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१. शुरुवात
दो लोग, एक दूसरे की सांसों में कैद, पूरा ध्यान का केंद्र एक औरत, दूध में पड़े सोने के छीटों जैसा उसका रंग, रूई जैसा मुलायम शरीर, मिठाई जैसी खुशबू, उस खूबसूरत औरत का शरीर वो एक मजबूत मर्द अपनी खुशी के लिए इस्तेमाल करने में व्यस्थ था। वो उससे जैसे चाहे वैसे आनंद ले रहा था। पेट के बल लेटी मेरी बीवी के ऊपर से दुगना वजन डालते हुए, बड़ी तेजी और गहराई से चोदते हुए,थप्पड़ की आवाज के साथ कराहो की घुल रही थी। वो अप्सरा जैसी मेरी बीवी किसी खिलौने के तरह इस्तेमाल करने में व्यस्त था। प्रिया ने मदहोशी में मेरी तरफ देखा और
"आह...
"चाय पियेंगे आप?" प्रिया चाय का कप लिए खड़ी थी। मैं तभी नींद से जगा, वो हरि और लाल साड़ी में लिपटी हुई। उसका लाल रंग का ब्लाउस उसकी गोलाईयों के वजन को संभालने में नाकाम। मैं बस अब बैठे भी उसे देख कर मुस्कुराने लगा।
"ऐसे क्यों देख रहे है? मुझे देखने से चाय थोड़ी खतम होगी।" प्रिया के चेहरे का भाव लाल और गुलाबी होने लगा।
"क्यों ना देखु? पूरा दिन पड़ा है मेरे पास।" मैने इतना कहकर उसे अपनी तरफ खींच लिया। शादी के 7 साल बाद भी प्रिया को जब भी छूता, रुई जैसा मुलायम और साथ ही भरा हुआ वजनदार शरीर मुझे चौका देता। ये कैसे हो सकता है लेकिन शायद यही तो भगवान का चमत्कार था।
"ये क्या कर रहे है। छोड़ो मेहमान आने वाले है।" प्रिया इतना बोल मुझसे अलग हुई। मैने रूठने जैसा मुंह बनाया, उस्पर प्रिया मुस्कुराकर बाहर चली गई।
कुछ ही वक्त में प्रिया के मामा आ गए,जिनका नाम – नामदेव, वो प्रिया के सगे मामा नहीं बल्कि उन रिश्तेदारों में से थे, जिनके होने ना होने से आपको फर्क नहीं पड़ता लेकिन वो बस आपकी जिंदगी में रहते है।
चाय बनाने के लिए प्रिया उन्हें नमस्कार कर किचेन में चली गई।
"वैसे धंधा कैसा चल रहा है?" उस बूढ़े मामा ने पूछा।
"क्या बताए! इन दिनों तो वो बंद ही है लगभग।"
"हा छुट्टियां है ना अभी, कोई बात नहीं चढ़ उतर चलती रहती है काम में।" तभी प्रिया चाय लेकर आ गई।
मैने एक घुट लीया और,"वैसे जय क्लासेस कहा है तुम्हारी?" उनके पास बैठे लड़के को पूछा, जो कि नामदेवजी का बेटा था।
"यहां से पास ही है।" जय बोला, वो शर्मिला है साफ नजर आने लगा।
नामदेव :"एक महीने का ही क्लास है, उसके बाद पुणे जाने को कह रहा है।"
प्रिया ने बताया तो था, वैसे तो मैं घर पर प्रिया के साथ अकेला ही रहना पसंद करता हु, प्रिया भी किसी को रखने के लिए मना कर रही थी। लेकिन ससुराल वालो खुश रखना भी जरूरी था, इसलिए मैने ही ‘हा’ कहा।
नामदेव जी मुझसे बात करने लगे। तभी मेरा ध्यान ‘जय’ की नजरों पर गया। जय जो कि मासूम दिखता था वो किसी ठरकी की तरह प्रिया को ताड़ रहा था, इतना ही नहीं उसका बाप भी बीच बीच में प्रिया को ऊपर से नीचे तक देख रहा था। इन सब चीजों को मैं बहुत जल्दी पकड़ लेता हु, क्योंकि शायद ये सब चीजें वैसे मेरे लिए नॉर्मल थी, मर्दों की नजर मेरी बीवी के ऊपर ही रहती। जिससे मुझे कोई आपत्ति नहीं थी। उलटा मुझे गर्व महसूस होता है कि मेरा पास कुछ है जो इनके पास नहीं है।
नामदेवजी जय को छोड़ कर वापस चले गए।
हम अब घर पर अकेले नहीं थे। जो कि थोड़ा अजीब था मेरे लिए। प्रिया और मुझे हमेशा घर पर अकेले रहने की आदत थी लेकिन, ऐसा पहली बार हुआ था कि एक नौजवान लड़का हमारे साथ हो। और ऊपर से हर वक्त प्रिया को वो जवान लड़का मनमोहित नजरो से देख रहा हो। शायद प्रिया को भी ये बात समझ आ गई। अब हम तीनों ही होने की वजह से उसे अकेले कमरे में सुलाना थोड़ा ठीक नहीं लगता और ऊपर से वो एक मेहमान था। गर्मी की वजह से रात को छत पर बिस्तर बिछाकर सोते थे, तो जय को भी ऊपर बुलाना पड़ा, दिन भर ज्यादा तर जय बाहर ही रहता था। लेकिन मुझे और प्रिया को रात में अकेले वक्त कम मिलता।
दिन बीतते गए, अब जय हमारे साथ थोड़ा सा खुलने लग चुका था। उसकी शर्म अब कम हो गई। शर्मिला तो वो था ही, उपर से उसे ज्यादा दोस्तो बनाने की आदत नहीं थी ,ज्यादा बात नहीं करता, शायद उसका एक ही दोस्त था, ज सुजल, जो एक दिन बाहर घुमाने जय को लेने आया था। पहली बार उसे तब देखा, तभी जय और सुजल की थोड़ी सी बाते मैने सुन ली।
"पहले तो मुझे लगा फेक रहा होगा लेकिन, सच में यार! क्या कमाल की औरत है! यार वो, उसके चूचे है कि आम, ऊपर से इतनी दिखने में चिकनी हाययय।"
उसपर जय बोला "पर क्या फायदा? उसके बारे में सोचकर ही मूठ मारनि पड़ती है।"
"वो तो है।" फिर दोनों के हसने की आवाज आई और सुजल ने गाड़ी शुरू कर दी । मैं दरवाजे से ये सुन रहा था, वैसे सबसे पहला विचार आया कि उन दोनों की मुंह तोड़ दु।
पर उन्होंने मेरे सामने थोड़ी बोला था कुछ? वो तो दो दोस्तों की बाते थी, ऊपर से ये नौजवान है। मैं भी एक तरह से जवान ही था लेकिन उनसे शायद 10 –12 साल बड़ा, ऊपर से उनकी उमर ही ऐसी थी कि ऐसी बाते करना साधारण ही था। लेकिन कही ना कही प्रिया की इस तरह की तारीफ सुन जलन के साथ साथ एक उत्तेजना हुई। वो बताना मेरे लिए कठिन था कि क्यों पर शायद हर बार इंसान के मन एक ही भावना नहीं होती। कभी गुस्से के साथ साथ किसी के बर्ताव से अच्छा भी लगता है। जैसे कोई मेरी किसी चीज की तारीफ कर रहा हो, भलेही ऐसी तारीफ कोई नहीं चाहेगा अपनी पत्नी की। ऊपर से मेरे अंदर कुछ विचित्र सा था।
एक दो दिन बाद, मैने कंप्यूटर रूम से अजीब आवाज सुनी, मैं थोड़ा समझ तो गया कि किसकी है लेकिन फिर भी मैने अंदर झांका, जय अंदर हिला मार रहा था, उसके कराहने की हल्की आवाज आ रही थी, कंप्यूटर पर नंगे चित्र चल रहे थे, लेकिन जय की आंखे बंद थी , पसीने से भीगा हुआ और पूरी ताकत से लण्ङ हिला रहा था। मैं कमरे में हु इसका ध्यान भी उसे नहीं था जैसे सपने में व्यस्त मुंह ऊपर किए अपनी क्रीड़ा के खोया हो। मैं उसे पता चले उससे पहले बाहर आ गया।
लेकिन सबसे पहला मेरा खयाल यही था कि क्या वो प्रिया के बारे में सोच रहा होगा, पता नहीं क्यों? लेकिन मेरे दिमाग में वो बात मंडराने लगी। मुझे थोड़ा अच्छा भी लगा कि मुझे इस तरह से सपने देख कर हिलाने की अब जरूरत नहीं, उलटा जिस औरत शायद के वो सपने देख रहा है, वो मेरी
ही है। थोड़ी सी दया जय के लिए मेरे मन में थी और इन सबसे मेरी उत्तेजना थोड़ी बढ़ गई।
मेरी अब प्रिया के साथ वक्त बिताने का मन ज्यादा होने लगा। लेकिन जय के वजह से मिल नहीं रहा था। और ऊपर से छोटे शहरों में पति पत्नी हाथ भी नहीं पकड़ सकते मेहमानों के सामने, और मेहमान तो अब मेरे घर पर रह रहा था।
दिन बीतते गए। प्रिया के साथ खुलके प्यार करने का बस मौका ढूंढ रहा था। लेकिन कभी कभी हमे खुद मौका निकालना पड़ता है। ईसीलिए दोपहर को काम बंद रख दिया, वैसे भी हमारा शहर इस मौसम में जलता है, तो लोग भी दोपहर नहीं घूमते वो भी कपड़े लेने।
घर पर प्रिया पलंग पर बैठी हुई थी। पीली साड़ी उसके उसके शरीर से लिपटी हुई थी, जिसपर फूल और डिजाइन बनी थी। मेरी नजर ब्लाउज पर गई जो कि गर्द पीला रंग था, जिससे सबसे पहला विचार मन में आया जय और सुजल का, ऐसे देखकर वो जरूर प्रिया की मास के गोले को आम की तरह चूसना चाहेंगे।
प्रिया की तरफ मुस्कुराते हुए बढ़ा।
"क्या हुआ, आज जल्दी आ ग.." प्रिया इतना ही बोल पाई अगले क्षण उसे मैने बाहों में ले लिया। उसकी सांसे मेरे चेहरे पर धीरे धीरे बढ़ रही थी।मेरे हाथ प्रिया मेरी जान के शरीर पर रेंग रहे थे। मेरी ट्रिम की हुई दाढ़ी उसके मुलायम चेहरे पर हल्का कुरेद रहे थे। उसके गुलाबी लबों किसी गुलाब जामुन की तरह चूस रहा था। और वो स्वादिष्ट भी बहुत थे। कुछ देर हमारा मिलाप चला।
प्रिया अपने ब्लाउस के बटन लगाकर साड़ी ठीक कर रही थी।
"अभी आपके आने से पहले मांने फोन किया था, पूछ रही थी आपके बारे में?" बटन लगाते हुए प्रिया बोली। उसके दो दूध के मटकों की दरार में मैं झांकने हुए,
"अच्छा तुमने क्या कहा फिर?" कहते हुए प्रिया को पास खींच लिया।
"क्या कहती ? अब सच तो नहीं बता सकती कि भूखे है बहुत।" प्रिया हस्ती हुई मेरे कंधे पर सर रखने लगी। उसने पल्लू अभी भी डाला नहीं था, इसीलिए पीले ब्लाउस में से दरार साफ नजर आ रही थी। ऊपर से प्रिया का रंग था किसी सोने जैसा बस उस्मे थोड़ा सा दूध मिला दिया हो। जिसे देख निहारते हुए मैं बोला।
मैं :"अगर ऐसा भोग हो तो, दिन भर आदमी खाता रहे।"
"अच्छा जी।" प्रिया मुस्कुराते हुए बोली।
कुछ देर हम हमारी बाते करने लगे, मस्ती मजाक चलती रहा।
मैं रात को देर से घर आया। मेरे लिए खाना किचेन में लगा हुआ था। खाना खाकर प्रिया के बाजू लेट गया। जय नीचे ही था, शायद हिला रहा होगा। मैं चाहने लगा कि वो प्रिया के बारे में सोच कर हिलाए। कोई प्रिया के तड़पता हो ये सोच कर मुझे बहुत खुशी होने लगी।
मुझे अब नींद नहीं आ रही थी। रात बहुत हो चुकी थी। अंधेरा था लेकिन मुझे उस अंधेरे में प्रिया अपनी उस पीली साड़ी में पूरी तरह दिख रही थी। उसका वो सफेद सोनेरी शरीर साफ उठ कर आ रहा था। मैं यही सोच के उसे निहार रहा था उसे देखते हुए।
अचानक मुझे उंगलियां दिखी, जो कि प्रिया के ठीक कमर के ऊपर, समझते वक्त नहीं लगा कि ये जय है। उसने हल्के से अपना हाथ प्रिया की कमर पर रखा। शायद उसने इस तरह से किसी औरत को छुआ भी हो पता नहीं था।कुछ देर हाथ उस मक्खन जैसे शरीर पर हल्के से फिराने लगा और तभी प्रिया थोड़ी हिली जिससे जय ने अपना हाथ वापस ले लिया।
जय तो मेरी तरफ से सोता था वो उस तरफ कब गया। बात तो थी ही घिनौनी लेकिन उससे तो मेरे मन और भी घिनौने विचार आए, मुझे थोडी शर्म भी आई।
मुझे इन सब से गुस्सा था लेकिन साथ ही थोड़ी उसपर कदर भी हो रही थी, जो कि होनी नहीं चाहिए। इस घटना के बाद तो नहीं, उसका इरादा नेक तो नहीं था। क्यों कोई लड़का शादीशुदा औरत के पास लेटने की हिम्मत करेगा। पर इन दिनों में मेरे मन में जय के लिए एक हल्का दया वाला कोना तो था। जैसे मेरे लिए वो एक तकलीफ में दिखा प्रवासी हो।
ये सब सोचने से मेरी धड़कन बढ़ने लगी। मैं मानना तो नहीं चाहता था लेकिन मेरे दिल मैं इच्छा जाग चुकी थी कि जय जो कि नौजवान दुबला पतला लड़का, वो क्या करेगा प्रिया के साथ अगर मौका मिले तो।
अगले दिन फिर से दोपहर को मैं घर पर आया।
एक दूसरे के बाहों में कैद मैं उसे चूमने लगा। क्यों तो मेरा प्यार प्रिया के लिए बढ़ रहा था। मेरी उत्तेजना बहुत ज्यादा थी। इसका कारण एक ही था हमारे घर में रहने वाला ठरकी लड़का। उसकी मेरे बीवी के लिए ठरक मुझे भी ज्यादा ठरकी बना रही थी।
"जी, कल रात आप कब आए? बहुत देर तक आपकी राह देखी मैने फिर खाना लगाकर सो गई उतना भी था मुझे काम के वजह से सुबह।" प्रिया बोलते हुए मेरी छाती के बालों के साथ खेलने लगी।
मैं: "रात की बात से मुझे याद आया। कल रात को जय उस तरफ कब आया सोने के लिए।"
प्रिया के हाथ मेरी छाती पर रुक गए। उसने मेरी तरफ मुंह किया।
प्रिया:"सच? मैने ध्यान नहीं दिया। क्यों? आपके तरफ तो बहुत जगह थी।"
दो लोग, एक दूसरे की सांसों में कैद, पूरा ध्यान का केंद्र एक औरत, दूध में पड़े सोने के छीटों जैसा उसका रंग, रूई जैसा मुलायम शरीर, मिठाई जैसी खुशबू, उस खूबसूरत औरत का शरीर वो एक मजबूत मर्द अपनी खुशी के लिए इस्तेमाल करने में व्यस्थ था। वो उससे जैसे चाहे वैसे आनंद ले रहा था। पेट के बल लेटी मेरी बीवी के ऊपर से दुगना वजन डालते हुए, बड़ी तेजी और गहराई से चोदते हुए,थप्पड़ की आवाज के साथ कराहो की घुल रही थी। वो अप्सरा जैसी मेरी बीवी किसी खिलौने के तरह इस्तेमाल करने में व्यस्त था। प्रिया ने मदहोशी में मेरी तरफ देखा और
"आह...
"चाय पियेंगे आप?" प्रिया चाय का कप लिए खड़ी थी। मैं तभी नींद से जगा, वो हरि और लाल साड़ी में लिपटी हुई। उसका लाल रंग का ब्लाउस उसकी गोलाईयों के वजन को संभालने में नाकाम। मैं बस अब बैठे भी उसे देख कर मुस्कुराने लगा।
"ऐसे क्यों देख रहे है? मुझे देखने से चाय थोड़ी खतम होगी।" प्रिया के चेहरे का भाव लाल और गुलाबी होने लगा।
"क्यों ना देखु? पूरा दिन पड़ा है मेरे पास।" मैने इतना कहकर उसे अपनी तरफ खींच लिया। शादी के 7 साल बाद भी प्रिया को जब भी छूता, रुई जैसा मुलायम और साथ ही भरा हुआ वजनदार शरीर मुझे चौका देता। ये कैसे हो सकता है लेकिन शायद यही तो भगवान का चमत्कार था।
"ये क्या कर रहे है। छोड़ो मेहमान आने वाले है।" प्रिया इतना बोल मुझसे अलग हुई। मैने रूठने जैसा मुंह बनाया, उस्पर प्रिया मुस्कुराकर बाहर चली गई।
कुछ ही वक्त में प्रिया के मामा आ गए,जिनका नाम – नामदेव, वो प्रिया के सगे मामा नहीं बल्कि उन रिश्तेदारों में से थे, जिनके होने ना होने से आपको फर्क नहीं पड़ता लेकिन वो बस आपकी जिंदगी में रहते है।
चाय बनाने के लिए प्रिया उन्हें नमस्कार कर किचेन में चली गई।
"वैसे धंधा कैसा चल रहा है?" उस बूढ़े मामा ने पूछा।
"क्या बताए! इन दिनों तो वो बंद ही है लगभग।"
"हा छुट्टियां है ना अभी, कोई बात नहीं चढ़ उतर चलती रहती है काम में।" तभी प्रिया चाय लेकर आ गई।
मैने एक घुट लीया और,"वैसे जय क्लासेस कहा है तुम्हारी?" उनके पास बैठे लड़के को पूछा, जो कि नामदेवजी का बेटा था।
"यहां से पास ही है।" जय बोला, वो शर्मिला है साफ नजर आने लगा।
नामदेव :"एक महीने का ही क्लास है, उसके बाद पुणे जाने को कह रहा है।"
प्रिया ने बताया तो था, वैसे तो मैं घर पर प्रिया के साथ अकेला ही रहना पसंद करता हु, प्रिया भी किसी को रखने के लिए मना कर रही थी। लेकिन ससुराल वालो खुश रखना भी जरूरी था, इसलिए मैने ही ‘हा’ कहा।
नामदेव जी मुझसे बात करने लगे। तभी मेरा ध्यान ‘जय’ की नजरों पर गया। जय जो कि मासूम दिखता था वो किसी ठरकी की तरह प्रिया को ताड़ रहा था, इतना ही नहीं उसका बाप भी बीच बीच में प्रिया को ऊपर से नीचे तक देख रहा था। इन सब चीजों को मैं बहुत जल्दी पकड़ लेता हु, क्योंकि शायद ये सब चीजें वैसे मेरे लिए नॉर्मल थी, मर्दों की नजर मेरी बीवी के ऊपर ही रहती। जिससे मुझे कोई आपत्ति नहीं थी। उलटा मुझे गर्व महसूस होता है कि मेरा पास कुछ है जो इनके पास नहीं है।
नामदेवजी जय को छोड़ कर वापस चले गए।
हम अब घर पर अकेले नहीं थे। जो कि थोड़ा अजीब था मेरे लिए। प्रिया और मुझे हमेशा घर पर अकेले रहने की आदत थी लेकिन, ऐसा पहली बार हुआ था कि एक नौजवान लड़का हमारे साथ हो। और ऊपर से हर वक्त प्रिया को वो जवान लड़का मनमोहित नजरो से देख रहा हो। शायद प्रिया को भी ये बात समझ आ गई। अब हम तीनों ही होने की वजह से उसे अकेले कमरे में सुलाना थोड़ा ठीक नहीं लगता और ऊपर से वो एक मेहमान था। गर्मी की वजह से रात को छत पर बिस्तर बिछाकर सोते थे, तो जय को भी ऊपर बुलाना पड़ा, दिन भर ज्यादा तर जय बाहर ही रहता था। लेकिन मुझे और प्रिया को रात में अकेले वक्त कम मिलता।
दिन बीतते गए, अब जय हमारे साथ थोड़ा सा खुलने लग चुका था। उसकी शर्म अब कम हो गई। शर्मिला तो वो था ही, उपर से उसे ज्यादा दोस्तो बनाने की आदत नहीं थी ,ज्यादा बात नहीं करता, शायद उसका एक ही दोस्त था, ज सुजल, जो एक दिन बाहर घुमाने जय को लेने आया था। पहली बार उसे तब देखा, तभी जय और सुजल की थोड़ी सी बाते मैने सुन ली।
"पहले तो मुझे लगा फेक रहा होगा लेकिन, सच में यार! क्या कमाल की औरत है! यार वो, उसके चूचे है कि आम, ऊपर से इतनी दिखने में चिकनी हाययय।"
उसपर जय बोला "पर क्या फायदा? उसके बारे में सोचकर ही मूठ मारनि पड़ती है।"
"वो तो है।" फिर दोनों के हसने की आवाज आई और सुजल ने गाड़ी शुरू कर दी । मैं दरवाजे से ये सुन रहा था, वैसे सबसे पहला विचार आया कि उन दोनों की मुंह तोड़ दु।
पर उन्होंने मेरे सामने थोड़ी बोला था कुछ? वो तो दो दोस्तों की बाते थी, ऊपर से ये नौजवान है। मैं भी एक तरह से जवान ही था लेकिन उनसे शायद 10 –12 साल बड़ा, ऊपर से उनकी उमर ही ऐसी थी कि ऐसी बाते करना साधारण ही था। लेकिन कही ना कही प्रिया की इस तरह की तारीफ सुन जलन के साथ साथ एक उत्तेजना हुई। वो बताना मेरे लिए कठिन था कि क्यों पर शायद हर बार इंसान के मन एक ही भावना नहीं होती। कभी गुस्से के साथ साथ किसी के बर्ताव से अच्छा भी लगता है। जैसे कोई मेरी किसी चीज की तारीफ कर रहा हो, भलेही ऐसी तारीफ कोई नहीं चाहेगा अपनी पत्नी की। ऊपर से मेरे अंदर कुछ विचित्र सा था।
एक दो दिन बाद, मैने कंप्यूटर रूम से अजीब आवाज सुनी, मैं थोड़ा समझ तो गया कि किसकी है लेकिन फिर भी मैने अंदर झांका, जय अंदर हिला मार रहा था, उसके कराहने की हल्की आवाज आ रही थी, कंप्यूटर पर नंगे चित्र चल रहे थे, लेकिन जय की आंखे बंद थी , पसीने से भीगा हुआ और पूरी ताकत से लण्ङ हिला रहा था। मैं कमरे में हु इसका ध्यान भी उसे नहीं था जैसे सपने में व्यस्त मुंह ऊपर किए अपनी क्रीड़ा के खोया हो। मैं उसे पता चले उससे पहले बाहर आ गया।
लेकिन सबसे पहला मेरा खयाल यही था कि क्या वो प्रिया के बारे में सोच रहा होगा, पता नहीं क्यों? लेकिन मेरे दिमाग में वो बात मंडराने लगी। मुझे थोड़ा अच्छा भी लगा कि मुझे इस तरह से सपने देख कर हिलाने की अब जरूरत नहीं, उलटा जिस औरत शायद के वो सपने देख रहा है, वो मेरी
ही है। थोड़ी सी दया जय के लिए मेरे मन में थी और इन सबसे मेरी उत्तेजना थोड़ी बढ़ गई।
मेरी अब प्रिया के साथ वक्त बिताने का मन ज्यादा होने लगा। लेकिन जय के वजह से मिल नहीं रहा था। और ऊपर से छोटे शहरों में पति पत्नी हाथ भी नहीं पकड़ सकते मेहमानों के सामने, और मेहमान तो अब मेरे घर पर रह रहा था।
दिन बीतते गए। प्रिया के साथ खुलके प्यार करने का बस मौका ढूंढ रहा था। लेकिन कभी कभी हमे खुद मौका निकालना पड़ता है। ईसीलिए दोपहर को काम बंद रख दिया, वैसे भी हमारा शहर इस मौसम में जलता है, तो लोग भी दोपहर नहीं घूमते वो भी कपड़े लेने।
घर पर प्रिया पलंग पर बैठी हुई थी। पीली साड़ी उसके उसके शरीर से लिपटी हुई थी, जिसपर फूल और डिजाइन बनी थी। मेरी नजर ब्लाउज पर गई जो कि गर्द पीला रंग था, जिससे सबसे पहला विचार मन में आया जय और सुजल का, ऐसे देखकर वो जरूर प्रिया की मास के गोले को आम की तरह चूसना चाहेंगे।
प्रिया की तरफ मुस्कुराते हुए बढ़ा।
"क्या हुआ, आज जल्दी आ ग.." प्रिया इतना ही बोल पाई अगले क्षण उसे मैने बाहों में ले लिया। उसकी सांसे मेरे चेहरे पर धीरे धीरे बढ़ रही थी।मेरे हाथ प्रिया मेरी जान के शरीर पर रेंग रहे थे। मेरी ट्रिम की हुई दाढ़ी उसके मुलायम चेहरे पर हल्का कुरेद रहे थे। उसके गुलाबी लबों किसी गुलाब जामुन की तरह चूस रहा था। और वो स्वादिष्ट भी बहुत थे। कुछ देर हमारा मिलाप चला।
प्रिया अपने ब्लाउस के बटन लगाकर साड़ी ठीक कर रही थी।
"अभी आपके आने से पहले मांने फोन किया था, पूछ रही थी आपके बारे में?" बटन लगाते हुए प्रिया बोली। उसके दो दूध के मटकों की दरार में मैं झांकने हुए,
"अच्छा तुमने क्या कहा फिर?" कहते हुए प्रिया को पास खींच लिया।
"क्या कहती ? अब सच तो नहीं बता सकती कि भूखे है बहुत।" प्रिया हस्ती हुई मेरे कंधे पर सर रखने लगी। उसने पल्लू अभी भी डाला नहीं था, इसीलिए पीले ब्लाउस में से दरार साफ नजर आ रही थी। ऊपर से प्रिया का रंग था किसी सोने जैसा बस उस्मे थोड़ा सा दूध मिला दिया हो। जिसे देख निहारते हुए मैं बोला।
मैं :"अगर ऐसा भोग हो तो, दिन भर आदमी खाता रहे।"
"अच्छा जी।" प्रिया मुस्कुराते हुए बोली।
कुछ देर हम हमारी बाते करने लगे, मस्ती मजाक चलती रहा।
मैं रात को देर से घर आया। मेरे लिए खाना किचेन में लगा हुआ था। खाना खाकर प्रिया के बाजू लेट गया। जय नीचे ही था, शायद हिला रहा होगा। मैं चाहने लगा कि वो प्रिया के बारे में सोच कर हिलाए। कोई प्रिया के तड़पता हो ये सोच कर मुझे बहुत खुशी होने लगी।
मुझे अब नींद नहीं आ रही थी। रात बहुत हो चुकी थी। अंधेरा था लेकिन मुझे उस अंधेरे में प्रिया अपनी उस पीली साड़ी में पूरी तरह दिख रही थी। उसका वो सफेद सोनेरी शरीर साफ उठ कर आ रहा था। मैं यही सोच के उसे निहार रहा था उसे देखते हुए।
अचानक मुझे उंगलियां दिखी, जो कि प्रिया के ठीक कमर के ऊपर, समझते वक्त नहीं लगा कि ये जय है। उसने हल्के से अपना हाथ प्रिया की कमर पर रखा। शायद उसने इस तरह से किसी औरत को छुआ भी हो पता नहीं था।कुछ देर हाथ उस मक्खन जैसे शरीर पर हल्के से फिराने लगा और तभी प्रिया थोड़ी हिली जिससे जय ने अपना हाथ वापस ले लिया।
जय तो मेरी तरफ से सोता था वो उस तरफ कब गया। बात तो थी ही घिनौनी लेकिन उससे तो मेरे मन और भी घिनौने विचार आए, मुझे थोडी शर्म भी आई।
मुझे इन सब से गुस्सा था लेकिन साथ ही थोड़ी उसपर कदर भी हो रही थी, जो कि होनी नहीं चाहिए। इस घटना के बाद तो नहीं, उसका इरादा नेक तो नहीं था। क्यों कोई लड़का शादीशुदा औरत के पास लेटने की हिम्मत करेगा। पर इन दिनों में मेरे मन में जय के लिए एक हल्का दया वाला कोना तो था। जैसे मेरे लिए वो एक तकलीफ में दिखा प्रवासी हो।
ये सब सोचने से मेरी धड़कन बढ़ने लगी। मैं मानना तो नहीं चाहता था लेकिन मेरे दिल मैं इच्छा जाग चुकी थी कि जय जो कि नौजवान दुबला पतला लड़का, वो क्या करेगा प्रिया के साथ अगर मौका मिले तो।
अगले दिन फिर से दोपहर को मैं घर पर आया।
एक दूसरे के बाहों में कैद मैं उसे चूमने लगा। क्यों तो मेरा प्यार प्रिया के लिए बढ़ रहा था। मेरी उत्तेजना बहुत ज्यादा थी। इसका कारण एक ही था हमारे घर में रहने वाला ठरकी लड़का। उसकी मेरे बीवी के लिए ठरक मुझे भी ज्यादा ठरकी बना रही थी।
"जी, कल रात आप कब आए? बहुत देर तक आपकी राह देखी मैने फिर खाना लगाकर सो गई उतना भी था मुझे काम के वजह से सुबह।" प्रिया बोलते हुए मेरी छाती के बालों के साथ खेलने लगी।
मैं: "रात की बात से मुझे याद आया। कल रात को जय उस तरफ कब आया सोने के लिए।"
प्रिया के हाथ मेरी छाती पर रुक गए। उसने मेरी तरफ मुंह किया।
प्रिया:"सच? मैने ध्यान नहीं दिया। क्यों? आपके तरफ तो बहुत जगह थी।"
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