Incest एक अनोखा बंधन

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नौवाँ अध्याय: परीक्षा
भाग - 4

अब तक आपने पढ़ा:

अब समय था की मैं अपने बनाये प्लान को अंजाम दूँ! मैंने जल्दी-जल्दी अपने दो-चार कपडे पैक किये, अगला काम था पैसे का जुगाड़ करना| मेरे पास पर्स में करीब दो सौ रूपए थे, उस समय ATM कार्ड तो था नहीं, परन्तु पिताजी के पास MULTI CITY चेक की किताब थी और मुझे पिताजी के दस्तखत करने की नक़ल बड़े अच्छे से आती थी| मैंने किताब से एक चेक फाड़ा और उसमें एक लाख रुपये की राशि भर दी| जल्दी से नहा धो के तैयार हुआ, पूजा की और भगवान से दुआ माँगी की मुझे मानसिक शक्ति देना की मैं अपनी नई जिम्मेदारी निभा सकूँ|

अब आगे....

मैं तेजी से चलता हुआ भौजी के पास आया तो देखा अजय भैया खेत जाने के लिए निकल रहे थे;

अजय भैया: मानु भैया, अब कैसी तबियत है?

मैं: दर्द है!!!

अजय भैया: चलो फिर डॉक्टर के ले चली!

मैं: नहीं भय, ठीक हो जायेगा| पिताजी का फ़ोन आया था?

मैंने पुछा ताकि ये पता चल जाये की मेरे पास भागने के लिए कितना समय है|

अजय भैया: चाचा का फ़ोन आवा रहा, ऊ चार बजे तक आइहैं|

मैं: अच्छा....और चन्दर भैया?

मैंने मुँह बनाते हुए कहा|

अजय भैया: भैया का कउनो पता नहीं! हम मामा का फ़ोन किहिन रहे, ऊ कहीं की भैया अभय तक सोअत रहे! फिर हम कलिहं जो हुआ ऊ बताई तो मामा बहुत गुस्सा हुए रहे!

मुझे मेरे लायक सभी जानकारी मिल चुकी थी, इसलिए मैंने बात को वहीँ खत्म करते हुए भौजी से कहा;

मैं: भौजी चाय दे दो|

मैंने बड़े रूखे मन से कहा क्योंकि मुझे भौजी पर कल रात वाला गुस्सा अब भी था| अजय भैया हँसिया ले के खेत की ओर निकल गए, अब घर में केवल मैं, नेहा और भौजी ही थे| नेहा आँगन में बैठी खेल रही थी और उसने अभी तक मुझे नहीं देखा था| भौजी मेरी चाय ले कर आ गेन और इससे पहले की वो मेरे रूखे पन का कारन पूछतीं मैंने सीधा मुद्दे की बात छेड़ दी;

मैं: चलो जल्दी से तैयार हो जाओ?

ये सुनते ही भौजी एक दम से हैरान हो गईं;

भौजी: क्यों?

उनके ये हैरानी देख मुझे गुस्सा आया और मैंने नाराज होते हुए कहा;

मैं: भूल गए रात को मैंने क्या कहा था?

भौजी ने एकदम से मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अपने घर की तरफ खींच कर ले गईं| भीतर जा कर उन्होंने मुझे चारपाई पर बैठाया और बोलीं;

भौजी: मानु तुम्हें हो क्या गया है? क्यों तुम ऐसी बातें बोल रहे हो? तुम भी जानते हो की नई जिंदगी शुरू करना इतना आसान नहीं होता? हम कहाँ रहेंगे? क्या खाएंगे? और कहाँ जायेंगे? नेहा की परवरिश का क्या? है तुम्हारे पास इन बातों का जवाब?

भौजी ने अपने सारे सवालों का पहाड़ मुझ पर गिरा दिया| हैरानी की बात ये है की उन्होंने ये सवाल उस समय नहीं सोचे जब मैं उन्हें घर से भागने के लिए मना कर रहा था!

मैं: भौजी मैंने सब सोच लिया है, हम यहाँ से सीधा दिल्ली जायेंगे, वहाँ मेरा एक भाई जैसा दोस्त है, वो हमारा कुछ दिनों के रहने का इन्तेजाम कर देगा| उसके मामा जी जयपुर में रहते हैं, वही मेरी नौकरी भी लगवा देंगे| आप, मैं और नेहा जयपुर में ही रहेंगे|

मैंने पूरे आत्मविश्वास से जवाब दिया|

भौजी: और इसके लिए कुछ पैसे भी तो चाहिए होंगे? वो कहाँ से लाओगे?! मेरे पास तो कुछ जेवर ही हैं जो मेरे माँ-बापू ने दिए थे!

मैं भौजी को घर से भगाना चाहता था पर ये नहीं चाहता था की वो अपने साथ जेवर ले कर चलें! मेरा मन कह रहा था की मैं उन्हें ये चोरी करने का पाप न करने दूँ!

मैं: उनकी जर्रूरत नहीं पड़ेगी, मेरे पास लाख रूपए का चेक है, जिसे हम भारत के किसी भी बैंक से कॅश करा सकते हैं| इतने पैसों से हमारा गुजारा हो जायेगा, फिर धीरे-धीरे मैं कमाने लगूँगा और फिर सब कुछ ठीक हो जायेगा|

भौजी: और ये पैसे आये कहाँ से तुम्हारे पास?

भौजी ने भौएं सिकोड़ते हुए कहा|

मैं: पिताजी के बैंक से! पर आप चिंता मत करो मैं ये पैसे उन्हें लौटा दूँगा|

मैंने अपनी गैरंतमंद होने का सबूत देते हुए कहा|

भौजी: मुझे तुम्हारी बात पर भरोसा है, लेकिन मेरी एक बात का जवाब दो; जब हम यहाँ से भाग जायेंगे तो तुम्हारे माँ-पिताजी का क्या होगा? वो किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे! उनकी और हमारी कितनी बदनामी होगी! अगर मैं ये मान भी लूँ की तुम्हें इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता तो मुझे एक बात बताओ, हम जहाँ भी रहेंगे वहाँ लोग तो होंगे ही, हम जंगल में तो रहने नहीं जा रहे, तुम्हारी उम्र 16-17 साल होगी और मेरी 26 साल! तुम जमाने से क्या कहोगे? ये सच तो तुम छुपा नहीं सकते? और इसका असर नेहा की जिंदगी पर भी पड़ेगा, क्या तुम यही चाहते हो? अगर हाँ तो मैं तुम्हारे साथ चलने के लिए अभी तैयार हूँ!

इतना कह के भौजी ने जल्दी-जल्दी अपने कपडे सूटकेस में फेंकने शुरू कर दिए| मैंने भौजी के कंधे पर हाथ रख कर उन्हें अपनी तरफ घुमाया और उनकी आँखों में आँखें डाल कर कहा;

मैं: नहीं....पर मैं आपको इस नर्क में अकेला भी तो नहीं छोड़ सकता! कल तो मैं था तो मैंने आपको बचा लिया, पर जब मैं नहीं रहूँगा तब? तब आपकी रक्षा कौन करेगा?

भौजी: मानु मुझे हमारे प्यार पर पूरा भरोसा है और भगवान पर भी| वही मेरी और नेहा की रक्षा करेगा!

भौजी की बात सही थी, मैंने भागने की प्लानिंग तो कर ली थी पर ये नहीं सोचा था की उसके बाद क्या होगा?! हमारे जैसे देश में जहाँ लोग पति-पत्नी के बीच के प्यार को नहीं बल्कि उनकी उम्र, कद, काठी, रंग-रूप इत्यादि को ज्यादा मानता देते हैं, ऐसे देश में हमारे प्यार के लिए कोई जगह नहीं थी|

मेरे पास अब भौजी से करने के लिए कोई तर्क नहीं था इसलिए मैं गुम-सुम होकर बैठ गया और भौजी दूसरी चारपाई पर बैठी मुझे देख ने लगीं| मुझे ताज़ी हवा में साँस लेने का मन हुआ इसलिए जब मैं उठने को हुआ तो भौजी मेरे पास आईं और मुझे गले लगा लिया| भौजी खुद को रोने से रोक नहीं पाईं;

मैं: अब आप चुप हो जाओ हम कहीं नहीं जा रहे! ये लो...

ये कहते हुए मैंने चेक फाड़ डाला और बात घुमा दी;

मैं: कल जो आप ने मलहम लगाया था न उससे काफी आराम मिला, थोड़ा और लगा दो!


भौजी ने पहले मुझे मलहम लगाया उसके बाद मैंने भौजी को मलहम लगाया| फिर हम दोनों हाथ-मुँह धो के बाहर आ गए| भौजी खाना बना रही थी और मैं पास की चारपाई पर लेटा उन्हें निहार रहा था| मैं भौजी पर अपना डर और चिंता जाहिर नहीं करना चाहता था| कल के हादसे के बाद तो मुझे भौजी और नेहा की और ज्यादा चिंता होने लगी थी, मेरी अनुपस्थिति में भैया दोनों का क्या हाल करेंगे ये सोच के ही डर लग रहा था|

चूँकि मैं काफी देर से खामोश था तो भौजी ने बात शुरू की;

भौजी: क्या सोच रहे हो?

मैं: कुछ नहीं|

मैंने झूठ बोला ताकि भौजी फिर से उदास न हो जाएँ! लेकिन भौजी को उस वक़्त मस्ती सूझ रही थी;

भौजी: रात का अधूरा काम कब पूरा करोगे?

मैं: अभी मन नहीं कर रहा|

मैंने रूखे मन से जवाब दिया पर ये जवाब सुन कर भौजी ने मेरी चिंता भाँप ली| वो समझ गईं की मैं अब भी उनकी सुरक्षा को ले कर परेशान हूँ इसीलिए कल रात वाले 'काम' को पूरा नहीं करना चाहता|

भौजी: तुम तो मन मार लेते हो, पर मेरे मन का क्या? वो तो तब ही खुश होता है जब तुम खुश रहते हो|

भौजी ने अपने दिल की बात रखी पर मैं अब भी परेशान था और उनकी ये बात मुझे बड़ी अजीब लग रहगी थी|

मैं: (थोड़ा गुस्से में) भौजी....

इससे पहले की मैं कुछ और कहता पिताजी ने आके मुझे डरा दिया| भौजी ने अभी घूँघट हटा रखा था, पर पिताजी को देखते ही उन्होंने डेढ़ हाथ का घूँघट काड लिया|

पिताजी: और लाड़-साहब फ़ैले पड़े हो? हो गया आराम या अभी बाकी है?

इतना कहते हुए पिताजी ने मज़ाक-मज़ाक में थपकी देने के लिए मेरी पीठ पर ज़ोरदार हाथ मारा! उनका हाथ लगते ही मेरी चीख निकल पड़ी; "आअह्ह्ह!!!"


मेरी चीख सुनते ही भौजी भागती हुई मेरे पास आईं और उन्होंने पिताजी को सारा हाल सुनाया| इधर मैं दर्द से बिलबिला रहा था! पिताजी ने मेरी टी-शर्ट उठाई और मेरी पीठ का हाल देख के माँ और पिताजी ने सर पीट लिया! पीठ पर बेल्ट की छाप अच्छे से उभर के आई थी, कुछ-कुछ जगह से पस जैसा तरल निकल रहा था!

माँ: हाय राम!!! ये क्या हालत कर दी मेरे बेटे की| डॉक्टर के पास गया था?

माँ ने बेचैन होते हुए कहा| पिताजी का डर था वर्ण आज माँ जर्रूर बखेड़ा कर देतीं!

मैं: (आअह!!) नहीं... भौजी ने मलहम लगाईं थी, उससे कुछ आराम हो गया था....PAIN किलर भी ली थी|

मैंने करहाते हुए कहा, ताकि पिताजी मुझ पर बरस न पड़ें!

पिताजी: (गुस्से में) बड़े भैया कहाँ हैं?

भौजी: चाचा वो खेत गए हैं|

पिताजी का गुस्सा देख मैं समझ गया था की आज काण्ड होने वाला है!

पिताजी: मैं वहीँ जाता हूँ...तब तक तुम दोनों इसका ख्याल रखो! इसे डॉक्टर के नहीं जाना तो ना सही, मैं डॉक्टर को यहीं ले आता हूँ|

पिताजी ने फटाफट पडोसी की साइकिल उठाई और वो तेजी से खेतों की तरफ चल दिए| इधर माँ मेरे पास बैठी सर पर हाथ फेर रहीं थीं और उन्होंने भौजी को वापस रसोई भेज दिया| मेरे जख्म देख माँ की आँख भर आई थी; "मैं ठीक हूँ माँ!" मैंने कहा तो माँ अपने आँसूँ पोछते हुए बोलीं; "बेटा तुझे क्या जर्रूरत थी बीच में पड़ने की?! तू जानता है न यहाँ के लोगों को? तुझे कुछ हो जाता तो मैं क्या करती?!" माँ बोलीं|

"माँ आपने ही सिखाया था न की मुसीबत में पड़े लोगों की मदद करनी चाहिए| फिर भौजी तो मेरी सबसे अच्छी दोस्त हैं, ऊपर से वो एक औरत और उनकी गोद में नेहा थी ऐसे में मैं कैसे हाथ बाँधे उन्हें पीटते हुए देखता?!" मैंने बड़े प्यार से जवाब दिया जिसे सुन माँ चुप हो गईं और उन्हें मन ही मन मुझ पर बड़ा गर्व हुआ| उन्होंने मेरा सर चूमा और पंखे से हवा करने लगीं जिससे मेरी पीठ को ठंडी-ठंडी राहत मिलने लगीं| माँ और मेरी बात भौजी नहीं सुन पाईं थीं क्योंकि मैं और माँ बहुत धीरे-धीरे बातें कर रहे थे| इतने में कूदती हुई नेहा आ गई और मेरी ये हालत देख कर एकदम से गुमसुम हो गई| मैंने उसे इशारे से अपने पास बुलाया और मेरे गाल पर पप्पी करने को कहा| नेहा ने मेरे दोनों गालों पर पप्पी की; "माँ देखो मेरा दर्द ठीक हो गया!" मैंने माहौल हल्का करने के लिए कहा तो माँ और भौजी दोनों हँस पड़े|

"ठीक है तो मुन्नी (नेहा) अब से रोज अपने चाचा को पप्पी करते रहना|" माँ बोलीं और ये सुन कर नेहा ने फिर से मुझे पप्पी की| ये देख भौजी मन ही मन मुस्कुराये जा रहीं थीं| खाना लघभग तैयार था, दाल में छौंका लगा और खाना तैयार हो गया| भौजी ने माँ से कहा की आप नहा धो लो तब तक वो मेरे पास बैठेंगी| माँ स्नान करने चलीं गईं और भौजी मेरी पीठ पर फूँक मार रहीं थी| उनकी ठंडी-ठंडी फूँक से मुझे बहुत आराम मिला! अब चूँकि छप्पर के नीचे बस मैं, नेहा और भौजी ही थे तो मुझे उनसे बात करने का मौका मिल गया;

मैं: आज के बाद अगर मुझसे कोई भी बात छुपाई तो याद रखना, आपसे कभी बात नहीं करूँगा!

भौजी: (कान पकड़ते हुए) माफ़ कर दो, आज के बाद आपको हर बात बताऊँगी! अब तो मुझसे नाराज नहीं हो ना?

मैं: नहीं

भौजी: तो रात का बचा हुआ काम कब पूरा करोगे?

मैं: भौजी! आपका ये बार-बार कहना मुझे अच्छा नहीं लगता! ऐसा लगता है जैसे आप बदला चुकाना चाहते हो!

भौजी: नहीं..नहीं...नहीं...ऐसा कुछ नहीं है....

आगे वो कुछ कह पातीं उससे पहले ही पिताजी डॉक्टर को ले आये, साथ-साथ बड़के दादा, बड़की अम्मा और अजय भैया, सभी अपना काम काज छोड़के आ गए| डॉक्टर मेरे पास आया और मुझसे अंग्रेजी में बात करने लगा;

डॉक्टर: Hello Manu! How are you? (और मानु क्या हाल है तुम्हारा?)

मैं: In a lot of pain…. (आह!!!) (बहुत दर्द में हूँ डॉक्टर साहब!)

डॉक्टर: Oh yes, your father told me about your bravery. You seem to care a lot about your Bhabhi! (हाँ, तुम्हारे पिताजी ने मुझे रास्ते में तुम्हारी वीरता के बारे में सब बताया| शाबाश!!! तुम अपनी भाभी का ज्यादा ही ध्यान रखते हो?)

डॉक्टर मेरी बहादुरी से बहुत प्रभावित था और उसे मेरे तथा भौजी के रिश्ते के बारे में जरा भी शक नहीं हुआ था|

मैं: Yes, she’s my best friend. (जी, क्योंकि ये मेरी सबसे अच्छी दोस्त हैं|)

मैंने ये बात इसलिए कही ताकि उसके मन में मेरे और भौजी के रिश्ते को ले कर कोई शक न रहे!

डॉक्टर: Okay....I can see a different bond between you two. Anyway your wound’s all messed up....did you put any gel on the affected area? (मुझे ना जाने क्यों ऐसा महसूस होता है की तुम दोनों के बीच में एक अटूट रिश्ता है| खेर, तुम्हारे पीठ के जख्मों की हालत अच्छी नहीं है, क्या तुमने इसपर कोई मलहम लगाईं थी?)

मेरी अधिक चतुराई डॉक्टर ने पकड़ ली थी! पर शुक्र है की उसने इस बात को ज्यादा खींचा नहीं और तुरंत मुद्दे की बात पर आ गया| मैंने अपने चेहरे पर जरा भी चिंता के भाव नहीं आने दिया और ऐसे दिखाया जैसे मुझे उसकी बात का कोई फर्क ही नहीं पड़ा| अगर मैं कुछ कहता या कोई भी प्रतिक्रिया देता तो उसका शक पक्का हो जाता इसलिए मैं ने उसके मलहम वाले सवाल का ही जवाब देने लगा;

मैं: Yes...we used some ayurvedic ointment! (हाँ, कोई आयुर्वेदिक मलहम लगाईं थी|)

डॉक्टर: You shouldn’t just apply anything without first consulting a qualified doctor! You could have phoned me?! (बिना किसी डॉक्टर की राय लिए तुम्हें कोई भी दवाई नहीं लगानी चाहिए! फिर तुम मुझे फ़ोन भी तो कर सकते थे?!)

मैं: Actually sir this all happened so fast, I almost forgot that I've your number. I'm Extremely sorry! (दरअसल ये सब इतनी अचानक हुआ की मुझे याद ही नहीं रहा की मेरे पास आपका नंबर भी है, मुझे माफ़ कर दीजिये!)

डॉक्टर: No Need to be sorry, I’ll have to first clean your wound with spirit, after that I’ll have to do some dressing. No doubt it’ll hurt a lot. (माफ़ी मांगने की कोई आवश्यकता नहीं है| अब मुझे पहले तुम्हारे घावों को स्पिरिट से धोना होगा उसके बाद मुझे इनकी पट्टी करने होगी| इसमें कोई दो राय नहीं की इस प्रक्रिया में तुम्हें दर्द बहुत होगा| )

मैं: Okay, I think I can handle that much pain. (जी ठीक है, मैं दर्द बर्दाश्त कर लूँगा|)


जब मैं और डॉक्टर अंग्रेजी में बात कर रहे थे तो घर के सभी मुँह खोले हमें उत्सुकता से मुझे देख रहे थे| क्योंकि आज पहली बार एक डॉक्टर मरीज को चेक करने आया था, वरना हमेशा ही बीमार गाँव वालों को ही डॉक्टर के पास जाना पड़ता था ऊपर से डॉक्टर और मैं अंग्रेजी में गुफ्तगू कर रहे थे| अपने बेटे को अंग्रेजी में डॉक्टर से बात करते हुए देख पिताजी का सीना गर्व से चौड़ा हो गया था, आखिर उनके खानदान में मैं ही एक अकेला ऐसा लड़का था जो दसवीं से ज्यादा पढ़ा था और वो भी अंग्रेजी मीडियम स्कूल से! माँ जो मेरी बगल में बैठीं थी वो भी अपने बेटे पर फ़क्र महसूस कर रहीं थीं, क्योंकि आज मैं उनकी आँखों में एक चमक देख पा रहा था| उधर भौजी के चेहरे से लग रहा था की उन्हें भी मुझ पर नाज था...गर्व था….इसलिए वो भी घूँघट के नीचे हलके-हलके मुस्कुरा रहीं थी|

डॉक्टर बड़े संभाल-संभाल के अपने हाथ चला रहा था पर जब स्पिरिट घावों में लगती तो बहुत जलन होती! मैं बस दाँत पीस के रह जाता, दो मिनट की सफाई के बाद डॉक्टर ने मेरी पट्टी कर दी और मुझे एक इंजेक्शन देने लगा;

डॉक्टर: I need to give you this injection, it’s got some morphine so you’ll feel a bit better. Its simply to lessen your pain. (मुझे तुम्हें ये इंजेक्शन लगाना होगा, इससे तुम्हारा दर्द कुछ काम होगा|)

मैं: Okay Doc but I’ve a request, actually yesterday during that incident she (Bhabhi) was also hurt but she won’t let you एक्सामिने! I hope you can understand! Can you gimme some pain killers for her and some spirit and bandages, I’ll ask my mother and she’ll do the dressing. And don’t worry we’ll pay you for that! Just add it in the bill and my father will pay but please don’t tell him about what I just said.

(ठीक है डॉक्टर साहब, पर मेरी आपसे एक गुजारिश है| दरअसल जब वो हादसा हुआ तो भाभी को भी चोट आई थी| पर वो आपसे इसका इलाज किसी भी हालत में नहीं कराएंगी| क्या आप मुझे कुछ PAIN KILLER और थोड़ी स्पिरिट और पट्टी दे सकते हैं, मैं अपनी माँ से कह के उनकी पट्टी करवा दूँगा| आप फीस की चिंता ना करें वो हम दे देंगे, बस आप टोटल बिल में ही जोड़ देना, मेरे पिताजी आपको पैसे दे देंगे और हाँ ये बात आप प्लीज पिताजी से मत कहना|)

मैं जानता था की भौजी किसी भी मर्द डॉक्टर के सामने अपने पीठ के घाव कभी नहीं दिखाएंगी, इसलिए मैंने डॉक्टर से ये बात कही थी|

डॉक्टर: Usually I don’t do this but since you’ve asked me so politely I’ll give you the medicine. (मैं आम तौर पे ऐसा नहीं करता पर चुकी तुमने बड़े प्यार से कहा है तो इसलिए मैं दवाई दे देता हूँ|)

दो ही मुलाक़ातों में मेरा प्रवभाव डॉक्टर पर पड़ चूका था और उसके दिमाग में मेरी एक अच्छी छबि बन चुकी थी इसी लरन वो मेरी बात मान गया|

मैं: Thank You Doc. (शुक्रिया डॉक्टर साहब|)



डॉक्टर ने मुझे दवाई अलग से दी और अपने पैसे ले के चला गया| उसके जाने के बाद सभी जन मुझे घेर के बैठ गए और पूछने लगे की क्या बात हुई हम दोनों के बीच| मैंने सभी को सब बाताई सिवाय 'मेरा भौजी का ख्याल रखने के'| घर के सभी लोग बहुत खुश थे, माँ-पिताजी को भी तसल्ली थी की अब मैं जल्दी अच्छा हो जाऊँगा| तभी वहाँ माधुरी आ गई, उसने जब मेरी ऐसी हालत देखी तो अपनी चिंता जाहिर करते हुए पूछने लगी की ये सब कैसे हुआ| माँ ने उसे सारी बात बताई| माँ की बात सुन उसने कनखी नजर से भौजी को ताड़ा, जैसे उन पर बहुत गुस्सा हो और फिर चुप-चाप चली गई| मैंने उसकी ये हरकत देख ली थी पर मैंने उसे ज्यादा तवज्जो नहीं दी! दोपहर के खाने का समय हो गया था, सब ने साथ बैठ कर खाना खाया| इसी दौरान बड़की अम्मा ने मेरी तारीफ करनी शुरू कर दी, जिसे सुन मेरे माँ-पिताजी गर्व महसूस कर रहे थे| पर मैं सर झुकाये अपना खाना खाता रहा|

पिताजी: अजय तू तो बहुरिया का छोड़े गवा रहा? फिर इतना जल्दी लौट आया?

अजय भैया: चाचा ऊ हरामजादी रास्ते भर हमारा दिमाग चाटत रही, रस्ते में उसी के गाओं के दो बूढ़ा-बूढी मिल गए तो हम उन्ही के साथै पठए दिए!

चूँकि मैं वहीँ बैठा था तो पिताजी ने कुछ और नहीं पुछा| खाना खाने के उपरान्त सब के सब वापस खेत चले गए काम करने के लिए, माँ-पिताजी ने मुझे आराम करने को कहा और भौजी से कहा की वो मेरा ध्यान रखें| भौजी ने खाना खाया और मैं उनके साथ उनके घर आ गया| दरवाजा खुला था, भौजी अपनी चारपाई पर लेटी थीं और मैं अपनी चारपाई पर लेटा था बीच वाली चारपाई पर नेहा लेटी थी| जब भौजी को लगा की नेहा सो गई तब उन्होंने बात शुरू की;

भौजी: मानु सच्ची मैंने तुम्हें कितना गलत समझा! मुझे खुद से इतनी घिन्न आ रही है की मैं तुम्हें बता नहीं सकती! मैंने तुम्हारे प्यार पर शक किया और तुमने मुझे बचाने के लिए खुद की जान जोखिम में डाल दी!

मैं: देखा जाए तो गलत आप भी नहीं थे, जिस तरह की यातना आप यहाँ झेल रहे थे उससे बाहर निकलने के लिए आपने अगर मुझसे भाग चलने को कहा तो क्या गलत कहा? मैं आपकी जगह होता तो मैं भी यही कहता|

भौजी: तुम मेरी सोच को जानबूझ कर सही ठहरा रहे हो, पर क्या भागने का फैसला सही होता?

मैं: भौजी अगर मैं कमा रहा होता तो आपको सच्ची भगा के ले जाता फिर आगे जो होता सब देख लेता!

मैंने आत्मविश्वास से कहा, जिसे सुन भौजी को मेरे प्यार का अंदाजा हो गया|

भौजी: मानु मुझे गलत मत समझना, पर दिनभर मैं तुम्हें जो 'काम' के बारे में कह रही थी उसके पीछे मेरा सिर्फ और सिर्फ एक ही उद्देश्य था की तुम्हें संतुष्टि मिले! मैं कोई बदला चुकाने की कोशिश नहीं कर रही थी! मैं तुम से प्यार करती हूँ और अब तुम्हारे प्यार की कदर करती हूँ!

मैं: हम्म्म

मैंने बस इतना जवाब दिया, पर भौजी को तसल्ली नहीं हुई इसलिए वो अपनी सफाई देने लगीं;

भौजी: ये तीन दिन मैंने जो तुम्हारे साथ रुखा व्यवहार किया उसके लिए मैं शर्मिंदा हूँ और ये दिन मैंने किस तरह तड़पते हुए निकाले ये मैं ही जानती हूँ! मेरा गुस्सा ही मेरे दुःख का सबब बन गया था!

भौजी की ये बात सुन कर मुझे गुस्सा आने लगा था, क्योंकि उन्हें उन तीन दिनों का अपना दुःख सिख रहा था पर मेरा दुःख उन्होंने देखते हुए भी नजरअंदाज कर दिया था! मैं उठ के बैठा और बोला;

मैं: माफ़ करना भौजी पर आपकी ये सफाई मेरे गले नहीं उतरती! इन तीन दिनों में जिस तरह आपने मेरे साथ सलूक किया वो बर्दाश्त की सभी हदें पार कर गया था! मैं मानता हूँ की आपकी घर से भागने की बात सही थी पर उसके लिए आपने मेरे प्यार को 'खेल' का नाम दे दिया? नेहा तक को मेरे पास आने नहीं देते थे?! ऐसा कोई करता है किसी के साथ? आपको गुस्सा था तो मुझे मार लेते, गाली दे देते पर ऐसा व्यवहार?! मैंने कितनी कोशिश की आपसे बात करने की पर हर बार आप ऐसे मुँह मोड़ लेते जैसे मैं कोई अजनबी हूँ! आपको पता है मैं कितना रोया था?! कल मैं आपको एक आखरी बार समझाने आया था और अगर आप फिर भी नहीं मानते तो मैं जा दिल्ली वापस चला जाता!

मेरी बात सुन कर भौजी एकदम से उठ कर मेरे पास आईं और मेरे गले लग गईं|

मैं: इतने बुरे सलूक के बाद भी मैं आपसे प्यार करता हूँ!

मैंने भौजी के सर को चूमते हुए कहा| भौजी ने भी मेरे चेहरे को बेतहाशा चूमना शुरू कर दिया|

मेरा गुस्सा अब शांत हो चूका था और भौजी को इत्मीनान हो गया था की मैं उन्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाऊँगा|

मैं: ये लो आपके लिए|

ये कहते हुए मैंने भौजी को डॉक्टर के द्वारा दी हुई स्पिरिट और पट्टी दी|

भौजी: ये किस लिए?

मैं: मैंने डॉक्टर से आपके लिए लिया था|

भौजी: तो क्या तुमने उसे बता दिया की ये क्यों चाहिए?

हैरान होते हुए|

मैं: हाँ

भौजी: तो उसने घाव देखने के लिए तो कहा ही नहीं?

मैं: मैंने उसे समझा दिया था की किसी भी हालत में आप उससे चेक अप नहीं करवाओगे| उससे मिन्नत करके मैंने ये दवाई आपके लिए ले ली, अब इसे लो और बड़की अम्मा से लगवा लेना|

भौजी: तुम्हीं क्यों नहीं लगा देते?

भौजी ने शरारत भरे अंदाज से कहा|

मैं: मैं लगा तो दूँ पर अगर ईमान डोल गया तो?

मैंने भी उनकी शरारत का जवाब मज़ाक करते हुए दिया|

भौजी: तो क्या? तुम्हारी पत्नी हूँ!

भौजी ने बड़े गर्व से कहा जिसे सुन मेरे पेट में तितलियाँ उड़ने लगीं|

मैं: हाय!!! पर अगर अम्मा ने पूछा की किस ने दवाई लगाईं तो क्या कहोगी?

माने थोड़ी चिंता जताई|

भौजी: कह दूँगी नेहा ने लगाईं|

भौजी का जवाब सुन मैं मुस्कुरा दिया;

मैं: बहुत होशियार होगये हो आप?

भौजी: अब तुम्हारे साथ रह-रह के कुछ तो सीखूँगी ही|

भौजी ने बड़ी अदा के साथ कहा| उनकी कही बात ने सच में मेरे अंदर एक नई जान फूँक दी थी, उनके इस प्यार भरे लहजे ने मेरी जान ले ली थी और मैं उनकी इन अदाओं का कायल हो चूका था!


भौजी ने जा कर दरवाजा बंद किया और मेरे सामने खड़े-खड़े अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगीं| मैं हाथ बाँधे बड़े प्यार से उन्हें देख रहा था, भौजी की आंखें भी मुझपर टिकीं थी और मेरी आँखें भौजी की अदाओं को निहार रहीं थी| हमेशा की तरह भौजी ने आज भी ब्रा नहीं पहनी थी, जैसे ही उनके ब्लाउज के बटन खुले, भौजी मेरी ओर पीठ करके खड़ी हो गईं| मैंने एक नजर नेहा की ओर देखा, तो पाया वो अब भी सो रही थी| मैंने स्पिरिट में थोड़ी रुई डुबोई और भौजी के घाव पर रख दी; "स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स...अह्ह्ह ...मानु बहुत जल रहा है!!!" भौजी सीसियाते हुए बोलीं| "दर्द तो होगा, पर पट्टी करने के बाद ठंडा-ठंडा लगेगा|" मैंने बड़े प्यार से कहा| मैंने बहुत धीरे-धीरे भौजी के घावों को स्पिरिट से धोया उसके बाद, डॉक्टर के द्वारा दी गए पाउडर से भौजी की ड्रेसिंग की| जब मैं भौजी को पट्टी बाँध रहा था तो बार बार उनके स्तन को अपने हाथों से सहला देता! जब पट्टी बँध गई तो भौजी मेरी ओर मुड़ी ओर सवालिया नज़रों से मुझे देखने लगी| मैं समझ गया की वो क्या कहना चाहतीं हैं, दरअसल वो कल रात वाले 'काम' को पूरा करवाना चाहती थीं पर डर रहीं थी की कहीं मैं गुस्सा न हो जाऊँ!

 

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