Incest गांव का मौसम ( बड़ा प्यारा )

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दूसरी तरफ बिलास अपने गोदाम में निश्चिंत होकर बैठा था वह बेफिकर इसलिए था क्योंकि सूरज ने जिस हालत में उसे उसकी ही गोदाम में किसी गैर औरत के साथ रंगरेलियां मनाते हुए उसे पकड़ा था उस वाक्या को करीब करीब १० दिन बीत गया था,,, और घर में किसी भी प्रकार का कोहराम नहीं मचा था,,, इसका मतलब साफ था कि सूरज ने इस राज को राज ही रखा था,,,,
वह मन में ही सोच रहा था कि अगर सूरज ने उसके राज को मंगल से बता दिया होता तो क्या होता घर में कोहराम मच गया होता,, लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था इस बात की संतुष्टि उसके चेहरे पर साफ झलक रही थी,,, बिलास अपने गोदाम की कुर्सी पर बैठकर इस बारे में सोच ही रहा था कि,,,,

बाहर से एक औरत की आवाज आई

बिलास बोला कौन,,,,, ?

मैं हूं,,,,,
( बाहर किसी लड़की की आवाज सुनकर,,, बिलास सचेत हो गया वैसे भी उसने कहीं औरतों के साथ संबद्ध करके खत्म कर दिया था इसलिए वह अनजान बनते हुए बोला,,,,, ।)


मैं कौन मेरे ख्याल से मैं तुम्हें नहीं जानता,,,,,


इतने जल्दी आवाज़ भी भूल गए,,,,,,

( बाहर से औरत की बात को सुनकर बिलास फिर हैरान हो गया उसे यकीन होने लगा कि यह उन औरतों में से किसी एक औरत हे इसलिए उसे अंदर ही अंदर डर लगने लगा कि कहीं कोई पैसे की मांगनी ना करने लगे,,,,, )


देखो तुम कौन हो मैं नहीं जानता और तुम्हारी आवाज़ भी मैं नहीं पहचानता साफ-साफ बताओ कौन हो,,,,,


क्या सच में तुम मेरी आवाज नहीं पहचानते मुझे तो हैरानी होती है,,,,,

( अब तो बिलास का दिमाग खराब होने लगा,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह लड़की है कौन और इस तरह से पहेलियां क्यों बुझा रही है,,,, इसलिए गुस्से में बोला)


देखो तुम कोई भी हो मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता और अगर तुम अपनी पहचान नहीं बताओगी तो,,,

नहीं नहीं ऐसा मत करना वह लड़की कमरे के अंदर आकर कहती हे मैं चम्पा हूं तुम्हारी चचेरी बहन,,,,,,,, ( सामने से जल्दबाजी और घबराहट भरी आवाज आई,,,,, चम्पा नाम सुनते ही बिलास के चेहरे पर मुस्कुराहट तैर गई मुझे यकीन नहीं हो रहा था,,,,, इसलिए चहकते हुए बिलास बोला,,,, )


चम्पा तु मुझे तो बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा है कि तू यह आइ है,, तुझे पता है ५ साल गुजर गए इन ५ सालों में आज पहली बार तू गांव आइ है,,,,,


हां जानतीे हुं भैया इन ५ सालों में बहुत कुछ बदल गया,,,, मेरी गलती की सजा तो मुझे मिलनी ही थी,,,,

गलती की सजा मैं कुछ समझा नहीं कि तू क्या कह रही है,,,
( बिलास चिंतित स्वर में बोला,,,।)

भैया तुम तो अच्छी तरह से जानते हो कि मैं पूरे परिवार के खिलाफ जाकर अपने प्रेमी के साथ भाग कर शादी की इस वजह से पूरे परिवार ने मुझ से हर तरह से रिश्ते को तोड़ दिया,,,,, मुझे लगा था कि मैंने सही फैसला भी हूं लेकिन कुछ ही महीनों में मुझे पता चल गया कि मेरा फैसला बिल्कुल गलत था जिसके साथ मैं सब कुछ छोड़ कर अपना जिंदगी बसर करने चली थी,,,, वह बिल्कुल निकम्मा निकला,,, ६ महीने बाद ही वहं मुझे मारने पीटने लगा मेरी जिंदगी नर्क से भी बदतर कर दिया उसने,,,,


क्या कह रही है मधु तू इतना कुछ सहती रही और हमें बताई भी नहीं,,,,, तुम मुझसे उसकी बात करा मैं अभी उसे बताता हूं,,


इसकी कोई जरूरत नहीं है भैया मैं उसका घर छोड़ चुकी हूं और अब मुझे दोबारा उस नर्क में नहीं जाना है,,,,

मतलब तू अभी रहती कहां है,,,,?

यही पड़ोस के गांव भाड़े के मकान में रहती हूं और एक जगह में काम करके अपना गुजारा चला रहीे हु।,,, लेकीन भैया,,, मुझे इस गांव में बिल्कुल भी नहीं रहना है क्योंकि मेरा पति मुझे यहां आकर भी परेशान करने लगता है,,,,


तो तू,, गांव चली गई होती,,,,


कोशिश की थी लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ वह लोग मुझे अपनाने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं है वह लोग तो ईतना तक कहते हैं कि तू मेरे लिए मर गई,,,, अब तुम ही बताओ भैया मैं कहां जाऊं किसके पास जाऊं तुम तो अच्छी तरह से जानते हो की अकेली औरत खुली किताब की तरह होती है जिसके पढ़ने को हर कोई उलटना पलटना चाहता है,,,,।
मेरी आखिरी उम्मीद बस तुम ही हो तुम ही मुझे सहारा दे सकते हो,,,,,

( चम्पा की आवाज सुनकर बिलास की आंखों में चमक आ गई और वह,,, बोला,,,।)

हां,,, हां,,,, क्यों नहीं चम्पा अच्छा हुआ तु मेरे पास आ गई,,,,
तू बेझिझक मेरे पास रह सकती हैं मेरे घर का दरवाजा तेरे लिए हमेशा खुला है आखिर तू मेरी मोसेरी छोटी बहन है,,,,।

ओह शुक्रिया भैया मैं तुमसे यही उम्मीद रख रही थी,,,,

तो एक काम कर वापस जल्दी से गांव से अपना बोरिया बिस्तर बांध कर इधर आ जा,,,, बाकी तुझे क्या करना है मैं सब तेरे आने के बाद बताऊंगा,,,,


ठीक है भैया मैं १ हफ्ते के भीतर ही वहां आ जाऊंगी तब तक मेरी तनख्वा भी मिल जाएगी,,,,,,

ठीक है चम्पा जल्दी आना अब तो मैं तुझसे मिलने के लिए बेचैन हो रहा हूं,,,,, (बिलास कुटिल मुस्कान मुस्कुराते हुए बोला,,, )

ठीक है भैया,,,,,,( इतना कहने के साथ ही चम्पा वापस चली गई,,,,)

बिलास की पुरानी यादें ताजा हो गई,,,,, उसे वह दिन याद आने लगा जब वह अपने चाचा के गांव में ही रहता था और वहां पर रहकर अपनी पढ़ाई पूरा कर रहा था तब चम्पा अपनी जवानी की दहलीज पर कदम रख रही थी उसकी जवानी भी उसे चिकोटी काट रही थी,,, उसकी सहेलियों में कुछ ऐसी पहेलियां थी जो कि लड़कों के चक्कर में ज्यादा रहती थी और उन्हीं की संगत में चम्पा भी उन्हीं की तरह होती जा रही थी,,, अपनी सहेलियों के मुंह से उनकी चुदाई की कहानी सुनकर चम्पा कि अपने पैर के साथ-साथ अपने पर भी फैलाने के चक्कर में थी यहां तक कि वह अपनी उस गांव में कुछ छोकरे पटा के रखी थी और उनके साथ शारीरिक संबंध भी बना चुकी थी जवानी पूरे उफान पर थी बदन की प्यास बुझाई नहीं बुझ रही थी,,, एक तरह से चम्पा एकदम प्यासी लड़की थी,,,
बिलास तो पहले से ही मन चला था उसने भी कई लड़कियों को अपनी सहेली बनाया था और वह भी उनके साथ शारीरिक संबंध बना चुका था इसलिए वह अच्छी तरह से जानता था कि,,, चुदाई का शोक अगर एक बार मिल जाए तो बार-बार उसे पाने की इच्छा होती है,,,
ऐसे ही एक दिन बिलास को चोदने की इच्छा हो रही थी,,,, लेकिन इस समय उसके पास किसी भी तरह से अपनी प्यास बुझाने के लिए उसकी कोई भी सहेली उसके करीब नहीं थी ऐसे में उसे अपने ही हाथ का सहारा लेना पड़ रहा था इसलिए वह बाथरूम की तरफ जाने लगा था कि वह आराम से एकदम नंगा होकर के नहाते नहाते अपने हाथ से अपने लंड को हिलाकर पानी निकाल सके,,,, बाथरूम में पहुंचने से पहले ही जब वह अपनी चचेरी बहन चम्पा के कमरे के करीब पहुंचा तो कमरे में से हल्की हल्की सिसकारी की आवाज़ आ रही थी,,,, बिलास इस तरह की सिसकारी की आवाज को अच्छी तरह से पहचानता था क्योंकि जब वह लड़कियों को चोदता था तो इसी तरह की आवाजें आती थी,,, इसलिए उसके कान खड़े हो गए, वह दबे कदमों से,,, दरवाजे के करीब जाने लगा उसकी किस्मत अच्छी थी,,, दरवाजा अंदर से बंद नहीं था वह हल्के से दरवाजे को खोल के अंदर की तरफ देखा तो,,, उसका लंड एकदम से खड़ा हो गया,,, क्योंकि अंदर कमरे में उसकी चचेरी छोटी बहन चम्पा जो की जवानी से एकदम भरपूर हो चुकी थी वह अपने बिस्तर पर एकदम नंगी लेटी हुई थी और अपनी ही हथेली से, अपनीे बुर को जोर-जोर से मसलते हुए गर्म सिसकारी छोड़ रही थी,,, चुदास पन से भरा हुआ बिलास जो कि बुर की तलाश में इधर उधर भटक रहा था,,, अंदर का नजारा और अपनी चचेरी बहन को इस हालत में देख कर उसे लगने लगा कि उस का जुगाड़ अब घर में ही होने वाला है,,,, वह कुछ देर तक वहीं खड़े होकर अपने लंड को सहलाते हुए अंदर का नजारा देखने लगा । बिस्तर पर चम्पा पुरी तरह से कामातुर होकर छटपटा रहीे थी,, उससे अपनी जवानी की तड़प बर्दाश्त नहीं हो रही थी,,,, तभी बिस्तर पर पड़े मोटे बैगन को देखकर बिलास का लंड ठुनकी मारने लगा,,, उसे यह समझते देर नहीं लगी कि बिस्तर पर रखा वह मोटा बैगन चम्पा अपनी बुर में डालने वाली है,,, यह सोचकर ही बिलास का लंड बेकाबू होने लगा,,, वह मन ही मन अपनी चचेरी बहन को चोदने की इच्छा बना लिया,,,,,, वह ऐन मौके पर अपनी चचेरी बहन के सामने आना चाहता था ताकि उसके लिए छुपाने जैसा कुछ भी ना हो,,, इसलिए बिलास सही मौके का इंतजार करने लगा और अंदर चम्पा की हालत पल-पल बेकाबू होती जा रही थी उसकीे बुर में ऐसा लग रहा था कि जैसे चिटिया रेंग रही हो,,, वह जोर-जोर से अपनी हथेली से अपनी बुर की गुलाबी पत्ती जो कि अभी पूरी तरह से खीली भी नहीं थी उसे रगड़ रही थी,,,, चम्पा की गरम सिसकारी की आवाज बिलास के लंड के सब्र के बांध को तोड़ रही थी,,, कीें तभी चम्पा बिस्तर पर पड़े बैंगन को उठाकर
अपनी बुर पर रगड़ति हुई उसे बूर के अंदर उतारने लगी,,,,,
बिलास के लिए यही सही मौका था,,,,, बिलास जल्दी से दरवाजा खोलकर कमरे में प्रवेश करने लगा यह देखकर चम्पा एकदम से घबरा गई और पास में बड़ी चादर को अपने बदन पर ढंकने लगी,,, और बिलास एक हाथ से दरवाजे पर कड़ी लगाते हुए चम्पा की तरफ देखते हुए बोला,,,
 
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अब इसकी कोई जरूरत नहीं है मेरी बहना मैं सब कुछ देख चुका हूं,,

तततत,, तुम कहना क्या चाहते हो भैया,,,,,( चम्पा घबराते हुए बोली और बिलास उसके करीब धीरे धीरे कदम बढ़ाते हुए बोला,,।)

अब मेरे कहने और तुम्हारे समझने के लिए कुछ भी नहीं बचा है,,( इतना कहने के साथ ही बिलास अपनी चचेरी बहन के बदन के ऊपर से चादर खींच कर नीचे फर्श पर फेंक दिया एक बार फिर से चम्पा पूरी तरह से नंगी हो गई,,,,

चम्पा अपनी हालत की वजह से अपने भाई के सामने इस हालत में एकदम शर्मिंदगी महसूस कर रही थी उसे शर्म आ रही थी इसलिए वह अपने हाथों को पर्दा बनाकर अपने अंगों को छुपाने की भरपूर कोशिश करने लगी,,, वह पूरी तरह से घबरा गई थी इसलिए वह बिलास से बोली,,

यह क्या कर रहे हो भैया,,,,,

मैं वही कर रहा हूं चम्पा जो तुम चाहती हो,,,,

मैं कुछ समझ नहीं रही हूं तुम क्या कहना चाहते हो,,, और तुम मेरे साथ इस तरह का व्यवहार क्यों कर रहे हो,,,,


चम्पा मेरी बहन तुम बिल्कुल नादान बनने की कोशिश मत करो,,, मैं सब कुछ देख चुका हूं और यह भी जानता हूं कि तुम्हारी बुर मे आग लगी हुई है और उस आग को बुझाने के लिए तुम्हें एक लंड की जरूरत है।

यह क्या कह रहे हो भैया,,,,( चम्पा अपने भाई के मुंह से इस तरह की गंदी बातें सुनकर आश्चर्य के साथ बोली,,,।)

देखो चम्पा अब बनने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है,,,, अगर मैं चाहूं तो जो तुम बंद कमरे के अंदर अभी-अभी कर रही थी वह सब कुछ चाचा चाची को बता दूंगा तो सोचो तब तुम्हारी क्या हालत होगी,,,,,( इतना कहते हुए बिलास अपने हाथ को चम्पा की मखमली जांघो पर फिराने लगा,,,, जिसकी वजह से चम्पा शर्म के मारे संकोचाने लगी,,, फिर भी हिम्मत करते हो बोली,,,।)

ककककककक,,,,, क्या कर रही थी मैं,,,,,,


मुझसे छुपाने की कोई जरूरत नहीं है मैं सब कुछ देख कर ही कमरे में आया हूं और तुम वही कर रही थी जो मैं अपने हाथ से बाथरूम मे करने जा रहा था,,,, और इसको (पास में पड़े बेगन को हाथ में लेकर) अपनी बुर में डाल रही थी।
( इतना सुनते ही चम्पा के पास कुछ भी छुपाने जैसा नहीं था इसलिए वह रुआांसी होते हुए बोली,,,, ।)

भैया माफ करो मुझे माफ कर दो और चाचा चाची से कुछ मत बताना,,,,

तुझे बोलने की कोई जरूरत नहीं मालूम तू तो अपनी जरुरत पूरी कर रही थी जैसे कि मैं अपनी जरुरत पूरी करने के लिए बाथरूम जा रहा था,,,,

मैं कुछ समझी नहीं भैया,,,,

देख तू बैगन को अपनी बुर में डालकर अपनी प्यास बुझाने की कोशिश कर रही थी,, और मैं (अपने पैंट की बटन खोलते हुए अगले ही पल अपने टंनटनाए हुए लंड को बाहर निकाल कर हाथ से हीलाते हुए) अपने ईस लंडं को हाथ से हीला कर उसका पानी निकालने जा रहा था,,,,
( चम्पा एक तो पहले से चुदवाती थी अपने भाई का खड़ा लंड देखकर उसकी बुर में खुजली मचने लगी वह समझ चुकीे थेी कि उसका भाई उसे चोदना चाहता है। लेकिन फिर भी अनजान बनते हुए बोली,,,।)

भैया तुम क्या कह रहे हो मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है,,,

चम्पा अब भोली बनने की कोई जरूरत नहीं है,,, मैं जानता हूं कि इस समय तु लंड के लिए तड़प रही है और मैं बुर के लिए
क्यों ना हम एक दूसरे से अपनी ज़रूरत पूरी कर ले,,,( चम्पा बार-बार बिलास के लंड की तरफ देखे जा रही थी जिसको वह अपने हाथों से हिला रहा था,,, उसकी जवानी से भरी बुर पानी पानी हुए जा रही थी अब तो वह भी यही चाह रही थी कि उसका चचेरा भाई अपने लंड को उसके बुर में डालकर चोद डाले,,,, लेकिन वह इस बात को अपने मुंह से नहीं बोल सकती थी फिर भी वह अपने भाई को रोकते हुए बोली,,,

नहीं भैया ऐसा नहीं हो सकता हम दोनों भाई बहन हैं और भाई बहन में इस तरह का रिश्ता पाप कहलाता है,,

देखने में चलें हम दोनों सगे भाई बहन नहीं है और इस समय में एक प्यासा मर्द हुं और तु प्यासी औरत है,,, मेरे पास लंड है और तेरे पास बूर है जो की एक दूसरे में समाने के लिए तड़प रहे हैं।,,,,

लेकी,,,,,,,, ( चम्पा कुछ बोल पाती से पहले ही वह उसे रोकते हुए उसे बिस्तर पर लिटाने लगा,,, और उसकी दोनों चुचीयों को हाथ में भरते हुए बोला,,,)

बस अब कुछ बोलने की जरूरत नहीं है,,,,,

( इतना कहने के साथ ही वह अपनी चचेरी बहन चम्पा पर टूट पड़ा उसकी चूचियों को कभी हांथो से दबाता तो कभी मुंह में भर कर पीने लगता है,,, चम्पा को भी बहुत मजा आ रहा था पूरा कमरा उसकी सिसकारियों से गूंज रहा था। अगले ही पल बिलास ने अपने लंड को अपनी बहन की बुर में पूरी तरह से उतार दिया,,, चम्पा को ऐसा महसूस हो रहा था कि उसका पूरा बदन हवा में उड़ रहा है बिलास अपनी बहन को चोदना शुरू कर दिया था भाई-बहन का पवित्र रिश्ता दोनों मिलकर तार-तार कर चुके थे,,,, यह सिलसिला जो एक बार शुरू हुआ तो वह तब तक चलता रहा जब तक मधु अपने प्रेमी के साथ भाग कर शादी नहीं कर ली,,,

उस दिन के बाद आज ५ वर्षों के अंतराल पर अब जाकर चम्पा उससे मिलने आइ थी,,,, इसलिए बिलास मन ही मन खुश हो रहा था,,, क्योंकि वह अब पद्मासे तंग आ चुका था,,,, ऐसे मे वह पहले से ही किसी नए जुगाड़ में था,,,और एन मौके पर उसकी चचेरी छोटी बहन मधु यहां आने से उसके नए जुगाड़ की तलाश का अंत आ चुका था,,,, वह मन ही मन खुश हो रहा था कि तभी कमरे का दरवाजा खुला और पद्मा कमरे में दाखिल हुई जिसके चेहरे से साफ पता चल रहा था कि वह काफी गुस्से में थी,,,,( पद्मा के डर से बिलास ने चम्पा को जल्दी यहां से भेज दिया नही तो चम्पा बिलास के बाहो में होती )
 
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पद्माको इस तरह से गोदाम में आता देखकर बिलास को अच्छा तो नहीं लगा,, लेकिन वह कर भी क्या सकता था,, पद्माको पहले से ही वह हर तरह की छूट दे रखा था,,,, पुरानी यादो के झरोखों से बिलास बाहर आ चुका था,,, पद्माके चेहरे की तरफ देखकर वह भी समझ गया कि पद्मा आज गुस्से में इसलिए वह कुछ बोलती ऊससे पहले ही वह बोल पड़ा,,,

क्या हुआ पद्मा तुम्हारा चेहरा क्यों बुझा-बुझा सा है,,,,

चलो यह तो अच्छा हुआ कि तुम्हें इस बात का पता तो चल गया कि मेरा चेहरा बुझा बुझा सा है,,,, और इसके पीछे का कारण भी तुम अच्छी तरह से जानते हो,,,,,,


मैं समझा नहीं कि तुम क्या कहना चाहती हो,,

बनो मत बिलास तुम अच्छी तरह से जानते हो कि मैं क्या कहना चाहती हूं,, मुझे पैसों की सख्त जरूरत है और तुम मुझे वादा करके पैसे देने से इंकार कर रहे हो,,,


मैं कब इनकार किया,,,,

इंकार नहीं किए लेकिन तुम्हारा मतलब साफ़ दिखाई दे रहा है,,,,( पद्मा कुर्सी को अपनी तरफ खींच कर उस पर बैठते हुए बोली,,,।)

देखो पद्मामैं सच कहूं तो इस समय मेरे पास पैसे नहीं है इसलिए मैं तुम्हें समय नहीं दे सकता,,,,( बिलास साफ-साफ जता देना चाहता था कि उसकी अब उसे जरूरत नहीं है क्योंकि कुछ देर पहले ही उसका दूसरा जुगाड़ जो कि उसकी चचेरी बहन थी वह बन चुका था,,, इसलिए अब वह पद्मासे पीछा छुड़ाने के उद्देश्य से बोला,,,।)

पैसे नहीं है,, मुझसे तो झूठ बोलने की कोशिश तुम बिल्कुल मत करना क्योंकि मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि यह तुम्हारा बहाना है,,,,।मुझे पैसे चाहिए और आज ही चाहिए,,,,,
( पद्मा गुस्से में बोल रही थी और बिलास उसपर ध्यान दिए बिना ही खाते को चेक करने लगा वैसा जताना चाह रहा था कि उसकी बातों का उस पर कोई भी फर्क नहीं पड़ रहा है।)

बिलास,,,,( गुस्से में उसके हाथों से खाते छीनते हुए,,) मैं तुमसे कुछ कह रही हूं और तुम हो कि मेरी बात पर ध्यान दिए बिना ही अपना काम कर रहे हो मैं तुम्हें पागल दिखती हूं क्या,,,, पैसे देते हो या नहीं इतना मुझे साफ-साफ बता दो,,

( पद्माकि यह बात बिलास को धमकी भरी लगी इसलिए उसे गुस्सा आ गया और वह गुस्से में बोला,,,।)

पद्मामैं तुम्हें एक फूटी कौड़ी नहीं दूंगा तुम अच्छी तरह से जानती हूं कि मैंने तुम्हारे ऊपर पैसों की बारिश कर दिया हूं तुम्हें क्या नहीं दिलाया घर जमीन ऐसो आराम की सारी चीजें,,, लेकिन तुम्हारी लालच बढ़ती जा रही है इसलिए मैं अब तुम्हें एक रुपया नहीं देने वाला,,,,

तो तुम मुझे मुफ्त का नहीं देते आ रहे हो,,, उसके बदले में तुमने मेरा इस्तेमाल किए हो तुम्हारा बिस्तर गर्म करती आ रही हूं तब तुम जाकर मुझे बिस्तर गर्म करने के एवज में पैसे दीए हो,,,, यह बात तुम भी अच्छी तरह से जानते हो और मैं भी कि तुम्हारी बीवी बिल्कुल ठंडी है जिसके साथ तुम्हें सोने में मजा नहीं आता इसके लिए तुम मेरे पहलू में आकर गर्माहट लेते आ रहे हो,,,,, मैं हूं तो तुम्हारी इज्जत बची हुई है वरना ना जाने किसी रण्डी के साथ मुंह मारते फिरते,,,

तो तुम भी एक रण्डी की ही तरह हो,,, जिसका काम है पैसे लेकर बिस्तर गर्म करना और अब तक तुम भी यही करती आई हो,, और इसके बदले में मैंने तुम्हारी सोच से भी ज्यादा धन दौलत तुम पर लुटा चुका हूं,,, लेकिन अब तुम्हारा काम खत्म हुआ और तुम जा सकतीे हो,,,,।
( बिलास का यह बे रूखापन देखकर और अपने लिए उसके मुंह से रण्डी की थी उपमा को सुनकर पद्मा अंदर ही अंदर झुलस गई उसके गुस्से का पारा सातवें आसमान पर पहुंच गया,,, वह चिल्लाते हुए बोली,,,,।)

बिलास इतना जरूर याद रखना कि जब एक औरत किसी मर्द के लिए अपनी टांगों को खोल सकती हैं तो वक्त आने पर उसकी टांगों के बीच लात भी मार सकती है तुमने जो मेरा आज अपमान किए हो इसका बदला तो मैं तुम से लेकर रहुंगी,,, और अपने पैसे भी तुम से लेकर रहूंगी तुम मुझे अभी ठीक से समझ नहीं पाई मैं तुम्हारी विवाहित जिंदगी में आग लगा दूंगी,,,,

तुझे जो करना है कर लेना मैं तेरी धमकियों से डरने वाला नहीं हूं चली जा यहां से,,,,,

तेरे जैसा दोगला इंसान मैंने आज तक नहीं देखी,,,, अपनी भोल़ी भाली बीबी को इतना बड़ा धोखा दे रहा है,,, मैं तुझे सिर्फ २ दिन का समय देती हूं इन २ दिनों में तो मुझे १००००० रूपया देकर मुझे हमेशा के लिए भूल जाओ और मैं भी तुझे हमेशा के लिए भूल जाओगी लेकिन तूने अगर इन २ दिनों में मुझे १००००० रुपए नहीं दिए,,,, तो मै तेरी जिंदगी उजाड़ कर रख दूंगी,,, तूने जो मेरे साथ अब तक रंगरेलिया मनाया है वह सारी कहानियां मैं तेरी बीवी कोे सुना दूंगी,,,, और तेरे और मेरे बीच में जिस्मानी तालुकात को बताते हुए तेरी बीबी से मुझे बिल्कुल भी शर्म नहीं आएगी क्योंकि तू ही मुझे रण्डी बोल रहा है तो अब तू देखना यह रण्डी क्या करती है,,,,,,।
( इतना कहने के साथ ही वह कुर्सी पर से उठी और पैर पटकते हुए कमरे का दरवाजा जोर से खोल कर बाहर जाते हुए उसे बड़ी तेजी से बंद कर दी,,, बिलास उसे जाते हुए देखता रह गया उसकी आखिर में दी हुई धमकी सेवा थोड़ा घबरा गया लेकिन यह सोचकर वह शांत हो गया कि भला एक औरत अपने नाजायज रिश्ते को किसी औरत को कैसे बता सकती है ईसलिए वाह शांत हो गया और अपने काम करने लगा,,,,

मंगल के साथ साथ उसकी सहेली मंजू भी पूरी तरह से सूरज की दीवानी हो चुकी थी,,,, मंजू सूरज के मर्दाना ताकत को अपने जिस्म में महसूस करना चाहती थी वह उसकी मर्दानगी को अपनी आंखों से साक्षात दर्शन करना चाहती थी,,,,
दो दिन बाद मंजू कुछ दिनो के लिए अपने मायके जाने वाली थी, लेकिन जाने से पहले अपने बुर की खुजली सूरज के दमदार लंड से मिटाना चाहती थी,, इसके लिए उसे सूरज को प्यार से डाराके उसे अपना बनाए वाली थी,,,
दूसरी तरफ

मंगल अपने गांव जाने की तैयारी में जुटी हुई थी उसने अपने लिए और सूरज के लिए नए कपड़े की खरीदारी की थी । दो दिन उसे गांव जाने में रह गए थे। इस दौरान वहां रेलवे की टिकट के लिए बार-बार पूछताछ की लेकिन शादी का समय चल रहा था इसलिए टिकट मिलना बेहद मुश्किल था आखिरकार टिकट ना मिलने की उम्मीद में वह अपनी बैलगाड़ी से ही गांव जाने का फैसला कर ली। २ दिन बाद उसे गांव के लिए निकलना था लेकिन उसे गांव जाना है उसके भाई की शादी है इस बारे में उसने अभी तक बिलास को कुछ भी नहीं बताई थी। क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि बिलास उसके साथ गांव जाने वाला नहीं है वह अपने काम में ही हमेशा मस्त रहता है। लेकिन फिर भी उसे एक बार छोटे भाई की शादी की ईत्तला कर देना बेहद जरूरी था।
एक दिन वह गोदाम के लिए निकल ही रहा था,,कि रसोई से मंगल बाहर आते हुए बोली,,

सुनते हो मेरे छोटे भाई की शादी तय हो चुकी है और २ दिन बाद हमें उसकी शादी में गांव जाना है अगर आप चलते तो बहुत अच्छा होता ( मंगल उससे बेमन से पूछ रही थी क्योंकि वह भी यही चाहती थी कि वहं उसके साथ गांव ना जाए ताकि गांव में सूरज और मंगल मौज मस्ती कर सकें,, और जेसा वह चाहती थी वैसा ही जवाब बिलास के मुंह से सुनकर मंगल मन-ही-मन बेहद खुश होने लगी पहले तो वह मंगल के मुंह से गांव जाने वाली बात सुनकर हैरान हो गया लेकिन तभी उसे एक बात का ख्याल आया कुछ दिनो बाद उसकी चचेरी छोटी बहन चम्पा इधर आ रही है और ऐसे में अगर मंगल और सूरज गांव के लिए निकल जाएंगे तो उसके लिए कुछ दिन तक चम्पा के साथ खुलकर ऐश करने को मिल जाएगा और वैसे भी बहुत महीने गुजर गए थे वह किसी और के साथ शारीरिक संबंध बना कर मजा नहीं ले पाया था अपनी पद्माकी चुदाई कर करके अब वह थक चुका था ऊससे उसका मन भर चुका था,,, उसी नई जवानी के फूल की तलाश रही थी कि तभी उसी झोली में उसकी ही छोटी चचेरी बहन चम्पा नाम का फूल गिरी जिसकी जवानी के रस को वह एक बार फिर से मुंह लगाकर पीना चाहता था और यही मौका उसके लिए सबसे सही भी था इसलिए वह मंगल से बोला,,,)
 
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नहीं मंगल मैं नहीं जा पाऊंगा मुझे बहुत काम है और कुछ दिनों तक तो मुझे बिल्कुल भी आराम नहीं मिल पाएगा तुम और सूरज चले जाओ। और तुम्हें किसी भी चीज की जरूरत हो ले लेना,,,, ( इतना कहकर बिलास मुस्कुराते हुए घर से बाहर चला गया और उसे जाते हुए देखकर मंगल भी मन-ही-मन खुश होते हुए बोली कि मैं भी तो यही चाहती थी कि तुम हमारे साथ ना जाओ,,, अब आएगा गांव में शादी का असली मजा जब सिर्फ मैं और सूरज होंगे,, इस बात को सोचकर ही मंगल के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव साफ नजर आने लगे,,,,,,,
गांव जाने से पहले मंगल खेतो का मुआयना करना चाहती थी, इस लिया मंगल सूरज के साथ खेतों में निकला पड़ी,,
खेतों ने जाते ही मंगल को उसकी सहेली मंजू मिल गई,,
मंजू के पास जा कर,,
मंगल ने जब मंजू को यह बात बताई कि वह कुछ दिनों के लिए गांव जा रही है उसके छोटे भाई की शादी है तो यह खबर सुनकर मंजू पूरी तरह से परेशान हो गई,,,, उसकी परेशानी का सबसे बड़ा कारण था सूरज वह नहीं चाहती थी कि सूरज उसकी आंखों से दूर जाए। क्योंकि अब हालिया हो चुका था कि मंगल का भी मन सूरज के बिना कहीं नहीं लगता था जब तक वह सुबह का दीदार ना कर ले तब तक उसके मन को चैन नहीं मिलता था। यह खबर बताते समय सूरज भी पास में ही खड़ा था जो की मंजू की तरफ देख ले रहा था और मंजू भी सूरज को नजर भर कर देख ले रही थी। मंगल यह खबर मंजू को बता कर अपने खेतो की तरफ जाने को हुई थी कि तभी मंजू भी मायूस होते हुए अपने खेतो में जाने लगी और खेतो में सूरज से चुदाने का जुगाड सोचने लगी ।

खेतो का मुआयना कर के दोनो वापस जाने लगे तभी मंजू मंगल के पास आइ और मंगल से बोली,,
मंगल खेतो में थोड़ा काम था जरा सूरज को मदत करने के लिए भेज दोगी क्या,,,
इसमें पूछने वाली क्या बात है ले जाओ,,,
ओर मंजू के साथ सूरज को जाने के लिए कहा,,,
मंजू आगे चलने लगी,, तभी मंगल सूरज को रोककर कहती हे,,, जल्दी घर आ जाना शाम को हमे गांव जाना हे,,,
सूरज हा में सर हिलाता है,,
ओर मंगल वहा से घर की तरफ निकल जाती हे,,
मामी से बाते कर के जैसे ही सूरज पीछे मुड़ता हे तो देखता हे की मंजू काफी दूर चली जा चुकी थी,,
सूरज भी बिना देर किए उसके पीछे जाने लगता है,,
 
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मंजू आज बहुत खुश नजर आ रही थी,,,,, वह आज सूरज को अपने जाल में फसाकर उसे अपना बनाने वाली थी,, उसे अपनी मदमस्त जवानी पर पूरा भरोसा था कि वह सूरज को अपनी दोनों टांगों के बीच लेकर आएगी,,, और अपनी प्यासी जवानी की प्यास बुझाएगी,,, सूरज के जबरदस्त लंड की वजह से उसकी रातों की नींद हराम हो गई थी,,, दिन रात उसकी आंखों के सामने सूरज का टनटनाया हुआ लंड ही नजर आता था,,जिसे पाने के लिए उसे अपनी बुर के अंदर लेने के लिए उसका तन बदन मचल रहा था,,,,,किसी भी हाल में वह आज सूरज को अपने आगे घुटने टेक देने पर मजबूर करने के लिए पूरी तैयारी के साथ अपने खेतो पर निकल पड़ी,,,
सूरज भी दूर से उसके पीछे पीछे आने लगा,,,

मंजू ने जान भुजकर अपने नितंबों पर साड़ी का कसाव कुछ ज्यादा ही बढ़ा कर उसने साड़ी को पहनी थी,,, ताकि उसकी गांड और ज्यादा बड़ी लगे क्योंकि वह अच्छी तरह से जानते थे कि मर्दों की निगाह औरतों के किस अंग पर सबसे पहले पडती है और सबसे ज्यादा आकर्षित करती है,,, औरतों की बड़ी बड़ी गांड देखकर ही मर्दों की उत्तेजना ज्यादा बढ़ जाती है इसीलिए वह किसी भी प्रकार की कसर छोड़ना नहीं चाहती थी वह चाहती थी कि उसकी बड़ी-बड़ी मटकती गांड देखकर सूरज पूरी तरह से मदहोश हो जाए उसका ईमान डगमगा जाए,,,, और इसीलिए पहले से ही ब्लाउज भी अपनी चूचियों की साईज से छोटा ही पहनी थी,,, और उसकी चुचियों की बीच की गहरी लकीर काफी लंबी नजर आ रही थी,,,, और आधे से ज्यादा चुची ब्लाउज से बाहर जा रही थी,,,, और आज उसने साड़ी भी पारदर्शी पहनी हुई थी जिसमें से सब कुछ नजर आ रहा था,,, कुल मिलाकर यह सब मंजू ने सूरज के लिए जाल बिछा कर रखी थी उसे एक पंछी की तरह अपनी जवानी के जाल में फंसाना चाहती थी,,,,और वैसे भी दुनिया का कौन सा मर्द होगा जो ऐसी खूबसूरत औरत की मदमस्त जवानी के जाल में फंसना चाहता हो,,,,,,

खेतो के पास आम का छोटा बगीचा मंजू का ही था गांव से अलग होने की वजह से यहां पर कोई आता जाता नहीं था इसलिए ये जगह सूरज को फसाने के लिए बहुत अच्छी थी,,,,,,,
मंजू ऊंची नीची पगडंडियों से होती हुई आगे बढ़ रही थी और ऊंची नीची पगडंडियों पर पैर रखने की वजह से उसकी गांड की थिरकन कुछ ज्यादा ही बढ़ जा रही थी,,, बेहद मादक और अद्भुत दृश्य था,,, मंजू को इस तरह से ऊंची नीची पगडंडियों पर चलते हुए देखना भी,,किस्मत की बात थी उसकी मदमस्त कर देने वाली गांड की चाल देखकर अच्छे अच्छों का लंड खड़ा हो जाता था और यह बात मंजू भी अच्छी तरह से जानती थी,,,, उसके लिए यह बात सबसे अच्छी थी कि बगीचे के बीच का रास्ता हमेशा सुनसान रहता था,,,, इसलिए उसकी ऐसी मादक चाल देखने वाला वहां कोई नहीं था,,,
थोड़ी देर में चलते-चलते मंजू अपने गंतव्य स्थल पर पहुंच गई,,, आम का बगीचा काफी हरा भरा था, उसे बड़े-बड़े पेड़ और सभी पेड़ों पर आम लगे हुए थे,,,,, लदा लद आम लगे होने के कारण नजारा काफी खूबसूरत दिखाई दे रहा था,,,,,,, आम के बगीचे में एक झोपड़ी नुमा घर बना हुआ था,,,,पास में ही पानी पीने के लिए हेड पंप लगा हुआ था,,,,।


थोड़ी देर में सूरज मंजू के खेतो में पहुंच जाता है,,सूरज को देख कर मंजू कहाति हे,,

राजू तुम मेरे साथ चलो झोपड़ी में से कुछ सामान लाना है,,,(ऐसा कहते हुए वहां अपनी साड़ी की किनारी को अपनी कमर में खोसने लगी मांसल चिकनी कमर देखकर सूरज के मुंह के पानी आने लगा मंजू की बात सुनकर,,, सूरज आश्चर्य जताते हुए बोला,,,)

क्या क्या-क्या लाना है मौसी,,,,


अरे तुम अंदर चलो तो सही,,,(मंजू अच्छी तरह से जानती थी यह एक बहाना है,, और इतना कहकर वह आगे आगे चलने लगी,,,,सूरज उसके पीछे-पीछे चलने लगा था उसके पीछे-पीछे चलने में भी सूरज की हालत खराब हो रही थी क्योंकि उसकी आंखों के सामने ही उसकी मतवाली मदमस्त बड़ी बड़ी गांड मटक रही थी उसे देखकर सूरज का मन कर रहा था कि आगे बढ़ कर उसकी गांड को अपनी बाहों में भर लें और उस पर चुंबनों की बरसात कर दें,,, मंजू की जवानी पूरी तरह से गदराई हुई थी उसकी जवानी को रोंदने वाला उसके रस को निचोड़ने वाला मर्द अभी तक उसे मिला नहीं था,,, इसलिए उसकी जवानी और ज्यादा उफान मार रही थी,,,,


सूरज और मंजू दोनों ऊस छोटे से झोपड़ी के करीब पहुंच गए,,,,।)

अब क्या करना है मौसी,,,,


दरवाजा खोलो,,,,,

(इतना सुनते ही सूरज लकड़ी के दरवाजे को धीरे से खोल दिया दरवाजे की ऊंचाई काम होने की वजह से मंजू थोड़ा सा झुककर अंदर की तरफ जाने लगी और इस तरह से झुकने में उसकी बड़ी बड़ी गांड बाहर की तरह उभर कर सामने आ गई है देखकर सूरज का मन कर रहा था कि उसे पीछे से पकड़ ले उसके साड़ी कमर तक उठाकर उसकी चुदाई कर दें लेकिन ऐसा कर सकने की हिम्मत उसने बिल्कुल भी नहीं दी क्योंकि वह यह बात भी अच्छी तरह से जानता था कि वह मामी की सहेली थी,,, मंजू के अंदर प्रवेश करते ही सूरज भी पीछे पीछे हल्का सा झुककर अंदर घुस गया,,, अंदर पहुंचते ही बोला,,,)


अब क्या करना है मौसी,,,?


कहीं-कहीं लकड़ी का हल रखा है,,, उसे ढूंढना है,,,(मंजू इधर-उधर चकर पकर देखते हुए बोली,,हालांकि वह झूठ तो रही थी लेकिन उसके मन में कुछ और चल रहा था वह किसी भी तरह से सूरज को अपनी जवानी का जलवा दिखाना चाहती तो उसे अपनी जवानी का रस खिलाना चाहती थी उसे उत्तेजित करना चाहती थी इसीलिए उस बारे में युक्ति सोच रही थी,,,)

मौसी तुम जो कुछ भी कह रही हो मुझे कही नजर नहीं आ रही है,,,

मैं जानती हूं सूरज,,,,(इतना कहते हुए उसे लकड़ी का हल दिखाई दे क्या जो की झोपड़ी के अंदर थोड़ी ऊंचाई पर रखा हुआ था,,,, वह चाहती तो टेबल पर चढ़कर उसे उतार सकती थी लेकिन उसके दिमाग में कुछ और चल रहा था क्योंकि झोपड़ी के अंदर आते ही उसकी नजर सीडी पर पड़ी थी जो कि तीन चार पट्टे की ही थी ज्यादा ऊंचाई उसकी नहीं थी और वह सूरज को उत्तेजित करने के लिए उसी सीडी का उपयोग करना चाहती थी,,,)

सूरज तुम वो सीढ़ी लेकर आओ,,,,(उंगली से कोने की तरफ इशारा करते हुए बोली और सूरज तुरंत वह सीढी लेकर आ गया,,,)

लो मौसी,,,,(इतना कहते हुए वह सीडी को मंजू के एकदम करीब अपने हाथ का सहारा देकर रखते हुए बोला मंजू सूरज की हर एक हरकत को देख रही थी उसे देखकर उत्तेजित होने जा रही थी बार-बार उसे उसके धोती के अंदर उसका लंड झुलता हुआ नजर आ रहा था,,, मंजू के मन में क्या चल रहा है सूरज को इसका आभास तक नहीं था,,, अगर उसे पहले से ही मंजू के मन का आभास हो जाता तो शायद यह सारा तिकडम रचाना ही नहीं पड़ता,,, अब तक तो वह मंजू की साड़ी उठाकर उसकी चुदाई कर दिया होता,,,,,,,
मंजू उस छोटी सी सीढ़ी को बड़े गौर से देख रही थी नीचे से दूसरे नंबर की पाटी,, एकदम ढीली थी जो कि कभी भी टूट सकती थी,,, और उसी को देखकर उसके मन में युक्ति जन्म ले रही थी उसका दिमाग बड़ी जोरों से चल रहा था शायद ऐसे मामले में उसका दिमाग और ज्यादा तेज चलने लगता था,,, मंजू जानबूझकर सीढ़ी के नीचे वाले पाटी की मजबूती परखने के लिए नीचे की तरफ झुक गई जिसकी वजह से उसके साड़ी का पल्लू उसके कंधे से नीचे गिर गया और उसकी मदमस्त कर देने वाली चुचियां,,,,जो कि जंगली कबूतर की तरह ब्लाउज के अंदर कैद अपने पंख फड़फड़ा रहे थे वह तुरंत बाहर आने के लिए बेकाबू हो गए,,,, मंजू की भारी-भरकम छातियों को देखते हुए सूरज की हालत खराब हो गई,,,, सूरज का मन एकदम से ललच उठा,,,उसकी चुचियों को देखते ही सूरज मन में ख्याल आने लगा कि एक एक चूची १ लीटर दूध से भरी होगी,,,,जिसे मुंह में भर कर पीने में बहुत मजा आएगा,,,, चुचियों के साईज से छोटा ब्लाउज अपने छोटे-छोटे बटन के सहारे ना जाने कैसे उसकी भारी-भरकम चुचियों को सहारा देकर थामे हुए था,,,,,,अगर थोड़ा सा और झटका खाता तो शायद उसके ब्लाउज के बटन चरचरा कर टूट जाता है और उसकी मदमस्त कर देने वाली चूचियां एकदम से बाहर आकर सूरज से गुफ्तगू करने लगती,,,,

सूरज अपने मन में यही सोच रहा था कि कहां से उसके ब्लाउज का बटन टूट जाता है तो उसे उसकी नंगी चूचियों को देखने का मौका मिल जाता,,, वह एकटक आंखें आंखें झुकी हुई मंजू की ब्लाउज में लटक रहे चुचियों को देख रहा था इस बेहद कामोत्तेजक नजारे का असर सूरज को अपनी दोनों टांगों के बीच होता हुआ महसूस हो रहा था,,, उसके लंड में तनाव आना शुरू हो गया था,,, और मंजू अपनी जाल फेंकने में कामयाब हो गई थी लेकिन वह तसल्ली कर लेना चाहती थी कि वह पूरी तरह से अपनी चाल में कामयाब हुई है कि नहीं क्योंकि वह जानबूझकर इस तरह से चुकी थी और अपनी साड़ी के पल्लू को नीचे गिरा ही थी यही देखने के लिए सूरज की तरफ देखिए कि वह उसकी चूचियों की तरफ देख रहा है कि नहीं और उसे अपनी चूचियों की तरफ पागलों की तरह देखता पाकर वह मन ही मन खुश होने लगी,,,, जितना झलक दिखाना था उतना मंजू ने दिखा चुकी थी और मुस्कुरा कर अपने पल्लू को पकड़कर खड़ी होते हुए अपनी साड़ी के पल्लू को अपने कंधे पर रखकर दोनों हाथों से उसे अपनी छातियों पर खींचकर ढकते हुए बोली,,,

बाप रे मुझे तो शर्म आ रही है,,,,(सूरज अभी भी उसकी भारी-भरकम छातियों की तरफ देख रहा था,,, सूरज को इस तरह से ताकता हुआ देख कर मंजू को अपनी बुर में कुछ होता हुआ महसूस हो रहा था,,,, मंजू की बात सुनकर सूरज बोला,,,)

किस बात के लिए मौसी,,,


इसीलिए कि मेरा साड़ी का पल्लू कंधे से नीचे गिर गया,,,


अरे वह तो जानबूझकर थोड़ी ना गिरा है अनजाने में गिर गया,,,,,


हां कह तो तुम सच ही रहे हो,,,,(इतना क्या करूं मुस्कुराने लगी,,, और सीढ़ी को यह जगह लगाने के लिए बोल कर वह बोली,,,)

संभाल तो लोगे ना,,,


हां मौसी संभाल तो लूंगा लेकिन मुझे कह दो मैं उतार दूंगा क्या उतारना है,,,


तुम्हें अगर मालूम होता तो तुम ही को बोलती लेकिन तुम्हें मालूम नहीं है इसलिए मुझे ही उतारना होगा,,,,


ठीक है मौसी तुम सीढ़ी पर चढ़ो मै संभाल लूंगा,,,


मेरा वजन ज्यादा है सूरज,,,



कोई बात नहीं मौसी मैं भी हट्टा कट्टा जवान हूं आराम से संभाल लूंगा,,,
(सूरज की बात सुनते ही मंजू मन ही मन मुस्कुराने लगी और अपने मन में ही बोली इसीलिए तो अपनी जवानी तुझे सोपने का इरादा कर लि हुं)

चलो तुम पर मुझे पूरा भरोसा है आराम से पकड़ना,,, दूसरे नंबर की पाटी एकदम कमजोर है,,,(सीढी को योग्य स्थान पर लगाते हुए वह बोली,,)

चिंता मत करो मौसी में गिरने नहीं दूंगा,,,(सूरज का दिल जोरों से धड़क रहा था मंजू के तन से उठा रही मादक खुशबू सूरज को मदहोश कर रही थी वह पूरी तरह से उत्तेजित हुआ जा रहा था इतने करीब से वह मंजू के खूबसूरत बदन की गर्मी को अपने अंदर महसूस कर रहा था हालांकि,,,
इस समय मंजू के द्वारा बिना कपड़े उतारे ही सूरज पूरी तरह से उत्तेजित हुआ जा रहा था,,, इसका असर उसे अपने दोनों टांग के बीच होता हुआ महसूस हो रहा था,,,, सूरज की बात सुनकर वह तसल्ली के साथ सीढ़ी पर चढ़ने लगी पहली सीढ़ी पर पैर रखने से पहले वह अपनी साड़ी को थोड़ा सा उठा कर अपनी कमर में खोंश दी जिससे उसकी साड़ी उसके घुटने तक उठ गई और उसकी नंगी दूधिया चिकनी पिंडलिया नजर आने लगी,,,जिसे देखते ही सूरज की आंखों में खुमारी छाने लगी सूरज का मन उसकी नंगी चिकनी टांगों को छूने का कर रहा था लेकिन ऐसा कर सकने की हिम्मत उसमें बिल्कुल भी नहीं थी,,,,

सूरज की किस्मत बड़े जोरों पर थी,,, मंजू का भी दिल जोरों से धड़क रहा था साड़ी को थोड़ा सा उठा कर कमर मैं खोसने की जगह वह अपने मन में सोच रही थी कि क्यों ना साड़ी को कमर तक उठाकर सूरज को अपने नंगे पन का दर्शन करा दे अपनी बुर का दर्शन करा दे जिसे देखकर वह पूरी तरह से बावला हो जाए और उसका गुलाम बन जाए,,, लेकिन ऐसा करना शायद उसके भी संस्कार में नहीं था खुले तौर पर वह इस तरह की हरकत नहीं करना चाहती थी भले ही वह अपनी कामुक अवस्था को संभालना पा रही हो लेकिन खुले तौर पर इस तरह की हरकत उसे भी मंजूर नहीं थी वह इस खेल में धीरे-धीरे आगे बढ़ना चाहती थी,,,,
ताकि सूरज को भी लगे कि सब कुछ अनजाने में हुआ है,,,मंजू अपनी जवानी का जलवा बिखेरने के लिए पूरी तरह से तैयार हो चुकी थी और वह अपनी एक टांग सीढ़ी पर रखकर चढना शुरु कर दी थी पहली सीढ़ी मजबूत थी इसलिए उसे दिक्कत नहीं हुई लेकिन वो जानती थी कि दूसरी सीढ़ी कमजोर है और उस पर धीरे से पैर रखकर वह आगे बढ़ने लगी दूसरी सीढ़ी पर पहुंचते ही टांग उठाने की वजह से उसकी गोलाकार गांड बड़े-बड़े तरबूज की तरह उभर कर सामने आ गई,,, मानो कि जैसे खेतों में झाड़ियों के बीच सबसे बड़ा तरबूज उठाए खड़ा हो,,,,गोल गोल गांड देख कर सूरज की हालत खराब हो रही थी उसका मन कर रहा था कि अपना दोनों हाथ आगे बढ़ा कर उसकी गांड को थाम ले उसकी गर्मी को अपने अंदर महसूस करें,,, लेकिन वह सिर्फ देखता ही रह गया,,,
देखते ही देखते मंजू तीसरे सीढ़ी पर चढ़ चुकी थी और नीचे खड़ा सूरज,, नजर उठाए ऊपर की तरफ देख रहा था उसकी कोशिश पूरी थी कि उसकी नजर उसकी साड़ियों के बीच अंदर तक पहुंच जाएं लेकिन मंजू ने भी साड़ी ऊपर नहीं उठाई थी कि उसकी नजर उसकी दोनों टांगों के बीच पहुंच पाती अंदर बहुत अंधेरा था इसलिए उसे कुछ नजर नहीं आ रहा था,,, मंजू सूरज को बराबर समय दे रही थी ताकि वह उसकी खूबसूरत जवानी के रस को अपनी आंखों से पी सके,,,,,,।


ठीक से पकड़े रहना सूरज,,,, कहीं में गिर ना जाऊं,,,


नहीं गिरोगी मौसी मैं पकड़ा हूं,,,


अरे सीढ़ी नहीं मेरे पैर पकड़ मेरे पैरों में कंपन हो रहा है मेरा पैर कांप रहा है,,,, कहीं में गिर ना जाऊं,,,,
(फिर पकड़ने वाली बात सुनकर सूरज का दिल जोरो से धड़कने लगा एक तरह से उसके नंगे जिस्म को छुने का आमंत्रण था और वह ऐसा मौका भला कैसे अपने हाथ से जाने देता उसकी बात सुनते ही तुरंत सीढ़ीयों को छोड़कर वह मंजू की टांग को पकड़ लिया और वही उसकी पिंडलियों को जिसे अपनी हथेली में दबाते ही उसका तन बदन जोश से भर गया,,,, और मंजू की भी हालत खराब हो गई सूरज के प्रति को पूरी तरह से आकर्षित हो चुकी थी इसलिए कहा क्योंकि हथेली अपनी नंगी चिकनी टांग पर पढ़ते हैं उसकी बुर से मदन रस की बूंद टपक गई यह मंजू की तरफ से सूरज के चरणों में समर्पण का भाव था और पूरी तरह से सूरज को समर्पित हो चुकी थी मन से लेकिन अभी तन से बाकी था,,,,)

अब ठीक है ना मौसी,,,


हां सूरज संभालना,,,
(सूरज का तो लंड पूरी तरह से खड़ा हो चुका था धोती में तंबू सा बन गया था,,,, मंजू ऊंचाई पर रखे हुए लकड़ी के हल को उतारने लगी जो कि दो चार लकड़ियों के नीचे रखा हुआ था,,,,हल को उतारते समय उसके मन में गई हो रहा था कि सूरज जिस तरह से नीचे खड़ा होकर ऊपर की तरफ देख रहा है अगर वह अपनी साड़ी को उठाकर थोड़ा और ऊपर कर दी होती तो उसे उसकी जवानी की दहलीज नजर आने लगती,,,और , सूरज को वह पूरी तरह से अपना दीवाना बना देती,,,,
लेकिन जितना भी व कर रही थी सूरज के लिए काफी था सूरज पूरी तरह से अपने अंदर उत्तेजना का अनुभव कर रहा था एक तो उसके बदन से उठ रही खुशबू उसके होश उड़ा रही थी,,, और ऊपर से वह उसकी नंगी पिंडलियों को पकड़े हुए था जिससे उसका जोश दुगुना होता जा रहा था,,, उत्तेजना के मारे मंजू को भी अपनी पेंटी गीली होती महसूस हो रही थी,,

जिस चीज को वह ढूंढ रही थी वह मिल चुका था वह उसके हाथों में था अब नीचे उतरना चाहती थी,,,, इसलिए मैं अपना एक पैर नीचे की तरफ लाकर पाटी,, पर रख दी,,,बार-बार सूरज की नजर उसकी गोलाकार गांड पर चली जा रही थी जो कि ऊपर नीचे पैर करने की वजह से उसकी गांड कुछ ज्यादा ही उभरकर बड़ी हो जा रही थी जिसे अपने दोनों हाथों में थामने का मन कर रहा था,,,,, मंजू भी यही चाहती थी कि सूरज अपने हाथों में उसकी दोनों गांड की फाको को थाम ले,,, और अपने मन में बस यही सोच ही रही थी वह सोच रही थी आखिरी सीढ़ी जब आएगी तो जरूर वह कुछ ऐसा करेगी जिससे सूरज को उसकी गांड पकड़ना ही पड़ेगा,,,, अंतिम दो सीढ़ी बाकी थी और दूसरे नंबर की सीढ़ी कमजोर थी वह तीसरी सीडी पर आराम से खड़ी थी,,,, सूरज ठीक सीढ़ियों के इर्द गिर्द अपनी दोनों टांगों को रखकर बीचो-बीच खड़ा था,,, ताकि अगर मंजू गिरे तो वह उसे थाम ले,,,,वह दूसरी सीढ पर अपने पैर रखती ईससे पहले ही उत्तेजना के मारे वो एकदम से लड़खड़ा गई,,,,

अरे अरे सूरज देखना,,,,( और उसका इतना कहना था कि उसका पैर फिसल गया तीसरी सीढ़ी से ही नीचे फिसल कर गिरने लगी,,,,, लेकिन सूरज पूरी तरह सचेत था एकदम तैनात,,,, वह मंजू की टांगों को पकड़े रह गया और उसकी हथेली उसकी नंगी चिकनी टांग ऊपर फिसलते हुए जैसे-जैसे भी नीचे आ रही थी वैसे वैसे उसकी हथेली उपर की तरफ जा रही थी,,,,और उसके पैर नीचे जमीन को छूते इससे पहले ही सूरज की हथेली उसकी कमर तक पहुंच गई थी और उसकी साड़ी कमर तक उठ गई थी क्योंकि सूरज की हथेली उसकी कमर पर थी और उसकी सारी पूरी तरह से उसकी हथेली के ऊपर टिकी हुई थी,,, लेकिन सूरज ने अपनी मजबूत हाथों का सहारा देकर उसे थाम लिया था उसे गिरने नहीं दिया था ना ही उसे चोट लगने दिया था,,,,

जैसे ही मंजू के पैर जमीन पर पड़े उसकी सांसे तेजी से चलने लगी वो एकदम से घबरा गई थी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह सीढ़ी पर से नीचे गिर गई है क्योंकि वह तो दूसरी सीढ़ी पर पैर रखकर सिर्फ नाटक करने वाली थी लेकिन वह हकीकत में ही गिर गई थी,,,,,, जब उसे इस बात का एहसास हुआ तब वह अपने आपको सूरज की बाहों में पाई जैसा कि वह चाहती भी थी लेकिन यह सब अनजाने में हुआ था,,,, सूरज की दोनों हथेली मंजू की चिकनी मांसल कमर पर थी,,, जोकि सूरज ने कभी ऐसा सपने में भी नहीं सोचा था,,,, मंजू का बदन सूरज के बदन से एकदम चिपका हुआ था एक तरह से सूरज ने उसे कमर पकड़कर अपनी बाहों में ले लिया था धोती के अंदर सूरज का लंड पूरी तरह से खड़ा हो गया था जो कि तुरंत उसकी दोनों टांगों के बीच उसकी बड़ी बड़ी गांड के बीच धंसना शुरू कर दिया था,,सूरज को इस बात का एहसास हुआ तो वह पूरी तरह से मस्त हो गया पूरी तरह से उत्तेजना के सागर में गोते लगाने लगा क्योंकि वह कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसका लंड इस तरह से उसकी गांड को स्पर्श होगा,,, पल भर में सूरज की सांसे तेजी से चलने लगी दूसरी तरफ मंजू की भी सांसे ऊपर नीचे हो रही थी,,,,,,


सूरज ने उसे अपनी मजबूत बजाओ में पकड़ कर उसे गिरने से बचाया था इस बात की तसल्ली मंजू को अच्छी तरह से थी लेकिन जैसे ही उसे अपनी गांड के बीचों बीच कुछ कठोर चीज है जो भी महसूस हुई तो एकदम से दंग रह गई,,,तब जाकर उसे इस बात का अहसास हुआ कि वह सूरज की बाहों में थी और सूरज का लंड जोकि धोती में होने के बावजूद भी उसकी गांड में धंशा जा रहा था,,, पल भर में मंजू की भी सांसे ऊपर नीचे होने लगी,,,, जिस तरह से वह सूरज के साथ उसे उत्तेजित करना चाहते थे अनजाने में ही वह होता जा रहा था,,,

सूरज के मोटे तगड़े लंबे लंड की ताकत को वह अपनी गांड पर महसूस कर रही थी,,,, उसे अंदाजा लग गया था कि सूरज का लंड कितना दमदार है,,,वह अपनी स्थिति की तरफ ध्यान दे तो उसे इस बात का एहसास हुआ कि उसकी साड़ी पूरी तरह से कमर तक उठ गई है और कमर के नीचे वह पूरी तरह से अपनी पेंटी को छोड़कर नंगी ही थी और उसका पेंटी के लिए मंजू को अपने आप पर गुस्सा आने लगा था अपने मन में सोचने लगी कि अगर पेंटी ना पहनी होती तो आज सूरज के लंड को अपने गांड के बीचो बीच अपनी बुर पर महसूस कर ली होती,,,, सूरज था कि उसे छोड़ने का नाम नहीं ले रहा था उसे तो मजा आ रहा था चिकनी कमर को अपने दोनों हाथों में थाम कर ऐसा लग रहा था कि जैसे वह मंजू को चोदने की तैयारी कर रहा हो,,, सूरज अपने आपको किस्मत वाला समझने लगा था मौके का फायदा उठाते हुए अपनी कमर को वह आगे की तरफ फैल रहा था जिसका एहसास मंजू को बड़े अच्छे से हो रहा था और सूरज की इस हरकत पर वह पूरी तरह से पानी पानी हुए जा रही थी,,,उसे उम्मीद नहीं थी कि अनजाने में ही उसकी साड़ी कमर तक उठ जाएगी और वह भी सूरज के हांथो,,,,

मंजू अपने मन में सोच रही थी कि अब सूरज छोड़ेगा अब सूरज छोड़ेगा लेकिन ऐसा नहीं हो रहा था वह तो और मदहोशी के साथ उसे पकड़े हुए था और साथ ही धोती में होने के बावजूद भी,,, अपने लंड को उसकी बड़ी बड़ी गांड के बीचो-बीच दे रहा था,,,,
मंजू की बुर पूरी तरह से पानी छोड़ रही थी,,, सूरज ने उसे पूरी तरह से उत्तेजना के महासागर में डुबो दिया था उसकी पेंटी पूरी तरह से काम रस से गीली हो चुकी थी उसे इस बात का डर था कि काफी समय हो गया थाइ सलिए वह सूरज से बोली,,,।


अच्छा हुआ सूरज तूने मुझे संभाल लिया वरना आज तो मैं गिर गई होती,,,

मेरे होते हुए मैं तुम्हें गिरने नहीं दूंगा मौसी,,,


बस कर अब छोड़ो मुझे हल बाहर लेकर चलना है,,,

(सूरज का छोड़ने का मन बिल्कुल भी नहीं कर रहा था मंजू के बदन की गर्माहट उसे पूरी तरह से उत्तेजित किए हुए थी और उसकी बड़ी बड़ी गांड का स्पर्श पाकर उसका लंड लोहे के रोड की तरह हो गया था,,, लेकिन फिर भी उसकी बात मानते हुए वह उसे अपनी बाहों की कैद से आजाद कर दिया,,,, मंजू की सांसे अभी भी ऊपर नीचे हो रही थी,,,, सूरज से अलग होते हैं मंजू अपनी साड़ी को व्यवस्थित करने लगी व्यवस्थित करते समय,,, सूरज को उसकी पेंटी नजर आ गई,, मंजू बहुत खुश थी क्योंकि उसकी नजर सूरज की धोती पर जांग की तरफ चली गई थी जो की पूरी तरह से उठा हुआ था,, और वह यही चाहती भी थी,,, मंजू का दिल जोरों से धड़क रहा,,,अपनी साड़ी को व्यवस्थित करने के बाद वह मुस्कुराते हुए सूरज के धोती में बने तंबू को देख कर बोली,,।)


तो यही था जो मेरे पीछे चुभ रहा था,,, लगता है बहुत बड़ा है,,,।
( मंजू के मुंह से इतना सुनकर सूरज पूरी तरह से उत्तेजना से गदगद हो गया उसे लगने लगा कि जैसे उसके लिए रास्ता साफ होता जा रहा है वह मन ही मन बहुत खुश होने लगा लेकिन अपने धोती में बने तंबू को छुपाने की कोशिश बिल्कुल भी नहीं किया,,,, बस खड़ा मुस्कुरा रहा था और उसकी मुस्कुराहट को देखकर मंजू भी समझ गई थी कि सूरज ही उसकी जवानी की गर्मी को शांत करेगा,,,,)

चलो जल्दी चलो काफी देर हो गई में हमें,,,(इतना सुनकर जैसे ही सूरज चलने को हुआ सूरज के तंबू की तरफ देखते हुए वह बोली,,,)

इस हाल में चलोगे,,(उंगली से सूरज के तंबू की तरफ इशारा करते हुए) ऐसे चलोगे तो बाहर से कोई आता जाता देख लेगा तो क्या सोचेंगे मैं चलती हूं तुम इस हल को साफ करके लेते आना तब तक तुम्हारे धोती का तूफान शांत हो जाएगा,,,(इतना कहकर वो मुस्कुरा कर बाहर निकल गई और सूरज उसे देखता रह गया और फिर जल्दी-जल्दी हल को साफ करने लगा,,, इतनी देर में उसका लंड शांत भी हो गया और वह हल लेकर बाहर आ गया,,,।)
 
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झोपड़ी के अंदर जो कुछ भी हुआ था उसको लेकर सूरज और मंजू दोनों बेहद उत्साहित थे,,, सूरज को तो यकीन नहीं हो रहा था कि वह मंजू के खूबसूरत बदन को अपने हाथों से स्पर्श किया है,,,, लाजवाब बेमिसाल अद्भुत खूबसूरती की मालकिन मंजू के भरे हुए बदन को अपनी बाहों में लेकर वह पूरी तरह से गदगद हुआ जा रहा था,,, उसे अपनी किस्मत पर यकीन नहीं हो रहा था,,,जिसे सिर्फ देख कर आहे भरा करता था उसे अपनी बाहों में लेकर वह अपने आप को सबसे ज्यादा खुश नसीब समझने लगा था,,,,,, नंगी चिकनी टांगो को पकड़कर वह चित्र की उत्तेजना का अनुभव अपने अंदर कर रहा था वह पूरी तरह से उसे अपने बस में कर लिया था लेकिन वह नहीं जानता था कि उसके हाथों से ही उस खूबसूरत औरत की साड़ी कमर तक उठ जाएगी,,,,

यह शुभ काम अपने हाथों से होता हुआ देखकर वह ऊतेजना के परम शिखर पर विराजमान हो गया था,,,उसकी मानसिक चिकनी कमर पर अपनी हथेलियों की पकड़ को वह अभी तक अपने अंदर महसूस कर रहा था उसके बदन की गर्माहट को अपने अंदर महसूस करके उसे इस बात का डर था कि कहीं उसका लंड पिघल ना जाए,,,,,, उसकी नरम नरम गद्देदार बड़ी बड़ी गांड पर उसके लंड की ठोकर अनजाने में ही लगी थी लेकिन वह जानबूझकर अपनी तरफ से भी हरकत करते हुए अपने लंड का दावा उसकी गांड पर बराबर बनाए हुए था,,, सूरज अपनी मामी का सुख भोग चुका सूरज इतना तो समझ गया था कि मंजू को भी उसके लंड की रगड़ साफ महसूस हुई होगी,,,तभी तो वह मुस्कुरा रही थी और जाते समय उसके पहचाने मैंने तंबू की तरफ इशारा करके खुद बोल गई थी कि इसे शांत करके बाहर आ जाना,,,,,,
उसकी इस हरकत पर सूरज समझ गया था कि मंजू बहुत गरम औरत है वरना जिस तरह की हरकत हुई थी उससे वह क्रोधित हो जाती लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था,,,,,

अंदर से सूरज लकड़ी के हल को लेकर वह बाहर आ चुका था,,, राजु को देखकर मंजू मंद मंद मुस्कुरा रही थी क्योंकि अंदर जो कुछ भी हुआ था वह मंजू की सोच से ज्यादा हो चुका था,,मंजू के मन में यही था कि झोपड़ी के अंदर ले जाकर क्यों वह किसी भी तरह से सूरज को उत्साहित और उत्तेजित करेगी लेकिन अंदर उम्मीद से कुछ ज्यादा ही हो गया था और सूरज की उत्तेजना वह अपनी आंखों से उसके धोती में देख रही थी जिसे वह अपनी बड़ी बड़ी गांड पर महसूस भी कर चुकी थी,,,, उसकी रगड उसका दबाव बड़ी बड़ी गांड पर बेहद अद्भुत था,,, जिसे महसूस करके अभी भी वह पानी पानी हुए जा रही थी,,,,, मंजू को अपनी पेंटी पूरी तरह से गीली हो चुकी महसूस हो रही थी जिसे वह बार-बार साड़ी के ऊपर से ही अपना हाथ लगा कर व्यवस्थित करने की कोशिश कर रही थी और यह हरकत सूरज को एकदम साफ दिखाई दे रही थी और उसकी इस हरकत के कारण उसके तन बदन में काम ज्वाला भड़क रही थी,,,, सूरज समझ गया था कि उत्तेजना के मारे उसका काम रस टपक रहा होगा और वह अपने मन में यही सोचने लगा कि काश उसकी किस्मत में उसकी बुर पर मुंह लगाकर उसका काम रस पीना लिखा होता तो मजा आता ,,,,,,
तभी मंजू कहती हे,,
सूरज इस हल को हैंडपंप के पास ले कर आ जाना इस पर लगी मिट्टी को पानी से धोना कर साफ करना है,, इतना कह कर वह हैंडपंप की तरफ चली गई,,,
सूरज भी पहले कपड़े से हल पर लगी धूल को साफ करने लगा उसमे थोड़ा वक्त लग गया उसके बाद सूरज हैंडपंप के पास जाने लगा,

थोड़ी देर बाद सूरज हैंडपंप पर पहुंच गया था चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था दोपहर का समय था कड़ी धूप होने के बावजूद भी घने पेड़ चारों तरफ होने की वजह से धूप नीचे जमीन तक नहीं पहुंच पा रही थी इसलिए हां पर ठंडक बनी हुई थी,,,, सूरज का दिल जोरों से धड़क रहा था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि पता नहीं की किस हल की धुलाई करने यहां बुलाई है यह सोचकर बार-बार उसकी आंखों के सामने वही दृश्य याद आ जा रहा था जब वह सीढ़ियों पर चढ़ी थी और उसका पैर फिसला था और वह उसकी बाहों में आ गीरी थी,,, सूरज के मन में एक मलाल रह गया था कि मौका मिलने के बावजूद भी वह उसकी चूचियों पर हाथ नहीं रख पाया था जो कि किसी पहाड़ी की तरह सीना ताने खड़ी थी,,,,


हैंडपंप के पास पहुंचकर वह मंजू को इधर-उधर ढूंढने लगा मंजू कहीं भी नजर नहीं आ रही थी,,,सूरज को बहुत गुस्सा आ रहा था उसे लगने लगा मंजू उसे यहां बुलाकर कहा चली गई,,,कि शायद वह मजाक कर रही थी वह कितने अरमान लेकर मंजू की मदत करने आया था उस ख्याल से ही बार-बार उसका लंड मुंह उठाकर खड़ा हो जाता था जिसे वह बार-बार अपने हाथों से बैठाने की कोशिश कर रहा था,,,,,
कुछ देर तक वह झोपड़ी के पास ही खड़ा होकर सोचने लगा,,,, और बाहर आ गया इधर-उधर दूर-दूर तक देखने पर भी कोई नजर नहीं आ रहा था इसलिए वह हेड पंप के पास जाकर हेंडपंप चला कर पानी पीने लगा,,,, उसका मन उदास हो चुका था,,,। वह वापस घर जाने वाला था कि तभी वह सोचा की हैंडपंप के पीछे जाकर झाड़ियों देख लु,,,,

और यह सोचकर वह झाड़ियों के पीछे जाने लगा,,,,,,, लेकिन यहां पर कोई नहीं था तो वह धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा थोड़ी ही दूरी पर बेर लगे हुए थे जिसमें बड़े-बड़े पेड़ उगे हुए थे वह सोचा कि चलो कुछ नहीं तो बैर ही लेकर खाया जाए,,,, और यह सोचकर वह बेर के पेड़ के पास पहुंच गया,,,,,, वही थोड़ी दूरी पर मंजू पेशाब करने के लिए आई थी और पेशाब करके वह भी बेर तोड़ रही थी सूरज को उस तरफ आता देखकर वह पूरी तरह से सकते में आ गई थी वह सोच रही थी कि वह यहां क्या करने आ रहा है,,,, लेकिन तभी उसके दिमाग में खुराफाती चलने लगा,,,,। सूरज बैर तोड़ता इससे पहले ही वह उसके सामने अपनी पीठ उसकी तरफ किए हुए जाकर खड़ी हो गई उसकी पायल और चूड़ियों की खनक की आवाज सुनते हैं सूरज उस तरफ देखने लगा और ठीक थोड़ी ही दूरी पर अपने सामने मंजू को खड़ी देख कर वह खुश हो गया लेकिन वह कुछ बोल पाता इससे पहले ही मंजू अपना जलवा दिखाते हुए अपनी साड़ी को धीरे-धीरे ऊपर की तरफ उठाने लगी जैसा कि वह उस दिन झाड़ियों के अंदर छुप कर देखा था यह देखकर सूरज का दिल जोरो से धड़कने लगा वह समझ गया कि जिस तरह का दृश्य उसने मन में देखा था आज उसे हकीकत में देख रहा है उसकी किस्मत तेज है आज उसे कामुक नजारा देखने को मिलेगा,,,, इसलिए बैर ना तोड़कर वह वहीं खड़ा रह गया और धड़कते दिल के साथ उस दृश्य का आनंद लेने लगा जोकी मंजू जान बूझकर उसे दिखा रही थी जबकि वह पेशाब कर चुकी थी लेकिन आज वह अपनी जवानी की झलक दिखा कर उसे पूरी तरह से अपने बस में कर लेना चाहती थी,,,


मंजू अपनी जवानी का जलवा बिखेरना शुरू कर दी थी वह धीरे-धीरे अपनी साड़ी को ऊपर की तरफ उठा रही थी और देखते ही देखते सूरज की आंखों के सामने उसने अपनी साड़ी को कमर तक उठा दी थी ऐसा करने में उसे अत्यधिक उत्तेजना का अनुभव हो रहा था,,, क्योंकि वह जानती थी कि पीछे खड़ा एक नौजवान लड़का उसे अपनी साड़ी कमर तक उठाते हुए देख रहा है उसके नंगे पन को अपनी आंखों से देख कर मस्त हो रहा है और यह एहसास मंजू के तन बदन में आग लगा रहा था,,,,, देखते ही देखते मंजू अपनी साड़ी को कमर तक उठाती थी सूरज की आंखें एक बार फिर से चौंधिया गई थी मंजू को पेंटी पहने हुए देखकर,,,, वह लाल पेंटी में बड़ी कामुक लग रही थी,,

मंजू सब कुछ जानते हुए भी अपनी पेंटी को नीचे की तरफ खासकाने लगी और मंजू की यह हरकत सूरज से सीने में छुरियां चला रही थी,,, देखते ही देखते मंजू ने अपनी बड़ी बड़ी गांड को उजागर करते हुए अपनी पेंटी को नीचे घुटनों तक सरका दी,,,सूरज से तो कुछ भी बोला नहीं जा रहा था यहां तक कि सांस भी लेना मुश्किल हुआ जा रहा था और पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था ,, धोती में एक बार फिर से तंबू बन चुका था,,, गोल गोल गोरी गांड सुनहरी धूप में और ज्यादा चमक रही थी,,, मंजू के अंतर्मन में भी फुलझड़ियां झड़ने लगी थी,,, जवानी की आग में उसका तन जल रहा था,,, सूरज को पाने के लिए वो अपने होशो हवास खो बैठी थी,,, वह अच्छी तरह से जानती थी कि पीछे खड़ा सूरज उसकी नंगी गांड को देख रहा होगा और यही तसल्ली करने के लिए वह पीछे नहीं देखना चाहती थी क्योंकि वह सूरज को पूरी तरह से तड़पाना चाहती थी,,,, सूरज के लिए उसका नंगा बदन एक तरह से उसके लिए पुरस्कार था और उसे जीतने के लिए उसे खुद मंजू से स्पर्धा करना था जिसमें मंजू को भी मालूम था कि विजेता चाहे जो भी बने फायदा उसी का है,,,, इस खेल में बहुत मजा आने वाला था,,,

मंजू के लिए पहला मौका था जब हुआ इस तरह से किस जवान लड़के को जानबूझकर अपनी गांड दिखा रही थी,,, और सूरज के लिए इस तरह के मौके बनते जा रहे थे,,, मंजू पेशाब कर चुकी थी इसलिए उसे पेशाब बिल्कुल भी नहीं लगी थी लेकिन पेशाब करने की कलाकृति दिखाना जरूरी थी इसलिए वह वहीं पर बैठ गई क्योंकि वह इस बात को अच्छी तरह से जानती थी कि मर्दों की सबसे बड़ी ख्वाइश होती और खूबसूरत औरत को,,,, उनकी बड़ी-बड़ी कहां देख कर और खास करके उन्हें पेशाब करता हुआ देखकर मर्द एकदम से उत्तेजित हो जाते हैं,,,, और वह भी यही चाहती थी कि सूरज पूरी तरह से उत्तेजित हो जाए,,,,

मंजू उसी तरह से बैठीरह गई गई मंजू की जानकारी में उसे पेशाब करता हुआ आज तक किसी ने भी नहीं देखा था,,,,
मंजू के खूबसूरत चेहरे की तरह उसकी गांड भी बहुत खूबसूरत थी वह भरी हुई गुदाज एकदम गदराई हुई,,, जिसे देखकर सूरज का मन कर रहा था किसी से में झाड़ियों में घुस जाए और पीछे से बैठकर उसकी गांड में पूरा लंड डाल दें,,,, लेकिन वह‌ ऐसा नहीं करना चाहता था भले ही वह उसके आकर्षण के जाल में पूरी तरह से बंधा हुआ था लेकिन इस बात को भी अच्छी तरह से जानता था कि वह मामी की सहेली हे अगर उसने मामी को बता दिया तो उन दोनो के बीच नया रिश्ता बन रहा था वह टूट जाता,,,

मंजू अपने दोनों हाथों को पीछे की तरफ लाकर अपनी गांड की बड़ी-बड़ी फांकों को दोनों हाथों में लेकर हल्के हल्के सहला रही थी,,, और यह देखकर सूरज के सब्र का बांध टूटता चला जा रहा था वह धोती के ऊपर से ही अपने लंड को सहला रहा था,,,जो की पूरी तरह से धोती में अपनी अकड़ दिखा रहा था,,। मंजू पूरी तरह से सूरज को मस्त कर देना चाहती थी,,, इसलिए अपनी बड़ी-बड़ी काम को दोनों हथेली में भरकर हल्के हल्के दबा भी रही थी,,,, कुछ समय तक वह उसी तरह से बैठी रह गई,,,, वो जानती थी कि उसका काम हो गया है जिस तरह का जादू चलाना था वह जादू चल चुका है,,, इसलिए वह धीरे से खड़ी हो गई,,, लेकिन अपने साड़ी को नीचे करने से पहले और अपनी पेंटी को पहनने से पहले,,,,वो पीछे मुड़कर देखना चाहती थी पर ऐसा जताना चाहती थी कि सब कुछ अनजाने में हुआ है,,,इसलिए थोड़ा सा नीचे झुकी और अपनी पेंटी को दोनों हाथों से पकड़ कर ऊपर करनी चाही रही थी कि पीछे मुड़ कर देखने लगी और तुरंत सूरज और मंजू दोनों की नजरें आपस में टकरा गई,,,,,, मंजू अगर गुस्सा करती तो सूरज शर्मिंदा हो जाता लेकिन वह ऐसा नहीं चाहती थी क्योंकि वह इस खेल में आगे बढ़ना चाहते थे इसलिए वह सूरज की तरफ देखते हूए बोली,,,

तुम कब आए,,,,(और ऐसा कहते हुए जानबूझकर उसकी आंखों के सामने ही अपनी पेंटी को पहनने लगी,,,, सूरज आंखें फाड़े उसी को देखे जा रहा था,, उसकी सांसों की गति बड़ी तेजी से चल रही थी,,,, मंजू पेंटी पहन चुकी थी,,,साड़ी को कमर से नीचे गिराने से पहले वह एक बार उसकी तरफ एकदम से खुल गई थी वह चड्डी में क्यों अपनी भी बुर जी को दिखाना चाहती तुझे अपनी उसकी पेंटी से पूरी तरह से चिपकी हुई थी और उपसी हुई नजर आ रही थी,,,
मंजू समझ गई थी कि जो कुछ भी उसमें दिखाई थी वह उसकी उत्तेजना के लिए काफी था क्योंकि उसकी नजर उसके धोती में बने हुए तंबू पर चली गई थी,,, जिस पर नजर पड़ते ही उसके होठों पर मादक मुस्कान तैरने लगी,,, और आपने साड़ी को कमर से नीचे गिरा कर,,, वह एक बेहद कामुकता भरे नजारे पर पर्दा गिरा दी,,,,,

सूरज के द्वारा पेशाब करता हुआ उसकी नंगी गांड देखने के बावजूद भी वह बिल्कुल सामान्य थी यह देखकर सूरज को भी आश्चर्य हो रहा था उसमें किसी भी प्रकार की झिझक नहीं थी,,, वह बड़े आराम से झाड़ियों के बीच में से अपने साड़ी को दोनों हाथों से हल्के से पकड़ कर बाहर की तरफ आने लगी और बोली,,,)


मैं कब से तुम्हारा हैंडपंप पर इंतजार कर रही थी मुझे तो लगा तुमें देर क्यों हो रही है कब आओगे तभी मुझे बडे जोरो की पिशाब लगी थी तो मैं इधर आ गई,,,,
(मंजू जैसी खूबसूरत औरत के मुंह से पेशाब शब्द सुनकर और अभी एकदम खुले शब्दों में सूरज की तो हालत खराब हो गई उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हो रहा था उसके मुंह से पेशाब शब्द सुन कर सूरज पूरी तरह से उत्तेजित हो गया,,,, और उसकी बात सुनकर हक लाते हुए बोला,,,)

ममममम,,, मैं तो कब से आ गया हूं तुम ही कहीं दिखाई नहीं दे रही थी तो पीछे चला आया,,,,


कोई बात नहीं चलो आगे चलते हैं,,,,।
(इतना कहकर वो आगे आगे चलने लगी और पीछे-पीछे सूरज सूरज की बोलती बंद थी सांसो की गति तेज हो चुकी थी इतनी उत्तेजक और खूबसूरत औरत उसने आज तक नहीं देखा था उसकी बड़ी बड़ी गांड पर अपनी नजरों
को गड़ाए वह उसके पीछे पीछे चलने लगा,,,)
 
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मंजू आगे चल रही थी,,, सूरज पीछे-पीछे उसका दिल जोरों से धड़क रहा था उसकी आंखों के सामने गांव की खूबसूरत औरत अपनी गांड मटका कर चल रही थी कसी हुई साड़ी में उसकी कार्रवाई ज्यादा बड़ी लग रही थी जिसे वह थोड़ी देर पहले,, वह नंगी देख चुका था उसकी नंगी नंगी गांड सूरज के तन बदन में उत्तेजना की लहर को और ऊंची उठा रही थी,, धोती में बवाल मचा हुआ था,,, सूरज को मंजू का उसे पेशाब करते हुए देख लेने के बावजूद भी सूरज के प्रति साहजिक रहना खुद सूरज को हैरान कर देने वाला लग रहा था,,,,,, उसे लगने लगा था की इस आम के बगीचे में आज जरूर गुल खिलने वाला है,,,।


थोड़ी देर बाद मंजू झोपड़ी के आगे आ गई थी,,,, और हेड पंप के करीब खड़ी हो कर के सूरज की हेडपम्प चलाने के लिए बोली,,, सूरज उसकी बात सुनते ही तुरंत हेड पंप के पास पहुंच गया और उसे चलाना शुरु कर दिया,,,,।पंप में से पानी निकलते ही सारी नीचे की तरफ झुका कर अपने हाथ पैर धोने को हुई तो उसका साड़ी का पल्लू उसके कंधे पर से सरक कर नीचे गिर गया जिससे उसकी भारी भरकम छातियां सूरज को एकदम साफ नजर आने लगी,,, सूरज की आंखें फटी की फटी रह गई चुचियों की बीच की गहरी दरार ईतनी गहरी थी कि सूरज को उसमें डूब जाने का मन कर रहा था,,, दोनों चूचियां आपस में सटकर एक छोटे से नितंब का निर्माण कर रही थी,,,, क्योंकि जिस तरह से नितंबों में दो फांके होती हैं उसी तरह से चूचियों के बीच की पतली दरार भी नितंबों की तरह दोनों चूचियों की दो फांके बना रही थी,,,, जिसे देखकर सूरज के मुंह में पानी आ रहा था,,,, साड़ी का पल्लू नीचे गिरते ही मंजू बोली,,,

धत्,,, जब देखो तब नीचे गिर जाती है,,,,


संभाल कर रखा करिए मौसी,,,,


अरे संभाल कर ही रखती हूं लेकिन संभाले नहीं संभलती,,, अब हाथ मुंह धोने के बाद ही उठाऊंगी,,,,(इतना कह कर वह हाथ मुंह धोने लगी,,,,वह जानबूझकर अपने साड़ी के पल्लू के ऊपर नहीं उठा रही थी वह सूरज को पूरी तरह से अपनी दोनों चूचियों के बीच संमा लेना चाहती थी वह चाहती थी कि सूरज उसकी चूचियों की बीच की गहरी नहर में डूब जाए और ऐसा हो भी रहा था सूरज की प्यासी नजरें उसकी दोनों चूचियों के बीच की गहरी दरार पर टिकी हुई थी,,,, सूरज की सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी पागल हैंडपंप चला रहा था धोती के अंदर बवंडर सा उठ रहा था जो कि मंजू की नजर से बच नहीं पा रहा था,,,

मंजू अच्छी तरह से जानती थी कि उसके बाद में तो जवानी देख कर सूरज के तन बदन में तूफ़ान सा उठ रहा है,,, और वह उस तूफान में खो जाना चाहती थी,,,,,मंजू हाथ में पानी लेकर उसे अपने चेहरे पर मार रही थी और चेहरे से पानी की बूंदे गिर कर नीचे उसकी चूचियों के साथ-साथ उसके ब्लाउज को भीगो रही थी,,, और यह देख कर सूरज की हालत खराब हो रही थी,,,,,,, हाथ मुंह धो लेने के बाद सोने खड़ी हुई और अपने साड़ी के पल्लू से अपने चेहरे को पोछने लगी और चेहरे को पोछते हुए बोली,,,

सूरज मैं देख रही हूं कि बार-बार तुम्हारे धोती में तंबू बन जा रहा है ऐसा क्यों हो रहा है,,,,?
(मंजू की इस तरह की बातें सुनकर सूरज एकदम से सकपका उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दें,,,, फिर भी बात को संभालते हुए बोला,,,)

नहीं-नहीं मंजू मौसी ऐसी कोई भी बात नहीं,,, है,,, यह तो ऐसे ही इसकी आदत है,,,(सूरज कि इस तरह की मासूम बात सुनकर मंजू मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली)


मुझसे झूठ नहीं बोल सकते बच्चु,,,,मुझे सब पता है बार-बार मुझे देखकर तुम्हारे धोती में तंबू बन जा रहा है,,,, जब यहा लकड़ी का हल उतारने के लिए तब भी तुम्हारे धोती में इसी तरह से उठा हुआ था,,,
(उंगली से उसके धोती के तंबू की तरफ इशारा करते हुए) और ईस समय भी मुझे पेशाब करते हुए देख कर उठा हुआ है,,,, इसका मतलब तुम भी अच्छी तरह से जानते होंगे जब किसी लड़के के मन में गंदे विचार आते हैं तो इसी तरह की हालत हो जाती है मुझे लग रहा है कि मुझे देखकर तुम्हारे मन में गंदे विचार आ रहे हैं मैं इसीलिए तुम्हें समझाया था लेकिन फिर से तुम्हारी यही हालत है,,,,
नहीं नहीं मंजू मौसी मेरा ऐसा कोई भी इरादा नहीं है,,,(सूरज थोड़ा घबराते हुए बोला,,,)

ऐसा कोई इरादा नहीं है,,, मुझे बुद्धू बना रहे हो ,,,झोपड़ी के अंदर तुम्हारी हरकत को मैं अच्छी तरह से समझ रही थी मेरी कमर को कैसे अपने दोनों हाथों से थाम कर नितंबों को मेरे पीछे सटा रहे थे,,,, मैं खूब समझती हूं,,,(मंजू जानबूझकर थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोल रही थी,,,और उसके चेहरे के बदलते हाव-भाव को देखकर सूरज को भी डर लगने लगा इसलिए वह फिर से डरते हुए बोला,,,)


तुम क्या कहना चाह रही हो मौसी मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है,,,,


समझ जाओगे अच्छी तरह से समझ जाओगे जब मैं यह बात तुम्हारे मामी से बताऊंगी ना तो सब कुछ समझ जाओगे,,,(मंजू जानबूझकर मंगल मामी का जिक्र कर रही थी,,,,सूरज का डर और ज्यादा बढ़ गया था वह इस बात से डर रहा था कि कहीं मंजू ने मंगल मामी को सब कुछ बता दी तो उसकी मामी टूट जायेगी उस पर गुस्सा करेगी बड़े विश्वास के साथ मंगल ने सूरज को अपना शरीर सोपा था यह विश्वास टूट जायेगा भले ही उसके मामी ने उसे बताया था कि मंजू उसकी दीवानी हो चुकी है लेकिन अब उसे डर लगने लगा था,,, इसलिए सूरज घबराते हुए बोला,,,)

नहीं नहीं मौसी अपने मामी को कुछ मत बताना,,, जो कुछ भी हुआ था अन जाने में हुआ था इसमें मेरी कोई गलती नहीं है,,,, वह तो आपकी खूबसूरती और खुद मेरे बाहों में आ गई थी इसलिए इसका यह हाल हो गया था,,,,
(सूरज की बातें सुनकर मंजू अंदर ही अंदर मुस्कुरा रही थी,,,, और बोली,,,)


फिर भी ऐसा नहीं होना चाहिए था तेरे मन में मेरे लिए गलत ख्याल आ गया तभी तेरा खड़ा हुआ,,,
(मंजू के मुंह से खड़ा हुआ शब्द सुनते ही उसके मदमस्त एहसास से सूरज पूरी तरह से मस्त हुआ जा रहा था लेकिन उसे डर भी लग रहा था,,, मंजू अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,)
देख कर जो तुम मुझे सच सच बता देगा तो मैं मंगल से कुछ नहीं कहूंगी मैं सिर्फ जानना चाहती हूं कि तेरे मन में मुझे लेकर के गंदे ख्याल आए थे कि नहीं,,,

आए थे मौसी,,,(कुछ देर खामोश रहने के बाद नजरें नीचे झुकाए हुए ही वह बोला उसका जवाब सुनकर मंजू अंदर ही अंदर खुश हो रही थी)


अच्छा यह बता कि तेरे मन में यह ख्याल आया कैसे,,,?


वह मौसी जब तुम ऊपर से नीचे गिरी और सीधे मेरी बाहों में आ गई तुम्हारी साड़ी कमर तक उठ गई,,,, और तुम्हारी गांड मेरे से एकदम से सट गई और ना चाहते हुए भी मेरा खड़ा हो गया,,,,(इतना कहकर वह खामोश हो गया ,,, मंजू के कहे अनुसार वह सच सच बता दिया था और मंजू उसकी मासूमियत और उसके भोलेपन पर पूरी तरह से आकर्षित हो गई थी,,,, मंजू का दिमाग बड़ी तेजी से काम कर रहा था ,,,, वह आज सूरज से पूरी तरह से मजा लेना चाहती थी,,,, इसलिए वह बोली )

मैं तुम्हारी सच्चाई से खुश हूं अगर तुम चाहते हो कि मैं तुम्हारी मामी से यग सब कुछ ना बताउंं तो,,, जैसा मैं कहूंगी वैसा तुमहे करना होगा,,,,,,,(होठों पर मादक मुस्कान लाते हुए वह बोली,,, सूरज के पास कोई रास्ता नही था,,, कहीं ना कहीं सूरज को लगने लगा था कि जो कुछ भी हो रहा है उसमें उसका फायदा ही है,,, इसलिए हां में सिर हिला दिया,,,,,,, उसकी हामी होते ही वह सूरज से बोली,,,)


चल झोपड़ी में चलते हैं जहां पर मुझे देख कर तेरी हालत खराब हो गई थी,,,,
(सूरज कुछ बोला नहीं और उसके पीछे पीछे चलने लगा,,, झोपड़ी के अंदर मंजू उसके साथ क्या करेगी यह सोचकर ही उसका दिल जोरों से धड़क रहा था,,, लेकिन थोड़ा-थोड़ा वह औरतों के मन की बात को समझने लगा था,,, उसे इतना तो समझ में आ ही गया था कि भले ही मंजू गुस्सा दिखा रही लेकिन उसके मन में कुछ और चल रहा है,,,, खूबसूरत औरत का एक जवान लड़के के साथ आम के बगीचे के सुनसान स्थल पर कीसी झोपड़ी में जाने के मतलब को सूरज अच्छी तरह से समझ रहा था,,
थोड़ी ही देर में मंजू और सूरज दोनों झोपड़ी के अंदर थे,,, गांव से दूर आम के बगीचे में दोनों झोपड़ी के अंदर खड़े थे अगर इस बात का आभास गांव में किसी को भी हो जाता तो हड़कंप मच जाता बदनामी हो जाती अगर दोनों के बीच कुछ ना अभी हुआ हो तो भी लोग गलत ही समझते लेकिन यहां किसी को कहां खबर होने वाली थी यहां कोई आता जाता भी नहीं था,,, इसलिए मंजू को यही जगह ठीक लगी थी काम के बहाने अपनी कामलीला रचाने के लिए,,,
मंजू की पेंटी काम रस से भीगी जा रही थी,,, तन बदन में अजीब सी हलचल हो रही थी मदहोशी का मीठा मीठा दर्द पूरे शरीर में फैल रहा था,,,, एक जवान मोटे तगड़े लंबे लंड को अपनी बुर के अंदर महसूस करने के लिए मंजू पूरी तरह से तड़प रही थी,,,,,, सांसो की गति सूरज की भी दुरुस्त नहीं थी,,, जानलेवा सामान जो उसकी आंखों के सामने था,,,, मंजू खड़ी खड़ी मुस्कुरा रही थी और मुस्कुराते हुए बोली,,,


सूरज हल उतारते समय जो कुछ भी हुआ था क्या तुम्हें अच्छा लगा था,,,,
(सूरज की मौके की नजाकत को समझने लगा था उसे अच्छी तरह से आभास हो गया था कि एक औरत तभी इस तरह की बातें करती है जब उसके मन में भी कुछ-कुछ हो रहा हो इसलिए अपने मन में सोचने लगा कि डरने वाली कोई भी बात नहीं है अगर ऐसी वैसी बात होती है तो पहले ही बहुत डांट कर भगा दी होती,, इसलिए मंजू के सवाल का जवाब देते हुए सूरज बोला हालांकि वह अपनी नजरों को जानबूझकर नीचे किए हुए था ताकि उसे ऐसा ही लगे कि वह अभी भी डरा हुआ है,,,)


बहुत अच्छा लगा मंजू मौसी अच्छा नहीं लगता तो वह खड़ा होता क्या,,,


क्या खड़ा होता जरा खुल कर बोल,,,


वही मौसी जिसके बारे में तुम बोल रही थी,,,(सूरज उसी तरह से नजरे नीचे किए हुए बोला,,,)

तो खुल कर बोलना किसके बारे में बोल रही थी शर्मा क्यों रहा है जवान लड़का होकर शर्माता है,,,
(सूरज को अब लगने लगा था कि उस के नसीब में मंजू मौसी की बुर चोदना लिखा है,,, उसे मंजू mके इरादे स्पष्ट होते मालूम हो रहे थे,,,,,,, जब सामने से पकवान की थाली आगे बढ़ाई जा रही हो तो भला खाने से इंकार किसको था,,, इसलिए सूरज कि अपने मन में सोचने लगा कि जिस भाषा में वह सुनना चाहती हैं क्यों ना उसी भाषा में बात करु,,, इसलिए वह जवाब देते हुए बोला,,,)

वही मौसी आप जानती तो हैं,,,,

अरे मैं तो जानती हूं लेकिन तुम्हारे मुंह से सुनना चाहती हूं,,,,(मंजू की हालत पल-पल खराब होती जा रही थी क्योंकि उसकी नजर उसकी धोती पर ही टिकी हुई थी क्योंकि इस समय अपनी पूरी औकात में था,,,, दोनों तरफ उत्तेजना का सैलाब उठ रहा था,,,)

लललल,,,लंड के बारे में मौसी,,,(जानबूझकर सूरज थोड़ा घबराते हुए बोला,,, सूरज के मुंह से लंड शब्द सुनते ही मंजू की बुर गीली होने लगी,,,ऐसा नहीं था कि वह इन शब्दों को पहली बार सुन रही थी लेकिन आज सूरज के मुंह से लंड शब्द सुनकर वह पूरी तरह से उत्तेजना से गदगद हुए जा रही थी,,,,को सामान उसके जीवन में आकर गुजर चुके थे लेकिन जैसे कि वह इसी सावन की चाह में थी ईसी सावन की फुहार के इंतजार में थी,,, जो कि बरस कर उसे पूरी तरह से अपनी आगोश में ले लेगा,,, मंजू की सांसे ऊपर नीचे हो रही थी,,, हालात काबू से बाहर जा रहे थे,,,उसे इस बात का आभास हो गया था कि इस झोपड़ी के अंदर तूफान आने वाला है,,,,सूरज के मुंह से उसके मर्दाना अंग का नाम सुनते ही उसे देखने की तड़प उसके अंदर जागने लगी इसलिए वह व्याकुल होते हुए बोली,,,)

मुझे दिखाओ,,, कैसा है तुम्हारा जो तुम्हारे धोती में इतना बवाल मचाए हुए हैं जो तुम्हें इतना परेशान कर रहा है,,,,
(मंजू एकदम मदहोशी भरे स्वर में बोली उसके होंठों से निकल रहे एक एक शब्द कामुकता बरसा रहे थे मदहोशी भरे शब्द सूरज के कानों में घूमते ही उत्तेजना का प्रसारण पूरे बदन में बड़ी तेजी से कर रहे थे,, सूरज अपनी सांसो को दुरुस्त करते हुए बोला,,,)

यह क्या कह रही हो मौसी मैं भला कैसे,,,,?

शरमाओ मत सूरज,,,, आखिर तुम एक मर्द हो पर एक औरत के सामने ही अपने अंग का उपयोग करोगे उसे दिखाओ गए किसी जानवर के सामने नहीं इसलिए घबराओ मत मैं जैसा कह रही हूं वैसा ही करो नहीं तो जानते हो ना मंगल को बता दी तो तुम्हारी खैर नहीं,,,
(मंजू m की अधीरता उसकी व्याकुलता उसके शब्दों में साफ झलक रही थी सूरज उसके मन की मनसा को अच्छी तरह से समझ रहा था और उसके मनसा में अपनी खुशी भी देख रहा था लेकिन फिर भी वह जानबूझकर सिर्फ नाटक कर रहा था बल्कि वह तो खुद अपने लंड को उसे दिखाना चाहता था,,, मंजू के एक-एक शब्द ऐसा लग रहा था कि उसके अंगों को सहला रहे हैं,,, पल-पल सूरज उत्तेजना के समंदर में गोते लगाते हुए आगे बढ़ रहा था,,,,,, सूरज मंजू की बात सुनकर बोला,,,)

नहीं नहीं मौसी ऐसा मत करना लेकिन मुझे शर्म आ रही है इसलिए मैं तुम से गुजारिश करता हूं कि अपने हाथ से ही देख लो,,,,(सूरज शेर पर सवा सेर साबित हो रहा था वह अपने मन में ही सोच रहा था कि मंजू अपने हाथों से उसके पहचाने को नीचे करके उसके लंड को देखें इसमें भी एक अद्भुत सुविधा अपने हाथ से कपड़े उतारने में और औरतों के द्वारा कपड़े उतारने में जमीन आसमान का फर्क होता है जब एक मर्द खुद कपड़े उतारता है तो उसकी अधीरता और उतावलापन होता है लेकिन जब एक औरत मर्द के कपड़े उतारती है तो इसमें उस औरत की प्यास,,, उसकी वासना उसकी संभोग करने की कामेच्छा छुपी होती है इसीलिए वह मंजू को अपना धोती उतारने के लिए कह रहा था,,,

उसके इस आमंत्रण पर मंजू भला कैसे पीछे रह सकती थी,,, इसलिए सूरज की बात सुनते ही मुस्कुराते आगे बढ़ी और तुरंत अपने घुटनों के बल बैठ गई उसके इस तरह से बैठने पर सूरज के दिल की धड़कन बढ़ने लगी,,,, झोपड़ी के अंदर चारों तरफ घास फुस का ढेर लगा हुआ था इसलिए घुटने टेक कर बैठने में उसे बिल्कुल भी परेशानी नहीं हुई मंजू अपने दोनों हाथों से बढ़ाकर उसके धोती के ऊपर रख दी और उसे खोलकर ओर उसे धीरे-धीरे नीचे की तरफ सरकाने लगी,,, सूरज की हालत खराब हो रही थी साथ ही मंजू का दिल जोरों से धड़क रहा था महीनों पहले वह झोपड़ी में नीचे झुकी थी तब सूरज के लंड को धोती सहित अपने बुर पर महसूस कर कर पूरी तरह से काम उत्तेजित हो गई थी और उसे पाने के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार हो गई थी और आलम यह था कि आज उसी सूरज के साथ वहां आम के बगीचे की झोपड़ी में एकांत में उसकी धोती खोल रही थी,,,,,


अच्छा खासा भरा हुआ तंबू देखकर मंजू की बुर लप-लपाने लगी थी उसमें से काम रस झड़ रहा था,,, धीरे धीरे मंजू उसके धोती को खोलकर नीचे कर रही थी,,,, लंबा और मजबूत लंड होने की वजह से धोती नीचे की तरफ नहीं आ रहा था तो मंजू धोती में हाथ डालकर सूरज के मोटे तगड़े लंड को हाथ से पकड़ ली और उसे बाहर की तरफ खींचने लगी,,,, लंड की गर्माहट पाते हैं मंजू की दोनों टांगों के बीच की पतली दरार पिघलने लगी जो कि पहले से ही पानीयाई हुई थी,,,
बरसों बाद मंजू को इस तरह का अनुभव हुआ था कि वह पहली बार किसी मर्द के लंड को पकड़ रही है,,, उसकी सांसे ऊपर नीचे हो रही थी उसकी हालत खराब हो रही थी,,,, मंजू उसे धोती से बाहर निकाल ली थी,,, और बाहर निकालते ही उसकी आंखें फटी की फटी रह गई,,,,,, उसका सुपाड़ा एकदम दमदार था आलू बुखारे की शक्ल का,,, कुछ पल के लिए तो सुपाड़े की गोलाई देखकर मंजू अंदर ही अंदर सिहर उठी उसे इस बात का शंका थी कि उसका सुपाड़ा उसकी गुलाबी बुर के छेद में घुस पाएगा कि नहीं,,,

लेकिन एक औरत होने के नाते उसे इतना तो अंदाजा था कि वह किसी भी तरह से उसे अंदर लेगी लेगी यह ख्याल मन में आते ही उसके चेहरे पर चमक आ गई और घुटनों में फंसे धोती को सूरज खुद अपने आंखों का सहारा लेकर उसे अपनी टांग से बाहर निकाल दिया कमर से नीचे वह पूरी तरह से नंगा हो चुका था,,, और खूबसूरत औरत के हाथों में अपना दमदार लंड का एहसास उसे और ज्यादा उत्तेजित कर रहा था,,,।

तो यही था,,,, जो मुझे देख कर खड़ा हो गया था,,,


हां मंजू मौसी यही था इसमें मेरी कोई गलती नहीं है,,,


तुम सच कह रहे हो इसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं थी,,, सारी गलती इसी की ही थी और इसे गलती की सजा जरूर मिलेगी,,,(सूरज की तरफ नजर उठा कर देखते हुए,,) सूरज इस झोपड़ी में मैं तुम्हारे साथ कुछ भी करूं उस बारे में खबर बाहर नहीं जानी चाहिए अगर इस बारे में किसी को भी भनक लगी तो याद रखना तुम्हारी खैर नहीं,,,,


जी जी ,,,, ज़ी मौसी किसी को कानों कान खबर नहीं होगी,,,


बहुत अच्छे काफी समझदार हो,,,(सूरज के लंड को मुठीयाते हुए मंजू बोली,,, उसके मुंह में पानी आ रहा था साथ में बुर की हालत खराब होती जा रही थी उसने अब तक अपने पति का ना जाने कितने बार लंड़ कों अपने मुंह में ले कर चुस चुकी थी,,, लेकिन उसे इस बात का अहसास था कि मुझे का लंड मुंह में लेने का मजा ही कुछ और होगा,,, इसलिए मंजू बिना कुछ बोले अपने होठों को सूरज के लंड पर रखकर उसे अपने होंठों के बीच अंतर ले ली और उसे जीप का सहारा देकर चाटना शुरू कर दी सूरज के लिए यह जबरदस्त हमला था वह अपने आप को संभाल सकने की स्थिति में बिल्कुल भी नहीं था उसे उम्मीद नहीं थी कि उसकी मामी की सहेली इस तरह की हरकत करेगी हालांकि उसे पता ही था कि मंजू आम के बगीचे में उसे वापस बुलाकर कुछ तो अलग करना चाहती है लेकिन इस तरह का कार्यक्रम का उसका मन होगा इस बारे में कभी सोचा नहीं था लेकिन जो कुछ भी हो रहा था उसे तो जैसे स्वर्ग का सुख प्राप्त हो गया था आज वह अपने आप को दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान समझ रहा था,,, और वैसे भी वह सबसे खुशनसीब था भी,,,

सूरज की मस्ती का कोई ठिकाना ना था मंजू पूरी तरह से उसे मस्त कर रही थी,,,, और खुद ही मस्त हुए जा रही थी,,, राजु के लंड से उसका पुरा मुंह भरा हुआ था,,,, वह कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि किसी का लंड ईतना मोटा होता होगा,,,, वह पूरी तरह से मस्ती में आकर सूरज के लंड को अपने मुंह के अंदर बाहर कर रहे थे और आज भी पूरी तरह से स्वर्ग का सुख प्राप्त करता हुआ अपने दोनों हाथों को उसके रेशमी बालों में उलझा कर हल्के हल्के अपनी कमर को आगे पीछे करना शुरू कर दिया था,,,, अद्भुत नजारा था अतुल्य जिसकी किसी से तुलना नहीं कर सकते थे,,,मंजू से कुछ भी बोला नहीं जा रहा था वह जितना हो सकता था उतना अपने गले के अंदर तक लेकर सूरज के लंड को खा जाने की इच्छा रख रही थी,,,, पूरा गले तक उतार लेने के बावजूद भी डेढ़ इंच जितना रह जाता था,,, यह देखकर मंजू की बुर में खलबली होने लगती थी,,,।


कुछ देर तक इसी तरह से मंजू सूरज के लंड को मुंह में लेकर चुसती रही,,, सूरज खड़े-खड़े अपना ऊपर का कपड़ा भी निकाल कर पूरी तरह से नंगा हो गया था,,,थोड़ी देर बाद मंजू ने सूरज के लंड को अपने मुंह में से बाहर निकाल दि,,,, और हांफने लगी उसकी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी,,,, मंजू के चेहरे को देखकर आभास हो रहा था कि उसे बहुत मजा आ रहा था अपनी सांसों को दुरुस्त करके और आगे की तरफ देखते हुए बोली,,,


बाप रे तुम्हारा तो बहुत मोटा और लंबा है,,,,
(मंजू की बात सुनकर सूरज खुश हो गया और अपने लंड को पकड़ कर ऊपर नीचे करके हीलाने लगा ,, सूरज की हरकत को देखकर मंजू समझ गई थी कि यह उसका पहली बार नहीं है यह पहले भी मजा ले चुका है,,, इसलिए वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली)
तुम अनाड़ी नहीं हो खिलाड़ी लग रहे हो तुम्हारी हरकत से लग रहा है कि मैं तुम्हारे लिए पहली बार नहीं है इससे पहले भी औरत की चुदाई कर चुके हो,,,
(मंजू के मुंह से चुदाई जैसे शब्दों को सुनकर सूरज की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी और उसकी बात सुनकर हुआ है समझ गया था कि छुपाने से कोई फायदा नहीं है इसलिए वह बोला)

जी मौसी,,,, पहले भी मैंने चुदाई किया हूं,,,( सूरज झूठ बोलते हुए अपने मामी का जिक्र नहीं किया ) गांव की एक दोस्त की मां है वह हमेशा मेरे पीछे पड़ी रहती थी और एक दिन अपने घर बुलाकर जो तुम कर रही हो वह भी मेरे साथ सब कुछ करी,,,
(सूरज की बात सुनते ही मंजू मुस्कुराते हुए बोली)

बहुत अच्छे तब तो मुझे सिखाना नहीं पड़ेगा,,,, पर तू बाहर मुंह मारता फिरता है पर अपने घर की खूबसूरत गदराई माल पर तेरी नजर नही गई,,,
सूरज जान गया था की मंजू किसकी बात कर रही है फिर भी अनजान बनते हुए सूरज बोला कोनसा माल,,,
अरे भूदू तुम्हारी मामी वह गांव की सबसे खूबसूरत औरत है उसे चोद कर तू धन्य हो जाएगा,,
यह क्या बात कर रही हो मामी मेरे मां जैसी है ( मन में सूरज बहोत खुश था क्योंकि वह अपनी मामी की बुर चोदकर ध्यन हो गया था )
अरे सूरज मेने उसके आंखो में प्यास देखी है उस प्यास को सिर्फ तुम्हारा दमदार लंड ही बुझा सकता है,,,
सूरज अनजान बनते हुए पर केसे..?
पर वर कुछ नही इसमें में तुम्हारी मदत करूंगी पर अभ तू मेरी प्यास बुझा,,,

(इतना कहते ही वह खड़ी हो गई और सूरज की आंखों में देखी सूरज मंजू की आंखों में डूबता चला जा रहा था दोनों के होंठ आपस में टकराए और मंजू पागलों की तरह उसके होंठों को काटना शुरु कर दी,,, सूरज भी जवाबी कार्रवाई करते हुए मंजू के गुलाबी होंठों को अपने होंठों में भर कर,,, चूसना शुरू कर दिया काटना शुरू कर दिया दोनों उत्तेजना के परम शिखर पर पहुंच चुके थे,, सूरज के हाथ उसकी चिकनी पीठ पर घूमना शुरू हो गई थी,,, मखमली चिकनी पीठ मक्खन की तरफ चल रही थी उत्तेजना के मारे सूरज अपनी हथेलियों को कसके उसकी पीठ पर इधर से उधर घुमा रहा था जिससे दोनों की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी मंजू भी उसकी नंगी चिकनी पीठ पर अपनी हथेलियां घूम रही थी सूरज अपनी दोनों हथेलियों को उसकी चिकनी पीट से होती उसकी कमर पर ले आया और उस पर दोनों हथेलियां रखकर जोर से दबोच लिया जिससे उत्तेजना के मारे मंजू उछल पड़ी लेकिन वह अपनी हथेली के दबाव में उसे दाबे हुए था,,,,,

सूरज की हरकतों से मंजू की उत्तेजना और ज्यादा बढ़ती जा रही थी उसके बदन की गर्मी और ज्यादा अपना असर दिखा रही थी सूरज का लंड उसकी दोनों टांगों के बीच से होता हुआ साड़ी के ऊपर से ही उसकी बुर पर ठोकर मार रहा था जिसकी वजह से मंजू की बुर उत्तेजना के मारे फुदक रही थी,,, मंजू को अपनी बाहों में लेकर सूरज अपने आप को राजा समझने लगा था मंजू उसकी रानी थी इसकी जवानी के रस को अपने होठों से पीने के लिए व्याकुल था,,,,

मंजू अपनी कमर को अपनी गांड को गोल-गोल घुमा रही थी इस तरह से वह अपनी बुर को रांची का लंड पर रगड़ रही थी भले ही वह साड़ी के ऊपर से ही क्यों ना इस तरह की हरकत कर रही थी लेकिन मजा उसे बहुत आ रहा था,,,, सूरज पूरी तरह से मदहोशी के सागर में डूबता चला जा रहा था वह अपनी हथेलियों को उसके कमर से हटाकर नीचे के उभार की तरफ आगे बढ़ने लगा और अगले ही पल उसकी मद भरीबड़ी बड़ी गांड पर अपनी हथेली रखकर उसे जोर-जोर से बताने लगा जिससे मंजू की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी उसके मुंह से गर्म सिसकारी की आवाज आना शुरू हो गई थी,,,,
सूरज पागलों की तरह उसके गुलाबी होठों को खा रहा था दोनों के मुंह से लार का आदान-प्रदान हो रहा था जिसे अपने गले के नीचे गटकने में दोनों को किसी भी प्रकार की बाधा महसूस नहीं हो रही थी,,,, मंजू खेली खाई थी तो सूरज भी कम नहीं था अपनी दुआ के साथ-साथ अपनी मामी की बुर का भी मजा ले चुका था इसलिए उसे अच्छी तरह से मालूम था कि औरत को कैसे संतुष्ट किया जाता है वह मंजू की साड़ी को अपने हाथ से पकड़ कर ऊपर की तरफ उठाना शुरू कर दिया था,,, और देखते ही देखते वह मंजू की साड़ी को एक बार फिर से उसकी कमर तक उठा दिया था,,,

मंजू को इसमें किसी भी प्रकार की आपत्ति महसूस नहीं हो रही थी उसे तो मजा आ रहा था उसे पहले लग रहा था कि सूरज को सब को सिखाना पड़ेगा लेकिन वह अनाड़ी नहीं खिलाड़ी निकला था इसलिए मंजू मन ही मन खुश हो रही थी क्योंकि अनाड़ी के साथ इतना मजा नहीं आता जितना खिलाड़ी के साथ संभोग करने में आता है,,,, मंगल मामी ने उसे औरतों के दोनों टांगों के बीच का रास्ता दिखाई थी और बाकी का कसर अभ मंजू अब पूरी कर रही थी,, इसलिए वह अनाड़ी से खिलाड़ी हो गया था,,,

सूरज मंजू की साड़ी को कमर तक उठा लेने के बाद उसकी बड़ी-बड़ी गांड़ को अपने दोनों हाथों में लेकर दबोच रहा था लेकिन उसकी छोटी सी पेंटी की वजह से वह पूरी तरह से मस्ती कर लुत्फ नहीं उठा पा रहा था,,,लेकिन फिर भी बिना कुछ बोले हो आज पेंटी के ऊपर से ही उसकी बड़ी बड़ी गांड को रगड़ रहा था,,
और आगे से अपने लंड को उसकी बुर पर बराबर दबाव बनाए हुए था,,, सूरज कि इन सभी हरकतों की वजह से मंजू चटनी बनी हुई थी जिसे वह पूरी तरह से पीसकर और भी ज्यादा स्वादिष्ट बना रहा था,,,, मंजू की बुर से लगातार काम रस झर रहा था,,, जिसे सूरज को पिलाने के लिए मंजू व्याकुल हुए जा रही थी,,, ऊपर और नीचे से सूरज पूरी तरह से मंजू के रस को निचोड़ रहा था मंजू की मस्ती को और ज्यादा बढ़ा रहा था मंजू चुदवाने के लिए व्याकुल हुए जा रही थी,,,,मंजू अपने मन में यही सोच रही थी कि अगर छोटी सी पेंटी उसके बदन पर ना होती तो शायद सूरज अपने लंड को अब तक उसकी बुर की गहराई में डाल दिया होता,,,,

दोनों एक दूसरे के होंठों को छोड़ने के लिए तैयार ही नहीं थे होंठों की मस्ती का असर नीचे देखने को मिल रहा था,,,।नीचे से दोनों का नाजुक और कड़क अंग पिघल रहा था,,,अपनी उत्तेजना को बर्दाश्त ना कर सकने की स्थिति में सूरज अपने दोनों हाथों की उंगलियों का उसकी पेंटी के अंदर डाल कर जोर जोर से मसल रहा था,,,,।

ओहहहह,,, सूरज बहुत मजा आ रहा है ऐसा मजा मुझे आज तक नहीं आया,,,


मुझे भी मौसी बहुत मजा आ रहा है तुम बहुत खूबसूरत हो तुम्हारे अंग कितनी खूबसूरत है,,, खास करके तुम्हारी गांड कितनी मस्त है,,,,आहहहहहह,,,, जी करता है की तुम्हारी गांड में घुस जाउ,,,,


तो घुस जाओ सूरज रोका किसने है,,,,( मंजू मद भरी आवाज में बोली,,)


घुस तो जाऊ मंजू मौसी,,, लेकिन तुम्हारी पेंटी बीच में आ रही है,,,,

पेंटी,,,,,
(राजु और मंजू अभी भी एक दूसरे की बाहों में थे,, सूरज अभी भी अपनी हथेली में भर भर कर उसकी गांड को दबा रहा था और मंजू अपनी बुर पर उसके लंड के ठोकर को बराबर महसूस कर रही थी और उसकी पीठ को सहला रही थी,,, सूरज को अभी भी कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,)

मंजू सूरज से अलग होकर उसकी आंखों के सामने अपने हाथों से अपनी साड़ी उतारने लगी,,,,और देखते ही देखते वह अपनी सारी उतार कर घास फूस के ढेर पर रख दी,,, सूरज के लिए यह मौका पहली बार था जब उसकी आंखों के सामने कोई औरत अपने कपड़े उतार रही थी अपनी साड़ी उतार रही थी,,, हालांकि वह अपने हाथों से अपनी मामी की साड़ी और पेंटी उतार चुका,,लेकिन जो सुख उसे अपनी आंखों से एक औरत को अपनी साड़ी उतार कर नंगी होते हुए मिल रहा था वह उसके लिए बेहद अद्भुत था,,, देखते ही देखते मंजू के बदन पर ब्लाउज और पेटीकोट रह गई,,,ऐसा नहीं था कि मंजू को मजा नहीं आ रहा था सूरज के सामने अपने कपड़े उतारने में उसे भी असीम आनंद की प्राप्ति हो रही थी खास करके उसे सूरज को इस तरह से तड़पाने में मजा आ रहा था,,,,

साड़ी उतर जाने के बाद सूरज की नजर है उसकी घटादार छातियों पर टिकी हुई थी,,, जिसमें से बाहर आने के लिए उसके दोनों जंगली कबूतर अपने पंख फड़फड़ा रहे थे,,,चिकना पेट और उसके बीच की गहरी नाभि सूरज को उसकी छोटी सी बुर से कम नहीं लग रही थी,,, उसकी नाभि को लंड से चोदने का मन कर रहा था लेकिन अभी वह मंजू को केवल पेंटी में देखना चाहता था वह देखना चाहता था कि मंजू पेंटी में अपनी खूबसूरती और ज्यादा बढ़ जाती है,,,


मंजू सूरज की तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी और धीरे से एक हाथ से अपने पेटीकोट की डोरी को पकड़ ली और उसे खींच दी डोरी को खींचते ही नितंबों पर कैसी हुई पेटिकोट एकदम ढीली हो गई और डोरी को हाथ से छोड़ते ही उसकी पेटीकोट भरभरा कर उसके कदमों में जा गिरी,,,
और जो नजारा सूरज की आंखों के सामने नजर आने लगे उसकी तो कभी उसने कल्पना भी नहीं किया था,,, मंजू के कहे अनुसार वाकई में छोटी सी पेंटी में मंजू की खूबसूरती और ज्यादा बढ़ गई थी जिसे देखकर सूरज मदहोश हुआ जा रहा था उसकी आंखों में खुमारी छाने लगी थी,,,

अपने आप पर काबू कर पाना उसके लिए मुश्किल हुआ जा रहा था,,, उसकी छातियों पर अभी भी ब्लाउज टंगा हुआ था जिसे वह दूर करने के लिए मुस्कुराते हुए अपने ब्लाउज के बटन खोल रही थी,,,, एक-एक करके मंजू ने अपने ब्लाउज के सारे बटन खोल दिए और ब्लाउज को अपनी बाहों में से निकाल कर उसी घास फूस के ढेर पर रख दी,,
सूरज की तो आंखें फटी की फटी रह गई सौंदर्य की देवी उसकी आंखों के सामने खड़ी थी और वह भी छोटी सी पेंटी में,,,, छातियों की शोभा बढ़ा रही उसकी दिनों खरबूजे को देखकर सूरज के मुंह में पानी आ रहा था,,,, मदमस्त जवानी से भरपूर एक खूबसूरत औरत उसकी आंखों के सामने पेंटी को छोड़कर बाकी पूरी तरह से नंगी खड़ी थी उसके बदन पर केवल एक छोटी सी पेंटी थी जिसमें वाकई में वह सुंदरता की मूरत लग रही थी,,,

सूरज की तो जैसे सास ही अटक गई थी एक तक उसकी भरपूर जवानी को ऊपर से लेकर नीचे तक अपनी आंखों से पी रहा था,,,, पल भर में ही सूरज को ४ बोतलों का नशा होने लगा मंजू उसकी हालत को देखकर मंद मंद मुस्कुरा रही थी,,,,सूरज को लगने लगा कि शराब से ज्यादा नशा औरत की मदमस्त जवानी में होता है जिसे पीकर आदमी मस्त हो जाता है,,, मंजू की चूचीयों में कसाव बरकरार था जोकि उसकी चूचियों पर कुछ ज्यादा ही मेहनत हुई थी लेकिन फिर भी वह अपनी रंगत और शानो शौकत को नहीं छोड़ी थी उसी तरह से पहाड़ की तरह सीना ताने,,,, भाले की नोक कि तरह अपनी जवानी का जलवा बिखेर रही थी,,,

सूरज की नजर कभी चूचियों पर तो कभी उसकी छोटी सी पेंटी पर चली जा रही थी जिसमें उसने अनमोल खजाना छुपा कर रखी थी जिसे पाने के लिए सूरज तड़प रहा था,,,,सूरज अपने मन में सोचने लगा कि सुनने जो कुछ भी कह रही थी वाकई में वह एकदम सच कह रही थी इस हाल में उसने अभी तक किसी भी औरत को देखा नहीं था अपने मामी के सिवा,,,,,,सूरज की हालत को देखकर मंजू समझ गई थी कि उसकी जवानी का जादू उस पर पूरी तरह से छा चुका है एक तरह से वह उसकी अंगड़ाई लेती जवानी के आगे घुटने टेक दिया था,,, सूरज की हालत को देखकर मंजू बोली,,

अब बताओ मैं सच कह रही थी या गलत,,,

तुम बिल्कुल सच कह रही थी छोटी सी पेंटी में तुम्हारी खूबसूरती और ज्यादा निखर रही है,,,।(सूरज आपने लंड को मसलते हुए बोला सूरज की हरकत मंजू के लिए एक इशारा थी कि उसकी हालत खराब हो रही है जो कि मंजू सूरज की इस हरकत से अच्छी तरह से समझ गई थी इसलिए वह बोली,,,)


इसलिए तुम्हारा और ज्यादा खड़ा हो गया है,,,


अब क्या करूं मौसी आंखों के सामने इतनी खूबसूरत औरत एकदम नंगी खड़ी हो तो इंसान कर भी क्या सकता है,,,।


अभी नंगी कहा हुं,,,, अभी भी मेरे बदन पर यह छोटी सी पेंटी है,,,,


इसे भी उतार तो मौसी मैं तुम्हें पूरी तरह से नंगी देखना चाहता हूं,,,,(सूरज एकदम से मदहोश होता हुआ बोला)


अब सब कुछ मैं हीं करूंगी,,,, यह शुभ काम तो अपने हाथों से कर बहुत अच्छा लगेगा,,,,।

क्या मौसी सच में यह शुभ काम में अपने हाथों से करु,,,


तो क्या अपने हाथों से उतारकर ही ना देखेगा की पेंटी के अंदर कीतना अनमोल खजाना छुपा हुआ है,,,


सच कह रही हो मौसी मैं भी देखने के लिए तड़प रहा हूं तुम्हारे खजाने को,,,,

तो वहां क्यों खड़ा है आकर उतार दे इसे,,,
(आंखों के इशारे से उसे अपने पास बुलाते हुए बोली,,,,सूरज आप कहां पीछे हटने वाला था उससे तो खुला आमंत्रण मिल रहा था उसका दिल जोरों से धड़क रहा था आज दूसरी बार किसी खूबसूरत औरतें कि वह पेंटी अपने हाथों से उतारने जा रहा था,,,,

इसलिए मंजू की बात सुनते ही वह धीरे-धीरे उसके करीब पहुंच गया और जिस तरह से मंजू उसके आगे घुटने टेक कर बैठ गई थी वैसे ही वह उसके सामने घुटने टेक कर नीचे बैठ गया,,,, सूरज के साथ साथ मंजू का दिल जोरों से धड़क रहा था,,,, वह अपने पति के साथ इस तरह के अनुभव से गुजर चुकी थी लेकिन आज की बात कुछ और थी आज ऐसा लग रहा था कि उसकी जिंदगी की यह पहेली घड़ी थी जिसने वह किसी की आंखों के सामने नंगी हो रही थी और किसी जवान लड़के के हाथों से अपनी पेंटी उतरवा रही थी,,, यह सब मंजू के लिए बेहद उत्तेजनात्मक पल था जिसमें वह पूरी तरह से डूब जाना चाहती थी,,,,।


सूरज उसके बेहद करीब घुटने टेककर नीचे बैठा हुआ था उसकी आंखों के ठीक सामने मंजू की पेंटी नजर आ रही थी जो कि उसके काम रस से गीली हो चुकी थी,,,उत्तेजना के मारे मंजू का गला सूखता जा रहा था सूरज के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी क्योंकि अपने हाथों से एक खूबसूरत औरत की पेंटी उतार कर उसे नंगी करने वाला था,,,,,, अपने दोनों हाथों के बढ़ाकर मंजू की पेंटी पर रख दिया,,,,, सूरज की उंगलियों का स्पर्श अपनी चिकनी कमर पर होते हैं वह एकदम से उत्तेजना के मारे सिहर उठी,,, ऊपर नीचे हो रही सांसों के साथ साथ मंजू की चूचियां भी ऊपर नीचे हो रही थी जिसे देखकर सूरज की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी,,,,,

धीरे-धीरे सूरज मंजू की पेंटी को नीचे की तरफ सरकाने लगा,,, सूरज के लिए अनुभव बिल्कुल नया था और एकदम कामोत्तेजना से भरा हुआ जिसका वह पूरा फायदा और मजा ले रहा था धीरे-धीरे वह पेंटी को नीचे की तरफ करने लगा और जैसे-जैसे पेंटी नीचे की तरफ आ रही थी वैसे वैसे पेंटी के अंदर छुपा खजाना उजागर होता जा रहा था दोनों टांगों के बीच की हुआ वह जगह के ऊपरी भाग काफी उपसा हुआ नजर आ रहा था जिससे जाहिर हो रहा था कि मंजू कितनी उत्तेजित हो चुकी है,,,,,,,

देखते-देखते सूरज मंजू की पेंटी को उसकी जांघों तक ले आया और उसकी रसीली मद भरी बेशकीमती बुर नंगी हो गई जिसे देखते ही सूरज के तन बदन में वासना की लहर दौड़ने लगी उसकी आंखों की चमक बढ़ गई जवानी का नशा बढ़ने लगा,,,बुर को देख कर सूरज ऊपर नजर करके मंजू की तरफ देखा तो मंजू भी उसी को ही देख रही थी आपस में दोनों की नजरें टकराई,,,,
आंखों ही आंखों में इशारा हो गया था मंजू ने आंखों के इशारों में ही मंजू ने उसे अपनी पेंटी उतारने के लिए बोल दी थी,,,,

सूरज भी मंजू के आमंत्रण को स्वीकार करते हुए उसकी पेंटी नीचे घुटनों तक ला दिया,,, लेकिन अब उसमें सब्र बिल्कुल भी नहीं था उसकी आंखों के सामने बेशकीमती खजाना पड़ा हुआ था जिसे लूटने के लिए वह ललाईत हुए जा रहा था,,,, मंजू कुछ कहती इससे पहले ही सूरज अपना हाथ आगे बढ़ा कर अपनी उंगलियों से मंजू की बुर को स्पर्श करने लगा,,, और एक दम मस्त होने लगा ऐसा लग रहा था कि जैसे वह वाकई में बेशकीमती खजाना पा गया हो और उस पर अपनी हथेली पर कर अपने आपको विश्वास दिला रहा हो कि अब यह सब तेरा है,,,सूरज की उंगलियों का स्पर्श पाकर मंजू की बुर से भी सब्र का बांध टूटता हुआ महसूस होने लगा था क्योंकि उसमें से मदन रस की बूंदे अमृतधारा बनकर चुने लगी थी,,, उस अमृतधारा को सूरज जमीन पर गिर कर जाया नहीं होने देना चाहता था इसलिए तुरंत अपने होठों को आगे बढ़ा कर मंजू की तख्ती हुई बुर पर रख दिया,,,
मंजू सूरज के इस अद्भुत कार्य शैली को देखकर एकदम से सिहर उठी,,,, पर तुरंत अपने दोनों हाथों को उसके सर पर रख कर उसे अपनी बुर से चिपका दी,,,,, सूरज मंत्रमुग्ध मदहोश हुआ जा रहा था,,, वह अपनी प्यासी जीभ निकालकर,,, तुरंत उसकी रसीली बुर के गुलाबी छेद में डाल दिया और उसे चाटना शुरू कर दिया,,,, उसकी मामी ने हीं उसे बुर चाटने की कला में से पारंगत कर दिया था,,, जिसका वो मंजू के साथ सही उपयोग कर रहा था,,,।

मंजू पूरी तरह से मस्त हुए जा रही थी बरसों बाद कोई इस तरह से बुर चाट कर उसे मस्त कर रहा था वह पूरी तरह से मदहोश होकर अपनी गांड को गोल-गोल घुमाते हुए अपनी बुर को उसके होंठों पर रगड़ रही थी,,, जिससे मंजू के साथ-साथ सूरज की भी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी,,।

ओहह सूरज पुरी जीभ अंदर डालकर चाट,,,, आहहहहह सूरज बहुत मजा आ रहा है मैं कभी सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि तू कितना कुछ जानता होगा शक्ल से तो तु एकदम मासूम लगता है लेकिन बहुत शैतान,,, है,,,,आहहहहहह,,,,,आहहहहहहह,,,(आंखों को बंद करके मंजू मस्ती की फुहार में नहा रही थी उसकी बुर बार-बार काम रस छोड़ रही थी,,, जिसका स्वाद वह अपनी जीभ से ले रहा था,,,। मंजू की गरम सिसकारियों की आवाज को सुनकर सूरज पूरी मस्ती के साथ उसकी बुर की चटाई कर रहा था,,, सूरज को मंजू की बुर का स्वाद बेहद मधुर लग रहा था उसे बहुत मजा आ रहा था,,, सूरज अपनी जीभ के साथ साथ अपनी उंगलियों से उसकी गुलाबी बुर के छेद को कुरेद कुरेद कर उसकी मलाई को चाट रहा था,,, संभोग के असली सुख को प्राप्त करने के लिए मंजू ने बहुत कुछ की थी लेकिन अभी तक उसे उस अद्भुत सुख की प्राप्ति नहीं हुई थी लेकिन आज उसे लगने लगा था कि उसकी जिंदगी में सावन की बहार आने वाली है उसे संभोग का अद्भुत सुख प्राप्त होने वाला है क्योंकि सूरज ने तो शुरुआती दौर में अपनी हरकतों से उसे पूरी तरह से मत कर दिया था और उसका पानी भी झाड़ चुका था,,,
मंजू को लगने लगा था कि जब शुरुआत इतनी जबरदस्त है तो चरम कितना आनंददायक होगा,,,,

उसकी बुर लंड के लिए तड़प रही थी सूरज के मोटे तगड़े लंड को अपने अंदर लेने के लिए मचल रही थी,,, बुर के अंदर की संकरी दीवारें,,, सूरज के मोटे तगड़े लैंड की रबड़ को अपने अंदर महसूस करने के लिए उतावली हुए जा रही थी इसलिए बार-बार पानी छोड़ रही थी,,,,
मंजू की मदहोशी देखकर सूरज की समझ गया था कि अब उसे लंड की जरूरत है,,,, इसलिए अपने तृप्त होठों को उसकी प्यासी बुर से अलग करते हुए वह मंजू की तरफ देखने लगा उसके होठों से मंजू की बुर से निकला काम रस टपक रहा था जिसे देखकर मंजू की काम भावना हो ज्यादा भड़क रही थी क्योंकि इतने प्यार से और जो उसके साथ किसी ने भी उसकी बुर को इस कदर चाटा नहीं था,,,,।

कैसा लगा मौसी,,,,


मजा आ गया सूरज तूने तो मुझे मस्त कर दिया,,,,


अब क्या करना है मौसी,,,,(सूरज एकदम से मासूम बनता हुआ बोला)


करना क्या है मेरे राजा अब अपने हल को मेरी बुर में डाल और जी भर कर इसकी जुदाई कर के इसे हरा भरा कर दे,,,(मंजू एकदम मदहोशी भरे स्वर में बोली)


चिल्लाओगी तो नहीं मौसी,,,,


बिल्कुल नहीं चिल्लाऊगी मेरे राजा,,,, अगर दुखेगा तो भी तू बिल्कुल भी मत रुकना मुझ पर रहम मत करना,,,,


औहह मौसी तुम कितनी अच्छी हो ,,,,(इतना कहने के साथ ही वह मंजू की कमर को दोनों हाथों से पकड़कर हुआ उठ खड़ा हुआ और अपनी आंखों के सामने उसकी मदद से चूचियों को देख कर उसे अपने मुंह में भरने के बाद उसको रोक नहीं पाया और अपने दोनों हाथों को आगे बढ़ाकर उसकी चुचियों को थाम लिया और से मुंह में भर कर पीना शुरू कर दिया,,,, पूरी तरह से साड़ी में लिपटी हुई मंजू की चूचियां सर्वप्रथम आकर्षण की केंद्र बिंदु बनी रहती हैं और उस पर नजर राजु की पहले से ही थी लेकिन उसकी बुर से मजा लेने के चक्कर में उसकी चूची उसको भूल गया था लेकिन अब वह सारी कसर निकाल लेना चाहता था वह जोर-जोर से उसकी चूची को दबा कर उसका रस पी रहा था मानो जैसे कि उसके हाथों में दशहरी आम आ गया हो,,,,

मंजू भी कामवासना से ग्रस्त होकर सूरज के लंड को पकड़ कर उसे अपनी गुलाबी बुर पर रगडना शुरू कर दी थी,,, मंजू की यह हरकत सूरज के होश उड़ा रही थी उसे बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी और उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी जब तक वह उसकी चुचियों से खेलता रहा तब तक मंजू उसके लंड को अपनी बुर के छेद में डालने की नाकाम कोशिश करती रही,,,, लेकिन उसकी इस ख्वाहिश को सूरज पूरी करने के उद्देश्य से अपने दोनों हाथों को उसकी बड़ी बड़ी गांड पर रखकर अपनी तरफ खींच दिया जिससे उसके लंड का हल्का सा भाग उसकी बुर के अंदर प्रवेश करने की कोशिश करने लगा जिससे मंजू एकदम से मचल उठे और अपनी एक टांग उठा कर सूरज के कमर में डाल दी जिससे लंड को बुर में घुसने की जगह मिल गई,,, और बुर पूरी तरह से गिली होने की वजह से,,, लंड के सुपाड़े को अपने अंदर की तरफ खींचने लगी मंजू से यह उतेजात्मक पल बर्दाश्त नहीं हुआ और वह अपने होठों को उसके होठों पर रखकर चूसना शुरु कर दी एक तरह से वाह सूरज को और ज्यादा उकसा रही थी आगे बढ़ने के लिए और सूरज भी कम नहीं था वह एक हाथ नीचे की तरफ ले जाकर अपने लंड को पकड़ कर उसे सहारा देते हुए उसकी बुर में लंड डालने का प्रयास करने लगा और उसका यह प्रयास सफल होने लगा,,, धीरे-धीरे सूरज के लंड का सुपाड़ा उसकी बुर के अंदर प्रवेश कर गया,,,, और जब हाथी घुस जाए तो पूछ को घुसने में कौन सी तेरी लगती है,,, इसलिए सूरज अपने दोनों हाथों को मंजू के बड़ी बड़ी गांड पर रखकर उसे जोर से दबाते हुए अपनी तरफ खींच लिया और अपने लंड को धीरे धीरे अंदर की तरफ डालना शुरू कर दिया और देखते ही देखते हैं उसका लंड पूरी तरह से मंजू की बुर के अंदर खो गया,,,, सूरज की खुशी का ठिकाना ना था जिसके बारे में कभी सोचा भी नहीं था आज उसकी चुदाई कर रहा था धीरे-धीरे सूरज अपनी कमर हिलाना शुरू कर दिया था,,,
मोटे तगड़े लंड को अपनी बुर के अंदर महसूस करते हैं मंजू पूरी तरह से मस्त हो गई थी और अपनी बाहें उसके गले में डाल दी थी,,,,,
मंजू के लिए यह पल बेहद अद्भुत और अविश्वसनीय था क्योंकि कभी उसने कल्पना भी नहीं की थी कि उसकी सहेली का भांजे के साथ संभोग करेगी,,, लेकिन सूरज के मोटे तगड़े लंड को देखकर उसकी इच्छा इतनी ज्यादा प्रबल हो गई थी कि आज वह अपनी इच्छा के बल पर उसे पा चुकी थी,,,,होठ में होठ भीड़े हुए थे,,,दोनों की सांसो की गति तेज हुए जा रहे थे सूरज धीरे-धीरे मंजू की चुदाई कर रहा था मंजू की बुर चोदने में उसे बहुत मजा आ रहा था,,,, सूरज के मोटे तगड़े लंड की रगड़ मंजू अपनी बुर की अंदर बहुत अच्छे से महसूस कर रही थी,,, और यह एहसास उसकी मस्ती को और ज्यादा बढ़ावा दे रहा था,,,,

दोनों में किसी भी प्रकार का वार्तालाप नहीं हो रहा था दोनों एक दूसरे के होंठों को चूसते हुए बस चुदाई के कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहे थे,,,।

आम के बगीचे में मंगल का भांजा और उसकी मंगल की सहेली संभोग सुख प्राप्त करने में जुटे हुए थे कोई सोच भी नहीं सकता था कि आम के बगीचे में इस तरह का कार्यक्रम भी चल रहा होगा,,,आम के बगीचे में चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था दोपहर में भी इधर रात की तरह ही सन्नाटा छाया रहता था बस पंछियों के कलरव की आवाज ही सुनाई देती थी,,,धीरे-धीरे धक्के मारते हुए सूरज मंजू से बोला,,,


अब कैसा लग रहा है मंजू ,,,,
(लंड को बूर में डालते हैं सूरज के लिए मंजू मौसी अब केवल मंजू रह गई थी वैसे भी संभोग करते समय उस औरत के प्रति मर्दों का देखने का रवैया बदल जाता था उस औरत में उसे बीवी प्रेमिका के साथ-साथ एक रंडी भी नजर आने लगती थी जिसके साथ वह चुदाई का सुख प्राप्त करता है,,, लेकिन मंजू को इस बात का जरा भी बुरा नहीं लगा था वह तो और ज्यादा आनंदित हुए जा रही थी और आनंदित होते हुए बोली,,,)

बहुत मजा आ रहा है सूरज अपने पति के सिवा आज़ तुम्हारा मोटा लंड आज मैं अपनी बुर में ली हुं,,,


अभी तो तुम्हें और मजा आएगा मेरी जान,,,,(सूरज के बोलने का तरीका उसके तर्कों के साथ बदलता जा रहा था जिससे मंजू की मदहोशी भी बढ़ती जा रही थी,,,, उसे और ज्यादा मजा देने का वादा करके सूरज अगले ही पल उसकी दूसरी टांग को भी अपनी कमर में लपेटते हुए अपने दोनों हाथों को उसकी बड़ी गांड पर रखकर उसे अपनी गोद में उठा दिया और उसे गोद में उठाए हुए उसकी चुदाई करना शुरू कर दिया,,,, मंजू हैरान ठीक से समझ में नहीं आ रहा था कि पल भर में यह क्या हो गया सूरज की ताकत उसकी हिम्मत उसके उसको देखकर मंजू पानी पानी हुए जा रही थी मंजू को यकीन नहीं हो रहा था कि सूरज जैसा एक जवान लड़का उसे अपनी गोद में उठाकर उसकी चुदाई कर रहा है क्योंकि उसे उम्मीद भी नहीं थी कि उसे सूरज इतने आराम से उठा लेगा और गोद में लिए हुए ही उसकी चुदाई करेगा,,,,

शायद चोदने की वजह से इंसान की ताकत और उसका जोश और ज्यादा बढ़ जाता है और यही जोश सूरज दिखा रहा था इस तरह की हरकत इस तरह से मंजू के साथ उसके पति ने भी नहीं किया था,,,

सूरज उसके ऊपर पूरी तरह से हावी हो चुका था उसके बदन के साथ हुआ मनमानी कर रहा था लेकिन ऐसा नहीं कहा कि मंजू को इसमें मजा नहीं आ रहा था उस की मनमानी से मंजू का मजा दुगुना होता जा रहा था इसलिए वह उसे कुछ नहीं बोल रही थी,,,,

गोद में उठाए हुए वह उसकी बुर में लंड पेले जा रहा था,,, मंजू के मन में कोई भी गिला शिकवा नहीं था,,, कुछ देर तक सूरज इसी तरह से गोद में उठाए हुए उसके होठों का रसपान करते हुए उसकी चुदाई करता रहा लेकिन वह अपनी रफ्तार को बढ़ाना चाहता था जो कि इस आसन में बिल्कुल भी मुमकिन नहीं था इसलिए वह अच्छी सी जगह देखकर जहां ढेर सारी घास रखी हुई थी वहां पर अपनी गोद में उठाए हुए ही वह मंजू को लेकर आगे बढ़ा और धीरे-धीरे उसे उसी खास पर ले कर दिया बिना अपने लंड को उसकी बुर से निकाले,,,,

यह आसन सूरज और मंजू दोनों के लिए ठीक था क्योंकि इस आसन में सूरज पूरी तरह से अपना दम दिखा पाने में सक्षम रहता था और इस आसन में मंजू को भी अद्भुत आनंद की प्राप्ति हो जाएगी इस बात का सूरज को पूरा विश्वास था इसलिए वह तुरंत उसकी चूची को मुंह में भर कर अपने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दिया और उसे चोदना शुरू कर दिया गर्म शिकारियों से पूरी झोपड़ी गूंजने लगी थी लेकिन उसकी सीसकारियों को सुनने वाला वहां पर कोई भी नहीं था क्योंकि दूर-दूर तक कोई भी दिखाई नहीं देता था सिर्फ पंछियों की आवाज ही सुनाई देती थी जिसका फायदा उठाते हुए मंजू भी दिल खोलकर गर्म सिसकारीयो की आवाज अपने मुंह से निकाल रही थी उसे बहुत मजा आ रहा था,,,।


मेरी रानी आज तेरी ऐसी चुदाई करुंगा की तू जिंदगी भर याद रखेगी,,,(सूरज की यह सभ्यता और उसकी भाषा बिल्कुल भी नहीं थी लेकिन उसके अंदर भी वासना का शैतान आ चुका था जिसके चलते वह पूरी तरह से बस्ती के सागर में गोते लगाते हुए जो मन में आ रहा था वह बकरा था,,,,,,,मंजू पूरी तरह से मस्ती के सागर में डूब चुकी थी वह सूरज को अपनी बाहों में लेकर ऊपर से नीचे तक उसके बदन पर जहां हो सकता था वहां तक अपनी हथेली को उसके नंगे बदन पर रगड रही थी,,,,वह थोड़ा नीचे से उठाना चाहती थी ताकि वह अपनी तरफ से कुछ धक्के लगा सके लेकिन सूरज बड़ी मजबूती से उसे अपनी आगोश में लिए हुए था जिससे उसे हिलने का भी मौका नहीं मिल रहा था उसका मोटा तगड़ा लंबा लंड बार-बार उसके बच्चेदानी में ठोकर मार रहा था जिससे मंजू एकदम मस्त हो जा रही थी क्योंकि इधर तक अभी तक उसका पति भी नहीं पहुंच पाया था और सूरज के लंड की लंबाई उसके पति की अपेक्षा ज्यादा ही थी जो कि बड़े आराम से उसके बच्चेदानी तक पहुंच रही थी,,,

जवानी की गर्मी पिघल कर दोनों के बदन से पसीना बनकर टपक रही थी,,,, सूरज के धक्के कम होने का नाम ही नहीं ले रहे थे वहीं कई रफ्तार में आगे पीछे हो रहे थे,,, मंगल मामी की चुदाई करने के बाद उसे मंजू जेसी औरत मिली थी जिसे चोदने का सुख उसकी जिंदगी में सबसे अधिक उत्सुक था जो कि वह कभी भी भूलने वाला नहीं था खूबसूरत अंगों से खेलने का सुख उसे और ज्यादा उत्तेजित कर रहा था,,,मंजू उसके जबरदस्त तेज धक्कों को सहन नहीं कर पा रही थी इसलिए उसकी हर एक धक्के के साथ उसकी आह निकल जा रही थी,,,,कुछ देर बाद मंजू का बदन फिर से अकड़ने लगा,,, वह चरम सुख के करीब पहुंचती जा रही थी,,,,


आहहह आहहहह मेरे राजा मेरा निकलने वाला है और जोर से धक्के लगाओ मेरा पानी निकलने वाला है,,,


चिंता मत करो रानी मैं भी तुम्हारे बेहद करीब हूं,,,,
(और इतना कहने के साथ ही सूरज उसकी दोनों चूचियों को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर जोर जोर से दबाते हुए अपनी कमर की रफ्तार बढ़ा दिया,,,,उसका लंड बड़ी तेज़ी से मंजू के बुर अंदर बाहर हो रहा था ऐसा लग रहा था कि जैसे उसकी बुर में कोई मोटर चल रही हो,,, सूरज के धक्के और ज्यादा तेज हो गए,,,, और कुछ देखो के बाद दोनों एक साथ झड़ गए,,,,
जबरदस्ती चुदाई करते हुए सूरज पहली बार झड़ा था लेकिन मंजू तीन बार अपना पानी निकाल कर मस्त हो गई थी ऐसा सुख उसने कभी भी प्राप्त नहीं की थी कि एक ही बार कि चुदाई में तीन बार झढ़ी हो,,,,ऐसा उसके साथ पहली बार हुआ था सूरज उसकी उम्मीदों पर बिल्कुल खरा उतरा था वह बहुत खुश थी सूरज अपना पानी उसकी बुर में निकालते हुए उसके ऊपर ढेर हो चुका था,,,
 
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अद्भुत अविस्मरणीय अतुल्य संभोग का सुख भोगते हुए सूरज मंजू के खूबसूरत बदन पर ढेर हो चुका था और मंजू एक असीम आनंद की अनुभूति लेते हुए गहरी सांसे ले रही थी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि संभोग में इतना अत्यधिक आनंद भी कोई दे सकता है,,,, अभी तक वह केवल अपनी वासना की पूर्ति के लिए ही अपने बदन का प्रयोग करती आ रही थी लेकिन आज सही मायने में उसको संभोग के सुख के बारे में ज्ञात हुआ था,,, एक औरत होने के बावजूद भी आज उसे सूरज से बहुत कुछ सीखने को मिला था,,,,


ज्ञान सिर्फ शब्दों का हो यह जरूरी नहीं,,, संभोग कला में पारंगत होना भी जीवन में बहुत जरूरी होता है,,, सूरज को शब्दों का ज्ञान बिल्कुल भी नहीं है लेकिन बहुत ही जल्द उसने संभोग कला में महारत हासिल कर लिया था,,,, और अपनी इस कला का सही उपयोग सही समय पर सही व्यक्ति पर करना उसे बखूबी आता था तभी मंजू मंत्रमुग्ध से सूरज के सामने चारों खाने चित हो गई थी,,,मंजू बेलगाम जवानी की मालकिन थी और उसकी जवानी पर अभी तक उसका पति लगाम नहीं लगा पाया था,,,

उसके जीवन में आने वाला सूरज ही ऐसा पहला शख्स था जिसके आगे वह घुटने टेक दी थी पूरी तरह से उसके मर्दाना अंग के आगे धराशाई हो गई थी,,,,,, पहली बार में ही सूरज ने मर्दानगी का सही अर्थ उसे समझाया था,,,,

सूरज का मर्दाना ताकत से भरा हुआ अंग अभी भी मंजू के कोमल अंग को भेदता हुआ उसके अंदर समाया हुआ था,,ऐसा लग रहा था कि कोई कुशल तैराकी समुंदर को ही अपना घर बना कर उसके अंदर बैठा हुआ है,,,,,, सूरज अपने मोटे तगड़े लंड से मंजू की मदमस्त जवानी की धज्जियां उड़ा दिया था तब तक वह शांत नहीं हुआ जब तक कि अपना गरम लावा से उसकी बुर की कटोरी भर नहीं दिया,,,लंड की गजब की तेज धारदार पिचकारी को अपने बच्चेदानी पर साफ साफ महसूस की थी और पूरी तरह से गदगद हो गई थी,,,,,, इतने सारे लावा को वह पहली बार अपनी बुर के अंदर महसूस कर रही थी क्योंकि इतना इसके पति का कभी निकलता ही नहीं था जितना कि सूरज ने निकाला था,,,।
दोनों पसीने से तरबतर हो चुके थे,,,,कुछ देर तक उसी तरह से शांत लेटे रहने के बाद सूरज मंजू की आंखों में देखते हुए बोला,,,,।


कैसा लगा मंजू मौसी,,,,

पूछो मत सूरज गजब का मजा आ गया ऐसा मजा मुझे आज तक नहीं मिला था तुम्हारा लंड कुछ ज्यादा ही लंबा और मोटा है तुम्हारे जैसा लंड मैंने आज तक नहीं देखी,,,,
(मंजू के मुंह से अपनी तारीफ खास करके अपने लंड की तारीफ को सुनकर खुश हो गया और उसके होठों को चूम लिया,,,)


तू बहुत खूबसूरत हो मंजू मौसी मैंने आज तक तुम्हारी जैसी खूबसूरत औरत नहीं देखा तुम्हारा अंग अंग ऐसा लगता है कि भगवान ने खुद अपने हाथों से बनाया है,,,,


तुमको भी बहुत मजा आया ना सूरज,,,


बहुत मजा आया मंजू मौसी,,,,


मुझे मौसी मत बोला करो,,,, मौसी कहते हो तो ऐसा लगता है कि अपनी मां जैसी औरत को ही चोद रहे हो,,,,


तो क्या हुआ मंजू मौसी तुम्हारी जैसी खूबसूरत औरत हो तो कौन होगा भांजा जो नहीं चोदेगा,,,,

धत् कैसी बातें करते हो कोई अपनी मौसी को चोदता है क्या,,,


अगर मौसी चाहे तो क्यों नहीं,,,,( सूरज अपने होठों पर कुटिल मुस्कान लाते हुए बोला,,, दूसरी तरफ मंजू का भी हाल यही था भले ही वह भांजे और मौसी के बीच शारीरिक संबंध से इंकार कर रही सूरज की बात सुनकर मंजू बोली,,

तुम पागल हो गए हो सूरज भला रिश्तो के बीच चुदाई मुमकिन कैसे हैं,,,,?


क्यों मुमकिन नहीं है मंजू मौसी जब एक खूबसूरत मौसी अपनी बड़ी बड़ी चूची को झूलाते चलेंगी और अपनी बड़ी बड़ी गांड मटकाते चलेगी अपने भांजे को तड़पाएगी तो क्या होगा,,,जब वह खुद तैयार हो अपने भांजे से चुदवाने के लिए तो भांजा को भला ईंकार कैसे हो सकता है,,,
(मौसी भांजा के ऊपर सूरज की बातें और उसका मंतव्य सुनकर मंजू के बदन में गुदगुदी होने लगी थी उसे इस बात का एहसास होने लगा था कि दुनिया में केवल वही एक ऐसी औरत नहीं है जो अपने भांजे से चुदवाती है ऐसे कई लोग हैं जो अपनी मौसी को चोदते हैं,,,,
इस बात से उसे थोड़ी संतुष्टि मिल रही थी लेकिन सूरज की उत्तेजना एक बार फिर से बढ़ने लगी थी इसलिए मंजू की बुर में ढीला पड रहा लंड एक बार फिर से खुशी के मारे फूलने लगा था जिसका एहसास मंजू को अपनी बुर के अंदर बराबर हो रहा था,,,, उसे भी आनंद आ रहा था सूरज की ताकत से‌ वह पूरी तरह से परिचित हुए जा रहे थे एक बार झड़ने के बावजूद भी और वह भी उसे तीन बार झड़ चुका था और तुरंत तैयार भी हो रहा था यह सब बातें मंजू को आश्चर्यचकित कर रहे थे नहीं तो एक बार की चुदाई के बाद तो आदमी ढेर हो जाता है,,,, जैसा कि उसका पति,,, लेकिन सूरज की बात कुछ और थी इसे थकान बिल्कुल भी महसूस नहीं होती थी,,,, ऐसा लग रहा था कि जैसे वह ईसी कार्य के लिए जन्म लिया है,,,

मंजू को,,, बड़े जोरो की पिशाब लगी थी,,, इसलिए वह सूरज को अपने ऊपर से उठाते हुए बोली,,,।

चल अच्छा हट,,, बडा आया अपनी मौसी को चोदने,,,,


तो क्या अभी अभी तो अपनी मौसी को चोदा हुं,,,,
(सूरज के कहने का मतलब को समझकर मंजू मुस्कुराने लगी और मुस्कुराते हुए बोली,,,)

मैं तुम्हारी सगी मौसी थोड़ी हूं,

तो क्या हुआ मौसी तो कहता हूं ना,,,,
(मंजू सूरज को अपने ऊपर से हटाने की कोशिश कर रही थी लेकिन सूरज था कि हटने का नाम नहीं ले रहा था,,, उसका लंड अभी भी मंजू की बुर में घुसा हुआ था,,, जोकि धीरे-धीरे फूलने लगा था उसे फूलता होगा मंजू अपनी बुर में बराबर महसूस कर रही थी और इसी की वजह से उसकी उत्तेजना भी फिर से शुरू होने लगी थी लेकिन उसे बड़े जरूर की पेशाब लगी थी इसलिए उसे हटाना जरूरी था वह हट नहीं रहा था इसलिए मंजू जोड़ देते हुए बोली,,,)

चल अच्छा हट जाओ सगी मौसी होती तो नहीं चोदता अभी सिर्फ बातें कर रहा है,,,

नहीं-नहीं जरूर चोदता अगर तुम इसी तरह से मेरे सामने अपने कपड़े उतार कर नंगी होती तो जरूर मेरा लंड तुम्हारी बुर में होता जैसा कि अभी घुसा हुआ है,,,,
(सूरज धीरे-धीरे जोश में आ रहा था जिसकी वजह से वह हल्के हल्के उसकी चुचियों को मुंह में लेकर काट ले रहा था,,,,उसका इस तरह से चुचियों को काटना अच्छा भी लग रहा था लेकिन पेशाब की तीव्रता की वजह से वह परेशान थे इसलिए ना चाहते हुए भी उसे बोलना पड़ा,,,
अरे उतारोगे,,, मुझे जोरों की पेशाब लगी है,,,,
(खूबसूरती की मुरत मंजू के मुंह से पेशाब लगने वाली बात सुनकर सूरज की उत्तेजना बढ़ने लगी और वह उत्तेजित स्वर में बोला,,,)

अभी तो मुत कर आई थी,,,


तो क्या हुआ फिर से लग गई है,,,,


तुम्हें पेशाब बहुत जल्दी जल्दी लगती है,,,(इतना कहते हुए वह उठने लगा और मंजू अपने हाथ की कोहनी का सहारा लेकर थोड़ी होने लगी और अपनी नजरों को अपनी दोनों टांगों के बीच स्थिर कर दी,,, जहां पर सूरज का लंड अभी भी पूरी तरह से गहराई में धंसा हुआ था,,,, सूरज मंजू की आंखों में देखते हुए बोला,,,)

तुम्हारी बुर में से लंड को निकालने का मन बिल्कुल भी नहीं कर रहा है,,,


निकालोगे नहीं तो पैशाब कैसे करुंगी,,,(मंजू भी अपनी दोनों टांगों के बीच देखते हुए ही बोली,,)

तुम कहती हो तो निकाल देता हूं वरना मेरा इरादा अभी ईसे निकालने का बिल्कुल भी नहीं था,,,,


बहुत शैतान हो मैं तो तुम्हें कितना सीधा साधा समझ रही थी,,,,


अब जिसके पास इतनी खूबसूरत गुलाबी छेद है तो उसे देखकर इंसान कब तक सीधा-साधा रह सकता है,,,,


बातें बहुत आती है तुझे चलो जल्दी से निकालो,,,


ठीक है महारानी जैसी आपकी आज्ञा,,,(सूरज की बात सुनकर मंजू हंसने लगी और सूरज अपने मोटे तगड़े लंबे लंड को उसके गुलाबी बुर के गुलाबी पत्तियों के बीच फंसे मुसल को निकालना शुरू कर दिया,,, राजु अपनी कमर को उठाते हुए अपने लंड को बाहर खींच रहा था बाहर खींचते समय भी लंड की नशे बुर की अंदरूनी दीवारों पर रगड़ खा रही थी जिसकी वजह से मंजू की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी,,,और देखते ही देखते सूरज ने अपने लंड को उसकी बुर से पक्क की आवाज के साथ बाहर खींच लिया,,, मंजू मुस्कुराने लगी और खड़ी होने लगी सूरज भी खड़ा हो गया था और अपने लंड को पकड़ कर हिलाते हुए बोला,,,


अब कपड़े मत पहनो फिर से निकालना पड़ेगा,,,,


तो क्या हुआ निकाल देना कपड़े उतारने में तो तुम माहिर हो,,,


नहीं नहीं तुम बिना कपड़ों के ही बाहर जाओ एकदम नंगी,,, बहुत अच्छा लगेगा,,,,


पागल हो गया क्या बिना कपड़ों के बाहर कैसे जाऊंगी किसी ने देख लिया तो,,,


यहां कौन आएगा देखने के लिए इतनी वीरान जगह है एकदम सुनसान यहां कोई नहीं आता,,,

नहीं नहीं मैं कपड़े पहन कर ही जाऊंगी,,,(अपने पेटीकोट को नीचे से उठाते हुए बोली तो सूरज तुरंत आगे बढ़ा और उसके हाथ से पेटीकोट छीन लिया और बोला,,,)

कोई नहीं देखेगा ऐसे ही चलो ना एक बार एकदम नंगी बहुत मस्त लगोगी साड़ी में जब चलती हो तो एकदम कयामत लगती हो बिना कपड़ों के चलोगी तो तुम्हारी बड़ी बड़ी गांड देखकर मेरा लंड,,,(अपने लंड को पकड़ कर हीलाते हुए) एकदम बावला हो जाएगा,,,,
(पर आ चुकी है बात सुनकर वह कुछ सोचने लगी सूरज की बातें उसके मन पर भी गहरा प्रभाव छोड़ रही थी वह भी बिना कपड़ों के ही बाहर जाना चाहती थी वह देखना चाहती थी कि बिना कपड़ों के घूमने में घर से बाहर आम के बगीचे में क्या-क्या लगता है वैसे तो घर में व कई बार बिना कपड़ों के घूम चुकी थी लेकिन आज वह अलग अनुभव लेना चाहती थी इसलिए उसकी बात मानते हुए बोली,,,)

ठीक है तेरी बात मैं मान लेती हूं लेकिन तुझे भी इसी तरह से चलना होगा नल तक,,,, वहीं पर में पेशाब करूंगी,,,,

ठीक है मंजू मौसी,,,,


फिर मौसी कहा,,,,


ठीक है मंजू,,,,,
(मंजू मुस्कुराते भी झोपड़ी के बाहर कदम रखने से पहले एक बार चारों तरफ नजर घुमा कर देखने लगी कि कहीं कोई देख तो नहीं रहा है वैसे भी इस जगह पर कोई आता नहीं था फिर भी वह थोड़ी तसल्ली कर लेना चाहती थी और जब पूरी तरह से तसल्ली कर ली तो वह अपना एक कदम बाहर निकाल दी उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर तोड़ने लगी आज वह पहली बार घर के बाहर नंगी घूमने का अनुभव ले रही थी पीछे पीछे सूरज खड़ा था जो कि झोपड़ी से बाहर निकलने मैं समय ले रही थी तो वह ठीक मंजू के पीछे आ गया उसकी चूची दोनों हाथों से पकड़कर अपने लंड को उसकी गांड पर रगड़ने लगा सूरज की हरकत से वग पूरी तरह से बावली हो गई,,,, और उसके मुख से गर्म सिसकारी फूट पड़ी,,,।

सहहहहहह ,,,,,आहहहहहहह सूरज,,,,, पेशाब तो कर लेने दे,,,,


रोका किसने है खड़े-खड़े मुत लो,,,ना,,,

धत्,,,, पागल हो गया है क्या,,,, छोड़ो मुझे,,,
( और इतना कहकर झोपड़ी के बाहर निकल गई,,, आगे आगे चल रही है मंजू की बड़ी बड़ी गांड मटकते हुए देखकर सूरज के होश उड़ रहे थे,,,,उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे वह स्वर्ग में पहुंच गया और वहां पर परियों के साथ काम लीला रचा रहा हो,,,, आगे-आगे चल रही मंजू उसे दुनिया की सबसे खूबसूरत औरत लग रही थी साड़ी में चलते हुए उसे देखा था लेकिन नंगी देखने का सुख उसके भाग्य में लिखा हुआ था इसीलिए आज वहां इस आम के बगीचे में हमसे बिना कपड़ों के चलते हुए देख रहा था मंजू रह-रहकर पीछे की तरफ देख कर मुस्कुरा दे रही थी और जवाब में सूरज अपना लंड पकड़ कर हिला दे रहा था,,,

दोनों की इस तरह की हरकतें बेहद मदहोशी फैला रही थी दोनों की आंखों में चार बोतलो का नशा छाने लगा था,,,, देखते ही देखते मंजू हेड पंप के पास पहुंच गई और बेझिझक सूरज के सामने ही अपनी बड़ी बड़ी गांड लेकर नीचे बैठ गई और मुतना शुरू कर दि,,, ५ कदम की दूरी पर सूरज खड़ा हो गया था क्योंकि उसे इतने जोरो की पिशाब लगी हुई थी कि उसकी गुलाबी बुर के छेद से पेशाब की धार बाहर निकलने लगी और साथ ही उसमें से मधुर सिटी की ध्वनि सुनाई देने के लिए जो कि सूरज के हौसले पस्त कर रही थी वह पूरी तरह से उत्तेजित हुआ जा रहा था,,,,,,

मंजू पेशाब करने में पूरी तरह से व्यस्त हो चुकी थी सूरज उसकी बड़ी बड़ी गांड देखकर अपने आप पर काबू नहीं कर पा रहा था और तुरंत ठीक उसके पीछे बैठ गया और अपने लंड को उसकी गांड के बीचो-बीच से निकालकर उसकी बोर के गुलाब की पत्तियों पर अपने लंड की ठोकर मारने लगा,,,, मंजू को जैसे ही यह एहसास हुआ और पूरी तरह से बावरी हो गई उसकी आंखो में खुमारी छाने लगीऔर वो सूरज को रोकने के बिल्कुल भी कोशिश नहीं की और अपनी नजरों को पीछे करके उसको देखने लगी और सूरज अपने होठों को आगे बढ़ा कर उसके होठों पर रखकर उसके होठों का रसपान करने लगा,,,,,
और मंजू तुरंत अपना हाथ नीचे की तरफ ले जाकर सूरज के लंड को पकड़ लिया और उसे अपनी बुर पर रख देना शुरू कर दिया हालांकि अभी भी वह पेशाब की धार मार रही थी जो कि रह-रहकर सूरज के लंड की सुपाड़े को भिगो दे रही थी जिसे से सूरज जो कि उत्तेजना चरम सीमा पर पहुंच चुकी थी,,,,,,,

सूरज पूरी तरह से बदहवास हो चुका था वह तुरंत मंजू की बांह पकड़कर उसे खड़ी उठाने लगा,,, मंजू ठीक से मुत नहीं पाई थी लेकिन फिर भी मंत्रमुग्ध से सूरज के इशारे पर नाचने लगे थे वह खड़ी हो गई थी और सूरज उसे हेड पंप के सहारे उसकी गांड टीका कर उसे खड़ी कर दिया था,,,, मंजू की गुलाबी बुर लप-लपा रही थी,,,गहरी सांस खींचते हुए सूरज उसकी चिकनी बुर की तरफ देखा और तुरंत अपने होंठ को उसकी बुर से लगा दिया जिस पर अभी भी पेशाब की बूंदे लगी हुई थी और वह भेज जग अपने होठों पर ओस की बूंद की तरह लेकर उसे जीभ के सहारे अपने गले के नीचे उतार दिया,,,, अद्भुत सुख और रोमांच से मंजू पूरी तरह से मस्त होने लगी उसकी आंखें खुली थी और वो चारों तरफ देख रही थी कहीं कोई आ ना जाए उसे डर भी लग रहा था जो कि वहां पर कोई आने वाला नहीं था आज आसमान के नीचे खुले में नंगी होकर जवानी का मजा लेने में उसे बहुत मजा आ रहा था,,,, वास्तव में सूरज उसे बेमिसाल लगने लगा था,,,,
सूरज पागलों की तरह उसकी बुर चाट रहा था मंजू भी पूरी तरह से मस्त होकर अपनी बुर को गोल-गोल घुमाते उसके चेहरे पर रख रही थी हालांकि वह ठीक से पेशाब नहीं कर पाएगी इसके उत्तेजना के मारे उसकी बुर से रह-रहकर पेशाब की धार फूट पड़ रही थी जो कि सूरज उसे अमृत की धार समझ कर उसे अपने मुंह में लेकर पी जा रहा था यह मंजू और सूरज के लिए बेहद अनोखा अनुभव था जिसमें पूरी तरह से दोनों भीग चुके थे,,,, सूरज की उत्तेजना और उसका हौसला देखकर मंजू पूरी तरह से मस्त हो चुकी थी,,,एक तरह से वह सूरज की गुलाम बन चुकी थी जितना सोची थी उससे कई ज्यादा सूरज से मजा दे रहा था रह रह कर सूरज अपनी उंगली उसकी बुर में डाल दे रहा था जिसकी वजह से अपनी उत्तेजना को ना संभाल पाने के कारण वह हेड पंप के हफ्ते को कस के पकड़ ले रही थी और खुद भी अपनी कमर को आगे पीछे करके हिला रही थी,,,, पेशाब का स्वाद नमकीन खारेपन का था लेकिन सूरज को उसकी पेशाब का स्वाद अमृत से कम नहीं लग रहा था धीरे-धीरे करके वहां उसकी बुर से निकलने वाले पैशाब को पूरी तरह से अपने गले के नीचे गटक गया था,,,,,मंजू की गर्म शिसकारियों की आवाज से पूरा आम का बगीचा पूछ रहा था लेकिन उसे सुनने वाला वहां कोई नहीं था,,,,।

सूरज से अब रहा नहीं जा रहा था वह तुरंत खड़ा हुआ है और अपने लंड को खड़े-खड़े ही ,,, मंजू की बुर में डालना शुरू कर दिया,,, सूरज का लंड आराम से चला जाए इसलिए मंजू अपनी एक टांग उठा कर वापस उसकी कमर में डाल दी और सूरज बड़े आराम से उसकी एक टांग उठा है उसकी चुदाई करना शुरू कर दिया अद्भुत संभोग,,, शायद इस तरह के संभोग के बारे में मंजू ने भी कभी कल्पना नहीं की थी,,, सूरज का हर एक धक्का उसके होश उड़ा रहा था,,,
सूरज की कमर लगातार चल रही थी,,,

मंजू अपने शर्मो हया सब कुछ त्याग चुकी थी,,, तभी तो जिंदगी का सबसे अनोखा सुख भोग रही थी जिसकी कल्पना भी कर पाना मुश्किल था संस्कारी औरतें इस तरह से खुले में आम के बगीचे में नंगी होकर सहेली के भांजे से चुदवाएगी इस बारे में किसी ने भी कल्पना नहीं की थी,,, वैसे भी सूरज की हिम्मत की दाद देना पड़ जाए क्योंकि ऐसा काम लोग चोरी छुपे घर के अंदर करते हैं लेकिन वह किसी की परवाह किए बिना अपनी उत्तेजना को शांत करने के लिए मामी की सहेली को झोपड़ी से बाहर लाकर उसके चुदाई कर रहा था,,,,
अपनी टांग को उठाएं उठाएं मंजू को दर्द महसूस होने लगा था लेकिन फिर भी दर्द की परवाह किए बिना वह संभोग के असीम सुख को प्राप्त करने में लगी हुई थी और देखते ही देखते दोनों की सांसे तेजी से चलने लगी,,, और सूरज बिना आसन बदले एक बार फिर से मंजू को चांद पर लेकर जा चुका था दोनों का लावा निकल चुका था सूरज अपना लंड बुर से बाहर निकाल कर अपनी सांसो को दुरुस्त करने लगा और मंजू गहरी गहरी सांसें लेने लगी,,,।

बाप रे कितना हरामी है तु अपनी मनमानी करने से पीछे नहीं हटता,,,

क्या करूं तुम्हारी जवानी का नशा ही कुछ ऐसा है कि बार-बार पीने को मन करता है,,,,

दो दो बार झढ़ने के बाद भी सूरज का लंड ज्यों का त्यों खड़ा था,,,, और वह वही पर मंजू की आंखों के सामने ही खड़े होकर पेशाब करने लगा,,, सूरज की इस हरकत पर मंजू हंसने लगी और हंसते हुए बोली,,।

अरे थोड़ी तो शर्म कर लिया होता,,, दूर जाकर मुत नहीं सकते थे,,,


अब तुम से कैसी शर्म,,,,(इतना कहकर मुस्कुराने का क्या और सूरज का कहना भी ठीक ही था मंजू यह बात अच्छी तरह से जानती थी,,,, कुछ देर तक वह दोनों वहीं खड़े रहे नंगे पन का एहसास दोनों को एकदम मस्त कर रहा था शाम ढलने वाली थी और मंजू बोली,,,)

बहुत देर हो गई है अब मुझे चलना चाहिए,,,, अंधेरा हो गया तो मुश्किल हो जाएगी मेरा पति तरह तरह के सवाल पूछना शुरू कर देंगे,,


तो क्या हुआ बता देना कि आम के बगीचे में चुदवा रही थी,,,।

धत्,,,,,(और इतना कहकर मंजू इतनी गांड मटका कर झोपड़ी के अंदर जाने लगी तो पीछे पीछे सूरज भी चल दिया,,,, मंजू झोपड़ी के अंदर अपनी पेटीकोट उठाकर उसे पहन कर अपनी डोरी बांध रही थी,,, वहीं पास में पड़ी मंजू की पेंटी को उठाकर सूरज उसे चारों तरफ घुमा कर देखने लगा एकदम मखमली कपड़े की बनी हुई थी सूरज से रहा नहीं गया और वह अपनी नाक से लगाकर उसे सुंघने होने लगा,,,,)

वाहहह ,,, क्या खुशबू है एकदम तरोताजा मेरा तो फिर से लंड खड़ा होने लगा है,,,,,,,(सूरज की बात सुनते हैं मंजू सूरज की तरफ देखी तो उसे अपनी पेंटी सुनता हुआ पाकर ही दम हैरान हो गई और बोली,,)

तुम सच में एकदम पागल हो,,,


तुम्हारा दीवाना हो गया हूं,,,


धत् पागल,,,,(इतना कहकर सूरज की तरफ पीठ करके नीचे झुक कर अपनी साड़ी उठाने लगी तो उसके झुकने की वजह से उसका बड़ा पिछवाड़ा देखा कर सूरज से रहा नहीं गया वैसे भी उसकी चड्डी सुंघकर वह पूरी तरह से मदहोश हो चुका था और वह बिना समय गंवाए सीधा उसके पीछे पहुंच गया था,,,और वह नीचे गिरी साड़ी उठा पाती इससे पहले ही सूरज पीछे से उसकी पेटीकोट कमर तक उठा दिया था,,, और वह कुछ समझ पाती इससे पहले ही उसकी कमर थाम कर पीछे से अपने लंड को उसकी बुर में डाल दिया वह उसे रोकती रह गई लेकिन वह उसे चोदना शुरु कर दिया मंजू के तन बदन में एक बार फिर से उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी और वह सूरज की इस मनमानी का मजा लेने लगी पीछे से भी सूरज का लंड उसकी बुर की गहराई नाप रहा था जो कि यह मंजू के लिए आश्चर्यजनक था क्योंकि पीछे से उसका पति भी अच्छा नहीं कर पाता था,,, सूरज बड़े आराम से कर रहा था इसलिए वह मजा लेने लगी और अपने सिसकारियों से पुरी झोपड़ी को संगीतमय बना दी,,,,

थोड़ी देर बाद दोनों अपने अपने कपड़े पहन कर झोपड़ी से बाहर निकल गए और जाते समय मंजू उसके होठों पर चुंबन करके उससे विदा ली और वहां से अपने घर की तरफ निकल गई ( क्योंकि उसे आज रात को कुछ दिनो के लिए अपने मायके जन था )सूरज को भी आज शाम को मामी के साथ नानी के गांव जाना था,, काफी देर होने की वजह से जल्दी अपने घर की तरफ चल पड़ा,,,

अद्भुत अविस्मरणीय अतुलनीय ,,, संभोग की तृप्ति का अहसास लिए मंजू और सूरज अपने अपने रास्ते चले जा रहे थे मंजू आज बहुत खुश थी पहली बार किसी असली मर्द से पाला जो पडा,,,था,,, शाम होने तक तीन बार की खमासा चुदाई का एहसास मंजू हल्के हल्के लंगड़ा कर चल रही थी ऐसा उसके साथ कभी नहीं हुआ था,,,, अपनी बुर में उसे मीठा मीठा दर्द महसूस हो रहा था लेकिन यह दर्द उसके लिए बहुत खास था यह यादें यह पल उसकी जिंदगी की सबसे बेहतरीन पल बन चुकी थी,,, क्यों कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि कोई इस तरह से चुदाई करता होगा,,,, एक नहीं दो नहीं तीन तीन बार चुदाई करने पर तीनों का अद्भुत की पराकाष्ठा का अनुभव कराते हुए सूरज ने उसे दिन में ही उसे तारे दिखा दिए,, थे,,,

ऊंची नीची पगडंडियों से चलते हुए मंजू को अपनी बुर की गुलाबी पत्तियों के बीच रगड महसूस हो रही थी,,,,सूरज के लंड से निकले गर्म लावा की धार अभी भी उसकी बुर से रह रह कर बह रही थी,,,, सूरज के साथ बिताए हुए एक-एक पल को याद करके मंजू के होठों पर मुस्कान तैरने लग रही थी,,,, वो कभी सोची नहीं होती कि इतनी जल्दी सब कुछ हो जाएगा उसे लग रहा था कि धीरे-धीरे आगे बढ़ना पड़ेगा लेकिन किस्मत बड़े जोरों पर थी जो की पहली बार में ही सब कुछ हो गया था,,,

सूरज के मोटे तगड़े लंबे लंड की धार को अपनी बुर की गहराई में बड़े अच्छे से महसूस कर पाई थी उसका हर एक देखा उसके बच्चेदानी को छूकर गुजर जाता था यह एहसास उसकी जिंदगी का सबसे बेहतरीन एहसास था इस तरह का अनुभव है अभी तक नहीं कर पाई थी शायद इतना मोटा लंबा लंड उसे मिला ही नहीं था,,,,

सूरज के लंड से चुदवाकर मंजू अपने आपको खुसनासीब समाज रही थी,,,, सूरज की संभोग की कार्यक्षमता उसकी कार्यशैली उसकी गरमा गरम हरकतें सब कुछ अद्भुत थी खास करके आम के बगीचे में खुले में हेड पंप के पास वाली हरकत मंजू को एकदम मदहोश और मस्त कर गई थी वह कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि वह इस तरह से आम के बगीचे में खुले में चुदाई का आनंद लेगी,,,, और बार-बार सूरज का उसकी दोनों टांगों के बीच मुंह मारना उसे पूरी तरह से सूरज का गुलाम बना दिया था,,

सूरज की बुर को चाटने की कार्यशैली देखकर वह पूरी तरह से उत्तेजना से गदगद हो गई थी इस तरह से आज तक उसके पति ने भी उसके साथ बुर चाटने वाली हरकत नहीं किया था उसकी जीभ बुर की गहराई तक चली जाती थी,,,,,,, बिना चुदाई किए ही वह उसका पानी निकाल चुका था,,, यही सबसे बड़ा उसकी मर्दाना ताकत का प्रमाण था,,,मंजू को यह भी समझ में आ गया था कि सूरज जितना भोला भाला मासूम चेहरे से लगता है उतना भोला भाला वह था नहीं औरतों के मामले में तो खास करके,,,, और यही अदा तो मंजू को भा गई थी उसे लगा था कि सूरज को सब कुछ सिखाना पड़ेगा लेकिन,,, सूरज तो पहले से ही संभोग की पूरी पुस्तिका का अध्ययन कर चुका था,,,,

मंजू को अपने खूबसूरत बदन पर गर्व होने लगा था,,, खास करके अपनी बड़ी बड़ी गांड पर,,क्योंकि सूरज सबसे ज्यादा उसकी गांड से खेल रहा था और वही अंग उसे सबसे ज्यादा उत्तेजित भी कर रहा था,,,, मोटे तगड़े लंड की अगर तू अपनी बुर की अंदरूनी दीवारों पर अभी भी महसूस कर पा रही थी,,,, जिस तरह की तेज धक्कों के साथ उसने उसकी चुदाई किया था वह अविस्मरणीय था बिना थके बिना हारे वह डंटा हुआ था जब तक की उसको पूरी तरह से पानी पानी ना कर दिया,,,,

दूसरी तरफ सूरज बहुत खुश था क्योंकि उसने कभी सोचा नहीं था कि मंजू मौसी की चुदाई कर पाएगा इस बारे में तो कभी वो सपने में भी नहीं सोचा था लेकिन मामी की सहेली किसी सपने की तरह ही उसकी झोली में आ गिरी थी सब कुछ इतनी आसानी से और आराम से हो गया इस पर अभी भी सूरज को विश्वास नहीं हो रहा था उसकी मदमस्त काया उसका गुदाज बदन उसकी गदराई जवानी,,,
सूरज को पूरी तरह से दीवाना बना गई थी चुदाई के मामले में भले ही मंजू ने सूरज के आगे घुटने टेक दि‌ थी,,, लेकिन वास्तविकता यही थी कि मंजू की गदराई मदमस्त जवानी के आगे सूरज खुद ध्वस्त हो चुका था वह उसकी जवानी का कायल हो चुका था एक तरह से उसका गुलाम हो चुका था,,,,उसकी बुर से निकला नमकीन पानी का स्वाद अभी भी उसे अपने होठों पर महसूस हो रहा था,,,,जिसकी मादक खुशबू में वह पूरी तरह से लिप्त हो चुका था,,,, आज से एक नया अनुभव भी मिला था मंजू की बुर को चाटते हुए उसकी बुर से निकला नमकीन पेशाब की बूंदे उसके गले को तर कर गई थी जिसका एहसास उसे और ज्यादा उत्तेजित कर दिया था वह कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह इस तरह के हालात से गुजरेगा लेकिन उत्तेजना और मदहोशी के आलम में आज उसने मंजू के पेशाब की बूंदों को भी स्वाद ले चुका था और वह उसे किसी अमृतधारा से कम नहीं लग रही थी,,,,

सूरज की आंखों के सामने भी मंजू कीमत मस्त जवानी से भरी हुई बदन का हर एक कटा आंखों के सामने नाच रहा था उसके लाल लाल होंठ उसके तीखे नैन नक्श उसके गुलाबी गाल सुराही दार गर्दन हिरनी सी बलखाती कमर मदमस्त नितंबों का उभार ,,,,छातियों की शोभा बढ़ाते दोनों अमृत कलश,,, यह सब सूरज के लिए बिल्कुल अनोखा था,,,, एकदम बेशकीमती खजाने की तरह,,, जोकि उसके हाथ लग चुका था,,,,,, मखमली बुर की कोमलता,,, और उसके अंदर की गर्मी अभी तक वह अपने अंदर महसूस कर रहा था,,,,,,, मंजू मौसी की दमदार चुदाई करके जिस तरह से मौसी पूरी तरह से संतुष्ट किया था ईससे सूरज का आत्मविश्वास और ज्यादा बढ़ गया था उसे अपने लंड पर पूरा यकीन हो गया था कि वह किसी भी औरत को पूरी तरह से तृप्त कर सकता है जिसमें सच्चाई भी थी,,,

घर पहुंचते-पहुंचते शाम ढल चुकी थी,,,,,
 
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दूसरी तरफ मंजू कुछ सामान लेने बाजार गई थी,,
घर पर बिलास अकेला ही था पर वह चम्पा के आने का इंतजार कर रहा था इसलिए तो वह मंगल के साथ गांव जाने से इनकार कर दिया था क्योंकि वह गांव पहुंचती और चम्पा इधर उसके पास पहुंचती,,,, बहुत दिन हो गए थे उसे भी चम्पा के रसीली बुर का स्वाद चखें,,,,, वह घर में बड़े आराम से बैठकर चम्पा के साथ वह क्या-क्या करेगा इस बारे में सोच रहा था,,, लेकिन वहां अपनी जिंदगी में आने वाले तूफान से बिल्कुल अनजान था वह तो बड़ी बेसब्री से सूरज और मंगल के जाने का इंतजार कर रहा था,,

( क्योंकि चम्पा के आने निश्चित समय नही था,, कुछ दिन तक वह घर में ही रहकर अपनी चचेरी बहन के साथ चुदाई का भरपूर आनंद ले लेना चाहता था। उसे इस बात का पक्का यकीन था कि चम्पा को इससे कोई भी एतराज नहीं होगा क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि जब वह अपने भाई से मदद की उम्मीद कर रही है तो उसका भाई बदले में उससे कौन सी इच्छा रखता है इसलिए चम्पा अपने आप को पूरी तरह से तैयार करके रखी थी,,,)
शादी से पहले वैसे भी वह अपने चचेरे बड़े भाई के साथ चुदाई का भरपूर आनंद ले चुकी थी। तब तो उसकी कोई मजबूरी नहीं थी वह पूरी तरह से खुले विचार से परिपूर्ण थी लेकिन अब तो उसके पास मजबूरी है अगर वह चाहे भी तो अपनी खूबसूरत बदन को अपने चचेरे भाई के हाथों में सौंपने से अपने आप को रोक नहीं सकती थी क्योंकि उसके लिए वैसे भी सारे दरवाजे बंद हो चुके थे उसके परिवार वाले उसे अपनाने से इंकार कर चुके थे और वह अपने पति का घर छोड़ कर आई थी,,,
और वह जिस तरह से अकेले रहकर काम करके अपना खर्चा उठा रही थी दुनिया की प्यासी नजरों का अनुभव उसे अच्छी तरह से हो गया था,,, इसलिए उसे फिर से अपने चचेरे भाई से चुदने में कोई भी एतराज नहीं था बदले में उसे किसी बात की दिक्कत तो नहीं होती,,,
ना तो खाने की दिक्कत और ना ही रहने की दिक्कत और ना ही जेब खर्च की दिक्कत वरना जहां वहां अकेले रहकर अपनी जिंदगी जी रही थी वहां तो दूध वाला,,, राशन वाला मकान मालिक सभी लोग उसके खूबसूरत बदन को अपनी प्यासी नजरों से चाटते रहते थे कभी कभार समय पर पैसा ना चुका पाने की स्थिति में,,, उसे अपने बिस्तर में आने का लुभावना प्रस्ताव भी रखते थे,,,,

लेकिन उन लोगों के आधीन होने के लिए चम्पा का मन नहीं मानता था। वह अपनी जिंदगी को कोसने लगी थी कि कैसा दिन उसका आ गया है कि उसके शरीर को भोगने के लिए एक दूधवाला राशन वाला और मकान मालिक ललचाई नजरों से उसे देखते रहते हैं। कुछ एक बार तो उसे अपने आप से समझौता करके मकान मालिक के अधीन होना पड़ा था। लेकिन एक बार मकान मालिक का बिस्तर गर्म करने की वजह से मकान मालिक कहां खुल चुका था और वह बार-बार उसे धमकाते हुए उसे चुदवाने के लिए मजबूर करता रहता है यह सब से तंग आकर वह अपने भाई का सहारा लेकर उसके पास आने के लिए तैयार हो चुकी थी हालांकि इधर भी उसे अपने भाई के साथ वही सब करना पड़ता जो वह मकान मालिक के साथ कर रही थी,,,, लेकिन वहां उसे बदनाम होने का पूरा डर था। बल्कि वहा तो वह. मोहल्ले में धीरे-धीरे बदनाम होने लगी थी। लेकिन उसे यकीन था कि वह बिलास के पास निश्चित तौर पर सुरक्षित रहेगी,,,

बिलास मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रहा था उसके घर के बाहर तभी एक तांगा आकर रुक गया १५ २० कदम के फासले पर और हां सूरज उस टांगे को अपने घर के दरवाजे के सामने खड़ा होता देखकर सोच में पड़ गया कि आखिर यह है कौन तभी तांगे में से पद्मा बाहर निकली और सूरज की नजर उस पर पड़ते ही वह,,, समझ गया कि यह तो गोदाम वाली औरत है,,,,
ऊसका इस तरह से घर पर आना सूरज को बड़ा अजीब लग रहा था और जिस तरह से उसका चेहरा गुस्से में लाल लाल दिख रहा था इससे ऊसे समझते देर नहीं लगी कि आज कुछ तो गड़बड़ होने वाली है,,,,,

सूरज को यह लग रहा था कि उसकी मामी घर पर ही होगी और आज यह औरत जरूर कुछ ना कुछ बखेड़ा खड़ा करेगी,,,, लेकिन फिर उसके मन में आया कि कहीं ऐसा तो नहीं मामी घर पर ना हो और मामा ने उस औरत को घर पर बुलाकर उसके साथ रंगरेलियां मनाने का मन बना लिया,, हो। वैसे भी मर्द जात का कोई भरोसा नहीं होता और वह अक्सर औरतों के प्रति उनका मन चंचल ही होता है,,। लेकिन पद्मा के चेहरे को देखकर सूरज को कुछ विरोधाभास होने का अंदेशा लग रहा था। वह भी यह देखने के लिए उत्सुक था कि क्या होने वाला है। इसलिए वह वही रुका रहा और उसके घर में जाने का इंतजार करने लगा जैसे ही वह दरवाजा खोल कर अंदर गई सूरज धीरे-धीरे अपने घर की तरफ जाने लगा।
 
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पद्मा घर के मुख्य द्वार पर पहुंच चुकी थी उसके चेहरे से साफ पता चल रहा था कि वह गुस्से में है,,,, उसने दरवाजे की कड़ी जोरसे बजाई घर के अंदर आराम से कुर्सी पर बैठकर चम्पा के बारे में सोचते हुए बिलास अपना वक्त गुजारना था इस तरह से दरवाजा बजने की वजह से उसे लगा कि शायद मंगल या तो सूरज घर आ चुका है इसलिए बेमन से वह दरवाजे को खोलने के लिए उठा।,
उधर दूसरी तरफ सूरज धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए अपने घर के बाहर तक पहुंच गया था और चुपके से मुख्य दरवाजे की तरफ देख रहा था जहां पर पद्मा खड़ी थी,,। पद्माबार-बार दरवाजे की कड़ी बजाया जा रहे थे ऐसा लग रहा था कि आज वह फैसला करके ही आई थी कि,, बिलास को पूरी तरह से बदनाम कर देगी सूरज वहीं छुप़ कर उसके अंदर जाना का इंतजार करने लगा,, जो बार-बार घंटी बजाने की वजह से बिलास चीढ़ता हुआ जोर से बोला,,,,

अरे आ रहा हुं,,, दरवाजा तोड़ दोगी,,,,,( वह समझ रहा था कि मंगल दरवाजे पर खड़ी है,,, इतना कहने के साथ ही वह दरवाजे तक पहुंच कर उसे खोलते हुए बोला,,,,।)

क्या करती हो पागल हो, ग,,,,,, ( पद्मा को सामने खड़ा देखते ही उसके शब्द गले में ही अटक गए उसे यकीन नहीं हो रहा था कि पद्मा उसके घर आइ है,,,, वह लगभग हकलाते हुए बोला)
ततततत,,, तुम,,, यहां,,,,

हां मैं सोचा कि तुम मेरी खबर नहीं ले रहे हो तो मैं ही तुम्हारी खबर ले लूं,,,,( इतना कहने के साथ ही वह घर में प्रवेश करी,, उस पर किसी और की नजर ना पड़ जाए इसलिए बिलास ने जल्दी से दरवाजा बंद कर दिया,,,,)

तुम यहां क्या लेने आई हो मुझे गोदाम में भी तो बात कर सकती थी,,,।

तुम्हारे व्यवहार से लगता है कि अब बातचीत करने का समय खत्म हो चुका है,,,,

हां सब कुछ ख़त्म हो चुका है,,,,।मैं अब तुमसे किसी भी प्रकार का संबंध रखना नहीं चाहता,,,,,
( दरवाजा बंद होते ही सूरज जल्दी से घर के अंदर की तरफ आ गया और दरवाजे से कान लगाकर अंदर की बातों को सुनने लगा,,,,)

यह तो मुझे पता ही था कि तुम्हारा मन मुझसे भर गया है इसलिए तो तुम मेरी जरूरतों को पूरा करने से आनाकानी कर रहे हो,,,,


देखो पद्मा तुम चाहे जो समझो लेकिन आप मेरा और तुम्हारा कोई रिश्ता नहीं है तुम जा सकती हो,,,,


बिलास तुमने जो मेरे साथ किया है यह मत समझना कि मैं दूसरी औरतों की तरह शांत हो जाऊंगी,,,, और मुझसे इस तरह इतनी आसानी से पीछा नहीं छुड़ा सकते तुम,,, मैं आज तुम्हारी बीवी से मिलकर ही जाऊंगी,,,, कहां है वो देखूं तो,,,
(इतना कहकर वह सीढ़ियों की तरफ बड़ी ही रही थी कि बिलास बोला)

घर पर कोई नहीं है वह बाहर गई है,,,,

तो यह बात है तभी मैं सोचूं कि तुम इतना दहाड़ क्यों रहे हो,,


कोई बात नहीं मैं इंतजार करूंगी मैं भी आज तुमरी बीवी से मिलकर ही जाऊंगी और तुम्हारी जिंदगी का काला चिट्ठा तुम्हारी बीवी के सामने खोल कर ही दम लूंगी,,, तुम मुझे यूं झूठे बर्तन की तरह उपयोग नहीं कर सकते कि जब मन आया उसे खा लिया और उसे फेंक दिया,,,, मैं वह हस्ती हूं जय बार गले में फंस जाओ तो फिर उसे कोई नहीं बचा सकता,,,,
( बिलास बार-बार दरवाजे की तरफ देख रहा था कि कहीं मंगल ना जाए उसे डर लग रहा था और जिस तरह से पद्मा उससे धमकी भरी बातें कर रही थी उससे तो उसके घबराहट और ज्यादा बढ़ रही थी उस के पसीने छूटने लगे थे,,,, उसे लगने लगा कि आज वह मंगल को सब कुछ बता कर ही दम लेगी अगर ऐसा हुआ तो सब कुछ बर्बाद हो जाएगा अभी तक तो सूरज यह राज जानता था लेकिन उसने आज तकअपनी मामी को नहीं बताया था लेकिन आज यह रिश्ता उसके काले करतूतों को उसकी बीवी को बता कर उसकी जिंदगी पूरी तरह से बर्बाद कर देगी,,, समाज में उसकी क्या इज्जत रह जाएगी अड़ोस पड़ोस के लोग क्या कहेंगे यही सब सोचकर उसके पसीने छूटने लगे,,, और वह बोला,,,।

पद्मा तुम चाहती क्या हो,,,,?

मुझ से पीछा छुड़ाने कि रकम मुझे सौंप दो इसके बाद दूर-दूर तक मेरा और तुम्हारा कोई वास्ता नहीं होगा,,,

नहीं पद्मा अब मैं तुम्हें एक फूटी कौड़ी नहीं दूंगा तुम अच्छी तरह से जानती हो कि मैंने अच्छी-खासी संपत्ति तुम पर लुटा चुका हूं तुम्हें घर दिलाया जमीन दीलाया,,, अपने शौक मौज पूरे करने के लिए महीने में हजारों रुपया लेती हो तुम,,, लेकिन अब मैं तुम्हें कुछ नहीं दे सकता,,,,


माेज शौक कीस मोज सौक की बात कर रहै हो,,, मौज शौक तो तुम करते आ रहे हो मेरे साथ,,,, और उसके बदले में तुम मुझ पर आपने कैसे मिटा दिया रहे हो कोई मुफ्त का मेरे पर खर्च नहीं कर रहे हो,,, यह बात अच्छी तरह से अपने दिमाग में बैठा लो,,,, और अगर तुम्हें ऐसा लगता है तो आज मैं तुम्हारी बीबी से कौन किसके साथ मौज सौक करते आ रहा है सब कुछ बता कर ही जाऊंगी,,,,


( सूरज दरवाजे से कान लगाए सब कुछ सुन रहा था,,, उसने जानकर बड़ी हैरानी हो रही थी कि काफी समय से उसके मामा उस औरत के साथ शारीरिक संबंध बना रहे थे और उसके ऊपर हजारों रुपए खर्च कर चुके थे,,,,सूरज को इस बात से भी डर लग रहा था कि अगर वह औरत उसके और उसके मामा के बीच में शारीरिक संबंध के बारे में उसकी मामी को बता दे तो उसकी मामी पर क्या बीतेगी क्योंकि उसकी मामी से यही सोचती आ रही थी कि बिलास सिर्फ उस पर ध्यान नहीं देता बाकी उसका चरित्र खराब नहीं है लेकिन यह जानकर कि वह दूसरी औरत के साथ शारीरिक संबंध रखता है तभी उसके साथ किसी भी प्रकार का शारीरिक संबंध बनाने से कतराता है,,,, यह सोचकर सूरज का मन थोड़ा घबरा रहा था उसे भी इस बात का डर था कि कहीं उसकी मामी ना आ जाए और जिस तरह से वह औरत उसके मामा को धमकी दे रही थी इससे तो ऐसा ही लग रहा था कि वह उसकी मामी को सब कुछ बता देगी,,, इस बात से बिलास भी काफी परेशान नजर आ रहा था,,,।)

देखो पद्मा तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगी तुम भी अब तक मेरा ज्यादा ऊपयोगं कर चुकी हो,,, तुम इधर से चुपचाप चली जाओ इसी में तुम्हारी भलाई है,,, वर्ना मैं अभी दरोगा को बुला लाऊंगा और एक ईज्जतदार आदमी को बदनाम करने के जुर्म मे तुम्हें अंदर करवा दूंगा,,,

( बिला की यह बात सुनकर पद्मा जोर-जोर से हंसने लगी बिलास को यही लगा था कि उनकी ऐसी धमकी सुनकर पद्मा डर जाएगी लेकिन उस के विपरीत पद्मा जोर-जोर से हंसे जा रही थी,, और उसे हंसता हुआ देखकर बिलास का कलेजा सूखने लगा था,,,,वह हंसते हंसते एकाएक खामोश हो गई और जोर से दहाड़ते हुए बोली,,,।)


बिलास इस तरह की बेवकूफी भरी गलती करने की कोशिश भी मत करना क्योंकि तुम्हारी यही गलती तुम्हारे लिए ही भारी पड़ जाएगी और जो तुम बहुत इज्जत दार इज्जत दार आदमी की डींगे हांक रहे हो,,,, सब कुछ खत्म हो जाएगा तुम्हें भी अच्छी तरह से जानते हो कि इतना की हालत में दरोगा अक्सर औरतों की सुनती है,,,,
( पद्मा की धमकी सुनकर बिलास का चेहरा उतर गया मैं समझ गया कि वो पूरी तरह से पद्मा के घेरे में आ चुका था और के चुंगल से बच पाना बेहद मुश्किल था ऐसे में उसकी हर बात मानने में ही उसकी भलाई थी,,,, इसलिए वह बोला,,)

पद्मा,,,, तुम इतनी चालाक निकलोगी है मुझे पता नहीं था,,,

देखो बिलास अगर मैं बेशर्म ना होती तो तुम्हारे साथ इस तरह के अनैतिक संबंध के लिए कभी भी तैयार नहीं होती,,,, रही बात बेशर्मी की तो मैं जानती थी कि तुम मर्द लोगो की चाहत एक जैसी होती है तुम मर्दों का भरोसा कभी नहीं करना चाहिए क्योंकि जब तक औरतों से तुम लोगों का मन नहीं भर जाता तब तक उसे चुसते रहते हो,,, और जैसे ही मन भर जाता है तो चाय में गिरी मक्खी की तरह निकाल कर फेंक देते हैं,,,और हां बिलास बेशर्मी पन मैं तो तुम भी किसी से कम नहीं हो,,, घर में खूबसूरत बीवी होने के बावजूद भी घर के बाहर दूसरी औरतों के पीछे लार टपकाते फिरते रहते हो,,,, अपनी बीवी को धोखा देकर बाहर की औरतों से संबंध रखते हो,,,,,, मैं तो मजबुरी मै यहं सब काम करती हूं क्योंकि मैं जानती हूं कि मेरा पति कमाने वाला नहीं,,, इसलिए मुझे इस तरह से कमाना पड़ता है,,,


बेकार की बहस बाजी छोड़ो और ठीक-ठीक बताओ कि तुम चाहती क्या हो,,,,,,,

कभी आए ना लाइन पर,,,,, बिलास तुम मुझे ५००००० लाख रुपया दे दो,,,, इसके बाद ना तो तुम मुझे जानते हो ना मैं तुम्हें जानती हूं,,,


पद्मा तुम पागल तो नहीं हो गई हो ५००००० लाख रुपया जानती हो कितनी बड़ी रकम है,,,

मुझ से पीछा छुड़ाने के लिए तो यह रकम तुम्हारे लिए बहुत मामूली है वरना इससे भी कहीं ज्यादा चुकाना पड़ जाता,,,


पद्मा थोड़ा कम करो इतनी बड़ी रकम मैं नहीं दे सकता,,,


तुम दे सकते हो,,,, ओर ये रकम मुझे आज ही चाहिए उसके बाद तुम आराम से अपनी नई जिंदगी शुरु कर सकते हो,,,

इतनी बड़ी रकम आज के दिन में कैसे इंतजाम कर सकता हूं देखो पद्मा तुम कुछ ज्यादा ही मांग रही हो,,,

कुछ ज्यादा नहीं है बिलास ,,,,,,,,,
पद्मा लगभग चिल्लाते हुए बोली और यह सब दरवाजे के पीछे खड़ा होकर सूरज सुन रहा था और जान चुका था कि उसके मामा ने उस औरत के पीछे लाखों रुपए बर्बाद कर चुका था। और अब ५००००० लाख रुपए और उसे चुकाना था,,


तुम अगर यह चाहते हो कि तुम्हारी हंसती खेलती जिंदगी यूं ही अच्छे से चलती रहे तो मुझे देखना करो के आज के आज चाहिए वरना मैं तुम्हारी काली करतूतें तुम्हारी बीवी को बता दूंगी,,,,


पद्मा तुम कितनी बदजात और बेशर्म औरत हो,,,,

हां हो और इसमें तुम्हें कोई भी किसी भी प्रकार का शक नहीं होना चाहिए वरना मैं अपनी बेशर्मी पूरी तरह से दिखा दूंगी तो समाज में उठना बैठना भारी पड़ जाएगा,,,,

( बिलास पूरी तरह से तबाह हो चुका था कि उसकी इज्जत पूरी तरह से पद्मा के हाथों में है,,, पद्मासे संबंध बनाने से पहले वाणी बारे में कभी नहीं सोचा था उसे यही लग रहा था कि पहले की तरह यह औरत भी बड़े आराम से और आसानी से उसका पीछा छोड़ देगी लेकिन ऐसा नहीं था।,,,, बिलास पूरी तरह से हार चुका था और उसके पास ५००००० लाख रुपए चुकाने के सिवा और कोई दूसरा रास्ता नहीं था। वह लगभग हताश होते हुए बोला,,,,।

मैं तैयार हूं तुम्हें ५००००० रुपए देने के लिए,,,,

सूरज यह बात सुनकर एकदम से हड़बड़ा गया उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके मामा उस औरत को ५००००० रुपए देने के लिए तैयार हो चुके हैं,,, और इसी हड़बड़ाहट में वह अपने आप को संभाल नहीं पाया और दरवाजे पर उसका पूरा वजन आ गया,,, जल्दबाजी में बिलास ने दरवाजा ठीक से बंद नहीं किया था इसलिए दरवाजा खुल गया और सूरज गिरते-गिरते बचा इस तरह से सूरज को आता देखकर बिलास की तो सांसे ही बंद हो गई क्योंकि वह उस दिन गोदाम में पद्माके साथ उसे रंगरेलियां मनाते हुए देखा था और आज तो वहां उस औरत को अपने घर पर ही देख रहा था। सूरज को देखते ही,,,

बबबब,,,, भांजे,,, तुम,,,,,

हां मैं मामा अच्छा हुआ कि मैं ही हूं कहीं मेरी जगह मामी होती थी उन पर ना जाने तुम्हारी इस रंगरेलियों का कैसा कहर बरसता,,,, यह सब देखकर तो उनकी हालत खराब हो जाती है उनका विश्वास टूट जाता,,
 

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