Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

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Mai join hi 2021 mei hya tha starting mei dusre writer ka stories padhta tha. Jab aapka dekha aur padhne laga tab comment kiya. Ab mujhe logon ka sarcasm bhi bura nahi lagta jaise aap bol rahe ho mehnat wala.
Main reason election ke time titan walon ka behaviour achchha nahi tha uske baad sab milkar Sangeeta maurya ko bully kar rahe the jo achchha nahi laga fir jab enigma ka story band hone ke vaare mei poochha to warning mili fir mods ke saath panga liya.
 
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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Mai join hi 2021 mei hya tha starting mei dusre writer ka stories padhta tha. Jab aapka dekha aur padhne laga tab comment kiya. Ab mujhe logon ka sarcasm bhi bura nahi lagta jaise aap bol rahe ho mehnat wala.
Dil par nahi lena bhai, yaha sab ke sath thoda bahut nok jhok chalta rahta hai. Ju bhi enjoy karo sabke sath. Rahi baat kahani ki to bhai mood aur time ki baat hai. Apan fakeer type log hote hain jaha jis tarah dil laga wahi ram gaye. Well ek naya sansaar ka 2nd part start kiya hai, dil kare to padhna aur apne vichaar bhi byakt karna. :hug:
Main reason election ke time titan walon ka behaviour achchha nahi tha uske baad sab milkar Sangeeta maurya ko bully kar rahe the jo achchha nahi laga fir jab enigma ka story band hone ke vaare mei poochha to warning mili fir mods ke saath panga liya.
Is bare me ek hi baat boluga bhai aur wo ye ki adult forum me jis maksad se aaye ho usi par focus rakho. Dusri cheezo par dhyaan doge to bahut kuch ho sakta hai. :D
 
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♡ एक नया संसार ♡


अपडेट.......{01}

मेरा नाम विराज है, विराज सिंह बघेल। मुम्बई में रहता हूॅ और यहीं एक मल्टीनेशनल कम्पनी में नौकरी करता हूॅ। कम्पनी में मेरे काम से मेरे आला अधिकारी ही नहीं बल्कि मेरे साथ काम करने वाले भी खुश रहते हैं। सबके सामने हॅसते मुस्कुराते रहने की आदत बड़ी मुश्किल से डाली है मैंने। कोई आज तक ताड़ नहीं पाया कि मेरे हॅसते मुस्कुराते हुए चेहरे के पीछे मैंने ग़मों के कैसे कैसे अज़ाब पाल रखे हैं।

अरे मैं कोई शायर नहीं हूं बस कभी कभी दिल पगला सा जाता है तभी शेरो शायरी निकल जाती है बेतुकी और बेमतलब सी। मेरे खानदान में कभी कोई ग़ालिब पैदा नहीं हुआ। मगर मैं..????न न न न

अच्छा ये ग़ज़ल मैंने ख़ुद लिखी है ज़रा ग़ौर फ़रमाइए.....

ज़िन्दगी भी क्या क्या गुल खिलाती है।
कितने ग़म लिए हाॅथ में मुझे बुलाती है।।

कोई हसरत कोई चाहत कोई आरज़ू नहीं,
मेरी नींद हर शब क्यों ख़्वाब सजाती है।।

ख़ुदा जाने किससे जुदा हो गया हूॅ यारो,
किसकी याद है जो मुझे आॅसू दे जाती है।।

मैंने तो हर सू फक़त अपने क़ातिल देखे,
किसकी मोहब्बत मुझे पास बुलाती है।।

हर रोज़ ये बात पूॅछता हूं मौसमे ख़िज़ा से,
किसकी ख़ुशबू सांसों को मॅहका जाती है।।

हा हा हा हा बताया न मैं कोई शायर नहीं हूं यारो, जाने कैसे ये हो जाता है.?? मैं खुद हैरान हूॅ।

छः महीने हो गए हैं मुझे घर से आए हुए। पिछली बार जब गया था तो हर चीज़ को अपने हिसाब से ब्यवस्थित करके ही आया था। कभी कभी मन में ख़याल आता है कि काश मैं कोई सुपर हीरो होता तो कितना अच्छा होता। हर नामुमकिन चीज़ को पल भर में मुमकिन बना देता मगर ये तो मन के सिर्फ खयाल हैं जिनका वास्तविकता से दूर दूर तक कोई नाता नहीं। पिछले दो सालों में इतना कुछ हो गया है कि सोचता हूं तो डर लगता है। मैं वो सब याद नहीं करना चाहता मगर यादों पर मेरा कोई ज़ोर नहीं।

माॅ ने फोन किया था, कह रही थी जल्दी आ जाऊॅ उसके पास। बहुत रो रही थी वह, वैसा ही हाल मेरी छोटी बहेन का भी था। दोनो ही मेरे लिए मेरी जान थी। एक दिल थी तो एक मेरी धड़कन। बात ज़रा गम्भीर थी इस लिए मजबूरन मुझे छुट्टी लेकर आना ही पड़ रहा है। इस वक्त मैं ट्रेन में हूॅ। बड़ी मुश्किल से तत्काल का रिज़र्वेशन टिकट मिला था। सफ़र काफी लम्बा है पर ये सफर कट ही जाएगा किसी तरह।

ट्रेन में खिडकी के पास वाली सीट पर बैठा मैं खिड़की के बाहर का नज़ारा कर रहा था। काम की थकान थी और मैं सीट पर लेट कर आराम भी करना चाहता था, इस लिए ऊपर वाले बर्थ के भाई साहब से हाॅथ जोड़ कर कहा कि आप मेरी जगह आ जाइए। भला आदमी था वह तुरंत ही ऊपर के बर्थ से उतर कर मेरी जगह खिड़की के पास बड़े आराम से बैठ गया। मैं भी जल्दी से उसकी जगह ये सोच कर बैठ गया कि वो भाई साहब मेरी जगह नीचे बैठने से कहीं इंकार न कर दे।

पूरी सीट पर लेटने का मज़ा ही कुछ अलग होता है। बड़ा सुकून सा लगा और मैंने अपनी आंखें बंद कर ली। आॅख बंद करते ही बंद आॅखों के सामने वही सब दिखना शुरू हो गया जो न देखना मेरे लिए दुनियां का सबसे कठिन कार्य था। इन कुछ सालों में और कुछ दिखना मानो मेरे लिए कोई ख़्वाब सा हो गया था। इन बंद आॅखों के सामने जैसे कोई फीचर फिल्म शुरू से चालू हो जाती है।

चलिए इन सब बातों को छोंड़िए अब मैं आप सबको अपनी बंद आॅखों में चल रही फिल्म का आॅखों देखा हाल बताता हूॅ।

जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूॅ कि मेरा नाम विराज है, विराज सिंह बघेल। अच्छे परिवार से था इस लिए किसी चीज़ का अभाव नहीं था। कद कठी किसी भी एंगल से छः फीट से कम नहीं है। मेरा जिस्म गोरा है तथा नियमित कसरत करने के प्रभाव से एक दम आकर्षक व बलिस्ठ है। मैंने जूड़ो कराटे एवं मासल आर्ट्स में ब्लैक बैल्ट भी हासिल किया है। ये मेरा शौक था इसी लिए ये सब मैंने सीखा भी था मगर मेरे घर में इसके बारे में कोई नहीं जानता और न ही कभी मैंने उन्हें बताया।

मेरा परिवार काफी बड़ा है, जिसमें दादा दादी, माता पिता बहेन, चाचा चाची, बुआ फूफा, नाना नानी, मामा मामी तथा इन सबके लड़के लड़कियाॅ आदि।

कहने को तो मैं इतने बड़े परिवार का हिस्सा हूं मगर वास्तव में ऐसा नहीं है। ख़ैर कहानी को आगे बढ़ाने से पहले आप सबको मैं अपने पूरे खानदान वालों का परिचय दे दूॅ।

मेरे दादा दादी का परिवार.....
गजेन्द्र सिंह बघेल (दादा67) एवं इन्द्राणी सिंह बघेल (दादी60)
1, अजय सिंह बघेल (दादा दादी के बड़े बेटे)(50)
2, विजय सिंह बघेल (दादा दादी के दूसरे बेटे)(45)
3, अभय सिंह बघेल (दादा दादी के तीसरे बेटे)(40)
4, सौम्या सिंह बघेल (दादा दादी की बड़ी बेटी)(35)
5, नैना सिंह बघेल (दादा दादी की सबसे छोटी बेटी)(28)
1, अजय सिंह बघेल का परिवार.....
अजय सिंह बघेल (मेरे बड़े पापा)(50)
प्रतिमा सिंह बघेल (बड़े पापा की पत्नी)(45)
● रितू सिंह बघेल (बड़ी बेटी)(24)
● नीलम सिंह बघेल (दूसरी बेटी)(20)
● शिवा सिंह बघेल (बेटा)(18)

2, विजय सिंह बघेल का परिवार....
विजय सिंह बघेल (मेरे पापा)(45)
गौरी सिंह बघेल (मेरी माॅ)(40)
● विराज सिंह बघेल (राज)....(मैं)(20)
● निधि सिंह बघेल (मेरी छोटी बहेन)(^^)

3, अभय सिंह बघेल का परिवार....
अभय सिंह बघेल (मेरे चाचा)(40)
करुणा सिंह बघेल (मेरी चाची)(37)
● दिव्या सिंह बघेल (मेरे चाचा चाची की बेटी)(^^)
● शगुन सिंह बघेल (मेरे चाचा का बेटा जो दिमाग से डिस्टर्ब है)(^^)

4, सौम्या सिंह बघेल का परिवार.....
सौम्या सिंह बघेल (मेरी बड़ी बुआ35) जो कि शादी के बाद उनका सर नेम बदल गया। अब वो सौम्या सिंह बस हैं।
* राघव सिंह (सौम्या बुआ के पति और मेरे फूफा जी)(38)
● अनिल सिंह (सौम्या बुआ का बेटा)(^^)
● अदिति सिंह (सौम्या बुआ की बेटी)(^^)

5, नैना सिंह बघेल (मेरी छोटी बुआ 28) जो शादी के बाद अब नैना सिंह हैं। इनकी शादी अभी दो साल पहले हुई है। अभी तक कोई औलाद नहीं है इनके। नैना बुआ के पति का नाम आदित्य सिंह(32) है।

तो दोस्तों ये था मेरे खानदान वालों का परिचय। मेरे नाना नानी लोगों का परिचय कहानी में आगे दूंगा जहां इन लोगों का पार्ट आएगा।

मेरे दादा जी के पास बहुत सी पुस्तैनी ज़मीन जायदाद थी। दादा जी खुद भी दो भाई थे। दादा जी अपने पिता के दो बेटों में बड़े बेटे थे। उनके दूसरे भाई के बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं। दादा जी बताया करते थे कि उनका छोटा भाई राघवेन्द्र सिंह बघेल जब 20 वर्ष का था तभी एक दिन घर से कहीं चला गया था। पहले सबने इस पर ज्यादा सोच विचार नहीं किया किन्तु जब वह एक हप्ते के बाद भी वापस घर नहीं आया तो सबने उन्हें ढूॅढ़ना शुरू किया। ये ढूॅढ़ने का सिलसिला लगभग दस वर्षों तक जारी रहा मगर उनका कभी कुछ पता न चला। किसी को ये भी पता न चल सका कि राघवेन्द्र सिंह आख़िर किस वजह से घर छोंड़ कर चला गया है? उनका आज तक कुछ पता न चल सका था। सबने उनके वापस आने की उम्मीद छोंड़ दी। वो एक याद बन कर रह गए सबके लिए।

दादा जी उस जायदाद के अकेले हक़दार रह गए थे। समय गुज़रता गया और जब मेरे दादा जी के बेटे पढ़ लिख कर बड़े हुए तो सबने अपना अपना काम भी सम्हाल लिया। बड़े पापा पढ़ने में बहुत तेज़ थे उन्होंने वकालत की पढ़ाई पूरी की और सरकारी वकील बन गए। मेरे पिता जी पढ़ने लिखने में हमेशा ही कमज़ोर थे, उनका पढ़ाई में कभी मन ही नहीं लगता था। इस लिए उन्होंने पढ़ाई छोंड़ दी और घर में रह कर इतनी बड़ी जमीन जायदाद को अकेले ही सम्हालने लगे। छोटे चाचा जी बड़े पापा की तरह तो नहीं थे किन्तु पढ़ लिख कर वो भी सरकारी स्कूल में अध्यापक हो गए।

उस समय गाॅव में शिक्षा का बहुत ज्यादा क्रेज नहीं था। किन्तु इतना कुछ जो हुआ वो सब दादा जी के चलते हुआ था। आगे चल कर सबकी शादियां भी हो गई। बड़े पापा सरकारी वकील थे वो शहर में ही रहते थे, और शहर में ही उन्हें एक लड़की पसंद आ गई जिससे उन्होंने शादी कर ली। हलाॅकि बड़े पापा के इस तरह शादी कर लेने से दादा जी बहुत नाराज़ हुए थे। किन्तु बड़े पापा ने उन्हें अपनी बातों से मना लिया था।

छोटे चाचा जी ने भी वही किया था यानि अपनी पसंद की लड़की से शादी। दादा जी उनसे भी नाराज़ हुए किन्तु फिर उन्होंने कुछ नहीं कहा। चाचा जी से पहले मेरे पिता जी ने दादा जी की पसंद की लड़की से शादी की। मेरे पिता पढ़े लिखे भले ही नहीं थे लेकिन मेहनती बहुत थे। वो अकेले ही सारी खेती बाड़ी का काम करते थे और इतना ज्यादा ज़मीनों से अनाज की पैदावार होती कि जब उसे शहर ले जा कर बेचते तो उस समय में भी हज़ारो लाखों का मुनाफ़ा होता था।

मेरे पिता जी बहुत ही संतोषी स्वभाव वाले इंसान थे। सबको ले कर चलने वाले ब्यक्ति थे, सब कहते कि विजय बिलकुल अपने बाप की तरह ही है। मेरी माॅ एक बहुत ही सुन्दर लेकिन साधारण सी महिला थीं। वो खुद भी पढ़ी लिखी नहीं थी लेकिन समझदार बहुत थी। मेरे माता पिता के बीच आपस में बड़ा प्रेम था। बड़े पापा बड़े ही लालची और मक्कार टाईप के इंसान थे। वो हर चीज़ में सिर्फ़ अपना फायदा सोचते थे। जबकि छोटे चाचा ऐसे नहीं थे। वो ज्यादा किसी से कोई मतलब नहीं रखते थे। अपने से बड़ों की इज्ज़त करते थे। लेकिन ये भी था कि अगर कोई किसी बात के लिए उनका कान भर दे तो वो उस बात को ही सच मान लेते थे।

बड़े पापा सरकारी वकील तो थे लेकिन उस समय उन्हें इससे ज्यादा आमदनी नहीं हो पाती थी। वो चाहते थे कि उनके पास ढेर सारा पैसा हो और तरह तरह का ऐसो आराम हो। लेकिन ये सब मिलना इतना आसान न था। दिन रात उनका दिमाग इन्हीं सब चीज़ों में लगा रहता था। एक दिन किसी ने उन्हें खुद का बिजनेस शुरू करने की सलाह दी थी। लेकिन बिजनेस शुरू करने के लिए सबसे पहले ढेर सारा पैसा भी चाहिए था। जिसने उन्हे खुद का बिजनेस शुरू करने की सलाह दी थी उसन उन्हें बिजनेस के संबंध में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी भी दी थी।

बड़े पापा के दिमाग में खुद का बिजनेस शुरू करने का जैसे भूत सवार हो गया था। वो रात दिन इसी के बारे में सोचते। एक रात उन्होंने इस बारे में अपनी बीवी प्रतिमा को भी बताया। बड़ी मां ये जान कर बड़ा खुश हुईं। उन्होंने बड़े पापा को इसके लिए तरीका भी बताया। तरीका ये था कि बड़े पापा को खुद का बिजनेस शुरू करने के लिए दादा जी से पैसा माॅगना चाहिए। दादा जी के पास उस समय पैसा ही पैसा हो गया था ये अलग बात है कि वो पैसा मेरे पिता जी की जी तोड़ मेहनत का नतीजा था।

अपनी बीवी की ये बात सुन कर बड़े पापा का दिमाग दौड़ने लगा। फिर क्या था दूसरे ही दिन वो शहर से गाॅव दादा जी के पास पहुंच गए और दादा जी से इस बारे में बात की। दादा जी उनकी बात सुन कर नाराज़ भी हुए और पैसा देने से इंकार भी किया। उन्होंने कहा कि तुमने अपनी नौकरी से आज तक हमें कितना रुपया ला कर दिया है? हमने तुम्हें पढ़ाया लिखाया और इस काबिल बनाया कि आज तुम शहर में एक सरकारी वकील बन गए तथा अपनी मर्ज़ी से शादी भी कर ली। हमने कुछ नहीं कहा। सोच लिया कि चलो जीवन तुम्हारा है तुम जैसा चाहो जीने का हक़ रखते हो। मगर ये सब क्या है बेटा कि तुम अपनी नौकरी से संतुष्ट नहीं? और खुद का कारोबार शुरू करना चाहते हो जिसके लिए तुम्हें ढेर सारा पैसा चाहिए?

दादा जी की बातों को सुन कर बड़े पापा अवाक् रह गए। उन्हें उम्मीद नहीं थी कि दादा जी पैसा देने की जगह ये सब सुनाने लगेंगे। कुछ देर बाद बड़े पापा ने उन्हें समझाना शुरू कर दिया। उन्होंने दादा जी को बताया कि वो ये बिजनेस साइड से शुरू कर रहे हैं और वो अपनी नौकरी नहीं छोंड़ रहे। बड़े पापा ने दादा जी को भविष्य के बारे में आगे बढ़ने की बहुत सी बातें समझाईं। दादा जी मान तो गए पर ये जरूर कहा कि ये सब रुपया विजय(मेरे पिता जी) की जी तोड़ मेहनत का नतीजा है। उससे एक बार बात करना पड़ेगा। दादा जी की इस बात से बड़े पापा गुस्सा हो गए बोले कि आप घर के मालिक हैं या विजय? किसी भी चीज़ का फैसला करने का अधिकार सबसे पहले आपका है और आपके बाद मेरा क्योंकि मैं इस घर का सबसे बड़ा बेटा हूं। विजय होता कौन है कि आपको ये कहना पड़े कि आपको और मुझे उससे बात करना पड़ेगा?

बड़े पापा की इन बातों को सुनकर दादा जी भी उनसे गुस्सा हो गए। कहने लगे कि विजय वो इंसान है जिसकी मेहनत के चलते आज इस घर में इतना रुपया पैसा आया है। वो तुम्हारे जैसा ग्रेजुएट होकर सरकरी नौकरी वाला भले ही न बन सका लेकिन तुमसे कम नहीं है वह। तुमने अपनी नौकरी से क्या दिया है कमा कर आज तक ? जबकि विजय ने जिस दिन से पढ़ाई छोंड़ कर ज़मीनों में खेती बाड़ी का काम सम्हाला है उस दिन से इस घर में लक्ष्मी ने अपना डेरा जमाया है। उसी की मेहनत से ये रुपया पैसा हुआ है जिसे तुम माॅगने आए हो समझे ?

दादा जी की गुस्से भरी ये बातें सुन कर बड़े पापा चुप हो गए। उनके दिमाग में अचानक ही ये ख़याल आया कि मेरे इस प्रकार के ब्योहार से सब बिगड़ जाएगा। ये ख़याल आते ही उन्होंने जल्दी से माफी माॅगी दादा जी से और फिर दादा जी के साथ मेरे पिता जी से मिलने खेतों की तरफ बढ़ गए।

खेतों में पहुॅच कर दादा जी ने मेरे पिता जी को पास बुला कर उनसे इस बारे में बात की और कहा कि अजय(बड़े पापा) को खुद का कारोबार शुरू करने के लिए रुपया चाहिए। इस पर पिता जी ने कहा कि वो इन सब चीज़ों के बारे में कुछ नहीं जानते आप जो चाहें करें। आप घर के मुखिया हैं हर फैसला आपको ही करना है। पिता जी की बात सुन कर दादा जी खुश हो गए। उन्हें मेरे पिता जी पर गर्व भी हुआ। जबकि बड़े पापा मन ही मन मेरे पिता को गालियां दे रहे थे।

ख़ैर उसके बाद बड़े पापा ने खुद का कारोबार शुरू कर दिया। जिसके उद्घाटन में सब कोई शामिल हुआ। हलाकि उन्होंने मेरे माता पिता को आने के लिए नहीं कहा था फिर भी मेरे माता पिता खुशी खुशी सबके साथ आ गए थे। दादा जी के पूछने पर बड़े पापा ने बताया था कि एक शेठ की वर्षों से बंद पड़ी कपड़ा मील को उन्होंने सस्ते दामों में ख़रीद लिया है अब इसी को नए सिरे से शुरू करेंगे। दादा जी ने देखा था उस कपड़ा मील को, उसकी हालत ख़राब थी। उसे नया बनाने में काफी पैसा लग सकता था।

चूॅकि दादा जी देख चुके थे इस लिए मील को सही हालत में लाने के लिए जितना पैसा लगता दादा जी देते रहे। करीब छः महीने बाद कपड़ा मिल सही तरीके चलने लगी। ये अलग बात थी उसके लिए ढेर सारा पैसा लगाना पड़ा था।

इधर मेरे पिता जी की मेहनत से काफी अच्छी फसलों की पैदावार होती रही। वो खेती बाड़ी के विषय में हर चीज़ का बारीकी से अध्ययन करते थे। आज के परिवेश के अनुसार जिस चीज़ से ज्यादा मुनाफा होता उसी की फसल उगाते। इसका नतीजा ये हुआ कि दो चार सालों में ही बहुत कुछ बदल गया। मेरे पिता जी ने दादा जी की अनुमति से उस पुराने घर को तुड़वा कर एक बड़ी सी हवेली में परिवर्तित कर दिया।

हलाॅकि दो मंजिला विसाल हवेली को बनवाने में भारी खर्चा लगा। घर में जितना रुपया पैसा था सब खतम हो गया बाॅकि का काम करवाने के लिए और पैसों की ज़रूरत पड़ गई। दादा जी ने बड़े पापा से बात की लेकिन बड़े पापा ने कहा कि उनके पास रुपया नहीं है उनका कारोबार में बहुत नुकसान हो गया है। दादा जी को किसी के द्वारा पता चल गया था कि बड़े पापा का कारोबार अच्छा खासा चल रहा है और उनके पास रुपयों का कोई अभाव नहीं है।

बड़े पापा के इस प्रकार झूॅठ बोलने और पैसा न देने से दादा जी बहुत दुखी हुए। मेरे पिता जी ने उन्हें सम्हाला और कहा कि ब्यर्थ ही बड़े भइया से रुपया माॅगने गए थे। हम कोई दूसरा उपाय ढूंढ़ लेंगे।

छोटे चाचा स्कूल में सरकारी शिक्षक थे। उनकी इतनी सैलरी नहीं थी कि वो कुछ मदद कर सकते। मेरे पिता जी को किसी ने बताया कि बैंक से लोंन में रुपया ले लो बाद में ब्याज के साथ लौटा देना।

उस आदमी की इस बात से मेरे पिता जी खुश हो गए। उन्होंने इस बारे में दादा जी से बात की। दादा जी कहने लगे कि कर्ज़ चाहे जैसा भी हो वह बहुत ख़राब होता है और फिर इतनी बड़ी रकम ब्याज के साथ चुकाना कोई गुड्डा गुड्डी का खेल नहीं है। दादा जी ने कहा कि घर का बाकी का बचा हुआ कार्य बाद में कर लेंगे जब फसल से मुनाफ़ा होगा। मगर मेरे पिता जी ने कहा कि हवेली का काम अधूरा नहीं रहने दूंगा, वो हवेली को पूरी तरह तैयार करके ही मानेंगे। इसके लिए अगर कर्ज़ा होता है तो होता रहे वो ज़मीनों में दोगुनी मेहनत करेंगे और बैंक का कर्ज़ चुका देंगे।

दादा जी मना करते रह गए लेकिन पिता जी न माने। सारी काग़ज़ी कार्यवाही पूरी होते ही पिता जी को बैंक से लोंन के रूप में रुपया मिल गया। हवेली का बचा हुआ कार्य फिर से शुरू हो गया। मेरे पिता जी पर जैसे कोई जुनून सा सवार था। वो जी तोड़ मेहनत करने लगे थे। जाने कहां कहां से उन्हें जानकारी हासिल हो जाती कि फला फसल से आजकल बड़ा मुनाफ़ा हो रहा है। बस फिर क्या था वो भी वही फसल खेतों में उगाते।

इधर दो महीने के अन्दर हवेली पूरी तरह से तैयार हो गई थी। देखने वालों की आंखें खुली की खुली रह गईं। हवेली को जो भी देखता दिल खोल कर तारीफ़ करता। दादा जी का सिर शान से उठ गया था तथा उनका सीना अपने इस किसान बेटे की मेहनत से निकले इस फल को देख कर खुशी से फूल कर गुब्बारा हुआ जा रहा था।

हवेली के तैयार होने के बाद दादा जी की अनुमति से पिता जी ने एक बड़े से भण्डारे का आयोजन किया जिसमें सम्पूर्ण गाॅव वासियों को भोज का न्यौता दिया गया। शहर से बड़े पापा और बड़ी माॅ भी आईं थीं।

बड़े पापा ने जब हवेली को देखा तो देखते रह गए। उन्होंने स्वप्न में भी उम्मीद न की थी कि उनका घर कभी इस प्रकार की हवेली में परिवर्तित हो जाएगा। किन्तु प्रत्यक्ष में वे हवेली को देख देख कर कहीं न कहीं कोई कमी या फिर ग़लती निकाल ही रहे थे। बड़ी माॅ का हाल भी वैसा ही था।

हवेली को इस प्रकार से बनाया गया था कि भविष्य में किसी भी भाई के बीच किसी प्रकार का कोई विवाद न खड़ा हो सके। हवेली का क्षेत्रफल काफी बड़ा था। भविष्य में अगर कभी तीनो भाईयों का बॅटवारा हो तो सबको एक जैसे ही आकार और डिजाइन का हिस्सा समान रूप से मिले। हवेली काफी चौड़ी तथा दो मंजिला थी। तीनो भाईयों के हिस्से में बराबर और समान रूप से आनी थी। हवेली के सामने बहुत बड़ा लाॅन था। कहने का मतलब ये कि हवेली ऐसी थी जैसे तीन अलग अलग दो मंजिला इमारतों को एक साथ जोड़ दिया गया हो।
story thriller hone wali hai aisa lag rha hai. Lalchi B. Pa ND kaan ka kachha C. Pa shayad ye dono team Up krenge or bewkufo ke thekedar Vijay pratit Ho rha Hai.mujhe aise logo nfrt hoti hai ache bano iska mtlb ye nhi ke gaand khol ke de do. Or iska anjaam uske biwi bachon bhugtna pdta hai. Dekhte Kya hota hai. Nice update I like it 👏👏
 
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Shukriya bhai :hug:
 

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