Incest ♡ एक नया संसार ♡ (Completed)

Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अपडेट........《 14 》

अब तक,,,,,,

"अरे क्या बात है अजय?" प्रतिमा बुरी तरह चौंकते हुए बेड पर उठकर बैठते हुए बोली__"इतनी रात को कहाॅ जा रहे हो तुम? और और अभी किसका फोन आया था?"

"अभी कुछ बताने का समय नहीं है।" अजय सिंह कार की चाभी अपने एक हाॅथ में थामते हुए बोला__"अभी मुझे यहाॅ से फौरन ही निकलना होगा, मेरा इंतज़ार मत करना।"

कहने के साथ ही अजय सिंह कमरे से बाहर निकल गया जबकि प्रतिमा नंगी हालत में ही भाड़ की तरह अपनी आॅखें और मुॅह फाड़े दरवाजे की तरफ देखती रह गई इस बात से बेख़बर की दो आॅखें निरंतर उसके नंगे जिस्म को देखे जा रही हैं।
अब आगे.......


अजय सिंह को शहर में अपनी कपड़ा मील की फैक्टरी पहुॅचते पहुॅचते लगभग सुबह हो गई थी। देर रात तक तो वह खुद ही अपनी पत्नी प्रतिमा के साथ मौज मस्ती में ब्यस्त रहा था।

अजय सिंह ने जब फैक्टरी के सामने अपनी कार रोंकी तो वहाॅ का माहौल ही अलग था। हर तरफ आग और धुएॅ का साम्राज्य नज़र आ रहा था। फैक्टरी के चारो तरफ भीषण आग की लपटें आसमान को छूती नज़र आ रही थी। दमकल की कई गाड़ियाॅ इस आग को बुझाने की कोशिश में लगी हुई थी। फैक्टरी में काम करने वाले कुछ मजदूर भी इधर उधर नज़र आ रहे थे।

अजय सिंह की हालत तो फोन में मिली जानकारी से ही खराब थी किन्तु खुद अपनी आॅखों से ऐसा भयानक मंज़र देख कर उसकी रही सही कसर भी काफूर हो गई। उसके चेहरे पर उसी तरह के भाव थे जैसे सब कुछ लुट जाने पर होते हैं।

अजय सिंह लुटे पिटे भाव के साथ कार से नीचे उतरा और फैक्टरी की तरफ चल दिया। अभी वह कुछ ही कदम आगे बढ़ा था कि उसका पीए दीनदयाल शर्मा उसकी तरफ ही आता हुआ नज़र आया। उसके चेहरे पर भी बड़े अजीब से भाव थे।

"सब कुछ बरबाद हो गया सर।" दीनदयाल करीब पहुॅचते ही हताश भाव से बोला__"कुछ भी शेष नहीं बचा। फैक्टरी के हर हिस्से में भीषण आग लगी हुई है। पिछले दो घंटे से फायर ब्रिगेड वाले इस आग पर काबू पाने की कोशिश में लगे हुए हैं।"

"क कैसे हुआ दीनदयाल?" अजय सिंह की आवाज़ ऐसी थी जैसे किसी गहरे कुएॅ से बोल रहा हो__"आख़िर कैसे हुआ ये सब? फैक्टरी में आग कैसे लग गई?"

"मुझे खुद भी कुछ समझ में नहीं आ रहा सर कि ये सब कैसे हो गया?" दीनदयाल दीन हीन लहजे से ही कहा__"फैक्टरी के अंदर आग लगने का सवाल ही नहीं था क्योकि इसके काफी तगड़े इतजामात थे। यहाॅ तक कि फैक्टरी में काम करने वाले मजदूरों को भी फैक्टरी के अंदर बीड़ी सिगरेट तम्बाकू या गुटका खाने की इजाज़त नहीं थी।"

"तो फिर कैसे लगी ये आग?" अजय सिंह आवेश मे बोला__"मुझे इस बारे में ठोस सबूत के साथ जानकारी चाहिए दीनदयाल। तुम जानते हो कि इससे हमें कितना बड़ा नुकसान हुआ है। जिस तरह आग लगी हुई नज़र आ रही है उससे साफ ज़ाहिर होता है कि फैक्टरी के अंदर की हर चीज़ ख़ाक़ में मिल चुकी है। तुम अंदाज़ा लगा सकते हो कि कितना नुकसान हो गया है।"

"मैं जानता हूॅ सर।" दीनदयाल ने कहा__"पूरी की पूरी फैक्टरी ही जल गई है, ये कोई मामूली बात नहीं है। ये करोड़ों से भी ऊपर का नुकसान है।"

"पुलिस को सूचित किया?" अजय सिंह ने पूॅछा।
"जी सर पुलिस को सूचित कर दिया गया है और पुलिस का एक इन्स्पेक्टर अंदर आपकी ही प्रतीक्षा कर रहा है।" दीनदयाल ने कहा__"वो कह रहा है कि आज के बाद से यहाॅ के थाने से उसका तबादला हो जाएगा और अब उसकी जगह पर आपकी बेटी रितू सिंह बघेल इंस्पेक्टर का चार्ज सम्हालेंगी।"

"ओह आई सी।" अजय सिंह के चेहरे पर सोचपूर्ण भाव नुमायां हुए__"तो वही हुआ जो हम नहीं चाहते थे, ख़ैर।"

कहने के साथ ही अजय सिंह फैक्टरी की तरफ बढ़ गया। ये लिखने की आवश्यकता नहीं कि उसके पीछे पीछे ही उसका पीए दीनदयाल भी बढ़ गया था।

कुछ देर में ही अजय सिंह उस इंस्पेक्टर के सामने था जिसकी पुलिस की वर्दी पर लगी नेम प्लेट पर उसका नाम अनिल वर्मा लिखा नज़र आया। कद काठी से ठीक ठाक ही नज़र आ रहा था वह। तीस से बत्तीस की उमर का रहा होगा। उसने अजय सिंह को देख कर बड़े ही अदब से नमस्ते किया।

"ठाकुर साहब बड़े ही अफसोस की बात है।" फिर उस इंस्पेक्टर ने कहा__"कि आपकी फैक्टरी में लगी आग से दूर दूर तक कुछ भी साबुत बचा हुआ नज़र नहीं आ रहा है। इससे इस बात का अंदाज़ा लगाना ज़रा भी मुश्किल नहीं है कि इस हादसे से आपको भारी भरकम नुकसान हो गया है, अगर...।"

अजय सिंह ने उसके 'अगर' पर अचानक ही कहते हुए रुक जाने पर उसकी तरफ सवालिया निगाहों से देखा।

"अगर आपने अपनी इस फैक्टरी का जीवन बीमा पहले से नहीं करवाया हुआ है तो।" फिर उसने ये कह कर अपने पिछले कथन को पूरा किया__"वैसे पूछना तो नहीं चाहिए मगर फिर भी आपसे पूॅछने की ये हिमाक़त कर ही लेता हूॅ, ड्यूटी इज ड्यूटी भले ही आज ही बस के लिए यहां के एरिये का इंचार्ज हूॅ कल से तो आपकी बेटी ही इस सबकी तहकीक़ात करेंगी न। ख़ैर, तो मैं ये पूछने की हिमाक़त कर रहा था कि..क्या लगता है आपको...ये आग किसने लगाई हो सकती है आपकी इस विसाल फैक्टरी में?"

"ये पता लगाना तो तुम्हारा काम है इंस्पेक्टर।" अजय सिंह ने तनिक कठोरता से कहा था, उसे इस इंस्पेक्टर का बिहैवियर आज कुछ बदला हुआ लगा था, इसके पहले तो ये सब खुद उसके ही पालतू कुत्ते जैसे थे, बोला__"और अगर नहीं पता लगा सकते तो यहाॅ तुम्हारी कोई ज़रूरत नहीं है समझे?"

"अरे आप तो नाराज़ हो गए लगते हैं ठाकुर साहब।" इंस्पेक्टर ने मुस्कुराकर कहा__"माफ कीजियेगा। पर सवाल तो मैंने ठीक ही पूॅछा था आपसे।"

"हाॅ तो हमें भी इस बारे में भला कैसे पता होगा कि ये आग किसने लगाई है?" अजय सिंह उखड़े हुए लहजे से बोला__"अगर पता होता तो क्या वो अब तक ज़िन्दा बचा होता?"

"हाॅ ये तो है।" इंस्पेकटर ने अजीब भाव से अपने सिर को हिलाया__"आपके हाॅथों अब तक तो उसका कल्याण हो जाना निश्चित ही था।"
"वैसे ये तुम कैसे कह सकते हो?" सहसा इस बीच दीनदयाल ने सवाल किया__"कि फैक्टरी में लगी ये आग किसी के द्वारा लगाई गई है?"

"देखा आपने ठाकुर साहब।" इंस्पेक्टर ने तपाक से कहा__"आपका ये पीए कितना दिमाग़दार है? मेरे पूॅछने पर जो सवाल आपको पहले ही मुझसे पूॅछना चाहिये था वो आपने नहीं पूॅछा लेकिन आपके इस दीन के दयाल ने पूॅछ लिया। ख़ैर, अब जबकि पूॅछ ही लिया है तो मुझे भी सवाल का जवाब देने में कोई ऐतराज़ नहीं है। बात दरअसल ये है ठाकुर साहब कि फैक्टरी में लगी आग अगर साधारण रूप से लगी होती तो उसका रूप इतना उग्र न होता, ऐसा मेरा मानना है..जोकि बाॅकि सबके नज़रिये से ग़लत भी हो सकता है। ख़ैर....अब जबकि आग इस प्रकार भीषण रूप से लगी हुई है कि फैक्टरी का कोई कोना तक खाली नहीं बचा है तो कहीं न कहीं मन में ये बात आ ही जाती है कि हो सकता है ये आग किसी के द्वारा सोच समझ कर तथा तसल्ली से इस प्रकार लगाई गई हो कि आपकी फैक्टरी का कोई भी हिस्सा राम नाम सत्य होने से न बच सके।"

अजय सिंह को इंस्पेक्टर की ऊल जलूल बातों से गुस्सा तो बहुत आ रहा था किन्तु वो उसकी इन सब बातों से सहमत भी था। यकीनन ऐसा हो सकता था। क्योंकि पिछले कुछ समय से जिस तरह की घटनाएं उसके साथ घट रही थी उससे यही ज़ाहिर होता था कि एक बार फिर किसी ने उसके साथ इस प्रकार का नुकसानदायी खेल खेला है। ये अलग बात है कि इस बार इस खेल में उसकी समूची फैक्टरी को ही आग के हवाले कर दिया गया था। अजय सिंह को समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर कौंन है जो उसके साथ ये सब कर रहा है?

"ठाकुर साहब इसी दुनियाॅ में हैं न आप?" उधर इंस्पेक्टर ने अजय सिंह को गहरी सोच में डूबे हुए देखकर कहा__"अगर हैं तो प्लीज ज़रा ग़ौर फरमाइये, मुझे आपसे कुछ सवालात करने हैं।"

"कैसे सवालात इंस्पेक्टर?" अजय सिंह बोला।
"यही कि फैक्टरी में लगी इस भीषण आग में किसी की जान तो नहीं गई न?" इंस्पेक्टर ने पूछा__"क्योंकि अगर ऐसा हो गया तो आपके लिए मुसीबत हो सकती है। फैक्टरी तो जल ही गई ऊपर से इस आग में जिनकी जान चली गई होगी उससे लम्बा बखेड़ा भी खड़ा हो जाएगा। अच्छा खासा केस बनेगा और आपको कानून की गिरफ्त में भी लेना पड़ सकता है।"

"ज्यादा बकवास करने की ज़रूरत नहीं है इंस्पेक्टर।" अजय सिंह गुर्राया__"जो भी होगा हम देख लेंगे। तुम अपना काम करो और फुटास की गोली लो, समझे??"

"जैसी आपकी मर्ज़ी ठाकुर साहब।" इंस्पेक्टर ने कहा और एक तरफ बढ़ गया।

"दीनदयाल।" इंस्पेक्टर के जाने के बाद अजय सिंह दीनदयाल से मुखातिब होकर कहा__"इस सबका न्यूज और मीडिया वालों को पता नहीं चलना चाहिए।"

"वैसे तो अब तक ये बात लगभग फैल ही चुकी होगी सर।" दीनदयाल ने कहा__"फिर भी न्यूज और मीडिया वालों से कुछ भी छुपा नहीं रह सकेगा। क्योंकि ये कोई साधारण मामला नहीं है, वो तो अच्छा हुआ कि हमारी फैक्टरी शहर से हट कर तथा शहर की आबादी से बहुत दूर थी जिससे फैक्टरी के अलावा बाकी और किसी का कुछ भी नुकसान नहीं हुआ। वर्ना सोचिए अगर ये फैक्टरी शहर में किसी आबादी वाली जगह पर होती तो क्या होता? आग की भीषण लपटों से आस पास के मकानों या और भी बहुत सी चीज़ों पर आग लग जाती जिसके परिणाम की कल्पना ही बड़ी भयंकर है। इस सबके बाद हम कहीं मुॅह छुपाने के काबिल नहीं रह जाते। जनता और कानून हमारे पीछे ही पड़ जाते।"

"जो नहीं हुआ उसके बारे में बात करने का कोई मतलब नहीं है दीनदयाल।"अजय सिंह ने गहरी साॅस ली__"यूॅ तो कानूनी रूप से इस बात की जाॅच तो होगी ही कि फैक्टरी में आग लगने की मुख्य वजह क्या थी? मगर....हमें तो पहले से ही इस बात का अंदेशा है कि इस सबमें उसी का हाॅथ है जिसने पिछले कुछ समय से हमारे साथ खेल खेलना शुरू किया है। समझ में नहीं आता कि आख़िर क्यों कर रहा है वो ऐसा? क्यों हमें बरबाद करने पर तुला हुआ है वो?"

"हैरत की बात है सर।" दीनदयाल ने गंभीरता से कहा__"हमें अब तक उसके बारे में कुछ पता नहीं चल पाया। वो हर बार धोखे से हमारा कुछ न कुछ नुकसान कर देता है और हम कुछ नहीं कर पाते।"

ये दोनो ऐसे ही अपना माथा पच्ची करने में लगे रहे। फैक्टरी के अंदर अब काफी हद तक आग पर काबू पा लिया गया था।
....................

उधर मुम्बई में आज एक बार फिर सब लोग एक साथ ड्राइंगरूम में रखे कीमती सोफों पर बैठे हुए थे।

"शहर के मशहूर बिजनेस मैन अजय सिंह की फैक्टरी में लगी आग, जिसमें सबकुछ जल कर खाक़ हो गया।" निधि ने अखबार में छपी ख़बर को पढ़ते हुए कहा__"मिली जानकारी के अनुसार ये आग उस समय लगी जब सारा शहर रात के अॅधेरे में गहरी नींद सोया पड़ा था। रात दो से तीन बजे के बीच फैक्टरी में आग लगी, और धीरे धीरे समूची फैक्टरी भीषण आग की चपेट में आ गई। फैक्टरी में मौजूद वर्कर खुद इस बात से अंजान हैं। फैक्टरी में लगी आग के उग्र रूप धारण करने से पहले ही फायर ब्रिगेड वालों को सूचित किया गया, जब तक दमकल की गाड़ियाॅ वहाॅ पहॅची तब तक फैक्टरी में लगी आग भयंकर रूप धारण कर चुकी थी। लगभग चार घंटे की मसक्कत के बाद फायर ब्रिगेड द्वारा इस भयंकर आग पर काबू पाया गया। फैक्टरी में आग लगने की सूचना फैक्टरी के मालिक अजय सिंह बघेल को दे दी गई थी। फैक्टरी में आग लगने से जो करोड़ों का नुकसान हुआ है उससे फैक्टरी के मालिक अजय सिंह गहरे सदमे में हैं। हमें विश्वस्त सूत्रों द्वारा ये पता चला है कि फैक्टरी के मालिक अजय सिंह ने अपनी फैक्टरी का कोई जीवन बीमा वगैरा नहीं करवा रखा था, इस लिए अब आप समझ सकते हैं कि आग लगने की वजह से फैक्टरी के मालिक अजय सिंह का कितना नुकसान हुआ होगा। फैक्टरी में आग लगने की वजह अभी तक सामने नहीं आई है। इस बारे में अभी पुलिस द्वारा जाॅच पड़ताड़ की जा रही हैं।"

"कैसी रही अंकल?" विराज ने होठों पर मनमोहक मुस्कान बिखेरते हुए कहा__"अजय सिंह को एक और झटका दे दिया मैंने।"
"तो क्या यही वो काम था जिसे तुम अजय सिंह के बिजनेस पार्टनर अरविंद सक्सेना द्वारा अंजाम देने की बात कह रहे थे?" जगदीश ने हैरत से कहा__"पर कैसे हुआ ये सब?"

"हाॅ राज कैसे किया तुमने ये सब?" गौरी ने भी चौंकते हुए पूछा।
"सब कुछ शुरू से और अच्छे से आप लोगों को बताता हूॅ।" विराज ने एक लम्बी साॅस खींचते हुए कहा__"जब अजय सिंह का बिजनेस पार्टनर अरविंद सक्सेना अपने उन फोटोग्राफ्स की वजह से मेरे इशारों पर काम करने को तैयार हो गया तो मैने उससे अजय सिंह के बिजनेस से संबंधित और भी कुछ महत्वपूर्ण जानकारी हाॅसिल की जिसका किसी को कुछ पता नहीं था।"

"क्या मतलब??" विराज की इस बात पर सब एक साथ चौंके थे__"कैसी जानकारी??"
"अरविंद सक्सेना के अनुसार।" विराज ने इत्मीनान से कहा__"अजय सिंह कपड़ा मील की आड़ में गैर कानूनी धंधा भी करता है। जिसमें गाॅजा, अफीम, चरस, आदि कई चीज़ें शामिल हैं। इन सबसे उसे लाखों करोड़ों का भारी मुनाफा होता है। चूॅकि ये गैर कानूनी धंधा है इस लिए इसमें उसे कानून का भी डर था मगर उसने अपनी चतुराई से कानून को भी इसमें शामिल कर लिया। कहने का मतलब ये कि इस धंधे से होने वाले मुनाफे में पुलिस और कानून के कई सारे नुमाइंदों का भी हिस्सा होता था। पुलिस और कानून का साथ मिलते ही ये धंधा और भी जोर शोर से चलने लगा मगर छिप छिपाकर ही। अजय सिंह की फैक्टरी शहर से बाहर ऐसी जगह पर है जहाॅ आबादी न के बाराबर ही है इस लिए फैक्टरी में ही इन सब चीज़ों का भी एक अलग से कारखाना बनाया गया था जो फैक्टरी के नीचे तहखाने में था। अब आप समझ सकते हैं कि अजय सिंह क्या है? कपड़ा मील की कमाई से इतना मुनाफा नहीं था जितना इस गैर कानूनी धंधे से था। ये तो ख़ैर शुरूआत है, अभी और भी बहुत सी चीज़ें हैं जिनके बारे में कोई नहीं जानता।"

"तुम तो जान ही गए होगे न?" जगदीश ने कहा__"फिर तो कोई समस्या ही नहीं है।"
"मुझे भी उतना ही पता है जितना सक्सेना को पता था।" विराज ने कहा।

"क्या मतलब??" जगदीश चौंका।
"सक्सेना अजय सिंह का पार्टनर ज़रूर था अंकल।" विराज कह रहा था__"लेकिन उसे खुद ये नहीं पता था कि उसका बिजनेस पार्टनर अजय सिंह वास्तव में है क्या? अरविंद सक्सेना एक फट्टू किस्म का इंसान था तथा साफ दिल का, ये अलग बात है कि उसका कैरेक्टर बाॅकी चीज़ में अजय सिंह से जुदा नहीं था। हाॅ ये जरूर था कि सक्सेना गैर कानूनी काम करने से डरता था, और शायद यही वजह रही थी कि अजय सिंह ने इस धंधे में सक्सेना को शामिल न करके उसे इससे दूर ही रखा। ख़ैर, एक दिन सक्सेना को किसी वजह से ये पता चल गया कि अजय सिंह गैर कानूनी धंधा भी करता है। उसने अपनी आखों से फैक्टरी के बेसमेंट में बने एक अलग ही कारखाने को देखा था। अजय सिंह को ये पता नहीं था कि सक्सेना उसकी असलियत जान चुका है। सक्सेना ने कभी अजय सिंह से इस बात का ज़िक्र भी नहीं किया। क्योकि वह जानता था कि इस धंधे में कोई किसी का नहीं होता, अगर बात इधर से उधर हो गई तो उसकी जान भी जा सकती है। सक्सेना उस दिन से परेशान भी रहने लगा किन्तु उसने ये सब अजय सिंह पर ज़ाहिर न होने दिया। वो अब किसी तरह अजय सिंह से पार्टनरशिप तोड़कर उससे कहीं दूर चला जाना चाहता था, मगर सवाल था कि कैसे करे ये सब? फिर एक दिन वो मेरी पकड़ में आ गया, मैने जब उसे अपने तरीके से टार्चर करके उससे अजय सिंह के बारे में पूॅछा तथा उससे पार्टनरशिप तोड़ने की बात कही तो वह कुछ देर न नुकुर करने के बाद इसके लिए तैयार हो गया। उसने मुझसे शर्त रखी कि इस सबमें उसका नाम नहीं आना चाहिए और उसे सुरक्षित इस देश से बाहर परिवार सहित भेज दिया जाए। मुझे उसकी शर्त से कोई आपत्ति नहीं थी इस लिए मैंने भी उसकी शर्त मान ली।"

"तो अजय सिंह का एक सच ये भी बाहर आ गया कि वह अपने इस बिजनेस की आड़ में गैर कानूनी काम भी करता है।" जगदीश ने गहरी साॅस लेते हुए कहा__"खैर तो तुमने इस सबके बाद सक्सेना से कैसे इस काम को अंजाम दिलवाया?"

"हे भगवान।" गौरी आश्चर्यचकित भाव के साथ कह उठी__"कितना गिरा हुआ इंसान है ये, ऐसा कोई काम नहीं बचा जो इसने किया नहीं है।"

"मेरा बस चले तो।" निधि ने बुरा सा मुॅह बनाते हुए कहा__"ऐसे ब्यक्ति को बीच चौराहे पर गोली मार दूॅ, हाॅ नहीं तो।"

"सक्सेना के बाॅकी जो छोटे मोटे कारोबार थे उन्हें मैंने आपके द्वारा खरीद लिया।" विराज कह रहा था__"और उसके एकाउन्ट में पैसा भी डलवा दिया गया। साथ ही उसको उसके परिवार सहित विदेश जाने का इंतजाम भी कर दिया गया था। अब सक्सेना के पास एक ही काम रह गया था जिसे वो मेरे कहने पर करने वाला था। कल रात उसने फैक्टरी जा कर बेसमेंट में तीन टाइम बम्ब फिट किये थे। ये काम उसने बड़ी सावधानी से तथा किसी की नज़र में आए बिना किया था। इस बात का खयाल किया गया था कि उस समय फैक्टरी में कोई न हो क्योंकि इससे बाॅकी तमाम वर्कर्स की या बहुत से बेकसूर लोगों की जान जाने का भी भीषण खतरा था। फिर सक्सेना ने बताया कि फैक्टरी में हप्ते में एक दिन का अवकाश होता है और इत्तेफाक़ से कल अवकाश ही था। तीन घंटे के टाइम के बाद बमों को फटना था। बमों के फटने से पहले ही सक्सेना अपने परिवार के साथ विदेश जाने वाली फ्लाइट पर बैठ कर निकल लिया था और इधर तीन घंटे बाद फैक्टरी के अंदर धमाका हो जाना था और खेल खतम।"

"बहुत खूब बेटे।" जगदीश के चेहरे पर प्रसंसा के भाव थे, बोला__"जब दिमाग़ से ही काम हो जाए तो हाॅथ पैर चलाने की ज़रूरत ही क्या है? वेल डन बेटे....आई एम प्राउड आफ यू।"
"वाह भइया वाह आपने तो कमाल ही कर दिया।" निधि ने खुशी में झूमते हुए कहा__"और साड़ी को फाड़ कर रुमाल कर दिया, हाॅ नहीं तो।"

"बेटा जो कुछ भी करना बहुत सोच समझ कर करना।" गौरी अंदर ही अंदर अपने बेटे के इस सराहनीय कार्य से खुश तो थी किन्तु प्रत्यक्ष में उसने यही कहा__"क्योंकि तुम जिसके साथ ये जंग कर रहे हो वो बहुत खराब आदमी है।"

"फिक्र मत कीजिए माॅ।" विराज ने सहसा ठंडे स्वर में कहा__"उस खराब आदमी के पर ही तो कुतर रहा हूॅ और एक दिन उसे अपाहिज भी कर दूॅगा। उसके लिए बहुत कुछ सोच रखा है मैंने। समय आने पर आप देखेंगी कि उसका क्या हस्र करता हूॅ मैं।"

"इस धमाके के बाद तो उसकी हालत खराब हो गई होगी बेटे।" जगदीश ने कहा__"संभव है कि इस हादसे की जाॅच ही न करवाए वो।"
"आपने बिलकुल ठीक कहा अंकल।" विराज ने कहा__"फैक्टरी में हुए इस भीषण काण्ड की जाॅच नहीं करवाएगा वो। क्योकि इससे उसे मिलेगा तो कुछ नहीं बल्कि उल्टा जाॅच से फॅस ज़रूर जाएगा। पुलिस और फाॅरेंसिक डिपार्टमेंट वाले हर चीज़ को बारीकी से जाॅचेंगे परखेंगे। उस दौरान वो लोग फैक्टरी का चप्पा चप्पा छान मारेंगे और इस सबसे उन्हें वो सबूत भी मिलेंगे जो इस बात की चीख चीख कर गवाही देंगे कि शहर का मशहूर बिजनेस मैन ग़ैर कानूनी धंधा भी करता था। बस खेल खतम।"

"देखते हैं क्या होता है?" जगदीश ने कहने के साथ ही पहलू बदला__"वैसे अब आगे का क्या करने का विचार है?"
"अभी और कुछ नहीं करना है।" सहसा गौरी ने हस्ताक्षेप किया__"अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान देना कुछ, ये काम तो होता ही रहेगा।"

"गौरी बहन सही कह रही है राज।" जगदीश ने अपनेपन से कहा__"कुछ दिन में तुम्हारा काॅलेज भी शुरू हो जाएगा इस लिए अपने मन को थोड़ा शान्त भी रखो।"

"मैं भी यही सोच रहा हूॅ।" विराज ने मुस्कुरा कर कहा__"कुछ दिन अजय सिंह को भी अपनी हालत पर काबू पा लेना चाहिए। वर्ना कहीं ऐसा न हो कि हादसे पर हादसे देख कर वह हार्ट अटैक से ही मर जाए। फिर किससे मैं अपने तरीके से इंतकाम ले सकूॅगा?"

"एक के मर जाने से क्या होता है भइया?" निधि ने कहा__"सब उसके जैसे ही तो हैं, उनका भी वही हाल करना, हाॅ नहीं तो।"

निधि की बात पर सब मुस्कुरा कर रह गए।

अपडेट हाज़िर है दोस्तो......
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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5,929
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अपडेट.........《 15 》

अब तक......

"देखते हैं क्या होता है?" जगदीश ने कहने के साथ ही पहलू बदला__"वैसे अब आगे का क्या करने का विचार है?"
"अभी और कुछ नहीं करना है।" सहसा गौरी ने हस्ताक्षेप किया__"अपनी पढ़ाई पर भी ध्यान देना कुछ, ये काम तो होता ही रहेगा।"

"गौरी बहन सही कह रही है राज।" जगदीश ने अपनेपन से कहा__"कुछ दिन में तुम्हारा काॅलेज भी शुरू हो जाएगा इस लिए अपने मन को थोड़ा शान्त भी रखो।"

"मैं भी यही सोच रहा हूॅ।" विराज ने मुस्कुरा कर कहा__"कुछ दिन अजय सिंह को भी अपनी हालत पर काबू पा लेना चाहिए। वर्ना कहीं ऐसा न हो कि हादसे पर हादसे देख कर वह हार्ट अटैक से ही मर जाए। फिर किससे मैं अपने तरीके से इंतकाम ले सकूॅगा?"

"एक के मर जाने से क्या होता है भइया?" निधि ने कहा__"सब उसके जैसे ही तो हैं, उनका भी वही हाल करना, हाॅ नहीं तो।"

निधि की बात पर सब मुस्कुरा कर रह गए।
अब आगे.......



अजय सिंह की हवेली में इस वक्त बड़ा ही अजीब सा माहौल था। ड्राइंगरूम में रखे सोफों पर इस वक्त परिवार के लगभग सभी सदस्य बैठे हुए थे। अजय सिंह, प्रतिमा, शिवा, अभय सिंह, करुणा, दिव्या तथा अभय व करुणा का दिमाग़ से डिस्टर्ब बेटा शगुन। शगुन अपनी माॅ करुणा के साथ की इस वक्त शान्त बैठा था कदाचित सब कोई खामोश व गुमसुम बैठे हुए थे इस लिए उन सबको देखकर वह भी चुपचाप बैठा था वर्ना आम तौर पर वह कोई न कोई विचित्र सी हरकतें करता ही रहता था। इन लोगों के बीच परिवार के दो सदस्य अभी अनुपस्थित थे, और वो थीं अजय सिंह व प्रतिमा की दोनों बेटियाॅ। अजय की छोटी बेटी नीलम मुम्बई में है, हलाॅकि उसे फैक्टरी में लगी आग की वजह से हुए भारी नुकसान की सूचना दे दी गई थी और वह मुम्बई से निकल भी चुकी थी यहाॅ आने के लिए। जबकि अजय सिंह की बड़ी बेटी रितू सुबह पुलिस स्टेशन चली गई थी, क्योंकि आज उसे चार्ज सम्हालना था। रितू को अपने पिता के साथ हुए हादसे का दुख तो था लेकिन वो कर भी क्या सकती थी? हाॅ ये ज़रूर उसके दिमाग़ में था कि इस केस की छान बीन वो बारीकी से खुद करेगी तथा इसके साथ ही यह पता भी लगाएगी कि ये सब कैसे हुआ??

(आप सबको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ये सब लोग इस तरह गुमसुम से क्यों बैठे हुए थे। फिर भी बताना तो हर लेखक का फर्ज़ होता है कि वो हर बात को विस्तार से अपने पाठकों को बताए भी और समझाए भी।)

"क्या कुछ पता चला भैया कि फैक्टरी में किस वजह से आग लगी थी?" सहसा वहाॅ पर फैले इस सन्नाटे को अभय सिंह ने अपने कथन से चीरते हुए कहा__"आपने तो कहा था न कि पुलिस और फाॅरेंसिक डिपार्टमेंट के लोग इसकी बारीकी से छान बीन कर रहे थे?"

"किसी को कोई सुराग़ नहीं मिला छोटे।" अजय सिंह ने गंभीरता से कहा__"सबका यही कहना है कि शार्ट सर्किट की वजह से फैक्टरी में आग लगी थी। उस दिन क्योंकि अवकाश था इस लिए फैक्टरी में काम करने वाले वर्कर्स नहीं थे। फैक्टरी के अंदर कोई नहीं था और जो वहाॅ पर गार्ड्स वगैरा थे वो सब तो बाहर ही रहते हैं इस लिए किसी को पता ही नहीं चला कि फैक्टरी के अंदर कब क्या हुआ? जब तक पता चला तब तक फैक्टरी के अंदर भरे कपड़ों के स्टाक में आग पकड़ चुकी थी। फैक्टरी का इन्ट्री गेट बाहर से लाॅक था जिसकी चाभी मैनेजर के पास थी उस रात। मैनेजर किसी काम से बाहर था, तो आनन फानन में लाॅक तोड़ने की कोशिश की गई। लाक ऐसा था कि दरवाजे के अंदर से कनेक्टेड था जिसे खोल पाना आसान न था इस लोहे के दरवाजे को फिर किसी तरह ट्रक द्वारा तोड़ना पड़ा। इस काम में समय लग गया जिस वजह से आग ने उग्र रूप धारण कर लिया। फिर फायर ब्रिगेड वालों को सूचित किया गया। जब तक दमकल की गाड़ियाॅ वहाॅ पहुॅची तब तक फैक्टरी के अंदर लगी आग बेकाबू हो चुकी थी और फिर सब कुछ खाक़ हो गया।"

(आप लोग समझ ही गए होंगे कि अजय सिंह ये सब बातें अपने से बना कर ही अभय से कही थी। भला वो और क्या बताता उन लोगों से?)
"मैं इस बात को नहीं मानती डैड।" सहसा तभी ड्राइंगरूप में इंस्पेक्टर की वर्दी पहने हुए अजय सिंह की बेटी इंस्पेक्टर रितू ने दाखिल होते हुए कहा।

पुलिस इंस्पेक्टर की वर्दी में बला की खूबसूरत लग रही थी रितू। ऐसा लगता था जैसे ये पुलिस की वर्दी जन्म जन्मांतर से बनी ही उसके लिए थी। उसे इस रूप में देखकर वहाॅ बैठे सब लोगों की आॅखें फटी की फटी रह गईं। एकटक, अपलक देखते ही रह गए थे सब लोग उसे। वर्दी की टाइट फिटिंग में उसके बदन के वो सब उभार स्पष्ट नज़र आ रहे थे जिससे उसके भरपूर जवान हो जाने का पता चल रहा था। अजय सिंह तथा शिवा की आंखें कुछ अलग ही नज़ारा कर रही थी। ये बात किसी ने महसूस की हो या न की हो किन्तु उन बाप बेटों की फितरत से बाखूबी परिचित प्रतिमा ने साफ तौर पर महसूस किया। और अभय व करुणा की मौजूदगी को ध्यान में रखते हुए उसने तुरंत ही उन बाप बेटों को उनकी वास्तविक स्थित में ले आने की गरज से किन्तु सावधानी से कहा__"वाह मेरी बेटी पुलिस की वर्दी में कितनी सुन्दर लग रही है, कहीं किसी की नज़र न लग जाए तुझे। चल मैं तेरे कान के नीचे नज़र का काला टीका लगा देती हूॅ।"

"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है माॅम।" रितु ने हॅस कर कहा__"यहाॅ पर सब अपने ही तो बैठे हैं। भला अपनों की भी कहीं नज़र लगती है क्या?"

"क्या पता?" प्रतिमा ने एक सरसरी सी नज़र अपने पति व बेटे पर डाली फिर बोली__"लग भी सकती है।"

अजय सिंह और शिवा दोनो ही प्रतिमा की इस बात पर चौंके और सम्हल कर बैठ गए। ये देख प्रतिमा मन ही मन मुस्कुराई थी।

"बहुत बहुत बॅधाई हो रितू।" करूणा ने मुस्कुराकर कहा__"आज से तुम पुलिस वाली बन गई हो।"
"धन्यवाद चाची जी।" रितू ने कहा तथा एक हाॅथ में पकड़े हुए पुलिस रुल को अपने दूसरे हाॅथ की हॅथेली पर हल्के से मारते हुए कहा__"मैं आपकी इस बात को नहीं मानती डैड कि आपकी फैक्टरी में लगी आग किसी शार्ट सर्किट की वजह से लगी है।"

"ये तुम क्या कह रही हो बेटी?" अजय सिंह मन ही मन उसकी इस बात से चौंका था किन्तु चेहरे पर उन भावों को उजागर न करते हुए प्रत्यक्ष में कहा __"अगर आग शार्ट सर्किट की वजह से नहीं लगी है तो फिर किस वजह से लगी है? जबकि पुलिस और फाॅरेंसिक डिपार्टमेंट के लोग अपनी छान बीन में इसी बात की पुष्टि करके गए थे?"

"यही तो हैरानी की बात है डैड।" रितू ने चहलकदमी करते हुए कहा__"वो लोग उस बात की पुष्टि कर गए जिसका कहीं कोई वजूद ही नहीं था, जबकि उस तरफ उन लोगों ने ज़रा भी ग़ौर नहीं किया जिस तरफ किसी बात के प्रमाण मिल जाने के किसी हद तक चान्सेस थे।"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" अजय सिंह इस बार लाख कोशिशों के बाद भी अपने चेहरे पर बुरी तरह चौंकने के भाव न छिपा सका। वह तो चकित भी हो गया था कि उसकी बेटी जो अब तक साधारण सी थी वो अब इस रूप में ऐसी बातें भी करने लगी थी। उसे समझ न आया कि उसकी बेटी के अंदर कौन सा जासूसी कीड़ा समा गया है?

"मेरा मतलब तो स्वीमिंगपुल में भरे पानी की तरह साफ ही है डैड।" उधर रितू अजीब से अंदाज़ में अपने ही बाप की धड़कने बढ़ाते हुए कह रही थी__"मुझे तो ऐसा लगता है जैसे फैक्टरी में छान बीन करने आए पुलिस तथा फाॅरेंसिक डिपार्टमेंट के लोग छान बीन की महज औपचारिकता निभा कर चले गए हैं। वर्ना इतने भीषण काण्ड की इतनी मामूली सी वजह बता कर नहीं चले जाते बल्कि कुछ और ही पता करते।"

अजय सिंह अपनी पुलिस की वर्दी पहने बेटी को मुॅह बाए देखता रह गया। कानों में कहीं दूर से हथौड़े की चोंट का एहसास करने लगा था वो। फिर सहसा जैसे उसे वस्तुस्थित का ख़याल आया तो बोला__"मतलब क्या है बेटी? क्या तुम ये कहना चाहती हो कि तुम्हारे ही पुलिस डिपार्टमेंट के लोगों ने अपनी छान बीन में ग़लत रिपोर्ट दी है? जबकि तुम्हारे अनुसार उनकी इस रिपोर्ट के उलट कुछ और ही रिपोर्ट निकल सकती थी? इससे तो यही ज़ाहिर होता है कि तुम्हें अपने ही पुलिस डिपार्टमेंट की इस छान बीन के फलस्वरूप बनाई गई रिपोर्ट पर शक है?"

"मैंने ये कब कहा डैड कि मुझे अपने डिपार्टमेंट द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट पर शक है?" रितू ने कहा__"मैंने तो सिर्फ अपनी बात रखी है इस सिलसिले में कि अगर औपचारिकता की बजाय ठीक तरह से छान बीन की जाती तो शायद निष्कर्श कुछ और ही निकलता।"

"तुम्हारे कहने का मतलब तो वही हुआ बेटी।" अजय सिंह जाने क्या सोच कर पल भर को मुस्कुराया था, फिर बोला__"तुम्हें लगता है कि तुम्हारे डिपार्टमेंट वालों ने अपनी छान बीन में महज अपनी औपचारिकता निभाई है। इसका मतलब तो यही हुआ कि उन्होंने तुम्हारी नज़र में गंभीरता से छानबीन ही नहीं की।"

"बिलकुल।" रितू ने कहा__"पर ये उन पर मेरा कोई आरोप नहीं है डैड। क्योंकि मुझे पता है सबका अपना अपना दिमाग़ होता है, और सब अपने उसी दिमाग़ की वजह से किसी भी चीज़ का रिजल्ट निकालते हैं। जिसका जितना दिमाग़ चलता है वो उतना ही बता पाता है, मगर ज़रूरी नहीं होता कि कोई सच उतने ही दिमाग़ से निकलने वाला सच कहलाए। ख़ैर जाने दीजिए...मैं आपको ये खुशख़बरी सुनाने आई हूॅ कि इस केस को मैंने रिओपेन किया है जिसके लिए मैंने कमिश्नर से बड़ी मिन्नते की थी। मुझे अंदेशा है कि मेरे डिपार्टमेंट ने ठीक तरह से छान बीन नहीं की। इस लिए अब ये केस मैंने खुद अपने हाॅथ में लिया है और अब मैं खुद इसकी छानबीन करूॅगी।"

"क क्या????" अजय सिंह उछल पड़ा, चहरे पर पसीने की बूॅदे झिलमिला उठीं। फिर जल्दी ही उसने खुद को सम्हालते हुए कहा__"भला इसकी क्या ज़रूरत थी बेटी? मेरा मतलब है कि मान लो ये पता लग भी जाए कि फैक्टरी में आग वास्तव में किस वजह से लगी थी तो भी क्या होगा? क्या इससे वो सब वापस मिल जाएगा जो जल कर खाक़ मे मिल चुका है?"

"मैं मानती हूॅ डैड कि अब वो सब कुछ नहीं मिल सकता जो जल कर खाक़ हो गया है।" रितु ने कहा__"लेकिन छान बीन से हकीक़त का पता भी तो चलना चाहिए। आखिर पता तो चलना ही चाहिए कि फैक्टरी में आग खुद लगी थी या किसी के द्वारा लगाई गई थी?"

"किसी के द्वारा?" सहसा इस बीच अभय ने कहा__"इसका क्या मतलब हुआ रितू बेटी?"
"मतलब साफ है चाचा जी।" रितू ने अभय से मुखातिब होकर कहा__"फैक्टरी में आग अगर खुद नहीं लगी रही होगी तो ज़ाहिर है किसी के द्वारा आग लगाई गई थी। उस सूरत में सवाल यही उठता है कि किसने और किस वजह से फैक्टरी में आग लगाई? आप ही बताइए क्या ये जानना ज़रूरी नहीं है कि हम ऐसे इंसान का पता लगाएं जिसने हमारी फैक्टरी को आग लगा कर हमारा सब कुछ बरबाद कर दिया?"

"बिलकुल बेटा।" अभय ने कहा__"अगर छानबीन में यही सच सामने आता है तो इसका पता तो चलना ही चाहिए कि किसने ये सब किया और क्यों किया?"

अजय सिंह के काॅनों में सीटियाॅ सी बजने लगी थी। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह ऐसा क्या करे कि उसकी बेटी फैक्टरी की दुबारा छानबीन न करे? क्योंकि उसे पता था कि अगर रितू ने दुबारा छानबीन शुरू की तो वो सच्चाई भी सामने आ जाएगी जिसको वह किसी भी कीमत पर सामने नहीं लाना चाहता। पहले जो छानबीन हुई थी उसमें अजय सिंह ने ऊपर ऊपर से ही फैक्टरी की छानबीन करवाई थी वो भी सिर्फ औपचारिकता के लिए। सब उसके ही आदमी थे, पुलिस भी और फाॅरेंसिक डिपार्टमेंट के लोग भी। किन्तु अब ये केस फिर से रिओपेन हो गया, वो भी उसकी अपनी ही बेटी के द्वारा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि अपनी बेटी को दुबारा से छानबीन करने से कैसे रोंके?

"रितू दीदी ठीक ही कह रही हैं डैड।" सहसा इस बीच काफी देर से चुपचाप बैठा शिवा भी अपने अंदाज़ में कह उठा__"फैक्टरी की दुबारा से छानबीन तो होनी ही चाहिए। कम से कम असलियत तो सामने आ ही जाए कि किसने ये सब किया है? कसम से डैड...जिसने भी ये किया होगा उसको छोड़ूॅगा नहीं मैं। कुत्ते से भी बदतर मौत मारूॅगा उसे।"

"खामोशशशशश।" अजय सिंह लगभग चीखते हुए कहा था__"चुपचाप बैठो, नहीं तो कमरे में जाओ अपने। तुम्हें बीच में बोलने की कोई ज़रूरत नहीं है समझे??"

"पर डैड मैंने ऐसा क्या ग़लत कह दिया?" शिवा ने बुरा सा मुॅह बनाते हुए कहा__"जिसकी वजह से आप मुझे इस तरह डाॅटकर चुप करा रहे हैं।"

अजय सिंह का जी चाहा कि वह अपने इस नालायक बेटे को गोली मार दे, किन्तु फिर बड़ी मुश्किल से अपने गुस्से को काबू में किया उसने।

"मैं तो कहता हूॅ बेटी कि बेवजह ही तुम इसके लिए परेशान हो रही हो।" अजय सिंह ने बात को किसी तरह सम्हालने की गरज से कहा__"क्योंकि अगर ये पता चल भी गया कि फैक्टरी में आग खुद नहीं लगी थी बल्कि किसी के द्वारा लगाई गई थी तो तब भी ये कैसे पता लगाओगी कि किसने ये सब किया? वो जो कोई भी रहा होगा वो इतना बेवकूफ नहीं रहा होगा कि इतना बड़ा काण्ड करने बाद अपने पीछे अपने ही खिलाफ कोई सबूत या कोई सुराग़ छोंड़ गया होगा। क्योकि ये तो उसे भी भली भाॅति पता होगा कि इतना कुछ करने के बाद अगर वह पकड़ा जाएगा तो उसके लिए अच्छा नहीं होगा, बल्कि पकड़े जाने पर जेल की सलाखों के पीछे पहुॅचा दिया जाएगा।"

"जुर्म चाहे जितनी होशियारी या सफाई से किया जाए डैड।" रितु ने कहा__"वह कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में ऐसा सबूत या सुराग़ ज़रूर छोंड़ जाता है जिसकी बिना पर जुर्म करने वाले को कानून के हाॅथों पकड़ कर जेल की सलाखों के पीछे पहुॅचा दिया जा सके। मुझे पूरा यकींन है डैड...जिसने भी ये सब किया है वो अपने पीछे अपने ही खिलाफ सबूत या सुराग़ ज़रूर छोंड़ कर गया होगा। आप खुद सरकारी वकील रह चुके हैं इस लिए ये बात आप भी अच्छी तरह जानते हैं कि मुजरिम के खिलाफ जब कोई एक सबूत या सुराग़ कानून के हाॅथ लग जाता है तो फिर ज्यादा समय नहीं लगता उस मुजरिम को पकड़ कर जेल की सलाखों के पीछे डाल देने में।"

अजय सिंह हैरान भी था और परेशान भी। हैरान इस लिए कि उसकी बेटी के मुख से जिस तरह के डायलाॅग निकल रहे थे उसकी उसने कल्पना तक न की थी और परेशान इस लिए कि अपनी ही बेटी द्वारा इस छानबीन को करने से वह किसी भी तरीके से रोंक नहीं पा रहा था। अपनी बेटी द्वारा छानबीन करने की उसकी ज़िद को देख उसका दिल बैठा जा रहा था। हलाॅकि वह चाहता तो बेटी को ठेस लहजे में कह कर इसके लिए मना कर देता किन्तु तब हालात और बात दोनो ही बिगड़ जाते। उसकी बेटी के मन में ये बिचार ज़रूर उठता कि उसका बाप उसके द्वारा इस छानबीन को न करने पर इतना ज़ोर क्यों दे रहा है? बेटी क्योंकि अब पुलिस वाली बन चुकी थी इस लिए अब उसके सोचने का नज़रिया बदल चुका था। उसे तो अब हर आदमी में एक मुजरिम नज़र आने लगा था जिससे उसकी निगाह अब सबको शक की दृष्टि से देखने लगी थी। इस लिए अजय सिंह अब ये किसी कीमत पर भी नहीं चाह सकता था कि किसी भी वजह से उसके प्रति उसकी बेटी के सोचने का नज़रिया बदल जाए।

"चलती हूॅ डैड।" सहसा रितू ने अपनी खूबसूरत कलाई पर बॅधी एक कीमती घड़ी पर नज़रें डालते हुए कहा__"मैं आपका पुलिस स्टेशन में इंतज़ार करूॅगी।" फिर उसने अभय की तरफ भी देख कर कहा__"चाचा जी आपका भी।"

इतना कहने के बाद ही वह खूबसूरत बला पलटी और लम्बे लम्बे डग भरती हुई ड्राइंगरूम से बाहर निकल गई। किन्तु उसके जाते ही वहाॅ पर ब्लेड की धार जैसा पैना सन्नाटा भी खिंच गया।

अजय सिंह का दिल जैसे धड़कना भूल गया था। उसे अपनी आंखों के सामने अॅधेरा सा नज़र आने लगा। जाने क्या सोचकर वह तनिक चौंका तथा साथ ही घबरा भी गया। फिर एक ठंडी साॅस खींचते हुए, तथा अपनी आॅखों को मूॅद कर सोफे की पिछली पुश्त से अपना पीठ व सिर टिका दिया। आॅख बंद करते ही उसे फैक्टरी के बेसमेंट मे बने उस कारखाने का मंज़र दिख गया जहां पर सिर्फ और सिर्फ ग़ैर कानूनी चीज़ें मौजूद थी। ये सब नज़र आते ही अजय सिंह ने पट से अपनी आंखें खोल दी तथा एक झटके से सोफे पर से उठा और अपने कमरे की तरफ भारी कदमों से बढ़ गया।

अपडेट हाज़िर है दोस्तो,,,,,,
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अपडेट.........《 16 》

अब तक.......

"चलती हूॅ डैड।" सहसा रितू ने अपनी खूबसूरत कलाई पर बॅधी एक कीमती घड़ी पर नज़रें डालते हुए कहा__"मैं आपका पुलिस स्टेशन में इंतज़ार करूॅगी।" फिर उसने अभय की तरफ भी देख कर कहा__"चाचा जी आपका भी।"

इतना कहने के बाद ही वह खूबसूरत बला पलटी और लम्बे लम्बे डग भरती हुई ड्राइंगरूम से बाहर निकल गई। किन्तु उसके जाते ही वहाॅ पर ब्लेड की धार जैसा पैना सन्नाटा भी खिंच गया।

अजय सिंह का दिल जैसे धड़कना भूल गया था। उसे अपनी आंखों के सामने अॅधेरा सा नज़र आने लगा। जाने क्या सोचकर वह तनिक चौंका तथा साथ ही घबरा भी गया। फिर एक ठंडी साॅस खींचते हुए, तथा अपनी आॅखों को मूॅद कर सोफे की पिछली पुश्त से अपना पीठ व सिर टिका दिया। आॅख बंद करते ही उसे फैक्टरी के बेसमेंट मे बने उस कारखाने का मंज़र दिख गया जहां पर सिर्फ और सिर्फ ग़ैर कानूनी चीज़ें मौजूद थी। ये सब नज़र आते ही अजय सिंह ने पट से अपनी आंखें खोल दी तथा एक झटके से सोफे पर से उठा और अपने कमरे की तरफ भारी कदमों से बढ़ गया।

अब आगे......
उस वक्त दोपहर के लगभग साढ़े ग्यारह या बारह के आसपास का समय था जब अजय सिंह, प्रतिमा व अभय सिंह रितू के कहे अनुसार फैक्टरी पहुॅचे। इन लोगों के साथ अजय सिंह का बेटा शिवा भी आना चाहता था किन्तु अजय सिंह उसे अपने साथ नहीं लाया था। उसे डर था कि कहीं वह किसी समय ऐसा वैसा न बोल बैठे जिससे कोई बात बिगड़ जाए। शिवा इस बात से अपने स्वभाव के चलते नाराज़ तो हुआ लेकिन पिता के द्वारा सख़्ती से मना कर देने पर वह मन मसोस कर रह गया था।

फैक्टरी के अंदर जाने से पहले की तरह ही कानूनन अभी प्रतिबंध लगा हुआ था। हलाॅकि पहले हुई छानबीन के मुताबिक प्रतिबंध हटाया ही जा रहा था कि ऐन समय पर रितू के द्वारा जब केस फिर से रिओपेन हो गया तो प्रतिबंध पूर्वत् लगा ही रहा। इसके साथ ही जाने क्या सोच कर इंस्पेक्टर रितू ने वहाॅ की सिक्योरिटी भी टाइट करवा दी थी।

अजय सिंह ने अपनी तरफ से कोशिश तो बहुत की कि उसे एक बार फैक्टरी के अंदर जाने दिया जाए लेकिन उसकी एक न चली थी। उसे इस बात ने भी बुरी तरह हैरान व परेशान कर दिया था कि इस शहर का पूरा पुलिस डिपार्टमेंट ही बदल दिया गया है। ऊॅची रैंक के सभी अफसरों का तबादला हो चुका था एक दिन पहले ही। सब-इंस्पेक्टर से लेकर कमिश्नर तक सबका तबादला कर दिया गया था। अजय सिंह इस बात से बेहद परेशान हो गया था, पुलिस कमिश्नर उसका पक्का यार था जिसके एक इशारे पर उसका हर काम चुटकियों में हो जाता था। अजय सिंह अपनी हार न मानते हुए प्रदेश के मुख्यमंत्री से भी संबंध स्थापित कर इस केस को रफा दफा करने का दबाव बढ़ाने को कहा किन्तु मुख्यमंत्री ने ये कह कर अपने हाॅथ खड़े कर दिये थे कि वह ऐसा चाह कर भी नहीं कर सकता क्योंकि ऊपर से हाई कमान का शख्त आदेश था कि इस केस से संबंधित किसी भी प्रकार की बात किसी के द्वारा नहीं सुनी जाएगी और न ही किसी के द्वारा कोई हस्ताक्षेप किया जाएगा। पुलिस को पूरी इमानदारी के साथ इस केस की छानबीन करने की छूट दी जाए।

प्रदेश के मुख्यमंत्री की इस बात ने अजय सिंह की रही सही उम्मीद को भी तोड़ दिया था। उसकी हालत उस ब्यक्ति से भी कहीं ज्यादा गई गुज़री हो गई थी जिसे चलने के लिए दो दो बैसाखियों का भी मोहताज होना पड़ता है। अजय सिंह की समझ में नहीं आ रहा था कि एक ही दिन में ये क्या हो गया है? शहर के सारे पुलिस डिपार्टमेंट का क्यों तबादला कर दिया गया?? और....और ऐसा क्या है जिसके चलते प्रदेश के सीएम तक को अपने हाॅथ मजबूरीवश खड़े कर देने पड़े? लाख सिर खपाने के बाद भी ये सब बातें अजय सिंह की समझ में नहीं आ रही थीं। वह इतना ज्यादा परेशान व हताश हो गया था कि उसे हर तरफ सिर्फ और सिर्फ अॅधेरा ही अॅधेरा दिखाई देने लगा था। ऐसा लगता था कि वह चक्कर खा कर अभी गिर जाएगा। हलाॅकि वो ये सब अपने चेहरे पर से ज़ाहिर नहीं होने देना चाहता था किन्तु वह इसका क्या करे कि लाख कोशिशों के बाद भी दिलो दिमाग़ में ताण्डव कर रहे इस तूफान को वह अपने चेहरे पर उभर आने से रोंक नहीं पा रहा था।

इंस्पेक्टर रितु पुलिस की वर्दी पहने कुछ ऐसे पोज में खड़ी थी कि अजय सिंह को वह किसी यमराज की तरह नज़र आ रही थी।

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अजय सिंह अपनी ही बेटी से बुरी तरह भयभीत हुआ जा रहा था। बार बार वह अपने रुमाल से चेहरे पर उभर आते पसीने को पोछ रहा था।

"मैं आप सबको ये बताना चाहती हूॅ कि फैक्टरी की इसके पहले हुई छानबीन से मेरा कोई मतलब नहीं है।" रितु ने अजय सिंह के साथ आए बाॅकी सब पर एक एक नज़र डालने के बाद अजय सिंह से कहा__"अब क्योंकि ये केस फिर से मेरे द्वारा रिओपेन हुआ है तो इस केस की छानबीन मैं शुरू से और नए सिरे से ही करूॅगी। उम्मीद करती हूॅ कि आपको इस सबसे कोई ऐतराज़ नहीं होगा बल्कि इस छानबीन में आप खुद पुलिस का पूरा पूरा सहयोग देंगे।"

"तुमने बेकार ही इस केस को रिओपेन किया है बेटी।" अजय सिंह ने नपे तुले भाव से कहा__"मैं तो कहता हूॅ कि अभी भी कुछ नहीं हुआ है, अभी भी इस केस की फाइल बंद की जा सकती है। कोई ज़रूरत नहीं है इस सबकी, क्योंकि इससे वो सब कुछ मुझे वापस तो मिलने से रहा जो जल कर खाक़ हो गया है।"

"अब ये केस रिओपेन हो चुका है ठाकुर साहब।" रितु ने अपने ही बाप को ठाकुर साहब कह कर संबोधित किया। अजय सिंह इस बात से हैरान रह गया, जबकि रितु कह रही थी__"और जब तक इस केस से संबंधित कोई रिजल्ट सामने नहीं आता तब तक ये केस क्लोज नहीं हो सकता। केस को क्लोज करना मेरे बस में नहीं है बल्कि ये ऊपर से ही आदेश है कि केस को अब अच्छी तरह से ही किसी नतीजे के साथ बंद किया जाए।"

"ठीक है रितु बेटी।" सहसा प्रतिमा ने कहा__"तुम अपनी ड्यूटी निभाओ, हम भी देखना चाहते हैं कि इस सबके पीछे किसका हाॅथ है?"

"मुआफ़ कीजिये, इस वक्त मैं आपकी बेटी नहीं बल्कि एक पुलिस आॅफिसर हूॅ और अपनी ड्यूटी कर रही हूॅ।" रितु ने सपाट लहजे से कहा__"एनीवे, तो शुरू करें ठाकुर साहब??"

रितु की बात से जहाॅ प्रतिमा को एक झटका सा लगा वहीं अजय सिंह की घबराहट बढ़ने लगी थी।

"मेरा सबसे पहला सवाल।" रितु ने कहा__"फैक्टरी में आग लगने की सूचना सबसे पहले आपको कैसे हुई?"

अजय सिंह क्योंकि समझ चुका था इस लिए अब उसने भी अपने आपको इस केस से संबंधित किसी भी प्रकार की छानबीन या तहकीकात के लिए तैयार कर लिया।

"फैक्टरी में आग लगने की सूचना उस रात लगभग तीन बजे मेरे पीए के द्वारा मुझे मिली।" अजय सिंह ने कहा__"मैं अपनी पत्नी के साथ अपने कमरे में उस वक्त सोया हुआ था, जब मेरे पीए का फोन आया था। उसने ही बताया कि हमारी फैक्टरी में आग लग गई है।"

"इसके बाद आपने क्या किया?" रितू ने पूछा।
"मैने वही किया।" अजय सिंह कह रहा था__"जो हर इंसान इन हालातों में करता है। अपने पीए के द्वारा फोन पर मिली सूचना के तुरंत बाद ही मैं वहां से शहर के लिए निकल पड़ा। जब सुबह के प्रहर मैं यहाॅ पहुॅचा तो सब कुछ तबाह हो चुका था।"

"फैक्टरी पहुॅच कर आपने क्या ऐक्शन लिया?" रितू ने पूछा।
"किसी प्रकार का ऐक्शन लेने की हालत ही नहीं थी उस वक्त मेरी।" अजय सिंह बोला__"अपनी आॅखों के सामने अपना सब कुछ खाक़ में मिल गया देख होश ही नहीं था मुझे। कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या करूॅ क्या न करूॅ? वो तो मेरे पीए ने ही बताया कि फैक्टरी में आग लगने के बाद उसने इस संबंध में क्या क्या किया है?"

"मैं आपके पीए का बयान लेना चाहती हूॅ।" रितू ने कहा__"आप उन्हें बुला दीजिए प्लीज।"

अजय सिंह को बुलाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी क्यों पीए वहीं था, और पीए ही बस क्यों बल्कि फैक्टरी के स्टाफ का लगभग हर ब्यक्ति वहाॅ मौजूद था। सबको पता हो चुका था कि फैक्टरी की दुबारा छानबीन हो रही है इस लिए हर ब्यक्ति उत्सुकतावश वहाॅ मौजूद था।

अजय सिंह ने इशारे से पीए को बुलाया। वह तुरंत ही हाज़िर हो गया।

"आपका नाम?" रितु ने पीए के हाज़िर होते ही सवाल किया।
"जी मेरा नाम दीनदयाल शर्मा है।" पीए ने बताया।

"ठाकुर साहब की फैक्टरी में कब से ऐज अ पीए काम कर रहे हैं?" रितू ने पूछा।

"जी लगभग छः साल हो गए।" दीन दयाल ने कहा।
"छः साल काफी लम्बा समय होता है ये तो आप भी जानते होंगे?" रितु ने अजीब भाव से कहा__"कहने का मतलब ये कि इन छः सालो में आपको अपने मालिक और उनके काम के बारे अच्छी तरह जानकारी होगी।"

"जी शायद।" दीनदयाल ने अनिश्चित भाव से कहा__"शायद शब्द इस लिए कहा कि छः साल अपने मालिक के नजदीक रह कर भी ये बात मैं दावे के साथ नहीं कह सकता कि मैं उनके और उनके काम के बारे में पूरी तरह ही जानता हूॅ। बहुत सी बातें ऐसी होती हैं जो कोई भी मालिक अपने किसी नौकर को बताना ज़रूरी नहीं समझता।"

"आपने बिलकुल ठीक कहा।" रितू ने कहा__"खैर, तो अब आप बताइये कि उस रात क्या क्या और किस तरह हुआ?"

"ज जी क्या मतलब?" दीनदयाल चकराया।
"मेरे कहने का मतलब है कि जिस रात फैक्टरी में आग लगी थी।" रितू ने कहा__"उस रात की सारी बातें आप विस्तार से बताइए।"

दीनदयाल ने कुछ पल सोचा फिर वो सब बताता चला गया जो उस रात हुआ था। उसने वही सब बताया जो हवेली में अभय सिंह से पूछने पर अजय सिंह ने उसे बताया था और उधर मुम्बई में निधि ने सबको अखबार के माध्यम से बताया था। (दोस्तो, आप सबको भी पता ही होगा)

सब कुछ सुनने के बाद रितू ने गहरी साॅस ली और वहीं पर चहलकदमीं करते हुए कहा__"तो आपकी और पुलिस की छानबीन के बाद तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार फैक्टरी में आग लगने की मुख्य वजह सिर्फ सार्ट शर्किट ही है?"

"जी पुलिस ने तो अपनी यही रिपोर्ट छानबीन के बाद तैयार करके दी थी।" दीनदयाल ने कहा।

"क्या आपने इस बात पर विचार नहीं किया या फिर क्या आपने इस नज़रिये से नहीं सोचा कि फैक्टरी में आग किसी के द्वारा लगाई गई भी हो सकती है?" रितू ने पूछा था।

"इस बारे में न सोचने की भी वजह थी इंस्पेक्टर।" सहसा अजय सिंह ने कमान सम्हालते हुए कहा__"दरअसल जिस दिन फैक्टरी में आग लगी थी उस दिन सभी वर्कर्स के लिए अवकाश था। इस लिए उस रात फैक्टरी में कोई था ही नहीं। और जब कोई था ही नहीं तो भला इस बारें में कैसे कह सकते थे किसी अन्य के द्वारा फैक्टरी में आग लगी?"

"चलिए मान लिया कि उस रात अवकाश के चलते कोई भी वर्कर फैक्टरी में नहीं था।" रितू ने कहा__"किन्तु सवाल ये है कि अवकाश के चलते क्या कोई भी फैक्टरी में नहीं था? जहाॅ तक मुझे पता है तो इतनी बड़ी फैक्टरी में अवकाश के चलते हर कोई फैक्टरी से नदारद नहीं हो सकता। मतलब फैक्टरी की सुरक्षा ब्यवस्था के लिए वहाॅ गार्ड्स मौजूद होते हैं और बहुत मुमकिन है कि फैक्टरी के स्टाफ में से भी कोई न कोई फैक्टरी में मौजूद रहता है।"

"बिलकुल इंस्पेक्टर।" अजय सिंह ने कहा__"हप्ते में एक दिन फैक्टरी बंद रहती है इस लिए फैक्टरी में काम करने वाले मजदूरों को अवकाश दे दिया जाता है। लेकिन उस अवकाश वाले दिन ऐसा नहीं होता कि पूरी फैक्टरी सुनसान हो जाती है, बल्कि फैक्टरी की देख रेख और उसकी सुरक्षा ब्यवस्था के लिए वहाॅ पर चौबीसों घंटे सिक्योरिटी गार्ड्स रहते हैं तथा फैक्टरी स्टाफ के भी कई मेंबर फैक्टरी में रहते हैं।" इतना कहने के बाद अजय सिंह एक पल रुका फिर कुछ सोच कर बोला__"अगर तुम्हारा ख़याल ये है इंस्पेक्टर कि इन्हीं सब लोगों में से ही किसी ने फैक्टरी में आग लगाई हो सकती है तो तुम्हारा ख़याल ग़लत है। क्योकि ये सब मेरे सबसे ज्यादा फरोसेमंद आदमी हैं जिनकी ईमानदारी पर मुझे लेस मात्र भी शक नहीं है।"

"अपने आदमियों पर भरोसा करना बहुत अच्छी बात है ठाकुर साहब।" रितू ने कहा__"लेकिन अंधा विश्वास करना कोई सबझदारी नहीं है। ख़ैर, तो आपके कहने का मतलब है कि फैक्टरी से रिलेटेड किसी भी ब्यक्ति ने फैक्टरी में आग नहीं लगाई हो सकती?"

"बिलकुल।" अजय सिंह ने जोर देकर कहा__"इन पर मेरा ये भरोसा ही है वर्ना अगर भरोसा नहीं होता तो मैं पहले ही इन सब पर इस सबके लिए शक ज़ाहिर करता और तुम्हारे पुलिस डिपार्टमेंट से इस बारे में तहकीकात करने की बात कहता। और एक पल के लिए अगर मैं ये मान भी लूॅ कि मेरे आदमियों में से ही किसी ने ये काम किया हो सकता है तब भी ये साबित नहीं हो सकता। क्योकि अवकाश वाले दिन फैक्टरी में ताला लगा होता है और बाकी के फैक्टरी स्टाफ मेंबर फैक्टरी से अलग अपनी अपनी डेस्क या केबिन में होते हैं। यहाॅ पर अगर ये तर्क दिया जाए कि अवकाश से पहले ही या फैक्टरी में ताला लगने से पहले ही किसी ने ऐसा कुछ कर दिया हो जिससे फैक्टरी के अंदर आग लग जाए तब भी ये तर्कसंगत नहीं है। क्योकि ये तो हर स्टाफ मेंबर जानता है कि फैक्टरी में हुए किसी भी हादसे से सबसे पहले उन्हीं पर ही शक किया जाएगा, उस सूरत में उन पर कड़ी कार्यवाही भी की जाएगी और अंततः वो पकड़े ही जाएॅगे। इस लिए कोई भी स्टाफ मेंबर जानबूझ कर अपने ही पैर में कुल्हाड़ी मार लेने वाला काम करेगा ही नहीं।"

"आपके तर्क अपनी जगह बिलकुल ठीक हैं ठाकुर साहब।" रितु ने एक हाॅथ में पकड़े हुए पुलिसिया रुल को अपने दूसरे हाॅथ की हॅथेली पर हल्के से मारते हुए कहा__"अब इसी बात को अपने फैक्टरी स्टाफ के नज़रिये से देख कर ज़रा ग़ौर कीजिए। कहने का मतलब ये कि मान लीजिए कि मैं ही वो फैक्टरी की स्टाफ मेंबर हूॅ जिसने फैक्टरी में आग लगाई है और मैं ये बात अच्छी तरह जानती हूॅ कि मेरे द्वारा किए गए काण्ड से आपका शक सबसे पहले मुझ पर ही जाएगा जो कि स्वाभाविक ही है, इस लिए आपके मुताबिक मैं ये काम नहीं कर सकती, क्योंकि सबसे पहले मुझ पर ही शक जाने से मैं फॅस जाऊॅगी, ये आप सोचते हैं। जबकि मैंने आपकी सोच के उलट ये काम कर ही दिया है और आप सोचते रहें कि मैंने ये काम नहीं किया हो सकता।"

"दिमाग़ तो तुमने काबिले-तारीफ़ लगाया है इंस्पेक्टर।" अजय सिंह ने मुस्कुराकर कहा__"यकीनन तुमने दोनो पहलुओं के बारे में बारीकी से सोच कर तर्कसंगत विचार प्रकट किया है लेकिन ये एक संभावना मात्र ही है, कोई ज़रूरी नहीं कि इसमें कोई सच्चाई ही हो।"

"सच्चाई का ही तो पता लगाना है ठाकुर साहब।" रितु ने कहा__"और उसके लिए हर किसी के बारे में दोनों पहलुओं पर सोचना ही पड़ेगा। ख़ैर, मुझे ऐसा लगता है कि आप ही इस प्रकार से सोच विचार नहीं करना चाहते, जबकि ऐसा होना नहीं चाहिए। ये सोचने वाली बात है।"

अजय सिंह ये सुन कर एक पल के लिए गड़बड़ा सा गया। फिर तुरंत ही सहल कर बोला__"ऐसा कुछ नहीं है इंस्पेक्टर। मैं तो बस इस लिए नहीं सोच विचार कर रहा क्योंकि मेरे हिसाब से इस सबका रिजल्ट पहले निकाला जा चुका है।"

अजय सिंह की इस बात से रितू ने कुछ न कहा बल्कि बड़े ग़ौर से अपने पिता के चेहरे की तरफ देखती रही। ऐसा लगा जैसे कि वह अपने पिता के चेहरे पर उभर रहे कई तरह के भावों को समझने की कोशिश कर रही हो। वहीं अजय सिंह ने जब अपनी बेटी को अपनी तरफ इस तरह गौर से देखते हुए देखा तो उसे बड़ा अजीब सा महसूस हुआ। उससे नज़रें मिलाने में उसकी हिम्मत जवाब देने लगी। उसे लगा कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी बेटी उसके चेहरे के भावों को पढ़ कर ही सारा सच जान गई हो। इस एहसास ने उसे अंदर तक कॅपकॅपा कर रख दिया। बड़ी मुश्किल से उसने खुद को सम्हालते हुए कहा__"क्या हुआ इंस्पेक्टर, इस तरह क्यों देख रही हो मुझे? अपनी कार्यवाही को आगे बढ़ाओ।"

"देख रही हूॅ कि आपके चेहरे पर उभरते हुए अनगिनत भाव किस बात की गवाही दे रहे हैं?" रितू ने अजीब से भाव से कहा।
"क क्या मतलब??" अजय सिंह बुरी तरह चौंका था।

"जाने दीजिए।" रितू ने कहा__"देखिए फारेंसिक डिपार्टमेंट वाले भी आ गए। आइए फैक्टरी के अंदर चलते हैं।"

अजय सिंह एकाएक अंदर ही अंदर बुरी तरह घबरा सा गया। उसे तो लगने लगा था कि बातें अब तक उसके पक्ष में ही हैं और इतनी पूछताॅछ के बाद कार्यवाही बंद कर दी जाएगी। लेकिन उसे अब महसूस हुआ कि ये सब तो महज एक औपचारिक पूछताॅछ थी असली छानबीन तो अब शुरू होगी।

फाॅरेंसिक डिपार्टमेंट की टीम आ चुकी थी तथा खोजी दस्ता भी। गाड़ियों से निकल कर सब बाहर आ गए। अजय सिंह उस वक्त और बुरी तरह चौंका जब गाड़ियों के अंदर से कुछ कुत्ते बाहर निकले। अजय सिंह को समझते देर न लगी कि ये कुत्ते इस सबकी छानबीन मे उन सबकी सहायता के लिए ही हैं।

पल भर में ही अजय सिंह की हालत ख़राब हो गई। इस सबके बारे में उसने ख्वाब तक में न सोचा था। आज पहली बार उसे लगा कि अपनी बेटी रितू को पैदा करके उसने बहुत बड़ी भूल की थी।

दोस्तो अपडेट हाज़िर है......
 
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अपडेट...........《 17 》

अब तक......

"देख रही हूॅ कि आपके चेहरे पर उभरते हुए अनगिनत भाव किस बात की गवाही दे रहे हैं?" रितू ने अजीब से भाव से कहा।
"क क्या मतलब??" अजय सिंह बुरी तरह चौंका था।

"जाने दीजिए।" रितू ने कहा__"देखिए फारेंसिक डिपार्टमेंट वाले भी आ गए। आइए फैक्टरी के अंदर चलते हैं।"

अजय सिंह एकाएक अंदर ही अंदर बुरी तरह घबरा सा गया। उसे तो लगने लगा था कि बातें अब तक उसके पक्ष में ही हैं और इतनी पूछताॅछ के बाद कार्यवाही बंद कर दी जाएगी। लेकिन उसे अब महसूस हुआ कि ये सब तो महज एक औपचारिक पूछताॅछ थी असली छानबीन तो अब शुरू होगी।

फाॅरेंसिक डिपार्टमेंट की टीम आ चुकी थी तथा खोजी दस्ता भी। गाड़ियों से निकल कर सब बाहर आ गए। अजय सिंह उस वक्त और बुरी तरह चौंका जब गाड़ियों के अंदर से कुछ कुत्ते बाहर निकले। अजय सिंह को समझते देर न लगी कि ये कुत्ते इस सबकी छानबीन मे उन सबकी सहायता के लिए ही हैं।

पल भर में ही अजय सिंह की हालत ख़राब हो गई। इस सबके बारे में उसने ख्वाब तक में न सोचा था। आज पहली बार उसे लगा कि अपनी बेटी रितू को पैदा करके उसने बहुत बड़ी भूल की थी।
अब आगे......


इंस्पेक्टर रितू के निर्देशानुसार पुलिस और बाॅकी विभाग की टीम्स फैक्टरी की तरफ बढ़ चली, और साथ ही बढ़ चली थी अजय सिंह की हृदय गति। हलाॅकि उसके साथ आए बाॅकी सब नार्मल थे। प्रतिमा और अभय के चेहरे पर गंभीरता के भाव ज़रूर थे किन्तु ये दोनो अजय सिंह की तरह अपनी हालत से लाचार या परेशान नहीं थे।

छानबीन करने आई बाॅकी सब टीमों के पीछे पीछे अजय, प्रतिमा व अभय भी चल रहे थे किन्तु अजय सिंह के कदम बड़ी मुश्किल से उठ रहे थे।

"सब ठीक हो जाएगा अजय।" सहसा प्रतिमा ने अजय की हालत देख उसे दिलाशा देने की गरज से कहा__"अब तो हमारी बेटी ने खुद ही इस केस को अपने हाॅथ में ले लिया है। मुझे पूरा यकीन है कि वो सब कुछ पता कर लेगी। हमारी फैक्टरी में आग लगाने के पीछे तथा हमें बरबाद करने के पीछे जिस किसी का भी हाॅथ होगा वह उसे ज़रूर पकड़ लेगी। तुम बस खुद को सम्हालो और अपनी ऐसी शकल न बनाए रखो।"

"भाभी बिलकुल ठीक कह रही हैं बड़े भइया।" अभय ने कहा__"आपको अब इस तरह परेशान होने की कोई ज़रूरत नहीं है। यकीनन रितू बेटी के चलते सब कुछ ठीक हो जाएगा। मुझे अपनी भतीजी पर गर्व है कि उसने पुलिस फोर्स ज्वाइन किया और ज्वाइन करते ही उसे अपनी ही फैक्टरी में लगी आग का ये केस मिल गया। मुझे उसकी काबिलियत पर पूरा भरोसा है। आप बेफिक्र हो जाइए भइया...इवरीथिंग विल वी आलराइट।"

अजय सिंह इन दोनो को भला क्या कहता??? वह भला क्या कहता कि वह किस बात से परेशान है? वह भला क्या कहता कि जिस भतीजी पर वह गर्व कर रहा है उसकी उसी भतीजी की वजह से आज वह पल पल इस हालत से मरा जा रहा है। हालात ने कितना बेबस व लाचार बना दिया था उसे कि सक्षम होने के बावजूद भी वह कुछ नहीं कर सकता था। हिन्दू धर्म के जितने भी देवी देवताओं का उसे पता था उसने उन सबको मन ही मन याद करके उनसे ये फरियाद कर डाली थी कि ये केस तथा ये छानबीन बस यहीं पर रुक जाए मगर ऐसा होता उसे अब तक नज़र नहीं आया था। इतना बेबस तथा इतना परेशान आज से पहले वह अपनी ज़िन्दगी में कभी न हुआ था। उसने तो ये तक सोच लिया था कि अगर ये छानबीन रुक जाए तथा ये केस बंद हो जाए तो वह अब से इस गैर कानूनी काम को करने से हमेशा के लिए तौबा कर लेगा। मगर ये भी सच है न दोस्तो कि जब हम किसी चीज़ के बीज बो चुके होते हैं तो फिर बाद में हमें उस बीज के द्वारा उत्पन्न हुई फसल को काटना भी पड़ता है या उस बीज से उग आए फल को खाना भी पड़ता है। यही नियति बन गई थी अजय सिंह की, मगर अब वह अपने ही द्वारा बोये हुए बीज से उत्पन्न हुए फल को खाना नहीं चाहता था।

उधर फैक्टरी के इंट्री गेट पर लगे ताले को पुलिस के एक हवलदार ने अपनी जेब से चाभी निकाल कर खोला। ताला खोलने के बाद भारी भरकम लोहे के गेट को दो आदमी की मदद से खोला गया। गेट के खुलते ही सब अंदर की तरफ बढ़ गए। पुलिस के साथ आए खोजी कुत्ते भी एक पुलिस वाले के हाथ में थमी जंजीर के सहारे फैक्टरी के अंदर चले गए। ये लिखने की आवश्यकता नहीं कि इन सबके पीछे अजय, प्रतिमा व अभय भी अंदर चले गए।

ये एक बहुत बड़ा फार्म हाउस हुआ करता था पहले। अजय सिंह ने जब इस बिजनेस की शुरुआत की थी तो किसी दूसरे सेठ की वर्षों से बंद कपड़ा फैक्टरी को सस्ते दामों में खरीदा था। (ये सब बातें कहानी के पहले या दूसरे अपडेट में बताई जा चुकी हैं) उस समय ये कपड़ा फैक्टरी शहर के बीच ही बनी हुई थी। कुछ सालों बाद जब अजय सिंह की इस बिजनेस से अच्छे खासे मुनाफे के रूप में तरक्की हुई तो उसने इस फैक्टरी को नये सिरे से तथा नई मशीनों के साथ शुरू करने का विचार किया। अजय सिंह क्योंकि बहुत ही लालची व महत्वाकांक्षी आदमी था, और बढ़ती आय के साथ उसकी बुरी आदतों में भी इज़ाफा हुआ इस लिए पैसे के लिए वह उन रास्तों को भी अपना लिया जिसे गैर कानूनी कहा जाता है। इस रास्ते में उसके कई अपने गैर कानूनी लोग भी थे। किन्तु गैर कानूनी काम में रिश्क बहुत था तथा शहर के बीच उस छोटी सी फैक्टरी में इस काम को अंजाम देने में आसानी नहीं होती थी। कभी भी लोगों के बीच खुद की असलियत सामने आ जाने का खतरा बना रहता था। इस लिए उसने बहुत सोच समझ कर शहर से बाहर एक बहुत बड़ी ज़मीन ख़रीदी तथा वहाॅ पर इसने नये तरीके से फैक्टरी का निर्माण किया। फैक्टरी काफी बड़ी थी तथा उसके नीचे एक बड़ा बेसमेंट भी बनवाया गया था जो सिर्फ गैर कानूनी चीज़ों के उपयोग में ही आता था। यहाॅ पर उसे किसी चीज़ का खतरा नहीं था। फैक्टरी में मजदूरों को हप्ते में एक दिन अवकाश देने के पीछे भी उसका एक मकसद था। वो मकसद ये था कि अवकाश वाले दिन ही वह स्वतंत्र रूप से अपने गैर कानूनी धंधे को चलाता था। जिसके बारे में कभी किसी को भनक तक न लगी थी। फैक्टरी को बहुत सोच समझ कर ही बनवाया गया था।
फैक्टरी के अंदर सिर्फ मशीनें थी जहाॅ पर मजदूर काम करते थे, जबकि फैक्टरी के आला अफसर या बाॅकी स्टाफ फैक्टरी से दूर कुछ फाॅसले पर बने एक बड़े से आफिस में होते थे।

अजय सिंह ने कदाचित ख़्वाब में भी न सोचा था कि कभी ऐसा भी समय उसके जीवन में आ जाएगा जब उसकी इस विसाल फैक्टरी में आग लग जाएगी और इस सबकी छानबीन खुद उसकी ही बेटी पुलिस इंस्पेक्टर बन कर करेगी। कानून का डर उसे कभी नहीं था क्योंकि उसने कानून के नुमाइंदों को अपने वश में कर लिया था। हर महीने वह अच्छी खासी रकम पुलिस के आला अफसरों तक पहुॅचवा देता था। उसके मंत्री तक से अच्छे संबंध थे इस लिए उसे इस धंधे में किसी का कोई डर नहीं था। मगर होनी को कौन टाल सकता था भला? होनी तो अटल होती है, बिना बताए तथा बिना किसी सूचना के वो अपना काम कर डालती है। यही अजय सिंह के साथ हुआ था।

ख़ैर ये सब तो बीती बातें हैं दोस्तो, आइए हम सब वर्तमान की तरफ चलते हैं और देखते हैं कि आगे क्या हो रहा है?

फैक्टरी के अंदर का नज़ारा ही कुछ अलग था। जैसा कि आप सब जानते हैं कि फैक्टरी में भीषण आग लगी हुई थी जिसमें सब कुछ जल कर खाक़ में मिल चुका था। अंदर हर चीज़ कोयला बन चुकी थी। हर जगह पानी में सनी हुई राख तथा टूटे हुए बहुत से टुकड़े पड़े थे। कुछ पल के लिए तो रितू को भी समझ न आया कि इस राख में वह क्या तलाश करे? किन्तु कुछ तो करना ही था, केस रिओपेन हुआ था। इस लिए बिना किसी नतीजे के वह बंद नहीं हो सकता था। ऊपर से आदेश था कि छानबीन अच्छे से होनी चाहिए।

पुलिस के खोजी कुत्ते तथा फाॅरेंसिक डिपार्टमेंट के लोग अपने अपने काम में लग गए। खुद रितू भी वहाॅ की हर चीज़ को बारीकी से देख देख कर जाॅच करने लगी। जबकि इधर अजय, प्रतिमा व अभय चुपचाप उन सबकी कार्यप्रणाली को देखते रहे।

बड़ी बड़ी मशीनों पर जले हुए कपड़ों की राख तथा टुकड़े लिपटे हुए थे। कहीं कहीं पर पिघले हुए शीशे एवं प्लास्टिक नज़र आ रहे थे। अजय सिंह ये सब होने के बाद पहली बार ये सब ध्यान से देख रहा था तथा साथ ही अंदर ही अंदर दुखी भी हो रहा था। कुछ भी हो आखिर उसकी मेहनत का पैसा था वह, फिर चाहे गैर कानूनी वाला हो या फिर सच्चाई वाला।

"मैडम, यहाॅ पर कुछ है।" सहसा एक हवलदार रितू को दूर से ही चिल्लाते हुए कहा।

रितु के साथ साथ सबके कान खड़े हो गए। अजय सिंह की बढ़ी हुई धड़कन मानों उसे रुकती हुई प्रतीत हुई। चेहरे पर तुरंत ही ढेर सारा पसीना उभर आया, तथा चेहरा भय व घबराहट की वजह से पीला पड़ता चला गया। उसने जल्दी से खुद को सम्हाला। अपने दाहिने हाॅथ में लिए रुमाल से उसने तुरंत ही अपने चेहरे का पसीना पोंछा और सरसरी तौर पर इधर उधर देखा। प्रतिमा उसे देख कर तुरंत ही उसके करीब गई तथा हौले से पूछा__"क्या बात है अजय, तुम इतना परेशान और घबराए हुए क्यों लग रहे हो?"

"म मैं क कहाॅ परेशान हूॅ?" अजय सिंह हकलाते हुए बोला__"मैं ठीक हूॅ? ऐसा क्यों लगता है तुम्हें कि मैं परेशान व घबराया हुआ हूॅ?"

प्रतिमा ने उसे बड़े ग़ौर से देखा, फिर कहा__"मुझे ऐसा क्यों लगता है अजय कि जैसे तुम मुझसे कुछ छुपा रहे हो? या फिर ऐसा कि तुम किसी बात से इस लिए घबरा रहे हो कि किसी को वो बात पता न चल जाए।"

अजय सिंह हड़बड़ा गया, आॅखें फाड़े प्रतिमा को देखने लगा। मन में विचार उभरा 'बेटी क्या कम थी जो अब उसकी माॅ भी मेरी जान लेने पर उतारू हो गई है'।

"ऐसे क्यों देख रहे हो मुझे?" प्रतिमा ने कहा__"क्या मैंने कुछ ग़लत कह दिया है?"
"देखो प्रतिमा।" अजय सिंह ने खुद को सम्हाल कर कहा__"मैं इस वक्त किसी से कुछ नहीं कहना चाहता, इस लिए बेहतर होगा कि तुम भी मुझसे कोई सवाल जवाब न करो।"

"मैं तुम्हारी पत्नी हूॅ अजय।" प्रतिमा ने एकाएक अधीरता से कहा__"तुम्हें इस तरह परेशानी की हालत में नहीं देख सकती। तुम जानते हो कि हर काम में मैं तुम्हारे साथ हूॅ, फिर चाहे वो काम कैसा भी क्यों न हो। तुम्हारी खुशी के लिए हर वो काम कर जाती हूॅ जिसे करने का तुम मुझसे कहते हो। मैं ये भी जानती हूॅ कि तुम मुझसे कोई भी बात नहीं छुपाते फिर ऐसी क्या बात हो गई है जिसे तुम मुझसे छुपा कर खुद अंदर ही अंदर घुटे जा रहे हो?"

"ऐसी कोई बात नहीं है।" अजय सिंह ये सोच कर घबराया जा रहा था कि कहीं कोई ये सब बातें सुन न ले, इस लिए वह बोला__"अब चुप हो जाओ प्लीज।"

"अगर ऐसी कोई बात नहीं है तो यही बात तुम मेरे सिर पर हाॅथ रख कर कहो।" प्रतिमा ने कहने साथ ही अजय सिंह का एक हाॅथ पकड़ कर अपने सिर पर रख लिया।

"ये क्या पागलपन है यार?" अजय सिंह ने तुरंत ही प्रतिमा के सिर से अपना हाॅथ एक झटके में खींच कर थोड़ी ऊॅची आवाज़ में कहा था। उसकी आवाज़ सुन कर अभय का ध्यान उनकी तरफ गया तो वह सीघ्र ही उनके पास आकर ब्याकुलता से बोला__"क्या हुआ भइया? कुछ परेशानी है क्या?"

"न नहीं छोटे।" अजय सिंह मन ही मन झुंझला उठा था किन्तु प्रत्यक्ष मे उसने यही कहा__"ऐसी कोई बात नहीं है।"

अभय ने उसके चेहरे की तरफ कुछ पल देखा फिर वह वापस अपनी जगह पर आकर खड़ा हो गया। जबकि अभय के जाते ही अजय सिंह ने प्रतिमा की तरफ देख कर कहा__"फार गाड शेक..अब कुछ मत बोलना।"

"ये तुम बिलकुल भी अच्छा नहीं कर रहे हो अजय।" प्रतिमा ने कहा__"अगर कोई बात है तो तुम्हें मुझसे बेझिझक बता देना चाहिए, हो सकता है कि मैं तुम्हारी कोई मदद कर सकूॅ।"

"अगर कोई बात है भी तो।" अजय सिंह ने गहरी साॅस ली__"तो इस वक्त नहीं बता सकता, बट बिलीव मी तुम्हें सब कुछ ज़रूर बताऊॅगा। अब जाओ यहाॅ से और मुझे अकेला मेरे हाल पर छोंड़ दो।"

प्रतिमा ने कुछ देर अजय की आंखों में देखा और फिर पलट कर अभय के पास आ गई। उसके मन में हज़ारों विचार किसी बिच्छू की तरह डंक मार मार कर उछल कूद कर रहे थे।

उधर हवलदार के चिल्लाने पर रितू तेज़ी से उसके करीब पहुॅची। रितू के आते ही हवलदार ने सामने की तरफ इशारा किया। रितू ने हवलदार की बताई हुई जगह को देखा तो चौंक गई। दरअसल पिघले हुए प्लास्टिक के नीचे कोई चीज़ थी लाल रंग की। रितू फर्स पर बैठ कर उसे ध्यान से देखने लगी। अपने हाॅथों में ग्लव्स पहन कर उसने उस लाल रंग की चीज़ को उठा लिया। अभी वह उसे ध्यान से देख ही रही थी कि फाॅरेंसिक टीम का एक ब्यक्ति उसके नज़दीक आकर बोला__"मैडम, यहाॅ पर एक बेसमेंट भी है।"

"क्या??" रितू चौंकी।
"यस मैडम।" उस ब्यक्ति ने कहा__"खोजी कुत्ते के द्वारा पता चला है।"

" चलो दिखाओ।" रितू तुरंत ही उठकर चल दी। कुछ देर में ही वो ब्यक्ति रितू को लेकर उस जगह पहुॅचा। रितू ने देखा सचमुच वो तहखाना ही था। किन्तु वह ये देख कर चौंकी कि वह अस्त ब्यस्त हुआ लग रहा था जैसे किसी चीज़ से उसे उड़ाया गया हो। उसे तुरंत ही अपने हाॅथ में ली हुई चीज़ का खयाल आया। उसने अपने हाॅथ में ली हुई चीज़ को उस ब्यक्ति को दिखाकर पूछा__"इस चीज़ को देखो और बताओ ये क्या है?"

"अजयययययय।" अचानक ही एक ज़ोरदार चीख फिज़ा को चीरती हुई सबके कानों से टकराई।

चीख बाहर से आई थी, रितू के साथ साथ सबने सुना किन्तु रितू बाहर की तरफ ये कह कर दौड़ पड़ी कि__"माॅम।"

यकीनन ये चीख प्रतिमा की ही थी। रितू ने बाहर आकर देखा उसकी माॅ और अभय चाचा उसके डैड के पास अजीब हालत में बैठे थे। अजय सिंह जमीन में पड़ा था। अभय ने तुरंत ही उसे अपनी गोंद मे लिटा लिया था।

"माॅम।" रितू करीब पहुॅचते ही बोली__"ये क्या हुआ? डैड इस तरह जमीन में कैसे?"
"पता नहीं बेटा अचानक ही खड़े खड़े धड़ाम से गिर गए।" प्रतिमा ने रोते हुए कहा__"शायद फैक्टरी की ये हालत देख इन्हें गहरा सदमा लगा है जिसके चलते ये चक्कर खाकर गिर गए हैं।"

अजय सिंह पानी से सनी राख पर गिरा था। जमीन में हर तरफ छोटे बड़े पत्थर भी पड़े थे जो अजय सिंह के सिर पर लगे थे और उसके सिर से खून बहने लगा था।

"इन्हें हास्पिटल लेकर जाना पड़ेगा रितू बेटा।" अभय ने कहने के साथ ही अजय सिंह को दोनो हाथों से पकड़ कर उठा लिया और तेज़ कदमों के साथ लोहें वाले गेट से बाहर निकल गया।

"मैं भी उनके साथ हास्पिटल जा रही हूं बेटी।" प्रतिमा ने कहा__"तुझे अपनी ड्यूटी करना है तो कर या तू भी अपने डैड के साथ चल।"

"साॅरी माॅम।" रितू की आॅख में आॅसू आ गए__"इस वक्त मैं आनड्यूटी पर हूॅ और केस के सिलसिले में यहाॅ अपनी टीम्स के साथ हूॅ इस लिए मैं डैड के साथ नहीं जा सकती। लेकिन डैड से कहना कि मुझे उनकी इस हालत से बहुत तकलीफ हो रही है।"

"अच्छी बात है।" प्रतिमा ने कहा और बाहर की तरफ दौड पड़ी। जबकि अपने आॅसू पोंछते हुए रितू पलटी और फैक्टरी के अंदर की तरफ बढ़ गई।

"मैडम ये तो किसी टाइम बम्ब के टुकड़े जैसा लगता है।" रितू के आते ही फारेंसिक टीम के उस आदमी ने कहा।
"क्या???" रितू उछल पड़ी__"ये क्या कह रहे हैं आप??"

"जी पक्के तौर पर तो नहीं कह सकता मगर ज्यादातर संभावना यही है।" उस आदमी ने कहा__"और अगर इस संभावना को सच मान लिया जाय तो ऐसा भी लगता है कि किसी टाइम बम्ब द्वारा ही इस बेसमेंट को उड़ाया गया है। बेसमेंट की हालत इस बात का सबूत है मैडम।"

रितू को उस आदमी की बात में सच्चाई के ढेर सारे अंश महसूस हुए। क्योकि बेसमेंट की हालत सचमुच ऐसी थी जैसे उसे बम्ब के द्वारा उड़ाया गया हो।

"अगर ऐसा है तो।" रितू ने कहा__"ये साबित हो गया कि फैक्टरी में लगी आग महज सार्ट शर्टिक से नहीं बल्कि किसी के द्वारा बम्ब से लगाई गई।"

"बिलकुल।" उस आदमी ने कहा।
"मतलब साफ है कि किसी ने टाइम बम्ब को तहखाने में फिट किया।" रितू कह रही थी__"और वो बम्ब अपने निर्धारित समय पर फट गया। बम्ब के फटते ही बेसमेंट उड़ गया और इसके साथ ही उसके अंदर से तेज़ी से आग का झोंका बाहर आकर यहाॅ चारो तरफ फैले कपड़ों और मशीनों से टकराया। कपड़ों पर लगी आग ने तेज़ी से अपना काम किया और देखते देखते सारी फैक्टरी में आग ने अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया।"

"निःसंदेह।" आदमी ने कहा__"और क्योंकि फैक्टरी बाहर से अवकाश के चलते बंद थी इस लिए जब तक किसी को पता चलता तब तक आग ने उग्र रूप धारण कर सबकुछ बरबाद कर दिया।"

"बेसमेंट के अंदर की क्या पोजीशन है?" रितू ने कहा__"अगर अंदर जाने लायक है तो चलकर जाॅच शुरू करते हैं। देखते हैं और क्या पता चलता है?"

कहने के साथ ही रितू और वो आदमी बेसमेंट के अंदर की तरफ देखने लगे। बेसमेंट के अंदर पुलिस और फाॅरेंसिक के कुछ लोग थे। रितू भी उनके बीच पहुॅच गई।

उधर अजय सिंह को आनन फानन में अभय ने कार में पिछली सीट पर प्रतिमा की गोंद में लिटाया और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठकर कार स्टार्ट की। लगभग बीस मिनट बाद वो सब हास्पिटल में थे।

अजय सिंह को तुरंत ही एक रूम में ले जाया गया और डाक्टर ने उसका चेकअप शुरू कर दिया।

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"निःसंदेह।" आदमी ने कहा__"और क्योंकि फैक्टरी बाहर से अवकाश के चलते बंद थी इस लिए जब तक किसी को पता चलता तब तक आग ने उग्र रूप धारण कर सबकुछ बरबाद कर दिया।"

"बेसमेंट के अंदर की क्या पोजीशन है?" रितू ने कहा__"अगर अंदर जाने लायक है तो चलकर जाॅच शुरू करते हैं। देखते हैं और क्या पता चलता है?"

कहने के साथ ही रितू और वो आदमी बेसमेंट के अंदर की तरफ देखने लगे। बेसमेंट के अंदर पुलिस और फाॅरेंसिक के कुछ लोग थे। रितू भी उनके बीच पहुॅच गई।

उधर अजय सिंह को आनन फानन में अभय ने कार में पिछली सीट पर प्रतिमा की गोंद में लिटाया और खुद ड्राइविंग सीट पर बैठकर कार स्टार्ट की। लगभग बीस मिनट बाद वो सब हास्पिटल में थे।

अजय सिंह को तुरंत ही एक रूम में ले जाया गया और डाक्टर ने उसका चेकअप शुरू कर दिया।
अब आगे.......


शाम होने से पहले पहले अजय सिंह को हास्पिटल से डिस्चार्ज कर दिया गया था। डाॅक्टर ने बताया था कि अजय सिंह को किसी गहन चिन्ता तथा किसी सदमे की वजह से चक्कर आया था। बाॅकी उन्हें कोई बीमारी नहीं है। हास्पिटल से डिस्चार्ज होने के बाद अजय सिंह अपनी पत्नी प्रतिमा तथा छोटे भाई अभय के साथ सीधा हवेली ही आ गया था। फैक्टरी में हो रही छानबीन का क्या नतीजा निकला ये उसे पता नहीं था। हलाॅकि उसका पीए और बाॅकी स्टाफ फैक्टरी में ही थे। हास्पिटल से हवेली लौटते समय सारे रास्ते अजय सिंह ख़ामोश रहा। अभय सिंह कार को ड्राइव कर रहा था जबकि अजय सिंह व प्रतिमा कार की पिछली सीट पर बैठे थे।

प्रतिमा ने इस समय अभय की मौजूदगी में अजय सिंह से कुछ भी पूॅछना उचित नहीं समझा था इस लिए वह भी चुप ही रही। ये अलग बात है कि उसके दिलो दिमाग़ में विचारों का बवंडर चल रहा था।

हवेली पहुॅच कर वो सब कुछ देर ड्राइंग रूम में बैठे रहे। अभय सिंह थोड़ी देर बाद अपने घर की तरफ चला गया। अजय सिंह व प्रतिमा का बेटा शिवा इस वक्त हवेली में नहीं था।

सोफे पर बैठा अजय सिंह खामोश था किन्तु अब उसके चेहरे पर गहन सोच और चिन्ता के भाव फिर से नुमायाॅ होने लगे थे। उसका ध्यान फैक्टरी में हो रही छानबीन पर ही लगा हुआ था।

"इस तरह चिन्ता करने से कुछ नहीं होगा अजय।" प्रतिमा अपने सोफे से उठकर अजय वाले सोफे पर उसके करीब ही बैठ कर बोली__"अब जो होना है वो तो होकर ही रहेगा। हलाॅकि मैं ये नहीं जानती कि ऐसी कौन सी बात है जिसकी वजह से तुमने अपनी ये हालत बना ली है किन्तु इतना ज़रूर समझ गई हूॅ कि ये चिन्ता या ये सदमा सिर्फ फैक्टरी में आग लगने से हुए नुकसान बस का नहीं है, बल्कि इसकी वजह कुछ और ही है।"

अजय सिंह कुछ न बोला, बल्कि ऐसा लगा जैसे उसने प्रतिमा की बात सुनी ही न हो। वह पूर्वत उसी तरह सोफे पर बैठा रहा। जबकि उसके चेहरे की तरफ ग़ौर से देखते हुए तथा उसके दोनो कंधों को पकड़ कर झिंझोड़ते हुए प्रतिमा ने ज़रा ऊॅचे स्वर में कहा__"होश में आओ अजय, क्या हो गया है तुम्हें? प्लीज मुझे बताओ कि ऐसी कौन सी बात है जिसकी चिन्ता से तुमने खुद की ऐसी हालत बना ली है?"

प्रतिमा के इस प्रकार झिंझोड़ने पर अजय सिंह चौंकते हुए गहन सोच और चिन्ता से बाहर आया। उसने अजीब भाव से अपनी पत्नी की तरफ देखा फिर एकाएक ही उसके चेहरे के भाव बदले।

"इस छानबीन को होने से रोंक लो प्रतिमा।" अजय सिंह भर्राए से स्वर में कहता चला गया__"अपनी बेटी से कहो कि वह फैक्टरी की छानबीन न करे, वर्ना सब कुछ बरबाद हो जाएगा। ये सब रोंक लो प्रतिमा, मैं तुम्हारे पैर पड़ता हूॅ। प्लीज रोंक लो अपनी बेटी को।"

प्रतिमा हैरान रह गई अपने पति का ये रूप देख कर। किसी के सामने न झुकने वाला तथा किसी से न डरने वाला और न ही किसी से हार मानने वाला इंसान इस वक्त दुनिया का सबसे कमज़ोर व दीन हीन नज़र आ रहा था। प्रतिमा को कुछ पल तो समझ ही न आया कि वह क्या करे किन्तु फिर तुरंत ही जैसे उसे वस्तुस्थित का आभास हुआ।

"कैसे इस सबको रोंकूॅ अजय?" प्रतिमा ने अधीरता से कहा__"तुमने तो मुझे कुछ बताया भी नहीं कि बात क्या है? आज तक अपनी हर बात मुझसे शेयर करते रहे मगर ऐसी क्या बात थी जिसे तुमने मुझसे कभी शेयर करने के बारे में सोचा तक नहीं? क्या तुम ये समझते थे कि तुम्हारी किसी बात से मुझे कोई ऐतराज़ होता? या फिर तुम ये समझते थे कि मैं तुम्हें किसी काम को करने से रोंक देती?? तुम जानते हो अजय कि मैं तुमसे कितना प्यार करती हूॅ तथा ये भी जानते हो कि तुम्हारे कहने पर दुनियाॅ का हर नामुमकिन व असंभव काम करने को तुरंत तैयार हो जाती हूॅ, फिर वो काम चाहे जैसा भी हो। मगर इसके बावजूद तुमने मुझसे कोई बात छुपाई अजय। क्यों किया तुमने ऐसा?"

"मुझे माफ कर दो प्रतिमा।" अजय सिंह ने प्रतिमा के दोनो हाॅथों को थाम कर कहा__"मुझसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई। तुम चाहो तो इस सबके लिए मुझे जो चाहे सज़ा दे दो लेकिन इस सबको रोंक लो प्रतिमा...वर्ना बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा। मैं अपनी ही बेटी की नज़रों में गिर जाऊॅगा, उसका और उसके कानून का मुजरिम बन जाऊॅगा।"

"ऐसी क्या बात है अजय?" प्रतिमा ने झुॅझलाकर कहा__"आखिर तुम कुछ बताते क्यों नहीं? जब तक मुझे बताओगे नहीं तो कैसे मुझे समझ आएगा कि आगे क्या करना होगा मुझे?"

"क्या बताऊॅ प्रतिमा।" अजय सिंह ने हताश भाव से कहा__"और किन शब्दों से बताऊॅ? मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है।"

"भला ये क्या बात हुई अजय?" प्रतिमा ने उलझ कर कहा__"जो जैसा है उसे वैसा ही बताओ न।"

अजय सिंह ने एक गहरी साॅस ली। अंदाज़ ऐसा था उसका जैसे किसी जंग के लिए खुद को तैयार कर रहा हो।

"मुझसे वादा करो प्रतिमा।" सहसा अजय सिंह ने प्रतिमा का हाॅथ अपने हाॅथ में लेकर कहा__"कि मेरे द्वारा सब कुछ जानने के बाद तुम मुझसे न तो नाराज़ होओगी और ना ही मुझे ग़लत समझोगी।"

"ठीक है मैं वादा करती हूॅ।" प्रतिमा ने कहा__"अब बताओ क्या बात है??"

"म मैं अपने इस बिजनेस के साथ साथ ही।" अजय सिंह ने धड़कते दिल के साथ कहा__"एक और बिजनेस करता हूॅ प्रतिमा लेकिन वो बिजनेस गैर कानूनी है।"

"क क्या????" प्रतिमा बुरी तरह उछल पड़ी__"य..ये तुम क्या कह रहे हो अजय? तुम गैर कानूनी बिजनेस भी करते हो??"

"मुझे माफ कर दो प्रतिमा।" अजय सिंह ने भारी स्वर में कहा__"पर यही सच है। मैं शुरू से ही इस धंधे में था।"

प्रतिमा आश्चर्यचकित अवस्था में मुह और आॅखें फाड़े अजय सिंह को देखे जा रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि अजय सिंह गैर कानूनी काम भी करता है। कुछ देर तक वह अवाक् सी देखती रही उसे फिर एक गहरी साॅस लेते हुए गंभीरता से बोली__"क्यों अजय क्यों...आख़िर क्या ज़रूरत थी तुम्हें ऐसा काम करने की? तुम्हें तो पता था कि ऐसे काम का एक दिन बुरा ही नतीजा निकलता है। फिर क्यों किया ऐसा?? आखिर किस चीज़ की कमी रह गई थी अजय जिसके लिए तुम्हें गैर कानूनी काम भी करना पड़ गया??"

"ये सब मेरी ही ग़लती से हुआ है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा__"मेरी ही महत्वाकांछाओं के चलते हुआ है। मैं हमेशा इसी ख्वाहिश में रहा कि मेरे और मेरे बच्चों के पास धन दौलत व ऐश्वर्य की कोई कमी न हो। मेरा एक बहुत बड़ा नाम हो और सारी दुनियाॅ मुझे पहचाने। इसके लिए मैं कुछ भी करने को तैयार था, इस बारे में कभी नहीं सोचा कि मेरी इन चाहतों से कभी मुझे ऐसा भी दिन देखना पड़ सकता है।"

"अब क्या होगा अजय?" प्रतिमा ने कहा__"तुम्हारी ख्वाहिशों ने आज क्या सिला दिया है तुम्हें और तुम्हारे साथ साथ हम सबको भी। क्या होगा जब सबको ये मालूम होगा कि तुम गैर कानूनी धंधा भी करते हो?"

"मुझे और किसी की परवाह नहीं है प्रतिमा।" अजय सिंह बोला__"मुझे तो बस इस बात की चिन्ता है कि इस सबके बाद मैं अपनी ही बेटी की नज़रों में गिर जाऊॅगा। कानून के प्रति उसकी ईमानदारी और आस्था देख कर यही लगता है कि वह मुझे इस काम की वजह से जेल की सलाखों के पीछे भी डाल सकती है।"

"ये कैसे कह सकते हो तुम?" प्रतिमा ने चौंकते हुए कहा__"हमारी बेटी भला ऐसा कैसे कर सकती है?"
"वो यकीनन ऐसा ही कर सकती है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा__"क्यों कि फैक्टरी में हो रही छानबीन में उसे वो सब मिल जाएगा जो ये साबित करेगा कि मैं गैर कानूनी धंधा करता हूॅ।"

"तुम्हारे कहने का मतलब है कि फैक्टरी में ही तुमने अपने गैर कानूनी धंधों के सबूत छोंड़ रखे हैं?" प्रतिमा की धड़कनें रुकती सी प्रतीत हुई उसे__"और वो सब सबूत अब रितू के हाॅथ लग जाएंगे?"

"बिलकुल।" अजय सिंह के चेहरे पर चिंता के भाव थे__"यही सच है प्रतिमा। फैक्टरी में ही मैंने एक गुप्त तहखाना बनवाया हुआ था, और उसी तहखाने में मैं गुप्तरूप से अपना ये गैर कानूनी धंधा करता था। इस धंधे में कानून के द्वारा पकड़े जाने का मुझे कोई डर नहीं था क्योंकि मेरे संबंध कानून तथा मंत्रियों से थे। ये सब मेरे इस धंधे से होने वाले मुनाफे से हिस्सा पाते थे। अगर ये कहूॅ तो ग़लत न होगा कि इन्हीं लोगों की कृपा से मेरा ये धंधा चल रहा था।"

"अगर ऐसी बात है तो तुम्हें इतना परेशान और चिन्ता करने की क्या ज़रूरत है?" प्रतिमा ने कहा__"ये सब तुम रोंकवा भी तो सकते हो। कानून और मंत्रियों में तो सब तुम्हारे ही आदमी हैं, तो उनसे कह कर इस छानबीन को रुकवाया भी तो जा सकता है?"

"अब ऐसा नहीं हो सकता प्रतिमा।" अजय सिंह बोला__"क्योंकि इसके पहले जो छानबीन हुई थी वो मेरे अनुरूप हुई थी। उसमें सब मेरे ही आदमीं थे लेकिन अब जो छानबीन हो रही है उसमें मैं कुछ नहीं कर सकता।"

"क्यों?" प्रतिमा चौंकी__"क्यों नहीं कर सकते? अब क्या हो गया है ऐसा?"
"अब वो हुआ है प्रतिमा।" अजय सिंह ने गहरी साॅस छोंड़ी__"जिसके बारे में मैं कभी सोच भी नहीं सकता था।"

"क्या मतलब??" प्रतिमा हैरान।
"मतलब कि रातों रात सारे पुलिस डिपार्टमेंट को बदल दिया गया।" अजय सिंह कह रहा था__"पुलिस में कमिश्नर तक जो भी मेरे आदमी थे उन सबका तबादला कर दिया गया है। अब तुम समझ सकती हो कि इन हालात में मैं क्या कर सकता हूॅ। मंत्री से मदद माॅगी लेकिन उसने भी अपने हाॅथ खड़े कर लिए। मंत्री ने कहा कि वो कुछ नहीं कर सकता क्योंकि ये सब ऊपर हाई कमान के आदेश पर हो रहा है।"

"हे भगवान!" प्रतिमा चकित भाव से बोली__"ये तो बहुत ही सीरियस मामला हो गया है।"
"वही तो।" अजय सिंह ने कहा__"मुझे समझ में नहीं आ रहा कि ऐसा क्यों हो रहा है? आखिर क्या वजह है जो इस सबके लिए हाई कमान से आदेश दिया गया? आखिर किस वजह से रातों रात इस शहर के सारे पुलिस विभाग का तबादला कर दिया गया?"

"यकीनन अजय।" प्रतिमा ने कुछ सोचते हुए कहा__"ये तो बड़ा ही पेंचीदा मामला हो गया है। लेकिन रितु ने तो कहा था कि इस केस को उसने रिओपेन करवाया है, उस सूरत में मामले को इतना सीरियस नहीं होना चाहिए था। कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारी बेटी ने ही हाई कमान को किसी ज़रिये इस सबके लिए सूचित किया हो?"

"हो भी सकता है और नहीं भी?" अजय सिंह ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा।
"क्या मतलब?" प्रतिमा के माथे पर सिलवटें उभरी।

"साधारण रूप से अगर हम ये सोच कर चलें।" अजय सिंह बोला__"कि रितू ने सिर्फ अपने पिता की फैक्टरी में आग लगने से हुए भारी नुकसान के चलते ये सोच कर इस केस को रिओपेन करवाया है कि कदाचित ये सब हमारे किसी दुश्मन के द्वारा ही किया गया हो सकता है तो इस मामले की छानबीन साधारण तरीके से ही होती। लेकिन अगर हम ये सोचें कि हो सकता है रितू को किसी वजह से ये पता चला हो कि उसका बाप इस बिजनेस की आड़ में गैर कानूनी धंधा भी करता है तो यकीनन इस केस की छानबीन का ये मामला संगीन है।"

"बात तो तुम्हारी बिलकुल दुरुस्त है अजय।" प्रतिमा ने कहा__"लेकिन सवाल ये उठता है कि रितू को ये कैसे पता चल सकता है कि उसका बाप ये सब भी करता है??"

"संभव है कि पुलिस में आते ही थाने में उसने बारीकी से सभी फाइलों का अध्ययन किया हो?" अजय सिंह ने कहा__"उन्हीं फाइलों में कहीं उसे कोई ऐसा सबूत मिला हो जिससे उसे इस सबका पता चल गया हो। कानून में आस्था रखने वाली हमारी बेटी ने इस सबके पता चलते ही ये सोच लिया हो कि उसे अपने बाप को गैर कानूनी धंधा करने के जुर्म में गिरफ्तार करके जेल की सलाखों के पीछे डाल देना चाहिए।"

"ये सब तो ठीक है अजय।" प्रतिमा ने कहा__"लेकिन क्या ये संभव है कि किसी थाने में तुम्हारे खिलाफ कोई ऐसा सबूत फाइल के रूप में कहीं दबा हो सकता है? जैसा कि तुमने कहा था कि इसके पहले इस शहर में पुलिस महकमें में कमिश्नर तक की रैंक का कानूनी नुमाइंदा तुम्हारा ही आदमी था, तो क्या ये संभव है कि पुलिस के तुम्हारे ही आदमियों ने अपने थाने में कहीं तुम्हारे ही खिलाफ़ कोई सबूत बना कर रखा हुआ हो सकता था?"

"इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता।" अजय सिंह ने कहा__"ऐसा हो भी सकता है। संभव है किसी पुलिस के नुमाइंदे ने गुप्त रूप से मेरे खिलाफ़ किसी प्रकार का सबूत बना कर रखा रहा हो। आखिरकार पुलिस तो पुलिस ही होती है, वो न तो किसी की दोस्त हो सकती है और न ही दुश्मन।"

"इन सब बातों के बाद तो यही निष्कर्स निकलता है।" प्रतिमा ने गंभीरता से कहा__"कि हमारी बेटी को किसी वजह से अपने पिता के खिलाफ कोई सबूत मिला और अब वह पक्के तौर पर बारीकी से छानबीन करके कुछ और ठोस सबूत हासिल करना चाहती है जिससे उसे तुमको जेल की सलाखों के पीछे डालने में कोई अड़चन न हो सके।"

"हो सकता है प्रतिमा।" अजय सिंह ने कुछ सोचते हुए कहा__"लेकिन एक बात समझ में नहीं आ रही।"
"कौन सी बात अजय?" प्रतिमा ने ना समझने वाले भाव से अजय सिंह की तरफ देखते हुए कहा था।

"यही कि रातों रात सारे पुलिस डिपार्टमेंट का तबादला क्यों कर दिया गया?" अजय सिंह बोला__"ये छानबीन तो वैसे भी हो जाती। कोई भी पुलिस का अफसर इस छानबीन में किसी भी प्रकार का हस्ताक्षेप नहीं करता। फिर क्यों तबादला कर दिया गया सबका?"

"अगर इस बात को हम अपनी इंस्पेक्टर बेटी के हिसाब से सोचें तो संभव है उसी ने इस सबके लिए ऊपर हाई कमान को अर्जी लिख कर गुज़ारिश की हो या फिर इसकी माॅग की हो?" प्रतिमा ने संभावना ब्यक्त की__"क्योकि शायद उसे इस बात की खबर हो कि इस शहर का सारा पुलिस विभाग तुम्हारे हाॅथों में है।"

"नहीं प्रतिमा।" अजय सिंह ने मजबूती से अपने सिर को इंकार के भाव से हिलाते हुए कहा__"रातों रात शहर के सारे पुलिस विभाग का तबादला कर देना कोई मामूली बात नहीं है, और उस सूरत में तो बिलकुल भी नहीं जबकि हमारी बेटी ने अभी अभी पुलिस फोर्स ज्वाइन किया हो। किसी भी नये पुलिस वाले के लिए इतनी दूर तक पहुॅच रखना नामुमकिन है प्रतिमा।
पुलिस में रह कर बहुत दिन तक पहले पुलिस के दाॅव पेंच सीख कर उसका अनुभव करना पड़ता है। मैं ये बात मानता हूॅ कि हमारी बेटी ने पुलिस में आते ही किसी मॅझे हुए पुलिस अफसर की भाति पुलिसिया तौर तरीका अपना लिया है और उसका अंदाज़ भी अनुभवी लगता है लेकिन फिर भी इस बात को हजम करना मुश्किल है कि उसने ही शहर के सारे पुलिस विभाग को बदल देने की अपील की हो सकती है।"

"तो फिर।" प्रतिमा ने कहा__"तुम्हारे ख़याल से ये सब किसने किया हो सकता है?"
"यही तो समझ नहीं आ रहा।" अजय सिंह ने कहा__"दिमाग़ की नशें दर्द करने लगी हैं इस सबके बारे में सोचते सोचते।"

"तुम एक शख्स को तो भूल ही गए हो अजय।" प्रतिमा ने मानो धमाका करने वाले भाव से कहा__"ये सब उसने भी तो किया हो सकता है?"

"किसकी बात कर रही हो तुम?" अजय सिंह चौंका था।
"तुम्हारे भतीजे विराज की बात कर रही हूॅ मैं।" प्रतिमा ने कहा।

"वो साला इस मामले में कहाॅ से फिट होता है प्रतिमा?" अजय सिंह ने अजीब भाव से कहा।
"बात इस मामले में उसके फिट होने की नहीं है अजय।" प्रतिमा ने गहरी साॅस लेकर कहा__"बल्कि बात है ऐसे मामले में हर तरह की संभावना की। हमें भले ही लगता है कि विराज का इस मामले में कोई हाॅथ नहीं हो सकता किन्तु सवाल है कि क्यों नहीं हो सकता उसका हाॅथ?"

"बेवकूफों की तरह बात मत करो प्रतिमा।" अजय सिंह ने झुंझलाते हुए कहा__"मामले की गंभीरता और उसकी पेंचीदगियों को समझो। उसकी कोई औकात नहीं हो सकती इस सबमें शहर के सारे पुलिस विभाग का तबादला करवा देने की और न ही ये औकात हो सकती है कि वह सीधा हाई कमान से इस सबके लिए बात कर सके। तुम्हारा दिमाग़ फिर गया लगता है।"

"चलो मान लिया कि उसकी कोई औकात नहीं हो सकती इन सब कामों को करवाने की।" प्रतिमा ने ज़ोर देकर कहा__"मगर क्या ये नहीं हो सकता कि उसने ही हमारी फैक्टरी में बम्ब लगा कर सब कुछ आग के हवाले कर दिया हो? तुम हर बार उसकी औकात की बात करके उसे तुच्छ समझ लेते हो अजय जबकि उसे तुच्छ समझ लेने का भी तुम्हारे पास कोई सबूत नहीं है। जबकि कम से कम उसकी इतनी तो औकात हो ही सकती है कि वह फैक्टरी में किसी भी तरह ही सही लेकिन आग लगा सके।"

अजय सिंह खामोश रह गया। प्रतिमा की बातों में उसे सौ मन की सच्चाई नज़र आई। और इस एहसास ने ही उसे हिला कर रख दिया कि ये सब उसके भतीजे विराज ने किया हो सकता है।

"ये तो तुम भी अच्छी तरह समझते हो अजय कि वो हमें अपना सबसे बड़ा दुश्मन समझता है।" प्रतिमा कह रही थी__"उसे लगता है कि हमने उसे और उसके परिवार को बरबाद कर दिया है। इस लिए इस सबका प्रतिशोध लेने के लिए वह क्या नहीं कर सकता? वह हर उस काम को कर गुज़रने पर अमादा हो सकता है जिस काम से वह हमारा बाल भी बाॅका कर सके।"

अजय सिंह कुछ कह न सका। किसी गहरी सोच में डूबा नज़र आने लगा था वह।

"तुमने कहा था कि तुम्हारे आदमी उन्हें ढूॅढ़ने के लिए मुम्बई की खाक़ छान रहे है।" प्रतिमा मजबूत लहजे में कहती जा रही थी__"जबकि आज तक तुम्हारे आदमियों के हाॅथ में उनसे संबंधित कोई छोटा सा सुराग़ भी नहीं लग सका। इस बारे में क्या कहोगे तुम, बताओ?"

"क्या कहूॅ यार?" अजय सिंह के चेहरे पर कठोर भाव उभरे__"जाने कहाॅ गुम हो गए हैं वो सब? उन सुअर की औलादों को ये ज़मीन खा गई है या आसमान निगल गया है। एक बार....सिर्फ एक बार मेरे हाॅथ लग जाएॅ फिर देखना क्या हस्र करता हूॅ मैं उन सबका।"

"मुझे नहीं लगता अजय कि तुम उन लोगों का कुछ कर लोगे।" प्रतिमा ने अजीब भाव से कहा__"जबकि लग ये रहा है कि वो कमीना रंडी की औलाद विराज हमारा ही बेड़ा गर्क़ कर रहा है।"

अभी ये सब बातें ही कर रहे थे कि बाहर से किसी के आने की आहट सुनाई दी। कुछ ही पल में इंस्पेक्टर रितू ड्राइंग रूम में दाखिल हुई। उसके चेहरे पर थकान के भाव गर्दिश करते नज़र आ रहे थे। अजय सिंह अपनी बेटी को देखकर घबरा सा गया। उसे लगा फैक्टरी की छानबीन में रितू को उसके काले कारनामों का सारा काला चिट्ठा मिल गया है और अब वह उसे गिरफ्तार करने आई है।

"आई एम साॅरी डैड।" रितू ने आते ही अजय सिंह का हाॅथ पकड़ कर तथा खेद भरे लहजे में कहा__"मैं आपके साथ हास्पिटल नहीं जा सकी। आप तो मेरी मजबूरी समझ सकते हैं डैड, उस वक्त मैं अपनी ड्यूटी को छोंड़ कर नहीं जा सकती थी आपके साथ। उस सूरत में तो हर्गिज़ नहीं जब किसी केस की छानबीन चल रही हो। एनीवे, अब आपकी तबियत कैसी है?"

अजय सिंह को समझ नहीं आ रहा था कि रितू को देख कर अब वह कैसा रिऐक्ट करे? मनो-मस्तिष्क में हज़ारों ख़याल मानो ताण्डव सा करने लगे थे। पल भर में ढेर सारा पसीना उसके सफेद पड़ चुके चेहरे पर उभर आया था। दोनो कानों में दिल पर धम्म धम्म करके पड़ने वाली किसी भारी हथौड़े की चोंट उसकी हृदय की गति को रोंक देने के लिए काफी थी जो सुनाई दे रही थी। जबकि उसके अंदर की हालत से अनभिज्ञ रितु ने अपने पिता को खामोश देख कर पुनः कहा__"प्लीज डैड, अब माफ भी कर दीजिए न अपनी इस बेटी को। आपको पता है आपकी उस हालत से मैं कितना परेशान और दुखी हो गई थी। लेकिन घटना स्थल पर मौजूद रहना मेरी मजबूरी थी, आप तो समझ सकते हैं न डैड? लेकिन इस सबसे फुर्सत होकर मैं सीघ्र ही पुलिस स्टेशन से भागी भागी आपसे मिलने आई हूॅ।"

अजय सिंह के मन मस्तिष्क में एकाएक मानो झनाका सा हुआ। दिमाग़ की सारी बत्तियाॅ जल उठीं। दिमाग़ ने सही तरीके से काम करना शुरू कर दिया। मन में बिजली की सी तेज़ी से ये ख़याल उभरा कि 'उसकी बेटी इस तरह बिहैव क्यों कर रही है जैसे कहीं कुछ हुआ ही न हो? इसके मासूम बर्ताव से तो यही लग रहा है जैसे छानबीन करते हुए तहखाने में इसे कुछ नहीं मिला वर्ना उसके हाथ अगर कोई गैर कानूनी चीज़ लग गई होती तो ये यहाॅ अपने पीछे पुलिस फोर्स लेकर तथा अपने हाॅथ में हॅथकड़ी लेकर उसे गिरफ्तार करने आती। लेकिन ऐसा तो दूर दूर तक होता हुआ दिखाई नहीं देता। इसका क्या मतलब हो सकता है?'

अजय सिंह के दिमाग़ में एकाएक जैसे हज़ार तरह के सवाल खड़े हो गए थे लेकिन जवाब किसी का नहीं था उसके पास। मन में ये ख़याल बार बार किसी हथौड़े की भाॅति चोंट मार रहे थे कि आख़िर क्या हुआ फैक्टरी की छानबीन में? उसकी बेटी को तहकीकात में उसके खिलाफ क्या कोई गैर कानूनी चीज़ मिली?

"क्या बात है डैड?" अपने पिता को गहरे समुद्र में डूबे देख रितू ने इस बार अपने दोनों हाॅथों की मदद से झिंझोड़ते हुए कहा था__"आप कुछ बोलते क्यों नहीं है? कहाॅ खोए हुए हैं आप?"

"आॅ..हाॅ...तु..तुमने कुछ कहा क्या बेटी?" अजय सिंह बुरी तरह चौंकते हुए कहा था। एकाएक ही उसके मन में ये ख़याल उभरा कि 'ये क्या बेवकूफी कर रहा है अजय सिंह, अपने आपको सम्हाल वर्ना तेरी हालत और तेरे चेहरे की ये हालत देख कर तेरी बेटी को कहीं सचमुच कुछ पता न चल जाए।' इस ख़याल के द्वारा खुद को समझाए जाने पर अजय सिंह ने तुरंत ही अपने आपको सम्हाला। और फिर मुस्कुरा कर उसने अपनी बेटी की तरफ देखा।

"मैं ये कह रही हूॅ डैड कि आप कुछ बोल क्यों नहीं रहे थे?" रितू कह रही थी__"पता नहीं कहाॅ खोए हुए थे आप?"

"कुछ नहीं बेटा।" अजय सिंह ने एक नज़र अपनी पत्नी की तरफ डालने के बाद कहा__"तुम सुनाओ, कैसा रहा पुलिस के रूप में आज का तुम्हारा पहला दिन?"

अजय सिंह ये पूॅछने से हिचकिचाने के साथ साथ डर भी रहा कि 'आज तहकीकात में क्या हुआ?' इस लिए ये न पूछ कर कुछ और ही पूॅछ बेठा था।

"बहुत अच्छा था डैड।" रितू ने मुस्कुरा कर कहा__"बस थोड़ा थक गई हूॅ।"
"अभी आदत नहीं है न।" सहसा इस बीच प्रतिमा कह उठी__"जब इस सबकी आदत हो जाएगी तो सब ठीक हो जाएगा।"

"आप ठीक कहती हैं माॅम।" रितू ने कहा__"धीरे धीरे सब ठीक हो जाएगा। लेकिन अभी तो आप मुझे मस्त गरमा गरम काॅफी पिलाइए प्लीज।"

"अभी बना कर लाती हूॅ बेटी।" प्रतिमा ने हॅस कर कहा और सोफे से उठ कर अंदर किचेन की तरफ चली गई।

इधर अजय सिंह सोच रहा था कि आज की छानबीन के संबंध में उसकी बेटी ने अभी तक कोई बात क्यों नहीं की?? वह खुद इस बारे में पूॅछने से हिचकिचा भी रहा था और डर भी रहा था। लेकिन ये भी सच था कि उसके लिए इस सबके बारे में जानना निहायत ही ज़रूरी था। मगर सबसे बड़ा सवाल था कि वह अपनी बेटी से पूॅछें कैसे???

"डैड, आपने अभी तक मुझसे पूछा नहीं।" सहसा रितू ने अजीब से अंदाज़ में कहा__"कि आज फैक्टरी में हुई छानबीन में क्या नतीजा निकला??"

अजय सिंह मन ही मन बुरी तरह चौंका भी और घबरा भी गया, किन्तु अपने किसी भी भाव को चेहरे पर उभरने नहीं दिया। खुद को मजबूती से सम्हाल कर संतुलित लहजे से कहा__"पूॅछ कर क्या करूॅगा बेटी? इस सबसे कुछ होने वाला तो है नहीं। क्या इस सबसे वो सब कुछ वापस मिल जाएगा जो जल कर खाक़ में मिल चुका है?"

"बात सब कुछ मिल जाने की नहीं है डैड।" रितू ने कहा__"बल्कि इस बात की है कि ये सब किसने और किस वजह से किया? आपको ये जानकर हैरानी के साथ साथ शायद खुशी भी होगी कि फैक्टरी में आग किसी सार्ट शर्किट की वजह से नहीं बल्कि फैक्टरी के तहखाने में किसी के द्वारा लगाए गए टाइम बम्ब के भीषण धमाके से उत्पन्न हुई आग से लगी थी।"

"क् क्या????" अजय सिंह बुरी तरह चौंकने का बेहतरीन नाटक किया था फिर बोला__"ये ये क्या कह रही हो तुम?"

"ये सच है डैड।" रितू ने कहा__"मगर मैं इस बात से हैरान हूॅ कि इसके पहले हुई छानबीन में ये सब क्यों नहीं बताया पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में? जबकि ये सब बातें कोई भी साधारण ब्यक्ति जाॅच करके बता सकता था। ये अपने आप में एक बहुत बड़ा सवाल है डैड। ख़ैर पुलिस इंक्वायरी में इस सबका जवाब उन पुलिस आफिसर्स को ही देना पड़ेगा जिन्होंने इसके पहले फैक्टरी की छानबीन की थी। मगर इस सबका जवाब आपको भी देना पड़ेगा डैड। मुझे पक्का यकीन है कि पुलिस द्वारा इस प्रकार की छानबीन करके रिपोर्ट आपके कहने पर ही बनाई गई थी।"

अजय सिंह अवाक् सा देखता रह गया अपनी बेटी को। फिर तुरंत ही खुद को सम्हालते हुए कहा__"ये सब झूॅठ है बेटी। हमने ऐसी कोई रिपोर्ट बनाने के लिए नहीं कहा।"

"आप अपनी इस बात को साबित नहीं कर पाएंगे डैड।" रितू ने कहा__"सारे हालात इस बात की चीख चीख कर गवाही दे रहे हैं कि इसके पहले की गई छानबीन महज एक औपचारिकता बस थी। वर्ना कोई भी पुलिस वाले अंधे नहीं थे जो उन्हें ये न दिखता कि फैक्टरी में लगी आग किसी के द्वारा लगाए गए टाइम बम्ब की मेहरबानी थी। इसके बावजूद उन्होंने अपनी रिपोर्ट में यही दिखाया कि फैक्टरी में आग सिर्फ शार्ट शर्किट की वजह से लगी थी। यहाॅ पर कोई भी सवाल खड़ा कर सकता है डैड कि सब कुछ स्पष्ट नज़र आते हुए भी पुलिस ने ऐसी रिपोर्ट क्यों बनाई? इसमें पुलिस का क्या मकसद था? या फिर एक ही बात हो सकती है कि पुलिस को ऐसी ही रिपोर्ट बनाने के लिए खुद आपने कहा हो। अगर यही सच है तो फिर यहाॅ पर सवाल खड़ा हो जाता है कि आपने पुलिस को ऐसी रिपोर्ट बनाने के लिए क्यों कहा??? बात यहीं पर खत्म नहीं हो जाती डैड, बल्कि ऐसी स्थिति में फिर और भी सवाल खड़े होने लगते हैं जिनका जवाब मिलना ज़रूरी हो जाता है।"

अजय सिंह को लगा कि अभी ज़मीन फटे और वह उसमें पाताल तक समाता चला जाए। हलाॅकि रितू ने कोई तीर नहीं मार लिया था ये सब करके क्योंकि फैक्टरी की छानबीन अगर पहले ही पूरी ईमानदारी से की गई होती तो पहले ही पुलिस को ये सब पता चल जाता। लेकिन क्योंकि ऐसा हुआ नहीं था। बल्कि अजय सिंह अपने तरीके से रिपोर्ट बनवा कर चैन से बैठ गया था। वो भला कैसे इस बात की कल्पना कर लेता कि अगले ही दिन उसकी अपनी बेटी इन गड़े मुर्दों को निकाल कर उसकी हालत को खराब करना शुरू कर देगी।

"आपकी ख़ामोशी इस बात का सबूत है डैड कि आप ही ने पुलिस को ऐसी रिपोर्ट बनाने को कहा था।" रितू ने कहा__"क्या आप बताने का कष्ट करेंगे कि आपने ऐसा क्यों किया?"

अजय सिंह क्योंकि जानता था कि इस संबंध में अब झूॅठ बोलने का कोई मतलब नहीं है इस लिए सच बताना ही बेहतर समझा उसने।

"ये सच है बेटी कि मेरे ही कहने पर पुलिस ने वैसी रिपोर्ट बनाई थी।" अजय सिंह ने गंभीरता से कहा__"लेकिन ये सब करना मेरी मजबूरी थी बेटी क्योंकि मैं इस सबको और अधिक उछालना नहीं चाहता था। मैं नहीं चाहता था बेटी कि मेरी इज्जत का अब और कचरा हो। सब कुछ तो जल ही गया था, कुछ मिलना तो था नहीं, इस लिए कम से कम अपनी इज्जत को तो नीलाम होने से बचा लेता। इसी वजह से बेटी...सिर्फ इसी वजह से मैंने पुलिस अधिकारियों से मिन्नतें कर करके ऐसी रिपोर्ट बनाने को कहा था।"

रितू देखती रही अपने पिता के चेहरे की तरफ। अंदाज़ ऐसा था जैसे परख रही हो कि उसके बाप की बातों में कितनी सच्चाई है? जबकि अपनी बेटी को इस तरह अपनी तरफ देखते हुए देख अजय सिंह के दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं थी।

"वाह डैड वाह!" रितू ने अजीब भाव से कहा__"आपने तो ये सब करके कमाल ही कर दिया। मतलब आपने ये भी नहीं सोचा कि अगर इस सबकी पुलिस द्वारा बारीकी से तहकीकात करवाई जाए तो इससे आपको कुछ हासिल भी हो सकता है?"

तभी प्रतिमा हाॅथ में ट्रे लिए ड्राइंगरूम में दाखिल हुई। उसने एक एक कप सबको पकड़ाया और खुद भी एक कप लेकर वहीं सोफे पर बैठ गई।

"इससे भला क्या हासिल होता बेटी?" अजय सिंह ने कहा था।
"छानबीन से ये तो पता चल ही गया है डैड कि फैक्टरी में आग टाइम बम्ब के फटने से लगी थी।" रितू ने कप में भरी काॅफी का एक सिप लेकर कहा__"अब ये पता लगाना पुलिस का काम है कि फैक्टरी में टाइम बम्ब किसने फिट किया था? आपके अनुसार उस दिन और रात अवकाश के चलते फैक्टरी बंद थी तथा बाहर से फैक्टरी में ताला भी लगा था। अब सोचने वाली बात है कि कोई बाहरी आदमी कैसे ये सब कर सकता है? क्योंकि सबसे पहले तो उसे फैक्टरी के अंदर पहुॅच पाना ही नामुमकिन था, कारण फैक्टरी में जो ताला लगा था वो कोई साधारण झूलने वाला ताला नहीं था जिसे आराम से तोड़ कर फैक्टरी अंदर जाया जा सके, बल्कि गेट पर जो ताला था वो लोहे वाले गेट के अंदर फिक्स था।"

"ताला खोलना कोई बड़ी बात या कोई समस्या नहीं है बेटी।" सहसा प्रतिमा ने हस्ताक्षेप किया__"आज के समय में एक से बढ़ कर एक खलीफा हैं जो पलक झपकते ही कोई भी ताला खोल भी सकते हैं और उसे तोड़ भी सकते हैं।"

"यू आर अब्सोल्यूटली राइट माॅम।" रितू ने मुस्कुरा कर कहा__"पर उस स्थिति में ये संभव नहीं है जबकि फैक्टरी के गेट पर दरबान मौजूद हों। मैंने इसकी जाॅच की है और पता चला है कि गेट पर दरबान मौजूद था। अब सवाल ये है कि दरबान की मौजूदगी में कोई बाहरी आदमी अंदर कैसे जा सकता है?"

"इसका मतलब तो यही हुआ कि गेट पर तैनात दरबान झूॅठ बोल रहा है।" प्रतिमा ने कहा__"या फिर ऐसा भी हो सकता है कि फैक्टरी का ही कोई स्टाफ मेंबर फैक्टरी के अंदर गया हो। स्टाफ के अंदर जाने पर गेट में मौजूद दरबान को कोई ऐतराज़ नहीं हो सकता था।"

"अगर कोई स्टाफ का ही आदमी फैक्टरी के अंदर गया था।" रितू ने कहा__"तो दरबान को इस बात की जानकारी पुलिस के पूछने पर देनी चाहिए थी। मगर इस संबंध में दरबान का हर बार यही कहना है कि रात कोई भी ब्यक्ति फैक्टरी के अंदर नहीं गया।"

"बड़ी हैरत की बात है ये।" प्रतिमा कह उठी__"जब फैक्टरी के अंदर कोई गया ही नहीं तो फैक्टरी के अंदर, वो भी तहखाने में टाइम बम्ब क्या कोई भूत लगा कर चला गया था???"

"यही तो सोचने वाली बात है माॅम।" रितू ने हॅस कर कहा__"खैर, पता चल ही जाएगा देर सवेर ही सही। मैं तो डैड से ये कह रही थी कि उन्होंने इस सबके बारे में जानना ज़रूरी क्यों नहीं समझा? आखिर ये जानना तो ज़रूरी ही था कि किसने ये सब किया?"

अजय सिंह के मन में सिर्फ यही सवाल चकरा रहे थे, और वो ये थे कि 'तहखाने में उसकी बेटी को और क्या मिला? क्या उसके हाॅथ कोई ऐसी चीज़ लगी जिससे उसकी असलियत रितू को पता चल सके? इस बारे में रितू ने अभी तक कोई बात नहीं की, इसका मतलब उसे कुछ भी नहीं मिला। मगर ऐसा कैसे हो सकता है???? तहखाने में तो गैर काननी वस्तुओं का अच्छा खासा स्टाक था। क्या वह सब भी आग में जल गया है??? कहीं ऐसा तो नहीं कि रितु को सब पता चल गया हो किन्तु इस वक्त वह अंजान बनी होने का नाटक कर रही हो? हे भगवान! कैसे पता चले इस सबके बारे में??? मेरे गले में तो अभी भी जैसे कोई तलवार लटक रही है।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो......
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अपडेट............《 19 》

अब तक......

"बड़ी हैरत की बात है ये।" प्रतिमा कह उठी__"जब फैक्टरी के अंदर कोई गया ही नहीं तो फैक्टरी के अंदर, वो भी तहखाने में टाइम बम्ब क्या कोई भूत लगा कर चला गया था???"

"यही तो सोचने वाली बात है माॅम।" रितू ने हॅस कर कहा__"खैर, पता चल ही जाएगा देर सवेर ही सही। मैं तो डैड से ये कह रही थी कि उन्होंने इस सबके बारे में जानना ज़रूरी क्यों नहीं समझा? आखिर ये जानना तो ज़रूरी ही था कि किसने ये सब किया?"

अजय सिंह के मन में सिर्फ यही सवाल चकरा रहे थे, और वो ये थे कि 'तहखाने में उसकी बेटी को और क्या मिला? क्या उसके हाॅथ कोई ऐसी चीज़ लगी जिससे उसकी असलियत रितू को पता चल सके? इस बारे में रितू ने अभी तक कोई बात नहीं की, इसका मतलब उसे कुछ भी नहीं मिला। मगर ऐसा कैसे हो सकता है???? तहखाने में तो गैर काननी वस्तुओं का अच्छा खासा स्टाक था। क्या वह सब भी आग में जल गया है??? कहीं ऐसा तो नहीं कि रितु को सब पता चल गया हो किन्तु इस वक्त वह अंजान बनी होने का नाटक कर रही हो? हे भगवान! कैसे पता चले इस सबके बारे में??? मेरे गले में तो अभी भी जैसे कोई तलवार लटक रही है।
अब आगे........


अभी ये सब बातें ही कर रहे थे कि बाहर से किसी के आने की आहट सुनाई दी उन्हें। पलट कर देखा तो अभय और शिवा के साथ नीलम अपने हाथ में एक हैण्डबैग लिए आ रही थी।

"डैड...।" अपने पिता को देखते ही नीलम दौड़ कर आई और अजय सिंह से लिपट गई। अजय सिंह ने उसके सिर पर प्यार से हाॅथ फेर कर कहा__"कैसी है मेरी बेटी??"
"मैं बिलकुल अच्छी हूॅ डैड।" नीलम ने कहा__"आपकी याद बहुत आती थी वहाॅ।"

"ओह अच्छा जी।" अजय सिंह ने मुस्कुरा कर कहा और फिर नीलम को साइड से छुपका लिया।

अभय व शिवा भी आकर वहाॅ पर रखे सोफों पर बैठ गए। अपने डैड से अलग होने के बाद नीलम अपनी माॅ और बहन से गले मिली।

"कन्ग्रैट्स दी।" नीलम ने रितू के गले मिलते हुए कहा__"आख़िर आपकी ख़्वाहिश पूरी हो ही गई। आप अब एक पुलिस इंस्पेक्टर बन गई हैं।"

"थैंक्यू छोटी।" रितू ने मुस्कुरा कर कहा__"और बता, मुम्बई में तेरी पढ़ाई कैसी चल रही है? काॅलेज अच्छा है न? और माॅसी लोग सब कैसे हैं?"

"सब अच्छे हैं दी।" नीलम ने मुस्कुराते हुए कहा__"और काॅलेज भी अच्छा ही होगा?"
"अच्छा होगा?" रितू ने ना समझने वाले भाव से कहा__"इस बात से क्या मतलब है तेरा?"

"मतलब ये कि काॅलेज जाना अभी शुरू नहीं किया है मैने।" नीलम ने कहा__"क्योंकि काॅलेज खुलने में अभी पाॅच दिन का समय शेष है।"
"ओह।" रितू ने कहा__"चल कोई बात नहीं। तू बैठ, मैं ज़रा कपड़े चेन्ज कर लूॅ। अभी भी पुलिस की यूनीफार्म ही पहन रखी हूॅ मैं।"

"ओके दी।" नीलम ने कहा और एक बार फिर अपने पिता की तरफ पलटते हुए कहा__"डैड, ये सब कैसे हुआ?"
"बस हो गया बेटी।" अजय सिंह भला अब उसे क्या बताता__"सब नसीब की बातें हैं।"

"ऐसा क्यों कहते हैं डैड?" नीलम ने अजय सिंह का हाॅथ अपने हाॅथ में लेकर कहा__"बिना वजह के कैसे हमारी फैक्टरी में आग लग सकती है? ज़रूर कोई वजह रही होगी। आप पुलिस के द्वारा पता लगवाइए डैड।"

"पुलिस पता लगा रही है दी।" सहसा शिवा कह उठा__"और आपको पता है, रितू दीदी ही इस सबका पता लगा रही हैं? देखना सब कुछ पता लग जाएगा जल्द ही। जिसने भी ये सब किया होगा न मैं उसे छोंड़ूॅगा नहीं।"

"ज़्यादा सूरमा बनने की ज़रूरत नहीं है तुम्हें।" नीलम ने कहा__"अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो। और ये तो अच्छी बात है कि इस सबकी जाॅच दीदी कर रही हैं, है न डैड?" अंतिम वाक्य उसने अपने पिता की तरफ देख कर कहा था।

"ह हाॅ बेटी।" अजय सिंह चौंकते हुए बोला था__"यकीनन इस सबका पता चल ही जाएगा।"

"क्या अभी तक कुछ पता नहीं चला भइया?" अभय ने कहा__"मेरा मतलब है कि रितू ने इस बारे में अभी तक क्या कुछ नहीं बताया कि उसकी छानबीन में क्या नतीजा निकला?"

"नतीजा सिर्फ इतना ही निकला है चाचा जी कि हमारी फैक्टरी में आग किसी के द्वारा फैक्टरी के तहखाने में लगाए गए टाइम बम्ब से लगी थी।" अंदर की तरफ से आते हुए रितू ने कहा__"और आपको ये जानकर हैरानी होगी कि फैक्टरी के तहखाने में लगभग दो से तीन टाइम बम्ब लगाए गए थे।"

"क्या??????" लगभग वहाॅ मौजूद हर कोई बुरी तरह चौंका था, फिर अभय ने पूॅछा__"लेकिन फैक्टरी के अंदर तहखाना कहाॅ से आ गया और तो और उस तहखाने के अंदर जाकर किसने टाइम बम्ब लगाया हो सकता है??"

"ये सवाल तो मेरे पास भी है चाचा जी कि फैक्टरी में कोई तहखाना कैसे था?" रितू ने अभय से कहने के बाद अपने पिता की तरफ देखा__"क्या आप बताएॅगे डैड कि फैक्टरी में तहखाने का क्या काम था?"

अजय सिंह बुरी तरह घबरा गया, लेकिन तुरंत ही सहल कर बोला__"फैक्टरी के अंदर अगर कोई तहखाना था तो इसमें कौन सी बड़ी बात है बेटी? मैंने तो बस शौक के लिए बनवाया था। क्या तहखाना बनवाना भी कोई कानूनन जुर्म है?"

"जुर्म तो नहीं है डैड।" रितू ने सपाट लहजे में कहा__"लेकिन तहखाने का निर्माण आम तौर पर लोग अपनी किसी प्राइवेसी के चलते बनवाते हैं। ख़ैर, क्योंकि तहखाने में तीन तीन टाइम बम्ब लगाए गए थे और जब वो फटे तो सब कुछ जल कर खाक़ में मिल गया। हलाॅकि तहखाने में शायद कुछ नहीं था क्योंकि अगर होता तो हमारे हाॅथ कुछ न कुछ ज़रूर लगता। वहाॅ तो बस फैक्टरी के जले हुए कुछ अवशेष ही पड़े थे।"

रितू की ये बात सुन कर कि 'तहखाने में कुछ नहीं था' अजय सिंह बुरी तरह मन ही मन चौंका था। उसके दिमाग़ का फ्यूज उड़ गया। फिर जब दिमाग़ ने काम करना शुरू किया तो सबसे पहले उसके दिमाग़ में यही सवाल उभरा कि ऐसा कैसे हो सकता है? तहखाने में मौजूद उसकी गैरकानूनी चीज़ें कहाॅ गईं? क्या सब कुछ जल गया??? मगर सवाल ये है कि अगर जल गया होता तो रितू को कुछ तो उसके अवशेष सबूत के तौर पर मिलते?

अजय सिंह कुछ समझ नहीं पा रहा था कि ये सब क्या है? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसकी बेटी इस बारे में झूॅठ बोल रही हो कि तहखाने में उसे कुछ नहीं मिला है? मगर रितू उससे झूॅठ क्यों बोलेगी? बल्कि होना तो ये चाहिए था कि अगर उसके खिलाफ कोई सबूत उसे मिल जाता तो अब तक रितू को उसे हॅथकड़ी लगा कर गिरफ्तार कर लेना चाहिए था। मगर उसने ऐसा कुछ भी नहीं किया, क्यों? आख़िर क्या चक्कर है ये? अजय सिंह जितना सोचता उतना ही उलझता जा रहा था। यहाॅ तक कि सोचते सोचते उसका दिमाग़ हैंग सा होने लगा था।

"ये तो बहुत ही गंभीर बात है रितू बेटी।" अभय ने कहा__"फैक्टरी में बम्ब लगाया किसी ने और सब कुछ जला कर खाक़ कर दिया। भला ये सब किसने किया होगा? क्या ये किसी दुश्मन का किया धरा है?"

"ये तो डैड ही बता सकते हैं।" रितू ने कहा__"डैड को ये अच्छी तरह पता होगा कि इस बिजनेस में उनका कौन दुश्मन है? जिसने इतने बड़े काम को अंजाम दिया है।"

"मैं खुद इस बात से हैरान व परेशान हूॅ बेटी।" अजय सिंह बोला__"क्योंकि मेरी समझ में मेरा ऐसा कोई भी शत्रू नहीं है जिसने ये सब किया हो। मेरे सबसे बहुत अच्छे संबंध थे और हैं बेटी। भला मैं बिना वजह और बिना सबूत के किसका नाम लूॅ कि हाॅ इसी ने मेरी फैक्टरी में आग लगाई है?"

"लेकिन बिना वजह के ये भी तो संभव नहीं है भइया कि कोई भी शख्स हमारे साथ इतना बड़ा कारनामा करे?" अभय ने कहा__"मैं समझ सकता हूॅ और जानता हूॅ कि यकीनन आपका कोई दुश्मन नहीं है लेकिन आप खुद सोचिए कि बिना किसी वजह के ये सब कोई क्यों करेगा?"

"मैं नहीं जानता छोटे।" अजय सिंह हताश भाव से बोला__"मैं नहीं जानता कि किसने ये सब करके मुझसे अपनी दुश्मनी निकाली है? अगर जानता तो क्या मैं इस तरह चुप चाप बैठा होता? बल्कि अगर जानता कि ये सब किसने किया है तो अपने हाथों से उसे गोली मार देता। ये भी न पूॅछता गोली मारने से पहले उससे कि ये सब उसने क्यों किया था?"

"आप परेशान मत होइए डैड।" रितू ने कहा__"मैं इस सबका पता लगा कर ही रहूॅगी कि किसने ये सब किया है?"

इसके साथ ही ड्राइंग रूम में सन्नाटा छा गया। कुछ देर बाद सब वहाॅ से चले गए। अजय सिंह अपने कमरे में चला गया, उसका सिर बड़ा ज़ोरों से दर्द कर रहा था। कमरे में आकर वह बेड पर आखें बंद करके लेट गया।

"क्या हुआ अजय?" कमरे के अंदर आते ही प्रतिमा ने कमरे का दरवाज़ा बंद करने के बाद कहा__"तबीयत तो ठीक है न तुम्हारी?"
"सिर में बड़ा दर्द हो रहा है प्रतिमा ज़रा कोई टेबलेट तो दो।" अजय सिंह ने कहा__"ऐसा लगता है जैसे सिर फट जाएगा।"

प्रतिमा ने पास ही रखी आलमारी से एक बाक्स मे रखी कुछ दवाइयों से एक गोली निकाली और अजय सिंह की तरफ बढ़ा दिया।

"अरे क्या गोली ऐसे ही खाऊॅगा?" अजय सिंह बोला__"पानी भी दो न।"
"पानी बगल से टेबल में रखा है।" प्रतिमा ने कहा__"मैं पहले पानी ही लाई थी यहाॅ, जानती थी कि तुम्हारा सिर दर्द कर रहा है और तुम्हें इसके लिए गोली खानी पड़ेगी।"

अजय सिंह कुछ न बोला। बगल में टेबल पर रखे पानी के ग्लास को एक हाॅथ से उठाया और गोली को मुह में डालने के बाद उसे पानी के साथ निगल गया। जबकि प्रतिमा बेड पर उसके समीप ही बैठ गई।

"अब तो तुम्हें इतना परेशान नहीं होना चाहिए अजय।" प्रतिमा ने हल्के स्वर में कहा__"क्योंकि तुम जिस बात से डर रहे थे वो तो हुई ही नहीं। हमारी बेटी को फैक्टरी के तहखाने में कुछ भी ऐसा नहीं मिला जिससे ये साबित हो कि तुम गैर कानूनी धंधा भी करते हो। इस लिए अब जब ऐसा कुछ उसे मिला ही नहीं तो किसी बात से डरने या परेशान होने की अब कोई ज़रूरत नहीं है तुम्हें। बस शुकर मनाओ कि फैक्टरी के साथ साथ वो सब भी जल गया।"

"तुम सबसे बड़ी बात पर ग़ौर ही नहीं कर रही हो प्रतिमा।" अजय सिंह ने कहा__"तुम इस बात की तरफ ध्यान क्यों नहीं दे रही हो कि फैक्टरी के तहखाने में बम्ब फिट किया था किसी ने?"

"हाॅ तो?" प्रतिमा ने लापरवाही से कहा।
"तो ये कि जिसने भी तहखाने में बम्ब लगाया।" अजय सिंह बोला__"क्या उसने न देखा होगा कि तहखाने में क्या क्या चीज़ें मौजूद हैं? बल्कि यकीनन देखा होगा उसने। अब अगर हमारी बेटी ये कह रही है कि उसे तहखाने में कुछ नहीं मिला तो इसका क्या मतलब हो सकता है? इसके तो दो ही मतलब हो सकते हैं, और वो ये कि या तो हमारी बेटी हमसे झूॅठ बोल रही है कि उसे तहखाने में कुछ नहीं मिला या फिर ऐसा हो सकता है कि जिसने तहखाने में बम्ब लगाया उसने ही तहखाने में मौजूद सारी गैर कानूनी चीज़ों को गायब कर दिया।"

प्रतिमा चकित सी देखती रह गई अजय सिंह को। कुछ देर यूॅ ही देखने के बाद उसने कहा__"ओह माई गाड अजय, ये तो मैंने सोचा ही नहीं था। हद हो गई, भला इस बात पर मेरा ध्यान क्यों नहीं गया?"

"क्योंकि औरतों का दिमाग़ उसके घुटनों में होता है न।" अजय सिंह हॅस पड़ा।
"ज्यादा शुभम कुमार बनने की कोशिश मत करो।" प्रतिमा ने बुरा सा मुह बनाया था।

"शु शुभम कुमार???" अजय सिंह चकरा गया__"ये किस चिड़ीमार का नाम है?"
"तुम शुभम कुमार को नहीं जानते?" प्रतिमा ने हैरत से कहा__"अरे ये बहुत बड़ा डिटेक्टिव है। जासूसी टाइप के उपन्यास भी लिखता है ये। इसके आगे जेम्स बाॅण्ड वगैरा सब फेल हैं। ऐसा इसका मानना है, हलाॅकि मैं इसे ज्यादा भाव नहीं देती"

"हाहाहाहा ज्यादा भाव देना भी नहीं मेरी जान।" अजय सिंह हॅसा__"वर्ना उसका जासूसी दिमाग़ तुम्हारे पिछवाड़े में घुस जाएगा।"

"उसके बारे में ऐसा मत बोलो डियर।" प्रतिमा ने कहा__"वो बड़ा शरीफ लड़का है।"
"लड़का है???????" अजय सिंह चौंका__"ये क्या कह रही हो?"

"अरे अभी वो लड़का ही है।" प्रतिमा ने कहा__"बेचारा अभी कुवाॅरा है न इस लिए।"
"हाहाहाहा अच्छा अब छोड़ो इस लड़के की बात को।" अजय सिंह ने एकाएक गंभीर होकर कहा__"मैं ये कह रहा था कि हमारी बेटी को अगर तहखाने से कुछ नहीं मिला तो इसकी यही दो वजह हो सकती हैं।"

"लेकिन रितू इस बात को क्यों छुपाएगी भला?" प्रतिमा ने कहा__"बल्कि अगर उसके पास कोई ऐसा सबूत होता तो वह किसी भी समय तुम्हारे हाॅथ में हॅथकड़ी डाल देती। मुझे तो लगता है कि रितू को सचमुच तहखाने से कुछ नहीं मिला है। बल्कि तुम्हारा ये ख़याल ज्यादा सही लगता है कि तहखाने में टाइम बम्ब लगाने वाले ने ही उन सब चीज़ों को गायब किया है।"

"लेकिन ये हैरत के साथ साथ अविश्वास वाली बात भी है कि बंद फैक्टरी के अंदर तथा तहखाने का भी लाॅक तोड़ कर वो शख्स अंदर पहुॅच कैसे गया?" अजय सिंह ने कहा__"और तहखाने से सारी चीज़ें गायब कैसे किया उसने? क्या वो सब चीज़ें वह अपने साथ ले गया? जबकि फैक्टरी के गेट पर तैनात दरबान के अनुसार गेट पर बाहर से ताला ही लगा था। कहने का मतलब ये कि ये सब अगर उसने ही किया है तो कैसे किया ये?"

"यकीनन अजय।" प्रतिमा ने गहरी साॅस लेते हुए कहा__"ये बड़े ही आश्चर्य की बात है। कोई बंद फैक्टरी के तहखाने में आसानी से पहुॅच गया और अपना सारा काम बड़ी आसानी से ही करके उड़नछू हो गया। किसी को इस सबकी कानों कान भनक तक न लगी। यकीन नहीं होता।"

"अगर ऐसा ही है।" अजय सिंह कह रहा था__"तो सबसे बड़ी परेशानी की बात तो अब हुई है प्रतिमा। ज़रा सोचो जिसने भी ये सब किया है वो कभी भी हमारे खिलाफ वो सब चीजें पुलिस तक पहुॅचा सकता है, या फिर उन सब चीज़ों के आधार पर वह कभी भी हमें ब्लैकमेल कर सकता है। हमारा जीना हराम कर सकता है प्रतिमा...समझ में नहीं आता कि अब क्या करूॅ मैं??"

"अब तो यही कर सकते हैं कि हम उस शख्स के ब्लैकमेल करने का इंतज़ार करें।" प्रतिमा ने कहा__"इसके सिवा दूसरा कोई रास्ता भी नहीं है।"

अजय सिंह चिंता व परेशान सा बैठा रह गया। उसे क्या पता था कि ये सब चक्कर चलाने वाला वही है जिसे वह होटल या ढाबे में कप प्लेट धोने वाला समझता है।

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"ये क्या कह रहे हो तुम?" जगदीश ने चौंकते हुए सामने सोफे पर बैठे विराज की तरफ देख कर कहा__"अजय सिंह की फैक्टरी के तहखाने से वो सारी चीज़ें तुमने गायब करवाई थी???"

"यही सच है अंकल।" विराज ने अजीब भाव से कहा__"और ये सब करने के पीछे भी मेरा एक मकसद था।"
"कैसा मकसद राज?" गौरी ने हैरानी से अपने बेटे की तरफ देखते हुए कहा।

"मैं नहीं चाहता था कि अजय सिंह अपनी ही बेटी की वजह से इतना जल्दी कानून के हाॅथ लग जाए।" विराज ने कहा__"अगर ऐसा हो जाता तो खेल का मज़ा ही ख़राब हो जाता अंकल। जेल में पहुॅच कर अजय सिंह को वो मज़ा नहीं मिल पाता जो मज़ा आने वाले समय में मेरे द्वारा उसे मिलने वाला है। उसकी जगह जेल में नहीं है अंकल बल्कि जेल के बाहर ही है। मैं उसे कभी भी कोई शिकायत का मौका नहीं देना चाहता, वर्ना जेल में बंद होने पर वो ये कहेगा कि मुझे तो अपने हाॅथ पैर चलाने का मौका ही नहीं दिया गया। अब आप ही बताइए अंकल, क्या ऐसा करना सही होगा? नहीं न......इसी लिए मैंने उसे उसकी बेटी द्वारा जेल जाने से बचा लिया।"

"वो सब तो ठीक है बेटे।" जगदीश ने कहा__"मगर मुझे ये समझ नहीं आ रहा कि तहखाने से वो सब चीज़ें तुमने कैसे और कब गायब करवाई?"

"आपके सभी सवालों का जवाब आपको दूॅगा अंकल।" विराज ने हॅस कर कहा__"लेकिन उससे पहले मैं गरमा गरम चाय पीना चाहता हूॅ। फिर तसल्ली से आपको समझा समझा कर सब कुछ बताऊॅगा।"

"ये तो चीटिंग है भइया।" निधि ने बुरा सा मुॅह बना कर कहा__"कितना अच्छा मज़ा आ रहा था मुझे और आपने इंटरवल करके सारा मज़ा ही ख़राब कर दिया मेरा। जाइए मुझे बात ही नहीं करना आपसे, हाॅ नही तो।"

"तुमने बिलकुल ठीक कहा बेटी इसने सारा मज़ा ख़राब कर दिया।" जगदीश ने हॅस कर कहा__"मैं भी अब इससे बात नहीं करूॅगा। अपने आपको बड़ा सूरमा समझने लगा है ये। है न बेटी?"

"बिलकुल।" रितू ने मुॅह फुला कर कहा__"हाॅ नहीं तो।"
"चुप कर।" सोफे से उठते हुए गौरी ने निधी को झिड़का__"हाॅ नहीं तो की बच्ची, वर्ना लगाऊॅगी एक।"

"भइया।" निधी ने विराज की तरफ मासूमियत से देखकर कहा__"देख लीजिए आपकी जान को माॅ एक लगाने को कह रही हैं। आप ऐसे कैसे चुप बैठ सकते हैं? हाॅ नहीं तो।"

गौरी तब तक अंदर किचेन की तरफ जा चुकी थी। जबकि निधि की इस बात से विराज बोला__"मैं चुप नहीं बैठा हूॅ लेकिन माॅ को कुछ कह भी तो नहीं सकता न गुड़िया। समझा कर न।"

"हांएॅ।" निधि एक दम से विराज से दूर हटते हुए बोली__"अब तो पक्का आपसे बात नहीं करूॅगी। देख लेना, हाॅ नहीं तो।" इतना कहने के बाद वह उठी और जगदीश वाले सोफे पर जा कर जगदीश के बिलकुल पास बैठ गई मुॅह फुला कर।

"आपको पता है अंकल।" विराज ने निधि की तरफ देखते हुए कहा__"आज शाम को मैं शिप द्वारा समंदर में घूमने का मज़ा लेने की सोच रहा था गुड़िया के साथ, लेकिन कोई बात नहीं मैं माॅ को लेकर चला जाऊॅगा। ठीक रहेगा न अंकल..माॅ भी समंदर में घूमने का आनंद ले लेंगी।"

"वाॅव, समंदर में बहुत मज़ा आएगा न भइया?" निधि बिजली की स्पीड से जगदीश वाले सोफे से उठकर विराज के पास उससे चिपक कर बैठते हुए बोली__"मैं न शिप के ऊपर बैठूॅगी जैसे फिल्मों में हीरो हिरोईन बैठते हैं, हाॅ नहीं तो।"

"तू कैसे बैठ जाएगी भला?" विराज ने कहा__"तू तो मेरे साथ जाएगी ही नहीं। मैं माॅ को लेकर जाऊॅगा।"
"ऐसा नहीं हो सकता।" निधि ने अकड़ कर कहा__"मैं जाऊॅगी और आपके ही साथ जाऊगी, और अगर आप मुझे अपने साथ नहीं जाएॅगे तो ये आपके लिए अच्छा नहीं होगा। देख लेना, हाॅ नहीं तो।"

"नहीं वो माॅ कह रही थीं कि गुड़िया यहीं रह कर अपनी पढ़ाई करेगी।" विराज ने कहा__"और वो मेरे साथ शिप में घूमने जाएंगी। इस लिए तुम मेरे साथ नहीं जा पाओगी।"

"मैं कुछ नहीं जानती।" निधि ने सहसा रुआॅसे होकर कहा__"मैं आपके साथ ही जाऊॅगी। क्या आप मुझे नहीं ले चलेंगे अपने साथ....मैं आपकी जान हूॅ ना?" कहते कहते निधि की आॅखों से आॅसू छलक गए, ये देख विराज का कलेजा हाहाकार कर उठा। उसे खुद पर बेहद गुस्सा आया कि वो अपनी गुड़िया को इस तरह भला कैसे रुला सकता है?

विराज ने उसे अपने सीने से छुपका लिया, निधि खुद भी उससे किसी फेवीकोल की तरह चिपक गई थी।

"मुझे माफ कर दे मेरी गुड़िया।" फिर विराज ने भर्राए गले से कहा__"मैं तो बस मज़ाक कर रहा था। तुझे चिढ़ा रहा था और कुछ नहीं। चल अब रोना नहीं...तू जानती है न कि मैं अपनी जान की आॅखों में आॅसू नहीं देख सकता। और हाॅ...शिप में जाने का कोई प्रोग्राम नहीं था वो तो बस ऐसे ही कह रहा था मैं लेकिन अब ज़रूर हम दोनो संडे को शिप में बैठ कर समंदर में घूमेंगे और खूब मज़ा करेंगे ठीक है न?"

"हाॅ नहीं तो।" निधि ने हल्का सा सिर उठा कर विराज की तरफ मुस्कुरा कर कहा और फिर से उसके सीने में अपना चेहरा छुपा लिया। सामने बैठा जगदीश ओबराय ये सब देख कर मुस्कुरा रहा था। उसकी आॅखों में भी आॅसू थे।

"कहाॅ घूमने जाने और मज़ा करने की बात कर रहे हो तुम दोनो?" हाॅथ में ट्रे लिए आते हुए गौरी ने कहा।

"पता है माॅ।" निधि ने विराज के सीने से सिर उठा कर तथा मारे खुशी के कहा__"संडे को मैं और भइया समुंदर में शिप में बैठ कर घूमेंगे और खूब मस्ती करेंगे। हाॅ नहीं तो।" निधि की इस बात से विराज ने अपना सिर पीट लिया जबकि......

"क्या???" गौरी ने हैरानी से निधि और विराज की तरफ देख कर कहा__"नहीं तुम लोग कहीं नहीं जाओगे। समुंदर में तो बिलकुल भी नहीं।"

गौरी ने सबको चाय दी और खुद भी एक कप लेकर वहीं सोफे पर बैठ गई। जबकि उसकी इस बात से निधि का चेहरा उतर गया। उसने कातर भाव से विराज की तरफ देखा। विराज ने इशारे से कहा कि 'तू चिन्ता मत कर हम ज़रूर चलेंगे'। विराज के इस इशारे से निधि का चेहरा फिर से खिल उठा। और अब वह मुस्कुराते हुए आराम से चाय पीने लगी। उसे यूॅ मुस्कुराता देख गौरी का माथा ठनका, बोली__"अब इस तरह मुस्कुरा क्यों रही है? चुप चाप चाय पी।"

"अब क्या मैं मुस्कुरा भी नहीं सकती माॅ?" रितू ने हॅस कर कहा__"आप भी कमाल करती हैं।" इतना कहने के बाद एकाएक ही उसने विराज की तरफ देखा और धीरे से बोली__"हाॅ नहीं तो।"

उसकी इस क्रिया से चाय पी रहे विराज को ज़ोर का ठस्का लग गया और वह खाॅसने लगा। खाॅसने के साथ साथ वह हॅस भी रहा था। जबकि उसके इस प्रकार एकाएक खाॅसने से निधि हड़बड़ा गई। जानती तो वह भी थी कि उसके भाई को अचानक ठस्का क्यों लगा था जिसकी वजह से उसे खाॅसी आने लगी थी इस लिए पकड़े जाने के डर से हड़बड़ा गई थी वह।

"क्या हुआ बेटा?" गौरी ने चौंकते हुए पूछा।
"ये दोनो एक नम्बर के शैतान हैं गौरी बहन।" जगदीश ठहाका लगा कर हॅसते हुए बोला था__"तुम नहीं समझ पाई कि इन दोनो ने आपस में क्या खिचड़ी पका ली है?"

"मैं सब जानती हूॅ भइया।" गौरी ने भी हॅस कर कहा__"ये दोनो सोचते हैं कि ये मुझे बेवकूफ बना लेते हैं। ये दोनो ये भूल जाते हैं कि इन्होंने मुझे नहीं बल्कि मैंने इन दोनो को पैदा किया है।"

विराज और निधि ने एक दूसरे की तरफ अजीब भाव से इस तरह देखा जैसे चोरी पकड़ी गई हो।

"ख़ैर, अब बताओ राज।" जगदीश ने कहा__"कि फैक्टरी के तहखाने से वो सब चीज़ें तुमने कब और कैसे गायब करवाई थी और ये भी कि किसके द्वारा?"

"आपको याद होगा अंकल।" विराज ने कहना शुरू किया__"मैंने आपसे कहा था कि 'अजय सिंह तो ये सोच भी नहीं सकता कि मैं अरविंद सक्सेना के द्वारा अभी और क्या खेल खलने वाला हूॅ'। जैसा कि मैने आपको बताया था कि सक्सेना की कमज़ोरी फोटोग्राफ्स के रूप में मेरे पास थी। इस लिए वह मेरे कहने पर कुछ भी करने को मजबूर था, और बदले में मैं उसे उसके परिवार सहित सुरक्षित विदेश भेजवा दूॅगा। अजय सिंह की नज़र में सक्सेना पहले ही उससे अपना हिसाब किताब करके विदेश जा चुका था जबकि सच्चाई कुछ और ही थी। सक्सेना तो उस दिन विदेश जाने वाली फ्लाइट पर बैठा था जिस रात अजय सिंह की फैक्टरी में आग लगी थी। मुझे सक्सेना के द्वारा ये पता था कि हप्ते में एक दिन व रात फैक्टरी में मजदूरों का अवकाश रहता है, यानी फैक्टरी बंद रहती है। इसी बात का ख़याल रख कर ही प्लान बनाया गया था। सक्सेना के अनुसार फैक्टरी का मेन गेट जो कि लोहे से बना हुआ है, उसकी चाभी मैनेजर या अजय सिंह के पीए के पास रहती है। सक्सेना ने उस चाभी की डुप्लीकेट चाभी पहले ही बनवा ली थी। इस लिए फैक्टरी के अंदर जाने की समस्या नहीं रह गई थी। समस्या थी तहखाने के अंदर पहुॅचने की। क्योंकि तहखाने के गेट पर पिनकोड सिस्टम वाला लाॅक था, जिसका पिनकोड सिर्फ अजय सिंह ही जानता था। इस लिए पिनकोड हासिल करने के लिए दिमाग़ का प्रयोग किया गया। सक्सेना को ये तो पता ही था कि अजय सिंह अवकाश वाले दिन या रात ही अपने गैर कानूनी धंधे वाला काम करता था। मैने सक्सेना के द्वारा पिनकोड हासिल करने के लिए उस रात तहखाने के पिनकोड लाॅक सिस्टम पर एक पाॅलिथिन नम्बरों के ऊपर इस प्रकार चिपकवा दी कि अजय सिंह ग़ौर से देखने पर भी ताड़ न पाए कि सिस्टम के ऊपर पाॅलिथिन चढ़ी हुई है। अजय सिंह जब तहखाने के अंदर जाने के लिए सिस्टम पर पिन नम्बर डालता तो वो सब पिन नंबर्स उस पाॅलिथिन में अजय सिंह के फिंगर प्रिंट्स के रूप में छप जाते। यहाॅ पर एक सवाल ये भी था कि अगर पिन का कोई नम्बर यानी संख्या एक से दो या तीन बार अजय सिंह के द्वारा डाल दी जाती तो कैसे पता चलता कि उस संख्या के कितने नंबर थे? एक्सपर्ट ने बताया था कि जो नंबर एक बार डाला जाएगा वो पाॅलिथिन पर कम दबाव के साथ छपेगा जबकि अगर कोई नंबर दो या तीन बार दबाया जाएगा वो ज्यादा दबाव के साथ छपेगा। इसके बाद उन नंबरों को चेक कर लिया जाएगा। मैं एक्सपर्ट की इस बात से मुतमईन न था क्योंकि इससे नंबर इधर उधर भी हो सकते थे। इस लिए पाॅलिथिन के साथ साथ मैने वहाॅ पर एक मिनी कैमरा इस प्रकार लगवाया कि उसमें अजय सिंह का पिन कोड डालना स्पष्ट दिखाई दे। बस फिर क्या था..अजय सिंह जब वहाॅ आया तो सब कुछ रिकार्ड हो गया। अजय सिंह कभी सोच भी नहीं सकता था कि कोई उसके लिए कितना बड़ा खेल रच रहा है। ये सब काम तब हुआ था जब सक्सेना ने पार्टनरशिप नहीं तोड़ी थी अजय सिंह से।"

"तुम्हारे कहने का मतलब है।" जगदीश ने बीच में ही विराज की बात काटते हुए कहा__"कि ये सब तुम सक्सेना से पहले ही करा चुके थे? लेकिन इस बीच अगर अजय सिंह पिनकोड बदल देता तो क्या करते तुम?"

"मेरे दिमाग़ में भी यही सवाल था अंकल।" विराज ने कहा__"इस लिए जब दूसरा अवकाश हुआ फैक्टरी में तो सक्सेना ने मेरे कहने पर फिर से वहाॅ पर मिनी कैमरा लगा दिया था, कारण यही जानना था कि अजय सिंह ने पिनकोड बदल दिया है या पहले वाला ही है। मगर बाद में पता चला कि पिनकोड पहले वाला ही था।"

"चलो ये तो ठीक है।" जगदीश ने कहा__"लेकिन इतना कुछ पता करने के बाद तुमने ये सब पहले ही क्यों नहीं कर दिया था? मेरा मतलब है कि पहले ही फैक्टरी में आग क्यों नहीं लगवाई थी, इतने दिन बाद ही क्यों किया ऐसा?"

"इसमें भी एक मज़ेदार खेल छुपा था अंकल।" विराज ने मुस्कुरा कर कहा था__"मुझे पता था कि अजय सिंह की बेटी पुलिस की ट्रेनिंग कर रही है, उसकी ट्रेनिंग के बाद सीधा उसे किसी थाने में चार्ज सम्हाल लेना था। मैंने सोचा क्यों न अजय सिंह की बेटी को उसके थाना इंचार्ज बनते ही उसके बाप की फैक्टरी का केस सौंप कर उसे एक तोहफा दिया जाए। बस यही सोच कर कुछ दिन रुका रहा था मैं। आपसे कहा था कि मंत्री जी से बात करके रितू सिंह बघेल को वहीं का थाना उसकी पहली पोस्टिंग में मिले। बस सब कुछ सेट करने के बाद प्लान के अनुसार काम शुरू हो गया। फैक्टरी के बाहर गेट पर एक ही दरबान था उस रात, दूसरा दरबान नहीं था। पता चला था कि उस रात उसकी बीवी को बच्चा होने वाला था इस लिए वह छुट्टी लेकर चला गया था। उसकी जगह दूसरा कोई दरबान था ही नहीं। एक दरबान बचा था वह भी डबल ड्यूटी की वजह से उस रात आधी रात के समय कुर्सी में बैठा बार बार जम्हाई ले रहा था। उसे इस तरह जम्हाई लेता देख सक्सेना ने उसे क्लोरोफाॅम डाला हुआ रुमाल सुॅघा दिया। कुछ ही पल में बेचारा अंटा गाफिल हो गया। उसके बाद कोई समस्या ही नहीं थी। सक्सेना डुप्लीकेट चाभी की सहायता से फैक्टरी का गेट खोल कर अंदर गया उसके साथ चार आदमी और थे उसकी सहायता के लिए। सबके अंदर आते ही सक्सेना ने अंदर से गेट भी बंद कर लिया। तहखाने के पास पहुॅच कर उसने तहखाने के गेट पर लगे पिन सिस्टम पर कोड नंबर डाला और दरवाजा खोल कर तहखाने के अंदर पहुॅच गया। सभी ने तहखाने में मौजूद गैर कानूनी सामान को अपने साथ लाई हुई बोरियों में भरना शुरू कर दिया। एक घंटे बाद वो सब लोग तहखाने में रखी हर गैर कानूनी चीज़ को बोरियों में भर लिया था। उसके बाद वहाॅ तीन टाइम बम्ब लगा कर वो सब सुरक्षित बाहर आ गए। फैक्टरी का बाहर वाला गेट उसी तरह बाहर से लाॅक करके वो सब वहाॅ से लौट आए। अपने पीछे कोई सबूत नहीं छोंड़ा था उन्होने। हलाॅकि बम्ब के फटने पर कोई सबूत रह ही नहीं जाना था लेकिन बाहर गेट पर सबूत हो सकते थे इसके लिए उन लोगों ने पहले से ही अपने हाथों में दस्ताने पहन रखे थे। इतनी बड़ी बात को अंजाम दिया गया लेकिन किसी को उस रात कोई भनक तक न हुई। कारण एक तो रात का समय, दूसरे बाॅकी स्टाफ फैक्टरी से दूर बने आफिसों में था और सबसे बड़ी बात किसी को गुमान ही नहीं था कि कोई इस सबके लिए शहर से दूर यहाॅ आएगा।"
"तो आख़िर इस तरह तुमने सक्सेना और कुछ आदमियों के द्वारा ये सब करवाया था?" जगदीश ओबराय ने कहा__"सक्सेना तो उसी रात अपने परिवार के साथ बम्ब फटने के तीन घंटे पहले ही विदेश जाने के लिए फ्लाइट में बैठ चुका था, किन्तु वो आदमी कौन थे? उन सबको इस बारे में पता है, हो सकता है वो इस सबका कभी भाॅडा फोड़ दें तो क्या करोगे तुम?"

"पहली बात तो वो ये सब करेंगे नहीं क्योंकि वो यही जानते हैं कि ये सब उन्होने किसी माफिया गैंग के लिए किया है।" विराज ने कहा__"सक्सेना भी उन सबकी तरह ही उस रात अपने चेहरे पर नकाब पहना हुआ था। सक्सेना ने उनसे यही कहा था कि वो माफिया का आदमी है। इस सबका कोई डर नहीं है। दूसरी बात ये है कि मैं खुद भी ज्यादा दिनों तक इस सबको अजय सिंह से छुपा कर नहीं रखूॅगा। बल्कि डंके की चोंट पर उसके सामने जाकर उसे बताऊॅगा कि उसके साथ जो कुछ भी अब तक हुआ है वो सब मैंने किया है।"

"वो सब तो ठीक है राज।" जगदीश ने कहा__"लेकिन इंस्पेक्टर रितू तो छानबीन कर ही रही है न? संभव है कि वह किसी तरह इस सबका पता लगा ले कि ये सब तुमने किया है तो??"

"उससे कुछ भी फर्क नहीं पड़ता अंकल।" विराज ने कहा__"क्योंकि आगे चल कर मैं खुद ही ये सब उन लोगों को बताऊॅगा कि मैंने ही ये सब किया है। और यकीन मानिए अंकल उनमें से कोई भी मेरा बाल भी बाॅका नहीं कर सकेगा। रही बात उस पुलिस वाली की तो वो भी मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती, क्योंकि सब कुछ जान लेने से या पता कर लेने से कुछ नहीं होता। बल्कि किसी भी चीज़ को साबित करने के लिए उस कानून वाली के पास सबूत और गवाह होने चाहिए, बिना सबूत के वो मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। और सबूत उसे इस जनम में तो क्या किसी भी जनम में नहीं मिलेंगे।"

"जुर्म चाहे जितनी सफाई से किया जाए राज।" जगदीश ने कहा__"वो अपने पीछे कोई न कोई ऐसा सबूत ज़रूर छोंड़ जाता है जिसकी वजह से वो एक दिन कानून की गिरफ्त में आ जाता है।"

"आप बताइए अंकल।" विराज ने मुस्कुराते हुए कहा__"मैंने इस सबके पीछे क्या सबूत छोड़ा है? जबकि मैंने अभी तक जो कुछ भी किया वो भी यहीं बैठे बैठे किया है। इस सबको अंजाम देने वाले तो कोई और ही थे।"

"अरविंद सक्सेना तुम्हारे लिए एक कमज़ोर प्वाइंट है बेटे।" जगदीश ने कहा__"मान लो तहकीकात में रितू को ये पता चल जाए कि इस सबमें सक्सेना का हाॅथ है तो? वह सक्सेना को शक की बिना पर धर लेगी और फिर उससे सारा सच उगलवा लेगी। सक्सेना को पुलिस के सामने ये कबूल करना ही पड़ेगा कि ये सब उसने तुम्हारे कहने पर किया था।"

"इतनी दूर तक जाने की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी अंकल।" विराज ने कहा__"क्यों कि उससे पहले मैं ही मैदान में आ जाऊॅगा। मैं खुद उन लोगों के सामने इस सबका इकबाले जुर्म करूॅगा। और पता है अंकल, अजय सिंह को ये भी एहसास दिलाऊॅगा कि उसका गैर कानूनी सामान अभी भी मेरे पास ही है, तथा उसके खिलाफ ऐसे ऐसे सबूत भी हैं मेरे पास जिससे उसको कानून के लपेटे में आने के लिए ज़रा भी देर नहीं लगेगी। बेचारा खुद ही इस सबके डर से अपनी इंस्पेक्टर बेटी से मेरी पैरवी करने लगेगा।"
 
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"बात तो तुम्हारी ठीक है।" जगदीश हॅस पड़ा__"संभावनाओं पर कुछ नहीं होता, कानून को तो सबूत चाहिए। और सबूत कोई है नहीं। वाह....ये तो कमाल हो गया बेटे।"

"अभी तो दिमाग़ से ही उनकी हालत खराब कर रखी है अंकल।" विराज ने कहा__"जबकि मैदान में खुल कर आना अभी बाॅकी है। जिस दिन आमने सामने का खेल होगा न उस दिन से अजय सिंह हर पल रोएगा, गिड़गिड़ाएगा, रहम की भीख माॅगेगा मुझसे और मेरी माॅ से।"

"उसके साथ यही होना चाहिए राज बेटे।" जगदीश ने कहा__"जो अपने माॅ बाप और भाई का न हुआ बल्कि उनके साथ इतना घिनौना कर्म किया ऐसे गंदे इंसान के साथ किसी भी कीमत पर रहम नहीं होना चाहिए।"

"उनके लिए रहम शब्द मैंने अपनी डिक्शनरी से निकाल कर फेंक दिया है अंकल।" विराज ने एकाएक ठंडे स्वर में कहा__"एक एक चीज़ का हिसाब लूॅगा मैं।"

"मैं तो उस कमीने शिवा को अपने हाथों से कुत्ते की तरह मारूॅगी।" सहसा निधि ने तपाक से कहा__"मुझे उसकी शकल से भी नफरत है। हाॅ नहीं तो।"

निधि के इस तकिया कलाम को सुन कर सब मुस्कुरा कर रह गए।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो.....
 
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अपडेट.............《 20 》

अब तक.......

"बात तो तुम्हारी ठीक है।" जगदीश हॅस पड़ा__"संभावनाओं पर कुछ नहीं होता, कानून को तो सबूत चाहिए। और सबूत कोई है नहीं। वाह....ये तो कमाल हो गया बेटे।"

"अभी तो दिमाग़ से ही उनकी हालत खराब कर रखी है अंकल।" विराज ने कहा__"जबकि मैदान में खुल कर आना अभी बाॅकी है। जिस दिन आमने सामने का खेल होगा न उस दिन से अजय सिंह हर पल रोएगा, गिड़गिड़ाएगा, रहम की भीख माॅगेगा मुझसे और मेरी माॅ से।"

"उसके साथ यही होना चाहिए राज बेटे।" जगदीश ने कहा__"जो अपने माॅ बाप और भाई का न हुआ बल्कि उनके साथ इतना घिनौना कर्म किया ऐसे गंदे इंसान के साथ किसी भी कीमत पर रहम नहीं होना चाहिए।"

"उनके लिए रहम शब्द मैंने अपनी डिक्शनरी से निकाल कर फेंक दिया है अंकल।" विराज ने एकाएक ठंडे स्वर में कहा__"एक एक चीज़ का हिसाब लूॅगा मैं।"

"मैं तो उस कमीने शिवा को अपने हाथों से कुत्ते की तरह मारूॅगी।" सहसा निधि ने तपाक से कहा__"मुझे उसकी शकल से भी नफरत है। हाॅ नहीं तो।"

निधि के इस तकिया कलाम को सुन कर सब मुस्कुरा कर रह गए।
अब आगे......


ऐसे ही कुछ दिन गुज़र गए। अजय सिंह अब अपनी हालत पर काबू पा चुका था। बल्कि ये कहिये कि हर बात से काफी हद तक बेफिक्र हो चुका था। उसकी बेटी रितू द्वारा उसे पता चल चुका था कि तहखाने में बाॅकी कुछ नहीं मिला था। हलाॅकि रितू को इस बात के पता होने का सवाल ही नहीं था कि उसका बाप गैर कानूनी काम करता है। उसने तो फाॅरेंसिक रिपोर्ट को देखकर यही बताया था कि फैक्टरी में आग टाइम बम्ब के द्वारा ही लगी थी। अब उसकी तहकीकात सिर्फ इसी तरफ थी कि फैक्टरी के अंदर जाकर तहखाने में टाइम बम्ब किसने लगाया था??

रितू को एक सवाल ये भी परेशान कर रहा था कि इस केस की बारीकी से जाॅच पड़ताल कराने के पीछे होम मिनिस्टर का क्या मकसद था?? उसने तो सिर्फ केस को रिओपेन करने की अप्लीकेशन बस दी थी। उसका मकसद तो सिर्फ ये पता करना था कि इस केस में पुलिस ने इस प्रकार की रिपोर्ट क्यों बनाई थी?? दूसरी बात ये थी कि उसे लगता था कि फैक्टरी में लगी आग महज कोई इत्तेफाक़ की बात नहीं थी। बल्कि उसके पिता के किसी दुश्मन द्वारा लगाई गई थी। इस लिए वह इस सबका पता करके उस ब्यक्ति द्वारा अपने पिता के हुए भारी नुकसान की भरपाई करना चाहती थी। उसे तो इस बात से भी हैरानी थी कि रातों रात इस शहर के सारे पुलिस डिपार्टमेंट का तबादला क्यों कर दिया गया था??? इसके पीछे क्या सिर्फ ये वजह थी कि इस केस की पुलिस ने अपनी पूरी ईमानदारी के साथ छानबीन नहीं की, बल्कि किसी के कहने पर ऐसी रिपोर्ट तैयार की?? क्या सिर्फ यही वजह थी या फिर इसके पीछे भी कोई ऐसा कारण है जो फिलहाल अभी उसकी समझ से बाहर नज़र आ रहा है??

अजय सिंह बेफिक्र ज़रूर हो गया था किन्तु इस बात का उसे एहसास था कि एक तलवार अभी भी उसकी गर्दन पर लटकी हुई है, जो कभी भी उसका गला रेत सकती है। वह पक्के तौर पर समझ चुका था कि तहखाने से वह सब चीज़ें तहखाने में टाइम बम्ब लगाने वाले ने ही गायब की हैं। वह नहीं जानता था कि ये सब किसने किया है लेकिन इतना अवश्य जानता था कि देर सवेर उस ब्यक्ति का इस संबंध में कोई न कोई मैसेज ज़रूर आएगा। अजय सिंह उसी मैसेज के इन्तज़ार में था। दूसरी बात अपने बिजनेस को फिर से खड़ा करने के लिए वह कार्यरत भी हो गया था। फैक्टरी भले ही जल गई थी उसकी लेकिन उसके पास पैसों की कमी नहीं थी। गैर कानूनी धंधे में उसने बड़ी धन दौलत इकट्ठी कर ली थी। उसने फैक्टरी को फिर से शुरू करने के लिए उसकी मरम्मत का काम शुरू करवा दिया था। इस समय वह रात दिन इसी में ब्यस्त रहता था। उसकी छोटी बेटी नीलम वापस मुम्बई जा चुकी थी। अजय सिंह फैक्टरी को फिर से शुरू करने के लिए कार्यरत था, इस बात से अंजान कि उसके पीछे उसका बेटा शिवा अपने आचरण से क्या हंगामा खड़ा करने जा रहा था???

शिवा का ज्यादातर समय अपने आवारा दोस्तों के साथ मस्ती करने और गाॅव की किसी न किसी लड़की को पटा कर उनके साथ अपने अंदर की हवस मिटाने में जाता था। माॅ बाप की तरह वो भी अपने ही घर की औरतों व लड़कियों को गंदी नज़रों से देखता था और रात दिन अपनी ही माॅ बहनों तथा चाची को अपने नीचे लेटाने की सोचता रहता था।

ऐसे ही एक दिन उसकी हरकतों की वजह से हंगामा हो गया। अपने बाप की तरह ही उसकी नीयय अपनी चाची करुणा पर बिगड़ी हुई थी। करुणा की बेटी दिव्या भी जवान हो रही थी, हलाॅकि अभी वह स्कूल में पढ़ती थी किन्तु आज की जनरेशन ज़रा एडवाॅस होती है, ये अपनी ऊम्र से पहले ही जवान हो जाते हैं। खेला खाया शिवा चाची की बेटी दिव्या को भी हवस भरी नज़रों से देखता था। चाची के गदराए व खूबसूरत जिस्म का वह शुरू से ही दिवाना था। किन्तु कुछ कर नहीं सकता था क्योंकि वह अपने चाचा अभय के गुस्सैल स्वभाव के चलते डरता था, दूसरी बात उसकी चाची करुणा भी ऐसी वैसी औरत नहीं थी जिससे वह अपने इरादों में कामयाब हो पाता। उससे जितनी हो सकती थी उतनी कोशिश वह फिर भी किया करता था। मतलब चाची के पास उठना बैठना तथा उनके द्वारा दिये गए हर काम को खुशी खुशी करना। उनसे हॅसना बोलना, बातों के बीच यदा कदा मज़ाक भी कर लेना। करुणा ज्यादातर दिन में अकेली ही होती थी, उसके साथ उसका बारह साल का दिमाग़ से डिस्टर्ब बेटा शगुन रहता था। उसका पति और बेटी दिव्या सुबह स्कूल चले जाते थे, फिर शाम चार बजे के आस पास ही आते थे। सुबह दस बजे से चार बजे तक करुणा अकेली ही घर में रहती थी। हलाॅकि दिन भर वह कोई न कोई काम करती ही रहती थी ताकि उसका समय पास हो जाए।

एक दिन की बात है, उस दिन गुरूवार था। अभय व दिव्या रोज़ की तरह स्कूल गए हुए थे। शिवा की आदत थी कि वह करुणा के घर तभी जाता था जब उसका चाचा और चाचा चाची की बेटी स्कूल चले जाते थे। उसे अपनी चाची करुणा की दिनचर्या का बखूबी पता था। वह जानता था कि चाचा और दिव्या के स्कूल जाने के बाद ही करुणा नहाने जाती थी बाॅथरूम में।
बाहर मेन गेट बंद रहता था किन्तु अंदर से कुंडी नहीं लगी होती थी। करुणा कुंडी नहीं लगाती क्योंकि उसे पता होता था कि शिवा आएगा। ख़ैर, रोज़ की तरह ही शिवा उस दिन भी अपने निर्धारित समय पर पहुॅचा। दरवाजे को हल्के से खोल कर वह अंदर दाखिल हो गया। अपनी चाची के नहाने के समय पर वह इसी लिए आता था कि वह किसी तरह अपनी चाची को बाथरूम में नहाते हुए देख सके। हलाॅकि ऐसा कभी हुआ नहीं था बल्कि वह हमेशा अपने मनसूबों में नाकामयाब रहा था। यानी उसकी चाची कमरे से अटैच बाथरूम में जाने से पहले अपने उस कमरे का दरवाजा बंद करके अंदर से कुंडी लगा देती थी। शिवा को अपनी चाची को नहाते देखने के लिए पहले चाची के कमरे में जाना पड़ता फिर बाथरूम में। जबकि दरवाजा ही बंद रहता था इस लिए वह कुछ कर ही नहीं सकता था। वह अपनी चाची से कह भी नहीं सकता था कि आप अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद मत किया कीजिए।

मगर कहते हैं न कि होनी अटल होती है। यानी जिस वक्त जो होना होता है वो होकर ही रहता है। कहने का मतलब ये कि करुणा बाथरूम में नहाने जाने से पहले आज अपने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद करना भूल गई, या यूॅ कहिए कि नियति के चलते उससे ये भूल हो गई।

शिवा जब भी आता था तो सबसे पहले ये ज़रूर चेक करता था कि उसकी चाची ने दरवाजा अंदर से बंद किया है या नहीं। हलाकि वह जानता था कि चाची दरवाजा खुला रखने की ग़लती कभी नहीं करती हैं, फिर भी वह अपनी तसल्ली के लिए एक बार ज़रूर चेक करता था। आज भी उसने ऐसा ही किया, और दरजाजा जब उसकी उम्मीद के विपरीत उसके द्वारा दिए गए हल्के से दबाव में बेआवाज़ तथा बिना किसी विरोध के खुलता चला गया तो वह पहले तो हैरान हुआ मगर जल्द ही उसका मन मयूर खूशी से नाचने भी लगा। वह दबे पाॅव कमरे में दाखिल हुआ। उसकी धड़कने एकाएक बढ़ गई थीं जिसके धक धक करने की हर थाप उसे अपनी कनपटियों में बजती महसूस हो रही थी।

कमरे में पहुॅचते ही उसने देखा कि बेड पर उसकी चाची के वो कपड़े रखे हैं जिन्हें उसकी चाची नहाने के बाद पहनने वाली थी। शिवा ने आगे बढ़ कर उन कपड़ों को ग़ौर से देखा। साड़ी ब्लाउज पेटीकोट व ब्रा पैन्टी सब बड़े सलीके से रखे हुए थे। शिवा की नज़र ब्रा और पैन्टी पर पड़ी। उसने बिना कुछ सोचे समझे तथा बिना एक पल गवाॅए अपना हाॅथ बढ़ा कर बेड से चाची की लाल रंग की ब्रा को उठा लिया। ब्रा अच्छी क्वालिटी की थी, उसके कप देख कर शिवा की आॅखों में अजीब सी चमक आ गई। उसने ब्रा को अच्छी तरह से उलटा पलटा कर देखा। 36D पर नज़र पड़ते ही वह अजीब तरह से मुस्कुराया और फिर उस ब्रा को अपनी नाॅक के पास लाकर उसे सूॅघने लगा। ब्रा की सुगंध ने अपना असर दिखाया और शिवा की आॅखें एक अजीब सी खुमारी से बंद होती चली गई। उसका रोम रोम रोमाॅच से भरता चला गया। कुछ देर इसी तरह वह ब्रा को सूॅघता रहा फिर उसने अपनी आॅखें खोली और ब्रा से नज़र हटा कर उसने बेट पर पड़ी चाची की पैन्टी की तरफ देखा। तुरंत ही उसने पैन्टी को उठा लिया और उसे भी उलट पलट कर देखने लगा 38 साइज पर नज़र पड़ी तो एक बार फिर वह अजीब तरह से मुस्कुराया और फिर सीघ्र ही पैन्टी के उस भाग को अपनी नाॅक के पास लाकर सूॅघने लगा जिस भाग में उसकी चाची का योनि भाग होता है।
पैन्टी के योनि भाग को सूॅघते ही उसकी आॅखें पुनः बंद होती चली गई। वह अपनी नाॅक से ज़ोर ज़ोर से साॅसे खींचने लगा। तभी वह किसी आहट से बुरी तरह चौंका, उसने तुरंत अपनी आॅखें खोल कर इधर उधर देखा किन्तु कहीं कोई नहीं था, बस कानों में कमरे से अटैच बाथरूम में पानी गिरने की आवाज़ सुनाई दे रही थी।

शिवा को सहसा ख़याल आया कि चाची तो अंदर बाॅथरूम में है। जिसे नहाते हुए देखने के लिए वह न जाने कब से तड़प रहा था। आज उसे ये सुनहरा मौका मिला है तो उसे ये मौका किसी भी कीमत पर गवाॅना नहीं चाहिए। ये सोचते ही उसने अपने हाॅथ में ली हुई ब्रा पैन्टी को बेड पर उसी तरह सलीके से रख दिया और फिर पलट कर दबे पाॅव बाथरूम के दरवाजे की तरफ बढ़ा।

बाथरूम के दरवाजे के पास पहुॅच कर उसने देखा कि बाथरूम का दरवाजा बंद तो था किन्तु अंदर से कुंडी नहीं लगी थी। बल्कि हल्का सा खुला ही नज़र आ रहा था। करुणा ने शायद इस लिए बाथरूम की कुंडी अंदर से नहीं लगाई थी कि उसकी समझ में कमरे का दरवाजा अंदर से बंद है, इस लिए किसी के अंदर आने का कोई सवाल ही नहीं है। जबकि इधर शिवा ये देख कर हैरानी के साथ साथ खुश हो गया कि उसकी चाची ने आज हर तरफ से उसका रास्ता खुला रखा है।

शिवा ने अपने ज़ोर ज़ोर से धड़क रहे दिल के साथ बाथरूम के दरबाजे में बाहर इस तरफ लगे हैण्डल को आहिस्ता से पकड़ कर दरवाजे को बाथरूम की तरफ हल्के से ढकेला। परिणामस्वरूप दरवाजा बेआवाज़ खुलता चला गया किन्तु शिवा ने दरवाजे को ज्यादा खोलना मुनासिब न समझा बल्कि उतना ही खोला जितने में वह अंदर नहाती हुई अपनी चाची को आराम से देख सके। शिवा ने धाड़ धाड़ बजती हुई अपने दिल की धड़कनों के साथ बाथरूम के अंदर की तरफ देखा....और यहीं पर दो चीज़ें एक साथ हुईं। इधर शिवा ने अंदर नहाती हुई अपनी चाची के बेपर्दा जिस्म को देखा और उधर बाहर से कमरे में दाखिल होकर अभय ने बाथरूम में अंदर की तरफ झाॅकते अपने भतीजे शिवा को देखा। और....और.....

"शिवाऽऽऽऽऽऽऽऽ।" अभय ने शेर की तरह दहाड़ते हुए आकर शिवा को पीछे से उसके शर्ट की कालर से पकड़ कर अपनी तरफ एक झटके से खींचा, और खींचते हुए ही कमरे से बाहर बड़े से ड्राइंगरूम में ले गया। और इसके बाद शुरू हुई शिवा की लात घूॅसों से धुनाई।

"तेरी हिम्मत कैसे हुई हरामखोर अपनी चाची को बाथरूम में इस तरह नहाते हुए देखने की??" अभय ने गुस्से से कहने के साथ ही शिवा को उठा कर पक्के फर्स पर पटक दिया। शिवा की दर्द भरी चीख पूरे घर में गूॅज गई।

"बोल हरामजादे बोल।" फर्स पर दर्द से कराहते शिवा के पेट में अभय ने ज़ोर से लात जमाते हुए कहा__"तेरी हिम्मत कैसे हुई ये नीच काम करने की?? बोल वर्ना यहीं पर ज़िदा दफन कर दूॅगा।"

"मु मुझे माफ आहहहह कर दीऽऽजिए चाचा जी।" लात घूॅसों के निरंतर पड़ने से कराहते हुए शिवा ने अपने हाॅथ जोड़ने का प्रयास करते हुए कहा__"मुझे माफ कर दीजिए, मुझसे ग़लती हो गई। आहहहहह माफ कर दीजिए चाचा जी...अब दुबारा ऐसा कभी नहीं करूॅगा चाचा जी। आहहहहह एक बार माफ कर दीजिए आहहहह।"

"तुझे माफ कर दूॅ कुत्ते???" शिवा को कालर से पकड़ कर उठाते हुए अभय ने गुर्राते हुए कहा__"नहीं हर्गिज़ नहीं। तू माफी के लायक नहीं है। तूने जो नीच काम करने का दुस्साहस किया है उसके लिए तो तुझे जिदा मार देना चाहिए।"

इधर अभय लात घूॅसों से शिवा की कुटाई किये जा रहा था उधर करुणा की हालत भी खराब हो गई थी। दरअसल अभय जब पहली बार कमरे में आकर शिवा को बाथरूम में झाॅकते देख दहाड़ा था तभी करुणा उछल पड़ी थी। अभय के मुख से शिवा का नाम सुनते ही वह समझ गई थी कि क्या माज़रा है? उसे इस ख़याल ने ही बुरी तरह हिला कर रख दिया था कि उसकी जेठानी का लड़का शिवा जो खुद भी उसके बेटे के समान ही है वो उसे नंगी हालत में नहाते हुए बाहर से छिप कर देख रहा था। इतना ही नहीं वह अभय के द्वारा ये नीच काम करते हुए रॅगे हाथों पकड़ा भी गया था।

करुणा मारे शर्म के तथा इस हादसे से बाथरूम के फर्स में उसी तरह नंगी हालत में बैठी तथा अपने दोनो घुटनों के बीच मुॅह छुपाए बुरी तरह रोए जा रही थी। उसकी मारे शर्म और अभय के डर से हिम्मत ही नहीं हो रही थी कि वह यहाॅ से बाहर कमरे में जाए। उसे जैसे खुद का होश ही नहीं रहा था कि वह इस वक्त किस हालत में है। उसके कानों में बाहर से आती आवाज़ें साफ सुनाई दे रही थी। जिन आवाज़ों में शिवा की दर्द भरी चीखें और अभय का शेर की तरह गरजना शामिल था।

इधर अभय सिंह शिवा को लात घूॅसों से मारते मारते अधमरा कर दिया। शिवा इतनी कुटाई के बाद बेहोश हो चुका। उसके जिस्म में कई जगह नीले निशान पड़ चुके थे। आॅख नाॅक मुॅह सब फूल गए थे, तथा नाॅक व होंठ फट गए थे जहाॅ से खून बह रहा था। शिवा के बेहोश होने के बाद भी अभय सिंह का गुस्सा शान्त नहीं हुआ था। उसने शिवा को उठा कर अपने कंधे में डाला और घर से बाहर निकल गया।

घर से बाहर आकर अभय अपने बड़े भाई अजय सिंह के घर की तरफ बढ़ता चला जा रहा था। कछ ही देर में वह अजय सिंह के घर के अंदर ड्राइंगरूम में पहुॅच गया। ड्राइंग रूम में इस वक्त कोई नज़र न आया।

"भाभीऽऽऽऽ।" अपने कंधे पर शिवा को उसी तरह लिए हुए अभय ड्राइंग रूम में खड़े होकर पूरी शक्ति से चिल्लाया था।

उसके इस तरह चिल्लाने का असर ये हुआ कि दो पल में ही कमरे से बाहर लगभग दौड़ती हुई प्रतिमा ड्राइंगरूम में दाखिल होती नज़र आई।

"क् क्या हुआ अभय???" प्रतिमा ने आते ही अभय से पूछा__"क्या बात है तुम इस तरह चिल्लाए क्यों???"

प्रतिमा की बात सुन कर अभय सिंह ने अपने कंधे से शिवा को उतार कर सामने रखे सोफे के पास जाकर सोफे पर शिवा को लगभग पटक दिया। प्रतिमा की नज़र जैसे ही अपने बेटे की अधमरी हालत पर पड़ी तो उसके हलक से चीख निकल गई।

"ये ये क्या हो गया मेरे बेटे को?" प्रतिमा दौड़ कर शिवा के चेहरे को अपने हाॅथों में लेकर रोते हुए बोली__"किसने की मेरे बेटे की ऐसी हालत??? अभय इसे कहाॅ से लेकर आए हो तुम?? प्लीज बताओ क्या हुआ है इसे?? किसने किया ये सब??"
 
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"मैंने की है इसकी ये दुर्दसा।" अभय ने बर्फ की मानिंद ठंडे स्वर में कहा__"और जी तो चाहता है कि इसे अभी जान से मार दूॅ।"

"अभऽऽऽय।" प्रतिमा एक झटके में खड़ी होकर चिल्लाते हुए कहा__"तुम होश में तो हो? ये क्या बोल रहे हो तुम??"
"शुकर मनाइए भाभी कि मैंने अपना होश नहीं खोया था।" अभय ने पहली बार अपनी भाभी की आॅखों में आॅखें डाल कर तथा गुर्राते हुए कहा__"वर्ना जिस बेटे को बेटा कहते हुए आपकी ज़ुबान नहीं थकती न उसे आज ज़िन्दा ही ज़मीन के अंदर दफन कर दिया होता।"

"तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझसे इस लहजे में बात करने की?" प्रतिमा ने चीखते हुए कहा__"तुम भूल गए हो कि तुम किससे बात कर रहे हो? अपने से बड़ों की तमीज़ भूल गए हो तुम? और.....और मेरे बेटे के बारे में ऐसा बोलने की हिम्मत कैसे हुई तुम्हारी??"

"मुझे तमीज़ और संस्कार न बताइए भाभी।" अभय ने कठोर भाव से कहा__"बल्कि इसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत आपके बेटे को है, इस हरामज़ादे को सिखाइए तमीज़ और संस्कार। आज इसने जो नीच हरकत की है, इसकी जगह कोई और होता तो अब तक मेरे हाॅथों जान से मार दिया गया होता। आपका और बड़े भइया का ख़याल कर लिया इस लिए इसे ज़िन्दा छोंड़ दिया है मैंने। मगर आइंदा अगर इसने मेरे घर की तरफ देखने की भी ज़ुर्रत की तो इसके लिए अच्छा नहीं होगा।"

प्रतिमा को एकाएक झटका सा लगा। सारा गुस्सा सारा चीखना चिल्लाना साबुन के झाग की तरह डण्डा पड़ता चला गया। अभय की इस बात ने उसे अंदर ही अंदर बुरी तरह चौंका दिया कि उसके बेटे ने कोई नीच हरकत की है। अपने पति व बेटे की रॅग रॅग से वाकिफ प्रतिमा समझ गई कि उसके बेटे ने कोई ग़लत हरकत की है, मगर क्या??

"आख़िर ऐसा क्या किया है मेरे बेटे ने अभय??" प्रतिमा ने तनिक हल्के लहजे से कहा__"जो तुम इसे जान से मार देने की बात कर रहे हो?"

"क्या बताऊॅ आपको?" अभय ने अजीब भाव से कहा__"मुझे तो आपसे बताने में भी शर्म आती है लेकिन इस हरामज़ादे को उस नीच काम करने में ज़रा भी शर्म नहीं आई।"

"अभय प्लीज, बताओ मुझे कि क्या किया है इसने??" प्रतिमा का दिल बुरी तरह धड़कने लगा था किसी आशंकावश।

"ये करुणा को उसके बाथरूम में छिप कर नहाते हुए देख रहा था।" अभय ने गुर्राते हुए कहा__"आज स्कूल में एक मास्टर की मृत्यु हो गई थी इस लिए स्कूल में सभी बच्चों की छुट्टी कर दी गई। मैं भी घर लौट आया, मगर मुझे क्या पता था कि घर आते ही मुझे इसकी गंदी करतूत देखने को मिलेगी? जैसे ही मैं कमरे में दाखिल हुआ तो मेरी नज़र बाथरूम के दरवाजे से छिप कर बाथरूम में देखते आपके इस नीच बेटे पर पड़ी। ये करुणा को नहाते हुए जाने कब से देख रहा था। इसे इस बात का भी ख़याल नहीं रहा कि करुणा इसकी चाची है जो खुद इसके माॅ के ही समान है उसे यह इस नीचता से कैसे देख सकता है??"

"सचमुच अभय।" प्रतिमा ने सारी बात सुनते ही दुखी भाव से कहा__"इसने बहुत बड़ा पाप किया है। इसे ऐसा करने की तो बात दूर बल्कि ऐसा करने की सोचना भी नहीं चाहिए था। अच्छा किया तुमने जो इसे इसकी नीचता की सज़ा दे दी। ये माफी के लायक नहीं है अभय....मगर मैं तुमसे हाॅथ जोड़ कर माफी माॅगती हूॅ इसकी तरफ से। आइंदा ये ऐसा कुछ नहीं करेगा।"

"जिसके मन में इस तरह के नीच और बुरे विचार एक बार पैदा हो जाते हैं वो इतना जल्दी ज़हन से नहीं जाते।" अभय ने कहा__"इस लिए इससे मेरा भरोसा अब उठ चुका है, और अब अगर ये मेरे घर के आस पास भी नज़र आया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा?"

"अब ये कुछ भी ऐसा वैसा नहीं करेगा अभय।" प्रतिमा ने कहा__"मैं इस बात का वचन देती हूॅ तुम्हें। मैं बहुत शर्मिंदा हूॅ कि मेरे बेटे ने ऐसी नीच व घटिया हरकत की।"

"ये सब आप और बड़े भइया के लाड़ प्यार का नतीजा है भाभी।" अभय ने कहा__"आप लोगों ने हमेशा इसकी ग़लतियों पर पर्दा डाला है, वर्ना ये ऐसा न बनता। मुझे इसकी करतूतों के बारे में सब पता है, ये गाॅव की हर लड़की और औरत पर गंदी नज़र रखता है। लेकिन मुझे ये नहीं पता था कि इसकी गंदी नज़र अपनी ही माॅ समान चाची पर भी हैं, और क्या पता इसकी ये गंदी नज़रें परिवार की किन किन लड़कियों और औरतों पर हैं??? जिसे अपनी हवस के आगे रिश्तों का कोई ख़याल ही न हो वो परिवार की किसी भी औरत के बारे में कुछ भी सोच और कर सकता है।"

"ऐसा नहीं है अभय।" प्रतिमा की ये सोच कर अब हालत ख़राब होने लगी थी कि अभय उसके बेटे की करतूतों को जानता है और उसके बारे में अब ऐसा बोल रहा है। वो तो जानती ही थी कि उसका बेटा अपने बाप की तरह ही परिवार की हर लड़की व औरत को अपने नीचे लेटाना चाहता है। उसका बस चले तो वो अपनी माॅ को भी अपने नीचे लेटाने में एक पल भी जाया न करे। आज उसी बेटे की करतूतों से सारा बना बनाया खेल बिगड़ गया था। अभय के सामने ये सब हो गया इस लिए हालातों को सम्हालने की गरज़ से उसने कहा__"मेरा बेटा इतना नीच और गिरा हुआ नहीं है कि वो परिवार की औरतों के बारे में ऐसा सोचे। मैं मानती हूॅ कि उसने ग़लती की है, और इस उमर में ऐसा हो जाता है, लेकिन ये सच है कि उसे अपनी माॅ समान चाची को ऐसे छिप कर नहाते हुए नहीं देखना चाहिए था। मैं समझाऊॅगी उसे कि ऐसा सोचना भी पाप है। तुम प्लीज ये सब बातें अजय से मत कहना वो इस सबके लिए इसे माफ नहीं करेंगे, बल्कि इसे मार मार कर घर से निकाल देंगे।"

"आप अब भी इसे बचाने के बारे में सोच रही हैं?" अभय ने एकाएक आवेशयुक्त लहजे से कहा__"इसकी ऐसी नीच हरकतों को बड़े भइया से छुपाने की बात कर रही हैं आप? नहीं भाभी नहीं...इसने जो किया है उसका पता बड़े भइया को भी चलना चाहिए। उन्हें भी तो पता चले कि उनका सपूत कितने बड़े बड़े काम करता है, ताकि उनका सिर गर्व से उठ जाए।"

प्रतिमा उससे क्या कहती??? उससे क्या कहती कि जिन बातों को वह अपने बड़े भाई से बताने की बात कर रहा है, उन सब बातों का उसके भाई को पहले से ही सब पता है।
बल्कि अगर ये कहा जाए तो ज़रा भी ग़लत न होगा कि इस सबका असली कर्ता धर्ता ही वही है। मगर प्रतिमा ये सब अभय से कह नहीं सकती थी बल्कि उसने तो प्रत्यक्ष में बस यही कहा__"मैं तुम्हारे आगे हाॅथ जोड़ती हूॅ अभय, प्लीज इस सबके बारे में तुम अजय से कुछ मत कहना। वो इसे घर से निकाल देंगे। मैं मानती हूॅ कि इसने जो किया है वो माफी के काबिल नहीं है लेकिन प्लीज अभय इसे इसकी पहली और आख़िरी ग़लती समझ कर माफ़ कर दो, और इस सबको भूल जाओ। मैं तुमसे वादा करती हूॅ कि अब से ये तुम्हारे घर की तरफ कभी देखेगा भी नहीं।"

अभय गुस्से से भरी आॅखों से प्रतिमा की तरफ देखता रहा। कुछ बोला नहीं उसने जबकि उसके इस प्रकार गुस्से से देखने पर प्रतिमा ने कहा__"अभय, शान्त हो जाओ प्लीज। तुम चाहो तो इसके कुकर्म की मुझे जो चाहे सज़ा दे दो। इसने तुम्हारी पत्नी व अपनी चाची को जिस नीचता से छिप कर नहाते हुए देखा है उसके लिए तुम जो चाहे मुझे सज़ा दे दो। तुम्हारी हर सज़ा को मैं बिना कुछ बोले स्वीकार कर लूॅगी। मगर इस सबको भूल कर इसे माफ कर दो प्लीज।"

"भगवान जानता है कि मैंने कभी अपने परिवार के बारे में ग़लत नहीं सोचा, बल्कि हमेशा सबको अपना मान कर उन्हें यथोचित सम्मान दिया है।" अभय कह रहा था__"विजय भइया की मौत तथा माॅ बाबू जी के कोमा में चले जाने के बाद इस हवेली में रहने वालों की सोच को न जाने क्या हो गया है?? मुझे नहीं पता कि गौरी भाभी, तथा उनके बच्चों ने ऐसा क्या कर दिया था कि उन्हें उसकी कीमत इस हवेली से तथा सबसे रिश्ता तोड़ कर चुकानी पड़ी। मुझे यकीन नहीं होता कि विजय भइया और गौरी भाभी ने कभी कोई ग़लत कदम उठाया रहा होगा। बल्कि वो तो ऐसे थे कि उन्हें अगर देवी देवता की तरह पूजा भी जाता तो ग़लत न होता। विजय भइया की मौत के बाद ऐसा क्या हो गया था कि गौरी भाभी को उनके बच्चों सहित इस हवेली से बाहर हमारे खेत में बने मकान के सिर्फ एक ही कमरे में रह कर अपना जीवन यापन करना पड़ा। बात यहीं पर खत्म नहीं हो जाती बल्कि सोचने वाली बात ये भी है उन लोगों ने इस सबके बाद भी ऐसा क्या कर दिया था कि उन्हें खेत के उस कमरे को भी छोंड़ कर जाना पड़ा??? जहाॅ तक मुझे पता है विराज आया था अपनी माॅ और बहन से मिलने। सुबह शिवा के साथ उसकी मार पीट हुई थी। शायद यही वजह रही होगी कि वो लोग इस डर से वहाॅ से भी पलायन कर गए कि शिवा के साथ मार पीट करने से अजय भइया उन पर गुस्सा करेंगे। मैं सोचता था कि विराज ने शिवा के साथ मार पीट क्यों की थी?? मगर अब समझ गया हूॅ कि शिवा को मार मार कर अधमरा कर देने की वजह इसकी ही कोई नीच हरकत रही होगी। इस नीच की गंदी नज़र गौरी भाभी या निधि बिटिया पर भी रही होगी। गौरी भाभी ने अपने बेटे को इसकी इन नीच हरकतों के बारे में बताया होगा और कहा होगा कि बेटा हमें यहाॅ से ले चल। यकीनन यही सब बातें हुई रही होंगी।"

अभय सिंह क्या क्या बोले जा रहा था ये सब अब प्रतिमा के सिर के ऊपर से जाने लगा था। उसके पैरों तले से ज़मीन कब की निकल चुकी थी। दिलो दिमाग़ में भयंकर विस्फोट हो रहे थे। दिल की धड़कनें रुक रुक कर इस तरह चल रही थीं जैसे उसे ज़िंदा रखने के लिए उस पर कोई एहसान कर रही हों। आॅखों के सामने अॅधेरा छाने लगा था। ज़हन में एक ही ख़याल कत्थक कर रहा था कि 'सब कुछ खत्म'।

"आज इसने ये सब करके मुझे इस सबके बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है भाभी।" अभय सिंह नाॅनस्टाप कहे जा रहा था__"और अब मैं खुद पता करूॅगा कि सच्चाई क्या है? मैं गौरी भाभी और उनके बच्चों को खोजूॅगा, और उनसे पूॅछूॅगा कि उन्होंने ऐसा क्या किया था कि उन लोगों को अपने ही घर से सब कुछ छोंड़ कर जाना पड़ा?? अब से मेरे पास सिर्फ यही एक काम होगा भाभी, मैं हर कीमत पर इस सच्चाई का पता लगाऊॅगा।"

इतना कह कर अभय सिंह वहाॅ से चला गया अपने घर की तरफ, इस बात से अंजान कि घर में कौन सी आफत उसका इन्तज़ार कर रही है?? जबकि उसकी इन बातों से प्रतिमा को लगा कि उसे चक्कर आ जाएगा। उसने बड़ी मुश्किल से खुद को सम्हाला और असहाय अवस्था में धम्म से सोफे पर लगभग गिर सी पड़ी।

इधर करुणा अब अपने कपड़े वगैरा पहन चुकी थी। तथा बेड पर गुमसुम सी बैठी थी। उसके पास ही उसकी बेटी दिव्या बैठी थी। दिव्या उमर में छोटी भले ही थी किन्तु हमेशा शान्त रहने वाली ये लड़की सब बातों को समझती थी। उसे अपने बड़े पापा व बड़ी माॅ का ये बेटा शिवा कभी पसंद नहीं आया था। वह इतनी नासमझ नहीं थी कि शिवा की हरकतों तथा उसकी आॅखों में गिजबिजाते हवस के कीड़ों को पहचान न पाती। उसने हज़ारों बार अपनी आॅखों से देखा था कि शिवा हमेशा उसकी माॅ और खुद उसे भी कभी कभी गंदी नज़र से देखता था। वह उसकी हवस से भरी नज़रों को हमेशा अपने सीने पर मौजूद छोटे छोटे उभारों पर महसूस करती थी। किन्तु डर व संकोच की वजह से वह कभी इस सबके बारे में अपनी माॅ से नहीं बताती थी।

अभय और दिव्या दोनो साथ ही स्कूल से घर आए थे। और आते ही जो हंगामा हुआ था उस सबको दिव्या ने अपनी डरी सहमी आॅखों से देखा था। वह समझ गई थी कि उसका बाप शिवा को किस बात पर इतनी बुरी तरह मार रहा था। उसने चुपके से अपनी माॅ के कमरे में जा कर बाथरूम में देखा था। बाथरूम में उसकी माॅ नग्न अवस्था में फर्स पर अपने दोनो घुटनों के बीच मुह छुपाए बैठी रो रही थी। अपनी माॅ को नग्न अवस्था में बैठे इस तरह रोते देख वह हैरान रह गई थी। पहली बार अपनी ही माॅ को नंगी हालत में देखा था उसने। जबकि खुद के जिस्म को अपने सामने भी देखने का कभी उसे ख़याल ही नहीं आया था।

डरी सहमी हालत में वह कुछ देर अपनी माॅ को देखती रही फिर हिम्मत करके वह पलटी और बेड से अपनी माॅ के सारे कपड़े उठा कर उसने बाथरूम के बाहर से ही करुणा की तरफ उछाल दिया। अपने नंगे बदन पर अचानक कपड़ों के पड़ने से करुणा बुरी तरह हड़बड़ा गई। उसकी नज़र पहले खुद के ऊपर गिरे हुए कपड़ों पर पड़ी फिर बाथरूम के गेट पर डरी सहमी खड़ी अपनी बेटी पर। दिव्या पर नज़र पड़ते ही वह चौंकी। एकाएक ही उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ। उसने हड़बड़ाकर अपने नंगे बदन को छिपाने के लिए उन कपड़ों से अपने बदन के गुप्तांगों को ढॅका। जबकि बाथरूम के गेट पर खड़ी दिव्या सीघ्र ही अपनी नज़रें अपनी माॅ पर से हटा कर वापस पलट गई। बाहर शिवा की धुनाई और उसकी दर्द में डूबी हुई चीखें चालू थी। कुछ देर बाद करुणा अपने कपड़े पहन कर बाथरूम से बाहर निकली और बेड पर बैठी अपनी बेटी दिव्या को देख कर उसके जिस्म में एक अजीब सी झुरझुरी महसूस होती चली गई। चेहरे पर लाज और शर्म की लाली फैल गई और उसका सिर झुक गया। अपनी ही बेटी से नज़र मिलाने की हिम्मत न हुई उसमें।

"मम्मी।" दिव्या बेड से उठकर तथा दौड़ते हुए आकर अपनी माॅ से लिपट गई। उसकी आॅखों से आॅसू बहने लगे थे। करुणा को समझ न आया कि वह अपने सीने से लिपटी तथा आॅसू बहाती बेटी से क्या कहे?? उसके दिलो दिमाग़ में अंधड़ सा मचा हुआ था। कमरे के बाहर से अब कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। शायद अभय शिवा को लेकर जा चुका था।

करुणा कुछ पल बुत बनी खड़ी रही फिर जाने क्या सोच कर उसने अपने सीने से दिव्या को अलग करके कहा__"जाओ अपने कमरे में और अपनी इस स्कूली ड्रेस को चेंज कर लो।"

दिव्या ने अजीब भाव से अपनी माॅ के चेहरे की तरफ देखा, और फिर पलट कर कमरे से बाहर निकल गई। इधर दिव्या के जाते ही करुणा के चेहरे पर एकाएक पत्थर जैसी कठोरता आ कर ठहर गई। ऐसा लगा जैसे उसने किसी बात का बहुत बड़ा फैंसला कर लिया हो।
अपडेट हाज़िर है दोस्तो......
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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अपडेट.........《 21 》

अब तक.......

डरी सहमी हालत में वह कुछ देर अपनी माॅ को देखती रही फिर हिम्मत करके वह पलटी और बेड से अपनी माॅ के सारे कपड़े उठा कर उसने बाथरूम के बाहर से ही करुणा की तरफ उछाल दिया। अपने नंगे बदन पर अचानक कपड़ों के पड़ने से करुणा बुरी तरह हड़बड़ा गई। उसकी नज़र पहले खुद के ऊपर गिरे हुए कपड़ों पर पड़ी फिर बाथरूम के गेट पर डरी सहमी खड़ी अपनी बेटी पर। दिव्या पर नज़र पड़ते ही वह चौंकी। एकाएक ही उसे अपनी नग्नता का एहसास हुआ। उसने हड़बड़ाकर अपने नंगे बदन को छिपाने के लिए उन कपड़ों से अपने बदन के गुप्तांगों को ढॅका। जबकि बाथरूम के गेट पर खड़ी दिव्या सीघ्र ही अपनी नज़रें अपनी माॅ पर से हटा कर वापस पलट गई। बाहर शिवा की धुनाई और उसकी दर्द में डूबी हुई चीखें चालू थी। कुछ देर बाद करुणा अपने कपड़े पहन कर बाथरूम से बाहर निकली और बेड पर बैठी अपनी बेटी दिव्या को देख कर उसके जिस्म में एक अजीब सी झुरझुरी महसूस होती चली गई। चेहरे पर लाज और शर्म की लाली फैल गई और उसका सिर झुक गया। अपनी ही बेटी से नज़र मिलाने की हिम्मत न हुई उसमें।

"मम्मी।" दिव्या बेड से उठकर तथा दौड़ते हुए आकर अपनी माॅ से लिपट गई। उसकी आॅखों से आॅसू बहने लगे थे। करुणा को समझ न आया कि वह अपने सीने से लिपटी तथा आॅसू बहाती बेटी से क्या कहे?? उसके दिलो दिमाग़ में अंधड़ सा मचा हुआ था। कमरे के बाहर से अब कोई आवाज़ नहीं आ रही थी। शायद अभय शिवा को लेकर जा चुका था।

करुणा कुछ पल बुत बनी खड़ी रही फिर जाने क्या सोच कर उसने अपने सीने से दिव्या को अलग करके कहा__"जाओ अपने कमरे में और अपनी इस स्कूली ड्रेस को चेंज कर लो।"

दिव्या ने अजीब भाव से अपनी माॅ के चेहरे की तरफ देखा, और फिर पलट कर कमरे से बाहर निकल गई। इधर दिव्या के जाते ही करुणा के चेहरे पर एकाएक पत्थर जैसी कठोरता आ कर ठहर गई। ऐसा लगा जैसे उसने किसी बात का बहुत बड़ा फैंसला कर लिया हो।
अब आगे,,,,,,,


अभय गुस्से में तथा भभकते हुए अजय सिंह के घर से बाहर आकर अपने घर की तरफ जाने लगा। अभी वह अपने घर की बाउंड्री पार ही किया था कि उसे उसकी बेटी दिव्या भागते हुए घर से बाहर उसकी तरफ ही आती दिखी। बुरी तरह रोये जा रही थी वह। अभय को देख कर वह उससे रोते हुए लिपट गई, फिर तुरंत ही अपने पिता से अलग हुई।

"पापा वो म मम्मी...मम्मी ने।" दिव्या रोये जा रही थी। उसके मुख से कुछ निकल ही नहीं रहा था।
"क्या हुआ बेटी...क्या कह रही है तू?" अभय अंजानी आशंका से घबरा गया।
"पापा, वो मम्मी कमरे का दरवाजा ही नहीं खोल रही हैं।" दिव्या ने रोते हुए कहा__"मैने बहुत बार मम्मी को पुकारा लेकिन मम्मी न तो दरवाजा खोल रही हैं और ना ही कुछ बोल रही हैं। पापा मम्मी ने कहीं कुछ कर तो नहीं लिया? आप उन्हें बचा लीजिए जल्दी से।"

"क्याऽऽऽ???" अभय बुरी तरह चौंका, और साथ ही दौड़ पड़ा घर के अंदर की तरफ। उसके पीछे दिव्या भी रोते हुए दौड़ पड़ी थी।

अभय जितना तेज़ दौड़ सकता था उतना तेज़ दौड़ कर ही उस कमरे के पास पहुॅचा था जिस कमरे के अंदर करुणा थी।

"करुणाऽऽऽ दरवाजा खोलो।" अभय ने चीखते हुए कहा__"ये क्या बेवकूफी है??? दरवाजा खोलो जल्दी। करुणाऽऽऽ।"

अभय के चिल्लाने का कोई असर न हुआ। वह कुछ देर इसी तरह करुणा को पुकारता रहा। मगर ना तो दरवाजा खुला और ना ही अंदर से करुणा ने कुछ कहा। अभय को किसी अनिष्ट की आशंका हुई। उसने दरवाजे को तोड़ने की कोशिश करने लगा।

"करुणा, प्लीज दरवाजा खोलो।" अभय दरवाजे को तोड़ने के साथ साथ कहता भी जा रहा था__"ये तुम क्या पागलपन कर रही हो? अगर तुम ये समझती हो कि इस सबमें तुम्हारा कोई दोस है तो तुम ग़लत समझ रही हो करुणा। तुम मेरी करुणा हो, मुझे तुम पर खुद से भी ज्यादा भरोसा है। तुम कभी ग़लत नहीं हो सकती। मैं जानता हूॅ कि उस हरामज़ादे ने ही तुम्हें ग़लत इरादे से देखने की कोशिश की है। तुम तो उसे अपना बेटा ही मानती हो करुणा। तुम कहीं भी ग़लत नहीं हो, प्लीज ऐसा वैसा कुछ मत करना।"

अभय पूरी शक्ति से कमरे के दरवाजे को तोड़ने के लिए धक्के मार रहा था। पास में ही उसकी बेटी दिव्या भी खड़ी थी, जो सिसक सिसक कर रोये जा रही थी। अंदर ही किसी कमरे में शगुन के रोने की भी आवाज़ आ रही थी। लेकिन उसके रोने की तरफ किसी का ध्यान नहीं था।

"तुम मुझे सुन रही हो न करुणा?" अभय अधीर भाव से कह रहा था__"तुम्हें मेरी कसम है, तुम कोई भी ग़लत क़दम नहीं उठाओगी। तुम मेरी जान हो करुणा, तुम्हारे बिना जीने की मैं सोच भी नहीं सकता। तुम्हें ये सब करने की या सोचने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम मेरी नज़र में उसी तरह गंगा की तरह पवित्र हो करुणा। प्लीज ऐसा वैसा कुछ मत करना, वर्ना तुम्हारी कसम सारी दुनियाॅ को आग लगा दूॅगा मैं।"

बड़ी मुश्किल से और भीषण प्रहार के बाद आख़िर दरवाजा टूट ही गया। कमरे के अंदर की तरफ टूट कर गिरा था दरवाजा। अभय ने एक भी पल नहीं गॅवाया। बिजली की सी तेज़ी से वह कमरे के अंदर दाखिल हुआ। और.......

"न नहींऽऽऽऽ।" अभय के हलक से चीख निकल गई। कमरे में पहुॅचते ही उसने देखा कि करुणा कमरे की छत पर लगे पंखे के नीचे रस्सी के सहारे झूल रही थी। रस्सी का फंदा उसके गले में था तथा रस्सी का दूसरा सिरा कमरे की छत पर बीचो बीच लगे लोहे के कुंडे में फॅसा था। नीचे फर्स पर एक स्टूल लुढ़का हुआ पड़ा था।

स्पष्ट था कि करुणा ने आत्म हत्या करने के लिए ही ये सब किया था। वह इस घटना के बाद खुद को ही इस सबका दोसी मानती थी। वो समझती थी कि अब वह किसी को मुॅह दिखाने के काबिल नहीं रही है। वह समझती थी कि इस सबके बाद उसके पति उसे ग़लत समझेंगे। शायद इसी वजह से उसने ये क़दम उठाया था।

अभय बुरी तरह उसके पैरों से लिपटा रोये जा रहा था, उसकी बेटी दिव्या का भी वही हाल था। अचानक अभय को जाने क्या सूझा कि उसने तुरंत ही बेड को खींचा और करुणा के पैरों के नीचे उसी लुढ़के पड़े स्टूल को रखा। जिससे करुणा के गले में फॅसा रस्सी का फंदा टाइट न हो। अभय खुद बेड पर चढ़ गया और करुणा के गले से रस्सी के फंदे को छुड़ाने लगा।

कुछ ही पल में करुणा के गले से रस्सी का फंदा निकल गया। करुणा के गले में फंदा फॅसा हुआ था जिसकी वजह से करुणा की आॅखें व जीभ बाहर आ गई थी। अभय ने करुणा को अपने दोनो हाथों से सम्हाल कर उसी बेड पर आहिस्ता से लिटाया, और करुणा की नब्ज चेक करने लगा। अभय ये महसूस करते ही खुश हो गया कि करुणा की नब्ज अभी चल रही है। मतलब उसने करुणा को सही समय पर सही सलामत बचा लिया था। अगर थोड़ी देर और हो जाती तो शायद भगवान भी करुणा को मौत से बचा नहीं पाते। अभय ने खुश हो कर करुणा को खुद से चिपका लिया। दिव्या भी दौड़ कर अपनी माॅ से लिपट गई।

करुणा अभी बेहोशी की अवस्था में थी। अभय के कहने पर दिव्या ने तुरंत ही एक ग्लास में पानी लाकर अभय को दिया। अभय उस पानी से हल्के हल्के छीटे डालकर करुणा को होश में लाने की कोशिश करने लगा। कुछ ही देर में करुणा को होश आ गया। उसने गहरी गहरी साॅसे लेते हुए अपनी आॅखें खोली। सबसे पहले नज़र अपने पति पर ही पड़ी उसकी। वस्तुस्थित का ख़याल आते ही उसका चेहरा बिगड़ने लगा। आॅखों से आॅसू बहने लगे।

"मुझे क्यों बचाया अभय आपने?" फिर उसने उठकर रोते हुए कहा__"मुझे मर जाने दिया होता न। इस सबसे मुक्ति तो मिल जाती मुझे।"
"तुमने ये सब करने से पहले क्या एक बार भी नहीं सोचा था करुणा कि तुम्हारे बाद मेरा और हमारे बच्चों का क्या होता?" अभय ने भर्राए स्वर में कहा__"तुमने क्या सोच कर ये सब किया करुणा? क्या तुम ये समझती थी कि इस सबकी वजह से मैं तुम पर किसी प्रकार का शक या तुम पर कोई लांछन लगाऊॅगा?? नहीं करुणा नहीं..हमारा प्यार इतना कमज़ोर नहीं है जो इतनी सी बात पर तुम्हें मुझसे जुदा कर देगा। मुझे तो हर हाल में तुम पर यकीन है करुणा लेकिन शायद तुम्हें मुझ पर यकीन नहीं रहा। तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं था, अगर होता तो इतना बड़ा फैसला नहीं करती तुम।"

"मुझे माफ कर दीजिए अभय।" करुणा ने रोते हुए कहा__"मैं जानती हूॅ कि आपको मुझ पर हर तरह से भरोसा है। मगर हालात ऐसे बन गए थे कि मुझे यही लग रहा था कि इस सबकी वजह से मैं अब कहीं भी किसी को मुह दिखाने के काबिल नहीं रही। इसी लिए मैं इस सबको सहन नहीं कर पाई और खुद को खत्म करने का फैसला कर लिया था।"

"आज अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो।" अभय ने एकाएक ठंडे स्वर में कहा__"मैं उस हरामज़ादे को ज़िंदा नहीं छोंड़ता जिसकी वजह से ये सब हुआ।"
"मुझे नहीं पता था अभय कि वो कमीना मुझे इस नज़र से देखता है।" करुणा ने कहा__"अगर पता होता तो कभी उसे इस घर में घुसने ही नहीं देती।"

"पापा, शिवा भइया बहुत गंदे हैं।" सहसा इस बीच दिव्या ने भी हिम्मत करके कहा__"वो अक्सर अकेले में मुझे गंदी नज़र से देखते हैं।"
"क्याऽऽ???" अभय बुरी तरह उछल पड़ा, फिर गुर्राते हुए बोला__"उस हरामखोर की ये हिम्मत थी की वो मेरी बेटी को भी गंदी नज़र से देखता था?? नहीं छोंड़ूॅगा उस नीच और घटिया इंसान को, अभी उसे जान से मार दूॅगा मैं।"

अभय ये सब कह कर बेड से उठने ही लगा था कि करुणा ने हड़बड़ा कर तुरंत ही अभय का हाॅथ पकड़ लिया, फिर बोली__"नहीं अभय, आप ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे। जो कुछ हुआ उससे ये तो पता चल ही गया है कि वो कैसा लड़का है। इस लिए अब उससे कोई मतलब नहीं रखेंगे हम, और ना ही उसे इस घर में आने देंगे।"

"करुणा उस नीच की हिम्मत तो देखो,वो हमारी इस नन्हीं सी बच्ची के बारे में भी ऐसी नीयत रखता है।" अभय ने मारे गुस्से के उफनते हुए कहा__"उसने एक बार भी नहीं सोचा होगा कि वो ये सब क्या सोचता है और करने का इरादा रखता है? नहीं करुणा, ऐसे नीच और गिरी हुई सोच वाले लड़के को एक पल भी जीवित रखना पाप है। मुझे भइया भाभी की कोई परवाह नहीं है, मैं उसे किसी भी कीमत पर अब ज़िंदा नहीं छोंड़ूॅगा।"

"नहीं अभय, प्लीज रुक जाइए। आपको मेरी कसम।" करुणा ने भारी स्वर में कहा__"सबसे पहले हमें उसके माता पिता से इस बारे में बात करना चाहिए। उन्हें बताना चाहिए कि उनका बेटा कैसी सोच रखता है अपने ही घर की माॅ बहनों के लिए। जल्दबाज़ी में उठाया हुआ क़दम अच्छा नहीं होता अभय। खुद को शान्त कीजिए"

"मैं भाभी से बोल आया हूॅ कि आज के बाद अगर उनके इस नीच बेटे ने मेरे घर की तरफ देखा भी तो उसके लिए अच्छा नहीं होगा।" अभय ने कहा।

"ये आपने अच्छा किया।" करुणा ने कहा__"दीदी ज़रूर इस संबंध में बड़े भइया से बात करेंगी।"
"हमसे बहुत बड़ी ग़लती हुई है करुणा।" अभय ने एकाएक अधीर होकर कहा__"आज मुझे एहसास हो रहा है कि क्यों मेरी देवी समान गौरी भाभी हम सबको छोंड़ कर इस हवेली से अलग खेतों में बने उस मकान पर रहती थी? सिर्फ इसी हरामज़ादे की वजह से करुणा। उस रात विराज आया था मुम्बई से, और सुबह उसने ही शिवा को मार मार कर अधमरा किया था। तब हमने सोचा था कि उसने बेवजह ही किसी खुंदक में शिवा को मारा था। जबकि अब मुझे सब बातों की समझ आई है कि क्यों विराज ने शिवा को मारा था?"

"क्या मतलब है आपका?" करुणा चौंकी।
"इसी नीच की वजह से करुणा।" अभय ने आवेश में कहा__"ये तो समझ ही गई हो तुम कि शिवा अपने ही घर की माॅ बहनों के बारे में ऐसी नीयत रखता है। उसने उसी नीयत से गौरी भाभी और हमारी फूल सी बच्ची निधि पर भी यही सब किया रहा होगा। इसी वजह से ये सब हुआ है।"

"लेकिन अगर ऐसी बात थी तो।" करुणा ने सोचने वाले भाव से कहा__"गौरी दीदी को इस बारे में बड़ी दीदी और बड़े भइया को बताना चाहिए था। अगर वो ये सब उनसे बताती तो वो अपने बेटे पर लगाम लगाती। लेकिन वो तो हवेली ही छोंड़ कर खेतों वाले मकान में गुड़िया के साथ रहने लगी थी। क्या सिर्फ इतनी सी बात की वजह से??"

"वजह तो हमें यही बताया था भइया भाभी ने कि गौरी भाभी ने प्रतिमा भाभी के कमरे से उनके जेवर चुराए थे।" अभय ने कहा__"और इतना ही नहीं बल्कि बड़े भइया को अपने रूप जाल में फसाने की कोशिश भी की थी। इस लिए बड़े भइया ने उन लोगों को हवेली से निकाल दिया था।"

"हाॅ तो ग़लत क्या था अभय?" करुणा ने अजीब भाव से कहा__"गौरी दीदी ने तो सच में बड़े भइया के साथ ग़लत करने की कोशिश की थी। इस सबका सबूत भी दिखाया था प्रतिमा दीदी ने हम लोगों को। उन फोटोग्राफ्स में साफ साफ दिखता था कि कैसे गौरी दीदी ने बड़े भइया को उनके ही कमरे में अपनी बाहों में जकड़ा हुआ था।"

"क्या ये स्वाभाविक बात लगती है करुणा कि बड़े भइया गौरी भाभी के साथ उस स्थित में हों और दूसरा कोई उस स्थिति में उनकी फोटो खींचे?" अभय ने सोचने वाले भाव से कहा__"जबकि उस स्थिति में होना तो ये चाहिए था कि अगर गौरी भाभी ने बड़े भइया को ग़लत नीयत से जकड़ा हुआ था तो इस सबका बड़े भइया विरोध करते, और गौरी भाभी को इस सबके लिए डाॅटते। दूसरी बात उन लोगों की उस वक्त की फोटो बनाने वाला कौन था?? अगर फोटो खींचने वाली प्रतिमा भाभी थी तो उन्हें फोटो खींचने की बजाय इस सबको रोंकना था। आखिर फोटो खींचने के पीछे उनका क्या उद्देश्य था? क्या सिर्फ ये कि हम सब उन फोटोज़ को देख कर ये यकीन कर सकें कि गौरी भाभी सच में बड़े भइया के साथ ये सब करने की नीयत रखती हैं या ये सब करती भी हैं???"

"आप कहना क्या चाहते हैं अभय??" करुणा ना समझने वाले भाव से बोली।
"आज के इस हादसे से मेरे सोचने का नज़रिया बदल गया है करुणा।" अभय ने गंभीर लहजे में कहा__"हम सब जानते थे कि विजय भइया और गौरी भाभी किसी देवी देवता से कम नहीं थे। उन्होंने भूल से भी किसी के साथ कभी भी कुछ ग़लत नहीं किया था। वो पढ़ाई लिखाई में भले ही ज़ीरो थे, लेकिन जब से उन्होने खेती बाड़ी का काम सम्हाला था तब से हमारे घर के हालात हज़ार गुना बेहतर हो गए थे। यहाॅ तक कि उनकी मेहनत और लगन से किसी भी चीज़ की कभी कोई कमी न रही थी। उनकी ही मेहनत और रुपये पैसे से इतनी बड़ी हवेली बनी और उनके ही पैसों से बड़े भइया ने अपने कारोबार की बुनियाद रखी थी। माॅ बाबूजी विजय भइया और गौरी भाभी को सबसे ज्यादा मानते थे। विजय भइया और गौरी भाभी ने कभी भी मुझे किसी बात के लिए कुछ नहीं कहा, बल्कि विजय भइया ने तो उस समय के हिसाब से मुझे एक बुलेट मोटर साइकिल खरीद कर दी थी। पूरे गाॅव में किसी के पास बुलेट नहीं थी। इतना ही नहीं उन्होंने अपने ही पैसों से बाबूजी के लिए एक शानदार कार खरीदी थी ताकि बाबूजी बड़े शान से उसमें सवारी करें। घर का बड़ा बेटा होने का जो फर्ज़ अजय भइया को निभाना चाहिये था वो फर्ज़ विजय भइया निभा रहे थे वो भी अपनी पूरी निष्ठा के साथ। मुझे याद है करुणा कि अजय भइया और प्रतिमा भाभी कभी भी विजय भइया और गौरी भाभी से ठीक से बात नहीं करते थे। बल्कि उनके हर काम में कोई न कोई नुक्स निकालते ही रहते थे। फिर समय गुज़रा और एक रात विजय भइया को किसी ज़हरीले सर्प ने काट लिया और वो इस दुनिया से चल बसे। उनके इस दुनिया से जाते ही हम सबकी खुशियों पर ग्रहण सा लग गया करुणा। माॅ बाबूजी को उनकी मौत से गहरा सदमा लगा था। हम सब उनके सदमे की वजह से परेशान हो गए थे। बड़े भइया और भाभी ने ही उन्हें सम्हाला था। एक दिन माॅ बाबूजी उसी कार से शहर जा रहे थे तो रास्ते में उनका एक्सीडेंट हो गया और वो दोनो उस एक्सीडेंट की वजह से कोमा में चले गए। समझ में नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा था हम सबके साथ?"

"इन सब बातों को सोचने का क्या मतलब है अभय?" करुणा ने कहा__"जो होना था वो तो हो ही गया। इसमें कोई क्या कर सकता था भला?"

"मैं ये सब कभी नहीं भूला करुणा।" अभय ने कहा__"मैं कभी किसी से कुछ कहता नहीं मगर मेरे अंदर हमेशा ये सब गूॅजता रहता है। आज के इस हादसे ने मेरी आॅखें खोल दी है करुणा। इस हादसे ने ये सोचने पर मजबूर कर दिया है मुझे कि ये जो कुछ भी हुआ वो सब क्या सच था या फिर किसी झूॅठ को छुपाने के लिए उस पर इन सब बातों को गढ़ कर पर्दा डाला गया था? ये तो सच है करुणा कि माॅ बाप का खून और उनके अच्छे संस्कारों की वजह से ही कोई औलाद सही रास्तों पर चलते हुए भविश्य में अपने अच्छे काम और नाम की वजह से अपने माॅ बाप और कुल का नाम रोशन करते हैं। शिवा को देख कर अंदाज़ा लगाना कोई मुश्किल नहीं है कि उसकी परवरिश और उसके खून में कितनी गंदगी है। दुनियाॅ में बहुत से ऐसे माॅ बाप हैं जिनके एक ही बेटा होता है मगर वो अपने एक ही बेटों को क्या ऐसे संस्कार देते हैं जिसकी वजह से वो अपने ही घर की माॅ बहनो पर बुरी नीयत रखे?? नहीं करुणा नहीं....कम से कम मेरी जानकारी में तो ऐसे माॅ बाप और ऐसे बेटे नहीं हैं। ज़रूर इनमें ही कहीं न कहीं कोई ख़राबी है। मैने फैंसला कर लिया है कि मैं खुद सारी सच्चाई का पता लगाऊॅगा।"
 

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