Romance काला इश्क़!(completed)

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update 8

नीचे से भाभी की आवाज आई तो मैंने उसका हाथ छोड़ दिया और वो मुस्कुराते हुए नीचे जाने लगी| वो नीचे पहुँची ही थी की मैंने अपने फोन पर गाना फुल आवाज में चला दिया और खुद भी उसी गाने के अल्फाज गाने लगा;
"हसता रहता हूँ तुझसे मिलकर क्यूँ आजकल....
बदले बदले हैं मेरे तेवर क्यूँ आजकल....
आखें मेरी हर जगह ....
ढूंढे तुझे बेवजह...
ये मैं हूँ या कोई और है मेरी तरह..
कैसे हुआ.. कैसे हुआ..
तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ
कैसे हुआ.. कैसे हुआ..
तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ ....
मैं बारिश की बोली समझता नहीं था
हवाओं से मैं यूँ उलझता नहीं था..
है सीने में दिल भी कहाँ थी मुझे ये खबर
कहीं पे हो रातें कहीं पे सवेरा
आवारगी ही रही साथ मेरे
ठहर जा ठहर जा ये कहती है तेरी नज़र
क्या हाल हो गया है ये मेरा..
आखें मेरी हर जगह ढूंढे तुझे बेवजह
ये मैं हूँ या कोई और है मेरी तरह..
कैसे हुआ.. कैसे हुआ..
तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ
कैसे हुआ.. कैसे हुआ.. तू इतना ज़रूरी कैसे हुआ| हम्म्म ममममम मममम… "

जब ये गाना खत्म हुआ तो मैं अपने कपडे ल कर नीचे आया तो सभी के सभी आंगन में बैठे चाय पी रहे थे और मेरा गाना सुन रहे थे| मैं जब नीचे आया तो पिताजी बोले; "हो गया तेरा गाना?" मैं बुरी तरह झेंप गया और ऋतू की तरफ देखने लगा और उम्मीद करने लगा की वो मेरे गाने का मतलब समझ गई हो| वो मुझे देख के मंद-मंद मुस्कुरा रही थी जो ये संकेत था की वो समझ चुकी है| मैं सीधा बाथरूम में घुस के नहाने लगा पर गाना अब भी गुनगुना रहा था| नाहा धो के, चाय नाश्ता कर के मैं निकलने को हुआ तो बहार ना जाके ऊपर गया, ये बहाना कर के की मैं कुछ भूल गया हूँ| दो मिनट बाद ऋतू भी ऊपर आ गई और कमरे की चौखट पर कंधे के सहारे खड़ी हो गई|
ऋतू: क्या भूल गए?
मैं: वो....वो.... कुछ तो भूल गया हूँ!
ऋतू चल के आगे आई और मेरे दिल पर अपनी ऊँगली रखते हुए बोली;
ऋतू: ये तो नहीं?
मैं: नहीं... ये तो तुम्हारे पास है!
ये सुन के रितिका मुस्कुराने लगी और मेरे सीने से लग गई|
ऋतू: तो अब कब भेंट होगी आपसे?
मैं: अब शहर में ही मिलेंगे|
ऋतू: हाय! उसमें तो कम से कम एक महीना लगेगा!
मैं: 'बिरहा' के बाद मिलन का दोहरा मजा होता है|
ये सुन कर आँसूं के दो कतरे ऋतू की आँखों से छलक आये और मेरी कमीज को भीगोने लगे|
ऋतू: तो क्या बीच में एक भी दिन नहीं आ सकते मुझे मिलने?
मैं: कोशिश करूँगा पर वादा नहीं कर सकता| बॉस बहुत नाराज है मेरी छुटियों को लेकर!
ऋतू: ठीक है ... पर मैं फिर भी इंतजार करुँगी आपका!
मैंने ऋतू को खुद से अलग किया और वो अपने आँसू पोछने लगी| मैंने उसके चेहरे को अपने हथेलियों में लिया और उसके दाएँ गाल पर अपने होंठ रख दिए| मेरे होठों के स्पर्श से जैसे वो सिंहर उठी और पंजों पर खड़ी होके मेरे होठों को चूमना चाहा| पर मैंने उसके होठों पर ऊँगली रख के उसे रोक दिया; "अभी नहीं! कोई आ जाएगा|" ये सुन कर वो झूठ-मूठ का गुस्सा दिखाने लगी| मैंने पुनः उसके चेहरे को अपने हाथों में लिया और उसके बाएँ गाल को चूम लिया| तब जाके उसका गुस्सा शांत हुआ और वो मेरे सीने से फिर लग गई| इसी मीठी याद को लिए मैं घर से निकला और ऑफिस पहुँचा, बॉस अगले दिन की आधी छुट्टी दे दे इसलिए देर रात तक मैं ऑफिस में बैठा काम निपटाता रहा| अगले दिन पिताजी, ताऊजी और चन्दर सब मुझे बस स्टैंड पर मिले| वहाँ से कॉलेज करीब आधा घंटा दूर था तो हम ऑटो से कॉलेज पहुँचे| कॉलेज के गेट पर ही कल्लू भैया मिल गए और मुझे देखते ही सलाम करने लगे| कॉलेज के दिनों में मैंने उनकी थोड़ी मदद की थी तो वो तब से मेरी बहुत इज्जत किया करते थे| मुझे सलाम करता देख सभी हैरान थे| कल्लू भैया से दुआ-सलाम कर के जब हम अंदर आये तो पिताजी बोले; "तेरा तो बड़ा रुतबा है यहाँ? पढ़ाई करता था की दंगाई!" मैंने उनकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और उन्हें कॉलेज दिखाने लगा| चूँकि सुबह का टाइम था तो विद्यार्थी क्लास में थे, अगर सब बाहर मटर गश्ती करते दिख जाते तो ऋतू का कॉलेज में पढ़ने का सपना तोड़ दिया जाता| आखिर में मैं पिताजी को हेडमास्टर साहब के पास ले गया तो मुझे देख वो फूले नहीं समाय और तुरंत गले से लगा लिया आखिर उनके कॉलेज का टॉपर जो था| फिर जब उन्हें पता चला की ऋतू भी मेरी तरह जिले की टॉपर है तो वो बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने सभी को अपने पैसों से मिठाई मंगवा के खिलाई! मंत्री का नाम लेने की जर्रूरत ही नहीं पड़ी और कॉलेज में रितिका एडमिशन पक्का हो गया| हेडमास्टर साहब ने जबरदस्ती चाय-नाश्ता कराया और फिर हमने वहाँ से विदा ली और १० मिनट पैदल चल के हॉस्टल के बाहर पहुँचे| हॉस्टल के गार्ड ने मुझे देखते ही सलाम ठोका और ये देख के तो सभी अचरज करने लगे| गार्ड हमें अंदर ले के आया और मोहिनी मैडम को बुलाया| ये मोहिनी मैडम वहीँ तो जो कॉलेज में मेरे साथ पढ़ती थी| नाम बिलकुल रंग-रूप से मेल खाता था उसी की माँ ये हॉस्टल चलाती थी|
मोहिनी मुझे देखते ही मुस्कुराती हुई आई; "अरे मानु जी! इतने सालों बाद कैसे याद आई हमारी?" पिताजी समेत सभी हैरान था क्यों की आजतक उनके सामने मुझे कभी किसी ने 'मानु जी' कह के नहीं बुलाया था| "हाँ वो दरसल मेरे भाई की लड़की रितिका...." आगे मेरे कुछ बोलने से पहले ही वो बोल पड़ी; "मुबारक हो जी आपको! चाचा की तरह उसने भी टॉप मारा!" इतना कहते हुए वो मेरे गले लग गई, पर मैंने उसे अभी तक छुआ नहीं था और ये नजारा देख सभी मुँह बाय हैरान थे| दरअसल मोहिनी बहुत ही मुँहफट और अल्हड सवभाव की थी| जब वो बात करती थी तो उसे दुनियादारी की कतई चिंता नहीं होती थी और वो अपने मन की बात बोलने से कभी नहीं हिचकती थी| खेर मुझे उसे रोकना था की कहीं वो कुछ और ना बक दे; "ये मेरे पिताजी, ताऊ जी और चन्दर भैया हैं! वैसे आंटी जी कहाँ हैं?" मैंने उससे पूछा तो उसे मेरे परिवार वालों का ध्यान आया और उसने पहले सब को हाथ जोड़ कर नमस्ते की फिर शर्मा कर अंदर भाग गई| उसके जाते ही मैं ने सब की तरफ देखा तो वो सब अब भी हैरान थे की उनका सीधा साधा लड़का जो कभी किसी लड़की से बात नहीं करता था वो इतना बड़ा हो चूका है की एक लड़की उसके गले लग रही है वो भी उसके परिवार के सामने| "जी वो..." मेरे कुछ कहने से पहले ही आंटी जी आ गईं| "अरे भाईसाहब आप सब खड़े क्यों हैं? बैठिये-बैठिये! ये लड़की भी न बिलकुल बुधु है!" मैंने आगे बढ़ कर आंटी जी के पाँव छुए तो उन्होंने मुझे आशीर्वाद दिया और फिर हम सभी उनके घर की बैठक में बैठ गए| मैंने उनका परिचय सब से कराया और हमारे आने का कारन भी बताया तो उन्हें सुन के बड़ी ख़ुशी हुई और उन्होंने तुरंत मोहिनी को आवाज दे कर चाय-नाश्ता मँगवाया| ताऊ जी और पिता जी ने बड़ी ना-नुकुर की पर आंटी जी नहीं मानी; "अरे भाई साहब आज पहली बार तो आप सभी से मुलाकात हुई है और ये तो घर की बात है! आपका लड़का मानु बहुत मन लगा कर पढता था, और इसी की वजह से मेरी बुधु लड़की पास हुई है| आप रितिका की कतई चिंता ना करो ये उसके लिए उसका दूसरा घर है, यहाँ उसे किसी चीज की कोई दिक्कत नहीं होगी! मेरी बेटी की तरह रहेगी वो यहाँ!" तभी वहाँ मोहिनी चाय-नाश्ता ले कर आ गई और सब को परोस कर खुद अपनी माँ की बगल में हाथ बंधे खड़ी हो गई| "सुन लड़की तेरे कमरे में एक अलग से पलंग डलवा और कल से रितिका भी तेरे ही कमरे में रहेगी|" आंटी की बात सुन उसने बस 'जी' कहा| "बहनजी ... वो ... पैसे....." ताऊ जी ने बस इतना ही कहा था की वो बोल पड़ी; "भाई साहब मैं अब क्या बोलूं...घर की बात है!" इस पर पिताजी भी तपाक से बोले; "देखिये बहनजी, एक-आध दिन की बात होती तो बात कुछ और थी! पर उसे तीन साल यहाँ रहना है| जो पैसे आप बाकी सभी लड़कियों के घरवालों से ले रही हैं वो हम भी दे देंगे|" तभी चन्दर भी बोल पड़ा; "बाकी लड़कियों के घरवाले आपको कितने पैसे देते हैं?" ये सुन के मुझे, पिताजी और ताऊ जी को बहुत गुस्सा आया और ताऊ जी चन्दर को घूर के देखने लगे पर तभी मेरी नजर दिवार पर लगे बोर्ड पर पड़ी जिस पर सब कुछ लिखा था| मैंने इशारे से पिताजी को वहाँ देखने को कहा और उन्होंने ताऊ जी को कहा| "चलिए जी ये लीजिये 6,०००/-" उन्होंने अपनी जेब में हाथ डाला और 2,000 के नोट निकाले और आंटी जी को देने लगे पर आंटी जी ने मना कर दिया| वो समझ चुकी थी को हम सबने बोर्ड पढ़ लिया है| "मैं आपकी बात का मान रखती हूँ पर आपको भी मेरी बात का मान रखना होगा| ये पैसे जो बोर्ड पर लिखे हैं वो औरों के लिए है और आप सब तो अपने हैं इसलिए आप मुझे केवल 4,०००/- दीजिये|" उन्होंने केवल 2,000 के दो नोट लिए और मोहिनी को रजिस्ट्रेशन की किताब लाने को कहा| मोहिनी ने तुरंत वो किताब और बिल बुक उन्हें ला के दी| आंटी जी ने रजिस्ट्रेशन की किताब मुझे दे दी और खुद 4,०००/- के बिल बनाने लगी| "पर बहन जी आप हमारे लिए 2,०००/- का नुक्सान क्यों सह रही हैं?" ताऊ जी ने कहा|
"नुक्सान कैसा जी? अब आपका लड़का मेरी बेटी को पढ़ाता था तब तो उसने कभी नहीं कहा की उसका नुक्सान हो रहा है?" आंटी ने बिल की कॉपी ताऊ जी को देते हुए कहा| "पर आंटी जी उसमें मेरा नुक्सान थोड़े ही था? मेरा भी तो रिविशन हो जाता था!" मैंने उनकी बात का उत्तर दिया| "अब बताइये बहनजी?" पिताजी ने मेरी बात का समर्थन किया| "भाई साहब जिस २,०००/- की बात आप कर रहे हैं वो हमारा मुनाफा होता है| अब आप बताइये की कोई अपनों से मुनाफा कमाता है?" आंटी की इस बात का किसी के पास भी जवाब नहीं था इसलिए उनकी बात मान कर ताऊ जी ने उनसे वो बिल ले लिया और इधर मैंने रजिस्ट्रेशन वाली बुक में रितिका की सभी जानकारी लिख दी बस मोबाइल नंबर की जगह कुछ नहीं लिखा| जब आंटी जी ने मोबाइल नंबर माँगा तो ताऊ जी ने कहा; "बहन जी रितिका के पास मोबाइल नहीं है| उसे इन सब चीजों का कोई शौक नहीं है|" ये सुन के आंटी जी ने मोहिनी को ताना मारा; "सीख इनकी लड़की से कुछ? ये तो सारा दिन मोबाइल में घुसी रहती है|" ये सुन कर उस बेचारी का सर शर्म से झुक गया अब उसे बचाने के लिए मैंने चलने की इजाजत माँगी तो सारे उठ खड़े हुए और आंटी हमें बाहर छोड़ने आई और मुझसे बोली; "अरे मानु बेटा तुम क्या कर रहे हो आज कल?" तभी मोहिनी बीच में बोल पड़ी; "शादी-वादी कर ली होगी!" "नहीं आंटी जी वो मैं फिलहाल बाईपास के पास जो बड़ी सी बिल्डिंग हूँ वहाँ जॉब कर रहा हूँ|"
"कमाल है? इतने सालों से तुम यहीं पर जॉब कर रहे हो पर हमें कभी मिलने नहीं आये!?" उन्होंने थोड़ा गुस्सा दिखते हुए कहा| "जी वो... समय नहीं मिलता ... शनिवार और इतवार मैं घर चला जाता हूँ... इसलिए...." मैंने सफाई दी|
"ये सब मैं नहीं जानती ... एक शहर में हो कर कभी तो आ जाया करो! ये तो तुम्हारा अपना घर है|" उन्होंने मेरे कान पकड़ते हुए कहा| "जी ....ठीक... है... आऊँगा....आऊँगा!!!" मैंने हँसते हुए कहा जैसे की वो मेरा कान मरोड़ रही हों और ये देख के सभी खिल-खिला के हंस पड़े| खेर हँसी-ख़ुशी मैंने सब को बस स्टैंड छोड़ा और मैं विदा ले कर अपने ऑफिस आ गया|
 
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update 9

ठीक १ बजे ऋतू का फ़ोन आया और मैंने उसे बता दिया की उसके कॉलेज और हॉस्टल दोनों जगह बात हो गई है| ये सुन कर वो बहुत खुश हो गई और पूछने लगी की सब लोग कहाँ है? तो मैंने उसे बता दिया की वो सब बस में बैठे हैं और 5 बजे तक घर पहुँचेंगे| इसके बाद वही प्यार भरी बातें हुई और फिर मेरे बॉस ने आवाज दे दी तो मुझे जल्दी ही जाना पड़ा|

रात के ग्यारह बजे मेरा फ़ोन बजा तो मैंने घडी देखि, चिंता हुई की सब ठीक तो है?
ऋतू: ये मोहिनी कौन है? (उसने बहुत गुस्से में कहा|)
मैं: क्या...? (अभी भी नींद से ऊंघते हुए|)
ऋतू: वही छमक छल्लो जो आपसे गले लगी थी आज?
मैं: (उबासी लेते हुए) वो... दोस्त ... है|
ऋतू: दोस्त है तो दोस्त की तरह रहे! गले लगने की क्या जर्रूरत है उसे?
मैं: अरे बाबा! वो इतने साल बाद मिले ना तो ....
ऋतू: (बीच में बात काटते हुए) ऐसी भी क्या दोस्ती है की होश तक नहीं उसे की आपके साथ घर के बड़े लोग भी हैं! और आप को भी बहुत मज़ा आ रहा था जो उसे अपने सीने से चिपकाये हुए थे!
मैं: अरे मेरी बात तो सुनो! वो दरअसल थोड़ा मुँहफट है!
ऋतू: (बीच में बात काटते हुए) वो सब मैं नहीं जानती, आप उससे दूर रहो वरना मैं उसका मुँह नोच लुंगी!
इतना कह के ऋतू ने फ़ोन काट दिया, तो मैंने दुबारा फ़ोन घुमाया पर उसने फिर काट दिया| तीसरी बार... चौथी बार... पाँचवी बार... छठी बार...सातवीं बार...आठवीं बार...नौंवी बार... इस बार उसने फ़ोन उठाया|
मैं: ऋतू... मेरी बात तो सुन लो एक बार?
ऋतू: (सुबकते हुए) हम्म...
मैं: जैसा तू सोच रही है वैसे कुछ नहीं है| कॉलेज के दिनों में मैं उसे पढ़ाया करता था वो भी उसके घर जा कर| बस इसके अलावा कुछ नहीं है!
ऋतू: घरवाले... आपकी शादी की बात कर रहे हैं! (उसने सुबकते हुए कहा|)
मैं: अरे तो करने दे ... मैं कौन सा शादी कर रहा हूँ! तू चिंता मत कर!
ऋतू: मैं.... आपसे अलग... नहीं रह सकती!.... मैं जान दे दूँगी!
मैं: SHUT UP!!! दुबारा ऐसी कोई बात कही तो मैं तुझसे कभी बात नहीं करूँगा| अब बेधड़क आराम से सो जा... मैं कोशिश करता हूँ की घर एक चक्कर लगा लूँ|
ये सुन कर उसका सुबकना बंद हुआ और उसने I LOVE YOU कह के फ़ोन काटा| अब मुझे उससे कैसे भी मिलने जाना था पर जाऊँ कैसे? बॉस छुट्टी देगा नहीं! पर उन दिनों किस्मत मुझ पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान थी, जो चाह रहा था वो मिल रहा था| इसलिए जब घर जाने का मौका चाहने लगा तो अगले दिन वो भी मिल गया| बॉस ने कुछ फाइल पहुँचाने के लिए मुझे कहा| बीच रस्ते में मेरा गाँव था और बॉस जानते थे की मैं घर जर्रूर जाऊँगा इसलिए मेरी ख़ुशी पढ़ते हुए बोले; "कल लंच तक आ जाना|" मैंने ख़ुशी से हाँ कहा और तुरंत निकल पड़ा, पहले फाइल पहुँचाई और फिर वापसी में घर पहुँचा| बुलेट की आवाज सुनते ही ऋतू भागती हुई बाहर आई और मुझे देखते ही उसकी आँखें चमक उठी| उसने आगे बढ़ के मुझे गले लगना चाहा पर बाहर पिताजी और ताऊ जी बैठे थे इसलिए अपना मन मार के चुपचाप खड़ी हो कर मुझे उनसे बात करता हुआ देखने लगी| जब तक मेरी बात खत्म नहीं हुई वो वहाँ से हिली नहीं, शायद उसे डर था की मैं कहीं बहार से ही ना चला जाऊँ| जैसे ही मेरी बात खत्म हुई वो भागती हुई अंदर चली गई पर जब मैंने अंदर घुस के देखा तो वो मुझे कहीं नहीं मिली| आंगन में माँ, ताई जी और भाभी बैठी सब्जी काट रही थी| "अचानक कैसे आना हुआ?" भाभी ने पूछा|
"कुछ काम से पास के गाँव आना हुआ था|" मैंने रुखा सा जवाब दिया और अपने कमरे की तरफ चल दिया| जैसे ही सीढ़ी चढ़ के ऊपर पहुँचा तो ऋतू अपने कमरे में घुस गई और इशारे से मुझे अंदर आने को कहा| मैं उसके कमरे में घुसा और उसने मेरा हाथ पकड़ के मुझे अपने पलंग पर बिठा दिया, फिर अपने दुपट्टे से मेरा पसीना पोछने लगी| उसकी ख़ुशी उसके चेहरे से साफ़ झलक रही थी, वो मुड़ी और टेबल से पानी की गिलास और गुड़ उठा के मुझे दिया| मैंने गुड़ खाया और फिर पानी पिया और उसकी तरफ प्यार से देखने लगा| "आपको भूख लगी होगी?| उसने मुस्कुरा कर कहा और मुड के जाने लगी तो मैंने उसकी कलाई थाम ली और बैग से गुलाब निकाल के अपने घुटनों पर आते हुए कहा; "मेरी जान के लिए!" ऋतू ने मेरे हाथ से गुलाब ले लिया और फिर उसे अपने होठों से चूमा| फिर वो मेरी तरफ देख कर मुस्कुराई और झुक कर मेरे माथे को चूमा| मैं खड़ा हुआ और उसे अपने सीने से जकड़ लिया| इससे पहले की आगे कुछ बात हो पाती नीचे से मेरा बुलावा आ गया और मुझे ऋतू को छोड़ के नीचे जाना पड़ा| खेर वो शाम मुझे नीचे सब के बीच बैठ के बितानी पड़ी पर रात को खाने के समय ताऊ जी ने मेरी शादी की बात छेड़ी;
ताऊ जी: तो बरखुरदार! शादी के बारे में क्या विचार है?
मैं: जी अभी नहीं!
पिताजी: क्यों भला? लड़की तो तूने पहले ही पसंद कर रखी है ना?!
मैं: कौनसी लड़की?
चन्दर: अरे वही जो शहर में मिली थी, जिसने तुम्हें देखते ही गले लगा लिया था?
मैं: (खीजते हुए) वो खुद गले लग गई थी, मैंने उसे गले नहीं लगाया था| और आप सब से किसने कहा की मैं उससे शादी करना चाहता हूँ? मैं बस उसे कॉलेज टाइम में पढ़ाया करता था इससे ज्यादा और कुछ नहीं है!
ताऊ जी: अरे हम अंधे-बहरे थोड़े ही हैं जो हमें उसकी माँ का बार बार 'अपना' कहना सुनाई नहीं देता! कितनी बार उन्होंने तुझे घर आने को कहा था?
मैं: वो सब इसलिए कह रही थी क्योंकि मैं उनकी बेटी को मुफ्त में पढ़ाता था, हॉस्टल का खाना कितना वाहियात होता था इसलिए वो बदले में मुझे घर का खाना खिलाया करती थी और इसी कारन उनका अपनापन मेरे प्रति थोड़ा ज्यादा है| इससे ज्यादा उन्होंने कभी कुछ नहीं कहा|
पिताजी: तो कब करेगा तू शादी?
मैं: पिताजी एक बार नौकरी पक्की हो जाये, पैसा अच्छा कमाने लगूँ तो मैं शादी कर लूँगा|
ताऊ जी: तुझे पैसे की क्यों चिंता है? इतना बड़ा खेत.....
मैं: (उनकी बात काटते हुए) मुझे अपने पाँव पर खड़ा होना है| जब मुझे लगेगा की मैं अपने पाँव पर खड़ा हो गया हूँ तो मैं आपको खुद बता दूँगा और शायद आप भूल रहे हैं की आपने वादा किया था!
मेरा इतना कहना था की उन्हें अपना वादा याद आ गया और उन्होंने आगे कुछ नहीं कहा बस गुस्से से मुझे एक बार देखा और फिर खाना खाने लगे| खाने के बाद मैं ऊपर आ गया और छत पर चक्कर लगाने लगा| घंटे भर बाद ऋतू भी खाना खा के ऊपर आ गई और मुझे इस तरह गुम-सुम छत पर टहलते हुए देखने लगी| जब मेरी नजर उस पर पड़ी तो मैं ने पाया की वो बड़ी गौर से मुझे देख रही थी और मन ही मन कुछ सोच रही थी| "क्या हुआ जान?" मेरी आवाज सुन कर वो होश में आते हुई बोली; "कुछ नहीं... बस ऐसे ही आपको देख रही थी| आपके जितना प्यार करने वाले को पा कर आज मुझे खुद पर बहुत गर्व हो रहा है|” आगे कुछ बोलने से पहले ही भाभी आ गई और उन्होंने ऋतू को बिस्तर लाने को कहा| आज सभी औरतें छत पर सोने वाली थीं सो मैं उतर के अपने कमरे में लेट गया| अगली सुबह मुझे जल्दी जाना था तो मैं बिना नाश्ता किये जाने लगा तो ऋतू भाग के मेरे पास आई और परांठे जो की उसने पैक कर दिए थे मुझे दे दिए और नीचे चली गई|
कुछ दिन बीते और आखिर वो दिन आ ही गया जब ऋतू को कॉलेज ज्वाइन करना था| शनिवार को घर आते-आते रात हो गई, घर के सभी लोग खाना खा चुके थे| मुझे देखते ही ऋतू ने तुरंत खाना परोस के मुझे दे दिया और खुद अपने कमरे में चली गई| मैं खाना खा के ऊपर आया तो देखा उसने अपने कमरे में सारा सामान समेट रखा था| एक बैग जिसमें उसके कपडे थे वो तैयार रखा था, पूरे कमरे को उसने अच्छे से साफ़ किया था| जब उसकी नजर मुझ पर पड़ी तो उसके चेहरे ने उसकी सारी खुशियों को बयान कर दिया| उसने मुझे गले लगाना चाहा पर तभी पीछे से ताई जी आ गई और कमरे को देखते हुए ऋतू को ताना मारते हुए बोली; "चलो शुक्र है तू ने अपने कमरे को साफ़ कर दिया वरना ये भी हमें ही करना पड़ता|"
"समझदार है!" मैंने उनके ताने का जवाब दिया और फिर अपने कमरे में आ कर लेट गया| मेरे जाते ही ताई जी ऋतू को ज्ञान देने लगी की शहर में उसे किन-किन बातों का ध्यान रखना है| मैं अपने कमरे से उनकी सारी बातें सुन रहा था, ये ज्ञान कम और ताने ज्यादा थे! मैं चुप-चाप करवट लेके लेट गया और सुबह पाँच बजे के अलार्म के साथ उठ बैठा| मैं बाहर आया और अंगड़ाई लेने लगा तो देखा ऋतू नीचे घर के काम कर रही है| मुझे देखते ही वो मुस्कुरा दी और फिर अपने काम में लग गई| मैं जल्दी से नाहा-धो के तैयार हुआ और फिर सभी ने नाश्ता किया|
ताऊ जी: देख ऋतू शहर जा के कहीं मटर-गश्ती शुरू न कर देना! तेरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई में रहना चाहिए और हर शनिवार-इतवार को दोनों घर आते रहना|
मैं; जी ... आप तो जानते ही हैं की मुझे दूसरे और आखरी शनिवार की छुट्टी मिलती है..... तो....
पिताजी: ठीक है... पर ख्याल रखिओ ऋतू का और हमें तुम दोनों की कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए!
मैं: जी... वैसे भी हमारा मिलना कहाँ हो पायेगा?
ताई जी: क्यों?
मैं: मेरे पास समय ही नहीं होता! एक संडे मिलता है तो उसमें भी कपडे धो ना और खाना बनाने में समय निकल जाता है| शाम को फ्री होता हूँ पर हॉस्टल में 6 बजे के बाद मनाही है|
ताई जी: तो इसे (ऋतू) कोई दिक्कत हुई तो?
ताऊ जी: अरे कुछ दिक्कत नहीं होगी| सब देखा है हमने, तू चिंता मत कर|
मैंने आगे कुछ और नहीं कहा और फटाफट नाश्ता किया और अपनी बुलेट रानी को कपडा मारने बाहर चला गया| सब कुछ अच्छे से साफ़ कर के जब मैंने पीछे पलट के देखा तो ऋतू अपना बैग कंधे में टाँगे खड़ी थी| मैंने आगे बढ़ कर उससे बैग लिया और बाइक पर बैठ गया और बैग को पेट्रोल की टंकी पर रख लिया| एक स्टाइल वाली किक मारी और भड़भड़ करती हुई बुलेट स्टार्ट हुई, मैंने पलट के ऋतू को पीछे बैठने को कहा| तो वो सम्भल के बैठ गई और अपना दायाँ हाथ मेरे कंधे पर रख लिया| सारे घर वाले बाहर आ कर खड़े हो चुके थे और ऋतू की कुछ सहेलियां भी बुलेट की आवाज सुन कर वहाँ आ कर खड़ी हो गईं और हाथ हिला कर उसे बाय कहने लगी| ताऊ जी ने फिर से कहा; "सम्भल के जाना और वहाँ जा के हमें फ़ोन करना|" अब उन्हें भी तो थोड़ा बहुत दिखावा तो करना था ना! गाँव से करीब दो किलोमीटर दूर पहुंचे होंगे की मैंने बाइक रोक दी और ऋतू से दोनों तरफ टांग कर के बैठने को कहा| उसने ठीक वैसे ही किया और अपने दोनों हाथों को मेरी बगल से ले कर सामने की तरफ लाइ और मेरी छाती को कस के पकड़ लिया| उसका सर मेरी पीठ में धंसा हुआ था और आँखें बंद थी| ऋतू की गर्म सांसें मुझे मेरी पीठ पर महसूस हो रही थी, मैं बाइक को 40 की स्पीड में ही चला रहा था ताकि इस सफर का जितना हो सके उतना आनंद ले सकूँ|
दो घंटे की ड्राइव के बाद अब थकावट होने लगी तो मैंने बाइक एक ढाबे की तरफ मोड़ दी जहाँ की मैं अक्सर रुका करता था, जब भी घर जाता या आता था| बाइक रुकते ही ऋतू जैसे अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आई| "चलो चाय पीते हैं|" मैंने उसे कहा तो वो बाइक से उतरी और मैंने बाइक पार्क की और हम दोनों ढाबे में घुसे| मुझे देखते ही वेटर ने तपाक से नमस्ते की और ऋतू को मेरे साथ देखते ही वो समझ गया की वो प्रियतमा है और उसने नमस्ते दीदी कहा! ऋतू ने उसकी नमस्ते का जवाब दिया और फिर हम खिड़की के पास वाले टेबल पर बैठ गए| "आपको पता है मैं क्या सोच रही थी?" ऋतू ने मुझसे पुछा तो मैंने ना में सर हिला दिया| "मुझे ऐसा लग रहा था जैसे हम दोनों इस नर्क से भाग के कहीं अपनी छोटी सी दुनिया बसाने जा रहे हैं| इन दो घंटों में मैं जो कुछ भी सोच सकती थी वो सब सोच लिया की हमारा घर कैसा होगा, बच्चे कितने होंगे!" ऋतू ने बड़े भोलेपन से कहा और मैंने सोचा की मुझे उसे अब अपने प्लान से अवगत करा देना चाहिए|
मैं: घर से भागना इतना आसान नहीं है जितना तुम सोच रही हो| जैसे ही हम घर से भागेंगे उसके कुछ घंटों में ही लठैतों को बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन भेजा जायेगा हमें रोकने के लिए| हर बस को रोक कर चेकिंग की जाएगी और हमें पकड़ के मौत के घात उतार दिया जायेगा| इसलिए हमें जो कुछ भी करना है वो बहुत सोच समझ कर करना होगा और किसी भी हालात में घर पर या किसी भी इंसान को हमारे इस रिश्ते के बारे में कुछ पता नहीं चलना चाहिए! सबसे जर्रूरी चीज जो हमें चाहिए वो है पैसा| इस साल डेढ़ साल की नौकरी में मैं कुछ 10 हजार ही जोड़ पाया हूँ| मेरी नौकरी के बारे में घर में सब जानते हैं और मुझे भी कुछ पैसे घर भेजने पड़ते हैं| पर अब तुम चूँकि शहर आ चुकी हो तो अगले साल से तुम्हें भी कुछ पार्ट टाइम नौकरी करनी होगी| ये वही पैसे हैं जिससे हम बचा सकते हैं और जिनकी मदद से दूसरे शहर में हमें घर किराये पर लेना, बर्तन-भांडे आदि खरीदने में मदद करेंगे|
ऋतू: और हम भागेंगे कैसे?
मैं: तुम्हारे थर्ड ईयर के पेपर होने के अगले दिन ही हम भागेंगे| मैं घर पर फ़ोन कर दूँगा की हम घर आ रहे हैं, अब चूँकि घर पहुँचने में 4 घंटे लगते हैं और घर वाले कम से कम 6 से 8 घंटे तक हमें नहीं ढूंढेंगे तो हमारे पास इतना टाइम गैप होगा की हम ज्यादा से ज्यादा दूरी तय कर सकें| यहाँ से हम सीधा बनारस जायेंगे और वहाँ से बैंगलोर!
ऋतू: बैंगलोर?
मैं: हाँ... वो बड़ा शहर है और वहाँ तक हमें ढूँढना इतना आसान नहीं होगा| मोबाइल फेंकना होगा, बैंक अकाउंट बंद करना होगा और तुम्हारे नए कागज बनवाने होंगे|
ऋतू: कागज?
मैं: आधार कार्ड और PAN कार्ड|
ऋतू: वो तो घर में कभी बनाने नहीं दिए|
मैं: जानता हूँ और वही हमारे काम आएगा| नए कागजों का कोई पेपर ट्रेल नहीं होगा|
ऋतू मेरी सारी बातें हैरानी से सुन रही थी की मैंने इतनी सारी प्लानिंग कर रखी है| इतने में मोहिनी का फ़ोन आ गया, जिसे देख कर ऋतू को बहुत गुस्सा आया| उसने दरअसल पूछने के लिए फ़ोन किया था की हम दोनों कब तक पहुँच रहे हैं| "ये क्यों फोन कर रही थी आपको?" उसने गुस्सा दिखते हुए पूछा| "जान, वो पूछ रही थी कब तक हम दोनों हॉस्टल पहुंचेंगे| अब गुस्सा छोडो और चाय पियो और हाँ याद रहे उसे भूले से भी हमारे बारे में शक़ नहीं होना चाहिए|" ये सुन कर ऋतू कुछ बुदबुदाई और फिर चाय पीने लगी| उसकी इस अदा पर मुझे हँसी आ गई जिसे देख के वो भी थोड़ा मुस्कुरा दी| खेर हम चाय पी कर निकले और दो घंटे बाद शहर पहुँच गए| रास्ते भर ऋतू मुझसे उसी तरह चिपकी रही जैसे मुझे छोड़ना ही ना चाहती हो| खेर जैसे ही हम शहर में दाखिल हुए मैंने ऋतू को ढंग से बैठने को कहा और वो पहले की तरह बायीं तरफ दोनों पैर कर के बैठ गई और उसका दाहिना हाथ मेरे दाएं कंधे पर था| बुलेट रानी हॉस्टल की गेट पर रुकी तो गार्ड ने आगे आ कर मुझे नमस्ते की और ऋतू का बैग लेना चाहा तो मैंने उसे मन कर दिया और बाइक पार्क कर मैं ऋतू के साथ अंदर आया| दरवाजे पर नॉक की तो दरवाजा मोहिनी ने खोला और उसके चेहरे पर हमेशा की तरह ख़ुशी साफ़ झलक रही थी| "अरे हमारी टॉपर ऋतू भी आई है!" उसने ऋतू को छेड़ते हुए कहा| ऋतू ने मोहिनी को नमस्ते कहा और फिर हम बैठक में बैठ गए और तभी आंटी जी भी आ गईं तो माने आगे बढ़ कर उनके पाँव छुए और मेरे पीछे-पीछे ऋतू ने भी उसके पैर छुए| आंटी जी ने मोहिनी ख़ास हिदायत दी की वो ऋतू का अच्छे से ख्याल रखे और इसी के साथ मेरे जाने का समय हो गया तो मैं उठ के खड़ा हुआ और नमस्ते कर के जैसे ही बाहर जाने को मुड़ा की ऋतू रोने लगी और मेरे सीने से लग गई| उस पगली ने ये भी नहीं देखा की वहाँ मोहिनी और आंटी जी भी हैं| "वो दरअसल पहली बार घर से बाहर कहीं रुकी है, इसलिए घबरा रही है|" मैंने जैसे तैसे बात को सँभालने की कोशिश की| "अरे बेटी रोने की क्या बात है? ये भी तो तेरे घर जैसा ही है| मोहिनी अंदर ले जा ऋतू को|" आंटी जी ने ऋतू के सर पर हाथ फेरते हुए कहा| जैसे-तैसे मैंने ऋतू के हाथों को जो मेरी पीठ पर कस चुके थे उन्हें खोला और ऋतू के आँसू पोछे; "बस अब रोना नहीं है! मैं कल सुबह 09:30 आऊँगा तैयार रहना| तब जा कर उसका रोना बंद हुआ और फिर मोहिनी ऋतू का हाथ पकड़ के अंदर ले गई| "अरे बेटा तुम क्यों तकलीफ करते हो? मोहिनी कल छोड़ आएगी इसे कॉलेज|" आंटी ने कहा|
"आंटी जी वो पहला दिन है और मैं साथ रहूँगा तो इसे डर कम लगेगा|" मेरी बात सुन के आंटी ने और कुछ नहीं कहा और मैं उनसे विदा ले कर घर आ गया| मेरा घर और ऑफिस हॉस्टल से 1 घंटे दूर था| घर लौट कर कपडे वगैरह धो कर, खाना खाया और जल्दी सो गया| सुबह फटाफट तैयार हो कर मैं हॉस्टल पहुँच गया और मेरी बुलेट रानी की आवाज सुनते ही ऋतू भागती हुई बाहर आई और उसके पीछे-पीछे मोहिनी भी आई और ऋतू की इस भागने की हरकत पर मुस्कुराने लगी| "चलो भाई Best of Luck पहले दिन के लिए| अगर कोई तकलीफ हो तो मुझे बताना|" मोहिनी ने मुस्कुराते हुए कहा| "हाँ ... ये कॉलेज की गुंडी थी, आज भी बहुत चलती है इनकी|" मैंने हँसते हुए कहा और फिर हम कॉलेज के लिए चल पड़े| मुझे कॉलेज गेट पर देखते ही कल्लू भैया दौड़ कर आये और सलाम किया| मेरे साथ ऋतू को देख वो समझ गए की वो मेरी प्रियतमा है| हम दोनों को देख कर कोई नहीं कह सकता था की मैं ऋतू का चाचा हूँ, 5 साल का अंतर् तो कोई पकड़ ही नहीं सकता था| खुद को मैं अच्छे से मेन्टेन रखता था, एक दम क्लीन-शैवेन रहता था, कपडे ब्रांडेड जिससे की लगे ही ना की मैं गाँव-देहात का रहने वाला हूँ|
"अगर कोई भी परेशानी हो तो कल्लू भैया को कह देना|" मैंने ऋतू से कहा ताकि उसके मन का डर कम हो| कॉलेज पूरा घुमा के उसे उसकी क्लास की तरफ छोड़ने जा रहा था की उसकी नजर उस दिवार पर पड़ी जहाँ मेरी तस्वीर लगी थी और वो मुझे खींच के उस तरफ ले जाने लगी| मेरी तस्वीर देख कर उसे काफी गर्व महसूस हो रहा था| "मैं चाहता हूँ तुम्हारी भी तस्वीर मेरी बगल में लगे|" मेरी बात सुन कर ऋतू का आत्मविश्वास लौट आया और उसने हाँ में सर हिलाया| "शाम को 5 बजे मुझे गेट पर मिलना, इतना कह के मैंने उसे उसकी क्लास में भेज दिया| ऑफिस आने में घंटा भर लग गया और बॉस बहुत गुस्सा हो गए, पर मुझे तो शाम को जल्दी जाना था और ये बात कैसे कहूँ उनको?! मैंने उनकी डाँट का जरा भी विरोध नहीं किया और सर झुकाये सुनता रहा| एक कंपनी का पूरा फाइनेंसियल डाटा मेरे पास पेंडिंग पड़ा था इसलिए उनकी डाँट खत्म होते ही मैं सिस्टम पर बैठ गया और काम करने लगा| लंच के समय भी सभी कहते रहे पर मैं नहीं गया और बड़ी मुश्किल से केशबूक कम्पलीट की| बॉस ने जब देखा तो खुद ही मुझे खाने के लिए बोलने लगे तब मैंने उनसे जल्दी जाने की बात कही तो वो भड़क गए| "गर्लफ्रेंड का चक्कर है ना?" उन्होंने डाँटते हुए कहा| "जी मेरे भाई की लड़की का आज कॉलेज में पहला दिन है वो कहीं इधर-उधर न चली जाए इसलिए उसे हॉस्टल छोड़ के मैं वापस आ जाऊँगा|" मैंने उनसे आखरी बार विनती की तो थोड़ी ना-नुकुर के बाद मान गए और बोल दिया की कल सुबह तक सारा डाटा उन्हें किसी भी हालत में कम्पलीट चाहिए| जैसे ही चार बजे मैं फ़टाफ़ट अपनी बुलेट रानी को ले के कॉलेज के लिए निकला और ठीक पाँच बजे मैं कॉलेज गेट पर रुका, मुझे देखते ही ऋतू रोती हुई भाग के मेरे पास आई|
 
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मैं: क्या हुआ रो क्यों रही हो?

ऋतू: वो....वो....कैंटीन में.... रैगिंग .... उसने... मुझे .... डांस..... करने को.....|
मैं: (बीच में बोलते हुए) क्या नाम है उसका?
ऋतू: तोमर
बस ऋतू का इतना कहना था की मैं बाइक से उतरा और उसका हाथ पकड़ के तेजी से कैंटीन में घुसा और देखा वहाँ कुछ लड़कियां डांस कर रही हैं और सेकंड और थर्ड ईयर के बच्चे खड़े देख कर हँस रहे हैं| मैंने ऋतू का हाथ छोड़ा और भीड़ के बीचों-बीच होता हुआ सामने जा पहुँचा| 5 लड़कों का एक झुण्ड सब की रैगिंग कर रहा था और मुझे देखते ही उनमें से एक बोला; "ये लो एक और बच्चा आ गया|"
"तुम में से तोमर कौन है?" मैंने गरजते हुए कहा| ये सुन कर उनका हीरो लड़का सामने आया और बोला; "मैं हूँ बे!" उसकी आँखें पूरी लाल थी, जिसका मतलब था उसने अभी-अभी गांजा फूंका है| "इस कॉलेज में रैगिंग अलाउड नहीं है, जानता है ना तू?" मैंने उसकी आँखों में आँखें डाल के कहा| "तू कौन है बे? प्रिंसिपल का चमचा!?" ये सुनते ही मैंने एक जोरदार तमाचा उसके बाएं गाल पर रख दिया और वो मिटटी चाट गया| उसके सारे चमचे आ कर उसे उठाने लगे| जिन बच्चों की रैगिंग हो रही थी वो सब डरे-सहमे से एक तरफ खड़े हो गए और पूरी कैंटीन में शान्ति छ गई! "तेरी ये हिम्मत साले!" ये कहते हुए वो तोमर नाम का लड़का अपने होठों पर लगे खून को साफ़ करते हुए बोला और अपना मोबाइल निकाल कर अपने भाई को फ़ोन करने लगा| "भाई....भाई....एक लड़के ने... मुझे बहुत मारा...मेरा खून निकाल दिया... आप जल्दी आओ भाई!" ये कहके उसने फ़ोन काट दिया और मुझे बोला; "रुक साले ...तू यहीं रुक.... एक बाप की औलाद है तो यहीं रुक|"
"यहीं बैठा हूँ.... बुलाले जिसे बुलाना है|" ये कह कर मैंने पास पड़ी कुर्सी उठाई और उसे उस लड़के की तरफ घुमा कर रख कर बैठ गया| तभी पीछे से ऋतू आ गई और इससे पहले वो कुछ कहे मैंने उसे इशारा कर के वापस भेज दिया|
तोमर: अच्छा ... ये तेरी बंदी है ना?! कौन से क्लास में है तू?
मैं: वो प्रिंसिपल रूम के बाहर जो दिवार है न उस पर सबसे ऊपर वाली तस्वीर मेरी है!
तोमर: वही तस्वीर तेरी कल अखबार में भी छपेगी!
मैं: आने दे तेरे भाई को फिर पता चलेगा किसकी तस्वीर छपेगी कल!
तोमर: हाँ-हाँ देख लेंगे.... और तुम लोग भी सुन लो सालों! जो कोई भी मेरे खिलाफ जाता है उसका क्या हाल होता है!
मैं: चुप-चाप बैठ जा अब! वरना दूसरे झापड़ में यहीं हग देगा!
तोमर: तेरी तो.....
इसके आगे वो कुछ कहता की उसका भाई पीछे से आ गया| मेरी पीठ अभी भी उस शक़्स की तरफ थी की तभी आवाज आई; "हाँ भई किसने पेल दिया तुझे?" ये सुन कर जैसे ही मैं पलटा तो देखा ये तो सोमू भैया हैं| उन्होंने भी देखते ही मुझे पहचान लिया और आगे बढ़ कर सीधे गले लगा लिया| "अरे मानु इतने साल बाद! कैसा है तू?" ये कहते हुए सोमू भइया मुस्कुरा कर मुझसे बात कर रहे थे और वो तोमर को भूल ही गए|
"ओ भैया? इसे क्या गले लगा रहे हो इसी ने तो मारा है मुझे!" तोमर बोला|
"अरे? तू तो पढ़ाकू लड़का था, तूने कैसे हाथ छोड़ दिया?!"
"भैया .... आपका भाई लड़कियों की रैगिंग कर रहा था, उन्हें यहाँ आइटम नंबर वाले गानों पर डांस करवा रहा था|" ये सुनते ही उनका चेहरा तमतमा गया और वो बड़ी तेजी से उसके पास गए और एक जोरदार तमाचा उसके बाएं गाल पर दे मारा| ठीक उसी समय उन्हें गांजे की महक आई तो उन्होंने उसे उठा के एक और तमाचा मारा और वो फिर नीचे जा गिरा| "हरामजादे!!! तेरी हिम्मत कैसे हुई लड़कियों की रैगिंग करने की? ये कॉलेज हमारी माँ के नाम पर है और तू उन्हीं के नाम को गन्दा कर रहा है! समझाया था ना तुझे की कॉलेज की लड़कियों का सम्मान करना, पर तू....कुत्ते! बहुत चर्बी चढ़ी है न तुझे, अभी उतारता हूँ तेरी चर्बी!" ये कहते हुए सोमू भैया ने अपनी बेल्ट निकाल ली और एक जोर दार चाप उसके कंधे पर पड़ी| मैंने भाग कर उनका हाथ पकड़ कर उन्हें रोका; "छोड़ दे मुझे मानु! इस कुत्ते ने हमारे खानदान की इज्जत पर कीचड़ उछाला है!"
"भैया...." मैंने बस इतना ही कहा था की उन्होंने अपना हाथ छुड़ाया और एक बेल्ट और चाप दी! अब मैंने जैसे तैसे उन्हें पीछे से पकड़ लिया और पीछे की तरफ खींचने लगा पर मुझे बहुत ताकत लगानी पढ़ रही थी| भैया थे ही इतने बलिष्ट! उधर तोमर जमीन पर पड़ा दर्द से करहा रहा था और उसके चमचे हाथ बांधे पीछे खड़े सब कुछ देख रहे थे|
सोमू भैया: तेरी तो मैं जान ले लूँगा कुत्ते!
मैं: भैया.. छोड़ दो ... तमाशा मत खड़ा करो... हम बैठ कर बात करते हैं!"
सोमू भैया: कोई बात-वात नहीं करनी मुझे! छोड़ तू मुझे!
मैं: भैया मैं आपके आगे हथजोड़ के विनती कर रहा हूँ! आप घर चलो ... वहाँ आप जो चाहे इसे सजा दे देना|
तब जा कर भैया का गुस्सा कुछ काबू में आया और उन्होंने बेल्ट छोड़ दी| "तुम सब लोग सुन लो! आज के बाद यहाँ किसी ने भी रैगिंग की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा| रैगिंग करनी है तो उस फाटक वाले कॉलेज में पढ़ो, इस कॉलेज में प्यार, मोहब्बत, आशिक़ी, नशे के लिए कोई जगह नहीं है| मानु जैसे स्टूडेंट्स ने इस कॉलेज की जो शान बनाई है वो बनी रहनी चाहिए और इस शान पर अगर किसी ने कलंक लगाने की कोशिश की तो वो जान से जायेगा!" सोमू भैया ने गरज के साथ अपना फरमान सुनाया| "....और मानु, इस कुत्ते की गलती के लिए मैं तुझसे हाथ जोड़ कर माफ़ी माँगता हूँ|" ये कहते हुए भैया ने हाथ जोड़े तो मैंने उनके हाथ पकड़ लिए; "ये क्या कर रहे हो भैया? लड़का भटक गया है, आप इस समझाओगे तो समझ जायेगा|"
"सुना तूने कुत्ते! चल माफ़ी माँग मानु से|" भैया ने गरजते हुए तोमर से कहा| वो बेचारा रोता हुआ खड़ा हुआ और हाथ जोड़ के माफ़ी मांगने लगा तो मैंने भी उसे माफ़ कर दिया| "आज के बाद तूने किसी को भी परेशान किया ना तो देख फिर! और आप सभी को भी बता दूँ, इसका नाम राकेश है और आज के बाद आप में से किसी भी स्टूडेंट को इससे डरने की जर्रूरत नहीं है, कोई भी इसे तोमर नहीं कहेगा| साले कुत्ते! हमारी जात का नाम ले कर ऐसे डरा रखा है जैसे की कोई तोप हो! घर चल तू अब, जरा पिताजी को भी पता चले तेरे खौफ के बारे में|" ये कहते हुए भैया ने उसके पिछवाड़े पर लात मारी और वो बेचारा शर्म के मारे सर झुका कर निकल लिया| भैया से कुछ बातें हुई और फिर हम दोनों गेट पर पहुँचे, पीछे पीछे ऋतू भी आ रही थी तो भैया ने उससे पूछा: "हाँ भई तुम क्यों हमारे पीछे आ रही हो? कुछ काम है क्या मुझसे?"
"जी....वो....." इतना कहते हुए ऋतू ने मेरी तरफ इशारा कर दिया और ये सुनके भैया हँसते हुए बोले; "अच्छा जी... तो यही हैं जिनकी वजह से तुम ने राकेश को पेल दिया|"
"भैया वो...."
"अरे छोडो भाई! हम सब समझ गए!" ये कहते हुए वो मुझे छेड़ने लगे| "चलो बढ़िया है! खुश रहो!" इतना कह कर भैया अपनी गाडी में बैठ के निकल गए|
उनके जाते ही डरी-सहमी सी ऋतू मेरे सीने से लग गई और रोने लगी| उस ने आज पहली बार ऐसा कुछ देखा था जो उसके लिए पूरी तरह नया अनुभव था| मैंने उसे पुचकार के चुप कराया और उसके माथे को चूमा तो वो कुछ शांत हुई| फिर उसे बाइक पर बिठा कर हॉस्टल छोड़ा और कल की मुलाक़ात का समय भी तय हुआ और इसी तरह रोज़ कॉलेज के बाद एक घंटे के लिए मिलना, घूमना-फिरना, प्यार भरी बातें करना... ऐसे करते हुए दिन बीते.. बस मेरे लिए ऑफिस और पर्सनल लाइफ को बैलेंस करना मुश्किल हो रहा था जिसका पता मैंने ऋतू को कभी चलने नहीं दिया.... और फिर वो दिन आया जब ऋतू का जन्मदिन था|
मैंने आज पूरे दिन की छुट्टी ले रखी थी, ऋतू को भी मैंने बता दिया था की वो आज आधे दिन के बाद बंक मार के मेरे साथ चले| सबसे पहले तो मैं उसे एक अच्छी सी रोमांटिक मूवी दिखाने ले गया और फिर उसके बाद उसे आज पहली बार अपने घर पर लाया| कमरे में दाखिल होते ही वो कमरे की सजावट देख कर दंग रह गई| फ्रिज से केक निकाल के जब मैंने रखा तो उसकी आँखों में ख़ुशी के आँसूं छलक आये| केक पर लगी मोमबत्ती बुझा कर सबसे पहला टुकड़ा उसने मुझे खिलाया और फिर वही आधे टुकड़ा मैंने ऋतू को खिला दिया| मैंने उसे कस के अपने सीने से लगा लिया पर अगले ही पल वो मुझसे थोड़ा दूर हुई और नीचे जमीन की तरफ देखने लगी| फिर मेरी आँखों में देखा और अपने पंजों पर खड़ी हो कर मेरे होठों को चूम लिया| मैं उसके इस अचानक हुए हमले से थोड़ा हैरान था, जो उसने साफ़ पढ़ ली और शर्म से सर झुका लिया| पर आज मैं अपनी जान को कैसे नाराज करता सो मैं आगे बढ़ा और ऋतू के चेहरे को अपने दोनों हाथों में थामा और उसे गुलाबी होठों को चूमा| मेरे स्पर्श से ऋतू के जिस्म में हलचल शुरू हो चुकी थी और उसने अपने दोनों होठों को मेरे हाथों पर रख दिया| इधर मैंने अपने होठों को थोड़ा खोला और ऋतू के निचले होंठ को अपने मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा| ५ सेकंड के बाद मैंने ऐसा ही उसके ऊपर वाले होंठ के साथ भी किया| ऋतू ने कभी ऐसा चुम्बन महसूस नहीं किया था इसलिए वो मदहोश होने लगी थी, उसका जिस्म हल्का होने लगा था और उसके जिस्म का वजन मुझ पर आने लगा था| इधर मैं बारी-बारी उसके दोनों होठों को चूसने में लगा था की तभी मेरे लंड में तनाव आने लगा और दिमाग ने जैसे बहुत तेज करंट मुझे मारा और मैंने ऋतू को खुद से अलग किया| हम दोनों की सांसें भारी हो चली थी और मेरे तन और दिमाग में जंग छिड़ चुकी थी| तन सम्भोग चाहता था और दिमाग उसके परिणाम से डरता था| ऋतू को आ रहे आनंद में जैसे ही विघ्न पड़ा उसने अपनी आँखें खोली और फिर मेरी तरफ हैरानी से देखने लगी की भला क्यों मैंने ये चुंबन तोडा?! पर उसके ऊपर जैसे कुछ फर्क पड़ा ही नहीं| इसलिए वो धीरे-धीरे कदमों से मेरे पास आई और मैं धीरे-धीरे पीछे हटने लगा और पलंग पर जा बैठा| वो मेरे पास आकर खड़ी हो गई और फिर घुटने मोड़ के नीचे बैठ गई और मेरे चेहरे को अपने हाथ में थामा और फिर से अपने गुलाबी होंठ मेरे होठों पर रखे और मेरे नीचले होंठ को अपने मुँह में भर के चूस ने लगी| ऋतू मेरे कश्मक़श को समझ नहीं रही थी और बस मेरे होठों को बारी-बारी से चूस रही थी| इधर मेरा काबू भी खुद के ऊपर से छूटने लगा था और हाथ अपने आप ही उठ के उसके दोनों गालों पर आ चुके थे, मेरी जीभ भी अब कोतुहल करने को तैयार थी| जैसे ही ऋतू ने मेरे ऊपर के होंठ को छोड़ के नीचले होंठ को पकड़ने के लिए अपना मुँह खोला मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में सरका दी और मैं ये महसूस कर के हैरान था की उसने तुरंत ही मेरी जीभ को मुँह में भर के चूसना शुरू कर दिया| अब तो मेरी हालत ख़राब हो चुकी थी, लंड कस के खड़ा हो चूका था और पैंट में तम्बू बना चूका था| हाथ नीचे आ कर ऋतू के वक्ष को छूना चाहते थे पर अभी भी दिमाग में थोड़ी ताक़त थी इसलिए उसने हाथों को नीचे सरकने नहीं दिया|
इधर ऋतू को तो जैसे मेरी जीभ इतनी पसंद आ रही थी की वो उसे छोड़ ही नहीं रही थी और सांसें रोक कर उसे चूस-चूस के निचोड़ना चाहती थी| ऋतू के हाथ भी हरकत करने लगे थे और उस ने मेरी शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिए थे| बस तीन ही बटन खुले थे की मैंने उसके हाथों को रोक दिया, तभी ऋतू ने मेरी जीभ की चुसाई छोड़ी और अपनी जीभ मेरे मुँह में सरका दी तो मैंने उसकी जीभ को चूसना शुरू कर दिया| इधर ऋतू के हाथों ने फिर से मेरी कमीज के बटन खोलना शुरू कर दिया था और मेरे हाथों ने उसके चेहरे को थामा हुआ था| अब लंड की हालत यूँ थी की वो पैंट फाड़ के बाहर आने को मचल रहा था और दिमाग में फिर से घंटी बजने लगी थी की कहीं कुछ हो ना जाए! मैंने ऋतू की जीभ को चूसना बंद किया और इससे पहले की मैं कुछ कहूं उसने पुनः अपने होठों से मेरे निचले होंठ को अपने मुँह की गिरफ्त में ले लिया| जैसे-तैसे कर के मैंने इस चुंबन को तोडा और ऋतू के होठों पर ऊँगली रखते हुए कहा; "बस! बाकी...शादी के बाद!" ये सुन के वो ऐसे मुँह बनाने लगी जैसे किसी छोटे बच्चे के हाथ से लॉलीपॉप छीन ली हो! "awwww मेरा छोटा बच्चा|" ये कह के मैंने उसे गले लगा लिया और फिर खाने ले लिए कुछ आर्डर किया| मैं बाथरूम में घुसा ताकि अपने लंड मियां को शांत कर लूँ, कहीं ऋतू देख लेती तो पता नहीं क्या सोचती?!
दस मिनट में मैं उसे शांत कर के और मुँह धो कर बहार लौटा तो देखा ऋतू पलंग पर बैठी है| उसकी पीठ दिवार से लगी थी और दोनों पाँव पलंग पर सीधे थे| उसने अपनी दोनों बाहें खोल के मुझे पलंग पर बुलाया| मैं उसके गले लगने के बजाये उसकी गोद में सर रख कर लेट गया| ऋतू के उँगलियाँ मेरे बालों में चलने लगी;
ऋतू: ये बर्थडे अब तक का Best बर्थडे था| थैंक यू जानू!
मैं: हम्म...
ऋतू: एक और थैंक यू आपको!
मैं: एक और? किस लिए?
ऋतू: Kiss करना सिखाने के लिए| (ये कह के ऋतू हँसने लगी|) वैसे आप तो काफी expert निकले? और कितनी बार कर चुके हो?
मैं: पागल फर्स्ट टाइम था!
ऋतू: अच्छा? इतना परफेक्ट कैसे?
मैं: वीडियो देख-देख के सीख गया|
ऋतू: अच्छा? मुझे भी दिखाओ!
मैं: नहीं... उसमें 'और' भी कुछ है! 'वो सब' अभी नहीं!
ऋतू: स्कूल और कॉलेज में बहुत सी लड़कियां हैं जिन्होंने 'वो सब' कर रखा है और वो सब मज़े ले कर सुनाती हैं| इसलिए theory तो मुझे अच्छे से पता है|
मैं: अच्छा? चलो प्रैक्टिकल शादी के बाद कर लेना?
ऋतू: इतना इंतजार करना पड़ेगा? आप भी ना?! आप की उम्र के लड़के तो लड़कियों के पीछे पड़े रहते हैं इन सब के लिए और एक आप हो की.....
मैं: अब कुछ तो फर्क होगा न मुझ में और बाकियों में, वरना तुम मुझिसे प्यार क्यों करती?
ऋतू: आपका मन नहीं करता?
मैं: करता है.... पर जिम्मेदारियां भी हैं! घर से भागना आसान काम नहीं है!
ऋतू: हम प्रोटेक्शन इस्तेमाल करते हैं|
मैं: तुम सच में चाहती हो की पहली बार में मैं कॉन्डम इस्तेमाल करूँ?
ऋतू: नहीं....(कुछ सोचते हुए) मैं गर्भनिरोधक गोली ले लूँगी|
मैं: ऐसा कुछ नहीं करना ... थोड़ा सब्र करो! (मैंने थोड़ा डाँटते हुए कहा|)
ऋतू: सॉरी! पर आप वीडियो तो दिखा दो ना प्लीज? देखने से तो कुछ नहीं होगा|
मैं: तुम बहुत जिद्दी हो! ये लो...
ये कहते हुए मैंने उसे अपने फ़ोन में राखी एक ब्लू-फिल्म लगा के दे दी और तभी दरवाजे पर दस्तक हुई| खाना आ चूका था तो मैंने खाना लिया और ऋतू के हाथ से फ़ोन छीन लिया और कहा; "पहले खाना ... बाद में देख ना|" ये कहते हुए मैंने उसे पहली बार पिज़्ज़ा दिखाया और बताया की ये है क्या| ऋतू को पिज़्ज़ा बहुत पसंद आया और हम दोनों ने खाना खाया और वापस पलंग पर बैठ गए पर इस बार ऋतू ने अपना सर मेरी गोद में रखा था और वो वही ब्लू-फिल्म देखने लगी| ब्लू-फिल्म से उसके जिस्म का तो पता नहीं पर मेरे लंड में हरकत होने लगी थी| वो तन के खड़ा होना चाहता था पर ऋतू का सर ठीक उसी के ऊपर था, मैंने थोड़ा हिलना चाहा की मैं उसका सर हटा दूँ पर वो ये सब समझ चुकी थी और उसने कुछ इस कदर करवट ले ली अब उसका बायां गाल ठीक मेरे लंड के ऊपर थे| वो मुझ से कुछ नहीं बोली बस बड़ी गौर से ब्लू-फिल्म देखती रही| इधर लंड मियां बगावत पर उत्तर आये और अपने आप ही पैंट के ऊपर से ऋतू के गाल पर थाप देने लगे जिसे ऋतू ने शायद महसूस भी किया| अब मैंने उठ के खड़े होने की कोशिश की तो ऋतू ने वीडियो रोक दी और हँसते हुए कहा; "अच्छा बाबा! अब तंग नहीं करुँगी!" मतलब वो मेरे लंड को साफ़ महसूस कर रही थी और जान बुझ कर मेरे साथ ऐसा कर रही थी| "तू बदमाश हो गई है|" ये कहते हुए मैंने उसके गाल पर हलकी सी थपकी लगाईं| मैं वापस दिवार से पीठ लगा कर बैठ गया और उसने भी अपना सर अब मेरे सीने से टिका लिया और वीडियो देखने लगी| चुदाई का सीन शुरू हुआ ही था की ऋतू का हाथ मेरे लंड पर आगया और ऐसा लगा जैसे वो नाप के देख रही हो के मेरा लंड उस आदमी के लंड के मुकाबले कितना बड़ा है| मैंने धीरे से उसका हाथ अपने लंड से हटा दिया और वापस उसका हाथ अपनी छाती पर रख दिया| 30 मिनट की वीडियो को उसने बिना काटे देखा और उसका जिस्म पूरा गर्म हो चूका था" उसने वीडियो पूरी होते ही फ़ोन रखा और खड़ी हो गई और मेरा हाथ पकड़ के मुझे खींच के लेटने को कहा और फिर खुद मेरी बगल में लेट गई| अपने दाएं हाथ को मेरे गाल पर रखा और मुझे Kiss करने लगी| शुरू-शुरू में मैंने भी उसकी Kiss का जवाब बहुत अच्छे से दिया पर जब लंड फिर से खड़ा हो गया तो मैंने उसे रोक दिया; "बस जान!" और फिर घडी देखि तो सवा पांच बजे थे| "कुछ देर और रुक जाते हैं ना?" ऋतू ने मेरा हाथ पकड़ के मुझे उठने से रोकते हुए कहा| "आने-जाने में 1 घंटा लगेगा, फिर हॉस्टल में क्या बोलोगी?" मैंने तुरंत अपने कपड़े ठीक किये पर ऋतू का तो जैसे जाने का मन ही नहीं था| "कल भी बंक मारूँ?" उसने खुश होते हुए कहा|
"दिमाग ख़राब है? यही सब करने के लिए यहाँ आई थी? फर्स्ट सेमेस्टर में फ़ैल हो गई तो घर वाले फिर घर पर बिठा देंगे| समझी? कॉलेज पढ़ने के लिए होता है समय बर्बाद करने के लिए नहीं और आज के बाद कभी मुझे बिना बताये बंक मारा ना तो सोच लेना!" मैंने ऋतू को थोड़ा झाड़ते हुए कहा| डाँट सुन के उसका सर झुक गया; "पढ़ाई के मामले में कोई मस्ती नहीं! समझी?" उसने हाँ में सर हिलाया और फिर मैंने उसकी ठुड्डी पकड़ के ऊँची की और उसके होठों को चूमा| तब जा के वो फिर से खुश हो गई और अपने कपडे ठीक किये और मुँह हाथ धो के हम घर से निकले और मैंने ऋतू को हॉस्टल छोड़ा| ऋतू को मैं कभी भी कॉलेज के गेट से पिकअप नहीं करता था बल्कि चौक पर बत्ती के पास मेरी बाइक हमेशा खड़ी होती थी और हॉस्टल भी मैं उसे कुछ दूरी पर छोड़ता था ताकि कोई भी हमें एक साथ न देखे| खेर ऋतू बाइक से तो उत्तर गई पर उस का हॉस्टल जाने का मन कतई नहीं था इसलिए उसे खुश करने के लिए मैंने अपने बैकपैक से उसके लिए एक गिफ्ट निकाला और उसे दे दिया| गिफ्ट देख कर वो खुश हो गई, गिफ्ट में एक फ़ोन था और एक सिम-कार्ड भी| वो ख़ुशी से उछलने लगी और अचानक से मेरे गले लग गई और थैंक यू कहते हुए उसकी जुबान नहीं तक रही थी| "इसका पता किसी को भी नहीं चलना चाहिए? न कॉलेज में न हॉस्टल में?" मैंने उसे थोड़ा सख्त लहजे में कहा और जवाब में उसने हाँ में सार हिलाया पर उसके चेहरे की ख़ुशी अब भी कायम थी| जाने से पहले उसने अचानक से मेरे होठों को चूमा और फिर हॉस्टल की तरफ भगति हुई घुस गई, मैंने भी बाइक घुमाई और ऑफिस आ गया और काम करने लगा| ये मेरा रोज का काम था की शाम को जल्दी ऋतू को मिलने पहुँचो और ऋतू को हॉस्टल छोड़ के ऑफिस देर तक बैठो और फिर देर रात घर पहुँचो और बिना खाये-पीये सो जाओ! बॉस इसलिए कुछ नहीं कहता था की उसे काम कम्पलीट मिलता था पर मेरी कई बार रेल लग जाती थी!
 
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जो बदलाव अब मैं ऋतू में देख रहा था वो ये था की वो अब उसका प्यार मेरे लिए अब कई गुना बढ़ चूका था| जब भी उसे टाइम मिलता तो वो कहीं छुप कर मुझे फ़ोन करती, व्हाट्स ऍप पर मैसेज करती रहती| रोज सुबह-सुबह उसका प्यार भरा मैसेज देख कर मैं उठता| तरह-तरह के हेयर स्टाइल बना कर उसका सेल्फी भेजना और मेरे पीछे पड़ जाना की मैं उसे सेल्फी भेजूँ! जब भी हम मिलते तो वो मेरा हाथ थाम लेती, और तरह-तरह की फोटो खींचती| कभी मुझे kiss करते हुए तो कभी पॉउट करते हुएऔर बहाने से मुझे Kiss करती| कभी इस पार्क में, कभी उस पार्क में, कभी किसी कैफ़े में और यहाँ तक की एक दिन उसने एक पुराने खंडर जाने की भी फरमाइश कर दी| ये खंडर प्रेमी जोड़ों के लिए जन्नत था क्योंकि यहाँ कोई आता-जाता नहीं था| जब हम वहाँ पहुँचे तो वहाँ कोई जगह खाली नहीं थी पर ऋतू मेरा हाथ थामे मुझे खींच के अंदर और अंदर ले जा रही थी| उसे तो जैसे भूत-प्रेत का कोई डर ही नहीं था| अंदर पहुँच कर वो मेरी तरफ मुड़ी और अपनी बाहें मेरे इर्द-गिर्द लपेट ली| फिर वो अपने पंजो पर खड़ी हो गई और मेरे होठों पर Kiss कर दी| मेरे दोनों हाथ उसकी पीठ पर घूमने लगे थे और इधर ऋतू ने अपनी बाहें मेरे गले में डाल ली| हम अपने Kiss में इतना मग्न थे की आस-पास की कोई खबर ही नहीं थी| जब जेब में फ़ोन बजा तब जा के होश आया, फोन ऋतू के हॉस्टल से था जिसे देखते ही हम तुरंत बाहर आये और फटाफट हॉस्टल पहुँचे|

इस शनिवार हमें घर जाना था तो मैं सुबह-सुबह ऋतू को लेने हॉस्टल पहुँचा| रास्ते भर ऋतू मेरी पीठ से चिपकी रही और हमारा एक मात्र हॉल्ट वो ढाबा ही था जहाँ रुक कर हम चाय पीने लगे|

ऋतू: तो अब हम अपने रिश्ते को आगे कब ले कर जा रहे हैं?

मैं: आगे? मतलब?

ऋतू: 'वो'

मैं: वो सब शादी के बाद|

ऋतू: पर क्यों?

मैं: तुम प्रेग्नेंट हो गई तो?

ऋतू: ऐसा कुछ नहीं होगा|

मैं: ऋतू! मैं इस बारे में अब कोई बात नहीं करूँगा! नहीं मतलब नहीं! (मैंने गुस्से से कहा)

ऋतू: अच्छा ठीक है! पर आप आज रात को मेरे कमरे में तो आओगे आज? कितने दिनों बाद आज मौका मिला है|

मैं: पागल हो गई हो क्या? किसी ने देख लिया तो क्या होगा जानती हो ना?

ऋतू: कोई नहीं देखेगा| आप सब के सोने के बाद आ जाना|

मैं: नहीं!

ऋतू: मैं इंतजार करुँगी!

इतना कह कर वो टेबल से उठ गई और बाइक के पास जा कर खड़ी हो गई| मैं बिल भर के बाहर आया और बिना उससे कुछ बोले बाइक स्टार्ट की और हम फिर से हवा से बातें करते हुए घर की ओर चल दिए| रास्ते में ऋतू उसी तरह मुझसे चिपकी रही पर मैंने उससे और कोई बात नहीं की| हम घर पहुँचे और ऋतू ने सब के पैर छू के आशीर्वाद लिया और मैं सीधा अपने कमरे में घुस गया और बिस्तर पर पड़ गया| कुछ देर बाद ऋतू ऊपर आई और मेरे कमरे में झांकते हुए निकल गई| वो समझ गई थी की मैं उससे नाराज हूँ| उसी ने घर पर आज खाना बनाया और फिर सब के साथ बैठ के यहाँ-वहाँ की बातें चल ने लगी| हमेशा की तरह ऋतू भी कोने में बैठी बातें सुनती रही पर मेरा सर भन्ना रहा था सो मैं उठ के बाहर चला गया| कुछ ही दूर गया हूँगा की पीछे से संकेत की आवाज आई और फिर उस के साथ खेत पर बैठ कर माल फूँका| रात साढ़े आठ बजे घर घुसा तो घरवालों ने ताने मारने शुरू कर दिए की इतने दिन बाद आया है, ये नहीं की कुछ देर सब के साथ बैठ जाये| मैं बिना कुछ कहे ऊपर गया और तौलिया ले कर नीचे आ कर नहाया और ऊपर कमरे में टी-शर्ट डालने ही वाला था की मेरे नंगे जिस्म पर मुझे ऋतू ने पीछे से जकड लिया| उसकी उँगलियाँ मेरी छाती पर घूमने लगी थी, मैंने तुरंत ही उसे खुद से दूर किया; "दिमाग ख़राब है तेरा?" गुस्से से लाल मैंने टी-शर्ट पहनी और नीचे जा कर सब के साथ बैठ गया और बातों में ध्यान लगाने लगा|


रात के खाने के बाद मैं छत पर टहल रहा था और ऋतू में आये बदलावों के बारे में सोच रहा था| उसके जिस्म में भूख की ललक मुझे साफ़ नजर आ रही थी|तभी वहाँ ऋतू चुप-चाप आ कर खड़ी हो गई| नजरें झुकी हुई, हाथ बाँधे वो जैसे अपने जुर्म का इकरार कर रही हो| बचपन में जब भी उससे कोई गलती हो जाती थी तो वो इसी तरह खड़ी हो जाती थी और उस समय जब तक मैं उसे गले लगा कर माफ़ न कर दूँ उसके दिल को चैन नहीं आता था| 'ऋतू.... तू ये सब क्यों कर रही है? खुद पर काबू रखना सीख प्लीज! वरना सब कुछ खत्म हो जायेगा!" ये कहते हुए मैंने उसके सामने हाथ जोड़ दिए| जिसे देख उसकी आँख से आँसूं गिरने लगे| इस बात की परवाह किये बिना की हम घर पर हैं और कोई हमें देख लेगा मैंने ऋतू को कस कर अपने गले लगा लिया| मेरी बाहों में आते ही वो टूट के सुबकने लगी और बोली; "जानू.... मैं क्या करूँ? मुझसे ये दूरी बर्दाश्त नहीं होती| हम एक शहर में हो कर भी कभी दिल भर के मिल नहीं पाते| हमेशा हॉस्टल की घंटी या कोई साथ न देख ले वाला डर हमें एक दूसरे के करीब नहीं आने देता| आप जी तोड़ कोशिश करते हो की हम ज्यादा से ज्यादा साथ रहे पर आपको अपनी नौकरी भी देखनी है| आप जब भी मिलते हो तो वो पल मैं आपके साथ जी भर के जीना चाहती हूँ इसलिए उन कुछ पलों में मैं सारी हदें तोड़ देती हूँ| जन्मदिन वाले दिन के बाद से तो आपके बिना एक पल को भी चैन नहीं आता! रात-रात भर तकिये को खुद से चिपकाए सोती हूँ, ये सोच कर की वो तकिया आपका जिस्म है जिसकी गर्मी से शायद मेरा जिस्म थोड़ा ठंडा पद जाए पर ऐसे कभी नहीं होता| पढ़ाई में भी मन नहीं लगता, किताब खोल कर बस आप ही के ख्यालों में गुम रहती हूँ| आपके जिस्म की गर्माहट को महसूस करने को हरपल बेताब रहती हूँ| प्लीज-प्लीज हम अभी क्यों नहीं भाग जाते? मैं आप के साथ एक पेड़ के नीचे रह लूँगी पर अब और आप से दूर नहीं रहा जाता|" उसकी बातें सुन कर उसके दिल का हाल मैं जान चूका था पर इस कोई इलाज नहीं था| अगर मेरा खुद के शरीर पर काबू है इसका मतलब ये तो नहीं तो की दूसरे का भी उसके शरीर पर काबू हो?

"जान! मैं समझ सकता हूँ तुम कैसा महसूस करती हो, और यक़ीन मनो मेरा भी वही हाल है पर हम दोनों को एक दूसरे पर काबू रखना होगा! हम अभी नहीं भाग सकते, बिना पैसों के हम बनारस तो क्या इस जिले के बहार नहीं जा सकते| हमें बहुत बड़ी लड़ाई लड़नी है और उसके लिए खुद पर काबू रखना होगा| मैं ये नहीं कहता की हम मिलना बंद कर दें, पर हमें जिस्मानी रिश्ते को रोकना होगा| ये Kissing, ये Hugging ..... इन सब पर काबू रखना होगा| जब मौका मिलेगा तब हम ये सब करेंगे और प्लीज Sex अभी नहीं! वो शादी के बाद!" इसके आगे मेरे कुछ कहने से पहले ही ऋतू मुझसे अलग हो गई और सर झुकाये हुए बोली; "इससे तो अच्छा है की मैं जान ही दे दूँ!" ऋतू की आँखें से आँसूं थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे, मैंने आगे बढ़ कर उसके आँसू पोछने चाहे पर वो एकदम से मुड़ी और नीचे अपने कमरे में चली गई| मैं कुछ देर तक और छत पर टहलता रहा और सोचता रहा| घडी पर नजर डाली तो बारह बज रहे थे, मैं अपने कमरे की तरफ जाने लगा तो ऋतू के कमरे का दरवाजा खुला था| अंदर झाँका तो पाया ऋतू अब भी रो रही थी और अपने तकिये को अपनी छाती से चिपकाये हुए थी| पता नहीं क्यों पर बार-बार वो तकिये को चुम रही थी| शायद ये सोच रही होगी की वो तकिया मैं हूँ| तभी उसने करवट बदली पर इससे पहले वो मुझे देख पाती मैं दिवार की आड़ में छुप गया और वो करवट बदल के फिर से उसी तकिये को खुद से चिपकाये हुए प्यार करती रही| 15 मिनट तक मैं छुप कर उसे यूँ तकिये से लिपटे रोता देखता रहा पर मजबूर था क्योंकि अगर कोई घरवाला देख लेता तो?!!! मन मार के जैसे ही अपने कमरे में जाने को मुड़ा की नीचे से ताऊ जी की आवाज आई; "इतनी रात गए क्या कर रहा है?" ये सुनते ही मैं हड़बड़ा गया, शुक्र है की मैं ऋतू के कमरे में नहीं घुसा वरना आज सब कुछ खत्म हो जाता| "जी वो.... नींद नहीं आ रही थी इसलिए छत पर टहल रहा था|" मेरी आवाज सुनते ही ऋतू उठ के बहार आ गई और बिना कुछ बोले ही मेरे मुँह पर दरवाजा बंद कर दिया| मैं भी उसके इस बर्ताव से चौंक गया और समझ गया की उसे बहुत बुरा लगा है| मैं अपना इतना सा मुँह ले कर अपने कमरे में आ गया और बिस्तर पर लेट गया पर नींद तनिक भी नहीं आई| घड़ियाँ गिन-गिन कर रात गुजारी और सुबह जब चलने का समय हुआ तो ऋतू अब भी खामोश थी| गाँव से कुछ दूर आने के बाद मैंने बाइक रोक दी और ऋतू को दोनों तरफ पैर कर के बैठने को कहा तो उसने मेरी ये बात भी अनसुनी कर दी| मजबूरन मुझे ऐसे ही बाइक चलानी पड़ी, ढाबे पर पहुँच कर मैंने बाइक रोकी और ऋतू को चाय पीने चलने को कहा तो उसने फिर से मना कर दिया| अब मैंने जबरदस्ती उसका हाथ पकड़ के खींचा और उसे ढाबे में ले गाय और जबरदस्ती चाय पिलाई| "जान! I'm Sorry!!! प्लीज मुझे माफ़ कर दो! मैं तुम्हें दुःख नहीं पहुँचाना चाहता था| तुम जो सजा दोगी वो मंजूर है पर प्लीज मुझसे बात करो!" मैंने ऋतू से की मिन्नतें की पर वो कुछ नहीं बोली| हमने चुप-चाप चाय पी और फिर हम वापस हाईवे पर आ गए, पर मैंने बाइक बजाये हॉस्टल की तरफ ले जाने के अपने घर की तरफ मोड़ दी| घर पहुँचने से पहले मैंने बाइक एक मेडिकल स्टोर के पास रोकी और कुछ दवाइयाँ ले कर वापस आया| "आपकी तबियत ख़राब है?" ऋतू ने चिंता जताते हुए पूछा| तो मैंने मुस्कुरा कर नहीं कहा और बाइक घर की तरफ घुमा दी| जैसे ही घर पहुँच कर मैंने बाइक रोकी तो ऋतू बड़ी हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी| मैंने उसे ऊपर कमरे की तरफ चलने को कहा और कमरे की चाभी भी उसे दे दी| मैंने बाइक नीचे पार्क की और घर फ़ोन कर दिया की हम घर पहुँच गए हैं, और साथ ही ऋतू के हॉस्टल में फ़ोन कर दिया की गाँव में कुछ काम है इसलिए मैं उसे कल हॉस्टल छोड़ दूँगा| फिर खाने के मैगी ली और सारा सामान ले कर मैं कमरे में आया| ऋतू खड़ी हो कर पीछे वाली खिड़की से बाहर कुछ देख रही थी| मुझे देखते ही वो बोली; "मुझे हॉस्टल कब छोड़ोगे?" मैंने ऋतू का हाथ पकड़ा और उसे खींच के पलंग के पास ले आया और बोला: "आज की रात और कल की दोपहर आप मेरे साथ गुजारोगे!" ये सुन के ऋतू बोली: "क्यों?"

"आपने कहा था ना आप का मन मेरे बिना नहीं लगता तो मैंने सोचा की क्यों न आपको इतना प्यार करूँ की आपको मेरी कमी कभी महसूस न हो|" ये सुन कर ऋतू ने मेरी तरफ पीठ कर दी और बोली; "मैं जानती हूँ ये आप सिर्फ मुझे खुश करने के लिए कर रहे हो| आपको ऐसा कुछ भी करने की जर्रूरत नहीं जिसके लिए आपका मन गवाही ना देता हो|" मैं ने ऋतू को पीछे से अपनी बाँहों में जकड़ा और उसके कान में फुसफुसाता हुआ बोला; "दिल से कह रहा हूँ|" इतना कह कर मैंने उसे गोद में उठा लिया और बिस्तर पर ला कर लिटा दिया और झुक कर ऋतू के होठों को चूम लिया| मेरे होंठ के स्पर्श से उसकी सारी कठोरता खत्म हो गई और उसने अपनी बाहें मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द डाल दी और मेरे Kiss का जवाब देने लगी| मैंने अपने होंठ खोले के अपनी जीभ से उसके होठों को रगड़ा और फिर अपने दोनों होठों के भीतर उसके नीचे होंठ को भर के चूसने लगा| तभी ऋतू ने धीरे से मुझे खुद से दूर किया और बोली; "आप .... मुझे धोका तो नहीं दोगे ना?" मैंने ना में सर हिलाया| "पर एक शर्त है! वादा करो की पढ़ाई में ध्यान लगाओगे|"

"वादा करती हूँ जानू! पढ़ाई को ले कर आपके पास कोई शिकायत नहीं आएगी|" इतना कह के ऋतू ने अपनी बाहें फिर से मेरी गर्दन पर जकड़ दी और मुझे खींच के अपने ऊपर झुका लिया और अपनी जीभ से मेरी जीभ को छूने व चूसने लगी| उसके हाथ मेरी पीठ पर घूम रहे थे पर मेरे हाथ अभी भी मेरे वजन को संभाले हुए थे| मैं उठा और ऋतू की आँखों में देखते हुए अपनी शर्ट के बटन खोलने लगा और वो भी उठ बैठी पर पलंग पर घुटनों के बल बैठ के मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों से थामा और फिर से मेरे होठों को बारी-बारी से चूसने लगी| मैंने अपनी कमीज उतारी पर ऋतू ने एक पल के लिए भी मेरे होठों को अपने मुँह से आजाद नहीं किया| मैंने ही अपने होठों को उससे छुड़ाया और कहा; "जान कपडे तो उतारो|" ये सुनते ही उसके गाल शर्म से लाल हो गए| मैं समझ गया की वो क्यों शर्मा रही है| मैंने खुद उसके सूट को उतारने के लिए हाथ आगे बढाए तो उसकी नजरें झुक गईं| मैंने धीरे से उसका सूट उतरा और ऋतू ने इसमें मेरा पूरा सहयोग दिया| अब वो मेरे सामने सिर्फ एक ब्रा में थी और शर्म से अब भी उसकी नजरें झुकी हुई थीं| मैंने उसकी ठुड्डी पकड़ के ऊपर की और उसके गुलाबी होठों को चूमा और धीरे-धीरे उसे फिर से लिटा दिया और उसके ऊपर आ कर उसके होठों को चूसने लगा| उसका निचला होंठ बहुत फूला हुआ था, और हो भी क्यों ना पिछले कुछ महीनों से मैं जो उसका रसपान कर रहा था|लंड मियाँ पूरे जोश में आ कर बहार आने को बेताब थे पर ऋतू को तो जैसे Kiss करने से फुरसत ही नहीं थी| मैं भी कोई जल्दी नहीं दिखाना चाहता था इसलिए हम दोनों पिछले १५ मिनट से बस एक दूसरे को होठों को चूस और चाट ही रह थे| शायद ऋतू को भी मेरे लंड का एहसास होने लगा तो उसके हाथ अपने पा ही मेरे लंड महराज पर आ गए और वो धीर-धीरे से उसे सहलाने लगी| ऐसा लगा जैसे वो ये अनुमान लगा रही हो की मेरा लंड कितना बड़ा है| लंड को मिल रहे स्पर्श से उसमें तनाव बढ़ता ही जा रहा था और अब पैंट में कैद होने से दर्द हो रहा था| मैंने धीरे-धीरे अपने हाथ को सरका कर ऋतू की पिजामि के नाड़े पर रख दिया और अपनी उँगलियों से नाड़े का छोर ढूंढने लगा| ऋतू भी मेरी उँगलियों को अपनी नाभि के आस पास महसूस करने लगी थी और उसका जो हाथ अभी तक लंड को सहला रहा था वो अब मेरी बनियान के अंदर जा घुसा था और जैसे कुछ ढूंढ रहा था| आखिर मुझे नाड़े का छोर मिल ही गया और मैंने उसे धीरे-धीरे खींचना शुरू कर दिया| आखिर कर वो खुल गया और ऋतू की पजामी अब ढीली हो चुकी थी| मैंने अपना हाथ धीरे-धीरे अंदर सरकना शुरू कर दिया और इधर ऋतू के जिस्म में सिहरन शुरू हो गई थी| फिर मैं एक पल के लिए रुक गया और ऋतू के होठों को अपने होठों की पकड़ से आजाद करते हुए कहा; "जान! पहली बार बहुत दर्द होगा! मुझे कम पर तुम्हें बहुत ज्यादा होगा, खून भी निकलेगा!" ये सुन कर ऋतू थोड़ा डर गई|

"आपसे दूर रहने के दर्द से तो कम होगा ना?" ये कह कर उसने मुझे अपनी सहमति दी और मैंने मुस्कुरा कर उसके माथे को चूमा| मेरा हाथ उसकी पैंटी पर आ चूका था और मुझे उसके ऊपर से ही उस की बुर की गर्मी महसूस होने लगी थी| मैंने अपनी बीच वाली ऊँगली को ऋतू की पैंटी के ऊपर रगड़ना शुरू कर दिया जिसके परिणाम स्वरुप ऋतू की सीत्कार निकल गई| आनंद से उसकी आँखें बंद हो चली थीं| मैंने अब अपना हाथ उसकी पैंटी से बहार निकाला और उसकी पजामी को पकड़ कर नीचे सरकाने लगा पर अब भी ऋतू ने अपनी आँख नहीं खोली थी| पजामी तो निकाल दी मैंने पर ऋतू की गुलाबी रंग की पैंटी ने मेरा मन मोह लिया| उसे देखते ही मन ही नहीं कर रहा था की उसे निकालूँ, ऊपर से ऋतू की माँसल जांघें मेरे लंड में कोहराम मचाने लगी थी| मैंने नीचे झुक कर ऋतू की नाभि के नीचे चूम लिया और अपने दोनों हाथों की उँगलियों को उसकी पैंटी में फँसा कर के उसे नीयकाल दिया और अब जो मेरे सामने थी उसे देख तो मेरा कलेजा धक कर के रह गया| एक दम गुलाबी और चिकनी बुर! उसके गुलाबी पट बंद थे और बुर की रक्षा कर रहे थे, उन्हें देखते ही मेरे मुँह में पानी आ गया! मैं उनपर झुक कर उन्हें चूमना चाहता था पर जैसे ही मेरी गर्म साँस ऋतू को अपने बुर पर महसूस हुई उसने ने अपने दोनों हाथों से मेरे चेहरे को थामा और अपने ऊपर आने को कहा| "जानू वो सब बाद में! पहले आप….." उसने बात अधूरी छोड़ दी पर मैं समझ गया की उसे सेक्स करना है ना की फोरप्ले! "जान… फोरप्ले अगर नहीं किया तो बहुत दर्द होगा| तुम बस रिलैक्स करो और इतने बरसों से जो मैं वीडियो देख कर जो ज्ञान अर्जित किया है उसे इस्तेमाल करने दो|" मेरी बात सुन कर हम दोनों के चेहरे पर मुस्कान आ गई| तभी मैंने गौर किया की ऋतू की ब्रा तो मैंने निकाली ही नहीं| अब ये ऐसा काम था जो मैंने कभी किया नहीं था और ना ही इसके बारे में कोई ज्ञान मुझे वीडियो देखने से मिला था| मैंने ऋतू का हाथ पकड़ के उसे उठा के बिठाया और उसके होठों को चूसने लगा और अपने हाथ उसके पीछे ले जाकर ब्रा के हुक ढूंढने लगा| जब उँगलियों ने उन्हें ढूंढा तो ये दिक्का थी की उन्हें खोलने के लिए उसका सिरा कहाँ है? ऋतू मेरी ये नादानी समझ गई और उसने मेरे होठों से अपने होंठ छुड़ाए और अपने दोनों हाथ पीछे ले जा कर ब्रा के हुक खोल दिए| ब्रा ढीली हो गई बार अभी भी ऋतू के जिस्म से चिपकी हुई थी| मैंने धीरे से ऋतू की ब्रा को उसके सुनहरे जिस्म से अलग किया और पलंग से नीचे गिरा दिया| अपनी ब्रा को नीचे गिरते देख ऋतू कसमसाने लगी थी, मेरी नजर जब उसकी छाती पर पड़ी तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गई| ऋतू के कोमल चुचुक मुझे उसे छूने को कह रहे थे, वो गुलाबी अरेओला ....सससस.....हाय! मैंने थोड़ा सा झुक कर ऋतू के बाएं चुचुक को अपने होठों से छुआ और अपनी जीभ से उसके छोटे से प्यार से निप्पल को छेड़ा तो ऋतू के मुँह सिसकारी निकल पड़ी| मैंने ऋतू के चेहरे पर देखा तो उसकी गर्दन पीछे की ओर झुकी हुई थी और आँखें बंद थी|

मैं उठ कर खड़ा हुआ और अपनी बेल्ट खोली और फिर पैंट के हुक खोलते ही वो नीचे जा गिरी, मेरे कच्छे पर बने उभार को ऋतू टकटकी बांधे देखती रही| मैं पलंग से उतरा और अपनी पैंट कुर्सी पर फेंकी और बैग से कुछ निकाल कर वापस ऋतू के पास आ गया| जब मैं लौटा तो ऋतू मुझे थोड़ी डरी सी दिखी; "क्या हुआ जान?!" मैंने उसके दाएं गाल को छूते हुए कहा| "आप उठ कर गए तो मुझे लगा आप मुझे छोड़के जा रहे हो!|" ये कहते हुए उसकी आँखें नम हो गई|

"जान मैं तो बस ये लेने गया था|" ये कहते हुए मैंने उसे कंडोम दिखाया| पहले तो ऋतू को समझ ही नहीं आया की मेरे हाथ में आखिर है क्या फिर जब उसने डिब्बे पे लिखा पढ़ा तो वो नाराज होते हुए बोली; "नहीं! आप इसे यूज़ नहीं करोगे! ये हमारा.... पहलीबार है.... और मुझे फील करना है....सब कुछ! मैं बाद में गर्भनिरोधक गोली ले लूँगी|" ये कहते हुए उसने मेरे हाथ से कंडोम का डिब्बा छीन लिया और दूर फेंक दिया| मैंने आगे उससे बहस करना ठीक नहीं समझा उल्टा मैं फिर से ऋतू के ऊपर आ गया और ऋतू की नाभि पर अपने होंठ रखे और ऋतू के मुँह से फिर से "सससस...'' आवाज निकली| अगला चुम्बन मैंने ऋतू की गुलाबी बुर की फाँकों पर किया तो उसके पूरे जिस्म में करंट दौड़ गया और उसके मुँह से फिर से सीत्कार फूट पड़ी| मैंने अपनी जीभ से ऋतू की बुर की फाँकों को कुरेदना शुरू कर दिया| ऐसा लगा मानो जीभ की नोक अपने लिए अंदर जाने का रास्ता बना रही हो| पर बुर के गुलाबी होंठ खुल ही नहीं रहे थे, तो मैंने जितना हो सके उतना मुँह खोला और ऋतू की बुर के ऊपर रख दिया| अपनी जीभ से मैंने फाँकों को जोर से कुरेदना शुरू कर दिया| आखिर फाँकों को मुझ पर तरस आ गया और अंगड़ाई लेते हुए मुझे बुर का छेद दिखाई दिया| बस फिर क्या था मैंने उस अध्खुली फाँक को अपने मुँह में भर के मैं यूज़ चूसने लगा| इधर ऋतू पर इसका बहुत मादक असर हुआ और उसके मुँह से बस सिसकारियाँ ही सिसकारियाँ फूटने लगी....."स्स्सस्स्स्स...स्स्सस्स्स्स.... ससससस आए ससससस हहहह स्स्सस्स्स्स!!!" ऋतू की सिसकारियाँ मेरे लिए प्रोत्साहन का काम कर रही थी और मैंने अपनी पूरी जीभ से बुर के द्वार को चाटना...चूसना...कुरेदना...शुरू कर दिया| ऋतू के दोनों हाथ मेरे सर के ऊपर थे और वो मेरे बालों में अपने हाथ फिराने लगी| अब मैंने अपने दोनों हाथ की उँगलियों से ऋतू के बुर के द्वार को खोला और अपनी जीभ जितनी हो सके उतनी अंदर डाल दी| जैसे ही जीभ अंदर घुसी ऋतू चिहुँक पड़ी; "सीईई ...!!!!" मैंने अपनी जीभ से ऋतू की बुर चुदाई शुरू कर दी और मेरे इस प्रहार से उसकी हालत ख़राब होने लगी थी| वो बार-बार मेरे सर का दबाव अपनी बुर पर बढ़ाती जा रही थी| "सससससस...ीसीसीसीसीसिस..... सीईई..... सीईई.... ईईई .... आआह्ह्हह्ह्ह्ह!!!" करते हुए वो झाड़ गई और हाँफते हुए निढाल हो कर रह गई| उसका सारा रस मैंने अपनी जीभ से चाट-चाट कर पी लिया था! आखिर मैं भी उसके ऊपर से उठ कर उसकी बगल में लेट गया| पिछले पाँच मिनट से मुँह खोल कर ऋतू की बुर चाटने से मुँह दर्द करने लगा था|

दो मिनट बाद जब ऋतू की सांसें नार्मल हुई तो वो करवट ले कर मेरी छाती पर अपना सर रख कर लेट गई| "जानू! आज मुझे पता चला की चरम सुख क्या होता है! थैंक यू!!!!" मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि उसे तो तृप्ति मिल गई थी पर मैं तो अभी भी प्यासा था| ऋतू शायद समझ गई तो उसका डायन हाथ मेरे लंड पर आ गया और वो उसे सहलाने लगी| अपने मुँह को खोल ऋतू ने मेरे दाएं निप्पल को मुँह में भर लिया जैसे शिकायत कर रही हो की क्यों मैंने अभी तक उसके स्तनों को प्यार नहीं किया? मैंने ऋतू के दाएं गाल को अपनी उँगलियों से सहलाया और उसके मुँह से अपने निप्पल को छुड़ाया और उसकी आँखों में देखते हुए कहा; "जान......." मेरा बस इतना कहना था की वो मेरी बात समझ गई और मुझे उसके चेहरे पर डर की रेखा दिखने लगी| "डर लग रहा है?!" मैंने पूछा तो जवाब में ऋतू ने बस हाँ में सर हिला दिया| "मैं पूरी कोशिश करूँगा की मेरी जान को कम से कम दर्द हो|" सबसे पहले मैंने अपना कच्छा उतारा और ऋतू की टांगों को खोल कर उनके बीच घुटने मोड़ कर बैठ गया| मेरे फनफनाते हुए लंड को ऋतू एक टक बांधे घूर रही थी, जैसे की सोच रही हो की ये दानव मेरी छोटी सी बुर में कैसे घुसेगा?! मैंने बहुत सारा थूक अपने लंड पर चुपेड़ा और उसे धीरे से ऋतू की बुर के होठों पर छुआया| इतने भर से ही उसने अपनी आँखें कस के भीँचलि जैसे की उसे बहुत दर्द हुआ हो! इसलिए मैं बिना लंड अंदर डाले उसके ऊपर छा गया और उसके होठों को एक बार चूमा, तब जाके उसकी आँखें खुलीं| मैं समझ गया की लंड अंदर डालने से पहले मुझे ऋतू को थोड़ा उत्तेजित करना होगा| इसलिए मैं उसके जिस्म को चूमता हुआ उसके स्तनों पर आ गया और गप्प से उसके दाएं स्तन को अपने मुँह में भर लिया और अपनी जीभ से उसके निप्पल से छडने लगा| अपने दाएं हाथ से मैंने ऋतू के बाएं स्तन को धीरे दबाना शुरू कर दिया| अपनी उँगलियों से मैं ऋतू के बाएं निप्पल को दबाने लगा और उसके दाएं निप्पल को तो मैं ऐसे चूसने लगा था जैसे उस में से दूध निकल रहा हो| पाँच मिनट की चुसाई के बाद मैंने ऋतू के बाएं स्तन को भी ऐसे ही चूसा उसके छोटे से निप्पल को मैं दांतों से खींच रहा था और बीच-बीच में काट भी रहा था| ऋतू बहुत ज्यादा उत्तेजित हो गई थी और अपना हाथ नीचे ले जा कर मेरा लंड पकड़ के अपनी बुर की तरफ खींचने में लगी थी| मैंने जब उसके बाएं चुचुक को छोड़ा तो देखा उसके दोनों स्तन लाल हो चुके थे और उनपर मेरे दांतों के निशाँ साफ़ नजर आ रहे थे| मैंने और समय गँवाय बिना अपना लंड उसकी बुर के द्वार पर रखा और धीरे से अंदर धकेला| मेरे लंड की चमड़ी चूँकि अभी भी बंद थी तो लंड अंदर नहीं गया पर इससे ऋतू को दर्द बहुत हुआ और उसने अपनी सर को बायीं तरफ झटक दिया| मैंने सोचा की बिना दम लगाए तो लंड अंदर जायेगा नहीं इसलिए मैंने अपनी कमर को पीछे किया और एक झटका मार के लंड अंदर डाला| मेरी इस हकात से मेरी और ऋतू दोनों की जान पर बन आई! मेरे लंड की चमड़ी एकदम से खुली और जलन से मेरी गांड फ़ट गई और उधर ऋतू के मुँह से जोरदार चींख निकली! "आआआअह्ह्ह्हह्ह्ह्ह.....मममममअअअअअ.....!!!" दर्द से दोनों का बुरा हाल था, मन तो कर रहा था की लंड बहार निकाल के लेट जाऊँ पर ये जानता था की ागलीबार और दर्द होगा| इसलिए मैंने ऋतू के होठों को अपने मुँह में भर लिया और उसकी पीड़ा उसके गले में ही रोक दी| ऋतू ने दर्द के मारे अपने नाखून मेरी नंगी पीठ में धंसा दिए और उनमें से खून भी निकल आया| नीचे लंड में दर्द और पीठ में जलन से मैं तड़प उठा| मैं इसी तरह से ऋतू के ऊपर अपना वजन दाल आकर लेटा रहा और उसके होठों को चुस्त रहा और उसके मुँह में अपनी जीभ घूमता रहा| करीब पाँच मिनट हुए और ऋतू ने अपने नाखून मेरी पीठ से निकाल दिए और अपने हाथ वापस पलंग पर रख दिए| उसी वक़्त मुझे मेरे लंड पर गर्म पानी का एहसास हुआ, मतलब की ऋतू झाड़ चुकी थी और वो निढाल होकर बिना कुछ बोले ही बिस्तर पर लाश की तरह पड़ी थी| मैंने ऋतू के होठों को छोड़ा और ऋतू के चेहरे की तरफ देखने लगा, ऋतू की आँखें बंद थी और उसके मस्तक पर पसीने की बूँदें थी| मैंने ऋतू के गाल को चूमा और उसे पुकारा; "जान!" तो जवाब में बस उसके मुँह से "हम्म..." निकला|

"बहुत दर्द हो रहा है?" मैंने उसके माथे को चूमते हुए पूछा तो जवाब में बस उसके मुँह से "हम्म" निकला और दर्द की एक लकीर चेहरे पर आ गई| मेरा दिल भी उसके दर्द को महसूस कर रहा था इसलिए मैं ऋतू के ऊपर से हटने लगा, की तभी उसने अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन में डाल के हटने नहीं दिया| "जान... आपको दर्द हो रहा है! रूक जाते हैं!" मैंने चिंता जताते हुए कहा| "नहीं...." वो बस इतना ही बोल पाई और मुझे अपने ऊपर से हटने नहीं दिया| मैंने ऋतू के माथे फिर से चूम लिया और उसने अपनी गर्दन ऊँची कर के अपने होंठ मेरे सामने कर दिए जैसे कह रही हो की आप गलत जगह को चूम रहे हो| मैंने ऋतू के होठों को चूसना शरू कर दिया, इसका असर अब ऋतू पर दिखने लगा था और जिस्म में अब हरकत होने लगी थी| उसका दर्द कुछ कम होने लगा था और उसकी उँगलियाँ अब मेरे सर के बालों में घूमने लगी थी| मैंने उसके होठों को छोड़ा और ऋतू के चेहरे पर देखा तो उसने अपनी आँख खोली और उसकी आँखें मुझे नम दिखाई दे रही थी| उसकी मूक सहमति से मैंने अपने लंड को धीरे से बाहर निकाला और फिर धीरे से अंदर किया तो ऋतू की कमर कांपने लगी और उसने कस के मुझे अपने आलिंगन में जकड लिया| उसकी दोनों टांगें मेरी कमर के इर्द-गिर्द लिपट चुकी थी और उनके दबाव से ये साफ़ था की ऋतू अब भी पूरी तरह तैयार नहीं है| पर मेरा सब्र अब जवाब देने लगा था, मेरे लंड में अब तनाव बहुत बढ़ चूका था ऊपर से चमड़ी खींचने की वजह से लंड में दर्द अभी था| मैंने फिर से ऋतू की तरफ देखा तो उसकी आँखें अब भी दर्द के मारे मीच राखी थी| "जान! प्लीज!!!!" मेरा इतना कहाँ था की उसने आँखें बंद किये हुए ही हाँ में गर्दन हिला दी| मैंने धीरे से अपनी कमर को पीछे खींचा और धीरे उसे अंदर-बहार करने लगा| ऋतू की बुर की गर्माहट बढ़ रही थी और उस गर्माहट से मेरे लंड को काफी आराम मिल रहा था| इसी तरह धीरे-धीरे करते हुए करीब दस मिनट हुए होंगे की मेरा ज्वालामुखी फूटने को तैयार था और मैं उसे बहार खींचने वाला था की ऋतू ने कस के अपने जिस्म को मेरे जिस्म से चिपका लिया और मुझे ऐसा करने नहीं दिया और हम दोनों ही साथ-साथ झड़े! झड़ते ही मैं पास्ट हो कर ऋतू के ऊपर गिरा और उसका भी हाल ख़राब ही था| करीब पाँच मिनट बाद मैं उसके ऊपर से उठ के उसकी बगल में लेट गया और अपने लंड और उसकी बुर की तरफ देखा| दोनों ही खून और हमारे कामरस से सने थे, खून तो काफी निकला था और दोनों ही की यौन अंग सूझ चुके थे| मेरे लंड के सुपडे के इर्द-गिर्द सूजन थी तो ऋतू की बुर मुझे सूजी हुई दिख रही थी| दस मिनट बाद में उठा और बाथरूम जा कर अपने लंड को पानी से हलके हाथ से धोया और वापस आकर जमीन पर नंगा ही बैठ गया| जमीन की ढंडक चप से चूतड़ों को ठंडा कर गई| मैं दिवार का सहारा ले कर दोनों टांगें खोल कर बैठ गया| ऋतू की तरफ देखा तो वो अब भी सो रही थी और इधर मेरे पेट में आवाजें आने लगी थीं| इसलिए में उठा और बैग से मैगी का पैकेट निकाला और बनाने लगा| मैगी की खुशबु से ऋतू की नींद खुल गई और उसने धीरे से आकर मुझे पीछे से अपनी बाँहों में जकड लिया| उसका नंगा जिस्म मेरी नंगी पीठ पर मह्सूस होते ही मैं पीछे मुड़ा और ऋतू के होंठों को चूम लिया| मैंने नोटिस किया की उसके होंठ भी थोड़े सूजे लग रहे थे|

ऋतू: जानू! आप क्यों बना रहे हो, मुझे बोल दिया होता तो मैं बना देती|

मैं: आज मैंने अपनी जान को बहुत दर्द दिया है, इसलिए सोचा आज मैं ही तुम्हें अपने हाथ से बना हुआ कुछ खिला दूँ|

ऋतू: दर्द तो आपको भी हुआ होगा ना? पर सच कहूँ तो आज अपने मुझे दुनिया भर की ख़ुशी एक साथ दे दी है! इसलिए आज तो मुझे आपकी सेवा करनी है, आखिर आज से आप मेरे पति जो हो गए हो!

मैं: चलो मुँह-हाथ धो कर आओ|


ऋतू हँसते हुए बाथरूम में चली गई और मैंने मग्गी एक ही प्लेट में परोस ली और प्लेट ले कर जैसे ही बिस्तर की तरफ घुमा की मुझे उस पर खून और हमारे कामरस का घोल पड़ा हुआ मिला| मैंने प्लेट टेबल पर राखी और चादर को बिस्तर से हटाया पर तब तक अभूत देर हो चुकी थी, मेरा गद्दा भी बीच में से लहू-लुहान हो चूका था! मैंने पंखा तेज चालु किया और जमीन पर ही प्लेट ले कर बैठ गया| ऋतू जब बाथरूम से आई तो मुझे नीचे बैठा देख हैरान हुई पर इससे पहले वो कुछ बोलती उसकी नजर बिस्तर पर पड़ी और वहां खून देख कर उसकी आँखें फटी की फटी रह गई|

"हाय! इतना सारा खून! कुछ बचा भी मेरे जिस्म में या सब निकल गया?" ये सुन कर मुझे हँसी आ गई और मुझे हँसता देख ऋतू भी खिलखिलाकर हँस पड़ी| ऋतू भी मेरे सामने ही नंगी फर्श पर बैठ गई और ठन्डे फर्श की चपत जब उसके चूतड़ों पर लगी तो वो 'आह' कर के फिर हँसने लगी| हमने मैगी खाई और फिर ऋतू बर्तन उठा कर किचन में रखने चली गई और मैं उठ कर बाथरूम में हाथ-मुँह धोने चला गया| मैंने बाथरूम से ही ऋतू को आवाज दे कर दूसरी चादर बिछाने को कहा| ऋतू ने जैसे ही अलमारी से चादर निकाली उसे मेरी गांजे की पुड़िया दिखाई दे गई| उसे जरा भी देर नहीं लगी ये समझते हुए की ये गांजा है और जैसे ही मैं बाथरूम से निकला वो मुझे पुड़िया दिखाते हुए बोली; "ये क्या है?" उसके हाथ में पुड़िया देखते ही मेरी हवा खिसक गई| अब उससे झूठ तो बोल नहीं सकता था;

मैं: वो....गा...गांजा है! (मैंने सर झुकाये हुए कहा|)

ऋतू: आप गांजा पीते हो? (उसने हैरानी से पूछा|)

मैं: कभी-कभी...

ऋतू: क्यों पीते हो? (उसने गुस्सा करते हुए पूछा|)

मैं: वो... वो... कभी...टेंशन होती है तो.... थोड़ा....

ऋतू: टेंशन तो दुनियाभर में सब को है, तो क्या सब ये पीते हैं?

मैं: सॉरी!

ऋतू: कब से पी रहे हो आप?

मैं: कॉलेज...के ...

ऋतू: और इसके लिए पैसे कहाँ से आते थे?

मैं: वो... टूशन....देता... था...तो....

ऋतू: तो इस काम के लिए आप कॉलेज के दिनों में जॉब करते थे?

मैं:हाँ ...

ऋतू: मुझे कभी कुछ बताया क्यों नहीं? अगर आपको कोई बिमारी लग जाती तो?

मैं: सॉरी....मैं...मैं....

ऋतू: आज के बाद आप कभी भी इसे हाथ नहीं लगाओगे! समझे?

मैं: हाँ ...

ऋतू: खाओ मेरी कसम? (ऋतू मेरे पास आई और मेरा हाथ अपने सर पर रख कर मेरे जवाब का इंतजार करने लगी|)

मैं: मैं तुम्हारी कसम खता हूँ... आज के बाद कभी इसे हाथ नहीं लगाऊँगा!

ये सुन कर ऋतू ने वो पुड़िया कूड़े में फेंक दी और नाराज हो कर बिस्तर पर दूसरी चादर बिछाने लगी| मैं अपने हाथ बांधे सर झुकाये उसे देखता रहा| जब चादर बिछ गई तो ऋतू मेरे पास आई और मेरी ठुड्डी ऊपर उठाई और मेरी आँख में देखते हुए बोली; "और क्या-क्या शौक हैं आपके?"

"जी...कभी-कभी दारु भी पीता हूँ!" ये सुनते ही ऋतू की आँखें चौड़ी हो गईं और उसका गुस्सा फिर से लौट आया|

"मतलब अपनी जान देने की पूरी तैयारी कर रखी है आपने? आपको कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा? ये कभी सोचा आपने?" ये कहते हुए उसकी आँखें नम हो आईं थी| "अरे जानू... मैं कोई रोज-रोज थोड़ी ही पीता हूँ? वो तो कभी कभार किसी पार्टी में या किसी के बर्थडे पर! चलो आई प्रॉमिस आज के बाद ये सब बंद! अब तो मुस्कुरा दो मेरी जान!" ये सुन कर ऋतू को तसल्ली हुई और उसके चेहरे पर मुस्कान लौट आई| घडी में 2:30 बजे थे, पेट भरा था और सेक्स से दिल भी भरा हुआ था तो अब बारी थी सोने की| मैंने हम दोनों के पहनने के लिए अलमारी से दो टी-शर्ट निकाली तो ऋतू कहने लगी; "क्या जर्रूरत है? हम दोनों ही तो हैं यहाँ!" तो मैंने टी-शर्ट वापस अंदर रख दी और हम दोनों एक दूसरे के आगोश में लेट गए|

मैं: जान! अब भी दर्द हो रहा है?

ऋतू: हम्म्म...थोड़ा-थोड़ा ... और आपको?

मैं: थोड़ा...

ऋतू का हाथ अपने आप ही मेरे लंड पर आ गया और वो अपनी उँगलियों से उसे सहलाने लगी| चुदाई की थकावट ऋतू पर असर दिखाने लगी थी आँखें बोझिल होने लगी और वो सो गई, पर मेरा मन अब भी प्यासा था| अब उसे उठाने का मन नहीं किया और इधर नींद में उसने अपने को और कस कर मेरे जिस्म से चिपका लिया और सो गई| मैं उसके दाएं गाल को सहलाता हुआ कब सो गया पता ही नहीं चला| जब आँख खुली तो साँझ हो चुकी थी और घडी सात बजा रही थी| मैं उठा तो ऋतू भी उठ गई और अपनी बाहें खोल कर उसने अंगड़ाई ली| ऋतू के स्तन अंगड़ाई लेने से आगे को निकल आये और मुझसे कण्ट्रोल नहीं हुआ तो मैंने उसके दाएं स्तन को चूम लिया| ऋतू की 'सीईई' निकल गई और उसने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को अपने स्तन पर दबा दिया| मैंने अपनी जीभ से उसके पूरे स्तन को चाटा और उससे अलग हो कर खड़ा हो कर अंगड़ाई लेने लगा| मेरा मुँह ठीक ऋतू के सामने था और अभी ऋतू के स्तनपान के बाद लंड खड़ा हो गया था जो अंगड़ाई लेते समय ऋतू के सामने बिलकुल सीधा खड़ा था और उसे अपने पास बुला रहा था| मैंने जब ऋतू की तरफ देखा तो पाया वो मंत्रमुग्ध सी मेरे ही लंड को देख रही थी| मैंने एक चुटकी बजा कर उसकी तन्द्रा को भंग किया और जैसे वो किसी ख्यालों की दुनिया से बाहर आई हो वैसे मुझे देख कर मुस्कुरा दी| मैंने उसे अपना तौलिया दिया और नहाने को कहा तो उसने अदा के साथ वो तौलिया लिया और मेरा हाथ पकड़ के अंदर बाथरूम में खींच के ले जाने लगी| "जान! वहाँ इतनी जगह नहीं है की हम दोनों एक साथ नहा सकें|"

"जगह बन जाएगी, आप आओ तो सही|" उसने फिर से मेरा हाथ खींचा और मैं भी उसके साथ अंदर घुस गया| उसने इशारे से मुझे कमोड पर बैठने को कहा, खुद शावर का मुँह मेरी तरफ कर के चालु किया और आ कर मेरी गोद में बैठ गई| लंड मियां ऋतू के बुर के सम्पर्क में आते ही अकड़ के खड़े हो गए|पानी की बूंदें ऋतू के जिस्म पर ज्यादा और मेरे ऊपर कम पढ़ रही थी| ऋतू टकटकी बंधे मुझे देखे जा रही थी की तभी पानी की एक धार ऋतू के बालों से बहती हुई ठीक उसके निचले होंठ पर आ गई| ऋतू के गुलाबी होंठ उस पानी से पूरी तरह भीग पाते उससे पहले ही मैंने उसके निचले होंठ को अपने मुँह में भर के चूसा| ऋतू की उँगलियाँ मेरे बालों में चलने लगी थी और उसके भीतर भी आग दहकने लगी थी| मेरे लंड ने भी नीचे से धीरे-धीरे उसकी बुर पर थाप देना शुरू कर दिया था| ऋतू ने अपने होठों को मेरे होठों की गिरफ्त से छुड़ाया और सीढ़ी कड़ी होगी और फिर मेरे लंड को अपनी बुर के नीचे सेट किया और धीरे-धीरे अपनी बुर को मेरे लंड पर दबाने लगी पर जैसे ही थोड़ा सूपड़ा अंदर गया उसे दर्द होने लगा| दरसल उसकी बुर अभी अंदर से सूखी थी इसलिए वो फिर से कड़ी हो गई और अपने दाहिने हाथ में ढेर सारा थूक उसने चुपड़ा और मेरे लंड के सुपाड़ी पर अच्छे से लगा दिया और फिर धीरे-धीरे मेरे लंड पर अपनी बुर को रबाने लगी| इस बार लंड अंदर जाने लगा पर दर्द तो उसे अभी भी हो रहा था| वासना हम दोनों ही के अंदर भड़क चुकी थी और मुझसे उसका ये 'स्लो ट्रीटमेंट' बर्दाश्त नहीं हो रहा था| इसलिए मैंने भी नीचे से कमर को धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाना शुरू कर दिया ताकि लंड जल्दी से अंदर चला जाए| लंड अभी आधा ही अंदर गया था की वो दर्द के मारे रूक गई और मेरी हालत तो ऐसे हो गई हो जैसे किसी ने गाला दबा कर साँस रोक दी हो| ऋतू की बुर ने कस के लंड को जकड लिया और जैसे वो उसे अंदर जाने से रोक रही हो और लंड मियाँ थे जो और अंदर जाना चाहते थे| "जान?!" मैंने ऋतू से मिन्नत करते हुए कहा तो उसने हाँ में गर्दन हिला कर मुझे खुद ही आगे बढ़ने की इज्जाजत दे दी| मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूँ की ऋतू को ज्यादा दर्द न हो पर ये कमबख्त जिस्म वासना से जल रहा था इसलिए मैंने कुछ ज्यादा ही जोर से लंड अंदर पेल दिया और ऋतू की एक जोरदार चीख निकली; "आअह", उसने अपनी गर्दन दर्द के मारे पीछे की तरफ झटक दी| मैंने अपने दोनों हाथों को उसकी नंगी पीठ पर फिराया और उसे अपने जिस्म से चिपका लिया| दर्द के मारे उसकी आँख बंद हो चुकी थी और आंसुओं की लकीर बह निकली थी| पर लंड मियाँ इधर बुर की गर्मी में पिघलने लगे थे और मेरी कमर ने अपने आप ही ऋतू को ऊपर झटका देना शुरू कर दिया| ऋतू ने कस कर मेरे सर को अपनी छाती से दबा लिया और अपने हाथों को लॉक कर दिया जिससे मेरा सर हिल भी नहीं सकता था| दो-चार सेकंड बाद जब साँस लेने में दिक्कत होने लगी तो हाथों ने ऋतू की पीठ पर चलना शुरू किया और जैसे ही उँगलियों में उसके बाल आये तो मैंने उन्हें पीछे की तरफ खींचा| ऋतू की गर्दन पीछे की तरफ खींच गई और उसकी गिरफ्त मेरे सर के इर्द-गिर्द ढीली पड़ी| मैंने उसके बालों को अपनी ऊँगली से ढीला छोड़ा तब ऋतू ने अपनी आँखें खोली और मेरी आँखों में देख कर उसे जैसे होश आया हो| इधर मेरी कमर फिर से नीचे से धक्के देने लगी पर ऋतू ऊपर ज्यादा नहीं उठ रही थी| जब उसे इस बात का एहसास हुआ तो उसने खुद ही मेरे लंड पर धीरे-धीरे ऊपर-नीचे होना शुरू कर दिया| "ससससीई" कहते हुए उसने अपनी गति बढ़ा दी थी, माने अपने दोनों हाथों को उसकी कमर के इर्द-गिर्द कस रखा था की कहीं वो गिर ना जाये| ऋतू पर अब चुदाई की खुमारी चढ़ने लगी थी और उसने अपने दोनों हाथों को अपने बालों में अदा के साथ फिराना शुरू कर दिया था| ऐसा करने से उसके स्तन उभर के बाहर आ गए थे और उन्हें देख मेरा सब्र जवाब देने लगा था|

पाँच मिनट और की ऋतू ने पानी बहाना शुरू कर दिया और वो तक कर मेरे सीने से लगने को आई| पर मैंने उसके दाहिने स्तन को पकड़ लिया और चूसने लगा| ऋतू ने मेरे सर को फिर से अपने स्तन पर दबाना शुरू कर दिया| उसकी उँगलियाँ फिर से मेरे सर पर रास्ता बनाने लगी और मैंने बारी-बारी से उसके दोनों स्तनों को चूसना और काटना शुरू कर दिया| पर मेरा लंड अब अकड़ कर चीखने लगा था और ऋतू तो जैसे थक कर अपना सारा वजन मुझ पर डाल कर पड़ी थी और अपने स्तनों को चुसवा कर मजे ले रही थी| मैंने अपने दोनों हाथों से ऋतू की कमर को कस कर पकड़ा और मैं उठ खड़ा हो गया और उसे दिवार से सटा कर अपने लंड को जोर से अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया| ऋतू की दोनों टांगें मेरी कमर के इर्द-गिर्द टाइट हो चुकी थी और वो मेरे और दिवार के बीच दबी हुई थी| मेरी रफ़्तार बहुत तेज थी, इतनी तेज की ऋतू एक बार फिर झाड़ गई और उसने फिर से मुझे कस कर अपने से चिपका लिया पर मैंने अपने धक्के चालु रखे और अगले ही क्षण मैंने अपना सारा गाढ़ा रस उसकी बुर में बहा दिया और उसके ऊपर ही लुढ़क गया| शावर से आ रहे ठन्डे पानी मेरे सर पर पड़ रहा था जिसके कारण जिस्म ज्यादा थका नहीं था| मिनट भर बाद मैंने ऋतू की आँखों में देखा तो मुझे उसकी आँखों में संतुष्टि नजर आई, उसने धीरे से अपने पैरों को नीचे फर्श पर टिकाया और मैं उससे दूर हुआ| पर अगले ही पल उसने मेरा हाथ थामा और अपने पंजों पर खड़े हो कर मेरे होठों को चूम लिया और मुस्कुरा दी| फिर हम साथ नहाये, उसने मुझे और मैंने उसे साबुन लगाया और फिर शावर के नीचे नहा के हम दोनों बाहर आये| अब तो बड़ी जोर से भूख लगी थी इसलिए मैंने खाना आर्डर करना चाहा तो ऋतू ने मना कर दिया और खुद ही बिना कपडे पहने किचन में खाना बनाने लगी| मैंने ही एक टी-शर्ट निकाल कर उसे दी;

मैं: जान इसे पहन लो|

ऋतू: क्यों? मुझे बिना कपडे के देखना आपको पसंद नहीं?

मैं: तुम्हें ऐसे देख कर मेरा ईमान डोल रहा है|

ऋतू: हाय! सच्ची?

मैं: हाँजी!

ऋतू: डोलने दो! मैं तो आपकी ही हूँ| (ऋतू ने मुझे आँख मारते हुए कहा|)

ऋतू ने मेरी बात नहीं मानी खाना बनाने में लगी रही पर मेरा मन कहाँ मानने वाला था| मैं भी उसके पीछे सट के खड़ा हो गया और अपने दोनों हाथों को उसकी कमर से लेजाते हुए उसकी नाभि के ऊपर कस दिया| उसकी सुराही सी गर्दन मुझे चूमने के लिए बुला रही थी| मेरे दहकते होठों ने जैसे ही छुआ की ऋतू के मुँह से मादक सी सिसकारी निकल गई| "सससस...sssss .... आप जान ले कर रहोगे मेरी!" उसने मेरे हाथों को खोल कर आजाद होने की एक नाकाम कोशिश की पर मैं कहाँ मानने वाला था, मैं उसी तरह उसे अपनी बाँहों में कैसे हुए अपनी कमर को दाएँ-बाएँ हिलाने लगा और धीरे-धीरे नाचने लगा| ऋतू भी मेरा साथ देने लगी और उसने शेल्फ पर रखे अपने फ़ोन पर गाना चला दिया|


"तुझको मैं रख लूँ वहाँ

जहाँ पे कहीं है मेरा यकीं

मैं जो तेरा ना हुआ

किसी का नहीं

किसी का नहीं"

गाना सुनते-सुनते हम थिरकते रहे और ऋतू साथ-साथ खाना भी बनाती रही| रात नौ बजे तक मैं यूँ ही उसके जिस्म से अटखेलियाँ करता रहा और वो कसमसा कर रह जाती| आखिर खाना बना और ऋतू ने एक ही थाली में दोनों के लिए खाना परोसा और मुझे फर्श पर ही बैठने को कहा| मैं फर्श पर दिवार से सर लगा कर बैठा था, वो थाली पकडे मेरे सामने बैठ गई और मुझे अपने हाथ से कोर खिलाने लगी| मैंने भी उसे अपने हाथ से खिलाना शुरू कर दिया, खाना खा कर दोनों ही पलंग पर लेट गए| नींद तो आने वाली थी नहीं तो ऋतू ने कहा की उसे पोर्न मूवी देखनी है इसलिए मैंने उसे एक मूवी फ़ोन में चला कर दी| मैं दिवार का सहारा ले कर बैठा था और वो मेरे सीने पर सर रख कर बैठी थी| उस मूवी में लड़की के स्तन बहुत बड़े थे जिन्हें देख ऋतू को अपने स्तनों के अकार से निराशा हुई| उसके स्तनों का साइज 29 था और अब चूँकि मैं उसकी निराशा ताड़ गया था इसलिए मैंने मूवी रोक दी| "क्या हुआ जान?" तो उसने जवाब में अपना सर झुका लिया और अपने स्तनों को देखते हुए बोली; "आपको तो बड़े...... पसंद हैं.... और मेरे.... तो छोटे!" उसने अटक-अटक कर कहा| "मैंने तुमसे प्यार तुम्हारे इनके (उसके स्तनों को छूटते हुए) लिए नहीं किया|"


"सच?" उसकी आँखें चमक उठीं| "इन लड़कियों के बड़े इसलिए होते हैं क्योंकि इन्होने सर्जरी कराई है|" इतना कह के मैंने उसे थोड़ा ज्ञान बाँटा, पर सर्जरी का नाम सुन के जैसे वो हैरान हो गई| उसने फ़ोन साइड में रखा और और मेरी आँखों में देखते हुए बोली; "मैं भी कराऊँ?" "बेबी! आपको ऐसा कुछ भी कराने की कोई जर्रूरत नहीं है! मैंने आपसे कहा ना की मैं आपसे प्यार करता हूँ| भगवन ने आपको जैसा भी बनाया है सुन्दर बनाया है और ये सर्जरी वगैरह करके इसकी सुंदरता ख़राब मत करो|" मेरा जवाब सुन कर वो संतुष्ट हो गई, उसे विश्वास होगया की मेरा प्यार सिर्फ उसके जिस्म तक सीमित नहीं है|
 
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मैंने फिर से ऋतू को अपने आगोश में ले लिया और हम दोनों लेट गए| मैं पीठ के बल लेटा था और ऋतू मेरी तरफ करवट किये हुए थी, उसका बायाँ हाथ मेरी छाती पर था और वो मेरी शेव की हुई छाती पर अपनी उँगलियाँ चला रही थी| तभी उसने अपनी बायीं टांग उठा कर मेरे लंड पर रख दी और अचानक ही उसके मुँह से दर्द भरी 'आह' निकल गई| "क्या हुआ जान?!" मैंने चिंता जताते हुए उससे पूछा तो उसने मुस्कुरा कर ना में गर्दन हिला दी| मैं उठ बैठा और लाइट जला कर उसकी बुर की तरफ देखा तो पाया की वो बहार से सूज गई है| उसके कोमल पट सूजे हुए दिखे| जिस लड़की से मैं इतना प्यार करता हूँ, आज उसी को मैंने इतना दर्द दे दिया वो भी सिर्फ अपनी वासना में जल कर? ग्लानि से मेरा सर झुक गया तो ऋतू उठ बैठी और मेरे सर को अपने दोनों हाथों में थाम के ऊपर उठाया और बोली; "आपको क्या हुआ?"



"सॉरी! मेरी वजह से तुम्हें इतना दर्द हो रहा है|" इतना कह के मैंने शर्म से सर फिर झुका लिया| उसने फिर से मेरा सर ऊपर किया और मेरी आँखों में आँखें डाले बोलने लगी;"जानू! ये तो बस १-२ दिन में ठीक हो जायेगा, आप खामखा अपने को दोष ना दो|"
"ठीक है! अब तुम्हें दर्द दिया है तो दवा भी मैं ही करूँगा|" इतना कह कर मैं उठा और किचन में पानी गर्म करने लगा|
ऋतू: आप क्या कर रहे हो?
मैं: पानी गर्म कर रहा हूँ, उससे सेक देने से आराम मिलेगा|
ऋतू: रहने दो ना,आप मेरे पास लेटो|
मैं: आ रहा हूँ|
पानी थोड़ा गर्म हो चूका था, मैंने एक छोटा तौलिया लिया और रुई का एक टुकड़ा ले कर मैं वापस पलंग पर लौट आया| तौलिये को मैंने ऋतू की कमर के नीचे रख दिया ताकि पानी से बिस्तर गिला न हो जाये और फिर रुई को गर्म पानी में भिगो कर ऋतू के बुर की सिकाई करने लगा| इस सिकाई से उसे बहुत आराम मिला और उसने की बार मुझे रोका, ये कह के की उसे आराम मिल गया पर मैं फिर भी करीब दस मिनट तक उसकी बुर की सिकाई करता रहा| "बस बहुत हो गई सिकाई, अब मेरे पास आओ|" ये कहते हुए ऋतू ने अपनी बाहें खोल दीं और मैंने बर्तन नीचे रखा, उसे अपनी बाहों में भर कर लेट गया| हम इसी तरह सो गए पर रात के ग्यारह बजे होंगे की ऋतू चौंक कर उठ गई और हाँफने लगी| "क्या हुआ जान? कोई बुरा सपना देखा?" मैंने ऋतू से पूछा तो जवाब में वो कुछ नहीं बोली बल्कि अपने दोनों हाथों से अपने चेहरे को ढक कर रोने लगी| मैंने उसके दोनों हाथों को उसके चेहरे से हटाया और उसके माथे पर चूमा और उसे अपने सीने से लगा लिया| करीब दो मिनट बाद उसका रोना बंद हुआ और उसने सुबकते हुए जो कहा उसे सुन मेरे होश उड़ गए; "आप.... मैंने ... बहुत बुरा....सपना...." ऋतू ने सुबकते हुए कहा| मैं तुरंत उससे अलग हुआ, कमरे की लाइट जलाई और उसके लिए पानी ले कर आया| पानी पीने के बाद उसने एक गहरी साँस ली और बोली;
ऋतू: मैंने सपना देखा की माँ मुझसे बदला लेने के लिए आपके साथ सेक्स कर रही है|
मैं: (चौंकते हुए) क्या? क्या बकवास कर रही है? तेरी माँ मतलब मेरी भाभी और भला हम दोनों ऐसा!? छी!
ऋतू: आपको नहीं पता पर एक रात मैं और माँ छत पर सो रहे थे| वो नींद में आपका नाम बड़बड़ा रही थी और तकिये को अपने से चिपकाए हुए कसमसा रही थी|
मैं: ये नहीं हो सकता?! पर .... पर ... हमारे बीच तो सीधे मुँह बात भी नहीं होती| तो सेक्स......
ऋतू: मुझे नहीं पता|
इतना कह कर ऋतू फिर से रोने लगी| "ऐसा कभी नहीं होगा! मैं तुझसे प्यार करता हूँ और भाभी मेरे साथ कभी भी वो सब करने में कामयाब नहीं होगी|" मैंने ऋतू को फिर से अपने गले लगा लिया और उसकी पीठ सहला कर उसे चुप कराने लगा|ऋतू का सुबकना कम हुआ तो हम दोनों लेट गए पर अगले ही पल वो मुझसे कस के चिपक गई, जैसे की उसे डर हो के सच में कोई मुझे उससे चुरा लेगा| इधर मेरे दिमाग में उथल-पुथल मची हुई थी की भाभी भला मेरे बारे में ऐसा कैसे सोच सकती हैं? मैंने तो कभी भाभी को इस नजर से नहीं देखा? हम दोनों के बीच तो कभी सीधे मुँह बात भी नहीं हुई? तभी मुझे संकेत की बात याद आई जब उसने भाभी को 'माल' कहा था| क्या भाभी के गैर मर्दों के साथ रिश्ते हैं? ये सभी सोचते-सोचते दिमाग जोर से चलने लगा था, अब अगर ऋतू नहीं होती तो मैं गांजा पीता और इस टेंशन से बाहर निकल जाता| पर अब तो उसे वादा कर चूका था तो तोड़ता कैसे? इसलिए ऐसे ही चुप-चाप बिस्तर पर पड़ा रहा| न जाने कैसे शायद ऋतू ने मेरी चिंता भाँप ली और उसने अपनी गर्दन मेरे बाजू पर से उठाई और मेरे होठों को चूम लिया| उसके इस चुंबन से मेरा ध्यान भाभी से हटा, पर ये बहुत छोटा सा चुंबन था| शायद आज की दमदार सेक्स के बाद वो काफी तक चुकी थी| मेरे आगोश में आते ही उसकी आँख लग गई और वो चैन की नींद सो गई| इधर ऋतू के जिस्म की भीनी खुशबु और उसे आज सकूँ से प्यार करने के बाद मैं भी सो गया|
 
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update 13

रात के एक बजे थे, खिड़की से आ रही चांदनी की रौशनी कमरे में फैली हुई थीकी तभी ऋतू बाथरूम से आई तो उसने पाया की मेरा लंड एक दम कड़क हो चूका है और छत की तरफ मुँह कर के सीधा खड़ा है और फुँफकार रहा है| दरअसल मैं उस समय कोई सेक्सी सपना देख रहा था जिस कारन लंड मियाँ अकड़ चुके थे| पता नहीं उसे क्या सूजी की वो मेरी टांगों के बीच आ गई और घुटने मोड़ के बैठ गई| मेरे लंड को निहारते हुए वो ऊपर झुकी और धीरे-धीरे अपना मुँह खोले हुए वो नीचे आने लगी| सबसे पहले उसने अपनी जीभ की नोक से मेरे लंड को छुआ और मेरी प्रतिक्रिया जानने के लिए मेरी तरफ देखने लगी| जब मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो उसने अपने मुँह को थोड़ा खोला और आधा सुपाड़ा अपने मुँह में भर के चूसा| ''सससससस''' नींद में ही मेरे मुँह से सिसकारी निकल गई| उसने धीरे-धीरे पूरा सुपाड़ा अपने मुँह के भीतर ले लिया और रुक गई| "ससस...अह्ह्ह..." अब ऋतू से और नीचे जाय नहीं रहा था तो उसने आधा सूपड़ा ही अपने मुँह के अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया| इधर मैं नींद में था और मेरे सपने में भी ठीक वही हो रहा तह जो असल में ऋतू मेरे साथ कर रही थी| पर ऋतू को अभी ठीक से लंड चूसना नहीं आया था, उसके मुँह में होते हुए भी मेरा लंड अभी तक सूखा था| जबकि उसे तो अभी तक अपने थूक और लार से मेरे लंड को गीला कर देना चाहिए था| पूरे दस मिनट तक वो बेचारी बीएस इसी तरह अपने होठों से मेरे लंड को अपने मुँह में दबाये हुए ऊपर-नीचे करती रही और अंत में जब मेरा गर्म पानी निकला तो मेरी आँख खुली और ऋतू को देख मैं हैरान रह गया| मेरा सारा रस उसके मुँह में भर गया था और वो भागती हुई बाथरूम में गई उसे थूकने| मैं अपनी पीठ सिरहाने से लगा कर बैठ गया और जैसे ही ऋतू बहार आई उसकी नजरें झुक गई| तो जान! ये क्या हो रहा था? आपके साथ तो मैं बिना कपडे के भी नहीं सो सकता?!" मैंने ऋतू को छेड़ते हुए कहा| वो एक दम से शर्मा गई और पलंग पर आ कर मेरे सीने पर सर रख कर बैठ गई| "वो न..... जब मैं उठी तो..... आपका वो...... मुझे देख रहा था!" ऋतू ने शर्माते हुए मेरे लंड की तरफ ऊँगली करते हुए कहा|

मैं: देख रहा था मतलब? इसकी आँख थोड़े ही है?

ऋतू: ही..ही...ही... पता नहीं पर उसे देखते ही मैं .... जैसे मैं अपने आप ही ..... (इसके आगे वो कुछ बोल नहीं पाई और शर्मा के मेरे सीने में छुप गई|)

मैं: चलो अब सो जाओ वरना अभी थोड़ी देर में फिर से आपको देखने लगा|

ये सुनते ही ऋतू के गाल लाल हो गए और हम दोनों फिर से एक दूसरे की बाहों में लेट गए और चैन से सो गए| सुबह मेरी नींद चाय की खुशबु सूंघ कर खुली और मैंने उठ के देखा तो ऋतू किचन में चाय छान रही थी| मैं पीछे से उसके जिस्म से सट कर खड़ा हो गया और अपनी बाँहों को उसके नंगे पेट पर लोच करते हुए उसकी गर्दन पर चूमा| "Good Morning जान!"

"सससस....आज तो वाकई मेरी Morning Good हो गई|" ऋतू ने सिसकते हुए कहा|

ऋतू: काश की रोज आप मुझे ऐसे ही Good Morning करते?

मैं: बस जान.... कुछ दिन और|

ऋतू: कुछ साल ...दिन नहीं|

मैं: ये साल भी इसी तरह प्यार करते हुए निकल जायेंगे|

ऋतू: तभी तो ज़िंदा हूँ|

इतना कह कर ऋतू मेरी तरफ मुड़ी और अपनी दोनों बाहें मेरे गले में डाल दी और अपने पंजों पर खड़ी हो कर मेरे होंठों को चूम लिया| मैंने अपनी दोनों हाथों से उसकी कमर को जकड़ लिया और उसे अपने जिस्म से चिपका लिया|


मैंने घडी देखि तो नौ बज गए थे और मुझे 11 बजे ऋतू को हॉस्टल छोड़ना था तो मैंने उससे नाश्ते के लिए पूछा| ऋतू उस समय बाथरूम में थी और उसने अंदर से ही कहा की वो बनाएगी| जब ऋतू बहार आई तो वो अब भी नंगी ही थी;

मैं: जान अब तो कपडे पहन लो?

ऋतू: क्यों? (हैरानी से)

मैं: हॉस्टल नहीं जाना?

ये सुनते ही ऋतू का चेहरा उतर गया और उसका सर झुक गया| मुझसे उसकी ये उदासी सही नहीं गई तो मैंने जा कर उसे अपने गले से लगा लिया और उसके सर को चूमा|

ऋतू: आज भर और रुक जाऊँ? (उसने रुनवासी होते हुए कहा|)

मैं: जान! समझा करो?! देखो आपको कॉलेज भी तो जाना है?

ऋतू: आप उसकी चिंता मत करो मैं साड़ी पढ़ाई कवर अप कर लूँगी|

मैं: और मेरे ऑफिस का क्या? आज की भी मुझे पूरे दिन की छुट्टी नहीं मिली|

ऋतू के आँख में फिर से आँसूँ आ गए थे| अब मैंने उसे अपनी गोद में उठाया और उसे पलंग पर लिटाया और मैं भी उसकी बगल में लेट गया|

मैं: अच्छा तू बता मैं ऐसा क्या करूँ की तुम्हारे मुख पर ख़ुशी लौट आये?

ऋतू: आज का दिन हम साथ रहे|

मैं: जान वो पॉसिबल नहीं है, वरना मैं आपको मना क्यों करता?

ऋतू फिर से उदास होने लगी तो मैंने ही उसका मन हल्का करने की सोची;

मैं: अच्छा मैं अगर तुम्हें अपने हाथ से कुछ बना कर खिलाऊँ तब तो खुश हो जाओगी ना?

ऋतू: (उत्सुकता दिखाते हुए) क्या?

मैं: भुर्जी खाओगी?

ऋतू: Hawwwwww ... आप अंडा खाते हो? घर में किसी को पता चल गया न तो आपको घर से निकाल देंगे!

मैं: मेरे हाथ की भुर्जी खा के तो देखो!

ऋतू: ना बाबा ना! मुझे नहीं करना अपना धर्म भ्रस्ट|

मैं: ठीक है फिर बनाओ जो बनाना है| इतना कह कर मैं बाथरूम में घुस गया और नहाने लगा| नाहा-धो के जब तक मैं ऑफिस के लिए तैयार हुआ तब तक ऋतू ने प्याज के परांठे बना के तैयार कर दिए| पर उसने अभी तक कपडे नहीं पहने थे, मुझे भी दिल्लगी सूझी और मैं ने उसे फिर से पीछे से पकड़ लिया और उसकी गर्दन को चूमने लगा|

ऋतू: इतना प्यार करते हो फिर भी एक दिन की छुट्टी नहीं ले सकते| शादी से पहले ये हाल है, शादी के बाद तो मुझे time ही नहीं दोगे|

मैं: शादी के बाद तो तुम्हें अपनी पलकों अपर बिठा कर रखूँगा| मजाल है की तुम से कोई काम कह दूँ!

ऋतू: सच?

मैं: मुच्!

हमने ख़ुशी-ख़ुशी नाश्ता खाया और वही नाश्ता ऋतू ने पैक भी कर दिया| फिर मैंने उसे पहले उसके कॉलेज छोड़ा और उसके हॉस्टल फ़ोन भी कर दिया की ऋतू कॉलेज में है| फ़टाफ़ट ऑफिस पहुँचा और काम में लग गया| शाम को फिर वही 4 बजे निकला, ऋतू के कॉलेज पहुँचा और मुझे वहाँ देख कर वो चौंक गई| वो भाग कर गेट से बाहर आई और बाइक पर पीछे बैठ गई, हमने चाय पी और फिर उसे हॉस्टल के गेट पर छोड़ा|


अगले दिन सुबह-सुबह ऑफिस पहुँचते ही बॉस ने मुझे बताया की हमें शाम की ट्रैन से मुंबई जाना है| ये सुनते ही मैं हैरान हो गया; “सर पर अमिस ट्रेडर्स की GST रिटर्न पेंडिंग है!"

"तू उसकी चिंता मत कर वो अंजू (बॉस की बीवी) देख लेगी|" बॉस ने अपनी बीवी की तरफ देखते हुए कहा| ये सुन कर मैडम का मुँह बन गया और इससे पहले मैं कुछ बोलता की तभी ऋतू का फ़ोन आ गया और मैं केबिन से बाहर आ गया|

मैं: अच्छा हुआ तुमने फ़ोन किया| मुझे तुम्हें एक बात बतानी थी, मुझे बॉस के साथ आज रात की गाडी से मुंबई जाना है|

ऋतू: (चौंकते हुए) क्या? पर इतनी अचानक क्यों? और.... और कब आ रहे हो आप?

मैं: वो पता नहीं... शायद शनिवार-रविवार....

ये सुन कर वो उदास हो गई और एक दम से खामोश हो गई|

मैं: जान! हम फ़ोन पर वीडियो कॉल करेंगे... ओके?

ऋतू: हम्म...प्लीज जल्दी आना|
 
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update 14

ऋतू बहुत उदास हो गई थी और इधर मैं भी मजबूर था की उसे इतने दिन उससे नहीं मिल पाउँगा| मैं आ कर अपने डेस्क पर बैठ गया और मायूसी मेरे चेहरे से साफ़ झलक रही थी| थोड़ी देर बाद जब अनु मैडम मेरे पास फाइल लेने आईं तो मेरी मायूसी को ताड़ गईं| "क्या हुआ मानु?" अब मैं उठ के खड़ा हुआ और नकली मुस्कराहट अपने चेहरे पर लाके उनसे बोला; "वो मैडम ... दरअसल सर ने अचानक जाने का प्लान बना दिया| अब घर वाले ..." आगे मेरे कुछ बोलने से पहले ही मैडम बोल पड़ीं; "चलो इस बार चले जाओ, अगली बार से मैं इन्हें बोल दूँगी की तुम्हें एडवांस में बता दें| अच्छा आज तुम घर जल्दी चले जाना और अपने कपडे-लत्ते ले कर सीधा स्टेशन आ जाना|" तभी पीछे से सर बोल पड़े; "अरे पहले ही ये जल्दी निकल जाता है और कितना जल्दी भेजोगे?" सर ने ताना मारा| "सर क्या करें इतनी सैलरी में गुजरा नहीं होता| इसलिए पार्ट टाइम टूशन देता हूँ|" ये सुनते ही मैडम और सर का मुँह खुला का खुला रह गया| सर अपना इतना सा मुँह ले कर वापस चले गए और मैडम भी उनके पीछे-पीछे सर झुकाये चली गईं| खेर जैसे ही 3 बजे मैं सर के कमरे में घुसा और उनसे जाने की अनुमति माँगी| "इतना जल्दी क्यों? अभी तो तीन ही बजे हैं?" सर ने टोका पर मेरा जवाब पहले से ही तैयार था| "सर कपडे-लत्ते धोने हैं, गंदे छोड़ कर गया तो वापस आ कर क्या पहनूँगा?" ये सुनते ही मैडम मुस्कुराने लगी क्योंकि सर को मेरे इस जवाब की जरा भी उम्मीद नहीं थी| "ठीक है...तीन दिन के कपडे पैक कर लेना और गाडी 8 बजे की है, लेट मत होना|" मैंने हाँ में सर हिलाया और बाहर आ कर सीधा ऋतू को फ़ोन मिलाया पर उसने उठाया नहीं क्योंकि उसका लेक्चर चल रहा था| मैं सीधा उसके कॉलेज की तरफ चल दिया और रेड लाइट पर बाइक रोक कर उसे कॉल करने लगा| जैसे ही उसने उठाया मैंने उसे तुरंत बाहर मिलने बुलाया और वो दौड़ती हुई रेड लाइट तक आ गई|


बिना देर किये उसने रेड लाइट पर खड़ी सभी गाडी वालों के सामने मुझे गले लगा लिया और फूट-फूट के रोने लगी| मैंने अब भी हेलमेट लगा रखा था और मैं उसकी पीठ सहलाते हुए उसे चुप कराने लगा| "जान... मैं कुछ दिन के लिए जा रहा हूँ| सरहद पर थोड़े ही जा रहा हूँ की वापस नहीं आऊँगा?! मैं इस संडे आ रहा हूँ... फिर हम दोनों पिक्चर जायेंगे?" मेरे इस सवाल का जवाब उसने बीएस 'हम्म' कर के दिया| मैंने उसे पीछे बैठने को कहा और उसे अपने घर ले आया, वो थोड़ा हैरान थी की मैं उसे घर क्यों ले आया पर मैंने सोचा की कम से कम मेरे साथ अकेली रहेगी तो खुल कर बात करेगी| वो कमरे में उसी खिड़की के पास जा कर बैठ गई और मैं उसके सामने घुटनों के बल बैठ गया और उसकी गोद में सर रख दिया| ऋतू ने मेरे सर को सहलाना शुरू कर दिया और बोली;

ऋतू: संडे पक्का आओगे ना?

मैं: हाँ ... अब ये बताओ क्या लाऊँ अपनी जानेमन के लिए?

ऋतू: बस आप आ जाना, वही काफी है मेरे लिए|

उसने मुस्कुराते हुए कहा और फिर उठ के मेरे कपडे पैक करने लगी| मैंने पीछे से जा कर उसे अपनी बाँहों में जकड़ लिया| मेरे जिस्म का एहसास होते ही जैसे वो सिंहर उठी| मैंने ऋतू की नंगी गर्दन पर अपने होंठ रखे तो उसने अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन के पीछे ले जा कर जकड़ लिया| हालाँकि उसका मुँह अब भी सामने की तरफ था और उसकी पीठ मेरे सीने से चुपकी हुई थी| आगे कुछ करने से पहले ही मेरे फ़ोन की घंटी बज उठी और मैं ऋतू से थोड़ा दूर हो गया| जैसे ही मैं फ़ोन ले कर पलटा और 'हेल्लो' बोला की तभी ऋतू ने मुझे पीछे से आ कर जकड़ लिया| उसने मुझे इतनी जोर से जकड़ा की उसके जिस्म में जल रही आग मेरी पीठ सेंकने लगी| "सर मैं आपको अभी थोड़ी देर में फ़ोन करा हूँ, अभी मैं ड्राइव कर रहा हूँ|" इतना कह कर मैंने फ़ोन पलंग पर फेंक दिया और ऋतू की तरफ घूम गया| उसे बगलों से पकड़ कर मैंने उसे जैसे गोद में उठा लिया| ऋतू ने भी अपने दोनों पैरों को मेरी कमर के इर्द-गिर्द जकड़ लिया और मेरे होठों को चूसने लगी| मैंने अपने दोनों हाथों को उसके कूल्हों के ऊपर रख दिया ताकि वो फिसल कर नीचे न गिर जाए| ऋतू मुझे बेतहाशा चुम रही थी और मैं भी उसके इस प्यार का जवाब प्यार से ही दे रहा था| मैं ऋतू को इसी तरह गोद में उठाये कमरे में घूम रहा था और वो मेरे होठों को चूसे जा रही थी| शायद वो ये उम्मीद कर रही थी की मैं उसे अब पलंग पर लिताऊँगा, पर मेरा मन बस उसके साथ यही खेल खेलना चाहता था|

ऋतू: जानू...मैं आपसे कुछ माँगूँ तो मन तो नहीं करोगे ना? (ऋतू ने चूमना बंद किया और पलकें झुका कर मुझ से पूछा|)

मैं: जान! मेरी जान भी मांगोंगे तो भी मना नहीं करूँगा| हुक्म करो!

ऋतू: जाने से पहले आज एक बार... (इसके आगे वो बोल नहीं पाई और शर्म से उसने अपना मुँह मेरे सीने में छुपा लिया|)

मैं: अच्छा जी??? तो आपको एक बार और मेरा प्यार चाहिए???
ये सुन कर ऋतू बुरी तरह झेंप गई और अपने चेहरे को मेरी छाती में छुपा लिया| अब अपनी जानेमन को कैसे मना करूँ?
 
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update 15 (1)

मैंने ऋतू को गोद में उठाये हुए ही उसे एक खिड़की के साथ वाली दिवार के साथ लगा दिया| ऋतू ने अपने हाथ जो मेरी पीठ के इर्द-गिर्द लपेटे हुए थे वो खोल दिए और सामने ला कर अपने पाजामे का नाडा खोला| मैंने भी अपने पैंट की ज़िप खोली और फनफनाता हुआ लंड बाहर निकाला| ऋतू ने मौका पाते ही अपनी दो उँगलियाँ अपने मुँह में डाली और उन्हें अपने थूक से गीला कर अपनी बुर में डाल दिया| मैंने भी अपने लंड पर थूक लगा के धीरे-धीरे ऋतू की बुर में पेलने लगा| अभी केवल सुपाड़ा ही गया होगा की ऋतू ने खुद को मेरे जिस्म से कस कर दबा लिया, जैसे वो चाहती ही ना हो की मैं अंदर और लंड डालूँ| दर्द से उसके माथे पर शिकन पड़ गई थी, इसलिए मैं ने उसे थोड़ा समय देते हुए उसके होठों को चूसना शुरू कर दिया| जैसे ही मैंने अपनी जीभ ऋतू के मुँह में पिरोई की उसने अपने बदन का दबाव कम किया और मैं ने भी धीरे-धीरे लंड को अंदर पेलना शुरू किया| ऋतू ने मेरी जीभ की चुसाई शुरू कर दी थी और नीचे से मैंने धीरे-धीरे लंड अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया था| पाँच मिनट हुए और ऋतू का फव्वारा छूट गया और उसने मुझे फिर से कस कर खुद से चिपटा लिया| पाँच मिनट तक वो मेरे सीने से चिपकी रही और अपनी उखड़ी साँसों पर काबू करने लगी| मैंने उसके सर को चूमा तो उसने मेरी आँखों में देखा और मुझे मूक अनुमति दी| मैंने धीरे-धीरे लंड को अंदर बहार करना चालू किया और धीरे-धीरे अपनी रफ़्तार बढ़ाने लगा| ऋतू की बुर अंदर से बहुत गीली थी इसलिए लंड अब फिसलता हुआ अंदर जा रहा था| दस मिनट और फिर हम दोनों एक साथ झड़ गए| ऋतू ने फिर से मुझे कस कर जकड़ लिया और बुरी तरह हाँफने लगी| उसे देख कर एक पल को तो मैं डर गया की कहीं उसे कुछ हो ना जाये| मैंने उसे अपनी गोद से उतारा और कुर्सी पर बिठाया और उसके लिए पानी ले आया| पानी का एक घूँट पीते ही उसे खाँसी आ गई तो मैंने उसकी पीठ थप-थापाके उस की खाँसी रुक वाई| "क्या हुआ जान? तुम इतना हाँफ क्यों रही हो? कहीं ये आई-पिल का कोई रिएक्शन तो नहीं?" मैंने चिंता जताते हुए पूछा|

"ओह्ह नो! वो तो मैं लेना ही भूल गई!" ऋतू ने अपना सर पीटते हुए कहा|

"पागल है क्या? वो गोली तुझे 72 घंटों में लेनी थी! कहाँ है वो दवाई?" मैंने उसे डाँटते हुए पूछा तो उसने अपने बैग की तरफ इशारा किया| मैंने उसका बैग उसे ला कर दिया और वो उसे खंगाल कर देखने लगी और आखिर उसे गोलियों का पत्ता मिल गया और मैंने उसे पानी दिया पीने को| पर मेरी हालत अब ख़राब थी क्योंकि उसे 72 घंटों से कुछ ज्यादा समय हो चूका था| अगर गर्भ ठहर गया तो??? मैं डर के मारे कमरे में एक कोने पर जमीन पर ही बैठ गया| ऋतू उठी अपने कपडे ठीक किये और मेरे पास आ गई और मेरी बगल में बैठ गई| "कुछ नहीं होगा जानू! आप घबराओ मत!" उसने अपने बाएं हाथ को मेरे कंधे से ले जाते हुए खुद को मुझसे चिपका लिया|
 
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update 15 (2)

मेरी आँखें नम हो चलीं थीं, पर आंसुओं को मैंने बाहर छलकने नहीं दिया और खुद को संभालते हुए मैं उठ के खड़ा हुआ और बाथरूम में मुँह धोने घुसा| जब बाहर आया तो ऋतू मायूस थी; "जानू! आप मुझसे नाराज हो?" मैंने ना में सर हिलाया तो वो खुद आ कर मेरे गले लग गई| आगे हम कुछ बात करते उससे पहले ही बॉस का फ़ोन आ गया और वो मुझसे कुछ पूछने लगे| इधर ऋतू ने मेरे बैग में कपडे सेट कर के रख दिए थे और खाने के लिए सैंडविच बना रही थी| बॉस से बात कर के मैं वहीँ पलंग पर बैठ गया और मन ही मन ये उम्मीद करने लगा की ऋतू अभी गर्भवती ना हो जाये| मेरी चिंता मेरे चेहरे से झलक रही थी तो ऋतू मेरे सामने हाथ बांधे कड़ी हो गई और मेरी तरफ बिना कुछ बोले देखने लगी| मैं अपनी चिंता में ही गुम था और जब मैंने पाँच मिनट तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तो वो मेरे नजदीक आई, अपने घुटने नीचे टिका कर बैठी और मेरी ठुड्डी ऊपर की| "क्यों चिंता करते हो आप? कुछ नहीं होगा! आप बस जल्दी आना, मैं यहाँ आपका बेसब्री से इंतजार करुँगी|" इतना कह कर उसने मेरे होठों को चूमा और मेरे निचले होंठ को चूसने लगी| मैंने जैसे-तैसे खुद को संभाला और ऋतू के होठों को चूसने लगा| दो मिनट बाद मैं उठ खड़ा हुआ, अपने कपडे बदले और फिर ऑटो कर के पहले ऋतू को हॉस्टल छोड़ा| फिर उसी ऑटो में मैं स्टेशन आ गया, पर ऋतू मेरी चिंता भाँप गई थी इसलिए उसने आधे घंटे बाद ही मुझे कॉल कर दिया| पर ये कॉल उसने अपने मोबाइल से नहीं बल्कि मोहिनी के नंबर से किया था;

मैं: हेल्लो?

ऋतू: आप पहुँच गए स्टेशन?

मैं: हाँ... बस अभी कुछ देर हुई|

ऋतू: अकेले हो? कुछ बात हो सकती है?

मैं: हाँ बोलो?

ऋतू: वो मुझे आपसे कुछ पूछना था, एकाउंट्स को ले कर|

और फिर इस तरह उसने मुझसे सवाल पूछना शुरू कर दिए| पार्टनरशिप एकाउंट्स में उसे JLP पर डाउट थे| हम दोनों बात ही कर रहे थे की वहाँ सर और मैडम आ गए| अब चूँकि वो मेरे पीछे से आये थे तो उन्होंने मेरी JLP को लेके कुछ बातें सुन ली थी और वो ये समझे की मैं अपने स्टूडेंट से बात कर रहा हूँ| जिस बेंच पर मैं बैठा था उसी पर जब उन्होंने सामान रखा तो मैं चौंक गया और ऋतू को ये बोलके फ़ोन काट दिया की मैं थोड़ी देर बाद कॉल करता हूँ|

अनु मैडम: अरे! तुम तो ऑन-कॉल भी पढ़ाते हो?

ये सुन कर मैं और मैडम दोनों हँसने लगे पर सर को ये हँसी फूटी आँख न भाई|

सर: अच्छा मानु सुनो, मैं नहीं जा पाउँगा तो ऐसा करो तुम और अनु चले जाओ| वहाँ से तुम्हें अँधेरी वेस्ट जाना है, वहाँ तुम्हें Palmer Infotech जाना है जहाँ पर एक टेंडर के लिए मीटिंग रखी गई है| PPTs मैं तुम दोनों को मेल कर दूँगा, ठीक है? राखी तुम दोनों को वहीँ मिलेगी|

मैंने जवाब में सिर्फ हाँ में गर्दन हिलाई और सर ने मुझे टिकट का प्रिंटआउट दे दिया| इतना कह कर सर चले गए और मैडम और मैं उसी बेंच पर बैठ गए| मैडम ने तो कोई नावेल निकाल ली और वो उसे पढ़ने लगी और इधर ऋतू ने फिर से फ़ोन खनखा दिया और मैं थोड़ी दूर जा कर उससे बात करने लगा| जब मैंने उसे बताया की मैडम और मैं एक साथ जा रहे हैं तो वो नाराज हो गई|

ऋतू: आपने तो कहा था सर जा रहे हैं तो ये मैडम कहाँ से आईं?

मैं: यार वो बॉस की वाइफ हैं, कुछ काम से वो नहीं जा रहे इसलिए उन्हें भेजा है|

ऋतू: What’s her name?
मैं: अनु मैडम

ऋतू: Age?

मैं: I don’t know… maybe 30, 35… I don’t know! (मैंने झुंझलाते हुए कहा|)

ऋतू: How does she look like?

मैं: What?

ऋतू: I mean her figure, bust size etc!

मैं: Are you mad? She’s my boss’s wife.

ऋतू: वो सब मुझे नहीं पता, दूर रहने उससे|

मैं: ओह हेल्लो मैडम! मैं उनके साथ ऑफिस ट्रिप पर जा रह हूँ घूमने नहीं जा रहा|

ऋतू: जो तो उसी के साथ रहे हो ना?

मैं: पागल जैसे तुम सोच रही हो वैसा कुछ भी नहीं हैं| वो बस मेरी बॉस है!

ऋतू आगे कुछ बोलने वाली थी पर फिर चुप हो गई और फ़ोन रख दिया| साफ़ था वो जल भून कर राख हो गई थी| मैं वापस बेंच पर बैठने जा रहा था की उसने मुझे वीडियो कॉल कर दिया| मैंने क्योंकि हेडफोन्स पहने थे तो मैंने कॉल उठा लिया|

ऋतू: मुझे देखन है आपकी अनु मैडम को?!

मैं: तू पागल है क्या? किसी ने देख लिया तो?

ऋतू: आपको मेरी कसम!

मैंने हार मानते हुए चुपके से दूर से ऋतू को अनु मैडम का चेहरा दिखाया| ठीक उसी समय मैडम ने मेरी तरफ देखा और हड़बड़ी में मैंने कॉल काट दिया| पर मैडम को लगा की मैं सेल्फी ले रहा हूँ इसलिए उन्होंने बस मुस्कुरा दिया|ऋतू ने आग बबूला हो कर दुबारा कॉल किया और मुझ पर बरस पड़ी;

ऋतू: ये किस एंगल से मैडम लग रही हैं? ये तो मॉडल हैं मॉडल! मैं ना..... आह! (ऋतू गुस्से में चीखी|)

मैं: जान! एक टेंडर के लिए....

ऋतू: (मेरी बात काटते हुए) उससे दूर रहना बातये देती हूँ! वरना उसका मुँह नोच लुंगी!

इतना कह कर उसने फ़ोन काट दिया| मुझे उसकी इस नादानी पर प्यार आ रहा था और मैंने उसे दुबारा फ़ोन किया और उसके कुछ बोलने से पहले ही मैंने उसे फ़ोन ओर एक जोरदार "उउउउम्मम्मम्मम्माआआअह्ह्ह्हह" दिया| ये सुनते ही वो पिघल गई और मैंने उसे यक़ीन दिला दिया की उसे चिंता करने की कोई जर्रूरत नहीं है| मुझ पर सिर्फ और सिर्फ उसका अधिकार है!
 

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