अपडेट-6
इस तरह अरहर में कामुक क्रियाएं करने से जहां एक ओर राजू और अंबर के लंड की लंबाई और मोटाई बढ़ रही थी वहीं अंजली, किरन और कंचन की चूंचियां की गोलाई बढ़ रही थी चूंचियों के किनारे स्पष्ट होते जा रहे थे । चूत की उत्तेजना बढ़ती जा रही थी और अभी तक की कामुक क्रीड़ाओं से मन खिन्न होता जा रहा था अजीब विडंबना थी कुछ और अधिक उत्तेजक क्रिया करने का मन करने लगा। यही हाल राजू और अंबर का था। ये पांचों सब एक साथ तो बहुत कम ही मिल पाते थे। सबसे ज्यादा सुडौल पन अगर किसी में आ रहा था तो वो कंचन थी क्योंकि वह इन सब में सबसे छोटी थी।
जब हम कछुए को परेशान करते हैं उसके सिर को छूते हैं तो वह सिर अंदर कर लेता है लेकिन थोड़े देर बाद और बड़ी गर्दन निकालकर इधर उधर मुआयना करता है। यही हाल प्रेमा की चूत का था उस दिन तो बेचारी की चूत भोंसड़ा बन गई थी लेकिन अब जब से उसके जखम भर गए थे उसकी चूत फड़कने लगी थी उसे मोटा लंड चाहिए था उसमे अचानक ही उत्तेजना पैदा हो जाती सिहरन होती कुछ नरम चीज पकड़कर भींचने का जी करता बेवजह गाली देने का मन करता। उसकी चूत का रास्ता चौड़ा हो कर थोड़ा सा फिर सिकुड़ गया था रबड़ जैसा। उसकी चूत फिर से बाबाजी जैसा लंड मांग रही थी और इस बार पिछली बार की बजाए खुद ही रसास्वादन करने के मूड में थी। एक दिन प्रेमा सविता के घर गई बातचीत में मालूम हुआ सविता घर पर अकेली है। प्रेमा ने अचानक सविता की साड़ी के ऊपर से ही उसकी गांड़ और चूत को एक साथ पकड़ कर भींच लिया और छोड़ ही नही रही थी। सविता तो चौंक गई.... कसमसाने लगी किसी तरह खुद को छुड़ाया। उसकी गांड़ में गुदगुदी हुई लेकिन चूत में दर्द होने लगा जैसे पुरुषों के गोटे में थोड़ा सा भी कुछ लग जाए तो दर्द करने लगता है फिर प्रेमा ने तो पकड़के भींच लिया था।
सविता: क्या हो गया तुझे प्रेमा? तू ये क्या कर रही है।
प्रेमा: सविता बुरचोदी ऐसे ही तेरी गांड़ पकड़वावूंगी बाबाजी से ।
सविता: मैं नहीं जाऊंगी हा हा हा!
प्रेमा: कैसे नही जायेगी गांड़चोदी तुझे बांध के ले जाऊंगी उस साँड पर चढ़वाने। बात बराबर करके रहूंगी।
प्रेमा की इतनी गाली भरी बातों से बात करने से सविता पर भी सुरूर छा रहा था वह भी गाली के साथ ही जवाब दे रही थी।
यूं ही दोपहर निकल गई।
सांझ हुई और अंधेरा हुआ तो प्रेमा, सविता, अंजली, किरन और कंचन को लेकर यूं ही शौच के बहाने टॉर्च लेकर टहलने निकल गईं । एक तरफ अरहर का खेत था एक तरफ गन्ने का खेत था और एक तरह बाग था चौथी तरफ गेहूं के खेत से होकर एक खाली खेत जो कि एक व्यवसायी दिमाग वाले आदमी का था जो परंपरागत खेती की बजाय कभी मिर्च, कभी सब्जियां कभी चने आदि उगाता था इसलिए उसका खेत इस समय खाली था । अंजली, किरन और कंचन तो बड़ों के सामने दबाव में ही थी बिल्कुल चुपचाप । प्रेमा उठी टॉर्च जलाई तो फोकस सीधा किरन की गांड़ पर पड़ा किरन की टाइट और गोल एकदम गोरी गांड़ देखकर प्रेमा चौंक गई उसने कुछ नहीं बोला और चालाकी से टॉर्च का फोकस अपनी बेटी अंजली की ओर करके उसकी गांड़ का मुआयना करना चाहा। प्रेमा की चूत में लहर दौड़ गई अंजली की गोरी चिकनी गांड़ और बीच में सांवले छिद्र की सिकुड़न के पास छोटे छोटे बाल प्रेमा समझ गई उसकी बेटी जवान हो गई है अब इस पर नजर रखनी पड़ेगी। लेकिन प्रेमा का दिमाग तब घूम गया जब उसने कंचन की गांड़ पर टॉर्च मारी उसे कंचन की गांड़ से ये उम्मीद नहीं थी जिस प्रकार की सुडौल गांड़ कंचन की थी सब कुछ अनुपात में, वैसी अंजली और किरन की भी नही थी..... हां कंचन की गांड़ में अंजली और किरन की अपेक्षा भारीपन कम था । सब घर की ओर आगे बढ़े.... अक्सर बड़ों के बीच से निकलकर बच्चे आगे बढ़ जाते हैं... यही यहां भी हुआ..प्रेमा और सविता आपस में खुसुर फुसुर करते हुए धीमे धीमे मस्त चाल चल रही थीं जिससे अंजली, किरन कंचन थोड़ा आगे निकल गईं।
सविता: तू आज बच्चियों की गांड़ पर टॉर्च क्यों मार रही थी।
प्रेमा: यही देख रही थी कि बच्चियां ही हैं या बछिया हो गई हैं। इन तीनों की गांड़ बता रही थी कि ये अब बच्चियां नही पंड़िया (बिन गाभिन मादा भाई) हो गई हैं। कोई भैंसा चढ़ गया तो गाभिन हो जायेंगी इसलिए इनपर नजर रखनी पड़ेगी।
सविता को उसकी बेटी कंचन के कारण बुरा लगा जिसे वह बच्ची समझती थी।
सविता: पंड़िया तुम्हारी अंजली होगी मेरी बच्चियों के बारे में ऐसा मत बोलो।
प्रेमा: कल टॉर्च तुम लेकर आना खुद ही देख लेना।
सविता: ठीक है।
प्रेमा: खैर बाबाजी के पास कब चल रही है।
सविता: धत.... राजू के मम्मी लगता है बाबाजी के लंड ने सजा देने के साथ साथ तुम्हारे समुंदर में आग लगा दी है।
दूसरे दिन सविता ने चालाकी से तीनों की गांड़ का अवलोकन किया... अंजली तो बड़ी थी ही...सविता की नजर अपनी बेटियों पर ज्यादा थी ... खासकर कंचन की गांड़ देखकर सविता दंग रह गई।
प्रेमा (रास्ते में): क्या हुआ कुछ देखा सविता रानी।
सविता: हां री। लेकिन नजर क्या रखनी इनपर यह तो प्रकृति है जवानी तो आयेगी ही।
प्रेमा: तू समझ नही रही बहन..... उस दिन इनकी एक हरकत पर मेरी चूत फट के भोंसड़ा बन गई। बाबाजी की जगह कोई और होता तो वहीं पटक के इनकी चूत फाड़ देता तब इन्हे किसी को जाकर घर ले आना पड़ता...बात कहां तक आगे बढ़ जाती कुछ कहा नही जा सकता। इनकी किसी भी हरकत से इनपर तो फर्क पड़ता ही है मर्द भी इन्हे देखकर कोई गलत कदम उठा सकते हैं आखिर मर्द भी तो लंड के गुलाम रहते हैं । इसलिए इनपर नजर रखनी जरूरी है ...इन्हे मर्दों से दूर रखना है..इन्हे चूत, लंड, चुदाई, शादी ब्याह, पति के बारे में भी बिना इनकी जवानी को जगाए समझाना है। नहीं तो कोई भी मरद इनका फायदा उठा जाएगा या ये खुद ही किसी के खूंटे पर बैठ जाएंगी तो फिर इनकी गांड़ सिलती रहना।
सविता: सही कह रही है तू।
कुछ देर बाद सविता मजाक में: तूने अपनी चूत सिल ली।
प्रेमा खीज गई और पीछे से साड़ी के ऊपर से सविता की गांड़ पकड़कर भींच लिया आगे बेटियां थी सविता कुछ बोल न सकी लेकिन प्रेमा की दोनो चूचियां पकड़ के नोच ली जिससे उसका हाथ गांड़ पर से हट गया।
अब प्रेमा और सविता ने सुबह भी तीनों को साथ लाना शुरू कर दिया और इनका अरहर में जाने का विकल्प बचा था केवल दोपहर में वो भी बहुत जरूरी होने पर ही ।
जहां कई लड़कों को शादी से पहले चूत के दर्शन तक नहीं होते, राजू और अंबर को तो चूत चूसने बुर और गांड़ रगड़ने तक का मौका मिलता था ये उनकी किस्मत ही थी। लेकिन अब यह विकल्प लगभग बंद हो गया ।
प्रेमा की कमर में मोच के बहाने के कारण चंद्रभान को दस दिन से चूत नहीं मिली थी वो भी पागल हुए जा रहा था। और प्रेमा की चूत तो फड़क ही रही थी .....