गाँव का राजा (COMPLETED)
हेलो दोस्तो मैं एक और नई कहानी गाँव का राजा लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे दोस्तो
गाओं का माहौल बड़ा ही अज़ीब किस्म का होता है. वेहा एक ओर तो सब कुच्छ ढका छुपा होता है तो दूसरी ओर अंदर ही अंदर ऐसे ऐसे कारनामे होते है कि जान जाओ तो दन्तो तले उंगली दबा लो. थोड़ा सा भी झगड़ा होने पर लोग ऐसी मोटी मोटी गलिया देंगे मगर, अपनी बहू बेटियो को दो गज का घूँघट निकालने के लिए बोलेंगे. फिर यही लोग दूसरो की बहू बेटियों पर बुरी नज़र रखेंगे और ज़रा सा भी मौका अगर मिल जाए तो अपने अंदर की सारी कुंठा और गंदी वासना निकाल देंगे. कहने का मतलब ये कि गाओं में जो ये दबी छुपी कामुक भावनाए है वो विभिन्न अव्सरो पर भिन्न भिन्न तरीक़ो से बाहर निकलती है. खेत, खलिहान, आमो का बगीचा आदि कई ऐसी जगहे है जहा पर छुप छुप के तरह तरह के कुकर्म होते है कभी उनका पता चल जाता है कभी नही चल पाता. गाओं के बड़े बड़े घरो के मर्द तो बकाएदा एक आध रखैले भी रखते है, जिनकी रखैल ना हो उनकी इज़्ज़त कम होती थी. ये अलग बात है कि इन बड़े घरो की औरते पयासी ही रह जाती थी क्यों कि मर्द तो किसी और ही कुआँ का पानी पी रहा होता था. दूसरो के कुए का पानी पीने के बाद अपने घर के पानी को पीने की उनकी इच्छा ही नही होती थी. और अगर किसी दिन पी भी लिया तो उन्हे मज़ा नही आता था. इन औरतो ने भी अपनी प्यास भुझाने के लिए तरह तरह के उपाए कर रखे थे. कुच्छ ने अपने नौकरो को फसा रखा था और उनकी बाँहो में अपनी सन्तुस्ति खोज़ती थी कुच्छ ने चोरी छुपे अपने यार बना रखे थे और कुच्छ यू ही दिन रात वासना की आग में जल कर हिस्टीरिया की मरीज़ बन चुकी थी. खैर ये तो हुआ गाओं के माहौल का थोड़ा सा परिचय. अब आपको गाओं की ही एक बड़े घर की कहानी सुनाता हू. वैसे तो सभी समझ गये होंगे कि ये गाओं की कोई वासनात्मक कहानी है, फिर इसको बताने की क्या ज़रूरत है जब इसमे कुच्छ भी नया नही है, तो दोस्तो इसमे बताने के लिए एक अनोखी बात है जो उस गाओं में पहले कभी नही हुई थी इसलिए बताई जा रही है. तो फिर सुनो कहानी.
गाओं के एक सुखी संपन्न परिवार की कहानी है. घर की मालकिन का नाम शीला देवी था. मलिक का नाम तो पता नही पर सब उसे चौधरी कहते थे. शीला देवी, जब शादी हो के आई थी तो देखने में कुच्छ खास नही थी रंग भी थोड़ा सावला सा था और शरीर दुबला पतला, छरहरा था. मगर बच्चा पैदा होने के बाद उनका सरीर भरना शुरू हो गया और कुच्छ ही समय में एक दुबली पतली औरत से एक अच्छी ख़ासी स्वस्थ भरे-पूरे शरीर की मालकिन बन गई. पहले जिस की तरफ एक्का दुक्का लोगो की नज़रे इनायत होती थी वो अब सबकी नज़रो की चाहत बन चुकी थी. उसके बदन में सही जॅघो पर भराव आ जाने के कारण हर जगह से कामुकता फूटने लगी थी. छ्होटी छ्होटी छातियाँ अब उन्नत वक्ष स्थल में तब्दील हो चुकी थी. बाँहे जो पहले तो लकड़ी के डंडे सी लगती थी अब काफ़ी मांसल हो चुकी थी. पतली कमर थोड़ी मोटी हो गई थी और पेट पर माँस चढ़ जाने के कारण गुदजपन आ गया था. और झुकने या बैठने पर दो मोटे मोटे फोल्ड से बन ने लगे थे. चूतरो में भी मांसलता आ चुकी थी और अब तो यही चूतर लोगो के दिलोको धड़का देते थे. जंघे मोटी मोटी केले के खंभो में बदल चुकी थी. चेहरे पर एक कशिश सी आ गई थी और आँखे तो ऐसी नशीली लगती थी जैसे दो बॉटल शराब पी रखी हो. सुंदरता बढ़ने के साथ साथ उसको सम्भहाल कर रखने का ढंग भी उसे आ गया और वो अपने आप को खूब सज़ा सॉवॅर के रखती थी. बोल चाल में बहुत तेज तर्रार थी और सारे घर के काम वो खुद ही नौकरो की सहयता से करवाती थी उसकी सुंदरता ने उसके पति को भी बाँध कर रखा हुआ था. चौधरी अपनी बीबी से डरता भी था इसलिए कही और मुँह मारने की हिम्मत उसकी नही होती थी. बीबी जब आई थी तो बहुत सारा दहेज ले के आई थी इसलिए उसके सामने मुँह खोलने में भी डरता था, बीबी भी उसके उपर पूरा हुकुम चलाती थी. उसने सारे घर को एक तरह से अपने क़ब्ज़े में कर के रखा हुआ था. बेचारा चौधरी अगर एक दिन भी घर देर से पहुचता था तो ऐसी ऐसी बाते सुनाती कि उसकी सिट्टी पिटी गुम हो जाती थी. काम-वासना के मामले में भी वो बीबी से थोड़ा उननिश ही पड़ता था. शीला देवी कुच्छ ज़यादा ही गरम थी. उसका नाम ऐसी औरतो में शुमार होता था जो खुद मर्द के उपर चढ़ जाए. गाओं की लग भग सारी औरते उसका लोहा मानती थी और कभी भी कोई मुसीबत में फस्ने पर उसे ही याद करती थी. चौधरी बेचारा तो बस नाम का चौधरी था असली चौधरी तो चौधरायण थी. उन दोनो का एक ही बेटा था नाम उसका राजेश था प्यार से सब उसे राजू कहा करते थे. देखने में बचपन से सुंदर था, थोरी बहुत चंचलता भी थी मगर वैसे सीधा साधा लड़का था. थोड़ा जैसे ही बड़ा हुआ तो शीला देवी को लगा की इसको गाओं के माहौल से दूर भेज दिया जाए ताकि इसकी पढ़ाई लिखाई अच्छे से हो और गाओं के लड़को के साथ रह कर बिगड़ ना जाए. चौधरी ने थोडा बहुत विरोध करने की भी कोशिश की "हमारा तो एक ही लड़का है उसको भी क्यों बाहर भेज रही हो" मगर उसकी कौन सुनता, लड़के को उसके मामा के पास भेज दिया गया जो कि शहर में रह कर व्यापार करता था. मामा की भी बस एक लड़की ही थी. शीला देवी का ये भाई उस से उम्र में बड़ा था और वो खुशी खुशी अपने भानजे को अपने घर रखने के लिए तैय्यार हो गया था. दिन इसी तरह बीत रहे थे चौधरैयन के रूप में और ज़यादा निखार आता जा रहा था और चौधरी सुखता जा रहा था. अब अगर किसी को बहुत ज़यादा दबाया जाए तो वो चीज़ इतना दब जाती है कि उतना ही भूल जाती है. यही हाल चौधरी का भी था. उसने भी सब कुच्छ लगभग छ्चोड़ ही दिया था और घर के सबसे बाहर वाले कमरे में चुप चाप बैठा दो-चार निथल्ले मर्दो के साथ या तो दिन भर हुक्का पीता या फिर तास खेलता. शाम होने पर चुप चाप सटाक लेता और एक बॉटल देसी चढ़ा के घर जल्दी से वापस आ कर बाहर के कमरे में पर जाता. नौकरानी खाना दे जाती तो खा लेता नही तो अगर पता चल जाता की चौधरायण जली भूनी बैठी है तो खाना भी नही माँगता और सो जाता. लड़का छुट्टियों में घर आता तो फिर सब की चाँदी रहती थी क्यों की चौधरायण बहूत खुश रहती थी. घर में तरह के पकवान बनते और किसी को भी शीला देवी के गुस्से का सामना नही करना पड़ता था.
शीला देवी
ऐसे ही दिन महीने साल बीत ते गये, लड़का अब सत्रह बरस का हो चुका था. थोड़ा बहुत चंचल तो हो ही चुका था और बारहवी की परीक्षा उसने दे दी थी. परीक्षा जब ख़तम हुई तो शहर में रह कर क्या करता, शीला देवी ने बुलवा लिया. एप्रिल में परीक्षा के ख़तम होते ही वो गाओं वापस आ गया. लोंडे पर नई नई जवानी चड़ी थी. शहर की हवा लग चुकी थी जिम जाता था सो बदन खूब गठिला हो गया था. गाओं जब वो आया तो उसकी खूब आव-भगत हुई. मा ने खूब जम के खिलाया पिलाया. लड़के का मन भी लग गया. पर दो चार दिन बाद ही उसका इन सब चीज़ो से मन उब सा गया. अब शहर में रहने पर स्कूल जाना टशन जाना और फिर दोस्तो यारो के साथ समय कट जाता था पर यहा गाओं में तो करने धरने के लिए कुच्छ था नही, दिन भर बैठे रहो. इसलिए उसने अपनी समस्या अपनी शीला देवी को बता दी. शीला देवी ने कहा की "देख बेटा मैने तो तुझे गाओं के इसी गंदे माहौल से दूर रखने के लिए शहर भेजा था, मगर अब तू जिद्द कर रहा है तो ठीक है, गाओं के कुच्छ अच्छे लड़को के साथ दोस्ती कर ले और उन्ही के साथ क्रिकेट या फुटबॉल खेल ले या फिर घूम आया कर मगर एक बात और शाम में ज़यादा देर घर से बाहर नही रह सकता तू". राजू इस पर खुश हो गया और बोला "ठीक है मम्मी तुझे शिकायत का मौका नही दूँगा". राजू लड़का था, गाओं के कुच्छ बचपन के दोस्त भी थे उसके, उनके साथ घूमना फिरना शुरू कर दिया. सुबह शाम उनकी क्रिकेट भी शुरू हो गई. राजू का मन अब थोड़ा बहुत गाओं में लगना शुरू हो गया था.
हेलो दोस्तो मैं एक और नई कहानी गाँव का राजा लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे दोस्तो
गाओं का माहौल बड़ा ही अज़ीब किस्म का होता है. वेहा एक ओर तो सब कुच्छ ढका छुपा होता है तो दूसरी ओर अंदर ही अंदर ऐसे ऐसे कारनामे होते है कि जान जाओ तो दन्तो तले उंगली दबा लो. थोड़ा सा भी झगड़ा होने पर लोग ऐसी मोटी मोटी गलिया देंगे मगर, अपनी बहू बेटियो को दो गज का घूँघट निकालने के लिए बोलेंगे. फिर यही लोग दूसरो की बहू बेटियों पर बुरी नज़र रखेंगे और ज़रा सा भी मौका अगर मिल जाए तो अपने अंदर की सारी कुंठा और गंदी वासना निकाल देंगे. कहने का मतलब ये कि गाओं में जो ये दबी छुपी कामुक भावनाए है वो विभिन्न अव्सरो पर भिन्न भिन्न तरीक़ो से बाहर निकलती है. खेत, खलिहान, आमो का बगीचा आदि कई ऐसी जगहे है जहा पर छुप छुप के तरह तरह के कुकर्म होते है कभी उनका पता चल जाता है कभी नही चल पाता. गाओं के बड़े बड़े घरो के मर्द तो बकाएदा एक आध रखैले भी रखते है, जिनकी रखैल ना हो उनकी इज़्ज़त कम होती थी. ये अलग बात है कि इन बड़े घरो की औरते पयासी ही रह जाती थी क्यों कि मर्द तो किसी और ही कुआँ का पानी पी रहा होता था. दूसरो के कुए का पानी पीने के बाद अपने घर के पानी को पीने की उनकी इच्छा ही नही होती थी. और अगर किसी दिन पी भी लिया तो उन्हे मज़ा नही आता था. इन औरतो ने भी अपनी प्यास भुझाने के लिए तरह तरह के उपाए कर रखे थे. कुच्छ ने अपने नौकरो को फसा रखा था और उनकी बाँहो में अपनी सन्तुस्ति खोज़ती थी कुच्छ ने चोरी छुपे अपने यार बना रखे थे और कुच्छ यू ही दिन रात वासना की आग में जल कर हिस्टीरिया की मरीज़ बन चुकी थी. खैर ये तो हुआ गाओं के माहौल का थोड़ा सा परिचय. अब आपको गाओं की ही एक बड़े घर की कहानी सुनाता हू. वैसे तो सभी समझ गये होंगे कि ये गाओं की कोई वासनात्मक कहानी है, फिर इसको बताने की क्या ज़रूरत है जब इसमे कुच्छ भी नया नही है, तो दोस्तो इसमे बताने के लिए एक अनोखी बात है जो उस गाओं में पहले कभी नही हुई थी इसलिए बताई जा रही है. तो फिर सुनो कहानी.
गाओं के एक सुखी संपन्न परिवार की कहानी है. घर की मालकिन का नाम शीला देवी था. मलिक का नाम तो पता नही पर सब उसे चौधरी कहते थे. शीला देवी, जब शादी हो के आई थी तो देखने में कुच्छ खास नही थी रंग भी थोड़ा सावला सा था और शरीर दुबला पतला, छरहरा था. मगर बच्चा पैदा होने के बाद उनका सरीर भरना शुरू हो गया और कुच्छ ही समय में एक दुबली पतली औरत से एक अच्छी ख़ासी स्वस्थ भरे-पूरे शरीर की मालकिन बन गई. पहले जिस की तरफ एक्का दुक्का लोगो की नज़रे इनायत होती थी वो अब सबकी नज़रो की चाहत बन चुकी थी. उसके बदन में सही जॅघो पर भराव आ जाने के कारण हर जगह से कामुकता फूटने लगी थी. छ्होटी छ्होटी छातियाँ अब उन्नत वक्ष स्थल में तब्दील हो चुकी थी. बाँहे जो पहले तो लकड़ी के डंडे सी लगती थी अब काफ़ी मांसल हो चुकी थी. पतली कमर थोड़ी मोटी हो गई थी और पेट पर माँस चढ़ जाने के कारण गुदजपन आ गया था. और झुकने या बैठने पर दो मोटे मोटे फोल्ड से बन ने लगे थे. चूतरो में भी मांसलता आ चुकी थी और अब तो यही चूतर लोगो के दिलोको धड़का देते थे. जंघे मोटी मोटी केले के खंभो में बदल चुकी थी. चेहरे पर एक कशिश सी आ गई थी और आँखे तो ऐसी नशीली लगती थी जैसे दो बॉटल शराब पी रखी हो. सुंदरता बढ़ने के साथ साथ उसको सम्भहाल कर रखने का ढंग भी उसे आ गया और वो अपने आप को खूब सज़ा सॉवॅर के रखती थी. बोल चाल में बहुत तेज तर्रार थी और सारे घर के काम वो खुद ही नौकरो की सहयता से करवाती थी उसकी सुंदरता ने उसके पति को भी बाँध कर रखा हुआ था. चौधरी अपनी बीबी से डरता भी था इसलिए कही और मुँह मारने की हिम्मत उसकी नही होती थी. बीबी जब आई थी तो बहुत सारा दहेज ले के आई थी इसलिए उसके सामने मुँह खोलने में भी डरता था, बीबी भी उसके उपर पूरा हुकुम चलाती थी. उसने सारे घर को एक तरह से अपने क़ब्ज़े में कर के रखा हुआ था. बेचारा चौधरी अगर एक दिन भी घर देर से पहुचता था तो ऐसी ऐसी बाते सुनाती कि उसकी सिट्टी पिटी गुम हो जाती थी. काम-वासना के मामले में भी वो बीबी से थोड़ा उननिश ही पड़ता था. शीला देवी कुच्छ ज़यादा ही गरम थी. उसका नाम ऐसी औरतो में शुमार होता था जो खुद मर्द के उपर चढ़ जाए. गाओं की लग भग सारी औरते उसका लोहा मानती थी और कभी भी कोई मुसीबत में फस्ने पर उसे ही याद करती थी. चौधरी बेचारा तो बस नाम का चौधरी था असली चौधरी तो चौधरायण थी. उन दोनो का एक ही बेटा था नाम उसका राजेश था प्यार से सब उसे राजू कहा करते थे. देखने में बचपन से सुंदर था, थोरी बहुत चंचलता भी थी मगर वैसे सीधा साधा लड़का था. थोड़ा जैसे ही बड़ा हुआ तो शीला देवी को लगा की इसको गाओं के माहौल से दूर भेज दिया जाए ताकि इसकी पढ़ाई लिखाई अच्छे से हो और गाओं के लड़को के साथ रह कर बिगड़ ना जाए. चौधरी ने थोडा बहुत विरोध करने की भी कोशिश की "हमारा तो एक ही लड़का है उसको भी क्यों बाहर भेज रही हो" मगर उसकी कौन सुनता, लड़के को उसके मामा के पास भेज दिया गया जो कि शहर में रह कर व्यापार करता था. मामा की भी बस एक लड़की ही थी. शीला देवी का ये भाई उस से उम्र में बड़ा था और वो खुशी खुशी अपने भानजे को अपने घर रखने के लिए तैय्यार हो गया था. दिन इसी तरह बीत रहे थे चौधरैयन के रूप में और ज़यादा निखार आता जा रहा था और चौधरी सुखता जा रहा था. अब अगर किसी को बहुत ज़यादा दबाया जाए तो वो चीज़ इतना दब जाती है कि उतना ही भूल जाती है. यही हाल चौधरी का भी था. उसने भी सब कुच्छ लगभग छ्चोड़ ही दिया था और घर के सबसे बाहर वाले कमरे में चुप चाप बैठा दो-चार निथल्ले मर्दो के साथ या तो दिन भर हुक्का पीता या फिर तास खेलता. शाम होने पर चुप चाप सटाक लेता और एक बॉटल देसी चढ़ा के घर जल्दी से वापस आ कर बाहर के कमरे में पर जाता. नौकरानी खाना दे जाती तो खा लेता नही तो अगर पता चल जाता की चौधरायण जली भूनी बैठी है तो खाना भी नही माँगता और सो जाता. लड़का छुट्टियों में घर आता तो फिर सब की चाँदी रहती थी क्यों की चौधरायण बहूत खुश रहती थी. घर में तरह के पकवान बनते और किसी को भी शीला देवी के गुस्से का सामना नही करना पड़ता था.
शीला देवी
ऐसे ही दिन महीने साल बीत ते गये, लड़का अब सत्रह बरस का हो चुका था. थोड़ा बहुत चंचल तो हो ही चुका था और बारहवी की परीक्षा उसने दे दी थी. परीक्षा जब ख़तम हुई तो शहर में रह कर क्या करता, शीला देवी ने बुलवा लिया. एप्रिल में परीक्षा के ख़तम होते ही वो गाओं वापस आ गया. लोंडे पर नई नई जवानी चड़ी थी. शहर की हवा लग चुकी थी जिम जाता था सो बदन खूब गठिला हो गया था. गाओं जब वो आया तो उसकी खूब आव-भगत हुई. मा ने खूब जम के खिलाया पिलाया. लड़के का मन भी लग गया. पर दो चार दिन बाद ही उसका इन सब चीज़ो से मन उब सा गया. अब शहर में रहने पर स्कूल जाना टशन जाना और फिर दोस्तो यारो के साथ समय कट जाता था पर यहा गाओं में तो करने धरने के लिए कुच्छ था नही, दिन भर बैठे रहो. इसलिए उसने अपनी समस्या अपनी शीला देवी को बता दी. शीला देवी ने कहा की "देख बेटा मैने तो तुझे गाओं के इसी गंदे माहौल से दूर रखने के लिए शहर भेजा था, मगर अब तू जिद्द कर रहा है तो ठीक है, गाओं के कुच्छ अच्छे लड़को के साथ दोस्ती कर ले और उन्ही के साथ क्रिकेट या फुटबॉल खेल ले या फिर घूम आया कर मगर एक बात और शाम में ज़यादा देर घर से बाहर नही रह सकता तू". राजू इस पर खुश हो गया और बोला "ठीक है मम्मी तुझे शिकायत का मौका नही दूँगा". राजू लड़का था, गाओं के कुच्छ बचपन के दोस्त भी थे उसके, उनके साथ घूमना फिरना शुरू कर दिया. सुबह शाम उनकी क्रिकेट भी शुरू हो गई. राजू का मन अब थोड़ा बहुत गाओं में लगना शुरू हो गया था.