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आज न्यू कहानी ले कर आया हूँ आप सबके लिए, उमीद करता हूँ कि यह स्टोरी मेरी पहली स्टोरी की तरह कम्पलीट रहे… शुक्रिया |
यह स्टोरी भाई और बहन के मुताल्लिक़ है | बचपन में बहन भाई के घर वाले (चाचा, चाची, मामा, मामी, और माँ) का रोड एक्सीडेंट की वजह से इंतकाल हो गया था |
माँ के मरने के बाद बाप ने अपने दोनों बच्चों की देखभाल की |
बाप को शायद ये अंदाज़ा था कि जल्द वो भी अपने बच्चों को छोड़कर अपने बच्चों की माँ के पास चला जाएगा इसीलिए उसने दोनों बहन भाई को मिट्टी के बर्तन बनाना सिखाना शुरू कर दिया था |
इस काम को दोनों बच्चे पूरे दिल से सीखते रहे और इस काम में वो महारत हासिल करते चले गए… |
भाई बहन दोनों में बेहद्द प्यार था, भाई अपनी बहन की हर बात बिना माँगे पूरी कर देता था क्योंकि.. उसकी बहन बोल नही सकती थी, रोड एक्सीडेंट में उस भाई की बहन ने बोलना छोड़ दिया था | भाई हर तरीक़े से अपनी बहन को खुश रखने की पूरी कोशिश करता रहता था |
वो दिन और आज का दिन… भाई अपनी बहन की हर ख्वाहिश किसी ना किसी तरीक़े से पूरी करने में जुटा रहता था |
बहन थी भी बहुत प्यारी… बहुत खुबसूरत… नटखट… चुलबुली… छूने पर फ़ौरन दागदार होने वाली जैसी खूबसूरती थी उसके पास… बनाने वाले ने क्या सोचकर उसकी बहन को बनाया होगा |
भाई भी गाँव में किसी हीरो से कम नही था | क़ुदरती आफ़त से लड़ते लड़ते वो वक़्त से पहले ही मेच्यूर हो गया था |
वो खुद अपनी बहन की तरह खुबसूरत था | खुबसूरत नीली आँखों का मालिक था वो | वला की की तेज़ी उसमें थी | उसमें कूट कूट कर अकलमंदी भरी हुई थी |
हर वक़्त कुछ नया ही सोचा करता था… अपनी बहन को हँसाने क लिए हर वक़्त कुछ ना कुछ ऐसा सुना दिया करता था जिससे उस की बहन की हँसी के साथ साथ उसके बाप की हँसी भी रुका नही करती थी |
बचपन से ही वो हर जींस-ए-मुख़ालिफ़ (फीमेल्स) की आँख का तारा था वो… उसका हर कोई दोस्त बन’ने की चाह लिए था जिसे वो हंस कर क़बूल कर लेता था लेकिन यह दोस्ती घर से बाहर गाँव के मैदान में रहती थी |
गाँव के हर बंदे के लिए वो जान का तारा था, क्यों ना होता… वो हर किसी का काम अपना काम छोड़ कर करता था |
इसी तरह वक़्त गुज़रता गया, दोनों बहन भाई बड़े होते गए और वक़्त ने अचानक 1 और ज़ोरदार ठोकर उनकी ज़िंदगी में दे मारी | उनका बाप उनकी हँसती खेलती ज़िंदगी में फिर से वही दिन दे गया जिनसे वो अभी अभी उभरे थे | अभी तो उन्होंने हँसना खेलना शुरू किया था |
दोनों बहन भाई के लिए बिना बाप के ज़िंदगी गुज़ारना मुश्किल था लेकिन फिर भी उन्होंने क़ुदरत के फ़ैसलों से खुद को बेबस होने ना दिया |
बहन शुरू के दिन रोती रहती थी लेकिन 1 दिन भाई ने खुद संभाल लिया क्योंकि उसे अब बड़ा भाई बन कर रहना था | घर का मुखिया बन कर बड़े बड़े फ़ैसले जो करने थे | घर को चलाने के लिए पैसों का बंदोबस्त जो करना था | घर की दाल रोटी को देखना था | रोज़गार को फिर से संभालना जो था |
और सब से बड़ी और अहम बात… अपनी बहन को संभालना जो था… और कुछ सालों के बाद अपनी बहन की शादी भी करनी थी |
जो बचपन में बाप ने अपने गाँव के सरपंच के बेटे से इस सौदे में तय कर दी थी कि उस (सरपंच) की बेटी जन्नत, अपने बेटे आबिद के साथ शादी करके सरपंच के घर, घर– जमाई बन कर रहेगा और इसी तरह आबिद की गूंगी बहन, (सोनिया) सरपंच के सीधे सादे से बेटे (दिमागी तौर पर खुद को बच्चा समझना) नवाज़ से शादी तय कर दी थी |
(ये कहानी बेसिकली, आबिद और सोनिया के दरमियाँ ही रहेगी… लेकिन इस कहानी में जन्नत का भी कुछ ना कुछ किरदार रहेगा और खासकर लालची सरपंच का…
यह स्टोरी भाई और बहन के मुताल्लिक़ है | बचपन में बहन भाई के घर वाले (चाचा, चाची, मामा, मामी, और माँ) का रोड एक्सीडेंट की वजह से इंतकाल हो गया था |
माँ के मरने के बाद बाप ने अपने दोनों बच्चों की देखभाल की |
बाप को शायद ये अंदाज़ा था कि जल्द वो भी अपने बच्चों को छोड़कर अपने बच्चों की माँ के पास चला जाएगा इसीलिए उसने दोनों बहन भाई को मिट्टी के बर्तन बनाना सिखाना शुरू कर दिया था |
इस काम को दोनों बच्चे पूरे दिल से सीखते रहे और इस काम में वो महारत हासिल करते चले गए… |
भाई बहन दोनों में बेहद्द प्यार था, भाई अपनी बहन की हर बात बिना माँगे पूरी कर देता था क्योंकि.. उसकी बहन बोल नही सकती थी, रोड एक्सीडेंट में उस भाई की बहन ने बोलना छोड़ दिया था | भाई हर तरीक़े से अपनी बहन को खुश रखने की पूरी कोशिश करता रहता था |
वो दिन और आज का दिन… भाई अपनी बहन की हर ख्वाहिश किसी ना किसी तरीक़े से पूरी करने में जुटा रहता था |
बहन थी भी बहुत प्यारी… बहुत खुबसूरत… नटखट… चुलबुली… छूने पर फ़ौरन दागदार होने वाली जैसी खूबसूरती थी उसके पास… बनाने वाले ने क्या सोचकर उसकी बहन को बनाया होगा |
भाई भी गाँव में किसी हीरो से कम नही था | क़ुदरती आफ़त से लड़ते लड़ते वो वक़्त से पहले ही मेच्यूर हो गया था |
वो खुद अपनी बहन की तरह खुबसूरत था | खुबसूरत नीली आँखों का मालिक था वो | वला की की तेज़ी उसमें थी | उसमें कूट कूट कर अकलमंदी भरी हुई थी |
हर वक़्त कुछ नया ही सोचा करता था… अपनी बहन को हँसाने क लिए हर वक़्त कुछ ना कुछ ऐसा सुना दिया करता था जिससे उस की बहन की हँसी के साथ साथ उसके बाप की हँसी भी रुका नही करती थी |
बचपन से ही वो हर जींस-ए-मुख़ालिफ़ (फीमेल्स) की आँख का तारा था वो… उसका हर कोई दोस्त बन’ने की चाह लिए था जिसे वो हंस कर क़बूल कर लेता था लेकिन यह दोस्ती घर से बाहर गाँव के मैदान में रहती थी |
गाँव के हर बंदे के लिए वो जान का तारा था, क्यों ना होता… वो हर किसी का काम अपना काम छोड़ कर करता था |
इसी तरह वक़्त गुज़रता गया, दोनों बहन भाई बड़े होते गए और वक़्त ने अचानक 1 और ज़ोरदार ठोकर उनकी ज़िंदगी में दे मारी | उनका बाप उनकी हँसती खेलती ज़िंदगी में फिर से वही दिन दे गया जिनसे वो अभी अभी उभरे थे | अभी तो उन्होंने हँसना खेलना शुरू किया था |
दोनों बहन भाई के लिए बिना बाप के ज़िंदगी गुज़ारना मुश्किल था लेकिन फिर भी उन्होंने क़ुदरत के फ़ैसलों से खुद को बेबस होने ना दिया |
बहन शुरू के दिन रोती रहती थी लेकिन 1 दिन भाई ने खुद संभाल लिया क्योंकि उसे अब बड़ा भाई बन कर रहना था | घर का मुखिया बन कर बड़े बड़े फ़ैसले जो करने थे | घर को चलाने के लिए पैसों का बंदोबस्त जो करना था | घर की दाल रोटी को देखना था | रोज़गार को फिर से संभालना जो था |
और सब से बड़ी और अहम बात… अपनी बहन को संभालना जो था… और कुछ सालों के बाद अपनी बहन की शादी भी करनी थी |
जो बचपन में बाप ने अपने गाँव के सरपंच के बेटे से इस सौदे में तय कर दी थी कि उस (सरपंच) की बेटी जन्नत, अपने बेटे आबिद के साथ शादी करके सरपंच के घर, घर– जमाई बन कर रहेगा और इसी तरह आबिद की गूंगी बहन, (सोनिया) सरपंच के सीधे सादे से बेटे (दिमागी तौर पर खुद को बच्चा समझना) नवाज़ से शादी तय कर दी थी |
(ये कहानी बेसिकली, आबिद और सोनिया के दरमियाँ ही रहेगी… लेकिन इस कहानी में जन्नत का भी कुछ ना कुछ किरदार रहेगा और खासकर लालची सरपंच का…