Adultery एक हाउसवाइफ की कहानी

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ये कहानी है राहुल की. जिसकी उम्र करीब 25 साल है. कहानी शुरू करने से पहले राहुल की लाइफ का बॅकग्राउंड बता दूँ ..जिससे आपको इसकी आगे की कहानी समझने में मदद मिलेगी. राहुल पुणे में एक मल्टिनॅशनल कंपनी में काम करता था..और उसे अपने ऑफीस में काम करने वाली एक लड़की से प्यार हो गया, और दोनो ने एक दूसरे के साथ जीने मरने की कसमें भी खा डाली..बात शादी तक पहुँच गयी..लेकिन राहुल के घर वालो को उसका ये फ़ैसला मंजूर नही था...कारण था वो लड़की...क्योंकि वो मुसलमान थी. नाम था सबा.

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आज से पहले राहुल के खानदान में किसी ने भी इंटरकास्ट मैरिज नही की थी...राहुल के घर वालो ने उसे बहुत समझाया लेकिन वो किसी की भी बात समझने को राज़ी नही हुआ...आख़िरकार उसके पापा ने गुस्से में आकर उसे घर से निकल जाने की बात कह दी...जवान खून था और प्यार का भूत सवार था, इसलिए राहुल ने भी बिना कोई देरी किए उसी वक़्त अपना सामान पैक किया और घर छोड़ दिया...उसकी माँ और बहन ने काफ़ी रोका, रोई,पर उन बाप-बेटे ने अपने फैसले नही बदले..
 
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वहां से निकलकर राहुल सीधा सबा के घर पहुँचा..
उसके पिता का देहांत कई साल पहले हो चुका था...उसकी माँ एक सरकारी
स्कूल में टीचर थी और सबा की एक छोटी बहन कॉलेज में पढ़ रही
थी...उसकी माँ को राहुल के घर वालो की तरह उनकी शादी से कोई
आपत्ति नहीं थी ..वो अपनी बेटी की खुशी में ही खुश थी...इसलिए उसने
उन दोनो को एक साथ रहकर अपनी जिंदगी जीने की इजाज़त दे दी ..
राहुल और सबा की शादी आनन-फानन में एक आर्यसमाज मंदिर में हुई...और
शादी के बाद राहुल सीधा मुंबई के लिए निकल गया..जहाँ उसके दोस्त ने
एक अच्छी सी जॉब का पहले से प्रबंध कर रखा था.
नौकरी तो उसे मिल गयी पर घर आसानी से नही मिल सका..राहुल कुछ
दिन के लिए अपने दोस्त के घर पर ही रुक गया..उसका भी छोटा सा घर था,
इसलिए राहुल जल्द से जल्द वहां से निकलना चाहता था..
मुंबई मे घर मिलना आसान काम नही था...वो शुरू से ही सॉफ सुथरे माहौल में
रहता आया था..इसलिए अब भी ढंग की जगह पर ही रहना चाहता था...और
जो ढंग की जगह उसे पसंद आती वहां का किराया काफ़ी था जो राहुल
की सैलेरी का लगभग आधा था...आधे से ज़्यादा पैसे अगर किराए में दे दिए
तो बाकी के खर्चे कैसे चलाएगा..यही सोचकर राहुल अक्सर परेशान रहता था.
उसकी परेशानी देखकर सबा ने भी जॉब करने की बात कही...आख़िरकार
पहले भी तो वो जॉब कर ही रही थी..राहुल भी उसकी बात मान गया और
सबा ने जॉब ढुढ़नी शुरू कर दी.राहुल के बॉस को जब ये बात पता चली तो
उसने उसी ऑफीस में सबा को जॉब करने की सलाह दी..इंटरव्यू हुआ और
सिलेक्शन भी हो गया.अब उन दोनो की सॅलरी से वो आसानी से एक
अच्छा सा घर ले सकते थे.
और यहाँ भी राहुल के बॉस ने ही उसकी मदद की,उन्होने अपनी ही
सोसायटी में उसे एक फ्लॅट किराए पर दिलवा दिया, जो ऑफीस के
काफ़ी करीब था...सोसायटी भी अच्छी थी और रेंट भी वाजिब था...और
धीरे-2 राहुल और सबा की जिंदगी सेट्ल होने लगी.
दशहरे वाले दिन पूरी कॉलोनी में काफ़ी रौनक थी...सबने मिलकर वहां एक
हाउसिंग वैलफेयर कमेटी बनाई हुई थी जो ऐसे कार्यकर्म आयोजित करती
थी जिसमें ज़्यादातर हर त्योहार को मिल जुलकर मनाया जाता
था...दशहरे वाले दिन भी एक छोटा सा रावण बना कर उसका दहन किया
गया..और बाद में सभी ने मिल जुलकर डिनर भी किया.
राहुल का बॉस शशांक सिन्हा इस सोसायटी की वेलफेयर कमेटी का
प्रेसीडेंट था...इसलिए ऐसे सभी कार्यकर्म की ज़िम्मेदारी उसी के कंधो पर
रहती थी.
डिनर के टाइम भी माहौल काफ़ी खुशनुमा था...
सोसायटी की सारी महिलाए अपने-२ ग्रुप बनाकर टेबल पर बैठी गप्पे मार
रही थी...बच्चे पास ही बने पार्क में खेल रहे थे...और सभी मर्द अपने -२ ग्रुप में
बैठकर खाना खा रहे थे या दारू पी रहे थे..
ऐसे ही एक टेबल पर राहुल अपने बॉस शशांक के साथ बैठा था, साथ में थे
सोसायटी के ३ लोग और
बियर पीते हुए इधर - उधर की बाते होने, कुछ देर बाद वहीं बैठे गुप्ता जी ने एक
टॉपिक छेड़ा,जिसे सुनकर सभी के कान खड़े हो गये..
गुप्तजी : "अरे भाई...दीवाली आने वाली है...कुछ सोचा है अब की बार कैसे
मैनेज करेंगे...''
राहुल का बॉस शशांक बोला : "सोचना क्या है...हमेशा की तरह वही
पुराना तरीका...बारी-2 से सभी के घर पर...ऐसा करने से किसी पर बर्डन भी
नही पड़ता और एंजाय भी हो जाता है...''
गुप्तजी : "वो तो मुझे भी पता है...पर मैं जिस बारे में बात कर रहा हू वो तो
समझो सिन्हा साहब...इस बार कैसे करेंगे...हमारे मेंबर्स तो काफ़ी कम है...ऐसे
मज़ा नही आएगा...''
उनकी बात सुनकर शशांक बोला : "गुप्ताजी ...सब हो जाएगा....आप बस
देखते रहिए...मेंबर्स की कमी थोड़े ही है....ये है ना राहुल...ये जॉइन करेगा इस बार....''
राहुल जो अभी तक चुपचाप बैठकर अपनी बियर के सीप लगा रहा था,एकदम
से अपना नाम सुनकर चोंक गया...उसे तो पता भी नही था की किस बारे में
बात चल रही है...वो बेचारा अवाक सा होकर कभी गुप्ताजी और कभी
अपने बॉस शशांक को देखने लगा..जैसे उनसे पूछना चाहता हो की किसमें उसे
जॉइन करवा रहे है...
 
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उसके चेहरे को देखकर शशांक बोला : "अरे राहुल, घबराओ मत...सिर्फ़ खेलने की बात चल रही है...वो क्या है ना, हमारी सोसायटी में हर साल दीवाली पर ताश खेलते है...दशहरे के बाद तकरीबन रोजाना ये खेल खेलकर हम अपना टाइम पास करते है...वैसे तो हमने जो सोसायटी का क्लब बनाया हुआ है उसमे अक्सर हम ताश खेलते है , पर दिवाली के दिनों में हम पैसो से खेलते है, और इन दिनों जुआ खेलना शुभ माना जाता है....इसलिए धीरे-2 हम सभी ने अपना एक ग्रुप बना लिया है, जिसमे हम सभी ताश खेलते है...'' राहुल ने सिर हिला कर अपनी सहमति जताई...और बोला : "ओह्ह्ह ..तो ये बात है...ताश तो हमारे यहाँ भी खेलते है...दिवाली के दिनों में ..और मुझे तो शादी से पहले इसका बहुत ज़्यादा शोंक था...पर पैसो से खेलना थोड़ा मुश्किल होगा ....'' राहुल को ऐसे अटकता देखकर उसका बॉस समझ गया की वो क्या कहना चाहता है.... वो बोला : "अरे राहुल...तू पैसो की चिंता मत कर...इस साल दीवाली का बोनस मिलेगा...और मैने तेरा नाम एस ए स्पेशल केस रिकमेंड कर दिया है...इसलिए अगले 10 दिनों में तुम्हारे खाते में बोनस की रकम ट्रान्स्फर कर दी जाएगी...'' वैसे तो बोनस उन्ही को मिलता है जो कंपनी में एक साल पूरा कर चुके है...पर उसके बॉस की वजह से राहुल को वो बोनस सिर्फ़ 6 महीने की सर्विस के बाद ही मिल रहा था...ये राहुल के लिए बहुत खुशी की बात थी...और करीब 50 हज़ार रुपय एकदम से बिना माँगे मिल जाए तो थोड़ा बहुत इस तरह से जुए में लगा देने से उसे कोई परेशानी नही होने वाली थी...बल्कि राहुल को तो यकीन था की वो जीतेगा ही...क्योंकि उसके बॉस और सोसायटी में रहने वाले दूसरे लोग ये नहीं जानते थे की वो अपने दोस्तो में ताश खेलने का चैम्पियन था...वो तो समय के साथ-2 उसकी ताश खेलने की आदत छूट गयी वरना इस खेल में उसने काफी पैसे भी कमाए थे. उसने खुशी-2 हाँ कर दी.. शशांक ने बताया की उनके ताश खेलने वाले क्लब में सिर्फ़ 4 दंपति है जो ये खेल हर साल खेलते है, पहले 5 थे, जो अब सोसायटी छोड़कर जा चुका है ..ये सुनकर राहुल को थोड़ा आश्चर्य ज़रूर हुआ की जिस सोसायटी में करीब 200 फॅमिलीस रहती है,उनमें से सिर्फ़ 4 लोग ही इस ताश खेलने वाले ग्रुप के मेंबर है...वो ये बात अपने बॉस से क्लेरिफाई करना चाहता था पर उसकी हिम्मत नही हुई पूछने की ...वैसे भी इस खेल में जितने ज़्यादा मेंबर होंगे उतना ही कम मज़ा मिलेगा..इसलिए उसने कुछ पूछा ही नही. राहुल ने अपना पेग ख़त्म किया और उन्हे अगले दिन मिलने को कहकर वहां से चला गया. उसके जाते ही वहां बैठे गुप्ताजी और शशांक के साथ -2 उनके दोस्त मनोहर कपूर और सरदारजी (गुरपाल सिंह) के चेहरे पर कुटिल मुस्कान आ गयी... दरअसल ये चारों एक ही थाली के चट्टे -बट्*टे थे...और इन सभी ने मिलकर राहुल को अपने जाल में फँसाने का ये तरीका निकाला था.. और इन सभी का निशाना था उसकी खूबसूरत बीबी....सबा. जिस दिन से शशांक ने राहुल की बीबी को ऑफिस की पार्टी में देखा था, उसके मन मे उसे चोदने के ख़याल आने लगे...इसलिए वो अपनी तरफ से बढ़ - चड़कर उसकी मदद करने लगा..उसकी वाइफ को अपने ही ऑफीस में जॉब भी दिलवा दी...अच्छी सैलरी के साथ...और अपनी सोसायटी में ही उसे फ्लैट भी दिलवा दिया...और उसका कारण था उसकी जैसी मानसिकता वाले उसके ये तीनों दोस्त.. वैसे तो ये सभी अच्छे बिज़नेसमॅन या ऑफिस में उँची पोस्ट पर थे...पर रात को एक साथ बैठकर ये दारू पीते तो पूरी सोसायटी में रहने वाली औरतों की माँ-बेटी एक कर देते थे...चारो एक नंबर के ठरकी थे...सभी की उम्र 40-50 के बीच थी..कई सालों से पड़ोसी रहने की वजह से सभी में काफ़ी गहरी दोस्ती हो चुकी थी...कई बार मिलकर इन्होने रंडिया भी चोदी थी...जब भी किसी की बीबी किसी काम से बाहर या मायके जाती तो उसके खाली घर में ये चारों मिलकर हवस का नंगा खेल खेलते...हर उम्र की और खासकर कच्ची कलियों को चोदना ही इनका मकसद रहा करता था...इसलिए सोसायटी में रहने वाली औरतों के साथ-2 उनकी जवान हो रही लड़कियों को भी ये नही छोड़ते थे... इन सभी की ऐसी हरकतों की वजह से ही सोसायटी के ज़्यादातर मर्द इनसे दूर रहते थे...पर इनकी बेबाक शरारतों की वजह से इन्होने अपनी कॉलोनी की कई औरतों को चोद भी डाला था...क्योंकि वहां रहने वाली कई औरतों की चूत भी काफ़ी खुजलाती थी...लेकिन फिर भी हर बार नए माल की तलाश में इनकी भूखी नजरें लगी रहती थी बस ऐसे ही इन सभी की जिंदगी चल रही थी जब एक रात दारू पीते हुए शशांक ने अपने ऑफीस में काम करने वाले राहुल की जवान बीबी सबा का ज़िक्र छेड़ दिया...एक तो नाम इतना सेक्सी...उपर ने नयी ब्याही हुई लड़की...उन सभी के लंड तन कर खड़े हो गये...और उसकी बीबी को फ़साने और चोदने के अलग-2 तरीके वो शशांक को बताने लगे...उन्ही तरीक़ो पर अमल करते-2 उसने उसकी बीबी को जॉब दे डाली...अपनी सोसायटी में कम रेंट पर फ्लेट भी दिलवा दिया..लेकिन इस बीच शशांक या उसके इन दोस्तों ने कभी भी अपने गंदे इरादो की भनक राहुल या सबा को नही लगने दी...वो सभी उन दोनो के सामने बड़े ही सभ्य तरीके से पेश आते थे....और ये भी उन्ही का प्लान था...जिसके अनुसार वो सही मौके की तलाश कर रहे थे... और इन 4-5 महीनो में वो जब भी एकसाथ मिलकर बैठते तो उनकी चर्चा का विषय सबा ही होती.. शशांक अक्सर बोलता : "यार.....आज तो ऑफीस में साली टाइट स्लेक्स पहन कर आई थी....और उसमें से उस रंडी की मोटी जांघे ऐसे दिख रही थी जैसे एक बड़ा सा चबा जाने लायक लेग पीस....बस स्लेक्स उतारो और चबा जाओ उसकी टंगड़ी को....'' उपर से गुप्ता जी अपने लंड को मसलते हुए कहते : "भेन की लौड़ी के मुम्मे तो देखो...कल सुबह जब सीडियों से उतर रही थी तो ऐसा लग रहा था जैसे दो छोटी-2 फुटबॉल उछल रही है...मुझे दुनियादारी की परवाह ना होती तो इस रंडी को वहीं नंगा करके पेल देता...'' सरदारजी बोले : "आज सुबह मेरी वाइफ अपने घर की चाबी इनके घर छोड़ गयी थी...शाम को जब मैं वापिस आया तो इसे लगा की राहुल आया है...मदारचोद ऐसी ही भागती चली आई दरवाजा खोलने ....छोटी सी निक्कर और टी शर्ट में ..ऐसी मलाई जैसी टांगे थी यारो...बस चाटते रहो...लंड रगड़ते रहो उसपर....'' कपूर साहब भी कहाँ पीछे रहने वाले थे...वो भी बोलते : "ऐसी खूबसूरत रंडी को चोदकर ही मेरे लंड को सकून मिलेगा...संडे को मेरी मिसेज के साथ मेरे ही बैडरूम में बैठकर बाते कर रही थी , बस उसी बेड पर चोदना है मुझे तो उसे , दोस्तों अब हमे जल्द से जल्द कुछ करना होगा...'' उन्हे जो भी करना था, तरीके से करना था...जैसे अभी तक योजना बनाकर वो करते आए थे...सबा को अपने जाल में फँसाकर चोदना तो बस एक ज़रिया था अपनी लाइफ का मज़ा लेने का...वरना चारों की पत्निया एक से बढ़कर एक खूबसूरत थी...वो भी अपने पतियों की तरह आपस में घुल मिलकर रहती थी और उनके रंगीन मिज़ाज से वो सब भी वाकिफ़ थी...लेकिन वो अपने रंगीन मिज़ाज के लिए क्या-2 करते है,ये उनमे से कोई भी नही जानता था...और उन्हे ज़रूरत भी नही थी उनकी जिंदगी में दखल देने की...सभी को ऐश की जिंदगी जीने को मिली हुई थी...ऐसे में अपने पतियों के उपर लगाम लगाकर उन्हे कुछ मिलने वाला तो नही था...और वैसे भी, जो आग इन मर्दों को जलाती थी,वो क्या इन गर्म औरतों को कम जलाती थी .. बिल्कुल जलाती थी जनाब. सभी की उम्र 30 - 4 0 के बीच थी, ये सब भी आपस में इतनी घुल मिल चुकी थी की अपने-2 पुराने बॉयफ्रेंडस और चुदाई के किस्से एक दूसरे से आसानी से शेयर कर लेती थी....हर जवान मर्द को ये सब भी ऐसे देखती थी जैसे आजकल के मर्द कमसिन लड़कियों को देखकर लंड सहलाते है...फ़र्क सिर्फ़ इतना होता था की इनके हाथ अपनी चूत की लकीरों पर चलते थे...यानी देखा जाए तो ये पूरा गैंग सेक्स के मामले में काफ़ी खुला हुआ सा था...बस थोड़ा बहुत परदा था आपस में ..और वो कितनी देर तक रहने वाला था ये वो भी नही जानते थे.. राहुल के आने के बाद अक्सर ये चारों औरतें उसी के बारे में बाते करती रहती थी....क्योंकि राहुल देखने में बिल्कुल मॉडल जैसा था...और एकदम जवान भी ...इसलिए उन्होने सबा को अपनी सहेली बना लिया था ताकि उसके और राहुल के अतरंग पलों को सुन सके...पर सबा थी की अपनी प्राइवेट बातों को छुपा लेती थी...वो काफ़ी उगलवाने की कोशिश करती पर उसके शर्म से लाल हुए चेहरे से कुछ निकलता ही नही था.. ऐसे ही दशहरे वाले दिन भी हो रहा था...जब उनके हस्बेंड्स एक टेबल पर बैठे थे और सबा इस गेंग के साथ एक बड़ी सी टेबल पर...सभी के हाथ में वोडका के ग्लास थे, वो सभी मिलकर आज भी सबा को छेड़ रहे थे ... शशांक की बीबी, सुमन सिन्हा, जो इस ग्रूप में सबसे शरारती थी ,वो बोली : "सबा...बता ना...कल राहुल ने कितने राउंड लिए....वो तेरी एस्स फकिंग भी करता है क्या...तेरी बेक देखकर तो लगता है की वो इसके बहुत मज़े ले रहा है आजकल ...बोल ना...''
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