Adultery कानपुर से गोवा : एक यात्रा वृतांत

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नमस्कार दोस्तो
एक लघु कथा के साथ फिर से हाजिर हू यहा ।
हालकि ये कहानी हास्य व्यंग्य से भरपुर एक ड्रामा स्टोरी है । मगर फोरम पर कोई उचित prefix ना मिलने के कारण इसे ऐडल्टरी मे रखा है मैने ।
मेरा फोरम के पदासीनो से आग्रह है कि वो स्टोरी सेक्शन के एक और PREFIX रखे ... STORY
जहा लेखक को किसी तरह के prefix मे बन्ध कर नही बल्कि खुले दिल और पुर्ण से अपने विचारो को अभिवक्ति कर सके ।

ये कथा भी फोरम के सभी prefix से हट कर एक comedy से भरपुर लघुकथा है ।
उम्मिद है आप सभी को पसंद आयेगी ।
 
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अनुनय-विनय एवं लवड़ा-लह्सन
इस कहानी के पात्र , घटनाये , स्थान सभी पुर्ण रूप से लेखक का चुतियापा है और इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति, जाति धर्म प्रथा से कोई संबंध नहीं है। ये कहानी लिखते वक़्त दिमाग का जरा भी इस्तेमाल नही किया गया है तो पाठको से निरोध है कि वो भी इसे बिना दिमाग के ही पढे ।

परिचय

बृजकिशोर तिवारी : पेशे से गणित के अध्यापक है और स्वभाव से थोडे चिडचिडे किस्म के है इसिलिए इनकी बडी खिचाई होती है । मगर अपनी पत्नी मालती से खासा मोह है और अक्सर उसके शब्दो और स्पर्शो के जाल मे तिवारी जी फसते रह्ते है ।
अशरफीलाल वर्मा : थोडे गंभीर स्व्भाव मगर छुपारुस्तम इन्सान है ।
बैजनाथ चौरसिया : ढिठ और एक नम्बर का स्वार्थी और कंजूस , हिस्से मे आया एक ढेला भी ना दे किसी को ।
रामखिलावन यादव : मस्तमौला और ग्रुप का सबसे चंचलवृति वाला आदमी

सब के सब कनपुरिये बकलण्ड है और GGIC यानी राजकिय कन्या इंटर कालिज , चुन्नीगंज कानपुर मे अध्यापक है । सब 50+ उम्र पार कर लिये और एक नम्बर के ठरकी है यहा तक कि इनके व्हाट्सअप ग्रुप का नाम भी THE THARKI TEACHERS है ।
ये कहानी वैसे तो चार ठरकी दोस्तो की है लेकिन मूल रूप से इसके मुख्य किरदार बृजकिशोर तिवारी जी होंगे और उन्ही के सन्दर्भ में ये कहानी चलेगी ।


सफ़र की शुरुआत

संध्या काल का समय था और बृजकिशोर तिवारी तेजी से कदम बढ़ाते हुए घर की ओर ऐसे चले जा रहे थे मानो दीर्घशंका अपनी मर्यादा लांघकर उनकी नयी स्त्री की हुई धोती पर अपनी पीली छाप छोडने वाली हो ।
दरवाजे पर पहुचते ही तिवारी जी ने कुंडा खड़का कर कन्धे पर रखे केसरिया गमछे से माथे पर रसते हुए पसीने को थपथपा कर पोछा और वापस से कुंडा खड़का दिया ।

तभी सामने से बृजकिशोर तिवारी की धर्मपत्नी मालती देवी ने दरवाजा खोला - जे आप आ गये
तिवारी जी थोड़ा खुद को सामान्य रखते हुए बिना मालती से नजर मिलाये घर मे प्रवेश करते हुए - अ ब ब हा हा , जरा एक गिलास पानी लयि आओ

मालती फटाफट रसोई से ग्लास मे पानी लाकर देती है जिसे तिवारी जी एक सास मे गले तक उतार लेते है । मालती थोडा उलझन भरे भाव तिवारी जी की हालत पर गौर करती है लेकिन कुछ सवाल जवाब नही करती है ।

पानी का ग्लास खाली करने और गला तर करने के बाद तिवारी जी थोडा मालती से नजरे चराते हुए - अच्छा सुनो सरोज की अम्मा !! वो जो बबुवा नवा पिठ्ठु बैग लावा है उसमे दो जोड़ी कपडे बान्ध दयो ।

मालती को बहुत आश्चर्य हुआ और वो थोडा परेशान होते हुए - का हुआ जी , सब ठीक है ना

तिवारी जी थोडा अटके लेकिन फिर कुछ सोच कर - हा हा सरोज की अम्मा सब ठीक है ,, ऊ का हय कल भोर मा ही हम निकल रहे है अलाहाबाद के लिए

मालती कुछ सोच कर - लेकिन आप तो ई बरस इही कानपुर मा ही नहाए वाले थे ना

तिवारी थोडा खीझ कर - हा तो उसमे का है , पिलान तो कबहो भी बन सकत है ना
तिवारी - अब देर ना करो , हमाओ सारा बान्ध देओ और खाना लगाओ

मालती तुनक कर - जे मतलब , आप हमको नाही लिया जायेंगे का

तिवारी जी थोडा अटके और समझ गये कि उनकी बीवी का ड्रामा शुरु हो गया इसिलिए बात घुमाने की कोशिस करते है ।

तिवारी जी - अब ऊ का है सरोज की अम्मा , जे हम तो जाने को तैयार ही नही थे लेकिन ऐन मौके पे रामखेलावन ने बिना पुछे टिकट करा दीहिस

बृजकिशोर की बात सुन कर मालती का चेहरा लटक गया तो वो उसका मन बहलाने के लिए मुस्कुरा कर बोले - अरे मन छोटा ना करो । हम तुमाए लिये बनारसी साड़ी लाएंगे उहा से


मालती पहले थोडी चहकी लेकिन फिर कुछ सोच कर - जे आप तो अलाहाबाद जाई रहे ना तो बनारासी साड़ी ??

मालती की बाते सुन कर बृजकिशोर की हृदयगति तेज हो गयी और वो मुह से पानी से अणुओ को गले मे उतारते हुए - का सरोज की अम्मा तुम भी ना , अरे उहा मेला लागत है और साड़ीन की दुकानन भी सजी रहत है

मालती के दिल मे भी मेले को लेके अरमान जाग गये तो थोडा इतरा कर और बृजकिशोर को रिझाने के मकसद से उनके बगल मे बैठते हुए उनकी बाजू थामकर - जे फिर हमको भी लिवा चलिए ना

बृजकिशोर मालती का स्पर्श पाकर सिहर उठे और खुद को बेकाबू पाने लगे ।
लेकिन उन्होंने खुद को सम्भाला और अपनी बाह से मालती का हाथ हटाते हुए - अरे सरोज की अम्मा समझो ,,, इ बेर सिरफ हम मर्द लोगन का ही पोग्राम हुआ है । तुम अगिला साल चलना

मालती बडे उखड़े हुए मन से हा मे सर हिलाया और रसोई मे चली गयी यहा तिवारी जी ने एक गहरी आह्ह भरी और कुछ सोच कर उनके चेहरे की मुस्कान ने अपने क्षेत्रफल मे इजाफा कर लिया ।
थोडी ही देर बाद रात्रि के भोज के बाद पंडित जी गहरी निद्रा मे खो गये ।


दो हफ्ते पहले

लोकेशन - राजकिय कन्या इंटर कालिज का स्टाफरूम
समय - लंच पीरियड

बैजनाथ - अच्छा खेलावन इ बताओ , आने जाने का बन्दोबस्त है

रामखेलावन - अबे उकी चिन्ता ना करो तुम बे ,, कानपुर से गोवा की चार टिकिट का बन्दोबस्त कर दिये है हम

अशर्फीलाल - यार लेकिन एक सम्स्या है
बैजनाथ उखड़ते हुए भाव - अबे याररर अशर्फी भईया तुम्हारा हर बार का रन्डीरोना है, बको का हुई गवा अब
अशर्फीलाल आसपास देखते हुए थोडा दबे आवाज मे खीझकर - ज्यादा अपरपेलयी ना बतियाया करो बैजनाथ,,, साले घर पर का बोल के निक्लोगे हा कुछ सोचे हो

बृजकिशोर अशर्फीलाल की बातो पर सहमती दिखाते हुए थोडा परेशान लहजे मे - हा यार खेलावन ये दिक्कत तो होगी ना कि क्या बहाना बनाकर निकलेंगे हम लोग

रामखेलावन दाँत पीसते हुए दबी आवाज मे - तुम लोग हो एक नम्बर के चुतिया ,,, अबही बोले है कि माघमेला जाने के बहाने निकलेंगे

अशर्फीलाल धीमी आवाज मे - हा लेकिन अगर बच्चे और घर के लोग भी जाने के लिए जिद कर दिये तो ,,, लभेड़ मच जायेगा जान लो

रामखेलावन - ऊ सब हम नाही जानत है , सबको आना है और फला तारीख को सुबह 05:15 की ट्रेन रहेगी

रामखिलावन - और तिवारी तुम खास तौर पर सुनो ,,, तुम जरा अपनी भावनाओ पर काबू रखना,,हग मत देना भौजी के सामने आज ही समझे , याद है ना पिघले साल शिमला वाला पिलान तुम्हारे वजह से ही चौपट हुआ था

बृजकिशोर को अपनी गलती का आभास था तो वो हा मे हुन्कारि भर दिया
और तय किया कि आखिरी समय मे ही वो घर पर मालती को बतायेंगे ताकि उसको मौका ही ना मिले कि वो उन्हे किसी तरह रिझा कर मामला चौपट कर दे ।


सुबह की ट्रेन


आज सुबह 3 बजे तड़के ही पंडित जी की मोबाईल ने तय समय पर melody with vibration वाले tune पर अलार्म बजाना शुरु किया ।

दो बार की रिंग के बाद मालती ने खुद उठ कर तिवारी जी को जगाया और तिवारी जी आवाक होकर उठे ।
आनन फानन मे फटा फट नल पर रखी बालटी को भरा और लेके शौचालय मे घुसे । कुछ पल की बेला बीती , मगर पेट तो साफ हुआ नही इसीलिये जल्दी से नहा धोकर साढ़े तीन बजे तक अपनी पिठ्ठु बैग लेके निकल पड़े चौपाल के पास जहा इन्तजार मे थे उनके कुछ खास मित्रगण ।

बृजकिशोर - अबे यार ये रामखिलावन कहा रह गवा , 05:15 की ट्रेन हय और इ चुतिया लेट करवाये जा रहा है ।

तभी तिवारी जी के सामने पिठ्ठु बैग टाँगे 2 लोगो मे से एक ने बोला - अबे यार तिवारी तुम अफनाओ ना , ऊ टेम्पो लिवाये गवा है आयी रहा है

बृजकिशोर उस व्यकित से मुखातिब होते हुए - हा लेकिन टेम भी तो देखो अशर्फी भईया ,,, पौने चार हुई रहा है ।

तभी सामने एक टेम्पो आती है।

अशर्फीलाल - लेओ आ गवा , तुम झुटहे अफनाये रहत हो ।

तभी वो टेम्पो सामने रुकती है और ड्राईवर के बगल मे बैठा रामखिलावन टेम्पो से बाहर गरदन निकाल कर - अरे सब आई गये का ,,चलो फटाफट बैठो ।

रामखिलावन के आवाज पर पहले लपक कर अशर्फीलाल ने एक किनारे जगह लेली और फिर बैजनाथ भी अन्दर घुस गया , वही जब तिवारी जी ने अन्दर नजर मारी तो बहुत थोडी ही जगह दिख रही थी और उसमे तिवारी जी को अपना कुल्हा सेट होता नजर नही आ रहा था ।

तिवारी जी - अरे यार बैजनाथ तुम बीच मे नही एक किनारे दब के बइठो ,,,तुम्हारा कुल्हा चौड़ा हय यार

बैजनाथ मुह बनाते हुए - अबे यार तिवारी अब इत्ती ठंड मा किनारे ना बईठाओ हमको , पाजामा हल्का है हमारा और हवा उपर जांघन तक जात है ।

रामखिलावन आगे की सीट पर बैठा था वो बृजकिशोर और बैजनाथ की झड़प को देखकर तनमनाते हुए से उतरा - अइसा है सुबह सुबह गुह की मक्खी जईसे भीनभीनाओ ना

रामखिलावन - और तिवारी तुम चलो आगे बईठो , हम बईठ जाते है पिछे ।

बृजकिशोर जी थोडा कुनमुनाते हुए ड्राईवर के बगल मे बैठ गये और रामखिलावन की आवाज पर टेम्पो कानपुर सेंट्रल के लिए हाईवे पकड लिया ।

माघ महीने मे खुली टेम्पो का सफ़र था तो चारो ने साल चादर ओढ़ रखा था लेकिन तिवारी जी का पजामा थोडी देर बाद गरम होना शुरु हो गया ।
कारण था आज बृजकिशोर जी असमय उठ कर शौच के लिये चले गये थे लेकिन पेट साफ हुआ नही और फिर अब भोर की बेला चढ़ रही थी तो तिवारी जी का मौसम बनने लगा था ।

तिवारी जी ने घड़ी देखी अभी 04:40 हो रहा था और वो स्टेशन ने लगभग 2 किमी ही दुर थे ऐसे मे उनकी शंका और जोर पकडना शुरु कर दिया ,, चुतड की गांठ के साथ साथ अंडकोष की नशो मे भी पेसाब का जोर बढने लगा ।

नतिजन तिवारी जी अब हाईवे के ब्रेकर पर खासा नजर रखने लगे और जब भी ब्रेकर आता अपनी चुतड उचका कर झटके से बचने की कोसिस करते

ऐसे मे जब उन्हे चैन नही मिला तो उन्होने स्टेशन से डेढ़ किमी पहले टेम्पो को एक खाली सुनसान जगह रुकवाया और पीने वाले पानी का बोतल लेके हाईवे से सटे नहर की ओर मोबाईल की टॉर्च जला कर निचे उतर गये और पाजामा खोलते हुए बैठ गये ।

यहा टेम्पो मे उनके सारे दोस्त ठहाका ले ले उन्ची आवाज मे तिवारी को बुलाने लगे कि जल्दी करे लेट हो रहा है
लेकिन बृजकिशोर जी दर्द सिर्फ वो ही समझ सकते थे ।

एक तो शारिरीक दबाव से बन्धे हुए सरासर अपनी नीचली नाली को खाली किये जा रहे थे , वही उपर सड़क से उनके दोस्तो ने उन्हे छोड कर जाने की धमकी देनी शुरु कर दी थी ।
नतिजन तिवारी इस दोहरे दबाव से परेशान हो गये थे । और इधर रामखिलावन ने मजाक मे टेम्पो का इंजन शुरु करवा दिया ,,अब तो तिवारी जी की गाड़ फटने के बाद भी टट्टी अटक गयी ।
मन मारकर तिवारी जी ने गालिया बकते हुए फटाफट चुतड धोकर उपर आने लगे।
मगर रामखिलावन मजे लेने के लिये टेम्पो को 10 मीटर आगे चलवा दिया ।

तिवारी जी तेजी से चिल्लाते हुए टेम्पो की ओर भागे - अबे मादरचोदो रोको बे ,

पूरी सवारी ने हस के मस्त हुई जा रही थी , तिवारी जी ने दौड़ कर आगे की सीट पकड़ी और खुद की सांसो को बराबर करने लगे ।
स्टेशन आने तक पंडित जी खिलावन को कुछ पारिवारिक संबंधो से जुडी अनुचित वक्तव्य सुनाते रहे मगर खिलावन ने बुरा नही माना ।

खैर समय बीता और सब लोग स्लिपर बोगी मे रिजर्व अपने अपने सीट पकड़ लिये और चादर तान लिये ।
ठंड का मौसम था तो सोना ही सबने बेहतर समझा और गाडी स्टेशन दर स्टेशन पटरी बदलती आगे बढती रही ।


इटारासी से भुसावल

दस घंटे से उपर का समय बीत चुका था और शाम के करीब 4 बज रहे थे । तिवारी जी ट्रेन इटारसी जनशन पर रुकी हुई थी और सारे दोस्त उपर की बर्थ छोड कर निचे की शीट पर बैठे हुए गप्पे हाक रहे थे ।

लेकिन इनसब के बीच अशर्फीलाल वर्मा की जौहरी निगाहे खिड़की से बाहर प्लेटफॉर्म टहलती भीड़ मे हीरे की तालाश कर रही थी कि कही से कोई चमचमाती सिल्क साड़ी मे कोई ग्लैमर दिख जाये ।

तभी अशर्फीलाल की आंखे चमकी और वो वापस अपनी सीट पर सही से बैठते कुर्ते की कालर को ठिक करते हुए बालो को सहेजा कि तभी बोगी मे एक दम्पति जोडा तिवारी जी के कंपार्टमेन्ट के सामने रुका ।
चारो रन्गबाजो की नजरे एक साथ उस बला सी चमकती मतवाली मोटे नैनो वाली के हसिन चेहरे से उसके सभी उतार चढ़ाव पर नाचाने लगी ।

उस महिला ने जब उन चारो पर ध्यान दिया कि उनकी नाचती पुतलिया उसके हुस्न के भवर मे अटक गयी तो अनायास उसकी हसी फूट पड़ी ।

अशर्फीलाल - अ ब ब भाईसाहब का हुआ ,,कौन सा नम्बर सीट है आपका

आदमी थोडा झिझकते हुए - दरअसल भाई साहब हमारी टिकट वेटिंग मे है और मेरी बीवी को भुसावल तक एक जरुरी काम से जाना पड़ रहा है ।

अशर्फीलाल की आंखे चम्की - ओह्ह्ह तो इसमे परेशान होने वाली क्या बात है ,,,आप भाभी जी यही बिठा दीजिये और 4 5 घन्टे का सफ़र है कट जायेगा

वो आदमी अपनी बिवी को एक नजर देख कर उसकी सहमती जानने की कोसिस करता है तो वो औरत मुस्कुरा कर हा मे इशारा कर देती है ।

अशर्फीलाल की आंखे एक बार फिर से चमक उठती और एक शरारती मुस्कान के साथ वो अपने बाकी मित्रो की ओर देखता है तो उसे सब लार टपकाते नजर आते है ।

इधर खेलावन ने लपक कर उस औरत का बैग पकडता है - लाजिये भाभी जी ,,,मुझे दीजिये मै इसे साइड मे रख देता हू ।

फिर वो आदमी सबको धन्यवाद बोलकर निकल जाता है और वो औरत कम्पार्टमेंट मे नजर घुमा कर बैथने की जगह देखती है

अशर्फीलाल मौका देख कर अपने बगल मे बैठे तिवारी जी की कमर मे खोदते हुए - अरे तिवारी जी देख क्या रहे है उठिए ,,,वहा सामने वाली सीट पर जाईये भाई ।

तिवारी जी थोडा मुह बिचका कर अशर्फीलाल का हरामपन से मुस्कुराता चेहरा देख्ते है और खडे हो जाते है ।

तभी तिवारी जी की नजर उस महिला के उपर के पहाडी दरारो पर गयी और तुंरत उन्होने अपनी कल्पना मे उठे त्रिकोणमिति के एक प्रशन को फटाफट हल करते हुए निचे बैठने के बजाय उपर के बर्थ पर चढ गये ।

तिवारी के उपर जाते ही बाकी के सभी लोग समझ गये कि तिवारी ने अपना कैलकुलेसन कर लिया है और अब वो object A औ B के बीच की उचाई और दुरी बखूबी मापेगा ।
कुछ मिनटो मे हॉर्न बजा और ट्रेन ने अपनी गति पकड ली ।
इधर चारो सिविल इन्जीनियर उस गलैमरस ऑब्जेक्ट का टॉप , साइड और फ़्रंट व्यू का मुआयना करते रहे ।

बीच बीच में अशर्फीलाल उस महिला से बाते करता रहा , जबकि उपर लेटे हुए तिवारी जी अपनी त्रिकोणमिति के सवाल के हल के काफी करीब पहुच गये थे और कुर्ते के निचे हाथ रखे हुए ऊँगलीयो से कुछ गणना किये जा रहे थे ।

खैर थोडी देर बाद तिवारी निचे उतरे और कान मे जनेऊ लपेटते हुए बोगी के शौचालय की ओर बढ़ लिये और इधर मौका पाते ही बैजनाथ ने उपर चढ गया और उसकी आंखे चमक उठी ,,,थोडे थोडे अंतराल के बाद बारी बारी से बैजनाथ फिर रामखेलावन और फिर अशर्फीलाल भी शौचालय से निबट लिये ।
फिर चारो रात 8 बजे तक नीचे ही बैठे रहे जब तक ट्रेन भुसावल जनशन पर नही पहुच गयी ।

भुलावल जनशन आते ही अशर्फीलाल खुद उस महिला का बैग लेके निचे तक छोडने गया और बाकी तीनो बेगाने खिडकी मे मुह डाले आखिर तक उस चंचल हसिना के चौडे कुल्हो का दोलन आंदोलन निहारते रहे ।

भुसावल जनशन से अपने सहयात्रि को बिदा करने के बाद सब लोग अपने अपने जगह पर बैठ गये ,, सबने एक दुसरे को देखा और जोर का ठहाका लगाया ।

गाडी की हॉर्न बजी और ट्रेन अपनी गन्तव्य की ओर बढ़ने लगी ।
रात ढलने के कारण सभी लोग खाना खाकर अपने अपने बर्थ पर चादर तान कर लम्बे हो गये ।

अगली सुबह 4 बजे तड़के ही गाडी छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मीनस पर खड़ी हो गयी ।
यात्रियो की चहल पहल से चारो की नीद खुली सब लोग फटाफट अपना बैग लेके प्लेटफार्म 15 पर उतरे ।

तिवारी जी - यार खिलावन अब आगे कहा जाना हय कुछ तय किये हो

रामखिलवान - तय का करना है यार,,, अब उतरे हो टट्टी पेसाब कर लयो ,,मन हो नहा लयो और फिर कुछ नाश्ता पानी करके बस पकड के सीधे बाम्बे टू....

बैजनाथ खिलावन की बात पूरी होने से पहले ही चहक कर कमर हिलाते हुए - गोवा वाले बिच पे , रानी फ़ोटो खिच के

बैजनाथ की उत्सुकता और चहकपने सबने ठहाका लगाया ।


बाम्बे टू गोवा

अगले कुछ पलो मे सभी लोग उसी स्टेशन के पास मे बने एक सार्वजनिक शौचालय की लाईन मे लगे थे। सर्दियो मे हरि मटर और मूली ने तिवारी जी को खासा तंग कर रखा था और सुबह की बेला चढ रही थी तो कुछ प्राकृतिक दबाव भी अंदर ही अंदर बढ रहा था । हर एक से डेढ़ मिंट के अन्तराल पर तिवारी जी का कुरता पीछे की तरफ कुछ गरम आंतरिक हवा के प्रेशर से तेज गर्जना के साथ उठ जाया करता था और जांघो मे एक गरमाहत का अह्सास होता था ।
मगर तिवारी जी के पीछे खडे बैजनाथ को जरा भी अच्छा मह्सूस नही हो रहा था ।
चेहरे पर गम्छा लपेटने बावजूद भी उपर से हाथ रखने की नौबात बनी हुई थी ।

तभी शौचालय का दरवाजा खुला और तिवारी जी के आगे खडे अशर्फी भैया जैसे ही अन्दर घूसने वाले थे कि बैजनाथ ने टोका

बैजनाथ मुह पर लपेटे गमछे पर हाथ रखते हुए - अरे अशर्फी भैया तनिक रुक जाओ , जरा तिवारी जी को निबट लेन देओ ,, जाओ तिवारी जल्दी करो

तिवारी जी की स्थिति ये ना थी कि वो बैजनाथ से कोई वाद विवाद करे ,,, वो पहले ही एक प्राकृतिक दबाव तले झुके जा रहे थे । मौका मिलते ही लपक कर घुस गये ।

बाहर अशर्फी मुह पर गम्छा दबाते हुए - का हुआ बैजनाथ कुछ बात रही का
तभी अन्दर पड़पडाने की तेज गर्जना हुई
बैजनाथ बाथरूम की ओर इशारा करके - देखो यही बात रही ,, हा यार हर आधा मिंट मे भुट्ट भाय्य्ं पादे जा रहा

अशर्फी बैजनाथ की बात सुन कर गमछे के अन्दर ही हसने लगा ।

खैर थोडे समय बाद सभी जन नहा धो कर एक ढाबे पर गये और वहा भर पेट ताजा नासता किया । फिर एक वॉल्वो बस से बाम्बे टू गोवा के लिए निकल पड़


मोहिनी लाज


करीब दस घंटे के लम्बे और थका देने वाले सफ़र के बाद सारे लोग देर शाम तक बागा बस स्टाप पर पहुचे ।

बस स्टैंड पर उतरते ही रंग बिरंगी रोशनी और डीजे के बेस पर उछल कूद करने वाले इस अनोखी दुनिया मे चारो लोग प्रवेश कर चुके थे ।
मगर सफ़र की थकान ने इतना चुर कर दिया था । इच्छा रहते हुए भी किसी की हिम्मत नही हुई कि पास के बिच पर जाकर नाइटशो का मजा ले सके ।

खैर सभी लोग पास मे एक लाज मे शरण लेते है और एक ही एक डबल बेड का कमरा बुक किया जाता है ।
थोडी देर बाद खाना खाने के बाद सबके बदन मे जान आ जाती है और चेहरे खिल उठते है ।
फिर चारो लोग दो अलग अलग कम्बल मे लेटते है ।

बैजनाथ और अशर्फी एक कम्बल मे , तिवारी और खेलावन एक मे ।
बाकी सब थोडे बातो मे लगे रहे और इधर रामखेलावन को मस्ती सुझी ।

उसने सोने का नाटक शुरु कर दिया और कुछ ही पलो मे नकली खर्राटे लेने लगा ।
मगर तिवारी जी बेचैनी बढने लगी ,,रामखेलावन मे मस्ती मे तिवारी के से चिपके हुआ था ।

तिवारी जी - उम्म्ंम ये खेलावन तनी उधर सोवो यार ,,चढ़े ही जा रहे हो

खेलावन जानबुझ कर कुनमुना कर अपनी टांग तिवारी जी के उपर फेकते हुए - अह्ह्ह रजनी , कहा थी तुम

तिवारी जी भडकते हुए खेलावन का पैर हटाते हुए - ये खेलावन , पगला गये हो का बे , सही से सोवो

इधर दुसरे कम्बल मे बैजनाथ और अशर्फी मुह दबाये हसे जा रहे थे क्योकि वो खेलावन की मस्ती समझ रहे थे ।

इधर खेलावन ने वापस अपनी टांग तिवारी के उपर फेकि और हाथ को उसके सीने के उपर फिराते हुए अपनी बीवी रजनी का नाम लेके कुनमुनाने लगा ।

तिवारी जी को अपनी इज्जत पर बात आती देख तनमना कर उठ खडे हुए और भागकर सोफे पर बैठ गये
यहा खेलावन ह्स्ते हुए उठ कर बैठ गया ।

खेलावन मस्ती भरे मूड मे - का हुआ रजनी कहा चली गयी
खेलावन के इस वक्तव्य पर अशर्फी और बैजनाथ कम्बल मे मुह डाले हस्ते रहे ।

तिवारी अब तेवर दिखाते हुए - अबे यार इ का गाण्दूगिरी पर उतारु हो गये हो तुम खेलावन हमम्म

खेलावन हसने लगता है ।
तिवारी जी उठ कर वापस बिस्तर की ओर आते है ।

तिवारी - ये बैजनाथ तुम खेलावन के साथ सोवो यार

अशर्फी ह्स्ते हुए बैजनाथ को खेलावन के पास जाने का इशारा करता है तो बैजनाथ हस्ता हुआ कम्बल से निकल गया और तिवारी की अशर्फी भईया के साथ हो लिये

अगली सुबह कमरे मे होड़ मची हुई थी , हर कोई आधा घंटा समय लेके बाथरूम मे बदन घिसकर चमकाये जा रहा था और वही तिवारी आयिने के सामने अपनी शेविंग किट खोले दाढ़ी बनाने के बाद मूछ सेट कर रहे थे ।

ऐसे मे रामखेलावन जो भी अभी जान्घिये मे घूम रहा था वो तिवारी के पास जाकर उनकी जिलेट मैच 3 का रेजर लेके कांख मे भिड़ा लिये और तिवारी जी नजर जब अपने महगे रेजर पर गयी तो कैची छोड बिफर पड़े ।

तिवारी झल्लाते हुए - हा झाट भी बना लो उसी से बकचोद साले

रामखेलावन तिवारी जी बातो का बिना बुरा माने बड़े इत्मीनान से - अरे काहे बौराये जा रहे हो तिवारी , कांख छील रहे है इससे गाड़ नही ,,तुम भी ना

तिवारी उतरे हुए मुह से बड़बड़ाये - यार तुमको रेजर चाहिये था तो बताते ना ,,,हम रखे थे एक प्लास्टिक वाला अलग से


रामखेलावन - नाही यार प्लास्टिक वाले से कटने का डर रहता है और इस्से देखो एक दमहे समूथ ,,,लो हो गया

तिवारी चिडचिडाकर अपना शेविंग कीट बंद करते हुए - गाड़ मे डाल लेओ अब इसको

फिर तिवारी जी बडबड़ाते हुए तौलिया लेके बाथरूम मे नहाने के लिये घुस गये ।

खेलावन तिवारी को भडकता देख हसते हुए - अरे dettol लगा दे रहे तिवारी ,,, सुनो तो


खिलवाड़ था चल रहा था , तिवारी जी जह्की स्वभाव के इन्सान थे तो खेलावन मजे ले लेता था ।
खैर थोडी देर बाद सारे लोग नहा धो कर तैयार हुए और फिर नाश्ता करके एक टेम्पो से निकल गये बागा बीच की ओर ।
सबने रंगबिरंगे शर्ट डाले थे और पैंट के निचे चुन्नीगंज ,कानपुर के मशहूर वसिम दर्जी का सिला हुआ धारीदार जांघिया
निकल पड़े थे चारो अतरंगी मिजाज वाले कानपुरिये गोवा बिच का मजा लेने ।


सफ़र का अन्त

कहानी का क्या है शब्दो को जोडते रहो वो आगे बढ़ती रहेगी । मगर कहानी का मजा तब है जब वो लेखक के शब्दो मे नही बल्कि पाठक की कल्पनाओ मे आगे बढे ।

तो कानपुर की गंगा घाट से गोवा की बागा बिच की यात्रा वृतांत को यही विराम देते हैं ।
लेकिन याद रहे विराम सिर्फ लेखक के शब्दो में लगा है आपकी कलपनाओ पर नही ।

आप तो बस आंखे बंद करिये और कल्पना किजीए कि ये चार कनपुरिये अधेड़ उम्र के रंगबाज दोस्त बृजकिशोर तिवारी , अशर्फीलाल वर्मा , बैजनाथ चौरसिया और रामखेलावन यादव
जब अपने स्पेशल धारिदार जान्घिये मे गोवा के बीच पर सनग्लास लगाये हुए घूमेंगे तो क्या नयी कहानिया तैयार होगी ।



धन्यवाद
 
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इस कहानी के पात्र , घटनाये , स्थान सभी पुर्ण रूप से लेखक का चुतियापा है और इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति, जाति धर्म प्रथा से कोई संबंध नहीं है। ये कहानी लिखते वक़्त दिमाग का जरा भी इस्तेमाल नही किया गया है तो पाठको से निरोध है कि वो भी इसे बिना दिमाग के ही पढे ।

परिचय

बृजकिशोर तिवारी : पेशे से गणित के अध्यापक है और स्वभाव से थोडे चिडचिडे किस्म के है इसिलिए इनकी बडी खिचाई होती है । मगर अपनी पत्नी मालती से खासा मोह है और अक्सर उसके शब्दो और स्पर्शो के जाल मे तिवारी जी फसते रह्ते है ।
अशरफीलाल वर्मा : थोडे गंभीर स्व्भाव मगर छुपारुस्तम इन्सान है ।
बैजनाथ चौरसिया : ढिठ और एक नम्बर का स्वार्थी और कंजूस , हिस्से मे आया एक ढेला भी ना दे किसी को ।
रामखिलावन यादव : मस्तमौला और ग्रुप का सबसे चंचलवृति वाला आदमी

सब के सब कनपुरिये बकलण्ड है और GGIC यानी राजकिय कन्या इंटर कालिज , चुन्नीगंज कानपुर मे अध्यापक है । सब 50+ उम्र पार कर लिये और एक नम्बर के ठरकी है यहा तक कि इनके व्हाट्सअप ग्रुप का नाम भी THE THARKI TEACHERS है ।
ये कहानी वैसे तो चार ठरकी दोस्तो की है लेकिन मूल रूप से इसके मुख्य किरदार बृजकिशोर तिवारी जी होंगे और उन्ही के सन्दर्भ में ये कहानी चलेगी ।


सफ़र की शुरुआत

संध्या काल का समय था और बृजकिशोर तिवारी तेजी से कदम बढ़ाते हुए घर की ओर ऐसे चले जा रहे थे मानो दीर्घशंका अपनी मर्यादा लांघकर उनकी नयी स्त्री की हुई धोती पर अपनी पीली छाप छोडने वाली हो ।
दरवाजे पर पहुचते ही तिवारी जी ने कुंडा खड़का कर कन्धे पर रखे केसरिया गमछे से माथे पर रसते हुए पसीने को थपथपा कर पोछा और वापस से कुंडा खड़का दिया ।

तभी सामने से बृजकिशोर तिवारी की धर्मपत्नी मालती देवी ने दरवाजा खोला - जे आप आ गये
तिवारी जी थोड़ा खुद को सामान्य रखते हुए बिना मालती से नजर मिलाये घर मे प्रवेश करते हुए - अ ब ब हा हा , जरा एक गिलास पानी लयि आओ

मालती फटाफट रसोई से ग्लास मे पानी लाकर देती है जिसे तिवारी जी एक सास मे गले तक उतार लेते है । मालती थोडा उलझन भरे भाव तिवारी जी की हालत पर गौर करती है लेकिन कुछ सवाल जवाब नही करती है ।

पानी का ग्लास खाली करने और गला तर करने के बाद तिवारी जी थोडा मालती से नजरे चराते हुए - अच्छा सुनो सरोज की अम्मा !! वो जो बबुवा नवा पिठ्ठु बैग लावा है उसमे दो जोड़ी कपडे बान्ध दयो ।

मालती को बहुत आश्चर्य हुआ और वो थोडा परेशान होते हुए - का हुआ जी , सब ठीक है ना

तिवारी जी थोडा अटके लेकिन फिर कुछ सोच कर - हा हा सरोज की अम्मा सब ठीक है ,, ऊ का हय कल भोर मा ही हम निकल रहे है अलाहाबाद के लिए

मालती कुछ सोच कर - लेकिन आप तो ई बरस इही कानपुर मा ही नहाए वाले थे ना

तिवारी थोडा खीझ कर - हा तो उसमे का है , पिलान तो कबहो भी बन सकत है ना
तिवारी - अब देर ना करो , हमाओ सारा बान्ध देओ और खाना लगाओ

मालती तुनक कर - जे मतलब , आप हमको नाही लिया जायेंगे का

तिवारी जी थोडा अटके और समझ गये कि उनकी बीवी का ड्रामा शुरु हो गया इसिलिए बात घुमाने की कोशिस करते है ।

तिवारी जी - अब ऊ का है सरोज की अम्मा , जे हम तो जाने को तैयार ही नही थे लेकिन ऐन मौके पे रामखेलावन ने बिना पुछे टिकट करा दीहिस

बृजकिशोर की बात सुन कर मालती का चेहरा लटक गया तो वो उसका मन बहलाने के लिए मुस्कुरा कर बोले - अरे मन छोटा ना करो । हम तुमाए लिये बनारसी साड़ी लाएंगे उहा से


मालती पहले थोडी चहकी लेकिन फिर कुछ सोच कर - जे आप तो अलाहाबाद जाई रहे ना तो बनारासी साड़ी ??

मालती की बाते सुन कर बृजकिशोर की हृदयगति तेज हो गयी और वो मुह से पानी से अणुओ को गले मे उतारते हुए - का सरोज की अम्मा तुम भी ना , अरे उहा मेला लागत है और साड़ीन की दुकानन भी सजी रहत है

मालती के दिल मे भी मेले को लेके अरमान जाग गये तो थोडा इतरा कर और बृजकिशोर को रिझाने के मकसद से उनके बगल मे बैठते हुए उनकी बाजू थामकर - जे फिर हमको भी लिवा चलिए ना

बृजकिशोर मालती का स्पर्श पाकर सिहर उठे और खुद को बेकाबू पाने लगे ।
लेकिन उन्होंने खुद को सम्भाला और अपनी बाह से मालती का हाथ हटाते हुए - अरे सरोज की अम्मा समझो ,,, इ बेर सिरफ हम मर्द लोगन का ही पोग्राम हुआ है । तुम अगिला साल चलना

मालती बडे उखड़े हुए मन से हा मे सर हिलाया और रसोई मे चली गयी यहा तिवारी जी ने एक गहरी आह्ह भरी और कुछ सोच कर उनके चेहरे की मुस्कान ने अपने क्षेत्रफल मे इजाफा कर लिया ।
थोडी ही देर बाद रात्रि के भोज के बाद पंडित जी गहरी निद्रा मे खो गये ।


दो हफ्ते पहले

लोकेशन - राजकिय कन्या इंटर कालिज का स्टाफरूम
समय - लंच पीरियड

बैजनाथ - अच्छा खेलावन इ बताओ , आने जाने का बन्दोबस्त है

रामखेलावन - अबे उकी चिन्ता ना करो तुम बे ,, कानपुर से गोवा की चार टिकिट का बन्दोबस्त कर दिये है हम

अशर्फीलाल - यार लेकिन एक सम्स्या है
बैजनाथ उखड़ते हुए भाव - अबे याररर अशर्फी भईया तुम्हारा हर बार का रन्डीरोना है, बको का हुई गवा अब
अशर्फीलाल आसपास देखते हुए थोडा दबे आवाज मे खीझकर - ज्यादा अपरपेलयी ना बतियाया करो बैजनाथ,,, साले घर पर का बोल के निक्लोगे हा कुछ सोचे हो

बृजकिशोर अशर्फीलाल की बातो पर सहमती दिखाते हुए थोडा परेशान लहजे मे - हा यार खेलावन ये दिक्कत तो होगी ना कि क्या बहाना बनाकर निकलेंगे हम लोग

रामखेलावन दाँत पीसते हुए दबी आवाज मे - तुम लोग हो एक नम्बर के चुतिया ,,, अबही बोले है कि माघमेला जाने के बहाने निकलेंगे

अशर्फीलाल धीमी आवाज मे - हा लेकिन अगर बच्चे और घर के लोग भी जाने के लिए जिद कर दिये तो ,,, लभेड़ मच जायेगा जान लो

रामखेलावन - ऊ सब हम नाही जानत है , सबको आना है और फला तारीख को सुबह 05:15 की ट्रेन रहेगी

रामखिलावन - और तिवारी तुम खास तौर पर सुनो ,,, तुम जरा अपनी भावनाओ पर काबू रखना,,हग मत देना भौजी के सामने आज ही समझे , याद है ना पिघले साल शिमला वाला पिलान तुम्हारे वजह से ही चौपट हुआ था

बृजकिशोर को अपनी गलती का आभास था तो वो हा मे हुन्कारि भर दिया
और तय किया कि आखिरी समय मे ही वो घर पर मालती को बतायेंगे ताकि उसको मौका ही ना मिले कि वो उन्हे किसी तरह रिझा कर मामला चौपट कर दे ।


सुबह की ट्रेन


आज सुबह 3 बजे तड़के ही पंडित जी की मोबाईल ने तय समय पर melody with vibration वाले tune पर अलार्म बजाना शुरु किया ।

दो बार की रिंग के बाद मालती ने खुद उठ कर तिवारी जी को जगाया और तिवारी जी आवाक होकर उठे ।
आनन फानन मे फटा फट नल पर रखी बालटी को भरा और लेके शौचालय मे घुसे । कुछ पल की बेला बीती , मगर पेट तो साफ हुआ नही इसीलिये जल्दी से नहा धोकर साढ़े तीन बजे तक अपनी पिठ्ठु बैग लेके निकल पड़े चौपाल के पास जहा इन्तजार मे थे उनके कुछ खास मित्रगण ।

बृजकिशोर - अबे यार ये रामखिलावन कहा रह गवा , 05:15 की ट्रेन हय और इ चुतिया लेट करवाये जा रहा है ।

तभी तिवारी जी के सामने पिठ्ठु बैग टाँगे 2 लोगो मे से एक ने बोला - अबे यार तिवारी तुम अफनाओ ना , ऊ टेम्पो लिवाये गवा है आयी रहा है

बृजकिशोर उस व्यकित से मुखातिब होते हुए - हा लेकिन टेम भी तो देखो अशर्फी भईया ,,, पौने चार हुई रहा है ।

तभी सामने एक टेम्पो आती है।

अशर्फीलाल - लेओ आ गवा , तुम झुटहे अफनाये रहत हो ।

तभी वो टेम्पो सामने रुकती है और ड्राईवर के बगल मे बैठा रामखिलावन टेम्पो से बाहर गरदन निकाल कर - अरे सब आई गये का ,,चलो फटाफट बैठो ।

रामखिलावन के आवाज पर पहले लपक कर अशर्फीलाल ने एक किनारे जगह लेली और फिर बैजनाथ भी अन्दर घुस गया , वही जब तिवारी जी ने अन्दर नजर मारी तो बहुत थोडी ही जगह दिख रही थी और उसमे तिवारी जी को अपना कुल्हा सेट होता नजर नही आ रहा था ।

तिवारी जी - अरे यार बैजनाथ तुम बीच मे नही एक किनारे दब के बइठो ,,,तुम्हारा कुल्हा चौड़ा हय यार

बैजनाथ मुह बनाते हुए - अबे यार तिवारी अब इत्ती ठंड मा किनारे ना बईठाओ हमको , पाजामा हल्का है हमारा और हवा उपर जांघन तक जात है ।

रामखिलावन आगे की सीट पर बैठा था वो बृजकिशोर और बैजनाथ की झड़प को देखकर तनमनाते हुए से उतरा - अइसा है सुबह सुबह गुह की मक्खी जईसे भीनभीनाओ ना

रामखिलावन - और तिवारी तुम चलो आगे बईठो , हम बईठ जाते है पिछे ।

बृजकिशोर जी थोडा कुनमुनाते हुए ड्राईवर के बगल मे बैठ गये और रामखिलावन की आवाज पर टेम्पो कानपुर सेंट्रल के लिए हाईवे पकड लिया ।

माघ महीने मे खुली टेम्पो का सफ़र था तो चारो ने साल चादर ओढ़ रखा था लेकिन तिवारी जी का पजामा थोडी देर बाद गरम होना शुरु हो गया ।
कारण था आज बृजकिशोर जी असमय उठ कर शौच के लिये चले गये थे लेकिन पेट साफ हुआ नही और फिर अब भोर की बेला चढ़ रही थी तो तिवारी जी का मौसम बनने लगा था ।

तिवारी जी ने घड़ी देखी अभी 04:40 हो रहा था और वो स्टेशन ने लगभग 2 किमी ही दुर थे ऐसे मे उनकी शंका और जोर पकडना शुरु कर दिया ,, चुतड की गांठ के साथ साथ अंडकोष की नशो मे भी पेसाब का जोर बढने लगा ।

नतिजन तिवारी जी अब हाईवे के ब्रेकर पर खासा नजर रखने लगे और जब भी ब्रेकर आता अपनी चुतड उचका कर झटके से बचने की कोसिस करते

ऐसे मे जब उन्हे चैन नही मिला तो उन्होने स्टेशन से डेढ़ किमी पहले टेम्पो को एक खाली सुनसान जगह रुकवाया और पीने वाले पानी का बोतल लेके हाईवे से सटे नहर की ओर मोबाईल की टॉर्च जला कर निचे उतर गये और पाजामा खोलते हुए बैठ गये ।

यहा टेम्पो मे उनके सारे दोस्त ठहाका ले ले उन्ची आवाज मे तिवारी को बुलाने लगे कि जल्दी करे लेट हो रहा है
लेकिन बृजकिशोर जी दर्द सिर्फ वो ही समझ सकते थे ।

एक तो शारिरीक दबाव से बन्धे हुए सरासर अपनी नीचली नाली को खाली किये जा रहे थे , वही उपर सड़क से उनके दोस्तो ने उन्हे छोड कर जाने की धमकी देनी शुरु कर दी थी ।
नतिजन तिवारी इस दोहरे दबाव से परेशान हो गये थे । और इधर रामखिलावन ने मजाक मे टेम्पो का इंजन शुरु करवा दिया ,,अब तो तिवारी जी की गाड़ फटने के बाद भी टट्टी अटक गयी ।
मन मारकर तिवारी जी ने गालिया बकते हुए फटाफट चुतड धोकर उपर आने लगे।
मगर रामखिलावन मजे लेने के लिये टेम्पो को 10 मीटर आगे चलवा दिया ।

तिवारी जी तेजी से चिल्लाते हुए टेम्पो की ओर भागे - अबे मादरचोदो रोको बे ,

पूरी सवारी ने हस के मस्त हुई जा रही थी , तिवारी जी ने दौड़ कर आगे की सीट पकड़ी और खुद की सांसो को बराबर करने लगे ।
स्टेशन आने तक पंडित जी खिलावन को कुछ पारिवारिक संबंधो से जुडी अनुचित वक्तव्य सुनाते रहे मगर खिलावन ने बुरा नही माना ।

खैर समय बीता और सब लोग स्लिपर बोगी मे रिजर्व अपने अपने सीट पकड़ लिये और चादर तान लिये ।
ठंड का मौसम था तो सोना ही सबने बेहतर समझा और गाडी स्टेशन दर स्टेशन पटरी बदलती आगे बढती रही ।


इटारासी से भुसावल

दस घंटे से उपर का समय बीत चुका था और शाम के करीब 4 बज रहे थे । तिवारी जी ट्रेन इटारसी जनशन पर रुकी हुई थी और सारे दोस्त उपर की बर्थ छोड कर निचे की शीट पर बैठे हुए गप्पे हाक रहे थे ।

लेकिन इनसब के बीच अशर्फीलाल वर्मा की जौहरी निगाहे खिड़की से बाहर प्लेटफॉर्म टहलती भीड़ मे हीरे की तालाश कर रही थी कि कही से कोई चमचमाती सिल्क साड़ी मे कोई ग्लैमर दिख जाये ।

तभी अशर्फीलाल की आंखे चमकी और वो वापस अपनी सीट पर सही से बैठते कुर्ते की कालर को ठिक करते हुए बालो को सहेजा कि तभी बोगी मे एक दम्पति जोडा तिवारी जी के कंपार्टमेन्ट के सामने रुका ।
चारो रन्गबाजो की नजरे एक साथ उस बला सी चमकती मतवाली मोटे नैनो वाली के हसिन चेहरे से उसके सभी उतार चढ़ाव पर नाचाने लगी ।

उस महिला ने जब उन चारो पर ध्यान दिया कि उनकी नाचती पुतलिया उसके हुस्न के भवर मे अटक गयी तो अनायास उसकी हसी फूट पड़ी ।

अशर्फीलाल - अ ब ब भाईसाहब का हुआ ,,कौन सा नम्बर सीट है आपका

आदमी थोडा झिझकते हुए - दरअसल भाई साहब हमारी टिकट वेटिंग मे है और मेरी बीवी को भुसावल तक एक जरुरी काम से जाना पड़ रहा है ।

अशर्फीलाल की आंखे चम्की - ओह्ह्ह तो इसमे परेशान होने वाली क्या बात है ,,,आप भाभी जी यही बिठा दीजिये और 4 5 घन्टे का सफ़र है कट जायेगा

वो आदमी अपनी बिवी को एक नजर देख कर उसकी सहमती जानने की कोसिस करता है तो वो औरत मुस्कुरा कर हा मे इशारा कर देती है ।

अशर्फीलाल की आंखे एक बार फिर से चमक उठती और एक शरारती मुस्कान के साथ वो अपने बाकी मित्रो की ओर देखता है तो उसे सब लार टपकाते नजर आते है ।

इधर खेलावन ने लपक कर उस औरत का बैग पकडता है - लाजिये भाभी जी ,,,मुझे दीजिये मै इसे साइड मे रख देता हू ।

फिर वो आदमी सबको धन्यवाद बोलकर निकल जाता है और वो औरत कम्पार्टमेंट मे नजर घुमा कर बैथने की जगह देखती है

अशर्फीलाल मौका देख कर अपने बगल मे बैठे तिवारी जी की कमर मे खोदते हुए - अरे तिवारी जी देख क्या रहे है उठिए ,,,वहा सामने वाली सीट पर जाईये भाई ।

तिवारी जी थोडा मुह बिचका कर अशर्फीलाल का हरामपन से मुस्कुराता चेहरा देख्ते है और खडे हो जाते है ।

तभी तिवारी जी की नजर उस महिला के उपर के पहाडी दरारो पर गयी और तुंरत उन्होने अपनी कल्पना मे उठे त्रिकोणमिति के एक प्रशन को फटाफट हल करते हुए निचे बैठने के बजाय उपर के बर्थ पर चढ गये ।

तिवारी के उपर जाते ही बाकी के सभी लोग समझ गये कि तिवारी ने अपना कैलकुलेसन कर लिया है और अब वो object A औ B के बीच की उचाई और दुरी बखूबी मापेगा ।
कुछ मिनटो मे हॉर्न बजा और ट्रेन ने अपनी गति पकड ली ।
इधर चारो सिविल इन्जीनियर उस गलैमरस ऑब्जेक्ट का टॉप , साइड और फ़्रंट व्यू का मुआयना करते रहे ।

बीच बीच में अशर्फीलाल उस महिला से बाते करता रहा , जबकि उपर लेटे हुए तिवारी जी अपनी त्रिकोणमिति के सवाल के हल के काफी करीब पहुच गये थे और कुर्ते के निचे हाथ रखे हुए ऊँगलीयो से कुछ गणना किये जा रहे थे ।

खैर थोडी देर बाद तिवारी निचे उतरे और कान मे जनेऊ लपेटते हुए बोगी के शौचालय की ओर बढ़ लिये और इधर मौका पाते ही बैजनाथ ने उपर चढ गया और उसकी आंखे चमक उठी ,,,थोडे थोडे अंतराल के बाद बारी बारी से बैजनाथ फिर रामखेलावन और फिर अशर्फीलाल भी शौचालय से निबट लिये ।
फिर चारो रात 8 बजे तक नीचे ही बैठे रहे जब तक ट्रेन भुसावल जनशन पर नही पहुच गयी ।

भुलावल जनशन आते ही अशर्फीलाल खुद उस महिला का बैग लेके निचे तक छोडने गया और बाकी तीनो बेगाने खिडकी मे मुह डाले आखिर तक उस चंचल हसिना के चौडे कुल्हो का दोलन आंदोलन निहारते रहे ।

भुसावल जनशन से अपने सहयात्रि को बिदा करने के बाद सब लोग अपने अपने जगह पर बैठ गये ,, सबने एक दुसरे को देखा और जोर का ठहाका लगाया ।

गाडी की हॉर्न बजी और ट्रेन अपनी गन्तव्य की ओर बढ़ने लगी ।
रात ढलने के कारण सभी लोग खाना खाकर अपने अपने बर्थ पर चादर तान कर लम्बे हो गये ।

अगली सुबह 4 बजे तड़के ही गाडी छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मीनस पर खड़ी हो गयी ।
यात्रियो की चहल पहल से चारो की नीद खुली सब लोग फटाफट अपना बैग लेके प्लेटफार्म 15 पर उतरे ।

तिवारी जी - यार खिलावन अब आगे कहा जाना हय कुछ तय किये हो

रामखिलवान - तय का करना है यार,,, अब उतरे हो टट्टी पेसाब कर लयो ,,मन हो नहा लयो और फिर कुछ नाश्ता पानी करके बस पकड के सीधे बाम्बे टू....

बैजनाथ खिलावन की बात पूरी होने से पहले ही चहक कर कमर हिलाते हुए - गोवा वाले बिच पे , रानी फ़ोटो खिच के

बैजनाथ की उत्सुकता और चहकपने सबने ठहाका लगाया ।


बाम्बे टू गोवा

अगले कुछ पलो मे सभी लोग उसी स्टेशन के पास मे बने एक सार्वजनिक शौचालय की लाईन मे लगे थे। सर्दियो मे हरि मटर और मूली ने तिवारी जी को खासा तंग कर रखा था और सुबह की बेला चढ रही थी तो कुछ प्राकृतिक दबाव भी अंदर ही अंदर बढ रहा था । हर एक से डेढ़ मिंट के अन्तराल पर तिवारी जी का कुरता पीछे की तरफ कुछ गरम आंतरिक हवा के प्रेशर से तेज गर्जना के साथ उठ जाया करता था और जांघो मे एक गरमाहत का अह्सास होता था ।
मगर तिवारी जी के पीछे खडे बैजनाथ को जरा भी अच्छा मह्सूस नही हो रहा था ।
चेहरे पर गम्छा लपेटने बावजूद भी उपर से हाथ रखने की नौबात बनी हुई थी ।

तभी शौचालय का दरवाजा खुला और तिवारी जी के आगे खडे अशर्फी भैया जैसे ही अन्दर घूसने वाले थे कि बैजनाथ ने टोका

बैजनाथ मुह पर लपेटे गमछे पर हाथ रखते हुए - अरे अशर्फी भैया तनिक रुक जाओ , जरा तिवारी जी को निबट लेन देओ ,, जाओ तिवारी जल्दी करो

तिवारी जी की स्थिति ये ना थी कि वो बैजनाथ से कोई वाद विवाद करे ,,, वो पहले ही एक प्राकृतिक दबाव तले झुके जा रहे थे । मौका मिलते ही लपक कर घुस गये ।

बाहर अशर्फी मुह पर गम्छा दबाते हुए - का हुआ बैजनाथ कुछ बात रही का
तभी अन्दर पड़पडाने की तेज गर्जना हुई
बैजनाथ बाथरूम की ओर इशारा करके - देखो यही बात रही ,, हा यार हर आधा मिंट मे भुट्ट भाय्य्ं पादे जा रहा

अशर्फी बैजनाथ की बात सुन कर गमछे के अन्दर ही हसने लगा ।

खैर थोडे समय बाद सभी जन नहा धो कर एक ढाबे पर गये और वहा भर पेट ताजा नासता किया । फिर एक वॉल्वो बस से बाम्बे टू गोवा के लिए निकल पड़


मोहिनी लाज


करीब दस घंटे के लम्बे और थका देने वाले सफ़र के बाद सारे लोग देर शाम तक बागा बस स्टाप पर पहुचे ।

बस स्टैंड पर उतरते ही रंग बिरंगी रोशनी और डीजे के बेस पर उछल कूद करने वाले इस अनोखी दुनिया मे चारो लोग प्रवेश कर चुके थे ।
मगर सफ़र की थकान ने इतना चुर कर दिया था । इच्छा रहते हुए भी किसी की हिम्मत नही हुई कि पास के बिच पर जाकर नाइटशो का मजा ले सके ।

खैर सभी लोग पास मे एक लाज मे शरण लेते है और एक ही एक डबल बेड का कमरा बुक किया जाता है ।
थोडी देर बाद खाना खाने के बाद सबके बदन मे जान आ जाती है और चेहरे खिल उठते है ।
फिर चारो लोग दो अलग अलग कम्बल मे लेटते है ।

बैजनाथ और अशर्फी एक कम्बल मे , तिवारी और खेलावन एक मे ।
बाकी सब थोडे बातो मे लगे रहे और इधर रामखेलावन को मस्ती सुझी ।

उसने सोने का नाटक शुरु कर दिया और कुछ ही पलो मे नकली खर्राटे लेने लगा ।
मगर तिवारी जी बेचैनी बढने लगी ,,रामखेलावन मे मस्ती मे तिवारी के से चिपके हुआ था ।

तिवारी जी - उम्म्ंम ये खेलावन तनी उधर सोवो यार ,,चढ़े ही जा रहे हो

खेलावन जानबुझ कर कुनमुना कर अपनी टांग तिवारी जी के उपर फेकते हुए - अह्ह्ह रजनी , कहा थी तुम

तिवारी जी भडकते हुए खेलावन का पैर हटाते हुए - ये खेलावन , पगला गये हो का बे , सही से सोवो

इधर दुसरे कम्बल मे बैजनाथ और अशर्फी मुह दबाये हसे जा रहे थे क्योकि वो खेलावन की मस्ती समझ रहे थे ।

इधर खेलावन ने वापस अपनी टांग तिवारी के उपर फेकि और हाथ को उसके सीने के उपर फिराते हुए अपनी बीवी रजनी का नाम लेके कुनमुनाने लगा ।

तिवारी जी को अपनी इज्जत पर बात आती देख तनमना कर उठ खडे हुए और भागकर सोफे पर बैठ गये
यहा खेलावन ह्स्ते हुए उठ कर बैठ गया ।

खेलावन मस्ती भरे मूड मे - का हुआ रजनी कहा चली गयी
खेलावन के इस वक्तव्य पर अशर्फी और बैजनाथ कम्बल मे मुह डाले हस्ते रहे ।

तिवारी अब तेवर दिखाते हुए - अबे यार इ का गाण्दूगिरी पर उतारु हो गये हो तुम खेलावन हमम्म

खेलावन हसने लगता है ।
तिवारी जी उठ कर वापस बिस्तर की ओर आते है ।

तिवारी - ये बैजनाथ तुम खेलावन के साथ सोवो यार

अशर्फी ह्स्ते हुए बैजनाथ को खेलावन के पास जाने का इशारा करता है तो बैजनाथ हस्ता हुआ कम्बल से निकल गया और तिवारी की अशर्फी भईया के साथ हो लिये

अगली सुबह कमरे मे होड़ मची हुई थी , हर कोई आधा घंटा समय लेके बाथरूम मे बदन घिसकर चमकाये जा रहा था और वही तिवारी आयिने के सामने अपनी शेविंग किट खोले दाढ़ी बनाने के बाद मूछ सेट कर रहे थे ।

ऐसे मे रामखेलावन जो भी अभी जान्घिये मे घूम रहा था वो तिवारी के पास जाकर उनकी जिलेट मैच 3 का रेजर लेके कांख मे भिड़ा लिये और तिवारी जी नजर जब अपने महगे रेजर पर गयी तो कैची छोड बिफर पड़े ।

तिवारी झल्लाते हुए - हा झाट भी बना लो उसी से बकचोद साले

रामखेलावन तिवारी जी बातो का बिना बुरा माने बड़े इत्मीनान से - अरे काहे बौराये जा रहे हो तिवारी , कांख छील रहे है इससे गाड़ नही ,,तुम भी ना

तिवारी उतरे हुए मुह से बड़बड़ाये - यार तुमको रेजर चाहिये था तो बताते ना ,,,हम रखे थे एक प्लास्टिक वाला अलग से


रामखेलावन - नाही यार प्लास्टिक वाले से कटने का डर रहता है और इस्से देखो एक दमहे समूथ ,,,लो हो गया

तिवारी चिडचिडाकर अपना शेविंग कीट बंद करते हुए - गाड़ मे डाल लेओ अब इसको

फिर तिवारी जी बडबड़ाते हुए तौलिया लेके बाथरूम मे नहाने के लिये घुस गये ।

खेलावन तिवारी को भडकता देख हसते हुए - अरे dettol लगा दे रहे तिवारी ,,, सुनो तो


खिलवाड़ था चल रहा था , तिवारी जी जह्की स्वभाव के इन्सान थे तो खेलावन मजे ले लेता था ।
खैर थोडी देर बाद सारे लोग नहा धो कर तैयार हुए और फिर नाश्ता करके एक टेम्पो से निकल गये बागा बीच की ओर ।
सबने रंगबिरंगे शर्ट डाले थे और पैंट के निचे चुन्नीगंज ,कानपुर के मशहूर वसिम दर्जी का सिला हुआ धारीदार जांघिया
निकल पड़े थे चारो अतरंगी मिजाज वाले कानपुरिये गोवा बिच का मजा लेने ।


सफ़र का अन्त

कहानी का क्या है शब्दो को जोडते रहो वो आगे बढ़ती रहेगी । मगर कहानी का मजा तब है जब वो लेखक के शब्दो मे नही बल्कि पाठक की कल्पनाओ मे आगे बढे ।

तो कानपुर की गंगा घाट से गोवा की बागा बिच की यात्रा वृतांत को यही विराम देते हैं ।
लेकिन याद रहे विराम सिर्फ लेखक के शब्दो में लगा है आपकी कलपनाओ पर नही ।

आप तो बस आंखे बंद करिये और कल्पना किजीए कि ये चार कनपुरिये अधेड़ उम्र के रंगबाज दोस्त बृजकिशोर तिवारी , अशर्फीलाल वर्मा , बैजनाथ चौरसिया और रामखेलावन यादव
जब अपने स्पेशल धारिदार जान्घिये मे गोवा के बीच पर सनग्लास लगाये हुए घूमेंगे तो क्या नयी कहानिया तैयार होगी ।



धन्यवाद
Badhut badhiya shaandaar ekdam gandfadu update diye ho bhai :lotpot:
 

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