Incest गाँव का राजा (COMPLETED)

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गाँव का राजा (COMPLETED)

हेलो दोस्तो मैं एक और नई कहानी गाँव का राजा लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे दोस्तो



गाओं का माहौल बड़ा ही अज़ीब किस्म का होता है. वेहा एक ओर तो सब कुच्छ ढका छुपा होता है तो दूसरी ओर अंदर ही अंदर ऐसे ऐसे कारनामे होते है कि जान जाओ तो दन्तो तले उंगली दबा लो. थोड़ा सा भी झगड़ा होने पर लोग ऐसी मोटी मोटी गलिया देंगे मगर, अपनी बहू बेटियो को दो गज का घूँघट निकालने के लिए बोलेंगे. फिर यही लोग दूसरो की बहू बेटियों पर बुरी नज़र रखेंगे और ज़रा सा भी मौका अगर मिल जाए तो अपने अंदर की सारी कुंठा और गंदी वासना निकाल देंगे. कहने का मतलब ये कि गाओं में जो ये दबी छुपी कामुक भावनाए है वो विभिन्न अव्सरो पर भिन्न भिन्न तरीक़ो से बाहर निकलती है. खेत, खलिहान, आमो का बगीचा आदि कई ऐसी जगहे है जहा पर छुप छुप के तरह तरह के कुकर्म होते है कभी उनका पता चल जाता है कभी नही चल पाता. गाओं के बड़े बड़े घरो के मर्द तो बकाएदा एक आध रखैले भी रखते है, जिनकी रखैल ना हो उनकी इज़्ज़त कम होती थी. ये अलग बात है कि इन बड़े घरो की औरते पयासी ही रह जाती थी क्यों कि मर्द तो किसी और ही कुआँ का पानी पी रहा होता था. दूसरो के कुए का पानी पीने के बाद अपने घर के पानी को पीने की उनकी इच्छा ही नही होती थी. और अगर किसी दिन पी भी लिया तो उन्हे मज़ा नही आता था. इन औरतो ने भी अपनी प्यास भुझाने के लिए तरह तरह के उपाए कर रखे थे. कुच्छ ने अपने नौकरो को फसा रखा था और उनकी बाँहो में अपनी सन्तुस्ति खोज़ती थी कुच्छ ने चोरी छुपे अपने यार बना रखे थे और कुच्छ यू ही दिन रात वासना की आग में जल कर हिस्टीरिया की मरीज़ बन चुकी थी. खैर ये तो हुआ गाओं के माहौल का थोड़ा सा परिचय. अब आपको गाओं की ही एक बड़े घर की कहानी सुनाता हू. वैसे तो सभी समझ गये होंगे कि ये गाओं की कोई वासनात्मक कहानी है, फिर इसको बताने की क्या ज़रूरत है जब इसमे कुच्छ भी नया नही है, तो दोस्तो इसमे बताने के लिए एक अनोखी बात है जो उस गाओं में पहले कभी नही हुई थी इसलिए बताई जा रही है. तो फिर सुनो कहानी.


गाओं के एक सुखी संपन्न परिवार की कहानी है. घर की मालकिन का नाम शीला देवी था. मलिक का नाम तो पता नही पर सब उसे चौधरी कहते थे. शीला देवी, जब शादी हो के आई थी तो देखने में कुच्छ खास नही थी रंग भी थोड़ा सावला सा था और शरीर दुबला पतला, छरहरा था. मगर बच्चा पैदा होने के बाद उनका सरीर भरना शुरू हो गया और कुच्छ ही समय में एक दुबली पतली औरत से एक अच्छी ख़ासी स्वस्थ भरे-पूरे शरीर की मालकिन बन गई. पहले जिस की तरफ एक्का दुक्का लोगो की नज़रे इनायत होती थी वो अब सबकी नज़रो की चाहत बन चुकी थी. उसके बदन में सही जॅघो पर भराव आ जाने के कारण हर जगह से कामुकता फूटने लगी थी. छ्होटी छ्होटी छातियाँ अब उन्नत वक्ष स्थल में तब्दील हो चुकी थी. बाँहे जो पहले तो लकड़ी के डंडे सी लगती थी अब काफ़ी मांसल हो चुकी थी. पतली कमर थोड़ी मोटी हो गई थी और पेट पर माँस चढ़ जाने के कारण गुदजपन आ गया था. और झुकने या बैठने पर दो मोटे मोटे फोल्ड से बन ने लगे थे. चूतरो में भी मांसलता आ चुकी थी और अब तो यही चूतर लोगो के दिलोको धड़का देते थे. जंघे मोटी मोटी केले के खंभो में बदल चुकी थी. चेहरे पर एक कशिश सी आ गई थी और आँखे तो ऐसी नशीली लगती थी जैसे दो बॉटल शराब पी रखी हो. सुंदरता बढ़ने के साथ साथ उसको सम्भहाल कर रखने का ढंग भी उसे आ गया और वो अपने आप को खूब सज़ा सॉवॅर के रखती थी. बोल चाल में बहुत तेज तर्रार थी और सारे घर के काम वो खुद ही नौकरो की सहयता से करवाती थी उसकी सुंदरता ने उसके पति को भी बाँध कर रखा हुआ था. चौधरी अपनी बीबी से डरता भी था इसलिए कही और मुँह मारने की हिम्मत उसकी नही होती थी. बीबी जब आई थी तो बहुत सारा दहेज ले के आई थी इसलिए उसके सामने मुँह खोलने में भी डरता था, बीबी भी उसके उपर पूरा हुकुम चलाती थी. उसने सारे घर को एक तरह से अपने क़ब्ज़े में कर के रखा हुआ था. बेचारा चौधरी अगर एक दिन भी घर देर से पहुचता था तो ऐसी ऐसी बाते सुनाती कि उसकी सिट्टी पिटी गुम हो जाती थी. काम-वासना के मामले में भी वो बीबी से थोड़ा उननिश ही पड़ता था. शीला देवी कुच्छ ज़यादा ही गरम थी. उसका नाम ऐसी औरतो में शुमार होता था जो खुद मर्द के उपर चढ़ जाए. गाओं की लग भग सारी औरते उसका लोहा मानती थी और कभी भी कोई मुसीबत में फस्ने पर उसे ही याद करती थी. चौधरी बेचारा तो बस नाम का चौधरी था असली चौधरी तो चौधरायण थी. उन दोनो का एक ही बेटा था नाम उसका राजेश था प्यार से सब उसे राजू कहा करते थे. देखने में बचपन से सुंदर था, थोरी बहुत चंचलता भी थी मगर वैसे सीधा साधा लड़का था. थोड़ा जैसे ही बड़ा हुआ तो शीला देवी को लगा की इसको गाओं के माहौल से दूर भेज दिया जाए ताकि इसकी पढ़ाई लिखाई अच्छे से हो और गाओं के लड़को के साथ रह कर बिगड़ ना जाए. चौधरी ने थोडा बहुत विरोध करने की भी कोशिश की "हमारा तो एक ही लड़का है उसको भी क्यों बाहर भेज रही हो" मगर उसकी कौन सुनता, लड़के को उसके मामा के पास भेज दिया गया जो कि शहर में रह कर व्यापार करता था. मामा की भी बस एक लड़की ही थी. शीला देवी का ये भाई उस से उम्र में बड़ा था और वो खुशी खुशी अपने भानजे को अपने घर रखने के लिए तैय्यार हो गया था. दिन इसी तरह बीत रहे थे चौधरैयन के रूप में और ज़यादा निखार आता जा रहा था और चौधरी सुखता जा रहा था. अब अगर किसी को बहुत ज़यादा दबाया जाए तो वो चीज़ इतना दब जाती है कि उतना ही भूल जाती है. यही हाल चौधरी का भी था. उसने भी सब कुच्छ लगभग छ्चोड़ ही दिया था और घर के सबसे बाहर वाले कमरे में चुप चाप बैठा दो-चार निथल्ले मर्दो के साथ या तो दिन भर हुक्का पीता या फिर तास खेलता. शाम होने पर चुप चाप सटाक लेता और एक बॉटल देसी चढ़ा के घर जल्दी से वापस आ कर बाहर के कमरे में पर जाता. नौकरानी खाना दे जाती तो खा लेता नही तो अगर पता चल जाता की चौधरायण जली भूनी बैठी है तो खाना भी नही माँगता और सो जाता. लड़का छुट्टियों में घर आता तो फिर सब की चाँदी रहती थी क्यों की चौधरायण बहूत खुश रहती थी. घर में तरह के पकवान बनते और किसी को भी शीला देवी के गुस्से का सामना नही करना पड़ता था.

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शीला देवी

ऐसे ही दिन महीने साल बीत ते गये, लड़का अब सत्रह बरस का हो चुका था. थोड़ा बहुत चंचल तो हो ही चुका था और बारहवी की परीक्षा उसने दे दी थी. परीक्षा जब ख़तम हुई तो शहर में रह कर क्या करता, शीला देवी ने बुलवा लिया. एप्रिल में परीक्षा के ख़तम होते ही वो गाओं वापस आ गया. लोंडे पर नई नई जवानी चड़ी थी. शहर की हवा लग चुकी थी जिम जाता था सो बदन खूब गठिला हो गया था. गाओं जब वो आया तो उसकी खूब आव-भगत हुई. मा ने खूब जम के खिलाया पिलाया. लड़के का मन भी लग गया. पर दो चार दिन बाद ही उसका इन सब चीज़ो से मन उब सा गया. अब शहर में रहने पर स्कूल जाना टशन जाना और फिर दोस्तो यारो के साथ समय कट जाता था पर यहा गाओं में तो करने धरने के लिए कुच्छ था नही, दिन भर बैठे रहो. इसलिए उसने अपनी समस्या अपनी शीला देवी को बता दी. शीला देवी ने कहा की "देख बेटा मैने तो तुझे गाओं के इसी गंदे माहौल से दूर रखने के लिए शहर भेजा था, मगर अब तू जिद्द कर रहा है तो ठीक है, गाओं के कुच्छ अच्छे लड़को के साथ दोस्ती कर ले और उन्ही के साथ क्रिकेट या फुटबॉल खेल ले या फिर घूम आया कर मगर एक बात और शाम में ज़यादा देर घर से बाहर नही रह सकता तू". राजू इस पर खुश हो गया और बोला "ठीक है मम्मी तुझे शिकायत का मौका नही दूँगा". राजू लड़का था, गाओं के कुच्छ बचपन के दोस्त भी थे उसके, उनके साथ घूमना फिरना शुरू कर दिया. सुबह शाम उनकी क्रिकेट भी शुरू हो गई. राजू का मन अब थोड़ा बहुत गाओं में लगना शुरू हो गया था.
 
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घर में चारो तरफ खुशी का वातावरण था क्यों की आज राजू का जनम दिन था. सुबह उठ कर शीला देवी ने घर की सॉफ सफाई करवाई, हलवाई लगवा दिया और खुद भी शाम की तैय्यारियों में जुट गई. राजू सुबह से बाहर ही घूम रहा था. पर आज उसको पूरी छूट मिली हुई थी. तकरीबन 12 बजे के आस पास जब शीला देवी अपने पति को कुच्छ काम समझा कर बाजार भेज रही थी तो उसकी मालिश करने वाली आया आ गई. शीला देवी उसको देख कर खुश होती हुई बोली "चल अच्छा किया आज आ गई, मैं तुझे खबर भिजवाने ही वाली थी, पता नही दो तीन दिन से पीठ में बड़ी अकड़न सी हो रखी है". आया बोली "मैं तो जब सुनी कि आज मुन्ना बाबू का जनम दिन है तो चली आई कि कही कोई काम ना निकल आए". काम क्या होना था, ये जो आया थी वो बहुत मुँह लगी थी चौधरायण के. आया चौधरायण की कामुकता को मानसिक संतुष्टि प्रदान करती थी. अपने दिमाग़ के साथ पूरे गाओं की तरह तरह की बाते जैसे की कौन किसके साथ लगी है कौन किस से फसि है और कौन किस पे नज़र रखहे हुए है आदि करने में उसे बड़ा मज़ा आता था. आया भी थोड़ी कुत्सित प्रवृति की थी उसके दिमाग़ में जाने क्या क्या चलता रहता था. गाओं, मुहल्ले की बाते खूब नमक मिर्च लगा कर और रंगीन बना कर बताने में उसे बरा मज़ा आता था. इसलिए दोनो की जमती भी खूब थी. तो फिर चौधरायण सब कामो से फ़ुर्सत पा कर अपनी मालिश करवाने के लिए अपने कमरे में जा घुसी. दरवाज़ा बंद करने के बाद चौधरैयन बिस्तेर पर लेट गई और आया उसके बगल में तेल की कटोरी ले कर बैठ गई. दोनो हाथो में तेल लगा कर चौधरायण की साडी को घुटनो से उपर तक उठाते हुए उसने तेल लगा शुरू कर दिया. चौधरायण की गोरी चिकनी टॅंगो पर तेल लगाते हुए आया की बातो का सिलसिला शुरू हो गया था. आया ने चौधरायण की तारीफो के पूल बांधना शुरू कर दिए था. चौधरायण ने थोड़ा सा मुस्कुराते हुए पुचछा "और गाओं का हाल चाल तो बता, तू तो पता नही कहा मुँह मारती रहती है मेरी तारीफ तू बाद में कर लेना". आया के चेहरे पर एक अनोखी चमक आ गई "क्या हाल चाल बताए मालकिन, गाओं में तो अब बस जिधर देखो उधर ज़ोर ज़बरदस्ती हो रही है, परसो मुखिया ने नंदू कुम्हार को पिटवा दिया पर आप तो जानती ही हो आज कल के लड़को को.. उँछ नीच का उन्हे कुच्छ ख्याल तो है नही, नंदू का बेटा शहर से पढ़ाई कर के आया है पता नही क्या क्या सीखके के आया है, उसने भी कल मुखिया को अकेले में धर दबोचा और लगा दी चार पाँच पटखनी, मुखिया पड़ा हुआ है अपने घर पर अपनी टूटी टांग ले के और नंदू का बेटा गया थाने" "हा रे, इधर काम के चक्कर में तो पता ही नही चला, मैं भी सोच रही थी कि कल पोलीस क्यों आई थी, पर एक बात तो बता मैने तो ये भी सुना है कि मुखिया की बेटी का कुच्छ चक्कर था नंदू के बेटे से" "सही सुना है मालकिन, दोनो में बड़ा जबरदस्त नैन मत्तक्का चल रहा है, इसी से मुखिया खार खाए बैठा था"

"बड़ा खराब जमाना आ गया है, लोगो में एक तो उँछ नीच का भेद मिट गया है, कौन किसके साथ घूम फिर रहा है ये भी पता नही चलता है, खैर और सुना, मैने सुना है तेरा भी बड़ा नैन मत्तक्का चल रहा है आज कल उस सरपंच के छ्होरे के साथ, साली बुढ़िया हो के कहा से फसा लेती है जवान जवान लोंडो को"


आया का चेहरा कान तक लाल हो गया था, छिनाल तो वो थी मगर चोरी पकड़े जाने पर चेहरे पर शर्म की लाली दौड़ गई. शरमाते और मुस्कुराते हुए बोली "अर्रे मालकिन आप तो आज कल के लोंडो का हाल जानती ही हो सब साले च्छेद के चक्कर में पगलाए घूमते रहते है"



"पगलाए घूमते है या तू पागल कर देती है,,,,,,,,,,,अपनी जवानी दिखा के"



आया के चेहरे पर एक शर्मीली मुस्कुराहट दौड़ गई, "क्या मालकिन मैं क्या दिखौँगी, फिर थोड़ा बहुत तो सब करते है"



"थोड़ा सा....साली क्यों झूट बोलती है तू तो पूरी की पूरी छिनाल है, सारे गाओं के लड़को को बिगाड़ के रख देगी,,,,,,,,,,



"अर्रे मालकिन बिगड़े हुए को मैं क्या बिगाड़ूँगी, गाओं के सारे छ्होरे तो दिन रात इसी चक्कर में लगे रहते हैं".



"चल साली, तू जैसे दूध की धूलि है"



"अब जो समझ लो मालकिन, पर एक बात बता दू आपको कि ये लोंडे भी कम नही है गाओं के तालाब पर जो पेड़ लगे हुए है ना उस पर बैठ का खूब तान्क झाँक करते है"



"अक्चा, पर तुम लोग क्या भगाती नही उन लोंडो को..........."



"घने घने पेड़ है चारो तरफ, अब कोई उनके पिछे छुपा बैठा रहेगा तो कैसे पता चलेगा, कभी दिख जाते है कभी नही दिखते"



"बड़े हरामी लोंडे है, औरतो को चैन से नहाने भी नही देते"



"लोंडे तो लोंडे, लड़कियाँ भी कोई कम हरामी नही है"



"क्यों वो क्या करती है"



"अर्रे मालकिन दिखा दिखा के नहाती है"



"अच्छा, बड़ा गंदा माहौल हो गया है गाओं का"



"जो भी है मालकिन अब जीना तो इसी गाओं में है ना"



"हा रे वो तो है, मगर मुझे तो मेरे लड़के के कारण डर लगता है, कही वो भी ना बिगड़ जाए"



इस पर आया के होंठो के कमान थोड़े से खींच गये. उसके चेहरे की कुटिल मुस्कान जैसे कह रही थी की बिगड़े हुए को और क्या बिगाड़ना. मगर आया ने कुच्छ बोला नही.



शीला देवी हँसते हुए बोली "अब तो लड़का भी जवान हो गया है, तेरे जैसी रंडियो के नज़रो से तो बचाना ही पड़ेगा नही तो तुम लोग कब उसको हाज़ाम कर जाओगी ये भी पता नही लगेगा"



"अब मालकिन झूठ नही बोलूँगी पर अगर आप सच सुन सको तो एक बात बोलू"



"हा बोल क्या बात"


"चलो रहने दो मालकिन" कह कर आया ने पूरा ज़ोर लगा के चौधरायण की कमर को थोड़ा कस के दबाया, गोरी खाल लाल हो गई, चौधरायण के मुँह से हल्की सी आह निकली गई, आया का हाथ अब तेज़ी से कमर पर चल रहा था. आया के तेज चलते हाथो ने चौधरायण को थोरी देर के लिए भूला दिया कि वो क्या पुच्छ रही थी. आआया ने अपने हाथो को अब कमर से थोड़ा नीचे चलाना शुरू कर दिया था. उसने चौधरायण की पेटिकोट के अंदर ख़ुसी हुई साडी को अपने हाथो से निकाल दिया और कमर की साइड में हाथ लगा कर पेटिकोट के नाडे को खोल दिया. पेटिकोट को ढीला कर उसने अपने हाथो को कमर के और नीचे उतार दिया. हाथो में तेल लगा कर चौधरायण के मोटे-मोटे चूतरो के मंसो को अपने हथेलियो में दबोच दबोच कर दबा रही थी. शीला देवी के मुँह से हर बार एक हल्की सी आनद भरी आह निकल जाती थी. अपने तेल लगे हाथो से आया ने चौधरायण की पीठ से लेकर उसके मांसल चूतरो तक के एक-एक कस बल को ढीला कर दिया था. आया का हाथ चूतरो को मसल्ते मसल्ते उनके बीच की दरार में भी चला जाता था. चूतरो के दरार को सहलाने पर हुई गुद-गुडी और सिहरन के कारण चौधरायण के मुँह से हल्की सी हसी के साथ कराह निकल जाती थी. आया के मालिश करने के इसी मस्ताने अंदाज की शीला देवी दीवानी थी. आया ने अपना हाथ चूतरो पर से खींच कर उसकी सारी को जाँघो तक उठा कर उसके गोरे-गोरे बिना बालो के गुदाज़ मांसल जाँघो को अपने हाथो में दबा-दबा के मालिश करना शुरू कर दिया. चौधरायण की आँखे आनंद से मुंदी जा रही थी. आया का हाथ घुटनो से लेकर पूरे जाँघो तक घूम रहे थे. जाँघो और चूतरो के निचले भाग पर मालिश करते हुए आया का हाथ अब धीरे धीरे चौधरायण के चूत और उसकी झांतो को भी टच कर रहा था.
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आया ने अपने हाथो से हल्के हल्के चूत को छुना शुरू कर दिया था. चूत को छुते ही शीला देवी के पूरे बदन में सिहरन सी दौड़ गई थी. उसके मुँह से मस्ती भरी आह निकल गई. उस से रहा नही गया और पीठ के बल होते हुए बोली "साली तू मानेगी नही"
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"मालकिन मेरे से मालिश करवाने का यही तो मज़ा है"


"चल साली, आज जल्दी छोड़ दे मुझे बहुत सारा काम है"



"अर्रे काम-धाम तो सारे नौकर चाकर कर ही रहे है मालकिन, ज़रा अच्छे से मालिश करवा लो इतने दीनो के बाद आई हू, बदन हल्का हो जाएगा"



चौधरायण ने अपनी जाँघो को और चौड़ा कर दिया और अपने एक पैर को घुटनो के पास से मोड़ दिया, और अपनी चूचियों पर से साडी को हटा दिया. मतलब आया को ये सीधा संकेत दे दिया था कि कर ले अपनी मर्ज़ी जो भी करना है मगर बोली "हट साली तेरे से बदन हल्का करवाने के चक्कर में नही पड़ना मुझे आज, आग लगा देती है साली...............चौधरायण ने अपनी बात अभी पूरी भी नही की थी और आया का हाथ सीधा साड़ी और पेटिकोट के नीचे से शीला देवी के चूत पर पहुच गया था. चूत की फांको पर उंगलिया चलाते हुए अपने अंगूठे से हल्के से शीला देवी की चूत के क्लिट को आया सहलाने लगी. चूत एकदम से पनिया गई. आया ने चूत को एक थपकी लगाई और मालकिन की ओर देखते हुए मुस्कुराते हुए बोली "पानी तो छोड रही हो मालकिन". इस पर शीला देवी सिसकते हुए बोली "साली ऐसे थपकी लगाएगी तो पानी तो निकलेगा ही" फिर अपने ब्लाउस के बटनो को खोलने लगी.
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आया ने पुचछा "पूरा कर्वाओगि क्या मालकिन".
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"पूरा तो करवाना ही पड़ेगा साली अब जब तूने आग लगा दी है..."



आया ने मुस्कुराते हुए अपने हाथो को शीला देवी की चुचियों की ओर बढ़ा दिया और उनको हल्के हाथो से पकड़ कर सहलाने लगी जैसे की पूछकर कर रही हो. फिर अपने हाथो में तेल लगा के दोनो चूचियों को दोनो हाथो से पकड़ के हल्के से खीचते हुए निपपलो को अपने अंगूठे और उंगलियों के बीच में दबा कर खीचने लगी. चुचियों में धीरे-धीरे तनाव आना शुरू हो गया. निपल खड़े हो गये और दोनो चूचियों में उमर के साथ जो थोड़ा बहुत थुल-थुलापन आया हुआ था वो अब मांसल कठोरता में बदल गया. उत्तेजना बढ़ने के कारण चुचियों में तनाव आना स्वाभाविक था. आया की समझ में आ गया था कि अब मालकिन को गर्मी पूरी चढ़ गई है. आया को औरतो के साथ खेलने में उतना ही मज़ा आता था जितना मज़ा उसको लड़को के साथ खेलने में आता था. चुचियो को तेल लगाने के साथ-साथ मसल्ते हुए आया ने अपने हाथो को धीरे धीरे पेट पर चलना शुरू कर दिया था.
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चौधरायण की गोल-गोल नाभि में अपने उंगलियों को चलाते हुए आया ने फिर से बाते करनी शुरू कर दी.



"मालकिन अब क्या बोलू, मगर मुन्ना बाबू (चौधराईएन का बेटा) भी कम उस्ताद नही है



मस्ती में डूबी हुई अधखुली आँखो से आया को देखते हुए शीला देवी ने पुच्छा



"क्यों, क्या किया मुन्ना ने तेरे साथ"
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"मेरे साथ क्या करेंगे मुन्ना बाबू, आप गुस्सा ना हो एक बताउ आपको. चौधरायण ने अब अपनी आँखे खोल दी और चोकन्नि हो गई



"हा हा बोल ना क्या बोलना है"



"मालकिन अपने मुन्ना बाबू भी काम नही है, उनकी भी संगत बिगड़ गई है"



"ऐसा कैसे बोल रही है तू"



"ऐसा इसलिए बोल रही हू क्यों की, अपने मुन्ना बाबू भी तलब के चक्कर खूब लगते है"



"इसका क्या मतलब हुआ, हो सकता है दोस्तो के साथ खेलने या फिर तैरने चला जाता होगा"



"खाली तैरने जाए तब तो ठीक है मालकिन मगर, मुन्ना बाबू को तो मैने कई तालाब किनारे वाले पेड़ पर चढ़ कर छुप कर बैठे हुए भी देखा है".



"सच बोल रही है तू........"



"और क्या मालकिन, आप से झूट बोलूँगी, कह कर आया ने अपना हाथ फिर से पेटिकोट के अंदर सरका दिया और चूत से खेलने लगी. अपनी मोटी मोटी दो उंगलियों को उसने गचक से शीला देवी के चूत में पेल दिया. चूत में उंगली के जाते ही शीला देवी के मुँह से आह निकल गई मगर उसने कुच्छ बोला नही. अपने बेटे के बारे में जानकर उसके ध्यान सेक्स से हट गया था और वो उसके बारे और ज़यादा जान ना चाहती थी. इसलिए फिर आया को कुरेदते हुए कहा

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"अब मुन्ना भी तो जवान हो गया है थोड़ी बहुत तो उत्सुकता सब के मन में होती, वो भी देखने चला गया होगा इन मुए गाओं के छोरो के साथ"



"पर मालकिन मैने तो उनको शाम में अमिया (आमो का बगीचा) में गुलाबो के चुचे दबाते हुए भी देखा है"
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चौधरैयन का गुस्सा सातवे आसमान पर जा पहुचा, उसने आया को एक लात कस के मारी, आया गिरी तो नही मगर थोड़ा हिल ज़रूर गई. आया ने अपनी उंगलिओ को अभी भी चूत से नही निकलने दिया. लात खाकर भी हस्ती हुई बोली "मालकिन जितना गुस्सा निकालना हो निकाल लो मगर मैं एक दम सच-सच बोल रही हू. झूट बोलू तो मेरी ज़ुबान कट के गिर जाए मगर मुन्ना बाबू को तो कई बार मैने गाओं की औरते जिधर दिशा-मैदान करने जाती है उधर भी घूमते हुए देखा है"
 
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"हाई दैया उधर क्या करने जाता है ये सुअर"

"बसंती के पिछे भी पड़े हुए है छ्होटे मलिक, वो भी साली खूब दिखा दिखा के नहाती है,,,,,,
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साली को जैसे ही छ्होटे मालिक को देखती और ज़यादा चूतर मटका मटका के चलने लगती है, छ्होटे मलिक भी पूरा लट्तू हुए बैठे है"

"क्या जमाना आ गया है, इतना पढ़ाने लिखाने का कुच्छ फ़ायदा नही हुआ, सब मिट्टी में मिला दिया, इन्ही भंगिनो और धोबनो के पिछे घूमने के लिए इसे शहर भेजा था"

दो मोटी-मोटी उंगलियों को चूत में कच-कच पेलते, निकालते हुए आया ने कहा,

"आप भी मालकिन बेकार में नाराज़ हो रही हो, नया खून है थोड़ा बहुत तो उबाल मारेगा ही, फिर यहा गाओं में कौन सा उनका मन लगता होगा, मन लगाने के लिए थोड़ा बहुत इधर उधर कर लेते है"

"नही रे, मैं सोचती थी कम से कम मेरा बेटा तो ऐसा ना करे"

"वाह मालकिन आप भी कमाल की हो, अपने बेटे को भी अपने ही जैसा बना दो"

"क्या मतलब है रे तेरा"

"मतलब क्या है आप भी समझती हो, खुद तो आग में जलती रहती हो और चाहती हो की बेटा भी जले"

नज़रे छुपाते हुए चौधरायण ने कहा

"मैं कौन सी आग में जलती हू री कुतिया....."

"क्यों जलती नही हो क्या, मुझे क्या नही पता की मर्द के हाथो की गर्मी पाए आपको ना जाने कितने साल बीत चुके है, जैसे आपने अपनी इच्च्छाओ को दबा के रखा हुआ है वैसा ही आप चाहती हो छ्होटे मालिक भी करे"

"ऐसा नही है रे, ये सब काम करने की भी एक उमर होती है वो अभी बच्चा है"

"बच्चा है, आरे मालकिन वो ना जाने कितनो को अपने बच्चे की मा बना दे और आप कहती हो बच्चा है".

"चल साली क्या बकवास करती है"

आया ने चूत के क्लिट को सहलाते हुए और उंगलियों को पेलते हुए कहा "मेरी बाते तो बकवास ही लगेंगी मगर क्या आपने कभी छ्होटे मलिक का औज़ार देखा है"

"दूर हट कुतिया, क्या बोल रही है बेशरम तेरे बेटे की उमर का है"

आया ने मुस्कुराते हुए कहा- "बेशरम बोलो या फिर जो मन में आए बोलो मगर मालकिन सच बोलू तो मुन्ना बाबू का औज़ार देख के तो मेरी भी पनिया गई थी" कह कर चुप हो गई और चौधरायण की दोनो टाँगो को फैला कर उसके बीच में बैठ गई. फिर धीरे से अपने जीभ को चूत की क्लिट पर लगा कर चलाने लगी. चौधरायण ने अपने जाँघो को और ज़यादा फैला दिया, चूत पर आया की जीभ गजब का जादू कर रही थी.

आया के पास 25 साल का अनुभव था हाथो से मालिश करने का मगर जब उसका आकर्षण औरतो की तरफ बढ़ा तो धीरे धीरे उसने अपने हाथो के जादू को अपनी ज़ुबान में उतार दिया था. जब वो अपनी जीभ को चूत के उपरी भाग में नुकीला कर के रगड़ती थी तो शीला देवी की जलती हुई चूत ऐसे पानी छोड़ती थी जैसे कोई झरना छोड़ता है. चूत के एक एक पेपोट को अपने होंठो के बीच दबा दबा के ऐसे चुस्ती थी कि शीला देवी के मुँह से बरबस सिसकारिया फूटने लगी थी. गांद हवा में 4 इंच उपर उठा-उठा के वो आया के मुँह पर रगड़ रही थी. शीला देवी काम-वासना की आग में जल उठी थी. आया ने जब देखा मालकिन अब पूरे उबाल पर आ गई है तो उसको जल्दी से झदाने के इरादे से उसने अपनी ज़ुबान हटा के फिर कचक से दो मोटी उंगलिया पेल दी और गाचा-गच अंदर बाहर करने लगी. आया ने फिर से बातो का सिलसिला शुरू कर दिया......
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"मालकिन, अपने लिए भी कुच्छ इंतज़ाम कर लो अब,

"क्या मतलब है रीए तेराअ उईईईई सस्स्स्स्स्स्सिईईईई जल्दी जल्दी हाथ चला साली"

"मतलब तो बड़ा सीधा साधा है मालकिन, कब तक ऐसे हाथो से करवाती रहोगी"

"तो फिर क्या करू रे, साली ज़यादा दिमाग़ मत चला हाथ चला"

"मालकिन आपकी चूत मांगती है लंड का रूस और आप हो कि इसको ..........खीरा ककरी खिला रही हो"

"चुप साली, अब कोई उमर रही है मेरी ये सब काम करवाने की"

"अच्छा आपको कैसे पता की आपकी उमर बीत गई है, ज़रा सा छु देती हू उसमे तो पनिया जाती है आपकी और बोलती हो अब उमर बीत गई"

"नही रे,,, लड़का जवान हो गया, बिना मर्द के सुख के इतने दिन बीत गये अब क्या अब तो बुढ़िया हो गई हू"

"क्या बात करती हो मालकिन, आप और बुढ़िया ! अभी भी अच्छे अछो के कान काट दोगि आप, इतना भरा हुआ नशीला बदन तो इस गाओं आस-पास के चार सौ गाओं में ढूँढे नही मिलेगा.
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"चल साली क्यों चने के झाड़ पर चढ़ा रही है"

"क्या मालकिन मैं क्यों ऐसा करूँगी, फिर लड़का जवान होने का ये मतलब थोड़े ही है की आप बुढ़िया हो गई हो क्यों अपना सत्यानाश करवा रही हो"


"तू मुझे बिगाड़ने पर क्यों तुली हुई है"



आया ने इस पर हस्ते हुए कहा, "थोड़ा आप बिगड़ो और थोड़ा छ्होटे मालिक को भी बिगड़ने का मौका दो"



"छ्हि रनडिीई ....कैसी कैसी बाते करती है ! मेरे बेटे पर नज़र डाली तो मुँह नोच लूँगी"



"मालकिन मैं क्या करूँगी, छ्होटे मलिक खुद ही कुच्छ ना कुच्छ कर देंगे"



"वो क्यों करेगा रे.......वो कुच्छ नही करने वाला"



"मालकिन बड़ा मस्त हथियार है छ्होटे मलिक का, गाओं की छोरियाँ छोड़ने वाली नही"



"हराम जादि, छोरियो की बात छ्चोड़ मुझे तो लगता है तू ही उसको नही छोड़ेगी, शरम कर बेटे की उमर का है"



"हाई मालकिन औज़ार देख के तो सब कुच्छ भूल जाती हू मैं"



इतनी देर से अपने बेटे की बराई सुन-सुन के शीला देवी के मन में भी उत्सुकता जाग उठी थी. उसने आख़िर आया से पुच्छ ही लिया.....



"कैसे देखा लिया तूने मुन्ना का". आया ने अंजान बनते हुए पुचछा "मुन्ना बाबू का क्या मालकिन". एक फिर आया को चौधरैयन की एक लात खानी पड़ी, फिर चुधरायण ने हस्ते हुए कहा "कमिनि सब समझ के अंजान बनती है". आया ने भी हस्ते हुए कहा "मालकिन मैने तो सोचा की आप अभी तो बेटा बेटा कर रही थी फिर उसके औज़ार के बारे में कैसे पुछोगि?". आया की बात सुन कर चौधरैयन थोड़ा शर्मा गई. उसकी समझ में ही नही आ रहा था कि क्या जवाब दे वो आया को, फिर भी उसने थोड़ा झेप्ते हुए कहा.



"साली मैं तो ये पुच्छ रही थी की तूने कैसे देख लिया"



"मैने बताया तो था मालकिन की छ्होटे मालिक जिधर गाओं की औरते दिशा-मैदान करने जाती है उधर घूमते रहते है, फिर ये साली बसंती भी उनपे लट्तू हुई बैठी है. एक दिन शाम में मैं जब पाखाना करने गई थी तो देखा झारियों में खुशुर पुसुर की आवाज़ आ रही है. मैने सोचा देखु तो ज़रा कौन है, देखा तो हक्की-बक्की रह गई क्या बताउ, मुन्ना बाबू और बसंती दोनो खुसुर पुसुर कर रहे थे. मुन्ना बाबू का हाथ बसंती की चोली में और बसंती का हाथ मुन्ना बाबू के हाफ पॅंट में घुसा हुआ था. मुन्ना बाबू रीरयते हुए बसंती से बोल रहे थे एक बार अपना माल दिखा दे और बसंती उनको मना कर रही थी". इतना कह कर आया चुप हो गई और एक हाथ से शीला देवी की चुचि दबाते हुए अपनी उंगलिया चूत के अंदर तेज़ी से घूमने लगी.



शीला देवी सिसकरते हुए बोली "हा फिर क्या हुआ, मुन्ना ने क्या किया". चौधरैयन के अंदर अब उत्सुकता जाग उठी थी.



"मुन्ना बाबू ने फिर ज़ोर से बसंती की एक चुचि को एक हाथ में थाम लिया और दूसरी हाथ की हथेली को सीधा उसकी दोनो जाँघो के बीच रख के पूरी मुठ्ठी में उसकी चूत को भर लिया और फुसफुसाते हुए बोले 'हाई दिखा दे एक बार, चखा दे अपना लल्मुनिया को बस एक बार रानी फिर देख मैं इस बार मेले में तुझे सबसे मह्न्गा लहनगा खरीद दूँगा, बस एक बार चखा दे रानी', इतनी ज़ोर से चुचि डबवाने पर साली को दर्द भी हो रहा होगा मगर साली की हिम्मत देखो एक बार भी छ्होटे मलिक के हाथ को हटाने की उसने कोशिश नही की,
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खाली मुँह से बोल रही थी 'हाई छोड़ दो मालिक छोड़ दो मालिक' मगर छ्होटे मालिक हाथ आई मुर्गी को कहा छोड़ने वाले थे" . शीला देवी की चूत पसीज रही थी अपने बेटे की करतूत सुन कर उसे पता नही क्यों गुस्सा नही आ रहा था. उसके मन में एक अजीब तरह का कौतूहल भरा हुआ था. आया भी अपने मालकिन के मन को खूब समझ रही थी इसलिए वो और नमक मिर्च लगा कर मुन्ना की करतूतों की कहानी सुनाए जा रही थी.


"फिर मालकिन मुन्ना बाबू ने उसके गाल का चुम्मा लिया और बोले 'बहुत मज़ा आएगा रानी बस एक बार चखा दो, हाई जब तुम गांद मटका के चलती हो तो क्या बताए कसम से कलेजे पर छुरि चल जाती है, बसंती बस एक बार चखा दो' बसंती शरमाते हुए बोली 'नही मालिक आपका बहुत मोटा है, मेरी फट जाएगी' इस पर मुन्ना बाबू ने कहा 'हाथ से पकड़ने पर तो मोटा लगता ही है जब चूत में जाएगा तो पता भी नही चलेगा' फिर बसंती के हाथ को अपनी निक्केर से निकाल के उन्होने झट से अपनी निक्केर उतार दी, है मालकिन क्या बताउ कलेजा धक से मुँह को आ गया, बसंती तो चीख कर एक कदम पिछे हट गई, क्या भयंकर लंड था मलिक का एक दम से काले साँप की तरह, लपलपाता हुआ, मोटा मोटा पहाड़ी आलू के जैसा नुकीला गुलाबी सुपरा और मालकिन सच कह रही हू कम से कम 10 इंच लंबा और कम से कम 2.5 इंच मोटा लॉडा होगा छ्होटे मलिक का, अफ ऐसा जबरदस्त औज़ार मैने आज तक नही देखा था, बसंती अगर उस समय कोशिश भी करती तो चुदवा नही पाती, वही खेत में ही बेहोश हो के मर जाती साली मगर छ्होटे मलिक का लंड उसकी चूत में नही जाता"
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चौधरैयन एक टक गौर से अपने बेटे की काली करतूतो का बखान सुन रही थी. उसका बदन काम-वासना से जल रहा था और आया की वासना भारी बाते जो कहने को तो उसके बेटे के बारे में थी पर फिर भी उसके अंदर एक अनोखी कसक पैदा कर रही थी. आया को चुप देख कर उस से रहा नही गया और वो पुच्छ बैठी "आगे क्या हुआ".


आया ने फिर हस्ते हुए बताया "अर्रे मालकिन होना क्या था, तभी अचानक झारियों में सुरसूराहट हुई, मुन्ना बाबू तो कुच्छ समझ नही पाए मगर बसंती तो चालू है, मालकिन, साली झट से लहनगा समेत कर पिछे की ओर भागी और गायब हो गई. और मुन्ना बाबू जब तक संभालते तब तक उनके सामने बसंती की भाभी आ के खड़ी हो गई. अब आप तो जानती ही हो कि इस साली लाजवंतीको ठीक अपने नाम की उलट बिना किसी लाज शर्म की औरत है. जब साली बसंती की उमर की थी और नई नई शादी हो के गाओं में आई थी तब से उसने 2 साल में गाओं के सारे जवान मर्दो के लंड का पानी चख लिया होगा. अभी भी हरम्जादी ने अपने आप को बना सॉवॅर के रखा हुआ है". इतना बता कर आया फिर से चुप हो गई.



" फिर क्या हुआ, लाजवंती तो खूब गुस्सा हो गई होगी"



"अर्रे नही मालकिन, उसे कहा पता चला की अभी अभी 2 सेकेंड पहले मुन्ना बाबू अपना लंड उसकी ननद को दिखा रहे थे. वो साली तो खुद अपने चक्कर में आई हुई थी. उसने जब मुन्ना बाबू का बलिश्त भर का खड़ा मुसलान्ड देखा तो उसके मुँह में पानी आ गया और मुन्ना बाबू को पटाने के इरादे से बोली 'यहा क्या कर रहे है छ्होटे मालिक आप कब से हम ग़रीबो की तरह से खुले में दिशा करने लगे'. छोटे मलिक तो बेचारे हक्के बक्के से खड़े थे, उनकी समझ में नही आ रहा था कि क्या करे, एक दम देखने लायक नज़ारा था. हाफ पॅंट घुटनो तक उतरी हुई थी और शर्ट मोड़ के पेट पर चढ़ा रखा था, दोनो जाँघो के बीच एक दम काला भुजंग मुसलांड लहरा रहा था".
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"छ्होटे मालिक तो बस "उः आह उः" कर के रह गये. तब तक लाजवंती छ्होटे मालिक के एक दम पास पहुच गई और बिना किसी जीझक या शर्म के उनके हथियार को पकड़ लिया और बोली 'क्या मालिक कुच्छ गड़बड़ तो नही कर रहे थे पूरा खड़ा कर के रखा हुआ है. इतना क्यों फनफना रहा है आपका औज़ार, कही कुच्छ देख तो नही लिया'. इतना कह कर हस्ने लगी".



"छ्होटे मालिक के चेहरे की रंगत देखने लायक थी. एक दम हक्के-बक्के से लाजवंती का मुँह तके जा रहे थे. अपना हाफ पॅंट भी उन्होने अभी तक नही उठाया था. लाजवंती ने सीधा उनके मूसल को अपने हाथो में पकड़ लिया और मुस्कुराती हुई बोली 'क्या मालिक औरतो को हगते हुए देखने आए थे क्या' कह कर खी खी कर के हस्ते हुए मुन्ना बाबू के औज़ार को ऐसे कस के मसला साली ने की उस अंधेरे में भी मालिक का लाल लाल मोटे पहाड़ी आलू जैसा सुपरा एक दम से चमक गया जैसे की उसमे बहुत सारा खून भर गया हो और लंड और फनफना के लहरा उठा".



" बड़ी हरम्खोर है ये लाजवंती, साली को ज़रा भी शरम नही है क्या"



"जिसने सारे गाओं के लोंडो का लंड अपने अंदर करवाया हो वो क्या शरम करेगी"



"फिर क्या हुआ, मेरा मुन्ना तो ज़रूर भाग गया होगा वाहा से बेचारा"



"मालकिन आप भी ना हद करती हो अभी 2 मिनिट पहले आपको बताया था कि आपका लाल बसंती के चुचो को दबा रहा था और आप अब भी उसको सीधा सीधा स्मझ रही हो, जबकि उन्होने तो उस दिन वो सब कर दिया जिसके बारे में आपने सपने में भी नही सोचा होगा"



चौधरायण एक दम से चौंक उठी "क्या कर दिया, क्यों बात को घूम फिरा रही है"



"वही किया जो एक जवान मर्द करता है"



"क्यों झूट बोलती हो, जल्दी से बताओ ना क्या किया"


"छ्होटे मालिक में भी पूरा जोश भरा हुआ था और उपर से लाजवंती की उकसाने वाली हरकते दोनो ने मिल कर आग में घी का काम किया. लाजवंती बोली "छोरियो को पेशाब और पाखाना करते हुए देख कर हिलाने की तैय्यारि में थे क्या, या फिर किसी लौंडिया के इंतेज़ार में खड़ा कर रखा है' मुन्ना बाबू क्या बोलते पर उनके चेहरे को देख के लग रहा था कि उनकी साँसे तेज हो गई है. उन्होने ने भी अबकी बार लाजवंती के हाथो को पकड़ लिया और अपने लंड पर और कस के चिपका दिया और बोले "हाई भौजी मैं तो बस पेशाब करने आया था' इस पर वो बोली 'तो फिर खड़ा कर के क्यों बैठे हो मालिक कुच्छ चाहिए क्या' मुन्ना बाबू की तो बाँछे खिल गई. खुल्लम खुल्ला चुदाई का निमंत्रण था. झट से बोले 'चाहिए तो ज़रूर अगर तू दे दे तो मेले में से पायल दिलवा दूँगा'. खुशी के मारे तो साली लाजवंती का चेहरा च्मकने लगा, मुफ़्त में मज़ा और माल दोनो मिलने का आसार नज़र आ रहा था. झट से वही पर घास पर बैठ गई और बोली 'हाई मालिक कितना बड़ा और मोटा है आपका, कहा कुन्वारियो के पिछे पड़े रहते हो, आपका तो मेरे जैसी शादी शुदा औरतो वाला औज़ार है, बसंती तो साली पूरा ले भी नही पाएगी' छ्होटे मालिक बसंती का नाम सुन के चौंक उठे कि इसको कैसे पता बसंती के बारे में. लाजवंती ने फिर से कहा ' कितना मोटा और लंबा है, ऐसा लंड लेने की बड़ी तमन्ना थी मेरी' इस पर छ्होटे मालिक ने नीचे बैठ ते हुए कहा 'आज तमन्ना पूरी कर ले, बस चखा दे ज़रा सा, बड़ी तलब लगी है' इस पर लाजवंती बोली 'ज़रा सा चखना है या पूरा मालिक' तो फिर मालिक बोले 'हाई पूरा चखा दे मेले से तेरी पसंद की पायल दिवा दूँगा'.
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आया की बात अभी पूरी नही हुई थी कि चौधरैयन ने बीच में बोल पड़ी "ओह मेरी तो किस्मत ही फुट गई, मेरा बेटा रंडियों पर पैसा लूटा रहा है, किसी को लहनगा तो किसी हरम्जदि को पायल बाँट रहा है, कह कर आया को फिर से एक लात लगाई और थोड़े गुस्से से बोली "हरम्खोर, तू ये सारा नाटक वाहा खड़ी हो के देखे जा रही थी, तुझे ज़रा भी मेरा ख्याल ना आया, एक बार जा के दोनो को ज़रा सा धमका देती दोनो भाग जाते". आया ने मुँह बिचकाते हुए कहा "शेर के मुँह के आगे से नीवाला छीनने की औकात नही है मेरी मालकिन मैं तो बस चुप चाप तमाशा देख रही थी". कह कर आया चुप हो गई और चूत की मालिश करने लगी. चौधरैयन के मन की उत्सुकता दबाए नही दब रही थी कुच्छ देर में खुद ही कसमसा कर बोली "चुप क्यों हो गई आगे बता ना"
 
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"फिर क्या होना था मालकिन, लाजवंती वही घास पर लेट गई और छ्होटे मालिक उसके उपर, दोनो गुत्थम गुत्था हो रहे थे. कभी वो उपर कभी मालिक उपर.
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छ्होटे मालिक ने अपना मुँह लाजवंती चोली में दे दिया और एक हाथ से उसके लहंगे को उपर उठा के उसकी चूत में उंगली डाल दी, लाजवंती के हाथ में मालिक का मोटा लंड था और दोनो चिपक चिपक के मज़ा लूटने लगे. कुच्छ देर बाद छ्होटे मालिक उठे और लाजवंती के दोनो टांगो के बीच बैठ गये. उस छिनाल ने भी अपने साड़ी को उपर उठा दिया और दोनो टाँगो को फैला दिया. मुन्ना बाबू ने अपना मुसलांड सीधा उसकी चूत के उपर रख के धक्का मार दिया.
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साली चुड़क्कड़ एक दम से मिम्याने लगी. इतना मोटा लंड घुसने के बाद तो कोई कितनी भी बड़ी रंडी हो उसकी हेकड़ी तो एक पल के लिए गुम हो ही जाती है. पर मुन्ना बाबू तो नया खून है, उन्होने कोई रहम नही दिखाया, उल्टा और कस कस के धक्के लगाने लगे"
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"ठीक किया मुन्ना ने, साली रंडी की यही सज़ा है" चौधरैयन ने अपने मन की खुंदक निकाली, हालाँकि उसको ये सुन के बड़ा मज़ा आ रहा था कि उसके बेटे के लंड ने एक रंडी के मुँह से भी चीखे निकलवा दी.

"कुच्छ धक्को के बाद तो मालकिन साली चुदैल ऐसे अपनी गांद को उपर उच्छालने लगी और गपा गॅप मुन्ना बाबू के लंड को निगलते हुए बोल रही थी 'हाई मालिक फाड़ दो, हाई ऐसा लंड आज तक नही मिला, सीधा बच्चेदानी को छु रहा है, लगता है मैं ही चौधरी के पोते को पैदा करूँगी, मारो कस कस्के', मुन्ना बाबू भी पूरे जोश में थे, गांद उठा उठा के ऐसा धक्का लगा रहे थे कि क्या कहना, जैसे चूत फाड़ के गांद से लंड निकाल देंगे, दोनो हाथ से चुचि मसल रहे थे और, पका पक लंड पेल रहे थे.
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लाजवंती साली सिसकार रही थी और बोल रही थी 'मलिक पायल दिलवा देना फिर देखना कितना मज़ा कर्वौन्गि, अभी तो जल्दी में चुदाई हो रही है, मारो मालिक, इतने मोटे लंड वाले मालिक को अब नही तरसने दूँगी, जब बुलाओगे चली आउन्गि, हाई मालिक पूरे गाओं में आपके लंड के टक्कर का कोई नही है'. इतना कह कर आया चुप हो गई.

आया ने जब लाजवंती के द्वारा कही गई ये बात की पूरे गाओं में मुन्ना के लंड के टक्कर का कोई नही है सुन कर चौधरैयन के माथे पर बल पड़ गये. वो सोचने लगी कि क्या सच में ऐसा है. क्या सच में उसके लरके का लंड ऐसा है जो की पूरे गाओं के लंडो से बढ़ कर है. वो थोड़ी देर तक चुप रही फिर बोली "तू जो कुच्छ भी मुझे बता रही है वो सच है ना"

"हा मालकिन सो फीसदी सच बोल रही हू"

"फिर भी एक बात मेरी समझ में नही आती कि मुन्ना का इतना बड़ा कैसे हो सकता है जितना बड़ा तू बता रही है"

"क्यों मालकिन ऐसा क्यों बोल रही हो आप"

"नही ऐसे ही मैं सोच रही हू इतना बड़ा आम तौर पे होता तो नही, फिर तेरे मलिक के अलावा और किसी के साथ.................." बात अधूरी छ्होर कर चौधरैयन चुप हो गई. आया सब समझ गई और धीरे से मुस्कुराती हुई बोली "आरे मालकिन कोई ज़रूरी थोड़े ही है कि जितना बड़ा चौधरी साहब का होगा उतना ही बड़ा छ्होटे मालिक का भी होगा, चौधरी साहब का तो कद भी थोड़ा छ्होटा ही है मगर छ्होटे मालिक को देखो इसी उमर में पूरे 6 फुट के हो गये है". बात थोड़ी बहुत चौधरैयन के भेजे में भी घुस गई, मगर अपने बेटे के अनोखे हथियार को देखने की तमन्ना भी शायद उसके दिल के किसी कोने में जाग उठी थी.

मुन्ना उसी समय घर के आँगन से मा ......मा पुकारता हुआ अपनी मा के कमरे की ओर दौड़ता हुआ आया और पूरी तेज़ी के साथ भड़ाक से चुधरैयन के कमरे के दरवाजे को खोल के अंदर घुस गया. अंदर घुसते ही उसकी आँखे चौधिया गई. कलेजे पर जैसे बिजली चल गई. मुँह से बोल नही फुट रहे थे. चौधारायन लगभग पूरी नंगी और आया अधनंगी हो के बैठी थी. मुन्ना की आँखों ने एक पल में ही अपनी मा का पूरा मुआयना कर डाला. ब्लाउस खुला हुआ था दोनो बड़ी बड़ी गोरी गोरी नारियल के जैसी चुचिया अपनी चोंच को उठाए खड़ी थी , साडी उपर उठी हुई थी और मोटे मोटे कन्द्लि के खम्भे जैसे जंघे ट्यूब लाइट की रोशनी में चमक रही थी. चूत तो नही दिख रही थी .
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.ना तो आया ना ही चौधरैयन के मुँह से कोई कुच्छ निकला. कुच्छ देर तक ऐसे ही रहने के बाद आया को जैसे कुच्छ होश आया उसने जल्दी से जाँघो पर साड़ी खींच दी और साड़ी के पल्लू से दोनो चुचियों को धक दिया. अपने नंगे अंगो के ढके जाने पर चौधरैयन को जैसे होश आया वो झट से अपने पैरो को समेटे हुए उठ कर बैठ गई. चुचियों को अच्छी तरह से ढकते हुए झेंप मिटाते हुए बोली "क्या बात मुन्ना, क्या चाहिए". मा की आवाज़ सुन मुन्ना को भी एक झटका लगा और उसने अपना सिर नीचे करते हुए कहा, कुच्छ नही मैं तो पुच्छने आया था की शाम में फंक्षन कब शुरू होगा मेरे दोस्त पुच्छ रहे थे"


शीला देवी अब अपने आप को संभाल चुकी थी और अब उसके अंदर ग्लानि और गुस्सा दोनो भाव पैदा हो गये थे. उसने धीमे स्वर में जवाब दिया "तुझे पता नही है क्या जो 6-7 बजे से फंक्षन शुरू हो जाएगा. और क्या बात थी"



"वो मुझे भूख भी लगी थी"



"तो नौकरानी से माँग लेना था, जा उस को बोल के माँग ले"



मुन्ना वाहा से चला गया. आया ने झट से उठ कर दरवाजा बंद किया और चौधरैयन ने अपने कपड़े ठीक किए. आया बोलने लगी की "दरवाजा तो ठीक से बंद ही था मगर लगता है पूरी तरह से बंद नही हुआ था, पर इतना ध्यान रखने की ज़रूरत तो कभी रही नही क्यों की आम तौर पर आपके कमरे में तो कोई आता नही"



"चल जाने दे जो हुआ सो हुआ क्या कर सकते है" इतना बोल कर चौधरैयन चुप हो गई मगर उसके मन में एक गाँठ बन गई और अपने ही बेटे के सामने नंगे होने का अपराध बोध उस हावी हो गया.



अब सुनिए अपने मुन्ना बाबू की बात:-------


मुन्ना जब अपने मा के कमरे से निकला तब उसका दिमाग़ एक दम से काम नही कर रहा था. उसने आज तक अपनी मा का ऐसा रूप नही देखा. मतल्ब नंगा तो कभी नही देखा था. मगर आज शीला देवी का जो सुहाना रूप उसके सामने आया था उसने तो उसके होश उड़ा दिए थे. वो एक बदहवास हो चुका था. मा की गोरी गोरी मखमली जंघे और अल्फान्सो आम के जैसी चुचियों ने उसके होश उड़ा दिए थे. उसके दिमाग़ में रह रह कर मोटी जाँघो के बीच की काली-काली झांते उभर जाती थी.
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उसकी भूख मर चुकी थी. वो सीधा अपने कमरे में चला गया और दरवाजा बंद कर के तकियों के बीच अपने सिर को छुपा लिया. बंद आँखो के बीच जब मा के खूबसूरत चेहरे के साथ उसकी पलंग पर अस्त-वयस्त हालत में लेटी हुई तस्वीर जब उभरी तो धीरे-धीरे उसके लंड में हरकत होने लगी.

वैसे अपने मुन्ना बाबू कोई सीधे-सादे संत नही है इतना तो पता चल गया होगा. मगर आपको ये जान कर असचर्या होगा की अब से 2 साल पहले तक सच मुच में अपने राजा बाबू उर्फ राजेश उर्फ राजू बड़े प्यारे से भोले भाले लड़के हुआ करते थे. जब 15 साल के हुए और अंगो में आए प्रिवर्तन को स्मझने लगे तब बेचारे बहुत परेशान रहने लगे. लंड बिना बात के खड़ा हो जाता था. पेशाब लगी हो तब भी और मन में कुच्छ ख्याल आ जाए तब भी. करे तो क्या करे. स्कूल में सारे दोस्तो ने अंडरवेर पहनना शुरू कर दिया था. मगर अपने भोलू राम के पास तो केवल पॅंट थी. कभी अंडरवेर पहना ही नही. लंड भी मुन्ना बाबू का औकात से कुच्छ ज़यादा ही बड़ा था, फुल-पॅंट में तो थोड़ा ठीक रहता था पर अगर जनाब पाजामे में खेल रहे होते तो, दौड़ते समय इधर उधर डोलने लगता था.जो कि उपर दिखता था और हाफ पॅंट में तो और मुसीबत होती थी अगर कभी घुटने मोड़ कर पलंग पर बैठे हो तो जाँघो के पास के ढीली मोहरी से अंदर का नज़ारा दिख जाता था. बेचारे किसी कह भी नही पाते थे कि मुझे अंडरवेर ला दो क्योंकि रहते थे मामा मामी के पास, वाहा मामा या मामी से कुच्छ भी बोलने में बड़ी शरम आती थी. गाँव काफ़ी दीनो से गये नही थे. बेचारे बारे परेशान थे.


सौभाग्या से मुन्ना बाबू की मामी हासमुख स्वाभाव की थी और अपने मुन्ना बाबू से थोड़ा बहुत हसी मज़ाक भी कर लेती थी. उसने कई बार ये नोटीस किया था कि मुन्ना बाबू से अपना लंड सम्भाले नही स्म्भल रहा है. सुभह-सुभह तो लग-भग हर रोज उसको मुन्ना के खड़े लंड का दर्शन हो जाता था. जब मुन्ना को उठाने जाती और वो उठ कर दनदनाता हुआ सीधा बाथरूम की ओर भागता था. मुन्ना की ये मुसीबत देख कर मामी को बड़ा मज़ा आता था. एक बार जब मुन्ना अपने पलंग पर बैठ कर पढ़ाई कर रहा था तब वो भी उसके सामने प्लन्ग पर बैठ गई. मुन्ना ने उस दिन संयोग से खूब ढीला ढाला हाफ पॅंट पहन रखा था. मुन्ना पालती मार कर बैठ कर पढ़ाई कर रहा था. सामने मामी भी एक मेग्ज़ीन खोल कर देख रही थी. पढ़ते पढ़ते मुन्ना ने अपना एक पैर खोल कर घुटने के पास से हल्का सा मोड़ कर सामने फैला दिया. इस स्थिति में उसके जाँघो के पास की हाफ-पॅंट की मोहरी नीचे ढूलक गई और सामने से जब मामी जी की नज़र पड़ी तो वो दंग रह गई. मुन्ना बाबू का मुस्टंडा लंड जो की अभी सोई हुई हालत में भी करीब तीन चार इंच लंबा दिख रहा था अपने लाल सुपरे की आँखो से मामी जी की ओर ताक रहा था.


उर्मिला जी इस नज़ारे को ललचाई नज़रो से एकटक देखे जा रही थी. उसकी आँखे वहाँ से हटाए नही हट रही थी. वो सोचने लगी की जब इस छ्होकरे का सोया हुआ है, तब इतना लंबा दिख रहा है, जब जाग कर खड़ा होता होगा तब कितना बड़ा दिखता होगा. उसके पति यानी कि मुन्ना के मामा का तो बमुश्किल साढ़े पाँच इंच का था. अब तक उसने मुन्ना के मामा के अलावा और किसी का लंड नही देखा था मगर इतनी उमर होने के कारण इतना तो ज्ञान था ही मोटे और लंबे लंड कितना मज़ा देते है.

गाँव का राजा पार्ट -3 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे


अचानक munna की नज़र अपनी मामी उर्मिला देवी पर पड़ी वो बड़े गौर से उसके पेरॉं की तरफ देख रहीं थी तब munna को अहसास हुआ मामी उसके लॅंड को ही देख रही है munna ने अपने पैर को मोड़ लिया ओर मामी की तरफ देखा उर्मिला देवी munna को अपनी ओर देखते पाकर हॅडबड़ा गई और अपनी नज़रें मेग्ज़ीन पर लगा ली



कुच्छ देर तक दोनो ऐसे ही शर्मिंदगी के अहसास में डूबे हुए बैठे रहे फिर उर्मिला देवी वाहा से उठ कर चली गई.



उस दिन की घटना ने दोनो के बीच एक हिचक की दीवार खड़ी कर दी. दोनो अब जब बाते करते तो थोड़ा नज़रे चुरा कर करते थे. उर्मिला देवी अब munna को बड़े गौर से देखती थी. पाजामे में उसके हिलते डुलते लंड और हाफ पॅंट से झाँकते हुए लंड को देखने की फिराक में रहती थी. munna भी सोच में डूबा रहता था कि मामी उसके लंड को क्यों देख रही थी. ऐसा वो क्यों कर रही थी. बड़ा परेशान था बेचारा. मामी जी भी अलग फिराक में लग गई थी. वो सोच रही थी क्या ऐसा हो सकता है कि मैं munna के इस मस्ताने हथियार का मज़ा चख सकु. कैसे क्या करे ये उनकी समझ में नही आ रहा था. फिर उन्होने एक रास्ता खोज़ा.



अब उर्मिला देवी ने अब नज़रे चुराने की जगह munna से आँखे मिलाने का फ़ैसला कर लिया था. वो अब राजू की आँखो में अपने रूप की मस्ती घोलना चाहती थी. देखने में तो वो माशा अल्लाह शुरू से खूबसूरत थी. munna के सामने अब वो खुल कर अंग प्रदर्शन करने लगी थी. जैसे जब भी वो munna के सामने बैठती थी तो अपनी साड़ी को घुटनो तक उपर उठा कर बैठती, साडी का आँचल तो दिन में ना जाने कितनी बार ढूलक जाता था
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(जबकि पहले ऐसा नही होता था), झाड़ू लगाते समय तो ब्लाउस के दोनो बटन खुले होते थे और उनमे से उनकी मस्तानी चुचिया झलकती रहती थी. बाथरूम से कई बार केवल पेटिकोट और ब्लाउस या ब्रा में बाहर निकल कर अपने बेडरूम में समान लाने जाती फिर वापस आती फिर जाती फिर वापस आती.
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नहाने के बाद बाथरूम से केवल एक लंबा वाला तौलिया लपेट कर बाहर निकल जाती थी.
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बेचारा munna बीच ड्रॉयिंग रूम में बैठ ये सारा नज़ारा देखता रहता था. लरकियों को देख कर उसका लंड खड़ा तो होने लगा था मगर कभी सोचा नही था की मामी को देख के भी लंड खड़ा होगा. लंड तो लंड है वो कहा कुच्छ देखता है. उसको अगर चिकनी चमड़ी वाला खूबसूरत बदन दिखेगा तो खड़ा तो होगा ही. मामी जी उसको ये दिखा रही थी और वो खड़ा हो रहा था.



munna को उसी दौरान सेक्सी कहानियो की एक किताब हाथ लग गई. किताब पढ़ कर जब लंड खड़ा हुआ और उसको मुठिया कर जब अपना पानी निकाला तो उसकी तीसरी आँख खुल गई. उसकी स्मझ में आ गया की चुदाई क्या होती है और उसमे कितना मज़ा आ सकता है. जब किताब पढ़ के कल्पना करने और मुठियाने में इतना मज़ा है तो फिर सच में अगर चूत में लंड डालने को मिले तो कितना मज़ा आएगा. राज शर्मा की कहानियों में तो रिश्तो में चुदाई की कहानिया भी होती है और एक बार जो वो किताब पढ़ लेता है फिर रिश्ते की औरतो के बारे में उल्टी सीधी बाते सोच ही लेता है चाहे वो ऐसा ना सोचने के लिए कितनी भी कोशिश करे. वही हाल अपने munna बाबा का भी था. वो चाह रहे थे कि अपनी मामी के बारे में ऐसा ना सोचे मगर जब भी वो अपनी मामी के चिकने बदन को देखते तो ऐसा हो जाता था. मामी भी यही चाह रही थी. खूब छल्का छल्का के अपना बदन दिखा रही थी.


बाथरूम से पेशाब करने के बाद साडी को जाँघो तक उठाए बाहर निकल जाती थी. munna की ओर देखे बिना साडी और पेटिकोट को वैसे ही उठाए हुए अपने कमरे में जाती और फिर चूकने की आक्टिंग करते हुए हल्के से मुस्कुराते हुए साडी को नीचे गिरा देती थी. munna भी अब हर रोज इंतेज़ार करता था की कब मामी झाड़ू लगाएँगी और अपनी गुदाज़ चुचियों के दर्शन कराएँगी या फिर कब वो अपनी साडी उठा के उसे अपनी मोटी-मोटी जाँघो के दर्शन कराएँगी. कहानियाँ तो अब वो हर रोज पढ़ता था. ज्ञान बढ़ाने के साथ अब उसके दिमाग़ में हर रोज़ नई नई तरकीब सूझने लगी कि कैसे मामी को पटाया जाए. साड़ी उठा के उनकी चूत के दर्शन किए जाए और हो सके तो उसमें अपने हलब्बी लंड को प्रविष्ट कराया जाए और एक बार ही सही मगर चुदाई का मज़ा लिया जाए. सभी तरह के तरकीबो को सोचने के बाद उनकी छ्होटी बुद्धि ने या फिर ये कहे की उनके लंड ने क्योंकि चुदाई की आग में जलता हुआ छ्होकरा लंड से सोचने लगता है, एक तरकीब खोज ली.................
 
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एक दिन मामी जी बाथरूम से तौलिया लपेटे हुए निकली, हर रोज़ की तरह मुन्ना बाबू उनको एक टक घूर घूर कर देखे जा रहे थे.
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तभी मामी ने munna को आवाज़ दी, "munna ज़रा बाथरूम में कुच्छ कपड़े है, मैं ने धो दिए है ज़रा बाल्कनी में सुखाने के लिए डाल दे". munna जो कि एक टक मामी जी की गोरी चिकनी जाँघो को देख के आनंद लूट रहा था को झटका सा लगा, हॅडबड़ा के नज़रे उठाई और देखा तो सामने मामी अपनी चूचियों पर अपने तौलिए को कस के पकड़े हुए थी. मामी ने हस्ते हुए कहा "जा बेटा जल्दी से सुखाने के लिए डाल दे नही तो कपड़े खराब हो जाएँगे"

राजू उठा और जल्दी से बाथरूम में घुस गया. मामी को उसका खरा लंड पाजामे में नज़र आ गया.
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वो हस्ते हुए चुप चाप अपने कमरे में चली गई. muuna ने कपड़ो की बाल्टी उठाई और फिर ब्लॉकोनी में जा कर एक एक करके सूखने के लिए डालने लगा. मामी की पॅंटी और ब्रा को सुखाने के लिए डालने से पहले एक बार अच्छी तरह से च्छू कर देखता रहा फिर अपने होंठो तक ले गया और सूंघने लगा.
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तभी मामी कमरे से निकली तो ये देख कर जल्दी से उसने वो कपड़े सूखने के लिए डाल दिए.

शाम में जब सूखे हुए कपड़ो को उठाते समय munna भी मामी की मदद करने लगा. munna ने अपने मामा का सूखा हुआ अंडरवेर अपने हाथ में लिया और धीरे से मामी के पास गया. मामी ने उसकी ओर देखते हुए पुचछा "क्या है, कोई बात बोलनी है"? munnaथोड़ा सा हकलाते हुए बोला:-

"माआअम्म्म्मी...एक बात बोलनी थी"

"हा तो बोल ना"

"मामी मेरे सारे दोस्त अब ब्ब्ब्ब्बबब"

"अब क्या ......" उर्मिला देवी ने अपनी तीखी नज़रे उसके चेहरे पर गढा रखी थी.

"मामी मेरे सारे दोस्त अब उन.... अंडर....... अंडरवेर पहनते है"

मामी को हसी आ गई, मगर अपनी हसी रोकते हुए पूछा "हा तो इसमे क्या है सभी लड़के पहनते है"

"पर पर मामी मेरे पास अंडरवेर नही है"

मामी एक पल के लिए ठिठक गई और उसका चेहरा देखने लगी.munna को लग रहा था इस पल में वो शर्म से मर जाएगा उसने अपनी गर्दन नीचे झुका ली.

उर्मिला देवी ने उसकी ओर देखते हुए कहा "तुझे भी अंडरवेर चाहिए क्या"

"हा मामी मुझे भी अंडरवेर दिलवा दो ना"

"हम तो सोचते थे की तू अभी बच्चा है, मगर" कह कर वो हस्ने लगी. munna ने इस पर बुरा सा मुँह बनाया और रोआन्सा होते हुए बोला "मेरे सारे दोस्त काफ़ी दीनो से अंडरवेर पहन रहे है, मुझे बहुत बुरा लगता है बिना अंडरवेर के पॅंट पहन ना."

उर्मिला देवी ने अब अपनी नज़रे सीधे पॅंट के उपर टीका दी और हल्की मुस्कुराहट के साथ बोली "कोई बात नही, कल बाज़ार चलेंगे साथ में". munna खुश होता हुआ बोला "थॅंक यू मामी". फिर सारे कपड़े समेत दोनो अपने अपने कमरो में चले गये.

वैसे तो munna कई बार मामी के साथ बाज़ार जा चुका था. मगर आज कुच्छ नई बात लग रही थी. दोनो खूब बन सवर के निकले थे. उर्मिला देवी ने आज बहुत दीनो के बाद काले रंग की सलवार कमीज़ पहन रखी थी और राजू को टाइट जीन्स पहनवा दिया था. हालाँकि राजू अपनी ढीली पॅंट ही पहना चाहता था मगर मामी के ज़ोर देने पर बेचारा क्या करता. कार मामी खूद ड्राइव कर रही थी.
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काले सलवार समीज़ में बहुत सुंदर लग रही थी. हाइ हील की सॅंडल पहन रख थी. टाइट जीन्स में राजू का लंड नीचे की तरफ हो कर उसकी जाँघो से चिपका हुआ एक केले की तरह से साफ पता चल रहा था. उसने अपनी टी-शर्ट को बाहर निकाल लिया पर जब वो कार में मामी के बगल में बैठा तो फिर वही ढाक के तीन पाट, सब कुच्छ दिख रहा था. मामी अपनी तिर्छि नज़रो से उसको देखते हुए मुस्कुरा रही थी. munna बड़ी परेशानी महसूस कर रहा था. खैर मामी ने कार एक दुकान पर रोक ली. वो एक बहुत ही बड़ी दुकान थी. दुकान में सारे सेल्सरेप्रेज़ेंटेटिव लरकियाँ थी. एक सेलेज़्गर्ल के पास पहुच कर मामी ने मुस्कुराते हुए उस से कहा इनके साइज़ का अंडरवेर दिखाइए. सेल्समन ने घूर कर उसकी ओर देखा जैसे वो अपनी आँखो से ही उसकी साइज़ का पता लगा लेगी. फिर munna से पुचछा आप बनियान कितने साइज़ का पहनते हो. munna ने अपना साइज़ बता दिया और उसने उसी साइज़ का अंडरवेर ला कर उसे ट्राइयल रूम में ले जा कर ट्राइ करने को कहा. ट्राइयल रूम में जब munna ने अंडरवेर पहना तो उसे बहुत टाइट लगा. उसने बाहर आ कर नज़रे झुकाए हुए ही कहा "ये तो बहुत टाइट है". इस पर मामी हस्ने लगी और बोली "हमारा munna बेटा नीचे से कुच्छ ज़यादा ही बड़ा है, एक साइज़ बड़ा ला दो" . उर्मिला देवी की ये बात सुन कर सेलेज़्गर्ल का चेहरा भी लाल हो गया. वो हॅडबड़ा कर पिछे भागी और एक साइज़ बड़ा अंडरवेर ला कर दे दिया और बोली पॅक करा देती हू ये फिट आ जाएगी. मामी ने पुचछा "क्यों munna एक बार और ट्राइ करेगा या फिर पॅक करवा ले".

"नही पॅक करवा लीजिए"

"ठीक है दो अंडरवेर पॅक कर दो, और मेरे लिए कुच्छ दिखाओ". मामी के मुँह से ये बात सुन कर munna चौंक गया. मामी क्या खरीदना चाहती है अपने लिए. यहा तो केवल पॅंटी और ब्रा मिलेगी. सेलेज़्गर्ल मुस्कुराते हुए पिछे घूमी और मामी के सामने गुलाबी, काले, सफेद, नीले रंगो के ब्रा और पॅंटीस की ढेर लगा दिए. मामी हर ब्रा को एक एक कर के उठाती जाती और फैला फैला कर देखती फिर munna की ओर घूम कर जैसे की उस से पुच्छ रही हो बोलती "ये ठीक रहेगी क्या, मोटे कप्डे की है, सॉफ्ट नही है या फिर इसका कलर ठीक है क्या" munna हर बात पर केवल अपना सिर हिला कर रह जाता था. उसका तो दिमाग़ घूम गया था. उर्मिला देवी पॅंटीस को उठा उठा के फैला के देखती. उनकी एलास्टिक चेक करती फिर छोड़ देती. कुच्छ देर तक ऐसे ही देखने के बाद उन्होने तीन ब्रा और तीन पॅंटीस खरीद ली. munna को तीनो ब्रा आंड पॅंटीस काफ़ी छ्होटी लगी. मगर उसने कुच्छ नही कहा. सारा समान पॅक करवा कर कर की पिच्छली सीट पर डालने के बाद मामी ने पुचछा "अब कहा चलना है",

munna ने कहा "घर चलिए, अब और कहा चलना है". इस पर मामी बोली "अभी घर जा कर क्या करोगे चलो थोड़ा कही घूमते है.

"ठीक है" कह कर munna भी कार में बैठ गया. फिर उसका टी-शर्ट थोड़ा सा उँचा हो गया पर इस बार munna को कोई फिकर नही थी. मामी ने उसकी ओर देखा और देख कर हल्के से मुस्कुरई. मामी से नज़रे मिलने पर munna भी थोड़ा सा शरमाते हुए मुस्कुराया फिर खुद ही बोल पड़ा "वो मैं ट्राइयल रूम में जा कर अंडरवेर पहन आया था". मामी इस पर हस्ते हुए बोली "वा रे छ्होरे बड़ा होसियार निकला तू तो, मैने तो अपना ट्राइ भी नही किया और तुम पहन कर घूम भी रहे हो, अब कैसा लग रहा है"

"बहुत कंफर्टबल लग रहा है, बड़ी परेशानी होती थी"

"मुझे कहा पता था की इतना बड़ा हो गया है, नही तो कब की दिला देती"

मामी के इस दुहरे अर्थ वाली बात को स्मझ कर मुन्ना बेचारा चुपचाप मुस्कुरा कर रह गया. मामी कार ड्राइव करने लगी. घर पर मामा और बड़ी बहन काजल दोनो नही थे. मामा अपने बिज़्नेस टूर पर और काजल कॉलेज ट्रिप पर. सो दोनो मामी भांजा शाम के सात बजे तक घूमते रहे. शाम में कार पार्किंग में लगा कर दोनो माल में घूम रहे थे कि बारिश शुरू हो गई. बड़ी देर तक तेज बारिश होती रही. जब 8 बजने को आए तो दोनो ने माल से पार्किंग तक का सफ़र भाग कर तय करने की कोशिश की, और इस चक्कर में दोनो के दोनो पूरी तरह से भीग गये. जल्दी से कार का दरवाजा खोल झट से अंदर घुस गये. मामी ने अपने गीले दुपट्टे से ही अपने चेहरे और बाँहो को पोच्छा और फिर उसको पिच्छली सीट पर फेंक दिया. munna ने भी हॅंकी से अपने चेहरे को पोछ लिया. मामी उसकी ओर देखते हुए बोली "पूरे कपड़े गीले हो गये"

"हा मैं भी गीला हो गया हू". बारिश से भीग जाने के कारण मामी की समीज़ उनके बदन से चिपक गई थी और उनकी सफेद ब्रा के स्ट्रॅप नज़र आ रहे थे. समीज़ चूकि स्लीवलेशस थी इसलिए मामी की गोरी गोरी बाँहे गजब की खूबसूरत लग रही थी.
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उन्होने दाहिने कलाई में एक पतला सा सोने का कड़ा पहन रखा था और दूसरे हाथ में पतले स्ट्रॅप की घड़ी बाँध रखी थी. उनकी उंगलियाँ पतली पतली थी और नाख़ून लूंबे लूंबे जिन पर पिंक कलर की सुनहरी नाइल पोलिश लगी हुई थी. स्टियरिंग को पकड़ने के कारण उनका हाथ थोड़ा उँचा हो गया था जिस के कारण उनकी चिकनी चिकनी कानखो के दर्शन भी munna को आराम से हो रहे थे. बारिस के पानी से भीग कर मामी का बदन और भी सुनहरा हो गया था. बालो की एक लट उनके गालो पर अठखेलिया खेल रही थी. मामी के इस खूबसूरत रूप को निहार कर munna का लंड खड़ा हो गया था.
 
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घर पहुच कर कार को पार्किंग में लगा कर लॉन पार करते हुए दोनो घर के दरवाजे की ओर चल दिए. बारिश दोनो को भीगा रही थी. दोनो के कपड़े बदन से पूरी तरह से चिपक गये थे. मामी की समीज़ उनके बदन से चिपक कर उनकी चुचियों को और भी ज़यादा उभार रही थी. चुस्त सलवार उनके बदन उनके जाँघो से चिपक कर उनकी मोटी जाँघो का मदमस्त नज़ारा दिखा रही थी. समीज़ चिपक कर मामी की गांद की दरार में घुस गई थी.
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munna पिछे पिछे चलते हुए अपने लंड को खड़ा कर रहा था. तभी लॉन की घास पर मामी का पैर फिसला और वो पिछे की तरफ गिर पारी. उनका एक पैर लग भग मूड गया था और वो munna के उपर गिर पड़ी जो ठीक उनके पिछे चल रहा था. मामी muna के उपर गिरी हुई थी.
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मामी के मदमस्त चूतर munna के लंड से सॅट गये. मामी को शायद munna के खड़े लंड का एहसास हो गया था उसने अपने चूतरो को लंड पर थोड़ा और दबा दिया और फिर आराम से उठ गई. munna भी उठ कर बैठ गया. मामी ने उसकी ओर मुस्कुराते हुए देखा और बोली "बारिश में गिरने का भी अपना अलग ही मज़ा है".

"कपड़े तो पूरे खराब हो गये मामी"

"हॅ तेरे नये अंडरवेर का अच्छा उदघाटन हो गया" munna हस्ने लगा. घर के अंदर पहुच कर जल्दी से अपने अपने कमरो की ओर भागे. munna ने फिर से हाफ पॅंट और एक टी-शर्ट डाल ली और गंदे कपड़ो को बाथरूम में डाल दिया. कुच्छ देर में मामी भी अपने कमरे से निकली. मामी ने अभी एक बड़ी खूबसूरत सी गुलाबी रंग की नाइटी पहन रखी थी. मॅक्सी के जैसी स्लीव्लेस्स नाइटी थी. नाइटी कमर से उपर तक तो ट्रॅन्स्परेंट लग रही थी मगर उसके नीचे शायद
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मामी ने नाइटी के अंदर पेटिकोट पहन रखा था इसलिए वो ट्रॅन्स्परेंट नही दिख रही थी.

उर्मिला देवी किचन में घुस गई और munna ड्रॉयिंग रूम में मस्ती से बैठ कर टेलीविज़न देखने लगा. उसने दूसरा वाला अंडरवेर भी पहन रखा था अब उसे लंड के खड़े होने पर पकड़े जाने की कोई चिंता नही थी. किचन में दिन की कुच्छ सब्जिया और दाल पड़ी हुई थी. चावल बना कर मामी उसके पास आई और बोली "चल कुच्छ खाना खा ले". खाना खा कर सारे बर्तन सिंक में डाल कर मामी ड्रॉयिंग रूम में बैठ गई और munna भी अपने लिए मॅंगो शेक ले कर आया और सामने के सोफे पर बैठ गया. मामी ने अपने पैर को उठा कर अपने सामने रखी एक छ्होटी टेबल पर रख दिया और नाइटी को घुटनो तक खींच लिया था. घुटनो तक के गोरे गोरे पैर दिख रहे थे. बड़े खूबसूरत पैर थे मामी के.
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तभी munna का ध्यान उर्मिला देवी के पैरो से हट कर उनके हाथो पर गया. उसने देखा की मामी अपने हाथो से अपने चुचियों को हल्के हल्के खुज़ला रही थी. फिर मामी ने अपने हाथो को पेट पर रख लिया. कुच्छ देर तक ऐसे ही रखने के बाद फिर उनका हाथ उनके दोनो जाँघो के बीच पहुच गया. munna बड़े ध्यान से उनकी ये हरकते देख रहा था. मामी के हाथ ठीक उनकी जाँघो के बीच पहुच गये और वो वाहा खुजली करने लगी. झंघो के ठीक बीच में चूत के उपर हल्के हल्के खुजली करते-करते उनका ध्यान munna की तरफ गया. munna तो एक तक अपनी मामी को देखे जा रहा था. उर्मिला देवी की नज़रे जैसे ही munna से टकराई उनके मुँह से हँसी निकल गई. हस्ते हुए वो बोली

"नई पॅंटी पहनी है ना इसलिए खुजली हो रही है". munna अपनी चोरी पकड़े जाने पर शर्मिंदगी के साथ हस कर मुँह घुमा कर अपनी नज़रो को टीवी से चिपका दिया. उर्मिला देवी ने अपने पैरो को और ज़यादा फैला दिया. ऐसा करने से उनकी नाइटी नीचे की तरफ लटक गई थी. munna के लिए ये बड़ा बढ़िया मौका था, उसने अपने हाथो में एक रब्बर की बॉल पकड़ी हुई थी जिसे उसने जान बूझ के नीचे गिरा दिया. बॉल लुढ़कता हुआ ठीक उस छ्होटे से टेबल के नीचे चला गया जिस पर मामी ने पैर रखे हुए थे. munaa "ओह" कहता हुआ उठा और टेबल के पास जाकर बॉल लेने के बहाने से लटकी हुए नाइटी के अंदर झाँकने लगा. एक तो नाइटी और उसके अंदर मामी ने पेटिकोट पहन रखा था, लाइट वाहा तक पूरी तरह से नही पहुच पा रही थी पर फिर भी munna को मामी के मस्त जाँघो के दर्शन हो ही गये. उर्मिला देवी भी munna के इस हरकत पर मन ही मन मुस्कुरा उठी. वो समझ गई की छ्होकरे के पॅंट में भी हलचल हो रही है और उसी हलचल के चक्कर में उनकी पॅंटी के अंदर झाँकने के चक्कर में पड़ा हुआ है. munna बॉल लेकर फिर से सोफे पर बैठ गया तो उर्मिला देवी ने उसकी तरफ देखते हुए कहा



"अब इस रब्बर के बॉल से खलेने की तेरी उमर बीत गई, अब दूसरे बॉल से खेला कर". munna थोड़ा सा शरमाते हुए बोला "और कौन सी बॉल होती है मामी, खलेने वाली सारी बॉल्स तो रब्बर से ही बनी होती है"

"हा, होती तो है मगर तेरे इस बॉल की तरह इधर उधर कम लुढ़कति है" कह कर फिर से munna के आँखो के सामने ही अपनी चूत पर खुजली करके हस्ते हुए बोली "बड़ी खुजली सी हो रही है पता नही क्यों, शायद नई पॅंटी पहनी है इसलिए".munna तो एक दम से गरम हो गया और एक टक जाँघो के बीच देखते हुए बोला

"पर मेरा अंडरवेर भी तो नया है वो तो नही काट रहा"

"अच्छा, तब तो ठीक है, वैसे मैने थोड़ी टाइट फिटिंग वाली पॅंटी ली है, हो सकता है इसलिए काट रही होगी"

"वा मामी आप भी कमाल करती हो इतनी टाइट फिटिंग वाली पॅंटी खरीदने की क्या ज़रूरत थी आपको"

"टाइट फिटिंग वाली पॅंटी हमारे बहुत काम की होती है, ढीली पॅंटी में परेशानी हो जाती है, वैसे तेरी परेशानी तो ख़तम हो गई ना"

"हा मामी, बिना अंडरवेर के बहुत परेशानी होती थी, सारे लड़के मेरा मज़ाक उरते थे".

"पर लड़कियों को तो अच्छा लगता होगा, क्यों?"

"हि मामी, आप भी नाआ,,,, "

"क्यों लड़कियाँ तुझे नही देखती क्या"

"लड़कियाँ मुझे क्यों देखेंगी, मेरे में ऐसा क्या है"

"तू अब जवान हो गया है, मर्द बन गया है"

"कहा मामी, आप भी क्या बात करती हो"

"अब जब अंडरवेर पहन ने लगा है तो इसका मतलब ही है की तू अब जवान हो गया है"

munna इस पर एक दम से शर्मा गया,

"धात मामी,......"

" तेरा खड़ा होने लगा है क्या",

मामी की इस बात पर तो munna का चेहरा एक्दुम से लाल हो गया. उसकी समझ में नही आ रहा था क्या बोले. तभी उर्मिला देवी ने अपनी नाइटी को एक्दुम घुटनो के उपर तक खीचते हुए बड़े बिंदास अंदाज़ में अपना एक पैर जो की टेबल पर रखा हुआ था उसको munna के जाँघो पर रख दिया (munna दरअसल पास के सोफे पर पालती मार के बैठा हुआ था.) munna को एक्दुम से झटका सा लगा.
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मामी अपने गोरे गोरे पैरो की एडियों से उसके

जाँघो को हल्के हल्के दबाने लगी और एक हाथ को फिर से अपने जाँघो के बीच ले जा कर चूत को हल्के हल्के खुजलाते हुए बोली "क्यों मैं ठीक बोल रही हू ना"
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"ओह मामी,"

"नया अंडरवेर लिया है, दिखा तो सही कैसा लगता है"

"अर्रे क्या मामी आप भी ना बस ऐसे........ अंडरवेर भी कोई पहन के दिखाने वाली चीज़ है"
 
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"क्यों लोग जब नया कपड़ा पहनते है तो दिखाते नही है क्या" कह कर उर्मिला देवी ने अपने एडियों का दबाब जाँघो पर थोड़ा सा और बढ़ा दिया, पैर की उंगलिया से हल्के से पेट के निचले भाग को कुरेदा और मुस्कुरा के सीधे munna की आँखो में झाँक कर देखती हुई बोली, "दिखा ना कैसा लगता है, फिट है या नही"

"छोड़ो ना मामी"

"अर्रे नये कपड़े पहन कर दिखाने का तो लोगो को शौक होता है और तू है की शर्मा रहा है, मैं तो हमेशा नये कपड़े पहनती हू तो सबसे पहले तेरे मामा को दिखाती हू, वही बताते है कि फिटिंग कैसी है या फिर मेरे उपर जचता है या नही, अभी तेरे मामा नही है........"

"पर मामी ये कौन सा नया कपड़ा है, अपने भी तो नई पॅंटी खरीदी है वो आप दिखाइएंगी क्या". उर्मिला देवी भी स्मझ गई की लड़का लाइन पर आ रहा है, और पॅंटी देखने के चक्कर में है. फिर मन ही मन खुद से कहा की बेटा तुझे तो मैं पॅंटी भी दिखौँगी और उसके अंदर का माल भी पर ज़रा तेरे अंडरवेर का माल भी तो देख लू नज़र भर के फिर बोली

"हा दिखौँगी ना तेरे मामा को तो मैं सारे कपड़े दिखाती हू"

"धात मामी.... तो फिर जाने दो मैं भी मामा को ही दिखौँगा"

"अर्रे तो इसमे शरमाने की क्या बात है, आज तो तेरे मामा नही है इसलिए मामी को ही दिखा दे," और उर्मिला देवी ने अपने पूरे पैर को सरका कर उसके जाँघो के बीच में रख दिया जहा पर उसका लंड था. munna का लंड खड़ा तो हो ही चुका था. उर्मिला देवी ने हल्के से लंड की औकात पर अपने पैर को चला कर दबाब डाला और मुस्कुरा कर munna की आँखो में झाँकते हुए बोली "क्यों मामी को दिखाने में शर्मा रहा है क्या"

munna की तो सिट्टी पिटी गुम हो गई थी. मुँह से बोल नही फुट रहे थे. धीरे से बोला "रहने दीजिए मामी मुझे शर्म आती है" उर्मिला देवी इस पर थोड़ा झिरकने वाले अंदाज में बोली "इसीलिए तो अभी तक इस रब्बर की बॉल से खेल रहा है" munna ने अपनी गर्दन उपर उठाई तो देखा की उर्मिला देवी अपनी चुचियों पर हाथ फिरा रही थी. राजू बोला "तो और कौन सी बॉल से खेलु"
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"ये भी बताना पड़ेगा क्या, मैं तो सोचती थी तू स्मझदार हो गया होगा, चल आज तुझे समझदार बनाती हूँ".

"हाई मामी मुझे शरम आ रही है" उर्मिला देवी ने अपने पंजो का दबाब उसके लंड पर बढ़ा दिया और ढाकी च्छूपी बात करने की जगह सीधा हमला बोल दिया "बिना अंडरवेर के जब खड़ा कर के घूमता था तब तो शरम नही आती थी,…….. दिखा ना". और लंड को कस के अपने पंजो से दबाया ताकि munna अब अच्छी तरह से समझ जाए की ऐसा अंजाने में नही बल्कि जान-बूझ कर हो रहा है. इस काम में उर्मिला देवी को बड़ा मज़ा आ रहा था. munna थोड़ा परेशान सा हो गया फिर उसने हिम्मत कर के कहा "ठीक है मामी, मगर अपने पैर तो हटाओ".

"ये हुई ना बात" कह कर उर्मिला देवी ने अपने पैर हटा लिए. munna खड़ा हो गया और धीरे से अपनी हाफ पॅंट घुटनो के नीचे तक सरका दी. उर्मिला देवी को बड़ा मज़ा आ रहा था. लड़कों को जैसे स्ट्रीप टीज़ देखने में मज़ा आता है, आज उर्मिला देवी को अपने भाँझे के सौजन्या से वैसा ही स्ट्रीप टीज़ देखने को मिल रहा था. उसने कहा "पूरा पॅंट उतार ना, और अच्छे से दिखा". munna ने अपना पूरा हाफ पॅंट उतार दिया और शरमाते-सकुचते सोफे पर बैठने लगा तो उर्मिला देवी ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर munna का हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया और अपने पास खड़ा कर लिया और धीरे से उसकी आँखो में झाँकते हुए बोली "ज़रा अच्छे से देखने दे ना कैसी फिटिंग आई है". munna ने अपने टी-शर्ट को अपने पेट पर चढ़ा रखा था और मामी बड़े प्यार से उसके उनड़ेवएअर की फिटिंग चेक कर रही थी. छ्होटा सा वी शेप का अंडरवेर था. एलास्टिक में हाथ लगा कर देखते हुए मामी बोली "हू फिटिंग तो ठीक लग रही है, ये नीला रंग भी तेरे उपर खूब अच्छा लग रहा है मगर थोड़ी टाइट लगती है"
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"वो कैसे मामी, मुझे तो थोड़ा भी टाइट नही लग रहा", munna का खड़ा लंड उनड़ेवएअर में एक दम से उभरा हुआ सीधा डंडे की शकल बना रहा था. उर्मिला देवी ने अपने हाथ को लंड की लंबाई पर फिराते हुए कहा,
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"तू खुद ही देख ले, पूरा पता चल रहा है कि तेरा औज़ार खड़ा हो गया है". लंड पर मामी का हाथ चलते ही मारे सनसनी के munna की तो हालत खराब होने लगी, कांपति हुई आवाज़ में "ओह आहह" करके रह गया. उर्मिला देवी ने मुस्कुराते हुए पुचछा "हर समय ऐसे ही रहता है क्या"

"नेह्हियी मामी, हमेशा ऐसे नही रहता"

"और समय ढीला रहता है"

"हा मामी" .

"अच्छा, तब तो ठीक फिटिंग का है, मैं सोच रही थी की अगर हर समय ऐसे ही खड़ा रहता होगा तो तब तो तुझे थोड़ा और ढीला लेना चाहिए था, वैसे ये खड़ा क्यों है

"ओह, मुझे नही पता मामी."

"बहुत बड़ा दिख रहा है, पहसब तो नही लगी है तुझे"

"नही मामी"

"तब तो कोई और ही कारण होगा, वैसे वो सेल्स गर्ल भी हस रही थी जब मैने बोला की मेरे मुन्ना बेटे का थोड़ा ज़यादा ही बड़ा है" कह कर उर्मिला देवी ने लंड को अंडरवेर के उपर से कस कर दबाया.
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munna के मुँह से एक सिसकारी निकल गई. उर्मिला देवी ने लंड को एक बार और दबा दिया और बोली "चल जा सोफे पर बैठ". munna सीधे धरती पर आ गया. लंड पर मामी के कोमल हाथो का सपर्श जो मज़ा दे रहा था वो बड़ा अनूठा और अजूबा था. मन कर रहा था की मामी थोरी देर और लंड दबाती पर मन मार कर चुप चाप सोफे पर आ के बैठ गया और अपनी सांसो को ठीक करने लगा. उर्मिला देवी भी बड़ी सयानी औरत थी जानती थी कि लोंडे के मन में अगर एक बार तड़प जाग जाएगी तो फिर लौंडा खुद उसके चंगुल में फस जाएगा. कमसिन उमर के नौजवान छ्होकरे के मोटे लंड को खाने के चक्कर में वो मुन्ना को थोड़ा तड़पाना चाहती थी. उर्मिला देवी ने अभी भी अपनी नाइटी को अपने घुटनो से उपर तक उठाया हुआ था और अपने दोनो पैर फिर से सामने की टेबल पर रख लिए थे. munna ने धीरे से अपने हाफ पॅंट को उठाया और पहन ने लगा. उर्मिला देवी तभी बोल पड़ी "क्यों पहन रहा है, घर में और कोई तो है नही, और मैने तो देख ही लिया है,"


गाँव का राजा पार्ट -4लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे
"हाई नही मामी मुझे बड़ी शरम आ रही है"

तभी उर्मिला देवी ने फिर से अपनी चूत के उपर खुजली की. munna का ध्यान भी मामी के हाथो के साथ उसी तरफ चला गया. उर्मिला देवी मुस्कुराती हुई बोली "अभी तक तो शायद केवल पॅंटी काट रही थी पर अब लगता है पॅंटी के अंदर भी खुजली हो रही है". munna इसका मतलब नही समझा चुप-चाप मामी को घूरता रहा. उर्मिला देवी ने सोचा खुद ही कुच्छ करना पड़ेगा, लौंडा तो कुच्छ करेगा नही. अपनी नाइटी को और उपर सीधा जाँघो तक उठा कर उसके अंदर हाथ घुसा कर हल्के हल्के सहलाने लगी. और बोली "जा ज़रा पाउडर ले आ तो". munna अंडरवेर में ही बेडरूम में जाने मे थोड़ा हिचका मगर मामी ने फिर से कहा "ले आ ज़रा सा लगा लेती हू".

munna उठा और अपनी गांद मॅटकाते हुए पाउडर ले आया. उर्मिला देवी ने पाउडर ले लिया और थोड़ा सा पाउडर हाथो में ले कर अपनी हथेली को नाइटी में घुसा दिया. और पाउडर लगाने लगी. munna तिर्छि निगाहों से अपने मामी हर्कतो को देख रहा था और सोच रहा था काश मामी उसको पाउडर लगाने को कहती. उर्मिला देवी शायद उसके मन की बात को स्मझ गई और बोली "munna क्या सोच रहा है"

"कुच्छ नही मामी, मैं तो बस टी.वी. देख रहा हू"

"तू बस टी.वी. देखता ही रह जाएगा, तेरी उमर के लड़के ना जाने क्या-क्या कर लेते है, तुझे पता है दुनिया कितनी आगे निकल गई है"

"क्या मामी आप भी क्या बात करती हो मैं अपने क्लास का सबसे तेज़ बच्चा हू"

"तेरी तेज़ी तो मुझे कही भी देखने को नही मिली"

"क्या मतलब है आपका मामी"

"अभी तू कमसिन उमर का लड़का है तेरा मन तो करता होगा",

"क्या मन करता होगा मामी,"

"तान्क-झाँक करने का, अपनी चूत पर नाइटी के अंदर से हाथ चलाते हुए बोली "अब तो तेरा पूरा खड़ा होने लगा है"

"के मामी….."

"क्यों मन नही करता क्या, मैं जैसे ऐसे तेरे सामने पाउडर लगा रही हू तो तेरा मन करता होगा………….."

"धात मामी…….."

"मैं सब समझती हू… "तू शरमाता क्यों है, तेरी उमर में तो हर लड़का यही तमन्ना रखता है की कोई खोल के दिखा दे,,,,,,,,,,,,,,,,,तेरा भी मन करता होगा…………फिर बात बदलते बोली तेरे मामा होते तो उनसे पाउडर लगवा लेती"

फिर munna के चेहरे की तरफ देखते हुए बोली "खोलने की बात सुनते ही सब समझ गया, कैसे चेहरा लाल हो गया है तेरा, मैं सब समझती हू तेरा हाल"

munna का चेहरा और ज़यादा शरम से लाल हो गया और अपनी नज़रे झुकाते हुए बोला "आप बात ही ऐसी कर रही हो…..लाओ मैं पाउडर लगा देता हू"

"हाई, लगवा तो लू मगर तू कही बहक गया तो"

"हाई मामी मैं क्यों बहकुंगा"

"नही तेरी उमर कम है, देख के ही जब तेरा इतना खड़ा था तो हाथ लगा के क्या हाल हो जाएगा, फिर बदनामी………."

munna का चेहरा खुशी से दमक उठा था, उसको स्मझ में आ गया था कि गाड़ी अब पटरी पर आ चुकी है बोला "आपकी कसम मामी किसी को भी नही बताउन्गा"

इस पर उर्मिला देवी ने munna का हाथ पकड़ अपनी तरफ खींचा, munna अब मामी के बगल में बैठ गया था. उर्मिला देवी ने अपने हाथो से उसके गाल को हल्का सा मसालते हुए कहा "हाई, बड़ी समझदारी दिखा रहा है पर है तो तू बच्चा ही ना कही बोल दिया तो"

" मामी…..नही किसी से नही………"

"खाली पाउडर ही लगाएगा या फिर…..देखेगा भी……..मैं तो समझती थी की तेरा मन करता होगा पर….."

"हाई मामी पर क्या……."

"ठीक है चल लगा दे पाउडर,"
उर्मिला देवी खड़ी हो गई और अपनी नाइटी को अपने कमर तक उठा लिया. munna की नज़र भी उस तरफ घूम गई. मामी अपनी नाइटी को कमर तक उठा कर उसके सामने अपनी पॅंटी के एलास्टिक में हाथ लगा कर खड़ी थी. मामी की मोटी मोटी खंभे के जैसी सफेद खूबसूरत जंघे और उनके बीच कयामत बरपाति उनकी काली पॅंटीऔर काली पॅंटी को देख पाउडर का डिब्बा हाथ से छूट कर गिर गया और पाउडर लगाने की बात भी दिमाग़ से निकल गई. पॅंटी एक दम छ्होटी सी थी और मामी की चूत पर चिपकी हुई थी.
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munnaतो बिना बोले एक टक घूर घूर कर देखे जा रहा था. उर्मिला देवी चुप-चाप मुस्कुराते हुए अपनी नशीली जवानी का असर munna पर होता हुआ देख रही थी. munna का ध्यान तोड़ने की गरज से वो हस्ती हुई बोली "कैसी है मेरी पॅंटी की फिटिंग ठीक ठाक है ना". munna एक दम से शर्मा गया. हकलाते हुए उसके मुँह से कुच्छ नही निकला. पर उमिला देवी वैसे ही हस्ते हुए बोली "कोई बात नही, शरमाता क्यों है, चल ठीक से देख कर बता कैसी फिटिंग आई है. munna कुच्छ नही बोला और चुप चाप बैठा रहा. इस पर खुद उर्मिला देवी ने उसका हाथ पकड़ के खींच कर उठा दिया और बोली, "देख के बता ना, कही सच मुच में टाइट तो नही, अगर होगी तो कल चल के बदल लेंगे". munna ने भी थोड़ी सी हिम्मत दिखाई और सीधा मामी के पैरो के पास घुटनो के बल खड़ा हो गया और बड़े ध्यान से देखने लगा. मामी की चूत पॅंटी में एक दम से उभरी हुई थी. चूत की दोनो फाँक के बीच में पॅंटी फस गई थी और चूत के च्छेद के पास थोड़ा सा गीलापन दिख रहा था.

munna को इतने ध्यान से देखते हुए देख कर उर्मिला देवी ने हस्ते हुए कहा "क्यों फिट है या नही, ज़रा पिछे से भी देख के बता" कह कर उर्मिला देवी ने अपने मोटे मोटे गठिले चूतर munna की आँखो के सामने कर दिए. पॅंटी का पिछे वाला भाग तो पतला सा स्टाइलिश पॅंटीस की तरह था. उसमे बस एक पतली सी कपड़े की लकीर सी थी जो की उर्मिला देवी के गांद की दरार में फसि हुई थी.
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गोरे-गोरे मैदे के जैसे गुदाज चूतरो को देख कर तो munna के होश ही उड़ गये, बेशक्ता उसके मुँह से निकल गया "मामी पिछे से तो आपकी पॅंटी और भी छ्होटी है चूतर भी कवर नही कर पा रही". इस पर मामी ने हस्ते हुए कहा "अरे ये पॅंटी ऐसी ही होती है, पिछे की तरफ केवल एक पतला सा कपड़ा होता जो बीच में फस जाता है, देख मेरे चूतरो के बीच में फसा हुआ है ना"

"हा मामी, ये एक दम से बीच में घुस गया है"


"तू पिछे का छोड़ आगे का देख के बता ये तो ठीक है ना"

"मुझे तो मामी ये भी छ्होटा लग रहा है, और आगे का कपड़ा भी कही फसा हुआ लग रहा है". इस पर उर्मिला देवी अपने हाथो से पॅंटी के जाँघो के बीच वाले भाग के किनारो को पकड़ा और थोड़ा फैलाते हुए बोली "वो उठने बैठने पर फस ही जाता है, अब देख मैने फैला दिया है, अब कैसा लग रहा है"

"अब थोड़ा ठीक लग रहा मामी, पर उपर से पता तो फिर भी चल रहा है"

"अर्रे तो इतने पास से देखेगा तो उपर से पता नही चलेगा क्या, मेरा तो फिर भी ठीक है तेरा तो सॉफ दिख जाता है".

"पर मामी, हम लोगो का तो खड़ा होता है ना आप लोगो का खड़ा नही होता"

"हा हमारे में छेद होता है, इसी से तो हर चीज़ इसके अंदर घुस जाती है". कह कर उर्मिला देवी खिलखिला कर हस्ने लगी. munna ने भी थोड़ा सा शरमाने का नाटक किया. अब उसकी भी हिम्मत खुल चुकी थी. अब अगर उर्मिला देवी चुचि पकड़ाती तो आगे बढ़ कर पूरा चोद देता. उर्मिला देवी भी इस बात को समझ चुकी थी. ज़यादा नाटक छोड़ने की जगह अब सीधा खुल्लम खुल्लम बाते करने में दोनो की भलाई थी, ये बात अब दोनो समझ चुके थे. उर्मिला देवी ने इस पर munna के गालो को अपने हाथो से मसल्ते हुए कहा "देखने से तो बड़ा भोला भाला लगता है मगर जानता सब है, कि किसका खड़ा होता है और किसका नही, लड़की मिल जाए तो सबसे पहले ............ बिगड़ गया है तू" कह कर उर्मिला देवी ने अपने नाइटी को जिसको उन्होने कमर तक उठा रखा था नीचे गिरा दिया.


"क्या मामी आप भी ना, मैं कहा बिगड़ा हू, लाओ पाउडर लगा दू"
ये सब तो मैने कहानियों मे पढ़ा था उसी मे बताया था लड़की का खड़ा नही होता

..क्या तू हिन्दी सेक्सी कहानियाँ भी पढ़ने लगा

"अच्छा बिगड़ा नही है फिर ये जो तेरी अंडरवेर में है उसको क्यों खड़ा कर के रखा हुआ है". मुन्ना ने चौंक कर अपने अंडरवेर की तरफ देखा, सच-मुच उसका लंड एक दम से तन्ना गया था और अंडरवेर को एक टेंट की तरह से उभारे हुए था. उसने शर्मा कर अपने एक हाथ से अपने उभार को च्छुपाने की कोशिश की. "हाई मामी छोड़ो लाओ पाउडर लगा दू"



"तू रहने दे पाउडर वो मैने लगा लिया है, कही कुच्छ उल्टा सीधा हो गया तो".



"क्या उल्टा सीधा होगा मामी, मैं तो इसलिए कह रहा था की आपको खुजली हो रही थी तो फिर............." बात बीच में ही काट गई.



"खूब समझती हू क्यों बोल रहे थे,





"हाई मामी नही, मैं तो बस आप को खुजली.......".



"मैं अच्छी तरह से समझती हू तेरा इरादा क्या है और तू कहा नज़र गढ़ाए रहता है, मैं तुझे देखती थी पर सोचती थी ऐसे ही देखता होगा मगर अब मेरी समझ में अच्छी तरह से आ गया है"



मामी के इतना खुल्लम खुल्ला बोलने पर munna के लंड में एक सनसनी दौड़ गई



"हि मामी नही ……………..munna की बाते उसके मुँह में ही रह गई और उर्मिला देवी ने आगे बढ़ कर राजू के गाल पर हल्के से चिकोटी काटी.



मामी के कोमल हाथो का स्परश जब munna के गालो पर हुआ तो उसका लंड एक बार फिर से लहरा गया. मामी के नंगी जाँघो के नज़ारे की गर्माहट अभी तक लंड और आँख दोनो को गर्मा रही थी. तभी मामी ने उसकी ठुड्डी पकड़ के उसके चेहरे को थोड़ा सा उपर उठाया और अपनी चुचियों को एक हाथ से सहलाते हुए बोली "बहुत घूर घूर के देखते हो ना इनको, दिल चाहता होगा की नंगी करके देखते, है ना" मामी की ये बात सुन कर munna का का चेहरा लाल हो गया और गला सुख गया फसी हुई आवाज़ में "माआआआमम्म्ममी............" करके रह गया.



मामी ने इस बार munna का एक हाथ पकड़ लिया और हल्के से उसकी हथेली को दबा कर कहा "क्यों मन करता है कि नही, कि किसी की देखते". munna का हाथ मामी के कोमल हाथो में कांप रहा था. munna को अपने और पास खिचते हुए उर्मिला देवी ने लगभग munna को अपने से सटा लिया था. munna और उसकी मामी के बीच केवल इंच भर का फासला था.
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मामी की गर्म सांसो का अहसास उसे चेहरे पर हो रहा था. munna अगर थोड़ा सा आगे की तरफ हिलता तो उसकी छाती मामी के नुकीले चुचो से ज़रूर टकरा जाती. इतने पास से munna पहली बार मामी को देख रहा था. दोनो की साँसे तेर्ज चल रही थी. मामी की उठती गिरती चूचियों से munna की नज़र हटाए नही हट रही थी. उर्मिला देवी ने munna का हाथ पकड़ के अपनी चूचियों पर रख दिया और अपने हाथो से उसको दबाते हुए बोली "मन करता होगा कि देखे, देख तेरा हाथ कैसे कांप रहा है, मन करता है ना".
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थूक निगल के गले को तर करता हुआ munna बोला "हाआ मामी मन...... करता ..". उर्मिला देवी ने हल्के से फिर उसके हाथ को अपने चुचियों पर दबाते हुए कहा "देख मैं कहती थी ना तेरा मन करता होगा, पूरा नंगा देखे, लौंडा जैसे ही जवान होता है उसके मन में सबसे पहले यही आता है कि किसी औरत की देखे". अब munna भी थोड़ा खुल गया हकलाते हुए बोला



"हाँ, मामी बहुत मन करता है कि देखे"



"मैं तो दिखा देती मगर"



"हाँ मामी, मगर क्या"



"तूने कभी किसी की देखी नही है क्या"



"नही मेयायाययामियीयियीयियी"



"तेरी उमर कम है, फिर मैं तेरी मामी हू"



"हाई मामी मैं अब बड़ा हो गया हू,"



"मैं दिखा देती मगर तेरी उमर कम है तेरे से रहा नही जाएगा"



"नही मामी, मैं रह लूँगा, बस दिखा दो एक बार"



"तू नही रह पाएगा, कह कर उर्मिला देवी ने अपना एक हाथ munna के अंडरवेर के उपर से उसके लंड पर रख दिया.
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munna एक दम से लहरा गया. मामी के कोमल हाथो का लंड पर दबाब पा कर मज़े के कारण से उसकी पलके बंद होने को आ गई. उर्मिला देवी बोली "देख कैसे खड़ा कर के रखा हुआ है, अगर दिखा दूँगी तो तेरी बेताबी और बढ़ जाएगी,"



" नही मामी, प्लीज़ एक बार दिखा दो"



"पॅंटी खोल के दिखा दू"
 
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"हा मामी, दिखा दो बस एक बार, किसी की नही देखी" munna का एक हाथ जो अभी तक उर्मिला देवी की चुचियों पर ही था उसको अपने हाथो से दबाते हुए और अपनी चुचियों को थोड़ा और उचकाते हुए उर्मिला देवी बोली "मैने नई ब्रा भी पहनी हुई, उसको नही देखेगा क्या"
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"हाँ मामी उसको भी ….."


"चल दिखा दूँगी मगर एक शर्त पर"



"बताओ मामी, मैं आपकी हर बात मानूँगा"





"ठीक है फिर जा और मूत कर के अपना अंडरवेर उतार के आ" munna को एक दम से झटका लग गया. उसकी स्मझ में नही आ रहा था की क्या जवाब दे. मामी और उसके बीच खुल्लम खुल्ला बाते हो रही थी मगर मामी अचानक से ये खेल इतना कुल्लम खुल्ला हो जाएगा, ये तो munna ने सोचा भी ना था. कुच्छ घबराता और कुच्छ सकपकाता हुआ वो बोला " पर मामी अंडरवेर…….."



"हा जल्दी से अंडरवेर उतार के मेरे बेडरूम में आ जा फिर दिखाउन्गी" कह कर उर्मिला देवी उस से अलग हो गई और टी.वी. ऑफ कर के अपने बेडरूम की तरफ चल दी. मामी को बेडरूम की तरफ जाता देख जल्दी से बाथरूम की तरफ भागा.
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अंडरवेर उतार कर जब munna मूतने लगा तो उसके लंड से पेशाब की एक मोटी धार कमोड में छर छर कर गिरने लगी. जल्दी से पेशाब कर अपने फन्फनाते लंड को काबू में कर munna मामी के बेडरूम की तरफ भागा. अनादर पहुच कर देखा की मामी ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी हो कर अपने बालो का जुड़ा बना रही थी.
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munna को देखते ही तपाक से बोली चल बेड पर बैठ मैं आती हू और अटॅच्ड बाथरूम में चली गई. बाथरूम से मामी के मूतने की सिटी जैसी आवाज़ सुनाई दे रही थी. कुच्छ पल बाद ही मामी बाथरूम से अपनी नाइटी को जाँघो तक उठाए हुए बाहर निकली. munna का लंड एक बार फिर से सनसानया. उसका दिल कर रहा था की मामी की दोनो जाँघो के बीच अपने मुँह को घुसा दे और उनकी रसीली चूत को कस के चूम ले. तभी उर्मिला देवी जो कि, बेड तक पहुच चुकी थी की आवाज़ ने उसको वर्तमान में लौटा दिया " तू अभी तक अंडरवेर पहने हुए है, उतारा क्यों नही" munna थोड़ा सरमाया



" मामी शरम आ रही है……….तुम तो दिखाने को बोल रही थी"



"धात बेवकूफ़, चल अंडरवेर उतार"



"पर मामी अंडरवेर उतार के क्या होगा,,,,,,"



"असली गेंदो का मज़ा चखाउन्गी" कह कर हल्के से अपनी चुचियों पर हाथ फेरा. राजू का लंड और भी ज़यादा ख़ड़ा हो गया.
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"पर मामी मैं पूरा नंगा हो जाउन्गा"



"तो क्या हुआ, मुझे पॅंटी खोल के दिखाने के लिए बोलता है उसमे शर्म नही आती तुझे, खोल ना अंडरवेर फिर मैं तुझे बताउन्गी की तेरी मामी को कहा कहा खुजली होती है और खुजली मिटाने की दूसरी दवा भी बताउन्गी"



" मामी, दूसरी कौन से दवा है "





"बताउन्गी बेटा, पहले ज़रा अपना बेलन तो दिखा". munna ने थोड़ा सा शरमाने का नाटक करते हुए अपना अंडरवेर धीरे धीरे सरका दिया. उर्मिला देवी की आँखो की चमक बढ़ती जा रही थी. आज दस इंच मोटे तगड़े लंड का दर्शन पहली बार खुल्लम खुल्ला ट्यूब लाइट की रोशनी में हो रहा था. नाइटी जिसको अब तक एक हाथ से उन्होने उठा कर रखा हुआ था नीचे छूट कर गिर गयी. munnaके आँखो को गर्मी देने वाली चीज़ तो ढक चुकी थी मगर उसकी मामी के मज़े वाली चीज़ अपने पूरे औकात पर आ के फुफ्कार रही थी.
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उर्मिला देवी ने एक बार अपनी नाइटी के उपर से ही अपनी चूत को दबाया और खुजली करते हुए बोली "इसस्स्स्स्सस्स बड़ा हथियार है तेरा, देख के तो और खुजली बढ़ गई"
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munna जो की थोड़ा बहुत शर्मा रहा था बोला "खुजली बढ़ गई तो पॅंटी उतार लो ना मामी, वो काम तो करती नही हो, पर अंडरवेर बेकार में उतरवा दिया"



"अभी उतारती हू, फिर तुझे बताउन्गी अपनी खुजली की दवाई, हाई कैसा मूसल जैसा है तेरा" फिर उर्मिला देवी ने अपनी नाइटी के बटन खोलने शुरू कर दिए. नाइटी को बड़े आराम से धीरे कर के पूरा उतार दिया. अब उर्मिला देवी के बदन पर केवल एक काले रंग ब्रा और नाइटी के अंदर पहनी हुई पेटिकोट थी.
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गोरी मैदे के जैसा मांसल पेट, उसके बीच गहरी गुलाबी नाभि, दो मोटी मोटी चुचियाँ, जो की ऐसा लग रहा था की ब्रा को फाड़ के अभी निकल जाएगी उनके बीच की गहरी खाई,
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ये सब देख कर तो munna एक दम से बेताब हो गया था. लंड फुफ्कार मार रहा था और बार-बार झटके ले रहा था. munna एक दम से पागल हो कर अपने हाथो से अपने लंड को पकड़ कर ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा. उर्मिला देवी ने जब उसकी बेताबी देखी तो आगे बढ़ कर खुद अपने हाथो से उसके लंड को पाकर लिया और मुस्कुराती हुई बोली "मैं कहती थी ना की तेरे बस का नही है, तू रह नही पाएगा, अभी तो मैने पूरा खोला भी नही है तू शुरू हो गया" बाहर खूब जोरो की बारिश शुरू हो रही थी. ऐसे मस्ताने मौसम में मामी-भानजे का मस्ताना खेल अब शुरू हो गया था.


ना तो अब उर्मिला देवी रुकने वाली थी ना ही munna. उर्मिला देवी ने munna का हाथ अपने ब्रा में क़ैद चुचियों के उपर रख दिया और बोली "तू ऐसे तो मानेगा नही इधर मैं खोल के दिखाती रहूंगी इधर तू मूठ मारता रहेगा, ले अब खुद ही खोल के देख" munna ने काँपते हुए हाथो से अपनी मामी के ब्रा के स्ट्रॅप खोलने की कोशिश की मगर ब्रा इतनी टाइट थी की खुल नही रही थी. उर्मिला देवी ने हस्ते हुए अपने बदन को थोड़ा ढीला किया खुद अपने हाथो को पीछे ले जा कर अपनी ब्रा के स्ट्रॅप को खोल दिया और हस्ते हुए बोली "ब्रा भी नही खोलना जानता है, चल कोई बात नही मैं तुझे पूरा ट्रेंड कर दूँगी, ले देख अब मेरी नंगी चुचिया जिनको देखने के लिए इतना तरसता था" मामी के कंधो से ब्रा के स्ट्रॅप को उतार कर munna ने जल्दी से ब्रा को एक झटके में निकाल फेंका. उर्मिला देवी हस्ते हुए बोली "बड़ी जल्दी है, आराम से उतार, अब जब बोल दिया है तो दिखा दूँगी तो फिर मैं पीछे नही हटने वाली". मामी के उठे हुए मोटे मोटे मम्मे देख कर munna तो जैसे पागल ही हो गया था. एक टक घूर घूर कर देख रहा था उनकी मलाई जैसे चुचो को. एक दम बेल के जैसी ठोस और गुदाज चुचिया थी. निपल भी काफ़ी मोटे मोटे और और हल्का गुलबीपन लिए हुए थे उनके चारो तरफ छ्होटे छ्होटे दाने थे.
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मामी ने जब munna को अपने चुचियों को घूरते हुए देखा तो munna का हाथ पकड़ कर अपनी चुचियों पर रख दिया और और मुस्कुराती हुई बोली "कैसा लग रहा है, पहली बार देखी है ना"
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................comments please
 
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"हा मामी पहली बार देखी है, बहुउउउउउत खूबसूरत है" munna को लग रहा था जैसे की उसका लंड में से कुच्छ निकल जाएगा. लंड एक दम से अकड़ कर उप डाउन हो रहा था और सुपरा तो एक दम पहाड़ी आलू के जैसा लाल हो गया था.



"देख तेरा औज़ार कैसे फनफना रहा है, थोड़ी देर और देखेगा तो फट जाएगा"

"ही मामी फट जाने दो, थोड़ा सा और पॅंटी खोल के भीईइ............"

इस पर उर्मिला देवी ने उसके लंड को अपनी मुठ्ठी में थाम लिया और दबाती हुई बोली "अभी तो ये हाल है पॅंटी खोल दिया तो क्या होगा"

"हाई मामी ज़रा सा बस खोल के.......", इस पर उर्मिला देवी ने उसके लंड को अपनी मुठ्ठी में और कस के दबोच लिया और उपर नीचे करने लगी. लंड के सुपाडे से चमड़ी पूरी तरह से हट जाती थी और फिर जब मुठ्ठी उपर होती तो चमड़ी फिर से ढक जाती थी. इतनी ज़ोर से तो मुन्ना ने भी कभी अपने हाथो से मूठ नही मारी जितनी ज़ोर से आज मामी मूठ मार रही थी. सनसनी के कारण munna की गांद फट रही थी. उसकी समझ में नही आ रहा था की क्या करे. सब कुच्छ भूल कर सिसकारी लेते हुए मामी के हाथो से मूठ मराई का मज़ा लूट रहा था. लंड तो पहले से ही पके आम के तरह से हो रखा था. दो चार हाथ मरने की ज़रूरत थी, फट से पानी फेंक देता मगर कयामत तो तब हो गयी जब उर्मिला देवी ने आगे झुक कर लंड को अपने मुँह में ले लिया. अपने पतले गुलाबी होंठो के बीच लंड को दबोच कर जैसे पीपे से पानी चूस कर निकालते हैं वैसे ही कस के जो चुसाइ शुरू की तो आँखे बंद होने लगी, गला सुख गया ऐसा लगा जैसे शरीर का सारा खून सिमट कर लंड में भर गया है और मामी उसको चूस लेना चाहती है. मज़े के कारण आँखें नही खुल रही थी. मुँह से केवल गोगियाने हुई आवाज़ में बोलता जा रहा था "हाई चूस लो चूस लो ओह मामी चूस लो............."
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तभी उर्मिला देवी ने चूसना बंद कर अपने होंठो को लंड पर से हटा लिया और फिर से अपने हाथो से मूठ मारते हुए बोली "अब देख तेरा कैसे फल फला के निकलेगा जब तू मेरी पॅंटी की सहेली को देखेगा" चुसाइ बंद होने से मज़ा थोड़ा कम हुआ तो munna ने भी अपनी आँखे खोल दी. मामी ने एक हाथ से मूठ मारते हुए दूसरे हाथ से अपने पेटिकोट को पूरा पेट तक उपर उठा दिया और अपनी जाँघो को खोल कर पॅंटी के किनारे (मयनि) को पकड़ एक तरफ सरका कर अपनी चूत के दर्शन कराए तो
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munna के लंड ने भल-भला कर पानी छोड़ना शुरू कर दिया. munna के मुँह से एकदम से आनंद भरी ज़ोर की सिसकारी निकली और आँखे बंद होने लगी और "ओह मामी ओह मामी" करता हुआ अपने लंड का पानी छोड़ने लगा. उर्मिला देवी ने उसके झाड़ते लंड का सारा माल अपने हाथो में लिया और फिर बगल में रखे टॉवेल में पोछ्ति हुई बोली "देखा मैं कहती थी ना कि देखते ही तेरा निकल जाएगा". munna अब एक दम सुस्त हो गया था. इतने जबरदस्त तरीके से वो आजतक नही झाड़ा था. उर्मिला देवी ने उसके गालो को चुटकी में भर कर मसल्ते हुए एक हाथ से उसके ढीले लंड को फिर से मसला. munna अपनी मामी को हसरत भारी निगाहो से देख रहा थ.




उर्मिला देवी munna की आँखो में झाँकते हुए वही पर कोहनी के बल munna के बगल में अढ़लेटी सी बैठ कर अपने दूसरे हाथ से munna के ढीले लंड को अपनी मुट्ठी में उसके आंडो समेत कस कर दबाया और बोली "मज़ा आया.....". munna के चेहरे पर एक थकान भरी मुस्कुराहट फैल गई. पर मुस्कुराहट में हसरत भी थी और चाहत भी थी.

"मज़ा आया" उर्मिला देवी ने पुछा.

"हाँ मामी बहुत………"

"पहले हाथ से करता था"

"कभी कभी"

"इतना मज़ा आया कभी"

"नही मामी इतना मज़ा कभी नही आया,….."

मामी ने munna के लंड ज़ोर से दबोच कर उसके गालो पर अपना दाँत गढ़ाते हुए एक हल्की सी पुच्चि ली और अपनी टाँगो को उसकी टाँगो पर चढ़ा कर रगड़ते हुए बोली
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"पूरा मज़ा लेगा". munna थोड़ा सा शरमाते हुए बोला "हाँ मामी, हा". उर्मिला देवी की गोरी चिकनी टाँगे munna के पैरो से रगड़ खा रही थी. उर्मिला देवी का पेटिकोट अब जाँघो से उपर तक चढ़ चुका था.

"जानता है पूरे मज़े का मतलब!" munna ने थोड़ा सकुचाते हुए अपनी गर्दन हा में हिला दी. इस पर उर्मिला देवी ने अपनी नंगी गदराई जाँघो से munna के लंड को मसल्ते हुए उसके गालो पर फिर से अपने दाँत गढ़ा दिए और हल्की सी एक प्यार भरी चपत लगाते हुए बोली "मुझे पहले से ही शक़ था, तू हमेशा घूरता रहता था".फिर जब तूने बताया था कितू सेक्सीकहानियाँ पढ़ता है तो मुझे पूरा यकीन हो गया फिर प्यार से उसके होंठो को चूम लिया और उसके लंड को दबोचा. munna को थोड़ा सा दर्द हुआ. मामी के हाथ को अपनी हथेली से रोक कर सिसकते हुए बोला "हाई मामी. munna को ये मीठा दर्द सुहाना लग रहा था. वो सारी दुनिया भूल चुक्का था. उसके दोनो हाथ अपने आप मामी के पीठ से लग गये और उसने उर्मिला देवी को अपनी बाँहो में भर लिया. मामी की दोनो बड़ी बड़ी चुचियाँ अब उसकी छाती से लग कर चिपकी हुई थी.
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उर्मिला देवी ने फिर से राजू के होंठो को अपने होंठो में भर लिया और अपनी जीभ को उसके मुँह में डाल कर घूमाते हुए दोनो एक दूसरे को चूमने लगे. औरत के होंठो का ये पहला स्पर्श जहा munna को मीठे रसगुले से भी ज़यादा मीठा लग रहा था वही उर्मिला देवी एक नौजवान कमसिन लंड के होंठो का रस पी कर अपने होश खो बैठी थी. उर्मिला देवी ने munna के लंड को अपने हथेलियो में भर कर फिर से मसलना शुरू कर दिया. कुच्छ ही देर में मुरझाए लंड में जान आ गई. दोनो के होंठ जब एक दूसरे से अलग हुए तो दोनो हाँफ रहे थे ऐसा लग रहा था जैसे मिलो लंबी रेस लगा कर आए है. अलग हट कर munna के चेहरे को देखते हुए उर्मिला देवी ने munna के हाथ को पकड़ कर अपने चुचियों पर रखा और कहा "अब तू मज़ा लेने लायक हो गया है" फिर उसके हाथो को अपने चुचियों पर दबाया. munna इशारा समझ गया.उसने उर्मिला देवी के चुचियों को हल्के हल्के दबाना शुरू कर दिया. उर्मिला देवी ने भी मुस्कुराते हुए उसके munna के लेंड को अपने कोमल हाथो में थाम लिया और हल्के हल्के सहलाने लगी. आज मोटे और दस इंच के लंड से चुदवाने की उसकी सालो की तमन्ना पूरी होने वाली थी. उसके लिए सबसे मजेदार बात तो ये थी की लंड एक दम कमसिन उमर का था. जैसे मर्द कमसिन उमर की अनचुदी लरकियों को चोदने की कल्पना से सिहर उठते है शायद उर्मिला जी के साथ भी ऐसा ही हो रहा था, मुन्ना बाबू के लंड को मसालते हुए उनकी चूत पासीज रही थी और इस दस इंच के लंड को अपनी चूत की दीवारो के बीच कसने के लिए बेताब हुई जा रही थी.

munna भी अब समझ चुका था कि आज उसके लंड की सील तो ज़रूर टूट जाएगी. दोनो हाथो से मामी की नंगी चुचियों को पकड़ कर मसल्ते हुए मामी के होंठो और गालो पर बेतहाशा चुम्मिया काटे जा रहा था.
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दोनो मामी भानजे जोश में आकर एक दूसरे से लिपट चिपेट रहे थे. तभी उर्मिला जी munna के लंड को कस कर दबाते हुए अपने होंठ भीच कर munna को उकसाया "ज़रा कस कर". munna ने अपनी हथेलियों में दोनो चुचियों को भर कर ज़ोर से मसल्ते हुए निपल को चुटकी में पकड़ कर आगे की तरफ खीचते हुए जब दबाया तो उर्मिला देवी के मुँह से आह निकल गई. दर्द और मज़ा दोनो ही जब एक साथ मिला तो मुँह से सिसकारियाँ फूटने लगी. पैर की एडियो से बिस्तर को रगड़ते हुए अपने चूतरो को हवा में उच्छालने लगी. munna ने मामी को मस्ती में आते हुए देख और ज़ोर से चुचियों को मसला और अपने दाँत गाल पर गढ़ा दिए. उर्मिला देवी एक्दुम से तिलमिला गई और munna के लंड को कस कर मरोड़ दिया "उईईईईईई माआआआआआ सीईई धीरे से……". लंड के ज़ोर से मसले जाने के कारण munna एक दम से दर्द से तड़प गया पर उसने चुचियों को मसलना जारी रखा और मामी की पप्पियाँ लेते हुए बोला "अभी तो बोल रही थी ज़ोर से और अभी चिल्ला रही हो……..ओह मामी". तभी उर्मिला देवी ने munna के सिर को पकड़ा और उसे अपनी चुचियों पर खींच लिया और अपनी बाई चुचि के निपल को उसके मुँह से सटा दिया और बोली "इतनी सारी सेक्सीकहानियाँ पढ़ कर क्या खाली चुचि दबाना ही सीखा है, चूसना नही सिखाया क्या उसमे. munna ने चुचि के निपल को अपने होंठो के बीच कस लिया. थोड़ी देर तक निपल चुसवाने के बाद मामी ने अपनी चुचि को अपने हाथो से पकड़ कर munna के मुँह में ठेला, munna का मुँह अपने आप खुलता चला गया और निपल के साथ जितनी चुचि उसके मुँह में समा सकती थी उतनी चुचि को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा. दूसरे हाथ से दूसरी चुचि को मसल्ते हुए munna अपनी मामी के मुममे चूस रहा था.
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कभी कभी munna के दाँत भी उसकी मुम्मो पर गढ़ जाते, पर उर्मिला देवी को यही तो चाहिए था-----एक नौजवान जोश से भरा लौंडा जो उसको नोचे खसोटे और एक जंगली जानवर की तरह उसको चोद कर जवानी का जोश भर दे. चुचि चूसने के तरीके से उर्मिला देवी को पता चल गया था कि लौंडा अभी अनाड़ी है पर अनाड़ी को खिलाड़ी तो उसे ही बनाना था. एक बार लौंडा जब खिलाड़ी बन जाता तो फिर उसकी चूत की चाँदी थी. munna के सिर के बालो पर हाथ फेरती हुई बोली "………धीरे धीरे चुचि चूस और निपल को रब्बर की तरह से मत खीच आराम से होंठो के बीच दबा के धीरे-धीरे जीभ की मदद से चुँला और देख ये जो निपल के चारो तरफ काला गोल घेरा बना हुआ है ना, उस पर और उसके चारो तरफ अपनी जीभ घूमाते हुए चूसेगा तो मज़ा आएगा". munnaने मामी के चुचि को अपने मुँह से निकाल

दिया और मामी के चेहरे की ओर देखते हुए अपनी जीभ निकाल कर निपल के उपर रखते हुए पुछा "ऐसे मामी"
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"हा इसी तरह से जीभ को चोरो तरफ घूमाते हुए, धीरे धीरे". चुदाई की ये कोचैंग आगे जा कर munna के बहुत काम आने वाली थी जिसका पता दोनो में से किसी को नही था. जीभ को चुचि पर बड़े आराम से धीरे धीरे चला रहा था निपल के चारो तरफ के काले घेरे पर भी जीभ फिरा रहा था. बीच बीच में दोनो चुचि को पूरा का पूरा मुँह में भर कर भी चूस लेता था. उर्मिला देवी को बड़ा मज़ा आ रहा था और उसके मुँह से सिसकारिया फूटने लगी थी "ऊऊउउउईई....आअहह... ..सस्स्सिईईई... .राजू बेटा... ......आहह..... ऐसे ही मेरे राजा,,,,,,,,,,सीईईईईईईईईईई एक बार में ही सीख गया, हाई मज़ा आ रहा है"
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"हाई मामी, बहुत मज़ा है, ओह मामी आपकी चुचि……..सीईई कितनी खूबसूरत, हमेशा सोचता था कैसी होगी आज……

"उफफफ्फ़ सस्स्स्स्स्स्स्सिईईईईई……., आअराआअम से आराम से, उफ्फ साले खा जा तेरी मा का भेजा हुआ लंगड़ा आम है भोसड़ी के…….चूस के सारा रस पी जा ".

मामी की गद्देदार मांसल चुचियों को munna, सच में शायद लंगड़ा आम समझ रहा था. कभी बाई चुचि मुँह में भरता तो कभी ढहिनी चुचि को मुँह में दबा लेता. कभी दोनो को अपनी मुट्ही में कसते हुए बीच वाली घाटी में पुच...प्यूच करते हुए चुममे लेता, कभी उर्मिला देवी की गोरी सुरहिदार गर्दन को चूमता.


बहुत दीनो के बाद उर्मिला देवी की चुचियों को किसी ने इस तरह से माथा था. उसके मुँह से लगातार सिसकारियाँ निकल रही थी, आहे निकल रही थी, चूत पनिया कर पसिज रही थी और अपनी उत्तेजना पर काबू करने के लिए वो बार-बार अपनी जाँघो को भीच भीच कर पैरो को बिस्तेर पर रगड़ते हुए हाथ पैर फेंक रही थी. दोनो चुचिया ऐसे मसले जाने और चूसे जाने के कारण लाल हो गई थी. चुचि चूस्ते-चूस्ते राजू नीचे बढ़ गया था और मामी के गुदाज पेट पर अपने प्यार का इज़हार करते हुए पुच्चिया काट रहा था. उर्मिला देवी की चूत एक दम गीली हो कर चुहने लगी. भगनासा खड़ा होकर लाल हो गया था. इतनी देर से munna के साथ खिलवाड़ करने के कारण धीरे-धीरे जो उत्तेजना का तूफान उसके अंदर जमा हुआ था वो अब बाहर निकलने के लिए बेताब हो उठा था. एकद्ूम से बेचैन होकर सीस्याते हुए बोली "कितना दूध पिएगा मुए, उई…सीईई…..साले, चुचि देख के चुचि में ही खो गया, इसी में छोड़ेगा क्या भोसड़ी के". munna मामी के होंठो को चूम कर बोला "ओह मामी बहुत मज़ा आ रहा है सच में, मैने कभी सोचा भी नही था, , मामी आपकी चूची को चोद दू……" उर्मिला देवी ने एक झापड़ उसके चूतर पर मारा और उसके गाल पर दाँत गढ़ाते हुए बोली "साले अबी तक चुचि पर ही अटका हुआ है". munna बिस्तर पर उठ कर बैठ गया और एक हाथ में अपने तमतमाए हुए लंड को पकड़ उसकी चमड़ी को खींच कर पहाड़ी आलू के जैसे लाल-लाल सुपरे को मामी की चुचियों पर रगड़ने लगा. उत्तेजना के मारे munna का बुरा हाल हो चुक्का था, उसे कुच्छ भी समझ में नही लग रहा था. खेलने के लिए मिले इस नये खिलौने के साथ वो जी भर के खेल लेना चाहता था. लंड का सुपरा रगड़ते हुए उसके मुँह से मज़े की सिसकारिया फुट रही थी "ओह मामी, सस्स्स्स्स्सीईई मज़ा आ गया मामी, सस्स्स्सीईई और लो मामी.
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उर्मिला देवी की चूत में तो आग लगी हुई थी उन्होने झट से munna को धकेलते हुए बिस्तर पर पटक दिया और उसके उपर चढ़ कर अपने पेटिकोट को उपर किया एक हाथ से लंड को पकड़ा और अपनी पनियाई हुई चूत के गुलाबी छेद पर लगा कर बैठ गई. गीली चूत ने सटाक से munna के पहाड़ी आलू जैसे सुपरे को निगल लिया. munna का क्यों की ये पहली बार था इसलिए जैसे ही सुपरे पर से चमड़ी खिसक कर नीचे गई munna थोड़ा सा चिहुनक गया.

"ओह मामी,"


"पहली बार है ना, सुपरे की चमड़ी नीचे जाने से………" और अपनी गांद उठा कर कचक से एक जोरदार धक्का मारा. गीली चूत ने झट से पूरे लंड को निगल लिया. पूरा लंड अपनी चूत में लेकर, पेटिकोट को कमर के पास समेट कर खोस लिया और चूतर उठा कर दो तीन और धक्के लगा दिए. munna की समझ में खुच्छ नही आ रहा था. बस इतना लग रहा था जैसे उसके लंड को किसी ने गरम भट्टी में डाल दिया है. गर्दन उठा कर उसने देखने की कोशिश की. मामी ने अपने चूतर को पूरा उपर उठाया, चूत के रस से चमचमता हुआ लंड बाहर निकला, फिर तेज़ी के साथ मामी के गांद नीचे करते ही fhuli hui chut में समा गया.


"सीईए मामी आप ने तो अपनी नीचे वाली ठीक से देखने भी नही………."

"बाद में……अभी तो नीचे आग लगी है"

"हाई मामी…………दिखा देती तूऊऊऊऊ"

"अभी मज़ा आ रहा है……"

"हाँ, हा आ रहा हाईईईईईईईई……."

"तो फिर मज़ा लूट ना भोसड़ी के, देख के अचार डालेगा…………"

"उफ्फ मामी…………..सीईई ओह आपकी नीचे वाली तो एकद्ूम गरम………."

"हा………बहुत गर्मी है इसमे, अभी इसकी सारी गर्मी निकाल दे फिर बाद में……भट्टी देखना…….अभी बहुत खुजली हो रही थी, ऐसे ही चुदाई होती है समझा, पूरा मज़ा इसी को सीईए……….जब चूत में लंड अंदर बाहर होता है तभी……….हाई पहली चुदाई है ना तेरीईईईईई"
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"हा मामी………ही सीईईईई"
"क्यों क्या हुआ……….सस्स्स्सीईईई"

"ऐसा लग रहा है जैसे उफफफफफफ्फ़………जैसे ही आप नीचे आती है एकद्ूम से मेरे लंड की चमड़ी नीचे उतर जाती है…………..उफफफफफफफ्फ़ माआआमीईईईई बहुत गुदगुदी हो रही है"

"तेरा बहुत मोटा है ना………इसलिए मेरी में एकदम चिपक कर जा रहा है……"


इतना कह कर उर्मिला देवी ने कचक-कचक धक्के लगाना शुरू कर दिया. चूत में लंड ऐसे फिट हो गया था जैसे बॉटल में कॉर्क. उर्मिला देवी की चूत जो की चुद चुद के भोसड़ी हो गई थी, आज 10 इंच मोटे लंड को खा कर अन्चुदी चूत बनी हुई थी और इठला कर, इतरा कर पानी छोड़ रही थी. लंड चूत की दीवारो से एकद्ूम चिपक कर रगड़ता हुआ पूरा अंदर तक घुस जाता था और फिर उसी तरह से चूत की दीवारो को रगड़ते हुए सुपरे तक सटाक से निकल कर फिर से घुसने के लिए तैय्यार हो जाता था. चूत के पानी छोड़ने के कारण लंड अब सटा-सॅट अंदर बाहर हो रहा था. munna ने गर्दन उठा कर अपनेलंड देखने की कोशिश की मगर उर्मिला देवी के धक्को की रफ़्तार इतनी तेज और झटकेदार थी की उसकी गर्दन फिर से तकिये पर गिर गई. उर्मिला देवी के मुँह से तेज तेज सिसकारियाँ निकल रही थी और वो गांद उठा उठा के तेज-तेज झटके मार रही थी. लंड सीधा उसकी बछेदानि पर ठोकर मार रहा था और बार बार बस उसके मुँह से चीख निकल जाती थी. आज उसको बहुत दीनो के बाद ऐसा अनोखा मज़ा आ रहा था. दोनो मामी भांजा कुतिया कुत्ते की तरह से हाँफ रहे थे और कमरे में गछ-गछ, फॅक-फॅक की आवाज़ गूँज रही थी.

"ऑश……सस्स्स्सीईई……munna बहुत मस्त लंड है तेरा तो हाई…….उफफफफफफफफफ्फ़"

"हा……..मामी…….बहुत मज़ा आ रहा है……….चुचीईईईई"

"हा, हा दबा ना, चुचि दबा…………बहुत दीनो के बाद ऐसा मज़ा आ रहा है…"

"सच माआमी……आअज तो आपने स्वर्ग में पहुचा दिया………"

"हाई तेरे इस घोड़े जैसे लंड ने तो…….आआअजजजज मेरी बार्षो की प्यास भुजाआअ…"

कच-कच, करता हुआ लंड, चूत में तेज़ी से अंदर बाहर हो रहा था. उर्मिला देवी की मोटी-मोटी गांद राजू के लंड पर तेज़ी से उच्छल कूद कर रही थी. मस्तानी मामी की दोनो चुचिया राजू के हाथो में थी, और उनको अपने दोनो हाथो के बीच दबा कर मठ रहा था.
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"ओह हो ऱजुउउउउउउउउ बेटॅयायेयीययाया…….मेरा निकलेगा अब सस्स्स्स्स्स्सीईई ही निकल जाएगा…………ऊऊऊऊगगगगगगगगगग………(फॅक-फॅक-फॅक) …….सीईई ही रीईईईईई कहा था त्त्त्त्त्त्त्त्तुउउउउउउ……मज़ा आआआअ गयाआआआ रीईई, गई मैं ……हाई आआआआअज तो चूत फाड़ के पानी निकल दियाआआआ तुनीई…उफफफफ्फ़"
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"हाई मामी और तेज मारो….मारो और तेज……और ज़ोर सीईई, उफफफफफ्फ़ बतूत गुद्गुदीईइ हूऊऊओ……."



तभी उर्मिला देवी एक ज़ोर की चीख मारते हुए……सीईईई करते हुए munna के उपर ढेर हो गई. उसकी चूत ने फॉल्फला कर पानी छोड़ दिया. चूत की छेद पकड़ते हुए लंड को कभी अपनी गिरफ़्त में कस रही थी कभी छोड़ रही थी. munna भी सयद झरने के करीब था मगर उर्मिला देवी के रुकने के कारण चुदाई रुक गई थी और वो बस कसमसा कर रह गया. उर्मिला देवी के भारी शरीर को अपनी बाँहो में जकड़े हुए नीचे से हल्के हल्के गांद उठा उठा कर अपने आप को संतुष्ट करने की कोशिश कर रहा था. मगर कहते है की थूक चाटने से प्यास नही भुजती. munna का लंड ऐसे तो झरने वाला नही था. हा अगर वो खुद उपर चढ़ कर चार पाँच धक्के भी ज़ोर से लगा देता तो सयद उसका पानी भी निकल जाता. पर ये तो उसकी पहली चुदाई थी, उसे ना तो इस बात का पता था ना ही उर्मिला देवी ने ऐसा किया. लंड चूत के अंदर ही फूल कर और मोटा हो गया था. दीवारो से और ज़यादा कस गया था. धीरे धीरे जब मामी की साँसे स्थिर हुई तब वो फिर से उठ कर बैठ गई और munna के बालो में हाथ फेरते हुए उसके होंठो से अपने होंठो को सटा कर एक गहरा चुंबन लिया.

"हाई,………..मामी रुक क्यों गई……..और धक्का लगाओ ना…….."

"मुझे पता है…….तेरा अभी निकला नही………..मेरी तो इतने दीनो से पयासी थी…….ठहर ही नही पाई…………." कहते हुए उर्मिला देवी थोड़ा सा उपर उठ गई. पक की आवाज़ करते हुए munna का मोटा लंड उर्मिला देवी की बित्ते भर की चूत से बाहर निकल गया. उर्मिला देवी जो की अभी भी पेटिकोट पहने हुई थी ने पेटिकोट को चूत के उपर दबा दिया. उसकी चूत पानी छोड़ रही थी और पेटिकोट को चूत के उपर दबाते हुए उसके उपर कपड़े को हल्के से रगड़ते हुए पानी पोछ रही थी. अपनी दाहिनी जाँघ को उठाते हुए munna की कमर के उपर से वो उतर गई और धडाम से बिस्तर पर अपनी दोनो जाँघो को फैला कर तकिये पर सर रख कर लेट गई. पेटिकोट तो पूरी तरह से उपर था ही, उसका बस तोड़ा सा भाग उसकी fhuli hui चूत को ढके हुए था. वो अब झड़ने के बाद सुस्त हो गई थी. आँखे बंद थी और साँसे अब धीरे धीरे स्थिर हो रही थी.

munna अपनी मामी के बगल में लेटा हुआ उसको देख रहा था. उसका लंड एक दम सीधा तना हुआ छत की ओर देख रहा था. लंड की नसे फूल गई थी और सुपरा एक दम लाल हो गया था. munna बस दो चार धक्को का ही मेमहमान था लेकिन ठीक उसी समय मामी ने उसके लंड को अपनी चूत से बेदखल कर दिया था. झरने की कगार पर होने के कारण लंड फुफ्कार रहा था मगर मामी तो अपना झाड़ कर उसकी बगल में लेटी थी.
 
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गाँव का राजा पार्ट -6 लेकर हाजिर हूँ दोस्तो कहानी कैसी है ये तो आप ही बताएँगे

सुबह से तरह तरह के आग भड़काने वाले करम करने के कारण उर्मिला देवी बहुत ज़यादा चुदास से भरी हुई थी munna का मोटा लंड अपनी चूत में लेकर झर गई पर munna का लंड तो एक बार चूस कर झार चुकी थी इसलिए नही झारा. उर्मिला देवी अगर चाहती तो चार पाँच धक्के और मार कर झार देती मगर उसने ऐसा नही किया. क्योंकि वो munna को तड़पाना चाहती थी वो चाहती थी की munna उसका गुलाम बन जाए. जब उसकी मर्ज़ी करे तब वो munna से चुडवाए अपनी गांद चटवाए मगर जब उसका दिल करे तो वो munna की गांद पे लात मार सके और वो उसकी चूत के चक्कर में उसके तलवे चाटे लंड हाथ में ले कर उसकी गांद के पिछे घूमे.

उर्मिला देवी की आँखे बंद थी और सांसो के साथ धीरे धीरे उसकी नंगी चुचिया उपर की ओर उभर जाती थी. गोरी चुचियों का रंग हल्का लाल हो गया था. निपल अभी भी खड़े और गहरे काले रंग के भूरे थे, सयद उनमे खून भर गया था, munna ने उनको खूब चूसा जो था. मामी की गोरी चिकनी मांसल पेट और उसके बीच की गहरी नाभि…….
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का बस चलता तो लंड उसी में पेल देता. बीच में पेटिकोट था और उसके बाद मामी की कन्द्लि के खंभे जैसी जंघे और घुटना और मोटी पिंदलियाँ और पैर. मामी की आँखे बंद थी इसलिए munna अपनी आँखे फाड़ फाड़ कर देख सकता था. वो अपनी मामी के मसताने रूप को अपनी आँखो से ही पी जाना चाहता था, munna अपने हाथो से मामी की मोटी मोटी जाँघो को सहलाने लगा. उसके मन में आ रहा था कि इन मोटी-मोटी जाँघो पर अपना लंड रगड़ दे और हल्के हल्के काट काट कर इन जाँघो को खा जाए. ये सब तो उसने नही किया मगर अपनी जीभ निकाल कर चूमते हुए जाँघो को चाटना ज़रूर शुरू कर दिया. बारी-बारी से दोनो जाँघो को चाट ते हुए मामी के रानो की ओर बढ़ गया. उर्मिला देवी ने एक पैर घुटनो के पास मोड़ रखा था और दूसरा पैर पसार रखा था. ठीक जाँघो के जोड़ के पास पहुच कर हल्के हल्के चाटने लगा और एक हाथ से धीरे से पेटिकोट का चूत के उपर रखा कपड़ा हल्के से उठा कर चूत देखने की कोशिश करने लगा.

तभी उर्मिला देवी की आँखे खूल गई. देखा तो munnaउसकी चूत के पास झुका हुआ आँखे फाड़ कर देख रहा है. उर्मिला देवी के होंठो पर एक मुस्कान फैल गई और उन्होने अपनी दूसरी टाँग को भी सीधा फैला दिया. मामी के बदन में हरकत देख कर munna ने अपना गर्दन उपर उठाई. मामी से नज़र मिलते ही munna झेंप गया. उर्मिला देवी ने बुरा सा मुँह बना कर नींद से जागने का नाटक किया "उऊहह उः क्या कर रहा है" फिर अपने दोनो पैरो को घुटने के पास से मोड़ कर पेटिकोट के कपड़े को समेत कर जाँघो के बीच रख दिया और गर्दन के पिछे तकिया लगा कर अपने आप को उपर उठा लिया और एकद्ूम बुरा सा मुँह बनाते हुए बोली "तेरा काम हुआ नही क्या………नींद से जगा दिया……सो जा". munna अब उसके एकद्ूम सामने बैठा हुआ था. उर्मिला देवी की पूरी टांग रानो तक नंगी थी. केवल पेटिकोट समेट कर रानो के बीच में चूत को ढक रखा था.
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munna की समझ में नही आया की मामी क्या बोल रही है. वो घिघ्याते हुए बोला "मामी……वो……मैं बस ज़रा सा देखना……"

"हा क्या देखना………चूत….?

"हा हा मामी वही……."

उर्मिला देवी मुँह बिचकाते हुए बोली "क्या करेगा……झांट गिनेगा…"

munna चौंक गया, हार्बराहट में मुँह से निकल गया "जी. जी मामी……."

"हरामी…….झांट गिनेगा"

"ओह नही मामी……..प्लीज़ बस देखने है………अच्छी तरह से…"
चूत पर रखे पेटिकोट के कपड़े को एक बार अपने हाथ से उठा कर फिर से नीचे रखा जैसे वो उसे अच्छी तरह से ढक रही हो और बोली "पागल हो गया है क्या……..जा सो जा". उर्मिला देवी के कपड़ा उठाने से चूत की झांतो की एक झलक मिली तो राजू का लंड सिहर उठा, खड़ा तो था ही. उर्मिला देवी ने सामने बैठे munna के लंड को अपने पैर के पंजो से हल्की सी ठोकर मारी.


"बहनचोड़………खड़ा कर के रखा है..." munna ने अपना हाथ उर्मिला देवी के जाँघो पर धीरे से रख दिया और जाँघो को हल्के हल्के दबाने लगा जैसे कोई चमचा अपना कोई काम निकलवाने के लिए किसी नेता के पैर दबाता है और बोला "ओह मामी………बस एक बार अच्छे से दिखा दो……सो जाउन्गा फिर.." उर्मिला देवी ने munna का हाथ जाँघो पर से झटक दिया और झिरकते हुए बोली "छोड़…..हाथ से कर ले…….खड़ा है इसलिए तेरा मन कर रहा……निकाल लेगा तो आराम से नींद आ जाएगी…….कल दिखा दूँगी"

"हाई नही मामी……..अभी दिखा दो ना"

"नही मेरा मन नही…….ला हाथ से कर देती हू"

"ओह मामी…..हाथ से ही कर देना पर……..दिखा तो दो….." अब उर्मिला देवी ने गुस्सा होने का नाटक किया.

"भाग भोसड़ी के……..रट लगा रखी है दिखा दो…दिखा दो….

"हाई मामी मेरे लिए तो…… प्लीज़……" अपने पैर पर से उसके हाथो को हटाते हुए बोली

"चल छोड़ बाथरूम जाने दे"

munna ने अभी भी उसके जाँघो पर अपना एक हाथ रखा हुआ था. उसकी समझ में नही आ रहा था की क्या करे. तभी उर्मिला देवी ने जो सवाल उस से किया उसने उसका दिमाग़ घुमा दिया.

"कभी किसी औरत को पेशाब करते हुए देखा है……."

"क क क्क्या मामी…."

"चूतिया एक बार में नही सुनता क्या……..पेशाब करते हुए देखा है……किसी औरत को……."

"न न्न्नाही मामी……अभी तक तो चूत ही नही…..तो पेशाब करते हुए कहा से……"

"ओह हा मैं तो भूल ही गई थी…..तूने तो अभी तक……चल ठीक है….इधर आ जाँघो के बीच में…..उधर कहा जा रहा है…" munna को दोनो जाँघो के बीच में बुला मामी ने अपने पेटिकोट को अब पूरा उपर उठा दिया, गांद उठा कर उसके नीचे से भी पेटिकोट के कपड़े को हटा दिया अब उर्मिला देवी पूरी नंगी हो चुकी थी. उसकी चौड़ी चकली saved चूत munna की आँखो के सामने थी. अपनी गोरी रानो को फैला कर अपनी बित्ते भर की चूत की दोनो फांको को अपने हाथो से फैलाती हुई बोली "चल देख …"
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munna की आँखो में भूके कुत्ते के जैसी चमक आ गई थी. वो आँखे फाड़ कर उर्मिला देवी की खूबसूरत डबल रोटी के जैसी फूली हुई चूत को देख रहा था.

"देख ये चूत की फांके है और उपर वाला छ्होटा छेद पेशाब वाला और नीचे वाला बड़ा छेद चुदाई वाला………यही पर थोड़ी देर पहले तेरा लंड…….

"ओह मामी कितनी सुंदर चूत है……एकद्ूम गद्देदार फूली हुई.."

"देख ये गुलाबी वाला बड़ा छेद…..इसी में लंड…..ठहर जा हाथ मत लगा…."

"ओह बस ज़रा सा च्छू कर……."

"बहनचोड़…अभी बोल रहा था दिखा दो…..दिखा दो और अब छुना है…." कहते हुए उर्मिला देवी ने राजू के हाथो को परे धकेला. munna ने फिर से हाथ आगे बढ़ते हुए चूत पर रख दिया और बोला "ओह मामी प्लीज़ ऐसा मत करो….अब नही रहा जा रहा प्लीज़…….." उर्मिला देवी ने इस बार उसका हाथ तो नही हटाया मगर उठ कर सीधा बैठ गई और बोली "ना….रहने दे, छोड़ तू आगे बढ़ता जा रहा है…..वैसे भी मुझे पेशाब लगी"




"उफफफफफफ्फ़ मामी बस थोड़ा सा……."


"थोड़ा सा क्या……मुझे बहुत ज़ोर पेशाब लगी है……"

"वो नही मामी मैं तो बस थोड़ा छु कर……."

"ठीक है चल छु ले….पर एक बात बता चूत देख कर तेरा मन चाटने का नही करता…….."

"चाटने का…….."

"हा चूत चाटने का………देख कैसी पनिया गई है…..देख गुलाबी वाले छेद को…..ठहर जा पूरा फैला कर दिखाती हू…….देख अंदर कैसा पानी लगा है…इसको चाटने में बहुत मज़ा आता है……….चाटेगा…..चल आ जा.." और बिना कुच्छ पुच्छे उर्मिला देवी ने munna के सिर को बालो से पकड़ कर अपनी चूत पर झुका दिया. munna भी सेक्सी कहानियों को पढ़ कर जानता तो था ही कि चूत छाती और चूसी जाती है और इनकार करने का मतलब नही था क्या पता मामी फिर इरादा बदल दे इसलिए चुपचाप मामी के दोनो रानो पर अपने हाथो को जमा कर अपना जीभ निकाल कर चूत के गुलाबी होंठो को चाटने लगा. उर्मिला देवी उसको बता रही थी की कैसे चाटना है
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"हा पूरी चूत पर उपर से नीचे तक जीभ फिरा के चाट…..हा ऐसे ही सस्स्स्स्स्स्स्सीईई ठीक इसी तरह से हाआअ उपर जो दाना जैसा दिख रहा है ना चूत की भग्नाशा है……..उसको अपनी जीभ से रगड़ते हुए हल्के हल्के चाट……सीईई शाबाश……बहनचोड़ टीट को मुँह में लीईए". munna ने चूत के भग्नाशे को अपने होंठो के बीच ले लिया और चूसने लगा. उर्मिला देवी की चूतकी टीट चूसा वह मस्त हो कर पानी छोड़ने लगी. पहली बार चूत चाटने को मिली थी तो पूरा जोश दिखा रहा था. जंगली कुत्ते की तरह लफ़र लफ़र करता हुआ अपनी खुरदरी जीभ से मामी की चूत को घायल करते हुए चाटे जा रहा था. चूत की गुलाबी पंखुरियों पर खुरदरी जीभ का हर प्रहार उर्मिला देवी को अच्छा लग रहा था. वो अपने बदन के हर अंग को रगड़वाना चाहती थी, चाहती थी कि munna पूरी चूत को मुँह में भर ले और स्लूर्र्ररर्प स्लूर्र्रप करते हुए चूसे. munna के सिर को अपने चूत पर और कस के दबा कर सिस्याईीई "ठीक से चूस…..munna बेटा……पूरा मुँह में ले कर………हा ऐसे ही…….सीईई मदारचोद्द्द्दद्ड….बहुत मज़ा दे रहा है………आआआआहााअ……सही चूस रहा है कुत्तीईई हाआअ ऐसे ही चूऊवस………..आआआअसस्स्स्सीई"
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munna भी पूरा ठर्की था. इतनी देर में समझ गया था कि उसकी मामी एक नंबर की चुदैल रंडी मदर्चोद किस्म की औरत है. साली छिनाल चूत देगी मगर तडपा तडपा कर. वैसे उसको भी मज़ा आ रहा था ऐसे नाटक करने में. उसने चूत के दोनो फांको को अपने उंगलियों से फैला कर पूरा चौड़ा दिया और जीभ को नुकीला कर के गुलाबी छेद में डाल कर घुमाने लगा. चूत एकद्ूम पासीज कर पानी छोड़ रही थी. नुकीली जीभ को चूत के गुलाबी छेद में डाल कर घुमाते हुए चूत की दीवारो से रिस रहे पानी को चाटने लगा. उर्मिला देवी मस्त हो गांद हवा में लहरा रही थी. अपने दोनो हाथो से चुचियों को दबाते हुए munna के होंठो पर अपनी फुददी को रगड़ते हुए चिल्लाई

"ओह munna…… मेरा बेटेयाआया…….बहुत मज़ा आ रहा है रे…..ऐसे ही चाट…पूरी चूत चाट ले……..तूने तो फिर से चुदास से भर दिया…….हरामी ठीक से पूरा मुँह लगा कर चाट नही तो मुँह में मूत दुन्गीईईइ……..अच्छी तरह से चाट टत्तत्ट……"
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ये अब एकद्ूम नये किस्म की धमकी थी. munna एक दम असचर्यचकित रह गया. अजीब कंजरफ, कमिनि औरत थी. munna जहा सोचता अब मामला पटरी पर आ गया है, ठीक उसी समय कुच्छ नया शगूफा छोड़ देती. चूत पर से मुँह हटा दिया और बोला "ओह मामी……..तुमको पेशाब लगी है तो जाओ कर आओ…" चूत से मुँह हटा ते ही उर्मिला देवी का मज़ा किरकिरा हुआ तो उसने munna केबालो को पकड़ लिया और गुस्से से भनभनाते हुई उसको ज़ोर से बिस्तर पर पटक दिया और छाती पर चढ़ कर बोली "चुप मादर्चोद…….अभी चाट ठीक से…….अब तो तेरे मुँह में ही मुतुँगी….पेशाब करने जा रही थी तब क्यों रोका…….."कहते हुए अपनी चूत को munna के मुँह पर रख कर ज़ोर से दबा दिया. इतनी ज़ोर से दबा रही थी की munna को लग रहा था की उसका दम घूट जाएगा. दोनो चूतर के नीचे हाथ लगा कर किसी तरह से उसने चूत के दबाब को अपने मुँह पर से कम किया मगर उर्मिला देवी तो मान ही नही रही थी. चूत फैला कर ठीक पेशाब वाले छेद को राजू के होंठो पर दबा दिया और रगड़ते हुए बोली "चाट ना…चाट ज़रा मेरी पेशाब वाले छेद को….नही तो अभी मूत दूँगी तेरे मुँह पर…….हरामी……कभी किसी औरत को मूत ते हुए नही देखा है ना….अभी दिखाती हू तुझे" और सच में एक बूँद पेशाब टपका दिया…….अब तो munna की समझ में नही आ रहा था की क्या करे कुच्छ बोला भी नही जा रहा था. munna ने सोचा साली ने अभी तो एक बूँद ही मूत पिलाया है पर कही अगर कुतिया ने सच में पेशाब कर दिया तो क्या करूँगा चुप-चाप चाटने में ही भलाई है, ऐसे भी पूरी चूत तो चटवा ही रही है. पेशाब वाले छेद को मुँह में भर कर चाटने लगा. चूत के भग्नाशे को भी अपनी जीभ से छेड़ते हुए चाट रहा था. पहले तो थोड़ा घिंन सा लगा था मगर फिर munna को भी मज़ा आने लगा. अब वो बड़े आराम से पूरी फुददी को चाट रहा था. दोनो हाथो से गुदाज चूतरों को मसलते हुए चूत का रस चख रहा था.
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उर्मिला देवी अब चुदास से भर चुकी थी "उफफफफफफफफफ्फ़…सीई बहुत…मज़ा…..हाई रीईईई तूने तो खुजली बढ़ा दी कंजरे…….अब तो फिर चुदवाना ही पड़ेगा…..भोसड़ी के लंड खड़ा है कि……." munna जल्दी से चूत पर से मुँह हटा कर बोला "ख खड़ा है मामी……एकद्ूम खड़ा हाईईईईईईईई"
 

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