Incest गांव का मौसम ( बड़ा प्यारा )

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सूरज साइकल पर बैठे अपने होने वाली मामी के गांव की तरफ निकल पड़ा,, अंधेरे की वजह से सूरज धीरे धीरे साइकल चलाते हुए अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रहा था,,
सूरज रास्ते भर सोच रहा था की,, आज रात को मोका मिल जाए तो शादी से पहले वह उसकी होने वाली मामी को चोद दे,, यह कल्पना किए सूरज निर्मला के घर के पास पहुंच जाते है,, सूरज साइकल को झाड़ियों में छुपाकर घर के पीछे की तरफ जाने लगता है,,
घर के पीछे जाकर तुरंत निर्मला मामी के कमरे की खीडकी के पास जाकर बैर के पेड़ के नीचे रुक जाता हे,, थोड़ी देर रुक कर कमरे के अंदर का जायजा लेने लागत है,, जब अंदर से कोई आवाज नहीं आ रही थी,, तो सूरज ने हिम्मत करके धीरे से निर्मला ऐसा कहकर पुकारा,,
अब सूरज की दिलों की धड़कन तेज हो रही थी, सामने आने वाली आवाज को सुनने के लिए,, पर सामने से कोई जवाब नही आया,,
सूरज ने फिर से निर्मला को आवाज दी,, पर इस बार भी सामने से किसी ने जवान नही आया,,
( सूरज ने मन में विचार चल रहा था,, की शायद होनेवाली मामी कमरे में नहीं है,, इस बात से सूरज निराश हो गया,, अब निर्मला मामी से उसकी मुलाकात नहीं हो पाएगी,,तो सूरज घर वापस जाने की सोच रहा था की तो उसे संगीत और तबले की आवाज आने लगी,, तो सूरज धीरे धीरे उस आवाज के पीछे जाने लगा,, जैसे जैसे सूरज आगे बढ़ रहा था,, संगीत की आवाज तेज हो रही थी,,
थोड़ी दूर जाकर सूरज दीवार की ओट से जाकर छुप गया ओर सामने का नजारा देखने लगा,,)
सामने संगीत का कार्यक्रम चल रहा था,, वहा पर ढेर सारी औरते थी,, उने देखा कर सूरज का लंड धोती में हरकते करने लगा,, कुछ औरतें संगीत का आनंद लेते हुए नाच रही थी,, नाचते वक्त उनकी हिलती हुई बडी बडी गांड को देखकर सूरज के मुंह में पानी आ गया,, उन औरते में सूरज की आंखे अपने होने वाली मामी को ढूंढ रही थी,,पर उसकी होने वाली मामी उसे नजर नही आ रही थी,, वहा पर औरतों की इतनी ज्यादा भीड़ थी की उनमें होने वाली मामी को ढूंढना मुश्किल हो रहा था,,
उसे की नजर बार बार नाच रही औरतों की हिलती बड़ी बड़ी गांड पर जा रही थी,, जिसे देख सूरज धोती के ऊपर से अपना लंड मसल रहा था,, कुछ देर तक सूरज संगीत का और औरतों की मतकती गांड को देखने का मजा लेता रहा,, थोड़ी देर में संगीत का कार्यक्रम खतम हुआ सभी औरते धीरे धीरे वहा से जाने लगी,, उन औरतों की भीड़ में सूरज को उसकी होने वाली मामी नजर नही आइ तो सूरज निराश होकर वहांसे जाने लगा,,, ओर घर के पीछे की तरफ जाने लगा,,,

दूसरी तरफ घर के पीछे घने अंधेरे में दो साए आपस में बाते कर रहे थे,, दो साए में से एक आदमी था और एक औरत,,,,
(आज रात में कुछ ज्यादा अंधेरा था की अंधेरे की वजह से सामने के आदमी की पहचाना मुस्कील हो रहा था,,)
आदमी उस औरत से कहता है,,,चलो उस कमरे में अब मुझसे रहा नही जा रहा है,, औरत उस आदमी से कहती हे,आपको शरम नही आरही हे क्या कुछ दिनों में हमारी बेटी की शादी हे और आपको ये सब सूच रहा है,,
( उनके बातो से यह पता चल रहा रह की वह दोनो निर्मला के माता पिता है,,)
रत्ना का पति जब भी तुम्हे देखता हु तो मेरा लंड खड़ा हो जाता हैं,, रत्ना शरमाते हुए छी कैसी गंदी बाते करते हो,, उमर हो गई है सुधार जाओ अब,,
इसमें शरामने की क्या बात है और इतना कह का रत्ना का पति ब्लाउज के उपरसे ही उसकी चूचियां दबाने लगता है,, अपने पति के चूचियां दबाने से रत्ना के मुंह से सिसक निकल जाती हे, अहहा,, साआहह,,,
तभी रत्ना अपने पति का हात अपने चूचियों से हटाते हुए,, कहती है,, क्या कर रहे हो आप शादीब्याह का घर है,, घर पर इतने सारे मेहनमान आए हुए है, कोई देख लेगा,,
रत्ना का पति अपने लंड को धोती के ऊपर से मसलते हुए रत्ना से कहता है,, इसी लिए तो तुझे घर के पीछे लाया हू घर के पीछे बने कमरे जाके मस्त चुदाई करेंगे,,
रत्ना सहमी हुई अपने पति से कहती हे,, नही बाबा अभी नही बहुत काम है घर में इतने सारे मेहमान है उनके सोने की व्यवस्ता भी करनी है,,
रत्ना मेरी रानी बस कुछ देर का काम है जैसे ही मेरा पानी निकल जायेगा मेरा काम ही जाएगा,, ओर फिरसे रत्ना की चुचियों पर हात रख कर चुचियों को मसलते हुए रत्ना को गरम करने लगता है,,,
अपने पति के इस तरह चूचियो मसलने से रत्ना गरम होने लगती है और उसकी बुर से पानी रिसने लगता है,,
रत्ना अपने आप पर काबू रखते हुए अपने पति से कहती हे,, नही नही आप तो अपना काम करके अपना पानी निकाल कर चले जाते हों लेकिन में तो प्यासी रह जाती हू फिर मुझे उंगली से काम चलाना पड़ता है,,
तभी रत्ना का पति एक हाथ नीचे ले जाकर साड़ी के ऊपर से रत्ना की बुर मसले लगता है,, और रत्ना को गरम करने लगता है,,
और कहता है इस बार ऐसा नही होगा में चूरन खाके आया हु तुम्हे शिकायत का मोका नही दूंगा,,,
अपने पति की इस हरकत की वजह से उसकी बुर से अब पानी रिसने लगा था जिससे उसकी पेंटी को गीली करने होने लगी,,
( अपने पति बातो और हरकतों की वजह से रत्ना अभ कामवासना में बहती चली जा रही थी,, और कामतूर हो कर अपने पति से कहती हे,,)
ठीक है जल्दी चलिए अब मुझसे रहा नही जा रहा है,,

रत्ना का पति उसका हाथ पकड़ कर घर के पीछे बने कमरे की तरफ जाने लगते है,,( घर के पीछे बने कमरे में खेती में लगने वाले सामान रखे थे,,)
कमरे के पास पहुंच तेहि रत्ना का पति रत्ना से कहता है तुम यही रुको में जरा पेशाब करके आता हू,, और इतना कहकर दूर झाड़ियों में पेशाब करने चला जाता हे,,
रत्ना वही खड़ी होकर अपने पति का आने का इंतजार करने लगती है,,,
इधर सूरज बेखबर इस बात से अनजान की घर के पीछे क्या चल रहा है,, उसे कुछ मालूम नही था,, सूरज होने वाली मामी को ना मिलने की वजह से निराश हो कर घर के पीछे जाने लगते है,, आगे क्या होने वाला था उसे बिलकुल
भी अंदाजा नहीं था,,
 
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कमरे के पास रत्ना अपने पति का इंतजार कर रही थी,, अपने पति की हरकतों की वजह से वह ज्यादा गरम हो गई थी,, उसे अब सब्र नहीं हो रहा था उसे तो जोरदार चुदाई की जरूरत थी,,रत्ना अपने पति का इंतजार करते करते साड़ी के ऊपर से ही अपनी बुर रगड़ रही थी,,( तभी रत्ना को किसी के आने की आहट होने लगती है,, वह समझ जाती है की सामने से उसका पति आ रहा है,, लेकिन सामने से तो सूरज आ रहा था,,)
सूरज जैसे ही घर के पीछे जाता हे,, अंधेरे में कोई उसका हात पकड़ कर उसे अपने साथ ले जाता है,, इस तरह की हरकत की वजह से सूरज डर जाता हे उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था की उसके साथ क्या हो रहा है,, वह बस उसके पीछे चला जा रहा था,,
वह साया सूरज को घर के पीछे बने कमरे की खोलकर उसके अंदर ले जाता है और कमरे का दरवाजा बंद कर देता है,,,
सूरज एकदम सकपका जाता है उसे कुछ भी समाज नही आ रहा था की क्या हो रहा है,,
कमरा बंद करते ही रत्ना कहती है,,, कितनी देर लगादी आने में, इतना कहके रत्ना सूरज को अपना पति समझकर अंधेरे में उससे लिपटने लगी,,
अपने बदन से किसी औरत को लिपटने से सूरज को अजीब लगा रहा था,, लेकिन धीरे धीरे उसे सारा माजरा समजमे आगया की ये औरत अंधेरे में उसे अपना पति समझ बैठी हे,,और उससे चुदवाना चाहती है,, ये बात समझतेही,,
सूरज उस औरत को अपने बाहों में भरकर उसके बदन पर हाथ फेरने लगता है,,
रत्ना भी सूरज को अपना पति समझकर उसका साथ देने लगती है,,
सूरज अपने हाथ आया हुआ मौका गवाना नही चाहता था,, सूरज तुरंत उस औरत की चूचियां ब्लाउज के ऊपर जोर से मसलने लगता है,, जिससे रत्ना की सिसकी निकलने लगती है,,
रत्ना सिसकते हुए आआहहहह सा आज बड़ी ताकत लगा रहे हो,,,
सूरज तुरंत रत्ना के होठों को अपने होटों में भरकर चूसने लागत है,, इस हरकत की वजह से रत्ना सिहर जाती है,, क्योंकि आज से पहले उसके पति ने कभी भी उसके होठ नही चूसे थे,, उसको समझ नही आ रहा था की आज उसके पति को हो क्या गया है,,
लेकिन रत्ना को बहुत मजा आ रहा था,,
सूरज रत्ना के होठ चूसते हुए उसके चूचियां जोर जोर से दबा रहा था,,,
रत्ना अभ गरम हो रही थी,, उसके पेट पर उसे कुछ चुबन महसूस हुई तो रत्ना अपना हात नीचे जाकर उसे टटोलने लगी,, रत्ना ने जैसे ही सूरज के लंड की मुट्ठी में पकड़ा वहा एकदम सिहर गई और झट से लंड को छोड़ दिया उसे कुछ समाज नही आ रहा था की उसने अभी किसे पकड़ा था,, रत्ना फिर से हात नीचे के जाकर फिर से उस चीज को पकड़ती है,, रत्ना समझ जाती है की यह लंड है लेकिन इतना बड़ा रत्ना हात फोरन हाथ को झटक देती है, क्योंकि उसके पति का लंड इतना बड़ा नही था,,
सूरज अपनी मस्ती में मजे ले रहा था,, रत्ना को शक होने लगा की वो जिसके साथ है वह उसका पति नही है,, रत्ना ने ताकत लगाकर सूरज को पीछे धकेल दिया और कहने लगी कोन हो तुम,,
सूरज डर गया डर के मारे कुछ बोल नहीं पा रहा था,,
सामने से कोई आवाज नहीं आइ तो रत्ना ने फिरसे कहा,,, तुम जो कोन भी हो अपना नाम बताओ नही तो में जोर से चिल्ला कर घर के सारे आदमीयो को यहां बुला लूंगी फिर तुम्हारी खैर नहीं,,
सूरज अभ डर जाता है और हकलाते हुए कहता है,,
सस,, स सूरज,,
आगे से जो आवाज आई थी वह उसके पति की नही थी,,मतलब जो कुछ भी अभी उसके साथ हुआ था वह उसक पति नही ये सूरज नाम का लड़का कर रहा था,,
रत्ना को अभ बहुत गुस्सा आ रहा था वह सूरज से कहती हे,, ये लड़के तू कहा का है और इस वक्त यह क्या कर रहा है,, जल्दी बता नही तो ने लोगो को बुला लूंगी,,
सूरज डरते हुआ बताने लगा है,,
मेरा नाम सूरज है में आपके होने वाले जमाई यानी सुनील का भांजा हू और यह मे अपनी होने वाली मामी को मामा ने तोफा देने के लिए कहा था में बस उसे देने आया था,, और में यहासे जा ही रहा था की आपने मेरा हाथ पकड़ कर इस कमरे में ले आई और मुझसे लिपटने लगी,, इसमें मेरी कोई गलती नही है,,
(सूरज की बातो से रत्ना समझ गई थी,, की उसमे उसकी कोई गलती नही है उसने ही सूरज को अपना पति समझकर उसे लिपट गई,,)
रत्ना अभ कुछ बोल नहीं पा रही थी उसे शर्मिंदगी महसुस हो रही थी,, रत्ना कुछ बोल पाती तभी कमरे का दरवाजा खटखटाने की आवाज आने लगी,, जिससे रत्ना डर गई,, वह समझ गई की दरवाजे पे उसका पति है,,उसे दरवाजा खोलने से डर लगने लगा,,
तभी बाहर से उसका पति आवाज देता हे,, अरे रत्ना अंदर हो क्या और ये दरवाजे को बंद क्यों किया है,,
अपने पति की आवाज सुनकर वह सूरज को छुपने के लिए कहती है,, सूरज भी कमरे में एक खंबे के पीछे छुप जाता है,, रत्ना डरते हुए दरवाजे की तरफ जाती है और दरवाजा खोल देती हे,, दरवाजा खुलते ही रत्ना का पति रत्ना से कहता है,,
क्या रत्ना तुम भी मुझे लिए बिना दरवाजा बंद कर के अंदर आ गई,,

रत्ना के मुंह से शब्द नही निकल रहे थे,, वह कुछ बोल पाती तभी,, उसका पति कहता है चलो जिस काम के लिए आए थे उस काम करते हे और इतना कह के अपने साथ लालटेन लाया था उसे कुठे से टांग देता है जिससे कमसे में थोड़ी रोशनी आ जाती है,, ओर दरवाजा बंद कर कर दोनो कमरे में आ जाते हैं,,
कमरे में रोशनी आ जाने से रत्ना आंखे सूरज को ढूंढने लगती है,, की सूरज सही जगह छुपा है की नही सूरज उसे खंबे के पीछे से झांकते हुए नजर आता है,,
तभी रत्ना का पति उसे बाहों में भर देता हे और उसकी साड़ी खोलने लगता है,, साड़ी खुलते ही झट से ब्लाउज और पेटीकोट खोल कर जमीन पर फैंक देता है,,
अब रत्ना केवल ब्रा और पैंटी में खड़ी थी,, रत्ना सूरज को देख रही थी,, सूरज भी खंबे के पीछे से छुप कर उसेही देख रहा था,,
रत्ना को अब शरम आ रही थी क्योंकि उकसा पति उसे धीरे धीरे नंगी कर रहा था,, और उसकी चुदाई करने वाला था,, और एक नौजवान लड़का यह सब देख रहा था,,, रत्ना को शरम के साथ साथ उत्तेजना भी हो रही थी,,
तभी उसका पति कहता है,, रत्ना तुम भी ना कितनी बार कहा है ये ब्रा और पैंटी मत पहना करो,, और इतना कह कर रत्ना को नीचे जमीन पर लिटा देता है,, और ब्रा और पैंटी को खोल देता है,,
ब्रा पैंटी खुलने से रत्ना अभ एकदम नंगी हो जाती है,, नगी होते ही उसका पति उसकी चूचियों पर टूट पड़ता है,, चुचियों को पीने लगता है,, अभ रत्ना ने शरम के मारे अपनी आखें बंद कर ली थी,,
सूरज खंबे के पीछे से उन दोनो को देखने लगता है,, उसे पति की पीठ उसकी तरफ होने की वजह से उसे वह औरत साफ दिखाई नही दे रही थी सिर्फ उसका चेहरा दिखाई दे रहा था चेहरे को देखते ही सूरज का लंड धोती में झटके मारने लगता है,, क्योंकि सामने की औरत और कोई नही निर्मला की मां रत्ना थी,, जिसे उस दिन कपड़े धोते वक्त देख कर उसका का लंड झड़ते झड़ते बचा था,,, और थोड़ी देर पहले वह उससे लिपटा हुआ था,,,

तभी रत्ना का पति अपने लंड को रत्ना की बुर में डाल देता है,, और धक्के मारने लगता है,, लंड छोटा होने की वजह से रत्ना को ज्यादा दर्द नहीं हो रहा था वह बस आंख बंद कर के लेटी रही,,
रत्ना का पति बुर की गरमी सहन नही कर पाया और दो चार धक्कों में झड़ गया,, उसका काम हो गया था,,और अपने अपने कपड़े पहन कर रत्ना से कहने लगा,,
में अब छत पर सोने के लिए जा रहा हू तुम भी जा कर सो जाना इतना कहकर दरवाजा खोल कर बाहर चला जाता है,,
रत्ना सहमी हुई अपने आंखे बंद किए हुई थी,, की सूरज ने ये सब होते हुए देख लिया होगा,, रत्ना धीरे से अपनी आंखे खोल कर खंबे की तरफ देखती है तो सूरज उसे कही नजर नही आता,, उसकी आंखे इधर उधर उसे ढूंढती है,, लेकिन उसे सूरज कही नजर नही आता,, वह मन में सोचती है की शायद वह दरवाजा खुलते ही चला गया होगा,, ओर फिर अपने नंगे बदन को देखने लगती है,, रत्ना का पति अपना काम करके चला गया था लेकिन रत्ना की प्यास नही बुझी थी,, फिर भी रत्ना खड़ी होकर अपने कपड़े पहनने लगती है,,
 
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सूरज चला गया है यह समझ कर रत्ना जल्दी से अपनी पेंटी पहन कर ब्रा पहनने लगती है ब्रा का हुक थोड़ा खराब हो गया था, रत्ना ब्रा का हुक बंद करने में काफी मशक्कत कर रही थी लेकिन उससे यह काम हो नहीं रहा था। रत्ना काफी परेशान हो रही थी जो कि उसकी झुंझलाहट से साफ जाहिर हो रहा था,, सूरज दरवाजे के पास खड़ा होकर ये सब देख रहा था,, सूरज समझ गया था कि अब रत्ना के बस में नहीं था कि वह ब्रा का हुक लगा पाती इसलिए वह दरवाजे पर खड़े खड़े ही बोला।

चाची में कुछ मदद करूं क्या...?

इतना सुनते ही रत्ना एकदम से चौक गई और तुरंत पीछे मुड़कर देखें तो दरवाजे पर सूरज खड़ा था जिसे देखते ही वह फिर से जड़वंत हो गई मानो सांप सूंघ गया हो.... अब रत्ना के पास बोलने लायक कुछ भी नहीं बचा था क्योंकि वह कुछ बोल पाती इससे पहले ही हुआ कमरे में प्रवेश कर चुका था और अपने आप ही दरवाजा बंद कर दिया था।


सूरज रत्ना को ब्रा का हुक लगाता देख कर और उसे ना लगा सकने की वजह से सूरज काफी उत्तेजित हो गया था और वह खुद उसकी मदद करने के लिए कमरे में घुसकर कमरे का दरवाजा बंद कर दिया था....
सूरज को इस तरह से दरवाजा बंद करता हुआ देखकर रत्ना के मन में अजीब अजीब ख्याल आने लगे वह मारे शर्म के मारी जा रही थी... जो कुछ भी उसके साथ हो रहा था इस बारे में वह कभी सपने में भी नहीं सोची थी अभी भी उसकी पीठ सूरज की तरफ थी वह शर्म के मारे नीचे जमीन को देखे जा रही थी,,, लेकिन ब्रा का हुक ना बंद होने की वजह से उसके बाजुओं में से दोनों पट्टियां लटक रही थी मानो सूरज के लिए वह अपने वस्त्र का त्याग कर रही हो अगर इस समय कोई और यह नजारा देख ले तो उसको यही लगेगा कि रत्ना सूरज के लिए अपने वस्त्र त्याग कर रही है। सूरज की आंखो में वासना की चमक साफ नजर आ रही थी उसकी आंखों में खुमारी छाई हुई थी उसके पूरे तन बदन में रत्ना के मदहोश मादक बदन का नशा छाया हुआ था। उसके धोती में गदर मचा हुआ था उसका लंड किसी भी वक्त विद्रोह करने की तैयारी में था जोकि किसी बंदूक की नाल की तरह पेंट में तना हुआ था। कुछ पल के लिए रत्ना के कमरे में एकदम सन्नाटा छा गया केवल दोनों की गहरी गहरी सांसो की आवाज ही सुनाई दे रही थी दोनों जहां थे वहीं मानो ठहर से गए थे...

रत्ना अपने बदन को कपड़ों की ओट में छुपाना चाहती थी लेकिन ना जाने क्यों वह यह सब करने में असमर्थ साबित हो रही थी... रत्ना यह बात भलीभांति जानती थी कि वह जिस तरह से जिस पोजीशन में खड़ी थी सूरज उसके बदन को लार टपका ता हुआ देख रहा होगा और उसके बदन पर ब्रा पेंटी को देख कर मन ही मन खुश हो रहा होगा...और रत्ना का यह सोचना बिल्कुल ठीक था क्योंकि यही बात सूरज के मन में भी चल रही थी...
उसे काफी प्रसन्नता हो रही थी,,,
सूरज रत्ना से करीब तीन चार कदम की दूरी पर खड़ा था लेकिन रत्ना को इतनी हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह अपनी नजर घुमाकर सूरज को देख ले... तभी सूरज अपना एक कदम आगे बढ़ाकर रत्ना की और बड़ा ही था कि उसके कदमों की आहट को सुनकर रत्ना शर्म के मारे अपने बदन को संकुचाते हुए बोली....

सससससस...... सूरज तो यहां क्या करने आया है.?

चाची आप को देखने आया हु.... (इतना कहते हुए सूरज ज्यों का त्यों वही खड़ा रह गया...)

सूरज अपनी तरफ से सफाई पेश करते समय लगातार रत्ना के खूबसूरत नंगे जिस्म को देख रहा था... जोकि लालटेन की रोशनी में संगेमरमर की तरह चमक रही थी। रत्ना को इस बात का आभास हो गया था कि सूरज इस समय उसकी बड़ी बड़ी गांड कोई देख रहा है...

मैं अच्छी तरह से जानता हूं चाची कि मुझे यह नहीं आना चाहिए था लेकिन मैं क्या करता काम ही ऐसा था,,की मुझे रात को इधर आना पड़ा,,
(रत्ना सूरज की बातें बहुत ध्यान से सुन रही थी क्योंकि वह भी मन में सोच रही थी कि हो सकता है वह जो भी बोल रहा है सच हो।) लेकिन चाची इसमें गलती पूरी आपकी है।

ममम.. मेरी इसमें मेरी गलती कहां खो गई ....(इतना कहने के साथ ही चोकने वाले अंदाज में रत्ना सूरज की तरफ घूमी तो उसे इस बात का आभास हुआ कि इस समय वह अर्धनग्न अवस्था में है लेकिन सूरज की तरफ घूमने के साथ ही उसकी ब्रा की कटोरी चूचियों पर से नीचे की तरफ गिर गई जिसे जल्दी से संभाल कर रत्ना फिर से दूसरी तरफ घूम गई रत्ना की इतनी सी हरकत पर सूरज पर मानो उत्तेजना का सैलाब टूट पड़ा... वह एकदम कामोत्तेजना से भर गया... क्योंकि ब्रा की कटोरी गिरने की वजह से सूरज की आंखों के सामने रत्ना के पके हुए पपैया अपनी औकात दिखाते हुए नजर आने लगे जिसे देख कर सूरज की आंखों में उसे पाने की चमक नजर आने लगी। सूरज अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला।


तो क्या चाची गलती सब आपकी ही है मैं तो यह से जा रहा था आप ही मुझे अपने साथ कमरे में लेकर आगाई ओर मुझे लिपटने लगी. में अपने आप कर काबू नहीं कर पाया और आपके होठ चूसने लगा चूचियां मसलने लगा,,,
(सूरज जानबूझकर कामुक शब्द पर कुछ ज्यादा ही जोर देते हुए बोला था. और इस कामुक शब्द का असर रत्ना पर बेहद गहरा हो रहा था क्योंकि सूरज के मुंह से अपने बारे में इस तरह से शब्द सुनकर उसका चेहरा शर्म के मारे लाल टमाटर की तरह हो गया था वह नजर उठाने में असमर्थ हो रही थी)

तभी रत्ना कहती है नहीं ऐसी भी कोई आदत मुझमें नहीं है मुझे लगा की तुम मेरे पति हो और अंधेर में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था,, (रत्ना शर्मा से नजरें गड़ाए हुए ही अपनी तरफ से सफाई पेश करते हुए बोली...)


लेकिन कुछ भी हो मेरे साथ साथ इसमें गलती आपकी भी है.... आपको इस तरह से आपको एसा नही करना चाहिए था,,


मुझे क्या मालूम था कि एसा हो जाएगा.....(इतना कहकर रत्ना चुप हो गई...)


जाने दो चाची जो भी हुआ यह तो मुझे नहीं मालूम अच्छा हुआ या खराब हुआ... लेकिन सब कुछ अनजाने में ही हुआ....


जो हुआ सो हुआ लेकिन सब कुछ जानने के बाद तो तुझे वापस कमरे मैं नहीं आना चहिए था,,


कैसे चाची ....कैसे आप ही बताओ कैसे...... भला मैं अपने आप पर काबू कैसे रख पाता....
(सूरज की यह बात सुनने के बाद रत्ना आश्चर्य से उसकी तरफ नजर घुमा कर देखी तो सूरजअपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोला....)

मेरा मतलब है कि चाची जरा आप खुद सोचो जब एक खूबसूरत औरत खूबसूरत जिस्म लिए हुए... और वह भी ऐसी औरत जिसे देखकर जवान लड़के तो क्या बुढो का भी दिल जोर से धड़कता हो .. अगर ऐसी औरत आंखों के सामने से एकदम नंगी होकर गुजर जाए तो भला वह मर्द क्या शांत बैठेगा उसके तन बदन में हलचल मच जाएगी...(सूरज जानबूझकर इस तरह से बेहद चालाकी से चलना की खूबसूरती की तारीफ कर रहा था और रत्ना पर इस तारीफ का असर भी हो रहा था वह अंदर ही अंदर खुश हो रही थी... उसे इस बात का आभास हो रहा था कि अभी भी उसके अंदर जवानी कायम है...)


लेकिन तू.....?


तू..... क्या .... क्या मैं मर्द नहीं हूं...? क्या एक औरत को देखकर मुझ में भावना पैदा नहीं होती और जब मेरी आंखों के सामने इतनी खूबसूरत औरत हो तो भला में कैसे अपने आप को रोक पाऊंगा.... चाची में अपने आप को रोक भी लेता लेकिन....(इतना कहकर सब हम खामोश हो गया।)

लेकिन क्या .....(रत्ना उसी तरह से शर्मिंदा होकर नीचे नजरें झुकाए हुए बोली)


लेकिन चाची अगर मैं आपको इस वक्त नंगी नहीं देखा होता तो अपने आप को रोक लेता आपको अपनी आंखों के सामने एकदम नंगी देखकर ना जाने मुझे क्या हो गया मुझे तो उम्मीद भी नहीं थी कि कपड़ों के अंदर आप इतनी खूबसूरत होगी मैं अपने आप पर बिल्कुल भी काबू नहीं कर पाया और ना चाहते हुए भी फिरसे आपके कमरे में आ गया.....
(सूरज जानबूझकर अपनी बातों के जादू में रत्ना को पूरी तरह से उलझा रहा था और रत्ना पूरी तरह से उसकी बातों में उलझ गई थी... सूरज की चिकनी चुपड़ी बातें सुनकर अंदर ही अंदर वह बहुत प्रसन्न हो रही थी.... सूरज की बातें सुनकर रत्ना के पास कहने के लिए कोई शब्द नहीं थे सूरज अपनी बातों से रत्ना को एकदम निशब्द कर दिया था.)

लेकिन चाची चाहे जो भी हो आप इस पुरानी ब्रा और पेंटी में भी बहुत खूबसूरत लग रही हो....(सूरज जानबूझकर अश्लील शब्दों का प्रयोग रत्ना के सामने कर रहा था और दो तीन दिन बाद रत्ना की बेटी की शादी थी और रत्ना अपने ही बेटे की उम्र के लड़के के सामने अर्धनग्न अवस्था में खड़ी होकर उसकी इस तरह की बातें सुनकर शर्म से गड़ी जा रही थी।)

सूरज ये क्या कह रहा है तू...मैं तेरी मां की उम्र की हूं और मुझे इस हालात में देखकर तू मेरे खूबसूरती की तारीफ कर रहा है ... क्या यह तेरे संस्कार को शोभा देते हैं...?

चाची में कोई गलत बात नहीं कह रहा हूं मेरी आंखों ने जो देखा है वह मेरी आंखों के सामने जो चीज है मैं उसकी खूबसूरती की तारीफ कर रहा हूं आखिरकार खूबसूरती की तारीफ करना कोई गुनाह तो नहीं है।


लेकिन मैं एक औरत हूं और तेरी मां की उम्र की हो तो मेरे बेटे के उम्र का है....?

खूबसूरती की कोई सीमा नहीं होती और आकर्षण उम्र के दायरे में बड़ी नहीं होती आकर्षण का दायरा उम्र और वक्त सबसे आगे होता है मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि आप मां की उम्र की है लेकिन सबसे पहले आप एक औरत है और वह भी खूबसूरत औरत....

(सूरज के मुंह से अपनी तारीफ में निकले एक एक शब्द रत्ना को अपने बदन पर मखमली एहसास करा जा रहे थे... सूरज कि कहीं एक एक बात उसके सीने में उतर जा रहे थे आज तक इस तरह की बातें उसके पति ने भी नहीं की थी सूरज अपनी मदमस्त कर देने वाली बातों से उसके कानों में शहद घोल रहा था जो कि सुनने में तो अच्छी लगी रही थी लेकिन उसका एहसास गजब का था एक अद्भुत एहसास जिसके पहलू में वह अपने आप को पिघलता हुआ महसुस कर रही थी और वास्तव में उसे अपनी टांगों के बीच की पतली दरार मै से मदन रस रिश्ता हुआ महसूस हो रहा था... जो कि उसके बदन में उत्तेजना के असर की पूर्ति कर रहा था... सूरज की बातें सुनने के बाद रत्ना उसी तरह से शर्म के मारे नजरे नीचे गड़ाए हुए बोली)


क्या सूरज तुझे जरा भी शर्म नहीं आ रही है मुझे इस हालात में यूं घूर घूर कर देखते हुए।


चाची आप यह बात अच्छी तरह से जानती हो कि गुलाब का फूल बहुत खूबसूरत है चारों तरफ से रोजाना हजारों आंखें उसे घूरती रहती हैं तो क्या उसे कोई दिक्कत होती है या किसी को वह रोक देता है कि मुझे इस तरह से मत घुरा कर...उसी तरह से चाची आप इतनी ज्यादा खूबसूरत है कि मैं अगर अपने आप को रोकने की कोशिश करू तो भी मैं शायद रुक नहीं पाऊंगा.... आपका अंग-अंग संगेमरमर की तरह चमक रहा है। आप इतनी ज्यादा गोरी है कि सही कहूं तो मेरी आंखें चमक जा रही है। इस उम्र में भी आप अपनी खूबसूरत बदन को बना कर रखी है यह बात एकदम हैरानी कर देने वाली है कहीं से भी थोड़ी सी भी लचक नहीं है... बदन का हर एक हिस्सा बेहद कसा हुआ है...

(सूरज अपने शब्दों में रत्ना की तारीफ के पुल के पुल बांधे जा रहा था और यह सुनकर रत्ना खुशी के मारे गदगद हुए जा रही थी साथ ही उसकी बुर लगातार पिघलती जा रही थी... रत्ना के लिए यह सब एक स्वप्न सा लग रहा था उसे ऐसा लग रहा था मानो वह कोई सपना देख रही है क्योंकि जो कुछ भी अब उसके साथ हो रहा था एहसास तक नहीं हुआ था सूरज एक जवान लड़का था और इस उम्र में वह एक उम्रदराज औरत की तारीफ के तारीफ किया जा रहा था उसकी खूबसूरती को लेकर उसके कसे हुए अंग के बारे में जो कुछ भी वह आज तक नहीं सुनी थी उसके कानों ने आज वह सुनकर एकदम सुन्न हुए जा रहे थे
रत्ना मारे उत्तेजना और प्रसन्नता के कारण हवा में उड़ रही थी।)

औहहह सूरज ये क्या कह रहा है तू.... इस तरह की बातें मत कर तेरी बातें सुनकर मुझे मुझे .... तो कमरे से बाहर चला जा....

चला जाऊंगा चाची लेकिन जो काम करने के लिए आया हूं पहले वह तो कर लुं....

(सूरज की यह बात सुनकर रत्ना एकदम सन्न रह गई उसे समझ में नहीं आ रहा है ताकि सूरज क्या करने के लिए अंदर आया है लेकिन इतनी बात तो वो जानती ही थी कि ऐसे हालात में एक औरत के कमरे में एक मर्द का आना किस लिए होता है और जिस तरह से सूरज बातें कर रहा था उससे साफ जाहिर था कि वह कमरे में उसी काम के लिए आया है जो कि एक मर्द ऐसे हालात में एक औरत के साथ करता है यह बात मन में सोचते ही सपना के तन बदन में उत्तेजना की चिंगारियां फूटने लगी लेकिन उसके अंदर अजीब सा डर फैलने लगा लेकिन इस डर के साथ-साथ उत्सुकता भी बढ़ती जा रही थी वह भले ही समझ रही थी लेकिन अंदर ही अंदर यही चाहती थी कि सूरज उसके साथ सब कुछ करें जो कि एक मर्द को ऐसे हालात में औरत के साथ करना रहता है...
और जिस तरह की अश्लील खुले शब्दों में सूरज मुझसे बातें कर रहा था बेशर्मो की तरफ से साफ जाहिर था कि सूरज भी उसके साथ वही करना चाहता है जो एक औरत के साथ मर्द करता है.... यह बात सुनते ही सपना के मन में ढेर सारे सवाल पैदा हो रहे थे लेकिन उन सवालों के साथ-साथ उसके तन बदन में उत्तेजना की लहर भी दौड़ रही थी उसकी टांगों के बीच कुछ ज्यादा ही हलचल मची हुई थी उसे सा महसूस हो रहा था कि उसकी बुर में से लगातार नमकीन रह रहा था जो कि उसकी पुरानी पेंटी को पूरी तरह से गीली कर रही थी.... फिर भी सूरज की बातें सुनकर रत्ना कांपते स्वर में बोली..)

कककककक.... क्या करने आया है तू...

इतना सुनते ही सूरज आगे बढ़कर रत्ना के बेहद करीब पहुंच गया और रत्ना को इस बात का एहसास हो गया कि सूरज उसके बेहद करीब खड़ा है और उसके पीछे ही इस बात का एहसास उसे अंदर तक रोमांच से भर दिया वह कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि उसके सामने इस तरह का दृश्य रचा जाएगा वह अपने ही कमरे में अर्धनग्न अवस्था में ब्रा पेंटी पहने हुए जोकि ब्रा अभी भी खुली हुई थी और ऐसे हालात में एक जवान लड़का ठीक उसके पीछे खड़ा होगा जहां से वह उसके अर्द्ध नग्न बदन को अपनी प्यासी आंखों से देखकर अपनी आंखों को सेंक रहा होगा.. इस बारे में सोचकर वह काफी उत्तेजना का अनुभव कर रही थी वहां की कुछ सोच पाती इससे पहले ही उसे महसूस हुआ कि सूरज अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर उसकी खुली हुई ब्रा की पट्टी को पकड़ लिया....
 
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कमरे का दृश्य बेहद मादक और उत्तेजना से भरा हुआ था उम्रदराज रत्ना अर्धनग्न अवस्था में खड़ी थी और ठीक उसके पीछे सूरज उत्तेजित अवस्था में खड़ा था... इस समय रत्ना के बदन पर केवल पुरानी ब्रा और पेंटी थी और ब्रा की पट्टी सूरज के हाथों में जिसकी वजह से रत्ना शर्म के मारे अपने बदन को सिकुड़ते जा रही थी लेकिन भला इससे क्या लाभ होने वाला था...
पल-पल रत्ना की हालत खराब होती जा रही थी वह कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि उसकी जिंदगी में उम्र के इस पड़ाव पर ऐसा मोड आएगा कि जब वह अपने अनजाने में बेटे से भी कम उम्र के लड़के के सामने अर्धनग्न अवस्था में खड़ी होगी और उसकी ब्रा की पट्टी उस लड़की के हाथों में होगी और वह भी एकदम बेशर्म की तरह उससे बर्ताव करेगा लेकिन ना जाने क्यों शर्मिंदगी का अहसास होने के बावजूद भी एक अजीब और अद्भुत किस्म की तृप्ति का अहसास रत्ना को अपनी आगोश मे लेकर पिघलाए जा रहा था...

सूरज की हरकत की वजह से रत्ना एकदम निशब्द हो चुकी थी उसके होठों से एक भी शब्द फूट नहीं रहे थे वह बस शर्म से नजरें नीचे किए सूरज की हरकतों का आनंद ले रही थी क्योंकि अगर ऐसा नहीं होता तो वह उसे कब से डांट कर कमरे से बाहर निकाल दी होती लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं की थी। रत्ना के दिल की धड़कन बड़ी तेजी से चल रही थी और सांसो की गति के साथ साथ उसके भारी-भरकम दोनों कबूतर ब्रा की कैद में खुली सांस लेने के लिए पंख फड़फड़ा रहे थे....
जिस तरह से सूरज रत्ना के बेहद करीब खड़ा था उसकी धोती में बना तंबू महज ५,६ अंगुल की दूरी पर ही था जहां पर वह अपनी कमर को हल्का सा आगे की तरफ बढ़ाकर रत्ना की मदमस्त तरबूज जैसी गांड का स्पर्श कर सकता था। लेकिन सूरज अपने आप को बहुत ही रोक कर रखा था वरना ऐसे हालात में किसी भी मर्द को अपने ऊपर सब्र कर पाना नामुमकिन सा होता है,,

रत्ना बला की खूबसूरत तो थी लेकिन कामुक बदन वाली मदमस्त खूबसूरत बदन के कटा वाली औरत अगर अर्धनग्न अवस्था में किसी मर्द के आंखों के सामने और उसके बेहद करीब हो तो उससे भला कैसे संभव होगा वह तो कब से अपनी बाहों में लेकर उसके खूबसूरत बदन की खुशबू को अपने अंदर महसूस करने लगेगा लेकिन सूरज अपने आप पर काबू करके रत्ना की ब्रा की पट्टी को दोनों हाथों से पकड़कर उसे हल्का सा खींचकर उसके हुक को लगाने की कोशिश कर रहा था।
रत्ना को अपने आप पर बहुत ही ज्यादा शर्म आ रही थी क्योंकि उसके बेटे से भी कम उम्र का लड़का कमरे में खड़ा था और वह अर्धनग्न अवस्था में ब्रा और पेंटी की आड़ में अपने मदमस्त बदन को छुपाने की भरपूर कोशिश कर रही थी लेकिन उसके बेटे से कम उम्र का वह लड़का ठीक है उसके पीछे खड़े होकर उसकी ही ब्रा की पट्टी को पकड़कर हुक लगाने की कोशिश कर रहा था,,,,


यह एक संस्कारी औरत के लिए शर्म से डूब जाने वाली बात होती है लेकिन रत्ना इस समय ना जाने क्यों शर्मिंदा होने के बावजूद भी सूरज की हरकतों का आनंद ले रही थी जब कि वह पूरी तरह से खुली नहीं थी लेकिन फिर भी अंदर ही अंदर उसका मन मचल रहा था और एक तरफ उसे शर्मिंदगी भी महसूस हो रही थी उसके तराजू के दोनों पलड़े अपनी-अपनी जगह पर भारी थे लेकिन अपनी खुशी तन की सुख और वासना के आगे संस्कार का पलड़ा बेहद हल्का होता जा रहा था मर्यादाओं की डोर टूटती जा रही थी उम्र की सीमा मिट्ती जा रही थी... कमरे के अंदर के हालात बदलते जा रहे थे...
सूरज के तन बदन में उत्तेजना किनार इतनी तीव्र गति से हो रही थी कि मानो उसके तन बदन में बवंडर से उठ रहा हो धोती में लंड अलग से गदर मचाए हुए था। जो कि रणसंग्राम में उतरने के लिए उतारू था। उसका बस चलता तो आप तक ना जाने कबसे धोती फाड़ कर बाहर आ गया होता क्योंकि उसकी आंखों के सामने ही उसे अपनी मंजिल महसूस हो रही थी उसकी खुशबू महसूस हो रही थी तभी तो सूरज का लंड रत्ना की बुर के अधीन होकर लार पर लार टपका रहा था जिससे सूरज का लंगोट गिला होते जा रहा था...

हाथों में ब्रा की पट्टी लिए वह हुक लगाने के लिए कशमकश जद्दोजहद में लगा हुआ था सूरज का भी शायद यह पहली बार ही था कि जब हम किसी औरत की ब्रा की पट्टी का हुक लगा रहा हो इसलिए उसे भी इसमें सफलता जल्दी प्राप्त नहीं हो पा रही थी लेकिन वह जानता था कि अगर नहीं हुक लगा पाया तो रत्ना के सामने उसे शर्मिंदा होना पड़ेगा इसलिए वह एक बार फिर से थोड़ा जोर लगाकर पीछे की तरफ खींच कर हुक से हुक भीड़ा कर बड़ी आसानी से लगा दिया.... सूरज के चेहरे पर विजई मुस्कान खिल उठी क्योंकि उसे सफलता प्राप्त हो चुकी थी...
रात के समय में रत्ना कमरे में और इस हालात में पहुंचकर सूरज को अपनी मंजिल बेहद करीब नजर आने लगी थी रत्ना को ठीक तरह से देखना चाहता था इसलिए.... वह घूम कर रत्ना के ठीक सामने जाकर खड़ा हो गया उसे देख कर मुस्कुराने लगा पल भर के लिए रत्ना अपनी नजर को ऊपर उठाकर सूरज की तरफ देखी और उसे मुस्कुराता हुआ देखकर शर्म से पानी पानी हो गई.. वह एक बार फिर से अपने बदन को सिकुड़ने लगी क्योंकि मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे कोई पति अपनी पत्नी को धीरे-धीरे वस्त्र विहीन करते हुए नग्न अवस्था के करीब ले जा रहा हो और उसे चारों तरफ से घूर घूर कर देख रहा हो।। रत्ना कि यह सोच उसे शर्मिंदा कर रही थी वह शर्म के मारे अपनी नजरें फिर से नीचे करके अपने आपको सूरज की प्यासी नजरों से बचाने की भरपूर कोशिश करने लगी लेकिन यह कोशिश बिल्कुल नाकाम थी क्योंकि सूरज के सामने इस समय व एकदम खुली किताब की तरह थी जिसके एक एक शब्द को वह अपनी निगाहों से पढ़ रहा था।शायद ही हो स्कूल में स्कूली किताबों को इतना पढ़ा नही होगा जितना कि वह औरतों की जिंदगी उनके भूगोल के बारे में पढ़ चुका था....
रत्ना को साफ नजर आ रहा था कि सूरज के धोती का तंबू एकदम तना हुआ है और उस पर नजर पड़ते हैं रत्ना की टांगों के बीच का वह गुलाबी छेद फुदकने लगा... मानो कि उसे एहसास हो गया हो की बुर का गुलाबी छेदा सूरज के मोटे तगड़े लंड से चौड़ा होने वाला है यह एहसास बुर के छेद से मदन रस की बुंद निकालने के लिए काफी था और उसी समय ही उसकी गुलाब की पत्तियों से घिरी हुई बुर के अंदर से मदन रस की दो बूंद चु गई जो की पेंटी को गीला कर गई....

उत्तेजना के मारे सूरज का गला सुखता जा रहा था... वह अच्छी तरह से जानता था कि धोती में बने तंबू को रत्ना चोर नजरों से देख रही है लेकिन फिर भी वह अपने धोती में बने तंबू को छिपाने के लिए जरा भी दरकार नहीं लिया....
क्योंकि वह यही चाहता था कि रत्ना उसके धोती में बने तंबू को देखकर उसकी मर्दाना ताकत के अधीन हो जाए। और ऐसा हो भी रहा था रत्ना सूरज के धोती में बने तंबू को देखते ही उत्तेजित हो गई थी वह कल्पना में सूरज के मोटे तगड़े लंड को धोती से बाहर निकाल कर हीलाना शुरू कर दी थी... एक तरफ वो शर्म से पानी पानी हो जा रही थी अब दूसरी तरफ सूरज की हरकत की वजह से कामोत्तेजना का अनुभव कर रही थी.....

सूरज उसके ठीक आगे खड़े होकर ऊपर से नीचे आंखे भर भर कर उसे देख रहा था।‌ एक पराए मर्द और वह भी उसके लड़के की उम्र का लड़के को इस तरह से अपना नंगा बदन घुर घुर कर देखता हुआ पाकर ऊसे शर्मिंदगी महसूस हो रही थी और वह धीरे से बोली.....

सूरज तुझे यहां नही आना चाहिए था... कोई देखेगा तो क्या सोचेगा....(यह बात कह कर रत्ना जो यकीन दिला दी थी कि सूरज के लिए रास्ता एकदम साफ है क्योंकि वह अंदर से यही चाहती थी कि सब कुछ अच्छे से हो जाए और किसी को पता भी ना चले सूरज रत्ना की यह बात को पकड़ते हुए बोला..)

चाची इस अंधेरी रात में सब लोग अपने अपने घरों में सो रहे होंगे,,



लेकिन फिर भी....( इतना कहकर रत्ना खामोश हो गई और सूरज अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला)


कुछ भी हो चाची मैंने आज तक तुम्हारी जैसी उम्र की औरत को इतनी खूबसूरत कभी नहीं देखा...(रत्ना को ऊपर से नीचे की तरफ देखते हुए) इस उम्र में भी कसा हुआ बदन कहीं भी अधिक चर्बी तक नहीं है....(रत्ना के गोल गोल चक्कर काटते हुए)सच कहूं तो चाची एकदम कयामत लगती हो हुस्न की मलिका खूबसूरती की मिसाल.....


यह क्या कह रहा है सूरज थोड़ा सा तो लाज कर मैं तेरी मां की उम्र की हुं...( रत्ना फिर से शर्म से दबे हुए स्वर में बोली.)

मैं अच्छी तरह से जानता हूं चाची की आप मां की उम्र की है लेकिन तुम्हारी खूबसूरती और बदन की बनावट कसा हुआ बदन देखकर नहीं लगता कि आप मां की उम्र की है....
(सूरज अपनी बातों के जाल में रत्ना को फंसाते हुए बोला रत्ना सूरज की चुभती हुई निगाहों की वजह से शर्म से गड़ी जा रही थी। लेकिन फिर भी सूरज की यह बातें उसे बहुत अच्छी लग रही थी.... रत्ना निशब्द होकर सूरज की बातें सुन रही थी और रत्ना के चेहरे के बदलते हुए भाव को देखकर सूरज अच्छी तरह से समझ रहा था कि रत्नाके मन में क्या चल रहा है इसी बीच ऊसे युक्ति सूझी.. )



उत्तेजना के मारे सूरज का गला सुखता जा रहा था... वह अच्छी तरह से जानता था कि धोती में बने तंबू को रत्ना चोर नजरों से देख रही है लेकिन फिर भी वह अपने धोती में बने तंबू को छिपाने के लिए जरा भी दरकार नहीं लिया....क्योंकि वह यही चाहता था कि रत्ना उसके धोती में बने तंबू को देखकर उसकी मर्दाना ताकत के अधीन हो जाए। और ऐसा हो भी रहा था रत्ना सूरज के धोती में बने तंबू को देखते ही उत्तेजित हो गई थी वह कल्पना में सूरज के मोटे तगड़े लंड को धोती के बाहर निकाल कर हीलाना शुरू कर दी थी...

अपनी इस युक्ति को आजमाने के लिए भी सूरज का दिल जोरों से धड़क रहा था क्योंकि अब वह वह हरकत करने जा रहा था शायद रत्ना को भी इसका अंदाजा नहीं था.... रत्ना तो कशमकश मैं पड़ी हुई थी उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करना है क्या नहीं करना है वह केवल मूर्ति बनी वहां खड़ी थी और ऐसी वैसी मूर्ति नहीं काम देवी की मूर्ति जिसके अंग अंग से मदन रस टपक रहा था जिसका हर एक अंग तराशा हुआ था गुलाबी होंठ गुलाब की पंखुड़ियों की तरह एकदम ताजा लग रहे थे नैन नश्क अद्भुत बनावट की कारीगरी थी छाती की शोभा बढ़ा रहे दशहरी आम पपाया के साइज के थे जिसे देखते ही सूरज के उम्र के लड़के ऊसे पकड़कर झुलने की इच्छा रखते थे...

मोटी मोटी चिकनी जांगे मानो केले के मोटे तने की तरह मांसल और चमक रही थी... और नितंबों का घेराव किसी गांव के बीच के तालाब की तरह पूरे अंग की शोभा बढ़ा रही थी.... और सबसे बेहतरीन कारीगरी का नमूना तो रत्ना की दोनों टांगों के बीच के उस रेशमी बालों के झुरमुट में छुपी हुई उसकी रसीली बुर थी मानव हरे हरे जंगल के बीच कोई नहर गुजर रही हो... कुल मिलाकर इस समय वह काम की देवी लग रही थी। जिसको देखकर ही सूरज के तन बदन में काम भावना प्रकट हो रही थी। रत्ना की सांसे ऊपर नीचे हो रही थी वह उसी स्थिति में खड़ी थी...लेकिन बार-बार उसकी नजर सूरज के धोती में बने तंबू की तरफ चली जा रही थी और उस तंबू को देख कर उसके तन बदन में भी हलचल मच रही थी‌।

रत्ना के बड़े बड़े दूध को देखकर सूरज के सूखे गले में नमी पैदा होने लगी उसके मुंह में पानी आ रहा था और उसे छूने के लालच में अपने अंदर दबा नहीं पाया और इसीलिए अपनी युक्ति को आजमाने के लिए अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर थोड़ा सा दबी हुई ब्रा के कप को ऊपर से पकड़ कर उसे नीचे की तरफ खींच कर सही करने लगा.... और रत्ना सूरज की उंगलियों का स्पर्श अपनी मदमस्त चुचियों पर महसूस करते ही एकदम से सिहर उठी और ना चाहते हुए भी उसके मुख से हल्की सी सिसकारी की आवाज निकल गई.... सूरज अपनी इस हरकत की वजह से पूरी तरह से गर्मा गया था हल्की सी चूची का नरम स्पर्श पाकर उसके तन बदन में आग लग गई थी...

चाची यह ब्रा का ठीक से पहना हुआ नहीं है मेरा मतलब है कि इसमें तुम्हारे दूध समा नहीं पा रहे हैं....(दूध शब्द का प्रयोग करके सूरज सीधे-सीधे अपनी बातों का काम बाण रत्ना के ऊपर दाग दिया था... और रत्ना भी सूरज के इस काम बाण का प्रहार अपने ऊपर से नहीं पाई और वक्त चारों खाने चित हो गई उसे उम्मीद नहीं थी कि सूरज इतने खुले शब्दों में उसके अंग के बारे में कह देगा दूध शब्द सुनते ही उसके तन बदन में अजीब सी हलचल होने लगी चेहरे पर शर्म की लाली मचाने लगे मानो रत्ना शर्मिंदगी से पानी पानी हुए जा रही है उसके चेहरे के बदलते भाव उसकी कहानी कह रहे थे.. ‌ फिर भी वह कुछ भी कहने के काबिल नहीं दिखाई दे रही थी वह केवल सूरज की हरकत और उसकी बातों को सुन रही थी जवाब देने में हुआ एकदम असमर्थ नजर आ रही थी....
रत्ना के द्वारा इतनी अश्लील शब्द सुनने के बावजूद भी किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया ना होते देखकर सूरज की हिम्मत बढ़ने लगी और वह एक कदम आगे बढ़कर रत्ना के बेहद करीब खड़ा हो गया और अपने दोनों हाथ सल्ला के पीछे की तरफ ले जाकर ब्रा के हुक को खोलते हुए बोला. ।).

चाची यह ब्रा एकदम पुरानी हो गई है इसलिए शायद आपको पहनने में तकलीफ हो रही है लाईए मैं इसे ठीक से पहना देता हूं....(रत्ना कुछ बोल पाते इससे पहले ही सलाह का जवाब सुने बिना ही वह ब्रा के हुक को खोल दिया था जिससे एक बार फिर से रत्ना के दोनों कबूतर को अपनी आगोश में लिए हुए उसकी ब्रा एक बार फिर ढीली हो गई...लेकिन इस दौरान सूरज रत्ना के इतने करीब आ गया था की रत्ना के नथुनो से निकल रही गर्म हवा सूरज अपने चेहरे पर एकदम साफ महसूस कर रहा था जिसके बदौलत वह इतना ज्यादा चुदवासा हो गया था कि उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा था। कई औरतों की संगत में आकर सूरज बेहद चालाक हो गया था इसलिए मैं एक बार फिर से रत्ना के अंग पर से ब्रा को अलग कर दिया जिसकी वजह से रत्ना पुनः कमर के ऊपरी हिस्से से एकदम नग्न हो गई रत्ना की बड़ी-बड़ी चूचियां एक बार फिर से सीना ताने सूरज को चुनौती देने लगी चूची की गोल-गोल ब्राउन कलर की निप्पल चॉकलेट की तरह सूरजको ललचाने लगी...

उसे देख कर सूरज की धोती में हलचल होने लगी बार-बार वह एक हाथ से रत्ना की आंखों के सामने अपने तने हुए लंड को धोती में एडजस्ट करने की कोशिश कर रहा था जो कि इसकी हरकत जानबूझकर ही हो रही थी वह रत्ना को यह अपनी हरकत दिखाना चाहता था और रत्ना सूरज की यह हरकत को चोर नजरों से देख ले रही थी।
रत्ना के दोनों दशहरी आम जिसे सूरज अपने हाथ से जोर जोर से दबा रहा था और उसे मुंह में भरकर पीने की इच्छा रखता था

सूरज जान बूझकर रत्ना की चूचियों को वस्त्र विहीन करके उसकी ब्रा को इधर-उधर करके उसे ठीक करने के बहाने रत्ना की चुचियों का दीदार कर रहा था ऐसा लग रहा था मानो वह रत्ना की मदमस्त चूचियों के दर्शन करके एकदम धन्य हो गया हो उसकी गर्म गर्म सांसे रत्नाके चेहरे पर भी अपनी आभा छोड़ रही थी... जिससे रत्ना के गोरे गाल सुर्ख लाल होते जा रहे थे.... सूरज के जी में आ रहा था कि वह रत्ना के दोनों चूचियों को अपने हाथ में भरकर उसे बारी-बारी से मुंह में लेकर गन्ने की रस की तरह पी जाए.... जिसमें सेहत से भरपूर सारे तत्व मौजूद थे और एक मर्द को उसके मर्दाना ताकत में बढ़ोतरी करने के सारे गुण थे जो कि इस समय देखकर ही सूरज की मर्दाना ताकत में इजाफा हो रहा था वह निरंतर अपने अंदर काम शक्ति महसूस कर रहा था....

अब ठीक हो गया है चाची .... लाओ में ईसे अपने हाथों से आप को पहना देता हूं ... (और इतना कहने के साथ ही सूरज इतना ज्यादा बेशर्म हो गया कि रत्ना को इसकी उम्मीद ही नहीं थी वह अपने हाथ से रत्ना की एक चूची को पकड़कर ब्रा के कप में भर दिया और यही हरकत वह दूसरी चूची के साथ भी किया......

सससहहहहहहह ..... सूरज यह तू क्या कर रहा है....(सूरज की हरकत की वजह से रत्ना एकदम मस्त होते हुए गरम सिसकारी के साथ बोली...) तू चला जा मैं अपने हाथ से पहन लूंगी और इतना कहने के साथ एक बार फिर से वहां सूरज को कमरे से बाहर चले जाने के लिए बोल रही थी और लगभग सूरज के हाथों से अपनी ब्रा लेने की कोशिश कर ही रही थी कि सूरज फिर से उसकी ब्रा पर अपना कब्जा जमाते हुए बोला....)

मैं हूं ना चाची और मेरे होते हुए आपको यह सब के लिए तकलीफ उठाने की जरूरत नहीं है मैं जानता हूं कि यह पुराने जमाने की बनी हुई ब्रा है इसे अच्छी तरह से पहनना चाहिए वरना तकलीफ दे देती है...(इतना कहने के साथ ही सूरज एक बार फिर से रत्ना के दिलो-दिमाग से खेलने लगा उसके हाथों में एक बार फिर से उसकी ब्रा आ गई थी जिसे वह एक बार फिर से उसी तरह से रत्ना की बड़ी-बड़ी चुचियों को बारी-बारी से पकड़कर ब्रा के कप में डालने लगा जो की उसकी संपूर्ण चूचियों को अपने आगोश में ले सकने में असमर्थ थी...सूरज जिस तरह से रत्ना की चूची को अपनी हथेली में पकड़ रहा था वह हल्के हल्के उसे दबा भी रहा था जिसका हवा रत्ना को अच्छी तरह से हो रहा था और सूरज की यह हरकत की वजह से रत्ना एकदम कामोत्तेजना के सागर में डूबने लगी थी उसकी आंखें बंद होने लगी थी वह निशब्द होकर उसी अवस्था में खड़ी थी... सूरज एक तरह से रत्ना के अंग के साथ मनमानी कर रहा था उसे ब्रा पहनने के बहाने वह रत्ना की चुचियों को दबाने का आनंद लूट रहा था लेकिन यह आनंद केवल सूरज को ही प्राप्त नहीं हो रहा था इसमें रत्ना भी शामिल थी उसकी मर्जी शामिल थी वरना अगर ऐसा ना होता तो उसके लड़के के उम्र का सूरज इतनी ज्यादा छुट नहीं ले सकता था ..

लेकिन इसमें उसकी मर्जी थी तभी तो वह निशब्द होकर समझता में खड़ी थी और सूरज की हरकतों का आनंद ले रही थी क्योंकि अंदर ही अंदर वह भी यही चाहती थी कि वह सूरज को इजाजत नहीं देगी लेकिन सूरज अगर आगे बढ़ेगा तो वह उसे रोकेगी नहीं और अभी यही हो भी रहा था ब्रा पहनने के बहाने से वह मनमानी कर रहा था उसके दशहरी आम को अपने दोनों हाथों से दबा दबा कर सूरज चूची मर्दन का आनंद लूट रहा था रत्ना की भी सिसकारी की आवाज बदलते जा रही थी.... सूरज रत्ना के दोनों कबूतरों को बारी-बारी से पकड़ कर पिंजरे में डाल दिया और एक बार फिर से वहां रत्ना के पीछे खड़े होकर रत्ना की ब्रा के हुक को लगाने लगा लेकिन इस बार वह रत्ना के बदन से कुछ ज्यादा ही करीब सट गया था लेकिन अभी भी उसके धोती में बने तंबू और रत्ना की मदमस्त गांड के घेराव के बीच दो अंगुल की दूरी रह गई थी जिसे सूरज सांस लेने के दरमियान ही पूरी कर सकता था। लेकिन वह चाहता था कि रत्ना अपनी गांड को खुद ही उसके धोती में बने तंबू से स्पर्श कराएं। और रत्ना को इस बात का आभास हो गया था कि सूरज उसके बदन से बेहद करीब सटा हुआ है क्योंकि उसकी सांसो की गर्माहट उसे अपनी गर्दन पर महसूस हो रही थी और सूरज की गर्म सांसों को महसूस करके रत्ना का खूबसूरत मादक बदन कसमस आने लगा था और इसी कसमस आहट में रत्ना के बदन में हल्की सी हलचल हुई और वह अपनी मदमस्त गांड को अनजाने में ही पीछे की तरफ सरका दी.....

ससससससहहहहहह ..... आहहहहहहहहह.....(अगले ही पल रत्ना के मुख से ना चाहते हुए भी गर्म सिसकारी फूट पड़ी उम्र के इस पड़ाव पर पहुंच चुकी रत्ना को यह समझते देर नहीं लगी कि उसके भारी-भरकम गांड से जो कठोर चीज टकराई है वह सूरज का मोटा तगड़ा लंड है और इस बात का आभास होते ही रत्ना का पूरा बदन अनजान रोमांच से एकदम से सिहर उठा..... वह झट से अपनी गांड को आगे की तरफ खींच ली लेकिन सूरज अपना काम जादू चला चुका था और रत्ना सूरज के इस काम बाण से एकदम विवश हो गई थी वह गरम गरम सांसे लेते हुए अपनी उत्तेजना को शांत करने की कोशिश कर रही थी लेकिन जिस में वह संपूर्ण रूप से नाकामयाब होती जा रही थी... मोटे तगड़े लंड की चुभन अपनी मदमस्त गांड पर करके वह एकदम से मस्त हो चुकी थी उसे पल भर में इस बात का आभास हो गया कि जब सूरज का लंड धोती में होने के बावजूद भी उसका स्पर्श इतना जबरदस्त है तब जब वह अपना पूरा का पूरा लंड उसकी बुर की गहराई में उतारेगा तब उसे कितना मजा आएगा...

सूरज जानबूझकर में ब्रा के हुक को ठीक से लगा नहीं रहा था क्योंकि वह जानता था अगर ब्रा का हुक ठीक से लग जाएगा तब यह पल उसकी पकड़ से दूर हो जाएगा और वह इस पल को अपनी पकड़ से दूर जाने नहीं देना चाहता था इस पल को वह पूरी तरह से जी लेना चाहता था और शायद यही कशमकश रत्ना के दिलो-दिमाग पर भी छाया हुआ था क्योंकि सूरज की मर्दाना ताकत को अपने नितंबों पर महसूस कर चुकी रत्ना एक बार फिर से सूरज के मर्दाना अंग को अपनी मदमस्त गांड पर स्पर्श कराना चाहती थी...
जबकि वह पहले ही इस बात का निश्चय कर चुकी थी कि आगे से वह कुछ भी ऐसा काम नहीं करेगी जिससे सूरज को उसकी तरफ से खुली छूट मिल जाए लेकिन जिस तरह का स्पर्श जिस तरह की गर्माहट उसने अपने नितंबों पर महसूस की थी और उस गर्माहट का असर उसे उसकी झनझनाहट का असर उसे अपनी बुर तक महसूस हुआ था एक बार फिर से वह उसी स्पर्श को महसूस करना चाहती थी....

इसलिए एक बार फिर से अंजाना बनाने का नाटक करते हैं फिर से अपनी भारी-भरकम मदमस्त गांड को पीछे की तरफ हल्का सा ले आई और सूरज तो इसी ताक में ही था व नीचे की तरफ ब्रा का हुक लगाते हुए देख रहा था और उसकी आंखों के सामने ही रत्ना अनजान बनने का नाटक करते हुए एक बार फिर से अपनी मदमस्त गांड पर सूरज के मोटे तगड़े लंड की चुभन को महसूस कर गई। इस बार मोटे तगड़े लंड का स्पर्श उसे पूरी तरह से उत्तेजित कर गया और उसकी बुर से मदन रस की बुंद टपकने लगी..
इस उत्तेजक स्पर्श से वह पूरी तरह से कम उत्तेजित हो गई और सूरज की भी यही हालत थी पहली बार वह अपने धोती में बने तंबू पर रत्ना की मदमस्त बड़ी-बड़ी गांड का स्पर्श महसूस कर रहा था। वह पूरी तरह से मदहोश होने लगा था उसके बदन में कपकपी सी उठ रही थी और वह चाहकर भी ब्रा का हुक बंद करने में असफल होता जा रहा था क्योंकि इतनी मादक स्पर्श से उसकी ऊंगलियां कांप रही थी....

सूरज की सांसे गहरी हो चली थी और उसकी गहरी सांसो की गर्मी रत्ना को उसके गर्दन पर उसमें प्रदान कर रही थी जिससे उसका पूरा बदन जल रहा था कामाग्नि में तप रहा था इस उम्र में भी उत्तेजना की कोई सीमा नहीं होती इस बात को पूरी तरह से रत्ना के बदन की हलचल साबित कर रही थी.... टांगों के बीच की कचोरी में से लगातार चटनी नुमा मदन रस गिर रहा था .. और अगर किसी को मौका मिल जाए तो वह रत्ना की फूली हुई कचोरी जैसी बुर में से गिर रहे मदन रस की एक भी बूंद को जाया ना होने दें उसे वह जीभ से चाट कर अपने आप को तृप्त कर ले लेकिन यह मौका दूसरों को तो नहीं लेकिन सूरज को जरूर प्राप्त होने वाला था...

रत्ना की सोच बदलते जा रही थी... पूरे कमरे का वातावरण जिस तरह से कामोत्तेजना के असर में रंगने लगा था... उसे देखते हुए किसी भी वक्त दोनों के बीच शारीरिक संपर्क स्थापित होने की उम्मीद नजर आने लगी थी सूरज के हाथ अभी भी कांप रहे थे जोकि इसमें रत्ना का ही हाथ था क्योंकि एक से एक खूबसूरत औरतों को भोग चुका सूरज रत्ना की इस हरकत की वजह से पूरी तरह से कामोत्तेजना के परम शिखर पर पहुंच गया था...रत्ना जिस तरह से जानबूझकर अपनी मदमस्त गोल-गोल गांड को पीछे की तरफ करके उसके लंड का स्पर्श कर रही थी... उसे देखकर सूरज का धैर्य खोने लगा था लेकिन अभी भी वह अपने आप को संभाले हुए था....

सूरज ब्रा की पट्टी पकड़े एक बार फिर से उसके हुक लगाने की तैयारी कर रहा था और दूसरी तरफ रत्ना गर्माहट भरे मर्दाना अंग का स्पर्श पाकर पूरी तरह से गर्मा गई थी और एक बार फिर से उसके मन में उस मर्दाना अंग के स्पर्श के लिए लालच उभरने लगी थी और इस बार फिर से वह अपनी वही हरकत दोहराते हुए अपनी गोल-गोल गांड को हल्के से पीछे की तरफ ले गई... और इस बार सूरज से रहा नहीं गया जैसे ही सूरज के धोती में बना तंबू किसी भाले की नोक की तरह रत्ना की मदमस्त गांड पर स्पर्श हुआ सूरज का सब्र का बांध एकदम से टूट गया और वह अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर अपने दोनों हथेलियों को रत्ना के दोनों कबूतर पर रखकर अपनी कमर को आगे की तरफ सरका दिया....
सूरज का जबरदस्त तना हुआ मोटा तगड़ा लंड तंबू की शक्ल में इस बार रत्ना की पेंटी के बीचो-बीच गांड की दरार में घुस गया .. सूरज की तरफ से इस तरह की हरकत होगी रत्ना को इसका बिल्कुल भी ख्याल नहीं था और अनजाने में इस तरह से हुए सूरज की तरफ से इस प्रतिक्रिया की वजह से वह एकदम से सिहर उठी क्योंकि धोती में होने के बावजूद भी सूरज के लंड में कुछ ज्यादा ही ताकत थी... जिसकी वजह से सूरज के पेंट धोती बना हुआ तंबू रत्ना की पेंटिं सहित गांड की दरार में घुसने लगा था.... और इतने से रत्ना की गरम सिसकारी फूट पड़ी....

ससससससहहहहहह ...... आहहहहहहह.... सूरज यह क्या कर रहा है छोड़ मुझे.....(इतना कहने के बावजूद भी जिस तरह से सूरज ने अपनी हरकत दिखाया था सलाह पूरी तरह से मस्त हो गई थी एक तो पीछे उसके धोती में बना था वह उसकी मदमस्त गांड से खिलवाड़ कर रहा था और उसके दोनों हाथ उसके दोनों कबूतरों से खेलें रहे थे जिसकी वजह से रत्ना एकदम मस्त होने लगी थी लेकिन फिर भी ऊपरी मन से सूरज की इस हरकत का विरोध करते हुए उसे दूर हटने के लिए कह रही थी।)
छोड़ मुझे हरामी ऐसा कोई करता है क्या मैं तेरी मां की उम्र की हूं....


मैं जानता हूं चाचा लेकिन क्या करूं तुम्हारी हरकत की वजह से मैं एकदम गरम हो गया हूं....(सूरज लगातार अपनी मर्दाना ताकत की रगड़ से उसकी गोल-गोल गांड पर कहर ढा रहा था और अपने दोनों हाथों की कलाबाजी दिखाते हुए उसके दशहरी आम को जोर जोर से दबा रहा था जो कि अभी भी बुरा की कैद में थे लेकिन फिर भी रत्ना सूरज की इस हरकत की वजह से मस्त हुए जा रही थी...)

सूरज छोड़ मुझे मैंने कौन सी हरकत कर दी कि तु इतना पागल हुए जा रहा है...( रत्ना लगातार सूरज की पकड़ से आजाद होने की कोशिश करते हुए बोली)

चाची ......यह तुम्हारी मदमस्त...... गांड..... जो तुमने इसे गोल गोल घुमा कर मेरे लंड से सटाई मेरी तो हालत खराब हो गई सच में तुम बहुत खूबसूरत हो चाची.....(सूरज एकदम मादक स्वर में सिसकारी लेते हुए बोला... और अपनी हरकतों को लगातार जारी रखा जिसकी वजह से रत्ना पर खुमारी छाने लगी थी...)

सूरज तू पागल हो गया है क्या यह कैसी बातें कर रहा है इतनी गंदी बातें क्या तुझे शर्म नहीं आती मेरे सामने इस तरह की गंदी बातें करते हुए....(रत्ना फिर से ऊपरी मन से अपने आपको सूरज की पकड़ से छुड़ाने की कोशिश करने लगी और उसके द्वारा कही गई अश्लील बातों के लिए उस पर गुस्सा करने लगी जो कि वह भी ऊपरी मन से कह रही थी अंदर ही अंदर सूरज की यह बातें सुनकर उसके बदन में जवानी की चिंगारी फूटने लगी थी।)

कैसी गंदी बातें चाची मुझे तो इसमें किसी भी प्रकार की गंदगी नहीं लग रही है मैं जो कुछ भी कह रहा हूं सच कह रहा हूं...(सूरज इस दौरान रत्ना के दोनों कबूतरों को अपनी हथेली में लेकर जोर जोर से दबाते हुए अपने होंठों का स्पर्श उसके नाजुक कोमल गर्दन पर कर रहा था जिससे रत्ना के तन बदन में मदहोशी चाह रही थी क्योंकि सूरज भी बात अच्छी तरह से जानता था कि औरतों को गर्दन पर चुंबन करने से औरतें एक दम मस्त हो जाती है और वही रत्ना के साथ भी हो रहा था..) मेरे तन बदन में जो काम भावना जागी है यह सिर्फ आपकी बदौलत है....


क्या बकवास कर रहा है सूरज...?

मैं बकवास नहीं कर रहा हूं चाची....(रत्नाके दोनों दशहरी आम से खेलते हुए...)मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि आप बहुत खूबसूरत हो लेकिन आप ने अनजाने मुझे पकड़कर कमरे में लाकर जो हरकत की है अब मुझसे रहा नही जा रहा है,
(इतना कहते हुए सूरज अपनी कमर का जोर रत्ना की मदमस्त गांड पर बढ़ाया तो रत्ना के मुंह से हल्की सी चीख निकल गई क्योंकि सूरज का मोटा तगड़ा लंड तंबू के साथ पेंट सहित और ज्यादा गांड की गहराई में घुस गया....)
आहहहहहहह..... सूरज....

क्या हुआ चाची....?(सूरज अनजान बनते हुए बोला)

तेरा वो चुभ रहा है.....

यह तो अपनी गांड मेरी तरफ परोसने से पहले सोचना चाहिए था चाची....
(सूरज सब कुछ खुले शब्दों में बोल रहा था वह एकदम बेशर्मी पर उतर आया था क्योंकि उसने रत्ना की नाल परख लिया था वह समझ गया था कि यह प्यासी औरत है.. इसलिए वह रत्ना से गंदे शब्दों में बातें कर रहा था जो कि रत्ना को अच्छा ही लग रहा था गांड परोसने वाली बात पर तो रत्ना शर्म से पानी पानी हो गई उसका चेहरा सुर्ख लाल हो गया सूरज की बात सुनकर उसके चेहरे की रंगत उड़ने लगी और वह अपनी तरफ से सफाई पेश करते हुए बोली)

यह बकवास है सूरज यह सब अनजाने में हुआ था मैं जान बूझकर तुम से सटी नहीं थी।

मैं इतना पागल नहीं हूं चाची मैं औरतों की नस नस से वाकिफ हूं चाची तुम्हारी उम्र की औरत नंगी होकर इतनी खूबसूरत लगती होगी आज मैं पहली बार अपनी आंखों से देख रहा हूं तभी मुझे विश्वास हो रहा है....

ससससहहहह.... सूरज यह क्या कर रहा है ऐसा मत कर...
(रत्ना के मुख से एकदम गर्म सिसकारी फूट पड़ी थी क्योंकि सूरज अपना एक हाथ उसके मखमली चिकनी पेट पर घुमाने लगा था)

तू कितना बेशर्म है एक औरत को इस हालत में देखकर नजर हटाने की जगह उस पर कपड़े डालने की जगह आंखें भर भर कर देख रहा था।

पागल है वह लोग जो औरत की खूबसूरती को अपनी आंखों से उसके नग्न अवस्था में देखकर नजर फेर लेते हैं सच कहूं तो चाची मेरा इस तरह से तुम्हारे घर पर आना सफल हो गया या यूं कह लो कि मेरा जीवन धन्य हो गया तुम्हारे नंगे बदन को देख कर मेरी जो हालत हो रही है वह शायद आप नहीं समझ पा रही हो,,,,
(सूरज की हथेलियों का जादू रत्ना के तन बदन पर छाने लगा था... मदहोश होने लगी थी आगे पीछे दोनों तरफ से वह सूरज की हरकतों का आनंद ले रही थी अपनी गांड में सूरज के मोटे तगड़े लंड को तंबू की शक्ल में महसूस करके इतना तो समझ ही गई थी कि वास्तव में सूरज का मोटा तगड़ा लंड काफी दमदार है।)


मैं सब समझ पा रही हूं सूरज तुम्हारे जैसे लड़के इस उम्र में नादानी कर बैठते हैं मैं तुम्हारी मां की उम्र की हूं और तुम्हारे ऊपर इस समय आकर्षण का जादू सवार हो गया है इस आकर्षण से बाहर आओ तब तुम समझ पाओगे कि मेरी उम्र और तुम्हारी उम्र में कितना फर्क है मुझे छोड़ो और अपने घर चले जाओ,,,
(रत्ना जान बूझकर इस तरह की बातें कर रही थी क्योंकि वह अच्छे से जानती थी कि जिस हालात में सूरज उसे अपनी बांहों में भरा हुआ है लाख समझाने पर भी वह मानने वाला नहीं है और यही तो वह भी चाहती थी लेकिन फिर भी अपनी तरफ से वह पूरी कोशिश कर रही थी कि इसमें उसका जरा भी हामी सूरज को महसूस ना हो लेकिन सूरज इतना पागल नहीं था रत्ना के बदलते हाव भाव उसके बदलते स्वर से साफ पता चल रहा था की सूरज की हरकतों का वह भी मजा ले रही है...?)


चाची सच कहूं तो आकर्षण ना होता तो औरत और मर्द के बीच किसी भी प्रकार का संबंध नहीं होता इस समय में आपके घर के पीछे बने कमरे में नहीं होता यै आकर्षण ही तो है जो एक दूसरे को मिलाती है एक दूसरे से संबंध बनाती है भाईचारा रिश्ते बनाती है अगर आकर्षण ना हो तो सब बेकार है.... और क्या चाहिए उम्र उम्र लगा रखी हो कभी अपने आप को आईने के सामने एकदम नंगी होकर अपने आप को शीशे में देखना मेरा दावा है कि अपने आपको आईने में देखकर आप खुद शर्म से पानी पानी हो जाओगे इस उम्र में भी जिस तरह की खूबसूरती और अपने बदन की कसावट बनाए हुए हो उसे खुद देख कर आप मचल उठोगी....


सूरज तू पागल हो गया है बातें मत बना मुझे छोड़ और मेरे कमरे से बाहर चला जा मैं नहीं चाहती कि तेरे जैसा अच्छा लड़का कोई गलती कर बैठे,,

गलती तो मैं चाची उसी दिन कर बैठा था जब आपसे पहली बार आपको कपड़े धोते हुए देखा था,,पहली नजर में ही आप मुझे अच्छी लगने लगी थी...

सूरज पागल हो गया है तू छोड़ मुझे छोड़....( रत्ना सूरज की कलाई पकड़ कर उसे अपने आप से छुड़ाने की कोशिश कर रही थी लेकिन सूरज हट्टा कट्टा नौजवान लड़का था उसमें रत्ना से ज्यादा ताकत थी वह अपने आपको उसकी पकड़ से छुड़ा नहीं पाई लेकिन इस हाथापाई में रत्ना की ब्रा जोकि दोनों चुचियों पर टिकी हुई थी वह नीचे गिर गई और रत्ना कीमत मस्त चूचियां एकदम नंगी हो गई सूरज मौके की नजाकत को समझते हुए जैसे ही बुरा नीचे गिरी वैसे ही तुरंत फिर से अपने दोनों हथेली को रत्ना की मदमस्त नंगी चूची पर रख कर उसे दबाने लगा इस बार उसके मुख से सिसकारी की आवाज फूट पड़ी क्योंकि रत्ना की नंगी चूचियों को दबाने में वह पूरी तरह से मदहोश हो गया.... रत्ना भी अपनी नंगी चूचियों पर एक नौजवान लड़के की हथेली की मजबूत पकड़ पागल मस्त होने लगी उसकी आंखें भी मदहोशी के आलम में बंद होने लगी.....)

औहहहहहह...सूरज... यह क्या कर रहा है तू मुझे छोड़ दे मुझे जाने दे तू चला जा मेरे कमरे से बाहर चला जा कोई देख लेगा तो गजब हो जाएगा,,
(रत्ना का विरोध कमजोर होता जा रहा था उसके स्वर में नरमी नजर आ रही थी जिससे साफ पता चल रहा था कि वह भले ही शब्दों मैं उसे जाने के लिए कह रही थी लेकिन वह उसे वही रोकना चाहती थी जोकि सूरज अच्छी तरह से समझता था... इसलिए इस बार सूरज रत्ना के दोनों कंधों को पकड़कर उसे घुमा कर उसे अपनी तरफ कर दिया रत्ना सूरज की इस हरकत के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी। इसलिए लड़खड़ा गई लेकिन सूरज ने उसे अपनी बाजुओं का सहारा देकर पकड़ लिया... सूरज की इस हरकत पर शर्मा फिर से शर्मा गई अपनी नजरे नीचे झुका ली एक तो उसकी मदमस्त दशहरी आम बिल्कुल नंगे होकर सूरज को जैसे आमंत्रण दे रहे हो और अपनी खुली चुचियों की वजह से रत्ना और ज्यादा शर्मिंदगी महसूस कर रही थी सूरज भी उसके दोनों दशहरी आम को देखते हुए उसकी दोनों बांहों को अपनी हथेली में थामा हुआ था.... रत्ना की सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी उसका दिल जोरो से धक धक कर रहा था... उत्तेजना और शर्मिंदगी का अहसास लिए उसका पूरा वजूद कसमसा रहा था.... और सूरज अपनी बेशर्मी का एक और उदाहरण पेश करते हुए अपने हाथ से रत्ना की ठोड़ी पकड़कर उसे हल्के से उठाते हुए मानो जैसे एक दूल्हा अपनी दुल्हन का सुहागरात के दिन चेहरा देख रहा हो सूरज की इस हरकत की वजह से रत्ना एकदम शर्म से पानी पानी हो गई..

क्योंकि सूरज की इस हरकत की वजह से उसे अपनी जवानी के वह दिन याद आ गए जब वह शादी करके पहली बार इस घर में आई थी और उसका पति इसी तरह से सुहागरात की सेज पर अपनी उंगली से ठोड़ी उठाकर उसके चेहरे को देख रहा था। सूरज भी उसी तरह से रत्ना की खूबसूरत चेहरे को देख रहा था रत्ना शर्म से अपनी आंखें बंद कर दी थी और सूरज उसका शर्माता हुआ चेहरा देखकर बोला।

चाची सच-सच बताना क्या आपको यह सब अच्छा नहीं लग रहा है?( सूरज बेशर्मी की सारी हद पार करते हुए नई नवेली दुल्हन की तरह उसके खूबसूरत चेहरे को देखते हुए बोला सूरज के इस सवाल का जवाब रत्ना के पास बिल्कुल भी नहीं था उसके होठों पर उत्तेजना की कपकपी साफ नजर आ रही थी और जवाब दे भी तो कैसे दें.... वह हां कहे या ना कहे यह उसके समझ के परे था.... क्योंकि उसे भी बेहद आनंद की अनुभूति हो रही थी लेकिन अपनी उम्र की मर्यादा को देखकर यह सब उसे अपने बेटे के उम्र के लड़के के साथ करना अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन कर भी क्या सकती थी आनंद की सीमा मर्यादा की सीमा से कहीं ज्यादा होती है अगर किसी भी इंसान को किसी चीज में मजा आने लगता है तो उसमें उम्र की कोई मर्यादा नहीं होती और यही रत्ना के साथ भी हो रहा था रत्ना कुछ बोल नहीं पाई उसके पास कोई जवाब नहीं था अपने बेटे की उम्र के लड़के के सामने अपनी मदमस्त दशहरी आम की तरह तनी हुई चूचियां लेकर वह शर्म सार हुए जा रही थी,,

जिंदगी में शादी के बाद पहली बार वह किसी पराए मर्द के सामने अर्धनग्न अवस्था में खड़ी थी अर्धनग्न क्या संपूर्ण नंगी ही थी केवल उसके बदन पर पेंटिं ही थी जो उसकी खूबसूरत खजाने को छिपाए हुए थी। रत्ना के तरफ से किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया ना होते देखकर सूरज का हौसला बढ़ने लगा था क्योंकि भले ही होठों से वह कुछ ना कह पा रही हो उसके थिरकते होठ उसके चेहरे के बदलते होगा बदन की भंगिमा सब कुछ बयान कर रही थी और उसके सारे हाव भाव सूरज के पक्ष में थे सूरज की प्यासी नजरें रत्ना के दशहरी आम पर टीकी हुई थी... जो कि काफी बड़े बड़े थे उनको देखकर ही सूरज के मुंह में पानी आ रहा था ब्रा नीचे गिरी हुई थी सूरज समझ गया था कि अब कमरे में उन दोनों के बीच ब्रा का कोई भी वजूद नहीं था रत्ना की नंगी छातियां मानो सूरज को आमंत्रित कर रही हो.... रत्ना शर्म के मारे अपनी आंखों को मुंद चुकी थी और मन की आंखों से अपने अंदर उमड़ते हाव भाव को देखकर प्रसन्न हुए जा रही थी....
कमरे में अब दोनों के बीच एकदम खामोशी छाई हुई थी रत्ना की आंखें बंद थी लेकिन सूरज अपनी खुली आंखों से सब कुछ देख रहा था उसकी सांसों की गति एकदम गहरी चल रही थी सूरज अच्छी तरह से जानता था कि आप वापस आ गया है जब उसे उसकी मंजिल मिलने वाली है मंजिल के मिलने की खुशी में वह सफल को और ज्यादा रोमांचकारी बनाते हुए अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर एक बार फिर से चला कि दोनों चुचियों को दशहरी आम की तरह पकड़ कर दबाना शुरू कर दिया सूरज की मजबूत हथेलियों को अपनी चूची पर महसूस करके रत्ना फिर से गनगना गई.... और सूरज एक बार फिर से रत्ना से बोला...


कहो ना चाची क्या आपको हिसाब अच्छा नहीं लग रहा है अगर आपको अच्छा नहीं लग रहा हो तो मैं यहां से चला जाऊंगा बस एक बार अपने मुंह से कह दो कि आपको यह सब अच्छा नहीं लग रहा है....(इतना कहकर सूरज फिर से रत्ना की दशहरी आम को दबाते हुए उसके चेहरे के हाव भाव को देख रहा था रत्ना अभी भी कुछ कह सकने के काबिल बिल्कुल भी नहीं थी वह एकदम निशब्द हो चुकी थी वह जानती थी कि अब कुछ भी कहने सुनने लायक नहीं है वह अपने मन में ठान ली थी कि सूरज को आगे बढ़ने की उसकी तरफ से पूरी आजादी है वह आंखों को बंद किए हुए हैं चेहरे पर शर्मिंदगी का अहसास लिए सूरज की हरकतों का आनंद ले रही थी सूरज भी उसके बदलते हैं भाव को देखकर उसकी चूचियों को मसलते हुए धीरे-धीरे अपने चेहरे को उसके करीब ले जाने लगा और देखते ही देखते सूरज के होठ रत्ना के दहकते हुए होठ पर भीड़ गए . अपने होठों पर सूरज के होंठ का स्पर्श पाते ही रत्ना एकदम गरम हो गई वह गरम सिसकारी ले पाती इससे पहले ही सूरज रत्ना की चूचियों पर से हाथ उठाकर अपने दोनों हाथ को पीछे की तरफ ले जाकर उसे अपनी बाहों में भर लिया और उसके होठों को मुंह में भर कर चूसना शुरू कर दिया,,

रत्ना को सूरज के द्वारा इस हरकत की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी लेकिन धीरे-धीरे उसकी सारी उम्मीदें ना उम्मीद होते जा रही थी सूरज अपनी बेशर्मी की हद पार करते हुए रत्ना के साथ धीरे-धीरे हरेक वह हरकत कर रहा था जो एक मर्द औरत के साथ करता है सूरज वासना मैं एकदम अंधा हो गया था रत्ना के गुलाबी होठों को अपने मुंह में भर कर उसे पागलों की तरह चूस रहा था और रत्ना भी ना चाहते हुए भी सूरज की इस हरकत का पूरा मजा लेने लगी उसे सूरज के द्वारा इस तरह से होठों से जाने पर बेहद आनंद की अनुभूति हो रही थी साथ ही हो जिस तरह से रत्ना को अपनी बाहों में लेकर उसके बदन से सट गया था उसका मोटा तगड़ा लंड जो कि अभी भी तंबू की शक्ल में था वह अब सही है रत्ना के पेट के नीचे पैंटी के ऊपर से ही उसकी बुर की मदमस्त दीवारों के ऊपरी सतह पर दस्तक दे रहा था।
रत्ना के लिए यह सब एकदम आसानी होता जा रहा था एक तो ऊपर से होठो की चुसाई और नीचे से गुलाबी छेद पर जबरदस्त दस्तक रत्नाके सब्र का बांध तोड़ रहा था सूरज जानबूझकर अपने तंबू को इतनी जोर जोर से टांगों के बीच पैंटी के ऊपर रगड़ रहा था मानो गुलाबी छेद पर अपने हथौड़े से वार कर रहा हूं यह दस्तक इतना जबरदस्त था कि मानो दरवाजा ही तोड़ देगा रत्ना बदमस्त अंगड़ाई भरने लगी थी देखते ही देखते ना चाहते हुए भी कब उसके दोनों हाथ सूरज की पीठ पर आ गए या रत्ना को खुद भी पता नहीं चला अपनी पीठ पर रत्ना के नाजुक हथेलियों का स्पर्श पाते ही सूरज पागलों की तरह रत्ना के होठों को चूसना शुरू कर दिया क्योंकि यह रत्ना की तरफ से हरी बत्ती थी जो कि सारे सिग्नल तोड़ चुकी थी सूरज सारी हद पार करते हुए रत्ना को अपनी बाहों में भर कर अपनी हथेली को उसकी नंगी पीठ पर इधर-उधर फिरा रहा था,,

उसे समझ में आ गया था कि अब वह कुछ भी रत्ना के साथ करेगा रत्ना उसका बिल्कुल भी विरोध नहीं करेगी.... सूरज पागल हुए जा रहा था ... उसकी जवानी उफान मार रही थी... अत्यधिक जोश की वजह से उसका पूरा बदन चरमरा रहा था वह अपनी जवानी का जोश और ताकत का जोर पूरी तरह से रत्ना पर दिखाते हुए अपने दोनों हाथों को नीचे की तरफ ले जाकर रत्ना की मटके जैसी गांड को अपनी हथेलियों से कस कर उसे उठा लिया.... देखते-देखते रत्ना के दोनों पांव हवा में हो गए रत्ना को तो उम्मीद भी नहीं थी कि सूरज में इतनी ज्यादा ताकत होगी... वह एकदम से घबरा गयी उसे डर था कि कहीं सुभम ऊसे नीचे ना गिरा दे.... इसलिए वह अपनी आंखें खोल कर घबराते हुए बोली,,,,

यह क्या कर रहा है सूरज मुझे नीचे उतार में गिर जाऊंगी मुझे नीचे उतार मुझे डर लग रहा है....(लेकिन सूरज पर उसकी बातों का किसी भी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ रहा था वह तो अपनी भुजाओं में रत्ना की बड़ी-बड़ी नितंब का दबाव महसूस करके मस्त हुए जा रहा था ऐसा लग रहा था कि मानो रत्ना की मदमस्त जवानी का जोश उसके बदन पर पूरी तरह से सवार हो चुका है और उसमें एक अलग से ताकत आ गई हो क्योंकि रत्ना बेहद भारी भरकम शरीर वाली औरत थी और रत्ना को उठा पाना सबके बस में बिल्कुल भी नहीं था लेकिन जवानी के जोश में और अपने हट्टी कट्टी शरीर के बदौलत सूरज उसे अपनी भुजाओं के दम पर उठाकर पूरे कमरे में इधर-उधर घूमने लगा था.... रत्ना लगातार उसे उतारने के लिए गिड़गिड़ा रही थी लेकिन सूरज उसकी एक नहीं सुन रहा था अर्धनग्न अवस्था में सूरज की गोद में रत्ना बेहद खूबसूरत और मादक लग रही थी लेकिन उसके चेहरे पर कहीं गिर ना जाए इसकी चिंता की लकीर साफ नजर आ रही थी... सूरज उसे उठाएं पूरे कमरे में घूम रहा था जिसकी वजह से उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां ऊपर नीचे हो रही थी वह उसे लगातार उतारने के लिए बोल रही थी।...) सूरजउ तार दे मुझे लग जाएगी पागल हो गया है तू मेरा वजन ज्यादा है मैं गिर गई तो...


नहीं गिरोगी चाची मुझ पर भरोसा रखो .... आप को संभालने की ताकत मुझ में है.....(सूरज अपनी कलाई का दबाव रत्ना के नितंबों पर बराबर गड़ाए हुए था बाहर से जितनी कठोर मटके जैसी रत्नाकी गांड नजर आ रही थी इतनी कठोर थी नहीं एकदम रुई की तरह नरम नरम थी जिसकी वजह से सूरज और ज्यादा उत्तेजित हुए जा रहा था... जिस तरह से सूरज उसे उठाकर इधर उधर भाग रहा था उसकी यह ताकत को देखकर रत्ना एकदम मंत्रमुग्ध हो गई थी उसे इस बात का अंदाजा लग गया था कि वाकई में सूरज में दम है.... यह एहसांस उसे अंदर तक उत्तेजित करे जा रहा था...उसकी बुर काफी मात्रा में मदन रस छोड़ रही थी जिससे उसकी पूरी पेंटी गीली होती नजर आ रही थी और यह सूरज अच्छी तरह से देख रहा था कि उसकी पेंटी खासकर बुर वाला भाग पूरी तरह से गिला हो गया था सूरज को समझते देर नहीं लगी थी कि रत्ना की बुर पनिया रही है इसका मतलब साफ था कि उसे भी बहुत मजा आ रहा है,,,,

रत्ना को भी इस बात का आभास हो रहा था कि उसकी पेंटी पूरी तरह से गीली हो रही थी और उसकी बुर से निकला मदन रस पिघल कर पेंटी के बाहर बहने लगा था... इस बात का आभास होते ही रत्ना शर्म से पानी पानी होने लगी क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि सूरज की नजर उसके गीले पन पर जाए लेकिन भला ऐसा कैसे हो सकता है कि बिल्ली की नजर दूध के कटोरे पर ना जाए सूरज उसे उठाए हुए लगातार उसकी टांगों के बीच कै उस गीलेपन को ही देख रहा था.... और रत्ना भी यही देख कर शर्मिंदा हुए जा रही थी कि तभी उत्तेजना मैं उसकी कचोरी जैसी फूली हुई बुर में से चटनी रपी रस टपक कर पेंटी से बाहर आई और वह सीधे सूरज के होठों पर जा गिरी यह दृश्य रत्ना बराबर देख रही थी कि तभी सूरज को भी यह साफ नजर आया था कि रत्ना की पेंटी में से नमकीन पानी की बूंद उसके होठों पर गिरी है और वह रत्ना की नजर में नजर मिला कर देखते हुए अपने होंठ पर जीभ फेरने लगा यह देखकर रत्ना की तो मानो जैसे सांस ही अटक गई हो उसे यकीन नहीं हो रहा है कि जो वह अपनी आंखों से देख रही है वह सच है लेकिन आंखों से देखी चीज को झुठलाई नहीं जा सकती थी,,
रत्ना की बुर से निकले पानी को सूरज ने अपने होठों से चाट कर उसे अपने अंदर ले लिया था,, रत्ना के सब्र का बांध टूटते जा रहा था सूरज भी अपने अंदर काफी उत्तेजना का सैलाब उठता हुआ महसूस कर रहा था। तभी सूरज अपनी कलाइयों का कसाव रत्ना की मदमस्त गांड पर ढीली कर दिया जिससे रत्ना भलभला कर नीचे की तरफ आने लगी कि तभी फिर से उसे अपनी कलाइयों को जोर से पकड़ लिया था कि रत्ना नीचे ना गिर जाए.... और तभी रत्ना एकाएक सूरज के बराबर में आकर स्थिर हो गई यो एकाएक नीचे आने की वजह से उसकी सांसे ऊपर नीचे होने लगी है जिसकी वजह से उसकी दोनों दशहरी आम एक बार फिर से अपना जलवा बिखेरने लगे सूरज काफी उत्तेजित और प्रसन्न नजर आ रहा था उसकी आंखों में खुमारी छा रही थी एक बार फिर से सूरज अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर रत्ना के दोनों दशहरी आम को अपनी हथेलीयों में थाम लिया और अपने प्यासे होठ को फिर से रत्ना के गुलाबी होंठ पर रख दिया... स्तन मर्दन और दहकते होठ पर होठ चुम्बन पाते ही रत्नाके मुख से गर्म सिसकारी फुट पड़ी....

ससससससहहहहहह ..... आहहहहहहहहह .....सूरज......
 
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उसे सूरज ने जिस तरह से नीचे उतार कर उसके होंठों पर होंठ रख कर उसके दोनों दशहरी आम को थाम लिया था इस हरकत की वजह से रत्ना के मुंह से गर्म सिसकारी फूट पड़ी थी लेकिन उसकी कर्म सिसकारी सूरज के तन बदन में अत्यधिक कामोत्तेजना का प्रसार कर रही थी... वह पूरी तरह से मदहोश हो गया था वह लगातार रत्ना के गुलाबी होठों को अपने मुंह में भर कर उसे चूसना शुरू कर दिया था मानव के जैसे उसके होठों पर शहद लगा हो,,,,
पहले तो रत्ना उसे फिर से छुड़ाने की कोशिश कर रही थी लेकिन जिस अंदाज में और शिद्दत से वह रत्ना के होंठों को चूस रहा था ऐसा लग रहा था मानो वह रत्ना के: होठों का सारा रस किसी भंवरे की तरह चूस जाएगा,,
और रत्ना भी सूरज के इस चुंबन से पिघलने लगी उसकी जवानी का पारा धीरे-धीरे ऊपर चढ़ने लगा और उसका विरोध कम होने लगा सूरज लगातार रत्ना के होठों को चुसे जा रहा था और दशहरी आम का रस दबा दबा कर निकाले जा रहा था और नीचे से अपने दमदार तंबू की ठोकर रत्ना की पुरानी पेंटिं पर लगाए जा रहा था जिससे रत्ना की गुलाबी बुर की बाहरी दीवारें ढहने लगी थी उनमें से रिसाव होना शुरु हो गया था... रत्ना की पेंटी इतनी अत्यधिक गीली हो चुकी थी कि सूरज को अपने धोती पर उसके गीले पन का एहसास साफ हो रहा था,,

तभी सूरज को एक अलग सा महसूस हुआ जिससे मेवा रत्ना के गुलाबी होठों को अपने मुंह में लेकर चूस रहा था तभी उसे ऐसा एहसास हुआ कि रत्ना ने भी उसके मुंह में जीभ डाल कर कुछ सेकंड के लिए चाटना शुरू की थी एहसास सूरज के तन बदन में आग लगा गया.. वह रत्ना के होंठों को चूसता हुआ ही रत्ना के चेहरे की तरफ देखा तो रत्ना आनंद विभोर होकर अपनी आंखों को मूंद ली थी और सूरज के द्वारा होठ चुसाई का भरपूर आनंद लूट रही थी.... सूरज पागल होने लगा वह लगातार रत्ना के होंठों को चूसता रहा और अपने दोनों हाथ को दशहरी आम पर से हटाकर रत्ना के पीछे की तरफ ले गया और उसके भारी-भरकम नितंबों को अपनी हथेली में जितना हो सकता था लेकर उसे दबाना शुरू कर दिया इस तरह से नितंब मर्दन की वजह से रत्ना के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी उसके मुख से फिर से सिसकारी की आवाज छूटने लगी और इसी पल का फायदा उठाते हुए सूरज उसे अपनी बाहों में दबोचे हुए ही रत्ना को लेकर घास के ढेर पर गिर गया... रत्ना घास के ढेर पर पीठ के बल लेटी हुई थी और सूरज उसके ऊपर चढ़ा हुआ था जो कि घास पर गिरने की वजह से रत्ना ने अपनी दोनों टांगों को हल्का सा खोल दी थी जिससे सूरज का पूरा बदन उसके बीचोंबीच आ गया था और इस पोजीशन में सूरज अभी भी रत्ना के होंठों को चूस रहा था और रत्ना की टांगों के बीच सूरज अपनी मर्दाना ताकत को रगड़ कर उसे एहसास दिला रहा था कि आज उसे वह सुख देने वाला है जिसके लिए वह बनी है,,

रत्ना भी एकाएक इस पोजीशन में आ जाने की वजह से पूरी तरह से उत्तेजना की सागर में डूबती चली जा रही थी यह वह स्थिति थी जब वाकई में एक औरत पीठ के बल लेटी हुई होती है और मर्द उसके ऊपर चढ़कर उसकी टांगे फैला कर उसकी बुर में अपना मर्दाना अंग डालकर उसकी जी भर कर चुदाई करता है अपने आपको उसी स्थिति में पाकर रत्ना के तन बदन में आग लगने लगी उसकी भी इच्छा हो रही थी कि अपने हाथों से वह अपनी पेंटी उतार कर सूरज के मोटे तगड़े लंड को अपनी गुलाबी छेद में लेकर मस्त हो जाए,,
लेकिन वह आगे से ऐसी कोई भी हरकत नहीं करना चाहती थी इसलिए अपने आप को शांत रखी,,
लेकिन मदहोश पन रत्ना को पल-पल अपनी आंखों उसमें लिए जा रहा था उसकी आंखों में नशा छाने लगा था और यह नशा किसी शराब का नहीं था यह नशा शराब से भी कहीं ज्यादा असर करने वाला मादकता का नशा था वासना का नशा था ।जिसके आधी होकर वह पल पल अपने वजूद को मिटा दी जा रही थी अपने आप को बोलती जा रही थी सही गलत के फैसले को समझ सकने की क्षमता होती जा रही थी तभी इतनी रात में रत्ना घर के पीछे बने कमरे में जमीन पर घास के ऊपर अपने बेटे के उम्र के लड़के को लेकर मस्त हुए जा रही थी।
सूरज के प्रगाढ़ चुंबन की वजह से रत्ना की सांस फूलने लगी थी वह उसे हटाने की कोशिश कर रही थी लेकिन सूरज पर भी मदहोशी का आलम छा चुका था वह पूरी तरह से रत्ना की मदहोश जवानी की गिरफ्त में आ चुका था,,
बार-बार रत्ना उसे हटाने की कोशिश करती लेकिन सूरज और अत्याधिक कामोत्तेजीत होकर उसके होठों को चूसने लगता,, लेकिन उसे इस बात का आभास हो गया कि रत्ना की सांस फूल रही थी इसलिए वह अपने होठों की चुंगल से रत्ना के गुलाबी होठों को आजाद कर दिया लेकिन वह खुद भी बहुत जोर से हाफ रहा था और जिस तरह से उसकी सांसे ऊपर नीचे हो रही थी उसकी कमर के नीचे वाला भाग अपने आप ऊपर नीचे हो रहा था और वह भी एकदम होले होले मानो ऐसा लग रहा था कि जैसे वह रत्ना की चुदाई कर रहा और रत्ना को भी इसका एहसास अच्छी तरह से हो रहा था क्योंकि उसका तंबू उसकी पैंटी के ऊपर लगातार घषृण कर रहा था। रत्ना भी इस घर्षण का भरपूर आनंद उठा रही थी.... वह हांफते हुए अपनी सांसो को दुरुस्त करते हुए बोली....


औहहह... सूरज तू चला जा यहां से .....यह अच्छी बात नहीं है .....जो तू मेरे साथ ऐसा कर रहा है यह तुझे नहीं करना चाहिए ..... तू मेरे बेटे की उम्र का है और मैं तेरी मां की उम्र की हु....(रत्ना शर्म के मारे दूसरी तरफ नजर फेरते हुए बोली)


मैं सब कुछ अच्छी तरह से जानता हूं चाची...( सूरज भी अपनी उखड़ती हुई सांसो को दुरुस्त करते हुए बोला।) मैं यह भी जानता हूं कि आप मां के उम्र की है और मैं आपके बेटे की उम्र का हो लेकिन हम दोनों के बीच जो कुछ भी हो रहा है उसमें आकर्षण और जरूरत भी शामिल है.... एक मर्द का मन एक औरत पर तभी लुभाता है जब उसकी खूबसूरती उसकी आकर्षण बन जाती है और मैं तो पहले भी कह चुका हूं कि इस उमर में तुम्हारे जैसी खूबसूरत औरत मैंने आज तक नहीं देखा तो हम दोनों के बीच उम्र कोई मायने नहीं रखती....


तू समझने की कोशिश नहीं कर रहा है,, पहले अंधेरे में मुझसे गलती ये सब हुआ था लेकिन तू अभ ये जानबूझ कर रहा है,, सूरज यह सब गलत है....


अगर चाची सब गलत होता तो मेरी हरकतों की वजह से तुम्हें मजा नहीं आता और अब यह मत कहना कि मुझे मजा नहीं आ रहा था.....
(सूरज की बातें सुनकर रत्ना उसे सवालिया नजरों से देखने लगी और बोली...)

तुझे किसने कह दिया कि मुझे मजा आ रहा है...?


चाची यह बात आप अपने मुंह से भले ना कहो लेकिन तुम्हारी गीली पैंटी (थोड़ा सा उठकर रत्ना की पेंटी की तरफ उंगली दिखाते हुए) सब कुछ बयां कर रही है....
(अपनी गीली पैंटी पर नजर जाते ही रत्ना भी शर्मिंदा हो गई....)


देख सूरज यह सब तो कुदरती है जब औरत को कुछ कुछ होता है तो यह सब बदलाव आते ही हैं,,,,


अब जाकर पकड़ी है चाची... मैं भी तो कब से यही समझा रहा हूं यह सब कुदरती है,,
आपके प्रति मेरा आकर्षण कुदरती है मेरी हरकतों की वजह से तुम्हारे तन बदन में उत्तेजना का उठना अंग अंग में बदलाव आना यह सभी कुदरती है तो क्यों ना हम दोनों कुदरत के आधीन होकर वह सब कर ले जो एक औरत और मर्द करते हैं,,,,
(सूरज अपनी बातों के जादू में रत्ना को पूरी तरह से उलझाने की कोशिश कर रहा था और रत्ना भी सूरज की बयानबाजी से अंदर ही अंदर संतुष्ट नजर आ रही थी लेकिन अब कैसे कह दे कि जो कुछ भी तो कह रहा है सच है वह बार-बार उसे समझाने की कोशिश करते हुए बोली...)

सूरज तू पागल हो गया है तो अगर किसी लड़की को यह कहता तो शायद यह सब सही होता लेकिन तुम मुझे कह रहा है मेरी उम्र देख और तेरी उम्र देख... जमीन आसमान का फर्क है,,,,


लेकिन चाची उम्र में भले ही जमीन आसमान का फर्क है लेकिन हम दोनों के अंगों में किसी भी प्रकार का फर्क नहीं है कुदरत ने जो एक औरत को देना चाहिए था वही आपको भी दिया है और जो मर्द को देना चाहिए था वही अंग मुझे भी दिया है,, आपके पास बुर है...(प्यासी नजरों से रत्ना की पेंटी की तरफ देखते हुए..) और मेरे पास एक दमदार लंड है (अपने मोटे तगड़े लंड को तंबू की शक्ल में उंगली से रत्ना को दिखाते हुए....रत्ना तो सूरज के मुंह से इस तरह के खुले शब्द सुनकर एकदम से उत्तेजना के मारे गनगना गई.....
सूरज के मुंह से लंड बुर खुले शब्दों में सुनकर उसकी बुर कचोरी की तरह फुल गई.... और उसकी निगाह सूरज के तंबू पर कुछ सेकंड के लिए जम गई तने हुए तंबू को देखकर रत्ना के तन बदन में हलचल पैदा होने लगी ... रत्ना की दोनों दशहरी आम हिलोरे मारने लगे....


यह कैसी बातें कर रहा है तो तुझे शर्म नहीं आ रही है इस तरह से खुले शब्दों में मेरे सामने बोल रहा है (रत्ना शर्मा के मारे फिर से दूसरी तरफ नजर खेलते हुए बोली ‌)

शर्म कैसी चाची... अभी अभी आप ही तो कह रही थी यह सब कुदरती है कुदरत का ही दिया हुआ है तो कुदरती रूप से जो इसमें बदलाव आ रहे हैं उसे हम रोक तो नहीं सकते...( धोती के ऊपर से जानबूझकर अपने लंड को मसलते हुए) यह आपकी अच्छी तरह से जानती है कि कुदरती रूप से ही आपकी खूबसूरत जवानी मदमस्त बदन देखकर ही मेरा लंड खड़ा हुआ है ....(सूरज की यह बात सुनकर रत्ना ना चाहते हुए भी एक बार फिर से नजर घुमाकर सूरज के तंबू को देखने लगी जो कि सूरज इस तरह उसके सामने बेशर्म की तरह मसल रहा था...यह देखकर उत्तेजना के मारे रत्ना का गला सूखने लगा और वह फिर से अपनी नजर फेर ली उसे शर्मिंदगी का अहसास हो रहा था लेकिन अंदर ही अंदर जी भर कर सूरज के धोती में तना हुआ उसका मुसल देखने की इच्छा हो रही थी....)


सूरज यह सब कहना ठीक नहीं है तू मुझे एक अच्छा लड़का लग रहे हो,, तेरा भविष्य अच्छा है अभी से यह सब के चक्कर में पड़कर अपना वापस खराब कर लेगा,,,,


चाची में एक बात कहूं मुझे भविष्य की बिल्कुल भी फिकर नहीं है मैं तो वर्तमान में मानता हूं और इस समय मेरी आंखों के सामने आप जैसी खूबसूरत औरत घास पर अधनंगी लेटी हुई है... अगर मैं अपने संस्कार की वजह से अपनी मर्यादा को देखते हुए नजर फेर कर इस कमरे से चला जाता हूं तो आपके द्वारा मिलने वाला अद्भुत सुख खो देता हूं और आपको इस तरह से प्यासा छोड़ कर जाने से भी मुझे पाप लगेगा,,


तुझे यह किसने कहा कि मैं प्यासी हूं....( सूरज की बात सुनकर रत्ना बोली)


चाची शब्द झूठे हो सकते हैं लेकिन जो इस समय मेरी आंखें देख रही है वह झूठी नहीं हो सकती,, थोड़ी देर पहले आप मुझसे लिपटी थी,, उसके बाद आपका पति आपको प्यासा छोड़कर चला गया,,,,
(सूरज उसी तरह से अपने लंड को धोती के ऊपर से मसलते हुए रत्ना की टांगों के बीच की गीली पैंटी को देखते हुए बोला,,)


क्या क्या.... क्या क.....देख रहे तेरी आंखें....?


मेरी आंखें साफ देख रही है कि तुम्हारी बुर पानी छोड़ रही है ....(सूरज एकदम खुले शब्दों में एकदम बेशर्म बनता हुआ बोला)

हे भगवान कितना हरामी लड़का है रे तू मैं तुझे अच्छा लड़का समझती हू लेकिन तु बहुत ही ज्यादा हरामी दिख रहा है कोई इस तरह से मेरी उम्र की औरत को बोलता है और चल गलती है तो क्या हुआ इससे क्या मैं प्यासी हो गई...(रत्ना को भी अब इस तरह की अश्लील बातें करने में मजा आ रही थी वह जानबूझकर गुस्से का नाटक करते हुए सूरज से बोल रही थी...)

चाची सही बताऊ तो मे हरामी नहीं हूं ना तो मैं हारामी टाइप का लड़का हूं मैं बस खूबसूरती का दीवाना और इस समय मैं आपकी खूबसूरती का दीवाना हो गया हूं और रही बात प्यास की तो मैं सही कह रहा हूं कि आप इस समय प्यासी है मैं आपसे पहले भी कह चुका हूं कि औरतों के बारे में मुझे बहुत ज्यादा ज्ञान है और मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि इस तरह से आपकी बुर का पानी छोड़ना सामान्य नहीं है यह कुदरती है और आप अच्छी तरह से जानती है कि बुर पानी कब छोड़ती है...?

कब छोड़ती है....?(रत्ना भी सूरज के रंग में रंगने लगी थी इसलिए उसकी आंखों में आंखें डाल कर थोड़ा सा शर्मिंदगी का अहसास लिए बोली)


औरतों की बुर पानी तब छोड़ती है जब वह एकदम चुदवासी हो जाती है जब उन्हें अपनी बुर के अंदर मोटे तगड़े लंड की चाहत होने लगती है....

छी.... छी.... कितनी गंदी बातें करता है तू.... अब मैं तेरी एक नहीं सुनने वाली तू चला जा यहां से.... (इतना कहते हुए वह जमीन से खड़ी होने लगी) अगर किसी को इस बात की भनक भी लग गई कि इतनी रात में तू मेरे साथ और वह भी इस अवस्था में है तो गजब हो जाएगा मैं तो बदनाम हो जाऊंगी तू चला जा यहां से,,
(इतना कहने के साथ ही वह फिर से खड़ी हो गई.... लेकिन उसके ठीक है आगे सूरज खड़ा था और उसके खड़े होने के साथ ही सूरज एक कदम आगे बढ़कर उसे अपनी बाहों में कस लिया और उसकी आंखों में आंखें डाल कर देखते हुए बोला...)

चाची किसी को कुछ भी पता नहीं चलेगा मैं इस कमरे में हूं इसकी भनक किसी को कानों कान तक नहीं होगी हां लेकिन अगर आपको मजा नहीं आ रहा है अच्छा नहीं लग रहा है तो मैं अभी इसी वक्त चला जाऊंगा,,
(इतना कहने के साथ ही सूरज अपने दोनों हाथ को एक बार फिर से नीचे की तरफ ले जाकर रत्ना के बड़े-बड़े तरबूजो को अपने दोनों हथेलियों में दबाकर अपनी तरफ खींचा जिससे उसके धोती में बना तंबू सीधे उसकी पेंटी से टकराने लगा और उसके बुर के ऊपरी सतह पर घर्षण करने लगा,,
वह कुछ देर तक ऐसे ही अपने लंड की रगड़ उसकी बुर को देता रहा जिससे उसकी बुर पुरी तरह से गर्मा गई.... एक बार फिर से उसके चेहरे के हाव-भाव बदलने लगा उसकी सांसे भारी होने लगी और सूरज को इसी पल का इंतजार था क्योंकि वह अच्छी तरह से जानता था कि लोहा गरम होने पर ही हथोड़ा मारना उचित होता है और तब भी वह बोला,,)

क्या कहती हो चाची कहो तो मैं चला जाऊं...(रत्ना की बड़ी बड़ी गांड को अपनी हथेली में भर कर मसलते हुए) और कहो तो मे रुक जाऊ आप की प्यास बुझाने के लिए,,
मेरा लंड पूरी तरह से तैयार है आपके बुर में घुसने के लिए और सच कहूं तो चाची तुम्हारी बुर भी मचल रही है मेरे लंड को अपने अंदर लेने के लिए (सूरज जानबूझकर इस तरह की भाषा का प्रयोग करके उसे मादकता की गर्मी प्रदान कर रहा था और इसका असर उसके दिलो-दिमाग पर बुरी तरह हो रहा था वह भी अब जल्द से जल्द सूरज के लंड को अपनी बुर के अंदर ले लेना चाहती थी लेकिन कुछ बोल नहीं पा रही थी एक बार फिर से पूछे जाने पर रत्ना को कोई जवाब नहीं सूझा तो वह बोली...)

मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है सूरज....( उत्तेजना के मारे थुक को अपने गले में निगलते हुए बोली।)


तो चाची ऐसा करिए कि आप कुछ मत कहिए जो होता है हो जाने दो मुझे अपने अंदर समा जाने दो मैं भी देखना चाहता हूं कि आपके उम्र की औरत के बदन की गर्मी मेरे जैसे जवान लड़के को कितनी देर में पिघला देती है,,,,

(सूरज की यह बात सुनकर रत्ना अंदर ही अंदर प्रसन्न होने लगी क्योंकि उसकी यह बात से पता चल रहा था कि सूरज इस उम्र में भी उसका पूरी तरह से दीवाना हो चुका था और वह भी मचल रही थी सूरज की मर्दाना ताकत को महसूस करने के लिए और वह भी बरसों के बाद इसलिए उसकी चाहत को ज्यादा ही बढ़ती जा रही थी वह कुछ बोल नहीं पाई बस मूर्ति की तरह खड़ी रही अब सारा काम सूरज को यह करना था उसे खुद अपनी मंजिल पर पहुंचना था इसलिए वह मौके की नजाकत को समझते हुए और ज्यादा वक्त ना गंवाते हुए इस बार अपने होंठ को रत्ना के गुलाबी होठ पर ले जाने के बजाय रत्ना की मदमस्त दशहरी आम की चॉकलेटी निप्पल पर लेकर आओ और उसे मुंह में भर कर चूसना शुरू कर दिया... रत्ना के लिए कोई विकल्प नहीं बचा था क्योंकि उसकी चूची को मुंह में लेते हैं रत्ना का अंग अंग फुदकने लगा,,
वह अच्छी तरह से जानती थी कि इतनी अंधेरी रात में किसी को क्या पड़ी है एक दूसरे के घर में झांकने के लिए और वैसे भी इस वक्त घर के सारे मेहमान घर पर सो रहे थे,, इसलिए उसके लिए भी यह सुनहरा मौका था इसलिए वह भी यही सोचे कि जो होता है हो जाने दो और जो होगा देखा जाएगा जिंदगी का मजा लूटा जाए इसलिए वह सूरज को कुछ बोली नहीं लेकिन उसकी हरकत की वजह से उसके मुख से गर्म सिसकारी फूट पड़ी.. सूरज एक हाथ से रत्ना की मदमस्त चूची को मसलते हुए दूसरी चूची को मुंह में लेकर दूध पीना शुरू कर दिया था... बरसों के बाद कोई हटीला मर्द था जो रत्ना की चूची को मुंह में लेकर पी रहा था और उसे उसकी जवानी याद दिला रहा था इसलिए इस पल को जी लेने के लिए वह सूरज की आगोश में समाती जा रही थी,,,,

सूरज की मदहोश हरकतों की वजह से रत्ना चारों खाने चित हो गई थी सूरज उसकी मदमस्त चुचियों का आनंद लूटते हुए उसे एक बार फिर से घास के ढेर पर पीठ के बल लेटा दिया और दोनों हाथों से उसकी दोनों चूचियों को पकड़ कर बारी-बारी से दशहरी आम की तरह उसके मधुर रस को पीना शुरु कर दिया। पल भर में ही उत्तेजना के असर में रत्ना की दशहरी आम हापुस आम की तरह कड़क हो गई जिसका आनंद सूरज दबा दबा कर और उसे मुंह में भर कर पीकर ले रहा था और रत्ना सूरज को पीला कर ले रही थी,,

पल भर में कमरे का दृश्य एकदम मादक हो गया ऐसा लग रहा था मानो कोई कामुक पीचर चल रही हो... सूरज के तन बदन में उत्तेजना की चिंगारियां फूट रही थी और यही हाल रत्ना का भी था उम्र के इस पड़ाव पर उसका खूबसूरत बदन उसे इतना ज्यादा आनंद देगा इस बारे में उसने कभी कल्पना नहीं की थी इस समय वह पीठ के बल चित लेटी हुई थी,, नर्म नर्म घास पर अपने ऊपर सूरज को लेकर वह जवानी का मजा लूट रही थी बरसों के बाद किसी असली मर्द ने उसकी मद मस्त चूचियों को मुंह में लेकर पीना शुरू किया था,,सूरज समझ गया था कि अब रत्ना के पास किसी भी प्रकार का कोई भी विकल्प नहीं बचा है वह उसकी मदहोश जवानी को अपने काबू में कर पाने की स्थिति में बिल्कुल भी नहीं थी इसलिए सूरज की मर्दाना ताकत के अधीन होकर जवानी का मजा लूट रही थी.....सूरज उसकी टांगों के बीचो बीच लेटकर अपनी मर्दाना ताकत का एहसास उसकी टांगों के बीच के उस नरम नरम अंग पर महसूस करा कर.... रत्ना को पूरी तरह से अपनी आगोश में ले चुका था सूरज स्वर्ग का सुख भोगते हुए रत्ना की खूबसूरत बदन से खेल रहा था रत्ना के दोनों दशहरी आम बारी-बारी से सूरज के मुंह में जाकर अपना स्वाद चखा रहे थे सूरज को इस कार्य में बेहद आनंद की अनुभूति हो रही थी,,

हालांकि उसने अब तक बहुत ही खूबसूरत कबूतरों को अपनी हथेली में भरकर उसे मुंह में लेकर मस्ती भरे पल का मजा ले चुका था लेकिन आज रत्ना के दोनों फुदकते हुए कबूतर सूरज को अपनी दूसरी ही कहानी कह रहे थे जिसमें सूरज को मजा आ रहा था,,
रत्ना के मुख से लगातार गर्म सिसकारी की आवाज पूरे कमरे में गूंज रही थी और सूरज था कि रत्ना के खूबसूरत आम को जोर-जोर से दबाकर लाल टमाटर कर दिया था..... रत्ना भी इस तरह के स्तन मर्दन का अनुभव पहली बार ले रही थी सूरज जिस तरह से सरगोशी से ताकत लगाकर रत्ना की चुचियों को दबा रहा था रत्ना को इस तरह से स्तन मर्दन करवाने का यह पहला अनुभव था जिसमें वह पूरी तरह से डूबती चली जा रही थी....

सससहहहहहहह... औ सूरज ये क्या कर रहा है तू मुझे कुछ-कुछ हो रहा है,,,,

मैं जानता हूं चाची कि आपको मजा आ रहा है तभी तो आपको कुछ कुछ हो रहा है इससे भी ज्यादा मजा आएगा बस आप इसी तरह से मजा लेते रहो....(इतना कहने के साथ ही सूरज फिर से चला कि दोनों दशहरी आम पर टूट पड़ा...)

आहहहहहहह .... दर्द होता है....(रत्ना मुंह बनाते हुए बोली)

चाची यह दर्द का एहसास ही आप को जन्नत का मजा देगा....

धत्..... तू बातें बहुत बनाता है बस अब बहुत हो गया अब तु चला जा यहां से.....(रत्ना यह बात ही ऊपरी मन से बोल रही थी इस बात का एहसास सूरज को अच्छी तरह से था.... क्योंकि अब वह वह अपने ऊपर लेटे सूरज को हटाने की कोशिश भी नहीं कर रही थी बस मुंह से ही बोल रही थी...)

चला जाऊंगा चाची बस एक बार अपनी मदहोश कर देने वाली मदमस्त जवानी की आगोश में मेरी मचलती जवानी को खेलने दो,,,,


नहीं नहीं सूरज तू यहां से चला जा नहीं तो मैं तेरी घर पर सबको बता दूंगी....

क्या बताओगी चाची क्या कहोगी. ‌ ... जरा सोचो आप जैसी संस्कारी औरत कभी अपने मुंह से कह पाए कि कि आपका लड़का यह आकर मेरे होठ चूस रहा था,, क्या आप इतने गंदे शब्द अपने होंठ पर ला सकते हैं क्या अपनी जबान से यह कह सकती हो कि सूरज मेरी मदमस्त चुचियों को मुंह में लेकर पी रहा था (यह कहते हुए सूरज फिर से रत्ना के लाजवाब निप्पल को मुंह में लेकर पीना शुरू कर दिया... एक बार फिर से रत्ना के तन बदन में आग लग गई उसका अंग-अंग पिघलने लगा...)

सससहहहहहहह.... सूरज मैं शायद तेरे घर पर ऐसा बोल नहीं पाऊं लेकिन जो कुछ भी तू कर रहा है मुझे शर्म आ रही है,,,,


शर्म कैसी चाची है तो औरतों का हक है जैसे धूप लगती है जैसे बदन को भी भूख लगती है... तुम्हारी इस ....(एक हाथ नीचे की तरफ ले जाकर पैंटी के ऊपर से ही बुर को टटोलते हुए) बुर को भी भूख लगती है और वह कैसी लंड़ की जो कि मैं आपकी भूख मिटा सकता हूं.. ‌क्योंकि मेरे पास मोटा तगड़ा लेंगे जो कि आपकी बुर में बराबर समा जाएगा और आप को जन्नत का मजा देगा....

(सूरज की यह अश्लील बहुत ही ज्यादा गंदी बात सुनकर रत्ना शर्म से पानी पानी हो गई..)

सूरज तू कितना गंदा है रे कैसी कैसी बातें कर रहा है,,,,


मैं जो कुछ भी कह रहा हूं चाची बिल्कुल सही कह रहा हूं आप देखना मैं आपको ऐसा सुख दूंगा कि आप तृप्त हो जाओगी...(इतना कहने के साथ है यह सूरज रत्ना के दोनों कबूतर को अपनी हथेली की गिरफ्त से आजाद कर दिया सूरज की गिरफ्त से आजाद होते हैं रत्ना की दशहरी आम दोनों पानी भरे गुब्बारे की तरह लहराने लगे वाकई में रत्ना की मस्त चूचियों को देख कर किसी का भी लंड पानी फेंक दे,,)


नहीं सूरज यहीं पर रुक जा अभी से आगे बढ़ने की ना तो मेरे में हिम्मत है और ना ही मैं चाहती हूं कि तू आगे बढे,,,,

(रत्ना ऊपरी मन से केवल दिखावा कर रही थी... सूरज अच्छी तरह से जानता था औरतों के अंगों में उनके चेहरे पर आए भाव को अब वह अच्छी तरह से पहचान चुका था रत्ना के बदलते हाव भाव को देखकर सूरज अच्छी तरह से समझता था कि जितना उसे बुर की तरह है उससे कहीं ज्यादा रत्ना को उसके मोटी तक में लंड की आग सुलगा रही है सूरज अब रत्ना की बात पर बिल्कुल भी ध्यान देना नहीं चाहता था वह आगे बढ़ना चाहता था इसलिए घास पर बैठ गया था और अपनी उंगलियों के पोरों से रत्ना के खूबसूरत चिकनी पेट पर फिर आकर उसे मस्ती के आलम में लिए जा रहा था.... रत्ना की पेंटी सूरज की आंखों के सामने थी जिसे देख कर उसके धोती में गदर मच रहा था। ऐसे हाल और ऐसे माहौल में सूरज क्या कोई भी मर्द अपने आप पर काबू कर सकने में असमर्थ ही होता है यह पल पीछे जाने के लिए नहीं बल्कि आगे बढ़ने के लिए होता है.... और सूरज शर्मा के मदन रस से भीगी हुई पेंटी को देखकर अपने आप पर काबू नहीं कर पाया और अपना हाथ आगे बढ़ाकर उंगलियों के पोरों से बुर की ऊपरी सतह को स्पर्श करने लगा..... सूरज की मर्दाना उंगलियों को अपनी बुर परमहसूस करते ही रत्ना के मुख से फिर से गर्म सिसकारी फूट पड़ी और वह शर्म के मारे दूसरी तरफ अपना मुंह घुमा ली रत्ना की हरकत देखकर सूरज समझ गया कि उसके लिए रास्ता एकदम साफ हो चुका है और वह बिना रुके आगे बढ़ने की ठान लिया और वैसे भी जवानी के टेढ़े मेढे पथ पर रुका नहीं जाता बल्कि आगे बढ़ता ही चले जाना एक असली मर्द की मर्दानगी की निशानी होती है.... उसे बंद देखते ही देखते अपने देखते हुए होंठ को रत्ना की गहरी नाभि मे घुसा कर चाटना शुरू कर दिया और एक हाथ को धीरे से पेट के नीचे की तरफ ले जाकर उसे धीरे-धीरे पेंटी के अंदर सरकाना शुरु कर दिया....

रत्ना अपने ऊपर दोहरा आक्रमण सहन नहीं कर पा रही थी... एक तो जिंदगी में पहली बार कोई मर्द उसकी गहरी नाभि पर इस तरह से लालायित हुआ था उसे मुंह में भरकर चाट रहा था इससे वह पूरी तरह से कसमसाने लगी.... और दूसरी तरफ सूरज की सरकती हुई उंगलियां पेंटी के अंदर हलचल मचाई हुई थी।। देखते ही देखते सूरज अपनी उंगलियों की गिरफ्त में सलाह के मदमस्त जवानी से भरपूर गुलाबी पंखुड़ियों से सुशोभित बुर को लेकर सहलाना और मसलना शुरू कर दिया.... अब रत्ना के बस में कुछ भी नहीं था... वह उत्तेजना के मारे बिस्तर पर छटपटा रही थी ‌‌.... देखते ही देखते सूरज की उंगलियां रत्ना के मदन रस में भीगने लगी... वह जोर-जोर से पेंटी के अंदर हाथ डालकर रत्ना की बुर को मसलना शुरू कर दिया था जिससे रत्ना की हालत खराब होते जा रही थी... वह पूरी तरह से घास के ढेर पर छटपटा रही थी मानो किसी मछली को जल्द से बाहर जमीन पर रख दिया गया हो।

औहहहहहह.... सूरज.. ।।औ सूरज मुझे कुछ हो रहा है मैं मर जाऊंगी ....मुझे बचा ले.... मुझे संभाल यह मुझे क्या हो रहा है।

रत्ना की यह बातें सुनकर मानो सूरज को इसी पल का बेसब्री से इंतजार था.... वह अच्छी तरह से समझ गया था कि रत्ना पूरी तरह से गर्म हो चुकी है.... और वह तुरंत अपनी दिशा बदल अपने घुटनों पर बैठ गया और रत्ना के पैंटी को दोनों हाथों से पकड़कर उसे एक झटके में नीचे खींचने की कोशिश किया लेकिन....रत्ना की भारी-भरकम गांड के वजन की वजह से पेंटी नीचे की तरफ नहीं सरक पाई लेकिन घड़ी के छठवे भाग में ही जैसे रत्ना को इस बात का अंदाजा हो गया कि सूरज उसकी पेंटी उतारना चाहता है इसलिए रत्ना ना चाहते हुए भी अपने आप ही उसकी मदमस्त खूबसूरत भारी-भरकम गांड खुद-ब-खुद हल्के से ऊपर की तरफ उठ गई....और मौके की नजाकत को समझते हुए सूरज तुरंत रत्ना की पेंटी को नीचे की तरफ खींच लिया और उसके खूबसूरत पैरों में से बाहर निकाल कर उसे जमीन पर फेंक दिया....पल भर में ही रत्ना एकदम नंगी हो गई सूरज की आंखों के सामने एक खूबसूरत औरत उम्र के इस पड़ाव पर अपनी खूबसूरती बिखेरते हुए एकदम नंगी पड़ी हुई थी,, रत्ना को इस बात का आभास हो गया कि वह सूरज की आंखों के सामने एकदम नंगी पड़ी है रत्ना को भी अपनी इस हरकत पर बेहद आश्चर्य हुआ कि वह कैसे अपनी गांड को ऊपर उठाकर उसका सहकार करने लगी,

वह अपने बेटे के उम्र के लड़के के सामने बेहद शर्मिंदगी महसूस कर रही थी और अपनी नजरों को छुपाने की कोशिश कर रही थी और दूसरी तरफ सूरज रत्ना जो कि उसकी मामी की उम्र की औरत थी उसके अंदर सुख ढूंढने की कोशिश करते हुए उसकी दोनों टांगों अपने हाथों से पकड़कर फैला दिया अब इसकी आंखों के सामने हल्के हल्के रेशमी मुलायम बालों से गिरी हुई गुलाबी पत्ती से सुशोभित रत्ना की बुर उसे आमंत्रण दे रही थी... और सूरज इस आमंत्रण से इनकार नहीं कर पाया और देखते ही देखते उसके होंठ रत्ना की दोनों टांगों के बीच आ गया जैसे ही रत्ना ने अपनी दहकती हुई बुर पर सूरज के होंठ का स्पर्श का अनुभव कि उसका पूरा बदन एक अजीब से सुख की झनझनाहट में पूरी तरह से मचलने लगा एक पल के लिए तो उसे इस बात पर विश्वास ही नहीं हुआ कि जिस पल का वह अनुभव कर रही है वह पल हकीकत में वह जी रही हैं उसे सब कुछ अपना सा लग रहा था .. लेकिन हल्की सी गर्दन को ऊपर उठाकर जैसे ही अपनी टांगों के बीच नजर घुमाई तो उधर का नजारा देखकर वह पूरी तरह से मस्त हो गई उसकी आंखों के सामने ही सूरज उसकी मदमस्त रसीली मदन रस से भरी हुई बुर को अपने जीभ से चाट रहा था....

आहहहहहहह ..... सूरज यह क्या कर रहा है इतना गंदा काम है....( रत्ना यह बात अपने ऊपर मन से कह दो रही थी लेकिन सूरज को हटने के लिए बिल्कुल भी हिदायत नहीं दे रही थी।) भगवान के लिए ऐसा मत कर कितना गंदा काम कर रहा है तु क्या कोई ऐसा भी करता है,,,,

क्यों नहीं चाची ( सूरज अपनी ऊखड़ती हुई सांसो को दुरुस्त करते हुए) क्या आपने कभी ऐसा अनुभव नहीं लिया,,,


मेरी सुहागरात की रात को मेरे पति ने बिल्कुल तेरे जैसे ही हरकत की थी लेकिन मैं बिल्कुल भी तैयार नहीं थी मुझे यह बिल्कुल गंदा लग रहा था और मैं मेरे पति को इनकार कर दी और उन्हें अपनी कसम दे दी कि आइंदा इस तरह की हरकत ना करें और तब से उन्होंने दोबारा यह हरकत कभी मेरे साथ नहीं किया,,,,



चाची आप बिल्कुल पागल हो आप नहीं जानती कि इसमें मर्दों के साथ-साथ औरतों को कितना सुख मिलता है। जब एक मर्द अपनी जीभ से औरत की बुर को चाटता है तो औरत एकदम मस्त हो जाती है...सच कहूं तो चाची किसी किसी औरत को तो चुदवाने से ज्यादा चटवाने में मजा आता है,,,,


धत कभी क्या ऐसा होता है मुझे तो बहुत गंदा लगता है....(रत्ना भी इस अनुभव का बेहद आनंद लेना चाहती थी लेकिन फिर भी अपनी तरफ से नाराजगी दर्शा रही थी..)


मेरी बात मानो चाची मैं पहले ही कह चुका हूं कि बुर के बारे में मैं बहुत कुछ जानता हूं इसलिए बस आप आंखें बंद करके मजा लीजिए ...(और इतना कहने के साथ ही सूरज एक बार फिर से रत्ना की बुर की गुलाबी पत्तियों को अपने मुंह में लेकर उसे चूसना शुरू कर दिया... सूरज के कहे अनुसार पल भर में ही रत्ना को तारे नजर आने लगे उसने ऐसा सुख कभी भी महसूस नहीं की थी उसे इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि इस तरह से बुर चटवाने में मजा आता है ..... उसके मुख से लगातार गर्म सिसकारी फूट रही थी जो कि पूरे कमरे के माहौल को मादक बना रही थी। पल भर में ही वह घास के ढेर पर जल बिन मछली की तरह छटपटा रही थी रह रहे कर उसकी पूरी से पानी का फव्वारा फूट रहा था... ना चाहते हुए भी उसके मुख से कर्म सिसकारी की आवाज के साथ साथ गंदी गंदी बातें निकलने लगी।

औहहहह सूरज यह क्या कर रहा है हरामजादे मैं तुझे कितना अच्छा लड़का समझ रही थी... । लेकिन तू तो... आज्हहहहहह.... तूने मुझे मस्त कर दिया मैं .... ऊममममममम.....कभी सोच भी नहीं सकती थी कि बुर चटवाने में इतना मजा आता है ऐसे ही चाट ....चाटता रह मुझे बहुत मजा आ रहा है अपनी जीभ डाल डाल कर चाट आहहहहहहहह ...सूरज....


रत्ना की बातें सुनकर सूरज पूरी तरह से गर्म हो गया वह जानता था कि हथोड़ा का वार लोहे पर तभी करना चाहिए जब लोहा पूरी तरह से गर्म हो जाए और इस समय लोहा पूरी तरह से गर्म हो चुका था वह जानता था कि आप हथौड़े का प्रहार करना बहुत जरूरी है....इसलिए देखते ही देखते रत्ना की आंखों के सामने सूरज अपने सारे कपड़े निकाल कर एकदम नंगा हो गया और रत्ना की आंखों के सामने सूरज का झूलता हुआ मोटा तगड़ा लंड कहर ढा रहा था....रत्ना ने जिंदगी में इस तरह का मोटा तगड़ा और मर्दाना ताकत से भरपूर लंड का दर्शन कभी नहीं कि थी...इसलिए सूरज की टांगों के बीच खड़े लंड को देखकर वह पूरी तरह से भौंचक्की रह गई उसका मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह गया.....


बाप रे बाप इतना बड़ा......


तो क्या चाची मुझे ऐरा गेरा समझी थी क्या..... एक बार जिसकी बुर में जाता है...(अपने लंड को जोर-जोर से ऊपर नीचे करके हीलाते हुए) उसे पूरी तरह से अपना दीवाना बना लेता है अब देखना मैं कैसे तुम्हें अपना दीवाना बनाता हूं.....(इतना कहने के साथ ही सूरज अपने लंड को हिलाते हुए आगे बढ़ा...और रत्ना की सांसे तिरुपति से चलने लगी थी क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि सूरज का मोटा लंड उसकी बुर में जाने वाला है लेकिन उसकी मोटाई देखकर उसके माथे पर पसीना आ रहा था लेकिन उत्सुकता भी बरकरार थे वह भी जिंदगी में पहली बार मोटी तगड़ी लंड से चुदने का अनुभव लेना चाहती थी....और देखते ही देखते सूरज उसकी दोनों टांगों के बीच आ गया सूरज भी अच्छी तरह से जानता था कि उसकी बुर वर्षों से छोटे से लंड को अपने अंदर लिए है इसलिए उसका मोटा तगड़ा लंड उसकी कसी हुई बुर के लिए कुछ ज्यादा ही मोटा नजर आ रहा था... इसलिए ढेर सारा थूक लगाकर वह अपने लंड को पूरी तरह से चिकना कर लिया और एक घास का ढेर रत्ना की गांड के नीचे लगाकर उसे थोड़ा हल्के से ऊपर कर लिया और अपनी मोटे तगड़े लंड की सुपाड़े को गुलाबी पत्तियों के बीच टीकाकर हल्के से धक्का लगाया और अगले ही पल लंड का मोटा सुपाड़ा बुर में उतर गया.... रत्ना की सांसे तेज चलने लगी उसके दिल की धड़कन बढ़ने लगी बरसों के बाद उसकी बुर एक बार फिर से उद्घाटन हुआ था सूरज के मोटे तगड़े लंड के सुपाड़े को अपनी बुर में महसूस करके वह मस्त हुए जा रही थी.... उत्तेजना के मारे उसका गला सूखने लगा था उसे यकीन नहीं हो रहा था कि सूरज अपना मोटा तगड़ा लंड उसकी कसी हुई बुर में डाल देगा... इसलिए रत्ना एक बार अपनी शंका का समाधान ढूंढने के लिए सूरज से बोली....


आहहहहहहह .... सूरज बहुत मोटा है....


आप चिंता मत करो चाची मैं संभाल लूंगा।...
(और इतना कहने के साथ ही सूरज रत्ना की सभी चिंताओं को दूर करते हुए धीरे-धीरे अपने मोटे तगड़े लंड को हल्के हल्के धक्के लगा कर इंच दर इंच बुर में सरकाने लगा...जैसे-जैसे सूरज का मोटा तगड़ा लंड बुर की गहराई में जा रहा था वैसे वैसे रत्ना के चेहरे का भाव दर्द के कारण बदलता जा रहा था उम्र के इस पड़ाव पर पहुंच कर भी एक नौजवान लड़के के मोटे तगड़े लंड को अपनी बुर में लेकर उसे दर्द महसूस हो रहा था इस बात के एहसास से ही सूरज को गर्व अनुभव हो रहा था। ... सूरज की भी सांसें उखड़ रही थी वह भी एक नई दुनिया का अनुभव कर रहा था वह जैसे जैसे अपने लंड को रत्ना की बुर की गहराई में उतार रहा था वैसे वैसे उसे एक अद्भुत आनंद की अनुभूति हो रही थी...
जितना लंड रत्ना की बुर में घुसा हुआ था रत्ना को यह भी अधिक लग रहा था इस बार सूरज कचकचा कर धक्का लगाया और सूरज का मोटा तगड़ा लंड बुर के अंदर की सारी अड़चनों को दूर करता हुआ ... बुर की गहराई में उतर गया,,

इस तरह से एकाएक हुए प्रहार से वह पूरी तरह से आहत हो गई... वह दर्द से बिलबिला उठी उसे उम्मीद नहीं था कि सूरज इस तरह से जोर लगा देगा... उसका मुंह दर्द से खुला का खुला रह गया वह अपनी बुर की गहराई में सूरज के मोटे तगड़े लंड को अच्छी तरह से महसूस कर रही थी उसकी सांसे बड़ी तेजी से चल रही थी.... रत्ना मछली की तरह तड़प रही थी उससे रहा नहीं जा रहा था उससे सूरज के मोटे लंड की घर्षण अपनी बुर की गहराई अपने बुर की दीवारों पर सहन नहीं हो रही थी...

सूरज तु निकाल.... निकालो अपने लंड को मुझे बहुत दर्द हो रहा है मुझसे रहा नहीं जा रहा है..... मुझे कुछ हो जाएगा....(रत्ना दर्द से बिलबिला रही थी उसे बार-बार अपना लंड बाहर निकालने के लिए बोल रही थी लेकिन सूरज अच्छी तरह से जानता था कि एक बार लंड बुर से बाहर आ गया तो सूरज उसे दोबारा रत्ना की बुर में नहीं डाल पाएगा... इसलिए वह शर्मा का ध्यान भटकाते हुए बोला...)

कुछ नहीं होगा क्या चीज मुझ पर भरोसा रखो जब मैं आपको मंजिल के इतने करीब ला सकता हूं तो आप को मंजिल तक पहुंचा भी सकता हूं बस मेरे पर भरोसा रखिए (और इतना कहने के साथ ही सूरज अपने दोनों हाथ आगे बढ़ा कर एक बार फिर से चला के दोनों दशहरी आम को अपने हाथों में थाम लिया। और उसे फिर से दबाना शुरू कर दिया एक बार रत्ना फिर से मस्त होने लगी उसके बदन में फिर से जवानी फूटने लगे थोड़ी ही देर में रत्ना को महसूस होने लगा कि सूरज अपनी कमर हिलाते हुए उसे चोदना शुरू कर दिया है लेकिन उसे दर्द नहीं बल्कि मजा आ रहा है और देखते ही देखते वह पूरी तरह से आनंदित होने लगी..सूरज हल्के हल्के अपनी कमर को आगे पीछे करते हुए रत्ना को चोद रहा था एक अद्भुत नजारा पूरे कमरे को मादक बना रहा था रत्ना पूरी तरह से नंगी घास पर लेटी अपने बेटे की उम्र के लड़के से चुदवाने का मजा लूट रही थी... और सूरज अपने ही होने वाली मामी के घर में विजयी झंडा लहरा रहा था।


रत्ना को मजा आ रहा था और सूरज ने एक बार फिर से अपनी कामयाबी पर मंद मंद मुस्कुराते हुए धक्के पर धक्के लगा रहा था उसकी कमर की हलचल कुछ ज्यादा ही गतिमान हो गई वह इतनी जोर जोर से कमर हिलाना शुरू कर दिया कि घास बिखरने लगी.... सूरज पूरी तरह से रत्ना के ऊपर छा जाना चाहता था यह अपने पहले संभोग के असर में पूरी तरह से उसे नहला देना चाहता था ताकि वह उसकी दीवानी हो जाए और वह उसके ऊपर झुककर बारी-बारी से दोनों चूचियों को मुंह में भर भर कर पीना शुरू कर दिया जिससे रत्ना को और ज्यादा मजा आने लगा रत्ना को आनंद की अनुभूति इतनी ज्यादा हो रही थी कि वह सूरज को अपनी बाहों में लेकर उसे सहला रही थी और अपने दोनों हाथ को नीचे की तरफ ले जाकर सूरज के नितंब को दबा दबा कर उसका जोश बढ़ा रही थी।
औरतों के साथ रासलीला मैं काबिल और माहिर होने के बावजूद भी रत्ना की मदमस्त जवानी और उसकी हरकतों की वजह से इस बार सूरज ज्यादा देर तक टिक नहीं पाया लेकिन जब तक जितना भी टीका उतने में ही रत्ना का काम तमाम हो चुका था
एक बार सूरज चढ़ा था लेकिन दो बार रत्ना को झाड़ चुका था... रत्ना की सांसें उखड़ रही थी जिंदगी में पहली बार वह चुदाई की तृप्ति का अहसास और सुख भोग रही थी।
और सूरज गहरी गहरी सांस लेता हुआ रत्ना पर पसर गया था।
 
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रत्ना की आंखें बंद थी गुलाबी होंठ खुले के खुले रह गए थे और मुंह में से गर्म आहें रह रह कर बाहर आ रही थी.... और सूरज रत्ना की मदमस्त गुब्बारे जैसी गोल जवानी पर सर रखकर गहरी सांस ले रहा था और उसका लंड अभी भी रत्ना की बुर के अंदर अपनी जवानी का सैलाब उगल रहा था,,,, रह-रहकर सूरज की कमर लहरा उठती थी,,,,
सूरज को उम्मीद तो बिल्कुल भी नहीं थी वह आया तो मिलने अपने होने वाली मामी से लेकिन अनजाने में उसकी मां यानी रत्ना जैसी उम्र दराज औरत उससे चुद पाएगी उसके नीचे होगी लेकिन उसे अपनी मर्दानगी पर पूरा विश्वास था कि एक बार उसका मोटा तगड़ा लंड का दीदार करने के बाद रत्ना अपने आपको रोक भी नहीं पाएगी और वही हुआ,,
रत्ना अपने बेटे की उम्र के जवान लड़के के साथ संभोग सुख का आनंद लेकर एक दम मस्त हो चुकी थी तृप्ति का अहसास क्या होता है जिंदगी में आज पहली बार उसे इसका अनुभव हुआ था और इस अनुभव के साथ वह बेहद खुश नजर आ रही थी उसके चेहरे की लालिमा साफ बयां कर रही थी कि आज घर के पीछे बने कमरे में अपने ही बेटे के उम्र के लड़के के साथ चुदाई करवाई उसे जरा भी झिझक एहसास नहीं हुआ बल्कि उसे मजा ही मजा आया था.. गहरी सांसे लेते हुए रत्ना सूरज की नंगी पीठ सहला रही थी और सूरज रूई जैसी मुलायम को तो आज चुचियों पर सिर रखकर गरम आहें भर रहा था।

दोनों के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव साफ नजर आ रहे थे,,
आज उम्रदराज औरत से संभोग सुख की प्राप्ति करके वह बेहद खुश नजर आ रहा था।
रत्ना की रसीली बुर पर सूरज अपना लंड टीका हुआ।


कैसा लगा चाची...(सूरज उसी तरह से रत्ना के बदन पर लेटे-लेटे ही बोला)

पागल हो गया है क्या तु.... यह भी कोई पूछने वाली बात है। ( रत्ना शर्मा कर दूसरी तरफ नजर फिरते हुए बोली।)


पूछने वाली बात तो है चाची आखिरकार आपको खुश करने में इतनी मेहनत जो लगी है देख नहीं रही हो मेरा पूरा बदन पसीने में भीग चुका है.....


वाह रे मेहनत मुझे पागल समझता है क्या .... ऊठ मेरे ऊपर से कि ऐसे ही लेटा रहेगा,,,,


उठने का मन नहीं कर रहा है चाची,,,,

क्यों अभी तेरा मन नहीं भरा क्या....?

पूछ तो ऐसे रही हो चाची की लगता है कि एक बार फिर से लेने का मन है......
(सूरज की यह बात सुनकर रत्ना आंखें बड़ी कर कर उसे देखने लगी और फिर मंद मंद मुस्कुराने लगी जो कि इस बात का इशारा था कि जो वह कह रहा है वह भी वह मन ही मन चाह रही थी....)

नहीं मेरा ऐसा कोई भी मन नहीं है अब तू जा यहां मत रुक....(सूरज को अपने ऊपर से हटाते हुए बोली)


रुको रुको रुको रुको चाची। ......(अपनी कमर को हल्के से ऊपर की तरफ उठाते हुए) पहले ईसे तो निकाल लेने दो....(सूरज के इतना कहते ही रत्ना की नजर खुद ब खुद अपनी टांगों के बीच चली गई जहां पर उसे साफ नजर आ रहा था कि सूरज अपने लंड को उसकी बुर से बाहर निकाल रहा है. ‌ जोकि उसके बुर के मदन रस में पूरी तरह से भीग चुका था.... रत्ना यह नजारा देखकर अंदर ही अंदर शर्मसार हुए जा रही थी की एक नौजवान लड़का उसकी बुर में लंड डालकर और अपना गरम लावा उगल कर अपना लंड बाहर निकाल रहा है रत्ना यह देखकर एकदम हैरान थी कि इस समय भी उसका लंड लगभग खड़ा ही था जो कि जिस तरह से वह बाहर की तरफ खींच रहा था उसकी रगड़ बुर के अंदरूनी दीवारों पर महसूस करके उसे फिर से मस्ती छाने लगी थी...
तभी पुक्क की आवाज के साथ सूरज का पूरा लंड बुर से बाहर आ गया.... लंड के बाहर आते ही सूरज रत्ना के बगल में पसर गया। .. जो कि अभी भी उसका लंड छत की तरफ मुंह करके खड़ा था.... सूरज अच्छी तरह से जानता था कि रत्ना चोर नजरों से अभी भी उसके लंड पर नजर गड़ाए हुए हैं इसलिए वह अपना एक हाथ नीचे की तरफ ले जाकर अपने लंड को जड़ से पकड़कर हवा में लहराने लगा जो कि बेहद लुभावना और मादक लग रहा था उस नजारे को देखकर रत्ना के तन बदन में फिर से सुरसुरी मचने लगी. ‌ और वैसे भी सूरज का एक बार में मन नहीं भरता... और यह बात सूरज अच्छी तरह से जानता था कि रत्ना जैसी प्यासी औरत एक बार में तृप्त होने वाली नहीं थी भले ही तृप्ति का अहसास उसे मादकता में सराबोर कर दिया हो लेकिन लगातार दो तीन बार की चुदाई के बाद ही वह पूरी तरह से उसके अधीन हो जाएगी।

औरतों के साथ पोजीशन बदल बदल कर चुदाई करने की आदत थी .... और अभी तो रत्ना को केवल एक ही आसन में लगातार धक्के पर धक्के देकर चुदाई किया था अभी तो आसन बदलना जरूरी था ताकि रत्ना को इस बात का एहसास होगी औरत की चुदाई हर आसन में अत्यधिक आनंद देती है। हो सकता था कि रत्ना शर्म के मारे या एक बार अपनी गलती का एहसास होने के नाते दोबारा संभोग करने के लिए राजी ना हो और उसे घर से बाहर भेज दी लेकिन सूरज अच्छी तरह से जानता था कि यह पल ऐसा होता है अगर वह कमजोर पड़ गया तो रत्ना दुबारा संभोग के लिए राजी नहीं होगी इसलिए तो वह रत्ना के मन से खेलने के उद्देश्य से उसकी आंखों के सामने ही अपने लंड को जड़ से पकड़ कर हिला रहा था और यह देखकर रत्ना का मन फिर से बहकने लगा था...


देख रही हो चाची (अपने लंड को हिलाते हुए )मुझे तो यकीन नहीं हो रहा है कि यह तुम्हारी गरम बुर की गरम दीवारों से रगड़ रगड़ कर तुम्हारी बुर की गहराई को छू कर बाहर आया है....(इस तरह की गरम बातें सुनकर रत्ना पर सुरूर चढ़ने लगा था उसे यकीन नहीं हो रहा था कि यह कल का लौंडा ऐसी अजीब अजीब गंदी गंदी बातें कर रहा है क्योंकि जिस तरह से वह अश्लील बातें कर रहा था उस तरह से उसने अपने पति के मुंह से भी इतनी गंदी बातें नहीं सुनी थी तभी तो उसके तन बदन में अजीब सुरूर चढ़ने लगा था आंखो में खुमारी छाने लगी थी.... इसलिए वह बोली)

तेरे मासूम चेहरे को देखकर लगता नहीं है कि तू इतना बड़ा शैतान होगा कितनी गंदी गंदी बातें करता है ...(सूरज के लहराते हुए लंड को चोर नजरों से देखते हुए)

चाची जी अब तो चेहरा देखकर पता करना मुश्किल होता है कि इस के मन में क्या चल रहा है और वैसे भी देखो ना कल से जब आप घर में घुमोगी तो कोई आपके खूबसूरत चेहरे को देखकर यह नहीं समझ पाएगा कि आप खुद घर के पीछे बने कमरे में अपने जमाई के भांजे से जी भर कर चुदवाई की है।....

दैया रे दैया तु कितना बेशर्म है रे....?


बेशर्म नहीं चाची दीवाने हो गए हैं आपके....(एक हाथ रत्ना की चूची पर रख कर बोला)

हरामखोर तेरी उम्र देख और मेरी उम्र देख,,,,


अगर उम्र ही देखता तो तुम्हारी जमकर चचदाई नहीं करता और चाची सच कहूं तो अगर तुम भी उम्र की मर्यादा को देखती तो एक जवान लंड का स्वाद नहीं चख पाती.... देखी नही कितना लहरा लहरा कर ले रही थी...(रत्ना की मदमस्त चुचियों पर एक बार फिर से छाता हुआ बोला...)


सच कहूं तो सूरज मैंने जिंदगी में आज तक तेरे जैसा बेशर्म लड़का नहीं देखा मैं तू दिखाने में अच्छे घर का लड़का लग रहा है... लेकिन तू तो एकदम बेशर्म निकला...


चाची अगर मैं बेशर्म नहीं होता ना तो तुम्हारी जैसी खूबसूरत औरत को अपने नीचे नहीं ला पाता... (सूरज अपनी हथेलियों को सख्ती से रत्ना के दशहरी आम पर वापस कसने लगा और दूसरे हाथ से अपने लंड को हिलाता रहा जोकि रत्ना चोर नजरों से बराबर देख रही थी... और यह देखकर सूरज बोला)


देखने से अच्छा अगर चाची इसको पकड़कर हीलाओगी ना तो और ज्यादा मजा आएगा....
(सूरज की बात सुनकर रत्ना एकदम से झेंप गई)

धत्त कैसी बातें करता है तु.... (इतना कहकर वह घास से उठने लगी और अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोली) मैं जा रही हूं कपड़े पहनने तू भी अब यहां से चला जा मैं नहीं चाहती कि किसी को इस बात का पता चले और मेरी बदनामी हो जाए,,
(इतना कहकर वह घास के ढेर से उठने जा रही थी कि सूरज फुर्ती दिखाते हुए तुरंत उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा हुआ जिससे नंगी रत्ना एक बार फिर से अपने खूबसूरत बदन को संभालने के चक्कर में सूरज के ऊपर गिर गई और सूरज उसे कसकर अपनी बाहों में जकड़ लिया.... सूरज एकाएक एकदम उत्तेजित हो गया था क्योंकि जब वो उठने को हुई तो रत्ना की भारी-भरकम गांड जो कि पहले से ही सूरज की कमजोरी रही है उसे देखते ही सूरज के तन बदन में सुरसुरी पैदा हो गई और वह अपनी उत्तेजना को काबू में नहीं कर पाया और रत्ना को अपनी तरफ खींच लिया रत्ना इस समय उसके ऊपर पेट के बल पसरी हुई थी और वह उठने की कोशिश बिल्कुल भी नहीं कर रही थी जिससे साफ प्रतीत हो रहा था कि वह भी यही चाहती थी सूरज तुरंत अपने दोनों हाथ उसके चिकने पीठ से होते हुए नीचे की तरफ ले आया और अपनी हथेलियों में उसके दोनों खरबूजे जैसे नितंबों की फांक को पकड़कर तुरंत दबाना शुरू कर दिया....जिससे एक बार फिर से रत्ना के बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ में लगी और उसके मुख से गर्म सिसकारी निकल गई।


ससससससहहहहहह ईईईई..... सूरज क्या कर रहा है मुझे जाने दे...

ऐसे कैसे जाने दूं मेरी जान..... (सूरज के मुंह से जान शब्द सुनकर रत्ना पहले तो चौक गई लेकिन उसे सुनकर उसके तन बदन में कुछ कुछ होने लगा जान शब्द सुनकर उसे ऐसा लगने लगा कि उसके बदन में जवानी फिर लौट आई है और सूरज उसे अपना प्रेमी नजर आने लगा लेकिन फिर भी उसकी इस बात का विरोध करते हुए बोली...)

यह क्या कह रहा है तू तुझे जरा भी एहसास है कि तू मुझे क्या कह रहा है,,

मैं अच्छी तरह से जानता हूं रत्ना मेरी जान मैं तुम्हें चाची कह सकता हूं लेकिन मुझे तुम इस समय अपनी प्रेमिका की तरह लग रही हो.....(इतना कहते हुए वह लगातार रत्ना की बड़ी बड़ी गांड से खेल रहा था और नीचे से अपने मोटे तगड़े लंड की रगड़ को एक बार फिर से रत्ना की बुर पर घर्षण करके उसे गर्म कर रहा था....)

तू छोड़ सुबह मुझे जाने दे एक बार हो गया सो हो गया दोबारा मुझे ऐसी गलती नहीं करनी है,,,,


लेकिन मुझे तो करनी है चाची क्या करूं तुम्हारी मदहोश जवानी मुझे पागल कर रही है तभी तो देखो ना एक बार जमकर चुदाई करने के बाद भी मेरा लंड खड़ा का खड़ा है,,,,


तो इसमें मैं क्या कर सकती हूं मैं तेरे लंड को ठंडा करने का क्या मैंने ठेका ले कर रखी हूं। (रत्ना भी उसी के रंग में रंगने लगी उसे भी अश्लील बातें करने में मजा आने लगा)


तुम कुछ भी कहो चाची लेकिन मैं शांत रहने वाला नहीं हूं तुम्हारी बड़ी बड़ी गांड ( दोनों हाथों से गांड पर चपत लगाते हुए) मुझे पागल कर रही है मुझसे रहा नहीं जा रहा है....

आहहहहहहह .... दुखता है......


लेकिन मजा भी तो आ रहा है चाची.....


लेकिन मुझे नहीं आ रहा है मुझे जाने दे और तू चला जा नहीं तो मैं अपने पति को इधर बुला लूंगी....


तो बुला लो बुला लो आपके पति को तो भी अपनी आंखों से देखे कि एक जवान लड़का अपने जवानी का जोश उसकी पत्नी पर उतार रहा है,,,


बाप रे कितना हरामि हो गया है तू धीरे-धीरे करके तेरे बारे में समझ में आ रहा है कि तू कितना बड़ा दुष्ट है ....(फिर से सूरज की पकड़ से अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करते हुए)


धीरे-धीरे सब समझ में आ जाएगा मेरी जान....(रत्ना जैसी उम्रदराज औरत को जान कहने में सूरज को अत्यधिक सुख की अनुभूति हो रही थी जिस तरह से वह उसकी गांड को जोर-जोर से चपत लगाते हुए मसाल रहा था उससे सूरज की उत्तेजना निरंतर बढ़ती जा रही थी और यही हाल रत्ना का भी हो रहा था.... सूरज भी अच्छी तरह से समझ रहा था कि रत्ना का भी मन दोबारा लेने का हो रहा है लेकिन वह अपने मुंह से कह नहीं पा रही है इसलिए वह पूरी तरह से उत्तेजित होकर रत्ना को अपनी बाहों में लेते हुए पलट गया और वह रत्ना के ऊपर आ गया और रत्ना पेट के बल चीत हो गई और धीरे-धीरे वह नीचे की तरफ आते हुए एक बार फिर से रत्ना की टांगों के बीच में आ गया और अपने होंठ को रत्ना की चुदी हुई बुर के ऊपर रखकर चाटना शुरु कर दिया....

सूरज को रत्ना के नमकीन पानी और अपने लावा का मिलाजुला मिश्रण का स्वाद मिल रहा था लेकिन रत्ना सूरज की इस हरकत से एकदम से उत्तेजित होने लगे और एक बार फिर से रत्ना में लंड को बुर में लेने की इच्छा जागने लगी सूरज के मन में कुछ और चल रहा था सूरज रत्ना को अपना लंड चटवाना चाहता था....और वो जानता था कि रत्ना इसे तैयार नहीं होगी इसके लिए उसे एकदम मदहोश करना जरूरी है उसकी आंखों में खुमारी भर देना जरूरी है और इसीलिए वह रत्ना को पूरी तरह से अपनी जीभ से मस्त कर देना चाहता था और वह जितना हो सकता था उतना जीभ रत्ना की बुर में डालकर उसके मदन रस को चाटना शुरू कर दिया था....
सूरज पागलों की तरह बुर रूपी कटोरी में से रत्ना के मदन रस को दूध की तरह चाटना शुरु कर दिया सूरज की इस हरकत की वजह से रत्ना घास के ढेर पर छटपटा रही थी उसका पूरा बदन कसमसा रहा था उसकी मदमस्त बड़ी-बड़ी चूचियां पानी भरे गुब्बारे की तरह लहरा रही थी..एक बार फिर से कमरा रत्ना की मदहोश कर देने वाली सिसकारीयो से गुंजने लगा.... सूरज गहरी गहरी सांसे ले लेकर रत्ना की बुर चाटने में लगा हुआ था बरसों बाद रत्ना को ऐसा सुख प्राप्त हो रहा था कि इस उम्र के दौरान कोई नौजवान लड़का उसकी बुर पर स्वाद ले रहा था और उसे भी बुर चटाई का पूरा मजा दे रहा था रत्ना तो मस्त हुए जा रही थी वह घास पर सर पटक पटक कर आनंद ले रही थी दोनों इस समय कमरे में संपूर्ण नग्ना अवस्था में थे....

रत्ना की गर्म सिसकारियां पूरे कमरे में गूंज रही थी...
सससहहहहहहह... आहहहहहहह ... आहहहहहहह सूरज और चाट जी भरकर चाट.... आज्हहहहहहहभमुझे मजा आ रहा है बहुत मजा आ रहा है तूने तो मुझे मस्त कर दिया ऐसे ही चाट.... ऊममममममम ......(गरम सिसकारियां लेते हुए रत्ना अपने दोनों हाथ को सूरज के रेशमी बालों में उलझा कर उसका मुंह और जोर से अपनी बुर पर दबाना शुरू कर दी रत्ना की हरकत देखकर सूरज समझ गया कि अब रत्ना उसका लंड मुंह में लेने के लिए तैयार हो जाएगी इसलिए वह रत्ना की बुर पर से अपना मुंह हटाया और रत्ना को दिखाते हुए अपना लंड हिलाते हुए बोला....

मेरी जान रत्ना चाची मैं आपको पूरा मजा दूंगा लेकिन आप अभी एक बार मेरा लंड मुंह में लेकर मुझे तृप्त कर दो मुझे मस्त कर दो चाची....
(सूरज की यह बात सुनकर रत्ना अंदर तक सिहर उठे उसके मन में अनजान डर फैलने लगा वह आश्चर्य से सूरज की तरफ देखते हुए बोली)..


नहीं नहीं सूरज मुझसे यह बिल्कुल भी नहीं होगा (सूरज के हाथों में झूलते हुए लंड को देखते हुए )मैंने आज तक कभी भी इसे अपने मुंह में नहीं ली....


मैं जानता हूं चाची तभी तो कह रहा हूं कि बस इसे एक बार अपने मुंह में लेकर देखो इतना मजा आएगा कि सारे सुख इसके आगे फीका लगने लगेंगे बस एक बार अपने मुंह में ले लो मेरी बात मानो चाची( ऐसा कहते हुए सब घुटनों के बल आगे बढ़ने लगा और रत्ना उसे रोकते हुए बोली...)


नहीं नहीं सूरज मुझे डर लगता है मुझसे ऐसा बिल्कुल भी नहीं होगा....


कैसे नहीं हो पर चाची बस एक बार कोशिश तो करो सब कुछ हो जाएगा इतना मजा आएगा कि पूछो मत (ऐसा कहते हुए सूरज घुटनों के बल चलते हुए उसके बेहद करीब पहुंच गया इतना करीब कि उसका लहराता हुआ लंड उसके होंठ के केवल दो अंगुल दूर रह गया..
एक मोटे तगड़े लंड को अपनी आंखों से इतने नजदीक लहराता हुआ देखकर रत्ना के तन बदन में उत्तेजना की चिंगारी फुटने लगी उत्सुकता बढ़ने लगी वह भी अपने मन में सोच रही थी कि एक बार ऐसा अनुभव लेने में कोई हर्ज नहीं है और यह वास्तविक था कि उसने आज तक किसी के भी लंड कों मुंह मे नहीं ली थी ना जाने क्यों उसे लंड को मुंह में लेने में घिन्न आती थी।लेकिन बार-बार सूरज के समझाने की वजह से वह तैयार हो गई और अपना हाथ आगे बढ़ाकर सूरज के लंऊ को अपने हाथ में पकड़ ली.... ( थोड़ी देर पहले जब अंधेरे में गलती से सूरज को अपना पति समझकर उसक का लंड अपने हाथों में पकड़ने से वह एकदम सिहर गई थी,)

लेकिन इस बार फिरसे वह सूरज के मरदाना लंड को हाथ में ले रही थी अजीब सा सुख अजीब सा अहसास उसके तन बदन को झकझोर के रख दें रहा था। उसकी उंगलियां कांप पर हुई थी लेकिन मजा बहुत आ रहा था... रत्नाकी नरम नरम उंगलियों के आगोश में अपने लंड को देखकर सूरज के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी।

लो ना चाची....
(सूरज की बात सुनकर रत्ना सूरज की तरफ नजर उठा कर देखने लगी सूरज की आंखों में लंड चुसाए जाने की उत्तेजना साफ नजर आ रही थी... रत्ना के होंठ फड़क रहे थे... वह धीरे-धीरे अपने होंठ को आगे लाकर जैसे ही उसे सूरज के मोटे लंड के सुपाड़े का स्पर्श हुआ उसका तन बदन में जैसे बिजली दौड़ गई हो.... उसका पूरा बदन झनझना गया....
लंड को मुंह में लेने से पहले ही रत्ना को इस बात का आभास हो गया कि वास्तव में मुंह में लंड लेने से औरतों को अत्यधिक आनंद की अनुभूति होती है इसलिए वह अपने होंठ खोल कर तुरंत सूरज के लंड के सुपाड़े को मुंह में भर ली पहले तो उसे अजीब सा लगा लेकिन धीरे-धीरे उसे मजा आने लगा और आहिस्ता आहिस्ता मैं सूरज के संपूर्ण मोटे तगड़े लंड को गले तक उतार कर चूसना शुरू कर दी कुछ ही पल में उसे सूरज के लंड चूसने में बेहद आनंद की अनुभूति होने लगी सूरज भी धीरे-धीरे अपनी कमर को आगे पीछे करते हुए रत्नाको अपना लंड चूसने में मदद कर रहा था।
रात के ठंडे वातावरण में दोनों पसीने से तरबतर हो चुके थे लगभग रात के ३:०० का समय हो रहा था,, दुनिया से बेखबर दोनों अपनी उम्र की मर्यादा को भूल कर एक दूसरे को आनंद देने में लगे हुए थे। देखते ही देखते रत्ना लंड चूसने में माहिर नजर आने लगी वह बड़ी शिद्दत से सूरज के मोटे तगड़े लंड को ऊपर से लेकर नीचे तक बराबर जीव लगा कर चाट रही थी... उसके लंड चाटने की अदा से ऐसा प्रतीत हो रहा था कि जैसे युद्ध से पहले तलवार में धार दी जा रही हो...

तकरीबन २० मिनट की लंड चुसाई के बाद सूरज को ऐसा लगने लगा कि कहीं वह रत्ना के मुंह में ही ना झड़ जाए और वह इतनी जल्दी झड़ना नहीं चाहता था इसलिए वह तुरंत रत्ना के मुंह में से लंड बाहर खींच लिया और बोलो....

वाह चाची मुझसे झूठ बोल रही थी कहती हो कि मैंने जिंदगी में कभी भी लंड मुंह में नहीं ली हूं और जिस तरह से तुम मेरे लंड को चूस रही हो मे यकीन नहीं कर सकता कि तुम कभी भी लंड को मुंह में लेकर चूसी नहीं हो....
(सूरज की बातों में शर्मिला को अपने लिए तारीफ के बोल नजर आ रहे थे इसलिए अंदर ही अंदर खुश हो रही थी और वह अपनी सफाई पेश करते हुए बोली)

मैं सच कह रही हूं सूरज आज यह मेरा पहला तजुर्बा था इससे पहले मैंने कभी भी लंड को मुंह में नहीं लिया हो तो तेरे कहने पर मैंने आज यह अनुभव लेली....


अगर तुम कह रही है तो मैं मान जाता हूं लेकिन चाची साफ-साफ बताना कि तुम्हें मजा आया कि नहीं...
(सूरज की बात सुनकर जवाब देने की बजाय रत्ना शर्म से नजर दूसरी तरफ फैर ली जिससे साबित हो रहा था कि उसे भी मजा आ रहा था। और वह चोर नजरों से अपने तो और लार में भीगे हुए सूरज के लहराते हुए लंड को देखकर मन ही मन प्रसन्न होने लगी वास्तव में रत्ना के थूक में सना हुआ सूरज का लंड भयानक लग रहा था एक बार देखने के बाद किसी भी औरत का मुंह आश्चर्य से खुला का खुला रह जाए....
सूरज के मोटे तगड़े लंड को देख कर एक बार हर औरत के मन में शंका जरूर पैदा हो जाएगा कि यह उसके मोटे तगड़े लंड को अपनी बुर में ले पाएगी कि नहीं...और रत्ना एक बार अपनी बुर की गहराई में सूरज के मोटे तगड़े लंड का अनुभव लेने के बावजूद भी अभी उसके लहराते हुए लंड को देखकर फिर से शंकासील हो गई थी.... एक बार फिर से उत्तेजना के मारे रत्ना का गला सूखने लगा था.... सूरज रत्ना के द्वारा लंड चुसाई का मजा लेकर एकदम तृप्त हो गया था उसकी सांसे तेज चल रही थी.... वह अब रत्ना को चोदने के लिए पूरी तरह से तैयार हो चुका था,,,,


रत्ना चाची तैयार हो जाओ मैं इस बार तुम्हारी पीछे से लूंगा.....


पीछे से.....( रत्ना आश्चर्य से बोली)

हां मेरी रानी अब मैं तुम्हें घोड़ी बनाकर चोदुंगा....

(अब इतना तो रत्ना समझती है थी कि सूरज क्या कहना चाह रहा है और वह मुस्कुराते हुए घुटनों के बल नीचे मुंह कर के बैठ गई... और अपनी गांड को हल कैसे ऊपर हवा में उठा कर हिलाना शुरू कर दी जिसको देखा कर सूरज समझ गया कि रत्ना के बदन में सुरूर अपना असर दिखा रहे हैं रत्ना धीरे-धीरे सूरज के सामने खुलने लगी थी वह अब धीरे-धीरे बेशर्म होते जा रही था वैसे भी वह इस उमर में बेशर्मी की सारी हदें तभी पार कर चुकी थी जब वह टांगे फैलाकर सूरज को अपने ऊपर चढ़ा ली थी...
हवा में रत्ना की लहराती हुई बड़ी बड़ी गांड देखकर सूरज कमर दौड़ने लगा उसके मुंह में पानी आने लगा इस उम्र में रत्ना की मदहोश जवानी देखकर सूरज के लंड से भी रहा नहीं गया और वह ऊपर नीचे होकर रत्ना की मदमस्त जवानी को सलाम करने लगा.... सूरज से ज्यादा सूरज का लंड उतावला था रत्ना की बुर में घुसने के लिए... जैसे स्वादिष्ट व्यंजन को देख कर मुंह में पानी आता है उसी तरह से सर लागे मदहोश मदमस्त बड़ी-बड़ी तरबूज देसी गांड देखकर लगातार सूरज के लंड से लार टपक रहा था...
सूरज से रहा नहीं जा रहा कि जल्दी से रत्ना की बड़ी बड़ी गांड को अपने दोनों हाथों में थाम लिया और अगले ही पल अपने लंड के मोटे सुपाड़े को रत्ना की गीली बुर के मुख्य द्वार पर लगा कर हल्के से धक्का लगाया और रत्ना की बुर गीली होने की वजह से इस बार सूरज के मोटे लंड का मोटा सुपाड़ा आराम से रत्ना की बुर में समा गया...
लेकिन फिर भी रत्नाके मुंह से हल्की कराहने की आवाज निकल गई इसमें रत्ना की कोई गलती नहीं थी क्योंकि बरसों के बाद उसकी बुर में किसी मोटी तगड़ी लंड के लिए अपनी गुलाबी पत्तियों के पंख को फैला कर उसको पूरी तरह से अपने अंदर लेने की कोशिश की थी जिसकी वजह से दर्द का एहसास होना लाजमी था....


धीरे-धीरे थोड़ा-थोड़ा करके सूरज अपने मोटे तगड़े लंड को एक बार फिर से रत्ना की लहराती गांड को अपने दोनों हाथों से थामे उसकी रसीली कचोरी जैसे फूली हुई बुर की गहराई में उतार दिया था...
सूरज के मोटे तगड़े लंड को अपनी बुर के अंदर महसूस करके रत्ना आसमान में उड़ रही थी उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जो कुछ भी उसके साथ हो रहा है वह हकीकत है उसे सब कुछ सपना रख रहा था और ऐसा सपना जिसमें दुनिया के सर्व सुख निहित थे... रत्ना की प्रसन्नता का कोई ठिकाना ना था सूरज के मोटे तगड़े लंड को अपनी बुर के अंदर लेकर रत्ना को इस बात का एहसास हो गया था कि संभोग में उम्र की कोई मर्यादा और सीमा नहीं होती.... संभोग की परिभाषा से मर्यादा संस्कार सीमाएं उम्र के बंधन सब कुछ परे हैं...
सूरज एक बार फिर से अपने आपको बेहद भाग्यशाली समझ रहा था क्योंकि इस वक्त वह इस ठंडी रात में रत्ना के घर में रत्ना के साथ घर के पीछे बने कमरे में और नीचे जमीन पर घास के ढेर पर उसे पूरी तरह से नंगी करके उसे घोड़ी बना कर पीछे से चोद रहा था वाकई में यह सब एक सपने जैसा ही है क्योंकि रत्ना जैसी उम्रदराज औरत उसकी मर्दाना ताकत के अधीन होकर अपने संस्कार और मर्यादा भूल कर इस तरह से नंगी होकर बिस्तर पर और वह भी घोड़ी बनकर सूरज के मोटे तगड़े लंन से चुदने का आनंद लेगी यह सब एक सपने जैसा ही लगता है....

कुछ ही सेकंड में कमरे में फिर से रत्ना की गरम सिसकारी गुजरने लगी इस बार सूरज पूरी तैयारी में था क्योंकि एक बार उसका पानी निकल चुका था और दोबारा निकलने में काफी वक्त लेता था इसलिए वह इत्मीनान से रत्ना की चुदाई करने की मन में ठान लिया था वह हल्के हल्के धक्के लगाते हुए रत्ना को स्वर्ग के आनंद की अनुभूति करा रहा था और वैसे भी सूरज का लंड इतना ज्यादा अत्यधिक मोटा था कि रत्ना जैसी उम्रदराज औरत को भी अपनी बुर की अंदरूनी दीवारों पर उसके मोटे तगड़े लंड का घर्षण बराबर महसूस हो रहा था....
रत्ना की गीली पुर इतनी ज्यादा पनिया गई थी कि सूरज के मोटे तगड़े लंड को अपने अंदर लेकर उसमें से चप्प चप्प की आवाज आना शुरू हो गई थी..... उत्तेजना के मारे रत्ना का मुखारविंद टमाटर की तरह लाल हो गया था.... वह कभी सपने में भी नहीं सोची थी कि इस तरह से वह एक नौजवान लड़के से चुदवाएगी.... सूरज उत्तेजना के मारे सपना की बड़ी बड़ी गांड पर अपने दोनों हाथों से चपत लगाते हुए अपने लंड को उसकी बुर के अंदर बाहर कर रहा था वह पूरी तरह से उत्तेजना के सागर में डूबने लगा था उसे बेहद आनंद की अनुभूति हो रही थी....

औहहहहहह ....चाची मैंने कभी सोचा नहीं था कि तुम को मुझे कभी चोदने को मिलेगा और चोदने में मुझे इतना मजा आएगा मुझे बहुत मजा आया है तुम्हारी बुर ईस उम्र में भी कितनी कसी हुई है.... आहहहहहहह ... ऐसा लग रहा है कि जैसे मैं किसी जवान औरत को चोद रहा हूं बहुत मजा आ रहा है चाची.....
(सूरज की बातें सुनकर रत्ना को मजा आ रहा था क्योंकि वह बातों ही बातों में एक तरह से उसकी तारीफ ही कर रहा था और दुनिया में ऐसी कौन सी औरत होगी जिसे अपनी तारीफ सुनना पसंद नहीं होगा... इसलिए वह मन ही मन प्रसन्न होते हुए बोली....)


मेरे पति का लंड बहोत दुबला पतला है बाहर ही चुदाई करके चला जाता है,, और बरसों से इसे संभाल के रखी हूं तभी जाकर इतनी कसी हुई है वरना दूसरी औरतों की तरह ढीली हो जाती,,,

(रत्ना के मुंह से इस तरह की गंदी बातें सुनकर सूरज समझ गया था कि उसके ऊपर भी मादकता पूरी तरह से अपना असर दिखा रही थी उसके बदन में भी नशा छाने लगा था इसलिए वह इस तरह से बातें कर रही थी और इसमें सूरज को भी मजा आ रहा था।)


सच चाची..... सही कह रही हो तभी तुम्हारी बुर इतनी कसी हुई है.... और मुझे इतना मजा आ रहा है बरसों से लगता है कि तुमने किसी भी लंड़ के लिए अपनी बुर का द्वार नहीं खोली हो...(इतना कहने के साथ ही सूरज उत्तेजना के मारे लगातार चार पांच धक्के बड़ी तेजी से लगा दिया जिससे रत्ना के मुंह से कराहने की आवाज निकल गई...)

आहहहहहहह .... आहहहहहहह ..... मेरे पति के बाद तो पहला लड़का है जिसके लिए मैंने आज सचमुच अपनी टांगे खोल दि हुं....


मैं बहुत भाग्यशाली हूं चाची कि आपने मुझे ऐसा शुभ अवसर दिया है कि मैं तुम्हारे जैसी खूबसूरत औरत की चुदाई कर रहा हूं.....
(सूरज कि इस तरह की बातें सुनने में रत्ना को बेहद मजा आ रहा था लेकिन इस समय उसे उसके मोटे तगड़े लंड का मजा लेना था जो कि निरंतर उसे आनंद के सागर में लिए जा रहा था और वह इस आनंद के अनुभव को अपने आप से अलग नहीं होने देना चाहती थी इसलिए वह अपना पूरा ध्यान बस जुदाई में लगा देना चाहती थी इसलिए वह सूरज से बोली....)


तू बातें बड़ी अच्छी अच्छी करता है मुझे यकीन नहीं होता कि इतनी कम उम्र में तुझे औरतों के बारे में इतना ज्यादा ज्ञान है लेकिन तू अभी कुछ बोल मत मुझे बहुत मजा आ रहा है बस ऐसे ही मेरी बुर में अपना लंड पेल...... (इतना कहते हुए रत्ना पीछे की तरफ नजर घुमाकर मदमस्त गांड निहारने लगी जो कि इस समय सूरज के हाथों में थी जिसे सुमन जोर जोर से दबाते हुए धक्के पर धक्के लगा रहा था और रत्ना की इस तरह की जोश भरी बातें सुनकर उसका जोश और ज्यादा बढ़ने लगा और वह अपनी कमर को लगातार उसकी रफ्तार बढ़ाते हुए अपने लंड को उसकी बुर के अंदर बाहर करने लगा रह रहे करवर इतनी तेज धक्के लगा देता कि रत्ना अपने आप को संभाल नहीं पाती और आगे की तरफ लुढ़क जाती लेकिन सूरज इतना फुर्तीला था कि तुरंत उसकी कमर अपने दोनों हाथों से थाम कर उसे फिर से संभाल लेता था काफी देर हो चुकी थी उसे इस तरह से पीछे से चोदते हुए सूरज अब अपना आसन बदलना चाहता था इसलिए उसकी रसीली कसी हुई बुर से अपना लंड बाहर खींच कर बाहर कर लिया.... इस तरह से अपनी बुर से लंड निकाले जाने पर रत्ना आश्चर्य से सूरज की तरफ देखते हुए बोली...

निकाल क्यों लिया....?
(ऐसा कहते हुए रत्ना की आंखों में सूरज के मोटे तगड़े लंड की प्यास साफ नजर आ रही थी उसकी आंखों में देख कर सूरज अच्छी तरह से समझ गया था कि अभी से बराबर है लंड चाहिए इसलिए वह एक बार फिर से उसकी हवा में लहराती हुई गांड पर जोर से चपत लगाते हुए बोला।)

थोड़ा सब्र करो मेरी रानी अब तुम्हें दूसरे आसन में चोदना चाहता हूं...
(सूरज की बात रत्ना समझी कि नहीं समझी इस बात पर ध्यान दिए बिना सूरज बिस्तर पर पीठ के बल लेट गया और उसका लंड एकदम टन टनाया हुआ था उसके काम रस में डूबा हुआ बड़ा मादक और भयानक लग रहा था जिसे देख कर रत्ना के मुंह में पानी आ रहा था।

सूरज उत्तेजना में पूरी तरह से डूब चुका था मस्ती के सागर में अपने आप को डूबता हुआ देखकर उसकी आंखें मूंदने लगी थी लेकिन अपने आप पर काबू करके वह अपने लंड को हिलाते हुए रत्ना को इशारे में उसे अपने ऊपर बैठने के लिए बोला... उम्र के इस पड़ाव पर पहुंच चुकी रत्ना को सूरज का इशारा समझ में आ गया और वह काफी उत्साहित भी हो गई सूरज के ऊपर चढ़ाने के लिए क्योंकि यह भी उसका पहला ही मौका था जब वह किसी लंड की सवारी करने जा रही थी। सूरज का मात्र इशारा भर पाकर रत्ना तुरंत अपनी भारी भरकम गांड लहराते हुए अपनी मोटी मांसल टांगों को घुटने के बल मोड़ कर सूरज के कमर के इर्द-गिर्द हो गई और एक हाथ नीचे की तरफ ले जाकर सूरज के मोटे लंड को पकड़ कर उसके मोटे सुपारी को अपनी बुर की गुलाब की पत्तियों के बीचो-बीच सटाकर उसे अंदर लेने का प्रयास करने लगी जिसमें वह जल्द ही कामयाबी प्राप्त कर ली रत्ना का काम बस रास्ता दिखाना था बाकी का काम सूरज खुद करने वाला था और जैसे ही रत्ना ने बुर के मुख्य द्वार पर लंड का सुपाड़ा रखकर सूरज को रास्ता दिखाई सूरज सरपट दौड़ पड़ा...अपने आप ही सूरज की कमर ऊपर की तरफ लपकी और अगले ही पल सूरज का मोटा तगड़ा लंड एक बार फिर से रत्ना की बुर की गहराई नापने लगा अब सूरज कहां मानने वाला था दोनों हाथ ऊपर की तरफ ले जाकर रत्ना के लटकते दोनों दशहरी आम को थाम कर नीचे से अपनी कमर हिलाने लगा सूरज के हर एक धक्के पर रत्ना की आह निकल जा रही थी....वह कितना भी अपने आप पर काबू करने की कोशिश करती लेकिन वह खुद बेकाबू हो गई थी देखते ही देखते कब उसकी कमर अपने आप ऊपर नीचे होने लगी उसे पता ही नहीं चला सूरज कभी दोनों हाथ नीचे की तरफ ले जाकर रत्ना की भारी-भरकम गांड को अपनी हथेलियों में थाम लेता तो कभी वही हथेलियों में रत्ना की चुचियों को पकड़ कर दबाना शुरु कर देता अब दोनों को चुदाई में बेहद आनंद की अनुभूति हो रही थी रत्ना ऊपर से तो सूरज नीचे से धक्के पर धक्के लगा रहा था देखते ही देखते दोनों चरम सुख के करीब पहुंचने लगे तो सूरज उत्तेजना से रत्ना की कमर थाम कर अपने लंड को उसकी बुर में घुसाए हुए ही उसकी कमर थाम कर उसे तुरंत पलट दिया और उसके ऊपर सवार हो गया अब रत्ना पीठ के बल चित्त लेटी हुई थी और सूरज उसके ऊपर चढ़ा हुआ था जो कि अभी भी उसका लंड उसकी बुर की गहराई नाप रहा था.... रत्ना सूरज की तरफ से इस तरह की किसी भी हरकत के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं थी इसलिए वो एकदम से झेप गई उसे समझ में नहीं आया कि घड़ी के छठे भाग में यह क्या हो गया देखते ही देखते हो बिस्तर पर लेटी हुई थी और सूरज उसके ऊपर चढ़ा हुआ था। सूरज को अपना पसंदीदा आसन प्राप्त हो चुका था और वैसे भी रत्ना को कुछ आसन का सुख दे चुका था अब बारी थी घमासान युद्ध की वह दोनों हाथ आगे बढ़ा कर रत्ना की दशहरी आम को फिर से अपने दोनों हाथों की हथेलियों में कस लिया और कमर हिलाना शुरू कर दिया। अब सूरज रुकने वाला नहीं था ना ही अपनी रफ्तार को किसी भी हालत में कम करने वाला था वह एक ही लाइन में लगातार अपनी कमर को हिलाता रहा और इस तरह से रत्ना एकदम मदमस्त होने लगी वह हर एक धक्के पर सिसकारी की आवाज निकाल रही थी जिससे कमरे का पूरा वातावरण मादक होता जा रहा था दोनों की सांसो की गति तेज होने लगी थी रत्नारह-रहकर नीचे से अपनी कमर ऊपर की तरफ उछाल दे रही थी....
दोनों अपने चरम सुख के करीब पहुंच रहे थे। और देखते ही देखते रत्ना का बदन अकड़ने लगा सूरज को समझते देर नहीं लगी कि रत्ना झड़ने वाली है इसलिए वह उसे अपनी बांहों में कस कर धक्के पर धक्के लगाने लगा। और एक अद्भुत चीख के साथ रत्ना का मदन रस निकलने लगा और कुछ ही धक्कों में सूरज भी झड़ गया....

अद्भुत संभोग की तृप्ति का अहसास लिए दोनों नींद की आगोश में एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले नग्न अवस्था में भी नींद की आगोश में चले गए सुबह को तकरीबन ५:०० बजे जब सूरज की नींद खुली तो वह हड़बड़ा कर उठ गया वह अभी भी पूरी तरह से नंगा था और रत्ना अभी भी दोनों टांग को सीकोड़े घास पर नंगी लेटी हुई थी.... रत्ना की बड़ी बड़ी गांड देखकर एक बार फिर से सूरज के लंड में झुनझुनाहट होने लगी...लेकिन एक बार फिर से चला कि चुदाई का सूरज के पास बिल्कुल भी समय नहीं था इसलिए वह रत्ना को जगा कर कपड़े पहन कर दरवाजा खोल कर झाड़ियों के रास्ते से अपनी साइकल के पास आ गया और रत्ना भी नींद की आगोश से बाहर आकर अपने नंगे बदन को कपड़े से ढक कर घर के अंदर बाथरूम की तरफ चली गई।
 
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सूरज झाड़ियों के रास्ते होकर अपने साइकल के पास जानबूझकर गया था क्योंकि संभोग की सुख तृप्ति में वह इस कदर खो गया कि कब सुबह के करीब ५:०० बज गए उसे पता ही नहीं चला और वह नहीं चाहता था कि इस समय शादी ब्याह का घर है घर में ढेर सारे मेहमान आए हुए है,, कोई अगर इस कमरे से निकलता हुआ उसे देखें इसलिए वह झाड़ियों के रास्ते से अपने साइकल के पास पहुंच गया,, और साइकल पर बैठ कर अपनी घर की तरफ निकल पड़ा रास्ते में जाते वक्त सूरज बहुत खुश था क्योंकि उसने कभी सोचा नहीं था की रत्ना जैसी उम्रदराज गदराई औरत की उसे चोदने को मिलेगा,, वह आया तो था अपनी होने वाली मामी से मिलने लेकिन अनजाने में उसीकी मां की चोद दिया था,, सूरज को अपने आप पर गर्व महसूस हो रहा था की वह अपनी बातो से और हरकतों से किसी भी औरतों की अपने बस में कर सकता था,, और उसके बाद अपने तगड़े लंड से उनकी रसीली बुर को चोदकर उन्हें तृप्त कर कर परमानंद की सैर करा सकता था,, उसकी उदाहरण था की उसके परिवार की बहुत सारी गदराई औरते उसके लंड की दीवानी हो चुकी थी,, और ना जाने और कितनी औरते उसके लंड की दीवानी होने वाली थी,, यही सोचते सोचते सूरज घर के पास पहूंच गया और चुप चाप साइकल को खड़ी कर के छत पर जाके सो गया,,


सूरज जानें के बाद रत्ना उठकर बाथरूम में चली गई.... उसके बदन में उत्तेजना का असर अभी भी बरकरार था टांगों के बीच के उस मखमली अंग में हल्का हल्का मीठा दर्द हो रहा था जोकि मोटे तगड़े लंड को अपनी बुर की गहराई तक उतार ले जाने की कसक महसूस करा रहा था... रत्ना बाथरूम में बाल्डी में पानी ले कर नहाना शुरू कर दी और अपनी खुली हुई बुर में साबुन लगा लगा कर उसे साफ करने लगे जिसमें से अभी भी दोनों के नमकीन रस का बहाव हो रहा था। रत्ना बेहद खुश नजर आ रही थी जिंदगी में पहली बार उसने इस तरह के कदम उठाए थे जिसमें उसे बेहद सुख की अनुभूति हुई थी लेकिन यह सुख भी कैसा था जो सारी मर्यादाओं और शर्म को त्याग कर प्राप्त होता था लेकिन फिर भी रत्ना को इस बात का एहसास हो रहा था कि.. समय-समय पर औरत को भी अपने सुख का ख्याल रखना चाहिए वह मन ही मन सूरज को धन्यवाद कर रही थी क्योंकि उसकी बदौलत ही आज वह औरत के असली सुख को प्राप्त कर पाई थी... वरना उसकी जिंदगी भी ऐसे ही चल रही थी,,
वह नहाते हुए हर उस पल को याद कर रही थी जो कुछ देर पहले वह भी चुकी थी बार-बार उसकी आंखों के सामने वही दृश्य नजर आ रहा था जब सूरज पीछे से उसकी बड़ी बड़ी गांड को पकड़कर अपना लंड बड़ी तेजी से उसकी बुर में पेल रहा था.... सूरज की मर्दाना ताकत से वह पूरी तरह से अवगत हो चुकी थी वह समझ चुकी थी कि सूरज के लंड में जितनी ताकत है शायद ही किसी के लंड में होगी.. वह अपनी बुर को पानी से धोते हुए यही सब सोच रही थी और यह सोच कर उसकी प्यास फिर से बढ़ते जा रही थी वैसे भी बदन की प्यास वासना का बुखार लंबे समय तक इंसान को परेशान करता रहता है और रत्ना की तो अब शुरुआत हो चुकी थी वैसे भी जिस तरह से सूरज ने अपने मोटे तगड़े लंड से रत्ना की बुर का आकार और उसका भूगोल बदल कर रख दिया था उसका एहसास ही रत्ना को बार-बार सूरज के नीचे आने के लिए विवश कर रहा था,,

लेकिन तभी रत्ना वासना के मायाजाल से बाहर आकर सोचने लगी,, की थोड़े दिनों बाद उसकी बेटी की शादी है,,और वह एक अनजान लड़के से रात भर चुदाई करतीं रही,, इससे उसे शर्म आने लगी,, उसे अपने आप पर गुस्सा आने लगा की,, पति के होते हुए भी वह किसी पराए मर्द से संभोग सुख का आनंद लिया था,, रत्ना नहाते हुए बार बार शर्मिंदा हो रही थी,, की कैसे वह एक लड़के के बहकावे में आकर अपना सब कुछ उसे सौप दी,,
रत्ना ने ठान लिया था की आज रात जो कुछ भी हुआ एक सपना था,, उसे वह भूल जायेगी और आयिंदा ये सब नहीं करेगी,, यही सोचते सोचते रत्ना नहाकर कपड़े पहनकर बाहर आइ और महमानो की खाने की तयारी करने रसोई में चली गई,,
 
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सुबह के समय शालू की मां बेचैन नजर आ रही थी क्योंकि वह जानती थी कि मुसीबत अभी टली नहीं है जब तक वह शालू को पूरी तरह से अपने विश्वास में नहीं ले लेती तब तक उसके गले पर,,, डर की वह तलवार लटकती रहेगी इसलिए वह किसी भी तरीके से शालू को अपने विश्वास में लेना चाहती थी इसीलिए वह,,, उसके कमरे की तरफ जाने लगी और मन में ढेर सारे सवाल ओर ऊन सवालों के जवाब उमर रहे थे।,,,, कैसे वह अपनी बेटी का सामना करेंगी उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था क्योंकि वहां अनजाने में ही अपनी बेटी की आंखों के सामने ही बेशर्मी की सारी हदों को पार कर चुकी थी।,,,
शालू की मां शालू के कमरे के बाहर दरवाजे पर खड़ी थी लेकिन उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी कि दरवाजे पर दस्तक दे सकें,,, लेकिन आज वह तय करके आई थी कि ऊस बारे में वह शालू से बात करके रहेगी और उसे अपने विश्वास में लेने की इसलिए दरवाजे पर दस्तक देने के लिए जैसे ही वह किवाड़ से अपना हाथ लगाई,, दरवाजा अंदर से खुला होने की वजह से अपने आप ही खुल गया,,, और सामने उसे शालू नजर आ गई जोकि अपने कपड़े नाप रही थी,,,, दरवाजे पर अपनी मां को खड़ी देखकर वह बिना कुछ बोले ही अपनी सलवार को नीचे से पैरों के तरफ से खींच खींच कर उसे बड़ा करने की नाकाम कोशिश कर रही थी जो कि उसकी कद से छोटी ही थी।,,, वह बार-बार कोशिश कर रही थी लेकिन सलवार ठीक नहीं हो रही तो मन ही मन में बड़बड़ाते हुए बोली,,,

क्या करूं अब शादी में क्या पहनुंगी मेरी सलवार तो छोटी पड़ गई,,,( वह मन में बड़बड़ा जरूर रही थी लेकिन वह अपनी मां को ही सुना रही थी,,, तभी मौके की तलाश में खड़ी उसकी मां मौका देखते ही बोली,,,।)

क्या हुआ शालू?

सलवार छोटी पड़ गई अब मैं शादी में क्या पहनुंगी,,,,
( शालू बेमन से बोली)

कोई बात नहीं बेटा नया खरीद ले रुक में पेसे लेकर आती हूं,,,,( इतना कहकर वह कमरे से बाहर निकल गई और शालू बिस्तर पर बैठकर अपनी मां को जाते हुए देखते रहे वह समझ गई थी कि उसकी मां उसे फुसलाने के लिए सब कर रही है वरना उसे वह पैसे देने की बात नहीं करती,,,,,,, वह मन ही मन सोचने लगी कि कैसे अभी वह एक मां होने का फर्ज निभा रही है लेकिन रात को कैसे रंडी बनकर सूरज से चुदवा रही थी।,,, एक औरत ने कितने रूप छुपे होते हैं यह उसे अब समझ में आने लगा था,,,, वह सब सोच ही रही थी कि तभी उसकी मां कमरे में दाखिल होते हुए बोली,,,।

जाने बेटा पूरे ५०० रुपए हैं तेरी जो मन करे वह खरीद लेना एक नहीं दो ड्रेस खरीद लेना और तो और अपनी सिंगार विंगार का भी सामान खरीद लेना,,,,

( शालू अपनी मां की बातें और ५०० रुपए को देखकर एक दम से चौंक गई,,, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसकी मां उसे सच में दे रही है कि मजाक कर रही है इसलिए वह रुपयों को बिना लिए ही बोली,,,।)

मम्मी तुम सच कह रही हो कि मजाक कर रही हो यह ५०० रुपए हैं ५० रुपए नहीं।,,,

मैं जानती हूं यह ५०० रुपए ही हैं और यह मजाक नहीं सच है। शादी के दिन तुम अच्छा कपड़ा पहनोगी तभी तो मेरे दिल को सुकून मिलेगा,,,

लेकिन अगर पापा को पता चल गया तो,,,,,

कुछ पता नहीं चलेगा यह मेरे पेसे है मेरी बचत के,, मैं उनमें से तुझे दे रही हूं,,,,


लेकिन मां ये पैसे ढेर सारे नहीं हैं।

तेरी खुशियों से ज्यादा नहीं है,,,,। ले ईसे रख ले और बाजार जाकर आज ही अच्छा सा ड्रेस खरीद ले।
( वह शालू को पैसे थमाते हुए बोली अब शालू के सामने कोई विकल्प नहीं था वह अपनी मां के हाथों से पैसे ले ली इस समय उसके मन में खुशी छा गई थी क्योंकि इन ५०० रुपए से कुछ भी खरीद सकती थी। इस समय बहुत अपनी मां का वह रूप बिल्कुल भूल चुकी थी जब वह सूरज के साथ अपनी हवस मिटा रही थी इस समय उसके हाथों में ५०० रुपए थे जिससे वह कुछ भी खरीद सकती थी वैसे भी शालू को कपड़ों का बहुत शौक था। वह अपने मनपसंद के कपड़े पहनना ज्यादा पसंद करती थी। मन में वह खरीदी करने के लिए बहुत कुछ सोचने लगी तभी वह बोली,,,।

लेकिन मुझे बाजार में कौन जाएगा सब लोग तो अपने काम में व्यस्त हैं,,,,

तू चिंता मत कर सूरज ले जाएगा तुझे,,, मैं उससे कह दूंगी कि तू जोभ़ी खरीदना चाहे वह उसे खरीदवादे,,,,
( सूरज का जिक्र होते ही शालू की आंखों के सामने फिर से उसकी मां और सूरज के बीच हुए शारीरिक संबंध का चलचित्र किसी फिल्म की तरह आंखों के सामने नाचने लगा,,,,, अगर कोई और से नहीं होता तो वह सूरज के साथ जाने से इनकार भी कर देती लेकिन
इस समय जरूरत शालू को थी।और वह इंकार नहीं कर सकी,,,, बस इतना ही बोली,,,।)

क्या वह मेरे साथ जाएगा,,,,?

हां क्यों नहीं जाएगा मैं कहूंगी तो जरूर जाएगा,,,
( अपनी मां के मुंह से इतना सुनते ही वह व्यंग्यात्मक तरीके से अपनी मां की तरफ देखने लगी जैसे कि कह रही हो कि हां क्यों नहीं जाएगा जब तुम अपनी बुर उसे किसी भेंट की तरह चोदने के लिए दोगी तो क्यों नहीं जाएगा,,,,, शालू भी अपनी बेटी को इस तरह से देखते हुए पाकर समझ गई कि वह ऐसे क्यों देख रही है इसलिए वह खामोश होकर बाहर की तरफ जाते हुए बोली,,,।)

तू तैयार हो जा मैं सूरज को भेजती हूं,,,
( शालू अपनी मां को जाते हुए देखती रह गई लेकिन वह इतना तो समझ गई थी कि उसकी मां आज उसके ऊपर इतना ज्यादा क्यों मेहरबान है,,,
उसके मन में अजीब सी हलचल हो रही थी। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह सूरज का सामना किस तरह से करेगी भला एक बेटी उस शख्स के साथ कैसे जा सकती है जो कि वह ऊसकी मां को ही चोदता हो,,,, यह सब ख्याल उसके मन में हलचल मचा रहे हैं थे। खैर अभी तो उसे बाजार जाना था इसलिए वह सब कुछ बोल कर तैयार होने लगी,,,,
( दूसरी तरफ शालू की मां ने सूरज को सब कुछ समझा दी थी की यही सही मौका है वह जो भी खरीदना चाहे उसे खरीदवा देना,,, और उसके मनपसंद का खाने को चाय समोसा ठंडा जो कुछ भी हो सब कुछ दे देना,,, तू आज उसे इतना खुश कर देना कि वह सब कुछ भूल जाए,,,, अपनी सुधियां मामी की बात सुनकर सूरज बोला,,,


तुम चिंता मत करो मामी यह सुनहरा मौका मैं अपने हाथ से जाने नहीं दूंगा,,,, आज मैं शालू को इतना खुश कर दूंगा कि वह भूल जाएगी कि मैं तुम्हारी चुदाई किया था,,,,
( सूरज की बातों में विश्वास देखकर शालू की मां को राहत हुई और वह मुस्कुरा दी,,,, क्योंकि वह कुछ और सोच रही थी लेकिन उसे इस बात का अंदाजा बिल्कुल नहीं था कि,,, सूरज के मन में कुछ और चल रहा है वह उसकी बेटी के लिए कुछ और सोच कर रखा है।,,,,
सूरज अपने बड़े मामा की साइकल पर बैठकर शालू का इंतजार करने लगा,,,, वह साइकल में लगे शीशे में देख कर अपने बाल सवार रहा था,, उसके मन में लड्डू फूट रहा था वह बार-बार कभी घर की तरफ तो कभी ऊपर आसमान की तरफ देख ले रहा था मौसम बेहद सुहावना हो गया था। आसमान में जगह जगह पर काले बादल उमड़ रहे थे ऐसा लग रहा था कि कभी भी बारिश हो जाएगी धूप का नामोनिशान नहीं था ठंडी ठंडी हवा बह रही थी जोकि तन-बदन में स्फूर्ति का अहसास करा रही थी।,,, सूरज मन ही मन ठान लिया था कि आज यह हाथ में आया हुआ सुनहरा मौका वह ऐसे ही बेकार नहीं जाने देगा,,,। वह भी बहुत कुछ सोच कर रखा था।
सभी तैयार होकर शालू आती हुई उसे नजर आई सूरज की नजर शालू पर पड़ी तो उसकी नजरें को मन पर ही टिकी गई,,, बला की खूबसूरत लग रही थी शालू,,,, बाजार जाने के लिए उसने आज चुस्त कपड़े पहने हुए थे,चुस्त कसी हुई सलवार में से कुश्ती चिकनी जांघे अपने आकार का वर्णन खुद ही कर रही थी। हवा में लहराते बाल गोरे गालों पर नाच रहे थे वह अपने मे ही मस्त चली आ रही थी सूरज तो उसकी खूबसूरती को देखता ही रह गया सीने पर छोटे-छोटे उभार नारंगीयो के आकार से कम नहीं थे,,,, जोकी चुस्त-कुर्ती मैसे साफ झलक रहे थे,,
सूरज की प्यासी नजरें शालू के खूबसूरत बदन का ऊपर से नीचे तक आंखों ही आंखों में नाप ले रहे थे।,,,, शालू जेसे ही सूरज के करीब पहुंची उसके दिल की धड़कन और ज्यादा बढ़ने लगी,,,। आज पहली बार शालू के करीब आते ही सूरज की धड़कनों नैं अपनी गति बढ़ा दी थी,,, वह सोच रहा था कि शालू साइकल के पीछे पर बैठने वाली है लेकिन वह ५ कदम और चलकर आगे जाकर खड़ी हो गई,,, लेकिन उसके पांच कदम चलने से सूरज को ५ जन्मों के सुख का एहसास हो गया क्योंकि,,,, शालू की कसी हुई सलवार में कैद उसकी खूबसूरत गदराई हुई गांड मटकते हुए अपने जलवे बिखेर रही थी,,, उसके हर एक कदम के साथ ताल से ताल मिलाते हुए उसके नितंब की दोनों फांकें आपस में रगड़ खाते हुए ऊपर नीचे हो रही थी। और यह देख कर उसके लंड ने हल्की सी अंगड़ाई ली जो कि यह सूरज के लिए इशारा था कि उसका दमदार लंड शालू की गदराई हुई रस से भरी हुई नितंबों पर मोहित हो गया है,,
सूरज शालू को देख कर मुस्कुराया और साइकल को उसके करीब ले गया और शालू भी साइकल के पीछे बैठ गई,,, उसके बेठते ही सूरज ने साइकल चलाते हुए साइकल को ऊंची नीची पगडंडियों से होकर ले जाने लगा,,,,

सूरज के मन में लड्डू फूट रहा था क्योंकि उसके मन में आज कुछ और करने का विचार था। ऊंची नीची पगडंडियों से होते हुए वह साइकल ले जा रहा था,,,। जिसकी वजह से शालू को झटका सा महसूस हो रहा था और वह बार-बार अपने आप को संभालने के लिए ना चाहते हुए भी सूरज के कंधे पर हाथ रख दे रही थी।
जो कि शालू के हाथों का स्पर्श सूरज को उत्तेजित कर दे रहा था उसे यह स्पर्श अच्छा भीं लग रहा था।,,, साइकल बार-बार झटके खा रहे थे और शालू बार-बार सूरज के कंधों का सहारा ले ले रही थेी शालू को सूरज पर गुस्सा भी आ रहा था तभी वह गुस्सा दिखाते हुए बोली,,,,

ठीक से नहीं चला सकते साइकल,,

क्यों क्या हुआ?

इतने झटके क्यों खिला रहे हो साइकल को,,,

अब मैं इसमें क्या कर सकता हूं तुम्हारे गांव की सड़क ही कुछ ऐसी है।

सड़क तो बिल्कुल ठीक है मेरे गांव की बस तुम्हारी निगाह ठीक नहीं है। ( शालू व्यंग्यात्मक तरीके से बोली,,,।)

मेरी निगाहे भी ठीक है शालू,,, बस तुम्हें ही नहीं समझ पा रही हो,,,,

मैं खूब अच्छे से समझती हूं तभी कह रही हूं,,,, मैं तो तुम्हारे साथ ही नहीं आना चाहती थी वह तो मेरी मजबूरी है तो आना पड़ रहा है,,,
( शालू गुस्सा दिखाते हुए बोल रही थी सूरज उसकी बातों के मतलब को अच्छी तरह से समझ रहा था अब उसका मन भी होने लगा कि शालू के साथ थोड़ा खुल कर बात किया जाए ताकि,,, अपनी बातों से वहां उसे उत्तेजित कर सके क्योंकि धीरे-धीरे वह लोग गांव से काफी दूर निकल आए थे मौसम भी बड़ा सुहावना था इक्का-दुक्का लोग आते-जाते नजर आ रहे थे बाकी पूरी सड़क पर जानवर तक नजर नहीं आता था। पगडंडियों के दोनों तरफ बड़े-बड़े पेड़ों की छांव में सूरज अपनी साइकल दौड़ा रहा था और शालू अपने आप को संभाले हुए उस पर बैठी थी तभी शालू की बात सुनकर वह बोला,,,,)

अच्छा क्यों नहीं आना चाहती थी मेरे साथ ऐसा क्या हो गया कि मेरे से नफरत होने लगी,,,,( सूरज अच्छी तरह से जानता था कि शालू ऊसकी मां की चुदाई को लेकर परेशान थी और इसी वजह से बात उस पर नाराजगी थी लेकिन फिर भी वह उसके मुंह से सुनना चाह रहा था।)

अब मेरे सामने बनने की जरूरत नहीं है सूरज तुम अच्छी तरह से जानते हो कि मैं क्या कहना चाह रही हूं,,,,


सच शालू मुझे कुछ भी पता नहीं है तुम मुझसे नाराज क्यों हो,,, ( सूरज साइकल की गति हल्के से बढ़ाते हुए बोला)

चलो इतना तो पता चल गया ना तुमको कि मैं तुमसे नाराज हूं,,।


हां लेकिन यह नहीं पता चल रहा है ना कि तुम मुझसे नाराज क्यों हो,,,,।
( सूरज शालू को अपनी बातों के जाल में फंसा रहा था वह जानता था कि औरतों को बातोसे ही बहलाया फुसलाया जा सकता है जिसकी बदौलत कल रात रत्ना जैसी उम्रदराज गदराई औरत को वह चोद सका था,,,,)

तुम सब कुछ जानते हुए भी अनजान बनने की कोशिश कर रहे हो,,,,


सच शालू मैं बिल्कुल नहीं जानता कि तुम मुझसे नाराज क्यों हो,,, देखो जो भी हो लेकिन एक बात कहूं लेकिन दिल से कह रहा हूं,, तुम आज बहुत खूबसूरत लग रही हो,,, कसम से मैं झूठ नहीं कह रहा,,,
( सूरज जानबूझकर खूबसूरती वाला जिक्र छेड़ दिया था,,, औरतों को अपने बस में करने का यह सबसे आसान तरीका होता है यह अच्छी तरह से जानता था शालू सूरज की यह बात सुनकर कुछ देर तक खामोश रही,,, वह कुछ बोल नहीं पा रही थी क्योंकि सूरज की यह बात उससे भी क्रोधित होने के बावजूद भी उसे कहीं ना कहीं अच्छी लगी थी,,, उसे खामोश देखकर सूरज फिर से बोला।)

लगता है तुम कुछ ज्यादा ही नाराज हो तभी कुछ बोल नहीं रही हो,,,

मैं तुमसे बहुत नाराज हूं,,,,

लेकिन क्यों यह तो बता दो,,,

तुम्हारी हरकत की वजह से,,,,

हरकत कौन सी हरकत मुझे तो ऐसा कुछ भी याद नहीं कि मैंने कुछ ऐसी हरकत किया हूं जिससे तुम्हें दुख पहुंचा हो,,,,
( सूरज जानबूझकर शालू को अपनी बातों में गोल गोल घुमा रहा था,,, और बातों के दरमियान जानबूझकर रह-रहकर साइकल के ब्रेक मार दे रहा था,,, जिससे शालू अपने आप को संभाल नहीं पाती थी और सीधे जाकर सूरज के बदन से सट जा रही थी और साथ में उसकी एक चूची भी उसकी पीठ से सट जा रही थी जिसका शालू एहसास उसे अच्छी तरह से हो रहा था और वह एहसास उसे अंदर तक उत्तेजना से भर दे रहा था।,,,)

तुमने कौन सी गंदी हरकत किए हो यह तो तुम भी जानते हो सूरज,,,,

सच शालू मुझे बिल्कुल भी याद नहीं है कसम से,,,,

उस रात वाली हरकत,,,,


उस रात वाली हरकत मैं कुछ समझा नहीं,,,,,, (सूरज जानबूझकर आश्चर्य जताते हुए बोला)

घर के पीछे,,,,, ( शालू गुस्से में बोली)

पर मैं रात को घर के पीछे तो गया नहीं था और उधर जाऊंगा क्यों,,,,,


मेरी मां के पीछे-पीछे गए थे जो कि मैं अच्छी तरह से देख रही थी और तुम्हारे पीछे पीछे आई भी थी,,,
( शालू गुस्से में बोली शालू की यह बात सुनकर सूरज समझ गया कि धीरे-धीरे शालू सब कुछ बता देगी और वह यह देखना चाहता था कि शालू कैसे अपने मुंह से अपनी मां की चुदाई की बात बताती है।,,,)


तुम किसी और को देखी होगी शालू,,,,

मैं अंधी नहीं हूं सूरज,,,, मैं अच्छी तरह से देखी थी पहले मेरी मां घर के पीछे की तरफ गई मैं उसके पीछे ही जाना चाहती थी उसे कुछ राज की बात बताना था लेकिन तभी मैं देखी कि तुम उसके पीछे पीछे जाने लगे,,, और मैं भी तुम्हारे पीछे चल दी,,,,

चलो ठीक है मैं मान लिया कि मैं घर के पीछे गया था। पर मैं तुम्हारी मां के पीछे नहीं गया था मुझे जोरों से पेशाब लगी थी इसलिए गया था।


तो वहां जाकर पेशाब करना चाहिए था ना लेकिन तुम तो कुछ और ही कर रहे थे,,,,

क्या कर रहा था मैं,,,? ( सूरज जानबूझकर बोला)

तुम मेरी मां को देख रहे थे और किस हाल में देख रहे थे यह तुम अच्छी तरह से जानते हो,,,,
( बातों ही बातों में सूरज और शालू काफी दूर निकल आए थे और उन लोगों की साइकल मुख्य सड़क पर चल रही थी।)


हां मैं जानता हूं कि मैं क्या देख रहा था,,,, मे यह देख रहा था कि तुम्हारी मां जल्दी से वहां से चली जाए ताकि मैं पेशाब कर सकूं,,,,

झूठ बिल्कुल झूठ,,,,, तुम यह नहीं बल्की कुछ और देख रहे थे,,,,


तुम कैसी बातें करती हो शालू मैं भला और क्या देख रहा था मैं तो उनको वहां से चले जाने का इंतजार कर रहा था,,,

तुम मेरी मां की गांड देख रहे थे जब वह साड़ी उठाकर खड़ी थी तब,,,,( शालू आवेश में आकर फटाक से बोल गई,,, लेकिन उसके मुंह से यह शब्द कैसे निकल गई है उसे भी नहीं समझ में आया भले ही आवाज में निकले थे लेकिन इन शब्दों का उपयोग उसने आज तक नहीं की थी इसलिए थोड़ा सा झेंप गई,,,, और यह शब्द सुनकर सूरज मन ही मन प्रसन्न होने लगा क्योंकि उसे लगने लगा कि उसकी गाड़ी धीरे धीरे पटरी पर जरूर आ जाएगी,,,, मन में यह सोचते हुए वह शालू की बात पर एतराज जताते हुए बोला,,,


यह क्या कह रही हो शालू तुमसे कोई गलतफहमी हुई है मैं बना ऐसी हरकत क्यों करूंगा,,,,


अगर मुझे कोई और कहता तो शायद मुझे भी इस बात पर यकीन नहीं होता लेकिन यह तो मैंने खुद अपनी आंखों से देखी हुं तो भला इसे कैसे झूठला सकती हूं,,,,


हां शालू मैं मानता हूं कि तुम्हारी मां की गांड मैं देख लिया था लेकिन वह अनजाने में ही हुआ था।( सूरज अब खुलकर बोलने लगा क्योंकि वह जानता था कि अगर वह इस तरह से खुलकर बोलेगा तभी कुछ बात बन पाएगी वह तो मन में ठान लिया था कि ऐसी ऐसी बातें करेगा कि शालू की बुर अपने आप ही पानी छोड़ने लगे गी।,,, शालू सूरज के मुंह से ऐसे खुले शब्द सुनकर सन्न रह गई, लेकिन बोली कुछ नहीं बस उसकी गलती बताते हुए बोली,,,।)

अनजाने में ही नहीं हुआ था सूरज यह सब जानबूझकर हुआ था,,, मैं तुम्हारी हरकत को अपनी आंखों से देख रही थी,,,,

तुम कुछ नहीं जानती शालू तुम बेवजह मुझ पर सिर्फ इल्जाम लगा रही हो कुछ जानती होती तो जरूर बता देती,,,, वैसे शालू,,, तुम पर यह सलवार सुट जच रहा है,,,, मुझे यकीन नहीं हो रहा है कि तुम ही शालू हो,,
( सूरज जानबूझकर उसे उकसाते हुए उसकी तारीफ कर रहा था यह सूरज की बहुत ही गहरी चाल थी जिसमें,,,, शालू आसानी से गिरफ्तार हुए जा रही थी,,, उसके मुंह से अपनी तारीफ सुनकर वह मन ही मन प्रसन्न हुए जा रही थी क्योंकि पहली बार कोई लड़का भले ही वह रिश्ते में उसके भाई जैसा था,,, उसके मुंह से अपनी तारीफ सुनकर उसे बहुत ही अच्छा लग रहा था कुछ पल के लिए वह सूरज और उसकी मां के बीच हुए संबंध को भूल जा रही थी, वह सूरज की बात सुनकर बोली,,,।)

अब बेवजह बात को बदलने की जरूरत नहीं है जो सच है वह हमें बता रहे हो और तुम जान बूझकर उसे अनजान बनने की कोशिश कर रहे हो,,,


मैं भला बात को क्यों बदलने लगा लेकिन जो कुछ भी तुम कह रही हो वह सरासर गलत है और वैसे भी मैं तो सिर्फ तुम्हारी तारीफ कर रहा हूं कि तुम बहुत खूबसूरत लग रही हो,,,

रहने दो तारीफ करने को तुम्हारे मुंह से तारीफ अच्छी नहीं लगती,,।

ऐसा क्यों क्या मेरे मुंह से अंगारे बरसते हैं,,,,


जो भी हो मैं नहीं जानती बस इतना जानती हो कि तुम बहुत ही गंदे हो,,, तुम मेरी मां को चो,,,,,,,,,,,,,,( वह इतना कहकर एकाएक खामोश हो गई,,, वह अंदर ही अंदर शरमा गई,,,, सूरज समझ गया कि शालू क्या कहने जा रही थी और यह जानते ही उसके लंड में हलचल होने लगी,,,, वह तुरंत बोला,,,,


क्या क्या क्या क्या कहा तुमने,,,,

कुछ नहीं और मैं कुछ कहना भी नहीं चाहती बस इतना जान लो कि मैं तुम्हारे साथ आई हूं यह मेरी मजबूरी है वरना मैं तुम्हारे साथ जिंदगी में कभी नहीं आती,,,,

आखिर इतनी भी बेरुखी किस काम की शालू,,, तुम मेरे मंगल मामी की भतीजी होै इस लिहाज से तुम मेरी बहन हुई,,,,, ( सूरज इतना ही कहा था कि शालू उसकी बात को बीच में काटते हुए बोली,,,।)

और तुम मेरी मां की बड़ी मामी कहते हो लेकिन तुम अपनी बड़ी मामी के साथ क्या कर रहे थे,,,,,? ( शालू प्रश्न सूचक शब्दों में बोली,,,।)
सूरज जानता था कि शालू क्या कहना चाह रही है और क्या सुनना चाह रही है। साइकल अपनी रफ्तार से आगे बढ़ती चली जा रही थी सूरज समझ गया था कि अब बात को गोल गोल घुमाने से कोई फायदा नहीं है सीधे मुद्दे पर आने की जरूरत हो गई थी क्योंकि अगर यूं ही क्या हुआ क्या नहीं हुआ,,, यही गिनाने लगा तो इसी में समय गुजर जाएगा,,, और हाथ में आया या सुनहरा मौका भी ज्यादा रहेगा इसलिए सूरज मन ही मन में विचार करके बोला,,,।m

हां शालू मैं जानता हूं कि मुझसे गलती हो गई लेकिन क्या करूं मेरी आंखो के सामने नजारा ही कुछ ऐसा था कि मैं अपने आप को रोक नहीं सका,,,,

तुम रोक सकते थे सूरज अपने आपको लेकिन तुम रुकना नहीं चाहते थे,,,, तुम आगे बढ़ना चाहते थे मैं साफ-साफ देख रही थी तुम्हारे चेहरे के भाव को जब मेरी मां अपनी साड़ी को कमर तक उठाए हुई थी,,,,
( सूरज शालू के मुंह यह सब सुनकर उत्तेजित हुआ जा रहा था उसे अच्छा लग रहा था शालू के मुंह से यह सब सुनना,,, बात को और ज्यादा नमक मिर्च लगाते हुए सूरज बोला,,,)

शालू ईसमे भला मेरी कौन सी गलती है मेरी जगह अगर कोई भी होता तो शायद वह भी वही करता जो मैं किया था,,,, अपनी आंखों के सामने नजारा ही कुछ ऐसा मादक हो तो इंसान क्या करें,,,
( सूरज की बातें सुनकर शालू के तन बदन में भी अजीब थी हरकत हो रही थी मन ही मन सोचने लगी कि,,, देखु सूरज क्या बोलता है इसलिए वह बोली,,,।)

सूरज एक औरत पेशाब करते हुए तुम्हें भला उसमें ऐसा क्या दिख जाता है कि तुम अपने आपको संभाल नहीं पाए,,,
( शालू के बदन में भी जवानी का सुरूर चढ़ रहा था इसलिए तो उसके मुंह से भी पेशाब साड़ी उठाना यह सब जैसी बातें निकल रही थी।)

सच बताऊं तो शालू में वहां कुछ करने नहीं गया था लेकिन मेरी आंखों ने जो देखा मुझसे रहा नहीं गया अब तुम ही बताओ जब इतनी खूबसूरत औरत अपनी साड़ी उठाकर अपनी मदमस्त बड़ी बड़ी गांड दिखाती हो तो भला कौन अपने आपको संभाल पाएगा,,,
( सूरज शालू को उकसाने के उद्देश्य से ऐसी बातें कर रहा था और इस बातों का शालू पर असर भी हो रहा था गुस्सा के साथ-साथ उसे सूरज की यह बातें ना जाने क्यों अच्छी लगने लगी थी यह उम्र का ही दोष था,, तभी तो शालू बातचीत को और ज्यादा बढ़ा रही थी वरना वह इस बारे में कुछ बोलती ही नहीं,,, लेकिन वह बातों का दौर बढ़ाते जा रही थी इसलिए वह सूरज की बात सुनकर बोली,,,,)

तुम अपने आपको रोक सकते थे सूरज एक औरत अगर साड़ी उठाकर पेशाब करने की तैयारी करती है तो इसमें कोई बड़ी बात नहीं हो जाती कि तुम से रहा नहीं जा रहा हो,,, तुम वहां से जा सकते थे अपनी नजरें हटा सकते थे लेकिन तुमने ऐसा नहीं किया क्योंकि तुम पूरी तरह से वासना से लिप्त हो चुके हो,,,,
इसलिए तुम्हें औरत मैं सिर्फ अपना ही फायदा नजर आता है।
( सूरज बड़े आराम से शालू की बातों को सुन रहा था लेकिन उसकी बातों का बिल्कुल भी बुरा नहीं मान रहा था क्योंकि वह जानता था कि शालू अभी,,, नादान तो नहीं लेकिन फिर भी कुछ नहीं जानती उसे क्या मालूम की औरतों की हर एक लाछणिक अदाएं मर्दों के लंड पर ही वार करती हैं,,, उसे क्या पता कि औरतों का हल्का सा मुस्कुरा देने से भी लंड करवट बदलनेे लगता है,,,,
सूरज कुछ बोल नहीं रहा था बस मुस्कुराते हुए शालू की बातों को सुन रहा था और, साइकल में लगे शीशे में उतर खूबसूरत चेहरा देखकर मन ही मन प्रसन्नता के साथ साथ उत्तेजित हुआ जा रहा था। साइकल में लगे शीशे में उसे साफ साफ नजर आ रहा था,, शालू बार बार हवा से उड़ रही अपनी जुल्फों को संभाल रही थी और साथ ही अपने दुपट्टे को भी,,,, शालू की यह अदा बेहद खूबसूरत लग रही थी। सूरज शालू की मदहोश कर देने वाली जवानी की खुशबू में पूरी तरह से मदहोश हो चुका था। शालू बोले जा रही थी और वहं बस सुने जा रहा था,,, सफर बड़ी मस्ती से कट रहा था। मौसम बड़ा सुहावना होता जा रहा था ऐसा लग रहा था कि कभी भी बारिश गिरने लगेगी और सूरज को बारिश का इंतजार था वह तो मन ही मन भगवान से मना रहा था कि बारिश हो जाए तभी सूरज शालू की बात पर गौर करते हुए बोला,,,,।)
 

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