टी की तरह तप रहा है| आप मुझे बड़े घर की चाबी दे दो मैं उन्हें क्रोसिन की गोली खिला देता हूँ तो भुखार काबू में आ जाए|" मेरी बात सुन बड़की अम्मा जल्दी से उठीं और मुझे चाबी दी, मैं बड़े घर की ओर भागा और जल्दी से क्रोसिन ले के भौजी के पास आया| अम्मा भौजी के सिरहाने बैठीं उनके बालों में हाथ फेर रहीं थी| मैंने भौजी को सहारा दे के उठाया और उन्हें गोली खिलाई| भौजी के शरीर में बिलकुल जान नहीं लग रही थी इसलिए वो फिर से लेट गईं, उनका शरीर अब भी थर-थरा रहा था| उन्हें ऐसे देख डर के मारे मेरी हालत खराब थी, मन में बार-बार बुरे ख़याल आ रहे थे| मुझे डरा हुआ देख अम्मा ने मुझे जा के सोने के लिए कहा;

अम्मा: मुन्ना तुम जा की सोइ जाओ......

पर मैंने एकदम से उनकी बात काट दी|

मैं: नहीं अम्मा... मुझे नींद नहीं आ रही, आप सो जाओ मैं यहीं बैठता हूँ|

अम्मा मेरी चिंता समझती थीं इसलिए वो बोलीं;

अम्मा: हम जानित है तुम आपन भौजी को बहुत मोहात हो, पर घबड़ाये क कौनों जर्रूरत नाहीं है! हम हियाँ रुकित है, तुम जा कर तनिक अपनी पीठ सीधी कर लिओ!

पर मैं कहाँ मानने वाला था, मेरी नजरों के सामने तो मेरा प्यार बुखार में जल रहा था और उसे छोड़ कर मैं कैसे सोता?!

मैं: अम्मा आप सो जाओ .. मेरी नींद तो उड़ गई| अगर जरूररत पड़ी तो मैं आपको उठा दूँगा|

मैं अपनी जिद्द पर अड़ा था इसलिए मैंने बहुत मुश्किल से अम्मा को वापस सोने के लिए भेज ही दिया| अम्मा के जाने के बाद मैंने भौजी को देखा तो वो अब भी कंप-कंपा रही थी| मैं अपने प्यार को इस कदर तड़पते हुए नहीं देख सकता था, पर उस एक पल के लिए मैं खुद को बेबस महसूस करने लगा था| तभी मुझे एक बात सूझी की क्यों न मैं भौजी को अपने शरीर से गर्मी दूँ|


जब मैं माँ के पेट में था तो पिताजी की लापरवाही के कारन माँ ने उनकी गैरहाजरी में नमक और चावल का सेवन किया जिस कारन मेरे जन्म के समय मैं बाकी बच्चों के मुक़ाबले बड़ा कमजोर पैदा हुआ था, मेरे जिस्म का तापमान काफी बढ़ा हुआ था और माँ-पिताजी की रक्तचाप की बिमारी मुझे अनुवांशिक तौर पर मिली| अब समय था माँ द्वारा की गई उसी लापरवाही का सही उपयोग करना!

चूँकि भौजी की कंप-कँपी बंद नहीं हुई थी तो मुझे अपने शरीर से भौजी के शरीर को गर्मी देना ठीक लगा| मैंने ज्यादा देर न करते हुए अपना कुरता उतार और भौजी की बगल में लेट गया| मैंने भौजी की ओर करवट ली और अपना बायाँ हाथ सीधा फैला दिया| भौजी ने मेरे बायेँ हाथ को अपना तकिया समझ उस पर अपना सर रख दिया| उनका बायाँ हाथ मेरी बगल में आ गया था और मैंने भौजी को अपने आगोश में ले लिया| मैंने एकदम से भौजी को कस के अपने जिस्म से चिपका लिया| बाहर से उनके शरीर का तापमान बहुत अधिक लग रहा था, पर मेरे जिस्म के मुक़ाबले वो कम था| मेरे और भौजी के जिस्म की मिली-जुली तपिश से मुझे ऐसा लग रहा था मानो किसी ने मुझे एक दम गर्म सॉना में लिटा दिया हो| मैंने भौजी की पीठ सहलानी शुरू कर दी थी, ताकि भौजी चैन सो जाएँ| पर रह-रह कर मुझे भौजी की चिंता हो रही थी, मैं कामना कर रहा था की ये अँधेरी काली रात जल्दी ढल जाए और सुबह होते ही मैं भौजी को डॉक्टर के ले जाऊँ, पर ये रात थी की खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी!



इधर अंदर ही अंदर भौजी का जिस्म बुखार से लड़ने लगा था, मानो मेरे उनके साथ लेटने से उनका मनोबल बढ़ गया हो! करीबन एक घंटा बीता होगा और मुझे महसूस हुआ की भौजी की कंप-कँपी बंद हो चुकी थी, मैंने उनका माथा छू कर देखा तो पाया की उनके शरीर का तापमान भी कम है| मेरे दिमाग ने कहा की क्रोसिन ने अपना असर दिखा दिया है और अब मेरा उनके साथ यूँ लेटना सही नहीं है, इसलिए मैं धीरे से भौजी से अलग हुआ और अपना कुरता वापस पहन के नेहा की चारपाई पर बैठ गया| घडी देखि तो सुबह के साढ़े तीन बजे थे, मैं उठा और अपना मुँह धोया, नींद अब मुझ पर बहुत जोर से हावी होने लगी थे| आजतक कभी ऐसे नहीं हुआ था की मुझे किसी भी वजह से सारी रात जागना पड़े! जब मैं मुँह धो कर वापस आया तो देखा भौजी उठ के बैठी हुई थीं,

मैं: भौजी अब कैसी तबियत है आपकी?

भौजी: अब कुछ आराम है..मुझे....प्यास लगी है!

मैंने पास रखे पानी के लोटे से उन्हें अपने हाथ से पानी पिलाया| पानी पीने के बाद भौजी चिंता जताते हुए बोलीं;

भौजी: तुम मेरी वजह से सारी रात नहीं सोये!

मैं: भौजी आप ये सब बातें छोडो और लेट जाओ, सुबह मैं आपको डॉक्टर के ले जाऊँगा|

भौजी: मुझे बाथरूम जाना है|

मैं: ठीक है मैं आपको ले चलता हूँ|

मैं उन्हें सहारा दे के स्नानघर तक ले गया, उनका बुखार अवश्य कम था, परन्तु शरीर बहुत कमजोर हो गया था| अब दिक्कत ये थी की मैं भौजी को स्नान घर में ऐसे ही नहीं छोड़ सकता था, ना ही मैं किसी को बुला सकता था| मुझे एक तरकीब सूझी, मैंने भौजी से कहा की आप मेरे दोनों हाथ पकड़ो और उसका सहारा लेते हुए बैठ जाओ| जैसे ही भौजी उकडू हो कर बैठी मैंने अपना मुँह दूसरी ओर घुमा लिया| उस पल मैं सोचने लगा की अचानक मुझे में इतनी संवेदनशीलता कैसे आ गई| कुछ देर पहले जब मैं भौजी को अपने जिस्म से गर्मी दे रहा था तब भी मेरे अंदर वासना नहीं भड़की थी और अभी भी जब भौजी इस प्रकार बैठीं हैं तो मैंने अपना मुँह मोड़ लिया! हो न हो ये मेरे लिए प्रमाण है की मैं भौजी से कितना प्यार करता हूँ!

जब भौजी फ्री हुईं तो मैंने उन्हें सहारे से फिर खड़ा किया, उनके लिए चलना दूभर था इसलिए मैंने उन्हें अपनी गोद में उठा लिया| (जैसे किसी "रा वन" फिल्म में शाहरुख़ खान ने करीना को उठाया हुआ था|) मैंने भौजी को वापस उनके बिस्तर पर लिटाया और सारी चादरें ओढ़ा दीं| भौजी का जिस्म बहुत कमजोर हो गया था और उन्हें बस आराम चाहिए था| लेटते ही भौजी की आँख लग गई और वो मेरी तरफ करवट ले कर सो गईं| मैं भौजी के सामने बैठ गया और सुबह होने का इन्तेजार करने लगा| हालाँकि भौजी सो चुकी थीं पर मेरा दिल अब भी बहुत चिंतित था, मैं बार-बार घडी देखता की कब सुबह के नौ बजे और कब मैं भाभी को डॉक्टर के पास ले जाऊँ| टिक-टॉक...टिक-टॉक...टिक-टॉक...टिक-टॉक....टिक-टॉक आखिर सुबह के सात बज गए| घर में सभी उठ चुके थे पर अभी तक कोई भीतर नहीं आया था| कुछ देर में नेहा भी आँख मलते-मलते उठी और मुझे गुड मॉर्निंग पप्पी देके बहार चली गई| इधर माँ को जब रात की बात अम्मा से पता चलीं तो वो भौजी का हाल-चाल पूछने आईं| भौजी अब भी सो रहीं थीं और सच कहूँ तो बहुत प्यारी लग रही थी!!! भौजी को सोता हुआ देख माँ ने

इशारे से मुझे बाहर बुलाया, मैं बाहर आया और माँ को सारा हाल सुनाया| माँ का कहना था की बेटा तू मुझे उठा देता मैं यहाँ सो जाती और तेरी भौजी का ध्यान रख लेती| पर मैंने माँ को समझाया की आप और पिताजी सबसे ज्यादा थके थे, मैं तो गर्म खून हूँ इतनी जल्दी नहीं थकता और वैसे भी मैं दिन में सो लूँगा तो मेरी नींद पूरी हो जाएगी| मैंने माँ को अंदर भौजी के पास बैठने को कहा और मैं पिताजी को ढूँढने लगा| पिताजी खेत से आ रहे थे, भौजी की बिमारी और मेरा सारी रात जागने की बात घर-भर में फ़ैल चुकी थी| पिताजी ने हाथ धोया और फिर मुझे आशीर्वाद देते हुए भौजी के बारे में पूछा, तभी वहाँ बड़के दादा भी आ गए;

मैं: पिताजी, भौजी की तबियत अभी तो ठीक लग रही है लेकिन कल रात में उन्हें बुखार फिर चढ़ गया था| मेरा सुझाव है की हमें भौजी को डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए|

मैंने चिंता जताते हुए कहा, उस समय मैं ये तक भूल गया की वहाँ पिताजी और बड़के दादा दोनों खड़े हैं!

बड़के दादा: मुन्ना चन्दर तो शहर.....

बड़के दादा आगे कुछ कहते उससे पहले ही मैं बोल पड़ा;

मैं: पिताजी आप ऐसा करो की बैलगाड़ी वाले को बुला लो मैं, भौजी और आप डॉक्टर के चले-चलते हैं| इस वक़्त उनका डॉक्टर के पास जाना जर्रुरी है|

पिताजी मेरी बात तुरंत मान गए और बोले;

पिताजी: ठीक है बेटा मैं अभी जा के बैलगाड़ी वाले को बुलाता हूँ तब तक तु तैयार हो जा|

मैं इतना सुन उलटे पाँव चल दिया, उस समय मेरा दिमाग बस भौजी को डॉक्टर के पास ले जाने के लिए केंद्रित था, चन्दर भैया हो चाहें न हों मुझे उससे कोई फ़र्क नहीं पड़ने वाला था|


इधर पिताजी बैलगाड़ी वाले को बुलाने गए और उधर मैंने भाग कर अपने बाल बनाये और रात वाले कपडे ही पहन के भौजी को जगाने आ गया;

"भौजी..उठो... बैलगाड़ी आने वाली है मैं आपको डॉक्टर के पास ले जा रहा हूँ|" मैंने कहा तो भौजी जाग तो गईं पर उनके शरीर में जरा भी ताकत नहीं थी|

भौजी: नहीं....मैं...अब ठीक हूँ!

भौजी ने सीधा लेटते हुए कहा|

मैं: मैंने आपसे राय नहीं मांगी है, चुपचाप चलो!

मैंने गुस्सा करते हुए कहा जिसे सुन कर भौजी थोड़ा सहम गईं, माँ भी वहीं बैठीं थीं और वो उस समय मेरा गुस्सा देख चुप रहीं| भौजी को मैंने सहारा दे कर बिठाया, फिर ठन्डे पानी से मैंने उनका मुँह धुलवाया, इतने में बैलगाड़ी वाला आ चूका था परन्तु भौजी को चला के ले जाना बहुत मुश्किल काम था|मैंने आव देखा न ताव और एक बार फिर भौजी को अपनी गोद में उठाया और बाहर चल दिया| जैसे ही मैं भौजी को गोद में लेकर बाहर आया तो सारे घर वाले हैरान थे, एक-आध पडोसी भी आ गए थे जो ये दृश्य देख अचंभित थे और आपस में खुसुर-पुसर कर रहे थे| मुझे उनकी रत्ती भर भी परवाह नहीं थी! भौजी बैलगाड़ी में अपना एक हाथ का घूँघट पकडे जैसे-तैसे बैठ गईं, पिताजी आगे बैलगाड़ी वाले के साथ बैठ गए और मैं बीच में भौजी का हाथ पकडे हुए बैठ गया| शरीर में कमजोरी के कारन भौजी के लिए बैठना मुश्किल था, ऐसे में मैंने भौजी को मेरी गोद में सर रख के लेटने को कहा| भौजी मेरी गॉड में सर रख कर लेट गईं और मैंने उनके सर पर हाथ फेरना शुरू कर दिया, करीबन एक घंटे तक हिचकोले खाने के बाद हम डॉक्टर के पास पहुँचे|

वहाँ पहुँचते ही मैं तुरंत नीचे उतरा और फिर से भौजी को अपनी गोद में लेके डॉक्टर की दूकान में घुस गया, मैंने किसी से कुछ नहीं कहा और सीधा डॉक्टर के बगल में जो बेड था उस पर भौजी को लिटा दिया| डॉक्टर मुझे देख हैरान था, क्योंकि गाओं में डॉक्टर की अलग धाक होती है, जब वो मरीज को बुलाता था तभी वो मरीज अंदर जा सकता था वर्ण उसे अपनी बारी का इंतजार करना होता था| अब चूँकि मैं ही चौधरी बना हुआ था इसलिए पिताजी बाहर ही रुक गए थे, जब मैं भौजी को अंदर ला रहा था तब मैंने गोर किया की डॉक्टर का बोर्ड जो बहार लगा था वो अंग्रेजी तथा हिंदी दोनों भाषाओँ में था, मैंने तुक्का लगाया की ये डॉक्टर अंग्रेजी अवश्य जानता होगा इसलिए मैंने उससे अंग्रेजी में बात करने का निर्णय लिया|

इसका एक कारन ये भी था की मुझे भय था की पिछले दिनों जो भौजी और मेरे बीच में हुआ उससे कहीं भौजी गर्भवती तो नहीं हो गईं? मैं ये बात डॉक्टर से सीधे-सीधे तो पूछ नहीं सकता था, और कहीं डॉक्टर पिताजी के सामने भौजी के गर्भवती होने की बात कर देता तो घर में कोहराम छिड़ जाता!

डॉक्टर यही कोई 40 के आस-पास होगा और इससे पहले की वो कुछ बोलता मैं ही बोल पड़ा;


मैं: Actually Doctor for the past two days she hasn’t eaten anything, moreover she had high fever yesterday. I was away with my parents on a trip to Varanasi, when I came back yesterday afternoon I saw her like this, first we had lunch together and then I gave her a Crocin tablet and after that her fever was somewhat in control. Atleast that’s what I thought!!! At night we had dinner together and then again I gave her a Crocin tablet. Around 1:30 AM she had a very high fever, since it was about 5 hours since the last dose, I gave her another dose. After that somehow her fever is a bit mild but as you can see she’s very weak, her apetite is somewhat lost.

(दरअसल डॉक्टर साहब इन्होने पिछले दो दिनों से अन्न का एक दाना तक नहीं खाया है और कल इन्हें बहुत तेज बुखार भी था| मैं अपने माता-पिता के साथ वाराणसी गया हुआ था, कल जब मैं लौटा तो इन्हें इस हालत में पाया| पहले मैंने इन्हें खाना खिलाया और फिर क्रोसिन की गोली दी| उसके बाद इनका बुखार कुछ काबू में आया, या कम से कम मुझे तो ऐसा लगा! रात में मैंने इन्हें खाना खाने के बाद मैंने एक गोली और दी| अचानक आधी रात को इनका शरीर फिर से तपने लगा और मुझे याद आया की क्रोसिन दिए हुए पाँच घंटे बीत चुके हैं और एक डोज़ और बाकी है| उसे देने के बाद इनका बुखार कुछ कम हुआ पर जैसा की आप देख ही सकते हैं इन्हें बहुत कमजोरी है और इन्हें भूख भी नहीं लगती|)

उस समय मैं इतना जोश में था की मैंने डॉक्टर कुछ ज्यादा ही डिटेल में बात बता दी! मुझे नहीं मालुम मुझे उस वक़्त क्या हुआ था, शायद मैं भौजी को बीमार देख घबरा गया था और डॉक्टर को सब कुछ बता देना चाहता था! इधर डॉक्टर ने मेरी बात इत्मीनान से सुनी, अंग्रेजी में बात सुन कर वो खुश हो गया था और उसकी ख़ुशी मुझे उसके चेहरे से दिखने लगी थी|


डॉक्टर के पास जो पेशेंट बैठा था उसे छोड़ कर वो भौजी का चेक-अप करने लगा| डॉक्टर ने अपना आला लगाया और भौजी को करवट ले कर लेटने को कहा| भौजी घूंघट पकडे दूसरी तरफ करवट ले कर लेट गईं| डॉक्टर ने अपना आला उनकी पीठ में लगाया और उन्हें साँस लेने को कहा| फिर उसने भौजी के शरीर का तापमान चेक करने के लिए थर्मामीटर मुझे दिया जो मैंने बिना डॉक्टर के कहे भौजी की बगल में लगा दिया| मेरी होशियारी देख डॉक्टर मुस्कुरा दिया|


डॉक्टर: Did she eat anything in the morning?

(क्या इन्होने सुबह से कुछ खाया है?)

मैं: I’m afraid no sir!!!

(जी नहीं डॉक्टर साहब|)

डॉक्टर: Okay from what you’ve told me I take it she’s feeling very weak and because of your necessary precaution her fever is in control. It’s a good thing you brought her here otherwise the case could have gone worse. Now I need to inject some fluids into her body so she could feel a bit normal, also since you seem to be her husband, its your duty to take care of her.

(जैसे तुमने बताया उससे ये बात तो पक्की है की इनका शरीर कमजोर हो गया है| तुम्हारी समझदारी के कारन इनका बुखार अब काबू में है| अच्छा हुआ तुम इन्हें यहाँ ले आये वरना हालत और भी गंभीर हो सकती थी| फिलहाल मुझे इन्हें ग्लूकोस चढ़ाना होगा ताकि इनके शरीर को थोड़ी ताकत मिले और चूँकि तुम इनके पति हो तुम्हें इनका ख़याल ज्यादा रखना होगा|)

जिस तरह से मैं भौजी के लिए चिंतित था, उस हिसाब से डॉक्टर का मुझे भौजी का पति समझना गलत नहीं था| हालाँकि मेरी अभी तक ठीक से दाढ़ी-मूछ भी निकली थी, पर गाओं में तो कम उम्र में ही शादी कर दी जाती थी शायद इसी के चलते उसने ये अनुमान लगाया था|

डॉक्टर का मुझे भौजी को पति समझना मुझे अच्छा लगा था पर अगर वो ये बात पिताजी से कह देता तो पिताजी को बुरा लगता, इसलिए मैंने डॉक्टर को सच बताते हुए कहा;

मैं: Actually sir, I’m not her husband, she’s my cousin brother's wife.

(दरअसल डॉक्टर साहब मैं इनका पति नहीं हूँ| ये मेरे चचेरे भाई की पत्नी हैं|)

डॉक्टर: Oh I see, so she’s your bhabhi? But where’s her husband? Isn’t he concerned about her wife’s health?

(ओह्ह .. तो ये आपकी भाभी हैं| पर इनके पति कहाँ हैं? क्या उसे इनकी ज़रा भी फ़िक्र नहीं|)

मैं: Sir he doesn’t know anything about her health. He’s working in Delhi and I’ve already sent a telegram to him.

(डॉक्टर साहब उन्हें तो भाभी की तबियत के बारे में कुछ पता ही नहीं है..दरअसल वो दिल्ली में काम करते हैं और मैंने उन्हें टेलीग्राम कर दिया है|)

डॉक्टर: Oh I see! You seem to take good care of your bhabhi. Good!

(अच्छा! वैसे तुम अपनी भाभी का बहुत अच्छे से ख़याल रख रहे हो, शाबाश !!!)



डॉक्टर ने मुझसे भौजी का नाम पुछा और फिर दवाइयाँ लिख कर मुझे समझाने लगा| इधर उसकी एक पेशेंट लड़की जो वहाँ मुझसे पहले आई थी वो मुँह बाए मुझे और डॉक्टर को देख रही थी| उधर भौजी हमारी अंग्रेजी में हो रही गुफ्तगू घूंघट के नीचे से बड़े गोर से सुन रही थी, हालाँकि उन्हें समझ कुछ नहीं आया था| पर जब डॉक्टर ने सुई निकाली तो भौजी की सिटी-पिट्टी गुल हो गई| वो गर्दन हिला के न-न करने लगीं| तब डॉक्टर ने मुझे इशारे से उन्हें समझाने को कहा; "भौजी...डॉक्टर साहब आपको ग्लूकोस चढ़ा रहे हैं, इससे आपके शरीर में ताकत आएगी और आप जल्दी अच्छे हो जाओगे|" मैंने कहा पर भौजी को बहुत डर लग रहा था इसलिए वो अब भी न में सर हिला रहीं थीं| मुझे उनकी ये हालत देख कर बहुत हंसी आ रही थी, मैं बड़ी मुश्किल से अपनी हँसी रोके हुए था| पर फिर भी भौजी को मेरे चेहरे पर हँसी दिख ही गई थी! इतने में पिताजी जिन्होंने बाहर के कमरे से मेरी बात सुन ली थी वो भी भौजी को हिम्मत बंधाते हुए बोले; "कोई बात नहीं बहु, ज्यादा दर्द नहीं होगा, अपने देवर की बात मान ले|" भौजी को मनाने के लिए मैंने सब की नजरें बचाते हुए अपने होठों को गोल बनाया (pout) और ये देख कर भौजी समझ गईं| उन्होंने अपना दायाँ हाथ जो अभी तक उन्होंने छुपा रखा था वो अब डॉक्टर के सामने कर दिया| जैसे ही डॉक्टर उन्हें सुई लगाने लगा तो भौजी डर के मारे मुँह बनाने लगीं, भले ही उन्होंने घूंघट कर रखा था पर मैं उस सूती साडी के नीचे से उनको देख पा रहा था और ये देख के मुझे बड़ा मजा आ रहा था| आखिर डॉक्टर ने भौजी को IV लगा दिया और फिर उहोने फटाफट उस लड़की को दवाई लिख दी जो हैरान मुझे देख रही थी| फिर डॉक्टर साहब ने मुझे अपने साथ बाहर आने को बोला| ये सुनते ही भौजी मुझे अपने हाथ के इशारे से अपने पास बुला ने लगीं| मैंने उन्हें कहा की मैं बस दो मिनट में आया| डॉक्टर साहब, मैं और पिताजी बाहर के कमरे में बैठ गए और फिर डॉक्टर साहब ने भौजी का हाल चाल सुनाया| घबराने की कोई बात नहीं थी बस भौजी को ज्यादा से ज्यादा आराम करने की सलाह दी| पिताजी और डॉक्टर के बीच में सहज रूप से बात-चीत हो रही थी और ये देख मेरा डर कम हो गया था, शुक्र है की जो मैं सोच रहा था वो नहीं हुआ| इधर डॉक्टर अब मेरी तारीफों के पुल बाँध रहा था की कैसे उसे आज एक अरसे बाद अंग्रेजी बोलने वाला लड़का मिला| मैं चुपचाप भौजी के पास अंदर आ गया और घुटनों के बल बैठ के उनके कान में फुस-फसाया;

मैं: भौजी…अब आप जल्द ही ठीक हो जाओगे|

मेरी ख़ुशी मेरे चेहरे से झलक रही थी पर भौजी के मन में कुछ और ही सवाल था|

भौजी: मानु तुम डॉक्टर से अंग्रेजी में क्या बात कर रहे थे?

मैं: अभी नहीं भौजी, घर चलो सब बताऊँगा|

मैंने भौजी को आँख मारते हुए कहा| पर अभी मुझे एक शंका होने लगी थी, कल पूरी रात मैंने जाग कर भौजी की देखभाल की थी और ये हवा घर में फ़ैल चुकी थी| वापस जाने पर कहीं मुझसे ये पुछा गया की आखिर मैंने ऐसा क्यों किया, जबकि मैं माँ या बड़की अम्मा को कह सकता था! अशोक भैया और मधु भाभी तो इंदौर लौट गए थे, बचे घर में बड़की अम्मा, बड़के दादा, माँ, पिताजी, अजय भैया, चन्दर भैया और रसिका भाभी| मैं मन ही मन उनके सवालों को सोच कर उनके जवाब बनाने लगा था, उस वक़्त मुझे ऐसा लगा जैसे मैं किसी इम्तिहान की तैयारी कर रहा हूँ!

टिप-टिप करते हुए ग्लूकोस की बोतल खाली होने लगी और सारा ग्लूकोस भौजी के खून में मिलने लगा| इधर पिताजी और डॉक्टर की बातों की आवाज अंदर तक आ रही थी और भौजी मेरी बढ़ाई सुन कर खुश हो रही थी| जब बोतल लगभग खाली हो गई तब मैंने डॉक्टर को अंदर बुलाया, उसने भौजी के हाथ से सुई निकाली और वापस पट्टी का दी| मैंने डॉक्टर को 'Thanks' बोला और भौजी को फिर से गोद में उठा कर बैलगाड़ी में बैठा दिया| मैं दवाई लेने जाने लगा तो भौजी चिंतित दिखीं; "भौजी मैं बस दवाई ले कर आया!" तब उन्हें इत्मीनान हुआ वरना उन्हें लगा की मैं उन्हें अकेले पिताजी के साथ भेज रहा हूँ| मेरे वापस आने तक पिताजी बैलगाड़ी वाले से दूर जा कर बात कर रहे थे| मेरे आते ही पिताजी आगे बैठे और मैं भौजी की बगल में| ग्लूकोस चढ़ने से भौजी की हालत में सुधार आया था| खैर एक बार फिर हम हिचकोले खाते हुए घर पहुँच गए, मैंने भौजी को एक बार फिर गोद में उठाया और उनके घर में ला कर लिटा दिया| उन्हें लिटा कर मैं जब जाने लगा तो भौजी ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे रोका;

भौजी: मानु ..तुम कल सारी रात मेरी वजह से परेशान रहे हो, सारी रात जाग के मेरी देखभाल की अब तुम बहुत थके हुए लग रहे हो| जा कर थोड़ा आराम कर लो, मैं अब पहले से बेहतर महसूस कर रही हूँ|

भौजी ने चिंता जताते हुए कहा|

मैं: जी नहीं, ये सब मेरी गलती है| न मैं आपसे अपने वापस आने की बात छुपाता और न ही आपका ये हाल होता, इसलिए अब जब तक आप पूरी तरह ठीक नहीं होते, मैं आपकी देखभाल में लगा रहूँगा|

मैंने भौजी से साफ़-साफ़ कहा और आगे वो कुछ बोलें उससे पहले मैं बाहर आ गया ताकि सब के सवालों का सामना कर सकूँ! बाहर आके देखा तो घर के सभी लोग छप्पर के नीचे बैठे भौजी की सेहत के बारे में बात कर रहे थे| जैसे ही मैं छप्पर के नीचे पहुँचा की बड़की अम्मा ने मुझे गले लगा लिया और मी सर को चूमते हुए बोलीं; "मुन्ना तोहार आपन भौजी से मोह हम सब कल देखे रहे, पूरी रात जाग कर मुन्ना बहु का ख्याल राखिस है और ऊ चन्दर तनिको जिम्मेदारी नहीं लेत है!" सभी को इस बात का अफ़सोस था की चन्दर भैया और भौजी के रिश्ते में दरार आ चुकी है पर मेरे और भौजी के 'दोस्ती' के रिश्ते से सभी बहुत प्रभावित थे और मेरे माँ-पिताजी को छोड़ कर सब मेरी तारीफ कारण रहे थे| लेकिन देखा जाए तो मैं उस तारीफ को पाने का हकदार नहीं था, मेरे ही कारन भौजी की जान पर बन आई थी|

दोपहर के खाने के बाद मैंने भौजी को दवाई दी और मैं नेहा के साथ दूसरी चारपाई पर लेट गया| नेहा लेटे-लेटे मेरे साथ मस्ती कर रही थी, कभी मेरे बाल खींचती तो कभी मेरी नाक पकड़ती पर भौजी गुम-सुम थी और मुझसे ये बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैंने उनसे उनकी नाराजगी का कारन पूछा;

मैं: क्या हुआ, आप चुप-चाप क्यों हो?

माने भोएं सिकोड़ते हुए पुछा|

भाभी: कुछ नहीं... बस ऐसे ही...

भौजी ने मुँह फूलते हुए कहा और अपनी बात अधूरी ही छोड़ दी! भौजी की बातों से लग रहा था की वो कुछ छुपा रहीं हैं, या इस डर से कुछ नहीं बोल रहीं की कहीं नेहा न सुन ले| मैं यूँ ही नेहा के साथ खेलता रहा, कभी उसे गुद-गुदी करता तो कभी उसके सर पर हाथ फेरता ताकि वो जल्दी से सो जाये| करीब आधा घंटा लगा उसे सुलाने में, नेहा के सोते ही मेरी बेचैनी मुझ पर हावी होगई| मैं उठ कर भौजी के पास बैठा और बोला;

मैं: नेहा सो गई है, अब बताओ की क्या बात है? क्यों उदास हो?

भौजी: (मुँह बनाते हुए) तुम अब मेरी बात नहीं मानते, बड़े जो हो गए हो, अपनी जिम्मेदारियाँ उठाने लगे हो, अब भला क्यों सुनोगे मेरी?

भौजी का तातपर्य था की मैंने उन्हें अभी तक मेरे और डॉक्टर के बीच हुई बात नहीं बताई थी|

मैं: ऐसा नहीं है, आपको यही जानना है न की डॉक्टर से मेरी क्या बात है?

भौजी: हाँ

मैं: जब मैं आपको अपनी गोद में लिए डॉक्टर के पास पहुँचा और आपकी तबियत के बारे में उसे बताया तो उसे लगा की मैं आपका पति हूँ...

अभी मेरी बात पूरी हो पाती उससे पहले ही भौजी बोल पड़ीं;

भाभी: तो उसमें गलत क्या है?

मैं: गलत तो कुछ नहीं है, पर फिर आप ही मुझे अपनी देख-भाल करने से रोक रहे हो!

ये सुन कर भौजी मुस्कुरा दीं और उन्हें एक मीठा सा एहसास हुआ|

मैं: वैसे अगर उसने यही बात हिंदी में पिताजी से कही होती तो? ये तो शुक्र था की मैंने ही उससे अंग्रेजी में बात की वरना वो ये बात सच में कह देता|

ये सुन कर भौजी की वो मीठी सी ख़ुशी दब गई, जो मैं उस वक़्त नहीं पढ़ पाया था पर भौजी को अपने जज्बातों को छुपाना भलीभांति आता था इसलिए उन्होंने एकदम से बात बदल दी;

भौजी: मैं तुम्हें मेरी देखभाल करने से रोक नहीं रही पर में ये बर्दाश्त नहीं कर सकती की मेरी वजह से तुम बीमार पड़ जाओ|

मैं: जब आप ये बर्दाश्त नहीं कर सकते की मैं आपकी वजह से बीमार पड़ जाऊँ, तो सोचो मेरे दिल पर क्या बीती होगी जब मैंने आपको बीमार देखा था| आप को पता है कल दोपहर को आपको बीमार देख मेरे दिल की धड़कन रूक गई थी!

ये सुन कर भौजी की आँखें भर आईं थी, मैं उन्हें और दुःख नहीं देना चाहता था इसलिए मैंने झुक के उनके होंठों को चूम लिया और उनके गले लग गया| भौजी का मन भर आया था पर मेरे आलिंगन ने उन्हें रोने नहीं दिया|

भौजी: पहले तुम दुःख देते हो और फिर मरहम भी खुद ही लगाते हो|

भौजी मुस्कुराते हुए बोलीं, मैं वापस सीधा हो कर उनके पास बैठ गया|

भौजी: डॉक्टर तुम्हें मेरा पति न खड़े क्या इसी कारन से तुम उससे अंग्रेजी में बात कर रहे थे?

भौजी ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा|

मैं: वो मुझे डर था...

मैंने अपनी बात अधूरी छोड़ दी, कारन था की उस रात सम्भोग के दौरान भौजी ने मुझसे कहा था की वो मेरे बच्चे की माँ बना चाहतीं हैं| मैंने उस समय उन्हें अपनी सफाई दी थी पर उसे सुन भौजी के मन को संतुष्टि नहीं मिली थी और मैं फिर से उसी विषय में उनसे बात करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था|

भौजी: कैसा डर?

भौजी ने मेरी अधूरी बात पकड़ ली थी और अब उन्हें सच सुनना था| मैं उनसे झूठ नहीं बोलना चाहता था, न ही कोई गोलमोल जवाब देना चाहता था इसलिए मैंने उन्हें सब सच कहने का फैसला किया|

मैं: मुझे डर था की कहीं पिछले कुछ दिनों में हमारे बीच जो हुआ उससे आप प्रेग्नेंट तो नहीं हो गए?

भौजी: अगर हो भी जाती तो क्या होता?

भौजी ने बात को बड़ी सरलता से लिया और एक पल के लिए मुझे लग जैसे वो मजाक कर रहें हैं!

मैं: आप मजाक कर रही हो ना?

मैंने भौजी से अपना शक़ मिटाने को पुछा|

भौजी: नहीं तो...ज्यादा से ज्यादा क्या होता? तुम्हारे भैया मुझे मारते-पीटते... घर से निकाल देते बस!

भौजी ने ये बात इतनी सरलता से कही जैसे की कोई मजाक हो! पर मुझे ये सुन कर गुस्सा आने लगा;

मैं: आपको ये इतना आसान लगता है? जरा ये बताओ की आपके साथ ये होता देख मुझ पर क्या गुजरती? नेहा और हमारे बच्चे का क्या होता? ये सोचा आपने?

मैंने गुस्से में भौजी पर अपने सवाल दागे!

भौजी: मुझे तो लगा था की तुम मुझे अपनाओगे?

भौजी उठ कर बैठीं और मेरी आँखों में आँखें डालते हुए बोलीं|

मैं: माँ और पिताजी से क्या कहता? और अगर मैं सब सच कह भी देता तो क्या वो आपको मेरे साथ रहने देते?

मैंने गुस्से से कहा|

भौजी: तो तुम मुझे भगा के ले चलो?

भौजी ने फिर से एक बेसिर-पैर की बात कही|

मैं: हुँह ... आपको ये सब मजाक लग रहा है न? मैं आपको भगा के कहाँ ले जाता? क्या खिलाता? नेहा की परवरिश कैसे होती? आपको पता है न शहर में नौकरी मिलना इतना आसान नहीं होता, फिर मैं तो अभी खुद पढ़ रहा हूँ!

पर मेरा ये जवाब सुन भौजी का दिल टूट गया और अपने टूटे हुए दिल के कारन उन्होंने आगे जो कहा उससे मेरा दिल छलनी हो गया!

भौजी: तुम्हारी बातों से लगता है की हमने 'पाप' किया है? तुम मुझसे प्यार-व्यार कुछ नहीं करते और जो कुछ भी हमारे बीच हुआ वो सब तुम्हारे लिये खेल था!


भौजी की बातें मुझे तीर की तरह चुभ रहीं थी, इसलिए मैं एकदम से उठा और बिना कुछ कहे बाहर आ गया| भौजी मुझे गलत समझ रही थी, मैं उनसे बहुत प्यार करता था पर मैं अभी शादी और बच्चे की जजिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं था| उनके लिए घर से भाग चलने को कहना आसान था पर मेरे लिए ये सुनना और उनकी बात पर अम्ल करना आसान नहीं था| मैं भौजी को समझाना चाहता था की वो जो कह रहीं हैं वो गलत है, अपने गुस्से के आगे वो मुझे गलत समझ रहीं हैं परन्तु इस समय हम दोनों का दिमाग बहुत गरम था और ऐसे में मेरे द्वारा दी गई कोई सफाई उन्हें पर्याप्त नहीं लगती| इसलिए मैंने कुछ देर के लिए उनसे दूरी बना ली ताकि उनका मन शांत हो जाये और फिर मैं इत्मीनान से उन्हें सब कुछ समझा सकूँ| पर अब हम दोनों के रिश्ते का धागा खींचने लगा था, मैं भले ही उसे कस कर थामे हुआ था पर भौजी अपनी अनेकों उमीदें बांधे उसे खींचने लगीं थीं|
 
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नौवाँ अध्याय: परीक्षा
भाग - 2
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भौजी: तुम्हारी बातों से लगता है की हमने 'पाप' किया है? तुम मुझसे प्यार-व्यार कुछ नहीं करते और जो कुछ भी हमारे बीच हुआ वो सब तुम्हारे लिये खेल था!

भौजी की बातें मुझे तीर की तरह चुभ रहीं थी, इसलिए मैं एकदम से उठा और बिना कुछ कहे बाहर आ गया| भौजी मुझे गलत समझ रही थी, मैं उनसे बहुत प्यार करता था पर मैं अभी शादी और बच्चे की जजिम्मेदारी उठाने के लिए तैयार नहीं था| उनके लिए घर से भाग चलने को कहना आसान था पर मेरे लिए ये सुनना और उनकी बात पर अम्ल करना आसान नहीं था| मैं भौजी को समझाना चाहता था की वो जो कह रहीं हैं वो गलत है, अपने गुस्से के आगे वो मुझे गलत समझ रहीं हैं परन्तु इस समय हम दोनों का दिमाग बहुत गरम था और ऐसे में मेरे द्वारा दी गई कोई सफाई उन्हें पर्याप्त नहीं लगती| इसलिए मैंने कुछ देर के लिए उनसे दूरी बना ली ताकि उनका मन शांत हो जाये और फिर मैं इत्मीनान से उन्हें सब कुछ समझा सकूँ| पर अब हम दोनों के रिश्ते का धागा खींचने लगा था, मैं भले ही उसे कस कर थामे हुआ था पर भौजी अपनी अनेकों उमीदें बांधे उसे खींचने लगीं थीं|

अब आगे:

शाम होने को आई थी और अब भौजी की दवाई का समय भी हो गया था| इसलिए मैं भौजी को दवाई देने के लिए उनके घर पहुँचा तो देखा की भौजी कमरे के कोने में जमीन पर बैठी हैं और अपने मुँह को अपने घुटनों में छुपाये रो रहीं हैं| उनको ऐसे रोता हुआ देख मेरा दिल टूट गया, मैं उनके पास घुटनों के बल बैठ गया और उनका मुँह उठाया तो देखा रो-रो के उन्होंने अपना बुरा हाल कर लिया है| "आप रो क्यों रहे हो? प्लीज चुप हो जाओ!" मैंने कहा पर भौजी ने कोई जवाब नहीं दिया और रोती रहीं! "अच्छा ये बताओ की हुआ क्या? किसी ने आपसे कुछ कहा?" भौजी ने ये सुन कर एकदम से मुँह मोड़ लिया| "समझा…आप मेरी दोपहर की बात की वजह से परेशान हो!" मैंने कहा पर भौजी ने कोई जवाब नहीं दिया और रोती रहीं| मुझसे उनका ये रोना नहीं देखा जा रहा था इसलिए मैंने उन्हें चुप कराने के लिए एक आखरी तरकीब निकाली; "मेरे लिए नहीं तो नेहा के लिए ही चुप हो जाओ!" ये सुन कर भौजी ने रोना बंद किया और अपने आँसूँ पोछने लगी| चलो कम से कम नेहा की दुहाई दी तो भौजी ने रोना तो बंद कर दिया! मेरा दिल कह रहा था की एक बार और प्यार से बोल कर देख, भौजी जर्रूर तेरी बात मान लेंगी| "भौजी...उठो....और दवाई ले लो!" मैंने बहुत प्यार से कहा पर भौजी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और मुझसे मुँह मोड वहीँ बैठीं रहीं| साफ़ था की वो मुझसे नाराज हैं और शायद अब कभी भी मुझसे बात ना करें| मैं मायूस हो कर बाहर आया, मैंने सोचा की अभी उनका दिमाग गर्म है! पहले उन्हें दवाई दे कर तंदुरुस्त करता हूँ, उसके बाद उनसे इत्मीनान से बात करूँगा| ज्यादा दबाव डालूँगा तो कहीं बात बिगड़ न जाए! ये सोचते हुए मैंने नेहा को आवाज दी, मेरी आवाज सुन कर नेहा दौड़ी-दौड़ी मेरे पास आई| मैं उसे अपने साथ अंदर ले आया और उसके हाथ में दवाई दी और भौजी के सामने उससे कहा; "बेटा आप ये दवाई मम्मी को खिला दो!" नेहा ने मुझसे दवाई ली और भौजी के सामने कड़ी हो गई, भौजी ने पहले उसकी तरफ देखा और फिर उसके हाथ से गोली ले ली| फिर नेहा ने पास ही रखे पानी के लोटे को अपने दोनों हाथों से उठाया और भौजी को दिया| भौजी ने पानी पिया और नेहा का सहारा ले के उठीं| भौजी ने मेरी तरफ देखा तक नहीं और चारपाई पर मुँह मोड़ के लेट गईं| शायद नेहा समझ गई थी की कुछ तो बात है जो भौजी मुझसे बात नहीं कर रहीं, इसलिए वो मेरी तरफ देखने लगी, मैंने उसे अपने पास बुलाया और उससे कहा; "बेटा आप यहीं मम्मी के पास रहना और उनका ख्याल रखना, कहीं मत जाना!" मैंने नेहा से कहा और उठ कर बाहर आ गया| बाहर आ कर मैं अपनी चारपाई पर चुप-चाप लेट गया, घर वालों को लगा की मैं तक गया हूँ इसलिए किसी ने मुझे कुछ नहीं कहा| रात का खाना बना तो अम्मा ने मुझे भौजी को भोजन दे आने को कहा| मैंने उनकी थाली ली और भौजी के घर में दाखिल हुआ| भौजी अब भी करवट ले कर लेती हुई थीं, नेहा अच्छे बच्चे की तरह चारपाई पर बैठी हुई अपनी गुड़िया के साथ खेल रही थी|

मेरे हाथ में थाली देख नेहा मेरे पास आई, मैंने एक बार फिर कोशिश करते हुए भौजी से कहा; "भौजी....उठो....खाना....खा लो!" पर भौजी ने एक बार फिर मेरी बात अनसुनी कर दी| मैंने चुप-चाप नेहा को इशारे से कहा की वो भौजी को उठाये| नेहा चारपाई पर चढ़ गई और भौजी की बाजू पकड़ कर अपनी तरफ घुमाया, तब जा कर भौजी उठीं पर उन्होंने मेरी तरफ अब तक नहीं देखा था| मैं कुछ नहीं बोला और सर झुका कर थाली चारपाई पर रख बाहर आ गया| मुझे शक हुआ की शायद भौजी खाना नहीं खाएंगी इसलिए में 10 मिनट बाद पानी देने के बहाने से आया तो देखा भौजी गुम-सुम खाना खा रहीं हैं| नेहा भी उन्हीं की थाली से खाना खा रही थी, मैंने चुप-चाप पानी रखा और बाहर वापस आ गया| कुछ देर बाद नेहा खाली थाली ले कर बाहर आई, मैंने उससे थाली ले ली और नेहा के हाथ धुलवाए| मैंने नेहा को ले कर फिर से भौजी के घर में घुसा और उसके हाथ में दवाई दी ताकि वो अपनी मम्मी को दे दे| भौजी ने नेहा के हाथ से दवाई ले ली और फिर से दूसरी तरफ मुँह कर के लेट गई| अगले पाँच मिनट तक मैं बिना कुछ बोले भौजी को देखता रहा| भौजी का ये रूखा व्हवहार मुझसे देखा नहीं जा रहा था! मेर दिल कचोटने लगा था, पर मैंने किसी तरह खुद को समझाया की सुबह तक सब ठीक हो जायेगा| सुबह तक भौजी का दिमाग ठंडा हो जायेगा और तब मैं उन्हीं समझाऊँगा| इधर नेहा आ कर मेरी टांगों से लिपट गई जिससे मेरा ध्यान भंग हुआ| मैंने नेहा को गोद में उठाया और उसके गाल को चूमते हुए कहा; "बेटा आप रात को मम्मी के पास सोना| अगर रात को मम्मी की तबियत ख़राब हो तो मुझे जगा देना|" मेरी बात सुन नेहा ने तुरंत हाँ में गर्दन हिलाई और मेरे दाएं गाल को चूम कर मुस्कुरा दी| नेहा की मुस्कराहट देख कर मेरे दिल को कुछ सुकून मिला| नेहा को भौजी की बगल में लिटा कर मैं बाहर आ गया, बाहर आते ही बड़की अम्मा ने मुझे खाना खाने के लिए बुला लिया| उस वक़्त मेरी खाने की इच्छा नहीं थी पर अगर मैं खाना नहीं खाता तो मुझसे सवाल पुछा जाता और मेरे मूक रहने पर वो सवाल सीधा भौजी से पुछा जाता| जिस तरह की मनो दशा मैं भौजी की देख रहा था वो ये सब देख और सुन कर और दुखी हो जातीं| इसलिए मैंने बड़े बेमन से खाना खाया और वापस आ कर अपने बिस्तर पर लेट गया पर नींद एक पल के लिए नहीं आई, पूरी रात मैंने करवट बदलते हुए काटी| मुझे इस बात की भी चिंता थी की अगर रात को भौजी की तबियत खराब हो गई तो? एक बार को तो मन किया की अंदर जा कर देखूं, मैं चुप-चाप उठा और भौजी का दरवाजा खोलना चाहा पर वो अंदर से बंद था| दरवाजा बंद देख मैं हैरान हो गया, क्योंकि मैं भौजी के दरवाजे के पास ही सोता था और जब से मैं आया था तब से भौजी घर का दरवाजा रात को कभी बंद नहीं करती था, दरवाजा हमेशा ही आपस में चिपका होता था ताकि मैं जब चाहूँ अंदर जा सकूँ| मैं उस वक़्त ये भी सह गया, सोचा की सुबह तक सब ठीक हो जायेगा और चुप-चाप लेट गया पर नींद अब भी नहीं आई!


अगली सुबह 5 बजे भौजी उठ कर बाहर आईं और मुझे जागता हुआ पाया| मैं उस वाट अपनी चारपाई पर सर झुका कर बैठा था| भौजी ने अब भी मुझसे कुछ नहीं कहा और नेहा का सहारा ले कर बड़की अम्मा के पास पहुँची| माँ, बड़की अम्मा, रसिका भाभी और भौजी खेत की ओर झाड़े फिरे (Toilet) चले गए| मैं चुप-चाप उठा और बड़े घर आ कर अपने कपडे निकाले, ब्रश किया और इतने में मुझे भी प्रेशर आ गया| मैं भी झाड़े फिर कर आगया| नाहा-धो कर मैं रसोई आया तो देखा भौजी, माँ, बड़की अम्मा और रसिका भाभी आपस में बातें कर रहे हैं| भौजी लेटी हुई थीं और नेहा उनके पास बैठी खेल रही थी| मुझे देखते ही नेहा मेरी गोद में आने को अपने हाथ खोल कर बोली; चाचू!" मैंने भौजी की तरफ देख कर मुस्कुराते हुए नेहा को अपनी गोद में ले लिया पर भौजी ने मेरी तरफ नहीं देखा| "भौजी अब तबियत कैसी है!" मैंने कहा ताकि बड़की अम्मा और माँ की मौजूदगी में वो मुझसे कुछ तो बात करें| भौजी ने बड़ा ही रुखा सा जवाब देते हुए कहा; "ठीक है" और एकदम से बड़की अम्मा से बोलने लगीं; "अम्मा मिसराइन कहत रही की इस पूरनमासी को हवन बैठाये हैं!" भौजी का मुझे यूँ अनदेखा कर देना देख मुझे बहुत गुस्सा आया, मुझसे अब भौजी की ये बेरुखी नहीं देखि जा रही थी| मैं नेहा को गोद में ले कर भौजी के घर में घुसा और उसे कौन सी दवाई देनी है उसे अच्छे से समझा दिया| फिर मैं उसे ले कर बाहर आया और गाय खोलने लगा, मुझे गाय खोलता देख बड़की अम्मा ने मुझे टोका; "मुन्ना का करत हो?"

"अम्मा गाय चराने ले जा रहा हूँ|" इतना कह कर मैंने गाय खोल ली और उसे हाँकते हुए खेतों की तरफ चल दिया| नेहा भी मेरे पीछे-पीछे आने लगी तो माने उसे समझाते हुए कहा; "बेटा आपको यहाँ रुक कर मम्मी का ख्याल रखना है|" इतना कह कर मैंने नेहा के सर को चूमा और घर से निकल पड़ा| घर से कुछ दूरी पर एक छोटा सा बाग़ था, मैंने गाय को वहीं पास चरते हुए छोड़ा और बाग़ में बैठ गया| बाग़ में बैठे-बैठे मैं सोचने लगा की आखिर मैंने कल उनसे ऐसा क्या कह दिया की वो मेरे साथ ऐसा बर्ताव कर रहीं हैं? मैं कल जो कहा वो सच ही तो था, हम दोनों साथ कैसे रह सकते हैं? घर से भाग कर मैं भला कैसे उन्हें और नेहा को संभालूँगा?! ये बात आखिर वो क्यों नहीं समझना चाहतीं? ठीक है, अगर उन्हें इसी कदर अपना गुस्सा दिखाना है तो दिखाएं, मैं नहीं जाऊँगा उनके पास नेहा तो है ही उनका ध्यान रखने को| एक बार उनकी तबियत ठीक हो जाये मैं पिताजी से दिल्ली जाने की बात करता हूँ| ये सब सोचते-सोचते दोपहर हो गई और मैं गाय हाँकते हुए घर लौट आया| वापस आ कर मैंने गाय को पानी पिलाया और उसे वापस खूंटे से बाँध दिया| मुझे गाय बाँधता हुआ देख पिताजी बड़के दादा से मजाक करते हुए बोले; "भाईसाहब, लागत है आज सूरज पश्चिम सी निकाली आओ है!" दरअसल पिताजी का मतलब था की मैं आज अकेले गाय चराने कैसे चला गया?!

"वो क्या है न पिताजी, गट्टू भैया तो हमारे जाने के अगले दिन ही वापस चले गए तो मैंने सोचा की आज गाय मैं ही चरा लेता हूँ!" मैंने नकली हंसी हँसते हुए कहा| इतने में रसिका भाभी ने खाना परोस दिया, मैं मुड़ कर भौजी के घर जाने लगा ताकि नेहा से पूछ सकूँ की उन्होंने खाना खाया या नहीं पर पिताजी ने मुझे रोक दिया और बोले; "तेरी भौजी को तेरी माँ ने खाना खिला दिया है, वो बही दवाई ले कर सो रही है|" पिताजी की बात सुन कर मुझे इत्मीनान हुआ, इसलिए मैंने खाना खाने बैठ गया इतने में नेहा कूदती हुई मेरे पास आ गई| मैंने उसे अपनी गोद में बिठाया और हम दोनों खाना खाने लगे| तभी चन्दर भैया और अजय भैया भी आ धमके और वो भी साथ खाना खाने बैठ गए| चन्दर भैया को बड़की अम्मा ने सारी बात बताई, ये सुन कर उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ा, पर हाँ मैं उनके अंदर एक गुस्सा पनपता हुआ भाँप गया| वो मुझे तो कुछ नहीं बोले पर नेहा पर चिल्लाये; "तोहका तनिको चैन नहीं ना? जब देखो मानु भय की गोद चढ़ी रहत है! भाग हियाँ से!" अपने बाप की दांत सुन नेहा सहम गई और रुनवासी हो कर उठने लगी; "क्यों बेकार में नेहा को डाँट रहे हो? खाना ही तो खा रही है न मेरे साथ!" मैंने चिढ़ते हुए कहा| मेरी बात सुनकर पिताजी बीच-बचाव करते हुए बोले; "मानु नेहा को बहुत लाड करत है, इसलिए नेहा हमेशा मानु के संगे ही खाना खात ही!" पिताजी की बात सुन चन्दर भैया खामोश हो गए| इधर मैंने नेहा के सर को पीछे से चूमा और उसे अपने हाथ से खाना खिलाया| खाना खा कर मैं सबसे पहले उठा और थाली रख कर नेहा को गोद में ले कर टहलने लगा| कुछ ही देर में नेहा सो गई तो मैं उसे ले कर भौजी के घर में दाखिल हुआ| भौजी उस वाट सीढ़ी लेटी हुई थीं और उनकी आँखें खुल हुई थीं, मुझे देखते ही उन्होंने मुँह मोड़ लिया और दूसरी तरफ मुँह कर के लेट गईं| ये देख कर मेरा दिल टूट गया, मेरे आँसूँ दहलीज पर आ गए पर मैं उन्हें भौजी को नहीं दिखाना चाहता था, इसलिए नेहा को मैंने भौजी की बगल में लिटाया और चुप-चाप बाहर आ गया| घर के सारे लोग छप्पर के आस-पास थे तो मैं बड़े घर में सोने चला गया| आंगन में छपाई दाल मैं लेट गया, चूँकि इस वक़्त वहां कोई नहीं था इसलिए मैं धीरे-धीरे सिसकने लगा और कुछ देर पहले जो आँसूँ दहलीज तक आ गए थे वो बाहर छलक ही पड़े|

कल पूरी रात मैं जाग रहा था इसलिए रोते-रोते आँखें भारी हो गईं और मैं सो गया| शाम को नेहा ने आ कर मेरे बाएं गाल पर पप्पी की तब मेरी आँख खुली| मैं एकदम से उठ बैठा और नेहा को गोद में ले लिया, इस पूरे घर में एक वही थी जो मुझे समझ सकती थी| मैंने उसे गोद में लिया और उसके गाल पर पप्पी की| फिर मैं उसे ले कर दूकान पर आ गया और उसे उसके मनपसंद चिप्स दिलवाये| "बेटा आपकी मम्मी कैसीन हैं?" मैंने पुछा तो नेहा बोली; "चाचू...वो है न...रो रही थीं!" ये सुन मैं नेहा को ले कर भौजी के पास लौट आया, मुझे देखते ही वो उठ कर बाहर निकल गईं| पर मैं उनके पीछे-पीछे बाहर निकल आया, भौजी एकदम से छप्पर के नीचे घुसीं और तखत पर लेट गईं| लेटते ही उन्होंने रसिका भाभी से बात शुरू कर दी और मुझे कुछ कहने का मौका ही नहीं दिया| "छोटी! हमार खतिर तोहका तीनों जून चूल्हा फूँके का पडत है!" भौजी बोलीं| मैं उनकी बगल में नेहा को गोद में ले कर खड़ा था पर उनकी नजरें रसिका भाभी पर टिकी थीं| बहुत दुःख हुआ...और मैंने नेहा को गोद से उतार दिया और उसे भौजी के पास रहने का इशारा किया| मैं दौड़ता हुआ वहाँ से घर की पिछवाड़े भाग गया| वहाँ जा कर मैंने दिवार से पीठ टिकाई और खूब जोर से रोया| उस समय मैं नहीं जानता था की ब्रेक-अप क्या होता है पर जो ब्रेक-अप पर दर्द होता है उसे महसूस कर पा रहा था| आधे घंटे तक मैं खड़ा रोता रहा और खुद से ही सवाल पूछता रहा की भला मेरा प्यार कहाँ कम पड़ गया? नहीं हूँ मैं इस काबिल के मैं भौजी और बच्चों की जिम्मेदारी! क्या मुझे प्यार करने का कोई हक़ नहीं है? क्या वो कुछ साल और इंतजार नहीं कर सकतीं ताकि मैं कमाने लायक हो जाऊँ? कम से कम एक बार भौजी मेरी बात तो सुन लेतीं?! इस कदर मुझ बेक़सूर का सजा देना क्या ठीक है? बात नहीं करनी तो एक बार बोल दो ताकि दुबारा उन्हें शक्ल ही न दिखाऊँ! कम्भख्त मर भी नहीं सकता मैं वरना माँ-पिताजी का क्या होगा?


जी भर के रो लेने के बाद मैं घर लौट आया और बिना किसी से कुछ कहे हैंडपंप पर जा कर अपना मुँह धोया! भौजी छप्पर के नीचे से मुझे मुँह धोते हुए देख रहीं थीं, समझ तो वो गई होंगी पर बोली कुछ नहीं| मुँह धो कर मैं अभी रुमाल से मुँह पांच रहा था की अजय भैया आ गए और मुझे अपने पास बिठा लिया| वो मुझसे दिल्ली की बातें करने लगे तो मैं बस उनके सवालों का जवाब देता रहा| अब उनसे बात न करता तो वो और सवाल पूछते, इसलिए बेमन से मुस्कुराते हुए उनके सवालों का जवाब देता रहा| कुछ ही देर में रात के खाने का समय हो गया और अजय भैया मुझे अपने साथ ले गए| रसिका भाभी ने सबसे पहले मेरी थाली परोसी थी पर मैंने वो थाली था कर नेहा को दी और उसे कहा; "बेटा आप ये खाना मम्मी को खिला देना और उसके बाद वो लाल वाली गोली मम्मी को दे देना! फिर आप और मैं एक साथ खाना खाएंगे|" नेहा ने मुस्कुराते हुए हाँ कहा और थाली ले कर चली गई| उसके वापस आने तक मैं छप्पर के नीचे बैठा सबसे बातें करता रहा, मैंने किसी को भी कोई शक नहीं होने दिया की मैं दुखी हूँ! जैसे ही नेहा बाहर आई तो वो सीधा मेरे पास आई और बोली; "चाचू माँ और मैंने खाना खा लिया, आप भी खाना खा लो|" नेहा की बात सुन कर मुझे बहुत दुःख हुआ, भौजी ने जानबूझ कर उसे अपने साथ खाना खिलाया ताकि वो मेरे साथ खाना न खा सके| एक वही तो थी जिसकी वजह से मुझे खाना खाना अच्छा लगता था और अब तो वो भी नहीं है| इतने में रसिका भाभी ने मेरी थाली परोस दी, मजबूरन मुझे खाना पड़ा वरना मैंने सोच लिया था की मैं आज खाना नहीं खाऊँगा| इतना ही बड़ा था की मेरे खाने तक नेहा सामने बैठी खेल रही थी| खाना खाने के बाद मैंने नेहा से कहा की वो भौजी को दवाई दे कर आये| मैं अपनी चारपाई पर बैठा उसका इंतजार करने लगा पर नेहा बाहर ही नहीं आई| मैं उसे देखने के लिए अंदर जाना चाहता था पर जैसे ही दरवाजे को धकेला तो वो अंदर से बंद था| दरवाजा बंद देख मुझे बहुत बुरा लगा, मैं सर झुकाये अपने बिस्तर पर आया और लेट गया, मेरा दिल अब भी सकारात्मक सोच रहा था, दिल कहता था की कल सुबह सब ठीक हो जायेगा| भौजी मुझसे बहुत प्यार करती हैं और उनका मुझे इस कदर तड़पाना उन्हें भी पसंद नहीं है| कल सुबह होते ही वो मुझसे अच्छे से बात करेंगी और मैं उन्हें खूब सारा प्यार दूँगा| बाद में उन्हें इत्मीनान से समझाऊँगा| इसी उम्मीद के साथ मैंने ख़ुशी-ख़ुशी जागते हुए रात काटी|


अगली सुबह फिर दरवाजा खुला, भौजी जानती थीं की मैं जाग रहा हूँ पर फिर भी वो मुझसे मुँह मोड़ कर छप्पर के नीचे चलीं गई| उनका ये बर्ताव दे कर रही-सही उम्मीद भी टूट गई, मैं उठ कर बैठ गया और सर झुका कर खुद को रोने से रोकता रहा| भौजी ने छप्पर के नीचे से मुझे सर झुकाये देखा पर वो फिर भी कुछ नहीं बोलीं और रसिका भाभी के साथ झाड़े फिरने चली गईं| नेहा कूदती हुई मेरे पास आई और मेरी ठुड्डी पकड़ कर चेहरा ऊपर उठाया| मेरे चेहरे की मायूसी उसने पढ़ ली थी और वो आ कर मेरे गले लग गई| मैंने एकदम से नेहा को गोद में उठा लिया और उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए बड़े घर आगया| नेहा को चारपाई पर बिठा कर मैं ब्रश कर रहा था की तभी नेहा ने मुझसे सवाल पूछा; "चाचू...मम्मी आप से बात क्यों नहीं कर रही?" नेहा का सवाल सुन कर मैं स्तब्ध रह गया| इतने में नेहा उठ कर मेरे पास आई और मेरी टांगों से लिपट गई| मैंने पहले मुँह धोया और फिर नेहा को अपनी गोद में लेते हुए कहा; "बेटा...आपकी मम्मी है ना...मुझसे नाराज हैं!"

"क्यों?" नेहा ने अपना दूसरा सवाल दागा जिसका जवाब मैं उसे नहीं बता सकता था इसलिए मैंने बात को घुमाना चाहा; "पता नहीं बेटा!"

"मम्मी तो कह रहीं थीं की आपको पता है!" नेहा की बात सुन मैं समझ गया की भौजी ने नेहा की नजरों में मुझे ही दोषी बना दिया है|

"बेटा....आपकी मम्मी को है न..मैं खुश नहीं रखता इसलिए वो मुझसे नाराज हैं!" ये कहते हुए मैंने सारे इल्जाम अपने सर ले लिए| लेकिन नेहा को इस बात पर जरा भी विश्वास नहीं हुआ; "पर आप तो मम्मी का कितना ख्याल रखते हो!" नेहा बोली|

भले ही नेहा छोटी थी पर वो मेरा भौजी के लिए प्यार देख पा रही थी और वहीँ दूसरी तरफ भौजी, जो उम्र में मुझसे बढ़ीं थीं पर उन्हें मेरा प्यार दिख ही नहीं रहा था| कई बार छोटे बच्चे उन भावनाओं को समझ लेते हैं जिन्हें हम बड़े नहीं समझ पाते| शायद यही कारन था की नेहा मेरी उदासी को देख और समझ पा रही थी पर भौजी उसे देख कर भी अनदेखा कर रहीं थीं|


खैर मैं नेहा के सवाल का जवाब नहीं दे सकता था इसलिए मैंने बात घुमा दी; "वो सब छोडो बेटा और आप ये बताओ की अब मम्मी की तबियत कैसी है? वो ठीक से खाना खातीं है न? दवाई देते हो न आप टाइम से? रात में ठीक से सोती हैं न?"

"मम्मी अब पहले से ठीक हैं, खाना भी खातीं हैं और दवाई भी लेतीं हैं पर......वो न...रात को...रोतीं हैं!" नेहा ने बड़ा झिझकते हुए कहा| उसका जवाब सुन कर मैं समझ गया था की ये जवाब भौजी ने ही उन्हें रटवाया है और उसे ये भी हिदायत दी होगी की वो मुझे भौजी के रोने के बारे में न बताये| पर नेहा मुझसे कुछ नहीं छुपाती थी, इसलिए उसने झिझकते हुए सब सच बोल दिया| "बेटा...सब ठीक हो जायेगा!" ये कहते हुए मैंने नेहा को दिलासा दिया और उसका ध्यान मैंने इधर-उधर की बातों में लगा दिया| दैनिक कार्य निपटा कर मैं फिर से गाय खोल कर चराने चल दिया, उसी बाग़ में पहुँच कर मैं फिर से एक आम के पेड़ के तले बैठ गया और सोचने लगा| पिछले दो दिन से मैं देख पा रहा था की भौजी की तबियत में सुधार है, अब मैं बीएस मन ही मन हिसाब लगा रहा था की और कितने दिन मैं यहाँ रह कर भौजी का ये तिरस्कार सह सकता हूँ!


दोपहर को घर लौटा और देखा तो नेहा गायब थी| मैं उसे ढूँढ़ते हुए भौजी के घर में घुसा तो पाया की नेहा भौजी के साथ सो रही है| पास ही एक जूठी थाली पड़ी थी और एक कटोरी जिसमें दवाई पीने के निशान थे| मैंने एक नजर भौजी को देखा तो पाया की वो जाएगी हुई हैं पर सोने का नाटक कर रही हैं| मैंने हिम्मत कर के उन्हें आवाज दी; "भौजी...!" पर वो कुछ नहीं बोलीं अलबत्ता दूसरी तरफ मुँह कर के सो गईं| मैं आगे कुछ नहीं बोलै और उनकी झूठी थाली और कटोरी ले कर बाहर आ गया और उन्हें बर्तन धोने के स्थान पर रख बड़े घर की तरफ जाने लगा| रसिका भाभी ने मुझे खाने के लिए रोका तो मैंने उनसे झूठ कह दिया की मेरा पेट खराब है! बड़े घर आ कर मैं पेट के बल लेट गया और कुछ ही देर में मुझे नींद आ गई| शाम को जब उठ कर मैं छप्पर के पास आया तो देख चन्दर भैया मुँह फुला कर गुस्से में घूम रहे हैं| उस टाइम भौजी अम्मा और माँ के साथ बैठीं हँसते हुए कुछ बात कर रहीं थीं, मुझे देखते ही चन्दर भैया को गुस्सा आया और वो मेरी बगल से निकल गए| मैं एकदम से हैरान उन्हें देखता रहा और कुछ समझ पाता उससे पहले ही पिताजी और बड़के दादा खेतों की तरफ से निकलें और मुझे देखते ही पूछने लगे; "ठीक हो गया तेरा पेट?" पिताजी के आवाज सुनते ही मैं उनकी तरफ मुड़ा और झूठ बोलते हुए कहा; "जी" भौजी ने छप्पर के नीचे से मेरी बात सुन ली थी और वो समझ गईं थी की दोपहर को उनके किये गए व्यवहार के कारन ही मैंने खाना नहीं खाया है| "का हुआ मुन्ना?" बड़की अम्मा ने छप्पर से निकलते हुए पुछा; "वो अम्मा सुबह से पेट में गुड़-गुड़ हो रही थी!" मैंने बड़की अम्मा से झूठ कहा| मुँह धोने के बहाने से मैं हैंडपंप पर आया और मुँह-धोने लगा|


मुँह धो कर मैं अभी अपना मुँह साफ़ ही कर रहा था की मुझे नेहा के रोने की आवाज आई| मैं फ़ौरन छप्पर के नीचे जा पहुँचा और मुझे देखते ही नेहा ने रोते हुए अपने हाथ खोल दिए ताकि मैं उसे गोद ले लूँ| मैं उसे गोद में लेने पहुँचा तो भौजी ने नेहा को थप्पड़ मारने के लिए हाथ उठाया, मैंने एकदम से उनका हाथ पकड़ लिया और गुस्से से उन्हें देखा| मेरे मुँह पर गुस्सा देख भौजी सहम गई और उन्होंने अपना सर झुका लिया, मैंने नेहा को गोद में लिया और उसे पप्पी करते हुए दूर आ गया| नेहा का रोना सुन पिताजी भी मेरे पास आगये और नेहा से पूछने लगे; "का हुआ मुन्नी? के डांटिस है तोहका?" नेहा ने एकदम से छप्पर की तरफ ऊँगली कर दी| पिताजी ने नेहा का मन बहलाने को दूर से ही डाँटा; "के डांटिस ही हमार मुन्नी को!" उनकी आवाज में गुस्सा नहीं बल्कि प्यार था और ये सुन कर माँ छप्पर के नीचे से बोलीं; "बहु!"

"मुन्नी कउनो बात नहीं, तोहार महतारी है, कभी अगर डाँट देहिस तो का हुआ? हमूं कभों-कभों तोहार चाचा को डाँट देइत है तो ई थोड़े ही रोये लागत है!" पिताजी की बात सुन कर नेहा ने रोना बंद कर दिया और मेरे कंधे पर सर रख कर चुप हो गई| मैं नेहा को गोद में लिए घर से कुछ दूर आ गया; "बेटा आप चिप्स खाओगे?" मैंने कहा तो नेहा एकदम से खुश हो गई, फिर उसे चिप्स दिलवा कर मैं घर लौट आया| "बेटा मम्मी मेरी वजह से अभी थोड़ा परेशान है, अगर गलती से आपको कभी डाँट दें तो आप रोना नहीं और अपनी मम्मी का ख्याल रखना|" मैंने नेहा को सीख दी जिसे उसने तुरंत मान लिया| मैंने उसे गोद से उतारा तो वो तुरंत भौजी के पास चली गईं और उन्हें अपने हाथ से चिप्स खिलाया| मैं भौजी को छप्पर के नीचे से देख पा रहा था और मुझे लगा शायद वो कुछ बोलें पर उन्होंने कुछ नहीं कहा और नेहा का हाथ पकड़ कर अपने पास बिठा लिया| मैं आँखें फाड़े उनका ये रूखा व्यवहार देखता रहा| अब मेरा सब्र जवाब देने लगा था, मैंने सोच लिया था की आज रात मैं भौजी से खुल कर बात करूँगा| फिलहाल के लिए मैं चुप-चाप चल दिया और आ कर कुएँ की मुंडेर पर सर झुका कर बैठ गया| खाना बनने तक मैं अकेला वहाँ बैठ रहा, जैसे ही खाना बना भौजी अपना और नेहा क खाना ले कर मेरे सामने से होते हुए अपने घर में घुस गईं| "मानु चल खाना खा ले!" माँ ने कहा तो मैं हाथ धो कर खाना खाने बैठ गया| मैं, पिताजी, बड़के दादा, अजय भैया और चन्दर भैया एक कतार में बैठ गए| बातों का दौर शुरू हुआ और मुझे उठने का मौका ही नहीं मिला, सब के खाने तक मैं वहीं बैठा रहा| दस मिनट बाद नेहा थाली ले कर निकली और वो हाथ धो कर जा रही थी की मैंने उसे इशारे से अपने पास बुलाया पर भौजी अपने घर के दरवाजे पर खड़ीं थी, जैसे ही उन्होंने नेहा को मेरे पास जाते हुए देखा वो जोर से चिल्लाईं; "नेहा!!!" उनकी गुस्से भरी आवाज सुन नेहा दर गई और मेरे पास ना आकर भौजी के पास चली गई| एक बार फिर मैं खामोश रहा और किसी तरह सह गया! मैंने फटाफट खाना खत्म किया और बर्तन रख कर भौजी के घर की तरफ चल दिया| भौजी के घर का दरवाजा खुला था, जैसे ही मैं दरवाजे के पास पहुँचा की भौजी एकदम से मेरे सामने आईं, उन्होंने मुझे गुस्से से देखा और मेरे मुँह पर जोर से दरवाजा बंद कर दिया|


अब मेरे गुस्से की इन्तहा हो गई थी, सारे सब्र के बाँध टूट चुके थे| मैंने गुस्से में आ कर भौजी के दरवाजे पर एक जोरदार मुक्का मारा और अपने बिस्तर पर आ कर लेट गया| मुझे लगा शायद भौजी दरवाजा खोलेंगी पर ऐसा नहीं हुआ, शुकर है की किसी ने ये सब नहीं देखा था| वो पूरी रात मैं गुस्से में करवटें बदलता रहा, मैंने सोच लिया था की कल मैं भौजी से साफ़-साफ़ बात करूँगा| अगर उन्हें मेरा यहाँ होना पसंद नहीं तो मैं परसों ही चला जाऊँगा और फिर कभी उन्हें अपनी शक्ल नहीं दिखाऊँगा| बड़ी बेसब्री से जागते हुए मैंने सुबह का इंतजार किया, सुबह उठते ही भौजी घर से बाहर निकलीं और अपनी अकड़ी हुई गर्दन ले कर मेरे सामने से गुजरीं| मैंने एकदम से उठ बैठा और गुस्से से उनसे बात करने को आगे बढ़ा की तभी पिताजी ने मुझे आवाज दे आकर अपने पास बुलाया;

पिताजी: लाड साहब तैयार हो जाओ, हम तुम्हारे मौसा जी के यहाँ जा रहे हैं|

मेरे मौसा जी यानी बड़की अम्मा की बहन के पति|

मैं: पिताजी...मेरा मन नहीं है!

पिताजी: क्यों?

मैं: बोर हो जाऊँगा!

पिताजी: तो यहाँ रह कर क्या करेगा? गाय चऱायेगा?

मैं: नहीं पिताजी आज नींद पूरी नहीं हुई, अभी और सोऊँगा|

पिताजी: (गुस्से में) यहाँ सोने आया है?

माँ: आप छोड़िये इसे, ये अपनी भौजी की वजह से नहीं जा रहा|

माँ ने मेरा बचाव किया, पर घर में कोई नहीं जानता था की मेरी और भौजी की बोल-चाल बंद है|

पिताजी: देख ले एक रात की बात है कल दोपहर तक आ जायेंगे?!

मैं: सॉरी पिताजी...पर मन नहीं है!

इसके आगे पिताजी ने कुछ नहीं कहा|

माँ-पिताजी तैयार होने लगे और उन्हें दिखाने के लिए मैं भी उनके सामने चारपाई पर पड़ा रहा| मैं मन ही मन सोच रहा था की कब वो निकलें और मैं जा कर भौजी से फैसला करूँ| इतने में वरुण और अजय भैया आ गए, वरुण मुझसे मिलने लगा तथा अजय भैया पिताजी से उनकी बेल्ट माँगने लगे; "तू कहाँ जात है?" पिताजी बोले तो अजय भैया ने मुँह बनाते हुए कहा; "ससुरी को मायके छोड़ने!" पिताजी अजय भैया के मुँह बनने का कारन जानते थे इसलिए उन्हें समझाते हुए कहा; "रास्ते मा लड़ाई न किहो और सांझ ढले तक आजायो!" अजय भैया ने बेल्ट पहनी और मुस्कुराते हुए रसिका भाभी को ले कर निकल गए| दरअसल रसिका भाभी के मायके जाने का कारन था घर का काम करना| भौजी के बीमार होने के बाद तकरीबन एक हफ्ते से वो ही चूल्हा-चौका संभाले हुईं थी, और जैसे ही भौजी की तबियत ठीक होने लगीं उन्होंने घर जाने की रट लगा ली थी|



अजय भैया के जाने के कुछ देर बाद मा-पिताजी भी चले गए| बड़के दादा और बड़की अम्मा खेत निकल गए थे और चन्दर भैया को खेत आने को कह गए थे| मैं बड़े घर के आंगन में लेटा परेशान था, अंदर ही अंदर मुझे भौजी की बातें खाए जा रही थी| मेरी अंतर् आत्मा ने कहा की आखरी बार भौजी को समझा वो जर्रूर समझ जाएँगी| ये सोच मैं उठा और उनके घर की ओर चल पड़ा, मैं अभी बड़े घर के दरवाजे पर था की मुझे भौजी के घर से शोर सुनाई दिया, जैसे की कोई डाँट रहा हो| मैं उत्सुकता वश उनके घर की तरफ दौड़ा, अंदर जा के देखा तो चन्दर भैया के हाथ में चमड़े की बेल्ट थी और वो भौजी को गालियाँ दे रहे थे| भौजी बेचारी स्नानघर के पास जमीन पर बैठीं थीं तथा नेहा उनकी गोद में अपना मुँह छुपाये रो रही थी| (भौजी ओर नेहा नीचे दिखाए चित्र की तरह बैठे थे|)



भौजी की आँखों से आँसुओं की धरा बह रही थी ओर ये देख मुझे गुस्सा आ रहा था| चन्दर भैया की पीठ मेरी तरफ थी इस कारन न तो अभी तक उन्होंने मुझे देखा था और न ही भौजी ने मुझे देखा था| इधर जैसे ही चन्दर भैया ने भौजी को मारने के लिए बेल्ट उठाई, मैंने पीछे से उनकी बेल्ट पकड़ ली| चन्दर भैया एक दम से पीछे मुड़े और मेरे हाथ से अपनी बेल्ट छुड़ा ली| मैं फिर भी उनके हाथ से बेल्ट छुड़ाने की कोशिश करने लगा और तब मुझे उनके मुँह से देसी दारु की तेज दुर्गन्ध आई| साफ़ जाहिर था की वे नशे में धुत्त थे, उनके मस्तिष्क ने काम करना बंद कर दिया था, दारु उनके दिमाग पर कब्ज़ा कर चुकी थी और वो अपना गुस्सा आज भौजी पर निकालना चाहते थे| दिखने में चन्दर भय मेरे मुक़ाबले बलिष्ठ थे और उनके आगे मेरी एक न चली, उन्होंने मुझे जोर दार धक्का दिया और बोले; "हट जा सरु...वरना अगला नंबर तोहार है|"


मैं अब भौजी और चन्दर भैया के बीच जमीन पर पड़ा था, मैं फटफट उठ खड़ा हुआ की इतने में पीछे से भौजी की रोते हुए आवाज आई; "हट जाओ मानु!" पर मैंने पलट कर उनकी तरफ देखा ही नहीं और भैया से दुबारा बेल्ट छीननी चाही पर चन्दर भैया ने मेरी छाती पर जोरदार धक्का दिया जिससे मैं पीछे को गिरने लगा पर किसी तरह मैंने खुद को गिरने से बचा लिया| मैं सम्भल कर खड़ा हुआ, मेरी पीठ चन्दर भय की तरफ थी और मुँह भौजी की तरफ| भौजी का रोटा हुआ चेहरा देख मैं गुस्से से चन्दर भैया की तरफ पलटने ही वाला था की चन्दर भैया ने अपनी बेल्ट से एक जोरदार वार मेरी पीठ पर किया| उनके पहले वार से ही मेरे मुँह से जोर दार चीख निकली; "आह!!! अह्ह्हह्ह!!!! उम्म्म!!!" पूरे जिस्म में दर्द का संचार हो गया था, मुझे दर्द में देख भौजी ने नेहा को खुद से दूर किया वो मेरे पास आईं| मैंने उन्हें धक्का दे कर खुद से दूर कर दिया, भौजी कुछ बोल पातीं उससे पहले ही चन्दर भैया दारु के नशे में गरजते हुए बोले; "सरऊ बहुत शौक है न तोहका इसे बचाने का न... ई ले... और ले... बहुत भौजी-भौजी करत....इसके आगे-पीछे घूमत है....और ले...!" ये कहते हुए चन्दर भैया ने बिना रुके अपनी बेल्ट से वार करने शुरू कर दिए थे! किसी तरह खुद को मजबूत किये मैं खड़ा रहा, चिल्लाता रहा, करहाते रहा| भौजी एक बार फिर मुझे हटाने को आगे आईं तो मैं करहाते हुए बोलै; "आपको मेरी कसम.....आअह!!! बीच मत आओ!" भौजी ने घुटनों पर बैठ कर मेरी अनगिनत विनती कर पर मैं केवल ना में सर हिलाता रहा| भौजी नहीं मानी और मुझे हटाने को फिर से आगे आईं, पर मैंने उन्हें धक्का दे के दूर कर दिया| मेरी आँखों से पानी लगातार बह रहा था और कराहना भी चालु था!!! भाभी नीचे पड़ी सब देख रहीं थी और रो रही थी, उन्हें पता था की चाहे कुछ भी हो मैं हटने वाला नहीं| मेरी कराह सुन नेहा भागती हुई भौजी की गोद में अपना मुँह छुपा के बैठ गई और जोर-जोर से रोने लगी| मेरे अंदर सहने की कितनी ताक़त है ये मुझे उस दिन पता चला, मैं चाहता तो वहाँ से हट सकता था पर फिर चन्दर भैया का गुस्सा भौजी पर निकलता और वो ये सब सह नहीं पातीं|

नेहा को रोता हुआ देख मेरा खून खोल रहा था, मन कर रहा था की चाक़ू से गोद-गोद कर चन्दर भैया का खून कर दूँ| उन्होंने मेरी फूल जैसी बच्ची को रुलाया और मेरी भौजी, जिन्हें मैं अपनी जान से भी ज्यादा प्यार करता हूँ उन्हें दुःख पहुँचाया| परन्तु उस वक़्त मुझ में हिम्मत नहीं थी की मैं उनके बलिष्ठ शरीर का सामना करूँ!!! भौजी ने एकदम से चन्दर भैया के आगे हाथ जोड़ दिए और बोलीं; "मानु को छोड़ दो.... इसने आपका क्या बिगाड़ा है... मारना है तो मुझे मारो!!!" भौजी की हिंदी में कही बात सुन उनका गुस्सा और बढ़क गया और उन्होंने एक जोरदार वार मेरी पीठ पर और किया; "तोहार नंबर भी आई...पहले इससे तो निपट लेइ|" चन्दर भय बोले और अब तो जैसे अपनी पूरी ताक़त से वार करने लगे| मैं अपने जिस्म को ऐंठने लगा था ताकि पीठ के दर्द को कुछ और बर्दाश्त कर सकूँ पर उससे कोई फर्क नहीं पड़ा|


भौजी चाहतीं थीं की मैं उनके और चन्दर भैया के गुस्से के बीच से हट जाऊँ, वो एक बार फिर मुझे रोकने को उठीं पर नेहा इस कदर दर-सहम गई थी की उसका रोना अब चीखने में तब्दील हो चूका था| एक 4 साल की छोटी बच्ची के सामने उसका अपना जल्लाद बाप उसके चहेते चाचू को बेदर्दी से पीट रहा था| ये सब देखना उस फूल सी नाजुक बच्ची के लिए आसान नहीं था! भौजी ने नेहा को कस कर अपनी छाती से चिपका लिया ताकि नेहा ये दर्दनाक दृश्य देख न सके| इधर मेरे लिए ये दर्द बर्दाश्त कर पाना मुश्किल होता जा रहा था, पर कुछ तो था जिसके कारन मैं अब भी ये दर्द बर्दश्त किये हुए खड़ा था| भौजी अब भी रो रहीं थीं और चन्दर भैया से मिन्नतें कर रहीं थीं पर चन्दर पर भौजी के आँसुओं का कोई फर्क नहीं पड़ रहा था|

अभी तक बस 15 मिनट हुए थे और इन 15 मिनटों में चन्दर भैया मुझ पर बीस बार बेल्ट से वार कर चुके थे! भौजी स्नान घर के पास रोती-बिलखती बैठीं थी, नेहा जो उनकी गोद में थी उसका भी रो-रो के बुरा हाल था|


क़िस्मत कहूँ, प्यार कहूँ या भगवान की कृपा समझ नहीं आता!


अचानक ही अजय भैया आ गए, पहली नजर उनकी मेरे ऊपर पड़ी और फिर चन्दर भैया पर| अजय भैया ने फ़ौरन चन्दर भैया के हाथ से बेल्ट छीनने की कोशिश की, जब वो भी नाकामयाब हुए तो वो उन्हें धकेलते हुए बहार ले गए| ठीक उसी वक़्त मैं लड़खड़ाया और जमीन पर घुटनों के बल आ गिरा, भौजी मेरे पास भागती हुई आईं और अपने पल्लू से मेरे मुख पर आये पसीने को पोछा| भौजी अब भी रोये जा रहीं थीं, जब उन्होंने ने मेरी पीठ की ओर देखा तो उनकी सांसें रूक गईं! मेरी पीठ पूरी लहू-लुहान हो गई थी, टी शर्ट कई जगह से फ़ट गईं थी और मेरी हालत भी ख़राब होने लगी थी| मुझे ऐसा लग रह था की मेरी पीठ सुन्न हो गई है, बस जहाँ-जहाँ जख्म हुए थे वहाँ तड़पाने वाली जलन हो रही थी| मैंने आज तक इतना दर्द नहीं सहा था!

भौजी ने मुझे सहारा दे के उठाया और चारपाई बिछा कर लिटाना चाहा पर सीधा तो मैं लेट नहीं सकता था इसलिए मैं पेट के बल लेट गया| भौजी ये देख कर बिफर पड़ीं ओर फुट-फुट कर रोने लगीं| नेहा उठ कर मेरे मुख के आगे खड़ी रो रही थी| मैंने लेटे-लेटे उसके आँसूँ पोछे, इतने में भौजी रुई ले के मेरे पास आई| उनके हाथ में रुई देख मैं थोड़ा हैरान था क्योंकि मुझे नहीं पता था की मेरी पीठ इतनी लहू-लोहान है| भौजी ने एक-एक कर रुई के टुकड़ों से मेरी पीठ पर लगे खून को साफ़ करने लगी और नीचे खून लगी रुई का ढेर लगने लगा| अब सच में मुझे ये ढेर देख के डर लगने लगा था, पता नहीं मेरे शरीर में खून बचा भी है की नहीं?

जारी रहेगा भाग 3 में
 
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नौवाँ अध्याय: परीक्षा
भाग - 3
अब तक आपने पढ़ा:

भौजी ने एक-एक कर रुई के टुकड़ों से मेरी पीठ पर लगे खून को साफ़ करने लगी और नीचे खून लगी रुई का ढेर लगने लगा| अब सच में मुझे ये ढेर देख के डर लगने लगा था, पता नहीं मेरे शरीर में खून बचा भी है की नहीं?

अब आगे:


भौजी के आँसूँ बहते जा रहे थे, इधर मेरी पीठ पर से कई जगह पर चमड़ी उधड़ गई थी जिस कारन मेरे पूरे जिस्म में दर्द का संचार हो रहा था| अपने दर्द की परवाह किये बिना मुझे भौजी के आँसूँ चुभ रहे थे;

मैं: भौजी... प्लीज चुप हो जाओ...आह!!!...मैं आपको रोते हुए नहीं देख सकता....अंह!!!

मैंने करहाते हुए कहा|

भौजी: तुम क्यों बीच में आये? देखो तुमने अपनी क्या हालत बना ली?

भौजी रोटी हुई बोलीं|

मैं: तो मैं खड़ा हुआ भैया को आपको पीटते हुए देखता रहता? अंम्म्म!!!

भौजी ने रुई से मेरे कटी हुई पीठ को छुआ तो मैं दर्द से बिलबिला उठा!

मैं: मैंने आपको.......गलत समझा भौजी....आह्ह!!! उसकी कुछ तो सजा मिलनी ही थी| स्स्स्स!!!

ये सुन कर भौजी ने अपने आँसूँ पोछे और बोलीं;

भौजी: तुम सही थे मानु, मैंने ही तुम्हारी बातों को गलत समझा| तुम सही कह रहे थे, अपनी अलग दुनिया बसाना इतना आसान नहीं होता| मुझे माफ़ कर दो मानु... !!!

ये कहते हुए भौजी मेरे मुँह के सामने बैठ गईं और मेरे आँसूँ पोछे| भौजी का चेहरा देखा तो उनके चेहरे पर मुझे तड़प साफ़ दिख रही थी, उधर नेहा का मासूम सा चेहरा दर्द झलका रहा था|

मैं: चलो देर आये-दुरुस्त आये....अह्ह्ह्ह!!!

आज मैंने जो देखा और किया उससे मुझे भौजी का पहलु समझ आ गया था| भले ही उनकी जिद्द गलत थी पर उस जिद्द के पीछे छुपा मकसद सही था| भौजी चाहतीं थी की मैं उन्हें भगा ले जाऊँ क्योंकि उनका जल्लाद पति उनपर अत्याचार करता था| मैं अपना मन बना चूका था की मैं उन्हें इस नर्क से निकाल कर रहूँगा, फिर चाहे इसके लिए मुझे मजदूरी क्यों न करनी पड़े!

"भौजी..." मैं आगे कुछ कह पाता उससे पहले ही अजय भय आ गए|

अजय भैया: भाभी भैया मानु भय को काहे मारत रहे?

भौजी: सराब पी कर तुन थे और हमका मारे वाले थे की तोहार मानु भैया बीच में आईगए|

भौजी ने अजय भैया को सारा किस्सा सुना दिया और ये सुन कर अजय भैया सुन्न थे पर मुझे दर लग रहा था की पिताजी को जब ये पता चला तो क्या होगा? इसलिए मैंने इस बात को दाबाना चाहा;

मैं: भैया आपको और भौजी को मुझसे एक वादा करना होगा|

मैंने जैसे-तैसे दर्द की टीस को सहते हुए कहा|

अजय भैया: क्या भैया बोलो?

मैं: ये बात हम तीनों के आलावा और किसी को पता नहीं होनी चाहिए, ख़ास तोर पर माँ और पिताजी को, वरना आफत आ जयगी!! अह्ह्ह !!! अन्न्ह्ह !!!

इतना कहते हुए मैं दर्द से करहा पड़ा| मेरी बात सुनते ही अजय भैया चौंक गए;

अजय भैया: ई का कहत हो?

मैं: भैया अगर पिताजी को मेरी पीठ पर बने ये निशान दिख गए तो पिताजी घर सर पे उठा लेंगे....(उम्ममम!!!).... घर में लड़ाई झगड़ा हो जायेगा इस बात पर....

मैंने बड़ी मुश्किल से अपनी बात पूरी की|

भौजी: मानु तुम इन घावों को कब तक छुपाओगे? वैसे भी गलती तुम्हारे भैया की है... तुम तो बस...

मैं जानता था की भौजी क्या कहेंगी और वो सुन कर कहीं अजा भैया को हम दोनों के रिश्ते पर कोई शक न हो इसलिए मेंने उनकी बात एकदम से काट दी;

मैं: नहीं भौजी...(अंहहहहहह्)!!!

अजय भैया: नाहीं मानु भय, हम तोहार बात न मानब, पाहिले हमरे संगे डकटर के चलो और फिर हम अम्मा और बाप्पा (बड़की अम्मा और बड़के दादा) से बात करित है| ऊ ही फैसला करीहें की आगे का करे का है!

मैं समझ गया था की आज बवाल तो होना तय है और मुझे ये बवाल कम से कम 2-3 दिन के लिए टालना था| पर अभी अजय भैया की बात पूरी नहीं हुई थी;

अजय भैया: हम जाइके साइकिल मांग लाईत है, हमार साइकल तो चन्दर चन्दर भैया ले गए!

ये सुन कर मैं हैरान हुआ की जो इंसान नशे में इतना धुत है वो भला साइकिल कैसे चलाएगा?

मैं: कहाँ?

अजय भैया: हियाँ पासे में एक लड़कवा राहत है, ऊ भैया को दोस्त है|

अजय भैया निकलने लगे तो मैंने उन्हें रोक दिया;

मैं: भैया आप बस मुझे एक पैन (PAIN) किलर ला दो, उससे ठीक होजायेगा|

ये सुनते ही भौजी जोर देने लगीं की मैं चला जाऊँ पर मुझ में अब हिम्मत नहीं थी की मैं उठ कर बैठूं!

मैं: भौजी मुझे में हिम्मत नहीं है की मैं उठ कर बैठूं| दर्द ठीक हो जाएगा तो मैं कल चला जाऊँगा| मैंने अजय भैया से दुबारा कहा तो वो बोले;

अजय भैया: अभी लाईत है|

अजय भैया PAIN किलर लेने गए और भौजी अंदर से मलहम ले आईं, जो पीठ थोड़ी देर पहले सुन्न थी अब जैसे उसमें वापस खून दौड़ने लगा था| जिस कारन मेरा दर्द दुगना हो गया था, जैसे ही भौजी ने मेरी पीठ पर मलहम लगाया, मैं तड़प कर चीख उठा;

"आआाआअअअअअह!!!" मेरी चीख सुन भौजी डर गईं र उनके चेहरे पर फिर आँसूँ बहने लगे| मैं भौजी का चेहरा नहीं देख पाया था पर मेरा दिल उनका दुःख महसूस कर पा रहा था| भौजी ने धीरे-धीरे मलहम लगाना चूरू किया पर अब उनके छूने भर से दर्द हो रहा था| तभी अजय भैया PAIN किलर लाये, मैंने झट से गोली ली और वापस पट के बल लेट गया, उसके बाद मुझे होश नहीं था की क्या हुआ| जब मेरी आँख खुली तो भौजी मेरे सिरहाने बैठी थीं| PAIN किलर का असर खत्म हो चूका था और रह-रह के दर्द हो रहा था| इधर भौजी मुझे पँखा कर रही थी, ठंडी हवा जब मेरी पीठ को छूती तो दर्द कुछ कम होता| समय का ठीक से तो पता नहीं, पर रात हो चुकी थी, मैं बड़ा सम्भल कर उठ ने लगा ताकि दर्द ज्यादा न हो| मेरे उठते ही भौजी अपने आँसूँ पोंछती हुई उठी और मुझे सहारा देने लगी;

भौजी: अब कैसा लगा रहा है? दर्द कुछ कम हुआ?

भौजी ने सिसकते हुए कहा|

मैं: नहीं....जब तक गोली का असर था तब तक तो कुछ पता नहीं था.....(ऊह्ह्म्म!!!)....क्या टाइम हुआ है?

भौजी: 9 बजे होंगे|

मैं: ये कौन सी गोली दी थी भैया ने, जो मैं इतनी देर सोता रहा? (ओह्ह्ह्ह!!!)

भौजी: एक हरे पत्ते की गोली है!

मैं: हम्म्म

भौजी: मैं तुम्हे दोपहर खाने के लिए उठाने आई थी, पर तुम उठे ही नहीं! चाचा-चाची का भी फ़ोन आया था, उन्होंने कहा की वे कल सुबह आएंगे|

माँ-पिताजी के फ़ोन आने की बात सुन कर मैं थोड़ा चिंतित हो गया|

मैं: आपने उन्हें इस सब के बारे में तो नहीं बताया? (ओह्ह्ह!!)

भौजी: नहीं....मैंने अजय को मना कर दिया था, नहीं तो वे चिंतित होते और आधी रात को ही यहाँ पहुँच जाते!

मैं: ठीक है....(अंह्ह्ह!!!)

भौजी: अब चलो पहले चलो हाथ मुँह धो लो और भोजन कर लो, फिर मैं आयुर्वेदिक तेल से मालिश कर देती हूँ, शायद उससे आराम मिले|

भौजी का सहारा ले कर मैं खड़ा हुआ और फिर उनकी मदद से मैंने हाथ-मुँह धोये| फिर भौजी नेखुद अपने हाथ से मुझे खाना खिलाया और मैंने उन्हें खाना खिलाया| उसके बाद भौजी ने वो आयुर्वेदिक तेल लगाने लगीं;

मैं: अम्मा और बड़के दादा...(आअह!!!) सो गए क्या?

भौजी: हम्म्म....सब सो गए...सिर्फ हमदोनों जगे हैं|

मैं: तो आप सब (आह्हःणम्म!!!) ने उनसे कुछ कहा?

भौजी: हाँ...अजय ने उन्हें सारी बात बताई और ये सुन कर उन्हें बहुत गुस्सा आया और वो शर्मिंदा भी हुए!

मैं: मैं समझ सकता हूँ| (उम्म्म!!!) पर आपने कभी बताया नहीं की भैया इससे पहले भी आपको तंग कर चुके हैं? आपसे बदसलूकी कर चुके हैं!(अनन्नह!!!)

भौजी: मैं जानती थी की तुम्हें जान के दुःख होगा, इसलिए नहीं बताया| उनके दिमाग में तो बस "एक" ही चीज चलती रहती है, फर चाहे कोई जिए या मरे| मुझसे लड़ाई-झगड़ा कर के वो अपने दोस्त के घर चले जाते हैं और फिर वहीं से मामा जी के घर!

भौजी ने निराश होते हुए कहा| भौजी की बात सुन कर मेरा दिल बहुत दुःखा, फिर अचानक एक जिज्ञासा हुई की क्यों न आज भौजी से सब बात पूछूँ;

मैं: भौजी...अगर आप बुरा ना मनो तो मैं एक बात पूछूँ? (म्म्म्म!!!)

मैंने झिझकते हुए कहा|

भौजी: हाँ पूछो?

भौजी ने तेल की शीशी रख दी थी और वो मरतर्फ मुँह कर के बैठ गईं;

मैं: आपने बताया था की चन्दर भैया ने आपकी छोटी बहन के साथ....

मैंने जान-बुझ के बात पूरी नहीं की, क्योंकि मेरा वो बात पूरा करना ठीक नहीं था!

भौजी: हाँ...ये तबकी बात है जब मेरा रिश्ता तुम्हारे भैया के साथ तय हुआ था| तब वे हमारे घर दो दिन के लिए रुके थे, उसी दौरान वो अनर्थ हुआ|

भौजी की ये बात सुनने के बाद मुझे लगा की उनके जख्म हरे हो गए हैं, इसलिए मैंने बात वहीं खत्म कर दी;

मैं: मुझे माफ़ करना भौजी मुझे आपसे वो सब नहीं पूछना चाहिए था|

भौजी: कोई बात नहीं मानु, तुम्हें ये बातें जानने का हक़ है| खेर छोडो इन बातों को, ये बताओ अब दर्द कुछ कम हुआ?

मैं: हम्म्म...थोड़ा बहुत... पर अब भी पीठ जल रही है| ऐसा लग रहा है की जैसे किसी ने पीठ में अंगारे उड़ेल दिए| काश यहाँ बर्फ मिल जाती! (अम्म्म्म!!!)

मैंने भौजी से वही पैन किलर माँगी पर भौजी के पास वो दवाई नहीं थी, वो अजय भैया को जगाने जाना चाहती थीं| पर मैंने उन्हें रोक दिया; "रहने दो, अजय भैया जाग गए तो मुझे बाहर सोना पड़ेगा! कम से कम आज रात आपके पास सो तो सकता हूँ!" मैंने थोड़ा हँसते हुए कहा जिससे माहौल थोड़ा हल्का हुआ| "क्या फायदा? तुम तो अलग चारपाई पर हो?" भौजी ने भी मेरे मज़ाक को थोड़ा आगे बढ़ाया जिस कारन हम दोनों हँस पडे! पर पीठ में दर्द था, डॉक्टर ने भौजी को एक PCM लिखी थी, तो मैंने भौजी से एक PCM ले ली और उम्मीद करने लगा की इससे मेरा दर्द कम होगा| दवाई लेके मैं जैसे-तैसे करवट लेके लेट गया, पर चैन कँहा था, ऊपर से करवट बदलने के लिए भी मुझे काफी मशक्त करनी पड़ रही थी| रात को गर्मी ज्यादा थी इसलिए मैं, भौजी और नेहा तीनों आँगन में ही सो रहे थे| रात के करीब साढ़े बारह बजे होंगे, नींद मेरी आँखों से कोसों दूर थी और बार-बार करवट बदलने से चारपाई चूर-चूर कर रही थी| भौजी को एहसास हो गया था की पीठ में हो रही जलन मुझे सोने नहीं देगी| जैसे ही मैं दुबारा बायीँ करवट लेके लेट गया, तभी कुछ ऐसा हुआ जिसकी मैंने कभी कामना भी नहीं की थी| भौजी मेरे बिस्तर पर आईं और पीछे से मुझसे चिपक कर लेट गईं| मेरी पीठ पर एकदम से ठंडा एहसास हुआ| दरअसल भौजी ने ऊपर कुछ भी नहीं पहना हुआ था और उनके नंगे स्तन मेरी पीठ में धंसे हुए थे इस कारन मेरी पीठ को ठंडी रहत मिली थी! ठन्डे एहसास से मेरा दर्द तो कम हुआ पर मुझे भौजी का ये करना अजीब लगा;

मैं: भौजी ये आप क्या कर रहे हो?

मैंने थोड़ा गंभीर होते हुए कहा|

भौजी: क्यों? तुम अगर मुझे गर्माहट देने के लिए मुझसे चिपक के सो सकते हो तो क्या मैं तुम्हें अपने नंगे बदन से ठंडक भी नहीं दे सकती?

भौजी की बात सुन मैं कुछ नहीं बोला बस उनका हाथ जो मेरी छाती पर था उसे कस के दबा दिया| कुछ मिनट ऐसे ही लेटे रहने के कारन मेरे अंदर वासना भड़कने लगी थी| मेरे रोंगटे खड़े हो गए थे और ये आग भौजी भी महसूस कर रही थी| मेरा अंतर मन मेरी इस वासना की आग को गलत ठहरा रहा था, इस समय मेरा भौजी के संग सम्भोग करना ऐसा होता जैसे उनकी रक्षा करने के एवज में मैं उनसे उनके तन का सुख भोगना चाहता हूँ, इसलिए मैं उठ के बैठ गया तथा भौजी की ओर पीठ कर के खड़ा हो गया| मेरे मन में उठ रहे विचारों के कारन मैं भौजी से नजरें नहीं मिला पा रहा था और खुद को कुछ भी बोलने से रोक ने लगा| पर भौजी को एरा ये बर्ताव खटकने लगा और वो एकदम से मेरे पीछे आके खड़ी हो गईं, फिर अगले ही पल उन्होंने मुझे पीछे से जकड लिया| उनके नंगे स्तन मेरी पीठ में आ लगे, इस जकड़न ने मेरी वासना की आग में घी का काम किया;

भौजी: क्या हुआ मानु? तुम इस तरह यहाँ क्यों आ आगये?

भौजी ने थोड़ी चिंता जताते हुए कहा|

मैं: बस अपने आपको रोकने की नाकाम कोशिश कर रहा था|

भौजी: रोकने की? किस लिए? और क्यों? क्या तुम्हें मेरा साथ अच्छा नहीं लगता?

भौजी ने एकदम से अपने सवालों की बौछार कर दी;

मैं: ऐसा नहीं है...मैं वो.....

कहना तो मैं सच चाहता पर थोड़ा क़तरा रहा था, लेकिन भौजी ने मेरी बात काट दी;

भौजी: समझी...तुम मेरी कही बात को लेके अब भी नाराज हो?

भौजी की बात सुन मैं चुप रहा और हिम्मत इक्कट्ठा करने लगा ताकि मैं भौजी को अपनी वासना की आग के बारे में बता सकूँ! कुछ पल चुप रहा, पर फिर मुझे लगा की अगर मैंने कुछ नहीं किया तो भौजी का दिल टूट जायेगा और मैं ऐसा कतई नहीं चाहता था| मैं बिना कुछ कहे एकदम से पलटा और भौजी के चेहरे को थाम उनके होंठों से अपने होठों को मिला दिया|


अचानक ही मुझ पर वासना बेकाबू हो गई, मैं सब दर्द भूल गया और बेतहाशा भौजी के होंटों को चूसता रहा! भौजी ने खुद पर हुए इस अचानक आक्रमण का ज़रा भी विरोध नहीं किया, बल्कि धीरे-धीरे वो भी मेरा साथ देने लगीं| उन्होंने अपना मुख हल्का सा खोला और मैंने बिना मौका गंवाए उनके मुख में अपनी जीभ प्रवेश करा दी! जब उन्होंने अपनी जीभ से जवाबी हमला किया तो मैंने उनकी जीभ को अपने दातों तले दबा दिया और रसपान करने लगा| मैं काबू से बाहर हो गया था, मेरे हाथ अब फिसलते हुए भौजी के कंधो तक आगये थे| मैंने चुंबन तोडा और झुक के भौजी के दायें स्तन को अपने होठों की गिरफ्त में ले लिए| अपने अंदर भड़की वासना के कारन मैंने बिना सोचे समझे भौजी के स्तन को काट लिया! दर्द इतना तीव्र था की एक पल के लिए तो भौजी कसमसा के रह गयीं, पर उन्होंने मुझे अपने से दूर नहीं किया बल्कि मेरे सर को अपने स्तन पे दबा दिया| मैं उनके स्तन को किसी शिशु की भाँती पीने लगा और अब मेरा हाथ उनके बाएँ स्तन को मींजने लगा था| उनका बायाँ चुचुक मेरी उँगलियों के बीच था और मैं उसे भी रह-रह के निचोड़ने लगा था| जब मैं ऐसा करता तो भौजी की सिसकारी छूट जाती; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स ...अम्म्म्म...हन्ंणणन्!!!!"

मैं भौजी की सिस्कारियों से उत्तेजित हो रहा था और उनके दायें चुचुक को दाँतों से दबाने लगा| मैं नहीं जानता था की मैं अनजाने में भौजी को पीड़ा दे रहा हूँ| जब मेरा मन उनके दायें स्तन से भर गया तब मैंने उनके बाएँ स्तन को अपने मुख की गिरफ्त में ले लिया| अब मैं उस स्तन का भी स्तनपान करने लगा और दायें स्तन को अपने हाथों से मींजता रहा| कभी चूसता...कभी काटता...कभी उनके चुचुक को ऊँगली में दबा कर निचोड़ देता| जब मेरा मन भर गया तब मैंने भौजी के स्तनों की हालत देखी| दोनों स्तन लाल हो चुके थे और भौजी के मुख पर आँसूँ की कुछ बूँदें छलक आईं थी, पर भौजी ने एक शब्द भी नहीं कहा था! वो चाहतीं तो मुझे रोक सकती थीं, या बता सकती थीं की मानु मुझे दर्द हो रहा है, पर उन्होंने मुझसे इसकी ज़रा भी शिकायत नहीं की| मैं कुछ क्षण तक आँखें फाड़े उन्हें देखता रहा...निहारता रहा....और सोचने लगा की क्या सच में वो मुझे इतना प्यार करती हैं?

मैं: भौजी आपको दर्द हो रहा था न?

मैंने थोड़ा मायूस होते हुए कहा|

भौजी: नहीं तो!

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा|

मैं: मुझे माफ़ कर दो, वासना के आवेग में मैं कुछ ज्यादा.....

भौजी ने एकदम से मेरी बात काट दी;

भौजी: आज के बाद अगर फिर कभी तुमने हमारे प्यार को वासना कहा ना तो फिर देख लेना!

भौजी ने मुझे थोड़ा डाँटते हुए कहा, उनकी डाँट सुन कर शर्म से मेरा सर झुक गया|

भौजी: इतने दिनों से मेरी बेवकूफी की कारन हम दोनों तड़प रहे थे और अभी जो हो रहा है ये उस बर्बाद किये हुए समय का ख़ामियाजा है!

भौजी ने प्यार से कहा और फिर मेरी ठुड्डी ऊपर उठाई| मेरी आँख उनसे मिली और उनकी आँखों में मुझे वही इज्जत और प्यार दिखा जो पहले दिखता था|

भौजी: पर तुमने ऐसा क्यों पूछा?

मैं: क्योंकि आप झूठ बोल रहे हो! आपके स्तन पर बने ये लाल निशान कुछ और ही कहानी बता रहे हैं|

मैंने भौजी के स्तनों की तरफ ऊँगली करते हुए पुछा|

भौजी: ये तो तुम्हारे प्यार की निशानी है, जब तुम नहीं होगे तब ये मुझे तुम्हारे साथ बिताये हर लम्हे की याद दिलाएंगे|

भौजी ने मुस्कुराते हुए कहा, नजाने क्यों पर मैं उनके दर्द को भाँप गया था, मैं आगे कुछ कहता उससे पहले ही भौजी निचे घुटनों के बल बैठीं और मेरी पेंट खोल दी| मेरा लिंग बाहर निकाला और उसे पहले तो चूमा, फिर अपनी जीभ के बीच वाले भाग से एक बार चाटा; "स्स्स्स...अंह्ह्ह!!!!" मेरी सिसकारी छूटी|

अब उन्होंने अपना मुख पूरा खोला, जीभ बाहर निकली और जितना हो सकता था मेरे लिंग को अपने मुख में भर लिया| मेरा लिंग उनकी जीभ और तालु के बीच में रगड़ा जा रहा था, मुझे इतना मज़ा आ रहा था की मैं अपने पंजों के बल खड़ा हो गया| मेरे रोंगटे खड़ा हो चुके थे!! भाभी ने धीरे-धीरे मेरे लिंग को मुख में भरे अपनी गर्दन को आगे पीछे करना शुरू किया| ऐसा लगा जैसे भौजी आज मेरा सारा रस पी जाएँगी!!! मैं अब किसी भी समय छूटने वाला था इसलिए मैंने भौजी को बीच में ही रोक दिया| मैंने भौजी को कंधे से पकड़ कर खड़ा किया तथा बिना उनकी साडी उतारे उनकी बायीँ टाँग मैंने अपने हाथ में उठा ली| इधर भौजी ने अपने हाथ से मेरे लिंग को सही दिशा दिखाई, जैसे ही मुझे दिशा का ज्ञात हुआ मैंने एक जोरदार धक्का मारा! धक्के की तीव्रता इतनी तेज थी की हमारा संतुलन बिगड़ा तथा मैं और भौजी दिवार से जा टिके| अब भौजी की नंगी पीठ दिवार से लगी थी और सामने से उनके स्तन मेरी छाती में धंसे हुए थे| जैसे ही भौजी की पीठ दिवार से लगी, भौजी बड़ी जोर से छटपटाई! मैं भी हैरान था की आखिर ऐसा कौन सा तगड़ा जोर लगा दिया मैंने की भौजी छटपटा गईं?! भौजी के चेहरे पर दर्द की लकीरें साफ़ दिख रहीं थीं, उनकी आँखें बंद थीं और दर्द की लहार उनके शरीर में दौड़ रही थी!

मैं: आप ठीक तो हो ना?

मैंने घबराते हुए पुछा तो भौजी अपने आप को संभालते हुए बोलीं;

भौजी: हाँ!

पर मैं उनके जवाब से संतुष्ट नहीं था;

मैं: तो आप एकदम से छटपटाने क्यों लगे?

भौजी: वो बस ऐसे ही.. तुम मत रुको!!!

भौजी की बात से मुझे लगा की शायद मैं कुछ ज्यादा ही जोश में अपना लिंग उनकी योनि में प्रवेश करा दिया! मैंने मन ही मन खुद को लताड़ा और अपनी गति धीरे-धीरे रखी| मेरे हर झटके से भौजी के स्तन हिल जाते और भौजी की करहाने की आवाज आने लगती;

"स्स्स्स....अंंंंंं ...ममम... मानु......अह्ह्ह्हह्ह!!!"

भौजी के दोनों हाथों की उँगलियाँ मेरे सर के बालों में रास्ता बना रहीं थीं जिससे मुझे और जोश आ रहा था| कामाग्नि अब प्रगाढ़ रूप धारण कर रही थी और भौजी और मैं लग-भग चरम सीमा तक पहुँच गए थे| आनंद और उन्माद के कारन भौजी की आँखें बंद थीं और वो बस सिसकारियाँ लिए जा रही थी; "आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह,स्स्सस्स्स्स....स्स्सस्स्स्स....स्स्स्सस्शह्ह्हम्म्म...स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स!!!"

मैं एक दम से रुक गया और अपना लिंग बाहर खींच लिया, एक पल को तो भौजी हैरान हुईं पर जब मैंने उन्हें आगे की तरफ झुकने को खा तो वो समझ गईं| मैंने भौजी को पलटा और नीचे झुकाया जिससे वो घोड़ी के सामान झुक गयीं, मैंने अपना लिंग पीछे से उनकी योनि में डाल दिया और फिर से धक्के लगाना शुरू कर दिया| भौजी चर्म सीमा पर पहुँच गई और स्खलित हो गईं, उनका रस बहता हुआ बाहर आया और मेरे लिंग को पूरी तरह भिगो दिया| घर्षण काम हो चूका था और मैं अब भी झटके दिए जा रहा था| आगे झुके होने के कारन भौजी की पीठ चाँद की रौशनी में चमक रही थी और मेरा मन किया की मैं उसे एक बार चुम लूँ| मैंने भौजी की पीठ से बाल हटाया और जो दृश्य मैंने देखा उससे मैं सन्न रह गया| भौजी की पीठ पर बेल्ट की मार के दो निशान बने थे! ये देखते ही मेरी आँखों में खून उतर आया और मैं छिटक के भौजी से दूर हो गया| अब मुझे आभास हुआ की जब मैंने पहली बार झटका मारा था तो भौजी क्यों छटपटाई थीं| उनकी जख्मी नंगी पीठ दिवार से रगड़ गई थी जिससे उन्हें बहुत दर्द हुआ होगा| इधर भौजी को जब अपनी योनि मेरे लिंग महसूस नहीं हुआ तो वो पीछे मूड के मुझे देखने लगीं| मेरी आँखों में गुस्सा देख वो समझ गईं की मैंने उनके जख्म देख लिए हैं पर फिर भी उन्होंने अनजान बने रहने का नाटक किया;

भौजी: क्या हुआ मानु?

भौजी का ये सवाल सुन आकर मुझे बहुत गुस्सा आया;

मैं: आपकी पीठ पर वो निशान, आज सुबह के हैं ना?

मैंने गुस्से से पुछा| मेरा गुस्सा देख वो समझ गईं की अब वो मुझसे अपने जख्म नहीं छुपा सकतीं इसलिए उन्होंने सच बोला;

भौजी: हाँ...तुम्हारे आने से पहले उन्होंने मुझे...

आगे भौजी कुछ बोल पातीं मैं गुस्से में बोल पड़ा;

मैं: और आपने मुझे ये बात बताना जर्रुरी नहीं समझा?

मेरा गुस्सा देख उन्हें डर लगा पर फिर भी उन्होंने बड़ी हिम्मत से कहा;

भौजी: नहीं मानु...ये घाव तो बहुत थोड़े हैं| तुमने तो मुझ पर अपने आप को कुर्बान कर दिया था!

मैंने आगे कुछ नहीं कहा और गुस्से में उनके कमरे में घुसा| सबसे पहले मेरी नजर नेहा पर पड़ी जो करवट ले कर सो रही थी| फिर मैंने मलहम की शीशी उठाई और बाहर आ गया;

भौजी: ये क्या कर रहे हो?

भौजी ने हैरान होते हुए पुछा|

मैं: आपकी पीठ पर दवाई लगा रहा हूँ|

मैंने भौजी को थोड़ा घूर के देखते हुए कहा|

भौजी: पर तुम तो मुझे प्यार कर रहे थे और तुम तो अभी स्खलित......

भौजी का मतलब मैं समझ गया था पर इस वक़्त उनकी सेहत मेरे लिए ज्यादा जर्रूरी थी, इसलिए मैंने उनकी बात काट दी;

मैं: वो सब बाद में, पहले आपकी पीठ में दवाई लगाना जरुरी है| मेरी बेवकूफी की वजह से आपका जखम और उभर गया है!

मैंने भौजी को खींच के उनकी चारपाई पर पेट के बल लिटाया और उनका घाव साफ़ कर के उस पर मलहम लगाया| भौजी ने बड़ी कोशिश की कि मैं पहले सम्भोग पूरा करूँ पर मेरा मन उनकी ये दशा देख के फ़ट गया था! इतना दुःख तो मुझे तब भी नहीं हुआ था जब मैंने उन्हें बुखार से तपते हुए देखा था| उसका कारन ये था की मैं अनजाने में जख्मी भौजी के साथ सम्भोग कर रहा था|

दिवार से उनकी पीठ रगड़ने के कारन भौजी को बहुत दर्द हो रहा था और मैं बेवकूफ उन्हें और दर्द दिए जा रहा था! मलहम लगाने के बाद मैं उन्हें पँखा करने लगा ताकि ठंडी हवा से उनके घाव को कुछ आराम मिले| अब मन ही मन मेरे अंदर गुस्सा भी उबलने लगा था और जो फैसला मैंने कुछ देर पहले लिया था, अब समय था उसे भौजी को बताने का;

मैं: मैंने एक फैसला किया है|

भौजी: क्या? स्स्स्स्स

भौजी ने दर्द से सीसियाते हुए कहा|

मैं: कल मैं, आप और नेहा घर से भाग जायेंगे|

ये सुनते ही भौजी उठ बैठीं और मेरा हाथ पकड़ते हुए बोलीं;

भौजी: नहीं मानु....तुम अभी गुस्से में हो, हम कल सुबह बात करते हैं!

भौजी को लग रहा था की मैं गुस्से में बोल रहा हूँ जो की सही था पर गुस्सा मेरे सर पर सवार था!

मैं: नहीं! कल दोपहर होने से पहले जब सभी घरवाले खेत में काम करने निकल जायेंगे तब हम तीनों यहाँ से भागेंगे|

मैंने बहस करते हुए कहा|

भौजी: मानु, तुम्हें मेरी कसम .. ऐसी बात मत करो!

भौजी की ये बात सुन मैं गुस्से से तिलमिला गया और मैंने झल्लाते हुए कहा;

मैं: तो आपको यहाँ मरने के लिए छोड़ दूँ?

बस इतना कहते हुए मैं उठा और अपनी चारपाई पर जाके पेट के बल लेट गया| अब चूँकि भौजी ने मुझे अपनी कसम दी थी इसलिए मैं अभी तो चुप हो गया पर दिमाग में भौजी को भगाने का प्लान बन चूका था|


सुबह हुई और मैं फटा-फ़ट उठा, पीठ के घाव अब भी वैसे ही थे, क्योंकि दर्द कुछ कम था| मैं उठ कर भौजी के घर से बाहर आया तो बड़के दादा और बड़की अम्मा कुएँ के पास चाय पी रहे थे| मुझे देखते ही उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया;

बड़के दादा: आओ मुन्ना... बैठो| अब कैसी तबियत है तोहार? दर्द कम हुआ? नहीं तो चलो डॉक्टर के ले चली|

मैं: नहीं दादा, अब दर्द कम है|

बड़की अम्मा: लो चाय पियो|

मैं: नहीं अम्मा अभी मुँह नहीं धोया, पूजा भी नहीं की|

बड़के दादा: मुन्ना, हमें कल साँझ को अजय बताइस की का हुआ! जो कुछ हुआ उसके लिए हम दोनों प्राणी बहुत शर्मिंदा हैं|

मैं: नहीं दादा, ऐसा मत कहिये| मैं उस समय भौजी को दवाई देने जा रहा था जब मुझे चीखने-चिल्लाने की आवाज आई| मैं दौड़ा-दौड़ा वहाँ पहुँचा, आगे जो हुआ वो आपको पता ही है|

बड़के दादा: तुम ई बात छुपाये खातिर काहे कहत रहे? गलती चन्दर की है, सजा तो उसे मिलेबे करि! चाहे ऊ सजा तोहार बाप दे या हम दै| हम तोहार पिताजी को सब सच बताइदेब!

मैं: जैसा आपको ठीक लगे| मैं तो बस यही चाहता था की इस बात पर ज्यादा बवाल न हो.....वैसे अम्मा आपने भौजी का हाल तो पूछा ही नहीं?

बड़की अम्मा: काहे? ऊ को का हुआ? चोट तो तोहका लाग रही!

मैं: दरअसल अम्मा, मेरे पहुँचने से पहले भैया ने भौजी पर हाथ उठा दिया था| उनकी पीठ पर भी बेल्ट के जख्म बने होंगे!

मैं बड़की अम्मा को सब नहीं बता सकता था इसलिए मैंने बात गोलमोल की!

बड़की अम्मा: हाय राम... बहुरिया तु काहे हमका नहीं बताई?

भौजी: नहीं अम्मा....ज्यादा दर्द नहीं है!

भौजी ने बात छुपानी चाही, पर मैं बोल पड़ा;

मैं: तो आप रात में चीखे क्यों थे? अम्मा भौजी करवट लेके लेटी थी, जैसे ही ये सीढ़ी लेटी एकदम से चीख पड़ीं और उठ के बैठ गईं|

बड़की अम्मा: चल बहुरिया भीतर हम तोहका मलहम लगा देइ|


अम्मा और भौजी पुराने घर में घुसे और मैं बड़े घर की ओर चल दिया| अब समय था की मैं अपने बनाये प्लान को अंजाम दूँ! मैंने जल्दी-जल्दी अपने दो-चार कपडे पैक किये, अगला काम था पैसे का जुगाड़ करना| मेरे पास पर्स में करीब दो सौ रूपए थे, उस समय ATM कार्ड तो था नहीं, परन्तु पिताजी के पास MULTI CITY चेक की किताब थी और मुझे पिताजी के दस्तखत करने की नक़ल बड़े अच्छे से आती थी| मैंने किताब से एक चेक फाड़ा और उसमें एक लाख रुपये की राशि भर दी| जल्दी से नहा धो के तैयार हुआ, पूजा की और भगवान से दुआ माँगी की मुझे मानसिक शक्ति देना की मैं अपनी नई जिम्मेदारी निभा सकूँ|

जारी रहेगा भाग 4 में....
 

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