Incest गांव का मौसम ( बड़ा प्यारा )

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सुधियां मामी बेहद खुश नजर आ रही थीे और खुश नजर आती भी क्यों नहीं जिंदगी में पहली बार तो उसने एक असली मर्द से चुदाई के सुख की अनुभूति जो की थी।,,, बाजार से सभी लोग वापस आ चुके थे,,
सूरज भी बहुत खुश नजर आ रहा था उसने भी आज किसी दूसरी औरत को चोदने का सुख जो प्राप्त किया था। मजा दोनों को आया था। शाम ढल चुकी थी रात धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी घर की सभी औरतें खाना बनाने में जुट गई थी।,, सूरज इधर उधर टहल कर अपना समय व्यतीत कर रहा था क्योंकि उसकी मंगल मामी भी घर की औरतों के साथ खाना बनाने में उनकी मदद कर रही थी वैसे भी सूरज को घर के लोगों में सिर्फ औरतो मे ही दिलचस्पी रहती थी बाकी किसी से कोई मतलब नहीं रहता था क्योंकि उसके काम की और सुख की, चीज केवल औरतों के पास ही रहती थी। गांव में आते ही सबसे पहले उसकी नजर सुधियां मामी पर ही थी जिसे वह प्राप्त कर चुका था। और उसकी नमकीन रसीली बुर का स्वाद चख कर उसका आत्मविश्वास और ज्यादा बढ़ चुका था।,,,
इधर-उधर टहलते हुए अपनी मामी के बारे में ही सोच रहा था और उसे उसकी गांड मारने में जो सुख मिला था उस सुख की अनुभूति करके उसका तन बदन अभी तक उत्तेजना के मारे गनगना जा रहा था।,, उसे यकीन हो चला था कि औरतों की गांड मारने में भी बहुत मजा आता है और उसके मन में यह ख्याल बार-बार आ रहा था कि जब सुधियां मामी की गांड मारने मैं उसे इतना मजा आया तब,, जब वह मंगल मामी की गांड मारेगा तब उसे कितनी ज्यादा सुख की अनुभूति होगी,,
क्योंकि हर मामले में मंगल मामी सुधियां मामी से बेहतरीन थी। बहुत दिन हो गए थे सूरज अपनी मंगल मामी के साथ खुलकर चुदाई का सुख नहीं ले पाया था। इसलिए अपनी मंगल मामी के बारे में सोच कर उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी,,,

दिन भर के ख्याल से ही उसके तन-बदन में फिर से मस्ती की लहर जोर मारने लगी वह धीरे-धीरे करके वह छत पर चला गया छत पर इधर-उधर चहल कदमी करते हुए पूरे गांव का नजारा ले रहा था चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था लेकिन,,, दूर दूर घरों में थोड़ी बहुत रोशनी नजर आ रही थी जो कि दूर से देखने पर बहुत ही खूबसूरत नज़ारे के रूप में प्रतीत हो रही थी।

वह इधर उधर देख कर समय व्यतीत करते हुए भोजन का इंतजार कर रहा था क्योंकि उसे भूख भी लग चुकी थी कुछ देर तक यूं ही टहलते हुए वह छत के नीचे की तरफ देखने लगा, तो जहां पर गाय भैंस बात कर रखी जाती है वहां से एक साया निकल कर घर के पीछे की तरफ जाता हुआ नजर आने लगा अधेरा इतना था ज्यादा कुछ नजर नहीं आ रहा था,, लेकिन उस साये को देखकर सूरज को इतना तों पता चल ही गया कि वह कोई औरत थी, वह कुतूहल वस उस औरत को देखने लगा जो कि उसे ठीक से वह देख नहीं पा रहा था,,, वह साया घर के पीछे की तरफ जाते हुए बार-बार पीछे मुड़कर देख ले रही थी और कभी-कभी जाकर खड़ी हो जाती थी और खड़ी होकर इधर उधर देखने लगती थी उसकी इस हरकत को देखकर सूरज को थोड़ा शक होने लगा,,,,
क्योंकि उस साये की हरकत बेहद शंकास्पद थी,,, वह साया घर के पीछे की तरफ थोड़ी दूर तक जा कर रुक गया,,,,, सूरज उत्सुकतावश ऊसे साये पर बराबर नजर रखे हुए था क्योंकि इतना तो तय था कि वह साया उसके ही घर से निकलकर पीछे की तरफ जा रहा था,,, इसलिए वह यह देखना चाहता था कि आखिर वह है कौन और पीछे की तरफ क्यों जा रही है। वह साया कुछ देर तक उस झाड़ी के पास रुक गया एक पल को तो ऊसे लगा कि कहीं सौच के लिए ना गई हो,, लेकिन तभी उसी झाड़ियों के बीच से एक साया और बाहर की तरफ निकला,,,, और उस साए के साथ झाड़ियों के अंदर की तरफ चली गई सूरज को समझते देर नहीं लगी कि मामला कुछ ज्यादा ही गड़बड़ है। सूरज वहीं खड़े रहकर ऊस साऐ के निकलने का इंतजार करने लगा वह देखना चाहता था कि आखिर वह है कौन क्योंकि अंधेरा इतना था कि ठीक से नजर भी नहीं आ रहा था।।,,,, लेकिन तभी खाने के लिए उसका नाम लेकर बुलाने लगे और बुलाने वाली सुधियां मामी थी,,। सुधियां मामी की आवाज सुनकर कुछ देर में आता हूं इतना कहकर फिर से वही खड़ा हो गया लेकिन सुधियां मामी लगातार उसे आवाज देती रही, इसलिए तंग आकर वह छत से नीचे भोजन करने के लिए आ गया।,,, खाते समय भी वह उस साए के बारे में सोचने लगा,,, सुधियां मामी आज और भी ज्यादा प्यार से उसे खाना परोस रही थी जिसका मतलब सूरज अच्छी तरह से जानता था,,,, मंगल भी घर के सभी लोगों के साथ बैठकर खाना खा रही थी।,, खाते-खाते मंगल सूरज से बोली,,,,

सूरज तूने सुधियां मामी को ज्यादा परेशान तो नहीं किया ना।
( सूरज के जवाब देने से पहले ही सुधियां बोली,,,)

अरे नहीं निर्मला सूरज ने मुझे जरा भी परेशान नहीं किया बल्कि यह तो बहुत ही अच्छा लड़का है। आज दिनभर मेरी मदद करता रहा,,,( इतना कहकर वह सूरज की तरफ देख कर मुस्कुराने लगी सूरज भी जवाब में मुस्कुरा दिया,,,,)

चलो अच्छा है कि तुम्हारे किसी काम तो आया वरना वहां तो जरा भी काम नहीं करता था।( निवाला मुंह में डालते हुए बोली,,,, मंगल मामी की बात सुनकर सूरज बोला,,,)

क्या मामी तुम भी झूठ बोलती हो क्या मैं तुम्हारी मदद नहीं करता जब भी तुम्हें जरूरत पड़ती है,,, चाहे दिन हो या रात हमेशा तुम्हारी मदद के लिए तैयार रहता हूं,,
( अपने भांजे की बात और उसके कहने का मतलब समझकर निर्मला मुस्कुराने लगी)
और सच बताऊं तो सुधियां मामी भी बहुत प्यारी है आज दिन भर मुझे खिलाती रही जब तक कि मेरा पेट भर नहीं गया,,,,
( सूरज की बात सुनकर एक पल के लिए तो सुधिया झेंर सी गई,,,, लेकिन फिर मुस्कुराने लगी इसी तरह से बातों का दौर चल रहा है,,, घर के सभी लोग भोजन करके अपने अपने कमरे में जा चुके थे।,, लेकिन सुधियां मामी की नींद उड़ी हुई थी,,,,
दिन में जिस तरह की जबरदस्त चुदाई करवाई थी उस चुदाई की वजह से उसकी बुर में खुजली होने लगी थी,, उसे फिर से सूरज के लंड की आवश्यकता जान पड़ रही थी,,, बगल में उसका पति खर्राटे भर रहा था जिसकी तरफ देखकर मन ही मन में भुनभुनाने लगी,,, आज की चुदाई के बाद से वह समझ गई थी कि उसका पति कोई काम का नहीं है। रात काफी हो चुकी थी लेकिन उसकी आंखों में नींद नहीं थी वह कमरे से बाहर जाना चाहती थी सूरज के पास लेकिन वह हम यह भी जानते थे कि सूरज तो कमरे में सोता है अगर कहीं बाहर सोता होता तो वह उसे जरूर जगाकर अपनी प्यास बुझवा ली होती,,, क्या करें उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था उत्तेजना के मारे उसकी बुर फिर से पानी छोड़ रही थी,,,, जिसे वह साड़ी के ऊपर से ही अपनी हथेली से रगड़ कर उसे और ज्यादा गर्म कर रही थी,,,
 
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वह मन ही मन सोच रही थी कि इस समय सूरज उसके पास होता तो कितना मज़ा आता मुझे यहां तड़पता छोड़ कर अपने कमरे में आराम से सो रहा होगा यही सब सोचते हुए वह साड़ी के ऊपर से ही अपनी बुर को जोर-जोर से रगड़ रही थी। उसे लग रहा था कि सूरज अपने कमरे में सो रहा होगा लेकिन सूरज अपनी मंगल मामी को एकदम नंगी करके और खुद भी नंगा होकर उसे अपनी बाहों में भर कर उसके गुलाबी होठों का रसपान कर रहा था। निर्मला भी काफी दिनों से प्यासी थी इसलिए वह भी उत्तेजना से भर कर सूरज को अपनी बाहों में कस कर ऊसका साथ देते हुए उसके होठों को मुंह में भरकर चूस रही थी। निर्मला नीचे लेटी हुई थी और उसके ऊपर सूरज लेटा हुआ था सूरज के दोनों हाथों में उसकी बड़ी बड़ी चूचियां थी जिसे वह जोर-जोर से दबाते हुए मजे ले रहा था। कुछ ही देर में पूरा कमरा गर्म सिसकारियों से गूंज रही थी सूरज का लंड पूरी तरह से तैयार था जो कि उसकी जांघों के बीच उसकी बुर के इर्द-गिर्द ठोकर मार रहा था। जिससे उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। सूरज बेहद कामी मर्द बनता जा रहा था क्योंकि दोपहर में ही उसने सुधियां मामी के साथ कई बार संभोग सुख भोग चुका था अगर सूरज की जगह दूसरा कोई होता तो शायद उसका लंड खड़ा ही नहीं होता वह थक कर अब तक सो गया होता लेकिन,,,

सूरज फिर से चोदने के लिए पूरी तरह से तैयार हो चुका था। और ऐसे ही मर्द को तो औरत तलासती रहती है। सूरज पागलों की तरह मंगल मामी के गुलाबी होठों को चूस रहा था। मंगल की उत्तेजना से भाग चुकी थी वह सूरज का पूरा साथ दे रही थी उसकी दोनों हथेलियां सूरज की नंगी पीठ से होती हुई नीचे की तरफ उसकी नितंबों तक जा रही थी जिसे वह पागलों की तरह अपने हथेली में भरकर दबा रही थी जिससे सूरज उत्तेजित होकर अपनी कमर को हल्के हल्के से गोल-गोल घुमाते हुए अपने लंड की रगड़ उस की बुर पर महसूस करा रहा था। और यह रगड़ मंगल को पूरी तरह से कामोत्तेजीत बनाकर उत्तेजना के सागर में गोते लगवा रही थी। दोनों पागलों की तरह एक-दूसरे के बदन को नोच खसाेट रहे थे।

ओह सूरज तेरी बाहों में ही मुझे सुकून मिलता है। ना जाने मुझे तेरा नशा सा हो गया है कि जब तक तेरे लंड को अपनी बुर में ले कर चुदवाती नहीं हूं तब तक मेरे बदन मै ना जाने कैसा दर्द सा महसूस होता रहता है।,,

तेरा यही दर्द खत्म करने के लिए तो मैं तेरे कपड़े उतार कर तुझे नंगी कीया हुं मेरी रानी,,,,। अब देख मेरा कमाल,,,, (इतना कहने के साथ ही सूरज ने अपने दोनों हाथों को नीचे की तरफ लाकर,,, उसकी मोटी मोटी और चिकनी जांघो को पकड़कर फैला दिया,,, सूरज की इस हरकत की वजह से मंगल की धड़कनें तेज हो गई क्योंकि वह समझ गई कि अब सूरज क्या करने वाला है अभी भी सूरज के मोटे लंड का सुपाड़ा उसकी बुर की गुलाबी पत्तियों के ईर्द गिर्द रगड़ खा रही थी। जोकी दोनों के उत्तेजना को पल-पल बढ़ा रहा था।,,,
मंगल की बुर पहले से ही एकदम गीली हो चुकी थी इसलिए जैसे ही सूरज ने उसकी जांघों को चौड़ा करके अपने लंड को बिना हाथ लगाए,,, केवल सुपाड़े पर हो रहे गुलाबी पत्ती के स्पर्श मात्र से ही उसने अपनी कमर पर दबाव देकर नीचे की तरफ झुक आया ही था कि उसके लंड को मोटा सुपाड़ा गप्प से रसीली बुर में समा गया,,, और जैसे हैं सुपाड़ा बुर में प्रवेश किया मंगल के मुख से हल्की सी चीख निकल गई।

आहहहहहहहह,,,,

अपनी मंगल मामी के मुख से गरम सिसकारी की आवाज सुनते ही सूरज एकदम से जोश में आ गया और दूसरे धक्के में ही वह अपने पूरे लंड को बुर के अंदर उतार दिया,,,
मंगल भी पूरी तरह से कामोत्तेजित होकर एकदम से जोश में आ गई,,,और कस के सूरज को अपनी बांहो मे भींच ली,, दोनों पूरी तरह से उत्तेजना मैं सराबोर होकर एक दूसरे का शिकार करते हुए चुदाई का आनंद लेने के लिए आतुर हो चुके थे सूरज,,, धीरे-धीरे ना करते हुए शुरू से ही तेज झटकों का सहारा लेकर मंगल मामी की जम के चुदाई करना था,,, मंगल भी सूरज के हर धक्के का स्वागत करते हुए अपनी मुंह से गरम सिसकारियां भरते हुए आहहहह आहहहहहहहह ऊूहहहहहहह,,, की मादक आवाजें निकाल रही थी,,,,
सूरज के जेहन में अभी भी सुधियां मामी की गांड मराई की यादें ताजी हुए जा रही थी इसलिए उसका मन मंगल की गांड मारने को कर रहा था,,, इसलिए वह अपनी मंगल मामी की रसीली बुर में तेज तेज धक्के मारते हो उसके गालों को चूमते हुए बोला,,,,,

ओहहहहह,,,,,, मामी मैं तुम्हारी गांड मारना चाहता हूं मैं देखना चाहता हूं कि मेरा लंड तुम्हारी कसीली गांड के अंदर कैसे जाता है,,,,,
( मंगल सूरज की बाते सुनकर एक पल के लिए सीहर सी गई,,, लेकिन सूरज की बातें सुन सुनकर उसके मन मे भी गांड मराने की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी।,,, सूरज के मुंह से गांड मारने वाली बातें सुनकर उसकी उत्तेजना बढ़ने लगी और वह भी सूरज को कस के अपनी बाहों में भरते हुए उसके चेहरे पर चुंबनों की बौछार करते हुए बोली,,,,।

बेटा तेरी बातें सुन-सुनकर मेरा भी मन करने लगा है लेकिन आज मैं थक चुकी हूं और पूरी तरह से तैयार नहीं हो लेकिन तुझसे वादा करती हु गांव में ही तेरी,,,
गांड मारने की ईच्छा जरुर पुरी करुंगी,,,, ओर अब बस इससे ज्यादा कुछ मत बोलना मुझे मस्त कर दे,,, मुझे मजा दे।,,,, मे तेरे लंड की प्यासी हुं।,,,,

( अपनी मंगल मामी की बात सुनकर सूरज समझ गया कि इससे ज्यादा और कुछ बोलने जैसा नहीं है लेकिन उसे एक बात की तसल्ली हो गई थी कि गांव में ही उसे बहुत ही जल्द गांड मारने को मिलने वाला है। इसलिए जोर-जोर से अपनी मंगल मामी की बुर में लंड पेलने लगा,,, सूरज के धक्के और उसकी कमर इतनी ज्यादा तेज चल रही थी की मंगल अपने दोनों टांगों को ऊपर की तरफ उठा ली थी जिससे सूरज को उसे चोदने में और ज्यादा मज़ा आ रहा था। दोनों पसीने से तरबतर हो चुके थे मंगल कहां जानती थी की दिन भर वह सुधियां मामी की सेवा में लगा हुआ था और उसी से वह गांड मारने का अनुभव और सुख भी भोग चुका था।,,,, तकरीबन ३०,३५ मिनट की जमकर चुदाई करने के बाद सूरज के साथ-साथ मंगल भी झड़ गई,,,,। दोनों इसी तरह से नग्न अवस्था में एक दूसरे को बाहों में लिए हुए सो गए।

सूरज के लिए गांव का सफर अच्छे तरीके से गुजर रहा था शादी में अभी भी चार-पांच दिनों की देरी थी घर के सभी लोग शादी की तैयारी में जुटे हुए थे।,,, दोपहर का समय था गर्मी के महीने में गर्मी अपना जोर दिखा रही थी सब के सब लोग घर में ही दुबके रहते थे। सूरज मन ही मन सोच रहा था कि अगर फिर से उसकी सुधियां मामी की गांड मारने को मिल जाए तो मजा आ जाए अब यही सोचकर वह इधर उधर के कमरों में उसे खोज रहा था लेकिन,, लेकीन ऊसकी सुधियां मामी कहीं नजर नहीं आ रही थी।,,, सूरज उसे हर कमरे में खोजता हुआ,,,
छोटी मामी के कमरे की तरफ जाने लगा और जैसे ही वह कमरे के दरवाजे के करीब पहुंचा वह सोचने लगा कि कहीं उसकी छोटी मामी जिसका नाम वैशाली था वह सो रही होगी तो,,, खांमखा उसे परेशानी होगी,,,,
वह वापस जाने ही वाला था कि तभी उसके मन में ख्याल आया कि अभी तक वह अपनी वैशाली मामी से ठीक से बात तक नहीं किया है अगर वह जाग रही होंगी तो ऊनसे बात भी कर लेगा,,, और नजदीक से उनकी खूबसूरती को जी भर कर देख लीजिएगा क्योंकि वह जानता था कि वैशाली मामी गोरी-चिट्टी और खूबसूरत थी क्योंकि वह खिड़की से उन्हें नहाते हुए देख चुका था। इसलिए वह दरवाजा खटखटाने के उद्देश्य से अपना हाथ आगे बढ़ा कर जैसे ही दरवाजे पर टिकाया दरवाजा अंदर से खुले होने की वजह से अपने आप ही हल्का सा खुल गया और उसकी नजर जैसे ही कमरे के अंदर गई तो वह देखता ही रह गया वैशाली मामी बिस्तर ठीक से सही कर रही थी,,,

वह बिस्तर पर घुटनों के बल झुकी हुई थी। और उसका मुंह दूसरी तरफ दीवाल की तरफ था जिसकी वजह से उसका ध्यान दरवाजे पर बिल्कुल भी नहीं था सूरज देखा तो देखता ही रह गया,,, क्योंकि वैशाली मामी के बड़े बड़े नितंब उसकी आंखों के सामने ही हीलोरे खा रहे थे। वह घुटनों के बल बिस्तर पर छोड़ कर पलंग पर बिछी चादर को ठीक से फैला रही थी। सूरज की नजर उसकी बड़ी बड़ी गांड के घेराव पर ही टिकी की टिकी रह गई,,, बदन में हो रही हलन चलन की वजह से उसकी बड़ी बड़ी गांड के दोनों फांके साड़ी के ऊपर से लहराते हुए नजर आ रहे थे। सूरज यह नजारा देखकर एकदम से उत्तेजित हो गया उझे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें एक तो औरतों की बड़ी बड़ी गांड सूरज की सबसे बड़ी कमजोरी थी। नजारा इतना ज्यादा उत्तेजना से भरा था कि इस नजारे को छोड़ कर उसे जाने की इच्छा भी नहीं कर रही थी।,,, सूरज का लंड धोती में जोर मारने लगा था। दो-तीन मिनट तक उसकी वैशाली मामी उसी तरह से अपनी बड़ी बड़ी गांड को हीलाते हुए बिस्तर ठीक करती रही, और सूरज इस नजारे की मादकता को अपनी आंखों से अपने बदन में उतारता रहा। अब ज्यादा देर तक इसी तरह से खड़े रहने में गड़बड़ हो सकती थी इसलिए वैशाली मामी की नजर सूरज पर पड़ती इससे पहले ही वह दरवाजे को खटखटाते हुए दस्तक दे दिया।
 
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वैशाली बिस्तर ठीक करने में कुछ ज्यादा ही ध्यान दे रही थी इसलिए सूरज के द्वारा दरवाजा खटखटाया जाने पर भी उसका ध्यान नहीं गया और वह उसी तरह से बिस्तर को ठीक करती रही,,,
वैशाली के ज्यादा झुक जाने की वजह से उसकी बड़ी-बड़ी गांड और भी ज्यादा हवा में उठ गई,,, और इस तरह से औरतों की उठी हुई बड़ी-बड़ी गांड तो सूरज की थर्मामीटर के पारे को बढ़ाने के लिए काफी होती थी,,, कुछ ही सेकंड में सूरज के धोती में तंबू सा बन गया। वैशाली इतनी ज्यादा टाइट साड़ी पहनती थीै कि उसकी गांड की दोनों फांकें किसी खरबूजे की भांति,,साड़ी के ऊपर से नजर आने लगी।,,,
इस अद्भुत और मादक दृश्य को देखकर सूरज की धड़कन तेज होने लगी वह अब दोबारा दरवाजे को खटखटाने की जहमत नहीं उठाना चाहता था क्योंकि यह नजारा ही इतना गजब का था कि आंखों से उतर कर पूरे बदन में हलचल सा मचा दे रहा था सूरज आंखें गड़ाए वैशाली मामी की खूबसूरत बदन की हलचल को देखता रहा। उसके जी में तो आ रहा था कि पीछे से जाकर पकड़ ले और उसकी साड़ी उठाकर अपना मोटा लंड ऊसकी बुर में डालकर चोदना शुरू कर दे,,,
और उसके मन में ऐसा ही कुछ करने को हो रहा था क्योंकि वह इस घर की बड़ी बहू मतलब उसकी बड़ी मामी के साथ शारीरिक संबंध बनाकर यही सोच रहा था कि जब घर की बड़ी बहू उस से चुदवाने के लिए तैयार हो गई थी और बेझिझक चुदाई का मजा भी ले चुकी है तो छोटी बहू भी उसी की ही तरह होगी,,,

और वैसे भी सूरज को अपनी ताकत पर पूरा विश्वास था,,, सूरज को मन ही मन में अपने लंड पर गर्व होने लगा था,,, क्योंकि अब तक 3 औरतें बेझिझक उसके लंड की प्यासी हो चुकी थी,,,
वह अब तक इतना तो समझ ही गया था कि,,,
औरतें मोटे और लंबे लंड की दीवानी होती है इसलिए उसके मन में ख्याल आ रहा था की वैशाली मामी भी उसके मोटे तगड़े लंड को देखेगी तो वह इंकार नहीं कर पाएगी।,,,,
यह सोचकर सूरज की दिल की धड़कन तेज हो गई। सूरज पूरी तरह से दृढ़ निश्चय कर लिया था कि आज का अपनी वैशाली मामी की रसीली बुर का भी स्वाद चख लेगा इसलिए उसे पीछे से पकड़ने के लिए अपना कदम आगे बढ़ाया ही था कि वैशाली मामी को पीछे हलचल सी महसूस हुई,,, और वहां जाते थे पीछे की तरफ देखी तो,,, सूरज को अपनी तरफ आता देख कर एक पल के लिए तो वह डर ही गई लेकिन जैसे ही उसे आभास हुआ कि वह सूरज हे तो उसे थोड़ी राहत हुई वह सूरज की तरफ देखते हुए बोली,,,,।

सूरज,,, बेटा तु यहां,,,, कोई काम,,,,,,,, ( उसके मुंह से इतना ही निकला था कि उसकी नजर सूरज के धोती में बने लंबे तंबू पर गई,,, तो शब्द ऊसके मुंह में ही अटक गए,, सूरज के चेहरे के भाव और उसकी शारीरिक भाषा को देख कर वैशाली को समझते देर नहीं लगी कि सूरज क्या करने वाला था वह अभी भी उसी अवस्था में ही अपनी बड़ी बड़ी गांड को हवा में उठाए पीछे की तरफ देख रही थी,,, सूरज के धोती में बने लंबे तंबू और अपनी तबीयत बड़ी गांड की तरफ देखते हुए वह सारा मामला समझ गई एक पल के लिए तो एकदम शर्मिंदा हो गई और अपनी स्थिति को बदलते हुए,,, वह सूरज की तरफ घूमी और गुस्से में बोली,,,।)

सूरज यह क्या हरकत है?
( अपनी छोटी मामी के मुंह से यह सुनकर सूरज चौक सा गया,,, कुछ ही सेकंड में उसके चेहरे पर घबराहट के भाव ऊपंसने लगे,,, वह अपने चेहरे पर आए डर के भाव को बदलते हुए बोला,,,।)

कककक,, क्या हुआ मामी कैसी हरकत आप क्या बोल रही हैं मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है।,,,,

लेकिन मुझे सब समझ में आ रहा है,,।( वैशाली उस के तने हुए तंबू की तरफ देखते हुए बोली,,,।)
देखने में कितना भोला भाला लगता है लेकिन मन में तेरे कितना चोर है।

मामी आप यह क्या कह रही हैं,,,? ( सूरज अनजान बनता हुआ बोला।)

चल अब बातें मत करना तू चाहे जितना भी छुपाने की कोशिश कर ले लेकिन तेरे मन में क्या चल रहा था तेरा ये( तने हुए तंबू की तरफ इशारा करते हुए) सब कुछ बता दे रहा है।
( वैशाली मामी की उंगली के इशारे की तरफ जब उसका ध्यान दिया तो उसे सब समझ में आ गया वह शर्मिंदा हो गया।)
ना जाने कब से दरवाजे पर खड़े होकर तू मेरे बारे में क्या क्या सोच रहा था।

वैशाली मामी में कुछ नहीं सोच रहा था (अपने तंबू को हाथों से छुपाने की कोशिश करते हुए)

कुछ नहीं सोच रहा था तो यह तेरा,,,,,, खड़ा कैसे हो गया।( वैशाली गुस्से में बोले जा रही थी अपनी छोटी मामी का यह रूप देखकर सूरज घबरा गया,,,। और दूसरा कोई सुन ना ले इसलिए हाथ जोड़ते हुए बोला।।)

मामी मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूं मुझसे गलती हो गई,,,,

गलती इसे गलती कहते हैं या वासना कहते हैं अपनी ही मामी के बारे में तू ना जाने क्या-क्या सोच रहा था। रुक मैं मंगल दीदी से बता देती हूं जो तुझे बहुत ही अच्छा लड़का समझती है ना,,,
( यह बात सुनकर सूरज एकदम से रुुंआसा हो गया और झट से वैशाली मामी के पैर पकड़ लिया और बोला)

नहीं वैशाली मामी ऐसा बिल्कुल भी मत करना मैं तुम्हारे हाथ जोड़ता हूं तुम्हारे पैर पकड़ता हूं मैं बदनाम हो जाऊंगा,,,।( इतना कहते हुए सूरज रोने लगा,,, और उसे रोता हुआ देखकर वैशाली का दिल थोड़ा सा नरम हुआ और वह उसे कंधों से पकड़कर उठाते हुए बोली।)

सूरज तेरी उम्र खेलने कूदने की है ना की औरतों के पीछे लार टपकाने वाली,,,,


वैशाली मामी मुझसे गलती हो गई,,,, मैं दुबारा ऐसा कभी भी नहीं करूंगा,,,।
( वैशाली मामी को लगने लगा कि सूरज को उसकी गलती का पूरा एहसास हो गया है इसलिए वह बोली,,,।)


अच्छा अब रो मत मैं किसी से नहीं कहूंगी,,,,। अच्छा यह बता तुमने ऐसा क्या देख लिया जो तेरी ऐसी (लंड की तरफ इशारा करते हुए हालत हो गई),,,

नहीं मामी ऐसा कुछ नहीं हुआ( अपने आंसू पोंछते हुए बोला)

देख अब मुझसे कुछ भी मत छुपा मेरा गुस्सा अभी शांत नहीं हुआ है मैं जाकर सब बता दूंगी,,,

नहीं नहीं वैशाली मामी मैं बताता हूं,,, मैं सुधियां मामी को ढूंढता हुआ यहां आ गया और तुम्हें इस तरह से झुके हुए देखकर तुम्हारी बड़ी-बड़ी गांड को देखकर ना जाने मुझे क्या हो गया और मेरी ऐसी,,,,,( शर्मिंदगी के मारे सूरज इससे ज्यादा कुछ बोल नहीं पाया और नजरें झुका लिया,।)

छी,,,,, कितना गंदा सोचता है रे तू अब भाग जा यहां से बिल्कुल भी मेरी आंखो के सामने खड़े मत रहना वरना मुझ से रहा नहीं जाएगा और मैं सबको बता दूंगी,,,,( वैशाली गुस्से में बोली और सूरज इतना सुनते ही कमरे से तुरंत बाहर निकल गया।,,,,,,


सूरज कमरे से बाहर आकर सीधे अपने कमरे मे आकर बिस्तर पर बैठ गया वह काफी डरा हुआ था क्योंकि उसने ऐसा कुछ हो जाएगा यह सब के बारे में सोचा ही नहीं था क्योंकि अभी तक जितनी भी औरतें उसे मिली थी वह सभी को आसानी से प्राप्तकर्ता जा रहा था। सुधियां मामी के साथ भी संभोग सुख की प्राप्ति आसानी से कर लेने की वजह से उसे ऐसा ही लग रहा था कि वह वैशाली मामी के साथ भी अपनी मनमानी कर लेगा लेकिन उसके सोचने के विरुद्ध वैशाली मामी उसे भला बुरा सुना दी,,,
वह मन ही मन में सोचने लगा कि अगर वह सबको बता देती तो ना जाने क्या हो जाता,,,,
लेकिन इतना तो समझ ही गया था कि वैशाली मामी किसी भी तरीके से उसके नीचे आने वाली नहीं है इसलिए उसे उसकी वैशाली मामी को पाने का ख्याल छोड़ देना चाहिए,,, उसे अपने आप पर बेहद शर्मिंदगी महसूस हो रही थी क्योंकि जिस तरह से वह रोते हुए वैशाली मामी के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ा रहा था,,,, वह तरह की स्थिति में कभी पहुंच जाएगा उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।,,,
वह बिस्तर पर लेट कर यही सब सोच रहा था लेकिन उसके जेहन से वह नजारा भी नहीं हट रहा था जब वह दरवाजे पर खड़े होकर वैशाली मामी की गदराई गांड को देखकर उत्तेजित हुए जा रहा था।,,,,
वह मन मसोसकर रह गया कि काश उसकी वैशाली मामी की मस्त मस्त गांड का स्वाद भी उसे चखने को मिल जाता,,,, लेकिन अफसोस कि वह चरित्र की एकदम पक्की निकली,,, काश वह भी उसकी सुधियां मामी की तरह फिसल जाती तो एक और खूबसूरत औरत उसकी बाहों में आ जाती।,,,, इतना कुछ हो जाने के बावजूद भी की आंखों के सामने वैशाली मामी की बड़ी बड़ी गांड मटक रही थी जिसके बारे में सोचते हुए वह सो गया।,,,

रात अपने पूरे शबाब पर थी भोजन तैयार हो चुका था धीरे-धीरे लोग खाने के लिए इकट्ठे हो रहे थे सूरज भी हाथ मुंह धोकर भोजन करने के लिए जाने ही वाला था कि उसे फिर से वही साया नजर आया और वह सब की नजरें बचाकर घर के पीछे की तरफ आगे बढ़ती चली जा रही थी क्योंकि इतना तो समझ ही गया था कि वह साया किसी औरत का ही था,,,, इसलिए बाकी सब से नजरें बचाकर दुबते हुए ऊस।साए के पीछे जाने लगा,,,
चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था,,, आज उस साए के हाथ में लालटेन भी थी जिसे वह रह रह कर सब की नजरें बचाकर जला दे रही थी और उस लालटेन की रोशनी में रास्ता देखते हुए आगे बढ़ रही थी। सूरज अपने आप को उसके साये की नजर से बचाते हुए झाड़ियों के पीछे पीछे चला जा रहा था वह मन में फैसला कर चुका था कि आज उस कार्य को देखकर ही रहेगा कि आखिर वह साया है किसका,,,,
क्योंकि औरत का इस तरह से छुपते छुपातो रात के समय घर से बाहर निकलने का मतलब बिल्कुल साफ होता है कि वह किसी से मिलने ही जा रही है। गांव का माहौल जिसकी वजह से चारों तरफ अंधेरा छाया हुआ था सूरज को थोड़ा बहुत डर भी लग रहा था लेकिन अपने आगे आगे चल रहे औरत के सारे की वजह से उसे थोड़ी बहुत हिम्मत भी मिल रही थी। कुत्तों के भौंकने की आवाज सूरज थोड़ा बहुत सहम जा रहा था। वह साया धीरे-धीरे खेतों की तरफ आ गया था।,,, वह साया खेतों के करीब घनी झाड़ियों के पास रुक गया और इधर-उधर नजरें घुमा कर देखने लगा,,,, सूरज भी पेड़ के पीछे अपने आप को छिपाकर खड़े हो गया और वहां से ऊस साए की तरफ बराबर नजर गड़ाए हुए देखने लगा,,,

पेड़ से गिरी सूखी पत्तियों की वजह से उसके कदमों की आवाज़ उस साए को ना सुनाई दे इसलिए वह बचा बचा कर बहुत ही धीरे-धीरे कदम रख रहा था। सूरज के दिल की धड़कन उत्सुकतावश बहुत तेज हो चुकी थी क्योंकि वह जानना चाहता था कि वह सहाय के पीछे कौन सा चेहरा छुपा हुआ है और वह किसका इंतजार कर रही है।

खेतों में छाए हुए सन्नाटे में ऊस साए की चूड़ियों की खन खन की आवाज सूरज को मादकता का एहसास दिला रही थी। एक तरह से उस साए की चूड़ियों की आवाज सूरज के तन-बदन में उत्तेजना का अहसास करा रही थी। वह पाया कुछ देर तक इधर उधर देखती रही वह किसी का इंतजार कर रही थी सूरज अपनी धड़कनों को संभाले हुए उस साए की तरफ नजरें गड़ाए हुए था। तभी झाड़ियों के पीछे से एक दूसरा साया बाहर आया और आते ही उसने उसकी आंखों पर हाथ रख कर उसे डरा दिया,,,,

क्या करते हो कितनी देर लगा दी तुमने मैं कब से तुम्हारा इंतजार कर रही हूं,,,( वह नाराजगी दर्शाते हुए बोली)

क्या करूं मेरी जान सब काम जल्दी जल्दी निपटा कर भागता हुआ तुम्हारे पास आया हूं क्या करूं तुमसे मिले बिना मुझे भी चैन नहीं मिलता,,,,

मेरा भी तो यही हाल होता है तुम्हारे बिना तभी तो मैं सब कुछ छोड़ छाड़ कर तुमसे मिलने यहां चली आती हूं,,,

तो मेरी जान खेतों में चलते हैं और वहां जी भर कर प्यार करते हैं,,,,
( इतना कहने के साथ ही वह साया उसे खेतों के अंदर ले जाने लगा,,, दोनों धीरे-धीरे फुसफुसाकर बातें कर रहे थे इसलिए सूरज को बात तो थोड़ी बहुत समझ में आ रही थी लेकिन आवाज नहीं पहचान पा रहा था लेकिन इतना तो तय था कि खेतों के अंदर दोनों के जाने का मतलब था कि चुदाई का खेल शुरू होने वाला था इसलिए सूरज भी बेहद उत्सुक हो गया खेतों के बीच का नजारा देखने के लिए उसने जाने से ज्यादा उसे इस बात की उत्सुकता थी कि आखिरकार दोनों साए हैं किसके,,,, यह देखने के लिए वह भी धीरे-धीरे खेतों के अंदर जाने लगा,,,,,।)


दोनों साए खेतों में प्रवेश कर चुके थे,, यह देख कर सूरज से रहा नहीं गया और वह भी नजरें बचाते हुए कुछ ही देर बाद उन दोनों साए के पीछे पीछे खेतों में प्रवेश करने लगा,,,,
चारों तरफ घना अंधेरा छाया हुआ था,,,,, सूरज को कुछ नजर नहीं आ रहा था लेकिन उनके आगे चल रहे हैं दोनों साए,,, जो कि एक के हाथ में लालटेन होने की वजह से लालटेन की रोशनी सूरज को नजर आ रही थी और वह उसी रोशनी की तरफ धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था।,,,
कुछ कदम जाने के बाद वह दोनों साए एक जगह पर रुक गए,,,,,,
चारों तरफ घनी झाड़ियां फैली हुई थी जिसकी वजह से खेतों के बाहर से कोई भी अंदर की तरफ नहीं देख सकता था। सूरज की मन में उत्सुकता बढ़ने लगी उनसे महज ३ कदम की दूरी पर अपने आप को झाड़ियों के पीछे छुपाए हुए खड़ा था। सूरज वहां से उन दोनों को एकदम साफ तौर पर देख पा रहा था चारों तरफ घनी झाड़ियों के होने के बावजूद जिस जगह पर दोनों खड़े थे उस जगह की झाड़ियों को ऐसा लग रहा था कि साफ कर दिया गया हो,,,, सूरज को अभी तक उन दोनों का चेहरा नजर नहीं आया था।,, जिस तरह से खेतों के बीच की उतनी सी जगह साफ की गई थी ऐसा लग रहा था कि यह दोनों रोज रात को यहीं मिलते थे। और यह दोनों मिलकर ही इतनी सी जगह को साफ़ किए हैं।,, तभी उस साए की आवाज आई,,,

जो करना है जल्दी कर लो मुझे जल्दी घर वापस लौटना है क्योंकि सब लोग खाने पर इंतजार कर रहे होंगे,,,
( इतनी आवाज सुनते ही सूरज के कान खड़े हो गए क्योंकि आवाज जानी पहचानी थी और कुछ ही पल में उसे समझते देर नहीं लगी कि वह आवाज उसकी छोटी मामी वैशाली मामी की थी,,,,,
सूरज पूरी तरह से सकते में आ गया था उसे यकीन नहीं हो रहा था कि,,, दोपहर में उसे संस्कार के पाठ पढ़ाने वाली इस हद तक गुजर सकती है किस्मत की आंखों में धूल झोंककर अपने प्रेमी से चोरी चुपके रात को खेतों में मिलती है और अपनी जवानी की प्यास बुझाती है।,,, सूरज को सब कुछ समझ में आ गया था बस उसका चेहरा ठीक से नजर नहीं आ रहा था।,, तभी दूसरे साए ने उसके हाथों से लालटेन लेकर उसके चेहरे के पास लालटेन की रोशनी ले जाते हुए बोला,,,

सब कुछ करुंगा मेरी जान यही करने के लिए तो तुम्हें यहां बुलाता हूं लेकिन उससे पहले मैं अपनी रानी का चांद सा मुखड़ा तो देख लुं।,,,,( और इतना कहते ही लालटेन की रोशनी में उसे साए का चेहरा बिल्कुल साफ नजर आने लगा,,,, लालटेन की रोशनी में उसका चेहरा नजर आते ही सूरज चौक गया और उसे पक्का यकीन हो गया कि उसकी वैशाली मामी ही है लेकिन कुछ ही देर में उसके चेहरे पर मुस्कान फेलने लगी,,,, क्योंकि अब उसे उसकी वैशाली मामी उसके हाथों में आती नजर आने लगी,,, चेहरे पर लालटेन की रोशनी पड़ते ही वैशाली मामी शर्मा गई,,, और अपने हाथों से लालटेन को दूसरी तरफ करते हुए बोली ।
मेरे पास समय नहीं है,,,, और तुम्हें मुखड़ा देखने से फुर्सत नहीं मिल रही है मुखड़ा को छोड़ो मेरी पेटीकोट में आग लगी हुई है उसे बुझाओ,,,,
( इतना कहने के साथ ही वैशाली मामी अपनी साड़ी को एक झटके में कमर तक उठा दी,,,, और उसे समझते देर नहीं लगी वह तुरंत नीचे घुटनों के बल बैठ गया,,,, और एक पल भी गवाए बिना तुरंत अपना मुंह वैशाली की जांघो के बीच डालकर चाटना शुरु कर दिया,,,, जैसे ही,,, उसके होंठ वैशाली की रसीली बुर पर स्पर्श हुआ वैशाली एकदम से काम वीभोर हो गई,,,,
उसने भी लालटेन को नीचे जमीन पर रख दिया हालांकि लालटेन चालू ही था जिससे साफ तौर पर सब कुछ तो नहीं लेकिन बहुत कुछ नजर आ रहा था। सूरज यकीन नहीं कर पा रहा था कि यह दोपहर वाली वैशाली मामी है जो उसे गंदे नजरिए से देखने पर डांट फटकार रही थी।,,,,

कुछ देर तक बाहर वैशाली को उसकी बुर चाट कर उसे मजे देता रहा,,, वैशाली मामी भी अपने प्रेमी से मजे लेते हुए दबी दबी आवाज में सिसकारी ले रही थी। इसके बाद खुद ही वह उसके बाल पकड़कर उसे खड़ा करने लगी और वह पूरी तरह से खड़ा हो पाता इससे पहले ही वह उसकी तरफ अपनी बड़ी-बड़ी गांड करके झुक गई,,, वैशाली मामी का यह उतावलापन सूरज को एकदम मदहोश कर गया अब तो उसकी अभिलाषा और भी ज्यादा वैशाली मामी को पाने के लिए बढ़ने लगी,,,, झुकी हुई वैशाली की बड़ी-बड़ी गांड को देखकर,, वह तुरंत वैशाली के पीछे खड़ा होकर अपने लंड को बुर में डालकर चोदना शुरू कर दिया,,,,
वैशाली के प्रेमी का चेहरा तो उसे नजर आ रहा था लेकिन सूरज उसे पहचान नहीं पा रहा था क्योंकि गांव में वहां किसी को जानता नहीं था।
सूरज के लिए इतना काफी है वह दोनो अपनी चुदाई खत्म कर दें इससे पहले ही सूरज खेतों से बाहर निकलकर वहीं खड़ा होकर वैशाली मामी के बाहर निकलने का इंतजार करने लगा,,,,, सूरज का भी लंड पूरी तरह से खड़ा हो गया था।,,, अगर वैशाली इजाजत देती तो वह दोपहर को ही उसकी बुर का उद्घाटन कर दिया होता,,,,
किसी और के लंड से चुदता हुआ देखकर सूरज थोड़ा परेशान जरूर नजर आ रहा था लेकिन इसी की वजह से तो उसे अपने लंड की भी किस्मत जगती नजर आ रही थी,,, कुछ देर तक वहीं खड़े रहने पर उससे रहा नहीं जा रहा था वह जल्द से जल्द इस बारे में वैशाली मामी से बात कर लेना चाहता था।,,,, चारों तरफ घना अंधेरा छाया हुआ था। समय काफी गुजर गया था उसे इस बात की भी चिंता जताई जा रही थी कि घर पर उसका सब इंतजार कर रहे होंगे क्योंकि उसने अब तक खाना नहीं खाया था तभी झाड़ियों के बीच सुरसुराहट होने लगी सूरज समझ गया कि वह लोग बाहर आ रहे हैं।
सूरज छुपने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं कर रहा था क्योंकि वह जानबूझकर अपनी वैशाली मामी से आंख से आंख मिलाकर बात करना चाहता था ।क्योंकि उसकी रंगरेलियों को वह अपनी आंखों से देख चुका था। इसलिए सूरज को आत्म विश्वास हो गया था कि इस बार वैशाली उसे ना तो रोक ही पाएगी ना तो डांट ही पाएगी और ना ही किसी को बता देने की धमकी देगी क्योंकि पूरी तरह से वैशाली मामी अब उसे अपने कब्जे में लगने लगी थी। तभी वैशाली अपने ब्लाउज के बटन बंद करते हुए खेतों से बाहर निकली और सामने सूरज को खड़ा देखकर एक दम से चौंक गई।,,, वैसे तो अंधेरा एकदम घना था लेकिन सूरज उसके बिल्कुल करीब ही खड़ा था इसलिए वह उसे पहचान ली।,,, वैशाली मामी एकदम से घबरा गई थी लेकिन फिर भी अपनी घबराहट छुपाते हुए वह बोली।


तू यहां क्या कर रहा है? ( अपने साड़ी के पल्लू को ठीक करते हुए बोली,,।)

पहले यह बताओ कि तुम यहां क्या करने आई थी,,
( सूरज जिस तरह से, उसी से यह सवाल पूछा था वैशाली घबरा सी गई थी। फिर भी अपने आप को संभालते हुए बोली।)

अब तुझे यह बताना होगा कि इतनी रात को मैं खेतों में क्या करने आई थी,,,, सौच करने आई थी और क्या करने आई थी,,,( इस बार वैशाली मामी थोड़ा शरमाते हुए बोली लेकिन सूरज उसे जरा सा भी मौका नहीं देना चाहता था इसलिए वह तुरंत बोला।)

ज्यादा बातें बनाने की जरूरत नहीं है दिन में तो बहुत पतिव्रता बन रही थी।

तततत,,,, तु,, क्या कह रहा है मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है।

सब कुछ समझ में आ जाएगा पहले यह बताओ कि वह कौन था जो तुम्हारे साथ खेतों में अंदर गया था,,,,
( सूरज की यह बात सुनकर उसके पसीने छूट मिलेगी उसका जल्दी-जल्दी अपने कदम बढ़ाते हुए घर की तरफ जाने लगी तो सूरज भी उसके पीछे-पीछे हो चला,,,
वैशाली मामी ऊसके सवालों का जवाब नहीं देना चाहती थी,,, लेकिन सूरज उसके पीछे ही पड़ गया था वो फिर से अपने सवाल को दोहराते हुए बोला।)

बताओ वह कौन था?

देख तू मुझे परेशान मत कर मुझे नहीं मालूम कि तू क्या बोल रहा है मैं इधर अकेले ही आई थी और अकेले ही जा रही हूं,,,,( वैशाली तेज कदम बढ़ाते हुए बोली,,)

मैं सब जानता हूं वह पीछे की तरफ से चला गया होगा और अब मुझसे कुछ भी छुपाने की जरूरत नहीं है मैं तुम्हारी चुदाई लीला को अपनी आंखों से देख चुका हूं,,,,
( इस बार सूरज की बात सुनकर वैशाली के पैर वहीं के वहीं रुक गए। अब उसके पास छुपाने जैसा कुछ भी नहीं था।,,,, अब समझ गई थी कि सूरज सब कुछ देख चुका है,,, अब उसके पास कोई भी बहाना नहीं बचा था इस बार वह बिना जवाब दिए ही आगे बढ़ती चली गई,,,
वैशाली मामी को इस तरह से जाते देख,,,, सूरज वहीं खड़ा हो गया क्योंकि घर आ गया था लेकिन फिर भी वह खड़े होकर बोला,, वैशाली,,,,,( सूरज के मुंह से इस बार अपना नाम सुनकर वैशाली मामी एक पल के लिए वहीं रुक गई और पलटकर सूरज की तरफ देखने लगी,,, जैसे ही वैशाली मामी पलटकर सूरज की तरफ देखि वैसे ही सूरज बोला,,,।)

मिलना जरूर इस बारे में मुझे तुमसे बात करनी है,
( इतना सुनकर वैशाली मामी वहां से चली गई वैशाली मामी से जाने के बाद सूरज के होठों पर मुस्कुराहट फैल गई,,,, और रात भर वैशाली बिस्तर पर करवट बदलते हुए यह सोचने लगी कि आखिर सूरज उसे क्या बात करना चाहता है,, दोपहर वाली हरकत को देखते हुए इतना तो वैशाली मामी समझ गई थी कि उसके भी इरादे कुछ नेक नहीं है। और इस बात का डर उसे बराबर बना हुआ था कि कहीं सूरज घर में किसी को बोल ना दे, सूरज अभी जवान हो रहा है और ऐसे में इस उम्र के लड़कों की नजर हमेशा ही औरतों पर और लड़कियों पर बनी रहती है दोपहर में जिस तरह से वह उसके पिछवाड़े को देख रहा था इससे साफ जाहिर था कि वह उसके प्रति आकर्षित था तभी तो,,,, रात को भी वह उसके पीछे पीछे खेतों की तरफ आ गया था,,,,
यही सब सोचते हुए वैशाली सो गई,,,, और दिन भर निर्मला शादी की तैयारी में जुटी होने की वजह से थक कर सो गई थी इसलिए सूरज उसकी चुदाई नहीं कर पाया लेकिन रात भर वह उसकी बड़ी बड़ी चूची को मुंह में भरकर पीता रहा।,,,

सुबह से सूरज मौके की ताक में था कि वैशाली से रात वाली घटना के बारे में बात कर सके,,, लेकिन वैशाली जान बूझकर उससे कतरा रही थी।,,, सूरज बार-बार उसके पीछे लगा हुआ था लेकिन उसे बिल्कुल भी मौका नहीं मिल पा रहा था इस ताक झांक लुका छुपी में दोपहर हो गई,,,, घर के सभी लोग शादी की तैयारी की बातें करने के लिए बरामदे में बैठे हुए थे। तभी उसके छोटे मामा मनोज जो की वैशाली मामी के पति थे वह बोले,,,
देखो शादी की तैयारी अभी पूरी तरह से हुई नहीं है और समय बहुत कम है,,,, मैं और भाई साहब शहर जा रहे हैं खरीदी करने के लिए,,,, और घर पर कोई युं ही बैठा भी नही है।


घर के सभी लोग काम में लगे हुए हैं किसी के पास समय नहीं है ऐसे में आम के बगीचे की देखरेख नहीं हो पा रही है तो वैशाली तुम ऐसा करो की खाना खाने के बाद,,,,
जाकर आम के बगीचे का थोड़ा देखरेख कर लो कहीं ऐसा ना हो कि हम लोग शादी में व्यस्त रहे और बगीचे के सारे आम गायब हो जाए,,,,

ठीक है मैं खाना खा कर चली जाऊंगी,,,,

मैं भी चलूंगा मामी इसी बहाने में आम का बगीचा भी देख लूंगा,,,( सूरज तपाक से बोला)

ठीक है तू भी चले जाना इसी बहाने तु भी घूम घाम लेगा,,,,
( अपने मामा की बात सुनकर सूरज प्रसन्न हो गया वह अंदर ही अंदर खुश होने लगा,,, लेकिन सूरज की बात सुनकर वैशाली मामी के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगी वह अंदर ही अंदर घबराने लगी,,,, और थोड़ा गुस्से से सूरज की तरफ देखकर कमरे में चले गई,,,, सूरज बस वैशाली मामी का आम के बगीचे में जाने का इंतजार करने लगा।,,,

कुछ देर बाद है वैशाली सूरज से नजरें बचाकर बगीचे की तरफ जाने लगी लेकिन सूरज इसी ताक में था कि कब वैशाली घर से बाहर निकलकर बगीचे की तरफ जाए और वह उसके पीछे पीछे लग जाए और जैसे ही वैशाली बगीचे की तरफ जाने लगी सूरज झट से उसके पीछे हो चला,,,
उसे अपने पीछे आता देखकर वैशाली मामी को थोड़ा घबराहट के साथ-साथ क्रोध भी आने लगा मुंह बनाते हुए वह जल्दी-जल्दी बगीचे की तरफ जाने लगी और पीछे से आ रहा सूरज उसे आवाज देता हुआ बोला,,,

ओ मामी रुको तो सही इतनी जल्दी-जल्दी अकेले कहां चली जा रही हो मुझे भी तो तुम्हारे साथ ही जाना है,,।
( इतना कहने के साथ ही वह लगभग दौड़ता हुआ वैशाली मामी के करीब पहुंच गया वैशाली मामी उससे बिना कुछ बोले ही चलती रही,,,,
वैशाली मामी के मन में अजीब सा असमंजस घर कर गया था उसे समझ में नहीं आ रहा था कि यह सूरज उसके साथ बगीचे में क्यों जाना चाहता है लेकिन इतना तो उसे आभास ही हो गया था कि उसकी नजरें ठीक नहीं है।,,, वह मन में सोचने लगी कि अगर सूरज बगीचे में उसके साथ कुछ करेगा तो वह क्या करेगी क्योंकि कद काठी से वह काफी मजबूत था। उसका दिल जोरो से घबराने लगा लेकिन वह घबराहट को अपने चेहरे पर नहीं आने दे रही थी।,,,,

क्या मामी तुम ऐसे क्यों बर्ताव कर रही हो कि जैसे मुझे जानती ही नहीं अरे कुछ बोलो तो हम दोनों का समय अच्छे से कट जाएगा,,,, और देख रही हो मौसम कितना सुहावना है,,,
( गर्मी का समय था चिलचिलाती धूप अपना कहर ढा रही थी लेकिन रह रह कर छांव भी हो जा रही थी इसलिए,,, धूप ज्यादा महसूस नहीं हो रही थी चारों तरफ का नजारा हरियाली से भरा हुआ था पगडंडियों के चारों तरफ छोटी बड़ी झाड़ियों का झुरमुट लगा हुआ था। दूर-दूर तक इंसानों का नामोनिशान नहीं था। क्योंकि इस तरह की चीलचिलाती धूप में सभी लोग घर के अंदर ही रहना पसंद करते थे।
दोनों घर से काफी दूर आ चुके थे और यहां पर दूर-दूर तक कोई घर भी नजर नहीं आ रहा था या यूं समझ लो कि पूरे रास्ते भर वैशाली और सूरज के सिवा कोई भी नजर नहीं आ रहा था और यह देख कर सूरज के मन में उमंगों का घोड़ा अपनी तेज रफ्तार से दौड़ना शुरू कर दिया। जहां इस तरह के सुहावने मौसम और सुनसान रास्ते को देखकर सूरज मन ही मन प्रसन्न हुए जा रहा था। वही ऐसी स्थिति में वैशाली मामी का मन घबरा रहा था।,,,
वैशाली कुछ भी बोल पाने की स्थिति में नहीं थी सुबह भी बोले जा रहा था और वह केवल सुन रही थी लेकिन कनखियों से वह अपनी नजरें सूरज पर डालती तो उसे अंदाजा हो जाता कि सूरज उसके कामरुपी बदन को घूर रहा है। यह देख कर वह बार-बार अपने साड़ी के पल्लू को ठीक से कर लेती,,,। सूरज को वैशाली मामी की इस हरकत पर बेहद आनंद प्राप्त हो रहा था,,,।

थोड़ी ही देर में वह दोनों आम के बगीचे मैं पहुंच गए चारों तरफ आम के पेड़ से पूरा बगीचा भरा हुआ था साथ ही,,, हर पेड़ पर आम लदे हुए थे जिन्हें देखने का अपना अलग ही मजा था। सूरज आम का पेड़ और आम लदे हुए पहली बार देख रहा था,,
इसलिए यह नजारा देखकर उसकी आंखों में चमक आ गई कुछ पल के लिए वह वैशाली को एकदम से भूल गया और चारों तरफ घूम घूम कर आम के पेड़ और उस पर लगे हुए आम को देखने लगा। कुछ देर तो इतनी कम ऊंचाई के थे कि वह हाथ ऊपर करके ही आम को तोड़ सकता था ऐसे ही वह हाथ बढ़ाकर यह काम को पकड़ते हुए बोला,,,

मामी क्या यह आम को मैं तोड़ सकता हूं।,,,

सब अपना ही है इसमें पूछने वाली क्या बात है तोड़ लो,,( सूरज की तरफ देखते हुए वह बोली,,,।)

काश ऐसी ही इजाजत तुम दूसरे आमों के लिए भी दे देती तो कितना मज़ा आता,,,

क्या कहा तुमने,,,,,( वैशाली सवालिया नजरों से सूरज की तरफ देखते हुए बोली)

वही जो आप सुन रही हैं । (इतना कहने के साथ ही वह आम तोड़ लिया)

मैं कुछ समझी नहीं तू क्या कह रहा है,,,,?

अब ज्यादा भोली मत बनो वैशाली मामी समझ नहीं रही हो या समझना नहीं चाहती,,,, खेतों में तुम्हें जिस हालत में मैं देख चुका हूं उससे यह बिल्कुल भी नहीं लगता कि तुम्हें मेरी बात समझ में नहीं आई हो,,,,
( इतना कहते हो सूरज तोड़े हुए आम को जो कि पक चुका था उसके ऊपर की डुंठी निकाल कर उसे गोल-गोल दबाते हुए मुंह में भरकर चूसना शुरू कर दिया,,,। सूरज की बात और वह जिस तरह से आम को चूस रहा था यह देख कर वैशाली अंदर ही अंदर कांप गई।,,)

देखो सूरज मुझे डराने की कोशिश बिल्कुल भी मत करना,,, मैं तुम्हारी बातों में आने वाली नहीं हूं,,,

मैं तुम्हें डरा नहीं रहा हूं मामी मैं वही बता रहा हूं कि जो हकीकत है,,, तुम रात को ऊस आदमी के साथ चुदवा रही थी,,, जो कि मैं अपनी आंखों से देख रहा था,,,
( सूरज एकदम खुले शब्दों में वैशाली मामी से रात वाली हकीकत बता दिया जिसे सुनकर और सूरज की अश्लील भाषा को सुनकर एकदम दंग रह गई,,,। )

और एक बार की बात नहीं है पहले भी मैं तुम्हें खेतों की तरफ छुपते छुपाते जाते हुए देख रहा था,,,,
( सूरज इतना कहते ही वैशाली मामी के बिल्कुल करीब आ गया वह वैशाली मामी के बिल्कुल ठीक पीछे खड़ा था,,, वैशाली पूरी तरह से स्तब्ध हो चुकी थी क्योंकि यह वर्षों से चला आ रहा था लेकिन आज तक किसी को कुछ भी पता नहीं चल पाया था लेकिन सूरज को आए अभी दो-तीन दिन ही हुए थे कि उसमें उसकी रंगरेलीया अपनी आंखों से देख लिया,,, सूरज वैशाली मामी के बिल्कुल करीब खड़ा था और आम को चुसने का मजा ले रहा था,,,
सूरज वैशाली मामी के खूबसूरत बदन की खुशबू को अपने अंदर महसूस कर पा रहा था जिसकी वजह से उसके बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी थी,,
और वैशाली भी सूरज को अपने एकदम करीब पीछे खड़ा हुआ महसूस करके एक अजीब सी उत्तेजनात्मक स्थिति को महसूस कर रही थी। सूरज आम का मजा लेते हुए वैशाली के खूबसूरत बदन की महक को महसूस करके उत्तेजित हुए जा रहा था। जिसकी वजह से उसके लंड का तनाव बढ़ने लगा था,,,, कुछ ही सेकंड में उसके लंड का था ना ईतना ज्यादा बढ़ गया कि,, उसकी धोती का तंबू हल्के हल्के वैशाली के उभार मय नितंबों पर स्पर्श होने लगा,,,, और वैशाली सूरज के तंबू का स्पर्श अपने नितंबों पर होते ही उसे समझते देर नहीं लगी कि यह स्पर्श सूरज के कौन से अंग का है,,,,

इतना समझते ही उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी,,,, वैशाली मामी के नितंबों पर अपने लंड से बने तंबू का स्पर्श होते ही सूरज के तन-बदन में कामोत्तेजना जोर मारने लगे और वह जानबूझकर अपनी कमर को हल कैसे आगे की तरफ सरकाया जिसकी वजह से उसके लंड से बना कठोर तंबू,,, साड़ी सहित गांड की गहरी दरार में धंसने लगी, वैशाली मामी की सांसे तेज गति से चलने लगी सूरज उसकी हालत को देखकर इतना तो अंदाजा लगा दिया कि यह कबूतर उसके हाथों में पूरी तरह से आ चुका है,,,, फिर भी वह पूरी तरह से वैशाली मामी को अपने कब्जे में करने के लिए बोला,,,

मामी अगर मैं तुम्हारी यही काम लीला घर वालों को बता दूं तो क्या होगा तुम्हें ईसका अंदाजा भी है।
( सूरज की बातें और उसका इरादा भांपकर वैशाली समझ गई कि अब उसके लिए कोई रास्ता नहीं बचा है,, इसलिए वह बोली,,,।)

तू चाहता क्या है,,,,?
( वैशाली मामी के मुंह से यह सवाल सुनते ही सूरज का मन प्रसन्नता से भर गया क्योंकि वह समझ गया था कि उसका रास्ता खुलने वाला है और वैसे भी औरत जब बेबस हो जाएं और इस तरह का सवाल करने लगे तो समझ जाना चाहिए कि वह पूरी तरह से सहकार करने के लिए तैयार है।,,, यह समझते ही, सूरज के लंड में रक्त का भ्रमण तेज गति से होने लगा,,, वैशाली के पूछे जाने पर वह आम को फेंक दिया और वैशाली मामी को पीछे से अपनी बांहों में भरते हुए अपने दोनों हाथों को वैशाली की बड़ी बड़ी चूचियो पर ब्लाउज के ऊपर से ही रखकर दबाते हुए बोला,,,,।

मैं यही चाहता हूं कि जो तुम उस आदमी के साथ कर रही थी मेरे साथ करो और मुझे भी करने दो,,,( इतना कहने के साथ ही वह वैशाली की बड़ी बड़ी चूचियां को ब्लाउज के ऊपर से ही जोर से मसल दिया जिसकी वजह से वैशाली मामी के मुंह से सिसकारी निकल गई,,,,।

सससहहहहहहह,,,,,, नहीं यह नहीं हो सकता,,,,

क्यों नहीं हो सकता( इतना कहने के साथ ही सूरज लगातार उसकी चूचियों को मसलते हुए अपने तंबू को और ज्यादा उसकी गांड की दरार में धंसााने लगा,,, स्तन मर्दन और अपने नितंबों पर हो रहे कठोर लंड का एहसास वैशाली को कामोतेजना से भरने लगा,,, वैशाली मामी को इस बात का डर भी लग रहा था कि कहीं कोई उन दोनों को इस हाल में देख ना ले। उत्तेजना के साथ-साथ उसे घबराहट भी महसूस हो रही थी।,,,,

नहीं सूरज यह बिलकुल भी नहीं हो सकता मुझे छोड़ दे।,, मैं सबको बता दूंगी कि तू मेरे साथ क्या करना चाहता है,,,।( उसकी बांहों में से निकलने की नाकाम कोशिश करते हुए बोली,,,।)

नहीं तुम ऐसा बिल्कुल भी नहीं कर सकती वरना मैं वह सच्चाई घरवालों को बताऊंगा जिससे वह आज तक अनजान है और तुम्हें एकदम पवित्र समझते हैं। शायद तुम अनजान बनने की कोशिश कर रही हो क्योंकि तुम भी अच्छी तरह से जानती हो कि मेरे बस मुंह खोलने भर की देरी है उसके बाद तुम्हारा क्या हाल होगा यह तुम अच्छी तरह से जानती हो,,,
( सूरज ईस बार एक हाथ चूची पर से हटा कर उसकी जांघों के बीच ले जाकर साड़ी के ऊपर से ही ऊसकी बुर को दबाने लगा,,,, जिससे वैशाली की उत्तेजना पल-पल बढ़ती जा रही थी,, और तो और उसका लंड साड़ी सहित वह अपनी गांड की दरार के भीतर घुसता हुआ महसूस कर पा रही थी,,, वैशाली उसकी इस ताकत की वजह से एकदम से मदहोश होने लगी उसे सूरज के लंड की ताकत का जायजा मिल गया था। इसलिए तो ना-नुकुर करते हुए भी उसके मुंह से गरम सिसकारी छूट पड़ी,,,

ससससहहहहहह,,,, सूरज यह क्या कर रहा है तू कोई देख लिया तो गजब हो जाएगा,,,,

यहां दूर-दूर तक कोई भी नहीं है मामी,,, मेरी बात मान जाओ ऐसा मजा दूंगा कि जिंदगी भर याद रखोगी,,,

नहीं यह नहीं हो सकता मैं तेरी मामी जेसी हूं और तू मेरा भांजा जैसा है हम दोनों के बीच इस तरह के संबंध नाजायज के साथ-साथ बहुत ही ज्यादा अनैतिक है अगर इस बारे में किसी को भी भनक लग गई तो हम दोनों की जिंदगी बर्बाद हो जाएगी इसलिए मैं तुझे कह रही हूं कि अपने आप को संभाल और इस तरह का अनैतिक कार्य करने से बच जा।,,,,

वैशाली सूरज को समझाने की कोशिश भी कर रही थी और सूरज की हरकतों का पूरी तरह से आनंद भी ले रही थी वैशाली मामी के मुंह से निकलने वाली सिसकारी सूरज के सामने घुटने टेकने का संकेत था आखिरकार वैशाली मामी भी एक प्यासी औरत थी। उसे हमेशा एक मोटे लंड की तलाश रहती थी इसलिए तो उसे सूरज की हरकतों से बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी। सूरज उसकी चूचियों को जोर-जोर से मसलते हुए बोला।

मामी कुछ देर के लिए भूल जाओ कि तुम मेरी मामी और मैं तुम्हारा भांजा हूं बस इतना याद रखो कि तुम एक औरत और एक मैं मर्द हूं और वैसे भी यहां कोई देखने वाला नहीं है चारों तरफ परिंदा भी नजर नहीं आ रहा है तो फिर ऐसी चिल चिलाती धुप में कोई इंसान केसे नजर आएगा।,,,,( वैशाली मामी भी यह बात अच्छी तरह से जानती थी यहां वैसे भी ऐसी कड़कड़ाती धूप में आने वाला नहीं था,,,, लेकिन फिर भी वह सूरज को समझाते हुए बोली।)

फिर भी सूरज मैं तुझे ऐसा पाप नहीं करने दूंगी,,,,,
( ऐसा कहते हुए वह फिर से छुड़ाने की कोशिश करने लगी लेकिन तभी सूरज एक हाथ से अपने धोती को नीचे कर दिया और वैशाली मामी का हाथ पकड़ कर जबरदस्ती उसकी हथेली में अपना लंड थमा दिया,, अपनी हथेली में गरमा गरम मोटा लंड महसूस होते ही उसके तन बदन में कामाग्नि भड़क उठी,,,, उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि कोई गरमा गरम रॉड उसके हाथ में थमा दिया हो,,, उसका छटपटाना कम होने लगा,,, लंड की मोटाई उसे उसके लंड की तरफ देखने के लिए मजबूर कर दी,,, उसकी हथेली की पकड़ को देखते हुए सूरज अपना हाथ हटा दिया था और वैशाली मामी ही उसके लंड को कस के पकड़े हुए थी,,,
लंड की तरफ देखे बिना ही वैशाली मामी को हथेली में लेकर के उसके लैंड की ताकत का अंदाजा लग गया,,, क्योंकि अब तक जितने भी लंड उसकी हथेली में आए थे इस तरह की मजबूती का एहसास उसे कभी नहीं हुआ था।,,,, उसका मन एकदम से व्याकुल हो उठा अपनी खुली आंखों से सूरज के लंड का दीदार करने के लिए। इसलिए वह अपना विरोध भूलकर सूरज की तरफ घूम गई और धीरे-धीरे घबराते हुए अपनी नजरों को नीचे करके सूरज के लंड को देखने लगी,,,, जैसे ही वैशाली मामी की नजर सूरज के तने हुए और खड़े लंड पर कड़ी एक पल के लिए वह सब कुछ भूल गई क्योंकि जिंदगी में पहली बार बार इतनी ताकतवर मजबूत मोटे और लंबे लंड को देख रही थी जो कि उसकी हथेली में मचल रहा था।,,, वैशाली मामी के चेहरे के हाव भाव को देखकर सूरज समझ गया कि उसका काम बन गया है वैशाली मामी से रहा नहीं गया और वह कसके उसके लंड को हथेली में पकड़कर आगे पीछे करके देखने लगी,,,, उत्तेजना के मारे वैशाली मामी की सांसे उखड़ रही थी अब बिल्कुल भी विरोध करने की हालत में वह नहीं थी वह पूरी तरह से सूरज को समर्पित होने के लिए तैयार थी। वह सूरज के लंड को अपने बुर के अंदर महसूस करने के लिए व्याकुल हो उठी,,,, वह सूरज के लंड को मुठीयाते हुए बोली,,,
 
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सूरज यहां कोई देख लेगा चल उसमें चलते हैं । (वह नजरों से ही बगीचे के बीचों बीच बनी घास फूस की झुग्गी की तरफ इशारा करते हुए बोली,,,, सूरज उसका इशारा समझती ही खुशी के मारे एकदम गदगद हो गया,,,,

चारों तरफ बड़े-बड़े और छोटे-छोटे आम के पेड़ की वजह से बगीचा पूरी तरह से खूबसूरत नजर आता था और बगीचा इतना घना था कि,,, धूप बिल्कुल भी बगीचे में प्रवेश नहीं कर पाती थी इसलिए बगीचे में बहने वाली हवा अपनी शीतलता का एहसास दोनों के बदन पर करा रही थी। सूरज मन-ही-मन बेहद प्रसन्न हो रहा था क्योंकि उसकी मनोकामना पूर्ण होने जा रही थी।,,, दूसरों के सामने वैशाली एकदम सती सावित्री होने का बखूबी ढोंग करती थी लेकिन असलियत में वह कितनी बड़ी छिनार है वह इस बात से ही पता चल जा रहा था कि,, झोपड़ी में जाते समय भी उसने सूरज के लंड को अपने हाथ मे ही लिए हुए थी,,

वैशाली की हरकत से ही सूरज समझ गया था कि यह बहुत ज्यादा प्यासी औरत है वैशाली झोपड़ी की तरफ आगे बढ़ते हुए चारों तरफ नजर फेर ले रही थी कि कहीं कोई आ ना जाए,,, लेकिन चारों तरफ,, लहलहाते खेत और बह रही शीतल हवा के सिवा कोई भी नहीं था,,, सूरज के लंड की किस्मत में एक और युग लिखी हुई थी जिसै वह जल्द ही हासिल करने वाला था।
जल्द ही दोनों झोपड़ी में दाखिल हो गए अंदर प्रवेश करते ही चारों तरफ सूखी हुई घास का ढेर नजर आ रहा था।,,, वैशाली तुरंत घास का ढेर सारा पुवाल इकट्ठा करके नीचे बिछा दी और बोलि,,,


अब यहा आराम से करेंगे,,,
( वैशाली की यह बात सुनकर सूरज एकदम से उत्तेजना से भर गया,,, और उससे रहा नहीं गया वह एक हाथ आगे बढ़ा कर सीधे वैशाली मामी की कमर में वह हाथ डाल दिया और उसे अपनी तरफ खींच कर,अपने बदन से सटाते हुए अपने तरसते होठ को वैशाली मामी के गुलाबी होठों पर रखकर उसके होठों का रसपान करने लगा,,,, सूरज की इस तरह के कामुक हरकत की वजह से कुछ ही पल में वैशाली काम विभोर होकर खुद ही सूरज के बदन से लिपट गई और उसका साथ देते हुए अपने होठों को खोलकर उसकी जीभ को अपने मुंह में लेकर चूसने लगी।,,,
इतने में तो सूरज की दोनों कामोत्तेजना बढ़ाने वाली हथेलियां वैशाली मामी के मखमली बदन पर ऊपर से नीचे चारों तरफ घूमने लगी,,,

जिस उत्तेजना और जोश के साथ सूरज वैशाली के बदन से लिपट कर उसके होठों का रसपान कर रहा था वैशाली का तन-बदन एकदम से झनझना उठ रहा था। उसने इतना जोश अब तक किसी मर्द में नहीं देखी थी,,, इसलिए तो उसे इस बात का अंदाजा लग गया की आज एक आम की बगिया में उसकी बुर का बाजा बजने वाला है,,,
सूरज पागलों की तरह उसके होंठों को चूसते हुए कभी उसकी बड़ी-बड़ी नितंबों पर हाथ फेरते हुए दबा देता तो कभी उसकी गोल-गोल कसी हुई चुचियों को दबा देता,,, सूरज वैशाली को उत्तेजना के अथाग सागर में खींचे लिए चला जा रहा था,,,, वैशाली उत्तेजना के वशीभूत होकर तेजी से सूरज के मोटे खड़े लंड को पकड़ कर हिलाना शुरु कर दी,, मोटी मोटी और गर्म लंड का एहसास वैशाली की बुर को और ज्यादा हवा दे रहा था उसमें से नमकीन रस टपकना शुरू हो गया था।
कुछ देर तक यूं ही वैशाली मामी के होठों का रसपान करते हैं सूरज एकदम से मदहोश हो गया और होठो के रस से मन भर जाने के बाद वह तुरंत उसके ब्लाउज के बटन खोलने लगा,,,, वैशाली अब सूरज का विरोध बिल्कुल भी नहीं कर रही थी पर कि वह तो सूरज द्वारा किए गए हरकतों का पूरी तरह से मजा ले रहे थे इस झोपड़ी ने किसी बात का डर नहीं था क्योंकि दिन का समय होने के साथ-साथ बेहद गर्मी का समय भी था जिसकी वजह से कोई भी घर से बाहर नहीं निकलता था।,, इसलिए तो जहां किसी के द्वारा देखे जाने का भी डर बिल्कुल भी नहीं था इसलिए तो वैशाली सूरज से अपने ब्लाउज खोलने पर किसी भी बात का ऐतराज़ नहीं दर्शा रही थी,,,,

सूरज की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी उसकी सांसे फुल रही थी। वैसे भी वैशाली बेहद खूबसूरत लगती है उसका अंग-अंग तराशा हुआ था भरे बदन की मालकिन होने के साथ-साथ गोरा रंग उसे और भी ज्यादा खूबसूरत बना रहा था उस के बड़े-बड़े गोल नितंब किसी का भी ध्यान आकर्षित करने मैं सक्षम थे। इसलिए तो गांव आते ही सबसे पहले सूरज की नजर वैशाली मामी पर ही थी,,,, क्योंकि जिस तरह का आकर्षण और कमजोरी सूरज की औरतों की बड़ी बड़ी गांड की तरफ थी,,,
ठीक वैसे ही गोल गोल बड़ी-बड़ी गांड लिए हुए वैशाली सूरज के दिलो-दिमाग पर छाई हुई थी।,, वेसे तो सही मायने में सूरज सबसे पहले वैशाली पर ही अपने दांव पर आजमाना चाहता था लेकिन शुरुआत उसकी सुधियां मामी से हो गई थी। सुधियां मामी जितनी आसानी से उसे चोदने के लिए मिल गई थी उससे सूरज की हिम्मत और ज्यादा बढ़ गई थी,,, लेकिन कमरे में जिस तरह से वैशाली मामी ने उस पर डांट फटकार लगाई थी उसे देखते हुए सूरज का हौसला जवाब दे गया था। उसे लगने लगा था कि वह अपनी वैशाली मामी को कभी भी चोद नहीं पाएगा,,,

उसे अपनी यह ख्वाहिश अंधेरे में ओझल होती हुई नजर आ रही थी लेकिन,,, कहते हैं ना कि अंधेरा चाहे कितना भी घना हो लेकिन हल्की सी रोशनी जरूर नजर आती है। ठीक वैसा ही सूरज के साथ भी हुआ था,,, सबसे बड़ा राज़ जो की वैशाली सबसे छुपा के रखी हुई थी वह राज सूरज ने अपनी आंखों से देख लिया,,,
और उसका नतीजा यह हुआ कि आम के बगीचे में दोपहर के समय झोपड़ी के अंदर सूरज उसके ब्लाउज के बटन खोल रहा था,,,, सूरज उसके ब्लाउज के बटन खोलते हुए उसके खूबसूरत चेहरा की तरफ देखे जा रहा था,,, वैशाली सूरज को इस तरह से उसके ब्लाउज के बटन खोलते हुए देखकर अंदर ही अंदर शर्म महसूस करने लगी क्योंकि उसे बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि सूरज इस तरह का लड़का होगा और उस पर नजरें गड़ाए बैठा था।,,, सूरज की तरफ देखते हुए वहां अपनी नजरें दूसरी तरफ घुमा ली तो सूरज उसके ब्लाउज के बटन खोलते हुए बोला,,।

क्या हुआ ऐसे क्यों नजरें घुमा ली,,,,

मुझे शर्म आ रही है (सूरज की तरफ देखे बिना ही बोली)

अच्छा तो मेरे साथ शर्म आ रही है और उसको खेतों में अपनी साड़ी उठाकर बुर चटवा रही थी तब शर्म नहीं आ रही थी,,,
( सूरज के मुंह से अपने बारे में इतनी गंदी बात सुनकर वह एकदम से शर्म से गड़ी जा रही थी,,, क्योंकि उसे इसकी बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी कि सूरज उसे इतने खुले शब्दों में बोलेगा,,, इसलिए वह कुछ बोल नहीं पाई बस नजरें झुकाए खड़ी रही,,,)

क्या हुआ मामी इतना क्यों शर्मा रही हो,,,?

तू बातें ही ऐसी कर रहा है तो क्या शर्म नहीं आएगी,,,

रात को छुप-छुपकर चुद़वाने में शर्म नहीं आती,,,

वह तो मेरी मजबूरी है।

कैसी मजबूरी (ब्लाउज की आखिरी बटन खोलते हुए बोला)

तेरे मनोज मामा इस लायक नहीं है कि वह मुझे खुशी दे सके,
( वैशाली मामी की बात सुनकर सूरज थोड़ा सा झेंप गया लेकिन उसका पूरा ध्यान वैशाली मामी की बड़ी-बड़ी और कठोर चुचियों पर ही थी जोकी ब्रा के अंदर होने के बावजूद भी ऐसा लग रहा था कि बाहर है,, सूरज प्यासी नजरों से वैशाली मामी की चुचियों को घूरे जा रहा था,,, और यह देख कर वैशाली मन ही मन प्रसन्न हो रही थी।,,, वैशाली मामी की बड़ी-बड़ी और गोल चुचियों को ब्रा में देखकर सूरज कुछ पल के लिए वैशाली की बात को अनसुना कर दिया,,,, और ब्रा के ऊपर से ही अपनी हथेलियां फेरते हुए चूचियों के कठोरपन को महसूस करते हुए बोला,,,

ब्रा के अंदर होने के बावजूद भी तुम्हारी चुचिया इतनी खूबसूरत लग रही है अगर यह ब्रा के बाहर आ जाएंगी तब तो जान ही ले लेंगी,,,
( वैशाली सूरज के इस तरह की बातें सुंदर एकदम से भाव विभोर हो गई,,, उसकी हथेली में अभी भी सूरज का लंड था। वह तुरंत मुस्कुराते हुए सूरज के लंड को छोड़कर,, घूम गई उसकी पीठ सूरज की तरफ हो गई और वह सूरज की तरफ नजरें घुमा कर अपनी साड़ी के पल्लू को पूरी तरह स नीचे गिराकर मुस्कुराते हुए बोली,,,।

तो देर किस बात की है,,,लो आजाद कर दो ईन्हे।


वैशाली जिस अंदाज में सूरज की तरफ पीठ करके खड़ी हो गई थी उसका अंदाज देखते हो सूरज की उत्तेजना और ज्यादा बढ़ जाना लाजमी था,,
अक्सर मर्द को उस वक्त का बेहद बेसब्री से इंतजार रहता है जब ऐसे ही किसी अतरंग समय पर औरत अपनी तरफ से बेहद लुभावना और उत्तेजनात्मक हरकत करती है जिसकी वजह से मर्द की उत्तेजना मैं बेहद वृद्धि होने लगती है और यही सूरज के साथ भी हो रहा था जिस अंदाज से वैशाली ने अपनी साड़ी का पल्लू नीचे गिराई थी,,,
उसे देखते हुए सूरज के मुंह में पानी आ गया था और खास करके एक झोपड़ी में एक खूबसूरत औरत के साथ सूरज को और भी ज्यादा कामोंतेजना का अनुभव हो रहा था। सूरज एक कदम आगे बढ़ाकर वैशाली मामी के बदन से सट गया और हल्के से अपने दोनों हाथों को उसके कंधों पर रखकर बड़े ही गर्मजोशी से अपनी हथेलियों में दबोचे हुए अपनी हथेली को नीचे की तरफ लेकर आया और उसकी नंगी गर्दन पर अपने होंठ रख कर चूमना शुरू कर दिया एक औरत के लिए मर्द के द्वारा उसकी गर्दन पर चुंबन लेना उसकी उत्तेजना को परम शिखर पर पहुंचाने में सहायक होता है इसी वजह से सूरज की चुंबन लेते ही वैशाली के मुंह से गर्म सिसकारी निकल गई,,

सससससस,,,, आहहहहहहहह,,,, सूरज,,,,,,
( वैशाली मामी की यह सिसकारी सूरज की उत्तेजना का पारा बढ़ाने लगी,, वहां और ज्यादा वैशाली मामी के खूबसूरत कोमल बदन को अपनी हथेली में दबोच लिया एक मजबूत शरीर के मालिक द्वारा अपने नाजुक बदन को दबाए जाने की वजह से वैशाली की बुर से पानी टपकने लगा,,,
सूरज पागलों की तरह उसकी नंगी पीठ पर जगह-जगह पर चुंबनों की बौछार करने लगा सूरज का लंड अभी भी धोती के बाहर था जिसको वह वैशाली के नितंबों से सटाया हुआ था,,, और तने हुए मोटे लंबे लंड की रगड़ को अपनी बड़ी बड़ी गांड पर महसुस करके वैशाली के बदन मे सुरसुराहट सी खेल रही थी वह बार-बार अपने बदन को कसमसाते हुए अपनी बड़ी बड़ी लचीली गांड को दाएं-बाएं हिलाकर लंड की रगड़ का मजा ले रही थी,, सूरज की सांसे तेज चल रही थी बगिया में चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था केवल हवा चलने की वजह से सूखे पत्तों के फड़फड़ाने की आवाज और पंछियों की चहकने की आवाज से बगीए का वातावरण खुशनुमा लग रहा था और उससे भी ज्यादा तो खुशनुमा वातावरण के साथ साथ उत्तेजनात्मक वातावरण तो झोपड़ी के अंदर का था,,
जिसमे वैशाली की गर्म सांसे और उसकी गरम सिसकारी से,,, ऐसा लग रहा था कि कहीं सूखे हुए पुआल में आग न लग जाए,,,, वैसे तो वैशाली मामी की गर्म जवानी ने सूरज के बदन में आग लगा ही दी थी,,
वैशाली बेसब्री से,,, अपने खुले हुए ब्लाउज को अपनी बाहों से निकलने का इंतजार कर रहे थे इसलिए दोनों चूचियां किसी कबूतर की तरह सूरज के हाथों में आने के लिए फड़फड़ा रहे थे। लेकिन सूरज था की दोनों फड़फड़ाते हुए कबूतर को छोड़कर वैशाली मामी की मक्खन जैसी मखमली चिकनी पीठ को चाटने में लगा हुआ था,,,

वैशाली बेसब थ्री लेकिन जिस तरह से सूरज अपनी हरकतों से उसके बदन की गर्मी बढ़ा रहा था उसे बेहद आनंद की अनुभूति हो रही थी। इसलिए वहां भी अपने ब्लाउज को उतरवाने में बिल्कुल भी उतावलापन नहीं दिखा रही थी। कुछ देर तक वैशाली मामी की चिकनी पीठ से खेलने के बाद आखिरकार सूरज अपने दोनों हथेलियों को वैशाली मामी के कंधों पर रखकर उसकी ब्लाउज के छोर को कंधों से पकड़कर नीचे की तरफ सरका कर उसकी बाहों से निकालने लगा वैशाली भी तुरंत अपने दोनों हाथों को पीछे की तरफ सीधा कर दी ताकि आराम से उसका ब्लाउज़ निकल सके और अगले ही पल सूरज वैशाली के ब्लाउज को निकालकर सूखी हुई घास पर फेंक दिया।

और उसकी बांह पकड़ कर फिर से अपने सीने से चिपका कर अपने दोनों हाथों को आगे की तरफ ले आया और ब्रा के ऊपर से ही उसकी चुचियों को दबाना शुरु कर दिया। सूरज अपनी मजबूत हथेलियों में वैशाली की नरम नरम लेकिन कठोर चूचियों को दबा रहा था,,, जिसकी वजह से वैशाली के मुख से लगातार सिसकारियां निकलना शुरू हो गई। सूरज का तना हुआ लंड वैशाली मामी की मखमली गांड पर दस्तक दे रही थी। सूरज ब्रा के ऊपर से ही वैशाली मामी की गोल गोल चूचियों को हथेली में भरकर दबा रहा था।,,, सूरज की हरकत से वैशाली एकदम मदमस्त हुए जा रही थी उसके मुंह से लगातार सिसकारी की आवाज गूंज रही थी।

सससहहहहह,,,, सूरज तेरे हाथों में तो जादू है रे,,,,,

जादू मेरे हाथों में नहीं तुम्हारी इन चुचीयों में है तभी तो मेरी उंगलियां अपने आप ही इस पर कसती चली जा रही है,,,,
( इतना कहने के साथ ही सूरज ने उंगलियों का सहारा लेकर चूचियों के नीचे की पट्टी को दोनों हाथों से पकड़ कर ऊपर की तरफ उठा दिया,,,,
जिससे वैशाली मामी की दोनों नारंगिया ब्रा से बाहर आ गई,,, जैसे ही वैशाली की दोनों चूचियां बाहर आई सूरज ने झट से उन्हें लपक लिया और जोर जोर से दबाना शुरु कर दिया,,,, नंगी चूचियों को हथेली में भरकर दबाने का अपना अलग ही मजा है। इस बात को सूरज अच्छी तरह से जानता था इसलिए तो चूचियों को दबाने और मसलने का कोई भी मौका वह अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहता था।,,,
वैशाली की हालत पल-पल खराब हुए जा रही थी आज उसे अपनी चूची दबवाने और मसलवाने में बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी। वैशाली को इस बात की जरा भी उम्मीद नहीं थी कि सूरज जैसा जवान लड़का बेहद इत्मिनान से आगे बढ़ेगा उसे तो ऐसा ही लग रहा था कि झोपड़ी में जाते ही वह उसकी साड़ी उठाकर बस अपने मोटे लंड को ऊसकी बुर में डालकर चोेदना शुरु कर देगा,,,,
लेकिन जिस तरह से सूरज धीरे-धीरे आगे की तरफ बढ़ रहा था उसने वैशाली को बहुत ही ज्यादा मज़ा आ रहा था।,, जितने प्यार और मजबूती से उसने वैशाली के चुचियों से खिलवाड़ कर रहा था उस तरह से आज तक उसके पति ने भी नहीं खेला था,,,, इसलिए वैशाली भी सूरज का पूरा साथ देते हुए उसकी हर हरकत का मजा ले रही थी,।

वह मन में अभी यह सब सोच ही रही थी कि तभी अचानक सूरज एक झटके से वैशाली की बांह पकड़ कर उसे अपनी तरफ घुमा दिया और पागलों की तरह उसके गुलाबी होठों को अपने मुंह में भर कर चुसना शुरु कर दिया,,,,
वैशाली सूरज के ऐसे दीवाने पन से एकदम मदहोश हुए जा रहे थे,,, सूरज एकदम जोश में आकर उसके गुलाबी होठों का रसपान करते हुए अपने दोनों हाथों को पीछे की तरफ ले गया और ब्रा की हुक को खोल दिया,,, अगले ही पल वैशाली की ब्रा घास के सुखे ढेर में पड़ी हुई थी,,, वैशाली के दोनों कबूतर ब्रा की कैद से आजाद होते हीैं हवा में फड़फड़ाने लगे,,,, और उन फड़फड़ाते हुए कबूतर को अगले ही पल सूरज ने अपनी हथेलियों में दबोच लिया,,,,

ऐसा लग रहा था कि सूरज ने किसी खूबसूरत पंछी के गले को अपनी हथेली से दबोच लिया हो इस तरह से दोनों चूचियों का रंग सुर्ख लाल हो गया,,, गोल गोल नारंगी के समान लेकिन बड़ी-बड़ी खरबूजे जैसी चूचियों को अपनी हथेली से दबाता हुआ सूरज मस्त हुए जा रहा था।,,,
वैशाली का चेहरा शर्म और उत्तेजना के कारण लाल टमाटर की तरह हो गया था। वह सूरज को बड़े गौर से देख रही थी और उसके चेहरे के मासूम को देखते हुए इस बात का अंदाजा लगाना मुश्किल था कि इस मासूम से दिखने वाले चेहरे के पीछे,,, कितना शातिर और वासना मई इंसान छुपा हुआ है। उसे बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था कि,,, उस का भांजा उसके खूबसूरत स्तनों से खेल रहा है। सूरज जी उसकी चूचियों को दबाता हुआ वैशाली मामी की तरफ देखते हुए अपने मुंह से गर्म
सीईईई,,, सीईईई,,,,, की आवाजे निकाल कर मज़ा ले रहा था।,,, कुछ देर तक यूं ही स्तनों से खेलते खेलते सूरज ने कब दोनो चुचियों को बारी-बारी से अपने मुंह में भर कर पीने लगा इस बात का पता वैशाली को बिल्कुल नहीं चला। उसे इस बात का एहसास तब हुआ जब उत्तेजना वस सूरज नै जोर से उसकी अंगूर जैसी निप्पल में अपने दांत गड़ा दिए,,,, एकाएक निप्पल में दांत धंसाने की वजह से वैशाली के मुंह से चीख निकल गई,,

आहहहहहहहह,,,, क्या कर रहा है,,,,?

मजा ले रहा हूं मेरी जान,,,,,
( सूरज एकदम खुले तौर पर वैशाली को पुकारने लगा था वैशाली को पहले तो थोड़ा अजीब लगा लेकिन जिस तरह का मजा वहां उसे दे रहा था उसे देखते हुए वैशाली को भी सूरज के द्वारा उसे जान कहे जाने पर अच्छा लगने लगा,,, वह यह देखकर एकदम हैरान थी कि सूरज कैसे जल्दी जल्दी उसकी दोनों चूचियों के साथ खेल रहा था कभी एक चूची को मुंह में भरकर पीता तो कभी दूसरी चूची को,,,
कभी-कभी जितना हो सकता था उतना पूरा का पूरा उसकी चूची को मुंह में भर कर पीना शुरु कर देता था और दांत गड़ाकर आनंद ले रहा था। भले ही बड़ी बेरहमी से वह वैशाली के बदन से खेल रहा था लेकिन इस बहरेहमीपन में ही वैशाली को बेहद मजा मिल रहा था। पहली बार स्तन चुसाई का आनंद वैशाली प्राप्त कर रही थी वरना दो-तीन मिनट दबाकर मजे लेने के बाद लंड उसकी बुर की गहराई नाप रहा होता इसलिए आज पूरी तरह से वह सूरज को अपने बदन से खेलने की इजाजत दे दी थी। सूरज भी पागलों की तरह उसकी चूची को चूस चूस कर लाल टमाटर बना दिया था। कामोत्तेजना मे तप रहे अपने बदन पर खुद वैशाली का काबू बिल्कुल भी नहीं था सूरज जिस तरह से और जिस तरफ से खेलना चाह रहा था उसी तरह से खेल रहा था। कमर के ऊपर का बदन पूरी तरह से निर्वस्त्र हो चुका था। बुर काम रुपी रस छोड़ते हुए और भी प्यासी हुए जा रही थी। बुर का दाना अपने आप ही फुदकने लगा था। सूरज वैशाली मामी की चूची को दोनों हाथों से खींच खींच कर पी रहा था मानो कि जैसे वह चुची न हाें पका हुआ आम हो,,,, और वैशाली गरम सिसकारी लेते हुए सूरज को और ज्यादा उकसा रही थी।

ओहहहहहह,,,,, सूरज,,,,,, यह सब कहां से सीखा। तूने तो मेरी हालत ही खराब कर दिया है मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि तू सीधा-साधा सूरज है।,,,

मेरी जान मुझे भी कहां यकीन होता है कि तुम वही मेरी सीधी सादी वैशाली मामी हो,,,,,

तो क्या लगता है तुझे,,,

सच कहूं तो मुझे इस समय ऐसा लग रहा है कि मैं अपनी खूबसूरत माल के साथ इस बगीचे में मजे कर रहा है एकदम रंडी लग रही हो तुम,,,( एक चूची को कस के दबा कर दूसरी को मुंह में भरते हुए बोला)

छी,,,, कितना गंदा बोलता है तू मेरे बारे में क्या मैं तुझे सच में रंडी लगती हुं।

वैशाली को इस तरह से नाराजगी दर्शाते हुए देखकर सूरज बोला,,,

मेरा यह कहने का मतलब नहीं था मैं तो यह कह रहा हूं कि तुम इतनी ज्यादा खूबसूरत हो कि मन करता है कि तुम्हें अपनी प्रेमिका बना लूं और इस समय जिस तरह का खूबसूरत बदन लिए हुए हो मेरी तो जान ही निकाल दोगी मैंने आज तक तुम्हारे जैसी खूबसूरत औरत नहीं देखा,,,( सूरज वैशाली मामी की आंखों में झांकते हुए उसकी चूची को जोर-जोर से दबाते हुए बोला,,।)

क्या मैं तुझे इतनी अच्छी लगती हुं।

तुम मुझे बहुत अच्छी लगती हो मेरी जान अभी तो मैं सिर्फ तुम्हारी कमर के ऊपर का ही नजारा देखकर मरा जा रहा हूं अगर मैं तुम्हारी कमर के नीचे का खूबसूरत बदन देखूंगा तो ना जाने क्या हो जाएगा,,, सच बताओ मेरी जान क्या तुम्हें यह सब अच्छा लग रहा है?

बहुत अच्छा लग रहा है सूरज सच बताऊं तो तूने जिस तरह से मेरी चूचियों को दबा दबा कर उसे मुंह में भर कर पी पी कर मुझे जो मजा दिया है मैंने ऐसा मज़ा आज तक नहीं ले पाई हूं।

ओह,,,, मेरी रानी यही तो मैं चाहता हूं कि मैं जो भी करूं तुम्हें अच्छा लगे तुम्हें ऐसा सुख देना चाहता हूं कि तुम जिंदगी भर मुझे याद रखो,,,
( इतना कहते हुए सूरज अपनी हथेली को वैशाली मामी के चिकने पेट पर फिराने लगा,,, और पेट पर फिराते फिराते अपनी हथेली को पेट के नीचे की तरफ ले जाकर साड़ी के ऊपर से ही बुर वाली जगह को दबाते हुए बोला,,,,)
मेरी जान सच-सच बताना तुम्हें तुम्हारी खूबसूरत बुर की कसम,,, क्या इस समय तुम्हारी बुर पानी छोड़ रही है,,,
( सूरज के मस्त बातों से वैशाली एकदम मदहोश होने लगी थी उसकी हालत कामोतेजना की वजह से नाजुक होते जा रहे थे उसकी आंखों में खुमारी जा रही थी,,, सूरज के इस तरह के मस्त सवाल सुनकर रोजी की आंखों में चुदाई का नशा साफ झलकने लगा,,, और वह मस्ती भरे अंदाज में बोली,,,,

हाथ कंगन को आरसी क्या मैं तुम्हारे सामने हूं मेरा खूबसूरत बदन तुम्हारे हाथों में तुम्हारा सवाल खुद जवाब भी है देखना चाहो तो देख सकते हो तुम्हें ना तो मै रोकुंगी और ना ही मेरा वजुद,,,,( इतना कहते हुए वह सूरज की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए अपने लाल-लाल होठों को अपने ही दांत से काटकर सूरज को उकसाने लगी,,,, सूरज वैशाली मामी का यह रुप और उसकी अदाएं देखकर एकदम कामविभोर हो गया,,, और तुरंत अपने हाथ को पेट के नीचे की तरफ से ही बीचोबीच ठुंसी हुई साड़ी के घाट का पकड़ कर खोलने लगा,, सूरज के अगले कदम से वैशाली समझ गई कि कुछ ही देर में बात संपूर्ण रूप से नंगी हो जाएगी और उसकी मदमस्त जवानी को सूरज अपना मुंह लगाकर पीना शुरु कर देगा,,, यह सब सोचते हैं उसका पूरा बदन उत्तेजना के मारने झनझना गया,,, और उत्तेजना बस उसकी बुर से मदन रस की बूंदे टपकने लगी।


वैशाली का संपूर्ण बदन अद्भुत सुख को महसूस करके कसमसा रहा था। सूरज जो कि पक्का औरत बाज हो चुका था वह वैशाली मामी की साड़ी की गांठ को अपने हाथों से पेटीकोट के अंदर से बाहर की तरफ निकाल रहा था,,,
सूरन की आंखों की चमक देखकर इतना साफ नजर आ रहा था कि उसे भी वैशाली की बुर देखने में कुछ ज्यादा ही दिलचस्पी थी। उसकी उत्सुकता बढ़ती जा रही थी तभी तो उसकी हर हरकत के साथ ही उसके मुंह से सीईईईई,,,,,, सीईईीई की मादक सिसकारी नीकल रही थी। और सूरज के मुख से निकलने वाली ऐसी उत्तेजक आवाज को सुनकर वैशाली के काम भावना और भी ज्यादा तीव्र होती जा रही थी। और कुछ ही सेकंड में पलक झपकते ही सूरज ने वैशाली के बदन से उसकी साड़ी को अलग करके घास के ढेर में फेंक दिया और इस वक्त वैशाली के खूबसूरत मखमली बदन पर केवल पेटीकोट ही नजर आ रही थी,,,,

वैशाली सूरज की तरफ से ऐसी नजरों से देख रही थी और उसकी आंखों में मदहोशी की खुमारी भरी हुई थी वह आंखों से ही उसकी पेटीकोट को उतारने का प्रलोभन दे रही थी। क्योंकि,,, उन दोनों के बीच मात्र पेटिकोट का पतला पर्दा ही रह गया था। वैशाली भी जल्द से जल्द सूरज की आंखों के सामने एकदम नंगी होने के लिए मचल रही थी तभी तो सूरज भी उसके उतावलेपन को समझते हुए अपना हाथ आगे बढ़ा कर पेटीकोट की रेसमी डोरी को थाम लिया, सूरज पूरी तरह से कामोत्तेजना के ज्वऱ में तप रहा था,,, पेटिकोट की डोरी को थामे हुए अपनी तीन ऊंगलियों को पेटीकोट के उस हिस्से में डाल दिया जहां पर पेटीकोट का वह हिस्सा जो हल्का सा फटा हुआ नज़र आता है जबकि वह फटा हुआ नहीं बल्कि उसी तरह के डिजाइन का बना होता है सूरज अपनी तीनों उंगलियों को उस में प्रवेश करा कर,, वैशाली के मखमली बदन का एहसास अपने बदन में उतारने लगा,,,

वैशाली जो कि यही सोच रही थी कि वह सूरज पेटीकोट की डोरी को पकड़कर उसे खींचकर खोल देगा लेकिन उसके इस तरह से पेटिकोट के छेद में से उस के नंगे बदन पर ऊंगलिया फिराने की वजह से उसका तन बदन थरथराने लगा उसके चिकने नंगे पेट पर उत्तेजना की थरथराहट साफ महसूस हो रही थी। उसके थरथराते हुए पेट को देखकर उत्तेजना के मारे सूरज का लंड ठुनकि मारने लगा। सूरज उसी मदहोशी के साथ अपनी उंगलियों को पेटीकोट के उसी छेंद से चारों तरफ घुमाने लगा,,, सूरज की ऊंगलिया पेट के नीचे वाले भाग पर चारों तरफ घूम रही थी। और जल्द ही उसे इस बात का एहसास हो गया कि वैशाली मामी ने पेटीकोट के अंदर पेंटी नहीं पहनी है और इस बात को लेकर सूरज और भी ज्यादा कामोत्तेजित हाे गया।,,,
अब वैशालीको पूरी तरह से नंगी देखने की उसकी भी उत्सुकता कुछ ज्यादा ही जोर मारने लगी,, दूसरी तरफ वैशाली सूरज की हरकतों से एकदम पानी पानी हुए जा रही थी रह-रहकर घुटि-घुटि सी सिसकारी उसके मुख से निकल जा रही थी जितनी ज्यादा उत्तेजना का एहसास सूरज करा रहा था।।ईस तरह की ऊत्तेजना का एहसास वैशाली को कभी भी ना तो हुआ था और ना ही किसी ने कराया था। इतने मात्र से ही रोजी सूरज की दीवानी हुई जा रही थी अभी तो सूरज का असली खेल बाकी था। सूरज धीरे से पेटिकोट के छेद में से ऊंगलियों को बाहर निकाल लिया,,, और वैशाली की तरफ देखने लगा,,, इस बार वैशाली की नजरें जैसे ही सूरज की नज़रों से टकराई शर्म के मारे वह अपनी नजरों को फेर ली, सूरज को वैशाली इस तरह से शर्माना बहुत अच्छा लगा,,,, सूरज और वैशाली की नजरों के बीच,,,,

एक और चीज नजर आ रही थी जो कि बेहद आकर्षक ढंग से अपना परिचय करा रही थी,,,ओर।वह थी वैशाली की बड़ी बड़ी गोल चुचीयां जो की उसकी गहरी चल रही सांसो कि लय के साथ ऊपर नीचे हो रही थी,, और यही चूचियों का उठना बैठना सूरज की उत्तेजना बढ़ा रहा था,,,
वैशाली आज पूरी तरह से सूरज के हवाले थी,, इसलिए सूरज भी बेहद सब्र से काम ले रहा था,,,। चूचियों को पकड़कर पीने का लालच उसके मन को फिर से झकझोरने लगा,,, उसके मन में आ रहा था कि एक बार फिर से वैशाली मामी की बड़ी-बड़ी चूचियों को थाम कर जी भर के पिए,,,
लेकिन इस समय उसके हाथों में वैशाली मामी के बेशकीमती खजाने के परदे की डोरी थी,, जिसे खींचते ही बेशकीमती खजाने पर से पर्दा हट जाता और वैशाली के बुर नाम का बेशकीमती खजाना सूरज को नजर आने लगता जिस खजाने को देखने के लिए और उसे अपनी हथेली में पकड़कर दबोचने के लिए सूरज ईस समय व्याकुल हुए जा रहा था। और इसी वजह से उसने स्तन मर्दन और स्तन चूसन की लालच को एक तरफ करके बुर दबोचन के लालच की तरफ बढ़ने लगा,,,,

कसमसाहट भऱी वैशाली क्या खूबसूरत बदन थरथरा रहा था,,,,, उत्तेजना के मारे से सूरज का गला सूख रहा था उसके हाथों में पेटिकोट की रेशमी डोरी थी जिसे वह धीरे-धीरे खींचने लगा था,,, वैशाली की नजरें सूरज की उंगलियों में फसी हुई पेटीकोट की डोरी पर ही थी उसे मालूम था कि अगले ही पल वह पूरी तरह से नंगी हो जाएगी इस वजह से उसकी सांसो की गति तेज हो गई थी,,,
उसके मन में इस बात से शर्म और उत्तेजना दोनों का मिला जुला असर हो रहा था कि वह अपने से छोटे लगभग उसके बेटे समान ही भांजे के सामने उसके ही हाथों से नंगी होने जा रही थी और अपने से ही छोटे उम्र के लड़के के साथ,,, संभोगरत होने की कल्पना से ही उसके तन-बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ रही थी सूरज धीरे-धीरे पेटिकोट की डोरी को खींच रहा था,,, वह चाहता तो एक झटके से ही पेटिकोट की डोरी खोल कर पेटिकोट को नीचे कदमों में गिरा देता लेकिन आहीस्ता आहीस्ता वह जानबूझकर ऐसा कर रहा था क्योंकि धीरे धीरे उत्तेजना बढ़ाने में उसे मजा भी आ रहा था और वैशाली की हालत देखने लायक होती जा रही थी क्योंकि निरंतर उसकी सांसो की गति में वृद्धि होती जा रही थी।

अगले ही पल सूरज ने पेटीकोट की डोरी को पूरी तरह से खींच कर खोल दिया पेटीकोट पूरी तरह से ढीली हो चुकी थी,,, वह किसी भी वक्त कमर से सरक कर उसके कदमों में गिर सकती थी बस सूरज को पेटिकोट की डोरी अपनी नाजुक उंगलियों से छोड़ने की डेरी थी,,,
कुछ सेकंड के लिए वह खुली हुई डोरी को अपनी उंगलियों में फसाए हुए वैशाली मामी की तरफ देखने लगा,,, जो कि इस समय पूरी तरह से मदहोशी में लिप्त हो चुकी थी। सूरज अगले ही पल पेटिकोट की डोरी को अपने हाथों से छोड़ दिया और,,, वैशाली के बेश कीमती खजाने पर से पेटीकोट नुमा पर्दा सरकता हुआ वैशाली के कदमों में जा गिरा,,, अगले ही पल आम के बगीचे में बनी झोपड़ी के अंदर सूरज की आंखों के सामने उसकी छोटी मामी वैशाली संपूर्णता पूरी तरह से नंगी खड़ी थी और अपनी वैशाली मामी को संपूर्ण रुप से नंगी देखकर उत्तेजना के मारे सूरज का दिल उछलने लगा था। अपलक वह वैशाली को देखता ही रह गया उसका गोरा बदन सूरज के ततनबदन में ऊष्मा प्रदान कर रहा था।
वैशाली को ईस समय बेहद लज्जा का आभास हो रहा है। इस समय वहं सूरज से ठीक से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी,,,, संगमरमर सा बदन झोपड़ी के अंदर अपनी आभा बिखेर रहा था। सूरज वैशाली मामी के चेहरे से धीरे-धीरे नजरों को नीचे की तरफ लाकर अपनी नजरों से ही वैशाली मामी के खूबसूरत मधुर रस को पी रहा था। वैशाली के बदन पर कही भी चर्बी का थर जमा हुआ नहीं था। उसके संपूर्ण बदन में चर्बी का माप समतोल आकार में ही था। चिकनी पेट के नीचे त्रिकोण आकार में बना हुआ बदन का आकार बेहद खूबसूरत लग रहा था जिसके बीचो-बीच बुर की पतली दरार नजर आ रहे थीे और उस के बीचो-बीच निकली हुई गुलाब की गुलाबी पंखुड़ियां,,,, बुर की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे थे। सबसे ज्यादा उत्तेजना प्रदान करने वाली बात यह थी कि वैशालीने पेटीकोट के अंदर कुछ भी नहीं पहनी थी।,,,,

सूरज वासना भरी आंखों से वैशाली मामी के रूप यौवन का दर्शन कर रहा था और वैशाली थी की शर्म के मारे अपनी नजरें दूसरी तरफ फैर ली थी,,, सूरज प्यासा था और वैशाली की तनरुपी गगरी मधुर रस से भरी हुई थी,, और जिसे पीकर सूरज अपनी प्यास बुझाना चाहता था।,, वैशाली के मधरुपी मधुर रस को पीने के लिए उसके तनरुपी गगरी के छेंद में बिना होंठ लगाएं उसके मधुर रस का स्वाद नहीं चखा जा सकता था,,,, अगर मधुर रस का स्वाद चखना है तो ऊसे वैशाली मामी के गुलाबी छेद में मुंह लगाना ही था और इस बात से ऊसको बिल्कुल भी इनकार भी नहीं था,,,वह तो ऐसे भीं तड़प रहा ऊसकी बुर पर मुंह लगाकर ऊसके मधुर रस को पीने के लिेए।

इसलिए सूरज अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर उसकी गुदाज चिकनी जांघो को पकड़ लिया,,, वैशाली एकदम से गनगना गई,,,, सूरज लंबी लंबी सांसे भरते हुए वैशाली मामी की रसीली बुर को देख रहा था जिस पर बाल का रेशा तक नहीं था ऐसा लग रहा था कि अभी हाल में ही वह पूरी तरह से साफ की हो,,,, सूरज बुर की पतली दरार पर हल्के से अपनी उंगली रखकर उसकी गर्माहट को महसूस करने लगा,,, और जैसे ही सूरज ने उसके बेशकीमती खजाने पर उंगली रखा वैसे ही तुरंत उत्तेजना के मारे वैशाली ने अपने दोनों जांघों को आपस में सिकोड़ ली ओर ऊसके मुख से गर्म सिसकारी निकल गई।
ससससहहहहह,,,, सूरज,,,,, आहहहहहहहहह,,,,

( गरम सिसकारी छोड़ते हुए वह सूरज के हाथ को पकड़ ली,,, उसके हाथ पकड़े होने के बावजूद भी से सूरज हल्के-हल्के अपनी उंगलियों को फूली हुई बुर पर फिरा रहा था।,,, सूरज औरतों को काबू में करना सीख गया था और उन्हें उनके कौन से अंग को छेड़ने से उन्हें ज्यादा उत्तेजना का अनुभव होता है या अभी वह अच्छी तरह से जानता था,,, इसीलिए तो वहां अपने बीच वाली उंगली को बुर की पतली दरार के बीचो-बीच हल्के हल्के रगड़ते हुए घुमा रहा था,,, वैशाली सूरज की हरकत से एकदम चुदवासी हो चुकी थी उसका बदन बुरी तरह से थरथरा रहा था। सूरज के सामने वह पूरी तरह से नंगी खड़ी थी,,, वैशाली आज तक अपने नंगे बदन पर किसी मर्द के द्वारा इस तरह की हरकत का सामना नहीं की थी यह सब उसके साथ पहली बार हो रहा था पहली बार ही कोई था जो उसके अंगों से इतना ज्यादा प्यार कर रहा था उसे दुलार रहा था।,,,,, सूरज की भी सांसे बड़ी तेज चल रही थी वह बुर की दरार पर हल्के हल्के अंगुलियों को घुमाता हुआ वैशाली मामी से बोला,,,,।

वैशाली मेरी जान सच में तुम बहुत खूबसूरत है तुम्हारा संगमरमरी बदन बेहद खूबसूरत है। मैंने आज तक तुम्हारे जैसी खूबसूरत औरत नहीं देखा (सूरज के द्वारा अपनी तारीफ सुनकर वैशाली मन ही मन प्रसन्न होते हुए शर्मा भी रही थी)

चल झूठी तारीफ मत कर,,,,

मैं सच कह रहा हूं मामी,,, मुझे अब भी यकीन नहीं हो रहा है कि तुम मेरी आंखो के सामने नंगी खड़ी हो,,, ( इस बार सूरज की बात सुनकर फिर से वह शर्माती हुई अपनी जांघों को सिकोड़ ली,,, और नजरे दूसरी तरफ फेर कर बोली,,,।)

तूने ही तो किया है मुझे नंगी,,,,।

तो क्या करता मामी तुम्हारे खूबसूरत बदन को देखने के लिए मे कब से तड़प रहा था।( उत्तेजना के मारे बुर को अपनी हथेली में दबोचते हुए बोला जिसकी वजह से वैशाली की सिसकारी निकल गई,,,।)

ओहहहहहहहह,,,, सूरज यह मामी मामी क्या लगा रखा है।,,,

तो क्या बोलूं मामी तुम्हें,,,,

कुछ भी बोल लेकिन इस समय मुझे माम़ी मत बोल,,,,
( वैशाली भी पूरी तरह से सूरज की हरकतों की दीवानी हो चुकी थी वह भी मामी भांजे के रिश्ते को पूरी तरह से भूल चुकी थी,,, वह सूरज के मुख से और सुनना चाहती थी जो कि एक मर्द औरत से प्यार करते समय बोलता है एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को ऐसी स्थिति में पुकारता है सूरज भी जल्दी समझ गया कि वह क्या चाहती है इसलिए उसकी बुर से खेलता हुआ बोला,,,)

वैशाली मेरी जान,,, तेरा जवान बदन मेरे होश उड़ा रहा है। मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि मैं इस समय तेरी खूबसूरत बदन से खेल रहा हूं।,,, सच वैशाली मैं कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि तुम्हारी बुर इतनी साफ-सुथरी होगी,,,

क्या मतलब,,,,? ( वैशाली आश्चर्य के साथ बोली)

मेरा मतलब है कि मैं कभी सोचा नहीं था कि तुम अपनी बुर को साफ रखती होगी बाल का रेशा तक नहीं है,,, सच बताना मामी मेरा मतलब है वैशाली,,, यह साफ करने के लिए उसी ने बोला था ना तुम्हारा दीवाना,,,,
( वैशाली सूरज की यह बात सुनकर थोड़ा सकपका गई लेकिन उसे मालूम था कि सूरज से छुपाने जैसा कुछ भी नहीं इसलिए वह बोली,,,।)

तू ठीक है समझ रहा है बालों वाली बुर को चाटने से इंकार कर देता था इसलिए मुझे इसे साफ करना ही पड़ता था,,।( वैशाली भी सूरज के सामने बेशर्म बनते हुए बोली।)

सच कहूं तो रानी बिना बाल वाली चिकनी बुर को चाटने का मजा ही कुछ और है,,, मुझे भी चिकनी बुर ही पसंद है,,,( इतना कहते हुए सूरज बुर पर से हाथ हटा कर फिर से उसकी मोटी मोटी जांघों को थाम लिया और थोड़ा सा जांघों को पकड़े हुए ही उसके बदन को अपनी तरफ खींचते हुए बोला,,,)

देख कैसे कचोरी जैसी फूली हुई है और इसमें से मधुररस टपक रहा है,,,। यही तो मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है जब तक तुम्ह जेसी भरे बदन वाली औरत की बुर जीभ लगाकर चाट ना जाऊ तब तक उन्हें चोदने में मजा नहीं आता,,,
( वैशालीसू रज की ऐसी गंदी और खुली हुई बातें सुनकर एकदम से उत्तेजना से भर गई उसे सूरज की बातों से बेहद आनंद मिल रहा था। और वह बोली,,,।)

पक्का हरामी है रे तू कितना भोला भाला तू लगता है उतना ही शैतान है।

क्या करूं मेरी जान तेरी जैसी औरतो ने हीं मुझे हरामी बना दिया।,,,,,, ( इतना कहते हुए सूरज ने उसकी बुर को फैलाते फैलाते अपने बीच वाली उंगली को उस की रसीली बुर के अंदर उतार दिया,, उसकी बुर उसके ही नमकीन पानी से पूरी तरह से गीली हो चुकी थी इसलिए एक झटके से पूरी की पूरी उंगली बुर की गहराई तक समा गई,,,, एकाएक सूरज की ऐसी हरकत की वजह से वैशाली की लगभग चीख निकल गई,,,,,।


आहहहहहहहहह,,,,,, हरामी यह क्या कर रहा है रे,,,

वही कर रहा हूं मेरी जान जो एक आदमी को एक औरत के साथ करना चाहिए मैं तेरी बुर की गहराई नाप रहा हुं। मैं अपने लंड के लिए रास्ता बना रहा हूं,,,।

तो ऐसे कोई रास्ता बनाता है कितना दर्द करने लगा,,,,

दर्द में ही तो मजा है मेरी रानी अभी तो सिर्फ उंगली गई है जब मेरा पूरा लंड जाएगा तब पता नहीं तु कैसे,, सहेगी,,,,( सूरज अपनी उंगली कौ ऊसकी बुर के अंदर बाहर करते हुए बोला,,,)

सह लूंगी तू डाल के तो देख तुझे भी पूरा का पूरा अंदर ले लूंगी,,,( वैशाली एकदम बदहवास होकर मदहोशी के आलम मे बोले जा रही थी। वह एकदम से चुदवासी हो चुकी थी उसकी बुर लंबे मोटे लंड के लिए तड़पने लगी थी,,,, सूरज को वैशाली का इस तरह से ललकारना और उसे चोदने के लिए उकसाना बेहद प्रभावित कर गया था वैशाली चाह रही थी कि सूरज ऊसकी बुर में अपना लंड डाल कर उसे चोदना शुरू कर दें,,,,
क्योंकि वह पूरी तरह से चुदवाने के लिए तड़प रही थी लेकिन यही तो सूरज की खासियत थी वह कभी भी जोश में होश नहीं खोता था। औरतों को पूरी तरह से चुदवासी बनाकर उसे चोदता था तभी तो चोदने का आनंद और भी ज्यादा बढ़ जाता था,, वैशाली पूरी तरह से गहरी गहरी सांसे ले रही थी, उत्तेजना के मारे ऊसकी बुर फुल पीचक रही थी।,,,,

वैशाली की यह हालत सूरज से भी देखी नहीं जा रही थी जिस तरह से उसकी बुर उत्तेजना के मारे फुल रही थी और पीचक रही थी उसे देखते हुए किसी भी समय, उसकी बुर अपना मलाई बाहर झटक सकती थी,,,
और सूरज उसकी बुर से निकली हुई मलाई को अपनी जीभ से चाट कर इसका स्वाद चखना चाहता था,, इसलिए एक पल की भी देरी किए बिना वह झट से अपना मुंह बुर पर लगा दिया और अपनी जीभ को तुरंत उसकी बुर की पतली दरार में घुसा कर चाटना शुरु कर दिया,,,,
सूरज की इस हरकत पर वैशाली पूरी तरह से गनगना गई, उसका पूरा वजूद कांप गया उसे यकीन नहीं हो रहा था कि यह सब हकीकत है,, उसे यह सब सपना ही लग रहा था क्योंकि,,, सूरज को खुद ही वह उसकी हरकत पर डांट फटकार चुकी थी,, वह अपना तन बदन सूरज को सोंपने के लिए कभी भी तैयार नहीं थी,,,

लेकिन इस समय नजारा कुछ और ही था आम की बगिया में वह खुद सूरज से अपनी बुर चटवा रही थी। युवा जोश में आकर सूरज के बाल को दोनों हाथों से अपनी मुट्ठी में भींच ली थी,,, सूरज भी पूरे जोश के साथ अपनी जीभ के कोर को उसकी बुर की दरार में डालकर जीभ से ऊसकी बुक के दाने पर चोट कर रहा था,,, और सूरज की यह हरकत वैशाली की उत्तेजना को तीव्र गति से बढ़ा रहीे थी,,,
जिस गर्मजोशी के साथ सूरज उसकी बुर को चाट रहा था वैशाली अपने आप पर बिल्कुल भी काबू नहीं कर पाई और भलभलाकर झड़ना शुरु कर दी,,, सूरज भी प्यासे की तरह वैशाली की बूर से निकल रहे मदन रस की बुंदो को जीभ से चाट चाट कर अपने गले के नीचे उतारने लगा,,,,
सूरज के हाथों पहली बार वैशाली झढ़ चुकी थी,, और जिस तरह से सूरज मे बिना चोदे ही उसे झाड़ा था वैशाली पूरी तरह से सूरज की दीवानी हो चुकी थी वह यह सोच कर और भी ज्यादा रोमांचित हो रही थी कि जब यह केवल अपनी जीभ से ही उसका पानी निकाल दिया जब यह अपना मोटा लंड उसकी बुर में डालकर चोदेगा तब क्या होगा,,, यह सोचकर उसके मन में उथल पुथल मची हुई थी सूरज वैशाली के झड़ जाने के बाद भी,,, लगातार उसकी बुर को चाटे जा रहा था,,, क्योंकि वह वैशाली मामी के साथ पूरी तरह से मजा लेना चाहता था और उसे भी मजा देना चाहता था।


सूरज यह जानता था कि वैशाली झड़ चुकी है लेकिन फिर भी वह उसकी बुर को अपने होंठ लगाकर जीभ से चाटे जा रहा था,, क्योंकि उसे मालूम था कि झड़ने के बाद वैशाली की उत्तेजना शिथिल पड़ने लगेगी जो कि वह बिल्कुल भी नहीं चाहता था,,, क्योंकि अगर ऐसा हो गया तो इस समय झड़ने के तुरंत बाद उसे चोदने में उतना मजा नहीं आएगा जितना कि वह पूरी तरह से जोश से भरी हो तब आता,,,,
इसलिए सूरज वैशाली मामी की उत्तेजना को जरा सा भी कम नहीं होने देना चाहता था,, और वह अपनी जीभ को बुर की गुलाबी पत्तियों में डालकर उसके बुर के दाने को चाट रहा था,,,, इसका असर जल्द ही शिथिल पड़ रही वैशाली पर होने लगा,,, एक बार पानी फेंक देने के कुछ मिनट बाद ही वैशाली के मुख से फिर से सिसकारी की आवाज गूंजने लगी,,, और सूरज की हालत भी पल-पल खराब हुए जा रही थी सूरज लगातार उसकी बुर के गुलाबी दाने को जीभ से चोट करते हुए उसे चाटने का आनंद ले भी रहा था और वैशाली को मदमस्त भी किए जा रहा था,

वैशाली के बदन में जिस तरह की उत्तेजना की थरथराहट हो रही थी उसने आज तक कभी भी इस तरह की थरथराहट को महसूस नहीं की थी और ना ही इतनी जल्दी तुरंत ही दूसरी बार उत्तेजना की परम शिखर पर पहुंची थी,,,
इसलिए तो वह आज अपनी हालत पर एकदम हैरान थी और सूरज के लाजवाब हरकतों का वह सिर्फ गरम सिसकारियों के साथ ही जवाब दे पा रही थी। समझ गई थी कि सूरज पहुंचा हुआ खिलाड़ी है वरना अब तक तो दूसरा कोई होता है तो काम खत्म करके अपने काम पर लग गया होता लेकिन यह सूरज डँटा हुआ है। वैशाली की सांसे फिर से गहरी होती जा रही थी आज उसे बेहद आनंद की अनुभूति हो रही थी उसे तो कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर उसके बदन में आज अजीब अजीब सी हलचल क्यों हो रही है आखिर इससे पहले भी तो उसने बूर चटवाने का मजा लूट चुकी है,,, फिर आज क्यों पहले से भी अधिक आनंद की अनुभूति उसे हो रही है,,,, क्या पहले जो चाटता था उसे ठीक से आता नहीं था या वह औरत को खुश करने का तरीका नहीं जानता था,,,,
यही सब सोचकर वह हैरान हुए जा रही थी,,, की जिसके साथ भी वह संबंध बनाई थी, वह लोग परिपक्व होने के बावजूद भी औरत को खुश करने के मामले में नादान ही थे,,, और सूरज नादानियातं से भरी उम्र में भी औरत को खुश करने के मामले में पूरी तरह से परिपक्व और काबिले तारीफ था।,,,,
संपूर्ण रूप से नग्नावस्था में खड़ी होकर सूरज के द्वारा बुर चटाई का वैशाली पूरी तरह से आनंद लूट रही थी वह उत्तेजना के मारे अपनी बुर को गोल-गोल घुमाकर उसके चेहरे पर रगड़ भी रही थी,,,,,

सससहहहह,,,, सूरज तूने तो मुझे पागल कर दिया है आज तक मुझे ऐसा मजा कभी नहीं आया,,, तो औरतों को खुश करने में एकदम माहिर है।( इतना ही कही थी कि तुरंत उसके मुंह से हल्की सी चीख निकल गई क्योंकि वैशाली की बातें सुनकर सूरज एकदम से जोश में आ गया था और बुर की गुलाबी पत्ती को दांतो तलेें दबा दिया था,,।)
आहहहहहहहह,,,,, सूरज,,,, क्या कर रहा है हरामी ऐसे भी कोई करता है क्या,,,।

कोई करे ना करे लेकिन मैं तो जरूर करता हूं क्या करूं जानेमन तेरी बुर है ही इतनी खूबसूरत कि मुझ से रहा नहीं जा रहा है।( एक पल के लिए सूरज अपने होठों को उसकी रसीली बुर से हटा कर बोला और वापस बुर में जुट गया,,, और सूरज की बात सुनकर वैशाली प्रसन्नता के साथ साथ लज्जित हो गई,,,। और फिर से वह बुर चुसाई का मजा लेने लगी। घर पर शादी की तैयारी कर रहे लोग इस बात से बिल्कुल अनजान थे कि एक मां समान मामी एक बेटी समान भांजे के साथ एकदम नंगी होकर के उससे अपना बूर चटवा रही होगी,,, कामप्यासी औरत का बहक जाना लाजिमी होता है।,,
सूरज अपने दोनों हाथों से उसकी बड़ी-बड़ी नितंबों की फांकों को पकड़कर अपनी जीभ से लपालप उसकी बुर की मलाई चाट रहा था।,,,वैशाली पुरी तरह से चुदवासी हो गई थी।ऊसके मुख से गर्म सिसकारी लगातार छुट रही थी।

ओहहहह सूरज मुझसे रहा नहीं जा रहा है मेरी बुर में आग लगी हुई है मुझे तेरे लंड की जरूरत है,,, अब बस कर मेरी बुर में लंड डालकर चोद मुझे,,,
( वैशाली एकदम से चुदवासी होकर अपनी बुर को उसके चेहरे पर रगड़ते हुए बोल रही थी। उत्तेजनावश अपनी कमर को हल्के हल्के आगे पीछे करते हुए सूरज के चेहरे पर धक्के भी लगा रही थी। वैशाली कि मदहोशी देखकर सूरज समझ गया कि अब बिल्कुल भी देर करना उचित नहीं है,,,,
इसलिए वह भी जल्दी से अपने होठों को ऊसकी बुर पर से हटा दिया क्योंकि उसका लंड भी पूरी तरह से फुल चुका था और उसमे दर्द हो रहा था,,,,
सूरज जल्दी से खड़ा हुआ और अपने भी कपड़े निकाल कर एकदम नंगा हो गया,,, वैशाली सूरज का नंगा बदन देखकर एकदम से रोमांचित हो गई चौड़ी छाती गठीला बदन,,, देखकर वैशाली पूरी तरह से सूरज के प्रति आकर्षित हो गई,,, उससे रहा नहीं गया और वह तुरंत सूरज से लिपट गई,,

उसकी नंगी छातियों पर अपने होठों के निशान छोड़ने लगी साथ ही साथ ऊत्तेजना के मारे वह उसकी छातियों को अपने दांतो से काट भी ले रही थी,,, वैशाली पूरी तरह से कामातुर होकर उसकी छातियों से खेल रही थी और साथ ही एक हाथ नीचे ले जा कर उसके मोटे टनटनाए लंड को थामकर हिलाना शुरू कर दि,, सूरज के साथ साथ में वैशाली को इतना ज्यादा मजा आ रहा था कि,,, ऊसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें,,, इसलिए वह तुरंत सूखी घास पर घुटनों के बल बैठ गई सूरज समझ गया कि अब वह क्या करने वाली है,,, इसके लिए सूरज ऊसे कहने ही वाला था,,,
लेकिन उसके कहने से पहले ही वैशाली अपने लाल-लाल होठों को खोलकर सूरज के मोेंटो लंड के सुपाड़ें को अपने मुंह में लेकर चूसना शुरु कर दी,,
वैशाली को इस बार कुछ नया ही एहसास हो रहा है क्योंकि अब तक उसने इतना मोटा लंड अपने मुंह में लेकर चुसी नहीं थी। इसलिए उसे एक नया अनुभव और उसके तन बदन को नया एहसास हो रहा था,,,,

सूरज भी उत्तेजना के मारे उसके मुंह में ही धक्के लगाना शुरु कर दिया था,,,। कुछ देर तक ऐसे ही अपनी कमर हिलाने पर सूरज को लगने लगा कि अगर कुछ देर और उसके मुंह में लंड को रहने दिया तो उसका लंड पानी छोड़ देगा,,,, इसलिए वह तुरंत अपने लंड को वैशाली मामी के मुंह से बाहर निकाल लिया,,,दोनो की सांसे बड़ी तेज चल रही थी।,, वैशाली अभी भी ललचाई आंखों से उसके लंड की तरफ देख रही थी। और उसे ईस तरह से ललचाई आंखों से देखता हुआ पाकर सूरज बोला,,,


ऐसे क्या देख रही है मेरी जान,, यह तेरा ही है। ( अपने लंड की तरफ इशारा करते हुए बोला,,,)

अगर मेरा ही है तो अब तक बाहर क्यों है मेरी बुर के अंदर क्यों नहीं,,,?

बस अब जाने ही वाला है,,,,।( इतना कहने के साथ ही वह घास पर झुकने लगा,,,, वैशाली समझ गई कि आप उसे क्या करना है इसलिए वह गहरी सांस लेते हुए सूखी हुई घास पर पीठ के बल लेट गई,,,, सूरज जल्द ही उसकी जांघों को फैलाकर अपने लिए जगह बना लिया और तुरंत अपने लंड के सुपाड़े को उसकी गीली बुर पर रखकर एक जोरदार धक्का लगाया लंड का सुपाड़ा तुरंत सरकते हुए वैशाली की रसीली बुर में समा गया,,, वैशाली की बुर में अब तक ईतना मोटा लंड कभी नहीं गया था,,, इसलिए सूरज के इस वार पर उसके मुंह से चीख निकल गई,,,, और उसकी चीख सुनकर उसकी जांघो को अपनी हथेली में दबेचते हुए बोला,,,,

क्या हुआ मेरी जान बस इतने से चिल्लाने लगी तुम तो कहती थी कि मैं तुमको पूरा अपने अंदर ले लूंगी,,,,

थोड़ा संभलने का मौका तो दिया होता यु एकाएक हमला करेगा तो किसी के पास भी बचने का समय नहीं रहेगा,,,,,

मेरी जान प्यार में और वार में मौका नहीं दिया जाता तभी तो मजा आता है (इतना कहने के साथ फिर से एक करारा झटका मारा और इस बार उसका मोटा लंड सब कुछ चीरता हुआ बुर की गहराई में समा गया,,,, वैशाली अपने आपको संभाल नहीं पाई और उसके मुख से जोरों की चीख निकल गई,,, वह तो अच्छा हुआ कि बगीचे में और दूर-दूर तक कोई नहीं था वरना लोग इकट्ठा होने लगते वह दर्द से कराहते हुए बोली,,,।)

हरामजादे मैं कहीं भागी चली जा रही थी क्या जो इस तरह से जानवरों की तरह डाल दिया,,,।

कुछ नहीं मेरी जान मैं तेरा दम देखना चाहता था,,,।

साले कुत्ते जान निकालकर दम देखना चाहता है,,,।

क्या करूं मेरी रानी प्यार से चोदने लायक तू नहीं है तुझे देखते ही आंखों में दस बोतलों का नशा चढ़ जाता है,,,। बहुत नशा भरा है तेरे इस नशीले बदन में,,,, देख तेरी गुलाबी बुर कैसे फैल गई है,,,,( सूरज अपने लंड को उसकी बुर के अंदर बाहर करते हुए बोला वैशाली भी सूरज की बात सुनकर अपनी नजरें उठाकर अपनी टांगों के बीच में देखने लगी तो वह भी हैरान रह गई,,, सच में उसकी बुर की गुलाबी पत्तियां एकदम से चोड़ी हो गई थी,,, जोंकि अब तक किसी ने भी नहीं कर पाया था,, वैशाली को इस तरह से हैरान होकर देखते हुए देखकर सूरज मुस्कुराते हुए बोला।,,,,

देख मेरी जान इस तरह से तेरी बुर को उसने भी नहीं फैलाया होगा जो कल रात को तेरी चुदाई कर रहा था।
( ऐसा कहते हुए सूरज जोर-जोर से अपने लंड को उसकी बुर में पेल रहा था,,, हर धक्के के साथ वैशाली गरम सिसकारियां निकल जा रही थी,,,

आहहहहहहहह,,,,,, आहहहहहहहह,,,,, सूरज थोड़ा धीरे तेरा धक्का मुझसे सहा नहीं जा रहा है सच में तेरा लंड बहुत दमदार है,,,,।

मेरी जान मेरा लंड दमदार है तभी तो तू मेरे नीचे लेटी हुई है वरना मुझे भाव भी नहीं दे रही थी,,,।

सच रे सूरज मुझे पहले पता होता तो मैं खुद ही तेरे पास आ गई होती,,,,

चल कोई बात नहीं मेरी जान देर से ही सही लेकिन आई तो,,, देख मैं तुझे इतना मस्त चुदाई का मजा दूंगा की तु जिंदगी भर मुझे और मेरे लंड को याद रखेगी,,,, (इतना कहते हुए सूरज ताबड़तोड़ लंड का वार ऊसकी रसीली बुर के अंदर करने लगा,,, सूरज इतनी तेज अपनी कमर चला रहा था की वैशाली को बिल्कुल भी संभलने का मौका नहीं मिल रहा था। लेकिन आज चुदवाने का जो मजा उसे मिल रहा था ऐसा मजा उसे आज तक नहीं मिल पाया,,,, सूरज वैशाली को अपनी बाहों में भर कर अपनी कमर हिला रहा था जिससे उसकी बड़ी बड़ी चूचियां उसकी नंगी छातियों से चिपकी हुई थी,,, और दोनों का बदन चुदास भरी गर्मी से तप रहा था। सूरज वैशाली को अपनी बाहों में भरकर धक्के पर धक्के लगा रहा था।
जिससे दोनों का मजा दुगना हो रहा था। झोपड़ी के अंदर वैशाली की गरम सिस्कारियां गूंज रही थी,,,। सूरज का मोटा लंड पूरे का पूरा वैशाली की बुर की गहराइयों में डूब जा रहा था। सूरज जल्दी-जल्दी उसे चोदते हुए अपने दोनों हाथों से उसकी दोनो चुचियों को पकड़कर मसलने लगा,,, जिससे वैशाली को थोड़ा दर्द का एहसास भी हो रहा था लेकिन मज़ा भी उतना आ रहा था,,,

वैशाली भी रह-रहकर नीचे से अपनी कमर को ऊपर उठाने की कोशिश कर रही थी लेकिन सूरज के धक्के इतने ताकतवर थे की वैशाली पूरी तरह से नीचे से धक्के लगा ही नहीं पा रही थी सूरज पूरी तरह से उस पर छा चुका था तभी उसकी चूचियों को दवाता तो कभी उसकी पतली कमर को अपनी हथेली में भरकर मसलने लगता,,, जिस दर्द के साथ सूरज वैशाली से संभोग कर रहा था वैशाली हवा में उड़ रही थी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि सूरज जैसा भोला भाला लड़का ऊसकी जबरदस्त चुदाई कर लेगा । लेकिन यह हकीकत ही था इसमें कोई दो राय नहीं थी,,, कि सूरज अपनी ताकत से और अपने दमदार लंड से वैशाली को झूला झूला रहा था।


वैशाली पूरी तरह से उसके तन बदन से लिपट चुकी थी, थोड़ी देर तक ऐसे चोदने के बाद सूरज तुरंत अपना लंड ऊसकी बूर से बाहर निकाला और उसकी पतली कमर पकड़ कर उसे घोड़ी बनने को कहा,,,
वैशाली भी समय की नजाकत को समझ कर तुरंत घोड़ी बन गई,,, लेकिन उसके मन में शंका था कि क्या पीछे से सूरज उसकी बुर में अच्छी तरह से लंड डाल लेगा। क्योंकि अभी तक उसने इस तरह से कभी भी मजा नहीं ले पाई थी और उसके आशिक द्वारा दो तीन बार कोशिश करने पर ही सफल हो पाता था इसलिए सूरज के प्रति उसे थोड़ा बहुत शंका था लेकिन मन में अजीब सी हलचल मची हुई थी,,, पर वह यह नहीं जानती थी कि सूरज किसी भी औरत को किसी भी तरह से झूला झुलाने में पूरी तरह से सक्षम है। और सूरज अपनी सछमता को साबित करते हुए पहली बार में ही अपने मोटे लंबे लंड को उसकी बुर की गहराई में उतार दिया,,,,
वैशाली तो एकदम से हैरान हो गई उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जो कुछ भी हुआ वह एकदम वास्तविक है क्योंकि वह जानती थी कि उसकी वहां का उधर कुछ ज्यादा ही बाहर की तरफ निकला हुआ है जिसकी वजह से पीछे से लंड डालने में तकलीफ होती है,,,,,

लेकिन वास्तविकता नहीं थी कि सूरज में पहली बार में ही उसकी बुर की गहराई में पीछे से अपने लंड को उतार दिया था,,, सूरज पहले से ही औरतों को पीछे से चोदने में माहीर था। बड़ी बड़ी गांड को अपने हाथों में लेकर चोदने में सूरज को बड़ा मजा आता था और वह इस समय यही कर रहा था वैशाली भी एकदम पागलों की तरह अपनी बड़ी बड़ी गांड को पीछे की तरफ ठेल कर सूरज के लंड को लेने मैं मस्त हो गई थी। वैशाली के मन में सूरज के प्रति अब किसी भी प्रकार का कोई भी संदेह नहीं रह गया था। वैशाली अच्छी तरह से समझ गई थी कि सूरज संपूर्ण रूप से पूरा मर्द था जिससे चुदवाने के बाद कोई भी औरत उसकी गुलाम बनना पसंद करती,,
वैशाली खुद उसकी गुलाम हो चुकी थी। मन ही मन वह सूरज को ढेर सारी दुआएं दे रही थी,,,, क्योंकि जितनी देर से सूरज टिका हुआ था वह कभी सपने में भी नहीं सोच पाई थी कि कोई इतनी देर तक उसकी चुदाई कर पाएगा,,, करीब ४० मिनट गुजर गया था इतनी देर में वैशाली एक बार और झड़ गई थी और दूसरी बार झड़ने की कगार पर थी। सूरज का भी पानी निकलने वाला था इसलिए उसने अपने धक्को की गति तेज कर दिया था। और कुछ ही देर में दोनों एक साथ अपना अपना पानी फेंककर झड़ने लगे।,,,,
वैशाली जिस सुख का अनुभव आज की थी,,, खुशी के मारे उसकी आंखों से आंसू आ गए थे वह मन ही मन सूरज को दुआएं दे रही थी और यह काम ना करके मन मसोसकर रह जा रही थी कि सूरज जैसा उसका आदमी कोई नहीं है जिंदगी भर ऊसे इस तरह की चुदाई का सुख देता रहे,,,,

कुछ देर तक दोनों संपूर्ण नग्नावस्था में एक दूसरे से लिपटे हुए वही सूखी घास पर लेटे रहे,,, सूरज उसकी चूचियों से खेलता रहा और वैशाली उसके ढीले लंड से खेलते खेलते फिर से उसे खड़ा कर दी,,,
इस बार वैशाली खुद सूरज के ऊपर सवार हो गई हो उसके लंड को अपनी बुर की गहराई में उतार कर सूरज को चोदने का आनंद लुटने लगी,,


वैशाली चाहती तो शाम ढलने से पहले ही घर की तरफ जा सकती थी,,, लेकिन जब तक अंधेरा नहीं जाने लगा तब तक वह उसी झोपड़ी में सूरज से चुदती रही क्योंकि वह जानती थी कि आज जो मौका मिला है ऐसा मौका फिर कभी नहीं मिलने वाला था वह पूरी तरह से तृप्त हो चुकी थी। और अंधेरा ढलने के साथ ही दोनों घर की तरफ रवाना हो गए।
 
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आहहहहहह,,,,,, पद्मा,,,, ( बिलास एकदम से उन्माद मैं भर चुका था उसकी आंखें सुख की अनुभूति करते हुए बंद होने लगी। उसका गला सुर्ख होने लगा। पद्मा को तो जैसे कोई बर्फ़ का गोला मिल गई हो इस तरह से ऊसे मुंह में भर कर चुसे जा रहीे थी। पद्मा कि यह अदा बिलास को पागल किए जा रही थी और इसी अदा पर तो बिलास पूरी तरह से फ़िदा था। यही सब बातों की वजह से पद्मा दूसरी औरतों से बिल्कुल अलग थी और जिस प्रकार से पद्मा अपनी अदाओं से बिलास को संपूर्ण रूप से संतुष्टि प्रदान कर रही थी यही अदा वह मंगल में देखना चाहता था। बिस्तर पर मंगल को वाह इसी रूप में देखना चाहता था जिस तरह से पद्मा बिना कुछ बोले अपने आप से ही बिलास को संपूर्ण रुप से संतुष्टि देते हुए खुद ही उसके अंगों से खेल रही थी और उसके लंड को मुंह में लेकर चूस रही थी यही सारी अदाएं वह मंगल से चाहता था लेकिन मंगल अपने आप को इस कला में परिपूर्ण नहीं कर पाई। बिलास के कई बार दबाव देने पर मंगल ने पद्मा की तरह बिलास को खुश करने की कोशिश की लेकिन उससे यह सब नहीं किया गया वह जब भी बिलास के लंड को अपने मुंह में लेती तो उसका जी मचलने लगता उसे उबकाई आने लगती और फिर वह उल्टी कर देती थी जिससे बिलास का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच जाता था और वहां मंगल को खरी-खोटी सुनाकर उसका अपमान करते हुए उसी हालत में छोड़कर चला जाता था।
पद्मा धीरे-धीरे बिलास के पूरे लंड को अपने गले तक उतारकर चुशना शुरू कर दी। बिलास तो उसके मुंह को ही ऊसकी बूर समझ कर धक्के देना शुरु कर दिया था।
पद्मा भी उसके धक्कों का जवाब देते हुए अपने मुंह को ही आगे पीछे करके जोर-जोर से ऊसके लंड को चुसना शुरु कर दी । दोनों कामातूर हो चुके थे कुछ देर तक यूं ही पद्मा बिलास के लंड को चुसती रही और उसके बाद बिलास को लगने लगा कहीं ऊसका पानी ना निकल जाए इसलिए वह र
पद्मा के मुंह में से अपने लंड को बाहर खींच लिया। पद्मा की सांसे ऊपर-नीचे हो रही थी बिलास एक पल भी रुके बिना पद्मा की बाहों को पकड़कर उठाकर और नीचे जमीन पर बिठा दिया,,,, जमीन पर बैठते ही पद्मा को समझ में आ गया कि उसे क्या करना है इसलिए उसने झट से अपनी साड़ी को धीरे-धीरे सरकाते हुए अपने कमर तक चढ़ा ली और अपनी जांघों को फैला दी। बिलास तो यह नजारा देख कर एकदम कामातुर हो गया उससे रहा नहीं गया और वह घुटनों के बल बैठ कर. पद्मा की पैंटी को एक छोर से पकड़ कर दूसरी तरफ कर दिया जिससे कि उसकी फुली हुई बुर उभरकर एकदम सामने आ गई। रस से भरी रसमलाई को देखकर बिलास अपना मुंह सीधे उस रसमालाई में डाल दिया,,, और जीभ से नमकीन रात को चाटना शुरू कर दिया। पद्मा तो पागल हुए जा रही थी उसके बदन में उन्माद का संचार बड़ी तेजी से हो रहा था। जैसे-जैसे बिलास की जीभ पद्मा की रसीली बुर पर इधर उधर घूम रही थी वैसे वैसे पद्मा की सिसकारी और तेज होती जा रही थी और साथ ही वह अपने दोनों हाथ से बिलास का सिर पकड़कर उसका दबाव अपनी जांघों के बीच बढ़ा रही थी। बिलास को इस तरह से काफी अरसा बीत चुका था मंगल की बुर को चाटे। शुरु-शुरु में वह इसी तरह से मंगल से प्यार करता था लेकिन धीरे-धीरे यह प्यार मंगल के लिए कम होता है गया। इसी तरह के प्यार के लिए मंगल तड़प रही थी उसके मन में भी यही होता था कि बिलास उसके साथ ऐसा ही प्यार करें जैसा कि वह पद्मा के साथ कर रहा था।

ओहहहहहह,,,,, रामवाह,,,,,, मेरे राजा,,,,,,, बस ऐसे ही ऐसे ही,,,,,, जोर जोर से चाटो । मेरे राजा मेरी बुर का सारा रस पी जाओ अपनी जीभ से,,,,,,,आहहहहहहह,,,,,,, बहुत मजा आ रहा है बिलास यही मजा पाने के लिए तो मैं तुम्हारे पास आती हुं,,,,,, मेरा पति कभी भी मुझे इस तरह से प्यार नहीं करता,,,,,,, ससससससहहहहहह,,,,, ओोोहहहहहहहहहह,,,,,, म्मांं,,,,,,,, मर गई रे मुझसे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हो रहा है मेरे राजा,,,,,,,,बस अब बिल्कुल भी देर मत करो,, अपना मोटा लंड डालकर मेरी बुर की खुजली मिटा दो बहुत पानी छोड़ रही है जो चोदोे बिलास चोदो,,,,,

मेरी प्यासी बुर तड़प रही है तुम्हारे लंड के लिए,,,,

ओहहहहहह,,,,, बिलास ,,,,,, मेरे राजा,,,,,,, बस ऐसे ही ऐसे ही,,,,,, जोर जोर से चाटो । मेरे राजा मेरी बुर का सारा रस पी जाओ अपनी जीभ से,,,,,,,आहहहहहहह,,,,,,, बहुत मजा आ रहा है बिलास यही मजा पाने के लिए तो मैं तुम्हारे पास आती हुं,,,,,, मेरा पति कभी भी मुझे इस तरह से प्यार नहीं करता,,,,,,, ससससससहहहहहह,,,,, ओोोहहहहहहहहहह,,,,,, म्मांं,,,,,,,, मर गई रे मुझसे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हो रहा है मेरे राजा,,,,,,,,बस अब बिल्कुल भी देर मत करो,, अपना मोटा लंड डालकर मेरी बुर की खुजली मिटा दो बहुत पानी छोड़ रही है जो चोदोे बिलास चोदो,,,,,

मेरी प्यासी बुर तड़प रही है तुम्हारे लंड के लिए,,,,

पद्मा एकदम से चुदवासी हो चुकी थी । बिलास जिस तरह से उसकी बुर की चटाई कर रहा था ।उससे उसकी काम ज्वाला और ज्यादा भड़क चुकी थी। एेसे मादक माहौल में पद्मा की गंदी बातें माहौल को और ज्यादा गर्म कर देती थी और यही बात बिलास को बेहद प्यारी लगती थी जो कि एसी ही उम्मीद वह मंगल से करता था लेकिन मंगल नें कभी भी ऐसे उत्तेजक मौके पर गंदी बातें कभी भी नहीं की।
माहौल पूरी तरह से गर्म हो चुका था, नीचे जमीन पर र
पद्मा लगभग नंगी ही अपनी जांघों को फैलाए बैठी हुई थी,,,, उसके बदन पर अभी भी साड़ी थी लेकिन उसके बदन के सारे नाजुक अंग जो कि कपड़ों के भीतर छुपे होने चाहिए वह सब कुछ नजर आ रहे थे।
आज पूरा दिन वह पूरी तरह से बिलास के साथ ही बिताना चाहतेी थी, वह भी घर से यही कह कर आई थी आज खेती में ज्यादा काम है इसलिए देर शाम को लौटेंगी,,,,
पद्मा को तड़पती देखकर अशोक भी उतावला हो चुका था अपने लंड को दहकती हुई बुर में डालने के लिए इसलिए वह अपना मुंह उसकी रसीली बुर पर से हटा लिया और खड़ा हो गया।
पद्मा की बुर से नमकीन रस टपक रहा था जिसे देखकर बिलास से रहा नहीं गया और वह तुरंत एक हाथ से अपना लंड पकड़ कर सीधे पद्मा के बुर पर टिका दिया,,,,, पद्मा की हालत खराब होने लगी और देखते ही देखते ही पद्मा कि बुर ने बिलास के पूरे समुचे लंड को अपने अंदर उतार ली।।
बिलास का लंड पद्मा की बुर में पूरी तरह से अंदर समा चुका था। बिलास धीरे-धीरे अपने लंड को पद्मा की बुर में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया। पद्मा की तो हालत खराब होने लगी उसके मुंह से तो सिसकारीयो की जैसे की फुहार छूटने लगी हो,,,,,
ससससससहहहहहह,,,,, आााहहहहहह,,,,,, आहहहहहहह,,,,, मेरे राजा मेरे बिलास ,,,,, और जोर जोर से चोदो मुझे,,,,, आहहहह जोर से,,,,,, अपने लंड को मेरी बुर में पेलो,,,, मेरी बुर को पानी पानी कर दो,,, बस एेसे ही,,,,, आहहहहहहह,,,,, ़बिलास ,,,,,,,

पद्मा की ऐसी गंदी बातें सुनकर बिलास जोर-जोर से पद्मा की चुदाई कर रहा था।
ओह पद्मा जैसा तुम खुल कर चुदवाती हो वैसा मेरी बीबी कभी भी नही चुदवाती इसलिए तो मुझे मेरी बीवी से ज्यादा मजा तुमसे मिलता है इसलिए तो मैं तुम्हारा दीवाना हो चुका हूं। आाााहहहहहह मेरी रानी,,,, आहहहहहहह,,,,,,

दोनों की सांसे तेज गति से चल रही थी दोनों मस्त हो चुके थे अशोक धक्के पर धक्का लगाए जा रहा था,,,, और पद्मा भी धक्के का जवाब बिलास को अपनी बाहों में भींच कर दे रही थी। करीब १० मिनट ही बीता होगा कि बिलास और पद्मा दोनों की सबसे तेज होने लगी और एक साथ दोनों का बदन अकड़ने लगा। और दोनों एक साथ झड़ गए,,,,,

बिलास इसी तरह से घर के बाहर मस्ती किया करता था वह अपने बदन की प्यास इसी तरह से पद्मा जेसी औरतों से बुझाया करता था और मंगल को नजरअंदाज करते हुए उसे प्यासी ही तड़पने को छोड़ देता था। अभी तो महफील की शुरुआत हुई थी यह महफिल तो रात ७:०० बजे तक चलने वाली थी। बरसों से खेतो के काम के बहाने बिलास बाहरी औरतों के साथ गुलछर्रे उड़ाता आ रहा था। जिसकी भनक तक मंगल को इतने सालों में नहीं लग पाई थी।
Nice
Keep it up
 
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सूरज गांव में आकर पूरी तरह से अपने परिवार में ही मस्ती कर रहा था।सूरज धीरे-धीरे अपने घर की औरतों पर पूरी तरह से छा चुका था उसके लंड की दीवानी उसकी छोटी मामी वैशाली भी हो चुकी थी। जहां एक तरफ सूरज लगा हुआ था और दूसरी तरफ उसका मामा बिलास अपनी चचेरी बहन के साथ पूरी तरह से काम वासना में लिप्त होकर उसकी रोज चुदाई कर रहा था। उसकी बहन की मजबूरी थी इस वजह से अपने भाई से रोज चुद रही थी,
हालांकि उसे बिलास के छोटे लंड से जरा भी मजा नहीं आ रहा था। लेकिन क्या करें मजबूरी थी एक तो उसके पास सिर छुपाने को ना तो जगह थी न खाने को भोजन का प्रबंध था नाही कपड़ों का,,,,,
ऐसी हालत में वह बिलास कीे पास आई थी कि,, बिलास को अपनी मनमानी करने से रोकने की स्थिति में वह बिल्कुल भी नहीं थी अगर ऐसी स्थिति में बिलास है की जगह कोई और भी होता तो भी वह उसकी मनमानी को हंसी-खुशी झेल लेती,,,। बिलास की बहन अपने हाथों मजबूर हो चुकी थी ना तो वह मनमानी करती और ना ही आज ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ता है बिलास जो कि खुद उसका चहेरा बड़ा भाई होने के बावजूद भी वासना में लिप्त होकर अपनी बहन के जिस्म की बोटी-बोटी रोज-नोच रहा था,,,

बदले में उसे भी पहनने को कपड़े खाने को भोजन और खर्चा पानी मैं जा रहा था लेकिन यह भी एक समस्या थी कि यह कब तक चलता,,, अच्छी तरह से जानती थी की जब तक उसकी भाभी घर पर नहीं है तब तक ही उसे ऐसो आराम है और उसके आने के बाद वह इस घर में कैसे रह पाएगी लेकिन इसका भी इंतजाम बिलास ने पहले से ही सोच रखा था लेकिन जब तक मंगल नहीं आ जाती तब तक वह दिन-रात काम बंद करके अपनी बहन के जिस्म से अपनी प्यास बुझाने में जुटा हुआ था,,,

गांव का माहौल धीरे-धीरे सूरज को और भी ज्यादा अच्छा लगने लगा केवल रहने की बात होती तो शायद वह ऊब जाता,,, लेकिन यहां घर में ही नई नई रसीली बुर का स्वाद उसे चखने को मिल रहा था इसलिए उसका दिन बड़ी मुश्किल से गुजर रहा था,,। घर में उसके नाना जिसका गांव में काफी नाम था और काफी ऊंचा घराना भी था उन्हें इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि उनकी घर की बहूए अपने ही भांजे के साथ चुदाई का वासना युक्त खेल खेल रही है।,,,
दोनों के पतियों को इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि उनके सामने सती सावित्री बनी रहने वाली उनकी बीवीयां मौका मिलने पर मोटा मोटा लंड अपनी बुर में गटक जा रही थी,,,, अच्छा ही था कि उन दोनों को इस बात का जरा भी खबर नहीं थी वरना वह लोग शर्म से ही मर जाते हैं क्योंकि वालों की अपनी बीवी को एकदम सती सावित्री समझते थे इसलिए तो उन्हें कहीं भी आने जाने की छूट दे रखे हैं और वैसे भी पता चल जाता तो भी यह उन दोनों के लिए एक सबक के समान ही था,,
और यह सबक दुनिया के हर उस मर्द के लिए है जो कि,,, कामकाज मे लिप्त होकर अपनी बीवी पर जरा भी ध्यान नहीं देते,,,
उन्हें यह समझ लेना चाहिए कि भले ही उनकी बीवियां मुंह खोल कर उन्हें चोदने के लिए ना कहती हो पर जिस तरह से समय-समय पर भूख और प्यास का एहसास होता है उसी तरह से समय-समय पर औरतों को अपनी जिस्मानी जरूरत पूरी करने की भी भूख ऊठती है। सामाजिक तौर पर और अपनी मान मर्यादा का ख्याल रखकर औरतें कुछ समय तक इस बात को मर्दो की नजरअंदाजीगी को देखकर टालती रहती है,,,,
लेकिन कब तक जिस्म की भूख एक चिंगारी के तनखे की तरह होती है। और उसे बस जरा सी हवा की जरूरत होती है और यह वासना मई हवा कहीं से भी चल सकती है बाहर से या घर से कहीं से भी क्योंकि चारों तरफ वासना युक्त आंखें वैसे ही औरतों को तलाश करती रहती हैं जिन्हें सही मायने में मर्द की जरूरत होती है। और ऐसी हवा कामाग्नि से जलती हुई बदन को स्पर्श करते ही,,,

वह स्त्री अपनी मान मर्यादा सामाजिक बंधनों को तोड़कर वासना युक्त शीतल हवा का आनंद पूरी तरह से लेने लगती है।,,, जिस्म की प्यास पूरी करने की चाहत ही हवस और वासना का रुप ले लेती है। जब इस हवस ने मंगल मामी भांजे के पवित्र रिश्ते को नहीं बख्शा तो मामी और भांजे का रिश्ता कौन सा बड़ा मायने रखता था।,,,,,
सूरज की दोनों मामिया सूरज के लंड से तृप्त होकर मदहोश हो चुकी थी। उन्हें इस बात का बिल्कुल भी पश्चाताप नहीं था कि जो कुछ भी हुआ वह बहुत गलत था उन्हें बस इस बात से संपूर्ण रूप से संतुष्टि थी कि उन्होंने अपने तन बदन को किसी असली मर्द के हाथों सौंप दी थी और जिसने उन के भरोसे पर खरा उतरते हुए उन्हें,, स्वर्ग के सुख का एहसास कराया,,

सूरज की बहुत अच्छे से कट रही थी। घर में शादी की तैयारी जोरों शोरों से चल रही थी सब अपने-अपने काम में लगे हुए थे,,,,।सूरज अपने छोटे सुनील मामा के साथ खेतों की तरफ निकल गया था जहां पर खेतों में पानी देना था यह तो उसके मामा का रोज का काम था लेकिन सूरज पहली बार ही खेतों में पानी देते हुए देख रहा था,, ट्यूबवेल से पानी भलभलाकर पाइप से निकल रहा था,,, और जो कि खेतों में,,, पगडंडी पर ही मिट्टी के ढेर दोनों तरफ लगाकर बीच में से पानी गुजरने का रास्ता दिया जाता था और उसी में से पानी खेतों में जा रहा था।सूरज और उसका छोटा मामा बातें करते हुए और पानी का बहाव देखते हुए चले जा रहे थे जगह जगह पर पगडंडी पर मिट्टी का ढेर उखड़ जाता था जिसकी वजह से पानी दूसरी तरफ निकलने लगता था जिसे उसका छोटा मामा वापस मिट्टी का ढेर उठाकर उस जगह को बंद कर देता था ताकि पानी सहीं खेत में जा सके,,, बातों ही बातों में सूरज ने होने वाली छोटी मामी का जिक्र छेड़ दिया,,,

क्या बात है मामा अब तो तुम्हारी शादी होने जा रही है आप तो बहुत खुश होगे,,,

भांजे खुश क्यों ना हुं शादी होने पर दुनिया का हर आदमी को जाता है तुम्हारी जब शादी होगी तो तुम्हें भी बहुत खुशी होगी,,,,


अच्छा यह बताओ मामा मामी से कभी बात कि नहीं,,,

नहीं यार अभी कहां बात होती है, जब उसके घर रिश्ता लेकर गए थे तब बात करने गया था लेकिन तुम्हारी मामी शरम के मारे नजरे जुकाई खड़ी थी इस वजह से बात नहीं हो पाई,,,

क्या मामा आप भी ना बात करनी चाहीए थी,,,

यार सूरज सच कहूं तो मैंने अब तक एक शब्द तक नहीं बोल पाया हूं,,,,

क्या मतलब मामा मैं कुछ समझा नहीं,,,,
( इतना कहते हुए दोनों पगडंडी के किनारे खड़े हो गए,,सूरज अपने मामा की बात सुनना चाहता था वह जानना चाहता था कि वह होने वाली मामी से क्या बातें करते हैं लेकिन उसके छोटे मामा के हाव भाव से ऐसा लग रहा था कि वह बहुत शर्मिला है। वह शर्माते हुए बोला।।)

सूरज अब देख तुझसे कुछ नहीं छुपाऊंगा,,, गांव में तो जानते हो शादी होने तक कोई बात नही होती,,,

इसका मतलब है मामा की मामी ने अब तक तुम्हारी आवाज तक नहीं सुन पाई है।,,,

हां सच कहा तूने क्योंकि मैं अब तक उससे बात ही नहीं किया हूं ना तो आवाज क्या सुन पाएगी।
( अपने छोटे मामा की यह बात सुनकर सूरज का शैतानी दिमाग घूमने लगा वह मन ही मन प्रसन्न हो रहा था,, और अपने मामा की बेवकूफी पर तरस भी आ रहा था।,,, तभी सूरज बोला,,,।)

अच्छा मामा मेरी होने वाली मामी का मुझे तस्वीर तो दिखाओ मैं भी तो देखूं कैसी लगती है मेरी छोटी मामी,,,
(सूरज जानबूझकर अपनी छोटी मामी को देखना चाहता था वह यह देखना चाहता था कि उसकी छोटी मामी कैसी दिखती है,,,सूरज की बात सुनकर उसका छोटा मामा जौकी पगडंडी पर मिट्टी का ढेर डाल रहा था वह सीधे खड़े होते हुए बोला,,,।)

ले तू ही निकाल ले,, मेरे हाथों में मिट्टी लगी है इतना कहकर अपने शर्ट की जेब सूरज की तरफ बढ़ा दिया सूरज भीे झट से उसकी शर्ट की पकित में हांथ डालकर उसमें से एक तस्वीर बाहर निकाल लिया,,,,,)

तुम्हारी छोटी मामी का फोटो है,,
( इतना कहकर वह फिर से मिट्टी का ढेर उठाकर पगडंडी पर डालने लगा,,,सूरज तस्वीर पर नजर डाला तो देखकर एकदम दंग रह गया,,, बला की खूबसूरत नजर आ रही थी उसकी छोटी मामी,,, गोरा चिकना बदन बेहद खूबसूरत लग रही थी उसे तस्वीर में देखते हैं उसके लंड में हरकत होने लगी,,,, उसे तो यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसे लंगूर को हुर मिलने वाली थी,,।सूरज उसे देखकर मन ही मन में सोचने लगा कि काश ऊसकी बुर का उद्घाटन उसके द्वारा हो तो कितना मजा आ जाए।,,,, तभी वहां तस्वीर पर ही अपनी उंगली को उसके खूबसूरत चेहरे पर घुमाते हुए अपनी वासना का परिचय देने लगा और वह अपने मामा से बोला,,,।

वाह मामा तुम्हारी तो लॉटरी लग गई मामी बेहद खूबसूरत है,, अच्छा इनका नाम तो बताओ,,,।

निर्मला इसका नाम निर्मला है,,,,।

आहहहहहहहह,,,, नाम सुनते ही सूरज के लंड ने करवट लिया। यह उसके लंड का निर्देश था कि वह निर्मला की भरपुर जवानी का रस पहले चखना चाहता था ।

वाह जैसी खूबसूरत हैं वैसा खूबसूरत नाम भी है,,,।


(सूरज के शैतानी दिमाग में कुछ और ही चल रहा था वह अपने मामा की तरफ देखा और बोला क्या मामा तुम भी तुम्हे शादी से पहले मामी से बात करनी चाहिए थी,,,
पर सूरज ये मुमकिन नहीं है,, तस्वीर की छोटे मामा के जेब में डाल दिया,,,
क्या मामा तुम भी शादी से पहले बात करनी चाहिए थी,, पर अब दो चार दिन में शादी होने वाली है उससे पहले केसे बात हों सकती है,,,,
हो सकती है मामा पर उसके लिए हमे मामी के घर जाना होगा,,
(सुनील सूरज की तरफ देखते हुए,,,अपना सारा काम छोड़कर उसके पास आ जाता है)
शादी से पहले हम उनके यह नहीं जा सकते,,
( सूरज अपने दिमाग में खुरापाती विचार सोचते हुए,,)

मामी का घर हमारे गांव से कितनी दूर है,, यही करीब ३० मिनट लगते है,, तो हम दोनो साइकल से उनके घर जाएंगे और चोरी छुपे मामी को मिलके उनसे बाते करके वापस आ जाएंगे,,
नहीं तभी सुनील सूरज से कहता है अगर गांव वालों पकड़ा तो लेने के देने पड़ जाएंगे,, नही मामा ऐसा कुछ नही होगा,, (सुनील थोड़ा मन ने सोचकर)
ठीक है लेकिन हमे जल्दी वापस आना है खेतों का पानी चालू हे,,
(सूरज के चहरे पर मुस्कान आ जाती है होने वाली मामी से मिलने की कल्पना से उसका लंड धोती में हिचकोले लेने लगता है,)
सूरज जल्दी खेतों के बाजू में खड़ी साइकल लेके आता है,,ओर सुनील मामा को थमा देता है, सुनील साइकल चलाने लगता है ओर सूरज पीछे बैठ जाता हे,,
कच्चे रास्तों से साइकल अपनी मंजिल की तरफ निकल पड़ती है,,( मामा जल्दी जल्दी चलाओ साइकल कितना धीरे चला रहे हो)
सूरज मुझे ज्यादा तुझे जल्दी पड़ी है अपने मामी से मिलने की,,
नही मामा ऐसी बात नहीं है ( ओर अपने मन में निर्मला मामी को पाने की कल्पना करने लगा )
थोड़ी देर में वह गांव के बाहरी सीमा तक पहुंच जाते है, वहा पर दो रास्ते थे एक रास्ता गांव की तरफ जाता था और एक रास्ता गांव के बाहर खेतो की तरफ वहापार एक दो ही घर थे,, सुनील उस दूसरे रास्ते की तरफ साइकल के जाता हे,, दोपहर का समय होने की वजह से रास्ता प्यारा सुनसान था गरमी के कारण सभी अपने अपने घरों में आराम कर रहे थे,,थोड़ी दूर जाने के बाद सुनील साइकल रोक देता हे,, साइकल को रोकता देख सूरज सुनील मामा से कहता है,,

मामा साइकल क्यों रोक दी,, क्योंकि तुमारी मामी का घर आ गया है, सूरज तुरंत साइकल से नीचे उतर जाता है,, करीब २०० मीटर की दूरी पे एक घने पेड़ के नीचे एक मकान था,, आजू बाजू में कोई मकान नही था,, घर के बाजू बड़े बड़े पेड़ लंबी लंबी झाड़ियां और घर के पीछे हरा भरा खेत लहरा रहा था,,
मामा हमे साइकल यही खड़ी करके चुपके से झाड़ियों के रास्ते घर की पीछे की तरफ जाना चाहिए,,
सूरज मुझे डर लगा रहा है हम वापस चलना चाहिए,, अरे मामा घबराओ मत में हुना तुम बस मेरे साथ चलो,,
सूरज सुनील का हात पकड़ कर धीरे धीरे झाड़ियों से होते हुए घर के पीछे चले जाता है,, ओर झाड़ियों से छुप कर घर की तरफ देखने लगते है,, घर के पीछे एक कमरा बना हुआ था और उसके बाजू में हैंड पंप था,,
वहापर घर की औरते कपड़े दो रही थी,, (उन औरतों भरा हुआ बदन और बड़ी बड़ी गांड देख कर सूरज का लंड धोती में सलामी देने लगता है,, लेकिन उन औरतों में सूरज की नजर अपनी निर्मला मामी को ढूंढ रही थी,, लेकिन उन औरते में निर्मला नजर नही आ रही थी,,,)
थोड़ी देर उन औरतों की चुचियों और गांड को निहारें से सूरज का लंड की नसे फुसलने लगी,, पर उसकी निर्मला मामी कही नजर नही आइ,,
(तभी उनमे से एक औरत कहती है ) रत्ना चार दिन बाद हमारी निर्मला बेटी शादी करके चली जायेगी,, उसके बाद घर सुना सुना लगेगा,,
( जैसे ही सूरज ने उस औरत पर नजर डाली सूरज का लंड झड़ते झड़ते बचा,, उसे अपने आंखो पर विश्वास नहीं हो रहा था,, दूध जैसा गोरा बदन बड़ी गांड पपीते की तरह चूचियां दिखने मनमोहक लग रहे थे,, रत्ना मंगल जैसे भरे बदन की मालकिन थी,,)
( तभी रत्ना उस औरत से कहती है) हा तुमने सही कहा शादी के वजह से घर में चहल पहल है,, शादी के बाद बिटिया अपने घर चली जायेगी,, और इतना कहके
( साड़ी को ब्रश से रगड़ने के बाद उसे पानी में डूबा के पत्थर पर पटकें लगातीं है,, पत्थर पर साड़ी पटकने की वजह से रत्ना की चूचियां ब्लाऊज़ में उछलने लगती है,, कपड़े धोते वक्त ब्लाउज पूरा गीला हो गया था जिससे पीले ब्लाउज में उसके चूचे साफ नजर आ रहे थे,,)
सूरज धोती के ऊपर से अपने लंड को दो तीन बार मसल देता है,, ओर मन में ये सोचने लगा ( अगर मां इतनी खूबसूरत है तो बेटी कितनी खूबसूरत होगी)
रत्ना जोर जोर से पत्थर पर साड़ी पटक रही थी जिसके वजह से पानी की बूंदे उसके बदन को भिगो रहे थे,, पानी की बूंदे उसके बदन पर समंदर के मोती की तरह लग रहे थे,,

अब यहां आए अन दोनो को बहोत देर हो गई थी,, सुनील को बहुत डर लग रहा था,,
सूरज चलो बहुत देर हो गई है निर्मला कही नजर नही आ रही है यहां पर घर की औरतें हे इनमें से किसी की नजर हम पे पड गई तो,, हमारी खैर नहीं,,,हमे चलाना चाहिए,,
(सामने का नजारा देख कर सूरज का यहां से जाने का बिल्कुल भी मन भी कर रहा था,, सूरज यहा आया तो देखने अपनी नई मामी को पर उसकी मां को देख कर उसका लंड झटके मारने लग गया था,,) बहोत देर से अपनी नई मामी की वजह से सूरज ने भी यह से चलाना ठीक समझा,, ओर दोनो वापस साइकल के पास आ गए,,
सूरज साइकल के पीछे बैठ गया,, ओर सुनील साइकल को अपने गांव की तरफ लेके चले गए,,
( रास्ते भर सूरज का मन उदास था क्योंकि उसकी निर्मला मामी को उसे देखना नसीब नहीं हुआ,, घर की बाकी औरतों को देखने से खास कर रत्ना की देख कर उसका लंड अब शांत होने का नाम नही ले रहा था,, लंड को शांत करने के लिए सूरज को अभ चुदाई की जरूरत थी इस लिए सूरज रास्ते में ही उतर कर घर की तरफ निकल पड़ा,,) ओर सुनील साइकल लिए खेतो की तरफ अकेला चला गया,,,

सूरज घर में दाखिल हो कर अपने कमरे में जाकर मंगल मामी के साथ बिस्तर पर लेट जाता हे,,, दोपहर का समय था जिसकी वजह से गर्मी कहर ढा रही थी घर के सभी लोग अपने अपने कमरे में दुबक कर आराम कर रहे थे।,, मंगल और सूरज दोनों बिस्तर पर पीठ के बल लेटकर छत की तरफ देखते हुए बातें कर रहे थे,,,।

मंगल मामी यहां गांव में कितना मजा आ रहा है,, किसी बात की टेंशन बिल्कुल भी नहीं है। बस खाओ पियो और मौज करो,,

अरे तुझे ऐसा लग रहा है ना लेकिन शादी का माहौल होने पर मुझे यहां कितना काम करना पड़ रहा है कभी यह काम करो कभी यह काम करो इधर उधर भागते भागते एकदम थक गई हूं,,,

लेकिन मंगल मामी तुम्हें तो आराम करना चाहिए ना यहां तुम्हें काम करने को कौन कहता है
(इतना कहने के साथ ही वह अपनी मंगल मामी की तरफ करवट लेते हुए उसकी तरफ देखने लगा,,, क्योंकि बला की खूबसूरत लग रही थी बालों की लट खिड़की से आ रही ठंडी हवा के साथ साथ उसके चेहरे पर बिखर जा रही थी, जिसे वह बार-बार अपनी नाजुक उंगलियों से हटा दे रही थी और साथ ही लेटने की वजह से उसकी छातियों से साड़ी का पल्लू नीचे लुढ़क गया था और उसकी बड़ी बड़ी विशाल छातिया सांसो की गति के साथ ऊपर नीचे हो रही थी,,,,सूरज खूबसूरत वक्षस्थल को देख कर कामुकता से भरने लगा और मंगल उसकी बात का जवाब देते हुए बोली,,,।)

हां मैं जानती हूं कि मुझे यहां कोई काम करने नहीं देता लेकिन ऐसे बैठे रहने से भी तो काम नहीं चलने वाला है घर में शादी का माहौल है सब का हाथ बंटाती रहेंगी तो मेरा भी समय अच्छे से गुजर जाएगा वरना दिन भर आराम कर कर के और भी ज्यादा थकान महसूस होने लगती है,,
( वह उसी तरह से छत की तरफ देखते हुए बोली लेकिन इतना समझ गई थी कि सूरज की नजर उस की विशाल छातियों पर घूमने लगी है जिसकी वजह से उसके बदन में सुरसुराहट होने लगी क्योंकि जब से वह गांव आई थी ठीक से चुदने का आनंद नहीं लूट पाई थी।.. इसलिए थोड़ासा सूरज को उत्तेजित करने के उद्देश्य से छत पर नजरें गड़ाए हुए ही अपना एक हाथ चूची पर रखकर उसे खुजलाने लगी। यह देख कर सूरज पहलेसे ही गरम था,, अभी दूसरे गांव में जाकर कपड़े धो रही औरतों की चूचियां देख कर उसकी लंड की नसे फुल गई थी,, सूरज जरा भी देर ना करते हुए अपना हाथ अपनी मंगल मामी के हाथ पर रखकर हल्के से चूची के ऊपर दबाने लगा और बोला,,,

क्या सच में थक गई हो मंगल मामी,,,,?

हा रे दर्द के मारे मेरा बदन टूट रहा है थोड़ा आराम कर लु तो ठीक हो जाएगा,,,( इतना कहते हुए बाद दूसरा हाथ नीचे की तरफ ले जाकर अपनी बुर को खुजलाने लगी,,,, यह देखकर सूरज बोला,,,

क्या हुआ मंगल मामी तुम्हारे बदन में लगता है कुछ ज्यादा ही दर्द और खुजली दोनों हो रही है,,,।

हारे पता नहीं क्या हुआ,,, शायद गर्मी की वजह से,,,

सच कहूं तो तुम्हारी खुजली देखकर मेरे में भी खुजली होने लगी (और इतना कहने के साथ ही वह धोती में पहले से बने तंबू को खुजलाने लगा)

हां तो खुजला ले रोका किसने है।,,,

लेकिन यह खुजली हाथों से नहीं मिटती,,,,(सूरज अपने होठों पर कामुक मुस्कान बिखेरते हुए बोला)

तो कैसे मिटती है,,,?( मंगल भी इतराते हुए बोली,,, क्योंकि वह जान गई थी कि सूरज क्या बोलने वाला है।)

यह खुजली तो मेरी जान तेरी रसीली बुर में जाकर ही मिटेगी,,,( इतना कहने के साथ ही सूरज ने अपने धोती को नीचे की तरफ सरका कर अपने खडे लंड को धोती के बाहर कर दिया,,, इतनी देर में ही उसका लंड पूरी तरह से तैयार होकर छत की तरफ देखने लगा था और यह देखकर मंगल की बुर में सुरसुराहट होने लगी लेकिन वह अपने भांजे को तड़पाने के उद्देश्य से करवट दूसरी तरफ लेते हुए बोली,,,,,

नहीं आज कुछ भी नहीं मैं थक चुकी हूं मुझे आराम करने की जरूरत है,,।( इतना कहते हुए वह दूसरी तरफ करवट ले ली और उसकी बड़ी-बड़ी मदहोश कर देने वाली विशाल गांड सूरज की तरफ अपना उठान लिए,,सूरज पर कहरं ढाने लगी,,,सूरज की नजर अपनी मंगल मामी की बड़ी बड़ी गांड पर पड़ते ही उससे रहा नहीं गया और वह जोर से एक चपत गांड पर लगा दिया,,,

आहहहहहहहह,,,, क्या कर रहा है । (वह अपनी गांड को सहलाते हुए बोली)

कुछ नहीं मेरी जान तेरी नशीली गांड को देखकर ना जाने मुझे क्या हो जाता है,,,।( गांड की ऊपरी फांक को हाथों में भरकर दबाते हुए बोला,,,।)

अरे इसे देखकर तुझे कुछ हो जाता है तो क्या इस में घुसने का इरादा है क्या,,,,(सूरज की तरफ बिना देखे ही बोली,,,।)

गांड में लंड डालने तो देती ही नहीं हो तो घुसने कहां से दोगी,,,,(सूरज भी अपनी मंगल मामी की तरफ करवट लेकर अपने खड़े लंड को साड़ी के ऊपर से ही गांड पर रगड़ते हुए बोला,,, खड़े लंड की रगड़ अपनी गांड पर महसूस करते ही मंगल के बदन में उत्तेजना की लहर दौड़नें लगी। और उससे रहा नहीं गया और वह अपना एक हाथ पीछे की तरफ लाकर बिना देखे ही सूरज के खड़े लंड को पकड़ कर खुद ही अपनी गांड पर रगड़ने लगी,,,,।)

ऐसे नहीं मेरी जान साड़ी तो ऊपर उठा लो तभी तो तुम्हारी नंगी गांड पर लंड रगड़ने का मजा ही कुछ और आएगा।,,,,

मेरे बदन में दर्द है मुझसे कुछ होगा नहीं तुझे मजा लेना है तो तु खुद ही ऊपर उठा लै।,,,,,

बोल तो ऐसे रही हो जैसे मेरी ही गरज है तुम्हें तो मजा आएगा नहीं,,,,

तो क्या तुझे करना है तू ही सब कुछ कर मैं कुछ नहीं करूंगी,,,(सूरज की तरफ बिना देखे ही इस तरह से बोल कर वह मुस्कुरा रही थी,,,,।)

अच्छा मुझे मालूम है तुम्हारी बुर में भी खुजली हो रही है मेरे मोटे लंड को लेने के लिए जब मेरा मोटा लंड तुम्हारी बुर में रगड़ रगड़ कर जाएगा ना,,,, तब खुद ही मजा लेते हुए अपने मुंह से आहहहहहहहह,,, आहहहहहहहह,,, ओहहहहहहहहह मां,,,, की आवाजें निकालोगी।( इतना कहते हुए सूरज जांघों ऊपर से साड़ी को पकड़कर ऊपर की तरफ खींचने लगा,,,, लेकिन सूरज की बात सुनकर मंगल अपनी हंसी रोक नहीं पाई और जोर-जोर से हंसने लगी,,,, उसको हंसता हुआ देखकर सूरज बोला,,,,।

क्या हुआ मेरी जान इतना हंस क्यों रही हो,,,,।( इतना कहते हुए सूरज अपनी मंगल मामी की साड़ी को जांघो तक उठा दिया था लेकिन उसके बड़े-बड़े नितंबों के भार के नीचे दबी साड़ी ऊपर की तरफ नहीं उठ रही थी,, इस बात का एहसास मंगल को भी हो गया था इसलिए वह खुद ही अपनी गांड को हल्के से ऊपर की तरफ उठा दी ताकि सूरज उसकी साड़ी को कमर तक उठा सके,,, अपनी मंगल मामी को अपनी बड़ी बड़ी गांड को उठाए देख कल सूरज भी जल्दी से पूरी साड़ी को कमर तक खींचकर कर दिया,,, पलभर में ही सूरज को अपने बिस्तर पर चांद नजर आने लगा गोल गोल गांड चमकते हुए चांद से कम नहीं लग रहा था,,,,सूरज से रहा नहीं गया और वो फिर से एक चपत गोरी गोरी गांड पर लगाते हुए बोला,,,

वाह मेरी जान तुमने तो मेरे हाथों में चांद थमा दी,,,

चांद थमा दी तो ठंडक ले ले बहुत तड़प रहा था ना तु इसके लिए,,,

क्या करूं मेरी जान यही तो मेरी सबसे बड़ी कमजोरी है,,, तेरी खूबसूरत नंगी गांड मुझे आसमान के चांद से भी बेहद खूबसूरत लगती है,,।(सूरज हौले हौले से अपनी हथेली को अपनी मंगल मामी की नंगी गांड पर फिर आ रहा था कि तभी उसका ध्यान किस बात पर गया कि उसकी मंगल मामी ने पेंटी नहीं पहनी थी और यह बात सूरज को बेहद हैरान करने वाली लग रही थी क्योंकि आज तक उसने अपनी मंगल मामी को साड़ी के नीचे कभी भी पेंटी के बगैर नहीं देखा था इसलिए वह बोला,,,,।

अरे वाह मंगल मामी तुम तो यहां पर एकदम इस गांव वाली बन गई हो,,,

क्यों क्या हुआ (आश्चर्य के साथसूरज की तरफ देखते हुए बोली,,)

तुम भी साड़ी के अंदर पेंटी नहीं पहनी हो,,,,

क्या करूं सूरज यहां गर्मी है कि नहीं पड़ती है कि मन तो करता है कि सारे कपड़े उतारकर नंगी ही घूमा,,,,
लेकिन तुझे कैसे मालूम कि गांव की औरतो साड़ी के अंदर पैंटी नहीं पहनती है?
( इस बार वह अपनी मंगल मामी की बात सुन कर चोंक गया)



मंगल अपने भांजे की इस बात को सुनकर कि वह भी गांव वाली औरतों की तरह साड़ी के अंदर पेंटिं नहीं पहनती है यह बात सुनते ही वह चौक गई थी। क्योंकि वह जानते हैं ठीक है सूरज इस गांव पहली बार आया था और उसे कैसे मालूम हो गया कि इस गांव की औरतें अधिकतर साड़ी के अंदर कुछ भी नहीं पहनती हैं,,, और इसी बात का खुलासा करवाने के लिए वह सूरज से पूछ रही थी जो कि सूरज भी पूरी तरह से चौक गया था,,,

सूरज के पास कोई भी जवाब नहीं था लेकिन अभी भी वह अपनी मंगल मामी की बड़ी बड़ी गांड पर हाथ फेरते हुए मजा भी ले रहा था और अंदर ही अंदर जवाब ढूंढने की कोशिश भी कर रहा था जो कि इस बात से मुकरने का उसके पास कोई भी रास्ता नहीं बचा था और मंगल जिद पर आई थी उसके मुंह से सुनने के लिए कि वह कैसे जानता है कि गांव की औरतें साड़ी के अंदर कुछ भी नहीं पहनती है। मंगल को इस बात का अहसास हो गया था कि वह जरूर यहां पर किसी न किसी को ऐसी स्थिति में देखा होगा तभी वह ऐसा कह रहा है,,,

चल अब बता देते कि तुझे कैसे मालूम है वरना मैं तुझे आज कुछ भी करने नहीं दूंगी (और इतना कहने के साथ ही मंगल अपनी बड़ी बड़ी गांड पर से सूरज का हाथ हटाते हुए बोली,,,,)

क्या मंगल मामी तुम तो एक ही बात पर अड़ चुकी हो,,,, ऐसा कुछ भी नहीं है,,,।( इतना कहने के साथ बहुत तेरे से अपनी मंगल मामी की बड़ी बड़ी गांड पर हाथ रख दिया जिसे मंगल फिर से दूर झटकते हुए बोली,,,।)

नहीं तो बातें मत बना और मुझसे तो बिल्कुल भी मत बना क्योंकि मैं जानती हूं कि तू कितने पानी में है जरूर कहीं ना कहीं नजारा मार के आया होगा कभी मुझसे इस तरह से बोल रहा है वरना तुझे कैसे मालूम कि इस गांव की औरतें चड्डी नहीं पहनती है।,,,,
(सूरज एकदम परेशान हुआ जा रहा था क्योंकि उसकी आंखों के सामने उसकी मंगल मामी की बड़ी-बड़ी खरबूजे जैसी नंगी गांड बिस्तर पर लुभावने स्थिति मे तबले की मानिंद थिरकट कर रही थी। जिसे देखकर सूरज के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ रही थी और उसके मुंह में पानी आ रहा था लेकिन इस समय वह एक अजीब स्थिति का सामना कर रहा था क्योंकि उसकी मंगल मामी वह जानने के लिए जिद्द पर अड़ी थी,, जिसे वह अब तक राज रखते हुए रोज उस दृश्य को देखकर उत्तेजित हुआ करता था। और यह उसका रोज का हो गया था,, सुबह वह कमरे से अपनी मंगल मामी के चले जाने का इंतजार करता था और जैसे ही कमरे से बाहर ऊसकी मामी जाती थी,, वैसे ही वह तुरंत उठ कर बैठ जाता था और खिड़की से चोरी छुपे बाहर म्हारे घर की औरतों के खूबसूरत बदन को अपनी आंखों से देखकर उनका रसपान किया करता था,,। अब वह यह बताने में एकदम शर्म का अनुभव कर रहा था कि वह रोज़ खिड़की से उन्होंने लोगों को नहाते हो और वह क्या पहनती है क्या नहीं पहनती है यह देखा करता था,,,,
सूरज बहुत ही अजीब सी कशमकश में फंसा हुआ था। वैसे तो जिस तरह के संबंध सूरज के उसकी मंगल मामी के साथ से उसे देखते हुए सूरज को बिल्कुल भी शर्म का एहसास नहीं होना चाहिए लेकिन उसकी मंगल मामी थी तो एक औरत ही,,, और प्रकृति के अनुसार एक औरत भला कैसे बर्दाश्त कर सकती है कि जिस पर उसका पूरी तरह से हक है वहां किसी और औरत के नंगे जिस्म को देखकर खुश होता है। और यही बात सूरज को परेशान कर रही थी की कहीं उसकी मंगल मामी नाराज ना हो जाए,,, उसकी नजर उसकी मंगल मामी की बड़े-बड़े गांड पर ही टिकी हुई थी जिस पर वह फिर से हाथ रखने चला तो मंगल फिर से तुरंत हटा दी,,,

जब तक तू मुझे नहीं बताएगा कि तुझे कैसे पता चला तब तक मैं तुझे हाथ भी नहीं लगाने दूंगी,,,,
( मंगल वैसे ही दूसरी तरफ मुंह किए हुए बोली इधर सूरज की आदत खराब होते जा रही थी क्योंकि उसकी मंगल मामी की बड़ी-बड़ी मचलती गांड उसके तन-बदन में खलबली मचा रही थी,,,,सूरज समझ गया कि बिना उसके मुंह से सुने उसकी मंगल मामी उसे हाथ लगाने नहीं देगी और वह इतना अच्छा मौसम यूं ही नहीं गवाना चाहता था,,, इसलिए वह बोला,,,

क्या मंगल मामी तुम भी,,,, अगर मैं यह जान गया कि इस गांव की औरतें साड़ी के अंदर कुछ नहीं पहनती तो इसमें कौन सी बड़ी बात हो गई,,,।

बड़ी बात क्यों नहीं है,,, क्यों नहीं है बड़ी बात,,,( इतना कहते हुए मंगल उसकी तरफ गुस्से में घूम गई लेकिन अभी भी उसने अपनी साड़ी को कमर से नीचे खींच कर अपनी नंगी जवानी को ढकने का बिल्कुल भी प्रयास नहीं की थी,, और वहां उसकी तरफ देखते हुए बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,।)
तेरा यह जानने का मतलब यही है कि तूने इस तरह का नजारा जरूर देखा होगा और एक औरत को नहीं बल्कि १ से ज्यादा औरत को देखा होगा तभी तुझे इस बात का पता है,,,,। और तेरा इस तरह से औरतों को देखना मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता,,,

नहीं मंगल मामी ऐसा कुछ भी नहीं है । ( ऐसा कहते हुए सूरज ने एक बार फिर से अपनी हथेली को मंगल की दुधिया जांघो पर रख दिया जिसे मंगल फिर से अपने हाथ से हटाते हुए बोली,,,।

ऐसे कैसे बड़ी बात नहीं है तेरा एक तरफ से दूसरी औरतों को देखने का मतलब है कि मुझ में कोई कमी आ रही है या तो फिर तेरा मुझसे मन भर गया है,,,
( मंगल न जाने क्यों आज गुस्से में आ गई थी सूरज बिल्कुल भी नहीं समझ पा रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है क्योंकि आज तक उसने अपनी मंगल मामी को इस तरह से उस पर चिल्लाते हुए नही देखा था। इसलिए उसे भी बहुत अजीब लग रहा था और वह अपनी मंगल मामी को समझाते हुए बोला,,,)

मंगल मामी यह तुम क्या कह रही हो इस तरह से तुम मुझसे क्यों बात कर रही हो आखिरकार मैंने कौन सी बड़ी गलती कर दी है। (सूरज अपनी मंगल मामी को शांत कराते हुए बोल रहा था लेकिन मंगल थी की कुछ भी सुनने को तैयार ही नहीं थी और वह बात को आगे बढ़ाते हुए बोली,,,।)



गलती कैसे नहीं है सूरज मैंने तुझे तेरी मामी होने के बावजूद भी अपना तन मन सब कुछ तुझे सौंप दि,, मेरे बदन के हर एक अंग पर तेरा ही हक है,,,, और तू भी पूरी तरह से मेरा है यही सोच कर मैं तुझे अभी भी खुश करती रहती हो लेकिन तू है की यहां वहां मुंह मारता फिर रहा है,,। क्या कमी है मुझमें,,, क्या तुझे मेरी जवानी कम पड़ने लगी है,,,। की मेरे बदन के अंगों से तेरा मन भरने लगा है,,,,।
बता सूरज क्या कमी पड़ने लगी है मुझ में (इतना कहने के साथ ही वह अपने ब्लाउज के बटन खोलने लगी, देखते ही देखते वह बड़ी ही फुर्ती के साथ अपने ब्लाउज के सारे बटन खोल दी,,, और एक झटके से ही ब्लाउज की ब्रा की नीचे की पट्टी को पकड़कर ऊपर को खींच दी झटके से ही उसकी दोनों चूचियां ब्रा से निकलकर बाहर की तरफ झांकने लगी,,, जिसे देख कर और उसकी मंगल मामी की इस हरकत पर सूरज पूरी तरह से कामातुर होकर मंगल पर मोहित हो गया,,,, उसे कुछ सूझ नहीं रहा था वह फटी आंखों की अपनी मंगल मामी की खूबसूरत जवानी को घुरते जा रहा था। वह तो आवाक होकर आंखें फाडे बस अपनी मंगल मामी को ही देखे जा रहा था।,,, और मंगल इस समय एकदम गुस्से में अपनी दोनो चुचियों को अपने हाथों में पकड़ कर सूरज को दिखाते हुए बोली,,,।

देख सूरज इसे अच्छे से देख ले,,, पकड़ कर देख क्या लगता है तुझे यह मेरी चूचियां लटक गई है क्या इनका कड़कपन खत्म हो चुका है,,,,
( मंगल जिस तरह से गुस्से में बोल रही थी उसे देखते हुए सूरज उसकी बात मानते हुए अपने हाथों को आगे बढ़ाकर हल्के से अपनी मंगल मामी की दोनो चुचियों को पकड़ लिया वह समझ गया कि उस समय उसकी मंगल मामी को शांत कराना बेहद जरूरी है,,,। इसलिए वह बोला,, लेकिन अभी भी उसकी दोनों हथेलियों में उसकी मंगल मामी की बड़ी बड़ी चूचियां थी और वह बोला,,,,।


नहीं मंगल मामी,, ऐसी कोई भी बात नहीं है मैं किसी दूसरी औरत को इस तरह से नहीं देखता हूं जैसे कि तुम्हें देखता हूं तुम जाना चाहती हो तो मैं बताता हूं कि मुझे कैसे पता चला यह सब अनजाने में ही हुआ।
(सूरज अपनी मामी की दोनो चुचियों को दोनों हाथों से जोर जोर से दबाते हुए) तुम्हें पता हे ना हम जिस दिन आए थे उस के दूसरे दिन,,,, सुबह सुबह तुम कमरे में से चली गई मैं सो ही रहा था लेकिन मेरी आंख खुली,,, तो मुझे औरतों की आवाज और उनकी हंसी सुनाई दे रही थी,।(सूरज लगातार अपनी मंगल मामी की दोनों गोलाईयों से खेल रहा था,,, जिसकी वजह से तुझे मेरे यार मंगल के चेहरे का रंग सुर्ख लाल होने लगा और वह बड़े ध्यान से अपने भांजे की बात सुन रही थी।) मैं उठकर खिड़की से देखा तो,,, वहां पर तुम और दोनों मामिया नहां रही थी,,, तुम तीनों के बदन पर कपड़े मात्र कहने के लिए ही थे,,,, तुम तीनों का सब कुछ नजर आ रहा था,,,
( मंगल बड़े ध्यान से अपने भांजे की बात चल रही थी और उसके चेहरे के हाव भाव उसकी बात सुनकर बदलते जा रहे थे उसे याद आ रहा था साथ ही सूरज अपनी हरकतों की वजह से अपनी मंगल मामी के बदन मे उत्तेजना की गर्मी को बढ़ा रहा था,,,,।) और तुम भी हो एक दूसरे की बुर को देखने के लिए जिस तरह से तड़प रहे थे। मुझे हंसी आ रही थी और तुम्हारी पेंटी को देखकर ही,,,, बड़ी वाली सुधियां मामी नहीं बताई थी की हमारे गांव में अधिकतर औरतें साड़ी के नीचे कुछ नहीं पहनती हैं और छोटी मामी भी कुछ नहीं पहनी थी जब तुम दोनों जबरदस्ती उनकी पेटीकोट ऊतार रहीं थी। बस मुझे तुम तीनों की बातों से ही इस बारे में पता चला था बाकी ऐसा कुछ भी नहीं है जैसा कि तुम सोच रही हो,,,
( तभी सूरज अपनी मंगल मामी की दोनो चुचियों को छोड़कर बिस्तर के करीब वाली खिड़की को खोलते हुए)
देख लो यही वह खिड़की है,,,, ( इतना कहकर सूरज वही बिस्तर के नीचे खड़ा हो गया और उसका मोटा लंबा लंड अपना तनाव खोकर झूल रहा था लेकिन फिर भी उसे देखकर किसी भी औरत का पानी निकल जाए,,, मंगल अपने भांजे के झूलते लंड को देखकर अंदर ही अंदर सीहरते हुए सारा मामला समझ गई,,,, वह समझ गई कि सूरज को जिस तरह से वह बता रहा था उसी तरह से गांव की औरतों के बारे में पता चला था इसलिए उसके मन से सारी शंकाएं दूर हो गई।,,, वह बिस्तर पर बैठी मुस्कुरा रहीे थी,,,,सूरज अपनी मंगल मामी के बदले इस रूप को पहचान नहीं पाया, शायद उसकी कच्ची उम्र होने के नाते औरतों के मनोमंथन के बारे में उसे जरा भी ज्ञान नहीं था।

सूरज मंगल का सगा भांजा होने के बावजूद जिस तरह के संबंध में दोनों के बीच स्थापित हो चुके थे उसे देखते हुए मंगल यही चाहती थी कि सूरज पूरा का पूरा उसका ही होकर रहे,,, वह हरगिज नहीं चाहती थी कि उसका भांजा किसी और औरत के पीछे घूमे,,,
क्योंकि उसे इस बात का डर था कि कहीं अगर ऐसा हो गया तो उसका प्यार बँटकर रह जाएगा,,, और जिस तरह से वह अभी अपनी भांजे के साथ शारीरिक संबंध बनाकर उसका मजा पूरी तरह से लूट रही थी फिर इस तरह का मजा वह कभी भी नहीं ले पाएगी। इसलिए तो वह नहीं चाहती थी कि सूरज का ध्यान इधर उधर भटके,,,
इसलिए उससे इस तरह की शख्ति अपनाते हुए बोल रही थी,,, लेकिन अब सब कुछ साफ हो चुका था मंगल को अपने भांजे के साथ किए गए इस तरह का व्यवहार की वजह से अंदर ही अंदर दुख महसूस हो रहा था इसलिए वह सूरज का मूड बदलने के उद्देश्य से अपनी दोनो चुचियों को अपने हाथों में भरकर उसकी तरफ आगे बढ़ाते हुए अपने मादक अधरों को अपने चमकीले मोतियों से दातों से दबाकर उसे अपनी तरफ लुभाने लगी,,, कुछ बोलने लायक मंगल के पास कुछ भी नहीं बचा था इसलिए वह बिना बोले ही इतनी खूबसूरत बदन का सहारा लेकर वह अपने भांजे से किए गए बदसलू की की वजह से माफी मांगे बिना ही अपनी गलती का इजहार कर रही थी और सूरज तो वैसे भी अपनी मंगल मामी की खूबसूरत बदन का दीवाना था और अपनी मंगल मामी को इस तरह से अपनी मदमस्त जवानी को अपने हाथों में लेकर उसके सामने परोसता हुआ देखकर सूरज से रहा नहीं गया और वह बिना कुछ बोले आगे बढ़कर अपनी मंगल मामी की दोनों चुचीयों को दोनों हाथों से थाम लिया,,,

मंगल अपने भांजे के इस कदम से खुश हो गई और मुस्कुराने लगी क्योंकि सूरज का इस समय उसकी चूचियों का पकड़ना यही दर्शाता था कि वह अपनी मंगल मामी से नाराज नहीं है और इस बात से मंगल बेहद खुश थी,,,,सूरज अपनी मंगल मामी की खरबूजे जैसी बड़ी-बड़ी चुचीयो को हाथों में भरकर दबाते हुए बोला,,,।

मंगल मामी तुम मुझ पर इतना चिल्ला क्यों रही थी,

क्या करूं बेटा मैं नहीं चाहती कि तू किसी दूसरी औरतों के चक्कर में पड़े मैं चाहती हूं कि तू सिर्फ मेरा ही बन कर रहे,,,

तुम तो ऐसा बोल रही हो मंगल मामी कि जैसे कि मैं तुम्हारा प्रेमी हूं और तुम मेरी प्रेमिका,,,

बस ऐसा ही समझ और जो मैं आज तुझसे कही हूं वह जिंदगी में हमेशा याद रखना,,,
( अपनी मंगल मामी की बातों से वह सिर्फ इतना ही समझ पाया कि दूसरी औरतों के साथ के संबंध के बारे में अगर उनकी मंगल मामी को पता चला तो उसके लिए अनर्थ हो जाएगा,,,
सूरज बातों के दरमियान लगातार अपनी मंगल मामी की चुचियों को दबा दबा कर एकदम से टमाटर की तरह लाल कर दिया था।सूरज की हरकतों की वजह से मंगल की सिसकारी छुटने लगी थी।,,, मंगल से अपनी जवानी का बंधन,,, इस समय फूटी आंख नहीं भा रहा था इसलिए वह तुरंत अपने दोनों हाथों को पीछे की तरफ ले जाकर अपना ब्लाउज उतार कर बिस्तर पर फेंक दिया और साथ ही अपनी ब्रा के हुक को खोलकर तुरंत अपने बदन से ब्रा को अलग कर दी।,,,
सूरज तो अपनी मंगल मामी का ऊतावलापन देखकर एकदम से
चुदवासा हो गया और जांघों के बीच झूल रहा उसका लंड एकदम से तान में आ गया।,,, वह अत्यधिक दबाव देते हुए अपनी मंगल मामी की दोनों खरबूजों से खेलने लगा वह तो मंगल थी वरना कोई और औरत होती तो उसके मुंह चीख निकल गई होती।,,, मंगल भी पूरी तरह से चुदवासी हो चुकी थी अपने बेटे के खड़े लंड को देखात कर उसकी बुर से पानी की बूंदे अमृत की बूंद बनकर टपक रही थी,,,
जो की बेकार मै हीं जाया होकर बिस्तर को भिगो रही थी,,,।,,, अपनी टपकती हुई बुर की तड़प देखकर मंगल जल्द से जल्द अपनी बुर को अपने भांजे से चटवाना चाहती थी।,,,, लेकिन जिस तरह से सूरज उसकी चूचियों से खेल रहा था उस खेल में मंगल को भी मजा आ रहा था बेहद कामुकता से भरा हुआ वातावरण होता जा रहा था सूरज बिस्तर के नीचे खड़ा होकर अपनी मंगल मामी की चुचियों को दबा रहा था और मंगल थी कि घुटनों के बल बिस्तर पर बैठ कर अपने भांजे से स्तन मर्दन का भरपूर मजा ले रही थी।

सूरज दोनों हाथों से एक साथ अपनी मंगल मामी की बड़ी बड़ी चूचीयो को दबाने के साथ-साथ उसे मुंह में भर कर पीने का भी आनंद ले रहा था,,,। अपने भांजे की, कामोत्तेजना को देख कर मंगल की बुर उत्तेजना के मारे फुलने पिचकने लगी। क्योंकि वह जानती थी कि सूरज जब भी ईस तरह की कामोत्तेजना का अनुभव करता था तब वह कुछ ज्यादा ही चुदवासा होकर उसकी जमकर चुदाई करता था। मंगल स्तन मर्दन का पूरी तरह से आनंद उठाते हुए गरम-गरम सिसकारियां छोड़ रही थी,
आहहहह सूरज आहहहगग,,,,, बहुत मजा आ रहा है रे, ले और पूरा मुह मे भरकर पी मस्त कर दे मुझे,,,

(सूरज तो अपनी मंगल मामी की उत्तेजना वर्धक और उकसाने वाली बात सुनकर एक दम से कामातुर होकर दोनो चुचियों को पके हुए आम की भांति बारी-बारी से मुंह में भर कर पीना शुरु कर दिया और मंगल की सिसकारियां और ज्यादा बढ़ने लगी,,,, मस्ती के एहसास में डूबकर मंगल की आंखें खुद-ब-खुद बंद होने लगी सूरज चारों तरफ से उसे मस्त करने के उद्देश्य से एक चूची को मुंह में भरकर पी रहा था और एक हाथ से उसकी चूची को पकड़कर जोर-जोर से मसल रहा था सूरज अपनी मंगल मामी की,,, मस्ती को देखकर दूसरे हाथ को तुरंत नीचे की तरफ ले गया और अपनी हथेली में अपनी मंगल मामी की बुर को भरकर बुर कीे गुलाबी पत्तियों को उंगलियों के बीच रखकर मसलने लगा,,,,

सूरज की यह हरकत आग में घी डालने का काम कर रही थी मंगल इस हरकत की वजह से पूरी तरह से चुदवासी हो गई और खुद ही अपनी कमर को गोल-गोल घुमाते हुए अपनी बुर को उसकी हथेली पर रगड़ने लगी,,,, और साथ में बोले जा रही थी।

सूरज मुझसे अब रहा नहीं जा रहा ह मेरी बुर अपने मुंह सेे चाट,,, मेरी प्यास बुझा सूरज मेरी बुर में आग लगी हुई है।,,,सूरज,, सहहहहहहह,,,,,,
( मंगल पूरी तरह से कामातुर होकर सूरज की हरकतों का आनंद लुट रही थी लेकिन इसे में उसकी प्रबल इच्छा हो रही थी कि उसका भांजा ऊसकी बुर कि गुलाबी पत्तियों को अपनी जीभ से छेड़ता हुआ उसकी मदन रस को चाटे,, सूरज भी जो कि अपनी मंगल मामी की बुर को अपनी हथेली से मसल रहा था और उसमें से निकलने वाला मदन राय उसकी हथेली को पूरी तरह से गीला कर चुका था इसलिए वह भी जल्द से जल्द उसकी बुर को चटना चाहता था।,,,,, इसलिए वह भी अपने प्यासे होठों के बीच से उसकी नुकीली निप्पल को निकालते हुए मंगल की मदभरी आंखों में झांकते हुए बोला,,,,

मेरी रानी तुमने भी तो मेरे बदन में आग लगा दी हो, जब तक मैं भी तुम्हारी रसीली बूर से तुम्हारा नमकीन पानी नहीं पी लूंगा तब तक यह आग नहीं बुझेगी,,,,,

तो देर किस बात की है राजा मेरी रसीली बुर तेरे लिए तैयार है तेरे बदन की प्यास बुझाने के लिए,,,, अब आजा मुझसे सहन नहीं हो रहा है इतना कहने के साथ ही मंगल सूरज के बाल पकड़कर उसके सिर को अपनी जांघों के बीच ले जाने के लिए नीचे की तरफ खींचने लगी,,,,सूरज भी तड़प रहा था जल्दी से जल्दी बुर की गुलाबी पत्तियों को मुंह में भरकर चूसने के लिए,,, इसलिए तो वह भी अपना मुंह जांघो के बीच डालने के लिए नीचे की तरफ झुकने लगा,,,,
कमरे का माहौल पूरी तरह से कामोत्तेजना से भर चुका था एक मंगल मामी अपने भांजे को उसकी बुर चाटने के लिए उकसा रही थी और सूरज भी अपनी मंगल मामी की बुर की रेसीली गुलाबी पत्तियों को मुंह में भरकर चूसने के लिए लालायित था,,,, मंगल मामी भांजे दोनों अर्धनग्न अवस्था में एक दूसरे के अंगों से आनंद ले रहे थे मंगल बिस्तर पर घुटनों के बल बैठी हुई थी और अपनी मुठ्टी में उत्तेजना के मारे सूरज के बाल को भींचते हुए,,, उसे अपनी मोटी मोटी सुडोल चीकनी जांघो के बीच,, खींच रह़ी थी। जहां पर नमंकीन रस का समंदर लहर मार रहा था। मंगल की बड़ी बड़ी चूचियां एकदम तनाव में आ चुकी थी उसमे जरा भी लचक पन नहीं था,,,

मंगल की बड़ी-बड़ी और कड़क चूचियों को देखकर कोई भी उसकी उम्र का अंदाजा नहीं लगा सकता था क्योंकि उसके बदन की खूबसूरती और चूचियों का कसाव पर उसकी उम्र से उसे १० साल और छोटा बना देता था,, बिस्तर पर घुटनों के बल बैठ कर मंगल सूरज को अपनी बुर चटाने के उद्देश्य से उसे अपनी बुर की तरफ खींच रही थी उसका अर्ध नग्न शरीर इस अवस्था में बेहद कामुकता से भरा हुआ था कमर के ऊपर का भाग और कमर के नीचे का भाग पूरी तरह से निर्वस्त्र था,,,
उसने अपनी साड़ी और पेटिकोट को कपड़ों का गुच्छा बनाकर कमर में लपेटे हुए थी,,, अगर मंगल का यह रूप कोई देख भर ले फिर भी यह नजारा देखकर सत प्रतिशत ना चाहते हुए भी उसका लंड पानी फेंक दे ईस समय मंगल पूरी तरह से काम देवी लग रही थी,।सूरज पूरी तरह से अपनी मंगल मामी की खूबसूरती की आगोश में खो चुका था वह बिस्तर के नीचे खड़ा था और उसका खड़ा लंड अपने पूरे शबाब मैं खड़ा हुआ था जिसे देखकर किसी की भी बुर गीली हो जाए और उसे अपने अंदर समाने के लिए तड़पने लगे,,,सूरज जितना ज्यादा व्याकुलता अपने मंगल मामी की रसीली बुर पर अपने प्यासे होठ रखकर उस का रसपान करने के लिए,,,

ऊतना ही लालायित उसका मोटा लंड था बुर के अंदर समाने के लिए इसलिए तो बार-बार ठुनकी ले रहा था। शायद उसे बुर की मादक खुशबु महसूस हो गई थी,,, तभी तो जैसे स्वादिष्ट व्यंजन को देख कर मुंह में पानी आ जाता है उसी तरह से उसके लंड में भी पानी आ गया था और उसमें से दो चार बूंदे नीचे टपक गई थी।



मंगल जैसे-जैसे सूरज के सिर को नीचे की तरफ दबाते हुए अपनी जांघों के बीच ले जा रही थी वैसे वैसे उसकी सांसो की गति और भी ज्यादा तीव्र होती जा रही थी,,,,
सूरज और मंगल दोनों की अधीरता बढ़ती जा रही थी। जैसे ही सूरज का चेहरा मंगल की मंगल की मोटी जांघों के बीच पहुंची तुरंत मंगल की रसीली बुर से उसकी मादक खुश्बू हवा में फैलने लगी,,, और सूरज के नथुनो से होकर उसकी छातीयो में पहुंचकर उसके बदन में खलबली मचाने लगी,,,,सूरज इस मादक खुशबू से पूरी तरह से मचल गया। उसकी आंखों के सामने भर के गुलाबी पत्तियां उत्तेजना के मारे फुदक रही थी,,, और मंगल जी अपने भांजे के दहकते होठों को अपनी बुर के इतने करीब पाकर उत्तेजना को मारे कसमसा रही थी। मंगल से अब बिल्कुल भी बर्दाश्त के बाहर था,,, उसे होठो और बुर की दूरी बर्दाश्त नहीं हुई और वह खुद ही अपने भांजे के सिर को अपनी बुर पर दबा दी,,, जैसे ही सूरज का होंठ उसकी बुर से स्पर्श हुआ वैसे ही मंगल के मुंह से गर्म सिसकारी निकल गई


ससससहहहहह,,, ओहहहहहहहसूरज,,,
( मंगल मस्त होकर गरम सिसकारी अभी भरी ही थी कि,,, तभी दरवाजे के खटखटाने की आवाज सुनकर दोनों चौक गए।)


दरवाजे पर दस्तक की आवाज सुनते ही दोनों चौंक गए,,, दोनों का मजा किरकिरा हो गया था बस एक सेकंड की भी देरी हुई होती तो,, मंगल इतनी ज्यादा उत्तेजित हो चुकी थी कि वह पानी फैंक देती। लेकिन अचानक दरवाजे को खटखटाने की आवाज सुनकर मंगल चोेंक गई और उसका सारा नशा काफूर हो गया,,, दोनों आश्चर्य से एक दूसरे की तरफ देखने लगे क्योंकि इस समय दोनों पूरी तरह से नग्नवस्था मे थे,,, ऐसी हालत में दोनों के पास अपने कपड़े पहनने का पूरा समय भी नहीं था,,,, दोनों एक दूसरे की तरफ तो कभी दरवाजे की तरफ आश्चर्य से देख रहे थे उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि इतनी दोपहर में कौन आ गया था और वह भी कुछ बोले बिना ही सिर्फ दरवाजा खटखटाए जा रहा था।,,,, दोनों का सारा मजा किरकिरा हो गया था,,, तभी मंगल घबराते हुए धीरे से बोली,,,

कककक,,,, कौन है?

मैं हूं शालू,,,,,

क्या हुआ कुछ काम है क्या बेटा,,,,

हां पहले दरवाजा तो खोलो तब मैं बताती हूं,,,,
( इतना सुनते ही मंगल और सूरज दोनों के होश उड़ गए,,, क्योंकि मंगल समझ गई थी कि यह लड़की दरवाजा खुलवाए बिना नहीं मानेगी,,, इसलिए वह जल्दी से सूरज को चादर ओढ़ के सोने का इशारा कि,सूरज भी वक्त गंवाए बिना बिस्तर पर लेट कर कपड़ों को सही करने का उसके पास समय नहीं था इसलिए वैसे ही चादर ओढ़ कर सोने का नाटक करने लगा,,,

क्या कर रही हो बुआ दरवाजा खोलने में कितना समय लगाओगी,,,,,,

हां हां रुको तो आ रही हु,,,
( मंगल पूरी तरह से घबरा चुकी थी क्योंकि कमर के ऊपर का भाग उसका पूरी तरह से नंगा था बाकी का तो साड़ी और पेटिकोट को तो अच्छा ही था की उतारी नहीं थी,,, इसलिए बिस्तर से उतरते ही उसे सही करली लेकिन ब्रा और ब्लाउज हड़बड़ाहट में उसे मिल नहीं रहा था,,, क्योंकि सूरज के साथ मजे लेने के उत्साह में वह जोश में आकर ब्रा और ब्लाउज को उतार कर फेंक दी थी,,, लेकिन कहां फेंकी थी उसे इस समय नजर नहीं आ रहा था। और लगातार शालू दरवाजे के बाहर से उसे आवाज लगा रही थी,,,,
मंगल को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें और बाहर से शालू को भी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार उसकी बुआ कमरे में इतनी देर से कर क्या रही है दरवाजा खोलने में इतना समय तो नहीं लगता,,,,
सूरज भी चादर मै से मुंह निकालकर अपनी मंगल मामी की हड़बड़ाहट और उसकी परेशानी देख रहा था उससे भी रहा नहीं जा रहा था और वह फुसफुसाकर उसे कुछ सलाह दे रहा था,,,, और दूसरी तरफ शालू जोकि बेहद व्याकुल होकर दरवाजा खुलने का इंतजार कर रही थी उससे रहा नहीं जा रहा था और वह दरवाजे पर कान लगाकर अंदर के हालात को समझने की कोशिश करने लगी और लगातार अंदर मंगल और सूरज के बीच हो रही फुसफुसाहट की आवाज उसके कानों में पड़ते ही उसे बड़ा अजीब सा लगने लगा वैसे तो अंदर क्या बातें हो रही है उसे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था,,,

लेकिन जिस तरह से दोनों के बीच फुसफुसाहट भरी आवाज में बातचीत हो रही थी वह शालू को बड़ा अजीब और हैरान कर देने वाला लगा। क्योंकि कमरे के अंदर अच्छी तरह से जानती थी किसू रज और मंगल ही थे जो कि एक मंगल मामी भांजे के बीच में इस तरह से फुसफुसाहट भरी आवाज मे बातचीत होने का मतलब उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उसे इतना तो समझ में आ गया कि दरवाजा खोलने में इतना जो समय लग रहा है और कमरे के अंदर से जिस तरह की फुसफुसाहट भरी आवाज आ रही है अंदर कुछ गड़बड़ ह़ी हो रहा है।,, लेकिन क्या गड़बड़ हो रहा है यह इस समय शालू को समझ में नहीं आ रहा था,,,,
शालू हैरान परेशान थी कि दरवाजा खोलने में आखिर बुआ को इतना समय क्यों लग रहा है इसलिए एक बार फिर से वह आवाज लगाते हुए बोली,,,
अंदर क्या हो रहा है बुआ तुम इतना समय क्यों लगा रही हो दरवाजा खोलने में भी कहीं इतना समय लगता है,,।
( जिस तरह से शालू नहीं अंदर क्या हो रहा है बोली थी इस बात को सुनकर मंगल और सूरज बुरी तरह से चौंक गए थे। उन्हें ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे कोई उनकी चोरी पकड़ लिया हो,,, मंगल के पास अब दरवाजा खोलने के सिवा कोई रास्ता नहीं बचा था और सूरज ने जैसा उसे बताया था, मंगल ने वैसे ही ब्रा और ब्लाउज पहने बिना ही नंगी चूचियों को अपनी साडी से ही ढककर साड़ी को कंधे पर डाल दी,,, लेकिन इस तरह से भी वह अपनी बड़ी बड़ी चूचियां को दूसरे की नजरो में आने से रोक नहीं पा रही थी। लेकिन उसके सामने हालात ही ऐसे थे कि वह अपनी स्थिति को इससे ज्यादा सुधार नहीं सकती थी इसलिए वह साड़ी को थोड़ा ठीक करके दरवाजे की तरफ बढ़ते हुए बोली,,,।

आ रही हूं बेटा,,, थोड़ी नींद लग गई थी (और इतना कहने के साथ ही मंगल ने दरवाजे की कुंडी निकाल कर दरवाजा खोल दी,,,,

क्या बुआ आप भी दरवाजा खोल,,,,,( शालू इतना ही कही थी कि आगे के शब्द जैसे उसके गले में ही अटक कर रह गए,,,, शालू की नजर मंगल की झिर्री नुमा साड़ी में से झांक रही उसकी बड़ी बड़ी चूचीयो पर. पड़ी,,,, वह यह नजारा देखकर एकदम से हैरान रह गई। सबसे पहले तो कुछ क्षण के लिए औरत जात होने के बावजूद भी मंगल भी बड़ी-बड़ी गौरी चूचियों को देखकर शालू भी उसके प्रति अपने आकर्षण को रोक नहीं पाई,,, लेकिन तुरंत उसे एहसास हुआ की आखिर उसकी बुआ कमरे में जवान लड़का होने के बावजूद भी इस स्थिति में क्यों है,,,। मंगल भी शालू की नजरों को भाप गई वह समझ गई कि वह क्या देख रही है,,,। इसलिए शालू कुछ पूछती इससे पहले ही वह बोली,,,।

वह क्या है ना बेटा की गर्मी इतनी ज्यादा पड़ रही थी कि इसे निकालना ही पड़ा,,,
( शालू आश्चर्य से मंगल की बातें सुन रही थी लेकिन कमरे में झांककर अंदर का जायजा भी लेने की कोशिश कर रही थी जिसे देखते हुए,, मंगल पहले ही बोल पड़ी,,,

सूरज सो रहा है,,,( मंगल यह बात शालू का ध्यान भटकाने के लिए बोली थी जो कि शालू भी अच्छी तरह से देख रही थी कि वह चादर ओढ़ कर दूसरी तरफ करवट लेकर सोया हुआ था लेकिन उसे इतना तो साफ पता चल गया था कि अंदर जिस तरह की फुसफुसाहट हो रही थी सूरज सोया नहीं है बल्कि सोने का नाटक कर रहा है लेकिन वह ऐसा क्यों कर रहा है यह शालू के समझ के बिल्कुल परे था,,,,।)

वैसे तुम्हें क्या काम था शालू जो इस तरह से मुझे नींद से जगाने आ गई,,,।

कुछ खास नहीं बुआ मां ने,,, कही थी कि अगर वह जाग रही हो तो उन्हें बुला लाओ थोड़ी इधर उधर की बातें भी हो जाएंगी और समय भी कट जाएगा,,,
( इतना कहते हुए वह लगातार कमरे के अंदर अपनी नजरें जुड़ा रही थी कि तभी उसकी नजर बिस्तर के नीचे पड़ी ब्लाउज और ब्रा पर गई,,,, इस तरह से नीचे पड़े हुए ब्रा और ब्लाउज पर नज़र पड़ते ही शालू का माथा पूरी तरह से ठनक गया,,,, उसी इतना तो समझ में आ ही गया की कमरे में कुछ तो गड़बड़ जरूर हो रहा है। वह जल्दी से अपनी नजरों को बिस्तर के नीचे से हटा दी ताकी मंगल को यही लगे कि वह बिस्तर के नीचे पड़ी ब्लाउज और ब्रा को नहीं देख पाई है। शालू की बात सुनकर मंगल मुस्कुराते हुए बोली।)

नहीं बेटा मैं इस समय नहीं आ सकती मैं बहुत थक गई हूं मुझे आराम करना है मैं बाद में आ जाऊंगी,,,
( शालू अपनी बुआ की बात सुनकर ज्यादा जोर नहीं देना चाहती थी इसलिए बोली।)

कोई बात नहीं हुआ आप आराम करिए मैं मंगल मामी से कह दूंगी की बुआ सो रही है,,,।


आप आराम करिए (और इतना कहकर शालू वहां से चल दी,, उसे जाता हुआ देखकर मंगल को राहत हुई और वजह से दरवाजा बंद करके बिस्तर पर आकर बैठ कर लंबी लंबी सांसे भरने लगी दरवाजे के बंद होने की आवाज सुनते ही सूरज भी उठ कर बैठ गया,,।)

यह मामी की लड़की भी ना बहुत परेशान कर दी,,, अच्छा मंगल मामी कहीं उसे शक तोे नहीं हुआ,,,

नहीं बेटा सब तो नहीं हुआ अच्छा हुआ बला टली वरना वह मुझे लिए जाए बिना नहीं मानती,,,,
( इतना कहने के साथ ही साड़ी के पल्लू को अपने कंधे पर से नीचे गिरा दी एक बार फिर से उसकी बड़ी बड़ी चूचियां सूरज की आंखों के सामने उछलने लगी जिसे देख कर सूरज अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर दोनों से जियो को फिर से थाम लिया और अपनी मंगल मामी को आंख मारते हुए बोला,,,

ओह बेटा गर्मी बहुत है ना इसके लिए निकाल दि,,,
( इतना कहते ही सूरज हंसने लगा और साथ में मंगल भी। )

अच्छा खासा मूड खराब कर दि इस लड़की ने,,,

इसमें कौन सी बड़ी बात है मंगल मामी आओ फिर से तुम्हारा मूड बना देता हूं (इतना कहने के साथ ही सूरज अपनी मंगल मामी का हाथ पकड़कर बिस्तर पर लिटा दिया और इस बार एक झटके में ही उसकी साड़ी और पेटिकोट खोलकर उसे पूरी तरह से नंगी कर दिया,,, हुस्न की मल्लिका मंगल का गोरा बदन एक बार फिर से सूरज की आंखों के सामने अपना कहर बरसाने लगा,,, अपनी मंगल मामीका गोरा बदन देखते ही सूरज उस पर टूट पड़ा और पूरे बदन पर चुंबनों की बौछार करने लगा ऊपर से चुमते हुए वह नीचे की तरफ बढ़ रहा था,,, और जैसे ही वह मंगल की रसीली बूर-के करीब पहुंचा,,, ऊसके होंठ अपने आप लपलपाने लगे,,,, मंगल की बुर भी कुलबुलाने लगी,,, और अगले ही पल सूरज अपनी मंगल मामी की रसीली बुर पर अपने होंठ रख कर उसे चाटना शुरू कर दिया,,,,,
पूरे कमरे में मंगल की गर्म सिसकारी गूंजने लगी,,,, दोनों पूरी तरह से चुदवासे हो गए।,,,,सूरज अपनी मंगल मामी की मोटी मोटी जांघों के बीच पोजीशन ले लिया था उसकी मंगल मामी पूरी तरह से तैयार थी अपने भांजे के लंड को अपनी बुर में लेने के लिए,,,,,सूरज अपने खड़े लंड को हाथ में लेकर हिलाते हुए बोला,,,।

शालू ने आकर सारा मजा बिगाड़ दिया वरना अब तक तो मेरा मोटा लंड तुम्हारी बुर में होता,,,,

सच कह रहा है तू कितना मजा आ रहा था मैं तो एक दम पागल हुए जा रही थी लेकिन शालू ने वाकई में सारा मजा किरकिरा कर दिया।,,,
( इधर दोनों मंगल और सूरज संभोग सुख प्राप्त करने की पूरी तैयारी कर चुके थे दोनों संभोग सुख का मजा लेने के लिए तड़प रहे थे,,, वहीं दूसरी तरफ शालू पूरी तरह से हत प्रत थी उसे कमरे के अंदर जरूर कुछ गड़बड़ हो रही है इस बात की आशंका हो रही थी।

वह इस बात से ज्यादा परेशान हुए जा रही थी कि,, भला एक औरत कैसे एक जवान लड़के की उपस्थिति में अपने ब्लाउज और ब्रा को निकाल कर रह सकती है।सूरज पूरी तरह से जवान था और कमरे में मौजूद होने के बावजूद भी उसकी बुआ ने, कैसे अपना ब्लाउज निकाल कर अपनी बड़ी-बड़ी चूचियों को दिखाते हुए अपने जवान भांजे की मौजूदगी में रहती होंगी,,, शालू को यह बात परेशान कर दे रही थी क्योंकि बुआ अभी बुढी नहीं थी,,, अभी तो वह पूरी तरह से खिल रही थी,,
और सूरज भी छोटा बच्चा नहीं था। वह पूरी तरह से जवान हो चुका था,,,,। शालू बार-बार अपने मन को यह समझाने की कोशिश कर रही थी कि जो कुछ भी हुआ देखी वह सब उसकी आंखों का भ्रम था ऐसा कुछ भी नहीं है जैसा वह सोच रही है लेकिन फिर भी उसके मन में बार-बार यही सवाल उठता था कि अगर सबकुछ सही है तो बिस्तर के नीचे बुआ की ब्रा और ब्लाउज के ऊपर की पड़ी थी अगर वह सच में निकाल कर रखी होती तो वह अलमारी या बिस्तर पर होती नीचे ना फेंकी होती। अब शालू का बेसब्र मन व्याकुल होने लगा उसे हकीकत जानना था और वह अपनी मां के कमरे की तरफ जाने की वजह वापस घूम गई अपनी बुआ के कमरे की तरफ जहां पर सूरज और मंगल संभोगरत होकर मजे लूटने जा रहे थे,,,,, जहां पर मंगल सूरज को उकसाते हुए बोल रही थी।

तो देर किस बात की है मेरे राजा मेरी बुर भी तेरे लंड के सामने है, और तेरा लंड भी पूरी तरह से खड़ा हो चुका है। तू अब अपने मोटे लंड को मेरी बुर मे डालकर चोद मेरी प्यास बुझा दे,,,

आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी ना तो मंगल से रहा जा रहा था और ना ही सूरज से,,, अपनी आंखों के सामने अपनी मंगल मामी की रसीली गुलाबी बुर को देखकर सूरज की आंखों में चमक आ गई और वह एक हाथ से अपनी मंगल मामी की जांघों को थोड़ा सा फेलाकर,, दूसरे हाथ में पकड़े लंड को बुर की गुलाबी पत्तियों के बीच भीढ़ा दिया,,,
इसके बाद सूरज ने कचकचाकर ऐसा धक्का मारा कि,,,सूरज का मोटा लंड मंगल की कसीली टाइट बुर के अंदरूनी सारे अवरोधों को दूर करते हुए सीधे जाकर बच्चेदानी से टकरा गया,,,सूरज के इस तरह के जबरदस्त हमले को मंगल सहन नहीं कर पाई और उसके मुख से चीख निकल गई,,,,
लेकिन वह अपने होठो को आपस में भींच कर अपनी चीख को अंदर ही अंदर दबा ले गई,,,,सूरज बेहद खुश नजर आ रहा था और ऐसी खुशी,,, इंसान के चेहरे पर तभी नजर आती है जब वह किसी चीज पर जीत प्राप्त कर लेता है,,,,सूरज के चेहरे पर भी उसी प्रकार की जीत की खुशी में जरा रही थी क्योंकि उसने अपनी मंगल मामी की बुर पर पूरी तरह से फतेह प्राप्त कर लिया था,,,, वह अपना मोटा लंबा लंड अपनी मंगल मामी की बुर नुमा जमीन पर गाड़ दिया था।,,, अपनी मंगल मामी की कमर को दोनों हाथों से थाम कर अपने लंड को अंदर बाहर करते हुए उसको चोदना शुरू कर दिया था,,,,,
दूसरी तरफ शालू मंगल बूआ के कमरे तक पहुंच चुकी थी और अंदर की हलचल को सुनने के लिए दरवाजे से कान लगा दी,,,, कमरे से आ रही आवाजों को सुनकर शालू को अपने कानों पर भरोसा नहीं हुआ वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिरकार यह हो क्या रहा है कमरे के अंदर की मादक आवाज उसके तन-बदन में ना जाने किस तरह की लहर पैदा कर रही थी यह खुद उसे भी समझ में नहीं आ रहा था,,,,। वह इस तरह की आवाज को पहली बार सुन रही थी

ससससहहहहह,,,,, आहहहहहहहहहह,,,,, व,ऊहहहहहहहहहहहह,,,,,,ओहहहहहह म्मा,,,,,,,,,,,( शालू पूरी तरह से हैरान हुए जा रही थी आखिरकार यह आवाज में किस तरह की है वह दरवाजे के बराबर सुन लगाकर अंदर की आवाज को सुन रही थी,,,, लेकिन तभी जो आवाज उसके कानों में सुनाई दी,,, उसे सुनकर वह पूरी तरह से हिल गई,,, उसके पूरे बदन में सनसनी की लहर दौड़ गई)
ओहहहसूरज मेरे राजा तेरा लंड बहुत मोटा और लंबा है रे मेरी बुर का सारा रस निचोड़ डाल रहा है,, बस ऐसे ही और तेज धक्के लगा कर चोद मुझे और जोर से चोद फाड़ दे मेरी बुर को,,,,
( जैसे ही शालू के कानो में मंगल की यह बात सुनाई दी उसके तो होश उड़ गए शालू अभी अभी जवान हो रही थी इसलिए उसके कानों में पड़ने वाले यह शब्द पहली बार ही उसे सुनाई दिए थे वह तो समझ ही नहीं पाई कि वह क्या करें अंदर की बातों को सुनकर उसके तन-बदन में ना जाने कैसी हलचल मचने लगी,, उसकी जांघों के बीच के भाग में रक्त का प्रभाव बड़ी तेजी से होने लगा उसे जांघों के बीच का वह अंग फुदकता हुआ महसूस हो रहा था। अब उसके बर्दाश्त के बाहर था,,, क्योंकि अंदर से उसे आप सूरज की आवाज़ आ रही थी जो की कह रहा था कि,,,

ओ मेरी रानी तेरी रसीली बुर में तो मैं पूरी जिंदगी गुजारने को तैयार हूं,,, सच कह रहा हूं जब तक तेरी बुर में मैं अपना मोटा लंड डालकर तुझे चोद ना दु तब तक मुझे चैन नहीं मिलता,,,, तू ऐसे ही मुझसे चुदवाया कर मैं जिंदगी भर तुझे ऐसे ही चोदूंगा,,, मेरी रानी,,,
( अब शालू के सामने सब कुछ साफ हो चुका था वह समझ चुकी थी कि अंदर क्या चल रहा है लेकिन इस समय उसे अंदर का नजारा दिखाई नहीं दे रहा था इसलिए वह बेचैन हो रही थी,,,, वह अंदर देखने के लिए जुगाड़ ढुंढने लगी,, और जल्द ही उसे दरवाजे की कुंडी के पास एक छोटा सा छेद नजर आया जिस मे आंख सटाते ही उसे किसी पिचर की तरह पर्दे पर पूरा दृश्य नजर आने लगा,,,,
अंदर का नजारा देखकर वह पूरी तरह से चौंक. गई उसका शक हकीकत में बदल गया था। वह जो अपने दिमाग में सोच रही थी वही नजारा उसकी आंखों के सामने बिस्तर पर हो रहा था उसे पहले तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि सूरज मंगल के बेटे समान था और वह अपनी मां समान मंगल मामी को इस तरह से चोद सकता है और मंगल अपने बेटे समान भांजे से पूरी नंगी होकर उसका लंड अपनी बुर में डलवा कर चुदवा सकती है।,,, अंदर का नजारा देखकर तो शालू पसीने-पसीने हो गई सूरज अपनी मंगल मामी पर चढ़ा हुआ था और उसकी मंगल मामीखुद ही अपनी टांगे फैलाकर अपने भांजे के धक्के का मजा ले रहीे थी। दोनों पूरी तरह से नंगे थे,, शालू को आपकी समझ में आ गया कि उसकी बुआ दरवाजा जिस हालत में खोली थी क्यों खोली थी,,,

वह समझ गई कि उसके आने से पहले से ही वह दोनों कार्यक्रम में लगे हुए थे और सूरज भी सो नहीं रहा था जाग रहा था। यह सब सोचते हुए वहां अंदर का नजारा देख रही थी अंदर का गर्म दृश्य उसके शालू मन पर भारी पड़ रहा था। वह वहां से हट जाना चाह रही थी लेकिन ना जाने किस प्रकार का आकर्षण उसे वही खींच कर स्थिर किए हुए था।,,
सूरज की कमर जोर-जोर से हिलती हुई उसे नजर आ रही थी हालांकि उसने अभी भी उन दोनों के संभोगरत अंगों को नहीं देख पाई थी,,,, लेकिन इतना तो जानती थी कि उन दोनों के बीच क्या हो रहा है।सूरज भी गरम सिसकारी लेते हुए जोर जोर से धक्के लगा रहा था,,, मंगल भी अपनी नंगी बांहों में उसे जकड़ कर चुदाई का मजा लूट रहीे थी वह दोनों इस बात से बिल्कुल अनजान थे की कोई और भी है जो कि दरवाजे के बाहर खड़े होकर दरवाजे के छेद से उन दोनों के काम लीला को देख रही थी।,, शालू के बदन में उत्तेजना के सुरसुराहट हो रही थी जिसको वह बिल्कुल भी पहचान नहीं पा रही थी।,,,,
आखिरकार सूरज के तेज झटकों की बदौलत मंगल का मदन रस भलभलाकर बहने लगा,,, साथ ही वह भी झड़ गया,,, लेकिन शालू को कुछ भी समझ में नहीं आया कि उन दोनों के बदन में ऐसा कौन सी हरकत हुई कि दोनों एकदम से थक गए दोनों शांत एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले पड़े थे।,, दोनों का काम निपट चुका था लेकिन शालू यह नहीं जानती थी इसलिए वह अभी भी उस छेंद मे आंख गड़ाए अंदर के दृश्य को देख रही थी,,, लेकिन जैसे ही सूरज अपनी मंगल मामी के ऊपर से उठा शालू तुरंत वहां से चली गई।
 
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आखिरकार सूरज के तेज झटकों की बदौलत मंगल का मदन रस भलभलाकर बहने लगा,,, साथ ही वह भी झड़ गया,,, लेकिन शालू को कुछ भी समझ में नहीं आया कि उन दोनों के बदन में ऐसा कौन सी हरकत हुई कि दोनों एकदम से थक गए दोनों शांत एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले पड़े थे।,, दोनों का काम निपट चुका था लेकिन शालू यह नहीं जानती थी इसलिए वह अभी भी उस छेंद मे आंख गड़ाए अंदर के दृश्य को देख रही थी,,, लेकिन जैसे ही सूरज मंगल के ऊपर से उठा शालू तुरंत वहां से चली गई।

शालू अपने कमरे में आकर लंबी लंबी सांसे भर रही थी जो कुछ भी उसने कुछ देर पहले देखी उसे देखने के बावजूद भी उसे अपनी आंखों पर भरोसा नहीं हो रहा था और होता भी कैसे क्योंकि जो कुछ भी हो रहा था वह प्रकृति के बिल्कुल विरुद्ध था,,,,
क्योंकि सूरज और मंगल के बीच हुए इस शारीरिक संबंध को समाज बिल्कुल भी किसी भी प्रकार की मान्यता नहीं देता, इसलिए तो शालू को भी आंखों देखी ऊस नजारे पर अभी भी भरोसा नहीं हो रहा था लेकिन उसने जो अपनी आंखों से देखी थी उसे झुटलाया भी नहीं जा सकता था,,
बिस्तर पर बैठकर वह अपनी सांसो को दुरुस्त करने में लगी हुई थी लेकिन जो नजारा उसने अपनी आंखों से देखी थी वह नजारा बेहद ही कामुकता से भरा हुआ था और शालू के लिए पहली बार ही था इसलिए ना चाहते हुए भी उसकी सांसो की गति सामान्य नहीं हो रही थी।
वह अनजाने में ही उत्तेजना के भंवर में फंसती चली जा रही थी,, क्योंकि मामी भांजे के बीच का यह अवैध शारीरिक संबंध की वजह से उसे क्रोध कम और आकर्षण ज्यादा महसूस हो रहा था,,,

एक मन उसका यह कहता था कि दोनों के बीच हो रहे इस तरह के नाजायज संबंध ध के पात्र हैं और वह इस बारे में अपनी मां को जरूर बताएगी लेकिन तभी उसका दूसरा मन कमरे के उससे दृश्य को याद करके उसके प्रति आकर्षित हुआ जाता था क्योंकि जिंदगी में उसने पहली बार ऐसे नजारे को देखीे थीे और अभी अभी वो जवानी की दहलीज पर कदम रख रही थी,,,,
उसके बदन की शारीरिक रचनाओ में बदलाव आ चुके थे। उसका बदन भरना शुरू हुआ था होठों की लाली निखरने लगी थी,,, नींबू के आकार से नारंगी के आकार में तब्दील हो रही चूचियां छातियों की शोभा बढ़ा रही थी,,,
मोरनी सी पतली कमर पगडंडियां चलते समय बलखा जाती थी नितंबों का उभार बढ़ने लगा था कुल मिलाकर शालू पूरी तरह से जवान हो चुकी थी लेकिन अब तक संपूर्ण रूप से अनछुई थी।,,,, बार-बार वह अपनी सांसो की गति को सामान्य करने की कोशिश करती थी लेकिन कमरे का बेहद कामुक नजारा उसकी आंखों के सामने किसी चलचित्र की भांती चल रही थी जिसके कारण वह पूरी तरह से विवश हो चुकी थी।,,,,

वह बार-बार मंगल बूआ के नंगे बदन के बारे में सोच रही थी और यह भी सोचकर अपने अंदर अजीब सी सुरसुराहट को अनुभव कर रही थी कि कैसे अपनी ही मां समान मामी पर सूरज चढ़ा हुआ था और उसे चोद रहा था,,,,,
शालू की सांसे सामान्य होने का नाम नहीं ले रही थी।
कर भी क्या सकती थी उसकी उम्र ऐसे दौर पर पहुंच चुकी थी कि जहां पर शारीरिक आकर्षण अपना स्थान ले लेती है,,,। इसलिए तो ऊसकी आंखों के सामने बार बार को धमकी ऊपर नीचे हो रही कमर और मंगल की मोटी मोटी जांघे जिसके बीचो-बीच सूरजअपनी करामत दिखा रहा था।,,,,, शालू के बदन का तापमान धीरे-धीरे बढ़ने लगा था,,,। वह अजीबोगरीब परिस्थिति में फंस चुकी थी,,, उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें एक तो उसे उन दोनों के बीच के इस संबंध को लेकर क्रोध भी आ रहा था और अजीब सा उनके प्रति आकर्षण भी होता जा रहा था। सबसे ज्यादा हलचल उसे अपनी जांघों के बीच महसूस हो रहा था उसे उसकी बुर वाली स्थान हल्की-हल्की गिली होती महसूस हो रही थी। उत्तेजना के मारे उसे जोरो से पेशाब भी लगी हुई थी,। मन में निश्चय कर ली कि उन दोनों की करतूतों को वह अपनी मां को बता कर रहेगी,,,,,
यह सोच कर वहां अपने कमरे से बाहर निकलकर पेशाब करने चली गई,,,,
दूसरी तरफ इस बात से बेखबर मंगल और सूरज संभोग सुख का आनंद लूटने के बाद दुनिया से बेखबर नग्नावस्था में एक दूसरे की बाहों में बाहें डालकर चैन की नींद सो रहे थे। शाम हो चुकी थी,, लेकिन अभी तक सूरज और मंगल कमरे से बाहर नहीं आए थे इसलिए शालू की मां शालू को उन्हें बुला लाने के लिए बोली,,, सभी शालू अपनी मां से उन दोनों की बात बताने के उद्देश्य से बोली,,।

किसको बुला लाऊ मां,,,?

अरे अपने भाई सूरज और तेरी बुआ को अब तक अपने कमरे में सो रहे हैं,,,

अरे जाने दो ना मां आराम कर रहे होंगे दिन भर काम करके थक जाते हैं,,,।( शालू चुटकी लेते हुए बोली जो कि उसकी मां नहीं समझ पा रही थी।)

अरे आज कौन सा काम था आराम ही तो कर रही है और वैसे भी उन्हें काम करने को कौन कह रहा है यहां आकर थोड़ा बैठेंगी तो उन्हें भी अच्छा लगेगा,,,

अरे मां तुम नहीं जानती यहां बैठने से अच्छा वह दोनों कमरे में ही अच्छे से आराम कर लेते है।

तु बातें मत बना जा जल्दी जाकर बुला ला। ( शालू की मां थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए बोली)

इतना गुस्सा क्यों हो रही हो जा रही हूं बुलाने,,, अच्छा एक बात कहूं मां,,, बहुत ही राज की बात है,,,,। ( शालू अपनी मां को सारी हकीकत बता देनैं के उद्देश्य से बोली,,,।)

तू क्यों घुमा फिरा कर बातें कर रही है बता तुझे क्या बताना है,,, बूआ के राज की बात बताने,,,,
( शालू को यही समय ठीक लगा मंगल और सूरज की बात बताने के लिए क्योंकि इस समय वहां पर कोई भी मौजूद नहीं था और शालू भी अपने चारों तरफ नजरें घुमा कर तसल्ली कर लेने के बाद अपनी मां के करीब आकर धीरे से बोली।)

मां आज दिन में मैंने बंद कमरे में जो देखा उस पर मुझे विश्वास नहीं हो रहा है,,,,
( शालू घबराते हुए अपनी मां को सब कुछ बता देना चाहती थी लेकिन उसकी मां थी कि उसकी बात पर जरा भी ध्यान नहीं दे रही थी और वह अपने ही काम में मस्त थी,, और शालू को भी समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी मां से उस घटना के बारे में कैसे बोलें उसे शर्म सी महसूस हो रही थी,,,, शालू अपनी बात को आगे पूरा करती उससे पहले ही उसकी मां ने मंगल को आते हुए देख लीे और बोली,,,,

लो वह तो खुद ही आ रही है,,,,
( इतना सुनते ही शालू चौक कर देखने लगी मंगल मुस्कुराते हुए जा रही थी,,, शालू मंगल के मुस्कुराते हुए चेहरे को ध्यान से देख रही थी और उसके चेहरे के भोलेपन के पीछे छिपी वासना की मूर्ति को पहचानने की कोशिश कर रही थी,,,,
वह मन ही मन में सोच रही थी कि मंगल को देखकर कोई यह नहीं कह सकता कि वह अंदर से इतनी गिरी हुई है इतनी गंदी औरत है कि खुद के ही बेटे समान भांजे के साथ चुदवा रही थी,,,। इतने गौर से अपने आप को देख रही शालू को देखकर मंगल बोली,,, ।

ऐसे क्या देख रही हो शालू?

ककककक,,, कुछ नहीं हुआ बस यही देख रही थी कि तुम कितनी खूबसूरत हो,,,,

नहीं बेटा मुझसे भी ज्यादा खूबसूरत तुम हो (मंगल मुस्कुराते हुए शालू के खूबसूरत गाल को दबाते हुए बोली,,,,, मंगल की बातों से मिलकर शालू मन ही मन सोचने लगी कि कितनी नीच औरत है इतनी प्यारी प्यारी बातें करती है कि इसको देखकर, कोई यह नहीं कह सकता कि खूबसूरत चेहरे के पीछे गंदी औरत छुपी हुई है।,,, शालू यह सब सोच ही रही थी कि तभी मंगल शालू की मां से बोली,,,

आपको कुछ काम था मुझे बुलवाने भेजी थी,,

अरे ऐसी कोई बात नहीं थी बस बैठ कर इधर उधर की गपशप लड़ाएगे और साथ में काम भी हो जाएगा,,,,

कोई बात नहीं दोपहर में थकान की वजह से मैं नहीं आ सकी चलो अब बातें कर लेते,,,,
( इतना कहकर मंगल और शालू की मां दोनों हंसने लगी लेकिन शालू मंगल की झूठी बातें सुनकर मन ही मन उसे भला बुरा कह रही थी,,,।)
शालू बार-बार अपनी मां से उस राज के बारे में बताना चाह रही थी लेकिन वह किसी न किसी कारणवश बता नहीं पा रही थी खास करके उसे जब भी सही मौका मिलता तो शर्म के मारे उसके मुंह से आवाज तक नहीं निकल पा रही थी क्योंकि शालू एक लड़की थी और संस्कारी थी इसलिए उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह कैसे एक मां समान मामी और बेटे समान भांजे के बीच के शारीरिक संबंध को शब्दों में अपनी मां से कहें,,,,, लेकिन अंदर ही अंदर वह इतनी ज्यादा व्याकुल हुए जा रही थी कि बिना बताए उसे चैन भी नहीं मिलता लेकिन कैसे बताएं इसका सही समय ढूंढ रही थी।

ऐसे ही उसी रात रात को गाना बजाना हो रहा था सभी औरतें पास पड़ोस की आंगन में इकट्ठा होकर गाना बजाना और नाच रही थी। वहां पर सभी औरतें इकट्ठा थे मंगल भी वहीं बैठ कर गाने बजाने का आनंद ले रहे थी शालू तो बस मौका देख रही थी क्या वह अपनी मां से सारी घटनाएं बता दे इसलिए वहां बैठे हुए थे और उसके करीब ही कुछ दूरी पर सूरज भी बैठकर पहली बार शादी के उत्सव का आनंद ले रहा था,,,
लेकिन खास करके वह नाच रही औरतो कि मटकती गांड को देखकर उत्तेजित हुए जा रहा था,, जब औरतें अपनी बड़ी बड़ी गांड मटका कर नाच रही होती तब सूरज उनकी गांड को देखकर एक दम चुदवासा हुए जा रहा था। इसलिए वह जुगाड़ में था कि उसके लंड को शांत करने वाली कोई मिल जाए।,,, वह ईसी ताक मे वहां बैठा हुआ था,,, शालू बार-बार सूरज की तरफ देख रही थी लेकिन उस से नजरें मिलाने की ताकत उसमें नहीं थी क्योंकि उसे देख कर उसे दोपहर वाली सारी घटनाएं उसकी आंखों के सामने नाचने लगती थी और वह शर्म से खुद पानी पानी हुए जा रही थी।,,,
अभी कुछ देर बाद शालू की मां यानी कि सूरज की सुधियां मामी औरतों के बीच में से उठी और घर के पीछे की तरफ जाने लगी शालू अपनी मां को देख रही थी और उसके मन में भूचाल मचा हुआ था वह किसी भी तरीके से अपनी मां को दोपहर वाली बात बता देना चाहती थी,,,,

वह अपनी मां को सारी बातें बताने के लिए वहां पर जाती इससे पहले ही सूरज भी वहीं बैठ कर अपनी सुधियां मामी को घर के पीछे जाते हुए देख लिया,,, उसका लंड पूरी तरह से खड़ा था और उसे अपने लिए जुगाड़ का इंतजाम होते हुए देखकर वह भी शालू के पहले ही घर के पीछे की तरफ कदम बढ़ाने लगा,,,,
यह देखकर शालू को बड़ा अजीब लगा क्योंकि जिस तरह सूरज जा रहा था उसी तरह उसकी मां भी जा रही थी और जाहिर था कि शालू को इस बात का अंदाजा था कि उसकी मां घर के पीछे रात के समय पेशाब करने ही जा रही थी,,, वह एकदम से सोच में पड़ गई, की इतनी रात को सूरज घर के पीछे क्या करने जा रहा है तभी वह सोचि कि हो सकता है कि वह भी पेशाब करने जा रहा है,,,, लेकिन वहां तो उसकी मां पेशाब करने गई हुई थी।

शालू यह सोच कर हैरान हो गई कि कहीं सूरज उसकी मां को यहां पर पेशाब करते हुए ना देख ले क्योंकि सूरज को जिस हाल में अपनी बुआ के साथ दोपहर में देख चुकी थी,,, उसे देखते हुए उसके चरित्र पर जरा भी मुझसे भरोसा नहीं था उसे यह डर था कि कहीं उसकी नजर उसकी मां पर भी ना बिगड़ जाए इसलिए वह भी जल्दी-जल्दी पीछे की तरफ जाने लगी,,,
शालू थोड़ी देर बाद ही घर के पीछे पहुंच गई वह दीवार के पीछे खड़ी होकर देखने की कोशिश करने लगी अंधेरा जरूर था लेकिन,,,
चांदनी बिखरी हुई थी जिसकी वजह से सब कुछ साफ साफ नजर आ रहा था शालू को उसकी मां पेड़ के नीचे खड़ी दिखाई दे रही थी और उसके कुछ ही दूरी पर सूरज भी दीवार का सहारा लेकर उसकी मां को ही देखे जा रहा था,,,,

शालू की मां अभी वैसे ही खड़ी होकर अपने चारों तरफ नजरें दोड़ा रही थी,,, वह यह तसल्ली कर लेना चाह रही थी कि कहीं कोई उसे देख तो नहीं रहा है और धीरे से उसने दोनों हाथों को नीचे की तरफ लाकर अपनी साड़ी के छोर को पकड़ ली,,, शालू समझ गई थी उसकी मां अब साड़ी ऊपर उठाने वाली है,,, और यह अंदाजा सूरज भी लगा लिया था तभी तो उत्तेजना बस उसका हाथ अपने आप उसकी धोती के उठान पर चला गया उन्हें देखकर शालू अंदर ही अंदर सिहर उठी,,,,
वह समझ गई थी सूरज उसकी मां के लिए भी गंदा ही सोच रहा है और यही शालू को भी सही समय लगा,,, अपनी बात उसकी मा से बताने के लिए क्योंकि वह मन में सोच रही थी कि,,, उसकी मां को पेशाब करता हुआ देखकर सूरज जरूर ऐसी वैसी हरकत करेगा और उसकी मां गुस्से में आकर उसे डांटेगी,,, और वह भी क्रोधित होकर दोपहर वाली बात को अपनी मां से बता देगी यही सोचकर वह दीवार के पीछे खड़ी होकर सामने के नजारे को देखकर उचित समय का इंतजार करने लगी,,,,


शालू टकटकी लगाए कभी अपनी मां की तरफ तो कभी सूरज की तरफ देख ले रही थी,,, अजीब सी हलचल उसके अंदर चल रही थी रात का समय था ऐसे में वह इस तरह से घर के पीछे सूरज कि और उसके मंगल मामी के बीच के संबंध का राज अपनी मां को बताने के लिए अपनी मां के पीछे पीछे चल कर आई थी उसे नहीं मालूम था कि उसकी मां को पीछे आता देखकर सूरज भी उसके पीछे पीछे आ जाएगा उसका इस तरह से उसकी मां के पीछे आना ही उसके चरित्रहीन का सबूत पेश कर रहा था क्योंकि भले ही वह अपनी मामी के साथ शारीरिक संबंध बना चुका था लेकिन उसके लिए आप दुनिया की सभी औरतों के साथ किसी भी प्रकार का पवित्र रिश्ता की भावना उसके मन में बिल्कुल भी नहीं थी तभी तो वह,,,

इस तरह से अपनी सुधियां मामी को प्यासी नजरों से देखता हुआ धोती के ऊपर से ही अपना लंड दबा रहा था। यही सब शालू अपने मन में सोच रही थी और बराबर दोनों पर नजर रखी हुई थी शालू तो इसी मौके की तलाश में थी कि सूरज उसकी मां के साथ कुछ ऐसा वैसा हरकत करें और मौका देख कर शालू अपने मन में चल रही हलचल को बाहर निकाल दे वरना वह कभी भी अपनी मां से उन दोनों के बीच के रिश्ते के बारे में नहीं बता पाएगी,,,
अभी भी शालू की मां चारों तरफ देखकर पूरी तरह से तसल्ली कर लेना चाहती थी क्योंकि रात होने के बावजूद भी चारों तरफ हल्का हल्का चांद की रोशनी में सारा वातावरण नहाया हुआ था और वैसे मैं किसी का भी इस अवस्था में नजर पड़ जाना लाजमी ही था वह तो अच्छा हुआ कि रात का समय था इसलिए पीछे कोई आता नहीं लेकिन इस समय की बात कुछ और थी।

सूरज के बदन में भी हलचल मची हुई थी क्योंकि कुछ देर पहले ही वह औरतों की मटकती हुई गांड को देखकर उनके नृत्य का आनंद ले कर उत्तेजित हो चुका था। और इस समय वह बुर के लिए तड़प रहा था वह चाहता तो अपनी मंगल मामी से कह कर उसे कमरे में चलने के लिए कह सकता था और वहां जाकर वहां अपने लंड की तड़प को मिटा सकता था लेकिन जानता था कि उसकी मामी वहां से जाने वाली नहीं है क्योंकि अगर वह इस तरह से बीच में उठ कर चली जाती तो लोगों को अच्छा नहीं लगता,,, वह यह मन में सोच कर परेशान हो रहा था कि चलो उसकी मंगल मामी ना सही उसकी सुधियां मामी ही सही,,,
एक हाथ से धोती के ऊपर से ही अपने लंड को मसलते हुए अपनी मामी की तरफ देख रहा था और वह जानता था कि उसकी मामी,,, अपनी साड़ी उठाकर, पेशाब करने के लिए बैठने वाली है ऐसा अद्भुत और मादक नजारा के बारे में कल्पना करके ही वह कामोत्तेजित हुआ जा रहा था।,,,

और देखते ही देखते शालू की मां अपनी साडी पकड़कर ऊपर की तरफ धीरे-धीरे उठाने लगी,,, खुदा की तो सांसे ही अटक गई थी वह सांसों को थामे सामने के नजारे को अपनी आंखों से पीने की भरपूर कोशिश कर रहा था,,,,
शालू भी अच्छी तरह से जानती थी कि कुछ ही देर में उसकी मां की बड़ी बड़ी गांड सूरज की आंखों के सामने नंगी होगी उसे इस तरह से सूरज को उसकी मां की नंगी गांड को देखना अच्छा तो नहीं लगेगा लेकिन वह पूरी तरह से मजबूर थी क्योंकि वह तो मौके की तलाश में थी और अपने मन की बात कहने के लिए उसे इससे अच्छा मौका नहीं मिल सकता था इसलिए वह मन मार के इंतजार करने लगी,,,
एक तरफ तो उसे इस अवस्था में अपनी मां को देखने में और सूरज जो की ऊसकी मां को देख रहा था,,, यह सब से उसे अंदर ही अंदर गुस्सा भी आ रहा था लेकिन ना जाने क्यों उसके तन-बदन में अजीब सी हलचल भी मची हुई थी चाहती तो वह इसी समय चिल्लाकर अपनी मां के सामने सूरज और उसकी मंगल मामी का भांडा फोड़ सकती थी लेकिन ना जाने कौन सा अजीब आकर्षण सा हुआ जा रहा था कि वह,,, ना चाहते हुए भी सब कुछ अपनी आंखों से देखे जा रही थी,,,, क्योंकि उसके अंदर एक अच्छी सी उत्सुकता जगने लगी थी और वहं भी इसकी उत्सुकता की उसकी मां की बड़ी-बड़ी नंगी गांड को देखकर एक लड़का क्या सोचता है,,, उसे कैसा अनुभव होता है और यही देखने के लिए वह सब्र कर रही थी ताकि सूरज के अंदर क्या चल रहा है इस बात का पता लगाया जा सके,,,


वैसे दोपहर में जो चुदाई का नजारा उसने कमरे के अंदर बूआ और सूरज के द्वारा देखी थी उसे देखते हुए उसके मन में बार-बार अजीब सी हलचल महसूस हो रही थी उसकी आंखों के सामने वही द्गश्य बार-बार नाच जा रहा था,,,
और इस समय उसकी तन-बदन में उसी कामुकता भरी नजारे का ही असर था कि एक बेटी होने के बावजूद भी वह एक लड़के को अपनी मां को नंगी होते हुए देखना चाह रही थी,,,, भले ही उसका इरादा कुछ और हो लेकिन भावनाएं बट चुकी थी।
शालू की सांसो की गति तीव्र होती जा रही थी और सामने उसकी मां धीरे-धीरे अपनी साड़ीे को उठाकर घुटनों तक कर ली थी,,,, शालू की नजरे बराबर सूरज पर उसकी मां पर टिकी हुई थी,,, घर के पीछे तक ढोलक की आवाज़ आ रही थी,,, जिसकी आवाज के साथ थाप लगाते हुए औरतें नाच रहीे थी।,, शालू के मन में थोड़ी बहुत घबराहट का एहसास हो रहा था,,, उसे इस बात का डर था कि कहीं कोई इधर आ ना जाए और उन लोगों को इस हाल में ना देख ले।,,, क्योंकि इस समय कोई भी उसे इस हाल में देख लेगा तो ना जाने मन में क्या सोचेगा क्योंकि वह खुद सबसे पीछे खड़ी थी। सूरज उसके आगे पेड़ के पीछे खड़ा था और उसकी मां जो कि इस समय साड़ी को उठाकर घुटनों तक लाकर इधर-उधर देख रही थी वह खड़ी थी,,,
सच में अगर कोई भी उन लोगों को इस हाल में देखता तो उसके मन में उन तीनों के प्रति ना जाने कैसे विचार मन में उमड़ने लगते इसलिए शालू इधर उधर देख ले रही थी,,
सूरज के साथ-साथ शालू की भी सांसे थम गई थी नजारा ही कुछ ऐसा था की शालू भी व्याकुल मन से अपनी मां की हरकत को देख रही थी चारों तरफ से तसल्ली कर लेने के बाद शालू की मां साड़ी को ऊपर की तरफ उठाने लगी और अगले ही पल वह अपनी साड़ी को पूरी तरह से कमर तक उठा दी यह नजारा देखते ही शालू के भी बदन में सुरसुराहट होने लगी खास करके शालू के बदन में हो रही अजीब सी हलचल इस बात से थी कि सूरज उसकी मां की नंगी गांड को प्यासी नजरों से देख रहा था और कहीं ना कहीं यह बात शालू को आकर्षित भी कर रही थी, शालू की मार कुछ देर तक यूं ही साड़ी को कमर तक उठाए अपनी नंगी गांड का प्रदर्शन करती रहे लेकिन वह यह नहीं जानती थी कि उसे इस हाल में खुद उसकी लड़की और उसका भांजा सूरज देख रहे हैं। अपनी मां की बड़ी-बड़ी और नंगी गांड देखकर खुद शालू की बुर में अजीब सी शुरसुराहट होने लगी,,,,

सूरज तो अपनी आंखों के सामने औरत की मदमस्त बडी बडी गांड को देखकर और भी ज्यादा उत्तेजित हो गया और उससे रहा नहीं गया,
शालू की मां पेशाब करने के लिए नीचे बैठे थे इससे पहले भी सूरज ने अपने थे धोती खोलकर नीचे सरका कर अपने मोटे तगड़े लंड को बाहर निकालकर हिलाने लगा,,, शालू की नजर जैसे ही सूरज की इस हरकत पर गई उसकी सांसो की गति उत्तेजना की वजह से तीव्र होने लगी वह साफ-साफ देख पा रहेी थीे कि सूरज अपने मोटे लंड को धोती से बाहर निकालकर हीला रहा था। सूरज को मोटे लंबे और भयानक लंड को देखकर आश्चर्य से शालू की आंखें फटी की फटी रह गई,,,
जिंदगी में पहली बार वह किसी जवान मर्द के लंड को देख रही थी। शालू यह नजारा देखकर एकदम से उत्तेजित होने लगी लेकिन यह उत्तेजना उसके समझ के परे था। जांघो के बीच के अंग मे उसे कंपन सा महसूस होने लगा,,,

शालू तो एक दम से मदहोश होकर सूरज की तरफ ही देखे जा रही थी और वह था कि अनजाने मे हीं शालू की उत्तेजना बढ़ाते हुए,, अपने लंड को लगातार हिलाते हुए मुठिया रहा था।,,, सूरज अपनी सुधियां मामी की नंगी गांड को देखकर पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था,,,,
उसके मन में अपनी सुधियां मामी को चोदने का ख्याल पूरी तरह से आ गया था। उसके लंड का सुपाड़ा पूरी तरह से फुलकर लाल टमाटर की तरह हो गया था। जोकी गुलाबी बुर की पत्तीयों के बीच प्रवेश करने के लिए तड़प रहा था,,
सूरज जानता था कि यह काम उसके लिए बेहद आसान है क्योंकि एक बार वह अपनी सुधियां मामी की चुदाई कर चुका था जिससे उसकी मामी पूरी तरह से संतुष्ट भी हुई थी,,,,

शालू की सांसे तीव्र गति से चल रही थी,,, चेहरे पर छाई लालिमा उसके उत्तेजित होने तो सबूत पेश कर रही थी।,,, शालू कभी अपनी मां की तरफ तो कभी सूरज की तरफ देख नहीं रही थी दोनों तरफ उत्तेजना से भरा हुआ आकर्षण ऊसे अपनी तरफ खींच रहा था,,,,
तभी देखते ही देखते शालू की मां पेशाब करने के लिए नीचे बैठने लगी जहां पर वह खड़ी थी वहां पर बड़ी बड़ी घास उगी हुई थी,,, जिसकी वजह से शालू की मां पूरी तरह से बैठ नहीं पाई और वह अपनी गोलाकार भरावदार गांड को घास को स्पर्श ना हो इस तरह से हल्के से ऊपर की तरफ हवा में लेहराते अपनी बुर की गुलाबी छेद में से नमकीन पानी की धार फेंकने लगा यह देखकर शालू पूरी तरह से मदहोश होने लगी हालांकि वह पहले भी अपनी मां को इस तरह से पेशाब करते हुए देख चुकीे थी। लेकिन आज बात कुछ और थी क्योंकि आज वह एक जवान लड़के को भी, अपनी मां को पेशाब करते हुए देख रही थी शालू के तन-बदन में उत्तेजना की चिंगारी भड़क रही थी उसका बदन कसमसा रहा था लेकिन वह अपने बदन में हो रही ईस मादक कसमसाहट को पहचान नहीं पा रही थी।,,,

वातावरण में गूंज रही तबले की आवाज के साथ साथ शालू मां की बुर से ऊठ रही सीटी की आवाज घुल मिल जा रही थी,, जो कि पूरे माहौल को मादकता से भर दे रही थी,,,
सूरज के तन-बदन में कामाग्नि की ज्वाला फूटने लगी, उससे अब यह बेहद मादक नजारा सहा नहीं जा रहा था। सहा भी कैसे जाता जब आंखों के सामने एक औरत अपनी बड़ी बड़ी गांड को किसी स्वादिष्ट पकवान की तरह परोस कर खड़ी हो तो भला कोई कैसे अपने मन को उस पकवान का स्वाद ना चखने के लिए मना पाएगा,,, सूरज से भी रहा नहीं गया और वहां धीरे धीरे अपने लंड को हाथ में पकड़े आगे की तरफ बढ़ने लगा यह देख कर शालू सचेत हो गई,,,
वह समझ गए कि सूरज कुछ गंदी हरकत जरुर करने वाला है और यही उसके लिए अच्छा मौका भी था लेकिन उसके मन में न जाने कैसी हलचल मची हुई थी कि वह खुद अपनी आंखों से कुछ और भी देखना चाहती थी।


जिसकी उसने शायद कभी कल्पना भी नहीं की थी उसका दिल जोरों से धड़क रहा था बदन मे उत्तेजना की लहर अपना असर दिखा रही थी। खास करके जांघो के बीच गुदगुदी के साथ-साथ कपकपी भी महसूस हो रही थी।,,, जिस तरह से वह जोश के साथ अपने लंड को हाथ में लिए अपनी मामी की तरफ बढ़ रहा था उसे देखते हुए शालू के मन में अजीब से ख्याल आ रहे थे उसे लगने लगा था कि सूरज कुछ ज्यादा ही करने के फिराक में है। वह कभी सूरज की तरफ तो कभी अपनी मां की तरफ देख रही थी उसकी मां तो बिल्कुल अंजान होकर पेशाब करने में मस्त थी। उत्तेजना और उत्सुकता की वजह से शालू की सांसें तीव्र गति से चल रही थी।
जैसे जैसे सूरज अपने कदम आगे बढ़ा रहा था वैसे वैसे शालू के बदन में कसमसाहट बढ़ती जा रही थी। उसे अपनी बुर मे से कुछ रिसता हुआ महसूस हो रहा था जिसको वह समझ नहीं पा रही थी।,,,
सूरज धीरे-धीरे शालू की मां के बिल्कुल करीब उसके पीछे पहुंच गया उसकी मां और सूरज के बीच का फासला एकदम से कम हो चुका था लेकिन ना जाने किस वजह से शालू की मां को बिल्कुल भी महसूस नहीं हुआ कि उसके पीछे कोई खड़ा है। ऐसा लगता था कि वह कुछ ज्यादा ही मशगुल हो गई थी पेशाब करने में। शालू को रात की ईस चांदनी ऊजाले में सूरज का मौटा खड़ा लंड साफ नजर आ रहा था,,

जिसे देखकर उसके लिए यकीन कर पाना मुश्किल हुए जा रहा था कि मर्दों का लंड इतना मोटा और तगड़ा होता है। शालू को उसकी मां की बुर भी साफ नजर आ रही थी जिस पर बाल उगे हुए थे और उसकी गुलाबी फांकें किसी गुलाबी पत्ती की तरह बाहर को निकली हुई थी।
क्योंकि उसकी मां कुछ इस तरह से अपनी भरावदार गांड को हवा में उठाकर पेशाब कर रही थी कि कुछ भी देख पाना असंभव नहीं था। सूरज पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था उसे अपनी सुधियां मामी की रसीली बुर साफ नजर आ रही थी। लेकिन वह इस तरह से खड़े खड़े अपने लंड को उसकी बुर में डाल नहीं सकता था इसलिए वह थोड़ा सा झुक कर बैठ गया और जैसे ही उसे लगने लगा कि अब वह आराम से अपने लंड को उसकी बुर में डाल सकता है तो तुरंत,,,
वह अपनी कमर को आगे की तरफ करके,,, अपने लंड कै सुपाड़े को उसकी रसीली बुर से सटा दिया,,,,, जैसे ही शालू की मां को अपनी बुर पर कुछ स्पर्श होता हुआ महसूस हुआ वह एक दम से चौंक गई,,,,
शालू को भी यही सही मौका लगा सूरज को रंगे हाथ पकड़ वाने का और उसके कामलीला का पर्दाफाश करने का,,, क्योंकि सूरज ने अभी मात्र अपने लंड के सुपाड़े को उसकी बूर से सटाया भर था। वह नहीं चाहते थे कि जिस तरह से सूरज का लंड उसकी मां की बुर में पुऱाघुसकर चुदाई कर रहा था वैसे ही उसकी मां की भी करें,,,
आगे बढ़ कर इतने पर ही रोक देना चाहती थी,,, लेकिन इस तरह का मादक नजारे का आकर्षण उसे ऐसा करने से रोक रहा था,,,, उसका दिमाग कह रहा था कि सूरज को यहीं पर रोक दिया जाए लेकिन उसका मन नहीं मान रहा था उसके मन में यही आ रहा था कि सूरजथोड़ा और आगे बढ़े,,,,

अजीब सी कशमकश में फंसी हुई थी शालू एक तो वह खुद ही सूरज का पर्दाफाश कर देना चाहती थी और,,, अपनी मां को सूरज से कुछ और ज्यादा करते हुए देखना चाह रही थी। उसकी एक आवाज सब कुछ वही का वही रोक देती, लेकिन इस समय ना तो उसके कदम आगे भी बढ़ रहे थे ना तो उसके मुंह से कुछ शब्द ही निकल रहे थे।,,,
वह दीवार के पीछे खड़ी बस अपनी मां को चोंकता हुआ देख रही थी। उसे यह लग रहा था कि सूरज की हरकत पर उसकी मां जरूर उसे डाटेगी और शोर शराबा करेगी तब वह अपना काम कर देंगी।

ओहहहह,,,, ककककक,,,, कोन है ?
( वह चौक ते हुए इतना कहीं ही थी की,,, सूरज अपने दोनों हाथों से उसकी कमर थाम कर अपनी कमर को और ज्यादा आगे की तरफ धकेल दिया जिससे उसका पूरा का पूरा लंड उसकी मां की बुर की गहराई में उतर गया,,,, अनुभवी शालू की मां इतना तो समझ ही गई थी की उसकी बुर में लंड घुस रहा है,,,, लेकिन किसका और कौन इतनी साहस कर सकता है यह देखने के लिए जैसे ही वह चोंकते हुए पीछे की तरफ गर्दन घुमा कर देखी,,,तो सूरज बोल पड़ा,,,,

मैं हूं मामी,,,
( सूरज की आवाज को पहचान कर ओर उसकी तरफ देख कर उसे तसल्ली हो गई क्या कोई और नहीं बल्कि सूरज ही है तो उसके चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कुराहट फैल गई और वह बोली।)

ओहहहहह तु है। मुझे लगा कोई और है,,।

( शालू तो यह सुनकर एकदम से सकपका गई उसे झटका सा लगा,,, उसे उन दोनों के बीच की वार्तालाप और हरकत को देखकर बिल्कुल भी यकीन नहीं हो रहा था कि जो कुछ हुआ देख रही है एक दम सच है। शालू को उसकी मां की बात सुनकर ऐसा लगने लगा कि दोनों के बीच पहले से यह सब चल रहा है इसे तो लगा था कि उसकी मां सूरज को डांटेगी फटकारोगी,, लेकिन उस की आंखों के सामने नजारा कुछ और ही था।,, उन दोनों के सामने आकर उनके कार्यक्रम को वही का वही रोक देना चाहती थी वह नहीं चाहती थी कि सूरज उसकी मां के साथ आगे बढ़े लेकिन ना जाने कैसी अजीत से हालात सामने आ गए थे कि वह चाहते हुए भी उन्हें रोक नहीं पा रही थी। वह अपनी आंखों से इससे आगे भी कुछ और ज्यादा देखना चाह रही थी।
शालू अपनी आंखों से साफ-साफ देख पा रहे थे कि जिस तरह से सूरज उसकी मां की कमर को थामे हुए हैं। और उसकी मां उसे रोकने की या तों ऊसे हटाने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं कर रही है। उसे देखते हुए शालू समझ गए कि इन दोनों के बीच यह सब चल ही रहा है। तभी वह अपनी मां के मुंह से हल्की सी चीख और सिसकारी की आवाज सुनकर एक दम से चौंक गई,,, और उन दोनों की तरफ ध्यान से देखि तो पाई की सूरज की मोटा लंड ऊसकी मा की बुर की गहराई में पूरा का पूरा समा गया है।

आहहहहहहहह,,,,,,, सससससससहहहहहह,,, सूरज

( अपनी मां की मदद पिचकारी की आवाज शालू को बेचैन कर रही थी,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अगर उसकी मां को दर्द कर रहा है तो वह फिर भी सूरज को रोक क्यों नहीं रही है क्योंकि सूरज उसकी मां की कमर को पकड़ कर अपनी कमर को आगे पीछे करते हुए अपने लंड को उसकी मां की बुर के अंदर बाहर कर रहा था,,,
बड़ा अजीब सा नजारा शालू को लग रहा था क्योंकि उसकी मां झुकी हुई थी और साथ ही सूरज भी झुका हुआ था।,,,,, सूरज के ईस एका एक हमले की वजह से तो घबराहट में उसकी पेशाब ही रुक गई थी,,,,
शालू पूरी तरह से हैरान थी कि उसकी मां भी सूरज का साथ दे रहीे थी। वह उसी तरह से उसी स्थिति में झुकी हुई सूरज से चुदवा रही थी उसे अब इस बात की बिल्कुल भी फिक्र नहीं थी कि वह घर के पीछे खुले में इस हाल में चुदाई का मजा लूट रही थी। उसे इस बात की बिल्कुल भी परवाह नहीं थी कि कोई भी उधर आ सकता था,,, शालू की तो हालत खराब हो गई थी आई थी पर्दाफाश करने लेकिन एक और राज उसकी आंखों के सामने नजर आ गया,,,। दोनों मस्ती के सुरूर में खोने लगे थे शालू की मां सूरज के मोटे लंड का मजा ले रही थी तभी वह बोली,,,,।

धत्,,,, तूने तो मुझे डरा ही दिया पता है मेरी तो पेशाब ही बंद हो गई,,,।

तो क्या हुआ मेरी जान अभी कर लो (सूरज हल्के हल्के अपनी कमर हिलाते हुए बोला,,, शालू अपनी मां के मुंह से इस तरह से खुले शब्दों मे बात सुनकर एकदम से दंग रह गई,,,, और सूरज भी जिस तरह से बेशर्मों की तरह उसकी मां से बातें कर रहा था वह काफी हैरान कर देने वाला था।,,, शालू को ना तो अपनी आंखों पर भरोसा हो रहा था ना कानों पर। और विश्वास होता भी कैसे उसकी कल्पना के विपरीत यह नजारा जो की आंखों के सामने था।,,, तभी शालू की मां बोली,,,।

इधर नहीं सूरज इधर कोई भी आ सकता है अभी सभी औरतें जाग रही हैं,, चल उसके सामने की झोपड़ी में चलते हैं वहां कोई नहीं आएगा,,,,।

तो चलो वही पर तुम्हे आराम से चोदुंगा,,,

रुक जा पहले पेशाब तो कर लुं, तू पहले मैरी बुर से अपना लंड निकाल,,,,

एसे ही कर लो ना मेरी जान मुझे बहुत अच्छा लग रहा है,,,

तू भी ना बहुत शैतान है,,,,( और इतना कहने के साथ ही वह फिर से चुदवाते हुए ही पेशाब करना शुरू कर दी,, सुधियां के बुर से निकलती पेशाब की गरम धार सूरज के लंड को भिगोते हुए नीचे घास पर गिर रही थी,, जिससे सूरज गरमाने लगा पेशाब की गर्माहट से लंड की नसे कुछ ज्यादा ही फूल गई,, लंड की नसे फूलने की वजह से सुधियां की बुर पर लंड का कसाव कुछ ज्यादा बढ़ने लगा,,, ओर सुधियां के मुंह से आहह..आहहहहहहहह,,,,,,, सससससससहहहहहह,,, सूरज तेरा लंड पहले से ज्यादा बड़ा लग रहा है )

शालू तो पूरी तरह से सदमे मे थी। जिस तरह से उसकी मां खुले शब्दों में बातें कर रही थी,,, ओर जिस तरह की हरकत अभी की थी ऊसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि वह जो देख रही है और सुन रही है वह हकीकत ही है या कि वह सपना देख रहीे हैं,,,,
उसे गुस्सा भी आ रहा था और जवानी की शुरुआत होने की वजह से एक तरह का आकर्षण भी होता जा रहा था शालू अपनी आंखों से देख रही थी कि उसकी मां की बुर में सूरज का मोटा लंड अंदर बाहर हो रहा है। और उसकी मां ऐसे हालात में पेशाब भी कर रही हो वास्तविकता यही थी कि यह नजारा कुछ ज्यादा ही मादक था जिससे शालू पूरी तरह से प्रभावित होती जा रही थी उसके बदन में अजीब सी हलचल होने लगी थी और उसे उसकी बुर पूरी तरह से गीेली महसूस होने लगी थी। दीवार के पीछे खड़ी होकर वहां अब इस नजारे का पूरी तरह से आनंद ले रही थी यह इसलिए कहा जा सकता था क्योंकि अगर वह चाहती तो यह सब होने से पहले ही दोनों को रोक सकती थी। लेकिन वहां दोनों को रोकी नहीं उसके मन में कहीं न कहीं उन दोनों को इस स्थिति में देखने का उसका भी मन था।
शालू की मां पेशाब कर चुकी थी। दोनों सामान्य स्थिति में खड़े हो गए सूरज ने अपने लंड को सुधियां की बुर से बाहर निकाल लिया था जो कि शालू की आंखों के सामने बड़े ही भयानक तरीके से ऊपर नीचे होता हुआ हील रहा था।

यह देखकर अनजाने में ही शालू की बुर कुलबुलाने लगी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि इतना मोटा तगड़ा लंड उसकी मां की बुर के अंदर पूरा का पूरा समा गया था। जब वह दोनों खड़े हुए तो वह दीवार की ओट में छुप गई और उन दोनों का झोपड़ी में जाने का इंतजार करने लगी,,, दोनों जैसे ही झोपड़ी में प्रवेश किए शालू की नजरें बचाते हुए धीरे-धीरे झोपड़ी के करीब पहुंच गई,,,, झोपड़ी में हल्की सी छोटी सी खिड़की बनी हुई थी और शालू उसी खिड़की के करीब पहुंच गई,,, और जैसे ही वह खिड़की से अंदर की तरफ झांकी,,,, अंदर का नजारा देखकर वह पूरी तरह से चौक गई,,,, उसकी मां घुटनों के बल बैठ कर सूरज के मोटे लंड को मुंह में लेकर चूस रही थी,,

और सूरज हल्के से नीचे की तरफ झुक कर उसकी मां के बिना उसके सारे बटन खोल कर उसकी चूचियों को दबा रहा था,,, शालू के लिए यह नजारा उसके शालू मन पर भारी पड़ रहा था। उसकी आंखों के सामने उसकी मां पूरी तरह से बेशर्मी दिखाते हुए सूरज का लंड मुंह में लेकर चूस रही थी। सूरज उसकी मां की नंगी चूचियों को जोर-जोर से दबाता हुआ सिसकारी भी भर रहा था।

ससससहहहहहह मेरी जान बहुत मस्त चूचियां है तेरी इन्हें दबाने में बहुत मजा आता है,,, ऐसे ही चूस मेरा लंड और मैं तेरी चूची दबाता हूं।

( सूरज की यह सब बातें शालू को बहुत ही गंदी लग रही थी लेकिन फिर भी उसे ना जाने क्यों इन सब बातों में मजा भी आ रहा था उसकी मां और सूरज दोनों एक दूसरे में पूरी तरह से खो चुके थे उन दोनों को यह भी नहीं मालूम था कि बाहर खिड़की से दो आंखें उन्हें ही झांक रही है,,,। दोनों निश्चिंत होकर एक दूसरे के अंगों से पूरी तरह से मजा ले रहे थे,,,।


शालू से यह गर्म नजारा बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था उसका हाथ खुद ब खुद सलवार के ऊपर से ही उसकी बुर के करीब पहुंच गई जो की पूरी तरह से गीली हो चुकी थी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि उसकी बुर आखिर गीली क्यों हो गई। उसे तो बस अंदर का नजारा देखकर अपने बदन में हो रही कसमसाहट को वजह से कुछ कर जाने को मन कर रहा था इसलिए वह हल्के हल्के सलवार के ऊपर से ही अपनी बुर को मसलने लगी,,,,,
यह झोपड़ी इंधन के लिए लकड़ी रखने के काम आती थी,,, यहां कोई इस वक़्त रात में आ भी नहीं सकता था,,, चारों तरफ सूखी लकड़ियां और सूखी घास फूस रखे हुए थे। शालू अंदर का नजारा देखकर पूरी गरम हो चुकी थी।,,,,
तभी सूरज अपना लंड उसके मुंह में से बाहर निकाल कर सुधियां को सूखी हुई घास पर लिटा दिया,,, ओर अपनी मामी की बुर पर झुक गया मैं तुरंत अपनी जीभ को बुर की गुलाबी पत्तियों के बीच सटाकर चाटना शुरु कर दिया,,,,
( इस नजारे के देख कर शालू का बदन सिहर गया,, की आखिर केसे एक मर्द औरत की पेशाब करने की जगह को अपने मुंह से चाट सकता है,, उसकी बुर कुलबुला ने लगी, और सलवार के ऊपर से अपनी बुर को रगड़ कर आगे का नजारा देखने लगी,,)

बुर को मुंह में लेकर चाटने से सुधियां तुरंत सी सीयाने लगी,,, जैसे जैसे सूरज अपनी जीभ की चोट बुर की गुलाबी की पत्तियों पर मार रहा था वैसे वैसे उसका बदन उत्तेजना की लहर में कसमसा रहा था।
सुधियां जोश में आकर सूरज के बाल को अपनी मुट्ठी में भींचकर जोर से उसके मुंह को अपनी बुर से सटाए हुए थी।
सससहहहहहह,,,,आाहहहहहहहहहह,,,, मेरे राजा बस ऐसे ही चाट,,,, ऊम्ममममममम,,,,, ओहहहहहहह मेरे सूरज,,,, आहहहहहह,,, चाटता रह अपनी मामी की बुर को जोर-जोर से चाट,,,, खाजा मेरी बुर को,,,
सुधियां की ऐसी बातें सुनकर सूरज और जोर-जोर से बुर में जीभ डाल कर चाटना शुरू कर दिया और थोड़ी ही देर में सुधियां का पहला स्खलन हो गया,,,, जिसे सूरज बड़े चटकारे लेकर पूरा का पूरा गटक गया,,,,,
सुधियां एक दम मस्त हो गई थी लेकिन अब उसे अपने भांजे के मोटे तगड़े लंड की जरूरत थी वह अपनी बुर मे सूरज का लंड डलवाना चाहती थी,,,
सूरज भी तड़प रहा था अपनी सुधियां मामी की बुर में लंड डालने के लिए इसलिए वह तुरंत घुटनों के बल बैठकर दोनों हाथों को सुधियां की भराव दार गांड के नीचे ले गया और उसे उठाते हुए अपनी जांघ पर रख दिया,,,

और उसकी टांगों के बीच जगह बना कर उसकी बुर में अपना लंड पेल दिया,,,,एक बार फिर से दोनों की गरम सिसकारियां गूंजने लगी अपनी मां के मुंह से ऐसी गरम सिसकारी की आवाज सुनकर शालू पूरी तरह से उत्तेजना की लहर में गोते खाने लगी,,, सूरज जोर-जोर से अपनी कमर हिलाते हुए अपने मोटे लंड को शालू की मां की बुर में अंदर बाहर करते हुए चोद रहा था,,,,

शालू के मन से पूरी तरह से क्रोध गायब हो चुका था और इस समय कहां अपनी मां को इस तरह से चुदवाते हुए देखकर पूरी तरह से कामोत्तेजित हो चुकी थी वह जोर जोर से सलवार के ऊपर से अपनी बुर को रगड़ रही थी। सूरज और शालू की मां पूरी तरह से चुदाई का आनंद लूट रहे थे अभी भी घर के आंगन में गाना बजाना शुरू था तबले की थाप अभी तक सुनाई दे रही थी। अजीब सा माहौल बना हुआ था।
घर में शादी का माहौल था समाज की औरतें घर के आंगन में गाने बजाने के लिए इकट्ठे हुई थी और ऐसे में घर की बड़ी बहू घर के पीछे जाकर चोरी छुपे अपने भांजे से चुदाई का आनंद लूट रही थी।
सूरज और सुधियां झोपड़ी में पूरी तरह से संभोगरत होकर आनंद लुट रहे थे और शालू झोपड़ी के बाहर खड़ी होकर अपनी गर्मी शांत करने की कोशिश कर रही थी तीनों अपने अपने कार्य में पूरी तरह से मशगूल हो गए थे,,,,
शालू की मां की सांसे और उसकी सिसकारी इतनी तीव्र हो चुकी थी की झोपड़ी के बाहर भी साफ तौर पर सुनाई दे रही थी।,,,, जो कि पूरे वातावरण को मदहोशी से भर दे रही थी शालू झोपड़ी की खिड़की से आंख लगाएं अंदर का नजारा देखते हुए अपनी बुर को सलवार के ऊपर से मसल रही थी,,,

सूरज की कमर बड़ी तेजी से ऊपर नीचे हो रही थी उसके धक्के पूरी जोटदार उसकी बुर से टकरा रहे थे,, दोनों झड़ने के बिल्कुल करीब पहुंच चुके थे कि तभी एक मोटा चूहा ,,, शालू के पैरों से होता हुआ गुजरा और वह एकदम से डर गई और डर के मारे उसके मुंह से चीख निकल गई,,,,,
और उसकी चीख निकलते ही सूरज के साथ साथ शालू की मां भी चौकते हुए खिड़की की तरफ देखी तो वहां पर शालू खड़ी थी,,,
शालू और उसकी मां की नजरे आपस में टकराई,,, शालू की मां और शालू खुद एक दूसरे की आंखों में देख कर शर्मिंदा हो गए, सूरज भी शालू को देख लिया,,, तीनों की नजरें आपस में टकरा गई थी शालू तो वहां से जल्दी से चली गई,,, शालू की मां अपने आप को इस हालत में अपनी बेटी द्वारा देख लेने पर एकदम से शर्मिंदा हो गई उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें और वह आश्चर्य से सूरजसे बोली,,,

अब क्या होगा सूरज शालू ने तो हम दोनों को इस हालत में देख ली,,,।
( सूरज भीं यह जानता था कि जो हुआ वह अच्छा नहीं हुआ वह अभी भी शालू की मां पर चढ़ा हुआ था और उसका लंड ऊसकी बुर में था। लेकिन अभी भी ना तो वह झढ़ा था ना ही उसकी मामी,, और दोनों झड़ने के बिल्कुल करीब थे इसलिए सूरज बोला,,)

शालू ने तो हम दोनों को देख ही ली है,,, इसलिए जो होगा देखा जाएगा लेकिन इस समय अपना मजा क्यों खराब करें,,,,
(और इतना कहने के साथ ही सूरज फिर से अपनी कमर को ऊपर नीचे करते हुए हिलाने लगा,,, शालू की मां जो भी समय पूरी तरह से डरी हुई थी वह भी सूरज की बात से पूरी तरह से सहमत हूं क्योंकि वह भी झड़ने के बिल्कुल करीब पहुंच चुकी थी इसलिए वह भी सूरज को अपनी बाहों में कस के भीच ली और उसके हर धक्के का मजा लेने लगी,,,,
दोनों बाद की बात को बाद में सोचने के लिए छोड़कर मजा लूटने लगे,,, और करीब जबरदस्त १०,१५धक्को में ही दोनों का पानी निकल गया,,,,


शालू की मां यह जानते हुए भी कि शालू ने मुझसे सूरज के साथ चुदवाती हुए देख ली है,,, फिर भी वह सूरज को चोदने से मना नहीं कर पाई क्योंकि वह चरम सुख के बेहद करीब पहुंच चुकी थी जहां पर पहुंचकर कोई भी औरत या मर्द अच्छे बुरे की परख अपने पराए सही-गलत सब कुछ भूल कर उस चरम सुख को प्राप्त करने में उसे महसूस करने में जुट जाता है और वही चरम सुख को प्राप्त करने के लिए शालू की मां में भी सूरज को शालू के द्वारा देखे जाने पर भी उसे रोक पाने में विवस हो गई और चुदाई का परमसुख और चरम सुख महसूस करने के बाद ही वह सूरज को अपने ऊपर से हटाई,,,,

सूरज और सुधियां दोनों धीरे से औरतों के मजमे के बीच आकर बैठ कर गाने बजाने और नृत्य का आनंद लेने लगे,,,, लेकिन अब गाने बजाने में न तो सूरज का ही मन लग रहा था और ना ही शालू की मां का,,, दोनों के मन में डर बैठ गया था और खास करके शालू की मां के मन में उसे इस बात का डर बराबर बना हुआ था कि अगर शालू नहीं है बात सबको बता दी तो ना जाने कैसी आफत आ जाएगी,,,
शालू की मां औरतों के नाच गाने का आनंद ना लेते हुए शालू को ही ढूंढ रही थी लेकिन शालू वहां पर मौजूद नहीं थी शालू को उसकी मां और सूरज के बीच का गरमा-गरम नजारा देखकर पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी और वह अपने कमरे में बिस्तर पर लेटी हुई थी।
वह बार-बार उस कर्म नजारे को याद करके बिस्तर पर करवटें बदल रही थी। घर के पीछे का वह बेहद कामुक नजारा उसके तन बदन को झकझोर दे रहा था। उसे अभी भी समझ में नहीं आ रहा था कि जो कुछ भी उसने देखी वह वास्तविक ही था या उसका वहम या तो फिर कोई सपना था। शालू यही सोच रही थी कि वह तो सूरज और मंगल बूआ का पर्दाफाश करना चाहती थी उसकी मां को सूरज और उसकी मंगल बूआ के बीच के गलत संबंध के बारे में बताना चाहती थी लेकिन उसकी आंखों के सामने से कुछ और ही नजर आ गया,,,

शालू यही सोच कर परेशान थी कुछ इस तरह से सूरज और उसकी मां आपस में बातें करते हैं वह एक दूसरे के बदन से खेल रहे थे इसका मतलब साफ है कि दोनों मैं इससे पहले भी इस तरह के नाजायज संबंध को अंजाम दिया था।
दोनों के बीच पहले से ही शारीरिक संबंध का रिश्ता बन चुका था तभी तो वह दोनों कितनी आसानी से एक दूसरे की बाहों में बाहें डालकर चुदाई का आनंद ले रहे थे। वह मैंने यही सब सोच कर परेशान हो जा रही थी क्योंकि उसे अपनी मां से इस तरह की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी अब वहां सूरज और उसकी मां के बीच के संबंध के बारे में किसी को बताए भी तो कैसे बताए क्योंकि अब तो सूरज से उसकी खुद की मां खुद चुदवा रही थी,,,,

उसे रह रह कर अपनी मां से नफरत सी हो रही थी और जिस तरह से सूरज और उसकी मां चुदाई का आनंद लूट रहे थे उसे याद करके उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर भी दौड़ रही थी और बार-बार ना चाहते हुए भी वह उसी गरमा गरम दृश्य के बारे में सोच रही थी।,,,,
उसे यकीन नहीं हो रहा था क्योंकि आंखों के सामने कभी इस तरह के भी दृश्य नजर आएंगे,,, जिसके बारे में उसने कभी सपने में भी नहीं सोची थी।,,, वह बिस्तर पर करवट बदलते हुए बार-बार यही सोच रही थी कि कि उसे सूरज जब उसकी मां ने पेशाब करने के लिए अपनी साड़ी को अपनी गांड के ऊपर तक उठा ली थी,,
तब कैसे सूरज एकदम से चुदवासा होकर अपनी धोती से अपना लंड बाहर निकाल कर हीलाने लगा था।,,,, वह कैसे उसकी मां की बड़ी बड़ी गांड को देखकर एकदम पागल हो गया था।,,, और जब उसकी मां पेशाब कर रही थी तो उससे रहा नहीं गया और वह कैसे उसके पीछे जाकर के झुककर उसकी बुर में लंड डालकर उसे चोदना शुरू कर दिया था,,,

यह सब सोचकर शालू को गुस्सा भी आ रहा था की उसकी मां को सूरज को रोकना चाहिए था लेकिन वह तो खुद सूरज की हरकत का मजा ले रही थी,,,, शालू के मन में यह सोचते हुए उसकी मां के प्रति धिक्कार की भावना जागरुक हो रहे थे क्योंकि उसकी मां चाहती तो सब कुछ रोक सकती थी लेकिन उसकी मां की भी यही इच्छा थी तभी तो वह खुद उसे झोपड़ी में चलने के लिए बोली थी। शालू मैंने यह सोचकर एकदम से हैरान और आश्चर्यचकित हुए जा रही थी आखिरकार चूदाई ने ऐसा कौन सा सुख छुपा होता है कि लोग रिश्ते-नातों को भूल जाते हैं उसकी मां जिस पर वह पूरी तरह से भरोसा करती थी वह खुद चुदवाने के लिए सूरज को झोपड़ी में चलने के लिए बोल रही थी,,,,

यह सब सोचते हुए शालू बार-बार करवटें बदल रही थी,,, और दूसरी तरफ,,, शालू की मां और सूरज सबसे पीछे बैठकर इसी बारे में विचार विमर्श कर रहे थे शालू की मां पूरी तरह से घबराई हुई थी सूरज जी घबराया हुआ था लेकिन वह अपने आप को संभाले हुए था वह बार-बार शालू की मां को दिलासा दे रहा था कि वह सब कुछ संभाल लेगा,,, और शालू की मां सूरज के ही भरोसे थी उसे ना जाने क्यों डर के साथ साथ यह यकीन भी हो रहा था कि सूरज सब कुछ संभाल लेगा,,,,

शालू अपने कमरे में अपनी मां और सूरज के बीच हुए चुदाई के दृश्य को देखकर पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी उत्तेजना के मारे उसके गाल लाल सुर्ख हो चुके थे। वह झोपड़ी के अंदर के दृश्य को याद कर रही थी।,,,
मर्द और औरत के बीच के ईस तरह के संबंध को वह खुले तौर पर आज पहिली बार देखी थी।,,, इसलिए उसके होश पूरी तरह से उसके बस में नहीं था बार-बार उसे सूरज का मोटा लंड उसकी मां की बुर में अंदर बाहर होता हुआ नजर आ रहा था,,, और वह इस बात से भी पूरी तरह से हैरान थीे की इतना मोटा तगड़ा लंड छोटी सी बुर के अंदर कैसे पूरा समा जाता है।,,,

और वह यह सोचकर भी हैरान थी कि जिस तरह से उसकी मां चुदवाते हुए अजीब अजीब सी आवाजें निकाल कर चीख रही थी क्या उसे मजा आ रहा था या दर्द हो रहा था अगर दर्द होता तो वह यह सब क्यों करवाती,,,
यह सब सवाल शालू को पूरी तरह से हैरान कर दिया था जिसका जवाब ईस समय उसके पास बिल्कुल भी नहीं था।,,, काश यह सब सोचकर बिस्तर पर करवट लेते हुए अनजाने में ही अपनी जांघों के बीच हथेली रख कर अपने बुर को रगड़ रही थी। उसे यह अच्छी तरह से महसूस हो रहा था कि उसकी बुर पूरी तरह से गीली हो चुकी है।,,, लेकिन उसे अजीब सा आनंद की प्राप्ति हो रही थी जिसकी वजह से वह लगातार अपनी हथेली से अपनी बुर को सलवार के ऊपर से हीं रगड़ रही थी।,,, शालू काफी रात तक इस बारे में सोचती रही और कब उसकी आंख लग गई उसे पता नहीं चला,,,।

दूसरे दिन शालू की मां शालू से बिल्कुल भी नजरें नहीं मिला पा रही थी उसे डर के साथ-साथ शर्म सी महसूस हो रही थी।,,, और आखिरकार वह शर्माए भी क्यों नहीं,, उसने अपनी बेटी के सामने हरकत ही कुछ ऐसी कर रही थी कि किसी को भी शर्म महसूस हो जाए शालू खुद अपनी मां से नजरें नहीं मिला पा रही थी उसे अपनी मां से घर्णा महसूस हो रही थी,,,,
शालू की मां उससे बात करना चाहती थी लेकिन बात भी करें तो किस मुंह से जिससे वह इस समय ठीक से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी।,, सूरज खुद जल्दी से चाय नाश्ता करके घूमने के बहाने घर से बाहर चला गया था वह भी शालू का सामना करने से कतरा रहा था आखिरकार उसने उसकी आंखों के सामने उसकी मां की जमकर चुदाई जो कर रहा था अगर वह पूछेगी तो वह क्या जवाब देगा इसलिए वह जल्दी से घर से बाहर चला गया था,,,,
 
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सूरज घर के बाहर खेतों में टहलते हुए कुछ सोच रहा था,,सूरज अच्छी तरह से समझ गया था कि उसका छोटा मामा एकदम बेवकूफ है जिस तरह से वह बता रहा था इसलिए अभी तक उसकी छोटी मामी यानी कि उसकी होने वाली बीवी से बिल्कुल भी बातचीत नहीं कर पाया था,,,अब दोपहर का समय हो गया था था,,,
इसी लिए सूरज कुछ सोचकर खेतो से साइकल पर बैठ कर अपने हा होने वाली मामी के गांव की तरफ निकल पड़ा,,कुछ मिनटों में सूरज होने वाली मामी के घर के पास पहुंच गया,, घर के पास पहुंच तेहि सूरज ने साइकल को झाड़ियों में छुपा दी,,ओर गमछे अपने मुंह के इर्द गिर्द लपेट कर अपने मुंह को ढक दिया,,( सूरज ने ठान लिया था की कुछ भी हो जाए वह आज अपनी होने वाली मामी से बात कर के रहेगा,, और अगर किसी आदमी ने यहां पर उसे देख लिया तो गमछे की वजह से उसे कोई पहचान नहीं पाएगा और भागने में भी आसानी होगी,,)

सूरज धीरेसे झाड़ियों से छुपाता हुआ घर के पीछे पहुंच गया,, जैसे ही घर के पीछे पहुंच जाता हे तो सूरज देखता है की घर के पीछे कोई नही था,, ( सूरज ने सोचा था की उसे आज भी कल जैसा नजारा देखने को मिलेगा,, पर एसा नही हुआ )
सूरज को घर के पीछे की तरफ खिड़की नजर आ जाती है,, पर खिड़की बंद थी लेकिन अंदर कमरे से किसी की बात करने की आवाज सुनाई से रही थी,,
खिड़की के बाजू में एक बेर का घना पेड़ था, सूरज जल्दी से उस पेड़ के पीछे जा कर छुप जाता है, और खिड़की से अंदर झांकने की कोशिश करने लगता है,,
लेकिन खिड़की बंद होने की वजह से कुछ ठीकसे दिखाई नही दे रहा था,, अंदर से किसी लड़की की आवाज आ रही,, वह लड़की किसी दूसरी लड़की से बात कर रही थी,, उनकी बातो से सूरज समझ गया था की उनमें से कोई एक लड़की उसकी होने वाली मामी है,, थोड़ी देर बाद उनकी आवाज आना बाद हो गया,,

सूरज ने थोड़ी हिम्मत दिखा कर निर्मला ऐसा पुकारा,,,, एसे करतेही,,,
सूरज का दिल और तेजी से धड़कने लगा तभी उसे सामने से आवाज आई,,,,,,

कौन,,,, है?
( निर्मला की सुरीली आवाज सुनकर सूरज पूरी तरह से मोहित हो गया,,,, उसे ऐसा महसूस होने लगा के उसके कानों में बांसुरी की सुरीली आवाज आ रही है,, इसलिए वह जवाब देते हुए बोला )

आप ही पहचान लीजिए हम कौन बोल रहे हैं,,

खिड़की के बाहर से क्या बात कर रहे है बता दीजिए आप कौन हैं?,,,
( निर्मला मन ही मन उलझन भरी स्थिति में बोली क्योंकि यह आवाज उसने पहली बार ही सुनी थी)

कमाल है मेरी निर्मला रानी अपने होने वाले पति की आवाज को ही नहीं पहचान पा रही है,,
( सूरज पूरी तरह से निर्मला पर अपनी आवाज का जादू बिखेरते हुए बोला,,, इतना सुनकर निर्मला भी मन ही मन प्रसन्न हो गई क्योंकि वास्तविकता यही थी कि आज पहली बार ही वह अपने होने वाले पति की आवाज को अपने कानों से सुन रही थी क्योंकि उसने अब तक अपने होने वाले पति की आवाज को सुनी नहीं थी। इसलिए उसे ऐसा लग रहा था की खिड़की के बाहर उसका होने वाला पति ही है। वह बहुत खुश हो गई और खुशी जताते हुए खिड़की के पास आकर खिड़की खोलने लगती है, पर खिड़की नही खुली,, बहुत जोर लगाने के बाद भी खिड़की खुली नही,,)
निर्मला निराश होते हुए सुनील समझकर सूरज से कहती हे,,आप हमसे मिलने आए है और ये कम्बक्त खिड़की भी नही खुल रही हे,,
( खिड़की ना खुलने की वजह से सूरज भी बच,, जाता हे क्योंकि अगर खिड़की खुल जाती तो सूरज को अपना चहरा जो गमछे में बंद है,, वह दिखाना पड़ता,,)
बाहर से,,सूरज भी कोई बात नही देख नही सकते तो क्या हुआ हम बात तो कर सकते है,,

निर्मला अब शर्म आ रही थी,, इस लिए निर्मला खिड़की के पास से ही बोली,,,)

अच्छा तो शादी को चार दिन बचे है,, आपसे सब्र नहीं हो रहा हे आज और हमसे बात करने की हिम्मत आप मे आ ही गई,,,

क्या करो मेरी जान कब तक सब्र करता आज मुझसे रहा नहीं गया तो तुमसे बात करने तुमसे मिलने आया हु,,

ओहहहह,,,,, हो,,,आपसे रहा नही जा रहा है'''' मेरी आवाज सुने बिना इसका मतलब कुछ ज्यादा ही तड़प रहे हो,,,,

क्या करूं मेरी रानी तुम हो ही इतनी खूबसूरत कि मन तो करता है कि अभी तुमसे शादी करके तुम्हे अपना बनालू,,,
( सूरज मस्त होता हुआ बोला,,,, निर्मला पर भी धीरे-धीरे सुरूर चढ़ रहा था,,, वह तो मन ही मन चाहती थी कि उसका होने वाला उससे इसी तरह की बातें करें लेकिन अभी तक वह इस तरह की बातें नहीं किया था इसलिए आज पहली बार इस तरह की बातें सुनकर उसके तन-बदन में गुदगुदी होने लगी और वह भी मस्त होते हुए बोली।)

बस कुछ दिनों की बात है और आपसे बिल्कुल भी सहन नहीं हो रहा है,,,,

निर्मला सच कह रहा हूं मुझसे बिल्कुल भी सहन नहीं हो रहा जवानी पूरे जोश से मुझ पर छाई हुई है। तुम्हें बाहों में भरने के लिए तड़प रहा हूं तुम्हारे होठों को चूमने के लिए तड़प रहा हूं,,,
( निर्मला सूरज के मुंह से जिसे वह अपना होने वाला पति ही समझ रही थी यह सब सुनकर उसके तन बदन में कामोत्तेजना की लहर दौड़ ने लगी,,,,,,
उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या कहे,,, तभी निर्मला बोली,
थोड़ा तो सब्र करो मेरे राजा सब्र का फल मीठा होता है।,,,

तो मुझे यह फल खाने को कब मिलेगा,,,

मिल ही जाएगा जब मैं तुम्हारी हो जाऊंगी तो तुम्हें इस फल का स्वाद भी मिल जाएगा,,,,।( निर्मला मुस्कुराते हुए बोली,,,,।)

निर्मला मेरी जान मेरे हाथ तड़प रहे है तुम्हारे दोनों नारंगियों को दबोचने के लिए,,,,

( निर्मला इन शब्दों के मतलब को समझ कर अंदर ही अंदर उत्तेजना से सिहर उठी,,,, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या जवाब दे वह सिर्फ वह सुन रही थी उसे अच्छा भी लग रहा था और दूसरी तरफ सूरज पूरी तरह से अपनी छोटी मामी को अपनी आवाज के जादू में घोल लेना चाहता था,,,, वह पूरी तरह से अपनी मामी के दिमाग में अपनी कामोत्तेजना भरी आवाज को निचोड़ कर उसे अपना दीवाना बना देना चाहता था। और जैसा वह सोच रहा था वैसा हो भी रहा था,,,, सूरज को बहुत ही आनंद की अनुभूति हो रही थी उसे बाहर से इस तरह की कामुकता भरी बातें कर कर मज़ा आने लगा था।,,, लेकिन कुछ देर तक सामने से कोई आवाज नहीं आई तो वह फिर से बोला,,,)

क्या हुआ निर्मला मेरी जान,,,।

कुछ नहीं बस आपकी बात मुझे समझ में नहीं आई इसलिए कुछ सोचने की कोशिश कर रही थी लेकिन आप क्या कह रहे हैं मेरे पल्ले नहीं पड़ रहा,,,
( निर्मला जानबूझकर ऐसी बातें कर रही थी और यह बात सूरज भी समझ रहा था वह समझ गया कि निर्मला खुली बातें सुनना चाहती है,,,,,,ईसलिए वह बोला,,,)

अरे मेरी राऩी मेरे कहने का मतलब यह है कि मैं तड़प रहा हूं तुम्हारी दोनों चूचियों को दबाने के लिए उन्हें मुंह में भर कर पीने के लिए,,,,
( इतना सुनते ही निर्मला के तन-बदन में कामोत्तेजना की लहर पूरी तरह से अपना असर दिखाने लगी वह शरमा गई और उसके मुंह से कोई आवाज नहीं निकल पाई तो सूरज फिर बोला,,,

क्या हुआ नाराज हो गई क्या,,,

नहीं भला हम आपसे क्यों नाराज होने लगे,,,

तो बोलो ना मुझे अपनी नारंगीयो जैसे चुचियों से खेलने दोगी ना,,,, उन्हें दबाकर मुंह में भर कर पीने दोगी ना,,,,

धत्त,,,,, कैसी गंदी बातें कर रहे हैं आप,,,

अरे इतनी गंदी बातें कैसे हो गई तुम मेरी होने वाली पत्नी हो और एक पत्नी से एक पति कुछ भी कह सकता है इसमें नाराज होने वाली बात नहीं होनी चाहिए।,,,

मैं नाराज नहीं हूं लेकिन आपकी यह सब बातें सुनकर मुझे शर्म आ रही है ।(इतना कहते हुए वह खिल खिलाकर हंस दी, जिसकी आवाज सुनकर सूरज पूरी तरह से कामोत्तेजित हो गया उसका लंड धोती में गदर मचाने लगा।,,,, और धोती के ऊपर से ही अपने लंड को मसलते हुए बोला।)

तुम्हें शर्म आ रही है लेकिन मेरा तो पूरा खड़ा हो गया है।,,
( यह शब्द सुनकर निर्मला पूरी तरह से सन्न गई उसे उम्मीद नहीं थी कि उसका होने वाला पति इस तरह से पूरा खुलकर उस से बात करेगा।,,,, लेकिन इस तरह की बातें सुनने में निर्मला को बेहद उत्तेजना और आनंद की अनुभूति हो रही थी।,,, और वह सूरज की बात पर एक दम से चौंकते हुए बोली,,,,।)

कककक,,, क्या,, क्या कहा आपने?

वही जो आपसे नहीं है मेरी रानी कि मेरा लंड पूरा खड़ा हो गया है तुम्हारी बुर में जाने के लिए,,,,
( सूरज पूरी तरह से खुलकर बातों से मजा लेना चाहता था इसलिए वह बिल्कुल भी शर्म ना करते हुए खुलकर बातें कर रहा था और निर्मला सूरज जिसे वह अपना पति की आवाज समझ रहीे थी यह बात सुनते ही उसकी जांघों के बीच हलचल सी होने लगी,,,। वह एकदम से सकपका गई,,,, उसकी सांसों की गति तीव्र होने लगी वह बस जोर-जोर से सांसे लिए जा रही थी,, और उसकी जहरी चल रही सांसों की आवाज़ सूरज को एकदम बाहर साफ सुनाई दे रही थी,,, वह समझ गया कि उसकी बातें सुनकर निर्मला उत्तेजित होने लगी है,,,। सूरज निर्मला की हालत को और भी ज्यादा खराब करने के उद्देश्य से बोला,,,।

बोलो ना रानी तुम मेरे मोटे लंबे लंड को तुम्हारी बुर की गुलाबी छेद में डालने दोगी ना,,,,

( अब तुम निर्मला का गला उत्तेजना से सूखने लगा उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था,, जिस तरह की बातें वह करना चाह रही थी उसी तरह की बातें आज उसका होने वाला पति कर रहा था जिसकी वजह से निर्मला का तन बदन पूरी तरह से कामोत्तेजना के ज्वर में तपने लगा था।,,, कुछ देर तक खामोशी छाई रही सूरज पेड़ के नीचे खड़े होकर सिर्फ निर्मला की गर्म और गहरी सांसो की आवाज कोई सुन रहा था,,, वह निर्मला के मन की बात जानने के लिए फिर से बोला,,,।


क्या हुआ मेरी रानी तुम कुछ बोल नहीं रही हो,,

क्या कहूं हमें तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है,,,।

अरे इसमें समझने वाली क्या बात है तुम एक औरत हो और मैं एक मर्द हूं और औरत और मर्द के बीच शादी के बाद क्या होता है यह तो तुम अच्छी तरह से जानती हो,,,
( निर्मला अनजान बनते हुए बोली,,,।)

नहीं हमें तो बिल्कुल भी नहीं पता कि शादी के बाद एक औरत और मर्द के बीच क्या होता है,,,,।


अगर रानी की इजाजत हो तो हम ही बता देंगे क्या होता है सूरज अच्छी तरह से जानता था कि निर्मला झूठ बोल रही है इसलिए वह अपनी तरफ से कोई भी कसर नहीं छोड़ना चाह रहा था निर्मला को अपनी आवाज के जादू में पूरी तरह से उतार लेने के लिए,, इसलिए वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला।

शादी के बाद एक मर्द औरत के साथ सुहागरात मनाते हुए उसकी बुर में अपना लंड डालकर उसको चोदता है,,,
( यह सब बातें सुनकर निर्मला के तन बदन में उत्तेजना की खुमारी छाने लगी थी,,, इसलिए वह उत्तेजना के असर उसके बदन में होने लगा था,, सूरज भी निर्मला से बातें करते हुए पूरी तरह से उत्तेजित हो चुका था और धीरे-धीरे अपने काम को आगे बढ़ा रहा था।,,, उससे रहा नहीं जा रहा था निर्मला की प्यारी और सुरीली आवाज उसके तन-बदन में कामोत्तेजना की चिंगारी भड़का रही थी।,,, निर्मला जवाब देते हुए बोली,,,।

धत्त,,,, हम तो इतना गंदा काम आपको बिल्कुल भी नहीं करने देंगे,,,,।

अच्छा कैसे नहीं करने दोगी अगर अभी तुम मेरे सामने आ जाओगी ना तो तुम्हारी एक भी नहीं चलेगी सब कुछ अपने मन से ही करूंगा,,,,।


हम आपको कुछ करने ही नहीं देंगे हमें बहुत डर लगता है।

किससे डर लगता है हमसे,,,

नहीं आपसे बिल्कुल भी डर नहीं लगता नहीं पर आपके उस से डर लगता है,,,।
( सूरज समझ गया कि निर्मला किस बारे में बात कर रही है लेकिन वह उसके मुंह से सुनना चाहता था इसलिए बोला।)

अरे उससे किसी से जरा खुल कर तो बोलो मेरी जान,,,

नहीं हमें उसके बारे में बताते हुए शर्म आती है।
( निर्मला उत्तेजित होते हुए से बातें कर रही थी और साथ ही अनजाने में ही वह अपनी बुर को सलवार के ऊपर से ही मसलने लगी थी।)

अरे मुझसे कैसी शर्म,,, आखिर थोड़े दिन बाद तो मेरे सामने तुम्हें पूरी तरह से नंगी होना ही है तो शर्म करने से क्या फायदा,,, बोल दो अब किससे डर लगता है।,,,

तुम्हारे लंड से,,,( निर्मला हिम्मत जुटाते हुए बोली,,, इतना कहने में ही बाहर सूरज के पसीने छूट गए थे उसके मुंह से यह शब्द कैसे निकल गए उसे अब खुद पर विश्वास नहीं हो रहा था लेकिन वह लंड शब्द सुनकर पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी।,,, और यह शब्द कहते हुए वह अनजाने में ही अपनी हथेली को धीरे से सलवार के अंदर उतार कर अपनी फुली हुई बुर पर रखकर उसे मसलने लगी,,,, उसकी सांसे तीव्र गति से चलने लगी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है।,,,
सूरज भी पूरी तरह से मस्त हो गया निर्मला के मुंह से लंड शब्द सुनकर वह एकदम से चुदवासा हो गया और कोई ना देखे इस लिया पेड़ पर चढ़ गया और उसकी घनी झाड़ियों में छुप गया,,,,,, ओर धोती को खोल कर अपने लंड को हिलाना शुरू कर दिया और बोला,,,,
( सूरज किसी दूसरे गांव में जाकर हिम्मत दिखाकर अपने होने वाली मामी से बात कर कर उसे अपने जाल में फसा रहा था,,ओर निर्मला भी उसके जाल में फसती चली,, जा रही थी,, और जिस तरह से सूरज पेड़ पर चढ़ कर धोती खोल कर लंड हिला रहा था,, अगर पकड़ा जाता तो उसकी शामत आ जाती,, लेकिन उसकी परवाह किए बिना सूरज अपने काम में जुटा हुआ था,,)

ओह मेरी रानी इससे डरने वाली क्या बात है मेरा लंड को खेलने के लिए बना है जिसको तुम अपने हाथों में लेकर खेलोगी,,,, बोलो निर्मला खेलोंगी ना,,,
( निर्मला भी पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी वह अपनी बुर को जोर-जोर से मसल रही थी,,,। और सूरज की बातों में आकर बोली,,।)

हां,,,,,( निर्मला कांपते स्वर में बोली,,,।निर्मला की हा सुनकर तुरंत बोला।)

देखो इससे डरने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं है। एकदम आराम से तुम्हारी बुर में चला जाएगा जैसा मैं कहता हूं वैसा ही करो,,,

क्या करु,,, ? ( निर्मला उत्तेजना से सिहरते हुए बोली अब वह पूरी तरह से तैयार थी सूरज की बातों को मानने के लिए,,,)

तुम्हारे घर मे बैगन या केला है?

बेगन तो नहीं है लेकिन केला है,,,,

चलेगा,,,, उसे ले आओ,,,,( सूरज झट से बोला,,,।)
( निर्मला को कहीं दूर जाना नहीं पड़ा बिस्तर के पास टेबल पर ही केलें पड़े हुए थे,,,। वह केले के गुच्छे मै से एक केला तोड़ ली और बोली,,,।)

हां अब क्या करना है,,,
( सूरज निर्मला का उतावलापन देखकर इतना तो समझ ही गया था कि वह भी पूरी तरह से लंड लेने के लिए मचल रही है,,,। वह भीपूरा उतावला हो चुका था इसलिए धीरे-धीरे अपने लंड को मुठिया रहा था,, और वह बोला,,,,।)
देखो मेरी जान मैं तुम्हारा होने वाला पति हूं और तुम मेरी होने वाली पत्नी मैं एक पति होने के नाते ही तुमसे इस तरह की बातें कर रहा हूं वरना आज तक किसी भी लड़की से मैंने इस तरह की बातें नहीं किया हूं,,,
अगर तुम मुझे दिल से अपना पति मानती हो तो मेरी हर बात मानोगी,,,,वरना तुम मुझसे बात करना बंद कर सकती हो मैं तुम्हारी इजाजत के बिना इस तरह की बात ही नहीं करना चाहता बातों में तुम्हें दिल से अपनी पत्नी मान जीने लगा हूं इसलिए इस तरह की बातें कर रहा था अगर तुम्हें बुरा लग रहा हो तो बेझिझक बोल सकती हो ऐसा नहीं है कि शर्म के मारे या पत्नी धर्म निभाने के लिए तू मेरी हर बात मानो भले ही वह तुम्हें गलत क्यों ना लगे ऐसा बिल्कुल भी मत होने देना तुम्हें जरा भी लगे कि मैं कुछ गलत कर रहा हूं तो तुम वहीं पर मुझे टोक दिया करो,,,,,,

( निर्मला सूरज की बातों को बड़े गौर से सुन रही थी उसे यह नहीं मालूम था कि बाहर से उसका पति नहीं बल्कि उसका भांजा है जो कि उसके ही पति के बेवकूफी पन का पूरा फायदा उठा रहा है,,,उसे तो इस तरह की बातें अपने पति के मुंह से सुनकर बेहद रोमांच का अनुभव हो रहा था और उसे अच्छा भी लग रहा था,,,। सूरज जानबूझकर इस तरह की बातें कर रहा था वह उसको निर्मला को पूरी तरह से अपनी आवाज की जादू में आकर्षित कर लेना चाहता था,,, वह निर्मला के खूबसूरत शरीर को भोगने के लिए अपना रास्ता बना रहा था इसलिए अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला।)

बोलो निर्मला क्या तुम्हें मेरी इस तरह की गंदी बातें खराब लग रही है अगर खराब लग रही हो तो मुझे माफ कर देना मैं आइंदा से ऐसी बातें नहीं करूंगा,,,

नहीं नहीं ऐसी कोई बात नहीं है मैं अच्छी तरह से जानती हूं कि पति पत्नी के बीच इस तरह की बातें तो होती ही रहती हैं इसमें बुरा मानने वाली कोई बात नहीं है बल्कि मुझे तो आज खुशी हो रही है कि मेरा पति भी मुझसे इस तरह की बातें कर रहा है वरना मैं इस बात को लेकर बहुत ही ज्यादा दुखी हो रही थी मुझे लग रहा था कि शायद आप दूसरों मर्दों की तरह खुलकर अपनी पत्नी से बातें नहीं करेंगे,,,,,


तो क्या तुम्हें मेरी यह सब बातें अच्छी लग रही है?

इसमें बुरा लगने वाली कोई बात ही नहीं है तो अच्छी तो लगेगी ही,,,,

तुम सच कह रही हो ना निर्मला देखो मुझे बेवकूफ मत बनाना मैं तुमसे प्यार की उम्मीद करता हूं,,,

यह कैसी बातें कर रहे हैं आप मैं आपकी पत्नी हूं,,,, और आपको हर तरह से खुश रखना मेरा धर्म है,,
( निर्मला की बात सुनकर सूरज पूरी तरह से खुश हो गया हो समझ गया कि निर्मला अब पूरी तरह से उसके काबू में आ गई है,, इसलिए वह खुश होते हुए बोला,,,।)

तो निर्मला तुम मेरी हर बात मानने को तैयार हो,,,,

हां मैं आपकी सब बातें मानने को तैयार हूं,,

तू मेरी जान अभी जो मैं तुमसे कुछ भी करने को कहूंगा तो तुम वह करोगी ना,,,

हां,,, सब कुछ करूंगी ( निर्मला शरमाते हुए बोली)

ओहहहह निर्मला मैं आज बहुत खुश हूं,,,, में तुमसे बहोत प्यार करता हू निर्मला,,


सूरज पूरी तरह से निर्मला को अपनी बातों की आगोश में ले लिया था और जिसमें से खुद निर्मला भी निकलना नहीं चाहती थी क्योंकि पहली पहली बार कि वह किसी मर्द से इस तरह की कामुकता भरी बातें कर रही थी इसलिए उसे भी यह सब बेहद आनंददायक लग रहा था। और वह शादी वाली रात से पहले ही अपने आप को उस दिन के लिए सहज कर लेना चाहती थी।,, वह तो बिल्कुल अनजान थी उसे नहीं मालूम था कि वह अपने पति से नहीं बल्कि अपने भांजे सूरज से बात कर रही है,,,,, सूरज समझ गया कि निर्मला पूरी तरह से उसके बहकावे में आ चुकी है वह बेर के पेड़ पर छुपे अपने लंड को हिलाता हुआ निर्मला से बातें करते हुए संपूर्ण रूप से कामोत्तेजना का अनुभव कर रहा था।,, जब वह समझ गया कि निर्मला भी पूरी तरह से तैयार है वह उसकी हर बात मानने के लिए राजी हैं तब वह अपनी आवाज में कामुकता का असर दिखाते हुए बोला।

निर्मला मेरी जान मुझे अब तुम पर पूरा भरोसा है इसलिए जैसा मैं कहता हूं वैसा ही करो तुम्हें भी बहुत अच्छा लगेगा और मुझे भी,,,,

हमममनन,,,,, ( निर्मला भी हामी भरते हुए उत्तेजनात्मक स्वर में बोली)

निर्मला अब तुम अपने सलवार की डोरी खोलो,,,

( इतना सुनते ही निर्मला की सांसो की गति तेज होने लगी,,, वह तुरंत अपने होने वाले पति की बात मानते हैं,, दोनों हाथों से धीरे-धीरे अपने सलवार की डोरी को खोलने लगी,,, वह अभी खोल ही रही थी कि तभी सूरज बीच में बोला,,,।


क्या हुआ जान खोल रही हो कि नहीं,,,

हममममनम,,,,,

क्या हमम हममम लगाई हो,,,, थोड़ा खुल कर बोलो मेरी रानी तभी तो मजा आएगा,,,,

कौन सो रही हूं (निर्मला घबराते हुए और उत्तेजित होते हुए बोली)

हां यह हुई ना बात ऐसे कहोगी तभी तो मजा आएगा अच्छा सलवार की डोरी खोल दी कि नहीं,,,,


हां खोल दी हूं,,,

आहहहहहहहहह,,,,, मेरी जान मैं तो सोचकर ही मत होने जा रहा हूं काश मैं अंदर आकर अपने हाथों से तुम्हारी सलवार की डोरी खोलता,,,,


खोल लेना आपको किसने इनकार किया है,,,,पर अभी इसी वक्त घर में बहोत मेहमान आए है,,

सच मेरी जान तुम बहुत अच्छी हो,,,( निर्मला को सूरज की यह सब बातें बहुत अच्छी लग रही थी)
अच्छा अब एक काम करो अपनी सलवार को धीरे से नीचे की तरफ सरकाते हुए उसे घुटनों तक ले जाओ,,,


जीईई,,,,, ( इतना कहते हुए निर्मला अपने होने वाले पति की बात मानते हुए जो कि वह उसका पति नहीं बल्कि सूरज था,,, अपनी गोलाकार सुगठित नितंबों को थोड़ा सा ऊपर की तरफ उठा कर अपनी सलवार को नीचे की तरफ ले जाने लगी,, और ऊसै घुटनों तक लाकर छोड़ दि,,, निर्मला बड़ी उत्सुकता से अपनी गोरी जांघों को देखकर कामोत्तेजना का अनुभव कर रही थी।,, वह अभी इंतजार कर रही थी कि सामने से क्या आदेश आता है,,,, लेकिन कुछ देर तक दोनों के बीच खामोशी छाई रही क्योंकि सूरज एकदम से चुदवासा होकर अपना लंड मुठीया रहा था।,,, इसलिए जब सामने से कुछ देर तक कोई आवाज नहीं आई तो निर्मला खुद ही बोली,,,

लो कर ली अब क्या करूं,,,,

( निर्मला की यह बातें सुनकर सूरज समझ गया कि जिस तरह से वह तड़प रहा है,, उसी तरह से निर्मला भी तड़प रही है इसलिए वह खुश होता हुआ बोला।।)

घुटनों तक सरका ली,,वाहहहहहह,,,, निर्मला मुझे पूरा यकीन है कि इस समय तुम बहुत ही ज्यादा कामुक लग रही होगी,,, तुम्हारी सलवार घुटनों तक होकर तुम्हें और भी ज्यादा कामुक बना रही होगी,,, तुम्हारी दूधिया चिकनी जांघे तारे की रोशनी की तरह चमक रही होगी,,, बहुत मजा आएगा मेरी जान तुम्हारी चिकनी जांघो पर अपने होंठ रख कर उसे चुमने में और उसे चाटने में,,,
( सूरजकी गंदी और कामुकता से भरपूर बातें सुनकर निर्मला पूरी तरह से उत्तेजना की लहर में में लहराने लगी थी।,, उसकीे मदहोश भरी जवानी उसके तन-बदन में,,, चीकोटी काट रही थी। उत्तेजना के मारे उसकी सांसें गहरी चल रही थी जिसकी आवाज सूरजको बाहर से एकदम साफ सुनाई दे रही थी,। सूरज अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,।)
निर्मला मेरी जान सलवार के नीचे कुछ कह नहीं थी या एकदम नंगी हो,,,,

पहनी हुं,,, ( निर्मला शरमाते हुए धीरे से बोली,,,।)

ओहहहहह मेरी रानी क्या पहनी हो बोलो ना,,

पैंटी पहनी हु,,,,,


ससससहहहहहहह कौन से रंग की,,,,,?


काली रंग की है।( निर्मला शरमाते हुए बोली)

ससससहहहहह आहहहहगहहहह,,,, काले रंग की पेंटिं कसम से गोरे रंग पर कहर ढा रही होगी,,,, बहुत खूबसूरत लग रही होगी मैं तो बस कल्पना कर के एकदम मस्त सुबह जा रहा हूं अगर अपनी नजरों से देखूंगा तो पता नहीं क्या हो जाएगा।,,,
( सूरज की बातें निर्मला की उत्तेजना को बढ़ा रही थी उसकी सांसो की गति तेज हो रही थी और वह भी अपनी काली रंग की पेंटी की तरफ ही देख रही थी। उसे भी आज अपना यह तन बेहद खूबसूरत लग रहा था हालांकि वह रोज यही अपने तन के दर्शन करती थी लेकिन रोज यह बात नहीं थी जोकि आज उसे महसूस हो रहा था।,,,, सूरज अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला,,,)
निर्मला मेरी जान तुम भी अच्छी तरह से जानती हो कि काले रंग की पेंटिं के अंदर तुमने क्या छुपा कर रखी हो,,

ककककक,, क्या छुपा कर रखी हूं,,,, (उत्तेजना के मारे निर्मला हकलाते हुए बोली),,,,

यह तो तुम अच्छी तरह से ही जानती हो कि क्या छुपा कर रखी हो,( सूरज अपने लंड को आगे पीछे करते हुए मुट्ठीयाते हुए बोला,,)


अरे,,,, हमारा अंग है हम तो जानते ही हैं कि क्या छुपा कर रखे हैं,,,, लेकिन आप बताइए कि हमने अपनी पेंटिं के अंदर क्या छुपा कर रखे हैं।,,,

अच्छा तो तुम हमसे ही सुनना चाहती हो,,,

हां क्यों नहीं,,,

मेरी जान तुमने अपनी पैंटी को अंदर अपनी रसीली बुर को छुपा कर रखी हो जिसके अंदर मेरा मोटा लंड जाकर तुम्हें चोदेगा।
( इतना सुनते ही निर्मला पूरी तरह से उत्तेजना मैं सिहर उठी,,,। और सूरज अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोला)


क्यों सही कहा ना,,,

हां बिल्कुल आप कभी झूठ कह ही नहीं सकते,,,,

मेरी जान तो अब जल्दी से अपनी पैंटी को अपनी घुटनों तक खींच दो,,,,

निर्मला भी उत्तेजित हो चुकी थी इसलिए सूरज की बात सुनते ही वह जल्दी से फिर से अपने नितंबों को ऊपर की तरफ उठा कर अपनी पैंटी को घुटनों तक खींच कर कमर से नीचे नंगी हो गई,,,,, और खुद ही बोली,,,

हां कर ली,,,,

ओहहहह मेरी रानी काश मैं इस समय तुम्हारी बुर को देख पाता,,,, अच्छा यह बताओ तुम्हारी बुर पर बाल है या एकदम चिकनी है,,

हल्के हल्के हैं (निर्मला उत्तेजनात्मक स्वर में बोली)

सससससहहह,,, ( जोर से अपने लंड को मुट्ठी में दबाते हुए)
वैसे मुझे तुम्हारे बुर के बाल अच्छे लगेंगे लेकिन सुहाग रात को मिलना तो एकदम चिकनी कर लेना मुझे चिकनी बुर पसंद है,,

जी,,,, ( शरमाते हुए बोली)


अब एक काम करो मेरी रानी केले को लेलो और उस पर पूरी तरह से अपना थूक लगाकर उसे एक दम चिकना कर लो,,,,

क्या?

अरे पहले जैसा मैं बोलता हूं वैसा ही करो,,,
( निर्मला भी पूरी तरह से कामोत्तेजित हो चुकी थी उसकी बुर फुदक रही थी इसलिए निर्मला ज्यादा सवाल जवाब ना करते हुए केले पर अपना थूक लगाकर उसे पूरी तरह से चिकना कर ली,,,, और बोली,,,,।

हां कर लि अब,,,,


( निर्मला को बेझिझक अपनी बात मानते हुए देखकर सूरज को बहुत ही ज्यादा प्रसन्नता हो रही थी।)

अब मेरी जान उसकी ली को धीरे-धीरे अपनी बुर की गुलाबी छेद के अंदर डालो,,,,( सूरज अपने लंड को जोर-जोर से हिलाते हुए अत्यधिक चुदवासा होते हुए बोला,, और उसकी यह बात सुनकर निर्मला चौकते हुए बोली,,,।)

मुझे आप क्या कह रहे हैं मुझसे यह नहीं हो पाएगा,,,

अरे कैसे नहीं हो पाएगा मैं बोल रहा हूं ना हो जाएगा आराम से हो जाएगा अगर आज तुम यह कर ली तो सुहागवाली रात को बड़े आराम से मेरे लंड को अपने बुर में ले लोगी,,,

नहीं मुझसे बिल्कुल भी नहीं हो पाएगा मैं आज तक ऐसा कभी भी नहीं की हूं मुझे डर लग रहा है,,,।

अरे डरने की जरूरत बिल्कुल भी नहीं है मैं हूं ना,,,

अरे आप तो बाहर है यहां होते तब डरने की जरूरत नहीं होती,,,

अगर मैं अंदर होता तो इस तरह से कहने की जरूरत तुम्हें पड़ती ही नहीं बल्कि इससे भी मोटा मे अपना लंड तुम्हारी बुर में डाल दिया होता,,,,
( सूरज की गरमा गरम बातें सुनकर निर्मला की बुर में हलचल सी होने लगी थी,,,,)

तो अभी क्या करुं मैं बोलो ना,,,,

मैं जैसा कह रहा हूं मेरी जान वैसा ही करो एक काम करो ढेर साऱा थुक तुम अपनी बुर पर भी लगा लो,,,, देखो अगर आज तुम सफल हो गई तो तो तुम मेरा मोटा लंड लेने में कामयाब हो जाओगी और तुम्हें दिक्कत भी नहीं होगा इसलिए कह रहा हूं कि मेरी बात मान लो यह तुम्हारी भलाई के लिए ही है,,,,।

क्या केले से भी लंबा तगड़ा है क्या तुम्हारा,,,?

तो क्या इसीलिए तो कह रहा है आज अगर तुम केला अपने बुर में डाल ली तो मेरा लंड भी आराम से ले लोगी,,,

अच्छा रुको,,, (और इतना कहकर निर्मला उत्तेजना बस ढेर सारा थूक अपनी बुर पर लगाने लगी थूक लगाते हुए वह अपनी फूली हुई बुर पर हथेली फेर रही थी जिसकी वजह से उसके तन-बदन में गुदगुदी सी हो रही थी उसे मजा आ रहा था और थोड़ी देर बाद ढेर सारा थुक बुर पर लगा लेने के बाद बोली,,


लगा ली हूं अब क्या करना है,,,,,।

देखो मेरी जान अब बस अपनी आंखें बंद करो और यह महसूस करो कि तुम्हारे हाथ में जो केला है,,, वह केला नहीं बल्कि मेरा मोटा लंड है जिसे तुम अपने हाथ में पकड़कर अपनी बुर में डाल रही हो,,,,,
( सूरज की मस्ती भरी बातें सुनकर निर्मला अपने होशो हवास खो बैठी और उसकी बात मानते हुए धीरे से अपनी आंखों को बंद कर ली,,, और हल्के से अपनी टांगो को फैला कर केले को अपनी बुर से सटा कर उसे अंदर की तरफ डालने लगी,,, मोटे केले को बुर की फांकों के बीच रखते ही,, केले के मोटे स्पर्श से निर्मला पूरी तरह से सिहर उठी,,,, और एकाएक उसके मुंह से सिसकारी की आवाज निकल गई जो कि सूरजके कानों तक पहुंच गई,,,।

ससससहहहहह,,, आहहहहहहहहहहह,,,

क्या हुआ मेरी रानी लगता है एकदम गरम हो गई हो,,,,


अब बोलो मैं क्या करूं मैंने केले को बूर से सटा दी हुं ।,,

वाहहहहह मेरी रानी अब उसे आहिस्ता आहिस्ता अपनी बुर की गहराई में डालो,,

क्या मुझसे हो जाएगा (निर्मला आशंका जताते हुए बोली)

हो जाएगा मेरी जान जिस तरह से तुम चुदवासी हुई हो अगर मैं इस समय अपना मोटा लंड भी डाल दूं तो वह भी चला जाएगा।,,,,, बस थोड़ा हिम्मत रखो और अब उसके केले को मेरा लंड समझकर अंदर डालती रहो,,,,

( निर्मला पूरी तरह से उत्साहित हो चुकी थी इस तरह का अनुभव देने के लिए जिंदगी में पहली बार उसने यहां तक इस तरह की कोई हरकत की थी,,, हालांकि जवानी की जिस उम्र से वह गुजर रही थी,,,, उसकी भी बहुत इच्छा होती थी शारीरिक संबंध बनाने की लेकिन कभी भी वह आगे नहीं बढ़ पाई,,, आज वह पहली बार अपने होने वाले पति की बात मानते हुए जो कि सूरज कह रहा था उसने केले को अपनी बुर से लगा ली थी,, और धीरे-धीरे उसे अंदर की तरफ फैल रही थी चिकनाहट पाकर मोटा केला आराम से अंदर की तरफ सरक रहा था और जैसे-जैसे वह बुर से रगड़ खाता हुआ अंदर उतर रहा था,,, उसे बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी निर्मला पूरी तरह से कामोत्तेजीत हो चुकी थी,,,,,


घुस रहा है कि नहीं निर्मला ( सूरज चुदवासे स्वर में अपना लंड जोर जोर से हीलाता हुआ बोला,,,।)

हां जा रहा है (निर्मला भी कांपते स्वर में बोली)

बस ऐसे ही डालती जाओ,,,,

निर्मला धीरे-धीरे करके मस्ती के सागर में डुबकी लगाते हुए पूरे केले को अपनी बुर में डाल दी और बोली,,

ससससस,,, पूरा चला गया,,,,( सिसकारी लेते हुए बोली)

शाबाश मेरी जान अब मुझे पूरा यकीन हो गया है कि पहली रात को ही तुम मेरा पूरा लंड अपनी बुर में ले लोगी,,,, बस मेरी जान केले को अपनी बुर के अंदर बाहर करती रहो और ऐसा समझो कि मैं तुम्हें चोद रहा हूं और तुम्हारा काम हो जाएगा,,,,
( निर्मला तो लगा के समान केले को अपनी बुर में डालकर पूरी तरह से मस्त हो चुकी थी,,,, और सूरज की बात सुनते ही गरम सिसकारी के साथ वहं केले को अपनी बुर के अंदर बाहर करते हुए अपने हाथों से अपनी बुर को चोदने लगी। निर्मला को बेहद आनंद की प्राप्ति हो रही थी उसकी गरम सिसकारी की आवाज सूरज बाहर अपने कानों से सुन रहा था और उत्तेजित होता हुआ वह भी जोर जोर से हिला रहा था।
ससससहहहहहहहह,,,,, हहहहहहहहह,,, ओहहहहहहहहहहह,,,,,
निर्मला मस्त होते हुए इस तरह की गरमा-गरम आवाजें निकाल रही थी।,,, उसके ऊपर पूरी तरह से चुदाई का रंग चढ़ चुका था और वो पैरों के सहारे से ही अपनी सलवार और पैंटी को निकालकर कमर से नीचे पूरी तरह से नंगी हो चुकी थी,,, और अपनी टांगो को फैला कर केले से चुदने का आनंद ले रही थी।
सूरज और निर्मला दोनो चरमसुख के बेहद करीब पहुंच चुके थे निर्मला तो बिस्तर पर बार-बार इधर-उधर सर पटकते हुए केले को अपनीे बुर के अंदर बाहर कर रही थी। दोनों मस्ती के सागर में हिलोरे लेते हुए एक साथ झड़ने लगे,,,,
कुछ देर बाद निर्मला की सांसे व्यवस्थित हुई तो,,, उसके चेहरे पर प्रसन्नता और संतुष्टि के भाव साफ नजर आ रहे थे।,,,, निर्मला अपने होने वाले पति का आभार प्रकट करने के लिए कुछ बोलना चाह रही थी इससे पहले ही दरवाजे पर दस्तक होने लगी और दरवाजे पर दस्तक होता हुआ सुनकर,,, वह अपने होने वाले पति यानी सूरज से बोली मेरे कमरे का दरवाजा कोई खटका रहा है जल्दी से यहसे भाग जाओ,,, निर्मला इतना ही बोली,,,।

निर्मला बहुत खुश थी क्योंकि आज जिंदगी में पहली बार इतनी अपने पति के कहने पर हस्तमैथुन की थी। वह मन ही मन यह सोच रही थी कि अगर उसे पता होता कि अपने हाथों से भी काम चलाया जा सकता है तो वह कब से यह सब कर चुकी होती।,,, फिर भी उसे लग रहा था कि चलो देर आए दुरुस्त आए,,,। आज उसे दुगिनी खुशी मिली थी। एक तो उसका पति पहली उसे घर के पास आकर उसी से खुल कर बातें किया था और पहली बार ही वह अपनी प्यास को अपने हाथों से बुझाई थी।
स्ंखलित होने के बाद कुछ देर तक वह बिस्तर पर ऐसे ही लेटी रही,,, दरवाजे पर जिस तरह की दस्तक हो रही थी वह घबरा गई थी लेकिन दरवाजे पर उसकी मां थी जौकी उसे काम में हाथ बटाने के लिए बोल कर चली गई थी,,,। निर्मला की सांसे अभी भी गहरी चल रही थी।
अपनी हालत पर गौर की तो वह खुद की हालत को देखकर एकदम से शरमा गई। कमर से नीचे वह पूरी तरह से नंगी थी,,, उसकी सलवार और पैंटी दोनों बिस्तर के नीचे गिरी पड़ी जिसे वह खुद ही उत्तेजना में आकर निकाल फेंकी थी।,,, एक बार वह मुस्कुराते हुए अपनी रसीली बुर की तरफ देखने लगी और प्यार से उसको हथेली फेरकर जल्दी से बिस्तर से खड़ी होकर अपने कपड़े पहनने लगी,,,,


दूसरी तरफ बाहर सूरज बहुत-बहुत खुश था क्योंकि सब कुछ उसके प्लान के मुताबिक होने लगा था,, निर्मला ने अपनी सुरीली आवाज से उसका मन मोह लिया था सूरज उसे पूरी तरह से पाना चाहता था,,,
ऊसकी कसील़ी बुर में अपना मोटा लंड डालकर उसे चोदना चाहता था। उसने भी निर्मला से बातें करते हुए खुशी कल्पनातीत होकर संभोग का सुख महसूस करने के लिए जोर-जोर से अपना लंड हिलाकर तेज पिचकारी की धार पेड़ के पत्तो पर मारने लगा,, उसने से कुछ बूंदे बेर के फलों पर भी पड़ी,, शांत होने के बाद सूरज पेड़ से उतर कर झाड़ियों से होता हुआ अपनी साइकल के पास पहुच गया।,,,

और अपने घर की तरफ जाने लगा तो उसे शालू की याद आ गई और एक बार फिर से उसका मन किसी अनहोनी की कल्पना करके घबराने लगा उसे इस बात का डर पूरी तरह से बना हुआ था कि अगर शालू किसी से कुछ भी बता दी तो गजब हो जाएगा,,,
इसलिए वह मन ही मन ठान लिया कि वह शालू को भी अपने झांसे में ले लेगा लेकिन कैसे यह तो उसे भी अभी नहीं पता था।,,
घर पर पहुंचते ही देखा कि शालू गीले कपड़ों को रस्सी पर डालकर उसे सूखने के लिए छोड़ रही थी। वहां पर उस समय कोई नहीं था,,,,
सूरज रात वाली घटना के बारे में शालू से बातें करना चाहता था,,। इसलिए वह उसके करीब जाने लगा,शालू कपड़े रस्सी पर डालने मे व्यस्त थी इसलिए उसे बिल्कुल भी आवाज नहीं हुआ कि सूरज उसके ठीक पीछे ही खड़ा है। सूरज उसे कुछ बोलने वाला ही था कि तभी गीले बालों की वजह से उसके भीगे हुए ड्रेस में से झांकती हुई उसकी लाल रंग की ब्रा की पट्टी को देखकर वह रूक गया। घने बालों में से टपक रहे पानी की बूंदों की वजह से उसकी पीठ पर का कुछ हिस्सा गीले कपड़ों में से नजर आ रहा था जो कि काफी गोरा था।। सुगठित बदन आसमानी रंग की ड्रेस में अपनी महक वातावरण में घोल रहा था। जिसकी खुशबू सूरज के नथुनो में से होकर उसके सीने में भर जा रही थी और अजब सी कसक छोड़ दे रही थी। सूरज बड़े गौर से शालू के खूबसूरत बदन का नाप अपनी आंखों से ले रहा था,,, जब जब शालू बाल्टी से कपड़े लेने के लिए नीचे की तरफ झुकती तब तब सूरज की प्यासी नजरें शालू की गोलाकार नितंबों पर टिक जा रही थी। उसके नितंब सलवार में से भी साफ तौर पर नजर आ रहे थे कि उस पर जवानी का पानी पूरी तरह से चढ़ चुका था और उभारमय होकर आकर्षण का केंद्र बिंदु बना हुआ था। सूरज शालू के पीछे खड़ा होकर उसके बदन की हर एक अंग को अपनी प्यासी नजरों से देखता हुआ अपनी प्यास को और ज्यादा बढ़ा रहा था।,, तभी शालू को अपने पीछे कुछ आहट हुई तो वह झटके पीछे की तरफ नजरें घुमा कर देखने लगी और अपने ठीक पीछे सूरज को खड़ा हुआ देखकर वह क्रोधित हो गई आंखों के सामने फिर से रात वाली घटना नाचने लगी और वह गुस्से में सूरज से बोली,,

यहां क्या कर रहे हो तुम,,,?

( सूरज अभी भी उसकी खूबसूरती के साए में खोया हुआ था इसलिए एकाएक शालू के द्वारा यह पूछे जाने पर वह हकलाते हुए बोला,,,,।)

ककककक,,, कुछ नहीं मैं तो यह देख रहा था कि तुम बहुत खूबसूरत हो,,,

तुमसे यही उम्मीद थी मुझको जिस तरह कि तुम हरकत करते हो मुझे यकीन था कि तुम ऐसा ही कुछ जवाब दोगे क्योंकि रिश्तो का तो ख्याल तुमको अब बिल्कुल भी नहीं है,,,

नहीं शालू ऐसा कुछ भी नहीं है मैं तो बस तुम्हारी तारीफ कर रहा था।

रहने दो मेरी तारीफ करने को तुम्हारे मुंह से तारीफ अच्छी नहीं लगती,,,।

कैसी बातें कर रही है शालू आखिर मुझसे नाराज क्यों हो,,,


तुम अच्छी तरह से जानते हो कि मैं तुमसे नाराज क्यों हुं।,,,, ( शालू गुस्से में कपड़े को निचोड़कर रस्सी पर डालते हुए बोली),,,


पर इसमें मेरी गलती नहीं थी,,,,

अब ज्यादा बोला बनने की जरूरत नहीं है मैं सब कुछ देख रही थी कि गलती किसकी है और किसकी नहीं है।,,,


जब तुम देख रही थी तो तुम रोकी क्यों नहीं सब कुछ हो क्यों जाने दी,,,, तुम अगर पहले से ही सब कुछ देख रही थी तो रोक भी तो सकती थी शायद तुम रोक दी होती तो यह सब नहीं होता,,,,
( सूरज की यह बात सुनकर शालू एकाएक कपड़े को रस्सी पर डालते डालते रुक गई,,, उसके पास सूरजके सवाल का कोई भी जवाब नहीं था क्योंकि मन में वह यही सोच रही थी कि सूरज बिल्कुल ठीक कह रहा है वह रोक भी सकती थी,,, फिर उसके मन में यह ख्याल आया कि अगर रोक दी होती तो यह कैसे पता चलता है कि उसकी मां पहले से ही सूरज से चुदवा चुकी है।,,, इसलिए फिर से गुस्से में बोली,,,।)

मैं रोकी कि नहीं रोकी,,, लेकिन तुम्हें रिश्तो की मर्यादा रखना चाहिए था,,,,
लेकिन तुम कहां रिश्ते की मर्यादा रखने लगे जब तुम खुद ही अपनी ही,,,,,( वह इतना ही कही थी कि तभी उसके छोटे चाचा ने उसे आवाज देकर कुछ काम के लिए बुलाने लगे,,, और वह आती हूं कहकर जाने लगी,,, गुस्से में शालू सूरज को यह बोलना चाह रही थी कि जब वह खुद ही अपनी मां समान मामी को चोद़ सकता है तो भला दूसरे रिश्ते उसके सामने कौन सी मायने रखते हैं,,,, लेकिन मौके पर उसके चाचा के बोला लेने की वजह से उसकी मन की बात मन में ही रह गई सूरज उसे जाते हुए देखता रह गया लेकिन ऐसी मुसीबत की घड़ी मेरी सूरज की प्यासी नजरे नाजुक मौके की नजाकत को नजर अंदाज करते हुए शालू की सुगठित गोल गोल नितंबों पर टिक गई जोकि चलते समय ऊपर नीचे होती हुई मटक रहेी थी।,,,,,,
कमरे की खिड़की में से देख रही शालू की मां तुरंत सूरज के पास आई और बोली,,

क्या हुआ क्या कह रही थी वह,,,

वह बहुत गुस्से में है मामी मुझे तो डर लग रहा है कि कहीं कुछ किसी को बताना दे,,,
( सूरज की बात सुनते ही शालू की मां रुआांसी होते हुए बोली)

बेटा हम दोनों से बहुत बड़ी गलती हो गई अब तुम ही कोई रास्ता निकाल वरना में पल पल घुटती रहूंगी और अगर कहीं शालू ने कुछ बक दी तो न जाने क्या हो जाएगा,,,।)

तुम चिंता मत करो मामी मैं सब कुछ संभाल लूंगा,,,,
( सूरज अपनी सुधियां मामी को दिलासा देते हुए बोल रहा था लेकिन उसे खुद भी नहीं मालूम था कि इस मुसीबत से कैसे निकला जाए कैसे शालू को समझाया जाए।)

शालू की मां को शालू से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी और नजरें दिलाती भी तो कैसे आखिरकार वह हरकत ही कुछ ऐसी करती हुई पकड़ी गई थी कि उसकी जगह कोई भी होता तो उसका हाल भी ऐसा ही होता जैसा कि शालू की मां का हो रहा था।,,, आखिर एक बेटी अपनी ही मां को,,, अपनी बुआ के लड़के समान भांजे के साथ चुदवाते हुए देखे तो ऊसके मन मे उसकी मां की प्रति कैसे ख्यालात चल रहे होंगे यह तो सिर्फ शालू ही बता सकती है।,,,
ना तो शालू अपनी मां के सामने आ रही थी और ना ही शालू की मां शालू की आंखों के सामने आ रही थी दोनों एक दूसरे से नजरें चुरा रहे थे। शालू अपनी मां की हरकत पर पूरी तरह से शर्मिंदा थी और खुद से ही नजरें मिलाने से कतरा रही थी।
शालू की मां अच्छी तरह से जानती थी कि उसकी बेटी उससे पूरी तरह से नाराज है,,, और अपनी बेटी की अपने प्रति नाराजगी को देखते हुए शालू की मां को खुद को अपने किए पर पछतावा और घृणा हो रही थी।
वह मन ही मन अपने आप को कोस रही थी कि वह किस मनहुस घड़ी में सूरज की बातों में आ गई,, और अपना सब कुछ गवा दी।,,, वह मन ही मन यह सोच कर बता रही थी कि कैसे वहां अपने ही बेटे के उम्र के लड़के के साथ शारीरिक संबंध बना दी,,, और उसके बहकावे मे आकर उस से चुद गई वहां इस बात पर अपने आप को तसल्ली देने की कोशिश कर रही थी कि चलो एक बार जो गलती हुई सो हुई,,, लेकिन वह दुबारा कैसे बहक गई और यह भी अच्छी तरह से जानते हुए कि आस पड़ोस की सारी औरतें घर पर इकट्ठा है और शादी का माहौल है,,, और ऐसे मे हीं वह घर के पिछवाड़े ही,,
सूरज की हरकतों की वजह से बहक गई,,,, यह जानते हुए भी कि वहां पर कोई भी आ सकता है लेकिन फिर भी उस समय किसी भी बात की फिक्र किए बिना ही वह,, कैसे एकदम से बाहर गई और खुद ही सूरज को झोपड़ी में चलने के लिए बोलि,,, ना तो वह सूरज को आगे बढ़ने देती और ना ही उसकी बेटी उसे उसे हाल में देख पाती यह सब याद करके शालू की मां परेशान हुए जा रही थी।,,, एक तरफ हो सूरज के साथ में शारीरिक संबंध को लेकर अपने आप से घृणा अनुभव कर रही थी तो दूसरी तरफ जब वह सूरज के तेज धक्को को अपनी बुर की गहराई के अंदर महसूस करके एकदम से सिहर उठती,,, उसकी आंखों के सामने बार बार सूरज की तीव्र गति से हिलती हुई कमर नजर आने लगती और वहां कैसे उसके अंगों से खेलता हुआ उसे चुदाई के सुख का अनुभव कराता हुआ उसे चोद रहा था यह सब याद करके शालू की मां का मन,,, सूरज की तरफ आकर्षित होने लगता उसे सब कुछ सही लगने लगता क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि यह सामने सूरज की गलती नहीं है उसकी भी जरूरत थी।
यह सब सोचते हुए वह काफी परेशान हुए जा रही थी,,, और काफी देर बाद उसकी आंख लग गई,,, और दूसरी तरफ सूरज रात को फिर से निर्मला से मिलने साइकल ले कर निकल पड़ा,,,
 

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