Incest क्या.......ये गलत है?

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Note: I am not a Original Writer

Credit goes to original writer:Rakesh shing1999



All credit's goes to him onlyI am just sharing it here
 
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कविता ने फिर भी आंखे नहीं खोली। जय ने ज़्यादा ज़ोर नहीं दिया बल्कि वो अपनी दीदी के यौवन को फिर से घूरने लग गया। उसने फिर कविता के पेट को सहलाते हुए चूमा। गुदगुदी की वजह से कविता कांप रही थी। उसने कविता की नाभि में भी चुम्मा लिया और उंगली से उसके कमर और नाभि के आसपास के हिस्से को छेड़ रहा था। कविता इस गुदगुदी से सिहरकर कांप जाती थी। फिर उसने अपनी जवान दीदी के उस हिस्से को देख जहां से इंसान पैदा होता है। यानी कविता की योनि, बुर, चूत, फुद्दी, पुसी, मुनिया इत्यादि। कविता के बुर पर हल्के कड़े छोटे बाल थे, ऐसा लगता था मानो 3 4 दिन पहले ही साफ किये हों। जिससे उसकी बुर का हर हिस्सा साफ दिख रहा था। बुर की लगभग 4 इंच की चिराई थी और रंग गहरा सावँला था।। बुर बिल्कुल फूली हुई थी, और चुदाई ना होने की वजह से अभी बुर की शेप बिल्कुल सही थी। बुर की पत्तियां हल्की बाहर झांक रही थी।उससे एक अजीब सी महक आ रही थी। जो उस के बुर के रस की थी। बुर से लसलसा पदार्थ चिपका हुआ था।
जय मदहोश होकर सब देखता रहा और मन में बोल आज देसी बुर के दर्शन हो गए वो भी अपने ही दीदी की।
जय ने बुर को अपने हाँथ के शिकंजे में ले लिया और उसे मसलने लगा। और कविता की बांयी चूची की घुंडी को मुंह मे भर लिया और चूसने लगा। दूसरे से कविता की दायीं चूची को दबाने लगा। कविता ने कोई विरोध नही किया। बल्कि उसका हाथ जय के सर पर आ गया। जय ने चूची चूसते हुए कविता की ओर देखा क्योंकि उसे कविता से किसी प्रोत्साहन की उम्मीद नहीं थी। पर उसका हाथ उसके सिर पर रखना कविता की सहमति का प्रतीक था। कविता को कूलर चलने के बावजूद पसीने आ रहे थे, शायद ये डर, विषमय और सुख का मिला जुला असर था। जय ने कविता की चुचियों की अदला बदली की। करीब 7 - 8 मिनट चूची की चुसाई के बाद उसने एक बार फिर कविता को बोला, प्लीज आंखें खोलो ना दीदी। पर कविता ने कोई जवाब नही दिया बल्कि वो लगातार आहें भर रही थी। अपनी चूची की चुसाई का आनंद ले रही थी। आज उसे मालूम हुआ कि इन चुचियों का चुदाई में मर्द कैसे इस्तेमाल करते हैं। जय ने फिर कविता की टांगो के बीच जगह बनाई और खुद बैठ गया।वो कविता की जांघों को सहला रहा था।



कविता के बुर के करीब अपना चेहरा लाकर उसने उसे सूँघा। बिल्कुल यही खुसबू उसकी पैंटी से आ रही थी जब उसने बाथरूम से उसकी पैंटी में मूठ मारा था। उसने ब्लू फिल्मो में देखा था कि मर्द बुर को खूब मज़े से चूसते हैं पर उसकी हिम्मत नहीं हुई, वैसे भी उसके लिए ये उत्तेजना संभालना मुश्किल हो रहा था। उसने अपने लौड़ा कविता के बुर पर सटाया। कविता आह कर उठी।
जय ने कविता की बुर पर थूक दिया जैसा उसने कविता को देते हुए देखा था। और थूक जाकर बुर के रस से मिलकर बुर को चिकन कर गयी। कविता कुंवारी जरूर थी पर खीरे और गाजर की वजह से झिल्ली टूट चुकी थी। जय ने अपना लण्ड जब घुसाया तो बस हल्की दिक्कत हुई। बाकी लौड़ा पूरा अंदर घुस गया। जय को तो लगा जैसे जन्नत के दरवाजे किसीने खोल दिये हो। बुर की गर्मी का एहसास उसे अपने लण्ड पर पागल बना रहा था। कविता की आंखे इस एहसास के साथ खुल गयी कि एक लौरा अभी अभी ज़िन्दगी में पहली बार उसकी बुर में समा गया है। कविता को अपनी तरफ़ देखते जय का हौसला और जोश बढ़ गया। कविता की आंखों से अब शर्म जा चुकी थी, वो आँहें भर रही थी। आआहह.... आआदह ...ऊफ़्फ़फ़फ़.. आआहह.…………………
कविता बोल रही थी, और ज़ोर से आआहह.......... और ज़ोर से......ऊईई माँ..... आईई
 
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कविता बोल रही थी, और ज़ोर से आआहह.......... और ज़ोर से......ऊईई माँ..... आईई
जय कुछ बोले बिना ही उसकी इन बातों से उत्तेजित होने लगा । उसने कविता की आंखों में आंखे डालकर उसे चोदना शुरू किया। कविता ने भी अपने भाई को बाहों में भड़ लिया और आहें भर रही थी। उसने अपनी टांगो को जय के कमर के इर्द गिर्द कैंची बना ली। और उसे चुम्मा देने लगी। दोनों के नंगे जिस्म अब वासना के खेल की चरम सीमा पर पहुंचने ही वाले थे। कविता के होंठ अभी जय के होंठो को चूस रहे थे, की जय को महसूस हुआ कि कविता की बुर उसके लण्ड को अंदर की ओर खींच रही है। कविता ने इस वक़्त चुम्बन तोड़ दिया और ज़ोर ज़ोर से आहें भरने लगी , जय ने महसूस किया कि उसका माल भी झड़ने वाला है। कविता ने अपने नाखून जय की पीठ में गड़ा दिए। जय ने बोला कि दीदी मेरा माल गिरने वाले है। कविता अब तक झड़ चुकी थी। उसने बोला जब एक दम निकलने वाला हो तब बाहर निकल लेना भाई। जय ने बोला जानता हूं कि बाहर ही निकालना चाहिए, कविता दीदी।


तभी जय बोला कि निकलने वाला है, और लण्ड बाहर निकाला, कविता ने झट से उसके लण्ड को अपने मुंह मे भर ली। जय के लिए ये बिल्कुल अचंभा था कि कविता ने उसका लण्ड मुंह मे ले लिया, पर वो कुछ सोच समझ पाने की स्थिति में नहीं था। और कविता के मुंह मे अपना पूरा मूठ निकाल दिया। कविता अपने बुर के रास से सने लौड़े को मुंह मे लेके उसके मूठ को मुंह मे इकठ्ठा कर ली। जय के लौड़े से करीब 7 8 झटको में सारा मूठ कविता के मुंह मे समा गया। जय आआहह... आआहह करता रहा और बिस्तर पर निढाल हो गया। उसकी जाँघे कांप रही थी। कविता ने उसके लौड़े को अभी तक नहीं छोड़ा था, वो चूसे जा रही थी। जब तक उसका आखरी बूंद ना निकल गया। जय ने कविता की ओर देखा तो उसने एक झटके में पूरा लौड़े के रस को निगल गयी।
जय ने कविता को अपने ऊपर खींच लिया और उसे बाहों में जकड़ लिया। दोनों की नज़रे मिली। कविता ने अपना मुंह उसके सीने में ढक लिया। दोनों वहीं उसी हालत में सो गए।
 
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कविता अपने छोटे भाई के ऊपर अपनी सुध बुध खोकर नंगी ही सोई हुई थी। जय ने उसे अपनी बाहों में पकड़ रखा था। ये एक अद्भुत नजारा था, कहने को दोनों भाई बहन थे पर इस समय दोनों ब्लू फ़िल्म के हीरो हीरोइन लग रहे थे। जय की आंखों में नींद कहाँ थी इतनी खूबसूरत बला उसकी बाहों में थी। जय ने कविता की ज़ुल्फ़ों को एक किनारे किया। कविता ने एक आंख खोली तो सामने जय को खुद को घूरते हुए पाया। कविता का चेहरा भावविहीन था, खुदको अपने छोटे भाई की बाहों में नंगा पाकर भी उसके चेहरे पर ना खुशी, ना दुख था। शायद उसके मन में कोई कशमकश चल रही थी, सही और गलत की पर , उसमे इतनी हिम्मत नहीं थी कि अपने भाई को कुछ मना कर सके। उसके आंखों में हल्की ग्लानि उतर आई थी। भाई बहन की सारी मर्यादा टूट चुकी थी। जिस भाई को उसने अपने कभी अपने गोद मे उठाया था, आज उसके लण्ड को अपने बुर में समाकर उसे शायद खुद से दूर कर दिया था।जय कविता के आंखों में देखते ही समझ गया कि कविता के मन मे क्या चल रहा है। कविता उठकर बैठ गयी, और चादर जो नीचे गिरी हुई थी उसे उठाकर खुद को ढक लिया। जय ने उसे नहीं रोका, वो उठकर कविता के ठीक पीछे बैठ गया। कविता बिस्तर के किनारे अपने पैर फर्श पर रखके बैठी थी। जय ने कविता के कंधे पर सर रख दिया, कविता हटना चाहती थी पर जय ने उसे बाहों में पकड़ लिया। कविता के कानों के पास जाकर उसने कहा- कविता दीदी हम जानते हैं कि तुम क्या सोच रही हो। तुमको अभी खुद से बहुत घृणा हो रही होगी। तुम्हे लग रहा होगा कि तुम दुनिया की सबसे गिरी हुई लड़की हो। औऱ अगर तुम वैसा सोच रही हो तो तुम गिरी हुई नही बल्कि अच्छी शरीफ लड़की हो। कोई भी लड़की अपने सगे भाई से ये सब नहीं करना चाहती है। पर वो पल ऐसा था कि हम दोनों अपने आप में ना रहे। उस वक़्त हम भाई बहन से मर्द और औरत बन गए थे। ये ही तो संसार मे होता है, मर्द औरत ही संसार को बनाते हैं। ये रिश्ते नाते कोई मायने नही रखते हैं, अगर ऐसा होता तो ना तुम्हें नंगी देखकर हमारा लण्ड खड़ा होता, ना तुम ये जानते हुए की में तुम्हारा भाई हूँ, नंगी होते हुए दरवाज़ा खोलती, और ना तुम्हारी बुर मुझे देखकर पनियाती। कविता बोली- बस करो भाई, जय ने कविता के चेहरे को अपनी ओर घुमाया, उसकी आंखों से आंसू गिर रहे थे ।
जय- दीदी इसमें शर्मिंदा होने की कोई बात नहीं है। हमने कुछ गलत नहीं किया, हां ये समझने में हो सकता है कि तुम्हे कुछ वक्त लगे, पर तुम कुछ कर मत बैठना।
तभी बाहर से ममता की आवाज़ गूँजी , कविता ..... कविता…........... उठ ज़रा । कविता और जय दोनों चौकन्ने हो गए। कविता झट से उठी। दोनों की नज़र घड़ी पर पड़ी इस वक़्त 5:30 हो रहे थे। कविता ने उसे कहा कि तुम जल्दी जाओ यहां से। पर कोई जगह नहीं थी, इसलिए जय नंगा ही पलंग के नीचे घुस गया। कविता ने कहा, हाँ माँ बस खोल रहे हैं दरवाज़ा। ज़रा एक मिनट । कविता ने जय के बॉक्सर और अपनी पैंटी को पलंग के नीचे खिसका दिया, और खुद नाइटी पहन ली। जल्दी में बस वही पहन सकती थी। उसने दरवाज़ा खोला तो ममता कमरे में घुस गई। और हड़बड़ाते हुुए बोली देखो हमको गांव जाना होगा। वहां तुम्हारे चाचाजी की तबियत बहुत खराब है। भले ही उन्होंने कुछ सही गलत जो भी किया हमारे साथ, लेकिन वो हमारे रिश्तेदार भी हैं। हम नहीं जाएंगे तो कौन जाएगा?
कविता पहले से डरी हुई थी उसे लग रहा था कि माँ सब जान ना जाये पर ये सुनके उसका मूड खराब हो गया उसने अपनी माँ को गुस्से में कहा वो आदमी जिसने हमे सड़क पर छोड़ दिया, जिसने हमे सुई के बराबर ज़मीन नहीं दी। आप उसके पास जाओगी, मरता है तो मरे वो कमीना आदमी।
ममता बिस्तर पर बैठते हुए बोली , देखो कविता तुम बड़ी हो गयी हो, तुम्हे क्या हमने यही सिखाया था। बड़ों का सम्मान किया करो।
नीचे रवि भी ये सुन रहा था, डर से उसके पसीने छूट रहे थे । वो क्या करता बस सोच रहा था कि कब माँ यहां से जाए और वो अपने कमरे में भागे।
कविता बोली क्यों माँ क्यों करे उस आदमी का सम्मान जो सम्मान के योग्य ही नही है। तुम बहुत भोली हो। तभी कविता की नज़र रवि की गंजी पर गयी जो फर्श पर पड़ी हुई थी। उसे काटो तो खून नहीं, दिल जोरों से धक धक करने लगा।
कविता के माथे से पसीना बहने लगा। ममता की नज़र उस पर नहीं पड़ी थी। कविता ने सोचा कि माँ को किसी तरह भगाना होगा । ममता तब तक बोलती ही जा रही थी, पर कविता के कानों से वो बाते लौट गई।
ममता ने आखिर में पूछा, क्या बोलती हो कविता??
कविता ने कहा- तुमको जो ठीक लगता है, करो में क्या बोलू।
ममता ने कहा- ये मत भूलो की वो तुम्हारे चाचा ही नही मौसाजी भी हैं। में अपनी बहन से भी मिल लूंगी।
उधर बिस्तर के नीचे घुसे हुए रवि अपनी माँ और कविता के पैर ही देख पा रहा था। तभी कविता के पैर ने उसकी गंजी को धक्का मारा और वो सीधा उसके मुंह पर लगा। उसने गंजी को तुरंत अपने पेट के नीचे छुपा लिया।
ममता उठी और बोली की जाते हैं जय को उठा देते हैं, टिकेट कटाकर मुझे अगली गाड़ी में बिठा देगा।
कविता - माँ जय तो अभी अभी सोया होगा, IAS की तैयारी जो कर रहा है, थोड़ी देर बाद उठाना , तब तक तुम समान पैक कर लो। टिकेट हम ऑनलाइन काट देते हैं।
ममता- कितना ख़याल है छोटे भाई का, ठीक है जल्दी काट दो।
कविता - हाँ माँ, तुम जाओ।
ममता चली गयी। कविता दरवाज़ा लगाके पीछे मुड़ी तो जय बाहर आ चुका था। उसने बॉक्सर और गंजी हाथ मे रखी थी। कविता बोली, जल्दी पहन लो और जाओ यहां से। जय ने अपने बॉक्सर और गंजी पहनी और जाने लगा। तभी उसने कविता को चुम्मा लेना चाहा पर कविता ने उसे रोक दिया। जय ने कुछ नही बोला और जाने लगा। तभी कविता ने कहा- रुको, और अपना हाथ बढ़ाकर उंगलिया हिलाई, जैसे कुछ मांग रही हो।
जय ने फिर अपनी जेब से कविता की पैंटी निकालकर उसके हाथ मे रख दी।
अब जाओ, कविता बोली।
जय भागकर अपने कमरे में घुस गया।
सुबह के आठ बजे चुके थे, कविता ने तत्काल में स्वर्णजयंती एक्सप्रेस का टिकट काट दिया था, जो साढ़े नौ बजे नई दिल्ली से खुलती थी। ममता और जय ऑटो से स्टेशन की ओर निकल रहे थे। ममता ने कविता को कहा कि अपना और जय का ध्यान रखना। और ऑटो में बैठ गयी।
ममता को ट्रेन की सीट पर जय ने बैठने का इशारा किया और बोला, माँ ये 49 नंबर है तुम्हारी सीट। गाड़ी खुलने वाली है , मैं निकलता हूँ। और ममता के पैर छूकर उतर गया। ममता ने उसे खिड़की से ही गालों पे चुम्मा लिया और बोली ध्यान रखना, और दीदी को परेशान मत करना ज़्यादा। ट्रेन चल पड़ी।
ममता हाथ हिलाते हुए जय की नज़रों से ओझल हो गयी।
जय वापिस ऑटो पकड़के घर पहुंच गया। रास्ते भर कल रात की बाते उसके दिमाग मे चल रही थी। जब घर पहुंचा तो 10:35 हो रहे थे, घर पर ताला लगा था, शायद कविता आफिस जा चुकी थी। उसने बगल की आंटी से चाभी ली जैसे हर बार चाभी उनके पास ही छोड़ के जाते थे। दरवाज़ा खोलकर वो अंदर अपने कमरे में पहुंच गया।
वो कमरे में पहुंच कर पढ़ाई करने लगा। दरअसल वो पढ़ने की कोशिश कर रहा था, पर रात की बातें उसके दिमाग में घूम रही थी। कविता के नंगेपन और जवानी की चासनी में डूबी उसकी चुचियाँ, उसका बुर, उसकी गाँड़, उसकी नाभि, उसकी जाँघे, उसका पूरा बदन उसकी आँखों के सामने आ रहा था। उसकी पढ़ने की नाकाम कोशिश कोई एक घंटे चली।अंत मे उसने किताब बंद कर दी और लेट गया। उसका लौड़ा अनायास ही खड़ा हो गया था।
जय कविता के कमरे में घुस गया। वहाँ उसने कविता की अलमारी खोली। वो कविता की कच्छीयाँ ढूँढने लगा। उसे वहाँ कविता की 3 4 कच्छीयाँ मिली। तभी उसको ध्यान आया की आज उसकी माँ ममता भी नही है। कविता की कच्छीयाँ लेकर वो ममता के कमरे में गया वहाँ उसको अपनी माँ की ब्रा और पैंटी मिल गयी। उन दोनों की ब्रा और पैंटी लेकर वो हॉल में आ गया, और खुद पूरा नंगा हो गया। उसके बाद उसने वहीँ इन्सेस्ट ब्लू फिल्म लगाई। और अपनी माँ बहन की ब्रा पैंटी के साथ खेलने लगा। वो सोच रहा था कि मैं कहाँ इन ब्लू फिल्मों में सुकून ढूंढता रहता था, जो मज़ा मेरी घर की औरतों की अंडरगारमेंट्स में हैं वो कहीं और कहां मिलेगी। मेरी माँ ममता क्या माल है, एयर मेरी बहन वो तो माँ की परछाई है। कल रात मुझे अपने जन्मदिन का बेहतरीन गिफ्ट मिला, अपनी सगी बड़ी बहन को चोदना सबको नसीब नहीं होता। अगर खुद की माँ और बहन के बारे में सोचके मेरा इतना बुरा हाल हो जाता है, तो बाहर के मर्द तो उनके बारे में क्या क्या घिनौनी बातें सोचते होंगे।
तभी उसका मोबाइल बजने लगा। उसने इग्नोर कर दिया क्योंकि कोई अनजान नंबर था। वो फिर ममता और कविता के खयालों में खोने लगा, की मोबाइल फिर से बजने लगा।
उसने मोबाइल उठाया- हेलो?
दूसरी तरफ से- जय बोल रहे हो?
जय- हाँ जी, आप कौन?
मैं आरिफ एसोसिएट्स से बोल रहा हूँ, तुम्हारी बहन यहाँ बेहोश हो गयी है, मैन डॉक्टर को दिखा दिया है, घबराने की कोई बात नहीं है, इसे यहां से ले जाओ।
जय- जी मैं अभी आया, तुरंत।
जय ने फुर्ती से उठकर कपड़े पहने और भागता हुआ बाहर पहुंचा। वहां उसने ऑटो ली और करीब 15 मिनट में वो वहां पहुंच गया।
जय- क्या हुआ दीदी को?
आरिफ़- अरे कुछ नहीं ज़रा सा चक्कर आया है, डॉक्टर ने बताया कि स्ट्रेस की वजह से ऐसा हुआ है। बैठ जाओ। मैंने इसे एक हफ़्ते की छुट्टी दे दी है। कविता को आराम की ज़रूरत है।
जय- कोई डरने वाली बात नहीं है ना?
आरिफ- अरे नहीं यार, रिलैक्स डॉक्टर ने कहा है कि कुछ भी घबराने की ज़रूरत नहीं है, बस थोड़ा आराम चाहिए, वैसे तो मैं किसीको इतनी छुट्टी नहीं देता, बट कविता ने कभी भी इन 8 सालों में इतनी लंबी छुट्टी नहीं ली है। इसलिए छुट्टी पर भेज रहा हूँ। ये लो प्रेस्क्रिप्शन, और दवाइयां। मैंने एक हफ्ते की ले दी हैं।
जय- थैंक यू सर।
आरिफ- ठीक है, इसे ले जाओ।
 
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जय अंदर गया जहाँ कविता लेटी हुई थी। जय ने कविता को गोद मे उठाया और और बाहर आके ऑटो में बिठाया, कविता का पर्स और छाता वो फिर ले आया। और ऑटो में बैठ गया। कविता होश में थी, पर थोड़ी कमज़ोरी थी।
जय ने ऑटोवाले को कहा भैया आराम से ले चलो।
थोड़ी देर में वो अपने घर पहुंच गए। कविता अब तक संभल चुकी थी, और ऑटो से उतर के घर की ओर जाने लगी। जय ने ऑटोवाले को पैसे दिए। जैसे ही वो मुड़ा की कविता लड़खड़ा रही थी, हल्की कमज़ोरी से। उसने कविता की बांह को अपने गर्दन में डाला और उसे गेट तक ले गया। दरवाज़ा खोलके, उसको उसके कमरे तक वैसे ही ले गया। कविता लेट गयी।
जय ने उसे वैसे ही छोड़ दिया और वहीं बैठ गया।
शाम को करीब पांच बजे कविता की नींद खुली, अब वो पूरी तरह ठीक हो चुकी थी। उसे सारी घटना विधिवत याद थी। उसने देखा जय वहीं पलंग से लगके बैठकर सो रहा था। उसने उसको देखा तो उसे उठाया,
कविता- जय....जय... उठो।
जय- अऊ.. आय दीदी तुम ठीक हो? कब उठी ?
कविता- अभी अभी। कविता ने उसे बिस्तर पर बैठने का इशारा किया।
जय- दीदी आखिर, कैसे हुआ ये?
कविता नज़रें झुकाये हुए-हम कल रात की बातें सोच रहे थे, और पता नही कब हम बेहोश हो गए।
जय कविता के करीब आया, और बोला- दीदी तुम भी ना, कुछ गलत नहीं हुआ है। हम दोनों ही वयस्क हैं, और ये हो जाता है। क्या हम नहीं समझते हैं कि तुमको सेक्स की ज़रूरत है। 26 साल की लड़की अगर सेक्स नहीं चाहेगी तो क्या बुढ़िया होकर सोचेगी। ये तो ज़रूरत है शरीर की, किसी और के साथ करोगी बाहर में तो, ख़तरा होगा। हमलोग अगर घर में ही एक दूसरे को खुश रखें, तो इसमें बुराई क्या है। तुम भी ब्लू फिल्में देखती हो और हम भी एक दूसरे से छुपाकर। पर जानते हैं कि दूसरा देख रहा है। हमारी तरफ देखो ना। कविता उसकी आँखों मे भोले बच्चे की तरह देखने लगी।
कविता- पर हम भाई बहन होकर चुदाई कैसे कर सकते हैं, जय? क्या हमने अपने रिश्ते को कलंकित नहीं किया है??
जय- तुमको क्या लगता है खाली हमने तुमने ऐसा किया है, अरे आदिकाल से ऐसा हो रहा है समाज में। रति ने अपने बेटे के साथ, यमी बहन होकर अपने भाई के साथ संभोग करना चाहती थी। अर्जुन से स्वर्ग की अप्सरा जो कि उसकी माँ थी वो भी उससे संभोग करना चाहती थी। तुम मुस्लिमों में ले लो चाचा, फूफा की बेटी के साथ शादी हो जाती है। ये रिश्ते नाते सब अपनी जगह हैं, अगर तुम बाहर जाके ये सब करोगी तो दुनिया तुमको बदचलन, रंडी, और ना जाने क्या क्या बोलेगी। जो हम या माँ तो बिल्कुल नही चाहेंगे। अरे, तुम्हारे साथ कुछ गलत नही होने देंगे हम। राखी का वचन है। जहाँ तक रही हमारी बात तो , हम अब तुमको एक बात कह देना चाहते हैं, आई लव यू, कविता। भले ही तुम हमारी दीदी हो, पर अब सच्चाई यही है। और हम तुमको आज से नहीं बहुत पहले से प्रेमी की तरह चाहते हैं। बस कह नहीं पाते थे, की तुम क्या सोचोगी? पर आज साला निकल ही गया। अगर हमारा बस चले तो तुमसे ही शादी करेंगे।
जय उठके जाने लगा। तभी कविता ने उसका हाथ पकड़ लिया। कविता बिस्तर से उठी और जय की आंखों में देखा," इतना प्यार करते हो हमसे। हम कभी सोचे नहीं थे कि कोई हमको इतना चाहेगा। पता है आज दिन भर हम क्या सोच रहे थे। कि हम कितनी घटिया लड़की हैं जो अपने ही भाई के साथ, अपने बिस्तर पर चुदाई की। हमको तुमसे ज़्यादा खुदसे घिन्न हो रही थी। हमको तो आज मन कर रहा था कि सुसाइड कर लें। छोटे हो हमसे तुम पर बड़ी बात सिखा दिया तुमने। आखिर प्यार कोई रिश्ते देखकर थोड़े ही होता है। हम भाई बहन हैं भी तो इस समाज के लिए, पर समाज से पहले हम दोनों को प्रकृति ने औरत और मर्द बनाया है, और ये रिश्ता समाज के रिश्ते से कहीं ऊपर है। मैं इन रिश्तों के बंधनो को तोड़कर आज तुमसे प्रेमिका का रिश्ता जोड़ती हूँ। अब चाहे जो हो, ये कविता आज से तुम्हारी है। इसके बाद तुमसे समाज का बंधन ज़रूर जोरूँगी, पति- पत्नी का।
जय- कविता दीदी, आई लव यू।
कविता- सिर्फ कविता कहो। आई लव यू टू जय। तुम हमको अकेले मत छोड़ना, हमारा साथ निभाना।
जय ने कविता को अपनी बाहों में भर लिया और उसको किस करने लगा। अबकी बार कविता उसे एक अलग ही तरह से चूम रही थी।
 
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कविता अपने छोटे भाई के सीने पर अपनी चुचियाँ को गड़ा दिया और उसके सर के आजु बाजू अपना सर डाल दिया और उसको खूब ज़ोर से चुम्मा लेने लगी। कविता अपनी जीभ से जय के मुंह को टटोल रही थी। कविता को इस तरह चूमता देख जय ने कविता को कमर से पकड़ लिया और वो भी उसे उसी तरह पैशनेट चुम्मा लेने लगा। करीब 5 मिनट बाद दोनों सांसें उखाड़ जाने की वजह से रुके, वरना वो अलग नहीं होते। कविता जय की आंखों में देख रही थी, पर इस बार शर्म की जगह मोहब्बत ने ले ली थी।
जय- कविता दीदी तुम तो बहुत ही मस्त किस करती हो।
कविता- हहम्म, मज़ा आया की नही।
जय- बहुत मज़ा आया दीदी, आज हम कितने खुशनसीब है कि हमको अपनी दीदी में ही एक बहन और औरत दोनों का प्यार मिल रहा है।
कविता- क्या मतलब? तुम ये भाई बहन का रिश्ता अभी कायम रखोगे?
जय- हाँ, दीदी ये तो हमारी पहली सच्चाई है, पर दूसरी सच्चाई ये है कि हम तुम्हें अपनी गर्लफ्रैंड बनाना चाहते हैं। जय ने उसके बालों को सवारते हुए कहा।
कविता- तो तुम सबके सामने हमको दीदी बनाये रखोगे और अकेले में हम दीदी से बीवी बन जाएंगे। ये बोलकर कविता और जय दोनों ठहाके मारकर हँसे।
जय- वो तो तुम्हे एक दिन बनना है, जानू।
जय ने बोला कि चलो में तुम्हे कहीं बाहर घुमा के लाता हूँ।
कविता- पर तेरे पास पैसे कहा से आये?
जय- कल मामाजी ने दिए थे, 5000।
कविता- अच्छा, पर तुम्हे उनसे पैसे नहीं लेने चाहिए थे। हमको अच्छा नहीं लगता कि कोई हम पर दया करके पैसे दे। उन्हें लगता है कि हम तंगी में जीते हैं।
जय- अरे कविता तुम कहाँ से कहाँ पहुंच गई, चलो ना।
कविता- जय हमको मामाजी की आंखों में हमेशा दया दिखती है, हमारे लिए जो हमको अच्छा नहीं लगता। यही सोचके उन्होंने पैसे दिए होंगे।
जय- उन्होंने कोई गिफ्ट नहीं लाया था, इसीलिए रुपये दिए। ताकि अपने हिसाब से कुछ ले लूँ। तुम आओ मेरे साथ।
कविता- ओह.... अच्छा ठीक है। हम फ्रेश हों लेते हैं।
जय -ठीक है, हम भी कपड़े बदल लेते हैं।
थोड़ी देर बाद कविता बाहर आ गयी।
कविता इस वक़्त काली कलर की लेग्गिंग्स और लाल कुर्ती में थी। जय टी शर्ट और जीन्स में था।
जय ने उसे देखा तो बोल पड़ा, क्या हॉट लग रही हो कविता। कविता मुस्कुराई, तुम भी बहुत हैंडसम लग रहे हो। जय कविता के साथ बाहर आया। और ऑटो ले ली। उसमे बैठके दोनों PVR मॉल को निकल पड़े।

बाहर गर्मी थी, तो कविता और जय दोनों को पसीने आ रहे थे। कविता की कुर्ती से उसकी चुचियों की दरार साफ दिख रही थी। जिसमे उसके गले का लॉकेट फंसाथा। पसीने की वजह से चुचियाँ का हिस्सा जो दिख रहा था, बिल्कुल चमक रहा था। कविता इस बात से बेखबर थी कि जय उसकी चुचियों को निहार रहा है। जय ने एक शरारत की उसने पहले कविता को अपनी दायीं बांह से खुद से चिपका लिया। कविता मुस्कुराते हुए उसके करीब आ गयी। उसने फिर कविता की लेग्गिंग्स में अपना हाथ पीछे से घुसा दिया।
कविता चौंक उठी- आंखों से इशारा करके बोली निकालने के लिए। पर जय कहाँ मानने वाला था। वो मुस्कुराके उसकी पैंटी में हाथ घुसा दिया, और कविता की गाँड़ की दरार में उंगलिया फेरने लगा। कविता धीरे से बोली, जय यहां नहीं प्लीज।
जय ज़ोर से बोला- क्या , यहां नहीं जानू। कविता को ये छेड़ छाड़ पसंद आ रही थी, वो झूठा गुस्सा भरा चेहरा बनाके उसे डराना चाही, पर जय ने उसे चूम लिया। कविता की हंसी छूट गयी। जय बोला हँसी तो फंसी।
तब तक वो पहुंच चुके थे , जय ने ऑटोवाले को पैसे दिए और वो चला गया। तब जय ने अपने हाथों को सूँघा जिससे उसने कविता की गाँड़ को टटोला था, कविता ये सब देख रही थी। वो मुस्कुराई और बोली जल्दी चलो। जय ने सोचा, कविता को ये घिनौना नही लगा, की मैं उसकी गाँड़ को टटोलकर सूंघ रहा हूँ, कोई और होती तो शायद घृणा करती ।
वो कविता के पीछे हो लिया। वहां टिकट की लाइन में भीड़ थी। लेडीज की लाइन में तीन चार ही लोग थे। कविता ने बोला कि टिकेट मैं ले लेती हूँ। और टिकेट की लाइन में लग गयी। जय ने देखा कि कविता एक दम मस्त माल लग रही है। ब्राह्मण होने की वजह से रंग तो पूरा गोरा था। कविता की चुचियाँ क्या मस्त तनी हुई थी और गाँड़ का उभार तो उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रहा था। उसका भोला सा चेहरा। उसकी गोल बड़ी बड़ी आंखें , हाई चीक बोन्स की वजह से उसका चेहरा और निखर रहा था। उसने अपने बाल क्लचर में बांध रखे थे। कानों में से लटकता झुमका मैटेलिक रंग का था। जिसमे दो गोलाकार बॉल लगे हुए थे, उसे और आकर्षक बना रहे थे। होंठो पर हल्की लाल लिपस्टिक, आंखों में गहरा काजल वो बिल्कुल बॉलीवुड की हीरोइन लग रही थी।
तभी कविता ने जय को टोका- जय ये लो, टिकेट।
जय लगभग सपने से जागते हिये बोला - अरे तुमने हमको क्यों नही बोला? पैसे थे ना।
कविता- जब तक हम हैं तब तक तुमको पैसे खर्च नही करने हैं। जब तुम IAS बन जाओगे तब करना।
जय- तब तुमको हम बीवी बनाके रखेंगे, और इस साल ये होक रहेगा।
कविता- अच्छा है पर, माँ को कैसे मनाओगे?
जय- उन्हें समझाऊंगा की हम दोनों प्यार करते हैं।
कविता- वो बोलेंगी की ये गलत है, तब ?
जय- उनको समझायेंगे,...... क्योंकि...... ये गलत नहीं है?
 
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तभी एंट्री शुरू हो गयी। कविता और जय ने जाकर कार्नर की सीट ले ली। जय ने पूछा कि ये कार्नर की सीट कैसे मिली। कविता ने आंख मारी की मैंने माँग ली थी। जय ने कविता की ओर देखा और बोला , क्या बात है, जानू??
पिक्चर शुरू हो गयी, पर जय का ध्यान कविता के ऊपर था। उसने कविता के बाजू में अपना हाथ रख लिया। कविता खुद खिसक कर जय के करीब आ गयी। थोड़ी देर पिक्चर चलने के बाद फ़िल्म में एक सीन था जिसमे हीरो जॉन अब्राहम दरवाज़ा तोड़के हीरोइन बिपाशा बासु के पास आके उसे किस करने लगता है और फिर सेक्स सीन होता है।
जय ने कविता से पूछा कि दीदी, मुझे तुम से कुछ पूछना है?
कविता ने कहा- हाँ पूछो।
जय - कल की रात तुम जानती थी कि तुम नंगी हो फिर भी तुमने दरवाज़ा क्यों खोला, ये जानते हुए की हम तुम्हारे साथ क्या करेंगे? हाल के अंधेरे में जय ने हिम्मत जुटाकर ये सवाल किया, ये सोचकर कि शायद अंधेरे में कविता उसका चेहरा नहीं देख पाएगी।
कविता- उस वक़्त हमारी समझ में नहीं आ रहा था कि हम क्या करें। तुम हमको नंगी देख चुके थे। और शायद हमको वासना की तलब थी। ब्लू फिल्म देखकर हम जोश में भी थे। कोई मर्द ही उस समय हमको शांत कर सकता था, दिमाग ने दिल से कहा। और उस समय तुम ही दिखे।
कविता ने जय को गाल पर चुम्मा दिया और उसका हाथ अपने सीने पर रख लिया।
जय- जब हम तुमको चोद.... सॉरी सेक्स कर रहे थे। तब तुम क्या सोच रही थी??
कविता- इसमें सॉरी की क्या बात है, हिंदी में सेक्स को चुदाई ही बोलते हैं। और तुम हमको चोद रहे थे। लड़कियां चुदती हैं और लड़के चोदते हैं। उस वक़्त हम बस ये सोच रहे थे, की कैसे अपनी प्यास बुझाए। तुम्हारा लण्ड जब हमारे बुर में था, तो बहुत मज़ा आ रहा था। जैसे आसमान में उड़ रहे हों। उस समय एक बार भी ग्लानि नहीं हुई। हाँ चुदाई के बाद हुई थी। कविता ने पूरा बेबाक होकर उत्तर दिया, शायद ये हॉल का अंधेरा उनके जीवन मे नया प्रकाश लेके आएगा।
जय - तुम कितनी मस्त हो कविता। कितने खुलेपन के साथ तुमने जवाब दिया है। तुमने लंड का रस कैसे पिया? हमको उम्मीद नहीं थी।
कविता उसकी आँखों मे देखकर बोली- सच कहें तो ये हम ब्लू फिल्मों में देखते थे। कि लड़कियां मूठ पी जाती हैं। हम भी पीकर देखना चाहते थे कि कैसा लगता है। तुम अगर मेरे बुर में निकालते तो माँ बनने का खतरा भी था। हम कहीं पढ़े भी थे कि लड़कियों को मर्दों का मूठ पीना चाहिए, उससे चेहरे में निखार आती है। हमको उसका स्वाद भी बहुत अच्छा लगा।
जय- तुम तो अलग निकली कविता, एक तो तुम हिंदुस्तानी और उसमें बिहारी उसकर ऊपर से ब्रह्मिन लड़की होकर ये सब कैसे कर पाई।
कविता- जब विदेशी लड़कियां ऐसा करती है , तब तुमलोग सोचते हो कि हिंदुस्तानी, लड़कियां ऐसा क्यों नही करती। कर दिया तो आश्चर्य। बिहार ने भारत को ही नहीं विश्व को पहला लोकतंत्र दिया है, तो बिहार की बाला मूठ नहीं पी सकती क्या। वर्ण व्यवस्था तो ढकोसला है, और एक सेकंड को मान भी लें तो सबसे ऊपर हम ब्राह्मिन ही हैं, हर चीज़ की शुरुवात तो हम ही करते हैं। कविता बोलके हसने लगी।
कविता के तर्कों को सुनकर जय चुप ही हो गया। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वो उसकी दीदी है, जो इन विषयों की भी जानकार है।
कविता बोली- हम बाथरूम से आते हैं। जय ने बोला कि एक और बात पूछनी थी। कविता बोली आते हैं, फिर पूछना।
जय का लण्ड खड़ा हो चुका था, कविता की बातें सुनकर।जय उसका बेसब्री से इंतज़ार करने लगा।
कविता को 5 मिनट बाद आता देख उसको सुकून मिला। कविता आकर बैठी तो जय ने फौरन पूछा, की उस दिन पैंटी क्यों नहीं लाने दी अपने कमरे से?
कविता- उस दिन शर्म आ रही थी, घिन हो रही थी अपने आप से। पर आज नहीं और जय के हाथ मे कविता ने कुछ रख दिया। जय ने गौर से देखा तो कविता की पैंटी थी, जो वो पहन कर आई थी। उसमें उसकी बुर का पानी भी लगा था। कविता बाथरूम जाकर खोल आई थी।
जय- तुम्हें ....
कविता- पता था, की यही पूछोगे।और जय के लण्ड पर हाथ फेरने लगी। वो बिल्कुल कामुक हो चुकी थी।


तब जय ने कविता से एक आखरी सवाल किया- कविता दीदी तुम कमाल हो। पर ये बात पूछनी है, की हमको रफ़ चुदाई अच्छी लगती है, तुमको कैसी पसंद है।
कविता जो कि कामुक हो चुकी थी, और अब पूरी तरह खुल चुकी थी, बोली- शायद हो सकता है कि तुम्हें हमारा जवाब सुनके आश्चर्य लगे पर खुश जरूर होंगे। हमको बिल्कुल ब्लू फिल्मों की हीरोइन की तरह चुदना पसंद है।
मर्द और औरत का जब चुदाई का समा बंधता है तो उसको एक सुखद एहसास सिर्फ औरत देती है। ये औरत पर निर्भर करता है कि वो अपने यार को किस हद तक कि खुशी देगी। मर्द तो हमेशा ही औरतों से कुछ ज़्यादा चाहते हैं, पर क्या वो चुदाई की गहराइयों में उतरकर खुद को भुलाकर अपने साथी को संतुष्टि की चरम सीमा पर पहुंचने में मदद कर सकती है? पहले तो चुदाई का मतलब सिर्फ बुर की चुदाई होती थी।दर असल ब्लू फिल्मों की वजह से आजकल चुदाई के मायने भी बदल गए हैं, अब हर कोई औरत को वैसे ही चोदना चाहता है, जैसे उस फिल्म में हीरोइन चुदती हैं। जिसमे उनकी बुर की चुसाई और चटाई के साथ साथ गाँड़ की चुदाई, गाँड़ से लौरा निकालके उनको चटवाना, उनके मुंह पर थूकना व माल निकालना, चुदाई के दौरान उनको गाल और गाँड़ दोनों पर थप्पड़ मारना, मर्द की गाँड़ चाटना और भी कई तरह से गंदी और घिनौनी चुदाई के जिसे KINKY कहते हैं, शामिल है। अगर कुल मिलाके देखा जाय तो औरतो को चुदाई का सामान समझ लिया गया है। कुछ लड़कियों को ऐसे चुदना पसंद है, हम उनमे से एक हैं।हमको ऐसे ही चुदना है खुलकर,क्या आज ऐसा दो भाई बहन के बीच देखने को मिलेगा? कविता की आंखों में ठरक साफ झलक रही थी।
जय ने अब एक पल भी बर्बाद करना ठीक नहीं समझा और कविता को चूमने लगा। कविता बोली, चलो भाई घर चलते हैं।
जय ने उसका हाथ पकड़ा और पिक्चर आधी छोड़ कविता को घर ले जाने के लिए ऑटो पकड़ ली। दोनों अब बर्दाश्त कर नहीं पा रहे थे।आधे घंटे का सफर मानो एक युग जैसा लग रहा था।


आखिर में दोनों घर पहुंच ही गए।जय ने जबतक ऑटोवाले को पैसे दिए तब तक कविता ने दरवाज़ा खोला और अंदर चली गयी। जय दरवाज़े पर पहुंचा तो कविता उसकी तरफ देखके मुस्कुरा रही थी। जय उसके पीछे आया तब तक कविता बाथरूम में घुस चुकी थी, और दरवाज़ा बंद करने लगी। जय दरवाज़ा के पास दौड़ के पहुंचा पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जय ने कविता को आवाज़ लगाई, पर कविता कुछ नहीं बोली। जय कविता के जवाब की प्रतीक्षा कर रहा था। कविता ने फिर कहा, जय सब्र करो, सब्र का फल बहुत मीठा होता है।
जय बोला- अब सब्र नही हो रहा है दीदी।
कविता बोली - जाओ घर का सामान ले आओ लिस्ट किचन में टंगी है। पहले वो काम कर आओ। हम तुम्हारा और हमारा आज का दिन यादगार बना देंगे।जब तुम वापिस आओगे तो तुमको तुम्हारी दीदी नहीं , तुम्हारी कविता जानू मिलेगी। एक नए अवतार में।
जय कविता की बात मानकर, लिस्ट लेके बाजार से सामान लाने चला गया। उसने दरवाज़ा बाहर की ओर से बंद कर दिया। जय बाजार की ओर निकल तो रास्ते में उसे एक तरकीब सूझी। उसने सारा सामान बढ़ा के लेने की सोची। ताकि बाद में फिर उसे एक हफ्ते तक बाहर जाने की जरूरत ना पड़े। रास्ते मे उसे एक मेडिकल स्टोर दिख तो उसने 2 पैकेट कंडोम और वियाग्रा की गोलियां ले ली। जब वो लौट के आया तो कविता अभी तक बाथरूम में ही थी। कविता तभी बाहर निकली, वो इस वक़्त गज़ब ढा रही थी। उसके बदन पे कपड़े के नाम पर एक सफेद तौलिया लिपटा हुआ था। कविता के बाल भीगे हुए थे, आंखों में अपने छोटे भाई में एक मर्द मिल जाने की वजह से एक अजीब कामुकता बसी थी। वो तौलिया उसकी चुचियों को आधा ढके हुए था, यानी ऊपर से आधे खुले थे। चुचियों की ऊपरी अर्ध गोलाइयों उसके यौवन की परिपक्वता की गवाही दे रहे थे।उसकी जांघों का जोर जहां खत्म होता था, वहीं तक तौलिया उसको ढके था। उसकी जाँघे बिल्कुल चिकनी थी।

आखिर में दोनों घर पहुंच ही गए।जय ने जबतक ऑटोवाले को पैसे दिए तब तक कविता ने दरवाज़ा खोला और अंदर चली गयी। जय दरवाज़े पर पहुंचा तो कविता उसकी तरफ देखके मुस्कुरा रही थी। जय उसके पीछे आया तब तक कविता बाथरूम में घुस चुकी थी, और दरवाज़ा बंद करने लगी। जय दरवाज़ा के पास दौड़ के पहुंचा पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी। जय ने कविता को आवाज़ लगाई, पर कविता कुछ नहीं बोली। जय कविता के जवाब की प्रतीक्षा कर रहा था। कविता ने फिर कहा, जय सब्र करो, सब्र का फल बहुत मीठा होता है।
जय बोला- अब सब्र नही हो रहा है दीदी।
कविता बोली - जाओ घर का सामान ले आओ लिस्ट किचन में टंगी है। पहले वो काम कर आओ। हम तुम्हारा और हमारा आज का दिन यादगार बना देंगे।जब तुम वापिस आओगे तो तुमको तुम्हारी दीदी नहीं , तुम्हारी कविता जानू मिलेगी। एक नए अवतार में।
जय कविता की बात मानकर, लिस्ट लेके बाजार से सामान लाने चला गया। उसने दरवाज़ा बाहर की ओर से बंद कर दिया। जय बाजार की ओर निकल तो रास्ते में उसे एक तरकीब सूझी। उसने सारा सामान बढ़ा के लेने की सोची। ताकि बाद में फिर उसे एक हफ्ते तक बाहर जाने की जरूरत ना पड़े। रास्ते मे उसे एक मेडिकल स्टोर दिख तो उसने 2 पैकेट कंडोम और वियाग्रा की गोलियां ले ली। जब वो लौट के आया तो कविता अभी तक बाथरूम में ही थी। कविता तभी बाहर निकली, वो इस वक़्त गज़ब ढा रही थी। उसके बदन पे कपड़े के नाम पर एक सफेद तौलिया लिपटा हुआ था। कविता के बाल भीगे हुए थे, आंखों में अपने छोटे भाई में एक मर्द मिल जाने की वजह से एक अजीब कामुकता बसी थी। वो तौलिया उसकी चुचियों को आधा ढके हुए था, यानी ऊपर से आधे खुले थे। चुचियों की ऊपरी अर्ध गोलाइयों उसके यौवन की परिपक्वता की गवाही दे रहे थे।उसकी जांघों का जोर जहां खत्म होता था, वहीं तक तौलिया उसको ढके था। उसकी जाँघे बिल्कुल चिकनी थी।
 
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कविता की नज़र जय की ओर गयी, तो देखी की जय पूरे एक हफ्ते का राशन और सब्जी ले आया था। कविता उसके पास आई, वो जय के हाथों से सामान लेकर किचन की ओर जाने लगी। जय अवाक होक उसे देखे ही जा रहा था।जय ने फौरन दरवाज़ा बंद कर दिया। तौलिया भीगकर कविता के चूतड़ों से चिपक गया था, इस वजह से उसकी चूतड़ों का का दिलनुमा आकार साफ पता चल रहा था। उसकी चाल उसके चूतड़ों के हिलने से बहुत ही सेक्सी लग रही थी। ऐसा लग रहा था कि कविता के बदन पर तौलिया बस उसके चुचियों और गाँड़ की वजह से टिका हुआ था।जय ने कहा - अबसे एक हफ्ते तक हम घर से बाहर नहीं जाएंगे। और पूरी मस्ती करेंगे। कविता मुस्कुराई, बोली, अच्छा जी!
जय ने अपनी जीन्स और टी शर्ट उतारकर सोफे पर फेंक दी। और कविता के पास किचन में घुस गया। उसने कविता को पीछे से पकड़ना चाहा तो कविता मुड़ गयी। उसने कंडोम के पैकेट को निकाल जो जय लाया था। उसने बोला इसे क्यों लाये हो?? जय- ताकि सेफ रहे हम। तुम कहीं ....... अआ.....वो.... जाओ।
कविता- वो .. वो क्या? कि कहीं तुम्हारा बच्चा हमारे पेट में ना आ जाये।
जय- हाँ, वही .. वही। कविता जय के करीब गयी उसके आंखों में आंखे डालकर बोली, जब तक तुम अपने लण्ड का पानी हमारे बुर में नहीं गिराओगे तब तक इसका कोई डर नहीं, तुम्हारे लण्ड का सारा मूठ तो हम पी जाएंगे। और रही इस कंडोम की बात तो हमारे बीच कोई परत नहीं होनी चाहिए और उस पैकेट को फेंक दी। कविता ने हंसकर कहा।
जय ने कविता के गीले बालों पर हाथ फेरा, शैम्पू की खुसबू आ रही थी। जय ने कविता को कमर से पकड़कर अपनी बाहों में ले लिया। कविता के गुलाबी गालों पर वो हाथ फेरने लगा। कविता ने अपने मुलायम गाल से जय के हाथों पर दबाव बनाकर ये जताया कि वो उसके साथ है। जय ने फिर कविता के होंठो को अपनी उंगलियों से छुआ,उसके होंठ कांप रहे थे एक मर्द के एहसास से। कविता की आंखें अनायास बन्द हो गयी। जय ने कविता के आंखों को चूमा और कहा - आंखें खोलो। कविता ने धीरे से अपनी आंखें खोली। फिर जय कविता के होंठों के करीब अपने होंठ लाया और वो कब मिल गए दोनों को पता ही नहीं चला। दोनों इस चुम्मे में खो गए थे। जय कविता के होंठों को कुल्फी की तरह चूस रहा था। कविता उसके होंठो को ठीक वैसे ही चूस रही थी, जैसे कोई बच्चा चॉक्लेट चूसता रहता है। दोनों एक दूसरे के मुंह में जीभ घुसाके चूस रहे थे। जब सांस उखड़ जाती तो कुछ पल थमते फिर होंठों का रसपान करने लगते। कविता की बांहे जय के गर्दन पर जमी हुई थी। दोनों में से कोई दूसरे को छोड़ने को तैयार ही नहीं था। जय ने आखिर इस सिलसिले को तोड़ा और कविता के गर्दन पर चुम्मों की बौछार कर दी। कविता की चुचियाँ तन गयी थी, जो जय के सीने से रगड़ खा रही थी। जय का दाहिना हाथ कविता के दोनों चूतड़ों को बारी बारी से मसल रहा था। जैसे ही जय का हाथ उसके चूतड़ों पर गया



कविता ने सहयोग के तौर पर उसके हाथों पर अपने हाथ रख दिया था। जय ये महसूस करके जोश में आ गया। और कविता का तौलिया निकाल दिया।पलक झपकते कविता नंगी हो गयी। कविता ने अपना चेहरा जय के सीने में छुपा लिया। जय ने कविता के चेहरे को सीने से अलग किया, उसके माथे पर एक किस करके बोला, तुमने ही कहा था कि हमारे बीच कोई परत नहीं होनी चाहिए। कविता कुछ नहीं बोली सिर्फ कामुक होकर अपने दोनों हाथ अपने सर के पीछे रख लिया और खुद एक कदम पीछे हटके खड़ी हो गयी। फिर बोली- सही कहा था, अब देखो हमको।
ऊफ़्फ़फ़फ़ ................... क्या दृश्य था वो। कविता एक नर्तकी की मुद्रा में थी। कविता की उन्नत चुचियाँ एक दम कड़ी हो चुकी थी, जो कामुकता की वजह से तनी हुई थी। उसने जान बूझकर अपनी चुचियाँ और बाहर निकल थी। चुचियों पर हल्के भूरे रंग के निप्पल अंगूर के जैसे लग रहे थे। चुचियों की गोलाइयां एक दम पके बड़े आमों की तरह थी, जो अपने चूसे जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे। इस आमंत्रण को जय ठीक से स्वीकार भी नही कर पाया था कि उसकी नज़र कविता के समतल पेट पर गयी। हल्की चर्बी थी, पर वो उसके कमर और पेट को कामुक बना रहा था। जय ने कविता की नाभि की गहराई अपनी आंखों से नापी, जो कि कविता के पेट का मुख्य आकर्षण था।कविता की नाभि अंडाकार और गहरी थी।
जय ये सब देख ही रहा था कि कविता घूम गयी, दूसरी ओर। ये तो बिल्कुल जय के सपने जैसा था, जिसमे एक औरत पीछे मुड़के खड़ी होती थी। पर वो कभी उसका चेहरा नहीं देख पाया था। उसे अब महसूस हुआ कि वो और कोई नही उसकी बहन ही थी। कविता ने अपने बाल आगे कर लिया।और अपनी नंगी पीठ अपने छोटे भाई को दिखाने लगी। कविता के गोरी होने की वजह से उसकी पीठ में कंधे के पास बड़ा सा तिल साफ दिख रहा था। उसके बाद कविता ने अपनी गाँड़ लहराई। कविता के चूतड़ों की थिरकन बहुत सेक्सी लग रही थी। कविता के चूतड़ों का आकार दिलनुमा था। गाँड़ की दरार बहुत सटीक थी। गाँड़ पर भी दो तिल थे। चूतड़ बिल्कुल तरबूज़ जितने बड़े थे। कविता ने अपने चूतड़ों को अलग किया और फिर छोड़ दिया। वो ऐसा चार पांच बार की। फिर अपने चूतड़ों को पकड़के हिलाने लगी। उसे दबाया और हल्के थप्पड़ मारे। जय ये सब देखते हुए अपना लण्ड रगड़ रहा था। कविता पीछे , मुड़ी और बोली, भाई क्या हुआ तुम कुछ बोल क्यों नहीं रहे। अच्छा नहीं लग रहा है क्या तुमको? अपनी चूतड़ को सहलाते हुए बोली।
जय- कोई पागल ही होगा जिसको ये अच्छा ना लगे। दीदी तुम एक दम बढ़िया कर रही हो। क्या शरीर है तुम्हारा। तुमको तो फिल्मों की हीरोइन बनना चाहिए। हम तुम्हारे अंग अंग को पहले जी भरके मन में बसाना चाहते हैं।
 
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कविता- तो फिर देखो लेकिन औरत देखने की नहीं महसूस करने की चीज़ है। आओ हमारे पास और महसूस करो हमको। कविता ने इठलाते हुए कहा।
जय उसके करीब गया और कविता की नंगी पीठ को ऊपर से सहलाते हुए उसकी कमर तक हाथ फेरा। उसकी पीठ पर जो तिल थे, उसे चूमा और एक हाथ कविता की गांड पर दूसरे से कविता की बांयी चूची को थाम लिया। जय ने इसे पहले भी महसूस किया था, पर आज कविता मन से उसका साथ दे रही थी। उसने उसकी गाँड़ और चूची दोनों को खूब मसला। उसके निप्पल को जब वो छेड़ रहा था, तो कविता सीत्कार उठती, इससस्स….........
कविता को पीछे से जकड़े हुए उसने अपना लौड़ा उसकी गाँड़ पर रगड़ने लगा। कविता को अपनी गाँड़ पर अपने छोटे भाई का चुभता लौड़ा बहुत मस्त लग रहा था। उसका एक हाथ उसके लौड़े को अंडरवियर के ऊपर से ही महसूस करने लगा। जय ने कविता को झटके से अपनी ओर घुमा लिया।कविता की गाँड़ की दरार में उसने उंगलिया घुसा दिया। और इधर कविता के अंगूर समान निप्पल्स को मुंह मे रखके चूसने लगा। कविता को अपनी चुचियों को चुसवाने में बड़ा मजा आ रहा था। वो अपनी चूची को उठाके जय के मुंह मे देने लगी। जय उसकी चुचियों को पूरा आनंद से चूस रहा था। कविता- आआआ......... आआहह...... भा...भाई .....चूस.....सो.....। ऊफ़्फ़फ़फ़...... आआहह.... खूब चूसो। बहुततत..... अच्छा लग रहा है।
जय ने उसके आनंद को बनाये रखा, और खूब चूसा। कविता के बुर से पानी लगातार बह रहा था। जय ने उसकी दोनों चुचियों को खूब चूसा। कविता जय के लण्ड को सहला रही थी।
जय ने अपना अंडरवियर उतारना चाहा तो कविता ने उसे रोक दिया। और खुद ही सिंक के पास फर्श पर घुटनो के बल बैठ गयी। जय के लण्ड को अंडरवियर के ऊपर से ही चाटने लगी। उसके लण्ड की खुसबू सूंघ रही थी। जय का अंडरवियर कविता ने गीला कर दिया अपने थूक से।फिर उसने जय के लण्ड को बाहर निकाला अंडरवियर से। जय ने अंडरवियर को फिर निकाल दिया। कविता ने जय के लण्ड को अपने चेहरे पर लगाके उसके साइज को नापा, लगभग पूरा चेहरा की लंबाई कवर हो गया। कविता हंस रही थी, बोली- हमारे चेहरे के बराबर है, तुम्हारा लण्ड।
जय- यही कल रात तुम्हारी चुदाई किया था। और ज़ोर से हंसा। अब खूब चुदोगी इससे।
जय के लण्ड को कविता ने अपने मुंह मे भर लिया। जय का लण्ड चुसाने का ये पहला अनुभव था। कविता ने बिल्कुल वैसे ही चूसना शुरू किया जैसे ब्लू फिल्मों में करते हैं। कविता ने उसके लण्ड को पूरा थूक से नहला दिया। उसका थूक जय के लण्ड से धागों की तरह लटका हुआ था। वो पूरा मन लगाके लण्ड को चाट रही थी।कभी लण्ड के सुपाडे को जीभ से रगड़ती, और चूसने लगती। लण्ड के छेद को जीभ से छेड़ती। फिर लण्ड पर थूककर अपने हाथों से मलती। और फिर लण्ड को मुंह मे भरकर चूसने लगती। कविता चूसते हुए बोली- भाई तुम्हारा लण्ड बहुत मस्त है। एक दम कड़क है, आहहहहह.... हहदहम्ममम्म.... चप..... चप..... उम्म......।
जय कुछ नहीं बोल पा रहा था, उसके मुंह से केवल आआहहहहहहहह…........ऊफ़्फ़फ़फ़...... ओह्हहहहहह...... तुममम्म...... कमाल की लण्डचुस्सकर हो कविताताता.... जानू।


कविता ने फिर जय के लण्ड को पूरा मुंह मे घुसा लिया। और जय को देखती रही। मुंह मे लण्ड होने की वजह से उसके गाल फूल गए थे। और वो तिरछी नज़रो से जय को देख रही थी। कुछ देर वैसे रुकने के बाद उसको उबकाई आयी और पूरा लण्ड बाहर आ गया। लौड़ा पूरा थूक से सन चुका था। कविता की आंखों में इस वजह से आंसू थे और हांफ रही थी। कविता ने जय को देखा और कहा इसे गैगिंग कहते हैं भाई। हम ये खीड़े के साथ किए थे, आज लण्ड के साथ कि हूँ।
जय ने जोश में कहा- हाँ, पता है हमको, हम भी इसका फैन हैं, तुम बहुत मस्त कर रही हो, बिल्कुल ब्लू फिल्म की रंडियों की तरह। सॉरी गाली दी।
कविता- चुदाई का मज़ा तो गालियों के साथ ही आता है। हमको कोई एतराज़ नहीं है, जो मन चाहे गाली दो। बोलके कविता ने फिर लण्ड मुंह मे ले लिया।
जय- क्या बात है मेरे मुंह की बात छीन ली, आजसे तू हमारी रंडी है कविता दीदी। दीदी से रंडी बन गयी है।
कविता फिर लण्ड चूस रही थी, तब जय ने उसके बालों का गुच्छा बनाके कसके पकड़ लिया, जिससे उसके बाल हल्के खींच रहे थे। तब उसने लण्ड को बाहर निकाल लिया, कविता का मुंह खुला था, जय ने उसके खुले मुंह मे थूक की गेंद बनाके गिराया, जो सीधा उसके मुंह मे गिरा। कविता वो जय को दिखाके पी गयी, और बोली- और थूको , प्लीज और दो, मुंह खोल दी। जय ने फिर वैसे ही किया। इस बार भी कविता ने वही किया।
कविता तुम कितनी बड़ी रंडी हो, हमको विश्वास नहीं हो रहा है कि हमारी शरीफ दीदी के अंदर इतनी बड़ी रंडी रहती है। जय बोलकर अपना लण्ड कविता के मुंह पर रगड़ने लगा। उसके पूरे चेहरे को अपने लण्ड पर लगे थूक से भिगो दिया। कविता को ये बहुत ही उत्तेजक लग रहा था। कुछ देर उसके चेहरे पर ऐसा करने के बाद। उसने कविता को बालों से पकड़कर किचन की दीवार से लगा दिया, जिससे वो पीछे पूरी तरह से चिपक गयी, अब वो और पीछे नहीं जा सकती थी। जय ने कविता के मुंह मे लौड़ा डाल दिया। कविता का मुंह पूरा उसके लौड़े से भर गया। कविता के मुंह को जय बेरहमी से चोदने लगा। जय ठोकर मारता तो उसका आंड कविता के ठुड्ढी और होंठों से टकरा जाते थे। कविता की आंखें बिना पालक झपकाए जय की आंखों को निहार रही थी। गर्मी की वजह से दोनों पसीना पसीना हो चुके थे। पर कोई रुकने का नाम नही ले रहा था। जय लौड़ा निकालता और उसपर लगा थूक कविता के चेहरे पर मल देता। कविता के मुंह से थूक के धागे बन बनके फर्श पर गिर रहे थे। जय- क्यों कविता रंडी दीदी मज़ा आ रहा है, चुदाई में।
कविता सिर्फ हल्का सर हिलाके गूँ गूँ गूँ गूँ गूँ गूँ गूँ......... गों गों गों गों करके जवाब दे रही थी।
फिर जय ने कविता को बालों से पकड़े हुए ही उठाया और उसे पकड़के किचन से बाहर ले आया। जय कामुकता से बोला- क्या मस्त रंडी छुपी थी इस घर में और मैं ब्लू फिल्में देखता था। सच मे लड़की में त्रियाचरित्र के गुण होते ही है। साली ऊपर से ढोंग रचती है पवित्र होने का और अंदर से उतनी बड़ी रांड के गुण छुपाये रहती है।


कविता कुछ सोची ये सुनके और हसने लगी, क्या बात बोला तुमने, एक दम सच।
जय कविता को अपने कमरे में ले गया। और उसको बिस्तर पर धकेल दिया।
कविता- अब क्या करोगे हमारे राजा भैया? वो मुस्कुराते हुए कामुकता से बोली। जय- तुम्हारी बुर का स्वाद चखना है। चल अपना पैर फैलाकर बुर को खोल।
कविता- वाह, तुम बुर को चुसोगे, आ जाओ। इस बुर को जूठा कर दो, अभी तक किसीने नहीं चूसा है इसको।
जय ने कविता की टांगों के बीच जगह बनाई और बैठ गया। आज तो दिन में सब खुल्लम खुल्ला हो रहा था। उसने बुर के करीब आके उसको पहले सूँघा। सूंघने से उसमे बुर की सौंधी सी खुसबू आ रही थी। कविता की बुर गीली हो चुकी थी। उसमें से लसलसा पदार्थ बह रहा था, जो कि बुर को चिकना बना रही थी। बुर की दोनों फाँक को कविता ने अलग कर रखा था। अंदर सब गुलाबी गुलाबी था। फैलाने से बुर की छेद हल्की दिखाई दे रही थी। उसने बुर के ऊपर थूक दिया और उसपर खूब माल दिया। उसने करीब 5 6 बार थूका। फिर बुर की चुसाई में लग गया। उसने जीभ से बुर की लंबी चिराई को सहलाना शुरू किया। और अपनी दांयी हाथ की मध्य उंगली उसकी बुर में घुसा दी।
कविता चिहुंक उठी। ऊफ़्फ़फ़फ़ ऊफ़्फ़फ़फ़,............ आआहह, ऊईईईई, आआहह.... आऊऊऊऊऊ। जय बहुत अच्छा लग रहा है। आआहह उसके हाथ जय के सर के पीछे थे, जो जय को बुर की तरफ लगातार धकेल रहे थे।
जय तो कविता की रसीली बुर चूसने में तल्लीन था। जय के मुंह से केवल लप लप लप लप लप .......लुप लुप लुप...... सुनाई दे रहा था।
कविता कामुकता से लबरेज़ अब बकते जा रही थी- जय और चूसो खूब .... आआहह ऐसे ही.....ऊफ़्फ़फ़फ़..... ऊउईईई।जय की उंगलियां उसके बुर की गहराई में उतार रही थी। जय कभी उसके बुर के दाने को चूसता, कभी दांतो से हल्का काट लेता। ऐसा करके वो कविता को चरम सुख की ओर ले जा रहा था। वो बुर को पूरा मुंह मे भरके लपलपाती जीभ से चाट रहा था। तभी कविता ने उसके सर को अपनी जांघों के बीच जकड़ लिया, और दोनों हाथों से उसके सर को बुर पर धकेलने लगी। एक चीख आईईईईईईईईई, के साथ, वो फिर निढाल हो गयी।
कविता ने अपने भाई को अपने बांहों में भर लिया । जय ने बोला- बिना लण्ड लिए ही झड़ गयी।
कविता- उसका टाइम भी आएगा भाई, सब्र करो। हम रात के लिए कुछ तो बचाके रखे।
जय- फिर इसे कैसे मनाऐं ? लण्ड की ओर इशारा करके बोला।
कविता- इसका पूरा रस बचाके रखो। अब से वो हमारा है। रात को इसको हम मनाएंगे। जय के लण्ड और आंड को सहलाते हुए बोली। उसके माथे को चूमी और उसका सर अपनी चुचियों में छुपा लिया।
 
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कविता और जय यूँही लेटे हुए सो गए। तब शाम के करीब 5 बज रहे थे। जय कविता के चुच्चीयों पर सर रखके सोया था। कविता की चुच्चियाँ अभी भी तनी हुई थी। जय का सर दोनों चुच्चीयों के बीच में था। कविता का दाहिना हाथ उसके सर पर था। जय का दाहिना हाथ कविता के बुर पर रखा था। जय के मुंह और चेहरे पर कविता की बुर के रस चिपके हुए थे, उसके मुंह मे कविता के बुर की महक आ रही थी। कविता का मुंह खुला हुआ था। उसके बाल बिखरे हुए थे, जय ने उसके बालों को उसकी मुंह की चुदाई के लिए हैंडल की तरह इस्तेमाल जो किया था। जय का लण्ड अभी थोड़ा शांत था, हालांकि जय ने अभी तक अपने लण्ड का रस नहीं निकाला था। उसके आंड में वीर्य कुलबुला रहे थे। दोनों बिहारी भाई बहन हिंदुस्तान की राजधानी दिल्ली में एक नया इतिहास लिख रहे थे। एक दूसरे पर नंगे परे भाई बहन नींद की गहराइयों में सोए हुए थे, कि तभी कविता के मोबाइल की घंटी बजी जो कि बाहर हॉल में सोफे पर पड़ी थी। कविता की नींद खुली, लेकिन जय अभी भी सो रहा था। कविता ने जय की टेबल पर रखी उसकी रिस्ट वॉच में मिलमिलाती आंखों से टाइम देखा तो शाम के सात बजे चुके थे। उसने जय को देखा और उसके हाथ को अपने बुर से हटाया। फिर उसके सर को उसके आहिस्ते से हटाया, तो जय करवट मारके दूसरी साइड सो गया। कविता बिस्तर से उठी, उसके कोई भी कपड़े वहां नहीं थे। जय का तौलिया था, जो वो लपेट के बाहर आयी। उसने मोबाइल उठाया तब तक फ़ोन कट चुका था। उसने देखा कि उसकी माँ का फोन था। कविता अपने फोन से जब तक डायल करती, तब तक उधर से फिर फोन आ गया।
कविता- हेलो। माँ प्रणाम।
ममता- खुश रहो। कैसी हो?
कविता- ठीक हैं, माँ। तुम कहाँ पहुंची?
ममता- अरे ये ट्रेन बहुत लेट है। सुबह तक पहुंचाएगा। और जय कैसा है?
कविता- वो भी ठीक है। तुम खाना खाई?
ममता- हाँ, खाये थे। ट्रेन में ही खाना दे रहा था। तुमलोग खाना खाए कि नहीं?
कविता- हाँ, खाये हैं दोनों लोग।
कविता को ज़ोर से पेशाब लगी थी। वो अपने दोनों पैर को भींच रही थी। वो प्रतीक्षा कर रही थी कि कब ममता फोन काटे।
ममता- ख्याल रखना दोनों, हम पहुँचके फोन करेंगे।
कविता- अच्छा मां, प्रणाम रखते हैं
 

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